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  • पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद (अध्ययन बाइबल)
पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद (अध्ययन बाइबल)
1 राजा

पहला राजा

1 राजा दाविद की उम्र ढल चुकी थी,+ वह काफी बूढ़ा हो गया था। उसे कई कंबल ओढ़ाए जाते थे, फिर भी उसके शरीर को गरमी नहीं मिलती थी। 2 इसलिए उसके सेवकों ने उससे कहा, “अगर इजाज़त हो तो हम अपने मालिक राजा की देखभाल के लिए एक कुँवारी लड़की ढूँढ़कर लाएँगे। वह लड़की राजा के पास रहकर राजा की सेवा और देखभाल करेगी। वह तेरे पास लेटा करेगी ताकि तुझे गरमी मिले।” 3 उन्होंने पूरे इसराएल देश में एक खूबसूरत लड़की की तलाश की और उन्हें अबीशग+ नाम की एक लड़की मिली जो शूनेम+ की रहनेवाली थी। वे उसे राजा के पास ले आए। 4 वह लड़की बहुत खूबसूरत थी। वह राजा के पास रहकर उसकी देखभाल करने लगी। मगर राजा ने उसके साथ संबंध नहीं रखे।

5 इन्हीं दिनों हग्गीत का बेटा अदोनियाह+ यह कहकर खुद को ऊँचा उठाने लगा, “अगला राजा मैं ही बनूँगा!” उसने अपने लिए एक रथ तैयार करवाया, कुछ घुड़सवार चुने और 50 आदमियों को अपने आगे-आगे दौड़ने के काम पर लगाया।+ 6 मगर उसके पिता ने कभी यह कहकर उसे नहीं रोका,* “तूने ऐसा क्यों किया?” अदोनियाह भी बहुत सुंदर-सजीला था। उसका जन्म अबशालोम के बाद हुआ था। 7 उसने सरूयाह के बेटे योआब और याजक अबियातार+ से बात की और वे अदोनियाह की मदद करने और उसका साथ देने के लिए तैयार हो गए।+ 8 मगर याजक सादोक,+ यहोयादा के बेटे बनायाह,+ भविष्यवक्‍ता नातान,+ शिमी,+ रेई और दाविद के वीर योद्धाओं+ ने अदोनियाह का साथ नहीं दिया।

9 आखिरकार एक दिन अदोनियाह ने एन-रोगेल से कुछ दूरी पर जोहेलेत के पत्थर के पास बलिदान का इंतज़ाम किया।+ उसने भेड़ों, गाय-बैलों और मोटे किए जानवरों की बलि चढ़ायी। इस मौके पर उसने अपने सभी भाइयों को यानी राजा के सभी बेटों को और यहूदा के सभी आदमियों को यानी राजा के सभी सेवकों को न्यौता दिया। 10 मगर उसने भविष्यवक्‍ता नातान को, बनायाह को, दाविद के वीर योद्धाओं को और अपने भाई सुलैमान को नहीं बुलाया। 11 तब नातान+ ने सुलैमान की माँ बतशेबा+ के पास जाकर कहा, “क्या तूने सुना है कि हग्गीत का बेटा अदोनियाह+ राजा बन गया है और हमारे मालिक राजा को इस बारे में कोई खबर नहीं? 12 अब अगर तू अपनी और अपने बेटे सुलैमान की जान बचाना चाहती है, तो मेरी सलाह मान।+ 13 तू राजा दाविद के पास जा और उससे कह, ‘मेरे मालिक राजा, तूने शपथ खाकर अपनी दासी से कहा था, “मेरे बाद तेरा बेटा सुलैमान राजा बनेगा और वही मेरी राजगद्दी पर बैठेगा।”+ तो फिर अब अदोनियाह कैसे राजा बन गया है?’ 14 जब तू राजा से बात कर रही होगी, तब मैं भी वहाँ आ जाऊँगा और राजा से कहूँगा कि तू सही कह रही है।”

15 इसलिए बतशेबा राजा के पास उसके सोने के कमरे में गयी। राजा बहुत बूढ़ा था और शूनेम की रहनेवाली अबीशग+ उसकी सेवा कर रही थी। 16 बतशेबा ने राजा के सामने झुककर उसे प्रणाम किया। राजा ने उससे कहा, “मैं तेरे लिए क्या कर सकता हूँ?” 17 बतशेबा ने कहा, “मेरे मालिक, तूने ही अपने परमेश्‍वर यहोवा की शपथ खाकर अपनी दासी से कहा था, ‘मेरे बाद तेरा बेटा सुलैमान राजा बनेगा और वही मेरी राजगद्दी पर बैठेगा।’+ 18 मगर देख! अब अदोनियाह राजा बन गया है और मालिक को इसकी कोई खबर नहीं।+ 19 उसने बड़ी तादाद में बैलों, भेड़ों और मोटे किए जानवरों की बलि चढ़ायी है। इस मौके पर उसने राजा के सभी बेटों को और याजक अबियातार और सेनापति योआब को न्यौता दिया है,+ मगर तेरे सेवक सुलैमान को नहीं बुलाया।+ 20 हे मेरे मालिक राजा, अब पूरे इसराएल की नज़र तुझ पर टिकी है कि तू उन्हें बताए कि तेरे बाद तेरी राजगद्दी पर कौन बैठेगा। 21 अगर मालिक ने नहीं बताया तो जैसे ही मालिक की मौत हो जाएगी,* मेरे साथ और मेरे बेटे सुलैमान के साथ गद्दारों जैसा सलूक किया जाएगा।”

22 बतशेबा राजा से बात कर ही रही थी कि तभी भविष्यवक्‍ता नातान वहाँ पहुँच गया।+ 23 राजा को फौरन बताया गया, “भविष्यवक्‍ता नातान आया है!” नातान राजा के सामने गया और उसने झुककर राजा को प्रणाम किया। 24 फिर नातान ने कहा, “मेरे मालिक राजा, क्या तूने कहा है कि तेरे बाद अदोनियाह राजा बनेगा और वही तेरी राजगद्दी पर बैठेगा?+ 25 क्योंकि आज अदोनियाह बड़ी तादाद में बैलों, भेड़ों और मोटे किए जानवरों की बलि चढ़ाने गया है+ और उसने राजा के सभी बेटों, सेनापतियों और याजक अबियातार को बुलाया है।+ वे सब उसके साथ मिलकर दावत उड़ा रहे हैं और कह रहे हैं, ‘राजा अदोनियाह की जय हो!’ 26 मगर उसने तेरे इस सेवक को नहीं बुलाया। उसने याजक सादोक को, यहोयादा के बेटे बनायाह+ को और तेरे सेवक सुलैमान को भी नहीं बुलाया। 27 क्या अदोनियाह को यह सब करने का अधिकार राजा ने दिया है? क्या तूने फैसला किया कि वही तेरे बाद राजगद्दी पर बैठेगा? तूने मुझे तो इस बारे में कुछ नहीं बताया।”

28 तब राजा दाविद ने कहा, “बतशेबा को बुलाओ।” बतशेबा अंदर आयी और राजा के सामने खड़ी हो गयी। 29 राजा ने शपथ खाकर उससे वादा किया, “यहोवा के जीवन की शपथ, जिसने मुझे हर मुसीबत से छुड़ाया है,+ 30 आज मैं अपनी वह शपथ पूरी करूँगा जो मैंने इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा के नाम से खायी थी कि मेरे बाद तेरा बेटा सुलैमान राजा बनेगा और वही मेरी राजगद्दी पर बैठेगा!” 31 तब बतशेबा ने ज़मीन पर झुककर राजा को प्रणाम किया और कहा, “मेरा मालिक राजा दाविद लंबी उम्र पाए!”

32 राजा दाविद ने फौरन कहा, “याजक सादोक, भविष्यवक्‍ता नातान और यहोयादा के बेटे बनायाह+ को बुलाओ।”+ तब वे तीनों राजा के पास आए। 33 राजा ने उनसे कहा, “तुम मेरे सेवकों को लेकर जाओ और मेरे बेटे सुलैमान को मेरे खच्चर* पर बिठाओ+ और उसे नीचे गीहोन+ ले जाओ। 34 याजक सादोक और भविष्यवक्‍ता नातान वहाँ उसका अभिषेक करके+ उसे इसराएल का राजा ठहराएँगे। फिर नरसिंगा फूँककर यह ऐलान करवाया जाए, ‘राजा सुलैमान की जय हो!’+ 35 इसके बाद तुम सब उसके पीछे-पीछे यहाँ लौट आना और फिर वह अंदर आकर मेरी राजगद्दी पर बैठेगा। वही मेरी जगह राजा बनेगा और मैं उसे इसराएल और यहूदा का अगुवा ठहराऊँगा।” 36 तब यहोयादा के बेटे बनायाह ने फौरन राजा से कहा, “आमीन! मेरे मालिक राजा का परमेश्‍वर यहोवा वही करे जो राजा ने कहा है। 37 जिस तरह यहोवा मेरे मालिक के साथ रहा है, वैसे ही वह सुलैमान के साथ रहे+ और उसके राज को मेरे मालिक राजा दाविद के राज से भी ज़्यादा महान करे।”+

38 तब याजक सादोक, भविष्यवक्‍ता नातान, यहोयादा के बेटे बनायाह+ और करेती और पलेती लोगों+ ने सुलैमान को राजा दाविद के खच्चर पर बिठाया+ और उसे नीचे गीहोन+ ले गए। 39 फिर याजक सादोक ने तेल-भरा वह सींग लिया+ जो तंबू+ से लाया गया था और उस तेल से सुलैमान का अभिषेक किया।+ इसके बाद वे नरसिंगा फूँकने लगे और सब लोग ज़ोर-ज़ोर से कहने लगे, “राजा सुलैमान की जय हो! राजा सुलैमान की जय हो!” 40 इसके बाद सब लोग बाँसुरी बजाते और जश्‍न मनाते हुए सुलैमान के पीछे-पीछे चलने लगे। लोगों ने इतनी ऊँची आवाज़ में जयजयकार की कि ज़मीन फटने लगी।+

41 अदोनियाह और उसकी दावत में आए सभी लोगों ने यह शोर सुना। अब तक वे खा-पी चुके थे।+ जैसे ही योआब ने नरसिंगे की आवाज़ सुनी, उसने कहा, “शहर में यह होहल्ला कैसा?” 42 जब वह बोल ही रहा था तो याजक अबियातार का बेटा योनातान+ वहाँ आया। अदोनियाह ने कहा, “आ, अंदर आ। तू एक अच्छा* इंसान है। तू ज़रूर कोई अच्छी खबर लाया होगा।” 43 मगर योनातान ने अदोनियाह से कहा, “माफ करना, खबर अच्छी नहीं है। हमारे मालिक राजा दाविद ने सुलैमान को राजा बना दिया है। 44 राजा ने सुलैमान के साथ याजक सादोक, भविष्यवक्‍ता नातान, यहोयादा के बेटे बनायाह और करेती और पलेती लोगों को भेजा और उन्होंने उसे राजा के खच्चर पर बिठाया।+ 45 वे उसे गीहोन ले गए जहाँ याजक सादोक और भविष्यवक्‍ता नातान ने उसका अभिषेक करके उसे राजा बना दिया। इसके बाद वे जश्‍न मनाते हुए वहाँ से शहर लौट गए। इसीलिए पूरे शहर में इतना होहल्ला मचा है। तुम लोगों ने जो शोर सुना है वह यही है। 46 और-तो-और, सुलैमान राजगद्दी पर बैठ गया है। 47 और हाँ, हमारे मालिक राजा के सेवक राजा को यह कहकर बधाई दे रहे हैं, ‘तेरा परमेश्‍वर सुलैमान का नाम तेरे नाम से ज़्यादा मशहूर करे और उसके राज को तेरे राज से ज़्यादा महान करे!’ यह सब सुनकर राजा ने, जो बिस्तर पर था, अपना सिर झुकाया 48 और कहा, ‘इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा की तारीफ हो, जिसने आज मेरे बेटे को मेरी राजगद्दी पर बिठाया है और मुझे अपनी आँखों से यह देखने का मौका दिया है!’”

49 जब अदोनियाह के मेहमानों ने यह खबर सुनी तो वे सब बहुत डर गए और उठकर अपने-अपने रास्ते चले गए। 50 अदोनियाह भी सुलैमान की वजह से बहुत डर गया, इसलिए वह उठकर वेदी के पास गया और उसने वेदी के सींग पकड़ लिए।+ 51 सुलैमान को खबर दी गयी कि अदोनियाह उससे बहुत डर गया है और वेदी के सींग पकड़कर कह रहा है, “मैं यहाँ से तब तक नहीं जाऊँगा जब तक राजा सुलैमान मुझसे शपथ खाकर नहीं कहता कि वह अपने इस सेवक को तलवार से नहीं मार डालेगा।” 52 सुलैमान ने कहा, “अगर वह भला आदमी बनकर रहेगा, तो उसका बाल भी बाँका नहीं होगा। लेकिन अगर उसने कुछ गलत किया+ तो वह ज़िंदा नहीं बचेगा।” 53 तब राजा सुलैमान ने अपने सेवकों को भेजा कि वे उसे वेदी पर से उतार लाएँ। फिर अदोनियाह राजा सुलैमान के पास आया और उसने झुककर उसे प्रणाम किया। सुलैमान ने उससे कहा, “जा, अपने घर चला जा।”

2 जब दाविद की मौत करीब थी तो उसने अपने बेटे सुलैमान को ये हिदायतें दीं: 2 “देख, अब मैं ज़्यादा दिन नहीं जीऊँगा।* इसलिए तू हिम्मत से काम लेना+ और हौसला रखना।+ 3 तू हमेशा यहोवा की बतायी राह पर चलना। उसने मूसा के कानून में जो विधियाँ, आज्ञाएँ, न्याय-सिद्धांत और याद दिलानेवाली हिदायतें लिखवायी हैं उन सबका तू पालन करना। इस तरह तू अपना फर्ज़ निभाना।+ तब तू जो भी काम करे और जहाँ भी जाए, तू कामयाब होगा।* 4 और यहोवा अपना यह वादा निभाएगा जो उसने मेरे बारे में किया था, ‘अगर तेरे बेटे मेरे सामने पूरे दिल, पूरी जान और पूरी वफादारी से सही राह पर चलते रहेंगे और इस तरह अपने चालचलन पर ध्यान देंगे,+ तो ऐसा कभी नहीं होगा कि इसराएल की राजगद्दी पर बैठने के लिए तेरे वंश का कोई आदमी न हो।’+

5 तू यह भी अच्छी तरह जानता है कि सरूयाह के बेटे योआब ने मेरे साथ क्या किया था। उसने इसराएल के दो सेनापतियों को यानी नेर के बेटे अब्नेर+ और येतेर के बेटे अमासा को मार डाला।+ उसने युद्ध के समय नहीं बल्कि शांति के समय उनका खून बहाया।+ ऐसा करके उसने अपने कमरबंद और जूतों पर खून का दाग लगाया। 6 तू अपनी बुद्धि से काम लेना और उसे ऐसी मौत मरने मत देना जैसी सब इंसानों पर आती है।*+

7 मगर तू गिलाद के रहनेवाले बरजिल्लै+ के बेटों पर कृपा* करना। वे तेरी मेज़ से खाया करें क्योंकि जब मैं तेरे भाई अबशालोम से भाग रहा था+ तो उन्होंने मेरा साथ दिया था।+

8 और तेरे पड़ोस में बहूरीम का जो शिमी रहता है, बिन्यामीन गोत्र के गेरा का बेटा, उसे मत छोड़ना। जिस दिन मैं महनैम जा रहा था,+ उस दिन उसने मुझे शाप दिया था, बड़े तीखे शब्दों से मुझ पर वार किया था।+ बाद में जब वह यरदन के पास मुझसे मिलने आया था, तब हालाँकि मैंने यहोवा की शपथ खाकर उससे कहा था, ‘मैं तुझे तलवार से नहीं मार डालूँगा,’+ 9 मगर अब तू उसे सज़ा दिए बिना मत छोड़ना।+ तू बुद्धिमान आदमी है और जानता है कि उसके साथ क्या किया जाना चाहिए। तू उसे मौत की सज़ा देना ताकि वह बुढ़ापे में शांति से न मर सके।”*+

10 इसके बाद दाविद की मौत हो गयी* और उसे दाविदपुर में दफनाया गया।+ 11 दाविद ने इसराएल पर 40 साल राज किया था, 7 साल हेब्रोन+ में रहकर और 33 साल यरूशलेम में रहकर।+

12 फिर सुलैमान ने अपने पिता की राजगद्दी सँभाली और उसका राज दिनों-दिन मज़बूत होता गया।+

13 कुछ समय बाद हग्गीत का बेटा अदोनियाह, सुलैमान की माँ बतशेबा के पास आया। बतशेबा ने उससे पूछा, “तू नेक इरादे से ही आया है न?” अदोनियाह ने कहा, “हाँ, मैं नेक इरादे से ही आया हूँ।” 14 फिर उसने कहा, “मैं तुझसे कुछ कहना चाहता हूँ।” बतशेबा ने कहा, “बोल, क्या कहना चाहता है।” 15 उसने कहा, “तू अच्छी तरह जानती है कि राजगद्दी मुझे मिलनी थी और पूरा इसराएल भी यही उम्मीद लगाए था* कि मैं राजा बनूँगा।+ मगर राजगद्दी मेरे हाथ से निकल गयी और मेरे भाई को मिल गयी। खैर कोई बात नहीं। यहोवा की यही मरज़ी थी कि राजगद्दी उसे मिले।+ 16 मगर अब मैं तुझसे बस एक गुज़ारिश करना चाहता हूँ। तू इनकार मत करना।” बतशेबा ने कहा, “बोल, क्या गुज़ारिश है।” 17 उसने कहा, “मेहरबानी करके राजा सुलैमान से कह कि वह शूनेम की अबीशग+ मुझे दे दे, मैं उसे अपनी पत्नी बनाना चाहता हूँ। वह तेरी बात नहीं टालेगा।” 18 बतशेबा ने कहा, “ठीक है। मैं तेरी तरफ से राजा से बात करूँगी।”

19 तब बतशेबा अदोनियाह की तरफ से बात करने राजा सुलैमान के पास गयी। जैसे ही वह राजा के सामने आयी, राजा अपनी राजगद्दी से उठा और झुककर उसे प्रणाम किया। फिर वह अपनी राजगद्दी पर बैठ गया और राजमाता के लिए एक आसन मँगवाया ताकि वह उसके दायीं तरफ बैठे। 20 फिर बतशेबा ने कहा, “मैं एक छोटी-सी गुज़ारिश लेकर आयी हूँ। तू इनकार मत करना।” राजा ने कहा, “माँ, तुझे जो गुज़ारिश करनी है कर। मैं इनकार नहीं करूँगा।” 21 बतशेबा ने कहा, “तू अपने भाई अदोनियाह को शूनेम की अबीशग दे दे ताकि वह उसे अपनी पत्नी बना सके।” 22 राजा सुलैमान ने अपनी माँ से कहा, “तू अदोनियाह के लिए सिर्फ शूनेम की अबीशग ही क्यों माँग रही है? उसके लिए पूरा राजपाट माँग ले!+ वह मेरा बड़ा भाई जो है+ और याजक अबियातार और सरूयाह का बेटा योआब+ भी उसकी तरफ हैं।”+

23 इसके बाद राजा सुलैमान ने यहोवा की शपथ खाकर कहा, “अदोनियाह को इस गुज़ारिश की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ेगी। अगर मैंने उसे मौत के घाट न उतारा तो परमेश्‍वर मुझे कड़ी-से-कड़ी सज़ा दे। 24 यहोवा के जीवन की शपथ, जिसने अपने वादे के मुताबिक मुझे मेरे पिता दाविद की राजगद्दी पर बिठाया, मेरा राज मज़बूती से कायम किया+ और मेरे लिए एक राज-घराना तैयार किया,+ आज अदोनियाह को मौत के घाट उतारा जाएगा।”+ 25 ऐसा कहने के फौरन बाद राजा सुलैमान ने यहोयादा के बेटे बनायाह+ को भेजा जिसने जाकर अदोनियाह पर वार किया और वह मर गया।

26 और याजक अबियातार+ से राजा ने कहा, “तू अनातोत में अपने खेत लौट जा!+ वैसे तो तू मौत की सज़ा के लायक है, मगर मैं आज तुझे नहीं मार डालूँगा क्योंकि तूने मेरे पिता दाविद के साथ रहते सारे जहान के मालिक यहोवा का संदूक उठाया था+ और तूने मेरे पिता के दुखों में उसका साथ दिया था।”+ 27 सुलैमान ने अबियातार को याजकपद से हटा दिया ताकि वह अब से याजक के नाते यहोवा की सेवा न करे। इस तरह उसने यहोवा की वह बात पूरी की जो उसने शीलो+ में एली के घराने के खिलाफ सुनायी थी।+

28 जब ये सारी खबर योआब तक पहुँची, तो वह भागकर यहोवा के तंबू+ में गया और उसने वेदी के सींग पकड़ लिए। उसने भले ही अबशालोम का साथ नहीं दिया था,+ मगर उसने अदोनियाह का साथ दिया था।+ 29 राजा सुलैमान को बताया गया कि योआब भागकर यहोवा के तंबू में गया है और वेदी के पास खड़ा है। तब सुलैमान ने यहोयादा के बेटे बनायाह को यह कहकर भेजा, “जा, उसे खत्म कर दे!” 30 बनायाह यहोवा के तंबू में गया और उसने योआब से कहा, “राजा का हुक्म है, ‘तू बाहर आ!’” मगर योआब ने कहा, “नहीं, मैं यहीं मरूँगा।” बनायाह ने वापस आकर राजा को बताया कि योआब ने ऐसा-ऐसा कहा है। 31 राजा ने कहा, “ठीक है। वह जैसा कहता है वैसा ही कर। उसे वहीं मार डाल और उसकी लाश ले जाकर दफना दे। उसने बेगुनाहों का खून बहाकर मुझ पर और मेरे पिता के घराने पर जो दोष लगाया है उसे दूर कर।+ 32 यहोवा उसके खून का दोष उसी के सिर डाले क्योंकि उसने इसराएल के सेनापति अब्नेर+ को और यहूदा के सेनापति अमासा+ को मार डाला और मेरे पिता को इस बारे में कोई खबर नहीं थी। नेर का बेटा अब्नेर और येतेर का बेटा अमासा, दोनों उससे ज़्यादा नेक और भले आदमी थे, उसने उन दोनों को तलवार से मार डाला।+ 33 उन दोनों के खून के लिए योआब और उसके वंशज सदा दोषी रहेंगे।+ मगर दाविद और उसके वंशजों को, उसके घराने और उसके राज को सदा तक यहोवा की तरफ से शांति मिले।” 34 इसके बाद यहोयादा के बेटे बनायाह ने जाकर योआब को मार डाला और उसकी लाश वीराने में उसके घर के पास दफना दी। 35 फिर राजा ने यहोयादा के बेटे बनायाह+ को योआब की जगह सेनापति ठहराया और सादोक+ को अबियातार की जगह याजक ठहराया।

36 फिर राजा ने शिमी+ को बुलवाया और उससे कहा, “तू यरूशलेम में अपने लिए एक घर बना और यहीं रह। तू यह शहर छोड़कर कहीं नहीं जा सकता। 37 जिस दिन तू शहर से बाहर निकलेगा और किदरोन घाटी पार करेगा,+ उस दिन तू ज़रूर मार डाला जाएगा। तेरा खून तेरे ही सिर पड़ेगा।” 38 शिमी ने राजा से कहा, “मेरे मालिक राजा, तेरा यह फैसला सही है। तूने जैसा कहा है, तेरा यह दास वैसा ही करेगा।” इसलिए शिमी यरूशलेम में रहने लगा और काफी समय तक वहीं रहा।

39 मगर तीसरे साल के आखिर में शिमी के दासों में से दो आदमी भाग गए और गत के राजा आकीश+ के पास चले गए, जो माका का बेटा था। जैसे ही शिमी को बताया गया, “देख, तेरे दास गत में हैं,” 40 उसने फौरन अपने गधे पर काठी कसी और अपने दासों को ढूँढ़ने आकीश के पास गत गया। जब शिमी अपने दासों को लेकर वापस आया, 41 तो सुलैमान को खबर दी गयी कि शिमी यरूशलेम छोड़कर गत गया था और अब लौट आया है। 42 तब राजा ने शिमी को बुलवाया और उससे कहा, “क्या मैंने तुझे यहोवा की शपथ नहीं धरायी थी और तुझे खबरदार नहीं किया था कि जिस दिन तू यह शहर छोड़कर कहीं और जाएगा, उस दिन तू ज़रूर मार डाला जाएगा? और क्या तूने नहीं कहा था कि मेरा फैसला सही है और तू मेरी बात मानेगा?+ 43 तो फिर तूने क्यों अपनी बात नहीं रखी जो तूने यहोवा की शपथ खाकर कही थी? और मैंने तुझ पर जो पाबंदी लगायी थी वह तूने क्यों नहीं मानी?” 44 राजा ने शिमी से यह भी कहा, “तू खुद अच्छी तरह जानता है कि तूने मेरे पिता दाविद के साथ कितना बुरा किया था।+ अब यहोवा तुझे उस बुराई का फल देगा।+ 45 मगर राजा सुलैमान को आशीष मिलेगी+ और दाविद का राज यहोवा के सामने हमेशा तक मज़बूती से कायम रहेगा।” 46 यह कहकर राजा ने यहोयादा के बेटे बनायाह को हुक्म दिया कि वह शिमी को मार डाले। बनायाह ने जाकर उसे मार डाला।+

