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पहाड़ जो “प्रेरित करता” है

आयरलैंड के पश्‍चिम भाग में, क्रोपैट्रिक की अनोखी शंकुरूप आकृति आस-पास के पहाड़ों से श्रेष्ठ दिखती है। हर साल, जुलाई के अन्तिम रविवार को, पहाड़ का शिखर चलता हुआ प्रतीत होता है जब हर उम्र के लगभग ३०,००० लोग, वार्षिक तीर्थयात्रा पर शिखर (७६५ मीटर) पर चढ़ते हैं।

इस दिन, तीर्थयात्री एक ऐसे मार्ग से चढ़ते और उतरते हैं जो पतला, ऊबड़-खाबड़, और कुछ जगहों पर ख़तरनाक है। वास्तव में, अन्तिम चढ़ाई (तक़रीबन ३०० मीटर) को तय करना अत्यधिक कठिन है जिसमें ज़्यादातर ढीले पत्थर हैं, अत: आरोहण ख़तरनाक साथ ही साथ थकानेवाला हो जाता है।

कुछ लोग नंगे पाँव यह आरोहण करेंगे और कुछ लोग कुछ दूर अपने घुटनों पर चढ़ेंगे। अतीत में, तीर्थयात्रा रात के अन्धेरे में शुरू होती थी।

इतने सारे लोगों के लिए क्रोपैट्रिक इतना महत्त्वपूर्ण अनुभव क्यों है?

तीर्थस्थल के रूप में काफ़ी समय से स्थापित

सामान्य युग पाँचवीं शताब्दी के प्रारंभिक भाग में, रोमन कैथोलिक चर्च ने पैट्रिक को मिशनरी बिशप के तौर पर आयरलैंड भेजा। उसका मुख्य लक्ष्य था आयरलैंड के लोगों को मसीहियत में परिवर्तित करना। और पैट्रिक को लोगों के मध्य अपने प्रचार और कार्य करने के सालों के दौरान, कैथोलिक चर्च की बुनियाद को वहाँ डालने का श्रेय दिया जाता है।

उसके कार्य ने उसे पूरे देश में अनेक स्थानों पर जाने के लिए प्रेरित किया। एक स्थान आयरलैंड का पश्‍चिम भाग था जहाँ, कुछ स्रोतों के मुताबिक़, उसने एक ऐसे पहाड़ के शिखर पर ४० दिन और रात बितायीं जिसका नाम उसके नाम पर रखा गया—क्रोपैट्रिक (अर्थात्‌ “पैट्रिक का पहाड़”)। वहाँ उसने अपने कार्य की सफलता के लिए उपवास और प्रार्थना की।

सालों के बीतने पर उसके कारनामों के बारे में अनेक कल्पकथाएँ विकसित हुई हैं। उनमें से एक सबसे प्रसिद्ध कल्पकथा यह है कि जब वह उस पहाड़ पर था, तब पैट्रिक ने आयरलैंड से सब साँपों को निकाल दिया।

परम्परा दावा करती है कि उसने शिखर पर एक छोटा-सा गिरजा बनाया। हालाँकि वह इमारत वहाँ काफ़ी समय से नहीं है, प्रारंभिक बुनियाद अब भी मौजूद है, और वह स्थल साथ ही साथ वह पहाड़ सालों से तीर्थस्थल रहा है।

तीर्थयात्रा की विशेषताएँ

एक वृद्ध व्यक्‍ति या एक ऐसे व्यक्‍ति के लिए जो पहाड़ चढ़ने का आदी नहीं है, ५-किलोमीटर के ये लम्बे आरोहण और अवरोहण को केवल कुशलपूर्वक पूरा करना ही अपने आप में एक उपलब्धि है।

मार्ग में महत्त्व की जगहों पर, तरह-तरह के चोटों का उपचार करने के लिए आपाती दल तैयार खड़े रहते हैं।

मार्ग में तीन स्थान, या ठिकाने हैं जहाँ तीर्थयात्री विभिन्‍न पश्‍चातापी साधना करते हैं। आरोहण की शुरूआत में सूचना-पट्ट पर इन्हें पूरी तरह से समझाया गया है। —बक्स देखिए।

वे क्यों चढ़ते हैं?

अनेक लोग यह कठिन तीर्थयात्रा क्यों करते हैं? जब वे आरोहण करते हैं तो कुछ लोग इतने हद तक क्यों जाते हैं?

