नन्ही-सी जान गज़ब की उड़ान
फट्ट! मक्खी का काम तमाम करने के लिए आप ऊपर हवा में ज़ोर से अखबार घुमाते हैं। मगर मक्खी आपको चकमा देकर निकल जाती है। हाँ, वह हवा में पल भर के लिए लड़खड़ाती ज़रूर है, मगर फिर से अपने-आप को सँभालती हुई दीवार की छत पर जा बैठती है। फिर दूर से आपको देखकर मानो मुस्कुराते हुए कहती है, आखिर दे दिया न चकमा! है ना कितनी चालाक! मज़ेदार बात तो यह है कि दुनिया में ऐसी कोई भी जगह नहीं है जहाँ इनके दर्शन न हों! मक्खियाँ कीट जाति की होती हैं और सबसे तेज़ उड़नेवाली इन मक्खियों को अपनी उड़ान पर बड़ा नाज़ होता है। मगर इस उड़ान के लिए उन दो हॉल्टरों यानी संतोलक अंगों का शुक्रिया अदा करना चाहिए जो एक उम्दा कारीगरी की मिसाल हैं।
हॉल्टर छोटे नरकट की तरह होते हैं जिनके सिरे पर छोटी-सी गाँठ होती है। ये मक्खियों के दोनों पंखों के नीचे होते हैं। (अगले पन्ने पर इसका चित्र देखिए।) जितनी बार मक्खी अपने पंख हिलाती है, उतनी ही बार ये हॉल्टर भी साथ-साथ हिलते हैं यानी हर सेकैंड में सौ बार। जिस तरह जायरोस्कोप (हर दिशा में घुमनेवाला चक्का) विमान को सही तरीके से उड़ाने के लिए पायलट को संदेश देता है, उसी तरह हॉल्टर भी मक्खियों को सही तरीके से उड़ने के लिए संदेश देते हैं। इसलिए हम हॉल्टरों को एक छोटा-सा जायरोस्कोप कह सकते हैं। मगर जायरोस्कोप की तुलना हॉल्टरों की कारीगरी से नहीं की जा सकती। क्योंकि जब कभी हवा में मक्खी अपनी दिशा बदलती है या जब इस नन्ही-सी जान को अखबार से या किसी और चीज़ से मारने की कोशिश की जाती है तब ये हॉल्टर उसके दिमाग तक संदेश पहुँचाते हैं कि उसका शरीर लुढ़क रहा है या लड़खड़ा रहा है। और मक्खियाँ यह संदेश पाते ही तुरंत बड़ी आसानी से अपने आपको सँभाल लेती हैं।
जायरोस्कोप तो एक घुमनेवाला चक्का होता है मगर हॉल्टर पैंडुलम से ज़्यादा मिलते-जुलते हैं। लेकिन पैंडुलम की तरह हॉल्टर नीचे की तरफ लटके नहीं होते बल्कि ये उसके बगल से निकलते हैं। उड़ने के लिए जब मक्खी अपने पंख हिलाती है तो गति के नियमों के मुताबिक हॉल्टर भी उसी दिशा में पैंडुलम की तरह हिलने लगते हैं। जब हवा में मक्खी का शरीर लुढ़कता है या जब वह अपनी दिशा बदलती है तो बाहरी दबाव हॉल्टर के निचले हिस्से पर दबाव डालता है जिसे हॉल्टर की नसें पहचान लेती हैं। फिर नस यह संदेश दिमाग तक पहुँचाती है और दिमाग तुरंत मक्खी को सही तरह से उड़ने के लिए निर्देश देता है। बस पलक झपकते ही बिजली की गति से सारा काम हो जाता है।
हॉल्टर तो दरअसल दो पंखोंवाली मक्खियों की ही एक खास अमानत है। इनमें से करीब १,००,००० अलग-अलग प्रकार की मक्खियाँ होती हैं। जैसे हॉर्स फ्लाई, हाउस फ्लाई, ब्लो फ्लाई, फ्रूट फ्लाई, सॆट्सी फ्लाई, सैंड फ्लाई और क्रेन फ्लाई। अपने कुशल जायरोस्कोप यानी हॉल्टर की बदौलत ही ये मक्खियाँ, उड़नेवाले दूसरे कीटों के मुकाबले बड़ी तेज़ी से और आसानी से भिनभिनाते हुए किसी भी दिशा में उड़ सकती हैं! मक्खियों को भले ही नीची नज़रों से देखा जाता है मगर इनकी इस काबिलीयत की दाद देनी पड़ेगी और ऐसी काबिलीयत बनानेवाले सृष्टिकर्ता के दिमाग का तो कहना ही क्या!
[पेज 22 पर तसवीर]
लड़खड़ाना
[पेज 22 पर तसवीर]
लुढ़कना
[पेज 22 पर तसवीर]
गिरना
[पेज 23 पर तसवीर]
सोल्जर फ्लाई (बड़े आकार में) का हॉल्टर
[चित्र का श्रेय]
© Kjell B. Sandved/Visuals Unlimited
[पेज 23 पर तसवीरें]
हाउस फ्लाई (घरेलू मक्खी)
क्रेन फ्लाई
[चित्र का श्रेय]
Animals/Jim Harter/Dover Publications, Inc.
[पेज 23 पर चित्र का श्रेय]
Century Dictionary