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  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1998
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1998
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सब लोगों के लिए एक किताब

“परमेश्‍वर किसी का पक्ष नहीं करता, बरन हर जाति में जो उस से डरता और धर्म के काम करता है, वह उसे भाता है।”—प्रेरितों १०:३५.

१. बाइबल के बारे में उसका विचार पूछे जाने पर एक प्रोफ़ॆसर ने क्या जवाब दिया, और उसने क्या करने का फ़ैसला किया?

वह प्रोफ़ॆसर रविवार की एक दोपहर को घर पर था और उसे किसी मेहमान के आने की उम्मीद नहीं थी। लेकिन जब हमारी एक मसीही बहन ने उसका दरवाज़ा खटखटाया, तो उसने उसकी सुनी। उस बहन ने प्रदूषण और पृथ्वी के भविष्य के बारे में बात की—ऐसे विषय जो प्रोफ़ॆसर को पसंद आए। लेकिन, जब उसने चर्चा में बाइबल का ज़िक्र किया तो उसका संदेह नज़र आने लगा। सो बहन ने उससे पूछा कि बाइबल के बारे में उसका क्या विचार है।

“यह एक अच्छी किताब है जिसे कुछ अक्लमंद लोगों ने लिखा है,” उसने जवाब दिया, “लेकिन बाइबल को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए।”

“क्या आपने कभी बाइबल पढ़ी है?” उस बहन ने पूछा।

प्रोफ़ॆसर चकरा गया, उसे मानना पड़ा कि उसने नहीं पढ़ी थी।

फिर बहन ने पूछा: “आप एक ऐसी किताब के बारे में पक्की राय कैसे ज़ाहिर कर सकते हैं जिसे आपने कभी पढ़ा ही नहीं?”

हमारी बहन की बात में दम था। प्रोफ़ॆसर ने पहले बाइबल की जाँच करने और फिर उसके बारे में एक राय क़ायम करने का फ़ैसला किया।

२, ३. बाइबल अनेक लोगों के लिए एक बंद किताब क्यों है, और इससे हमारे सामने कौन-सी चुनौतियाँ आती हैं?

२ इस प्रोफ़ॆसर की तरह दूसरे लोग भी हैं। अनेक लोग बाइबल के बारे में निश्‍चित राय रखते हैं, हालाँकि उन्होंने ख़ुद इसे कभी नहीं पढ़ा। उनके पास शायद बाइबल हो। वे शायद इसके साहित्यिक या ऐतिहासिक मूल्य को भी स्वीकार करें। लेकिन अनेक लोगों के लिए यह एक बंद किताब है। कुछ कहते हैं, ‘मेरे पास बाइबल पढ़ने के लिए समय नहीं है।’ कुछ लोग सोचते हैं, ‘ऐसी पुरानी किताब मेरे जीवन के लिए कैसे अर्थपूर्ण हो सकती है?’ ऐसे विचार हमारे सामने एक बड़ी चुनौती पेश करते हैं। यहोवा के साक्षियों का पक्का विश्‍वास है कि बाइबल ‘परमेश्‍वर की प्रेरणा से रची गयी है और उपदेश के लिये लाभदायक है।’ (२ तीमुथियुस ३:१६, १७) लेकिन हम दूसरों को कैसे कायल कर सकते हैं कि चाहे उनकी जातीय, राष्ट्रीय या नृजातीय पृष्ठभूमि कोई भी क्यों न हो, उन्हें बाइबल की जाँच करनी चाहिए?

३ आइए हम कुछ कारणों की चर्चा करें कि क्यों बाइबल जाँचे जाने के योग्य है। यह चर्चा सेवकाई में मिलनेवाले लोगों से तर्क करने के लिए हमें तैयार कर सकती है, जिससे शायद हम उन्हें कायल कर सकें कि उन्हें बाइबल की बातों पर विचार करना चाहिए। साथ ही, इस चर्चा से बाइबल में खुद हमारा विश्‍वास मज़बूत होना चाहिए कि बाइबल जैसा दावा करती है, वह सचमुच “परमेश्‍वर का वचन” है।—इब्रानियों ४:१२.

