प्रहरीदुर्ग और अवेक!—सत्य की समयोचित पत्रिकाएँ
“हे यहोवा, हे सत्यवादी ईश्वर, तू ने मुझे मोल लेकर मुक्त किया है।”—भजन ३१:५.
१, २. (क) एक बहन को प्रहरीदुर्ग में कुछ पढ़कर कैसा लगा? (ख) हमारी पत्रिकाओं के बारे में क्या प्रश्न पूछे जाते हैं?
एक मसीही बहन ने लिखा, “प्रहरीदुर्ग लेख ‘विपत्ति के समय में आप सांत्वना पा सकते हैं,’ में शानदार जानकारी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया।a आपने जो मुद्दे निकाले उन में से अनेक ठीक वही भावनाएँ थीं जिनका सामना मुझे करना पड़ा है; यह ऐसा था मानो वह लेख सीधे मेरे लिए ही लिखा गया था। जब पहली बार मैं ने उसे पढ़ा, मेरी आँखों में आँसू आ गए। यह एहसास करना इतना अच्छा है कि कोई और जानता है कि मैं कैसा महसूस करती हूँ! मैं बहुत आभारी हूँ कि मैं एक यहोवा की गवाह हूँ। अभी, हमारे प्राणों के लिए मरहम और, निकट भविष्य में परादीस में अनन्त जीवन की प्रतिज्ञाएँ हमें और कहाँ मिल सकती! शुक्रिया। लाख-लाख शुक्रिया।”
२ क्या आपने कभी ऐसा महसूस किया है? क्या कभी ऐसा लगा कि प्रहरीदुर्ग या उसकी सह-पत्रिका, अवेक! (अंग्रेज़ी में) में कुछ चीज़ ख़ास आपके लिए लिखी गई थी? हमारी पत्रिकाओं के बारे में ऐसा क्या है जो लोगों के हृदयों को आकर्षित करता है? इनमें जो प्राण-रक्षक संदेश है उससे लाभ उठाने के लिए हम दूसरों की मदद कैसे कर सकते हैं?—१ तीमुथियुस ४:१६.
पत्रिकाएँ जो सत्य का समर्थन करती हैं
३. किन अच्छे कारणों के लिए प्रहरीदुर्ग और अवेक! पत्रिकाओं ने अनेक पाठकों के हृदयों को छूआ है?
३ यहोवा “सत्यवादी ईश्वर” है। (भजन ३१:५) उसका वचन, बाइबल सत्य की पुस्तक है। (यूहन्ना १७:१७) सत्हृदय लोग सत्य के प्रति प्रतिक्रिया दिखाते हैं। (यूहन्ना ४:२३, २४ से तुलना कीजिए.) एक कारण कि प्रहरीदुर्ग और अवेक! ने लाखों लोगों के हृदयों को छू लिया है यह है कि ये खराई और सत्य की पत्रिकाएँ हैं। असल में, बाइबल सत्य के प्रति निष्ठा के वाद-विषय को लेकर ही प्रहरीदुर्ग का प्रकाशन शुरू हुआ।
४, ५. (क) किन परिस्थितियों के कारण सी. टी. रस्सल ने प्रहरीदुर्ग का प्रकाशन शुरू किया? (ख) किस प्रकार प्रहरीदुर्ग पत्रिका “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” द्वारा इस्तेमाल की जाती है?
