वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • उत्पत्ति 1
  • पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद

इस भाग के लिए कोई वीडियो नहीं है।

माफ कीजिए, वीडियो डाउनलोड नहीं हो पा रहा है।

उत्पत्ति का सारांश

      • आकाश और पृथ्वी की सृष्टि (1, 2)

      • छ: दिन में पृथ्वी तैयार (3-31)

        • पहला दिन: उजाला; दिन-रात (3-5)

        • दूसरा दिन: खुली जगह (6-8)

        • तीसरा दिन: ज़मीन; पेड़-पौधे (9-13)

        • चौथा दिन: आसमान में ज्योतियाँ (14-19)

        • पाँचवाँ दिन: मछलियाँ और पक्षी (20-23)

        • छठा दिन: जानवर और इंसान (24-31)

उत्पत्ति 1:1

फुटनोट

  • *

    यानी विश्‍व-मंडल जिसमें तारे, ग्रह, आकाश-गंगाएँ वगैरह शामिल हैं।

संबंधित आयतें

  • +भज 102:25; यश 42:5; 45:18; रोम 1:20; इब्र 1:10; प्रक 4:11; 10:6

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    खुशी से जीएँ हमेशा के लिए!, पाठ 6

    सजग होइए!,

    अंक 3 2021 पेज 10

    10/2006, पेज 19

    प्रहरीदुर्ग (जनता के लिए),

    अंक 1 2019, पेज 5

    सभा पुस्तिका के लिए हवाले,

    1/2020, पेज 2

    2/15/2011, पेज 6-7

    3/1/2007, पेज 5

    परमेश्‍वर का पैगाम, पेज 4

उत्पत्ति 1:2

फुटनोट

  • *

    या “खाली।”

  • *

    या “उफनते पानी।”

  • *

    या “परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति।”

संबंधित आयतें

  • +नीत 8:27, 28
  • +भज 33:6; यश 40:26
  • +भज 104:5, 6

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    खुशी से जीएँ हमेशा के लिए!, पाठ 6

    सजग होइए!,

    अंक 3 2021 पेज 10

    प्रहरीदुर्ग,

    3/1/2007, पेज 5-6

उत्पत्ति 1:3

संबंधित आयतें

  • +यश 45:7; 2कुर 4:6

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    सभा पुस्तिका के लिए हवाले, 1/2020, पेज 1

    प्रहरीदुर्ग,

    2/15/2011, पेज 7-8

    3/1/2007, पेज 5-6

    1/1/2004, पेज 28

उत्पत्ति 1:5

संबंधित आयतें

  • +उत 8:22

उत्पत्ति 1:6

फुटनोट

  • *

    यानी वायुमंडल।

संबंधित आयतें

  • +उत 1:20
  • +2पत 3:5

उत्पत्ति 1:7

संबंधित आयतें

  • +उत 7:11; नीत 8:27, 28

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    सभा पुस्तिका के लिए हवाले, 1/2020, पेज 1

उत्पत्ति 1:9

संबंधित आयतें

  • +अय 38:8, 11; भज 104:6-9; 136:6

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    सजग होइए!,

    अंक 3 2021 पेज 10

    प्रहरीदुर्ग,

    3/1/2007, पेज 6

उत्पत्ति 1:10

फुटनोट

  • *

    यहाँ समुंदर का मतलब महासागरों के अलावा नदी-नाले, झील वगैरह भी हो सकता है।

संबंधित आयतें

  • +भज 95:5
  • +नीत 8:29
  • +व्य 32:4

उत्पत्ति 1:11

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    पवित्र शास्त्र से जवाब जानिए, लेख 82

