वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • w94 6/1 पेज 3-4
  • धर्म में दिलचस्पी क्यों रखें?

इस भाग के लिए कोई वीडियो नहीं है।

माफ कीजिए, वीडियो डाउनलोड नहीं हो पा रहा है।

  • धर्म में दिलचस्पी क्यों रखें?
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1994
  • मिलते-जुलते लेख
  • क्यों धर्म को संजीदगी से लेना?
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1992
  • क्या आपको सही धर्म मिल गया है?
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1994
  • आप अपनी आध्यात्मिक ज़रूरतें कैसे पूरी कर सकते हैं
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2004
  • कैसे आप संभावित वार्तालाप रोधकों का जवाब दे सकते हैं
    किस तरह बाइबल चर्चाओं को आरंभ करें और जारी रखें
और देखिए
प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1994
w94 6/1 पेज 3-4

धर्म में दिलचस्पी क्यों रखें?

पूरी पृथ्वी के हर देश में धर्म में दिलचस्पी है। दूसरी ओर, ऐसे भी अनेक लोग हैं जो काफ़ी खुलकर कहते हैं कि उन्हें धर्म में कोई दिलचस्पी नहीं। लेकिन क्या वे हमेशा से ऐसा ही महसूस करते हैं?

मानव स्वभाव ऐसा है कि व्यक्‍ति केवल भौतिक वस्तुओं से ही वास्तव में संतुष्ट नहीं होता। मनुष्यों को आध्यात्मिकता की ज़रूरत है। मात्र भौतिक ज़रूरतों को ही प्राप्त करने के इर्द-गिर्द बना दिन-प्रति-दिन का अस्तित्व साथ ही कभी-कभार मनोरंजन की अवधियाँ व्यक्‍ति की अन्तरतम ज़रूरतों को पूरी तरह संतुष्ट नहीं करते। जानवरों से भिन्‍न, मनुष्य जानना चाहते हैं, ‘जीवन का उद्देश्‍य क्या है?’ ‘यह अल्पकालीन जीवन, जिसमें अनेक सुन्दर चीज़ें लेकिन अनेक भद्दी चीज़ें भी सम्मिलित हैं, क्या यही सब कुछ है?’ क्या आपने इस क़िस्म के प्रश्‍न नहीं पूछे?

फिर भी, आज जीवित लाखों लोग ऐसे वातावरण में बड़े हुए हैं जिसने धर्म में किसी भी अर्थपूर्ण दिलचस्पी को उत्साहित नहीं किया। यह प्रभाव शायद उनके माता-पिता, अध्यापकों, सहपाठियों, या यहाँ तक कि सरकार की ओर से आया हो।

अल्बानिया के एक युवक, स्कालाब्रीनो ने बताया कि साम्यवादी शासन के अधीन लोगों को सिखाया गया कि कोई परमेश्‍वर नहीं है। इसके अतिरिक्‍त, धर्म के बारे में बात करना उनके लिए ख़तरनाक था; ऐसा करने से क़ैद हो सकती थी। फिर भी, १९९१ में जब वह स्विट्‌ज़रलैंड में एक शरणार्थी था, उसे बाइबल का अध्ययन करने का अवसर दिया गया। उसने स्वीकार किया। क्यों?

अल्बानिया में उसने सुना था कि बाइबल नाम की एक पुस्तक है, लेकिन वास्तव में वह उसके बारे में कुछ भी नहीं जानता था। अतः, शुरू-शुरू में मुख्यतः बाइबल को समझने की इच्छा ने शायद उसे प्रेरित न किया हो। हालाँकि उसे बता दिया गया था कि वह मानवजाति और पृथ्वी के लिए परमेश्‍वर के उद्देश्‍य के बारे में अध्ययन करेगा, उसने इसे स्थानीय भाषा को अच्छी तरह सीखने के अवसर के रूप में भी देखा। लेकिन, जल्द ही उसे पता चला कि वह जो कुछ सीख रहा था उससे उसकी तीव्र आन्तरिक आध्यात्मिक लालसा को संतुष्टि मिल रही थी। उसे ख़ुशी और सुख मिला जब उसने एक ऐसे नए संसार की परमेश्‍वर की प्रतिज्ञा के बारे में सीखा जहाँ शान्ति का बोलबाला होगा। एक ऐसा संसार जिसमें लोग सर्वदा जीवित रह सकेंगे और जीवन के लिए ज़रूरी हर चीज़ की बहुतायत का आनन्द ले सकेंगे। उसकी दिलचस्पी और भी बढ़ गयी जब उसने सीखा कि वह और उसका परिवार इस नए संसार का भाग हो सकते हैं। वह सुसमाचार को अपने तक ही नहीं रख पाया, सो अपने परिवार को भी बताने के लिए उसने उन्हें अल्बानिया फ़ोन किया।

