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  • बड़ी बाबेलोन अभ्यारोपित
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1989
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  • आधुनिक बाबेलोन उस नाम का तिरस्कार करती है
  • हम बाबेलवत्‌ उपदेशों से क्यों नफ़रत करते हैं
  • क्यों हम परमेश्‍वर-प्रतिरोधी तत्त्वज्ञान को अस्वीकार करते हैं
  • क्यों हम बड़ी बाबेलोन का फलन घृणित समझते हैं
  • क्यों हम बाबेलोन की अनैतिकता की निन्दा करते हैं
  • क्यों हम बाबेलोन की आत्मिक वेश्‍यवृत्ति को घृणित समझते हैं
  • क्यों हम बाबेलोन के हत्यारेपन से अतिशय घृणा करते हैं
  • बड़ी बाबेलोन पतित और न्यायदंडित
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1989
  • कुख़्यात “वेश्‍या” उसका पतन
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1989
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    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1989
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    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1996
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1989
w89 5/1 पेज 20-23

बड़ी बाबेलोन अभ्यारोपित

दुनियाभर में १९८८-८९ के दौरान आयोजित सम्मेलनों की एक श्रृंखला में, लाखों यहोवा के गवाहों ने बड़ी बाबेलोन, झूठे धर्म के विश्‍व-व्याप्त साम्राज्य​—जिसका प्रतिनिधित्व ख़ास तौर से मसीहीजगत्‌ करता है​—के आचरण के प्रति अपनी घृणा व्यक्‍त करके इस प्रस्ताव का समर्थन किया। कुछ निष्कपट लोग शायद पूछेंगे, क्या वह बहुत ही कड़ी टेक नहीं? नहीं, बिल्कुल नहीं! जब हम देखते हैं कि प्राचीन इस्राएल के भविष्यद्वक्‍ताओं ने कैसे उनके समय की मूर्तिपूजा की निडरता से भर्त्सना की और किस ज़ोरदार भाषा में यीशु ने उसके समय के धार्मिक पाखण्ड का भांडाफोड़ किया, यहोवा के गवाहों के नाते हम मानते हैं कि यह टेक पूर्ण रूप से न्यायोचित है। परमेश्‍वर ने इसकी आज्ञा भी दी है।​—यशायाह २४:१-६; यिर्मयाह ७:१६-२०; मत्ती २३:९-१३, २७, २८, ३७-३९.

तब हम किस आधार पर बड़ी बाबेलोन के आचरण को घृणित समझते हैं? हमारे पास विश्‍व के सच्चे सर्वश्रेष्ठ प्रभु, यहोवा, का सम्मान करने में धर्म की असफलता का क्या ऐतिहासिक प्रमाण है?

आधुनिक बाबेलोन उस नाम का तिरस्कार करती है

विश्‍व के सर्वश्रेष्ठ प्रभु गुमनाम नहीं है। उसने बाइबल में लगभग ७,००० बार खुद की पहचान यहोवा के तौर से की है। वह अपने नाम को अत्यावश्‍यक महत्त्व प्रदान करता है। दस नियमों का तीसरा नियम कहता है: “तू अपने परमेश्‍वर का नाम व्यर्थ न लेना, क्योंकि जो यहोवा का नाम व्यर्थ ले वह उसको निर्दोष न ठहराएगा।” और यीशु ने प्रभु की प्रार्थना में अपने पिता का नाम विशिष्ट किया, यह कहकर कि: “तेरा नाम पवित्र माना जाए।”​—निर्गमन २०:७; मत्ती ६:९.

परमेश्‍वर के नाम को सम्मान देने में मसीहीजगत्‌ का इतिहास निराशजनक है। १६११ का किंग जेम्स वर्शन, अकेले और जोड़ में, यह नाम यहोवा, केवल सात बार इस्तेमाल करता है।a अन्य अनुवादों ने उस नाम को पूर्ण रूप से निकाल दिया है। अधिकांश धर्म उसे सम्मान देने से रह जाते हैं। उसके बजाय, उन्होंने अपने “पवित्र” त्रियेक और, कुछेक उदाहरणों में, मरियम, परमेश्‍वर की तथाकथित माता, को बाइबल के परमेश्‍वर से ऊपर उठाया है। यहोवा के अमूल्य नाम को सापेक्ष अप्रयोग में गिरने दिया गया है।b