    सभा पुस्तिका के लिए हवाले, 1/2020, पेज 1

    प्रहरीदुर्ग,

    3/1/2007, पेज 6

उत्पत्ति 1:12

संबंधित आयतें

  • +भज 104:14

उत्पत्ति 1:14

संबंधित आयतें

  • +व्य 4:19
  • +भज 104:19
  • +उत 8:22

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    2/15/2011, पेज 7-8

    3/1/2007, पेज 6

उत्पत्ति 1:16

संबंधित आयतें

  • +भज 136:7, 8
  • +भज 8:3; यिर्म 31:35

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    पवित्र शास्त्र से जवाब जानिए, लेख 82

    प्रहरीदुर्ग,

    3/1/2007, पेज 6

    1/1/2004, पेज 28

उत्पत्ति 1:18

संबंधित आयतें

  • +भज 74:16

उत्पत्ति 1:20

फुटनोट

  • *

    शब्दावली में “जीवन” देखें।

संबंधित आयतें

  • +उत 2:19

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    सभा पुस्तिका के लिए हवाले, 1/2020, पेज 1-2

उत्पत्ति 1:21

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    खुशी से जीएँ हमेशा के लिए!, पाठ 6

उत्पत्ति 1:22

संबंधित आयतें

  • +नहे 9:6; भज 104:25

उत्पत्ति 1:24

फुटनोट

  • *

    ज़ाहिर है कि इनमें साँप, छिपकली जैसे जंतु और ऐसे जंतु भी शामिल हैं जो आयत में बताए बाकी जानवरों से अलग हैं।

संबंधित आयतें

  • +उत 2:19

उत्पत्ति 1:25

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    खुशी से जीएँ हमेशा के लिए!, पाठ 6

उत्पत्ति 1:26

संबंधित आयतें

  • +नीत 8:30; यूह 1:3; कुल 1:16
  • +1कुर 11:7
  • +उत 5:1; याकू 3:9
  • +उत 9:2

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    खुशी से जीएँ हमेशा के लिए!, पाठ 6

