क्या ये वास्तव में अन्तिम दिन हैं?
आप एक डोंगी के सिरे पर हैं जब वह नदी के एक प्रचण्ड भाग में प्रवेश करती है। झाग और फुहार की धाराओं से बड़े-बड़े गोलाश्म उभरते हैं। आप उनसे दूर हटने की कोशिश करते हैं। आपके पीछे बैठे व्यक्ति को जलयान को चलाने में मदद करनी चाहिए, लेकिन उसे ज़्यादा अनुभव नहीं है। इससे भी बदतर, आपके पास कोई नक़्शा नहीं है, सो आपको कोई अंदाज़ा नहीं है कि क्या इन उत्प्रवणों का अन्त एक शान्त पोखरे में होगा या एक जलप्रपात में।
एक सुखद नज़ारा नहीं है, है ना? सो आइए हम इसे बदल देते हैं। मान लीजिए कि आपके साथ एक अनुभवी मार्गदर्शक है, एक ऐसा व्यक्ति जो इस नदी की हर चट्टान, हर मोड़ से वाक़िफ़ है। वह पहले ही जानता था कि यह झागदार जल आगे ही था, वह जानता है कि यह जल कहाँ जाएगा, और वह जानता है कि इसके बीच से अपना रास्ता कैसे निकालना है। क्या आप कहीं ज़्यादा सुरक्षित महसूस नहीं करते?
वास्तव में, हम सभी एक समान दुर्दशा में हैं। अपनी किसी ग़लती के कारण तो नहीं, फिर भी हम अपने आपको मानव इतिहास के कष्टप्रद काल में पाते हैं। अधिकांश लोगों को कोई अंदाज़ा नहीं है कि और कितने समय तक स्थिति ऐसी ही रहेगी, क्या स्थिति सुधरेगी या नहीं, या इस दरमियान बचे रहने के लिए सबसे अच्छा क्या होगा। लेकिन हमें खोया-खोया या असहाय महसूस करने की ज़रूरत नहीं है। हमारे सृष्टिकर्ता ने हमें एक मार्गदर्शक प्रदान किया है—ऐसा जिसने इतिहास की इस अन्धकारपूर्ण अवधि के बारे में पूर्वबताया है, और यह पूर्वबताता है कि इसका अन्त कैसा होगा, और बच निकलने के लिए हमें वह ज़रूरी मार्गदर्शन देता है। वह मार्गदर्शक है एक पुस्तक, बाइबल। इसका लेखक, यहोवा परमेश्वर, ख़ुद को महान उपदेशक कहता है, और यशायाह के ज़रिए वह आश्वासन देता है: “जब कभी तुम दहिनी वा बाई ओर मुड़ने लगो, तब तुम्हारे पीछे से यह वचन तुम्हारे कानों में पड़ेगा, मार्ग यही है, इसी पर चलो।” (यशायाह ३०:२०, २१) क्या आप ऐसे मार्गदर्शन का स्वागत करेंगे? तब आइए हम ग़ौर करें कि क्या बाइबल ने वास्तव में पूर्वबताया कि हमारे दिन कैसे होते।
यीशु के अनुयायी एक अर्थपूर्ण सवाल करते हैं
यीशु के अनुयायी चकित हुए होंगे। यीशु ने अभी-अभी उनसे स्पष्ट रूप से कहा था कि यरूशलेम के प्रभावशाली मन्दिर के भवन पूरी तरह से तहस-नहस कर दिए जाएँगे! ऐसा एक भविष्यकथन आश्चर्यकर था। उसके कुछ समय बाद, जब वे जैतून पहाड़ पर बैठे थे, चार शिष्यों ने यीशु से पूछा: “हमें बता, ये बातें कब होंगी, और तेरी उपस्थिति का और इस रीति-व्यवस्था की समाप्ति का क्या चिन्ह होगा?” (मत्ती २४:३, NW; मरकुस १३:१-४) चाहे उन्होंने इसे समझा हो या नहीं, यीशु के जवाब में बहु-अनुप्रयोग होता।
