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  • ‘आहा! परमेश्‍वर की बुद्धि क्या ही गहरी है!’
    यहोवा के करीब आओ
    • परमेश्‍वर के बनाए जीव-जंतुओं में सहज-वृत्ति पायी जाती है: सारे हंस मिलकर प्रवास कर रहे हैं

      अध्याय 17

      ‘आहा! परमेश्‍वर की बुद्धि क्या ही गहरी है!’

      1, 2. सातवें दिन के लिए यहोवा का मकसद क्या था, और इस दिन की शुरूआत में परमेश्‍वर की बुद्धि की परीक्षा कैसे हुई?

      सबकुछ बरबाद हो गया! सृष्टि के छठे दिन की सबसे बढ़िया और सबसे शानदार रचना इंसान, मानो एकाएक आकाश की ऊँचाइयों से पाताल की गहराइयों में जा गिरा। यहोवा ने “जो कुछ बनाया था,” जिसमें इंसान भी शामिल है, उन सबको उसने “बहुत ही अच्छा” कहा था। (उत्पत्ति 1:31) मगर सातवें दिन की शुरूआत में, आदम और हव्वा ने शैतान का साथ देकर बगावत की राह चुन ली। वे पाप, असिद्धता और मौत के गर्त में जा गिरे।

      2 उस वक्‍त ऐसा लगा होगा कि सातवें दिन के लिए यहोवा का मकसद बुरी तरह नाकाम हो गया है और अब उसके पूरा होने की कोई उम्मीद नहीं। वह दिन भी, पिछले छः दिनों की तरह हज़ारों साल लंबा होता। यहोवा ने उसे पवित्र ठहराया था, और इसके खत्म होते-होते सारी ज़मीन फिरदौस की शक्ल में बदलनी थी और धर्मी इंसानों के परिवार से भर जानी थी। (उत्पत्ति 1:28; 2:3) मगर ऐसी विनाशकारी बगावत के बाद, यह मकसद कैसे पूरा हो सकता था? आखिर परमेश्‍वर क्या करता? अचानक ऐसे हालात पैदा हो गए थे जिन्होंने यहोवा की बुद्धि की परीक्षा ली और शायद यह उसकी बुद्धि की सबसे बड़ी परीक्षा थी।

      3, 4. (क) यहोवा ने अदन की बगावत का जो जवाब दिया वह उसकी विस्मित कर देनेवाली बुद्धि का सबूत कैसे था? (ख) जब हम यहोवा की बुद्धि का अध्ययन करते हैं, तो नम्रता से हमें किस सच्चाई को याद रखना चाहिए?

      3 यहोवा ने फौरन कदम उठाया। उसने अदन में बागियों को सज़ा सुनायी, साथ ही जो हैरतअंगेज़ काम वह करनेवाला था उसकी एक झलक भी दी: उसने अपना उद्देश्‍य ज़ाहिर किया। इन बागियों ने दुःख-तकलीफों के जिस चक्र को अभी-अभी शुरू किया था वह उसका पूरी तरह अंत करनेवाला था। (उत्पत्ति 3:15) अदन से शुरू हुआ यहोवा का यह दूरंदेशी उद्देश्‍य, इंसानी इतिहास के हज़ारों सालों के दौरान बढ़ता गया और आगे भविष्य में अपने अंजाम तक पहुँचेगा। यहोवा का यह उद्देश्‍य सीधा-सादा मगर इतना गहरा है कि बाइबल विद्यार्थी सारी ज़िंदगी इसका अध्ययन करने और इसे समझने में लगा सकता है और इससे उसे ढेरों आशीषें मिलेंगी। इसके अलावा, यह तय है कि यहोवा का उद्देश्‍य हर हाल में कामयाब होगा। यह सारी बुराई, पाप और मौत को जड़ से खत्म कर देगा। यह वफादार इंसानों को सिद्धता तक पहुँचाएगा। यह सब सातवें दिन के खत्म होने से पहले होगा, जिससे तमाम अड़चनों के बावजूद इस ज़मीन और इंसान के लिए यहोवा अपना मकसद बिलकुल सही वक्‍त पर पूरा कर चुका होगा!

      4 ऐसी बेजोड़ बुद्धि देखकर क्या हमारा दिल श्रद्धा से नहीं भर जाता? प्रेरित पौलुस यह लिखने से खुद को रोक न सका: ‘आहा! परमेश्‍वर की बुद्धि क्या ही गहरी है!’ (रोमियों 11:33, हिन्दुस्तानी बाइबिल) अब हम परमेश्‍वर के इस गुण के अलग-अलग पहलुओं का अध्ययन करने जा रहे हैं, तो नम्रता दिखाते हुए हमें एक अहम सच्चाई याद रखनी चाहिए—कि हमारा यह अध्ययन ज़्यादा-से-ज़्यादा यहोवा की अथाह बुद्धि के बस किनारों को छूने के बराबर है। (अय्यूब 26:14) आइए, सबसे पहले हम इस गुण की परिभाषा समझें जिसने हमें इतना विस्मित कर दिया है।

      परमेश्‍वर की बुद्धि क्या है?

      5, 6. ज्ञान और बुद्धि के बीच क्या रिश्‍ता है, और यहोवा के पास कितना ज्ञान है?

      5 बुद्धि को दूसरे शब्दों में ज्ञान नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इन दोनों में फर्क है। हालाँकि कंप्यूटर में ज्ञान का भंडार होता है, तो भी हममें से कोई इन मशीनों को बुद्धिमान कहने की बात नहीं सोच सकता। मगर, ज्ञान और बुद्धि के बीच एक रिश्‍ता ज़रूर है। (नीतिवचन 10:14) मिसाल के लिए, अगर आपको किसी गंभीर बीमारी के इलाज के बारे में बुद्धि-भरी और बढ़िया सलाह की ज़रूरत है, तो क्या आप किसी ऐसे शख्स से सलाह लेंगे जिसे चिकित्सा का बहुत कम या ज़रा भी ज्ञान ना हो? हरगिज़ नहीं! तो फिर, सच्ची बुद्धि के लिए सही ज्ञान का होना बेहद ज़रूरी है।

      6 यहोवा के पास ज्ञान का अपार भंडार है। वह ‘युग युग का राजा’ है, इसलिए सिर्फ वही है जो हमेशा से मौजूद है। (प्रकाशितवाक्य 15:3) वह बीते अनंत युगों की एक-एक जानकारी रखता है। बाइबल कहती है: “सृष्टि की कोई वस्तु उस से छिपी नहीं है बरन जिस से हमें काम है, उस की आंखों के साम्हने सब वस्तुएं खुली और बेपरद हैं।” (इब्रानियों 4:13; नीतिवचन 15:3) यहोवा सिरजनहार है, इसलिए वह अपनी बनायी हुई हर चीज़ के बारे में पूरी-पूरी समझ रखता है, और शुरू से लेकर अब तक इंसानों ने जो कुछ किया है वह उसने देखा है। वह हर इंसान के दिल की जाँच करता है, और उसकी नज़र से कुछ नहीं बच पाता। (1 इतिहास 28:9) यहोवा ने हमें आज़ाद मरज़ी के साथ बनाया है, इसलिए जब हम अपनी ज़िंदगी में बुद्धिमानी से सही चुनाव करते हैं, तो वह खुश होता है। वह ‘प्रार्थनाओं का सुननेवाला’ है, और एक ही घड़ी में अनगिनत लोगों की प्रार्थनाएँ सुन सकता है! (भजन 65:2) साथ ही, यहोवा बेमिसाल याददाश्‍त का मालिक है।

      7, 8. यहोवा समझ, परख-शक्‍ति और बुद्धि कैसे दिखाता है?

      7 यहोवा के पास ज्ञान से बढ़कर कुछ है। वह देख सकता है कि अलग-अलग तथ्य एक-दूसरे से कैसे जुड़े हैं और किसी मामले की ढेर सारी बारीकियाँ कुल मिलाकर क्या तसवीर पेश कर रही हैं। वह भले और बुरे, महत्त्वपूर्ण और मामूली बातों के बीच फर्क करके, उन्हें जाँचता और न्याय करता है। लेकिन इससे भी बढ़कर, वह सिर्फ ऊपरी तौर पर नहीं देखता बल्कि मामले की तह तक पहुँचता है यहाँ तक कि दिल की गहराई में झाँक सकता है। (1 शमूएल 16:7) इसलिए हम कह सकते हैं कि यहोवा के पास ज्ञान से भी बढ़कर गुण हैं, यानी समझ और परख-शक्‍ति। फिर भी जहाँ तक बुद्धि का सवाल है, यह इनसे भी श्रेष्ठ है।

      8 बुद्धि का मतलब है ज्ञान, समझ और परख-शक्‍ति से एक-साथ काम लेकर अपने लक्ष्य तक पहुँचना। दरअसल, बाइबल के कुछ मूल शब्द जिनका अनुवाद “बुद्धि” किया गया है, उनका शाब्दिक अर्थ है “कारगर तरीके से काम करने की क्षमता” या “कारगर बुद्धि।” इसका मतलब है कि यहोवा की बुद्धि सिर्फ किताबी नहीं, बल्कि कारगर है और इसके मुताबिक चलने से कामयाबी हासिल होती है। यहोवा अपने अपार ज्ञान और गहरी समझ की वजह से हमेशा सबसे बढ़िया फैसले लेता है और उन्हें इतने बेहतरीन ढंग से अपने अंजाम तक पहुँचाता है जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। यही है सच्ची बुद्धि! यहोवा दिखाता है कि यीशु की कही यह बात कितनी सही है: “बुद्धि की उत्तमता उसके कामों से सिद्ध होती है।” (मत्ती 11:19, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) पूरे जहान में यहोवा के काम, उसकी बुद्धि का ज़बरदस्त सबूत दे रहे हैं।

      परमेश्‍वर की बुद्धि के सबूत

      9, 10. (क) यहोवा के पास किस किस्म की बुद्धि है, और उसने यह बुद्धि कैसे दिखायी है? (ख) एक कोशिका यहोवा की बुद्धि का सबूत कैसे देती है?

      9 क्या आप कभी ऐसे कारीगर का हुनर देखकर हैरान हुए हैं, जो सुंदर और अच्छी तरह काम करनेवाली एक-से-बढ़कर-एक चीज़ें बनाता है? ऐसी बुद्धि देखकर हम वाकई कायल हो जाते हैं। (निर्गमन 31:1-3) यहोवा ऐसी सारी बुद्धि का सबसे महान स्रोत है। राजा दाऊद ने यहोवा के बारे में कहा: “मैं तेरा धन्यवाद करूंगा, इसलिये कि मैं भयानक और अद्‌भुत रीति से रचा गया हूं। तेरे काम तो आश्‍चर्य के हैं, और मैं इसे भली भांति जानता हूं।” (भजन 139:14) बेशक हम, इंसान के शरीर के बारे में जितनी ज़्यादा जानकारी पाते हैं, उतना ही हमें यहोवा की बुद्धि पर विस्मय होता है।

      10 इसे समझने के लिए एक मिसाल लीजिए: आपकी शुरूआत एक कोशिका से हुई यानी माँ का एक अंडाणु जो पिता के शुक्राणु से निषेचित हुआ। बहुत जल्द यह कोशिका विभाजित होने लगी। और इसका नतीजा हुआ, करीब 1,000 खरब कोशिकाओं से बने खुद आप। ये कोशिकाएँ बहुत छोटी होती हैं। सामान्य आकार की लगभग 10,000 कोशिकाएँ एक सुई की नोक पर आ सकती हैं। लेकिन, हरेक की रचना इतनी पेचीदा है कि सोचकर दिमाग चकराने लगता है। यह कोशिका इंसान की बनायी किसी मशीन या फैक्ट्री से कहीं ज़्यादा जटिल है। वैज्ञानिक कहते हैं कि कोशिका एक किलेबंद नगर जैसी होती है—अंदर जाने और बाहर निकलने के दरवाज़ों पर सिपाही तैनात हैं, यातायात और संचार का भी इंतज़ाम है, ऊर्जा पैदा करनेवाले संयंत्र हैं, उत्पादन के कारखाने हैं, कचरा बाहर निकालने और उसके कुछ हिस्से को फिर से इस्तेमाल करने का इंतज़ाम है, सुरक्षा का इंतज़ाम है और इसके न्यूक्लियस में एक तरह की केंद्रीय सरकार भी काम करती है। इतना ही नहीं, यह कोशिका सिर्फ चंद घंटों के अंदर हू-ब-हू अपने जैसी एक और कोशिका बना सकती है!

      11, 12. (क) बढ़ते भ्रूण में कौन-सी कोशिका क्या बनेगी यह जानकारी कहाँ पायी जाती है, और यह बात भजन 139:16 से कैसे मेल खाती है? (ख) इंसान के दिमाग की रचना कैसे दिखाती है कि हम ‘अद्‌भुत रीति से रचे गए’ हैं?

      11 बेशक, सभी कोशिकाएँ एक जैसी नहीं होतीं। जैसे-जैसे एक भ्रूण की कोशिकाएँ विभाजित होती हैं, वे अलग-अलग तरह के काम करने लगती हैं। कुछ तंत्रिका-कोशिकाएँ बनेंगी; तो कुछ हमारी हड्डियों, माँसपेशियों, लहू या आँखों की कोशिकाएँ बनेंगी। कौन-सी कोशिका क्या बनेगी यह उसके डी.एन.ए. (DNA) में लिखा होता है, जो कोशिका के अंदर पायी जानेवाली आनुवंशिक रूप-रेखा की “लाइब्रेरी” है। गौर करने लायक बात है कि दाऊद, यहोवा से यह कहने को प्रेरित हुआ: “तेरी आंखों ने मेरे बेडौल तत्व को देखा; और मेरे सब अंग . . . तेरी पुस्तक में लिखे हुए थे।”—भजन 139:16.

      12 शरीर के कुछ अंगों में हद-से-ज़्यादा जटिलता पायी जाती है। मिसाल के लिए, इंसान के दिमाग पर गौर कीजिए। कुछ लोगों ने इसे विश्‍व की सबसे जटिल चीज़ का नाम दिया है। इसमें करीब एक खरब तंत्रिका-कोशिकाएँ पायी जाती हैं—जो हमारी आकाशगंगा के तारों की गिनती के बराबर है। हर कोशिका से हज़ारों कनेक्शन निकलकर दूसरी कोशिकाओं से संपर्क बनाए रखते हैं। वैज्ञानिक कहते हैं कि दुनिया की तमाम लाइब्रेरियों में जितनी जानकारी पायी जाती है, वह आसानी से इंसान के दिमाग में समा सकती है। और यह भी कि इंसान के दिमाग में कुल कितनी जानकारी रखने की क्षमता है इसका अंदाज़ा लगाना नामुमकिन है। वैज्ञानिकों को इस ‘अद्‌भुत रीति से रचे गए’ अंग का अध्ययन करते हुए कई साल बीत चुके हैं, फिर भी वे कबूल करते हैं कि इसके काम करने के तरीके के बारे में वे शायद ही कभी पूरी तरह समझ पाएँ।

      13, 14. (क) चींटियाँ और दूसरे प्राणी कैसे दिखाते हैं कि वे “सहज-वृत्ति से बुद्धिमान” हैं, और यह हमें उनके सिरजनहार के बारे में क्या सिखाता है? (ख) हम क्यों कह सकते हैं कि मकड़ी के जाले जैसी चीज़ “बुद्धि से” बनायी एक रचना है?

      13 लेकिन इंसान, सृष्टि में ज़ाहिर यहोवा की बुद्धि का सिर्फ एक उदाहरण है। भजन 104:24 कहता है: “हे यहोवा तेरे काम अनगिनित हैं! इन सब वस्तुओं को तू ने बुद्धि से बनाया है; पृथ्वी तेरी सम्पत्ति से परिपूर्ण है।” हमारे आस-पास पायी जानेवाली यहोवा की हर रचना से उसकी बुद्धि ज़ाहिर होती है। चींटी की मिसाल लीजिए, वह “सहज-वृत्ति से बुद्धिमान” होती है। (नीतिवचन 30:24, NW) जी हाँ, चींटियों की बस्तियों में बहुत बढ़िया किस्म की व्यवस्था पायी जाती है। इनकी कुछ बस्तियों में, एफिड नाम के कीटों का मवेशियों की तरह पालन-पोषण किया जाता है और उनसे बदले में भोजन हासिल किया जाता है। दूसरे किस्म की चींटियाँ फफूँद की “फसल” उगाती हैं और उसकी देखभाल करती हैं। बहुत-से दूसरे जीव ऐसे बनाए गए हैं कि सहज-वृत्ति से अद्‌भुत काम कर लेते हैं। एक साधारण-सी मक्खी, हवा में उड़ते वक्‍त ऐसी कलाबाज़ियाँ दिखाती है, जिसकी नकल इंसान के बढ़िया-से-बढ़िया हवाई-जहाज़ नहीं कर सकते। प्रवासी पक्षी, तारों, पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र या अपने मस्तिष्क में पाए जानेवाले एक तरह के नक्शे की मदद से दूर-दूर का सफर तय कर लेते हैं। जीव-वैज्ञानिक इन जीवों के जटिल व्यवहार का अध्ययन करने में सालों-साल बिताते हैं। तो जिसने इन परिंदों में ऐसे व्यवहार की रचना की है वह खुद कितना बुद्धिमान होगा!

      14 वैज्ञानिकों ने यहोवा की सृष्टि में ज़ाहिर बुद्धि से बहुत कुछ सीखा है। इंजीनियरी में तो एक ऐसा क्षेत्र भी है जो बायोमिमेटिक्स कहलाता है, जिसमें कुदरत में पाए जानेवाले डिज़ाइनों की नकल करने की कोशिश की जाती है। मिसाल के लिए, आपने मकड़ी के जाले की सुंदरता को देखकर ज़रूर ताज्जुब किया होगा। मगर एक इंजीनियर की नज़र में यह एक लाजवाब डिज़ाइन है। कमज़ोर लगनेवाले इसके धागे, स्टील के तारों से भी मज़बूत और बुलेटप्रूफ जैकेट के धागों से भी पक्के होते हैं। आखिर यह जाला कितना मज़बूत होता है? मान लीजिए कि अगर मकड़ी का एक जाला, मछली पकड़ने के जाल के बराबर बनाया जाए, तो इससे आप बीच हवा में पूरी रफ्तार से उड़ते एक हवाई-जहाज़ को रोक सकते हैं! जी हाँ, यहोवा ने ऐसी सभी चीज़ों को अपनी “बुद्धि से” बनाया है।

      परमेश्‍वर के बनाए जीव-जंतुओं में सहज-वृत्ति और लाजवाब डिज़ाइन पाया जाता है: मकड़ी का जाल, चींटियाँ कटे हुए पत्ते उठाए हुए तरतीब से चल रही हैं, सारे हंस मिलकर प्रवास कर रहे हैं

      किसने धरती के जीवों को “सहज-वृत्ति से बुद्धिमान” बनाया?

      धरती से बाहर बुद्धि

      15, 16. (क) तारों भरा आकाश यहोवा की बुद्धि का क्या सबूत देता है? (ख) स्वर्गदूतों की विशाल संख्या के महान सेनापति होने के नाते, कैसे यहोवा की बुद्धि का सबूत मिलता है कि वह एक अच्छा प्रशासक है?

      15 यहोवा की बुद्धि सारे जहान में उसकी रचनाओं से ज़ाहिर होती है। तारों भरा आकाश, जिसके बारे में हमने अध्याय 5 में काफी चर्चा की थी, अंतरिक्ष में यूँ ही बेतरतीब फैला हुआ नहीं है। ‘नभ के नियमों’ में पायी जानेवाली यहोवा की बुद्धि की बदौलत, तारे बहुत खूबसूरती और व्यवस्था के साथ मंदाकिनियों में सजे हुए हैं और मंदाकिनियाँ अपने समूहों में सजी हुई हैं जिन्हें क्लस्टर कहा जाता है, और ढेर सारे क्लस्टर बड़ी खूबसूरती के साथ महा या सुपर क्लस्टरों में सजे हुए हैं। (अय्यूब 38:33, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) इसलिए इसमें कोई हैरानी की बात नहीं कि यहोवा इन आकाशीय पिंडों को एक “सेना” कहकर बुलाता है! (यशायाह 40:26, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) लेकिन, एक और सेना है जो इससे भी शक्‍तिशाली ढंग से यहोवा की बुद्धि का सबूत देती है।

      16 जैसा हमने अध्याय 4 में देखा था, परमेश्‍वर की एक उपाधि है “सेनाओं का यहोवा,” क्योंकि वह करोड़ों आत्मिक प्राणियों की विशाल सेना का महान सेनापति है। यह तो यहोवा की शक्‍ति का सबूत हुआ, इससे उसकी बुद्धि कैसे ज़ाहिर होती है? ज़रा सोचिए: यहोवा और यीशु कभी-भी खाली नहीं बैठते, वे हमेशा काम करते रहते हैं। (यूहन्‍ना 5:17) तो फिर, यह तर्क करना भी सही होगा कि परमप्रधान के स्वर्गदूत, उसके सेवक भी हमेशा काम में व्यस्त रहते हैं। और यह मत भूलिए कि वे इंसान से कहीं ज़्यादा बुद्धिमान और शक्‍तिशाली, ऊँची श्रेणी के प्राणी हैं। (इब्रानियों 1:7; 2:7) फिर भी, यहोवा ने इन करोड़ों-करोड़ स्वर्गदूतों को ‘उसके वचन को पूरा करने’ और ‘उसकी इच्छा पूरी करने’ का ऐसा काम देकर अरबों-अरब साल से व्यस्त रखा है जिससे उन्हें लगातार खुशी और संतोष मिलता है। (भजन 103:20, 21) इतनी बड़ी व्यवस्था को चलानेवाले प्रशासक के पास क्या ही लाजवाब बुद्धि होगी!

      “अद्वैत बुद्धिमान” यहोवा

      17, 18. बाइबल क्यों कहती है कि यहोवा “अद्वैत बुद्धिमान” है, और हमें क्यों उसकी बुद्धि से विस्मित होना चाहिए?

