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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1991
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हर्ष से यहोवा की सेवा करना

“हर्ष से यहोवा की आराधना करो। जयजयकार के साथ उसके सम्मुख आओ।”—भजन १००:२, न्यू.व.

१, २. (अ) बर्लिन, जर्मनी में जातीयवाद को किस तरह सामने लाया गया, परन्तु एक हज़ार वर्ष के शासन के आन्दोलन का क्या हाल रहा? (ब) जुलाई १९९० में ऑलिंपिया स्टेडियम में १९३६ की अपेक्षा क्या दिखाई दिया, और वहाँ एकत्रित समूह के हर्ष की जड़ किस बात में जमी हुई है?

दृश्‍य है बर्लिन नगर का ऑलिंपया स्टेडियम। चौवन वर्ष पहले, यह बढ़िया स्टेडियम एक विवाद का केंद्र बन गया जब, ख़बरों के अनुसार, नाट्‌ज़ी तानाशाह अडॉल्फ हिट्‌लर ने काले वर्ण के एक अमरीकन तेज़ धावक को, जिसने चार सुवर्ण पदक जीते थे, अपमानित किया। वास्तव में, यह हिट्‌लर की “आर्य श्रेष्ठता” के जातीय दावे को एक धक्का था!a लेकिन अब, जुलाई २६, १९९० के रोज़, काले, गोरे, गंधकवर्णी लोग—६४ राष्ट्रीय समूहों में से एक संयुक्‍त जाति, कुल मिलाकर ४४,५३२ लोग—यहाँ यहोवा के गवाहों के “शुद्ध भाषा” ज़िला सम्मेलन के लिए एकत्र हुए हैं। उस बृहस्पतिवार के दोपहर को कितना हर्ष उमड़ता है! बपतिस्मा के विषय पर दी हुई वार्ता के बाद, यहोवा परमेश्‍वर के प्रति, उनके इच्छानुसार करने के लिए अपने समर्पण की पुष्टि करते हुए १,०१८ उम्मेदवार ज़ोर से “या!” और एक बार फिर, “या!” कहते हैं।

२ इन नए गवाहों को एक कतार में स्टेडियम से बाहर बपतिस्मा कुण्ड तक जाने के लिए १९ मिनट लगते हैं। और उस पूरे समय में, उस विशाल अखाड़े में तालियाँ गरज के समान गूँजती रहती हैं। ऑलिंपिक खेलों के विजेताओं को कभी ऐसी तालियाँ नहीं मिली थीं, जैसा कि अब इन सैंकड़ों लोगों को स्वागत स्वरूप मिल रही हैं, जो कि अनेक राष्ट्रीय समूहों में से हैं, और जो संसार पर जय प्राप्त करनेवाला विश्‍वास दिखा रहे हैं। (१ यूहन्‍ना ५:३, ४) उनका हर्ष इस विश्‍वास में दृढ़तापूर्वक जड़ जमाए हुए है कि मसीह के द्वारा आनेवाला परमेश्‍वर का राज्य सचमुच ही मनुष्यजाति के लिए एक हज़ार वर्ष की शानदार आशीषें ले आएगा।—इब्रानियों ६:१७, १८; प्रकाशितवाक्य २०:६; २१:४, ५.

३. सम्मेलन प्रतिनिधियों के विश्‍वास से कौनसी सच्चाई पर बल दिया जाता है, और कैसे?

३ यहाँ कोई जातीय या राष्ट्रवादी विद्वेष नहीं, इसलिए कि सभी परमेश्‍वर के वचन की शुद्ध भाषा बोल रहे हैं, और इस प्रकार पतरस के शब्दों की सच्चाई पर ज़ोर दे रहे हैं: “अब मुझे निश्‍चय हुआ, कि परमेश्‍वर किसी का पक्ष नहीं करता, बरन हर जाति में जो उस से डरता और धर्म के काम करता है, वह उसे भाता है।”—प्रेरितों. १०:३४, ३५; सपन्याह ३:९.

