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  • “यहोवा . . . बड़ा शक्‍तिमान है”
    यहोवा के करीब आओ
    • एलिय्याह सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर की महाशक्‍ति का ज़बरदस्त सबूत देखता है

      अध्याय 4

      “यहोवा . . . बड़ा शक्‍तिमान है”

      1, 2. एलिय्याह ने अपनी ज़िंदगी में कैसे-कैसे करिश्‍मे देखे थे, मगर होरेब पर्वत पर एक गुफा से उसने कैसी सनसनीखेज़ घटनाएँ घटती देखीं?

      एलिय्याह ने इससे पहले भी कई हैरतअंगेज़ करिश्‍मे देखे थे। जब वह एक गुफा में छिपा था तो कौवे दिन में दो बार उसके लिए खाना लाते थे। उसने देखा था कि कैसे लंबे अकाल के दौरान दो मर्तबानों में हमेशा मैदा और तेल मौजूद रहता था, और ये कभी खाली नहीं हुए। उसने अपनी प्रार्थना के जवाब में आकाश से आग भी गिरती देखी थी। (1 राजा, अध्याय 17, 18) लेकिन एलिय्याह ने अब जो हैरतअंगेज़ नज़ारा देखा, वैसा अनोखा नज़ारा उसने पहले कभी नहीं देखा था।

      2 वह होरेब पर्वत पर एक गुफा के मुहाने पर दुबका हुआ, ये सारी सनसनीखेज़ घटनाएँ देख रहा था। पहले तेज़ हवा चली। साँय-साँय करती यह इतनी प्रचंड आँधी थी कि इसकी आवाज़ से कान बहरे हो रहे थे, और इसकी शक्‍ति से पहाड़ फट रहे थे और चट्टानें टूटकर चूर-चूर हो रही थीं। इसके बाद एक भूकंप आया जिसने धरती के गर्भ में छिपी ज़बरदस्त शक्‍तियों का आभास कराया। उसके बाद आग दिखाई दी। यह पूरे इलाके में फैलती चली गयी, और एलिय्याह ने ज़रूर इसकी लपटों की झुलसन महसूस की होगी।—1 राजा 19:8-12.

      “यहोवा पास से होकर चला”

      3. एलिय्याह ने परमेश्‍वर के किस गुण का सबूत देखा, हम इसी गुण का सबूत और कहाँ देख सकते हैं?

      3 एलिय्याह ने ये जो अलग-अलग घटनाएँ देखीं, इनमें एक बात आम थी—ये सभी यहोवा परमेश्‍वर की महाशक्‍ति का नज़ारा थीं। बेशक, इस बात का यकीन करने के लिए कि परमेश्‍वर में यह गुण है हमें किसी चमत्कार की ज़रूरत नहीं। हम उसकी शक्‍ति बड़ी आसानी से देख सकते हैं। बाइबल बताती है कि सृष्टि में यहोवा की “सनातन सामर्थ, और परमेश्‍वरत्व” का सबूत मिलता है। (रोमियों 1:20) ज़ोरदार तूफान में कड़कती बिजलियों और गरजते बादलों के बारे में, पहाड़ों की ऊँचाई से गिरते विशालकाय झरनों के भव्य नज़ारे के बारे में और दूर-दूर तक फैले आकाश में टिमटिमाते तारों के बारे में सोचिए! क्या आप इन नज़ारों में परमेश्‍वर की शक्‍ति को नहीं देखते? मगर, इस दुनिया में बहुत कम लोग सही मायनों में परमेश्‍वर की शक्‍ति को मानते हैं। और इनसे भी कम लोग इस शक्‍ति के बारे में सही नज़रिया रखते हैं। लेकिन, परमेश्‍वर यहोवा के इस गुण की समझ पाने से हमें उसके करीब आने की और भी कई वजह मिलेंगी। इस भाग में हम यहोवा की बेजोड़ शक्‍ति का विस्तार से अध्ययन करने जा रहे हैं।

      यहोवा का एक बेहद ज़रूरी गुण

      4, 5. (क) यहोवा के नाम और उसके पराक्रम या शक्‍ति के बीच क्या संबंध है? (ख) यहोवा ने अपनी शक्‍ति का प्रतीक बैल बताया, यह क्यों सही था?

      4 शक्‍ति के मामले में यहोवा का कोई सानी नहीं है। यिर्मयाह 10:6 कहता है: “हे यहोवा, तेरे समान कोई नहीं है; तू महान है, और तेरा नाम पराक्रम में बड़ा है।” गौर कीजिए कि पराक्रम या शक्‍ति को यहोवा के नाम के साथ जोड़ा गया है। याद कीजिए कि सबूतों के आधार पर इस नाम का यह मतलब निकलता है, “वह बनने का कारण होता है।” क्या बातें यहोवा को इस काबिल बनाती हैं कि वह किसी भी चीज़ की सृष्टि कर सकता है और जो चाहे वह बन सकता है? एक है, उसकी शक्‍ति। जी हाँ, कार्यवाही करने और अपनी मरज़ी को पूरा करने के लिए यहोवा के पास अपार शक्‍ति है। यह शक्‍ति परमेश्‍वर का एक बेहद ज़रूरी गुण है।

      5 हम कभी-भी यह नहीं समझ पाएँगे कि यहोवा के पास कितनी शक्‍ति है, इसलिए वह हमें समझाने के लिए कुछ दृष्टांतों का इस्तेमाल करता है। जैसा हम देख चुके हैं कि वह अपनी शक्‍ति के प्रतीक के तौर पर बैल का इस्तेमाल करता है। (यहेजकेल 1:4-10) बैल का चुनाव सही बैठता है, क्योंकि एक पालतू बैल भी बहुत बड़े आकार का और शक्‍तिशाली जीव होता है। बाइबल के ज़माने के पैलिस्टाइन में, एक बैल से ज़्यादा ताकतवर जानवर का लोगों ने शायद ही सामना किया हो। मगर हाँ, उन्होंने एक किस्म के खौफनाक जंगली साँड़ या ऑरक्स को ज़रूर देखा होगा, जिसकी प्रजाति अब लुप्त हो चुकी है। (अय्यूब 39:9-12) रोम के सम्राट, जूलियस सीज़र ने एक बार कहा कि इन साँड़ों का आकार करीब-करीब हाथियों जितना ही था। उसने लिखा: “उनमें गज़ब की ताकत है और दौड़ते वक्‍त वे हवा से बातें करते हैं।” कल्पना कीजिए कि अगर आप ऐसे जानवर के पास खड़े हों, तो आप खुद को कितना छोटा और कमज़ोर महसूस करेंगे!

      6. क्यों सिर्फ यहोवा को “सर्वशक्‍तिमान” कहा गया है?

      6 उसी तरह इंसान, शक्‍तिशाली परमेश्‍वर यहोवा के सामने बहुत ही छोटा और कमज़ोर है। यहोवा के लिए शक्‍तिशाली राष्ट्र भी ऐसे हैं जैसे पलड़ों पर धूल की हल्की-सी परत। (यशायाह 40:15) चाहे कोई भी प्राणी हो, उसकी शक्‍ति सीमित होती है। मगर यहोवा की शक्‍ति असीम है, क्योंकि सिर्फ उसी को “सर्वशक्‍तिमान” कहा गया है।a (प्रकाशितवाक्य 15:3) यहोवा के पास “महाशक्‍ति” और “विशाल सामर्थ्य” है। (यशायाह 40:26, NHT) वह शक्‍ति का स्रोत है, और उसके पास इतनी भरपूर शक्‍ति है कि वह कभी खत्म नहीं होती। वह शक्‍ति के लिए किसी भी बाहरी स्रोत पर निर्भर नहीं करता, क्योंकि “सामर्थ्य परमेश्‍वर ही का है।” (तिरछे टाइप हमारे; भजन 62:11, NHT) मगर, यहोवा किस ज़रिए से अपनी शक्‍ति इस्तेमाल करता है?

      यहोवा अपनी शक्‍ति कैसे इस्तेमाल करता है

      7. यहोवा की पवित्र आत्मा क्या है, और बाइबल की मूल भाषाओं के शब्दों का क्या मतलब हो सकता है?

      7 यहोवा से पवित्र आत्मा इतनी ज़बरदस्त मात्रा में निकलती है जिसका कोई अंदाज़ा नहीं लगा सकता। यह पवित्र आत्मा, काम करती हुई परमेश्‍वर की शक्‍ति है। दरअसल, उत्पत्ति 1:2 (NW) में, बाइबल इसे परमेश्‍वर की “क्रियाशील शक्‍ति” कहती है। जिन मूल इब्रानी और यूनानी शब्दों का अनुवाद “आत्मा” किया गया है, उन्हें बाइबल के दूसरे भागों में संदर्भ के मुताबिक “हवा,” “साँस” या “झोंका” अनुवाद किया जा सकता है। शब्दों का अध्ययन करनेवाले विद्वानों के मुताबिक, मूल भाषा के शब्दों का मतलब यह हो सकता है कि कोई अनदेखी शक्‍ति काम कर रही है। जिस तरह हम हवा को नहीं देख सकते, मगर महसूस कर सकते हैं, उसी तरह परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा है। यह वाकई असरदार है, और इसके असर को देखा जा सकता है।

      8. बाइबल में परमेश्‍वर की आत्मा को लाक्षणिक अर्थ में क्या कहा गया है, और यह तुलना सही क्यों है?

      8 परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा क्या-क्या कर सकती है, इसका भी कोई हिसाब नहीं है। यहोवा इसे अपने किसी भी उद्देश्‍य को पूरा करने के लिए इस्तेमाल कर सकता है। इसलिए, यह बिलकुल सही है कि बाइबल में परमेश्‍वर की आत्मा को लाक्षणिक अर्थ में, उसकी “उंगली,” उसका “बलवन्त हाथ” या “बढ़ाई हुई भुजा” कहा गया है। (लूका 11:20, NHT, फुटनोट; व्यवस्थाविवरण 5:15; भजन 8:3) ठीक जैसे एक इंसान अपने हाथों से अलग-अलग किस्म के काम करता है। कहीं पर वह ज़ोर का इस्तेमाल करता है या फिर कहीं अपनी उँगलियों का हुनर दिखाते हुए बारीक कारीगरी का सबूत देता है। उसी तरह चाहे सूक्ष्म परमाणु बनाने की बात हो या विशाल लाल सागर को दो हिस्सों में बाँटने की या फिर पहली सदी के मसीहियों को अलग-अलग भाषाओं में बात करने की काबिलीयत देने की, परमेश्‍वर अपना कोई भी मकसद पूरा करने के लिए जैसे चाहे वैसे अपनी आत्मा का इस्तेमाल कर सकता है।

      9. यहोवा की हुक्म चलाने की शक्‍ति कितनी है?

      9 यहोवा इस विश्‍व का महाराजाधिराज होने के अधिकार से भी अपनी शक्‍ति इस्तेमाल करता है। सोचिए कि अगर आपके हुक्म को पूरा करने के लिए लाखों-करोड़ों बुद्धिमान और समर्थ सेवक हमेशा तैयार खड़े हों, तो आपको कैसा लगेगा? यहोवा के पास ऐसा ही अधिकार और शक्‍ति है। उसके इंसानी सेवक हैं, और शास्त्र में अकसर उसके सेवकों की तुलना एक सेना से की जाती है। (भजन 68:11; 110:3) और उसके सेवकों में स्वर्गदूत भी हैं, जो इंसानों से कहीं ज़्यादा शक्‍तिशाली हैं। जब अश्‍शूर की सेना ने परमेश्‍वर के लोगों पर धावा बोला था, तब एक स्वर्गदूत ने अकेले 1,85,000 सैनिकों को एक ही रात में मौत के घाट उतार दिया था! (2 राजा 19:35) परमेश्‍वर के ये दूत वाकई “बड़े वीर” हैं।—भजन 103:19, 20.

      10. (क) सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर को सेनाओं का यहोवा क्यों कहा गया है? (ख) यहोवा की तमाम सृष्टि में सबसे ज़्यादा शक्‍तिशाली कौन है?

      10 स्वर्गदूतों की संख्या कितनी है? जब भविष्यवक्‍ता दानिय्येल को स्वर्ग का दर्शन दिया गया, तो उसने 10 करोड़ से भी ज़्यादा आत्मिक प्राणी देखे, मगर इस बात के संकेत नहीं मिलते कि उसने परमेश्‍वर के बनाए हुए सभी स्वर्गदूतों को देखा था। (दानिय्येल 7:10) तो फिर, स्वर्गदूतों की संख्या शायद करोड़ों-करोड़ हो। इसीलिए, परमेश्‍वर को सेनाओं का यहोवा कहा गया है। इस उपाधि से पता लगता है कि वह शक्‍तिशाली स्वर्गदूतों की एक विशाल, व्यवस्थित सेना का सेनाध्यक्ष है और इस हैसियत से उसके हाथ में बेहिसाब शक्‍ति है। उसने इन सभी आत्मिक प्राणियों की निगरानी की बागडोर, ‘सारी सृष्टि में पहिलौठे’ अपने प्रिय बेटे के हाथों में सौंपी है। (कुलुस्सियों 1:15) परमेश्‍वर के सभी दूतों, सारापों और करूबों पर प्रधान स्वर्गदूत होने के नाते यीशु, यहोवा की तमाम सृष्टि में सबसे ज़्यादा शक्‍तिशाली है।

      11, 12. (क) हम कैसे जानते हैं कि परमेश्‍वर का वचन प्रबल है? (ख) यीशु ने कैसे बताया कि यहोवा के पास ज़बरदस्त शक्‍ति है?

      11 यहोवा के पास अपनी शक्‍ति इस्तेमाल करने का एक और ज़रिया है। इब्रानियों 4:12 कहता है: “परमेश्‍वर का वचन जीवित, और प्रबल . . . है।” परमेश्‍वर का वचन ईश्‍वर-प्रेरणा से लिखा संदेश है, जो आज बाइबल में पाया जाता है। क्या आपने कभी देखा है कि बाइबल में कैसा अद्‌भुत बल या शक्‍ति है? यह हमारी हिम्मत बढ़ाती है, हमारा विश्‍वास पक्का करती है और इसकी मदद से हम अपनी ज़िंदगी में बड़े-बड़े बदलाव कर पाते हैं। प्रेरित पौलुस ने अपने मसीही भाई-बहनों को उन लोगों से दूर रहने की चेतावनी दी, जो घोर अनैतिक जीवन बिता रहे थे। उसके बाद उसने यह भी कहा: “तुम में से कितने ऐसे ही थे।” (1 कुरिन्थियों 6:9-11) जी हाँ, “परमेश्‍वर का वचन” उनकी ज़िंदगी में प्रबल हुआ था और इससे उन्हें अपनी ज़िंदगी बदलने में मदद मिली।

      12 यहोवा की शक्‍ति इतनी ज़बरदस्त है और इसे ज़ाहिर करने के ज़रिए इतने कारगर हैं कि कोई भी चीज़ यहोवा की शक्‍ति के सामने खड़ी नहीं रह सकती। यीशु ने कहा: “परमेश्‍वर से सब कुछ हो सकता है।” (मत्ती 19:26) यहोवा किन उद्देश्‍यों को पूरा करने के लिए अपनी शक्‍ति इस्तेमाल करता है?

      उद्देश्‍य से इस्तेमाल की गयी शक्‍ति

      13, 14. (क) हम क्यों कह सकते हैं कि यहोवा शक्‍ति का कोई निराकार स्रोत नहीं है? (ख) यहोवा किन तरीकों से अपनी शक्‍ति इस्तेमाल करता है?

      13 यहोवा की आत्मा, दुनिया की किसी भी शक्‍ति से कहीं ज़्यादा बलशाली है; और यहोवा खुद शक्‍ति का कोई निराकार स्रोत नहीं है, जिससे दूसरों को बस ऊर्जा मिलती है। वह एक ऐसा परमेश्‍वर है जिसकी अपनी शख्सियत है, और जिसका अपनी शक्‍ति पर पूरी तरह से काबू है। मगर, क्या बात उसे अपनी शक्‍ति इस्तेमाल करने के लिए उकसाती है?

      14 जैसा हम आगे देखेंगे, परमेश्‍वर अपनी शक्‍ति को सृष्टि करने, विनाश करने, रक्षा करने, बहाल करने के लिए—थोड़े शब्दों में कहें, तो जो काम उसके सिद्ध उद्देश्‍य के मुताबिक सही है उसे पूरा करने के लिए इस्तेमाल करता है। (यशायाह 46:10) कुछ मामलों में, यहोवा अपनी शख्सियत और अपने स्तरों के ज़रूरी पहलुओं को ज़ाहिर करने के लिए अपनी शक्‍ति इस्तेमाल करता है। सबसे बढ़कर, वह अपनी मरज़ी पूरी करवाने के लिए यानी मसीहाई राज्य के ज़रिए अपनी हुकूमत को बुलंद करने और अपने नाम को पवित्र ठहराने के लिए अपनी शक्‍ति इस्तेमाल करता है। और कोई भी चीज़, कभी इस उद्देश्‍य के आड़े नहीं आ सकती।

      15. यहोवा अपने सेवकों की खातिर किस उद्देश्‍य से अपनी शक्‍ति इस्तेमाल करता है, और एलिय्याह के मामले में यह शक्‍ति कैसे दिखायी गयी?

      15 यहोवा, अलग-अलग इंसानों की मदद करने के लिए भी अपनी शक्‍ति इस्तेमाल करता है। गौर कीजिए कि 2 इतिहास 16:9 क्या कहता है: “यहोवा की दृष्टि सारी पृथ्वी पर इसलिये फिरती रहती है कि जिनका मन उसकी ओर निष्कपट रहता है, उनकी सहायता में वह अपना सामर्थ दिखाए।” शुरूआत में बताया गया एलिय्याह का अनुभव, इसकी एक मिसाल है। यहोवा ने उसे ऐसे विस्मयकारी तरीके से अपनी शक्‍ति क्यों दिखायी? क्योंकि दुष्ट रानी ईज़ेबेल ने एलिय्याह को मौत के घाट उतारने की कसम खायी थी। और एलिय्याह अब अपनी जान बचाकर भाग रहा था। ऐसे में वह बहुत ही अकेला, डरा हुआ और निराश महसूस कर रहा था, मानो उसने जो भी मेहनत की थी वह सब बेकार चली गयी। इस दुःखी आदमी को दिलासा देने के लिए, यहोवा ने ईश्‍वरीय शक्‍ति के नज़ारे दिखाकर उसे याद दिलाया कि यहोवा कितना ताकतवर है। आँधी, भुईंडोल और आग ने दिखाया कि इस विश्‍व की सबसे शक्‍तिशाली, सबसे ताकतवर हस्ती एलिय्याह के साथ है। और जब सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर उसके साथ है, तो एलिय्याह को ईज़ेबेल से खौफ खाने की क्या ज़रूरत?—1 राजा 19:1-12.b

      16. यहोवा की महाशक्‍ति के बारे में सोचकर हम क्यों दिलासा पा सकते हैं?

      16 हालाँकि यहोवा अब चमत्कार नहीं करता, मगर जैसा वह एलिय्याह के दिनों में था वैसा ही आज भी है। (1 कुरिन्थियों 13:8) वह आज भी चाहता है कि अपनी शक्‍ति उन लोगों की खातिर इस्तेमाल करे जो उससे प्रेम करते हैं। माना कि वह सर्वोच्च आत्मिक लोक में रहता है, मगर वह हमसे दूर नहीं है। उसकी शक्‍ति असीम है, इसलिए दूरी उसके लिए कोई बाधा नहीं है। इसके बजाय, “जितने यहोवा को पुकारते हैं, . . . उन सभों के वह निकट रहता है।” (भजन 145:18) एक बार जब भविष्यवक्‍ता दानिय्येल ने मदद के लिए यहोवा को पुकारा, तो उसकी प्रार्थना खत्म होने से पहले ही, एक स्वर्गदूत उसकी मदद के लिए सामने आ खड़ा हुआ! (दानिय्येल 9:20-23) यहोवा जिनसे प्रेम करता है, उनकी मदद करने और उनकी हिम्मत बँधाने से कोई भी ताकत उसे रोक नहीं सकती।—भजन 118:6.

      परमेश्‍वर की शक्‍ति, उसके करीब आने में बाधा?

      17. किस अर्थ में यहोवा की शक्‍ति हमारे अंदर भय पैदा करती है, मगर यह किस किस्म का डर पैदा नहीं करती?

      17 परमेश्‍वर की ऐसी शक्‍ति की वजह से क्या हमें उससे डरना चाहिए? इसका जवाब हाँ भी है और ना भी। हाँ इसलिए कि इस गुण से हमें उसका भय मानने की कई वजह मिलती हैं। यह एक गहरा विस्मय और आदर है जिसके बारे में हमने चंद शब्दों में पिछले अध्याय में चर्चा की थी। बाइबल कहती है, ऐसा भय “बुद्धि का मूल” या शुरूआत है। (भजन 111:10) हम, ना में इसलिए जवाब देते हैं कि परमेश्‍वर की शक्‍ति की वजह से हमें खौफ नहीं खाना चाहिए, ना ही उसके पास आने से डरना चाहिए।

      18. (क) बहुत-से लोग ताकतवर इंसानों पर क्यों भरोसा नहीं करते? (ख) हम कैसे जानते हैं कि यहोवा अपनी शक्‍ति की वजह से भ्रष्ट नहीं हो सकता?

      18 इतिहास ने बार-बार इस बात का सबूत दिया है कि असिद्ध इंसान अकसर ताकत का गलत इस्तेमाल करते हैं। ऐसा लगता है कि ताकत पाते ही लोग भ्रष्ट होने लगते हैं और उनके पास जितनी ज़्यादा ताकत होती है उतना ही ज़्यादा वे भ्रष्ट होते जाते हैं। (सभोपदेशक 4:1; 8:9) इस वजह से, जिनके पास ताकत होती है बहुत-से लोग उन पर भरोसा नहीं करते और उनसे दूर ही रहते हैं। यहोवा सबसे ज़्यादा ताकतवर है यानी उसके पास समस्त अधिकार है। तो क्या इसका मतलब यह है कि वह भी किसी तरह भ्रष्ट है? बिलकुल नहीं! जैसा हमने देखा है, वह पवित्र है और उसमें ज़रा भी खोट नहीं। यहोवा इस भ्रष्ट संसार के असिद्ध इंसानों से एकदम अलग है। उसने कभी-भी अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल नहीं किया और ना ही कभी करेगा।

      19, 20. (क) यहोवा अपनी शक्‍ति ज़ाहिर करता है, तो यह किन गुणों के साथ मेल खाती है, और यह जानकर हमें हौसला क्यों मिलता है? (ख) यहोवा के आत्म-संयम को आप एक उदाहरण देकर कैसे समझा सकते हैं, और यह गुण आपको क्यों अच्छा लगता है?

      19 याद रखिए कि यहोवा में सिर्फ शक्‍ति का गुण नहीं है। हमें अभी उसके न्याय, उसकी बुद्धि और उसके प्रेम के बारे में अध्ययन करना है। मगर हमें यह नहीं मान लेना चाहिए कि यहोवा के गुण बड़े ही सख्त और मशीनी अंदाज़ में ज़ाहिर होते हैं, मानो वह एक वक्‍त पर एक ही गुण ज़ाहिर करता है। इसके उलटे, हम आगे के अध्यायों में देख पाएँगे कि यहोवा हर वक्‍त अपनी शक्‍ति ऐसे ज़ाहिर करता है कि यह उसकी बुद्धि, उसके न्याय और प्रेम के साथ मेल खाए। परमेश्‍वर के एक और गुण पर ध्यान दीजिए, जो इस संसार के शासकों में विरले ही देखने को मिलता है, वह है आत्म-संयम।

      20 कल्पना कीजिए कि आप एक ऐसे आदमी से मिलते हैं जो बहुत ही लंबा-चौड़ा और ताकतवर है, इतना कि आप उसे देखकर घबरा जाते हैं। लेकिन, कुछ वक्‍त के बाद आप जान पाते हैं कि उसका व्यवहार बहुत कोमल है। वह हमेशा मौके ढूँढ़ता है ताकि अपनी ताकत से खासकर कमज़ोर और बेसहारा लोगों की मदद करे और उनकी रक्षा कर सके। वह अपनी ताकत का कभी गलत इस्तेमाल नहीं करता। आप देखते हैं कि उसे बेवजह बदनाम किया गया है, फिर भी वह अपना आपा नहीं खोता बल्कि शांत रहता है और दूसरों के साथ प्यार से पेश आता है। आप सोचने लगते हैं कि अगर आप उसकी जगह होते, तो क्या आप भी ऐसी ही कोमलता और ऐसा ही संयम दिखा पाते, खासकर अगर आपके पास भी उसके जैसी ताकत होती! जब आप उस आदमी को और करीब से जानने लगते हैं, तो क्या वह आपको अच्छा नहीं लगने लगता? लेकिन जब सर्वशक्‍तिमान यहोवा की बात आती है, तो हमारे पास उसके करीब आने की इससे भी बढ़कर वजह हैं। इस अध्याय का शीर्षक जहाँ से लिया गया है उस पूरे वाक्य पर गौर कीजिए: “यहोवा विलम्ब से क्रोध करनेवाला और बड़ा शक्‍तिमान है।” (तिरछे टाइप हमारे; नहूम 1:3) यहोवा लोगों के खिलाफ जल्दबाज़ी में अपनी शक्‍ति इस्तेमाल नहीं करता, यहाँ तक कि दुष्टों के खिलाफ भी नहीं। वह कोमल स्वभाव का है और करुणा दिखाता है। भड़काए जाने पर भी, वह “विलम्ब से क्रोध” करनेवाला साबित हुआ है।—भजन 78:37-41.

      21. यहोवा क्यों अपनी मरज़ी दूसरों पर थोपने से दूर रहता है, और इससे हम उसके बारे में क्या सीखते हैं?