कुछ लोग विश्‍वास करते हैं कि तीर्थयात्रा के दौरान प्रार्थना करने से, व्यक्‍तिगत लाभों के लिए उनकी गुज़ारिशों के सुने जाने की ज़्यादा संभावना है। दूसरे लोग किसी पाप की क्षमा के लक्ष्य से ऐसा करते हैं। अन्य लोगों के लिए, यह आभार व्यक्‍त करने का एक तरीक़ा है। निश्‍चय ही, अनेक लोग तीर्थयात्रा के आमोद-प्रमोद के लिए जाते हैं। एक अधिकारी ने टिप्पणी की कि यह ‘सामुदायिक भावना और प्रेम की अभिव्यक्‍ति’ है। उसने यह भी कहा कि क्रोपैट्रिक पर चढ़ना “सन्त पैट्रिक के पदचिन्हों पर चलने का और अपने विश्‍वास के लिए वे उसके ऋणी हैं, यह स्वीकारने का उनका तरीक़ा है।” उसने आगे कहा कि सबसे महत्त्वपूर्ण, आरोहण “प्रायश्‍चित्त का एक तरीक़ा है क्योंकि इसमें सम्मिलित शारीरिक परिश्रम एक वास्तविक पश्‍चातापी साधना है। शिखर तक का धीमा आरोहण पछतावे का एक लम्बा कृत्य है।”

एक व्यक्‍ति ने गौरव से कहा कि वह २५ बार चढ़ा है! उसने कहा कि उसने “थोड़ा पश्‍चाताप करने” के लिए ऐसा किया! एक दूसरे व्यक्‍ति ने सरलता से समझाया, “सेवा बिना मेवा नहीं!”

हालाँकि यह अनिवार्य नहीं है, अनेक लोग पहाड़ पर नंगे पाँव चढ़ते हैं। वे ऐसा क्यों करते हैं? पहला, वे ज़मीन को “पवित्र” समझते हैं और इसलिए अपने जूते निकाल देते हैं। दूसरा, यह “थोड़ा पश्‍चाताप करने” के उनके लक्ष्य के सामंजस्य में है। यह इसे भी स्पष्ट करता है कि कुछ लोग ठिकानों के विभिन्‍न पश्‍चातापी साधनाओं को अपने घुटनों के बल भी क्यों करते हैं।

सृष्टिकर्ता का मूल्यांकन करने के लिए प्रेरित

लेकिन तब क्या जब एक व्यक्‍ति तीर्थयात्रियों की, जो एक ख़ास दिन को चढ़ते हैं, धार्मिक भावनाओं में भागी नहीं होता है? अच्छे मौसम और एक जोड़ी मज़बूत जूतों के साथ, पहाड़ पर किसी भी वक़्त चढ़ा जा सकता है। हम उस दिन नहीं चढ़े जब तीर्थयात्रियों की एक गतिमान्‌ भीड़ आरोहण कर रही थी। हर थोड़ी देर के बाद विश्राम करने के हमारे अंतरालों के दौरान, हम आरोहण पर और इतने लोगों पर उसका जो प्रभाव रहा है, उस पर विचार करने में समर्थ हुए। हज़ारों तीर्थयात्रियों को इस कठिन आरोहण और विभिन्‍न पश्‍चातापी साधना करते हुए कल्पना करना ने हमें सोचने के लिए प्रेरित किया, ‘क्या परमेश्‍वर इसी की माँग करता है? क्या प्रार्थनाओं को बारंबार दोहराते हुए आरोहण करना या कुछ स्मारकों के चारों ओर चक्कर लगाने की धर्मविधि वास्तव में किसी व्यक्‍ति को परमेश्‍वर के ज़्यादा नज़दीक ला सकती है?’ बारंबार दोहरायी जानेवाली प्रार्थनाओं पर मत्ती ६: ६, ७ में दी गयी यीशु की सलाह के बारे में क्या?