४ वर्ष १८७६ में, चार्ल्स टी. रस्सल ने रोचेस्टर, न्यू यॉर्क के नेल्सन एच. बार्बर से सम्बन्ध जोड़ा। बार्बर की धार्मिक पत्रिका सुबह की घोषणा (Herald of the Morning) को फिर से छापने के लिए रस्सल ने पैसा लगाया, जिसमें बार्बर मुख्य सम्पादक और रस्सल उप-सम्पादक था। लेकिन, लगभग डेढ़ साल बाद, घोषणा के अगस्त १८७८ के अंक में बार्बर ने एक लेख लिखा जिसमें मसीह की मृत्यु के मुक्तिप्रद मूल्य का इन्कार किया गया। रस्सल ने, जो बार्बर से क़रीबन ३० साल छोटा था, अगले ही अंक में एक ऐसे लेख से प्रतिक्रिया दिखाई जिसमें छुड़ौती का समर्थन किया गया। इस लेख में उसने छुड़ौती का उल्लेख “परमेश्वर के वचन की एक सबसे महत्त्वपूर्ण शिक्षा” के रूप में किया। (मत्ती २०:२८) बार्बर के साथ बार-बार शास्त्रवचनों के आधार पर तर्क करने का प्रयास करने के बाद, आख़िरकार रस्सल ने घोषणा के साथ सब सम्बन्ध तोड़ने का फ़ैसला किया। उस पत्रिका के जून १८७९ के अंक से लेकर रस्सल का नाम उप-सम्पादक के रूप में आना बंद हो गया। एक महीने बाद, २७-वर्षीय रस्सल ने सिय्योन का प्रहरीदुर्ग और मसीह की उपस्थिति की घोषणा (Zion’s Watch Tower and Herald of Christ’s Presence) का प्रकाशन शुरू कर दिया (अब कहलाता है, प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है), जिसने शुरूआत से ही शास्त्रीय सत्य का समर्थन किया है, जैसे की छुड़ौती।
५ पिछले ११४ सालों से, प्रहरीदुर्ग ने अपने आपको एक कुशल वकील की तरह बाइबल सत्य और सिद्धान्त के समर्थक के रूप में स्थापित किया है। ऐसा करते हुए, इसने लाखों क़दरदान पाठकों का भरोसा जीत लिया है। यह अभी भी प्रभावशाली रूप से छुड़ौती का समर्थन करती है। (उदाहरण के लिए, फरवरी १५, १९९१ का अंग्रेज़ी अंक देखिए.) और यह अभी भी यहोवा के स्थापित राज्य की घोषणा करने और “समय पर” आध्यात्मिक भोजन देने के लिए “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” और उसके शासी निकाय का मुख्य यंत्र है।—मत्ती २४:१४, ४५.
६, ७. स्वर्ण युग का घोषित उद्देश्य क्या था, और क्या बात दिखाती है कि विचारशील लोगों ने उसके संदेश के प्रति प्रतिक्रिया दिखाई?
६ अवेक! पत्रिका के बारे में क्या? इसकी शुरूआत से, अवेक! ने भी सत्य का समर्थन किया है। आरम्भ में स्वर्ण युग (The Golden Age) कहलाने वाली यह पत्रिका जन वितरण के लिए बनाई गई थी। इसके उद्देश्य के सम्बन्ध में, अक्तूबर १, १९१९ के इसके पहले अंक ने कहा: “इसका उद्देश्य है परमेश्वरीय बुद्धि के प्रकाश में आज के दिन की महान् घटनाओं का सही अर्थ समझाना और अविवाद्य और विश्वासोत्पादक प्रमाण द्वारा विचारशील लोगों को साबित करना कि मानवजाति की महान् आशिषों का समय क़रीब है।” विचारशील लोगों ने स्वर्ण युग के संदेश के प्रति प्रतिक्रिया दिखाई। कई सालों तक इसका वितरण प्रहरीदुर्ग के वितरण से ज़्यादा था।b
७ लेकिन, प्रहरीदुर्ग और अवेक! का आकर्षण इस तथ्य से बढ़कर है कि वे सैद्धान्तिक सत्य प्रकाशित करती हैं और संसार की परिस्थितियों का भविष्यसूचक महत्त्व समझाती हैं। ख़ासकर पिछले एक या दो दशकों में, हमारी पत्रिकाओं ने एक और कारण से भी लोगों के हृदय आकर्षित किए हैं।
समयोचित लेख जो लोगों के जीवन प्रभावित करते हैं
८. अपने पाठकों से कलीसिया के अन्दर कौनसे प्रभावों का विरोध करने के लिए आग्रह करते हुए, यहूदा ने क्या लेखन समंजन किया?
