थिस्सलुनीकियों के नाम दूसरी चिट्ठी
1 पौलुस, सिलवानुस* और तीमुथियुस+ थिस्सलुनीकियों की मंडली को लिख रहे हैं, जो परमेश्वर हमारे पिता और प्रभु यीशु मसीह के साथ एकता में है:
2 तुम्हें परमेश्वर हमारे पिता की तरफ से और प्रभु यीशु मसीह की तरफ से महा-कृपा और शांति मिले।
3 भाइयो, हमारा फर्ज़ बनता है कि हम तुम्हारे लिए हमेशा परमेश्वर का धन्यवाद करें। ऐसा करना सही भी है क्योंकि तुम्हारा विश्वास तेज़ी से बढ़ता जा रहा है और एक-दूसरे के लिए तुम सबका प्यार भी बढ़ता जा रहा है।+ 4 इस वजह से हम परमेश्वर की मंडलियों में तुम पर गर्व करते हैं+ क्योंकि तुम इतने ज़ुल्म और मुश्किलें* झेलते हुए धीरज धर रहे हो और विश्वास में मज़बूत बने हुए हो।+ 5 यह परमेश्वर के सच्चे न्याय का सबूत है और इस वजह से तुम परमेश्वर के राज के योग्य समझे जाओगे, जिसके लिए असल में तुम दुख उठा रहे हो।+
6 वाकई परमेश्वर की नज़र में यह सही है कि जो तुम पर संकट ले आते हैं, बदले में वह उन पर संकट ले आए।+ 7 मगर तुम लोग जो संकट झेल रहे हो, तुम्हें हमारे साथ उस वक्त राहत दे जब प्रभु यीशु अपने शक्तिशाली दूतों के साथ धधकती आग में स्वर्ग से प्रकट होगा।+ 8 वह उन लोगों से बदला लेगा जो परमेश्वर को नहीं जानते और हमारे प्रभु यीशु के बारे में खुशखबरी के मुताबिक नहीं चलते।+ 9 उन्हें प्रभु के सामने से और उसकी शक्ति के तेज से दूर कर दिया जाएगा और उन्हें सज़ा देकर हमेशा के लिए नाश कर दिया जाएगा।+ 10 यह उस वक्त होगा जब वह अपने पवित्र जनों के साथ महिमा पाने के लिए आएगा और उस दिन वे सभी उसकी तारीफ करेंगे जिन्होंने उस पर विश्वास किया है, क्योंकि हमने जो गवाही दी थी उस पर तुमने विश्वास किया है।
11 इसी वजह से हम तुम्हारे लिए हमेशा प्रार्थना करते हैं कि हमारा परमेश्वर तुम्हें उसके बुलावे के योग्य समझे+ और अपनी शक्ति से वह जो-जो भलाई करना चाहता है वह सब करे और तुम विश्वास की वजह से जितने काम करते हो उन्हें सफल करे। 12 ऐसा इसलिए हो ताकि हमारे परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह की महा-कृपा के मुताबिक, हमारे प्रभु यीशु का नाम तुम्हारे ज़रिए महिमा पाए और तुम उसके साथ एकता में महिमा पाओ।
2 मगर भाइयो, जहाँ तक हमारे प्रभु यीशु मसीह की मौजूदगी+ और उसके साथ हमारे इकट्ठा होने की बात है,+ हम तुमसे गुज़ारिश करते हैं 2 कि अगर कोई कहे कि यहोवा* का दिन+ आ गया है तो उतावली में आकर अपनी समझ-बूझ मत खो बैठना, न ही घबरा जाना, फिर चाहे कोई दावा करे कि यह बात ईश्वर-प्रेरणा से पता चली है,+ चाहे यह कोई ज़बानी संदेश हो या ऐसी चिट्ठी में लिखी बात हो जो हमारी तरफ से लगे।
3 कोई तुम्हें किसी तरह गुमराह न करे* क्योंकि वह दिन तब तक नहीं आएगा, जब तक कि पहले परमेश्वर से बगावत* न की जाए+ और वह पापी+ यानी विनाश का बेटा प्रकट न किया जाए।+ 4 वह विरोध करता है और ईश्वर कहलानेवाले हर किसी से और उपासना की जानेवाली हर चीज़* से खुद को ऊँचा उठाता है और इस तरह वह ईश्वर के मंदिर में बैठकर सबके सामने खुद को ईश्वर बताता है। 5 क्या तुम्हें याद नहीं कि जब मैं तुम्हारे साथ था, तब मैं तुम्हें बताया करता था कि यह सब होगा?
