पथरी—एक प्राचीन रोग का इलाज करना
संभव है कि आपने किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में सुना हो जो पथरी से पीड़ित रहा हो। अमरीका में, कुछ ३,००,००० पथरी के रोगी हर साल अस्पतालों में भर्ती होते हैं। पीड़ा इतनी तीव्र हो सकती है कि इसकी तुलना प्रसव पीड़ा से की जा सकती है।
कुछ लोग सोचते हैं कि पथरी अपेक्षाकृत हाल ही की एक स्वास्थ्य समस्या है, संभवतः इसका सम्बन्ध आधुनिक आहार या जीवन-शैली से है। लेकिन असल में, मूत्रीय क्षेत्र में पथरियों ने मानवजाति को सदियों से सताया है। वे हज़ारों साल पुरानी मिस्री ममियों में भी पाई गई हैं।
पथरियाँ तब बनती हैं जब पेशाब में खनिजों का ढेर लग जाता है और वे बढ़ जाते हैं, बजाय इसके कि घुलकर शरीर से बाहर निकल जाएँ। वे विभिन्न आकार ले लेती हैं और अनेक पदार्थों से बनी होती हैं। क्लीनिकल सिम्पोसिया (Clinical Symposia) कहती है: “अमरीका में, क़रीब ७५% [वृक्क] पथरियाँ मुख्यतः कैलशियम ऑक्सालेट से बनी होती हैं, और अतिरिक्त ५% शुद्ध कैलशियम फॉस्फेट से बनी होती हैं।”
व्यापकता और कारण
एक रिपोर्ट के अनुसार, उत्तरी अमरीका में क़रीब १० प्रतिशत पुरुषों और ५ प्रतिशत स्त्रियों को अपने जीवनकाल में पथरी होगी। और आवृत्ति दर ऊँचा है। पाँच में से १ ऐसे व्यक्ति को जिसे पथरी है पाँच साल के अन्दर एक और पथरी हो जाएगी।
क्यों कुछ लोगों को पथरी हो जाती है और दूसरों को नहीं, इस बात ने डाक्टरों को बहुत सालों से हैरान किया है। पथरियाँ अनेक कारणों से बनती हैं। इनमें शरीर के उपापचय की विकृत्तियाँ, संक्रामण, वंशागत विकृतियाँ, निर्जलन की लम्बी बीमारी, और आहार सम्मिलित हैं।
पेशाब करते समय क़रीब ८० प्रतिशत पथरियाँ अपने आप निकल जाती हैं। उनको निकलने में मदद करने के लिए मरीज़ों को प्रोत्साहित किया जाता है कि बड़ी मात्रा में पानी पीएँ। जबकि ऐसी पथरियाँ अपेक्षाकृत छोटी होती हैं, और अकसर मुश्किल से ही दिखाई देती हैं, पीड़ा बहुत हो सकती है। यदि मूत्रीय क्षेत्र में रुकावट आ जाती है या पथरी निकलने के लिए बहुत बड़ी है (वे गॉल्फ़ गेंद के बराबर बड़ी हो सकती हैं) तो मरीज़ के स्वास्थ्य को बचाने के लिए चिकित्सीय इलाज की ज़रूरत होती है।
नए इलाज
क़रीब १९८० तक, ऐसी पथरियों को, जो अपने आप नहीं निकलतीं, निकालने के लिए बड़े आपरेशन की ज़रूरत होती थी। वृक्क या मूत्रीय क्षेत्र में अटकी पथरी तक पहुँचने के लिए पार्श्व भाग में कुछ ३० सेंटीमीटर लम्बा दर्दनाक चीरा लगाया जाता था। आपरेशन के बाद स्वस्थ होने के लिए दो-सप्ताह अस्पताल में रहना होता था और फिर घर में क़रीब दो महीने का स्वास्थ्यलाभ। लेकिन “हाल ही की प्रौद्योगिक प्रगति के साथ” चिकित्सा पाठ्यपुस्तक कॉनस् करन्ट थेरेपी (Conn’s Current Therapy) कहती है, “आपरेशन करके निकालने की ज़रूरत विरल हो गई है।”
अब, कठिन पथरियाँ भी एक ऐसी तकनीक से निकाली जा सकती हैं जिसमें सिर्फ़ छोटा सा आपरेशन करना पड़ता है। एक और तकनीक जो आजकल साधारणतः ज़्यादा इस्तेमाल की जाती है, एक्सट्राकॉर्पोरियल शॉक वेव लिथोट्रिप्सी [extracorporeal shock wave lithotripsy (ESWL)] कहलाती है, और इसमें कोई आपरेशन की ज़रूरत नहीं होती। इन नई चिकित्सीय उपलब्धियों का हवाला देते हुए, कॉनस् करन्ट थेरेपी कहती है कि बड़ा आपरेशन “आज संभवतः केवल १ प्रतिशत [पथरी] निकालने के लिए किया जाता है।”
एक छोटा-आपरेशन तकनीक