      17 ऐसे सबूतों के मद्देनज़र, बाइबल का यह कहना कि यहोवा की बुद्धि सर्वोत्तम है क्या कोई ताज्जुब की बात है? मिसाल के लिए, बाइबल कहती है कि यहोवा “अद्वैत बुद्धिमान” है। (रोमियों 16:27) सिर्फ यहोवा ही सर्वश्रेष्ठ, सर्वोत्तम बुद्धि का मालिक है। वही सारी सच्ची बुद्धि का स्रोत है। (नीतिवचन 2:6) इसीलिए तो यीशु भी, जो यहोवा के सिरजे हुए प्राणियों में सबसे बुद्धिमान था, अपनी बुद्धि पर भरोसा करने के बजाय वही कहता था जो उसका पिता बताता था।—यूहन्‍ना 12:48-50.

      18 ध्यान दीजिए कि प्रेरित पौलुस ने कैसे यहोवा की बुद्धि के बेजोड़ होने की बात कही: “आहा! परमेश्‍वर का धन और बुद्धि और ज्ञान क्या ही गहरा है! उस के फ़ैसले समझ से बाहर और उस की राहें बेनिशान हैं।” (रोमियों 11:33, हिन्दुस्तानी बाइबिल) इस आयत की शुरूआत में पौलुस ने हैरत से भरकर “आहा!” कहा, जिससे उसकी गहरी भावनाओं का, खासकर उसके ज़बरदस्त विस्मय का पता लगता है। इस आयत में उसने “गहरा” शब्द के लिए जिस यूनानी शब्द को चुना वह “अथाह कुंड” के लिए लिखे जानेवाले शब्द से ताल्लुक रखता है। इसलिए, उसके शब्दों से हमारे मन में एक तसवीर उभर आती है। जब हम यहोवा की बुद्धि के बारे में सोचते हैं, तो यह ऐसा है मानो हम एक अंतहीन, अथाह खाई में झाँक रहे हों। वह इतनी गहरी और इतनी विशाल है कि हम कभी यह समझ ही नहीं सकते कि वह कितनी बड़ी है, फिर उसकी एक-एक बात समझाने या एक-एक बारीकी दिखानेवाला नक्शा बनाने की बात तो हम सोच भी नहीं सकते। (भजन 92:5) यह जानकर क्या हमारे अंदर नम्रता पैदा नहीं होनी चाहिए?

      19, 20. (क) उकाब, परमेश्‍वर की बुद्धि की सही निशानी क्यों है? (ख) यहोवा ने भविष्य में झाँकने की अपनी काबिलीयत का कैसे सबूत दिया है?

      19 एक और मायने में यहोवा “अद्वैत बुद्धिमान” है: सिर्फ वही भविष्य में झाँक सकता है। याद कीजिए, यहोवा ने अपनी बुद्धि की निशानी देने के लिए, दूरदृष्टि रखनेवाले उकाब को इस्तेमाल किया है। एक गरुड़ (गोल्डन ईगल) का वज़न शायद सिर्फ पाँच किलो हो मगर इसकी आँखें, आकार में एक आदमी की आँखों से भी बड़ी होती हैं। इस उकाब की नज़र बड़ी तेज़ होती है, और वह हज़ारों मीटर की ऊँचाई या शायद मीलों दूर से भी ज़मीन पर अपने छोटे-से शिकार को देख सकता है! एक बार यहोवा ने खुद उकाब के बारे में कहा: “वह अपनी आंखों से दूर तक देखता है।” (अय्यूब 39:29) उसी तरह, यहोवा भविष्य में “दूर तक” देख सकता है!

      20 बाइबल में ऐसे ढेरों सबूत हैं जो साबित करते हैं कि यह बात बिलकुल सच है। इसमें सैकड़ों भविष्यवाणियाँ या समय से पहले लिखा इतिहास पाया जाता है। युद्धों के नतीजे, विश्‍वशक्‍तियों का उभरना और गिरना, यहाँ तक कि कुछ सेनापति कौन-सी रणनीति अपनाएँगे यह भी भविष्यवाणियों के रूप में बाइबल में पहले से दर्ज़ था, और कुछ मामलों में तो घटना घटने के सैकड़ों साल पहले से इनके बारे में लिखा गया था।—यशायाह 44:25–45:4; दानिय्येल 8:2-8, 20-22.

      21, 22. (क) यहोवा ने पहले से जान लिया है कि आप ज़िंदगी में कौन-कौन-से चुनाव करेंगे, यह धारणा क्यों बेबुनियाद है? उदाहरण देकर समझाइए। (ख) हम कैसे जानते हैं कि यहोवा की बुद्धि निष्ठुर नहीं है, ना ही यह हमदर्दी की भावना से खाली है?

      21 तो फिर, क्या इसका मतलब यह है कि आप ज़िंदगी में जो-जो चुनाव करेंगे उन्हें परमेश्‍वर ने पहले से ही जान लिया है? जो लोग इंसान का नसीब पहले से लिखे होने की शिक्षा देते हैं, वे दावे से इसके जवाब में ‘हाँ’ कहेंगे। लेकिन, यह धारणा दरअसल यहोवा की बुद्धि को कमज़ोर बताने के बराबर है, क्योंकि इससे ऐसा लगता है कि यहोवा भविष्य में देखने की अपनी काबिलीयत पर काबू नहीं रख सकता। इसे समझने के लिए एक उदाहरण पर ध्यान दीजिए: मान लीजिए कि आप एक ऐसे गायक हैं जिसे मधुर और सुरीली आवाज़ का वरदान मिला है। तो क्या इसका मतलब यह होगा कि आप चौबीसों घंटे गाते रहेंगे और इस पर आपका कोई बस नहीं होगा? ऐसा सोचना ही बेतुका लगता है! उसी तरह, यहोवा के पास भविष्य को जानने की काबिलीयत ज़रूर है, मगर इसका मतलब यह नहीं कि वह हर वक्‍त भविष्य देखता रहता है। अगर यहोवा ऐसा करे तो यह आज़ाद मरज़ी के मुताबिक चलने के हमारे हक पर धावा बोलने के बराबर होगा। मगर हम जानते हैं कि यहोवा हमसे यह अनमोल तोहफा कभी नहीं छीनेगा।—व्यवस्थाविवरण 30:19, 20.

      22 इससे भी बदतर, नसीब में सबकुछ पहले से लिखा होने का विचार यही एहसास दिलाता है कि यहोवा की बुद्धि निष्ठुर है, उसमें प्यार, हमदर्दी या करुणा जैसी कोई भावना है ही नहीं। मगर ऐसा कहना सरासर झूठ होगा! बाइबल सिखाती है कि यहोवा “हृदय में बुद्धिमान्‌” है। (तिरछे टाइप हमारे; अय्यूब 9:4, NHT) इसका मतलब यह नहीं कि यहोवा का सचमुच का हृदय है, बल्कि बाइबल में अकसर इस शब्द को अंदर का स्वभाव बताने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें किसी के इरादे और प्रेम जैसी भावनाएँ शामिल होती हैं। इसलिए यहोवा के दूसरे गुणों की तरह, उसकी बुद्धि को भी उसका प्रेम प्रेरित करता है।—1 यूहन्‍ना 4:8.

      23. यहोवा की बुद्धि की श्रेष्ठता से हमें क्या करने की प्रेरणा मिलनी चाहिए?

      23 बेशक, यहोवा की बुद्धि पूरी तरह से भरोसे के लायक है। यह हमारी अपनी बुद्धि से इतनी श्रेष्ठ, इतनी उत्तम है कि परमेश्‍वर का वचन प्यार के साथ हमसे यह अनुरोध करता है: “तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा।” (नीतिवचन 3:5, 6) आइए अब हम यहोवा की बुद्धि की गहराई में जाएँ, ताकि अपने सबसे बुद्धिमान परमेश्‍वर के और करीब आएँ।

      मनन के लिए सवाल

      • अय्यूब 28:11-28 परमेश्‍वर की बुद्धि कितनी अनमोल है, और इस विषय पर मनन करने से क्या फायदा हो सकता है?

      • भजन 104:1-25 सृष्टि में यहोवा की बुद्धि कैसे ज़ाहिर होती है, और यह आपके अंदर कैसी भावनाएँ जगाती है?

      • नीतिवचन 3:19-26 अगर हम यहोवा की बुद्धि पर विचार करें और उसके मुताबिक काम करें, तो हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर इसका क्या असर हो सकता है?

      • दानिय्येल 2:19-28 यहोवा को भेदों का प्रगटकर्त्ता क्यों कहा गया है, और उसके वचन की भविष्यवाणियों से ज़ाहिर होनेवाली बुद्धि का हम पर क्या असर होना चाहिए?

  • ‘परमेश्‍वर के वचन’ में बुद्धि
    यहोवा के करीब आओ
    • एक इंसानी लेखक, पवित्र आत्मा से मार्गदर्शन पाकर बाइबल की एक किताब लिखता है

      अध्याय 18

      ‘परमेश्‍वर के वचन’ में बुद्धि

      1, 2. यहोवा ने हमें कौन-सा “खत” लिखा है, और क्यों?

      क्या आपको कभी दूर देश में रहनेवाले किसी अज़ीज़ का खत मिला है? जिसे हम दिलो-जान से चाहते हैं उसका प्यार-भरा खत हमें जितनी खुशी देता है, उतनी शायद ही कोई और बात दे। वह ठीक-ठाक है, उसके साथ क्या-क्या हुआ और वह आगे क्या करने की सोच रहा है, ये सारी बातें पढ़कर हमें बेहद खुशी होती है। चिट्ठियों से हमारे अज़ीज़ हमारे दिल के करीब रहते हैं, फिर चाहे वे सात समंदर पार ही क्यों न हों।

      2 तो फिर, इससे बढ़कर हमारे लिए खुशी की बात और क्या होगी कि जिस परमेश्‍वर से हम प्यार करते हैं उसका लिखा हुआ संदेश हमें मिले? यहोवा ने भी हमें एक तरह का “खत” लिखा है, और वह है उसका वचन बाइबल। इसमें उसने बताया है कि वह कौन है, उसने क्या-क्या किया है, वह आगे क्या करने जा रहा है, और इसके अलावा भी बहुत कुछ। यहोवा ने हमें अपना वचन इसलिए दिया है, क्योंकि वह चाहता है कि हम उसके करीब आएँ। हमारे सबसे बुद्धिमान परमेश्‍वर ने हम तक अपने विचार पहुँचाने का यह सबसे बेहतरीन तरीका चुना है। बाइबल में जो लिखा है और जिस तरीके से लिखा है, उसमें बेजोड़ बुद्धि देखी जा सकती है।

      लिखित वचन क्यों?

      3. यहोवा ने मूसा को कानून-व्यवस्था किस तरह दी?

      3 कुछ लोग शायद सोचें, ‘यहोवा ने इंसान से बात करने के लिए कोई और हैरतअँगेज़ तरीका, जैसे आकाशवाणी का इस्तेमाल क्यों नहीं किया?’ दरअसल, कई मौकों पर यहोवा ने अपने स्वर्गदूतों के ज़रिए आकाशवाणी भी की। मिसाल के लिए, जब उसने इस्राएल को व्यवस्था दी तो ऐसा ही किया था। (गलतियों 3:19) स्वर्ग से आवाज़ सुनकर इस्राएलियों पर भय छा गया, यहाँ तक कि वे डर के मारे काँपने लगे। तब उन्होंने यहोवा से कहा कि वह इस तरह उनसे बात न करे बल्कि मूसा के ज़रिए बात करे। (निर्गमन 20:18-20) इसलिए, 600 नियमोंवाली कानून-व्यवस्था शब्द-ब-शब्द मूसा को सुनायी गयी।

      4. समझाइए कि क्यों ज़बानी तौर पर परमेश्‍वर के नियमों को दूसरों तक पहुँचाने का तरीका भरोसेमंद नहीं होता।

      4 लेकिन, मूसा इस कानून-व्यवस्था को अगर लिखकर न रखता, तो क्या होता? क्या वह इस व्यवस्था के ढेरों नियमों का एक-एक शब्द याद रख पाता और क्या बिना चूक किए इसे शब्द-ब-शब्द सारी इस्राएल जाति तक पहुँचा पाता? अगर वह लिखता नहीं, तो आनेवाली पीढ़ियाँ क्या करतीं? क्या उन्हें सिर्फ ज़बानी तौर पर कही गयी बातों पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहना पड़ता? उन तक परमेश्‍वर की व्यवस्था मुँह-ज़बानी पहुँचाने का तरीका बिलकुल भरोसेमंद नहीं होता। मान लीजिए कि आपको लंबी कतार में खड़े लोगों को एक कहानी सुनानी है। आप पहले इंसान को कहानी सुनाते हैं, फिर पहला दूसरे को, दूसरा तीसरे को। आखिरी इंसान तक पहुँचते-पहुँचते आपकी कहानी काफी हद तक बदल चुकी होगी, है कि नहीं? लेकिन परमेश्‍वर की कानून-व्यवस्था के इस तरह बदल जाने का कोई खतरा नहीं था क्योंकि यह लिखित रूप में थी।

      5, 6. यहोवा ने मूसा को अपने वचनों के बारे में क्या करने की हिदायत दी, और इनका लिखित रूप में होना क्यों हमारे लिए एक आशीष है?

      5 यहोवा ने बुद्धिमानी का सबूत देते हुए यह फैसला किया कि वह अपने वचन को लिखित रूप में दर्ज़ करवाएगा। उसने मूसा को हिदायत दी: “ये वचन लिख ले; क्योंकि इन्हीं वचनों के अनुसार मैं तेरे और इस्राएल के साथ वाचा बान्धता हूं।” (निर्गमन 34:27) इस तरह, सा.यु.पू. 1513 से बाइबल को लिखने का दौर शुरू हुआ। आनेवाले 1,610 सालों के दौरान, यहोवा ने करीब 40 लेखकों से “अनेक अवसरों पर अनेक प्रकार से . . . बातचीत की” और उन्होंने ये बातें बाइबल में लिख लीं। (इब्रानियों 1:1, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) उनके साथ-साथ, ऐसे नकलनवीसों ने जो अपने काम के लिए समर्पित थे, पूरी एहतियात बरतते हुए बारीकी के साथ बाइबल की नकलें तैयार कीं ताकि परमेश्‍वर के वचन को सुरक्षित रखा जा सके।—एज्रा 7:6; भजन 45:1.

      6 यह हमारे लिए सचमुच बड़ी आशीष है कि यहोवा ने लिखित रूप में हमसे बातचीत की है। क्या आपको कभी ऐसा कोई खत मिला है जिससे आपको ज़रूरत की घड़ी में ऐन वक्‍त पर बहुत दिलासा मिला हो? ऐसे प्यारे खत को आप बहुत संभालकर रखते हैं और इसे बार-बार पढ़ते हैं। यहोवा ने हमें जो “खत” लिखा है वह ऐसा ही एक खत है। उसने अपने वचनों को लिख दिया है, इसलिए हम उन्हें बार-बार पढ़ सकते हैं और उसके संदेश पर मनन कर सकते हैं। (भजन 1:2) जब भी हमें ज़रूरत हो, तब हम ‘शास्त्र से शान्ति’ पा सकते हैं।—रोमियों 15:4.

      इंसानी लेखक क्यों?

      7. यहोवा ने बाइबल लिखने के लिए इंसानों का इस्तेमाल किया, इससे उसकी बुद्धि कैसे दिखायी देती है?

      7 यहोवा ने अपना वचन लिखने के लिए इंसानों का इस्तेमाल करके अपनी बुद्धि का सबूत दिया है। ज़रा सोचिए: अगर यहोवा बाइबल लिखने के लिए स्वर्गदूतों का इस्तेमाल करता तो क्या इसमें वही कशिश होती जो अब है? माना कि स्वर्गदूतों ने अपने श्रेष्ठ नज़रिए से यहोवा का वर्णन किया होता, उसके लिए अपनी भक्‍ति का बखान किया होता और परमेश्‍वर के वफादार सेवकों के बारे में ब्यौरा भी लिखा होता। मगर उन सिद्ध आत्मिक प्राणियों का ज्ञान, तजुर्बा और उनकी शक्‍ति हमसे कई गुना बढ़कर है, इसलिए क्या हम उनके नज़रिए से यहोवा को ठीक-ठीक समझ पाते?—इब्रानियों 2:6, 7.

      “हर एक पवित्रशास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से रचा गया है”

      8. किस तरह बाइबल के लेखकों को अपनी दिमागी काबिलीयत इस्तेमाल करने की छूट दी गयी? (फुटनोट भी देखिए।)

      8 लिखने के लिए इंसानों का इस्तेमाल करके, यहोवा ने हमें वही दिया जिसकी हमें ज़रूरत थी, यानी एक ऐसा शास्त्र जिसे “परमेश्‍वर की प्रेरणा” से, मगर इंसान की नज़र से लिखा गया। (2 तीमुथियुस 3:16) यहोवा ने यह कैसे मुमकिन किया? कई मामलों में उसने लेखकों को यह छूट दी कि वे अपनी दिमागी काबिलीयत का इस्तेमाल करें और “मनोहर शब्द” ढूँढ़कर “सच्चाई के वचन शुद्ध रूप में” लिखें। (सभोपदेशक 12:10, 11, NHT) यही वजह है कि बाइबल में अलग-अलग लेखन-शैलियाँ पायी जाती हैं; इसके लेखक जिस माहौल में पले-बढ़े थे, उनका जो पेशा था और उनमें जो-जो गुण थे उनकी शैलियों से इसकी साफ झलक मिलती है।a तो भी, ये पुरुष “पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जाकर परमेश्‍वर की ओर से बोलते थे।” (2 पतरस 1:21) इसलिए, आखिरकार जो रचना तैयार हुई, वह इंसानों का नहीं बल्कि सचमुच “परमेश्‍वर का वचन” है।—1 थिस्सलुनीकियों 2:13.

      9, 10. इंसानी लेखकों की वजह से क्यों बाइबल के संदेश में अपनापन है, और इसका संदेश क्यों हमें अपनी तरफ खींचता है?

      9 बाइबल को इंसानों ने लिखा है, इसीलिए हम इसमें अपनापन महसूस करते हैं और इसका संदेश हमें अपनी तरफ खींचता है। इसके लिखनेवाले हमारी तरह ही महसूस करते थे। असिद्ध होने की वजह से, उन पर वैसी ही परीक्षाएँ और दबाव आए जैसे हम पर आते हैं। कई बार, यहोवा की आत्मा ने उन्हें अपनी ही भावनाओं और संघर्षों के बारे में लिखने की प्रेरणा दी। (2 कुरिन्थियों 12:7-10) इसलिए उन्होंने जिस तरह अपनी आपबीती बयान की, वह कोई स्वर्गदूत नहीं कर सकता था।

      10 इस्राएल के राजा दाऊद की ही मिसाल लीजिए। जब उसने गंभीर पाप किया, तो उसने एक भजन की रचना की जिसमें उसने परमेश्‍वर से माफी की भीख माँगते हुए अपने दिल का हाल सुनाया। उसने लिखा: “मेरा पाप छुड़ाकर मुझे शुद्ध कर! मैं तो अपने अपराधों को जानता हूं, और मेरा पाप निरन्तर मेरी दृष्टि में रहता है। देख, मैं अधर्म के साथ उत्पन्‍न हुआ, और पाप के साथ अपनी माता के गर्भ में पड़ा। मुझे अपने साम्हने से निकाल न दे, और अपने पवित्र आत्मा को मुझ से अलग न कर। टूटा मन परमेश्‍वर के योग्य बलिदान है; हे परमेश्‍वर, तू टूटे और पिसे हुए मन को तुच्छ नहीं जानता।” (भजन 51:2, 3, 5, 11, 17) लेखक के दिल में कितना दर्द है, क्या आप उसे महसूस नहीं करते? एक असिद्ध इंसान के सिवाय और कौन दिल की गहरी भावनाएँ इस तरह बयान कर सकता था?

      लोगों के बारे में क्यों?

      11. लोगों की ज़िंदगियों की कैसी सच्ची मिसालें, बाइबल में “हमारी ही शिक्षा के लिये” लिखी गयी हैं?

      11 एक और बात है जिसकी वजह से बाइबल का संदेश हमें अपनी तरफ खींचता है और वह यह कि इसमें काफी हद तक असली लोगों के बारे में लिखा गया है। जी हाँ, इसमें उन लोगों के सच्चे किस्से पाए जाते हैं जो या तो परमेश्‍वर के सेवक थे, या फिर नहीं थे। हम उनकी आपबीती, उनकी तकलीफों और खुशियों के बारे में इस किताब में पढ़ते हैं। हम यह भी देख पाते हैं कि उनके फैसलों का उनकी ज़िंदगी पर क्या असर हुआ। और इन सभी को “हमारी ही शिक्षा के लिये” इसमें लिखा गया है। (रोमियों 15:4) सचमुच के लोगों की ज़िंदगियों की मिसाल देकर यहोवा ने हमें ऐसे तरीके से सिखाया है, जिसका सीधे हमारे दिल पर असर होता है। आइए कुछ मिसालों पर गौर करें।

      12. बाइबल में विश्‍वासघाती लोगों के जो किस्से हैं, वे हमारी किस तरह मदद करते हैं?

      12 बाइबल में विश्‍वासघातियों यहाँ तक कि दुष्ट लोगों का ज़िक्र पाया जाता है और यह भी बताया गया है कि उनका क्या हश्र हुआ। उनके बारे में लिखे किस्सों के ज़रिए हम कई दुर्गुणों की ज़िंदा मिसाल देख सकते हैं, और उन्हें आसानी से समझ सकते हैं। मिसाल के तौर पर, विश्‍वासघात करने के खिलाफ क्या कोई आज्ञा उतनी असरदार हो सकती थी जितना कि यहूदा की मिसाल, जो विश्‍वासघात की जीती-जागती तसवीर था और जिसने यीशु के साथ गद्दारी करके उसे मरवाने की साज़िश रची थी? (मत्ती 26:14-16, 46-50; 27:3-10) ऐसे किस्सों को हम आसानी से याद रख पाते हैं, इसलिए उनका हमारे दिल पर गहरा असर होता है और ये ऐसे घिनौने दुर्गुणों को पहचानने और उनसे दूर रहने में हमारी मदद करते हैं।

      13. अच्छे गुणों को समझने में बाइबल हमारी किस तरह मदद करती है?

