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“पहिले उस ने हम से प्रेम किया”यहोवा के करीब आओ
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अध्याय 23
“पहिले उस ने हम से प्रेम किया”
1-3. कौन-सी कुछ वजहों से यीशु की मौत, किसी भी आम आदमी की मौत से अलग थी?
आज से करीब दो हज़ार साल पहले, बसंत के मौसम में एक दिन, एक बेगुनाह पर मुकद्दमा चलाया गया। उसे ऐसे जुर्मों के लिए मुजरिम करार दिया गया जो उसने कभी किए ही नहीं थे। और उसे तड़पा-तड़पाकर मार डाला गया। अफसोस, वह इतिहास का ना तो पहला ऐसा शख्स था और ना ही आखिरी, जिसके साथ सरासर नाइंसाफी करते हुए बड़ी बेरहमी के साथ सज़ाए-मौत दी गयी हो। मगर फिर भी, उस शख्स की मौत सबसे अलग थी।
2 आखिरी घंटों में जब वह दर्द से तड़पता हुआ ज़िंदगी और मौत के बीच झूल रहा था, तब आसमान पर भी ऐसा मातम छा गया जिसने उसकी मौत की अहमियत की गवाही दी। हालाँकि दोपहर का वक्त था, लेकिन अचानक उस देश पर घोर अंधकार छा गया। एक इतिहासकार लिखता है: “सूर्य का उजियाला जाता रहा।” (लूका 23:44, 45) फिर दम तोड़ने से ठीक पहले, उस इंसान ने ये यादगार शब्द कहे: “पूरा हुआ”! वाकई, अपनी जान देकर उसने जो कुछ पूरा किया, वह लाजवाब था। प्यार की यह महान मिसाल किसी भी इंसान की दी कुरबानी से कहीं बढ़कर थी।—यूहन्ना 15:13; 19:30.
3 वह शख्स कोई और नहीं बल्कि यीशु मसीह था। निसान 14, सा.यु. 33 के उस अंधकार से भरे दिन, उसने जो तकलीफें सहीं और आखिरकार मार डाला गया उसे सब जानते हैं। मगर एक ऐसी अहम सच्चाई है जिसे ज़्यादातर नज़रअंदाज़ किया गया है। यह सच है कि यीशु ने बहुत दुःख सहा था, मगर कोई और भी था जिसने उससे भी बढ़कर दुःख झेला था। दरअसल, उसी दिन किसी और ने यीशु से भी बड़ी कुरबानी दी थी। पूरे जहान में किसी ने भी प्यार की खातिर इतनी बड़ी कुरबानी देने की मिसाल कायम न की थी। यह मिसाल क्या थी? इसका जवाब, हमारे सबसे अहम और खास विषय की एक बढ़िया शुरूआत है: यहोवा का प्रेम।
प्रेम की सबसे महान मिसाल
4. एक रोमी सैनिक कैसे समझ पाया कि यीशु कोई आम इंसान नहीं था, और वह सैनिक किस नतीजे पर पहुँचा?
4 यीशु को सज़ा-ए-मौत देने की कार्यवाही को सरअंजाम देने की ज़िम्मेदारी एक रोमी सूबेदार को सौंपी गयी थी। जब उसने देखा कि यीशु के मरने से पहले किस तरह चारों तरफ घोर अंधकार छा गया और उसके दम तोड़ते ही एक ज़बरदस्त भूकंप ने उस इलाके को हिलाकर रख दिया, तो वह हक्का-बक्का रह गया। उसने कहा: “सचमुच ‘यह परमेश्वर का पुत्र था।’” (मत्ती 27:54) साफ ज़ाहिर है कि यीशु कोई आम इंसान नहीं था। उस सैनिक ने अभी-अभी परमप्रधान परमेश्वर के एकलौते बेटे को मरवाने में हिस्सा लिया था! इस बेटे से उसके पिता को आखिर कितना प्यार था?
5. यहोवा और उसके बेटे ने स्वर्ग में साथ-साथ जो समय बिताया, उसे कैसे समझाया जा सकता है?
5 बाइबल, यीशु को “सारी सृष्टि में पहिलौठा” कहती है। (कुलुस्सियों 1:15) ज़रा सोचिए—यहोवा का बेटा हमारे विश्व के बनने से पहले मौजूद था। तो फिर, पिता और पुत्र ने कितना वक्त साथ-साथ बिताया था? कुछ वैज्ञानिक अंदाज़ा लगाते हैं कि हमारे विश्व को अस्तित्त्व में आए 13 अरब साल हो चुके हैं। यह कितना लंबा अरसा था, क्या आप इसका अंदाज़ा लगा सकते हैं? वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस विश्व की आयु कितनी है यह लोगों को समझाने के लिए, एक प्लैनिटेरियम में दीवार पर 360 फुट लंबी समय-रेखा खींची गयी है। जब प्लैनिटेरियम आनेवाले मेहमान उस समय-रेखा के सामने चलते हैं, तो उनका हर कदम, इस विश्व की उम्र के 7 करोड़ 50 लाख सालों के बराबर होता है। समय-रेखा के आखिर में, सारे इंसानी इतिहास को दिखाने के लिए एक छोटी-सी लकीर है जिसकी कुल मोटाई इंसान के एक बाल के बराबर है! अगर यह अंदाज़ा सही है, तो भी यह सारी समय-रेखा इतनी लंबी नहीं कि यहोवा के बेटे की उम्र नाप सके! इतने युगों-युगों तक यह बेटा क्या करता रहा?
6. (क) यहोवा का बेटा, इंसान बनने से पहले स्वर्ग में क्या करता था? (ख) यहोवा और उसके बेटे के बीच कैसा बंधन है?
6 यह बेटा खुशी-खुशी एक “कुशल कारीगर” की तरह, अपने पिता की सेवा करता था। (नीतिवचन 8:30, NHT) बाइबल कहती है: “जो कुछ उत्पन्न हुआ है, उस में से कोई भी वस्तु [पुत्र के] बिना उत्पन्न न हुई।” (यूहन्ना 1:3) इस तरह, यहोवा और उसके बेटे ने साथ मिलकर बाकी सब कुछ बनाया। वह कितना रोमांचक और खुशियों भरा समय रहा होगा! कई लोग इस बात को ज़रूर मानेंगे कि माता-पिता और बच्चे के बीच का प्यार बहुत मज़बूत और गहरा होता है। और प्रेम “एकता का सिद्ध बन्ध[न] है।” (कुलुस्सियों 3:14, NHT) तो फिर, हममें से कौन यह अंदाज़ा लगा सकता है कि यहोवा और उसके बेटे के बीच, जो प्यार का रिश्ता है वह कितना गहरा और मज़बूत होगा, क्योंकि वे तो अरबों साल से साथ-साथ रहे हैं? ज़ाहिर है कि उनके बीच जो प्यार का बंधन है वह पूरे जहान का सबसे अटूट रिश्ता है।
7. जब यीशु का बपतिस्मा हुआ, तो यहोवा ने अपने बेटे के बारे में अपनी भावनाएँ कैसे ज़ाहिर कीं?
7 इसके बावजूद, पिता ने अपने बेटे को इस धरती पर भेजा ताकि वह एक बालक के रूप में जन्म ले। इसके लिए ज़रूरी था कि यहोवा अपने उस प्यारे बेटे से कुछ सालों के लिए बिछड़े, जिसके साथ उसका सबसे करीबी रिश्ता था। जब यीशु धीरे-धीरे बड़ा होता गया और आखिरकार एक सिद्ध आदमी बना, तो यहोवा का सारा ध्यान उस पर था। यीशु ने करीब 30 साल की उम्र में बपतिस्मा लिया। यहोवा उसके बारे में कैसा महसूस करता था, इस बारे में हमें अटकल लगाने की ज़रूरत नहीं। खुद पिता की आवाज़ स्वर्ग से सुनायी दी: “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिस से मैं अत्यन्त प्रसन्न हूं।” (मत्ती 3:17) भविष्यवाणियों में यीशु के बारे में जो कुछ कहा गया था और उससे जो माँग की गयी थी, वह सब यीशु को वफादारी से पूरा करते देखकर उसका पिता ज़रूर बेहद खुश हुआ होगा!—यूहन्ना 5:36; 17:4.
8, 9. (क) यीशु को निसान 14, सा.यु. 33 को क्या कुछ सहना पड़ा और स्वर्ग में उसके पिता पर इसका क्या असर हुआ? (ख) यहोवा ने अपने बेटे को तकलीफें सहने और मरने क्यों दिया?
8 लेकिन सा.यु. 33 के निसान 14 के दिन यहोवा ने कैसा महसूस किया होगा? जब यीशु के साथ विश्वासघात हो रहा था और उत्पातियों की एक भीड़ ने उसे रात के वक्त गिरफ्तार कर लिया? जब यीशु को उसके सारे दोस्त अकेला छोड़कर भाग खड़े हुए और जब उस पर गैरकानूनी मुकद्दमा चलाया जा रहा था? जब उसका ठट्ठा उड़ाया जा रहा था, उस पर थूका जा रहा था, उसे घूँसे मारे जा रहे थे? जब उसकी पीठ पर कोड़े बरसाए जा रहे थे, और उसकी खाल उधड़कर तार-तार हो रही थी? जब एक लकड़ी के खंभे पर उसके हाथों और पैरों में कीलें ठोंककर उसको लटकाया जा रहा था, और सामने खड़ी भीड़ उस पर लानतें भेज रही थी? जब उसका प्यारा बेटा दर्द से बुरी तरह कराहते हुए उसे पुकार रहा था, तब उसके पिता के दिल पर क्या बीती होगी? यहोवा को तब कैसा महसूस हुआ होगा जब यीशु ने आखिरी सांस ली, और सृष्टि की शुरूआत से लेकर पहली बार उसके प्यारे बेटे का वजूद खत्म हो गया?—मत्ती 26:14-16, 46, 47, 56, 59, 67; 27:38-44, 46; यूहन्ना 19:1.
“परमेश्वर ने . . . अपना एकलौता पुत्र दे दिया”
9 हमसे कुछ कहते नहीं बन पड़ता। यहोवा भी बाप जैसा कलेजा रखता है, इसलिए अपने बेटे की मौत पर जो दर्द उसने महसूस किया होगा उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। लेकिन जो बयान किया जा सकता है, वह यह है कि यहोवा ने किस इरादे से यह सब होने की इजाज़त दी। एक पिता होते हुए भी, उसने क्यों खुद को इस दर्द से गुज़रने दिया? यूहन्ना 3:16 में यहोवा हमें एक लाजवाब बात बताता है। बाइबल की यह आयत इतनी अहम है कि इसे सुसमाचार की किताबों का सार कहा जाता है। यह कहती है: “परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।” तो यहोवा का जो इरादा था उसे बयान करने के लिए सिर्फ एक ही शब्द है: प्रेम। यहोवा का यही तोहफा यानी अपने बेटे को हमारी खातिर तकलीफें सहने और मरने के लिए भेजना—प्यार की खातिर की गयी कुरबानी की सबसे महान मिसाल है।
परमेश्वर के प्रेम की परिभाषा
10. इंसानों की ज़रूरत क्या है, और शब्द “प्रेम” के मतलब को क्या हो गया है?
10 “प्रेम” शब्द का मतलब क्या है? कहा जाता है कि प्रेम, इंसान की सबसे बड़ी ज़रूरत है। जन्म से लेकर मरण तक, लोग इसके पीछे भागते हैं, इसके साये में फलते-फूलते हैं, यहाँ तक कि इसके न मिलने पर धीरे-धीरे मुरझा जाते हैं और आखिर में दम तोड़ देते हैं। इसके बावजूद, ताज्जुब की बात है कि प्रेम की परिभाषा देना बहुत मुश्किल है। बेशक, लोग प्रेम के बारे में बहुत कुछ बोलते हैं। इसके बारे में अनगिनत किताबें, गीत और कविताएँ लिखी गयी हैं और आगे भी लिखी जाती रहेंगी। लेकिन, कुल मिलाकर यह सब समझा नहीं पाए कि आखिर प्रेम का मतलब है क्या। दरअसल, यह शब्द इतना ज़्यादा इस्तेमाल हो चुका है कि इसका असली मतलब करीब-करीब खो-सा गया है।
11, 12. (क) हम प्रेम के बारे में कहाँ से सीख सकते हैं, और वहीं से क्यों? (ख) प्राचीन यूनानी भाषा में प्रेम के कौन-से किस्म बताए गए हैं, और मसीही यूनानी शास्त्र में “प्रेम” के लिए कौन-सा शब्द ज़्यादातर इस्तेमाल हुआ है? (फुटनोट भी देखिए।) (ग) अघापि क्या है?
11 लेकिन प्रेम क्या है, इस बारे में बाइबल हमें साफ-साफ सिखाती है। वाइन की एक्सपॉज़िट्री डिक्शनरी ऑफ न्यू टेस्टामेंट वड्र्स् कहती है: “प्रेम क्या है, यह सिर्फ उन कामों से जाना जा सकता है जिन्हें करने के लिए प्रेम हमें उकसाता है।” बाइबल में दर्ज़ यहोवा के काम हमें उसके प्रेम के बारे में बहुत कुछ सिखाते हैं—कि वह अपने सृष्ट प्राणियों का भला चाहता है और उनसे बेहद प्रीति रखता है। यहोवा ने प्रेम की जो सबसे बड़ी मिसाल कायम की है, जिसका हमने पहले ज़िक्र किया, उससे बढ़कर भला और क्या उसके प्रेम को ज़ाहिर कर सकेगा? आनेवाले अध्यायों में हम ऐसी और कई मिसालें देखेंगे जब यहोवा ने प्रेम की खातिर काम किया। इसके अलावा, हम बाइबल में “प्रेम” के लिए इस्तेमाल होनेवाले मूल शब्दों से भी इसके बारे में गहरी समझ हासिल कर सकेंगे। प्राचीन यूनानी भाषा में “प्रेम” के लिए चार शब्द थे।a इनमें से, मसीही यूनानी शास्त्र में जिस शब्द को ज़्यादातर इस्तेमाल किया गया है वह है अघापि। बाइबल का एक शब्दकोश कहता है कि “प्यार के लिए इससे ज़बरदस्त शब्द और कोई हो ही नहीं सकता।” क्यों?
12 अघापि ऐसे किस्म का प्रेम है जो सिद्धांतों से प्रेरित होता है। इसका मतलब यह नहीं कि किसी की बात सुनकर या काम देखकर सिर्फ जज़्बातों के आधार पर कुछ कहना या करना। इसके बजाय, इस प्रेम का दायरा बहुत विशाल है, यह ज़्यादा समझदारी और स्वेच्छा से दिखाया जाता है। सबसे बढ़कर, अघापि पूरी तरह से निःस्वार्थ होता है। मिसाल के लिए, एक बार फिर यूहन्ना 3:16 पर नज़र डालिए। वह “जगत” क्या है जिसे परमेश्वर ने इतना प्रेम किया कि अपने एकलौते बेटे को उसके लिए दे दिया? यह उद्धार पाने के योग्य मानवजाति है। इसमें ऐसे लोग भी शामिल हैं जो आज पाप की राह पर चल रहे हैं। क्या यहोवा इनमें से हर किसी को एक निजी दोस्त की तरह प्यार करता है, जैसे उसने वफादार इब्राहीम से किया था? (याकूब 2:23) नहीं, मगर यहोवा ने बड़े प्यार से हाथ बढ़ाकर सबकी भलाई की है, और इसके लिए खुद भारी कीमत चुकायी है। वह चाहता है कि सब लोग पश्चाताप करें और अपने मार्गों से फिर जाएँ। (2 पतरस 3:9) बहुत-से लोग ऐसा ही करते हैं। इनकी तरफ यहोवा बड़ी खुशी से दोस्ती का हाथ बढ़ाता है।
13, 14. क्या दिखाता है कि अघापि में अकसर गहरी प्रीति शामिल होती है?
13 मगर कुछ लोग अघापि के बारे में गलत विचार रखते हैं। उनका मानना है कि इस प्रेम में भावनाएँ नहीं होतीं, यह दिल से नहीं बल्कि दिमाग से किया जाता है। मगर सच तो यह है कि अघापि में अकसर किसी के लिए अपनापन और स्नेह की भावना शामिल होती है। मिसाल के लिए, जब यूहन्ना ने लिखा, “पिता पुत्र से प्रेम रखता है,” तो उसने अघापि शब्द का ही एक रूप इस्तेमाल किया। क्या इस तरह के प्रेम में गहरी प्रीति की भावना नहीं होती? ध्यान दीजिए कि यीशु ने कहा: “पिता पुत्र से प्रीति रखता है,” और यहाँ उसने फीलियो शब्द के एक रूप का इस्तेमाल किया। (यूहन्ना 3:35; 5:20) यहोवा के प्रेम में अकसर उसकी कोमल प्रीति होती है। मगर वह कभी-भी भावनाओं में बहकर प्रेम नहीं करता। उसका प्रेम हमेशा उसके बुद्धि-भरे और खरे सिद्धांतों से प्रेरित होता है।
14 जैसा हम देख चुके हैं, यहोवा के सभी गुण उत्तम, सिद्ध और लुभावने हैं। मगर इन सभी गुणों से ज़्यादा उसका प्रेम हमें उसकी तरफ खींचता है। कोई और चीज़ हमें यहोवा की तरफ इतने ज़बरदस्त तरीके से नहीं खींचती। खुशी की बात है कि प्रेम उसका सबसे खास गुण है। यह हम कैसे जानते हैं?
“परमेश्वर प्रेम है”
15. यहोवा के प्रेम के गुण के बारे में बाइबल में क्या बात लिखी है, और किस तरह यह बात बिलकुल अनोखी है? (फुटनोट भी देखिए।)
15 बाइबल प्रेम के बारे में एक ऐसी बात कहती है जो वह यहोवा के दूसरे खास गुणों के बारे में कभी नहीं कहती। शास्त्र में ऐसा कभी नहीं कहा गया कि परमेश्वर शक्ति है या परमेश्वर न्याय है या फिर परमेश्वर बुद्धि है। उसके अंदर ये गुण ज़रूर हैं, और वही इन गुणों का दाता है। इन तीनों गुणों को ज़ाहिर करने में कोई और उसकी बराबरी नहीं कर सकता। लेकिन, चौथे गुण के बारे में बहुत अनोखी बात कही गयी है: “परमेश्वर प्रेम है।”b (1 यूहन्ना 4:8) इसका क्या मतलब है?
16-18. (क) बाइबल क्यों कहती है कि “परमेश्वर प्रेम है”? (ख) धरती के तमाम प्राणियों में से, क्यों इंसान यहोवा के प्रेम के गुण का बिलकुल सही प्रतीक है?
16 “परमेश्वर प्रेम है” यह कोई साधारण-सा समीकरण नहीं, मानो हम कह रहे हों “परमेश्वर बराबर है प्रेम के।” इसको उलटा करके यह कहना सही नहीं होगा कि “प्रेम परमेश्वर है,” क्योंकि वह किसी निराकार गुण से कहीं श्रेष्ठ है। यहोवा एक ऐसी हस्ती है जिसमें प्रेम के गुण के अलावा ढेरों मनभावने गुण और भावनाएँ हैं। मगर प्रेम यहोवा में अंदर तक समाया हुआ है। इसलिए, एक किताब इस आयत के बारे में कहती है: “परमेश्वर की प्रवृत्ति या स्वभाव प्रेम है।” आम तौर पर, हम इसके बारे में यूँ सोच सकते हैं: यहोवा की शक्ति उसे कार्यवाही करने में समर्थ करती है। उसके न्याय और उसकी बुद्धि से यह तय होता है कि वह किस तरीके से कार्यवाही करेगा। मगर यहोवा का प्रेम उसे कार्यवाही करने को उभारता है। और यहोवा जिस तरीके से अपने दूसरे गुण ज़ाहिर करता है, उसमें उसका प्रेम हमेशा होता है।
17 अकसर कहा जाता है कि यहोवा प्रेम का साक्षात् रूप है। इसलिए अगर हमें अघापि प्रेम के बारे में ज़्यादा सीखना है, तो हमें यहोवा के बारे में सीखना होगा। बेशक, हमें यह खूबसूरत गुण शायद इंसानों में भी दिखायी दे। मगर उनमें ये गुण आया कहाँ से? इसका जवाब हमें यहोवा के इन शब्दों से मिलता है, जो ज़ाहिर है कि उसने सृष्टि के वक्त अपने बेटे से कहे थे: “हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाएं।” (उत्पत्ति 1:26) इस धरती पर बनाए गए सभी प्राणियों में से सिर्फ इंसानों के पास यह काबिलीयत है कि वह चाहे तो किसी से प्रेम कर सकता है और इस तरह अपने स्वर्गीय पिता के जैसा बन सकता है। याद कीजिए कि यहोवा ने अपने खास गुणों को दर्शाने के लिए कई प्राणियों का इस्तेमाल किया। लेकिन, अपने सबसे बड़े गुण प्रेम को दर्शाने के लिए, यहोवा ने धरती पर अपनी सबसे श्रेष्ठ रचना, इंसान को चुना।—यहेजकेल 1:10.
18 जब हम बिना स्वार्थ के, सिद्धांतों से प्रेरित होकर प्रेम करते हैं, तो हम यहोवा के इस सबसे खास गुण को ज़ाहिर करते हैं। जैसा प्रेरित यूहन्ना ने लिखा: “हम इसलिये प्रेम करते हैं, कि पहिले उस ने हम से प्रेम किया।” (1 यूहन्ना 4:19) मगर यहोवा ने किन तरीकों से हमसे पहले प्रेम किया?
यहोवा ने पहल की
19. हम क्यों कह सकते हैं कि यहोवा के सृष्टि के कामों में प्रेम की बहुत बड़ी भूमिका थी?
19 प्रेम की भावना कोई नयी नहीं है। आखिर, यहोवा को सृष्टि करने के लिए किस गुण ने उकसाया? ऐसा नहीं था कि वह अकेलापन महसूस कर रहा था और उसे किसी साथी की ज़रूरत थी। यहोवा अपने आप में पूरा और आत्म-निर्भर है और उसमें ऐसी कोई कमी नहीं है जिसे कोई और पूरा कर सके। मगर यहोवा के सबसे खास गुण प्रेम ने उसे सहज ही उभारा कि वह दूसरे बुद्धिमान प्राणियों की रचना करे, जो जीवन के वरदान का आनंद ले सकें और इसकी कदर कर सकें। “परमेश्वर की सृष्टि का मूल” उसका एकलौता बेटा था। (प्रकाशितवाक्य 3:14) इसके बाद, यहोवा ने अपने इस कुशल कारीगर को इस्तेमाल करके बाकी सभी चीज़ें बनायीं, जिनमें सबसे पहले स्वर्गदूत थे। (अय्यूब 38:4, 7; कुलुस्सियों 1:16) इन शक्तिशाली आत्मिक प्राणियों को आज़ादी और बुद्धि का वरदान मिला था, और इनमें भावनाएँ थीं। ये प्राणी एक-दूसरे के साथ और सबसे बढ़कर यहोवा परमेश्वर के साथ प्यार-भरा निजी रिश्ता कायम कर सकते थे। (2 कुरिन्थियों 3:17) इस तरह, उन्होंने प्रेम किया क्योंकि पहले उनसे प्रेम किया गया।
20, 21. आदम और हव्वा के आगे यहोवा के प्यार का क्या सबूत मौजूद था, मगर उन्होंने इस प्यार का जवाब कैसे दिया?
20 इंसानों के साथ भी ऐसा ही किया गया। शुरू से ही, आदम और हव्वा पर मानो प्रेम की बौछार की गयी। अदन में अपने फिरदौस जैसे घर में वे जहाँ कहीं नज़र दौड़ाते, अपने पिता के प्यार का सबूत देख सकते थे। ध्यान दीजिए कि बाइबल क्या कहती है: “यहोवा परमेश्वर ने पूर्व की ओर अदन देश में एक बाटिका लगाई; और वहां आदम को जिसे उस ने रचा था, रख दिया।” (उत्पत्ति 2:8) क्या आप कभी एक बेहद खूबसूरत बगीचे या पार्क में गए हैं? वहाँ आपको सबसे ज़्यादा क्या अच्छा लगा? पेड़ों के झुरमुट में पत्तियों के बीच से छनकर आती सूरज की किरणें? गलीचे की तरह बिछे हुए एक-से-बढ़कर-एक रंग-बिरंगे फूल? झरने की कलकल, पंछियों के गीत, भौंरों की गुंजन? पेड़ों, फलों और कलियों की मीठी सुगंध के बारे में क्या? चाहे कोई बाग कितना ही सुंदर क्यों न हो, वह अदन के बाग की बराबरी नहीं कर सकता। क्यों?
21 वह बाग खुद यहोवा ने लगाया था! उसकी खूबसूरती का बयान करना मुमकिन नहीं। ऐसा हर पेड़ उस बाग में मौजूद था, जिसकी सुंदरता लुभावनी थी और जिसमें लज़ीज़, रसीले फल लगते थे। उस बाग में पानी की कोई कमी नहीं थी, यह बहुत बड़ा था और अलग-अलग जानवरों की ढेरों किस्में वहाँ पायी जाती थीं। आदम और हव्वा के पास अपनी ज़िंदगी में खुशियाँ लाने और इसे सफल बनाने के लिए सबकुछ था, उनके पास ऐसा काम था जिससे उन्हें संतोष मिलता और ऐसा साथी भी जिसमें कोई कमी न थी। पहले यहोवा ने उनसे प्यार किया और उनके पास ऐसी हर वजह थी कि वे भी बदले में उससे प्यार करें। मगर, उन्होंने ऐसा नहीं किया। अपने स्वर्गीय पिता के लिए प्यार की खातिर उसकी आज्ञा मानने के बजाय उन्होंने अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए उसके खिलाफ बगावत की।—उत्पत्ति, अध्याय 2.
22. अदन की बगावत के जवाब में यहोवा ने जो किया, उससे कैसे साबित हुआ कि उसका प्रेम सच्चा है?
22 यह देखकर यहोवा को कितना दुःख हुआ होगा! मगर क्या इस बगावत की वजह से उसके प्यार-भरे दिल में कड़ुवाहट भर गयी? नहीं! “उसकी करुणा [या, “सच्चा प्यार,” NW, फुटनोट] सदा की है।” (भजन 136:1) इसलिए, उसने फौरन यह प्यार भरा इंतज़ाम किया कि आदम और हव्वा की संतानों में से जो सही मन रखते हैं उन्हें पाप से छुड़ाया जाए। जैसा हम देख चुके हैं, इन इंतज़ामों में उसके प्यारे बेटे का छुड़ौती बलिदान शामिल है, जिसके लिए पिता को भारी कीमत चुकानी पड़ी।—1 यूहन्ना 4:10.
23. यहोवा “आनंदित परमेश्वर” है, इसकी एक वजह क्या है, और अगले अध्याय में किस अहम सवाल पर चर्चा की जाएगी?
