पारिवारिक अध्ययन जो आनंद लाता है
“ज्ञान के द्वारा कोठरियां सब प्रकार की बहुमूल्य और मनभाऊ वस्तुओं से भर जाती हैं,” ऐसा बाइबल कहती है। (नीतिवचन २४:४) ये बहुमूल्य वस्तुएँ मात्र भौतिक ख़ज़ाना नहीं है, बल्कि इसमें शामिल है सच्चा प्रेम, ईश्वरीय भय, और दृढ़ विश्वास। ऐसे गुण वास्तव में एक समृद्ध पारिवारिक जीवन साकार करते हैं। (नीतिवचन १५:१६, १७; १ पतरस १:७) लेकिन इन्हें प्राप्त करने के लिए, हमें अपनी गृहस्थी में परमेश्वर का ज्ञान लाने की आवश्यकता है।
परिवार के सदस्यों को यह ज्ञान समझाकर सिखाने की ज़िम्मेदारी परिवार के मुखिया पर होती है। (व्यवस्थाविवरण ६:६, ७; इफिसियों ५:२५, २६; ६:४) ऐसा करने का सबसे बढ़िया तरीक़ा है नियमित पारिवारिक अध्ययन। भाग लेनेवालों के लिए यह कितना ही मज़ेदार हो सकता है जब अध्ययन इस प्रकार से संचालित किया जाए जो कि ज्ञानप्रद और आनंदमय, दोनों ही हो! तो आइए, प्रभावकारी रूप से पारिवारिक अध्ययन संचालित करने के लिए कुछ ज़रूरी बातों पर हम विचार करें।a
पारिवारिक अध्ययन सबसे प्रभावकारी तब होता है जब नियमित रूप से होता है। यदि इसे सुनिश्चित समय पर न किया जाए या अचानक करने का निर्णय लिया जाए, तो सबसे अच्छी परिस्थितियों में भी इसके कभी-कभार ही होने की संभावना है। इसलिए आपको अध्ययन के लिए “समय मोल लेना” ज़रूरी है। (इफिसियों ५:१५-१७, NW) एक ऐसा नियमित समय चुनना जो सभी के लिए सुविधाजनक हो, चुनौती हो सकता है। “अपना पारिवारिक अध्ययन नियमित रूप से करना हमारे लिए कठिन होता था,” एक परिवार का मुखिया स्वीकार करता है। “हम अलग-अलग समय पर अध्ययन करते रहे, जब तक कि हमें आख़िरकार देर संध्या का वह समय नहीं मिला, जो हम सबके लिए ठीक था। अब हमारा पारिवारिक अध्ययन नियमित रूप से होता है।”
एक बार जब आपके हाथ ठीक समय लगा है, तब सावधान रहिए कि ध्यान भंग करनेवाली बातें अध्ययन की जगह न ले लें। “यदि कोई मेहमान हमारे अध्ययन के दौरान आ जाते,” मरीयाb याद करती है, जो अब ३३ की है, “पापा उनसे अध्ययन समाप्त हो जाने तक इंतज़ार करने के लिए निवेदन करते। जहाँ तक फ़ोन की बात है, वे बस उस व्यक्ति को कह देते कि बाद में, वे ख़ुद फ़ोन करेंगे।”
फिर भी, इसका अर्थ यह नहीं कि किसी भी हालत में नम्यता की कोई गुंजाइश नहीं हो सकती। आपाती या अप्रत्याशित घटनाएँ घट सकती हैं, और अध्ययन को कभी-कभार रद्द करना या स्थगित करना शायद ज़रूरी हो जाए। (सभोपदेशक ९:११) पर ध्यान रखिए कि इनमें से किसी को अपना नित्यक्रम तोड़ने न दें।—फिलिप्पियों ३:१६.
अध्ययन कितने समय तक लिया जाना चाहिए? रॉबर्ट, जिसने सफलतापूर्वक एक बेटी और एक बेटे को बड़ा किया है, कहता है: “हमारा अध्ययन आम तौर पर एक घंटा चलता था। जब बच्चे छोटे थे, तब उस एक घंटे के दरमियान विविध प्रकार का अध्ययन करते थे। जैसे कि प्रहरीदुर्ग के अध्ययन लेख में से कुछ अनुच्छेदों, बाइबल में से चुने हुए हिस्सों, और अन्य प्रकाशनों के कुछ भागों पर, और इस तरह उनकी दिलचस्पी बनाए रखने की कोशिश करते थे।” मरीया याद करती है: “जब मैं और मेरी दो बहनें बहुत छोटी थीं, हमारा अध्ययन सप्ताह में दो या तीन बार क़रीबन २० मिनट के लिए होता था। हम जैसे-जैसे बड़ी होने लगीं, हमारा साप्ताहिक पारिवारिक अध्ययन क़रीब एक घंटे तक चलने लगा।”
हमें क्या अध्ययन करना चाहिए?
