ट्रूबाडोर—प्रेमगीतों के गायक ही नहीं
फ्रांस में सजग होइए! संवाददाता द्वारा
ट्रूबाडोर और घुमंतू कलाकार—ये शब्द आपको किसकी याद दिलाते हैं? शायद प्रणय प्रेम और शौर्य के गीतों की। आपने सही सोचा, लेकिन ट्रूबाडोरों के साथ इससे ज़्यादा जुड़ा है। जबकि वे शायद कानसो डामोर, या प्रेमगीत के लिए सबसे विख्यात थे—और इस कारण ज़्यादातर उन्हें हाथ में वीणा लिये, किसी महिला को गीत सुनाते हुए चित्रित किया जाता है—फिर भी प्रेम उनकी एकमात्र दिलचस्पी नहीं थी। ट्रूबाडोर अपने समय के अनेक सामाजिक, राजनैतिक, और धार्मिक मामलों में अंतर्ग्रस्त थे।
ट्रूबाडोर १२वीं और १३वीं शताब्दियों के दौरान उस क्षेत्र में फल-फूल रहे थे जो अभी दक्षिणी फ्रांस है। वे कवि-संगीतकार थे जिन्होंने सभी प्रांतीय रोमांस भाषाओं में से सबसे सुंदर भाषा में लिखा। उसे लाँग्डॉकa कहा जाता था—वह लवार नदी के दक्षिण के लगभग सारे फ्रांस, और इटली तथा स्पेन के सीमावर्ती क्षेत्रों की प्रांतीय बोली थी।
शब्द “ट्रूबाडोर” के उद्गम के बारे में अनेक मत हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि यह ऑक्सीटाँ क्रिया ट्रोबार से आया है, जिसका अर्थ है “रचना, आविष्कार, या खोज करना।” अतः, ट्रूबाडोर अपने सुंदर छंद के साथ तालमेल बिठाने के लिए सही शब्द या लय खोज सकते थे। उनकी कविता के साथ संगीत होता था और उसे गाया जाता था। वे नगर-नगर घूमते थे और उनके साथ अकसर पेशेवर कलाकार होते थे जिन्हें चारण कहा जाता था। ट्रूबाडोर अपने गीतों को वीणा, बेला, बाँसुरी, ल्यूट, या गिटार के साथ गाते थे। अमीरों की कोठियों में, साथ ही बाज़ारों या खेल-प्रतियोगिताओं, मेलों, त्योहारों, या जेवनारों में, संगीत कार्यक्रम आम तौर पर किसी भी औपचारिक मनोरंजन का भाग हुआ करता था।
अलग-अलग पृष्ठभूमि
ट्रूबाडोर विभिन्न पृष्ठभूमियों के थे। कुछ विशिष्ट परिवारों में जन्मे थे; इक्का-दुक्का राजा थे; और दूसरे साधारण घरानों से थे जिन्होंने ट्रूबाडोर के पद तक उन्नति की थी। कुछ जनों ने बहुत प्रतिष्ठा प्राप्त की। अनेक जन बहुत शिक्षित थे और उन्होंने दूर-दूर तक यात्रा की थी। सभी को नारी-सम्मान, शिष्टाचार, काव्य, और संगीत के नियमों में कड़ा प्रशिक्षण मिलता था। एक स्रोत कहता है कि एक अच्छे ट्रूबाडोर से अपेक्षा की जाती थी कि उसे “सभी ताज़ा समाचार पूरी तरह मालूम हों, वह विश्वविद्यालयों के सभी उल्लेखनीय शोध निबंधों को दोहरा सके, दरबारी लोगों के बारे में उसके पास सारी उड़ती खबरें हों, . . . वह किसी मुखिया या महिला के समक्ष क्षण भर में कविता रचने में समर्थ हो, और उस समय दरबार में पसंद किये गये कम-से-कम दो वाद्यों को बजाना जानता हो।”