प्रशंसनीय रूप से, इस्लाम एक ही ख़ुदा को मानता है, जिसे वे अपने पवित्र किताब, कुरान, के मुताबिक अल्ला कहते हैं। परन्तु, वे उसका नाम, यहोवा, जैसे कुरान के अस्तित्व में आने से कम-से-कम दो हज़ार साल पहले बाइबल में प्रथम प्रकट किया गया, इस्तेमाल नहीं करते। हिंदू लोग करोड़ों देव-देवियों की पूजा करते हैं, लेकिन उन में यहोवा शामिल नहीं है।

परमेश्‍वर के नाम से संबंधित एक अपराधी के तौर से विशिष्ट है यहूदी धर्म। हज़ारों वर्षों से, यहूदियों ने परमेश्‍वर के नामधारी लोग होने का दावा किया है, और फिर भी वे, अपनी परम्परा की वजह से, परमेश्‍वर का सच्चा नाम पूर्ण अप्रयोग में पड़ने का कारण बने हैं।

इसलिए, सर्वश्रेष्ठ प्रभु यहोवा के गवाहों के हैसियत से, हमें बड़ी बाबेलोन की ओर से परमेश्‍वर के पवित्र नाम की उपेक्षा पर अपनी घृणा व्यक्‍त करनी ही पड़ती है।

हम बाबेलवत्‌ उपदेशों से क्यों नफ़रत करते हैं

मनुष्य को एक अमर जीवात्मा है, इस बाबेलवत्‌ उपदेश के आधार पर करोड़ों लोगों का अनुचित फ़ायदा उठाया जाकर उन्हें भय में रखा गया है। पुरातनकाल से, झूठे धर्म ने मरण के बाद नरकाग्नि में अनन्त काल के लिए जीवात्मा की संभव यंत्रणा के भय का अनुचित फ़ायदा उठाया है। उस उपदेश की एक अधिक सूक्ष्म परिष्कृति है शोधन-स्थान की अग्नि में अस्थायी दुःखभोग। निष्कपट लोग मृतकों के लिए मिस्सा कहलवाने के लिए पैसे अदा करते हैं लेकिन यह कभी नहीं जानते कि ये अदाएगी कब ज़रूरी होना बंद होती हैं! बाइबल में इन ईशनिन्दात्मक धर्मसिद्धान्तों का कोई आधार नहीं।​—तुलना यिर्मयाह ७:३१ से करें.

वास्तव में, बाइबल सिखाती है कि मानव एक जीवित, मरणशील जीवात्मा है। उसके अवज्ञा के लिए आदम को नरकाग्नि या शोधन-स्थान का दंड नहीं बल्कि मृत्यु दंड सुनाया गया। सरल रूप से कहना हो तो, “पाप की मज़दूरी मृत्यु है।” (रोमियों ६:२३; उत्पत्ति २:७, १७; ३:१९) मृतकों के लिए धर्मशास्त्रीय आशा, एक अमर जीवात्मा पर नहीं, बल्कि, एक प्रमोदवनीय पृथ्वी पर पूर्ण जीवन की अवस्था में पुनरुत्थान देने के लिए परमेश्‍वर के वचन पर आधारित है।​—यूहन्‍ना ५:२८, २९; प्रकाशितवाक्य २१:१-४.

एक और बाबेलवत्‌ उपदेश है “पवित्र” त्रियेक। एक ईश्‍वर में तीन व्यक्‍ति का यह उपदेश प्राचीन इब्रानियों के विश्‍वास का भाग कभी न था। (व्यवस्थाविवरण ५:६, ७; ६:४) खुद एक यहूदी होने के नाते, यीशु ने निश्‍चय ही कभी नहीं माना और न ही कभी सिखाया कि वह सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर था। उसने, जैसे बाबेलवत्‌ धर्मसिद्धान्त या धर्ममत में सिखाया जाता है, किसी त्रिक का कोई भाग होने का दावा नहीं किया।​—मरकुस १२:२९; १३:३२; यूहन्‍ना ५:१९, ३०; १४:२८; २०:१७.

इसलिए, हम बाबेलोन के ईशनिन्दात्मक धर्मसिद्धान्त, जैसे कि दुनिया के झूठे धर्मों में सिखाए जाते हैं, अस्वीकार करते हैं। हम एकमात्र सच्चे परमेश्‍वर, यहोवा की पूजा, उसके पुत्र के ज़रिए करते हैं, जो कि न केवल अभिषिक्‍त मसीहियों के पापों का “प्रायश्‍चित्तिक बलि” बना लेकिन मानवजाति के सारे जगत के पापों के लिए भी।​—१ यूहन्‍ना २:२.