6 अब तुम जानते हो कि कौन उसे रोके हुए है ताकि वक्त आने पर ही उसे प्रकट किया जाए। 7 यह सच है कि उस पापी की बुराई एक रहस्य है जो अभी से शुरू हो चुकी है,+ मगर यह बुराई सिर्फ तब तक एक रहस्य रहेगी जब तक कि इसे रोकनेवाला हट नहीं जाता जो अभी इसे रोके हुए है। 8 इसके बाद, वह पापी वाकई सामने आ जाएगा और जब प्रभु यीशु अपनी मौजूदगी ज़ाहिर करेगा+ तब वह उस पापी को अपनी मुँह की फूँक से मिटा देगा+ और उसे भस्म कर देगा। 9 मगर उस पापी का मौजूद होना शैतान की तरफ से है।+ वह पापी हर तरह के शक्तिशाली काम, झूठे चिन्ह और चमत्कार+ 10 और हर तरह की बुराई और छल के काम करेगा।+ और इससे वे धोखा खाएँगे जो नाश की तरफ बढ़ रहे हैं। यही उनकी सज़ा है क्योंकि उन्होंने सच्चाई से प्यार नहीं किया कि वे उद्धार पाएँ। 11 इसी वजह से परमेश्वर उन्हें झूठी शिक्षाओं से बहकने देता है ताकि वे झूठ पर यकीन करें+ 12 और उन सबको सज़ा दी जाए क्योंकि उन्होंने सच्चाई पर यकीन नहीं किया बल्कि बुराई से खुशी पायी।
13 लेकिन भाइयो, तुम जो यहोवा* के प्यारे हो, तुम्हारे लिए हमेशा परमेश्वर का धन्यवाद करना हमारा फर्ज़ बनता है, क्योंकि परमेश्वर ने तुम्हें शुरू से चुन लिया।+ उसने अपनी पवित्र शक्ति से तुम्हें शुद्ध करने के ज़रिए+ और सच्चाई पर तुम्हारे विश्वास की वजह से तुम्हें उद्धार के लिए चुना है। 14 और उस खुशखबरी के ज़रिए तुम्हें बुलाया है जो हम सुनाते हैं ताकि तुम हमारे प्रभु यीशु मसीह की महिमा पाओ।+ 15 इसलिए भाइयो, मज़बूत खड़े रहो+ और जो बातें* तुम्हें सिखायी गयी थीं उन्हें मानते रहो,+ चाहे वे तुम्हें ज़बानी तौर पर सिखायी गयी थीं या हमारी चिट्ठी के ज़रिए। 16 हमारा प्रभु यीशु मसीह और हमारा पिता यानी परमेश्वर जिसने हमसे प्यार किया+ और अपनी महा-कृपा के ज़रिए हमें सदा कायम रहनेवाला दिलासा दिया है और एक शानदार आशा दी है,+ 17 वे दोनों तुम्हारे दिलों को दिलासा दें और तुम्हें हर अच्छे काम और वचन के लिए मज़बूत करें।
3 भाइयो, मैं आखिर में यह कहता हूँ कि हमारे लिए प्रार्थना करते रहो+ ताकि यहोवा* का वचन तेज़ी से फैलता जाए+ और महिमा पाता जाए, ठीक जैसे तुम्हारे बीच हो रहा है। 2 यह भी प्रार्थना करो कि हम ऐसे लोगों से बचाए जाएँ जो खतरनाक और दुष्ट हैं,+ क्योंकि विश्वास हर किसी में नहीं होता।+ 3 मगर प्रभु विश्वासयोग्य है और वह तुम्हें मज़बूत करेगा और शैतान* से बचाए रखेगा। 4 और हमें प्रभु में तुम्हारे बारे में भरोसा है कि हमने तुम्हें जो हिदायतें दी हैं उन्हें तुम मान रहे हो और आगे भी मानते रहोगे। 5 हमारी दुआ है कि प्रभु तुम्हारे दिलों को सही राह दिखाता रहे ताकि तुम परमेश्वर से प्यार करो+ और मसीह की खातिर धीरज धरो।+