बारहवीं शताब्दी में वाणिज्य के विकास से फ्रांस के दक्षिणी क्षेत्रों में बहुत धन आया। समृद्धि अपने साथ सुविधा और शिक्षा लायी, और इसने कला और उच्च रहन-सहन को बढ़ावा दिया। लैंगाडॉक और प्रवाँस के बड़े-बड़े मुखिया और महिलाएँ ट्रूबाडोरों के बहुत बड़े समर्थक थे। कवियों को बहुत सम्मान मिलता था और कुलीनवर्ग की पसंद, फैशन, और शिष्टाचार पर इनका बहुत प्रभाव था। वे यूरोप के बॉलरूम डांस के जनक बने। लेकिन, द न्यू एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका कहती है कि “उनका महान कार्य यह था कि दरबार की महिलाओं के आस-पास सुसभ्यता और शिष्टाचार का ऐसा वातावरण विकसित करें जो उससे पहले कभी नहीं था।”
स्त्रियों के प्रति नया आदर
जब एक पुरुष किसी स्त्री के लिए दरवाज़ा खोलता है, उसे अपना कोट पहनने में मदद देता है, या “पहले-महिलाएँ” शिष्टाचार के अनेक कार्यों में से कोई कार्य करता है जिनका पालन सदियों से पश्चिमी यूरोप में होता आया है, तब वह उस प्रथा पर चल रहा होता है जो संभवतः ट्रूबाडोरों ने शुरू की थी।
स्त्रीजाति के प्रति मध्ययुगीन मनोवृत्ति चर्च की शिक्षाओं से बहुत प्रभावित थी। और चर्च पाप में पुरुष के पतन का और परादीस से उसके निकाले जाने का ज़िम्मेदार स्त्री को समझता था। उसे प्रलोभन में डालनेवाली, इब्लीस का औज़ार, प्रकोप लानेवाली परंतु ज़रूरी माना जाता था। विवाह को प्रायः जीवन की पतित अवस्था समझा जाता था। चर्च कानून में पत्नी-पिटाई और पत्नी-त्याग की अनुमति थी, जिसने स्त्री के अपमान और दमन में योग दिया। लगभग हर पहलू में, स्त्री को पुरुष से निम्न समझा जाता था। लेकिन ट्रूबाडोरों के आने से, पुरुषों के मन बदलने लगे।
विलियम नौवाँ, ड्यूक ऑफ अकवाटेन पहला ट्रूबाडोर माना जाता है। उसका काव्य वह पहला काव्य था जिसमें वे पहलू थे जिन्होंने प्रेम के बारे में ट्रूबाडोरों की अनोखी धारणा को चिन्हित किया। इस प्रेम को प्रणय प्रेम कहा गया। प्रावन्साल कवियों ने स्वयं ही इसे वरॆआमोर (सच्चा प्रेम) या फिनआमोर (उत्तम प्रेम) कहा। यह क्रांतिकारी था, क्योंकि अब स्त्री को पुरुष के सामने एकदम निम्न स्तर पर नहीं रखा गया।
ट्रूबाडोर काव्य ने स्त्री को बहुत गरिमा, सम्मान, और आदर दिया। स्त्री उत्तम गुणों और सद्गुणों का प्रतिरूप बन गयी। कुछ गीतों में प्रशंसक कवि के प्रति महिला की भावशून्य प्रतिक्रिया पर शोक व्यक्त किया गया। कम-से-कम सिद्धांत में तो ट्रूबाडोर के प्रेम को निष्कलंक रहना था। उसका मुख्य लक्ष्य महिला को प्राप्त करना नहीं, बल्कि नैतिक परिष्कार था जो कि महिला के प्रति उसके प्रेम ने उसके अंदर प्रेरित किया था। अपने आपको योग्य बनाने के लिए, लालायित कवि नम्रता, आत्म-संयम, धीरज, निष्ठा, और उन सभी उत्तम गुणों को विकसित करने के लिए विवश था जो महिला में थे। इस प्रकार, जंगली-से-जंगली आदमी भी प्रेम द्वारा रूपांतरित हो सकता था।