      21 अब यहोवा के आत्म-संयम के एक और पहलू पर गौर कीजिए। अगर आपके पास बेहिसाब शक्‍ति होती, तो क्या आपको नहीं लगता कि आप कभी-कभी लोगों से वही करवाना चाहते जो आपकी मरज़ी है? यहोवा के पास इतनी शक्‍ति होने के बावजूद वह ज़बरदस्ती लोगों से अपनी सेवा नहीं करवाता। हालाँकि उसकी सेवा करना ही अनंत जीवन हासिल करने का एकमात्र रास्ता है, फिर भी वह यह सेवा करवाने के लिए किसी के साथ ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं करता। इसके बजाय, वह हर इंसान का लिहाज़ करता है और उसे चुनने की आज़ादी देता है। वह गलत चुनाव करने के अंजाम के बारे में हमें आगाह करता है और अच्छे चुनाव करने के फायदे बताता है। मगर वह हमें खुद चुनाव करने देता है। (व्यवस्थाविवरण 30:19, 20) यहोवा को ऐसी सेवा हरगिज़ मंज़ूर नहीं जो दबाव में आकर या उसकी अपार शक्‍ति से खौफ खाकर की जाए। वह उन लोगों को ढूँढ़ता है जो प्रेम की खातिर और खुशी-खुशी उसकी सेवा करते हैं।—2 कुरिन्थियों 9:7.

      22, 23. (क) किस तरह पता लगता है कि यहोवा दूसरों को शक्‍ति देने से खुशी पाता है? (ख) अगले अध्याय में हम किस बात पर ध्यान देंगे?

      22 आइए अब एक आखिरी वजह देखें कि क्यों हमें सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर से खौफ नहीं खाना चाहिए। ताकतवर इंसान, दूसरों को अधिकार देने से अकसर घबराते हैं। मगर, यहोवा अपने वफादार उपासकों को शक्‍ति देने से खुशी पाता है। उसने दूसरों को, जैसे कि अपने बेटे को काफी अधिकार दिया है। (मत्ती 28:18) यहोवा एक और तरीके से अपने सेवकों को शक्‍ति देता है। बाइबल समझाती है: “हे यहोवा! महिमा, पराक्रम, शोभा, सामर्थ्य और विभव, तेरा ही है; क्योंकि आकाश और पृथ्वी में जो कुछ है, वह तेरा ही है; . . . सामर्थ्य और पराक्रम तेरे ही हाथ में हैं, और सब लोगों को बढ़ाना और बल देना तेरे हाथ में है।”—1 इतिहास 29:11, 12.

      23 जी हाँ, आपको बल देने में यहोवा को खुशी होगी। यहाँ तक कि जो उसकी सेवा करना चाहते हैं, वह उन्हें “असीम सामर्थ” देता है। (2 कुरिन्थियों 4:7) ऐसा बलवंत परमेश्‍वर जो इतनी करुणा से और उसूलों के मुताबिक अपनी शक्‍ति इस्तेमाल करता हो, क्या आपका मन नहीं करता कि उसके करीब आएँ? अगले अध्याय में, हम इस पर खास ध्यान देंगे कि यहोवा अपनी शक्‍ति, सृष्टि के कामों के लिए कैसे इस्तेमाल करता है।

      a जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “सर्वशक्‍तिमान” किया गया है, उसका शाब्दिक अर्थ है “सब पर राज करनेवाला; जिसके पास समस्त शक्‍ति हो।”

      b बाइबल बताती है कि “यहोवा उस आन्धी में . . . उस भूंईडोल में . . . उस आग में न था।” (तिरछे टाइप हमारे।) कई उपासक प्रकृति की शक्‍तियों को देवी-देवता मानकर उनकी पूजा करते हैं, मगर यहोवा के सेवक यह नहीं मानते कि वह इन प्राकृतिक शक्‍तियों में वास करता है। वह इतना महान है कि अपने हाथों से बनायी किसी भी चीज़ में वह नहीं समा सकता।—1 राजा 8:27.

      मनन के लिए सवाल

      • 2 इतिहास 16:7-13 राजा आसा की मिसाल कैसे दिखाती है कि यहोवा की शक्‍ति पर भरोसा न रखने का बहुत बुरा अंजाम होता है?

      • भजन 89:6-18 यहोवा की शक्‍ति का उसके उपासकों पर क्या असर होता है?

      • यशायाह 40:10-31 यहाँ यहोवा की शक्‍ति का वर्णन कैसे किया गया है, यह शक्‍ति कितनी है, और इसका फायदा हममें से हरेक को कैसे हो सकता है?

      • प्रकाशितवाक्य 11:16-18 यहोवा ने भविष्य में अपनी शक्‍ति का इस्तेमाल किस तरह करने का वादा किया है, और इससे सच्चे मसीहियों को कैसे दिलासा मिलता है?

  • सृजने की शक्‍ति—‘आकाश और पृथ्वी का कर्त्ता’
    यहोवा के करीब आओ
    • सूरज में बहुत ऊर्जा है

      अध्याय 5

      सृजने की शक्‍ति—‘आकाश और पृथ्वी का कर्त्ता’

      1, 2. सूरज से यहोवा की सृजने की शक्‍ति कैसे दिखायी देती है?

      क्या आप कभी सर्दियों की रात में आग तापने के लिए खड़े हुए हैं? आपने अपने हाथ आग से सही दूरी पर रखे होंगे। जब आप आग के थोड़ा नज़दीक जाते होंगे, तो उसकी तपिश बरदाश्‍त नहीं होती होगी। और जब आप थोड़ा पीछे हटने लगे, तो आपकी पीठ पर लगनेवाली रात की ठंडी हवा से आप ठिठुरने लगे होंगे।

      2 दिन के वक्‍त ऐसी ही एक “आग” हमारे शरीर को गरमी पहुँचाती है। यह “आग” लगभग 15 करोड़ किलोमीटर दूर जल रही है!a वह आग है, सूरज। सोचिए तो सूरज में कितनी ऊर्जा होगी कि आप इतनी दूरी से उसकी गरमी महसूस कर सकते हैं! हमारी धरती परमाणु ऊर्जा के उस धधकते भट्ठे से बिलकुल सही दूरी पर अपनी कक्षा में चक्कर लगाती है। अगर यह सूरज के थोड़ा भी पास होती तो इसका सारा पानी भाप बनकर उड़ जाता; वहीं अगर थोड़ी दूर होती तो सारा पानी जमकर बर्फ बन जाता। दोनों हालात में हमारे ग्रह पर जीवन का कायम रहना नामुमकिन होता। सूरज की धूप, धरती पर जीवन के लिए बेहद ज़रूरी है। सूरज जब यह धूप पैदा करता है, तो इससे कोई प्रदूषण नहीं होता, ना ही कोई और नुकसान। और खिली हुई धूप से मिलनेवाले सुख के तो वाह, क्या कहने!—सभोपदेशक 11:7.

      यहोवा ने ही “सूर्य और चन्द्रमा को . . . स्थिर किया है”

      3. सूरज किस अहम सच्चाई का सबूत देता है?

      3 हालाँकि इंसान की ज़िंदगी सूरज पर निर्भर है, फिर भी बहुत-से लोग इसकी कदर नहीं करते। इसलिए, सूरज हमें जो सिखा सकता है, उसे वे सीखने से चूक जाते हैं। यहोवा के बारे में बाइबल कहती है: “सूर्य और चन्द्रमा को तू ने स्थिर किया है।” (भजन 74:16) जी हाँ, सूरज ‘आकाश और पृथ्वी के कर्त्ता’ यहोवा को सम्मान दिलाता है। (भजन 19:1; 146:6) यह आकाश के उन अनगिनित पिंडों में से एक है, जो यहोवा की सृजने की असीम शक्‍ति के बारे में हमें सिखाते हैं। आइए हम इन पिंडों की और उसके बाद अपनी पृथ्वी और इस पर फलने-फूलनेवाले जीवन की नज़दीकी से जाँच करें।

      “अपनी आंखें ऊपर उठाकर देखो”

      4, 5. (क) सूरज में कितनी ऊर्जा है, और यह कितना बड़ा है? (ख) दूसरे तारों के मुकाबले सूरज का आकार कैसा है?

      4 आप शायद जानते होंगे कि हमारा सूरज एक तारा है। रात में हम जिन तारों को देखते हैं उनसे यह कई गुना बड़ा नज़र आता है, क्योंकि सूरज उन तारों के मुकाबले हमारी धरती के काफी नज़दीक है। इसमें कितनी ऊर्जा है? सूरज के केंद्र का तापमान लगभग 1 करोड़ 50 लाख सेंटीग्रेड है। अगर आप सूरज के केंद्र से सुई की नोक के आकार का टुकड़ा लें और इस धरती पर रखें, तो आप इसके आस-पास 140 किलोमीटर के दायरे में खड़े नहीं हो सकते! हर सेकंड, सूरज इतनी ऊर्जा पैदा करता है जितनी करोड़ों न्यूक्लियर बमों के फटने से निकलती है।

      5 सूरज इतना बड़ा है कि इसमें हमारे जैसी 13 लाख से भी ज़्यादा पृथ्वियाँ समा सकती हैं। तो क्या इसका मतलब यह है कि बाकी तारों के मुकाबले सूरज बहुत ही बड़ा तारा है? नहीं, इसके बजाय खगोल-वैज्ञानिक इसे पीला बौना कहते हैं। प्रेरित पौलुस ने लिखा कि “एक तारे से दूसरे तारे के तेज में अन्तर है।” (1 कुरिन्थियों 15:41) पौलुस को शायद इस बात का एहसास नहीं था कि इन ईश्‍वर-प्रेरित शब्दों में कितनी बड़ी सच्चाई छिपी है। अंतरिक्ष का एक तारा इतना बड़ा है कि अगर उसे सूरज की जगह रखा जाए तो पृथ्वी उस तारे के अंदर होगी। एक और तारा इतना विशाल है कि अगर उसे सूरज की जगह रखा जाए तो शनि ग्रह भी इसके अंदर होगा। गौर कीजिए, शनि ग्रह हमारी धरती से इतना दूर है कि एक अंतरिक्ष यान को वहाँ पहुँचने में चार साल लगे, जबकि उसकी रफ्तार पिस्तौल से निकली गोली से 40 गुना तेज़ थी!

      6. बाइबल कैसे दिखाती है कि तारों को गिनना इंसान के बस के बाहर है?

      6 तारों के आकार से ज़्यादा उनकी संख्या हमें हैरानी में डाल देती है। दरअसल बाइबल कहती है कि तारे अनगिनित हैं, उन्हें गिनना उतना ही मुश्‍किल है जितना कि “समुद्र की बालू के किनकों” को। (यिर्मयाह 33:22) आयत के इन शब्दों से यह पता चलता है कि हम अपनी आँखों से जितने तारे देख सकते हैं, उनसे कहीं ज़्यादा तारे असल में मौजूद हैं। और फिर, अगर यिर्मयाह जैसे बाइबल के किसी लेखक ने रात में आकाश के तारों को गिनने की कोशिश की होगी, तो वह सिर्फ तीन हज़ार के करीब तारे गिन पाया होगा, क्योंकि इंसान की आँखें साफ आसमान में इतने ही तारे देख सकती हैं। यह संख्या समुद्र किनारे की बालू का बस मुट्ठी-भर है। जबकि सच तो यह है कि तारों की गिनती भी समुद्र के किनारे पड़ी रेत के कणों की तरह बेहिसाब है।b फिर, कौन उनकी सही गिनती कर सकता है?

      आकाश के अनगिनत तारें और मंदाकिनियाँ

      “वह . . . उन सब को नाम ले लेकर बुलाता है”

      7. (क) हमारी आकाशगंगा में लगभग कितने तारे हैं, और यह संख्या कितनी बड़ी है? (फुटनोट देखिए।) (ख) खगोल-वैज्ञानिक मंदाकिनियों की सही-सही गिनती करना मुश्‍किल पाते हैं, यह बात गौर करने लायक क्यों है और इससे हमें यहोवा की सृजने की शक्‍ति के बारे में क्या पता चलता है?

      7 यशायाह 40:26 जवाब देता है: “अपनी आंखें ऊपर उठाकर देखो, किस ने इनको सिरजा? वह इन गणों को गिन गिनकर निकालता, उन सब को नाम ले लेकर बुलाता है?” भजन 147:4 कहता है: “वह तारों को गिनता . . . है।” ‘तारों की गिनती’ कितनी है? इसका जवाब देना आसान नहीं। खगोल-वैज्ञानिकों का अनुमान है कि अकेले हमारी मंदाकिनी या आकाशगंगा में 100 अरब से ज़्यादा तारे हैं।c मगर हमारी आकाशगंगा जैसी ढेरों मंदाकिनियाँ हैं और उनमें इससे भी कहीं ज़्यादा तारे पाए जाते हैं। अंतरिक्ष में कुल कितनी मंदाकिनियाँ हैं? कुछ खगोल-वैज्ञानिकों का अनुमान है, 50 अरब। दूसरों का, करीब 125 अरब। जब इंसान मंदाकिनियों की गिनती नहीं कर सकता, तो उनमें से हरेक में मौजूद अरबों तारों की सही-सही गिनती भला कैसे जान सकता है। मगर, यहोवा जानता है कि उनकी गिनती कितनी है। यही नहीं, उसने हर तारे का एक नाम भी रखा है!

      8. (क) आप आकाशगंगा की विशालता के बारे में कैसे समझाएँगे? (ख) आकाशीय पिंडों की गति तय करने के लिए यहोवा ने क्या किया है?

      8 जब हम दूर-दूर तक फैली इन मंदाकिनियों के बारे में सोचते हैं, तो हमारा दिल विस्मय और श्रद्धा से भर जाता है। अनुमान लगाया गया है कि हमारी आकाशगंगा के एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुँचने में लगभग 1,00,000 प्रकाश-वर्ष लगेंगे। कल्पना कीजिए कि प्रकाश की एक किरण, हमारी आकाशगंगा के एक सिरे से 3,00,000 किलोमीटर प्रति सेकंड की ज़बरदस्त रफ्तार से चले, तो वह दूसरे सिरे तक 1,00,000 वर्ष बाद पहुँचेगी! और कुछ मंदाकिनियाँ तो हमारी आकाशगंगा से कई गुना ज़्यादा बड़ी और विशाल हैं। बाइबल कहती है कि यहोवा इस विशाल आकाश को ऐसे ‘तान देता’ है मानो यह कोई कपड़ा हो। (भजन 104:2) वही अपनी सृष्टि के लिए नियम बनाता है और उनकी गति तय करता है। अंतरिक्ष में तैर रही धूल के एक छोटे-से कण से लेकर विशालकाय मंदाकिनियों तक, हर चीज़ परमेश्‍वर के ठहराए इन नियमों से गतिमान है। (अय्यूब 38:31-33) इसलिए, वैज्ञानिक आकाश के पिंडों की गति में नज़र आनेवाले ताल-मेल की तुलना नर्तकों के समूह से करते हैं, जो अलग-अलग मुद्राओं में नाचते हैं मगर एक ही नृत्य-नाटक का भाग होते हैं! तो फिर, उसके बारे में सोचिए जिसने इनकी रचना की है। सृजने की ऐसी लाजवाब शक्‍ति रखनेवाले परमेश्‍वर के बारे में सोचकर, क्या आपका दिल श्रद्धा और विस्मय से नहीं भर जाता?

      ‘अपनी शक्‍ति से पृथ्वी को बनानेवाला’

      9, 10. हमारा सौर-मंडल, बृहस्पति, पृथ्वी और चंद्रमा जिस जगह पर हैं, उससे यहोवा की शक्‍ति कैसे ज़ाहिर होती है?

      9 यहोवा की सृजने की शक्‍ति हमारे घर, यानी हमारी पृथ्वी के मामले में साफ-साफ दिखायी देती है। इस विशाल अंतरिक्ष में उसने बहुत सोच-समझकर और बारीकी से पृथ्वी की जगह ठहरायी है। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि बहुत-सी मंदाकिनियाँ पृथ्वी जैसे ग्रह के लिए जिसमें जीवन पाया जाता है, खतरनाक हो सकती हैं। यहाँ तक कि हमारी आकाशगंगा का ज़्यादातर हिस्सा जीवन को कायम रखने के लिए नहीं बनाया गया। इसके केंद्र में तारों का झुरमुट है, इसलिए वहाँ भारी मात्रा में रेडिएशन निकलता है और अकसर चक्कर काटते तारे करीब-करीब टकराने की स्थिति में आ जाते हैं। दूसरी तरफ, आकाशगंगा के बाहरी किनारे पर ऐसे कई तत्त्व मौजूद नहीं हैं, जो ज़िंदगी के लिए बेहद ज़रूरी हैं। हमारा सौर-मंडल न तो आकाशगंगा के केंद्र में है, ना ही इसके बाहरी किनारे पर। इसे बिलकुल ठीक जगह पर रखा गया है।

      10 हमारी पृथ्वी की रक्षा विशालकाय बृहस्पति ग्रह से होती है। यह पृथ्वी से दूर है, लेकिन इससे एक हज़ार गुना से भी ज़्यादा बड़ा है। इसलिए इसका गुरुत्वाकर्षण बल बहुत ज़बरदस्त है। इसका नतीजा? अंतरिक्ष में तेज़ी से उड़नेवाले पिंडों को यह अपने बल से अपनी तरफ खींच लेता है या फिर उनकी दिशा बदल देता है। वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि अगर बृहस्पति ग्रह न होता, तो आज के मुकाबले 10,000 गुना ज़्यादा पिंड धरती से आ टकराते। इसके अलावा, पृथ्वी के पास ही एक अनोखा उपग्रह है जिससे पृथ्वी को फायदा होता है। जी हाँ, यह है चंद्रमा। चंद्रमा न सिर्फ देखने में खूबसूरत है और हमें “चाँदनी” देता है बल्कि यह पृथ्वी को एक खास कोण पर लगातार झुकाए रखता है। इस कोण पर रहने की वजह से पृथ्वी पर हर साल निश्‍चित समय पर मौसम आते हैं, और अपने साथ-साथ धरती के प्राणियों के लिए सही वक्‍त पर ढेरों आशीषें लाते हैं।

      11. पृथ्वी के वायुमंडल को कैसे एक रक्षा करनेवाली छतरी की तरह बनाया गया है?

      11 यहोवा की सृजने की शक्‍ति पृथ्वी की बनावट के हर पहलू से ज़ाहिर होती है। इसके वायुमंडल पर ध्यान दीजिए, जो रक्षा करनेवाली ढाल की तरह धरती को चारों तरफ से घेरे हुए है। सूरज से निकलनेवाली कई किरणें हमारे लिए फायदेमंद होती हैं, तो कई जानलेवा। जब जानलेवा किरणें पृथ्वी के वायुमंडल के ऊपरी हिस्से से टकराती हैं, तो ये साधारण ऑक्सीजन को ओज़ोन में बदल देती हैं, और इस तरह ओज़ोन गैस की एक परत बन जाती है। फिर यही परत इन खतरनाक किरणों में से ज़्यादातर को पूरी तरह सोख लेती है। तो फिर, हमारा ग्रह एक ऐसी छतरी यानी वायुमंडल के साथ बनाया गया है, जो इसकी रक्षा करता है!

      12. वायुमंडल में जल-चक्र कैसे यहोवा की शक्‍ति का सबूत देता है?

      12 यह हमारे वायुमंडल का सिर्फ एक पहलू है। हमारा वायुमंडल गैसों का ऐसा मिश्रण है, जो ज़मीन पर या हवा में रहनेवाले जीवों के फलने-फूलने के लिए बेहद ज़रूरी है। हमारे वायुमंडल का एक लाजवाब पहलू है, इसका जल-चक्र। हर साल सूरज, सागर से 4,00,000 से ज़्यादा क्यूबिक किलोमीटर पानी भाप बनाकर उठाता है। इसी भाप से बादल बनते हैं और वायुमंडल की हवाएँ इन बादलों को दूर-दूर तक उड़ाकर ले जाती हैं। अब यह पानी साफ और शुद्ध होकर, बारिश की बूंदों, हिम या बर्फ के रूप में धरती पर गिरता है जिससे जल के भंडार फिर से भर जाते हैं। यह वही चक्र है जिसके बारे में सभोपदेशक 1:7 बताता है: “सब नदियां समुद्र में जा मिलती हैं, तौभी समुद्र भर नहीं जाता; जिस स्थान से नदियां निकलती हैं, उधर ही को वे फिर जाती हैं।” सिर्फ यहोवा ऐसे चक्र की रचना कर सकता है।

      13. धरती के पेड़-पौधों और इसकी मिट्टी में हम सिरजनहार की शक्‍ति का क्या सबूत देख पाते हैं?

      13 हम जहाँ कहीं जीवन देखते हैं, वहाँ हमें सिरजनहार की शक्‍ति का सबूत मिलता है। चाहे 30-मंज़िला इमारतों जितने ऊँचे, विशाल सिकोया पेड़ हों या फिर सागर में फलने-फूलनेवाले सूक्ष्म पौधे, जिनसे हमें साँस लेने के लिए ज़्यादातर ऑक्सीजन मिलती है, हर चीज़ में हम यहोवा की सृजने की शक्‍ति का सबूत देख सकते हैं। इस धरती की मिट्टी ही न जाने कितने किस्म के कीड़ों, फफूँद और सूक्ष्म जीवियों से भरी पड़ी है। ये सभी मिलकर ऐसे जटिल तरीकों से काम करते हैं कि पौधों को बढ़ने में मदद मिलती है। इसलिए बाइबल का यह कहना एकदम सही है कि मिट्टी में उपजाने का बल है।—उत्पत्ति 4:12, फुटनोट।

      14. एक छोटे-से परमाणु में भी कितनी शक्‍ति कैद है?

      14 इसमें दो राय नहीं कि यहोवा ने “अपनी शक्‍ति से पृथ्वी बनाई” है। (यिर्मयाह 10:12, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) यहोवा की छोटी-से-छोटी सृष्टि में भी उसकी शक्‍ति ज़ाहिर होती है। मिसाल के लिए, अगर दस लाख परमाणुओं को एक-दूसरे के पास-पास रखा जाए तो वे कुल मिलाकर उतनी जगह में समा जाएँगे जितना इंसान के एक बाल की मोटाई होती है। और अगर एक परमाणु को इतना बड़ा किया जाए कि वह 14-मंज़िलोंवाली इमारत जितना बड़ा हो जाए, तो भी इसकी नाभि या न्यूक्लियस का आकार नमक के एक कण जितना होगा जो इसकी सातवीं मंज़िल पर होगा। मगर इसी सूक्ष्म न्यूक्लियस से परमाणु विस्फोट के दौरान ऐसी विनाशकारी शक्‍ति निकलती है जिसमें सबकुछ भस्म हो जाता है!

      ‘सब के सब प्राणी’

      15. तरह-तरह के जंगली जानवरों के बारे में बताकर, यहोवा ने अय्यूब को क्या सबक सिखाया?

      15 पृथ्वी पर मौजूद तरह-तरह के जीव-जंतु भी, यहोवा की सृजने की शक्‍ति का जीता-जागता सबूत हैं। भजन 148 में ऐसी कई चीज़ें बतायी गयी हैं जो यहोवा की स्तुति करती हैं और आयत 10 के मुताबिक इनमें ‘वन-पशु और सब घरैलू पशु’ भी शामिल हैं। यह समझाने के लिए कि इंसान के मन में सिरजनहार के लिए विस्मय क्यों होना चाहिए, यहोवा ने एक बार अय्यूब को सिंह, जंगली गधे, साँड़, जलगज (या, दरियाई घोड़े) और लिब्यातान (शायद मगरमच्छ) के बारे में बताया था। असल में, यहोवा उसे क्या बताना चाहता था? यही कि अगर इंसान इन शक्‍तिशाली, डरावने और जंगली जानवरों को देखकर इतना विस्मित होता है, तो इन्हें बनानेवाले के बारे में उसे कैसा महसूस करना चाहिए?—अय्यूब, अध्याय 38-41.

      16. यहोवा के बनाए हुए कुछ पक्षियों की कौन-सी खासियतें आपको अच्छी लगती हैं?

      16 भजन 148:10 में “पक्षियों” के बारे में भी बताया गया है। ज़रा सोचिए कि पक्षियों में ही कितनी किस्में पायी जाती हैं! यहोवा ने अय्यूब को शुतुरमुर्ग के बारे में बताया, जो “घोड़े और उसके सवार दोनों को कुछ नहीं” समझता। जी हाँ, यह आठ फुट ऊँचा पक्षी भले ही उड़ने के काबिल न हो, मगर यह 65 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकता है और एक ही डग में साढ़े चार मीटर की दूरी तय कर सकता है! (अय्यूब 39:13, 18) दूसरी तरफ, अल्बाट्रॉस पक्षी है जिसकी ज़्यादातर ज़िंदगी समुद्र के ऊपर उड़ते हुए बीतती है। ग्लाइडर की तरह हवा में तैरनेवाले, इस पक्षी के पंखों का फैलाव 3 मीटर तक होता है। यह बिना पंख फड़फड़ाए हवा में घंटों उड़ सकता है। मगर इन सबसे अलग, बी हमिंगबर्ड है जो दुनिया का सबसे छोटा पक्षी है और जिसकी लंबाई सिर्फ दो इंच होती है। यह पक्षी एक सेकंड में 80 बार अपने पंख फड़फड़ाता है! हमिंगबर्ड उड़ते हुए जगमगाते रत्नों जैसे लगते हैं और ये हेलीकॉप्टर की तरह हवा में मंडराते हैं और पीछे की तरफ भी उड़ सकते हैं।

      17. ब्लू व्हेल मछली कितनी बड़ी होती है, और यहोवा ने जिन जंतुओं की सृष्टि की है, उन पर ध्यान देने के बाद हमें किस नतीजे पर पहुँचना चाहिए?