संसार की सबसे ज़्यादा वितरित किताब

४. ऐसा क्यों कहा जा सकता है कि बाइबल संसार की सबसे ज़्यादा वितरित किताब है?

४ पहले, बाइबल ध्यान देने के योग्य है क्योंकि यह अब तक इतिहास में सबसे ज़्यादा वितरित और सबसे ज़्यादा अनुवादित किताब है। ५०० से ज़्यादा साल पहले, वियोज्य टाइप से छपनेवाला पहला संस्करण योहानॆस गूटनबर्ग के छापेखाने से निकला। तब से, अनुमान है कि चार अरब बाइबलें (पूरी या भागों में) छापी जा चुकी हैं। १९९६ तक, पूरी बाइबल या उसके भागों को २,१६७ भाषाओं और बोलियों में अनुवादित किया जा चुका था।a मानव परिवार के ९० प्रतिशत से ज़्यादा लोग अपनी भाषा में बाइबल का कम-से-कम एक भाग हासिल कर सकते हैं। कोई और किताब, धार्मिक या अन्य, इस संख्या के पास तक नहीं आयी है!

५. हमें क्यों यह उम्मीद रखनी चाहिए कि बाइबल को संसार भर के लोगों के लिए सुलभ होना चाहिए?

५ सिर्फ़ आँकड़ों से साबित नहीं हो जाता कि बाइबल परमेश्‍वर का वचन है। लेकिन, हम निश्‍चय ही यह उम्मीद रखेंगे कि जो लेखन ईश्‍वर-प्रेरित हो उसे संसार भर के लोगों के लिए सुलभ होना चाहिए। आखिरकार, बाइबल खुद हमें बताती है कि “परमेश्‍वर किसी का पक्ष नहीं करता, बरन हर जाति में जो उस से डरता और धर्म के काम करता है, वह उसे भाता है।” (प्रेरितों १०:३५) दूसरी किताबों से अलग, बाइबल राष्ट्रीय सीमाओं को पार कर चुकी है और जातीय तथा नृजातीय बाधाओं से ऊपर उठ चुकी है। सचमुच बाइबल सब लोगों के लिए एक किताब है!

सुरक्षित रखे जाने का अनोखा रिकॉर्ड

६, ७. यह आश्‍चर्य की बात क्यों नहीं कि कोई भी मूल बाइबल लेखनों के अस्तित्त्व में होने की जानकारी नहीं है, और इससे कौन-सा सवाल उठता है?

६ बाइबल जाँचे जाने के योग्य क्यों है इसका एक और कारण है। यह प्राकृतिक और मानवी बाधाओं दोनों के बावजूद बच निकल आयी है। बड़ी-बड़ी बाधाओं के बावजूद यह कैसे सुरक्षित रही इसका रिकॉर्ड अन्य प्राचीन लेखनों से सचमुच असाधारण है।

७ ज़ाहिर है कि बाइबल लेखक अपने शब्द स्याही से पपीरस (इसी नाम के मिस्री पौधे से बना था) और (जानवरों की चमड़ी से बने) चर्म-पत्र पर लिखते थे।b (अय्यूब ८:११) लेकिन, ऐसी लेखन सामग्री के प्राकृतिक दुश्‍मन होते हैं। विशेषज्ञ ऑस्कार पारॆट बताता है: “इन दोनों लेखन साधनों को नमी, फफूँद और अनेक कीड़ों से बराबर खतरा रहता है। हम रोज़मर्रा के अनुभव से जानते हैं कि कितनी आसानी से कागज़, यहाँ तक कि मज़बूत चमड़ा भी, खुली हवा में या सीलन-भरे कमरे में खराब हो जाता है।” सो यह कोई आश्‍चर्य की बात नहीं कि मूल लेखनों में से किसी के भी अस्तित्त्व में होने की जानकारी नहीं है; वे शायद बहुत पहले सड़कर खत्म हो गए। लेकिन अगर मूल लेखन प्राकृतिक दुश्‍मनों का शिकार बन गए, तो बाइबल लेखन हमारे समय तक कैसे बचे रहे?

