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  • मेरा ध्यान क्यों नहीं लगता?

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  • मेरा ध्यान क्यों नहीं लगता?
  • सजग होइए!–1998
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सजग होइए!–1998
g98 8/8 पेज 19-21

युवा लोग पूछते हैं . . .

मेरा ध्यान क्यों नहीं लगता?

“कभी-कभी संयोग से ऐसा हो जाता है। मैं कलीसिया सभा में सुन रहा होता हूँ और फिर अचानक मेरा मन बहकने लगता है। दस मिनट बाद मैं वापस आ जाता हूँ।”—जॆसी।

“ध्यान दो!” क्या अकसर अपने शिक्षकों या माता-पिता से आपको ये शब्द सुनने पड़ते हैं? यदि हाँ, तो आपको शायद एकाग्रता रखने में समस्या हो रही है। इसी कारण शायद आपके नंबर कम आ रहे हैं। और आपको लगता है कि दूसरे आपको नीची नज़र से देखते हैं, मदहोश, खोया-खोया या बस रूखा समझकर अनदेखा कर देते हैं।

उससे भी ज़रूरी बात है कि ध्यान न दे पाना आपकी आध्यात्मिकता पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। आखिरकार, बाइबल ही तो आज्ञा देती है: “चौकस रहो, कि तुम किस रीति से सुनते हो।” (लूका ८:१८) असल में, मसीहियों को आज्ञा दी गयी है कि आध्यात्मिक बातों पर “और भी मन लगाएं।” (इब्रानियों २:१) और यदि आपका ध्यान नहीं लगता तो आपको इस सलाह पर अमल करने में मुश्‍किल होगी।

समस्या की जड़ क्या है? कभी-कभी ऐसा होता है कि किसी शारीरिक समस्या के कारण ध्यान नहीं लगता। उदाहरण के लिए, कुछ अनुसंधायक मानते हैं कि ध्यान अभाव विकार (ए.डी.डी.) में मस्तिष्क के तंत्रिकाप्रेषी तंत्रों (न्यूरोट्रांसमिटर सिस्टम्स) का ठीक से काम न करना अंतर्ग्रस्त है।a कुछ युवाओं की समस्याओं का निदान नहीं हुआ होता है, जैसे सुनने या देखने में परेशानी। इनसे भी एकाग्रता की क्षमता घट सकती है। अनुसंधायकों ने पाया है कि आम तौर पर वयस्कों से ज़्यादा युवाओं को ध्यान लगाने में समस्या होती है। इसलिए ध्यान न लगना युवाओं के बीच आम बात है, लेकिन शारीरिक विकार शायद ही कभी इसका कारण होता है।

आपका सोचने का तरीका बदलता है

यदि आपका ध्यान नहीं लग रहा है, तो अति संभव है कि आपको और कुछ नहीं बस विकास-जनित पीड़ा हो रही है। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “जब मैं बालक था, तो मैं बालकों की नाईं बोलता था, बालकों का सा मन था बालकों की सी समझ थी; परन्तु जब सियाना हो गया, तो बालकों की बातें छोड़ दीं।” (१ कुरिन्थियों १३:११) जी हाँ, जैसे-जैसे आप बड़े होते हैं आपका सोचने का तरीका बदलता है। पुस्तक युवा विकास (अंग्रेज़ी) के अनुसार, “आरंभिक युवावस्था में . . . नयी वैचारिक क्षमताएँ उभरती हैं।” आपमें दुर्बोध विचारों और धारणाओं को समझने और उनका विश्‍लेषण करने की क्षमता विकसित होती है। आपको आचार, नीति और दूसरे बड़े मुद्दों की गहरी समझ होने लगती है। आप एक वयस्क के रूप में अपने भविष्य के बारे में सोचने लगते हैं।