क्यों हम परमेश्‍वर-प्रतिरोधी तत्त्वज्ञान को अस्वीकार करते हैं

मसीहीजगत्‌ के पोप और पादरी नास्तिकता की उमड़ पर विलाप व्यक्‍त करते हैं, और अनेक अपना दक्षिण-पंथीय राजनीति का समर्थन न्यायोचित ठहराने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं। फिर भी, यह प्रश्‍न पूछा जाना चाहिए कि: विशेषकर पिछले शतक में, नास्तिकता की इस बढ़ती को भड़काने वाले अन्यायों और असमानताओं की देखी-अनदेखी किसने की? यह विशिष्ट रूप से मसीहीजगत्‌ के क्षेत्र में घटित हुई। उदाहरणार्थ, रूसी प्राच्य चर्च (रशियन आर्थोडॉक्स चर्च) ने ज़ारों (रूस के बादशाहों) से मेल-जोल रखा, जिन्होंने लोगों पर क्रूरता से अत्याचार किया। जिन लोगों ने अपने आप को परमेश्‍वर के प्रतिनिधियों के तौर से पेश किया, उनकी तरफ़ से सच्चे मसीही आदर्शों की कमी ने ऐसी परिस्थितियों को योग दिया, जो नास्तिकता के लिए एक प्रजनन क्षेत्र बन गयीं।

मसीहीजगत्‌ के धर्मों ने सृजनहार का अनादर करनेवाले क्रमविकास के उपदेश को गले लगाया है। वे एक करोड़ से भी ज़्यादा जीवन-प्रकारों की जटिलता और विविधता का श्रेय प्रकृति की अनियंत्रित शक्‍तियों को देते हैं। वास्तव में वे कहते हैं कि यह विविधता हितकर संयोगों के एक अनुक्रम से विकसित हुई। ऐसा तत्त्वज्ञान परमेश्‍वर को फ़जूल कर देता है और मानव को किसी के भी प्रति जवाबदेह नहीं बनाता है। नीतिशास्त्र निजी पसंदगी-नापसंदगी की बात बन जाती है। (भजन १४:१) एक परिणाम यह है कि अब गर्भपातों की संख्या प्रति वर्ष करोड़ों में है​—उन देशों में जो धार्मिक होने का दावा करते हैं!

हम इन परमेश्‍वर-प्रतिरोधी तत्त्वज्ञान और अभ्यासों को अस्वीकार करते हैं। हम यहोवा, “जो युगानुयुग जीवता रहता है, और जिस ने स्वर्ग को और जो कुछ उस में है, और पृथ्वी को और जो कुछ उस पर है, और समुद्र को और जो कुछ उस में है, सृजा, उसी की” पूजा करते हैं।​—प्रकाशितवाक्य १०:६; १९:६.

क्यों हम बड़ी बाबेलोन का फलन घृणित समझते हैं

मसीहीजगत्‌ प्रकाशितवाक्य अध्याय २ और ३ में लिपिबद्ध सात मण्डलियों को दिए चेतावनी संदेशों की ओर ध्यान देने से रह गया है। ये संदेश सांप्रदायिकता, मूर्तिपूजा, और व्यभिचार के अभ्यास के विरुद्ध, और गुनगुनापन तथा लापरवाही के ख़िलाफ़ सलाह देते हैं।

प्रायः किसी भी पूजा स्थल को दी एक भेंट प्रकट करेगी कि कितने सारे धार्मिक लोगों ने सृष्टि को सृष्टिकर्ता से भी ऊँचा उठाया है। यह कैसे? उनकी मूर्ति तथा प्रतिमा श्रद्धा और “संतों,” मॅडोन्‍नाओं, और क्रूसों को दी उनकी पूजा के ज़रिए।​—तुलना भजन ११५:२-८; १ कुरिन्थियों ५:७; १ यूहन्‍ना ५:२१ से करें.

