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सजग होइए!–1999
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धार्मिक स्वतंत्रता कई दशकों से मैं सजग होइए! पढ़ता आ रहा हूँ और मैं खास “आपकी धार्मिक स्वतंत्रता—क्या यह खतरे में है?” (फरवरी ८, १९९९) विषय पर दिए गए लेखों के लिए अपनी कदरदानी व्यक्‍त करना चाहता हूँ। मुझे मालूम था कि अंधयुग कहे जानेवाले समय के दौरान, यूरोप में किसी को अपना-अपना धर्म मानने की आज़ादी नहीं थी। और कैथोलिक चर्च ने चालबाज़ी करके सरकार को अपने वश में कर लिया और अपने विवेक और धर्म को मानने की लोगों की आज़ादी पर रोक लगा दी। जब मुझे पता चला कि आज फ्रांस में क्या हो रहा है तब मन-ही-मन मैंने सवाल किया, ‘इस देश ने पहले तो हर व्यक्‍ति को अपना धर्म मानने की छूट दी थी, पर अब लोगों की धार्मिक आज़ादी को छीनकर यह अपने नाम को बदनाम क्यों कर रहा है?’ क्या ये हालात सुधरे या नहीं, इसके बारे में भी आप अपने लाखों पाठकों को ज़रूर बताइएगा। मुझे उम्मीद है कि लोगों को अपना धर्म मानने की आज़ादी देकर फ्रांस, दूसरे देशों के लिए एक मिसाल कायम करेगा।

सी. सी., पोर्टो रीको

सात बेटों की परवरिश करना फरवरी ८, १९९९ के अंक में दिए गए बर्ट और मार्गरॆट डिकमन के अनुभव के लिए धन्यवाद। इससे हमें अपने तीन बच्चों की सही तरह से परवरिश करने का हौसला मिला ताकि उन्हें एक अच्छी आध्यात्मिक विरासत मिले। यह लेख हमारे बच्चों को भी बहुत पसंद आया। वे अकसर डग से मिले सबक के बारे में एक-दूसरे को याद दिलाते हैं, जिसे सज़ा के तौर पर केक नहीं मिला था! इस तरह के बढ़िया अनुभव छापने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

एस. जे., भारत

पवित्र आत्मा मैं “बाइबल का दृष्टिकोण: परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा क्या है?” (फरवरी ८, १९९९) लेख के लिए आपका धन्यवाद कहना चाहता हूँ। वह बहुत ही बढ़िया लेख था। हालाँकि मैं कई सालों से यहोवा का एक साक्षी हूँ, मगर मैं हमेशा से यहोवा परमेश्‍वर के बारे में और ज़्यादा जानना चाहता था। इस लेख ने, शीर्षक पर दिए गए सवाल का अच्छे तरीके से जवाब दिया और उसे समझना भी आसान था। मैं यहोवा और उसके कामों के बारे में जितना ज़्यादा सीखता हूँ, उतना ही ज़्यादा उसके लिए मेरा प्रेम बढ़ता है।

वाई. बी., रूस

सोना मैंने आपका लेख “सोना—इसकी कशिश” (अक्‍तूबर ८, १९९८) पढ़ा। उसमें आपने कहा था कि सन्‌ १९४५ में जर्मन सरकार की हार के बाद, मित्र देशों की टुकड़ियों को काइज़रोडा नमक की खानों में बहुत सारा सोना मिला। लेकिन सच तो यह है कि मित्र देशों ने युद्ध खत्म होने से तीन सप्ताह पहले ही उस खान पर कब्ज़ा कर लिया था।

जे. एस., जर्मनी

इस जानकारी के लिए आपका धन्यवाद। जर्मन सरकार मई ८, १९४५ को हार गयी थी और इसके करीब एक महीने पहले, यानी अप्रैल ४, १९४५ के दिन काइज़रोडा नमक खानों पर कब्ज़ा कर लिया गया था।—संपादक।

बहुत दूर रहते हुए कोर्टशिप करना लेख “युवा लोग पूछते हैं—बहुत दूर रहते हों तो कोर्टशिप कैसे जारी रखें?” (फरवरी ८, १९९९) मेरे लिए बहुत देर से आया। मैं अमरीका में रहती हूँ और लैटिन अमरीका के एक लड़के को चिट्ठी लिखा करती थी। खतों के ज़रिए किसी को अच्छी तरह जानना और अपनी पहचान देना मेरी ज़िन्दगी का सबसे कठिन काम रहा है। चाहे एक इंसान चिट्ठी में अपने बारे में कितनी भी ईमानदारी से सब कुछ क्यों न बताए, फिर भी खतों के द्वारा उस व्यक्‍ति को अच्छी तरह जानना मुमकिन नहीं है। जब लड़का-लड़की दूर-दूर होते हैं, तो दोनों ही ख्याली पुलाव पकाना शुरू करते हैं। हमारे मामले में, हमारी संस्कृति एकदम अलग-अलग थी। और आखिरकार जब हमें दोस्ती तोड़नी पड़ी, तो मुझे ऐसा लगा कि अब ज़िंदगी में कोई मकसद ही नहीं रहा। लेकिन मेरे परिवार ने मुझे थाम लिया और उनके प्यार और सहारे की वज़ह से मैं सँभल पायी।

एस. एच., अमरीका

एक बार यहोवा के साक्षियों के अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन में एक लड़की से मेरी मुलाकात हुई थी। उसे मैं खत लिखता हूँ। जब दोनों की संस्कृति और भाषा अलग हो, तब एक-दूसरे को अपने विचार बताना बहुत मुश्‍किल लगता है। सो मैंने उसकी भाषा सीखना चालू किया। आपने टेप रिकॉर्डर इस्तेमाल करने की जो सलाह दी थी वह बहुत अच्छी है। इसके लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

ए. एस., जर्मनी

अमरीका में हुए अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन में मेरी मुलाकात पूर्वी देश की एक लड़की से हुई। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं उसे खत कैसे लिखा करूँ। सो मैंने इस बारे में प्रार्थना की और कुछ ही दिन बाद, मुझे यह बढ़िया लेख मिला। मैंने इसे बार-बार पढ़ा। इसमें मेरे सभी सवालों के जवाब मिल गए।

जी. आर., इटली

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