एक तकनीक जिसमें केवल एक छोटे आपरेशन की ज़रूरत होती है कभी-कभी परक्यूटेनिअस अल्ट्रासॉनिक लिथोट्रिप्सी (percutaneous ultrasonic lithotripsy) कहलाती है। “परक्यूटेनिअस” का अर्थ है “त्वचा के द्वारा,” और “लिथोट्रिप्सी” का शाब्दिक अर्थ है “चूर-चूर करना।” केवल इतने से आपरेशन की ज़रूरत होती है कि पार्श्व भाग में एक सेंटीमीटर का चीरा लगाया जाए। इस मुख से एक वृक्कदर्शी (nephroscope) नामक मूत्राशयदर्शी (cystoscope) जैसा यंत्र अन्दर डाला जाता है। दर्शी से वृक्क के भीतरी भाग और हानिकारक पथरी को देखा जा सकता है।
यदि पथरी इतनी बड़ी है कि वृक्कदर्शी से नहीं निकाली जा सकती, तो दर्शी में बने चैनल से पराश्रव्य सलाई (ultrasonic probe) डाली जाती है और इस प्रकार वृक्क तक पहुँचा जाता है। फिर, पथरी या पथरियों के तोड़ने के लिए खोखली सलाई को अल्ट्रासाउन्ड जेनरेटर से जोड़ा जाता है जो सलाई को प्रति सेकन्ड क़रीब २३,००० से २५,००० बार हिलाता है। पराश्रव्य तरंगें सलाई से एक बरमे (jackhammer) के जैसे काम कराती हैं, उसके संपर्क में आए सबसे सख़्त पथरियों को छोड़ बाकी सब को चूर-चूर कर देती हैं।
सलाई के द्वारा निरन्तर चूषण वृक्क के भीतरी भाग को अक्षरशः खाली कर देता है, इस प्रकार उसे पथरी के छोटे टुकड़ों से साफ़ कर देता है। टुकड़े करने और चूषण करने की प्रक्रिया चलती रहती है जब तक कि ध्यानपूर्वक किया गया निरीक्षण यह न प्रकट कर दे कि सलाई के द्वारा सारा पथरी मलबा निकाल दिया गया है।
फिर भी, कभी-कभी पथरी के टुकड़े अब भी रह जाते हैं जो निकलने का नाम नहीं लेते। ऐसी अवस्था में, डाक्टर वृक्कदर्शी से एक पतली नली अन्दर डाल सकता है जिसमें एक छोटी-सी चिमटी लगी होती है। फिर डाक्टर चिमटी को खोल सकता है, और पथरी को पकड़कर बाहर खींच सकता है।
जैसे-जैसे त्वचाप्रेशी (परक्यूटेनिअस) शल्य-विज्ञान विकसित हुआ, अनेक तरीक़े आज़माए गए। कुछ साल पहले, यूरोलोजिक क्लिनिकस् ऑफ़ नॉर्थ अमेरिका (Urologic Clinics of North America) ने कहा: “प्रतीत होता है कि हर महीने चिकित्सा पत्रिकाओं के नए अंकों के साथ त्वचाप्रेशी पत्थर निकालने के नए तरीक़े आ जाते हैं।” पत्रिका ने कहा कि प्रक्रिया की सफलता की संभावना “पथरी के आकार और स्थिति पर निर्भर करती है।” लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व, पत्रिका ने समझाया, “आपरेशन करनेवाले का कौशल और अनुभव” है।
जबकि पथरियों को कुचलने के लिए पर्याप्त शक्ति उत्पन्न की जाती है, यह प्रक्रिया अपेक्षाकृत सुरक्षित है। क्लीनिकल सिम्पोसिया (Clinical Symposia) कहती है, “रक्त स्राव कोई उल्लेखनीय समस्या नहीं रही है।” लेकिन एक रिपोर्ट कहती है कि क़रीब ४ प्रतिशत रोगियों में भारी रक्त स्राव हुआ है।
इस प्रक्रिया के लाभों में सम्मिलित है बिलकुल थोड़ी बेआरामी और स्वास्थ्यलाभ की छोटी अवधि। अधिकांश मामलों में अस्पताल में केवल पाँच या छः दिन गुज़ारे जाते हैं, कोई-कोई रोगी तो मात्र तीन दिन के बाद घर चले जाते हैं। यह लाभ ख़ासकर रोटी कमानेवालों के लिए महत्त्वपूर्ण है, जो शायद अस्पताल छोड़ते ही काम पर लौटने के लिए तैयार हों।
बिना आपरेशन के इलाज
म्यूनिक, जर्मनी में, १९८० में शुरू किया गया एक उल्लेखनीय नया इलाज एक्सट्राकॉर्पोरियल शॉक वेव लिथोट्रिप्सी (extracorporeal shock wave lithotripsy) कहलाता है। इस प्रक्रिया में कोई भी चीरा लगाए बिना पथरियों के टुकड़े करने के लिए उच्च-ऊर्जा प्रघाती-तरंगों का प्रयोग किया जाता है।