८. शताब्दियों के दौरान बाइबल लेखनों को कैसे सुरक्षित रखा गया?

८ मूल लेखनों के तुरंत बाद, हस्तलिखित प्रतियाँ बनायी जाने लगीं। असल में, मूसा की व्यवस्था और पवित्र शास्त्र के अन्य भागों की नकल उतारना प्राचीन इस्राएल में एक रोज़गार बन गया। उदाहरण के लिए, याजक एज्रा का वर्णन “मूसा की व्यवस्था के विषय . . . निपुण शास्त्री” के रूप में किया गया है। (एज्रा ७:६, ११. भजन ४५:१ से तुलना कीजिए।) लेकिन जो प्रतियाँ बनायी गयीं वे भी नाशवान्‌ थीं; आखिरकार इनकी जगह दूसरी हस्तलिखित प्रतियों ने ले ली। प्रतियों की नकल उतारने का यह काम शताब्दियों तक चलता रहा। मनुष्य परिपूर्ण नहीं है, इसलिए क्या नकलनवीसों की गलतियों ने बाइबल के पाठ को बहुत ज़्यादा बदल दिया?’ ढेर सारे सबूत कहते हैं, नहीं!

९. मसोरा लेखकों का उदाहरण, बाइबल के नकलनवीसों की अत्यधिक सावधानी और यथार्थता को कैसे चित्रित करता है?

९ नकलनवीस न केवल बहुत निपुण थे, बल्कि जिन शब्दों की वे नकल उतारते थे उनके लिए उनमें गहरी श्रद्धा थी। इब्रानी में “नकलनवीस” के लिए दिया गया शब्द, गिनने और हिसाब रखने का संकेत देता है। नकलनवीसों के काम में बहुत ज़्यादा सावधानी और यथार्थता का उदाहरण देने के लिए मसोरा लेखकों को लीजिए, जो सा.यु. छठवीं और दसवीं शताब्दियों के बीच जीनेवाले इब्रानी शास्त्र के नकलनवीस थे। विद्वान टॉमस हार्टवॆल हॉर्न के अनुसार, उन्होंने यह हिसाब लगाया कि “[इब्रानी] वर्णमाला का हर अक्षर सारे इब्रानी शास्त्र में कितनी बार आता है।” ज़रा सोचिए कि इसका क्या अर्थ हुआ! एक अक्षर भी न छूट जाए, इसके लिए इन समर्पित नकलनवीसों ने नकल किए गए शब्दों की ही नहीं परंतु अक्षरों की भी गिनती की। और-तो-और, एक विद्वान की गिनती के अनुसार, कहा जाता है कि उन्होंने इब्रानी शास्त्र में ८,१५,१४० अलग-अलग अक्षरों का हिसाब रखा! ऐसी कड़ी मेहनत से उच्च स्तर की यथार्थता निश्‍चित हुई।

१०. जिन इब्रानी और यूनानी मूलपाठों पर आज के अनुवाद आधारित हैं, वे यथार्थता से मूल बाइबल लेखकों के शब्दों को पेश करते हैं, इसका कौन-सा ठोस सबूत है?

१० असल में, ठोस सबूत मौजूद है कि जिन इब्रानी और यूनानी मूलपाठों पर आज के अनुवाद आधारित हैं, वे असाधारण ईमानदारी से मूल बाइबल लेखकों के शब्दों को पेश करते हैं। इस सबूत में बाइबल की हस्तलिखित लिपियों की हज़ारों प्रतियाँ शामिल हैं—संपूर्ण इब्रानी शास्त्र या उसके भागों की अनुमानित ६,००० लिपियाँ और यूनानी भाषा में मसीही शास्त्र की कुछ ५,००० लिपियाँ—जो हमारे समय तक बची हुई हैं। अनेक मौजूदा हस्तलिपियों का सावधानी से और तुलना के द्वारा विश्‍लेषण करके, मूलपाठ विद्वान नकलनवीसों की गलतियाँ पहचान सके हैं और मूल शब्द निश्‍चित कर सके हैं। इसलिए इब्रानी शास्त्र के मूलपाठ पर बात करते हुए, विद्वान विलियम एच. ग्रीन कह सकता था: “बिना किसी दो राय के यह कहा जा सकता है कि प्राचीनकाल की कोई और रचना इतनी यथार्थता से हम तक नहीं पहुँचायी गयी।” ऐसा ही भरोसा मसीही यूनानी शास्त्र के मूलपाठ पर रखा जा सकता है।