      17 भजन 148:7 (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) कहता है कि ‘विशालकाय जल जन्तु’ भी यहोवा की स्तुति करते हैं। आइए एक ऐसे ही जीव पर गौर करें जिसके बारे में कहा जाता है कि यह इस धरती पर रहनेवाला सबसे बड़ा जंतु है, यानी ब्लू व्हेल। गहरे सागर की यह “विशालकाय” मछली लंबाई में 30 मीटर या उससे भी ज़्यादा हो सकती है। अकेली मछली का वज़न, तीस बड़े हाथियों के झुंड के कुल वज़न जितना होता है। सिर्फ इसकी जीभ का वज़न ही एक हाथी के बराबर होगा। इसका दिल एक छोटी कार जितना बड़ा होता है और यह एक मिनट में सिर्फ 9 बार धड़कता है, जबकि हमिंगबर्ड का दिल एक मिनट में करीब 1,200 बार धड़कता है। ब्लू व्हेल की कम-से-कम एक रक्‍त-धमनी इतनी बड़ी होती है कि एक बच्चा बड़ी आसानी से उसके अंदर घुटनों के बल चलता हुआ जा सकता है। बेशक यह सब जानकर हमारा दिल भी वही करने को उमड़ता है जिसके लिए हमें भजन की किताब के अंत में उकसाया गया है: “जितने प्राणी हैं सब के सब याह की स्तुति करें!”—भजन 150:6.

      आइए यहोवा की सृजने की शक्‍ति से सीखें

      18, 19. यहोवा ने इस धरती पर कितने अलग-अलग किस्म के जीव बनाए हैं, और सृष्टि से हम उसकी हुकूमत के बारे में क्या सीखते हैं?

      18 यहोवा ने सृजने की शक्‍ति को जिस तरह इस्तेमाल किया है, उससे हम क्या सीखते हैं? सृष्टि में जीवों की अलग-अलग किस्म देखकर हम दंग रह जाते हैं। एक भजनहार ने ताज्जुब करते हुए कहा: “हे यहोवा तेरे काम अनगिनित हैं! . . . पृथ्वी तेरी सम्पत्ति से परिपूर्ण है।” (भजन 104:24) यह कितना सच है! जीव-विज्ञानियों ने कहा है कि इस धरती पर दस लाख से ज़्यादा अलग-अलग किस्म के प्राणी रहते हैं; लेकिन, कई यह भी कहते हैं कि धरती पर शायद प्राणियों की एक या तीन करोड़ या शायद उससे ज़्यादा किस्में मौजूद हैं। कभी-कभी एक कलाकार को लगता है कि उसकी कला एक ढर्रा बनकर रह गयी है, और उसमें कोई ताज़गी और नयापन नहीं है। मगर, यहोवा की रचना-शक्‍ति—नयी और अलग-अलग चीज़ों की ईजाद करने और बनाने की काबिलीयत से कभी खाली नहीं हो सकती।

      19 यहोवा अपनी सृजने की शक्‍ति जिस तरह इस्तेमाल करता है, उससे हम उसकी हुकूमत के बारे में कुछ सीखते हैं। शब्द “सिरजनहार” ही यहोवा को इस विश्‍व की बाकी तमाम चीज़ों से अलग करता है, क्योंकि वे सब उसकी “सृष्टि” हैं। यहोवा के एकलौते बेटे ने सृष्टि के दौरान “कुशल कारीगर” की तरह काम किया था। मगर उसे भी बाइबल में सिरजनहार या सहायक सिरजनहार नहीं कहा गया। (नीतिवचन 8:30; मत्ती 19:4) इसके बजाय, वह “सारी सृष्टि में पहिलौठा है।” (तिरछे टाइप हमारे; कुलुस्सियों 1:15) सिरजनहार की हैसियत से अकेले यहोवा को ही सारे जहान पर हुकूमत करने का हक है।—रोमियों 1:20; प्रकाशितवाक्य 4:11.

      20. पृथ्वी की सृष्टि खत्म करने के बाद किस अर्थ में यहोवा ने विश्राम किया है?

      20 क्या यहोवा ने अपनी सृजने की शक्‍ति का इस्तेमाल करना बंद कर दिया है? बाइबल बताती है कि यहोवा ने सृष्टि के छठे दिन जब सृजने का सारा काम खत्म किया, तब “उस ने अपने किए हुए सारे काम से सातवें दिन विश्राम किया।” (उत्पत्ति 2:2) प्रेरित पौलुस ने संकेत दिया कि यह सातवाँ “दिन” हज़ारों साल लंबा था, क्योंकि यह दिन पौलुस के दिनों में भी चल रहा था। (इब्रानियों 4:3-6) लेकिन, क्या “विश्राम” करने का यह मतलब है कि यहोवा ने काम करना बिलकुल ही बंद कर दिया? जी नहीं, यहोवा कभी-भी काम करना बंद नहीं करता। (भजन 92:4; यूहन्‍ना 5:17) तो फिर उसका विश्राम करने का मतलब है कि उसने सिर्फ पृथ्वी पर भौतिक सृष्टि करने का काम रोक दिया। मगर, उसके उद्देश्‍यों को पूरा करने का काम आज तक बिना किसी रुकावट के जारी है। इनमें से एक काम जो उसने किया, वह है पवित्र शास्त्र लिखने के लिए इंसानों को प्रेरित करना। उसने एक “नई सृष्टि” की भी रचना की है, जिसके बारे में हम 19वें अध्याय में चर्चा करेंगे।—2 कुरिन्थियों 5:17.

      21. यहोवा की सृजने की शक्‍ति का वफादार इंसानों पर अनंतकाल तक क्या असर होगा?

      21 जब यहोवा का विश्राम दिन आखिरकार खत्म होगा, तब वह इस धरती पर अपने सारे काम के बारे में यह ऐलान कर सकेगा कि “बहुत ही अच्छा है,” ठीक वैसे ही जैसे उसने सृष्टि के छः दिनों के आखिर में कहा था। (उत्पत्ति 1:31) उसके बाद वह सृजने की अपनी असीम शक्‍ति को किस तरह इस्तेमाल करना चाहेगा यह देखने के लिए हमें इंतज़ार करना होगा। जो भी हो, हम इस बात का यकीन रख सकते हैं कि यहोवा अपनी सृजने की शक्‍ति का इस्तेमाल करके, हमेशा ही हमें हैरत में डालता रहेगा। अनंतकाल तक, हम यहोवा की सृष्टि के ज़रिए उसके बारे में और ज़्यादा सीखते रहेंगे। (सभोपदेशक 3:11) उसके बारे में हम जितना ज़्यादा सीखेंगे, उसके लिए हमारी विस्मय की भावना और भी गहरी होती जाएगी और इससे हम अपने महान सिरजनहार के और भी करीब आते जाएँगे।

      a इतनी बड़ी संख्या को समझने के लिए सोचिए: एक गाड़ी से सूरज तक की दूरी तय करने के लिए, अगर आप 160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चौबीसों घंटे गाड़ी चलाएँ, तब भी आपको वहाँ तक पहुँचने में 100 से ज़्यादा साल लगेंगे!

      b कुछ लोग कहते हैं कि बाइबल के ज़माने में लोगों के पास पुराने किस्म की कोई दूरबीन रही होगी। वरना, वे कैसे जान सकते थे कि तारों की गिनती इतनी ज़्यादा है कि इंसान उसका हिसाब नहीं लगा सकता? ऐसी बेबुनियाद अटकल लगानेवाले, यह कबूल करने से इनकार कर देते हैं कि बाइबल को यहोवा परमेश्‍वर ने लिखवाया है, और यह उसी का वचन है।—2 तीमुथियुस 3:16.

      c गौर कीजिए कि आपको 100 अरब तारों को सिर्फ गिनने में कितना वक्‍त लगेगा। अगर आप हर सेकंड एक नए तारे को गिनें और चौबीसों घंटे गिनते रहें, तो आपको इसमें 3,171 साल लगेंगे!

      मनन के लिए सवाल

      • भजन 8:3-9 यहोवा की सृष्टि कैसे हमें नम्रता का सबक सिखाती है?

      • भजन 19:1-6 यहोवा की सृजने की शक्‍ति हमें क्या करने को उकसाती है, और क्यों?

      • मत्ती 6:25-34 यहोवा की सृजने की शक्‍ति को समझने से हमें कैसे चिंताओं पर काबू पाने और ज़िंदगी में ज़रूरी बातों को पहला स्थान देने में मदद मिलती है?

      • प्रेरितों 17:22-31 यहोवा की सृजने की शक्‍ति के काम देखकर, कैसे हम सीखते हैं कि मूर्तिपूजा गलत है और कि परमेश्‍वर हमसे दूर नहीं है?

  • विनाशकारी शक्‍ति—“यहोवा योद्धा है”
    यहोवा के करीब आओ
    • यहोवा परमेश्‍वर मगरूर फिरौन और उसकी मिस्री सेना को लाल सागर में मार डालता है

      अध्याय 6

      विनाशकारी शक्‍ति—“यहोवा योद्धा है”

      1-3. (क) इस्राएलियों को मिस्रियों से क्या खतरा था? (ख) यहोवा अपने लोगों के लिए कैसे लड़ा?

      इस्राएली बुरी तरह फँस चुके थे। उनके एक तरफ दुर्गम, ऊँची पहाड़ियाँ थीं और दूसरी तरफ हिलोरें मारता सागर, जिसे पार करना नामुमकिन था। मिस्र की सेना वहशियों की तरह उनका पीछा कर रही थी और उसने मानो इस्राएलियों का नामो-निशान मिटाने की कसम खा ली थी।a फिर भी, मूसा ने परमेश्‍वर के लोगों से उम्मीद न खोने की बिनती की। उसने उन्हें यकीन दिलाया: “यहोवा आप ही तुम्हारे लिये लड़ेगा।”—निर्गमन 14:14.

      2 फिर भी, मूसा मदद के लिए यहोवा को पुकारने लगा और परमेश्‍वर ने उससे कहा: “तू क्यों मेरी दोहाई दे रहा है? . . . तू अपनी लाठी उठाकर अपना हाथ समुद्र के ऊपर बढ़ा, और वह दो भाग हो जाएगा।” (निर्गमन 14:15, 16) उसके बाद जो हुआ उस नज़ारे की कल्पना कीजिए। यहोवा ने फौरन अपने दूत को आज्ञा दी और बादल का खंभा उठकर इस्राएलियों के पीछे चला गया और एक दीवार की तरह फैल गया। मिस्रियों की बढ़ती सेना वहीं रुक गयी, और इस दीवार को पार ना कर सकी। (निर्गमन 14:19, 20; भजन 105:39) तब मूसा ने समुद्र की तरफ अपना हाथ बढ़ाया। एक ज़बरदस्त हवा चलने लगी जिसने समुद्र को दो भागों में बाँटकर बीच में से रास्ता बना दिया। इसके दोनों तरफ पानी एक दीवार की तरह जमकर खड़ा रहा। समुद्र के बीच का रास्ता इतना चौड़ा था कि पूरी इस्राएली जाति आराम से इसमें से होकर पार निकल सकती थी!—निर्गमन 14:21; 15:8.

      3 अपनी आँखों से परमेश्‍वर की शक्‍ति का ऐसा ज़बरदस्त नज़ारा देखने के बाद फिरौन को अपनी फौजों को वापस मिस्र लौट चलने का हुक्म देना चाहिए था। लेकिन मगरूर फिरौन को यह हरगिज़ मंज़ूर नहीं था, इसलिए उसने इस्राएलियों पर हमला बोलने का आदेश दिया। (निर्गमन 14:23) मिस्री फौजें तूफान की तरह सीधे समुद्र के बीच घुस गयीं, लेकिन उनके रथों के पहिए निकल-निकलकर गिरने लगे और सेना के बीच हा-हाकार मचने लगा। दूसरी तरफ, जैसे ही इस्राएली सही-सलामत किनारे पर पहुँचे, यहोवा ने मूसा को यह आज्ञा दी: “अपना हाथ समुद्र के ऊपर बढ़ा, कि जल मिस्रियों, और उनके रथों, और सवारों पर फिर बहने लगे।” समुद्र के बीच पानी की दीवारें टूटने लगीं और फिरौन और उसकी सारी सेना उसमें डूब मरी!—निर्गमन 14:24-28; भजन 136:15.

      लाल सागर पर यहोवा ने खुद को एक “योद्धा” साबित किया

      4. (क) लाल सागर पर यहोवा ने खुद को क्या साबित किया? (ख) यहोवा को इस रूप में देखकर कुछ लोग शायद कैसा महसूस करें?

      4 लाल सागर पर इस्राएलियों का छुटकारा, इंसान के साथ परमेश्‍वर के व्यवहार की एक यादगार घटना थी। वहाँ यहोवा ने साबित कर दिखाया था कि वह एक “योद्धा है।” (निर्गमन 15:3) लेकिन यहोवा को एक योद्धा के रूप में देखकर आपको कैसा लगता है? सच पूछिए तो युद्धों ने लोगों को दुःख और पीड़ाओं के सिवा और कुछ नहीं दिया। क्या परमेश्‍वर की इन विनाशकारी शक्‍तियों को देखकर आप उसके करीब आने के बजाय उससे दूरी बनाए रखना चाहते हैं?

      परमेश्‍वर के युद्ध और इंसानी लड़ाइयाँ

      5, 6. (क) यहोवा को ‘सेनाओं का यहोवा’ कहना सही क्यों है? (ख) परमेश्‍वर के युद्धों में और इंसानी लड़ाइयों में क्या फर्क है?

      5 बाइबल की मूल भाषाओं में, इब्रानी शास्त्र में करीब तीन सौ बार और मसीही यूनानी शास्त्र में दो बार परमेश्‍वर को ‘सेनाओं का यहोवा’ कहा गया है। (1 शमूएल 1:11) इस पूरे जहान के महाराजाधिराज, यहोवा के पास अनगिनित स्वर्गदूतों की बड़ी सेना है। (यहोशू 5:13-15; 1 राजा 22:19) और ये सेनाएँ इतना विनाश करने के काबिल हैं जिसका कोई हिसाब नहीं। (यशायाह 37:36) इनके हाथों इंसानों का विनाश सोचना अच्छा नहीं लगता। लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि परमेश्‍वर के युद्ध, इंसानों की लड़ाइयों जैसे नहीं जो छोटी-छोटी बात पर दूसरों को बर्बाद कर देते हैं। चाहे दुनिया के सेनापति और नेता अपने युद्धों को इंसानियत की खातिर लड़ी जानेवाली जंग का दर्जा क्यों ना दें, लेकिन इंसान की हर लड़ाई के पीछे उसका लालच और स्वार्थ छिपा होता है।

      6 मगर, यहोवा जज़्बात से काम नहीं लेता। व्यवस्थाविवरण 32:4 ऐलान करता है: “वह चट्टान है, उसका काम खरा है; और उसकी सारी गति न्याय की है। वह सच्चा ईश्‍वर है, उस में कुटिलता नहीं, वह धर्मी और सीधा है।” खुद परमेश्‍वर का वचन क्रोध से बेकाबू होने, क्रूरता और हिंसा करने की सख्त निंदा करता है। (उत्पत्ति 49:7; भजन 11:5) इसलिए यहोवा कभी-भी बेवजह कोई कदम नहीं उठाता। वह अपनी विनाशकारी शक्‍ति को बहुत कम इस्तेमाल करता है और वह भी तब जब दूसरा कोई चारा न बचा हो। जैसा उसने भविष्यवक्‍ता यहेजकेल के ज़रिए कहा: “प्रभु यहोवा की यह वाणी है, क्या मैं दुष्ट के मरने से कुछ भी प्रसन्‍न होता हूं? क्या मैं इस से प्रसन्‍न नहीं होता कि वह अपने मार्ग से फिरकर जीवित रहे?”—यहेजकेल 18:23.

      7, 8. (क) जब अय्यूब को ज़ुल्म सहना पड़ा तो वह कैसे गलत सोचने लगा? (ख) इस मामले में एलीहू ने अय्यूब की सोच को कैसे सुधारा? (ग) अय्यूब के अनुभव से हम क्या सबक सीख सकते हैं?

      7 तो फिर, यहोवा अपनी विनाशकारी शक्‍ति का इस्तेमाल करता ही क्यों है? जवाब देने से पहले, आइए हम अय्यूब को याद करें जो एक धर्मी पुरुष था। शैतान ने उसके बारे में और दरअसल हर इंसान के बारे में यह सवाल उठाया कि परीक्षाओं में वह अपनी खराई बनाए नहीं रख सकेगा। शैतान के इस सवाल का जवाब देने के लिए यहोवा ने उसे अय्यूब की खराई का इम्तिहान लेने की इजाज़त दे दी। शैतान ने अय्यूब पर ज़ुल्म ढाना शुरू कर दिया, उसे बीमार कर दिया, उसकी सारी धन-दौलत छीन ली, यहाँ तक कि उसके बच्चों को मार डाला। (अय्यूब 1:1–2:8) अय्यूब इस बात से बेखबर था कि उसकी परीक्षा क्यों हो रही है, इसलिए वह सोचने लगा कि परमेश्‍वर उसे बिन बात के सज़ा दे रहा है। अय्यूब ने परमेश्‍वर से पूछा कि उसने क्यों उसे अपना “निशाना,” अपना “शत्रु” बना लिया है।—अय्यूब 7:20; 13:24.

      8 वहाँ मौजूद एलीहू नाम के एक नौजवान ने अय्यूब की गलत सोच को उजागर करते हुए कहा: “तू दावा करता है कि तेरा धर्म ईश्‍वर के धर्म से अधिक है।” (अय्यूब 35:2) जी हाँ, यह सोचना सरासर मूर्खता है कि हमें परमेश्‍वर से ज़्यादा मालूम है या उसने हमारे साथ नाइंसाफी की है। एलीहू ने यह ऐलान किया: “यह सम्भव नहीं कि ईश्‍वर दुष्टता का काम करे, और सर्वशक्‍तिमान बुराई करे।” उसने आगे कहा: “सर्वशक्‍तिमान जो अति सामर्थी है, और जिसका भेद हम पा नहीं सकते, वह न्याय और पूर्ण धर्म को छोड़ अत्याचार नहीं कर सकता।” (अय्यूब 34:10; 36:22, 23; 37:23) इसलिए हम यकीन रख सकते हैं कि जब परमेश्‍वर युद्ध करता है तो उसके पीछे एक वाजिब कारण होता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए आइए चर्चा करें कि क्यों शांति के परमेश्‍वर को कभी-कभी एक योद्धा का रूप लेना पड़ता है।—1 कुरिन्थियों 14:33.

      शांति के परमेश्‍वर को युद्ध क्यों करना पड़ता है

      9. शांति का परमेश्‍वर युद्ध क्यों करता है?

      9 परमेश्‍वर को “योद्धा” कहकर उसकी महिमा करने के बाद, मूसा ने आगे कहा: “हे यहोवा, देवताओं में तेरे तुल्य कौन है? तू तो पवित्रता के कारण महाप्रतापी . . . है।” (निर्गमन 15:11) यही बात हबक्कूक ने भी लिखी: “तेरी आंखें ऐसी शुद्ध हैं कि तू बुराई को देख ही नहीं सकता, और उत्पात को देखकर चुप नहीं रह सकता।” (हबक्कूक 1:13) जी हाँ, यहोवा प्रेम का परमेश्‍वर तो है ही, साथ ही वह पवित्रता, धार्मिकता और न्याय का भी परमेश्‍वर है। कई बार, उसके यही गुण उसे अपनी विनाशकारी शक्‍ति का इस्तेमाल करने के लिए उकसाते हैं। (यशायाह 59:15-19; लूका 18:7) तो फिर, जब परमेश्‍वर युद्ध करता है तो उसकी पवित्रता पर दाग नहीं लगता, बल्कि वह इसीलिए युद्ध करता है क्योंकि वह पवित्र है।—लैव्यव्यवस्था 19:2.

      10. (क) परमेश्‍वर को युद्ध लड़ने की ज़रूरत पहली बार कब और कैसे पड़ी? (ख) उत्पत्ति 3:15 में जिस दुश्‍मनी का ज़िक्र है उसे खत्म करने का एकमात्र तरीका क्या हो सकता था, और इससे धर्मी इंसानों को क्या आशीषें मिलेंगी?

      10 ज़रा गौर कीजिए कि जब पहले इंसानी जोड़े, आदम और हव्वा ने परमेश्‍वर के खिलाफ बगावत की तब कैसे हालात पैदा हो गए थे। (उत्पत्ति 3:1-6) अगर यहोवा ने उनके अधर्म के इस काम के खिलाफ कार्यवाही न की होती, तो यह पूरे विश्‍व के महाराजाधिराज की हैसियत से अपने पद को कमज़ोर करना होता। इसलिए धर्मी परमेश्‍वर होने के नाते, उन्हें मौत की सज़ा देना ज़रूरी था। (रोमियों 6:23) बाइबल की पहली भविष्यवाणी में उसने यह कह दिया था कि उसके सेवकों और “सांप” यानी शैतान के सेवकों के बीच बैर होगा। (प्रकाशितवाक्य 12:9; उत्पत्ति 3:15) आखिरकार इस दुश्‍मनी का अंत तभी होता जब शैतान को कुचल दिया जाता। (रोमियों 16:20) परमेश्‍वर की तरफ से न्याय की यह कार्यवाही इंसानों के लिए एक बड़ी आशीष साबित होगी। दुनिया को बहकाने के लिए फिर शैतान नहीं होगा और पूरी दुनिया को फिरदौस बनाने की तरफ यह पहला कदम होगा। (मत्ती 19:28) लेकिन इस बीच, वे सभी जो शैतान के हिमायती हैं, परमेश्‍वर के लोगों के लिए शारीरिक और आध्यात्मिक खतरा बने रहेंगे। और इस दौरान यहोवा को कई बार दखल देना होगा।

      परमेश्‍वर बुराई को मिटाने के लिए कदम उठाता है

      11. परमेश्‍वर के लिए पूरी धरती पर जलप्रलय लाना क्यों ज़रूरी हो गया?

      11 नूह के दिनों में आया जलप्रलय बुराई को मिटाने की परमेश्‍वर की ऐसी ही एक कार्यवाही थी। उत्पत्ति 6:11, 12 कहता है: “उस समय पृथ्वी परमेश्‍वर की दृष्टि में बिगड़ गई थी, और उपद्रव से भर गई थी। और परमेश्‍वर ने पृथ्वी पर जो दृष्टि की तो क्या देखा, कि वह बिगड़ी हुई है; क्योंकि सब प्राणियों ने पृथ्वी पर अपनी अपनी चाल चलन बिगाड़ ली थी।” क्या परमेश्‍वर दुष्टों को इतनी छूट देता कि वे धरती से अच्छाई का नामो-निशान मिटा दें? बिलकुल नहीं। जो लोग इस धरती को हिंसा और अनैतिकता से भर रहे थे, उन्हें धरती से मिटाने के लिए यह ज़रूरी हो गया कि यहोवा एक जलप्रलय लाए।

      12. (क) यहोवा ने इब्राहीम के “वंश” के बारे में क्या भविष्यवाणी की थी? (ख) अमोरियों का विनाश क्यों होना था?

      12 कनान देश के खिलाफ परमेश्‍वर का न्यायदंड भी बुराई के खिलाफ उसका एक कदम था। यहोवा ने ज़ाहिर किया था कि इब्राहीम से एक “वंश” निकलेगा और पृथ्वी की सारी जातियाँ उस वंश के द्वारा खुद को आशीष दिलाएँगी। अपने इस मकसद के मुताबिक परमेश्‍वर ने ऐलान किया कि कनान देश इब्राहीम के वंशजों को मिलेगा। इस देश में एमोरी लोग रहते थे। लेकिन इन लोगों को ज़बरदस्ती देश से निकालना परमेश्‍वर का इंसाफ कैसे होता? यहोवा ने भविष्यवाणी की कि उन्हें करीब 400 साल तक यानी जब तक “एमोरियों का अधर्म पूरा नहीं” हो जाता, तब तक नहीं निकाला जाएगा।b (उत्पत्ति 12:1-3; 13:14, 15; 15:13, 16; 22:18) इस दौरान अमोरी लोग गंदे-से-गंदे अनैतिक कामों में गिरते चले गए। सारा कनान देश मूर्तिपूजा, खून-खराबे और घिनौने लैंगिक कामों का अड्डा बन गया। (निर्गमन 23:24; 34:12, 13; गिनती 33:52) वहाँ रहनेवाले लोग अपने बच्चों को आग में बलि चढ़ाते थे। क्या एक पवित्र परमेश्‍वर अपने लोगों को इतनी दुष्टता के बीच रहने देता? हरगिज़ नहीं। उसने यह फैसला सुनाया: “उनका देश . . . अशुद्ध हो गया है, इस कारण मैं उस पर उसके अधर्म का दण्ड देता हूं, और वह देश अपने निवासियों को उगल देता है।” (लैव्यव्यवस्था 18:21-25) यहोवा ने उन लोगों को अँधाधुंध मारना शुरू नहीं किया। राहाब और गिबोनियों जैसे अच्छे दिल के कनानियों को बख्श दिया गया।—यहोशू 6:25; 9:3-27.

      अपने नाम की खातिर युद्ध लड़ना

      13, 14. (क) क्यों यह ज़रूरी हो गया कि यहोवा अपने नाम को पवित्र करे? (ख) इस्राएलियों के मामले में, यहोवा ने अपने नाम की बदनामी को कैसे दूर किया?

      13 यहोवा पवित्र है, इसलिए उसका नाम भी पवित्र है। (लैव्यव्यवस्था 22:32) यीशु ने अपने चेलों को यह प्रार्थना करना सिखाया था: “तेरा नाम पवित्र माना जाए।” (मत्ती 6:9) अदन की वाटिका में परमेश्‍वर के नाम पर कलंक लगाया गया, परमेश्‍वर की इज़्ज़त पर कीचड़ उछाला गया और उसके राज करने के तरीके को गलत बताया गया। यहोवा ऐसे घिनौने झूठ और बगावत को कतई बर्दाश्‍त नहीं कर सकता था। यह ज़रूरी हो गया कि वह अपने नाम पर लगे इस कलंक को मिटाए।—यशायाह 48:11.

