वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • “इन का होना अवश्‍य है”
    प्रहरीदुर्ग—1999 | मई 1
    • “इन का होना अवश्‍य है”

      “यीशु ने उन को उत्तर दिया, . . . इन का होना अवश्‍य है, परन्तु उस समय अन्त न होगा।”—मत्ती २४:४-६.

      १. हमें किस विषय में दिलचस्पी लेनी चाहिए?

      इसमें कोई शक नहीं कि आप अपनी ज़िंदगी में और अपने आनेवाले कल में दिलचस्पी रखते हैं। तब तो आपको एक ऐसे विषय में भी दिलचस्पी लेनी चाहिए जिसने सन्‌ १८७७ में सी. टी. रसल का ध्यान खींचा। रसल, जिन्होंने वॉच टावर सोसाइटी की शुरुआत की, हमारे प्रभु की वापसी का मकसद और तरीका (अँग्रेज़ी) नाम की पुस्तिका लिखी। इस ६४ पन्‍नों की पुस्तिका में यीशु की वापसी, या भविष्य में उसके आने के बारे में बताया गया था। (यूहन्‍ना १४:३) इसी वापसी के बारे में प्रेरितों ने पूछा था जब वे जैतून पहाड़ पर थे: “ये बातें कब होंगी? और तेरे आने का, और जगत के अन्त का क्या चिन्ह होगा?”—मत्ती २४:३.

      २. यीशु की भविष्यवाणी के बारे में विद्वानों के विचारों में इतना मतभेद क्यों है?

      २ क्या आप यीशु का जवाब जानते हैं और क्या आप उसे समझते हैं? उसका जवाब हमें सुसमाचार की तीन पुस्तकों में, यानी मत्ती, मरकुस और लूका में मिलता है। प्रॉफॆसर डी. ए. कारसन कहते हैं: “बाइबल में ऐसे बहुत ही कम अध्याय हैं जिन पर बाइबल विद्वानों में इतना ज़्यादा मतभेद हुआ है जितना मत्ती २४ में लिखी उन बातों पर हुआ है, जो मरकुस १३ और लूका २१ के अध्यायों में भी पायी जाती हैं।” यह कहने के बाद वह भी इन्हीं अध्यायों को अपने तरीके से समझाता है। उसका यह नज़रिया भी दूसरे विद्वानों के विचार से मेल नहीं खाता और यह भी उनके विचारों की तरह एक इंसानी नज़रिया है। पिछले सौ सालों में इस तरह के विचारों ने यही दिखाया कि इनके माननेवाले लोगों में खुद विश्‍वास की कमी थी। उनका मानना था कि सुसमाचार-पुस्तकों में जो भी लिखा है वह यीशु ने कभी कहा ही नहीं था और यीशु ने असल में जो कहा था उसे बाद में बदल दिया गया, या कुछ लोग कहते हैं कि उसकी भविष्यवाणियाँ झूठी निकलीं। ये सभी ऐसे विद्वानों का नज़रिया है जो बाइबल को ईश्‍वर-प्रेरित नहीं मानते। यहाँ तक कि एक टीकाकार ने तो मरकुस की सुसमाचार-पुस्तक को ‘महायाना-बौद्ध की शिक्षा के मुताबिक’ समझाने की कोशिश की!

      ३. यहोवा के साक्षी यीशु की भविष्यवाणी के बारे में क्या मानते हैं?

      ३ मगर इन सब विचारों के विपरीत, यहोवा के साक्षी मानते हैं कि बाइबल ईश्‍वर-प्रेरित और भरोसेमंद है, इसीलिए वे यीशु की भविष्यवाणी पर विश्‍वास करते हैं जिसे उसने अपनी मौत से तीन दिन पहले जैतून पहाड़ पर अपने चार प्रेरितों को जवाब देने के लिए कहा था। सी. टी. रसल के ज़माने से, परमेश्‍वर के लोगों ने यीशु की इस भविष्यवाणी की धीरे-धीरे बेहतर समझ पायी है। पिछले कुछ सालों में, प्रहरीदुर्ग ने इस भविष्यवाणी के बारे में उनकी समझ को और भी स्पष्ट किया है। क्या आपने उनमें दी गयी जानकारी को अच्छी तरह समझा है? और क्या आप इसकी अहमियत समझते हैं?a आइए हम इस जानकारी पर फिर से विचार करें।

      भविष्यवाणी की पूर्ति और दुःखद घटनाएँ

      ४. प्रेरितों ने भविष्य के बारे में यीशु से क्यों सवाल किया होगा?

      ४ प्रेरितों को यकीन था कि यीशु ही मसीहा है। सो जब उन्होंने यीशु को अपनी मौत का, पुनरुत्थान का और वापसी का ज़िक्र करते हुए सुना, तो उन्होंने सोचा होगा, ‘अगर यीशु मर जाए, तो फिर वह उन सभी अद्‌भुत कामों को कैसे करेगा जिसकी मसीहा से उम्मीद की जाती है?’ साथ ही, यीशु ने यरूशलेम और उसके मंदिर के नाश के बारे में भी बात की। इसलिए प्रेरितों के मन में सवाल आया होगा कि ‘वो नाश कब और कैसे होगा?’ इन्हीं बातों को समझने की कोशिश करते हुए प्रेरितों ने पूछा: “ये बातें कब होंगी? और जब ये सब बातें पूरी होने पर होंगी उस समय का क्या चिन्ह होगा?”—मरकुस १३:४; मत्ती १६:२१, २७, २८; २३:३७-२४:२.

      ५. यीशु की भविष्यवाणी पहली सदी में कैसे पूरी हुई?

      ५ इसके जवाब में यीशु ने एक ऐसे चिन्ह के बारे में भविष्यवाणी की जिसमें कई घटनाएँ होतीं, जैसे युद्ध, अकाल, महामारियाँ, और भूईंडोल होना, साथ ही मसीहियों से बैर किया जाना और उन्हें सताया जाना, झूठे मसीहा उठ खड़े होना, और राज्य के सुसमाचार का प्रचार सारे जगत में किया जाना। और इनके बाद अंत आना था। (मत्ती २४:४-१४; मरकुस १३:५-१३; लूका २१:८-१९) यीशु ने सा.यु. ३३ की शुरूआत में यह सब कहा था। इसके बाद के दशकों के दौरान, उसके जागरूक चेले ठीक-ठीक समझ सकते थे कि जिन घटनाओं की भविष्यवाणी की गयी थी वे दरअसल उनकी आँखों के सामने साफ-साफ पूरी हो रही हैं। जी हाँ, इतिहास गवाह है कि यीशु द्वारा दिया गया चिन्ह उस समय दिखायी दिया और आगे चलकर सा.यु. ६६-७० में रोमियों के हाथों पूरी यहूदी व्यवस्था का अंत हुआ। लेकिन यह कैसे हुआ?

      ६. सामान्य युग ६६ में रोमियों और यहूदियों के बीच क्या हुआ?

      ६ सामान्य युग ६६ की गर्मियों में यहूदी कट्टरपंथियों ने यहूदिया में यरूशलेम के मंदिर के करीब एक दुर्ग में रोमी सैनिकों पर आक्रमण किया, जिसकी वज़ह से देश की दूसरी जगहों पर भी हिंसा की आग भड़क उठी। पुस्तक यहूदियों का इतिहास (अँग्रेज़ी) में प्रॉफॆसर हाइनरिख ग्रॆट्‌स कहते हैं: “सीरिया के गवर्नर की हैसियत से सॆस्टिअस गैलस का फर्ज़ था कि वह रोमी फौज के सम्मान को बनाए रखे, . . . इसलिए वह इस बात को बरदाश्‍त नहीं कर सका कि उसके चारों तरफ बगावत की आग फैल रही है और उसे रोकने के लिए कोई कोशिश नहीं की जा रही। सो उसने अपने सैनिकों को इकट्ठा किया और आस-पास के शासकों ने भी अपनी सेना भेज दी।” अब ३०,००० लोगों की इस सेना ने यरूशलेम को घेर लिया। थोड़ी-बहुत लड़ाई के बाद यहूदी लोग, मंदिर के पास नगर की जो दीवार थी, उसके पीछे चले गए। “उसके बाद, लगातार पाँच दिनों तक रोमी सैनिकों ने दीवारों को तोड़ने की कोशिश की, लेकिन हर बार यहूदियों के तीर-भालों की वज़ह से उन्हें मजबूरन पीछे हटना पड़ा। छठे दिन जाकर कहीं वे उत्तरी दीवार के एक भाग को तोड़ने में कामयाब हुए जो मंदिर के सामने थी।”

      ७. यीशु के चेले दुविधा में क्यों नहीं पड़े जबकि यहूदी दुविधा में पड़ गए?