११. पहला पतरस १:२४, २५ को ध्यान में रखते हुए, बाइबल हमारे दिन तक क्यों बची रही है?

११ बाइबल कितनी आसानी से खत्म हो गयी होती अगर मूल लेखनों की जगह हस्तलिखित प्रतियों ने नहीं ली होती, जिनमें वही मूल्यवान संदेश था! इसके बचाव का केवल एक कारण है—यहोवा अपने वचन का रक्षक और बचानेवाला है। जैसे बाइबल खुद १ पतरस १:२४, २५ में कहती है: “हर एक प्राणी घास की नाईं है, और उस की सारी शोभा घास के फूल की नाईं है: घास सूख जाती है, और फूल झड़ जाता है। परन्तु प्रभु का वचन युगानुयुग स्थिर रहेगा।”

मानवजाति की सजीव भाषाओं में

१२. शताब्दियों से बार-बार नकल किए जाने के अलावा, बाइबल ने और कौन-सी बाधा का सामना किया है?

१२ शताब्दियों से बार-बार नकल किए जाने के बावजूद बचे रहना ही एक बड़ी चुनौती थी, लेकिन बाइबल ने एक और बाधा का सामना किया—समकालीन भाषाओं में अनुवाद। अगर बाइबल को लोगों के हृदय तक पहुँचना था, तो ज़रूरी था कि वह उनकी भाषा बोले। लेकिन बाइबल का अनुवाद करना—इसके १,१०० से ज़्यादा अध्यायों और ३१,००० से ज़्यादा आयतों सहित—कोई आसान काम नहीं है। लेकिन, समर्पित अनुवादकों ने शताब्दियों से ख़ुशी-ख़ुशी इस चुनौती को स्वीकार किया है, और कभी-कभी पहाड़ जैसी बाधाओं का सामना किया है।

१३, १४. (क) १९वीं शताब्दी की शुरूआत में, बाइबल अनुवादक रॉबर्ट मॉफ़ॆट को अफ्रीका में किस चुनौती का सामना करना पड़ा? (ख) जब लूका की सुसमाचार-पुस्तक उनकी भाषा में उपलब्ध हुई, तब स्वाना-भाषी लोगों ने कैसी प्रतिक्रिया दिखायी?