      13 बाइबल हमें परमेश्‍वर के बहुत-से वफादार सेवकों के बारे में भी बताती है। यह उनकी भक्‍ति और वफादारी का ज़िक्र करती है। हम उन गुणों की जीती-जागती मिसालें भी देखते हैं, जिन्हें अपने अंदर पैदा करके हम परमेश्‍वर के करीब आ सकते हैं। मिसाल के लिए, विश्‍वास को लीजिए। बाइबल, विश्‍वास की परिभाषा देती है और यह बताती है कि परमेश्‍वर को खुश करने के लिए यह गुण कितना ज़रूरी है। (इब्रानियों 11:1, 6) इतना ही नहीं, बाइबल में विश्‍वास की ज़िंदा मिसालें भी दर्ज़ हैं। ज़रा इब्राहीम के उस विश्‍वास के बारे में सोचिए, जो उसने इसहाक को बलि चढ़ाते वक्‍त दिखाया था। (उत्पत्ति, अध्याय 22; इब्रानियों 11:17-19) इन किस्सों की मदद से “विश्‍वास” के और भी गहरे मायने पता लगते हैं और इसे समझना हमारे लिए ज़्यादा आसान हो जाता है। है ना यहोवा कितना बुद्धिमान, जो न सिर्फ हमें ऐसे अच्छे गुण पैदा करने के लिए उकसाता है, बल्कि इन गुणों की ज़िंदा मिसालें भी देता है।

      14, 15. बाइबल हमें उस स्त्री के बारे में क्या बताती है जो मंदिर में आयी थी, और हम उसके किस्से से यहोवा के बारे में क्या सीखते हैं?

      14 बाइबल में, लोगों के सच्चे किस्सों से अकसर हमें यहोवा की शख्सियत के बारे में कुछ-न-कुछ सीखने को मिलता है। गौर कीजिए कि बाइबल में उस स्त्री के बारे में क्या लिखा है जिस पर यीशु ने मंदिर में खास तौर से ध्यान दिया था। मंदिर की दान-पेटियों के पास बैठा, यीशु लोगों को पेटियों में दान डालता हुआ देख रहा था। बहुत-से अमीर लोग आए और उन्होंने अपनी “बढ़ती में से” कुछ दान दिया। मगर यीशु की नज़र एक गरीब विधवा पर आकर टिक गयी। उसने “दो छोटे-छोटे सिक्के” दान दिए, “जिनका मूल्य लगभग एक पैसे के बराबर” था।b उसके पास इन दो दमड़ियों के अलावा कुछ न था। यीशु ने, जो हर मामले में बिलकुल यहोवा की तरह सोचता था, कहा: “इस कंगाल विधवा ने सब से बढ़कर डाला है।” इन शब्दों का मतलब यह है कि उसका दान बाकी सब लोगों के कुल दान से भी बढ़कर था।—मरकुस 12:41-44; लूका 21:1-4; यूहन्‍ना 8:28.

      15 क्या यह बात मायने नहीं रखती कि उस दिन मंदिर में आनेवाले तमाम लोगों में से, सिर्फ उस विधवा पर ध्यान दिया गया और उसके बारे में बाइबल में दर्ज़ करवाया गया? इस मिसाल से, यहोवा हमें सिखाता है कि वह एक कदरदान परमेश्‍वर है। वह पूरे तन-मन से दिए गए हमारे हर दान से खुश होता है, फिर चाहे दूसरों के दान की तुलना में हमारा दान कितना ही कम क्यों न दिखायी दे। दिल को दिलासा देनेवाली इतनी बड़ी सच्चाई हमें सिखाने का, यहोवा के पास इस मिसाल से बेहतर और क्या तरीका हो सकता था!

      बाइबल में जो नहीं बताया

      16, 17. यहोवा ने अपने वचन में जिन बातों को शामिल न करने का फैसला किया उनसे भी कैसे उसकी बुद्धि ज़ाहिर होती है?

      16 जब आप अपने किसी अज़ीज़ को खत लिखते हैं तो उसमें सारी बातें लिखना नामुमकिन होता है। इसलिए आप सोच-समझकर वही लिखते हैं जो ज़रूरी है। उसी तरह, यहोवा ने सिर्फ गिने-चुने लोगों और घटनाओं के बारे में अपने वचन में दर्ज़ करवाया है। मगर जानकारी देनेवाले इन किस्सों में भी बाइबल हर बात का ब्यौरा नहीं देती। (यूहन्‍ना 21:25) मिसाल के लिए, जब बाइबल परमेश्‍वर के न्यायदंडों के बारे में बताती है, तो इस जानकारी से शायद हमें अपने हर सवाल का जवाब न मिले। यहोवा ने अपने वचन में जिन बातों को शामिल न करने का फैसला किया उससे भी उसकी बुद्धि दिखायी देती है। वह कैसे?

      17 जिस तरीके से बाइबल लिखी गयी है, वह हमारे दिल की जाँच करता है। इब्रानियों 4:12 कहता है: “परमेश्‍वर का वचन [या, संदेश] जीवित, और प्रबल, और हर एक दोधारी तलवार से भी बहुत चोखा है, और जीव, और आत्मा को, . . . अलग करके, वार पार छेदता है; और मन की भावनाओं और विचारों को जांचता है।” बाइबल का संदेश हमें अंदर तक बेध देता है, जिससे हमारे मन के विचार और असली इरादे खुलकर सामने आते हैं। जो लोग बाइबल में नुक्स निकालने के इरादे से इसे पढ़ते हैं, वे अकसर ऐसे हिस्सों पर यकीन करना मुश्‍किल पाते हैं जिनसे उन्हें पूरी तसल्ली नहीं होती। ऐसे लोग तो शायद इस बात पर भी सवाल उठाएँ कि क्या यहोवा सचमुच प्यार करनेवाला, बुद्धिमान और न्यायी परमेश्‍वर है?

      18, 19. (क) अगर बाइबल के एक किस्से से ऐसे सवाल उठते हैं जिनका हमें फौरन जवाब नहीं मिल सकता, तो हमें क्यों परेशान नहीं होना चाहिए? (ख) परमेश्‍वर का वचन समझने के लिए क्या ज़रूरी है, और यह कैसे यहोवा की महान बुद्धि का सबूत है?

      18 दूसरी तरफ, जब हम ध्यान लगाकर सच्चे दिल से बाइबल का अध्ययन करते हैं, तो हम यहोवा के बारे में वह देख पाते हैं जो पूरी बाइबल उसके बारे में सिखाती है। इसलिए, अगर कोई घटना पढ़कर हमारे मन में कुछ ऐसे सवाल उठते हैं जिनका हमें फौरन जवाब नहीं मिलता, तो हम इनको लेकर परेशान नहीं होते। इसे समझने के लिए एक उदाहरण लीजिए: अगर एक तसवीर के बहुत-से टुकड़े हों जिन्हें जोड़कर पूरी तसवीर बनती है, किसी एक टुकड़े को देखकर शायद हमें पता न चले कि वह कहाँ जुड़ेगा। लेकिन अगर हमने तसवीर के ज़्यादातर टुकड़ों को जोड़ लिया है, तो हमें यह समझने में मुश्‍किल न होगी कि पूरी तसवीर कैसी दिखेगी। उसी तरह, जब हम बाइबल का अध्ययन करते हैं, तो हम धीरे-धीरे सीखते हैं कि यहोवा किस तरह का परमेश्‍वर है और हमें उसकी सही तसवीर दिखायी देने लगती है। चाहे हम पहली बार में किसी किस्से को न समझ पाएँ या यह समझ न पाएँ कि उसमें परमेश्‍वर ने जो किया वह ठीक था या नहीं, तो भी बाइबल के अध्ययन से सीखी बातों की मदद से हम इस नतीजे पर ज़रूर पहुंच सकते हैं कि यहोवा का प्यार कभी कम नहीं होता, वह खरा है और सच्चा न्याय करता है।

      19 इसलिए, परमेश्‍वर के वचन को समझने के लिए ज़रूरी है कि हम सच्चे दिल और खुले दिमाग से इसे पढ़ें और इसका अध्ययन करें। क्या यह भी यहोवा की महान बुद्धि का सबूत नहीं? दुनिया के विद्वान ऐसी किताबें लिखते हैं जो सिर्फ “ज्ञानियों और समझदारों” के पल्ले पड़ती हैं। लेकिन ऐसी किताब की रचना सिर्फ परमेश्‍वर की बुद्धि से हो सकती है, जो उसी इंसान को समझ आए जिसका दिल साफ हो और इरादे नेक हों!—मत्ती 11:25.

      “खरी बुद्धि” देनेवाली किताब

      20. क्यों सिर्फ यहोवा ही हमें जीवन जीने का सबसे बेहतरीन तरीका बता सकता है, और बाइबल में ऐसा क्या है जिससे हमें मदद मिल सकती है?

      20 अपने वचन में, यहोवा हमें जीवन जीने का सबसे बेहतरीन तरीका बताता है। वह हमारा सिरजनहार है, इसलिए वह हमसे बेहतर जानता है कि हमारी ज़रूरतें क्या हैं। और इंसान की बुनियादी ज़रूरतें शुरू से लेकर आज तक नहीं बदलीं, आज भी इंसान प्यार पाना चाहता है, उसमें खुश रहने की तमन्‍ना है और वह दूसरों के साथ मधुर रिश्‍ते रखना चाहता है। बाइबल में ऐसी “खरी बुद्धि” का खज़ाना पाया जाता है, जो हमें अपनी ज़िंदगी को कामयाब बनाने में मदद दे सकती है। (नीतिवचन 2:7) बाइबल की समझ देनेवाली इस किताब के हर भाग में एक अध्याय यह समझने में हमारी मदद करता है कि कैसे हम बाइबल की बुद्धिमानी भरी सलाह पर अमल कर सकते हैं। लेकिन अभी हम सिर्फ एक मिसाल पर गौर करेंगे।

      21-23. बुद्धि से भरी क्या सलाह हमें बैर पालने और कुढ़ने से रोकेगी?

      21 क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि जो लोग दूसरों के खिलाफ मन में बैर पालते हैं और कुढ़ते रहते हैं, वे अकसर अपना ही नुकसान करते हैं? जलन-कुढ़न का बोझ बहुत भारी होता है। यह एक इंसान को किसी और बात के बारे में सोचने ही नहीं देता। उसका चैन छिन जाता है और वह खुश नहीं रह पाता। वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चलता है कि दूसरों के खिलाफ बैर पालने से दिल की और दूसरी कई गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे वैज्ञानिक अध्ययनों से बहुत पहले, बाइबल ने बुद्धिमानी से भरी यह सलाह दी: “क्रोध से परे रह, और जलजलाहट को छोड़ दे!” (भजन 37:8) पर हम ऐसा कैसे कर सकते हैं?

      22 परमेश्‍वर का वचन हमें बुद्धि भरी यह सलाह देता है: “जो मनुष्य बुद्धि [“अंदरूनी समझ,” NW] से चलता है वह विलम्ब से क्रोध करता है, और अपराध को भुलाना उसको सोहता है।” (नीतिवचन 19:11) अंदरूनी समझ वह काबिलीयत है जिससे इंसान मामले की तह तक पहुँच पाता है, और वह देख पाता है जो शायद अभी नज़र ना आता हो। अंदरूनी समझ हमें समझदार बनाती है, क्योंकि हम यह देख पाते हैं कि एक इंसान ने जो कहा और किया उसकी असली वजह क्या थी। अगर हम उसके नेक इरादों, उसकी भावनाओं और उसके हालात को समझने की कोशिश करें, तो हो सकता है कि हम उसके बारे में अपने दिलो-दिमाग से बुरे विचार और बुरी भावनाएँ निकाल पाएँ।

      23 बाइबल में यह सलाह भी दी गयी है: “एक दूसरे की सह लो, और एक दूसरे के अपराध क्षमा करो।” (कुलुस्सियों 3:13) शब्द, “एक दूसरे की सह लो” इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि हमारे लिए दूसरों के साथ धीरज से पेश आना, और उनके ऐसे अवगुणों को बरदाश्‍त करना ज़रूरी है जो हमें चिढ़ दिलाते हैं। ऐसी सहनशीलता हमें छोटी-छोटी बातों को लेकर मन में बैर पालने से रोकेगी। “क्षमा” करने का मतलब है, मन से नाराज़गी निकाल देना। जब हमारे पास दूसरों को माफ करने की ठोस वजह हो, तो हमें उन्हें माफ कर देना चाहिए। हमारा बुद्धिमान परमेश्‍वर जानता है कि इससे न सिर्फ दूसरे का भला होगा, बल्कि ऐसा करना हमारे दिल और दिमाग की शांति के लिए ज़रूरी है। (लूका 17:3, 4) परमेश्‍वर के वचन में क्या ही बेहतरीन बुद्धि पायी जाती है!

      24. जब हम परमेश्‍वर की बुद्धि के मुताबिक ज़िंदगी जीते हैं, तो इसका क्या अंजाम होता है?

      24 अपने अपार प्रेम की वजह से, यहोवा हम तक अपना संदेश पहुँचाना चाहता था। इसके लिए उसने सबसे बेहतरीन तरीका चुना, यानी पवित्र आत्मा देकर इंसानी लेखकों के ज़रिए एक “खत” लिखवाया। इसलिए बाइबल के पन्‍नों पर खुद यहोवा की बुद्धि पायी जाती है। यह बुद्धि “अति विश्‍वासयोग्य” है। (भजन 93:5) जब हम इस बुद्धि के मुताबिक अपनी ज़िंदगी जीते हैं और दूसरों में इसे बाँटते हैं, तो हम सहज ही अपने सबसे बुद्धिमान परमेश्‍वर के करीब जाने लगते हैं। अगले अध्याय में, हम यहोवा की दूरंदेशी बुद्धि की एक और बढ़िया मिसाल पर चर्चा करेंगे: भविष्यवाणी करने और अपने मकसद को पूरा करने की उसकी काबिलीयत।

      a मिसाल के लिए दाऊद ने, जो खुद एक चरवाहा था, अपने लेखनों में चरवाहों की ज़िंदगी की मिसालें दीं। (भजन 23) मत्ती, जो पहले कर वसूली का काम करता था, उसने अपने लेखन में बहुत बार संख्याओं और पैसों की कीमत का ज़िक्र किया है। (मत्ती 17:27; 26:15; 27:3) लूका ने जो एक वैद्य था, ऐसे शब्द इस्तेमाल किए जिससे उसके चिकित्सा के ज्ञान का पता लगता है।—लूका 4:38; 14:2; 16:20.

      b ये सिक्के लेप्टान कहलाते थे, जो उस वक्‍त में इस्तेमाल होनेवाले यहूदी सिक्कों में सबसे कम कीमत रखते थे। दो लेप्टा, एक दिन की कमाई के 1/64वें हिस्से के बराबर थे। इन दो सिक्कों में एक गौरैया भी नहीं खरीदी जा सकती थी, जो उस वक्‍त गरीब लोगों का भोजन हुआ करती थी।

      मनन के लिए सवाल

      • नीतिवचन 2:1-6 परमेश्‍वर के वचन में पायी जानेवाली बुद्धि हासिल करने के लिए कैसी मेहनत करना ज़रूरी है?

      • नीतिवचन 2:10-22 बाइबल की बुद्धि से भरी सलाह के मुताबिक जीने से हमें किन तरीकों से फायदा होगा?

      • रोमियों 7:15-25 बाइबल का यह भाग कैसे दिखाता है कि परमेश्‍वर के वचन को लिखने के लिए इंसानों को इस्तेमाल करना बुद्धिमानी थी?

      • 1 कुरिन्थियों 10:6-12 इस्राएल के बारे में बाइबल में दी चेतावनी की मिसालों से हम क्या सीख सकते हैं?

  • ‘एक पवित्र भेद में परमेश्‍वर की बुद्धि’
    यहोवा के करीब आओ
    • इब्राहीम आसमान में अनगिनत तारों को टकटकी लगाकर देखता है

      अध्याय 19

      ‘एक पवित्र भेद में परमेश्‍वर की बुद्धि’

      1, 2. किस ‘पवित्र भेद’ में हमें दिलचस्पी लेनी चाहिए, और क्यों?

      भेद! बहुत दिलचस्प, हैरतअंगेज़ और रहस्य से भरे होते हैं, इसलिए जो इनके बारे में जानते हैं वे इन्हें गुप्त रखना बहुत मुश्‍किल पाते हैं। लेकिन बाइबल कहती है: “परमेश्‍वर की महिमा, गुप्त रखने में है।” (नीतिवचन 25:2) जी हाँ, यहोवा इस दुनिया का महाराजाधिराज और सिरजनहार है, इसलिए पूरे हक के साथ वह कुछ भेदों को सिर्फ अपने तक रखता है और तब तक इंसानों पर ज़ाहिर नहीं करता जब तक कि उसका ठहराया हुआ सही वक्‍त न आ जाए।

      2 लेकिन, एक ऐसा भेद है जिसे यहोवा ने अपने वचन में ज़ाहिर किया है। यह एक हैरतअंगेज़ और दिलचस्प भेद है। इसे ‘परमेश्‍वर की इच्छा का पवित्र भेद’ कहा गया है। (इफिसियों 1:9, NW) इसके बारे में सीखने से न सिर्फ हमारी जिज्ञासा शांत होती है, बल्कि इसका ज्ञान हमें उद्धार दिला सकता है और यह हमें यहोवा की अथाह बुद्धि की एक झलक भी देता है।

      धीरे-धीरे ज़ाहिर किया गया

      3, 4. उत्पत्ति 3:15 में दर्ज़ भविष्यवाणी ने कैसे आस बँधायी, और उसमें कौन-सा रहस्य या “पवित्र भेद” छिपा हुआ था?

      3 जब आदम और हव्वा ने पाप किया, तो शायद ऐसा लगा होगा कि इस ज़मीन को फिरदौस बनाने और सिद्ध इंसानों से इसे आबाद करने का यहोवा का उद्देश्‍य विफल हो गया। मगर यहोवा ने फौरन इस समस्या का हल निकाला। उसने कहा: “मैं तेरे [यानी सर्प] और इस स्त्री के बीच में, और तेरे वंश और इसके वंश के बीच में बैर उत्पन्‍न करूंगा, वह तेरे सिर को कुचल डालेगा, और तू उसकी एड़ी को डसेगा।”—उत्पत्ति 3:15.

      4 ये बहुत ही उलझानेवाले और रहस्यमयी शब्द थे। यह स्त्री कौन थी? सर्प कौन था? सर्प के सिर को कुचलनेवाला यह “वंश” कौन था? आदम और हव्वा सिर्फ इस बारे में अटकलें ही लगा सकते थे। फिर भी, परमेश्‍वर के इन शब्दों ने, विश्‍वासघाती आदम और हव्वा के उन बच्चों की आस बँधायी जो परमेश्‍वर के वफादार रहते। आखिर में, धार्मिकता की जीत होती। यहोवा का मकसद हर हाल में पूरा होता। लेकिन कैसे? हाँ, यही तो एक रहस्य था! बाइबल इसे ‘एक पवित्र भेद में परमेश्‍वर की बुद्धि, छिपी हुई बुद्धि’ कहती है।—1 कुरिन्थियों 2:7, NW.

      5. उदाहरण देकर समझाइए कि यहोवा क्यों अपने भेदों को धीरे-धीरे ज़ाहिर करता है।

      5 यहोवा ‘भेदों का प्रगटकर्त्ता’ है, वह आगे चलकर और ज़्यादा जानकारी देता कि यह भेद कैसे अपने अंजाम तक पहुँचेगा। (दानिय्येल 2:28) मगर वह धीरे-धीरे और सिलसिलेवार ढंग से ऐसा करता। इसे समझने के लिए आइए एक उदाहरण लें: सोचिए एक छोटा लड़का जब अपने प्यारे पिता से पूछता है, “डैडी, मैं कहाँ से आया?” तो वह उसे कैसे जवाब देता है। एक समझदार पिता अपने बेटे को सिर्फ उतनी ही जानकारी देगा जितनी वह अपनी उम्र के हिसाब से समझ सके। जैसे-जैसे वह लड़का बड़ा होता है, वैसे-वैसे पिता उसे और भी बातें बताता है। उसी तरह यहोवा तय करता है कि अपने लोगों को, अपनी मरज़ी और उद्देश्‍य के बारे में और ज़्यादा जानकारी देने के लिए कौन-सी घड़ी, कौन-सा दौर एकदम सही रहेगा।—नीतिवचन 4:18; दानिय्येल 12:4.

      6. (क) एक वाचा या करारनामा क्यों किया जाता है? (ख) यह बात क्यों अनोखी है कि यहोवा, इंसान से वाचा बाँधने के लिए खुद पहल करता है?

      6 यहोवा ने इन भेदों पर से परदा कैसे उठाया? उसने एक-के-बाद-एक कई वाचाओं या करारनामों के ज़रिए बहुत-सी बातें ज़ाहिर कीं। शायद मकान खरीदने या पैसा उधार लेने या देने के लिए आपने भी किसी-न-किसी किस्म का करारनामा किया होगा। ऐसा करारनामा, इस बात की कानूनी गारंटी होता है कि आप और दूसरे पक्ष के लोग जिन शर्तों पर राज़ी हुए हैं, वे ज़रूर पूरी की जाएँगी। मगर यहोवा को इंसानों के साथ इस तरह की कानूनन वाचा या करारनामा करने की क्या ज़रूरत थी? उसका वचन ही अपने आप में उसके वादों की बहुत बड़ी गारंटी है। यह सच है, फिर भी यहोवा ने हम पर कृपा करते हुए अपने वचन के साथ-साथ कानूनी वाचाएँ बाँधकर अपने वादों को और भी पुख्ता किया। ये करारनामे पत्थर की लकीर जैसे अमिट थे। इनसे असिद्ध इंसानों को यहोवा के वादों पर भरोसा करने का और भी ठोस आधार मिलता है।—इब्रानियों 6:16-18.