४. सम्मेलन प्रतिनिधियों की अधिकतर संख्या किन परिस्थितियों में विश्‍वासी बन गए, और उनकी प्रार्थनाएँ किस तरह पूरी हुई हैं?

४ बर्लिन में इन सम्मेलन प्रतिनिधियों का एक बड़ा भाग, नाट्‌ज़ी काल (१९३३-४५) से लेकर उसके बाद पूर्व जर्मनी में हुए समाजवादी काल तक, अत्याचार के लंबे समय में विश्‍वासी बन गए हैं। पूर्व जर्मनी में यहोवा के गवाहों पर लगाया प्रतिबन्ध अभी अभी मार्च १४, १९९० के रोज़, क़ानूनी तौर से हटा दिया गया है। अतः, उन में से अनेकों ने “बड़े क्लेश में पवित्र आत्मा के आनन्द के साथ वचन को” माना है। (१ थिस्सलुनीकियों १:६) उन्हें अब यहोवा की सेवा करने की अधिक स्वतंत्रता है, और उनके हर्ष की कोई सीमा नहीं।—यशायाह ५१:११ से तुलना करें।

हर्ष मनाने के अवसर

५. इस्राएल ने लाल सागर में यहोवा द्वारा दी छुड़ाई का आनन्द किस तरह मनाया?

५ पूर्वी यूरोप, और हाल में आफ्रीका तथा एशिया के कुछ इलाकों में हमारे भाइयों की रिहाई, हमें उन छुड़ाई के अवसरों की याद दिलाती है जो यहोवा ने पहले के समय में किए थे। हम लाल सागर में यहोवा के पराक्रम के काम को याद करते हैं, और किस तरह इस्राएल का धन्यवाद का गीत इन शब्दों के साथ स्वरोत्कर्ष हूआ था: “हे यहोवा, देवताओं में तेरे तुल्य कौन है? तू तो पवित्रता के कारण महाप्रतापी, और अपनी स्तुति करनेवालों के भय के योग्य, और आश्‍चर्य कर्म का कर्त्ता है।” (निर्गमन १५:११) आज, क्या हम उन आश्‍चर्य कर्मों के कारण, जो यहोवा अपने लोगों के लिए कर रहे हैं, हर्ष मनाते नहीं रहते? हम अवश्‍य मनाते रहते हैं!

६. हम सा.यु.पू. वर्ष ५३७ में इस्राएल के हर्ष से जयजयकार करने से क्या सीख सकते हैं?

६ सामान्य युग पूर्व वर्ष ५३७ में हर्ष का प्रचुरता रहा, जब बाबेलोन में हुई क़ैद के बाद इस्राएल की जाति को फिर से अपने देश में भेज दिया गया। अब यहोवा की राष्ट्र यह कह सकी, जैसा कि यशायाह ने भविष्यवाणी की थी: “परमेश्‍वर मेरा उद्धार है, मैं भरोसा रखूँगा और न थरथराऊँगा; क्योंकि याह यहोवा मेरा बल और मेरी शक्‍ति है, और वह मेरा उद्धारकर्त्ता हो गया है।” यह क्या ही विजयोल्लास है! और राष्ट्र उस हर्ष को किस तरह अभिव्यक्‍त करती? यशायाह आगे कहता है: “उस दिन तुम कहोगे, ‘यहोवा की स्तुति करो, उस से प्रार्थना करो; सब जातियों में उसके बड़े कामों का प्रचार करो, और कहो, कि उसका नाम महान है। यहोवा का भजन गाओ, क्योंकि उस ने प्रतापमय काम किए हैं।’” वे अब “सारी पृथ्वी पर” उसके पराक्रम के कामों को ‘प्रगट करने’ में हर्ष से “जयजयकार कर” सकते थे, उसी तरह जैसे यहोवा के छुड़ाए हुए सेवक आज करते हैं।—यशायाह १२:१-६, न्यू.व.