      ७ ज़रा सोचिए कि ये सब देखकर यहूदी कितने दुविधा में पड़ गए होंगे, क्योंकि वे हमेशा से यही मानते आए थे कि परमेश्‍वर उनकी और उनके पवित्र नगर की रक्षा करेगा! लेकिन यीशु के चेलों को पहले से ही आगाह कर दिया गया था कि यरूशलेम का नाश होनेवाला है। यीशु ने उनसे कहा था: “वे दिन तुझ [यरूशलेम] पर आएंगे, कि तेरे बैरी मोर्चा बान्धकर तुझे घेर लेंगे, और चारों ओर से तुझे दबाएंगे। और तुझे और तेरे बालकों को जो तुझ में हैं, मिट्टी में मिलाएंगे, और तुझ में पत्थर पर पत्थर भी न छोड़ेंगे।” (लूका १९:४३, ४४) तो फिर क्या इसका मतलब यह है कि यह भविष्यवाणी सा.यु. ६६ में यरूशलेम में रह रहे मसीहियों के लिए भी मौत का पैगाम थी?

      ८. यीशु ने किस दुःखद घटना के बारे में भविष्यवाणी की और वे ‘चुने हुए’ लोग कौन थे जिनके लिए उन दिनों को घटाया जाता?

      ८ जैतून पहाड़ पर प्रेरितों को जवाब देते वक्‍त यीशु ने भविष्यवाणी की: “वे दिन ऐसे क्लेश के होंगे, कि सृष्टि के आरम्भ से जो परमेश्‍वर ने सृजी है अब तक न तो हुए, और न फिर कभी होंगे। और यदि प्रभु उन दिनों को न घटाता, तो कोई प्राणी भी न बचता; परन्तु उन चुने हुओं के कारण जिन को उस ने चुना है, उन दिनों को घटाया।” (मरकुस १३:१९, २०; मत्ती २४:२१, २२) सो वे दिन घटाए जाते और “चुने हुओं” को बचाया जाता। लेकिन, ये ‘चुने हुए’ लोग कौन थे? यकीनन वे यहोवा की उपासना करने का दावा करनेवाले ऐसे यहूदी नहीं थे, जिन्होंने उसका विरोध किया था और उसके बेटे को ठुकराया था। (यूहन्‍ना १९:१-७; प्रेरितों २:२२, २३, ३६) उस समय के सच्चे चुने हुए जन ऐसे यहूदी और गैर-यहूदी लोग थे जिन्होंने यीशु पर विश्‍वास किया था कि वही मसीहा और उद्धारक है। परमेश्‍वर ने इन्हीं लोगों को चुनकर सा.यु. ३३ के पिन्तेकुस्त के दिन एक नयी आत्मिक जाति, यानी ‘परमेश्‍वर का इस्राएल’ बनाया था।—गलतियों ६:१६; लूका १८:७; प्रेरितों १०:३४-४५; १ पतरस २:९.

      ९, १०. जब रोमी आक्रमण हुआ तब उन दिनों को किस प्रकार “घटाया” गया और इसकी वज़ह से क्या हुआ?

      ९ तो फिर, क्या वाकई उन “दिनों को घटाया” गया और यरूशलेम के चुने हुए अभिषिक्‍त जनों को बचाया गया? प्रॉफॆसर ग्रॆट्‌स कहते हैं: “[सॆस्टिअस गैलस] ने वीर, जोशीले योद्धाओं के खिलाफ युद्ध करना और उस मौसम में लंबी लड़ाई छेड़ देना बुद्धिमानी की बात नहीं समझी, क्योंकि जल्द ही बारिश का मौसम शुरू होनेवाला था . . . जिसकी वज़ह से उसकी सेना को राशन-पानी और दूसरा ज़रूरी सामान मिलना मुश्‍किल हो सकता था। शायद इसी वज़ह से उसने सोचा कि वापस लौट जाने में ही अक्लमंदी है।” सॆस्टिअस गैलस ने चाहे जो भी सोचा हो, वह रोमी सेना के साथ शहर छोड़कर चला गया और यहूदी योद्धाओं ने उनका पीछा किया, जिससे गैलस की सेना को भारी नुकसान भी उठाना पड़ा।

      १० रोमी सेना अचानक वापस चली गयी और इस तरह उन “दिनों को घटाया” गया, जिसकी वज़ह से “प्राणी,” यानी यीशु के चेले बच सके जो यरूशलेम के अंदर फँसे हुए थे और जिनकी जान को खतरा था। इतिहास बताता है कि जैसे ही मौके का यह द्वार खुला, यीशु के चेले वहाँ से भाग निकले। यह कितना बेहतरीन सबूत है कि परमेश्‍वर भविष्य को जानने और अपने उपासकों को हर हाल में बचाने की काबिलियत रखता है! दूसरी तरफ, उन यहूदियों के बारे में क्या जिन्होंने यीशु पर विश्‍वास नहीं किया था और जो यरूशलेम और यहूदिया में ही रह गए थे?

      उस ज़माने के यहूदियों पर वह क्लेश आता

      ११. यीशु ने ‘इस पीढ़ी’ के बारे में क्या कहा?

      ११ बहुत-से यहूदियों का यह विश्‍वास था कि मंदिर से जुड़ा हुआ उनकी उपासना का प्रबंध हमेशा तक बना रहेगा। लेकिन यीशु ने कहा: “अंजीर के पेड़ से यह . . . सीखो: जब उस की डाली कोमल हो जाती और पत्ते निकलने लगते हैं, तो तुम जान लेते हो, कि ग्रीष्म काल निकट है। इसी रीति से जब तुम इन सब बातों को देखो, तो जान लो, कि वह निकट है, बरन द्वार ही पर है। मैं तुम से सच कहता हूं, कि जब तक ये सब बातें पूरी न हो लें, तब तक यह पीढ़ी जाती न रहेगी। आकाश और पृथ्वी टल जाएंगे, परन्तु मेरी बातें कभी न टलेंगी।” (तिरछे टाइप हमारे।)—मत्ती २४:३२-३५.

      १२, १३. यीशु ने जब “इस पीढ़ी” का ज़िक्र किया, तब उसके चेलों ने इसे किस अर्थ में समझा होगा?

      १२ यीशु के चिन्ह के मुताबिक जो घटनाएँ सामान्य युग ६६ तक होनी थीं, उनमें से कई घटनाओं को मसीहियों ने पूरा होते हुए देखा, जैसे लड़ाइयाँ, अकाल और पूरी दुनिया में राज्य के सुसमाचार का प्रचार किया जाना। (प्रेरितों ११:२८; कुलुस्सियों १:२३) मगर अंत कब आता? इसके जवाब के लिए हमें पहले यह देखना होगा कि “यह पीढ़ी [यूनानी, येनेआ]” से यीशु का क्या मतलब था जब उसने कहा कि “यह पीढ़ी जाती न रहेगी।” अकसर, यीशु ने उस ज़माने के यहूदियों को, जो यहोवा का विरोध करते थे, एक “दुष्ट और व्यभिचारिणी पीढ़ी” कहा। इन यहूदियों में उनके धर्मगुरू भी थे। (मत्ती ११:१६; १२:३९, ४५; १६:४; १७:१७; २३:३६, NHT) सो जैतून पहाड़ पर जब उसने फिर से ‘इस पीढ़ी’ का ज़िक्र किया, तब ज़ाहिर है कि वह यहूदी जाति के बनने के समय से अब तक के सब यहूदियों का ज़िक्र नहीं कर रहा था, ना ही वह अपने चेलों के बारे में कह रहा था, जबकि वे “चुना हुआ वंश” थे और इस चिन्ह को देखनेवाले थे। (१ पतरस २:९) ना ही यीशु समय की एक अवधि को “यह पीढ़ी” कह रहा था।

      १३ इसके बजाय, “पीढ़ी” से यीशु का मतलब था उस ज़माने के यहूदी जो यीशु द्वारा बताए हुए चिन्ह को पूरा होते हुए देखते और जो यहोवा के विरोधी थे। लूका २१:३२ में बतायी गयी “इस पीढ़ी” का मतलब बताते हुए प्रॉफॆसर जोएल बी. ग्रीन कहते हैं: “सुसमाचार की तीसरी पुस्तक में, ‘इस पीढ़ी’ (और इससे संबंधित शब्दों) का हमेशा मतलब है ऐसे लोग जो परमेश्‍वर के उद्देश्‍य का विरोध करते हैं। . . . [इसका मतलब ये] ऐसे लोग हैं जो घमंडी और ढीठ होकर परमेश्‍वर के उद्देश्‍य को ठुकराते हैं।”b

      १४. उस “पीढ़ी” को किन हालात से गुज़रना पड़ा, लेकिन मसीहियों के लिए परिणाम कैसे अलग था?