      इब्राहीम के साथ वाचा

      7, 8. (क) यहोवा ने इब्राहीम के साथ क्या वाचा बाँधी, और इसने पवित्र भेद पर क्या रोशनी डाली? (ख) यहोवा ने धीरे-धीरे कैसे साफ किया कि वादा किया हुआ वंश किसका वंशज होगा?

      7 इंसान को फिरदौस से निकाले हुए दो हज़ार से भी ज़्यादा साल बीत चुके थे। तब यहोवा ने अपने वफादार सेवक इब्राहीम को बताया: “[मैं] निश्‍चय तेरे वंश को आकाश के तारागण . . . के समान अनगिनित करूंगा, . . . और पृथ्वी की सारी जातियां अपने को तेरे वंश के कारण धन्य मानेंगी: क्योंकि तू ने मेरी बात मानी है।” (उत्पत्ति 22:17, 18) यह सिर्फ एक वादा नहीं था, बल्कि यहोवा ने इसे एक कानूनी वाचा का रूप दिया और अपनी अटूट शपथ से इसके पूरा होने की गारंटी दी। (उत्पत्ति 17:1, 2; इब्रानियों 6:13-15) यह कितनी अद्‌भुत बात है कि इस विश्‍व के महाराजाधिराज ने इंसान को आशीष देने के लिए सचमुच का एक करार किया।

      ‘मैं तेरे वंश को आकाश के तारागण के समान अनगिनित करूंगा’

      8 इब्राहीम से की गयी वाचा ने ज़ाहिर किया कि वादा किया हुआ ‘वंश’ एक इंसान के रूप में आएगा, और वह इब्राहीम का एक वंशज होगा। मगर वह कौन होगा? कुछ समय के बाद, यहोवा ने ज़ाहिर किया कि इब्राहीम के बेटों में से इसहाक के ज़रिए वह वंश आएगा। फिर इसहाक के दो बेटों में से याकूब को चुना गया। (उत्पत्ति 21:12; 28:13, 14) बाद में, याकूब ने अपने बारह बेटों में से एक के लिए भविष्यवाणी के ये शब्द कहे: “जब तक शीलो [“वह जो इसका हकदार है,” NW, फुटनोट] न आए तब तक न तो यहूदा से राजदण्ड छूटेगा, न उसके वंश से व्यवस्था देनेवाला अलग होगा; और राज्य राज्य के लोग उसके अधीन हो जाएंगे।” (उत्पत्ति 49:10) अब यह बात ज़ाहिर हुई कि वंश एक राजा होगा, जो यहूदा का वंशज होगा!

      इस्राएल के साथ वाचा

      9, 10. (क) यहोवा ने इस्राएल जाति के साथ क्या वाचा बाँधी थी, और उस वाचा ने उनकी कैसे हिफाज़त की? (ख) व्यवस्था ने कैसे दिखाया कि इंसान को छुड़ौती की ज़रूरत है?

      9 सामान्य युग पूर्व 1513 में, यहोवा ने एक ऐसा इंतज़ाम किया जिससे पवित्र भेद के बारे में और ज़्यादा जानकारी मिलनेवाली थी। उसने इब्राहीम के वंशजों, यानी इस्राएल जाति के साथ एक वाचा बाँधी। यह मूसा की व्यवस्था वाचा थी। हालाँकि यह आज लागू नहीं होती, तो भी वादा किए गए वंश को लाने के यहोवा के उद्देश्‍य में यह एक अहम भूमिका निभानेवाली थी। वह कैसे? तीन तरीकों से। पहला, यह कानून-व्यवस्था हिफाज़त करनेवाली शहरपनाह जैसी थी। (इफिसियों 2:14) इसके धर्मी कानून, यहूदियों और गैर-यहूदियों के बीच एक बाड़े के समान थे। इस तरह, कानून-व्यवस्था ने वादा किए गए वंश के गोत्र को बचाए रखा। काफी हद तक इस व्यवस्था वाचा की बदौलत ही, इस्राएली एक जाति के रूप में उस वक्‍त तक बचे रहे जब आखिरकार परमेश्‍वर के ठहराए वक्‍त पर मसीहा ने यहूदा के गोत्र में जन्म लिया।

      10 दूसरा, इस कानून-व्यवस्था ने साफ-साफ दिखाया कि इंसान को छुड़ौती की सख्त ज़रूरत है। यह सिद्ध व्यवस्था थी, और इसने ज़ाहिर कर दिया कि पापी इंसान पूरी तरह इसका पालन नहीं कर सकते। इस तरह यह “अपराधों के कारण [“अपराधों को ज़ाहिर करने के लिए,” NW] . . . दी गई, कि उस वंश के आने तक रहे, जिस को प्रतिज्ञा दी गई थी।” (गलतियों 3:19) कानून-व्यवस्था में पशुओं की बलि चढ़ाने का इंतज़ाम था, जिनसे कुछ वक्‍त के लिए पापों का प्रायश्‍चित्त किया जा सकता था। मगर, जैसा पौलुस ने लिखा, यह “अनहोना है, कि बैलों और बकरों का लोहू पापों को दूर करे,” तो ये बलिदान मसीह के छुड़ौती बलिदान की एक छाया थे। (इब्रानियों 10:1-4) इसलिए वफादार यहूदियों के लिए यह वाचा, ‘मसीह के पास लाने के लिए उनकी संरक्षक’ बनी।—गलतियों 3:24, नयी हिन्दी बाइबिल।

      11. व्यवस्था वाचा में इस्राएल के लिए किस शानदार भविष्य का वादा किया गया था, मगर एक जाति के तौर पर इस्राएलियों ने यह आशा क्यों खो दी?

      11 तीसरा, इस वाचा ने इस्राएल जाति को एक शानदार भविष्य की आशा दी। यहोवा उन्हें बता चुका था कि अगर वे वाचा की शर्तों पर वफादारी से कायम रहे, तो वे “याजकों का राज्य और पवित्र जाति” ठहरेंगे। (निर्गमन 19:5, 6) यह सही है कि याजकों के स्वर्गीय राज्य के जो शुरूआती सदस्य थे, वे पैदाइशी इस्राएली थे। मगर पूरी जाति के तौर पर इस्राएलियों ने व्यवस्था वाचा को तोड़ दिया, मसीहाई वंश को ठुकरा दिया और शानदार भविष्य की आशा खो दी। तो फिर, याजकों के इस राज्य की संख्या किन लोगों से पूरी की जाती? और इस धन्य जाति का, वादा किए हुए वंश के साथ क्या नाता होता? पवित्र भेद की ये बातें, परमेश्‍वर के ठहराए हुए वक्‍त पर आनेवाले दिनों में प्रकट की जातीं।

      दाऊद के साथ राज्य की वाचा

      12. यहोवा ने दाऊद के साथ क्या वाचा बाँधी, और इससे परमेश्‍वर के पवित्र भेद के बारे में क्या जानकारी मिली?

      12 सामान्य युग पूर्व 11वीं सदी में, यहोवा ने एक और वाचा बाँधकर पवित्र भेद पर और ज़्यादा रोशनी डाली। उसने अपने वफादार राजा दाऊद से वादा किया: “मैं तेरे निज वंश को तेरे पीछे खड़ा करके उसके राज्य को स्थिर करूंगा। . . . मैं उसकी राजगद्दी को सदैव स्थिर रखूंगा।” (2 शमूएल 7:12, 13; भजन 89:3) अब यह बताया गया कि वादा किया गया वंश दाऊद के घराने से आएगा। लेकिन क्या एक अदना इंसान “सर्वदा” या हमेशा-हमेशा तक राज्य कर सकता था? (भजन 89:20, 29, 34-36) और क्या एक इंसानी राजा, मनुष्यों को पाप और मौत के शिकंजे से छुड़ा सकता था?

      13, 14. (क) भजन 110 के मुताबिक, यहोवा ने अपने अभिषिक्‍त राजा से क्या वादा किया? (ख) यहोवा के भविष्यवक्‍ताओं ने आनेवाले वंश के बारे में और क्या-क्या ज़ाहिर किया?

      13 परमेश्‍वर की प्रेरणा से दाऊद ने लिखा: “मेरे प्रभु से यहोवा की वाणी यह है, कि तू मेरे दहिने हाथ बैठ, जब तक मैं तेरे शत्रुओं को तेरे चरणों की चौकी न कर दूं। यहोवा ने शपथ खाई और न पछताएगा, कि तू मेल्कीसेदेक की रीति पर सर्वदा का याजक है।” (भजन 110:1, 4) दाऊद के ये शब्द सीधे-सीधे, वादा किए वंश या मसीहा पर लागू होते थे। (प्रेरितों 2:35, 36) वह यरूशलेम से राज्य नहीं करता बल्कि स्वर्ग से यहोवा के ‘दहिने हाथ बैठकर’ राज्य करता। इस तरह उसका अधिकार न सिर्फ इस्राएल देश पर बल्कि पूरी धरती पर होता। (भजन 2:6-8) दाऊद के शब्दों ने एक और बात ज़ाहिर की। ध्यान दीजिए कि यहोवा ने बाकायदा शपथ खायी कि मसीहा “मेल्कीसेदेक की रीति पर . . . याजक” होगा। जैसे इब्राहीम के दिनों में मेल्कीसेदेक, राजा और याजक दोनों था, उसी तरह आनेवाले वंश को खुद परमेश्‍वर, राजा और याजक के पद पर सेवा करने के लिए ठहराता!—उत्पत्ति 14:17-20.

      14 सालों के दौरान, यहोवा ने भविष्यवक्‍ताओं के ज़रिए पवित्र भेद के बारे में और बहुत कुछ ज़ाहिर किया। मिसाल के लिए, यशायाह ने ज़ाहिर किया कि वंश अपना जीवन बलिदान के तौर पर देगा। (यशायाह 53:3-12) मीका ने मसीहा के जन्म लेने के स्थान के बारे में भविष्यवाणी की। (मीका 5:2) और दानिय्येल ने तो मसीहा के प्रकट होने और मरने का सही-सही समय भी बताया।—दानिय्येल 9:24-27.

      पवित्र भेद खोला गया!

      15, 16. (क) यहोवा का बेटा कैसे एक “स्त्री से जन्मा”? (ख) यीशु ने अपने माता-पिता से विरासत में क्या पाया, और वह वादा किए वंश के नाते कब आया?

      15 ये भविष्यवाणियाँ कैसे पूरी होंती, यह तब तक एक रहस्य बना रहा जब तक कि वंश सचमुच प्रकट न हुआ। गलतियों 4:4 कहता है: “जब समय पूरा हुआ, तो परमेश्‍वर ने अपने पुत्र को भेजा, जो स्त्री से जन्मा।” सा.यु.पू. 2 में, एक स्वर्गदूत ने यहूदी कुँवारी मरियम से कहा: “देख, तू गर्भवती होगी, और तेरे एक पुत्र उत्पन्‍न होगा; तू उसका नाम यीशु रखना। वह महान होगा; और परमप्रधान का पुत्र कहलाएगा; और प्रभु परमेश्‍वर उसके पिता दाऊद का सिंहासन उस को देगा। . . . पवित्र आत्मा तुझ पर उतरेगा, और परमप्रधान की सामर्थ तुझ पर छाया करेगी इसलिए वह पवित्र जो उत्पन्‍न होनेवाला है, परमेश्‍वर का पुत्र कहलाएगा।”—लूका 1:31, 32, 35.

      16 बाद में, यहोवा ने स्वर्ग में रहनेवाले अपने बेटे का जीवन, धरती पर मरियम के गर्भ में डाला और इस तरह वह एक स्त्री से जन्मा। मरियम असिद्ध थी। मगर, यीशु को उसकी असिद्धता विरासत में नहीं मिली, क्योंकि वह “परमेश्‍वर का पुत्र” था। इसके अलावा, यीशु के इंसानी माँ-बाप दाऊद के वंशज थे। इसलिए उन्होंने वे सारे पैदाइशी और कानूनी अधिकार उसे विरासत में दिए, जो दाऊद के वंशज को मिलने चाहिए थे। (प्रेरितों 13:22, 23) जब सा.यु. 29 में यीशु का बपतिस्मा हुआ, तब यहोवा ने उसे पवित्र आत्मा से अभिषिक्‍त किया और कहा: “यह मेरा प्रिय पुत्र है।” (मत्ती 3:16, 17) आखिरकार, वह वंश आ गया! (गलतियों 3:16) अब समय था कि पवित्र भेद के बारे में और भी कुछ ज़ाहिर किया जाए।—2 तीमुथियुस 1:10.

      17. उत्पत्ति 3:15 के मतलब पर कैसे रोशनी डाली गयी?

      17 अपनी सेवा के दौरान, यीशु ने उत्पत्ति 3:15 के सर्प की पहचान बतायी कि वह शैतान है और सर्प की संतान, शैतान के चेले हैं। (मत्ती 23:33; यूहन्‍ना 8:44) बाद में, यह भी ज़ाहिर किया गया कि कैसे इनको हमेशा के लिए मिटा दिया जाएगा। (प्रकाशितवाक्य 20:1-3, 10, 15) और स्त्री की पहचान करायी गयी कि वह “ऊपर की यरूशलेम” है, यानी स्वर्ग में आत्मिक प्राणियों से बना यहोवा का संगठन जो उसकी पत्नी के समान है।a—गलतियों 4:26; प्रकाशितवाक्य 12:1-6.

      नई वाचा

      18. “नई वाचा” बाँधने का मकसद क्या है?

      18 यीशु की मौत से पहले की रात को सबसे अनोखी बात ज़ाहिर की गयी। और वह थी, यीशु का अपने वफादार चेलों को यह बताना कि वह उनके साथ एक “नई वाचा” बाँध रहा है। (लूका 22:20) मूसा की व्यवस्था वाचा की तरह, इस नई वाचा से भी “याजकों का राज्य” तैयार होना था। (निर्गमन 19:6; 1 पतरस 2:9) मगर, यह वाचा किसी इंसानी जाति का नहीं बल्कि एक आत्मिक जाति यानी “परमेश्‍वर के इस्राएल” का निर्माण करनेवाली थी। सिर्फ मसीह के वफादार अभिषिक्‍त चेले इसके सदस्य होते। (गलतियों 6:16) नई वाचा के ये सहभागी, यीशु के साथ मिलकर इंसानों को आशीष दिलाते!

      19. (क) नई वाचा “याजकों का राज्य” तैयार करने में क्यों कामयाब हुई? (ख) अभिषिक्‍त मसीहियों को “नई सृष्टि” क्यों कहा गया है, और स्वर्ग में मसीह के साथ कितने लोग सेवा करेंगे?

      19 मगर इंसानों को आशीष देने के लिए “याजकों का राज्य” तैयार करने में नई वाचा, क्यों कामयाब हुई? क्योंकि यह वाचा मसीह के चेलों को बार-बार यह एहसास दिलाने के बजाय कि वे पापी हैं, उन्हें यीशु के बलिदान के ज़रिए पापों से माफी दिलाती है। (यिर्मयाह 31:31-34) यहोवा उन्हें धर्मी ठहराने के बाद, अपने स्वर्गीय परिवार का हिस्सा बनाने के लिए गोद लेता है और पवित्र आत्मा से अभिषिक्‍त करता है। (रोमियों 8:15-17; 2 कुरिन्थियों 1:21) इस तरह वे “जीवित आशा के लिये नया जन्म” लेते हैं, जो उनके लिए “स्वर्ग में रखी है।” (1 पतरस 1:3-5) महिमा का ऐसा ऊँचा पद पाना इंसानों के लिए एकदम नयी बात है, इसलिए आत्मा से जन्मे अभिषिक्‍त मसीहियों को “नई सृष्टि” कहा गया है। (2 कुरिन्थियों 5:17) बाइबल प्रकट करती है कि आनेवाले समय में 1,44,000 जन, पाप से छुड़ाए गए इंसानों पर राज करेंगे।—प्रकाशितवाक्य 5:9, 10; 14:1-4.

      20. (क) सामान्य युग 36 में पवित्र भेद का कौन-सा पहलू खुलकर सामने आया? (ख) इब्राहीम से वादा की गयी आशीषें किसे मिलेंगी?

      20 यीशु के साथ, ये अभिषिक्‍त जन ‘इब्राहीम का वंश’ बनते हैं।b (गलतियों 3:29) इस वंश के पहले सदस्य पैदाइशी यहूदी थे। मगर, सा.यु. 36 में, पवित्र भेद का एक और पहलू खुलकर सामने आया: अन्यजाति के लोग या गैर-यहूदी भी स्वर्ग की आशा के भागीदार होनेवाले थे। (रोमियों 9:6-8; 11:25, 26; इफिसियों 3:5, 6) क्या सिर्फ अभिषिक्‍त मसीही उन आशीषों को पाते जिनका वादा इब्राहीम से किया गया था? जी नहीं, क्योंकि यीशु के बलिदान से सारे संसार को फायदा होता है। (1 यूहन्‍ना 2:2) कुछ समय बाद, यहोवा ने ज़ाहिर किया कि अनगिनत लोगों की एक “बड़ी भीड़,” शैतान के संसार के अंत से बच निकलेगी। (प्रकाशितवाक्य 7:9, 14) यही नहीं, लाखों-करोड़ों की संख्या में लोगों का पुनरुत्थान होगा और उनके सामने फिरदौस में हमेशा तक जीने की आशा होगी!—यूहन्‍ना 5:28, 29; प्रकाशितवाक्य 20:11-15; 21:3, 4.

      परमेश्‍वर की बुद्धि और पवित्र भेद

      21, 22. यहोवा का पवित्र भेद किन तरीकों से उसकी बुद्धि का सबूत देता है?

      21 पवित्र भेद, “परमेश्‍वर की विलक्षण बुद्धि” का एक लाजवाब सबूत है। (इफिसियों 3:8-10, नयी हिन्दी बाइबिल) इस भेद को रचने और फिर धीरे-धीरे इसे प्रकट करने से यहोवा ने क्या ही गज़ब की बुद्धि का सबूत दिया! इससे ज़ाहिर हो सका कि इंसानों के दिल में क्या है, साथ ही परमेश्‍वर ने बुद्धिमानी से उनकी हदों को भी ध्यान में रखा।—भजन 103:14.

      22 यीशु को राजा चुनकर भी यहोवा ने अपनी बेजोड़ बुद्धि का सबूत दिया। यहोवा का बेटा इस विश्‍व के किसी भी दूसरे प्राणी से कहीं ज़्यादा भरोसे के लायक है। जब यीशु हाड़-माँस का इंसान था, तब उसने तरह-तरह की तकलीफों का सामना किया। इसलिए वह इंसान की समस्याओं को बहुत अच्छी तरह समझता है। (इब्रानियों 5:7-9) और जो यीशु के साथ राज्य करेंगे, उनके बारे में क्या कहा जा सकता है? सदियों के दौरान, अलग-अलग जातियों, भाषाओं और माहौल से स्त्रियों और पुरुषों दोनों को अभिषिक्‍त किया गया है। ऐसी कोई समस्या नहीं जिसका इनमें से किसी एक ने भी सामना न किया हो, और उस पर काबू न पाया हो। (इफिसियों 4:22-24) इन दयालु राजाओं-याजकों के राज के अधीन जीना वाकई बहुत आनंद की बात होगी!

      23. यहोवा के पवित्र भेद के बारे में मसीहियों को क्या आशीष मिली है?

      23 प्रेरित पौलुस ने लिखा था: ‘[पवित्र] भेद जो समयों और पीढ़ियों से गुप्त रहा, अब उसके पवित्र लोगों पर प्रगट हुआ है।’ (कुलुस्सियों 1:26) जी हाँ, यहोवा के अभिषिक्‍त पवित्र जनों को पवित्र भेद की काफी समझ हासिल हुई है, और उन्होंने यह ज्ञान लाखों लोगों तक पहुँचाया है। हम सबके लिए यह क्या ही बढ़िया आशीष है! यहोवा ने हमें “अपनी इच्छा का [पवित्र] भेद . . . बताया” है। (इफिसियों 1:9) आइए इस शानदार भेद के बारे में दूसरों को बताएँ, ताकि वे भी यहोवा परमेश्‍वर की अथाह बुद्धि की एक झलक पा सकें!

      a यीशु में परमेश्‍वर की “भक्‍ति का [पवित्र] भेद” भी ज़ाहिर हुआ। (1 तीमुथियुस 3:16) एक लंबे अरसे से यह एक रहस्य, एक भेद बना हुआ था कि क्या कोई यहोवा की तरफ अचूक खराई बनाए रख सकता है। यीशु ने इसका जवाब दिया। शैतान की तरफ से आनेवाली हर परीक्षा में उसने खराई बनाए रखी।—मत्ती 4:1-11; 27:26-50.

      b यीशु ने इसी समूह के साथ ‘राज्य के लिए एक वाचा’ भी बाँधी। (लूका 22:29, 30, NW) दरअसल, यीशु ने इस “छोटे झुण्ड” के साथ एक करार किया कि वे इब्राहीम के वंश के दूसरे भाग की हैसियत से स्वर्ग में उसके साथ राज करेंगे।—लूका 12:32.

      मनन के लिए सवाल

      • यूहन्‍ना 16:7-12 सच्चाई धीरे-धीरे ज़ाहिर करने में, यीशु कैसे अपने पिता की मिसाल पर चला?

      • 1 कुरिन्थियों 2:6-16 यहोवा के पवित्र भेदों को बहुत-से लोग क्यों नहीं समझ पाते, मगर हम इन भेदों की समझ कैसे हासिल कर सकते हैं?

      • इफिसियों 3:10 परमेश्‍वर के पवित्र भेद के सिलसिले में मसीहियों को आज क्या महान आशीष मिली है?

      • इब्रानियों 11:8-10 पवित्र भेद से कैसे प्राचीन समय के वफादार लोगों का विश्‍वास मज़बूत बना रहा, जबकि उन्हें इसके बारे में काफी बातें मालूम नहीं थीं?