बाइबल के यथार्थ ज्ञान का एक व्यक्‍ति के जीवन पर जो प्रभाव पड़ सकता है उससे रूसवासी अल्यिकस्ये भी चकित था। समस्याओं से अभिभूत होकर और जीवन के उद्देश्‍य की एक संतोषजनक व्याख्या पाने में असमर्थ होने के कारण, उसने आत्महत्या करने की सोची। लेकिन, वह पहले फिनलैंड में एक मित्र से मिलने गया। मार्ग में, रेल में उसने अपनी समस्याओं के बारे में कुछ संगी यात्रियों से बात की। उनमें से एक यहोवा की गवाह थी, इस गवाह ने उससे आग्रह किया कि वह बाइबल का अध्ययन करे क्योंकि बाइबल ऐसी समस्याओं का समाधान देती है। उसे संदेह था। लौटते समय, उसके साथ समान अनुभव हुआ। इस बार एक दूसरी गवाह ने अपना विचार व्यक्‍त किया और उससे कहा कि उसे भी इसी क़िस्म की समस्याएँ हुआ करती थीं लेकिन बाइबल ने इनसे निपटने के लिए उसकी मदद की है। इस गवाह ने भी उसे बाइबल का अध्ययन करने का प्रोत्साहन दिया। जब वह घर पहुँचा तो फ़ोन की घंटी बजी। यह फ़ोन एक और सहेली का था जो गवाहों के साथ अध्ययन कर रही थी और बहुत ख़ुश थी। उसने महसूस करना शुरू किया कि शायद बाइबल सचमुच वह दे सके जिसकी उसे ज़रूरत थी, लेकिन वह जानता था कि मदद बिना वह इसे समझ नहीं सकता था। वह यहोवा के गवाहों के साथ एक नियमित गृह बाइबल अध्ययन के लिए राज़ी हो गया, और उसने उनकी सभाओं में भी उपस्थित होना शुरू कर दिया। उसे यह समझने में देर नहीं लगी कि क्यों वे लोग इतने ख़ुश हैं जो अपने जीवन को बाइबल की शिक्षाओं के अनुसार ढालते हैं, जबकि वे भी मनुष्यजाति पर सामान्य रूप से आनेवाली समस्याओं का सामना करते हैं।

मानव स्वभाव की अंतर्दृष्टि रखते हुए, यीशु मसीह ने कहा: “मनुष्य केवल रोटी पर ही जीवित नहीं रह सकता।” (मत्ती ४:४, द न्यू इंग्लिश बाइबल) उसने यह भी कहा: “ख़ुश हैं वे जो अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत के प्रति सचेत हैं।” (मत्ती ५:३, NW) उन्हें ख़ुशी मिलती है क्योंकि वे अपनी ज़रूरत के प्रति तीव्र रूप से अवगत हैं, परमेश्‍वर को संतुष्ट करने के लिए उचित क़दम उठाते हैं, और उसकी आशिषों का अनुभव करते हैं। लेकिन, हमारी आध्यात्मिक ज़रूरत मात्र एक गिरजे का सदस्य बनने से या कुछ धर्मक्रियाओं में उपस्थित होने से संतुष्ट नहीं होती। वह धर्म जो अधिकतर आनुष्ठानिक होता है एक व्यक्‍ति की भावनाओं को आकर्षित कर सकता है, लेकिन क्या वह जीवन की समस्याओं के वास्तविक समाधान प्रदान करता है? चाहे एक धर्म कुछ ठोस बुनियादी नियमों को बढ़ावा देता है, तो भी यदि वह जीवन के वास्तविक उद्देश्‍य के बारे में सही समझ प्रदान करने में असफल है, तो क्या वह आपकी आध्यात्मिक ज़रूरत को संतुष्ट करेगा? उससे भी बड़ी चिन्ता की बात है, क्या ऐसे धर्म का अभ्यास करना परमेश्‍वर के साथ एक अच्छा सम्बन्ध बनाने की ओर ले जाएगा? उसके बिना, सच्ची तृप्ति का अभाव होगा।

इस सम्बन्ध में अनेक लोग किसी चीज़ की खोज कर रहे हैं जो उन्हें अब तक नहीं मिली है।

[पेज 3 पर तसवीरें]

क्या एक गिरजे का सदस्य बनने से आपकी आध्यात्मिक ज़रूरतें सचमुच संतुष्ट होंगी?

[पेज 4 पर तसवीरें]

अनेक लोगों ने पाया है कि जब वे बाइबल को समझते हैं, तो जीवन एक नया अर्थ ले लेता है

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
    लॉग-आउट
    लॉग-इन
    • हिंदी
    • दूसरों को भेजें
    • पसंदीदा सेटिंग्स
    • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
    • इस्तेमाल की शर्तें
    • गोपनीयता नीति
    • गोपनीयता सेटिंग्स
    • JW.ORG
    • लॉग-इन
    दूसरों को भेजें