निश्‍चय ही, हम धार्मिक अनुभव पाने के लिए पहाड़ पर नहीं चढ़े। फिर भी, हमने वाक़ई ख़ुद को अपने सृष्टिकर्ता के ज़्यादा क़रीब महसूस किया क्योंकि हम उसकी सृष्टि, अर्थात्‌ पहाड़ों का मूल्यांकन कर सके, जो कि किसी भी जगह पृथ्वी की अद्‌भुत वस्तुओं का भाग हैं। शिखर पर से हम खूबसूरत भू-दृश्‍य के स्पष्ट नज़ारे का आनन्द उठाने में समर्थ हुए। यहाँ तक कि हमने वह जगह भी देखी जहाँ अटलांटिक महासागर का ज़मीन से मिलन होता है। एक तरफ़ की हमारी नीचे की खाड़ी में झिलमिलाते हुए छोटे द्वीप दूसरी तरफ़ के ऊबड़-खाबड़ और बाँझ पहाड़ी इलाक़े की स्पष्ट विषमता में थे।

हमने तीनों ठिकानों के बारे में सोचा। स्वयं यीशु के शब्द मन में आए जब उसने अपने सच्चे अनुयायियों को बताया: “प्रार्थना करते समय अन्यजातियों की नाईं बक बक न करो; क्योंकि वे समझते हैं कि उनके बहुत बोलने से उन की सुनी जाएगी।” —मत्ती ६: ७.

हमने समझ लिया कि यह पहाड़ एक ऐसी परम्परा का अंश बन चुका था जिसने हज़ारों लोगों को परिश्रमी धर्मविधि में बान्ध दिया है। हमने विचार किया कि यह कैसे प्रेरित यूहन्‍ना द्वारा कही गयी स्वतंत्रता की विषमता में था, जब उसने कहा: “हम [परमेश्‍वर] की आज्ञाओं को मानें; और उस की आज्ञाएं कठिन नहीं।” —१ यूहन्‍ना ५: ३.

हमने अपनी सैर का आनन्द उठाया, जिसमें क्रोपैट्रिक पर आरोहण सम्मिलित था। इसने हमें उस समय की उत्सुकता से प्रत्याशा करने के लिए प्रेरित किया जब सारी मानवजाति ग़ैर-बाइबलीय परम्पराओं से मुक्‍त हो जाएगी और पृथ्वी के प्रेममय सृष्टिकर्ता की उपासना “आत्मा और सच्चाई से” करने में समर्थ होगी। —यूहन्‍ना ४: २४.

[पेज 27 पर बक्स]

तीर्थयात्रा की मुख्य विशेषताएँ

हर तीर्थयात्री जो सन्त पैट्रिक के दिन या अठवारे के अन्दर, या जून, जुलाई, अगस्त और सितम्बर के महीनों के दौरान किसी भी समय पहाड़ पर चढ़ता है, और प्रार्थनालय में या उसके क़रीब पोप के उद्देश्‍यों के लिए प्रार्थना करता है, उसे पूर्ण दण्डमोचन प्राप्त हो सकता है। लेकिन इस शर्त पर कि वह शिखर पर या सप्ताह के अन्दर पाप-स्वीकृति करने और होली कम्यूनियन के लिए जाए।

पारम्परिक ठिकाने

तीन “ठिकाने” हैं (१) शंकु या ल्येक्ट बॆनॉन के नीचे, (२) शिखर पर, (३) रलिग म्वरी पर, जो कुछ दूर पहाड़ से लेकेनवी [एक नगर] भाग में है।

पहला ठिकाना - ल्येक्ट बॆनॉन

तीर्थयात्री पत्थरों के टीले के चारों तरफ़ ७ हमारे पिता, ७ हेल मेरी और एक धर्मसार कहते हुए सात बार चक्कर लगाता है।

दूसरा ठिकाना - शिखर

(क) तीर्थयात्री घुटनों के बल बैठता है और ७ हमारे पिता, ७ हेल मेरी और एक धर्मसार कहता है।

(ख) तीर्थयात्री प्रार्थनालय के क़रीब पोप के उद्देश्‍यों के लिए प्रार्थना करता है।

(ग) तीर्थयात्री प्रार्थनालय के चारों तरफ़ १५ हमारे पिता, १५ हेल मेरी और एक धर्मसार कहते हुए १५ बार चक्कर लगाता है।

(घ) तीर्थयात्री ल्येबा फॉरिग [पैट्रिक के बिस्तर] के चारों तरफ़ ७ हमारे पिता, ७ हेल मेरी और एक धर्मसार कहते हुए ७ बार चक्कर लगाता है।

तीसरा ठिकाना - रलिग म्वरी

तीर्थयात्री पत्थरों के प्रत्येक टीले [तीन टीले हैं] के चारों तरफ़ ७ हमारे पिता, ७ हेल मेरी और एक धर्मसार कहते हुए ७ बार चक्कर लगाता है और अंतत: रलिग म्वरी के पूरे घिराव के चारों तरफ़ प्रार्थना करते हुए ७ बार जाता है।

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