१३ उदाहरण के लिए, ध्यान दीजिए कि बाइबल अफ्रीका की भाषाओं में कैसे अनुवादित हुई। सन्‌ १८०० में, पूरे अफ्रीका में लगभग एक दर्जन भाषाएँ लिखित रूप में थीं। सैकड़ों अन्य बोली जानेवाली भाषाओं में लेखन व्यवस्था नहीं थी। बाइबल अनुवादक रॉबर्ट मॉफ़ॆट के सामने यही चुनौती थी। सन्‌ १८२१ में, २५ साल की उम्र में, मॉफ़ॆट ने दक्षिणी अफ्रीका के स्वाना-भाषी लोगों के बीच एक मिशन बनाया। उनकी अलिखित भाषा सीखने के लिए, वह लोगों के साथ मिला-जुला। मॉफ़ॆट लगा रहा और बिना किसी किताब और शब्दकोश की मदद के, आखिरकार उसने उस भाषा में महारत हासिल कर ली, और उसका लिखित रूप विकसित किया। और कुछ स्वाना-भाषी लोगों को वह लिपि पढ़ना भी सिखाया। सन्‌ १८२९ में, स्वाना-भाषी लोगों में आठ साल काम करने के बाद मॉफ़ॆट ने लूका की सुसमाचार-पुस्तक का अनुवाद समाप्त किया। बाद में उसने कहा: “मैं ऐसे लोगों को जानता हूँ जो लूका की प्रतियाँ प्राप्त करने के लिए सैकड़ों मील चलकर आए। . . . मैं ने उन्हें लूका के भाग पाकर रोते हुए, उसे अपनी छाती से लगाकर कृतज्ञता के आँसू बहाते देखा है, इस हद तक कि मुझे कई लोगों से कहना पड़ा, ‘तुम अपने आँसुओं से अपनी किताबें ख़राब कर दोगे।’” मॉफ़ॆट ने एक अफ्रीकी आदमी के बारे में भी बताया जिसने कई लोगों को लूका की सुसमाचार-पुस्तक पढ़ते हुए देखा और उनसे पूछा कि उनके पास क्या है। “यह परमेश्‍वर का वचन है,” उन्होंने जवाब दिया। “क्या यह बोलता है?” उस मनुष्य ने पूछा। “हाँ,” उन्होंने कहा, “इसकी बोली हृदय को छू लेती है।”

१४ मॉफ़ॆट जैसे समर्पित अनुवादकों ने अनेक अफ्रीकियों को लिखित में विचारों का आदान-प्रदान करने का पहला अवसर दिया। लेकिन, अनुवादकों ने अफ्रीकी लोगों को इससे भी ज़्यादा कीमती तोहफ़ा दिया—उनकी अपनी भाषा में बाइबल। इसके अलावा, मॉफ़ॆट ने स्वाना-भाषी लोगों का ईश्‍वरीय नाम से परिचय कराया, और उसने उस नाम को अपने पूरे अनुवाद में प्रयोग किया।c इस प्रकार, स्वाना-भाषी लोगों ने बाइबल को “यहोवा का मुख” कहा।—भजन ८३:१८.

१५. आज तक बाइबल क्यों जीवित है?

१५ संसार के विभिन्‍न भागों में अन्य अनुवादकों ने ऐसी ही बाधाओं का सामना किया। कुछ लोगों ने तो बाइबल का अनुवाद करने के लिए अपनी जान भी जोखिम में डाली। इस बात को सोचिए: अगर बाइबल प्राचीन इब्रानी और यूनानी में ही रहती तो शायद यह बहुत पहले “मर” चुकी होती। क्योंकि उन भाषाओं को कुछ समय बाद लोगों ने लगभग भुला दिया था और पृथ्वी के कुछ क्षेत्रों में तो ये भाषाएँ पहुँची ही नहीं। फिर भी, बाइबल जीवित है क्योंकि किसी भी दूसरी किताब से अलग, यह संसार भर के लोगों से उनकी भाषा में “बोल” सकती है। इसके परिणामस्वरूप, इसका संदेश “विश्‍वासियों में अपना कार्य . . . करता है।” (१ थिस्सलुनीकियों २:१३, NHT) हिंदी—ओ. वी. बाइबल में इन शब्दों का अनुवाद यूँ किया गया है: “वह तुम में जो विश्‍वास रखते हो, प्रभावशाली है।”

भरोसे के लायक

१६, १७. (क) अगर बाइबल को भरोसे के लायक होना है तो किस बात का सबूत होना चाहिए? (ख) बाइबल लेखक मूसा की निष्पक्षता चित्रित करने के लिए एक उदाहरण दीजिए।

१६ ‘क्या बाइबल पर सचमुच भरोसा किया जा सकता है?’ कुछ लोग पूछ सकते हैं। ‘क्या यह सचमुच जीवित रहे लोगों का, वास्तव में मौजूद रही जगहों का, और असल में घटी घटनाओं का ज़िक्र करती है?’ भरोसा करने के लिए इस बात का सबूत होना चाहिए कि इसे सावधान, सत्यवादी लेखकों ने लिखा था। इससे हम बाइबल की जाँच करने के लिए एक और कारण पर आते हैं: इस बात का ठोस सबूत है कि यह यथार्थ है और भरोसा करने लायक है।