यरूशलेम के मन्दिर का नाश और यहूदी रीति-व्यवस्था की समाप्ति का समय, मसीह की उपस्थिति और सारे संसार की रीति-व्यवस्था की समाप्ति का समय, दोनों समान नहीं थे। फिर भी, अपने लम्बे जवाब में, यीशु ने कुशलता से सवाल के इन सभी पहलुओं को सम्बोधित किया। उसने उन्हें बताया कि यरूशलेम के नाश से पहले स्थिति कैसी होती; उसने उन्हें यह भी बताया कि उसकी उपस्थिति के दौरान संसार की स्थिति के बारे में क्या उम्मीद रख सकते हैं, जब वह स्वर्ग में राजा के तौर पर शासन करता और संसार की सम्पूर्ण रीति-व्यवस्था को उसकी समाप्ति पर लाने की दहलीज़ पर होता।
यरूशलेम का अन्त
सबसे पहले ग़ौर कीजिए कि यीशु ने यरूशलेम और उसके मन्दिर के बारे में क्या कहा। तीन से भी ज़्यादा दशकों पहले से, उसने संसार के एक सबसे बड़े शहर के लिए भयानक कठिनाइयों के समय के बारे में पूर्वबताया। ख़ासकर लूका २१:२०, २१ में अभिलिखित किए गए उसके शब्दों पर ध्यान दीजिए: “जब तुम यरूशलेम को सेनाओं से घिरा हुआ देखो, तो जान लेना कि उसका उजड़ जाना निकट है। तब जो यहूदिया में हों वह पहाड़ों पर भाग जाएं, और जो यरूशलेम के भीतर हों वे बाहर निकल जाएं; और जो गांवों में हों वे उस में न जाएं।” यदि यरूशलेम को चारों ओर से डेरा डाली हुई सेनाओं द्वारा घेरा जाना था, तो ‘जो उसके भीतर हैं’ वे कैसे यूँ ही “बाहर निकल” सकते थे, जैसे यीशु ने आदेश दिया था? स्पष्ट रूप से, यीशु यह सूचित कर रहा था कि मौक़े का द्वार ज़रूर खुलता। क्या ऐसा हुआ?
सामान्य युग ६६ में, सॆस्टिअस गैलस के आदेश पर रोमी सेना ने यहूदी विद्रोही दलों को पछाड़कर वापस यरूशलेम भेज दिया और उन्हें शहर के भीतर फँसाए रखा था। यहाँ तक कि शहर के अन्दर रोमी जबरन घुस गए और मन्दिर की दीवार तक पहुँच गए। लेकिन फिर गैलस ने अपनी सेना को कुछ ऐसा काम करने का निर्देशन दिया जो वास्तव में चकरानेवाला था। उसने उन्हें पीछे हटने के लिए कहा! उल्लसित यहूदी सैनिक पलायन कर रहे रोमी दुश्मनों के पीछे पड़ गए और उनको हानि पहुँचायी। इस प्रकार, यीशु द्वारा पूर्वबताया गया मौक़े का द्वार खुल गया। सच्चे मसीहियों ने उसकी चेतावनी पर ध्यान दिया और यरूशलेम से भाग निकले। यह बुद्धिमान फ़ैसला था, क्योंकि मात्र चार सालों के बाद, रोमी सेना जनरल टाइटस के नेतृत्व में वापस आ गयी। इस बार बच निकलना बिलकुल मुमकिन नहीं था।
रोमी सेना ने एक बार फिर यरूशलेम को घेरा; उन्होंने उसके चारों ओर नुकीले खूँटों से एक क़िलेबन्दी की। यीशु ने यरूशलेम के सम्बन्ध में भविष्यवाणी की थी: “वे दिन तुझ पर आएंगे, कि तेरे बैरी मोर्चा बान्धकर तुझे घेर लेंगे, और चारों ओर से तुझे दबाएंगे।”a (लूका १९:४३) जल्द ही, यरूशलेम पराजित हो गया; उसका शानदार मन्दिर सुलगता खण्डहर बनकर रह गया था। यीशु के शब्द हर बारीकी में पूरे हुए थे!