यहोवा के कार्य में हर्ष

७. १९१९ में छुड़ाई के कौनसे अवसर विजयोल्लास के कारण बनें?

७ आधुनिक समय में यहोवा के सेवक हर्ष से जयजयकार तब करने लगे जब उन्होंने उन को १९१९ में एक आश्‍चर्यजनक छुड़ाई दे दी। उस वर्ष के मार्च २६ को, शासी निकाय के सदस्य संयुक्‍त राज्य अमेरिका के बन्दीगृह से रिहा हुए, जहाँ उन्हें राजद्रोह के झूठे आरोप पर नौ महीनों तक बन्दी बनाकर रखा गया था। ब्रुक्लिन बेथेल में उनका स्वागत करने के लिए क्या ही बढ़िया आनन्द मनाया गया! इसके अतिरिक्‍त, अभिषिक्‍त शेष वर्ग के सभी सदस्य इस बात का हर्ष मना सकते थे कि वे आध्यात्मिक रूप से बड़ी बाबेलोन से रिहा किए गए थे, जो कि धर्म की वह व्यवस्था है, जिस में शैतान ने संपूर्ण दुनिया को फँसा दिया है।—प्रकाशितवाक्य १७:३-६; १८:२-५.

८. १९१९ के सीडर पॉइन्ट सम्मेलन में कौनसे अप्रत्याशित प्रकाशन की घोषणा की गयी, और कार्य के लिए कौनसा आह्वान दिया गया?

८ १९१९ के ऐतिहासिक विकासों का शिखर परमेश्‍वर के लोगों के उस सम्मेलन में हुआ, जो सीडर पॉइन्ट, ओहायओ, यू.एस.ए. में, सितम्बर १-८ तक आयोजित किया गया था। उस सम्मेलन के पाँचवे दिन, “सहकर्मी दिन” पर, वॉच टावर सोसाइटी के सभापति, जे.एफ. रदरफ़र्ड ने ६,००० लोगों को एक उत्तेजक वार्ता में संबोधित किया, जिसका शीर्षक था, “राज्य की घोषणा करना।” प्रकाशितवाक्य १५:२ और यशायाह ५२:७ पर विचार-विमर्श करने के बाद, उन्होंने श्रोताओं को बताया कि एक नयी पत्रिका, द गोल्डन एज (जो अब अवेक! के नाम से प्रसिद्ध है), ख़ास तौर से क्षेत्र वितरण के लिए हर पखवारे को प्रकाशित की जाती। समाप्ति में उन्होंने कहा: “जो लोग प्रभु की ओर पूर्ण रूप से समर्पित हैं; जो निडर हैं, जिनके हृदय शुद्ध हैं, जो परमेश्‍वर और प्रभु यीशु को अपने पूरे मन, शक्‍ति, जीव और प्राण से प्रेम करते हैं, वे, जैसे-जैसे उन्हें मौक़ा प्रदान होगा, वैसे-वैसे इस कार्य में हिस्सा लेने में हर्षोल्लास करेंगे। प्रभु से उनके मार्गदर्शन और निर्देशन के लिए प्रार्थना करो कि वह तुम्हें एक सच्चा, विश्‍वासयोग्य और कार्यक्षम दूत बनाए। फिर, अपने दिल में एक हर्ष गान के साथ, उसकी सेवा करने के लिए क़दम बढ़ाओ।”

९, १०. यहोवा ने द वॉचटावर और अवेक! पत्रिकाओं के प्रकाशन को किस तरह उन्‍नति दी है?