    प्रहरीदुर्ग (जनता के लिए),

    अंक 2 2018, पेज 12

    प्रहरीदुर्ग,

    1/1/2009, पेज 27

    1/1/2004, पेज 30

    2/15/2002, पेज 4

    11/15/2000, पेज 25

    6/1/1992, पेज 16-17

    महान शिक्षक, पेज 22

    त्रियेक, पेज 14

    “देख!” ब्रोशर, पेज 13-14

उत्पत्ति 1:27

संबंधित आयतें

  • +भज 139:14; मत 19:4; मर 10:6; 1कुर 11:7, 9

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग (अध्ययन),

    12/2023, पेज 18

    खुशी से जीएँ हमेशा के लिए!, पाठ 6

    प्रहरीदुर्ग (जनता के लिए),

    अंक 1 2019, पेज 10

    प्रहरीदुर्ग (जनता के लिए),

    अंक 2 2018, पेज 12

    सिखाती है, पेज 53

    बाइबल सिखाती है, पेज 48-49

    प्रहरीदुर्ग,

    7/1/2013, पेज 3

    2/15/2011, पेज 9

    1/1/2009, पेज 27

    7/1/2005, पेज 4-5

    6/1/2002, पेज 9-10

    7/15/1997, पेज 4-5

    2/1/1997, पेज 9-10, 12

    6/1/1994, पेज 19

    सजग होइए!,

    7/2013, पेज 11

    4/2010, पेज 20

    “देख!” ब्रोशर, पेज 13-14

उत्पत्ति 1:28

संबंधित आयतें

  • +उत 9:1
  • +उत 2:15
  • +भज 8:4, 6

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग (अध्ययन),

    11/2023, पेज 5

    पवित्र शास्त्र से जवाब जानिए, लेख 159

    प्रहरीदुर्ग (अध्ययन),

    12/2022, पेज 28-29

    प्रहरीदुर्ग (अध्ययन),

    8/2021, पेज 2

    खुशी से जीएँ हमेशा के लिए!, पाठ 25

    प्रहरीदुर्ग (जनता के लिए),

    अंक 3 2019, पेज 6-7

    प्रहरीदुर्ग (अध्ययन),

    8/2018, पेज 19-20

    प्रहरीदुर्ग (अध्ययन),

    8/2016, पेज 9

    प्रहरीदुर्ग,

    5/15/2006, पेज 4-5

    4/15/2004, पेज 4

    11/15/2000, पेज 25

    4/15/1999, पेज 8-9

    7/15/1998, पेज 15

    7/1/1991, पेज 21

    3/1/1990, पेज 23-25, 28

    सर्वदा जीवित रहिए, पेज 73-74

    “देख!” ब्रोशर, पेज 14-15

    मृत्यु पर विजय, पेज 4-5

उत्पत्ति 1:29

संबंधित आयतें

  • +उत 9:3; भज 104:14; प्रेष 14:17

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    प्रहरीदुर्ग,

    3/1/1990, पेज 23-24

उत्पत्ति 1:30

संबंधित आयतें

  • +भज 147:9; मत 6:26

उत्पत्ति 1:31

संबंधित आयतें

  • +व्य 32:4; भज 104:24; 1ती 4:4

इंडैक्स

  • खोजबीन गाइड

    परमेश्‍वर का प्यार, पेज 197

    प्रहरीदुर्ग,

    7/1/2011, पेज 11

    1/1/2008, पेज 15

    11/15/1999, पेज 4-5

    3/1/1990, पेज 24-25

दूसरें अनुवाद

मिलती-जुलती आयतें देखने के लिए किसी आयत पर क्लिक कीजिए।

दूसरी

उत्प. 1:1भज 102:25; यश 42:5; 45:18; रोम 1:20; इब्र 1:10; प्रक 4:11; 10:6
उत्प. 1:2नीत 8:27, 28
उत्प. 1:2भज 33:6; यश 40:26
उत्प. 1:2भज 104:5, 6
उत्प. 1:3यश 45:7; 2कुर 4:6
उत्प. 1:5उत 8:22
उत्प. 1:6उत 1:20
उत्प. 1:62पत 3:5
उत्प. 1:7उत 7:11; नीत 8:27, 28
उत्प. 1:9अय 38:8, 11; भज 104:6-9; 136:6
उत्प. 1:10भज 95:5
उत्प. 1:10नीत 8:29
उत्प. 1:10व्य 32:4
उत्प. 1:12भज 104:14
उत्प. 1:14व्य 4:19
उत्प. 1:14भज 104:19
उत्प. 1:14उत 8:22
उत्प. 1:16भज 136:7, 8
उत्प. 1:16भज 8:3; यिर्म 31:35
उत्प. 1:18भज 74:16
उत्प. 1:20उत 2:19
उत्प. 1:22नहे 9:6; भज 104:25
उत्प. 1:24उत 2:19
उत्प. 1:26नीत 8:30; यूह 1:3; कुल 1:16
उत्प. 1:261कुर 11:7
उत्प. 1:26उत 5:1; याकू 3:9
उत्प. 1:26उत 9:2
उत्प. 1:27भज 139:14; मत 19:4; मर 10:6; 1कुर 11:7, 9
उत्प. 1:28उत 9:1
उत्प. 1:28उत 2:15
उत्प. 1:28भज 8:4, 6
उत्प. 1:29उत 9:3; भज 104:14; प्रेष 14:17
उत्प. 1:30भज 147:9; मत 6:26
उत्प. 1:31व्य 32:4; भज 104:24; 1ती 4:4
  • पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद
  • अध्ययन बाइबल (nwtsty) में पढ़िए
  • 1
  • 2
  • 3
  • 4
  • 5
  • 6
  • 7
  • 8
  • 9
  • 10
  • 11
  • 12
  • 13
  • 14
  • 15
  • 16
  • 17
  • 18
  • 19
  • 20
  • 21
  • 22
  • 23
  • 24
  • 25
  • 26
  • 27
  • 28
  • 29
  • 30
  • 31
पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद
उत्पत्ति 1:1-31

