संघठित अपराध से अलग होना “मैं एक याकूज़ा था”
“पापा, वादा करो कि जब आप घर लौटेंगे, तो हम साथ-साथ सभाओं में जाएँगे, ठीक है?” मुझे यह ख़त अपनी दूसरी बेटी से मिला जब मैं जेल में तीसरी बार था। वो मेरी पत्नी के साथ यहोवा के साक्षियों की सभाओं में लगातार उपस्थित होती थी। क्योंकि मेरे परिवार से चिट्ठी-पाती ही मेरी सांत्वना का एकमात्र स्रोत थे, मैंने वादा किया कि जैसा वो कहे मैं वैसा ही करूँगा।
मैंने सोचा ‘मैं अपराध की ऐसी ज़िंदगी क्यों जी रहा हूँ जो मुझे अपने ही परिवार से अलग करती है?’ मुझे वे दिन याद आए जब मैं बिलकुल छोटा था। पिताजी चल बसे जब मैं केवल १८ महीने का था, सो मुझे उनका चेहरा तक याद नहीं। माँ ने उसके बाद दो बार शादी की। परिवार के ऐसे हालात ने मुझ पर गहरा असर डाला और हाई स्कूल में मैं गुंडे-बदमाशों के साथ मेलजोल करने लगा। मैं हिंसक बन गया और स्कूल के बाहर लड़ाइयों में अकसर शामिल हो जाता। जब मैं हाई स्कूल के अपने दूसरे वर्ष में था, मैंने एक और गिरोह के साथ लड़ने के लिए विद्यार्थियों का एक गिरोह संघठित किया। इसकी वज़ह से मुझे गिरफ़्तार किया गया और कुछ समय के लिए एक सुधार-गृह में भेजा गया।
मैं उस गेंद के समान था जो हिंसा के जीवन की ढाल पर लुढ़कता जा रहा था। जल्द ही मैंने बाल-अपराधियों की एक टोली बना ली और हम एक याकूज़ा गिरोह के दफ़्तर में समय बिताने लगे। १८ साल की उम्र में मैं उस गिरोह का एक पक्का सदस्य बन गया। जब मैं २० साल का था, तब मुझे विविध हिंसक कार्यों के लिए गिरफ़्तार किया गया और जेल में तीन साल की सज़ा दी गयी। पहले तो मैंने नारा युवा जेल में सज़ा काटी, लेकिन मेरे चालचलन में कोई सुधार नहीं हुआ। सो मुझे दूसरी जेल में भेजा गया, जो वयस्कों के लिए थी। लेकिन मैं बिगड़ता चला गया और आख़िरकार क्योटो के कट्टर अपराधियों की जेल में पहुँच गया।
‘मैं ये सब अपराध क्यों करता रहता हूँ?’ मैंने अपने आपसे पूछा। जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूँ, तो मुझे एहसास होता है कि यह मेरे बेवक़ूफ़ी-भरे तर्क की वज़ह से था। उस समय, मैंने सोचा कि ऐसा व्यवहार मर्दानगी थी, और मेरी मर्दानगी का सबूत था। जब मैं २५ साल की उम्र में जेल से रिहा हुआ, तब संगी गुंडे-बदमाशों ने मुझे सर-आँखों पर उठा लिया मानो मैं कुछ हूँ। अब मेरे लिए अपराध जगत की सीढ़ियाँ चढ़ने के लिए दरवाज़ा खुला था।
मेरे परिवार की प्रतिक्रियाएँ
उसी दौरान मेरी शादी हुई, और जल्द ही मुझे और मेरी पत्नी को दो बेटियाँ हुईं। फिर भी, मेरे जीवन में कोई बदलाव नहीं आया। मैं अपने घर और पुलिस के बीच चक्कर काटता रहा—मैं लोगों को मारता और उनसे ज़बरदस्ती वसूली करता। हर घटना ने मुझे अपने संगी गुट-सदस्यों का आदर और बॉस का भरोसा जीतने में मदद की। आख़िरकार, मुझ से बड़े याकूज़ा “भाई” उस गिरोह में सबसे ऊपर तक पहुँच गए और बॉस बन गए। मैं उसका दायाँ हाथ बनने में बहुत ख़ुश था।
‘मेरी पत्नी और बेटियों को मेरी जीवन-शैली के बारे में कैसा लगता है?’ मैंने सोचा। पति और पिता के रूप में एक अपराधी का होना उनके लिए ज़रूर शर्मिंदगी की बात होगी। फिर एक बार ३० की उम्र में और फिर से ३२ की उम्र में मुझे क़ैद कर लिया गया। इस समय, जेल में तीन-साल की सज़ा मेरे लिए बहुत कठिन थी। मेरी बेटियों को आकर मुझसे मिलने की इजाज़त नहीं दी गयी थी। मुझे उनसे बात न कर पाने और गले न लगा पाने की कमी महसूस हुई।