23 जी हाँ, यहोवा ने शुरू से ही इंसान के लिए प्रेम दिखाने में पहल की है। अनगिनत तरीकों से “पहिले उस ने हम से प्रेम किया।” जहाँ प्रेम होता है वहाँ एकता और खुशी होती है, इसलिए कोई ताज्जुब की बात नहीं कि यहोवा को “आनंदित परमेश्वर” कहा गया है। (1 तीमुथियुस 1:11, NW) मगर, यहाँ एक ज़रूरी सवाल उठता है। क्या यहोवा सचमुच हममें से हरेक से प्रेम करता है? अगले अध्याय में इस पर चर्चा की जाएगी।
a क्रिया फीलियो अकसर मसीही यूनानी शास्त्र में इस्तेमाल हुई है और इसका मतलब है “किसी के लिए प्रीति होना, किसी से लगाव होना, या किसी को पसंद करना (जैसा कोई अपने नज़दीकी दोस्त या भाई के लिए महसूस करता है)।” स्टोर्घी परिवार के सदस्यों के बीच प्यार को दर्शाता है। इसी शब्द का एक रूप 2 तीमुथियुस 3:3 में यह दिखाने के लिए इस्तेमाल हुआ है कि अंत के दिनों में ऐसे प्यार की भारी कमी होगी। इरॉस स्त्री और पुरुष के बीच के रोमानी प्यार के लिए इस्तेमाल होता है। यह शब्द मसीही यूनानी शास्त्र में इस्तेमाल नहीं किया गया, जबकि बाइबल में इस किस्म के प्यार के बारे में भी चर्चा की गयी है।—नीतिवचन 5:15-20.
b बाइबल में कुछ और आयतें इसी तरह लिखी गयी थीं। मिसाल के लिए, “परमेश्वर ज्योति है” और “परमेश्वर भस्म करनेवाली आग है।” (1 यूहन्ना 1:5; इब्रानियों 12:29) मगर इन्हें रूपक समझा जाना चाहिए, क्योंकि इनमें यहोवा की तुलना भौतिक चीज़ों से की गयी है। यहोवा ज्योति के जैसा है, क्योंकि वह पवित्र और खरा है। उसमें ज़रा भी “अन्धकार” या अशुद्धता नहीं है। और उसे आग के जैसा बताया गया है क्योंकि वह अपनी विनाशकारी शक्ति इस्तेमाल करता है।
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कोई भी चीज़ ‘हमें परमेश्वर के प्रेम से अलग न कर सकेगी’यहोवा के करीब आओ
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अध्याय 24
कोई भी चीज़ ‘हमें परमेश्वर के प्रेम से अलग न कर सकेगी’
1. बहुत-से लोगों को, यहाँ तक कि कुछ सच्चे मसीहियों को भी, निराश करनेवाली कौन-सी भावनाएँ आ घेरती हैं?
क्या यहोवा परमेश्वर आपसे प्रेम करता है? कुछ लोग यह मानते हैं कि परमेश्वर सब इंसानों से प्यार करता है, जैसा यूहन्ना 3:16 में लिखा है। मगर, असल में उनका मन कहता है: ‘परमेश्वर मुझसे कभी प्यार नहीं कर सकता।’ सच्चे मसीहियों को भी कई बार यह शक होने लगता है कि क्या परमेश्वर सचमुच उनसे प्रेम करता है। निराशा में डूबे एक आदमी ने कहा: “मुझे यह मानना बहुत मुश्किल लगता है कि परमेश्वर को मेरी भी कोई परवाह हो सकती है।” क्या इस तरह की शंकाएँ, कभी-कभी आपको भी आ घेरती हैं?
2, 3. कौन हमें यह यकीन दिलाना चाहता है कि हमारी कोई कीमत नहीं या हम यहोवा की नज़र में प्यार के लायक नहीं, और हम इस भावना से कैसे लड़ सकते हैं?
2 शैतान हमें यह यकीन दिलाने पर तुला हुआ है कि यहोवा परमेश्वर न तो हमसे प्यार करता है, ना ही उसकी नज़र में हमारी कोई कीमत है। सच है कि शैतान अकसर लोगों के अहंकार और घमंड को जगाकर उन्हें अपने जाल में फँसाता है। (2 कुरिन्थियों 11:3) मगर टूटे मन के लोगों के आत्म-सम्मान को कुचलने से भी उसे बहुत खुशी मिलती है। (यूहन्ना 7:47-49; 8:13, 44) वह खासकर इन कठिन “अन्तिम दिनों” में ऐसा कर रहा है। आज बहुत-से लोग ऐसे परिवारों में पले-बढ़े हैं, जो “दिली मुहब्बत से ख़ाली” (हिन्दुस्तानी बाइबल) हैं। कुछ और हैं जिन्हें दिन-रात खूँखार, स्वार्थी और ज़िद्दी लोगों का सामना करना पड़ता है। (2 तीमुथियुस 3:1-5) सालों से बुरा सलूक, जाति-भेद या लोगों की घृणा सहने की वजह से, इनके मन में यह बात बैठ चुकी है कि उनका कोई मोल नहीं और वे किसी के प्यार के लायक नहीं।
3 अगर आपके मन में भी ऐसी निराश करनेवाली भावनाएँ आती हैं, तो हिम्मत मत हारिए। कभी-कभी हममें से कई लोग इस मामले में अपने साथ बहुत ज़्यादती करते हैं। मगर याद रखिए, परमेश्वर का वचन “सुधारने,” और गहरायी तक समायी बातों को “ढा देने” की काबिलीयत रखता है। (2 तीमुथियुस 3:16; 2 कुरिन्थियों 10:4) बाइबल कहती है: “जिस बात में हमारा मन हमें दोष देगा, उसके विषय में हम उसके साम्हने अपने अपने मन को ढाढ़स दे सकेंगे। क्योंकि परमेश्वर हमारे मन से बड़ा है; और सब कुछ जानता है।” (1 यूहन्ना 3:19, 20) आइए अब हम ऐसे चार तरीकों पर गौर करें, जिनके ज़रिए बाइबल हमारे “मन को ढाढ़स” देती है कि यहोवा हमसे प्यार करता है।
आप यहोवा के लिए अनमोल हैं
4, 5. गौरैयों के बारे में यीशु के दृष्टांत से कैसे पता चलता है कि यहोवा की नज़र में हम अनमोल हैं?
4 पहला, बाइबल में सीधे-सीधे यह सिखाया गया है कि परमेश्वर की नज़र में उसका हर सेवक अनमोल है। मिसाल के लिए, यीशु ने कहा: “क्या एक पैसे में दो गौरैएं नहीं बिकतीं? फिर भी तुम्हारे पिता की इच्छा के बिना उनमें से एक भी भूमि पर नहीं गिर सकती। तुम्हारे सिर के बाल तक भी गिने हुए हैं। इसलिए डरो मत। तुम बहुत-सी गौरैयों से भी कहीं अधिक मूल्यवान हो।” (मत्ती 10:29-31) सोचिए कि पहली सदी में यीशु की बात सुननेवालों के लिए ये शब्द क्या मायने रखते थे।
“तुम बहुत-सी गौरैयों से भी कहीं अधिक मूल्यवान हो”
5 हम शायद सोचें कि भला कोई गौरैया क्यों खरीदेगा। यीशु के ज़माने में, गौरैया भोजन के लिए सबसे सस्ती चिड़िया थी। गौर कीजिए कि एक पैसे में दो गौरैयां खरीदी जा सकती थीं। मगर यीशु ने बाद में कहा कि अगर एक आदमी दो पैसे खर्च करने को तैयार होता, तो उसे चार की जगह पाँच गौरैयां मिलती थीं। पाँचवीं गौरैया यूँ ही दे दी जाती थी, मानो उसका कोई मोल ही न हो। इंसानों की नज़र में इन पक्षियों की शायद कोई कीमत न हो, मगर सिरजनहार इन्हें किस नज़र से देखता है? यीशु ने बताया: “परमेश्वर उन में से एक को भी [उस पाँचवीं को भी] नहीं भूलता।” (लूका 12:6, 7) अब शायद हम यीशु की बात समझने लगे हों। अगर यहोवा एक गौरैया की इतनी कदर करता है, तो सोचिए एक इंसान की उसकी नज़र में क्या कीमत होगी! जैसे यीशु ने समझाया, यहोवा हमारे बारे में एक-एक बारीकी जानता है। यहाँ तक कि हमारे सिर के सब बाल भी गिने हुए हैं!
6. जब यीशु हमारे सिर के बालों के गिने होने की बात कर रहा था, तो हम पक्के तौर पर क्यों कह सकते हैं कि वह बढ़ा-चढ़ाकर नहीं बोल रहा था?
6 हमारे बाल तक गिने हुए हैं? कुछ लोग शायद सोचें कि यीशु कुछ ज़्यादा ही बढ़ा-चढ़ाकर बात कह रहा था। लेकिन ज़रा पुनरुत्थान की आशा के बारे में सोचिए। दोबारा से हमारी सृष्टि करने के लिए यहोवा को हमारे बारे में कितनी गहरायी तक पता होना चाहिए! वह हमारी इतनी कदर करता है कि हमारे बारे में वह हर छोटी-छोटी बात याद रखता है, इसमें हमारा जेनेटिक कोड और उम्रभर की यादें और अनुभव भी शामिल हैं।a इसके मुकाबले हमारे बालों को गिनना, जो आमतौर पर 1,00,000 के करीब होते हैं, कहीं ज़्यादा आसान काम है।
यहोवा हममें क्या देखता है?
7, 8. (क) जब यहोवा इंसानों के मन को जाँचता है, तो कौन-से कुछ गुण देखकर उसे खुशी होती है? (ख) हमारे कौन-से कुछ कामों की यहोवा कदर करता है?
7 दूसरा, यहोवा अपने सेवकों में क्या चीज़ देखकर उसकी कदर करता है इसके बारे में बाइबल हमें सिखाती है। सीधे तौर पर कहें, तो वह हमारे अच्छे गुणों और हमारी कोशिशों को देखकर खुश होता है। राजा दाऊद ने अपने बेटे सुलैमान से कहा था: “यहोवा मन को जांचता और विचार में जो कुछ उत्पन्न होता है उसे समझता है।” (1 इतिहास 28:9) जब यहोवा खून-खराबे और नफरत से भरे इस संसार में अरबों इंसानों के मनों को जाँचता है, तब वह ऐसा मन देखकर क्या ही खुश होता होगा जो शांति, सच्चाई और धार्मिकता से प्रेम करता हो! तब क्या होता है जब परमेश्वर को एक ऐसा मन मिलता है, जो उसके लिए प्रेम से उमड़ रहा है, उसके बारे में सीखना चाहता है और सीखी हुई बातें दूसरों को बताना चाहता है? यहोवा हमसे कहता है कि उसकी नज़र उन लोगों पर है, जो दूसरों को उसके बारे में बताते हैं। उसके पास उन सभी के लिए ‘स्मरण के निमित्त एक पुस्तक’ भी है, “जो यहोवा का भय मानते और उसके नाम का सम्मान करते” हैं। (मलाकी 3:16) ऐसे सभी गुण उसके लिए अनमोल हैं।
8 ऐसे कुछ भले काम क्या हैं जिनकी यहोवा कदर करता है? बेशक उसके बेटे यीशु मसीह के जैसा बनने की कोशिश करना उनमें से एक है। (1 पतरस 2:21) एक अहम काम जिसकी परमेश्वर कदर करता है, वह है उसके राज्य के सुसमाचार का प्रचार करना। रोमियों 10:15 में, हम पढ़ते हैं: “उन के पांव क्या ही सोहावने हैं, जो अच्छी बातों का सुसमाचार सुनाते हैं!” आम तौर पर हम शायद अपने पैरों को देखकर यह न सोचें कि ये “सोहावने” या खूबसूरत हैं। मगर ये पांव उस मेहनत की निशानी हैं, जो यहोवा के सेवक सुसमाचार के प्रचार में करते हैं। ये सारी कोशिशें, यहोवा की नज़र में खूबसूरत और अनमोल हैं।—मत्ती 24:14; 28:19, 20.
9, 10. (क) हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि तरह-तरह की तकलीफों में हमारे धीरज धरने को यहोवा कीमती समझता है? (ख) यहोवा अपने वफादार सेवकों के बारे में कभी-भी कैसा बुरा नज़रिया नहीं रखता?
9 यहोवा हमारे धीरज को भी कीमती समझता है। (मत्ती 24:13) याद रखिए, शैतान चाहता है कि आप यहोवा से मुँह मोड़ लें। हर दिन जब आप धीरज धरते हुए यहोवा के वफादार रहते हैं, तो वह शैतान के तानों का एक दिन और जवाब दे पाता है। (नीतिवचन 27:11) कभी-कभी धीरज धरना आसान नहीं होता। खराब सेहत, पैसे की तंगी, मन की वेदना और दूसरी ऐसी अड़चनों की वजह से एक-एक दिन पहाड़ जैसा लगता है। जब हमारी उम्मीदें पूरी नहीं होतीं तब भी हम निराश हो जाते हैं। (नीतिवचन 13:12) ऐसी मुश्किलों का सामना करते वक्त हम जो धीरज दिखाते हैं, यहोवा की नज़र में वह और भी ज़्यादा अनमोल होता है। इसलिए राजा दाऊद ने यहोवा से बिनती की कि वह उसके आँसुओं को एक “कुप्पी” में रख ले, और उसने अपना यह विश्वास ज़ाहिर किया: “क्या उनकी चर्चा तेरी पुस्तक में नहीं है?” (भजन 56:8) जी हाँ, यहोवा के वफादार बने रहने में हमने जितने भी आँसू बहाए हैं और जितने भी दुःख-दर्द सहे हैं, उन सबको वह याद रखता है। ये भी उसकी नज़र में अनमोल हैं।
परीक्षाओं में हमारे धीरज को यहोवा अनमोल समझता है
10 लेकिन, हमें दोषी ठहरानेवाला हमारा मन शायद इन तमाम सबूतों को नकारकर कहे कि फिर भी परमेश्वर की नज़र में हमारा कोई मोल नहीं। हमारे मन की आवाज़ शायद हमसे बार-बार यही कहे: ‘मगर ऐसे कितने और लोग हैं जो मुझसे लाख गुना अच्छे हैं। यहोवा जब उन पर नज़र डालने के बाद मेरी तरफ देखता होगा, तब वह कितना निराश होता होगा!’ मगर, सच तो यह है कि यहोवा किसी को भी दूसरों के साथ नहीं तोलता; न ही वह अपने सोच-विचार में कठोर या निर्दयी है। (गलतियों 6:4) वह बड़ी बारीकी से हमारे दिलों की छानबीन करता है, और जो अच्छा है उसकी कदर करता है—फिर वह चाहे कितना ही कम क्यों न हो।
यहोवा छानकर अच्छे को बुरे से अलग करता है
11. अबिय्याह के मामले में यहोवा ने जो किया उससे हम उसके बारे में क्या सीखते हैं?
11 तीसरा, यहोवा जब हमारी जाँच करता है, तो वह बड़े ध्यान से मानो छान-छानकर हमारी अच्छाइयाँ ढूँढ़ता है। मिसाल के लिए, जब यहोवा ने आदेश दिया था कि राजा यारोबाम का सारा विधर्मी वंश मार डाला जाए, तब उसने राजा के एक बेटे अबिय्याह को इज़्ज़त के साथ दफन किए जाने की आज्ञा दी। क्यों? क्योंकि “उसी में कुछ पाया जाता है जो यहोवा इस्राएल के प्रभु की दृष्टि में भला है।” (1 राजा 14:1, 10-13) इसका मतलब है कि यहोवा ने उस नौजवान के दिल की छान-बीन की और वहाँ ‘कुछ भला’ पाया। चाहे वह भलाई कितनी ही छोटी या मामूली थी, यहोवा ने इसे अपने वचन में दर्ज़ कराने के लायक समझा। इस भलाई का उसने इनाम भी दिया, और विधर्मी घराने के उस एक सदस्य को कुछ हद तक दया दिखायी।
12, 13. (क) राजा यहोशापात का मामला कैसे दिखाता है कि हमारे पाप करने पर भी यहोवा हमारे अंदर अच्छाई ही देखता है? (ख) जब हमारे अच्छे काम और गुणों की बात आती है, तो यहोवा बच्चों से लगाव रखनेवाले पिता की तरह क्या करता है?
12 एक और बढ़िया मिसाल, भले राजा यहोशापात की है। जब उसने मूर्खता का काम किया, तो यहोवा के भविष्यवक्ता ने उसे बताया: “इस काम के कारण यहोवा की ओर से तुझ पर क्रोध भड़का है।” यह कितनी गंभीर बात थी! मगर यहोवा का संदेश वहीं खत्म नहीं हुआ। उसने आगे कहा: “तौभी तुझ में कुछ अच्छी बातें पाई जाती हैं।” (2 इतिहास 19:1-3) तो फिर, यहोवा धार्मिकता की खातिर क्रोध से इस कदर अंधा नहीं हुआ कि यहोशापात की अच्छाई को न देख सके। असिद्ध इंसानों से यहोवा कितना अलग है! जब हम दूसरों से नाराज़ होते हैं, तो अकसर हम उनकी सारी अच्छाइयों को भूल जाते हैं। और जब हम खुद पाप करते हैं, तो निराशा, शर्म और दोष की भावनाएँ हमें इस कदर अंधा कर देती हैं कि हम अपने अंदर कोई भी अच्छाई नहीं देख पाते। लेकिन, याद रखिए कि अगर हम अपने पापों का प्रायश्चित्त करें और पूरी कोशिश करें कि उन्हें दोबारा न दोहराएँ तो यहोवा हमें माफ करता है।
13 जब यहोवा हमारी छान-बीन करता है, तो वह हमारे पिछले पापों को निकाल बाहर फेंकता है, वैसे ही जैसे सोना निकालनेवाला कंकड़-पत्थर जैसी बेकार चीज़ों को छानकर अलग फेंक देता है। आपके अच्छे गुणों और कामों के बारे में क्या? हाँ, यही तो हैं “सोने के वे डले” जिन्हें वह सँभालकर अपने पास रखता है! क्या आपने कभी देखा है कि कैसे माता-पिता, बड़े प्यार से अपने बच्चे के हाथ की बनी तसवीर या स्कूल में बनाए प्रोजेक्ट संभालकर रखते हैं, कभी-कभी तो वे बरसों तक इन्हें संभाल के रखते हैं जबकि बच्चे इनके बारे में भूल चुके होते हैं? यहोवा को दुनिया के हर माँ-बाप से बढ़कर अपने बच्चों से लगाव है। जब तक हम उसके वफादार रहते हैं, वह हमारे अच्छे कामों और गुणों को कभी नहीं भूलता। दरअसल, इन्हें भूलना उसकी नज़र में अन्याय है और वह कभी-भी अन्यायी नहीं हो सकता। (इब्रानियों 6:10) वह एक और तरीके से हमें छानता है।
14, 15. (क) क्यों हमारी असिद्धताओं की वजह से यहोवा हमारी अच्छाई को नज़रअंदाज़ नहीं करता? उदाहरण देकर समझाइए। (ख) यहोवा हममें जो अच्छे गुण पाता है उनके बारे में क्या करता है, और वह अपने वफादार लोगों को किस नज़र से देखता है?
14 यहोवा हमारी असिद्धताओं से हटकर यह देखता है कि हमारे अंदर भविष्य में कैसा इंसान बनने की क्षमता है। इसे समझने के लिए एक उदाहरण लें: कला के प्रेमी, किसी पेंटिंग या दूसरी कलाकृतियों के बिगड़ जाने पर उन्हें पहले का सा रूप देने के लिए जाने क्या-क्या जतन करते हैं। मिसाल के लिए, इंग्लैंड के लंदन शहर की नैशनल गैलरी में किसी ने लेनार्दो दा विन्ची की चित्रकारी पर गोलियाँ दागकर उसे बिगाड़ दिया। इस चित्र की कीमत लगभग 3 करोड़ अमरीकी डॉलर थी, लेकिन किसी ने यह राय नहीं दी कि यह चित्र इतना बिगड़ चुका है, तो इसे फेंक देना ही ठीक रहेगा। इसके बजाय, करीब पाँच सौ साल पुरानी इस श्रेष्ठ कलाकृति को पहले का सा रूप देने का काम फौरन शुरू कर दिया गया। क्यों? क्योंकि कलाप्रेमियों की नज़र में यह अनमोल थी। पेंसिल और मोम के रंगों से बने इस चित्र से क्या आपका मोल कहीं बढ़कर नहीं? यहोवा की नज़रों में आप वाकई बेशकीमती हैं, फिर चाहे विरासत में मिले पाप ने आपको कितना ही क्यों न बिगाड़ दिया हो। (भजन 72:12-14) यहोवा परमेश्वर, जो इंसानों का निपुण रचयिता है, उन सभी को फिर से सिद्धता तक लाने के लिए हर ज़रूरी कदम उठाएगा जो उसकी प्यार भरी परवाह की कदर करते हैं।—प्रेरितों 3:21; रोमियों 8:20-22.
15 जी हाँ, यहोवा हममें वह अच्छाई देखता है जो शायद हम खुद न देख पाएँ। और जैसे-जैसे हम उसकी सेवा करते हैं, वह हमारी अच्छाई को उस हद तक बढ़ाएगा जब तक हम आखिरकार सिद्ध न हो जाएँ। तो फिर, चाहे शैतान के संसार ने हमारे साथ कितना ही बुरा सलूक क्यों न किया हो, यहोवा अपने वफादार सेवकों को मनभावने और अनमोल समझता है।—हाग्गै 2:7.
यहोवा कामों से अपना प्रेम दिखाता है
16. हमारे लिए यहोवा के प्यार का सबसे बड़ा सबूत क्या है और हम कैसे जानते हैं कि यह तोहफा खुद हमारे लिए है?
16 चौथा, यहोवा ने अपने प्रेम का सबूत देने के लिए बहुत कुछ किया है। बेशक, मसीह का छुड़ौती बलिदान इस शैतानी झूठ के मुँह पर सबसे बड़ा तमाचा है कि हमारी कोई कीमत नहीं और हम प्यार के लायक नहीं। हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि यातना स्तंभ पर यीशु ने जो दर्दनाक मौत सही और उससे बढ़कर अपने बेटे को मौत के मुँह में जाता देख यहोवा को जो और भी बड़ी तकलीफ से गुज़रना पड़ा, ये सब इस बात का सबूत है कि वे हमसे कितना प्यार करते हैं। अफसोस कि बहुत-से लोगों को यह मानना मुश्किल लगता है कि यह तोहफा खुद उनके लिए है। वे खुद को इसके लायक नहीं समझते। मगर, याद कीजिए कि प्रेरित पौलुस खुद पहले मसीह के चेलों का सतानेवाला रह चुका था। फिर भी उसने लिखा: “परमेश्वर के पुत्र . . . ने मुझ से प्रेम किया, और मेरे लिये अपने आप को दे दिया।”—तिरछे टाइप हमारे; गलतियों 1:13; 2:20.
17. यहोवा किन तरीकों से हमें अपनी और अपने बेटे की तरफ खींचता है?
17 यहोवा, हममें से हरेक की मदद करता है कि हम मसीह के बलिदान का फायदा उठाएँ। हमारे लिए यह उसके प्यार का सबूत है। यीशु ने कहा: “कोई मेरे पास नहीं आ सकता, जब तक पिता, जिस ने मुझे भेजा है, उसे खींच न ले।” (यूहन्ना 6:44) जी हाँ, यहोवा खुद हमें अपने बेटे की तरफ और अनंत जीवन की आशा की तरफ खींचता है। कैसे? उस प्रचार काम के ज़रिए, जो हम सब तक पहुँचता है और अपनी पवित्र आत्मा के ज़रिए। इस पवित्र आत्मा का इस्तेमाल करते हुए वह हमारी कमियों और असिद्धता के बावजूद हमें आध्यात्मिक सच्चाइयाँ समझाता है और उन पर अमल करने में हमारी मदद करता है। इसलिए यहोवा हमारे बारे में वह कह सकता है, जो उसने इस्राएल के बारे में कहा था: “सनातन प्रेम से मैंने तुझ से प्रेम किया है; अतः करुणा करके मैं तुझे अपने पास ले आया हूं।”—यिर्मयाह 31:3, NHT.
18, 19. (क) ऐसा कौन-सा तरीका है जिससे सबसे निजी और नज़दीकी तौर पर यहोवा ने हम पर अपना प्रेम ज़ाहिर किया है, और क्या दिखाता है कि यह अधिकार उसने सिर्फ अपने तक रखा है? (ख) परमेश्वर का वचन हमें कैसे यकीन दिलाता है कि यहोवा हमारा हमदर्द बनकर हमारी बात सुनता है?
18 प्रार्थना एक ऐसी आशीष है जिसके ज़रिए हम यहोवा के प्रेम को सबसे निजी और नज़दीकी तौर पर महसूस कर सकते हैं। बाइबल हरेक को न्यौता देती है कि परमेश्वर से “निरन्तर प्रार्थना” करें। (1 थिस्सलुनीकियों 5:17) वह हमारी सुनता है। उसे ‘प्रार्थना का सुननेवाला’ भी कहा गया है। (भजन 65:2) उसने यह अधिकार किसी और को नहीं दिया, अपने बेटे को भी नहीं। ज़रा सोचिए: सारे विश्व का सिरजनहार हमसे अनुरोध करता है कि हम प्रार्थना में उसके पास आएँ और बेझिझक होकर उससे बात करें। वह किस तरह का सुननेवाला है? ऐसा जिसमें कोई भावनाएँ न हों, जिसे हमारी कोई परवाह न हो और जो हमारी बात को एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देता हो? वह ऐसा हरगिज़ नहीं है।
19 यहोवा हमारा हमदर्द है। हमदर्दी क्या होती है? एक वफादार बुज़ुर्ग मसीही ने कहा: “हमदर्दी का मतलब है, तुम्हारा दर्द जिसे मैं अपने सीने में महसूस करता हूँ।” क्या यहोवा को सचमुच हमारे दर्द से दर्द होता है? हम उसके लोगों, इस्राएल की तकलीफों के बारे में यूँ पढ़ते हैं: “उनके सारे संकट में उस ने भी कष्ट उठाया।” (यशायाह 63:9) यहोवा न सिर्फ उनकी मुसीबतों को देख रहा था, बल्कि उसे अपने लोगों से हमदर्दी थी। वह कितनी गहराई तक यह दर्द महसूस करता है, यह यहोवा के अपने सेवकों से कहे शब्दों से पता लगता है: “जो तुम को छूता है, वह मेरी आंख की पुतली ही को छूता है।”b (जकर्याह 2:8) आँख की पुतली को छूने से कितना दर्द होता है! जी हाँ, यहोवा हमारा दर्द महसूस करता है। जब हमें चोट पहुँचती है, तो उसे भी चोट पहुँचती है।
20. अगर हमें रोमियों 12:3 की सलाह को मानना है, तो हमें किस तरह की गलत सोच से दूर रहना चाहिए?
20 कोई भी समझदार मसीही, परमेश्वर के ऐसे प्यार का सबूत देखकर और उससे ऐसी इज़्ज़त पाकर, घमंड से फूल नहीं जाएगा और ना ही खुद को बड़ा समझेगा। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “मैं उस अनुग्रह के कारण जो मुझ को मिला है, तुम में से हर एक से कहता हूं, कि जैसा समझना चाहिए, उस से बढ़कर कोई भी अपने आप को न समझे पर जैसा परमेश्वर ने हर एक को परिमाण के अनुसार बांट दिया है, वैसा ही सुबुद्धि के साथ अपने को समझे।” (रोमियों 12:3) एक और अनुवाद कहता है: “तुम में से कोई भी व्यक्ति अपने आपको आवश्यकता से अधिक महत्वपूर्ण न समझे, परन्तु . . . अपना सन्तुलित मूल्यांकन करे।” (नयी हिन्दी बाइबिल) तो जहाँ हम एक तरफ अपने स्वर्गीय पिता के प्यार से सराबोर हैं, वहीं हमें दुरुस्त मन से काम लेना है और यह याद रखना है कि परमेश्वर का प्यार हम किसी तरह अर्जित नहीं कर सकते, ना ही हक के साथ इसकी माँग कर सकते हैं।—लूका 17:10.