इस तरह इसराएल पर सुलैमान का राज मज़बूती से कायम हो गया।+

3 राजा सुलैमान ने मिस्र के राजा फिरौन से रिश्‍तेदारी की। उसने फिरौन की बेटी से शादी की+ और उसे दाविदपुर+ ले आया। सुलैमान ने उसे तब तक दाविदपुर में रखा जब तक कि उसने अपने लिए एक महल, यहोवा का भवन+ और यरूशलेम की शहरपनाह बनाने का काम पूरा न कर लिया।+ 2 लोग अब भी ऊँची जगहों पर बलिदान चढ़ाया करते थे+ क्योंकि तब तक यहोवा के नाम की महिमा के लिए कोई भवन नहीं बनाया गया था।+ 3 सुलैमान उन विधियों पर चलता रहा जो उसके पिता दाविद ने उसे बतायी थीं और इस तरह यहोवा से प्यार करता रहा। मगर वह ऊँची जगहों पर बलिदान चढ़ाता था ताकि उनका धुआँ उठे।+

4 राजा बलिदान चढ़ाने के लिए गिबोन गया क्योंकि वहाँ की ऊँची जगह बाकी सभी ऊँची जगहों से खास थी।+ सुलैमान ने वहाँ की वेदी पर 1,000 होम-बलियाँ चढ़ायीं।+ 5 गिबोन में रात के वक्‍त सुलैमान को सपने में यहोवा ने दर्शन दिया। उसने सुलैमान से कहा, “तू जो चाहे माँग, मैं तुझे दूँगा।”+ 6 सुलैमान ने कहा, “तूने अपने सेवक, मेरे पिता दाविद से बहुत प्यार* किया क्योंकि वह हमेशा तेरे सामने सच्चाई, नेकी और मन की सीधाई से चलता रहा। तू आज भी उससे बहुत प्यार* करता है, इसीलिए तूने उसे एक बेटा दिया ताकि वह उसकी राजगद्दी पर बैठे।+ 7 हे मेरे परमेश्‍वर यहोवा, अब तूने अपने इस सेवक को मेरे पिता दाविद की जगह राजा बनाया है, इसके बावजूद कि मैं बस एक जवान* हूँ और मुझे कोई तजुरबा नहीं है।*+ 8 और तेरे सेवक को तेरे चुने हुए लोगों+ पर राज करने के लिए ठहराया गया है, जो तादाद में इतने ज़्यादा हैं कि उनकी गिनती भी नहीं ली जा सकती। 9 इतनी बड़ी* प्रजा पर राज करना एक भारी ज़िम्मेदारी है। इसलिए मेहरबानी करके अपने सेवक को ऐसा दिल दे जो हमेशा तेरी आज्ञा माने ताकि मैं तेरे लोगों का न्याय कर सकूँ+ और अच्छे-बुरे में फर्क कर सकूँ।”+

10 सुलैमान की यह गुज़ारिश सुनकर यहोवा बहुत खुश हुआ।+ 11 उसने सुलैमान से कहा, “क्योंकि तूने यह गुज़ारिश की है और अपने लिए न तो लंबी उम्र माँगी, न दौलत और न ही अपने दुश्‍मनों की मौत माँगी है बल्कि तूने मुकदमों की सुनवाई करने के लिए समझ माँगी है,+ 12 इसलिए तूने जो माँगा है वह मैं तुझे दूँगा।+ मैं तुझे बुद्धि और समझ से भरा ऐसा दिल दूँगा+ कि जैसे तेरे समान पहले कोई नहीं था, वैसे ही तेरे बाद भी कोई नहीं होगा।+ 13 इतना ही नहीं, मैं तुझे वह भी दूँगा जिसकी तूने गुज़ारिश नहीं की है।+ मैं तुझे इतनी दौलत और शोहरत दूँगा+ कि तेरे जीवनकाल में तेरी बराबरी का कोई राजा न होगा।+ 14 और अगर तू अपने पिता दाविद की तरह मेरे कायदे-कानून और आज्ञाएँ मानकर मेरी राहों पर चलता रहेगा,+ तो मैं तुझे लंबी उम्र की आशीष भी दूँगा।”*+

15 जब सुलैमान नींद से जाग उठा तो उसे एहसास हुआ कि वह दर्शन देख रहा था। फिर वह यरूशलेम आया और यहोवा के करार के संदूक के सामने खड़ा हुआ। वहाँ उसने होम-बलियाँ और शांति-बलियाँ+ चढ़ायीं और अपने सभी सेवकों के लिए दावत रखी।

16 बाद में एक दिन दो वेश्‍याएँ राजा के सामने हाज़िर हुईं। 17 एक औरत ने कहा, “मालिक, मैं और यह औरत एक ही घर में रहती हैं। मेरा एक बच्चा हुआ था और 18 तीसरे दिन इस औरत का भी एक बच्चा हुआ। उस घर में सिर्फ हम दोनों रहती हैं, हमें छोड़ और कोई नहीं है। 19 रात को इसका बेटा मर गया क्योंकि यह औरत नींद में उसके ऊपर सो गयी थी। 20 इसलिए आधी रात को वह उठी और यह देखकर कि मैं सो रही थी, उसने मेरा बेटा ले लिया और अपने पास* सुला लिया और अपना मरा हुआ बच्चा मेरे पास सुला दिया। 21 सुबह जब मैं अपने बेटे को दूध पिलाने उठी तो मैंने देखा कि वह मरा हुआ है। फिर जब मैंने गौर से देखा तो पाया कि वह मेरा बेटा नहीं है।” 22 मगर तभी दूसरी औरत ने कहा, “नहीं, तू झूठ बोल रही है। ज़िंदा बच्चा मेरा है, मरा हुआ बच्चा तेरा है!” मगर पहली औरत कहने लगी, “नहीं, मरा हुआ बच्चा तेरा है, ज़िंदा मेरा है!” इस तरह वे दोनों राजा के सामने झगड़ने लगीं।

23 आखिरकार राजा ने कहा, “यह औरत कहती है, ‘ज़िंदा बच्चा मेरा है, मरा बच्चा तेरा है’ और वह औरत कहती है, ‘नहीं, मरा बच्चा तेरा है, ज़िंदा बच्चा मेरा है।’” 24 राजा ने कहा, “एक तलवार लाओ।” राजा के सेवक एक तलवार ले आए। 25 राजा ने कहा, “इस ज़िंदा बच्चे के दो टुकड़े कर दो और दोनों औरतों को आधा-आधा दे दो।” 26 यह सुनते ही बच्चे की असली माँ राजा से गिड़गिड़ाकर बिनती करने लगी कि वह बच्चे को न मारे, क्योंकि अपने बेटे के लिए उसकी ममता उमड़ पड़ी। उसने राजा से कहा, “नहीं मालिक, ऐसा मत कर! चाहे तो बच्चा इस औरत को दे दे, मगर बच्चे को किसी भी हाल में मत मार!” मगर दूसरी औरत कहने लगी, “नहीं, यह बच्चा न मेरा होगा न तेरा! हो जाने दे इसके दो टुकड़े!” 27 तब राजा ने कहा, “बच्चे को मत मारो, इसे पहली औरत को दे दो! वही इसकी माँ है।”

28 राजा ने जो फैसला सुनाया, उसकी खबर पूरे इसराएल में फैल गयी। जब लोगों ने देखा कि उसमें परमेश्‍वर की बुद्धि है जिस वजह से उसने ऐसा न्याय किया,+ तो वे राजा का गहरा सम्मान करने* लगे।+

4 राजा सुलैमान पूरे इसराएल पर राज करता था।+ 2 उसके दरबार के बड़े-बड़े अधिकारी* ये थे: सादोक+ का बेटा अजरयाह याजक था, 3 शीशा के बेटे एलीहोरेप और अहियाह राज-सचिव+ थे, अहीलूद का बेटा यहोशापात+ शाही इतिहासकार था, 4 यहोयादा का बेटा बनायाह+ सेना का अधिकारी था, सादोक और अबियातार+ याजक थे, 5 नातान+ का बेटा अजरयाह प्रांतीय प्रशासकों का अधिकारी था, नातान का बेटा जाबूद एक याजक था और राजा का दोस्त+ भी था, 6 अहीशार राजमहल की देखरेख करनेवाला अधिकारी था और अब्दा का बेटा अदोनीराम+ जबरन मज़दूरी करनेवालों+ का अधिकारी था।

7 सुलैमान ने पूरे इसराएल में 12 प्रांतीय प्रशासक ठहराए थे, जो राजा और उसके पूरे घराने के लिए भोजन का इंतज़ाम करते थे। हर प्रशासक साल के एक महीने खाने-पीने की चीज़ें मुहैया कराने के लिए ज़िम्मेदार था।+ 8 प्रांतीय प्रशासक ये थे: हूर का बेटा, जिसके अधिकार में एप्रैम का पहाड़ी प्रदेश था; 9 देकेर का बेटा, जिसके अधिकार में माकस, शालबीम,+ बेत-शेमेश और एलोन-बेत-हानान था; 10 अरुब्बोत में हेसेद का बेटा (जिसके अधिकार में सोकोह और हेपेर का पूरा इलाका था); 11 अबीनादाब का बेटा, जिसके अधिकार में दोर की सभी ढलानें थीं (अबीनादाब के इस बेटे की पत्नी तापत सुलैमान की बेटी थी); 12 अहीलूद का बेटा बाना, जिसके अधिकार में तानाक, मगिद्दो,+ बेत-शआन+ का पूरा इलाका (जो सारतान के पास और यिजरेल के नीचे है) और बेत-शआन से आबेल-महोला तक और वहाँ से योकमाम+ तक का इलाका था; 13 रामोत-गिलाद+ में गेबेर का बेटा (जिसके अधिकार में मनश्‍शे के बेटे याईर के कसबे+ थे जो गिलाद+ में हैं, साथ ही अरगोब का इलाका+ जो बाशान+ में है। अरगोब में शहरपनाहवाले 60 बड़े-बड़े शहर हैं जिनके फाटकों में ताँबे के बेड़े लगे हैं); 14 इद्दो का बेटा अहीनादाब, जिसके अधिकार में महनैम+ था; 15 अहीमास, जिसके अधिकार में नप्ताली का इलाका था (उसकी पत्नी बाशमत भी सुलैमान की बेटी थी); 16 हूशै का बेटा बाना, जिसके अधिकार में आशेर और बालोत का इलाका था; 17 पारूह का बेटा यहोशापात, जिसके अधिकार में इस्साकार का इलाका था; 18 एला का बेटा शिमी,+ जिसके अधिकार में बिन्यामीन का इलाका था;+ 19 ऊरी का बेटा गेबेर, जिसके अधिकार में गिलाद का इलाका था।+ गिलाद पर पहले एमोरियों के राजा सीहोन+ और बाशान के राजा ओग+ का कब्ज़ा था। इसराएल देश के इन सभी प्रांतीय प्रशासकों का भी एक अधिकारी था।

20 यहूदा और इसराएल की आबादी इतनी थी कि वह समुंदर किनारे की बालू के किनकों जितनी थी।+ उन्हें खाने-पीने की कोई कमी नहीं थी और वे खुशहाल ज़िंदगी जीते थे।+

21 सुलैमान महानदी*+ से लेकर पलिश्‍तियों के देश और मिस्र की सरहद तक के सभी राज्यों पर राज करता था। ये राज्य सुलैमान को नज़राना देते थे और ये सब उसके जीवन-भर उसके अधीन रहे।+

22 सुलैमान के महल में हर दिन के भोजन के लिए इतनी चीज़ें लगती थीं: 30 कोर* मैदा, 60 कोर आटा, 23 मोटे किए गए 10 गाय-बैल, चरागाहों में चरनेवाले 20 गाय-बैल और 100 भेड़ें। इनके अलावा कुछ हिरनों, चिकारों, छोटे-छोटे हिरनों और मोटी-मोटी कोयलों का गोश्‍त भी पकाया जाता था। 24 सुलैमान के अधिकार में महानदी* के पश्‍चिम का पूरा इलाका था,+ यानी तिपसह से लेकर गाज़ा+ तक का पूरा इलाका। वहाँ के सभी राजा, सुलैमान के अधीन थे। उसके पूरे राज्य में हर कहीं शांति थी।+ 25 सुलैमान के दिनों में पूरा यहूदा और इसराएल हर खतरे से महफूज़ था। दान से बरशेबा तक हर कोई अपनी अंगूर की बेल और अपने अंजीर के पेड़ तले चैन से रहता था।

26 सुलैमान के रथों के घोड़ों के लिए 4,000* अस्तबल थे और उसके 12,000 घोड़े* थे।+

27 राजा सुलैमान के प्रांतीय प्रशासक उसके लिए और उसकी मेज़ से खानेवाले सभी लोगों के लिए खाना मुहैया कराते थे। हर प्रशासक की ज़िम्मेदारी थी कि उसके लिए जो महीना तय है, उस महीने वह खाना मुहैया कराए और इस बात का ध्यान रखे कि किसी चीज़ की कमी न हो।+ 28 इतना ही नहीं, इन प्रशासकों की यह ज़िम्मेदारी भी थी कि वे घोड़ों और रथ खींचनेवाले घोड़ों के लिए जौ और पुआल मुहैया कराएँ। हर प्रशासक के लिए तय था कि वह कितना जौ और पुआल देगा और उसकी ज़िम्मेदारी थी कि जहाँ जितने जौ और पुआल की ज़रूरत है, वहाँ उतना पहुँचाए।

29 परमेश्‍वर ने सुलैमान को बहुतायत में बुद्धि और पैनी समझ दी और समझ से भरा ऐसा मन दिया जो समुंदर किनारे फैली बालू की तरह विशाल था।+ 30 सुलैमान पूरब के देशों के और मिस्र के सभी ज्ञानियों से कहीं ज़्यादा बुद्धिमान था।+ 31 उसके जैसा बुद्धिमान इंसान कोई न था। वह जेरह के वंशज एतान+ से और माहोल के बेटों यानी हेमान,+ कलकोल+ और दरदा से भी कहीं ज़्यादा बुद्धिमान था। उसकी शोहरत आस-पास के सभी देशों तक फैली थी।+ 32 उसने 3,000 नीतिवचनों की रचना की*+ और उसके 1,005 गीत भी हैं।+ 33 वह तरह-तरह के पेड़ों के बारे में बताया करता था, लबानोन के देवदार से लेकर दीवार पर उगनेवाले मरुआ+ तक के बारे में। वह जानवरों,+ पक्षियों,*+ रेंगनेवाले जीव-जंतुओं*+ और मछलियों के बारे में भी बताया करता था। 34 सभी देशों से लोग सुलैमान की बुद्धि-भरी बातें सुनने के लिए आते थे। यहाँ तक कि दुनिया के कोने-कोने से राजा भी आते थे जिन्होंने उसकी बुद्धि के चर्चे सुने थे।+

5 जब सोर+ के राजा हीराम ने सुना कि सुलैमान का अभिषेक करके उसे उसके पिता की जगह राजा बनाया गया है, तो उसने सुलैमान के पास अपने सेवक भेजे। हीराम हमेशा से दाविद का अच्छा दोस्त रहा था।*+ 2 फिर सुलैमान ने हीराम के पास यह संदेश भेजा:+ 3 “तू अच्छी तरह जानता है कि मेरा पिता दाविद अपने परमेश्‍वर यहोवा के नाम की महिमा के लिए एक भवन नहीं बना पाया, क्योंकि उसे अपने चारों तरफ के दुश्‍मनों से युद्ध करने पड़े। आखिरकार, यहोवा ने उसके सभी दुश्‍मनों को उसके पैरों तले कर दिया।+ 4 मगर अब मेरे परमेश्‍वर यहोवा ने मुझे चारों तरफ के दुश्‍मनों से राहत दी है।+ अब न मेरे खिलाफ कोई सिर उठानेवाला है और न मेरे राज्य में कोई मुसीबत है।+ 5 इसलिए मैं अपने परमेश्‍वर यहोवा के नाम की महिमा के लिए एक भवन बनाना चाहता हूँ, ठीक जैसे यहोवा ने मेरे पिता दाविद से यह वादा किया था, ‘तेरा बेटा जिसे मैं तेरी जगह राजगद्दी पर बिठाऊँगा, वही मेरे नाम की महिमा के लिए एक भवन बनाएगा।’+ 6 इसलिए अब तू अपने लोगों को हुक्म दे कि वे मुझे लबानोन के देवदार काटकर दें।+ मेरे सेवक तेरे सेवकों के साथ मिलकर काम करेंगे। और तू अपने सेवकों के लिए जितनी मज़दूरी तय करेगा मैं उन्हें उतनी मज़दूरी दूँगा। तू अच्छी तरह जानता है कि सीदोनियों की तरह पेड़ काटनेवाला हमारे यहाँ कोई नहीं है।”+

7 हीराम ने जब सुलैमान का संदेश सुना, तो वह बहुत खुश हुआ और उसने कहा, “आज यहोवा की बड़ाई हो क्योंकि उसने दाविद को एक बुद्धिमान बेटा दिया है ताकि वह इतनी बड़ी प्रजा पर राज करे!”+ 8 फिर हीराम ने सुलैमान को यह संदेश भेजा: “मुझे तेरा संदेश मिला है। तू जैसा चाहता है मैं वैसा ही करूँगा। मैं तेरे यहाँ देवदार और सनोवर की लकड़ी+ भेजूँगा। 9 मेरे सेवक लबानोन से पेड़ काटकर समुंदर किनारे ले आएँगे। मैं उनकी शहतीरों के बेड़े बनवाकर समुंदर के रास्ते उस जगह पहुँचा दूँगा जो तू मुझे बताएगा। फिर मैं वहाँ अपने आदमियों से उन्हें खुलवा दूँगा और तू उन्हें वहाँ से उठाकर ले जा सकता है। मेरी इस सेवा के बदले तू मेरे घराने के लिए खाने की वे चीज़ें दिया करना जिनकी मैं गुज़ारिश करता हूँ।”+

10 तब हीराम ने सुलैमान को देवदार और सनोवर की उतनी लकड़ी दी, जितनी सुलैमान ने माँगी थी। 11 और सुलैमान ने हीराम के घराने के लिए 20,000 कोर* गेहूँ और 20 कोर बढ़िया जैतून तेल* दिया। सुलैमान हर साल हीराम को ये चीज़ें दिया करता था।+ 12 यहोवा ने सुलैमान को बुद्धि दी, ठीक जैसे उसने वादा किया था।+ सुलैमान और हीराम के बीच शांति का रिश्‍ता था और उन्होंने आपस में एक संधि की।*

13 राजा सुलैमान ने भवन बनाने के काम के लिए पूरे इसराएल से 30,000 जबरन मज़दूरी करनेवालों को लगाया।+ 14 वह उनमें से दस-दस हज़ार आदमियों को हर महीने बारी-बारी से भेजता था। वे एक महीना लबानोन में काम करते और दो महीने अपने घर पर रहते थे। अदोनीराम+ इन सभी मज़दूरों का अधिकारी था। 15 सुलैमान के यहाँ 70,000 आम मज़दूर* थे और पहाड़ों पर पत्थर काटनेवाले 80,000 मज़दूर थे।+ 16 इनके अलावा, सुलैमान ने 3,300 आदमियों को मज़दूरों की निगरानी का काम सौंपा।+ 17 राजा के हुक्म पर मज़दूरों ने भवन की बुनियाद+ के लिए खदानों पर बड़े-बड़े पत्थर काटे।+ ये पत्थर बहुत कीमती थे।+ 18 इस तरह सुलैमान के राजगीरों, हीराम के राजगीरों और गबाली लोगों+ ने मिलकर पत्थर और लकड़ी काटने का काम किया ताकि उनसे भवन बनाया जा सके।

6 सुलैमान ने इसराएल का राजा बनने के चौथे साल के जिव* महीने+ में (यानी दूसरे महीने में) यहोवा के लिए भवन* बनाने का काम शुरू किया। यह इसराएलियों* के मिस्र से निकलने+ का 480वाँ साल था।+ 2 राजा सुलैमान ने यहोवा के लिए जो भवन बनाया उसकी लंबाई 60 हाथ,* चौड़ाई 20 हाथ और ऊँचाई 30 हाथ थी।+ 3 मंदिर* के पवित्र भाग के सामने जो बरामदा+ था उसकी लंबाई * 20 हाथ थी यानी भवन की चौड़ाई के बराबर। भवन के सामने से अगर बरामदे की चौड़ाई नापी जाए तो वह दस हाथ थी।

4 उसने भवन में ऐसी खिड़कियाँ बनायीं जो अंदर की ओर चौड़ी और बाहर की ओर सँकरी थीं।+ 5 उसने भवन की दीवार से सटी हुई एक इमारत बनायी। उसने यह इमारत भवन की दीवारों के चारों तरफ बनायी, यानी मंदिर* और भीतरी कमरे+ की दीवारों के चारों तरफ। उसने चारों तरफ खाने बनाए।+ 6 इन खानों की निचली मंज़िल के फर्श की चौड़ाई पाँच हाथ, बीचवाली मंज़िल के फर्श की चौड़ाई छ: हाथ और ऊपरी मंज़िल के फर्श की चौड़ाई सात हाथ थी। उसने भवन के चारों तरफ की दीवारों में ताक बनाए, इसलिए भवन की दीवारों में कोई शहतीर नहीं घुसायी गयी।+

7 यह भवन ऐसे पत्थरों से बनाया गया था जो खदानों पर पहले से गढ़कर तैयार किए गए थे।+ इसलिए भवन बनाने की जगह पर हथौड़ी, कुल्हाड़ी या लोहे के किसी औज़ार की आवाज़ नहीं सुनायी दी। 8 खानोंवाली निचली मंज़िल का प्रवेश भवन के दक्षिण की तरफ* था।+ निचली मंज़िल से बीचवाली मंज़िल तक और वहाँ से ऊपरी मंज़िल तक जाने के लिए घुमावदार सीढ़ियाँ थीं। 9 इस तरह सुलैमान भवन बनाने का काम करता गया और उसे पूरा किया।+ फिर उसने भवन की छत में देवदार की शहतीरें लगायीं और देवदार के तख्तों+ से उसे ढक दिया। 10 उसने भवन की दीवार से सटकर जो खाने बनाए+ उनकी ऊँचाई पाँच-पाँच हाथ थी। इन खानों को देवदार की लकड़ियों से भवन के साथ जोड़ा गया था।

11 इसी दौरान यहोवा का यह संदेश सुलैमान के पास पहुँचा: 12 “अगर तू मेरी विधियों पर चलेगा, मेरे न्याय-सिद्धांतों का पालन करेगा और मेरी सभी आज्ञाओं को मानेगा,+ तो मैं अपना वह वादा पूरा करूँगा जो मैंने तेरे बारे में तेरे पिता दाविद से किया था,+ खासकर वह वादा निभाऊँगा जो मैंने इस भवन के बारे में किया था 13 कि मैं इसराएलियों के बीच निवास करूँगा+ और अपनी प्रजा इसराएल को कभी नहीं छोड़ूँगा।”+

14 सुलैमान ने मंदिर बनाने का काम जारी रखा ताकि वह पूरा हो। 15 उसने देवदार के तख्तों से भवन के अंदर की दीवारें बनायीं। उसने दीवारों पर फर्श से लेकर छत की शहतीरों तक देवदार के तख्ते लगाए। भवन के फर्श पर उसने सनोवर के तख्ते लगाए।+ 16 और उसने भवन की पिछली दीवार से 20 हाथ की लंबाई पर, फर्श से लेकर छत की शहतीरों तक देवदार के तख्ते लगाकर एक कमरा बनाया। इस तरह उसने उसके अंदर* भीतरी कमरा+ या परम-पवित्र भाग बनाया।+ 17 भवन का सामनेवाला भाग यानी मंदिर*+ 40 हाथ लंबा था। 18 भवन के अंदर लगाए गए देवदार के तख्तों पर खरबूजों और खिले हुए फूलों की नक्काशी थी।+ पूरे भवन पर देवदार के तख्ते लगाए गए थे जिस वजह से कहीं एक पत्थर भी नज़र नहीं आता था।

19 उसने भवन के बिलकुल अंदर भीतरी कमरा तैयार किया+ ताकि उसमें यहोवा के करार का संदूक रखा जा सके।+ 20 इस भीतरी कमरे की लंबाई 20 हाथ, चौड़ाई 20 हाथ और ऊँचाई 20 हाथ थी।+ उसने इस पूरे कमरे पर शुद्ध सोना मढ़ा। वेदी+ पर उसने देवदार की लकड़ी लगायी। 21 सुलैमान ने भवन के अंदर के पूरे हिस्से पर शुद्ध सोना मढ़ा।+ उसने सोने से मढ़े भीतरी कमरे+ के ठीक बाहर सोने की ज़ंजीरें लगायीं। 22 उसने पूरे भवन को सोने से मढ़ा। उसने भीतरी कमरे के पास रखी वेदी को भी पूरी तरह सोने से मढ़ा।+