लगभग इसी समय जब मैंने जेल में अपना यह आख़री सत्र काटना शुरू किया, मेरी पत्नी ने यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल का अध्ययन करना आरंभ किया। दिन-ब-दिन वो मुझे उस सच्चाई के बारे में लिखतीं जिसे वो सीख रही थीं। ‘मेरी पत्नी किस सच्चाई के बारे में बात कर रही हैं?’ मैंने सोचा। फिर जेल में मैंने पूरी बाइबल पढ़ी। भविष्य के लिए एक आशा और परमेश्वर के उद्देश्य के बारे में वो अपने ख़तों में जो कह रही थीं उस पर मैंने ग़ौर किया।
मनुष्यों के परादीस पृथ्वी पर हमेशा-हमेशा के लिए जीने की आशा बहुत आकर्षक थी क्योंकि मुझे मौत से बहुत डर लगता था। मैंने हमेशा सोचा था, ‘अगर तुम मर गए, तो तुम बाज़ी हार गए।’ जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूँ, तब मुझे एहसास होता है कि वह मौत का डर था जो मुझे दूसरों को चोट पहुँचाने के लिए आगे बढ़ाता था इससे पहले कि वे मुझे चोट पहुँचाएँ। मेरी पत्नी की चिट्ठियों ने मुझे गुट-जगत की सीढ़ी चढ़ने के अपने लक्ष्य के खोखलेपन को देखने पर मज़बूर किया।
फिर भी, मैं सच्चाई का अध्ययन करने के लिए प्रेरित नहीं हुआ। मेरी पत्नी ने यहोवा के प्रति ख़ुद को समर्पित किया और एक बपतिस्मा-प्राप्त साक्षी बन गयी। हालाँकि अपने ख़त में मैं उनकी सभाओं में जाने के लिए राज़ी हो गया था, मैं एक यहोवा का साक्षी बनने के बारे में नहीं सोच रहा था। मुझे लगा मानो मेरी पत्नी और बेटियाँ मुझ से बहुत दूर चली गयी हैं, और मुझे पीछे छोड़ गयी हैं।
जेल से बाहर निकलना
आख़िर मेरे आज़ाद होने का दिन आ गया। नागोया जेल के फाटक पर, अनेक गुट-सदस्य मेरा स्वागत करने के लिए कतार में खड़े हो गए। लेकिन, लोगों की उस बड़ी भीड़ में मैं केवल अपनी पत्नी और मेरी बेटियों को तलाश रहा था। अपनी बेटियों को देखने पर, जो साढ़े तीन साल के दौरान काफ़ी बड़ी हो चुकी थीं, मेरी आँखों में आँसू आ गए।
घर जाने के दो दिन बाद, मैंने अपनी दूसरी बेटी को दिया वादा पूरा किया और यहोवा के साक्षियों की एक सभा में उपस्थित हुआ। मौजूद सभी लोगों की ख़ुशमिजाज़ मनोवृत्ति देखकर मैं चकित रह गया। साक्षियों ने स्नेह के साथ मेरा स्वागत किया, लेकिन मैंने अजीब-सा महसूस किया। जब मैंने जाना कि जिन लोगों ने मेरा अभिवादन किया था वे मेरे अपराधी पृष्ठभूमि के बारे में जानते थे, तब मैं उलझन में पड़ गया। लेकिन, मैंने उनका स्नेह महसूस किया, और दिए गए बाइबल-आधारित भाषण से आकर्षित हुआ। यह पृथ्वी पर परादीस में लोगों के हमेशा-हमेशा जीने के बारे में था।
मेरी पत्नी और बेटियों का बचकर परादीस में जाने और मेरा नाश होने के विचार ने मुझे बहुत परेशान किया। मैंने गंभीरता से सोचा कि मुझे अपने परिवार के साथ हमेशा-हमेशा का जीवन जीने के लिए क्या करना होगा। मैं एक गुट-सदस्य के रूप में अपनी ज़िंदगी से अलग होने पर ग़ौर करने लगा, और मैंने बाइबल का अध्ययन शुरू किया।
अपने अपराधी जीवन से अलग होना
मैंने गुट की बैठकों में जाना और याकूज़ा के साथ मेल-जोल करना बंद कर दिया। अपने सोच-विचार को बदलना मेरे लिए आसान नहीं था। मैं केवल लुत्फ़ उठाने के लिए एक बड़ी-सी इंपोर्टॆड कार में घूमा करता था—वह एक अहंकार की बात थी। मुझे अपनी कार को बेचकर एक शालीन मॉडॆल लेने के लिए तीन साल लगे। मुझमें सबसे आसान तरीक़े से काम करने की प्रवृत्ति थी। लेकिन, जब मैंने सच्चाई सीखी, मैं देख सका कि मुझे बदलना होगा। पर जैसे यिर्मयाह १७:९ कहता है, “मन तो सब वस्तुओं से अधिक धोखा देनेवाला होता है, उस में असाध्य रोग लगा है।” मैं जानता था कि क्या सही है लेकिन जो मैं सीख रहा था उसका पालन करने में मुझे काफ़ी दिक़्क़त हो रही थी। जिन समस्याओं का मैंने सामना किया वे मुझे ऊँचे पहाड़ जैसी लगीं। मैं परेशान हो गया, और कई बार तो मैंने अध्ययन करने और एक यहोवा का साक्षी बनने का ख़याल ही छोड़ देने के बारे में सोचा।