  • “हृदय में बुद्धिमान्‌”—फिर भी नम्र
    यहोवा के करीब आओ
    • एक पिता झुककर अपने बेटे के बराबर आता है और नरमी से बात करता है

      अध्याय 20

      “हृदय में बुद्धिमान्‌”—फिर भी नम्र

      1-3. हम यकीन के साथ क्यों कह सकते हैं कि यहोवा नम्र है?

      एक पिता अपने छोटे-से लड़के को एक अहम सबक सिखाना चाहता है। वह चाहता है कि उसकी बात बच्चे के दिल में उतर जाए। यह करने के लिए उसे क्या तरीका अपनाना चाहिए? क्या उसे बच्चे के सिर पर सवार होकर सख्ती से बोलना चाहिए? या क्या उसे बैठकर, नरमी से और लुभावने अंदाज़ में उससे बात करनी चाहिए? बेशक एक बुद्धिमान, नम्र पिता नरमी से बात करने का रास्ता इख्तियार करेगा।

      2 यहोवा कैसा पिता है—घमंडी या नम्र, कठोर या नर्मदिल? यहोवा के पास सारा ज्ञान है और वह सबसे ज़्यादा बुद्धिमान है। फिर भी, जैसा कि आप जानते हैं, जिन लोगों के पास ज्ञान और बुद्धि होती है ज़रूरी नहीं कि वे नम्र भी हों? यह वैसा ही है जैसा बाइबल कहती है: “ज्ञान घमण्ड उत्पन्‍न करता है।” (1 कुरिन्थियों 3:19; 8:1) मगर यहोवा “हृदय में बुद्धिमान्‌” होने के साथ-साथ नम्र भी है। (अय्यूब 9:4, NHT) उसकी नम्रता का मतलब यह नहीं कि उसका पद किसी तरह कम है या उसकी कोई शान नहीं, लेकिन इसका मतलब है कि उसमें दूर-दूर तक घमंड नहीं। ऐसा क्यों?

      3 यहोवा पवित्र है। इसलिए, घमंड जो भ्रष्ट करनेवाला अवगुण है, यहोवा में बिलकुल भी नहीं है। (मरकुस 7:20-22) इसके अलावा, गौर कीजिए कि भविष्यवक्‍ता यिर्मयाह ने यहोवा से क्या कहा: “निश्‍चय ही तेरा प्राण [खुद यहोवा] याद करेगा और मुझ पर नीचे झुकेगा।”a (विलापगीत 3:20, NW) ज़रा सोचिए! इस विश्‍व का महाराजाधिराज यहोवा ‘नीचे झुकने’ या यिर्मयाह के स्तर तक नीचे उतरने और उस असिद्ध इंसान की मदद करने को तैयार था। (भजन 113:7) जी हाँ, यहोवा वाकई नम्र है। मगर परमेश्‍वर की नम्रता क्या है? बुद्धि से इसका क्या नाता है? और हमारे लिए इसकी क्या अहमियत है?

      यहोवा कैसे नम्र होने का सबूत देता है

      4, 5. (क) नम्रता क्या है, यह कैसे ज़ाहिर होती है और क्यों इसे कमज़ोरी या बुज़दिली की निशानी नहीं समझना चाहिए? (ख) यहोवा ने दाऊद के साथ अपने बर्ताव में नम्रता कैसे दिखायी, और यहोवा का नम्र होना हमारे लिए क्या अहमियत रखता है?

      4 नम्रता मन की दीनता है, जहाँ नम्रता होती है वहाँ हेकड़ी और घमंड के लिए कोई जगह नहीं होती। नम्रता, इंसान के दिल का भीतरी गुण है जो नर्मदिली, धीरज और कोमलता जैसे गुणों से ज़ाहिर होता है। (गलतियों 5:22, 23) मगर परमेश्‍वर के इन गुणों को उसकी कमज़ोरी या बुज़दिली की निशानी हरगिज़ नहीं समझना चाहिए। ऐसा नहीं कि ये गुण, यहोवा के धर्मी क्रोध या विनाशकारी शक्‍ति के इस्तेमाल से मेल नहीं खाते। इसके बजाय, यहोवा अपनी नम्रता और नर्मदिली से, अपनी ज़बरदस्त क्षमता का यानी खुद पर पूरा काबू रखने की शक्‍ति का सबूत देता है। (यशायाह 42:14) मगर, बुद्धि के साथ नम्रता का क्या नाता है? बाइबल के बारे में लिखी एक किताब कहती है: “कुल मिलाकर, नम्रता की परिभाषा है . . . अपने आप को भुलाना। और नम्रता की बुनियाद पर ही सारी बुद्धि कायम है।” तो फिर, नम्रता के बिना सच्ची बुद्धि हो ही नहीं सकती। यहोवा की नम्रता हमें कैसे लाभ पहुँचाती है?

      एक बुद्धिमान पिता अपने बच्चों के साथ नम्रता और नरमी से पेश आता है

      5 राजा दाऊद ने यहोवा के लिए गीत गाया: “तू ने मुझे अपने उद्धार की ढाल भी दी है, तेरा दाहिना हाथ मुझे सम्भाले रहता है, तेरी नम्रता मुझे महान्‌ बनाती है।” (भजन 18:35, NHT) दरअसल, इस असिद्ध, अदना इंसान की रक्षा करने और उसे हर दिन सँभालने के लिए यहोवा ने अपने आपको नीचे झुकाया था। दाऊद को एहसास था कि अगर वह उद्धार चाहता है, और राजा बनकर कुछ हद तक महानता हासिल करना चाहता है, तो यह तभी मुमकिन होगा जब यहोवा ऐसा करने के लिए खुद को नम्र करने की इच्छा दिखाए। सच, अगर यहोवा नम्र न होता और एक नर्मदिल और प्यार करनेवाले पिता की तरह हमारे साथ पेश आने के लिए खुद को झुकाने को तैयार न होता, तो हममें से कौन उद्धार की आशा कर सकता था?

      6, 7. (क) बाइबल क्यों कभी नहीं कहती कि यहोवा मर्यादाशील है? (ख) नर्मदिली और बुद्धि के बीच क्या नाता है, और इस मामले में सबसे बढ़िया मिसाल किसकी है?

      6 गौर करने लायक बात है कि नम्रता दिखाना और मर्यादा में रहना दो अलग-अलग बातें हैं। मर्यादा वह बेहतरीन गुण है जिसे वफादार इंसानों को अपने अंदर पैदा करना चाहिए। नम्रता की तरह, मर्यादा भी बुद्धि से जुड़ी हुई है। मिसाल के लिए, नीतिवचन 11:2 (NW) कहता है: “मर्यादाशील लोगों में बुद्धि होती है।” मगर, बाइबल के मुताबिक मर्यादा में रहने की बात यहोवा पर लागू नहीं होती। क्यों नहीं? बाइबल के मुताबिक, मर्यादाशील वह है जिसे हमेशा अपनी हदों का एहसास रहता है। लेकिन, सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर के लिए ऐसी कोई हद नहीं, सिवाय उनको छोड़ जो अपने धर्मी स्तरों की वजह से खुद उसने अपने लिए ठहरायी हैं। (मरकुस 10:27; तीतुस 1:2) इसके अलावा, परमप्रधान परमेश्‍वर के नाते वह किसी के अधीन नहीं है। इसलिए, मर्यादा का गुण यहोवा पर कभी लागू नहीं होता।

      7 लेकिन, यहोवा नम्र और नर्मदिल है। वह अपने सेवकों को सिखाता है कि सच्ची बुद्धि पाने के लिए नर्मदिली बेहद ज़रूरी है। उसका वचन ऐसी “नर्मदिली” के बारे में बताता है “जिसका बुद्धि से नाता है।”b (याकूब 3:13, NW) इस मामले में आइए यहोवा की मिसाल पर गौर करें।

      ज़िम्मेदारी देने और दूसरों की सुनने में यहोवा की नम्रता

      8-10. (क) यह क्यों अनोखी बात है कि यहोवा दूसरों को ज़िम्मेदारी सौंपने और उनकी बात सुनने के लिए तैयार रहता है? (ख) सर्वशक्‍तिमान कैसे अपने स्वर्गदूतों के साथ नम्रता से पेश आया है?

      8 यहोवा दूसरों को ज़िम्मेदारी देने और उनकी बात सुनने के लिए तैयार रहता है। यह उसकी नम्रता का एक प्यार-भरा सबूत है। वह दूसरों की सुनता है, यह बात सोचकर ही ताज्जुब होता है; क्योंकि यहोवा को किसी की मदद या सलाह की कोई ज़रूरत नहीं। (यशायाह 40:13, 14; रोमियों 11:34, 35) तो भी, बाइबल बार-बार दिखाती है कि यहोवा ने इस तरह खुद को नीचे झुकाया है।

      9 मसलन, इब्राहीम की ज़िंदगी की एक अनोखी घटना पर गौर कीजिए। इब्राहीम के पास तीन मेहमान आए थे, उनमें से एक को वह “यहोवा” पुकार रहा था। ये मेहमान दरअसल स्वर्गदूत थे, मगर उनमें से एक यहोवा के नाम से आया था और उसकी तरफ से कार्यवाही कर रहा था। जब वह स्वर्गदूत बोलता और काम करता था, तो यह ऐसा था मानो खुद यहोवा बोल रहा हो या कार्यवाही कर रहा हो। इस दूत के ज़रिए यहोवा ने इब्राहीम को बताया कि उसने “सदोम और अमोरा की” बुराई के खिलाफ भारी “चिल्लाहट” सुनी है। यहोवा ने कहा: “मैं उतरकर देखूंगा, कि उसकी जैसी चिल्लाहट मेरे कान तक पहुंची है, उन्हों ने ठीक वैसा ही काम किया है कि नहीं: और न किया हो तो मैं उसे जान लूंगा।” (उत्पत्ति 18:3, 20, 21) बेशक, यहोवा के संदेश का यह मतलब न था कि सर्वशक्‍तिमान खुद नीचे “उतरकर” देखेगा। इसके बजाय, उसने अपने दूत भेजे जो उसकी तरफ से उन नगरों में गए। (उत्पत्ति 19:1) क्यों? क्या यहोवा, जो सबकुछ देख सकता है, खुद-ब-खुद उस इलाके की सच्ची हालत को नहीं “जान” सकता था? बेशक, जान सकता था। मगर, ऐसा करने के बजाय यहोवा ने नम्रता दिखाते हुए स्वर्गदूतों को इस काम की ज़िम्मेदारी सौंपी ताकि वे इन नगरों के हालात का मुआयना करें और सदोम में लूत और उसके घराने से जाकर मिलें।

      10 इतना ही नहीं, यहोवा दूसरों की बात भी सुनता है। एक बार यहोवा ने दुष्ट राजा आहाब को मिटाने के लिए अपने स्वर्गदूतों से सलाह-मशविरा किया। असल में, यहोवा को इस मदद की ज़रूरत नहीं थी। मगर फिर भी उसने, उनमें से एक स्वर्गदूत के मशविरे को माना और उसके मुताबिक काम करने की ज़िम्मेदारी उसे सौंपी। (1 राजा 22:19-22) क्या यह नम्रता का सबूत नहीं?

      11, 12. इब्राहीम कैसे यहोवा की नम्रता को जान पाया?

      11 यहोवा उन असिद्ध इंसानों की बात भी सुनने को तैयार रहता है, जो उसके सामने अपनी चिंता ज़ाहिर करना चाहते हैं। मिसाल के लिए, जब यहोवा ने पहली बार इब्राहीम को बताया कि वह सदोम और अमोरा के नगरों को नाश करने जा रहा है, तो यहोवा का यह वफादार सेवक चिंता में पड़ गया। इब्राहीम ने कहा: “ऐसा करना तुझ से दूर रहे।” और आगे कहा: “क्या समस्त पृथ्वी का न्यायी उचित न्याय न करे[गा]?” (NHT) उसने यहोवा से पूछा कि अगर उन नगरों में 50 धर्मी लोग पाए गए, तो क्या वह उन नगरों को बख्श देगा? हालाँकि यहोवा ने इब्राहीम को यकीन दिलाया कि वह ऐसा ही करेगा, फिर भी इब्राहीम 45, फिर 40, और उससे भी कम गिनती करके पूछता रहा। यहोवा के बार-बार यकीन दिलाने के बावजूद इब्राहीम तब तक पूछता रहा जब तक कि वह 10 पर न आ गया। शायद इब्राहीम को अब तक पूरी तरह समझ नहीं आया था कि यहोवा कितना दयालु है। इब्राहीम के सवाल करने की वजह चाहे जो भी रही हो, यहोवा ने बड़े धीरज और नम्रता से अपने इस मित्र और सेवक को अपनी चिंता ज़ाहिर करने का मौका दिया।—उत्पत्ति 18:23-33.

      12 ऐसे कितने पढ़े-लिखे और ज्ञानी लोग होंगे जो अपने से कहीं कम अक्लमंद इंसान की बात इतने धीरज से सुनें?c लेकिन, हमारा परमेश्‍वर ऐसी नम्रता दिखाता है। यहोवा के साथ बातचीत के दौरान, इब्राहीम को यह भी समझ आया कि यहोवा “कोप करने में धीरजवन्त” है। (निर्गमन 34:6) इब्राहीम को शायद इस बात का एहसास था कि परमप्रधान की कार्यवाही पर सवाल उठाने का उसे कोई हक नहीं, इसलिए उसने दो बार बिनती की: “हे प्रभु, क्रोध न कर।” (उत्पत्ति 18:30, 32) बेशक यहोवा क्रोधित नहीं हुआ। उसमें वाकई वह “नर्मदिली [है] जिसका बुद्धि से नाता है।”

      यहोवा कोमल है

      13. बाइबल में जिस तरह शब्द “कोमल” इस्तेमाल हुआ है, उसका क्या मतलब है और यह शब्द यहोवा पर बिलकुल ठीक क्यों बैठता है?

      13 यहोवा की नम्रता उसके एक और मनोहर गुण, कोमलता से ज़ाहिर होती है। पर अफसोस कि इस गुण की असिद्ध इंसानों में भारी कमी है। यहोवा न सिर्फ अपने अक्लमंद प्राणियों की सुनने को तैयार रहता है, बल्कि जिन बातों में उसके धर्मी उसूल न टूटते हों, उनमें वह दूसरों की मानने के लिए भी तैयार रहता है। बाइबल में जिस तरह शब्द “कोमल” इस्तेमाल हुआ है, उसका शाब्दिक अर्थ है “दूसरों की मानना।” यह गुण भी परमेश्‍वर की बुद्धि की एक खासियत है। याकूब 3:17 कहता है: ‘जो [बुद्धि] ऊपर से आती है वह कोमल होती है।’ सबसे बुद्धिमान यहोवा परमेश्‍वर किस मायने में कोमल है? एक तो यह है कि वह ज़रूरत के हिसाब से खुद को ढाल लेता है। याद कीजिए, उसका अपना नाम ही हमें सिखाता है कि यहोवा अपने मकसद को पूरा करने के लिए जो ज़रूरी हो वह बन जाता है। क्या यह, ज़रूरत के हिसाब से खुद को ढालने और कोमलता दिखाने का सबूत नहीं?

      14, 15. यहोवा के रथ के बारे में यहेजकेल का दर्शन, हमें यहोवा के स्वर्गीय संगठन के बारे में क्या सिखाता है, और यह इंसानों के संगठनों से कैसे अलग है?

      14 बाइबल का एक हिस्सा पढ़कर हम यह समझ पाते हैं कि ज़रूरत के हिसाब से खुद को ढालने की यहोवा में ज़बरदस्त काबिलीयत है। भविष्यवक्‍ता यहेजकेल को आत्मिक प्राणियों से बने यहोवा के स्वर्गीय संगठन का दर्शन दिया गया था। उसने एक विराट और विस्मयकारी रथ देखा। यह रथ यहोवा का “वाहन” है, जो हमेशा उसके इशारे पर चलता है। यह रथ जिस तरीके से चलता है वह बहुत ही दिलचस्प है। इसके विशालकाय पहिए चारों दिशाओं में घूम सकते हैं और इनमें हर तरफ आँखें-ही-आँखें हैं, इसलिए ये हर तरफ देख सकते हैं और बिना रुके या मुड़े, पलक झपकते ही दिशा बदल सकते हैं। यह विराट रथ, इंसान के बनाए किसी भारी-भरकम वाहन की तरह धीरे-धीरे नहीं चलता। यह समकोण मोड़ लेता हुआ बिजली की रफ्तार से आगे बढ़ सकता है। (यहेजकेल 1:1, 14-28) जी हाँ, यह स्वर्गीय संगठन पूरी तरह सर्वशक्‍तिमान महाराजाधिराज यहोवा के काबू में है, और उसी की तरह लाजवाब तरीके से खुद को ढाल सकता है, यानी नित बदलते हालात के मुताबिक कैसी भी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कार्यवाही कर सकता है।

      15 इंसान, हालात के मुताबिक खुद को ढालने की ऐसी अचूक काबिलीयत पैदा करने की बस कल्पना ही कर सकता है। लेकिन, अकसर ऐसा होता है कि इंसान और उसके बनाए संगठन ज़रूरत के हिसाब से खुद को ढालने के बजाय सख्ती से काम लेते हैं, दूसरों की माननेवाले नहीं बल्कि अड़ियल होते हैं। इसे समझने के लिए एक उदाहरण लीजिए: एक सुपर टैंकर समुद्री जहाज़ या एक मालगाड़ी देखने में भले ही विशालकाय और शक्‍तिशाली क्यों न लगें, मगर क्या इनमें से कोई भी अचानक बदलनेवाले हालात के मुताबिक फौरन कार्यवाही कर सकता है? मालगाड़ी जिस पटरी पर चल रही है, अगर उसके सामने अचानक कोई आ जाए, तो इसे हरगिज़ मोड़ा नहीं जा सकता और इसे अचानक रोकना भी आसान नहीं होगा। ब्रेक लगाने के बाद भी, एक भरी हुई मालगाड़ी कम-से-कम दो किलोमीटर से पहले नहीं रुकेगी! उसी तरह पानी का सुपर टैंकर, इंजिन बंद करने के बाद भी आठ किलोमीटर दूर जाकर रुकता है। अगर इंजिन को उलटी दिशा में चलाया जाए, तब भी टैंकर कम-से-कम तीन किलोमीटर से पहले नहीं रुकेगा। इंसानी संगठन भी ऐसे ही हैं जो अकसर अपने व्यवहार में बहुत सख्त और अड़ियल होते हैं। अपने घमंड की वजह से अकसर लोग, बदलती ज़रूरतों और हालात के मुताबिक खुद को ढालना पसंद नहीं करते। ऐसी ढिठाई की वजह से कई बड़ी-बड़ी कंपनियों का दिवाला पिट गया है और कई सरकारों का तख्ता भी पलट चुका है। (नीतिवचन 16:18) मगर, कितनी खुशी की बात है कि यहोवा और उसका संगठन, इंसान के इन संगठनों से बिलकुल अलग है!

      यहोवा कैसे कोमलता दिखाता है

      16. सदोम और अमोरा का विनाश करने से पहले, यहोवा ने लूत के साथ कैसे कोमलता बरती?

      16 आइए हम एक बार फिर सदोम और अमोरा के विनाश पर गौर करें। लूत और उसके परिवार को यहोवा के स्वर्गदूत ने यह कहकर साफ-साफ हिदायत दी: “पहाड़ पर भाग जाना।” मगर लूत को यह बात पसंद नहीं आयी। उसने विनती की: “हे प्रभु, ऐसा न कर।” लूत को यह डर था कि अगर वह पहाड़ों की तरफ भागा तो जान से हाथ धो बैठेगा, इसलिए उसने विनती की कि उसे और उसके परिवार को पास के सोअर नगर में जाने की इजाज़त दी जाए। अब याद कीजिए कि यहोवा ने उस नगर को भी नाश करने की ठानी थी। और-तो-और, लूत के इस डर की कोई जायज़ वजह भी नहीं थी। यहोवा बेशक पहाड़ों पर भी लूत की हिफाज़त कर सकता था! तो भी, यहोवा ने लूत की विनती को माना और सोअर को बख्श दिया। स्वर्गदूत ने लूत से कहा: “देख, मैं ने इस विषय में भी तेरी बिनती अंगीकार की है।” (उत्पत्ति 19:17-22) क्या ऐसा करना यहोवा की कोमलता का सबूत नहीं था?

      17, 18. नीनवे के लोगों के मामले में, यहोवा ने कैसे दिखाया कि वह कोमल है?

      17 यहोवा दिल से किए गए पश्‍चाताप को भी स्वीकार करता है, और हमेशा दया दिखाते हुए वही करता है जो सही है। गौर कीजिए जब भविष्यवक्‍ता योना को दुष्ट और हत्यारी नगरी नीनवे में भेजा गया तब क्या हुआ। योना नीनवे की सड़कों पर परमेश्‍वर का जो संदेश सुनाता जाता था, वह बहुत सीधा-सा था: यह शक्‍तिशाली नगरी 40 दिन में तहस-नहस की जाएगी। मगर हालात में एकाएक बहुत भारी बदलाव आया। नीनवे के लोगों ने पछतावा दिखाया!—योना, अध्याय 3.

      18 अचानक इस तरह हालात बदलने पर यहोवा ने जो किया और योना ने जो किया, उससे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। इस मामले में, यहोवा ने खुद को हालात के मुताबिक ढाला, और वह “योद्धा” बनने के बजाय पापों का क्षमा करनेवाला बन गया।d (निर्गमन 15:3) मगर दूसरी तरफ, योना टस-से-मस नहीं हुआ, और उसने ज़रा भी तरस नहीं खाया। यहोवा की तरह कोमलता दिखाने के बजाय, वह उस मालगाड़ी या पानी के सुपर टैंकर जैसा निकला जिनके बारे में हमने पहले ज़िक्र किया था। उसने सर्वनाश का ऐलान किया था, तो उसके हिसाब से सर्वनाश होना ही चाहिए! मगर, यहोवा ने बड़े धीरज से अपने इस बेसब्र भविष्यवक्‍ता को कोमल होने और दया दिखाने का एक यादगार सबक सिखाया।—योना, अध्याय 4.

