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पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद (अध्ययन बाइबल)
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पहली किताब

(भजन 1-41)

1 सुखी है वह इंसान जो दुष्टों की सलाह पर नहीं चलता,

पापियों की राह पर खड़ा नहीं होता,+

न ही हँसी-ठट्ठा करनेवालों के साथ बैठता है।+

 2 मगर वह यहोवा के कानून से खुशी पाता है,+

दिन-रात उसका कानून धीमी आवाज़ में पढ़ता है।*+

 3 वह ऐसे पेड़ की तरह होगा जो बहते पानी के पास लगाया गया है,

जो समय पर फल देता है,

जिसके पत्ते कभी मुरझाते नहीं।

वह आदमी अपने हर काम में कामयाब होगा।+

 4 मगर दुष्ट लोग ऐसे नहीं होते,

वे भूसी की तरह होते हैं जिसे हवा उड़ा ले जाती है।

 5 इसलिए दुष्ट न्याय के समय टिक नहीं पाएँगे,+

पापी, नेक लोगों की मंडली में खड़े नहीं रह पाएँगे।+

 6 क्योंकि यहोवा नेक लोगों की राह पर ध्यान देता है,+

मगर दुष्टों के रास्ते मिट जाएँगे।+

2 राष्ट्र क्यों गुस्से से उफन रहे हैं?

देश-देश के लोग क्यों खोखली बात पर फुसफुसा रहे हैं?*+

 2 धरती के राजा, यहोवा और उसके अभिषिक्‍त जन*+ के खिलाफ खड़े होते हैं,

बड़े-बड़े अधिकारी मिलकर उनका विरोध* करते हैं।+

 3 वे कहते हैं, “आओ, हम उनकी लगायी ज़ंजीरें तोड़ दें,

उनकी रस्सियाँ काट फेंकें!”

 4 स्वर्ग में विराजमान परमेश्‍वर उन पर हँसेगा,

यहोवा उनका मज़ाक उड़ाएगा।

 5 उस वक्‍त वह उन पर बरस पड़ेगा,

अपनी जलजलाहट से उन्हें घबरा देगा।

 6 वह उनसे कहेगा, “अपने पवित्र पहाड़ सिय्योन+ पर

मैंने अपने ठहराए राजा को राजगद्दी पर बिठाया है।”+

 7 मैं यहोवा के फरमान का ऐलान करूँगा।

उसने मुझसे कहा है, “तू मेरा बेटा है,+

आज मैं तेरा पिता बना हूँ।+

 8 मुझसे माँग, मैं तुझे विरासत में राष्ट्र दूँगा,

पूरी धरती को तेरी जागीर बना दूँगा।+

 9 तू लोहे के राजदंड से उन्हें तोड़ देगा,+

मिट्टी के बरतन की तरह चकनाचूर कर देगा।”+

10 इसलिए राजाओ, अंदरूनी समझ से काम लो,

धरती के न्यायियो, शिक्षा कबूल करो।*

11 यहोवा का डर मानते हुए उसकी सेवा करो,

उसका गहरा आदर करो और आनंद मनाओ।

12 बेटे का सम्मान करो,*+ वरना परमेश्‍वर का* क्रोध भड़क उठेगा

और तुम ज़िंदगी की राह से मिट जाओगे,+

क्योंकि उसका गुस्सा कभी-भी भड़क सकता है।

सुखी हैं वे सब जो परमेश्‍वर की पनाह लेते हैं।

दाविद का सुरीला गीत। यह गीत उस समय का है जब दाविद अपने बेटे अबशालोम से भाग रहा था।+

3 हे यहोवा, इतने सारे लोग मेरे दुश्‍मन कैसे बन गए?+

मेरे खिलाफ उठनेवाले ये सब कहाँ से आ गए?+

 2 बहुत-से लोग मेरे बारे में कहते हैं,

“परमेश्‍वर उसे नहीं बचाएगा।”+ (सेला )*

 3 मगर हे यहोवा, तू मेरे चारों तरफ एक ढाल है,+

तू मेरी शान है,+ तू ही मेरा सिर ऊँचा उठाता है।+

 4 मैं ज़ोर-ज़ोर से यहोवा को पुकारूँगा

और वह अपने पवित्र पहाड़ से मुझे जवाब देगा।+ (सेला )

 5 मैं बेफिक्र लेटूँगा, चैन से सोऊँगा

और सही-सलामत उठूँगा,

क्योंकि यहोवा हरदम मेरा साथ देता है।+

 6 चाहे लाखों दुश्‍मन मुझे घेर लें,

फिर भी मैं नहीं डरूँगा।+

 7 हे यहोवा, उठ! मेरे परमेश्‍वर, मुझे बचा ले!+

तू मेरे सभी दुश्‍मनों के जबड़े पर मारेगा,

उन दुष्टों के दाँत तोड़ डालेगा।+

 8 उद्धार करनेवाला यहोवा ही है।+

तेरी आशीष तेरे लोगों पर रहती है। (सेला )

दाविद का सुरीला गीत। निर्देशक के लिए हिदायत: यह गीत तारोंवाले बाजे बजाकर गाया जाए।

4 हे मेरे नेक परमेश्‍वर,+ जब मैं तुझे पुकारूँ तो मुझे जवाब दे।

मुसीबतों से घिर जाऊँ तो मेरे लिए कोई रास्ता निकाल।*

मुझ पर कृपा कर और मेरी प्रार्थना सुन।

 2 हे लोगो, तुम कब तक मेरा आदर करने के बजाय अपमान करते रहोगे,

बेकार की बातों से लगाव रखोगे, झूठ के पीछे भागते रहोगे? (सेला )

 3 जान लो, यहोवा अपने वफादार जन का खास खयाल रखेगा,*

जब मैं यहोवा को पुकारूँगा तो वह मेरी सुनेगा।

 4 अगर तुम गुस्से से भर जाओ, तो भी पाप मत करो।+

बिस्तर पर लेटे मन-ही-मन सोचो और शांत रहो। (सेला )

 5 नेकी के बलिदान चढ़ाओ

और यहोवा पर भरोसा रखो।+

 6 बहुत-से हैं जो कहते हैं, “कौन हमें अच्छे दिन दिखाएगा?”

हे यहोवा, अपने मुख का प्रकाश हम पर चमका।+

 7 तूने मेरे दिल को उनसे ज़्यादा खुशियाँ दी हैं,

जिनके पास भरपूर फसल और नयी दाख-मदिरा है।

 8 मैं बेफिक्र लेटूँगा, चैन से सोऊँगा,+

क्योंकि हे यहोवा, सिर्फ तू ही मुझे महफूज़ रखता है।+

दाविद का सुरीला गीत। नहिलोत* के लिए निर्देशक को हिदायत।

5 हे यहोवा, मेरी बातें सुन,+

मेरी आहों पर ध्यान दे।

 2 मेरी मदद की पुकार सुन,

क्योंकि हे मेरे राजा, मेरे परमेश्‍वर, मैं तुझी से प्रार्थना करता हूँ।

 3 हे यहोवा, भोर को तू मेरी आवाज़ सुनेगा,+

भोर को मैं अपनी चिंता तुझे बताऊँगा+ और जवाब का इंतज़ार करूँगा।

 4 क्योंकि तू ऐसा परमेश्‍वर नहीं जो दुष्टता से खुश हो,+

जो बुरा है वह तेरे साथ नहीं रह सकता।+

 5 कोई भी मगरूर तेरे सामने खड़ा नहीं रह सकता।

तू दुष्ट काम करनेवालों से नफरत करता है,+

 6 तू झूठ बोलनेवालों का नाश कर देगा।+

यहोवा खूँखार और धोखेबाज़ लोगों* से घिन करता है।+

 7 मगर मैं तेरे महान अटल प्यार+ की वजह से तेरे भवन में आऊँगा,+

तेरे पवित्र मंदिर* की तरफ मुँह करके श्रद्धा और भय से दंडवत करूँगा।+

 8 हे यहोवा, मेरे दुश्‍मनों की वजह से तू मुझे अपनी नेक राह पर ले चल,

उस राह पर आनेवाली हर बाधा दूर कर।+

 9 उनकी कोई भी बात भरोसे के लायक नहीं,

उनका मन मैला है,

उनका गला एक खुली कब्र है,

उनकी जीभ चिकनी-चुपड़ी बातें कहती है।+

10 मगर परमेश्‍वर उन्हें दोषी ठहराएगा,

उनकी अपनी ही साज़िशें उन्हें बरबाद कर देंगी।+

अपने अनगिनत अपराधों की वजह से वे खदेड़ दिए जाएँ,

क्योंकि उन्होंने तुझसे बगावत की है।

11 मगर तेरी पनाह में आनेवाले सभी आनंद मनाएँगे,+

वे हमेशा खुशी से जयजयकार करेंगे।

जो उन्हें चोट पहुँचाने आते हैं, उनका रास्ता तू रोक देगा

और तेरे नाम से प्यार करनेवाले तेरे कारण आनंद मनाएँगे।

12 क्योंकि हे यहोवा, तू हर नेक जन को आशीष देगा,

तेरी मंज़ूरी एक बड़ी ढाल की तरह उनकी रक्षा करेगी।+

दाविद का सुरीला गीत। निर्देशक के लिए हिदायत: यह गीत शेमिनिथ* की धुन पर तारोंवाले बाजे बजाकर गाया जाए।

6 हे यहोवा, तू गुस्से में आकर मुझे न फटकार,

न ही क्रोध से भरकर मुझे सुधार।+

 2 हे यहोवा, मुझ पर कृपा* कर, मैं कमज़ोर हो गया हूँ।

हे यहोवा, मुझे चंगा कर,+ मेरी हड्डियाँ काँप रही हैं।

 3 हाँ, मैं बहुत परेशान हूँ।+

हे यहोवा, मैं तुझसे पूछता हूँ, मैं कब तक यूँ ही तड़पता रहूँ?+

 4 हे यहोवा, लौट आ और मुझे छुड़ा ले,+

अपने अटल प्यार की खातिर मुझे बचा ले।+

 5 क्योंकि मौत के बाद कोई तेरी चर्चा नहीं कर सकता।*

कब्र में कौन तेरी तारीफ करेगा?+

 6 आहें भरते-भरते मैं पस्त हो चुका हूँ।+

मैं पूरी रात अपना बिस्तर आँसुओं से भिगोता हूँ,

आँसुओं के सैलाब में मेरा दीवान डूब जाता है।+

 7 मन की पीड़ा से मेरी आँखें कमज़ोर हो गयी हैं,+

मुझे सतानेवालों की वजह से धुँधली पड़ गयी हैं।*

 8 अरे दुष्टो, तुम सब मुझसे दूर हो जाओ,

क्योंकि यहोवा मेरा बिलखना ज़रूर सुनेगा।+

 9 यहोवा मेरी कृपा की बिनती सुनेगा,+

यहोवा मेरी प्रार्थना स्वीकार करेगा।

10 मेरे सभी दुश्‍मन शर्मिंदा किए जाएँगे और खौफ खाएँगे,

अचानक ही उनकी बेइज़्ज़ती होगी और वे भाग जाएँगे।+

दाविद का शोकगीत। इसमें वह यहोवा से उन बातों का ज़िक्र करता है जो बिन्यामीन गोत्र के कूश ने कही थीं।

7 हे यहोवा मेरे परमेश्‍वर, मैंने तेरी पनाह ली है।+

सतानेवालों से मुझे बचा ले, मुझे छुड़ा ले।+

 2 वरना वे शेर की तरह मेरी बोटी-बोटी कर देंगे,+

मुझे उठा ले जाएँगे और मुझे बचानेवाला कोई न होगा।

 3 हे यहोवा मेरे परमेश्‍वर, अगर गलती मेरी है,

मैंने कोई अन्याय किया है,

 4 किसी की अच्छाई का बदला बुराई से दिया है+

या दुश्‍मन को बेवजह लूटा है,*

 5 तो तू दुश्‍मन को न रोक,

वह मेरा पीछा करके मुझे पकड़ ले,

मुझे ज़मीन पर रौंदकर मार डाले,

मेरी शान मिट्टी में मिला दे। (सेला )

 6 हे यहोवा, उठ! अपना क्रोध दिखा,

मेरे झुँझलाए हुए दुश्‍मनों के खिलाफ खड़ा हो,+

मेरी खातिर जाग और न्याय की माँग कर।+

 7 राष्ट्र तुझे घेर लें

और तू ऊँचे पर से उनके खिलाफ कार्रवाई करेगा।

 8 यहोवा देश-देश के लोगों को फैसला सुनाएगा।+

हे यहोवा, मेरे नेक और निर्दोष चालचलन के मुताबिक

मेरा न्याय कर।+

 9 दुष्टों की करतूतों का अंत कर दे,

मगर नेक लोगों को महफूज़ रख,+

क्योंकि तू नेक परमेश्‍वर है,+ जो दिलों को और गहरी भावनाओं को जाँचता है।*+

10 परमेश्‍वर मेरी ढाल है,+ सीधे-सच्चे मनवालों का उद्धारकर्ता है।+

11 परमेश्‍वर सच्चा न्यायी है,+

वह हर दिन दुष्टों को फैसला* सुनाता है।

12 अगर कोई पश्‍चाताप न करे,+

तो परमेश्‍वर अपनी तलवार तेज़ करता है,+

अपनी कमान चढ़ाता है,+

13 अपने घातक हथियार तैयार करता है,

अपने जलते तीरों से निशाना साधता है।+

14 उसे देख जिसकी कोख में दुष्टता पलती है,

उसे फसाद का गर्भ ठहरता है, वह झूठ को जन्म देता है।+

15 वह गड्‌ढा खोदकर उसे और गहरा करता है,

मगर उस गड्‌ढे में वह खुद गिर जाता है।+

16 उसने जो मुसीबत खड़ी की है वह उसी के सिर पड़ेगी,+

उसने जो हिंसा की है वह खुद उसका शिकार हो जाएगा।

17 मैं यहोवा के न्याय के लिए उसकी तारीफ करूँगा,+

परम-प्रधान यहोवा+ के नाम की तारीफ में गीत गाऊँगा।*+

दाविद का सुरीला गीत। गित्तीत* के सिलसिले में निर्देशक के लिए हिदायत।

8 हे यहोवा हमारे प्रभु, पूरी धरती पर तेरा नाम क्या ही गौरवशाली है!

तूने अपना वैभव आसमान से भी ऊँचे तक फैलाया है!*+

 2 तूने अपने बैरियों की वजह से

नन्हे-मुन्‍नों और दूध-पीते बच्चों के मुँह से+ अपनी ताकत दिखायी है

ताकि दुश्‍मन और बदला लेनेवाले को खामोश कर सके।

 3 जब मैं आसमान को निहारता हूँ जो तेरी हस्तकला है,

जब मैं चाँद-सितारों को देखता हूँ जो तेरी रचना हैं,+

 4 तो मैं सोच में पड़ जाता हूँ,

‘नश्‍वर इंसान है ही क्या कि तू उसका खयाल रखे?

इंसान है ही क्या कि तू उसकी परवाह करे?’+

 5 तूने उसे स्वर्गदूतों से कुछ कमतर बनाया,*

उसे महिमा और वैभव का ताज पहनाया।

 6 उसे अपने हाथ की रचनाओं पर अधिकार दिया,+

सबकुछ उसके पैरों तले कर दिया:

 7 भेड़-बकरियाँ, गाय-बैल, जंगली जानवर,+

 8 आसमान के पंछी, समुंदर की मछलियाँ,

पानी में तैरनेवाले सारे जीव।

 9 हे यहोवा हमारे प्रभु, पूरी धरती पर तेरा नाम क्या ही गौरवशाली है!

दाविद का सुरीला गीत। मूत-लब्बेन* के सिलसिले में निर्देशक के लिए हिदायत।

א [आलेफ ]

9 हे यहोवा, मैं पूरे दिल से तेरी तारीफ करूँगा,

तेरे सभी आश्‍चर्य के कामों का बखान करूँगा।+

 2 मैं तेरे कारण मगन होऊँगा, खुशियाँ मनाऊँगा,

हे परम-प्रधान परमेश्‍वर, मैं तेरे नाम की तारीफ में गीत गाऊँगा।*+

ב [बेथ ]

 3 जब मेरे दुश्‍मन भागेंगे,+

तो वे तेरे सामने लड़खड़ाकर गिर पड़ेंगे और मिट जाएँगे।

 4 क्योंकि तू मेरी पैरवी करके मुझे न्याय दिलाता है,

अपनी राजगद्दी पर बैठकर नेकी से न्याय करता है।+

ג [गिमेल ]

 5 तूने राष्ट्रों को डाँट लगायी+ और दुष्टों का नाश किया,

उनका नाम हमेशा के लिए मिटा दिया।

 6 दुश्‍मन हमेशा के लिए तबाह हो गए,

तूने उनके शहर उखाड़ फेंके हैं,

उन्हें कभी याद तक नहीं किया जाएगा।+

ה [हे ]

 7 मगर यहोवा सदा विराजमान रहेगा,+

उसने न्याय के लिए अपनी राजगद्दी मज़बूती से कायम की है।+

 8 वह सारे जगत* का न्याय नेकी से करेगा,+

राष्ट्रों के मुकदमों का सही फैसला सुनाएगा।+

ו [वाव ]

 9 यहोवा, सताए जानेवालों के लिए ऊँचा गढ़ बन जाएगा,+

मुसीबत की घड़ी में ऊँचा गढ़ बन जाएगा।+

10 तेरा नाम जाननेवाले तुझ पर भरोसा रखेंगे,+

हे यहोवा, जो तेरी खोज करते हैं, उन्हें तू कभी नहीं छोड़ेगा।+

ז [जैन ]

11 यहोवा, जो सिय्योन में निवास करता है, उसकी तारीफ में गीत गाओ,

उसके कामों के बारे में देश-देश के लोगों को बताओ।+

12 क्योंकि खून का बदला लेनेवाला परमेश्‍वर उन्हें याद रखता है,+

वह पीड़ितों की पुकार नहीं भूलेगा।+

ח [हेथ ]

13 हे यहोवा, मुझ पर कृपा कर,

तू जो मुझे मौत के फाटकों से उठाता है,+

मेरे दुख पर ध्यान दे जो दुश्‍मन मुझे दे रहे हैं

14 ताकि मैं सिय्योन की बेटी के फाटकों के पास

तेरे उन कामों का ऐलान करूँ जो तारीफ के काबिल हैं,+

तू जो उद्धार दिलाता है उससे मगन होऊँ।+

ט [टेथ ]

15 राष्ट्रों ने जो गड्‌ढा खोदा था उसमें वे खुद गिर पड़े,

उन्होंने जो जाल बिछाया था उसमें उन्हीं के पैर फँस गए।+

16 यहोवा जो सज़ा देता है, वह दिखाता है कि वह कैसा परमेश्‍वर है।+

दुष्ट की कारस्तानी उसी के लिए फंदा बन गयी है।+

हिग्गायोन।* (सेला )

י [योध ]

17 दुष्ट कब्र में लौट जाएँगे,

परमेश्‍वर को भूलनेवाले सब राष्ट्र वहीं जाएँगे।

18 मगर गरीब हमेशा भुलाए नहीं जाएँगे,+

न ही दीनों की आशा पर पानी फिरेगा।+

כ [काफ ]

19 हे यहोवा, उठ! नश्‍वर इंसान का ज़ोर चलने न दे।

तेरी मौजूदगी में राष्ट्रों को सज़ा मिले।+

20 हे यहोवा, राष्ट्रों में खौफ समा दे,+

वे सिर्फ नश्‍वर इंसान हैं, यह उन्हें जता दे। (सेला )

ל [लामेध ]

10 हे यहोवा, तू क्यों दूर खड़ा रहता है?

मुसीबत की घड़ी में क्यों छिप जाता है?+

 2 दुष्ट मगरूर होकर बेसहारे का पीछा करता है,+

मगर वह अपनी ही साज़िशों में फँस जाएगा।+

 3 क्योंकि दुष्ट अपनी बुरी इच्छाओं पर डींग मारता है,+

लालची को आशीर्वाद देता है।*

נ [नून ]

वह यहोवा का अनादर करता है।

 4 दुष्ट अपनी हेकड़ी की वजह से परमेश्‍वर की खोज नहीं करता,

वह मन में यही कहता है, “कोई परमेश्‍वर नहीं।”+

 5 दुष्ट अपनी राह पर फलता-फूलता है,+

मगर तेरे फैसले उसकी समझ से परे हैं,+

वह अपने सभी बैरियों को तुच्छ जानता है।

 6 वह मन में कहता है, “मैं कभी हिलाया नहीं जा सकता,*

मैं पीढ़ी-दर-पीढ़ी कभी मुसीबत का मुँह नहीं देखूँगा।”+

פ [पे ]

 7 उसका मुँह शाप, झूठ और धमकियों से भरा रहता है,+

उसकी ज़बान फसाद खड़ी करती और चोट पहुँचाती है।+

 8 वह बस्तियों के पास घात लगाए बैठता है,

छिपकर बेगुनाह पर हमला करता है और उसे मार डालता है।+

ע [ऐयिन ]

उसकी आँखें लाचार को ढूँढ़ती हैं ताकि उसका शिकार करे।+

 9 वह माँद* में छिपे शेर की तरह इंतज़ार करता है+

ताकि मौका मिलते ही किसी बेसहारे को धर-दबोचे।

वह बेसहारे को जाल में फँसाकर धर-दबोचता है।+

10 शिकार कुचल दिया जाता है, नीचे गिरा दिया जाता है,

कई बेचारे उसके शिकंजे* में फँस जाते हैं।

11 दुष्ट मन में कहता है, “परमेश्‍वर भूल गया है।+

उसने अपना मुँह फेर लिया है।

वह कभी ध्यान नहीं देता।”+

ק [कोफ ]

12 हे यहोवा, उठ!+ हे परमेश्‍वर, अपना हाथ उठा!+

बेसहारों को न भूल।+

13 आखिर दुष्ट क्यों परमेश्‍वर का अनादर करता है?

वह मन में कहता है, “परमेश्‍वर मुझसे लेखा नहीं लेगा।”

ר [रेश ]

14 मगर तू बेशक तकलीफें और मुसीबतें देखता है।

तू ध्यान देता है और मामले अपने हाथ में लेता है।+

लाचार लोग तेरी ओर ताकते हैं,+

अनाथों* का तू ही मददगार है।+

ש [शीन ]

15 दुष्ट और बुरे आदमी का हाथ तोड़ दे,+

उसकी दुष्टता का नामो-निशान मिटा दे।

16 यहोवा युग-युग का राजा है।+

राष्ट्र धरती से मिट गए हैं।+

ת [ताव ]

17 मगर हे यहोवा, तू दीनों की बिनती सुनेगा।+

उनके दिलों को मज़बूत करेगा,+ उन पर पूरा ध्यान देगा।+

18 तू अनाथों और कुचले हुओं को न्याय दिलाएगा+

ताकि धरती का नश्‍वर इंसान फिर कभी उन्हें न डराए।+

दाविद की रचना। निर्देशक के लिए हिदायत।

11 मैंने यहोवा की पनाह ली है।+

फिर तुम मुझसे क्यों कहते हो,

“एक पंछी की तरह तुम सब अपने पहाड़ पर भाग जाओ!

 2 देखो, दुष्टों ने कैसे अपनी कमान चढ़ा ली है,

तीर से निशाना साध लिया है

ताकि अँधेरे में छिपकर सीधे-सच्चे मनवालों पर तीर चलाएँ।

 3 जब नींव* ही ढा दी जाए,

तो नेक जन क्या कर सकता है?”

 4 यहोवा अपने पवित्र मंदिर में है।+

यहोवा की राजगद्दी स्वर्ग में है।+

उसकी आँखें इंसानों को देखती हैं,

उसकी पैनी नज़र* उन्हें जाँचती है।+

 5 यहोवा नेक और दुष्ट, दोनों को जाँचता है,+

हिंसा से प्यार करनेवाले से नफरत करता है।+

 6 वह दुष्टों पर फंदे* बरसाएगा,

उनके प्याले में आग, गंधक+ और झुलसानेवाली हवा होगी।

 7 क्योंकि यहोवा नेक है,+ वह नेक कामों से प्यार करता है।+

सीधे-सच्चे लोग उसका मुख देखेंगे।*+

दाविद का सुरीला गीत। निर्देशक के लिए हिदायत: यह गीत शेमिनिथ* की धुन पर गाया जाए।

12 हे यहोवा, मुझे बचा ले क्योंकि एक भी वफादार जन न रहा,

विश्‍वासयोग्य लोग दुनिया से मिट गए हैं।

 2 सब एक-दूसरे से झूठ बोलते हैं,

होंठों से चिकनी-चुपड़ी बातें करते हैं, दोरंगे मन से बोलते हैं।+

 3 यहोवा चिकनी-चुपड़ी बातें करनेवाले होंठ काट डालेगा,

बड़ी-बड़ी डींगें मारनेवाली ज़बान खींच लेगा।+

 4 वे कहते हैं, “हम अपनी ज़बान से जीत जाएँगे।

अपने होंठों से जो चाहे बोलेंगे,

किसकी जुर्रत कि हम पर हुक्म चलाए?”+

 5 यहोवा कहता है, “पीड़ितों को सताया जा रहा है,

गरीब आहें भर रहे हैं,+

इसलिए अब मैं कदम उठाऊँगा।

जो उन्हें तुच्छ समझते हैं, उनसे उन्हें बचाऊँगा।”

 6 यहोवा की कही बातें शुद्ध हैं,+

उस चाँदी की तरह जो मिट्टी की भट्ठी* में तायी गयी है,

सात बार शुद्ध की गयी है।

 7 हे यहोवा, तू दीन-दुखियों की रक्षा करेगा,+

उनमें से हरेक को इस पीढ़ी से सदा बचाए रखेगा।

 8 दुष्ट सीना तानकर चलते हैं, उन्हें रोकनेवाला कोई नहीं,

क्योंकि हर कहीं नीच कामों का बोलबाला है।+

दाविद का सुरीला गीत। निर्देशक के लिए हिदायत।

13 हे यहोवा, तू कब तक मुझे भूला रहेगा? क्या सदा के लिए?

कब तक मुझसे मुँह फेरे रहेगा?+

 2 कब तक मैं चिंताओं से घिरा रहूँगा?

कब तक मेरा दिल हर दिन रोता रहेगा?

कब तक मेरा दुश्‍मन मुझे दबाता रहेगा?+

 3 हे यहोवा, मेरे परमेश्‍वर, ज़रा मेरी तरफ देख और मुझे जवाब दे।

मेरी आँखों की चमक लौटा दे ताकि मैं मौत की नींद न सो जाऊँ

 4 और दुश्‍मन यह न कहे, “मैंने उसे हरा दिया!”

ऐसा न हो कि मेरे गिरने पर विरोधी जश्‍न मनाएँ।+

 5 मुझे तो तेरे अटल प्यार पर पूरा भरोसा है,+

तू जो उद्धार दिलाता है उससे मेरा दिल मगन होगा।+

 6 मैं यहोवा के लिए गीत गाऊँगा, उसने मुझे ढेरों आशीषें दी हैं।*+

दाविद की रचना। निर्देशक के लिए हिदायत।

14 मूर्ख* मन में कहता है, “कोई यहोवा नहीं।”+

ऐसे लोगों के काम भ्रष्ट और घिनौने होते हैं,

कोई भी भला काम नहीं करता।+

 2 मगर यहोवा स्वर्ग से इंसानों को देखता है

कि क्या कोई अंदरूनी समझ रखनेवाला है,

क्या कोई यहोवा की खोज करनेवाला है।+

 3 वे सब सही राह से हट गए हैं,+

सब-के-सब भ्रष्ट हो गए हैं।

कोई भी भला काम नहीं करता, एक भी नहीं।

 4 क्या गुनहगारों में से कोई भी समझ नहीं रखता?

वे मेरे लोगों को ऐसे खा जाते हैं मानो रोटी हो।

वे यहोवा को नहीं पुकारते।

 5 मगर उन सब पर खौफ छा जाएगा,+

क्योंकि यहोवा नेक जनों की पीढ़ी के साथ रहता है।

 6 गुनहगारो, तुम दीन जन की योजनाएँ नाकाम करने की कोशिश करते हो,

मगर यहोवा उसकी पनाह है।+

 7 इसराएल का उद्धार सिय्योन की तरफ से हो!+

जब यहोवा अपने लोगों को बँधुआई से लौटा ले आएगा,

तब याकूब खुशियाँ मनाए, इसराएल जश्‍न मनाए।

दाविद का सुरीला गीत।

15 हे यहोवा, कौन तेरे तंबू में मेहमान बनकर रह सकता है?

कौन तेरे पवित्र पहाड़ पर निवास कर सकता है?+

 2 वही जो बेदाग ज़िंदगी जीता है,*+

हमेशा सही काम करता है+

और दिल में सच बोलता है।+

 3 वह अपनी ज़बान से दूसरों को बदनाम नहीं करता,+

अपने पड़ोसी का कुछ बुरा नहीं करता,+

न ही अपने दोस्तों का नाम खराब* करता है।+

 4 वह किसी तुच्छ इंसान से नाता नहीं रखता,+

मगर यहोवा का डर माननेवालों का सम्मान करता है।

वह अपना वादा निभाता है,* फिर चाहे उसे नुकसान सहना पड़े।+

 5 वह ब्याज पर उधार नहीं देता,+

न किसी निर्दोष को दोषी ठहराने के लिए रिश्‍वत लेता है।+

जो कोई ये सब करता है, उसे कभी हिलाया नहीं जा सकता।*+

दाविद का मिकताम।*

16 हे परमेश्‍वर, मेरी रक्षा कर क्योंकि मैंने तेरी पनाह ली है।+

 2 मैंने यहोवा से कहा, “हे यहोवा, मेरा भला करनेवाला तू ही है।

 3 धरती के पवित्र और गौरवशाली लोग

मुझे बड़ी खुशी देते हैं।”+

 4 जो दूसरे देवताओं के पीछे भागते हैं, वे अपने दुख बढ़ाते जाते हैं।+

मैं कभी उनके साथ मिलकर खून का अर्घ नहीं चढ़ाऊँगा,

न ही अपने होंठों से उन देवताओं का नाम लूँगा।+

 5 यहोवा मेरा भाग है, मुझे दिया गया हिस्सा है,+

वही मेरा प्याला भरता है।+

तू मेरी विरासत की हिफाज़त करता है।

 6 मेरे हिस्से में कई मनभावनी जगह आयी हैं।

मैं अपनी विरासत से वाकई खुश हूँ।+

 7 मैं यहोवा की तारीफ करूँगा जिसने मुझे सलाह दी है।+

रात के वक्‍त भी मेरे मन की गहराई में छिपे विचार* मुझे सुधारते हैं।+

 8 मैं हर पल यहोवा को अपनी नज़रों के सामने रखता हूँ।+

वह मेरे दायीं तरफ रहता है, इसलिए मैं कभी हिलाया नहीं जा सकता।*+

 9 मेरा दिल खुशियों से सराबोर है,

मेरे रोम-रोम* में खुशी की लहर दौड़ रही है।

और मैं* महफूज़ बसा रहता हूँ।

10 क्योंकि तू मुझे कब्र* में नहीं छोड़ देगा।+

तू अपने वफादार जन को गड्‌ढे में पड़े रहने नहीं देगा।*+

11 तू मुझे ज़िंदगी की राह दिखाता है।+

तेरे सामने रहकर मुझे अपार सुख मिलता है,+

तेरे दायीं तरफ रहना मुझे सदा खुशी* देता है।

दाविद की प्रार्थना।

17 हे यहोवा, न्याय के लिए मेरी दुहाई सुन,

मेरी मदद की पुकार पर ध्यान दे,

मैं बिना कपट के प्रार्थना कर रहा हूँ, मेरी सुन ले।+

 2 तू सही फैसला सुनाकर मुझे इंसाफ दिलाए,+

तेरी आँखें देखें कि सही क्या है।

 3 तूने मेरा दिल जाँचा, रात के वक्‍त मुझे परखा,+

तूने मुझे शुद्ध किया है,+

तू पाएगा कि मैंने कोई साज़िश नहीं की,

न ही अपने मुँह से कोई पाप किया।

 4 जहाँ तक इंसान के कामों की बात है,

मैं तेरे मुँह से निकले वचन मानकर लुटेरों के रास्तों से दूर रहता हूँ।+

 5 मेरे कदमों को तेरी राहों पर बने रहने दे

ताकि मेरे पाँव ठोकर न खाएँ।+

 6 हे परमेश्‍वर, मैं तुझे पुकारता हूँ क्योंकि तू मेरी सुनेगा।+

तू मेरी तरफ कान लगा।* मेरी बिनती सुन।+

 7 हे परमेश्‍वर, तू उनका बचानेवाला है,

जो बागियों से भागकर तेरे दाएँ हाथ के नीचे पनाह लेते हैं,

तू लाजवाब तरीके से अपने अटल प्यार का सबूत दे।+

 8 अपनी आँख की पुतली की तरह मुझे सँभाले रख,+

अपने पंखों की छाँव तले मुझे छिपा ले।+

 9 दुष्टों से मेरी रक्षा कर जो मुझ पर हमला करते हैं,

उन जानी दुश्‍मनों से जो मुझे घेर लेते हैं।+

10 उन्होंने अपना दिल कठोर कर लिया है,*

वे मगरूर होकर बड़ी-बड़ी बातें करते हैं।

11 अब वे हमें घेर लेते हैं,+

इस ताक में रहते हैं कि कब मौका मिले और हमें नीचे गिरा दें।*

12 वह एक शेर की तरह है जो शिकार को फाड़ खाने के लिए बेताब है,

जवान शेर की तरह जो घात लगाए बैठा है।

13 हे यहोवा, उठ! उसका मुकाबला कर+ और उसे चित कर दे,

अपनी तलवार लेकर मुझे उस दुष्ट से छुड़ा ले।

14 हे यहोवा, अपना हाथ बढ़ाकर मुझे छुड़ा ले,

इस ज़माने* के लोगों से मुझे छुड़ा ले, जो सिर्फ आज के लिए जीते हैं,+

जिन्हें तू अपने भंडार से अच्छी चीज़ें बहुतायत में देता है,+

जो अपने बहुत-से बेटों के लिए विरासत छोड़ जाते हैं।

15 मगर मैं तो नेक बना रहूँगा ताकि तेरा मुख देखूँ,

मेरी खुशी इसी में है कि उठकर तेरे सामने खड़ा रह पाऊँ।*+

निर्देशक के लिए हिदायत। यहोवा के सेवक दाविद का गीत। यह गीत उसने यहोवा के लिए तब गाया जब यहोवा ने उसे सभी दुश्‍मनों और शाऊल के हाथ से छुड़ाया था:+

18 हे यहोवा, मेरी ताकत,+ मैं तुझसे गहरा लगाव रखता हूँ।

 2 यहोवा मेरे लिए बड़ी चट्टान और मज़बूत गढ़ है, वही मेरा छुड़ानेवाला है।+

मेरा परमेश्‍वर मेरी चट्टान है+ जिसकी मैं पनाह लेता हूँ,

वह मेरी ढाल और मेरा उद्धार का सींग* है, मेरा ऊँचा गढ़ है।+

 3 मैं यहोवा को पुकारता हूँ जो तारीफ के काबिल है

और मुझे दुश्‍मनों से बचाया जाएगा।+

 4 मौत के रस्सों ने मुझे कस लिया,+

निकम्मे आदमियों ने अचानक आनेवाली बाढ़ की तरह मुझे डरा दिया।+

 5 कब्र के रस्सों ने मुझे घेर लिया,

मेरे सामने मौत के फंदे बिछाए गए।+

 6 मुसीबत में मैंने यहोवा को पुकारा,

मदद के लिए मैं अपने परमेश्‍वर को पुकारता रहा।

अपने मंदिर से उसने मेरी सुनी,+

मेरी मदद की पुकार उसके कानों तक पहुँची।+

 7 तब धरती काँपने लगी, बुरी तरह डोलने लगी,+

पहाड़ों की नींव हिल गयी,

उनमें भयानक हलचल हुई क्योंकि उसका क्रोध भड़क उठा था।+

 8 उसके नथनों से धुआँ उठने लगा,

मुँह से भस्म करनेवाली आग निकलने लगी,+

उसके पास से दहकते अंगारे बरसने लगे।

 9 नीचे उतरते वक्‍त उसने आसमान झुका दिया,+

काली घटाएँ उसके पैरों तले आ गयीं।+

10 वह एक करूब पर सवार होकर उड़ता हुआ आया।+

वह एक स्वर्गदूत* के पंखों पर सवार होकर तेज़ी से नीचे आया।+

11 फिर उसने अंधकार को ओढ़ लिया,+

काली घनघोर घटाओं को अपना मंडप बनाया।+

12 उसके सामने ऐसा तेज था कि बादल फट गए,

उनसे ओले और धधकते अंगारे बरसने लगे।

13 फिर स्वर्ग में यहोवा गरजने लगा,+

परम-प्रधान ने अपनी बुलंद आवाज़ सुनायी,+

तब ओले और धधकते अंगारे बरसने लगे।

14 उसने तीर चलाकर उन्हें तितर-बितर कर दिया,+

बिजली गिराकर उनमें खलबली मचा दी।+

15 हे यहोवा, जब तूने डाँट लगायी और तेरे नथनों से फुंकार निकली,

तो नदियों के तल नज़र आने लगे,+

धरती की बुनियाद तक दिखने लगी।+

16 उसने ऊपर से हाथ बढ़ाकर मुझे थाम लिया,

गहरे पानी से खींचकर बाहर निकाल लिया।+

17 उसने मुझे ताकतवर दुश्‍मन से छुड़ाया,+

उन लोगों से जो मुझसे नफरत करते थे, मुझसे ज़्यादा ताकतवर थे।+

18 वे मेरी मुसीबत के दिन मुझ पर टूट पड़े,+

लेकिन यहोवा मेरा सहारा था।

19 वह मुझे निकालकर एक महफूज़* जगह ले आया,

उसने मुझे दुश्‍मनों से छुड़ाया क्योंकि वह मुझसे खुश था।+

20 यहोवा मेरी नेकी के मुताबिक मुझे फल देता है,+

मेरी बेगुनाही* के मुताबिक इनाम देता है।+

21 क्योंकि मैं हमेशा यहोवा की राहों पर चलता रहा,

मैंने अपने परमेश्‍वर से दूर जाने की दुष्टता नहीं की।

22 उसके सभी न्याय-सिद्धांत मेरे सामने हैं,

मैं कभी उसकी विधियों को नज़रअंदाज़ नहीं करूँगा।

23 मैं उसकी नज़रों में निर्दोष बना रहूँगा,+

मैं हमेशा खुद को बुराई से दूर रखूँगा।+

24 यहोवा मेरी नेकी के मुताबिक मुझे फल दे,+

मेरी बेगुनाही के मुताबिक इनाम दे जो उसने अपनी आँखों से देखी है।+

25 जो वफादार रहता है उसके साथ तू वफादारी निभाता है,+

जो सीधा है उसके साथ तू सीधाई से पेश आता है,+

26 जो खुद को शुद्ध बनाए रखता है उसे तू दिखाएगा कि तू शुद्ध है,+

मगर जो टेढ़ी चाल चलता है उसके साथ तू होशियारी से काम लेता है।+

27 क्योंकि तू दीनों* को बचाता है,+

लेकिन मगरूरों को नीचे गिराता है।*+

28 हे यहोवा, तू ही मेरा दीपक जलाता है,

मेरा परमेश्‍वर, जो मेरे अँधेरे को उजाला करता है।+

29 तेरी मदद से मैं लुटेरे-दल का मुकाबला कर सकता हूँ,+

परमेश्‍वर की ताकत से मैं दीवार लाँघ सकता हूँ।+

30 सच्चे परमेश्‍वर का काम खरा* है,+

यहोवा का वचन पूरी तरह शुद्ध है।+

वह उसकी पनाह लेनेवालों के लिए एक ढाल है।+

31 यहोवा को छोड़ और कौन परमेश्‍वर है?+

हमारे परमेश्‍वर के सिवा और कौन चट्टान है?+

32 सच्चा परमेश्‍वर ही मुझे ताकत देता है,+

वह मेरे लिए सीधी* राह निकालेगा।+

33 वह मेरे पैरों को हिरन के पैरों जैसा बनाता है,

मुझे ऊँची-ऊँची जगहों पर खड़ा करता है।+

34 वह मेरे हाथों को युद्ध का कौशल सिखाता है,

मेरे बाज़ू ताँबे की कमान मोड़ सकते हैं।

35 तू मुझे अपनी उद्धार की ढाल देता है,+

तेरा दायाँ हाथ मुझे थाम लेता* है

और तेरी नम्रता मुझे ऊँचा उठाती है।+

36 तू मेरे कदमों के लिए रास्ता चौड़ा करता है,

मेरे पैर* नहीं फिसलेंगे।+

37 मैं अपने दुश्‍मनों का पीछा करूँगा और उन्हें पकड़ लूँगा,

मैं उन्हें मिटाकर ही लौटूँगा।

38 मैं उन्हें ऐसे कुचल दूँगा कि वे उठ नहीं पाएँगे,+

वे मेरे पैरों तले गिर जाएँगे।

39 तू मुझे ताकत देकर युद्ध के काबिल बनाएगा,

मेरे दुश्‍मनों को मेरे कदमों के नीचे कर देगा।+

40 तू मेरे दुश्‍मनों को मुझसे दूर भागने पर मजबूर करेगा,*

मुझसे नफरत करनेवालों का मैं अंत कर दूँगा।+

41 वे मदद के लिए पुकारते हैं, मगर उन्हें बचानेवाला कोई नहीं,

वे यहोवा को भी पुकारते हैं, मगर वह उन्हें जवाब नहीं देता।

42 मैं उन्हें कूटकर ऐसी धूल बना दूँगा जिसे हवा उड़ा ले जाती है,

उन्हें गलियों के कीचड़ की तरह बाहर फेंक दूँगा।

43 तू मुझे मेरे अपने लोगों के विरोध से भी बचाएगा।+

मुझे राष्ट्रों का मुखिया बनाएगा।+

जिन लोगों को मैं जानता तक नहीं वे मेरी सेवा करेंगे।+

44 परदेसी मेरे बारे में बस एक खबर सुनकर मेरी आज्ञा मानेंगे,

डरते-काँपते मेरे सामने आएँगे।+

45 परदेसी हिम्मत हार जाएँगे,*

अपने किलों से थरथराते हुए बाहर निकलेंगे।

46 यहोवा जीवित परमेश्‍वर है! मेरी चट्टान की तारीफ हो!+

मेरे उद्धारकर्ता परमेश्‍वर की बड़ाई हो!+

47 सच्चा परमेश्‍वर मेरी तरफ से बदला लेता है,+

देश-देश के लोगों को मेरे अधीन कर देता है।

48 वह मुझे भड़के हुए दुश्‍मनों से छुड़ाता है।

तू मुझे मेरे हमलावरों से ऊँचा उठाता है,+

मुझे ज़ुल्मी के हाथ से बचाता है।

49 इसीलिए हे यहोवा, मैं राष्ट्रों के बीच तेरी महिमा करूँगा,+

तेरे नाम की तारीफ में गीत गाऊँगा।*+

50 परमेश्‍वर शानदार तरीके से अपने राजा का उद्धार करता है,*+

वह अपने अभिषिक्‍त जन से,+

दाविद और उसके वंश से सदा प्यार* करता है।+

दाविद का सुरीला गीत। निर्देशक के लिए हिदायत।

19 आसमान परमेश्‍वर की महिमा बयान करता है,+

अंबर उसके हाथ की रचनाओं का ऐलान करता है।+

 2 दिन-भर उसकी तारीफ में उनके बोल उमड़ते हैं,

रात को वे ज्ञान की बातें फैलाते हैं।

 3 उनकी न कोई बोली है, न कोई शब्द,

उनकी आवाज़ नहीं सुनायी देती।

 4 फिर भी उनकी आवाज़* सारी धरती पर गूँजती है,

उनका संदेश धरती* के कोने-कोने तक पहुँचता है।+

परमेश्‍वर ने आकाश में सूरज के लिए तंबू ताना है,

 5 सूरज उस दूल्हे की तरह दमकता है जो अपने कमरे से बाहर आता है,

वह शूरवीर की तरह है जो दौड़ दौड़ने के लिए उमंग से भरा है।

 6 वह आसमान के एक छोर से उगता है

और चक्कर काटता हुआ दूसरे छोर तक जाता है,+

कुछ भी ऐसा नहीं जिस तक उसकी गरमी न पहुँचे।

 7 यहोवा का कानून खरा* है,+ जान में जान डाल देता है।+

यहोवा जो हिदायत याद दिलाता है वह भरोसेमंद है,+

जिन्हें कोई तजुरबा नहीं है उन्हें भी बुद्धिमान बना देती है।+

 8 यहोवा के आदेश नेक हैं, मन को आनंद से भर देते हैं,+

यहोवा की आज्ञा शुद्ध है, आँखों में चमक लाती है।+

 9 यहोवा का डर+ पवित्र है, सदा बना रहता है।

यहोवा के फैसले सच्चे हैं, हर तरह से सही हैं।+

10 वे सोने से भी ज़्यादा चाहने लायक हैं,

ढेर सारे शुद्ध* सोने से भी मनभावने।+

वे मधु से भी मधुर हैं,+

छत्ते से टपकते शहद से भी ज़्यादा मीठे।

11 वे तेरे सेवक को आगाह करते हैं,+

उन्हें मानने से बड़ा इनाम मिलता है।+

12 अपनी गलतियों का एहसास किसे होता है?+

मुझसे अनजाने में जो पाप हुए हैं उन्हें माफ करके मुझे निर्दोष ठहरा।

13 अपने सेवक को गुस्ताखी करने से रोक+

ताकि यह फितरत मुझ पर हावी न हो जाए।+

तब मैं घोर पाप* करने से बचा रहूँगा

और निर्दोष बना रहूँगा।+

14 हे यहोवा, मेरी चट्टान+ और मेरे छुड़ानेवाले,+

मेरे मुँह की बातें और मन के विचार हमेशा तुझे भाएँ।+

दाविद का सुरीला गीत। निर्देशक के लिए हिदायत।

20 मुसीबत के दिन यहोवा तेरी प्रार्थना का जवाब दे।

याकूब के परमेश्‍वर का नाम तेरी हिफाज़त करे।+

 2 वह पवित्र जगह से तेरी मदद करे,+

सिय्योन से तुझे सँभाले।+

 3 वह तेरी सभी भेंट याद करे,

तेरी होम-बलि खुशी से स्वीकार करे।* (सेला )

 4 वह तेरे दिल की मुरादें पूरी करे,+

तेरी सारी योजनाएँ* सफल करे।

 5 तू जो उद्धार दिलाता है उसकी वजह से हम खुशी से जयजयकार करेंगे,+

अपने परमेश्‍वर के नाम की महिमा करेंगे।+

यहोवा तेरी सभी गुज़ारिशें पूरी करे।

 6 अब मैं जान गया हूँ कि यहोवा अपने अभिषिक्‍त जन को बचाता है।+

अपने पवित्र स्वर्ग से उसकी प्रार्थना का जवाब देता है,

अपने शक्‍तिशाली दाएँ हाथ से उसका उद्धार करता है।*+

 7 कुछ लोग रथों पर भरोसा करते हैं तो कुछ घोड़ों पर,+

मगर हम अपने परमेश्‍वर यहोवा का नाम पुकारते हैं।+

 8 वे हार गए हैं, गिर गए हैं,

मगर हम उठ गए हैं, हमें बहाल किया गया है।+

 9 हे यहोवा, राजा को बचा ले!+

जब हम मदद के लिए पुकारेंगे तो वह हमें जवाब देगा।+

दाविद का सुरीला गीत। निर्देशक के लिए हिदायत।

21 हे यहोवा, तेरी ताकत पर राजा खुशी मनाता है,+

तू जो उद्धार दिलाता है उससे वह बाग-बाग हो जाता है!+

 2 तूने उसके दिल की मुराद पूरी की,+

उसके होंठों की गुज़ारिश नहीं ठुकरायी। (सेला )

 3 तू बेशुमार आशीषों के साथ उससे मिलता है,

उसके सिर पर शुद्ध* सोने का ताज रखता है।+

 4 उसने तुझसे ज़िंदगी माँगी और तूने उसे दी,+

तूने उसे लंबी उम्र दी, हमेशा-हमेशा की ज़िंदगी।

 5 तू जो उद्धार दिलाता उससे वह बड़ा सम्मान पाता है।+

तू उसे गरिमा और वैभव देता है।

 6 तूने तय किया है कि वह सदा आशीषें पाता रहे,+

तू उसे खुशी देता है क्योंकि तू उसके साथ रहता है।+

 7 क्योंकि राजा यहोवा पर भरोसा करता है,+

परम-प्रधान के अटल प्यार के कारण उसे कभी नहीं हिलाया जा सकता।*+

 8 तेरा हाथ तेरे सभी दुश्‍मनों को पकड़ लेगा,

तेरा दायाँ हाथ तुझसे नफरत करनेवालों को पकड़ लेगा।

 9 तू जाँच के समय उन्हें दहकता तंदूर बना देगा,

यहोवा क्रोध में आकर उन्हें निगल जाएगा और आग उन्हें भस्म कर देगी।+

10 तू उनके वंशजों* को धरती से नाश कर देगा,

उनकी संतान को इंसानों के बीच से मिटा देगा।

11 क्योंकि उन्होंने तेरा नुकसान करना चाहा,+

तेरे खिलाफ साज़िशें रची हैं, मगर वे कामयाब नहीं होंगे।+

12 तू उन* पर तीर-कमान से निशाना साधेगा,

वे पीठ दिखाकर भाग जाएँगे।+

13 हे यहोवा, उठ! अपनी ताकत दिखा।

हम तेरी महाशक्‍ति की तारीफ में गीत गाएँगे।*

दाविद का सुरीला गीत। निर्देशक के लिए हिदायत: “भोर की हिरनी”* के मुताबिक।

22 हे मेरे परमेश्‍वर, मेरे परमेश्‍वर, तूने मुझे क्यों छोड़ दिया?+

तू क्यों मुझे बचाने नहीं आता?

क्यों मेरी दर्द-भरी पुकार नहीं सुनता?+

 2 मेरे परमेश्‍वर, मैं सारा दिन तुझे पुकारता हूँ,

रात-भर कराहता हूँ, पर तू कोई जवाब नहीं देता।+

 3 मगर तू पवित्र है,+

इसराएल की तारीफों से घिरा हुआ है।*

 4 हमारे पुरखों ने तुझ पर भरोसा रखा था,+

तुझी पर भरोसा रखा और तू उन्हें छुड़ाता रहा।+

 5 उन्होंने तुझे पुकारा और तूने उन्हें बचाया,

उन्होंने तुझ पर भरोसा किया और वे निराश नहीं हुए।*+

 6 मगर लोग मुझे नीचा देखते हैं, तुच्छ समझते हैं,+

मैं उनकी नज़र में इंसान नहीं, कीड़ा हूँ।

 7 मुझे देखनेवाले सभी मेरा मज़ाक बनाते हैं,+

मेरी खिल्ली उड़ाते हैं, सिर हिलाकर मुझ पर हँसते+ और कहते हैं:

 8 “इसने खुद को यहोवा के हवाले कर दिया, वही इसे छुड़ाए!

वही इसे बचाए, यह परमेश्‍वर को इतना प्यारा जो है!”+

 9 तूने ही मुझे माँ की कोख से बाहर निकाला,+

मुझे माँ की बाहों में सुरक्षा का एहसास दिलाया।

10 मुझे पैदा होते ही देखभाल के लिए तुझे सौंपा गया।

जब मैं माँ की कोख में था, तभी से तू मेरा परमेश्‍वर है।

11 मुझ पर संकट आनेवाला है, तू मुझसे दूर न रह,+

मेरा और कोई मददगार नहीं है।+

12 बहुत-से बैलों ने मुझे घेर लिया है,+

बाशान के मोटे-तगड़े बैलों ने मुझे घेर लिया है।+

13 दुश्‍मन मुझ पर मुँह फाड़े हुए हैं,+

गरजते शेर की तरह, जो अपने शिकार की बोटी-बोटी कर देता है।+

14 मुझे पानी की तरह उँडेल दिया गया है,

मेरी हड्डियों के जोड़ खुल गए हैं।

मेरा दिल मोम बन गया है,+

अंदर-ही-अंदर पिघल गया है।+

15 मेरी ताकत ठीकरे की तरह सूख गयी है,+

मेरी जीभ तालू से चिपक गयी है,+

तू मुझे मारकर मिट्टी में मिला देता है।+

16 दुश्‍मनों ने कुत्तों की तरह मुझे घेर लिया है,+

दुष्टों की टोली मुझे धर-दबोचने पर है,+

वे शेर की तरह मेरे हाथ-पैर पर झपट पड़े हैं।+

17 मैं अपनी सारी हड्डियाँ गिन सकता हूँ,+

वे मुझे ताकते रहते हैं, मुझे घूरते हैं।

18 वे मेरी पोशाक आपस में बाँटते हैं,

मेरे कपड़े के लिए चिट्ठियाँ डालते हैं।+

19 मगर हे यहोवा, तू मुझसे और दूर न रह,+

तू मेरी ताकत है, मेरी मदद के लिए जल्दी आ।+

20 मुझे तलवार से बचा ले,

कुत्तों के पंजों* से मेरे अनमोल जीवन* की रक्षा कर।+

21 मुझे शेर के मुँह से और जंगली बैलों के सींगों से बचा ले,+

मुझे जवाब दे और बचा ले।

22 मैं अपने भाइयों में तेरे नाम का ऐलान करूँगा,+

मंडली के बीच तेरी तारीफ करूँगा।+

23 यहोवा का डर माननेवालो, उसकी तारीफ करो!

याकूब के वंशजो, उसकी महिमा करो!+

इसराएल के वंशजो, उसकी श्रद्धा करो।

24 क्योंकि उसने ज़ुल्म सहनेवाले का दुख नज़रअंदाज़ नहीं किया, उससे घिन नहीं की,+

परमेश्‍वर ने उससे अपना मुँह नहीं फेरा।+

जब उसने मदद के लिए उसे पुकारा तो उसने सुना।+

25 मैं बड़ी मंडली में तेरी तारीफ करूँगा,+

तेरा डर माननेवालों के सामने अपनी मन्‍नतें पूरी करूँगा।

26 दीन लोग खाकर संतुष्ट होंगे,+

यहोवा की खोज करनेवाले उसकी तारीफ करेंगे।+

तू हमेशा की ज़िंदगी का आनंद लेता रहे।*

27 धरती का कोना-कोना यहोवा को याद करेगा, उसकी तरफ मुड़ेगा।

राष्ट्रों के सभी परिवार तेरे सामने झुककर दंडवत करेंगे।+

28 क्योंकि राज करने का अधिकार यहोवा का है,+

वह सब राष्ट्रों पर राज करता है।

29 धरती के सभी रईस* खाएँगे-पीएँगे और उसे दंडवत करेंगे,

वे सभी जो मिट्टी में मिल जाते हैं उसके आगे घुटने टेकेंगे,

उनमें से कोई अपनी जान नहीं बचा सकता।

30 उनके वंशज उसकी सेवा करेंगे,

आनेवाली पीढ़ी को यहोवा के बारे में बताया जाएगा।

31 वे आएँगे और उसकी नेकी के बारे में बताएँगे।

आनेवाली नसल को उसके कामों के बारे में बताएँगे।

दाविद का सुरीला गीत।

23 यहोवा मेरा चरवाहा है।+

मुझे कोई कमी नहीं होगी।+

 2 वह मुझे हरे-भरे चरागाहों में बिठाता है,

झील के किनारे आराम की जगह* ले चलता है।+

 3 वह मुझे तरो-ताज़ा करता है।+

अपने नाम की खातिर नेकी की डगर पर ले चलता है।+

 4 चाहे मैं काली अँधेरी घाटी से गुज़रूँ,+

तो भी मुझे कोई डर नहीं,+

क्योंकि तू मेरे साथ रहता है,+

तेरी छड़ी और लाठी मुझे हिम्मत* देती है।

 5 तू मेरे दुश्‍मनों के सामने मेरे लिए मेज़ सजाता है।+

मेरे सिर पर तेल डालकर मुझे ताज़गी देता है,*+

मेरा प्याला लबालब भरा है।+

 6 बेशक, भलाई और अटल प्यार ज़िंदगी-भर मेरे साथ रहेंगे+

और मैं सारी उम्र यहोवा के भवन में निवास करूँगा।+

दाविद का सुरीला गीत।

24 धरती और उसकी हर चीज़ यहोवा की है,+

उपजाऊ ज़मीन और इस पर रहनेवाले उसके हैं।

 2 उसने धरती की पक्की बुनियाद समुंदरों पर डाली,+

उसे नदियों पर मज़बूती से कायम किया।

 3 यहोवा के पहाड़ पर कौन चढ़ सकता है?+

कौन उसकी पवित्र जगह में खड़ा हो सकता है?

 4 वही जो बेगुनाह है और जिसका दिल साफ है,+

जिसने मेरे जीवन* की झूठी शपथ नहीं खायी,

न ही शपथ खाकर छल किया।+

 5 ऐसा इंसान यहोवा से आशीषें पाएगा,+

उद्धार करनेवाले अपने परमेश्‍वर की नज़र में नेक बना रहेगा।+

 6 परमेश्‍वर की खोज करनेवालों की पीढ़ी यही है,

हे याकूब के परमेश्‍वर, ये ही वे लोग हैं जो तेरी मंज़ूरी पाना चाहते हैं। (सेला )

 7 हे फाटको, ऊँचे हो जाओ,+

मुद्दतों से खड़े दरवाज़ो, खुल जाओ*

ताकि गौरवशाली राजा दाखिल हो सके!+

 8 यह गौरवशाली राजा कौन है?