९ वह “हर्ष गान” संपूर्ण दुनिया में सुना गया है! बेशक, हमारे कई पाठकों ने अवेक! पत्रिका के वितरण को उसके मौजूदा ६४ भाषाओं में प्रत्येक अंक की १,२९,८०,००० प्रतियों के वितरण तक बढ़ाने में हिस्सा लिया है। अवेक! पत्रिका दिलचस्पी रखनेवालों को सच्चाई की ओर ले जानेवाले एक प्रभावशाली साधन के रूप में, द वॉचटावर पत्रिका की एक साथी के तौर से काम आती है। एक पूर्वी देश में, नियमित पत्रिका वितरण मार्ग पर कार्य करनेवाली एक पायनियर बहन को आश्‍चर्य हुआ जब उसने पाया कि जब वह सबसे नवीन पत्रिकाएँ पहुँचा देती थी, तब गृहणी—बेशक राज्य कार्य के लिए उत्तम क़दरदानी दिखाते हुए—हर बार यहोवा के गवाहों के विश्‍वव्यापी कार्य के वास्ते $७ (यू.एस.) की तुल्य राशि दान में देती थी!

१० अब अपने प्रकाशन के ११२वें वर्ष की शुरुआत में, द वॉचटावर पत्रिका का वितरण १११ भाषाओं में १,५२,९०,००० प्रतियाँ है, और इन में से ५९ संस्करण पूरी दुनिया में एक जैसी अन्तर्वस्तु सहित एक साथ प्रकाशित होते हैं। विश्‍वासयोग्य भण्डारी के रूप में, अभिषिक्‍त शेष वर्ग क़दरदान पाठकों को “उचित समय पर [आध्यात्मिक] भोजन सामग्री का उनका उचित परिमाण” देता है। (लूका १२:४२, न्यू.व.) १९९० के दौरान, यहोवा के गवाहों ने रिपोर्ट किया कि उन्होंने इन दो पत्रिकाओं के लिए २९,६८,३०९ अभिदान प्राप्त किए, जो कि १९८९ से अधिक २२.७-प्रतिशत की वृद्धि थी।

हर्ष प्रचुर होता है

११. (अ) वर्ष १९२२ में सीडर पॉइन्ट में परमेश्‍वर के लोगों को कौनसा आह्वान दिया गया? (ब) उस जयजयकार को किस तरह फैलाया गया है?

११ हर्ष तब भी प्रचुर हुआ जब परमेश्‍वर के लोग, जिनकी संख्या अब १०,००० हो गयी थी, सितम्बर १९२२ में, सीडर पॉइन्ट में दूसरे सम्मेलन के लिए एकत्र हुए, और जहाँ ३६१ व्यक्‍तियों ने बपतिस्मा लिया। मत्ती ४:१७ पर आधारित, “स्वर्ग का राज्य निकट है,” इस शीर्षक की अपनी वार्ता में, भाई रदरफ़र्ड श्रोताओं को इस उत्तेजक चरमोत्कर्ष तक ले गए: “दुनिया को यह मालूम होना ही चाहिए कि यहोवा परमेश्‍वर हैं और यीशु मसीह राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु है। यह सबसे बड़ा दिन है। देख, राजा राज्य करता है! तुम लोग उसके प्रचार अभिकर्ता हो। इसलिए, राजा और उसके राज्य की घोषणा करो, घोषणा करो, घोषणा करो!” उस सम्मेलन में जो जयजयकार चढ़ा, उस में हिस्सा लेनेवालों की संख्या यहाँ तक बढ़ गयी है कि वर्ष १९८९ में दुनिया भर में यहोवा के गवाहों के १,२१० सम्मेलनों में ६६,००,००० से अधिक लोग एकत्र हुए, और वहाँ १,२३,६८८ लोगों ने बपतिस्मा लिया।

१२. (अ) परमेश्‍वर के लोग आज कौनसे अनमोल हर्ष में हिस्सेदार होते हैं? (ब) हम यहोवा के प्रति हमारी सेवा के साथ “प्रधान अधिकारियों” के प्रति आज्ञापालन को किस तरह संतुलन में रख सकते हैं?