लेकिन, यीशु के मन में यरूशलेम के विनाश से बढ़कर कुछ और था। उसके शिष्यों ने उससे उसकी उपस्थिति के चिन्ह के बारे में भी पूछा था। उस समय उनको यह नहीं मालूम था, लेकिन इसने एक ऐसे समय की ओर सूचित किया जब वह स्वर्ग में राजा के तौर पर शासन करने के लिए नियुक्त किया जाता। उसने क्या पूर्वबताया था?
अन्तिम दिनों में युद्ध
यदि आप मत्ती अध्याय २४ और २५, मरकुस अध्याय १३, और लूका अध्याय २१ पढ़ेंगे, तो आप सुस्पष्ट प्रमाण पाएँगे कि यीशु हमारे अपने युग के बारे में बात कर रहा था। उसने युद्ध के समय के बारे में पूर्वबताया—न केवल “लड़ाइयों और लड़ाइयों की चर्चा” जिसने मानव इतिहास को हमेशा कलंकित किया है, बल्कि ऐसे युद्ध जिनमें ‘जाति के विरुद्ध जाति, और राज्य के विरुद्ध राज्य’ शामिल होंगे—जी हाँ, बड़े-बड़े अन्तरराष्ट्रीय युद्ध।—मत्ती २४:६-८.
क्षणभर के लिए सोचिए कि हमारी शताब्दी में युद्ध कैसे बदल गए हैं। युद्ध का जब महज़ अर्थ दो विरोधी राष्ट्रों का प्रतिनिधित्व कर रही सेनाओं में भिड़न्त, रणभूमि में एक दूसरे को तलवारों से काट डालना या यहाँ तक कि गोलियाँ चलाना हुआ करता था, तब ही यह काफ़ी भयंकर था। लेकिन १९१४ में एक महा युद्ध छिड़ गया। एक प्रतिक्रिया प्रभाव [डोमिनो इफ़ेक्ट] में—पहला विश्व युद्ध—संघर्ष में एक के बाद एक राष्ट्र शामिल होते चले गए। ऐसे स्वचालित शस्त्र बनाए गए थे जो ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को और ज़्यादा लम्बी दूरी से लोगों को मार सके। मशीन गनों ने निष्ठुर कुशलता से गोलियाँ उगलीं; मस्टर्ड गैस ने हज़ारों की तादाद में लोगों को जलाया, उत्पीड़ित किया, अशक्त किया, और राख कर दिया; अपने बड़े-बड़े तोपों से शोले उगलते हुए टैंक दुश्मनों की टुकड़ियों के बीच से संगदिली से बढ़ते चले गए। हवाई जहाज़ और पनडुब्बी भी मैदान में कूद पड़े—जो कि भविष्य में जो बननेवाला था उसका मात्र अग्रदूत थे।
दूसरा विश्व युद्ध मानव कल्पना को भी पार कर गया—उसने असल में अपने पूर्ववर्ती को भी बौना दिखा दिया, और बीसियों करोड़ लोगों को मार डाला। तैरते शहरों के माफ़िक़ बड़े-बड़े विमान-वाहक, समुद्रों में लगातार आते-जाते रहे और उन्होंने लड़ाकू-विमान छोड़े ताकि वे शत्रुओं पर आसमान से मौत बरसाएँ। पनडुब्बियों ने टॉरपीडो छोड़े और दुश्मन के पोतों को जलसमाधि दी। और परमाणु बम गिराए गए, जिनके हर घातक वार ने हज़ारों जानें लीं! ठीक जिस तरह से यीशु ने भविष्यवाणी की थी, इस युद्ध-ग्रस्त युग को चिन्हित करने के लिए सचमुच “भयंकर बातें” रही हैं।—लूका २१:११.