6 भाइयो, हम प्रभु यीशु मसीह के नाम से तुम्हें हिदायत देते हैं कि ऐसे हर भाई से दूर हो जाओ जो कायदे से नहीं चलता+ और उन हिदायतों* के मुताबिक नहीं चलता जो हमने तुम्हें* बतायी थीं।+ 7 तुम खुद जानते हो कि तुम्हें कैसे हमारी मिसाल पर चलना चाहिए,+ क्योंकि हम तुम्हारे बीच रहते वक्त बेकायदा नहीं चले, 8 न ही हमने मुफ्त की* रोटी तोड़ी।+ इसके बजाय, हम रात-दिन कड़ी मेहनत और संघर्ष करते थे ताकि तुममें से किसी पर भी खर्चीला बोझ न बनें।+ 9 ऐसा नहीं कि हमें अधिकार नहीं है,+ बल्कि हम चाहते थे कि हम तुम्हारे लिए ऐसी मिसाल रखें जिस पर तुम चलो।+ 10 सच तो यह है कि जब हम तुम्हारे साथ थे, तो हम तुम्हें यह आदेश दिया करते थे: “अगर कोई काम नहीं करना चाहता, तो उसे खाने का भी हक नहीं है।”+ 11 हमने सुना है कि तुम्हारे बीच कुछ लोग कायदे से नहीं चल रहे हैं।+ वे कोई काम-धंधा नहीं करते बल्कि उन बातों में दखल देते फिरते हैं जिनसे उनका कोई लेना-देना नहीं।+ 12 ऐसे लोगों को हम प्रभु यीशु मसीह में आदेश देते और समझाते हैं कि वे शांति से अपना काम-धंधा करें और अपनी कमाई की रोटी खाएँ।+
13 भाइयो, जहाँ तक तुम्हारी बात है, भले काम करने में हार मत मानो। 14 लेकिन अगर कोई उन बातों को नहीं मानता जो हमने इस चिट्ठी में बतायी हैं, तो ऐसे आदमी पर नज़र रखो* और उसके साथ मिलना-जुलना छोड़ दो+ ताकि वह शर्मिंदा हो। 15 फिर भी उसे दुश्मन मत समझो, मगर उसे एक भाई जानकर समझाते-बुझाते रहो।+
16 हमारी दुआ है कि शांति का प्रभु तुम्हें हर तरह से शांति देता रहे।+ प्रभु तुम सबके साथ हो।
17 मैं पौलुस खुद अपने हाथ से तुम्हें नमस्कार लिख रहा हूँ,+ जो मेरी हर चिट्ठी की पहचान है। मेरे लिखने का तरीका यही है।
18 हमारे प्रभु यीशु मसीह की महा-कृपा तुम पर होती रहे।
सीलास भी कहलाता था।
या “संकट।”
अति. क5 देखें।
या “बहका न दे।”
या “सच्ची उपासना से मुँह मोड़ लेना।”
या “श्रद्धा की हर चीज़।”
अति. क5 देखें।
या “दस्तूर।”
अति. क5 देखें।
शा., “उस दुष्ट।”
या “दस्तूरों।”
या शायद, “उन्हें।”
या “बिना पैसे दिए।”
शा., “पर निशान लगाओ।”