उनकी स्थिति में, पौलुस के शब्द परिपूर्णता पाते हैं: “इस कारण कि परमेश्‍वर को जानने पर भी उन्होंने परमेश्‍वर के योग्य बड़ाई नहीं की . . . वे मूर्ख बन गए और अविनाशी परमेश्‍वर की महिमा को नाशमान मनुष्य, और पक्षियों, और चौपायों, और रेंगनेवाले जन्तुओं की मूरत की समानता में बदल डाला।”​—रोमियों १:२१-२३; न्यू.व.

क्यों हम बाबेलोन की अनैतिकता की निन्दा करते हैं

पिछले २० वर्षों में समलिंगकामुकता एक वैकल्पिक जीवन-शैली के तौर से अनुमोदित या उसकी अनदेखी होते दिखायी दी है। करोड़ों समलिंगकामी “गुप्त कमरों से निकले” हैं और अपना “समलिंगी गौरव” इतराकर अब रस्तों पर प्रदर्शन करते हैं। परमेश्‍वर उनकी समलिंगकामुकता का कैसे विचार करता है?

लगभग ३,५०० वर्ष पहले बाइबल ने स्पष्ट रूप से बताया: “स्त्रीगमन की रीति से पुरुषगमन ने करना। वह तो घिनौना काम है।” (लैव्यव्यवस्था १८:२२) और क़रीब-क़रीब २,००० वर्ष पहले पौलुस ने दिखाया कि परमेश्‍वर के मानक बदले न थे, जब उसने लिखा कि: “इसलिए परमेश्‍वर ने उन्हें नीच कामनाओं के वश में छोड़ दिया, यहाँ तक कि उन की स्त्रियों ने भी स्वाभाविक व्यवहार को, उस से जो स्वभाव के विरुद्ध है, बदल डाला; वैसे ही पुरुष भी स्त्रियों के साथ स्वाभाविक व्यवहार छोड़कर आपस में कामातुर होकर जलने लगे, और पुरुषों ने पुरुषों के साथ निर्लज्ज काम करके अपने भ्रम का ठीक फल पाया।”​—रोमियों १:२६, २७; १ कुरिन्थियों ६:९, १०; १ तीमुथियुस १:१०.

फिर भी, मसीहीजगत्‌ के इतने सारे पादरी अभ्यासी समलिंगकामी हैं कि वे विधायकों को प्रभावित करने के लिए कई प्रधान धर्मों में एक प्रभावशाली समलिंगकामी समूह बने हैं। वे माँग करते हैं कि उनकी जीवन-शैली को मान्यता प्रदान की जाए और कि उन्हें धर्माध्यक्ष का पद दिया जाए। एक प्रासंगिक उदाहरण कॅनाडा का सबसे बड़ा प्रोटेस्टेन्ट सम्प्रदाय, कॅनाडा का संयुक्‍त चर्च है, जिसके अगुवाओं ने अगस्त २४, १९८८ के दिन, सेवाकार्य में समलिंगकामियों को प्रवेश करने देने के पक्ष में १६० की तुलना में २०५ मतों से वोट किया।

क्यों हम बाबेलोन की आत्मिक वेश्‍यवृत्ति को घृणित समझते हैं

प्रकाशितवाक्य “पृथ्वी के राजाओं,” उसके राजनीतिक शासकों के साथ बाबेलोन के व्यभिचार की निंदा करता है। वेश्‍या “बहुत से पानियों पर” बैठी हुई चित्रित की गयी है, जिसका मतलब है ‘लोग, और भीड़, और जातियाँ, और भाषाएँ’। (प्रकाशितवाक्य १७:१, २, १५) राजनीतिक शासकों के साथ एक सुखद रिश्‍ता कायम करके, झूठे धर्म ने सदियों से सामान्य लोगों को दबाने और उनका अनुचित फ़ायदा उठाने के लिए अपनी प्रभावकारिता को खुल्लमखुल्ला या गुप्त रूप से इस्तेमाल किया है।

