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  • वे कैसे सुनेंगे?
  • हमारी राज-सेवा—2009
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हमारी राज-सेवा—2009
km 1/09 पेज 1-2

वे कैसे सुनेंगे?

1. (क) किन वजहों से प्रचार काम एक चुनौती साबित हो सकता है? (ख) फिर भी, हम इस काम से पीछे क्यों नहीं हटते?

जैसे-जैसे यहोवा का दिन नज़दीक आ रहा है, वैसे-वैसे लोगों को परमेश्‍वर के बारे में सीखने और उसने इंसानों के लिए जो मकसद ठहराया है, इस बारे में जानने में मदद देना हमारे लिए और भी ज़रूरी हो गया है। (यूह. 17:3; 2 पत. 3:9,10) कई बार यह काम एक चुनौती साबित हो सकता है। क्योंकि बहुत-से लोग या तो हमारे संदेश में कोई दिलचस्पी नहीं लेते या फिर हमारे प्रचार काम की खिल्ली उड़ाते हैं। (2 पत. 3:3,4) फिर भी, हम पीछे नहीं हटते। क्योंकि हमें यकीन है कि हमारे प्रचार के इलाके में अब भी ऐसे लोग हैं, जो सुसमाचार सुनकर उसे कबूल करेंगे। लेकिन अगर कोई प्रचारक उनके पास जाएगा ही नहीं, तो वे सुनेंगे कैसे?—रोमि. 10:14,15.

2. प्रेरित पौलुस की मिसाल से हम क्या सीखते हैं?

2 विरोध का सामना करना: हम उन लोगों की खातिर हार नहीं मानते, जो राज्य का संदेश सुनने के लिए तरस रहे हैं। फिलिप्पी, यूरोप का वह पहला शहर था, जहाँ प्रेरित पौलुस ने खुशखबरी का ऐलान किया था। वहाँ जब उस पर और सीलास पर झूठे इलज़ाम लगाए गए, तो उन्हें बेंतों से पीटा गया और जेल में डाल दिया गया। (प्रेरि. 16:16-24) लेकिन मार और ज़ुल्म सहने के बावजूद, पौलुस ने डर के मारे प्रचार करना बंद नहीं किया। इसके बजाय, मिशनरी दौरा करते वक्‍त वह अगले शहर थिस्सलुनीकिया गया और वहाँ ‘परमेश्‍वर में साहस प्राप्त’ करके गवाही देता रहा। (1 थिस्स. 2:2, NHT) क्या पौलुस की मिसाल से हम यह नहीं सीखते कि हमें ‘हिम्मत नहीं हारनी’ चाहिए?—गल. 6:9, हिन्दुस्तानी बाइबल।

3. जिन लोगों ने पहले कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी थी, अब वही लोग हमारा संदेश सुनने के लिए क्यों तैयार हैं?

3 ऐसे बहुत-से लोग हैं, जिन्होंने बरसों तक हमारा संदेश सुनने से इनकार किया, मगर अब उनका रवैया बदल गया है। इस बदलाव की क्या वजह हो सकती है? तंगहाली, बीमारी, किसी अज़ीज़ की मौत, या फिर दुनिया में होनेवाली बुरी घटनाएँ। (1 कुरि. 7:31) इसके अलावा, कुछ ऐसे भी बच्चे हैं, जिनके माँ-बाप ने शायद साक्षियों का विरोध किया हो। मगर अब वही बच्चे बड़े हो गए हैं और हमारा संदेश सुनने के लिए राज़ी हैं। इसलिए जब हम प्रचार काम में लगे रहते हैं, तो हम इन सभी लोगों को ‘यहोवा का नाम लेने’ का मौका देते हैं, इससे पहले कि देर हो जाए।—रोमि. 10:13.

4. क्या बात हमें ‘बिना रुके’ प्रचार करते रहने का बढ़ावा देती है?

4 ‘बिना रुके’: परमेश्‍वर और अपने पड़ोसियों के लिए प्यार हमें उकसाता है कि हम पहली सदी के प्रेरितों की तरह, ‘बिना रुके’ प्रचार करने और चेले बनाने के काम में लगे रहें। (प्रेरि. 5:42) आज ऐसे कितने ही लोग हैं, जो दुनिया में होनेवाले “सब घृणित कामों” को देखकर “सांसें भरते और दुःख के मारे चिल्लाते हैं।” (यहे. 9:4) और जब इन लोगों को खुशखबरी सुनायी जाती है, तो उन्हें क्या ही चैन मिलता है! साथ ही, उनमें उम्मीद की किरण भी जागती है। दूसरी तरफ, चाहे ज़्यादातर लोग हमारा संदेश सुनने से इनकार क्यों न करें, फिर भी बाइबल हमें यकीन दिलाती है कि यहोवा हमारी मेहनत से खुश है।—इब्रा. 13:15,16.

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