ट्रूबाडोर मानते थे कि प्रणय प्रेम सामाजिक और नैतिक परिष्कार का स्रोत है, प्रेम शिष्टता और उदारता के कामों का जनक है। जैसे-जैसे इस विचार का विस्तार किया गया, यह एक पूर्ण आचार-संहिता का आधार बन गया, जिसे बाद में समाज के साधारण वर्गों ने भी अपना लिया। सामंती समाज की विषमता में, जो अशिष्ट और क्रूर था, एक नयी जीवन-शैली शुरू हो गयी थी। अब स्त्रियाँ पुरुषों से अपेक्षा करती थीं कि वे आत्मत्यागी, विचारशील, और कृपालु हों—सज्जन हों।
जल्द ही, यूरोप के अधिकतर लोग ट्रूबाडोरों की कला को अपना रहे थे। स्पेन और पुर्तगाल ने उनके विषय अपना लिये। उत्तरी फ्रांस में अपने ट्रूवॆर थे; जर्मनी में मिनिसिंगर थे; इटली में ट्रूवाटोरी थे। ट्रूबाडोरों के प्रणय प्रेम विषय, और शौर्य के आदर्शों ने मिलकर साहित्य की एक शैली को जन्म दिया जिसे रोमांस कहा जाता है।b उदाहरण के लिए, प्रणय प्रेम आदर्श को कॆल्टिक ब्रिटनी की कथाओं में मिलाने से, ट्रूवर क्रेट्याँ ट्रवा ने राजा आर्थर और राउंड टेबल के सामंतों की कथाओं में निर्बलों को उदारता दिखाने और उनकी रक्षा करने के सद्गुणों को आदर्श बना दिया।
समाज पर उनका प्रभाव
जबकि अधिकतर ट्रूबाडोर गीतों ने प्रणय प्रेम के सद्गुणों की प्रशंसा की, उनके दूसरे गीत उस समय के सामाजिक और राजनैतिक मसलों पर थे। ला व्येय ए लेपे (बेला और तलवार) के फ्रांसीसी लेखक, मार्टाँ ओरॆल ने समझाया कि ट्रूबाडोरों ने ‘उन संघर्षों में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया जिन्होंने उनके समकालिकों को विभाजित किया और अपनी रचनाओं के द्वारा ट्रूबाडोरों ने इस या उस गुट की सफलता में भी योग दिया।’
मध्ययुगीन समाज में ट्रूबाडोरों के अनोखे स्थान पर टिप्पणी करते हुए, रॉबर्ट सैबाट्या कहता है: “इससे पहले कवियों को कभी इतनी अधिक प्रतिष्ठा नहीं दी गयी थी; इससे पहले कभी किसी के पास इतनी अधिक बोलने की स्वतंत्रता नहीं थी। वे प्रशंसा करते थे और निंदा करते थे, वे जनता की आवाज़ बन गये थे, वे राजनैतिक नीतियों पर प्रभाव डालते थे, और वे नये विचारों का साधन बन गये थे।”—ला पॉएज़ी ड्यू म्वायॆं आज़।
अपने समय के समाचार माध्यम
यह कहना शायद गलत न हो कि मुद्रण प्रॆस के आविष्कार से बहुत पहले, ट्रूबाडोर और दूसरे घुमंतू कलाकार अपने समय के समाचार माध्यम का काम करते थे। मध्ययुगीन कलाकार अंतर्राष्ट्रीय यात्री थे। यूरोप के दरबारों में—साइप्रस से स्कॉटलॆंड तक और पुर्तगाल से पूर्वी यूरोप तक, जहाँ कहीं वे जाते—वे समाचार इकट्ठा करते और कहानी, गीत-संगीत की अदला-बदली करते। एक चारण से दूसरे चारण तक, मौखिक रूप से तेज़ी से फैलते हुए, ट्रूबाडोरों के गीतों की मोहक धुनें लोगों की ज़बान पर चढ़ जातीं। ये गीत जनता की राय को बहुत प्रभावित करते और उन्हें एक-न-एक उद्देश्य के लिए जागृत करते।