जब हर कोई अध्ययन के लिए इकट्ठा हुआ हो, तब इस प्रश्न पर विचार करने से कुंठा उत्पन्न होगी और अध्ययन के बहुमूल्य समय की बरबादी होगी। अगर ऐसा होता है, तो बच्चे किसी ख़ास बात का बेसब्री से इंतज़ार नहीं करेंगे और जल्द ही रुचि खो बैठेंगे। इसलिए चर्चा करने के लिए संस्था का कोई प्रकाशन पहले ही चुन लीजिए।
“विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” ने चुनाव के लिए बहुतायत में प्रकाशनों का प्रबंध किया है। (मत्ती २४:४५-४७) संभवतः आप उस पुस्तक का प्रयोग कर सकते हैं जिसका परिवार ने अब तक अध्ययन नहीं किया हो। यदि शास्त्रवचनों पर अंतर्दृष्टि (अंग्रेज़ी) के खंड आपकी भाषा में उपलब्ध हैं, तो इनके चुनिंदा भागों पर विचार करना क्या ही आनंद की बात है! मसलन, आप स्मारक पूर्व सप्ताहों के दौरान प्रभु के संध्या भोज के लेख पर पुनर्विचार कर सकते हैं। कई परिवार सप्ताह के प्रहरीदुर्ग अध्ययन की तैयारी करने का आनंद उठाते हैं। परंतु प्रहरीदुर्ग में दूसरे लेख भी अध्ययन के लिए बेहतरीन विषय पेश करते हैं। परिवार का मुखिया, जो परिवार की आध्यात्मिक ज़रूरतों को जानता है, निर्णय करने की सबसे अच्छी स्थिति में है कि कौन-से प्रकाशनों का अध्ययन किया जाना चाहिए।
“हमने हमेशा पहले से तय किए हुए प्रकाशन का अध्ययन किया,” मरीया याद करती है। “लेकिन जब कोई प्रश्न उठता या स्कूल में ऐसी स्थिति खड़ी होती, तब हम उससे लागू होते विषय की ओर चले जाते।” ख़ास विषय, जैसे कि वे मुश्किलें जिनका सामना युवा स्कूल में करते हैं, डेटिंग, पाठ्येतर गतिविधियाँ आदि उठती हैं। जब ऐसा होता है, तब उन लेखों या प्रकाशनों को चुनिए जो वर्तमान समस्या से संबंधित हों। यदि आप प्रहरीदुर्ग या सजग होइए! के नवीनतम अंक में ऐसी जानकारी देखते हैं जिस पर आप परिवार के साथ तुरंत चर्चा करना चाहते हों, तो उसका प्रबंध करने से हिचकिचाइए मत। अलबत्ता, आप परिवर्तन के बारे में परिवार के सदस्यों को पहले से ही सूचित कर देना चाहेंगे। लेकिन ध्यान रहे कि ज़रूरत पूरी हो जाने पर तय किए गए विषय पर लौट आएँ।
वातावरण शांत रखिए
अध्ययन शांतिपूर्ण स्थिति में सबसे अच्छा होता है। (याकूब ३:१८) सो एक तनावमुक्त, फिर भी आदरपूर्ण वातावरण विकसित कीजिए। अमरीका में परिवार का एक मुखिया कहता है: “हम अध्ययन चाहे कमरे में करें या बरांडे में, हम किसी बड़े कमरे में फैलकर बैठने के बजाय एक-दूसरे के क़रीब बैठने की कोशिश करते हैं। यह हमारे लिए स्नेह भाव उत्पन्न करता है।” और मरीया बड़े चाव से याद करती है: “मुझे और मेरी बहनों को चुनने की अनुमति दी गई थी कि हम उस सप्ताह घर में अध्ययन कहाँ करेंगे। इससे हमें अच्छा लगता था।” यह ध्यान रहे कि सही रोशनी, बैठने का उचित प्रबंध, तथा खुला और व्यवस्थित परिस्थिति सब शांति में योग देते हैं। अध्ययन के पश्चात् परिवार के लिए अल्पाहार भी शाम सुहावनी बनाने में मदद देता है।
कुछ परिवार समय-समय पर अपने अध्ययन में अन्य परिवारों को भी शामिल करने का चुनाव करते हैं, जिससे अध्ययन दिलचस्प हो जाता है, साथ ही विभिन्न प्रकार की टिप्पणियाँ भी की जाती हैं। सत्य में आए नए-नए लोगों को जब इस प्रबंध में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किया जाता है, तब वे अनुभवी परिवार के मुखिया द्वारा पारिवारिक अध्ययन का संचालन देखकर लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
बाइबल को सजीव बनाइए