23 उसने भीतरी कमरे में चीड़ की लकड़ी* से दो करूब+ बनाए। हर करूब दस हाथ लंबा था।+ 24 एक करूब के दोनों पंख पाँच-पाँच हाथ लंबे थे। इसलिए उसके एक पंख के छोर से लेकर दूसरे पंख के छोर तक की लंबाई दस हाथ थी। 25 दूसरे करूब के दोनों पंखों की कुल लंबाई भी दस हाथ थी। दोनों करूब एक ही माप और एक ही आकार के थे। 26 दोनों करूबों की लंबाई दस-दस हाथ थी। 27 उसने इन दोनों करूबों+ को भीतरी कमरे* में खड़ा किया। करूबों के पंख इस तरह फैले हुए थे कि एक करूब का एक पंख एक तरफ की दीवार को छूता था और दूसरे करूब का एक पंख दूसरी तरफ की दीवार को छूता था। उनके बाकी दोनों पंख कमरे के बीचों-बीच एक-दूसरे को छूते थे। 28 उसने इन करूबों पर सोना मढ़ा।

29 उसने भवन की सभी दीवारों पर यानी भीतरी कमरे और बाहरी कमरे* की दीवारों पर करूबों,+ खजूर के पेड़ों+ और खिले हुए फूलों की नक्काशी की।+ 30 उसने भवन के भीतरी और बाहरी कमरे के फर्श पर सोना मढ़ा। 31 उसने भीतरी कमरे के प्रवेश के लिए दो किवाड़वाला फाटक चीड़ की लकड़ी से बनाया और प्रवेश के दोनों तरफ खंभे और फाटक के बाज़ू और पाँचवाँ हिस्सा* भी बनाया। 32 फाटक के दोनों किवाड़ चीड़ की लकड़ी के बने थे। उसने दोनों किवाड़ों पर करूबों, खजूर के पेड़ों और खिले हुए फूलों की नक्काशी की और उस नक्काशी पर सोना मढ़ा। उसने करूबों और खजूर के पेड़ों पर यह सोना पीट-पीटकर लगाया। 33 उसने मंदिर* के प्रवेश के लिए भी इसी तरह चीड़ की लकड़ी से फाटक के बाज़ू बनाए जो चौथे हिस्से* के थे। 34 उसने फाटक के दोनों किवाड़ सनोवर की लकड़ी के बनाए। हर किवाड़ के दो पल्ले थे जो चूलों पर मुड़कर दोहरे हो जाते थे।+ 35 उसने किवाड़ों पर करूबों, खजूर के पेड़ों और खिले हुए फूलों की नक्काशी की और उस नक्काशी पर सोना मढ़ा।

36 उसने भीतरी आँगन+ के लिए एक दीवार खड़ी की, जो गढ़े हुए पत्थर के तीन रद्दों से और देवदार की शहतीरों की एक कतार से बनी थी।+

37 सुलैमान के राज के चौथे साल के जिव* महीने में यहोवा के भवन की बुनियाद डाली गयी थी+ 38 और 11वें साल के बूल* महीने में (यानी आठवें महीने में) पूरा भवन बनकर तैयार हो गया। मंदिर के लिए जो नमूना दिया गया था, ठीक उसी के मुताबिक उसे बनाया गया और हर बारीकी का ध्यान रखा गया।+ सुलैमान को इसे बनाने में सात साल लगे।

7 सुलैमान ने अपने लिए एक महल बनवाया और उसे पूरा करने में उसे 13 साल लगे।+

2 उसने ‘लबानोन का वन भवन’ बनवाया।+ इस भवन की लंबाई 100 हाथ,* चौड़ाई 50 हाथ और ऊँचाई 30 हाथ थी। यह भवन चार कतारों में खड़े किए देवदार के खंभों पर बनाया गया। इन खंभों के ऊपर देवदार की शहतीरें+ लगायी गयीं। 3 खंभों पर धरनी रखकर जो भवन तैयार किया गया उसके अंदर देवदार के तख्ते लगाए गए। इनकी गिनती कुल मिलाकर 45 थी यानी हर कतार में 15. 4 इस भवन में तीन मंज़िलें थीं और इसमें तीन कतारों में चौखटवाली खिड़कियाँ बनायी गयीं। ये सारी खिड़कियाँ एक-दूसरे के सामने थीं। 5 भवन के सभी दरवाज़ों और उनके बाज़ुओं की चौखटें चौकोर थीं। तीन मंज़िलों में आमने-सामने बनी खिड़कियों की चौखटें भी चौकोर* थीं।

6 उसने एक ‘खंभोंवाला बरामदा’ बनाया जिसकी लंबाई 50 हाथ और चौड़ाई 30 हाथ थी। इसके सामने एक और बरामदा था जिसमें खंभे और एक छज्जा था।

7 उसने एक राजगद्दी भवन+ भी बनाया जहाँ वह न्याय करता था। इसे न्याय भवन+ भी कहा जाता था। इस भवन के अंदर भी फर्श से लेकर छत की शहतीरों तक दीवारों पर देवदार के तख्ते लगाए गए।

8 उसने भवन के पीछे दूसरे आँगन+ में अपने लिए एक महल बनाया। उसकी बनावट भी भवन जैसी थी। सुलैमान ने उस भवन के जैसा एक और महल फिरौन की बेटी के लिए बनाया जिससे उसने शादी की थी।+

9 सभी इमारतें ऐसे कीमती पत्थरों+ से बनायी गयी थीं जिन्हें नाप के मुताबिक गढ़ा गया था और पत्थर के आरों से चारों तरफ से समतल किया गया था। सभी इमारतों की बुनियाद से लेकर दीवार के ऊपरी हिस्से तक के पत्थर, यहाँ तक कि मंदिर के बड़े आँगन+ की दीवार में लगे पत्थर इसी तरह तैयार किए गए थे। 10 इमारतों की बुनियाद में लगाए गए पत्थर बहुत बड़े-बड़े और कीमती थे। कुछ पत्थर आठ हाथ लंबे थे तो कुछ दस हाथ लंबे। 11 इन पत्थरों के ऊपर ऐसे कीमती पत्थर लगाए गए जिन्हें नाप के मुताबिक गढ़ा गया था। साथ ही देवदार की लकड़ी का भी इस्तेमाल किया गया। 12 मंदिर के बड़े आँगन के चारों तरफ जो दीवार थी वह गढ़े हुए पत्थरों के तीन रद्दों और देवदार की शहतीरों की एक कतार से बनी थी, ठीक जैसे यहोवा के भवन और भवन के बरामदे+ के भीतरी आँगन+ के चारों तरफ की दीवार बनी थी।

13 राजा सुलैमान ने अपने आदमियों को सोर भेजकर हीराम+ को बुलवाया। 14 हीराम की माँ नप्ताली गोत्र से थी और एक विधवा थी। हीराम का पिता सोर का रहनेवाला था और ताँबे का काम करता था।+ हीराम को ताँबे* के हर तरह के काम की अच्छी समझ थी और काफी तजुरबा था।+ उसे इस काम में महारत हासिल थी। इसलिए वह राजा सुलैमान के पास आया और उसका सारा काम किया।

15 उसने ताँबे के दो खंभे ढालकर बनाए।+ हर खंभे की ऊँचाई 18 हाथ और गोलाई 12 हाथ थी।*+ 16 उसने दोनों खंभों के ऊपर लगाने के लिए ताँबे के दो कंगूरे ढालकर बनाए। दोनों कंगूरों की ऊँचाई पाँच-पाँच हाथ थी। 17 हर कंगूरे पर जालीदार काम किया गया और उस पर गुंथी हुई ज़ंजीरें सजायी गयीं। दोनों कंगूरों के लिए सात-सात जालियाँ बनायी गयी थीं।+ 18 उसने हर कंगूरे के जालीदार काम पर दो कतारों में अनार बनाए और इस तरह कंगूरे को सजाया। 19 बरामदे के पासवाले खंभों के कंगूरों का आकार सोसन के फूल जैसा था जिनकी ऊँचाई चार हाथ थी। 20 कंगूरों के ये हिस्से दोनों खंभों के ऊपर थे और उनका निचला हिस्सा उभरा हुआ था जिस पर जालीदार काम किया हुआ था। और हर कंगूरे पर चारों तरफ कतारों में जो अनार बनाए गए थे उनकी गिनती 200 थी।+

21 उसने मंदिर* के बरामदे के बाहर ये खंभे खड़े किए।+ उसने एक खंभा दायीं* तरफ खड़ा किया और उसे याकीन* नाम दिया और दूसरा खंभा बायीं* तरफ खड़ा किया और उसे बोअज़* नाम दिया।+ 22 खंभों के ऊपर का आकार सोसन के फूल जैसा था। इस तरह उसने खंभों का काम पूरा किया।

23 इसके बाद उसने ताँबे का बड़ा हौद ढालकर बनाया जिसे ‘सागर’ कहा जाता था।+ यह गोलाकार था और इसके मुँह की चौड़ाई 10 हाथ थी और मुँह के पूरे घेरे की लंबाई 30 हाथ थी।* हौद की ऊँचाई 5 हाथ थी।+ 24 हौद के मुँह के नीचे, चारों तरफ दो कतारों में खरबूजों की बनावट थी।+ एक-एक हाथ की जगह में दस-दस खरबूजे बने थे। खरबूजों को हौद के साथ ही ढाला गया था। 25 यह हौद ताँबे के 12 बैलों पर रखा गया था,+ 3 बैल उत्तर की तरफ मुँह किए हुए थे, 3 पश्‍चिम की तरफ, 3 दक्षिण की तरफ और 3 पूरब की तरफ। सभी बैलों का पिछला भाग अंदर की तरफ था। इन बैलों पर हौद टिकाया गया था। 26 हौद की दीवार की मोटाई चार अंगुल* थी। उसके मुँह की बनावट प्याले के मुँह जैसी थी और यह दिखने में खिले हुए सोसन के फूल जैसा था। इस हौद में 2,000 बत* पानी भरा जाता था।

27 फिर उसने ताँबे की दस हथ-गाड़ियाँ* बनायीं।+ हर गाड़ी की लंबाई चार हाथ, चौड़ाई चार हाथ और ऊँचाई तीन हाथ थी। 28 हथ-गाड़ियों की बनावट इस तरह थी: इनकी दीवारें पट्टियों से बनी थीं और ये पट्टियाँ चौखटों के बीच थीं। 29 चौखटों के बीच पट्टियों पर शेर,+ बैल और करूब+ बने हुए थे। चौखटों पर भी यही बनावट थी। शेरों और बैलों के ऊपर और नीचे लटकती हुई फूल-मालाओं जैसी बनावट थी। 30 हर गाड़ी में ताँबे के चार पहिए और ताँबे की धुरियाँ थीं। गाड़ी के चारों कोनों पर चार पाए थे जिनमें धुरियाँ और पहिए लगे थे। हौदी के नीचे टेक थीं जिन पर फूल-मालाओं जैसी बनावट थी। यह बनावट टेक के साथ ढाली गयी थी। 31 हौदी का मुहाना गाड़ी के ऊपरी सिरे के अंदर था और ऊपर की तरफ एक हाथ उठा हुआ था। गाड़ी का मुहाना गोल था और टेक के साथ मिलकर डेढ़ हाथ ऊँचा था। इस मुहाने पर नक्काशियाँ थीं। उनके चारों तरफ की पट्टियाँ गोल नहीं चौकोर थी। 32 गाड़ी की पट्टीदार दीवारों के नीचे चार पहिए लगे थे और पहियों को अपनी जगह पर बनाए रखने के लिए धुरियों में कीलें लगी थीं। हर पहिए की ऊँचाई डेढ़ हाथ थी। 33 गाड़ी के पहिए रथ के पहिए जैसे थे। पहियों की कीलें, उनके घेरे, तीलियाँ और पहियों की नाभियाँ ढालकर बनायी गयी थीं। 34 हर गाड़ी के चारों कोनों पर चार पाए थे जो गाड़ी के साथ ही ढालकर बनाए गए थे।* 35 गाड़ी के ऊपरी सिरे में एक गोलाकार पट्टी थी जिसकी ऊँचाई आधा हाथ थी। गाड़ी के सिरे पर चौखटें और पट्टियाँ गाड़ी के साथ ही ढाली गयी थीं।* 36 इन चौखटों और पट्टियों पर जगह के हिसाब से करूब, शेर, खजूर के पेड़ और चारों तरफ फूल-मालाओं जैसी बनावट थी।+ 37 उसने दसों हथ-गाड़ियाँ इसी तरीके से बनायीं,+ वे सभी एक ही नमूने पर ढाली गयी थीं।+ सारी गाड़ियाँ एक ही नाप और एक ही आकार की थीं।

38 उसने ताँबे की दस हौदियाँ बनायीं।+ हर हौदी में 40 बत पानी भरा जा सकता था। हर हौदी का माप चार हाथ था।* दस हथ-गाड़ियों में से हर गाड़ी के लिए एक हौदी थी। 39 उसने पाँच हथ-गाड़ियाँ भवन के दायीं तरफ खड़ी कीं और पाँच बायीं तरफ। उसने पानी के बड़े हौद यानी ‘सागर’ को भवन के दायीं तरफ दक्षिण-पूर्व में रखा।+

40 हीराम+ ने बड़े-बड़े बरतन, बेलचे+ और कटोरे+ भी बनाए।

इस तरह उसने यहोवा के भवन के लिए वह सारा काम पूरा किया जो राजा सुलैमान ने उसे दिया था।+ उसने यह सब बनाया: 41 दो खंभे+ और उनके ऊपर दो कटोरानुमा कंगूरे, कंगूरों की सजावट के लिए दो-दो जालीदार काम,+ 42 दोनों जालीदार काम के लिए 400 अनार,+ यानी हर जालीदार काम के लिए दो कतारों में अनार जिससे दोनों खंभों पर कटोरानुमा कंगूरे ढक जाएँ, 43 दस हौदियाँ+ और उन्हें ढोने के लिए दस हथ-गाड़ियाँ,+ 44 पानी का बड़ा हौद+ और उसके नीचे 12 बैल, 45 हंडियाँ, बेलचे, कटोरे और बाकी सारी चीज़ें। हीराम ने राजा सुलैमान के कहे मुताबिक यहोवा के भवन के लिए यह सब झलकाए हुए ताँबे से तैयार किया। 46 राजा ने ये सारी चीज़ें यरदन ज़िले में सुक्कोत और सारतान के बीच मिट्टी के साँचे में ढलवाकर बनवायीं।

47 सुलैमान ने इनमें से किसी भी चीज़ का वज़न नहीं करवाया क्योंकि इनकी तादाद बहुत ज़्यादा थी। इसलिए यह मालूम न हो सका कि कितना ताँबा इस्तेमाल हुआ था।+ 48 सुलैमान ने यहोवा के भवन के लिए ये सारी चीज़ें बनवायीं: सोने की वेदी,+ नज़राने की रोटी रखने के लिए सोने की मेज़,+ 49 शुद्ध सोने की दीवटें,+ पाँच भीतरी कमरे के सामने दायीं तरफ के लिए और पाँच बायीं तरफ के लिए, दीवटों पर सोने की पंखुड़ियाँ,+ सोने के दीए, सोने के चिमटे,+ 50 शुद्ध सोने के बड़े-बड़े कटोरे, बाती बुझाने के लिए कैंचियाँ,+ कटोरियाँ, प्याले+ और आग उठाने के करछे,+ भीतरी कमरे यानी परम-पवित्र भाग के दरवाज़ों+ की चूलों के खाने और मंदिर यानी पवित्र भाग के दरवाज़ों+ की चूलों के खाने। उसने ये सारी चीज़ें सोने की बनवायीं।

51 इस तरह राजा सुलैमान ने यहोवा के भवन के लिए वह सारा काम पूरा किया जो उसे करना था। इसके बाद सुलैमान वह सारी चीज़ें भवन में ले आया जो उसके पिता दाविद ने पवित्र ठहरायी थीं।+ उसने सोना, चाँदी और बाकी सारी चीज़ें यहोवा के भवन के खज़ानों में रख दीं।+

8 तब सुलैमान ने इसराएल के सभी अगुवों को, यानी सभी गोत्रों के मुखियाओं और पिताओं के घरानों के प्रधानों को यरूशलेम बुलवाया+ ताकि वे दाविदपुर यानी सिय्योन+ से यहोवा के करार का संदूक ले आएँ।+ तब वे सभी यरूशलेम में राजा सुलैमान के पास आए। 2 इसराएल के सभी आदमी, एतानीम* नाम के सातवें महीने में त्योहार* के समय राजा सुलैमान के सामने इकट्ठा हुए।+ 3 जब इसराएल के सारे अगुवे आए तो याजकों ने करार का संदूक उठाया।+ 4 याजक और लेवी यहोवा के करार का संदूक, भेंट का तंबू+ और उसमें रखी सारी पवित्र चीज़ें ले आए। 5 राजा सुलैमान और इसराएल की पूरी मंडली, जिसे उसने बुलवाया था, करार के संदूक के सामने हाज़िर थे। इतनी तादाद में भेड़ों और गाय-बैलों की बलि चढ़ायी गयी+ कि उनकी गिनती नहीं की जा सकती थी।

6 फिर याजक यहोवा के करार का संदूक उस जगह ले आए जो उसके लिए बनायी गयी थी।+ वे उसे भवन के भीतरी कमरे यानी परम-पवित्र भाग में ले आए और उसे करूबों के पंखों के नीचे रख दिया।+

7 इस तरह करूबों के पंख उस जगह के ऊपर फैले हुए थे जहाँ संदूक रखा गया था और करूब, संदूक और उसके डंडों पर छाया किए हुए थे।+ 8 संदूक के डंडे+ इतने लंबे थे कि उनके सिरे पवित्र भाग से दिखते थे जो भीतरी कमरे के सामने था। मगर डंडों के सिरे बाहर से नहीं दिखायी देते थे। आज तक ये चीज़ें वहीं रखी हुई हैं। 9 संदूक में पत्थर की दो पटियाओं+ को छोड़ और कुछ नहीं था जो मूसा ने उसके अंदर रखी थीं।+ मूसा ने ये पटियाएँ होरेब में उस वक्‍त रखी थीं जब यहोवा ने इसराएलियों के साथ उनके मिस्र से निकलकर आते वक्‍त एक करार किया था।+

10 जब याजक पवित्र जगह से बाहर निकल आए तो यहोवा का भवन बादल+ से भर गया।+ 11 बादल की वजह से याजक वहाँ खड़े होकर सेवा नहीं कर पाए क्योंकि यहोवा का भवन यहोवा की महिमा से भर गया था।+ 12 उस वक्‍त सुलैमान ने कहा, “यहोवा ने कहा था कि वह घने बादलों में निवास करेगा।+ 13 मैं तेरे लिए एक शानदार भवन, एक मज़बूत भवन बनाने में कामयाब हो गया ताकि तू सदा इसमें निवास करे।”+

14 फिर राजा इसराएल की पूरी मंडली की तरफ मुड़ा जो वहाँ खड़ी थी और लोगों को आशीर्वाद देने लगा।+ 15 उसने कहा, “इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा की तारीफ हो। उसने अपने मुँह से जो वादा किया था उसे आज अपने हाथों से पूरा किया है। उसने मेरे पिता दाविद से कहा था, 16 ‘जिस दिन मैं अपनी प्रजा इसराएल को मिस्र से निकाल लाया था, उस दिन से लेकर अब तक मैंने इसराएल के किसी भी गोत्र के इलाके में कोई शहर नहीं चुना कि वहाँ मेरे नाम की महिमा के लिए कोई भवन बनाया जाए।+ मगर मैंने दाविद को अपनी प्रजा इसराएल पर राज करने के लिए चुना है।’ 17 मेरे पिता दाविद की दिली तमन्‍ना थी कि वह इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा के नाम की महिमा के लिए एक भवन बनाए।+ 18 मगर यहोवा ने मेरे पिता दाविद से कहा, ‘यह अच्छी बात है कि तू मेरे नाम की महिमा के लिए एक भवन बनाने की दिली तमन्‍ना रखता है। 19 पर तू मेरे लिए भवन नहीं बनाएगा बल्कि तेरा अपना बेटा, जो तुझसे पैदा होगा, वह मेरे नाम की महिमा के लिए एक भवन बनाएगा।’+ 20 यहोवा ने अपना यह वादा पूरा किया है क्योंकि मैं अपने पिता दाविद के बाद राजा बना हूँ और इसराएल की राजगद्दी पर बैठा हूँ, ठीक जैसे यहोवा ने वादा किया था। और मैंने इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा के नाम की महिमा के लिए भवन भी बनाया है।+ 21 इस भवन में मैंने उस संदूक के लिए जगह तैयार की है जिसमें करार की पटियाएँ हैं।+ यहोवा ने यह करार हमारे पुरखों के साथ उस समय किया था जब वह उन्हें मिस्र से निकालकर ला रहा था।”

22 फिर सुलैमान इसराएल की पूरी मंडली के देखते यहोवा की वेदी के सामने खड़ा हुआ और उसने आसमान की तरफ अपने हाथ फैलाकर यह प्रार्थना की:+ 23 “हे इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा, तेरे जैसा परमेश्‍वर कोई नहीं,+ न ऊपर आसमान में न नीचे धरती पर। तू हमेशा अपना करार पूरा करता है और अपने उन सेवकों से प्यार* करता है+ जो तेरे सामने पूरे दिल से सही राह पर चलते हैं।+ 24 तूने अपना वह वादा पूरा किया है जो तूने अपने सेवक, मेरे पिता दाविद से किया था। तूने खुद अपने मुँह से यह वादा किया था और आज उसे अपने हाथों से पूरा भी किया।+ 25 अब हे इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा, तू अपना यह वादा भी पूरा करना जो तूने अपने सेवक, मेरे पिता दाविद से किया था: ‘अगर तेरे बेटे तेरी तरह मेरे सामने सही राह पर चलते रहेंगे और इस तरह अपने चालचलन पर ध्यान देंगे, तो ऐसा कभी नहीं होगा कि मेरे सामने इसराएल की राजगद्दी पर बैठने के लिए तेरे वंश का कोई आदमी न हो।’+ 26 हे इसराएल के परमेश्‍वर, मेहरबानी करके तू अपना यह वादा पूरा करना जो तूने अपने सेवक, मेरे पिता दाविद से किया था।

27 लेकिन क्या परमेश्‍वर वाकई धरती पर निवास करेगा?+ देख, तू तो आकाश में, हाँ, विशाल आकाश में भी नहीं समा सकता।+ फिर यह भवन क्या है जो मैंने बनाया है, कुछ भी नहीं!+ 28 हे मेरे परमेश्‍वर यहोवा, आज तेरा यह सेवक तेरे सामने जो प्रार्थना कर रहा है उस पर ध्यान दे, उसकी कृपा की बिनती सुन। तू उसकी मदद की पुकार सुन और उसकी प्रार्थना स्वीकार कर। 29 तूने इस भवन के बारे में कहा था कि इससे तेरा नाम जुड़ा रहेगा,+ इसलिए तेरी आँखें दिन-रात इस भवन पर लगी रहें और जब तेरा सेवक इस भवन की तरफ मुँह करके प्रार्थना करे तो तू उस पर ध्यान देना।+ 30 जब तेरा यह सेवक और तेरी प्रजा इसराएल के लोग इस जगह की तरफ मुँह करके तुझसे कृपा की बिनती करें तो तू उनकी सुनना, अपने निवास-स्थान स्वर्ग से उनकी सुनना।+ तू उनकी फरियाद सुनना और उनके पाप माफ करना।+

31 अगर एक आदमी का संगी-साथी उस पर इलज़ाम लगाए कि तूने मेरे साथ गलत किया है और उसे शपथ धरायी जाती है* और वह आदमी शपथ की वजह से इस भवन में तेरी वेदी के सामने आए,+ 32 तो तू स्वर्ग से सुनकर कार्रवाई करना। तू अपने सेवकों का न्याय करना, उनमें से जो दुष्ट है उसे दोषी* ठहराना और उसे उसके किए की सज़ा देना और जो नेक है उसे बेकसूर* ठहराना और उसकी नेकी के मुताबिक उसे फल देना।+

33 अगर तेरी प्रजा इसराएल तेरे खिलाफ पाप करते रहने की वजह से दुश्‍मन से युद्ध हार जाए+ और वह बाद में तेरे पास लौट आए, तेरे नाम की महिमा करे+ और इस भवन में आकर तुझसे प्रार्थना करे और रहम की भीख माँगे,+ 34 तो तू स्वर्ग से अपनी प्रजा इसराएल के लोगों की बिनती सुनना और उनके पाप माफ करना। तू उन्हें इस देश में लौटा ले आना जो तूने उनके पुरखों को दिया था।+

35 अगर उनके पाप करते रहने की वजह से आकाश के झरोखे बंद हो जाएँ और बारिश न हो+ और तू उन्हें नम्रता का सबक सिखाए* और इस वजह से वे इस जगह की तरफ मुँह करके प्रार्थना करें, तेरे नाम की महिमा करें और पाप की राह से पलटकर लौट आएँ,+ 36 तो तू स्वर्ग से अपनी प्रजा इसराएल की सुनना और अपने सेवकों के पाप माफ करना क्योंकि तू उन्हें सही राह के बारे में सिखाएगा+ जिस पर उन्हें चलना चाहिए और अपने इस देश पर बारिश करेगा+ जिसे तूने अपने लोगों को विरासत में दिया है।