१२ यहोवा के गवाह अपनी आज़ादी की क़दर करते हैं। सबसे ज़्यादा, वे यीशु के शब्दों की आधुनिक पूर्ति में आनन्द मनाते हैं: “और तुम सत्य को जानोगे, और सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा।” झूठे धर्म के रहस्यों और अन्धविश्‍वासों से मुक्‍त किया जाना क्या ही आनन्दित बात है! यहोवा और उनके पुत्र को जानना और, अनन्त जीवन की आशा पाकर, उनके साथ सहकर्मी बनना, क्या ही अनमोल हर्ष की बात है! (यूहन्‍ना ८:३२; १७:३; १ कुरिन्थियों ३:९-११) परमेश्‍वर के दास इस बात का भी मूल्यांकन करते हैं जब “प्रधान अधिकारी,” जिनके अधीन वे रहते हैं, मसीह के हाथों यहोवा के राज्य की शानदार आशा की घोषणा करने की उनकी आज़ादी का सम्मान करते हैं। वे स्वेच्छा से “जो कैसर का है, वह कैसर को” देते हैं, पर साथ-साथ “जो परमेश्‍वर का है, वह परमेश्‍वर को” भी देते हैं।—रोमियों १३:१-७; लूका २०:२५.

१३. अत्याचार से मुक्‍ति पाकर यहोवा के गवाहों ने अपना हर्ष किस तरह व्यक्‍त किया है?

१३ बहरहाल, यदि मानवीय अधिकारी परमेश्‍वर के प्रति इस दायित्व पर रोक लगाने की कोशिश करते हैं, तो यहोवा के गवाह प्रेरितों की ही तरह जवाब देते हैं: “हमें मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्‍वर की आज्ञा का पालन करना ही चाहिए।” (न्यू.व.) उस अवसर पर, शासकों ने प्रेरितों को रिहा कर देने के बाद, वे “इस बात से आनन्दित होकर . . . चले गए।” उन्होंने उस हर्ष को किस तरह व्यक्‍त किया? “प्रति दिन मन्दिर में और घर घर में उपदेश करने, और इस बात का सुसमाचार सुनाने से, कि यीशु ही मसीह है, न रुके।” (प्रेरितों. ५:२७-३२, ४१, ४२) उसी तरह, यहोवा के आधुनिक गवाह हर्ष मनाते हैं जब वे अपनी सेवकाई करते रहने के लिए अधिक आज़ादी प्राप्त करते हैं। अनेक देशों में जहाँ यहोवा ने मार्ग खोल दिया है, वे यहोवा के नाम और मसीह यीशु द्वारा आनेवाले राज्य के बारे में संपूर्ण रूप से गवाही देकर गहरा हर्ष व्यक्‍त करते हैं—प्रेरितों. २०:२०, २१, २४; २३:११; २८:१६, २३ से तुलना करें।

हर्ष से सहन करना

१४. यह हर्ष, जो आत्मा का एक फल है, एक शब्दकोश द्वारा परिभाषित शब्द से किस तरह बढ़कर है?

१४ यह गहरा हर्ष क्या है जिसका अनुभव सच्चे मसीही करते हैं? यह ऑलिंपिक खेलों में किसी विजेता के अस्थायी हर्ष से कहीं गहरा और कहीं ज़्यादा स्थायी है। यह परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा का एक फल है, जो परमेश्‍वर अपने लोगों को देते हैं जो “उसकी आज्ञा मानते हैं।” (प्रेरितों. ५:३२) वेब्स्टर्स का शब्दकोश हर्ष की परिभाषा इस प्रकार करता है कि यह ‘आह्लाद से अधिक गहरी जड़ोंवाला, और प्रसन्‍नता से अधिक प्रफुल्ल या भावप्रदर्शक’ है। एक मसीही के लिए हर्ष का एक अधिक गहरा अर्थ होता है। चूँकि इसकी जड़ें हमारे विश्‍वास में जमी हुई हैं, यह एक प्रभावशाली, शक्‍ति-वर्धक गुण है। “यहोवा का आनन्द तुम्हारा दृढ़ गढ़ है।” (नहेमायाह ८:१०) यहोवा का हर्ष, जिसे परमेश्‍वर के लोग विकसित करते हैं, उस आभासी उत्तेजना से कहीं बढ़कर है जो लोग शारीरिक, सांसारिक सुखविलास से पाते हैं।—गलतियों ५:१९-२३.

