ॲलेक्सॅन्ड्रीन कोडेक्स
ॲलेक्सॅन्ड्रीन कोडेक्स विद्वानों को उपलब्ध कराए जानेवाले प्रधान बाइबल हस्तलिपियों में से पहली थी। उसकी खोज के कारण यूनानी बाइबल मूलपाठ की रचनात्मक आलोचना हुई जिस से पवित्र शास्त्र के सारे उत्तरकालीन अनुवादकों को लाभ पहुँचा। यह कैसे और कब सामने आयी?
ॲलेक्सॅन्ड्रिया, मिस्र, का कुलपिता काइरिलोस लूकारिस, पुस्तकों का एक बड़ा संग्रहकर्ता था, और वर्ष १६२१ में, जब वह कौंस्टेंटिनोपल, तुर्की, में कुलपिता बना, तब वह इस कोडेक्स ॲलेक्सॅन्ड्रिनस् को अपने साथ ले गया। परन्तु मध्य पूर्व में अशान्ति के कारण, और इस संभावना के कारण कि यदि यह हस्तलिपि मुस्सलमानों के हाथों लग गयी तो उसे नष्ट किया जाएगा, लूकारिस को लगा कि यह इंग्लैंड में अधिक सुरक्षित होगी। तदनुसार, १६२४ में उसने तुर्की में रहनेवाले ब्रिटिश राजदूत को इंग्लैंड के राजा जेम्स I के लिए उसे भेंट के रूप में प्रदान किया। उसे हस्तलिपि दे सकने से पहले ही राजा मर गया, इसीलिए वह तीन वर्ष बाद, उसके बजाय उसके उत्तराधिकारी, चार्ल्स I, को दे दिया गया।
क्या यह हस्तलिपि उतनी मूल्यवान थी जितना कि काइरिलोस लूकारिस ने सोचा था? हाँ, थी। यह पाँचवीं सदी सामान्य युग के प्रारंभिक भाग की है। प्रत्यक्षतः अनेक शास्त्रियों ने उसके लिखने में हिस्सा लिया, और मूलपाठ को शुरू से अन्त तक संशोधित किया गया है। यह चर्मपत्र पर, और हर पन्ने पर दो-दो कालमों में, शब्दों के बीच कोई अन्तर रखे बिना, बड़े (अंशियल) अक्षरों में लिखी गयी है। मत्ती का अधिकतम भाग ग़ायब है, और उसी रीति से उत्पत्ति, भजन संहिता, यूहन्ना और २ कुरिन्थियों के कुछ अंश भी नहीं हैं। अब उसे औपचारिक रूप से कोडेक्स ए का नाम दिया गया है, इस में ७७३ पन्ने हैं और यह एक काफ़ी महत्त्वपूर्ण पूर्वकालीन साक्षी बना रहता है।
अधिकतम बाइबल हस्तलिपियाँ, उनके बीच की समानताओं की वजह से समूहों, अथवा वर्गों, में विभाजित की जा सकती हैं। ये तब उत्पन्न हुईं जब शास्त्रियों ने अपनी हस्तलिपियाँ एक ही सूत्र अथवा तुल्य नमूनों से बनायीं। परन्तु, ॲलेक्सॅन्ड्रीन कोडेक्स के मामले में, ऐसा जान पड़ता है कि यथासंभव अच्छा मूलपाठ तैयार करने के लिए, शास्त्री विविध समूहों में से पाठान्तर इकट्ठा करने में संलग्न थे। दरअसल, १६११ के किंग जेम्स वर्शन के लिए आधार के रूप में उपयोग की गयी किसी भी यूनानी हस्तलिपि से यह अधिक पुरानी और अच्छी सिद्ध हुई।
जब यह प्रकाशित हुई, उस समय १ तीमुथियुस ३:१६ का ॲलेक्सॅन्ड्रीन पाठान्तर से बहुत विवाद उत्पन्न हुआ। यहाँ पर किंग जेम्स वर्शन में मसीह यीशु का ज़िक्र करते हुए, ऐसा लिखा गया है: “परमेश्वर शरीर में प्रगट हुआ।” परन्तु इस प्राचीन कोडेक्स में, ऐसा मालूम होता है कि “परमेश्वर” शब्द के लिए संक्षिप्त रूप, जो दो यूनानी अक्षर “ΘC” से बनता है, दरअसल मूलपाठ में “OC,” यों है, जो कि “जो” के लिए शब्द है। स्पष्ट रूप से, इसका यह अर्थ था कि मसीह यीशु “परमेश्वर” नहीं थे।
२०० से अधिक वर्ष तथा अन्य और भी पुरानी हस्तलिपियों की खोज के बाद ही, “जो (आदमी, अँग्रेज़ी में हू)” अथवा “जो (वस्तु, अँग्रेज़ी में विच)” शब्दों का अनुवाद सही प्रमाणित हुआ। अपनी पुस्तक टेक्सच्युअल कॉम्मेंट्री ऑन द ग्रीक न्यू टेस्टामेन्ट में ब्रूस एम. मेट्स्गर इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं: “आठवीं अथवा नौवीं सदी के पूर्व ऐसी कोई भी (मूलभूत सूत्र से उतारी गयी) बड़े अक्षरों वाली (अंशियल) हस्तलिपि नहीं जो . . . θεός (the·osʹ थी·ऑसʹ) का समर्थन करती है; सभी प्राचीन अनुवाद इसे ὅς अथवा ὅ मान लेते हैं; और चौथी सदी के अन्तिम तिहाई भाग से पहले कोई भी धर्माचार्य लेखक θεός (the·osʹ थी·ऑसʹ) शब्द के पाठान्तर को प्रमाणित नहीं करता।” आज, अधिकांश अनुवाद इस वचन में से “परमेश्वर” शब्द की ओर किसी भी उल्लेख को छोड़ देने के विषय में सहमत हैं।
१७५७ में राजा का शाही पुस्तकालय ब्रिटिश लायब्रेरी का भाग बना, और यह उत्तम कोडेक्स अब ब्रिटिश म्यूज़ीयम के हस्तलिपि कमरे में स्पष्ट रीति से प्रदर्शित है। यह एक ऐसा खज़ाना है जो बहुत ही देखने लायक है।