उत्पत्ति

1 शुरूआत में परमेश्‍वर ने आकाश* और पृथ्वी की सृष्टि की।+

2 पृथ्वी बेडौल और सूनी* थी। गहरे पानी* की सतह+ पर अँधेरा था और परमेश्‍वर की ज़ोरदार शक्‍ति*+ पानी की सतह+ के ऊपर यहाँ से वहाँ घूमती हुई काम कर रही थी।

3 परमेश्‍वर ने कहा, “उजाला हो जाए” और उजाला हो गया।+ 4 इसके बाद परमेश्‍वर ने देखा कि उजाला अच्छा है और परमेश्‍वर उजाले को अँधेरे से अलग करने लगा। 5 परमेश्‍वर ने उजाले को दिन कहा और अँधेरे को रात।+ फिर शाम हुई और सुबह हुई। इस तरह पहला दिन पूरा हुआ।

6 फिर परमेश्‍वर ने कहा, “पानी ऊपर और नीचे की तरफ, दो हिस्सों में बँट जाए और बीच में खुली जगह* बन जाए+ जो ऊपर के हिस्से को नीचे के हिस्से से अलग करे।”+ 7 फिर परमेश्‍वर ने पानी को ऊपर और नीचे की तरफ दो हिस्सों में बाँट दिया और बीच में खुली जगह बनायी।+ और वैसा ही हो गया। 8 परमेश्‍वर ने उस खुली जगह को आसमान कहा। फिर शाम हुई और सुबह हुई। इस तरह दूसरा दिन पूरा हुआ।

9 फिर परमेश्‍वर ने कहा, “आकाश के नीचे का सारा पानी एक जगह इकट्ठा हो जाए और सूखी ज़मीन दिखायी दे।”+ और वैसा ही हो गया। 10 परमेश्‍वर ने सूखी ज़मीन को धरती कहा,+ मगर जो पानी इकट्ठा हुआ था उसे समुंदर* कहा।+ और परमेश्‍वर ने देखा कि यह अच्छा है।+ 11 फिर परमेश्‍वर ने कहा, “धरती पर घास, बीजवाले पौधे और ऐसे फलदार पेड़ जिनके फलों में बीज भी हों, अपनी-अपनी जाति के मुताबिक उगें।” और वैसा ही हो गया। 12 धरती से घास, बीजवाले पौधे+ और फलदार पेड़, जिनके फलों में बीज होते हैं अपनी-अपनी जाति के मुताबिक उगने लगे। तब परमेश्‍वर ने देखा कि यह अच्छा है। 13 फिर शाम हुई और सुबह हुई। इस तरह तीसरा दिन पूरा हुआ।

14 फिर परमेश्‍वर ने कहा, “आसमान में रौशनी देनेवाली ज्योतियाँ+ चमकें जो दिन को रात से अलग करें।+ इन ज्योतियों की मदद से दिन, साल और मौसम का पता लगाया जाएगा।+ 15 ये ज्योतियाँ खुले आसमान में रौशनी देने का काम करेंगी जिससे धरती को रौशनी मिलेगी।” और वैसा ही हो गया। 16 परमेश्‍वर ने दो बड़ी ज्योतियाँ बनायीं। जो ज्योति ज़्यादा बड़ी थी, उसे दिन पर अधिकार दिया+ और छोटी ज्योति को रात पर अधिकार दिया। परमेश्‍वर ने तारे भी बनाए।+ 17 इस तरह परमेश्‍वर ने उन्हें खुले आसमान में तैनात किया ताकि धरती को रौशनी मिले, 18 दिन और रात पर इनका अधिकार हो और उजाले को अँधेरे से अलग करें।+ तब परमेश्‍वर ने देखा कि यह अच्छा है। 19 फिर शाम हुई और सुबह हुई। इस तरह चौथा दिन पूरा हुआ।