८ यीशु मसीह की मृत्यु और पुनरुत्थान के लगभग ३० साल बाद, बाइबल लेखक यहूदा ने एक चुनौती-भरी स्थिति का सामना किया। अनैतिक, पाशविक व्यक्ति चुपके से मसीहियों के बीच घुस गए थे। यहूदा का इरादा था कि संगी मसीहियों को एक सैद्धान्तिक विषय के बारे में लिखे—वह उद्धार जो सभी अभिषिक्त मसीहियों के लिए सामान्य है। इसके बजाय, पवित्र आत्मा द्वारा निर्देशित होकर उसने यह ज़रूरी समझा कि अपने पाठकों से कलीसिया के अन्दर भ्रष्ट प्रभावों का विरोध करने का आग्रह करे। (यहूदा ३, ४, १९-२३) यहूदा ने स्थिति के अनुसार समंजन किया और समयोचित सलाह प्रदान की जिसने उसके मसीही भाइयों की ज़रूरतों को पूरा किया।
९. हमारी पत्रिकाओं के लिए समयोचित लेख प्रदान करने में क्या सम्मिलित है?
९ उसी तरह, हमारी पत्रिकाओं के लिए समयोचित लेख तैयार करना एक चुनौती-भरी ज़िम्मेदारी है। समय बदलता है और लोग भी—उनकी ज़रूरतें और उनकी रुचियाँ अब वे नहीं हैं जो एक या दो दशक पहले थीं। एक सफ़री ओवरसियर ने हाल ही में ग़ौर किया: “जब मैं १९५० के दशक में गवाह बना, तब लोगों के साथ बाइबल का अध्ययन करने का हमारा तरीक़ा मूलतः सैद्धान्तिक था—उन्हें त्रियेक, नरकाग्नि, प्राण इत्यादि के बारे में सत्य सिखाना। लेकिन ऐसा लगता है कि अब, लोगों के जीवन में इतनी सारी समस्याएँ और परेशानियाँ हैं कि हमें उन्हें सिखाना पड़ता है कि कैसे जीएँ।” ऐसा क्यों है?
१०. हमें क्यों चकित नहीं होना चाहिए कि १९१४ से मानव मामलों में नियमित विकृति हुई है?
१० “अन्तिम दिनों” के सम्बन्ध में बाइबल ने पूर्वबताया: “दुष्ट, और बहकानेवाले धोखा देते हुए, और धोखा खाते हुए, बिगड़ते चले जाएंगे।” (२ तीमुथियुस ३:१, १३) इसलिए, हमें चकित नहीं होना चाहिए कि १९१४ से, जब अन्त का समय शुरू हुआ, मानव मामलों में एक नियमित विकृति हुई है। शैतान, जिसका बाक़ी बचा समय अब बहुत कम है, अपना क्रोध मानव समाज पर पहले से कहीं ज़्यादा तीव्रता से उतार रहा है। (प्रकाशितवाक्य १२:९, १२) फलस्वरूप, आज की नीतियाँ और पारिवारिक मान्यताएँ उनसे बहुत भिन्न हैं जो मात्र ३० या ४० साल पहले थीं। सामान्य तौर पर लोग धार्मिक रूप से उतने प्रवृत्त नहीं हैं जितने कि पिछले दशकों में थे। अपराध इतना बढ़ गया है कि लोग ऐसी सावधानियाँ बरत रहे हैं जिनके बारे में मात्र २० या ३० साल पहले सुना भी नहीं गया था।—मत्ती २४:१२.
