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  • नहेमायाह 5
  • पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद

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नहेमायाह का सारांश

      • नहेमायाह ने अन्याय को रोका (1-13)

      • उसकी निस्वार्थ भावना (14-19)

नहेमायाह 5:1

संबंधित आयतें

  • +व्य 15:9

नहेमायाह 5:4

संबंधित आयतें

  • +व्य 28:15, 33; नहे 9:36, 37

नहेमायाह 5:5

संबंधित आयतें

  • +निर्ग 21:7; व्य 15:12

नहेमायाह 5:7

फुटनोट

  • *

    या “मातहत अधिकारियों।”

संबंधित आयतें

  • +निर्ग 22:25; व्य 23:19; भज 15:5; यहे 22:12

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    2/1/2006, पेज 9

नहेमायाह 5:8

संबंधित आयतें

  • +लैव 25:35; व्य 15:7, 8; यिर्म 34:8, 9

नहेमायाह 5:9

संबंधित आयतें

  • +लैव 25:36; नहे 5:15

नहेमायाह 5:10

संबंधित आयतें

  • +यहे 18:5, 8

नहेमायाह 5:11

फुटनोट

  • *

    शा., “सौंवा भाग।” यानी हर महीने एक प्रतिशत ब्याज।

संबंधित आयतें

  • +नहे 5:3

नहेमायाह 5:13

फुटनोट

  • *

    या “ऐसा ही हो!”

नहेमायाह 5:14

संबंधित आयतें

  • +एज 8:1
  • +नहे 2:1
  • +नहे 10:1
  • +नहे 13:6
  • +1कुर 9:14, 15; 2थि 3:8

नहेमायाह 5:15

फुटनोट

  • *

    एक शेकेल का वज़न 11.4 ग्रा. था। अति. ख14 देखें।

संबंधित आयतें

  • +2कुर 11:9; 12:14
  • +नहे 5:9

नहेमायाह 5:16

संबंधित आयतें

  • +प्रेष 20:33; 2कुर 12:17

नहेमायाह 5:17

फुटनोट

  • *

    या “मातहत अधिकारी।”

नहेमायाह 5:18

फुटनोट

  • *

    या “मेरे पैसों से।”

नहेमायाह 5:19

फुटनोट

  • *

    या “और मेरा भला करना।”

संबंधित आयतें

  • +नहे 13:14; भज 18:24; यश 38:3; मला 3:16

दूसरें अनुवाद

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दूसरी

नहे. 5:1व्य 15:9
नहे. 5:4व्य 28:15, 33; नहे 9:36, 37
नहे. 5:5निर्ग 21:7; व्य 15:12
नहे. 5:7निर्ग 22:25; व्य 23:19; भज 15:5; यहे 22:12
नहे. 5:8लैव 25:35; व्य 15:7, 8; यिर्म 34:8, 9
नहे. 5:9लैव 25:36; नहे 5:15
नहे. 5:10यहे 18:5, 8
नहे. 5:11नहे 5:3
नहे. 5:14एज 8:1
नहे. 5:14नहे 2:1
नहे. 5:14नहे 10:1
नहे. 5:14नहे 13:6
नहे. 5:141कुर 9:14, 15; 2थि 3:8
नहे. 5:152कुर 11:9; 12:14
नहे. 5:15नहे 5:9
नहे. 5:16प्रेष 20:33; 2कुर 12:17
नहे. 5:19नहे 13:14; भज 18:24; यश 38:3; मला 3:16
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पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद
नहेमायाह 5:1-19

नहेमायाह

5 फिर कुछ आदमी और उनकी पत्नियाँ अपने यहूदी भाइयों के खिलाफ बड़ी-बड़ी शिकायतें लेकर आए।+ 2 उनमें से कुछ कहने लगे, “हमारा परिवार बड़ा है, हमारे कई बेटे-बेटियाँ हैं। ज़िंदा रहने के लिए हमें कम-से-कम अनाज तो चाहिए।” 3 कुछ और लोगों ने कहा, “हमें अपने खेत, अंगूरों के बाग और घर गिरवी रखने पड़ रहे हैं ताकि इस अकाल में हमें खाने को मिल सके।” 4 दूसरे यह शिकायत करने लगे, “हमें राजा को कर चुकाने के लिए अपने खेत और अंगूरों के बाग गिरवी रखकर उधार लेना पड़ रहा है।+ 5 हम कोई पराए नहीं, उनके अपने भाई हैं। हमारे बच्चे उनके बच्चों की तरह हैं। फिर भी हमें अपने बेटे-बेटियों को उनकी गुलामी में देना पड़ रहा है। हमारी कुछ बेटियाँ तो पहले से उनकी गुलामी में हैं।+ हम चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते क्योंकि हमारे खेत और अंगूरों के बाग अब हमारे नहीं रहे।”