      14 एक बार फिर इस्राएलियों के बारे में सोचिए। जब तक वे मिस्र में गुलाम थे तब तक इब्राहीम से परमेश्‍वर का यह वादा एकदम खोखला लगता था कि उसके वंश से दुनिया की सारी जातियाँ खुद को आशीष दिलाएँगी। लेकिन उन्हें मिस्र से छुटकारा दिलाकर और जाति बनाकर यहोवा ने अपने नाम से इस बदनामी को दूर किया। इसलिए भविष्यवक्‍ता दानिय्येल ने इसे याद करते हुए प्रार्थना की: ‘हमारे परमेश्‍वर, हे प्रभु, तू ने अपनी प्रजा को मिस्र देश से, बली हाथ के द्वारा निकाल लाकर अपना नाम बड़ा किया है।’—दानिय्येल 9:15.

      15. यहोवा ने बाबुल की कैद में पड़े यहूदियों को क्यों छुड़ाया?

      15 दिलचस्पी की बात यह है कि दानिय्येल ने यह प्रार्थना उस वक्‍त की थी जब यहूदी संकट में थे और चाहते थे कि यहोवा अपने नाम की खातिर एक बार फिर कुछ कार्यवाही करे। इस बार, आज्ञा न माननेवाले ये यहूदी बाबुल की कैद में थे। उनकी राजधानी यरूशलेम उजाड़ पड़ी थी। दानिय्येल अच्छी तरह जानता था कि अगर यहूदियों का वतन बहाल हो जाए, तो इससे यहोवा के नाम की महिमा होगी। इसलिए उसने प्रार्थना की: “हे प्रभु, पाप क्षमा कर; हे प्रभु, ध्यान देकर जो करना है उसे कर, विलम्ब न कर; हे मेरे परमेश्‍वर, तेरा नगर और तेरी प्रजा तेरी ही कहलाती है; इसलिये अपने नाम के निमित्त ऐसा ही कर।”—तिरछे टाइप हमारे; दानिय्येल 9:18, 19.

      अपने लोगों की खातिर युद्ध लड़ना

      16. समझाइए कि कैसे अपने नाम की खातिर लड़ने का यह मतलब नहीं कि यहोवा को सिर्फ अपनी चिंता है और वह स्वार्थी है।

      16 क्या इसका मतलब यह है कि यहोवा अपने नाम की रक्षा इसलिए करता है क्योंकि उसे दूसरों की नहीं बल्कि सिर्फ अपनी चिंता है और वह स्वार्थी है? बिलकुल नहीं, बल्कि अपनी पवित्रता और इंसाफ के लिए प्यार की वजह से जब वह कार्यवाही करता है, तो इससे उसके लोगों की हिफाज़त होती है। ज़रा उत्पत्ति के अध्याय 14 पर ध्यान दीजिए। वहाँ हम चार हमलावर राजाओं का ज़िक्र पाते हैं, जो इब्राहीम के भतीजे लूत और उसके परिवार को बँधुआ बनाकर ले गए थे। परमेश्‍वर की मदद से इब्राहीम ने उन राजाओं की शक्‍तिशाली फौज को इतनी बुरी तरह हराया कि वे देखते रह गए! यह किस्सा शायद “यहोवा के संग्राम नाम पुस्तक” में लिखा पहला युद्ध था। ज़ाहिर है कि यह वह किताब है जिसमें उन लड़ाइयों की चर्चा भी होगी जिनका ज़िक्र बाइबल में नहीं पाया जाता। (गिनती 21:14) इसके बाद कई जीत और हासिल होनी थीं।

      17. इस बात के क्या सबूत हैं कि इस्राएलियों के कनान देश में दाखिल होने के बाद यहोवा अपने लोगों के लिए लड़ा? मिसालें दीजिए।

      17 इस्राएलियों के कनान देश में दाखिल होने से कुछ ही समय पहले, मूसा ने उनकी हिम्मत बँधाते हुए उनसे कहा था: “तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा जो तुम्हारे आगे आगे चलता है वह आप तुम्हारी ओर से लड़ेगा, जैसे कि उस ने मिस्र में . . . तुम्हारे लिये किया।” (व्यवस्थाविवरण 1:30; 20:1) मूसा के बाद इस्राएल के अगुवे यहोशू के समय से लेकर, न्यायियों और यहूदा के वफादार राजाओं के समय तक यहोवा कई बार वाकई अपने लोगों के लिए लड़ा और उसने उन्हें दुश्‍मनों पर शानदार जीत दिलायी।—यहोशू 10:1-14; न्यायियों 4:12-17; 2 शमूएल 5:17-21.

      18. (क) हम क्यों एहसानमंद हो सकते हैं कि यहोवा आज तक नहीं बदला? (ख) जब उत्पत्ति 3:15 में बतायी दुश्‍मनी अपने अंजाम पर पहुँचेगी तब क्या होगा?

      18 यहोवा बदला नहीं; ना ही इस धरती को फिरदौस बनाने का उसका मकसद बदला है। (उत्पत्ति 1:27, 28) आज भी परमेश्‍वर दुष्टता से नफरत करता है। साथ ही, वह अपने लोगों से बेहद प्यार करता है और बहुत जल्द उन्हें बचाने के लिए एक बड़ा कदम उठाएगा। (भजन 11:7) सच तो यह है कि जिस दुश्‍मनी का ज़िक्र उत्पत्ति 3:15 में किया गया है, बहुत जल्द वह एक खतरनाक अंजाम पर पहुँचनेवाली है। अपने नाम को पवित्र ठहराने और अपने लोगों को बचाने के लिए यहोवा एक बार फिर “योद्धा” का रूप धारण करेगा!—जकर्याह 14:3; प्रकाशितवाक्य 16:14, 16.

      19. (क) उदाहरण देकर समझाइए कि परमेश्‍वर की विनाशकारी शक्‍ति का इस्तेमाल हमें उसके और करीब कैसे ला सकता है। (ख) परमेश्‍वर हमारी खातिर लड़ने को तैयार है, इस बात का हम पर क्या असर होना चाहिए?

      19 एक मिसाल पर गौर कीजिए: मान लीजिए कि एक आदमी के परिवार पर एक खूँखार जानवर हमला कर देता है और वह आदमी उस जानवर से लड़ने के लिए मैदान में कूद पड़ता है और उसे मार डालता है। तो क्या इस काम से उसकी पत्नी और बच्चे उससे नफरत करेंगे? नहीं, बल्कि अपनी जान खतरे में डालकर उसने अपने परिवार के लिए जो प्यार दिखाया, वह देखकर उनका दिल भी प्यार से उमड़ पड़ेगा। इसी तरह जब परमेश्‍वर अपनी विनाशकारी शक्‍ति का इस्तेमाल करता है, तो उसे देखकर हमें परमेश्‍वर से दूर नहीं भागना चाहिए। इसके बजाय, यह देखकर कि वह हमें बचाने के लिए हमारी खातिर लड़ने को तैयार है उसके लिए हमारा प्यार और बढ़ना चाहिए। साथ ही, उसकी अपार शक्‍ति के लिए हमारी इज़्ज़त भी बढ़नी चाहिए। अगर ऐसा होगा तब हम “भक्‍ति, और भय सहित, परमेश्‍वर की ऐसी आराधना कर सकते हैं जिस से वह प्रसन्‍न होता है।”—इब्रानियों 12:28.

      “योद्धा” के करीब आओ

      20. जब हमें बाइबल में दर्ज़ कई घटनाएँ समझ नहीं आतीं, तो हमें क्या करना चाहिए, और क्यों?

      20 यह सही है कि बाइबल हर घटना के साथ, विस्तार से यह नहीं बताती कि यहोवा ने किन बातों को ध्यान में रखते हुए युद्ध करने का फैसला किया। लेकिन हम इस बात के बारे में निश्‍चिंत हो सकते हैं: यहोवा कभी-भी अपनी विनाशकारी शक्‍ति, अन्याय करने, बेवजह अत्याचार करने और क्रूरता के लिए इस्तेमाल नहीं करता। कई बार, बाइबल में दी गयी घटनाओं की पूरी जानकारी पढ़ने से हमें समझ आता है कि यहोवा ने यह कदम क्यों उठाया। (नीतिवचन 18:13) लेकिन जब हमारे पास पूरी जानकारी ना भी हो, तब भी यहोवा के बारे में ज़्यादा सीखने और उसके अनमोल गुणों पर मनन करने से हम अपने मन में आनेवाला कोई भी शक या शुबहा दूर कर सकते हैं। जब हम ऐसा करते हैं तो यह साफ देख पाते हैं कि हमें अपने परमेश्‍वर यहोवा पर भरोसा करने की कई वजह हैं।—अय्यूब 34:12.

      21. हालाँकि कभी-कभी यहोवा एक “योद्धा” का रूप धारण करता है, लेकिन वह असल में कैसा है?

      21 हालाँकि हालात जब माँग करते हैं तब यहोवा परमेश्‍वर एक “योद्धा” बन जाता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वह कठोर और पत्थरदिल है। यहेजकेल ने दर्शन में देखा था कि यहोवा अपने दिव्य रथ पर सवार है और अपने दुश्‍मनों से युद्ध करने को तैयार है। लेकिन यहेजकेल ने यह भी देखा कि यहोवा के चारों तरफ एक मेघधनुष है जो शांति का प्रतीक है। (उत्पत्ति 9:13; यहेजकेल 1:28; प्रकाशितवाक्य 4:3) इससे साफ पता लगता है कि यहोवा विनम्र और शांति चाहनेवाला परमेश्‍वर है। प्रेरित यूहन्‍ना ने लिखा: “परमेश्‍वर प्रेम है।” (1 यूहन्‍ना 4:8) यहोवा का हर गुण उसमें पूर्णता से विराजमान है। इसलिए हम क्या ही धन्य हैं कि हमें ऐसे परमेश्‍वर के करीब आने का मौका मिला है, जो शक्‍तिशाली होने के साथ-साथ प्यार करनेवाला परमेश्‍वर है!

      a यहूदी इतिहासकार जोसीफस के मुताबिक, इस्राएलियों का “पीछा करनेवाली सेना में 600 रथ, 50,000 घुड़सवार और 2,00,000 पैदल सैनिक थे, जो हथियारों से पूरी तरह लैस थे।”—जूइश एन्टिक्विटीस्‌, II, 324 [15, 3]।

      b ज़ाहिर है कि शब्द “अमोरी” में कनान देश के रहनेवाले सभी लोग शामिल हैं।—व्यवस्थाविवरण 1:6-8, 19-21, 27; यहोशू 24:15, 18.

      मनन के लिए सवाल

      • 2 राजा 6:8-17 परमेश्‍वर ‘सेनाओं का यहोवा’ है, उसका यह रूप संकट की घड़ी में कैसे हमारी हिम्मत बँधाता है?

      • यहेजकेल 33:10-20 जो लोग यहोवा के नियमों को तोड़ते हैं उनके खिलाफ अपनी विनाशकारी शक्‍ति इस्तेमाल करने से पहले, वह उन्हें दया दिखाते हुए क्या मौका देता है?

      • 2 थिस्सलुनीकियों 1:6-10 आनेवाले समय में दुष्टों का नाश, परमेश्‍वर के वफादार सेवकों के लिए राहत का दिन कैसे साबित होगा?

      • 2 पतरस 2:4-13 क्या बात यहोवा को अपनी विनाशकारी शक्‍ति का इस्तेमाल करने के लिए उकसाती है, और इससे इंसानों को क्या सबक सीखने को मिलता है?

  • रक्षा करने की शक्‍ति—‘परमेश्‍वर हमारा शरणस्थान है’
    यहोवा के करीब आओ
    • एक मेम्ना चरवाहे की गोद में सुरक्षित महसूस करता है

      अध्याय 7

      रक्षा करने की शक्‍ति—‘परमेश्‍वर हमारा शरणस्थान है’

      1, 2. जब सा.यु.पू. 1513 में इस्राएली सीनै के इलाके में दाखिल हुए, तो उनके सामने क्या खतरा था, और यहोवा ने कैसे उनकी हिम्मत बँधायी?

      जब इस्राएली सा.यु.पू. 1513 में सीनै के इलाके में दाखिल हुए तो उनके सामने कई खतरे थे। उन्हें एक जोखिम भरे रास्ते से सफर करना था, “बड़े और भयानक जंगल में से” गुज़रना था “जहां तेज विषवाले सर्प और बिच्छू” थे। (व्यवस्थाविवरण 8:15) उन्हें आस-पास की दुश्‍मन जातियों से हमले का भी खतरा था। यहोवा ही अपने लोगों को ऐसी जगह लाया था। तो क्या उनका परमेश्‍वर होने के नाते वह उनकी रक्षा कर सकता था?

      2 यहोवा ने यह कहकर उनकी हिम्मत बँधायी: “तुम ने देखा है कि मैं ने मिस्रियों से क्या क्या किया; तुम को मानो उकाब पक्षी के पंखों पर चढ़ाकर अपने पास ले आया हूं।” (निर्गमन 19:4) यहोवा ने अपने लोगों को याद दिलाया कि उन्हें मिस्र से छुड़ाकर एक महफूज़ जगह तक पहुँचाने के लिए मानो उसने उकाब पक्षियों का इस्तेमाल किया है। लेकिन परमेश्‍वर की तरफ से मिलनेवाली हिफाज़त को दिखाने के लिए ‘उकाब के पंखों’ का उदाहरण इस्तेमाल करना क्यों सही था, इसकी कई दूसरी वजह हैं।

      3. ‘उकाब के पंख’ परमेश्‍वर की तरफ से मिलनेवाली हिफाज़त की सही तसवीर क्यों हैं?

      3 उकाब अपने चौड़े और मज़बूत पंखों को सिर्फ ऊँचाई पर उड़ने के लिए इस्तेमाल नहीं करता। दिन की चिलचिलाती धूप से अपने नन्हे बच्चों को बचाने के लिए मादा उकाब अपने पंखों को छाते की तरह फैला लेती है, जिनकी लंबाई करीब 7 फुट तक हो सकती है। और कड़ाके की ठंड में अपने बच्चों को हवा से बचाने के लिए वह इन्हीं पंखों में उन्हें समेट लेती है। तो जैसे एक उकाब पक्षी अपने बच्चों की रक्षा करता है, उसी तरह यहोवा परमेश्‍वर ने ढाल बनकर इस्राएलियों की हिफाज़त की जो एक नयी जाति बनकर उभर रहे थे। अब इस वीराने में अगर उसके लोग यहोवा के वफादार बने रहते, तो वे उसके शक्‍तिशाली पंखों तले हिफाज़त से रहते। (व्यवस्थाविवरण 32:9-11; भजन 36:7) लेकिन आज क्या हम यह उम्मीद कर सकते हैं कि यहोवा हमारी भी रक्षा करेगा?

      हमारी रक्षा करने का परमेश्‍वर का वादा

      4, 5. परमेश्‍वर हमारी रक्षा करेगा, इस वादे पर हम पूरा भरोसा क्यों रख सकते हैं?

      4 बेशक यहोवा अपने लोगों की हिफाज़त करने के काबिल है। वह “सर्वशक्‍तिमान्‌ ईश्‍वर” है जिसका मतलब है कि उसके पास अपार शक्‍ति है। (उत्पत्ति 17:1) जैसे समुद्र में उठनेवाले ज्वार की महाधारा को रोका नहीं जा सकता, उसी तरह जब यहोवा अपनी शक्‍ति दिखाता है तो दुनिया की कोई भी ताकत उसे रोक नहीं सकती। यहोवा अपनी मरज़ी के मुताबिक कुछ भी कर सकता है। अगर ऐसा है तो हम यह सवाल पूछना चाहेंगे, ‘क्या अपने लोगों की रक्षा करने के लिए यहोवा अपनी शक्‍ति का इस्तेमाल करने की इच्छा रखता है?’

      5 एक शब्द में इसका जवाब है, हाँ! यहोवा हमें यकीन दिलाता है कि वह अपने लोगों की हिफाज़त करेगा। भजन 46:1 कहता है: “परमेश्‍वर हमारा शरणस्थान और बल है, संकट में अति सहज से मिलनेवाला सहायक।” परमेश्‍वर “झूठ बोल नहीं सकता,” इसलिए हम उसके वादे पर पूरा भरोसा कर सकते हैं कि वह हमारी रक्षा करेगा। (तीतुस 1:2) अपनी रक्षा करने की शक्‍ति के बारे में समझाने के लिए यहोवा ने जिन जीती-जागती मिसालों का इस्तेमाल किया, आइए उन पर गौर करें।

      6, 7. (क) बाइबल के ज़माने में एक चरवाहा किस तरह अपनी भेड़ की रक्षा करता था? (ख) बाइबल किस मिसाल से समझाती है कि यहोवा दिल से अपनी भेड़ों की रक्षा और देखभाल करना चाहता है?

      6 यहोवा एक चरवाहा है और “हम उसकी प्रजा, और उसकी चराई की भेड़ें हैं।” (भजन 23:1; 100:3) बहुत कम ऐसे जानवर हैं जो एक भेड़ की तरह लाचार और बेबस होते हैं। बाइबल के ज़माने में भेड़ों को शेर, भेड़िए और भालू जैसे जानवरों से और चोरों से बचाने के लिए ज़रूरी था कि चरवाहा साहसी हो। (1 शमूएल 17:34, 35; यूहन्‍ना 10:12, 13) लेकिन दूसरे समय पर अपनी भेड़ की हिफाज़त करने के लिए उसे कोमलता दिखाने की ज़रूरत पड़ती थी। मिसाल के तौर पर, जब एक भेड़ बाड़े से दूर बच्चे को जन्म दे रही होती, तो उसकी इस लाचार हालत को देखते हुए चरवाहा उसकी रक्षा करने के लिए पास खड़ा रहता था और जब वह बच्चा दे चुकी होती थी, तो वह उस बच्चे को अपनी गोद में उठाकर झुंड तक लाता था।

      एक चरवाहा मेम्ने को बड़ी कोमलता के साथ अपनी गोद में उठाए हुए है जहाँ वह महफूज़ है

      “वह मेमनों को अपनी . . . गोद में लिए रहेगा”

      7 अपनी तुलना एक चरवाहे के साथ करके यहोवा हमें यकीन दिलाता है कि वह दिल से हमारी रक्षा करना चाहता है। (यहेजकेल 34:11-16) याद कीजिए कि यशायाह 40:11 (NHT) में यहोवा के बारे में क्या बताया है और जिसका ज़िक्र इस किताब के दूसरे अध्याय में किया गया है। वहाँ लिखा है: “वह चरवाहे के समान अपने झुण्ड को चराएगा: वह मेमनों को अपनी बाहों में समेट लेगा और गोद में लिए रहेगा।” भेड़ का बच्चा चरवाहे की “गोद” या उसके बागे के अंदर कैसे आता है? एक मेम्ना शायद चरवाहे के पास आए और उसके पैरों को टहोका भी दे। लेकिन झुकना तो चरवाहे को ही पड़ता है, ताकि वह मेम्ने को उठाकर बड़ी कोमलता के साथ अपनी गोद में छिपा ले जहाँ वह महफूज़ रहे। यह हमारे महान चरवाहे यहोवा का क्या ही कोमल रूप है, जो हमारी ढाल बनकर हमारी रक्षा करने के लिए हमेशा तैयार रहता है!

      8. (क) परमेश्‍वर ने किन लोगों की रक्षा करने का वादा किया है, और यह नीतिवचन 18:10 में कैसे बताया गया है? (ख) परमेश्‍वर के नाम में शरण पाने के लिए क्या-क्या ज़रूरी है?

      8 लेकिन हमारी रक्षा करने का परमेश्‍वर का वादा एक शर्त पर किया गया है कि यह सिर्फ उन्हीं को मिलेगी जो उसके करीब आते हैं। नीतिवचन 18:10 (NHT) कहता है: “यहोवा का नाम एक दृढ़ गढ़ है। धर्मी जन उसमें भागकर सुरक्षित रहता है।” बाइबल के ज़माने में, कई बार जंगलों में गढ़ बनाए जाते थे ताकि वहाँ एक इंसान शरण पा सके। लेकिन सुरक्षा पाने के लिए यह ज़रूरी था कि जो इंसान खतरे में है वह भागकर इस गढ़ तक पहुँचे। परमेश्‍वर के नाम में शरण पाने का भी यही मतलब है। मगर बार-बार परमेश्‍वर का नाम जपते रहना काफी नहीं है, मानो यह कोई जादुई मंत्र हो। इसके बजाय इसका मतलब है, इस नाम के धारण करनेवाले को जानना, उस पर पूरा भरोसा करना और उसके बताए धर्मी मार्गों के मुताबिक अपना जीवन बिताना। यहोवा का कितना एहसान है जिसने हमें यकीन दिलाया है कि अगर हम पूरे विश्‍वास के साथ उसके पास जाएँ, तो वह दृढ़ गढ़ बनकर हमारी रक्षा करेगा!

      ‘हमारा परमेश्‍वर हम को बचाने की शक्‍ति रखता है’

      9. यहोवा ने रक्षा करने के वादे से बढ़कर क्या किया है?

      9 यहोवा ने हमारी रक्षा करने का सिर्फ वादा नहीं किया। बाइबल के ज़माने में उसने चमत्कार करके यह दिखा दिया था कि वह अपने लोगों की रक्षा करने के काबिल है। इस्राएल के इतिहास में, यहोवा के शक्‍तिशाली “हाथ” ने ताकतवर दुश्‍मनों को उनके पास फटकने तक नहीं दिया। (निर्गमन 7:4) लेकिन यहोवा ने अलग-अलग इंसानों की खातिर भी रक्षा करने की अपनी शक्‍ति इस्तेमाल की है।

      10, 11. बाइबल के कौन-से उदाहरण दिखाते हैं कि यहोवा ने अलग-अलग इंसानों की खातिर रक्षा करने की अपनी शक्‍ति का इस्तेमाल किया है?

      10 जब शद्रक, मेशक, अबेदनगो नाम के तीन यहूदी नौजवानों ने राजा नबूकदनेस्सर की बनायी सोने की मूरत के आगे दण्डवत्‌ करने से इनकार कर दिया, तब राजा आग-बबूला हो उठा और उन्हें धधकते भट्ठे में फेंकने का हुक्म दिया। उस वक्‍त की दुनिया के सबसे शक्‍तिशाली सम्राट, नबूकदनेस्सर ने उन्हें ताना मारकर कहा: “ऐसा कौन देवता है, जो तुम को मेरे हाथ से छुड़ा सके?” (दानिय्येल 3:15) तीनों जवानों को पूरा भरोसा था कि उनका परमेश्‍वर उन्हें बचा सकता है, फिर भी उन्होंने यह मान नहीं लिया कि परमेश्‍वर ज़रूर ऐसा करेगा। इसलिए उन्होंने जवाब दिया: “हमारा परमेश्‍वर, जिसकी हम उपासना करते हैं वह हम को उस धधकते हुए भट्ठे की आग से बचाने की शक्‍ति रखता है।” (दानिय्येल 3:17, 18) वह धधकता भट्ठा जिसे सात गुना और धधकाया गया था, सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर के लिए कोई बड़ी समस्या नहीं था। उसने उन तीन नौजवानों को बचाया, जिसे देखकर राजा को मानना पड़ा: “ऐसा कोई और देवता नहीं जो इस रीति से बचा सके।”—दानिय्येल 3:29.

      11 यहोवा ने जब अपने एकलौते बेटे के जीवन को यहूदी कुँवारी मरियम के गर्भ में डाला, तो यह उसकी रक्षा करने की शक्‍ति का एक अद्‌भुत करिश्‍मा था। एक स्वर्गदूत ने मरियम को बताया: “तू गर्भवती होगी, और तेरे एक पुत्र उत्पन्‍न होगा।” फिर उस स्वर्गदूत ने समझाया: “पवित्र आत्मा तुझ पर उतरेगा, और परमप्रधान की सामर्थ तुझ पर छाया करेगी।” (लूका 1:31, 35) इससे पहले परमेश्‍वर का पुत्र इतनी लाचार हालत में कभी नहीं था। क्या उसकी असिद्ध माँ को विरासत में मिला पाप, गर्भ में पल रहे बच्चे तक पहुँच जाएगा? क्या पैदा होने से पहले ही शैतान उसके पुत्र पर प्रहार करेगा या उसे मार डालेगा? नामुमकिन! यहोवा ने मरियम को चारों तरफ से अपनी रक्षा करनेवाली शक्‍ति से इस तरह घेर रखा था मानो कोई फौलादी दीवार हो। कोई असिद्धता, कोई विनाशकारी शक्‍ति, कोई हत्यारा इंसान ना ही कोई दुष्टात्मा, गर्भ में पल रहे इस बच्चे को किसी तरह नुकसान पहुँचा सकती थी। यीशु के बचपन से लेकर जवानी तक, यहोवा पूरी तरह उसकी हिफाज़त करता रहा। (मत्ती 2:1-15) जब तक परमेश्‍वर का ठहराया हुआ वक्‍त पूरा नहीं हुआ उसके बेटे का कोई बाल भी बाँका नहीं कर सकता था।

      12. बाइबल के ज़माने में यहोवा ने चंद लोगों की हिफाज़त क्यों की थी?

      12 आखिर यहोवा ने कुछ लोगों को इस तरह के करिश्‍मे करके क्यों बचाया? यहोवा ने उनकी रक्षा इसलिए की ताकि वह उनसे भी बढ़कर अहमियत रखनेवाले अपने मकसद की रक्षा कर सके। मसलन, परमेश्‍वर का मकसद पूरा होने के लिए नन्हे यीशु का ज़िंदा रहना ज़रूरी था, क्योंकि उसके ज़रिए पूरी मानवजाति को फायदा पहुँचनेवाला था। परमेश्‍वर की रक्षा करने की शक्‍ति किन अलग-अलग मौकों पर ज़ाहिर हुई यह उसके प्रेरित वचन में दर्ज़ है, जो ‘हमारी ही शिक्षा के लिये लिखा गया है कि हम धीरज और पवित्र शास्त्र की शान्ति के द्वारा आशा रखें।’ (रोमियों 15:4) जी हाँ, ये मिसालें सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर में हमारा विश्‍वास मज़बूत करती हैं। लेकिन आज हम परमेश्‍वर से किस तरह की हिफाज़त की उम्मीद कर सकते हैं?