११. (क) लोगों के दिमाग़ों पर किस प्रकार के विषय होते हैं, और विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास वर्ग ने ज़रूरतों के प्रति कैसे प्रतिक्रिया दिखाई है? (ख) एक प्रहरीदुर्ग या अवेक! लेख का उदाहरण दीजिए जिसने आपके जीवन को प्रभावित किया है।
११ तो फिर, यह आश्चर्य की बात नहीं कि अनेक लोगों के दिमाग़ों पर भावात्मक, सामाजिक और पारिवारिक, विषय होते हैं। विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास वर्ग ने प्रहरीदुर्ग और अवेक! में ऐसे समयोचित लेख प्रकाशित करने के द्वारा साहसपूर्वक प्रतिक्रिया दिखाई है जिन्होंने लोगों की वास्तविक ज़रूरतों को सम्बोधित किया है और जिन्होंने सचमुच उनके जीवन प्रभावित किए हैं। कुछ उदाहरणों पर विचार कीजिए।
१२. (क) क्यों १९८० में प्रहरीदुर्ग के लिए एक-जनक परिवारों के बारे में लेख तैयार किए गए? (ख) एक बहन ने एक-जनक परिवारों पर लेखों के लिए अपना मूल्यांकन किस प्रकार व्यक्त किया?
१२ पारिवारिक समस्याएँ। जब विश्वव्यापी रिपोर्टों ने एक-जनक परिवारों की संख्या में तीव्र वृद्धि दिखाई, तब प्रहरीदुर्ग (अंग्रेज़ी में) सितम्बर १५, १९८० के अंक के लिए “एक-जनक परिवार—समस्याओं से निपटना” मूल-विषय पर असाधारण लेख तैयार किए गए। लेखों का दोहरा उद्देश्य था: (१) एक-जनकों को उनकी अनोखी समस्याओं से निपटने में मदद करना और (२) दूसरों को बेहतर जानकारी रखने में मदद करना ताकि वे एक-जनक परिवारों को “सहानुभूति” दिखा सकें और निष्कपटता से उनकी “सुधि” ले सकें। (१ पतरस ३:८, NW; याकूब १:२७) अनेक पाठकों ने लिखकर लेखों के लिए मूल्यांकन व्यक्त किया। “मुख-पृष्ठ देखकर मेरी आँखों में सचमुच आँसू आ गए,” एक एक-जनक ने लिखा, “और जब मैं ने पत्रिका खोली और जानकारी पढ़ी, तो ज़रूरत के समय ऐसी जानकारी प्रदान करने के लिए यहोवा के प्रति आभार से मेरा हृदय उमड़ने लगा।”
१३. हताशा की क्या गहरी चर्चा १९८१ में अवेक! में प्रकाशित की गई थी, और एक पाठक ने उसके बारे में क्या कहा?
१३ भावात्मक समस्याएँ। हताशा के विषय पर प्रहरीदुर्ग और अवेक! में १९६० के दशक से चर्चा की गई है। (१ थिस्सलुनीकियों ५:१४) लेकिन सितम्बर ८, १९८१, अवेक! में इस विषय पर आवरण-श्रृंखला “आप हताशा से लड़ सकते हैं!” में एक नई और सकारात्मक दृष्टि ली गई। जल्द ही संसारभर से वॉच टावर संस्था में मूल्यांकन के पत्रों की बरसात होने लगी। “मैं अपने हृदय की भावनाएँ काग़ज़ पर कैसे व्यक्त कर सकती हूँ?” एक बहन ने लिखा। “मैं २४ साल की हूँ, और पिछले दस सालों में, मैं अनेक बार हताशा की अवधियों से गुज़री हूँ। लेकिन अब मैं यहोवा के और नज़दीक महसूस करती हूँ और आभारी हूँ कि उसने इन प्रेममय लेखों से हताश लोगों की ज़रूरतों के प्रति प्रतिक्रिया दिखाई, और मैं आपको यह बताना चाहती थी।”
१४, १५. (क) हमारी पत्रिकाओं में बाल-दुर्व्यवहार के विषय को कैसे सम्बोधित किया गया है? (ख) आस्ट्रेलिया में घुड़दौड़ के एक घुड़सवार को पत्रिका के कौनसे लेखों ने प्रभावित किया?