समस्या? इतने सारे नये सोच-विचार और धारणाएँ आपके दिमाग में घूमने लगती हैं जिससे ध्यान भंग हो सकता है। अब आप बच्चे की तरह सरल, बुनियादी स्तर पर नहीं सोचते। अब आपका दिमाग आपको प्रेरित करता है कि जो आप देखते और सुनते हैं उसका विश्‍लेषण करें और उस पर प्रश्‍न उठाएँ। अध्यापक या शिक्षक की किसी बात से आपका दिमाग किसी रोमांचक सैर पर निकल पड़ता है। लेकिन यदि आप अपने बहके विचारों को वश में करना नहीं सीखते, तो आप मूल्यवान जानकारी से वंचित रह सकते हैं। दिलचस्पी की बात है, बाइबल कहती है कि धर्मी मनुष्य इसहाक एकांत में मनन करता था। (उत्पत्ति २४:६३) हर दिन कुछ समय अलग रखकर शांति से मनन करने और विचारों को सुलझाने से आपको मदद मिल सकती है कि दूसरे समय पर ज़्यादा ध्यान लगाएँ।

भावनाएँ और हॉर्मोन

आपकी भावनाएँ भी ध्यान भंग करने का कारण हो सकती हैं। आप जो पढ़ रहे हैं या सुन रहे हैं उस पर आप ध्यान लगाने की कोशिश तो करते हैं, लेकिन असल में होता यह है कि आप दूसरी बातों के बारे में सोच रहे होते हैं। कभी आप ऊब जाते हैं तो कभी रोमांच से भर जाते हैं, कभी हताश हो जाते हैं तो कभी आपकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता। चिंता मत कीजिए! आप पागल नहीं हो रहे हैं। अति संभव है कि आपके हॉर्मोन आप पर यह कहर ढा रहे हैं। आपमें यौवनारंभ के बदलाव आ रहे हैं।

कैथी मॆकॉय और चार्ल्स विबल्समन लिखते हैं: “युवावस्था में भावनाएँ उमड़ती हैं। . . . मूड में यह उतार-चढ़ाव कुछ हद तक युवा होने का हिस्सा है। अभी आपमें जो बदलाव हो रहे हैं उससे तनाव होता है, वह भी इस उतार-चढ़ाव का कारण है।” इसके अलावा, आप “नवयौवन” में पहुँच रहे हैं—जब लैंगिक कामनाएँ पूरे उफान पर होती हैं। (१ कुरिन्थियों ७:३६, NW) लेखिका रूथ बॆल कहती है: “यौवनारंभ में होनेवाले शारीरिक बदलावों के कारण अकसर कामेच्छा बढ़ जाती है। आप शायद सॆक्स के बारे में ज़्यादा सोचने लगें, ज़्यादा जल्दी कामोत्तेजित हो जाएँ, और कभी-कभी कामातुर भी होने लगें।”b

जॆसी जिसका ज़िक्र शुरूआत में किया गया है उसका मन भी दूसरे किशोरों की तरह बहक जाता है: “कभी मैं लड़कियों के खयालों में खो जाता हूँ तो कभी किसी चिंता में डूब जाता हूँ या कभी उन कामों के बारे में सोचता हूँ जो मुझे करने हैं।” आगे चलकर भावनाओं का तूफान थम जाएगा। इस बीच, आत्म-अनुशासन सीखिए। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “मैं अपनी देह को मारता कूटता, और वश में लाता हूं।” (१ कुरिन्थियों ९:२७) आप अपनी भावनाओं को वश में करने की जितनी ज़्यादा कोशिश करेंगे उतना ज़्यादा आप अपना ध्यान केंद्रित कर पाएँगे।

आप कितनी नींद लेते हैं

आपके बढ़ते शरीर को पर्याप्त नींद की ज़रूरत है जो आपको शारीरिक रूप से बढ़ने में मदद देगी और आपके दिमाग को उन नयी धारणाओं और भावनाओं को समझने में मदद देगी जिनसे हर दिन आपका सामना होता है। लेकिन, अनेक युवाओं की कुछ ऐसी सारणी होती है कि उन्हें सोने का ज़्यादा समय नहीं मिलता। एक तंत्रिकाविज्ञानी टिप्पणी करता है: “हमारा शरीर नहीं भूलता कि उसे कितने घंटे की नींद मिलनी बाकी है। वह हमेशा इस बात को याद रखेगा और फिर अचानक अपनी कीमत वसूल कर लेगा। आपकी याददाश्‍त कमज़ोर पड़ जाएगी, ध्यान लगाने में मुश्‍किल होगी और आपका दिमाग तेज़ी से नहीं चलेगा।”

कुछ अनुसंधायक मानते हैं कि हर रात एकाध घंटा ज़्यादा नींद लेने से व्यक्‍ति को अपनी एकाग्रता बढ़ाने में बहुत मदद मिल सकती है। सच है कि बाइबल आलस और नींद से प्रीति रखने की निंदा करती है। (नीतिवचन २०:१३) लेकिन, सुचारू रूप से काम करने के लिए पर्याप्त आराम करना समझदारी की बात है।—सभोपदेशक ४:६.