      एक जवान मसीही खुशी-खुशी एक बुज़ुर्ग मसीही को प्रचार में मदद देता है

      यहोवा कोमल है और हमारी सीमाओं को समझता है

      19. (क) हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि यहोवा हमसे जो उम्मीद रखता है, उसमें वह कोमलता दिखाता है? (ख) नीतिवचन 19:17 कैसे दिखाता है कि यहोवा ‘भला और कोमल’ मालिक है, और उसकी तरह कोई और नम्र नहीं हो सकता?

      19 आखिर में, यहोवा हमसे जो उम्मीद करता है उसमें भी वह कोमलता दिखाता है। राजा दाऊद ने कहा: “वह हमारी सृष्टि जानता है; और उसको स्मरण रहता है कि मनुष्य मिट्टी ही हैं।” (भजन 103:14) यहोवा हमारी असिद्धताओं को और सीमाओं को हमसे बेहतर समझता है। वह कभी हमसे हद-से-ज़्यादा की उम्मीद नहीं करता। बाइबल दो तरह के मालिकों के बारे में बताती है। एक वे हैं जो “भले और विनम्र [“कोमल,” NW]” हैं और दूसरे ऐसे हैं जो “निर्दयी” हैं। (1 पतरस 2:18, NHT) यहोवा कैसा मालिक है? ध्यान दीजिए कि नीतिवचन 19:17 क्या कहता है: “जो कंगाल पर अनुग्रह करता है, वह यहोवा को उधार देता है।” ज़ाहिर है कि सिर्फ एक भला और कोमल मालिक ही भलाई के ऐसे कामों पर ध्यान देगा, जो दीनों की मदद करने के लिए किए जाते हैं। इससे ज़्यादा, यह आयत ज़ाहिर करती है कि यहोवा खुद को ऐसे मामूली इंसानों का कर्ज़दार समझता है जो दया के ऐसे काम करते हैं! वाकई, इससे बड़ी नम्रता और कोई नहीं दिखा सकता।

      20. हम कैसे यकीन रख सकते हैं कि यहोवा हमारी प्रार्थनाओं को सुनता है और उनका जवाब देता है?

      20 आज भी यहोवा अपने सेवकों के साथ इतनी ही नर्मदिली और कोमलता से पेश आता है। जब हम विश्‍वास के साथ प्रार्थना करते हैं, तो वह हमारी सुनता है। और हालाँकि वह हमसे बात करने के लिए अपने स्वर्गदूतों को नहीं भेजता, फिर भी हमें इस नतीजे पर नहीं पहुँचना चाहिए कि हमारी प्रार्थनाओं का वह जवाब नहीं देता। याद कीजिए कि जब प्रेरित पौलुस ने अपने मसीही भाई-बहनों से कहा कि वे उसके कैद से रिहा होने के लिए ‘प्रार्थना करते रहें,’ तो उसने यह भी कहा: “कि मैं शीघ्र तुम्हारे पास फिर आ सकूं।” (इब्रानियों 13:18, 19) सो हमारी प्रार्थनाएँ सुनकर यहोवा वह कर सकता है, जो उसने शायद पहले न किया होता!—याकूब 5:16.

      21. यहोवा की नम्रता का हमें क्या नतीजा नहीं निकालना चाहिए, इसके बजाय हमें किस बात के लिए उसकी कदर करनी चाहिए?

      21 बेशक, यहोवा की नम्रता को ज़ाहिर करनेवाले गुणों का, यानी उसकी नर्मदिली, कोमलता, दूसरों की सुनने की इच्छा, और उसके धीरज का यह मतलब नहीं कि वह अपने धर्मी सिद्धांतों के साथ समझौता करता है। ईसाईजगत के पादरी शायद यह सोचें कि अगर वे झुंड के कानों की खुजली मिटाने के लिए यहोवा के ऊँचे नैतिक स्तरों पर पानी फेर देते हैं, तो वे कोमलता दिखा रहे हैं। (2 तीमुथियुस 4:3) इंसानों की यह आदत होती है कि जो नियम उनकी सहूलियत के हिसाब से ठीक न हो, उसे वे नहीं मानते, मगर ऐसा रवैया परमेश्‍वर की तरह कोमलता दिखाना हरगिज़ नहीं है। यहोवा पवित्र है; वह कभी अपने धर्मी स्तरों को भ्रष्ट नहीं होने देगा। (लैव्यव्यवस्था 11:44) तो फिर, आइए हम यहोवा की कोमलता से प्यार करें, क्योंकि यह वाकई उसकी नम्रता का सबूत है। क्या यह सोचकर आपके अंदर सनसनी नहीं दौड़ जाती कि इस विश्‍व में सबसे ज़्यादा बुद्धिमान, यहोवा परमेश्‍वर नम्रता की एक बेजोड़ मिसाल भी है? ऐसे विस्मयकारी, मगर नर्मदिल, धीरजवंत और कोमल परमेश्‍वर के करीब आना क्या ही खुशी की बात है!

      a प्राचीन शास्त्रियों, या सोफेरिम वर्ग ने इस आयत को बदलकर यह लिखा कि यिर्मयाह, न कि यहोवा नीचे झुकता है। ज़ाहिर है कि उन्हें यह ठीक नहीं लगा कि परमेश्‍वर ऐसा दीन काम करे। इसका नतीजा यह हुआ कि बहुत-से अनुवाद इस बढ़िया आयत का असली मतलब देने से चूक गए। मगर न्यू इंग्लिश बाइबल में इसका सही-सही अनुवाद किया गया है जहाँ यिर्मयाह, परमेश्‍वर से कहता है: “याद कर, हे [परमेश्‍वर] याद कर और नीचे झुककर मेरे पास आ।”

      b कुछ और अनुवाद कहते हैं, “नम्रता जो बुद्धि से आती है” और “कोमलता जो बुद्धि की निशानी है।”

      c दिलचस्पी की बात है कि बाइबल धीरज को अहंकार के उल्टा बताती है। (सभोपदेशक 7:8) यहोवा का धीरज उसकी नम्रता का एक और सबूत है।—2 पतरस 3:9.

      d भजन 86:5 (NHT) कहता है कि यहोवा “भला है और क्षमा करने को तत्पर रहता है।” जब इस भजन का यूनानी में अनुवाद किया गया, तो “क्षमा करने को तत्पर” शब्दों के लिए इपीआइकीस्‌ या “कोमल” शब्द इस्तेमाल किया गया था।

      मनन के लिए सवाल

      • निर्गमन 32:9-14 इस्राएल की खातिर मूसा की बिनती के जवाब में यहोवा ने जो किया उससे उसकी नम्रता कैसे दिखायी दी?

      • न्यायियों 6:36-40 यहोवा ने गिदोन की गुज़ारिश को मानकर कैसे धीरज और कोमलता का सबूत दिया?

      • भजन 113:1-9 इंसान के साथ व्यवहार में यहोवा कैसे नम्र साबित होता है?

      • लूका 1:46-55 यहोवा नम्र और दीन लोगों को किस नज़र से देखता है, इस बारे में मरियम का क्या मानना था? यहोवा के इस नज़रिए का हम पर क्या असर होना चाहिए?

  • यीशु, ‘परमेश्‍वर की ओर से बुद्धि’ ज़ाहिर करता है
    यहोवा के करीब आओ
    • यीशु अपने पहाड़ी उपदेश में बुद्धि की बातें सिखाता है

      अध्याय 21

      यीशु, ‘परमेश्‍वर की ओर से बुद्धि’ ज़ाहिर करता है

      1-3. यीशु के पुराने पड़ोसियों पर उसकी शिक्षाओं का क्या असर हुआ, और वे उसके बारे में क्या समझने से चूक गए?

      सुननेवाले हैरान थे। नौजवान यीशु आराधनालय में उनके सामने खड़ा होकर उन्हें सिखा रहा था। वह उनके लिए कोई अजनबी नहीं था। वह उन्हीं के नगर में बड़ा हुआ था और उनके बीच कई सालों तक उसने बढ़ई का काम किया था। शायद उनमें से कई लोगों के घरों को यीशु ने बनाया था, या शायद वे अपने खेतों में जिन हलों और जूओं का इस्तेमाल करते थे वे उसी के बनाए हुए थे।a पहले बढ़ई का काम करनेवाले इस इंसान की शिक्षाओं को सुनकर उन पर क्या असर हुआ?

      2 ज़्यादातर लोगों को तो अपने कानों पर विश्‍वास नहीं हो रहा था और वे पूछने लगे: ‘इसे यह बुद्धि कहां से प्राप्त हुई?’ मगर उन्होंने यह भी कहा: ‘क्या यह वही बढ़ई नहीं जो मरियम का पुत्र है?’ (मत्ती 13:54-58, नयी हिन्दी बाइबिल; मरकुस 6:1-3) अफसोस कि यीशु के ये पुराने पड़ोसी आपस में कहने लगे, ‘यह बढ़ई तो यहीं का रहनेवाला है और हम जैसा ही है।’ बुद्धि भरे उसके वचनों को सुनने के बाद भी, उन्होंने उसे ठुकरा दिया। उन्हें रत्ती भर भी इस बात का एहसास नहीं था कि बुद्धि की जो बातें वह उन्हें बता रहा था वे उसकी अपनी नहीं थीं।

      3 यीशु को यह बुद्धि आखिर कहाँ से मिली? उसने बताया: “मेरा उपदेश मेरा नहीं, परन्तु मेरे भेजनेवाले का है।” (यूहन्‍ना 7:16) प्रेरित पौलुस ने समझाया कि यीशु “परमेश्‍वर की ओर से हमारे लिये ज्ञान [“बुद्धि,” NW] ठहरा” है। (1 कुरिन्थियों 1:30) यहोवा ने अपने बेटे यीशु के ज़रिए अपनी बुद्धि ज़ाहिर की। यह इस कदर सच था कि यीशु कह सका: “मैं और पिता एक हैं।” (यूहन्‍ना 10:30) आइए हम ऐसी तीन बातों पर गौर करें जिनमें यीशु ने ‘परमेश्‍वर की ओर से बुद्धि’ ज़ाहिर की।

      उसने जो सिखाया

      4. (क) यीशु के संदेश का विषय क्या था, और क्यों इसकी बहुत अहमियत थी? (ख) यीशु की सलाह हमेशा व्यावहारिक और सुननेवालों के फायदे के लिए क्यों होती थी?

      4 आइए पहले देखें कि यीशु ने क्या सिखाया। उसके संदेश का विषय था, “राज्य का सुसमाचार।” (लूका 4:43) राज्य के इस संदेश की बहुत अहमियत थी, क्योंकि यहोवा की हुकूमत को बुलंद करने और इंसानों को हमेशा की आशीषें दिलाने में यह राज्य बहुत बड़ी भूमिका अदा करनेवाला था। यीशु ने अपनी शिक्षाओं में रोज़मर्रा ज़िंदगी के बारे में बुद्धिमानी भरी सलाह भी दी। उसने भविष्यवाणी के मुताबिक खुद को “अद्‌भुत्‌ परामर्श दाता” साबित किया। (यशायाह 9:6, नयी हिन्दी बाइबिल) आखिर, उसकी सलाह अद्‌भुत कैसे न होती? यीशु को परमेश्‍वर के वचन और उसकी इच्छा का पूरा-पूरा ज्ञान था, इंसान के स्वभाव की उसे सूक्ष्म समझ थी और लोगों के लिए उसके दिल में गहरा प्यार था। इसलिए, उसकी सलाह हमेशा व्यावहारिक और उसके सुननेवालों के अपने फायदे के लिए होती थी। यीशु ने “अनन्त जीवन की बातें” बतायीं। जी हाँ, अगर उसकी सलाह मानी जाए, तो हमें ज़रूर उद्धार मिल सकता है।—यूहन्‍ना 6:68.

      5. यीशु ने अपने पहाड़ी उपदेश में कौन-से कुछ विषयों पर सलाह दी?

      5 यीशु की शिक्षाओं में पायी जानेवाली बेजोड़ बुद्धि की एक बढ़िया मिसाल है, उसका पहाड़ी उपदेश। यह उपदेश मत्ती 5:3–7:27 में दर्ज़ है और इसे देने में शायद सिर्फ 20 मिनट लगें। मगर, इसकी सलाह किसी एक वक्‍त या ज़माने के लिए नहीं है, यह आज भी हमारे लिए उतनी ही फायदेमंद है जितनी तब थी जब यह उपदेश पहली बार दिया गया था। यीशु ने तरह-तरह के विषयों पर सलाह दी, जैसे कि दूसरों के साथ रिश्‍तों में कैसे सुधार लाया जाए (5:23-26, 38-42; 7:1-5, 12), कैसे नैतिक मामलों में शुद्ध रहा जाए (5:27-32), और कैसे अपनी ज़िंदगी को सफल बनाया जाए (6:19-24; 7:24-27) मगर यीशु ने अपने सुननेवालों को सिर्फ बताया ही नहीं बल्कि उन्हें समझाकर, तर्क करके और सबूत देकर यह दिखाया भी कि बुद्धिमानी का मार्ग क्या है।

      6-8. (क) यीशु ने चिंता न करने के कौन-से ठोस कारण बताए? (ख) क्या बात दिखाती है कि यीशु की सलाह ऊपर से आयी बुद्धि का सबूत है?

      6 मसलन, रोटी-कपड़ा-मकान की चिंता से कैसे निपटा जाए, इस बारे में यीशु की बुद्धि भरी सलाह पर गौर कीजिए जो मत्ती अध्याय 6 में दर्ज़ है। यीशु हमें सलाह देता है: “अपने प्राण के लिये यह चिन्ता न करना कि हम क्या खाएंगे? और क्या पीएंगे? और न अपने शरीर के लिये कि क्या पहिनेंगे?” (आयत 25) रोटी-कपड़ा हमारी बुनियादी ज़रूरतें हैं, इसलिए इन्हें हासिल करने के बारे में चिंता करना लाज़मी है। मगर यीशु कहता है कि इन चीज़ों के लिए “चिन्ता न करना।”b क्यों?

      7 आइए सुनें कि यीशु कैसी ठोस दलीलों से लोगों को कायल कर रहा है। जिस यहोवा ने हमें जीवन और शरीर दिया है, क्या वह इस जीवन को कायम रखने के लिए खाना और इस तन को ढकने के लिए कपड़ा नहीं दे सकता? (आयत 25) जब परमेश्‍वर पक्षियों को खाना खिला सकता है और फूलों को खूबसूरती का ओढ़ना ओढ़ा सकता है, तो क्या वह अपने इंसानी उपासकों के लिए इससे कहीं ज़्यादा नहीं करेगा! (आयत 26, 28-30) वाकई, बेवजह चिंता करने से कोई फायदा नहीं। चिंता करके हम अपनी ज़िंदगी में एक घड़ी तक नहीं बढ़ा सकते।c (आयत 27) हम चिंता से कैसे दूर रह सकते हैं? यीशु हमें सलाह देता है: परमेश्‍वर की उपासना को अपनी ज़िंदगी में लगातार पहला स्थान देते रहो। जो ऐसा करते हैं, वे यकीन रख सकते हैं कि उनके स्वर्गीय पिता से उन्हें वे सारी चीज़ें “मिल जाएंगी” जो उनकी रोज़मर्रा ज़िंदगी के लिए ज़रूरी हैं। (आयत 33) आखिर में, यीशु एक बहुत ही व्यावहारिक सलाह देता है, एक दिन में उसी दिन की चिंता करो। कल की चिंता करके आज की चिंताओं को क्यों बढ़ाना? (आयत 34) और फिर, उन बातों के बारे में हद-से-ज़्यादा चिंता क्यों करना जो शायद कभी न घटें? ऐसी बुद्धिमानी भरी सलाह पर अमल करके हम तनाव से भरे इस संसार में बहुत-से दुःखों से बच सकते हैं।

      8 साफ है कि यीशु की सलाह आज भी उतनी ही कारगर है जितनी करीब 2,000 साल पहले थी। क्या यह ऊपर से आनेवाली बुद्धि का सबूत नहीं? इंसानी सलाहकारों से मिलनेवाली बेहतरीन सलाह भी कुछ वक्‍त के बाद पुरानी पड़ जाती है और जल्द ही इसमें या तो फेर-बदल करना पड़ता है या फिर इसे पूरी तरह बदलना पड़ता है। मगर यीशु की शिक्षाएँ हर दौर में फायदेमंद रही हैं और आज भी हैं। लेकिन, हमें ताज्जुब नहीं होना चाहिए क्योंकि वह अद्‌भुत परामर्शदाता, “परमेश्‍वर की बातें” बोलता था।—यूहन्‍ना 3:34.

      उसके सिखाने का तरीका

      9. कुछ सिपाहियों ने यीशु की शिक्षाओं के बारे में क्या कहा, और क्यों यह बढ़ा-चढ़ाकर बोलना नहीं था?

      9 दूसरी बात, यीशु ने अपने सिखाने के तरीके से भी परमेश्‍वर की बुद्धि ज़ाहिर की। एक मौके पर, यीशु को गिरफ्तार करने के लिए कुछ सिपाहियों को भेजा गया मगर वे खाली हाथ लौट आए और उन्होंने उसकी वजह बताते हुए कहा: “आज तक ऐसी बातें किसी ने कभी नहीं कहीं जैसी वह कहता है।” (यूहन्‍ना 7:45, 46, NHT) वे बढ़ा-चढ़ाकर नहीं बोल रहे थे। इस धरती पर पैदा होनेवाले तमाम इंसानों में से, सिर्फ यीशु ही “ऊपर का” यानी स्वर्ग से था, इसलिए उसके पास ज्ञान और अनुभव का इतना अपार भंडार था जितना किसी के पास नहीं हो सकता। (यूहन्‍ना 8:23) सचमुच, उसने जिस तरह सिखाया वैसे कोई इंसान नहीं सिखा सकता। आइए इस बुद्धिमान शिक्षक के सिखाने के तरीकों में से सिर्फ दो पर गौर करें।

      “भीड़ उसके उपदेश से चकित हुई”

      10, 11. (क) यीशु दृष्टांतों का जिस तरह इस्तेमाल करता था, उससे हम क्यों दाँतों तले उँगली दबा लेते हैं? (ख) नीतिकथाएँ क्या हैं, और कौन-सी मिसालें दिखाती हैं कि यीशु की नीतिकथाएँ बहुत ही असरदार थीं?

      10 दृष्टांतों का असरदार तरीके से इस्तेमाल करना। हमें बताया गया है: “सब बातें यीशु ने दृष्टान्तों में लोगों से कहीं, और बिना दृष्टान्त वह उन से कुछ न कहता था।” (मत्ती 13:34) रोज़मर्रा की ज़िंदगी से उदाहरण लेकर लोगों को गूढ़ सच्चाइयाँ सिखाने की यीशु की लाजवाब काबिलीयत देखकर हम दाँतों तले उँगली दबा लेते हैं। खेत में बीज बोते किसान, रोटी बनाने की तैयारी करती स्त्रियाँ, बाज़ार में खेलते बच्चे, जाल खींचते मछुआरे, खोयी हुई भेड़ों को ढूँढ़ते चरवाहे—ये ऐसे नज़ारे थे जो उसके सुननेवालों ने बहुत बार देखे थे। जब अहम सच्चाइयों को जानी-पहचानी चीज़ों के साथ जोड़कर बताया जाता है, तो इन्हें समझते देर नहीं लगती और ये फौरन दिलो-दिमाग में गहराई तक उतर जाती हैं।—मत्ती 11:16-19; 13:3-8, 33, 47-50; 18:12-14.

      11 यीशु अकसर नीतिकथाएँ इस्तेमाल करता था। ये ऐसी छोटी-छोटी कहानियाँ होती हैं, जिनसे नैतिक या आध्यात्मिक सच्चाइयाँ सीखने को मिलती हैं। विचारों के मुकाबले, कहानियों को समझना और याद रखना ज़्यादा आसान होता है, इसलिए नीतिकथाओं ने यीशु की शिक्षाओं को याद रखने में मदद दी। बहुत-सी नीतिकथाओं में यीशु ने अपने पिता की ऐसी जीती-जागती तसवीर पेश की जिसे आसानी से भुलाया नहीं जा सकता। मिसाल के लिए, कौन उड़ाऊ बेटे की नीतिकथा का मतलब नहीं समझेगा—कि अगर गलत राह पर जानेवाला इंसान सच्चा पश्‍चाताप दिखाए, तो यहोवा उस पर ज़रूर दया करेगा और बड़ी कोमलता दिखाते हुए उसे फिर से स्वीकार करेगा?—लूका 15:11-32.

      12. (क) यीशु ने किस तरह अपनी शिक्षाओं में सवालों का इस्तेमाल किया? (ख) यीशु ने उसके अधिकार पर उँगली उठानेवालों के मुँह कैसे बंद कर दिए?

      12 सवालों को कुशलता से इस्तेमाल करना। यीशु अपने सुननेवालों से सवाल पूछता था ताकि वे खुद नतीजे पर पहुँचें, अपने मन की भावनाओं को जाँचें या फैसले ले पाएँ। (मत्ती 12:24-30; 17:24-27; 22:41-46) जब धर्मगुरुओं ने सवाल पूछा कि यीशु जो काम करता है, उसका अधिकार उसे परमेश्‍वर की तरफ से मिला है या नहीं, तो उसने जवाब दिया: “यूहन्‍ना का बपतिस्मा क्या स्वर्ग की ओर से था वा मनुष्यों की ओर से था?” उसका सवाल सुनकर वे हक्के-बक्के रह गए और आपस में मशविरा करने लगे: “यदि हम कहें, स्वर्ग की ओर से, तो वह कहेगा; फिर तुम ने उस की प्रतीति क्यों नहीं की? और यदि हम कहें, मनुष्यों की ओर से तो लोगों का डर है, क्योंकि सब जानते हैं कि यूहन्‍ना सचमुच भविष्यद्वक्‍ता है।” आखिर में उन्होंने जवाब दिया: “हम नहीं जानते।” (मरकुस 11:27-33; मत्ती 21:23-27) एक सीधा-सा सवाल पूछकर यीशु ने उनके मुँह बंद कर दिए और यह ज़ाहिर कर दिया कि उनके दिल में कितना कपट भरा है।

      13-15. दयालु सामरी की नीतिकथा से यीशु की बुद्धि कैसे ज़ाहिर होती है?