१४ सामाजिक समस्याएँ। बाइबल ने पूर्वबताया कि “अन्तिम दिनों” में मनुष्य “अपस्वार्थी, . . . मयारहित, . . . असंयमी, कठोर, भले के बैरी” होते। (२ तीमुथियुस ३:१-३) इसलिए, हमें चकित नहीं होना चाहिए कि आज बड़े पैमाने पर बाल-दुर्व्यवहार का अभ्यास हो रहा है। इस विषय पर अक्तूबर १, १९८३ की प्रहरीदुर्ग (अंग्रेज़ी में) में “कौटुम्बिक व्यभिचार के शिकारों के लिए मदद” लेख में खुलकर चर्चा की गई थी। आठ साल बाद, अक्तूबर ८, १९९१, अवेक! में आवरण-श्रृंखला “बाल-दुर्व्यवहार के घाव भरना” ध्यानपूर्वक तैयार की गई थी, ताकि उत्पीड़ित जनों के लिए समझ और आशा प्रदान की जा सके और साथ ही दूसरों को प्रबुद्ध किया जा सके ताकि वे लाभकारी मदद दे सकें। लेखों की इस श्रृंखला ने हमारी पत्रिकाओं के इतिहास में पाठकों की सबसे ज़्यादा प्रतिक्रिया प्राप्त की। एक पाठक ने लिखा: “मेरे स्वास्थ्यलाभ पर सबसे ज़्यादा प्रभाव इन लेखों में दिए सांत्वनादायक विचारों और शास्त्रवचनीय हवालों का हुआ है। यह जानना कि यहोवा मुझे कम नहीं समझता है एक बहुत बड़ी राहत थी। यह जानना कि मैं अकेली नहीं हूँ उतना ही सांत्वनादायक था।”
१५ मेल्बर्न, आस्ट्रेलिया में घुड़दौड़ के एक घुड़सवार ने वॉच टावर सोसाइटी के सिडनी दफ़्तर को लंबी दूरी से फोन किया। उसने घुड़दौड़ के वातावरण पर अपनी घृणा व्यक्त की। उसने कहा कि उसने अभी-अभी “बलात्कार—एक स्त्री का दुःस्वप्न” पर मार्च ८ अवेक! (अँग्रेज़ी में) पढ़ा था। वह यह विश्वास नहीं कर सकता था कि ऐसी एक बहुमूल्य पत्रिका थी। उसने क़रीबन ३० मिनट तक सवाल पूछे और दिए हुए जवाबों को सुनकर ख़ुश हुआ।
१६. आप हमारी पत्रिकाओं के लिए अपना मूल्यांकन किन तरीक़ों से दिखा सकते हैं?
१६ आपके बारे में क्या? क्या आपका जीवन प्रहरीदुर्ग और अवेक! में प्रकाशित किसी ख़ास लेख से प्रभावित हुआ है? यदि हाँ, तो इसमें कोई संदेह नहीं कि आप हमारी पत्रिकाओं के प्रति आभार का गहरा भाव महसूस करते हैं। आप अपना मूल्यांकन कैसे दिखा सकते हैं? निश्चित ही हर अंक को स्वयं पढ़ने के द्वारा। आप इन मूल्यवान पत्रिकाओं को संभव विस्तृत वितरण देने में भी हिस्सा ले सकते हैं। यह कैसे किया जा सकता है?
उन्हें दूसरों के साथ बाँटिए!
१७. पत्रिका वितरण को बढ़ाने के लिए कलीसियाएँ क्या कर सकती हैं?