१५. (अ) विश्‍वसीनय मसीहियों के अनुभव में, सहनशीलता हर्ष से कैसे जुड़ी हुई है? (ब) कुछ ऐसे शास्त्रपदों का उल्लेख करें जो हर्ष को बनाए रखने के विषय में बल बढ़ानेवाला आश्‍वासन देते हैं।

१५ यूक्रेन में रहनेवाले हमारे भाइयों का विचार किजिए। जब ‘प्रधान अधिकारी’ ने १९५० के दशक के प्रारंभिक हिस्से में उन में से हज़ारों को साइबीरिया में निर्वासित कर दिया, तब उन्होंने बड़ी मुसीबतें झेलीं। बाद में, जब अधिकारी ने उन्हें राजक्षमा दे दी, तब वे आभारी थे, परन्तु उन में से सभी अपने स्वदेश को नहीं लौटे। क्यों? पूरब में किए गए उनके परिश्रम से उन्हें याकूब १:२-४ की याद आयी: “हे मेरे भाइयों, जब तुम नाना प्रकार की परीक्षाओं में पड़ो, तो इस को पूरे आनन्द की बात समझो, यह जानकर, कि तुम्हारे विश्‍वास के परखे जाने से धीरज उत्पन्‍न होता है।” वे उस हर्षमय फ़सल में सहन करते रहना चाहते थे, और पोलैंड में आयोजित यहोवा के गवाहों के हाल में हुए सम्मेलनों में पॅसिफिक तटीय समुदायों जैसे सुदूर पूर्व से आए हुए गवाहों का स्वागत करना क्या ही हर्ष की बात रही है। सहनशीलता और हर्ष, दोनों से यह फलन उत्पन्‍न हुआ है। वास्तव में, यहोवा की सेवा में हर्ष से सहन करनेवाले हम सभी कह सकते हैं: “तौभी मैं यहोवा के कारण आनन्दित और मग्न रहूँगा, और अपने उद्धारकर्त्ता परमेश्‍वर के द्वारा अति प्रसन्‍न रहूँगा। यहोवा परमेश्‍वर मेरा बलमूल है।”—हबक्कूक ३:१८, १९; मत्ती ५:११, १२.

१६. यिर्मयाह और अय्यूब के उत्तम मिसाल हमें अपनी क्षेत्रसेवा में किस तरह प्रोत्साहित कर सकते हैं?

१६ फिर भी, हठीले विरोधियों के बीच गवाही देते वक्‍त, हम अपना हर्ष किस तरह बनाए रख सकते हैं? याद रखें कि परमेश्‍वर के भविष्यवक्‍ताओं ने समान परिस्थितियों में एक हर्षमय दृष्टिकोण बनाए रखा। जब यिर्मयाह कठिन परिस्थितियों का सामना कर रहा था, तब उसने कहा: “जब तेरे वचन मेरे पास पहुँचे, तब मैं ने उन्हें मानो खा लिया, और तेरे वचन मेरे मन के हर्ष और आनन्द का कारण हुए; क्योंकि, हे सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा, मैं तेरा कहलाता हूँ।” (यिर्मयाह १५:१६) यह क्या ही ख़ास विशेषाधिकार है कि हम यहोवा के नाम से पुकारे जाएँ और उस नाम के बारे में गवाही दें! हमारा अध्यवसायी व्यक्‍तिगत अभ्यास से और मसीही सभाओं में हमारी पूरी सहभागिता से ही सच्चाई में हर्ष करते रहने के लिए हमारा बल बढ़ेगा। क्षेत्रसेवा करते समय हमारे व्यवहार में और राज्य के ख़याल से खिलनेवाली हमारी मुस्कराहट में हमारा हर्ष नज़र आएगा। बहुत कड़ी परीक्षा झेलते हुए भी, अय्यूब अपने विरोधियों के बारे में कह सका: “मैं उन की ओर मुस्कराता था—वे विश्‍वास ही न कर पाते थे—और वे मेरे मुख की चमक की उपेक्षा न कर पाते थे।” (अय्यूब २९:२४, न्यू.व.) विश्‍वसनीय अय्यूब के जैसे, जब विरोधी हमारी निन्दा करते हैं, तब हमें निराश नहीं होना चाहिए। मुस्कराते रहें! हमारा चेहरा हमारे हर्ष को प्रतिबिंबित कर सकता है और इस तरीक़े से हम कुछ सुननेवाले भी पाएँगे।