      १४ इस तरह, यहोवा का विरोध करनेवाली वह दुष्ट यहूदी पीढ़ी, जो उस चिन्ह को देखती, वही पीढ़ी पूरी यहूदी व्यवस्था का अंत भी देखती। (मत्ती २४:६, १३, १४) और ऐसा ही हुआ! सा.यु. ७० में सम्राट वॆस्पेसियन का बेटा, टाइटस रोमी सेना के साथ हमला करने के लिए वापस आया। उसने शहर को घेर लिया। इसकी वज़ह से अंदर फँसे हुए यहूदियों पर जो कुछ गुज़री, उसे सुनकर कलेजा काँप उठता है।c चश्‍मदीद गवाह फ्लेविअस जोसीफस रिपोर्ट करता है कि जब तक रोमियों ने शहर पर आक्रमण करके उसे पूरी तरह तहस-नहस कर दिया, तब तक करीबन ११,००,००० यहूदी मारे जा चुके थे और फिर वे लोग कुछ १,००,००० यहूदियों को बंदी बनाकर ले गए। इनमें से ज़्यादातर बंदी जल्द ही भूख से तड़प-तड़पकर मर गए या फिर उन्हें रोमी अखाड़ों में फेंक दिया गया जहाँ जंगली जानवरों ने उन्हें फाड़ खाया। सचमुच, सा.यु. ६६-७० में यरूशलेम के शहर पर जो क्लेश आया और इस तरह पूरी यहूदी व्यवस्था का जो अंत हुआ, वह सबसे भारी क्लेश था, जो न तो उससे पहले कभी हुआ था, न ही बाद में कभी होता। लेकिन उन मसीहियों के लिए परिणाम कितना अलग था, जिन्होंने यीशु की चेतावनी को माना और सा.यु. ६६ में रोमी सेनाओं के चले जाने के बाद यरूशलेम छोड़कर चले गए थे! और जब सा.यु. ७० में अंत आया, तब इन ‘चुने हुए’ अभिषिक्‍त मसीहियों को ‘बचाया’ गया था।—मत्ती २४:१६, २२.

      एक बड़े पैमाने पर पूर्ति

      १५. हम यह कैसे कह सकते हैं कि यीशु की भविष्यवाणी सा.यु. ७० के बाद बड़े पैमाने पर पूरी होगी?

      १५ मगर, यीशु का मतलब सिर्फ सा.यु. ७० के अंत से नहीं था, क्योंकि यीशु ने पहले कहा था कि शहर का विनाश होने के बाद वह यहोवा के नाम से आएगा। (मत्ती २३:३८, ३९; २४:२) इस बात को उसने जैतून पहाड़ पर अपनी भविष्यवाणी में और भी साफ तरीके से समझाया। इस भविष्यवाणी में आनेवाले “भारी क्लेश” का ज़िक्र करने के बाद उसने कहा कि झूठे मसीहा उठ खड़े होंगे और अन्य जातियाँ यरूशलेम को काफी समय तक रौंदेंगी। (मत्ती २४:२१, २३-२८; लूका २१:२४) सो, क्या इन बातों से यह नहीं पता चलता कि यीशु सिर्फ सा.यु. ७० में यरूशलेम के अंत की बात नहीं कर रहा था, मगर वह एक और भी बड़े, विश्‍व पैमाने पर इस भविष्यवाणी के पूरा होने की बात कर रहा था? हाँ, इतिहास गवाह है कि यीशु इस भविष्यवाणी के विश्‍व पैमाने पर पूरी होने की बात कर रहा था। जब हम मत्ती २४:६-८ और लूका २१:१०, ११ की तुलना प्रकाशितवाक्य ६:२-८ (जो सा.यु. ७० में यरूशलेम पर आए क्लेश के बाद लिखा गया था) से करते हैं, तब इससे भी हमें पता चलता है कि यह भविष्यवाणी और भी बड़े पैमाने पर पूरी होगी, यानी विश्‍व पैमाने पर लड़ाइयाँ, अकाल और महामारियाँ होंगी। यीशु की इसी भविष्यवाणी को हम विश्‍व पैमाने पर १९१४ के प्रथम विश्‍वयुद्ध के समय से पूरी होते हुए देख रहे हैं।

      १६-१८. आगे कौन-कौन-सी घटनाएँ होंगी?

      १६ काफी सालों से यहोवा के साक्षी सिखाते आए हैं कि यीशु ने जो चिन्ह दिया था, वह हमारे समय में दिखायी दे रहा है और इसका मतलब है कि “भारी क्लेश” अभी आना बाकी है। सो इस चिन्ह को देखनेवाली आज की दुष्ट “पीढ़ी” इस क्लेश को भी देखेगी। सो जिस तरह गैलस ने सा.यु. ६६ में यरूशलेम पर आक्रमण किया, जो कि क्लेश की शुरूआत थी और उसके कुछ समय बीतने के बाद अंत आया, ऐसा लगता है कि ठीक उसी तरह हमारे समय में पहले सभी झूठे धर्मों पर एक आक्रमण होगा, और फिर कुछ समय बीतने के बाद अंत आएगा।d और यह अंत विश्‍वव्यापी पैमाने पर होनेवाला एक विनाश होगा, ठीक उसी तरह जैसे सा.यु. ७० में पूरी यहूदी व्यवस्था का विनाश हुआ था।

      १७ हमारे समय में आनेवाले क्लेश के बारे में यीशु ने कहा: “उन दिनों के क्लेश [झूठे धर्म के नाश] के बाद तुरन्त सूर्य अन्धियारा हो जाएगा, और चान्द का प्रकाश जाता रहेगा, और तारे आकाश से गिर पड़ेंगे और आकाश की शक्‍तियां हिलाई जाएंगी। तब मनुष्य के पुत्र का चिन्ह आकाश में दिखाई देगा, और तब पृथ्वी के सब कुलों के लोग छाती पीटेंगे; और मनुष्य के पुत्र को बड़ी सामर्थ और ऐश्‍वर्य के साथ आकाश के बादलों पर आते देखेंगे।”—मत्ती २४:२९, ३०.

      १८ सो, यीशु कहता है कि “उन दिनों के क्लेश के बाद” आसमान में कुछ भयंकर घटनाएँ होंगी। (योएल २:२८-३२; ३:१५ से तुलना कीजिए।) इन घटनाओं को देखकर सारे दुष्ट लोग बुरी तरह हकबका जाएँगे और उनका दिल दहल जाएगा और वे “छाती पीटेंगे।” “भय के कारण और संसार पर आनेवाली घटनाओं की बाट देखते देखते [कई] लोगों के जी में जी न रहेगा।” लेकिन सच्चे मसीहियों के साथ ऐसा कुछ भी नहीं होगा! वे ‘अपने सिर ऊपर उठाएँगे; क्योंकि उनका छुटकारा निकट होगा।’—लूका २१:२५, २६, २८.

      भविष्य में न्याय होनेवाला है!

      १९. हम कैसे पता लगा सकते हैं कि भेड़ों और बकरियों के दृष्टांत की बातें कब पूरी होंगी?

      १९ ध्यान दीजिए कि मत्ती २४:२९-३१ में भविष्यवाणी की गयी है कि (१) मनुष्य का पुत्र आएगा, (२) और उसका आना बड़े ऐश्‍वर्य के साथ होगा, (३) उसके साथ स्वर्गदूत होंगे, और (४) पृथ्वी के सब कुलों के लोग उसे देखेंगे। यीशु इन्हीं बातों को भेड़ों और बकरियों के दृष्टांत में दोहराता है। (मत्ती २५:३१-४६) इसलिए हम कह सकते हैं कि जिस आक्रमण के साथ क्लेश शुरू होता है, उसके बाद इस दृष्टांत की बातें पूरी होंगी। उस वक्‍त यीशु अपने स्वर्गदूतों के साथ आएगा और न्याय करने के लिए अपने सिंहासन पर बैठेगा। (यूहन्‍ना ५:२२; प्रेरितों १७:३१. १ राजा ७:७; दानिय्येल ७:१०, १३, १४, २२, २६; मत्ती १९:२८ से तुलना कीजिए।) मगर किन लोगों का न्याय किया जाएगा और उनका क्या अंजाम होगा? यह दृष्टांत दिखाता है कि सारी जातियाँ मानो यीशु के स्वर्गीय सिंहासन के सामने इकट्ठी होंगी, और वह उनका न्याय करेगा।

      २०, २१. (क) यीशु के दृष्टांत की भेड़ों का क्या होगा? (ख) भविष्य में बकरियों का क्या होगा?