१७ पहले, कुछ है जो हर कलीसिया कर सकती है। ज्ञापक (Informant) (अब हमारी राज्य सेवकाई) के अक्तूबर १९५२ के अंक ने कहा: “पत्रिकाओं को वितरित करने का सबसे प्रभावकारी तरीक़ा है उन्हें घर-घर और दुकान-दुकान वितरित करना। अतः संस्था प्रोत्साहित करती है कि पत्रिका वितरण के ये क्षेत्र पत्रिका दिन कार्य के नियमित भाग होने चाहिए।” वह सलाह आज भी लागू होती है। कलीसियाएँ शायद एक नियमित पत्रिका दिन की तालिका बनाएँ, एक दिन जो मुख्यतः पत्रिका गवाही के लिए अलग रखा गया है। अधिकांश कलीसियाओं के लिए, सुनिश्चित शनिवार निःसंदेह अच्छा समय होंगे। जी हाँ, ऐसा हो कि हर कलीसिया घर-घर, दुकान-दुकान, सड़क कार्य में, और पत्रिका मार्ग पर पत्रिका गवाही के लिए ख़ास दिन या शाम अलग रखे। इसके अतिरिक्त, आप, राज्य प्रकाशक पत्रिका वितरण को बढ़ाने में मदद करने के लिए क्या कर सकते हैं?
१८, १९. (क) प्रहरीदुर्ग और अवेक! के प्रति सजग रहना कैसे आपको पत्रिकाएँ वितरित करने में मदद कर सकता है? (ख) पत्रिकाएँ प्रस्तुत करते समय एक संक्षिप्त, संगत प्रस्तुति का क्या लाभ है? (ग) क्या बात लोगों के घरों में पत्रिकाएँ पहुँचाने का मूल्य दिखाती है?
१८ “प्रहरीदुर्ग” और “अवेक!” के प्रति सजग रहना पहला क़दम है। पत्रिकाओं को समय से पहले पढ़िए। जब आप एक लेख पढ़ते हैं, अपने आप से पूछिए, ‘यह लेख किसकी दिलचस्पी का होगा?’ कुछ ऐसे शब्द सोचिए जो आप लेख में दिलचस्पी जगाने के लिए कह सकते हैं। नियमित पत्रिका दिन को समर्थन देने के अलावा, क्यों न अपने साथ कुछ प्रतियां रखें ताकि आप उन्हें दूसरों के साथ बाँटने के हर अवसर का लाभ उठा सकें—यात्रा या ख़रीदारी करते समय और सहकर्मियों, पड़ोसियों, सहपाठियों, या अध्यापकों के साथ बात करते समय?
१९ अपनी प्रस्तुति को सरल रखना दूसरा सुझाव है। दिसम्बर १, १९५६ की प्रहरीदुर्ग (अंग्रेज़ी में) ने कहा: “पत्रिकाएँ प्रस्तुत करते समय एक संक्षिप्त, संगत प्रस्तुति सर्वोत्तम है। लक्ष्य है बहुत प्रतियां वितरित करना। वे अपनी ‘बात’ अपने आप कर लेंगी।” कुछ प्रकाशकों ने एक लेख में से एक विचार चुन कर, उसे थोड़े शब्दों में डालकर, पत्रिकाओं को प्रस्तुत करना प्रभावकारी पाया है। एक बार घर में जाने के बाद, पत्रिकाएँ जिस व्यक्ति ने आपसे उन्हें स्वीकार किया उसके अलावा दूसरों से भी “बात” कर सकती हैं। आयरलैंड में विश्वविद्यालय की एक युवा छात्रा ने सितम्बर १, १९९१ का प्रहरीदुर्ग (अंग्रेज़ी में) अंक पढ़ा, जो उसके पिता ने एक गवाह से स्वीकार किया था। संचार और दूसरे विषयों पर लेखों ने उसकी दिलचस्पी जगाई। पत्रिका पढ़ने के तुरंत बाद, उसने फ़ोन पुस्तक में दी नम्बर सूची से नम्बर मिलाकर गवाहों को फ़ोन किया। जल्द ही एक बाइबल अध्ययन शुरू किया गया, और उस युवा स्त्री ने जुलाई १९९३ में “ईश्वरीय शिक्षा” ज़िला अधिवेशन में बपतिस्मा लिया। निश्चित ही, आइए पत्रिकाओं को घरों में पहुँचाएँ, जहाँ वे लोगों से “बात” कर सकती हैं! एक सफ़री अध्यक्ष ने एक और सरल सुझाव दिया: “अपने बस्ते से पत्रिकाएँ बाहर निकालिए।” सचमुच, यदि आप जो कहते हैं उससे गृहस्वामी की दिलचस्पी नहीं जागती, तो शायद उनके आकर्षक मुख-पृष्ठ चित्र आपके लिए पत्रिकाओं को वितरित कर दे।
२०, २१. (क) पत्रिका कार्य में हिस्सा लेते समय आप कैसे सुनम्य हो सकते हैं? (ख) हर महीने ज़्यादा पत्रिकाएँ वितरित करने के लिए आप क्या कर सकते हैं?