फिर, मेरे बाइबल अध्ययन संचालक ने एक सफ़री ओवरसियर को हमारी कलीसिया में एक जन भाषण देने के लिए आमंत्रित किया, जो मेरी जैसी पृष्ठभूमि से ही आए थे। आकिता से, जो ६४० किलोमीटर की दूरी पर है, वो इतनी दूर से सुज़ुका तक सिर्फ़ मुझे प्रोत्साहित करने के लिए आए। इसके बाद, जब भी मैं थक जाता और छोड़ देने की सोचता, मुझे उनसे एक ख़त मिलता जिस में वो मुझे पूछते कि क्या मैं प्रभु के मार्ग में स्थिरता से चल रहा हूँ या नहीं।
मैं अपने सारे याकूज़ा संबंधों को तोड़ने में मेरी मदद करने के लिए यहोवा से प्रार्थना करता रहा। मुझे यक़ीन था कि यहोवा मेरी प्रार्थना का जवाब देगा। अप्रैल १९८७ में, मैं आख़िरकार याकूज़ा संघठन से निकल जाने में समर्थ हुआ। क्योंकि मेरा अपना व्यवसाय मुझे हर महीने विदेश, अपने परिवार से दूर ले जाता था, मैंने अपनी नौकरी बदलकर एक द्वारपाल की नौकरी कर ली। इससे मुझे आध्यात्मिक गतिविधियों के लिए दोपहर खाली मिले। पहली बार, मुझे तनख़ा का पाकिट मिला। वह हल्का था, लेकिन इसने मुझे बहुत ख़ुशी दी।
जब मैं याकूज़ा संघठन में दूसरे नंबर पर था, तो मैं भौतिक रूप से संपन्न था, लेकिन अब मेरे पास आध्यात्मिक धन है जो मिटता नहीं। मैं यहोवा को जानता हूँ। मैं उसके उद्देश्यों को जानता हूँ। मेरे पास जीने के लिए सिद्धांत हैं। मेरे पास सच्चे दोस्त हैं जो परवाह करते हैं। याकूज़ा जगत में, गुट-सदस्य ऊपरी चिंता करते थे, लेकिन मैं ऐसे किसी याकूज़ा को नहीं जानता था, एक को भी नहीं, जो दूसरों की ख़ातिर ख़ुद को कुरबान करता।
अगस्त १९८८ में, मैंने पानी के बपतिस्मे द्वारा यहोवा को अपना समर्पण चिन्हित किया, और उसके अगले महीने से ही, मैं दूसरों को वह सुसमाचार बताने में हर महीने कम-से-कम ६० घंटे बिताने लगा जिसने मेरी ज़िंदगी बदल दी थी। मैं मार्च १९८९ से एक पूर्ण-समय के सेवक के रूप में सेवा कर रहा हूँ और अब कलीसिया में मुझे एक सहायक सेवक के रूप में सेवा करने का विशेषाधिकार दिया गया है।
मैं अपने याकूज़ा जीवन के अधिकांश स्मृतिचिन्हों से पीछा छुड़ा पाया। फिर भी, एक है जो बाक़ी है। यह मेरे शरीर में गुदा हुआ निशान है जो मुझे, साथ ही मेरे परिवार और दूसरों को, मेरे याकूज़ा अतीत के बारे में याद दिलाता है। एक बार मेरी सबसे बड़ी बेटी स्कूल से रोते हुए घर आयी, और उसने कहा कि वह फिर कभी स्कूल नहीं जाएगी क्योंकि उसके दोस्तों ने उसे कहा कि मैं एक याकूज़ा था और मुझ पर निशान गुदे हुए थे। मैं ने अपनी बेटियों के साथ बात की, और उन्होंने स्थिति को समझ लिया। मैं उस दिन का इंतज़ार कर रहा हूँ जब पृथ्वी एक परादीस होगी और मेरा शरीर ‘बालक की देह से अधिक स्वस्थ और कोमल हो जाएगा।’ तब मेरे गुदे हुए निशान और याकूज़ा जीवन की २० साल की यादें अतीत की बातें होंगी। (अय्यूब ३३:२५; प्रकाशितवाक्य २१:४)—यासूओ काटाओका द्वारा बताया गया
[पेज 26 पर तसवीर]
मैं उस दिन का बेताबी से इंतज़ार करता हूँ जब मेरे गुदे हुए निशान भी मिटा दिए जाएँगे
[पेज 28 पर तसवीर]
राज्य गृह में अपने परिवार समेत