१७. किस तरह हर्ष के साथ सहन करने से फल उत्पन्‍न हो सकता है?

१७ जब हम बार-बार क्षेत्र में प्रचार करते हैं, हमारी सहनशीलता और हर्ष धार्मिक रूप से प्रवृत्त लोगों को शायद प्रभावित करे और उन्हें हमारी आशा की जाँच-पड़ताल करने के लिए प्रोत्साहित करे। उनके साथ नियमित रूप से बाइबल का अभ्यास करना क्या ही हर्ष की बात है! और जब परमेश्‍वर के वचन की मूल्यवान्‌ सच्चाइयों को वे अपने दिल में समाते हैं, तब हमें कितना हर्ष होता है जब वे आख़िरकार यहोवा की सेवा में हमारे साथी बन जाते हैं! उस वक्‍त हम उसी तरह कह सकते हैं, जिस तरह प्रेरित पौलुस ने अपने समय के नए विश्‍वासियों से कहा: “भला हमारी आशा, या आनन्द या बड़ाई का मुकुट क्या है? क्या हमारे प्रभु यीशु के सम्मुख उसके आने के समय तुम ही न होगे? हमारी बड़ाई और आनन्द तुम ही हो।” (१ थिस्सलुनीकियों २:१९, २०) सचमुच, नए लोगों को परमेश्‍वर के वचन की सच्चाई की ओर ले जाने में और उन्हें समर्पित, बपतिस्मा-प्राप्त गवाह बनने की मदद करने में एक संतोषजनक हर्ष पाया जा सकता है।

हर्ष जो बल प्रदान करता है

१८. हमें विविध आधुनिक परीक्षाओं का सफलतापूर्वक सामना करने के लिए किस बात से मदद मिलेगी?

१८ हमारी रोज़मर्रा ज़िन्दगी में, ऐसी कई स्थितियाँ हैं जिनके कारण सहनशीलता दिखाना आवश्‍यक हो जाता है। शारीरिक बीमारी, मानसिक विषाद और आर्थिक कठिनाई इन में से तो बस कुछ ही स्थितियाँ हैं। ऐसी परीक्षाओं का सफलतापूर्वक सामना करने के लिए कोई मसीही अपना हर्ष किस तरह बनाए रख सकता है? सान्त्वना और मार्गदर्शन के लिए परमेश्‍वर के वचन में देखने से ऐसा किया जा सकता है। परीक्षा के समय में भजन संहिता को पढ़ना या उसके पाठन को सुनना नयी शक्‍ति प्रदान करता है। और दाऊद की बुद्धिमान सलाह पर ग़ौर करें: “अपना बोझ यहोवा पर डाल दे, वह तुझे सम्भालेगा; वह धर्मी को कभी टलने न देगा।” (भजन ५५:२२) सचमुच यहोवा “प्रार्थना के सुननेवाले” हैं!—भजन ६५:२.