यह यहोवा है, शक्‍तिशाली और ताकतवर परमेश्‍वर,+

यह यहोवा है, एक वीर योद्धा जिसका कोई सानी नहीं।+

 9 हे फाटको, ऊँचे हो जाओ,+

मुद्दतों से खड़े दरवाज़ो, खुल जाओ

ताकि गौरवशाली राजा दाखिल हो सके!

10 यह गौरवशाली राजा कौन है?

सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा ही गौरवशाली राजा है।+ (सेला )

दाविद की रचना।

א [आलेफ ]

25 हे यहोवा, मैं तेरी ओर मुड़ता हूँ।

ב [बेथ ]

 2 मेरे परमेश्‍वर, मुझे तुझ पर भरोसा है,+

तू मुझे शर्मिंदा न होने दे।+

मेरे दुश्‍मनों को मेरी तकलीफों पर हँसने न दे।+

ג [गिमेल ]

 3 बेशक, तुझ पर आशा रखनेवाला कोई भी शर्मिंदा नहीं होगा,+

मगर जो बेवजह दगा देते हैं वे शर्मिंदा होंगे।+

ד [दालथ ]

 4 हे यहोवा, मुझे अपनी राहें दिखा,+

मुझे अपने रास्ते सिखा।+

ה [हे ]

 5 अपनी सच्चाई की राह पर मुझे चला और मुझे सिखा,+

क्योंकि तू मेरा उद्धार करनेवाला परमेश्‍वर है।

ו [वाव ]

मैं पूरा दिन तुझ पर ही आशा रखता हूँ।

ז [जैन ]

 6 हे यहोवा, अपनी दया और अपना अटल प्यार याद कर,+

जो तू हमेशा से दिखाता आया है।*+

ח [हेथ ]

 7 मैंने जवानी में जो पाप और अपराध किए, उन्हें याद न कर।

हे यहोवा, अपने अटल प्यार के मुताबिक,

अपनी भलाई के कारण मुझे याद कर।+

ט [टेथ ]

 8 यहोवा भला और सीधा-सच्चा है।+

इसलिए वह पापियों को जीने की राह सिखाता है।+

י [योध ]

 9 जो सही है उसके बारे में* वह दीनों को निर्देश देगा,+

उन्हें अपनी राह पर चलना सिखाएगा।+

כ [काफ ]

10 जो यहोवा का करार मानते हैं,+

उसके याद दिलाने पर उसकी सुनते हैं,+

उनसे वह प्यार* करता है, उनका विश्‍वासयोग्य बना रहता है।

ל [लामेध ]

11 माना कि मैंने बड़ा पाप किया है,

फिर भी हे यहोवा, अपने नाम की खातिर मुझे माफ कर दे।+

מ [मेम ]

12 यहोवा का डर माननेवाला इंसान कौन है?+

उसे परमेश्‍वर सिखाएगा कि कौन-सा रास्ता चुनना है।+

נ [नून ]

13 ऐसा इंसान भलाई का आनंद उठाएगा,+

उसके वंशजों का धरती पर अधिकार होगा।+

ס [सामेख ]

14 यहोवा से गहरी दोस्ती सिर्फ वे कर सकते हैं जो उसका डर मानते हैं,+

वह अपने करार के बारे में उन्हें बताता है।+

ע [ऐयिन ]

15 मेरी आँखें हर पल यहोवा की तरफ लगी रहती हैं,+

क्योंकि वह मेरे पैरों को जाल से छुड़ाएगा।+

פ [पे ]

16 मेरी तरफ मुड़, मुझ पर कृपा कर,

मैं अकेला और बेसहारा हूँ।

צ [सादे ]

17 मेरे मन की पीड़ाएँ बढ़ गयी हैं,+

मुझे दिल की तड़प से राहत दे।

ר [रेश ]

18 मेरी तकलीफें और मुसीबतें देख+

और मेरे सभी पाप माफ कर दे।+

19 देख, मेरे दुश्‍मन कैसे बेशुमार हो गए हैं,

नफरत के मारे मुझे सताना चाहते हैं।

ש [शीन ]

20 मुझे बचा ले, मेरी जान की हिफाज़त कर।+

मुझे शर्मिंदा न होने दे क्योंकि मैंने तेरी पनाह ली है।

ת [ताव ]

21 मेरा निर्दोष और सीधा चालचलन मेरी हिफाज़त करे,+

क्योंकि मैंने तुझी पर आशा रखी है।+

22 हे परमेश्‍वर, इसराएल को उसकी सारी मुसीबतों से छुड़ा ले।

दाविद की रचना।

26 हे यहोवा, मेरा न्याय कर क्योंकि मैं निर्दोष चाल चलता हूँ,+

यहोवा पर मेरा भरोसा अटल है।+

 2 हे यहोवा, मुझे परखकर देख, मुझे कसौटी पर कस,

मेरे दिल को और गहराई में छिपे विचारों* को शुद्ध कर।+

 3 क्योंकि तेरा अटल प्यार हमेशा मेरे सामने रहता है

और मैं तेरी सच्चाई की राह पर चलता हूँ।+

 4 मैं छल करनेवालों से मेल-जोल नहीं रखता,*+

अपनी असलियत छिपानेवालों से दूर रहता हूँ।*

 5 मुझे बुरे लोगों की टोली से नफरत है,+

मैं दुष्टों से मेल-जोल रखने* से इनकार करता हूँ।+

 6 हे यहोवा, मैं अपने हाथ धोकर खुद को बेगुनाह साबित करूँगा

और तेरी वेदी के चारों तरफ घूमूँगा

 7 ताकि मैं ऊँची आवाज़ में तेरा शुक्रिया अदा करूँ,+

तेरे सभी आश्‍चर्य के कामों का ऐलान करूँ।

 8 हे यहोवा, मुझे तेरा भवन बहुत प्यारा है जहाँ तू निवास करता है,+

जहाँ तेरी महिमा छायी रहती है।+

 9 पापियों के साथ मेरा भी सफाया न कर देना,+

न ही खूँखार लोगों* के साथ मेरी जान ले लेना,

10 जिनके हाथ नीच कामों में लगे रहते हैं,

जिनका दायाँ हाथ रिश्‍वत से भरा रहता है।

11 मगर मैंने तो ठाना है कि मैं निर्दोष चाल चलूँगा।

मुझे छुड़ा ले और मुझ पर कृपा कर।

12 मैं समतल ज़मीन पर खड़ा हूँ,+

मैं बड़ी मंडली* में यहोवा की तारीफ करूँगा।+

दाविद की रचना।

27 यहोवा मेरा प्रकाश+ और मेरा उद्धारकर्ता है।

फिर मुझे डर किसका?+

यहोवा मेरे जीवन का मज़बूत गढ़ है।+

फिर मैं किसी से क्यों खौफ खाऊँ?

 2 दुष्ट मुझे फाड़ खाने के लिए मुझ पर टूट पड़े,+

मगर मेरे बैरी और दुश्‍मन खुद लड़खड़ाकर गिर पड़े।

 3 चाहे कोई सेना मेरे खिलाफ छावनी डाले,

तब भी मेरा दिल नहीं डरेगा।+

चाहे मेरे खिलाफ युद्ध छिड़ जाए,

तब भी मेरा भरोसा अटल रहेगा।

 4 मैंने यहोवा से सिर्फ एक चीज़ माँगी है,

यही मेरी दिली तमन्‍ना है

कि मैं सारी ज़िंदगी यहोवा के भवन में निवास करूँ+

ताकि यहोवा की मनोहरता निहार सकूँ

और उसके मंदिर* को एहसान-भरे दिल से* देखता रहूँ।+

 5 क्योंकि संकट के दिन वह मुझे अपने आसरे में छिपा लेगा,+

अपनी गुप्त जगह में, अपने तंबू में छिपा लेगा,+

वह मुझे ऊँची चट्टान पर चढ़ा देगा।+

 6 अब मेरा सिर दुश्‍मनों से ऊँचा हो गया है जो मुझे घेरे हुए हैं,

मैं परमेश्‍वर के तंबू में खुशी से जयजयकार करते हुए बलिदान चढ़ाऊँगा,

यहोवा की तारीफ में गीत गाऊँगा।*

 7 हे यहोवा, जब मैं पुकारूँ तो मेरी सुनना,+

मुझ पर कृपा करना और मुझे जवाब देना।+

 8 मेरे मन ने कहा है कि तूने यह आज्ञा दी है,

“मेरी मंज़ूरी पाने के लिए मेहनत करता रह।”

हे यहोवा, मैंने तेरी मंज़ूरी पाने की ठान ली है।+

 9 मुझसे मुँह न फेर लेना,+

न ही गुस्से में आकर अपने सेवक को ठुकरा देना।

तू मेरा मददगार है,+

मेरा उद्धार करनेवाले परमेश्‍वर, मुझे त्याग न देना, मुझे छोड़ न देना।

10 चाहे मेरे माता-पिता मुझे छोड़ दें,+

फिर भी यहोवा मुझे अपना लेगा।+

11 हे यहोवा, मुझे अपनी राह सिखा,+

दुश्‍मनों से बचाने के लिए मुझे सीधाई की राह पर ले चल।

12 मुझे मेरे बैरियों के हवाले न कर,+

क्योंकि मेरे खिलाफ झूठे गवाह उठ खड़े हुए हैं,+

वे मुझे मारने-पीटने की धमकी देते हैं।

13 अगर मुझे विश्‍वास न होता कि यहोवा मेरे जीते-जी* भलाई करेगा,

तो न जाने मेरा क्या होता!*+

14 यहोवा पर आशा रख,+

हिम्मत से काम ले, अपना दिल मज़बूत रख।+

हाँ, यहोवा पर आशा रख।

दाविद की रचना।

28 हे यहोवा, मेरी चट्टान, मैं तुझे ही पुकारता रहता हूँ,+

मेरी प्रार्थना अनसुनी न कर।

अगर तू चुप रहेगा,

तो मेरी हालत गड्‌ढे* में जानेवालों की तरह हो जाएगी+

 2 जब मैं मदद के लिए पुकारूँ,

तेरे पवित्र-स्थान के भीतरी कमरे की तरफ अपने हाथ उठाऊँ,+

तो तू मेरी दुहाई सुनना।

 3 तू दुष्टों के साथ मुझे घसीट न ले जाना,

जो नुकसान पहुँचानेवाले काम करते हैं,+

अपने संगी से शांति की बातें करते हैं, मगर उनके दिल में मैल भरा होता है।+

 4 उन्हें उनकी करनी का फल दे,+

उनके बुरे कामों का सिला दे।

उनके किए की सज़ा उन्हें दे,

उन्होंने जो किया है उसका बदला उन्हें दे।+

 5 क्योंकि वे न यहोवा के कामों पर,

न ही उसके हाथ के कामों पर ध्यान देते हैं।+

वह उन्हें ढा देगा और दोबारा खड़ा नहीं करेगा।

 6 यहोवा की तारीफ हो,

क्योंकि उसने मेरी मदद की पुकार सुनी है।

 7 यहोवा मेरी ताकत+ और मेरी ढाल है।+

मेरा दिल उसी पर भरोसा करता है।+

मुझे उससे मदद मिली है और मेरा दिल मगन है,

इसलिए मैं अपने गीत में उसकी तारीफ करूँगा।

 8 यहोवा अपने लोगों की ताकत है,

वह एक मज़बूत गढ़ है, अपने अभिषिक्‍त जन को शानदार तरीके से बचाता है।+

 9 अपने लोगों को बचा ले, अपनी विरासत को आशीष दे।+

उनका चरवाहा बन जा और सदा उन्हें अपनी गोद में लिए रह।+

दाविद का सुरीला गीत।

29 हे शूरवीरों के बेटो, यहोवा का आदर करो,

यहोवा का आदर करो क्योंकि वह महिमा और ताकत से भरपूर है।+

 2 यहोवा का नाम जिस महिमा का हकदार है वह महिमा उसे दो।

पवित्र पोशाक पहने* यहोवा को दंडवत करो।*

 3 यहोवा की आवाज़ बादलों* के ऊपर सुनायी दे रही है,

गौरवशाली परमेश्‍वर गरज रहा है।+

यहोवा घने बादलों के ऊपर है।+

 4 यहोवा की आवाज़ क्या ही दमदार है!+

यहोवा की आवाज़ क्या ही लाजवाब है!

 5 यहोवा की आवाज़ से देवदार टूटकर गिर जाते हैं,

हाँ, यहोवा लबानोन के देवदारों के टुकड़े-टुकड़े कर देता है।+

 6 वह लबानोन* को एक बछड़े की तरह

और सिरयोन+ को एक जंगली बैल की तरह कुदाता है।

 7 यहोवा की आवाज़ के साथ आग के शोले भड़क उठते हैं,+

 8 यहोवा की आवाज़ से वीराना काँप उठता है,+

यहोवा कादेश के वीराने+ को कँपा देता है।

 9 यहोवा की आवाज़ से गाभिन हिरनी दहल जाती है,

उसका बच्चा निकल पड़ता है,

जंगल-के-जंगल उजड़ जाते हैं।+

उसके मंदिर में सब कहते हैं, “परमेश्‍वर की महिमा हो!”

10 यहोवा जलप्रलय* के ऊपर विराजमान है,+

यहोवा सदा राजा की हैसियत से विराजमान रहता है।+

11 यहोवा अपने लोगों को ताकत देगा।+

यहोवा अपने लोगों को शांति की आशीष देगा।+

दाविद का सुरीला गीत। नए घर के उद्‌घाटन का गीत।

30 हे यहोवा, मैं तेरी बड़ाई करूँगा क्योंकि तूने मुझे ऊपर निकाला है,*

तूने मेरे दुश्‍मनों को मुझ पर हँसने का मौका नहीं दिया।+

 2 हे यहोवा, मेरे परमेश्‍वर, मैंने तुझे मदद के लिए पुकारा और तूने मुझे चंगा किया।+

 3 हे यहोवा, तूने मुझे कब्र में से ऊपर निकाला,+

मेरी जान सलामत रखी, मुझे गड्‌ढे* में गिरने से बचाया।+

 4 यहोवा के वफादार लोगो, उसकी तारीफ में गीत गाओ,*+

उसके पवित्र नाम* की तारीफ करो,+

 5 क्योंकि उसका क्रोध पल-भर का होता है,+

जबकि उसकी कृपा* ज़िंदगी-भर बनी रहती है।+

साँझ को भले ही रोना पड़े, पर सवेरे खुशी से जयजयकार होगी।+

 6 जब मुझे कोई परेशानी नहीं थी तब मैंने कहा,

“मैं कभी हिलाया नहीं जा सकता।”*

 7 हे यहोवा, जब तू मुझसे खुश था* तब तूने मुझे पहाड़ जैसा मज़बूत किया।+

मगर जब तूने मुझसे मुँह फेर लिया तो मैं बहुत डर गया।+

 8 हे यहोवा, मैं तुझी को पुकारता रहा,+

मैं यहोवा से कृपा की बिनती करता रहा।

 9 क्या मेरे मरने* से, गड्‌ढे* में जाने से कोई फायदा होगा?+

क्या मिट्टी तेरी तारीफ करेगी?+ तेरी वफादारी का बखान करेगी?+

10 हे यहोवा, मेरी दुआ सुन, मुझ पर कृपा कर।+

हे यहोवा, मेरा मददगार बन जा।+

11 तूने मेरा मातम खुशियों* में बदल दिया,

मेरा टाट उतारकर मुझे जश्‍न का ओढ़ना ओढ़ाया

12 ताकि मैं* तेरी तारीफ में गीत गाऊँ और चुप न रहूँ।

हे यहोवा, मेरे परमेश्‍वर, मैं सदा तेरी तारीफ करता रहूँगा।

दाविद का सुरीला गीत। निर्देशक के लिए हिदायत।

31 हे यहोवा, मैंने तेरी पनाह ली है।+

मुझे कभी शर्मिंदा न होने दे।+

अपनी नेकी के कारण मुझे छुड़ा ले।+

 2 मेरी तरफ कान लगा।*

मुझे छुड़ाने के लिए फौरन आ।+

मेरे लिए पहाड़ पर खड़ा मज़बूत गढ़ बन जा,

मुझे बचाने के लिए एक महफूज़ किला बन जा।+

 3 क्योंकि तू मेरे लिए बड़ी चट्टान और मज़बूत गढ़ है,+

अपने नाम की खातिर+ तू मेरी अगुवाई करेगा, मुझे रास्ता दिखाएगा।+

 4 तू मुझे उस जाल से छुड़ा जो दुश्‍मनों ने चुपके से बिछाया है,+

क्योंकि तू मेरा किला है।+

 5 मैं अपनी जान तेरे हवाले करता हूँ।+

हे यहोवा, सच्चाई के परमेश्‍वर,*+ तूने मुझे छुड़ाया है।

 6 मैं उनसे नफरत करता हूँ जो बेकार और निकम्मी मूरतों को पूजते हैं,

मगर मैं यहोवा पर भरोसा करता हूँ।

 7 मैं तेरे अटल प्यार के कारण बहुत मगन होऊँगा,

क्योंकि तूने मेरा दुख देखा है,+

तू मेरे मन की पीड़ा जानता है।

 8 तूने मुझे दुश्‍मनों के हवाले नहीं किया,

बल्कि तू मुझे एक महफूज़* जगह खड़ा करता है।

 9 हे यहोवा, मुझ पर रहम कर, मैं मुसीबत में हूँ।

घोर चिंता से मेरी आँखें कमज़ोर हो गयी हैं,+ पूरा शरीर सूख गया है।+

10 गम से मेरी ज़िंदगी आधी हो गयी है,+

कराहते-कराहते मेरी उम्र घट गयी है।+

मेरे गुनाह की वजह से मेरी ताकत मिट रही है,

मेरी हड्डियाँ कमज़ोर हो रही हैं।+

11 मेरे सभी बैरी, खासकर मेरे पड़ोसी

मुझे तुच्छ समझते हैं।+

मेरे जान-पहचानवाले मुझसे डरते हैं,

मुझे बाहर देखते ही मुझसे दूर भागते हैं।+

12 उन्होंने मुझे अपने दिल* से निकाल दिया है,

मुझे भुला दिया है मानो मेरी मौत हो गयी हो,

मैं एक टूटे घड़े जैसा बन गया हूँ।

13 मैं अपने बारे में अफवाहें सुनता हूँ,

आतंक से घिरा रहता हूँ।+

वे सब मेरे खिलाफ दल बाँधते हैं,

मेरी जान लेने की साज़िश रचते हैं।+

14 मगर हे यहोवा, मैं तुझ पर भरोसा करता हूँ।+

मैं ऐलान करता हूँ, “तू मेरा परमेश्‍वर है।”+

15 मेरी ज़िंदगी* तेरे हाथ में है।

मुझे मेरे दुश्‍मनों और सतानेवालों के हाथ से छुड़ा।+

16 अपने सेवक पर अपने मुख का प्रकाश चमका।+

अपने अटल प्यार के कारण मुझे बचा ले।

17 हे यहोवा, मैं तुझे पुकारूँगा, मुझे शर्मिंदा न होना पड़े।+

दुष्ट शर्मिंदा हों,+ कब्र में खामोश कर दिए जाएँ।+

18 झूठ बोलनेवाले मुँह बंद कर दिए जाएँ,+

जो मगरूर होकर, घमंड और नफरत से भरकर

नेक जन के खिलाफ बोलते हैं।

19 हे परमेश्‍वर, तेरी भलाई अपार है!+

यह तूने उनके लिए रख छोड़ी है जो तेरा डर मानते हैं+

और जो तेरी पनाह लेते हैं, उनके साथ तूने सबके देखते भलाई की है।+

20 तू उन्हें लोगों की साज़िशों से बचाने के लिए

अपनी मौजूदगी की गुप्त जगह छिपाए रखेगा,+

उन्हें चुभनेवाली बातों के वार से बचाने के लिए

अपने आसरे में छिपा लेगा।+

21 यहोवा की तारीफ हो क्योंकि जब मैं सेना से घिरे शहर में था,+

तब उसने मुझे अपने अटल प्यार का लाजवाब तरीके से सबूत दिया था।+

22 मैं तो बिलकुल घबरा गया था,

मुझे लगा, “अब वे मुझे ज़रूर मिटा देंगे।”+

मगर जब मैंने दुहाई दी तो तूने मेरी सुनी।+

23 यहोवा के सभी वफादार लोगो, उससे प्यार करो!+

यहोवा विश्‍वासयोग्य लोगों की हिफाज़त करता है,+

मगर जो मगरूर है उसे कड़ी-से-कड़ी सज़ा देता है।+

24 यहोवा पर आस लगानेवालो,+

तुम सब हिम्मत से काम लो, तुम्हारा दिल मज़बूत रहे।+

दाविद की रचना। मश्‍कील।*

32 सुखी है वह इंसान जिसका अपराध माफ किया गया है, जिसका पाप ढाँप दिया गया है।*+

 2 सुखी है वह इंसान जिसे यहोवा दोषी नहीं ठहराता,+

जिसके मन में कपट नहीं होता।

 3 जब मैं चुप रहा तो मैं दिन-भर कराहता रहा जिससे मेरी हड्डियाँ गलने लगीं।+

 4 क्योंकि दिन-रात तेरा हाथ* मुझ पर भारी था।+

मेरा दमखम ऐसे खत्म हो गया* जैसे गरमियों की कड़ी धूप से पानी सूख जाता है। (सेला )

 5 आखिरकार, मैंने तेरे सामने अपना पाप मान लिया,

मैंने अपना गुनाह और नहीं छिपाया।+

मैंने कहा, “मैं यहोवा के सामने अपने अपराध मान लूँगा।”+

तब तूने मेरे पाप, मेरे गुनाह माफ कर दिए।+ (सेला )

 6 इसीलिए जब तक तुझे पाना मुमकिन है,

तब तक हर वफादार जन तुझसे प्रार्थना करेगा।+

फिर सैलाब भी उस तक नहीं पहुँचेगा।

 7 तू मेरे लिए छिपने की जगह है,

तू मुसीबत से मेरी हिफाज़त करेगा।+

तू मुझे छुड़ाकर मेरे चारों ओर खुशियों का समाँ बाँध देगा।+ (सेला )

 8 तूने कहा है, “मैं तुझे अंदरूनी समझ दूँगा,

उस राह पर चलना सिखाऊँगा जिस पर तुझे चलना चाहिए।+

मैं तुझ पर हर पल नज़र रखकर तुझे सलाह दूँगा।+

 9 तू घोड़े या खच्चर की तरह न बनना जिसमें समझ नहीं होती,+

जिसकी उमंग को लगाम या रस्सी से काबू करना पड़ता है,

तभी वह तेरे पास आएगा।”

10 दुष्ट की तकलीफें बेहिसाब होती हैं,

मगर यहोवा पर भरोसा रखनेवाला उसके अटल प्यार से घिरा रहता है।+

11 नेक लोगो, यहोवा के कारण मगन हो, आनंद मनाओ,

सीधे-सच्चे मनवालो, सब खुशी से जयजयकार करो।

33 नेक लोगो, यहोवा के कारण खुशी से जयजयकार करो।+

यह सही है कि सीधे-सच्चे लोग उसकी तारीफ करें।

 2 सुरमंडल बजाकर यहोवा का शुक्रिया अदा करो,

दस तारोंवाला बाजा बजाकर उसकी तारीफ में गीत गाओ।*

 3 उसके लिए एक नया गीत गाओ,+

कुशलता से तारोंवाले बाजे बजाओ और आनंद से जयजयकार करो।

 4 क्योंकि यहोवा का वचन सच्चा है,+

उसका हर काम दिखाता है कि वह भरोसेमंद है।

 5 उसे नेकी और न्याय से प्यार है।+

धरती यहोवा के अटल प्यार से भरपूर है।+

 6 यहोवा के वचन से आकाश की रचना हुई,+

उसमें जो कुछ है वह* उसके मुँह की साँस से बनाया गया।

 7 वह समुंदर का पानी ऐसे रोके रखता है मानो उस पर बाँध बाँधा हो,+

उफनते पानी को भंडारों में जमा करता है।

 8 सारी धरती यहोवा का डर माने।+

सारे जगत के लोग उसके लिए श्रद्धा रखें।

 9 क्योंकि उसने कहा और वह वजूद में आया,+

उसने हुक्म दिया और वह मज़बूती से कायम हुआ।+

10 यहोवा ने राष्ट्रों की साज़िशें* नाकाम कर दीं,+

देश-देश के लोगों की योजनाओं* पर पानी फेर दिया।+

11 मगर यहोवा के फैसले* सदा अटल रहेंगे,+

उसके मन के विचार पीढ़ी-दर-पीढ़ी बने रहेंगे।

12 सुखी है वह राष्ट्र जिसका परमेश्‍वर यहोवा है,+

वे लोग जिन्हें उसने अपनी जागीर चुना है।+

13 यहोवा स्वर्ग से नीचे देखता है,

उसकी नज़र सब इंसानों पर रहती है।+

14 वह अपने निवास से धरती के लोगों को गौर से देखता है।

15 वही सबके दिलों को ढालता है,

उनका हर काम जाँचता है।+

16 कोई भी राजा अपनी विशाल सेना के बल पर नहीं बचता,+

न ही शूरवीर अपनी ज़बरदस्त ताकत के दम पर बचता है।+

17 उद्धार* के लिए घोड़े पर आस लगाना धोखा है,+

बहुत बलवान होकर भी वह बचा नहीं सकता।

18 देखो! जो यहोवा का डर मानते हैं

और उसके अटल प्यार के भरोसे रहते हैं,

उन पर उसकी नज़र बनी रहती है+

19 ताकि उन्हें मौत से छुड़ाए

और अकाल के वक्‍त उन्हें ज़िंदा रखे।+

20 हम यहोवा पर उम्मीद लगाए हुए हैं।

वही हमारा मददगार और हमारी ढाल है।+

21 उसके कारण हमारा दिल बाग-बाग हो जाता है,

क्योंकि हम उसके पवित्र नाम पर भरोसा करते हैं।+

22 हे यहोवा, हमने तुझ पर आस लगायी है,+

इसलिए तेरा अटल प्यार हम पर बना रहे।+

दाविद का यह गीत उस समय का है जब दाविद ने अबीमेलेक के सामने पागल होने का ढोंग किया था+ और अबीमेलेक ने उसे भगा दिया था।

א [आलेफ ]

34 मैं हर समय यहोवा की तारीफ करूँगा,

उसकी तारीफ के बोल हमेशा मेरे होंठों पर होंगे।

ב [बेथ ]

 2 मैं यहोवा पर गर्व करूँगा,+

दीन लोग यह सुनकर आनंद मनाएँगे।

ג [गिमेल ]

 3 मेरे साथ मिलकर यहोवा की महिमा करो,+

आओ, हम मिलकर उसके नाम की बड़ाई करें।

ד [दालथ ]

 4 मैंने यहोवा से सलाह माँगी और उसने मुझे जवाब दिया।+

उसने मेरा सारा डर दूर कर दिया।+

ה [हे ]

 5 उस पर आस लगानेवालों का चेहरा दमक उठा,

उन्हें कभी शर्मिंदा नहीं किया जा सकता।

ז [जैन ]

 6 इस दुखी इंसान ने यहोवा को पुकारा और उसने सुना।

परमेश्‍वर ने उसे सारी मुसीबतों से बचाया।+

ח [हेथ ]

 7 यहोवा का स्वर्गदूत उसका* डर माननेवालों की हिफाज़त करता है*+

और उन्हें छुड़ाता है।+

ט [टेथ ]

 8 परखकर देखो कि यहोवा कितना भला है,+

सुखी है वह इंसान जो उसकी पनाह में आता है।

י [योध ]

 9 यहोवा के सब पवित्र लोगो, उसका डर मानो,

क्योंकि उसका डर माननेवालों को कोई कमी नहीं होती।+

כ [काफ ]

10 जवान ताकतवर शेर भी भूख से आधे हो गए हैं,

मगर यहोवा की खोज करनेवालों को अच्छी चीज़ की कमी नहीं होगी।+

ל [लामेध ]

11 आओ मेरे बेटो, मेरी सुनो,

मैं तुम्हें यहोवा का डर मानना सिखाऊँगा।+

מ [मेम ]

12 तुममें से कौन खुशहाल ज़िंदगी चाहता है?

कौन लंबी उम्र पाना चाहता है?+

נ [नून ]

13 तो फिर अपनी जीभ को बुराई करने से,+

अपने होंठों को छल की बातें कहने से रोको।+

ס [सामेख ]

14 बुराई से दूर हो जाओ और भले काम करो,+

शांति कायम करने की खोज करो और उसमें लगे रहो।+

ע [ऐयिन ]

15 यहोवा की आँखें नेक लोगों पर लगी रहती हैं+

और उसके कान उनकी मदद की पुकार सुनते हैं।+

פ [पे ]

16 मगर यहोवा बुरे काम करनेवालों के खिलाफ हो जाता है

ताकि धरती से उनकी याद पूरी तरह मिटा दे।+

צ [सादे ]

17 नेक लोगों ने यहोवा की दुहाई दी और उसने सुनी,+

उसने उन्हें सारी मुसीबतों से छुड़ाया।+

ק [कोफ ]

18 यहोवा टूटे मनवालों के करीब रहता है,+

वह उन्हें बचाता है जिनका मन कुचला हुआ है।*+

ר [रेश ]

19 नेक जन पर बहुत-सी विपत्तियाँ तो आती हैं,+

मगर यहोवा उसे उन सबसे छुड़ाता है।+

ש [शीन ]

20 वह उसकी सारी हड्डियों की हिफाज़त करता है,

उसकी एक भी हड्डी नहीं तोड़ी गयी।+

ת [ताव ]

21 दुष्ट पर मुसीबत मौत ले आएगी,

नेक जनों से नफरत करनेवाले दोषी ठहराए जाएँगे।

22 यहोवा अपने सेवकों की जान बचाता है,

उसकी पनाह लेनेवाला कोई भी दोषी नहीं ठहरेगा।+

दाविद की रचना।

35 हे यहोवा, मेरे विरोधियों से मेरा मुकदमा लड़,+

उनसे लड़ जो मुझसे लड़ते हैं।+

 2 अपनी छोटी ढाल* और बड़ी ढाल उठा+

और मेरी रक्षा करने आ।+

 3 अपना भाला और अपनी कुल्हाड़ी लेकर मेरा पीछा करनेवालों का सामना कर।+

मुझसे कह, “मैं तेरा उद्धारकर्ता हूँ।”+

 4 जो मेरी जान लेने पर तुले हैं, वे शर्मिंदा और बेइज़्ज़त किए जाएँ।+

जो मुझे नाश करने के लिए साज़िशें रचते हैं, वे बेइज़्ज़त होकर भाग जाएँ।

 5 वे भूसी की तरह हो जाएँ जिसे हवा उड़ा ले जाती है,

यहोवा का स्वर्गदूत उन्हें दूर खदेड़ दे।+

 6 जब यहोवा का स्वर्गदूत उनका पीछा करे,

तो उनका रास्ता अँधेरा और फिसलन-भरा हो जाए।

 7 क्योंकि उन्होंने बेवजह मेरे लिए जाल बिछाया है,

बेवजह मेरे लिए गड्‌ढा खोदा है।

 8 मुसीबत उन पर अचानक आ पड़े,

वे अपने ही बिछाए जाल में फँस जाएँ,

अपने ही खोदे गड्‌ढे में गिरकर नाश हो जाएँ।+

 9 मगर मैं यहोवा के कारण मगन होऊँगा,

वह जो उद्धार दिलाता उससे आनंद मनाऊँगा।

10 मेरा रोम-रोम कहेगा,

“हे यहोवा, तुझ जैसा कौन है?

तू बेसहारे को ताकतवरों से बचाता है,+

बेसहारे और गरीब को लुटेरों के हाथ से छुड़ाता है।”+

11 ऐसे गवाह सामने आए हैं जिन्होंने मेरा बुरा करने की ठान ली है,+

वे मुझसे ऐसी बातें पूछते हैं जो मैं नहीं जानता।

12 वे मेरी अच्छाई का बदला बुराई से देते हैं,+

मेरे मन को शोकित करते हैं।

13 मगर जब वे बीमार थे तब मैंने टाट ओढ़ा था,

उपवास करके खुद को दुख दिया था

और जब मेरी प्रार्थना का कोई जवाब नहीं मिलता,*

14 तो मैं मातम मनाते हुए फिरता, मानो मैंने अपना दोस्त या भाई खो दिया हो,

अपनी माँ के लिए मातम मनानेवाले की तरह मैं दुख से झुक गया।

15 मगर जब मैं गिर पड़ा तो वे खुश हुए और इकट्ठा हो गए,

वे घात लगाकर मुझ पर हमला करने के लिए इकट्ठा हो गए,

उन्होंने मुझे तार-तार कर दिया और चुप नहीं रहे।

16 भक्‍तिहीन लोग मुझे तुच्छ समझकर* मेरी खिल्ली उड़ाते हैं,

मुझ पर गुस्से से दाँत पीसते हैं।+

17 हे यहोवा, तू कब तक यूँ ही देखता रहेगा?+

उनके हमलों से मुझे बचा ले,+

जवान शेरों से मेरे अनमोल जीवन* की रक्षा कर।+

18 तब मैं बड़ी मंडली में तेरा शुक्रिया अदा करूँगा,+

लोगों की भीड़ में तेरी तारीफ करूँगा।

19 मुझसे बेवजह दुश्‍मनी करनेवालों को मुझ पर हँसने न दे,

मुझसे बेवजह नफरत करनेवालों+ को बुरे इरादे से एक-दूसरे को आँख मारने न दे।+

20 क्योंकि वे शांति की बातें नहीं करते

बल्कि जो देश में शांति से रहते हैं, उनके खिलाफ चालाकी से साज़िश रचते हैं।+

21 वे गला फाड़-फाड़कर मुझ पर दोष लगाते हैं,

वे कहते हैं, “अच्छा हुआ! जैसा हमने सोचा था वैसा ही हो गया!”

22 हे यहोवा, तूने यह देखा है। तू चुप न रह।+

हे यहोवा, मुझसे दूर न रह।+

23 जाग! मेरे बचाव के लिए उठ,

मेरे परमेश्‍वर यहोवा, मेरी तरफ से पैरवी कर।

24 हे यहोवा, मेरे परमेश्‍वर, अपनी नेकी के मुताबिक मेरा न्याय कर,+

उन्हें मुझ पर हँसने का मौका न दे।

25 वे खुद से कभी यह कहने न पाएँ, “अरे वाह! हमने जो चाहा वही हुआ!”

वे मेरे बारे में यह कभी कहने न पाएँ, “हमने उसे निगल लिया।”+

26 मेरी बरबादी पर हँसनेवाले सभी शर्मिंदा और बेइज़्ज़त किए जाएँ।

मुझे नीचा दिखानेवाले शर्म और अपमान से ओढ़े जाएँ।

27 मगर मेरी नेकी से खुश होनेवाले आनंद से जयजयकार करें,

वे लगातार कहते रहें, “यहोवा की महिमा हो,

जो अपने सेवक की शांति देखकर खुश होता है।”+

28 तब मेरी जीभ तेरी नेकी का बखान करेगी*+

और दिन-भर तेरी तारीफ करेगी।+

यहोवा के सेवक दाविद की रचना। निर्देशक के लिए हिदायत।

36 अपराध, दुष्ट के दिल की गहराई में उससे बोलता है,

दुष्ट की आँखों में परमेश्‍वर का ज़रा भी डर नहीं।+

 2 वह अपनी नज़रों में खुद को इतना ऊँचा उठा लेता है

कि अपनी गलती देख नहीं पाता और उससे नफरत नहीं करता।+

 3 उसके मुँह से नुकसान पहुँचानेवाली और छल की बातें निकलती हैं,

उसमें ज़रा भी अंदरूनी समझ नहीं कि वह भला काम करे।

 4 बिस्तर पर लेटे हुए भी वह साज़िशें रचता है।

वह ऐसे रास्ते पर चलने में अड़ जाता है जो सही नहीं है,

वह बुराई को नहीं ठुकराता।

 5 हे यहोवा, तेरा अटल प्यार आसमान तक पहुँचता है,+

तेरी वफादारी बादलों तक पहुँचती है।

 6 तेरी नेकी बड़े-बड़े, ऊँचे पहाड़ों* जैसी है,+

तेरे न्याय-सिद्धांत विशाल गहरे सागर जैसे हैं।+

हे यहोवा, तू इंसान और जानवर, दोनों को सलामत रखता* है।+

 7 हे परमेश्‍वर, तेरा अटल प्यार क्या ही अनमोल है!+

तेरे पंखों की छाँव तले इंसान पनाह लेते हैं।+

 8 वे तेरे भवन की भरपूरी* से जी-भरकर पीते हैं,+

तू अपनी अच्छाई की उमड़ती नदी से उन्हें पिलाता है।+

 9 तू ही जीवन देनेवाला है,+

तेरी रौशनी से हमें रौशनी मिलती है।+

10 जो तुझे जानते हैं उनसे प्यार* करता रह,+

सीधे-सच्चे मनवालों के साथ नेकी करता रह।+

11 मगरूर को मौका न दे कि वह पैरों से मुझे रौंद डाले,

न ही दुष्ट को अवसर दे कि वह हाथों से मुझे खदेड़ दे।

12 देख, गुनाह करनेवाले गिर गए हैं,

उन्हें चित कर दिया गया है, वे उठ नहीं सकते।+

दाविद की रचना।

א [आलेफ ]

37 बुरे लोगों की वजह से मत झुँझलाना,*

न ही गुनहगारों से जलना।+

 2 वे घास की तरह जल्द ही मुरझा जाएँगे,+

हरी घास की तरह सूख जाएँगे।

ב [बेथ ]

 3 यहोवा पर भरोसा रख और भले काम कर,+

धरती पर* बसा रह और अपने हर काम में विश्‍वासयोग्य रह।+

 4 यहोवा में अपार खुशी पा*

और वह तेरे दिल की मुरादें पूरी करेगा।

ג [गिमेल ]

 5 अपना सबकुछ यहोवा पर छोड़ दे,+

उस पर भरोसा रख, वह तेरी खातिर कदम उठाएगा।+

 6 वह तेरी नेकी सुबह के उजाले की तरह,

तेरा न्याय भरी दोपहरी की धूप की तरह चमकाएगा।

ד [दालथ ]

 7 यहोवा के सामने खामोश रहना+

और सब्र से उसका इंतज़ार करना,

ऐसे आदमी को देखकर मत झुँझलाना

जो अपनी चालों में कामयाब होता है।+

ה [हे ]

 8 गुस्सा करना छोड़ दे, क्रोध त्याग दे,+

झुँझलाना मत और बुराई में मत लग जाना।*

 9 क्योंकि बुरे लोगों का नाश कर दिया जाएगा,+

मगर यहोवा पर आशा रखनेवाले धरती के वारिस होंगे।+

ו [वाव ]

10 बस थोड़े ही समय बाद दुष्टों का नामो-निशान मिट जाएगा,+

तू उन्हें वहाँ ढूँढ़ेगा जहाँ वे होते थे, मगर वे नहीं होंगे।+

11 मगर दीन लोग धरती के वारिस होंगे+

और बड़ी शांति के कारण अपार खुशी पाएँगे।+

ז [जैन ]

12 दुष्ट, नेक इंसान के खिलाफ साज़िश रचता है,+

उस पर गुस्से से दाँत पीसता है।

13 मगर यहोवा दुष्ट पर हँसेगा,

क्योंकि वह जानता है कि उसके मिटने का दिन ज़रूर आएगा।+

ח [हेथ ]

14 दुष्ट तलवार खींचते और कमान चढ़ाते हैं

ताकि सताए हुओं को और गरीबों को गिराएँ

और सीधी चाल चलनेवालों को मार डालें।

15 मगर उनकी तलवार उन्हीं का दिल चीर देगी,+

उनकी कमान तोड़ दी जाएगी।

ט [टेथ ]

16 एक नेक इंसान के पास जो थोड़ा है,

वह कई दुष्टों की कुल संपत्ति से बढ़कर है।+

17 क्योंकि दुष्टों के हाथ तोड़ दिए जाएँगे,

मगर नेक जन को यहोवा थाम लेगा।

י [योध ]

18 यहोवा जानता है कि निर्दोष लोग किन हालात से गुज़रते हैं,*

उनकी विरासत हमेशा तक बनी रहेगी।+

19 संकट के समय उन्हें शर्मिंदा नहीं किया जाएगा,

अकाल के समय उनके पास भरपूर खाना होगा।

כ [काफ ]

20 मगर दुष्ट मिट जाएँगे,+

यहोवा के दुश्‍मन चरागाह की खूबसूरत हरियाली की तरह

और धुएँ की तरह गायब हो जाएँगे।

ל [लामेध ]

21 दुष्ट उधार लेता है पर लौटाता नहीं,

मगर नेक जन दरियादिल होता है* और उदारता से देता है।+

22 परमेश्‍वर जिन्हें आशीष देता है वे धरती के वारिस होंगे,

मगर वह जिन्हें शाप देता है वे नाश कर दिए जाएँगे।+

מ [मेम ]

23 जब यहोवा एक आदमी के चालचलन से खुश होता है,+

तो उसके कदमों को राह दिखाता है।*+

24 चाहे उसे ठोकर लगे, तो भी वह चित नहीं होगा,+

क्योंकि यहोवा हाथ से* उसे थामे रहता है।+

נ [नून ]

25 अपनी जवानी से लेकर बुढ़ापे तक

न तो मैंने कभी किसी नेक इंसान को त्यागा हुआ,+

न ही उसकी औलाद को रोटी* के लिए भीख माँगते हुए देखा।+

26 नेक जन हमेशा खुले हाथ उधार देता है,+

उसके बच्चों को आशीषें मिलनी तय हैं।

ס [सामेख ]

27 तू बुराई छोड़ दे और भले काम कर,+

तब तू सदा बना रहेगा।

28 क्योंकि यहोवा न्याय से प्यार करता है,

वह अपने वफादार सेवकों को कभी नहीं त्यागेगा।+

ע [ऐयिन ]

वह हमेशा उनकी हिफाज़त करेगा,+

मगर दुष्ट के वंशज मिटा दिए जाएँगे।+

29 नेक लोग धरती के वारिस होंगे+

और उस पर हमेशा की ज़िंदगी जीएँगे।+

פ [पे ]

30 नेक इंसान का मुँह बुद्धि की बातें सिखाता है,*

उसकी ज़बान न्याय की बातें करती है।+

31 उसके परमेश्‍वर का कानून उसके दिल में बसा है,+

उसके कदम कभी नहीं डगमगाएँगे।+

צ [सादे ]

32 दुष्ट, नेक जन पर नज़र रखता है,

उसे मार डालने की फिराक में रहता है।

33 मगर यहोवा नेक जन को दुष्ट के हाथ में नहीं छोड़ेगा,+

न ही मुकदमे में उसे दोषी ठहराएगा।+

ק [कोफ ]

34 यहोवा पर आशा रख और उसकी राह पर चल,

वह तुझे ऊँचा उठाकर धरती का वारिस बना देगा।

जब दुष्टों का नाश किया जाएगा,+ तब तू देखेगा।+

ר [रेश ]

35 मैंने एक बेरहम और दुष्ट आदमी को देखा,

वह उस पेड़ की तरह फल-फूल रहा था जो अपनी मिट्टी में लगा है।+

36 मगर अचानक वह मर गया और मिट गया,+

मैं उसे ढूँढ़ता रहा, मगर वह कहीं नहीं मिला।+

ש [शीन ]

37 निर्दोष इंसान* को ध्यान से देख,

सीधे-सच्चे इंसान+ पर गौर कर,

क्योंकि भविष्य में वह चैन की ज़िंदगी जीएगा।+

38 मगर सभी अपराधी नाश किए जाएँगे,

दुष्टों का कोई भविष्य नहीं होगा।+

ת [ताव ]

39 नेक लोगों का उद्धार यहोवा की ओर से होगा,+

मुसीबत की घड़ी में वह उनका किला होगा।+

40 यहोवा उन्हें मदद देगा और छुड़ाएगा।+

वह दुष्ट के हाथ से उन्हें छुड़ाएगा और बचाएगा,

क्योंकि वे उसकी पनाह लेते हैं।+

यादगार के लिए दाविद का सुरीला गीत।

38 हे यहोवा, तू गुस्से में आकर मुझे न फटकार,

न ही क्रोध से भरकर मुझे सुधार।+

 2 तेरे तीरों ने मुझे अंदर तक भेद दिया है,

तेरा हाथ मुझ पर भारी है।+

 3 तेरे क्रोध की वजह से मेरा सारा शरीर रोगी है।*

मेरे पाप की वजह से मेरी हड्डियों में चैन नहीं।+

 4 क्योंकि मेरे गुनाहों का ढेर मेरे सिर से भी ऊँचा हो गया है,+

इतना भारी बोझ कि मुझसे सहा नहीं जाता।

 5 मेरी मूर्खता के कारण मेरे घाव सड़ गए हैं,

उनसे बदबू आती है।

 6 मैं टूट चुका हूँ, यह दर्द बरदाश्‍त से बाहर है,

मैं सारा दिन मायूसी में डूबा रहता हूँ।

 7 मेरे अंदर मानो आग लगी है,*

मेरा सारा शरीर रोगी है।+

 8 मैं सुन्‍न हो गया हूँ, बिलकुल चूर हो गया हूँ,

मन की बेचैनी के मारे ज़ोर-ज़ोर से कराहता रहता हूँ।

 9 हे यहोवा, तू मेरी सारी इच्छाएँ जानता है,

मेरा आहें भरना तुझसे छिपा नहीं है।

10 मेरी धड़कन तेज़ है, ताकत जवाब दे गयी है,

आँखों की रौशनी चली गयी है।+

11 मुझे ज़ख्मों से भरा देखकर मेरे दोस्त और साथी मुझसे किनारा कर लेते हैं,

जो कभी मेरे करीब थे वे अब मुझसे दूर रहते हैं।

12 मेरे जानी दुश्‍मन मेरे लिए फंदे बिछाते हैं,

मेरा बुरा चाहनेवाले मुझे बरबाद करने की बातें करते हैं,+

वे दिन-भर मुझे छलने की तरकीबें बुनते रहते हैं।

13 मैं उनकी बातें अनसुनी कर देता हूँ मानो बधिर हूँ,+

मैं कुछ नहीं बोलता मानो गूँगा हूँ।+

14 मैं ऐसे आदमी की तरह हो गया हूँ जो सुन नहीं सकता,

न ही अपनी सफाई में कुछ कह सकता है।

15 क्योंकि हे यहोवा, मैंने तेरा इंतज़ार किया+

और हे यहोवा, मेरे परमेश्‍वर, तूने मेरी सुन ली।+

16 मैंने कहा था, “अगर मेरा पैर फिसल जाए

तो वे मुझ पर न हँसें या घमंड से न फूलें।”

17 क्योंकि मैं बस गिरने ही वाला था

और हर वक्‍त दर्द से तड़प रहा था।+

18 मैंने अपना गुनाह कबूल कर लिया,+

पाप की वजह से मेरा मन बेचैन था।+

19 मगर मेरे दुश्‍मन फुर्तीले और ताकतवर हैं,*

मुझसे बेवजह नफरत करनेवाले बेशुमार हो गए हैं।

20 उन्होंने मेरी अच्छाई का सिला बुराई से दिया,

वे मेरा विरोध करते रहे क्योंकि मैं भले काम करने का जतन करता था।

21 हे यहोवा, मुझे छोड़ न देना।

हे परमेश्‍वर, मुझसे दूर न रहना।+

22 हे यहोवा, मेरे उद्धारकर्ता,+

मेरी मदद के लिए जल्दी आना।

दाविद का सुरीला गीत। निर्देशक के लिए हिदायत: यदूतून*+ का।

39 मैंने कहा, “मैं बहुत सावधानी बरतूँगा

ताकि अपनी जीभ से पाप न कर बैठूँ।+

जब तक कोई दुष्ट मेरे सामने रहेगा

तब तक मैं अपने मुँह पर मुसका* बाँधे रहूँगा।”+

 2 मैं गूँगा हो गया, कुछ नहीं बोला,+

अच्छी बातें कहने के लिए भी मैंने मुँह नहीं खोला,

मगर मेरा दर्द सहन से बाहर था।*

 3 मेरा दिल सुलगने लगा,

मैं गहराई से सोचता रहा* और आग जलती रही।

फिर मैं बोल उठा,

 4 “हे यहोवा, मुझे बता कि मेरा अंत कब होगा,

मेरे और कितने दिन रह गए हैं+

ताकि मैं जानूँ कि मेरी ज़िंदगी कितनी छोटी है।*

 5 वाकई, तूने मुझे पल-भर की ज़िंदगी दी है,*+

मेरा जीवनकाल तेरे सामने कुछ भी नहीं।+

सच, हर इंसान बस एक साँस है,

फिर चाहे वह कितना ही सुरक्षित क्यों न दिखायी पड़े।+ (सेला )

 6 सच, हर इंसान एक परछाईं जैसा है।

वह बेकार में दौड़-धूप* करता है।

दौलत का अंबार लगाता है, मगर नहीं जानता कि कौन उसका मज़ा लेगा।+

 7 इसलिए हे यहोवा, मैं किस पर आशा रखूँ?

तू ही मेरी आशा है।

 8 मुझे मेरे सब अपराधों से छुड़ा ले।+

मूर्खों को मेरी खिल्ली उड़ाने का मौका न दे।

 9 मैं खामोश ही रहा, मैंने अपना मुँह नहीं खोला+

क्योंकि यह तूने किया है।+

10 तूने मुझ पर जो कहर ढाया, उसे हटा दे।

मैं तेरे हाथ की मार सहते-सहते पस्त हो गया हूँ।

11 तू आदमी को उसके किए की सज़ा देकर सुधारता है,+

वह जिन चीज़ों को खज़ाने की तरह सँभालकर रखता है,

उन्हें तू मिटा देता है जैसे कपड़-कीड़ा कपड़ा चट कर जाता है।

सच, हर इंसान बस एक साँस है।+ (सेला )

12 हे यहोवा, मेरी प्रार्थना सुन,

मेरी मदद की पुकार पर ध्यान दे।+

मेरे आँसुओं को अनदेखा न कर।

क्योंकि मैं तेरी नज़र में बस एक परदेसी हूँ,+

एक मुसाफिर,* जैसे मेरे सभी बाप-दादे थे।+

13 अपनी क्रोध-भरी नज़रें मुझसे फेर ले ताकि मेरी खुशी लौट आए,

इससे पहले कि मैं मरकर मिट जाऊँ।”

दाविद का सुरीला गीत। निर्देशक के लिए हिदायत।

40 मैंने दिल से यहोवा पर आस लगायी*

और उसने मेरी प्रार्थना पर कान लगाया,* मेरी दुहाई सुनी।+

 2 उसने मुझे गहरी खाई से ऊपर खींच लिया,

जहाँ पानी की तेज़ गड़गड़ाहट थी,

मुझे दलदल से बाहर निकाला

और एक चट्टान पर खड़ा किया,

उसने मेरे पैरों को मज़बूती से टिकाया।

 3 फिर उसने मेरी ज़बान पर एक नए गीत के बोल डाले,+

हमारे परमेश्‍वर की तारीफ का गीत।

यह सब देखकर लोग श्रद्धा से भर जाएँगे

और यहोवा पर भरोसा रखेंगे।

 4 सुखी है वह इंसान जो यहोवा पर भरोसा रखता है

और उन पर आस नहीं लगाता जो गुस्ताख और झूठे हैं।

 5 हे यहोवा, मेरे परमेश्‍वर, तूने हमारी खातिर

कितने आश्‍चर्य के कामों और मकसदों को अंजाम दिया है।+

तेरा कोई सानी नहीं।+

अगर मैं उनका बखान करना चाहूँ,

तो वे इतने बेशुमार हैं कि उनका बखान करना नामुमकिन होगा!+

 6 तूने बलिदान और चढ़ावा नहीं चाहा,*+

मगर तूने मेरे कान खोल दिए ताकि मैं सुनूँ।+

तूने न होम-बलियाँ माँगीं, न पाप-बलियाँ।+

 7 तब मैंने कहा, “देख, मैं आया हूँ।

खर्रे* में मेरे बारे में लिखा है।+

 8 हे मेरे परमेश्‍वर, तेरी मरज़ी पूरी करने में ही मेरी खुशी है,*+

तेरा कानून मेरे दिल की गहराई में बसा है।+

 9 मैं तेरी नेकी की खुशखबरी बड़ी मंडली में सुनाता हूँ।+

देख! मैं इस बारे में बोलने से खुद को रोकता नहीं,+

हे यहोवा, तू यह अच्छी तरह जानता है।

10 मैं तेरी नेकी की बातें अपने दिल में दबाकर नहीं रखता,

मैं तेरी वफादारी का और तेरी तरफ से मिलनेवाले उद्धार का ऐलान करता हूँ।

मैं तेरा अटल प्यार और तेरी सच्चाई बड़ी मंडली से नहीं छिपाता।”+

11 हे यहोवा, मुझ पर दया करने से पीछे न हट।

तेरा अटल प्यार और तेरी सच्चाई हरदम मेरी हिफाज़त करती रहे।+

12 मुझे इतनी विपत्तियों ने आ घेरा है कि उनका कोई हिसाब नहीं,+

मेरे गुनाह इतने हैं कि मैं देख नहीं सकता कि मैं कहाँ जा रहा हूँ।+

उनकी गिनती मेरे सिर के बालों से कहीं ज़्यादा है,

अब मैं हिम्मत हार चुका हूँ।

13 हे यहोवा, मुझ पर दया कर, मुझे बचा ले,+

हे यहोवा, मेरी मदद के लिए जल्दी आ।+

14 जितने लोग मेरी जान के पीछे पड़े हैं,

वे सब शर्मिंदा और अपमानित किए जाएँ।

जो मुझे संकटों से घिरा देखकर मज़ा लेते हैं,

वे बेइज़्ज़त होकर भाग जाएँ।

15 जो मुझ पर हँसते और कहते हैं, “अच्छा हुआ! अच्छा हुआ!”

वे खुद शर्मिंदा हो जाएँ और अपनी हालत पर हक्के-बक्के रह जाएँ।

16 मगर जो तेरी खोज करते हैं+

वे तेरे कारण मगन हों और आनंद मनाएँ,+

उद्धार के लिए तुझ पर आस लगानेवाले हमेशा कहें,

“यहोवा की महिमा हो।”+

17 हे यहोवा, मुझ पर ध्यान दे,

मैं बेसहारा और गरीब हूँ।

तू ही मेरा मददगार और छुड़ानेवाला है।+

हे मेरे परमेश्‍वर, तू देर न कर।+

दाविद का सुरीला गीत। निर्देशक के लिए हिदायत।

41 सुखी है वह इंसान जो दीन-दुखियों का लिहाज़ करता है,+

यहोवा उसे संकट के दिन छुड़ाएगा।

 2 यहोवा उसकी हिफाज़त करेगा और उसकी जान सलामत रखेगा।

उसे धरती पर सुखी इंसान माना जाएगा,+

परमेश्‍वर उसे कभी उसके दुश्‍मनों की मरज़ी* पर नहीं छोड़ेगा।+

 3 जब वह बिस्तर पर बीमार पड़ा होगा तब यहोवा उसे सँभालेगा,+

बीमारी के दिनों में परमेश्‍वर उसकी देखभाल करेगा।

 4 मैंने कहा था, “हे यहोवा, मैंने तेरे खिलाफ पाप किया है।+

मुझ पर कृपा कर,+ मेरी बीमारी दूर कर दे।”+

 5 मगर दुश्‍मन मेरे बारे में बुरी बातें करते हैं,

“यह कब मरेगा? इसका नाम कब मिटेगा?”

 6 जब उनमें से कोई मुझे देखने आता है, तो वह झूठ बोलने के इरादे से आता है।

वह मेरी बुराई करने के लिए कुछ-न-कुछ ढूँढ़ लेता है,

फिर जाकर उसे दूर-दूर तक फैला देता है।

 7 मुझसे नफरत करनेवाले सभी आपस में फुसफुसाते हैं,

मेरे खिलाफ साज़िश रचते हैं।

 8 वे कहते हैं, “उसे कोई खतरनाक बीमारी लग गयी है,

वह गिर गया है, अब कभी नहीं उठ पाएगा।”+

 9 मेरा जिगरी दोस्त भी, जिस पर मैं भरोसा करता था,+

जो मेरी रोटी खाया करता था, मेरे खिलाफ हो गया है।*+

10 मगर हे यहोवा, तू मुझ पर कृपा कर और मुझे ऊपर उठा

ताकि मैं उन्हें उनके किए की सज़ा दे सकूँ।

11 जब मेरे दुश्‍मन मुझसे जीत नहीं पाएँगे,+

तो मैं जान जाऊँगा कि तू मुझसे खुश है।

12 मेरे निर्दोष चालचलन की वजह से तू मुझे ऊँचा उठाता है,+

तू मुझे अपनी नज़रों के सामने सदा बनाए रखेगा।+

13 इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा की युग-युग तक* तारीफ होती रहे।+

आमीन, आमीन।

दूसरी किताब

(भजन 42-72)

कोरह+ के वंशजों का मश्‍कील।* निर्देशक के लिए हिदायत।

42 जैसे एक हिरन पानी के लिए तरसता है,

वैसे ही हे परमेश्‍वर, मैं तेरे लिए तरसता हूँ।

 2 मेरा मन परमेश्‍वर का, जीवित परमेश्‍वर का प्यासा है।+

जाने वह दिन कब आएगा जब मैं परमेश्‍वर के सामने जा पाऊँगा।+

 3 दिन-रात मेरे आँसू ही मेरा खाना हैं,

सारा दिन लोग मुझे ताने मारते हैं: “कहाँ गया तेरा परमेश्‍वर?”+

 4 मैं ये सब याद करता हूँ, अपने दिल की सारी बातें बताता हूँ,*

वह भी क्या दिन थे जब मैं उमड़ती भीड़ के साथ चलता था,

उसके आगे-आगे पूरी गंभीरता से* चलता हुआ परमेश्‍वर के भवन की तरफ बढ़ता था,

हाँ, वह भीड़ जो कदरदानी के गीत गाती हुई,

जयजयकार करती हुई त्योहार मनाती थी।+

 5 मेरे मन, तू क्यों इतना उदास है?+

तेरे अंदर यह तूफान क्यों मचा है?

