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सजग होइए!–1994
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स्तन कैंसर “स्तन कैंसर—प्रत्येक स्त्री का भय” श्रंखला प्रकाशित करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। (सजग होइए, अप्रैल-जून) मैं समय-समय पर अपना परीक्षण करती रही हूँ और मात्र ऐसा सोचती रही हूँ कि मेरी ग्रन्थियाँ सख़्त हैं। अनिश्‍चित महसूस करने की वजह से मैं ने इसके बारे में कुछ किया नहीं। लेकिन इस लेख को पढ़ने के बाद, मैं अस्पताल गयी और पता चला कि मुझे कैंसर है। मेरा ऑपरेशन करवाने के प्रबंध किए गए। मैं तहेदिल से आपकी शुक्रगुज़ार हूँ।

टी. वाई., जापान

अपनी स्तन-कैंसर शल्यक्रिया के बाद, मैं कैंसर के बारे में कुछ भी पढ़ने के लिए समर्थ नहीं हो पायी हूँ। इसलिए जब यह पत्रिका निकली, तो मैं इसके बारे में ख्प्ताश नहीं थी। लेकिन सामान्यतः मैं अवेक! की सभी प्रतियाँ शुरू से आख़िर तक पढ़ती हूँ, उस रात मैं ने निर्णय किया कि थोड़ा पढ़ूँगी, और यदि घबरा गयी तो बंद कर दूँगी। मैं उसे पढ़ते-पढ़ते रुकी नहीं। ये लेख कितने अच्छी तरह लिखे गए थे, कितने ज्ञानप्रद थे, और विचारशील थे।

जी. के., अमरीका

इस लेख ने मुझे यह समझने में सहायता की कि जीवन को ख़तरे में डालनेवाली बीमारी का सामना करने के हमारे भय को यहोवा कैसे समझता है। मैं हमेशा सोचा करती थी कि अगर लोग इस तरह महसूस करते हैं तो वे कमज़ोर हैं या उनमें विश्‍वास की कमी है। इसने मुझे यहोवा की गहरी करुणा को देखने में सचमुच सहायता की।

के. जी., अमरीका

अगर किसी पत्रिका ने किसी से बात की है, तो इस अंक ने निश्‍चय ही मेरे साथ बात की है। मेरे पति और मैं सोफ़े पर बैठे थे और हमारे चारों ओर मेरे स्तन-कैंसर शल्यक्रिया के चिकित्सा-सम्बन्धी बिल फैले हुए थे। हम चेक पर चेक बना रहे थे कि डाकिया अवेक! का यह अंक दे गया। मैं ने उसी दिन असामान्य दिलचस्पी से वह लेख पढ़ लिया। उन सभी स्त्रियों की ओर से शुक्रिया जो इन लेखों से प्रोत्साहन प्राप्त करेंगी।

ई. जे., अमरीका

नगर मेरी उम्र १६ वर्ष है और नगरों पर श्रंखला पढ़कर मैं रोमांचित हुई। भूगोल की कक्षा में हमें अपनी पसंद के किसी विषय पर एक संक्षिप्त भाषण देने के लिए कहा गया। मेरा भाषण “नगर जो लोगों से भरापूरा था” (जनवरी २२, १९९४, अवेक!) लेख पर आधारित था। अपने भाषण को जब मैं ने कक्षा में ज़ोर से पढ़ा, तो सभी ने तालियाँ बजाकर प्रसन्‍नता व्यक्‍त की। भूगोल की मेरी समझ को बढ़ाने के लिए धन्यवाद।

टी. आर., जर्मनी

‘आओ हम एक नगर बना लें’ लेख में, आपने कहा: “वर्ष १९०० में, विश्‍व में लंडन एकमात्र ऐसा नगर था जिसकी जनसंख्या दस लाख थी।” (जनवरी ८, १९९४, अवेक!) लेकिन उसके अगले अंक में, आपने कहा: “मध्य-१८०० तक इसकी [इडो, अब टोक्यो कहलाता है] जनसंख्या दस लाख लोगों से कहीं अधिक थी।” कौन-सा सही है?

एस. टी., जापान

लंडन के सम्बन्ध में किया गया कथन प्रत्यक्षतः ग़लत था। वह ‘विश्‍व का सचित्रित एटलस’ (रैन्ड मैक्नैली और कंपनी) के १९८५ संस्करण पर आधारित था। लेकिन, “विश्‍व तिथिपत्र और तथ्यों की किताब १९९३” यह कहते हुए सही प्रतीत होती है कि १९०० में अनेक शहरों की जनसंख्या दस लाख से अधिक थी। गड़बड़ी के लिए माफ़ी चाहते हैं।—संपादक।

निरक्षरता किसी दिलचस्प लेख को पढ़ने के बाद मैं अकसर चाहती थी कि आपको लिखकर धन्यवाद करूँ। लेकिन “निरक्षरता की ज़ंजीरें तोड़ना” श्रंखला (फरवरी २२, १९९४, अवेक!) ने आख़िरकार मुझे ऐसा करने के लिए क़ायल किया। अगले सप्ताह मैं एक ऐसी महिला के साथ बाइबल का अध्ययन आरंभ करूँगी जो पढ़ना-लिखना नहीं जानती। मैं नहीं जानती थी कि मैं इसे कैसे करूँगी, लेकिन इन लेखों की वजह से अब मैं जानती हूँ। ये सही वक़्त पर आए!

एम. ए. सी., इटली

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