१९. दाऊद और पौलुस के जैसे, हमारे पास कैसा विश्‍वास हो सकता है?

१९ यहोवा का संगठन, अपने प्रकाशनों और अपने मण्डली के प्राचीनों के ज़रिए, हमारी समस्याओं का सामना करने में, चूँकि हम कमज़ोर मानव हैं, हमारी मदद करने के लिए हमेशा तैयार खड़ा है। दाऊद स्नेह से सलाह देता है: “अपने मार्ग की चिन्ता यहोवा पर छोड; और उस पर भरोसा रख, वही पूरा करेगा।” वह यह भी कह सका: “मैं लड़कपन से लेकर बुढ़ापे तक देखता आया हूँ, परन्तु न तो कभी धर्मी को त्यागा हुआ, और न उसके वंश को टुकड़े माँगते देखा है।” मसीही मण्डली से संबद्ध होकर हम पाएँगे कि “धर्मियों की मुक्‍ति यहोवा की ओर से होती है; संकट के समय वह उनका दृढ़ गढ़ है।” (भजन ३७:५, २५, ३९) हम हमेशा ही पौलुस की सलाह पर अमल करें: “इसलिए हम हियाव नहीं छोड़ते, . . . हम तो देखी हुई वस्तुओं पर नहीं परन्तु अनदेखी वस्तुओं को देखते रहते हैं, क्योंकि देखी हुई वस्तुएँ थोड़े ही दिन की हैं, परन्तु अनदेखी वस्तुएँ सदा बनी रहती हैं।”—२ कुरिन्थियों ४:१६-१८.

२०. हम विश्‍वास की नज़रों से क्या देखते हैं, और यह हमें किस रीति से प्रेरित करता है?

२० हमारे विश्‍वास की नज़रों से, हम यहोवा की नयी व्यवस्था को बस कुछ ही दूर देख सकते हैं। वहाँ क्या ही अतुलनीय हर्ष और आशीर्वाद होंगे! (भजन ३७:३४; ७२:१, ७; १४५:१६) उस शानदार समय के लिए तैयारी करने में, आइए हम भजन १००:२ के शब्दों पर अमल करें: “आनन्द से यहोवा की आराधना करो! जयजयकार के साथ उसके सम्मुख आओ!”

[फुटनोट]

a “आर्य श्रेष्ठता” के संबंध में, फरवरी १७, १९४० के द न्यू यॉर्क टाइम्स ने जॉर्जटाउन विश्‍वविद्यालय के एक कैथोलिक प्रतिशासक को यह कहते हुए उद्धृत किया कि “उसने अडॉल्फ हिट्‌लर को यह कहते हुए सुना था कि पवित्र रोमी साम्राज्य को, जो कि एक जर्मनिक साम्राज्य था, अवश्‍य पुनःस्थापित करना चाहिए।” लेकिन इतिहासकार विलियम एल. शाइरर परिणाम का वर्णन इस प्रकार करते हैं: “हिट्‌लर धमण्ड करता था कि तीसरा जर्मन राज्य, जो जनवरी ३०, १९३३ को अस्तित्व में आया, एक हज़ार वर्ष तक टिका रहता, और नाट्‌ज़ियों की विशेष भाषा-शैली में इसका ज़िक्र अक़सर ‘एक हज़ार वर्ष के राज्य’ के तौर से किया जाता था। यह बारह वर्ष और चार महीनों तक बना रहा।”

समीक्षा में:

◻ आज जातीयवाद पर कौनसी हर्षमय जीत देखी जा सकती है?

◻ क्या कारण था जिस से परमेश्‍वर के प्राचीन लोगों ने गाकर जयजयकार किया?

◻ आधुनिक समय में सच्चा हर्ष किस तरह बढ़ गया है?

◻ सहनशीलता और हर्ष किस रीति से साथ-साथ चलते हैं?

◻ हम अपना हर्ष किस उपाय से बनाए रख सकते हैं?

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