परमेश्‍वर का इंतज़ार कर,+

क्योंकि मैं उसकी तारीफ करता रहूँगा

कि वह मेरा महान उद्धारकर्ता है।+

 6 मेरे परमेश्‍वर, मेरा मन बहुत उदास है।+

इसीलिए मैं यरदन के इलाके से,

हेरमोन की चोटियों से,

मिसार पहाड़* से तुझे याद करता हूँ।+

 7 तेरे झरने की ज़ोरदार झरझर पर

गहरा सागर गहरे सागर को आवाज़ लगाता है।

मैं तेरी उफनती लहरों में डूब गया हूँ।+

 8 दिन में यहोवा मुझ पर अटल प्यार ज़ाहिर करेगा,

रात को उसका गीत मेरे होंठों पर होगा,

मैं अपने परमेश्‍वर से प्रार्थना करूँगा जो मुझे जीवन देता है।+

 9 मैं परमेश्‍वर से, अपनी बड़ी चट्टान से कहूँगा,

“तूने मुझे क्यों भुला दिया है?+

दुश्‍मन के ज़ुल्मों की वजह से मुझे क्यों सारा वक्‍त उदास रहना पड़ता है?”+

10 दुश्‍मन मेरे खून के प्यासे हैं,* मुझे ताना मारते हैं,

सारा दिन मुझे ताना मारते हैं, “कहाँ गया तेरा परमेश्‍वर?”+

11 मेरे मन, तू क्यों इतना उदास है?

तेरे अंदर यह तूफान क्यों मचा है?

परमेश्‍वर का इंतज़ार कर,+

क्योंकि मैं उसकी तारीफ करता रहूँगा

कि वह मेरा महान उद्धारकर्ता और मेरा परमेश्‍वर है।+

43 हे परमेश्‍वर, मेरा न्याय कर,+

विश्‍वासघाती राष्ट्र से मेरा मुकदमा लड़।+

धोखेबाज़ और अन्याय करनेवाले आदमी से मुझे छुड़ा।

 2 क्योंकि तू ही मेरा परमेश्‍वर है, मेरा किला है।+

तूने क्यों मुझे अपने सामने से दूर कर दिया है?

दुश्‍मन के ज़ुल्मों की वजह से मुझे क्यों सारा वक्‍त उदास रहना पड़ता है?+

 3 अपनी रौशनी और सच्चाई मुझे दे।+

वे मुझे राह दिखाएँ,+

तेरे पवित्र पहाड़ और तेरे महान डेरे के पास ले जाएँ।+

 4 तब मैं परमेश्‍वर की वेदी के पास जाऊँगा,+

अपने परमेश्‍वर के पास, जो मुझे बहुत खुशी देता है।

हे परमेश्‍वर, मेरे परमेश्‍वर, मैं सुरमंडल+ बजाकर तेरी तारीफ करूँगा।

 5 मेरे मन, तू क्यों इतना उदास है?

तेरे अंदर यह तूफान क्यों मचा है?

परमेश्‍वर का इंतज़ार कर,+

क्योंकि मैं उसकी तारीफ करता रहूँगा

कि वह मेरा महान उद्धारकर्ता और मेरा परमेश्‍वर है।+

कोरह के वंशजों+ की रचना। निर्देशक के लिए हिदायत। मश्‍कील।*

44 हे परमेश्‍वर, हमारे कानों ने तेरे बारे में सुना है,

तेरे कामों का ब्यौरा पुरखों की ज़बानी सुना है,+

जो तूने उनके दिनों में किए थे,

हाँ, मुद्दतों पहले किए थे।

 2 अपने हाथ से तूने दूसरी जातियों को भगाया+

और उनके देश में हमारे पुरखों को बसाया।+

तूने जातियों को कुचल दिया, उन्हें खदेड़ दिया।+

 3 हमारे पुरखों ने अपनी तलवार के दम पर देश पर अधिकार नहीं पाया,+

न ही अपने बलबूते जीत हासिल की।+

यह इसलिए हुआ क्योंकि तूने अपने दाएँ हाथ की शक्‍ति दिखायी,+

तेरे मुख का प्रकाश उन पर चमका,

तू उनसे खुश था।+

 4 हे परमेश्‍वर, तू मेरा राजा है,+

आज्ञा दे कि याकूब को पूरी जीत मिले।*

 5 तेरी ताकत से हम अपने बैरियों को भगा देंगे,+

तेरे नाम से अपने विरोधियों को रौंद डालेंगे।+

 6 क्योंकि मैं अपनी कमान पर भरोसा नहीं रखता,

मेरी तलवार मुझे नहीं बचा सकती।+

 7 हमारे बैरियों से तूने ही हमें बचाया,+

हमसे नफरत करनेवालों को तूने नीचा दिखाया।

 8 दिन-भर हम परमेश्‍वर की तारीफ करेंगे,

सदा तेरे नाम की तारीफ करेंगे। (सेला )

 9 मगर अब तूने हमें त्याग दिया,

हमें नीचा दिखाया,

तू हमारी सेनाओं के साथ नहीं आता।

10 तू हमें दुश्‍मन को पीठ दिखाकर भागने पर मजबूर करता है,+

हमसे नफरत करनेवाले जो चाहे हमसे लूट लेते हैं।

11 तूने हमें दुश्‍मनों के हवाले कर दिया कि वे हमें भेड़ों की तरह खा जाएँ,

तूने हमें दूसरे देशों में तितर-बितर कर दिया।+

12 तू अपने लोगों को बिना दाम बेच देता है+

तू उनको बेचकर* कोई मुनाफा नहीं कमाता।

13 तूने हमें पड़ोसियों के बीच बदनाम होने दिया,

आस-पास के सब लोग हमारा मज़ाक बनाते हैं, हमारी खिल्ली उड़ाते हैं।

14 तूने हमें राष्ट्रों के सामने तमाशा* बना दिया है,+

देश-देश के लोग सिर हिलाकर हम पर हँसते हैं।

15 सारा दिन मुझे बेइज़्ज़त किया जाता है,

अब मुझसे यह अपमान सहा नहीं जाता,

16 क्योंकि दुश्‍मन मुझसे बदला लेते हैं,

मुझे ताने मारते हैं, बेइज़्ज़त करते हैं।

17 इतना कुछ होने पर भी हम तुझे नहीं भूले,

न ही हमने तेरा करार तोड़ा है।+

18 हमारा मन बहककर तुझसे दूर नहीं गया,

न ही हमारे कदम तेरी राह से भटके।

19 मगर तूने हमें वहाँ कुचल दिया जहाँ गीदड़ रहते हैं,

तूने घोर अंधकार से हमें ढक दिया।

20 अगर हम अपने परमेश्‍वर का नाम भुला दें,

या किसी पराए देवता के सामने हाथ फैलाकर दुआ करें,

21 तो क्या परमेश्‍वर को इसका पता नहीं चल जाएगा?

वह तो दिल का हर राज़ जानता है।+

22 तेरी खातिर हम दिन-भर मौत का सामना करते हैं,

हमारी हालत उन भेड़ों जैसी है जिन्हें हलाल किया जाएगा।+

23 हे यहोवा, जाग! तू क्यों सो रहा है?+

उठ! हमें सदा के लिए त्याग न दे।+

24 तूने क्यों हमसे मुँह फेर लिया है?

हम जो दुख और अत्याचार सहते हैं, उन्हें तू क्यों भूल गया है?

25 हमें ज़मीन पर पटक दिया गया है,

हम औंधे मुँह पड़े हैं।+

26 हमारी मदद के लिए जल्दी उठ!+

अपने अटल प्यार के कारण हमें छुड़ा ले।+

कोरह के वंशजों+ की रचना। निर्देशक के लिए हिदायत: “सोसन के फूलों” के मुताबिक। मश्‍कील।* एक प्यार का गीत।

45 एक मनभावनी बात से मेरे दिल में उमंग जागी है।

मेरा गीत* एक राजा के बारे में है।+

मेरी ज़बान एक हुनरमंद नकल-नवीस*+ की कलम+ बन जाए।

 2 हे राजा, इंसानों में तेरे जैसा सुंदर-सजीला और कोई नहीं।

तेरे होंठों से सुहावने बोल उमड़ते हैं!+

इसीलिए परमेश्‍वर ने तुझे सदा के लिए आशीष दी है।+

 3 हे वीर योद्धा,+ अपनी तलवार कमर पर कस ले,+

गौरव और वैभव+ का लिबास पहन ले।

 4 पूरे वैभव से सवार होकर जीत* हासिल करता जा,+

सच्चाई, नम्रता और नेकी की खातिर जंग लड़+

और तेरा दायाँ हाथ विस्मयकारी काम करेगा।*

 5 तेरे तीर तेज़ हैं, दुश्‍मनों के दिलों को भेद देते हैं,+

देश-देश के लोग तेरे आगे गिर पड़ते हैं।+

 6 परमेश्‍वर हमेशा-हमेशा के लिए तेरी राजगद्दी है,+

तेरा राजदंड सीधाई* का राजदंड है।+

 7 तूने नेकी से प्यार किया+ और दुष्टता से नफरत की,+

इसीलिए परमेश्‍वर ने, हाँ, तेरे परमेश्‍वर ने तेरे साथियों से बढ़कर हर्ष के तेल से तेरा अभिषेक किया।+

 8 तेरा पूरा लिबास गंधरस, अगर और तज की खुशबू से महकता है,

हाथी-दाँत से सजे आलीशान महल का मधुर संगीत तेरे दिल को बाग-बाग कर देता है।

 9 तेरी रुतबेदार औरतों में राजाओं की बेटियाँ भी हैं,

तेरे दायीं तरफ रानी ओपीर के सोने के गहनों से सजी खड़ी है।+

10 मेरी बेटी सुन, मेरी तरफ कान लगाना और मेरी बात पर ध्यान देना,

अपने लोगों और अपने पिता के घर को भूल जाना।

11 राजा को तेरी खूबसूरती निहारने की चाह होगी,

वह तेरा मालिक है, इसलिए तू सिर झुकाकर उसे प्रणाम करना।

12 सोर की बेटी तेरे लिए तोहफा लेकर आएगी,

बड़े-बड़े रईस तेरी रज़ामंदी पाना चाहेंगे।

13 महल में राजा की बेटी की आभा ऐसी है कि निगाहें थम जाएँ।

उसकी पोशाक पर सोने की कढ़ाई है।

14 वह बुनी हुई शानदार पोशाक* पहने राजा के पास लायी जाएगी।

उसके पीछे-पीछे उसकी कुँवारी सहेलियाँ भी राजा के पास लायी जाएँगी।

15 उन्हें खुशियाँ और जश्‍न मनाते हुए लाया जाएगा,

वे राजा के महल में कदम रखेंगे।

16 तेरे बेटे तेरे पुरखों की जगह लेंगे।

तू उन्हें सारी धरती पर हाकिम ठहराएगा।+

17 मैं तेरा नाम पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोगों को बताता रहूँगा।+

इसलिए देश-देश के लोग युग-युग तक तेरी बड़ाई करते रहेंगे।

कोरह के वंशजों+ का गीत। निर्देशक के लिए हिदायत: अलामोत की शैली* के मुताबिक।

46 परमेश्‍वर हमारी पनाह और ताकत है,+

बुरे वक्‍त में आसानी से मिलनेवाली मदद है।+

 2 इसलिए हम नहीं डरेंगे, चाहे धरती उलट-पुलट हो जाए,

चाहे पहाड़ टूटकर समुंदर की गहराई में समा जाएँ,+

 3 चाहे समुंदर गरजे और उछल-उछलकर फेन उठाए,+

चाहे उसकी खलबली से पहाड़ बुरी तरह डोलें। (सेला )

 4 एक नदी है जिसकी धाराओं से परमेश्‍वर का नगर,

परम-प्रधान का महान पवित्र डेरा खुशी से झूम उठता है।+

 5 उस नगर में परमेश्‍वर मौजूद है,+ इसलिए उसे ढाया नहीं जा सकता।

पौ फटते ही परमेश्‍वर उसकी मदद करने आएगा।+

 6 राष्ट्र भड़के हुए थे, राज्य उलट दिए गए,

परमेश्‍वर ने आवाज़ बुलंद की और धरती पिघल गयी।+

 7 सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा हमारे संग है,+

याकूब का परमेश्‍वर हमारा ऊँचा गढ़ है। (सेला )

 8 आओ, अपनी आँखों से यहोवा के काम देखो,

धरती पर उसने कैसे-कैसे आश्‍चर्य के काम किए हैं।

 9 धरती के कोने-कोने से वह युद्धों को मिटा देता है।+

तीर-कमान तोड़ डालता है, भाले चूर-चूर कर देता है,

युद्ध-रथों* को आग में भस्म कर देता है।

10 उसने कहा, “हार मान लो और जान लो कि मैं ही परमेश्‍वर हूँ।

राष्ट्रों में मेरी बड़ाई की जाएगी,+

सारी धरती पर मेरी बड़ाई की जाएगी।”+

11 सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा हमारे संग है,+

याकूब का परमेश्‍वर हमारा ऊँचा गढ़ है।+ (सेला )

कोरह के वंशजों+ का सुरीला गीत। निर्देशक के लिए हिदायत।

47 देश-देश के लोगो, तुम सब तालियाँ बजाओ।

जीत का जश्‍न मनाओ और खुशी से परमेश्‍वर की जयजयकार करो।

 2 क्योंकि परम-प्रधान यहोवा विस्मयकारी परमेश्‍वर है,+

सारी धरती का वह महाराजा है।+

 3 वह देश-देश के लोगों को हमारे अधीन कर देता है,

राष्ट्रों को हमारे पैरों तले कर देता है।+

 4 वह हमारे लिए विरासत चुनता है,+

वह देश जिस पर उसके प्यारे याकूब को बहुत गर्व है।+ (सेला )

 5 जब परमेश्‍वर की खुशी से जयजयकार हो रही थी तब वह ऊपर चढ़ा,

जब नरसिंगे* की आवाज़ गूँज रही थी तब यहोवा ऊपर चढ़ा।

 6 परमेश्‍वर की तारीफ में गीत गाओ,* उसकी तारीफ में गीत गाओ।

हमारे राजा की तारीफ में गीत गाओ, उसकी तारीफ में गीत गाओ।

 7 क्योंकि परमेश्‍वर पूरी धरती का राजा है,+

उसकी तारीफ में गीत गाओ और अंदरूनी समझ से काम लो।

 8 परमेश्‍वर सब राष्ट्रों का राजा बन गया है।+

वह अपनी पवित्र राजगद्दी पर बैठा है।

 9 देश-देश के लोगों के अगुवे इकट्ठा हुए हैं,

अब्राहम के परमेश्‍वर की प्रजा के साथ हो लिए हैं।

क्योंकि धरती के सभी शासक* परमेश्‍वर के हैं।

वह ऊँचा किया गया है।+

कोरह के वंशजों+ का सुरीला गीत।

48 हमारे परमेश्‍वर के नगर में, अपने पवित्र पहाड़ पर,

यहोवा महान है, सबसे ज़्यादा तारीफ के काबिल है।

 2 दूर उत्तर में शान से खड़ा सिय्योन पहाड़ है,

यह महाराजाधिराज का नगर है,+

आसमान छूता यह नगर क्या ही सुंदर है!

सारी धरती के लिए हर्ष का कारण है।+

 3 उसकी मज़बूत मीनारों में

परमेश्‍वर ने ज़ाहिर किया है कि वह ऊँचा गढ़ है।+

 4 क्योंकि देखो! राजा इकट्ठा हुए हैं,*

एकजुट होकर आगे बढ़े हैं।

 5 वे यह नगर देखकर दंग रह गए।

उनमें खौफ छा जाएगा, मारे डर के वे भाग गए।

 6 वहाँ वे थर-थर काँपने लगे,

बच्चा जनती औरत की तरह तड़पने लगे।

 7 पूरब की तेज़ आँधी से तू तरशीश के जहाज़ों को तहस-नहस कर देता है।

 8 जो हमने सुना था वह अब अपनी आँखों से देखा है,

सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा के नगर में, हमारे परमेश्‍वर के नगर में देखा है।

परमेश्‍वर इस नगर को सदा तक मज़बूती से कायम रखेगा।+ (सेला )

 9 हे परमेश्‍वर, तेरे मंदिर के भीतर

हम तेरे अटल प्यार पर गहराई से सोचते हैं।+

10 हे परमेश्‍वर, तेरे नाम की तरह

तेरी तारीफ धरती के छोर तक गूँज रही है।+

तेरा दायाँ हाथ नेकी से भरा है।+

11 तेरे न्याय-सिद्धांतों के कारण सिय्योन पहाड़+ आनंद-मगन हो,

यहूदा के कसबों* में खुशियों की बहार हो।+

12 सिय्योन के चारों तरफ घूम-घूमकर देखो,

उसकी मीनारों की गिनती करो।+

13 उसकी सुरक्षा की ढलानों* पर मन लगाओ।+

उसकी मज़बूत मीनारों को गौर से देखो

ताकि आनेवाली पीढ़ियों को उसकी दास्तान सुना सको।

14 क्योंकि यही परमेश्‍वर हमारे लिए युग-युग का परमेश्‍वर है।+

सदा तक* वही हमें राह दिखाएगा।+

कोरह के वंशजों+ का सुरीला गीत। निर्देशक के लिए हिदायत।

49 देश-देश के लोगो, सुनो।

दुनिया* के सब लोगो, ध्यान दो,

 2 क्या छोटे, क्या बड़े,

क्या अमीर, क्या गरीब, सब गौर से सुनो।

 3 मेरे मुँह से बुद्धि की बातें निकलेंगी,

मेरा दिल समझ की बातों पर मनन करेगा।+

 4 मैं एक नीतिवचन पर ध्यान दूँगा,

सुरमंडल बजाकर अपनी पहेली का मतलब खुलकर समझाऊँगा।

 5 जब मैं मुश्‍किल दौर से गुज़रूँ तो क्यों घबराऊँ?+

जब मैं उन लोगों की बुराई से घिर जाऊँ जो मुझे गिराना चाहते हैं तो क्यों डरूँ?

 6 जो अपने धन पर भरोसा रखते हैं,+

अपनी दौलत के अंबार पर शेखी मारते हैं,+

 7 उनमें से कोई भी अपने भाई को हरगिज़ नहीं छुड़ा सकता,

न ही उसके लिए परमेश्‍वर को फिरौती दे सकता है+

 8 (उनकी जान की फिरौती* की कीमत इतनी ज़्यादा है

कि वे उसे कभी नहीं चुका सकते)

 9 कि उसका भाई गड्‌ढे* में जाने से बचे और हमेशा जीता रहे।+

10 वे देखते हैं कि जैसे मूर्ख और नासमझ मिट जाते हैं,

वैसे ही अक्लमंद लोग भी मरते हैं+

और उन्हें अपनी दौलत दूसरों के लिए छोड़नी पड़ती है।+

11 उनकी दिली तमन्‍ना है कि उनके घर हमेशा टिके रहें,

उनके तंबू पीढ़ी-दर-पीढ़ी खड़े रहें।

वे अपनी जायदाद का नाम अपने नाम पर रखते हैं।

12 मगर इंसान का चाहे कितना ही मान-सम्मान क्यों न हो, वह हमेशा जीता न रहेगा,+

वह जानवरों से कुछ बढ़कर नहीं जो मिट जाते हैं।+

13 मूर्खों का यही अंजाम होता है+

और उनके रंग-ढंग अपनानेवालों और उनकी खोखली बातों से मज़ा लेनेवालों का भी यही हश्र होता है। (सेला )

14 जैसे भेड़ों को हलाल के लिए भेजा जाता है, वैसे ही उन्हें कब्र भेज दिया जाएगा।

मौत उन्हें हाँकती हुई ले जाएगी,

नया सवेरा होने पर सीधे-सच्चे लोग उन पर राज करेंगे,+

उनका नामो-निशान मिट जाएगा,+

कोई महल नहीं,+ कब्र ही उनका ठिकाना होगी।+

15 मगर मुझे तो परमेश्‍वर कब्र की गिरफ्त से छुड़ा लेगा,+

क्योंकि वह मुझे थाम लेगा। (सेला )

16 किसी आदमी को मालामाल होते देख डरना मत,

उसके घर का वैभव बढ़ता देख घबराना मत,

17 क्योंकि मरने के बाद वह अपने साथ कुछ नहीं ले जा सकता,+

उसका ठाट-बाट उसके साथ नहीं जाएगा।+

18 सारी ज़िंदगी वह खुद पर गुमान करता है।+

(जब तेरे पास दौलत होती है, तो लोग तेरी वाह-वाही करते हैं।)+

19 मगर आखिर में वह अपने पुरखों की तरह मर जाता है।

वे फिर कभी उजाला नहीं देखेंगे।

20 जो इंसान यह बात नहीं समझता, उसका चाहे कितना ही सम्मान हो,+

वह जानवरों से कुछ बढ़कर नहीं जो मिट जाते हैं।

आसाप+ का सुरीला गीत।

50 सब ईश्‍वरों से महान परमेश्‍वर यहोवा+ ने कहा है,

पूरब से पश्‍चिम तक*

पूरी धरती को आने का आदेश दिया है।

 2 परमेश्‍वर सिय्योन से, जिसकी खूबसूरती बेमिसाल* है,+ अपना तेज चमकाता है।

 3 हमारा परमेश्‍वर ज़रूर आएगा और वह चुप न रहेगा।+

उसके सामने भस्म करनेवाली आग है,+

उसके चारों तरफ ज़ोरदार आँधी चलती है।+

 4 उसने आकाश और धरती को आने का आदेश दिया है+

ताकि जब वह अपने लोगों का न्याय करे+ तो वे गवाह ठहरें:

 5 “मेरे वफादार लोगों को मेरे पास इकट्ठा करो,

जिन्होंने बलिदान की बिनाह पर मेरे साथ एक करार किया है।”+

 6 आकाश, परमेश्‍वर की नेकी का ऐलान करता है,

क्योंकि परमेश्‍वर खुद न्यायी है।+ (सेला )

 7 “हे मेरी प्रजा, मैं जो कहने जा रहा हूँ उसे सुन,

हे इसराएल, मैं तेरे खिलाफ गवाही दूँगा।+

मैं परमेश्‍वर हूँ, तेरा परमेश्‍वर।+

 8 मैं तेरे बलिदानों की वजह से तुझे नहीं फटकारता,

न ही तेरी होम-बलियों की वजह से, जो तू मेरे सामने नियमित तौर पर चढ़ाता है।+

 9 मुझे न तो तेरे घर का बैल चाहिए,

न तेरे बाड़े के बकरे।+

10 क्योंकि जंगल का हर जानवर मेरा है,

हज़ारों पहाड़ों पर रहनेवाले पशु भी मेरे हैं।+

11 मैं पहाड़ों के हर पंछी के बारे में जानता हूँ,+

मैदान के अनगिनत जीव-जंतु मेरे हैं।

12 अगर मैं भूखा होता, तो भी तुझसे नहीं कहता,

क्योंकि उपजाऊ ज़मीन और उसकी हर चीज़ मेरी है।+

13 मैं क्या बैलों का गोश्‍त खाऊँगा?

बकरों का खून पीऊँगा?+

14 परमेश्‍वर को धन्यवाद दे, यह तेरा बलिदान होगा+

और परम-प्रधान से मानी मन्‍नतें पूरी कर।+

15 मुसीबत की घड़ी में मुझे पुकार,+

मैं तुझे छुड़ाऊँगा और तू मेरी महिमा करेगा।”+

16 मगर परमेश्‍वर दुष्ट से कहेगा,

“तुझे मेरे नियमों के बारे में बताने

या मेरे करार+ के बारे में बात करने का क्या हक है?+

17 तू तो शिक्षा* से नफरत करता है,

बार-बार मेरी सलाह ठुकरा देता है।+

18 जब तू किसी चोर को देखता है तो उसे सही ठहराता है,*+

तू बदचलन लोगों से मेल-जोल रखता है।

19 तू अपने मुँह से बुरी बातें फैलाता है,

तेरी जीभ हमेशा छल की बातें कहती है।+

20 तू बैठकर अपने ही भाई के खिलाफ बोलता है,+

अपने सगे भाई की खामियाँ दूसरों को बताता है।*

21 जब तूने ये काम किए तो मैं चुप रहा

और तूने सोच लिया कि मैं भी तेरे जैसा हूँ।

मगर अब मैं तुझे सुधारने के लिए फटकारूँगा,

तुझ पर मुकदमा करूँगा।+

22 परमेश्‍वर को भूलनेवालो, ज़रा इस बात पर गौर करो,+

वरना मैं तुम्हारी बोटी-बोटी कर दूँगा और तुम्हें बचानेवाला कोई न होगा।

23 जब कोई मुझे धन्यवाद देता है, जो कि उसका बलिदान है, तो वह मेरी महिमा करता है।+

जो मज़बूत इरादे से सही राह पर चलता रहता है,

उसका मैं उद्धार करूँगा।”+

निर्देशक के लिए हिदायत। दाविद का यह सुरीला गीत उस समय का है जब उसने बतशेबा+ के साथ संबंध रखकर पाप किया था और उसके बाद भविष्यवक्‍ता नातान उसके पास आया था।

51 हे परमेश्‍वर, अपने अटल प्यार के मुताबिक मुझ पर रहम कर।+

अपनी बड़ी दया के मुताबिक मेरे अपराध मिटा दे।+

 2 मेरा दोष पूरी तरह धो दे,+

मेरे पाप दूर करके मुझे शुद्ध कर दे।+

 3 क्योंकि मुझे अपने अपराधों का पूरा-पूरा एहसास है,

मेरा पाप हमेशा मेरे सामने* रहता है।+

 4 मैंने तेरे खिलाफ, हाँ, सबसे बढ़कर तेरे खिलाफ* पाप किया है,+

मैंने तेरी नज़र में बुरा काम किया है।+

इसलिए तू जो बोलता है वह सही है,

तेरा न्याय सच्चा है।+

 5 देख! मैं जन्म से ही पाप का दोषी हूँ,

जब मैं माँ के गर्भ में पड़ा तब से मुझमें पाप है।*+

 6 देख! तू ऐसे इंसान से खुश होता है जो दिल का सच्चा है,+

मेरे मन को सच्ची बुद्धि की बातें सिखा।

 7 मरुए से पानी छिड़ककर मेरा पाप दूर कर दे ताकि मैं शुद्ध हो जाऊँ,+

मुझे धोकर साफ कर दे ताकि मैं बर्फ से भी उजला हो जाऊँ।+

 8 मुझे खुशियाँ और जश्‍न मनाने की आवाज़ सुनने दे

ताकि जो हड्डियाँ तूने चकनाचूर कर दी हैं, उनमें उमंग भर जाए।+

 9 तू मेरे पापों से अपना मुँह फेर ले,+

मेरे सारे गुनाह पोंछकर मिटा दे।+

10 हे परमेश्‍वर, मेरे अंदर एक साफ दिल पैदा कर,+

मन का एक नया रुझान+ दे कि मैं अटल बना रहूँ।

11 तू मुझे अपने सामने से दूर न कर,

मुझ पर से अपनी पवित्र शक्‍ति न हटा।

12 तूने मेरा उद्धार करके मुझे जो खुशियाँ दी थीं वे मुझे लौटा दे,+

मेरे अंदर ऐसी इच्छा जगा कि मैं तेरी आज्ञा मानूँ।

13 मैं अपराधियों को तेरी राहों के बारे में सिखाऊँगा+

ताकि वे पापी तेरे पास लौट आएँ।

14 हे परमेश्‍वर, मेरे उद्धारकर्ता परमेश्‍वर,+ खून का दोष मुझ पर से मिटा दे+

ताकि मेरी जीभ खुशी-खुशी तेरी नेकी का ऐलान करे।+

15 हे यहोवा, मुझे बोलने की इजाज़त दे

ताकि मैं तेरी तारीफ करूँ।+

16 तू कोई बलिदान नहीं चाहता वरना मैं ज़रूर चढ़ाता,+

तू पूरी होम-बलि से खुश नहीं होता।+

17 टूटा मन ऐसा बलिदान है जो परमेश्‍वर को भाता है,

हे परमेश्‍वर, तू टूटे और कुचले हुए दिल को नहीं ठुकराएगा।*+

18 अपनी कृपा दिखाकर सिय्योन का भला कर,

यरूशलेम की शहरपनाह को मज़बूत कर।

19 तब तू नेकी के बलिदानों से,

होम-बलियों और पूरे चढ़ावे से खुश होगा,

तब तेरी वेदी पर बैल अर्पित किए जाएँगे।+

निर्देशक के लिए हिदायत। मश्‍कील।* दाविद का यह गीत उस समय का है जब एदोमी दोएग शाऊल को बता देता है कि दाविद अहीमेलेक+ के घर गया था।

52 अरे दुष्ट, तू क्यों अपने बुरे कामों पर डींग मारता है?+

क्या तू जानता नहीं, परमेश्‍वर का अटल प्यार दिन-भर कायम रहता है?+

 2 तेरी ज़बान उस्तरे जैसी तेज़ है,+

जो बुरा करने की साज़िशें रचती है, छल की बातें गढ़ती है।+

 3 तू अच्छाई से नहीं बुराई से प्यार करता है,

तुझे सच के बजाय झूठ बोलना रास आता है। (सेला )

 4 हे छली ज़बान,

तू नुकसान करनेवाली हर बात पसंद करती है!

 5 इसलिए परमेश्‍वर तुझे गिराकर हमेशा के लिए नाश कर देगा,+

तुझे झपटकर पकड़ लेगा और तंबू से बाहर घसीट लाएगा,+

दुनिया* से तुझे जड़ से उखाड़ देगा।+ (सेला )

 6 नेक लोग यह देखेंगे और श्रद्धा से भर जाएँगे,+

वे यह कहकर उस दुष्ट पर हँसेंगे:+

 7 “देखो इस आदमी को, जिसने परमेश्‍वर की पनाह नहीं ली*+

बल्कि अपनी बेशुमार दौलत पर भरोसा किया,+

अपनी साज़िशों का सहारा* लिया।”

 8 मगर मैं परमेश्‍वर के भवन में फलते-फूलते जैतून पेड़ जैसा होऊँगा,

मैंने परमेश्‍वर के अटल प्यार पर भरोसा रखा है+ और सदा रखूँगा।

 9 मैं सदा तेरी तारीफ करूँगा क्योंकि तूने कदम उठाया है,+

तेरे वफादार जनों के सामने

मैं तेरे नाम पर आशा रखूँगा+ क्योंकि वह भला है।

दाविद की रचना। निर्देशक के लिए हिदायत: महलत की शैली* में। मश्‍कील।*

53 मूर्ख* मन में कहता है, “कोई यहोवा नहीं।”+

ऐसे लोगों के काम बुरे होते हैं, भ्रष्ट और घिनौने होते हैं,

कोई भी भला काम नहीं करता।+

 2 मगर परमेश्‍वर स्वर्ग से इंसानों को देखता है+

कि क्या कोई अंदरूनी समझ रखनेवाला है,

क्या कोई यहोवा की खोज करनेवाला है।+

 3 वे सब भटक गए हैं,

सब-के-सब भ्रष्ट हो गए हैं।

कोई भी भला काम नहीं करता, एक भी नहीं।+

 4 क्या गुनहगारों में से कोई भी समझ नहीं रखता?

वे मेरे लोगों को ऐसे खा जाते हैं मानो रोटी हो।

वे यहोवा को नहीं पुकारते।+

 5 मगर उन सब पर खौफ छा जाएगा,

ऐसा आतंक जो उन्होंने पहले कभी महसूस नहीं किया,*

क्योंकि परमेश्‍वर तेरे हमलावरों* की हड्डियाँ बिखरा देगा।

तू उन्हें शर्मिंदा करेगा क्योंकि यहोवा ने उन्हें ठुकरा दिया है।

 6 इसराएल का उद्धार सिय्योन की तरफ से हो!+

जब यहोवा अपने लोगों को बँधुआई से लौटा ले आएगा,

तब याकूब खुशियाँ मनाए, इसराएल जश्‍न मनाए।

निर्देशक के लिए हिदायत: यह गीत तारोंवाले बाजे बजाकर गाया जाए। मश्‍कील।* दाविद का यह गीत उस समय का है जब ज़ीफ के लोगों ने शाऊल के पास जाकर उसे खबर दी थी कि दाविद उनके इलाके में छिपा हुआ है।+

54 हे परमेश्‍वर, अपने नाम से मुझे बचा ले,+

अपनी ताकत से मेरी पैरवी कर।+

 2 हे परमेश्‍वर, मेरी प्रार्थना सुन,+

मेरी बिनती पर ध्यान दे।

 3 क्योंकि बेगाने मेरे खिलाफ उठ खड़े हुए हैं,

बेरहम आदमी मेरी जान के पीछे पड़े हैं।+

वे परमेश्‍वर की कोई कदर नहीं करते।*+ (सेला )

 4 देख! परमेश्‍वर मेरा मददगार है,+

यहोवा उन लोगों के संग है जो मेरा साथ देते हैं।

 5 वह मेरे दुश्‍मनों की बुराई को उन्हीं पर लौटा देगा।+

हे परमेश्‍वर, उनका अंत कर दे क्योंकि तू विश्‍वासयोग्य है।+

 6 मैं अपनी इच्छा से तेरे लिए बलिदान चढ़ाऊँगा।+

हे यहोवा, मैं तेरे नाम की तारीफ करूँगा क्योंकि वह भला है।+

 7 क्योंकि तू मुझे हर संकट से बचाता है+

और मैं अपने दुश्‍मनों की हार देखूँगा।+

दाविद की रचना। निर्देशक के लिए हिदायत: यह गीत तारोंवाले बाजे बजाकर गाया जाए। मश्‍कील।*

55 हे परमेश्‍वर, मेरी प्रार्थना सुन,+

मेरी दया की बिनती अनसुनी न कर।*+

 2 मुझ पर ध्यान दे और मुझे जवाब दे,+

मैं चिंता के मारे बेचैन हूँ,+

दुख से बेहाल हूँ,

 3 क्योंकि दुश्‍मन चुभनेवाली बातें कहते हैं,

दुष्ट मुझ पर दबाव डालते हैं।

एक-के-बाद-एक मुसीबत खड़ी करते हैं।

वे गुस्से से भरे हुए हैं और मन में दुश्‍मनी पालते हैं।+

 4 मेरा दिल दर्द से तड़प रहा है,+

मौत का डर मुझ पर हावी हो गया है।+

 5 मैं डर से काँप रहा हूँ, थरथरा रहा हूँ।

 6 रह-रहकर एक ही खयाल आता है,

“काश, फाख्ते की तरह मेरे भी पर होते!

मैं उड़कर किसी महफूज़ जगह जा बसता।

 7 मैं कहीं दूर भाग जाता।+

किसी वीराने में बसेरा करता।+ (सेला )

 8 मैं इस तेज़ आँधी और भयानक तूफान से बचकर

किसी महफूज़ जगह भाग जाता।”

 9 हे यहोवा, उन्हें उलझन में डाल दे,

उनकी चालें नाकाम कर दे,*+

क्योंकि मैंने शहर में खून-खराबा और झगड़े देखे हैं।

10 रात-दिन वे शहरपनाह के ऊपर घूमते रहते हैं,

शहर में नफरत फैली है, दंगे हो रहे हैं।+

11 बीच शहर में तबाही है,

ज़ुल्म और छल उसके चौक से कभी दूर नहीं होते।+

12 मुझ पर ताना कसनेवाला अगर मेरा दुश्‍मन होता,+

तो मैं किसी तरह सह लेता।

मेरे खिलाफ उठनेवाला अगर मेरा बैरी होता,

तो मैं उससे छिप जाता।

13 मगर वह तो तू है, मेरे जैसा आदमी,*+

मेरा अपना साथी जिसे मैं अच्छी तरह जानता हूँ।+

14 हमने दोस्ती के कितने मीठे पल बिताए थे,

भीड़ के साथ हम परमेश्‍वर के भवन में जाया करते थे।

15 मेरे दुश्‍मनों पर मुसीबत टूट पड़े!+

वे ज़िंदा ही कब्र में चले जाएँ,

क्योंकि उनके बीच और उनके अंदर बुराई बसी है।

16 मगर मैं तो यहोवा को पुकारूँगा

और वह मुझे बचाएगा।+

17 शाम, सुबह, दोपहर, हर वक्‍त मैं चिंता में डूबा कराहता रहता हूँ*+

और परमेश्‍वर मेरी सुनता है।+

18 मुझसे लड़नेवाले बेहिसाब हैं,

मगर परमेश्‍वर मुझे उनसे छुड़ाएगा और मेरे मन को चैन देगा।+

19 परमेश्‍वर, जो युग-युग से अपनी राजगद्दी पर विराजमान है,+

मेरी दुहाई सुनेगा और उनके खिलाफ कार्रवाई करेगा।+ (सेला )

उन्हें बदलना गवारा नहीं,

वे परमेश्‍वर का डर नहीं मानते।+

20 उसने* अपने ही दोस्तों पर हमला किया,+

उसने अपना करार तोड़ दिया।+

21 उसकी बातें मक्खन से भी चिकनी हैं,+

मगर उसके दिल में फसाद भरा है।

उसके बोल तेल से भी चिकने हैं,

मगर पैनी तलवार की तरह काटते हैं।+

22 अपना सारा बोझ यहोवा पर डाल दे,+

वह तुझे सँभालेगा।+

वह नेक जन को कभी गिरने* नहीं देगा।+

23 मगर हे परमेश्‍वर, तू उन दुष्टों को गहरी खाई में गिरा देगा।+

वे खून के दोषी और धोखेबाज़ हैं,

वे आधी ज़िंदगी भी नहीं जी पाएँगे,+

मगर मैं तो तुझ पर भरोसा रखूँगा।

दाविद की रचना। निर्देशक के लिए हिदायत: “दूर की मौन फाख्ता” के मुताबिक। मिकताम।* यह गीत उस समय का है जब गत में पलिश्‍तियों ने दाविद को पकड़ लिया था।+

56 हे परमेश्‍वर, मुझ पर कृपा कर, नश्‍वर इंसान मुझ पर हमला कर रहा है।*

सारा दिन वे मुझसे लड़ते हैं, मुझ पर ज़ुल्म ढाते हैं।

 2 मेरे दुश्‍मन दिन-भर मुझे काटने को दौड़ते हैं।

बहुत-से लोग घमंड से भरकर मुझसे लड़ते हैं।

 3 जब मुझे डर लगता है+ तो मैं तुझ पर भरोसा रखता हूँ।+

 4 मुझे परमेश्‍वर पर भरोसा है जिसके वचन की मैं तारीफ करता हूँ।

मुझे परमेश्‍वर पर भरोसा है, मैं नहीं डरता।

अदना इंसान मेरा क्या बिगाड़ सकता है?+

 5 सारा दिन वे मेरे लिए आफत खड़ी करते हैं,

बस मेरा बुरा करने की ही सोचते हैं।+

 6 मुझ पर हमला करने के लिए घात लगाते हैं,

मेरे हर कदम पर नज़र रखते हैं+

ताकि मौका मिलते ही मेरी जान ले लें।+

 7 हे परमेश्‍वर, उनकी दुष्टता के कारण उन्हें ठुकरा दे।

अपना क्रोध भड़काकर उन राष्ट्रों को गिरा दे।+

 8 तू मेरे दर-दर भटकने का हिसाब रखता है।+

दया करके मेरे आँसुओं को अपनी मशक में भर ले।+

उनका हिसाब तेरी किताब में लिखा है।+

 9 जिस दिन मैं तुझे मदद के लिए पुकारूँगा, मेरे दुश्‍मन भाग खड़े होंगे।+

मुझे पूरा यकीन है कि परमेश्‍वर मेरी तरफ है।+

10 मुझे परमेश्‍वर पर भरोसा है जिसके वचन की मैं तारीफ करता हूँ,

मुझे यहोवा पर भरोसा है जिसके वचन की मैं तारीफ करता हूँ,

11 मुझे परमेश्‍वर पर भरोसा है, मैं नहीं डरता।+

अदना इंसान मेरा क्या बिगाड़ सकता है?+

12 हे परमेश्‍वर, तुझसे मानी मन्‍नतें पूरी करना मेरा फर्ज़ है,+

मैं तेरा शुक्रिया अदा करूँगा।+

13 क्योंकि तूने मुझे मौत के मुँह से छुड़ाया है,+

मेरे पैरों को ठोकर खाने से बचाया है+

ताकि मैं जीता रहूँ और परमेश्‍वर की सेवा करता रहूँ।*+

दाविद की रचना। निर्देशक के लिए हिदायत: “नाश न होने दे” के मुताबिक। मिकताम।* यह गीत उस समय का है जब दाविद शाऊल से भागकर गुफा में जा छिपा था।+

57 हे परमेश्‍वर, मुझ पर कृपा कर, कृपा कर,

क्योंकि मैं तेरी पनाह में आया हूँ,+

जब तक मुसीबतें टल नहीं जातीं, मैं तेरे पंखों की छाँव तले पनाह लूँगा।+

 2 मैं परम-प्रधान परमेश्‍वर को पुकारता हूँ,

सच्चे परमेश्‍वर को, जो मेरी मुसीबतों का अंत कर देता है।

 3 वह स्वर्ग से मेरी मदद करेगा, मुझे बचाएगा।+

वह उसे नाकाम कर देगा जो मुझे काटने को दौड़ता है। (सेला )

परमेश्‍वर अपने अटल प्यार और वफादारी का सबूत देगा।+

 4 मैं शेरों से घिरा हुआ हूँ,+

मुझे ऐसे आदमियों के बीच लेटना पड़ता है जो मुझे फाड़ खाना चाहते हैं,

जिनके दाँत भाले और तीर हैं,

जिनकी जीभ तेज़ तलवार है।+

 5 हे परमेश्‍वर, तेरी महिमा आसमान के ऊपर हो,

तेरा वैभव पूरी धरती के ऊपर फैल जाए।+

 6 दुश्‍मनों ने मेरे पैरों के लिए जाल बिछाया है,+

मैं दुखों के बोझ से झुक गया हूँ।+

उन्होंने मुझे गिराने के लिए गड्‌ढा खोदा,

मगर खुद उसमें गिर पड़े।+ (सेला )

 7 हे परमेश्‍वर, मेरा दिल अटल है,+

मेरा दिल अटल है।

मैं गीत गाऊँगा, संगीत बजाऊँगा।

 8 हे मेरे मन, जाग!

हे तारोंवाले बाजे और सुरमंडल, तुम भी जागो!

मैं भोर को जगाऊँगा।+

 9 हे यहोवा, मैं देश-देश के लोगों के बीच तेरी तारीफ करूँगा,+

राष्ट्रों के बीच तेरी तारीफ में गीत गाऊँगा।*+

10 क्योंकि तेरा अटल प्यार क्या ही महान है,

आसमान जितना ऊँचा है,+

तेरी वफादारी आकाश की बुलंदियाँ छूती है।

11 हे परमेश्‍वर, तेरी महिमा आसमान के ऊपर हो,

तेरा वैभव पूरी धरती के ऊपर फैल जाए।+

दाविद की रचना। निर्देशक के लिए हिदायत: “नाश न होने दे” के मुताबिक। मिकताम।*

58 हे आदमियो, इस तरह चुप बैठकर क्या तुम नेकी के बारे में बोल सकोगे?+

क्या तुम सच्चाई से न्याय कर सकोगे?+

 2 तुम तो अपने दिलों में बुराई गढ़ते हो,+

देश का कोना-कोना खून-खराबे से भर देते हो।+

 3 दुष्ट लोग जन्म से ही भटके हुए* होते हैं,

पैदाइश से ही टेढ़ी चाल चलते हैं, झूठे हैं।

 4 उनकी बातें साँप के ज़हर की तरह हैं,+

वे उस नाग की तरह बहरे हो गए हैं जो सुनना नहीं चाहता।

 5 वह अब सपेरों की आवाज़ नहीं सुनेगा,

फिर चाहे वे कितनी ही चालाकी से मंत्र फूँकें।

 6 हे परमेश्‍वर, उनके मुँह के सारे दाँत तोड़ दे!

हे यहोवा, उन शेरों के जबड़े तोड़ दे!

 7 वे ऐसे गायब हो जाएँ जैसे पानी बहकर गायब हो जाता है।

परमेश्‍वर अपनी कमान चढ़ाए और तीर चलाकर उन्हें ढेर कर दे।

 8 वे घोंघे जैसे हो जाएँ जो रेंगते-रेंगते घुलकर नाश हो जाता है,

वे उस बच्चे जैसे हो जाएँ जो कोख में ही मर जाता है और कभी सूरज की रौशनी नहीं देख पाता।

 9 इससे पहले कि तुम्हारी हाँडियों को कँटीली लकड़ियों की आँच लगे

परमेश्‍वर उन हरी और जलती लकड़ियों को ऐसे उड़ा ले जाएगा जैसे आँधी उड़ा ले जाती है।+

10 परमेश्‍वर को बदला लेते देख नेक जन खुशियाँ मनाएगा।+

नेक जन के पाँव दुष्टों के खून से लथपथ हो जाएँगे।+

11 तब लोग कहेंगे, “नेक इंसान को ज़रूर इनाम मिलता है,+

दुनिया का न्याय करनेवाला एक परमेश्‍वर ज़रूर है।”+

दाविद की रचना। निर्देशक के लिए हिदायत: “नाश न होने दे” के मुताबिक। मिकताम।* यह गीत उस समय का है जब शाऊल ने अपने आदमियों को दाविद के घर पर नज़र रखने भेजा था ताकि वे उसे मार डालें।+

59 हे मेरे परमेश्‍वर, मुझे दुश्‍मनों से छुड़ा ले,+

हमलावरों से बचा ले।+

 2 मुझे दुष्ट काम करनेवालों से छुड़ा ले,

खूँखार* आदमियों से बचा ले।

 3 देख! वे मेरे लिए घात लगाए बैठे हैं,+

ताकतवर आदमी मुझ पर हमला करते हैं,

जबकि हे यहोवा, मैंने न बगावत की है, न कोई पाप किया है।+

 4 मैंने कुछ बुरा नहीं किया, फिर भी वे मुझ पर हमला करने दौड़े चले आते हैं।

मेरी पुकार सुनकर उठ और देख।

 5 क्योंकि हे सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा, तू इसराएल का परमेश्‍वर है।+

उठकर सब राष्ट्रों पर ध्यान दे।

गद्दारी करनेवाले दुष्टों पर ज़रा भी तरस न खा।+ (सेला )

 6 वे हर शाम लौट आते हैं,+

कुत्तों की तरह गुर्राते* हैं,+ शिकार पकड़ने दबे पाँव सारा शहर घूमते हैं।+

 7 देख, उनका मुँह कैसी बातें उगलता है,

उनके होंठ तलवार जैसे हैं,+

क्योंकि वे कहते हैं, “कौन सुनता है?”+

 8 मगर हे यहोवा, तू उन पर हँसेगा,+

सब राष्ट्रों का मज़ाक उड़ाएगा।+

 9 हे मेरी ताकत, मैं तेरी राह तकूँगा,+

क्योंकि हे परमेश्‍वर, तू मेरा ऊँचा गढ़ है।+

10 मुझ पर अटल प्यार ज़ाहिर करनेवाला परमेश्‍वर मेरी मदद के लिए आएगा,+

वह मुझे अपने दुश्‍मनों की हार दिखाएगा।+

11 उन्हें मार न डाल ताकि मेरे लोग भूल न जाएँ।

अपनी शक्‍ति से उन्हें दर-दर भटकने पर मजबूर कर,

हे यहोवा, हमारी ढाल, तू उन्हें गिरा दे।+

12 वे अपने मुँह से, अपने होंठों से पाप करते हैं।

वे अपने ही घमंड में फँस जाएँ,+

क्योंकि वे शाप देते हैं और छल की बातें करते हैं।

13 तू क्रोध से भरकर उनका नाश कर देना,+

उनका नाश कर देना ताकि वे मिट जाएँ,

उन्हें जता देना कि परमेश्‍वर याकूब पर और धरती के छोर तक राज करता है।+ (सेला )

14 लौटने दे उन्हें शाम को,

कुत्तों की तरह गुर्राने* दे, शिकार पकड़ने दबे पाँव सारा शहर घूमने दे।+

15 उनका ऐसा हाल कर दे कि वे एक निवाले के लिए दर-दर भटकें,+

उन्हें न भरपेट खाना मिले, न सिर छिपाने की जगह।

16 मगर मैं तो तेरी ताकत का गुणगान करूँगा,+

सुबह मैं तेरे अटल प्यार का खुशी-खुशी बखान करूँगा।

क्योंकि तू मेरा ऊँचा गढ़ है,+

मेरे लिए ऐसी जगह है जहाँ मैं मुसीबत की घड़ी में भागकर जा सकता हूँ।+

17 हे मेरी ताकत, मैं तेरी तारीफ में गीत गाऊँगा,*+

क्योंकि परमेश्‍वर मेरा ऊँचा गढ़ है, मुझसे प्यार* करनेवाला परमेश्‍वर है।+

दाविद की रचना। निर्देशक के लिए हिदायत: “यादगार का सोसन” के मुताबिक। मिकताम।* सिखाने के लिए। यह गीत उस समय का है जब दाविद ने अरम-नहरैम और अराम-सोबा की सेना से युद्ध किया था और योआब ने लौटकर नमक घाटी+ में 12,000 एदोमियों को मार गिराया था।

60 हे परमेश्‍वर, तूने हमें ठुकरा दिया, हमारी मोरचाबंदी तोड़ दी,+

तू हमसे नाराज़ था मगर अब हमें दोबारा अपना ले!

 2 तूने धरती को कँपकँपा दिया, ज़मीन चीर दी।

अब इसकी दरारें भर दे क्योंकि यह गिरनेवाली है।

 3 तूने अपने लोगों को मुसीबतें झेलने पर मजबूर किया।

हमें ऐसी दाख-मदिरा पिलायी कि हम लड़खड़ाने लगे।+

 4 जो तेरा डर मानते हैं उन्हें इशारा दे*

कि वे भाग जाएँ और तीर से बच जाएँ। (सेला )

 5 अपने दाएँ हाथ से हमें बचा ले, हमारी सुन ले

ताकि जिन्हें तू प्यार करता है वे छुड़ाए जाएँ।+

 6 परमेश्‍वर अपनी पवित्रता के कारण* कहता है,

“मैं मगन होऊँगा, विरासत में शेकेम दूँगा,+

सुक्कोत घाटी नापकर दूँगा।+

 7 मनश्‍शे मेरा है, गिलाद भी मेरा है,+

एप्रैम मेरे सिर का टोप है,

यहूदा मेरे लिए हाकिम की लाठी है।+

 8 मोआब मेरा हाथ-पैर धोने का बरतन है।+

एदोम पर मैं अपना जूता फेंकूँगा।+

पलिश्‍त को जीतकर मैं जश्‍न मनाऊँगा।”+

 9 कौन मुझे उस घिरे हुए* शहर तक ले जाएगा?

