वॅटिकन कोडेक्स का रहस्य
कोडेक्स वॅटिकॅनस १२०९ वॅटिकन पुस्तकालय के पहले सूचीपत्र में दर्ज है, जो १४७५ में बनाया गया था। कैसे यह वहाँ पहुँचा, कोई नहीं जानता है। यह उन तीन महान यूनानी हस्तलिपियों में से एक है जो आज तक बचे हुए है, और अपने समकालीन चौथी शताब्दी के साइनाईटिकस और आरंभिक पाँचवीं शताब्दी के ॲलेक्सॅन्ड्रिनस की श्रेणी का है।
यद्यपि १६वीं शताब्दी के आरंभ में इस वॅटिकन हस्तलिपि का महत्त्व विद्वानों को अच्छी तरह मालूम था, फिर भी गिने चुने को ही कभी इसे जाँचने की अनुमति दी गयी। वॅटिकन पुस्तकालय ने १६६९ में हस्तलिपि के विभिन्न पाठों का विस्तृत मिलान बनाया तो था, परन्तु यह खो गया और १८१९ में ही पाया गया।
१८०९ में फ्रांस के सम्राट नेपोलियन ने रोम पर क़ब्ज़ा किया और बहुमूल्य हस्तलिपि को पैरिस ले गया, जहाँ लेन्हार्ड हग, एक नामी विद्वान ने इसे जाँचा, परन्तु नेपोलियन के पतन के साथ कोडेक्स को १८१५ में वॅटिकन वापस भेज दिया गया। अगले ७५ सालों तक फिर से यह वॅटिकन के द्वारा छिपायी हुई, एक रहस्यमय वस्तु बन गयी।
कॉन्स्टेंटिन फॉन टिशेनडॉर्फ संसार के एक महान हस्तलिपि विद्वान को १८४३ में, कई महीनों तक इन्तज़ार कराने के बाद, सिर्फ़ छः घंटों के लिए हस्तलिपि जाँचने की अनुमति दी गयी। दो साल बाद, अँग्रेज़ विद्वान, डॉ. एस. पी. ट्रेग्गेलस् को कोडेक्स देखने की अनुमति दी गयी, परन्तु अध्ययन करने की नहीं। उसने कहा: “यह सही है कि मैं ने अकसर हस्तलिपि को देखा, परन्तु उन्होंने मुझे उसका इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं दी; वे बिना मेरी जेबों को जाँचे उसे खोलने नहीं देते, और मुझ से कलम, स्याही तथा काग़ज़ ले लेते; और साथ-साथ दो प्रीलाटी [पादरी] लगातार लॅटिन में मुझे बात-चीत में उलझाए रखते और यदि मैं किसी एक परिच्छेद को अधिक देर तक देखता, वे मेरे हाथ में से पुस्तक को छीन लेते।”
रोमन कैथोलिक गिरजा अपनी इस अमूल्य हस्तलिपि को संसार को दिखाने के लिए इतना अनिच्छुक क्यों थी?
क्यों छिपायी गयी?
रोमन कैथोलिक गिरजा के लिए पवित्र-शास्त्र का लॅटिन वल्गेट अनुवाद अब भी उसका “सर्वश्रेष्ठ मान्य-ग्रंथ” है। पायस XII के एन्साइक्लिकल् पत्र डिविनो आफ्लान्ते स्पीरीतू के अनुसार जो १९४३ में प्रकाशित किया गया, जेरोम के इस चौथी शताब्दी के लॅटिन अनुवाद को भी “विश्वास और नैतिकता के मामलों में किसी भी ग़लती से पूर्ण रूप से उन्मुक्त” माना जाता है। उन इब्रानी और यूनानी मूल-पाठों का क्या जिनसे वल्गेट का अनुवाद किया गया? एन्साइक्लिकल् कहती है, ये वल्गेट के अधिकार की ‘पुष्टि’ करने के लिए मूल्यवान हैं। अतः कोई भी यूनानी हस्तलिपि, यहाँ तक कि वॅटिकन कोडेक्स भी, कभी भी लॅटिन वल्गेट से अधिक मान्य नहीं समझी गयी है। स्वाभाविक है कि रोमन कैथोलिक गिरजा के द्वारा लिए गए इस दृष्टिकोण ने समस्याएँ खड़ी कर दी हैं।
उदाहरण के लिए, जब १६वीं शताब्दी के विद्वान इरेस्मस ने अपने यूनानी “नए नियम” का अनुवाद किया, उसने पुष्टिकरण के लिए वॅटिकन कोडेक्स के प्रमाण की सहायता माँगी कि १ यूहन्ना, अध्याय ५, आयत ७ और ८ से मिथ्या शब्दों को हटा दें। इरेस्मस सही था, फिर भी १८९७ तक भी पोप लियो XIII ने वल्गेट के ग़लत लॅटिन मूल-पाठ का समर्थन किया। आधुनिक रोमन कैथोलिक अनुवादों के प्रकाशन के बाद ही इस मूल-पाठ की ग़लती को स्वीकार किया गया है।
जब १९वीं शताब्दी के पिछले भाग में कोडेक्स साइनाईटिकस संसार में प्रगट हो गया, रोमन कैथोलिक अधिकारियों को यह मालूम हो गया कि उनका कोडेक्स वॅटिकॅनस महत्त्वहीन होने के ख़तरे में था। अगली शताब्दी के आने तक, फोटोग्राफी की गयी अच्छी प्रतियाँ आख़िर उपलब्ध हो गईं।
हस्तलिपि में ७५९ पन्ने हैं। इस में उत्पत्ति के अधिकांश भाग, भजन संहिता के कुछ भाग, और मसीही यूनानी शास्त्र के अन्तिम भाग नहीं हैं। यह बहुत बारीक़, पतले चर्मपत्र पर, जिसे समझा जाता है कि हरिन का चमड़ है, बड़े सरल, सुन्दर तरीक़े से लिखा गया है। इसका अधिकारी पदनाम है कोडेक्स बी, और इसे आज वॅटिकन पुस्तकालय में देखा जा सकता है। यह अब छिपा नहीं है, और आख़िर इसके महत्त्व को सारे संसार में समझा और सराहा जाता है।
[पेज 29 पर तसवीर]
महत्त्वपूर्ण कोडेक्स वॅटिकॅनस १२०९ शताब्दियों तक वॅटिकन के द्वारा छिपायी गयी थी
[चित्र का श्रेय]
Facsimile from Codices E Vaticanis Selecti