क्या दूसरे विश्व युद्ध के बाद से युद्ध कम हुए हैं? शायद ही। कभी-कभी शाब्दिक तौर पर एक ही साल के दौरान दर्जनों युद्ध हुए हैं—१९९० के इस दशक में भी—जिसकी वजह से मृत्यु-संख्या लाखों में गयी है। और युद्ध के प्रमुख शिकारों में एक परिवर्तन हुआ है। अब मृतक मुख्यतः सैनिक ही नहीं होते हैं। आज, युद्ध के अधिकांश हताहत—दरअसल, उनमें से ९० से भी ज़्यादा प्रतिशत जन—आम जनता होती है।
चिन्ह की दूसरी विशिष्टताएँ
यीशु ने जिस चिन्ह का ज़िक्र किया था, युद्ध उसका केवल एक पहलू है। उसने यह भी चिताया कि “अकाल” होंगे। (मत्ती २४:७) और ऐसा ही हुआ है, हालाँकि दूसरी ओर से देखें तो पृथ्वी सारी मानवजाति को पोषित करने के लिए जितनी ज़रूरत है, उससे ज़्यादा भोजन उत्पन्न करती है, मानव इतिहास में कृषि-विज्ञान पहले से कहीं ज़्यादा विकसित है, और संसार के किसी भी कोने में भोजन पहुँचाने के लिए तेज़ और कुशल यातायात उपलब्ध है। इन सब के बावजूद, संसार की आबादी का तक़रीबन पाँचवाँ भाग हर रोज़ भूखा रहता है।
यीशु ने यह भी पूर्वबताया कि ‘जगह जगह मरियां’ पड़ेंगी। (लूका २१:११) फिर से, हमारे युग ने एक अजीब विरोधाभास देखा है—पहले से कहीं बेहतर चिकित्सीय देखरेख, तक़नीकी उद्भव, अनेक आम बीमारियों की रोक-थाम करने के लिए टीके; फिर भी घातक बीमारियों ने भी अपूर्व क़दम बढ़ाए हैं। पहले विश्व युद्ध के तुरंत बाद स्पैनिश इन्फ्लूएन्ज़ा हुआ और इसने युद्ध से भी ज़्यादा लोगों की जानें लीं। यह रोग इतना संक्रामक था कि न्यू यॉर्क जैसे शहरों में, लोगों को मात्र छींकने के लिए जुर्माना देना पड़ सकता या जेल में डाला जा सकता था! आज, हर साल कैन्सर और हृदयरोग से लाखों जानें जाती हैं—वास्तविक महामारियाँ। और एडस् की वजह से लोगों की जान जानी जारी है, ऐसा रोग जिसका कोई निदान चिकित्सीय विज्ञान के पास नहीं है।
जबकि यीशु ने अन्तिम दिनों की चर्चा मुख्यतः व्यापक ऐतिहासिक और राजनैतिक स्थितियों के सम्बन्ध में की, प्रेरित पौलुस ने सामाजिक समस्याओं और मौजूदा मनोवृत्तियों पर ज़्यादा ध्यान केन्द्रित किया। उसने अंशतः लिखा: “यह जान रख, कि अन्तिम दिनों में कठिन समय आएंगे। क्योंकि मनुष्य अपस्वार्थी, . . . अपवित्र। मयारहित, क्षमारहित, . . . असंयमी, कठोर, भले के बैरी। विश्वासघाती, ढीठ, घमण्डी, और परमेश्वर के नहीं बरन सुखविलास ही के चाहनेवाले होंगे।”—२ तीमुथियुस ३:१-५.
क्या ये शब्द आपको परिचित लगते हैं? आज के संसार में सामाजिक क्षय के मात्र एक पहलू पर ग़ौर फ़रमाएँ—परिवार का विघटन। विभाजित घर, मारे-पीटे गए पति-पत्नी, दुर्व्यवहार किए गए बच्चे, और अत्याचार से पीड़ित बुज़ुर्ग माता-पिताओं की भरमार—ये वाक़ई दिखाते हैं कि लोग “मयारहित” हैं, “कठोर” हैं, और यहाँ तक कि “विश्वासघाती,” “भले के बैरी” हैं! जी हाँ, हम ये लक्षण आज एक व्यापक स्तर पर देखते हैं।
क्या पूर्वबतायी गयी पीढ़ी हमारी ही पीढ़ी है?