21. शैतान के किस झूठ का हमें लगातार विरोध करना चाहिए, और बाइबल की किस सच्चाई से हम अपने दिलों को यकीन दिलाते रह सकते हैं?
21 आइए हममें से हरेक शैतान के झूठ का, खासकर इस झूठ का अपनी पूरी ताकत से विरोध करे कि परमेश्वर की नज़र में हमारी कोई कीमत नहीं और हम उसके प्यार के काबिल नहीं। अगर ज़िंदगी में आपके तजुर्बे ने आपको यह सिखाया है कि आप इतनी बड़ी बाधा हैं जिसे परमेश्वर का अथाह प्रेम भी पार नहीं कर सकता, या आपके अच्छे काम इतने तुच्छ हैं कि उसकी सब कुछ देखनेवाली निगाहें भी उन्हें नहीं देख पाएँगी, या आपके पाप इतने गंभीर हैं कि उसके अनमोल बेटे की मौत भी इन्हें ढांप नहीं पाएगी, तो आपको झूठ सिखाया गया है। इस झूठ को अपने दिल से उखाड़ फेंकिए! पौलुस के प्रेरित शब्दों में बतायी सच्चाई से आइए हम अपने दिलों को यकीन दिलाते रहें: “मैं निश्चय जानता हूं, कि न मृत्यु, न जीवन, न स्वर्गदूत, न प्रधानताएं, न वर्तमान, न भविष्य, न सामर्थ, न ऊंचाई, न गहिराई और न कोई और सृष्टि, हमें परमेश्वर के प्रेम से, जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में है, अलग कर सकेगी।”—रोमियों 8:38, 39.
a बाइबल बार-बार पुनरुत्थान की आशा को यहोवा की याददाश्त के साथ जोड़ती है। वफादार अय्यूब ने यहोवा से कहा था: “काश! . . . फिर कोई समय मेरे लिये नियुक्त करके तू मुझे याद करता।” (तिरछे टाइप हमारे; अय्यूब 14:13, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) यीशु ने “जितने स्मारक कब्रों में हैं” उनके पुनरुत्थान की बात कही। यह बिलकुल सही था, क्योंकि यहोवा जिन मरे हुओं का पुनरुत्थान करना चाहता है, उनकी एक-एक बात याद रखता है।—यूहन्ना 5:28, 29, NW.
b कुछ अनुवादों में यहाँ कहा गया है कि जो परमेश्वर के लोगों को छूता है वह उसकी ही यानी इस्राएल की आँख को, न कि परमेश्वर की आँख को छूता है। यह गलती कुछ शास्त्रियों ने की थी, जिन्हें लगता था कि ये शब्द परमेश्वर के लिए श्रद्धा की कमी दिखाते हैं और इसलिए उन्होंने इसमें फेरबदल की। उनकी इस गलत सोच से यह बात छिप गयी कि हमारे लिए यहोवा की हमदर्दी कितनी गहरी है।
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“हमारे परमेश्वर की कोमल करुणा”यहोवा के करीब आओ
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अध्याय 25
“हमारे परमेश्वर की कोमल करुणा”
1, 2. (क) अपने बच्चे का रोना सुनकर माँ क्या करती है? (ख) माँ की ममता से भी गहरी भावना कौन-सी है?
आधी रात को बच्चा रोने लगता है। माँ फौरन उठ बैठती है। इस बच्चे के जन्म के बाद से वह पहले की तरह गहरी नींद नहीं सोती। वह अपने नन्हे-मुन्ने के रोने के तरीके से यह भाँप सकती है कि बच्चे को क्या चाहिए। अब अकसर उसे पता चल जाता है कि कब बच्चे को दूध पिलाना है, कब उसे दुलारना है या कोई और ज़रूरत पूरी करनी है। मगर बच्चा चाहे किसी भी वजह से क्यों न रोए, माँ ज़रूर उस पर ध्यान देती है। उसका दिल कभी नहीं मानेगा कि वह अपने बच्चे की रुलाई सुनकर अनसुनी कर दे।
2 इंसान जितनी भी भावनाओं से वाकिफ है उनमें, बच्चे के लिए माँ की करुणा या उसकी ममता सबसे कोमल है। लेकिन, ऐसी तमाम भावनाओं से कहीं-कहीं ज़्यादा गहरी और प्रबल भावना है, हमारे परमेश्वर यहोवा की कोमल करुणा। इस प्यारे गुण पर गौर करने से हम यहोवा के और करीब आ सकते हैं। तो फिर, आइए हम चर्चा करें कि करुणा क्या है और परमेश्वर इसे कैसे ज़ाहिर करता है।
करुणा क्या है?
3. जिस इब्रानी क्रिया का अनुवाद “दया दिखाना” या “तरस खाना” किया गया है, उसका मतलब क्या है?
3 बाइबल बताती है कि करुणा और दया के बीच नज़दीकी रिश्ता है। इब्रानी और यूनानी भाषाओं में, ऐसे कई शब्द हैं जिनका मतलब कोमल करुणा से मिलता-जुलता है। मिसाल के लिए, इब्रानी शब्द राकाम पर गौर कीजिए जिसका अनुवाद अकसर “दया दिखाना” या “तरस खाना” किया जाता है। एक किताब बताती है कि क्रिया राकाम “करुणा की एक गहरी और कोमल भावना है, जो हमारे अंदर तब पैदा होती है जब हम अपने किसी अज़ीज़ को या ज़रूरतमंद को लाचार हालत में या तकलीफ में पड़ा देखते हैं।” यह इब्रानी शब्द, जो यहोवा खुद पर लागू करता है, माँ की “कोख” के लिए इस्तेमाल होनेवाले शब्द से संबंध रखता है और इसे “माँ की करुणा” कहा जा सकता है।a—निर्गमन 33:19; यिर्मयाह 33:26.
‘क्या कोई स्त्री अपनी कोख से जन्मे बच्चे को भूल सकती है?’
4, 5. यहोवा की करुणा के बारे में सिखाने के लिए, बाइबल कैसे शिशु के लिए एक माँ की भावनाओं का उदाहरण इस्तेमाल करती है?
4 यहोवा की करुणा का मतलब समझाने के लिए बाइबल, एक बच्चे के लिए माँ के मन में उठनेवाली भावनाओं का उदाहरण इस्तेमाल करती है। हम यशायाह 49:15 में पढ़ते हैं: “क्या कोई स्त्री अपने दूधमुंहे बच्चे को भूल सकती है, कि वह अपनी कोख से जन्मे बच्चे पर करुणा [राकाम] न करे? हाँ, ये तो भूल सकती हैं, मगर मैं तुझे न भूलूंगा।” (दी एम्प्लीफाइड बाइबल) ये शब्द जो दिल छू जाते हैं, इस बात पर ज़ोर देते हैं कि अपने लोगों के लिए यहोवा की करुणा वाकई कितनी गहरी है। वह कैसे?
5 हम कल्पना नहीं कर सकते कि एक माँ अपने बच्चे को दूध पिलाना और उसकी देखभाल करना भूल जाए। और फिर एक शिशु तो लाचार होता है; उसे रात-दिन अपनी माँ की देखभाल और प्यार की ज़रूरत होती है। मगर, दुःख की बात है कि माँ का अपने बच्चे को यूँही बिलखता छोड़ जाना कोई अनहोनी बात नहीं, खासकर आज के “कठिन समय” में जब दुनिया “मयारहित” लोगों से भरी हुई है। (2 तीमुथियुस 3:1, 3) “मगर,” यहोवा कहता है “मैं तुझे न भूलूंगा।” अपने सेवकों के लिए यहोवा की कोमल करुणा कभी मिट नहीं सकती। यह किसी भी इंसानी रिश्ते की कोमल भावनाओं से कहीं शक्तिशाली है, इतनी कि इसकी थाह पाना नामुमकिन है। एक बच्चे के लिए माँ की ममता भी इसकी बराबरी नहीं कर सकती। इसमें कोई ताज्जुब नहीं कि एक टीकाकार ने यशायाह 49:15 के बारे में कहा: “पुराने नियम में यह आयत उन आयतों में से एक है जिनके ज़रिए परमेश्वर का प्रेम सबसे ज़बरदस्त तरीके से ज़ाहिर होता है।”
6. बहुत-से असिद्ध इंसानों ने कोमल करुणा को किस नज़र से देखा है, मगर यहोवा हमें किस बात का यकीन दिलाता है?
6 क्या कोमल करुणा कमज़ोरी की निशानी है? बहुत-से असिद्ध इंसान ऐसा ही सोचते हैं। मसलन, रोमी तत्त्वज्ञानी सेनेका जो यीशु के ज़माने में ज़िंदा था और रोम के जाने-माने ज्ञानियों में से एक था, उसने सिखाया कि “तरस खाना हमारे दिमाग की कमज़ोरी है।” सेनेका स्टोइकवाद का समर्थक था, जिसमें ऐसा शांत स्वभाव धारण करने पर ज़ोर दिया जाता था, जो भावनाओं से भंग नहीं होता। सेनेका का कहना था कि एक बुद्धिमान इंसान चाहे तो तकलीफ में पड़े हुओं की मदद कर सकता है, मगर उसे उन पर तरस नहीं खाना चाहिए क्योंकि इस भावना से उसके अंदर की शांति भंग हो जाएगी। ज़िंदगी का ऐसा स्वार्थी नज़रिया, दिल में करुणा के लिए कोई जगह नहीं छोड़ता था। मगर यहोवा हरगिज़ ऐसा नहीं है! अपने वचन में, यहोवा हमें यकीन दिलाता है कि वह “अत्यन्त करुणा और दया” का परमेश्वर है। (याकूब 5:11) जैसा हम आगे देखेंगे, करुणा दिखाना कोई कमज़ोरी नहीं, बल्कि यह एक ज़बरदस्त और ज़रूरी गुण है। आइए देखें कि यहोवा, कैसे एक प्यार करनेवाले पिता की तरह करुणा दिखाता है।
जब यहोवा ने एक जाति को करुणा दिखायी
7, 8. प्राचीन मिस्र में इस्राएली कैसी तकलीफें झेल रहे थे, और यहोवा ने उनकी तकलीफों को देखकर क्या किया?
7 इस्राएल जाति के साथ यहोवा जिस तरह पेश आया उससे उसकी करुणा साफ तौर पर देखी जा सकती है। सा.यु.पू. सोलहवीं सदी के आखिर का वह समय याद कीजिए जब लाखों इस्राएली, प्राचीन मिस्र के दास थे, जहाँ उन पर बुरी तरह ज़ुल्म ढाए जाते थे। मिस्रियों ने “उनके जीवन को गारे, ईंट और . . . कठिन सेवा से दुःखी कर डाला।” (निर्गमन 1:11, 14) कष्ट झेलते-झेलते, इस्राएलियों ने यहोवा से मदद की भीख माँगी। कोमल करुणा के परमेश्वर ने कैसे जवाब दिया?
8 यहोवा का दिल तड़प उठा। उसने कहा: “मैं ने अपनी प्रजा के लोग जो मिस्र में हैं उनके दुःख को निश्चय देखा है, और उनकी जो चिल्लाहट परिश्रम करानेवालों के कारण होती है उसको भी मैं ने सुना है, और उनकी पीड़ा पर मैं ने चित्त लगाया है।” (निर्गमन 3:7) हो नहीं सकता था कि यहोवा अपने लोगों को तकलीफ में पड़ा देखे या उनकी चीख-पुकार सुने और उस पर कोई असर न हो। जैसा हमने इस किताब के अध्याय 24 में देखा, यहोवा परमेश्वर हमदर्दी रखनेवाला परमेश्वर है। और हमदर्दी यानी दूसरों के दर्द को महसूस कर पाने का, करुणा की भावना के साथ गहरा संबंध है। मगर यहोवा ने अपने लोगों का खाली दर्द महसूस नहीं किया; बल्कि उन्हें बचाने के लिए उसने कार्यवाही भी की। यशायाह 63:9 कहता है: “प्रेम और कोमलता [“करुणा,” NW] से उस ने आप ही उनको छुड़ाया।” यहोवा ने “बली हाथ” से, इस्राएलियों को मिस्र से आज़ाद करवाया। (व्यवस्थाविवरण 4:34) इसके बाद, उन्हें चमत्कार से भोजन दिया और आखिरकार उनको एक उपजाऊ देश में पहुँचा दिया जो उनका अपना होता।
9, 10. (क) इस्राएलियों के वादा किए देश में बस जाने के बाद, यहोवा ने क्यों उन्हें बार-बार छुटकारा दिलाया? (ख) यिप्तह के दिनों में, यहोवा ने इस्राएलियों को किस ज़ुल्म से छुटकारा दिलाया, और उसे किस बात ने उकसाया?
9 यहोवा की करुणा यहीं खत्म नहीं हुई। जब इस्राएली वादा किए देश में बस गए, तो उन्होंने बार-बार विश्वासघात किया और इस वजह से उन पर मुसीबतें आती रहीं। मगर बाद में जब उनके होश ठिकाने आते, तो वे यहोवा को पुकार उठते। बार-बार वह उन्हें छुटकारा दिलाता रहा। क्यों? क्योंकि “उसे उन पर करुणा थी।”—2 इतिहास 36:15, ईज़ी-टू-रीड वर्शन; न्यायियों 2:11-16.
10 यिप्तह के दिनों में जो हुआ आइए उस पर गौर करें। इस्राएली झूठे देवताओं की उपासना करने लगे थे, इसलिए यहोवा ने 18 साल तक अम्मोनियों को उन पर ज़ुल्म ढाने दिया। आखिरकार, इस्राएलियों ने पश्चाताप किया। बाइबल हमें बताती है: “तब उन्होंने पराए देवताओं को अपने मध्य से अलग कर दिया और यहोवा की उपासना की; और यहोवा इस्राएल की दुर्दशा को और अधिक न देख सका।”b (NHT) (न्यायियों 10:6-16) उसके लोगों ने जब सच्चा पश्चाताप ज़ाहिर किया, तब यहोवा उन्हें और तकलीफ सहते हुए नहीं देख सका। इसलिए कोमल करुणा के परमेश्वर ने यिप्तह को शक्ति दी कि वह इस्राएलियों को उनके शत्रुओं के हाथ से छुड़ाए।—न्यायियों 11:30-33.
11. इस्राएलियों के साथ यहोवा के व्यवहार से हम करुणा के बारे में क्या सीखते हैं?
11 इस्राएल जाति के साथ यहोवा जिस तरह पेश आया उससे हम कोमल करुणा के बारे में क्या सीखते हैं? एक बात यह है कि यहोवा की करुणा की भावना, लोगों की तकलीफ देखकर सिर्फ उनके लिए अफसोस महसूस करने तक सीमित नहीं है। एक माँ की मिसाल याद कीजिए जब वह अपने बच्चे को रोता हुआ देखती है, तो उसकी करुणा उसे मजबूर कर देती है कि वह बच्चे पर ध्यान दे। उसी तरह, यहोवा अपने लोगों की पुकार सुनकर अपने कान बंद नहीं कर लेता। उसकी कोमल करुणा उसे उभारती है कि वह उनके दुःख से उन्हें राहत दिलाए। दूसरी बात, इस्राएलियों के साथ यहोवा का व्यवहार दिखाता है कि करुणा कमज़ोरी नहीं, क्योंकि इसी कोमल गुण ने यहोवा को अपने लोगों की खातिर ज़बरदस्त कार्यवाही करने के लिए उकसाया। मगर क्या यहोवा अपने लोगों के लिए सिर्फ एक समूह के तौर पर करुणा दिखाता है?
इंसानों के लिए यहोवा की करुणा
12. कानून-व्यवस्था के नियमों से, हर इंसान के लिए यहोवा की करुणा का कैसे पता चलता था?
12 परमेश्वर ने इस्राएल जाति को जो कानून-व्यवस्था दी थी उससे हर इंसान के लिए उसकी करुणा देखी जा सकती थी। मसलन, गरीबों के लिए उसकी परवाह को लीजिए। यहोवा जानता था कि किसी इस्राएली की ज़िंदगी में ऐसे हालात पैदा हो सकते थे जिसकी वजह से वह गरीबी की दलदल में फँस सकता है। गरीबों के साथ कैसा व्यवहार किया जाना था? यहोवा ने इस्राएलियों को यह कड़ा हुक्म दिया था: “अपने उस दरिद्र भाई के लिये न तो अपना हृदय कठोर करना, और न अपनी मुट्ठी कड़ी करना; तू उसको अवश्य देना, और उसे देते समय तेरे मन को बुरा न लगे; क्योंकि इसी बात के कारण तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे सब कामों में . . . तुझे आशीष देगा।” (व्यवस्थाविवरण 15:7, 10) इसके अलावा, यहोवा ने आज्ञा दी थी कि इस्राएली अपने खेतों के किनारों पर खड़े अनाज को न काटें, ना ही खेत में गिरे अनाज को बटोरें। ये गरीब और दीन-हीनों के लिए था। (लैव्यव्यवस्था 23:22; रूत 2:2-7) जब इस्राएल जाति ने गरीबों की खातिर दिए गए इस कानून का पालन किया, तो उनके बीच मौजूद ज़रूरतमंद लोगों को खाने के लिए किसी से भीख माँगने की ज़रूरत नहीं पड़ी। क्या यह यहोवा की कोमल करुणा नहीं थी?
13, 14. (क) दाऊद के शब्द हमें कैसे यकीन दिलाते हैं कि यहोवा हममें से हरेक की गहरी चिंता करता है? (ख) कौन-सा उदाहरण देकर यह समझाया जा सकता है कि यहोवा ‘टूटे मनवालों’ या ‘पिसे हुओं’ के करीब रहता है?
13 आज भी, हमारा प्यार करनेवाला परमेश्वर हममें से हरेक के बारे में गहरी चिंता करता है। हम यकीन रख सकते हैं कि जिस तकलीफ से हम गुज़र रहे हैं, उसके बारे में वह बहुत अच्छी तरह जानता है। भजनहार दाऊद ने लिखा: “यहोवा की आंखें धर्मियों पर लगी रहती हैं, और उसके कान भी उनकी दोहाई की ओर लगे रहते हैं। यहोवा टूटे मनवालों के समीप रहता है, और पिसे हुओं का उद्धार करता है।” (भजन 34:15, 18) इन आयतों में जिनका वर्णन किया है, उनके बारे में बाइबल के एक टीकाकार ने लिखा: “उनका दिल टूट चुका है और आत्मा खेदित है, यानी वे पाप के बोझ से दब गए हैं और उनका आत्म-सम्मान खो चुका है; वे अपनी ही नज़रों में गिर गए हैं और खुद को किसी लायक नहीं समझते।” ऐसे लोग शायद सोचें कि यहोवा उनसे बहुत दूर है, वे इतने छोटे हैं कि उसके लिए कोई मायने नहीं रखते और वह उनकी परवाह नहीं करता। मगर ऐसा बिलकुल नहीं है। दाऊद के शब्द हमें यकीन दिलाते हैं कि जो लोग “अपनी ही नज़रों में गिर गए हैं,” यहोवा उन्हें त्याग नहीं देता। हमारा करुणामयी परमेश्वर जानता है कि ऐसे वक्त पर, हमें उसकी सबसे सख्त ज़रूरत होती है और वह पहले से भी ज़्यादा हमारे करीब होता है।
14 एक अनुभव पर गौर कीजिए। अमरीका में, एक माँ अपने दो साल के बेटे को फौरन अस्पताल ले गयी, क्योंकि बच्चे की हालत बहुत नाज़ुक थी। उसके बेटे को साँस लेने में तकलीफ हो रही थी और वह बुरी तरह खाँस रहा था। बच्चे की जाँच करने के बाद, डॉक्टरों ने माँ को बताया कि उन्हें बच्चे को रात भर अस्पताल में रखना पड़ेगा। माँ ने रात कहाँ गुज़ारी? अस्पताल के कमरे में अपने बेटे के बिस्तर के पास रखी एक कुर्सी पर बैठे-बैठे! उसका लाल बीमार था, तो वह उसे अकेला छोड़कर कैसे जा सकती थी। बेशक हम अपने स्वर्गीय पिता से इससे कहीं ज़्यादा की उम्मीद कर सकते हैं! और क्यों न हो, आखिर हम उसी के स्वरूप में जो बनाए गए हैं। (उत्पत्ति 1:26) भजन 34:18 के दिल छू लेनेवाले शब्द हमसे कह रहे हैं कि जब हमारा ‘मन टूटता’ है या हम बोझ तले ‘पिसे हुए’ होते हैं, तो एक प्यार करनेवाले पिता की तरह यहोवा हमारे “समीप रहता है”—हमेशा करुणामयी और हमारी मदद करने को तैयार।
15. यहोवा किन तरीकों से हममें से हरेक की मदद करता है?
15 तो फिर, यहोवा हममें से हरेक की मदद कैसे करता है? यह ज़रूरी नहीं कि वह हमारी तकलीफ जड़ से मिटा दे। मगर हममें से जो लोग मदद के लिए यहोवा को पुकारते हैं, उनके लिए उसने भरपूर इंतज़ाम किए हैं। उसके वचन, बाइबल से हमें ऐसी कारगर सलाह मिलती है जिससे हमारे हालात काफी हद तक सुधर सकते हैं। यहोवा ने कलीसिया में आध्यात्मिक रूप से काबिल ओवरसियरों का इंतज़ाम किया है, जो अपने मसीही भाई-बहनों की मदद करने में उसके जैसी करुणा दिखाने की कोशिश करते हैं। (याकूब 5:14, 15) वह ‘प्रार्थना का सुननेवाला’ है और ‘मांगनेवालों को पवित्र आत्मा देता’ है। (भजन 65:2; लूका 11:13) यह आत्मा हमें “असीम सामर्थ” से भर सकता है ताकि हम तब तक धीरज धरें जब तक परमेश्वर का राज्य ऐसी तमाम समस्याओं का हल नहीं कर दे जिनकी वजह से हम तनाव महसूस करते हैं। (2 कुरिन्थियों 4:7) क्या हम इन सभी इंतज़ामों के लिए एहसानमंद नहीं हैं? आइए हम यह कभी न भूलें कि इन सारे इंतज़ामों से यहोवा अपनी कोमल करुणा हम पर ज़ाहिर करता है।
16. यहोवा की करुणा की सबसे उम्दा मिसाल क्या है, और हममें से हरेक जन पर इसका कैसे असर होता है?
16 बेशक, यहोवा की करुणा की सबसे उम्दा मिसाल यह है कि उसने अपने सबसे अज़ीज़ बेटे को हमारे लिए छुड़ौती के तौर पर दे दिया। यहोवा की तरफ से यह प्यार-भरा बलिदान था और इससे हमारे उद्धार का रास्ता खुल गया। याद कीजिए कि छुड़ौती का इंतज़ाम खुद हमारे लिए है। यही वजह है कि यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के पिता, जकर्याह ने भविष्यवाणी में कहा था कि यह इंतज़ाम, “हमारे परमेश्वर की कोमल करुणा” को बुलंद करता है।—लूका 1:78, NW.
कब यहोवा करुणा नहीं दिखाता
17-19. (क) बाइबल कैसे दिखाती है कि यहोवा की करुणा की भी सीमाएँ हैं? (ख) किस वजह से अपने लोगों के लिए यहोवा की करुणा खत्म हो गयी?
17 क्या हमें यह सोचना चाहिए कि यहोवा की कोमल करुणा की कोई सीमाएँ नहीं हैं? इसके बजाय, बाइबल साफ-साफ दिखाती है कि यहोवा ऐसे लोगों पर करुणा नहीं करता, जो उसके धर्मी मार्गों के खिलाफ बगावत करते हैं। (इब्रानियों 10:28) वह ऐसे लोगों पर करुणा क्यों नहीं करता, इसे समझने के लिए इस्राएल जाति की मिसाल याद कीजिए।
18 हालाँकि यहोवा ने बार-बार इस्राएलियों को उनके दुश्मनों से छुटकारा दिलाया, मगर एक वक्त ऐसा भी आया जब उन्होंने यहोवा की करुणा की परीक्षा लेने में हद पार कर दी। ये हठीले लोग मूर्तिपूजा तो करते थे, मगर साथ ही वे उन्हीं घिनौनी मूरतों को यहोवा के मंदिर के अंदर भी ले आते थे! (यहेजकेल 5:11; 8:17, 18) हमें आगे बताया गया है: “वे परमेश्वर के दूतों को ठट्ठों में उड़ाते, उसके वचनों को तुच्छ जानते, और उसके नबियों की हंसी करते थे। निदान यहोवा अपनी प्रजा पर ऐसा झुंझला उठा, कि बचने का कोई उपाय न रहा।” (2 इतिहास 36:16) इस्राएली ऐसे मुकाम पर आ पहुँचे थे जहाँ यहोवा के पास उन्हें करुणा दिखाने का कोई और आधार नहीं बचा था और उन्होंने उसका धर्मी क्रोध भड़काया। इसका क्या नतीजा हुआ?
19 अपने लोगों के लिए यहोवा की करुणा अब मर चुकी थी। उसने ऐलान किया: “मैं उनको नष्ट करने में न तो करुणा करूंगा, न दुखी होऊंगा, और न तरस खाऊंगा।” (यिर्मयाह 13:14, NHT) इसलिए, यरूशलेम और उसका मंदिर नष्ट कर दिया गया और इस्राएलियों को बंधुआ बनाकर बाबुल ले जाया गया। कितने अफसोस की बात है कि पापी इंसान इस हद तक बागी हो जाते हैं कि परमेश्वर की करुणा की आखिरी-से-आखिरी हद से भी बाहर चले जाते हैं!—विलापगीत 2:21.
20, 21. (क) हमारे दिनों में जब परमेश्वर की करुणा की हद खत्म हो जाएगी, तब क्या होगा? (ख) अगले अध्याय में, यहोवा के किस करुणामयी इंतज़ाम के बारे में चर्चा की जाएगी?
20 आज के बारे में क्या? यहोवा नहीं बदला। करुणा दिखाते हुए, उसने अपने साक्षियों को सारी धरती पर “राज्य का यह सुसमाचार” प्रचार करने का काम सौंपा है। (मत्ती 24:14) जब सच्चे दिल के लोग इस समाचार को सुनकर दिलचस्पी दिखाते हैं, तो यहोवा राज्य का संदेश समझने के लिए उनका दिल खोल देता है। (प्रेरितों 16:14) मगर यह काम हमेशा तक चलता नहीं रहेगा। अगर यहोवा इस दुष्ट संसार को और इसके तमाम दुःखों और मुसीबतों को सदा तक यूँ ही चलते रहने दे, तो यह करुणा दिखाना नहीं होगा। जब परमेश्वर की करुणा की हद खत्म हो जाएगी, तब यहोवा इस संसार को दंड देने आएगा। तब भी वह करुणा से काम ले रहा होगा—अपने “पवित्र नाम” और अपने समर्पित सेवकों के लिए करुणा। (यहेजकेल 36:20-23) यहोवा दुष्टता का सफाया करके एक धर्मी नए संसार की शुरूआत करेगा। दुष्ट लोगों के बारे में यहोवा ऐलान करता है: “उन पर दया न होगी, न मैं कोमलता [“करुणा,” NW] करूंगा, वरन उनकी चाल उन्हीं के सिर लौटा दूंगा।”—यहेजकेल 9:10.