      रक्षा करने के परमेश्‍वर के वादे का मतलब क्या नहीं है

      13. क्या हमारी खातिर चमत्कार करना यहोवा का फर्ज़ है? समझाइए।

      13 परमेश्‍वर ने हमारी रक्षा करने का वादा किया है, मगर इसका मतलब यह नहीं है कि हमारी खातिर चमत्कार करना उसका फर्ज़ है। परमेश्‍वर यह वादा नहीं करता कि इस पुरानी दुनिया में वह हमें हर समस्या से बचाएगा। परमेश्‍वर के कई वफादार सेवकों को गरीबी, युद्ध, बीमारी और मौत जैसी आफतों का सामना करना पड़ता है। यीशु ने अपने चेलों को साफ-साफ बता दिया था कि अपने विश्‍वास की खातिर उन्हें अपनी जान गँवानी पड़ सकती है। इसीलिए यीशु ने अंत तक धीरज धरने पर ज़ोर दिया था। (मत्ती 24:9, 13) अगर यहोवा हमारे हर मामले में चमत्कार करके हमें बचाता रहे, तो शैतान को यहोवा पर ताना कसने और हम पर यह इलज़ाम लगाने का मौका मिल जाएगा कि हमारी भक्‍ति सच्ची नहीं है।—अय्यूब 1:9, 10.

      14. कौन-से उदाहरण दिखाते हैं कि यहोवा अपने सब सेवकों को हर बार और एक जैसे तरीकों से नहीं बचाता?

      14 बाइबल के ज़माने में भी, यहोवा ने अपने सेवकों को हमेशा अपनी हिफाज़त में रखकर बेवक्‍त मरने से नहीं बचाया। मिसाल के तौर पर, प्रेरित याकूब का हेरोदेस ने सा.यु. 44 में कत्ल करवा दिया; लेकिन कुछ ही समय बाद परमेश्‍वर ने पतरस को “हेरोदेस के हाथ से छुड़ा लिया।” (प्रेरितों 12:1-11) और यूहन्‍ना तो अपने भाई याकूब से और पतरस से भी कहीं ज़्यादा साल तक ज़िंदा रहा। तो यह साफ है कि हम अपने परमेश्‍वर से यह उम्मीद नहीं कर सकते कि वह अपने सब सेवकों की रक्षा एक ही तरीके से करे। इसके अलावा, “समय और संयोग” की वजह से हम सबके साथ किसी भी वक्‍त, कुछ भी दुर्घटना हो सकती है। (सभोपदेशक 9:11) तो फिर, आज यहोवा कैसे हमारी रक्षा करता है?

      यहोवा हमारी ज़िंदगी की हिफाज़त करता है

      15, 16. (क) क्या सबूत दिखाते हैं कि एक समूह के नाते यहोवा ने अपने लोगों की ज़िंदगी बचायी है? (ख) हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि यहोवा अभी और आनेवाले “बड़े क्लेश” में अपने लोगों की रक्षा करेगा?

      15 सबसे पहले, आइए हमारी ज़िंदगी की हिफाज़त की बात पर ध्यान दें। हम यहोवा के उपासक हैं, इसलिए एक समूह के तौर पर यहोवा से हिफाज़त पाने की उम्मीद रख सकते हैं। अगर ऐसा न होता तो हम सब-के-सब कब के शैतान का निवाला बन चुके होते। ज़रा सोचकर देखिए: शैतान जो “इस जगत का सरदार” है, इससे बढ़कर और क्या चाहेगा कि वह दुनिया से सच्ची उपासना का नामो-निशान मिटा दे। (यूहन्‍ना 12:31; प्रकाशितवाक्य 12:17) दुनिया की सबसे शक्‍तिशाली सरकारों में से कई ऐसी हैं जिन्होंने हमारे प्रचार काम पर पाबंदी लगायी है और हमें जड़ से उखाड़ने की कोशिश की है। फिर भी, यहोवा के सेवक दृढ़ रहे और बिना थके प्रचार का काम करते रहे हैं! क्या वजह है कि दुनिया की आबादी के मुकाबले इतने कम और निहत्थे, बेसहारा लगनेवाले मसीहियों के इस झुंड को दुनिया के शक्‍तिशाली राष्ट्र मिटाने में कामयाब नहीं हो सके? वह इसलिए क्योंकि यहोवा ने उन्हें अपने शक्‍तिशाली पंखों की आड़ में छिपा रखा है!—भजन 17:7, 8.

      16 क्या आनेवाले “बड़े क्लेश” में भी यहोवा हमारी जान की हिफाज़त करेगा? परमेश्‍वर के आनेवाले न्यायदंडों से हमें डरने की कोई ज़रूरत नहीं। आखिर, “प्रभु भक्‍तों को परीक्षा में से निकाल लेना और अधर्मियों को न्याय के दिन तक दण्ड की दशा में रखना भी जानता है।” (प्रकाशितवाक्य 7:14; 2 पतरस 2:9) इस दौरान हम दो बातों के बारे में पूरी तरह निश्‍चिंत हो सकते हैं। पहली, यहोवा अपने वफादार भक्‍तों को इस दुनिया से कभी-भी मिटने नहीं देगा। दूसरी, जो लोग अंत तक अपनी खराई बनाए रखेंगे वह उन्हें नयी दुनिया में अनंत जीवन का वरदान देगा और जो इस दौरान अपनी जान गँवा देते हैं उनका वह पुनरुत्थान करेगा। मरनेवालों के लिए परमेश्‍वर की याद से ज़्यादा सुरक्षित जगह और कोई हो नहीं सकती।—यूहन्‍ना 5:28, 29.

      17. यहोवा अपने वचन से कैसे हमारी रक्षा करता है?

      17 अभी-भी यहोवा अपने जीवित “वचन” से हमारी रक्षा कर रहा है। इसमें ऐसी ज़बरदस्त ताकत है जिससे लोगों को अपना मन सुधारने और अपनी ज़िंदगी बदलने की प्रेरणा मिलती है। (इब्रानियों 4:12) इसके सिद्धांतों को लागू करने से हम काफी हद तक अपने शरीर को नुकसान से बचा सकते हैं। यशायाह 48:17 कहता है: “मैं . . . यहोवा हूं जो तुझे तेरे लाभ के लिये शिक्षा देता हूं।” इसमें कोई शक नहीं कि परमेश्‍वर के वचन के मुताबिक ज़िंदगी बिताने से ना सिर्फ हमारी सेहत सुधर सकती है बल्कि हमारी उम्र भी लंबी हो सकती है। मिसाल के लिए, हम बाइबल की सलाह को मानकर व्यभिचार से दूर रहते हैं और सब मलिनता से खुद को शुद्ध करते हैं, इसलिए हम अशुद्ध कामों और नुकसानदेह आदतों से दूर रहते हैं जिनकी वजह से कई अधर्मी लोगों की ज़िंदगियाँ तबाह हो रही हैं। (प्रेरितों 15:29; 2 कुरिन्थियों 7:1) यहोवा अपने वचन से जिस तरह हमारी रक्षा कर रहा है, हम उसके लिए कितने एहसानमंद हैं!

      यहोवा आध्यात्मिक रूप से हमारी रक्षा करता है

      18. यहोवा किस तरह आध्यात्मिक रूप से हमारी रक्षा करता है?

      18 सबसे बढ़कर, यहोवा आध्यात्मिक तरीके से हमारी रक्षा करता है। हमारा प्यारा परमेश्‍वर यहोवा, हमें आध्यात्मिक नुकसान से बचाने के लिए, ज़रूरत के मुताबिक वह सबकुछ देता है जो परीक्षाओं में धीरज धरने और उसके साथ हमारा रिश्‍ता कायम रखने में हमारी मदद कर सके। इस तरह यहोवा सिर्फ चंद सालों के लिए नहीं बल्कि हमेशा की ज़िंदगी के लिए हमारी जान बचाता है। आइए परमेश्‍वर के ऐसे चंद इंतज़ामों पर ध्यान दें जो आध्यात्मिक रूप से हमारी रक्षा कर सकते हैं।

      19. यहोवा की आत्मा हमें किसी भी परीक्षा का सामना करने की ताकत कैसे दे सकती है?

      19 यहोवा ‘प्रार्थना का सुननेवाला’ है। (भजन 65:2) जब ज़िंदगी भारी बोझ बन जाए, तब यहोवा के सामने अपने दिल का हाल कहने से हमारा मन हल्का हो सकता है। (फिलिप्पियों 4:6, 7) यहोवा हमारी परीक्षाओं को चमत्कार से खत्म नहीं कर देता, लेकिन दिल से की गयी हमारी फरियाद को सुनकर वह हमें ऐसी बुद्धि दे सकता है जिससे हम समस्या का सामना कर पाएँगे। (याकूब 1:5, 6) इससे भी बढ़कर यहोवा उन लोगों को पवित्र आत्मा देता है जो इसके लिए बिनती करते हैं। (लूका 11:13) यह शक्‍तिशाली आत्मा हमें किसी भी परीक्षा या समस्या का सामना करने की ताकत दे सकती है। यह हमें ऐसी “असीम सामर्थ” से भर सकती है कि हम तब तक धीरज धरें जब तक कि यहोवा बहुत जल्द आनेवाली नयी दुनिया में सभी दुःखदायी समस्याओं का पूरी तरह सफाया नहीं कर देता।—2 कुरिन्थियों 4:7.

      20. हमारे मसीही भाई-बहनों के ज़रिए रक्षा करने की यहोवा की शक्‍ति कैसे ज़ाहिर होती है?

      20 कभी-कभी यहोवा की रक्षा करने की शक्‍ति हमारे मसीही भाई-बहनों के ज़रिए ज़ाहिर होती है। यहोवा ने अपने लोगों को दुनिया भर में फैली “भाइयों की बिरादरी” में इकट्ठा किया है। (1 पतरस 2:17, NW; यूहन्‍ना 6:44) इस भाईचारे के प्यार में हम देख सकते हैं कि कैसे परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा ने लोगों की ज़िंदगी पर असर करके उन्हें भले कामों के लिए उकसाया है। यही आत्मा हमारे अंदर आत्मा के फल यानी प्रेम, दया और भलाई जैसे मनभावने, अनमोल गुण पैदा करती है। (गलतियों 5:22, 23) इसलिए जब कभी हम परेशान हों और कोई मसीही भाई या बहन आकर हमें सलाह दे या हमारा हौसला बढ़ाने के लिए कुछ बातें कहे, तो हमें यहोवा का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि उसने भाइयों के ज़रिए हमारी रक्षा की और परवाह दिखायी है।

      21. (क) “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के ज़रिए यहोवा ने सही समय पर किस आध्यात्मिक भोजन का इंतज़ाम किया है? (ख) यहोवा ने हमें आध्यात्मिक रूप से बचाने के लिए जो इंतज़ाम किए हैं, उनसे खासकर आपको क्या फायदा पहुँचा है?

      21 हमारी रक्षा करने के लिए यहोवा एक और चीज़ का भी इंतज़ाम करता है और वह है सही समय पर आध्यात्मिक भोजन। यहोवा ने “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” को ज़िम्मेदारी सौंपी है कि वह हमें आध्यात्मिक भोजन दे ताकि हम उसके वचन से हिम्मत पा सकें। यह विश्‍वासयोग्य दास प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! पत्रिकाओं और दूसरे साहित्य, इसके अलावा सभाओं, सम्मेलनों और अधिवेशनों का इंतज़ाम करके हमें ‘समय पर भोजन’ देता है। जी हाँ, हमें वक्‍त के मुताबिक जिस चीज़ की ज़रूरत होती है, वही हमें दी जाती है। (मत्ती 24:45) क्या आपने मसीही सभा में किसी के जवाब, या भाषण में या प्रार्थना में ऐसी कोई बात सुनी है जिससे आपको वह हौसला और हिम्मत मिली हो जिसकी आपको सख्त ज़रूरत थी? क्या हमारी पत्रिकाओं में छपा कोई लेख आपके दिल को छू गया है? याद रखिए कि यहोवा ने ये सभी इंतज़ाम आध्यात्मिक रूप से हमारी रक्षा करने की खातिर किए हैं।

      22. यहोवा हमेशा अपनी शक्‍ति का इस्तेमाल किस तरीके से करता है, और उसका ऐसा करना हमारे ही फायदे के लिए क्यों है?

      22 यहोवा “अपने सब शरणागतों की ढाल है।” (भजन 18:30) हम जानते हैं कि अभी हमें हर मुसीबत से बाहर निकालने के लिए वह रक्षा करने की अपनी शक्‍ति का इस्तेमाल नहीं करता। लेकिन, वह अपनी यह शक्‍ति हमेशा इस तरह इस्तेमाल करता है, जिससे उसका मकसद पूरा हो। उसके ऐसा करने से, आगे चलकर उसी के लोगों को फायदा पहुँचेगा। अगर हम यहोवा के करीब आएँ और उसके प्रेम में बने रहें, तो वह हमें हमेशा का सिद्ध जीवन देगा। इस इनाम को मन में रखते हुए, इस पुरानी दुनिया के हर दुःख और तकलीफ को हम ‘पल भर का और हलका सा’ समझते हैं।—2 कुरिन्थियों 4:17.

      मनन के लिए सवाल

      • भजन 23:1-6 महान चरवाहा होने के नाते, यहोवा अपने भेड़ सरीखे लोगों की हिफाज़त और देखभाल कैसे करता है?

      • भजन 91:1-6 यहोवा हमें आध्यात्मिक खतरे से कैसे बचाता है, और उसकी शरण में जाने के लिए हमें क्या करने की ज़रूरत है?

      • दानिय्येल 6:16-22, 25-27 यहोवा ने पुराने ज़माने के एक राजा को रक्षा करने की अपनी शक्‍ति के बारे में कैसे सबक सिखाया, और इस उदाहरण से हम क्या सीख सकते हैं?

      • मत्ती 10:16-22, 28-31 हम किस विरोध की उम्मीद कर सकते हैं, लेकिन हमें विरोधियों से डरने की ज़रूरत क्यों नहीं है?

  • बहाल करने की शक्‍ति—यहोवा “सब कुछ नया कर” रहा है
    यहोवा के करीब आओ
    • एक विधवा खुशी-खुशी अपने बेटे को गले लगाती है जिसे दोबारा ज़िंदा किया गया था।

      अध्याय 8

      बहाल करने की शक्‍ति—यहोवा “सब कुछ नया कर” रहा है

      1, 2. आज इंसानों को कैसे-कैसे नुकसान झेलने पड़ रहे हैं और इनका हम पर क्या असर होता है?

      जब एक बच्चे का सबसे प्यारा खिलौना गुम हो जाता है या उसके हाथों से टूट जाता है, तो वह बिलख-बिलखकर रोने लगता है। उसका बिलखना देखकर कलेजा मुँह को आता है! लेकिन फिर जब माँ या बाप बच्चे का खिलौना ढूँढ़कर लाते हैं या फिर टूटे खिलौने को जोड़ देते हैं, तो कैसे उसका चेहरा खिल उठता है? माँ-बाप के लिए खिलौने को ढूँढ़ना या उसे जोड़ना कोई बड़ा काम नहीं। मगर बच्चे के लिए तो मानो उसकी खुशियाँ लौट आती हैं। खिलौने का जुड़ जाना उसे हैरानी में डाल देता है। जो उसे लगता था कि हमेशा के लिए खो गया है, वह फिर से बहाल कर दिया जाता है!

      2 यहोवा जो दुनिया का सर्वश्रेष्ठ पिता है, उसके पास उन सभी चीज़ों को बहाल करने की ताकत है जो इस धरती पर उसके बच्चों की नज़र में हमेशा के लिए खो चुकी हैं। बेशक, हम खिलौनों की बात नहीं कर रहे। इस “कठिन समय” में हमें ऐसे नुकसान झेलने पड़ते हैं जो खिलौनों के नुकसान से कहीं ज़्यादा भारी और दर्दनाक हैं। (2 तीमुथियुस 3:1-5) जो कुछ लोगों को प्यारा है वह सब खतरे में जान पड़ता है। जैसे घर, धन-संपत्ति, नौकरी, यहाँ तक कि सेहत। हम यह भी देखकर निराश हो जाते हैं कि वातावरण दिनों-दिन नष्ट हो रहा है और इसकी वजह से पशु-पक्षियों की कई प्रजातियाँ आज खत्म हो चुकी हैं। लेकिन सबसे बड़ा सदमा हमें तब पहुँचता है जब हमारे किसी अपने की मौत हो जाती है। उसके चले जाने और हमारी लाचारी से कलेजा फटने लगता है।—2 शमूएल 18:33.

      3. प्रेरितों 3:21 में क्या आशा दी गयी है, और यहोवा इसे पूरा करने के लिए किसे इस्तेमाल करेगा?

      3 ऐसे में यह जानकर कितनी तसल्ली मिलती है कि यहोवा के पास सबकुछ बहाल करने की शक्‍ति है! परमेश्‍वर धरती पर अपने बच्चों के लिए क्या कुछ बहाल कर सकता है और करनेवाला है, इसकी कोई सीमा नहीं। और आगे हम यही देखनेवाले हैं। दरअसल, बाइबल कहती है कि यहोवा का मकसद है कि “सब बातों का सुधार” करे। (तिरछे टाइप हमारे; प्रेरितों 3:21) इस मकसद को पूरा करने के लिए यहोवा अपने मसीहाई राज्य को इस्तेमाल करेगा जिसका राजा उसका बेटा यीशु मसीह होगा। सबूत दिखाते हैं कि सन्‌ 1914 में इस राज्य ने स्वर्ग में अपना शासन शुरू कर दिया।a (मत्ती 24:3-14) यह राज्य क्या-क्या बहाल करेगा? आइए सबसे पहले हम यहोवा के बहाली के कुछ महान कामों पर चर्चा करें। इनमें से एक काम तो हम आज होता हुआ देख रहे हैं और उसका अनुभव कर रहे हैं। दूसरे काम, आनेवाले दिनों में बड़े पैमाने पर किए जाएँगे।

      शुद्ध उपासना का बहाल होना

      4, 5. सा.यु.पू. 607 में परमेश्‍वर के लोगों के साथ क्या हुआ, और यहोवा ने उन्हें क्या आशा दी?

      4 एक चीज़ जो यहोवा पहले ही बहाल कर चुका है वह है, शुद्ध उपासना। इसका मतलब क्या है, यह जानने के लिए आइए हम यहूदा राज्य के इतिहास पर एक नज़र डालें। इससे हम अच्छी तरह समझ पाएँगे कि यहोवा बहाल करने की अपनी शक्‍ति आज तक कैसे इस्तेमाल करता आ रहा है।—रोमियों 15:4.

      5 ज़रा कल्पना कीजिए कि जब सा.यु.पू. 607 में यरूशलेम का नाश हुआ तब वफादार यहूदियों के दिल पर क्या बीती होगी। उनकी प्यारी नगरी बरबाद कर दी गयी और उसकी शहरपनाह ढा दी गयी। इससे भी बुरा यह हुआ कि सुलैमान का बनाया आलीशान मंदिर, जो कभी धरती पर यहोवा की शुद्ध उपासना की जगह थी, उसे खंडहर बना दिया गया था। (भजन 79:1) जो लोग बच गए थे, उन्हें बँधुआ बनाकर बाबुल ले जाया गया और उनका वतन उजड़कर जंगली जानवरों का अड्डा बन गया। (यिर्मयाह 9:11) इंसान की नज़र से देखा जाए तो सबकुछ खत्म हो चुका था। (भजन 137:1) लेकिन यहोवा जिसने इस विनाश की बहुत पहले भविष्यवाणी कर दी थी, उसी ने भविष्य में इसके फिर से बहाल होने की आशा दी।

      6-8. (क) इब्रानी भविष्यवक्‍ताओं की किताबों में किस विषय के बारे में बार-बार बताया गया है, और इन भविष्यवाणियों की पहली पूर्ति कैसे हुई? (ख) हमारे ज़माने में, परमेश्‍वर के लोगों ने बहाली की बहुत-सी भविष्यवाणियों की किस पूर्ति को देखा है?

      6 दरअसल, इब्रानी भविष्यवक्‍ताओं ने बहाली के विषय पर बार-बार भविष्यवाणी की थी।b उनके ज़रिए यहोवा ने बताया था कि देश को बहाल किया जाएगा, वह लोगों से आबाद होगा, उपजाऊ होगा और जंगली जानवरों और दुश्‍मनों के हमले से उसकी हिफाज़त की जाएगी। उसने कहा कि बहाल होने के बाद मानो उनका देश सचमुच का फिरदौस बन जाएगा! (यशायाह 65:25; यहेजकेल 34:25; 36:35) लेकिन सबसे बढ़कर, शुद्ध उपासना दोबारा बहाल होगी और उनका मंदिर एक बार फिर बनाया जाएगा। (मीका 4:1-5) इन भविष्यवाणियों ने अपने वतन से दूर रहनेवाले यहूदियों को एक आशा दी, जिसकी मदद से वे बाबुल में 70 साल की कैद काट सके।

      7 आखिरकार बहाली का वक्‍त आ पहुँचा। यहूदी बाबुल से आज़ाद होकर यरूशलेम लौटे और वहाँ यहोवा का मंदिर दोबारा बनाया। (एज्रा 1:1, 2) वे जब तक शुद्ध उपासना में लगे रहे, यहोवा ने उन्हें आशीष दी और उनके देश को उपजाऊ और खुशहाल बनाया। उसने न सिर्फ दुश्‍मनों से उनकी हिफाज़त की बल्कि ऐसे जंगली जानवरों से भी उनकी रक्षा की, जो लंबे अरसे से उनके देश में अड्डा जमाए हुए थे। यहोवा की बहाल करने की शक्‍ति का सबूत देखकर, उन्हें कितनी खुशी हुई होगी! इन घटनाओं से बहाली की भविष्यवाणियों की पहली और छोटे पैमाने पर पूर्ति हुई। लेकिन बड़े पैमाने पर इनकी पूर्ति “अन्त के दिनों में” यानी हमारे दिनों में होनी थी, जब भविष्यवाणी में बताए गए दाऊद के वारिस को राजगद्दी पर बिठाया जाता।—यशायाह 2:2-4; 9:6, 7.

      8 सन्‌ 1914 में, स्वर्गीय राज्य का राजा बनने के थोड़े ही समय बाद, यीशु ने धरती पर परमेश्‍वर के वफादार लोगों की आध्यात्मिक ज़रूरतों पर ध्यान दिया। ठीक जैसे सा.यु.पू. 537 में फारसी विजेता, कुस्रू ने बचे हुए यहूदियों को बाबुल की कैद से रिहा किया, उसी तरह यीशु ने आध्यात्मिक यहूदियों के बचे हुओं को आज के बाबुल यानी दुनिया भर में फैले झूठे धर्म की बेड़ियों से आज़ाद करवाया। ये यीशु के नक्शे-कदम पर चलनेवाले उसके चेले थे। (रोमियों 2:29; प्रकाशितवाक्य 18:1-5) सन्‌ 1919 से, सच्चे मसीहियों की ज़िंदगी में शुद्ध उपासना को उसकी सही जगह पर बहाल किया गया है। (मलाकी 3:1-5) तब से, यहोवा के लोगों ने परमेश्‍वर के शुद्ध किए गए आत्मिक मंदिर में यानी शुद्ध उपासना के लिए उसके इंतज़ाम के मुताबिक उसकी उपासना की है। यह बहाली आज हमारे लिए क्या अहमियत रखती है?

      आध्यात्मिक बहाली—यह क्यों ज़रूरी है

      9. प्रेरितों के दिनों के बाद, ईसाईजगत के गिरजों ने परमेश्‍वर की उपासना के साथ क्या किया, लेकिन यहोवा ने हमारे ज़माने में क्या कार्यवाही की है?

      9 गौर कीजिए कि जिन हालात में हमारे ज़माने में आध्यात्मिक बहाली हुई, उसका क्या महत्त्व रहा है। पहली सदी के मसीहियों को कई आध्यात्मिक आशीषें मिली थीं। लेकिन यीशु और उसके प्रेरितों ने भविष्यवाणी की थी कि आनेवाले दिनों में सच्ची उपासना भ्रष्ट होकर गुम हो जाएगी। (मत्ती 13:24-30; प्रेरितों 20:29, 30) प्रेरितों के दिनों के बाद, ईसाईजगत ने पनपना शुरू किया। इसके पादरियों ने गैर-ईसाई धर्मों की शिक्षाएँ और रीति-रिवाज़ अपना लिए। उन्होंने सिखाया कि परमेश्‍वर एक त्रिएक है जिसे कोई नहीं समझ सकता, और इस तरह उसके करीब आना नामुमकिन कर दिया। उन्होंने लोगों को शिक्षा दी कि वे पादरी के सामने अपने पापों का अंगीकार करें, यहोवा से प्रार्थना करने के बजाय मरियम या अलग-अलग “संतों” से प्रार्थना करें। सदियों तक शुद्ध उपासना के भ्रष्ट होने के बाद यहोवा ने क्या कदम उठाया? आज की दुनिया में, जहाँ धर्म के मामले में हर तरफ झूठ फैला हुआ है और घिनौने रीति-रिवाज़ माने जाते हैं, ऐसे में यहोवा ने आगे आकर कार्यवाही की और शुद्ध उपासना को फिर से बहाल किया! बात को बढ़ा-चढ़ाकर कहे बिना यह कहना सही होगा कि शुद्ध उपासना का बहाल किया जाना आज के ज़माने की सबसे बड़ी और अहम घटना है।

      10, 11. (क) आध्यात्मिक फिरदौस के दो खास पहलू क्या हैं, और इनका आप पर क्या असर हुआ है? (ख) यहोवा ने इस आध्यात्मिक फिरदौस में किस तरह के लोगों को इकट्ठा किया है, और उन्हें क्या देखने का सुनहरा मौका मिलेगा?