      २० जो लोग भेड़-समान हैं उनको अलग करके यीशु की दायीं ओर किया जाएगा, यानी यीशु उनके पक्ष में न्याय करेगा। क्यों? क्योंकि उन लोगों ने यीशु के भाइयों के साथ, यानी उन अभिषिक्‍त मसीहियों के साथ भलाई की है जो मसीह के साथ स्वर्ग में शासन करेंगे। (दानिय्येल ७:२७; इब्रानियों २:९-३:१) इस दृष्टांत के मुताबिक ही, आज भेड़-समान लाखों मसीहियों ने कबूल किया है कि ये अभिषिक्‍त मसीही यीशु के आत्मिक भाई हैं और उन्होंने इन अभिषिक्‍त मसीहियों के काम में उनका हाथ बँटाया है। इसी वज़ह से, भेड़समान लोगों से बनी इस “बड़ी भीड़” के पास यह आशा है कि वे “बड़े क्लेश” से बच निकलें और जब परमेश्‍वर के राज्य में यह सारी पृथ्वी सुख और शांति का एक सुंदर बगीचा बन जाएगी, तब उसमें वे हमेशा-हमेशा की ज़िंदगी पाएँ।—प्रकाशितवाक्य ७:९, १४; २१:३, ४; यूहन्‍ना १०:१६.

      २१ लेकिन बकरी-समान लोगों का अंजाम कितना फरक होगा! उनके बारे में मत्ती २४:३० कहता है कि जब यीशु आता है तब वे अपनी ‘छाती पीटेंगे।’ और क्यों न पीटें! वे तो लगातार राज्य सुसमाचार को ठुकराते रहे हैं, यीशु के चेलों का विरोध करते रहे हैं और इस मिटनेवाले संसार को पसंद करते रहे हैं। (मत्ती १०:१६-१८; १ यूहन्‍ना २:१५-१७) यीशु ही यह फैसला करता है कि कौन बकरी है कौन नहीं। पृथ्वी पर रह रहे उसके किसी भी चेले को यह फैसला करने का हक नहीं है। इन बकरियों के बारे में यीशु कहता है: ‘ये अनन्त दण्ड भोगेंगे।’—मत्ती २५:४६.

      २२. यीशु की भविष्यवाणी के किस भाग पर हमें और भी ध्यान देना है?

      २२ मत्ती अध्याय २४ और २५ की भविष्यवाणी की बढ़ती हुई समझ हासिल करना हमारे लिए बहुत ही खुशी की बात रही है। लेकिन, यीशु की भविष्यवाणी का एक भाग है जिस पर हमें और भी ध्यान देना है और वह है, ‘उजाड़नेवाली वह घृणित वस्तु जो पवित्र स्थान में खड़ी है।’ यीशु ने अपने चेलों से कहा कि इस संबंध में समझ से काम लें और ज़रूरी कदम उठाने के लिए तैयार रहें। (मत्ती २४:१५, १६) यह “घृणित वस्तु” क्या है? वह पवित्र स्थान में कब खड़ी होती है? और हमारी आज की और भविष्य की ज़िंदगी से इसका क्या ताल्लुक है? अगला लेख इसकी चर्चा करेगा।

      [फुटनोट]

      a फरवरी १, १९९४, अक्‍तूबर १५ और नवंबर १, १९९५, और अगस्त १५, १९९६ के प्रहरीदुर्ग के अध्ययन लेख देखिए।

      b ब्रिटिश विद्वान जी. आर. बीज़ली-मरी कहते हैं: “बाइबल विद्वानों को ‘यह पीढ़ी’ ये शब्द समझने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। जबकि पुरानी यूनानी भाषा में येनेआ का मतलब जन्म, संतान और इसीलिए जाति भी रहा है, . . . [इब्रानी शास्त्र के यूनानी भाषा के अनुवाद, यानी सेप्टुआजेंट] में इस शब्द को ज़्यादातर इब्रानी शब्द दॉर का अनुवाद करने के लिए इस्तेमाल किया गया था। इब्रानी शब्द दॉर का मतलब है मनुष्यजाति की शुरूआत से अब तक का समय, ज़माना या किसी खास वक्‍त पर जी रही पीढ़ी। . . . ऐसा लगता है कि यीशु की बातों में इसका मतलब हमेशा उसके ज़माने के लोग रहा है, साथ ही उसने इसे हमेशा निंदा के लिए इस्तेमाल किया था।”

      c यहूदियों का इतिहास (अँग्रेज़ी) में प्रॉफॆसर ग्रॆट्‌स कहते हैं कि कभी-कभी रोमी लोग एक ही दिन में ५०० कैदियों को सूली पर चढ़ा देते थे। दूसरे बंदी यहूदियों के हाथ काटकर उन्हें वापस शहर के अंदर भेज दिया जाता था। और शहर के अंदर के हालात कैसे थे? “पैसे की कोई कीमत नहीं रही क्योंकि लोग पैसों से रोटी भी नहीं खरीद सकते थे। सड़े-गले और बिलकुल घिनौने खाने के लिए, मुट्ठी भर सूखी घास के लिए, चमड़े के एक टुकड़े के लिए, या कुत्तों को दिए जानेवाले बेकार खाने के लिए लोग सड़कों पर वहशियों की तरह लड़ते थे। . . . दिन-ब-दिन लाशों का अंबार लगता जा रहा था और गर्मी की उमसदार हवा बीमारियाँ फैला रही थी। सारा शहर बीमारी, अकाल और तलवार का शिकार हो गया।”

      d अगला लेख आनेवाले क्लेश के इस भाग की चर्चा करता है।

      क्या आपको याद है?

      ◻ पहली सदी में मत्ती २४:४-१४ कैसे पूरा हुआ था?

      ◻ जैसे मत्ती २४:२१, २२ में भविष्यवाणी की गयी थी, प्रेरितों के समय में किस तरह दिनों को घटाया गया और प्राणों को बचाया गया?

      ◻ मत्ती २४:३४ में बतायी गयी “पीढ़ी” की खासियत क्या थी?

      ◻ हम यह कैसे जानते हैं कि जैतून पहाड़ पर दी गयी भविष्यवाणी फिर से, और विश्‍व पैमाने पर पूरी होगी?

      ◻ भेड़ और बकरियों के दृष्टांत की बातें कब और कैसे पूरी होंगी?

      [पेज 12 पर तसवीर]

      रोम में आर्क ऑफ टाइटस का एक भाग, जिसमें यरूशलेम के विनाश से मिला लूट का माल दिखाया गया है

      [चित्र का श्रेय]

      Soprintendenza Archeologica di Roma

  • “जो पढ़े, वह समझे”
    प्रहरीदुर्ग—1999 | मई 1
    • “जो पढ़े, वह समझे”

      “जब तुम उस उजाड़नेवाली घृणित वस्तु को . . . पवित्र स्थान में खड़ी हुई देखो, . . . तब जो यहूदिया में हों वे पहाड़ों पर भाग जाएं।”—मत्ती २४:१५, १६.

      १. लूका १९:४३, ४४ में दी गयी यीशु की चेतावनी का क्या परिणाम हुआ?

      अगर हमें किसी आनेवाली विपत्ति के बारे में पहले से बता दिया जाए, तो हम उससे बच सकते हैं। (नीतिवचन २२:३) उन मसीहियों के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ, जो सा.यु. ६६ में हुए रोमी आक्रमण से पहले यरूशलेम में रहते थे। यीशु ने उन्हें पहले से ही बता दिया था कि उस शहर को घेरा जाएगा और नाश कर दिया जाएगा। (लूका १९:४३, ४४) ज़्यादातर यहूदियों ने तो इस बात की सुनी-अनसुनी कर दी। मगर यीशु के चेलों ने इस चेतावनी को सुनकर उस पर अमल किया। और इसका परिणाम यह हुआ कि वे सा.यु. ७० की विपत्ति से बच गए।

      २, ३. मत्ती २४:१५-२१ में दी गयी यीशु की भविष्यवाणी में हमें क्यों दिलचस्पी लेनी चाहिए?