कौन मुझे दूर एदोम तक ले जाएगा?+

10 हे हमारे परमेश्‍वर, तू ही हमें वहाँ ले जाएगा।

मगर तूने तो हमें ठुकरा दिया है,

तू अब युद्ध में हमारी सेना के साथ नहीं जाता।+

11 हम संकट में हैं, हमारी मदद कर,

क्योंकि उद्धार के लिए इंसान पर आस लगाना बेकार है।+

12 परमेश्‍वर से हमें ताकत मिलेगी,+

वह हमारे बैरियों को रौंद डालेगा।+

दाविद की रचना। निर्देशक के लिए हिदायत: यह गीत तारोंवाले बाजे बजाकर गाया जाए।

61 हे परमेश्‍वर, मेरी मदद की पुकार सुन।

मेरी प्रार्थना पर ध्यान दे।+

 2 जब मेरा दिल दुख से बेहाल* हो, तब मैं तुझे पुकारूँगा,

फिर चाहे मैं धरती के छोर पर क्यों न होऊँ।+

तू मुझे एक ऊँची चट्टान पर ले जाना।+

 3 क्योंकि तू मेरा गढ़ है,

एक मज़बूत मीनार है जो दुश्‍मन से मेरी हिफाज़त करती है।+

 4 मैं तेरे तंबू में सदा तक मेहमान बनकर रहूँगा,+

तेरे पंखों की आड़ में पनाह लूँगा।+ (सेला )

 5 क्योंकि हे परमेश्‍वर, तूने मेरी मन्‍नतें सुनी हैं।

मुझे वह विरासत दी है जो तेरे नाम का डर माननेवालों के लिए है।+

 6 तू राजा की उम्र बढ़ाएगा,+

वह पीढ़ी-पीढ़ी तक जीता रहेगा।

 7 वह तेरे सामने सदा तक विराजमान रहेगा,*+

हे परमेश्‍वर, तेरा अटल प्यार और वफादारी उसकी हिफाज़त करे।*+

 8 तब मैं रोज़-ब-रोज़ अपनी मन्‍नतें पूरी करूँगा+

और सदा तक तेरे नाम की तारीफ में गीत गाऊँगा।*+

दाविद का सुरीला गीत। निर्देशक के लिए हिदायत: यदूतून* का।

62 मैं चुपचाप परमेश्‍वर का इंतज़ार करता हूँ।

वही मेरा उद्धारकर्ता है।+

 2 वही मेरी चट्टान और मेरा उद्धार है, मेरा ऊँचा गढ़ है,+

मैं कभी इस कदर हिलाया नहीं जा सकता कि गिर जाऊँ।+

 3 तुम एक इंसान को मार डालने के लिए कब तक उस पर वार करते रहोगे?+

तुम सब-के-सब खतरनाक हो, उस दीवार की तरह जो झुकी हुई है,

पत्थर की उस दीवार की तरह जो बस ढहनेवाली है।*

 4 वे उसे ऊँचे पद* से गिराने के लिए आपस में मशविरा करते हैं,

उन्हें झूठ बोलने में मज़ा आता है।

मुँह से तो वे आशीर्वाद देते हैं, पर मन-ही-मन शाप देते हैं।+ (सेला )

 5 मैं चुपचाप परमेश्‍वर का इंतज़ार करता हूँ,+

क्योंकि उसी से मेरी आशा बँधी है।+

 6 वही मेरी चट्टान और मेरा उद्धार है, मेरा ऊँचा गढ़ है,

मुझे कभी हिलाया नहीं जा सकता।+

 7 मेरा उद्धार और मेरा वैभव परमेश्‍वर की ही बदौलत है।

परमेश्‍वर मेरी मज़बूत चट्टान है, मेरा गढ़ है।+

 8 लोगो, हमेशा उस पर भरोसा रखो।

उसके आगे अपना दिल खोलकर रख दो।+

परमेश्‍वर हमारी पनाह है।+ (सेला )

 9 इंसान बस एक साँस हैं,

वे बस धोखा हैं।+

अगर उन सबको एक-साथ तौला जाए, तो भी वे साँस से हलके निकलेंगे।+

10 इस गलतफहमी में मत रहो कि धोखाधड़ी से तुम कामयाब होगे,

या लूट-खसोट से तुम्हें फायदा होगा।

अगर तुम्हारी दौलत बढ़ने लगे, तो अपना मन उसी पर मत लगाना।+

11 मैंने एक बार नहीं, दो बार परमेश्‍वर को यह कहते सुना,

“ताकत परमेश्‍वर ही की है।”+

12 हे यहोवा, अटल प्यार भी तेरा है,+

क्योंकि तू हरेक को उसके कामों के मुताबिक फल देता है।+

दाविद का सुरीला गीत। यह गीत उस समय का है जब दाविद यहूदा के वीराने में था।+

63 हे परमेश्‍वर, तू मेरा परमेश्‍वर है, मैं तुझे ढूँढ़ता रहता हूँ।+

मैं तेरे लिए प्यासा हूँ।+

इस सूखी तपती ज़मीन पर, जहाँ एक बूँद पानी भी नहीं,

मैं तेरे लिए इतना तरस रहा हूँ कि बेहोश होने पर हूँ।+

 2 जब मैंने तुझे पवित्र जगह में देखा था,

तब मैंने तेरी ताकत और महिमा की झलक पायी थी।+

 3 तेरा अटल प्यार जीवन से कहीं ज़्यादा अनमोल है,+

इसलिए मेरे होंठ तेरी महिमा करेंगे।+

 4 मैं सारी ज़िंदगी तेरी तारीफ करूँगा,

हाथ उठाकर तेरा नाम पुकारूँगा।

 5 मैं उम्दा और सबसे बढ़िया हिस्सा पाकर* संतुष्ट हूँ।

इसलिए मेरे होंठ खुशी से तेरी तारीफ करेंगे।+

 6 मैं बिस्तर पर लेटे तुझे याद करता हूँ,

रात के पहर तेरे बारे में मनन करता हूँ।+

 7 क्योंकि तू मेरा मददगार है,+

मैं तेरे पंखों की छाँव तले खुशी से जयजयकार करता हूँ।+

 8 मैं तुझसे लिपटा रहता हूँ,

तेरा दायाँ हाथ मुझे थामे रहता है।+

 9 मगर जो मेरी जान के पीछे पड़े हैं,

वे धरती की गहराइयों में समा जाएँगे।

10 वे तलवार के हवाले कर दिए जाएँगे,

गीदड़ों* का निवाला बन जाएँगे।

11 मगर राजा परमेश्‍वर के कारण मगन होगा।

जो कोई परमेश्‍वर की शपथ खाता है, वह खुशियाँ मनाएगा,*

क्योंकि झूठ बोलनेवालों का मुँह बंद कर दिया जाएगा।

दाविद का सुरीला गीत। निर्देशक के लिए हिदायत।

64 हे परमेश्‍वर, जब मैं मिन्‍नत करूँ तो मेरी सुन।+

दुश्‍मन के खतरनाक हमलों से मेरी जान बचा।

 2 दुष्टों की खुफिया तरकीबों से,+

बुराई करनेवालों की भीड़ से मेरी रक्षा कर।

 3 वे अपनी जीभ तलवार की तरह तेज़ करते हैं,

कड़वे शब्दों के तीरों से निशाना साधते हैं

 4 ताकि छिपकर निर्दोष पर वार करें।

वे बेधड़क होकर उस पर अचानक तीर चलाते हैं।

 5 वे अपने बुरे इरादे पर अड़े रहते हैं,*

आपस में चर्चा करते हैं कि अपने फंदे कैसे छिपाएँ।

वे कहते हैं, “इन फंदों पर किसकी नज़र जाएगी?”+

 6 वे गुनाह करने के नए-नए तरीके खोजते हैं,

बड़ी चालाकी से जाल बिछाने की तरकीबें बुनते हैं,+

उनके दिल के विचार समझना नामुमकिन है।

 7 मगर परमेश्‍वर उन पर तीर चलाएगा,+

वे अचानक घायल हो जाएँगे।

 8 उनकी जीभ ही उनके गिरने की वजह बनेगी+

देखनेवाले सभी हैरत से सिर हिलाएँगे।

 9 तब सभी आदमी घबरा जाएँगे,

परमेश्‍वर ने जो किया है उसका ऐलान करेंगे,

वे उसके कामों की अंदरूनी समझ हासिल करेंगे।+

10 नेक जन यहोवा के कारण आनंद मनाएगा और उसकी पनाह लेगा,+

सीधे-सच्चे मनवाले सब मगन होंगे।*

दाविद का सुरीला गीत। निर्देशक के लिए हिदायत।

65 हे परमेश्‍वर, सिय्योन में तारीफ के बोल तेरी राह तकते हैं,+

तुझसे मानी मन्‍नतें हम पूरी करेंगे।+

 2 हे प्रार्थना के सुननेवाले, सब किस्म के लोग तेरे पास आएँगे।+

 3 मैं अपने गुनाहों का दोष सह नहीं पा रहा हूँ,+

मगर तू हमारे अपराधों को ढाँप देता है।+

 4 सुखी है वह जिसे तू चुनता और अपने पास लाता है

कि वह तेरे आँगनों में निवास करे।+

हम तेरे भवन की,+ तेरे पवित्र मंदिर* की अच्छी चीज़ों से संतुष्ट होंगे।+

 5 हे परमेश्‍वर, हमारे उद्धारकर्ता,

तू हमारी प्रार्थनाओं का जवाब देगा और नेकी की खातिर विस्मयकारी काम करेगा,+

तू धरती के कोने-कोने तक बसनेवालों का,

सागर के पार दूर-दूर तक रहनेवालों का भरोसा है।+

 6 तूने अपनी शक्‍ति से पहाड़ों को मज़बूती से कायम किया है,

तूने महाशक्‍ति धारण की है।+

 7 तूफानी समुंदर को, साहिल से टकराती लहरों को तू शांत कर देता है,+

होहल्ला मचाते राष्ट्रों को खामोश कर देता है।+

 8 दूर-दराज़ इलाकों के लोग तेरे चिन्ह देखकर दंग रह जाएँगे,+

उदयाचल से अस्ताचल तक रहनेवालों को तू ऐसी खुशी देगा कि वे जयजयकार करेंगे।

 9 तू धरती की देखभाल करता है,

उसे बहुत उपजाऊ बनाता और भरपूर फसल उगाता है।+

तेरी नदी उमड़ती रहती है,

तूने धरती को इस तरह तैयार किया है

कि तू लोगों को अनाज दे सके।+

10 तू इसके कूँड़ों में पानी भरता है, जुती हुई ज़मीन* समतल करता है,

तू पानी बरसाकर मिट्टी नरम करता है और उसकी पैदावार पर आशीष देता है।+

11 तू पूरे साल को आशीषों का ताज पहनाता है,

तेरी हर डगर पर खुशहाली-ही-खुशहाली है।*+

12 वीराने के चरागाहों में खूब हरियाली है,+

पहाड़ियों ने खुशी का ओढ़ना ओढ़ा है।+

13 चरागाहों में भेड़-बकरियों के झुंड-के-झुंड फैले हैं,

वादियों में लहलहाती फसलों का कालीन बिछा है।+

वे जीत का जश्‍न मनाते हैं, हाँ, गीत गाते हैं।+

निर्देशक के लिए हिदायत। एक सुरीला गीत।

66 धरती के सब लोगो, परमेश्‍वर की जयजयकार करो!+

 2 उसके गौरवशाली नाम की तारीफ में गीत गाओ।*

उसकी बढ़-चढ़कर महिमा करो।+

 3 परमेश्‍वर से कहो, “तेरे काम क्या ही विस्मयकारी हैं!+

तेरी महाशक्‍ति देखकर दुश्‍मन तेरे सामने दुबक जाएँगे।+

 4 धरती के सब लोग तुझे दंडवत करेंगे,+

तेरी तारीफ में गीत गाएँगे,

तेरे नाम की तारीफ में गीत गाएँगे।”+ (सेला )

 5 आओ, आकर तुम सब परमेश्‍वर के काम देखो,

इंसानों की खातिर उसने क्या ही विस्मयकारी काम किए हैं!+

 6 कभी समुंदर को सूखी ज़मीन बना दिया,+

तो कभी नदी के बीच से रास्ता निकाला

जिस पर चलकर हम पार उतर गए।+

परमेश्‍वर के कारण हम वहाँ आनंद-मगन हुए।+

 7 वह अपनी ताकत से सदा राज करता है।+

राष्ट्रों पर नज़र रखता है।+

जो हठीले हैं वे खुद को बहुत ऊँचा न उठाएँ।+ (सेला )

 8 देश-देश के लोगो, हमारे परमेश्‍वर की तारीफ करो,+

उसकी तारीफ चारों तरफ गूँज उठे।

 9 वह हमारी जान सलामत रखता है,+

हमारे कदमों को लड़खड़ाने* नहीं देता।+

10 हे परमेश्‍वर, तूने हमें जाँचा,+

चाँदी की तरह हमें शुद्ध किया।

11 तूने हमें अपने जाल में फँसा लिया,

हम पर दुखों का ऐसा भारी बोझ लादा कि हम दब गए।

12 तूने नश्‍वर इंसान को हमारे* ऊपर से सवारी करने दिया,

हम आग और पानी से गुज़रे,

इसके बाद तू हमें एक महफूज़ जगह ले आया।

13 मैं पूरी होम-बलियाँ लेकर तेरे भवन में आऊँगा,+

वे सारी मन्‍नतें पूरी करूँगा,+

14 जो मैंने मुसीबत के वक्‍त तुझसे मानी थीं,+

वे वादे निभाऊँगा जो मैंने संकट के वक्‍त किए थे।

15 मैं तुझे मोटे-ताज़े जानवरों की होम-बलियाँ चढ़ाऊँगा,

मेढ़ों का बलिदान करूँगा ताकि उनका धुआँ उठे।

मैं बकरे और बैल अर्पित करूँगा। (सेला )

16 परमेश्‍वर का डर माननेवालो, तुम सब आओ और सुनो,

मैं तुम्हें बताऊँगा कि उसने मेरे लिए क्या-क्या किया।+

17 मैंने अपने मुँह से उसे पुकारा,

अपनी जीभ से उसकी महिमा की।

18 अगर मैंने दिल में कोई बुराई पनपने दी होती,

तो यहोवा मेरी नहीं सुनता।+

19 मगर परमेश्‍वर ने मेरी सुनी है,+

उसने मेरी प्रार्थना पर ध्यान दिया है।+

20 परमेश्‍वर की बड़ाई हो जिसने मेरी प्रार्थना नहीं ठुकरायी,

न ही अपने अटल प्यार से मुझे दूर रखा।

एक सुरीला गीत। निर्देशक के लिए हिदायत: यह गीत तारोंवाले बाजे बजाकर गाया जाए।

67 परमेश्‍वर हम पर कृपा करेगा और हमें आशीष देगा,

अपने मुख का प्रकाश हम पर चमकाएगा+ (सेला )

 2 ताकि सारा जग तेरी राह के बारे में जाने,+

तू जो उद्धार दिलाता है उसके बारे में सब राष्ट्र जानें।+

 3 हे परमेश्‍वर, देश-देश के लोग तेरी तारीफ करें,

सभी देशों के लोग तेरी तारीफ करें।

 4 राष्ट्र आनंद मनाएँ और खुशी से जयजयकार करें,+

क्योंकि तू बिना तरफदारी किए उनका न्याय करेगा।+

तू धरती के राष्ट्रों को राह दिखाएगा। (सेला )

 5 हे परमेश्‍वर, देश-देश के लोग तेरी तारीफ करें,

सभी देशों के लोग तेरी तारीफ करें।

 6 धरती अपनी उपज देगी,+

परमेश्‍वर, हमारा परमेश्‍वर हमें आशीष देगा।+

 7 परमेश्‍वर हमें आशीष देगा

और धरती के कोने-कोने में रहनेवाले उसका डर मानेंगे।*+

दाविद का सुरीला गीत। निर्देशक के लिए हिदायत।

68 परमेश्‍वर उठे, उसके दुश्‍मन तितर-बितर हो जाएँ,

उससे नफरत करनेवाले उसके सामने से भाग जाएँ।+

 2 जैसे धुआँ उड़ाया जाता है, वैसे ही तू उन्हें उड़ा दे,

जैसे मोम आग के सामने पिघल जाता है,

वैसे ही दुष्ट परमेश्‍वर के सामने मिट जाएँ।+

 3 मगर नेक लोग आनंद मनाएँ,+

परमेश्‍वर के सामने फूले न समाएँ,

वे खुशी से झूम उठें।

 4 परमेश्‍वर के लिए गीत गाओ, उसके नाम की तारीफ में गीत गाओ।*+

उस परमेश्‍वर के लिए गाओ जिसकी सवारी वीरानों से गुज़रती है।*

उसका नाम याह* है!+ उसके आगे आनंद मनाओ!

 5 परमेश्‍वर जो अपने पवित्र निवास में है,+

अनाथों* का पिता और विधवाओं का रखवाला* है।+

 6 जो अकेले हैं उन्हें रहने को घर देता है+

कैदियों को रिहा करके खुशहाली देता है।+

मगर जो ढीठ* हैं उन्हें सूखे देश में रहना पड़ेगा।+

 7 हे परमेश्‍वर, जब तू अपने लोगों को राह दिखाता हुआ चला,+

वीराने से होकर गुज़रा, (सेला )

 8 तो तेरे सामने धरती डोलने लगी,+

आसमान पानी बरसाने* लगा,

इसराएल के परमेश्‍वर के सामने यह सीनै पहाड़ काँपने लगा।+

 9 हे परमेश्‍वर, तूने पानी की बौछार की,

अपने थके-हारे लोगों* में नया जोश भर दिया।

10 उन्होंने तेरी छावनी में बसेरा किया,+

हे परमेश्‍वर, तूने गरीबों की ज़रूरतें पूरी करके अपनी भलाई का सबूत दिया।

11 यहोवा हुक्म देता है,

खुशखबरी सुनानेवाली औरतों की एक बड़ी सेना है।+

12 राजा अपनी सेनाओं को लेकर भाग जाते हैं!+ हाँ, वे भाग जाते हैं!

घर में रहनेवाली औरतों को भी लूट का हिस्सा मिलता है।+

13 तुम आदमियों को भले ही अलावों* के पास लेटना पड़ा,

मगर वहाँ तुम्हें ऐसी फाख्ता मिलेगी

जिसके पर चाँदी के और डैने शुद्ध* सोने के होंगे।

14 जब सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर ने उसके राजाओं को तितर-बितर कर दिया,+

तो ज़लमोन पहाड़ में बर्फबारी होने लगी।*

15 बाशान पहाड़+ परमेश्‍वर का पहाड़* है,

यह कई चोटियोंवाला पहाड़ है।

16 हे चोटियोंवाले पहाड़, तू क्यों उस पहाड़ को जलन से देखता है

जिसे परमेश्‍वर ने अपना निवास चुना है?*+

बेशक उसी पहाड़ पर यहोवा सदा निवास करेगा।+

17 परमेश्‍वर के युद्ध-रथों की गिनती हज़ारों-लाखों में है।+

यहोवा सीनै पहाड़ से पवित्र जगह में आया है।+

18 हे याह, हे परमेश्‍वर, तू ऊँचे पर चढ़ा+

और बंदियों को ले गया,

आदमियों के रूप में तोहफे ले गया,+

हाँ, ढीठ लोगों+ को भी ले गया ताकि तू उनके बीच निवास करे।

19 यहोवा की तारीफ हो जो हर दिन हमारा बोझ ढोता है,+

वह सच्चा परमेश्‍वर है, हमारा उद्धारकर्ता। (सेला )

20 सच्चा परमेश्‍वर हमें बचानेवाला परमेश्‍वर है,+

सारे जहान का मालिक यहोवा मौत से बचाता है।+

21 हाँ, परमेश्‍वर अपने दुश्‍मनों का सिर चूर-चूर कर देगा,

जो पाप करने से बाज़ नहीं आते।*+

22 यहोवा ने कहा है, “मैं उन्हें बाशान से वापस लाऊँगा,+

समुंदर की गहराइयों से निकाल लाऊँगा

23 ताकि उन दुश्‍मनों के खून से तुम्हारे पैर लथपथ हो जाएँ+

और तुम्हारे कुत्ते उनका खून चाटें।”

24 हे परमेश्‍वर, वे तेरी जीत का जुलूस देखते हैं,

मेरे परमेश्‍वर का, मेरे राजा का जुलूस देखते हैं जो पवित्र जगह की तरफ बढ़ता है।+

25 गायक सबसे आगे होते हैं, उनके पीछे तारोंवाले बाजे बजाते संगीतकार होते हैं,+

दोनों दलों के बीच डफली बजाती जवान औरतें चलती हैं।+

26 जहाँ लोगों की भीड़ जमा है, वहाँ* परमेश्‍वर की तारीफ करो,

इसराएल के सोते से निकले हुए लोगो, यहोवा की तारीफ करो।+

27 वहाँ सबसे छोटा गोत्र बिन्यामीन+ उन्हें अपने अधीन कर रहा है,

साथ ही यहूदा के हाकिम और उनके लोगों की भीड़,

जबूलून के हाकिम और नप्ताली के हाकिम भी उन्हें अपने अधीन कर रहे हैं।

28 तेरे परमेश्‍वर ने तय किया है कि तू ताकतवर होगा।

हे परमेश्‍वर, जैसे तूने हमारी खातिर ताकत दिखायी थी, वैसे अब भी दिखा।+

29 यरूशलेम में तेरे मंदिर के कारण+

राजा तुझे तोहफे लाकर देंगे।+

30 नरकटों में रहनेवाले जंगली जानवरों को

और बैलों के झुंड+ और उनके बछड़ों को तब तक डाँट,

जब तक कि देश-देश के लोग चाँदी के टुकड़े लाकर तुझे दंडवत नहीं करते।*

तू उन लोगों को तितर-बितर कर देता है जिन्हें युद्ध करने में मज़ा आता है।

31 मिस्र से काँसे की चीज़ें लायी जाएँगी,*+

कूश बड़ी फुर्ती से परमेश्‍वर के लिए भेंट लाएगा।

32 धरती के राज्यो, परमेश्‍वर के लिए गीत गाओ,+

यहोवा की तारीफ में गीत गाओ,* (सेला )

33 उसके लिए, जो मुद्दतों से कायम ऊँचे आसमानों पर सवार है,+

सुनो! उसकी आवाज़ क्या ही बुलंद है! देखो, कैसे गरज रही है!

34 कबूल करो कि परमेश्‍वर में ताकत है।+

उसका प्रताप इसराएल पर छाया है,

उसकी ताकत आसमान में है।

35 अपने शानदार भवन से निकलता परमेश्‍वर क्या ही विस्मयकारी दिखायी पड़ता है।+

वह इसराएल का परमेश्‍वर है,

जो अपनी प्रजा को ताकत और शक्‍ति देता है।+

परमेश्‍वर की तारीफ हो।

दाविद की रचना। निर्देशक के लिए हिदायत: “सोसन के फूलों” के मुताबिक।

69 हे परमेश्‍वर, मुझे बचा ले क्योंकि मैं पानी में डूबा जा रहा हूँ।+

 2 मैं गहरे दलदल में धँस गया हूँ जहाँ ठोस ज़मीन नहीं है।+

मैं गहरे पानी में डूब रहा हूँ,

तेज़ धारा मुझे बहा ले जा रही है।+

 3 मदद की पुकार लगाते-लगाते मैं पस्त हो गया हूँ,+

मेरा गला बैठ गया है।

अपने परमेश्‍वर की राह देखते-देखते मेरी आँखें पथरा गयी हैं।+

 4 जो मुझसे बेवजह नफरत करते हैं,+

उनकी गिनती मेरे सिर के बालों से कहीं ज़्यादा है।

मेरे कपटी दुश्‍मन* जो मुझे मिटाने पर तुले हैं,

उनकी गिनती बेशुमार हो गयी है।

मैंने जो चुराया नहीं वह भी मुझे देना पड़ा।

 5 हे परमेश्‍वर, तू मेरी मूर्खता अच्छी तरह जानता है,

मेरा दोष तुझसे छिपा नहीं है।

 6 हे सारे जहान के मालिक, सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा,

तुझ पर आशा रखनेवालों को मेरी वजह से शर्मिंदा न होना पड़े।

हे इसराएल के परमेश्‍वर, तेरी खोज करनेवालों को मेरी वजह से बेइज़्ज़त न होना पड़े।

 7 मैं तेरी खातिर बदनामी झेल रहा हूँ,+

मुझे बुरी तरह शर्मिंदा किया गया है।+

 8 मैं अपने भाइयों के लिए अजनबी हो गया हूँ,

अपने सगे भाइयों के लिए पराया हो गया हूँ।+

 9 तेरे भवन के लिए जोश की आग ने मुझे भस्म कर दिया है,+

जो तेरी निंदा करते हैं, उनकी निंदा-भरी बातें मुझ पर आ पड़ी हैं।+

10 जब मैंने उपवास करके खुद को दीन किया*

तो मेरा अपमान किया गया।

11 जब मैंने टाट ओढ़ा,

तो मेरी खिल्ली उड़ायी गयी।*

12 शहर के फाटक पर बैठनेवाले मेरे बारे में बात करते हैं,

शराबी मेरे बारे में गीत बनाते हैं।

13 मगर हे यहोवा, तू सही वक्‍त पर मेरी प्रार्थना कबूल करना।+

हे परमेश्‍वर, तू अटल प्यार से भरपूर है और सच्चा उद्धारकर्ता है,

इसलिए मेरी प्रार्थना का जवाब दे।+

14 मुझे दलदल से निकाल ले

ताकि मैं अंदर धँस न जाऊँ।

मुझसे नफरत करनेवालों से मुझे छुड़ा ले,

गहरे पानी में डूबने से मुझे बचा ले।+

15 तेज़ धाराओं को मुझे बहाकर ले जाने न दे,+

गहरे पानी को मुझे निगलने न दे,

कुएँ* को मुझे अपने अंदर खींचने न दे।+

16 हे यहोवा, मुझे जवाब दे क्योंकि तेरा अटल प्यार बहुत गहरा है।+

तू बड़ा दयालु है, मुझ पर ध्यान दे,+

17 अपने सेवक से मुँह न फेर।+

मैं बड़े संकट में हूँ, फौरन मेरी पुकार सुन ले।+

18 मेरे पास आ, मुझे छुड़ा ले,

दुश्‍मनों से मुझे बचा ले।

19 तू जानता है कि मुझे कैसे बदनाम किया गया है,

मुझे शर्मिंदा और बेइज़्ज़त किया गया है।+

तू मेरे सब दुश्‍मनों को देखता है।

20 घोर अपमान सहते-सहते मेरा दिल टूट गया है, अब यह घाव भर नहीं सकता।*

मैंने हमदर्दी की उम्मीद लगायी मगर कहीं न मिली,+

दिलासा देनेवालों की आस लगायी पर कोई न मिला।+

21 उन्होंने मुझे खाने के नाम पर ज़हर* दिया,+

प्यास बुझाने के लिए सिरका दिया।+

22 उनकी मेज़ उनके लिए फंदा बन जाए,

उनकी खुशहाली उनके लिए जाल बन जाए।+

23 उनकी आँखों के आगे अँधेरा छा जाए ताकि वे देख न सकें,

उनके पैर* हमेशा कँपकँपाते रहें।

24 उन पर अपनी जलजलाहट* उँडेल दे,

तेरे क्रोध की आग उन्हें भस्म कर दे।+

25 उनकी छावनी* उजड़ जाए,

उनके तंबू सुनसान हो जाएँ।+

26 क्योंकि वे उसका पीछा करते हैं जिसे तूने मारा है,

उनके दुखों के बारे में गपशप करते हैं जिन्हें तूने घायल किया है।

27 उनका दोष और बढ़ा दे

और वे तेरी नज़र में नेक न माने जाएँ।

28 जीवन की किताब से उनका नाम मिटा दिया जाए,+

उनका नाम नेक लोगों के साथ न लिखा जाए।+

29 मैं सताया जा रहा हूँ, दर्द से बेहाल हूँ।+

हे परमेश्‍वर, तुझमें उद्धार करने की शक्‍ति है, मेरी रक्षा कर।

30 मैं परमेश्‍वर के नाम की तारीफ में गीत गाऊँगा,

उसका शुक्रिया अदा करते हुए उसकी महिमा करूँगा।

31 यह यहोवा को बैल के बलिदान से ज़्यादा भाएगा,

सींग और खुरवाले बैल के बलिदान से ज़्यादा।+

32 दीन लोग इसे देखेंगे और आनंद मनाएँगे।

परमेश्‍वर की खोज करनेवालो, तुम्हारे दिल फिर से मज़बूत हो जाएँ।

33 क्योंकि यहोवा गरीबों की सुनता है,+

अपने लोगों को जो बंदी हैं, तुच्छ नहीं समझेगा।+

34 धरती और अंबर उसकी तारीफ करें,+

समुंदर और उसमें तैरती हर चीज़ उसकी तारीफ करे।

35 क्योंकि परमेश्‍वर सिय्योन को बचाएगा+

और यहूदा के शहरों को फिर बसाएगा,

वे वहाँ बसेंगे और उस पर* अधिकार पाएँगे।

36 उसके सेवकों के वंशज उसके वारिस होंगे,+

उसके नाम से प्यार करनेवाले उसमें बसेंगे।+

निर्देशक के लिए हिदायत। यादगार के लिए दाविद का गीत।

70 हे परमेश्‍वर, मुझे बचा ले,

हे यहोवा, मेरी मदद के लिए जल्दी आ।+

 2 जो मेरी जान के पीछे पड़े हैं,

वे शर्मिंदा और अपमानित किए जाएँ।

जो मुझे संकटों से घिरा देखकर मज़ा लेते हैं,

वे बेइज़्ज़त होकर भाग जाएँ।

 3 जो मुझ पर हँसते और कहते हैं, “अच्छा हुआ! अच्छा हुआ!”

उन्हें शर्मिंदा करके वापस भगा दिया जाए।

 4 मगर जो तेरी खोज करते हैं,

वे तेरे कारण मगन हों और आनंद मनाएँ,+

उद्धार के लिए तुझ पर आस लगानेवाले हमेशा कहें,

“परमेश्‍वर की महिमा हो!”

 5 हे परमेश्‍वर, मैं बेसहारा और गरीब हूँ,+

मेरी खातिर जल्द कदम उठा,+

तू ही मेरा मददगार और छुड़ानेवाला है।+

हे यहोवा, तू देर न कर।+

71 हे यहोवा, मैंने तेरी पनाह ली है।

मुझे कभी शर्मिंदा न होना पड़े।+

 2 तू नेक परमेश्‍वर है, मुझे बचा ले, मुझे छुड़ा ले।

मेरी तरफ कान लगा* और मुझे बचा ले।+

 3 मेरे लिए ऐसा किला बन जा जो चट्टान पर खड़ा हो,

जहाँ मैं कभी-भी भागकर जा सकूँ।

मुझे बचाने का हुक्म दे,

क्योंकि तू मेरे लिए बड़ी चट्टान और गढ़ है।+

 4 हे मेरे परमेश्‍वर, मुझे दुष्ट के हाथ से,+

अन्याय करनेवाले अत्याचारी के चंगुल से छुड़ा ले।

 5 क्योंकि हे सारे जहान के मालिक यहोवा, तू ही मेरी आशा है,

मैं बचपन से तुझ पर भरोसा करता आया हूँ।+

 6 जन्म से मैं तुझ पर निर्भर रहा हूँ,

तूने ही मुझे माँ की कोख से निकाला।+

मैं हमेशा तेरी तारीफ करता हूँ।

 7 मेरे साथ जो हुआ है वह बहुतों के लिए एक करिश्‍मा है,

मगर तू मेरा मज़बूत गढ़ है।

 8 मेरे होंठों पर तेरे लिए तारीफ-ही-तारीफ है,+

सारा दिन मैं तेरे वैभव का बखान करता हूँ।

 9 जब मेरी उम्र ढल जाए तो तू मुझे दरकिनार न कर देना,+

जब मेरी ताकत जवाब दे जाए तो मुझे त्याग न देना।+

10 मेरे दुश्‍मन मेरे खिलाफ बोलते हैं,

जो मेरी जान के पीछे पड़े हैं, वे मिलकर साज़िश रचते हैं,+

11 वे कहते हैं, “परमेश्‍वर ने उसे छोड़ दिया है।

उसे बचानेवाला कोई नहीं, उसका पीछा करो, उसे पकड़ लो।”+

12 हे परमेश्‍वर, तू अब मुझसे दूर न रह।

हे मेरे परमेश्‍वर, मेरी मदद के लिए जल्दी आ।+

13 जो मेरा विरोध करते हैं,

वे शर्मिंदा किए जाएँ, नाश हो जाएँ।+

जो मुझे बरबाद करने पर तुले हैं,

वे अपमान और बेइज़्ज़ती से ढक जाएँ।+

14 मगर मैं तो तेरी राह तकता रहूँगा,

मैं और भी ज़्यादा तेरी तारीफ करूँगा।

15 मैं तेरे नेक कामों का बखान करूँगा,+

तू जो उद्धार दिलाता है उसका सारा दिन बखान करूँगा,

इसके बावजूद कि वे इतने हैं कि उन्हें समझना* मेरे बस में नहीं।+

16 हे सारे जहान के मालिक यहोवा,

मैं आकर तेरे शक्‍तिशाली काम बयान करूँगा

और तेरी नेकी के बारे में बताऊँगा, हाँ, सिर्फ तेरी नेकी के बारे में।

17 हे परमेश्‍वर, मेरे बचपन से तू मुझे सिखाता आया है+

और मैं आज तक तेरे आश्‍चर्य के कामों का ऐलान कर रहा हूँ।+

18 हे परमेश्‍वर, जब मैं बूढ़ा हो जाऊँ और मेरे बाल पक जाएँ, तब भी तू मुझे त्याग न देना,+

मुझे अगली पीढ़ी को तेरी शक्‍ति* के बारे में,

आनेवाली नसल को तेरी महाशक्‍ति के बारे में सुनाने का मौका देना।+

19 हे परमेश्‍वर, तेरी नेकी कितनी महान है,+

हे परमेश्‍वर, तूने क्या ही बड़े-बड़े काम किए हैं,

तेरा कोई सानी नहीं!+

20 तूने भले ही मुझ पर कई मुसीबतें और विपत्तियाँ आने दी हैं+

मगर अब तू मुझमें नयी जान फूँक दे,

धरती की गहराइयों* से मुझे ऊपर निकाल ले।+

21 मेरी महानता और बढ़ा दे,

मुझे घेरकर मेरी रक्षा कर और मुझे दिलासा दे।

22 तब हे परमेश्‍वर, मैं तेरी वफादारी के कारण

तारोंवाला बाजा बजाकर तेरी तारीफ करूँगा,*+

हे इसराएल के पवित्र परमेश्‍वर,

मैं सुरमंडल बजाकर तेरी तारीफ में गीत गाऊँगा।

23 मेरे होंठ तेरी तारीफ में गीत गाएँगे, खुशी से जयजयकार करेंगे,+

क्योंकि तूने मेरी जान बचायी है।+

24 सारा दिन मेरी जीभ तेरी नेकी का बखान करेगी,*+

क्योंकि जो मुझे नाश करने पर तुले हैं, वे शर्मिंदा और बेइज़्ज़त किए जाएँगे।+

सुलैमान के बारे में।

72 हे परमेश्‍वर, राजा को अपने न्याय-सिद्धांत बता,

राजा के बेटे को अपनी नेकी के बारे में सिखा।+

 2 वह तेरे लोगों की पैरवी नेकी से करे,

तेरे दीन लोगों को न्याय दिलाए।+

 3 पहाड़, लोगों के लिए शांति लाएँ,

पहाड़ियाँ नेकी लाएँ।

 4 लोगों में जो दीन हैं राजा उनकी पैरवी* करे,

गरीबों के बच्चों को बचाए,

मगर धोखेबाज़ को कुचल दे।+

 5 जब तक सूरज रहेगा,

जब तक चाँद बना रहेगा,

तब तक लोग तेरा डर मानेंगे,

पीढ़ी-पीढ़ी तक तेरा डर मानेंगे।+

 6 राजा पानी की बौछार जैसा होगा जो कटी घास पर पड़ती है,

उस झड़ी की तरह होगा जो धरती को सींचती है।+

 7 उसके दिनों में नेक जन फूले-फलेगा,+

जब तक चाँद बना रहेगा, तब तक हर तरफ शांति रहेगी।+

 8 उसकी प्रजा* एक सागर से दूसरे सागर तक,

महानदी* से धरती के छोर तक फैली होगी।+

 9 रेगिस्तान के बाशिंदे उसे प्रणाम करेंगे,

उसके दुश्‍मन धूल चाटेंगे।+

10 तरशीश और द्वीपों के राजा उसे नज़राना देंगे,+

शीबा और सबा के राजा उसे तोहफे देंगे।+

11 सभी राजा उसे प्रणाम करेंगे,

सारे राष्ट्र उसकी सेवा करेंगे।

12 वह दुहाई देनेवाले गरीबों को बचाएगा,

दीन-दुखियों और उनको छुड़ाएगा जिनका कोई मददगार नहीं।

13 वह दीन-दुखियों और गरीबों पर तरस खाएगा,

गरीबों की जान बचाएगा।

14 वह उन्हें अत्याचार और ज़ुल्म से छुड़ाएगा,

उनका खून उसकी नज़र में अनमोल ठहरेगा।

15 राजा की उम्र लंबी हो, उसे शीबा का सोना दिया जाए।+

उसके लिए लगातार दुआएँ की जाएँ,

सारा दिन उसे आशीर्वाद दिया जाए।

16 धरती पर बहुतायत में अनाज होगा,+

पहाड़ों की चोटियों पर अनाज की भरमार होगी।

राजा की फसल लबानोन के पेड़ों की तरह भरपूर होगी,+

शहरों के लोग ज़मीन की घास की तरह खूब बढ़ेंगे।+

17 उसका नाम सदा-सर्वदा बना रहे,+

जब तक सूरज रहेगा तब तक उसका नाम फैलता जाए,

उसके ज़रिए लोग आशीषें पाएँ,*+

देश-देश के लोग उसे सुखी कहें।

18 इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा की तारीफ हो,+

उसके जैसा करिश्‍मा करनेवाला कोई नहीं।+

19 उसके गौरवशाली नाम की सदा तारीफ होती रहे,+

उसकी महिमा से पूरी धरती भर जाए।+

आमीन, आमीन।

20 यहाँ यिशै के बेटे दाविद की प्रार्थनाएँ खत्म होती हैं।+

तीसरी किताब

(भजन 73-89)

आसाप+ का सुरीला गीत।

73 परमेश्‍वर वाकई इसराएल का, शुद्ध मनवालों का भला करता है।+

 2 मगर मेरे कदम बहकने ही वाले थे,

मेरे पैर फिसलने ही वाले थे।+

 3 क्योंकि जब मैंने दुष्टों को चैन से जीते देखा,

तो मैं उन मगरूरों* से जलने लगा था।+

 4 वे हट्टे-कट्टे और मज़बूत हैं।*

उनकी मौत भी दर्दनाक नहीं होती।+

 5 उन्हें ज़िंदगी में कोई गम नहीं, जैसे औरों को है।+

वे मुसीबत की मार नहीं सहते, जैसे दूसरे सहते हैं।+

 6 इसलिए घमंड उनके गले का हार है,+

हिंसा उनके तन का लिबास है।

 7 रईसी* से उनकी आँखें मोटी हो जाती हैं,

उन्हें अपनी साज़िशों में उम्मीद से बढ़कर कामयाबी मिलती है।

 8 वे दूसरों को नीचा दिखाते हैं, बुरी-बुरी बातें कहते हैं,+

मगरूर होकर उन्हें डराते-धमकाते हैं।+

 9 वे ऐसे बात करते हैं मानो आसमान में हों,

धरती पर उनकी ज़बान बड़ी-बड़ी डींगें हाँकती है।

10 इसलिए उसके लोग उनकी तरफ हो जाते हैं,

उनका उमड़ता पानी पीते हैं।

11 वे कहते हैं, “क्या परमेश्‍वर यह सब जानता है?+

क्या परम-प्रधान परमेश्‍वर को वाकई इसकी जानकारी है?”

12 इन दुष्टों को ही सबकुछ आराम से मिल जाता है।+

वे दौलत का अंबार लगाते जाते हैं।+

13 मैंने बेकार ही अपना मन शुद्ध बनाए रखा,

अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए अपने हाथ धोए।+

14 सारा दिन मैं तड़पता रहता था,+

हर सुबह मुझे फटकारा जाता था।+

15 लेकिन अगर मैं अपना दुखड़ा रोता,

तो मैं तेरे लोगों* के साथ गद्दारी करता।

16 जब मैंने इन हालात को समझने की कोशिश की,

तो मैं परेशान हो उठा।

17 मेरी यह उलझन तब दूर हुई जब मैं परमेश्‍वर के शानदार भवन में गया

और मैंने उन दुष्टों के अंजाम के बारे में सोचा।

18 बेशक, तू उन्हें फिसलनेवाली ज़मीन पर खड़ा करता है।+

तू उन्हें गिरा देता है ताकि वे बरबाद हो जाएँ।+

19 वे कैसे अचानक नाश हो जाते हैं!+

अचानक ही उनका बुरी तरह अंत हो जाता है!

20 जैसे कोई नींद से जागने के बाद सपना याद नहीं रखता

वैसे ही हे यहोवा, जब तू उठेगा तो उनकी छवि भुला देगा।*

21 मेरा जी खट्टा हो गया था,+

मेरे अंदर तेज़ दर्द उठता था।

22 मैं अपनी बुद्धि और समझ खो बैठा था,

तेरे सामने निर्बुद्धि जानवर जैसा हो गया था।

23 मगर अब मैं हरदम तेरे साथ रहता हूँ,

तूने मेरा दायाँ हाथ थाम लिया है।+

24 तू मुझे सलाह देकर राह दिखाता है,+

बाद में तू मुझे सम्मान दिलाएगा।+

25 तेरे सिवा स्वर्ग में मेरा और कौन है?

तू मेरे साथ है तो मुझे धरती पर और किसी की ज़रूरत नहीं।+

26 चाहे मेरा तन और मन कमज़ोर होता जाए,

मगर परमेश्‍वर वह चट्टान है जो मेरे दिल को मज़बूती देता है,

वही सदा के लिए मेरा भाग है।+

27 जो तुझसे दूरी बनाए रखते हैं उन्हें तू ज़रूर नाश कर देगा।

जो भी तुझसे बेवफाई करके* तुझे छोड़ देता है उसका तू अंत कर देगा।+

28 मगर मेरे लिए परमेश्‍वर के करीब जाना भला है।+

मैंने सारे जहान के मालिक यहोवा की पनाह ली है

ताकि उसके सभी कामों का ऐलान करूँ।+

आसाप की रचना।+ मश्‍कील।*

74 हे परमेश्‍वर, तूने क्यों हमें सदा के लिए ठुकरा दिया है?+

तेरे चरागाह की भेड़ों पर क्यों तेरा क्रोध भड़का हुआ है?*+

 2 उन लोगों* को याद कर जिन्हें तूने लंबे अरसे पहले अपनी जागीर बनाया था,+

उस गोत्र को याद कर जिसे तूने इसलिए छुड़ाया कि वह तेरी विरासत बने।+

सिय्योन पहाड़ को याद कर जहाँ तू निवास करता था।+

 3 उन जगहों की तरफ कदम बढ़ा जो पूरी तरह नाश की गयी हैं,+

दुश्‍मन ने पवित्र जगह की हर चीज़ तहस-नहस कर दी है।+

 4 तेरे बैरी तेरी उपासना की जगह गरजे।+

वहाँ उन्होंने अपने झंडे गाड़ दिए।

 5 उन्होंने ऐसी तबाही मचायी जैसे कोई घने जंगल में पेड़ों पर कुल्हाड़ी चलाता है।

 6 उन्होंने कुल्हाड़ियों और लोहे की सलाखों से भवन की सारी नक्काशियाँ+ तोड़ दीं।

 7 उन्होंने तेरे भवन में आग लगा दी।+

जो पवित्र डेरा तेरे नाम से जाना जाता है उसे दूषित कर दिया, खाक में मिला दिया।

 8 उन्होंने और उनकी औलाद ने मन-ही-मन कहा:

“इस देश में परमेश्‍वर की उपासना की सारी जगह जला दी जाएँ।”

 9 हमें कोई निशानी नज़र नहीं आती,

एक भी भविष्यवक्‍ता नहीं रहा,

हममें से कोई नहीं जानता कि ऐसा कब तक चलता रहेगा।

10 हे परमेश्‍वर, दुश्‍मन कब तक तुझे ताना मारता रहेगा?+

क्या बैरी सदा तक तेरे नाम का अनादर करता रहेगा?+

11 तू क्यों अपना दायाँ हाथ रोके हुए है?+

अपना हाथ बगल* से निकाल और उन्हें खत्म कर दे।

12 मेरे परमेश्‍वर, तू मुद्दतों से मेरा राजा है,

तू ही धरती पर उद्धार दिलाता है।+

13 तूने अपनी ताकत से समुंदर में हलचल मचा दी,+

समुंदर के विशाल जीवों का सिर कुचल दिया।

14 तूने लिव्यातान* के सिर कुचल दिए।

उसे रेगिस्तान के लोगों को खाने के लिए दे दिया।

15 तूने पानी के सोतों और धाराओं के मुँह खोल दिए,+

सदा बहती नदियों को सुखा दिया।+

16 दिन पर भी तेरा अधिकार है और रात पर भी।

तूने ज्योति बनायी, हाँ, सूरज की रचना की।+

17 तूने धरती की सारी हदें ठहरायीं,+

सर्दी और गरमी का मौसम बनाया।+

18 हे यहोवा, ध्यान दे कि दुश्‍मन तुझ पर कैसे ताना कसते हैं,

मूर्ख कैसे तेरे नाम का अनादर करते हैं।+

19 अपनी फाख्ते की जान जंगली जानवरों के हवाले न कर दे।

अपने पीड़ित लोगों को हमेशा के लिए न भुला दे।

20 हमारे साथ किया करार याद कर,

क्योंकि धरती की अँधेरी जगह दरिंदों का अड्डा बन गयी हैं।

21 कुचले हुए निराश होकर न लौटें,+

दीन-दुखी और गरीब तेरे नाम की तारीफ करें।+

22 हे परमेश्‍वर, उठ अपने मुकदमे की पैरवी कर।

ध्यान दे कि मूर्ख कैसे सारा दिन तुझ पर ताना कसते हैं।+

23 तेरे दुश्‍मन जो कहते हैं उसे न भूल।

तेरे खिलाफ उठनेवालों का होहल्ला आसमान तक बढ़ता जा रहा है।

आसाप+ का गीत। निर्देशक के लिए हिदायत: “नाश न होने दे” धुन के मुताबिक।

75 हे परमेश्‍वर, हम तेरा धन्यवाद करते हैं, हाँ, तेरा धन्यवाद करते हैं,

तेरा नाम करीब है+

और लोग तेरे आश्‍चर्य के कामों का ऐलान करते हैं।

 2 तू कहता है, “जब मैं समय तय करता हूँ,

तब मैं बिना तरफदारी किए न्याय करता हूँ।

 3 जब धरती और उसके सारे निवासी डर के मारे पिघल गए,

तब मैंने ही उसके खंभों को मज़बूत बनाए रखा।” (सेला )

 4 मैं शेखीबाज़ों से कहता हूँ, “शेखी मत मारो,”

दुष्टों से कहता हूँ, “अपनी ताकत पर मत इतराओ।*

 5 अपनी ताकत पर इतना मत इतराओ,*

न ही अकड़कर बोलो।

 6 क्योंकि सम्मान पूरब, पश्‍चिम या दक्षिण से नहीं मिलता।

 7 परमेश्‍वर न्यायी है।+

वही है जो किसी को ऊँचा उठाता तो किसी को नीचे गिराता है।+

 8 यहोवा के हाथ में एक प्याला है,+

उसमें दाख-मदिरा उफन रही है, उसमें मसाला मिला है।

वह उसे ज़रूर उँडेल देगा

और धरती के सभी दुष्ट उसे पीएँगे, उसका तलछट तक पीएँगे।”+

 9 मगर मैं सदा तक उसका ऐलान करता रहूँगा,

याकूब के परमेश्‍वर की तारीफ में गीत गाऊँगा।*

10 क्योंकि वह कहता है, “मैं दुष्टों की सारी ताकत मिटा दूँगा,*

जबकि नेक जनों की ताकत और बढ़ायी जाएगी।”*

आसाप+ का सुरीला गीत। निर्देशक के लिए हिदायत: यह गीत तारोंवाले बाजे बजाकर गाया जाए।

76 परमेश्‍वर को सारा यहूदा जानता है,+

उसका नाम इसराएल में महान है।+

 2 उसका आवास शालेम+ में है,

उसका निवास सिय्योन में है।+

 3 वहाँ उसने जलते तीर तोड़ डाले,

ढाल, तलवार और युद्ध के सारे हथियार तोड़ डाले।+ (सेला )

 4 हे परमेश्‍वर, तू तेज़ चमकता है,*

तू शिकार के पहाड़ों से कहीं ज़्यादा वैभवशाली है।

 5 शेरदिलवाले लूट लिए गए।+

सारे योद्धा मौत की नींद सो गए,

क्योंकि वे मुकाबला नहीं कर सके।+

 6 हे याकूब के परमेश्‍वर, जब तूने डाँट लगायी,

तो घोड़ा और सारथी, दोनों मौत की नींद सो गए।+

 7 तू ही अकेला विस्मयकारी है,+

तेरे ज़बरदस्त क्रोध के आगे भला कौन टिक सकता है?+

 8 स्वर्ग से तूने सज़ा सुनायी।+

धरती उस समय डर गयी और चुप थी,+

 9 जब तू सज़ा देने और धरती के सब दीनों को बचाने के लिए उठा।+ (सेला )

10 आदमी का गुस्से से भड़कना तेरी तारीफ की वजह बनेगा,+

उसके गुस्से की आखिरी चिंगारी से भी तू अपनी महिमा कराएगा।

11 अपने परमेश्‍वर यहोवा से मन्‍नतें मानो

और उन्हें पूरा करो,+

जो उसके चारों तरफ मौजूद हैं,

वे सब उसका डर मानते हुए तोहफे लाएँ।+

12 वह हाकिमों का घमंड चूर कर देगा,

धरती के राजाओं के दिलों में डर पैदा करेगा।

आसाप+ का सुरीला गीत। निर्देशक के लिए हिदायत: यदूतून* पर।

77 मैं ज़ोर-ज़ोर से परमेश्‍वर को पुकारूँगा,

परमेश्‍वर को पुकारूँगा और वह मेरी सुनेगा।+

 2 मुसीबत के दिन मैं यहोवा की खोज करता हूँ।+

रात को मेरे हाथ बिना थके उसकी तरफ फैले रहते हैं।

फिर भी मेरे मन को दिलासा नहीं मिलता।

 3 परमेश्‍वर को याद करके मैं कराहता हूँ,+

मेरा मन बहुत बेचैन है, मेरी ताकत जवाब दे गयी है।+ (सेला )

 4 तू मेरी पलकों को झपकने नहीं देता,

मैं दुख से बेहाल हूँ, मुझसे कुछ कहते नहीं बनता।

 5 मैं पुराने दिन याद करता हूँ+

गुज़रे ज़माने के बारे में सोचता हूँ।

 6 रात के दौरान मैं अपना गीत* याद करता हूँ।+

मैं इन सवालों पर दिल से विचार करता हूँ,+

अच्छी तरह खोजबीन करके जवाब तलाशता हूँ:

 7 क्या यहोवा ने हमें सदा के लिए त्याग दिया है?+

क्या वह फिर कभी हम पर कृपा नहीं करेगा?+

 8 क्या उसका अटल प्यार सदा के लिए मिट गया है?

क्या उसका वादा कभी नहीं पूरा होगा?

 9 क्या परमेश्‍वर हम पर कृपा करना भूल गया है?+

क्या उसने गुस्से में आकर दया करना छोड़ दिया है? (सेला )

10 क्या मुझे बार-बार कहना पड़ेगा, “मुझे यह बात बहुत तड़पाती* है+

कि परम-प्रधान परमेश्‍वर ने हमसे अपना दायाँ हाथ खींच लिया है”?

11 हे याह, मैं तेरे काम याद करूँगा,

गुज़रे ज़माने में किए तेरे आश्‍चर्य के काम याद करूँगा।

12 मैं तेरे सभी कामों पर मनन करूँगा,

उन पर गहराई से सोचूँगा।+

13 हे परमेश्‍वर, तेरी राहें पवित्र हैं।

हे परमेश्‍वर, क्या कोई ईश्‍वर है जो तुझ जैसा महान हो?+

14 तू ही सच्चा परमेश्‍वर है जो आश्‍चर्य के काम करता है।+

तूने देश-देश के लोगों पर अपनी ताकत ज़ाहिर की है।+

15 अपनी शक्‍ति* से तूने अपने लोगों को छुड़ाया,+

याकूब और यूसुफ के वंशजों को बचाया। (सेला )

16 हे परमेश्‍वर, समुंदर ने तुझे देखा,

उसने तुझे देखा और डर गया।+

गहरे सागर में खलबली मच गयी।

17 बादल बरसने लगे,

घनघोर घटाओं से घिरा आसमान गरजने लगा।

तेरे बिजली के तीर इधर-उधर चलने लगे।+

18 तेरा गरजना+ रथ के पहियों की तेज़ घड़घड़ाहट जैसा था,

बिजली के कौंधने से सारा जग* रौशन हो गया,+

ज़मीन काँप उठी, डोलने लगी।+

19 तेरा रास्ता समुंदर से होकर गुज़रा,+

तेरी डगर गहरे सागर के बीच से गुज़री,

मगर तेरे पैरों के निशान कहीं न मिले।

20 तू अपने लोगों को भेड़ों के झुंड की तरह ले चला+

मूसा और हारून के ज़रिए उन्हें ले चला।+

आसाप की रचना।+ मश्‍कील।*

78 मेरे लोगो, मेरा कानून* सुनो,

मैं जो कहता हूँ उस पर कान लगाओ।

 2 मैं तुम्हें नीतिवचन सुनाऊँगा,

पुराने ज़माने की पहेलियाँ बताऊँगा।+

 3 जो बातें हमने सुनी और जानी हैं,

हमारे पुरखों ने हमें बतायी हैं,+

 4 वे हम उनके वंशजों से नहीं छिपाएँगे।

हम आनेवाली पीढ़ी को

यहोवा के लाजवाब कामों और उसकी ताकत के,

उसके आश्‍चर्य के कामों के किस्से सुनाएँगे।+

 5 उसने याकूब को याद दिलाने के लिए हिदायत दी,

इसराएल में एक कानून ठहराया,

हमारे पुरखों को आज्ञा दी

कि ये बातें अपने बच्चों को बताएँ+

 6 ताकि अगली पीढ़ी,

आनेवाली नसल इन बातों को जाने।+

फिर वे भी अपने बच्चों को ये सब बताएँगे।+

 7 तब अगली पीढ़ी के लोग परमेश्‍वर पर भरोसा करेंगे।

वे परमेश्‍वर के काम नहीं भूलेंगे+

बल्कि उसकी आज्ञाएँ मानेंगे।+

 8 वे अपने पुरखों की तरह नहीं बनेंगे,

जिनकी पीढ़ी हठीली और बगावती थी,+

उनका मन डाँवाँडोल रहता था,*+

वे परमेश्‍वर के विश्‍वासयोग्य नहीं रहे।

 9 एप्रैमी लोग तीर-कमान से लैस थे,

मगर युद्ध के दिन पीठ दिखाकर भाग गए।

10 उन्होंने परमेश्‍वर का करार नहीं माना,+

उसके कानून पर चलने से इनकार कर दिया।+

11 वे यह भी भूल गए कि उसने क्या-क्या काम किए थे,+

उन्हें कैसे-कैसे आश्‍चर्य के काम दिखाए थे।+

12 उसने मिस्र देश में, सोअन के इलाके में,+

उनके पुरखों की आँखों के सामने लाजवाब काम किए थे।+

13 उसने समुंदर को चीर दिया था कि वे पार कर सकें

पानी को ऐसे खड़ा कर दिया जैसे बाँध बाँधा गया हो।*+

14 वह उन्हें दिन में बादल से

और सारी रात आग की रौशनी से रास्ता दिखाता।+

15 वह वीराने में चट्टानों को चीर देता,

उन्हें समुंदर जितना भरपूर पानी देता

ताकि वे जी-भरकर पी सकें।+

16 उसने बड़ी चट्टान से पानी की धाराएँ निकालीं,

वे नदियों की तरह बहने लगीं।+

17 फिर भी, वे वीराने में परम-प्रधान परमेश्‍वर से बगावत करते रहे,

ऐसा करके वे उसके खिलाफ पाप करते रहे।+

18 उन्होंने उस खाने की माँग की जिसकी वे ज़बरदस्त लालसा कर रहे थे,

ऐसा करके उन्होंने अपने दिल में परमेश्‍वर को चुनौती दी।*+

19 वे परमेश्‍वर के खिलाफ कुड़कुड़ाने लगे,

“क्या इस वीराने में परमेश्‍वर हमारे लिए मेज़ लगा सकता है?”+

20 परमेश्‍वर ने ही चट्टान को मारा था

जिससे पानी की धाराएँ फूट निकलीं और नदियाँ उमड़ने लगीं!+

फिर भी वे कहने लगे, “क्या वह हमें रोटी भी दे सकता है?

अपने लोगों को गोश्‍त खिला सकता है?”+

21 जब यहोवा ने यह सुना तो वह क्रोध से भर गया,+

उसने याकूब पर आग बरसायी,+

वह इसराएल पर भड़क उठा+

22 क्योंकि उन्होंने परमेश्‍वर पर विश्‍वास नहीं किया,+

यह भरोसा नहीं किया कि वह उनका उद्धार करने के काबिल है।

23 इसलिए परमेश्‍वर ने बादलों से घिरे आसमान को हुक्म दिया,

आकाश के द्वार खोल दिए।

24 वह उनके खाने के लिए मन्‍ना बरसाता रहा,

उसने उन्हें स्वर्ग का अनाज दिया।+

25 इंसानों ने शूरवीरों*+ की रोटी खायी,

उसने इतना दिया कि वे जी-भरकर खा सकें।+

26 उसने आकाश में पूरब की हवा चलायी,

अपनी शक्‍ति से दक्षिण की तेज़ हवा बहायी।+

27 उसने उन पर गोश्‍त की ऐसी बौछार की जैसे ढेर सारी धूल हो,

बेशुमार पक्षी भेजे मानो समुंदर किनारे की बालू हो।

28 उसने पक्षियों को अपनी छावनी के बीचों-बीच गिराया,

अपने तंबुओं के चारों ओर गिराया।

29 लोगों ने गोश्‍त खाया, ठूँस-ठूँसकर खाया,

उन्होंने जो चाहा था उसने उन्हें दिया।+

30 मगर उनका मन और ललचाने लगा

और खाना उनके मुँह में ही था

31 कि परमेश्‍वर का क्रोध उन पर भड़क उठा।+

उसने उनके ताकतवर आदमियों को मार डाला,+

इसराएल के जवानों को ढेर कर दिया।

32 फिर भी वे और ज़्यादा पाप करते रहे,+

उन्होंने उसके आश्‍चर्य के कामों पर विश्‍वास नहीं किया।+

33 उसने उनकी ज़िंदगी के दिन ऐसे खत्म कर दिए मानो साँस हों,+

अचानक खौफ फैलाकर उनके साल मिटा दिए।

34 मगर जब भी वह उनका घात करता वे उसकी खोज करने लगते,+

वे फिरकर परमेश्‍वर को ढूँढ़ने लगते,

35 यह याद करके कि परमेश्‍वर उनकी चट्टान था,+

परम-प्रधान परमेश्‍वर उनका छुड़ानेवाला* था।+

36 मगर उन्होंने मुँह से उसे धोखा देने की कोशिश की,

अपनी जीभ से उससे झूठ बोला।

37 उनका दिल उसकी तरफ अटल नहीं बना रहा,+

वे उसका करार मानने में विश्‍वासयोग्य नहीं रहे।+

38 मगर परमेश्‍वर दयालु था,+

वह उनके गुनाह माफ कर* देता था, उन्हें नाश नहीं करता था।+

वह अकसर अपना गुस्सा रोक लेता था,+

उन पर सारा क्रोध नहीं प्रकट करता था।

39 क्योंकि उसे ध्यान था कि वे अदना इंसान हैं,+

हवा का एक झोंका हैं जो एक बार बह जाए तो लौटता नहीं।*

40 कितनी ही बार उन्होंने वीराने में उससे बगावत की,+

रेगिस्तान में उसे दुख पहुँचाया!+

41 उन्होंने बार-बार परमेश्‍वर की परीक्षा ली,+

इसराएल के पवित्र परमेश्‍वर का दिल दुखाया।

42 वे उसकी शक्‍ति* भूल गए,

वह दिन भूल गए जब उसने उन्हें दुश्‍मन से छुड़ाया था,+

43 कैसे उसने मिस्र में चिन्ह दिखाए थे,+

सोअन प्रदेश में करिश्‍मे किए थे,

44 कैसे उसने नील नदी की नहरों का पानी खून में बदल दिया था+

और वे अपनी नदियों से पी न सके थे।

45 उसने खून चूसनेवाली मक्खियाँ भेजीं ताकि उन्हें काट खाएँ+

और मेंढक भेजे ताकि उन्हें बरबाद कर दें।+

46 उसने उनकी फसलें भूखी टिड्डियों के हवाले कर दी थीं,

उनकी मेहनत का फल दलवाली टिड्डियों को दे दिया।+

47 उसने ओले बरसाकर उनके अंगूरों के बाग नाश कर दिए,+

गूलर के पेड़ तहस-नहस कर डाले।

48 उसने उनके बोझ ढोनेवाले जानवरों को ओलों से नाश कर दिया,+

बिजली गिराकर* उनके मवेशियों को खत्म कर दिया।

49 उसने उन पर गुस्से की आग भड़कायी

क्रोध, जलजलाहट और संकट ले आया,

कहर ढाने के लिए स्वर्गदूतों के दल भेजे।

50 उसने अपने गुस्से के लिए रास्ता बनाया,

उन्हें मौत से नहीं बचाया

और उन्हें महामारी के हवाले कर दिया।

51 आखिर में उसने मिस्र के सभी पहलौठों को मार डाला,+

हाम के तंबुओं में उनकी शक्‍ति* की पहली निशानी मिटा दी।

52 फिर वह अपने लोगों को भेड़ों की तरह निकाल लाया,+

वीराने में उन्हें रास्ता दिखाता गया जैसे चरवाहा झुंड को रास्ता दिखाता है।

53 वह उन्हें हर खतरे से बचाता हुआ ले चला,

इसलिए उन्हें कोई डर नहीं था,+

समुंदर उनके दुश्‍मनों को निगल गया।+

54 वह उन्हें अपने पवित्र देश ले आया,+

इस पहाड़ी इलाके में, जो उसके दाएँ हाथ ने हासिल किया था।+

55 उसने उनके सामने से जातियों को खदेड़ दिया,+

नापने की डोरी से विरासत की ज़मीन उनमें बाँट दी,+

इसराएल के गोत्रों को रहने के लिए घर दिया।+

56 मगर वे परम-प्रधान परमेश्‍वर को चुनौती देने* से बाज़ नहीं आए,

उससे बगावत करते रहे,+

उसके याद दिलाने पर भी कोई ध्यान नहीं दिया।+

57 वे भी परमेश्‍वर से फिर गए और अपने पुरखों की तरह गद्दार निकले,+

ढीली कमान की तरह भरोसे के लायक नहीं थे।+

58 वे कई ऊँची जगह बनाकर उसे गुस्सा दिलाते रहे,+

अपनी गढ़ी हुई मूरतों से उसे भड़काते रहे।+

59 यह सब देखकर परमेश्‍वर क्रोध से भर गया,+

उसने इसराएल को पूरी तरह ठुकरा दिया।

60 आखिरकार उसने शीलो का पवित्र डेरा+ छोड़ दिया,

वह तंबू छोड़ दिया जिसमें वास करके वह इंसानों के बीच रहता था।+

61 उसने अपनी ताकत की निशानी को बँधुआई में जाने दिया,

अपना वैभव बैरी के हाथ में जाने दिया।+

62 उसने अपने लोगों को तलवार के हवाले कर दिया,+

वह अपनी विरासत के खिलाफ गुस्से से भर गया।

63 उसके जवानों को आग ने भस्म कर दिया,

उसकी कुँवारियों के लिए शादी के गीत नहीं गाए गए।

64 उसके याजक तलवार से मारे गए,+

उनकी विधवाएँ नहीं रोयीं।+

65 तब यहोवा ऐसे उठा जैसे नींद से जागा हो,+

जैसे कोई सूरमा+ दाख-मदिरा के नशे से होश में आया हो।

66 उसने अपने दुश्‍मनों को वापस खदेड़ दिया,+

उन्हें हमेशा के लिए शर्मिंदा कर दिया।

67 उसने यूसुफ का तंबू ठुकरा दिया,

एप्रैम गोत्र को नहीं चुना।

68 मगर उसने यहूदा गोत्र को चुना,+

सिय्योन पहाड़ को चुना जो उसे बहुत प्यारा है।+

69 उसने अपने पवित्र-स्थान को आसमान की तरह हमेशा के लिए कायम किया,+

धरती की तरह सदा के लिए मज़बूती से कायम किया।+

70 उसने अपने सेवक दाविद को चुना,+

उसे भेड़ों के बाड़े से ले आया।+

71 जो दूध पिलाती भेड़ों की देखभाल करता था,

उसे याकूब का, अपने लोगों का चरवाहा ठहराया,+

अपनी विरासत इसराएल का चरवाहा ठहराया।+

72 दाविद ने निर्दोष मन से उनकी चरवाही की,+

अपने काबिल हाथों से उनकी अगुवाई की।+

आसाप का सुरीला गीत।+

79 हे परमेश्‍वर, दूसरे राष्ट्रों ने तेरी विरासत+ पर हमला कर दिया है,

उन्होंने तेरे पवित्र मंदिर को दूषित कर दिया है,+

यरूशलेम को खंडहर बना दिया है।+

 2 उन्होंने तेरे सेवकों की लाशें आकाश के पक्षियों को खिला दी हैं,

तेरे वफादार जनों का माँस धरती के जंगली जानवरों को दे दिया है।+

 3 उन्होंने उनका खून पूरे यरूशलेम में पानी की तरह बहा दिया है,

उनकी लाशें दफनानेवाला कोई न रहा।+

 4 हम अपने पड़ोसियों के लिए मज़ाक बन गए हैं,+

आस-पास के लोग हम पर हँसते हैं, हमारी खिल्ली उड़ाते हैं।

 5 हे यहोवा, तू कब तक हमसे भड़का रहेगा?