ट्रूबाडोरों ने अनेक काव्यरूप प्रयोग किये, जिनमें से एक को सरवान्ट कहा जाता है, जिसका आक्षरिक अर्थ है “सेवक का गीत।” ऐसे कुछ गीतों ने शासकों के अन्याय का परदाफाश किया। दूसरों में वीरता, आत्मत्याग, उदारता, और दया के कार्यों का गुणगान किया गया, साथ ही बर्बर क्रूरता, कायरता, पाखण्ड, और आत्महित की निंदा की गयी। आरंभिक १३वीं शताब्दी के सरवान्ट गीत इतिहासकारों को बड़ी उथल-पुथल के समय में लैंगाडॉक के राजनैतिक और धार्मिक माहौल की एक झलक देते हैं।
चर्च की आलोचना
क्रूसेड धर्मयुद्ध असफल होने के कारण, अनेक लोग कैथोलिक चर्च के आध्यात्मिक और लौकिक अधिकार पर संदेह करने लगे। पादरीवर्ग ने मसीह का प्रतिनिधित्व करने का दावा तो किया, लेकिन उनके कार्य मसीह-समान बिलकुल भी नहीं थे। उनका पाखण्ड, लोभ, और भ्रष्टाचार खुलकर सब के सामने आ गया। हरदम और अधिक धन और राजनैतिक शक्ति पाने की चाह में, चर्च के बिशप और पादरी अमीरों का ध्यान रखते थे। गरीब और मध्य वर्गों की आध्यात्मिक ज़रूरतों के प्रति उनकी लापरवाही के कारण मतभेद उभरना निश्चित था।
लैंगाडॉक में मध्य वर्गों के अनेक लोग साथ ही कुलीनवर्ग के लोग शिक्षित थे। इतिहासकार एच. आर. ट्रॆवर-रोपर ने कहा कि अधिक पढ़ी-लिखी जनता को पता चल रहा था कि १२वीं शताब्दी का चर्च “प्राचीन आदर्शों से बहुत भिन्न था, जिनका अनुकरण करने का वह दावा करता था।” वह आगे कहता है कि अनेक पुरुष यह सोचने लगे थे: “कॉन्सटनटीन से पहले जब चर्च राजधर्म नहीं था तब . . . प्रेरितों का, . . . सताहटों का चर्च और भी कितना भिन्न था: चर्च जिसमें पोप या सामंतियों के जैसे बिशप या बहुत धन या विधर्मी सिद्धांत या नये अनुच्छेद नहीं थे जो उसके धन और शक्ति को बढ़ाने के लिए रचे गये हों!”
लैंगाडॉक सहनशीलता का देश था। टुलूज़ के राजसी अधिकारियों और दूसरे दक्षिणी शासकों ने लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता दी। वॉलडॆनसीज़c ने बाइबल का अनुवाद लाँग्डॉक में किया था और वे जोश के साथ दो-दो करके पूरे क्षेत्र में उसका प्रचार कर रहे थे। कैथारस लोग भी (जिन्हें ऐल्बिजॆनसीज़ भी कहा जाता है) अपने सिद्धांत फैला रहे थे और कुलीनवर्ग के अनेक जन उनका मत अपना रहे थे।
ट्रूबाडोरों के अनेक सरवान्ट गीतों ने कैथोलिक पादरीवर्ग के प्रति लोगों की निराशा, अनादर, और घृणा को प्रतिबिंबित किया। गी ड कावायाँ का एक गीत ज़्यादा दुनियावी बातों में उलझकर “अपने मुख्य काम को त्यागने” के लिए पादरीवर्ग की निंदा करता है। ट्रूबाडोरों के गीतों ने नरकाग्नि, क्रूस, पाप-स्वीकृति, और “पवित्र जल” का उपहास किया। उन्होंने दंडमोचन और तबर्रुक (रॆलिक्स) की हँसी उड़ायी और अनैतिक पादरियों तथा भ्रष्ट बिशपों पर यह कहकर व्यंग्य कसा कि वे “विश्वासघाती, झूठे, और पाखण्डी” हैं।
स्वतंत्रता के विरुद्ध चर्च की लड़ाई