आहार और एकाग्रता

एक और समस्या हो सकती है आहार। तली हुई और मीठी चीज़ें किशोरों को पसंद आती हैं। अनुसंधायक कहते हैं कि बाज़ारू खाना शायद स्वादिष्ट लगे लेकिन प्रतीत होता है कि उससे दिमाग सुस्त पड़ जाता है। इसी तरह अध्ययन दिखाते हैं कि रोटी, दलिया, चावल, या नूडल्स जैसे कार्बोहाइड्रेट-युक्‍त भोजन करने के बाद दिमाग तेज़ी से नहीं चलता। ऐसा शायद इसलिए है कि कार्बोहाइड्रेट्‌स दिमाग में सॆरोटोनिन नामक रसायन की मात्रा बढ़ा देते हैं और व्यक्‍ति को नींद-सी आने लगती है। इसलिए कुछ पोषण-विज्ञानी सुझाव देते हैं कि कोई ऐसा काम करने से पहले जिसमें दिमाग चलाने की ज़रूरत हो, प्रोटीन-प्रचुर भोजन करना चाहिए।

टीवी और कंप्यूटर पीढ़ी

सालों से शिक्षकों ने माना है कि टीवी और उसकी दौड़ती तसवीरें युवाओं की एकाग्रता को घटा देती हैं और अब कुछ लोग यही आरोप कंप्यूटर स्क्रीन पर भी लगा रहे हैं। जबकि विशेषज्ञों के बीच इस पर काफी विवाद हो रहा है कि इन आधुनिक उपकरणों का युवाओं पर कितना असर होता है, फिर भी इतना तो साफ है कि टीवी देखने या कंप्यूटर खेल खेलने में बहुत ज़्यादा समय बिताना स्वास्थ्यकर नहीं हो सकता। एक युवा स्वीकार करता है: “वीडियो खेल, कंप्यूटर और इंटरनॆट जैसी चीज़ों के कारण हम बच्चों के मन में बैठ जाता है कि हर चीज़ फटाफट मिलनी चाहिए।”

मुश्‍किल यह है कि जीवन में बहुत-सी चीज़ों के लिए मेहनत, लगन और उसी पुराने धीरज की ज़रूरत होती है। (इब्रानियों ६:१२; याकूब ५:७ से तुलना कीजिए।) सो यह मानकर कभी मत चलिए कि यदि कोई चीज़ तेज़-रफ्तार और मनोरंजक है तभी वह लाभकारी होगी। हालाँकि टीवी देखना और कंप्यूटर खेल खेलना मनोरंजक हो सकता है, फिर भी क्यों न चित्र बनाएँ, रंग भरें या कोई साज़ बजाना सीखें? ऐसे कौशल आपकी एकाग्रता की क्षमता को बढ़ा सकते हैं।

क्या अपनी एकाग्रता की क्षमता बढ़ाने के दूसरे तरीके भी हैं? जी हाँ, ज़रूर हैं। आनेवाले एक लेख में हम उनमें से कुछ तरीकों को देखेंगे।

[फुटनोट]

a सजग होइए! (अंग्रेज़ी) के नवंबर २२, १९९४ अंक में पृष्ठ ३-१२ और जून २२, १९९६, पृष्ठ ११-१३ देखिए; और सजग होइए! (हिंदी) के मार्च ८, १९९७ अंक में पृष्ठ ५-१० देखिए।

b अगस्त ८, १९९४ के हमारे अंग्रेज़ी अंक में लेख “युवा लोग पूछते हैं . . . मैं अपना मन विपरीत लिंग पर से कैसे हटाऊँ?” देखिए।

[पेज 20 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

क्या अकसर क्लास में आपका ध्यान नहीं लगता?

[पेज 21 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]

अनुसंधायक कहते हैं कि बाज़ारू चीज़ें खाने से दिमाग सुस्त पड़ सकता है

[पेज 21 पर तसवीर]

“कभी मैं लड़कियों के खयालों में खो जाता हूँ तो कभी किसी चिंता में डूब जाता हूँ”

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