      13 यीशु कभी-कभी सिखाने के लिए कई तरीकों को एक-साथ इस्तेमाल करता था। उसने अपने दृष्टांतों में ऐसे सवाल भी पूछे कि इंसान सोचने पर मजबूर हो जाए। जब एक यहूदी व्यवस्थापक ने यीशु से पूछा कि उसे अनंत जीवन पाने के लिए क्या करना चाहिए, तो यीशु ने उसे मूसा की व्यवस्था की याद दिलायी जिसमें परमेश्‍वर और पड़ोसी से प्यार करने की आज्ञा दी गयी है। खुद को धर्मी ठहराने की कोशिश करते हुए, उस आदमी ने पूछा: “तो मेरा पड़ोसी कौन है?” यीशु ने एक कहानी सुनाकर इसका जवाब दिया। एक यहूदी अकेले सफर कर रहा था। तभी डाकुओं ने उस पर हमला किया, उसे मारा-पीटा और अधमरा छोड़कर चले गए। उसी रास्ते से दो यहूदी गुज़रे, पहला एक याजक था और दूसरा एक लेवी। दोनों उससे कतराकर चले गए। लेकिन तब एक सामरी वहाँ से गुज़रा। उसने उस घायल आदमी पर तरस खाकर बड़ी कोमलता से उसके घावों की मरहम-पट्टी की और बहुत प्यार से और संभालकर उसे एक सराय तक ले गया ताकि वहाँ उसकी देखभाल की जा सके। कहानी खत्म करते हुए, यीशु ने सवाल करनेवाले से पूछा: “अब तेरी समझ में जो डाकुओं में घिर गया था, इन तीनों में से उसका पड़ोसी कौन ठहरा?” वह आदमी यह कहने के लिए मजबूर हो गया: “वही जिस ने उस पर तरस खाया।”—लूका 10:25-37.

      14 इस नीतिकथा से यीशु की बुद्धि कैसे दिखायी देती है? यीशु के ज़माने में, यहूदियों के लिए “पड़ोसी” सिर्फ वही थे जो उनकी परंपराओं का पालन करते थे—बेशक सामरी उन लोगों में शामिल नहीं थे। (यूहन्‍ना 4:9) अगर यीशु ने इस कहानी में घायल होनेवाले को सामरी कहा होता और मदद करनेवाले को यहूदी, तो क्या वह उनके अंदर समायी भेदभाव की भावना को दूर कर पाता? यीशु ने बुद्धिमानी से कहानी इस तरह बनायी कि इसमें एक सामरी को यहूदी की मदद करते बताया गया। इसके अलावा, उस सवाल पर भी गौर कीजिए जो यीशु ने कहानी के आखिर में पूछा। उसने “पड़ोसी” शब्द के मायने ही बदल दिए। व्यवस्थापक ने दरअसल उससे पूछा था: ‘कौन है जो एक पड़ोसी के नाते मेरे प्यार के काबिल है?’ मगर यीशु ने उससे पूछा: “तेरी समझ में . . . इन तीनों में से उसका पड़ोसी कौन ठहरा?” यीशु ने मदद पानेवाले घायल इंसान पर नहीं, बल्कि दया दिखानेवाले सामरी पर ध्यान दिलाया। एक सच्चा पड़ोसी, दूसरों को प्यार दिखाने में पहल करता है और इस बात की परवाह नहीं करता कि वे किस जाति के हैं। यह बात कहने का, यीशु के लिए इससे बढ़िया तरीका और क्या हो सकता था।

      15 तो क्या इसमें ताज्जुब करना चाहिए कि लोग यीशु का “उपदेश” देने का तरीका देखकर दंग रह जाते थे और उसकी ओर खिंचे चले आते थे? (मत्ती 7:28, 29) एक मौके पर तो एक “बड़ी भीड़” उसके पास बिना कुछ खाए तीन दिन तक रही!—मरकुस 8:1, 2.

      उसके जीने का तरीका

      16. यीशु ने किस तरह इस बात का “व्यावहारिक सबूत” दिया कि वह परमेश्‍वर की बुद्धि के चलाए चलता है?

      16 तीसरी बात जिसमें यीशु ने यहोवा की बुद्धि ज़ाहिर की, वह है उसके जीने का तरीका। बुद्धि व्यावहारिक होती है; इससे कामयाबी मिलती है। शिष्य याकूब ने पूछा: “तुममें से बुद्धिमान कौन है?” फिर उसने अपने सवाल का खुद जवाब देते हुए कहा: “उसका सही चालचलन इसका व्यावहारिक सबूत दे।” (याकूब 3:13, द न्यू इंग्लिश बाइबल) यीशु ने अपने चालचलन से इस बात का “व्यावहारिक सबूत” दिया कि वह परमेश्‍वर की बुद्धि के चलाए चलता है। आइए देखें कि अपनी ज़िंदगी में और दूसरों के साथ पेश आते वक्‍त उसने कैसे समझ-बूझ से काम लिया।

      17. कैसे पता चलता है कि यीशु ने अपनी ज़िंदगी में अचूक संतुलन बनाए रखा?

      17 क्या आपने देखा है कि जिन लोगों के पास सही समझ-बूझ नहीं होती वे अकसर अपनी हदें पार कर जाते हैं? जी हाँ, संतुलन बनाए रखने के लिए बुद्धि ज़रूरी है। यीशु ने परमेश्‍वर की बुद्धि का सबूत देते हुए, अचूक संतुलन बनाए रखा। उसने अपनी ज़िंदगी में बाकी सब चीज़ों से बढ़कर आध्यात्मिक बातों को पहली जगह दी। वह दिन-रात सुसमाचार सुनाने के काम में लगा रहता था। उसने कहा: “मैं इसी लिये निकला हूं।” (मरकुस 1:38) बेशक, धन-दौलत को उसने अपनी ज़िंदगी में कोई खास अहमियत नहीं दी; ऐसा लगता है कि उसके पास धन के नाम पर करीब-करीब कुछ भी नहीं था। (मत्ती 8:20) मगर, वह कोई बैरागी नहीं था। अपने पिता और “आनन्दित परमेश्‍वर” की तरह, यीशु भी एक हँसमुख इंसान था और वह दूसरों की खुशियों को और भी बढ़ा देता था। (1 तीमुथियुस 1:11; 6:15) एक बार वह शादी की दावत में गया, जहाँ लाज़मी है कि संगीत, नाचना-गाना और मौज-मस्ती होती है। वह खुशी के मौके का मज़ा किरकिरा करने नहीं गया। इसके बजाय, जब दावत में दाखमधु खत्म हो गया, तो उसने पानी को उम्दा किस्म का दाखमधु बना दिया, जिसे पीने से “मनुष्य का मन आनन्दित होता है।” (भजन 104:15; यूहन्‍ना 2:1-11) यीशु ने कई लोगों के यहाँ खाने की दावत भी स्वीकार की, और अकसर वह इन मौकों को परमेश्‍वर के वचन सिखाने के लिए इस्तेमाल करता था।—लूका 10:38-42; 14:1-6.

      18. यीशु ने अपने चेलों के साथ व्यवहार करते वक्‍त कैसे दिखाया कि वह आदमी को सही-सही परख सकता है?

      18 यीशु ने दूसरों के साथ व्यवहार करते वक्‍त दिखाया कि वह आदमी को बिलकुल सही-सही परख सकता है। इंसानी स्वभाव की गहरी समझ रखने की वजह से वह अपने चेलों को बिलकुल सही तरीके से समझ सका। वह जानता था कि वे सिद्ध नहीं, फिर भी उसने उनके अच्छे गुणों को पहचाना। और वह देख सका कि इन लोगों में जिन्हें यहोवा उस तक खींचकर लाया है, क्या-क्या काबिलीयतें हैं। (यूहन्‍ना 6:44) उनकी कमज़ोरियों के बावजूद, यीशु ने उन पर भरोसा किया। इसलिए उसने अपने चेलों को एक बहुत भारी ज़िम्मेदारी सौंपी। उसने उन्हें सुसमाचार प्रचार करने का काम सौंपा और उसे यकीन था कि वे इस काम को पूरा करने के काबिल हैं। (मत्ती 28:19, 20) प्रेरितों की किताब इस बात की गवाही देती है कि जिस काम की यीशु ने उन्हें आज्ञा दी थी उन्होंने वफादारी के साथ उसे पूरा किया। (प्रेरितों 2:41, 42; 4:33; 5:27-32) तो फिर, साफ ज़ाहिर है कि यीशु ने उन पर भरोसा करके बुद्धिमानी का सबूत दिया।

      19. यीशु ने कैसे दिखाया कि वह ‘नर्मदिल और मन में दीन’ है?

      19 जैसा हमने अध्याय 20 में देखा, बाइबल नम्रता और नर्मदिली का नाता बुद्धि के साथ जोड़ती है। बेशक, यहोवा ने इस मामले में सबसे बेहतरीन मिसाल कायम की है। मगर यीशु के बारे में क्या कहा जा सकता है? यीशु ने अपने चेलों के साथ व्यवहार करते वक्‍त जो नम्रता दिखायी वह हमारे दिल को छू जाती है। सिद्ध इंसान होने की वजह से वह उनसे श्रेष्ठ था। फिर भी, उसने अपने चेलों को कभी तुच्छ नहीं समझा। उसने कभी उन्हें यह एहसास दिलाने की कोशिश नहीं की कि वे उससे कमतर हैं या नाकाबिल हैं। इसके उलटे, वह उनकी हदों को पहचानता था और उसने धीरज दिखाते हुए उनकी कमज़ोरियों को सहा। (मरकुस 14:34-38; यूहन्‍ना 16:12) क्या यह बड़ी बात नहीं कि छोटे बच्चों को भी यीशु के पास आना अच्छा लगता था? बेशक, वे इसलिए उसके पास खिंचे चले आते थे, क्योंकि वे महसूस कर सकते थे कि वह “नम्र [“नर्मदिल,” NW] और मन में दीन” है।—मत्ती 11:29; मरकुस 10:13-16.

      20. अन्यजाति की जिस स्त्री की बेटी दुष्टात्मा के वश में थी, उसके साथ व्यवहार करते वक्‍त यीशु ने कैसे कोमलता दिखायी?

      20 एक और अहम तरीके से यीशु ने परमेश्‍वर जैसी नम्रता दिखायी। जब दया इसकी माँग करती थी, तो वह कोमलता से पेश आता था और दूसरों की मानने के लिए तैयार रहता था। मिसाल के लिए, वह वक्‍त याद कीजिए जब अन्यजाति की एक स्त्री ने यीशु से बिनती की कि वह उसकी बेटी को चंगा कर दे जिसे दुष्टात्मा बुरी तरह सता रही थी। शुरू में यीशु ने तीन अलग-अलग तरीकों से यह ज़ाहिर किया कि वह उसकी मदद नहीं करेगा। पहला, उसने उसे जवाब ही नहीं दिया; दूसरा, उसने साफ-साफ कह दिया कि उसे अन्यजातियों के लिए नहीं, बल्कि सिर्फ यहूदियों के लिए भेजा गया है; और तीसरा, उसने दृष्टांत देकर यही बात नरमी के साथ समझायी। तो भी उस स्त्री ने हार नहीं मानी, अपने ज़बरदस्त विश्‍वास का सबूत देते हुए वह बिनती करती रही। इन अनोखे हालात के मद्देनज़र यीशु ने क्या किया? उसने ठीक वही किया जो पहले उसने कहा था कि वह नहीं करेगा। उसने उस स्त्री की बेटी को चंगा कर दिया। (मत्ती 15:21-28) क्या यह लाजवाब नम्रता नहीं? और याद है ना, सच्ची बुद्धि की बुनियाद नम्रता ही है।

      21. क्यों हमें यीशु की शख्सियत, उसकी बोली और व्यवहार की नकल करने की कोशिश करनी चाहिए?

      21 हमें कितना शुक्रगुज़ार होना चाहिए कि सुसमाचार की किताबों में हम धरती के सबसे बुद्धिमान मनुष्य के वचन और उसके कामों के बारे में पढ़ सकते हैं! हम यह हमेशा याद रखें कि यीशु ने हू-ब-हू अपने पिता की तरह काम किया था। इसलिए जब हम यीशु की शख्सियत, उसकी बोली और व्यवहार की नकल करने की कोशिश करेंगे, तो असल में हम ऊपर से मिलनेवाली बुद्धि पैदा कर रहे होंगे। अगले अध्याय में, हम देखेंगे कि कैसे हम परमेश्‍वर की बुद्धि को अपनी ज़िंदगी में लागू कर सकते हैं।

      a बाइबल के ज़माने में, लोग अपना मकान, फर्नीचर या खेती-बाड़ी में इस्तेमाल होनेवाले उपकरणों को बनाने के लिए बढ़इयों को काम पर लगाते थे। सामान्य युग दूसरी सदी के जस्टिन मार्टर ने यीशु के बारे में लिखा: “जब वह लोगों के बीच था तब बढ़ई का काम किया करता था। वह उनके लिए हल और जूए बनाता था।”

      b जिस यूनानी क्रिया का अनुवाद ‘चिन्ता करना’ किया गया है, उसका मतलब है “मन को भटकाना।” जैसे मत्ती 6:25 में इस्तेमाल हुआ है, इसका मतलब वह चिंता और डर है जिससे हमारा मन भटक जाता या बँट जाता है और हमारी ज़िंदगी का सुख-चैन छिन जाता है।

      c दरअसल, विज्ञान की खोज से पता चला है कि हद-से-ज़्यादा चिंता और तनाव से दिल की बीमारी और दूसरी कई बीमारियाँ होने का खतरा बढ़ जाता है, जो हमारी ज़िंदगी को कम कर सकती हैं।

      मनन के लिए सवाल

      • नीतिवचन 8:22-31 बाइबल यहोवा के पहिलौठे बेटे के बारे में जो कहती है, वह बुद्धि के साकार रूप के वर्णन से कैसे मेल खाता है?

      • मत्ती 13:10-15 यीशु के दृष्टांत उसके सुननेवालों के दिल की भावनाएँ ज़ाहिर करने में कैसे कारगर थे?

      • यूहन्‍ना 1:9-18 यीशु, परमेश्‍वर की बुद्धि क्यों ज़ाहिर कर पाया?

      • यूहन्‍ना 13:2-5, 12-17 यीशु ने कैसे अपनी मिसाल से ज़रूरी सबक सिखाया, और इससे उसने अपने प्रेरितों को क्या शिक्षा दी?

  • ‘बुद्धि जो ऊपर से आती है,’ क्या यह आपकी ज़िंदगी में काम कर रही है?
    यहोवा के करीब आओ
    • एक औरत परमेश्‍वर की बुद्धि पाने के लिए बाइबल और उसे समझानेवाली किताबें-पत्रिकाओं का अध्ययन करती है

      अध्याय 22

      ‘बुद्धि जो ऊपर से आती है,’ क्या यह आपकी ज़िंदगी में काम कर रही है?

      1-3. (क) एक बच्चे की असली माँ का पता लगाने में सुलैमान ने लाजवाब बुद्धि का सबूत कैसे दिया? (ख) यहोवा ने हमें क्या देने का वादा किया है और इससे कौन-से सवाल उठते हैं?

      मामला बहुत पेचीदा था। दो औरतें एक बच्चे को लेकर झगड़ रही थीं। दोनों एक ही मकान में रहती थीं और कुछ ही दिनों के दरमियान उनके एक-एक बेटा पैदा हुआ था। उनमें से एक का बच्चा मर चुका था मगर अब दोनों दावा कर रही थीं कि जो ज़िंदा बचा है, वह उसका बेटा है।a जो कुछ हुआ था, उसका कोई चश्‍मदीद गवाह भी नहीं था। शायद निचली अदालत में उनके मामले की सुनवाई हो चुकी थी, लेकिन कोई हल नहीं निकल पाया था। आखिर में, यह मामला इस्राएल के राजा सुलैमान के सामने पेश किया गया। क्या वह सच्चाई का पता लगा पाता?

      2 कुछ देर तक उन स्त्रियों की बहस सुनने के बाद, सुलैमान ने एक तलवार मँगवायी। फिर मानो पूरे यकीन के साथ उसने हुक्म दिया कि उस बच्चे के दो टुकड़े करके दोनों में आधा-आधा बाँट दिया जाए। यह सुनते ही बच्चे की असली माँ गिड़गिड़ाकर राजा से बिनती करने लगी कि वह बच्चा, जो उसके कलेजे का टुकड़ा था, दूसरी स्त्री को दे दिया जाए। लेकिन दूसरी औरत ज़िद करती रही कि बच्चे के दो टुकड़े कर दिए जाएँ। अब सुलैमान के सामने सच्चाई साफ थी। उसे पता था कि अपनी कोख से जन्मे बच्चे के लिए एक माँ ऐसा कभी नहीं कह सकती। माँ की ममता का ज्ञान होने से वह इस झगड़े को मिटा पाया। बच्चे की असली माँ ने क्या ही राहत महसूस की होगी, जब सुलैमान ने उसे बच्चा लौटाते हुए कहा: “उसकी माता वही है।”—1 राजा 3:16-27.

      3 क्या यह लाजवाब बुद्धि का सबूत नहीं था? जब लोगों ने सुना कि सुलैमान ने कैसे इस मामले को सुलझाया, तो वे दंग रह गए “क्योंकि उन्हों ने यह देखा, कि उसके मन में . . . परमेश्‍वर की बुद्धि है।” जी हाँ, सुलैमान को परमेश्‍वर से बुद्धि का वरदान मिला था। यहोवा ने उसे “बुद्धि और विवेक से भरा मन” दिया था। (1 राजा 3:12, 28) मगर हमारे बारे में क्या? क्या हमें भी परमेश्‍वर से बुद्धि मिल सकती है? जी हाँ ज़रूर, क्योंकि सुलैमान ने परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखा था: “बुद्धि यहोवा ही देता है।” (नीतिवचन 2:6) यहोवा उन लोगों को बुद्धि—यानी ज्ञान, समझ और परख-शक्‍ति का अच्छा इस्तेमाल करने की काबिलीयत—देने का वादा करता है जो सच्चे दिल से इसे ढूँढ़ते हैं। हम ऊपर से आनेवाली बुद्धि कैसे हासिल कर सकते हैं? और अपनी ज़िंदगी में इसे कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं?

      ‘बुद्धि प्राप्त कर’—कैसे?

      4-7. बुद्धि हासिल करने की चार माँगें क्या हैं?

      4 क्या हमें परमेश्‍वर की बुद्धि पाने के लिए बहुत ज़्यादा अक्लमंद या पढ़ा-लिखा होने की ज़रूरत है? जी नहीं। हमारी परवरिश कहाँ हुई या हमने कहाँ तक शिक्षा पायी है, यह देखे बगैर ही यहोवा हमें अपनी बुद्धि देने के लिए तैयार है। (1 कुरिन्थियों 1:26-29) मगर हमें पहल करनी होगी, क्योंकि बाइबल हमें उकसाती है कि ‘बुद्धि प्राप्त कर।’ (नीतिवचन 4:7) हम यह कैसे कर सकते हैं?

      5 सबसे पहले ज़रूरी है कि हम परमेश्‍वर का भय मानें। नीतिवचन 9:10 कहता है: “यहोवा का भय मानना बुद्धि का आरम्भ है [‘सुबुद्धि को हासिल करने का पहिला कदम है,’ ईज़ी-टू-रीड वर्शन]।” परमेश्‍वर का भय सच्ची बुद्धि की बुनियाद है। क्यों? याद कीजिए कि बुद्धि का मतलब है, ज्ञान को सही तरह से इस्तेमाल करने की काबिलीयत। परमेश्‍वर का भय मानने का मतलब यह नहीं कि आप उसके सामने दहशत के मारे थर-थर काँपें, बल्कि यह है कि गहरे विस्मय, श्रद्धा और भरोसे के साथ उसके आगे शीश झुकाएँ। ऐसा भय फायदेमंद है और इसमें प्रेरणा जगाने की ज़बरदस्त शक्‍ति होती है। परमेश्‍वर की मरज़ी और उसके तौर-तरीकों के बारे में हम जो ज्ञान रखते हैं, यह भय हमें उस ज्ञान के मुताबिक अपनी ज़िंदगी में बदलाव लाने को प्रेरित करता है। इससे बढ़कर बुद्धिमानी का कोई और मार्ग नहीं, क्योंकि यहोवा के स्तर इन्हें माननेवालों को हमेशा सबसे ज़्यादा फायदा पहुँचाते हैं।

      6 दूसरा, हमें नम्र और मर्यादाशील होना चाहिए। नम्रता और मर्यादा के बिना हममें परमेश्‍वर की बुद्धि हो ही नहीं सकती। (नीतिवचन 11:2) ऐसा क्यों? क्योंकि अगर हम नम्र और मर्यादाशील हैं, तो हम यह मानने के लिए तैयार रहेंगे कि हमारे पास हर सवाल का जवाब नहीं है, हमारी राय हमेशा सही नहीं होती और हमें यह जानने की ज़रूरत है कि यहोवा किसी मामले के बारे में क्या सोचता है। यहोवा “घमण्डियों का विरोध करता” है, मगर उसे ऐसे लोगों को बुद्धि देने में खुशी होती है जो दिल से नम्र हैं।—याकूब 4:6, NHT.

      परमेश्‍वर की बुद्धि पाने के लिए, हमें मेहनत से इसकी खोज करनी होगी

      7 तीसरी बेहद ज़रूरी बात है, परमेश्‍वर के लिखित वचन का अध्ययन। यहोवा की बुद्धि उसके वचन में पायी जाती है। इस बुद्धि को पाने के लिए, हमें मेहनत से इसकी खोज करनी होगी। (नीतिवचन 2:1-5) चौथी माँग है, प्रार्थना। अगर हम सच्चे दिल से परमेश्‍वर से बुद्धि माँगें, तो वह हमें उदारता से देगा। (याकूब 1:5) जब हम प्रार्थना करते हैं कि वह अपनी पवित्र आत्मा देकर हमारी मदद करे, तब हमारी प्रार्थनाओं को अनसुना नहीं किया जाएगा। और उसकी आत्मा की मदद से हम उसके वचन से ऐसी अनमोल बुद्धि पा सकेंगे, जिससे हम समस्याओं को सुलझा पाएँगे, खतरे से बच पाएँगे और बुद्धिमानी भरी फैसले कर पाएँगे।—लूका 11:13.