21 उस वक्त के आने तक, यहोवा के मन में लोगों के लिए करुणा है, उनके लिए भी जिनका विनाश होने जा रहा है। पापी इंसान जो सच्चे दिल से पश्चाताप करते हैं उन्हें यहोवा के एक सबसे करुणामयी इंतज़ाम से फायदा मिल सकता है, वह है उसकी माफी। अगले अध्याय में, हम बाइबल के चंद ऐसे बढ़िया हिस्सों पर चर्चा करेंगे जिनमें शब्दों से खींची गयी तसवीर से पता चलता है कि यहोवा कैसे पूरी तरह माफ करता है।
a मगर, गौर करने लायक बात है कि भजन 103:13 में इब्रानी शब्द राकाम का मतलब है वह दया, या करुणा जो एक पिता अपने बच्चों को दिखाता है।
b “और अधिक न देख सका” इस पद का शाब्दिक अर्थ है कि वह “अधीर हो उठा; उसका धैर्य जवाब दे गया।” नयी हिन्दी बाइबिल कहती है: “प्रभु का प्राण इस्राएलियों के कष्ट के कारण अधीर हुआ!” बुल्के बाइबल इस आयत का अनुवाद यूँ करती है: “प्रभु से इस्राएल की दुर्गति नहीं देखी गयी।”
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परमेश्वर जो “क्षमा करने को तत्पर” रहता हैयहोवा के करीब आओ
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अध्याय 26
परमेश्वर जो “क्षमा करने को तत्पर” रहता है
1-3. (क) भजनहार दाऊद कौन-सा भारी बोझ उठाए हुए था, और उसके बेचैन दिल को सांत्वना कैसे मिली? (ख) जब हम पाप करते हैं, तो हमें किस चीज़ का बोझ उठाना पड़ सकता है, मगर यहोवा हमें क्या यकीन दिलाता है?
भजनहार दाऊद ने लिखा: “मेरे अधर्म के कामों में मेरा सिर डूब गया, और वे भारी बोझ की नाईं मेरे सहने से बाहर हो गए हैं। मैं निर्बल और बहुत ही चूर हो गया हूं।” (भजन 38:4, 8) दाऊद अपने अनुभव से जानता था कि दोषी विवेक का बोझ लिए फिरना कितना भारी पड़ सकता है। मगर उसके बैचेन दिल को सांत्वना मिली। उसे यह समझ आ गया कि यहोवा पाप से घृणा ज़रूर करता है, मगर पापी से नहीं। अगर पाप करनेवाला सच्चा पश्चाताप करता है और बुरे मार्ग से फिर जाता है, तो यहोवा उसे माफ करता है। पूरे यकीन के साथ कि यहोवा पश्चाताप करनेवालों पर दिल से दया करता है, दाऊद ने कहा: “हे प्रभु, तू . . . क्षमा करने को तत्पर रहता है।”—भजन 86:5, NHT.
2 जब हम पाप करते हैं, तो हमारा विवेक भी शायद दर्द से कराहने लगे। यह इतना भारी बोझ बन जाता है, जिसे उठाए फिरना हमारी बरदाश्त के बाहर हो जाता है। लेकिन पछतावे की ऐसी आग में जलना फायदेमंद है। यह हमें अपनी गलतियों को सुधारने के लिए सही कदम उठाने को उकसा सकती है। मगर दूसरी तरफ यह भी खतरा हो सकता है कि दोष की भावना हमें पूरी तरह से निगल जाए। दोष लगानेवाला हमारा दिल, शायद हमसे बार-बार यही कहे कि चाहे हम कितना ही पश्चाताप क्यों न कर लें, यहोवा हमें माफ नहीं करेगा। अगर हम दोष की भावना में ‘डूब जाएँगे,’ तो शैतान इसका फायदा उठाने की कोशिश करेगा। वह चाहेगा कि हम हार मान लें और यह मान बैठें कि यहोवा की नज़र में हमारा कोई मोल नहीं और हम उसकी सेवा के काबिल नहीं रहे।—2 कुरिन्थियों 2:5-11.
3 क्या वाकई यहोवा ऐसा महसूस करता है? बिलकुल नहीं! माफ करना, यहोवा के महान प्रेम का एक पहलू है। अपने वचन में वह हमें यकीन दिलाता है कि जब हम सच्चे दिल से पश्चाताप करते हैं, तो वह हमें माफ करने को तत्पर रहता है। (नीतिवचन 28:13) इससे पहले कि आपको कभी ऐसा लगने लगे कि यहोवा आपको माफ नहीं करेगा, आइए इस बात पर गौर करें कि वह क्यों और कैसे माफ करता है।
यहोवा “क्षमा करने को तत्पर” क्यों है
4. यहोवा हमारे स्वभाव के बारे में क्या याद रखता है, और हमारे साथ उसके व्यवहार पर इसका कैसे असर होता है?
4 यहोवा हमारी सीमाओं को जानता है। भजन 103:14 कहता है: “वह हमारी सृष्टि जानता है; और उसको स्मरण रहता है कि मनुष्य मिट्टी ही हैं।” वह यह नहीं भूलता कि हम मिट्टी से बने प्राणी हैं, और असिद्धता की वजह से हममें कई कमज़ोरियाँ और खामियाँ हैं। यह बात कि वह “हमारी सृष्टि” जानता है, हमें याद दिलाती है कि बाइबल, यहोवा को एक कुम्हार कहती है और हमें उसके हाथ के बने मिट्टी के बर्तन।a (यिर्मयाह 18:2-6) यह महान कुम्हार, हमारे पापी स्वभाव और हमारी कमज़ोरी को ध्यान में रखते हुए हमारे साथ पेश आता है। वह इस बात का भी ध्यान रखता है कि हम उसकी हिदायतों को मान रहे हैं या नहीं।
5. रोमियों की किताब में पाप की ज़बरदस्त गिरफ्त का वर्णन कैसे किया गया है?
5 यहोवा जानता है कि पाप कितना शक्तिशाली होता है। उसके वचन में पाप को ऐसी प्रबल शक्ति बताया गया है जो इंसान को अपने खतरनाक शिकंजे में जकड़े हुए है। पाप की पकड़ कितनी मज़बूत है? रोमियों की किताब में, प्रेरित पौलुस समझाता है: हम सभी “पाप के वश में” हैं, वैसे ही जैसे सिपाही अपने सेनापति के इशारे पर चलता है (रोमियों 3:9); पाप ने राजा की तरह इंसानों पर “राज्य किया” है (रोमियों 5:21); यह हमारी रग-रग में “बसा हुआ है” (रोमियों 7:17, 20); इसकी “व्यवस्था” हमारे अंदर दिन-रात काम करती रहती है, जिसका मतलब है यह हमारी पूरी ज़िंदगी को अपनी गिरफ्त में लेना चाहता है। (रोमियों 7:23, 25) हमारा असिद्ध शरीर पाप की क्या ही ज़बरदस्त पकड़ में है!—रोमियों 7:21, 24.
6, 7. (क) जो लोग खेदित मन से यहोवा से दया की बिनती करते हैं, उन्हें वह किस नज़र से देखता है? (ख) हमें क्यों परमेश्वर की दया का नाजायज़ फायदा नहीं उठाना चाहिए?
6 इसलिए, यहोवा जानता है कि चाहे हमारा दिल उसका कितना भी आज्ञाकारी होना क्यों न चाहे, हमारे लिए पूरी तरह उसकी आज्ञाएँ मानना मुमकिन नहीं। वह बड़े प्यार से यकीन दिलाता है कि जब हम खेदित मन से उससे दया के लिए बिनती करेंगे, तो वह ज़रूर माफ करेगा। भजन 51:17 कहता है: “टूटा मन परमेश्वर के योग्य बलिदान है; हे परमेश्वर, तू टूटे और पिसे हुए मन को तुच्छ नहीं जानता।” यहोवा ऐसे मन को कभी नहीं ठुकराएगा, न निराश करेगा जो दोष के बोझ तले ‘टूटा और पिसा हुआ’ है।
7 लेकिन, क्या इसका मतलब यह है कि हम परमेश्वर की दया का नाजायज़ फायदा उठा सकते हैं, और अपने पापी स्वभाव का बहाना बनाकर पाप करते रह सकते हैं? हरगिज़ नहीं! यहोवा सिर्फ जज़्बातों से काम नहीं लेता। उसकी दया की सीमाएँ हैं। वह ऐसे लोगों को किसी-भी कीमत पर माफ नहीं करेगा जिनका दिल सख्त हो गया है, जो पाप करने से बाज़ नहीं आते, और अपने किए पर ज़रा भी पछतावा महसूस नहीं करते। (इब्रानियों 10:26) दूसरी तरफ, जब वह पश्चाताप से भरा दिल देखता है तो माफ करने को तैयार रहता है। आइए अब हम बाइबल में इस्तेमाल की गयी उस भाषा पर गौर करें, जो बहुत ही प्रभावशाली ढंग से बताती है कि यहोवा के प्रेम का यह पहलू कितना शानदार है।
यहोवा किस हद तक माफ करता है?
8. जब यहोवा हमारे पापों को माफ करता है तो मानो वह क्या करता है, और इससे हमें क्या भरोसा मिलता है?
8 पश्चातापी दाऊद ने कहा था: “जब मैं ने अपना पाप तुझ पर प्रगट किया और अपना अधर्म न छिपाया, . . . तब तू ने मेरे अधर्म और पाप को क्षमा कर दिया।” (तिरछे टाइप हमारे; भजन 32:5) शब्द “क्षमा” एक ऐसे इब्रानी शब्द का अनुवाद है, जिसका बुनियादी अर्थ है “उठाना” या “ले जाना।” यहाँ इसके इस्तेमाल का मतलब है “दोष, पाप, अपराध” को दूर ले जाना। यहोवा मानो दाऊद के पापों को उठाकर दूर ले गया। इससे ज़रूर दाऊद के मन से दोष की वह भावना दूर हुई, जिसके बोझ से वह दबा हुआ था। (भजन 32:3) हम भी परमेश्वर पर पूरा भरोसा रख सकते हैं कि वह ऐसे लोगों के पापों को उठाकर दूर ले जाता है, जो यीशु मसीह के छुड़ौती बलिदान पर विश्वास के आधार पर उससे माफी माँगते हैं।—मत्ती 20:28.
9. यहोवा हमारे पापों को हमसे कितनी दूर ले जाता है?
9 यहोवा कैसे माफ करता है, यह समझाने के लिए दाऊद ने ज़बरदस्त मिसाल दी: “पूर्व पश्चिम से जितनी दूर है, वह हमारे अपराध हमसे उतनी ही दूर करता है।” (तिरछे टाइप हमारे; भजन 103:12, नयी हिन्दी बाइबिल) पूर्व, पश्चिम से कितनी दूर है? पूर्व और पश्चिम के बीच का फासला कभी मिटाया नहीं जा सकता, ये एक-दूसरे से हमेशा दूर ही रहेंगे। एक विद्वान का कहना है कि इस पद का मतलब है, “जितना मुमकिन हो उतना दूर; जितनी दूरी की हम कल्पना कर सकते हैं।” दाऊद के ईश्वर-प्रेरित शब्द हमें बता रहे हैं कि यहोवा जब हमें माफ करता है, तो हमारे पापों को हमसे इतनी दूर ले जाता है जितनी हम कल्पना कर सकते हैं।
“तुम्हारे पाप . . . हिम के समान श्वेत हो जाएंगे”
10. जब यहोवा हमारे पापों को माफ करता है, तो क्यों हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि पापों के ये दाग ज़िंदगी भर नहीं मिटेंगे?
10 क्या आपने कभी किसी हल्के रंग के कपड़े पर लगा कोई दाग मिटाने की कोशिश की है? आपकी लाख कोशिशों के बावजूद, शायद वह दाग अब भी दिखायी देता हो। लेकिन गौर कीजिए कि यहोवा माफ करने की अपनी काबिलीयत के बारे में क्या कहता है: “तुम्हारे पाप चाहे लाल रंग के हों, तौभी वे हिम के समान श्वेत हो जाएंगे; चाहे वे किरमिजी लाल ही क्यों न हों, वे ऊन के समान उजले हो जाएंगे।” (तिरछे टाइप हमारे; यशायाह 1:18, NHT) “किरमिजी” शब्द का मतलब है चटकीला लाल रंग।b और यही “किरमिजी” रंग कपड़ों की रंगाई में इस्तेमाल होनेवाले सबसे गहरे रंगों में से एक था। (नहूम 2:3) हम अपनी ही कोशिशों से कभी-भी पाप के दाग को मिटा नहीं पाएँगे। मगर यहोवा ऐसे पापों को, जो लाल और किरमिजी रंग की तरह गाढ़े क्यों न हों, हिम या सफेद ऊन के समान उजला कर सकता है। जब यहोवा हमारे पापों को माफ करता है, तो हमें कभी-भी यह महसूस नहीं करना चाहिए कि अब पापों के ये दाग ज़िंदगी भर नहीं मिटेंगे।
11. किस मायने में यहोवा हमारे पापों को अपनी पीठ के पीछे फेंक देता है?
11 हिजकिय्याह ने एक जानलेवा बीमारी से चंगा होने पर, एहसानमंदी ज़ाहिर करते हुए एक गीत में यहोवा से कहा: “मेरे सब पापों को तू ने अपनी पीठ के पीछे फेंक दिया है।” (तिरछे टाइप हमारे; यशायाह 38:17) यहाँ बताया गया है कि यहोवा मानो पश्चाताप करनेवाले के पापों को लेकर अपनी पीठ के पीछे फेंक देता है, जिन्हें वह मुड़कर कभी नहीं देखेगा, न ही उन पर कभी ध्यान देगा। एक किताब के मुताबिक, इस विचार को यूँ कहा जा सकता है: “तू ने [मेरे पापों] को ऐसा कर दिया है जैसे वे कभी थे ही नहीं।” क्या यह हमारे दिल को चैन नहीं पहुँचाता?
12. भविष्यवक्ता मीका कैसे दिखाता है कि जब यहोवा माफ करता है, तो वह हमारे पापों को हमेशा के लिए दूर कर देता है?
12 बहाली के एक वादे में, भविष्यवक्ता मीका ने यह यकीन ज़ाहिर किया कि यहोवा अपने पश्चातापी लोगों को माफ करेगा: “तेरे समान ऐसा परमेश्वर कहां है जो . . . अपने निज भाग के बचे हुओं के अपराध को ढांप दे? . . . तू उनके सब पापों को गहिरे समुद्र में डाल देगा।” (तिरछे टाइप हमारे; मीका 7:18, 19) कल्पना कीजिए कि बाइबल के ज़माने में जीनेवालों के लिए इन शब्दों का क्या मतलब था। जिस चीज़ को “गहिरे समुद्र” में फेंक दिया गया हो, उसे फिर से पाने की क्या कोई उम्मीद कर सकता था? नहीं। इसलिए, मीका के शब्द यही दिखाते हैं कि जब यहोवा माफ करता है, तो हमारे पापों को हमेशा के लिए दूर कर देता है।
13. यीशु के इन शब्दों का क्या मतलब है, “हमारे क़र्ज़ मुआफ़ कर”?
13 यहोवा की माफी के बारे में समझाने के लिए, यीशु ने एक कर्ज़दार और कर्ज़ वसूल करनेवाले का दृष्टांत इस्तेमाल किया। यीशु ने हमें यूँ प्रार्थना करने को उकसाया: “हमारे क़र्ज़ मुआफ़ कर।” (तिरछे टाइप हमारे; मत्ती 6:12, हिन्दुस्तानी बाइबल) यहाँ यीशु ने पापों की बराबरी कर्ज़ के साथ की। (लूका 11:4) जब हम पाप करते हैं, तो हम यहोवा के “कर्ज़दार” हो जाते हैं। यूनानी क्रिया जिसका अनुवाद “मुआफ़” किया गया है, उसका मतलब समझाते हुए एक किताब कहती है: “किसी कर्ज़ को छोड़ देना, उसका तकाज़ा न करना।” एक तरह से, यहोवा जब हमारे पाप माफ करता है तो वह हमारे उस कर्ज़ को माफ कर देता है, जिसका हमें अलबत्ता हिसाब देना पड़ता। इसलिए, प्रायश्चित्त करनेवाले पापी, सांत्वना पा सकते हैं। यहोवा कभी-भी उस कर्ज़ को चुकाने की माँग नहीं करेगा, जो उसने माफ कर दिया है!—भजन 32:1, 2.
14. “तुम्हारे पाप मिटाए जाएं,” इन शब्दों से मन में क्या तसवीर उभर आती है?
14 यहोवा की माफी के बारे में प्रेरितों 3:19 में और ज़्यादा बताया गया है: “मन फिराओ और लौट आओ कि तुम्हारे पाप मिटाए जाएं।” (तिरछे टाइप हमारे।) इस आयत के ये आखिरी शब्द एक ऐसी यूनानी क्रिया का अनुवाद हैं, जिसका मतलब “पोंछ देना, . . . रद्द या नष्ट करना” हो सकता है। कुछ विद्वानों के मुताबिक, यहाँ जो तसवीर पेश की गयी है, वह है किसी की लिखावट को मिटाना। यह कैसे मुमकिन था? प्राचीनकाल में जो स्याही आम तौर पर इस्तेमाल होती थी, वह कोयले, गोंद और पानी का मिश्रण होती थी। ऐसी स्याही से लिखने के फौरन बाद, एक इंसान चाहे तो उस लिखाई को गीले स्पंज से मिटा सकता था। यह, यहोवा की दया की एक बढ़िया तसवीर पेश करता है। जब वह हमारे पाप माफ करता है, तो मानो वह स्पंज लेकर इन्हें पूरी तरह मिटा देता है।
यहोवा हमें यह बताना चाहता है कि वह “क्षमा करने को तत्पर” रहता है
15. यहोवा हमें अपने बारे में क्या बताना चाहता है?
15 इन अलग-अलग उदाहरणों के बारे में जब हम ध्यान से सोचते हैं, तो क्या यह साफ नहीं हो जाता कि यहोवा हमें यह बताना चाहता है कि वह सचमुच हमारे पाप माफ करने को तैयार है, बशर्ते वह हमें सच्चा प्रायश्चित्त करता हुआ पाए? हमें इस बात का डर नहीं सताना चाहिए कि वह भविष्य में हमसे ऐसे पापों का हिसाब लेगा। बाइबल, यहोवा की बड़ी दया के बारे में एक और बात बताती है, और वह यह है: जब वह पापों को माफ करता है, तो उन्हें भूल जाता है।
‘मैं उनका पाप फिर स्मरण न करूंगा’
16, 17. जब बाइबल कहती है कि यहोवा हमारे पापों को भूल जाता है, तो इसका क्या मतलब है, और आप ऐसा जवाब क्यों दे रहे हैं?
16 यहोवा ने नयी वाचा के अधीन लोगों के बारे में वादा किया: “मैं उनका अधर्म क्षमा करूंगा, और उनका पाप फिर स्मरण न करूंगा।” (यिर्मयाह 31:34) क्या इसका मतलब यह है कि जब यहोवा माफ करता है, तो उसके बाद वह उन पापों को याद ही नहीं कर पाता? नहीं, ऐसा हो ही नहीं सकता। बाइबल हमें ऐसे बहुत-से लोगों के पापों के बारे में बताती है, जिन्हें यहोवा ने माफ किया, जैसे दाऊद। (2 शमूएल 11:1-17; 12:13) ज़ाहिर है, यहोवा आज भी जानता है कि उन्होंने क्या-क्या अपराध किए थे। उनके पापों का, साथ ही उनके प्रायश्चित्त और परमेश्वर से माफी पाने का रिकॉर्ड हमारे फायदे के लिए आज तक बरकरार रखा गया है। (रोमियों 15:4) तो फिर, बाइबल का क्या मतलब है जब यह कहती है कि यहोवा जिन्हें माफ करता है, उनके पाप “स्मरण” नहीं करता?
17 जिस इब्रानी क्रिया का अनुवाद ‘मैं स्मरण करूंगा’ किया गया है, उसका मतलब सिर्फ बीते हुए कल को याद करना ही नहीं बल्कि उससे भी ज़्यादा है। थियॉलाजिकल वर्डबुक ऑफ दी ओल्ड टेस्टामेंट कहती है कि इसमें “मुनासिब कार्यवाही करने की बात भी शामिल है।” इस अर्थ में, पाप को “स्मरण” करने (या, “सुधि” लेने) का मतलब है पापियों के खिलाफ कार्यवाही करना। (होशे 9:9) मगर जब परमेश्वर कहता है कि “[मैं] उनका पाप फिर स्मरण न करूंगा,” तो वह हमें यकीन दिला रहा है कि एक बार जब उसने पश्चाताप करनेवाले पापियों को माफ कर दिया, तो फिर वह भविष्य में कभी-भी इन पापों के लिए उनके खिलाफ कार्यवाही नहीं करेगा। (यहेजकेल 18:21, 22) यहोवा के भूल जाने का मतलब है, कि वह बार-बार हमारे पापों को याद नहीं करता रहेगा ताकि हमें लगातार दोषी ठहराकर सज़ा दे। क्या यह जानकर हमें राहत नहीं मिलती कि हमारा परमेश्वर माफ करता है और भूल जाता है?
अंजामों के बारे में क्या?
18. माफ करने का यह मतलब क्यों नहीं है कि पश्चाताप करनेवाला पापी अपने गलत कामों के सभी अंजामों से बच जाएगा?
18 क्या यहोवा के माफ करने को तत्पर रहने का मतलब यह है कि पश्चाताप करनेवाला पापी अपने गलत काम के अंजामों से बच जाएगा? जी नहीं। हम पाप करके यह उम्मीद नहीं कर सकते कि हमें कोई नुकसान नहीं उठाना पड़ेगा। पौलुस ने लिखा: “मनुष्य जो कुछ बोता है, वही काटेगा।” (गलतियों 6:7) हमें अपने पापों के कुछ अंजामों को भुगतना पड़ सकता है। लेकिन, इसका यह मतलब नहीं कि माफ करने के बाद, यहोवा हम पर मुसीबतें लाता है। जब तकलीफें आती हैं, तो एक मसीही को ऐसा महसूस नहीं करना चाहिए, ‘शायद यहोवा मुझे पिछले पापों की सज़ा दे रहा है।’ (याकूब 1:13) दूसरी तरफ, हमारे गलत कामों के सभी अंजामों से यहोवा हमें नहीं बचाता। तलाक, अनचाहे गर्भ, लैंगिक रूप से फैलनेवाली बीमारियाँ, भरोसा उठना या इज़्ज़त मिट्टी में मिलना—ये सभी पाप के ऐसे बुरे अंजाम हैं जिनसे हम बच नहीं सकते। याद कीजिए कि दाऊद को बतशेबा और ऊरिय्याह के सिलसिले में उसके पापों को माफ करने के बाद, यहोवा ने दाऊद को उसके पाप के खतरनाक अंजामों से नहीं बचाया।—2 शमूएल 12:9-12.
19-21. (क) लैव्यव्यवस्था 6:1-7 में दर्ज़ कानून से कैसे अपराध के शिकार और अपराधी दोनों को फायदा होता था? (ख) अगर हमारे पापों से दूसरों को चोट पहुँची है, तो हमारे क्या करने से यहोवा को खुशी महसूस होगी?
19 हमारे पापों के कुछ और अंजाम भी हो सकते हैं, खासकर अगर हमारे कामों से दूसरों को चोट पहुँची हो। मिसाल के लिए, लैव्यव्यवस्था के अध्याय 6 के वृत्तांत पर गौर कीजिए। यहाँ मूसा की व्यवस्था में, एक ऐसे मामले के बारे में बताया है जहाँ एक इंसान अपने इस्राएली भाई के साथ धोखाधड़ी करके, उसे लूटकर या उसकी चोरी करके उसके सामान को हथिया लेता है। और फिर यह पापी अपना अपराध मानने से साफ इनकार कर देता है, यहाँ तक कि झूठी कसमें खाने की जुर्रत करता है। यह ऐसा मामला है जहाँ एक आदमी दूसरे के खिलाफ बोल रहा है। लेकिन, बाद में अपराधी का विवेक उसे कचोटता है और वह अपना पाप स्वीकार करता है। परमेश्वर से माफी पाने के लिए, उसे तीन काम और करने थे: उसने जो लिया है उसे लौटाना होता था, जिसे लूटा गया है, उसकी चीज़ों के कुल मूल्य का 20 प्रतिशत, जुर्माने के तौर पर उसे देना होता था और दोषबलि के तौर पर एक मेढ़ा चढ़ाना होता था। व्यवस्था आगे कहती है: “याजक उसके लिये यहोवा के साम्हने प्रायश्चित्त करे[गा], और जिस काम को करके वह दोषी हो गया है उसकी क्षमा उसे मिलेगी।”—लैव्यव्यवस्था 6:1-7.
20 यह व्यवस्था परमेश्वर की तरफ से दया का एक इंतज़ाम था। जिसका नुकसान हुआ था उसे फायदा होता था, एक तो उसका सामान उसे वापस मिल जाता था और दूसरा, पापी के अपराध स्वीकार करने से उसे चैन मिलता था। साथ ही, व्यवस्था उस दोषी को भी लाभ पहुँचाती थी जिसका विवेक उसे अपना अपराध मानने और गलती सुधारने के लिए उकसाता था। बेशक, अगर वह ऐसा करने से इनकार करता, तो परमेश्वर उसे माफ नहीं करता।
21 हालाँकि हम मूसा की व्यवस्था के अधीन नहीं हैं, वह व्यवस्था हमें यहोवा के मन की अंदरूनी समझ देती है, और हम यह जान पाते हैं कि वह माफ करने के बारे में क्या सोचता है। (कुलुस्सियों 2:13, 14) अगर हमारे पापों की वजह से दूसरों को चोट पहुँची है, तो जब हम नुकसान की भरपाई और गलती सुधारने के लिए अपनी तरफ से पूरी कोशिश करते हैं, तो परमेश्वर इससे खुश होता है। (मत्ती 5:23, 24) इसके लिए शायद हमें अपना पाप स्वीकार करना पड़े, अपना दोष मानना पड़े और जिसे चोट पहुँचायी है उससे माफी भी माँगनी पड़े। तब हम यीशु के बलिदान के आधार पर यहोवा से माफी माँग सकते हैं और अपने दिल में निश्चित हो सकते हैं कि परमेश्वर ने हमें माफ कर दिया है।—इब्रानियों 10:21, 22.
22. यहोवा की माफी के साथ हमें और क्या मिलता है?
22 जैसा कोई भी प्रेम करनेवाला पिता करता है, यहोवा भी हमें माफ करने के साथ-साथ कुछ हद तक अनुशासन देता है। (नीतिवचन 3:11, 12) प्रायश्चित्त करनेवाले मसीही को शायद प्राचीन, सहायक सेवक या पूरे समय के प्रचारक की अपनी खास ज़िम्मेदारियों का पद छोड़ना पड़े। जिन ज़िम्मेदारियों को वह अनमोल समझता है, उन्हें कुछ वक्त के लिए खो देना शायद दर्दनाक हो। लेकिन, ऐसे अनुशासन का मतलब यह नहीं कि यहोवा ने उसे माफ नहीं किया है। हमें यह याद रखना चाहिए कि यहोवा का अनुशासन दरअसल उसके प्यार का सबूत है। इसे स्वीकार करने और इसके मुताबिक काम करने में हमारी ही भलाई है।—इब्रानियों 12:5-11.
23. क्यों हमें कभी यह नहीं मान लेना चाहिए कि हम यहोवा की दया के काबिल नहीं, और क्यों हमें उसकी तरह माफ करना सीखना चाहिए?