क्या सदा के लिए?+

कब तक तेरे गुस्से की आग धधकती रहेगी?+

 6 तू अपने क्रोध का प्याला उन राष्ट्रों पर उँडेल दे जो तुझे नहीं जानते,

उन राज्यों पर जो तेरा नाम नहीं पुकारते।+

 7 क्योंकि उन्होंने याकूब को निगल लिया है,

उसके देश को उजाड़ दिया है।+

 8 हमारे पुरखों के गुनाहों के लिए हमें जवाबदेह न ठहरा।+

हम पर दया करने में देर न कर,+

क्योंकि हमें बिलकुल नीचे गिरा दिया गया है।

 9 हे परमेश्‍वर, हमारे उद्धारकर्ता,+

अपने गौरवशाली नाम की खातिर हमारी मदद कर,

अपने नाम की खातिर हमें छुड़ा ले और हमारे पाप माफ कर दे।*+

10 राष्ट्रों को क्यों यह कहने का मौका मिले, “कहाँ गया इनका परमेश्‍वर?”+

हमारी आँखों के सामने राष्ट्रों को जता दे

कि तूने अपने सेवकों के खून का बदला लिया है।+

11 तू कैदियों का कराहना सुने।+

अपनी महाशक्‍ति* से उन्हें बचा ले* जिन्हें मौत की सज़ा सुनायी गयी है।+

12 हे यहोवा, हमारे पड़ोसियों ने तुझ पर जो ताने कसे हैं,+

उनका सात गुना बदला उन्हें चुका।+

13 तब हम जो तेरी प्रजा हैं, तेरे चरागाह की भेड़ें हैं,+

सदा तक तेरा शुक्रिया अदा करते रहेंगे,

पीढ़ी-दर-पीढ़ी तेरी तारीफ करते रहेंगे।+

आसाप का सुरीला गीत।+ निर्देशक के लिए हिदायत: “सोसन के फूलों” के मुताबिक। यादगार के लिए।

80 हे इसराएल के चरवाहे,

तू जो यूसुफ को भेड़ों के झुंड की तरह राह दिखाता है,+ सुन।

तू जो करूबों पर* विराजमान है,+

अपनी रौशनी चमका।*

 2 एप्रैम, बिन्यामीन और मनश्‍शे के सामने

अपनी महाशक्‍ति दिखा,+

आकर हमें बचा ले।+

 3 हे परमेश्‍वर, हमें बहाल कर दे,+

अपने मुख का प्रकाश हम पर चमका ताकि हम बचाए जाएँ।+

 4 सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा, तू कब तक अपने लोगों से भड़का रहेगा?

कब तक उनकी प्रार्थनाएँ अनसुनी करता रहेगा?+

 5 तू उन्हें आँसुओं की रोटी खिलाता है,

आँसुओं का सैलाब पिलाता है।

 6 तूने ऐसा किया कि पड़ोसी हमारे लिए आपस में लड़ते हैं,

हमारे दुश्‍मन हमारी हँसी उड़ाते हैं।+

 7 हे सेनाओं के परमेश्‍वर, हमें बहाल कर दे,

अपने मुख का प्रकाश हम पर चमका ताकि हम बचाए जाएँ।+

 8 तू अपने लोगों को मिस्र से ऐसे निकाल लाया था जैसे वे अंगूर की बेल हों।+

तूने जातियों को खदेड़कर उनकी जगह उस बेल को लगाया।+

 9 तूने उस बेल के लिए जगह साफ की,

बेल ने जड़ पकड़ी और पूरे देश में फैल गयी।+

10 उसकी छाया से पहाड़ ढक गए,

उसकी शाखाओं से परमेश्‍वर के देवदार ढक गए।

11 उसकी शाखाएँ दूर समुंदर तक फैल गयीं,

टहनियाँ महानदी* तक पहुँच गयीं।+

12 तूने अंगूरों के बाग के पत्थर के बाड़े क्यों गिरा दिए?+

आने-जानेवाले सभी उसके अंगूर तोड़ लेते हैं।+

13 जंगली सूअर उसे बरबाद करते हैं,

मैदान के जंगली जानवर उसे खा जाते हैं।+

14 हे सेनाओं के परमेश्‍वर, तुझसे बिनती है कि लौट आ।

स्वर्ग से नीचे देख!

इस बेल की देखभाल कर,+

15 इस तने* की, जिसे तूने अपने दाएँ हाथ से लगाया था,+

उस बेटे* को देख जिसे तूने अपने लिए मज़बूत किया था।+

16 उसे काट डाला गया है, जला दिया गया है,+

तेरी डाँट से वे नाश हो जाते हैं।

17 तेरा हाथ उस आदमी को थाम ले जो तेरे दायीं तरफ है,

इंसान के बेटे को थाम ले जिसे तूने अपने लिए मज़बूत किया है।+

18 तब हम तुझसे मुँह न फेरेंगे।

हमें मरने से बचा ले ताकि हम तेरा नाम पुकारें।

19 हे सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा, हमें बहाल कर दे,

अपने मुख का प्रकाश हम पर चमका ताकि हम बचाए जाएँ।+

आसाप की रचना।+ गित्तीत* के सिलसिले में निर्देशक के लिए हिदायत।

81 परमेश्‍वर हमारी ताकत है,+ खुशी से उसकी जयजयकार करो।

याकूब के परमेश्‍वर के लिए जीत के नारे लगाओ।

 2 संगीत शुरू करो, डफली बजाओ,

तारोंवाले बाजे के साथ मधुर बजनेवाला सुरमंडल बजाओ।

 3 नए चाँद के मौके पर

और पूरे चाँद के अवसर पर, हमारे त्योहार के दिन+ नरसिंगा फूँको।+

 4 क्योंकि यह इसराएल के लिए आदेश है,

याकूब के परमेश्‍वर का हुक्म है।+

 5 जब परमेश्‍वर मिस्र के खिलाफ उठा,+

तब उसने यूसुफ के लिए उसे याद दिलानेवाली हिदायत ठहरायी।+

मैंने एक आवाज़* सुनी मगर उसे पहचाना नहीं:

 6 “मैंने उसके कंधे से बोझ उतार दिया,+

उसके हाथों को टोकरी ढोने से छुटकारा मिला।

 7 संकट के दिन तूने मुझे पुकारा और मैंने तुझे छुड़ाया,+

गरजते बादलों में* से तुझे जवाब दिया।+

मरीबा* के सोते के पास तुझे परखा।+ (सेला )

 8 हे मेरी प्रजा सुन, मैं तेरे खिलाफ गवाही दूँगा।

हे इसराएल काश! तू मेरी बात सुनता!+

 9 तेरे बीच कोई पराया देवता नहीं होगा,

तू दूसरे देश के किसी देवता के आगे दंडवत नहीं करेगा।+

10 मैं यहोवा तेरा परमेश्‍वर हूँ,

मैं तुझे मिस्र से निकाल लाया था।+

अपना मुँह पूरा खोल, मैं उसे भर दूँगा।+

11 मगर मेरे लोगों ने मेरी एक न सुनी,

इसराएल मेरे अधीन न रहा।+

12 इसलिए मैंने उन्हें अपने ढीठ मन के मुताबिक चलने के लिए छोड़ दिया।

उन्होंने वही किया जो उन्हें सही लगा।*+

13 काश, मेरे लोग मेरी बात सुनते!+

काश, इसराएल मेरी राहों पर चलता!+

14 तब मैं उनके दुश्‍मनों को फौरन हरा देता,

उनके बैरियों को धूल चटा देता।+

15 यहोवा से नफरत करनेवाले उसके सामने दुबक जाएँगे,

वे हमेशा सज़ा भुगतते रहेंगे।

16 मगर तुझे* वह सबसे बढ़िया गेहूँ खिलाएगा+

और चट्टान से निकलनेवाला शहद खिलाकर तुझे संतुष्ट करेगा।”+

आसाप का सुरीला गीत।+

82 परमेश्‍वर अपनी सभा में खड़ा होता है,+

ईश्‍वरों के बीच* वह न्याय करता है+ और कहता है,

 2 “तुम कब तक अन्याय करते रहोगे?+

कब तक दुष्टों की तरफदारी करते रहोगे?+ (सेला )

 3 दीन-दुखियों और अनाथों* की पैरवी* करो।+

लाचार और बेसहारा लोगों को न्याय दिलाओ।+

 4 दीन-दुखियों और गरीबों को बचाओ,

उन्हें दुष्टों के हाथों से छुड़ाओ।”

 5 ये न्यायी न तो कुछ जानते हैं, न कुछ समझते हैं,+

वे अंधकार में भटक रहे हैं,

पृथ्वी की पूरी बुनियाद हिलायी जा रही है।+

 6 “मैंने कहा, ‘तुम सब ईश्‍वर* हो,+

परम-प्रधान परमेश्‍वर के बेटे हो।

 7 फिर भी दूसरे इंसानों की तरह तुम्हारी भी मौत होगी,+

दूसरे हाकिमों की तरह तुम भी गिर जाओगे!’”+

 8 हे परमेश्‍वर उठ, दुनिया का इंसाफ कर,+

क्योंकि सब राष्ट्र तेरे हैं।

आसाप+ का सुरीला गीत।

83 हे परमेश्‍वर, तू क्यों चुप है?+

हे शक्‍तिशाली परमेश्‍वर, कुछ तो बोल,* कुछ कदम उठा।

 2 देख! तेरे दुश्‍मन होहल्ला मचा रहे हैं,+

तुझसे नफरत करनेवाले हेकड़ी से पेश आते हैं।*

 3 वे धूर्त तरीके से, चोरी-छिपे तेरे लोगों के खिलाफ साज़िशें कर रहे हैं,

तेरे अज़ीज़ लोगों* के खिलाफ चाल चल रहे हैं।

 4 वे कहते हैं, “आओ, हम इस पूरे राष्ट्र को नाश कर दें+

ताकि इसराएल का नाम हमेशा के लिए भुला दिया जाए।”

 5 वे सब एकमत होकर तरकीबें बुनते हैं,*

उन्होंने तेरे खिलाफ आपस में संधि की है*+—

 6 एदोम और इश्‍माएलियों के तंबू, मोआब+ और हगरी लोग,+

 7 गबाल और अम्मोन+ और अमालेक,

पलिश्‍त+ और सोर के लोग।+

 8 अश्‍शूर+ भी उनसे मिल गया है,

वे लूत के बेटों+ का साथ देते हैं। (सेला )

 9 तू उनका वही हश्र कर जो तूने मिद्यान का किया था,+

कीशोन नदी* के पास सीसरा और याबीन का किया था।+

10 उन्हें एन्दोर में नाश कर दिया गया था,+

वे ज़मीन की खाद बन गए थे।

11 उनके रुतबेदार लोगों का वही हाल कर जो ओरेब और ज़ाएब का हुआ था,+

उनके हाकिमों* के साथ वही कर जो जेबह और सलमुन्‍ना के साथ हुआ था,+

12 क्योंकि उन्होंने कहा है, “चलो, हम उस देश पर कब्ज़ा कर लें जहाँ परमेश्‍वर निवास करता है।”

13 हे मेरे परमेश्‍वर, उन्हें उखड़े हुए पौधे जैसा कर दे जो यहाँ-वहाँ उड़ाया जाता है,+

सूखी घास जैसा कर दे जिसे हवा इधर से उधर उड़ाती है।

14 जैसे आग जंगल को भस्म कर देती है,

शोला पहाड़ों को जला देता है,+

15 वैसे ही तू तेज़ आँधी चलाकर उनका पीछा कर,+

तूफान लाकर उनमें खौफ फैला दे।+

16 उनका मुँह अपमान से ढाँप दे

ताकि हे यहोवा, वे तेरे नाम की खोज करें।

17 वे हमेशा के लिए शर्मिंदा किए जाएँ और खौफ में रहें,

वे बेइज़्ज़त किए जाएँ और नाश हो जाएँ,

18 लोग जानें कि सिर्फ तू जिसका नाम यहोवा है,+

सारी धरती के ऊपर परम-प्रधान है।+

कोरह के वंशजों का सुरीला गीत।+ गित्तीत* के सिलसिले में निर्देशक के लिए हिदायत।

84 हे सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा,

तेरा महान डेरा कितना प्यारा है!+

 2 मेरा मन यहोवा के आँगनों में जाने के लिए तरस रहा है,

आस लगाते-लगाते मैं पस्त हो गया हूँ।+

मेरा तन और मन खुशी से जीवित परमेश्‍वर की जयजयकार करता है।

 3 हे सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा,

मेरे राजा और मेरे परमेश्‍वर,

देख! पंछी तेरी महान वेदी के पास आशियाना बनाता है,

अबाबील अपना घोंसला बनाती है,

जहाँ वह अपने बच्चों की देखभाल करती है!

 4 सुखी हैं वे जो तेरे भवन में निवास करते हैं!+

वे लगातार तेरी तारीफ करते हैं।+ (सेला )

 5 सुखी हैं वे जो तुझसे ताकत पाते हैं,+

जिनका मन तेरे भवन को जानेवाली राहों पर लगा है।

 6 जब वे बाका घाटी* से होकर गुज़रते हैं,

तो वे उसे सोतों का इलाका समझते हैं

और शुरू की बारिश उसे आशीषों का ओढ़ना ओढ़ाती है।*

 7 वे चलते जाते हैं, उनका दमखम बढ़ता ही रहता है,+

हर कोई सिय्योन में परमेश्‍वर के सामने हाज़िर होता है।

 8 हे सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा, मेरी प्रार्थना सुन,

हे याकूब के परमेश्‍वर, मेरी दुआ सुन। (सेला )

 9 हे हमारी ढाल+ और हमारे परमेश्‍वर,*

अपने अभिषिक्‍त के चेहरे पर नज़र डाल।+

10 क्योंकि तेरे आँगनों में एक दिन बिताना, कहीं और हज़ार दिन बिताने से कहीं बेहतर है!+

दुष्टों के तंबुओं में निवास करने के बजाय

अपने परमेश्‍वर के भवन की दहलीज़ पर खड़ा रहना मुझे ज़्यादा पसंद है।

11 क्योंकि यहोवा परमेश्‍वर हमारा सूरज+ और हमारी ढाल है,+

वह हम पर कृपा करता है, हमारा सम्मान बढ़ाता है।

जो निर्दोष चाल चलते हैं,

उन्हें यहोवा कोई भी अच्छी चीज़ देने से पीछे नहीं हटेगा।+

12 हे सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा,

सुखी है वह इंसान जो तुझ पर भरोसा रखता है।+

कोरह के वंशजों का सुरीला गीत।+ निर्देशक के लिए हिदायत।

85 हे यहोवा, तूने अपने देश पर कृपा की है,+

तू याकूब की संतानों को बँधुआई से वापस ले आया।+

 2 तूने अपने लोगों का गुनाह माफ किया है,

उनके सारे पाप माफ कर दिए।*+ (सेला )

 3 तूने अपना क्रोध प्रकट करने से खुद को रोक लिया,

अपने गुस्से की जलजलाहट शांत कर दी।+

 4 हे परमेश्‍वर, हमारे उद्धारकर्ता, हमें बहाल कर दे,*

हमसे नाराज़ होना छोड़ दे।+

 5 क्या तू हमेशा के लिए हम पर भड़का रहेगा?+

क्या तू पीढ़ी-पीढ़ी तक गुस्सा करता रहेगा?

 6 क्या तू हममें दोबारा जान नहीं फूँकेगा

ताकि तेरे लोग तेरे कारण आनंद मनाएँ?+

 7 हे यहोवा, हमें अपने अटल प्यार का सबूत दे,+

हमारा उद्धार कर।

 8 सच्चा परमेश्‍वर यहोवा जो कहता है, मैं सुनूँगा,

क्योंकि वह अपने लोगों से, अपने वफादार जनों से शांति की बातें करेगा,+

मगर ऐसा न हो कि वे पहले की तरह खुद पर हद-से-ज़्यादा भरोसा करें।+

 9 परमेश्‍वर उन लोगों को बचाने के लिए तैयार रहता है जो उसका डर मानते हैं+

ताकि हमारे देश पर उसकी महिमा छायी रहे।

10 अटल प्यार और वफादारी एक-दूसरे से मिलेंगे,

नेकी और शांति एक-दूसरे को चूमेंगी।+

11 धरती से वफादारी के अंकुर फूटेंगे

और आसमान से नेकी चमकेगी।+

12 बेशक, यहोवा हमें अच्छी चीज़ें* देगा,+

हमारी ज़मीन अपनी उपज देगी।+

13 नेकी परमेश्‍वर के सामने चलेगी,+

उसके कदमों के लिए रास्ता बनाएगी।

दाविद की प्रार्थना।

86 हे यहोवा, मेरी तरफ कान लगा* और मुझे जवाब दे,

क्योंकि मैं सताया हुआ और गरीब हूँ।+

 2 मेरी जान की हिफाज़त कर क्योंकि मैं वफादार हूँ।+

अपने सेवक को बचा ले जो तुझ पर भरोसा रखता है,

क्योंकि तू मेरा परमेश्‍वर है।+

 3 हे यहोवा, मुझ पर कृपा कर,+

मैं सारा दिन तुझे पुकारता रहता हूँ।+

 4 अपने सेवक को खुशियाँ दे,

क्योंकि हे यहोवा, मैं तेरी ओर रुख करता हूँ।

 5 हे यहोवा, तू भला है+ और माफ करने को तत्पर रहता है,+

तू उन सबके लिए अटल प्यार से भरपूर है जो तुझे पुकारते हैं।+

 6 हे यहोवा, मेरी प्रार्थना सुन,

मेरी मदद की पुकार पर ध्यान दे।+

 7 संकट के दिन मैं तुझे पुकारता हूँ,+

क्योंकि मुझे पूरा यकीन है कि तू जवाब देगा।+

 8 हे यहोवा, ईश्‍वरों में तेरे समान कोई नहीं,+

तूने जो काम किए हैं वे बेमिसाल हैं।+

 9 हे यहोवा, सब राष्ट्र, जो तेरे हाथ की रचना हैं,

तेरे पास आएँगे और तेरे सामने दंडवत करेंगे,+

तेरे नाम की महिमा करेंगे।+

10 क्योंकि तू महान है और आश्‍चर्य के काम करता है,+

तू ही अकेला परमेश्‍वर है।+

11 हे यहोवा, मुझे अपनी राह के बारे में सिखा।+

मैं तेरी सच्चाई की राह पर चलूँगा।+

मेरे मन को एक कर* कि मैं तेरे नाम का डर मानूँ।+

12 हे यहोवा, मेरे परमेश्‍वर, मैं पूरे दिल से+ तेरी तारीफ करता हूँ

और सदा तक तेरे नाम की महिमा करूँगा।

13 क्योंकि मेरे लिए तेरा अटल प्यार महान है,

तूने मुझे कब्र की गहराइयों में जाने से बचाया है।+

14 हे परमेश्‍वर, गुस्ताख लोग मेरे खिलाफ खड़े हुए हैं,+

बेरहम आदमियों की टोली मेरी जान के पीछे पड़ी है,

वे तेरी बिलकुल कदर नहीं करते।*+

15 मगर हे यहोवा, तू दयालु और करुणा करनेवाला परमेश्‍वर है,

तू क्रोध करने में धीमा, अटल प्यार से भरपूर और विश्‍वासयोग्य* है।+

16 मुझ पर ध्यान दे और कृपा कर।+

अपने सेवक को ताकत दे,+

अपनी दासी के बेटे को बचा ले।

17 मुझे अपनी भलाई का चिन्ह दिखा*

ताकि मुझसे नफरत करनेवाले यह देखकर शर्मिंदा हो जाएँ।

क्योंकि हे यहोवा, तू मेरा मददगार है और मुझे दिलासा देनेवाला है।

कोरह के वंशजों का सुरीला गीत।+

87 परमेश्‍वर की नगरी की बुनियाद पवित्र पहाड़ों पर है।+

 2 यहोवा याकूब के सभी तंबुओं से ज़्यादा

सिय्योन के फाटकों से लगाव रखता है।+

 3 हे सच्चे परमेश्‍वर की नगरी,+ लोग तेरी तारीफ में कितनी बढ़िया बातें कह रहे हैं। (सेला )

 4 मैं राहाब+ और बैबिलोन को उनमें गिनूँगा जो मुझे जानते हैं,*

कूश के साथ पलिश्‍त और सोर को देखो,

मैं इनमें से हरेक के बारे में कहूँगा, “यह वहाँ पैदा हुआ था।”

 5 और सिय्योन के बारे में कहा जाएगा:

“हर कोई इस नगरी में पैदा हुआ था।”

परम-प्रधान परमेश्‍वर उसे मज़बूती से कायम करेगा।

 6 जब यहोवा देश-देश के लोगों के नाम लिखेगा तब वह ऐलान करेगा,

“यह वहाँ पैदा हुआ था।” (सेला )

 7 गानेवाले+ और घेरा बनाकर नाचनेवाले,+ सभी कहेंगे,

“मेरे सब सोते तुझसे ही निकलते हैं।”*+

कोरह के वंशजों का सुरीला गीत।+ निर्देशक के लिए हिदायत: यह गीत बारी-बारी से महलत की शैली* में गाया जाए। जेरह के वंशज हेमान+ का मश्‍कील।*

88 हे यहोवा, मेरे उद्धारकर्ता परमेश्‍वर,+

दिन को मैं तुझे पुकारता हूँ,

रात को भी मैं तेरे सामने आता हूँ।+

 2 मेरी प्रार्थना तेरे पास पहुँचे,+

मेरी मदद की पुकार पर कान लगा।*+

 3 क्योंकि मैं पीड़ा से भरा हुआ हूँ,+

मैं कब्र की दहलीज़ तक पहुँच गया हूँ।+

 4 मुझे अभी से उनमें गिना जा रहा है जो जल्द ही गड्‌ढे* में जानेवाले हैं,+

मैं बिलकुल लाचार हो गया हूँ,*+

 5 मुझे मुरदों के बीच छोड़ दिया गया है,

मैं उनके जैसा हो गया हूँ जो घात होकर कब्र में पड़े हैं,

जिन्हें अब तू याद नहीं करता,

जिन पर अब तेरा साया* नहीं रहा।

 6 तूने मुझे गहरी खाई में फेंक दिया है,

उस बड़े अथाह-कुंड में, जहाँ अँधेरा ही अँधेरा है।

 7 तेरे क्रोध के बोझ से मैं दबा जा रहा हूँ,+

तूने अपनी विनाशकारी लहरों से मुझे घेर लिया है। (सेला )

 8 तूने मेरे जान-पहचानवालों को मुझसे दूर भगा दिया है,+

मुझे उनकी नज़र में घिनौना बना दिया है।

मैं फँस गया हूँ, निकलने का कोई रास्ता नहीं।

 9 पीड़ा से मेरी आँखें धुँधली पड़ गयी हैं।+

हे यहोवा, मैं सारा दिन तुझे पुकारता रहता हूँ,+

हाथ फैलाकर दुआ करता हूँ।

10 क्या तू मरे हुओं की खातिर करिश्‍मे करेगा?

क्या मुरदे उठकर तेरी तारीफ कर सकते हैं?+ (सेला )

11 क्या कब्र में तेरे अटल प्यार का

और विनाश की जगह* तेरी वफादारी का बखान किया जाएगा?

12 क्या तेरे आश्‍चर्य के काम, अंधकार की जगह

या तेरी नेकी अज्ञानता की जगह जानी जाएगी?+

13 फिर भी हे यहोवा, मैं मदद के लिए तुझे पुकारता हूँ,+

हर सुबह अपनी प्रार्थना तेरे सामने रखता हूँ।+

14 हे यहोवा, तू क्यों मुझे ठुकरा देता है?+

क्यों मुझसे अपना मुँह फेर लेता है?+

15 बचपन से ही मैं दुख झेलता आया हूँ, मौत से जूझता रहा हूँ,+

तू मुझ पर भयानक विपत्तियाँ आने देता है,

उन्हें सहते-सहते मैं बेजान हो गया हूँ।

16 तेरे क्रोध की लपटों ने मुझे घेर लिया है।+

तेरा खौफ मुझे खाए जा रहा है।

17 तेरा खौफ मुझे सारा दिन समुंदर की लहरों की तरह घेरे रहता है,

चारों तरफ से* मुझ पर हावी हो जाता है।

18 तूने मेरे दोस्तों और साथियों को मुझसे बहुत दूर भगा दिया है,+

अब अँधेरा ही मेरा साथी है।

जेरह के वंशज एतान+ की रचना। मश्‍कील।*

89 यहोवा ने अटल प्यार की वजह से जो उपकार किए हैं, मैं सदा उनके गीत गाऊँगा।

मैं आनेवाली सभी पीढ़ियों को बताऊँगा कि तू कितना विश्‍वासयोग्य है।

 2 क्योंकि मैंने कहा, “अटल प्यार सदा बना रहेगा+

और तूने स्वर्ग में अपनी वफादारी मज़बूती से कायम की है।”

 3 तूने कहा है, “मैंने अपने चुने हुए जन के साथ एक करार किया है,+

अपने सेवक दाविद से शपथ खाकर कहा,+

 4 ‘मैं तेरा वंश+ सदा तक बनाए रखूँगा

और तेरी राजगद्दी पीढ़ी-पीढ़ी तक कायम रखूँगा।’”+ (सेला )

 5 हे यहोवा, स्वर्ग तेरे लाजवाब कामों की बड़ाई करता है,

हाँ, पवित्र जनों की मंडली तेरी वफादारी की तारीफ करती है।

 6 क्योंकि आसमान में ऐसा कौन है जो यहोवा के समान हो?+

परमेश्‍वर के बेटों+ में ऐसा कौन है जो यहोवा जैसा हो?

 7 पवित्र जनों की सभा में परमेश्‍वर की गहरी श्रद्धा की जाती है,+

वह उन सबके लिए वैभवशाली और विस्मयकारी है जो उसके चारों तरफ मौजूद हैं।+

 8 हे सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा,

हे याह, तेरे जैसा शक्‍तिशाली कौन है?+

तू पूरी तरह विश्‍वासयोग्य है।+

 9 तूफानी समुंदर को तू काबू में रखता है,+

जब उसकी लहरें उफनती हैं तो तू उन्हें शांत करता है।+

10 तूने राहाब+ को घात किए हुए की तरह कुचल दिया।+

अपने ताकतवर बाज़ू से दुश्‍मनों को तितर-बितर कर दिया।+

11 आकाश तेरा है, धरती भी तेरी है,+

यह उपजाऊ ज़मीन और उसमें पायी जानेवाली सारी चीज़ें+ तूने ही रची हैं।

12 उत्तर और दक्षिण को तूने सिरजा,

ताबोर+ और हेरमोन पहाड़+ खुशी-खुशी तेरे नाम की तारीफ करते हैं।

13 तेरा बाज़ू शक्‍तिशाली है,+

तेरा हाथ मज़बूत है,+

तेरा दायाँ हाथ ऊँचा किया गया है।+

14 नेकी और न्याय तेरी राजगद्दी की बुनियाद हैं।+

अटल प्यार और वफादारी तेरे सामने हाज़िर रहते हैं।+

15 सुखी हैं वे लोग जो खुशी से तेरी जयजयकार करते हैं।+

हे यहोवा, वे तेरे मुख के प्रकाश में चलते हैं।

16 तेरे नाम के कारण वे सारा दिन आनंद मनाते हैं,

तेरी नेकी के ज़रिए वे ऊँचे उठाए जाते हैं।

17 क्योंकि तू उनकी ताकत की शान है,+

तेरी मंज़ूरी से हमारी ताकत बढ़ती जाती है।*+

18 हमारी ढाल यहोवा की दी हुई है,

हमारा राजा इसराएल के पवित्र परमेश्‍वर का ठहराया हुआ है।+

19 उस वक्‍त तूने एक दर्शन में अपने वफादार जनों से कहा था,

“मैंने एक शूरवीर को ताकत दी है,+

मैंने लोगों में से एक चुने हुए जन को ऊँचा उठाया है।+

20 मैंने अपने सेवक दाविद को पाया,+

अपने पवित्र तेल से उसका अभिषेक किया।+

21 मेरा हाथ उसे थामे रहेगा,+

मेरे बाज़ू उसे मज़बूत करेंगे।

22 कोई भी दुश्‍मन उससे कर नहीं वसूलेगा,

कोई दुष्ट उसे नहीं सताएगा।+

23 मैं उसके सामने उसके दुश्‍मनों को कुचल दूँगा,+

उससे नफरत करनेवालों को मार डालूँगा।+

24 मेरा अटल प्यार और मेरी वफादारी उसके साथ है,+

मेरे नाम के कारण उसकी ताकत बढ़ती जाएगी।*

25 मैं समुंदर को उसके हाथ के नीचे* कर दूँगा,

नदियों को उसके दाएँ हाथ के नीचे कर दूँगा।+

26 वह पुकारकर मुझसे कहेगा, ‘तू मेरा पिता है,

मेरा परमेश्‍वर और मेरे उद्धार की चट्टान है।’+

27 मैं उसे अपना पहलौठा मानूँगा,+

धरती के सभी राजाओं से महान करूँगा।+

28 मैं उससे सदा प्यार* करता रहूँगा,+

उसके साथ किया मेरा करार कभी नहीं टूटेगा।+

29 मैं उसका वंश सदा तक बनाए रखूँगा,

उसकी राजगद्दी स्वर्ग की तरह हमेशा कायम रखूँगा।+

30 अगर उसके बेटे मेरा कानून मानना छोड़ दें,

मेरे आदेशों* के मुताबिक न चलें,

31 अगर वे मेरी विधियों के खिलाफ जाएँ

और मेरी आज्ञाएँ न मानें,

32 तो मैं उनकी बगावत की वजह से उन्हें छड़ी से मारूँगा,+

उनके गुनाह की वजह से उन्हें कोड़े लगाऊँगा।

33 मगर मैं उससे प्यार* करना कभी नहीं छोड़ूँगा,+

न ही अपने वादे से मुकरकर झूठा साबित होऊँगा।*

34 मैं अपना करार नहीं तोड़ूँगा,+

न ही अपनी ज़बान बदलूँगा।+

35 अपनी पवित्रता की शपथ खाकर जब मैंने दाविद से एक बार कह दिया,

तो मैं उससे कभी झूठ नहीं बोलूँगा।+

36 उसका वंश* सदा बना रहेगा,+

उसकी राजगद्दी मेरे सामने सूरज की तरह सदा कायम रहेगी।+

37 वह चाँद की तरह सदा तक मज़बूती से कायम रहेगी,

जो आसमान में एक विश्‍वासयोग्य गवाह जैसा है।” (सेला )

38 मगर तूने अपने अभिषिक्‍त जन को अपनी नज़रों से दूर कर दिया, उसे ठुकरा दिया,+

तेरे गुस्से की जलजलाहट उस पर भड़की हुई है।

39 तूने अपने सेवक के साथ किए करार को तुच्छ समझा,

उसका ताज ज़मीन पर पटककर दूषित कर दिया।

40 तूने उसकी पत्थर की सारी दीवारें* ढा दीं,

उसके गढ़ ढाकर खंडहर बना दिए।

41 उसके पास से गुज़रनेवालों ने उसे लूट लिया,

उसके पड़ोसी उसे बदनाम करते हैं।+

42 तूने उसके बैरियों को जीत दिलायी,*+

उसके सभी दुश्‍मनों को खुशियाँ मनाने का मौका दिया।

43 तूने उसकी तलवार का विरोध किया,

तूने युद्ध में उसके पैर जमने नहीं दिए।

44 तूने उसकी शानो-शौकत मिटा दी,

उसकी राजगद्दी ज़मीन पर पटक दी।

45 तूने उस पर वक्‍त से पहले ही बुढ़ापा आने दिया,

तूने उसे शर्म से ढाँप दिया। (सेला )

46 हे यहोवा, तू कब तक अपना मुँह फेरे रहेगा? क्या सदा के लिए?+

क्या तेरे क्रोध की आग इसी तरह भड़कती रहेगी?

47 ध्यान दे कि मेरी ज़िंदगी कितनी छोटी है!+

क्या तूने सब इंसानों को बिना मकसद के रचा था?

48 क्या कोई ऐसा इंसान है जो कभी मौत न देखे?+

क्या वह कब्र की गिरफ्त से खुद को बचा सकता है? (सेला )

49 हे यहोवा, तूने अटल प्यार की वजह से गुज़रे दिनों में जो काम किए थे वे कहाँ गए,

जिनके बारे में तूने अपनी वफादारी की वजह से दाविद से शपथ खायी थी?+

50 हे यहोवा, ध्यान दे कि तेरे सेवकों पर कैसे ताने कसे जाते हैं,

कैसे मुझे सभी देशों के लोगों के ताने सहने* पड़ते हैं,

51 हे यहोवा देख, कैसे तेरे दुश्‍मनों ने तेरे अभिषिक्‍त जन की बेइज़्ज़ती की है,

कैसे उन्होंने उसके हर काम की निंदा की है।

52 यहोवा की सदा तारीफ होती रहे। आमीन। आमीन।+

चौथी किताब

(भजन 90-106)

सच्चे परमेश्‍वर के सेवक मूसा+ की प्रार्थना।

90 हे यहोवा, पीढ़ी-पीढ़ी से तू हमारा निवास-स्थान* रहा है।+

 2 इससे पहले कि पहाड़ पैदा हुए,

या तू पृथ्वी और उपजाऊ ज़मीन को वजूद में लाया,*+ तू ही परमेश्‍वर था।

हाँ, तू हमेशा से परमेश्‍वर रहा है और हमेशा रहेगा।+

 3 तू नश्‍वर इंसान को मिट्टी में लौटा देता है,

तू कहता है, “इंसानो, मिट्टी में लौट जाओ।”+

 4 तेरी नज़र में हज़ार साल ऐसे हैं

जैसे बीता हुआ कल हो,+

जैसे रात का बस एक पहर हो।

 5 तू एक ही झटके में उनका सफाया कर देता है,+

उनकी ज़िंदगी नींद के चंद लमहों की तरह बन जाती है,

वे भोर को उगनेवाली हरी घास जैसे होते हैं।+

 6 सुबह वह लहलहाती और बढ़ती है,

पर शाम होते-होते मुरझाकर सूख जाती है।+

 7 क्योंकि तेरे क्रोध की आग से हम भस्म हो जाते हैं,+

तेरी जलजलाहट देखकर हम दहल जाते हैं।

 8 तू हमारे गुनाहों को अपने सामने रखता है,*+

तेरे मुख के प्रकाश से हमारे राज़ खुल जाते हैं।+

 9 तेरे क्रोध के कारण हमारे दिन घटते जाते हैं,*

हमारी ज़िंदगी के साल एक आह की तरह बीत जाते हैं।

10 हमारी उम्र 70 साल की होती है,

अगर किसी में ज़्यादा दमखम हो तो* 80 साल की होती है।+

पर ये साल भी दुख और मुसीबतों से भरे होते हैं,

ये जल्दी बीत जाते हैं और हम गायब हो जाते हैं।+

11 तेरी जलजलाहट की इंतिहा कौन जान सकता है?

तेरा क्रोध भयानक है, इसलिए हम तेरा बहुत डर मानते हैं।+

12 हमें अपने दिन गिनना सिखा+

ताकि हम बुद्धि से भरा दिल पा सकें।

13 हे यहोवा, हमारे पास लौट आ!+

ऐसा कब तक चलेगा?+

अपने सेवकों पर तरस खा।+

14 भोर को अपने अटल प्यार से हमें संतुष्ट कर+

ताकि हम ज़िंदगी के सारे दिन मगन रहें और खुशी से जयजयकार करें।+

15 तूने जितने दिन हमें दुख दिए उतने दिन खुशियाँ दे,+

जितने साल हमने कहर सहा उतने साल खुशियाँ दे।+

16 तेरे सेवक तेरे काम देखें,

उनके वंशज तेरा वैभव देखें।+

17 हमारे परमेश्‍वर यहोवा की कृपा हम पर बनी रहे।

तू हमारे हाथों की मेहनत सफल करे।*

हाँ, हमारे हाथों की मेहनत सफल करे।*+

91 जो कोई परम-प्रधान की गुप्त जगह में निवास करता है,+

वह सर्वशक्‍तिमान के साए में बसेरा करेगा।+

 2 मैं यहोवा से कहूँगा, “तू मेरी पनाह और मेरा मज़बूत गढ़ है,+

मेरा परमेश्‍वर जिस पर मैं भरोसा करता हूँ।”+

 3 वह तुझे बहेलिए के फंदे से,

जानलेवा महामारी से बचाएगा।

 4 वह अपने डैनों से तुझे ढाँप लेगा*

और उसके पंखों तले तू पनाह लेगा।+

उसकी वफादारी+ एक बड़ी ढाल+ और सुरक्षा-दीवार ठहरेगी।

 5 तुझे रात का खौफ नहीं सताएगा,+

न ही तू दिन में चलनेवाले तीरों से घबराएगा,+

 6 न तो तुझे अँधेरे में पीछा करनेवाली महामारी का डर होगा,

न ही दिन-दोपहरी होनेवाली तबाही का डर होगा।

 7 तेरे एक तरफ हज़ार लोग ढेर हो जाएँगे

और दायीं तरफ दस हज़ार गिर पड़ेंगे

मगर कोई खतरा तेरे पास तक नहीं फटकेगा।+

 8 तू सिर्फ अपनी आँखों से यह सब देखेगा,

दुष्टों को सज़ा पाते देखेगा।

 9 तूने कहा है, “यहोवा मेरी पनाह है,”

तूने परम-प्रधान को अपना निवास* बनाया है,+

10 इसलिए तुझ पर कोई संकट नहीं आएगा,+

कोई कहर तेरे तंबू के पास तक नहीं फटकेगा।

11 क्योंकि परमेश्‍वर तेरे बारे में अपने स्वर्गदूतों+ को हुक्म देगा

कि तेरी सब राहों में वे तेरी हिफाज़त करें।+

12 वे तुझे हाथों-हाथ उठा लेंगे+

ताकि तेरा पैर किसी पत्थर से चोट न खाए।+

13 तू शेर और नाग को कुचल देगा,

जवान शेर और बड़े साँप को पैरों से रौंद डालेगा।+

14 परमेश्‍वर ने कहा है, “वह मुझसे गहरा लगाव रखता है,* इसलिए मैं उसे बचाऊँगा।+

मैं उसकी रक्षा करूँगा क्योंकि वह मेरा नाम जानता है।*+

15 वह मुझे पुकारेगा और मैं उसे जवाब दूँगा।+

मैं संकट के समय उसके साथ रहूँगा।+

मैं उसे बचाऊँगा और सम्मान दिलाऊँगा।

16 मैं उसे लंबी उम्र देकर संतुष्ट करूँगा,+

उसे उद्धार करने की अपनी शक्‍ति दिखाऊँगा।”+

सब्त के दिन के लिए सुरीला गीत।

92 हे यहोवा, यह सही है कि तेरा शुक्रिया अदा किया जाए+

हे परम-प्रधान, तेरे नाम की तारीफ में गीत गाए जाएँ,*

 2 भोर को तेरे अटल प्यार का+

और हर रात तेरी वफादारी का

 3 दस तारोंवाले बाजे, इसराज

और सुरमंडल की सुरीली धुन पर ऐलान किया जाए+

 4 क्योंकि हे यहोवा, तूने अपने कामों से मुझे मगन किया है।

तेरे हाथ के कामों के कारण मैं खुशी से जयजयकार करता हूँ।

 5 हे यहोवा, तेरे काम कितने महान हैं!+

तेरे विचार कितने गहरे हैं!+

 6 कोई भी निर्बुद्धि उन्हें नहीं जान सकता,

कोई भी मूर्ख यह बात नहीं समझ सकता:+

 7 जब दुष्ट जंगली पौधों* की तरह बढ़ते हैं

और सभी गुनहगार फलते-फूलते हैं,

तो यह इसलिए होता है कि वे हमेशा के लिए मिटा दिए जाएँ।+

 8 मगर हे यहोवा, तू सदा के लिए ऊँचा है।

 9 हे यहोवा, तू अपने दुश्‍मनों की हार देख,

देख कि वे कैसे नाश हो जाएँगे,

सभी गुनहगार तितर-बितर हो जाएँगे।+

10 मगर तू मेरा बल बढ़ाकर मुझे जंगली बैल जैसा ताकतवर बनाएगा,*

मैं अपनी त्वचा पर ताज़ा तेल मलकर उसे नमी दूँगा।+

11 मेरी आँखें मेरे दुश्‍मनों की हार देखेंगी,+

मेरे कान उन दुष्टों के गिरने की खबर सुनेंगे जो मुझ पर हमला करते हैं।

12 मगर नेक जन खजूर के पेड़ की तरह फलेगा-फूलेगा

और लबानोन के देवदार की तरह खूब बढ़ेगा।+

13 वे यहोवा के भवन में लगाए गए हैं,

वे हमारे परमेश्‍वर के आँगनों+ में फलते-फूलते हैं।

14 ढलती उम्र में* भी वे फलेंगे-फूलेंगे,+

जोशीले और ताज़ादम बने रहेंगे,+

15 यह ऐलान करते रहेंगे कि यहोवा सीधा-सच्चा है।

वह मेरी चट्टान है+ जिसमें कोई बुराई नहीं।

93 यहोवा राजा बना है!+

वह वैभव का लिबास पहने है,

यहोवा ने ताकत धारण की है,

कमर-पट्टी की तरह उसे पहने हुए है।

पृथ्वी* की बुनियाद मज़बूती से कायम की गयी है,

यह हिलायी नहीं जा सकती।*

 2 तेरी राजगद्दी मुद्दतों पहले मज़बूती से कायम की गयी थी,+

तू हमेशा से रहा है।+

 3 हे यहोवा, नदियाँ उफन रही हैं,

नदियाँ उफन रही हैं, गरज रही हैं,

नदियाँ लगातार उफन रही हैं, ज़ोर से गड़गड़ा रही हैं।

 4 ऊँचे पर विराजमान यहोवा प्रतापी है,

गहरे सागर के गरजन से भी ज़्यादा शक्‍तिशाली है,+

किनारों से टकराती ऊँची-ऊँची लहरों से भी ताकतवर है।+

 5 तू जो हिदायतें याद दिलाता है वे पूरी तरह भरोसेमंद हैं+

हे यहोवा, पवित्रता तेरे भवन को सदा के लिए शोभा देती है।+

94 हे बदला लेनेवाले परमेश्‍वर यहोवा,+

हे बदला लेनेवाले परमेश्‍वर, अपनी रौशनी चमका!

 2 हे पृथ्वी के न्यायी, उठ।+

मगरूरों को सज़ा दे, जिसके वे लायक हैं।+

 3 हे यहोवा, दुष्ट कब तक आनंद मनाते रहेंगे,

कब तक?+

 4 वे बड़बड़ाते रहते हैं, हेकड़ी से भरी बातें करते हैं,

सारे गुनहगार अपने बारे में शेखी बघारते हैं।

 5 हे यहोवा, वे तेरे लोगों को कुचल देते हैं,+

तेरी विरासत पर ज़ुल्म ढाते हैं।

 6 वे विधवा और परदेसी का खून कर देते हैं,

अनाथों* को मार डालते हैं।

 7 उनका कहना है, “याह नहीं देखता,+

याकूब का परमेश्‍वर इस पर ध्यान नहीं देता।”+

 8 निर्बुद्धि लोगो, इस बात को समझो,

मूर्खो, तुम कब अंदरूनी समझ से काम लोगे?+

 9 जिस परमेश्‍वर ने कान बनाया है, क्या वह सुन नहीं सकता?

जिस परमेश्‍वर ने आँख रची, क्या वह देख नहीं सकता?+

10 जो परमेश्‍वर राष्ट्रों को सुधारता है, क्या वह तुम्हें फटकार नहीं सकता?+

वही परमेश्‍वर लोगों को ज्ञान देता है!+

11 यहोवा इंसानों के विचार जानता है

कि वे बस एक साँस हैं।+

12 हे याह, सुखी है वह इंसान जिसे तू सुधारता है,+

जिसे तू अपने कानून से सिखाता है+

13 ताकि तू उसे संकट के दिनों में चैन देता रहे,

जब तक कि दुष्टों के लिए गड्‌ढा नहीं खोदा जाता।+

14 यहोवा अपने लोगों को नहीं त्यागेगा,+

अपनी विरासत को नहीं छोड़ेगा।+

15 क्योंकि एक बार फिर नेकी से फैसला सुनाया जाएगा

और सीधे-सच्चे मनवाले उस फैसले को मानेंगे।

16 कौन मेरी खातिर दुष्टों के खिलाफ उठेगा?

कौन मेरी खातिर गुनहगारों के खिलाफ खड़ा होगा?

17 अगर यहोवा मेरा मददगार न होता,

तो मैं पल-भर में मिट गया होता।*+

18 जब मैंने कहा, “मेरा पैर फिसल रहा है,”

तब हे यहोवा, तेरा अटल प्यार मुझे सँभाले रहा।+

19 जब चिंताएँ* मुझ पर हावी हो गयीं,*

तब तूने मुझे दिलासा दिया, सुकून दिया।+

20 क्या भ्रष्टाचार की राजगद्दी* तेरे साथ साझेदारी कर सकती है

जो कानून की आड़ में* मुसीबत खड़ी करती है?+

21 वे नेक जन पर वहशियाना हमले करते हैं+

और बेगुनाह को मौत की सज़ा सुनाते हैं।+

22 मगर यहोवा मेरे लिए एक ऊँचा गढ़ बन जाएगा,

मेरा परमेश्‍वर मुझे पनाह देनेवाली चट्टान है।+

23 वह उन्हीं के दुष्ट कामों में उन्हें फँसा देगा+

उन्हीं के बुरे कामों के ज़रिए उनका सफाया कर देगा।

हमारा परमेश्‍वर यहोवा उनका सफाया कर देगा।+

95 आओ, हम खुशी से यहोवा की जयजयकार करें!

अपने उद्धार की चट्टान के लिए जीत के नारे लगाएँ।+

 2 आओ, हम उसकी मौजूदगी में* जाएँ, उसका धन्यवाद करें,+

उसके लिए गीत गाएँ, जीत के नारे लगाएँ।

 3 क्योंकि यहोवा महान परमेश्‍वर है,

सभी देवताओं से भी बड़ा महान राजा है।+

 4 पृथ्वी की गहराइयाँ उसके हाथ में हैं,

पहाड़ों की चोटियाँ उसी की हैं।+

 5 उसका बनाया सागर उसी का है,+

सूखी ज़मीन उसने अपने हाथों से बनायी।+

 6 आओ हम उसकी उपासना करें, उसे दंडवत करें,

अपने बनानेवाले यहोवा के सामने घुटने टेकें।+

 7 क्योंकि वह हमारा परमेश्‍वर है

और हम उसके लोग हैं जिनकी वह चरवाही करता है,

हम उसकी भेड़ें हैं जिनकी वह देखभाल करता है।*+

आज अगर तुम उसकी आवाज़ सुनो,+

 8 तो अपना दिल कठोर मत करना,

जैसे तुम्हारे पुरखों ने मरीबा* में किया था,+

वीराने में मस्सा* के दिन किया था।+

 9 उन्होंने मेरी परीक्षा ली थी,+

मुझे चुनौती दी थी, इसके बावजूद कि उन्होंने मेरे काम देखे थे।+

10 मैं 40 साल उस पीढ़ी से घिन करता रहा और मैंने कहा,

“ये ऐसे लोग हैं जिनका दिल हमेशा भटक जाता है,

इन्होंने मेरी राहों को नहीं जाना।”

11 इसलिए मैंने क्रोध में आकर शपथ खायी,

“ये मेरे विश्राम में दाखिल न होंगे।”+

96 यहोवा के लिए एक नया गीत गाओ।+

सारी धरती के लोगो, यहोवा के लिए गीत गाओ!+

 2 यहोवा के लिए गीत गाओ, उसके नाम की तारीफ करो।

वह जो उद्धार दिलाता है, उसकी खुशखबरी रोज़-ब-रोज़ सुनाओ।+

 3 राष्ट्रों में उसकी महिमा का ऐलान करो,

देश-देश के लोगों में उसके अजूबों का ऐलान करो।+

 4 यहोवा महान है, सबसे ज़्यादा तारीफ के काबिल है।

सभी देवताओं से बढ़कर विस्मयकारी है।

 5 देश-देश के लोगों के सभी देवता निकम्मे हैं,+

मगर यहोवा ने ही आकाश बनाया।+

 6 उसके सामने प्रताप* और वैभव है,+

उसके पवित्र-स्थान में शक्‍ति और सौंदर्य है।+

 7 देश-देश के सभी घरानो, यहोवा का आदर करो,

यहोवा का आदर करो क्योंकि वह महिमा और ताकत से भरपूर है।+

 8 यहोवा का नाम जिस महिमा का हकदार है वह महिमा उसे दो,+

भेंट लेकर उसके आँगनों में आओ।

 9 पवित्र पोशाक पहने* यहोवा को दंडवत* करो,

सारी धरती के लोगो, उसके सामने थर-थर काँपो!

10 राष्ट्रों में ऐलान करो, “यहोवा राजा बना है!+

पृथ्वी* मज़बूती से कायम की गयी है, यह हिलायी नहीं जा सकती।

परमेश्‍वर बिना तरफदारी किए देश-देश के लोगों का न्याय* करेगा।”+

11 आसमान मगन हो, धरती आनंद मनाए,

समुंदर और उसमें जो भी है, खुशी से गरजें।+

12 मैदान और उनमें जो भी है, खुशियाँ मनाएँ।+

जंगल के सारे पेड़ भी खुशी से जयजयकार करें,+

13 यहोवा के सामने जयजयकार करें क्योंकि वह आ रहा है,*

धरती का न्याय करने आ रहा है।

वह सारे जगत* का न्याय नेकी से करेगा,+

देश-देश के लोगों का न्याय सच्चाई से करेगा।+

97 यहोवा राजा बना है!+

धरती खुशियाँ मनाए।+

सभी द्वीप आनंद-मगन हों।+

 2 वह काले घने बादलों से घिरा हुआ है,+

नेकी और न्याय उसकी राजगद्दी की बुनियाद है।+

 3 उसके आगे-आगे आग चलती है,+

हर तरफ से उसके बैरियों को भस्म कर देती है।+

 4 उसकी बिजलियों की चमक से धरती रौशन हो जाती है,

यह देखकर पृथ्वी थरथराने लगती है।+

 5 यहोवा के सामने, पूरी धरती के मालिक के सामने,

पहाड़ मोम की तरह पिघल जाते हैं।+

 6 आकाश उसकी नेकी का ऐलान करता है

और देश-देश के लोग उसकी महिमा देखते हैं।+

 7 वे सभी जो ढली हुई मूरतों को पूजते हैं,

अपने निकम्मे देवताओं पर शेखी मारते हैं, शर्मिंदा किए जाएँ।+

सभी देवताओ, उसे दंडवत* करो।+

 8 हे यहोवा, तेरे फैसलों के बारे में

सिय्योन सुनता है और बाग-बाग हो जाता है,+

यहूदा के कसबे* खुशियाँ मनाते हैं।+

 9 क्योंकि हे यहोवा, तू सारी पृथ्वी पर परम-प्रधान है,

तू सभी देवताओं से कहीं ज़्यादा ऊँचा किया गया है।+

10 यहोवा से प्यार करनेवालो, बुराई से नफरत करो।+

वह अपने वफादार लोगों की जान की हिफाज़त करता है,+

उन्हें दुष्टों के हाथ* से छुड़ाता है।+

11 नेक लोगों के लिए तेज़ रौशनी चमक उठी है,+

सीधे-सच्चे मनवालों के लिए खुशियों की बहार आयी है।

12 नेक लोगो, यहोवा के कारण आनंद मनाओ,

उसके पवित्र नाम* की तारीफ करो।

एक सुरीला गीत।

98 यहोवा के लिए एक नया गीत गाओ,+

क्योंकि उसने आश्‍चर्य के काम किए हैं।+

उसके दाएँ हाथ ने, उसके पवित्र बाज़ू ने उद्धार दिलाया है।*+

 2 यहोवा ने दिखाया है कि वह कैसे उद्धार करता है,+

उसने राष्ट्रों के सामने अपनी नेकी साबित की है।+

 3 उसने अपना यह वादा याद रखा है

कि वह इसराएल के घराने से प्यार* करेगा,

उसका विश्‍वासयोग्य बना रहेगा।+

हमारा परमेश्‍वर जो उद्धार दिलाता है, उसे* पूरी धरती ने देखा है।+

 4 सारी धरती के लोगो, यहोवा के लिए जीत के नारे लगाओ।

खुशी से भर जाओ, जयजयकार करो, तारीफ के गीत गाओ।*+

 5 सुरमंडल बजाकर यहोवा की तारीफ में गीत गाओ,*

सुरमंडल बजाकर, सुरीले गीत गाकर उसकी तारीफ करो।

 6 तुरहियाँ और नरसिंगा फूँको,+

राजा यहोवा के सामने जीत के नारे लगाओ।

 7 समुंदर और उसमें जो भी है, खुशी से गरजें,

धरती* और उस पर रहनेवाले खुशी से जयजयकार करें।

 8 नदियाँ ताली बजाएँ।

पहाड़ मिलकर खुशी से जयजयकार करें,+

 9 यहोवा के सामने जयजयकार करें,

क्योंकि वह धरती का न्याय करने आ रहा है।*

वह सारे जगत* का न्याय नेकी से करेगा,+

बिना तरफदारी किए देश-देश के लोगों का न्याय करेगा।+

99 यहोवा राजा बना है।+ देश-देश के लोग थरथराएँ।

वह करूबों पर* विराजमान है।+ धरती काँप उठे।

 2 यहोवा सिय्योन में महान है,

देश-देश के लोगों के ऊपर प्रधान है।+

 3 वे सब तेरे महान नाम की तारीफ करें,+

क्योंकि तेरा नाम विस्मयकारी और पवित्र है।

 4 वह एक शक्‍तिशाली राजा है जो न्याय से प्यार करता है।+

तूने सीधाई को मज़बूती से कायम किया है।

याकूब में न्याय और नेकी को लागू किया है।+

 5 हमारे परमेश्‍वर यहोवा की खूब बड़ाई करो,+

उसके पाँवों की चौकी के आगे झुको,*+

वह पवित्र है।+

 6 मूसा और हारून उसके याजकों में से थे।+

शमूएल उसका नाम पुकारनेवालों में से था।+

वे यहोवा को पुकारते और वह उन्हें जवाब देता।+

 7 वह बादल के खंभे में से उनसे बात करता।+

उसने जो हिदायतें याद दिलायीं और जो आदेश दिए, उन्हें वे मानते थे।+

 8 हे यहोवा, हमारे परमेश्‍वर, तू उन्हें जवाब देता था।+

तू ऐसा परमेश्‍वर था जो उन्हें माफ करता था,+

मगर उन्हें बुरे कामों की सज़ा भी देता था।*+

 9 हमारे परमेश्‍वर यहोवा की खूब बड़ाई करो,+

उसके पवित्र पहाड़+ के आगे दंडवत* करो,

क्योंकि हमारा परमेश्‍वर यहोवा पवित्र है।+

धन्यवाद देने के लिए एक सुरीला गीत।

100 सारी धरती के लोगो, यहोवा के लिए जीत के नारे लगाओ।+

 2 खुशी-खुशी यहोवा की सेवा करो।+

खुशी से जयजयकार करते हुए उसके सामने आओ।

 3 जान लो* कि यहोवा ही परमेश्‍वर है।+

उसी ने हमें बनाया है और हम उसके हैं।*+

हम उसके लोग हैं, उसके चरागाह की भेड़ें हैं।+

 4 शुक्रिया अदा करते हुए उसके फाटकों से अंदर आओ,+

उसकी तारीफ करते हुए उसके आँगनों में आओ।+

उसका शुक्रिया अदा करो, उसके नाम की तारीफ करो।+

 5 क्योंकि यहोवा भला है,+

उसका अटल प्यार सदा बना रहता है

और वह पीढ़ी-पीढ़ी तक विश्‍वासयोग्य रहता है।+

दाविद का सुरीला गीत।

101 मैं अटल प्यार और न्याय के बारे में गीत गाऊँगा।

हे यहोवा, मैं तेरी तारीफ में गीत गाऊँगा।*

 2 मैं सूझ-बूझ से काम लूँगा और निर्दोष बना रहूँगा।

तू कब मेरे पास आएगा?