      10 इसलिए सच्चे मसीही आज आध्यात्मिक फिरदौस का आनंद ले रहे हैं। इस फिरदौस में क्या-क्या शामिल है? इसके दो खास पहलू हैं। पहला, सच्चे परमेश्‍वर यहोवा की शुद्ध उपासना। यहोवा ने हमें उपासना करने का वह तरीका सिखाया है जो झूठ और गलत शिक्षाओं से आज़ाद है। उसने हमें आध्यात्मिक भोजन की भी आशीष दी है। इसकी मदद से हम स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता को जान सकते हैं, उसे प्रसन्‍न कर सकते हैं और उसके करीब आ सकते हैं। (यूहन्‍ना 4:24) इस आध्यात्मिक फिरदौस का दूसरा पहलू है, इसके लोग। यशायाह की भविष्यवाणी के मुताबिक, “अन्त के दिनों में” यहोवा ने अपने उपासकों को शांति के मार्ग पर चलना सिखाया है। उसने हमारे बीच युद्धों को मिटाया है। हमारी असिद्धता के बावजूद ‘नया मनुष्यत्व’ धारण करने में वह हमारी मदद करता है। वह अपनी पवित्र आत्मा से हमारी कोशिशों पर आशीष देता है, जो हमारी ज़िंदगी में मनभावने फल पैदा करती है। (इफिसियों 4:22-24; गलतियों 5:22, 23) जब आप परमेश्‍वर की आत्मा के मार्गदर्शन पर चलते हैं, तब आप सही मायनों में इस आध्यात्मिक फिरदौस का हिस्सा बनते हैं।

      11 यहोवा ने इस आध्यात्मिक फिरदौस में उन लोगों को इकट्ठा किया है जिनसे वह प्यार करता है यानी वे लोग जो उससे और शांति से प्रेम करते हैं और जो अपनी “आध्यात्मिक ज़रूरत के प्रति सचेत” हैं। (मत्ती 5:3, NW) ऐसे लोगों को और भी बड़ी और शानदार बहाली देखने का सुनहरा मौका मिलेगा। जी हाँ, वे इंसानों की और इस पूरी धरती की बहाली देख पाएँगे।

      “देख, मैं सब कुछ नया कर देता हूं”

      12, 13. (क) बहाली की भविष्यवाणियों की एक और पूर्ति होना ज़रूरी क्यों है? (ख) जैसा अदन के बाग में साफ-साफ बताया गया था, यहोवा का इस धरती के लिए क्या मकसद है, और यह हमें भविष्य के लिए आशा क्यों देता है?

      12 बहाली के बारे में की गयी बहुत-सी भविष्यवाणियाँ सिर्फ आध्यात्मिक बहाली के बारे में नहीं बतातीं। उदाहरण के लिए, यशायाह ने उस समय के बारे में लिखा जब बीमार, लंगड़े, अंधे और बहरे चंगे हो जाएँगे, यहाँ तक कि मौत भी हमेशा के लिए मिट जाएगी। (यशायाह 25:8; 35:1-7) परमेश्‍वर की ये प्रतिज्ञाएँ प्राचीन इस्राएल में सचमुच पूरी नहीं हुईं। और हालाँकि हमने अपने दिनों में इन भविष्यवाणियों की आध्यात्मिक पूर्ति देखी है, लेकिन हमारे पास यह मानने का ठोस आधार है कि आनेवाले दिनों में यह भविष्यवाणी बड़े पैमाने पर और शब्द-ब-शब्द पूरी होगी। हम यह कैसे जानते हैं?

      13 अदन के बाग में, यहोवा ने इस धरती के लिए अपना मकसद साफ-साफ बताया था: इस धरती को खुशहाल, सेहतमंद और एकता के बंधन में बंधे इंसानों से आबाद होना था। आदम और हव्वा को इस धरती की और इसके सभी जीव-जन्तुओं की देखभाल करनी थी और इस पूरे ग्रह को एक फिरदौस बनाना था। (उत्पत्ति 1:28) लेकिन आज की धरती को फिरदौस हरगिज़ नहीं कहा जा सकता। फिर भी यकीन रखिए, यहोवा के मकसदों को पूरा होने से कोई नहीं रोक सकता। (यशायाह 55:10, 11) यीशु, जिसे यहोवा ने मसीहाई राजा ठहराया है, इस धरती को ज़रूर फिरदौस बनाएगा।

      14, 15. (क) यहोवा कैसे “सब कुछ नया कर” देगा? (ख) फिरदौस में ज़िंदगी कैसी होगी, और कौन-सी बात खास तौर पर आपको आकर्षित करती है?

      14 कल्पना कीजिए जब पूरी पृथ्वी एक फिरदौस बन जाएगी तब कैसा लगेगा! उस वक्‍त के बारे में यहोवा कहता है: “देख, मैं सब कुछ नया कर देता हूं।” (प्रकाशितवाक्य 21:5) ज़रा सोचिए कि इसका क्या मतलब है। जब यहोवा इस पुराने दुष्ट संसार के खिलाफ विनाश करने की अपनी शक्‍ति का इस्तेमाल कर चुका होगा, तब एक ‘नया आकाश और नयी पृथ्वी’ बची रहेगी। इसका मतलब है कि स्वर्ग से एक नयी सरकार, धरती पर इंसानों के ऐसे नए समाज पर राज करेगी जो यहोवा से प्यार करते हैं और उसकी इच्छा पूरी करते हैं। (2 पतरस 3:13) शैतान और उसके दूतों को कैद कर दिया जाएगा, जहाँ वे कुछ नहीं कर पाएँगे। (प्रकाशितवाक्य 20:3) हज़ारों सालों में पहली बार, इंसान उस दुष्ट के भ्रष्ट, नफरत भरे और विनाशकारी असर से आज़ाद होंगे। यह राहत देखकर एक पल को हमें विश्‍वास नहीं होगा!

      15 आखिरकार, हमें इस खूबसूरत ग्रह की देखभाल करने का मौका मिलेगा, जो परमेश्‍वर का हमारे लिए मकसद था। इस धरती में खुद को बहाल करने की कुदरती शक्‍ति है। अगर प्रदूषण फैलानेवाले कारणों को ही मिटा दिया जाए, तो झीलें और नदियाँ खुद-ब-खुद स्वच्छ हो जाएँगी; अगर युद्ध खत्म हो जाएँ, तो इनकी वजह से बंजर हो चुकी ज़मीन में फिर से जान आ जाएगी। जब हम धरती के कुदरती नियमों को मानकर इसे अदन की वाटिका की तरह एक खूबसूरत बगिया बनाने में हाथ बँटाएँगे, जिसमें अलग-अलग किस्म के पौधे और जीव-जंतु होंगे, तो हमें क्या ही खुशी मिलेगी! जानवरों और पेड़-पौधों की प्रजातियों को अंधाधुंध खत्म करने के बजाय इंसान धरती की सारी सृष्टि के साथ शांति से रहेंगे। यहाँ तक कि बच्चों को भी जंगली जानवरों से कोई खतरा नहीं होगा।—यशायाह 9:6, 7; 11:1-9.

      16. फिरदौस में हर इंसान किस तरह की बहाली का अनुभव करेगा?

      16 हम खुद अपने मामले में बहाली का अनुभव करेंगे। हरमगिदोन के बाद, बचनेवाले लोग पूरी दुनिया में चंगाई के बड़े-बड़े चमत्कार होते देखेंगे। जैसे यीशु ने इस धरती पर रहते वक्‍त किया था, तब भी वह परमेश्‍वर की शक्‍ति से अंधों की आँखों की रोशनी लौटा देगा, बहिरों के कान खोलेगा, लंगड़ों और बीमारों को चंगा कर देगा। (मत्ती 15:30) बूढ़े लोग दोबारा जवानी, अच्छी सेहत और चुस्ती-फुर्ती पाकर खुशी से झूम उठेंगे। (अय्यूब 33:25) झुर्रियाँ गायब हो जाएँगी, मुड़े हुए हाथ-पैर सीधे हो जाएँगे और हमारी माँस-पेशियों में नया दम आ जाएगा। सभी वफादार इंसान महसूस कर सकेंगे कि पाप और असिद्धता का असर धीरे-धीरे कम होकर गायब होता जा रहा है। यहोवा की बहाल करने की यह अद्‌भुत शक्‍ति देखकर हम उसका कितना एहसान मानेंगे! आइए अब हम बहाली के इस रोमांचकारी दौर के एक खासकर आनंददायक पहलू पर ध्यान दें।

      मुरदों का जिलाया जाना

      17, 18. (क) यीशु ने सदूकियों को क्यों फटकारा? (ख) किन हालात में एलिय्याह ने यहोवा से पुनरुत्थान करने की बिनती की?

      17 पहली सदी के कुछ धर्मगुरु जिन्हें सदूकी कहा जाता था, पुनरुत्थान पर विश्‍वास नहीं करते थे। यीशु ने उन्हें फटकारते हुए यह कहा: “तुम भूल करते हो क्योंकि तुम शास्त्रों को और परमेश्‍वर की शक्‍ति को नहीं जानते।” (मत्ती 22:29, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) जी हाँ, शास्त्र से हम जान सकते हैं कि यहोवा के पास ज़िंदगी बहाल करने की शक्‍ति है। यह हम कैसे कह सकते हैं?

      18 एलिय्याह के दिनों में जो हुआ था, उसकी कल्पना कीजिए। एक विधवा अपने एकलौते बेटे की लाश उठाए हुई थी। लड़का मर चुका था। भविष्यवक्‍ता एलिय्याह को, जो कुछ समय से उस स्त्री के घर मेहमान था, यह देखकर भारी सदमा पहुँचा होगा। इससे पहले, उसने अकाल के समय में इस बच्चे को भूखों मरने से बचाया था। एलिय्याह को ज़रूर उस लड़के से लगाव होगा। माँ तो पूरी तरह टूट चुकी थी। यह बच्चा उसके मरहूम पति की एकलौती निशानी था। उसने सोचा होगा कि उसका लाल बड़ा होकर उसके बुढ़ापे की लाठी बनेगा। वह विधवा यह सोच-सोचकर बावली हो चली थी कि उसे ज़रूर किसी पिछले पाप की सज़ा मिल रही है। उस दुखियारी स्त्री की हालत देखकर एलिय्याह से रहा नहीं गया। उसने माँ की गोद से बहुत सँभालकर बच्चे की लाश उठायी और ऊपर अपनी कोठरी में ले गया। वहाँ उसने यहोवा परमेश्‍वर से बिनती की कि उस बच्चे की ज़िंदगी लौटा दे।—1 राजा 17:8-21.

      19, 20. (क) इब्राहीम ने कैसे दिखाया कि उसे यहोवा की बहाल करने की शक्‍ति पर भरोसा था, और इस विश्‍वास की बुनियाद क्या थी? (ख) यहोवा ने एलिय्याह के विश्‍वास का उसे कैसे प्रतिफल दिया?

      19 पुनरुत्थान में विश्‍वास करनेवाला एलिय्याह पहला आदमी नहीं था। एलिय्याह से सदियों पहले जीनेवाला इब्राहीम भी यह विश्‍वास करता था कि परमेश्‍वर के पास मुरदों को ज़िंदा करने की शक्‍ति है और उसके पास यह मानने की ठोस बुनियाद भी थी। जब इब्राहीम 100 साल का था और उसकी पत्नी सारा 90 साल की, तब यहोवा ने चमत्कार करके उनके शरीर में संतान पैदा करने की शक्‍ति को बहाल कर दिया। इस चमत्कार की वजह से सारा के एक बेटा हुआ। (उत्पत्ति 17:17; 21:2, 3) जब वह जवान हो गया, तब यहोवा ने इब्राहीम से उसे बलि चढ़ाने के लिए कहा। इब्राहीम ने इस आज्ञा का पालन किया, क्योंकि उसे पूरा विश्‍वास था कि यहोवा इसहाक को दोबारा ज़िंदा कर सकता है। (इब्रानियों 11:17-19) इब्राहीम के इतने पक्के विश्‍वास को देखकर पता चलता है कि क्यों उसने पहाड़ पर चढ़ने से पहले अपने सेवक से यह कहा था कि वह और इसहाक दोनों बलिदान करके लौट आएँगे।—उत्पत्ति 22:5.

      जब भविष्यवक्‍ता एलिय्याह, विधवा के बेटे को दोबारा ज़िंदा करके उसके पास लाता है, तो विधवा खुशी-खुशी अपने बेटे को बाहों में भर लेती है

      “देख तेरा बेटा जीवित है”!

      20 यहोवा ने इसहाक को बलि होने से बचा लिया, इसलिए वहाँ पुनरुत्थान की ज़रूरत ही नहीं पड़ी। लेकिन, एलिय्याह के मामले में विधवा के बेटे की मौत हो चुकी थी। मगर ऐसा ज़्यादा देर तक नहीं रहा। यहोवा ने भविष्यवक्‍ता के विश्‍वास का प्रतिफल देते हुए उस बच्चे को ज़िंदा कर दिया! उसके बाद एलिय्याह ने बच्चे को उसकी माँ के हवाले करते हुए ये यादगार शब्द कहे: “देख तेरा बेटा जीवित है”!—1 राजा 17:22-24.

      21, 22. (क) बाइबल में पुनरुत्थान की घटनाएँ लिखवाने का क्या मकसद था? (ख) फिरदौस में किस पैमाने पर पुनरुत्थान होगा, और यह कौन करेगा?

      21 बाइबल में यह पहली घटना है जिसमें हमने देखा कि यहोवा ने अपनी शक्‍ति का इस्तेमाल करके एक इंसान को दोबारा ज़िंदा किया। उसके बाद यहोवा ने एलीशा, यीशु, पौलुस और पतरस को भी मुरदों को ज़िंदा करने की शक्‍ति दी। यह सच है कि इस तरह जीवन पानेवाले लोग बाद में दोबारा मर गए। फिर भी बाइबल की ये घटनाएँ हमें आनेवाले समय की एक बढ़िया झलक दिखाती हैं।

      22 फिरदौस में, यीशु “पुनरुत्थान और जीवन” होने की अपनी भूमिका निभाएगा। (यूहन्‍ना 11:25) वह अनगिनित लोगों को ज़िंदा करके इस धरती पर फिरदौस में हमेशा तक रहने का मौका देगा। (यूहन्‍ना 5:28, 29) ज़रा कल्पना कीजिए कि जो हमारे प्यारे दोस्त और रिश्‍तेदार मरकर हमसे जुदा हो गए हैं, उन्हें दोबारा ज़िंदा देखकर और गले लगाकर हम किस कदर खुशी से झूम उठेंगे! सारी मानवजाति यहोवा की बहाल करने की शक्‍ति के लिए उसकी महिमा करेगी।

      23. यहोवा की शक्‍ति का सबसे ज़बरदस्त सबूत क्या था, और यह भविष्य की आशा की गारंटी कैसे है?

      23 यहोवा की गारंटी पत्थर की लकीर है यानी वह जो आशाएँ देता है, वे सौ-फीसदी पक्की हैं। अपनी शक्‍ति का सबसे ज़बरदस्त सबूत देते हुए उसने अपने बेटे यीशु का एक शक्‍तिशाली आत्मिक प्राणी के रूप में पुनरुत्थान किया है। यहोवा के बाद सारे जहान में सिर्फ वही महान है। पुनरुत्थान पाने के बाद यीशु सैकड़ों लोगों को दिखायी दिया। (1 कुरिन्थियों 15:5, 6) यहाँ तक कि शक करनेवाले भी इतने सबूतों को झुठला नहीं सकते। यहोवा के पास ज़िंदगी बहाल करने की शक्‍ति है।

      24. हम क्यों विश्‍वास रख सकते हैं कि यहोवा मरे हुओं को जिलाएगा, और हममें से हरेक को क्या आशा सँजोकर रखनी चाहिए?

      24 यहोवा मुरदों की ज़िंदगी बहाल करने की सिर्फ शक्‍ति ही नहीं रखता बल्कि वह ऐसा करने की इच्छा भी रखता है। वफादार अय्यूब ने प्रेरित होकर कहा कि दरअसल यहोवा में मरे हुओं को ज़िंदा करने की अभिलाषा है। (अय्यूब 14:15) क्या आप हमारे परमेश्‍वर के और करीब महसूस नहीं करते, जो बहाल करने की अपनी शक्‍ति को ऐसे प्यार भरे तरीके से इस्तेमाल करने के लिए बेताब है? लेकिन याद रखिए कि पुनरुत्थान बहाली के उस महान काम का सिर्फ एक पहलू है, जिसे यहोवा भविष्य में करने जा रहा है। जैसे-जैसे आप यहोवा के करीब आते हैं, हमेशा इस अनमोल आशा को दिल में सँजोकर रखिए कि जब यहोवा “सब कुछ नया” करेगा तब आप भी यह देखने के लिए वहाँ मौजूद हों।—प्रकाशितवाक्य 21:5.

      a “सब बातों का सुधार” करने का समय तब शुरू हुआ, जब मसीहाई राज्य स्थापित हुआ और उसके सिंहासन पर वफादार राजा दाऊद के वंश का वारिस बैठा। यहोवा ने दाऊद से वादा किया था कि उसके वंश से एक वारिस पैदा होगा जो हमेशा तक राज्य करेगा। (भजन 89:35-37) लेकिन सा.यु.पू. 607 में, जब बाबुल ने यरूशलेम का सर्वनाश किया, तो उसके बाद दाऊद के वंशजों में से कोई भी परमेश्‍वर के सिंहासन पर नहीं बैठा। यीशु को, जो इस धरती पर दाऊद के वंश से पैदा हुआ था, स्वर्ग में राजगद्दी पर बिठाया गया और इस तरह वह बरसों पहले भविष्यवाणी में बताया गया राजा बना।

      b मिसाल के तौर पर मूसा, यशायाह, यिर्मयाह, यहेजकेल, होशे, योएल, आमोस, ओबद्याह, मीका और सपन्याह ने इसी विषय को लेकर भविष्यवाणी की।

      मनन के लिए सवाल

      • 2 राजा 5:1-15 बाइबल के ज़माने में जब एक आदमी ने नम्रता का गुण पैदा किया, तब उसने कैसे बहाल करने की यहोवा की शक्‍ति से फायदा पाया?

      • अय्यूब 14:12-15 अय्यूब को किस बात का भरोसा था, और ये आयतें भविष्य के लिए हमारी आशा को कैसे मज़बूत कर सकती हैं?

      • भजन 126:1-6 आज शुद्ध उपासना के बहाल होने और उसमें हिस्सा लेने के बारे में मसीहियों को शायद कैसा लगे?

      • रोमियों 4:16-25 बहाल करने की यहोवा की शक्‍ति पर विश्‍वास रखना क्यों ज़रूरी है?

  • ‘मसीह, परमेश्‍वर की शक्‍ति’
    यहोवा के करीब आओ
    • एक तूफानी रात में यीशु गलील सागर पर चलते हुए

      अध्याय 9

      ‘मसीह, परमेश्‍वर की शक्‍ति’

      1-3. (क) गलील सागर में चेलों को किस खतरनाक अनुभव से गुज़रना पड़ा, और यीशु ने वहाँ क्या किया? (ख) यीशु को सही मायनों में ‘मसीह, परमेश्‍वर की शक्‍ति’ क्यों कहा गया है?

      यीशु के चेले घबरा गए थे। वे अपनी नाव में गलील सागर पार कर रहे थे कि अचानक एक तूफान ने उन्हें आ घेरा। बेशक उन्होंने पहले भी कई तूफान देखे होंगे क्योंकि वे लोग अनुभवी मछुआरे थे।a (मत्ती 4:18, 19) लेकिन यह एक “बड़ी आन्धी” थी जिसकी प्रचण्ड हवाओं ने सागर को मथना शुरू कर दिया था। उन लोगों ने नाव को खेते रहने की जी-तोड़ कोशिश की, मगर तूफान के ज़ोर ने उनके हौसले पस्त कर दिए। उमड़ती लहरें ‘नाव पर यहां तक लग’ रही थीं कि उसमें पानी भरने लगा। इतने शोर-शराबे के बावजूद यीशु नाव के पिछले हिस्से में गहरी नींद सो रहा था। वह पूरा दिन लोगों को सिखाने के बाद बुरी तरह थक चुका था। अपनी जान खतरे में देखकर चेलों ने उसे जगाया और वे उससे बिनती करने लगे: “हे प्रभु, हमें बचा, हम नाश हुए जाते हैं।”—मरकुस 4:35-38; मत्ती 8:23-25.

      2 लेकिन यीशु डरा नहीं। पूरे विश्‍वास के साथ उसने हवा और समुद्र को डाँट लगायी: “शान्त रह, थम जा।” हवा और समुद्र ने तुरन्त उसके आदेश का पालन किया, आँधी रुक गयी और लहरें शांत हो गयीं और “बड़ा चैन हो गया।” लेकिन अब चेलों के मन में एक अजीब-सा डर समाने लगा। वे आपस में कानाफूसी करने लगे, “यह कौन है?” जी हाँ, आखिर वह इंसान कौन हो सकता है जो हवा और समुद्र को इस तरह फटकार लगाए मानो किसी शरारती बच्चे को डाँट रहा हो?—मरकुस 4:39-41; मत्ती 8:26, 27.

      3 यीशु कोई साधारण इंसान नहीं था। यहोवा की शक्‍ति उसके लिए काम करती थी और अद्‌भुत तरीकों से उसके ज़रिए प्रकट होती थी। इसलिए, ईश्‍वर-प्रेरणा से प्रेरित पौलुस ने यीशु के बारे में एकदम ठीक कहा कि ‘मसीह, परमेश्‍वर की शक्‍ति’ है। (1 कुरिन्थियों 1:24, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) यीशु में परमेश्‍वर की शक्‍ति कैसे दिखायी देती है? और यीशु जिस तरह अपनी शक्‍ति इस्तेमाल करता है, उसका हम पर क्या असर हो सकता है?

      परमेश्‍वर के एकलौते पुत्र की शक्‍ति

      4, 5. (क) यहोवा ने अपने एकलौते बेटे को क्या शक्‍ति और अधिकार दिया था? (ख) जो कुछ बनाने का परमेश्‍वर का मकसद था, उसे पूरा करने के लिए इस बेटे के पास क्या था?

      4 सोचिए, धरती पर आने से पहले स्वर्ग में यीशु के पास कितनी शक्‍ति रही होगी। यहोवा ने जब अपने इस एकलौते बेटे की सृष्टि की, जो बाद में यीशु मसीह के नाम से जाना गया, तब उसने अपनी “अनन्त शक्‍ति” का इस्तेमाल किया। (रोमियों 1:20, ईज़ी-टू-रीड वर्शन; कुलुस्सियों 1:15) उसे बनाने के बाद, यहोवा ने अपने पुत्र को अपार शक्‍ति और अधिकार दिया, ताकि वह उन सारी चीज़ों की सृष्टि कर सके जिन्हें बनाने का परमेश्‍वर का मकसद था। इस बेटे के बारे में बाइबल कहती है: “सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्‍न हुआ और जो कुछ उत्पन्‍न हुआ है, उस में से कोई भी वस्तु उसके बिना उत्पन्‍न न हुई।”—यूहन्‍ना 1:3.

      5 यह काम कितना बड़ा था इसका हम शायद ही अंदाज़ा लगा पाएँ। ज़रा कल्पना कीजिए कि लाखों-लाख शक्‍तिशाली स्वर्गदूतों, विश्‍व और इसकी अरबों मंदाकिनियों और इस धरती के साथ इसके हज़ारों किस्म के जीव-जन्तुओं को बनाने के लिए कितनी शक्‍ति की ज़रूरत पड़ी होगी। इस काम को पूरा करने के लिए परमेश्‍वर के एकलौते बेटे के पास पूरे जहान की सबसे शक्‍तिशाली ताकत यानी परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा थी। परमेश्‍वर के लिए एक कारीगर की तरह काम करने में यह बेटा बहुत खुश था। जी हाँ, यहोवा ने दूसरी सब वस्तुओं की सृष्टि करने के लिए इसी बेटे को इस्तेमाल किया।—नीतिवचन 8:22-31.

      6. यीशु की मौत और पुनरुत्थान के बाद, उसे क्या शक्‍ति और अधिकार सौंपा गया?

      6 क्या यह एकलौता बेटा और भी ज़्यादा शक्‍ति और अधिकार हासिल कर सकता था? अपनी मौत और पुनरुत्थान के बाद, यीशु ने यह कहा था: “स्वर्ग और पृथ्वी का सारा अधिकार मुझे दिया गया है।” (मत्ती 28:18) जी हाँ, यीशु को सारे जहान पर अधिकार चलाने के काबिल किया गया और इसका हक दिया गया। वह “राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु” है, इसलिए उसे यह अधिकार दिया गया है कि वह देखी और अनदेखी ऐसी ‘सारी प्रधानता और सारे अधिकार और सामर्थ का अंत करे,’ जो उसके पिता के खिलाफ खड़े हों। (प्रकाशितवाक्य 19:16; 1 कुरिन्थियों 15:24-26) यहोवा परमेश्‍वर ने अपने आप को छोड़कर बाकी सबकुछ यीशु के अधीन कर दिया है, “उस ने कुछ भी रख न छोड़ा, जो उसके आधीन न हो।”—इब्रानियों 2:8; 1 कुरिन्थियों 15:27.

      7. हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि जो शक्‍ति यहोवा ने यीशु को दी है, वह उसका कभी-भी गलत इस्तेमाल नहीं करेगा?