23 यह जानकर कितनी खुशी होती है कि परमेश्वर “क्षमा करने को तत्पर” रहता है! हमने चाहे जो भी गलतियाँ की हों, हमें कभी यह नहीं मानकर बैठ जाना चाहिए कि हम यहोवा की दया के काबिल नहीं। अगर हम सच्चे दिल से पश्चाताप करें, गलती को सुधारने के लिए कदम उठाएँ और यीशु के बहाए लहू के आधार पर माफी के लिए बिनती करें, तो हम पूरा भरोसा रख सकते हैं कि यहोवा हमें ज़रूर माफ करेगा। (1 यूहन्ना 1:9) आइए हम एक-दूसरे के साथ व्यवहार करते वक्त यहोवा की तरह माफ करना सीखें। जब यहोवा, जो कभी पाप नहीं करता, इतना प्यार दिखाते हुए हमें माफ कर सकता है, तो क्या हम पापी इंसानों को एक-दूसरे को माफ करने की पूरी-पूरी कोशिश नहीं करनी चाहिए?
a जिस इब्रानी शब्द का अनुवाद “हमारी सृष्टि” किया गया है, उसे कुम्हार के बनाए मिट्टी के बर्तनों के लिए भी इस्तेमाल किया गया है।—यशायाह 29:16.
b एक विद्वान कहता है कि किरमिजी “पक्का या न मिटनेवाला रंग था। न तो ओस की बूंदों से, न ही बारिश, न ही धुलाई, ना ही लंबे अरसे तक इसे बार-बार पहनने से इसका रंग फीका पड़ता था।”
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“अहा, उसकी भलाई कितनी अपार है!”यहोवा के करीब आओ
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अध्याय 27
“अहा, उसकी भलाई कितनी अपार है!”
1, 2. परमेश्वर की भलाई का फायदा किस-किस को होता है, और इस गुण पर बाइबल कितना ज़ोर देती है?
ढलते सूरज की लाली में नहायी एक शाम को, कुछ पुराने दोस्त खुली हवा में साथ मिलकर खाना खा रहे हैं। वे बातें करते, ठहाके लगाते आस-पास के खूबसूरत नज़ारों का मज़ा ले रहे हैं। कहीं दूर, एक किसान अपने खेतों पर नज़र डालता है और राहत की साँस लेकर मुस्कराता है। काले बादल घिर आए हैं और टप-टप गिरती बारिश की पहली बूँदें उसके प्यासे खेतों पर पड़ने लगी हैं। कहीं और, एक जोड़ा अपने नन्हे-मुन्ने को पहली बार लड़खड़ाते कदमों से चलता हुआ देखकर खुशी से उछल पड़ता है।
2 चाहे इन लोगों को इसका एहसास हो या न हो, ये सभी एक ही चीज़ से फायदा पा रहे हैं। वह है, यहोवा परमेश्वर की भलाई। परमेश्वर पर आस्था रखनेवाले बहुत-से लोग अकसर ये शब्द दोहराते हैं: “ईश्वर भला है।” बाइबल इससे भी ज़ोरदार तरीके से यह कहती है: “अहा, उसकी भलाई कितनी अपार है!” (जकर्याह 9:17, NW) मगर ऐसा लगता है कि बहुत कम लोग सही मायने में इन शब्दों का मतलब जानते हैं। यहोवा परमेश्वर की भलाई में दरअसल क्या शामिल है, और परमेश्वर का यह गुण हममें से हरेक पर क्या असर करता है?
परमेश्वर के प्रेम का एक लाजवाब पहलू
3, 4. भलाई क्या है, और यह कहना सबसे सही क्यों होगा कि यहोवा की भलाई उसके प्रेम से ज़ाहिर होती है?
3 बाइबल के मुताबिक भला इंसान वह होता है जिसमें अच्छे गुण हों और जो ऊँचे आदर्शों पर चलता हो। तो फिर, एक तरह से हम कह सकते हैं कि भलाई यहोवा के स्वभाव में है। उसके सारे गुण—उसकी शक्ति, बुद्धि और उसका न्याय भी—हर तरह से भले हैं। फिर भी, भलाई के बारे में सबसे ज़्यादा यह कहना सही होगा कि इससे यहोवा का प्रेम ज़ाहिर होता है। ऐसा क्यों?
4 भलाई उकसानेवाला गुण है, जो दूसरों की खातिर किए गए कामों से ज़ाहिर होता है। प्रेरित पौलुस ने दिखाया कि इंसान धार्मिकता से ज़्यादा भलाई की तरफ आकर्षित होते हैं। (रोमियों 5:7) इसमें कोई शक नहीं कि एक धर्मी इंसान व्यवस्था की माँगों का वफादारी से पालन करेगा, मगर एक भला इंसान उससे दो कदम आगे रहेगा। वह पहल करता है, और मौके तलाशकर दूसरों के फायदे के लिए काम करता है। जैसा हम आगे देखेंगे, यहोवा इस मायने में वाकई बहुत भला है। ज़ाहिर है कि ऐसी भलाई यहोवा के असीम प्यार से उमड़कर आती है।
5-7. यीशु ने “भला गुरु” कहलाने से इनकार क्यों किया, और ऐसा करके वह किस अहम सच्चाई को पुख्ता कर रहा था?
5 यहोवा ने जैसे भलाई दिखायी है, वैसे और किसी ने नहीं दिखायी। यीशु की मौत से कुछ ही समय पहले एक आदमी उसके पास आया और उसे “भले गुरु” कहकर एक सवाल पूछा। यीशु ने जवाब दिया: “मुझे भला क्यों कहते हो? ईश्वर को छोड़ कोई भला नहीं।” (मरकुस 10:17, 18, बुल्के बाइबल) यह जवाब सुनकर शायद आप उलझन में पड़ जाएँ। यीशु ने उस आदमी की बात को गलत क्यों बताया? क्या वह असल में “भला गुरु” नहीं था?
6 ज़ाहिर है कि यह आदमी यीशु की चापलूसी करते हुए इन शब्दों यानी ‘भले गुरु’ को एक उपाधि की तरह इस्तेमाल कर रहा था। यीशु ने अपनी मर्यादा में रहकर ऐसी महिमा अपने स्वर्गीय पिता को दी जो भलाई करने में सबसे महान, सबसे श्रेष्ठ है। (नीतिवचन 11:2) इसके अलावा, यीशु यहाँ एक बहुत ही अहम सच्चाई को पुख्ता कर रहा था। वह यह कि भलाई का सर्वोत्तम स्तर अकेला यहोवा है। सारे जहान में सिर्फ उसी को यह तय करने का हक है कि भला क्या है और बुरा क्या। आदम और हव्वा ने बगावत करके भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल खाया, और परमेश्वर के इस हक को हथियाना चाहा। मगर यीशु उनके जैसा नहीं है। वह बड़ी नम्रता से, अपने पिता के स्तर ठहराने के इस हक की इज़्ज़त करता है।
7 इसके अलावा, यीशु जानता था कि जो कुछ भला है, अच्छा है वह यहोवा की तरफ से आता है। वही ‘हर एक अच्छे वरदान और हर एक उत्तम दान’ का दाता है। (याकूब 1:17) आइए अब देखें कि यहोवा की भलाई उसकी उदारता से कैसे ज़ाहिर होती है।
यहोवा की अपार भलाई का सबूत
8. यहोवा ने सब इंसानों के साथ कैसे भलाई की है?
8 इस धरती पर पैदा होनेवाले हर इंसान ने यहोवा की भलाई से फायदा उठाया है। भजन 145:9 कहता है: “यहोवा सभों के लिये भला है।” (तिरछे टाइप हमारे।) यहोवा सभी के साथ भलाई करता है, इसकी कुछ मिसालें क्या हैं? बाइबल कहती है: “उस ने अपने आप को बे-गवाह न छोड़ा; किन्तु वह भलाई करता रहा, और आकाश से वर्षा और फलवन्त ऋतु देकर, तुम्हारे मन को भोजन और आनन्द से भरता रहा।” (प्रेरितों 14:17) क्या कभी लज़ीज़ खाना खाकर आपका मन खुश हुआ है? अगर यहोवा ने भलाई दिखाते हुए इस धरती पर पानी को हमेशा साफ और ताज़ा करने का जल-चक्र और ‘फलवन्त ऋतुएं’ न बनायी होतीं जिसकी वजह से ढेर सारा भोजन पैदा होता है, तो हमें एक वक्त की रोटी भी नहीं मिलती। यहोवा ने ऐसी भलाई सिर्फ उन लोगों के साथ नहीं की जो उससे प्यार करते हैं, बल्कि सभी के साथ की है। यीशु ने कहा: “वह भलों और बुरों दोनों पर अपना सूर्य उदय करता है, और धर्मियों और अधर्मियों दोनों पर मेंह बरसाता है।”—मत्ती 5:45.
यहोवा तुम्हें ‘आकाश से वर्षा और फलवन्त ऋतुएं देता है’
9. सेब की मिसाल से यहोवा की भलाई कैसे नज़र आती है?
9 सूरज, बारिश और फलवंत ऋतुओं से, इंसानों को लगातार इतने बढ़िया वरदान इतनी उदारता से दिए जाते हैं कि वे कई बार इसकी कदर ही नहीं करते। ज़रा सेब की मिसाल लीजिए। धरती के सभी हलके ठंडे इलाकों में पाया जानेवाला यह एक आम फल है। मगर इसकी खूबसूरती देखने लायक है, खाने में यह फल लज़ीज़ होता है और इसमें ताज़गी देनेवाले रस के साथ ज़रूरी पौष्टिक तत्त्व पाए जाते हैं। क्या आप जानते हैं कि सारी दुनिया में सेबों की करीब 7,500 किस्में पायी जाती हैं, जिनका रंग लाल, सुनहरा, पीला और हरा होता है और इसका आकार अंगूर के बड़े दाने से लेकर, बड़े संतरे जितना हो सकता है। अगर आप सेब का बीज हाथ में लें, तो बेहद छोटा दिखता है। मगर इसी में से दुनिया का एक सबसे खूबसूरत पेड़ उगता है। (श्रेष्ठगीत 2:3) हर वसंत में सेब के पेड़ पर फूलों का एक सुंदर ताज सजता है; और हर पतझड़ में इसमें फल आता है। हर साल, 75 सालों तक, सेब का एक आम पेड़ इतने फल देता है कि उससे 19 किलो वज़न के 20 बक्से भरे जा सकते हैं!
इस छोटे से बीज से एक ऐसा पेड़ उगता है, जो बरसों तक फल देता है और लोगों के दिलों को खुश करता है
10, 11. हमारी इंद्रियाँ परमेश्वर की भलाई कैसे ज़ाहिर करती हैं?
10 अपनी असीम भलाई की वजह से, यहोवा ने हमें “अद्भुत रीति से रचा” शरीर दिया है, जिसमें ऐसी इंद्रियाँ हैं जो हमें उसकी रचनाओं को समझने और उनसे खुशी पाने में मदद देती हैं। (भजन 139:14) इस अध्याय की शुरूआत में बताए गए नज़ारों के बारे में एक बार फिर से सोचिए। ऐसे मौकों पर कौन-से नज़ारे हमें खुशियों के पल दे जाते हैं? किलकारियाँ मारते बच्चे के सुर्ख गाल। खेतों पर बरसती मूसलाधार बारिश। ढलते सूरज की किरणों की लाल, सुनहरी और नीली आभा। इंसान की आँख को 3,00,000 अलग-अलग रंगों की पहचान करने के काबिल बनाया गया है! और सुनने की शक्ति से हम यह जान सकते हैं कि हमारे किसी अज़ीज़ की आवाज़ है, या पेड़ों की पत्तियों से निकलनेवाली सरसराती हवा की या नन्हे से बच्चे की खुशी से भरी किलकारी की। ऐसे नज़ारे और ऐसी आवाज़ें हमें क्यों अच्छी लगती हैं? बाइबल कहती है: “सुनने के लिये कान और देखने के लिये जो आंखें हैं, उन दोनों को यहोवा ने बनाया है।” (नीतिवचन 20:12) मगर यह तो हमारी इंद्रियों में से बस दो की बात हुई।
11 सूंघने की शक्ति यहोवा की भलाई का एक और सबूत है। इंसान की नाक लगभग 10,000 अलग-अलग किस्म की गंध पहचान सकती है। सिर्फ चंद मिसालों पर ही गौर कीजिए: आपके मनपसंद खाने के पकने की, फूलों की, गिरी हुई पत्तियों की, आग से निकलते हलके धुएं की खुशबू। और स्पर्श के एहसास की वजह से आप हवा के हलके झोंकों को अपने चेहरे को सहलाता हुआ महसूस कर सकते हैं, अपने किसी अज़ीज़ को गले लगाकर प्यार का एहसास पा सकते हैं, अपने हाथ में किसी ताज़े फल की चिकनाहट महसूस कर सकते हैं। जब आप उसमें चख मारते हैं, तो आपकी स्वाद की इंद्री काम करने लगती है। आपकी जीभ फल में मौजूद रसायनों के मिश्रण से पैदा होनेवाले तरह-तरह के स्वाद का मज़ा लेती है। जी हाँ, यहोवा के बारे में यह कहने की हमारी पास हर वजह है: “तेरी भलाई क्या ही बड़ी है जो तू ने अपने डरवैयों के लिये रख छोड़ी है!” (भजन 31:19) मगर यहोवा ने अपने डरवैयों के लिए भलाई कैसे “रख छोड़ी” है?
भलाई जिसके फायदे सदा तक मिलते रहेंगे
12. यहोवा के कौन-से इंतज़ाम सबसे ज़्यादा ज़रूरी हैं, और क्यों?
12 यीशु ने कहा: “लिखा है कि मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं, परन्तु हर एक वचन से जो परमेश्वर के मुख से निकलता है जीवित रहेगा।” (मत्ती 4:4) वाकई, हमारे लिए यहोवा के आध्यात्मिक इंतज़ाम उसके भौतिक इंतज़ामों से ज़्यादा फायदेमंद हैं, क्योंकि इनसे अनंत जीवन हासिल होता है। इस किताब के अध्याय 8 में, हमने देखा कि यहोवा ने इन अंतिम दिनों में अपनी बहाल करने की शक्ति का इस्तेमाल करके आध्यात्मिक फिरदौस को बसाया है। उस फिरदौस की एक बड़ी खासियत है, उसमें भरपूर आध्यात्मिक भोजन का मिलना।
13, 14. (क) भविष्यवक्ता यहेजकेल ने दर्शन में क्या देखा, और इसका आज हमारे लिए क्या अर्थ है? (ख) यहोवा ने अपने वफादार सेवकों के लिए कौन-से जीवनदायी आध्यात्मिक इंतज़ाम किए हैं?
13 बाइबल में बहाली की खास भविष्यवाणियों में से एक यहेजकेल की भविष्यवाणी है जिसमें उसे बहाल किए गए आलीशान मंदिर का दर्शन दिखाया गया। उस मंदिर में से पानी की एक धारा बहती थी, जो इतनी चौड़ी और गहरी होती गयी कि आखिरकार एक “नदी” बन गयी। जहाँ कहीं से यह नदी गुज़रती थी, ढेरों फायदे पहुँचाती थी। नदी के किनारों पर ऐसे पेड़ फलते-फूलते थे जिनसे लोगों को खाना मिलता था और जिनसे वे चंगे होते थे। और यह नदी, मृत सागर में भी जो पहले बेजान और नमक से भरा था, जीवन ले आयी और इसमें जीव-जंतु फलने-फूलने लगे! (यहेजकेल 47:1-12) मगर इस सबका मतलब क्या था?
14 इस दर्शन का मतलब था कि यहोवा शुद्ध उपासना का अपना इंतज़ाम फिर से शुरू करेगा, और यहेजकेल के दर्शन में इसे एक मंदिर से दर्शाया गया था। दर्शन की उस नदी की तरह, जीवन के लिए परमेश्वर के इंतज़ाम उसके लोगों तक पहुँचेंगे और दिनोंदिन इनकी मात्रा बढ़ती चली जाएगी। सन् 1919 में शुद्ध उपासना के बहाल होने के समय से, यहोवा ने अपने लोगों को जीवनदायी इंतज़ामों की आशीष दी है। कैसे? बाइबलें, बाइबल की समझ देनेवाली किताबें, सभाएँ और अधिवेशन, इन सभी के ज़रिए लाखों-करोड़ों लोगों तक अहम सच्चाइयाँ पहुँचायी गयी हैं। इनके ज़रिए यहोवा ने जीवन के लिए अपने सबसे अहम इंतज़ाम के बारे में लोगों को सिखाया है—यानी मसीह का छुड़ौती बलिदान, जो इंसानों के लिए यहोवा के आगे शुद्ध ठहराया जाना मुमकिन बनाता है और ऐसे सभी लोगों को अनंत जीवन की आशा देता है जो सही मायनों में परमेश्वर से प्रेम करते हैं और उसका भय मानते हैं।a इसलिए, इन अंतिम दिनों के दौरान जहाँ दुनिया में हर तरफ आध्यात्मिक अकाल पड़ा हुआ है, यहोवा के लोग आध्यात्मिक दावत का लुत्फ उठाते हैं।—यशायाह 65:13.
15. मसीह के हज़ार साल के राज्य के दौरान, किस मायने में वफादार इंसानों की ओर यहोवा की भलाई की धारा बहती चली आएगी?
15 मगर यहेजकेल के दर्शन में दिखायी गयी नदी, इस पुरानी दुनिया का अंत होने पर बहना बंद नहीं कर देती। इसके उलटे, मसीह के हज़ार साल के राज्य के दौरान यह बहुतायत में और भी बड़ी महाधारा बनकर बहेगी। फिर, मसीहाई राज्य के ज़रिए यहोवा, यीशु के बलिदान की पूरी कीमत को लागू करते हुए, धीरे-धीरे वफादार इंसानों को सिद्ध बनाएगा। तब हम यहोवा की भलाई देखकर कैसा आनंद मनाएँगे!
यहोवा की भलाई के कुछ और पहलू
16. बाइबल कैसे दिखाती है कि यहोवा की भलाई में दूसरे गुण भी शामिल हैं, और इनमें से कुछ गुण कौन-से हैं?
16 यहोवा की भलाई में सिर्फ उदारता का गुण शामिल नहीं। परमेश्वर ने मूसा को बताया था: “मैं तेरे सम्मुख होकर चलते हुए तुझे अपनी सारी भलाई दिखाऊंगा, और तेरे सम्मुख यहोवा नाम का प्रचार करूंगा।” इसी में वृत्तांत आगे कहता है: “यहोवा उसके साम्हने होकर यों प्रचार करता हुआ चला, कि यहोवा, यहोवा, ईश्वर दयालु और अनुग्रहकारी [“सज्जन,” NW], कोप करने में धीरजवन्त, और अति करुणामय और सत्य।” (निर्गमन 33:19; 34:6) तो फिर, यहोवा की भलाई में बहुत-से बढ़िया गुण शामिल हैं। आइए इनमें से सिर्फ दो पर गौर करें।
17. सज्जनता क्या है, और यहोवा ने इसे अदना इंसानों से पेश आते वक्त कैसे दिखाया है?
17 “सज्जन।” यह गुण हमें बताता है कि यहोवा अपने बनाए हुए प्राणियों के साथ किस तरह अदब से और एक दोस्त की तरह पेश आता है। अकसर ताकतवर लोग तानाशाह होते हैं, वे रूखे और बेरहम होते हैं और दूसरों पर ज़ुल्म ढाते हैं। मगर यहोवा ऐसा बिलकुल नहीं है, बल्कि वह कोमलता और प्यार के साथ हमसे पेश आता है। मिसाल के लिए, यहोवा ने अब्राम से कहा: “आंख उठाकर जिस स्थान पर तू है वहां से उत्तर-दक्खिन, पूर्व-पच्छिम, चारों ओर दृष्टि कर।” (उत्पत्ति 13:14) बाइबल विद्वान कहते हैं, मूल इब्रानी में इस आयत के कुछ शब्द ऐसे हैं जो आज्ञा को एक विनम्र गुज़ारिश बना देते हैं। इसके अलावा, ऐसी और भी कई आयतें हैं। (उत्पत्ति 31:12; यहेजकेल 8:5) ज़रा सोचिए तो, सारे जहान का महाराजा अदना इंसानों से बड़ी नम्रता से गुज़ारिश करता है! जिस दुनिया में कठोरता, बदतमीज़ी और दूसरों को कुचलकर खुद आगे बढ़ने की भावना इतनी आम हो गयी है, उसमें हमारे परमेश्वर यहोवा की सज्जनता देखकर क्या हमें ताज़गी नहीं मिलती?
18. यहोवा किस मायने में ‘अति सत्य’ है, और इन शब्दों से हमारा भरोसा क्यों बढ़ता है?
18 ‘अति सत्य।’ बेईमानी आज दुनिया का दस्तूर बन चुकी है। मगर बाइबल हमें याद दिलाती है: “ईश्वर मनुष्य नहीं, कि झूठ बोले।” (गिनती 23:19) दरअसल, तीतुस 1:2 कहता है कि “परमेश्वर . . . झूठ बोल नहीं सकता।” (तिरछे टाइप हमारे।) यहोवा इतना भला है कि वह ऐसा कभी कर ही नहीं सकता। इसलिए, यहोवा के वादे पूरी तरह भरोसे के लायक हैं; उसके वचन पूरे होकर ही रहते हैं। यहोवा को “सत्यवादी ईश्वर” भी कहा गया है। (भजन 31:5) वह न सिर्फ झूठ से दूर रहता है, बल्कि ढेर सारी सच्चाइयाँ लोगों तक पहुँचाता है। वह सबसे लुक-छिपकर, बिना किसी को कुछ बताए या खुफिया तरीके से काम नहीं करता; इसके बजाय वह बड़ी उदारता से अपने वफादार सेवकों को, अपनी बुद्धि के अथाह भंडार से ज्ञान की रोशनी देता है।b वह उन्हें यह भी सिखाता है कि जो सच्चाइयाँ उसने उन्हें दी हैं उनके मुताबिक कैसे जीएँ, ताकि वे ‘सत्य पर चलते रहें।’ (3 यूहन्ना 3) आम तौर पर, यहोवा की भलाई का हममें से हरेक पर कैसा असर होना चाहिए?
“प्रभु की भलाई के कारण उनके मुख पर रौनक होगी”
19, 20. (क) शैतान ने यहोवा की भलाई पर हव्वा के भरोसे को कैसे कमज़ोर करने की कोशिश की, और इसका नतीजा क्या निकला? (ख) यहोवा की भलाई का हम पर कैसा असर होना चाहिए, और क्यों?
19 जब शैतान ने, अदन के बाग में हव्वा को लुभाया, तो उसने सबसे पहले बड़ी चालाकी से यहोवा की भलाई पर उसके भरोसे को कमज़ोर किया। यहोवा ने आदम से कहा था: “तू बाटिका के सब वृक्षों का फल बिना खटके खा सकता है।” उस बाग में हज़ारों पेड़ थे जिससे वह बाग हरा-भरा और बड़ा सुंदर लगता था, मगर उनमें से सिर्फ एक पेड़ का फल खाने से यहोवा ने उन्हें मना किया। फिर भी, ध्यान दीजिए कि शैतान ने हव्वा से पहला सवाल किन शब्दों में पूछा: “क्या सच है, कि परमेश्वर ने कहा, कि तुम इस बाटिका के किसी वृक्ष का फल न खाना?” (उत्पत्ति 2:9, 16; 3:1) शैतान ने यहोवा के शब्द इस तरह तोड़-मरोड़कर पेश किए ताकि हव्वा यह सोचने लगे कि यहोवा उन्हें किसी चीज़ से दूर रख रहा है। अफसोस, उसकी यह चाल कामयाब हो गयी। हव्वा के पास जो कुछ था वह सब यहोवा का दिया हुआ था। फिर भी, वह परमेश्वर की भलाई पर शक करने लगी और उसी के नक्शे-कदम पर उसकी आनेवाली बहुत-सी संतानें भी चलीं।
20 हम जानते हैं कि ऐसा शक इंसान पर कितना ज़्यादा दुःख और कितनी विपत्तियाँ लाया है। इसलिए आइए हम यिर्मयाह 31:12 (नयी हिन्दी बाइबिल) के इन शब्दों को अपने दिल में बसा लें: “प्रभु की भलाई के कारण उनके मुख पर रौनक होगी।” वाकई, प्रभु यहोवा की भलाई से सचमुच हमारे चेहरे पर खुशी की रौनक आनी चाहिए। हमें कभी अपने परमेश्वर के इरादों पर शक नहीं करना चाहिए, जो भलाई से पूरी तरह भरपूर है। हम उस पर पूरा-पूरा भरोसा कर सकते हैं, क्योंकि वह उन लोगों के लिए जो उससे प्यार करते हैं, सिर्फ भलाई ही चाहता है।
21, 22. (क) कौन-से कुछ तरीकों से आप यहोवा की भलाई के लिए उसका एहसान मानना चाहेंगे? (ख) अगले अध्याय में हम किस गुण पर चर्चा करेंगे और यह गुण भलाई से कैसे अलग है?
21 इसके अलावा, हमें बेहद खुशी होती है जब हमें परमेश्वर की भलाई के बारे में दूसरों को बताने का मौका मिलता है। यहोवा के लोगों के बारे में भजन 145:7 कहता है: “लोग तेरी बड़ी भलाई का स्मरण करके उसकी चर्चा करेंगे।” ज़िंदगी के हर दिन हम किसी-न-किसी तरह यहोवा की भलाई से फायदा पाते हैं। तो क्यों न हम रोज़ यहोवा को उसकी भलाई के लिए धन्यवाद देने की आदत डाल लें और जहाँ तक मुमकिन हो स्पष्ट शब्दों में बताएँ कि उसकी भलाई के लिए हम उसका कितना एहसान मानते हैं? इस भलाई के गुण के बारे में सोचते रहने, हर दिन यहोवा को इसके लिए धन्यवाद देने, और दूसरों को इसके बारे में बताने से हमें अपने भले परमेश्वर की तरह बनने में मदद मिलेगी। यहोवा की तरह भलाई करने के तरीके ढूँढ़ना, हमें उसके और करीब लाएगा। बुज़ुर्ग प्रेरित यूहन्ना ने लिखा: “हे प्रिय, बुराई के नहीं, पर भलाई के अनुयायी हो, जो भलाई करता है, वह परमेश्वर की ओर से है।”—3 यूहन्ना 11.
22 यहोवा की भलाई दूसरे गुणों से जुड़ी हुई है। मिसाल के लिए, यहोवा “निरन्तर प्रेम-कृपा” या वफादारी से भरपूर है। (निर्गमन 34:6, NW) यहोवा की वफादारी का गुण, उसकी भलाई की तरह सबके लिए नहीं है, बल्कि वह सिर्फ कुछ खास लोगों के लिए है। यहोवा यह गुण खासकर अपने वफादार सेवकों के लिए दिखाता है। अगले अध्याय में हम सीखेंगे कि वह यह कैसे करता है।
a यहोवा की भलाई की सबसे बढ़िया मिसाल, छुड़ौती के अलावा और कोई नहीं हो सकती। क्योंकि अपने करोड़ों आत्मिक प्राणियों में से, यहोवा ने अपने एकलौते पुत्र को हमारी खातिर जान देने के लिए चुना।
b बाइबल, सच्चाई को उजियाले के साथ जोड़ती है और यह सही भी है। भजनहार ने गीत गाया: “अपने प्रकाश और अपनी सच्चाई को भेज।” (भजन 43:3) जो यहोवा से सिखलाए जाना या उससे ज्ञान की रोशनी पाना चाहते हैं, उन पर वह भरपूर आध्यात्मिक रोशनी चमकाता है।—2 कुरिन्थियों 4:6; 1 यूहन्ना 1:5.