बच्चों के लिए अध्ययन की अवधि को सजीव बनाइए, और वे उसका बेसब्री से इंतज़ार करेंगे। छोटे बच्चों को बाइबल घटनाओं की तसवीरें बनाने के लिए प्रोत्साहित करने के द्वारा आप ऐसा कर सकते हैं। जब उपयुक्त हो, तब बच्चों से बाइबल की घटनाओं एवं नाटकों पर अभिनय करवाइए। छोटे बच्चों के साथ एक औपचारिक सवाल-जवाबवाले तरीक़े से ही जुड़े रहना ज़रूरी नहीं है। बाइबल पात्रों के बारे में कहानियाँ पढ़ना या सुनाना ईश्वरीय सिद्धांतों को मन में बिठाने का सुखद तरीक़ा है। रॉबर्ट, जिसका ज़िक्र आरंभ में किया गया है, याद करता है: “कभी-कभी हम बाइबल के हिस्सों को पढ़ते, नियुक्ति के अनुसार बारी-बारी से अलग-अलग पात्र के भागों को ‘आवाज़’ देते।” जिस पात्र का भाग वे पढ़ना चाहते हैं, उसका चुनाव करने के लिए बच्चों से कहा जा सकता है।
बड़े बच्चों के साथ नक़्शों और चार्टों का प्रयोग करना, चर्चा की जा रही घटनाएँ जहाँ घटी थीं, उस देश के क्षेत्रों तथा विशेषताओं का मानसिक चित्र खींचने में उनकी सहायता करेगा। स्पष्टतया, थोड़ी-सी कल्पना की उड़ान के साथ पारिवारिक अध्ययन को सजीव और भिन्न किया जा सकता है। और बच्चों में परमेश्वर के वचन के लिए लालसा उत्पन्न होगी।—१ पतरस २:२, ३.
भाग लेने के लिए हरेक की मदद कीजिए
बच्चे अध्ययन का आनंद लें, इसके लिए उन्हें महसूस होना चाहिए कि वे भी शामिल हैं। फिर भी, अलग-अलग उम्र के बच्चों को भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना एक चुनौती हो सकती है। परंतु बाइबल सिद्धांत कहता है: “जो अगुआई करे, वह उत्साह से करे।” (रोमियों १२:८) उत्साही होना सहायक है, क्योंकि हमारा उत्साह दूसरों में उत्साह बढ़ाता है।
रॉनल्ड अपनी पाँच-वर्षीय बेटी, डाइना से अध्ययन किए जा रहे विषय के उपशीर्षकों को पढ़वाकर और चित्रों पर टिप्पणी देने के लिए कहकर उसे अध्ययन में शामिल करता है। पिछले साल जब मसीह का मृत्यु स्मारक निकट आया था, उसने वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य जो कभी जीवित रहाc पुस्तक के प्रासंगिक चित्रों पर ध्यान केंद्रित किया। वह नोट करता है: “इससे उस घटना के महत्त्व को समझने में उसे मदद मिली।”
अपनी दस-वर्षीय बेटी, मीशा के साथ रॉनल्ड एक और तरीक़ा अपनाता है। रॉनल्ड कहता है: “मीशा उस हद तक उन्नति कर चुकी है जहाँ वह न केवल यह समझती है कि दृष्टांत कौन-से हैं, वरन् उनके अर्थ भी समझती है। इसलिए प्रकाशितवाक्य—इसकी महान पराकाष्ठा निकट!* (अंग्रेज़ी) पुस्तक का अध्ययन करते वक़्त, हमने चित्रों के अर्थ पर ध्यान केंद्रित किया और इससे उसको मदद मिली।”
जब बच्चे किशोरावस्था में पहुँचते हैं, चर्चा किए जा रहे विषय को व्यावहारिक तरीक़े से लागू करने के लिए उन्हें आमंत्रित कीजिए। अध्ययन के दौरान जब प्रश्न उठते हैं, तब उन भागों पर शोध करने के लिए नियुक्त कीजिए। रॉबर्ट ने ऐसा किया जब उसके १२-वर्षीय बेटे, पॉल ने नये स्थापित स्कूल क्लब के बारे में पूछा जिसमें ‘डन्जियन्स एण्ड ड्रॆगन्स’ नामक खेल शामिल था। पॉल और परिवार के अन्य सदस्यों ने प्रहरीदुर्ग प्रकाशन अनुक्रमणिका (अंग्रेज़ी) का प्रयोग करते हुए उस विषय पर खोज की, और अपने पारिवारिक अध्ययन के दौरान उन्होंने उस पर पुनर्विचार किया। “इसका नतीजा,” रॉबर्ट कहता है, “पॉल जल्द ही समझ गया कि यह खेल मसीहियों के लिए ग़लत था।”
रॉबर्ट अन्य अवसरों पर भी शोध करने का काम उन्हें देता था। उसकी पत्नी, नैन्सी याद करती है: “जब हमने यीशु के प्रेरितों पर शोध किया, हम में से हरेक को हर सप्ताह एक प्रेरित दिया गया था। पारिवारिक अध्ययन के दौरान बच्चों का बड़े जोश के साथ अपनी रिपोर्ट पेश करते देखना, क्या ही रोमांचक था!” ख़ुद शोध करना और परिवार के साथ जानकारी बाँटना, ‘यहोवा के संग बढ़ने’ में बच्चों की मदद करता है।—१ शमूएल २:२०, २१.