१७ सच्चे इतिहासकार न केवल सफलता बल्कि असफलता भी, न केवल गुण बल्कि अवगुण भी लिखेंगे। बाइबल के लेखकों ने यह सुखद निष्पक्षता दिखायी। उदाहरण के लिए, मूसा की साफ़गोई पर ध्यान दीजिए। जिन बातों का उसने साफ़-साफ़ ब्यौरा दिया उनमें से कुछ थीं: उसकी बात करने के कौशल की कमी, जिसकी वज़ह से उसे लगा कि वह इस्राएल का अगुआ होने के काबिल नहीं है (निर्गमन ४:१०); उसकी गंभीर गलती जिसकी वज़ह से वह प्रतिज्ञात देश में न जा सका (गिनती २०:९-१२; २७:१२-१४); उसके भाई हारून का गुमराह होना, जिसने विद्रोही इस्राएलियों को सोने के बछड़े की मूरत बनाने में सहयोग दिया (निर्गमन ३२:१-६); उसकी बहन मरियम का विद्रोह और उसकी अपमानजनक सज़ा (गिनती १२:१-३, १०); उसके भतीजों नादाब और अबीहू का पवित्र बातों के लिए अनादर (लैव्यव्यवस्था १०:१, २); और परमेश्‍वर के अपने लोगों का बार-बार शिकायत करना और बुड़बुड़ाना। (निर्गमन १४:११, १२; गिनती १४:१-१०) क्या ऐसा सच्चा, खुला ब्यौरा देना सच्चाई के प्रति हार्दिक दिलचस्पी सूचित नहीं करता? क्योंकि बाइबल लेखक अपने प्रियजनों, अपनी जाति के लोगों, और खुद अपने बारे में भी नकारात्मक जानकारी का ब्यौरा देने के लिए तैयार थे, क्या उनके लेखनों पर भरोसा करने का अच्छा कारण नहीं है?

१८. किस बात से बाइबल के लेखकों के लेखनों पर भरोसेयोग्य होने की मुहर लगती है?

१८ बाइबल लेखकों की सुसंगति भी उनके लेखनों पर भरोसेयोग्य होने की मुहर लगाती है। यह सचमुच अनोखी बात है कि करीब १,६०० सालों की अवधि के दौरान लिखनेवाले ४० व्यक्‍ति, एक दूसरे से सहमत हैं—तब भी जब बारीकियों की बात आती है। लेकिन, इस तालमेल को सोच-विचारकर नहीं बिठाया गया, जिससे मिलीभगत का कोई अंदेशा हो। इसके उलट, बहुत सी बारीकियों के तालमेल में कोई साज़िश नज़र नहीं आती; अकसर तालमेल स्पष्टतया संयोगवश ही होता है।

१९. यीशु की गिरफ़्तारी के सुसमाचार वृत्तांतों से कैसे अनजाने में ही बैठा तालमेल नज़र आता है?