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“केवल तू ही वफादार है”यहोवा के करीब आओ
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अध्याय 28
“केवल तू ही वफादार है”
1, 2. हम यह क्यों कह सकते हैं कि राजा दाऊद विश्वासघात के बारे में बहुत अच्छी तरह जानता था?
राजा दाऊद बहुत अच्छी तरह जानता था कि विश्वासघात क्या होता है। उसके राज में मुसीबतों से भरा एक वक्त ऐसा आया जब उसके अपने ही देश के लोगों ने उसके खिलाफ साज़िश रची। इसके अलावा, दाऊद के साथ कुछ ऐसे लोगों ने विश्वासघात किया जिनसे हम उसके सबसे अज़ीज़ साथी होने की उम्मीद करते हैं। दाऊद की पहली पत्नी, मीकल को ही लीजिए। पहले, वह “दाऊद से प्रीति” करती थी, ज़ाहिर है कि वह राजकाज के काम में उसका साथ देती होगी। मगर बाद में, वह “उसे मन ही मन तुच्छ” समझने लगी, यहाँ तक कि वह दाऊद को ऐसा समझने लगी “जैसा कोई निकम्मा” हो।—1 शमूएल 18:20; 2 शमूएल 6:16, 20.
2 एक और था, दाऊद का निजी सलाहकार, अहीतोपेल। उसकी सलाह की इतनी इज़्ज़त की जाती थी मानो वह वचन सीधे यहोवा की ओर से हो। (2 शमूएल 16:23) दाऊद उसे अपना भरोसेमंद हमराज़ समझता था, मगर उसी ने आखिर में गद्दारी की और उसके खिलाफ बगावत करनेवालों के साथ जा मिला। और दाऊद के खिलाफ साज़िश रचनेवालों का सरदार कौन था? दाऊद का अपना बेटा, अबशलोम! उस चालाक और मौकापरस्त बेटे ने “इस्राएली मनुष्यों के मन को हर लिया,” और दाऊद के खिलाफ खुद राजा होने का ऐलान किया। अबशलोम की बगावत ने इतनी तेज़ी पकड़ ली कि राजा दाऊद को मजबूरन अपनी जान बचाने के लिए भागना पड़ा।—2 शमूएल 15:1-6, 12-17.
3. दाऊद को किस बात का भरोसा था?
3 क्या ऐसा कोई भी नहीं था जो दाऊद का वफादार रहा हो? मुसीबतों के इस दौर में, हर घड़ी दाऊद को एहसास था कि कोई है जो सचमुच अब तक पूरी वफादारी से उसका साथ दे रहा है। कौन? कोई और नहीं बल्कि खुद यहोवा परमेश्वर। दाऊद ने यहोवा के बारे में कहा: “किसी वफादार के साथ तू वफादारी से पेश आएगा।” (2 शमूएल 22:26, NW) वफादारी क्या है, और इस गुण की सबसे उम्दा मिसाल हमें यहोवा में कैसे मिलती है?
वफादारी क्या है?
4, 5. (क) “वफादारी” क्या है? (ख) बेजान चीज़ों के विश्वासयोग्य होने में, और एक इंसान की वफादारी में क्या फर्क है?
4 इब्रानी शास्त्र में, “वफादारी” शब्द का मतलब ऐसी कृपा है जो बड़े प्यार से किसी के साथ जुड़ जाती है और तब तक उसका साथ नहीं छोड़ती, जब तक उसके बारे में उसका मकसद पूरा न हो जाए। वफादार इंसान प्यार करता है।a गौर करने लायक बात है कि भजनहार ने चंद्रमा को ‘आकाशमण्डल का विश्वासयोग्य साक्षी’ कहा, क्योंकि वह हर रात बिना नागा आसमान में दिखायी देता है। (भजन 89:37) इस मायने में, चाँद विश्वासयोग्य या भरोसे के लायक है। मगर चंद्रमा, किसी इंसान जैसी वफादारी नहीं दिखा सकता। वह क्यों? क्योंकि एक इंसान की वफादारी उसके प्रेम का सबूत होती है—और बेजान चीज़ें प्रेम नहीं कर सकतीं।
चंद्रमा को विश्वासयोग्य साक्षी कहा गया है, मगर सही मायनों में सिर्फ बुद्धिमान प्राणी यहोवा की तरह वफादारी दिखा सकते हैं
5 बाइबल में वफादारी के गुण में प्यार, स्नेह और लगाव भी शामिल है। वफादारी का होना ही इस बात का सबूत है कि यह जिसे दिखायी जाती है और जो वफादारी दिखाता है, वे एक रिश्ते में बंधे हुए हैं। यह वफादारी चार दिन की नहीं होती। यह सागर की उन लहरों की तरह नहीं, जो हवाओं के रुख के मुताबिक अपना रुख बदल देती हैं। इसके बजाय, वफादारी या सच्चे प्यार में वह स्थिरता, और वह मज़बूती होती है जो मुश्किल-से-मुश्किल बाधाओं से पार लगा सकती है।
6. (क) इंसानों में वफादारी की किस हद तक कमी है, और यह बाइबल में कैसे दिखाया गया है? (ख) वफादारी में क्या-क्या शामिल है, इसे जानने का सबसे बेहतरीन तरीका क्या है, और क्यों?
6 यह सच है कि ऐसी वफादारी आज बहुत कम देखने को मिलती है। आम तौर पर, संगी साथी ही एक-दूसरे को ‘बरबाद’ करने पर तुले होते हैं। और ऐसे वाकये बढ़ते जा रहे हैं जहाँ पति या पत्नी एक-दूसरे को छोड़ देते हैं। (नीतिवचन 18:24, किताब-ए-मुकद्दस; मलाकी 2:14-16) विश्वासघात इतना आम हो गया है कि हम भी भविष्यवक्ता मीका की तरह बोल पड़ते हैं: “भक्त [“वफादार,” NW] लोग पृथ्वी पर से नाश हो गए हैं।” (मीका 7:2) हालाँकि इंसान अकसर निरंतर प्रेम-कृपा या वफादारी दिखाने में नाकाम हो जाते हैं, मगर यहोवा यह गुण दिखाने में बेहतरीन मिसाल कायम करता है। दरअसल, अगर आप यह जानना चाहते हैं कि वफादारी दिखाने में क्या-क्या शामिल है, तो इसका सबसे बेहतरीन तरीका है यह जाँचना कि अपने प्रेम के इस लाजवाब पहलू को यहोवा कैसे ज़ाहिर करता है।
यहोवा की बेजोड़ वफादारी
7, 8. यह कैसे कहा जा सकता है कि केवल यहोवा ही वफादार है?
7 यहोवा के बारे में बाइबल कहती है: “केवल तू ही वफादार है।” (प्रकाशितवाक्य 15:4, NW) लेकिन यह कैसे हो सकता है? क्या कई बार इंसानों और स्वर्गदूतों ने भी बढ़िया तरीके से अपनी वफादारी का सबूत नहीं दिया है? (अय्यूब 1:1; प्रकाशितवाक्य 4:8) और यीशु मसीह के बारे में क्या? क्या वह परमेश्वर का सबसे बड़ा “वफादार जन” नहीं? (भजन 16:10, NW) तो फिर, यह कैसे कहा जा सकता है कि केवल यहोवा ही वफादार है?
8 सबसे पहले, हम यह न भूलें कि वफादारी, प्रेम का ही एक पहलू है। क्योंकि “परमेश्वर प्रेम है,” यानी इसका साक्षात् रूप, तो फिर उससे ज़्यादा और कौन है जो इस गुण को पूरी तरह से ज़ाहिर कर सकता है? (तिरछे टाइप हमारे; 1 यूहन्ना 4:8) सच है कि स्वर्गदूत और इंसान परमेश्वर के गुण ज़ाहिर कर सकते हैं, मगर सिर्फ यहोवा सर्वोत्तम तरीके से, परम सीमा तक वफादार है। “अति प्राचीन” होने के नाते, वह धरती पर या स्वर्ग में जीनेवाले किसी और प्राणी से ज़्यादा अरसे से निरंतर प्रेम-कृपा ज़ाहिर करता आया है। (दानिय्येल 7:9) यहोवा वफादारी का आदर्श है। वह जिस तरीके से यह गुण ज़ाहिर करता है, उसकी बराबरी और कोई प्राणी नहीं कर सकता। आइए कुछ मिसालों पर गौर करें।
9. कैसे यहोवा ‘अपने सब कामों में वफादार है’?
9 यहोवा “अपने सब कामों में वफादार है।” (भजन 145:17, NW) किस तरह? भजन 136 में इसका जवाब दिया गया है। वहाँ, यहोवा के कई उद्धार के कामों का ज़िक्र है, जिसमें लाल सागर से इस्राएलियों का हैरतअंगेज़ छुटकारा भी शामिल है। गौर करने लायक बात है, इस भजन की हर आयत में इन शब्दों पर ज़ोर दिया गया है: “उसकी निरंतर प्रेम-कृपा [या, वफादारी] सदा की है।” (NW) पेज 289 पर दिए मनन के लिए सवालों में यह भजन भी शामिल किया गया है। जब आप उन आयतों को पढ़ेंगे, तो आप उन अनगिनत तरीकों को देखकर हैरत में पड़ जाएँगे जिनके ज़रिए यहोवा ने अपने लोगों के लिए निरंतर प्रेम-कृपा ज़ाहिर की। जी हाँ, यहोवा अपने वफादार सेवकों की मदद की पुकार सुनकर और अपने ठहराए हुए वक्त पर कार्यवाही करके दिखाता है कि वह वफादार है। (भजन 34:6) जब तक यहोवा के सेवक उसके वफादार रहते हैं, तब तक उसका सच्चा प्यार या उनके लिए वफादारी कम नहीं होती।
10. यहोवा अपने स्तरों के मामले में वफादारी कैसे निभाता है?
10 इतना ही नहीं, यहोवा अपने स्तरों का पालन करने में भी अपने सेवकों से वफादारी निभाता है। यहोवा उन सनकी इंसानों की तरह नहीं है, जो जैसा मन किया वैसा करते हैं। सही क्या है और गलत क्या, इसके बारे में यहोवा अपने स्तरों को बदलता नहीं रहता। हज़ारों सालों से, भूतविद्या, मूर्तिपूजा और हत्या के बारे में उसका नज़रिया एक ही रहा है। उसने अपने भविष्यवक्ता यशायाह के ज़रिए कहा: “तुम्हारे बुढ़ापे में भी मैं वैसा ही बना रहूंगा।” (यशायाह 46:4) इसलिए, हम भरोसा कर सकते हैं कि जब हम चालचलन के मामले में परमेश्वर के वचन में पाए जानेवाले स्पष्ट निर्देशों को मानेंगे, तो इससे हमें लाभ होगा।—यशायाह 48:17-19.
11. मिसालें दीजिए कि कैसे यहोवा अपने वादों का पक्का है और वफादार है।
11 यहोवा अपने वादों को पूरा करके भी वफादारी निभाता है। जब वह कोई भविष्यवाणी करता है, तो वह हर हाल में पूरी होती है। इसलिए यहोवा ने कहा: “मेरा वचन . . . जो मेरे मुख से निकलता है; वह व्यर्थ ठहरकर मेरे पास न लौटेगा, परन्तु, जो मेरी इच्छा है उसे वह पूरा करेगा, और जिस काम के लिये मैं ने उसको भेजा है उसे वह सुफल करेगा।” (यशायाह 55:11) यहोवा अपने वचन को पूरा करके अपने लोगों से वफादारी निभाता है। वह उनसे किसी ऐसी बात का इंतज़ार नहीं करवाता जिसे पूरा करने का उसका कोई इरादा नहीं। इस मामले में यहोवा का रिकॉर्ड ऐसा बेदाग है कि उसका सेवक यहोशू यह कह सका: “जितनी भलाई की बातें यहोवा ने इस्राएल के घराने से कही थीं उस में से कोई बात भी न छूटी; सब की सब पूरी हुई।” (यहोशू 21:45) तो फिर, हम भरोसा रख सकते हैं कि हमें इस बात को लेकर कभी निराश नहीं होना पड़ेगा कि यहोवा अपना वादा पूरा करने में नाकाम रहा।—यशायाह 49:23; रोमियों 5:5.
12, 13. किन तरीकों से यहोवा की निरंतर प्रेम-कृपा “सदा की है”?
12 जैसे पहले बताया गया था, बाइबल कहती है कि यहोवा की निरंतर प्रेम-कृपा “सदा की है।” (भजन 136:1) वह कैसे? पहले तो इस तरह कि यहोवा जब पापों को माफ करता है तो सदा के लिए करता है। जैसा अध्याय 26 में बताया गया है, जिन पिछली गलतियों के लिए एक इंसान को माफ किया गया है, यहोवा उन्हें दोबारा नहीं उठाता। हम “सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं,” इसलिए हममें से हरेक को एहसान मानना चाहिए कि यहोवा की निरंतर प्रेम-कृपा सदा की है।—रोमियों 3:23.
13 मगर, एक और मायने में यहोवा की निरंतर प्रेम-कृपा सदा की है। उसका वचन कहता है कि धर्मी जन “उस वृक्ष के समान है, जो बहती नालियों के किनारे लगाया गया है। और अपनी ऋतु में फलता है, और जिसके पत्ते कभी मुरझाते नहीं। इसलिये जो कुछ वह पुरुष करे वह सफल होता है।” (भजन 1:3) ऐसे हरे-भरे पेड़ की कल्पना कीजिए जिसके पत्ते कभी नहीं मुरझाते! उसी तरह, अगर हम सही मायनों में परमेश्वर के वचन से प्रसन्नता पाते हैं, तो हमारी ज़िंदगी लंबी, शांतिमय और फलदायी होगी। यहोवा अपने विश्वासयोग्य सेवकों को वफादारी निभाते हुए जो आशीषें देता है, वे सदा तक रहती हैं। सचमुच, यहोवा जो धर्मी नया संसार लाएगा उसमें आज्ञाकारी इंसान सदा तक उसकी निरंतर प्रेम-कृपा का आनंद ले सकेंगे।—प्रकाशितवाक्य 21:3, 4.
यहोवा ‘अपने वफादार जनों को न तजेगा’
14. यहोवा अपने सेवकों की वफादारी के लिए कदरदानी कैसे दिखाता है?
14 यहोवा ने कई बार अपनी वफादारी का सबूत दिया है। और क्योंकि यहोवा ज़रा भी बदलता नहीं, इसलिए अपने वफादार सेवकों के लिए उसकी वफादारी कभी कम नहीं होती। भजनहार ने लिखा: “मैं लड़कपन से लेकर बुढ़ापे तक देखता आया हूं; परन्तु न तो कभी धर्मी को त्यागा हुआ, और न उसके वंश को टुकड़े मांगते देखा है। क्योंकि यहोवा न्याय से प्रीति रखता; और अपने भक्तों [“वफादार जनों,” NW] को न तजेगा।” (भजन 37:25, 28) यह सच है कि सिरजनहार होने के नाते, यहोवा हमारी उपासना पाने का हकदार है। (प्रकाशितवाक्य 4:11) फिर भी, अपनी वफादारी की वजह से, यहोवा हमारे विश्वास के कामों को याद रखता है।—मलाकी 3:16, 17.
15. समझाइए कि कैसे इस्राएल के साथ यहोवा का व्यवहार उसकी वफादारी को ज़ाहिर करता है।
15 यहोवा अपनी निरंतर प्रेम-कृपा की वजह से, मुसीबत में पड़े अपने लोगों की मदद के लिए बार-बार आगे आता है। भजनहार हमें बताता है: “वह अपने भक्तों [“वफादार जनों,” NW] के प्राणों की रक्षा करता, और उन्हें दुष्टों के हाथ से बचाता है।” (भजन 97:10) इस्राएल जाति के साथ उसके व्यवहार पर गौर कीजिए। चमत्कार करके उसने उन्हें लाल सागर पार कराया और छुटकारा दिलाया। इस छुटकारे के बाद, इस्राएलियों ने यहोवा के लिए गीत में यह कहा: “अपनी करूणा [“निरंतर प्रेम-कृपा,” या “सच्चे प्यार,” NW, फुटनोट] से तू ने अपनी छुड़ाई हुई प्रजा की अगुवाई की है।” (निर्गमन 15:13) लाल सागर पर मिला छुटकारा, वाकई यहोवा के सच्चे प्यार या वफादारी का सबूत था। इसलिए मूसा ने इस्राएलियों से कहा: “यहोवा ने जो तुम से स्नेह करके तुम को चुन लिया, इसका कारण यह नहीं था कि तुम गिनती में और सब देशों के लोगों से अधिक थे, किन्तु तुम तो सब देशों के लोगों से गिनती में थोड़े थे; यहोवा ने जो तुम को बलवन्त हाथ के द्वारा दासत्व के घर में से, और मिस्र के राजा फ़िरौन के हाथ से छुड़ाकर निकाल लिया, इसका यही कारण है कि वह तुम से प्रेम रखता है, और उस शपथ को भी पूरी करना चाहता है जो उस ने तुम्हारे पूर्वजों से खाई थी।”—व्यवस्थाविवरण 7:7, 8.
16, 17. (क) इस्राएलियों की कैसी एहसानफरामोशी देखकर हम दंग रह जाते हैं, फिर भी यहोवा ने उन्हें करुणा कैसे दिखायी? (ख) ज़्यादातर इस्राएलियों ने कैसे दिखाया कि उनके लिए “बचने का कोई उपाय न रहा,” और इससे हमें क्या सबक सीखने को मिलता है?
16 बेशक, एक जाति के तौर पर इस्राएलियों ने यहोवा की निरंतर प्रेम-कृपा के लिए उसका एहसान नहीं माना, क्योंकि अपने छुटकारे के बाद वे यहोवा के “विरुद्ध अधिक पाप करते गए, और निर्जल देश में परमप्रधान के विरुद्ध उठते रहे।” (भजन 78:17) सदियों के दौरान, वे बार-बार बगावत करते रहे, यहोवा से मुँह मोड़कर झूठे देवी-देवताओं को और विधर्मी रस्मो-रिवाज़ों को मानते रहे, जिनकी वजह से वे और ज़्यादा भ्रष्ट होते गए। फिर भी, यहोवा ने उनके साथ अपनी वाचा नहीं तोड़ी। इसके बजाय, उसने अपने भविष्यवक्ता यिर्मयाह के ज़रिए अपने लोगों से गुज़ारिश की: “हे भटकनेवाली इस्राएल लौट आ, मैं तुझ पर क्रोध की दृष्टि न करूंगा; क्योंकि . . . मैं करुणामय [“वफादार,” NW] हूं।” (यिर्मयाह 3:12) लेकिन, जैसा हमने अध्याय 25 में कहा था, ज़्यादातर इस्राएलियों पर इसका कोई असर नहीं हुआ और उन्होंने अपने तौर-तरीकों को बदलने की ज़रूरत नहीं समझी। दरअसल, “वे परमेश्वर के दूतों को ठट्ठों में उड़ाते, उसके वचनों को तुच्छ जानते, और उसके नबियों की हंसी करते थे।” और इसका अंजाम क्या हुआ? आखिरकार, “यहोवा अपनी प्रजा पर ऐसा झुंझला उठा, कि बचने का कोई उपाय न रहा।”—2 इतिहास 36:15, 16.
17 हम इससे क्या सीखते हैं? यही कि यहोवा की वफादारी अंधी नहीं है, न ही कोई उसे धोखा दे सकता है। यह सच है कि यहोवा “निरंतर प्रेम-कृपा से भरपूर” (NW) है और जहाँ कहीं इसका आधार होता है, वहाँ दया दिखाने में उसे खुशी होती है। लेकिन, तब क्या जब पाप करनेवाला इस कदर दुष्ट हो चुका हो कि वह सुधर नहीं सकता? ऐसे मामले में, यहोवा अपने धर्मी स्तरों का पालन करता है और उसे दंड देता है। जैसे मूसा को बताया गया था, “दोषी को [यहोवा] किसी प्रकार निर्दोष न ठहराएगा।”—निर्गमन 34:6, 7.
18, 19. (क) यहोवा का दुष्टों को सज़ा देना भी कैसे अपने आप में वफादारी का काम है? (ख) यहोवा किस तरह अपने उन सेवकों की तरफ वफादारी दिखाता है, जिन्हें सता-सताकर मार डाला गया?
18 परमेश्वर जब दुष्टों को सज़ा देता है, तो यह भी अपने आप में वफादारी का एक काम है। कैसे? एक संकेत प्रकाशितवाक्य की किताब में उन आज्ञाओं में पाया जाता है जिन्हें यहोवा सात स्वर्गदूतों को देता है: “जाओ, परमेश्वर के प्रकोप के सातों कटोरों को पृथ्वी पर उंडेल दो।” जब तीसरा स्वर्गदूत अपना कटोरा “नदियों और पानी के सोतों पर” उंडेलता है, तो वे लहू बन जाते हैं। तब वह स्वर्गदूत यहोवा से कहता है: “हे पवित्र [“वफादार जन,” NW], जो है, और जो था, तू न्यायी है और तू ने यह न्याय किया। क्योंकि उन्हों ने पवित्र लोगों, और भविष्यद्वक्ताओं का लोहू बहाया था, और तू ने उन्हें लोहू पिलाया; क्योंकि वे इसी योग्य हैं।”—तिरछे टाइप हमारे; प्रकाशितवाक्य 16:1-6.
यहोवा वफादारी दिखाते हुए उन लोगों को याद करेगा और उनका पुनरुत्थान करेगा जो मौत तक उसके वफादार रहे
19 गौर कीजिए कि दंड के इस संदेश को सुनाते वक्त, बीच में वह स्वर्गदूत यहोवा को “वफादार जन” कहता है। क्यों? क्योंकि दुष्टों का विनाश करके, यहोवा अपने सेवकों से वफादारी निभा रहा है, जिनमें से बहुतों पर इतने ज़ुल्म ढाए गए कि उन्होंने दम तोड़ दिया। वफादारी का सबूत देते हुए, यहोवा ऐसों को अपनी याददाश्त में ज़िंदा रखता है। यहोवा की अभिलाषा है कि मरकर बिछड़ चुके इन वफादार जनों को एक बार फिर देखे, और बाइबल स्पष्ट कहती है कि उसका मकसद है कि ऐसों को पुनरुत्थान का प्रतिफल दे। (अय्यूब 14:14, 15) यहोवा के वफादार सेवक अगर मर भी जाएँ तौभी वह उन्हें नहीं भूलता। इसके बजाय, वे “उसके निकट सब जीवित हैं।” (लूका 20:37, 38) यहोवा का यह मकसद कि अपनी याद में बसे लोगों को फिर से ज़िंदा करे, उसकी वफादारी का एक ज़बरदस्त सबूत है।
बर्नाड लुइम्स (बाएँ) और वुल्फगैंग कुसरो (बीच में) को नात्ज़ियों ने मौत के घाट उतार दिया
मोसिज़ न्यामुसुआ (दाहिने) को एक राजनैतिक दल ने भालों से बेधकर मार डाला
यहोवा की वफादारी उद्धार का रास्ता खोल देती है
20. ‘दया के बरतन’ कौन हैं, और यहोवा उनकी तरफ वफादारी कैसे दिखाता है?
20 पूरे इतिहास में, यहोवा लाजवाब ढंग से वफादार इंसानों का वफादार रहा है। दरअसल, यहोवा ने ‘क्रोध के बरतनों को, जो विनाश के लिये तैयार किए गए थे बड़े धीरज से सहा’ है। क्यों? ताकि “दया के बरतनों पर जिन्हें उस ने महिमा के लिये पहिले से तैयार किया, अपने महिमा के धन को प्रगट” करे। (रोमियों 9:22, 23) ये ‘दया के बरतन,’ सही मन के वे लोग हैं जिन्हें पवित्र आत्मा से अभिषिक्त किया जाता है ताकि वे मसीह के साथ उसके राज्य में संगी वारिस हों। (मत्ती 19:28) दया के इन बरतनों के लिए उद्धार पाने का रास्ता खोलकर, यहोवा ने इब्राहीम के साथ वफादारी निभायी, जिससे उसने यह वाचा बाँधी थी: “पृथ्वी की सारी जातियां अपने को तेरे वंश के कारण धन्य मानेंगी: क्योंकि तू ने मेरी बात मानी है।”—उत्पत्ति 22:18.
यहोवा की वफादारी की वजह से, उसके सभी वफादार सेवकों को भविष्य के लिए एक पक्की आशा है
21. (क) यहोवा “बड़ी भीड़” के लिए वफादारी कैसे दिखाता है जिसे “बड़े क्लेश” से बचने की आशा है? (ख) यहोवा की वफादारी आपको क्या करने के लिए उभारती है?
21 यहोवा ऐसी ही वफादारी “बड़ी भीड़” के लोगों के लिए दिखाता है, जिन्हें “बड़े क्लेश” से पार निकलकर फिरदौस में सदा तक जीने की आशा है। (प्रकाशितवाक्य 7:9, 10, 14) हालाँकि यहोवा के सेवक असिद्ध हैं, फिर भी वह उन्हें फिरदौस में सदा तक जीने का मौका देकर उनकी तरफ वफादारी दिखाता है। वह ऐसा कैसे करता है? छुड़ौती के ज़रिए—जो यहोवा की वफादारी का सबसे महान सबूत है। (यूहन्ना 3:16; रोमियों 5:8) यहोवा की वफादारी उन लोगों को अपनी तरफ खींचती है, जिनके दिल धार्मिकता के भूखे-प्यासे हैं। (यिर्मयाह 31:3) यहोवा ने जो गहरी वफादारी दिखायी है और आगे भी जिस तरह दिखाएगा, उससे क्या आप उसके और भी करीब महसूस नहीं करते? हम परमेश्वर के करीब आना चाहते हैं, इसलिए आइए हम उसके प्यार का बदला प्यार से देने के लिए पूरी वफादारी के साथ उसकी सेवा करने का पक्का इरादा कर लें।
a दिलचस्पी की बात है कि 2 शमूएल 22:26 (NW) में जिस शब्द का अनुवाद “वफादारी” किया गया है, उसी शब्द का दूसरी जगहों पर “निरंतर प्रेम-कृपा” या “सच्चा प्यार” अनुवाद किया गया है।
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‘मसीह के प्रेम को जानो’यहोवा के करीब आओ
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अध्याय 29
‘मसीह के प्रेम को जानो’
1-3. (क) किस बात से यीशु को अपने पिता के जैसा होने के लिए उकसाया? (ख) यीशु के प्रेम के किन पहलुओं की हम जाँच करेंगे?
क्या आपने कभी एक छोटे लड़के को अपने पिता की तरह बनने की कोशिश करते देखा है? शायद वह अपने पिता की तरह चलने, बोलने के तरीके या उसके हाव-भाव की नक्ल करता है। कुछ वक्त के बाद, शायद यह लड़का अपने पिता के नैतिक और आध्यात्मिक उसूलों को भी अपना ले। जी हाँ, बेटा अपने पिता को इतना प्यार करता है कि वह उसी के जैसा बनना चाहता है।
2 यीशु और उसके स्वर्गीय पिता के बीच के रिश्ते के बारे में क्या? यीशु ने एक मौके पर कहा: “मैं पिता से प्रेम रखता हूं।” (यूहन्ना 14:31) यहोवा से उसका यह बेटा जितना प्यार करता है, उतना कोई और नहीं कर सकता। यह बेटा पिता के साथ, तब से है जब दुनिया के बाकी प्राणियों की रचना तक नहीं हुई थी। अपने पिता के लिए सच्ची श्रद्धा रखनेवाले इस बेटे को उसके प्यार ने उकसाया कि वह अपने पिता के जैसा बने।—यूहन्ना 14:9.
