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  • क्या आप जानते थे?
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (अध्ययन)—2019
w19 अप्रैल पेज 31
प्रेषित पौलुस मालवाहक जहाज़ के पास एक मज़दूर से बात कर रहा है

क्या आप जानते थे?

पुराने ज़माने में जहाज़ से सफर करने के लिए एक यात्री को क्या करना होता था?

पौलुस के दिनों में आम तौर पर यात्रियों के सफर के लिए अलग से कोई जहाज़ नहीं होता था। इस वजह से यात्रियों को पहले पता करना होता था कि कोई मालवाहक जहाज़ उसकी मंज़िल तक जा रहा है या नहीं और क्या उसमें यात्री सवार हो सकते हैं। (प्रेषि. 21:2, 3) अगर कोई जहाज़ सीधे-सीधे किसी मुसाफिर की मंज़िल तक न जा रहा होता, तो भी मुसाफिर उस पर सवार हो जाता था। फिर जब यह जहाज़ अलग-अलग जगहों पर रुकता, तो वह दूसरा जहाज़ ढूँढ़ता था, जो उसे उसकी मंज़िल के करीब ले जाता।​—प्रेषि. 27:1-6.

साल में सिर्फ कुछ समय के दौरान जहाज़ से सफर किया जाता था। जहाज़ का कोई तय समय नहीं होता था। वह इसलिए कि कभी खराब मौसम की वजह से, तो कभी अंधविश्‍वास की वजह से नाविक जहाज़ को समुंदर में तुरंत नहीं उतारते थे। उदाहरण के लिए, जब कौवा पाल की रस्सियों पर बैठकर काँव-काँव करता, तो यह अपशकुन माना जाता था और नाविक अपनी यात्रा तुरंत शुरू नहीं करते थे। वे तब भी नहीं जाते थे, जब वे तट पर टूटा जहाज़ देखते थे। नाविक हवा का रुक देखते थे और जब मौसम अच्छा होता था, तभी जहाज़ पानी में उतारते थे। अगर कोई जहाज़ यात्री को ले जाने के लिए तैयार होता, तो यात्री अपना सामान लेकर बंदरगाह के पास खड़ा हो जाता और जहाज़ के छूटने की घोषणा का इंतज़ार करता।

इतिहासकार लाइनल कैसन का कहना है, “रोम में ऐसा इंतज़ाम था कि लोग आसानी से पता कर सकते थे कि कौन-सा जहाज़ कब निकल रहा है। इसके लिए उन्हें बहुत ढूँढ़-ढाँढ़ नहीं करनी पड़ती थी। रोम का बंदरगाह टाइबर नदी के मुहाने पर था। बंदरगाह के पास ऑस्टीया नाम के कसबे में एक बड़ा-सा चौक था, जिसके चारों तरफ बहुत-से दफ्तर थे। इनमें से कई दफ्तर बाहर की कंपनियों के थे, जिनका माल जहाज़ों से यहाँ पहुँचाया जाता था। जैसे, नारबॉन [आज के समय में फ्रांस] की कंपनी का, कारथेज [आज के समय में ट्‌यूनिशिया] की कंपनी का . . .। अगर कोई यात्री जानना चाहता कि कौन-सा जहाज़ किन शहरों से जाएगा, तो उसे सिर्फ इन दफ्तरों में पूछताछ करनी होती थी।”

जहाज़ से सफर करने पर यात्रियों का समय बचता था, मगर इसमें खतरे भी थे। पौलुस ने भी अपने मिशनरी सफर में इन खतरों का सामना किया। कई बार तो उसका जहाज़ टूटकर डूब गया।​—2 कुरिं. 11:25.

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