मैं अपने घर के अंदर भी निर्दोष मन से सही चाल चलूँगा।+

 3 मैं अपनी आँखों के सामने कोई बेकार की* चीज़ नहीं रखूँगा।

मैं उन लोगों के कामों से नफरत करता हूँ जो सही राह से भटक जाते हैं।+

मैं उनसे कोई नाता नहीं रखूँगा।*

 4 मैं टेढ़े मनवाले से दूर रहता हूँ,

मैं बुराई स्वीकार नहीं करूँगा।*

 5 जो कोई चोरी-छिपे अपने पड़ोसी को बदनाम करता है,+

उसे मैं खामोश कर दूँगा।*

घमंड से चढ़ी आँखें और मगरूर दिल

मैं बरदाश्‍त नहीं करूँगा।

 6 मेरी आँखें धरती के विश्‍वासयोग्य लोगों पर लगी रहेंगी

ताकि वे मेरे साथ निवास करें।

जो निर्दोष चाल चलता है वह मेरी सेवा करेगा।

 7 कोई भी धोखेबाज़ मेरे घर में नहीं रहेगा,

न कोई झूठा मेरी मौजूदगी में* खड़ा रहेगा।

 8 हर सुबह मैं धरती के सभी दुष्टों को खामोश कर दूँगा*

ताकि यहोवा के नगर से सभी गुनहगारों को मिटा दूँ।+

एक सताए हुए इंसान की उस समय की प्रार्थना जब वह दुख से बेहाल होता है* और अपनी सारी चिंताएँ यहोवा को बताता है।+

102 हे यहोवा, मेरी प्रार्थना सुन,+

मेरी मदद की पुकार तेरे पास पहुँचे।+

 2 मैं बड़ी मुसीबत में हूँ, मुझसे मुँह न फेर।+

मेरी तरफ कान लगा,*

जब मैं पुकारूँ तो फौरन जवाब दे।+

 3 क्योंकि मेरी ज़िंदगी के दिन धुएँ की तरह गायब हो रहे हैं,

मेरी हड्डियाँ मानो भट्ठी की तरह जल रही हैं।+

 4 मेरे दिल का हाल उस घास जैसा है,

जो धूप की मार से मुरझा गयी है,+

मेरी भूख मर गयी है।

 5 मैं ज़ोर-ज़ोर से कराहता रहता हूँ,+

इसलिए मेरी चमड़ी हड्डियों से चिपक गयी है।+

 6 मैं वीराने के हवासिल जैसा दिख रहा हूँ,

मैं खंडहरों में रहनेवाले छोटे उल्लू जैसा बन गया हूँ।

 7 मैं लेटे-लेटे जागता रहता हूँ,*

मैं उस पंछी की तरह हूँ जो छत पर तनहा बैठा रहता है।+

 8 मेरे दुश्‍मन सारा दिन मुझे ताना मारते हैं।+

मेरी खिल्ली उड़ानेवाले* मेरा नाम लेकर शाप देते हैं।

 9 राख मेरी रोटी है,+

मैं आँसू मिला पानी पीता हूँ।+

10 क्योंकि तेरा क्रोध और तेरी जलजलाहट मुझ पर भड़की है,

तूने मुझे उठाकर फेंक दिया है।

11 मेरी ज़िंदगी के दिन घटती* छाया जैसे हो गए हैं+

और मैं घास की तरह मुरझा रहा हूँ।+

12 मगर हे यहोवा, तू सदा बना रहता है,+

तेरा यश* पीढ़ी-पीढ़ी तक कायम रहेगा।+

13 बेशक तू उठेगा और सिय्योन पर दया करेगा,+

क्योंकि वह घड़ी आ गयी है कि तू उस पर कृपा करे,+

तय वक्‍त आ चुका है।+

14 तेरे सेवकों को उसके पत्थरों से खुशी मिलती है+

और वे उसकी धूल तक से लगाव रखते हैं।+

15 राष्ट्र यहोवा के नाम का डर मानेंगे,

धरती के सभी राजा तेरी महिमा देखकर तेरा डर मानेंगे।+

16 क्योंकि यहोवा सिय्योन को दोबारा बसाएगा,+

वह पूरी महिमा के साथ प्रकट होगा।+

17 वह बेसहारा लोगों की प्रार्थना पर ध्यान देगा,+

उनकी प्रार्थना को तुच्छ नहीं जानेगा।+

18 यह बात आनेवाली पीढ़ी के लिए लिखी गयी है+

ताकि वह राष्ट्र जो पैदा होगा,* याह की तारीफ करे।

19 वह अपने ऊँचे पवित्र-स्थान से नीचे देखता है,+

यहोवा स्वर्ग से धरती पर नज़र डालता है

20 ताकि कैदियों का कराहना सुने,+

जिन्हें मौत की सज़ा सुनायी गयी है, उन्हें छुड़ाए।+

21 इससे सिय्योन में यहोवा के नाम का ऐलान किया जाएगा+

यरूशलेम में उसकी तारीफ की जाएगी,

22 जब देश-देश और राज्य-राज्य के लोग

यहोवा की सेवा करने के लिए इकट्ठा होंगे।+

23 उसने वक्‍त से पहले ही मेरी ताकत छीन ली,

मेरे दिन घटा दिए।

24 मैंने कहा, “हे मेरे परमेश्‍वर,

तू जिसका वजूद पीढ़ी-पीढ़ी तक कायम रहता है,+

मुझे मिटा न देना, अभी तो मैंने आधी उम्र ही जी है।

25 मुद्दतों पहले तूने पृथ्वी की बुनियाद डाली थी,

आकाश तेरे हाथ की रचना है।+

26 वे तो नाश हो जाएँगे, मगर तू सदा कायम रहेगा।

एक कपड़े की तरह वे सब पुराने हो जाएँगे,

एक कपड़े की तरह तू उन्हें बदल देगा और वे मिट जाएँगे।

27 मगर तू हमेशा से जैसा था वैसा ही है,

तेरी उम्र के साल कभी खत्म न होंगे।+

28 तेरे सेवकों के बच्चे महफूज़ बसे रहेंगे,

उनकी संतान तेरे सामने बनी रहेगी।”+

दाविद की रचना।

103 मेरा मन यहोवा की तारीफ करे,

मेरा रोम-रोम उसके पवित्र नाम की तारीफ करे।

 2 मेरा मन यहोवा की तारीफ करे,

उसके सारे काम मैं कभी नहीं भूलूँगा।+

 3 वह मेरे सारे गुनाह माफ करता है,+

मेरी सभी बीमारियाँ दूर करता है।+

 4 वह मुझे गड्‌ढे* से निकालकर मेरी जान बचाता है,+

मुझे अपने अटल प्यार और दया का ताज पहनाता है।+

 5 वह ज़िंदगी-भर मुझे अच्छी चीज़ों से संतुष्ट करता है+

ताकि मुझमें उकाब जैसी जवानी और दमखम बना रहे।+

 6 सभी सताए हुओं की खातिर

यहोवा नेक काम करता है, उन्हें न्याय दिलाता है।+

 7 उसने मूसा को अपनी राहें बतायी थीं,+

इसराएलियों पर अपने काम ज़ाहिर किए थे।+

 8 यहोवा दयालु और करुणा से भरा है,+

क्रोध करने में धीमा और अटल प्यार से भरपूर है।+

 9 वह हमेशा खामियाँ नहीं ढूँढ़ता रहेगा,+

न ही सदा नाराज़गी पाले रहेगा।+

10 उसने हमारे पापों के मुताबिक हमारे साथ सलूक नहीं किया,+

न ही हमारे गुनाहों के मुताबिक हमें सज़ा दी।+

11 क्योंकि आकाश धरती से जितना ऊँचा है,

उसका डर माननेवालों के लिए उसका अटल प्यार उतना ही महान है।+

12 पूरब पश्‍चिम से जितना दूर है,

उसने हमारे अपराधों को हमसे उतना ही दूर फेंक दिया है।+

13 जैसे एक पिता अपने बच्चों पर दया करता है,

वैसे ही यहोवा ने उन पर दया दिखायी है जो उसका डर मानते हैं।+

14 क्योंकि वह हमारी रचना अच्छी तरह जानता है,+

वह याद रखता है कि हम मिट्टी ही हैं।+

15 जहाँ तक नश्‍वर इंसान की बात है,

उसका वजूद घास की तरह है,+

वह मैदान के फूल की तरह खिलता है।+

16 मगर जब तेज़ हवा चलती है, तो वह नाश हो जाता है,

मानो वह कभी था ही नहीं।*

17 लेकिन यहोवा का अटल प्यार युग-युग तक* बना रहता है,

उनके लिए बना रहता है जो उसका डर मानते हैं,+

उसकी नेकी उनके बच्चों के बच्चों के लिए सदा बनी रहेगी,+

18 उनके लिए जो उसका करार मानते हैं+

और जो उसके आदेश सख्ती से मानते हैं।

19 यहोवा ने स्वर्ग में अपनी राजगद्दी मज़बूती से कायम की है,+

उसका राज हर चीज़ पर है।+

20 सभी स्वर्गदूतो,+ तुम जो शक्‍तिशाली हो,

उसकी आज्ञा मानकर उसके वचन का पालन करते हो,+

यहोवा की तारीफ करो।

21 उसकी सारी सेनाओ,

उसकी मरज़ी पूरी करनेवाले सेवको,+ यहोवा की तारीफ करो।+

22 हे सारी सृष्टि,

उसके राज्य के कोने-कोने में यहोवा की तारीफ कर।

मेरा रोम-रोम यहोवा की तारीफ करे।

104 मेरा मन यहोवा की तारीफ करे।+

हे यहोवा, मेरे परमेश्‍वर, तू बहुत महान है।+

तू प्रताप* और वैभव का लिबास पहने हुए है।+

 2 तू रौशनी का ओढ़ना ओढ़े हुए है,+

तूने आकाश को तंबू की तरह ताना है।+

 3 वह ऊपर के पानी में* शहतीरों से ऊपरी कोठरियाँ बनाता है,+

बादलों को अपना रथ बनाता है,+

पवन के पंखों पर सवारी करता है।+

 4 वह अपने स्वर्गदूतों को ताकतवर बनाता है,

अपने सेवकों को भस्म करनेवाली आग बनाता है।+

 5 उसने धरती को उसकी बुनियाद पर कायम किया है,+

यह अपनी जगह से कभी हिलायी नहीं जाएगी,* सदा तक बनी रहेगी।+

 6 तूने धरती को गहरे पानी से ऐसे ढाँप दिया मानो चादर हो।+

पानी ने पहाड़ों को ढक लिया।

 7 तेरी डाँट सुनते ही वह भाग गया,+

तेरे गरजन से वह घबराकर भाग गया,

 8 उस जगह चला गया जो तूने उसके लिए तय की।

पहाड़ उभरकर आए+ और घाटियाँ नीचे धँस गयीं।

 9 तूने पानी के लिए एक हद बाँध दी ताकि वह उसे पार न करे+

और फिर कभी धरती को न ढके।

10 वह सोतों का पानी घाटियों में भेजता है,

पानी पहाड़ों के बीच बहता है।

11 उससे मैदान के सभी जंगली जानवरों को पानी मिलता है,

जंगली गधे अपनी प्यास बुझाते हैं।

12 पानी के पास आकाश के पंछी बसेरा करते हैं,

घनी डालियों पर बैठे गीत गाते हैं।

13 वह अपनी ऊपरी कोठरियों से पहाड़ों को सींचता है।+

तेरी मेहनत के फल से धरती भर गयी है।+

14 वह मवेशियों के लिए घास

और इंसानों के इस्तेमाल के लिए पेड़-पौधे उगाता है+

ताकि ज़मीन से खाने की चीज़ें उपजें,

15 दाख-मदिरा मिले जिससे इंसान का दिल मगन होता है,+

तेल मिले जिससे उसका चेहरा चमक उठता है,

रोटी मिले जिससे नश्‍वर इंसान का दिल मज़बूत बना रहता है।+

16 यहोवा के पेड़ों को,

उसके लगाए लबानोन के देवदारों को भरपूर पानी मिलता है

17 जिन पर पंछी घोंसला बनाते हैं।

लगलग+ का बसेरा सनोवर के पेड़ों पर है।

18 ऊँचे-ऊँचे पहाड़, पहाड़ी बकरियों के लिए हैं,+

बड़ी-बड़ी चट्टानें, चट्टानी बिज्जुओं के लिए पनाह हैं।+

19 उसने चाँद को समय ठहराने के लिए बनाया,

सूरज अपने ढलने का वक्‍त बखूबी जानता है।+

20 तू अँधेरा लाता है और रात हो जाती है,+

तब जंगल के सारे जानवर घूमते-फिरते हैं।

21 जवान शेर शिकार के लिए दहाड़ते हैं+

और परमेश्‍वर से खाना माँगते हैं।+

22 जब सूरज उगता है

तो वे माँद में लौट जाते हैं और लेट जाते हैं।

23 इंसान काम पर जाता है

और शाम तक मशक्कत करता है।

24 हे यहोवा, तेरे काम अनगिनत हैं!+

तूने ये सब अपनी बुद्धि से बनाया है,+

धरती तेरी बनायी चीज़ों से भरपूर है।

25 समुंदर विशाल है, दूर-दूर तक फैला है,

छोटे-बड़े अनगिनत जीव-जंतुओं के झुंडों से भरा है।+

26 उसमें जहाज़ आते-जाते हैं

और तेरा बनाया लिव्यातान*+ खेलता है।

27 ये सब तेरी ओर ताकते हैं

कि तू उन्हें वक्‍त पर खाना दे।+

28 तू उन्हें जो देता है, उसे वे बटोरते हैं।+

जब तू मुट्ठी खोलकर देता है तो वे अच्छी चीज़ों से संतुष्ट होते हैं।+

29 जब तू उनसे अपना मुँह फेर लेता है तो वे बेचैन हो जाते हैं।

जब तू उनकी साँस* ले लेता है तो वे मर जाते हैं, मिट्टी में लौट जाते हैं।+

30 जब तू अपनी पवित्र शक्‍ति भेजता है तो उनकी सृष्टि होती है,+

तू धरती को नया-सा कर देता है।

31 यहोवा की महिमा सदा बनी रहेगी।

यहोवा अपने कामों से खुश होगा।+

32 वह धरती पर नज़र डालता है और वह काँप उठती है,

वह पहाड़ों को छूता है और उनसे धुआँ निकलता है।+

33 मैं सारी ज़िंदगी यहोवा के लिए गीत गाऊँगा,+

जब तक मैं ज़िंदा रहूँगा, अपने परमेश्‍वर की तारीफ में गीत गाऊँगा।*+

34 मेरे विचार उसे भाएँ।*

मैं यहोवा के कारण मगन होऊँगा।

35 पापी धरती से गायब हो जाएँगे,

फिर कभी दुष्ट नहीं रहेंगे।+

मेरा मन यहोवा की तारीफ करे। याह की तारीफ करो!*

105 यहोवा का शुक्रिया अदा करो,+ उसका नाम पुकारो,

उसके कामों के बारे में देश-देश के लोगों को बताओ!+

 2 उसके लिए गीत गाओ, उसकी तारीफ में गीत गाओ,*

उसके सभी आश्‍चर्य के कामों पर गहराई से सोचो।*+

 3 गर्व से उसके पवित्र नाम का बखान करो।+

यहोवा की खोज करनेवालों का दिल मगन हो।+

 4 यहोवा और उससे मिलनेवाली ताकत की खोज करो।+

उसकी मंज़ूरी पाने की कोशिश करो।

 5 उसने जो आश्‍चर्य के काम और चमत्कार किए,

जो फैसले सुनाए उन्हें याद करो,+

 6 तुम जो उसके सेवक अब्राहम का वंश हो,+

याकूब के बेटे और उसके चुने हुए लोग हो,+ उन्हें याद करो।

 7 वह हमारा परमेश्‍वर यहोवा है।+

उसके किए फैसले सारी धरती पर लागू हैं।+

 8 वह अपना करार सदा तक याद रखता है,+

वह वादा जो उसने हज़ारों पीढ़ियों के लिए किया है,*+

 9 वह करार जो उसने अब्राहम से किया था,+

वह शपथ जो उसने इसहाक से खायी थी+

10 और जिसे याकूब के लिए एक आदेश

और इसराएल के लिए सदा का करार बना दिया था

11 और कहा था, “मैं तुम्हें कनान देश दूँगा+

ताकि यह तुम्हारी तय विरासत हो।”+

12 यह उसने तब कहा था जब वे गिनती में कम थे,+

हाँ, वे बहुत कम थे और उस देश में परदेसी थे।+

13 वे एक देश से दूसरे देश में,

एक राज्य से दूसरे राज्य में जाते थे।+

14 उसने किसी इंसान को उन्हें सताने नहीं दिया,+

इसके बजाय, उनकी खातिर राजाओं को फटकारा,+

15 उनसे कहा, “मेरे अभिषिक्‍त जनों को हाथ मत लगाना,

मेरे भविष्यवक्‍ताओं के साथ कुछ बुरा न करना।”+

16 उसने देश में अकाल भेजा,+

वहाँ रोटी का मिलना बंद करा दिया।*

17 उसने उनसे पहले एक आदमी भेजा,

यूसुफ को भेजा जिसे गुलाम होने के लिए बेचा गया था।+

18 उन्होंने तब तक उसके पैरों में बेड़ियाँ डालीं,*+

उसकी गरदन में लोहे की ज़ंजीरें डालीं,

19 जब तक कि परमेश्‍वर की बात सच साबित न हुई,+

यहोवा की कही बात ने ही उसे शुद्ध किया।

20 राजा ने उसे रिहा करने का आदेश भेजा,+

देश-देश के लोगों के शासक ने उसे आज़ाद कर दिया।

21 राजा ने उसे अपने घराने का मालिक बनाया,

अपनी सारी जायदाद का अधिकारी ठहराया+

22 ताकि वह अपनी इच्छा के मुताबिक उसके हाकिमों पर पूरा अधिकार रखे*

और उसके बुज़ुर्गों को बुद्धि की बातें सिखाए।+

23 फिर इसराएल मिस्र आया,+

याकूब हाम के देश में परदेसी बनकर रहा।

24 परमेश्‍वर ने अपने लोगों की गिनती खूब बढ़ायी,+

उसने उन्हें दुश्‍मनों से ज़्यादा ताकतवर बनाया।+

25 उसने दुश्‍मनों के दिलों को बदलने दिया

ताकि वे उसके लोगों से नफरत करें,

उसके सेवकों के खिलाफ साज़िश रचें।+

26 उसने अपने सेवक मूसा को भेजा,+

अपने चुने हुए जन हारून को भी भेजा।+

27 उन्होंने उनके बीच उसके चिन्ह दिखाए,

हाम के देश में उसके चमत्कार दिखाए।+

28 उसने अंधकार भेजा और देश पर अँधेरा छा गया,+

उन्होंने उसकी आज्ञा के खिलाफ बगावत नहीं की।

29 उसने उनका पानी खून में बदल दिया

और उनकी मछलियाँ मार डालीं।+

30 उनका देश मेंढकों से भर गया,+

शाही कोठरियों में भी मेंढक-ही-मेंढक थे।

31 उसने खून चूसनेवाली मक्खियों को उन पर हमला करने की आज्ञा दी,

मच्छरों को उनके इलाके पर धावा बोलने का हुक्म दिया।+

32 उसने उन पर पानी के बदले ओले बरसाए

और उनके देश पर बिजली गिरायी।*+

33 उनके अंगूरों के बाग और अंजीर के पेड़ नाश कर दिए,

उनके इलाके के पेड़ तहस-नहस कर दिए।

34 उसने कहा कि टिड्डियाँ उन पर हमला करें,

टिड्डियों के अनगिनत बच्चे हमला करें।+

35 वे उनके देश के सारे पेड़-पौधे चट कर गयीं,

ज़मीन की सारी उपज चट कर गयीं।

36 फिर उसने उनके देश के हर पहलौठे को मार डाला,+

उनकी शक्‍ति* की पहली निशानी मिटा दी।

37 वह अपने लोगों को सोने-चाँदी के साथ निकाल लाया,+

उसके गोत्रों में से कोई भी लड़खड़ाकर नहीं गिरा।

38 जब उन्होंने देश छोड़ा तो मिस्र खुश हुआ,

क्योंकि इसराएल का* खौफ उस पर छा गया था।+

39 उसने एक बादल की आड़ से उन्हें छिपा लिया+

और रात के वक्‍त आग से उन्हें रौशनी दी।+

40 उनके माँगने पर वह बटेर ले आया,+

स्वर्ग से रोटी भेजकर उन्हें संतुष्ट करता रहा।+

41 उसने एक चट्टान चीरी और पानी की धारा फूट निकली,+

पानी वीराने में ऐसे बहने लगा जैसे कोई नदी हो।+

42 उसने वह पवित्र वादा याद रखा जो उसने अपने सेवक अब्राहम से किया था।+

43 इसलिए वह अपने लोगों को बाहर ले आया, वे जश्‍न मनाते हुए निकले,+

अपने चुने हुओं को बाहर ले आया, वे खुशी से जयजयकार करते हुए निकले।

44 उसने उन्हें दूसरी जातियों के इलाके दे दिए,+

उन्होंने विरासत में वह पाया जो दूसरे देशों की मेहनत का फल था+

45 ताकि वे उसके आदेशों का पालन करें+

और उसके कानून मानें।

याह की तारीफ करो!*

106 याह की तारीफ करो!*

यहोवा का शुक्रिया अदा करो क्योंकि वह भला है,+

उसका अटल प्यार सदा बना रहता है।+

 2 कौन यहोवा के शक्‍तिशाली कामों का पूरी तरह ऐलान कर सकता है?

कौन उसके सभी कामों का बखान कर सकता है जो तारीफ के काबिल हैं?+

 3 सुखी हैं वे जो सही काम करते हैं,+

हमेशा नेक काम करते हैं।

 4 हे यहोवा, जब तू अपने लोगों पर कृपा करे* तो मुझे याद करना।+

मेरा खयाल रखना और मुझे बचा लेना

 5 ताकि तू अपने चुने हुओं+ के साथ जो भलाई करता है, उसका मैं आनंद उठाऊँ,

तेरे राष्ट्र के साथ मिलकर खुशियाँ मनाऊँ,

तेरी विरासत के साथ मिलकर गर्व से तेरी तारीफ करूँ।

 6 हमने भी अपने पुरखों की तरह पाप किया है,+

हमने गलत किया है, दुष्टता की है।+

 7 मिस्र में हमारे पुरखों ने तेरे आश्‍चर्य के कामों की कदर नहीं की।*

तेरा भरपूर अटल प्यार याद नहीं रखा

और लाल सागर के पास बगावत की।+

 8 मगर उसने अपने नाम की खातिर उन्हें बचाया+

ताकि अपनी महाशक्‍ति दिखाए।+

 9 उसने लाल सागर को डाँटा और वह सूख गया,

वह उन्हें उसकी गहराइयों से ले गया मानो वह रेगिस्तान* हो,+

10 उसने उन्हें दुश्‍मन के हाथ से बचाया,+

बैरी के हाथ से छुड़ा लिया।+

11 समुंदर ने उनके दुश्‍मनों को डुबा दिया,

उनमें से एक भी ज़िंदा नहीं बचा।+

12 तब उन्होंने उसके वादे पर विश्‍वास किया,+

वे उसकी तारीफ में गीत गाने लगे।+

13 मगर फिर वे जल्द ही उसके काम भूल गए,+

उन्होंने उसके निर्देशों का इंतज़ार नहीं किया।

14 वीराने में वे अपनी स्वार्थी इच्छाओं के आगे झुक गए,+

सूखे इलाके में उन्होंने परमेश्‍वर की परीक्षा ली।+

15 उन्होंने जो माँगा, वह उसने दिया,

मगर फिर उन्हें बीमारी से ऐसा मारा कि वे नाश हो गए।+

16 छावनी में वे मूसा से जलने लगे

और यहोवा के पवित्र जन+ हारून+ से जलने लगे।

17 फिर धरती ने मुँह खोला और दातान को निगल लिया

और अबीराम के दल को अपने अंदर समेट लिया।+

18 उनकी टोली में आग भड़क उठी,

एक ज्वाला ने दुष्टों को भस्म कर दिया।+

19 उन्होंने होरेब में एक बछड़ा बनाया,

धातु की मूरत* के आगे दंडवत किया।+

20 उन्होंने मेरी महिमा करने के बजाय,

घास खानेवाले बैल की मूरत की महिमा की।+

21 वे अपने उद्धारकर्ता परमेश्‍वर को भूल गए,+

जिसने मिस्र में बड़े-बड़े काम किए थे,+

22 हाम के देश में आश्‍चर्य के काम किए थे,+

लाल सागर के पास विस्मयकारी काम किए थे।+

23 वह उन्हें मिटाने की आज्ञा देने ही वाला था

कि तभी उसके चुने हुए जन मूसा ने उससे फरियाद की*

कि वह अपनी जलजलाहट शांत करे जो उन्हें नाश कर सकती थी।+

24 फिर उन्होंने मनभावने देश को तुच्छ समझा,+

उन्हें उसके वादे पर बिलकुल विश्‍वास नहीं था।+

25 वे अपने तंबुओं में कुड़कुड़ाते रहे,+

उन्होंने यहोवा की बात नहीं मानी।+

26 इसलिए उसने अपना हाथ उठाकर शपथ खायी

कि वह उन्हें वीराने में ढेर कर देगा,+

27 उनके वंशजों को दूसरी जातियों के बीच ढेर कर देगा,

अलग-अलग देशों में तितर-बितर कर देगा।+

28 फिर वे पोर के बाल की उपासना में शामिल हो गए*+

और मुरदों को अर्पित बलिदान* खाने लगे।

29 उन्होंने अपने कामों से उसका क्रोध भड़काया+

और उनके बीच एक महामारी फैल गयी।+

30 मगर जब फिनेहास ने आगे बढ़कर कदम उठाया,

तो महामारी थम गयी।+

31 इस वजह से उसे नेक समझा गया,

पीढ़ी-पीढ़ी के लिए उसे नेक समझा गया।+

32 उन्होंने मरीबा* के सोते के पास परमेश्‍वर का क्रोध भड़काया,

उनकी वजह से मूसा के साथ बहुत बुरा हुआ।+

33 उन्होंने मूसा के मन में कड़वाहट भर दी

और वह बिना सोचे-समझे बोल पड़ा।+

34 उन्होंने दूसरी जातियों को नहीं मिटाया,+

जबकि यहोवा ने उन्हें आज्ञा दी थी।+

35 इसके बजाय, वे उन जातियों से घुल-मिल गए+

और उनके तौर-तरीके अपना लिए।*+

36 वे उनकी मूरतों की सेवा करते रहे+

और ये उनके लिए फंदा बन गयीं।+

37 वे दुष्ट स्वर्गदूतों के लिए अपने बेटे-बेटियों का बलिदान चढ़ाते थे।+

38 वे मासूमों का खून बहाते रहे,+

अपने ही बेटे-बेटियों का खून बहाते रहे,

जिन्हें वे कनान की मूरतों को बलिदान चढ़ाते थे+

और सारा देश उनके बहाए खून से दूषित हो गया।

39 वे अपने कामों की वजह से अशुद्ध हो गए,

ऐसे काम करके उन्होंने परमेश्‍वर के साथ विश्‍वासघात किया।*+

40 तब यहोवा का क्रोध अपने लोगों पर भड़क उठा,

उसे अपनी विरासत से घिन होने लगी।

41 वह बार-बार उन्हें दूसरे राष्ट्रों के हवाले करता रहा+

ताकि उनसे नफरत करनेवाले उन पर राज करें।+

42 उनके दुश्‍मनों ने उन पर ज़ुल्म किया,

उनकी ताकत के आगे उन्हें झुकना पड़ा।*

43 कितनी ही बार उसने उन्हें छुड़ाया था,+

मगर हर बार वे उससे बगावत करते, उसकी आज्ञा तोड़ते,+

उनके गुनाहों की वजह से उन्हें नीचा किया जाता।+

44 मगर वह उन्हें संकट में पड़ा देखता+

और उनकी मदद की पुकार सुनता।+

45 उनकी खातिर वह अपना करार याद करता,

उसका महान* अटल प्यार उसे उभारता और वह उन पर तरस खाता।*+

46 जो उन्हें बंदी बना लेते थे,

उन्हें वह उभारता कि वे उन पर तरस खाएँ।+

47 हे यहोवा, हमारे परमेश्‍वर, हमें बचा ले+

और राष्ट्रों के बीच से हमें इकट्ठा कर ले+

ताकि हम तेरे पवित्र नाम की तारीफ करें

और तेरी तारीफ करने में बहुत खुशी पाएँ।+

48 इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा की युग-युग तक* तारीफ होती रहे।+

और सब लोग कहें, “आमीन!”*

याह की तारीफ करो!*

पाँचवीं किताब

(भजन 107-150)

107 यहोवा का शुक्रिया अदा करो क्योंकि वह भला है,+

उसका अटल प्यार सदा बना रहता है।+

 2 जिन्हें यहोवा ने छुड़ाया है,* वे यही कहें,

जिन्हें उसने दुश्‍मन के हाथ* से छुड़ाया है,+

 3 देश-देश से इकट्ठा किया है,+

पूरब से, पश्‍चिम से,* उत्तर से और दक्षिण से, वे ऐसा ही कहें।+

 4 वे वीराने में, जंगल में भटकते-फिरते रहे,

उन्हें किसी शहर का रास्ता न मिला कि वे जाकर बस जाते।

 5 वे भूखे-प्यासे थे,

थक-हारकर पस्त हो चुके थे।

 6 संकट में वे यहोवा को पुकारते रहे,+

उसने उन्हें बदहाली से बाहर निकाला।+

 7 वह उन्हें सही रास्ते से ले गया+

कि वे एक ऐसे शहर पहुँचें जहाँ वे बस जाएँ।+

 8 यहोवा के अटल प्यार के लिए,

इंसानों की खातिर उसके आश्‍चर्य के कामों के लिए+

लोग उसका शुक्रिया अदा करें।+

 9 क्योंकि उसने प्यासों की प्यास बुझायी,

भूखों को अच्छी चीज़ें खिलाकर संतुष्ट किया।+

10 कुछ लोग घोर अंधकार में जी रहे थे,

कैदी लोहे की ज़ंजीरों में जकड़े दुख झेल रहे थे।

11 वे परमेश्‍वर के वचन के खिलाफ गए थे,

उन्होंने परम-प्रधान की सलाह को तुच्छ जाना था।+

12 इसलिए उसने उन पर तकलीफें लाकर उनके दिलों को दीन किया,+

वे लड़खड़ाकर गिर पड़े, उनकी मदद करनेवाला कोई न था।

13 संकट में उन्होंने मदद के लिए यहोवा को पुकारा,

उसने उन्हें बदहाली से छुड़ाया।

14 वह उन्हें घोर अंधकार से बाहर ले आया,

उनकी बेड़ियाँ तोड़ दीं।+

15 यहोवा के अटल प्यार के लिए,+

इंसानों की खातिर उसके आश्‍चर्य के कामों के लिए

लोग उसका शुक्रिया अदा करें।

16 उसने ताँबे के फाटक तोड़ डाले,

लोहे के बेड़ों के टुकड़े-टुकड़े कर दिए।+

17 जो मूर्ख थे उन्हें दुख झेलना पड़ा,+

अपने अपराधों और गुनाहों की वजह से दुख झेलना पड़ा।+

18 उनकी भूख मर गयी,

वे कब्र के दरवाज़ों तक पहुँच गए।

19 वे संकट में मदद के लिए यहोवा को पुकारते,

वह उन्हें बदहाली से छुड़ाता।

20 वह अपने वचन के ज़रिए उनकी बीमारी दूर करता,+

उन्हें उन गड्‌ढों से बाहर निकालता जहाँ वे फँस गए थे।

21 यहोवा के अटल प्यार के लिए,

इंसानों की खातिर उसके आश्‍चर्य के कामों के लिए

लोग उसका शुक्रिया अदा करें।

22 वे उसके लिए धन्यवाद-बलि चढ़ाएँ,+

खुशी से जयजयकार करते हुए उसके कामों का ऐलान करें।

23 जो जहाज़ों से समुंदर पर सफर करते हैं,

विशाल सागर से होकर व्यापार का माल लाते-ले जाते हैं,+

24 उन्होंने यहोवा के काम देखे हैं,

वे खूबसूरत चीज़ें देखी हैं जो उसने समुंदर में रची हैं+

25 कि उसके हुक्म पर कैसे आँधी चलती है+

और सागर की लहरों को उठाती है।

26 वे आसमान की ऊँचाई तक उठते हैं,

समुंदर की गहराइयों में डूब जाते हैं।

खतरा मँडराता देखकर उनकी हिम्मत टूट जाती है।

27 वे एक मतवाले की तरह लड़खड़ाते हैं, गिरते-पड़ते हैं,

उनका सारा हुनर बेकार हो जाता है।+

28 तब वे संकट में यहोवा को पुकारते हैं+

और वह उन्हें बदहाली से छुड़ाता है।

29 वह आँधी को शांत कर देता है,

समुंदर की लहरें खामोश हो जाती हैं।+

30 लहरों का थमना देखकर वे खुश होते हैं,

वह उन्हें उनके मनचाहे बंदरगाह पर ले जाता है।

31 यहोवा के अटल प्यार के लिए,

इंसानों की खातिर उसके आश्‍चर्य के कामों के लिए+

लोग उसका शुक्रिया अदा करें।

32 वे लोगों की मंडली में उसे ऊँचा उठाएँ,+

बुज़ुर्गों की सभा* में उसकी तारीफ करें।

33 वह नदियों को रेगिस्तान में बदल देता है,

पानी के सोतों को सूखी ज़मीन में+

34 और उपजाऊ ज़मीन को नमकवाली ज़मीन में बदल देता है,+

वहाँ के रहनेवालों की दुष्टता की वजह से वह ऐसा करता है।

35 वह रेगिस्तान को नरकटोंवाले तालाब में

और सूखी ज़मीन को पानी के सोतों में बदल देता है।+

36 वह भूखों को वहाँ बसाता है+

ताकि वे शहर बसाकर उसमें रह सकें।+

37 वे खेत बोते हैं और अंगूरों के बाग लगाते हैं,+

जहाँ बढ़िया फसलें होती हैं।+

38 वह उन्हें आशीष देता है और उनकी गिनती खूब बढ़ती है,

वह उनके मवेशियों की गिनती घटने नहीं देता।+

39 मगर ज़ुल्म, कहर और दुख की वजह से

दोबारा उनकी गिनती कम हो जाती है और वे बेइज़्ज़त किए जाते हैं।

40 वह रुतबेदार लोगों का अपमान करवाता है,

उन्हें वीरानों में भटकाता है जहाँ कोई रास्ता नहीं।+

41 मगर वह गरीबों को ज़ुल्म से बचाता है,*+

उनके परिवार को भेड़ों के झुंड की तरह बढ़ाता है।

42 यह देखकर सीधे-सच्चे लोग आनंद-मगन होते हैं,+

मगर सभी दुष्ट अपना मुँह बंद कर लेते हैं।+

43 जो कोई बुद्धिमान है, वह इन बातों पर ध्यान देगा,+

यहोवा के अटल प्यार के कामों पर गौर से सोचेगा।+

दाविद का सुरीला गीत।

108 हे परमेश्‍वर, मेरा दिल अटल है।

मैं तेरे लिए दिलो-जान से गीत गाऊँगा, संगीत बजाऊँगा।+

 2 हे तारोंवाले बाजे, जाग,

हे सुरमंडल, तू भी जाग।+

मैं भोर को जगाऊँगा।

 3 हे यहोवा, मैं देश-देश के लोगों के बीच तेरी तारीफ करूँगा,

राष्ट्रों के बीच तेरी तारीफ में गीत गाऊँगा।*

 4 क्योंकि तेरा अटल प्यार क्या ही महान है,

आसमान जितना ऊँचा है,+

तेरी वफादारी आकाश की बुलंदियाँ छूती है।

 5 हे परमेश्‍वर, तेरी महिमा आसमान के ऊपर हो,

तेरा वैभव पूरी धरती पर फैल जाए।+

 6 अपने दाएँ हाथ से हमें बचा ले, मेरी सुन ले

ताकि जिन्हें तू प्यार करता है वे छुड़ाए जाएँ।+

 7 परमेश्‍वर अपनी पवित्रता के कारण* कहता है,

“मैं मगन होऊँगा, विरासत में शेकेम+ दूँगा,

सुक्कोत घाटी नापकर दूँगा।+

 8 मनश्‍शे मेरा है, गिलाद+ भी मेरा है,

एप्रैम मेरे सिर का टोप है,+

यहूदा मेरे लिए हाकिम की लाठी है।+

 9 मोआब मेरा हाथ-पैर धोने का बरतन है।+

एदोम पर मैं अपना जूता फेंकूँगा।+

पलिश्‍त को जीतकर मैं जश्‍न मनाऊँगा।”+

10 कौन मुझे उस किलेबंद शहर तक ले जाएगा?

कौन मुझे दूर एदोम तक ले जाएगा?+

11 हे हमारे परमेश्‍वर, तू ही हमें वहाँ ले जाएगा।

मगर तूने तो हमें ठुकरा दिया है,

तू अब युद्ध में हमारी सेना के साथ नहीं जाता।+

12 हम संकट में हैं, हमारी मदद कर,+

क्योंकि उद्धार के लिए इंसान पर आस लगाना बेकार है।+

13 परमेश्‍वर से हमें ताकत मिलेगी,+

वह हमारे बैरियों को रौंद डालेगा।+

दाविद का सुरीला गीत। निर्देशक के लिए हिदायत।

109 हे परमेश्‍वर, जिसकी मैं तारीफ करता हूँ,+ तू और चुप न रह।

 2 क्योंकि दुष्ट और धोखेबाज़ मेरे खिलाफ बोलते हैं,

अपनी ज़बान से मेरे बारे में झूठी बातें कहते हैं।+

 3 वे मुझे घेर लेते हैं, चुभनेवाली बातें कहते हैं,

बेवजह मुझ पर हमला करते हैं।+

 4 मेरे प्यार के बदले मेरा विरोध करते हैं,+

मगर मैं प्रार्थना करने में लगा रहता हूँ।

 5 वे मेरी अच्छाई का बदला बुराई से देते हैं,+

मेरे प्यार के बदले मुझसे नफरत करते हैं।+

 6 उस पर किसी दुष्ट को ठहरा,

उसके दाएँ हाथ एक विरोधी* खड़ा रहे।

 7 जब उसका न्याय होगा तो वह दोषी* पाया जाए,

उसकी प्रार्थना भी एक पाप मानी जाए।+

 8 उसकी ज़िंदगी के दिन घट जाएँ,+

उसका निगरानी का पद कोई और ले ले।+

 9 उसके बच्चों* पर से पिता का साया उठ जाए

और उसकी पत्नी विधवा हो जाए।

10 उसके बच्चे* भिखारी बनकर भटकते फिरें,

अपने उजड़े हुए घरों से निकलकर टुकड़े तलाशते रहें।

11 उसका लेनदार उसका सबकुछ ज़ब्त कर ले,*

पराए उसकी जायदाद लूट लें।

12 कोई भी उस पर कृपा* न करे,

उसकी मौत के बाद उसके बच्चों पर दया न करे।

13 उसके वंशज काट डाले जाएँ,+

उनका नाम एक ही पीढ़ी में मिटा दिया जाए।

14 उसके पुरखों का गुनाह यहोवा याद रखे+

और उसकी माँ का पाप कभी न मिटाया जाए।

15 उन्होंने जो किया है उसे यहोवा हर पल याद रखे,

वह धरती से उनकी याद हमेशा के लिए मिटा दे।+

16 क्योंकि दूसरों पर कृपा* करना उसे याद नहीं रहा,+

इसके बजाय, वह ज़ुल्म सहनेवाले, गरीब और टूटे मनवाले का पीछा करता रहा+

ताकि उसे मार डाले।+

17 दूसरों को शाप देने में उसे खुशी मिलती थी,

इसलिए अब उसी पर शाप आ पड़ा है,

उसने दूसरों को आशीर्वाद देना नहीं चाहा,

इसलिए उसे कोई आशीष नहीं मिली।

18 उसे मानो शाप की पोशाक पहनायी गयी।

शाप उसके शरीर में ऐसे उँडेला गया जैसे पानी हो,

उसकी हड्डियों में ऐसे उँडेला गया जैसे तेल हो।

19 उस पर पड़े शाप पोशाक जैसे हों जिसे वह पहने रहता है,+

कमर-पट्टी जैसे हों जिसे वह हरदम कसे रहता है।

20 यहोवा उन्हें यही सिला देता है जो मेरा विरोध करते हैं,+

मेरे बारे में बुरी बातें कहते हैं।

21 मगर हे सारे जहान के मालिक यहोवा,

अपने नाम की खातिर मेरी तरफ से कार्रवाई कर।+

मुझे छुड़ा ले क्योंकि तेरा अटल प्यार भला है।+

22 मैं बेसहारा और गरीब हूँ,+

मेरा दिल छलनी हो गया है।+

23 मैं घटती छाया की तरह गायब हो रहा हूँ,

एक टिड्डी की तरह मुझे झटक दिया गया है।

24 उपवास करते-करते मेरे घुटने जवाब दे गए हैं,

मैं दुबला हो गया हूँ, सूखता जा रहा हूँ।*

25 वे मुझ पर ताना कसते हैं,+

मुझे देखकर सिर हिलाते हैं।+

26 हे यहोवा, मेरे परमेश्‍वर, मेरी मदद कर,

अपने अटल प्यार की वजह से मुझे बचा ले।

27 वे जान जाएँ कि यह तूने अपने हाथ से किया है,

कि हे यहोवा, यह तूने ही किया है।

28 वे भले ही शाप दें, मगर तू आशीष दे।

जब वे मेरे खिलाफ उठें तो वे शर्मिंदा किए जाएँ,

मगर तेरा सेवक आनंद मनाए।

29 मेरा विरोध करनेवालों को अपमान की पोशाक पहनायी जाए,

उन्हें शर्म का ओढ़ना ओढ़ाया जाए।+

30 मैं अपने मुँह से पूरे जोश के साथ यहोवा की तारीफ करूँगा,

बहुत-से लोगों के सामने उसकी तारीफ करूँगा।+

31 क्योंकि वह गरीब के दाएँ हाथ खड़ा होगा

ताकि उसे उन लोगों से बचाए जो उसे दोषी ठहराते हैं।

दाविद का सुरीला गीत।

110 यहोवा ने मेरे प्रभु से कहा,

“तू तब तक मेरे दाएँ हाथ बैठ,+

जब तक कि मैं तेरे दुश्‍मनों को तेरे पाँवों की चौकी न बना दूँ।”+

 2 यहोवा तेरी ताकत का राजदंड सिय्योन से बढ़ाएगा

और कहेगा, “अपने दुश्‍मनों के बीच जा, उन पर जीत हासिल करता जा।”+

 3 जिस दिन तू अपनी सेना को लेकर युद्ध में जाएगा,*

उस दिन तेरे लोग अपनी इच्छा से खुद को पेश करेंगे।

तेरे साथ तेरे जवानों का दल होगा,

जिसमें पवित्रता का तेज चमकता है।

वे ओस की बूँदों के समान हैं,

जो भोर के गर्भ से पैदा होती हैं।

 4 यहोवा ने शपथ खाकर यह वादा किया है और जो उसने सोचा है उसे नहीं बदलेगा,*

“तू मेल्कीसेदेक जैसा याजक है

और तू हमेशा-हमेशा के लिए याजक रहेगा!”+

 5 यहोवा तेरे दाएँ हाथ होगा,+

वह अपने क्रोध के दिन राजाओं को कुचल देगा।+

 6 वह राष्ट्रों का न्याय करके उन्हें सज़ा देगा,+

देश को लाशों से भर देगा।+

एक विशाल देश* के प्रधान को कुचल देगा।

 7 वह* रास्ते के किनारे बहती धारा से पानी पीएगा,

इसलिए वह अपना सिर ऊँचा उठाएगा।

111 याह की तारीफ करो!*+

א [आलेफ ]

मैं सीधे-सच्चे लोगों की सभा में और मंडली में

ב [बेथ ]

पूरे दिल से यहोवा की तारीफ करूँगा।+

ג [गिमेल ]

 2 यहोवा के काम महान हैं,+

ד [दालथ ]

जो उनसे खुशी पाते हैं, वे सब उनकी जाँच करते हैं।+

ה [हे ]

 3 उसके काम गौरवशाली और लाजवाब हैं,

ו [वाव ]

उसकी नेकी सदा बनी रहती है।+

ז [जैन ]

 4 वह अपने आश्‍चर्य के कामों को यादगार बनाता है।+

ח [हेथ ]

यहोवा करुणा से भरा और दयालु है।+

ט [टेथ ]

 5 जो उसका डर मानते हैं, उन्हें वह खाना देता है।+

י [योध ]

वह सदा अपना करार याद रखता है।+

כ [काफ ]

 6 उसने अपने लोगों को दूसरी जातियों की विरासत दी है,+

ל [लामेध ]

ऐसा करके उसने अपने शक्‍तिशाली काम अपने लोगों को दिखाए हैं।

מ [मेम ]

 7 उसके हाथ के काम सच्चे और न्याय के हैं,+

נ [नून ]

उसके सभी आदेश भरोसेमंद हैं।+

ס [सामेख ]

 8 वे हमेशा भरोसेमंद* होते हैं, आज भी हैं और सदा तक भरोसेमंद रहेंगे,

ע [ऐयिन ]

उनकी बुनियाद सच्चाई और नेकी है।+

פ [पे ]

 9 उसने अपने लोगों को छुटकारा दिलाया है।+

צ [सादे ]

उसने आज्ञा दी है कि उसका करार सदा कायम रहे।

ק [कोफ ]

उसका नाम पवित्र और विस्मयकारी है।+

ר [रेश ]

10 यहोवा का डर मानना बुद्धि की शुरूआत है।+

ש [सीन ]

उसके आदेशों को माननेवाले सभी अंदरूनी समझ दिखाते हैं।+

ת [ताव ]

उसकी तारीफ सदा तक होती रहती है।

112 याह की तारीफ करो!*+

א [आलेफ ]

सुखी है वह इंसान जो यहोवा का डर मानता है,+

ב [बेथ ]

जो उसकी आज्ञाओं से बड़ी खुशी पाता है।+

ג [गिमेल ]

 2 उसके वंशज धरती पर ताकतवर होंगे,

ד [दालथ ]

सीधे-सच्चे लोगों की पीढ़ी आशीष पाएगी।+

ה [हे ]

 3 उसके घर में धन-दौलत है

ו [वाव ]

और उसकी नेकी हमेशा बनी रहती है।

ז [जैन ]

 4 वह सीधे-सच्चे लोगों के लिए अँधेरे में चमकती रौशनी है।+

ח [हेथ ]

वह करुणा से भरा है, दयालु+ और नेक है।

ט [टेथ ]

 5 जो आदमी दिल खोलकर उधार देता है उसके साथ अच्छा होता है।+

י [योध ]

वह अपना सारा काम न्याय से करता है।

כ [काफ ]

 6 उसे कभी हिलाया नहीं जा सकता।+

ל [लामेध ]

नेक जन को हमेशा याद किया जाएगा।+

מ [मेम ]

 7 वह बुरी खबर से नहीं डरेगा।+

נ [नून ]

उसका दिल अटल रहता है, यहोवा पर भरोसा रखता है।+

ס [सामेख ]

 8 उसका दिल मज़बूत* रहता है, वह नहीं डरता।+

ע [ऐयिन ]

आखिर में वह अपने दुश्‍मनों की हार देखेगा।+

פ [पे ]

 9 उसने बढ़-चढ़कर* बाँटा है, गरीबों को दिया है।+

צ [सादे ]

उसकी नेकी हमेशा बनी रहती है।+

ק [कोफ ]

उसकी ताकत* सम्मान के साथ बढ़ती जाएगी।

ר [रेश ]

10 दुष्ट यह देखकर परेशान हो जाएगा।

ש [शीन ]

वह दाँत पीसेगा और मिट जाएगा।

ת [ताव ]

दुष्ट की इच्छाएँ कभी पूरी न होंगी।+

113 याह की तारीफ करो!*

यहोवा के सेवको, उसकी तारीफ करो,

यहोवा के नाम की तारीफ करो।

 2 यहोवा के नाम की तारीफ हो,

आज भी हो और सदा होती रहे।+

 3 पूरब से पश्‍चिम तक

यहोवा के नाम की तारीफ की जाए।+

 4 यहोवा सब राष्ट्रों से ऊँचा है,+

वह आसमान से भी ज़्यादा महिमा से भरा है।+

 5 हमारे परमेश्‍वर यहोवा जैसा कौन है,+

जो ऊँचे पर निवास करता* है?

 6 वह आसमान और धरती को देखने के लिए नीचे झुकता है,+

 7 दीन जन को धूल में से उठाता है।

गरीब को राख के ढेर* से उठाता है+

 8 ताकि उसे रुतबेदार लोगों के साथ बिठाए,

अपनी प्रजा के रुतबेदार लोगों के साथ बिठाए।

 9 वह बाँझ को औलाद* का सुख देता है,

उसका घर आबाद करता है।+

याह की तारीफ करो!*

114 जब इसराएल मिस्र से बाहर निकला,+

याकूब का घराना दूसरी भाषा बोलनेवालों के बीच से निकला,

 2 तब यहूदा उसका पवित्र-स्थान बना,

इसराएल उसका राज्य बना।+

 3 यह देखकर सागर भाग गया,+

यरदन उलटी दिशा बहने लगी।+

 4 पहाड़ मेढ़ों की तरह उछलने लगे,+

पहाड़ियाँ मेम्नों की तरह उछलने लगीं।

 5 हे सागर, तू क्यों भागा?+

हे यरदन, तू क्यों उलटी दिशा बहने लगी?+

 6 हे पहाड़ो, तुम क्यों मेढ़ों की तरह उछले?

हे पहाड़ियो, तुम क्यों मेम्नों की तरह उछलीं?

 7 हे धरती, प्रभु के कारण थर-थर काँप,

याकूब के परमेश्‍वर के कारण काँप,+

 8 जो चट्टान को नरकटोंवाले तालाब में बदल देता है,

चकमक चट्टान को पानी के सोतों में बदल देता है।+

115 हे यहोवा, हमारी नहीं, हाँ हमारी नहीं*

बल्कि अपने नाम की महिमा कर,+

अपने अटल प्यार और अपनी वफादारी के कारण ऐसा कर।+

 2 राष्ट्रों को यह कहने का मौका क्यों मिले:

“कहाँ गया उनका परमेश्‍वर?”+

 3 हमारा परमेश्‍वर स्वर्ग में है,

वह वही करता है जो उसे भाता है।

 4 उनकी मूरतें सोने-चाँदी की बनी हैं,

इंसान के हाथ की कारीगरी हैं।+

 5 उनका मुँह तो है पर वे बोल नहीं सकतीं,+

आँखें हैं पर देख नहीं सकतीं,

 6 कान हैं पर सुन नहीं सकतीं,

नाक है पर सूँघ नहीं सकतीं,

 7 हाथ हैं पर छू नहीं सकतीं,

पैर हैं पर चल नहीं सकतीं,+

उनके गले से कोई आवाज़ नहीं निकलती।+

 8 उनके बनानेवाले और उन पर भरोसा रखनेवाले,

दोनों उनकी तरह हो जाएँगे।+

 9 हे इसराएल, यहोवा पर भरोसा रख+

—वह उनका मददगार और उनकी ढाल है।+

10 हे हारून के घराने,+ यहोवा पर भरोसा रख

—वह उनका मददगार और उनकी ढाल है।

11 यहोवा का डर माननेवालो, यहोवा पर भरोसा रखो+

—वह उनका मददगार और उनकी ढाल है।+

12 यहोवा हमें याद रखता है और हमें आशीष देगा,

वह इसराएल के घराने को आशीष देगा,+

वह हारून के घराने को आशीष देगा।

13 जो यहोवा का डर मानते हैं उन्हें वह आशीष देगा,

छोटे और बड़े, सभी को आशीष देगा।

14 यहोवा तुम्हारी गिनती बढ़ाएगा,

तुम्हारी और तुम्हारे बच्चों* की गिनती बढ़ाएगा।+

15 यहोवा तुम्हें आशीष दे,+

जो आकाश और धरती का बनानेवाला है।+

16 स्वर्ग तो यहोवा का है,+

मगर धरती उसने इंसानों को दी है।+

17 जो मर गए हैं वे याह की तारीफ नहीं करते,+

न ही वे करते हैं जो मौत की खामोशी में चले गए हैं।+

18 मगर हम याह की तारीफ करेंगे,

अब से लेकर हमेशा-हमेशा तक।

याह की तारीफ करो!*

116 मैं यहोवा से प्यार करता हूँ,

क्योंकि वह मेरी आवाज़ सुनता है,*

मेरी मदद की पुकार सुनता है।+

 2 वह मेरी तरफ अपना कान लगाता है,*+

जब तक मैं ज़िंदा हूँ, उसे पुकारूँगा।

 3 मौत के रस्सों ने मुझे कस लिया था,

कब्र ने मुझे जकड़ लिया था।+

दुख और पीड़ा मुझ पर हावी हो गयी थी।+

 4 मगर मैंने यहोवा का नाम पुकारा:+

“हे यहोवा, मुझे छुड़ा ले!”

 5 यहोवा करुणा से भरा और नेक है,+

हमारा परमेश्‍वर दयालु है।+

 6 यहोवा उनकी रक्षा करता है जिन्हें कोई तजुरबा नहीं है।+

मैं दुख से बेहाल था, उसने मुझे बचाया।

 7 मेरे जी को फिर से चैन मिले,

क्योंकि यहोवा ने मुझ पर कृपा की है।

 8 तूने मुझे मौत से छुड़ाया,

मेरी आँखों में आँसू नहीं आने दिए,

मेरे पैरों को ठोकर नहीं लगने दी।+

 9 मैं जब तक ज़िंदा हूँ,* यहोवा के सामने चलता रहूँगा।

10 मुझे विश्‍वास था, तभी मैंने कहा,+

इसके बावजूद कि मुझे बहुत सताया गया।

11 मैं बहुत घबरा गया था,

मैंने कहा, “हर आदमी झूठा है।”+

12 यहोवा ने मेरे साथ जितनी भी भलाई की है,

उसका बदला मैं कैसे चुकाऊँगा?

13 मैं उद्धार का प्याला पीऊँगा,

यहोवा का नाम पुकारूँगा।

14 मैंने यहोवा से जो मन्‍नतें मानी हैं,

वे उसके सब लोगों के देखते पूरी करूँगा।+

15 यहोवा की नज़र में उसके वफादार जनों की मौत बहुत अनमोल* है।+

16 हे यहोवा, मैं तुझसे गिड़गिड़ाकर मिन्‍नत करता हूँ

क्योंकि मैं तेरा सेवक हूँ।

तेरा सेवक हूँ, तेरी दासी का बेटा हूँ।

तूने मुझे बेड़ियों से आज़ाद किया है।+

17 मैं तुझे धन्यवाद-बलि चढ़ाऊँगा,+

यहोवा का नाम पुकारूँगा।

18 मैंने यहोवा से जो मन्‍नतें मानी हैं,+

वे उसके सब लोगों के देखते पूरी करूँगा,+

19 मैं यहोवा के भवन के आँगनों में,+

हे यरूशलेम, तेरे बीच यह सब करूँगा।

याह की तारीफ करो!*+

117 सब राष्ट्रो, यहोवा की तारीफ करो,+

देश-देश के लोगो,* उसकी महिमा करो।+

 2 क्योंकि हमारी खातिर उसका अटल प्यार बहुत महान है+

यहोवा सदा तक विश्‍वासयोग्य रहता है।+

याह की तारीफ करो!*+

118 यहोवा का शुक्रिया अदा करो क्योंकि वह भला है,+

उसका अटल प्यार सदा बना रहता है।

 2 इसराएल अब कहे,

“उसका अटल प्यार सदा बना रहता है।”

 3 हारून के घराने के लोग अब कहें,

“उसका अटल प्यार सदा बना रहता है।”

 4 यहोवा का डर माननेवाले अब कहें,

“उसका अटल प्यार सदा बना रहता है।”

 5 मैंने संकट में याह* को पुकारा,

याह ने मुझे जवाब दिया और एक महफूज़* जगह ले आया।+

 6 यहोवा मेरी तरफ है, मैं नहीं डरूँगा।+

इंसान मेरा क्या कर सकता है?+

 7 यहोवा मेरी तरफ है, मेरा मददगार है,*+

जो मुझसे नफरत करते हैं, मैं उनकी हार देखूँगा।+

 8 यहोवा की पनाह लेना बेहतर है,

बजाय इसके कि इंसानों पर भरोसा करें।+

 9 यहोवा की पनाह लेना बेहतर है,

बजाय इसके कि हाकिमों पर भरोसा करें।+

10 सब राष्ट्रों ने मुझे घेर लिया,

मगर मैंने यहोवा के नाम से सबको भगा दिया।+

11 उन्होंने मुझे घेर लिया, हाँ, मैं पूरी तरह से घिर चुका था,

मगर मैंने यहोवा के नाम से सबको भगा दिया।

12 उन्होंने मधुमक्खियों की तरह मुझे घेर लिया,

मगर वे जल्द मिट गए,

जैसे आग लगने पर कँटीली झाड़ियाँ भस्म हो जाती हैं।

मैंने यहोवा के नाम से सबको भगा दिया।+

13 मुझे गिराने के लिए ज़ोर का धक्का दिया गया,*

मगर यहोवा ने मेरी मदद की।

14 याह मेरा आसरा है, मेरी ताकत है,

वह मेरा उद्धारकर्ता बन गया है।+

15 नेक जनों का उद्धार हुआ है,*

इसलिए उनके तंबुओं से खुशी की जयजयकार सुनायी दे रही है।

यहोवा का दायाँ हाथ अपनी ताकत दिखा रहा है।+

16 यहोवा का दायाँ हाथ ऊँचा उठा है,

यहोवा का दायाँ हाथ अपनी ताकत दिखा रहा है।+

17 मुझे मरना मंज़ूर नहीं, मैं जीऊँगा

ताकि याह के कामों का ऐलान करूँ।+

18 याह ने मुझे कड़ी फटकार लगायी,+

मगर मुझे मौत के हवाले नहीं किया।+

19 मेरे लिए नेकी के फाटक खोल दो,+

मैं उनमें दाखिल होऊँगा और याह की तारीफ करूँगा।

20 यह यहोवा का फाटक है।

नेक जन इसमें से दाखिल होंगे।+

21 मैं तेरी तारीफ करूँगा क्योंकि तूने मुझे जवाब दिया+

और तू मेरा उद्धारकर्ता बन गया।

22 जिस पत्थर को राजमिस्त्रियों ने ठुकरा दिया,

वही कोने का मुख्य पत्थर बन गया है।+

23 यह यहोवा की तरफ से हुआ है+

और हमारी नज़र में लाजवाब है।+

24 यह यहोवा का ठहराया हुआ दिन है,

इसके कारण हम खुशियाँ मनाएँगे, आनंद-मगन होंगे।

25 हे यहोवा, हमें बचा ले, हमारा गिड़गिड़ाना सुन ले!

