प्रभावकारी बाइबल अध्ययनों के द्वारा दिलों तक पहुँचे
१ अपने पिता की इच्छा करने में यीशु ने आनन्द पाया, और उसने दूसरों को यहोवा की सेवा करने में मदद देने में खुशी पायी। (भजन संहिता ४०:८; मत्ती ९:३७, ३८; ११:२८-३०) यीशु केवल अपना संदेश देने में ही सन्तुष्ट नहीं था। अगर दूसरों को इस सुसमाचार प्रचार कार्य में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करने में हमें सफल बनना हो, हमें हमारे बाइबल विद्यार्थियों के दिल तक पहुँचना चाहिए। इस में, एक प्रकाशन की प्रश्नोत्तरी परिचर्चा संचालित करने से अधिक सम्बद्ध है। दिल तक पहुँचने के लिए उस विद्यार्थी को मन में रखते हुए तैयारी करने की हमें आवश्यकता है।
२ दूसरों में यीशु ने एक वयक्तिक रुचि ली। उसने दूसरों के दृष्टिकोण की क़दर की। कठिन विषयों को सरल बनाने के लिए उसने उदाहरणों का उपयोग किया। (मत्ती, अध्याय ५-७) उन समस्याओं को पहचानते हुए जिनका उन्हें सामना करना पड़ेगा, यीशु ने उचित सलाह दी। (मरकुस ९:३३-३७) उसके सुननेवाले, उसकी शिक्षा के विषय को पहले समझ न पाने पर, सहनशीलता के साथ उसने उदाहरण देकर समझाया। (मत्ती १६:५-१२) दूसरों में यीशु की गहरी रुचि हमें यह पूछने के लिए प्रेरित करनी चाहिए, ‘अगर मैं वह विद्याथी होता, तो समझने और सिखायी गयी बातों से प्रेरित होने के लिए मुझे क्या जानने की ज़रुरत है?’—१९७१ इयरबुक, पृष्ठ २४६-७ देखें।
बाइबल पर विशेष बन दें
३ एक दम्पति से, दी गयी गवाही की ओर, इतनी जल्दी अनुकूल प्रतिक्रिया दिखाने के लिए क्या प्रेरित किया, यह पूछे जाने पर, उन्होंने जवाब दिया: “यह बात बाइबल में थी।” जी हाँ, परमेश्वर का वचन दिलों तक पहुँचता है। (इब्रा. ४:१२) बार बार उसका उल्लेख करें और परिच्छेदों के शास्त्रवचनों का भरपूर उपयोग करें। विद्यार्थी को यह जानने में मदद दें कि एक अमुक मार्ग क्यों विवेकी या मूर्खतापूर्ण है। उसे समझाएं कि कैसे परमेश्वर के नियमों की ओर आज्ञाकारिता उसके लिए लाभदायक होगा।—द वॉचटावर, अगस्त १, १९८४, पृष्ठ १५-१६ देखें।
४ कई प्रचारकों ने पाया है कि बाइबल पर विशेष बल देने के लिए रीज़निंग पुस्तक बहुत प्रभावकारी है। उदाहरणार्थ, लिव फॉरेवर पुस्तक के पृष्ठ १२४, परिच्छेद १३ पर विचार करते वक्त, एक गृहस्वामी पूछ सकता है कि उसका पादरी ऐसे क्यों कहता है कि बच्चें इसलिए मरते हैं क्योंकि परमेश्वर उन्हें स्वर्ग में अपने पास चाहता हैं। रीज़निंग पुस्तक के पृष्ठ ९९ पर “बच्चें क्यों मरते हैं?” इस शीर्षक के नीचे दी गयी जानकारी पर सोचविचार, पारिवारिक व्यवस्था कायम रखने में यहोवा की रुचि पर बल देता है। यह जानकारी एक व्याक्ति को मानव जाति के लिए यहोवा के प्रेम के बारे में विश्वास दिलाता है।
प्रश्न पूछें
५ प्रश्नों का प्रभावकारी उपयोग ने यीशु को लोगों में विचार और समझ उत्पन्न करने में मदद दी। (मत्ती १७:२४-२७) विद्यार्थी के उत्तर हमें वह क्या सीखता है और साथ ही वह जिन अशास्त्रीय विचारों पर अब भी विश्वास करता है, यह निश्चित करने के लिए मदद देगी। शायद धूम्रपान करने की आदत के साथ वह विद्यार्थी संघर्ष कर रहा हो। आपने लिव फॉरेवर पुस्तक के अध्याय २७ को और जुलाई ८, १९८९ के अवेक! अंक के पृष्ठ १३-१६ में दी जानकारी पर पुनर्विचार कर लिया है। वह, बन्द करने की आवश्यकता जान लेता है। किन्तु, क्या वह सचमुच यह विश्वास करता है कि उसे इस आदत से मुक्त होना है? आप कह सकते हैं: “आपको इसके बारे में क्या लगता है? मान लो कि आपने अभी यह आदत बन्द कर ली, लेकिन आपके कुछ मित्र आपका मज़ाक उड़ाएँगे। आप क्या करेंगे?”
६ किन्तु सावधानी की एक बात है। कई समयों पर ऐसे प्रश्न ऐसे उत्तर ला सकते हैं जो आपको आश्चर्यचकित या निराश कर सकता है। तब क्या? अगर वह एक भावुक विषय है, तो उस पर दबाव न देना बल्कि यह कहना ही बेहतर होगा: “अभी हम आगे बढ़ेगे। इस विषय की ओर हम बाद में आएँगे।” या “खैर, यह तो विचार करने की बात है, है ना?” (यूहन्ना १६:१२) इस विषय के बारे में वह विद्यार्थी सचमुच क्या महसूस करता है, यह जानने के द्वारा आप ऐसी जानकारी तैयार कर सकते हैं, जो उसे अधिक प्रगति करने में मदद देगी। हमें एक व्यक्ति के दिल को प्रेरित करने की कोशिश करनी चाहिए और प्रार्थना करनी चाहिए कि यहोवा उसे आध्यात्मिक रुप से बढ़ने में सहायता देगी।—१ कुरि. ३:५-९.
७ एक बाइबल अध्ययन संचालित करते समय हमेशा याद रखिए कि सीखे जानेवाले विषय पर विद्यार्थी के साथ सोचविचार करने के लिए काफ़ी समय व्यतीत करें। अपनी शिक्षा तरीकों को उसकी विशेष आवश्यकताओं के अनुरूप बनाएं। उसके दिल में यहोवा, बाइबल, और यहोवा के संघटन के लिए गहरा प्रेम और आदर विकसित करने के लिए कार्य करें। तो हम बाइबल अध्ययन संचालित करने में प्रयत्न करने के द्वारा दूसरों को मसीह के शिष्य बनने में सहायता देने के लिए हमारी भूमिका पूरी तरह निभाएं।—प्ररितों के काम २:४१-४६.