लेकिन, रोमन चर्च अपने आपको हर साम्राज्य और राज्य से सर्वोच्च समझता था। युद्ध उसकी शक्ति का शस्त्र बन गया। पोप इनोसॆंट तृतीय ने ऐसी किसी भी सेना को लैंगाडॉक का सारा धन देने की प्रतिज्ञा की जो शासकों को पराजित कर सके और फ्रांस के दक्षिणी क्षेत्रों में विरोध को पूरी तरह कुचल सके। इसके बाद जो समय आया वह फ्रांसीसी इतिहास में यातना और हत्या का बहुत ही रक्तरंजित समय था। वह ऐल्बिजॆन्सी धर्मयुद्ध (१२०९-२९) के नाम से जाना गया।d
ट्रूबाडोरों ने उसे झूठा धर्मयुद्ध कहा। चर्च ने विरोधियों के साथ क्रूर व्यवहार किया और पोप ने फ्रांसीसी विरोधियों की हत्या करने के लिए वही दंडमोचन प्रस्तुत किया जो उसने मुसलमानों की हत्या करने के लिए प्रस्तुत किया, जिन्हें विधर्मी समझा जाता था। ट्रूबाडोरों के गीतों ने इसके प्रति रोष व्यक्त किया। ऐल्बिजॆन्सी धर्मयुद्ध और उसके बाद धर्माधिकरण के दौरान चर्च ने अपने लिए बहुत धन बटोरा। परिवारों को उत्तराधिकार से वंचित किया गया, उनकी ज़मीन और घर छीन लिये गये।
ट्रूबाडोरों पर कैथारस अपधर्मी होने का आरोप लगाया गया, इस कारण उनमें से अधिकतर जन ऐसे देशों में भाग गये जहाँ उतना अत्याचार नहीं था। इस धर्मयुद्ध ने ऑक्सीटाँ सभ्यता, उसकी जीवन-शैली, और उसके काव्य के अंत को चिन्हित किया। धर्माधिकरण कानून ने ट्रूबाडोर गीतों को गाना तो क्या, गुनगुनाना तक गैरकानूनी बना दिया। लेकिन उनकी धरोहर मिटी नहीं। असल में, उनके चर्च-विरोधी गीतों ने वह माहौल तैयार कर दिया जो आगे चलकर धर्मसुधार कहलाता। सचमुच, ट्रूबाडोरों को उनके प्रेम गीतों के लिए ही नहीं, उससे ज़्यादा के लिए याद रखा जा सकता है।
[फुटनोट]
a रोमी सेना से प्राप्त लैटिन, जिसे रोमन कहा जाता था, उस समय तक फ्रांस की दो प्रांतीय भाषाओं में विकसित हो चुकी थी: दक्षिणी फ्रांस में लाँग्डॉक बोली जाती थी (जिसे ऑक्सीटाँ, या प्रावन्साल भी कहा जाता था), और उत्तरी फ्रांस में लाँग्डॉएल बोली जाती थी (जो फ्रांसीसी का एक आरंभिक रूप है जिसे कभी-कभी पुरानी फ्रांसीसी कहा जाता है)। ये दो भाषाएँ ‘हाँ’ के लिए जो शब्द प्रयोग करती थीं उसी से इन दोनों में भिन्नता की जाती थी। दक्षिण में वह शब्द था ऑक (लैटिन हॉक से); उत्तर में, ऑइल (लैटिन हॉक इली से), जो आधुनिक फ्रांसीसी में वी बन गया।
b उत्तरी या दक्षिणी प्रांतीय भाषा में लिखी गयी किसी भी रचना को रोमन कहा जाता था। क्योंकि इनमें से अनेक वीर गाथाएँ प्रणय प्रेम की भावना पर थीं, वे रोमांस या रोमानी समझी जानेवाली सभी रचनाओं का मानक बन गयीं।
c वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित, प्रहरीदुर्ग (अंग्रेज़ी), अगस्त १, १९८१, पृष्ठ १२-१५ देखिए।
d प्रहरीदुर्ग, सितंबर १, १९९५, पृष्ठ २७-३० देखिए।
[पेज 18 पर चित्र का श्रेय]
मुद्रक का साज-सामान/by Carol Belanger Grafton/Dover Publications, Inc.
Bibliothèque Nationale, Paris
[पेज 19 पर तसवीर]
१२वीं सदी की एक हस्तलिपि का लघुचित्र
[चित्र का श्रेय]
Bibliothèque Nationale, Paris