3 इस किताब के पिछले अध्यायों में, हम चर्चा कर चुके हैं कि यीशु कैसे शक्ति, बुद्धि और न्याय के गुण दिखाने में बिलकुल यहोवा जैसा है। मगर यीशु ने अपने पिता का प्रेम का गुण कैसे दिखाया? आइए हम यीशु के प्रेम के तीन पहलुओं की जाँच करें—दूसरों की खातिर कुरबान हो जाने की भावना, उसकी कोमल करुणा, और माफ करने की तत्परता।
“इस से बड़ा प्रेम किसी का नहीं”
4. यीशु ने इंसानों में, दूसरों की खातिर कुरबान हो जानेवाले प्रेम की सबसे बढ़िया मिसाल कैसे रखी?
4 यीशु, खुद को कुरबान करने की हद तक प्रेम दिखाने की बेजोड़ मिसाल है। खुद को कुरबान करने का मतलब है, निःस्वार्थ भाव से अपनी ज़रूरतों और चिंताओं से पहले दूसरों की ज़रूरतों और चिंताओं पर ध्यान देना। यीशु ने ऐसा प्रेम कैसे दिखाया? उसने खुद ही समझाया: “इस से बड़ा प्रेम किसी का नहीं, कि कोई अपने मित्रों के लिये अपना प्राण दे।” (यूहन्ना 15:13) यीशु ने खुशी-खुशी अपनी सिद्ध ज़िंदगी हमारे लिए कुरबान कर दी। किसी भी इंसान ने अब तक अपने प्यार का सबूत इस तरीके से नहीं दिया, यह उसके प्यार का सबसे महान सबूत था। मगर यीशु ने और भी कई तरीकों से दूसरों की खातिर कुरबान हो जानेवाला प्रेम दिखाया।
5. स्वर्ग छोड़कर इस धरती पर आना, क्यों परमेश्वर के एकलौते बेटे की तरफ से एक प्यार-भरी कुरबानी थी?
5 इंसान बनने से पहले, जब यीशु स्वर्ग में था, तो परमेश्वर का यह एकलौता बेटा स्वर्ग में खास सम्मान के ऊँचे पद पर था। उसका यहोवा के साथ और लाखों आत्मिक प्राणियों के साथ नज़दीकी रिश्ता था। ऐसे बढ़िया पद के बावजूद, इस प्यारे बेटे ने “अपने आप को . . . शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया।” (फिलिप्पियों 2:7) वह खुशी-खुशी एक ऐसे संसार में पापी इंसानों के बीच रहने को आया जो “दुष्ट के वश में पड़ा है।” (1 यूहन्ना 5:19) क्या यह परमेश्वर के पुत्र की तरफ से एक प्यार-भरी कुरबानी नहीं थी?
6, 7. (क) यीशु ने इस धरती पर अपनी सेवा के दौरान, किन तरीकों से खुद को कुरबान करनेवाला प्रेम दिखाया? (ख) यूहन्ना 19:25-27 में निःस्वार्थ प्रेम की कौन-सी दिल छू लेनेवाली मिसाल दर्ज़ है?
6 इस धरती पर अपनी सेवा के दौरान, यीशु ने अलग-अलग तरीकों से दूसरों की खातिर कुरबान होनेवाला प्यार दिखाया। वह पूरी तरह से निःस्वार्थ था। वह अपनी सेवा में इस कदर रमा हुआ था कि उसने वह सारा आराम त्याग दिया जो एक आम आदमी के लिए ज़रूरी है। उसने कहा: “लोमड़ियों के भट और आकाश के पक्षियों के बसेरे होते हैं; परन्तु मनुष्य के पुत्र के लिये सिर धरने की भी जगह नहीं है।” (मत्ती 8:20) यीशु एक हुनरमंद बढ़ई था, वह चाहता तो कुछ वक्त निकालकर अपने लिए एक अच्छा-सा घर बना सकता था या एक-से-बढ़कर-एक फर्नीचर बना सकता था जिसे बेचकर वह अपने लिए कुछ पैसा जमा कर सके। मगर उसने अपना हुनर, पैसा कमाने या सामान जोड़ने के लिए इस्तेमाल नहीं किया।
7 यूहन्ना 19:25-27 में, खुद को कुरबान करनेवाले प्यार की यीशु की एक दिल छू लेनेवाली मिसाल दर्ज़ है। ज़रा सोचिए कि जिस दिन यीशु मरा उस दोपहर को उसके दिल पर क्या बीत रही होगी और वह किन चिंताओं से घिरा हुआ होगा। सूली पर लटकाए जाने पर जब वह दर्द से तड़प रहा था, तब भी उसे अपने चेलों की, प्रचार काम की और खासकर अपनी खराई बनाए रखने की और उसके पिता पर इसके असर की चिंता सता रही थी। सचमुच, सब इंसानों के भविष्य का भार उसी के कंधों पर था! ऐसे में भी, मरने से कुछ पल पहले यीशु ने अपनी माँ मरियम के लिए परवाह दिखायी, जो इस वक्त तक शायद विधवा हो चुकी थी। यीशु ने प्रेरित यूहन्ना से कहा कि वह मरियम को अपनी माँ समझकर उसकी देखभाल करे और वह प्रेरित इसके बाद मरियम को अपने घर ले गया। इस तरह यीशु ने अपनी माँ की रोज़ी-रोटी और आध्यात्मिक ज़रूरतों का ख्याल रखे जाने का इंतज़ाम किया। निःस्वार्थ प्रेम दिखाने का कितना कोमल तरीका था यह!
‘उसने उन पर तरस खाया’
8. बाइबल में यीशु की करुणा समझाने के लिए इस्तेमाल होनेवाले यूनानी शब्द का मतलब क्या है?
8 अपने पिता की तरह, यीशु करुणामयी था। शास्त्र में यीशु को एक ऐसा इंसान बताया है जो मुसीबत में पड़े लोगों की जी-जान से मदद करता था। यीशु की करुणा समझाने के लिए, बाइबल में एक यूनानी शब्द इस्तेमाल किया गया है जिसका अनुवाद ‘तरस खाना’ किया है। एक विद्वान कहता है, “यह एक ऐसी . . . भावना है जो इंसान को गहराई तक झंझोड़ देती है। यूनानी भाषा में, करुणा की भावना के लिए यह सबसे ज़ोरदार शब्द है।” कुछ ऐसे हालात पर गौर कीजिए जिनमें यीशु की गहरी करुणा ने उसे कदम उठाने पर मजबूर किया।
9, 10. (क) किन हालात की वजह से, यीशु और उसके प्रेरितों ने एक एकांत जगह ढूँढ़ निकालनी चाही? (ख) जब भीड़ की वजह से एकांत न रहा, तो यीशु ने क्या किया, और क्यों?
9 आध्यात्मिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए प्रेरित। मरकुस 6:30-34 दिखाता है कि यीशु खासकर किस वजह से दूसरों पर तरस खाता था। इस नज़ारे को मन की आँखों से देखने की कोशिश कीजिए। प्रेरितों की खुशी का ठिकाना न था, क्योंकि उन्होंने अभी-अभी प्रचार का एक लंबा दौरा खत्म किया था। यीशु के पास वापस आकर उन्होंने बड़े उत्साह के साथ देखी-सुनी हर बात उसे बतायी। मगर वहाँ एक बड़ी भीड़ जमा हो गयी, जिसकी वजह से यीशु और उसके प्रेरितों को खाने तक की फुरसत नहीं मिली। यीशु जो हमेशा लोगों को ध्यान से देखता था, उसने देखा कि प्रेरित बहुत थक चुके हैं। उसने उनसे कहा: “तुम आप अलग किसी जंगली स्थान में आकर थोड़ा विश्राम करो।” नाव पर चढ़कर, वे गलील सागर के उत्तरी सिरे पर एक सुनसान जगह के लिए निकले। मगर भीड़ ने उन्हें जाते हुए देख लिया था। दूसरों ने भी उनके बारे में सुना। ये सब भी सागर के उत्तरी तट पर दौड़ते हुए, नाव के आने से पहले वहाँ पहुँच गए!
10 क्या यीशु इस बात से खीज उठा कि उन्हें फुरसत के दो पल भी न मिल सके? बिलकुल नहीं! हज़ारों की तादाद में जमा भीड़ को अपना इंतज़ार करते देख, यीशु का दिल पसीज गया। मरकुस ने लिखा: “उस ने निकलकर बड़ी भीड़ देखी, और उन पर तरस खाया, क्योंकि वे उन भेड़ों के समान थे, जिन का कोई रखवाला न हो; और वह उन्हें बहुत सी बातें सिखाने लगा।” यीशु ने इस भीड़ में हर इंसान की आध्यात्मिक ज़रूरतों को समझा। वे उन बेसहारा, भटकती भेड़ों जैसे थे, जिन्हें राह दिखाने या जिनकी रखवाली करनेवाला कोई चरवाहा न था। यीशु जानता था कि पत्थरदिल धर्मगुरु आम लोगों की ज़रा भी परवाह नहीं करते, जबकि होना तो यह चाहिए था कि वे उनकी रखवाली करते। (यूहन्ना 7:47-49) उसने लोगों पर तरस खाया, इसलिए वह उन्हें “परमेश्वर के राज्य” के बारे में सिखाने लगा। (लूका 9:11) गौर कीजिए कि भीड़ पर नज़र पड़ते ही यीशु ने उन पर तरस खाया, हालाँकि वह नहीं जानता था कि यह भीड़ उसकी शिक्षाओं को सुनकर उन पर अमल करेगी भी या नहीं। दूसरे शब्दों में, भीड़ को सिखाने के बाद उसके अंदर करुणा पैदा नहीं हुई, बल्कि इसी करुणा की वजह से यीशु ने लोगों को सिखाया।
‘उस ने हाथ बढ़ाया, और उसे छुआ’
11, 12. (क) बाइबल के ज़माने में कोढ़ियों के साथ कैसा सलूक किया जाता था, मगर जब यीशु के पास “कोढ़ से भरा हुआ” एक आदमी आया तो उसने क्या किया? (ख) यीशु के स्पर्श से उस कोढ़ी पर क्या असर हुआ होगा, और एक डॉक्टर के अनुभव से यह कैसे समझ में आता है?
11 तकलीफ दूर करने को प्रेरित। तरह-तरह के रोगों से पीड़ित लोग जानते थे कि यीशु में करुणा का गुण है, इसलिए वे उसके पास खिंचे चले आते थे। यह खासकर तब ज़ाहिर हुआ जब यीशु के पीछे भीड़-की-भीड़ चली आ रही थी और उसके पास “कोढ़ से भरा हुआ” एक आदमी आया। (लूका 5:12) बाइबल के ज़माने में, कोढ़ियों को बाकी लोगों से अलग रखा जाता था ताकि दूसरे इस बीमारी से अशुद्ध न हों। (गिनती 5:1-4) लेकिन, वक्त के गुज़रते रब्बियों ने कोढ़ के बारे में लोगों में कठोर रवैया पैदा कर दिया था और अपनी तरफ से सख्त नियम बना दिए थे।a लेकिन, गौर कीजिए कि यीशु उस कोढ़ी के साथ कैसे पेश आया: “एक कोढ़ी ने उसके पास आकर, उस से बिनती की, और उसके साम्हने घुटने टेककर, उस से कहा; यदि तू चाहे तो मुझे शुद्ध कर सकता है। उस ने उस पर तरस खाकर हाथ बढ़ाया, और उसे छूकर कहा; मैं चाहता हूं तू शुद्ध हो जा। और तुरन्त उसका कोढ़ जाता रहा, और वह शुद्ध हो गया।” (मरकुस 1:40-42) यीशु जानता था कि एक कोढ़ी का लोगों की भीड़ में मौजूद होना ही, व्यवस्था के मुताबिक गलत था। मगर उसे दुत्कारने के बजाय, यीशु ने गहरी भावना के साथ उसकी मदद करनी चाही। उसने ऐसा काम किया जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। यीशु ने उसे छुआ!
12 क्या आप सोच सकते हैं कि उस स्पर्श की उस कोढ़ी के लिए क्या अहमियत थी? इसे समझने के लिए, एक अनुभव पर गौर कीजिए। कोढ़ के विशेषज्ञ डॉ. पॉल ब्रैन्ड भारत के एक कोढ़ी के बारे में बताते हैं जिसका उन्होंने इलाज किया था। जाँच के दौरान, डॉक्टर ने कोढ़ी के कंधे पर हाथ रखा और एक अनुवादक के ज़रिए समझाया कि इलाज के लिए उस आदमी को क्या-क्या करना पड़ेगा। एकाएक वह कोढ़ी रोने लगा। डॉक्टर ने घबराकर पूछा: “क्या मैंने कुछ गलत कह दिया?” अनुवादक ने उस नौजवान से उसकी भाषा में यही सवाल पूछा और फिर जवाब दिया: “नहीं डॉक्टर। यह कह रहा है कि यह इसलिए रो रहा है क्योंकि आपने उसके कंधे पर हाथ रखा। यहाँ आने से पहले, बरसों तक उसे किसी ने हाथ तक नहीं लगाया।” जो कोढ़ी यीशु के पास आया, उसके लिए यीशु के छूने के और भी ज़्यादा मायने थे। उस एक स्पर्श से, जिस रोग की वजह से उसे समाज से बेदखल किया गया था, वह रोग ही उड़न-छू हो गया!
13, 14. (क) नाईन नगर के पास आते वक्त यीशु किस जुलूस से मिला, और ये हादसा क्यों खास तौर पर दर्दनाक था? (ख) यीशु की करुणा ने उसे नाईन नगर की विधवा के लिए क्या करने को उकसाया?
13 दुःख दूर करने को प्रेरित। दूसरों का दुःख देखकर यीशु का दिल तड़प उठता था। मिसाल के लिए, लूका 7:11-15 में बताए किस्से पर गौर कीजिए। यह तब हुआ जब यीशु अपनी सेवा का लगभग आधा दौर खत्म कर चुका था, और वह गलील में नाईन नाम के एक नगर के पास आ रहा था। जैसे ही यीशु नगर के फाटक के पास पहुँचा, तो उसने एक अर्थी आते देखी। यह हादसा खास तौर पर बड़ा दर्दनाक था। एक नौजवान जो अपनी माँ का एकलौता बेटा था, मर गया था और उसकी माँ विधवा थी। पहले भी शायद इसी तरह वह अपने पति की अर्थी के साथ गयी होगी। मगर इस बार वह अपने बेटे की अर्थी के साथ जा रही थी, जो शायद उसका एक आखिरी सहारा था। उस भीड़ में विलाप करनेवालों के साथ-साथ साज़ पर दर्द-भरी धुनें बजानेवाले भी थे। (यिर्मयाह 9:17, 18; मत्ती 9:23) लेकिन, यीशु की नज़र दुःख में डूबी माँ पर आकर ठहर गयी, जो शायद अपने बेटे की अर्थी के साथ-साथ चल रही थी।
14 यीशु को इस शोक में डूबी माँ पर “तरस आया।” उसकी हिम्मत बँधाते हुए यीशु ने उससे कहा: “मत रो।” (लूका 7:11-15) बिना किसी के कहे, वह अर्थी के पास आया और उसे छुआ। अर्थी उठानेवाले—और शायद बाकी भीड़ भी वहीं थम गयी। बड़ी ज़बरदस्त आवाज़ में और अधिकार के साथ यीशु ने उस मुर्दे से कहा: “हे जवान, मैं तुझ से कहता हूं, उठ।” उसके बाद क्या हुआ? “तब वह मुरदा उठ बैठा, और बोलने लगा” मानो वह गहरी नींद से जाग उठा हो! उसके बाद जो कहा गया है वह हमारे दिल को छू लेता है: “और [यीशु] ने उसे उस की मां को सौंप दिया।”
15. (क) बाइबल के जो किस्से दिखाते हैं कि यीशु ने लोगों पर तरस खाया, उनमें करुणा दिखाने और कार्यवाही करने में क्या नाता बताया गया है? (ख) हम इस मामले में यीशु की तरह कैसे कार्यवाही कर सकते हैं?
15 हम इन घटनाओं से क्या सीखते हैं? गौर कीजिए, हर मामले में यीशु ने करुणा दिखाने के साथ-साथ कदम भी उठाया। यीशु जब लोगों की दुर्दशा देखता था तो वह उन पर तरस खाने से खुद को रोक नहीं पाता था, और जब वह करुणा महसूस करता तो उसके मुताबिक कुछ किए बिना उससे रहा नहीं जाता था। हम उसकी मिसाल पर कैसे चल सकते हैं? मसीहियों के नाते हम पर सुसमाचार प्रचार करने और चेले बनाने की ज़िम्मेदारी है। परमेश्वर का प्रेम हमें यह काम करने को खास तौर पर उकसाता है। लेकिन, आइए हम याद रखें कि यह ऐसा काम है जिसमें करुणा की ज़रूरत है। यीशु की तरह जब हमारे मन में लोगों के लिए हमदर्दी होगी, तो हमारा दिल हमें उकसाएगा कि सुसमाचार प्रचार करने में हम जी-जान लगाकर मेहनत करें। (मत्ती 22:37-39) मगर उन मसीही भाई-बहनों को करुणा दिखाने के बारे में क्या जो तकलीफ में हैं या शोक में डूबे हैं? हम चमत्कार करके शरीर की तकलीफों को तो दूर नहीं कर सकते, ना ही मरे हुओं को ज़िंदा कर सकते हैं। लेकिन, हम करुणा दिखाते हुए उन्हें बता सकते हैं कि हमें उनकी परवाह है या फिर उन्हें ऐसी कोई मदद दे सकते हैं जिससे उन्हें फायदा हो।—इफिसियों 4:32.
“हे पिता, इन्हें क्षमा कर”
16. सूली पर मरते वक्त भी यह कैसे ज़ाहिर हुआ कि यीशु क्षमा करने को तत्पर रहा?
16 यीशु ने एक और अहम तरीके से अपने पिता के जैसा प्यार दिखाया—वह “क्षमा करने को तत्पर रहता” था। (भजन 86:5, NHT) जब वह सूली पर लटका हुआ था, तब भी साफ ज़ाहिर था कि वह क्षमा करने को तत्पर है। जब यीशु के हाथों और पैरों को सूली पर कीलों से ठोंक दिया गया, और एक शर्मनाक मौत मरने के लिए उसे छोड़ दिया गया, तब यीशु के मुँह से कैसी बातें निकलीं? क्या उसने अपनी जान लेनेवालों को सज़ा देने के लिए यहोवा को पुकारा? नहीं, इसके बजाय यीशु के आखिरी शब्दों में से कुछ शब्द ये थे: “हे पिता, इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये जानते नहीं कि क्या कर रहे हैं?”—लूका 23:34.b
17-19. यीशु ने किन तरीकों से दिखाया कि उसे जानने से तीन बार इनकार करनेवाले प्रेरित पतरस को उसने माफ किया था?
17 यीशु के माफ करने की इससे भी ज़बरदस्त मिसाल हमें, पतरस के साथ उसके व्यवहार से देखने में आती है। इसमें कोई दो राय नहीं कि पतरस यीशु को दिलो-जान से चाहता था। निसान 14 को जो यीशु की ज़िंदगी की आखिरी रात थी, पतरस ने उससे कहा: “हे प्रभु, मैं तेरे साथ बन्दीगृह जाने, बरन मरने को भी तैयार हूं।” ऐसा कहने पर भी, सिर्फ कुछ घंटों बाद पतरस ने तीन बार इस बात से इनकार किया कि वह यीशु को जानता भी है! बाइबल बताती है कि तीसरी बार पतरस के इनकार करते ही क्या हुआ: “तब प्रभु ने घूमकर पतरस की ओर देखा।” अपने पाप के बोझ से बेहाल, पतरस “बाहर निकलकर फूट फूट कर रोने लगा।” जब उसी दिन बाद में, यीशु मौत की नींद सो गया, तो उस प्रेरित के मन में यह सवाल खटक रहा होगा, ‘क्या मेरे प्रभु ने मुझे माफ किया?’—लूका 22:33, 61, 62.
18 पतरस को बहुत जल्द इसका जवाब मिल गया। यीशु को निसान 16 की सुबह जी उठाया गया और ज़ाहिर है उसी दिन वह खुद जाकर पतरस से मिला। (लूका 24:34; 1 कुरिन्थियों 15:4-8) जिस प्रेरित ने इतनी बार ज़ोर देकर उसे जानने से इनकार किया था, उस पर यीशु इतना मेहरबान क्यों था? यीशु शायद प्रायश्चित्त कर रहे पतरस को यह यकीन दिलाना चाहता था कि उसका प्रभु उससे अब भी प्यार करता है और उसकी कदर करता है। मगर यीशु ने पतरस को यकीन दिलाने के लिए और बहुत कुछ किया।
19 कुछ वक्त के बाद, यीशु गलील सागर के पास चेलों के सामने प्रकट हुआ। इस मौके पर, यीशु ने तीन बार पतरस से (जिसने तीन बार अपने प्रभु से इनकार किया था) सवाल किया कि क्या पतरस उससे प्यार करता है। तीसरी बार पूछे जाने के बाद, पतरस ने जवाब दिया: “हे प्रभु, तू तो सब कुछ जानता है: तू यह जानता है कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूं।” जी हाँ, दिल की बात जान लेनेवाले यीशु को यह अच्छी तरह पता था कि पतरस उससे प्यार करता है और उसे दिल से चाहता है। फिर भी, यीशु ने पतरस को अपना प्यार एक बार फिर दिखाने का मौका दिया। इसके अलावा, यीशु ने पतरस को आज्ञा दी कि उसके “मेमनों” को ‘चराए’ और उनकी “रखवाली” करे। (यूहन्ना 21:15-17) इससे पहले, पतरस को प्रचार करने का काम सौंपा गया था। (लूका 5:10) मगर अब, यीशु ने एक अनोखे तरीके से दिखाया कि वह पतरस पर भरोसा करता है। यीशु ने उसे बहुत भारी ज़िम्मेदारी सौंपी—उन लोगों की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी जो मसीह के चेले बननेवाले थे। इसके कुछ ही समय बाद, यीशु ने अपने चेलों के काम-काज में पतरस को एक खास भूमिका अदा करने का सम्मान दिया। (प्रेरितों 2:1-41) पतरस के दिल को यह जानकर कितना चैन मिला होगा कि यीशु ने उसे माफ कर दिया है और वह अब भी उस पर भरोसा करता है!
क्या आप ‘मसीह के प्रेम को जानते’ हैं?
20, 21. हम कैसे “मसीह के . . . प्रेम” को अच्छी तरह ‘जान सकेंगे’?
20 वाकई, यहोवा का वचन मसीह के प्रेम का बहुत बढ़िया शब्दों में बयान करता है। मगर हमें यीशु का प्रेम पाकर क्या करना चाहिए? बाइबल हमसे गुज़ारिश करती है कि हम “मसीह के उस प्रेम को जा[नें] जो ज्ञान से परे है।” (इफिसियों 3:19) जैसा हमने देखा है, सुसमाचार की किताबों में यीशु के जीवन और उसकी सेवा का ब्यौरा हमें मसीह के प्रेम के बारे में काफी कुछ सिखाता है। लेकिन, ‘मसीह के प्रेम को’ अच्छी तरह ‘जानने’ के लिए सिर्फ यह पता लगाना काफी नहीं कि बाइबल उसके बारे में क्या कहती है।
21 जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “को जान” किया गया है, उसका मतलब है “व्यावहारिक तरीके से, अनुभव के ज़रिए” जानना। जब हम यीशु की तरह प्रेम करेंगे—दूसरों की भलाई करने में निःस्वार्थ भाव से खुद को लगा देंगे, करुणा दिखाकर उनकी ज़रूरतों के मुताबिक काम करेंगे, दिल से उन्हें माफ करेंगे—तब हम सही मायनों में उसकी भावनाओं को समझ सकेंगे। इस तरह, हम अनुभव से ‘मसीह के उस प्रेम को जान पाते हैं जो ज्ञान से परे है।’ और हाँ, हम यह कभी न भूलें कि हम जितना ज़्यादा मसीह के जैसे होते हैं, उतना ज़्यादा हम अपने प्रेमी परमेश्वर यहोवा के करीब आते हैं, क्योंकि मसीह हू-ब-हू अपने इस पिता के जैसा था।
a रब्बियों के बनाए नियमों के मुताबिक, एक कोढ़ी से चार हाथ (लगभग छः फुट) की दूरी बनाए रखना ज़रूरी था। लेकिन अगर सामने से हवा चल रही हो, तो एक कोढ़ी से कम-से-कम 100 हाथ (लगभग 150 फुट) की दूरी रखना ज़रूरी था। मिद्राश राब्बाह में एक ऐसे रब्बी के बारे में बताया है जो कोढ़ियों को देखते ही छिप जाता था और एक और रब्बी उन्हें दूर रखने के लिए पत्थर मारता था। इसलिए, कोढ़ी जानते थे कि ठुकराए जाने का दर्द क्या होता है और जब लोग आपसे घृणा करते हैं और आपको देखना पसंद नहीं करते, तो कैसा महसूस होता है।
b कुछ प्राचीन हस्तलिपियों में लूका 23:34 का पहला भाग निकाल दिया गया है। लेकिन, ये शब्द कई जानी-मानी और भरोसेमंद हस्तलिपियों में पाए जाते हैं, इसलिए इन्हें और बहुत-से अनुवादों के साथ-साथ न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन में भी शामिल किया गया है। ज़ाहिर है कि यीशु रोमी सैनिकों के बारे में कह रहा था जिन्होंने उसे सूली पर चढ़ाया था। वे नहीं जानते थे कि वे क्या कर रहे हैं, क्योंकि वे इस बात से बेखबर थे कि यीशु असल में है कौन। बेशक, जिन धर्मगुरुओं ने लोगों को भड़काकर यीशु को यह सज़ा सुनवायी थी वे ही इस अन्याय के लिए ज़िम्मेदार और दोषी थे, क्योंकि सब जानते-बूझते उन्होंने बड़ी बेरहमी के साथ इस काम को अंजाम दिया था। उनमें से ज़्यादातर को माफी मिलना नामुमकिन था।—यूहन्ना 11:45-53.
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‘प्रेम में चलते’ जाओयहोवा के करीब आओ
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अध्याय 30
‘प्रेम में चलते’ जाओ
1-3. जब हम प्यार दिखाने में यहोवा की मिसाल पर चलते हैं, तो इसका क्या नतीजा निकलता है?
“लेने से देने में अधिक सुख है।” (प्रेरितों 20:35, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) यीशु के ये शब्द इस अहम सच्चाई पर ज़ोर देते हैं: निःस्वार्थ प्रेम अपने आप में बहुत फायदेमंद है। हालाँकि दूसरों से प्यार पाने में बहुत खुशी मिलती है, मगर इससे भी बढ़कर खुशी दूसरों को प्यार देने या दिखाने से मिलती है।
2 इस बात की सच्चाई को हमारे स्वर्गीय पिता से बेहतर और कौन जान सकता है। जैसा हमने इस भाग के पिछले अध्यायों में देखा यहोवा, प्रेम की सबसे बड़ी, सबसे महान मिसाल है। किसी और ने उससे बढ़िया तरीकों से या उससे ज़्यादा समय तक प्रेम नहीं दिखाया। तो फिर, क्या इसमें कोई ताज्जुब की बात है कि यहोवा “आनंदित परमेश्वर” कहलाता है?—1 तीमुथियुस 1:11, NW.
