प्रचार में अपना हुनर बढ़ाना—एक मददगार साथी बनना
यह क्यों ज़रूरी है: यीशु अच्छी तरह इस बात की अहमियत समझता था कि प्रचार में हमें एक मददगार साथी की ज़रूरत है। इसलिए जब उसने अपने 70 चेलों को प्रचार में अपने आगे भेजा, तो उसने उन्हें दो-दो की जोड़ियों में बाँटा। (लूका 10:1) प्रचार में मददगार साथी हमें ज़रूरी मदद दे सकता है, जब हम किसी मुश्किल का सामना कर रहे हों या फिर घर-मालिक को जवाब देने में हमें कोई दिक्कत हो रही हो। (सभो. 4:9, 10) शायद वह आपके साथ अपने अनुभव बाँटे, जब कभी ज़रूरत हो तो कुछ सुझाव दे, जिससे आपको और भी असरदार प्रचारक बनने में मदद मिलेगी। (नीति. 27:17) एक घर से दूसरे घर जाते वक्त वह अपनी बातचीत से भी आपका हौसला बढ़ा सकता है।—फिलि. 4:8.
कैसे कर सकते हैं:
• जब प्रचारक साथी घर-मालिक से बात करता है, तब गौर से सुनिए। (याकू. 1:19) जब वह कोई आयत पढ़ता है तो आप भी बाइबल खोलकर देखिए। इस तरह आप ज़रूरत पड़ने पर मदद देने के लिए तैयार रह पाएँगे। घर-घर के प्रचार में जब प्रचारक साथी बात कर रहा हो, तो आप आस-पास की गतिविधियों का ध्यान रख सकते हैं, लेकिन इस बात का खयाल रखिए कि आप उसकी बातचीत में कोई रुकावट न पैदा करें। (मत्ती 10:16) अगर आपको लगता है कि कोई शख्स आप पर नज़र रख रहा है या फिर आपकी तरफ देखकर किसी को फोन कर रहा है, तो ऐसे में आप समझदारी से प्रचारक साथी की मदद कर सकते हैं ताकि वह अपनी बातचीत खत्म कर सके और आप दोनों शांति से वह इलाका छोड़ सकें।—नीति. 17:14.
• सोच-समझकर तय कीजिए कि आपको प्रचारक साथी की बातचीत में शामिल होना चाहिए या नहीं या अगर हाँ, तो कब। (नीति. 25:11) अगर आप किसी प्रचारक के साथ बाइबल अध्ययन पर जाते हैं, तो कभी-कभार दी आपकी कुछ टिप्पणियों की वह कदर करेगा। लेकिन घर-घर के प्रचार के दौरान वह चाहेगा कि जब उसकी बारी आती है, तो आप उसे ही बात करने दें। हाँ, अगर आपके साथ काम करनेवाला प्रचारक, नया हो या फिर वह घर-मालिक के किसी सवाल या विरोध का जवाब नहीं दे पाता, तो उस समय आपकी दी मदद के लिए वह एहसानमंद होगा। इस बात का ध्यान रखिए कि चाहें आप किसी प्रचारक के साथ घर-घर के प्रचार में हों, वापसी भेंट में गए हों या फिर बाइबल अध्ययन पर गए हों, कभी-भी बातचीत के बीच में मत टोकिए, न ही खुद बात करने लग जाइए और न ही कोई नया विषय छेड़िए।
• अपना अनुभव बाँटिए। शायद कभी-कभार आप अपने साथ काम करनेवाले प्रचारक को सुझाव देना चाहें ताकि वह प्रचार में और असरदार बन सके, ऐसे में सुझाव देने से झिझकिए मत। (नीति. 3:27) सही समय देखकर कोई भी सुझाव देने से पहले आप कुछ ऐसा कह सकते हैं, “आपको कैसा लगा, पिछले घर-मालिक से हमारी बातचीत कैसी रही?” या “क्या मैं आपको एक बात बता सकता हूँ?” या “मैं कुछ इस तरह बात करता हूँ . . .।” इस बात का ध्यान रखिए कि अगर हम कभी-कभार दूसरों को कोई सुझाव देंगे तो वे उसकी कदर करेंगे, वहीं अगर हम उनकी हर छोटी-मोटी गलती पर ध्यान दिलाने लगे तो वे निराश हो जाएँगे।
महीने के दौरान इसे आज़माइए:
• प्रचार में किसी भाई या बहन के साथ काम करने के बाद, उनसे कहिए कि कैसे वह एक मददगार साथी साबित हुए, उनकी कोई बात या उनका आज़माया कोई तरीका जो आपको अच्छा लगा उन्हें बताइए।