इस प्रभाविता के उदाहरण वे धर्मसन्धियाँ, या क़रार हैं, जिस पर वैटिकन ने नाट्‌ज़ी और फॅसिस्ट शासकों के साथ इस २०वीं सदी में दस्तख़त किए। परिणामस्वरूप, विश्‍वासीगण पर चर्च के प्रभाव के कारण, लोग पूर्ण रूप से बेरहम शासकों के वश में आ गए। १९२९ में वैटिकन ने फॅसिस्ट तानाशाह, बेनिटो मूसोलीनी के साथ एक धर्मसन्धि संपन्‍न की। उसके बाद जर्मनी में क्या हुआ? पायस XI को निम्नलिखित शब्दों का श्रेय देते हुए, जर्मन कार्डिनल फाउलहाबर हिट्‌लर के बारे में पोप की विचारणा में अन्तर्दृष्टि देता है: “मैं खुश हूँ; वह पहला राजनेता है जिसने बोल्शेविक (मार्क्सवादी कट्टर क्रांतिकारी साम्यवाद) विचारधारा के ख़िलाफ़ बात की है।” फाउलहाबर ने बाद में ग़ौर किया: “मेरी रोम की यात्रा ने वह बात सत्य ठहरायी जिस का मुझे काफ़ी समय से संशय था। रोम में, राष्ट्रीय समाजवाद और फॅसिस्टवाद, साम्यवाद और बोल्शेविक विचारधारा से मुक्‍ति मिलने का एकमात्र साधन माना जाता है।”

१९३३ से पहले जर्मनी के कैथोलिक बिशपों ने नाट्‌ज़ी तंत्र का विरोध किया था। लेकिन जैसे जर्मन लेखक क्लाउस शोल्डर अपनी किताब द चर्चेज़ ॲन्ड द थर्ड राइख़ (चर्च और जर्मन राज्य) में कहता है, जर्मनी में वैटिकन के दूत, कार्डिनल पाच्चेली, ने बिशपों को राष्ट्रीय समाजवाद के प्रति उनका रवैया बदल देने की आज्ञा दी। यह परिवर्तन किस बात से प्रेरित हुआ? यह तीसरे राइख़ (जर्मन राज्य) और वैटिकन के बीच धर्मसन्धि की प्रत्याशा से प्रेरित हुई, जो जुलाई २०, १९३३ के दिन संपन्‍न की गयी।

क्लाउस शोल्डर बताता है: “१२ नवंबर [१९३३] के चुनाव और जनमत-संग्रह के अवसर पर हिट्‌लर ने, निर्वाचक-गण के सभी प्रधान कैथोलिक समुदायों से ज़्यादा, आश्‍चर्यजनक रूप में ‘हाँ’ मतों की एक बड़ी संख्या से, राइख़ धर्मसन्धि का फल काटा।”

हालाँकि कुछेक प्रोटेस्टेन्ट अगुवाओं ने १९३३ के नाट्‌ज़ी अधिकार-ग्रहण के प्रति विरोध व्यक्‍त किया, राष्ट्रीयवाद के सामूहिक होहल्ला में उनकी आवाज़े जल्द ही धीमी पड़ गयीं। शोल्डर व्याख्या करता है: “स्पष्ट रूप से प्रोटेस्टेन्ट चर्च में अतीत में बरती सावधानी को त्यागने और अब आख़िरकार राष्ट्रीय जोश में भी फँसने की एक बढ़ती हुई तैयारी थी। . . . पहली बार औपचारिक चर्च के वक्‍तव्य प्रकाशित हुए, जिस में बिना शर्त नए राइख़ का समर्थन किया गया।” वास्तव में, प्रोटेस्टेन्टवाद ने खुद को नाट्‌ज़ी राष्ट्रीयवाद के हाथों बेच डाला और जिस तरह कैथोलिक चर्च ने किया था, वह उसकी दासी बन गयी।

ऐतिहासिक विवरण दिखाता है कि इन सदियों के दौरान झूठे धर्म ने प्रभावशाली शासक श्रेष्ठजनगण से मेल-जोल रखकर उनकी प्रतिष्ठा सँभाली है जिस से सामान्य लोगों को नुक़सान हुआ है। इस दुनिया के लालच से अधिकार, संपत्ति, और धन चाहनेवाले धार्मिक अगुवाओं ने ‘मसीह की मनोवृत्ति’ प्रतिबिंबित नहीं की है। यहोवा के गवाहों के नाते, हम ऐसी आत्मिक वेश्‍यावृत्ति को घृणित समझते हैं।​—यूहन्‍ना १७:१६; रोमियों १५:५; प्रकाशितवाक्य १८:३.

क्यों हम बाबेलोन के हत्यारेपन से अतिशय घृणा करते हैं

प्रकाशितवाक्य की किताब में, बड़ी बाबेलोन पर भारी हत्यारेपन का दोष लगाया गया है: “और मैं ने उस स्त्री को पवित्र लोगों के लोहू और यीशु के गवाहों के लोहू पीने से मतवाली देखा। हाँ भविष्यद्वक्‍ताओं और पवित्र लोगों, और पृथ्वी पर सब घात किए हुओं का लोहू उसी में पाया गया।”​—प्रकाशितवाक्य १७:६; १८:२४.

