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विलापगीत का सारांश

      • बहाली की प्रार्थना

        • “हम पर जो गुज़री है उस पर ध्यान दे” (1)

        • ‘धिक्कार है हम पर; हमने पाप किया’ (16)

        • ‘हे यहोवा, हमें वापस ले आ’ (21)

        • “हमारे पुराने दिन लौटा दे” (21)

विलापगीत 5:1

संबंधित आयतें

  • +भज 79:4; विल 2:15

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  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    6/1/2007, पेज 10

विलापगीत 5:2

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  • +व्य 28:30; भज 79:1; यिर्म 6:12; सप 1:13

विलापगीत 5:3

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  • +2इत 28:16; यश 30:2; यिर्म 2:18, 36; 44:12; यहे 17:17, 18

विलापगीत 5:7

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    6/1/2007, पेज 10-11

    10/1/1988, पेज 31

विलापगीत 5:9

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  • +यहे 4:10

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फुटनोट

  • *

    या “का बलात्कार।”

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  • +यिर्म 33:13

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  • खोजबीन गाइड

    “सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र” (यिर्म-मला), पेज 6

विलापगीत 5:22

संबंधित आयतें

  • +व्य 28:15

दूसरें अनुवाद

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दूसरी

विला. 5:1भज 79:4; विल 2:15
विला. 5:2व्य 28:30; भज 79:1; यिर्म 6:12; सप 1:13
विला. 5:3निर्ग 22:24; यिर्म 18:21
विला. 5:4व्य 28:15, 48; यश 3:1; यहे 4:11, 16
विला. 5:5व्य 28:65
विला. 5:62इत 28:16; यश 30:2; यिर्म 2:18, 36; 44:12; यहे 17:17, 18
विला. 5:9यहे 4:10
विला. 5:102रा 25:3; विल 4:8
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विला. 5:21यिर्म 33:13
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पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद
विलापगीत 5:1-22

विलापगीत

5 हे यहोवा, हम पर जो गुज़री है उस पर ध्यान दे।

देख कि हम कितने बेइज़्ज़त हुए हैं।+

 2 हमारी विरासत परायों के हवाले कर दी गयी है, हमारे घर परदेसियों को दे दिए गए हैं।+

 3 हम अनाथ हो गए, हम पर से पिता का साया उठ गया है, हमारी माँएँ विधवा जैसी हो गयी हैं।+

 4 हमें अपना ही पानी खरीदना पड़ता है,+ अपनी ही लकड़ी के लिए दाम देना पड़ता है।

 5 हमारा पीछा करनेवाले हमारी गरदन पर सवार हैं,

हम पस्त हो गए हैं, हमें बिलकुल आराम नहीं दिया जाता।+

 6 हम रोटी के लिए मिस्र और अश्‍शूर के आगे हाथ फैलाते हैं+ ताकि अपनी भूख मिटा सकें।

 7 हमारे पुरखों ने पाप किया था और वे अब नहीं रहे, मगर उनके गुनाहों का अंजाम हमें भुगतना पड़ रहा है।

 8 हम पर सेवक राज कर रहे हैं, उनके हाथ से हमें छुड़ानेवाला कोई नहीं।

 9 वीराने की तलवार की वजह से हम अपनी जान जोखिम में डालकर रोटी लाते हैं।+

10 तेज़ भूख से हमारी खाल भट्ठे की तरह तप रही है।+

11 उन्होंने सिय्योन में शादीशुदा औरतों को और यहूदा के शहरों में कुँवारियों को भ्रष्ट* किया।+

12 हाकिम हाथ से लटका दिए गए,+ मुखियाओं का बिलकुल आदर नहीं किया गया।+

13 जवान हाथ की चक्की उठाते हैं, लड़के लकड़ियों का बोझ उठाते हुए लड़खड़ाते हैं।

14 मुखिया अब शहर के फाटकों पर नज़र नहीं आते,+ न ही जवानों का संगीत सुनायी देता है।+

15 हमारे दिलों में अब खुशी नहीं रही, हमारा नाच-गाना मातम में बदल गया है।+

16 हमारे सिर का ताज गिर गया है। धिक्कार है हम पर क्योंकि हमने पाप किया है!

17 इसलिए हमारा मन रोगी है,+

हमारी नज़र धुँधली पड़ गयी है।+

18 सिय्योन पहाड़ उजाड़ पड़ा है,+ वहाँ लोमड़ियाँ घूमती हैं।

19 हे यहोवा, तू सदा अपनी राजगद्दी पर विराजमान रहता है।

तेरी राजगद्दी पीढ़ी-पीढ़ी तक बनी रहती है।+

20 तूने क्यों हमें हमेशा के लिए भुला दिया है, इतने लंबे अरसे से हमें त्याग दिया है?+

21 हे यहोवा, हमें अपने पास वापस ले आ और हम खुशी-खुशी तेरे पास लौट आएँगे।+

हमारे पुराने दिन लौटा दे।+

22 मगर तूने तो हमें पूरी तरह ठुकरा दिया है।

तू अब भी हमसे बहुत गुस्सा है।+

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