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उत्पत्ति का सारांश

      • यूसुफ के दो बेटों को आशीर्वाद (1-12)

      • एप्रैम को ज़्यादा आशीर्वाद मिला (13-22)

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फुटनोट

  • *

    या “ज़मीन की एक ढलान।”

दूसरें अनुवाद

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दूसरी

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उत्प. 48:3उत 28:13, 19; हो 12:4
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पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद
उत्पत्ति 48:1-22

उत्पत्ति

48 कुछ समय बाद यूसुफ को यह खबर दी गयी: “आजकल तेरे पिता की तबियत कुछ ठीक नहीं रहती।” जब यूसुफ ने यह सुना तो वह अपने दोनों बेटों, यानी मनश्‍शे और एप्रैम को लेकर याकूब के पास गया।+ 2 फिर याकूब को बताया गया, “तेरा बेटा यूसुफ आया है।” तब इसराएल ने किसी तरह ताकत जुटायी और पलंग पर उठकर बैठा। 3 याकूब ने यूसुफ से कहा:

“सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर कनान के लूज में मेरे सामने प्रकट हुआ था और उसने मुझे आशीष दी।+ 4 उसने मुझसे कहा, ‘मैं तुझे बहुत-सी संतान देकर आबाद करूँगा और तेरे वंशजों की गिनती बहुत बढ़ाऊँगा। मैं तेरे वंशजों से कई गोत्रों की एक बहुत बड़ी मंडली बनाऊँगा।+ मैं यह देश तेरे बाद तेरे वंश को दूँगा ताकि यह हमेशा के लिए उनकी जागीर बन जाए।’+ 5 अब देख, तेरे दोनों बेटे, जो यहाँ मिस्र में मेरे आने से पहले पैदा हुए थे, अब से मेरे हैं।+ जैसे रूबेन और शिमोन मेरे बेटे हैं,+ वैसे ही एप्रैम और मनश्‍शे मेरे बेटे हैं। 6 लेकिन इनके बाद तेरे जो बेटे होंगे वे तेरे ही कहलाएँगे। उन्हें एप्रैम और मनश्‍शे की विरासत की ज़मीन से हिस्सा मिलेगा।+ 7 और जब मैं पद्दन से लौट रहा था तो कनान देश में एप्रात+ से कुछ दूरी पर मेरे सामने राहेल की मौत हो गयी।+ इसलिए मैंने उसे एप्रात जानेवाले रास्ते में, हाँ बेतलेहेम+ के रास्ते में दफना दिया।”

8 फिर इसराएल ने यूसुफ के बेटों को देखकर पूछा, “क्या ये तेरे बच्चे हैं?” 9 यूसुफ ने अपने पिता से कहा, “हाँ, ये मेरे बेटे हैं जो परमेश्‍वर ने मुझे इस देश में दिए हैं।”+ इसराएल ने कहा, “इन्हें ज़रा मेरे पास ला, मैं इन्हें आशीर्वाद देना चाहता हूँ।”+ 10 बुढ़ापे की वजह से इसराएल की नज़र बहुत कमज़ोर हो गयी थी, उसे ठीक से दिखायी नहीं देता था। इसलिए यूसुफ अपने बेटों को इसराएल के नज़दीक लाया और इसराएल ने उन्हें चूमा और गले लगाया। 11 तब उसने यूसुफ से कहा, “मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मैं जीते-जी तेरा मुँह देख पाऊँगा।+ मगर देख, परमेश्‍वर ने मुझे न सिर्फ तुझे बल्कि तेरे वंश को भी देखने का मौका दिया है।” 12 इसके बाद यूसुफ अपने बेटों को इसराएल के घुटनों के पास से अलग ले गया। फिर यूसुफ ने मुँह के बल ज़मीन पर गिरकर दंडवत किया।

13 इसके बाद यूसुफ, एप्रैम+ और मनश्‍शे+ को इसराएल के करीब लाया। उसने अपने दाएँ हाथ से एप्रैम को पकड़कर इसराएल के बायीं तरफ किया और अपने बाएँ हाथ से मनश्‍शे को पकड़कर उसके दायीं तरफ किया। 14 मगर इसराएल ने अपना दायाँ हाथ एप्रैम के सिर पर रखा, इसके बावजूद कि वह छोटा बेटा था और अपना बायाँ हाथ पहलौठे बेटे मनश्‍शे के सिर पर रखा।+ इसराएल ने जानबूझकर ऐसा किया। 15 फिर उसने यूसुफ को यह आशीर्वाद दिया,+

“सच्चा परमेश्‍वर, जिसके सामने मेरे दादा अब्राहम और पिता इसहाक सही राह पर चलते रहे+

और जो मेरा चरवाहा बनकर मेरे जन्म से लेकर आज तक मेरी देखभाल करता आया है, वह सच्चा परमेश्‍वर+

16 जो अपने स्वर्गदूत के ज़रिए मुझे हर मुसीबत से बचाता आया है,+ इन लड़कों को आशीष दे।+

वे मेरे नाम से, मेरे दादा अब्राहम और पिता इसहाक के नाम से जाने जाएँ,

धरती पर इनके वंशजों की गिनती कई गुना बढ़ती जाए।”+

17 जब यूसुफ ने देखा कि उसके पिता ने अपना दायाँ हाथ एप्रैम के सिर पर रखा है, तो उसे बुरा लगा। इसलिए उसने उसका दायाँ हाथ एप्रैम के सिर से हटाकर मनश्‍शे के सिर पर रखने की कोशिश की। 18 उसने अपने पिता से कहा, “नहीं, नहीं, मेरे पिता, पहलौठा वह नहीं यह है।+ इस पर अपना दायाँ हाथ रख।” 19 मगर यूसुफ का पिता उसकी बात मानने से इनकार करता रहा। उसने कहा, “मैं जानता हूँ बेटे, मैं जानता हूँ। इससे भी एक बड़ी और महान जाति बनेगी। मगर इसका यह छोटा भाई इससे भी महान होगा+ और इसके वंश के लोग इतने बेशुमार होंगे कि वे कई जातियों के बराबर होंगे।”+ 20 उस दिन इसराएल ने उन दोनों लड़कों को यह आशीर्वाद भी दिया:+

“इसराएल के लोग तेरा नाम लेकर एक-दूसरे को यह आशीर्वाद दिया करें,

‘परमेश्‍वर तुझे एप्रैम और मनश्‍शे के जैसा बनाए।’”

इस तरह इसराएल ने यूसुफ के बेटों को आशीर्वाद देते वक्‍त मनश्‍शे के बजाय एप्रैम को पहला दर्जा दिया।

21 फिर इसराएल ने यूसुफ से कहा, “देख, अब मैं ज़्यादा दिन नहीं जीनेवाला।+ मगर तुम लोग एक बात का यकीन रखना, परमेश्‍वर हमेशा तुम्हारे साथ रहेगा और तुम्हें तुम्हारे पुरखों के देश में वापस ले जाएगा।+ 22 मैं तुझे तेरे भाइयों से उस ज़मीन का एक हिस्सा* ज़्यादा देता हूँ, जो मैंने तीर-कमान और तलवार के दम पर एमोरियों से हासिल की थी।”

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