२० तीसरा सुझाव है सुनम्य बनिए। (१ कुरिन्थियों ९:१९-२३ से तुलना कीजिए.) कुछ संक्षिप्त प्रस्तुतियाँ तैयार कीजिए। मन में एक लेख रखिए जो पुरुषों को, दूसरा स्त्रियों को आकर्षक लगेगा। युवाओं के लिए, आप “युवा लोग पूछते हैं . . . ” लेख प्रस्तुत कर सकते हैं। आप कब पत्रिका कार्य में हिस्सा लेते हैं इस बारे में भी सुनम्य बनिए। पत्रिका दिन के अतिरिक्त, आप शायद पाएँ कि संध्या गवाही घर-घर पत्रिकाएँ प्रस्तुत करने का एक अत्युत्तम अवसर देती है।
२१ चौथा सुझाव है व्यक्तिगत लक्ष्य रखिए। अप्रैल १९८४ की हमारी राज्य सेवकाई के अंतःपत्र “पत्रिकाएँ जीवन का मार्ग दिखाती हैं” में कहा गया था: “सुझाव के तौर पर, मान लीजिए कि प्रकाशक हर महीने अपनी परिस्थितियों के अनुसार, १० पत्रिकाओं का लक्ष्य रखते हैं; पायनियर ९० का प्रयास कर सकते हैं। निश्चय ही, कुछ प्रकाशक हर महीने ज़्यादा पत्रिकाएँ वितरित करने में समर्थ हों और इसलिए एक ऊँचा व्यक्तिगत लक्ष्य रखेंगे। लेकिन, ख़राब स्वास्थ्य, क्षेत्र के प्रकार, या अन्य उचित कारणों से, दूसरों का लक्ष्य कुछ कम हो सकता है। फिर भी यहोवा के प्रति उनकी सेवा उतनी ही योग्य है। (मत्ती १३:२३; लूका २१:३, ४) महत्त्वपूर्ण बात यह है कि व्यक्तिगत लक्ष्य होना चाहिए।”
२२. किस तरीक़े से हम दिखा सकते हैं कि हम अपनी सत्य की समयोचित पत्रिकाओं के लिए यहोवा के आभारी हैं?