प्रश्न पूछना—दृष्टिकोण साथ ही संकेतक प्रश्न—भी बच्चों को शामिल करने का एक अच्छा तरीक़ा है। महान शिक्षक, यीशु ने दृष्टिकोण प्रश्न पूछे, जैसे, “तू क्या समझता है?” (मत्ती १७:२५) “जब हम में से किसी का सवाल होता था, तो हमारे माता-पिता कभी हमें सीधे जवाब नहीं देते थे,” मरीया याद करती है। “वे हमेशा संकेतक प्रश्न पूछते थे, इस प्रकार विषय पर तर्क करने में हमारी मदद करते थे।”
खीज न दिलाइए!
यदि खिल्ली उड़ाए जाने के डर के बिना, उपस्थित सभी जन अपने दृष्टिकोण तथा अपनी भावनाएँ बता सकें तो पारिवारिक अध्ययन का आनंद बढ़ जाता है। लेकिन “पारिवारिक अध्ययन के दरमियान अच्छी बातचीत केवल तभी संभव है जब अन्य अवसरों पर भी बातचीत होती हो,” एक पिता कहता है। “मात्र अध्ययन के दौरान ही आप ऐसा ढोंग नहीं कर सकते हैं।” हर हाल में, विचारहीन टिप्पणियों से बचे रहिए जो ठेस पहुँचाती हैं, जैसे कि, ‘बस यही? मुझे लगा कोई महत्त्वपूर्ण बात होगी’; ‘मूर्खों जैसी बात करते हो’; ‘ख़ैर, तुमसे और उम्मीद भी क्या कर सकते हैं? बच्चे जो ठहरे।’ (नीतिवचन १२:१८) अपने बच्चों के साथ कोमलता और दया से पेश आइए। (भजन १०३:१३; मलाकी ३:१७) उनमें ख़ुशी पाइए, और जब वे सीखी हुई बातों पर अमल करने कि कोशिश करते हैं तो उनकी मदद कीजिए।
पारिवारिक अध्ययन का माहौल ऐसा होना चाहिए जिससे बच्चे का दिमाग़ शिक्षण के प्रति ग्रहणशील हो। “जब आप बच्चों को डाँटने लगते हैं,” चार बच्चों का सफल पिता समझाता है, “तब आपके बच्चे में कुछ-कुछ रोष की भावना होगी।” ऐसे वातावरण में, जानकारी संभवतः मन में न बैठे। इसलिए अध्ययन-अवधियों को अनुशासन और दंड देने की बैठकें बनाने से बचिए। यदि इसकी ज़रूरत है, तो इसे बाद में और व्यक्तिगत रूप से दीजिए।
प्रयास लाभप्रद है
आध्यात्मिक रूप से समृद्ध परिवार बनाने के लिए समय और प्रयास लगता है। परंतु भजनहार घोषित करता है: “देखो, लड़के यहोवा के लिए हुए भाग हैं, गर्भ का फल उसकी ओर से प्रतिफल है।” (भजन १२७:३) और माता-पिता को यह ज़िम्मेदारी सौंपी गयी है कि “प्रभु की शिक्षा, और चितावनी देते हुए, [बच्चों] का पालन-पोषण” करें। (इफिसियों ६:४) इसलिए प्रभावकारी और आनंदमय पारिवारिक अध्ययन संचालित करने के लिए कौशल विकसित कीजिए। ‘वचन का शुद्ध दूध’ देने के लिए अपना भरसक प्रयत्न कीजिए ताकि आपके बच्चे ‘उद्धार तक बढ़ सकें।’—१ पतरस २:२, NW; यूहन्ना १७:३.
[फुटनोट]
a हालाँकि इस लेख में प्रस्तुत कई सुझाव पारिवारिक अध्ययन में बच्चों की मदद करने से संबंधित हैं, परंतु ये सिद्धांत उस पारिवारिक अध्ययन पर भी लागू होते हैं जहाँ बच्चे नहीं हैं।
b कुछ नाम बदल दिए गए हैं।
c वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित।