युवा लोग पूछते हैं . . .
मैं बेइंसाफी का सामना कैसे करूँ?
“वे लोग, जो अमीर हैं उनकी तो बहुत इज़्ज़त की जाती है। मगर हम लोग, जिनके पास न तो कुछ खाने को है, और न कहीं रहने की जगह, हमारे साथ जानवरों की तरह सलूक किया जाता है। मैं ज़िंदगी से नाउम्मीद हो चुका हूँ और अगर मैं मर भी जाऊँ तो किसी को मेरी परवाह नहीं।”—एक १५ साल का बेघर लड़का, ऑरनूलफो कहता है।
आज दुनिया में बेइंसाफी बहुत ज़्यादा फैली हुई है। यूनाईटॆड नेशन्स् चिल्ड्रन्स् फंड (यूनिसेफ) की एक रिर्पोट कहती है: “पिछले दस साल में, २० लाख से ज़्यादा बच्चे युद्ध में मारे गए। ४० लाख से ज़्यादा बच्चे अपाहिज हो गए। और १० लाख से ज़्यादा या तो अनाथ हो गए या फिर अपने माँ-बाप से बिछड़ गए। ये सब युद्ध के कारण हुआ।” इसके अलावा, जहाँ दुनिया में लाखों-लाख लोग गरीबी और भुखमरी की चपेट में हैं, वहीं दूसरी ओर ऐसे बहुत-से लोग हैं जो बड़े ऐशोआराम से जीते हैं। ऑरनूलफो की तरह विकासशील देशों में रहनेवाले बहुत से जवानों को कभी पढ़ने-लिखने का मौका भी नहीं दिया जाता।
बेइंसाफी से तब ज़्यादा गहरी चोट पहुँचती है जब कोई गैर नहीं हमारे अपने ही हमारे साथ बेइंसाफी करते हैं, वही जिनसे प्यार और देखभाल की उम्मीद की जाती है। आइए १७ साल की सूज़ॆनॉ पर गौर करें। उसकी माँ उसे और उसके दो छोटे भाइयों को छोड़कर भाग गई। सूज़ॆनॉ रोते हुए कहती है, “मेरी माँ को हमें छोड़े बहुत साल गुज़र गए हैं, मगर उसने कभी आकर मुझसे यह नहीं पूछा कि चलो बेटी मेरे साथ आकर रह लो, जबकि वह इसी शहर में रहती है। उसने कभी इतना भी नहीं कहा कि वह मुझसे प्यार करती है, बस इसी बात से मेरे तन-बदन में आग लग जाती है और मैं गुस्से से पागल हो उठती हूँ।” आपके साथ भी जब इस तरह की बेइंसाफी होती है, तब शायद आपको भी गुस्से पर काबू रखना मुश्किल लगे। बचपन में किसी की वासना का शिकार हुई एक लड़की कहती है: “तब से मुझे परमेश्वर से नफरत हो गई है।”
आपके साथ जब अत्याचार होता है तब दुखी होना या गुस्सा आना स्वाभाविक बात है। बाइबल कहती है: “बुद्धिमान मनुष्य को अत्याचार पागल बना देता है।” (सभोपदेशक ७:७, NHT) हर रोज़ बेइंसाफी सहते-सहते जीना दुशवार हो जाता है। (भजन ४३:२ से तुलना कीजिए।) इसलिए आपके दिल से यही आह निकलती है कि आखिर यह बेइंसाफी कब खत्म होगी। सेंट्रल अमरीका की एक लड़की बताती है: “जब मैं १३ साल की थी, तो मैं विद्यार्थियों के एक क्रांतिकारी संगठन में भर्ती हो गई। मेरा सपना था कि मैं कुछ ऐसा करूँ जिससे एक बदलाव आए, और फिर कभी किसी बच्चे को भूखा रहना न पड़े . . . बाद में मैं क्रांतिकारी सैनिकों की एक टोली में शामिल हो गई।” लेकिन इंसाफ पाने के बजाए, वह अपने ही सैनिक साथियों के हाथों ऐसी शर्मनाक हरकतों की शिकार हुई जिन्हें बयान भी नहीं किया जा सकता।
इस तरह की घटनाएँ हमें याद दिलाती हैं कि दुनिया में ऐसे बहुत-से लोग हैं जो इतने लाचार हैं कि अपनी हालत सुधारना उनके हाथ में नहीं है। तो फिर, बेइंसाफी से कैसे लड़ा जा सकता है?a और बेइंसाफी की वज़ह से आपको जब घुटन महसूस होती है और गुस्सा आता है तब आप क्या कर सकते हैं?
गुस्से और जलन को थूक दीजिए
समय-समय पर आपको यह बात अपने ध्यान में लाने की ज़रूरत है कि हम दुष्ट दुनिया में फैली बुराई के “अन्तिम दिनों” में रह रहे हैं। बाइबल ने पहले से ही बता दिया है कि आज की दुनिया में लोग इस तरह के होंगे जैसे “बदचलन-दुराचारी . . . बेरहम, क्षमारहित, बदनाम करनेवाले, असंयमी, अत्याचारी, भले के बैरी, दगाबाज़।” (२ तीमुथियुस ३:१-४, न्यू इंटरनैशनल वर्शन) “लज्जा की भावना उनमें” नहीं रही। (इफिसियों ४:१९, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) आज ज़िंदगी में बेइंसाफी का सामना करना आम बात हो गई है। इसलिए “यदि तू किसी प्रान्त में निर्धनों पर अन्धेर और न्याय और धर्म को बिगड़ता देखे, तो इस से चकित न होना; क्योंकि एक अधिकारी से बड़ा दूसरा रहता है जिसे इन बातों की सुधि रहती है, और उन से भी और अधिक बड़े रहते हैं।”—सभोपदेशक ५:८.
बाइबल मन ही मन कुढ़ते रहने से मना करती है और ज़रूर इसकी एक अच्छी वज़ह भी है। उदाहरण के लिए बाइबल कहती है: ‘सब प्रकार की कड़वाहट और प्रकोप और क्रोध तुम से दूर किया जाए।’ (इफिसियों ४:३१) क्यों? क्योंकि ज़्यादा समय तक मन में जलन और गुस्सा रखने से खुद को ही नुकसान होता है। (नीतिवचन १४:३०; इफिसियों ४:२६, २७ से तुलना कीजिए।) और अगर आप “मन ही मन यहोवा से” क्रोधित रहते हैं तो नुकसान बहुत भारी होगा। (नीतिवचन १९:३) परमेश्वर से नाराज़ हो जाने से नुकसान आप ही को होगा क्योंकि आपकी सबसे ज़्यादा मदद तो परमेश्वर ही कर सकता है। बाइबल कहती है कि यहोवा “की दृष्टि सारी पृथ्वी पर इसलिये फिरती रहती है कि जिनका मन उसकी ओर निष्कपट रहता है, उनकी सहायता में वह अपना सामर्थ दिखाए।”—२ इतिहास १६:९.
बाइबल यहोवा के बारे में यह भी कहती है: “उसके सब काम न्याय के हैं। वह सच्चा ईश्वर है, [वह बेइंसाफी नहीं करता] वह धर्मी और सीधा है।” (व्यवस्थाविवरण ३२:४) आज दुनिया में जो बेइंसाफी फैली हुई है वह आदम और हवा के पाप की वज़ह से फैली हुई है। (सभोपदेशक ७:२९) परमेश्वर नहीं बल्कि मनुष्य खुद “दूसरे मनुष्य पर अधिकारी होकर अपने ऊपर हानि लाता है।” (सभोपदेशक ८:९) आप एक और बात याद रख सकते हैं कि “सारा संसार उस दुष्ट [शैतान और उसके पिशाचों] के वश में पड़ा है।” (१ यूहन्ना ५:१९) इसलिए बेइंसाफी के लिए शैतान ज़िम्मेदार है यहोवा नहीं।
बेइंसाफी का नामो-निशान नहीं रहेगा
खुशी की बात है कि बेइंसाफी ज़्यादा दिन नहीं चलेगी। यह बात ध्यान में रखेंगे तो आपको बेइंसाफी का सामना करने में बहुत मदद मिलेगी। ज़रा आसाप के मामले पर गौर कीजिए, आसाप के बारे में बाइबल में बताया गया है। वह जिन लोगों के बीच रहता था वे यहोवा की उपासना करने का दावा तो करते थे मगर उन्हीं की वज़ह से चारों तरफ बेइंसाफी ही बेइंसाफी फैली हुई थी। जब आसाप ने देखा कि वे दूसरों के साथ अत्याचार करते हैं और बिना कोई सज़ा पाए बड़े मज़े की ज़िंदगी जीते हैं, तो उसने कहा: “जब मैं दुष्टों का कुशल देखता था . . . तब उन . . . के विषय डाह करता था।” ऐसी बातें सोच-सोचकर आसाप कुछ समय के लिए अपना संतुलन खो बैठा।—भजन ७३:१-१२.
मगर कुछ समय बाद आसाप को एक ज़बरदस्त एहसास हुआ। तब उसने दुष्टों के बारे में कहा: “निश्चय तू [परमेश्वर] उन्हें फिसलनेवाले स्थानों में रखता है; और गिराकर सत्यानाश कर देता है।” (भजन ७३:१६-१९) जी हाँ, आसाप को इस बात का एहसास हुआ कि लोग दुष्टता करके ज़्यादा समय तक बच नहीं सकते, अकसर उन्हें अपने किए की सज़ा भुगतनी पड़ती है जैसे कैद होना, कंगाल हो जाना, नौकरी गँवाना, या पद से हाथ धो बैठना। मगर सबसे बड़ी हानि जो उन्हें उठानी पड़ेगी, वह यह है कि बहुत जल्द जब परमेश्वर इस दुष्ट दुनिया का न्याय करेगा तब वह उनको “नाश कर” देगा।—भजन १०:१५, १७, १८; ३७:९-११.
यह बात जानकर कि बहुत जल्द परमेश्वर हर तरह की बुराई का नामो-निशान मिटा देगा, हमें कुढ़न और गुस्से को काबू में रखने में मदद मिलेगी। बाइबल सलाह देती है, “बुराई के बदले किसी से बुराई न करो, जो बातें सब लोगों के निकट भली हैं, उन की चिन्ता किया करो। जहां तक हो सके, तुम अपने भरसक सब मनुष्यों के साथ मेल मिलाप रखो। हे प्रियो अपना पलटा न लेना; परन्तु क्रोध को अवसर दो, क्योंकि लिखा है, पलटा लेना मेरा काम है, प्रभु [यहोवा] कहता है मैं ही बदला दूंगा।”—रोमियों १२:१७-१९; १ पतरस २:२३ से तुलना कीजिए।
मदद और सहारा पाना
हो सकता है कि बेइंसाफी की वज़ह से आपके दिल पर गहरी चोटें लगी हों जैसे कि तड़पानेवाली यादें। यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, “जिन बच्चों के साथ हमेशा बुरा व्यवहार किया जाता है, उनके सोचने का ढंग पूरी तरह बदल जाता है और दूसरों पर से उनका भरोसा उठ जाता है। यह बात खासकर उन बच्चों के बारे में सच है जिनके साथ उन्हीं के दोस्त या पड़ोसी बुरा सलूक करते हैं।”
आपकी इस तरह की समस्याओं को २ मिनट में हल नहीं किया जा सकता है। लेकिन अगर नकारात्मक भावनाएँ और बुरी यादें हमेशा आपको सताती रहती हैं, तो शायद आपको मदद की ज़रूरत है। (भजन ११९:१३३ से तुलना कीजिए।) सबसे पहले आपको उन लेखों को पढ़ने की ज़रूरत है जो खासकर उन दुख-तकलीफों से संबंधित हैं जिनका आपने सामना किया है। उदाहरण के लिए सजग होइए! पत्रिका में ऐसे बहुत-से लेख छापे गए हैं जो बताते हैं कि बलात्कार और लूटमार के शिकार, साथ-ही दुर्व्यवहार के शिकार बच्चों को क्या करना चाहिए। अपनी भावनाओं और चिंताओं को किसी ऐसे समझदार इंसान को बताइए जो आपकी बात पर ध्यान दे और आपको हमदर्दी दिखाए। (नीतिवचन १२:२५) शायद आप अपने माता-पिता को बता सकते हैं।
लेकिन, अगर आपको माता-पिता से मदद नहीं मिल सकती है तो मसीही कलीसिया आपकी मदद के लिए तैयार है। यहोवा के साक्षियों में, कलीसिया के प्राचीन मुसीबत के वक्त सहारा देते हैं। (यशायाह ३२:१, २) वे ना सिर्फ आपकी बातें सुनेंगे बल्कि आपको कुछ ऐसी सलाह भी देंगे जिससे आपकी मदद हो सके। और इस बात को कभी मत भूलिए कि न सिर्फ प्राचीन बल्कि सभी प्रौढ़ मसीही ‘भाइयों या बहिनों या माताओं’ के रूप में आपकी मदद कर सकते हैं। (मरकुस १०:२९, ३०) क्या आपको सूज़ॆनॉ याद है, जिसे उसकी माँ छोड़कर भाग गई थी? उसे और उसके भाइयों को मसीही कलीसिया ने सहारा दिया। एक मसीही भाई ने सूज़ॆनॉ और उसके भाइयों की इतनी मदद की कि सूज़ॆनॉ उसको अपना पिता मानने लगी। सूज़ॆनॉ कहती है कि उस मदद की वज़ह से, “हमें सच्चाई में आगे बढ़ने के साथ-साथ इसमें दृढ़ बने रहने में भी मदद मिली।”
विद्वानों का कहना है कि अगर हम खुद को हर रोज़ किसी काम में लगाए रखें तो दिमाग को गलत विचारों से दूर रख सकते हैं, इसके लिए स्कूल की पढ़ाई और घर के काम-काज में लगे रहना फायदेमंद होगा। मगर ज़्यादा मदद पाने के लिए आपको आध्यात्मिक कामों में लगे रहने की ज़रूरत है, यानी मसीही सभाओं में और प्रचार के लिए जाने की आदत बनाना।—फिलिप्पियों ३:१६ से तुलना कीजिए।
बेइंसाफी इस दुनिया से तब तक खत्म नहीं होगी जब तक कि परमेश्वर ज़मीन पर राज्य करना और अपनी इच्छा पूरी करना शुरू नहीं करता। (दानिय्येल २:४४; मत्ती ६:९, १०) तब तक, आप बेइंसाफी का सामना करने की पूरी कोशिश करते रहिए। और परमेश्वर के वादे पर अपना भरोसा बनाए रखिए कि उसके राज्य का राजा यीशु मसीह बहुत जल्द “दोहाई देनेवाले दरिद्र का, और दुःखी और असहाय मनुष्य का उद्धार करेगा। वह कंगाल और दरिद्र पर तरस खाएगा, और दरिद्रों के प्राणों को बचाएगा।”—भजन ७२:१२, १३.
[फुटनोट]
a इस लेख में, सिर्फ गरीब देशों में रहनेवाले जवानों के साथ हो रही बेइंसाफी के बारे में बातचीत की गई है मगर जो सिद्धांत इसमें बताए गए हैं वे हर तरह की बेइंसाफी का सामना करने में मदद कर सकते हैं।
[पेज 16 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
“तब से मुझे परमेश्वर से नफरत हो गई है।”
[पेज 17 पर तसवीर]
आप मसीही भाई-बहनों का प्यार और सहारा पाकर बेइंसाफी का सामना कर सकते हैं