3 हमारा प्यारा परमेश्वर चाहता है कि हम उसके जैसे बनने की कोशिश करें, खासकर प्यार दिखाने के मामले में। इफिसियों 5:1, 2 कहता है: “प्रिय, बालको की नाईं परमेश्वर के सदृश्य बनो। और प्रेम में चलो।” जब हम प्यार दिखाने में यहोवा की मिसाल पर चलते हैं, तब उस बड़ी खुशी को पाते हैं जो देने से मिलती है। इतना ही नहीं, हमें इस बात का भी संतोष होता है कि हम यहोवा के दिल को खुश कर रहे हैं, क्योंकि उसका वचन हमसे ‘एक दूसरे से प्रेम रखने’ की गुज़ारिश करता है। (रोमियों 13:8) मगर हमें क्यों ‘प्रेम में चलते’ जाना चाहिए, इसकी और भी कई वजह हैं।
प्रेम ज़रूरी क्यों है
4, 5. अपने मसीही भाई-बहनों की खातिर खुद को कुरबान करनेवाला प्रेम दिखाना क्यों ज़रूरी है?
4 अपने मसीही भाई-बहनों से प्रेम करना क्यों ज़रूरी है? सीधे शब्दों में कहें तो इसलिए कि प्यार सच्ची मसीहियत की जान है। प्रेम के बिना संगी मसीहियों के साथ हमारा नज़दीकी रिश्ता नहीं बंध सकता और उससे भी बढ़कर बिना प्रेम के यहोवा की नज़रों में हमारी कीमत कुछ भी नहीं। गौर कीजिए कि कैसे परमेश्वर के वचन में इन सच्चाइयों पर ज़ोर दिया गया है।
5 इस धरती पर अपनी ज़िंदगी की आखिरी रात को, यीशु ने अपने चेलों से कहा: “मैं तुम्हें एक नई आज्ञा देता हूं, कि एक दूसरे से प्रेम रखो: जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा है, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो। यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।” (यूहन्ना 13:34, 35) “जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा है”—जी हाँ, हमें आज्ञा दी गयी है कि हम वैसा ही प्रेम दिखाएँ जैसा यीशु ने दिखाया था। अध्याय 29 में, हमने देखा कि यीशु ने दूसरों की खातिर कुरबान हो जानेवाले प्यार की एक उम्दा मिसाल रखी, उसने दूसरों की ज़रूरतों और फायदे को खुद से आगे रखा। हमें भी निःस्वार्थ प्रेम दिखाना है, और यह इस हद तक होना चाहिए कि वे लोग भी इसे साफ-साफ देख सकें जो मसीही कलीसिया के बाहर हैं। वाकई दूसरों की खातिर कुरबान होनेवाला भाईचारे का प्रेम एक ऐसी निशानी है, जो मसीह के सच्चे चेलों के नाते हमारी पहचान कराता है।
6, 7. (क) हम कैसे जानते हैं कि यहोवा के वचन में प्रेम दिखाने को बहुत अहमियत दी गयी है? (ख) पहला कुरिन्थियों 13:4-8 में दर्ज़ पौलुस के शब्दों में, प्रेम के किस पहलू पर ध्यान दिलाया गया है?
6 अगर हममें प्रेम न हो तो क्या होगा? प्रेरित पौलुस ने कहा: “यदि मैं . . . प्रेम न रखूं, तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल, और झंझनाती हुई झांझ हूं।” (1 कुरिन्थियों 13:1) झनझनाती झाँझ से ऐसी आवाज़ निकलती है जो कानों को अखरती है। ठनठनाते पीतल के बारे में क्या? कुछ और अनुवाद कहते हैं, “ठनठनाती घन्टी” या “खनखनाता घड़ियाल।” ये उदाहरण कितने सही हैं! जिस इंसान में प्यार नहीं होता, वह ऐसे बेसुरे साज़ जैसा है जिससे सुरीली धुन नहीं, बल्कि ऐसी कर्कश आवाज़ निकलती है जिसे सुनकर लोग कान बंद कर लेते हैं। भला ऐसा इंसान दूसरों के साथ एक करीबी रिश्ता कैसे कायम कर सकता है? पौलुस ने यह भी कहा: “मुझे यहां तक पूरा विश्वास हो, कि मैं पहाड़ों को हटा दूं, परन्तु प्रेम न रखूं, तो मैं कुछ भी नहीं।” (1 कुरिन्थियों 13:2) ज़रा सोचिए, एक इंसान चाहे कितने ही बड़े-बड़े काम करे, अगर उसमें प्रेम नहीं है तो वह “कुछ भी नहीं” है! क्या इससे साफ पता नहीं लगता कि यहोवा के वचन में प्रेम दिखाने को कितनी अहमियत दी गयी है?
7 मगर हम दूसरों के साथ पेश आते वक्त यह गुण कैसे दिखा सकते हैं? इसका जवाब देने के लिए, आइए हम 1 कुरिन्थियों 13:4-8 में पाए जानेवाले पौलुस के शब्दों की जाँच करें। इन आयतों में न तो हमारे लिए परमेश्वर के प्रेम पर, न ही परमेश्वर के लिए हमारे प्रेम पर ज़ोर दिया गया है। इसके बजाय, पौलुस खास तौर पर यह बताता है कि हमें एक-दूसरे को प्रेम कैसे दिखाना चाहिए। उसने समझाया कि प्रेम क्या-क्या है और क्या-क्या नहीं।
प्रेम क्या है
8. दूसरों के साथ पेश आते वक्त धीरजवंत होना, हमारी कैसे मदद कर सकता है?
8 “प्रेम धीरजवन्त है।” धीरजवंत होने का मतलब है, सब्र के साथ दूसरों की सहना। (कुलुस्सियों 3:13) क्या हमारे लिए ऐसा सब्र या धीरज ज़रूरी है? हम सभी असिद्ध इंसान, कंधे-से-कंधा मिलाकर सेवा कर रहे हैं, इसलिए यह उम्मीद की जा सकती है कि कभी-कभी हमारे मसीही भाई अपने तौर-तरीकों से हमें चिढ़ दिलाएँ या हम उन्हें चिढ़ दिलाएँ। मगर धीरज और सहनशीलता की मदद से हम कलीसिया की शांति भंग किए बगैर, दूसरों के साथ पेश आते वक्त छोटे-मोटे मनमुटाव और नाराज़गी का सामना कर सकते हैं।
9. किन तरीकों से हम दूसरों को कृपा दिखा सकते हैं?
9 “प्रेम . . . कृपाल है।” जब हम दूसरों की मदद करते हैं और बातचीत में लिहाज़ दिखाते हैं, तो हम कृपा दिखा रहे होते हैं। प्यार की वजह से हम दूसरों को खासकर ज़रूरतमंदों को कृपा दिखाने के मौके ढूँढेंगे। मिसाल के लिए, एक बुज़ुर्ग मसीही भाई या बहन शायद अकेला महसूस कर रहा हो, और उसे ज़रूरत हो कि कोई आकर उसकी हिम्मत बँधाए। एक अकेली माँ या एक बहन जिसका परिवार सच्चाई में नहीं, उसे शायद किसी मदद की ज़रूरत हो। कोई भाई शायद बीमार हो या किसी तकलीफ से गुज़र रहा हो और उसे किसी वफादार दोस्त के प्यार भरे बोल सुनने की ज़रूरत हो। (नीतिवचन 12:25; 17:17) जब हम इन तरीकों से कृपा करने में पहल करते हैं, तो हम दिखाते हैं कि हमारा प्यार सच्चा है।—2 कुरिन्थियों 8:8.
10. प्रेम कैसे हमारी मदद करेगा कि सच बोलें और इसका दामन न छोड़ें, तब भी जब ऐसा करना आसान न हो?
10 “प्रेम . . . सत्य से आनन्दित होता है।” एक और अनुवाद कहता है: “प्रेम, . . . खुशी से सत्य का पक्ष लेता है।” प्रेम हमें उकसाएगा कि ‘एक दूसरे के साथ सत्य बोलें’ और सच्चाई का दामन न छोड़ें। (जकर्याह 8:16) मिसाल के लिए, अगर हमारा कोई अज़ीज़ किसी गंभीर पाप में फँस गया है, तो यहोवा के लिए और पाप करनेवाले के लिए प्रेम, हमारी मदद करेगा कि हम परमेश्वर के स्तरों का पालन करें, ना कि पाप को छिपाने की कोशिश करें, सही ठहराने के लिए कोई बहाना बनाएँ, या फिर झूठ बोलने की कोशिश करें। बेशक, सच्चाई का सामना करना बहुत मुश्किल हो सकता है। लेकिन अपने अज़ीज़ की भलाई चाहते हुए, हम कोशिश करेंगे कि वह परमेश्वर की प्यार-भरी ताड़ना को स्वीकार करे और उसके मुताबिक बदलाव करे। (नीतिवचन 3:11, 12) इसके अलावा, प्रेम करनेवाले मसीहियों के नाते, हम “नेकी [“ईमानदारी,” NW] के साथ ज़िन्दगी बिताना चाहेंगे।”—इब्रानियों 13:18, हिन्दुस्तानी बाइबिल।
11. क्योंकि प्रेम “सब बातें सह लेता है,” हमें अपने मसीही भाई-बहनों की कमियों के बारे में क्या करना चाहिए?
11 “प्रेम . . . सब बातें सह लेता है।” इस पद का शाब्दिक अर्थ है: “यह सब चीज़ों को ढांप देता है।” (किंगडम इंटरलीनियर) पहला पतरस 4:8 कहता है: “प्रेम अनेक पापों को ढांप देता है।” जी हाँ, एक मसीही जो प्रेम के सिद्धांत पर चलता है, वह अपने मसीही भाइयों की हर असिद्धता और कमी को सबके सामने लाने की ताक में नहीं रहेगा। बहुत-से मामलों में, हमारे मसीही भाई-बहनों की गलतियाँ ज़्यादा गंभीर नहीं होतीं और उन्हें प्यार से ढांपा जा सकता है।—नीतिवचन 10:12; 17:9.
प्रेम हमें उकसाएगा कि अपने भाइयों पर भरोसा ज़ाहिर करें
12. प्रेरित पौलुस ने कैसे दिखाया कि वह फिलेमोन के बारे में अच्छी-से-अच्छी बात सोचना चाहता था, और हम पौलुस की मिसाल से क्या सीख सकते हैं?
12 “प्रेम . . . सब बातों पर विश्वास करता है।” (NHT) मॉफेट का अनुवाद कहता है कि प्रेम दूसरों के बारे में “हमेशा अच्छे-से-अच्छा सोचने के लिए तैयार रहता है।” हम अपने मसीही भाइयों को हर वक्त शक की निगाह से नहीं देखेंगे, न ही उनके हर इरादे पर सवाल उठाएँगे। प्रेम हमारी मदद करेगा कि अपने भाइयों के बारे में ‘अच्छे-से-अच्छा सोचें’ और उन पर भरोसा करें।a फिलेमोन को लिखी पौलुस की पत्री में दर्ज़ एक मिसाल पर गौर कीजिए। पौलुस अपनी पत्री से फिलेमोन को उकसाना चाहता था कि वह अपने दास उनेसिमुस को प्यार दिखाते हुए फिर से स्वीकार करे। उनेसिमुस, फिलेमोन का दास था जो पहले उसकी सेवा से भाग गया था, मगर अब एक मसीही बनने के बाद उसके पास वापस आ रहा था। फिलेमोन पर दबाव डालने के बजाय, पौलुस ने प्रेम का वास्ता देकर उससे दरख्वास्त की। पौलुस ने यह भरोसा दिखाया कि फिलेमोन वही करेगा जो सही है, और उससे कहा: “मैं तेरे आज्ञाकारी होने का भरोसा रखकर, तुझे लिखता हूं और यह जानता हूं, कि जो कुछ मैं कहता हूं, तू उस से कहीं बढ़कर करेगा।” (आयत 21) जब प्रेम के उकसाने पर हम अपने भाइयों पर ऐसा भरोसा ज़ाहिर करते हैं, तो इससे अच्छे-से-अच्छा नतीजा निकलता है।
13. हम कैसे दिखाते हैं कि हम अपने भाइयों के लिए अच्छे-से-अच्छे की उम्मीद करते हैं?
13 “प्रेम . . . सब बातों की आशा रखता है।” विश्वास करने के साथ-साथ, प्रेम आशा भी रखता है। प्रेम से प्रेरित होकर, हम अपने भाइयों के लिए अच्छे-से-अच्छे की उम्मीद करते हैं। मिसाल के लिए, अगर एक भाई ‘अनजाने में कोई गलत कदम उठाता है,’ तो हम यह उम्मीद नहीं छोड़ते कि सुधार के लिए दी गयी प्यार-भरी मदद को वह स्वीकार करेगा। (गलतियों 6:1, NW) हम यह भी आशा ज़ाहिर करते हैं कि जो विश्वास में कमज़ोर हैं, वे फिर से मज़बूत होंगे। हम ऐसों के साथ धैर्य से पेश आते हैं, और उन्हें विश्वास में मज़बूत होने में मदद देने के लिए हर मुमकिन तरीके से कोशिश करते हैं। (रोमियों 15:1; 1 थिस्सलुनीकियों 5:14) अगर एक अज़ीज़ भटक भी जाए, हम यह आस नहीं छोड़ते कि किसी-न-किसी दिन वह, यीशु के दृष्टांत के उस उड़ाऊ पुत्र की तरह अपने आपे में आएगा और यहोवा के पास लौट आएगा।—लूका 15:17, 18.
14. कलीसिया के अंदर ही हमारे धीरज की परीक्षा कैसे हो सकती है, और प्रेम हमें ऐसे में क्या करने में मदद देगा?
14 “प्रेम . . . सब बातों में धीरज धरता है।” धीरज हमें निराशाओं और मुसीबतों का डटकर मुकाबला करने के काबिल बनाता है। ज़रूरी नहीं कि हमारे धीरज की परीक्षा, कलीसिया के बाहर से आनेवाली मुसीबतों से हो। कभी-कभी कलीसिया के अंदर से ही ये परीक्षाएँ आती हैं। असिद्धता की वजह से, हो सकता है कि कई बार हमारे भाई ही हमें निराश कर दें। बिना सोचे-समझे कही गयी बात से हमारी भावनाओं को ठेस लग सकती है। (नीतिवचन 12:18) शायद जैसा हमने सोचा था, कलीसिया के किसी मामले को उस तरीके से नहीं निपटाया गया। कलीसिया में जिस भाई को बहुत आदर दिया जाता है, वह शायद ऐसा सलूक करे, जिससे हम परेशान हो जाएँ और सोचने लगें, ‘एक मसीही ऐसा कैसे कर सकता है?’ जब हम ऐसे हालात में होते हैं, तो क्या हम कलीसिया से दूर चले जाते हैं और यहोवा की सेवा करना छोड़ देते हैं? अगर हममें प्रेम है, तो हम ऐसा नहीं करेंगे! जी हाँ, प्रेम हमारी मदद करेगा कि हम किसी भाई की कमियों को इतना तूल न दें कि हम उसकी सारी अच्छाइयाँ भूल जाएँ या पूरी कलीसिया में ही हमें बुराई नज़र आने लगे। चाहे किसी असिद्ध इंसान ने कुछ भी क्यों न कहा या किया हो, प्रेम हमें इस काबिल बनाता है कि परमेश्वर के वफादार रहें और कलीसिया का हमेशा साथ दें।—भजन 119:165.
प्रेम क्या नहीं है
15. गलत किस्म की जलन क्या है, और प्रेम कैसे हमें इस विनाशकारी भावना से दूर रहने में मदद देगा?
15 “प्रेम डाह नहीं करता।” डाह या गलत किस्म की जलन की वजह से हम दूसरों के पास जो है—उनकी संपत्ति, आशीषें या काबिलीयतें, उसकी वजह से उनसे ईर्ष्या करने लगते हैं। ऐसी जलन महसूस करना स्वार्थ की निशानी है। यह ऐसी विनाशकारी भावना है, जिसे अगर काबू में न रखा गया, तो यह कलीसिया की शांति को भंग कर सकती है। “ईर्ष्या करने की प्रवृत्ति” का विरोध करने में क्या बात हमारी मदद करेगी? (याकूब 4:5, NW) एक शब्द में इसका जवाब है, प्रेम। यह अनमोल गुण, उन लोगों की खुशी में खुश होने में हमारी मदद करेगा जिनके बारे में हमें लगता है कि वे हमसे बेहतर हालात में हैं। (रोमियों 12:15) जब किसी की अनोखी काबिलीयत या बेहतरीन कामयाबी के लिए उसकी तारीफ की जाती है, तो प्रेम हमारी मदद करेगा कि हम इसे किसी तरह अपनी बेइज़्ज़ती न समझें।
16. अगर हम सही मायनों में अपने भाइयों से प्रेम करते हैं, तो हमें क्यों यहोवा की सेवा में अपनी कामयाबियों की डींग मारने से दूर रहना चाहिए?
16 “प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं।” प्रेम हमें रोकता है कि हम अपनी प्रतिभाओं या कामयाबियों के बारे में ढिंढोरा ना पीटें। अगर हम सही मायनों में अपने भाइयों से प्रेम करते हैं, तो हम प्रचार काम में अपनी कामयाबी और कलीसिया में अपनी खास ज़िम्मेदारियों के बारे में भला शेखी कैसे बघार सकते हैं? ऐसी घमंड भरी बातों से दूसरों का हौसला टूट सकता है, और वे खुद को दूसरों से कम समझने लगेंगे। परमेश्वर हमें अपनी सेवा में जो करने का मौका दे रहा है, अगर हममें प्रेम है तो हम उसके बारे में डींगें नहीं मारेंगे। (1 कुरिन्थियों 3:5-9) और-तो-और, प्रेम “फूलता नहीं,” या जैसा एक अनुवाद कहता है, यह “खुद को दूसरों से बढ़-चढ़कर अहमियत” नहीं देता। प्यार हमें रोकता है कि हम खुद को बहुत ही श्रेष्ठ समझने की गलती न करें।—रोमियों 12:3.
17. प्रेम हमें दूसरों के लिए कैसा लिहाज़ दिखाने को प्रेरित करेगा, और इसलिए हम किस किस्म के व्यवहार से दूर रहेंगे?
17 “प्रेम . . . अभद्र व्यवहार नहीं करता।” (NHT) अभद्र व्यवहार करनेवाला इंसान, अनुचित या घिनौने काम करता है। ऐसा तौर-तरीका प्रेम से खाली होता है, क्योंकि इससे हम दिखाते हैं कि हमें दूसरों की भावनाओं और उनकी भलाई की ज़रा भी परवाह नहीं। उसके उलटे, प्रेम में वह सज्जनता होती है, जो हमें दूसरों का लिहाज़ करने को उकसाती है। प्रेम, शिष्टाचार और परमेश्वर को पसंद आनेवाले चालचलन और अपने मसीही भाई-बहनों के साथ आदर से पेश आने का बढ़ावा देता है। इस तरह, प्रेम हमें “निर्लज्जता” के काम करने से रोकेगा—जी हाँ, ऐसे किसी भी व्यवहार से जिससे हमारे मसीही भाइयों को धक्का लगे या उनकी भावनाओं को चोट पहुँचे।—इफिसियों 5:3, 4.
18. प्यार करनेवाला एक इंसान क्यों यह माँग नहीं करेगा कि हर काम उसी के तरीके से किया जाए?
18 “प्रेम . . . अपनी भलाई नहीं चाहता।” एक और अनुवाद यहाँ कहता है: “प्रेम अपनी बात पर अड़ा नहीं रहता।” प्रेम करनेवाला इंसान कभी यह माँग नहीं करेगा कि हर काम उसी के तरीके से किया जाए, मानो वह कभी गलत हो ही नहीं सकता। वह दूसरों को गुमराह करने की कोशिश नहीं करेगा, ना ही अपनी धूर्त या चालाक दलीलों के बल पर उन लोगों की हिम्मत तोड़ने या उन्हें गिराने की कोशिश करेगा जो उससे सहमत नहीं होते। ऐसा ढीठ इंसान असल में कुछ हद तक घमंडी होने का सबूत देता है और बाइबल कहती है: “विनाश से पहिले . . . घमण्ड होता है।” (नीतिवचन 16:18) अगर हम सचमुच अपने भाइयों से प्यार करते हैं, तो हम उनकी राय का आदर करेंगे और जहाँ मुमकिन हो वहाँ हम उनकी बात मानने के लिए तैयार रहेंगे। दूसरों की मानने के लिए तैयार रहना, पौलुस के इन शब्दों के साथ मेल खाता है: “कोई अपनी ही भलाई को न ढूंढ़े, बरन औरों की।”—1 कुरिन्थियों 10:24.
19. जब दूसरे हमें चोट पहुँचाते हैं, तो प्रेम हमें बदले में क्या करने में मदद देगा?
19 “प्रेम कभी झुँझलाता नहीं, वह बुराइयों का कोई लेखा-जोखा नहीं रखता।” (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) दूसरे जो कुछ कहते या करते हैं, प्रेम उस पर आसानी से झुँझलाता नहीं। बेशक जब दूसरे हमें चोट पहुँचाते हैं, तो गुस्सा आना लाज़मी है। लेकिन, गुस्सा होने का सही कारण होने पर भी, प्रेम हमें गुस्से में रहने नहीं देता। (इफिसियों 4:26, 27) हम चोट पहुँचानेवाली बातों या कामों का रिकॉर्ड नहीं रखेंगे, मानो हमने इन्हें याद रखने के लिए बही-खाते में लिख लिया हो। इसके बजाय, प्रेम हमें उकसाता है कि हम अपने प्रेमी परमेश्वर यहोवा जैसे बनें। जैसा हमने अध्याय 26 में देखा, सही वजह होने पर यहोवा माफ करने के लिए तैयार रहता है। जब वह माफ करता है तो उन पापों को भूल जाता है, यानी वह भविष्य में उन पापों को फिर से याद करके हमें उनके लिए सज़ा नहीं देता। क्या हम यहोवा के शुक्रगुज़ार नहीं कि वह हमारी बुराइयों का लेखा-जोखा नहीं रखता?
20. अगर एक मसीही भाई या बहन पाप के फंदे में फँस जाता है और मुसीबत में पड़ता है, तो हमें क्या करना चाहिए?
20 “प्रेम . . . कुकर्म से आनन्दित नहीं होता।” यहाँ बुल्के बाइबिल यूँ कहती है: ‘प्रेम दूसरों के पाप से प्रसन्न नहीं होता।’ मॉफेट का अनुवाद कहता है: “जब दूसरे गलती करते हैं, तब प्रेम कभी खुश नहीं होता।” प्रेम, कुकर्म से कभी खुशी नहीं पाता, इसलिए हम किसी भी किस्म की अनैतिकता को मामूली बात नहीं समझेंगे। अगर हमारा कोई भाई या बहन पाप के फंदे में फँस जाता है और इस वजह से मुसीबत में पड़ जाता है, तब हम क्या करेंगे? अगर हममें प्रेम है तो हम उसकी बुरी हालत पर खुशियाँ नहीं मनाएँगे, मानो हम कह रहे हों, ‘बहुत अच्छा हुआ! वो इसी के लायक था!’ (नीतिवचन 17:5) लेकिन हाँ, एक भाई जिसने अपराध किया था और आध्यात्मिक रूप से गिर चुका था, अगर वह वापस आने के लिए सही कदम उठाता है तब हम ज़रूर खुश होते हैं।
“सब से उत्तम मार्ग”
21-23. (क) “प्रेम कभी मिटता नहीं,” इससे पौलुस क्या कहना चाह रहा था? (ख) इस किताब के आखिरी अध्याय में हम किस विषय पर चर्चा करेंगे?
21 “प्रेम कभी मिटता नहीं।” (NHT) इन शब्दों से पौलुस क्या कहना चाहता था? जैसा हम आस-पास की आयतों से जान सकते हैं, वह आत्मा के उन वरदानों की बात कर रहा था जो पहली सदी के मसीहियों के पास थे। ये वरदान इस बात की निशानी थे कि अभी-अभी बनी मसीही कलीसिया पर परमेश्वर का अनुग्रह है। लेकिन सभी मसीही, चंगाई करने, भविष्यवाणी करने या अलग-अलग भाषाओं में बोलने के काबिल नहीं थे। मगर, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता था, क्योंकि ये चमत्कारिक वरदान धीरे-धीरे मिट जाते। मगर, कुछ और था जो कायम रहता, कुछ ऐसा जो हर मसीही अपने अंदर पैदा कर सकता था। यह किसी भी चमत्कारिक वरदान से कहीं ज़्यादा शानदार और अटल था। दरअसल, पौलुस ने उसे “सब से उत्तम मार्ग” कहा। (1 कुरिन्थियों 12:31) यह “सब से उत्तम मार्ग” क्या था? यह प्रेम का मार्ग था।
यहोवा के लोग, एक-दूसरे के लिए अपने प्रेम से पहचाने जाते हैं
22 वाकई, जिस मसीही प्रेम का पौलुस ने ब्यौरा दिया वह “कभी मिटता नहीं,” यानी उसका कभी-भी अंत नहीं होता। आज तक, यीशु के सच्चे चेलों की पहचान, उनका वह प्यार है जो दूसरों की खातिर खुद को कुरबान करने के लिए तैयार रहता है। क्या हम सारी धरती पर यहोवा के उपासकों की कलीसियाओं में ऐसे प्यार का सबूत नहीं देखते? यह प्यार हमेशा कायम रहेगा, क्योंकि यहोवा ने अपने वफादार सेवकों को अनंत जीवन देने का वादा किया है। (भजन 37:9-11, 29) आइए हम ‘प्रेम में चलते’ जाने की जी-जान से कोशिश करें। इससे हम वह बड़ी खुशी पाएँगे जो देने से मिलती है। इतना ही नहीं, हम अनंतकाल तक जी सकेंगे—जी हाँ, प्रेम कर सकेंगे, वैसे ही जैसे हमारा प्रेमी परमेश्वर, यहोवा करता है।
23 इस अध्याय से हम प्रेम के इस भाग का अंत करते हैं। इसमें हमने चर्चा की कि कैसे हम एक-दूसरे के लिए प्रेम दिखा सकते हैं। लेकिन, यहोवा के प्रेम—साथ ही उसकी शक्ति, बुद्धि और न्याय—से जिन अनगिनत तरीकों से हम फायदा पाते हैं उन्हें ध्यान में रखते हुए, हमें अपने आप से यह सवाल पूछना चाहिए, ‘मैं यहोवा को कैसे दिखा सकता हूँ कि मैं उससे सचमुच प्यार करता हूँ?’ इस सवाल पर हमारे आखिरी अध्याय में चर्चा की जाएगी।
a बेशक, मसीही प्रेम का मतलब आँख मूंदकर किसी पर विश्वास करना नहीं है। बाइबल हमें उकसाती है: “जो लोग . . . फूट पड़ने, और ठोकर खाने के कारण होते हैं, उन्हें ताड़ लिया करो; और उन से दूर रहो।”—रोमियों 16:17.
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