      7 क्या हमें यह चिंता करनी चाहिए कि यीशु ने भविष्य में अपनी शक्‍ति का गलत इस्तेमाल किया तो क्या होगा? यह नामुमकिन है! यीशु अपने पिता से सच्चा प्यार करता है और वह कभी-भी ऐसा काम नहीं करेगा जिससे उसके पिता के दिल को ठेस पहुँचे। (यूहन्‍ना 8:29; 14:31) यीशु यह अच्छी तरह जानता है कि यहोवा कभी-भी अपनी अपार शक्‍ति का गलत इस्तेमाल नहीं करता। वह खुद इस बात का गवाह रहा है कि यहोवा उन लोगों की खातिर ‘अपना सामर्थ दिखाने’ के मौके ढूँढ़ता है, “जिनका मन उसकी ओर निष्कपट रहता है।” (2 इतिहास 16:9) बेशक, यीशु भी इंसानों से उतना ही प्यार करता है जितना उसका पिता, इसलिए हम यकीन रख सकते हैं कि वह अपनी शक्‍ति का इस्तेमाल हमेशा भलाई के लिए करेगा। (यूहन्‍ना 13:1) यीशु ने इस मामले में एक बेदाग रिकॉर्ड कायम किया है। आइए देखें कि ज़मीन पर रहते वक्‍त उसके पास क्या शक्‍ति थी और वह किस तरह उसका इस्तेमाल करने को प्रेरित हुआ।

      ‘वचन का शक्‍तिशाली’

      8. अभिषिक्‍त किए जाने के बाद यीशु को क्या करने की शक्‍ति दी गयी, और उसने इसका कैसे इस्तेमाल किया?

      8 जब यीशु बालक ही था और नासरत में बड़ा हो रहा था, तब उसने कोई भी चमत्कार नहीं किया। लेकिन सा.यु. 29 में जब करीब 30 साल की उम्र में उसने बपतिस्मा लिया तब एक बदलाव आया। (लूका 3:21-23) बाइबल बताती है: “परमेश्‍वर ने . . . यीशु नासरी को पवित्र आत्मा और सामर्थ से अभिषेक किया: वह भलाई करता, और सब को जो शैतान के सताए हुए थे, अच्छा करता फिरा।” (प्रेरितों 10:38) ‘वह भलाई करता फिरा,’ क्या इन शब्दों से पता नहीं चलता कि यीशु ने अपनी शक्‍ति का सही तरीके से इस्तेमाल किया? बेशक! अभिषिक्‍त किए जाने के बाद वह ‘कर्म और वचन का शक्‍तिशाली नबी’ बना।—लूका 24:19, बुल्के बाइबिल।

      9-11. (क) यीशु ज़्यादातर कैसी जगहों पर सिखाता था और उसके सामने क्या चुनौती थी? (ख) यीशु के सिखाने के तरीके से भीड़ क्यों चकित हो जाती थी?

      9 यीशु वचन का शक्‍तिशाली कैसे था? उसने ज़्यादातर खुली जगहों या मैदानों में सिखाया जैसे झील के किनारे और पहाड़ियों के पास, साथ ही सड़कों पर और बाज़ारों में। (मरकुस 6:53-56; लूका 5:1-3; 13:26) अगर उसकी बातें दिलचस्प ना होतीं तो उसके सुननेवाले वहाँ से चलते बनते। उस ज़माने में जब किताबें बनाने के लिए छापेखाने नहीं थे, यीशु की बातों की कदर करनेवालों को अपने दिल और दिमाग में उसके वचनों को उतार लेने की ज़रूरत थी। इसलिए ज़रूरी था कि यीशु की शिक्षाएँ बेहद दिलचस्प हों, आसानी से समझ में आएँ और याद रह जाएँ। लेकिन, यीशु के लिए यह कोई मुश्‍किल काम नहीं था। उसके पहाड़ी उपदेश की ही मिसाल लीजिए।

      10 सामान्य युग 31 की शुरूआत में एक दिन सुबह-सुबह, गलील सागर के पास के पहाड़ी इलाके में भीड़ जमा हुई। उनमें से कुछ लोग, करीब 100 से 110 किलोमीटर की दूरी तय करके यहूदिया और यरूशलेम से आए थे। दूसरे, उत्तर में सोर और सिदोन के समुद्र-तट के इलाके से आए थे। बहुत-से बीमार लोग, यीशु के करीब आकर उसे छूना चाहते थे और उसने उन सभी को चंगा किया। जब भीड़ में ऐसा कोई न बचा, जो सख्त बीमार हो तब यीशु ने सिखाना शुरू किया। (लूका 6:17-19) जब कुछ देर बाद यीशु ने अपनी बात खत्म की, तब लोग उसकी बातें सुनकर हैरान रह गए। क्यों?

      11 इस पहाड़ी उपदेश को सुननेवाले एक आदमी ने बरसों बाद लिखा: “भीड़ उसके उपदेश से चकित हुई। क्योंकि वह . . . अधिकारी की नाईं उन्हें उपदेश देता था।” (मत्ती 7:28, 29) यीशु के बोलने में ऐसी शक्‍ति थी जिसे वे महसूस कर सकते थे। वह परमेश्‍वर की तरफ से बोलता था और उसके वचन को अधिकार की तरह इस्तेमाल करके सिखाता था। (यूहन्‍ना 7:16) यीशु की कही हर बात साफ और स्पष्ट होती थी, उसके उपदेश कायल कर देनेवाले थे, उसकी दलीलें लाजवाब और ऐसी थीं जिन्हें कोई काट नहीं सकता था। वह मुद्दे की जड़ तक पहुँचता था और उसके शब्द सुननेवालों के दिलों में उतर जाते थे। उसने सिखाया कि खुशी कैसे पायी जा सकती है, प्रार्थना कैसे की जानी चाहिए, परमेश्‍वर के राज्य की खोज कैसे की जानी चाहिए और अच्छे भविष्य के लिए कैसे काम करने चाहिए। (मत्ती 5:3–7:27) उसके शब्दों ने सच्चाई और धार्मिकता के भूखे लोगों के दिलों में जागृति पैदा की। ऐसे लोग अपना “इन्कार” करके और सबकुछ छोड़कर यीशु के पीछे चलने को तैयार थे। (मत्ती 16:24; लूका 5:10, 11) यीशु के वचनों की शक्‍ति का यह क्या ही बढ़िया सबूत था!

      ‘कर्म का शक्‍तिशाली’

      12, 13. किस अर्थ में यीशु ‘कर्म का शक्‍तिशाली’ था, और उसने किन अलग-अलग तरीकों से चमत्कार किए?

      12 यीशु ‘कर्म का शक्‍तिशाली’ भी था। (लूका 24:19, बुल्के बाइबिल) सुसमाचार की किताबों में, यीशु के 30 से ज़्यादा ऐसे खास चमत्कारों का ब्यौरा दिया गया है, जो उसने ‘यहोवा की सामर्थ’ से किए।b (लूका 5:17) यीशु के चमत्कारों का असर हज़ारों ज़िंदगियों पर पड़ा। यीशु ने एक बार “स्त्रियों और बालकों” के अलावा 5,000 पुरुषों और दूसरी बार 4,000 पुरुषों को खाना खिलाया। सिर्फ दो चमत्कारों में, कुल मिलाकर 20,000 के करीब लोग थे!—मत्ती 14:13-21; 15:32-38.

      “उन्हों ने यीशु को झील पर चलते . . . देखा”

      13 यीशु ने तरह-तरह के चमत्कार किए। वह बिना किसी मुश्‍किल के दुष्टात्माओं को निकाल देता था, क्योंकि उसका उन पर अधिकार था। (लूका 9:37-43) धरती के तत्त्वों पर भी उसे शक्‍ति थी, उसने एक बार पानी को दाखमधु बना दिया। (यूहन्‍ना 2:1-11) उसके चेलों के अचरज की सीमा न रही जब उन्होंने एक बार यीशु को गलील के तूफानी सागर में पानी पर चलते देखा। (यूहन्‍ना 6:18, 19) बीमारियों को ठीक करने का उसे अधिकार था, बिगड़े हुए रोग-ग्रस्त अंगों को, पुरानी और जानलेवा बीमारियों को भी उसने ठीक किया। (मरकुस 3:1-5; यूहन्‍ना 4:46-54) यीशु ने ये चंगाई के काम अलग-अलग तरह से किए थे। कुछ ऐसे भी लोग थे जिन्हें यीशु ने बहुत दूर से ठीक किया, जबकि दूसरों को उसने छूकर ठीक किया। (मत्ती 8:2, 3, 5-13) कइयों की बीमारी फौरन ठीक हो गयी, तो कुछ धीरे-धीरे चंगे हुए।—मरकुस 8:22-25; लूका 8:43, 44.

      14. किन हालात में यीशु ने दिखाया कि उसके पास मौत को मिटाने की शक्‍ति थी?

      14 सबसे अनोखी बात यह है कि यीशु के पास मुरदों को ज़िंदा करने की शक्‍ति थी। तीन ऐसे अवसरों का रिकॉर्ड दर्ज़ है जब उसने मरे हुओं को ज़िंदा किया। उसने एक बारह साल की लड़की को जिलाकर उसके माता-पिता को सौंप दिया, एक विधवा माँ के एकलौते बेटे को और दो बहनों के प्यारे भाई को मौत की नींद से जगाया। (लूका 7:11-15; 8:49-56; यूहन्‍ना 11:38-44) इनमें से कोई हालात ऐसे नहीं थे, जिनका सामना करना यीशु के लिए बहुत मुश्‍किल रहा हो। बारह साल की लड़की को उसकी मौत के कुछ ही समय बाद यीशु ने जी उठाया। विधवा का बेटा जिस दिन मरा था उसी दिन उसकी अर्थी से उसे ज़िंदा किया। और लाजर को मरे हुए चार दिन हो चुके थे जब उसने उसकी कब्र पर पहुँचकर उसे ज़िंदा किया।

      निःस्वार्थ, ज़िम्मेदाराना तरीके से और दूसरों का लिहाज़ करते हुए शक्‍ति का इस्तेमाल

      15, 16. क्या सबूत दिखाते हैं कि यीशु ने अपनी शक्‍ति का इस्तेमाल निःस्वार्थ भावना से किया?

      15 कल्पना कीजिए कि अगर यीशु की शक्‍ति किसी असिद्ध इंसानी शासक के हाथ आ जाती, तो वह इसका कितना गलत इस्तेमाल कर सकता था। मगर यीशु निष्पाप था। (1 पतरस 2:22) उसने स्वार्थ, ऊँचा उठने की लालसा और लोभ को खुद पर हावी नहीं होने दिया, जबकि इन्हीं कारणों से असिद्ध इंसान दूसरों को नुकसान पहुँचाने के लिए अपनी शक्‍ति का इस्तेमाल करते हैं।

      16 यीशु ने अपनी शक्‍ति का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए नहीं, बल्कि निःस्वार्थ भाव से दूसरों की भलाई के लिए किया। जब वह भूखा था, तब उसने अपनी भूख मिटाने के लिए पत्थरों को रोटी नहीं बनाया। (मत्ती 4:1-4) संपत्ति के नाम पर यीशु के पास कुछ नहीं था, यही इस बात का सबूत है कि उसने अपनी शक्‍ति का इस्तेमाल धन बटोरने के लिए नहीं किया। (मत्ती 8:20) वह निःस्वार्थ भाव से शक्‍तिशाली काम करता था, इसका एक और सबूत है। जब वह चमत्कार करता था, तो इसके लिए खुद उसे कुछ कीमत चुकानी पड़ती थी। जब वह बीमारों को चंगा करता था, तो उसकी शक्‍ति खर्च होती थी। सिर्फ एक इंसान के चंगा होने के लिए भी, यीशु अपने शरीर से शक्‍ति निकलते हुए महसूस करता था। (मरकुस 5:25-34) फिर भी, उसने भीड़-की-भीड़ को उसे छूने दिया और वे सब चंगे हुए। (लूका 6:19) निःस्वार्थ भावना की क्या ही बेहतरीन मिसाल!

      17. यीशु ने कैसे दिखाया कि वह अपनी शक्‍ति का इस्तेमाल ज़िम्मेदाराना तरीके से करता था?

      17 यीशु ने बहुत ज़िम्मेदाराना तरीके से अपनी शक्‍ति का इस्तेमाल किया। उसने कभी-भी खेल-तमाशे के लिए या दूसरों को यह दिखाने के लिए चमत्कार नहीं किए कि वह कैसे-कैसे कारनामे कर सकता है। (मत्ती 4:5-7) हेरोदेस सिर्फ अपना मन बहलाने के लिए यीशु के चमत्कार देखने को बेताब था, मगर यीशु ने उसकी इस गलत ख्वाहिश को पूरा नहीं किया। (लूका 23:8, 9) यीशु अपनी शक्‍ति का ढिंढोरा पीटने के बजाय, बीमारियों से ठीक होनेवालों को आदेश देता था कि वे किसी से कुछ न कहें। (मरकुस 5:43; 7:36) वह नहीं चाहता था कि मिर्च-मसाला लगाकर उसके बारे में खबरें फैलायी जाएँ और लोग ऐसी खबरों के आधार पर उसके बारे में राय कायम करें।—मत्ती 12:15-19.

      18-20. (क) यीशु क्या देखकर अपनी शक्‍ति का इस्तेमाल करता था? (ख) यीशु ने एक बहरे आदमी को जिस तरीके से चंगा किया, उसके बारे में आप कैसा महसूस करते हैं?

      18 यह शक्‍तिशाली इंसान यीशु, उन हुक्मरानों के जैसा बिलकुल भी नहीं था, जो दूसरों की ज़रूरतों और तकलीफ की परवाह किए बगैर अपनी शक्‍ति का ज़ोर आज़माते थे। यीशु लोगों की परवाह करता था। दीन-दुखियों पर नज़र पड़ते ही उसका दिल इस कदर भर आता था कि वह उनकी तकलीफ को दूर किए बिना नहीं रह सकता था। (मत्ती 14:14) वह उनकी भावनाओं और ज़रूरतों को समझता था, और इसी गहरी परवाह की वजह से वह अपनी शक्‍ति का इस्तेमाल करता था। मरकुस 7:31-37 में इसकी एक दिल छू लेनेवाली मिसाल दर्ज़ है।

      19 इस मौके पर, भीड़-की-भीड़ ने यीशु को ढूँढ़ निकाला और वे उसके पास बहुत-से बीमारों को ले आए, और उसने उन सभी को ठीक किया। (मत्ती 15:29, 30) मगर यीशु ने एक आदमी पर खास ध्यान दिया। यह आदमी बहरा था और बोल नहीं पाता था। यीशु ने जान लिया कि वह भीड़ में बहुत घबरा रहा है। लिहाज़ दिखाते हुए, यीशु उस आदमी को भीड़ से अलग एकांत में ले गया। फिर यीशु ने इशारों से बताया कि वह उसके लिए क्या करने जा रहा है। उसने “अपनी उंगलियां उसके कानों में डालीं, और थूक कर उस की जीभ को छूआ।”c (मरकुस 7:33) उसके बाद, यीशु ने स्वर्ग की ओर देखा और प्रार्थना करते हुए एक आह भरी। यीशु के ये काम उस आदमी से कह रहे थे कि ‘मैं अब जो तुम्हारे लिए करने जा रहा हूँ वह परमेश्‍वर की शक्‍ति से होगा।’ आखिर में, यीशु ने कहा: “खुल जा।” (मरकुस 7:34) ऐसा करने पर, उस आदमी की सुनने की शक्‍ति लौट आयी और वह साफ-साफ बोलने भी लगा।

      20 यह बात दिल को छू लेती है कि जब यीशु ने परमेश्‍वर से मिली शक्‍ति से बीमारों को चंगा किया तब उसने दुखियारों की भावनाओं का लिहाज़ किया और हमदर्दी दिखायी! क्या इससे हमें दिलासा नहीं मिलता कि यहोवा ने मसीहाई राज्य की बागडोर ऐसे दयालु, दूसरों का लिहाज़ करनेवाले शासक के हाथों में सौंपी है?

      आनेवाली चीज़ों की निशानी

      21, 22. (क) यीशु के चमत्कार, भविष्य में आनेवाली किन चीज़ों की निशानी थे? (ख) प्राकृतिक शक्‍तियाँ यीशु के काबू में हैं, इसलिए हम उसके राज्य में क्या उम्मीद कर सकते हैं?

      21 इस धरती पर यीशु के शक्‍तिशाली काम, उसके राज्य में मिलनेवाली और भी शानदार आशीषों की सिर्फ एक झलक थे। परमेश्‍वर की नयी दुनिया में, यीशु एक बार फिर चमत्कार करेगा और इस बार सारी धरती पर ये चमत्कार होंगे! आइए भविष्य में मिलनेवाली उन लाजवाब आशीषों पर गौर करें।

      22 यीशु धरती के पर्यावरण को पूरी तरह फिर से संतुलन में लाएगा। याद कीजिए, उसने एक तूफान को शांत करके दिखाया कि प्रकृति की शक्‍तियाँ उसके काबू में हैं। तो फिर, कोई शक नहीं कि मसीह के राज्य में इंसानों को बवंडरों, भूकंपों, ज्वालामुखियों के फटने या दूसरी प्राकृतिक विपत्तियों के कहर से डरने की ज़रूरत नहीं होगी। यहोवा ने यीशु को एक कुशल कारीगर की तरह इस्तेमाल करके, धरती और उसके तमाम जीवों की रचना की थी, इसलिए यीशु इस धरती की बनावट को बहुत अच्छी तरह जानता है। वह जानता है कि इस धरती के साधनों का सही इस्तेमाल कैसे किया जाना चाहिए। उसके राज्य में, सारी धरती फिरदौस बन जाएगी।

      23. एक राजा की हैसियत से यीशु, इंसानों की ज़रूरतें कैसे पूरी करेगा?

      23 इंसानों की ज़रूरतों के बारे में क्या? यीशु ने थोड़े-से खाने से हज़ारों लोगों को भरपेट खिलाया, इससे हमें यकीन होता है कि उसके राज्य में कोई भी भूखा नहीं होगा। जी हाँ, ढेर सारा भोजन सबको बराबर बाँटा जाएगा और इससे भूख सदा के लिए खत्म हो जाएगी। (भजन 72:16) बीमारियाँ और रोग जिस कदर उसके काबू में थे, उससे पता चलता है कि बीमार, अंधे, बहरे, लूले-लंगड़े और अपाहिजों को सदा के लिए और पूरी तरह से चंगा कर दिया जाएगा। (यशायाह 33:24; 35:5, 6) वह शक्‍तिशाली स्वर्गीय राजा है, और मरे हुओं का पुनरुत्थान करने की उसकी काबिलीयत इस बात की गारंटी है कि वह ऐसे लाखों लोगों का पुनरुत्थान करेगा जो उसके पिता की याददाश्‍त में हैं।—यूहन्‍ना 5:28, 29.

      24. जब हम यीशु की शक्‍ति के बारे में सोचते हैं, तो हमें हमेशा क्या बात याद रखनी चाहिए, और क्यों?

      24 जब हम यीशु की शक्‍ति के बारे में सोचते हैं, तो आइए हम यह बात हमेशा याद रखें कि यह बेटा हू-ब-हू अपने पिता की तरह काम करता है। (यूहन्‍ना 14:9) तो फिर, यीशु जिस तरह शक्‍ति का इस्तेमाल करता है उससे हमें साफ समझ आता है कि यहोवा अपनी शक्‍ति कैसे इस्तेमाल करता है। मिसाल के लिए, सोचिए कि किस कोमलता से यीशु ने एक कोढ़ी को चंगा किया। तरस खाकर, यीशु ने उस आदमी को छुआ और कहा: “मैं चाहता हूं।” (मरकुस 1:40-42) ऐसे वृत्तांतों के ज़रिए दरअसल यहोवा कह रहा है, ‘मैं इसी तरह अपनी शक्‍ति इस्तेमाल करता हूँ!’ क्या आपका दिल, हमारे सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर की महिमा करने और उसका धन्यवाद करने को उमड़ नहीं पड़ता कि वह इतने प्यार भरे तरीके से अपनी शक्‍ति का इस्तेमाल करता है?

      a गलील सागर (या, झील) में तूफानों का अचानक उठना आम बात है। यह झील समुद्र तल से (करीब 200 मीटर) नीचाई पर है, इसलिए आस-पास के इलाकों की तुलना में यहाँ की हवा ज़्यादा गर्म होती है और इससे वायुमंडल में हलचल पैदा होती रहती है। उत्तर दिशा में हर्मोन पहाड़ से तेज़ हवाएँ यरदन घाटी में आती हैं। और इससे सागर के शांत वातावरण में अचानक ज़बरदस्त बदलाव आते देर नहीं लगती।

      b इसके अलावा, कई बार सुसमाचार की किताबों में बहुत-से चमत्कारों का वर्णन एक ही बार मोटे तौर पर किया गया है। मिसाल के लिए, एक बार “सारा नगर” यीशु को देखने आया और उसने “बहुतों को” चंगा किया।—मरकुस 1:32-34.

      c यहूदियों और अन्यजातियों, दोनों में थूकना चंगा करने का एक ज़रिया या निशानी मानी जाती थी और रब्बियों के लेखनों में थूक इस्तेमाल करके इलाज करने के बारे में बताया गया है। यीशु ने, सिर्फ उस आदमी को यह बताने के लिए थूका होगा कि वह अब चंगा होनेवाला है। जो भी हो, एक बात पक्की है कि यीशु अपने थूक को चंगाई करने की कुदरती दवा के तौर पर इस्तेमाल नहीं कर रहा था।

      मनन के लिए सवाल

      • यशायाह 11:1-5 यीशु “पराक्रम की आत्मा” कैसे दिखाता है, और उसके शासन के बारे में हम क्या भरोसा रख सकते हैं?

      • मरकुस 2:1-12 यीशु ने जब चमत्कार करके लोगों को चंगा किया, तो इससे उसे दिए गए अधिकार के बारे में क्या ज़ाहिर हुआ?

      • यूहन्‍ना 6:25-27 हालाँकि यीशु ने चमत्कार करके लोगों की शारीरिक ज़रूरतें पूरी कीं, मगर उसकी सेवा का खास मकसद क्या था?

      • यूहन्‍ना 12:37-43 यीशु के चमत्कारों को अपनी आँखों से देखनेवाले कुछ लोगों ने उस पर विश्‍वास क्यों नहीं किया, और इससे हम क्या सीख सकते हैं?

  • अपनी शक्‍ति इस्तेमाल करने में “परमेश्‍वर के समान बनो”
    यहोवा के करीब आओ
    • दो मसीही एक औरत के घर जाकर उसे खुशखबरी सुना रही हैं

      अध्याय 10

      अपनी शक्‍ति इस्तेमाल करने में “परमेश्‍वर के समान बनो”

      1. असिद्ध इंसान अकसर किस छिपे हुए फंदे में फँस जाते हैं?

      “मुमकिन नहीं कि जहाँ शक्‍ति हो वहाँ कोई छिपा हुआ फंदा न हो।” उन्‍नीसवीं सदी की एक कवियत्री के ये शब्द एक छिपे हुए खतरे की तरफ इशारा करते हैं, वह है: शक्‍ति का गलत इस्तेमाल। दुःख की बात है कि असिद्ध इंसान अकसर इस फंदे में फँस जाते हैं। जी हाँ, पूरे इतिहास में “एक मनुष्य दूसरे मनुष्य पर अधिकारी होकर अपने ऊपर हानि ला[या] है।” (सभोपदेशक 8:9) शक्‍ति का इस्तेमाल, जिसमें प्रेम न हो, इंसानों पर अनगिनित आफतें लाया है।

      2, 3. (क) यहोवा जिस तरीके से अपनी शक्‍ति इस्तेमाल करता है, उसमें क्या बात कमाल की है? (ख) हमारे पास शक्‍ति के नाम पर क्या-क्या है और यह तमाम शक्‍ति हमें कैसे इस्तेमाल करनी चाहिए?

      2 लेकिन, क्या यह कमाल की बात नहीं कि यहोवा परमेश्‍वर जिसके पास असीम शक्‍ति है, इसका गलत इस्तेमाल कभी नहीं करता? जैसा हम पिछले अध्यायों में देख चुके हैं, वह अपनी सृजने की, नाश करने की, रक्षा करने की या बहाल करने की शक्‍ति हमेशा अपने प्यार-भरे उद्देश्‍यों को पूरा करने के लिए इस्तेमाल करता है। यह समझने के बाद कि वह किस तरीके से अपनी शक्‍ति इस्तेमाल करता है, हम उसके करीब खिंचे चले आते हैं। इसी से हमें प्रेरणा मिलती है कि हम भी अपनी शक्‍ति का इस्तेमाल करने में ‘परमेश्‍वर के समान बनें।’ (इफिसियों 5:1, हिन्दुस्तानी बाइबिल) लेकिन हम अदना इंसानों के पास क्या शक्‍ति है?

      3 याद रहे कि इंसान को ‘परमेश्‍वर के स्वरूप’ और समानता में रचा गया था। (उत्पत्ति 1:26, 27) इसलिए हमारे पास भी शक्‍ति है, चाहे थोड़ी ही सही। हमारे पास जो शक्‍ति है उसमें अलग-अलग काम करने की काबिलीयत; दूसरों पर नियंत्रण रखने या उन पर अधिकार चलाने की शक्‍ति; दूसरों पर, खासकर जो हमें प्यार करते हैं उन पर प्रभाव डालने की क्षमता; हमारी शारीरिक ताकत (बल); या हमारी धन-संपत्ति शामिल है। यहोवा के बारे में भजनहार ने कहा: “जीवन का सोता तेरे ही पास है।” (भजन 36:9) इसलिए, जो भी जायज़ अधिकार या शक्‍ति हमारे पास है वह सीधे तौर पर या घूम-फिरकर परमेश्‍वर ही से मिलती है। इसलिए हम यह शक्‍ति इस ढंग से इस्तेमाल करना चाहेंगे जिससे उसे खुशी मिले। हम यह कैसे कर सकते हैं?

      प्यार बेहद ज़रूरी है

      4, 5. (क) शक्‍ति का सही इस्तेमाल करने के लिए क्या ज़रूरी है और परमेश्‍वर की अपनी मिसाल यह कैसे ज़ाहिर करती है? (ख) प्रेम, शक्‍ति का सही इस्तेमाल करने में कैसे हमारी मदद करेगा?