      8. अगर हमने वाकई परमेश्‍वर की बुद्धि हासिल की है, तो यह कैसे ज़ाहिर होगी?

      8 जैसा हमने अध्याय 17 में देखा था, यहोवा की बुद्धि व्यावहारिक है। इसलिए, अगर हमने वाकई परमेश्‍वर की बुद्धि हासिल की है, तो यह हमारे व्यवहार से ज़ाहिर होगी। शिष्य याकूब ने परमेश्‍वर की बुद्धि के फलों के बारे में बताते हुए लिखा: “जो ज्ञान [“बुद्धि,” NW] ऊपर से आता है वह पहिले तो पवित्र होता है फिर मिलनसार, कोमल और मृदुभाव [“आज्ञा मानने को तैयार,” NW] और दया, और अच्छे फलों से लदा हुआ और पक्षपात और कपट रहित होता है।” (याकूब 3:17) जब हम परमेश्‍वर की बुद्धि के इन पहलुओं में से एक-एक पर चर्चा करते हैं, तो हम खुद से पूछ सकते हैं: ‘क्या ऊपर से आनेवाली बुद्धि मेरी ज़िंदगी में काम कर रही है?’

      “पवित्र . . . फिर मिलनसार”

      9. पवित्र होने का क्या मतलब है, और यह क्यों सही है कि बुद्धि के गुणों में पवित्रता सबसे पहले नंबर पर आती है?

      9 “पहिले तो पवित्र।” पवित्र होने का मतलब है सिर्फ बाहर से नहीं बल्कि अंदर से भी शुद्ध और निष्कलंक होना। बाइबल बताती है कि बुद्धि का हृदय के साथ नाता है, इसलिए स्वर्ग से आनेवाली बुद्धि ऐसे हृदय में दाखिल नहीं हो सकती जो बुरे विचारों, अभिलाषाओं और गंदे इरादों से भ्रष्ट हो चुका है। (नीतिवचन 2:10; मत्ती 15:19, 20) लेकिन, अगर हमारा हृदय पवित्र है यानी उतना पवित्र जितना असिद्ध इंसान बनाए रख सकता है, तो हम “बुराई को छोड़” देंगे और ‘भलाई करेंगे।’ (भजन 37:27; नीतिवचन 3:7) क्या यह सही नहीं कि बुद्धि के गुणों में पवित्रता सबसे पहले नंबर पर आती है? क्यों न हो, अगर हम अपने चालचलन और उपासना में पवित्र नहीं होंगे, तो हम ऊपर से आनेवाली बुद्धि के बाकी गुणों को भला सही मायनों में कैसे दिखा पाएँगे?

      10, 11. (क) यह क्यों ज़रूरी है कि हम मिलनसार हों? (ख) अगर आपको महसूस होता है कि आपने किसी संगी मसीही का दिल दुखाया है, तो आप खुद को मेल-मिलाप करनेवाला कैसे साबित करेंगे? (फुटनोट भी देखिए।)

      10 “फिर मिलनसार।” स्वर्ग से आनेवाली बुद्धि हमें मेल-मिलाप का पीछा करने या शांति रखने के लिए उकसाती है, और मेल या शांति परमेश्‍वर की आत्मा का एक फल है। (गलतियों 5:22) हम यत्न करते हैं कि यहोवा के लोगों को एक करनेवाले “मेल के बन्धन” को हम किसी भी हाल में न तोड़ें। (इफिसियों 4:3, NHT) और अगर शांति भंग हो जाए तो हमारी पूरी कोशिश रहती है कि इसे फिर से कायम करें। यह इतना ज़रूरी क्यों है? बाइबल कहती है: “मेल से रहो, और प्रेम और शान्ति का दाता परमेश्‍वर तुम्हारे साथ होगा।” (2 कुरिन्थियों 13:11) तो फिर, जब तक हम मेल-मिलाप या शांति से रहते हैं तब तक शांति का परमेश्‍वर हमारे साथ रहेगा। अपने मसीही भाई-बहनों के साथ हम कैसा सलूक करते हैं, इसका यहोवा के साथ हमारे रिश्‍ते पर सीधा असर पड़ता है। हम कैसे इस बात का सबूत दे सकते हैं कि हम मेल-मिलाप करनेवाले हैं? एक मिसाल लीजिए।

      11 अगर आपको महसूस होता है कि आपने किसी संगी मसीही का दिल दुखाया है, तो आपको क्या करना चाहिए? यीशु ने कहा: “इसलिये यदि तू अपनी भेंट बेदी पर लाए, और वहां तू स्मरण करे, कि मेरे भाई के मन में मेरी ओर से कुछ विरोध है, तो अपनी भेंट वहीं बेदी के साम्हने छोड़ दे। और जाकर पहिले अपने भाई से मेल मिलाप कर; तब आकर अपनी भेंट चढ़ा।” (मत्ती 5:23, 24) अपने भाई के पास जाने की पहल करके आप इस सलाह पर अमल कर सकते हैं। आपका मकसद क्या होना चाहिए? उसके साथ “मेल मिलाप” करना।b इसके लिए शायद यह ज़रूरी हो कि उसकी भावनाओं से इनकार करने के बजाय यह स्वीकार करें कि आपने उसके दिल को ठेस पहुँचायी है। अगर आप उसके पास मेल-मिलाप करने या शांति बहाल करने के इरादे से जाते हैं और आखिर तक ऐसा ही रवैया बनाए रखते हैं, तो कोई भी गलतफहमी दूर की जा सकती है, ज़रूरत पड़ने पर माफी माँगी जा सकती है और माफ भी किया जा सकता है। जब आप आगे आकर मेल-मिलाप या शांति कायम करने की पहल करते हैं, तो आप दिखाते हैं कि आप परमेश्‍वर की बुद्धि के मुताबिक चल रहे हैं।

      ‘कोमल और आज्ञा मानने को तैयार’

      12, 13. (क) याकूब 3:17 में, “कोमल” अनुवाद किए गए शब्द का क्या मतलब है? (ख) हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम कोमल हैं?

      12 “कोमल।” कोमल होने का क्या मतलब है? विद्वानों के मुताबिक याकूब 3:17 में जिस मूल यूनानी शब्द का अनुवाद “कोमल” किया है, उसका अनुवाद करना बहुत मुश्‍किल है। अनुवादकों ने इसके लिए ये शब्द इस्तेमाल किए हैं, “मृदु,” “धैर्यवान्‌” और “दूसरे का लिहाज़ करनेवाला।” इस यूनानी शब्द का शाब्दिक अर्थ है, “दूसरों की मानना।” हम यह कैसे ज़ाहिर करेंगे कि ऊपर से आनेवाली बुद्धि का यह पहलू हमारे अंदर काम कर रहा है?

      13 फिलिप्पियों 4:5 कहता है: “तुम्हारी कोमलता सब मनुष्यों पर प्रगट हो।” एक और अनुवाद कहता है: “कोमल होने का तुम्हारा नाम हो।” (द न्यू टेस्टामेंट इन मॉर्डन इंग्लिश, जे. बी. फिलिप्स्‌ द्वारा) ध्यान दीजिए, सवाल यह नहीं कि हम खुद को किस नज़र से देखते हैं, बल्कि यह है कि दूसरे हमें किस नज़र से देखते हैं, और हमारा कैसा नाम है। एक कोमल इंसान, लकीर का फकीर नहीं होता ना ही वह हमेशा अपनी बात मनवाने पर अड़ा रहता है। इसके बजाय, वह दूसरों की बात सुनने के लिए तैयार रहता है और जहाँ मुनासिब हो उनकी मरज़ी मान लेता है। दूसरों के साथ पेश आते वक्‍त, वह रुखाई या कठोरता से काम नहीं लेता बल्कि मृदुलता से पेश आता है। यह गुण हालाँकि सभी मसीहियों के लिए ज़रूरी है, लेकिन खास तौर पर यह प्राचीनों के लिए बेहद ज़रूरी है। मृदुलता लोगों को अपनी तरफ खींचती है, इसलिए जब प्राचीन इस गुण को दिखाते हैं तो दूसरे उनके पास आने में झिझक महसूस नहीं करते। (1 थिस्सलुनीकियों 2:7, 8) हम सब अपने आप से पूछ सकते हैं, ‘क्या मैं दूसरों का लिहाज़ करनेवाला, उनकी माननेवाला और मृदु होने के लिए जाना जाता हूँ?’

      14. हम कैसे दिखाएँगे कि हम “आज्ञा मानने को तैयार” हैं?

      14 “आज्ञा मानने को तैयार।” जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “आज्ञा मानने को तैयार” किया गया है, वह शब्द मसीही यूनानी शास्त्र में और कहीं नहीं पाया जाता। एक विद्वान के मुताबिक, यह शब्द “अकसर फौजी अनुशासन के लिए इस्तेमाल होता है।” यह शब्द “आसानी से कायल होने” और “अधीनता दिखाने” का विचार देता है। जो इंसान ऊपर से आनेवाली बुद्धि के मुताबिक चलता है, वह शास्त्र में जो लिखा है उसे फौरन मान लेता है। वह ऐसा इंसान होने का नाम नहीं कमाता जो एक बार फैसला कर ले तो फिर हरगिज़ उसे बदलने को तैयार नहीं होता, फिर चाहे यह दिखाने के लिए उसे कितने ही सबूत क्यों न दिए जाएँ कि उसका फैसला गलत था। इसके बजाय, जब उसे शास्त्र से साफ-साफ दिखाया जाता है कि वह सरासर गलत काम कर रहा है या गलत नतीजे पर पहुँचा है, तो वह फौरन खुद को बदल लेता है। क्या दूसरे आपको ऐसा ही इंसान समझते हैं?

      “दया, और अच्छे फलों से लदा हुआ”

      15. दया क्या है, और यह सही क्यों है कि याकूब 3:17 में “दया” और “अच्छे फलों” का ज़िक्र साथ-साथ किया गया है?

      15 “दया, और अच्छे फलों से लदा हुआ।”c ऊपर से आनेवाली बुद्धि का एक अहम हिस्सा है दया, क्योंकि कहा गया है कि ऐसी बुद्धि ‘दया से लदी हुई’ होती है। (तिरछे टाइप हमारे।) गौर कीजिए कि “दया” और “अच्छे फलों” का ज़िक्र साथ-साथ किया गया है। यह सही भी है, क्योंकि बाइबल में दया अकसर दूसरों के लिए ऐसी परवाह है जो कामों से ज़ाहिर होती है, ऐसी करुणा जिससे भलाई के ढेरों काम पैदा होते हैं। एक किताब दया की परिभाषा यूँ देती है, “किसी की बुरी हालत देखकर दुःखी होना और उसे ठीक करने के लिए कुछ करना।” इसलिए, हम कह सकते हैं कि परमेश्‍वर की बुद्धि, रूखी, निर्दयी और सिर्फ दिमागी नहीं है। इसके बजाय, इसमें प्यार होता है, यह दिल से निकलती है और दूसरों की भावनाओं को महसूस कर सकती है। हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम दया से लदे हुए हैं?

      16, 17. (क) परमेश्‍वर के प्रेम के अलावा, और क्या हमें प्रचार काम में हिस्सा लेने को उकसाता है, और क्यों? (ख) हम किन तरीकों से दिखा सकते हैं कि हम दया से लदे हुए हैं?

      16 बेशक इसका एक अहम तरीका है, दूसरों को परमेश्‍वर के राज्य का सुसमाचार सुनाना। यह काम करने के लिए क्या बात हमें उकसाती है? सबसे बढ़कर, परमेश्‍वर के लिए प्रेम हमें उकसाता है। इसके अलावा, दूसरे इंसानों के लिए दया या करुणा भी हमें उकसाती है। (मत्ती 22:37-39) आज कई लोग ऐसे हैं जो “उन भेड़ों की नाईं जिनका कोई रखवाला न हो, ब्याकुल और भटके हुए से” हैं। (मत्ती 9:36) झूठे धर्म के चरवाहों ने उनकी ज़रा भी परवाह नहीं की और आध्यात्मिक मायने में उन्हें अंधा कर दिया है। इसकी वजह से, वे बुद्धिमानी भरी उन हिदायतों के बारे में नहीं जानते जो परमेश्‍वर के वचन में पायी जाती हैं, न ही वे उन आशीषों के बारे में जानते हैं जो परमेश्‍वर का राज्य इस धरती पर लाएगा। इस तरह, जब हम अपने आस-पास के लोगों की आध्यात्मिक ज़रूरतों के बारे में सोचेंगे, तो हमारे दिल में छिपी दया की भावना जाग उठेगी और हमें उकसाएगी कि यहोवा के प्यार भरे उद्देश्‍य के बारे में जो कुछ जानते हैं, उन्हें बताएँ।

      एक मसीही परिवार, एक बुज़ुर्ग बहन को मदद देने, उसके यहाँ कुछ मरम्मत करने और खाने की चीज़ें भेंट करने के लिए आए हैं

      जब हम दूसरों को दया या करुणा दिखाते हैं, तब हम ‘ऊपर से आनेवाली बुद्धि’ ज़ाहिर करते हैं

      17 और किन तरीकों से हम दिखा सकते हैं कि हम दया से लदे हुए हैं? उस सामरी के बारे में यीशु के दृष्टांत को याद कीजिए, जिसने सड़क के किनारे एक मुसाफिर को पड़ा पाया था जिसे लूटा गया था और बुरी तरह मारा-पीटा गया था। करुणा से भरकर, उस सामरी ने “उस पर दया की,” और उसके घावों की मरहम-पट्टी करके उसकी देखभाल भी की। (लूका 10:29-37) क्या इस दृष्टांत से पता नहीं चलता कि दया दिखाने में, ज़रूरतमंदों की व्यावहारिक रूप से मदद करना भी शामिल है? बाइबल कहती है कि “हम सब के साथ भलाई करें; विशेष करके विश्‍वासी भाइयों के साथ।” (गलतियों 6:10) आइए देखें कि हम किन हालात में भलाई के ऐसे काम कर सकते हैं। शायद एक बुज़ुर्ग मसीही को ज़रूरत हो कि कोई उसे अपनी गाड़ी में मसीही सभाओं में लाया और ले जाया करे। कलीसिया में एक विधवा बहन को शायद अपने घर की मरम्मत के लिए मदद की ज़रूरत पड़े। (याकूब 1:27) एक निराश भाई या बहन के चेहरे पर मुसकान लाने के लिए शायद कोई “भली बात” कहने की ज़रूरत हो। (नीतिवचन 12:25) जब हम इन तरीकों से दया दिखाते हैं, तो हम यह सबूत देते हैं कि ऊपर से आनेवाली बुद्धि हमारी ज़िंदगी में काम कर रही है।

      “पक्षपात और कपट रहित”

      18. अगर हम ऊपर से आनेवाली बुद्धि के मुताबिक चलते हैं, तो हम अपने दिलों से किस भावना को उखाड़ फेकेंगे और क्यों?

      18 ‘पक्षपात रहित।’ परमेश्‍वर की बुद्धि की वजह से हम जाति-भेद और अपने देश पर घमंड करने से दूर रहते हैं। अगर हम इस बुद्धि के मुताबिक चलें, तो हम अपने दिलों से भेदभाव की भावना को उखाड़ फेकेंगे। (याकूब 2:9) लोगों के लिए हमारा प्यार इस बात से तय नहीं होता कि वे कितने पढ़े-लिखे हैं, कितने अमीर हैं या कलीसिया में उनकी क्या ज़िम्मेदारी है; न ही हम अपने संगी मसीहियों को नीची नज़र से देखते हैं, भले ही वे कितने गरीब या दीन-हीन क्यों न हों। अगर यहोवा ने उन्हें अपने प्यार के लायक समझा है, तो बेशक वे हमारे भी प्रेम के लायक हैं।

      19, 20. (क) “कपटी” के लिए यूनानी शब्द का इस्तेमाल किसके लिए होता था? (ख) हम “भाईचारे की निष्कपट प्रीति” कैसे ज़ाहिर करते हैं, और यह क्यों ज़रूरी है?

      19 “कपट रहित।” “कपटी” के लिए यूनानी शब्द “एक ऐसे कलाकार” के लिए इस्तेमाल होता है “जो किसी भूमिका को निभाता है।” प्राचीन काल में, यूनानी और रोमी कलाकार अभिनय करते वक्‍त बड़े-बड़े मुखौटे लगाते थे। इसलिए, “कपटी” के लिए यूनानी शब्द एक ऐसे इंसान के लिए इस्तेमाल होने लगा, जो नाटक या दिखावा करता है। परमेश्‍वर की बुद्धि के इस पहलू का न सिर्फ मसीही भाई-बहनों के साथ हमारे व्यवहार पर बल्कि उनके बारे में हमारे नज़रिए या हमारी भावनाओं पर भी असर होना चाहिए।

      20 प्रेरित पतरस ने कहा कि ‘सत्य को मानने’ की वजह से, हमें “भाईचारे की निष्कपट प्रीति” दिखानी चाहिए। (1 पतरस 1:22) जी हाँ, भाइयों के लिए हमारा प्यार सिर्फ एक दिखावा नहीं होना चाहिए। हम दूसरों को धोखा देने के लिए मुखौटा नहीं पहनते, न ही कोई भूमिका अदा करते हैं। हमारा प्यार सच्चा और दिल से होना चाहिए। अगर ऐसा है, तो हम अपने मसीही भाई-बहनों का भरोसा जीत पाएँगे, क्योंकि उन्हें पता होगा कि हम जैसे बाहर से दिखते हैं वैसे ही अंदर भी हैं। इस ईमानदारी की वजह से, मसीहियों के बीच ऐसे रिश्‍ते कायम हो पाते हैं जिनमें खुलापन और सच्चाई होती है, साथ ही कलीसिया में एक-दूसरे पर भरोसा करने का माहौल पैदा होता है।

      “खरी बुद्धि . . . की रक्षा कर”

      21, 22. (क) सुलैमान बुद्धि की रक्षा करने में कैसे नाकाम रहा? (ख) हम बुद्धि की रक्षा कैसे कर सकते हैं, और ऐसा करने से हमें क्या फायदा होगा?

      21 ईश्‍वरीय बुद्धि यहोवा की ओर से एक वरदान है, जिसकी हमें रक्षा करनी चाहिए। सुलैमान ने कहा: “हे मेरे पुत्र, . . . खरी बुद्धि और विवेक की रक्षा कर।” (नीतिवचन 3:21) अफसोस, सुलैमान ने खुद ऐसा नहीं किया। वह तब तक बुद्धिमान रहा जब तक उसका दिल परमेश्‍वर की आज्ञाएँ मानता रहा। मगर आखिर में, उसकी विदेशी पत्नियों ने, यहोवा की शुद्ध उपासना से उसका दिल फेर दिया। (1 राजा 11:1-8) सुलैमान का जो अंजाम हुआ वह हमारे लिए एक सबक है कि अगर ज्ञान का सही इस्तेमाल न किया जाए तो इसका कोई मोल नहीं।

      22 हम खरी बुद्धि की रक्षा कैसे कर सकते हैं? हमें न सिर्फ बाइबल और “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के ज़रिए मिलनेवाले साहित्य पढ़ने चाहिए, बल्कि सीखी हुई बातों पर पूरी तरह अमल करने की भी कोशिश करनी चाहिए। (मत्ती 24:45) परमेश्‍वर की बुद्धि पर अमल करने के हमारे पास ढेरों कारण हैं। यह हमारी ज़िंदगी को आज बेहतर बनाती है। इसकी मदद से हम परमेश्‍वर की नयी दुनिया में ज़िंदगी को, जी हाँ “सत्य जीवन को वश में कर” पाते हैं। (1 तीमुथियुस 6:19) और सबसे बढ़कर, ऊपर से आनेवाली बुद्धि अपने अंदर पैदा करने से, हम सारी बुद्धि के दाता, यहोवा परमेश्‍वर के और करीब आ पाते हैं।

      a पहला राजा 3:16 के मुताबिक, ये दोनों स्त्रियाँ वेश्‍याएँ थीं। इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स्‌ कहता है: “ये स्त्रियाँ इस मायने में वेश्‍याएँ नहीं थीं कि वे धंधा करती थीं, बल्कि शायद यहूदी या किसी और देश की ऐसी स्त्रियाँ थीं जिन्होंने व्यभिचार किया था।”—इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।

      b यूनानी पद जिसका अनुवाद “मेल मिलाप कर” किया गया है वह एक ऐसी क्रिया से आता है जिसका मतलब है, “‘बदलाव करना, अदल-बदल करना,’ और इस तरह ‘समझौता करना।’” तो फिर, आपका मकसद है, बदलाव लाना, हो सके तो जिसे आपने नाराज़ किया है उसके दिल से गिले-शिकवे या बुरी भावना दूर करना।—रोमियों 12:18.

      c एक और अनुवाद इन शब्दों को यूँ कहता है: “करुणा और भले कामों से भरपूर।”—आम लोगों की भाषा में अनुवाद, अँग्रेज़ी, चार्ल्स्‌ बी. विलियम्स्‌ द्वारा।

      मनन के लिए सवाल

      • व्यवस्थाविवरण 4:4-6 हम खुद को बुद्धिमान कैसे साबित करते हैं?

      • भजन 119:97-105 अगर हम जी-जान लगाकर परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करें और उस पर अमल करें, तो हमें कैसे फायदा होगा?

      • नीतिवचन 4:10-13, 20-27 हमें यहोवा की बुद्धि की ज़रूरत क्यों है?

      • याकूब 3:1-16 कलीसिया में जिन्हें निगरानी की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी है, वे कैसे दिखाएँगे कि वे बुद्धिमान और समझदार हैं?

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