37 अगर देश में अकाल पड़े+ या महामारी फैले या फसलों पर झुलसन, बीमारी,+ दलवाली टिड्डियों या भूखी टिड्डियों का कहर टूटे या कोई दुश्‍मन आकर देश के किसी शहर* को घेर ले या देश में कोई बीमारी फैले या किसी और तरह की मुसीबत आए+ 38 और ऐसे में एक आदमी या तेरी प्रजा इसराएल के सब लोग इस भवन की तरफ हाथ फैलाकर तुझसे कृपा की बिनती करें+ (क्योंकि हर कोई अपने मन की पीड़ा जानता है),+ 39 तो तू अपने निवास-स्थान स्वर्ग से उनकी सुनना,+ उन्हें माफ करना+ और कदम उठाना। तू उनमें से हरेक को उसके कामों के हिसाब से फल देना+ क्योंकि तू हरेक का दिल जानता है (सिर्फ तू ही सही मायनों में जानता है कि हर इंसान का दिल कैसा है)।+ 40 तब वे जब तक इस देश में रहेंगे, जो तूने हमारे पुरखों को दिया था, तेरा डर मानते रहेंगे।

41 अगर कोई परदेसी, जो तेरी प्रजा इसराएल में से नहीं है, तेरे नाम के बारे में सुनकर दूर देश से आता है+ 42 (क्योंकि परदेसी तेरे महान नाम के बारे में सुनेंगे+ और यह भी कि तूने कैसे अपना शक्‍तिशाली हाथ बढ़ाकर बड़े-बड़े काम किए थे) और इस भवन की तरफ मुँह करके प्रार्थना करता है, 43 तो तू अपने निवास-स्थान स्वर्ग से उसकी सुनना+ और उसके लिए वह सब करना जिसकी वह गुज़ारिश करता है ताकि धरती के सब देशों के लोग तेरा नाम जानें और तेरा डर मानें,+ जैसे तेरी इसराएली प्रजा तेरा डर मानती है और वे जानें कि यह भवन जो मैंने बनाया है, इससे तेरा नाम जुड़ा है।

44 जब तू अपने लोगों को दुश्‍मन से लड़ने कहीं भेजे+ और वे तेरे चुने हुए शहर की तरफ+ और इस भवन की तरफ मुँह करके, जो मैंने तेरे नाम की महिमा के लिए बनाया है, तुझ यहोवा से प्रार्थना करें,+ 45 तो तू स्वर्ग से उनकी प्रार्थना और उनकी कृपा की बिनती सुनना और उन्हें न्याय दिलाना।

46 अगर वे तेरे खिलाफ पाप करें (क्योंकि ऐसा कोई भी इंसान नहीं जो पाप न करता हो)+ और तू क्रोध से भरकर उन्हें दुश्‍मनों के हवाले कर दे और दुश्‍मन उन्हें बंदी बनाकर अपने देश ले जाएँ, फिर चाहे वह पास का देश हो या दूर का+ 47 और वहाँ जाने के बाद जब उन्हें अपनी गलती का एहसास हो+ और वे बँधुआई के देश में रहते तेरे पास लौट आएँ+ और तुझसे रहम की भीख माँगें+ और कहें, ‘हमने पाप किया है, हमने गुनाह किया है, दुष्टता का काम किया है’+ 48 और वे दुश्‍मनों के देश में रहते पूरे दिल और पूरी जान से तेरे पास लौट आएँ+ और अपने इस देश की तरफ मुँह करके तुझसे प्रार्थना करें जो तूने उनके पुरखों को दिया था और तेरे चुने हुए शहर की तरफ और इस भवन की तरफ, जो मैंने तेरे नाम की महिमा के लिए बनाया है, मुँह करके प्रार्थना करें+ 49 तो तू अपने निवास-स्थान स्वर्ग से उनकी प्रार्थना और कृपा की बिनती सुनना+ और उन्हें न्याय दिलाना। 50 तू अपने लोगों के पाप और उनके सारे अपराध माफ कर देना जो उन्होंने तेरे खिलाफ किए होंगे। तू उनके दुश्‍मनों को उन पर दया करने के लिए उभारना और तब दुश्‍मन उन पर दया करेंगे+ 51 (क्योंकि वे तेरे अपने लोग और तेरी विरासत हैं+ जिन्हें तू मिस्र से, लोहा पिघलानेवाले भट्ठे से निकालकर लाया था)।+ 52 जब भी तेरा यह सेवक और तेरी प्रजा इसराएल तुझसे कृपा की बिनती करें तो तू उनकी सुनना,+ वे जब भी तुझे पुकारें* तू उनकी तरफ कान लगाना+ 53 क्योंकि हे सारे जहान के मालिक यहोवा, तूने उन्हें धरती के सभी लोगों से अलग किया और उन्हें अपनी विरासत बनाया,+ ठीक जैसे तूने अपने सेवक मूसा से उस वक्‍त ऐलान करवाया था जब तू हमारे पुरखों को मिस्र से निकालकर ला रहा था।”

54 जब सुलैमान यहोवा से प्रार्थना और कृपा की बिनती कर चुका तो वह यहोवा की वेदी के सामने से उठा, जहाँ वह घुटने टेके और स्वर्ग की तरफ हाथ फैलाए प्रार्थना कर रहा था।+ 55 फिर उसने खड़े होकर बुलंद आवाज़ में इसराएल की पूरी मंडली को यह आशीर्वाद दिया: 56 “यहोवा की बड़ाई हो, जिसने अपने वादे के मुताबिक अपनी प्रजा इसराएल को विश्राम की जगह दी है।+ उसने अपने सेवक मूसा के ज़रिए जितने भी वादे किए थे, वे सब-के-सब पूरे हुए, एक भी वादा बिना पूरा हुए नहीं रहा।+ 57 हमारा परमेश्‍वर यहोवा हमारे साथ रहे, ठीक जैसे वह हमारे पुरखों के साथ रहा था।+ वह हमें कभी न छोड़े न कभी त्यागे।+ 58 वह हमारे दिलों को अपनी तरफ खींचे+ ताकि हम उसकी सभी राहों पर चलें और उसकी आज्ञाओं, उसके कायदे-कानूनों और न्याय-सिद्धांतों का पालन करें जो उसने हमारे पुरखों को दिए थे। 59 अब तक मैंने यहोवा से दया के लिए जो-जो बिनतियाँ कीं, उन्हें हमारा परमेश्‍वर यहोवा दिन-रात याद रखे ताकि वह अपने इस सेवक को और अपनी प्रजा इसराएल को हर दिन उठनेवाले हालात के मुताबिक न्याय दिलाता रहे 60 जिससे धरती के सब देशों के लोग जानें कि यहोवा ही सच्चा परमेश्‍वर है,+ उसके सिवा कोई और परमेश्‍वर नहीं!+ 61 इसलिए जैसे आज तुम्हारा दिल पूरी तरह हमारे परमेश्‍वर यहोवा पर लगा है उसी तरह हमेशा लगा रहे+ और तुम सब उसके कायदे-कानून और उसकी आज्ञाएँ मानते रहना।”

62 फिर राजा और पूरे इसराएल ने यहोवा के सामने बड़ी तादाद में बलिदान चढ़ाए।+ 63 सुलैमान ने यहोवा के लिए 22,000 बैलों और 1,20,000 भेड़ों की शांति-बलियाँ चढ़ायीं।+ इस तरह राजा और पूरे इसराएल ने यहोवा के भवन का उद्‌घाटन किया।+ 64 उस दिन राजा ने यहोवा के भवन के सामनेवाले आँगन के बीच का हिस्सा पवित्र ठहराया क्योंकि वहाँ पर उसे होम-बलियाँ, अनाज के चढ़ावे और शांति-बलियों की चरबी चढ़ानी थी। उसने ये सारे बलिदान वहाँ इसलिए चढ़ाए क्योंकि यहोवा के सामने जो ताँबे की वेदी+ थी, वह इतनी तादाद में होम-बलियाँ, अनाज के चढ़ावे और शांति-बलियों की चरबी+ चढ़ाने के लिए छोटी पड़ जाती। 65 इस मौके पर सुलैमान ने इसराएलियों की एक बड़ी भीड़ के साथ मिलकर हमारे परमेश्‍वर यहोवा के सामने त्योहार मनाया।+ इस भीड़ में लेबो-हमात* से लेकर मिस्र घाटी*+ तक के सारे लोग शामिल थे। सुलैमान ने उन सबके साथ मिलकर 7 दिन त्योहार मनाया। इसके बाद उन्होंने 7 दिन और त्योहार मनाया। कुल मिलाकर 14 दिन तक यह चलता रहा। 66 अगले* दिन राजा ने लोगों को विदा किया और उन्होंने राजा को आशीर्वाद दिया। यहोवा ने अपने सेवक दाविद और अपनी प्रजा इसराएल की खातिर जो भलाई की थी, उससे उनका दिल खुशी से उमड़ रहा था+ और वे सब आनंद मनाते हुए अपने-अपने घर लौटे।

9 जब सुलैमान ने यहोवा का भवन, अपना राजमहल और जो कुछ वह बनाना चाहता था वह सब बनाने का काम पूरा किया,+ तो इसके फौरन बाद 2 यहोवा ने उसे दूसरी बार दर्शन दिया, जैसे उसने गिबोन में उसे दर्शन दिया था।+ 3 यहोवा ने दर्शन में उससे कहा, “तूने मुझसे जो प्रार्थना और कृपा की बिनती की है वह मैंने सुनी है। मैंने इस भवन के साथ, जिसे तूने बनाया है, अपना नाम हमेशा के लिए जोड़ा है और इस तरह इसे पवित्र ठहराया है।+ मेरी आँखें हमेशा इस पर लगी रहेंगी और यह भवन सदा मेरे दिल के करीब रहेगा।+ 4 और अगर तू वह सब करेगा जिसकी मैंने तुझे आज्ञा दी है+ और मेरे नियम और न्याय-सिद्धांत मानेगा और इस तरह अपने पिता दाविद की तरह मेरे सामने सीधाई+ से और निर्दोष मन+ से चलेगा,+ 5 तो मैं इसराएल पर तेरी राजगद्दी हमेशा के लिए कायम रखूँगा, ठीक जैसे मैंने तेरे पिता दाविद से यह वादा किया था, ‘ऐसा कभी नहीं होगा कि इसराएल की राजगद्दी पर बैठने के लिए तेरे वंश का कोई आदमी न हो।’+ 6 लेकिन अगर तू और तेरे वंशज मुझसे मुँह फेरकर मेरे पीछे चलना छोड़ देंगे और मेरी आज्ञाओं और विधियों को मानना छोड़ देंगे जो मैंने तुझे दी हैं और जाकर पराए देवताओं की पूजा करेंगे और उन्हें दंडवत करेंगे,+ 7 तो मैं इसराएल को इस देश में से मिटा दूँगा जो मैंने उसे दिया है+ और इस भवन को, जिसे मैंने अपने नाम की महिमा के लिए पवित्र ठहराया है, अपनी नज़रों से दूर कर दूँगा।+ तब इसराएल सब देशों में मज़ाक* बनकर रह जाएगा, उसकी बरबादी देखकर सब हँसेंगे।+ 8 और यह भवन मलबे का ढेर हो जाएगा।+ इसके पास से गुज़रनेवाला हर कोई इसे फटी आँखों से देखता रह जाएगा और मज़ाक उड़ाते हुए सीटी बजाएगा और कहेगा, ‘यहोवा ने इस देश की और इस भवन की ऐसी हालत क्यों कर दी?’+ 9 फिर वे कहेंगे, ‘वह इसलिए कि उन्होंने अपने परमेश्‍वर यहोवा को छोड़ दिया जो उनके पुरखों को मिस्र से निकाल लाया था और उन्होंने दूसरे देवताओं को अपना लिया और वे उन्हें दंडवत करके उनकी सेवा करने लगे। इसीलिए यहोवा उन पर यह संकट ले आया।’”+

10 सुलैमान को यहोवा का भवन और राजमहल बनाने में पूरे 20 साल लगे।+ इसके बाद 11 राजा सुलैमान ने सोर के राजा हीराम+ को गलील प्रांत के 20 शहर तोहफे में दिए क्योंकि हीराम ने उसे देवदार और सनोवर की लकड़ी दी थी और सुलैमान ने उससे जितना सोना माँगा था उतना उसने दिया था।+ 12 हीराम, सोर से उन शहरों को देखने गया जो सुलैमान ने उसे दिए थे, मगर वे शहर उसे पसंद नहीं आए।* 13 उसने सुलैमान से कहा, “मेरे भाई, ये कैसे शहर दिए हैं तूने?” इसलिए उन शहरों को काबूल देश* कहा गया और आज तक वे इसी नाम से जाने जाते हैं। 14 हीराम ने राजा सुलैमान के लिए 120 तोड़े* सोना भेजा था।+

15 यह उन लोगों के कामों का ब्यौरा है जिन्हें राजा सुलैमान ने जबरन मज़दूरी पर लगाया था।+ उन्होंने यहोवा का भवन,+ सुलैमान का राजमहल, टीला,*+ यरूशलेम की शहरपनाह, साथ ही हासोर,+ मगिद्दो+ और गेजेर शहर+ बनाए। 16 (मिस्र के राजा फिरौन ने आकर गेजेर पर कब्ज़ा कर लिया था और उसे आग से फूँक दिया था। उसने शहर में रहनेवाले कनानियों+ को भी मार डाला था। उसने यह शहर अपनी बेटी यानी सुलैमान की पत्नी को विदाई के वक्‍त तोहफे* में दिया था।)+ 17 सुलैमान ने गेजेर, निचला बेत-होरोन+ और 18 बालात,+ साथ ही तामार शहर बनाया* जो इसराएल देश के वीराने में आता है। 19 इसके अलावा, सुलैमान ने अपने सभी गोदामवाले शहर, रथों के शहर+ और घुड़सवारों के लिए शहर बनाए और यरूशलेम और लबानोन में और अपने राज्य के पूरे इलाके में वह जो-जो बनाना चाहता था वह सब उसने बनाया। 20 एमोरियों, हित्तियों, परिज्जियों, हिव्वियों और यबूसियों में से बचे हुए लोग,+ जो इसराएल की प्रजा नहीं थे+ 21 और जिन्हें इसराएली नाश नहीं कर पाए थे, उनके वंशज इसराएल देश में रहते थे। सुलैमान ने इन लोगों को गुलाम बनाकर जबरन मज़दूरी में लगा दिया और आज तक वे यही काम करते हैं।+ 22 मगर सुलैमान ने किसी भी इसराएली को गुलाम नहीं बनाया।+ वे तो उसके योद्धा, उसके अधिकारी, हाकिम, सहायक सेना-अधिकारी और सारथियों और घुड़सवारों के प्रधान थे। 23 सुलैमान के काम की निगरानी करनेवाले अधिकारियों की गिनती 550 थी। उन्हें कर्मचारियों पर अधिकार दिया गया था।+

24 मगर फिरौन की बेटी+ दाविदपुर+ छोड़कर उस महल में रहने लगी जो सुलैमान ने उसके लिए बनवाया था। फिर सुलैमान ने टीला* बनवाया।+

25 सुलैमान साल में तीन बार+ उस वेदी पर, जो उसने यहोवा के लिए बनायी थी, होम-बलियाँ और शांति-बलियाँ चढ़ाया करता था।+ साथ ही, यहोवा के सामने जो वेदी थी, उस पर भी वह बलिदान चढ़ाता था ताकि धुआँ उठे। इस तरह उसने भवन बनाने का काम पूरा किया।+

26 राजा सुलैमान ने एस्योन-गेबेर+ में जहाज़ों का एक बड़ा लशकर भी बनाया। एस्योन-गेबेर, एदोम देश में लाल सागर के तट पर एलोत के पास है।+ 27 हीराम ने जहाज़ों के लशकर के साथ अपने तजुरबेकार नाविकों को भेजा था+ ताकि वे सुलैमान के सेवकों के साथ मिलकर काम करें। 28 वे ओपीर+ गए और वहाँ से 420 तोड़े सोना राजा सुलैमान के पास ले आए।

10 शीबा की रानी ने सुलैमान की शोहरत के बारे में सुना जो उसे यहोवा के नाम की बदौलत हासिल हुई थी।+ इसलिए वह सुलैमान के पास आयी ताकि बेहद मुश्‍किल और पेचीदा सवालों से* उसे परखे।+ 2 वह एक बहुत बड़ा और शानदार कारवाँ लेकर यरूशलेम पहुँची।+ वह अपने साथ बलसाँ के तेल,+ भारी तादाद में सोने और अनमोल रत्नों से लदे ऊँट लायी। जब वह सुलैमान के पास आयी तो उसके मन में जितने भी सवाल थे, वे सब उसने राजा से पूछे। 3 और सुलैमान ने उसके सभी सवालों के जवाब दिए। ऐसी कोई बात नहीं थी* जिसके बारे में उसे समझाना राजा के लिए मुश्‍किल रहा हो।

4 जब शीबा की रानी ने सुलैमान की लाजवाब बुद्धि,+ उसका बनाया राजमहल,+ 5 मेज़ पर लगा शाही खाना,+ उसके अधिकारियों के बैठने के लिए किया गया इंतज़ाम, खाना परोसनेवालों की सेवाएँ और उनकी खास पोशाक, उसके साकी और वे होम-बलियाँ देखीं जिन्हें वह नियमित तौर पर यहोवा के भवन में चढ़ाया करता था, तो वह ऐसी दंग रह गयी कि उसकी साँस ऊपर-की-ऊपर और नीचे-की-नीचे रह गयी। 6 उसने राजा से कहा, “मैंने अपने देश में तेरी कामयाबियों* के बारे में और तेरी बुद्धि के बारे में जो चर्चे सुने थे, वे बिलकुल सही थे। 7 लेकिन मैंने तब तक यकीन नहीं किया जब तक मैंने यहाँ आकर खुद अपनी आँखों से नहीं देखा। अब मुझे लगता है कि मुझे इसका आधा भी नहीं बताया गया था। तेरी बुद्धि और तेरा ऐश्‍वर्य उससे कहीं ज़्यादा है जो मैंने तेरे बारे में सुना था। 8 तेरे इन आदमियों और सेवकों को कितना बड़ा सम्मान मिला है कि वे हर समय तेरे सामने रहकर तेरे मुँह से बुद्धि की बातें सुनते हैं!+ 9 तेरे परमेश्‍वर यहोवा की बड़ाई हो,+ जिसने तुझसे खुश होकर तुझे इसराएल की राजगद्दी पर बिठाया। यहोवा इसराएल से सदा प्यार करता है, इसीलिए उसने तुझे राजा ठहराया ताकि तू न्याय और नेकी करे।”

10 इसके बाद शीबा की रानी ने राजा को 120 तोड़े* सोना, बहुत सारा बलसाँ का तेल+ और अनमोल रत्न तोहफे में दिए।+ उसने सुलैमान को जितना बलसाँ का तेल दिया था उतना फिर कभी किसी ने नहीं दिया।

11 हीराम के जहाज़ों का जो लशकर ओपीर से सोना लाया करता था,+ वही लशकर वहाँ से अनमोल रत्न और बड़ी तादाद में लाल-चंदन की लकड़ी भी लाता था।+ 12 राजा सुलैमान ने लाल-चंदन की लकड़ी से यहोवा के भवन के लिए और राजमहल के लिए टेक बनायी, साथ ही उस लकड़ी से गायकों के लिए सुरमंडल और तारोंवाले दूसरे बाजे बनाए।+ तब से लेकर आज तक इतनी सारी लाल-चंदन की लकड़ी न तो कभी लायी गयी और न देखी गयी।

13 राजा सुलैमान ने भी उदारता से शीबा की रानी को तोहफे में बहुत कुछ दिया। इसके अलावा, रानी ने उससे जो कुछ माँगा वह सब उसने दिया। इसके बाद रानी अपने सेवकों के साथ अपने देश लौट गयी।+

14 सुलैमान को हर साल करीब 666 तोड़े सोना मिलता था।+ 15 इसके अलावा उसे सौदागरों, लेन-देन करनेवाले व्यापारियों और अरब के सब राजाओं और देश के राज्यपालों से कर भी मिलता था।

16 राजा सुलैमान ने मिश्रित सोने की 200 बड़ी-बड़ी ढालें+ (हर ढाल में 600 शेकेल* सोना लगा था)+ 17 और 300 छोटी-छोटी ढालें* बनायीं (हर छोटी ढाल में तीन मीना* सोना लगा था)। राजा ने ये ढालें ‘लबानोन के वन भवन’+ में रखीं।

18 राजा ने हाथी-दाँत की एक बड़ी राजगद्दी भी बनायी+ और उस पर ताया हुआ सोना मढ़ा।+ 19 राजगद्दी तक जाने के लिए छ: सीढ़ियाँ थीं और राजगद्दी के ऊपर एक छत्र बना था। राजगद्दी के दोनों तरफ हाथ रखने के लिए टेक बनी थी और दोनों तरफ टेक के पास एक-एक शेर खड़ा हुआ बना था।+ 20 राजगद्दी तक जानेवाली छ: सीढ़ियों में से हर सीढ़ी के दोनों तरफ भी एक-एक शेर खड़ा हुआ बना था यानी कुल मिलाकर 12 शेर थे। ऐसी राजगद्दी किसी और राज्य में नहीं थी।

21 राजा सुलैमान के सभी प्याले सोने के थे और ‘लबानोन के वन भवन’+ के सारे बरतन भी शुद्ध सोने के थे। एक भी चीज़ चाँदी की नहीं थी क्योंकि सुलैमान के दिनों में चाँदी का कोई मोल नहीं था।+ 22 राजा के पास तरशीश के जहाज़ों का एक बड़ा लशकर था+ जो हीराम के लशकर के साथ सफर पर जाया करता था। हर तीन साल में एक बार तरशीश के जहाज़ों का लशकर सोना, चाँदी, हाथी-दाँत,+ बंदर और मोर लाता था।

23 राजा सुलैमान इतना बुद्धिमान था और उसके पास दौलत का ऐसा अंबार था कि दुनिया का कोई भी राजा उसकी बराबरी नहीं कर सकता था।+ 24 परमेश्‍वर ने उसे बहुत बुद्धि दी थी+ और उसकी बुद्धि की बातें सुनने धरती के कोने-कोने से लोग उसके पास आया करते थे।* 25 जब भी कोई सुलैमान के पास आता तो वह तोहफे में राजा को सोने-चाँदी की चीज़ें, कपड़े, हथियार, बलसाँ का तेल, घोड़े और खच्चर देता था। ऐसा साल-दर-साल चलता रहा।

26 सुलैमान ज़्यादा-से-ज़्यादा रथ और घोड़े* इकट्ठे करता गया। उसके पास 1,400 रथ और 12,000 घोड़े* जमा हो गए।+ उसने इन्हें रथों के शहरों में और यरूशलेम में अपने पास रखा था।+

27 राजा ने यरूशलेम में इतनी तादाद में चाँदी इकट्ठी की कि वह पत्थर जितनी आम हो गयी थी और उसने देवदार की इतनी सारी लकड़ी इकट्ठी की कि उसकी तादाद शफेलाह के गूलर पेड़ों जितनी हो गयी थी।+

28 सुलैमान के घोड़े मिस्र से मँगाए गए थे। राजा के व्यापारियों का दल ठहराए हुए दाम पर घोड़ों के झुंड-के-झुंड खरीदकर लाता था।*+ 29 मिस्र से मँगाए गए हर रथ की कीमत चाँदी के 600 टुकड़े थी और हर घोड़े की कीमत चाँदी के 150 टुकड़े थी। फिर ये व्यापारी रथ और घोड़े हित्तियों+ के सभी राजाओं और सीरिया के सभी राजाओं को बेचते थे।

11 मगर राजा सुलैमान ने फिरौन की बेटी के अलावा+ दूसरे देशों की बहुत-सी औरतों से प्यार किया।+ उसने मोआबी,+ अम्मोनी,+ एदोमी, सीदोनी+ और हित्ती+ औरतों से प्यार किया। 2 ये औरतें उन्हीं देशों से थीं जिनके बारे में यहोवा ने इसराएलियों से कहा था, “तुम उनके बीच न जाना* और वे तुम्हारे बीच न आएँ क्योंकि वे ज़रूर तुम्हारे दिलों को अपने देवताओं की तरफ बहका देंगे।”+ फिर भी सुलैमान ने उनसे गहरा लगाव रखा और उनसे प्यार किया। 3 सुलैमान की 700 पत्नियाँ थीं, जो शाही घराने की थीं और उसकी 300 उप-पत्नियाँ थीं। उसकी पत्नियों ने धीरे-धीरे उसका दिल बहका दिया।* 4 सुलैमान के बुढ़ापे में+ उसकी पत्नियों ने उसके दिल को दूसरे देवताओं की तरफ बहका* दिया।+ उसका दिल अपने परमेश्‍वर यहोवा पर पूरी तरह न लगा रहा। वह अपने पिता दाविद की तरह नहीं बना रहा, जिसका दिल परमेश्‍वर पर पूरी तरह लगा था। 5 सुलैमान ने सीदोनियों की देवी अशतोरेत+ और अम्मोनियों के घिनौने देवता मिलकोम की पूजा की।+ 6 उसने यहोवा की नज़र में बुरे काम किए और पूरे दिल से यहोवा के पीछे नहीं चला जैसे उसका पिता दाविद चलता था।+