      4 शक्‍ति का सही तरह इस्तेमाल करने का राज़ है, प्यार। खुद परमेश्‍वर की मिसाल से क्या यह ज़ाहिर नहीं होता? अध्याय 1 को याद कीजिए जिसमें परमेश्‍वर के चार खास गुणों—शक्‍ति, न्याय, बुद्धि और प्रेम पर चर्चा की गयी थी। इन चारों में सबसे बड़ा कौन-सा गुण है? प्रेम। पहला यूहन्‍ना 4:8 कहता है: “परमेश्‍वर प्रेम है।” जी हाँ, प्रेम यहोवा का स्वभाव है; वह जो कुछ करता है प्रेम की वजह से करता है। इसलिए वह जब भी अपनी शक्‍ति दिखाता है, तो उसकी वजह प्रेम होती है और इससे उन सभी का भला होता है जो परमेश्‍वर से प्रेम करते हैं।

      5 शक्‍ति का सही इस्तेमाल करने में भी प्रेम हमारी मदद करता है। आखिर, बाइबल हमें बताती है कि प्रेम “कृपाल” है और “अपनी भलाई नहीं चाहता।” (1 कुरिन्थियों 13:4, 5) इसलिए, प्रेम हमें उन लोगों के साथ कठोरता या क्रूरता से व्यवहार करने से रोकेगा, जिन पर हम कुछ हद तक अधिकार रखते हैं। इसके बजाय, हम दूसरों के साथ इज़्ज़त से पेश आएँगे और उनकी ज़रूरतों और भावनाओं को अपनी ज़रूरतों और भावनाओं से ज़्यादा अहमियत देंगे।—फिलिप्पियों 2:3, 4.

      6, 7. (क) परमेश्‍वर का भय क्या है, और यह गुण क्यों हमें शक्‍ति का गलत इस्तेमाल करने से रोकेगा? (ख) परमेश्‍वर को नाराज़ न करने के डर और उसके लिए प्रेम के बीच क्या नाता है, मिसाल देकर समझाइए।

      6 प्रेम एक और गुण से जुड़ा है, जो हमें शक्‍ति का गलत इस्तेमाल करने से दूर रखता है। वह है, परमेश्‍वर का भय। इस गुण की अहमियत क्या है? नीतिवचन 16:6 कहता है: “यहोवा के भय मानने के द्वारा मनुष्य बुराई करने से बच जाते हैं।” शक्‍ति का गलत इस्तेमाल वाकई ऐसी बुराई है जिससे हमें बचना चाहिए। परमेश्‍वर का भय हमें उन लोगों के साथ बुरा सलूक करने से रोकेगा जिन पर हमारा अधिकार है। क्यों? इसलिए कि उनके साथ हम जैसा भी व्यवहार करते हैं उसके लिए हमें परमेश्‍वर को लेखा देना होगा। (नहेमायाह 5:1-7, 15) मगर परमेश्‍वर का भय इससे भी बढ़कर है। “भय” के लिए मूल भाषाओं में इस्तेमाल होनेवाले शब्दों का अकसर मतलब होता है, परमेश्‍वर के लिए गहरी श्रद्धा और विस्मय। इस तरह बाइबल भय को परमेश्‍वर के प्रेम के साथ जोड़ती है। (व्यवस्थाविवरण 10:12, 13) श्रद्धा और विस्मय की भावना में परमेश्‍वर को नाराज़ न करने का सही भय भी शामिल है—इसलिए नहीं कि अगर वह नाराज़ होगा तो इसका अंजाम बुरा होगा बल्कि इसलिए कि हम उससे सच्चा प्यार करते हैं।

      7 इसे समझने के लिए एक मिसाल लीजिए: एक छोटे लड़के और उसके पिता के बीच जो प्यार और विश्‍वास का रिश्‍ता होता है, ज़रा उसके बारे में सोचिए। लड़का महसूस कर सकता है कि पिता को उससे प्यार है और वह उसकी परवाह करता है। मगर उसे यह भी पता है कि पिता उससे क्या चाहता है और अगर वह शरारत करेगा तो उसे पिता से डांट या सज़ा भी मिलेगी। मगर लड़का अपने पिता से डर-डरकर नहीं जीता बल्कि वह उसे दिलो-जान से प्यार करता है। वह ऐसे काम करने की ताक में रहता है जिसे देखकर उसके पिता के चेहरे पर मुसकान खिल उठे। यही बात परमेश्‍वर के भय के बारे में भी सही है। हम अपने स्वर्गीय पिता, यहोवा से प्रेम करते हैं, इसलिए हम ऐसा कोई भी काम करने से डरते हैं जिससे “वह मन में अति खेदित” महसूस करे। (उत्पत्ति 6:6) इसके बजाय, हम उसके दिल को खुश करने के मौके ढूँढ़ते हैं। (नीतिवचन 27:11) इसलिए हम अपनी शक्‍ति का सही इस्तेमाल करना चाहते हैं। आइए देखें कि हम ऐसा कैसे कर सकते हैं।

      परिवार में

      8. (क) परिवार में पतियों को क्या अधिकार मिला है, और इस अधिकार का इस्तेमाल कैसे किया जाना चाहिए? (ख) पति कैसे दिखा सकता है कि वह अपनी पत्नी का आदर करता है?

      8 सबसे पहले परिवार पर गौर कीजिए। इफिसियों 5:23 कहता है: “पति पत्नी का सिर है।” पति को परमेश्‍वर से मिले इस अधिकार का कैसे इस्तेमाल करना चाहिए? बाइबल पतियों से कहती है कि वे अपनी पत्नी के साथ ‘समझदारी से रहें, उसे निर्बल पात्र जानकर उसका आदर करें।’ (1 पतरस 3:7, NHT) यूनानी संज्ञा जिसका अनुवाद “आदर” किया है, उसका मतलब है “मूल्यवान, महत्वपूर्ण, . . . इज़्ज़त के काबिल।” इस शब्द के दूसरे रूपों का अनुवाद ‘उपहार’ और “कीमती” किया गया है। (प्रेरितों 28:10, ईज़ी-टू-रीड वर्शन; 1 पतरस 2:7) एक पति अगर अपनी पत्नी का आदर करता है तो वह कभी उसे मारेगा-पीटेगा नहीं; न ही वह उसका अपमान करेगा न ही मज़ाक उड़ाएगा, ताकि पत्नी यह न समझने लगे कि उसकी कोई कीमत नहीं। इसके बजाय, वह उसको अनमोल समझता है और उसके साथ इज़्ज़त से पेश आता है। वह घर के अंदर और बाहर भी, अपनी बातों और कामों से दिखाता है कि वह उसके लिए कीमती है। (नीतिवचन 31:28) ऐसा पति न सिर्फ अपनी पत्नी का प्यार और आदर पाता है, बल्कि इससे भी बढ़कर परमेश्‍वर का अनुग्रह पाता है।

      एक पति-पत्नी मिलकर हँसी-खुशी टहल रहे हैं

      पति और पत्नी एक-दूसरे के साथ प्यार और इज़्ज़त से पेश आकर अपनी शक्‍ति का सही इस्तेमाल करते हैं

      9. (क) पत्नियों को परिवार में क्या अधिकार हासिल है? (ख) अपनी काबिलीयतों से पति का साथ देने में क्या बात पत्नी की मदद करेगी, और इसका नतीजा क्या होगा?

      9 पत्नियों के पास भी परिवार में कुछ हद तक अधिकार या शक्‍ति होती है। बाइबल ऐसी भक्‍त स्त्रियों के बारे में बताती है जिन्होंने मुखियापन के सही दायरे में रहते हुए, अपने पतियों को अच्छे फैसले करने में मदद दी या जब उन्होंने पति को गलत फैसला करते देखा तो उन्हें ऐसा करने से रोका। (उत्पत्ति 21:9-12; 27:46–28:2) हो सकता है कि पत्नी का दिमाग पति से ज़्यादा तेज़ हो, या उसमें ऐसी दूसरी खूबियाँ हों जो पति में नहीं। फिर भी, उसके मन में अपने पति के लिए “गहरी इज़्ज़त” (NW) होनी चाहिए और उसके ‘ऐसे आधीन रहना चाहिए जैसे प्रभु के।’ (इफिसियों 5:22, 33) अगर एक पत्नी यह सोचकर चले कि उसे अपने कामों से परमेश्‍वर को खुश करना है, तो वह अपनी काबिलीयतों से अपने पति का साथ देगी, न कि उसे नीचा दिखाने या उस पर रोब जमाने की कोशिश करेगी। ऐसी “बुद्धिमान स्त्री” अपने पति के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर परिवार को और भी मज़बूत करने के लिए काम करती है। इस तरह परमेश्‍वर के साथ उसका रिश्‍ता भी शांतिमय होता है।—नीतिवचन 14:1.

      10. (क) परमेश्‍वर ने माता-पिता को क्या अधिकार दिया है? (ख) “अनुशासन” शब्द का मतलब क्या है, और यह कैसे दिया जाना चाहिए? (फुटनोट भी देखिए।)

      10 माता-पिता को भी परमेश्‍वर ने अधिकार या शक्‍ति दी है। बाइबल सलाह देती है: “पिताओ, अपने बच्चों को क्रोध न दिलाओ, वरन्‌ प्रभु की शिक्षा और अनुशासन में उनका पालन-पोषण करो।” (इफिसियों 6:4, NHT) बाइबल में, शब्द “अनुशासन” का मतलब “परवरिश, तालीम, हिदायत” हो सकता है। बच्चों को अनुशासन की ज़रूरत होती है; वे ऐसे माहौल में अच्छी तरह फलते-फूलते हैं जहाँ उन्हें साफ-साफ बताया जाता है कि उन्हें किन नियमों को मानना है, उनकी हदें और सीमाएँ क्या हैं। बाइबल बताती है कि ऐसा अनुशासन या हिदायत प्यार की वजह से दिए जाने चाहिए। (नीतिवचन 13:24) इसलिए, “छड़ी की ताड़ना” का कभी-भी गलत इस्तेमाल नहीं होना चाहिए, जिससे बच्चे की भावनाओं को ठेस पहुँचे या उसे शारीरिक चोट पहुँचे।a (नीतिवचन 22:15; 29:15) जब माता-पिता प्यार से नहीं बल्कि सख्ती और कठोरता से अनुशासन देते हैं, तो वे अपने अधिकार का गलत इस्तेमाल करते हैं और यह बच्चे की भावनाओं को कुचल सकता है। (कुलुस्सियों 3:21) दूसरी तरफ, अगर सही मात्रा में और ठीक तरीके से अनुशासन दिया जाए, तो इससे बच्चे को महसूस होता है कि उसके माता-पिता उससे प्यार करते हैं और वे उसे एक अच्छा इंसान बनाने के लिए उसकी चिंता करते हैं।

      11. बच्चे अपनी शक्‍ति का सही इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं?

      11 बच्चों के बारे में क्या? वे अपनी शक्‍ति का सही इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं? नीतिवचन 20:29 कहता है: “जवानों का गौरव उनका बल है।” बेशक जवानों के लिए अपना बल और जोश इस्तेमाल करने का सबसे बढ़िया तरीका है, अपने “[महान] सृजनहार” की जी-जान से सेवा करना। (सभोपदेशक 12:1) नौजवानों को हमेशा याद रखना चाहिए कि वे जो कुछ करते हैं, उसका असर उनके माता-पिता की भावनाओं पर होता है। (नीतिवचन 23:24, 25) जब बच्चे, परमेश्‍वर का भय माननेवाले अपने माता-पिता की आज्ञा मानते हैं और सही राह पर चलते हैं, तो उनके माता-पिता का दिल आनंदित होता है। (इफिसियों 6:1) ऐसे चालचलन से “प्रभु . . . प्रसन्‍न होता है।”—कुलुस्सियों 3:20.

      कलीसिया में

      12, 13. (क) कलीसिया में अपने अधिकार के बारे में प्राचीनों का नज़रिया कैसा होना चाहिए? (ख) उदाहरण देकर समझाइए कि प्राचीनों को क्यों अपने झुंड की रखवाली कोमलता से करनी चाहिए।

      12 यहोवा ने कलीसिया में अगुवाई के लिए ओवरसियरों को ठहराया है। (इब्रानियों 13:17) इन काबिल भाइयों को परमेश्‍वर से मिले अधिकार का इस्तेमाल करके झुंड की ज़रूरी देखभाल करनी चाहिए ताकि उनकी आध्यात्मिक खुशहाली बढ़ती चली जाए। क्या प्राचीनों का पद उन्हें अपने संगी भाई-बहनों पर रोब जमाने का हकदार बनाता है? बिलकुल नहीं! प्राचीनों के लिए ज़रूरी है कि वे कलीसिया में अपनी ज़िम्मेदारी के बारे में संतुलित नज़रिया रखें और नम्र हों। (1 पतरस 5:2, 3) बाइबल ओवरसियरों से कहती है: “परमेश्‍वर की कलीसिया की रखवाली करो, जिसे उसने अपने प्रिय पुत्र के रक्‍त से प्राप्त किया है।” (प्रेरितों 20:28, नयी हिन्दी बाइबिल) यही सबसे बड़ी वजह है कि क्यों झुंड के हर सदस्य के साथ कोमलता से पेश आना ज़रूरी है।

      13 इसे समझने के लिए हम यह उदाहरण ले सकते हैं। आपका एक करीबी दोस्त अपनी किसी कीमती चीज़ की देखभाल करने के लिए आपसे कहता है। आप जानते हैं कि आपके दोस्त ने इस चीज़ को बहुत बड़ी कीमत देकर पाया है। तो क्या आप उस अमानत को बहुत संभालकर, हद-से-ज़्यादा एहतियात के साथ नहीं रखेंगे? उसी तरह, परमेश्‍वर ने प्राचीनों को अपनी एक बहुत ही बेशकीमती चीज़ संभालने की ज़िम्मेदारी सौंपी है, वह है: कलीसिया, जिसके सदस्यों की तुलना भेड़ों से की गयी है। (यूहन्‍ना 21:16, 17) यहोवा को अपनी भेड़ें बेहद प्यारी हैं—इतनी प्यारी कि उसने उन्हें अपने एकलौते पुत्र, यीशु मसीह का कीमती लहू देकर मोल लिया है। यहोवा ने अपनी इन भेड़ों के लिए सबसे बड़ी कीमत अदा की है। नम्र प्राचीन इस बात को हमेशा ध्यान में रखकर यहोवा की भेड़ों के साथ प्यार से पेश आते हैं।

      “जीभ” की शक्‍ति

      14. हमारी जीभ में क्या शक्‍ति है?

      14 बाइबल कहती है: “जीभ के वश में मृत्यु और जीवन दोनों होते हैं।” (नीतिवचन 18:21) वाकई, हमारी जीभ से बहुत नुकसान हो सकता है। हममें से ऐसा कौन है जिसका दिल कोई कड़वी या नश्‍तर चुभोनेवाली बात सुनकर तड़पा न हो? मगर इसी ज़बान में बिगड़े हुए को दुरुस्त करने की भी शक्‍ति है। नीतिवचन 12:18 कहता है: “बुद्धिमान के बोलने से लोग चंगे होते हैं।” जी हाँ, अच्छे और हिम्मत बढ़ानेवाले शब्द, दिल पर मरहम का काम करते हैं जिससे बहुत चैन मिलता है। आइए कुछ मिसालों पर गौर करें।

      15, 16. हम दूसरों का हौसला बढ़ाने के लिए किन तरीकों से अपनी जीभ का इस्तेमाल कर सकते हैं?

      15 पहला थिस्सलुनीकियों 5:14 (NW) हमसे गुज़ारिश करता है: ‘हताश प्राणियों को सांत्वना’ दो। जी हाँ, कभी-कभी यहोवा के वफादार सेवकों को भी हताशा से जूझना पड़ता है। हम ऐसों की मदद कैसे कर सकते हैं? साफ शब्दों में उनकी सच्ची तारीफ कीजिए ताकि वे जान सकें कि यहोवा की नज़र में वे कितने अनमोल हैं। बाइबल की आयतों के शक्‍तिशाली शब्दों से उन्हें दिखाइए कि यहोवा सचमुच “टूटे मनवालों” और “पिसे हुओं” की परवाह करता है और उनसे प्यार करता है। (भजन 34:18) जब हम दूसरों को दिलासा देने के लिए अपनी जीभ की शक्‍ति का इस्तेमाल करेंगे, तो हम दिखाएँगे कि हम अपने करुणामयी परमेश्‍वर की मिसाल पर चल रहे हैं, जो ‘दुखियों को शान्ति देता है।’—2 कुरिन्थियों 7:6, NHT.

      16 हम अपनी जीभ की शक्‍ति से दूसरों की हिम्मत भी बंधा सकते हैं, जिसकी उन्हें सख्त ज़रूरत है। क्या हमारे किसी भाई या बहन के अज़ीज़ की मौत हो गयी है? हमदर्दी भरे शब्दों से हम उनके लिए अपनी परवाह और चिंता ज़ाहिर कर सकते हैं और इससे उनके दुःखी दिल को दिलासा मिल सकता है। क्या एक बुज़ुर्ग भाई या बहन को ऐसा महसूस होता है जैसे किसी को उनकी ज़रूरत नहीं? सोच-समझकर कहे गए शब्दों से बुज़ुर्गों को यह यकीन दिलाया जा सकता है कि उनकी अभी-भी ज़रूरत है और उनकी कदर की जाती है। क्या कोई बहुत वक्‍त से बीमार है? फोन पर या खुद उससे मिलकर चंद प्यार-भरे शब्द बोलने से हम उस बीमार इंसान का हौसला बढ़ा सकते हैं। हमारा सिरजनहार कितना खुश होता होगा जब हम अपनी जीभ की शक्‍ति से ऐसे बोल बोलते हैं, “जो उन्‍नति के लिये उत्तम” हैं!—इफिसियों 4:29.

      सुसमाचार सुनाना—अपनी शक्‍ति इस्तेमाल करने का सबसे बेहतरीन तरीका

      17. दूसरों को लाभ पहुँचाने के लिए हम किस खास तरीके से अपनी जीभ का इस्तेमाल कर सकते हैं, और हमें ऐसा क्यों करना चाहिए?

      17 अपनी जीभ की शक्‍ति इस्तेमाल करने का सबसे अहम तरीका है, दूसरों को परमेश्‍वर के राज्य की खुशखबरी देना। नीतिवचन 3:27 कहता है: “जिनका भला करना चाहिये, यदि तुझ में शक्‍ति रहे, तो उनका भला करने से न रुकना।” दूसरों को जीवन बचानेवाला सुसमाचार सुनाना हमारे ऊपर एक कर्ज़ है। यहोवा ने इतनी उदारता से हमें जो यह ज़रूरी संदेश सौंपा है, उसे अपने तक रखना ठीक नहीं होगा। (1 कुरिन्थियों 9:16, 22) तो फिर, हमें किस हद तक यह काम करना चाहिए, इस बारे में यहोवा क्या चाहता है?

      अपनी “सारी शक्‍ति” से यहोवा की सेवा करना

      18. यहोवा हमसे क्या उम्मीद करता है?

      18 यहोवा के लिए हमारा प्यार हमें प्रचार में पूरा-पूरा हिस्सा लेने के लिए उकसाता है। इस मामले में, यहोवा हमसे क्या उम्मीद करता है? वह हमसे जो चाहता है, वह हम सभी कर सकते हैं चाहे हमारे हालात कैसे भी क्यों न हों: “जो कुछ तुम करते हो, तन मन से करो, यह समझकर कि मनुष्यों के लिये नहीं परन्तु प्रभु के लिये करते हो।” (कुलुस्सियों 3:23) यीशु ने सबसे बड़ी आज्ञा दोहराते हुए कहा: “तू प्रभु अपने परमेश्‍वर से अपने सारे मन से और अपने सारे प्राण से, और अपनी सारी बुद्धि से, और अपनी सारी शक्‍ति से प्रेम रखना।” (मरकुस 12:30) जी हाँ, यहोवा हममें से हरेक से यह उम्मीद करता है कि वह तन-मन से उससे प्यार करे और उसकी सेवा करे।

      19, 20. (क) सारे प्राण में हमारा मन, बुद्धि और शक्‍ति शामिल है, फिर भी मरकुस 12:30 में इनका अलग-से ज़िक्र क्यों किया गया है? (ख) यहोवा की सेवा तन-मन से करने का क्या मतलब है?

      19 परमेश्‍वर की सेवा तन-मन से या सारे प्राण से करने का क्या मतलब है? तन-मन का मतलब है पूरा इंसान और उसकी तमाम शारीरिक और दिमागी काबिलीयतें। जब हमारे तन-मन या प्राण में सबकुछ आ गया, तो मरकुस 12:30 में हमारे मन, हमारी बुद्धि और शक्‍ति का अलग-से ज़िक्र क्यों किया गया है? एक उदाहरण पर गौर कीजिए। बाइबल के ज़माने में, एक इंसान अपने आपको (यानी अपने तन) को गुलामी में बेच सकता था। फिर भी, यह मुमकिन था कि वह दास अपने स्वामी की पूरे दिल से सेवा न कर रहा हो; वह शायद अपनी पूरी ताकत लगाकर या अपनी दिमागी काबिलीयत से अपने स्वामी के काम को आगे न बढ़ा रहा हो। (कुलुस्सियों 3:22) इन बातों को ध्यान में रखते हुए यीशु ने उन बाकी चीज़ों का इसलिए ज़िक्र किया ताकि वह इस बात पर ज़ोर दे सके कि हमें परमेश्‍वर की सेवा करते वक्‍त अपना सबकुछ लगा देना चाहिए और कुछ भी बाकी नहीं रख छोड़ना चाहिए। तन-मन से परमेश्‍वर की सेवा करने का मतलब है अपने आपको दे देना, उसकी सेवा में अपनी ताकत और शक्‍तियों को पूरा-पूरा इस्तेमाल करना।

      20 तन-मन से सेवा करने का क्या यह मतलब है कि हम सभी को प्रचार के काम में एक बराबर वक्‍त और ताकत लगानी चाहिए? यह तो शायद ही मुमकिन हो, क्योंकि हर इंसान के हालात और काबिलीयतें अलग-अलग होती हैं। मिसाल के लिए, एक नौजवान जिसकी सेहत अच्छी है और जिसमें दमखम और जोश है वह प्रचार में शायद ज़्यादा समय दे पाए, मगर जो ढलती उम्र की वजह से कमज़ोर हो गए हैं, वे शायद इतना समय न दे पाएँ। एक अकेला इंसान जिस पर परिवार की ज़िम्मेदारियाँ नहीं हैं, वह शायद प्रचार में ज़्यादा हिस्सा ले पाए, जबकि एक परिवारवाला ऐसा न कर पाए। अगर हमारे पास ताकत है और हमारे हालात ऐसे हैं कि हम प्रचार में काफी कुछ कर पाते हैं, तो हमें इसके लिए कितना धन्यवाद देना चाहिए! बेशक, हम ऐसे नहीं बनना चाहेंगे जो हमेशा अपने काम की दूसरों के साथ तुलना करके, उनकी नुक्‍ताचीनी करे। (रोमियों 14:10-12) इसके बजाय, हम दूसरों का हौसला बढ़ाने के लिए अपनी शक्‍ति का इस्तेमाल करेंगे।

      21. अपनी शक्‍ति इस्तेमाल करने का सबसे बेहतरीन और महत्त्वपूर्ण तरीका क्या है?

      21 यहोवा ने शक्‍ति का सही इस्तेमाल करने के मामले में सबसे श्रेष्ठ मिसाल कायम की है। असिद्ध इंसान होने के बावजूद, हम उसकी मिसाल पर चलने की पूरी कोशिश करना चाहेंगे। हम अपनी शक्‍ति का सही इस्तेमाल कर सकते हैं, अगर हम उन लोगों के साथ इज़्ज़त से पेश आएँ जो हमारे अधीन हैं। इसके अलावा, हम जीवन बचानेवाला यह प्रचार काम तन-मन से करना चाहते हैं, जिसे पूरा करने की ज़िम्मेदारी यहोवा ने हमें सौंपी है। (रोमियों 10:13, 14) याद रहे, जब आप अपना सर्वोत्तम देते हैं, और तन-मन से देते हैं तो इससे यहोवा खुश होता है। हमें समझनेवाले और प्यार करनेवाले ऐसे परमेश्‍वर की सेवा करते वक्‍त, क्या आपका दिल आपको वह सब करने के लिए नहीं उभारता जो आपके बस में है? अपनी शक्‍ति इस्तेमाल करने का इससे बेहतर और महत्त्वपूर्ण तरीका और कोई नहीं है।

      a बाइबल के ज़माने में, “छड़ी” के लिए इब्रानी में जो शब्द इस्तेमाल होता था उसका मतलब था एक ऐसी लकड़ी या लाठी, जो एक चरवाहा अपनी भेड़ों को हाँकने के लिए इस्तेमाल करता है। (भजन 23:4) उसी तरह माता-पिता के अधिकार की “छड़ी” यह सुझाती है कि वे अपने बच्चों को प्यार से सही राह दिखाएँ, न कि कठोरता से या बेरहमी से उन्हें सज़ा दें।

      मनन के लिए सवाल

      • नीतिवचन 3:9, 10 हमारे पास क्या “संपत्ति” है और हम इससे यहोवा का आदर कैसे कर सकते हैं?

      • सभोपदेशक 9:5-10 आपको अभी ऐसे तरीके से अपनी शक्‍ति क्यों इस्तेमाल करनी चाहिए जिससे परमेश्‍वर खुश हो?

      • प्रेरितों 8:9-24 शक्‍ति के किस गलत इस्तेमाल के बारे में यहाँ बताया गया है, और हम ऐसी गलती करने से कैसे बचे रह सकते हैं?

      • प्रेरितों 20:29-38 कलीसिया में जो ज़िम्मेदारी के पद पर हैं, वे पौलुस की मिसाल से क्या सीख सकते हैं?

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