      २ यीशु ने एक ऐसी भविष्यवाणी दी जो हमारे समय में पूरी होती है। इसमें उसने एक ऐसा चिन्ह दिया जिसमें कई घटनाओं के बारे में बताया गया था, जैसे युद्ध, अकाल, भूकंप, महामारियाँ और परमेश्‍वर के राज्य का प्रचार करनेवाले मसीहियों पर सताहट। (मत्ती २४:४-१४; लूका २१:१०-१९) इस भविष्यवाणी में यीशु ने एक ऐसी बात भी बतायी जिससे उसके चेलों को यह समझने में मदद मिलती कि अंत बहुत नज़दीक है। उसने कहा कि अंत से पहले ‘उजाड़नेवाली घृणित वस्तु पवित्र स्थान में खड़ी’ होगी। (मत्ती २४:१५) आइए हम यह देखें कि ये महत्त्वपूर्ण शब्द हमारे लिए क्यों बहुत ही ज़रूरी हैं, क्योंकि ये हमारी आज की और भविष्य की ज़िंदगी के लिए काफी मायने रखते हैं।

      ३ चिन्ह बताने के बाद, यीशु ने कहा: “जब तुम उस उजाड़नेवाली घृणित वस्तु को जिस की चर्चा दानिय्येल भविष्यद्वक्‍ता के द्वारा हुई थी, पवित्र स्थान में खड़ी हुई देखो, (जो पढ़े, वह समझे)। तब जो यहूदिया में हों वे पहाड़ों पर भाग जाएं। जो कोठे पर हो, वह अपने घर में से सामान लेने को न उतरे। और जो खेत में हो, वह अपना कपड़ा लेने को पीछे न लौटे। उन दिनों में जो गर्भवती और दूध पिलाती होंगी, उन के लिये हाय, हाय। और प्रार्थना किया करो; कि तुम्हें जाड़े में या सब्त के दिन भागना न पड़े। क्योंकि उस समय ऐसा भारी क्लेश होगा, जैसा जगत के आरम्भ से न अब तक हुआ, और न कभी होगा।”—मत्ती २४:१५-२१.

      ४. कौन-सी बात दिखाती है कि मत्ती २४:१५ की भविष्यवाणी की पहली सदी में पहली पूर्ति हुई थी?

      ४ इस भविष्यवाणी के बारे में मत्ती में जो जानकारी नहीं है, वह हम मरकुस और लूका में पाते हैं। मत्ती ने कहा कि यह घृणित वस्तु “पवित्र स्थान में खड़ी” है, वहीं मरकुस १३:१४ कहता है कि वह “जहां उचित नहीं वहां खड़ी” है। और वहीं लूका २१:२० में यीशु के ये शब्द दर्ज़ हैं: “जब तुम यरूशलेम को सेनाओं से घिरा हुआ देखो, तो जान लेना कि उसका उजड़ जाना निकट है।” इससे हम यह समझ सकते हैं कि इसकी पहली पूर्ति सा.यु. ६६ में शुरू हुई जब रोमियों ने यरूशलेम और उसके मंदिर पर हमला किया। यरूशलेम और उसके मंदिर को यहूदी पवित्र समझते थे, मगर यहोवा की नज़रों में ये पवित्र नहीं रहे। और बाद में सा.यु. ७० में रोमियों ने यरूशलेम और उसके मंदिर, दोनों को पूरी तरह से नाश कर दिया। तो फिर उस समय में यह “घृणित वस्तु” क्या थी? और यह “पवित्र स्थान में” कैसे “खड़ी हुई”? इन सवालों के जवाब से हम यह साफ-साफ समझ सकेंगे कि यह भविष्यवाणी हमारे समय में कैसे पूरी होगी।

      ५, ६. (क) दानिय्येल के अध्याय ९ के पढ़नेवालों को समझ की ज़रूरत क्यों थी? (ख) “घृणित वस्तु” की यीशु की भविष्यवाणी कैसे पूरी हुई?

      ५ यीशु ने पढ़नेवालों को समझ का इस्तेमाल करने के लिए कहा। क्या पढ़नेवालों को? शायद दानिय्येल अध्याय ९ के पढ़नेवालों को। वहाँ एक भविष्यवाणी दी गयी है जिससे पता चलता है कि मसीहा कब आएगा और यह भी बताया गया है कि मसीहा को साढ़े तीन साल के बाद ‘काट दिया जाएगा।’ उस भविष्यवाणी में यूँ लिखा है: “कंगूरे पर उजाड़नेवाली घृणित वस्तुएं दिखाई देंगी और निश्‍चय से ठनी हुई बात के समाप्त होने तक परमेश्‍वर का क्रोध उजाड़नेवाले पर पड़ा रहेगा।” (तिरछे टाइप हमारे।)—दानिय्येल ९:२६, २७; कृपया दानिय्येल ११:३१; १२:११ भी देखिए।

      ६ यहूदियों ने सोचा कि करीब २०० साल पहले जब एन्टिऑकस IV ने मंदिर को अपवित्र किया था, तब यह भविष्यवाणी पूरी हो चुकी थी। लेकिन यीशु ने पढ़नेवालों को समझ इस्तेमाल करने के लिए कहा, क्योंकि “घृणित वस्तु” का आना और ‘पवित्र स्थान में खड़ा होना’ अब भी बाकी था। सो यहाँ यीशु उस रोमी सेना की बात कर रहा था, जो अपने ध्वजों के साथ सा.यु. ६६ में आनेवाली थी। इन ध्वजों को, जिन्हें रोमी काफी समय से इस्तेमाल करते आए थे, असल में पूजा जाता था, इसलिए ये यहूदियों के लिए घृणित थे।a तो फिर रोमी सैनिक “पवित्र स्थान में” कब ‘खड़े होते’? ऐसा तब हुआ जब रोमी सेना इन घृणित ध्वजों के साथ आयी और उसने यरूशलेम और उसके मंदिर पर आक्रमण किया, जिन्हें यहूदी पवित्र समझते थे। उन्होंने मंदिर के पास की दीवार को भी तोड़ना शुरू कर दिया। इस तरह, घृणित वस्तु अब पवित्र स्थान में खड़ी थी!—यशायाह ५२:१; मत्ती ४:५; २७:५३; प्रेरितों ६:१३.

      हमारे समय की “घृणित वस्तु”

      ७. यीशु की कौन-सी भविष्यवाणी अभी हमारे समय में पूरी हो रही है?

      ७ मत्ती अध्याय २४ में दिए गए यीशु के चिन्ह को हमने दूसरे विश्‍व युद्ध से और भी बड़े, विश्‍व पैमाने पर पूरा होते हुए देखा है। लेकिन, यीशु ने अपनी भविष्यवाणी में आगे ये भी कहा था: “जब तुम उस उजाड़नेवाली घृणित वस्तु को . . . पवित्र स्थान में खड़ी हुई देखो, . . . तब जो यहूदिया में हों वे पहाड़ों पर भाग जाएं।” (मत्ती २४:१५, १६) तो फिर, भविष्यवाणी के इस भाग को भी हमारे समय में पूरा होना चाहिए।

      ८. सालों से, यहोवा के साक्षियों ने हमारे समय की “घृणित वस्तु” की किस तरह पहचान करायी है?

      ८ यहोवा के सेवकों को पक्का यकीन था कि भविष्यवाणी का यह भाग हमारे समय में ज़रूर पूरा होगा। इसीलिए जनवरी १, १९२१ की अँग्रेज़ी प्रहरीदुर्ग ने इस भविष्यवाणी पर चर्चा की और इसे मध्य पूर्व में हो रही घटनाओं के साथ जोड़ा। उसके बाद दिसंबर १५, १९२९ की अँग्रेज़ी प्रहरीदुर्ग के पेज ३७४ में यह पक्के विश्‍वास के साथ कहा गया था: “पूरे राष्ट्र संघ का यही इरादा है कि वह सभी लोगों को परमेश्‍वर और मसीह से दूर कर दे। इसी वज़ह से यह एक उजाड़नेवाली वस्तु, यानी शैतान की रचना है, और इसीलिए यह परमेश्‍वर की नज़रों में घृणित है।” सो १९१९ में यह “घृणित वस्तु” दिखायी दी। और समय के गुज़रते, राष्ट्र संघ बदलकर संयुक्‍त राष्ट्र बन गया। और काफी समय से यहोवा के साक्षियों ने झूठी शांति लानेवाले मनुष्यों के इन संगठनों के बारे में कहा है कि वे परमेश्‍वर की नज़रों में घृणित हैं।

      ९, १०. “भारी क्लेश” के शुरू होने की हमारी पहली समझ की वज़ह से हमने “घृणित वस्तु” के पवित्र स्थान में खड़े होने के समय के बारे में क्या सोचा था?