झूठे धर्म का इतिहास विद्वेष और रक्‍तपात का इतिहास है, जिस में मसीहीजगत्‌ सबसे हत्यारा है। दो विश्‍व युद्ध तथाकथित ईसाई देशों के क्षेत्र में शुरु हुए। “मसीही” राजनीतिक नेताओं ने १९१४ और १९३९ में हथियारों का सहारा लिया, और सभी संघर्षी देशों के पादरी वर्गों ने अपना आशीर्वाद दिया। द कोलंबिया हिस्ट्री ऑफ द वर्ल्ड (कोलंबिया का विश्‍व इतिहास) विश्‍व युद्ध I के विषय कहता है: “ज़िंदगी के साथ-साथ सच्चाई का मूल्य भी घटाया गया और असम्मति में शायद ही कोई आवाज़ उठायी गयी। परमेश्‍वर के वचन के संरक्षकों ने योद्धा वृन्दगान का नेतृत्व किया। पूर्ण युद्ध का मतलब पूर्ण विद्वेष बना।” (तिरछे टाइप हमारे) सैन्य चॅप्लेनों ने अपने सिपाहियों को देशभक्‍तिपूर्ण जोश से आगे बढ़ाया जैसे ही दोनों पक्ष के नौजवान तोप-चारा बन गए। वही इतिहास पुस्तक कहती है: “राष्ट्रीयवाद के आवेशपूर्ण कार्यों से मनुष्यों के दिमागों के क्रमबद्ध विशाक्‍तन ने . . . शांति की खोज का और अधिक अवरोध किया।”

जैसे जैसे यहूदी और मुस्लिम, हिंदू और सिक्ख़, कैथोलिक और प्रोटेस्टेन्ट, मुस्लिम और हिंदू, बौद्ध और हिंदू के बीच संघर्ष प्रबल होते जाते हैं, दुनियाभर में झूठा धर्म विद्वेष उत्पन्‍न करता रहता है। जी हाँ, झूठा धर्म “पृथ्वी पर सब घात किए हुओं” की हत्याकाण्ड को योग देता रहता है।​—प्रकाशितवाक्य १८:२४.

ऊपर पेश किए गए सारे सबूत का विचार करते हुए, यहोवा के गवाहों को लगता है कि १९८८ का सम्मेलन प्रस्ताव उपयुक्‍त और समयोचित है। उचित रीति से, हम झूठे धर्म की एक हत्यारिन वेश्‍या के तौर से निंदा करते हैं। हम दुनिया को शांति और सच्ची उपासना की ओर एकमात्र सही रास्ता घोषित करते हैं​—विश्‍व के सर्वश्रेष्ठ प्रभु, यहोवा परमेश्‍वर की ओर मुड़ना, उस व्यक्‍ति के ज़रिए जिस को उसने पृथ्वी पर भेजा, यानी ख्रीस्त, या मसीहा, यीशु। इसका मतलब है परमेश्‍वर के राज्य को उस धर्मी अनन्त सरकार के तौर से स्वीकार करना जो अकेले मानवजाति की ज़रूरतों को संतुष्ट कर सकता है। और उसका यह भी मतलब है कि इस आदेश का पालन करने का समय अब है: “हे मेरे लोगों, उस [बड़ी बाबेलोन] में से निकल आओ, कि तुम उसके पापों में भागी न हो, और उसकी विपत्तियों में से कोई तुम पर आ न पड़े।”​—प्रकाशितवाक्य १८:४; दानिय्येल २:४४; यूहन्‍ना १७:३.

[फुटनोट]

a उत्पत्ति २२:१४; निर्गमन ६:३; १७:१५; न्यायियों ६:२४; भजन ८३:१८; यशायाह १२:२; २६:४.

b परमेश्‍वर के नाम के महत्त्व और अभिप्राय के विषय एक ब्योरेवार सोच-विचार के लिए, वॉचटावर सोसाइटी ऑफ न्यू यॉर्क, निगमित, द्वारा प्रकाशित, ३२-पृष्ठ विवरणिका द डिवाइन नेम दॅट विल एन्ड्योर फॉरेवर देखें।

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