7 उन्हीं दिनों सुलैमान ने मोआब के घिनौने देवता कमोश के लिए यरूशलेम के सामनेवाले पहाड़ पर ऊँची जगह बनायी+ और उसने अम्मोनियों के घिनौने देवता मोलेक+ के लिए भी ऊँची जगह बनायी।+ 8 उसने अपनी उन सभी पत्नियों के लिए ऐसा किया, जो दूसरे देशों से थीं और अपने देवताओं के लिए बलिदान चढ़ाती थीं ताकि उनका धुआँ उठे।

9 यहोवा को सुलैमान पर बहुत क्रोध आया क्योंकि उसका दिल इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा से बहककर दूर चला गया था,+ जिसने दो बार उसे दर्शन दिया था+ 10 और उसे साफ चेतावनी दी थी कि वह दूसरे देवताओं के पीछे न जाए।+ मगर उसने यहोवा की आज्ञा नहीं मानी। 11 इसलिए यहोवा ने सुलैमान से कहा, “तूने जो ऐसा काम किया है और मैंने जिस करार को मानने और जिन विधियों पर चलने की आज्ञा दी, उन्हें तूने नहीं माना, इसलिए मैं तुझसे तेरा राज छीन लूँगा और तेरे एक सेवक को दे दूँगा।+ 12 लेकिन तेरे पिता दाविद की खातिर मैं यह काम तेरे जीते-जी नहीं करूँगा। मैं तेरे बेटे के हाथ से राज छीन लूँगा।+ 13 मगर मैं उससे पूरा राज नहीं छीनूँगा।+ मैं अपने सेवक दाविद की खातिर और अपने चुने हुए शहर यरूशलेम की खातिर+ एक गोत्र तेरे बेटे को दूँगा।”+

14 फिर यहोवा ने सुलैमान का एक विरोधी खड़ा किया+ जिसका नाम हदद था। हदद एदोमी था और एदोम के शाही घराने से था।+ 15 जब दाविद ने एदोम को हराया था+ और उसका सेनापति योआब मारे गए लोगों को दफनाने गया था, तब योआब ने एदोम के हर आदमी और लड़के को मार डालने की कोशिश की थी। 16 (योआब और सभी इसराएली सैनिक छ: महीने तक एदोम में रहे जब तक कि उन्होंने वहाँ के हर आदमी और लड़के को मार* न डाला।) 17 मगर हदद अपने पिता के कुछ एदोमी सेवकों के साथ मिस्र की तरफ भाग गया। उस वक्‍त हदद एक छोटा लड़का था। 18 जब वे मिद्यान से निकले थे तो रास्ते में वे पारान गए और वहाँ के कुछ आदमियों को उन्होंने साथ लिया+ और मिस्र पहुँचे। वहाँ वे मिस्र के राजा फिरौन से मिले। फिरौन ने हदद को रहने के लिए एक घर दिया और उसकी खाने-पीने की ज़रूरतें पूरी कीं और उसे ज़मीन भी दी थी। 19 हदद से फिरौन इतना खुश था कि उसने अपनी रानी* तहपनेस की बहन की शादी उससे करायी थी। 20 कुछ समय बाद तहपनेस की बहन ने हदद के बेटे को जन्म दिया, जिसका नाम गनूबत था। तहपनेस ने फिरौन के राजमहल में गनूबत की परवरिश की थी।* इस तरह गनूबत फिरौन के राजमहल में ही उसके बेटों के साथ पला-बढ़ा था।

21 मिस्र में जब हदद को खबर मिली कि दाविद की मौत हो गयी है*+ और उसका सेनापति योआब भी मर गया है,+ तो उसने फिरौन से कहा, “मुझे अपने देश लौट जाने दे।” 22 मगर फिरौन ने उससे कहा, “मेरे यहाँ तुझे किस चीज़ की कमी है, जो तू अपने देश लौट जाना चाहता है?” हदद ने कहा, “कोई कमी नहीं, फिर भी मुझे जाने की इजाज़त दे।”

23 परमेश्‍वर ने सुलैमान का एक और विरोधी खड़ा किया।+ वह एल्यादा का बेटा रजोन था, जो अपने मालिक सोबा के राजा हदद-एजेर+ के यहाँ से भाग गया था। 24 जब दाविद ने सोबा के आदमियों को हराया,*+ तब रजोन ने कुछ आदमी इकट्ठा करके एक लुटेरा-दल बनाया था और वह उस दल का सरदार बन गया था। रजोन और उसके आदमी दमिश्‍क+ जाकर बस गए और वहाँ राज करने लगे थे। 25 रजोन, सुलैमान की सारी ज़िंदगी इसराएल का विरोधी बना रहा। इसराएल पर हदद ने पहले ही जो मुश्‍किलें खड़ी की थीं, उन्हें अब रजोन ने और बढ़ा दीं। सीरिया पर अपने राज के दौरान, रजोन इसराएल से नफरत करता रहा।

26 यारोबाम+ नाम का एक आदमी भी राजा सुलैमान से बगावत करने लगा।+ वह सुलैमान का ही एक सेवक था।+ वह सरेदा का रहनेवाला एप्रैमी था और उसके पिता का नाम नबात था। यारोबाम की माँ सरूआह एक विधवा थी। 27 यारोबाम ने राजा से इस वजह से बगावत की थी: सुलैमान ने टीला* बनाया था+ और अपने पिता के शहर दाविदपुर+ की शहरपनाह की दरार भरी थी। 28 यारोबाम एक काबिल जवान था। जब सुलैमान ने देखा कि वह बहुत मेहनती है, तो उसने उसे यूसुफ के घराने के उन सभी आदमियों की निगरानी करने की ज़िम्मेदारी सौंपी+ जिन्हें जबरन मज़दूरी पर लगाया गया था। 29 उन्हीं दिनों यारोबाम यरूशलेम से बाहर गया था। जब वह रास्ते में था तो शीलो का रहनेवाला भविष्यवक्‍ता अहियाह+ आकर उससे मिला। उस वक्‍त मैदान में उन दोनों के सिवा और कोई न था। अहियाह एक नया बागा पहने हुए था। 30 उसने अपना बागा लिया और उसे फाड़कर उसके 12 टुकड़े कर दिए। 31 फिर उसने यारोबाम से कहा,

“ये दस टुकड़े तेरे लिए हैं क्योंकि इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा ने कहा है, ‘मैं सुलैमान के हाथ से राज छीन लूँगा और उसके दस गोत्र तुझे दे दूँगा।+ 32 मगर मैं अपने सेवक दाविद की खातिर+ और यरूशलेम की खातिर, जिसे मैंने इसराएल के सभी गोत्रों में से चुना है,+ एक गोत्र सुलैमान का ही रहने दूँगा।+ 33 मैं उसका राज इसलिए छीन लूँगा क्योंकि उन्होंने मुझे छोड़ दिया है+ और वे सीदोनियों की देवी अशतोरेत और मोआब के देवता कमोश और अम्मोनियों के देवता मिलकोम को दंडवत कर रहे हैं। वे ऐसे काम नहीं करते जो मेरी नज़र में सही हैं और वे मेरी विधियों और मेरे न्याय-सिद्धांतों का पालन नहीं करते। इस तरह उन्होंने मेरी राहों पर चलना छोड़ दिया है, जैसे सुलैमान का पिता दाविद चलता था। 34 मगर मैं सुलैमान के हाथ से पूरा राज नहीं छीनूँगा। वह जब तक ज़िंदा रहेगा मैं उसे प्रधान बने रहने दूँगा। ऐसा मैं अपने सेवक दाविद की खातिर करूँगा जिसे मैंने चुना था+ क्योंकि वह मेरी आज्ञाएँ और विधियाँ मानता था। 35 मगर मैं सुलैमान के बेटे के हाथ से राज छीन लूँगा और तुझे दस गोत्र दे दूँगा।+ 36 उसके बेटे को मैं एक गोत्र दूँगा ताकि मेरे सेवक दाविद का दीया मेरे सामने यरूशलेम में हमेशा जलता रहे,+ उस शहर में जिसे मैंने इसलिए चुना है कि मेरा नाम उससे जुड़ा रहे। 37 मैं तुझे चुनूँगा और तू इसराएल का राजा बनेगा और मैं तुझे वह सारा इलाका दूँगा जो तू चाहता है। 38 अगर तू वह सब करे जिसकी मैं तुझे आज्ञा दूँगा और मेरे सेवक दाविद की तरह+ मेरी राहों पर चले और मेरी विधियों और आज्ञाओं का पालन करके ऐसा काम करे जो मेरी नज़र में सही है, तो मैं तेरे साथ भी रहूँगा। मैं तेरा राज-घराना सदा के लिए कायम करूँगा, ठीक जैसे मैंने दाविद का राज-घराना कायम किया था+ और मैं इसराएल का राज तुझे दे दूँगा। 39 दाविद की संतान ने जो किया है उसकी वजह से मैं उन्हें नीचा दिखाऊँगा,+ मगर मैं ऐसा सदा तक नहीं करूँगा।’”+

40 इसलिए सुलैमान ने यारोबाम को मार डालने की कोशिश की, मगर यारोबाम मिस्र भाग गया और वहाँ के राजा शीशक+ के पास चला गया।+ वह सुलैमान की मौत तक मिस्र में ही रहा।

41 सुलैमान की ज़िंदगी की बाकी कहानी, उसके सभी कामों का ब्यौरा और उसकी बुद्धि की बातें सुलैमान के इतिहास की किताब में लिखी हैं।+ 42 सुलैमान ने यरूशलेम में रहकर पूरे इसराएल पर 40 साल राज किया। 43 फिर उसकी मौत हो गयी* और उसे उसके पिता दाविद के शहर दाविदपुर में दफनाया गया। उसकी जगह उसका बेटा रहूबियाम+ राजा बना।

12 रहूबियाम शेकेम गया क्योंकि पूरा इसराएल उसे राजा बनाने के लिए शेकेम में इकट्ठा हुआ था।+ 2 जैसे ही इसकी खबर नबात के बेटे यारोबाम को मिली (वह अब भी मिस्र में था क्योंकि वह राजा सुलैमान की वजह से मिस्र भाग गया था और वहीं रह रहा था),+ 3 लोगों ने उसे मिस्र से बुलवाया। इसके बाद, यारोबाम और इसराएल की पूरी मंडली रहूबियाम के पास आयी और कहने लगी, 4 “तेरे पिता ने हमसे कड़ी मज़दूरी करवाकर हम पर भारी बोझ लाद दिया था।+ अगर तू हमारे साथ थोड़ी रिआयत करे और यह भारी बोझ ज़रा हलका कर दे, तो हम तेरी सेवा करेंगे।”

5 रहूबियाम ने उनसे कहा, “तुम लोग अभी जाओ, तीन दिन बाद वापस आना।” तब लोग वहाँ से चले गए।+ 6 इस बीच राजा रहूबियाम ने उन बुज़ुर्गों* से सलाह की जो उसके पिता सुलैमान के सलाहकार हुआ करते थे। उसने उनसे पूछा, “तुम्हारी क्या राय है, इन लोगों को क्या जवाब देना सही रहेगा?” 7 बुज़ुर्गों ने उससे कहा, “आज अगर तू इन लोगों का सेवक बने, उनकी गुज़ारिश पूरी करे और उनसे प्यार से बात करे, तो वे हमेशा तेरे सेवक बने रहेंगे।”

8 मगर रहूबियाम ने बुज़ुर्गों* की सलाह ठुकरा दी और उन जवानों से सलाह-मशविरा किया जो उसके साथ पले-बढ़े थे और अब उसके सेवक थे।+ 9 उसने उनसे पूछा, “तुम क्या सलाह देते हो? मैं इन लोगों को क्या जवाब दूँ जिन्होंने मुझसे कहा है, ‘तेरे पिता ने हम पर जो भारी बोझ लादा था उसे हलका कर दे’?” 10 उसके साथ पले-बढ़े जवानों ने उससे कहा, “जिन लोगों ने तुझसे कहा है, ‘तेरे पिता ने हम पर जो भारी बोझ लादा था उसे हलका कर दे,’ उनसे तू कहना, ‘मेरी छोटी उँगली मेरे पिता की कमर से भी मोटी होगी। 11 मेरे पिता ने तुम पर जो भारी बोझ लादा था मैं उसे और बढ़ा दूँगा। मेरा पिता तुम्हें कोड़ों से पिटवाता था, मगर मैं तुम्हें कीलोंवाले कोड़ों से पिटवाऊँगा।’”

12 तीसरे दिन यारोबाम और सब लोग रहूबियाम के पास आए, ठीक जैसे राजा ने उनसे तीसरे दिन आने को कहा था।+ 13 मगर राजा ने उनके साथ कठोरता से बात की क्योंकि उसने बुज़ुर्गों* की सलाह ठुकरा दी थी। 14 उसने जवानों की सलाह मानकर लोगों से कहा, “मेरे पिता ने तुम पर जो भारी बोझ लादा था, मैं उसे और भी बढ़ा दूँगा। मेरा पिता तुम्हें कोड़ों से पिटवाता था, मगर मैं तुम्हें कीलोंवाले कोड़ों से पिटवाऊँगा।” 15 इस तरह राजा ने लोगों की बात नहीं मानी। इसके पीछे यहोवा का हाथ था।+ यहोवा ने ऐसा इसलिए किया ताकि वह वचन पूरा हो जो उसने शीलो के रहनेवाले अहियाह के ज़रिए नबात के बेटे यारोबाम से कहा था।+

16 जब इसराएल के सभी लोगों ने देखा कि राजा ने उनकी बात नहीं मानी, तो उन्होंने राजा से कहा, “अब दाविद के साथ हमारा क्या साझा? यिशै के बेटे की विरासत उसी के पास रहे। इसराएलियो, तुम सब अपने-अपने देवता के पास लौट जाओ! हे दाविद, अब तू अपने ही घराने की देखभाल करना!” यह कहकर इसराएल के लोग अपने-अपने घर* लौट गए।+ 17 मगर रहूबियाम उन इसराएलियों पर राज करता रहा जो यहूदा के शहरों में रहते थे।+

18 फिर राजा रहूबियाम ने अदोराम+ को इसराएलियों के पास भेजा, जो जबरन मज़दूरी करनेवालों का अधिकारी था। मगर पूरे इसराएल के लोगों ने उसे पत्थरों से मार डाला। राजा रहूबियाम किसी तरह अपने रथ पर सवार होकर यरूशलेम भाग गया।+ 19 तब से लेकर आज तक इसराएली, दाविद के घराने से बगावत करते आ रहे हैं।+

20 इसराएल के सब लोगों को जैसे ही खबर मिली कि यारोबाम वापस आया है, उन्होंने उसे लोगों की मंडली के पास बुलवाया और उसे पूरे इसराएल का राजा बनाया।+ यहूदा गोत्र को छोड़ किसी और ने दाविद के घराने का साथ नहीं दिया।+

21 जब रहूबियाम यरूशलेम पहुँचा तो उसने फौरन यहूदा के पूरे घराने से और बिन्यामीन गोत्र से 1,80,000 तालीम पाए* सैनिकों को इकट्ठा किया ताकि वे इसराएल के घराने से युद्ध करें और पूरा राज सुलैमान के बेटे रहूबियाम के अधिकार में कर दें।+ 22 तब सच्चे परमेश्‍वर का यह संदेश सच्चे परमेश्‍वर के सेवक शमायाह के पास पहुँचा,+ 23 “सुलैमान के बेटे, यहूदा के राजा रहूबियाम से, साथ ही यहूदा के पूरे घराने, बिन्यामीन गोत्र और बाकी सभी लोगों से कहना, 24 ‘यहोवा ने कहा है, “तुम ऊपर जाकर अपने इसराएली भाइयों से युद्ध मत करना। तुम सब अपने-अपने घर लौट जाओ क्योंकि यह सब मैंने ही करवाया है।”’”+ उन्होंने यहोवा की बात मान ली और सब अपने-अपने घर लौट गए, ठीक जैसे यहोवा ने उनसे कहा था।

25 इसके बाद यारोबाम ने शेकेम बनाया*+ जो एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश में था और वहीं रहने लगा। वहाँ से वह पनूएल शहर+ गया और उसे भी बनाया।* 26 यारोबाम ने मन-ही-मन कहा, “कहीं ऐसा न हो कि मेरे राज के लोग फिर से दाविद के घराने से मिल जाएँ।+ 27 अगर वे यहोवा के भवन में बलिदान चढ़ाने के लिए यरूशलेम जाते रहेंगे,+ तो उनका दिल अपने मालिक यहूदा के राजा रहूबियाम की तरफ फिर जाएगा। फिर तो वे मुझे मार डालेंगे और यहूदा के राजा रहूबियाम के पास लौट जाएँगे।” 28 इसलिए राजा ने सलाह-मशविरा करने के बाद दो सोने के बछड़े बनवाए+ और लोगों से कहा, “तुम यरूशलेम जाने की तकलीफ क्यों उठाते हो। हे इसराएलियो देखो, तुम्हारा परमेश्‍वर यही है। यही तुम्हें मिस्र देश से निकाल लाया था।”+ 29 फिर यारोबाम ने एक बछड़ा बेतेल+ में खड़ा करवाया और दूसरा दान+ में। 30 इस वजह से लोगों ने पाप किया+ और वे दान में रखे बछड़े को पूजने के लिए वहाँ तक का लंबा सफर तय करने लगे।

31 यारोबाम ने ऊँची जगहों पर पूजा-घर बनवाए और आम लोगों को याजक ठहरा दिया जो लेवी नहीं थे।+ 32 साथ ही, उसने आठवें महीने के 15वें दिन एक त्योहार शुरू किया, जो यहूदा में मनाए जानेवाले त्योहार जैसा था।+ उसने बेतेल+ में बनायी वेदी पर उन बछड़ों के लिए बलिदान चढ़ाया जो उसने बनाए थे और बेतेल में बनायी ऊँची जगहों पर सेवा करने के लिए याजक ठहराए। 33 उसने बेतेल में जो वेदी बनायी थी, उस पर वह आठवें महीने के 15वें दिन चढ़ावे अर्पित करने लगा। यह महीना उसने खुद चुना था। उसने इसराएल के लोगों के लिए एक त्योहार शुरू किया और वेदी पर चढ़कर चढ़ावा अर्पित किया और बलिदान चढ़ाए ताकि धुआँ उठे।

13 यारोबाम वेदी के पास खड़ा था ताकि बलिदान चढ़ाए जिससे धुआँ उठे।+ उसी समय यहोवा का एक सेवक+ उसकी आज्ञा पाकर यहूदा से बेतेल आया। 2 उसने यहोवा की आज्ञा के मुताबिक वेदी की तरफ मुँह करके ज़ोर से कहा, “हे वेदी! हे वेदी! तेरे लिए यहोवा का यह संदेश है: ‘देख! दाविद के घराने में योशियाह नाम का एक लड़का पैदा होगा।+ वह तुझ पर उन्हीं याजकों की बलि चढ़ा देगा जो ऊँची जगहों पर सेवा करते और तुझ पर बलिदान चढ़ाते हैं ताकि धुआँ उठे। वह तुझ पर इंसानों की हड्डियाँ जलाएगा।’”+ 3 इसके बाद उसने उसी दिन एक निशानी दी। उसने कहा, “इस बात के पूरा होने की यहोवा ने यह निशानी दी है: देखो, इस वेदी के दो टुकड़े हो जाएँगे और इस पर जो राख* है वह बिखर जाएगी।”

4 जैसे ही राजा यारोबाम ने सच्चे परमेश्‍वर के सेवक का संदेश सुना, जो उसने बेतेल की वेदी के खिलाफ सुनाया था, उसने वेदी से अपना हाथ हटा लिया और परमेश्‍वर के सेवक की तरफ हाथ बढ़ाकर कहा, “पकड़ लो उसे!”+ जैसे ही उसने यह कहा, उसका बढ़ाया हुआ हाथ सूख गया* और वह उसे अपनी तरफ खींच न सका।+ 5 तब वेदी के दो टुकड़े हो गए और वेदी की सारी राख बिखर गयी। इस तरह वह निशानी पूरी हुई जो सच्चे परमेश्‍वर यहोवा के सेवक ने उसकी आज्ञा से बतायी थी।

6 राजा ने सच्चे परमेश्‍वर के सेवक से कहा, “मेहरबानी करके अपने परमेश्‍वर यहोवा से मेरे लिए रहम की भीख माँग। मेरे लिए प्रार्थना कर कि मेरा हाथ ठीक हो जाए।”+ तब सच्चे परमेश्‍वर के सेवक ने यहोवा से रहम की भीख माँगी और राजा का हाथ पहले जैसा हो गया। 7 फिर राजा ने सच्चे परमेश्‍वर के सेवक से कहा, “मेरे साथ घर चलकर कुछ खा-पी ले। मैं तुझे एक तोहफा भी देना चाहता हूँ।” 8 मगर सच्चे परमेश्‍वर के सेवक ने राजा से कहा, “अगर तू मुझे अपना आधा महल दे दे, तो भी मैं तेरे साथ नहीं चलूँगा और इस जगह मैं न तो रोटी खाऊँगा न पानी पीऊँगा 9 क्योंकि यहोवा ने मुझे आज्ञा दी है कि तू यहाँ न तो रोटी खाना, न पानी पीना और न उस रास्ते से लौटना जिससे तू आया है।” 10 इसलिए वह दूसरे रास्ते से लौट गया। उसने वह रास्ता नहीं लिया जिससे वह बेतेल आया था।

11 बेतेल में एक बूढ़ा भविष्यवक्‍ता रहता था। उसके बेटों ने घर आकर उसे बताया कि उस दिन बेतेल में सच्चे परमेश्‍वर के सेवक ने क्या-क्या किया और राजा से क्या-क्या कहा। यह सब सुनकर 12 पिता ने उनसे पूछा, “वह आदमी किस रास्ते गया है?” उसके बेटों ने बताया कि यहूदा से आया सच्चे परमेश्‍वर का सेवक फलाँ रास्ते गया है। 13 तब उसने अपने बेटों से कहा, “मेरे लिए गधे पर काठी कसो।” उन्होंने गधे पर काठी कसी और वह उस पर सवार होकर निकल पड़ा।

14 वह सच्चे परमेश्‍वर के सेवक को ढूँढ़ता हुआ गया और उसे एक बड़े पेड़ के नीचे बैठा हुआ पाया। बूढ़े भविष्यवक्‍ता ने उससे पूछा, “क्या तू ही सच्चे परमेश्‍वर का वह सेवक है जो यहूदा से आया था?”+ उसने कहा, “हाँ, मैं ही हूँ।” 15 भविष्यवक्‍ता ने उससे कहा, “मेरे साथ मेरे घर चल और कुछ खा-पी ले।” 16 मगर उस सेवक ने कहा, “माफ करना, मैं तेरा न्यौता स्वीकार नहीं कर सकता। मैं तेरे साथ नहीं जा सकता। मैं इस जगह न तो रोटी खा सकता हूँ न पानी पी सकता हूँ 17 क्योंकि यहोवा ने मुझे आज्ञा दी है, ‘तू यहाँ न तो रोटी खाना न पानी पीना और जिस रास्ते से तू आया है उसी रास्ते से वापस न जाना।’” 18 इस पर बूढ़े भविष्यवक्‍ता ने कहा, “मैं भी तेरे जैसा एक भविष्यवक्‍ता हूँ और एक स्वर्गदूत ने मुझे यहोवा का यह संदेश दिया है: ‘जा, उसे वापस ले आ, उसे अपने घर ले जा ताकि वह रोटी खाए और पानी पीए।’” (भविष्यवक्‍ता ने उससे झूठ बोला था।) 19 तब वह सेवक उसके साथ वापस गया ताकि उसके घर रोटी खाए और पानी पीए।

20 जब वे मेज़ पर बैठे हुए थे, तो यहोवा का संदेश उस बूढ़े भविष्यवक्‍ता के पास आया जो उसे वापस लाया था। 21 उस भविष्यवक्‍ता ने यहूदा से आए सच्चे परमेश्‍वर के सेवक से कहा, “तेरे लिए यहोवा का यह संदेश है: ‘तूने यहोवा के आदेश के खिलाफ काम किया है और तेरे परमेश्‍वर यहोवा ने तुझे जो आज्ञा दी थी, उसे तूने नहीं माना। 22 तू उसी जगह रोटी खाने और पानी पीने वापस गया जहाँ तुझे खाने-पीने को मैंने मना किया था। इसलिए तेरी लाश तेरे पुरखों की कब्र में नहीं दफनायी जाएगी।’”+

23 जब सच्चे परमेश्‍वर का सेवक खा-पी चुका, तो बूढ़े भविष्यवक्‍ता ने उस भविष्यवक्‍ता के लिए गधे पर काठी कसी जिसे वह वापस लाया था। 24 फिर भविष्यवक्‍ता गधे पर सवार होकर वहाँ से चल दिया, मगर रास्ते में एक शेर आया और उसे मार डाला।+ उसकी लाश रास्ते पर पड़ी रही और गधा लाश के पास ही खड़ा रहा। शेर भी वहीं पास में खड़ा रहा। 25 वहाँ से आने-जानेवाले लोगों ने देखा कि रास्ते पर लाश पड़ी है और पास में एक शेर खड़ा है। उन्होंने जाकर यह खबर उस शहर में बतायी जहाँ बूढ़ा भविष्यवक्‍ता रहता था।