रोगी को स्टेनलेस-स्टील टैंक में उतारा जाता है जो कि गर्म पानी से आधा भरा होता है। उसे सावधानी से ऐसे स्थित किया जाता है कि जिस वृक्क का इलाज किया जा रहा है वह अंतर्जल स्फुलिंग विसर्जन (underwater spark discharge) द्वारा उत्पन्न प्रघाती-तरंगों के केंद्रिय बिन्दु पर हो। तरंगें आसानी से नरम मानवीय ऊतकों को पार करके अपनी ज़रा भी ऊर्जा खोए बिना पथरी तक पहुँच जाती हैं। वे पथरी पर तब तक बमबारी करती रहती हैं जब तक कि वह टुकड़े-टुकड़े न हो जाए। तब अधिकांश रोगी पथरी के मलबे को आसानी से निकाल पाते हैं।
वर्ष १९९० तक, ई.एस.डब्ल्यू.एल. (ESWL) क़रीब ८० प्रतिशत रोगियों की पथरियाँ निकालने के लिए प्रयोग किया जा रहा था। पिछले साल ऑस्ट्रेलियन फैमिलि फिज़ीशियन (Australian Family Physician) ने रिपोर्ट किया कि इस तकनीक के शुरू होने के समय से, “संसार भर में ३० लाख से ज़्यादा रोगियों का १,१०० से ज़्यादा मशीनों पर इलाज किया जा चुका है, जिसमें पथरी को तोड़ने के लिए तरह-तरह के प्रघाती-तरंग जेनरेटरों का प्रयोग किया गया है।”
जबकि ई.एस.डब्ल्यू.एल. से वृक्क क्षेत्र को कुछ आघात होता है, ऑस्ट्रेलियन फैमिलि फिज़ीशियन व्याख्या करती है: “इससे विरले ही आस-पास के अंगों, जैसे कि तिल्ली, यकृत, अग्न्याशय और आँत को क्षति पहुँचती है। इस थोड़े समय के आघात प्रभाव से रोगियों को बिलकुल कम हानि होती है जिसे वे आसानी से सहन कर लेते हैं और अधिकांश रोगी चिकित्सा के बाद २४ से ४८ घंटे तक केवल उदर-भीत्ति में हल्के से [माँसपेशियों और अस्थिपिंजर के दर्द] की और [पेशाब में] थोड़े-से [ख़ून] की शिकायत करते हैं।” बच्चों का भी सफलतापूर्वक इलाज किया गया है। इस आस्ट्रेलियाई पत्रिका ने अन्त में कहा: “दस साल की जाँच के बाद प्रतीत होता है कि ई.एस.डब्ल्यू.एल. एक अत्यधिक सुरक्षित इलाज है।”
सचमुच, इलाज इतना प्रभावकारी है कि पिछले साल की कॉनस् करन्ट थेरेपी ने व्याख्या की: “(ई.एस.डब्ल्यू.एल.) ने रोग सूचक पथरियों को निकालना इतना आसान बना दिया है और यह भी इतनी कम रुग्णता के साथ कि रोगी और चिकित्सक मूत्रीय पथरी रोग के चिकित्सा प्रबन्ध में कम कड़ाई बरतने लगे हैं।”
फिर भी, पथरी एक दर्दनाक रोग है जिसे आप निश्चित ही नहीं चाहते। इससे बचने के लिए आप क्या कर सकते हैं?
बचाव
क्योंकि पथरी अकसर दुबारा हो जाती है, इसलिए यदि आपको पहले हो चुकी है तो आप बुद्धिमत्तापूर्वक बहुत पानी पीने की सलाह को मानेंगे। प्रतिदिन २ लीटर से ज़्यादा पेशाब करने की सलाह दी जाती है, और इसका अर्थ है ढेर सारा पानी पीना!
इसके साथ-साथ, अपने आहार को बदलना बुद्धि की बात है। डाक्टर सुझाव देते हैं कि लाल माँस, नमक, और ऐसे भोजन जिनमें ऑक्सालेट ज़्यादा है, के अपने उपभोग को सीमित करना चाहिए क्योंकि माना जाता है कि ये पथरी बनाने में मदद करते हैं। इन भोजनों में गिरी, चॉकलेट, काली मिर्च, और हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ, जैसे कि पालक सम्मिलित हैं। डाक्टरों ने एक समय कैलशियम अंतर्ग्रहण कम करने की सलाह भी दी थी, लेकिन इसके बदले हाल ही का अनुसंधान दिखाता है कि आहार में कैलशियम बढ़ाना पथरी बनाने की प्रवृत्ति को कम करता है।
फिर भी, आपके सारी सावधानी बरतने के बावजूद, यदि आपको एक और पथरी हो जाती है, तो यह जानना शायद थोड़ा-बहुत सांत्वनादायक हो कि उनका इलाज करने के लिए बेहतर तरीक़े हैं।
[Picture Credit Line on page 12]
Leonardo On The Human Body/Dover Publications, Inc.
[Picture on page 13]
लिथोट्रिप्टर नामक मशीन का प्रयोग करते हुए बिना आपरेशन किए पथरी का इलाज
[Credit Line]
S.I.U./Science Source/PR