१९ इस बात को समझने के लिए यीशु की गिरफ़्तारी की रात को हुई एक घटना पर ध्यान दीजिए। चारों सुसमाचार-पुस्तकों के लेखकों ने लिखा कि यीशु के एक शिष्य ने तलवार निकाली और महायाजक के दास पर वार किया और उसका कान काट डाला। लेकिन, केवल लूका हमें बताता है कि यीशु ने “उसका कान छूकर उसे अच्छा किया।” (लूका २२:५१) लेकिन “प्रिय वैद्य” के रूप में मशहूर एक लेखक से क्या हम इस बात की आशा न करेंगे? (कुलुस्सियों ४:१४) यूहन्‍ना का वृत्तांत हमें बताता है कि मौजूद शिष्यों में से तलवार चलानेवाला पतरस था। जब हम पतरस के स्वभाव के उतावलेपन और जल्दबाज़ी को ध्यान में रखते हैं तो इस बात से आश्‍चर्य नहीं होता। (यूहन्‍ना १८:१०. मत्ती १६:२२, २३ और यूहन्‍ना २१:७, ८ से तुलना कीजिए।) यूहन्‍ना एक और अनावश्‍यक लगनेवाला विवरण देता है: “उस दास का नाम मलखुस था।” क्यों सिर्फ़ यूहन्‍ना उस व्यक्‍ति का नाम देता है? इसका जवाब केवल यूहन्‍ना के वृत्तांत में संयोगवश बतायी गयी एक छोटी-सी बात से मिलता है—यूहन्‍ना “महायाजक का जाना-पहचाना था।” वह महायाजक के घराने का भी जाना-पहचाना था; वहाँ के नौकर उससे और वह उनसे परिचित था।d (यूहन्‍ना १८:१०, १५, १६) तो फिर, यह स्वाभाविक ही था कि यूहन्‍ना ने उस घायल व्यक्‍ति का नाम बताया, जबकि अन्य सुसमाचार-पुस्तकों के लेखक नहीं बताते, जिनके लिए वह व्यक्‍ति एक अजनबी था। इन सब विवरणों के बीच का तालमेल अनोखा है, फिर भी यह साफ़ है कि अनजाने ही ऐसा हुआ। पूरी बाइबल में ऐसे बीसियों उदाहरण हैं।

२०. सच्चे मन के लोगों को बाइबल के बारे में क्या जानने की ज़रूरत है?

२० सो क्या हम बाइबल पर भरोसा कर सकते हैं? बेशक कर सकते हैं! बाइबल लेखकों की निष्पक्षता और बाइबल की आंतरिक सुसंगति इसे सच की खनक देते हैं। सच्चे मन के लोगों को यह जानने की ज़रूरत है कि वे बाइबल पर भरोसा कर सकते हैं। क्योंकि यह ‘सत्यवादी ईश्‍वर, यहोवा’ का प्रेरित वचन है। (भजन ३१:५) इसके और भी कारण हैं कि क्यों बाइबल सब लोगों के लिए एक किताब है जिनकी चर्चा अगला लेख करेगा।

[फुटनोट]

a युनाइटॆड बाइबल सोसाइटीज़्‌ द्वारा घोषित की गयी संख्या पर आधारित।

b रोम में अपनी दूसरी कैद के दौरान, पौलुस ने तीमुथियुस से “पुस्तकें, विशेषकर चर्म-पत्र” लाने को कहा। (२ तीमुथियुस ४:१३, NHT) पौलुस शायद इब्रानी शास्त्र के भाग माँग रहा था ताकि वह कैदखाने में रहते वक़्त उनका अध्ययन कर सके। वाक्यांश “विशेषकर चर्म-पत्र” शायद सूचित करता है कि पपीरस और चर्म-पत्र दोनों की किताबें इसमें शामिल थीं।

c सन्‌ १८३८ में, मॉफ़ॆट ने मसीही यूनानी शास्त्र का अनुवाद पूरा किया। एक साथी की मदद से, उसने इब्रानी शास्त्र का अनुवाद १८५७ में पूरा किया।

d महायाजक और उसके घराने से यूहन्‍ना की जान-पहचान बाद में इसी वृत्तांत में ज़्यादा दिखायी गयी है। जब महायाजक का एक और दास पतरस पर यीशु का एक चेला होने का इलज़ाम लगाता है, तब यूहन्‍ना बताता है कि यह दास “उसके कुटुम्ब में से था, जिसका कान पतरस ने काट डाला था।”—यूहन्‍ना १८:२६.

आप कैसे जवाब देंगे?

◻ हमें क्यों उम्मीद रखनी चाहिए कि बाइबल को संसार की सबसे सुलभ किताब होना चाहिए?

◻ इस बात का क्या सबूत है कि बाइबल को यथार्थता से सुरक्षित रखा गया है?

◻ बाइबल का अनुवाद करनेवालों ने किन बाधाओं का सामना किया?

◻ किस बात से बाइबल लेखनों पर भरोसेयोग्य होने की मुहर लगती है?

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