26 जब उस भविष्यवक्‍ता ने यह खबर सुनी, जो उसे रास्ते से वापस लाया था, तो उसने फौरन कहा, “वह ज़रूर सच्चे परमेश्‍वर के सेवक की लाश होगी। उसने यहोवा के आदेश के खिलाफ काम किया था,+ इसीलिए यहोवा ने उसे शेर के हवाले कर दिया कि वह उसे चीर-फाड़कर मार डाले। यहोवा ने उससे जैसा कहा था, बिलकुल वैसा ही हुआ।”+ 27 फिर बूढ़े भविष्यवक्‍ता ने अपने बेटों से कहा, “मेरे लिए गधे पर काठी कसो।” उन्होंने गधे पर काठी कसी। 28 भविष्यवक्‍ता वहाँ से निकल पड़ा और उसने देखा कि लाश रास्ते पर पड़ी हुई है और उसके पास गधा और शेर खड़ा है। शेर ने न तो लाश खायी थी और न गधे को कुछ किया था। 29 भविष्यवक्‍ता ने सच्चे परमेश्‍वर के सेवक की लाश उठायी और उसे गधे पर लादा। वह उसे अपने शहर ले आया ताकि उसके लिए मातम मनाया जाए और उसे दफनाया जाए। 30 भविष्यवक्‍ता ने वह लाश उस कब्र में दफनायी जो उसने अपने लिए बनवायी थी। वे उसके लिए रोते हुए कहने लगे, “हाय मेरे भाई, तेरे साथ कितना बुरा हुआ!” 31 लाश दफनाने के बाद भविष्यवक्‍ता ने अपने बेटों से कहा, “जब मेरी मौत हो जाए तो मुझे उसी जगह दफनाना जहाँ सच्चे परमेश्‍वर के सेवक को दफनाया गया है। मेरी हड्डियाँ उसकी हड्डियों के पास रखना।+ 32 उसने बेतेल की वेदी के खिलाफ और सामरिया के शहरों की ऊँची जगहों पर बने सभी पूजा-घरों+ के खिलाफ यहोवा का जो वचन सुनाया था, वह ज़रूर पूरा होगा।”+

33 इतना सब होने के बाद भी यारोबाम ने बुराई का रास्ता नहीं छोड़ा। वह ऊँची जगहों पर सेवा करने के लिए आम लोगों में से याजक ठहराता रहा।+ जो कोई याजक बनना चाहता उसे यारोबाम याजकपद सौंपता था।* वह कहता, “उसे याजक बनना है तो बनने दो।”+ 34 यारोबाम के घराने के इस पाप+ की वजह से ही उनका विनाश हुआ और धरती से उनका नामो-निशान मिट गया।+

14 उसी दौरान यारोबाम का बेटा अबियाह बीमार पड़ गया। 2 यारोबाम ने अपनी पत्नी से कहा, “तू शीलो जा। तू अपना भेस बदलकर जा ताकि लोगों को पता न चले कि तू यारोबाम की पत्नी है। देख, शीलो में भविष्यवक्‍ता अहियाह रहता है। उसी ने मेरे बारे में कहा था कि मैं इन लोगों का राजा बनूँगा।+ 3 तू अपने साथ दस रोटियाँ, कुछ टिकियाँ और सुराही-भर शहद ले जा। वह तुझे बताएगा कि हमारे बेटे का क्या होगा।”

4 यारोबाम ने जैसा बताया उसकी पत्नी ने वैसा ही किया। वह शीलो+ गयी और अहियाह के घर पहुँची। ढलती उम्र की वजह से अहियाह की आँखों की रौशनी जा चुकी थी, उसे कुछ दिखायी नहीं देता था।

5 लेकिन यहोवा ने अहियाह को यह बताया था, “यारोबाम का बेटा बीमार है, इसलिए उसकी पत्नी लड़के के बारे में जानने के लिए तेरे पास आ रही है। मैं तुझे बताऊँगा कि तुझे उससे क्या कहना है।* जब वह आएगी तो अपनी पहचान छिपाएगी।”

6 जब यारोबाम की पत्नी दरवाज़े से अंदर आ रही थी तो अहियाह ने उसके कदमों की आहट सुनते ही कहा, “यारोबाम की पत्नी, अंदर आ। तू क्यों अपनी पहचान छिपा रही है? परमेश्‍वर ने मुझसे कहा है कि मैं तेरे लिए एक कड़वा संदेश सुनाऊँ। 7 तू जाकर यारोबाम से कहना, ‘इसराएल का परमेश्‍वर यहोवा कहता है, “मैंने तुझे तेरे लोगों के बीच से चुना था ताकि तुझे अपनी प्रजा इसराएल का अगुवा ठहराऊँ।+ 8 फिर मैंने दाविद के घराने से राज छीनकर तुझे दे दिया।+ मगर तू मेरे सेवक दाविद की तरह नहीं बना, जो मेरी आज्ञाओं का पालन करता रहा और पूरे दिल से मेरी बतायी राह पर चलता रहा। वह सिर्फ ऐसे काम करता था जो मेरी नज़र में सही हैं।+ 9 मगर तूने उन सबसे बढ़कर बुरे काम किए जो तुझसे पहले थे। तूने अपने लिए एक और देवता बना लिया, हाँ, तूने धातु की मूरतें* बनाकर मेरा क्रोध भड़काया।+ तूने मुझे ही अपनी पीठ दिखायी।+ 10 इसलिए मैं यारोबाम के घराने पर कहर ढानेवाला हूँ, मैं उसके हर आदमी और हर लड़के को मार डालूँगा, यहाँ तक कि इसराएल के बेसहारा और कमज़ोर लोगों को भी मिटा दूँगा। मैं उसके घराने का पूरी तरह सफाया कर दूँगा,+ जैसे कोई मल को तब तक साफ करता है जब तक कि वह पूरी तरह साफ न हो जाए! 11 यारोबाम के वंशजों में से जो कोई शहर में मरेगा उसे कुत्ते खा जाएँगे और जो मैदान में मरेगा उसे आकाश के पक्षी खा जाएँगे। ऐसा ज़रूर होगा क्योंकि यह बात यहोवा ने कही है।”’

12 अब तू जा, अपने घर चली जा। जब तू शहर में कदम रखेगी तो तेरा बच्चा मर जाएगा। 13 उसके लिए पूरा इसराएल मातम मनाएगा और उसे दफनाएगा। यारोबाम के परिवार में से सिर्फ उसी को कब्र में दफनाया जाएगा, क्योंकि यारोबाम के परिवार में से सिर्फ उसी में इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा ने कुछ अच्छाई पायी है। 14 यहोवा अपने लिए इसराएल में एक ऐसा राजा खड़ा करेगा जो समय आने पर यारोबाम के घराने को मिटा देगा।+ परमेश्‍वर चाहे तो अभी से ऐसा कर सकता है। 15 यहोवा इसराएल पर ऐसा वार करेगा कि उसकी हालत पानी में झूलते नरकट की तरह हो जाएगी। वह इसराएल को इस बढ़िया देश से उखाड़ फेंकेगा जो उसने उनके पुरखों को दिया था।+ वह उन्हें महानदी* से आगे तक तितर-बितर कर देगा+ क्योंकि उन्होंने पूजा-लाठ*+ बनाकर यहोवा को गुस्सा दिलाया है। 16 यारोबाम ने जो पाप किए हैं और इसराएल से जो पाप करवाया है,+ उस वजह से परमेश्‍वर इसराएल को छोड़ देगा।”

17 तब यारोबाम की पत्नी उठी और अपने रास्ते चल दी। वह तिरसा आयी और जैसे ही उसने घर की दहलीज़ पर कदम रखा उसका लड़का मर गया। 18 उन्होंने उसे दफनाया और पूरे इसराएल ने उसके लिए मातम मनाया। इस तरह यहोवा का वह वचन पूरा हुआ जो उसने अपने सेवक, भविष्यवक्‍ता अहियाह से कहलवाया था।

19 यारोबाम की ज़िंदगी की बाकी कहानी, उसने कैसे युद्ध किया+ और कैसे राज किया, यह सब इसराएल के राजाओं के इतिहास की किताब में लिखा है। 20 यारोबाम ने 22 साल राज किया था। इसके बाद उसकी मौत हो गयी*+ और उसकी जगह उसका बेटा नादाब राजा बना।+

21 उधर यहूदा में सुलैमान का बेटा रहूबियाम राज करता था। जब वह राजा बना तब वह 41 साल का था और उसने 17 साल यरूशलेम में रहकर राज किया, जिसे यहोवा ने इसराएल के सभी गोत्रों में से इसलिए चुना था+ कि उस शहर से उसका नाम जुड़ा रहे।+ रहूबियाम की माँ नामा एक अम्मोनी औरत थी।+ 22 यहूदा के लोगों ने यहोवा की नज़र में बुरे काम किए।+ उन्होंने ऐसे पाप किए कि अपने पुरखों से कहीं ज़्यादा उन्होंने परमेश्‍वर का क्रोध भड़काया।+ 23 वे भी हर ऊँची पहाड़ी पर+ और हर घने पेड़ के नीचे अपने लिए ऊँची जगह, पूजा-स्तंभ और पूजा-लाठ बनाते गए।+ 24 देश में ऐसे आदमी भी थे जिन्हें मंदिरों में इसलिए रखा गया था कि उनके साथ दूसरे आदमी संभोग करें।+ उन्होंने वे सारे घिनौने काम किए जो दूसरी जातियों के लोग करते थे और जिन्हें यहोवा ने इसराएलियों के सामने से निकाल दिया था।

25 रहूबियाम के राज के पाँचवें साल में, मिस्र के राजा शीशक+ ने यरूशलेम पर हमला किया।+ 26 वह यहोवा के भवन का खज़ाना और राजमहल का खज़ाना लूट ले गया।+ वह सबकुछ ले गया, यहाँ तक कि सोने की सारी ढालें भी जो सुलैमान ने बनवायी थीं।+ 27 इसलिए राजा रहूबियाम ने उन ढालों के बदले ताँबे की ढालें बनवायीं और उनकी देखभाल की ज़िम्मेदारी उन पहरेदारों के सरदारों को दी जो राजमहल के प्रवेश पर पहरा देते थे। 28 जब भी राजा यहोवा के भवन में आता तो पहरेदार ये ढालें लेकर चलते और फिर उन्हें वापस पहरेदारों के खाने में रख देते थे।

29 रहूबियाम की ज़िंदगी की बाकी कहानी, उसके सभी कामों का ब्यौरा यहूदा के राजाओं के इतिहास की किताब में लिखा है।+ 30 रहूबियाम और यारोबाम के बीच लगातार युद्ध चलता रहा।+ 31 फिर रहूबियाम की मौत हो गयी* और उसे दाविदपुर में उसके पुरखों की कब्र में दफनाया गया।+ उसकी माँ नामा एक अम्मोनी औरत थी।+ रहूबियाम की जगह उसका बेटा अबीयाम*+ राजा बना।

15 अबीयाम जब यहूदा का राजा बना तब नबात के बेटे यारोबाम के राज का 18वाँ साल चल रहा था।+ 2 अबीयाम ने यरूशलेम में रहकर तीन साल राज किया। उसकी माँ का नाम माका था,+ जो अबीशालोम की नातिन थी। 3 अबीयाम ने सारी ज़िंदगी वही पाप किए जो उससे पहले उसके पिता ने किए थे। अबीयाम का दिल अपने परमेश्‍वर यहोवा पर पूरी तरह नहीं लगा रहा, जैसे उसके पुरखे दाविद का दिल लगा रहा था। 4 फिर भी दाविद के परमेश्‍वर यहोवा ने दाविद की खातिर+ यरूशलेम में उसका दीया जलने दिया।+ परमेश्‍वर ने उसके बेटे को राजा ठहराया और यरूशलेम को बने रहने दिया। 5 यहोवा ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि दाविद ने परमेश्‍वर की नज़र में सही काम किए थे। उसने ज़िंदगी-भर परमेश्‍वर की सभी आज्ञाएँ मानीं, कभी उसके नियमों से नहीं हटा, बस एक बार हित्ती उरियाह के मामले में वह चूक गया था।+ 6 जब तक रहूबियाम ज़िंदा था तब तक उसके और यारोबाम के बीच युद्ध चलता रहा।+

7 अबीयाम की ज़िंदगी की बाकी कहानी, उसके सभी कामों का ब्यौरा यहूदा के राजाओं के इतिहास की किताब में लिखा है।+ अबीयाम और यारोबाम के बीच भी युद्ध चलता रहा।+ 8 फिर अबीयाम की मौत हो गयी* और उसे दाविदपुर में दफनाया गया। अबीयाम की जगह उसका बेटा आसा+ राजा बना।+

9 जब आसा ने यहूदा पर राज करना शुरू किया तब इसराएल में राजा यारोबाम के राज का 20वाँ साल चल रहा था। 10 आसा ने यरूशलेम में 41 साल राज किया। उसकी दादी का नाम माका था,+ जो अबीशालोम की नातिन थी। 11 आसा ने अपने पुरखे दाविद की तरह वही किया जो यहोवा की नज़र में सही था।+ 12 उसने देश से उन आदमियों को निकाल दिया जो मंदिरों में दूसरे आदमियों के साथ संभोग करते थे।+ उसने वे सारी घिनौनी मूरतें* भी हटा दीं जो उसके पुरखों ने बनवायी थीं।+ 13 यहाँ तक कि उसने अपनी दादी माका+ को राजमाता के पद से हटा दिया क्योंकि माका ने पूजा-लाठ* की उपासना के लिए एक अश्‍लील मूरत खड़ी करवायी थी। आसा ने उसकी अश्‍लील मूरत काट डाली+ और उसे किदरोन घाटी में जला दिया।+ 14 मगर ऊँची जगह नहीं मिटायी गयीं।+ फिर भी आसा का दिल सारी ज़िंदगी यहोवा पर पूरी तरह लगा रहा। 15 वह यहोवा के भवन में वह सारा सोना, चाँदी और दूसरी चीज़ें ले आया जो उसने और उसके पिता ने पवित्र ठहरायी थीं।+

16 आसा और इसराएल के राजा बाशा+ के बीच लगातार युद्ध चलता रहा। 17 इसराएल के राजा बाशा ने यहूदा पर हमला बोल दिया। वह रामाह+ को बनाने* लगा ताकि न तो उसके यहाँ से कोई यहूदा के राजा आसा के इलाके में जा सके और न वहाँ से कोई यहाँ आ सके।*+ 18 तब आसा ने यहोवा के भवन के खज़ाने और राजमहल के खज़ाने का बचा हुआ सारा सोना-चाँदी लिया और अपने सेवकों के हाथ सीरिया के राजा+ बेन-हदद के पास भेजा। बेन-हदद, तबरिम्मोन का बेटा और हेज्योन का पोता था और वह दमिश्‍क में रहता था। आसा ने बेन-हदद के पास यह संदेश भेजा: 19 “जैसे तेरे पिता और मेरे पिता के बीच संधि* थी वैसे ही हम दोनों के बीच भी संधि है। देख, मैं तेरे लिए तोहफे में सोना-चाँदी भेज रहा हूँ। तू आकर इसराएल के राजा बाशा के साथ अपनी संधि तोड़ दे। तब वह मेरा इलाका छोड़कर चला जाएगा।” 20 बेन-हदद ने राजा आसा की बात मान ली और अपने सेनापतियों को इसराएल के शहरों पर हमला करने भेजा। उन्होंने जाकर इय्योन,+ दान,+ आबेल-बेत-माका और पूरे किन्‍नेरेत को और नप्ताली के पूरे इलाके को नाश कर दिया। 21 जब इसकी खबर बाशा को मिली तो उसने रामाह को बनाने* का काम फौरन रोक दिया और तिरसा+ में रहने लगा। 22 फिर राजा आसा ने यहूदा के सभी लोगों को बुलवाया, किसी को भी छूट नहीं दी। और वे रामाह से वे सारे पत्थर और शहतीरें उठाकर ले गए जिनसे बाशा, रामाह शहर बना रहा था। उन चीज़ों से राजा आसा ने मिसपा शहर+ और बिन्यामीन के इलाके के गेबा शहर+ बनाए।*

23 आसा की ज़िंदगी की बाकी कहानी, उसके सभी बड़े-बड़े काम, उसने जो-जो शहर बनवाए,* उन सबका ब्यौरा यहूदा के राजाओं के इतिहास की किताब में लिखा है। मगर बुढ़ापे में आसा के पैरों में कुछ बीमारी हो गयी जिससे उसे बहुत तकलीफ सहनी पड़ी।+ 24 फिर आसा की मौत हो गयी* और उसे उसके पुरखे दाविद के शहर दाविदपुर में पुरखों की कब्र में दफनाया गया। उसकी जगह उसका बेटा यहोशापात+ राजा बना।

25 यहूदा के राजा आसा के राज के दूसरे साल, यारोबाम का बेटा नादाब+ इसराएल का राजा बना। उसने इसराएल पर दो साल राज किया। 26 नादाब यहोवा की नज़र में बुरे काम करता रहा। वह अपने पिता के ही नक्शे-कदम पर चला+ और उसने वही पाप किया जो उसके पिता ने किया था और इसराएल से भी करवाया था।+ 27 बाशा ने, जो इस्साकार गोत्र के अहियाह का बेटा था, नादाब के खिलाफ साज़िश की। जब नादाब और पूरा इसराएल पलिश्‍ती शहर गिब्बतोन+ की घेराबंदी किए हुए था, तो उस दौरान बाशा ने नादाब को गिब्बतोन में मार डाला। 28 इस तरह बाशा, नादाब को मारकर खुद राजा बन बैठा। यह घटना यहूदा के राजा आसा के राज के तीसरे साल में हुई थी। 29 बाशा जैसे ही राजा बना उसने यारोबाम के पूरे घराने का सफाया कर दिया, एक को भी ज़िंदा नहीं छोड़ा। इस तरह यहोवा का वह वचन पूरा हुआ जो उसने शीलो के रहनेवाले अपने सेवक अहियाह से कहलवाया था।+ 30 ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि यारोबाम ने पाप किए और इसराएल से पाप करवाए थे और इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा का क्रोध भड़काया था। 31 जहाँ तक नादाब की बात है उसकी ज़िंदगी की बाकी कहानी, उसके सभी कामों का ब्यौरा इसराएल के राजाओं के इतिहास की किताब में लिखा है। 32 आसा और इसराएल के राजा बाशा के बीच लगातार युद्ध चलता रहा।+

33 अहियाह का बेटा बाशा जब पूरे इसराएल का राजा बना तब यहूदा में राजा आसा के राज का तीसरा साल चल रहा था। बाशा ने इसराएल के तिरसा में रहकर 24 साल राज किया।+ 34 मगर वह यहोवा की नज़र में बुरे काम करता रहा।+ वह यारोबाम के नक्शे-कदम पर चला और उसने वही पाप किया जो यारोबाम ने किया था और इसराएल से भी करवाया था।+

16 फिर यहोवा ने हनानी+ के बेटे येहू+ के ज़रिए बाशा को यह सज़ा सुनायी: 2 “मैंने तुझे धूल से उठाया था और अपनी प्रजा इसराएल का अगुवा बनाया था।+ मगर तू यारोबाम के नक्शे-कदम पर चलता रहा और तूने मेरी प्रजा इसराएल से भी पाप करवाया और उन्होंने अपने पापों से मेरा क्रोध भड़काया।+ 3 इसलिए हे बाशा, मैं तेरा और तेरे घराने का पूरी तरह सफाया कर दूँगा। मैं तेरे घराने का वही हश्र करूँगा जो मैंने नबात के बेटे यारोबाम के घराने का किया था।+ 4 तेरे वंशजों में से जो कोई शहर में मरेगा उसे कुत्ते खा जाएँगे और जो मैदान में मरेगा उसे आकाश के पक्षी खा जाएँगे।”

5 बाशा की ज़िंदगी की बाकी कहानी, उसने जो बड़े-बड़े काम किए उनका और उसके बाकी कामों का ब्यौरा इसराएल के राजाओं के इतिहास की किताब में लिखा है। 6 फिर बाशा की मौत हो गयी* और उसे तिरसा में दफनाया गया।+ उसकी जगह उसका बेटा एलाह राजा बना। 7 बाशा ने यहोवा की नज़र में बहुत-से बुरे काम करके उसका क्रोध भड़काया और इस तरह वह यारोबाम के घराने जैसा बन गया था। साथ ही, बाशा ने उसे* मार डाला था। इन दोनों वजहों से यहोवा ने हनानी के बेटे भविष्यवक्‍ता येहू के ज़रिए बाशा और उसके घराने को सज़ा सुनायी।+

8 बाशा का बेटा एलाह जब इसराएल का राजा बना, तब यहूदा में राजा आसा के राज का 26वाँ साल चल रहा था। एलाह ने तिरसा में रहकर दो साल राज किया। 9 उसका एक सेवक था जिमरी जो उसकी आधी रथ-सेना का सेनापति था। उसने एलाह के खिलाफ साज़िश की और जब एलाह तिरसा में अपने राजमहल की देखरेख के अधिकारी अरसा के घर पीकर धुत्त हो गया था, 10 तब जिमरी ने आकर उसे मार डाला+ और उसकी जगह खुद राजा बन गया। जब जिमरी राजा बना तब यहूदा में राजा आसा के राज का 27वाँ साल चल रहा था। 11 जिमरी जैसे ही राजगद्दी पर बैठा, उसने बाशा के पूरे घराने को मार डाला। उसके रिश्‍तेदारों* और दोस्तों में से एक भी आदमी या लड़के को ज़िंदा नहीं छोड़ा। 12 इस तरह जिमरी ने बाशा के पूरे घराने को मिटा दिया और यहोवा का वह वचन पूरा हुआ जो उसने भविष्यवक्‍ता येहू से बाशा के खिलाफ सुनाया था।+ 13 बाशा के घराने का यह अंजाम इसलिए हुआ क्योंकि बाशा और उसके बेटे एलाह ने बहुत-से पाप किए और इसराएलियों से पाप करवाया था। और इसराएलियों ने निकम्मी मूरतों की पूजा करके इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा का क्रोध भड़काया था।+ 14 एलाह की ज़िंदगी की बाकी कहानी, उसके सभी कामों का ब्यौरा इसराएल के राजाओं के इतिहास की किताब में लिखा है।

15 जब यहूदा में राजा आसा के राज का 27वाँ साल चल रहा था, तब तिरसा में जिमरी राजा बना और उसने सात दिन राज किया। उस दौरान सेना की टुकड़ियाँ पलिश्‍तियों के शहर गिब्बतोन+ पर हमला करने के लिए छावनी डाले हुई थीं। 16 कुछ वक्‍त बाद उस छावनी में खबर पहुँची कि जिमरी ने राजा के खिलाफ साज़िश की और उसे मार डाला है। तब पूरे इसराएल ने उसी दिन छावनी में सेनापति ओम्री+ को इसराएल का राजा बना दिया। 17 ओम्री और उसके साथ पूरा इसराएल गिब्बतोन से निकलकर ऊपर गए और उन्होंने तिरसा की घेराबंदी की। 18 जब जिमरी ने देखा कि शहर पर कब्ज़ा कर लिया गया है तो वह राजमहल की मीनार में चला गया और उसने महल में आग लगा दी और उसी में जलकर मर गया।+ 19 जिमरी का यही अंजाम हुआ क्योंकि उसने यारोबाम के नक्शे-कदम पर चलकर यहोवा की नज़र में बुरे काम किए थे और इसराएल से भी पाप करवाया था।+ 20 जिमरी की ज़िंदगी की बाकी कहानी, उसने जो साज़िश रची उसका ब्यौरा इसराएल के राजाओं के इतिहास की किताब में लिखा है।

21 इसी घटना के बाद इसराएल के लोग दो गुटों में बँट गए। एक गुट के लोग गीनत के बेटे तिब्नी की तरफ थे और उसे राजा बनाना चाहते थे और दूसरे गुट के लोग ओम्री की तरफ थे। 22 ओम्री के गुट के लोगों ने गीनत के बेटे तिब्नी के गुट को हरा दिया। तिब्नी की मौत हो गयी और ओम्री राजा बन गया।

23 जब ओम्री इसराएल का राजा बना, तब यहूदा में राजा आसा के राज का 31वाँ साल चल रहा था। ओम्री ने 12 साल राज किया। छ: साल उसने तिरसा से राज किया था। 24 उसने शेमेर से दो तोड़े* चाँदी की कीमत पर सामरिया पहाड़ खरीदा और उस पर एक शहर बनवाया। उसने शहर का नाम, पहाड़ के पुराने मालिक शेमेर के नाम पर सामरिया* रखा।+ 25 ओम्री यहोवा की नज़र में बुरे काम करता रहा और वह उन सभी राजाओं से बदतर निकला जो उससे पहले हुए थे।+ 26 उसने नबात के बेटे यारोबाम के सभी तौर-तरीके अपना लिए और इसराएल से भी पाप करवाया। और इसराएलियों ने निकम्मी मूरतों की पूजा करके इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा का क्रोध भड़काया था।+ 27 ओम्री की ज़िंदगी की बाकी कहानी, उसकी बड़ी-बड़ी कामयाबियों और उसके कामों का ब्यौरा इसराएल के राजाओं के इतिहास की किताब में लिखा है। 28 फिर ओम्री की मौत हो गयी* और उसे सामरिया में दफनाया गया। उसकी जगह उसका बेटा अहाब+ राजा बना।