२२ हम कितने आभारी हैं कि यहोवा, “सत्यवादी ईश्वर” ने विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास वर्ग और उसके शासी निकाय को हमें ये समयोचित पत्रिकाएँ देने के लिए प्रयोग किया है! (भजन ३१:५) जब तक यहोवा की इच्छा है, ये पत्रिकाएँ लोगों की वास्तविक ज़रूरतों को सम्बोधित करेंगी। वे यहोवा के नैतिकता के उच्च स्तरों का समर्थन करती रहेंगी। वे सही सिद्धान्त को बढ़ावा देने से नहीं रुकेंगी। और वे भविष्यवाणी की पूर्ति की ओर ध्यान आकर्षित करने में लगी रहेंगी जो हमारे दिनों को उस समय के रूप में चिह्नित करती है जब परमेश्वर का राज्य शासन कर रहा है और पहले से कहीं ज़्यादा परमेश्वर की इच्छा पृथ्वी पर बढ़ती संख्या में यहोवा के सच्चे उपासकों द्वारा पूरी हो रही है। (मत्ती ६:१०; प्रकाशितवाक्य ११:१५) प्रहरीदुर्ग और अवेक! में हमारे पास क्या ही अमूल्य ख़ज़ाना है! आइए इन महत्त्वपूर्ण पत्रिकाओं को जो लोगों के जीवन प्रभावित करती हैं और राज्य सच्चाइयों का समर्थन करती हैं नम्र-हृदय लोगों के साथ हर अवसर पर बाँटने का लाभ उठाएँ।
[फुटनोट]
a जुलाई १५, १९९२, पृष्ठ १९-२२ (अंग्रेज़ी में).
b अनेक सालों तक प्रहरीदुर्ग को ख़ासकर अभिषिक्त मसीहियों की पत्रिका समझा जाता था। लेकिन १९३५ से शुरू होकर, “बड़ी भीड़” को, जिसकी आशा पृथ्वी पर अनन्तकालीन जीवन है, प्रहरीदुर्ग प्राप्त करने और पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करने पर अधिकाधिक ज़ोर दिया गया। (प्रकाशितवाक्य ७:९) कुछ साल बाद, १९४० में, प्रहरीदुर्ग नियमित रूप से सड़कों पर लोगों को प्रस्तुत की जाती थी। उसके बाद, वितरण तेज़ी से बढ़ गया।
आपका उत्तर क्या है?
▫ क्या बात दिखाती है कि प्रहरीदुर्ग और अवेक! सत्य की पत्रिकाएँ हैं?
▫ प्रहरीदुर्ग और अवेक! ने किस प्रकार लोगों के जीवन प्रभावित किए हैं?
▫ पत्रिका वितरण बढ़ाने के लिए कलीसियाएँ क्या कर सकती हैं?
▫ कौने से सुझाव ज़्यादा पत्रिकाएँ वितरित करने में आपकी मदद कर सकते हैं?
[पेज 18 पर बक्स]
कुछ लेख जिन्होंने लोगों के जीवन प्रभावित किए हैं
सालों के दौरान अनेक पाठकों ने प्रहरीदुर्ग और अवेक! में प्रकाशित ख़ास लेखों के लिए मूल्यांकन व्यक्त करने के लिए लिखा है। नीचे उन अनेक विषयों में से मात्र कुछ की सूची दी गई है जिन्होंने हमारे पाठकों को प्रभावित किया है। क्या इन या अन्य लेखों ने आपके जीवन को परिवर्तित किया है?
प्रहरीदुर्ग
“गुप्त ग़लतियों का सामना करने के लिए परमेश्वर की सहायता स्वीकार करना” (दिसम्बर १, १९८५)
“वृद्ध माता-पिता के प्रति परमेश्वरीय भक्ति दिखाना” (दिसम्बर १, १९८७)
“एक उद्देश्य सहित शिक्षा” (फरवरी १, १९९३)
अवेक!
“आप हताशा से लड़ सकते हैं!” (सितम्बर ८, १९८१)
“जब आपके किसी प्रिय जन की मृत्यु हो जाती है . . .” (अप्रैल २२, १९८५)
“अपने बच्चों का बचाव कीजिए!” (अक्तूबर ८, १९९३)
[पेज 19 पर तसवीर]
कनाडा में—पत्रिकाओं के साथ घर-घर प्रचार करना
[पेज 20 पर तसवीरें]
म्यानमार में—जीवन के मार्ग की ओर संकेत करनेवाली पत्रिकाओं को प्रस्तुत करना