लेकिन आप शायद सोचें, ‘क्या ये परिस्थितियाँ मानवजाति को हमेशा से पीड़ित नहीं करती आई हैं? हम कैसे जानते हैं कि हमारी आधुनिक पीढ़ी वही पीढ़ी है जिसके बारे में इन प्राचीन भविष्यवाणियों में पूर्वबताया गया था?’ आइए हम प्रमाण के तीन पहलुओं पर ग़ौर फ़रमाएँ जो साबित करते हैं कि यीशु हमारे समय के बारे में बात कर रहा था।
पहला, जबकि यरूशलेम और उसके मन्दिर के नाश में एक आंशिक, प्रारम्भिक पूर्ति हुई थी, यीशु के शब्दों ने निश्चित रूप से भविष्य में, उस दिन से भी आगे की ओर इंगित किया। यरूशलेम को नाश करनेवाली उस तबाही के लगभग ३० साल बाद, यीशु ने बुज़ुर्ग प्रेरित यूहन्ना को एक दर्शन दिखाया कि भविष्यवाणी में बतायी गयी परिस्थितियाँ—युद्ध, अकाल, महामारी, और परिणामी मृत्यु—भविष्य में विश्वव्यापी रूप से होनी थीं। जी हाँ, ये विपत्तियाँ केवल एक स्थान पर नहीं, बल्कि सम्पूर्ण “पृथ्वी” पर होतीं।—प्रकाशितवाक्य ६:२-८.
दूसरा, इस शताब्दी में यीशु के चिन्ह के कुछ पहलू अपनी पूरी हद तक पूरे हो रहे हैं। मिसाल के तौर पर, क्या युद्धों का इससे भी ज़्यादा बदतर हो जाने की कोई संभावना है जितनी बदतर वे १९१४ से हुए हैं? आज के सारे परमाणु शक्तिवाले देशों द्वारा अपने शस्त्रों के प्रयोग के साथ यदि तीसरा विश्व युद्ध होता, तो इसके परिणाम के तौर पर हम इस पृथ्वी को संभवतः एक झुलसे हुए अपशेष के रूप में पाते—और मानवजाति ऐसे विलुप्त हो जाती जैसे गधे के सिर से सींग। उसी तरह, प्रकाशितवाक्य ११:१८ ने पूर्वबताया कि इन दिनों में जब जातियाँ ‘क्रोधित’ होंगी, तब मानवजाति ‘पृथ्वी को बिगाड़’ रही होगी। इतिहास में पहली बार, प्रदूषण और पर्यावरण का अधःपतन अब इस ग्रह की ही निवास्यता के लिए ख़तरा बने हैं! सो यह पहलू भी अपनी पूरी हद में पूर्ति देख रहा है। या इसकी क़रीब-क़रीब पूर्ति होने पर है। क्या युद्ध और प्रदूषण वास्तव में बिगड़ते जाएँगे जब तक कि मनुष्य ख़ुद को और इस ग्रह को नाश न कर ले? जी नहीं; क्योंकि बाइबल ख़ुद आदेश देती है कि पृथ्वी सदा-सर्वदा के लिए रहेगी, और इसमें सत्हृदयी मनुष्य जीएँगे।—भजन ३७:२९; मत्ती ५:५.
