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तनाव—“खामोश हत्यारा”

“पहले मुझे तेज़ दबाव महसूस हुआ। दबाव मेरी छाती की हड्डी के पास शुरू हुआ; देखते-ही-देखते कंधों, गर्दन, और जबड़ों तक चढ़ गया; और फिर मेरी दोनों बाँहों में उतर आया। ऐसा लग रहा था मानो मेरी छाती पर एक हाथी बैठ गया हो। साँस लेना भी दूभर हो रहा था। मेरे पसीने छूटने लगे। आँतों में ऐंठन होने लगी और बुरी तरह से जी मिचलाने लगा। . . . बाद में, मुझे याद है कि जब नर्सें मुझे अस्पताल के बिस्तर पर लिटा रही थीं, तब मैंने चकित होकर कहा, ‘मुझे दिल का दौरा पड़ रहा है।’ मैं चवालीस साल का था।”

अपनी पुस्तक तनाव से ताकत तक (अंग्रेज़ी) में डॉ. रॉबर्ट एस. ऎलीऎट बताता है कि इस प्रकार २० साल से भी पहले उसका आमना-सामना मौत से हुआ। उसी दिन सुबह वह एक सम्मेलन में गया था और उसने एक भाषण दिया था—इत्तफाक देखिए, उसका विषय था दिल का दौरा। अचानक, डॉ. ऎलिऎट ने, जो खुद एक हृदयरोग विशेषज्ञ है, अपने आपको ‘हृदय चिकित्सा कक्ष में रोगी’ के रूप में पाया। वह अपने इस अनपेक्षित संकट का दोषी किसे मानता है? “अंदर-ही-अंदर,” डॉ. ऎलिऎट कहता है, “तनाव में मेरी अपनी शारीरिक प्रतिक्रियाएँ मेरी जान ले रही थीं।”a

डॉ.ऎलिऎट के अनुभव से स्पष्ट है कि तनाव के जीवन-घातक परिणाम हो सकते हैं। अमरीका में तो इसे मृत्यु के कुछ प्रमुख कारणों में जोड़ा गया है। समय के साथ-साथ तनाव के प्रभाव अंदर-ही-अंदर इकट्ठा हो सकते हैं और फिर बिना चेतावनी दिये सामने आ सकते हैं। इसलिए तनाव को उचित ही “खामोश हत्यारा” कहा गया है।

आश्‍चर्य की बात है कि टाइप-ए व्यक्‍तित्व के लोग—अधीर, आक्रामक, और स्पर्धात्मक प्रवृत्ति के लोग—एकमात्र ऐसे लोग नहीं जो तनाव-संबंधी विपत्तियों के शिकार हो सकते हैं। जिनका व्यक्‍तित्व बहुत शांत दिखता है उन्हें भी जोखिम हो सकता है, खासकर यदि उनका शांत व्यवहार बस एक ऊपरी दिखावा है, मानो प्रॆशर कुकर पर हलका-सा ढक्कन रखा हो। डॉ. ऎलिऎट को लगता है कि उसके मामले में यह बात सही है। अब वह दूसरों को चिताता है: “आप आज अचानक ही मर सकते हैं—आपको पता भी नहीं होगा कि सालों से आपके दिल पर एक टाइम बम लगा हुआ था।”

लेकिन दिल का दौरा और एकाएक मौत ही वो समस्याएँ नहीं हैं जो तनाव से जोड़ी गयी हैं। यही बात अगला लेख दिखाएगा।

[फुटनोट]

a जबकि तनाव का योग हो सकता है, लेकिन दिल के दौरे के अधिकतर किस्सों में, धमनीकलाकाठिन्य (एथॆरोस्कलॆरोसिस) के कारण हृदय की धमनियों को काफी हानि पहुँची होती है। इसलिए, संभवतः यह सोचते हुए कि तनाव कम करने भर से व्यक्‍ति स्वस्थ हो जाएगा, हृदय रोग के लक्षणों को गंभीरता से न लेना बुद्धिहीनता की बात होगी। जनवरी ८, १९९७ की सजग होइए! में पृष्ठ ३-१३ देखिए।

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