29 ओम्री का बेटा अहाब जब इसराएल का राजा बना, तब यहूदा में राजा आसा के राज का 38वाँ साल चल रहा था। ओम्री के बेटे अहाब ने सामरिया+ से इसराएल पर 22 साल राज किया। 30 ओम्री का बेटा अहाब यहोवा की नज़र में उन सभी राजाओं से बदतर निकला जो उससे पहले हुए थे।+ 31 उसने भी वही पाप किए जो नबात के बेटे यारोबाम ने किए थे+ और मानो यह काफी न था, उसने सीदोनियों+ के राजा एतबाल की बेटी इज़ेबेल+ से शादी की और वह बाल देवता की सेवा करने और उसके आगे दंडवत करने लगा।+ 32 इतना ही नहीं, उसने सामरिया में बाल देवता का जो मंदिर+ बनवाया था, वहाँ उस देवता के लिए एक वेदी भी खड़ी करवायी। 33 उसने पूजा-लाठ* भी बनवायी।+ अहाब ने इतने पाप किए कि उसने उन सभी राजाओं से बढ़कर यहोवा का क्रोध भड़काया, जो उससे पहले इसराएल में हुए थे।

34 अहाब के दिनों में बेतेल के रहनेवाले हीएल ने यरीहो शहर को दोबारा बनवाया। मगर उसे इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी। जब उसने यरीहो की नींव डाली तो उसका पहलौठा अबीराम मर गया और जब उसने फाटक लगवाए तो उसका सबसे छोटा बेटा सगूब मर गया। इस तरह यहोवा का वह वचन पूरा हुआ जो उसने नून के बेटे यहोशू से कहलवाया था।+

17 गिलाद+ के तिशबे के रहनेवाले एलियाह*+ ने अहाब से कहा, “इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा के जीवन की शपथ, जिसकी मैं सेवा करता हूँ,* अब से आनेवाले सालों में देश में न ओस की बूँदें गिरेंगी, न बारिश होगी! जब तक मैं न कहूँ, तब तक ऐसा ही रहेगा।”+

2 फिर यहोवा का यह संदेश एलियाह के पास पहुँचा: 3 “तू यह जगह छोड़कर पूरब की तरफ चला जा। तू यरदन के पूरब में करीत घाटी में जाकर छिप जा। 4 तू वहाँ नदी का पानी पीना और मैं कौवों को तेरे पास खाना पहुँचाने का हुक्म दूँगा।”+ 5 एलियाह फौरन वहाँ से निकल पड़ा और उसने वही किया जो यहोवा ने उससे कहा था। वह जाकर यरदन के पूरब में करीत घाटी में रहने लगा। 6 कौवे उसके लिए हर दिन, सुबह और शाम रोटी और गोश्‍त लाया करते थे और वह नदी का पानी पीता था।+ 7 मगर कुछ दिन बाद नदी सूख गयी+ क्योंकि देश में बिलकुल बारिश नहीं हुई थी।

8 फिर यहोवा का यह संदेश एलियाह के पास पहुँचा: 9 “अब तू यहाँ से निकलकर सीदोन के सारपत नगर जा और वहाँ रह। वहाँ मैं एक विधवा को हुक्म दूँगा कि वह तुझे खाना दिया करे।”+ 10 तब एलियाह वहाँ से सारपत गया। जब वह नगर के फाटक पर पहुँचा, तो उसने देखा कि एक विधवा लकड़ियाँ बीन रही है। एलियाह ने उसे बुलाकर कहा, “क्या मुझे पीने के लिए थोड़ा पानी मिलेगा?”+ 11 जब वह औरत पानी लेने जा रही थी, तो एलियाह ने उससे कहा, “क्या तू मेरे लिए एक रोटी भी लाएगी?” 12 औरत ने कहा, “तेरे परमेश्‍वर यहोवा के जीवन की शपथ, मेरे पास एक भी रोटी नहीं है। बड़े मटके में बस मुट्ठी-भर आटा और कुप्पी में थोड़ा-सा तेल बचा है।+ मैं यहाँ दो-चार लकड़ियाँ बीनने आयी थी ताकि घर जाकर अपने और अपने बेटे के लिए खाना बना सकूँ, क्योंकि उसके बाद तो हमें भूख से मरना ही है।”

13 एलियाह ने उससे कहा, “तू डर मत, घर जा और जैसा तूने कहा है, वैसा ही कर। मगर तेरे पास जो है, उससे पहले मेरे लिए एक छोटी-सी रोटी बनाकर ला। इसके बाद, अपने और अपने बेटे के लिए कुछ बना लेना 14 क्योंकि इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा ने कहा है, ‘जब तक मैं यहोवा ज़मीन पर पानी न बरसाऊँ, उस दिन तक न तो तेरे बड़े मटके का आटा खत्म होगा, न कुप्पी का तेल।’”+ 15 तब वह अंदर गयी और उसने वही किया जो एलियाह ने उससे कहा था। इसके बाद वह औरत और उसका परिवार और एलियाह बहुत दिनों तक खाते रहे।+ 16 जैसे यहोवा ने एलियाह के ज़रिए वादा किया था, न बड़े मटके का आटा खत्म हुआ, न कुप्पी का तेल।

17 कुछ समय बाद उस औरत का बेटा बीमार पड़ गया जिसके घर एलियाह ठहरा था। उसकी तबियत इतनी खराब हो गयी कि एक दिन उसकी साँस रुक गयी।+ 18 तब उस औरत ने एलियाह से कहा, “हे सच्चे परमेश्‍वर के सेवक, तूने मेरे साथ ऐसा क्यों किया?* क्या तू इसीलिए मेरे घर आया था कि मुझे मेरे पाप याद दिलाए और मेरे बेटे को मार डाले?”+ 19 एलियाह ने औरत से कहा, “अपना बेटा मुझे दे।” उसने औरत के हाथ से उसका बेटा लिया और उसे उठाकर छत पर उस कमरे में ले गया, जहाँ एलियाह रहता था। उसने लड़के को अपने बिस्तर पर लिटा दिया।+ 20 फिर उसने यहोवा को पुकारकर कहा, “हे यहोवा, मेरे परमेश्‍वर,+ तू इस विधवा पर भी क्यों मुसीबत ले आया है, जिसके घर मैं ठहरा हूँ? तूने क्यों इसके बेटे को मार डाला?” 21 तब वह बच्चे के ऊपर लेट गया। उसने ऐसा तीन बार किया और यहोवा से फरियाद की, “हे यहोवा, मेरे परमेश्‍वर, इस बच्चे को दोबारा ज़िंदा कर दे।” 22 यहोवा ने एलियाह की फरियाद सुनी+ और बच्चा ज़िंदा हो गया।+ 23 एलियाह बच्चे को लेकर छत के कमरे से नीचे आया और उसे उसकी माँ को दे दिया। एलियाह ने कहा, “देख, तेरा बेटा ज़िंदा हो गया है!”+ 24 तब औरत ने एलियाह से कहा, “अब मैं जान गयी हूँ कि तू सचमुच परमेश्‍वर का सेवक है+ और यहोवा का जो वचन तेरे मुँह से निकलता है, वह सच होता है।”

18 काफी समय बाद, तीसरे साल+ यहोवा का यह संदेश एलियाह के पास पहुँचा: “जा, अहाब के पास जा। अब मैं देश की ज़मीन पर पानी बरसाऊँगा।”+ 2 तब एलियाह, अहाब के पास गया। उस समय तक सामरिया में अकाल भयंकर रूप ले चुका था।+

3 इस बीच अहाब ने अपने राजमहल की देखरेख के अधिकारी ओबद्याह को बुलवाया। (ओबद्याह यहोवा का बहुत डर मानता था। 4 जब इज़ेबेल+ यहोवा के भविष्यवक्‍ताओं को मरवा रही थी, तब ओबद्याह ने 100 भविष्यवक्‍ताओं को पचास-पचास में बाँटकर दो गुफाओं में छिपा दिया था और वह उनके लिए रोटी और पानी मुहैया कराता रहा।) 5 अहाब ने ओबद्याह से कहा, “देश की सभी घाटियों और पानी के सोतों के पास जा। हो सकता है हमारे घोड़ों और खच्चरों के लिए भरपूर घास मिल जाए, वरना हमारे सभी जानवर मर जाएँगे।” 6 फिर अहाब और ओबद्याह ने देश का दौरा करने के लिए इलाका आपस में बाँट लिया, एक तरफ अहाब गया और दूसरी तरफ ओबद्याह।

7 जब ओबद्याह जा रहा था तो रास्ते में उसकी मुलाकात एलियाह से हुई जो उससे मिलने के लिए वहाँ था। ओबद्याह ने एलियाह को देखते ही पहचान लिया और मुँह के बल गिरकर उससे कहा, “मेरे मालिक एलियाह, क्या तू है?”+ 8 एलियाह ने कहा, “हाँ, मैं हूँ। तू जाकर अपने मालिक को बता कि एलियाह आया है।” 9 मगर ओबद्याह ने कहा, “मैंने ऐसा क्या पाप किया है जो तू अपने इस सेवक को अहाब के हवाले कर रहा है? तू क्यों मुझे मरवाना चाहता है? 10 तेरे परमेश्‍वर यहोवा के जीवन की शपथ, ऐसा एक भी देश या राज्य नहीं जहाँ मेरे मालिक ने तुझे ढूँढ़ने के लिए अपने आदमी न भेजे हों। जब भी किसी देश या राज्य के लोग कहते, ‘वह यहाँ नहीं है’ तो मालिक उनसे शपथ खिलवाता कि उन्होंने तुझे नहीं देखा।+ 11 अब तू मुझसे कह रहा है कि जाकर अपने मालिक को बता कि एलियाह यहाँ है। 12 जब मैं तेरे पास से जाऊँगा तो यहोवा की पवित्र शक्‍ति तुझे यहाँ से किसी ऐसी जगह ले जाएगी+ जिसका मुझे पता नहीं होगा और जब मैं अहाब को तेरी खबर दूँगा और तू उसे नहीं मिलेगा तो वह ज़रूर मुझे मार डालेगा। तेरा सेवक बचपन से यहोवा का डर मानता आया है। 13 मालिक, क्या तुझे नहीं बताया गया कि जब इज़ेबेल यहोवा के भविष्यवक्‍ताओं को मरवा रही थी तो मैंने क्या किया था? मैंने यहोवा के 100 भविष्यवक्‍ताओं को पचास-पचास में बाँटकर गुफाओं में छिपा दिया और उनके लिए रोटी और पानी मुहैया कराता रहा।+ 14 मगर अब तू मुझसे कह रहा है कि जाकर अपने मालिक को बता कि एलियाह यहाँ है। वह ज़रूर मुझे मार डालेगा।” 15 मगर एलियाह ने कहा, “सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा के जीवन की शपथ, जिसकी मैं सेवा करता हूँ,* आज मैं उसके सामने जाऊँगा।”

16 तब ओबद्याह ने अहाब के पास जाकर उसे एलियाह के बारे में बताया और अहाब, एलियाह से मिलने निकल पड़ा।

17 जैसे ही अहाब ने एलियाह को देखा उसने एलियाह से कहा, “इसराएल पर घोर संकट लानेवाले, तू फिर आ गया?”

18 एलियाह ने कहा, “इसराएल पर संकट लानेवाला मैं नहीं, तू और तेरे पिता का घराना है। तुम लोगों ने यहोवा के नियमों पर चलना छोड़ दिया और बाल देवताओं को मानने लगे हो।+ 19 अब तू पूरे इसराएल को आदेश दे कि वह करमेल पहाड़+ पर मेरे सामने इकट्ठा हो। साथ ही, बाल के 450 भविष्यवक्‍ताओं और पूजा-लाठ*+ की उपासना करनेवाले 400 भविष्यवक्‍ताओं को भी बुला जो इज़ेबेल की मेज़ से खाते हैं।” 20 तब अहाब ने इसराएल के सब लोगों को करमेल पहाड़ पर आने का संदेश भेजा, साथ ही भविष्यवक्‍ताओं को वहाँ इकट्ठा किया।

21 फिर एलियाह सब लोगों के पास आकर कहने लगा, “तुम लोग कब तक दो विचारों में लटके रहोगे?*+ अगर यहोवा सच्चा परमेश्‍वर है तो उसे मानो+ और अगर बाल सच्चा परमेश्‍वर है तो उसे मानो!” मगर जवाब में लोगों ने एक शब्द भी न कहा। 22 तब एलियाह ने उनसे कहा, “यहोवा के भविष्यवक्‍ताओं में से सिर्फ मैं बचा हूँ+ जबकि बाल के भविष्यवक्‍ता 450 हैं। 23 हमारे लिए दो बैल लाए जाएँ और बाल के भविष्यवक्‍ता उनमें से एक बैल चुन लें। वे उसके टुकड़े-टुकड़े करके उसे लकड़ी पर रखें, मगर उसे आग न लगाएँ। दूसरा बैल मैं लूँगा और उसके टुकड़े-टुकड़े करके लकड़ी पर रखूँगा, मगर उसे आग नहीं लगाऊँगा। 24 फिर तुम लोग अपने देवता का नाम पुकारना+ और मैं यहोवा का नाम पुकारूँगा। जो परमेश्‍वर जवाब में आग भेजेगा वही सच्चा परमेश्‍वर साबित होगा।”+ तब सब लोगों ने कहा, “हाँ, यह सही रहेगा।”

25 फिर एलियाह ने बाल के भविष्यवक्‍ताओं से कहा, “पहले तुम इनमें से एक बैल चुन लो और उसे बलि के लिए तैयार करो क्योंकि तुम्हारी तादाद ज़्यादा है। इसके बाद तुम अपने देवता का नाम पुकारना, मगर लकड़ी में आग मत लगाना।” 26 तब उन्होंने वह बैल लिया जो उन्हें दिया गया था। उन्होंने उसे बलि के लिए तैयार किया। फिर वे बाल देवता का नाम पुकारने लगे। वे सुबह से दोपहर तक कहते रहे, “हे बाल, हमारी सुन! हे बाल, हमारी सुन!” मगर उन्हें कोई जवाब नहीं मिला, कोई आवाज़ सुनायी नहीं दी।+ फिर भी वे अपनी बनायी वेदी के चारों तरफ उछलते-कूदते रहे। 27 दोपहर के करीब एलियाह उनका मज़ाक उड़ाते हुए कहने लगा, “और ज़ोर से चिल्लाओ! वह एक देवता है,+ शायद किसी बात को लेकर गहरी सोच में पड़ा हो या फिर वह हलका होने गया हो।* या क्या पता वह सो रहा हो, उसे जगाने की ज़रूरत पड़े!” 28 बाल के भविष्यवक्‍ता गला फाड़-फाड़कर पुकार रहे थे। वे अपने दस्तूर के मुताबिक खुद को बरछों और कटारों से काटने लगे। वे ऐसा तब तक करते रहे जब तक कि उनका पूरा शरीर लहू-लुहान न हो गया। 29 दोपहर बीत गयी, यहाँ तक कि शाम के अनाज के चढ़ावे का समय हो गया, फिर भी वे पागलों* जैसा बरताव करते रहे। मगर उन्हें कोई जवाब नहीं मिला, कोई आवाज़ सुनायी नहीं दी। उन पर ध्यान देनेवाला कोई न था।+

30 आखिरकार एलियाह ने सब लोगों से कहा, “तुम लोग मेरे पास आओ।” तब सब लोग उसके पास गए। फिर उसने यहोवा की वह वेदी ठीक की जो ढा दी गयी थी।+ 31 फिर एलियाह ने 12 पत्थर लिए। ये पत्थर याकूब के बेटों से बने गोत्रों की गिनती के हिसाब से थे, जिससे यहोवा ने कहा था, “तेरा नाम इसराएल होगा।”+ 32 उन पत्थरों से एलियाह ने यहोवा के नाम की महिमा के लिए एक वेदी बनायी।+ वेदी के चारों तरफ उसने खाई खुदवायी। खाई जितनी ज़मीन पर बनायी गयी थी, उसका माप उतनी ज़मीन के बराबर था जिसमें दो सआ* बीज बोया जा सकता है। 33 इसके बाद उसने वेदी पर लकड़ियाँ तरतीब से रखीं, बैल के टुकड़े-टुकड़े किए और लकड़ी पर रखे।+ फिर उसने कहा, “चार बड़े-बड़े मटकों में पानी भरो और होम-बलि के जानवर पर और लकड़ी पर उँडेल दो।” 34 उन्होंने जब ऐसा किया तो उसने कहा, “एक बार और करो।” उन्होंने दोबारा किया। उसने कहा, “फिर से पानी उँडेलो।” उन्होंने तीसरी बार ऐसा किया। 35 पानी वेदी पर से चारों तरफ बहने लगा। उसने खाई को भी पानी से भरवा दिया।

36 शाम का अनाज का चढ़ावा अर्पित करने का समय हो गया था।+ भविष्यवक्‍ता एलियाह वेदी के पास आया और उसने कहा, “हे यहोवा, अब्राहम, इसहाक और इसराएल के परमेश्‍वर,+ आज तू यह ज़ाहिर कर दे कि इसराएल में तू ही परमेश्‍वर है और मैं तेरा सेवक हूँ और तेरे आदेश पर ही मैंने यह सब किया है।+ 37 हे यहोवा, मेरी सुन ले। मेरी दुआ सुन ले ताकि ये लोग जानें कि तू यहोवा ही सच्चा परमेश्‍वर है और तू उनके दिलों को वापस अपनी तरफ फेर रहा है।”+

38 तब यहोवा ने ऊपर से आग भेजी जिससे होम-बलि, लकड़ी, पत्थर, धूल, सबकुछ भस्म हो गया+ और खाई का पानी भी पूरी तरह सूख गया।+ 39 जब लोगों ने यह सब देखा, तो वे फौरन मुँह के बल गिरकर कहने लगे: “यहोवा ही सच्चा परमेश्‍वर है! यहोवा ही सच्चा परमेश्‍वर है!” 40 तब एलियाह ने उनसे कहा, “बाल के सभी भविष्यवक्‍ताओं को पकड़ लो! एक भी भागने न पाए!” लोगों ने फौरन भविष्यवक्‍ताओं को पकड़ लिया। एलियाह उन्हें कीशोन नदी+ के पास ले गया और वहाँ उन सबको मार डाला।+

41 फिर एलियाह ने अहाब से कहा, “तू ऊपर जा और कुछ खा-पी ले क्योंकि मूसलाधार बारिश की आवाज़ सुनायी दे रही है।”+ 42 तब अहाब खाने-पीने के लिए ऊपर गया जबकि एलियाह करमेल पहाड़ की चोटी पर गया। वह ज़मीन पर घुटनों के बल झुका और उसने अपना मुँह घुटनों के बीच रखा।+ 43 फिर उसने अपने सेवक से कहा, “ज़रा ऊपर जा और समुंदर की तरफ देखकर आ।” सेवक ने ऊपर जाकर देखा और कहा, “कुछ नहीं दिखायी दे रहा।” एलियाह ने सात बार उससे कहा, “जाकर देख।” 44 सातवीं बार सेवक ने कहा, “देख, समुंदर पर से आदमी की हथेली जितना छोटा बादल ऊपर उठ रहा है!” एलियाह ने कहा, “अहाब के पास जा और उससे कहना, ‘रथ तैयार करवाकर यहाँ से फौरन नीचे चला जा! वरना तू मूसलाधार बारिश में फँस जाएगा।’” 45 इस बीच आसमान काले बादलों से ढक गया, तेज़ हवाएँ चलने लगीं और मूसलाधार बारिश होने लगी।+ अहाब रथ पर सवार होकर यिजरेल की तरफ भागता गया।+ 46 मगर यहोवा ने एलियाह को शक्‍ति दी और एलियाह ने अपने कपड़े से अपनी कमर कसी और दौड़ने लगा। वह इतनी तेज़ दौड़ा कि अहाब से आगे निकल गया और यिजरेल तक दौड़ता गया।

19 फिर अहाब+ ने इज़ेबेल+ को सारा हाल कह सुनाया। उसने बताया कि एलियाह ने क्या-क्या किया और कैसे सभी भविष्यवक्‍ताओं को तलवार से मार डाला।+ 2 तब इज़ेबेल ने एक दूत के हाथ एलियाह के पास यह संदेश भेजा: “अगर कल इस वक्‍त तक, मैंने तेरा वह हश्र नहीं किया जो तूने सभी भविष्यवक्‍ताओं का किया है, तो मुझ पर मेरे देवताओं का कहर टूटे!” 3 यह सुनकर एलियाह बहुत डर गया। वह फौरन उठा और अपनी जान बचाकर भाग गया।+ जब वह यहूदा के बेरशेबा+ पहुँचा, तो उसने अपने सेवक को वहीं छोड़ दिया। 4 वह एक दिन का सफर तय करके वीराने में गया और वहाँ एक झाड़ी के नीचे बैठ गया और उसने परमेश्‍वर से मौत माँगी। उसने कहा, “हे यहोवा, अब मुझसे और बरदाश्‍त नहीं होता! तू मेरी जान ले ले+ क्योंकि मैं अपने पुरखों से कुछ बढ़कर नहीं हूँ।”

5 फिर वह झाड़ी के नीचे लेट गया और सो गया। अचानक एक स्वर्गदूत ने आकर उसे छुआ+ और उससे कहा, “उठ और कुछ खा ले।”+ 6 जब वह उठा तो उसने देखा कि उसके सिरहाने गरम पत्थरों पर एक गोल रोटी रखी है, साथ ही पानी की एक सुराही भी है। उसने रोटी खायी, पानी पीया और फिर से लेट गया। 7 बाद में यहोवा का स्वर्गदूत फिर से उसके पास आया और उसे छूकर कहा, “उठ और कुछ खा ले क्योंकि आगे का सफर तेरे लिए बहुत मुश्‍किल और थकाऊ होगा।” 8 तब उसने उठकर खाया-पीया। उस खाने से ताकत पाकर वह 40 दिन और 40 रात पैदल चलता रहा। आखिर में वह सच्चे परमेश्‍वर के पहाड़ होरेब+ पहुँचा।

9 वहाँ एलियाह एक गुफा के अंदर गया+ और उसने वहीं रात बितायी। फिर यहोवा का संदेश उसके पास पहुँचा। उसने कहा, “एलियाह, तू यहाँ क्या कर रहा है?” 10 एलियाह ने कहा, “मैंने सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा की उपासना के लिए बढ़-चढ़कर जोश दिखाया है,+ क्योंकि इसराएल के लोगों ने तेरा करार मानना छोड़ दिया,+ तेरी वेदियाँ ढा दीं और तेरे भविष्यवक्‍ताओं को तलवार से मार डाला।+ मैं ही अकेला बचा हूँ और अब वे मेरी जान के पीछे पड़े हैं।”+ 11 मगर परमेश्‍वर ने कहा, “यहाँ से बाहर जा और पहाड़ पर यहोवा के सामने खड़ा हो।” और देखो! यहोवा वहाँ से गुज़रने लगा+ और यहोवा के सामने एक भयानक और ज़बरदस्त आँधी चली जिससे पहाड़ फटने लगे और चट्टानें चूर-चूर होने लगीं,+ मगर यहोवा आँधी में नहीं था। आँधी के बाद एक भूकंप आया,+ मगर यहोवा भूकंप में नहीं था। 12 भूकंप के बाद आग की ज्वाला भड़की,+ मगर यहोवा आग में नहीं था। आग के बाद एक धीमी आवाज़ सुनायी दी और उस आवाज़ में नरमी थी।+ 13 जैसे ही एलियाह ने वह आवाज़ सुनी उसने अपनी पोशाक* से अपना चेहरा ढक लिया+ और गुफा से बाहर आया और उसके मुहाने पर खड़ा हो गया। तब एक आवाज़ ने एलियाह से पूछा, “एलियाह, तू यहाँ क्या कर रहा है?” 14 एलियाह ने कहा, “मैंने सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा की उपासना के लिए बढ़-चढ़कर जोश दिखाया है, क्योंकि इसराएल के लोगों ने तेरा करार मानना छोड़ दिया,+ तेरी वेदियाँ ढा दीं और तेरे भविष्यवक्‍ताओं को तलवार से मार डाला। मैं ही अकेला बचा हूँ और अब वे मेरी जान के पीछे पड़े हैं।”+

15 यहोवा ने उससे कहा, “तू यहाँ से लौट जा और दमिश्‍क के वीराने में जा। दमिश्‍क में तू हजाएल+ को सीरिया का राजा ठहरा। 16 और निमशी के पोते येहू का अभिषेक करके+ उसे इसराएल का राजा ठहरा। और तू आबेल-महोला के रहनेवाले शापात के बेटे एलीशा* का अभिषेक कर ताकि वह तेरी जगह भविष्यवक्‍ता बने।+ 17 जो कोई हजाएल की तलवार+ से बचेगा उसे येहू मार डालेगा+ और जो येहू की तलवार से बचेगा उसे एलीशा मार डालेगा।+ 18 और देख, इसराएल में अब भी मेरे 7,000 लोग हैं+ जिन्होंने बाल के सामने घुटने टेककर दंडवत नहीं किया+ और न ही उसे चूमा।”+