20 फिर परमेश्‍वर ने कहा, “पानी जीव-जंतुओं* के झुंडों से भर जाए और उड़नेवाले जीव धरती के ऊपर फैले आसमान में उड़ें।”+ 21 और परमेश्‍वर ने समुंदर में रहनेवाले बड़े-बड़े जंतुओं और तैरनेवाले दूसरे जंतुओं को उनकी अपनी-अपनी जाति के मुताबिक सिरजा जो पानी में झुंड बनाकर रहते हैं। उसने पंछियों और कीट-पतंगों को उनकी अपनी-अपनी जाति के मुताबिक सिरजा। और परमेश्‍वर ने देखा कि यह अच्छा है। 22 परमेश्‍वर ने उन्हें यह आशीष दी, “फूलो-फलो, गिनती में बढ़ जाओ और समुंदर को भर दो+ और उड़नेवाले जीवों की गिनती पृथ्वी पर बहुत बढ़ जाए।” 23 फिर शाम हुई और सुबह हुई। इस तरह पाँचवाँ दिन पूरा हुआ।

24 फिर परमेश्‍वर ने कहा, “ज़मीन पर अपनी-अपनी जाति के मुताबिक जीव-जंतु हों, पालतू जानवर, रेंगनेवाले जंतु* और जंगली जानवर हों।”+ और वैसा ही हो गया। 25 परमेश्‍वर ने धरती के जंगली जानवरों, पालतू जानवरों और ज़मीन पर रेंगनेवाले सब जंतुओं को उनकी अपनी-अपनी जाति के मुताबिक बनाया। और परमेश्‍वर ने देखा कि यह अच्छा है।

26 फिर परमेश्‍वर ने कहा, “आओ हम+ इंसान को अपनी छवि में,+ अपने जैसा बनाएँ।+ और वे समुंदर की मछलियों, आसमान के पंछियों, पालतू जानवरों और ज़मीन पर रेंगनेवाले सभी जंतुओं पर और सारी धरती पर अधिकार रखें।”+ 27 परमेश्‍वर ने अपनी छवि में इंसान की सृष्टि की, हाँ, उसने अपनी ही छवि में इंसान की सृष्टि की। उसने उन्हें नर और नारी बनाया।+ 28 फिर परमेश्‍वर ने उन्हें आशीष दी और उनसे कहा, “फूलो-फलो और गिनती में बढ़ जाओ, धरती को आबाद करो+ और इस पर अधिकार रखो।+ समुंदर की मछलियों, आसमान में उड़नेवाले जीवों और ज़मीन पर चलने-फिरनेवाले सब जीव-जंतुओं पर अधिकार रखो।”+

29 फिर परमेश्‍वर ने उनसे कहा, “देखो, मैं तुम्हें धरती के सभी बीजवाले पौधे और ऐसे सभी पेड़ देता हूँ, जिन पर बीजवाले फल लगते हैं। ये तुम्हारे खाने के लिए हों।+ 30 और मैं धरती के सभी जंगली जानवरों, आसमान में उड़नेवाले सभी जीवों और बाकी सभी जीव-जंतुओं को, जिनमें जीवन है, खाने के लिए हरी घास और पेड़-पौधे देता हूँ।”+ और वैसा ही हो गया।

31 इसके बाद परमेश्‍वर ने वह सब देखा जो उसने बनाया था। वाह! सबकुछ बहुत बढ़िया था।+ फिर शाम हुई और सुबह हुई। इस तरह छठा दिन पूरा हुआ।

हिंदी साहित्य (1972-2025)
लॉग-आउट
लॉग-इन
  • हिंदी
  • दूसरों को भेजें
  • पसंदीदा सेटिंग्स
  • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
  • इस्तेमाल की शर्तें
  • गोपनीयता नीति
  • गोपनीयता सेटिंग्स
  • JW.ORG
  • लॉग-इन
दूसरों को भेजें