      ९ पिछले लेख में मत्ती अध्याय २४ और २५ की भविष्यवाणी की नई समझ पर संक्षिप्त में फिर से विचार किया गया। लेकिन, क्या ‘पवित्र स्थान में खड़ी’ “घृणित वस्तु” के बारे में कुछ स्पष्टीकरण की ज़रूरत है? हाँ, ज़रूरत है। यीशु की भविष्यवाणी दिखाती है कि आनेवाले भारी “क्लेश” की शुरूआत और घृणित वस्तु का ‘पवित्र स्थान में खड़ा होना’ एक ही समय पर पूरा होता है। इस वज़ह से, हमें इस घृणित वस्तु के पवित्र स्थान में खड़े होने के समय के बारे में अपनी समझ को बदलने की ज़रूरत है, हालाँकि वह “घृणित वस्तु” काफी समय से मौजूद है। क्यों ज़रूरत है?

      १० परमेश्‍वर के लोग पहले यह समझते थे कि भारी क्लेश का पहला चरण १९१४ में शुरू हो चुका है और उसका आखिरी चरण अरमगिदोन की लड़ाई में होगा। (प्रकाशितवाक्य १६:१४, १६. अँग्रेज़ी, प्रहरीदुर्ग, अप्रैल १, १९३९, पेज ११० से तुलना कीजिए।) इसीलिए उन्होंने यह सोचा कि भारी क्लेश तो शुरू हो चुका है, सो वह “घृणित वस्तु” भी पवित्र स्थान में उसी वक्‍त, पहले विश्‍व युद्ध के बाद खड़ी हो गयी होगी।

      ११, १२. सन्‌ १९६९ में “भारी क्लेश” की समझ में कौन-सा बदलाव किया गया?

      ११ बाद में इस भविष्यवाणी को और भी समझाया गया। गुरुवार, १० जुलाई, १९६९ के दिन, न्यू यॉर्क शहर में “पृथ्वी पर शांति” नाम के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी के उस समय के उपाध्यक्ष, एफ. डब्ल्यू. फ्रान्ज़ ने एक ज़बरदस्त भाषण दिया। यीशु की भविष्यवाणी के बारे उस समय की जो समझ थी, उसकी फिर से चर्चा करते हुए भाई फ्रान्ज़ ने कहा: “यह कहा गया था कि ‘भारी क्लेश’ सा.यु. १९१४ में शुरू हो चुका है, मगर उस समय परमेश्‍वर ने इस क्लेश को पूरा होने नहीं दिया था, क्योंकि उसने पहले विश्‍व युद्ध को नवंबर, १९१८ में रोक दिया। तब से परमेश्‍वर ने समय गुज़रने दिया है ताकि उसके चुने हुए अभिषिक्‍त मसीहियों के बाकी बचे सदस्य अपना काम पूरा कर सकें। उसके बाद वह अरमगिदोन की लड़ाई में ‘भारी क्लेश’ का आखिरी चरण शुरू होगा।”

      १२ इसके बाद समझ में बहुत ही बड़ा बदलाव किया गया: “पहली सदी की घटनाओं से तुलना करें तो, . . . हमारे समय का ‘भारी क्लेश’ सा.यु. १९१४ में शुरू नहीं हुआ। १९१४-१९१८ में आज के लाक्षणिक यरूशलेम [ईसाईजगत] पर जो कुछ गुज़री, वह ‘भारी क्लेश’ नहीं था। इसके बजाय, वह तो बस ‘पीड़ाओं का आरम्भ’ था . . . सो, ऐसा भारी क्लेश जो अब तक नहीं हुआ है, भविष्य में होगा। इस क्लेश में झूठे धर्मों के (जिसमें ईसाईजगत शामिल है) विश्‍व साम्राज्य का पूरी तरह विनाश होगा। इसके बाद अरमगिदोन होगा, यानी ‘सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर के बड़े दिन की लड़ाई’ होगी।” सो, इसका मतलब है कि “भारी क्लेश” की शुरूआत और अंत भविष्य में होनेवाले हैं।

      १३. हम क्यों कह सकते हैं कि “घृणित वस्तु” का ‘पवित्र स्थान में खड़ा होना’ अब भी बाकी है?

      १३ इस बदली हुई समझ से हम जान सकते हैं कि वह “घृणित वस्तु” पवित्र स्थान में कब खड़ी होगी। पहली सदी में जो हुआ था उसे याद कीजिए। सा.यु. ६६ में रोमियों ने यरूशलेम पर हमला किया था, मगर वे अचानक वापस चले गए। इससे मसीही ‘प्राणों’ को बचने का मौका मिला। (मत्ती २४:२२) इसी तरह, “भारी क्लेश” भी जल्द ही शुरू होगा, मगर परमेश्‍वर के चुने हुओं के कारण इसके दिन घटाए जाएँगें। इस खास बात पर ध्यान दीजिए: पहली सदी में “घृणित वस्तु” “पवित्र स्थान में [तब] खड़ी” हुई, जब सा.यु. ६६ में जनरल गैलस की रोमी सेना ने यरूशलेम शहर और मंदिर पर आक्रमण किया था। उसी तरह, हमारे समय में वह [झूठे धर्मों पर] आक्रमण अब भी होना बाकी है, जिससे “भारी क्लेश” शुरू होगा। सो, हालाँकि वह “उजाड़नेवाली घृणित वस्तु” १९१९ से मौजूद है, मगर वह अभी तक पवित्र स्थान में खड़ी नहीं हुई है। उसका पवित्र स्थान में खड़ा होना भविष्य में होगा।b ये कैसे होगा? और हमारे लिए यह समझना क्यों बहुत ज़रूरी है?

      भविष्य में होनेवाला आक्रमण

      १४, १५. अरमगिदोन की शुरूआत तक जो घटनाएँ होंगी उन्हें समझने में प्रकाशितवाक्य अध्याय १७ हमारी मदद कैसे करता है?

      १४ प्रकाशितवाक्य की पुस्तक झूठे धर्मों पर होनेवाले एक भयंकर आक्रमण के बारे में बताती है। अध्याय १७ में ‘बड़े बाबुल, वेश्‍याओं की माता,’ यानी सारी दुनिया में फैले झूठे धर्मों के खिलाफ परमेश्‍वर के न्यायदंड के बारे में लिखा गया है। ईसाईजगत इन झूठे धर्मों का एक बड़ा भाग है और वह परमेश्‍वर की उपासना करने का दावा करता है। (यिर्मयाह ७:४ से तुलना कीजिए।) इसने और बाकी सभी झूठे धर्मों ने “पृथ्वी के राजाओं” के साथ काफी समय से नाजायज़ संबंध रखा है, लेकिन जब इन धर्मों का नाश होगा, तब यह संबंध खत्म हो जाएगा। (प्रकाशितवाक्य १७:२, ५) मगर यह नाश किसके हाथों होगा?

      १५ प्रकाशितवाक्य एक “किरमिजी रंग के पशु” के बारे में बताता है जो अस्तित्त्व में आता है, फिर कुछ समय के लिए नहीं रहता और फिर दोबारा अस्तित्त्व में आता है। (प्रकाशितवाक्य १७:३, ८) पृथ्वी के सभी राजा इस पशु का साथ देते हैं। प्रकाशितवाक्य की भविष्यवाणी में हमें जो अतिरिक्‍त बातें बतायी गयी हैं, उनसे हमें यह पहचानने में मदद मिलती है कि यह लाक्षणिक पशु ‘राष्ट्र संघ’ (“घृणित वस्तु”) है, जिसे शांति लाने के लिए बनाया गया है। इस संघ की शुरूआत १९१९ में हुई और यह अब ‘संयुक्‍त राष्ट्र’ बन गया है। प्रकाशितवाक्य १७:१६, १७ दिखाता है कि भविष्य में परमेश्‍वर इस “पशु” यानी ‘संयुक्‍त राष्ट्र’ के कुछ प्रमुख नेताओं के मन में यह बात डालेगा कि वे सारी दुनिया में फैले झूठे धर्मों को उजाड़ दें। इस आक्रमण के साथ “भारी क्लेश” की शुरूआत होगी।

      १६. धर्म के मामले में कौन-कौन-सी खास घटनाएँ हो रही हैं?