हे यहोवा, हमें जीत दिला, हमारी बिनती सुन ले!

26 धन्य है वह जो यहोवा के नाम से आता है।+

हम यहोवा के भवन से तुम लोगों को आशीर्वाद देते हैं।

27 यहोवा परमेश्‍वर है,

वह हमें रौशनी देता है।+

हाथों में डालियाँ लिए त्योहार के जुलूस में शामिल हो जाओ,+

वेदी के सींगों+ तक चलो।

28 तू मेरा परमेश्‍वर है, मैं तेरी तारीफ करूँगा,

मेरे परमेश्‍वर, मैं तेरी बड़ाई करूँगा।+

29 यहोवा का शुक्रिया अदा करो+ क्योंकि वह भला है,

उसका अटल प्यार सदा बना रहता है।+

א [आलेफ ]

119 सुखी हैं वे जो निर्दोष चाल चलते हैं,

जो यहोवा के कानून पर चलते हैं।+

 2 सुखी हैं वे जो उसके याद दिलाने पर हिदायतें मानते हैं,+

जो पूरे दिल से उसकी खोज करते हैं।+

 3 वे कोई भी बुरा काम करने की आदत नहीं बनाते,

वे उसकी राहों पर चलते हैं।+

 4 तूने आज्ञा दी है कि तेरे आदेश सख्ती से माने जाएँ।+

 5 मैं यही चाहता हूँ कि मैं अटल बना रहूँ*+

ताकि तेरी विधियों का पालन करता रहूँ!

 6 फिर मैं तेरी सभी आज्ञाओं पर गौर करूँगा

और शर्मिंदा नहीं किया जाऊँगा।+

 7 जब मैं तेरे नेक फैसलों के बारे में सीखूँगा,

तो मैं सीधे-सच्चे मन से तेरी तारीफ करूँगा।

 8 मैं तेरे नियमों को मानूँगा।

तू मुझे कभी पूरी तरह छोड़ न देना।

ב [बेथ ]

 9 एक जवान कैसे साफ-सुथरी ज़िंदगी बिता सकता है?

तेरे वचन के मुताबिक सावधानी बरतकर।+

10 मैं पूरे दिल से तेरी खोज करता हूँ।

तू मुझे अपनी आज्ञाओं से भटकने न देना।+

11 मैं तेरी बातें दिल में संजोए रखता हूँ+

ताकि तेरे खिलाफ पाप न करूँ।+

12 हे यहोवा, तेरी तारीफ होती रहे,

तू मुझे अपने नियम सिखा।

13 मैं अपने होंठों से तेरे सुनाए सभी फैसलों का ऐलान करता हूँ।

14 तू जो हिदायतें याद दिलाता है उनसे मुझे खुशी मिलती है,+

कीमती-से-कीमती चीज़ों से बढ़कर खुशी मिलती है।+

15 मैं तेरे आदेशों के बारे में गहराई से सोचूँगा*+

और तेरी राहों का ध्यान रखूँगा।+

16 मैं तेरी विधियों से लगाव रखता हूँ।

मैं तेरा वचन नहीं भूलूँगा।+

ג [गिमेल ]

17 अपने सेवक के साथ भलाई कर

ताकि मैं जीता रहूँ और तेरे वचन का पालन करूँ।+

18 मेरी आँखें खोल दे

ताकि मैं तेरे कानून की लाजवाब बातें साफ देख सकूँ।

19 मैं देश में बस एक परदेसी हूँ।+

मुझसे अपनी आज्ञाएँ न छिपा।

20 मैं तेरे न्याय-सिद्धांतों के लिए हर वक्‍त तरसता हूँ,

मेरे अंदर यह धुन समायी रहती है।

21 तू गुस्ताखों को डाँट लगाता है,

उन शापित लोगों को, जो तेरी आज्ञाओं से भटक जाते हैं।+

22 मेरी बदनामी और मेरा अपमान दूर कर दे,

क्योंकि मैंने वे हिदायतें मानी हैं जो तू याद दिलाता है।

23 जब हाकिम साथ बैठकर मेरे खिलाफ बोलते हैं,

तब भी तेरा यह सेवक तेरे नियमों के बारे में गहराई से सोचता है।*

24 तू जो हिदायतें याद दिलाता है उनसे मैं लगाव रखता हूँ,+

ये मेरे लिए सलाहकार हैं।+

ד [दालथ ]

25 मैं धूल में पड़ा हूँ।+

अपने वचन के मुताबिक मेरी जान की हिफाज़त कर।+

26 मैंने अपने सभी कामों के बारे में तुझे बताया और तूने मुझे जवाब दिया,

तू मुझे अपने नियम सिखा।+

27 मुझे अपने आदेशों का मतलब* समझा

ताकि मैं तेरे आश्‍चर्य के कामों के बारे में गहराई से सोचूँ।*+

28 दुख के मारे मेरी नींद उड़ गयी है।

अपने वचन के मुताबिक मुझे मज़बूत कर।

29 छल-कपट के रास्ते से मुझे दूर रख+

और अपना कानून देकर मुझ पर कृपा कर।

30 मैंने वफादारी की राह चुनी है।+

मैं यह बात समझता हूँ कि तेरे फैसले सही हैं।

31 तू जो हिदायतें याद दिलाता है उनसे मैं लिपटा रहता हूँ।+

हे यहोवा, मुझे निराश* न होने दे।+

32 मैं तेरी आज्ञाओं की राह पर पूरे जोश से चलूँगा,*

क्योंकि तूने मेरे दिल में उसके लिए जगह बनायी है।*

ה [हे ]

33 हे यहोवा, तू अपने नियमों की राह मुझे सिखा,+

मैं अंत तक उस राह पर चलता रहूँगा।+

34 मुझे समझ दे ताकि मैं तेरे कानून का पालन करूँ

और पूरे दिल से उस पर चलता रहूँ।

35 अपनी आज्ञाओं की डगर पर मुझे ले चल,+

क्योंकि मुझे उससे खुशी मिलती है।

36 तू जो हिदायतें याद दिलाता है उनकी तरफ मेरे मन को झुका,

इसे बेईमानी की कमाई* की तरफ झुकने न दे।+

37 मेरी आँखों को बेकार की चीज़ों से फेर दे,+

मुझे अपनी राह पर ले चल ताकि मेरी जान की हिफाज़त हो।

38 तू अपने सेवक से किया वादा निभा*

ताकि तेरा डर माना जाए।*

39 मेरी बदनामी दूर कर जिससे मैं डरता हूँ,

क्योंकि तेरे फैसले सही हैं।+

40 देख, मैं तेरे आदेशों के लिए कितना तरसता हूँ।

अपनी नेकी की वजह से मेरी जान की हिफाज़त कर।

ו [वाव ]

41 हे यहोवा, तू अपने वादे के* मुताबिक

मुझसे प्यार* करे,+ मेरा उद्धार करे,

42 तब मैं उसे जवाब दूँगा जो मुझ पर ताना कसता है,

क्योंकि मैं तेरे वचन पर भरोसा रखता हूँ।

43 मेरे मुँह से सच्चाई का वचन पूरी तरह हटा न देना,

क्योंकि मैं तेरे फैसलों की आस लगाता हूँ।*

44 मैं हमेशा तेरे कानून का पालन करूँगा,

सदा तक उसे मानूँगा।+

45 मैं एक महफूज़* जगह चला-फिरा करूँगा,+

क्योंकि मैं तेरे आदेशों की खोज करता हूँ।

46 तू जो हिदायतें याद दिलाता है, वे मैं राजाओं के सामने बताऊँगा

और शर्मिंदा महसूस नहीं करूँगा।+

47 मैं तेरी आज्ञाओं से लगाव रखता हूँ,

हाँ, मैं उनसे प्यार करता हूँ।+

48 मैं हाथ उठाकर तुझसे प्रार्थना करूँगा,

क्योंकि मैं तेरी आज्ञाओं से प्यार करता हूँ+

और मैं तेरे नियमों के बारे में गहराई से सोचूँगा।*+

ז [जैन ]

49 अपने सेवक से किया वादा याद कर,

जिसके ज़रिए तू मुझे आशा देता है।*

50 दुख-तकलीफों में यही मुझे दिलासा देता है,+

क्योंकि तेरी बातों ने मेरी जान की हिफाज़त की है।

51 गुस्ताख लोग बढ़-चढ़कर मेरी खिल्ली उड़ाते हैं,

मगर मैं तेरे कानून की राह से दूर नहीं जाता।+

52 हे यहोवा, मैं अतीत के तेरे फैसले याद करता हूँ+

और उनसे दिलासा पाता हूँ।+

53 मैं गुस्से की आग से धधक रहा हूँ,

उन दुष्टों की वजह से जो तेरा कानून मानना छोड़ देते हैं।+

54 मैं जहाँ कहीं रहूँ,* तेरी विधियाँ मेरे लिए गीत हैं।

55 हे यहोवा, रात के वक्‍त मैं तेरा नाम याद करता हूँ+

ताकि तेरे कानून पर चलता रहूँ।

56 यह हमेशा से मेरी आदत रही है,

क्योंकि मैंने तेरे आदेशों का पालन किया है।

ח [हेथ ]

57 यहोवा मेरा भाग है,+

मैंने तेरे वचनों को मानने का वादा किया है।+

58 मैं पूरे दिल से तुझसे फरियाद करता हूँ,+

अपने वादे के* मुताबिक मुझ पर कृपा कर।+

59 मैंने अपने तौर-तरीकों को जाँचा है

ताकि तू जो हिदायतें याद दिलाता है उन्हें दोबारा मानूँ।+

60 मैं तेरी आज्ञाएँ फुर्ती से मानता हूँ, देर नहीं करता।+

61 दुष्ट के रस्से मुझे जकड़ लेते हैं,

मगर मैं तेरा कानून नहीं भूलता।+

62 मैं तेरे नेक फैसलों के लिए

आधी रात को उठकर तेरा शुक्रिया अदा करता हूँ।+

63 मैं उन सबका दोस्त हूँ जो तेरा डर मानते हैं,

जो तेरे आदेशों का पालन करते हैं।+

64 हे यहोवा, तेरे अटल प्यार से धरती भर गयी है,+

तू मुझे अपने नियम सिखा।

ט [टेथ ]

65 हे यहोवा, तूने अपने वचन के मुताबिक

अपने सेवक के साथ भलाई की है।

66 मुझे समझदारी से काम लेना और ज्ञान की बातें सिखा,+

क्योंकि मैंने तेरी आज्ञाओं पर भरोसा रखा है।

67 सताए जाने से पहले मैं भटक जाया करता था,*

मगर अब मैं तेरी बातें मानता हूँ।+

68 तू भला है,+ तेरे काम भले हैं।

तू मुझे अपने नियम सिखा।+

69 गुस्ताख लोग झूठे इलज़ाम लगाकर मुझे बदनाम करते हैं,

मगर मैं पूरे दिल से तेरे आदेशों का पालन करता हूँ।

70 उनका दिल कठोर है,*+

मगर मैं तेरे कानून से लगाव रखता हूँ।+

71 मुझे जो दुख दिया गया वह मेरे अच्छे के लिए ही था,+

इसलिए मैं तेरे नियम सीख पाया।

72 तेरा सुनाया हुआ कानून मेरे लिए अच्छा है,+

सोने-चाँदी के हज़ारों टुकड़ों से कहीं बढ़कर है।+

י [योध ]

73 तेरे हाथों ने मुझे बनाया, मेरी रचना की,

मुझे समझ दे ताकि मैं तेरी आज्ञाएँ सीखूँ।+

74 तेरा डर माननेवाले मुझे देखते हैं और मगन होते हैं,

क्योंकि तेरा वचन मेरी आशा है।*+

75 हे यहोवा, मैं जानता हूँ कि तेरे फैसले सही हैं+

और तूने अपनी वफादारी की वजह से मुझे दुख दिया है।+

76 तू अपने अटल प्यार+ से मुझे दिलासा दे,

ठीक जैसे तूने अपने सेवक से वादा किया है।*

77 मुझ पर दया कर ताकि मैं जीता रहूँ,+

क्योंकि मैं तेरे कानून से लगाव रखता हूँ।+

78 गुस्ताख लोग शर्मिंदा किए जाएँ,

क्योंकि वे बेवजह* मेरे साथ बुरा करते हैं।

मगर मैं तेरे आदेशों के बारे में गहराई से सोचूँगा।*+

79 जो तेरा डर मानते हैं

और उन हिदायतों को जानते हैं जो तू याद दिलाता है,

वे मेरे पास लौट आएँ।

80 तेरे नियम मानने में मेरा दिल निर्दोष पाया जाए+

ताकि मैं शर्मिंदा न किया जाऊँ।+

כ [काफ ]

81 तेरी तरफ से मिलनेवाले उद्धार के लिए मैं तरस रहा हूँ,+

क्योंकि तेरा वचन मेरी आशा है।*

82 मेरी आँखें तेरी बातों के लिए तरसती हैं+

और मैं कहता हूँ, “तू मुझे कब दिलासा देगा?”+

83 मैं धुएँ में सिकुड़ी मशक जैसा हो गया हूँ,

फिर भी मैं तेरे नियम नहीं भूलता।+

84 तेरे सेवक को और कितने दिन इंतज़ार करना होगा?

मेरे सतानेवालों को तू कब सज़ा देगा?+

85 गुस्ताख लोग, जो तेरे कानून को तुच्छ समझते हैं,

मेरे लिए गड्‌ढे खोदते हैं।

86 तेरी सारी आज्ञाएँ भरोसेमंद हैं।

लोग बेवजह मुझे सताते हैं, मेरी मदद कर!+

87 उन्होंने मुझे धरती से मानो मिटा ही दिया,

मगर मैंने तेरे आदेश नहीं छोड़े।

88 अपने अटल प्यार की वजह से मेरी जान की हिफाज़त कर

ताकि तू जो हिदायतें याद दिलाता है उन्हें मैं मानूँ।

ל [लामेध ]

89 हे यहोवा, तेरा वचन सदा तक स्वर्ग में कायम रहेगा।+

90 तू पीढ़ी-पीढ़ी तक विश्‍वासयोग्य बना रहेगा।+

तूने धरती को मज़बूती से कायम किया है, इसलिए यह अब तक टिकी है।+

91 वे* तेरे न्याय-सिद्धांतों की वजह से आज तक बने हैं,

क्योंकि वे सब तेरे सेवक हैं।

92 अगर मुझे तेरे कानून से लगाव न होता,

तो मैं दुख झेलते-झेलते मिट चुका होता।+

93 मैं तेरे आदेश कभी नहीं भूलूँगा,

क्योंकि उनके ज़रिए तूने मेरी जान की हिफाज़त की है।+

94 मैं तेरा हूँ, मुझे बचा ले,+

क्योंकि मैंने तेरे आदेशों की खोज की है।+

95 दुष्ट मुझे नाश करने की ताक में रहते हैं,

मगर मैं उन हिदायतों पर पूरा ध्यान देता हूँ जो तू याद दिलाता है।

96 मैंने सब खरी* बातों की एक सीमा देखी है,

मगर तेरी आज्ञा की कोई सीमा नहीं।*

מ [मेम ]

97 मैं तेरे कानून से कितना प्यार करता हूँ!+

सारा दिन उस पर गहराई से सोचता हूँ।*+

98 तेरी आज्ञा मुझे मेरे दुश्‍मनों से ज़्यादा बुद्धिमान बनाती है,+

क्योंकि यह हमेशा मेरे साथ रहती है।

99 जितने लोग मुझे सिखाते हैं, उन सबसे ज़्यादा अंदरूनी समझ मुझमें है,+

क्योंकि तू जो हिदायतें याद दिलाता है उनके बारे में मैं गहराई से सोचता हूँ।*

100 मैं बुज़ुर्गों से ज़्यादा समझ से काम लेता हूँ,

क्योंकि मैं तेरे आदेशों का पालन करता हूँ।

101 मैं किसी भी बुरे रास्ते पर चलने से इनकार करता हूँ+

ताकि मैं तेरे वचन पर चलता रहूँ।

102 मैं तेरे न्याय-सिद्धांतों से हटकर दूर नहीं जाता,

क्योंकि तूने मुझे सिखाया है।

103 तेरी बातें मेरी जीभ को मीठी लगती हैं,

मेरे मुँह को शहद से भी मीठी लगती हैं!+

104 तेरे आदेशों की वजह से मैं समझ से काम लेता हूँ।+

इसीलिए मैं हर झूठी राह से नफरत करता हूँ।+

נ [नून ]

105 तेरा वचन मेरे पाँव के लिए एक दीपक है,

मेरी राह के लिए रौशनी है।+

106 मैंने शपथ खाकर वादा किया है कि तेरे नेक फैसलों को मानूँगा

और मैं इसे ज़रूर पूरा करूँगा।

107 मुझे बहुत दुख दिया गया है।+

हे यहोवा, अपने वचन के मुताबिक मेरी जान की हिफाज़त कर।+

108 हे यहोवा, तुझसे बिनती है

कि तू तारीफ की मेरी स्वेच्छा-बलियों* से खुश हो+

और मुझे अपने न्याय-सिद्धांत सिखा।+

109 मेरी ज़िंदगी हर पल खतरे में है,

फिर भी मैं तेरा कानून नहीं भूला हूँ।+

110 दुष्टों ने मेरे लिए फंदा बिछाया है,

मगर मैं तेरे आदेशों से नहीं भटका हूँ।+

111 तू जो हिदायतें याद दिलाता है, उन्हें मैं हमेशा की जागीर* मानता हूँ,

क्योंकि इनसे मेरे दिल को खुशी मिलती है।+

112 मैंने ठान लिया है,*

मैं सारी ज़िंदगी तेरे नियम मानूँगा,

आखिरी साँस तक मानता रहूँगा।

ס [सामेख ]

113 मैं आधे-अधूरे मनवालों से* नफरत करता हूँ,+

मगर मैं तेरे कानून से प्यार करता हूँ।+

114 तू मेरा आसरा है, मेरी ढाल है,+

क्योंकि तेरा वचन मेरी आशा है।*+

115 बुरे लोगो, मुझसे दूर रहो+

ताकि मैं अपने परमेश्‍वर की आज्ञाएँ मानूँ।

116 तू अपने वादे के* मुताबिक मुझे सहारा दे+

ताकि मैं जीता रहूँ।

मेरी आशा को निराशा में न बदलने दे।*+

117 मुझे सहारा दे ताकि मैं बच जाऊँ,+

तब मैं तेरे नियमों पर हमेशा ध्यान करूँगा।+

118 तू उन सबको ठुकरा देता है जो तेरे नियमों से भटक जाते हैं,+

क्योंकि वे झूठे हैं, धोखेबाज़ हैं।

119 तू धरती के सब दुष्टों को निकाल फेंकता है,

मानो वे धातु-मल हों जो किसी काम का नहीं होता,+

इसलिए तू जो हिदायतें याद दिलाता है उनसे मैं प्यार करता हूँ।

120 तेरे खौफ से मेरा शरीर काँप उठता है,

तेरे फैसलों से मैं डरता हूँ।

ע [ऐयिन ]

121 मैंने न्याय और नेकी की है।

मुझे उनके हवाले न कर जो मुझ पर ज़ुल्म ढाते हैं!

122 अपने सेवक को सलामती का यकीन दिला,

गुस्ताख लोगों को मुझ पर ज़ुल्म ढाने न दे।

123 तेरी तरफ से मिलनेवाले उद्धार और तेरे नेक वादे* के लिए आस लगाते-लगाते

मेरी आँखें थक गयी हैं।+

124 अपने सेवक को अपने अटल प्यार का सबूत दे,+

तू मुझे अपने नियम सिखा।+

125 मैं तेरा सेवक हूँ, मुझे समझ दे+

ताकि उन हिदायतों को जान सकूँ जो तू याद दिलाता है।

126 यहोवा के कार्रवाई करने का समय आ गया है,+

क्योंकि उन्होंने तेरा कानून तोड़ा है।

127 इसीलिए मैं तेरी आज्ञाओं से प्यार करता हूँ,

सोने से ज़्यादा, हाँ, शुद्ध* सोने से भी ज़्यादा प्यार करता हूँ।+

128 इसलिए मैं तेरी हर हिदायत* को सही मानता हूँ,+

हर झूठी राह से नफरत करता हूँ।+

פ [पे ]

129 तू जो हिदायतें याद दिलाता है वे लाजवाब हैं।

इसीलिए मैं उनका पालन करता हूँ।

130 तेरे वचनों के खुलने से रौशनी मिलती है,+

जिन्हें तजुरबा नहीं उन्हें समझ मिलती है।+

131 मैं मुँह खोलकर आह भरता* हूँ,

क्योंकि मैं तेरी आज्ञाओं के लिए तरसता हूँ।+

132 तेरे नाम से प्यार करनेवालों के साथ जिस तरह पेश आना तेरा नियम है,

उसके मुताबिक मेरी तरफ मुड़, मुझ पर कृपा कर।+

133 तू अपनी कही बात के मुताबिक मेरे कदमों को राह दिखा,*

किसी भी तरह की दुष्टता को मुझ पर अधिकार न करने दे।+

134 ज़ुल्म करनेवालों से मुझे छुड़ा ले,

तब मैं तेरे आदेशों पर चलता रहूँगा।

135 तू अपने सेवक पर अपने मुख का प्रकाश चमका*+

और मुझे अपने नियम सिखा।

136 मेरी आँखों से आँसुओं की धारा बहती है,

क्योंकि लोग तेरा कानून नहीं मानते।+

צ [सादे ]

137 हे यहोवा, तू नेक है+

और तेरे फैसले सही होते हैं।+

138 तू जो हिदायतें याद दिलाता है वे नेक हैं,

पूरी तरह भरोसेमंद हैं।

139 मेरे जोश की आग मुझे भस्म कर देती है,+

क्योंकि मेरे बैरी तेरे वचन भूल गए हैं।

140 तेरी बातें पूरी तरह शुद्ध हैं+

और तेरा सेवक उनसे प्यार करता है।+

141 मैं न के बराबर हूँ, तुच्छ हूँ,+

फिर भी मैं तेरे आदेश नहीं भूला हूँ।

142 तेरी नेकी सदा की है+

और तेरा कानून सच्चा है।+

143 मुसीबतों और मुश्‍किलों के दौर में भी

मैं तेरी आज्ञाओं से लगाव रखता हूँ।

144 तू जो हिदायतें याद दिलाता है वे सदा नेक होती हैं।

मुझे समझ दे+ ताकि मैं जीता रहूँ।

ק [कोफ ]

145 हे यहोवा, मैं पूरे दिल से तुझे पुकारता हूँ, मुझे जवाब दे।

मैं तेरे नियमों का पालन करूँगा।

146 मैं तुझे पुकारता हूँ, मुझे बचा ले!

तू जो हिदायतें याद दिलाता है उन्हें मैं मानूँगा।

147 मैं भोर से पहले ही* जाग गया ताकि मदद के लिए पुकारूँ,+

क्योंकि तेरे वचन मेरी आशा हैं।*

148 रात के पहरों से पहले मेरी आँखें खुल जाती हैं

ताकि मैं तेरी बातों के बारे में गहराई से सोचूँ।*+

149 अपने अटल प्यार की वजह से मेरी आवाज़ सुन।+

हे यहोवा, अपने न्याय के मुताबिक मेरी जान की हिफाज़त कर।

150 जो शर्मनाक* काम करते हैं वे मेरे पास आते हैं,

वे तेरे कानून से कोसों दूर हैं।

151 हे यहोवा, तू मेरे करीब है+

और तेरी सारी आज्ञाएँ सच्ची हैं।+

152 तू जो हिदायतें याद दिलाता है उनके बारे में मैंने बहुत पहले सीखा था,

जिन्हें तूने इसलिए कायम किया कि वे सदा बनी रहें।+

ר [रेश ]

153 मेरी तकलीफों पर नज़र कर और मुझे छुड़ा ले,+

क्योंकि मैं तेरा कानून नहीं भूला हूँ।

154 मेरी पैरवी कर* और मुझे छुड़ा ले,+

अपने वादे के* मुताबिक मेरी जान की हिफाज़त कर।

155 उद्धार दुष्टों से कोसों दूर है,

क्योंकि उन्होंने तेरे नियमों की खोज नहीं की।+

156 हे यहोवा, तू बड़ा दयालु है।+

अपने न्याय के मुताबिक मेरी जान की हिफाज़त कर।

157 मेरे सतानेवाले और मेरे बैरी बेहिसाब हैं,+

फिर भी मैं उन हिदायतों से नहीं भटका जो तू याद दिलाता है।

158 विश्‍वासघाती लोगों को देखकर मुझे घिन आती है,

क्योंकि वे तेरी बातों पर नहीं चलते।+

159 देख, मैं तेरे आदेशों से कितना प्यार करता हूँ!

हे यहोवा, अपने अटल प्यार की वजह से मेरी जान की हिफाज़त कर।+

160 तेरे वचन में लिखी हरेक बात सच्ची है+

और तेरे सभी नेक फैसले सदा तक कायम रहेंगे।

ש [सीन ] या [शीन ]

161 हाकिम बेवजह मुझे सताते हैं,+

मगर मेरे दिल में तेरे वचनों के लिए श्रद्धा है।+

162 मैं तेरी बातों पर ऐसे मगन होता हूँ,+

जैसे कोई लूट का ढेर सारा माल पाकर मगन होता है।

163 मैं झूठ से नफरत करता हूँ, घिन करता हूँ,+

मगर तेरे कानून से प्यार करता हूँ।+

164 तेरे नेक फैसलों की वजह से

मैं दिन में सात बार तेरी तारीफ करता हूँ।

165 भरपूर शांति उन्हें मिलती है जो तेरे कानून से प्यार करते हैं,+

कोई भी बात उन्हें ठोकर नहीं खिला सकती।*

166 हे यहोवा, मैं उद्धार पाने की आशा तुझसे रखता हूँ

और तेरी आज्ञाओं का पालन करता हूँ।

167 तू जो हिदायतें याद दिलाता है उन्हें मैं मानता हूँ,

दिलो-जान से प्यार करता हूँ।+

168 तू जो आदेश देता है और जो हिदायतें याद दिलाता है उन्हें मैं मानता हूँ,

क्योंकि मैं जो भी करता हूँ उसे तू अच्छी तरह जानता है।+

ת [ताव ]

169 हे यहोवा, मेरी मदद की पुकार तेरे पास पहुँचे।+

अपने वचन के मुताबिक मुझे समझा।+

170 मेरी कृपा की बिनती तेरे सामने पहुँचे।

तू अपने वादे के* मुताबिक मुझे बचा ले।

171 मेरे होंठों पर तेरी तारीफ के बोल उमड़ते रहें,+

क्योंकि तू मुझे अपने नियम सिखाता है।

172 मेरी जीभ तेरी बातों के बारे में गीत गाए,+

क्योंकि तेरी सारी आज्ञाएँ नेक हैं।

173 तेरा हाथ मेरी मदद के लिए हमेशा तैयार रहे,+

क्योंकि मैंने तेरे आदेशों को मानने का चुनाव किया है।+

174 हे यहोवा, तेरी तरफ से मिलनेवाले उद्धार के लिए मैं तरसता हूँ

और तेरे कानून से लगाव रखता हूँ।+

175 मेरी जान सलामत रख ताकि मैं तेरी तारीफ करूँ,+

तेरे न्याय-सिद्धांत मेरी मदद करें।

176 मैं एक खोयी हुई भेड़ की तरह भटक गया हूँ।+

तू अपने सेवक को खोज,

क्योंकि मैं तेरी आज्ञाएँ नहीं भूला हूँ।+

चढ़ाई का गीत।*

120 मुसीबत में मैंने यहोवा को पुकारा+

और उसने मुझे जवाब दिया।+

 2 हे यहोवा, मुझे झूठ बोलनेवाले होंठों से

और छली ज़बान से बचा ले।

 3 हे छली ज़बान, तू जानती है कि परमेश्‍वर तेरे साथ क्या करेगा?

तुझे क्या सज़ा देगा?+

 4 वह तुझ पर एक योद्धा के नुकीले तीरों+ से,

झाड़ियों के जलते अंगारों+ से वार करेगा।

 5 हाय मुझ पर,

मुझे मेशेक+ में परदेसी बनकर रहना पड़ा है!

केदार के डेरों+ में बसना पड़ा है!

 6 शांति के दुश्‍मनों के बीच रहते हुए+

मुझे एक ज़माना हो गया है।

 7 मैं शांति चाहता हूँ, मगर जब मैं बोलता हूँ

तो वे लड़ाई के लिए उतारू हो जाते हैं।

चढ़ाई का गीत।

121 मैं पहाड़ों+ की तरफ अपनी नज़रें उठाता हूँ।

मुझे कहाँ से मदद मिलेगी?

 2 मुझे मदद यहोवा से मिलती है,+

जो आकाश और धरती का बनानेवाला है।

 3 वह तेरा पैर कभी फिसलने* न देगा।+

तेरी हिफाज़त करनेवाला परमेश्‍वर कभी नहीं ऊँघेगा।

 4 देख! इसराएल की हिफाज़त करनेवाला परमेश्‍वर

न कभी ऊँघेगा, न कभी सोएगा।+

 5 यहोवा तेरी हिफाज़त कर रहा है।

यहोवा तेरे दायीं तरफ रहकर+ तुझे आड़ देता है।+

 6 न दिन को सूरज,

न रात को चाँद तुझ पर वार करेगा।+

 7 यहोवा तुझे हर खतरे से बचाएगा,+

वह तेरी जान की हिफाज़त करेगा।+

 8 यहोवा तेरे हर काम में* तेरी हिफाज़त करेगा,

अब से सदा तक करता रहेगा।

दाविद की रचना। चढ़ाई का गीत।

122 मैं बहुत खुश हुआ जब लोगों ने मुझसे कहा,

“आओ हम यहोवा के भवन चलें।”+

 2 हे यरूशलेम, हमने तेरे यहाँ कदम रखा है,

अब हम तेरे फाटकों के अंदर खड़े हैं।+

 3 यरूशलेम ऐसे शहर की तरह बना है

जिसे साथ जोड़कर एक किया गया है।+

 4 सारे गोत्र वहाँ ऊपर गए हैं,

इसराएल को दिए नियम के मुताबिक

याह* के गोत्र वहाँ गए हैं

ताकि यहोवा के नाम की तारीफ करें।+

 5 क्योंकि वहाँ न्याय के लिए राजगद्दी,

दाविद के घराने की राजगद्दी खड़ी की गयी थी।+

 6 यरूशलेम की शांति के लिए दुआ करो।+

हे नगरी, तुझसे प्यार करनेवाले महफूज़ रहेंगे।

 7 तेरी सुरक्षा की ढलानों* के भीतर शांति बनी रहे,

तेरी मज़बूत मीनारों में सुरक्षा रहे।

 8 अपने भाइयों और साथियों की खातिर मैं कहूँगा,

“तेरे यहाँ शांति रहे।”

 9 हमारे परमेश्‍वर यहोवा के भवन+ की खातिर

मैं तेरी खुशहाली की कामना करूँगा।

चढ़ाई का गीत।

123 मैं तेरी ओर नज़रें उठाता हूँ,+

तेरी ओर, जो स्वर्ग में विराजमान है।

 2 जैसे दासों की आँखें अपने मालिक के हाथ पर लगी रहती हैं,

जैसे एक दासी की आँखें अपनी मालकिन के हाथ पर लगी रहती हैं,

वैसे ही हमारी आँखें हमारे परमेश्‍वर यहोवा पर टिकी रहती हैं,+

तब तक जब तक कि वह हम पर कृपा न करे।+

 3 हम पर कृपा कर, हे यहोवा, हम पर कृपा कर,

हमें जितना अपमान सहना था उतना हमने सह लिया है।+

 4 जिन्हें खुद पर कुछ ज़्यादा ही भरोसा है,

उनके जितने ताने सहने थे उतने हमने सह लिए हैं,

मगरूरों के हाथों जितना अपमान सहना था, उतना सह लिया है।

दाविद की रचना। चढ़ाई का गीत।

124 “अगर यहोवा हमारे साथ न होता,”+

इसराएल अब कहे,

 2 “अगर यहोवा हमारे साथ न होता,+

तो जब लोगों ने हम पर हमला किया,+

 3 जब उनके गुस्से की आग हम पर भड़की,+

तब वे हमें ज़िंदा ही निगल चुके होते।+

 4 तब उमड़ता पानी हमें बहा ले गया होता,

नदी हम पर चढ़ आती।+

 5 उफनते पानी ने हमें डुबा लिया होता।

 6 यहोवा की तारीफ हो,

क्योंकि उसने हमें दुश्‍मनों के हवाले नहीं किया

कि वे अपने दाँतों से हमें फाड़ खाएँ।

 7 हम ऐसी चिड़िया की तरह हैं

जो बहेलिए के फंदे से बच निकली है+

फंदा तोड़ दिया गया

और हम बच निकले।+

 8 हमें यहोवा के नाम से मदद मिलती है,+

जो आकाश और धरती का बनानेवाला है।”

चढ़ाई का गीत।

125 जो यहोवा पर भरोसा रखते हैं,+

वे सिय्योन पहाड़ की तरह हैं, जो हिलाया नहीं जा सकता,

मगर सदा कायम रहता है।+

 2 जैसे पहाड़ यरूशलेम को घेरे हुए हैं,+

वैसे ही यहोवा अपने लोगों को घेरे रहेगा,+

अब से लेकर हमेशा-हमेशा तक।

 3 नेक लोगों के हिस्से की ज़मीन पर

दुष्टता का राजदंड राज नहीं करता रहेगा+

ताकि नेक लोग बुराई की तरफ न फिरें।*+

 4 हे यहोवा, भले लोगों का

और सीधे-सच्चे मनवालों का भला कर।+

 5 मगर जो सीधी राह से हटकर टेढ़ी राहों पर चलते हैं,

उन्हें यहोवा गुनहगारों के साथ निकाल देगा।+

इसराएल पर शांति बनी रहे।

चढ़ाई का गीत।

126 जब यहोवा सिय्योन के लोगों को इकट्ठा करके बँधुआई से लौटा ले आया,+

तो हमें ऐसा लगा कि हम सपना देख रहे हैं।

 2 तब हम खिलखिलाकर हँसने लगे,

खुशी से जयजयकार करने लगे।+

तब राष्ट्रों के लोग एक-दूसरे से कहने लगे,

“यहोवा ने उनकी खातिर बड़े-बड़े काम किए हैं।”+

 3 यहोवा ने हमारी खातिर बड़े-बड़े काम किए हैं,+

इसलिए हम खुशी से फूले नहीं समा रहे।

 4 हे यहोवा, हमारे लोगों को इकट्ठा करके बँधुआई से लौटा ले आ,*

नेगेब की धाराओं* की तरह उन्हें वापस ले आ।

 5 जो आँसू बहाते हुए बीज बो रहे हैं,

वे खुशी से जयजयकार करते हुए कटाई करेंगे।

 6 जो अपने बीज की थैली लेकर रोते हुए भी खेत जाता है,

वह यकीनन खुशी से जयजयकार करता हुआ लौटेगा,+

हाथ में अपने पूले लिए लौटेगा।+

सुलैमान की रचना। चढ़ाई का गीत।

127 अगर घर को यहोवा न बनाए,

तो उसके कारीगरों की कड़ी मेहनत बेकार है।+

अगर शहर की हिफाज़त यहोवा न करे,+

तो उसके पहरेदार का जागते रहना बेकार है।

 2 अगर परमेश्‍वर की आशीष न हो,

तो तुम्हारा सुबह तड़के उठना,

देर रात तक जागना,

खाने के लिए कड़ी मज़दूरी करना बेकार है।

क्योंकि वह जिनसे प्यार करता है, उनकी देखभाल करता है

और उन्हें अच्छी नींद देता है।+

 3 देखो! लड़के* यहोवा से मिली विरासत हैं,+

गर्भ का फल उससे मिला इनाम है।+

 4 जैसे वीर के हाथ में तीर होते हैं,

वैसे जवान आदमी के बेटे होते हैं।+

 5 सुखी है वह आदमी जो अपना तरकश तीरों से भरता है।+

वे शर्मिंदा नहीं किए जाएँगे,

क्योंकि वे शहर के फाटक पर दुश्‍मनों को जवाब देंगे।

चढ़ाई का गीत।

128 सुखी है हर कोई जो यहोवा का डर मानता है,+

उसकी राहों पर चलता है।+

 2 तू अपने हाथों की मेहनत का फल खाएगा,

तू सुखी रहेगा और खुशहाली का आनंद उठाएगा।+

 3 तेरी पत्नी तेरे घर के अंदर अंगूर की फलती-फूलती बेल जैसी होगी,+

तेरे बेटे तेरी मेज़ के चारों तरफ जैतून के अंकुर जैसे होंगे।

 4 देख! यहोवा का डर माननेवाला आदमी

इसी तरह आशीष पाएगा।+

 5 यहोवा तुझे सिय्योन से आशीष देगा।

तुझे सारी ज़िंदगी यरूशलेम को फलता-फूलता देखने का मौका मिले,+

 6 तुझे बेटों के बेटों को भी देखने का मौका मिले।

इसराएल में शांति बनी रहे।

चढ़ाई का गीत।

129 “मेरे बचपन से मेरे दुश्‍मन लगातार मुझ पर हमला करते रहे,”+

इसराएल अब कहे,

 2 “मेरे बचपन से मेरे दुश्‍मन लगातार मुझ पर हमला करते रहे,+

मगर वे मुझे हरा न सके।+

 3 हल जोतनेवालों ने मेरी पीठ पर हल जोता,+

उन्होंने हल की लंबी-लंबी रेखाएँ बनायीं।”

 4 मगर यहोवा नेक है,+

उसने दुष्ट के बाँधे रस्से काट डाले।+

 5 सिय्योन से नफरत करनेवाले सभी शर्मिंदा किए जाएँगे,

वे बेइज़्ज़त होकर भाग जाएँगे।+

 6 वे छत पर उगनेवाली घास जैसे हो जाएँगे,

जो उखाड़े जाने से पहले ही मुरझा जाती है,

 7 जिससे न कटाई करनेवाला अपनी मुट्ठी भरता है,

न ही पूले इकट्ठा करनेवाला अपनी बाहें भरता है।

 8 आने-जानेवाले यह नहीं कहेंगे,

“यहोवा की आशीष तुझ पर हो,

हम यहोवा के नाम से तुझे आशीर्वाद देते हैं।”

चढ़ाई का गीत।

130 हे यहोवा, मैं दुख की गहरी खाई से तुझे पुकारता हूँ।+

 2 हे यहोवा, मेरी आवाज़ सुन।

तू मेरी मदद की पुकार पर कान लगाए।

 3 हे याह,* अगर तू हमारे गुनाहों पर ही नज़र रखता,*

तो हे यहोवा, तेरे सामने कौन खड़ा रह सकता?+

 4 तू सच्ची माफी देता है+

ताकि तेरी श्रद्धा की जाए।*+

 5 मैं यहोवा पर आशा रखता हूँ,

मेरा रोम-रोम उस पर आशा रखता है,

मैं उसके वचन का इंतज़ार करता हूँ।

 6 मैं यहोवा का बेसब्री से इंतज़ार करता हूँ,+

पहरेदार सुबह होने का जितना इंतज़ार करते हैं,

उससे कहीं ज़्यादा मैं इंतज़ार करता हूँ।+

 7 इसराएल यहोवा का इंतज़ार करे,

क्योंकि यहोवा वफादार है, सदा प्यार करता है+

और वह छुड़ाने की महाशक्‍ति रखता है।

 8 वह इसराएल को उसके सभी गुनाहों से छुड़ाएगा।

दाविद की रचना। चढ़ाई का गीत।

131 हे यहोवा, मेरा दिल मगरूर नहीं,

न ही मेरी आँखें घमंड से चढ़ी हैं।+

न मैं बड़ी-बड़ी चीज़ों की ख्वाहिश रखता हूँ,+

न ही उन चीज़ों की लालसा करता हूँ, जिन्हें पाना मेरे लिए मुमकिन नहीं।

 2 मैंने बेशक अपने जी को शांत किया है,

अपने मन को चुप कराया है,+

अब यह दूध छुड़ाए हुए बच्चे की तरह है जो अपनी माँ के पास शांत है।

मैं एक दूध छुड़ाए बच्चे की तरह संतुष्ट हूँ।

 3 इसराएल यहोवा का इंतज़ार करे,+

अब से लेकर हमेशा-हमेशा तक।

चढ़ाई का गीत।

132 हे यहोवा, दाविद को याद कर,

उसके सारे दुखों को याद कर,+

 2 कैसे उसने यहोवा से शपथ खायी थी,

याकूब के शक्‍तिशाली परमेश्‍वर से वादा किया था,+

 3 “मैं तब तक अपने तंबू, अपने घर+ नहीं जाऊँगा,

अपने दीवान पर, अपने बिस्तर पर नहीं लेटूँगा,

 4 अपनी आँखों में नींद न आने दूँगा,

न ही पलकें झपकने दूँगा,

 5 जब तक कि मैं यहोवा के लिए एक जगह,

याकूब के शक्‍तिशाली परमेश्‍वर के लिए एक बढ़िया निवास* नहीं ढूँढ़ लेता।”+

 6 देख, हमने इस बारे में एप्राता+ में सुना था,

हमने इसे जंगल में पाया था।+

 7 चलो हम उसके निवास* के अंदर जाएँ,+

उसके पाँवों की चौकी के आगे झुकें।+

 8 हे यहोवा, उठ! अपने विश्राम की जगह आ,+

तू और तेरा संदूक आए जो तेरी ताकत की निशानी है।+

 9 तेरे याजक नेकी की पोशाक पहने हुए हों

और तेरे वफादार लोग खुशी से जयजयकार करें।

10 अपने सेवक दाविद की खातिर

अपने अभिषिक्‍त जन को न ठुकरा।*+

11 यहोवा ने दाविद से शपथ खायी है,

वह अपने इस वादे से हरगिज़ नहीं मुकरेगा:

“मैं तेरे वंशजों में से एक को

तेरी राजगद्दी पर बिठाऊँगा।+

12 अगर तेरे बेटे मेरा करार मानेंगे,

उन हिदायतों को मानेंगे जो मैं याद दिलाकर सिखाता हूँ,+

तो उनके बेटे भी तेरी राजगद्दी पर सदा बैठेंगे।”+

13 क्योंकि यहोवा ने सिय्योन को चुना है,+

उसे अपना निवास बनाना चाहा+ और कहा:

14 “यह सदा के लिए मेरे विश्राम की जगह होगी,

मैं यहाँ निवास करूँगा+ क्योंकि मैं यही चाहता हूँ।

15 मैं इसे खाने-पीने की भरपूर चीज़ें देकर आशीष दूँगा,

मैं इसके गरीबों को रोटी देकर संतुष्ट करूँगा।+

16 मैं इसके याजकों को उद्धार की पोशाक पहनाऊँगा+

और इसके वफादार लोग खुशी से जयजयकार करेंगे।+

17 यहाँ मैं दाविद की ताकत* बढ़ाऊँगा।

मैंने अपने अभिषिक्‍त जन के लिए एक दीया तैयार किया है।+

18 मैं उसके दुश्‍मनों को शर्म का ओढ़ना ओढाऊँगा,

मगर उसके सिर का ताज चमकता रहेगा।”+

दाविद की रचना। चढ़ाई का गीत।

133 देखो! भाइयों का एक होकर रहना+

क्या ही भली और मनभावनी बात है!

 2 यह उस बढ़िया तेल जैसा है जो हारून के सिर पर उँडेला गया,+

वह उसकी दाढ़ी से बहता हुआ+

उसकी पोशाक के गले तक गया।

 3 यह हेरमोन+ की ओस जैसा है

जो सिय्योन के पहाड़ों+ पर पड़ती है।

यहोवा ने आज्ञा दी है कि वहाँ उसकी आशीष हो,

हमेशा की ज़िंदगी की आशीष हो।

चढ़ाई का गीत।

134 यहोवा की तारीफ करो,

यहोवा के सभी सेवको,+

तुम जो यहोवा के भवन में रात के वक्‍त उसकी सेवा करते हो,

उसकी तारीफ करो।+

 2 पवित्रता से* हाथ उठाकर प्रार्थना करो+

और यहोवा की तारीफ करो।

 3 यहोवा, जो आकाश और धरती का बनानेवाला है,

तुझे सिय्योन से आशीष दे।

135 याह की तारीफ करो!*

यहोवा के नाम की तारीफ करो,

यहोवा के सेवको, उसकी तारीफ करो,+

 2 तुम जो यहोवा के भवन में,

हमारे परमेश्‍वर के भवन के आँगनों में खड़े रहते हो,

उसकी तारीफ करो।+

 3 याह की तारीफ करो क्योंकि यहोवा भला है।+

उसके नाम की तारीफ में गीत गाओ* क्योंकि उसका नाम मनभावना है।

 4 याह ने अपने लिए याकूब को चुना है,

इसराएल को अपनी खास जागीर* बनाया है।+

 5 मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि यहोवा महान है,

हमारा प्रभु सभी देवताओं से कहीं ज़्यादा महान है।+

 6 आकाश में, धरती पर, समुंदर और उसकी सारी गहराइयों में,

यहोवा जो भी चाहता है वह करता है।+

 7 वह धरती के कोने-कोने से बादलों* को ऊपर उठाता है,

बारिश के लिए बिजली* बनाता है,

अपने भंडारों से आँधी चलाता है।+

 8 उसने मिस्र के पहलौठों को मार डाला,

इंसान और जानवर, दोनों के पहलौठों को मार डाला।+

 9 हे मिस्र, उसने तेरे यहाँ चिन्ह और चमत्कार किए,+

फिरौन और उसके सभी सेवकों के खिलाफ किए।+

10 उसने कई जातियों को मिटा दिया+

और ताकतवर राजाओं को मार डाला:+

11 एमोरियों के राजा सीहोन को,+

बाशान के राजा ओग को मार डाला,+

उसने कनान के सभी राज्यों को हरा दिया।

12 उसने उनका देश विरासत में दे दिया,

अपनी प्रजा इसराएल को विरासत में दे दिया।+

13 हे यहोवा, तेरा नाम सदा कायम रहता है।

हे यहोवा, तेरा यश* पीढ़ी-पीढ़ी तक कायम रहता है।+

14 यहोवा अपने लोगों की पैरवी करेगा,+

अपने सेवकों पर तरस खाएगा।+

15 राष्ट्रों की मूरतें सोने-चाँदी की बनी हैं,

इंसान के हाथ की कारीगरी हैं।+

16 उनका मुँह तो है पर वे बोल नहीं सकतीं,+

आँखें हैं पर देख नहीं सकतीं,

17 कान हैं पर सुन नहीं सकतीं,

उनके मुँह में कोई साँस नहीं है।+

18 उनके बनानेवाले और उन पर भरोसा रखनेवाले,

दोनों उनकी तरह हो जाएँगे।+

19 हे इसराएल के घराने, यहोवा की तारीफ कर।

हे हारून के घराने, यहोवा की तारीफ कर।

20 हे लेवी के घराने, यहोवा की तारीफ कर।+

यहोवा का डर माननेवालो, यहोवा की तारीफ करो।

21 यहोवा जो यरूशलेम में निवास करता है,+

उसकी सिय्योन से तारीफ हो।+

याह की तारीफ करो!+

136 यहोवा का शुक्रिया अदा करो क्योंकि वह भला है,+

उसका अटल प्यार सदा बना रहता है।+

 2 वह सब ईश्‍वरों से महान ईश्‍वर है,+ उसका शुक्रिया अदा करो,

क्योंकि उसका अटल प्यार सदा बना रहता है।

 3 वह सब प्रभुओं से महान प्रभु है, उसका शुक्रिया अदा करो,

क्योंकि उसका अटल प्यार सदा बना रहता है।

 4 वही अकेला बड़े-बड़े अजूबे करता है,+

क्योंकि उसका अटल प्यार सदा बना रहता है।+

 5 उसने बड़ी कुशलता* से आकाश की रचना की,+

क्योंकि उसका अटल प्यार सदा बना रहता है।

 6 उसने धरती को पानी के ऊपर फैलाया,+

क्योंकि उसका अटल प्यार सदा बना रहता है।

 7 उसने बड़ी-बड़ी ज्योतियाँ बनायीं,+

क्योंकि उसका अटल प्यार सदा बना रहता है,

 8 उसने दिन पर अधिकार रखने के लिए सूरज बनाया,+

क्योंकि उसका अटल प्यार सदा बना रहता है,

 9 रात पर अधिकार रखने के लिए चाँद-सितारे बनाए,+

क्योंकि उसका अटल प्यार सदा बना रहता है।

10 उसने मिस्र के पहलौठों को मार डाला,+

क्योंकि उसका अटल प्यार सदा बना रहता है।

11 वह इसराएल को उनके बीच से निकाल लाया,+

क्योंकि उसका अटल प्यार सदा बना रहता है,

12 अपना शक्‍तिशाली हाथ बढ़ाकर उसे निकाल लाया,+

क्योंकि उसका अटल प्यार सदा बना रहता है।

13 उसने लाल सागर को दो हिस्सों में बाँट दिया,+

क्योंकि उसका अटल प्यार सदा बना रहता है।

14 उसने इसराएल को उसके बीच से पार कराया,+

क्योंकि उसका अटल प्यार सदा बना रहता है।

15 उसने फिरौन और उसकी सेना को लाल सागर में झटक दिया,+

क्योंकि उसका अटल प्यार सदा बना रहता है।

16 वह अपने लोगों को वीराने में रास्ता दिखाता ले गया,+

क्योंकि उसका अटल प्यार सदा बना रहता है।

17 उसने बड़े-बड़े राजाओं को मार डाला,+

क्योंकि उसका अटल प्यार सदा बना रहता है।

18 उसने ताकतवर राजाओं को मार डाला,

क्योंकि उसका अटल प्यार सदा बना रहता है,

19 एमोरियों के राजा सीहोन को मार डाला,+

क्योंकि उसका अटल प्यार सदा बना रहता है,

20 बाशान के राजा ओग को भी मार डाला,+

क्योंकि उसका अटल प्यार सदा बना रहता है।

21 उसने उनका देश विरासत में दे दिया,+

क्योंकि उसका अटल प्यार सदा बना रहता है,

22 अपने सेवक इसराएल को विरासत में दे दिया,

क्योंकि उसका अटल प्यार सदा बना रहता है।

23 जब हम निराश थे तब उसने हम पर ध्यान दिया,+

क्योंकि उसका अटल प्यार सदा बना रहता है।+

24 वह हमें बैरियों से छुड़ाता रहा,+

क्योंकि उसका अटल प्यार सदा बना रहता है।

25 वह हरेक जीव को खाना देता है,+

क्योंकि उसका अटल प्यार सदा बना रहता है।

26 स्वर्ग के परमेश्‍वर का शुक्रिया अदा करो,

क्योंकि उसका अटल प्यार सदा बना रहता है।

137 हम बैबिलोन की नदियों के किनारे+ बैठा करते थे।

सिय्योन को याद करके रो पड़ते थे।+

 2 उसके* यहाँ के पहाड़ी पीपल पर

हम अपने तारोंवाले बाजे लटकाते थे।+

 3 हमें बंदी बनानेवालों ने वहाँ हमसे एक गीत गाने को कहा,+

हमारी खिल्ली उड़ानेवालों ने मन-बहलाव के लिए हमसे कहा,

“हमारे लिए सिय्योन का कोई गीत गाओ।”

 4 हम परायी ज़मीन पर यहोवा का गीत कैसे गा सकते हैं?

 5 हे यरूशलेम, अगर मैं तुझे भूल जाऊँ,

तो मेरा दायाँ हाथ हर काम भूल जाए।*+

 6 अगर मैं तुझे याद न करूँ,

यरूशलेम को अपनी खुशी की सबसे बड़ी वजह न समझूँ,+

तो मेरी जीभ तालू से चिपक जाए।

 7 हे यहोवा, याद कर

कि जब यरूशलेम गिरा तो एदोमियों ने कहा था,

“ढा दो इसे! इसकी बुनियाद तक ढा दो!”+

 8 हे बैबिलोन की बेटी, तुझे बहुत जल्द उजाड़ दिया जाएगा,+

क्या ही खुश होगा वह जो तेरे साथ वैसा ही सलूक करेगा,

जैसा तूने हमारे साथ किया था।+

 9 क्या ही खुश होगा वह जो तुझसे तेरे बच्चे छीन लेगा,

उन्हें चट्टानों पर पटक देगा।+

दाविद की रचना।

138 मैं पूरे दिल से तेरी तारीफ करूँगा,+

दूसरे देवताओं के सामने तेरी तारीफ में गीत गाऊँगा।*

 2 मैं तेरे पवित्र मंदिर* की तरफ मुँह करके दंडवत करूँगा,+

तेरे अटल प्यार और तेरी वफादारी की वजह से

तेरे नाम की बड़ाई करूँगा,+

तूने अपने वचन और अपने नाम को बाकी सब चीज़ों से महान किया है।*

 3 जिस दिन मैंने तुझे पुकारा तूने मुझे जवाब दिया,+

मुझे हिम्मत दी, मुझे मज़बूत किया।+

 4 हे यहोवा, धरती के सभी राजा तेरी तारीफ करेंगे,+

क्योंकि वे तेरे वादों के बारे में सुन चुके होंगे।

 5 वे यहोवा की राहों के बारे में गीत गाएँगे,

क्योंकि यहोवा की महिमा अपार है।+

 6 यहोवा ऊँचे पर निवास करता है, फिर भी वह नम्र लोगों पर गौर करता है,+

मगर मगरूरों को सिर्फ दूर से जानता है।+

 7 जब मैं खतरों से गुज़रूँ, तब भी तू मेरी जान की हिफाज़त करेगा।+

मेरे भड़के हुए दुश्‍मनों के खिलाफ तू अपना हाथ बढ़ाएगा,

तेरा दायाँ हाथ मुझे बचा लेगा।

 8 यहोवा मेरी खातिर सारा काम पूरा करेगा।

हे यहोवा, तेरा अटल प्यार सदा बना रहता है,+

तू अपने हाथ की रचनाओं को छोड़ न देना।+

दाविद का सुरीला गीत। निर्देशक के लिए हिदायत।

139 हे यहोवा, तूने मुझे जाँचा है,

तू मुझे जानता है।+

 2 तू मेरा उठना-बैठना जानता है,+

तू मेरे विचारों को दूर से ही जान लेता है।+

 3 मैं चाहे चलूँ या लेटूँ, तू मुझ पर गौर करता है,

तू मेरे पूरे चालचलन से वाकिफ है।+

 4 इससे पहले कि मेरी जीभ एक भी शब्द कहे,

हे यहोवा, तू जान लेता है।+

 5 तू मुझे आगे और पीछे से घेरे रहता है,

तू अपना हाथ मुझ पर रखता है।

 6 तू मुझे कितनी बारीकी से जानता है,

यह समझना मेरे बस के बाहर है।*

यह मेरी पहुँच से बाहर है।*+

 7 मैं तेरी पवित्र शक्‍ति से बचकर कहाँ जा सकता हूँ?

तेरे सामने से भागकर कहाँ जा सकता हूँ?+

 8 अगर मैं ऊपर आकाश पर चढ़ जाऊँ, तो तू वहाँ रहेगा,

अगर मैं अपना बिस्तर नीचे कब्र में लगाऊँ, तो तू वहाँ भी रहेगा।+

 9 अगर मैं भोर के पंख लगाकर उड़ जाऊँ

कि जाकर दूर समुंदर के पास बस जाऊँ,

10 तो वहाँ भी तू अपने हाथ से मेरी अगुवाई करेगा,

तेरा दायाँ हाथ मुझे थाम लेगा।+

11 अगर मैं कहूँ, “बेशक, अँधेरा मुझे छिपा लेगा!”