6 उनकी बातें और रोना-बिलखना सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आया। 7 मैंने इन बातों पर बहुत सोचा और फिर यहूदियों के बड़े-बड़े लोगों और अधिकारियों* को फटकार लगायी। मैंने कहा, “यह मैं क्या सुन रहा हूँ, तुम अपने ही भाइयों से ब्याज खा रहे हो?”+

उनकी वजह से मैंने एक बड़ी सभा बुलायी। 8 मैंने उनसे कहा, “हमारे यहूदी भाई दूसरे राष्ट्रों के हाथ बिक चुके थे और हमसे जो कुछ बन पड़ा वह हमने किया और उन्हें छुड़ाया। लेकिन अब तुम अपने ही भाइयों को गुलामी में बेच रहे हो?+ क्या उन्हें छुड़ाने के लिए हमें तुम्हें भी पैसे देने पड़ेंगे?” यह सुनकर वे बगलें झाँकने लगे और वहाँ चुप्पी छा गयी। 9 मैंने कहा, “यह तुम अच्छा नहीं कर रहे। तुम्हें परमेश्‍वर का डर मानना चाहिए+ और ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जिससे दुश्‍मन राष्ट्र हमारी खिल्ली उड़ाएँ। 10 इसलिए मेहरबानी करके ब्याज लेना बंद करो। मैं, मेरे भाई और मेरे सेवक भी अपने यहूदी भाइयों को बगैर ब्याज के पैसा और अनाज उधार दे रहे हैं।+ 11 तुमसे बिनती है कि आज ही अपने भाइयों के खेत, अंगूर और जैतून के बाग और उनके घर उन्हें लौटा दो।+ और ब्याज के तौर पर तुमने उनसे जो पैसा,* अनाज, नयी दाख-मदिरा और तेल लिया है, उसे भी वापस कर दो।”

12 उन आदमियों ने कहा, “हम उनका सबकुछ लौटा देंगे और उनसे कुछ नहीं माँगेंगे। जैसा तूने कहा है हम वैसा ही करेंगे।” तब मैंने याजकों को बुलाया और उन आदमियों से इसकी शपथ खिलवायी। 13 मैंने अपने बागे की ऊपरी तह झाड़कर कहा, “जो आदमी अपनी बात से मुकर जाएगा, सच्चा परमेश्‍वर उसे उसके घर और उसकी जायदाद से अलग कर देगा। इस तरह उसे झाड़ दिया जाएगा और वह कंगाल हो जाएगा।” यह सुनकर पूरी मंडली ने कहा “आमीन!”* फिर सबने यहोवा की बड़ाई की और लोगों ने जो-जो कहा था उसे पूरा किया।

14 राजा अर्तक्षत्र+ ने अपने राज के 20वें साल में+ मुझे यहूदा के इलाके का राज्यपाल बनाया था+ और उसके राज के 32वें साल तक+ मैं यहूदा का राज्यपाल रहा। मगर इन 12 सालों में मैंने और मेरे भाइयों ने कभी-भी यहूदियों से खाने का भत्ता नहीं माँगा, जो कि एक राज्यपाल का हक था।+ 15 लेकिन मुझसे पहले जितने भी राज्यपाल रहे, उन सबने लोगों का जीना दूभर कर दिया था। वे अपने खाने और दाख-मदिरा के लिए उनसे हर दिन 40 शेकेल* चाँदी लेते थे। उनके सेवकों ने भी लोगों के साथ बहुत ज़्यादती की। जबकि मैंने ऐसा कुछ नहीं किया+ क्योंकि मैं परमेश्‍वर का डर मानता था।+

16 यही नहीं, मैंने शहरपनाह बनाने में भी हाथ बँटाया और मेरे सेवकों ने भी इसे बनाने में मदद दी। लेकिन हमने किसी की ज़मीन नहीं ली।+ 17 इसके बजाय, मेरे यहाँ 150 यहूदी और अधिकारी* और दूसरे राष्ट्रों से आए लोग खाना खाते थे। 18 हर दिन मेरे हुक्म पर* एक बैल, छ: मोटी-ताज़ी भेड़ें और चिड़ियाँ पकायी जाती थीं। हर दसवें दिन तरह-तरह की दाख-मदिरा बहुतायत में पेश की जाती थी। मगर मैंने कभी-भी राज्यपाल को मिलनेवाला भत्ता नहीं माँगा क्योंकि लोग पहले से राजा की सेवा में पिसे जा रहे थे। 19 हे मेरे परमेश्‍वर, मैंने इन लोगों की खातिर जो काम किए हैं, उन्हें तू याद रखना और मुझ पर कृपा करना।*+

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