      १६ क्योंकि “भारी क्लेश” की शुरूआत होना बाकी है, तो क्या घृणित वस्तु का ‘पवित्र स्थान में खड़ा’ होना भी बाकी है? हाँ, बाकी है। जबकि इस सदी की शुरूआत में वह “घृणित वस्तु” अस्तित्त्व में आयी, और अब कई वर्षों से मौजूद है, वह जल्द ही कुछ ऐसा करेगी जिससे यह दिखेगा कि वह “पवित्र स्थान में” खड़ी है। जिस तरह मसीह के पहली सदी के चेले इस बात की ओर ध्यान लगाए हुए थे कि घृणित वस्तु किस तरह “पवित्र स्थान में खड़ी” होगी, उसी तरह आज के मसीही भी इसकी ओर ध्यान लगाए हुए हैं। मगर, हमें इसके बारे में पूरी तरह से जानने के लिए इसके भविष्य में पूरा होने तक इंतज़ार करना होगा। लेकिन, यह अभी से देखा जा सकता है कि कुछ देशों में धर्म के लिए नफरत बढ़ रही है। कुछ नेता, सच्चाई छोड़नेवाले धर्मद्रोहियों के साथ मिलकर सभी धर्मों के और खासकर सच्चे मसीहियों के खिलाफ बैर और दुश्‍मनी भड़का रहे हैं। (भजन ९४:२०, २१; १ तीमुथियुस ६:२०, २१) इस तरह यह कहा जा सकता है कि राष्ट्रों के ये नेता अब ‘मेम्ने से लड़’ रहे हैं, और जैसे प्रकाशितवाक्य १७:१४ में बताया गया है, यह लड़ाई और भी घमासान होती जाएगी। जबकि वे परमेश्‍वर के मेम्ने, यानी यीशु मसीह को, जो अब स्वर्ग में है और जिसे बहुत सम्मान और अधिकार दिया गया है, कोई नुकसान नहीं पहुँचा सकते, इसलिए वे ज़मीन पर परमेश्‍वर के सच्चे उपासकों से, खासकर उसके “पवित्र लोगों” से बैर करेंगे और उनसे लड़ेंगे। (दानिय्येल ७:२५. रोमियों ८:२७; कुलुस्सियों १:२; प्रकाशितवाक्य १२:१७ से तुलना कीजिए।) मगर, परमेश्‍वर हमें यकीन दिलाता है कि इस लड़ाई में मेम्ना और उसकी सेना जीतकर ही रहेंगे।—प्रकाशितवाक्य १९:११-२१.

      १७. हालाँकि हम दावे के साथ तो नहीं कहते, मगर यह कब कहा जा सकता है कि “घृणित वस्तु” पवित्र स्थान में खड़ी है?

      १७ कुछ समय बाद सभी झूठे धर्मों को उजाड़ दिया जाएगा। सारी दुनिया में फैले इन झूठे धर्मों का, यानी बड़े बाबुल का ज़रूर विनाश होगा क्योंकि वह ‘पवित्र लोगों का लोहू पीने से मतवाली’ है और रानी बन बैठी है। उसने पृथ्वी के राजाओं पर गंदा प्रभाव डालकर उन्हें अपने कब्ज़े में रखा है। मगर यह सब अचानक ही खत्म हो जाएगा, क्योंकि “दस सींग . . . और पशु” उससे बैर करेंगे और उस पर आक्रमण करेंगे। (प्रकाशितवाक्य १७:६, १६; १८:७, ८) सो, जब ‘किरमिजी रंग का पशु’ इस वेश्‍या पर, यानी झूठे धर्मों पर जिसका ईसाईजगत प्रमुख भाग है, आक्रमण करेगा, तब हम यह कह सकते हैं कि वह “घृणित वस्तु” मानो पवित्र स्थान में खड़ी हो गयी है।c इस तरह धर्मद्रोही ईसाईजगत का उजाड़ा जाना शुरू होगा, जो पवित्र होने का स्वाँग रचता है।

      ‘भागना’—मगर कैसे?

      १८, १९. किन कारणों से हम कह सकते हैं कि ‘पहाड़ों पर भागने’ का मतलब धर्म बदलना नहीं होगा?

      १८ यीशु ने कहा कि जब “घृणित वस्तु” ‘पवित्र स्थान में खड़ी हो’ जाए, तब जो समझे वह भाग जाए। जब यीशु ने भाग जाने की बात की, तब क्या उसका मतलब यह था कि उस आखिरी घड़ी में, जब वह “घृणित वस्तु” “पवित्र स्थान में खड़ी” होगी, तब कई लोग झूठे धर्मों से भागकर सच्चे धर्म को अपना लेंगे? बिलकुल भी नहीं। इसे जानने के लिए आइए देखें कि यह भविष्यवाणी पहली सदी में कैसे पूरी हुई। यीशु ने कहा: “जो यहूदिया में हों, वे पहाड़ों पर भाग जाएं। जो कोठे पर हो, वह अपने घर से कुछ लेने को नीचे न उतरे और न भीतर जाए। और जो खेत में हो, वह अपना कपड़ा लेने के लिये पीछे न लौटे। उन दिनों में जो गर्भवती और दूध पिलाती होंगी, उन के लिये हाय हाय! और प्रार्थना किया करो कि यह जाड़े में न हो।” (तिरछे टाइप हमारे।)—मरकुस १३:१४-१८.

      १९ यीशु यहाँ सिर्फ यरूशलेम के लोगों को भाग जाने के लिए नहीं कह रहा था, मानो उन्हें सिर्फ यहूदी उपासना के प्रमुख धर्म स्थान से ही भागना था; ना ही उस चेतावनी में धर्म बदलने, यानी झूठे धर्मों से भागकर सच्चे धर्म को अपनाने का ज़िक्र था। यीशु के चेलों को एक चेतावनी की ज़रूरत नहीं थी कि वे अपना धर्म बदल लें, क्योंकि वे तो पहले ही सच्चे मसीही बन चुके थे। और जब सा.यु. ६६ में आक्रमण हुआ, तब यरूशलेम और पूरी यहूदिया के यहूदी लोगों ने अपना धर्म छोड़कर मसीही धर्म को नहीं अपना लिया। प्रॉफॆसर हाइनरिक ग्रॆट्‌स कहते हैं कि जिन लोगों ने भाग रहे रोमियों का पीछा किया, वे, “यहूदी कट्टरपंथी दल [जिन्हें ज़ॆलट्‌स कहा जाता था] खुशी से ज़ोर-ज़ोर से विजय-गीत गाते हुए यरूशलेम (८ अक्‍तूबर) को लौटे, उनके दिलों में आज़ादी का विश्‍वास था और खुशी की लहर थी। . . . क्या परमेश्‍वर ने उतनी ही दया के साथ उनकी मदद नहीं की थी जितनी उसने उनके पूर्वजों की मदद की थी? अब उन यहूदी कट्टरपंथियों के दिलों में भविष्य को लेकर खौफ नाम की कोई चीज़ नहीं थी।”

      २०. पहली सदी के यीशु के शिष्यों ने पहाड़ों पर भाग जाने की उसकी चेतावनी के बारे में क्या किया?

      २० तो फिर, उस समय चुने हुए मसीहियों ने यीशु की चेतावनी को कैसे माना? वे यहूदिया छोड़कर, यरदन के उस पार पहाड़ों पर भाग गए। यहूदिया से भागकर उन्होंने यह दिखाया कि वे पूरी यहूदी व्यवस्था से, यानी उसकी राजनैतिक और धार्मिक व्यवस्था से भाग गए हैं और उसका कोई भाग नहीं हैं। वे अपने खेतों को, अपने घर-बार को, अपना सब कुछ पीछे छोड़कर भाग गए थे। उन्हें पूरा यकीन था कि यहोवा उनकी मदद करेगा और उनकी रक्षा करेगा, इसलिए उन्होंने उस वक्‍त ज़िंदगी की ज़रूरी चीज़ों को नहीं, बल्कि यहोवा की उपासना को सबसे ज़्यादा अहमियत दी।—मरकुस १०:२९, ३०; लूका ९:५७-६२.

      २१. जब “घृणित वस्तु” आक्रमण करेगी, तब क्या नहीं होगा?