तो मेरे चारों ओर रात का अँधेरा उजाला हो जाएगा।

12 अँधेरा तेरे लिए अँधेरा नहीं होगा,

रात का अँधेरा तेरे लिए दिन की तेज़ रौशनी जैसा होगा,+

अँधेरा तेरे लिए उजाले के बराबर है।+

13 तूने मेरे गुरदे बनाए,

तूने मुझे माँ की कोख में आड़ दी।*+

14 मैं तेरी तारीफ करता हूँ क्योंकि तूने मुझे लाजवाब तरीके से बनाया है,+

यह देखकर मैं विस्मय से भर जाता हूँ।

तेरे काम बेजोड़ हैं,+ यह मैं अच्छी तरह जानता हूँ।

15 जब मुझे गुप्त में बनाया जा रहा था,

मुझे मानो धरती की गहराइयों में बुना जा रहा था,

तब मेरी हड्डियाँ तुझसे छिपी न थीं।+

16 तेरी आँखों ने मुझे तभी देखा था जब मैं बस एक भ्रूण था,

इससे पहले कि उसके सारे अंग बनते,

उनके बारे में तेरी किताब में लिखा था

कि कब उनकी रचना होगी।

17 इसलिए तेरे विचार मेरे लिए क्या ही अनमोल हैं!+

हे परमेश्‍वर, तेरे विचार अनगिनत हैं!+

18 अगर मैं उन्हें गिनने की कोशिश करूँ, तो वे बालू के किनकों से ज़्यादा होंगे।+

जब मैं जाग उठता हूँ, तब भी तेरे संग होता हूँ।*+

19 हे परमेश्‍वर, काश तू दुष्टों को मार डालता!+

तब वे खूँखार आदमी* मुझसे दूर चले जाते,

20 जो बुरे इरादे से* तेरे खिलाफ बातें करते हैं।

वे तेरे बैरी हैं जो तेरे नाम का गलत इस्तेमाल करते हैं।+

21 हे यहोवा, क्या मैं उनसे नफरत नहीं करता जो तुझसे नफरत करते हैं?+

क्या मैं उनसे घिन नहीं करता जो तुझसे बगावत करते हैं?+

22 मेरे दिल में उनके लिए बस नफरत है,+

वे मेरे कट्टर दुश्‍मन बन गए हैं।

23 हे परमेश्‍वर, मुझे जाँच और मेरे दिल को जान।+

मुझे परख और मेरे मन की चिंताओं* को जान ले।+

24 देख कि मुझमें कुछ ऐसा तो नहीं जो मुझे बुरी राह पर ले जाए,+

मुझे उस राह पर ले चल+ जो सदा कायम रहेगी।

दाविद का सुरीला गीत। निर्देशक के लिए हिदायत।

140 हे यहोवा, मुझे बुरे लोगों से छुड़ा ले,

खूँखार आदमियों से मेरी हिफाज़त कर,+

 2 जो अपने दिलों में साज़िशें रचते हैं,+

सारा दिन झगड़ा खड़ा करते हैं।

 3 उन्होंने अपनी ज़बान साँप की जीभ जैसी तेज़ कर रखी है,+

उनके होंठों के पीछे साँपों का ज़हर है।+ (सेला )

 4 हे यहोवा, मुझे दुष्टों के हाथों में पड़ने से बचा,+

खूँखार आदमियों से मेरी हिफाज़त कर,

जो मुझे गिराने की साज़िश करते हैं।

 5 मगरूर लोग मेरे लिए फंदा लगाते हैं,

रास्ते के किनारे रस्सों का जाल बिछाते हैं।+

वे मेरे लिए जाल बिछाते हैं।+ (सेला )

 6 मैं यहोवा से कहता हूँ, “तू मेरा परमेश्‍वर है।

हे यहोवा, मेरी मदद की पुकार सुन।”+

 7 हे यहोवा, सारे जहान के मालिक, मेरे शक्‍तिशाली उद्धारकर्ता,

तू युद्ध के दिन मेरे सिर को आड़ देता है।+

 8 हे यहोवा, दुष्टों की इच्छाएँ पूरी मत कर।

उनकी चालें कामयाब न होने दे ताकि वे घमंड से भर न जाएँ।+ (सेला )

 9 मुझे घेरनेवाले मेरे बारे में जो बुरा कहते हैं,

वह उन्हीं के सिर पड़े।+

10 उन पर जलते अंगारे बरसें।+

वे आग में झोंक दिए जाएँ,

गहरी खाइयों*+ में गिरा दिए जाएँ ताकि फिर कभी न उठ सकें।

11 दूसरों को बदनाम करनेवालों को धरती पर* कहीं जगह न मिले।+

मुसीबत खूँखार आदमियों का पीछा करे और उन्हें मार डाले।

12 मैं जानता हूँ कि यहोवा दीन लोगों की पैरवी करेगा

और गरीबों को न्याय दिलाएगा।+

13 नेक लोग बेशक तेरे नाम की तारीफ करेंगे,

सीधे-सच्चे लोग तेरे सामने* बसे रहेंगे।+

दाविद का सुरीला गीत।

141 हे यहोवा, मैं तुझे पुकारता हूँ।+

मेरी मदद के लिए जल्दी आ।+

जब मैं तुझे पुकारूँ तो मुझ पर ध्यान दे।+

 2 तेरे सामने मेरी प्रार्थना तैयार किए हुए धूप जैसी हो,+

मेरे उठाए हुए हाथ शाम के अनाज के चढ़ावे जैसे हों।+

 3 हे यहोवा, मेरे मुँह पर एक पहरेदार ठहरा,

मेरे होंठों के द्वार पर पहरा बिठा।+

 4 मेरे दिल को किसी भी बुरी बात की तरफ झुकने न दे+

ताकि मैं बुरे लोगों के दुष्ट कामों का हिस्सेदार न बनूँ,

मैं कभी उनके लज़ीज़ खाने का मज़ा न लूँ।

 5 अगर नेक जन मुझे मारे, तो यह उसका अटल प्यार होगा,+

अगर वह मुझे फटकारे, तो यह मेरे सिर पर तेल जैसा होगा,+

जिसे मेरा सिर कभी नहीं ठुकराएगा।+

मैं नेक जन की मुसीबतों में भी उसके लिए प्रार्थना करता रहूँगा।

 6 चाहे उनके न्यायी खड़ी चट्टान से नीचे गिरा दिए जाएँ,

फिर भी लोग मेरी बातों पर ध्यान देंगे क्योंकि ये मनभावनी हैं।

 7 जैसे किसी के हल चलाने पर मिट्टी के ढेले फूटकर बिखर जाते हैं,

वैसे ही हमारी हड्डियाँ कब्र के मुँह पर बिखरा दी गयी हैं।

 8 मगर हे सारे जहान के मालिक यहोवा, मेरी आँखें तेरी ओर लगी हैं।+

मैंने तेरी पनाह ली है।

मेरी जान न लेना।

 9 उन्होंने मेरे लिए जो जाल बिछाया है उसके चंगुल से मुझे बचा,

बुरे काम करनेवालों के फंदों से मुझे बचा।

10 सारे दुष्ट अपने ही बिछाए जाल में फँस जाएँगे,+

जबकि मैं सही सलामत पार निकल जाऊँगा।

मश्‍कील।* दाविद का यह गीत उस समय का है जब वह एक गुफा में था।+ एक प्रार्थना।

142 मैं मदद के लिए यहोवा को पुकारता हूँ+

मैं दया के लिए यहोवा से गिड़गिड़ाता हूँ।

 2 उसे अपनी सारी चिंताएँ खुलकर बताता हूँ,

अपने मन की पीड़ा बताता हूँ।+

 3 जब मेरी ताकत जवाब दे जाती है,

तब तू मेरी राह पर नज़र रखता है।+

मैं जिस रास्ते पर चलता हूँ,

वहाँ मेरे दुश्‍मन मेरे लिए फंदा छिपाते हैं।

 4 मेरे दायीं तरफ देख,

कोई मेरी परवाह नहीं करता।*+

ऐसी कोई जगह नहीं जहाँ मैं भाग सकूँ,+

मेरी फिक्र करनेवाला कोई नहीं।

 5 हे यहोवा, मैं मदद के लिए तुझे पुकारता हूँ।

मैं कहता हूँ, “तू मेरी पनाह है,+

मेरे जीते जी* तू ही मेरा सबकुछ* है।”

 6 मेरी मदद की पुकार पर ध्यान दे,

क्योंकि मैं बड़ी मुसीबत में हूँ।

मुझ पर ज़ुल्म करनेवालों से मुझे छुड़ा ले,+

क्योंकि वे मुझसे ज़्यादा ताकतवर हैं।

 7 मुझे इस काल-कोठरी से बाहर निकाल

ताकि मैं तेरे नाम की तारीफ करूँ।

नेक लोग मेरे चारों तरफ इकट्ठा हों

क्योंकि तू मेरे साथ कृपा से पेश आता है।

दाविद का सुरीला गीत।

143 हे यहोवा, मेरी प्रार्थना सुन,+

मेरी मदद की पुकार सुन।

तू विश्‍वासयोग्य और नेक है, इसलिए मुझे जवाब दे।

 2 अपने सेवक पर मुकदमा न चला,

क्योंकि कोई भी इंसान तेरे सामने नेक नहीं ठहर सकता।+

 3 दुश्‍मन मेरा पीछा कर रहा है,

उसने मुझे ज़मीन पर रौंदकर मेरी जान ले ली।

मुझे अँधेरे में डाल दिया,

उन लोगों की तरह जिन्हें मरे अरसा हो गया है।

 4 मेरी ताकत जवाब दे रही है,+

मेरा मन सुन्‍न हो गया है।+

 5 मैं गुज़रे दिन याद करता हूँ,

तेरे सब कामों पर मनन करता हूँ,+

तेरे हाथ के काम पर गहराई से सोचता हूँ।*

 6 मैं तेरे सामने अपने हाथ फैलाता हूँ,

जैसे सूखी ज़मीन बारिश की प्यासी होती है, वैसे ही मैं तेरा प्यासा हूँ।+ (सेला )

 7 हे यहोवा, मुझे जल्द जवाब दे,+

मेरी ताकत मिट चुकी है।+

मुझसे अपना मुँह न फेर,+

वरना मैं गड्‌ढे* में जानेवालों की तरह बन जाऊँगा।+

 8 मुझे भोर को अपने अटल प्यार के बारे में सुना,

क्योंकि मैं तुझ पर भरोसा रखता हूँ।

मुझे वह रास्ता दिखा जिस पर मुझे चलना चाहिए,+

क्योंकि मैं तेरी तरफ मुड़ता हूँ।

 9 हे यहोवा, मुझे दुश्‍मनों से छुड़ा ले।

मैं बचाव के लिए तेरी आस लगाता हूँ।+

10 मुझे तेरी मरज़ी पूरी करना सिखा,+

क्योंकि तू मेरा परमेश्‍वर है।

तेरी पवित्र शक्‍ति भली है,

वह समतल ज़मीन* में मेरी अगुवाई करे।

11 हे यहोवा, अपने नाम की खातिर मेरी जान की हिफाज़त कर।

अपनी नेकी की वजह से मुझे संकट से छुड़ा ले।+

12 अपने अटल प्यार की वजह से मेरे दुश्‍मनों का अंत कर दे,+

मुझे सतानेवालों का नाश कर दे,+

क्योंकि मैं तेरा सेवक हूँ।+

दाविद की रचना।

144 मेरी चट्टान+ यहोवा की तारीफ हो,

जो मेरे हाथों को युद्ध का कौशल सिखाता है,

मेरी उँगलियों को लड़ने की तालीम देता है।+

 2 वह मुझसे प्यार* करता है,

वह मेरा मज़बूत गढ़ है,

मेरा ऊँचा गढ़ और मेरा छुड़ानेवाला है,

वह मेरी ढाल है और उसी में मैंने आसरा लिया है,+

वही है जो देश-देश के लोगों को मेरे अधीन कर देता है।+

 3 हे यहोवा, इंसान क्या है कि तू उस पर गौर करे?

नश्‍वर इंसान क्या है कि तू उस पर ध्यान दे?+

 4 इंसान की ज़िंदगी बस एक साँस है,+

उसके दिन ढलती छाया के समान हैं।+

 5 हे यहोवा, तू अपने आसमान को नीचा करके* उतर आ,+

पहाड़ों को छू ताकि उनसे धुआँ निकले।+

 6 बिजली चमकाकर दुश्‍मनों को तितर-बितर कर दे,+

अपने तीर चलाकर उनमें खलबली मचा दे।+

 7 ऊपर से अपने हाथ बढ़ा,

मुझे उफनते पानी से निकाल ले,

परदेसियों के हाथ* से मुझे छुड़ा ले,+

 8 जो अपने मुँह से झूठ बोलते हैं,

अपना दायाँ हाथ उठाकर झूठी शपथ खाते हैं।*

 9 हे परमेश्‍वर, मैं तेरे लिए एक नया गीत गाऊँगा।+

दस तारोंवाले बाजे की धुन पर तेरी तारीफ में गीत गाऊँगा,*

10 क्योंकि तू राजाओं को जीत दिलाता है,*+

अपने सेवक दाविद को तलवार की मार से बचाता है।+

11 मुझे परदेसियों के हाथ से छुड़ाकर बचा ले,

जो अपने मुँह से झूठ बोलते हैं,

अपना दायाँ हाथ उठाकर झूठी शपथ खाते हैं।

12 तब हमारे बेटे उन छोटे पौधों की तरह होंगे जो जल्दी बढ़ते हैं,

हमारी बेटियाँ महल के कोने में खड़े नक्काशीदार खंभों की तरह होंगी।

13 हमारे भंडार हर तरह की उपज से भरे रहेंगे,

हमारे मैदानों में हमारे जानवरों के झुंड हज़ार गुना बढ़ते जाएँगे,

हज़ारों-लाखों गुना बढ़ते जाएँगे।

14 हमारी गाभिन गायों के साथ कुछ बुरा नहीं होगा,

उनका गर्भ नहीं गिरेगा,

हमारे चौक में किसी तरह का रोना-पीटना नहीं होगा।

15 सुखी हैं वे लोग जो इस तरह खुशहाल होंगे!

सुखी हैं वे लोग जिनका परमेश्‍वर यहोवा है!+

दाविद का रचा हुआ तारीफ का गीत।

א [आलेफ ]

145 हे मेरे परमेश्‍वर, मेरे राजा, मैं तेरी बड़ाई करूँगा,+

सदा तक तेरे नाम की तारीफ करूँगा।+

ב [बेथ ]

 2 मैं सारा दिन तेरी तारीफ करूँगा,+

सदा तक तेरे नाम की तारीफ करूँगा।+

ג [गिमेल ]

 3 यहोवा महान है, सबसे ज़्यादा तारीफ के काबिल है,+

उसकी महानता हमारी समझ से परे है।+

ד [दालथ ]

 4 पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोग तेरे कामों की तारीफ करेंगे,

तेरे शक्‍तिशाली कामों का बखान किया करेंगे।+

ה [हे ]

 5 वे तेरी महिमा, तेरे प्रताप और वैभव के बारे में बताएँगे+

और मैं तेरे आश्‍चर्य के कामों पर मनन करूँगा।

ו [वाव ]

 6 वे तेरे विस्मयकारी कामों* के बारे में बताएँगे

और मैं तेरी महानता का ऐलान करूँगा।

ז [जैन ]

 7 वे तेरी अपार भलाई याद करके बड़े जोश से उसकी चर्चा करेंगे,+

तेरी नेकी के कारण खुशी से जयजयकार करेंगे।+

ח [हेथ ]

 8 यहोवा करुणा से भरा और दयालु है,+

क्रोध करने में धीमा और अटल प्यार से भरपूर है।+

ט [टेथ ]

 9 यहोवा सबके साथ भला करता है,+

उसकी दया उसके सब कामों में दिखायी देती है।

י [योध ]

10 हे यहोवा, तेरे सब काम तेरी महिमा करेंगे,+

तेरे वफादार लोग तेरी तारीफ करेंगे।+

כ [काफ ]

11 वे तेरे राज के ऐश्‍वर्य का ऐलान करेंगे+

और तेरी महाशक्‍ति का बखान करेंगे,+

ל [लामेध ]

12 ताकि लोग तेरे शक्‍तिशाली कामों

और तेरे राज के ऐश्‍वर्य और वैभव+ के बारे में जानें।+

מ [मेम ]

13 तेरा राज सदा तक कायम रहनेवाला राज है,

तेरा राज पीढ़ी-पीढ़ी तक बना रहेगा।+

ס [सामेख ]

14 यहोवा गिरनेवाले सभी लोगों को सँभालता है+

और उन सबको उठाता है जो झुक गए हैं।+

ע [ऐयिन ]

15 सबकी आँखें उम्मीद से तेरी ओर लगी रहती हैं,

तू उन्हें वक्‍त पर खाना देता है।+

פ [पे ]

16 तू अपनी मुट्ठी खोलकर

हरेक जीव की इच्छा पूरी करता है।+

צ [सादे ]

17 यहोवा हर काम में नेक है,+

वह हर काम वफादारी से करता है।+

ק [कोफ ]

18 यहोवा उन सबके करीब रहता है जो उसे पुकारते हैं,+

जो सच्चे दिल* से उसे पुकारते हैं।+

ר [रेश ]

19 वह उन सबकी इच्छा पूरी करता है जो उसका डर मानते हैं,+

वह उनकी मदद की पुकार सुनता है और उन्हें छुड़ाता है।+

ש [शीन ]

20 यहोवा उन सबकी हिफाज़त करता है जो उससे प्यार करते हैं,+

मगर सभी दुष्टों को वह मिटा देगा।+

ת [ताव ]

21 मैं अपने मुँह से यहोवा की तारीफ करूँगा,+

हरेक जीव सदा तक उसके पवित्र नाम की तारीफ करे।+

146 याह की तारीफ करो!*+

मेरा रोम-रोम यहोवा की तारीफ करे।+

 2 मैं सारी ज़िंदगी यहोवा की तारीफ करूँगा,

जब तक मैं ज़िंदा रहूँगा, अपने परमेश्‍वर की तारीफ में गीत गाऊँगा।*

 3 बड़े-बड़े अधिकारियों* पर भरोसा मत रखना,

न ही किसी और इंसान पर, जो उद्धार नहीं दिला सकता।+

 4 उसकी भी साँस* निकल जाती है और वह मिट्टी में मिल जाता है,+

उसी दिन उसके सारे विचार मिट जाते हैं।+

 5 सुखी है वह जिसका मददगार याकूब का परमेश्‍वर है,+

जो अपने परमेश्‍वर यहोवा पर आशा रखता है।+

 6 उस परमेश्‍वर पर जो आकाश, धरती,

समुंदर और उनमें जो कुछ है, सबका बनानेवाला है,+

जो हमेशा विश्‍वासयोग्य रहता है।+

 7 वह धोखा खाए हुओं को न्याय दिलाता है,

भूखों को रोटी देता है।+

यहोवा कैदियों* को छुड़ाता है।+

 8 यहोवा अंधों की आँखें खोलता है,+

यहोवा झुके हुओं को सीधा खड़ा करता है,+

यहोवा नेक लोगों से प्यार करता है।

 9 यहोवा परदेसियों की रक्षा करता है,

अनाथ* और विधवा की देखभाल करता है,+

मगर दुष्ट की चालें नाकाम कर देता है।*+

10 यहोवा सदा के लिए राजा बना रहेगा,+

हे सिय्योन, तेरा परमेश्‍वर पीढ़ी-पीढ़ी तक राजा बना रहेगा।

याह की तारीफ करो!*

147 याह की तारीफ करो!*

हमारे परमेश्‍वर की तारीफ में गीत गाना* कितना अच्छा है,

उसकी तारीफ करना कितना मनभावना और सही है!+

 2 यहोवा यरूशलेम को बनाता है,+

इसराएल के बिखरे लोगों को इकट्ठा करता है।+

 3 वह टूटे मनवालों को चंगा करता है,

उनके घावों पर पट्टी बाँधता है।

 4 वह तारों की गिनती करता है,

उनमें से हरेक को नाम से पुकारता है।+

 5 हमारा प्रभु महान है, महाशक्‍तिशाली है,+

उसकी समझ की कोई सीमा नहीं।+

 6 यहोवा दीन लोगों को उठाता है,+

मगर दुष्टों को ज़मीन पर पटक देता है।

 7 यहोवा का शुक्रिया अदा करते हुए उसके लिए गीत गाओ,

सुरमंडल बजाकर हमारे परमेश्‍वर की तारीफ में गीत गाओ,

 8 जो आसमान को बादलों से ढाँपता है,

धरती पर पानी बरसाता है,+

पहाड़ों पर घास उगाता है।+

 9 वह जानवरों को खाना देता है,+

कौवे के बच्चों को भी देता है, जो खाना माँगते हैं।+

10 वह घोड़े की ताकत से खुश नहीं होता,+

न ही आदमी के मज़बूत पैर उसकी नज़र में कुछ हैं।+

11 यहोवा उनसे खुश होता है जो उसका डर मानते हैं,+

जो उसके अटल प्यार की आस लगाते हैं।+

12 हे यरूशलेम, यहोवा की महिमा कर।

हे सिय्योन, अपने परमेश्‍वर की तारीफ कर।

13 वह तेरी नगरी के फाटकों के बेड़े मज़बूत करता है,

वह तेरे बेटों को आशीष देता है।

14 वह तेरे इलाके में शांति लाता है,+

तुझे बढ़िया-से-बढ़िया गेहूँ देकर संतुष्ट करता है।+

15 वह धरती पर अपनी आज्ञा भेजता है,

उसका वचन फुर्ती से भागकर जाता है।

16 वह बर्फ को ऊन की तरह भेजता है,+

पाले को राख की तरह बिखराता है।+

17 वह ओलों* को रोटी के टुकड़ों की तरह गिराता है।+

उसकी भेजी ठंड कौन सह सकता है?+

18 वह अपना वचन भेजता है और वे पिघल जाते हैं।

वह तेज़ हवा चलाता है+ और पानी बहने लगता है।

19 वह अपना वचन याकूब को सुनाता है,

अपने नियम और न्याय-सिद्धांत इसराएल को सुनाता है।+

20 ऐसा उसने किसी और राष्ट्र के साथ नहीं किया,+

दूसरे राष्ट्र उसके न्याय-सिद्धांतों के बारे में कुछ नहीं जानते।

याह की तारीफ करो!*+

148 याह की तारीफ करो!*

स्वर्ग से यहोवा की तारीफ करो,+

ऊँची जगहों में उसकी तारीफ करो।

 2 उसके सब स्वर्गदूतो, उसकी तारीफ करो।+

उसकी सारी सेनाओ, उसकी तारीफ करो।+

 3 सूरज और चाँद, उसकी तारीफ करो।

चमकते तारो, तुम सब उसकी तारीफ करो।+

 4 हे सबसे ऊँचे आसमान और उनके ऊपर ठहरे पानी,

उसकी तारीफ करो।

 5 वे यहोवा के नाम की तारीफ करें,

क्योंकि उसके हुक्म देने पर उनकी सृष्टि हुई थी।+

 6 वह उन्हें सदा के लिए कायम रखता है,+

उसने एक फरमान जारी किया जो कभी रद्द नहीं होगा।+

 7 धरती से यहोवा की तारीफ करो,

गहरे समुंदरो और उनके विशाल जीवो,

 8 बिजली और ओलो, बर्फ और काली घटाओ,

उसका हुक्म माननेवाली आँधियो,+

 9 पहाड़ो और सब पहाड़ियो,+

फलदार पेड़ो और सब देवदारो,+

10 जंगली जानवरो+ और सब पालतू जानवरो,

रेंगनेवाले जीवो और पंछियो,

11 धरती के राजाओ और सब राष्ट्रो,

धरती के हाकिमो और सब न्यायियो,+

12 जवान लड़को और जवान लड़कियो,*

बुज़ुर्ग आदमियो और जवानो, सब मिलकर उसकी तारीफ करो।

13 वे सब यहोवा के नाम की तारीफ करें,

क्योंकि सिर्फ उसी का नाम सबसे ऊँचा और महान है।+

उसका प्रताप धरती और आकाश के ऊपर फैला है।+

14 वह अपने लोगों की ताकत बढ़ाएगा*

ताकि उसके सभी वफादार लोग,

उसके सबसे अज़ीज़ इसराएली लोग सम्मान पाएँ।

याह की तारीफ करो!*

149 याह की तारीफ करो!*

यहोवा के लिए एक नया गीत गाओ,+

वफादार लोगों की मंडली में उसकी तारीफ करो।+

 2 इसराएल अपने महान रचनाकार के कारण खुशियाँ मनाए,+

सिय्योन के बेटे अपने राजा के कारण जश्‍न मनाएँ।

 3 वे नाचते हुए उसके नाम की तारीफ करें,+

डफली और सुरमंडल बजाकर उसकी तारीफ में गीत गाएँ।*+

 4 यहोवा अपने लोगों से खुश होता है।+

वह दीन स्वभाव के लोगों का उद्धार करके उनकी शोभा बढ़ाता है।+

 5 वफादार लोग सम्मान पाने के कारण मगन हों,

वे अपने बिस्तर पर लेटे खुशी से जयजयकार करें।+

 6 उनके होंठ परमेश्‍वर की तारीफ में गीत गाएँ

और वे अपने हाथ में दोधारी तलवार लें

 7 ताकि राष्ट्रों को उनका बदला चुकाएँ,

देश-देश के लोगों को सज़ा दें,

 8 उनके राजाओं को ज़ंजीरों में जकड़ दें,

उनके बड़े-बड़े लोगों को लोहे की बेड़ियाँ पहना दें,

 9 उन्हें वह सज़ा दें जो उनके लिए लिखी गयी है।+

यह सम्मान उसके सभी वफादार लोगों का है।

याह की तारीफ करो!*

150 याह की तारीफ करो!*+

परमेश्‍वर की पवित्र जगह में उसकी तारीफ करो।+

आसमान में उसकी तारीफ करो जो उसकी ताकत की गवाही देता है।+

 2 उसके शक्‍तिशाली कामों के लिए उसकी तारीफ करो।+

उसकी अपार महानता के लिए उसकी तारीफ करो।+

 3 नरसिंगा फूँकते हुए+ उसकी तारीफ करो।

तारोंवाला बाजा और सुरमंडल बजाते हुए+ उसकी तारीफ करो।

 4 डफली बजाते+ और घेरा बनाकर नाचते हुए उसकी तारीफ करो।

तारोंवाले बाजे और बाँसुरी बजाते हुए+ उसकी तारीफ करो।+

 5 झाँझ की झनझनाहट के साथ उसकी तारीफ करो।

झाँझ की झंकार के साथ उसकी तारीफ करो।+

 6 साँस लेनेवाला हर जीव याह की तारीफ करे।

याह की तारीफ करो!*+

या “उसके कानून पर मनन करता है।”

या “मनन कर रहे हैं?”

या “उसके मसीह।”

या “आपस में सलाह।”

या “खबरदार हो जाओ।”

शा., “बेटे को चूमो।”

शा., “उसका।”

शब्दावली देखें।

शा., “जगह चौड़ी कर।”

या “का सम्मान करेगा; को खुद के लिए अलग रखेगा।”

शब्दावली देखें।

या “खून बहानेवाले और धोखा देनेवाले आदमी।”

या “पवित्र-स्थान।”

शब्दावली देखें।

या “दया।”

या “तुझे याद नहीं कर सकता।”

या “ये बूढ़ी हो गयी हैं।”

या शायद, “जबकि मैंने उसे छोड़ दिया है जो बेवजह मेरा विरोध करता है।”

या “दिलों और गुरदों को परखता है।”

या “ज़बरदस्त तरीके से सज़ा।”

या “संगीत बजाऊँगा।”

शब्दावली देखें।

या शायद, “तेरे वैभव के चर्चे आसमान के ऊपर होते हैं!”

या “उसे उनसे कमतर बनाया जो ईश्‍वर जैसे हैं।”

शब्दावली देखें।

या “संगीत बजाऊँगा।”

या “उपजाऊ ज़मीन।”

शब्दावली देखें।

या शायद, “लालची खुद को आशीर्वाद देता है।”

या “मैं डगमगा (या लड़खड़ा) नहीं सकता।”

या “घनी झाड़ियों।”

या “मज़बूत पंजों।”

या “जिनके पिता की मौत हो गयी है।”

या “न्याय की नींव।”

या “तेज़ चमकती आँखें।”

या शायद, “जलते अंगारे।”

या “उसकी कृपा पाएँगे।”

शब्दावली देखें।

या शायद, “ज़मीन पर रखी गयी पिघलानेवाली भट्ठी।”

या “उसने मेरे साथ भलाई की है।”

या “नासमझ।”

या “निर्दोष चालचलन बनाए रखता है।”

या “को शर्मिंदा।”

शा., “अपनी शपथ पूरी करता है।”

या “वह कभी नहीं डगमगाएगा (या लड़खड़ाएगा)।”

शब्दावली देखें।

या “मेरी गहरी भावनाएँ।” शा., “मेरे गुरदे।”

या “मैं डगमगा (या लड़खड़ा) नहीं सकता।”

शा., “मेरी महिमा।”

या “मेरा शरीर।”

या “शीओल।” शब्दावली देखें।

शा., “गड्‌ढा नहीं देखने देगा।” या शायद, “सड़ने नहीं देगा।”

या “सुख।”

या “झुककर मेरी सुन।”

या “वे अपनी ही चरबी से घिरे हैं।”

या “हमें ज़मीन पर पटक दें।”

या “दुनिया की व्यवस्था।”

या “तेरा रूप देखूँ।”

या “मेरा ताकतवर उद्धारकर्ता।” शब्दावली देखें।

या “हवा।”

या “खुली।”

शा., “मेरे हाथों की शुद्धता।”

या “सताए हुओं।”

शा., “घमंड भरी आँखों को नीची करता है।”

या “परिपूर्ण।”

या “परिपूर्ण।”

या “सँभालता।”

या “टखने।”

या “तू मुझे मेरे दुश्‍मनों की पीठ दे देगा।”

या “मुरझा जाएँगे।”

या “संगीत बजाऊँगा।”

या “परमेश्‍वर अपने राजा के लिए बड़ी-बड़ी जीत दिलाता है।”

या “अटल प्यार।”

या शायद, “नापने की डोरी।”

या “उपजाऊ ज़मीन।”

या “परिपूर्ण।”

या “ताए हुए।”

या “भारी अपराध।”

शा., “होम-बलि को चरबी माने।”

या “तेरा मकसद।”

या “उसको जीत दिलाता है।”

या “ताए हुए।”

या “वह कभी नहीं डगमगाएगा (या लड़खड़ाएगा)।”

शा., “फलों।”

शा., “उनके मुँह।”

शा., “के बारे में गाएँगे और संगीत बजाएँगे।”

शायद यह कोई धुन या संगीत-शैली थी।

या “तारीफों की राजगद्दी के बीच (या पर) विराजमान है।”

या “उन्हें शर्मिंदा नहीं किया गया।”

शा., “हाथ।”

शा., “मेरे अकेले।” यहाँ उसके जीवन की बात की गयी है।

शा., “तेरा दिल सदा जीए।”

शा., “मोटे लोग।”

या शायद, “शांत जल के सोतों के पास।”

या “दिलासा।”

या “तेल मलता है।”

यहाँ यहोवा के जीवन की बात की गयी है जिसकी इंसान शपथ खाता है।

या “ऊपर उठो।”

या “जो पुराने ज़माने से है।”

शा., “न्याय के बारे में।”

या “अटल प्यार।”

या “मेरी गहरी भावनाओं।” शा., “मेरे गुरदों।”

शा., “के साथ नहीं बैठता।”

या “कपटियों से नहीं मिलता-जुलता।”

शा., “के साथ बैठने।”

या “खून बहानेवालों।”

शा., “मैं सभाओं।”

या “पवित्र-स्थान।”

या “ध्यान करते हुए।”

या “संगीत बजाऊँगा।”

शा., “जीवितों के देश में।”

या शायद, “बेशक, मुझे विश्‍वास है कि मैं जीते-जी यहोवा की भलाई देखूँगा।”

या “कब्र।”

या शायद, “उसकी पवित्रता के वैभव की वजह से।”

या “की उपासना करो।”

शा., “पानी।”

ज़ाहिर है, लबानोन पर्वतमाला।

या “आसमान में फैले महासागर।”

या “खींच निकाला।”

या “कब्र।”

या “संगीत बजाओ।”

शा., “उसकी पवित्रता की यादगार।”

या “मंज़ूरी।”

या “मैं डगमगा (या लड़खड़ा) नहीं सकता।”

या “तेरी मंज़ूरी मुझ पर थी।”

शा., “खून।”

या “कब्र।”

शा., “नाच।”

या “मेरी महिमा।”

या “झुककर मेरी सुन।”

या “विश्‍वासयोग्य परमेश्‍वर।”

या “खुली।”

या “दिमाग।”

शा., “मेरा समय।”

शब्दावली देखें।

या “माफ किया गया है।”

या “तेरी नाराज़गी।”

या “मेरे जीवन की नमी ऐसे खत्म हो गयी।”

या “संगीत बजाओ।”

शा., “उसकी सारी सेनाएँ।”

या “मकसद।”

या “के विचारों।”

या “मकसद।”

या “जीत।”

यानी यहोवा का।

या “उनके चारों तरफ छावनी डालता है।”

या “जो निराश हैं।”

ये ढालें अकसर तीरंदाज़ ढोते थे।

या “प्रार्थना मेरी गोद में लौट आती।”

या शायद, “लोग एक टिकिया के लिए।”

शा., “मेरे अकेले।” यहाँ उसके जीवन की बात की गयी है।

या “पर मनन करेगी।”

शा., “तेरी नेकी परमेश्‍वर के पहाड़ों।”

या “बचाता।”

शा., “चरबी।”

या “अटल प्यार।”

या “गुस्से से मत भड़कना।”

या “देश में।”

या “सबसे ज़्यादा खुशी पा।”

या शायद, “झुँझलाना मत क्योंकि इससे सिर्फ नुकसान होगा।”

शा., “यहोवा निर्दोष लोगों के दिन जानता है।”

या “कृपा करता है।”

या “मज़बूत करता है।”

या “अपने हाथ से।”

या “खाने।”

या “मुँह धीमी आवाज़ में बुद्धि की बातें करता है।”

या “निर्दोष चाल चलनेवाले।”

शा., “मेरे शरीर का कोई भी हिस्सा स्वस्थ नहीं है।”

शा., “मेरी पूरी कमर जल रही है।”

या शायद, “मगर मुझसे बेवजह दुश्‍मनी करनेवाले बहुत हैं।”

शब्दावली देखें।

यानी जानवरों के मुँह पर बाँधी जानेवाली जाली।

या “बढ़ गया।”

या “मैं आहें भरता रहा।”

या “कि मैं पल-भर का हूँ।”

शा., “तूने मेरे दिन बित्ते-भर बनाए हैं।”

शा., “शोर।”

या “एक प्रवासी।”

या “मैंने सब्र से यहोवा का इंतज़ार किया।”

या “वह मेरी प्रार्थना सुनने के लिए झुका।”

या “तू चढ़ावे से खुश नहीं हुआ।”

शा., “किताब के खर्रे।”

या “पूरी करना ही मेरी इच्छा है।”

या “इच्छा।”

शा., “मेरे खिलाफ एड़ी उठाए है।”

या “हमेशा से हमेशा तक।”

शब्दावली देखें।

शा., “अपनी जान उँडेलता हूँ।”

या “धीरे-धीरे।”

या “छोटे पहाड़।”

या शायद, “मानो मेरी हड्डियाँ चूर-चूर करते हों।”

शब्दावली देखें।

या “याकूब को शानदार उद्धार दिला।”

या “उनकी कीमत से।”

शा., “कहावत।”

शब्दावली देखें।

शा., “मेरी रचनाएँ।”

या “शास्त्री।”

या “कामयाबी।”

शा., “तुझे विस्मयकारी काम सिखाएगा।”

या “न्याय।”

या शायद, “कढ़ाईदार चोगा।”

शब्दावली देखें।

या शायद, “ढालों।”

या “मेढ़े के सींग; तुरही।”

या “संगीत बजाओ।”

शा., “ढालें।”

या “पहले से तय करके मिले हैं।”

शा., “बेटियों।”

या “मज़बूत शहरपनाह।”

या शायद, “हमारी मौत तक।”

या “दुनिया की व्यवस्था।”

या “उन्हें छुड़ाने।”

या “कब्र।”

या “सूरज के उगने से डूबने तक।”

या “परिपूर्ण।”

या “हिदायत।”

या शायद, “उससे मिल जाता है।”

या “को बदनाम करता है।”

या “मेरे मन में।”

शा., “सिर्फ तेरे खिलाफ।”

या “पाप में मेरी माँ ने मुझे गर्भ में धारण किया था।”

या “तुच्छ नहीं समझेगा।”

शब्दावली देखें।

शा., “जीवितों के देश।”

या “को अपना गढ़ नहीं बनाया।”

या “आसरा।”

शब्दावली देखें।

शब्दावली देखें।

या “नासमझ।”

या शायद, “वहाँ जहाँ डरने की कोई वजह नहीं थी।”

शा., “तेरे खिलाफ छावनी डालनेवालों।”

शब्दावली देखें।

या “वे परमेश्‍वर को अपने सामने नहीं रखते।”

शब्दावली देखें।

या “जब मैं मदद के लिए प्रार्थना करूँ तो तू छिप न जाना।”

या “उनकी भाषा में गड़बड़ी डाल दे।”

या “मेरी बराबरी का आदमी।”

या “डूबा शोर मचाता हूँ।”

यानी वह जो पहले उसका दोस्त था और जिसका ज़िक्र आय. 13 और 14 में किया गया है।

या “डगमगाने; लड़खड़ाने।”

शब्दावली देखें।

या “मुझे काटने को दौड़ रहा है।”

शा., “के सामने चलता रहूँ।”

शब्दावली देखें।

या “संगीत बजाऊँगा।”

शब्दावली देखें।

या “भ्रष्ट।”

शब्दावली देखें।

या “खून के प्यासे।”

या “भौंकते।”

या “भौंकने।”

या “संगीत बजाऊँगा।”

या “अटल प्यार।”

शब्दावली देखें।

या शायद, “उन्हें तूने इशारा दिया है।”

या शायद, “अपनी पवित्र जगह में।”

या शायद, “किलेबंद।”

या “कमज़ोर।”

या “निवास करेगा।”

या “उसकी हिफाज़त के लिए अटल प्यार और वफादारी को ठहरा।”

या “संगीत बजाऊँगा।”

शब्दावली देखें।

या शायद, “तुम सब, मानो वह एक झुकी हुई दीवार हो, पत्थर की ऐसी दीवार जो बस ढहनेवाली है।”

या “उसकी गरिमा।”

शा., “मैं मानो चरबी और चिकने भोजन से।”

या “लोमड़ियों।”

या “गर्व करेगा।”

या “वे बुरा करने के लिए एक-दूसरे को उकसाते हैं।”

या “गर्व करेंगे।”

या “पवित्र-स्थान।”

या “उठी हुई मिट्टी।”

शा., “चिकनाई टपकती है।”

या “संगीत बजाओ।”

या “डगमगाने।”

शा., “हमारे सिर के।”

या “आदर करेंगे।”

या “संगीत बजाओ।”

या शायद, “जो बादलों पर सवारी करता है।”

“याह” यहोवा नाम का छोटा रूप है।

या “जिनके पिता की मौत हो गयी है।”

शा., “न्यायी।”

या “बागी।”

शा., “टपकने।”

शा., “अपनी विरासत।”

या शायद, “भेड़शालाओं।”

या “पीले-हरे रंग के।”

या “तो यह ऐसा था मानो ज़लमोन में बर्फ पड़ी।”

या “एक विशाल पहाड़।”

या “अपने निवास के लिए चाहा है?”

या “पाप की राह पर चलते हैं।”

शा., “बड़ी सभाओं में।”

या शायद, “टुकड़े रौंद नहीं देते।”

या शायद, “से राजदूत आएँगे।”

या “संगीत बजाओ।”

या “बेवजह मुझसे दुश्‍मनी करनेवाले।”

या शायद, “जब मैंने रो-रोकर उपवास किया।”

शा., “मैं उनके लिए एक कहावत बन गया।”

या “गड्‌ढे।”

या “अब मेरे लिए कोई उम्मीद नहीं बची।”

या “एक ज़हरीला पौधा।”

या “कमर।”

या “अपना क्रोध।”

या “दीवारों से घिरी छावनी।”

यानी देश पर।

या “झुककर मेरी सुन।”

या “गिनना।”

शा., “तेरे बाज़ू।”

या “गहरे पानी।”

या “तेरे लिए संगीत बजाऊँगा।”

या “पर मनन करेगी।”

शा., “उनका न्याय।”

या “उसका राज।”

यानी फरात नदी।

इसका यह मतलब हो सकता है कि आशीष पाने के लिए उन्हें भी कुछ कदम उठाने होंगे।

या “डींग मारनेवालों।”

या “उनकी तोंद बड़ी है।”

शा., “चरबी।”

शा., “तेरे बेटों की पीढ़ी।”

शा., “को तुच्छ समझेगा।”

या “बदचलन की तरह पेश आकर।”

शब्दावली देखें।

शा., “के खिलाफ तेरे क्रोध की आग का धुआँ क्यों उठ रहा है?”

शा., “अपनी मंडली।”

या “अपने कपड़े की तह।”

शब्दावली देखें।

शा., “अपना सींग ऊँचा मत करो।”

शा., “अपना सींग बहुत ऊँचा मत करो।”

या “संगीत बजाऊँगा।”

शा., “के सारे सींग काट डालूँगा।”

शा., “के सींग ऊँचे किए जाएँगे।”

या “तू रौशनी से घिरा हुआ है।”

शब्दावली देखें।

या “तारोंवाले बाजे पर बजाया संगीत।”

या “भेदती।”

शा., “अपने बाज़ू।”

या “उपजाऊ ज़मीन।”

शब्दावली देखें।

या “मेरी हिदायत।”

शा., “तैयार नहीं था।”

या “जैसे दीवार खड़ी की गयी हो।”

शा., “की परीक्षा ली।”

या “स्वर्गदूतों।”

या “उनकी तरफ से बदला लेनेवाला।”

शा., “ढाँप।”

या शायद, “जीवन-शक्‍ति चली जाती है और वापस नहीं आती।”

शा., “उसका हाथ।”

या शायद, “तपते बुखार से।”

या “संतान पैदा करने की शक्‍ति।”

शा., “की परीक्षा लेने।”

शा., “ढाँप दे।”

शा., “अपने बाज़ू।”

या शायद, “रिहा कर दे।”

या शायद, “के बीच।”

या “अपना तेज दिखा।”

यानी फरात नदी।

या “अंगूर की बेल के खास तने।”

या “शाखा।”

शब्दावली देखें।

या “भाषा।”

शा., “गरजन की गुप्त जगह।”

मतलब “झगड़ा करना।”

शा., “वे अपनी ही साज़िशों के मुताबिक चले।”

शा., “उसे” यानी परमेश्‍वर के लोगों को।

या “जो ईश्‍वर जैसे हैं उनके बीच।”

या “जिनके पिता की मौत हो गयी है।”

या “का न्याय।”

या “ईश्‍वर जैसे।”

या “मौन मत रह।”

या “सिर उठाते हैं।”

शा., “छिपाए गए लोगों।”

शा., “वे एक मन होकर सलाह-मशविरा करते हैं।”

या “करार किया है।”

या “घाटी।”

या “अगुवों।”

शब्दावली देखें।

या “बाका झाड़ियों की घाटी।”

या शायद, “शिक्षक आशीषों का ओढ़ना ओढ़ता है।”

या शायद, “हे परमेश्‍वर, हमारी ढाल देख।”

शा., “ढाँप दिए।”

या “हमें वापस इकट्ठा कर ले।”

या “खुशहाली।”

या “झुककर मेरी सुन।”

या “मुझे ऐसा दिल दे जो बँटा हुआ न हो।”

या “उन्होंने तुझे अपने सामने नहीं रखा।”

या “सच्चा।”

या “सबूत दे।”

या “कबूल करते हैं।”

या “तू मेरे लिए सब चीज़ों का सोता है।”

शब्दावली देखें।

शब्दावली देखें।

या “झुककर मेरी मदद की पुकार सुन।”

या “कब्र।”

या “मैं ऐसे आदमी की तरह बन गया हूँ जिसमें ताकत नहीं है।”

शा., “हाथ।”

या “और अबद्दोन में।” शब्दावली देखें।

या शायद, “अचानक।”

शब्दावली देखें।

शा., “हमारा सींग ऊँचा किया जाता है।”

शा., “उसका सींग ऊँचा किया जाएगा।”

या “अधिकार में।”

या “अटल प्यार।”

या “न्याय-सिद्धांतों।”

या “अटल प्यार।”

शा., “न ही विश्‍वासयोग्य रहना छोड़कर झूठा ठहरूँगा।”

शा., “बीज।”

या “उसके पत्थर के शरण-स्थानों।”

शा., “का दायाँ हाथ ऊपर उठाया।”

शा., “ताने अपनी गोद में लिए रहने।”

या शायद, “हमारी पनाह।”

या “मानो प्रसव-पीड़ा सहकर जन्म दिया।”

या “तू हमारे गुनाह जानता है।”

या “हमारी ज़िंदगी घटती जाती है।”

या “खास दमखम की वजह से।”

या “मेहनत मज़बूती से कायम करे।”

या “मेहनत मज़बूती से कायम करे।”

या “तेरे पास आने का रास्ता रोक देगा।”

या शायद, “किला; पनाह।”

शा., “जुड़ गया है।”

या “नाम कबूल करता है।”

या “संगीत बजाया जाए।”

या “घास।”

शा., “तू मेरे सींग को जंगली बैल के सींग की तरह ऊँचा करेगा।”

या “बाल पक जाने पर।”

या “उपजाऊ ज़मीन।”

या “लड़खड़ा नहीं सकती।”

या “जिनके पिता की मौत हो गयी है।”

शा., “में खामोशी में निवास करता।”

या “परेशान करनेवाले विचार।”

या “मेरे अंदर बढ़ गयीं।”

या “शासक; न्यायी।”

या “फरमान जारी करके।”

शा., “उसके मुख के सामने।”

शा., “हम उसके हाथ की भेड़ें हैं।”

मतलब “झगड़ा करना।”

मतलब “परीक्षा लेना; आज़माइश।”

या “गरिमा।”

या शायद, “उसकी पवित्रता के वैभव की वजह से।”

या “की उपासना।”

या “उपजाऊ ज़मीन।”

या “की पैरवी।”

या “आ गया है।”

या “उपजाऊ ज़मीन।”

या “उसकी उपासना।”

या “की बेटियाँ।”

या “की ताकत।”

शा., “उसकी पवित्रता की यादगार।”

या “उसे जीत दिलायी है।”

या “अटल प्यार।”

या “हमारे परमेश्‍वर की जीत को।”

या “संगीत बजाओ।”

या “संगीत बजाओ।”

या “उपजाऊ ज़मीन।”

या “आ गया है।”

या “उपजाऊ ज़मीन।”

या शायद, “के बीच।”

या “उपासना करो।”

शा., “का बदला चुकाता था।”

या “उपासना।”

या “कबूल करो।”

या शायद, “न कि हमने खुद को।”

या “संगीत बजाऊँगा।”

या “निकम्मी।”

या “उनके काम मुझसे नहीं लगे रहते।”

शा., “को नहीं जानूँगा।”

या “मिटा दूँगा।”

शा., “मेरी आँखों के सामने।”

या “मिटा दूँगा।”

या “वह कमज़ोर होता है।”

या “झुककर मेरी सुन।”

या शायद, “मैं सूखकर काँटा हो गया हूँ।”

या “मुझे बेवकूफ बनानेवाले।”

या “बढ़ती।”

या “नाम।” शा., “तेरी यादगार।”

शा., “जो सिरजा जाएगा।”

या “कब्र।”

शा., “और उसकी जगह उसे और नहीं जानती।”

या “हमेशा से हमेशा तक।”

या “गरिमा।”

शा., “वह पानी में।”

या “नहीं डगमगाएगी।”

शब्दावली देखें।

शब्दावली में “रुआख; नफ्मा” देखें।

या “संगीत बजाऊँगा।”

या शायद, “मैं उसके बारे में जो मनन करता हूँ वह मनभावना हो।”

या “हल्लिलूयाह!” “याह” यहोवा नाम का छोटा रूप है।

या “संगीत बजाओ।”

या शायद, “के बारे में बताओ।”

शा., “उस वचन को, जो उसने हज़ारों पीढ़ियों के लिए ठहराया है।”

शा., “रोटी का हर छड़ तोड़ दिया।” शायद यहाँ रोटी लटकानेवाले छड़ों की बात की गयी है।

शा., “डालकर उसे दुख दिया।”

शा., “को बाँध दे।”

या “आग की लपटें गिरायीं।”

या “संतान पैदा करने की शक्‍ति।”

शा., “उनका।”

या “हल्लिलूयाह!” “याह” यहोवा नाम का छोटा रूप है।

या “हल्लिलूयाह!” “याह” यहोवा नाम का छोटा रूप है।

या “को मंज़ूरी दे।”

या “के मायने नहीं समझे।”

या “वीराना।”

या “ढली हुई मूरत।”

शा., “उसके सामने दरार में खड़ा हुआ।”

या “से खुद को जोड़ लिया।”

यानी ऐसे बलिदान जो मरे हुओं को या फिर बेजान मूरतों को चढ़ाए गए थे।

मतलब “झगड़ा करना।”

या “सीख लिए।”

या “उन्होंने वेश्‍याओं जैसी बदचलनी की।”

शा., “वे उनके हाथ तले दब गए।”

या “भरपूर।”

या “पछतावा महसूस करता।”

या “हमेशा से हमेशा तक।”

या “ऐसा ही हो!”

या “हल्लिलूयाह!” “याह” यहोवा नाम का छोटा रूप है।

या “वापस खरीद लिया है।”

या “की ताकत।”

या “उदयाचल और अस्ताचल से।”

शा., “बैठक।”

या “ऊँचे पर रखता है,” यानी पहुँच से बाहर।

या “संगीत बजाऊँगा।”

या शायद, “अपनी पवित्र जगह में।”

या “इलज़ाम लगानेवाला।”

या “दुष्ट।”

शा., “बेटों।”

शा., “बेटे।”

या “सूदखोर उसके लिए जाल बिछाएँ।”

या “अटल प्यार।”

या “अटल प्यार।”

शा., “मेरा शरीर बिना चरबी (या तेल) के दुबला हो गया है।”

या “जिस दिन तेरी सेना तैयार होती है।”

या “उसे पछतावा महसूस नहीं होगा।”

या “पूरी धरती।”

यह वही है जिसे आय. 1 में ‘मेरा प्रभु’ बताया गया है।

या “हल्लिलूयाह!” “याह” यहोवा नाम का छोटा रूप है।

या “पक्के सबूतों पर आधारित।”

या “हल्लिलूयाह!” “याह” यहोवा नाम का छोटा रूप है।

या “अटल; दृढ़।”

या “उदारता से।”

शा., “सींग।”

या “हल्लिलूयाह!” “याह” यहोवा नाम का छोटा रूप है।

या “विराजमान।”

या शायद, “कूड़े की जगह।”

शा., “बेटों।”

या “हल्लिलूयाह!” “याह” यहोवा नाम का छोटा रूप है।

या “हमारा कुछ नहीं, हे यहोवा, हमारा कुछ नहीं।”

शा., “बेटों।”

या “हल्लिलूयाह!” “याह” यहोवा नाम का छोटा रूप है।

या शायद, “मैं प्यार करता हूँ क्योंकि यहोवा सुनता है।”

या “झुककर मेरी सुनता है।”

शा., “मैं जीवितों के देश में।”

या “गंभीर बात।”

या “हल्लिलूयाह!” “याह” यहोवा नाम का छोटा रूप है।

या “कुलो।”

या “हल्लिलूयाह!” “याह” यहोवा नाम का छोटा रूप है।

“याह” यहोवा नाम का छोटा रूप है।

या “खुली।”

या शायद, “यहोवा मेरी तरफ मेरी मदद करनेवालों के साथ है।”

या शायद, “तूने मुझे ज़ोर का धक्का दिया।”

या “की जीत हुई है।”

शा., “काश! मेरी राहें मज़बूती से कायम होतीं।”

या “का अध्ययन करूँगा।”

या “का अध्ययन करता है।”

शा., “मार्ग।”

या “का अध्ययन करूँ।”

या “शर्मिंदा।”

शा., “पर दौड़ूँगा।”

या शायद, “तू मेरे दिल को भरोसा दिलाएगा।”

या “मुनाफे।”

या “तू अपनी कही बात पूरी कर।”

या शायद, “जो तेरा डर माननेवालों से किया जाता है।”

या “अपने कहे।”

या “अटल प्यार।”

या “का इंतज़ार करता हूँ।”

या “खुली।”

या “का अध्ययन करूँगा।”

या “जिसके लिए तूने मुझे इंतज़ार करवाया।”

या “उस घर में, जहाँ मैं एक परदेसी की तरह रहता हूँ।”

या “अपने कहे।”

या “मैं अनजाने में पाप करता था।”

शा., “चरबी की तरह मोटा हो गया है।”

या “मैं तेरे वचन का इंतज़ार करता हूँ।”

या “कहा है।”

या शायद, “झूठ बोलकर।”

या “का अध्ययन करूँगा।”

या “मैं तेरे वचन का इंतज़ार करता हूँ।”

यानी उसकी सृष्टि के सारे काम।

या “परिपूर्ण।”

शा., “बहुत चौड़ी है।”

या “उसका अध्ययन करता हूँ।”

या “उनका मैं अध्ययन करता हूँ।”

शा., “मेरे मुँह की स्वेच्छा-बलियों।”

या “सदा की विरासत।”

शा., “अपना मन झुकाया है।”

या “जिन आदमियों का दिल बँटा हुआ है उनसे मैं।”

या “मैं तेरे वचन का इंतज़ार करता हूँ।”

या “अपने कहे।”

या “शर्मिंदा न होने दे।”

या “तेरी कही नेक बात।”

या “ताए हुए।”

या “तेरे हर आदेश।”

शा., “हाँफता।”

या “दृढ़ कर।”

या “को देखकर मुस्कुरा।”

या “सुबह के झुटपुटे के समय।”

या “मैं तेरे वचनों का इंतज़ार करता हूँ।”

या “का अध्ययन करूँ।”

या “अश्‍लील।”

या “मेरा मुकदमा लड़।”

या “अपने कहे।”

या “उनके लिए कोई ठोकर का पत्थर नहीं है।”

या “अपने कहे।”

शब्दावली देखें।

या “लड़खड़ाने।”

शा., “तेरे बाहर जाने और अंदर आने में।”

“याह” यहोवा नाम का छोटा रूप है।

या “मज़बूत शहरपनाह।”

या “अपने हाथ न बढ़ाएँ।”

या “बँधुआई से निकालकर बहाल कर।”

या “दक्षिण की घाटियों।”

या “बच्चे।”

“याह” यहोवा नाम का छोटा रूप है।

या “का हिसाब रखता।”

शा., “तेरा डर माना जाए।”

या “एक शानदार डेरा।”

या “शानदार डेरे।”

शा., “का मुँह न फेर दे।”

शा., “का सींग।”

या शायद, “पवित्र-स्थान में।”

या “हल्लिलूयाह!” “याह” यहोवा नाम का छोटा रूप है।

या “संगीत बजाओ।”

या “अनमोल जायदाद।”

या “भाप।”

या शायद, “झरोखे।”

या “नाम।” शा., “तेरी यादगार।”

या “समझ।”

यहाँ बैबिलोन की बात की गयी है।

या शायद, “मुरझा जाए।”

या शायद, “दूसरे देवताओं के विरोध में, मैं तेरे लिए संगीत बजाऊँगा।”

या “पवित्र-स्थान।”

या शायद, “तूने अपने नाम से बढ़कर अपने वचन को महान किया है।”

या “यह मेरे लिए बहुत हैरानी की बात है।”

या “यह मैं जान भी नहीं सकता।”

या शायद, “में बुना।”

या शायद, “तब भी उन्हें गिन रहा होता।”

या “खून के दोषी आदमी।”

या “अपने ही खयाल से।”

या “और परेशान करनेवाले विचारों।”

या “पानी से भरे गड्‌ढों।”

या “देश में।”

या “तेरी मौजूदगी में।”

शब्दावली देखें।

शा., “कोई मुझे नहीं पहचानता।”

शा., “जीवितों के देश में।”

शा., “भाग।”

या “का अध्ययन करता हूँ।”

या “कब्र।”

या “सीधाई के देश।”

या “अटल प्यार।”

या “झुकाकर।”

या “चंगुल।”

शा., “उनका दायाँ हाथ झूठ का दायाँ हाथ है।”

या “संगीत बजाऊँगा।”

या “का उद्धार करता है।”

या “तेरी शक्‍ति।”

या “सच्चाई।”

या “हल्लिलूयाह!” “याह” यहोवा नाम का छोटा रूप है।

या “संगीत बजाऊँगा।”

या “हाकिमों।”

शब्दावली में “रुआख; नफ्मा” देखें।

शा., “बंदियों।”

या “जिसके पिता की मौत हो गयी है।”

या “दुष्ट की राह टेढ़ी-मेढ़ी कर देता है।”

या “हल्लिलूयाह!” “याह” यहोवा नाम का छोटा रूप है।

या “हल्लिलूयाह!” “याह” यहोवा नाम का छोटा रूप है।

या “संगीत बजाना।”

या “बर्फ।”

या “हल्लिलूयाह!” “याह” यहोवा नाम का छोटा रूप है।

या “हल्लिलूयाह!” “याह” यहोवा नाम का छोटा रूप है।

शा., “कुँवारियो।”

शा., “का सींग ऊँचा करेगा।”

या “हल्लिलूयाह!” “याह” यहोवा नाम का छोटा रूप है।

या “हल्लिलूयाह!” “याह” यहोवा नाम का छोटा रूप है।

या “संगीत बजाएँ।”

या “हल्लिलूयाह!” “याह” यहोवा नाम का छोटा रूप है।

या “हल्लिलूयाह!” “याह” यहोवा नाम का छोटा रूप है।

या “हल्लिलूयाह!” “याह” यहोवा नाम का छोटा रूप है।

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