तीसरा, अन्तिम दिनों का चिन्ह ख़ासकर विश्वासोत्पादक है जब इसे समस्त रूप से लिया जाता है। सब कुछ मद्देनज़र रखते हुए, जब हम उन विशिष्टताओं को ध्यान में रखते हैं जिनका यीशु ने तीन सुसमाचार-पुस्तकों में ज़िक्र किया, जिन्हें हम पौलुस के लेखनों में, और प्रकाशितवाक्य में पाते हैं, तब इस चिन्ह की दर्जनों विशिष्टताएँ हैं। व्यक्ति शायद एक-एक करके इनकी नुकता-चीनी करेगा, यह तर्क करेगा कि दूसरे युगों ने भी समान समस्याएँ देखी हैं, लेकिन जब हम उन सब पर एकसाथ विचार करते हैं, तब वे केवल एक युग की ओर अचूक रूप से इशारा करती हैं—हमारा युग।
लेकिन, इस सब का क्या अर्थ है? यही कि बाइबल बस हमारे युग की एक विवश, आशाहीन समय के तौर पर तसवीर खींचती है? बिलकुल नहीं!
सुसमाचार
अन्तिम दिनों के चिन्ह की एक सबसे उल्लेखनीय विशिष्टता मत्ती २४:१४ में अभिलिखित की गयी है: “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।” इस शताब्दी में, यहोवा के साक्षियों ने एक ऐसा कार्य निष्पन्न किया है जो मानव इतिहास में अनोखा है। उन्होंने यहोवा परमेश्वर के राज्य के बारे में—यह क्या है, यह कैसे शासन करता है, और यह क्या निष्पन्न करेगा—बाइबल के संदेश को स्वीकारा है और पूरी पृथ्वी में इस संदेश को फैलाया है। उन्होंने इस विषय पर ३०० से भी ज़्यादा भाषाओं में साहित्य प्रकाशित किया है और पृथ्वी पर वस्तुतः हर देश में इसे लोगों के घरों तक या सड़कों पर या उनके व्यवसाय के स्थलों तक पहुँचाया है।
ऐसा करने में, वे इस भविष्यवाणी को पूरा करते रहे हैं। लेकिन वे आशा भी फैलाते रहे हैं। ध्यान दीजिए कि यीशु ने इसे “सुसमाचार” कहा, न कि बुरी ख़बर। यह इन अन्धकारपूर्ण समयों में कैसे हो सकता है? क्योंकि बाइबल का मुख्य संदेश यह नहीं है कि इस पुराने संसार के अन्त में स्थिति कितनी बुरी होगी। इसके मुख्य संदेश में परमेश्वर का राज्य शामिल है, और यह राज्य एक ऐसा वादा करता है जो हर शान्तिप्रिय मनुष्य के हृदय के लिए प्रिय है—छुटकारा।
यह छुटकारा है क्या, और यह आपका कैसे हो सकता है? कृपया इस विषय के लिए आगामी लेख पर ग़ौर फ़रमाएँ।
[फुटनोट]
a यहाँ बाज़ी तीतुस के हाथ में थी। फिर भी, दो महत्त्वपूर्ण पहलुओं में, उसकी मंशा पूरी नहीं हो पाई। उसने शान्तिपूर्ण आत्म-समर्पण के प्रस्ताव रखे, लेकिन शहर के नेताओं ने हठपूर्वक, अवर्णनीय रूप से इन्कार कर दिया। और जब शहर की दीवारें अंततः ढाह दी गयीं, तो उसने आदेश दिया कि मन्दिर को छोड़ दिया जाए। फिर भी इसे पूरी तरह से जला दिया गया था! यीशु की भविष्यवाणी ने यह स्पष्ट किया था कि यरूशलेम उजाड़ हो जाएगा और कि मन्दिर को पूरी तरह से ढाह दिया जाएगा।—मरकुस १३:१, २.
[पेज 5 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
लोग ऐसे विचलित करनेवाले सवालों के जवाब ढूंढ़ने की कोशिश कर रहे हैं जैसे, स्थिति इतनी बुरी क्यों है? मानवजाति कहाँ जा रही है?
[पेज 6 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
आज, ९० प्रतिशत से भी ज़्यादा युद्ध के हताहत आम जनता होती है
[पेज 7 पर तसवीर]
यरूशलेम के नाश के बारे में यीशु की भविष्यवाणी हर बारीकी में पूरी हुई थी