      २१ अब आइए देखें कि यह हमारे समय में बड़े पैमाने पर कैसे पूरा होता है। हमने कई सालों से लोगों को झूठे धर्मों से निकलकर बाहर आने और सच्चा धर्म अपनाने के लिए आग्रह किया है। (प्रकाशितवाक्य १८:४, ५) और लाखों लोग हमारे आग्रह को सुनकर झूठे धर्मों से बाहर आए हैं और उन्होंने सच्चे धर्म को अपनाया है। मगर, यीशु की भविष्यवाणी में यह नहीं कहा गया है कि “भारी क्लेश” के शुरू होने पर भीड़-की-भीड़ झूठे धर्मों से भागकर सच्चे धर्म को अपना लेगी। असल में देखा जाए तो, सा.यु. ६६ में बड़ी तादाद में यहूदी लोगों ने अपना धर्म बदलकर मसीहियत नहीं अपनायी थी। सो, यह चेतावनी सच्चे मसीहियों के लिए है, ताकि वे इस चेतावनी को सुनकर भाग जाएँ और इस तरह बच निकलें।

      २२. जब यीशु ने पहाड़ों पर भाग जाने के लिए कहा, तो उसका हमारे लिए क्या मतलब है?

      २२ फिलहाल तो भारी क्लेश के बारे में पूरी-पूरी जानकारी उपलब्ध नहीं है। लेकिन हम यह ज़रूर कह सकते हैं कि यीशु ने जब हमें ‘भाग जाने’ के लिए कहा, तब वह हमें किसी एक जगह से दूसरी जगह भागने के लिए नहीं कह रहा था, क्योंकि परमेश्‍वर के लोग तो दुनिया के हर कोने में हैं। सो हमारे लिए भागने का मतलब यह तो होगा ही कि हम अपने और झूठे धर्मों के बीच साफ-साफ फर्क बनाए रखें। मगर यह भी ध्यान में रखना बहुत ज़रूरी है कि यीशु ने चेतावनी दी थी कि अपने कपड़े या दूसरी ज़रूरी चीज़ें इकट्ठा करने के लिए अपने-अपने घर में वापस न जाएँ। (मत्ती २४:१७, १८) सो हमारे लिए भागने का मतलब ऐसी परीक्षाएँ हो सकती हैं, जिनसे यह परखा जाएगा कि हम किसे सबसे ज़्यादा ज़रूरी समझते हैं, इस व्यवस्था की अपनी संपत्ति और धन-दौलत को, या फिर परमेश्‍वर से मिलनेवाले उद्धार को? जी हाँ, उस समय हम पर शायद बहुत सारी मुसीबतें आएँ या फिर हमें काफी कुछ त्याग करना पड़े। मगर, उस समय हम पर चाहे जो भी परीक्षा आए, जो भी मुसीबत आए या जो भी त्याग करना पड़े, हमें वह सब करने के लिए तैयार रहना होगा, ठीक उसी तरह जैसे पहली सदी के मसीहियों ने किया, जब वे यरदन को पार करके यहूदिया से पीरिया को भाग गए थे।

      २३, २४. (क) हमें सुरक्षा सिर्फ कहाँ मिलेगी? (ख) ‘घृणित वस्तु को पवित्र स्थान में खड़ी हुई’ देखने के बारे में यीशु की चेतावनी का हम पर कैसा असर होना चाहिए?

      २३ उस समय भी हमें सिर्फ यहोवा की और उसके पहाड़-समान संगठन की शरण में बने रहना चाहिए। (२ शमूएल २२:२, ३; भजन १८:२; दानिय्येल २:३५, ४४) सिर्फ वहीं हमें सुरक्षा मिलेगी! हम उन लोगों की तरह नहीं होंगे जो ‘पहाड़ों की खोहों और चट्टानों’ की ओर भागेंगे, यानी इंसानों के ऐसे संगठनों और संस्थानों की ओर, जो बड़े बाबुल के उजड़ जाने के बाद कुछ समय तो रहेंगे, मगर उनका भी नाश कर दिया जाएगा। (प्रकाशितवाक्य ६:१५; १८:९-११) यह सच है कि शायद उस समय हालात बहुत ही मुश्‍किल हो जाएँ, ठीक जैसे उन सभी लोगों के लिए हालात बेहद मुश्‍किल रहे होंगे जो सा.यु. ६६ में यहूदिया से भाग रहे थे, जैसे गर्भवती स्त्रियाँ या वे लोग जिन्हें ठंड या बारिश के मौसम में भागना पड़ा होगा। चाहे जो भी हो, हम पूरा विश्‍वास रख सकते हैं कि परमेश्‍वर हमें हर हाल में बचाएगा। इसलिए आइए हम अभी से यहोवा पर और उसके बेटे पर जो अब उसके राज्य का राजा बन चुका है अपना भरोसा पक्का करते जाएँ।

      २४ हमें डरने की कोई ज़रूरत नहीं है कि भविष्य में क्या होगा। जब यीशु ने भविष्यवाणी की, तब वह यह नहीं चाहता था कि उसके चेले ये सभी बातें सुनकर डर जाएँ, और ना ही वह यह चाहता है कि हम आज या फिर आनेवाले दिनों में डर के साये में जीएँ। यह भविष्यवाणी कहकर उसने हमें सावधान कर दिया था ताकि हम तैयार और सतर्क रहें। जब झूठे धर्मों और इस दुनिया की दुष्ट व्यवस्था का पूरी तरह नाश होगा, तब वफादार मसीहियों का नाश नहीं होगा। इसके बजाय, ये मसीही समझ के साथ काम लेंगे और ‘उस घृणित वस्तु को पवित्र स्थान में खड़ी हुई’ देखने के बारे में जो चेतावनी दी गयी थी, उसे मानेंगे। तब वे अपने मज़बूत विश्‍वास की वज़ह से ठोस कदम उठाएँगे। इसलिए, आइए यीशु ने जो कहा था, उसे हम कभी न भूलें: “जो अन्त तक धीरज धरे रहेगा, उसी का उद्धार होगा।”—मरकुस १३:१३.

      [फुटनोट]

      a “रोम के मंदिरों में इन ध्वजों को श्रद्धा के साथ पूजा जाता था; और जैसे-जैसे रोमियों को दूसरे देशों पर जीत मिलती जाती थी, वैसे-वैसे इन ध्वजों के लिए उनकी श्रद्धा बढ़ती जाती थी . . . [सैनिकों के लिए तो] शायद यह दुनिया की सबसे पवित्र चीज़ थी। रोमी सैनिक अपने ध्वज की शपथ खाते थे।”—दी एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका, ११वाँ संस्करण।

      b हालाँकि सा.यु. ६६-७० में हुई यीशु के शब्दों की पूर्ति से हम यह समझ सकते हैं कि ये बातें भारी क्लेश के वक्‍त कैसे पूरी होंगी, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हमारे समय में सभी घटनाएँ बिलकुल उसी तरह होंगी जैसे सा.यु. ६६-७० में हुई थीं, क्योंकि इन दोनों की परिस्थिति और समय अलग-अलग है।

      c कृपया अँग्रेज़ी प्रहरीदुर्ग, दिसंबर १५, १९७५, पेज ७४१-४ देखिए।

      क्या आपको याद है?

      ◻ “उजाड़नेवाली घृणित वस्तु” पहली सदी में कैसे दिखायी दी?

      ◻ हम यह क्यों कह सकते हैं कि हमारे समय की “घृणित वस्तु” का पवित्र स्थान में खड़ा होना बाकी है?

      ◻ “घृणित वस्तु” द्वारा किस आक्रमण के बारे में प्रकाशितवाक्य में पहले से बताया गया है?

      ◻ हमारे लिए ‘भागने’ का मतलब क्या है?

      [पेज 16 पर तसवीर]

      बड़े बाबुल को ‘वेश्‍याओं की माता’ कहा गया है

      [पेज 17 पर तसवीर]

      प्रकाशितवाक्य अध्याय १७ का किरमिजी रंग का पशु ही वह “घृणित वस्तु” है जिसके बारे में यीशु ने कहा था

      [पेज 18 पर तसवीर]

      किरमिजी रंग का पशु धर्मों को पूरी तरह से नाश करने के लिए उस पर आक्रमण करेगा

हिंदी साहित्य (1972-2025)
लॉग-आउट
लॉग-इन
  • हिंदी
  • दूसरों को भेजें
  • पसंदीदा सेटिंग्स
  • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
  • इस्तेमाल की शर्तें
  • गोपनीयता नीति
  • गोपनीयता सेटिंग्स
  • JW.ORG
  • लॉग-इन
दूसरों को भेजें