19 तब एलियाह वहाँ से चला गया। इसके बाद वह शापात के बेटे एलीशा से मिला जो हल चला रहा था। वहाँ 12 जोड़ी बैलों से खेत जोता जा रहा था और एलीशा सबसे पीछे 12वीं जोड़ी के साथ था। एलियाह, एलीशा के पास गया और उसने अपनी पोशाक*+ उस पर डाली। 20 एलीशा ने फौरन बैल छोड़ दिए और दौड़कर एलियाह के पास गया। उसने एलियाह से गुज़ारिश की, “मुझे अपने माता-पिता को चूमकर विदा लेने दे। उसके बाद मैं तेरे साथ चलूँगा।” एलियाह ने कहा, “ठीक है, जा। मैं तुझे नहीं रोकूँगा।” 21 तब एलीशा वापस गया और उसने एक जोड़ी बैल लिए और उनकी बलि चढ़ायी। फिर उसने हल और जुए की लकड़ी जलाकर बैलों का गोश्‍त उबाला और लोगों को दिया और उन्होंने खाया। इसके बाद वह एलियाह के साथ हो लिया और उसकी सेवा करने लगा।+

20 सीरिया+ के राजा बेन-हदद+ ने अपनी पूरी सेना इकट्ठी की, साथ ही 32 दूसरे राजाओं और उनके घोड़ों और रथों को लिया और सामरिया पर हमला करने के लिए उसकी घेराबंदी की।+ 2 फिर उसने अपने दूतों को इसराएल के राजा अहाब+ के पास सामरिया भेजा। उन्होंने जाकर अहाब से कहा, “बेन-हदद ने यह संदेश भेजा है: 3 ‘तेरा सारा सोना-चाँदी और तेरी पत्नियों और बेटों में जो सबसे सुंदर हैं वे मेरे हैं।’” 4 जवाब में इसराएल के राजा ने कहा, “मेरे मालिक राजा, जैसी तेरी मरज़ी। मैं और मेरा जो कुछ है वह सब तेरा है।”+

5 बाद में वे दूत इसराएल के राजा के पास फिर आए और उन्होंने यह संदेश दिया: “बेन-हदद ने कहा है, ‘मैंने पहले तेरे पास संदेश भेजा था कि तू अपना सोना-चाँदी और अपनी पत्नियाँ और बेटे मेरे हवाले कर दे।’ 6 मगर अब मैं कहता हूँ कि कल इसी समय मैं अपने सेवकों को तेरे पास भेजूँगा और वे तेरे महल और तेरे सेवकों के घरों का कोना-कोना छान मारेंगे और तेरी सारी कीमती चीज़ें ज़ब्त करके ले जाएँगे।”

7 तब इसराएल के राजा ने देश के सभी मुखियाओं को बुलवाया और उनसे कहा, “ज़रा इस बात पर गौर करो, उस आदमी ने इसराएल को बरबाद करने की ठान ली है। उसने माँग की है कि मैं उसे अपनी पत्नियाँ और बेटे और सोना-चाँदी दे दूँ और मैंने हाँ कह दिया है।” 8 तब सभी मुखियाओं और लोगों ने उससे कहा, “तू उसकी बात मत मान, उसकी माँग मत पूरी कर।” 9 राजा ने बेन-हदद के दूतों से कहा, “तुम मेरे मालिक राजा से कहना, ‘तेरा यह सेवक तेरी पहली माँग पूरी करेगा, मगर इस बार तूने जो माँग की है वह मैं पूरी नहीं कर सकता।’” दूतों ने वापस जाकर यह संदेश बेन-हदद को सुनाया।

10 तब बेन-हदद ने इसराएल के राजा के पास यह संदेश भेजा: “मैं अपनी विशाल सेना से सामरिया को खाक में मिला दूँगा। वहाँ इतनी धूल भी न बचेगी कि मेरे हर सैनिक के हाथ में मुट्ठी-भर धूल आ सके। अगर मैंने ऐसा नहीं किया तो मुझ पर देवताओं का कहर टूटे!” 11 इसराएल के राजा ने जवाब दिया, “जाकर उससे कहो, ‘युद्ध शुरू होने से पहले ही तू शेखी मत मार मानो तूने युद्ध जीत लिया है।’”+ 12 जब यह संदेश बेन-हदद के पास पहुँचा तब वह और उसके साथवाले राजा अपने तंबुओं* में शराब पी रहे थे। यह संदेश पाते ही बेन-हदद ने अपने सेवकों को हुक्म दिया, “हमले के लिए तैयार हो जाओ!” वे शहर पर हमला करने तैयार हो गए।

13 मगर एक भविष्यवक्‍ता इसराएल के राजा अहाब+ के पास आया और कहने लगा, “तेरे लिए यहोवा का यह संदेश है: ‘यह बड़ी सेना जो तू देख रहा है इसे मैं आज तेरे हाथ में कर दूँगा और तब तू जान जाएगा कि मैं यहोवा हूँ।’”+ 14 अहाब ने पूछा, “यह सब किसके ज़रिए होगा?” भविष्यवक्‍ता ने कहा, “यहोवा ने कहा है, ‘सभी प्रांतों* के हाकिमों के सेवकों के ज़रिए।’” इसलिए अहाब ने पूछा, “युद्ध कौन शुरू करेगा?” भविष्यवक्‍ता ने कहा, “तू शुरू करेगा!”

15 फिर अहाब ने सभी प्रांतों के हाकिमों के सेवकों की गिनती ली और वे 232 निकले। इसके बाद उसने सभी इसराएली सैनिकों की गिनती ली और वे 7,000 थे। 16 वे दुश्‍मन पर हमला करने दोपहर को शहर से बाहर निकले। उस वक्‍त बेन-हदद उन 32 राजाओं के साथ तंबुओं* में खूब शराब पी रहा था जो उसकी मदद करने आए थे। 17 जब इसराएल के हाकिमों के सेवक शहर से बाहर निकले थे, तभी बेन-हदद ने भी अपने दूतों को भेजा था। दूतों ने वापस जाकर बेन-हदद को खबर दी कि सामरिया के आदमी शहर से बाहर निकल आए हैं। 18 बेन-हदद ने कहा, “अगर वे हमसे सुलह करने आए हैं तो उन्हें पकड़ लाओ। अगर वे युद्ध करने आए हैं, तो भी उन्हें ज़िंदा पकड़ लाओ।” 19 इसराएली प्रांतों के हाकिमों के सेवक और उनके पीछे चलनेवाले सैनिक, जो शहर से बाहर आए थे, 20 वे दुश्‍मनों को मार गिराने लगे। तब सीरिया के लोग भागने लगे+ और इसराएलियों ने उनका पीछा किया। मगर सीरिया का राजा बेन-हदद घोड़े पर सवार होकर अपने कुछ घुड़सवारों के साथ भाग निकला। 21 इसराएल का राजा भी बाहर आया और वह घोड़ों पर और रथों पर सवार लोगों को मार डालने लगा और उसने सीरिया को बुरी तरह हरा दिया।*

22 बाद में भविष्यवक्‍ता+ ने इसराएल के राजा के पास आकर उससे कहा, “सीरिया का राजा अगले साल की शुरूआत* में फिर से तुझ पर हमला करेगा।+ इसलिए तू जाकर अपनी सेना को मज़बूत कर और आगे कैसे-क्या कार्रवाई करेगा, इस बारे में अच्छी तरह विचार कर।”+

23 सीरिया के राजा के सेवकों ने उससे कहा, “उनका परमेश्‍वर पहाड़ों का परमेश्‍वर है, इसीलिए वे हमें हरा सके। लेकिन अगर हम उनसे मैदान में लड़ें तो हम उन्हें हरा देंगे। 24 तू एक और काम कर: सैनिकों की अगुवाई करने के काम से सभी राजाओं+ को हटा दे और उनकी जगह राज्यपालों को ठहरा। 25 फिर तू उतनी बड़ी सेना इकट्ठा कर* जितनी तू पहले लेकर गया था। तूने जितने घोड़े और रथ खोए थे, उतने घोड़े और रथ लेकर पहले के बराबर सेना तैयार कर। हम उनसे मैदान में युद्ध करेंगे। तब देखना, जीत हमारी होगी।” बेन-हदद ने उनकी सलाह मानी और ऐसा ही किया।

26 अगले साल की शुरूआत* में बेन-हदद ने सीरिया के सैनिकों को इकट्ठा किया और वे इसराएल से युद्ध करने अपेक शहर+ गए। 27 इधर इसराएल के सैनिकों को भी इकट्ठा किया गया और उन्हें ज़रूरत की चीज़ें मुहैया करायी गयीं। वे सीरिया की सेना से मुकाबला करने निकल पड़े। जब इसराएल के सैनिक उनके सामने छावनी डाले हुए थे तो वे बकरियों के दो छोटे-छोटे झुंड जैसे लग रहे थे, जबकि सीरिया के सैनिकों की तादाद इतनी थी कि वे पूरे इलाके में छा गए थे।+ 28 फिर सच्चे परमेश्‍वर के सेवक ने इसराएल के राजा के पास आकर उससे कहा, “तेरे लिए यहोवा का यह संदेश है: ‘सीरिया के लोगों ने कहा है, “यहोवा पहाड़ों का परमेश्‍वर है, मैदानों का नहीं।” इसलिए मैं इस बड़ी भीड़ को तेरे हाथ में कर दूँगा+ और तू बेशक जान जाएगा कि मैं यहोवा हूँ।’”+

29 इसराएल और सीरिया के सैनिक सात दिन तक एक-दूसरे के सामने छावनी डाले रहे। सातवें दिन युद्ध शुरू हुआ। इसराएली सैनिकों ने एक दिन में सीरिया के 1,00,000 पैदल सैनिकों को मार डाला। 30 सीरिया के बाकी सैनिक भागकर अपेक शहर के अंदर चले गए।+ मगर बचे हुओं में से 27,000 सैनिकों पर दीवार गिर गयी। बेन-हदद भी भाग गया और शहर के अंदर चला गया और एक घर के भीतरी कमरे में जा छिपा।

31 बेन-हदद के सेवकों ने उससे कहा, “देख, हमने सुना है कि इसराएल के राजा बड़े दयालु* होते हैं। तेरी इजाज़त हो तो हम अपनी कमर पर टाट और सिर पर रस्सी बाँधकर इसराएल के राजा के पास जाएँगे। हो सकता है वह आपको ज़िंदा छोड़ दे।”+ 32 वे कमर पर टाट और सिर पर रस्सी बाँधकर इसराएल के राजा के पास आए और कहने लगे, “तेरे सेवक बेन-हदद ने कहा है, ‘दया करके मुझे बख्श दे।’” इसराएल के राजा ने कहा, “क्या वह ज़िंदा है? वह मेरा भाई है।” 33 उन आदमियों ने इसे शुभ-चिन्ह माना और वे फौरन समझ गए कि राजा साफ नीयत से यह कह रहा है। इसलिए उन्होंने कहा, “बिलकुल, बेन-हदद तेरा भाई ही है।” अहाब ने कहा, “जाओ, उसे यहाँ ले आओ।” फिर बेन-हदद निकलकर उसके पास आया और अहाब ने उसे अपने साथ रथ पर बिठाया।

34 बेन-हदद ने उससे कहा, “मेरे पिता ने तेरे पिता से जो शहर ले लिए थे वे मैं तुझे लौटा दूँगा। इतना ही नहीं, तू दमिश्‍क में बाज़ार खुलवा लेना* जैसे मेरे पिता ने सामरिया में बाज़ार खुलवाए थे।”

जवाब में अहाब ने कहा, “ठीक है, इसी समझौते* पर मैं तुझे जाने देता हूँ।”

इस तरह अहाब ने बेन-हदद के साथ समझौता किया और उसे जाने दिया।

35 फिर भविष्यवक्‍ताओं के बेटों*+ में से एक को यहोवा का संदेश मिला और उसने उस संदेश के मुताबिक अपने एक साथी से कहा, “मुझे मार।” मगर उसके साथी ने इनकार कर दिया। 36 तब भविष्यवक्‍ता ने उससे कहा, “तूने यहोवा की बात नहीं मानी, इसलिए जैसे ही तू मुझे छोड़कर यहाँ से जाएगा एक शेर तुझे मार डालेगा।” जब वह भविष्यवक्‍ता को छोड़कर गया तो एक शेर ने उस पर हमला किया और उसे मार डाला।

37 फिर भविष्यवक्‍ता को एक और आदमी मिला और उसने उस आदमी से कहा, “मुझे मार।” उस आदमी ने उसे मारा और घायल कर दिया।

38 फिर भविष्यवक्‍ता ने अपनी पहचान छिपाने के लिए आँखों पर पट्टी बाँधी और एक सड़क पर खड़े होकर राजा का इंतज़ार करने लगा। 39 जब राजा वहाँ से गुज़रा तो उसने राजा की दुहाई देते हुए कहा, “मालिक, तेरा यह सेवक युद्ध में गया था। उस वक्‍त घमासान लड़ाई चल रही थी और एक आदमी दूसरे आदमी को लेकर मेरे पास आया और बोला, ‘इस आदमी पर नज़र रख। अगर यह गायब हुआ तो इसके बदले तेरी जान ले ली जाएगी+ या फिर तुझे एक तोड़ा* चाँदी देनी होगी।’ 40 जब तेरा सेवक वहाँ किसी काम में लगा हुआ था तो अचानक वह आदमी गायब हो गया।” तब इसराएल के राजा ने उससे कहा, “तेरा मामला साफ है। तूने खुद अपना फैसला सुनाया है।” 41 तब उस आदमी ने फौरन अपनी आँखों से पट्टी उतारी और इसराएल के राजा ने पहचान लिया कि वह भविष्यवक्‍ताओं में से एक है।+ 42 भविष्यवक्‍ता ने राजा से कहा, “तेरे लिए यहोवा का यह संदेश है: ‘तूने उस आदमी को हाथ से जाने दिया जिसके बारे में मैंने कहा था कि उसे नाश कर दिया जाए।+ इसलिए उसकी जान के बदले तेरी जान ले ली जाएगी+ और उसके लोगों के बदले तेरे लोगों का नाश किया जाएगा।’”+ 43 यह सुनकर इसराएल का राजा उदास हो गया और मुँह लटकाए सामरिया में अपने महल चला गया।+

21 इसके बाद यिजरेल+ के रहनेवाले नाबोत के अंगूरों के बाग के सिलसिले में एक घटना घटी। नाबोत का बाग, यिजरेल में सामरिया के राजा अहाब के महल के पास था। 2 अहाब ने नाबोत से कहा, “अपना अंगूरों का बाग मुझे दे दे क्योंकि वह मेरे महल के पास है। मैं उसे सब्ज़ियों का बाग बनाना चाहता हूँ। उसके बदले मैं तुझे उससे भी बढ़िया अंगूरों का बाग दूँगा। या तू चाहे तो मैं उसकी कीमत चुका दूँगा।” 3 मगर नाबोत ने अहाब से कहा, “मैं तुझे अपने पुरखों की विरासत की ज़मीन देने की बात सोच भी नहीं सकता, क्योंकि ऐसा करना यहोवा की नज़र में गलत होगा।”+ 4 यिजरेली नाबोत का यह जवाब सुनकर कि मैं अपने पुरखों से मिली विरासत तुझे नहीं दूँगा, अहाब बहुत उदास हो गया और मुँह लटकाए अपने महल में आया। वह बिस्तर पर लेट गया और उसने अपना मुँह फेर लिया और खाने से इनकार कर दिया।

5 अहाब की पत्नी इज़ेबेल+ उसके पास आयी और कहने लगी, “तू क्यों इतना उदास है कि खाना भी नहीं खा रहा?” 6 अहाब ने कहा, “मैंने यिजरेली नाबोत से कहा कि तू मुझे अपना अंगूरों का बाग दे दे, मैं तुझे उसकी कीमत दे दूँगा। या तू चाहे तो मैं तुझे एक और अंगूरों का बाग दूँगा। मगर उसने अपना बाग बेचने से इनकार कर दिया।” 7 तब उसकी पत्नी इज़ेबेल ने कहा, “तू इसराएल का राजा है न? उठकर खा-पी और खुश रह। यिजरेली नाबोत के अंगूरों का बाग मैं तुझे दिलाती हूँ।”+ 8 इज़ेबेल ने अहाब के नाम पर चिट्ठियाँ लिखीं, उन पर राजा की मुहर लगायी+ और नाबोत के शहर के मुखियाओं+ और रुतबेदार आदमियों के पास भेजीं। 9 चिट्ठियों में यह लिखा था, “तुम उपवास का ऐलान करो और नाबोत को सब लोगों के आगे बिठाओ। 10 और कहीं से दो निकम्मे आदमियों को लाकर नाबोत के सामने बिठाओ। उनसे कहना कि वे नाबोत के खिलाफ यह गवाही दें,+ ‘तूने परमेश्‍वर और राजा की निंदा की है!’+ फिर नाबोत को बाहर ले जाओ और उसे पत्थरों से मार डालो।”+

11 शहर के मुखियाओं और रुतबेदार आदमियों ने वैसा ही किया जैसा इज़ेबेल की भेजी चिट्ठियों में लिखा था। 12 उन्होंने उपवास का ऐलान किया और नाबोत को सब लोगों के आगे बिठाया। 13 फिर दो निकम्मे आदमी आए और नाबोत के सामने बैठ गए। वे सब लोगों के सामने नाबोत के खिलाफ यह गवाही देने लगे, “नाबोत ने परमेश्‍वर और राजा की निंदा की है!”+ इसके बाद नाबोत को शहर से बाहर ले जाया गया और उसे पत्थरों से मार डाला गया।+ 14 फिर उन आदमियों ने इज़ेबेल के पास खबर भेजी कि नाबोत को पत्थरों से मार डाला गया है।+

15 जैसे ही इज़ेबेल ने सुना कि नाबोत को पत्थरों से मार डाला गया है, उसने अहाब से कहा, “चल उठ, जाकर यिजरेली नाबोत का अंगूरों का बाग अपने अधिकार में ले ले,+ जिसे बेचने से उसने इनकार कर दिया था क्योंकि नाबोत मर गया है।” 16 जब अहाब ने सुना कि नाबोत मर गया है, तो वह फौरन उसके अंगूरों के बाग पर कब्ज़ा करने निकल पड़ा।

17 मगर यहोवा का यह संदेश तिशबे के रहनेवाले एलियाह+ के पास पहुँचा: 18 “तू सामरिया जा और इसराएल के राजा अहाब से मिल।+ वह नाबोत के अंगूरों के बाग में है। वह उसे अपने अधिकार में करने वहाँ गया है। 19 तू उससे कहना, ‘तेरे लिए यहोवा का यह संदेश है: “तूने क्यों एक आदमी का कत्ल कर दिया+ और क्यों उसकी जायदाद ले ली?”’+ इसके बाद तू उससे कहना, ‘यहोवा ने कहा है, “जिस जगह कुत्तों ने नाबोत का खून चाटा था, उसी जगह कुत्ते तेरा खून भी चाटेंगे।”’”+

20 अहाब ने एलियाह से कहा, “अच्छा तो मेरे दुश्‍मन ने मुझे पकड़ लिया!”+ एलियाह ने कहा, “हाँ, मैंने तुझे पकड़ लिया। परमेश्‍वर ने कहा है, ‘तूने यहोवा की नज़र में बुरे काम करने की ठान ली है,*+ 21 इसलिए मैं तुझ पर कहर ढानेवाला हूँ। मैं तेरे घराने का पूरी तरह सफाया कर दूँगा, तेरे घराने के हर आदमी और हर लड़के को मार डालूँगा,+ यहाँ तक कि इसराएल के बेसहारा और कमज़ोर लोगों को भी मिटा दूँगा।+ 22 मैं तेरे घराने का वही हश्र करूँगा जो मैंने नबात के बेटे यारोबाम के घराने का और अहियाह के बेटे बाशा के घराने का किया था,+ क्योंकि तूने मेरा क्रोध भड़काया है और इसराएल से पाप करवाया है।’ 23 और इज़ेबेल के बारे में यहोवा ने कहा है, ‘यिजरेल की इसी ज़मीन पर इज़ेबेल की लाश कुत्ते खा जाएँगे।+ 24 अहाब के वंशजों में से जो कोई शहर में मरेगा उसे कुत्ते खा जाएँगे और जो मैदान में मरेगा उसे आकाश के पक्षी खा जाएँगे।+ 25 वाकई, आज तक अहाब जैसा कोई नहीं हुआ है,+ जिसने अपनी पत्नी इज़ेबेल के उकसाने+ पर ऐसे काम करने की ठान ली है* जो यहोवा की नज़र में बुरे हैं। 26 अहाब ने घिनौनी मूरतों* की पूजा करके नीचता करने में हद कर दी है। वह उन एमोरियों जैसा बन गया है जिन्हें यहोवा ने इसराएलियों के सामने से खदेड़ दिया था।’”+

27 जैसे ही अहाब ने यह संदेश सुना, उसने अपने कपड़े फाड़े और शरीर पर टाट ओढ़ लिया और वह उपवास करने लगा। वह टाट ओढ़े लेटा रहता और मायूस होकर इधर-उधर चलने लगता। 28 फिर यहोवा का यह संदेश तिशबे के रहनेवाले एलियाह के पास पहुँचा: 29 “क्या तूने देखा है कि अहाब कैसे मेरे सामने नम्र बन गया है?+ क्योंकि वह मेरे सामने नम्र बन गया है इसलिए मैं यह संकट उसके जीते-जी नहीं लाऊँगा। मैं उसके घराने पर यह संकट उसके बेटे के दिनों में लाऊँगा।”+

22 सीरिया और इसराएल के बीच तीन साल तक कोई युद्ध नहीं हुआ। 2 तीसरे साल यहूदा का राजा यहोशापात+ इसराएल के राजा से मिलने गया।+ 3 इसराएल के राजा ने अपने सेवकों से कहा, “क्या रामोत-गिलाद+ हमारा इलाका नहीं है? फिर हम उसे सीरिया के राजा से वापस लेने से क्यों झिझक रहे हैं?” 4 फिर उसने यहोशापात से कहा, “क्या तू युद्ध करने मेरे साथ रामोत-गिलाद चलेगा?” यहोशापात ने इसराएल के राजा से कहा, “हम दोनों एक हैं। मेरे लोग तेरे ही लोग हैं। मेरे घोड़े तेरे घोड़े हैं।”+

5 मगर यहोशापात ने इसराएल के राजा से कहा, “क्यों न हम पहले यहोवा से पूछें+ कि उसकी क्या सलाह है?”+ 6 इसलिए इसराएल के राजा ने भविष्यवक्‍ताओं को इकट्ठा किया जो करीब 400 थे। उसने उनसे पूछा, “क्या मैं रामोत-गिलाद पर हमला करने जाऊँ?” उन्होंने कहा, “जा, तू हमला कर, यहोवा उसे तेरे हाथ में कर देगा।”

7 फिर यहोशापात ने कहा, “क्या यहाँ यहोवा का कोई भविष्यवक्‍ता नहीं है? चलो हम उसके ज़रिए भी पूछते हैं।”+ 8 तब इसराएल के राजा ने यहोशापात से कहा, “एक और आदमी है जिसके ज़रिए हम यहोवा से सलाह माँग सकते हैं,+ मगर मुझे उस आदमी से नफरत है।+ वह मेरे बारे में कभी अच्छी बातों की भविष्यवाणी नहीं करता, सिर्फ बुरी बातें कहता है।+ वह यिम्ला का बेटा मीकायाह है।” मगर यहोशापात ने कहा, “राजा को ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए।”

9 तब इसराएल के राजा ने अपने एक दरबारी को बुलाया और उससे कहा, “यिम्ला के बेटे मीकायाह को फौरन यहाँ ले आ।”+ 10 इसराएल का राजा अहाब और यहूदा का राजा यहोशापात, शाही कपड़े पहने सामरिया के फाटक के पास एक खलिहान में अपनी-अपनी राजगद्दी पर बैठे थे। सारे भविष्यवक्‍ता उन दोनों के सामने भविष्यवाणी कर रहे थे।+ 11 तब कनाना के बेटे सिदकियाह ने अपने लिए लोहे के सींग बनवाए और कहा, “तेरे लिए यहोवा का यह संदेश है: ‘तू सीरिया के लोगों को इनसे तब तक मारता* रहेगा जब तक कि वे मिट नहीं जाते।’” 12 बाकी भविष्यवक्‍ता भी यही भविष्यवाणी कर रहे थे। वे कह रहे थे, “जा, तू रामोत-गिलाद पर हमला कर। तू ज़रूर कामयाब होगा, यहोवा उसे तेरे हाथ में कर देगा।”

13 मीकायाह को बुलाने के लिए जो दूत गया था, उसने मीकायाह से कहा, “देख, सारे भविष्यवक्‍ता राजा को एक ही बात बता रहे हैं। वे उसे अच्छी बातों की भविष्यवाणी सुना रहे हैं। इसलिए मेहरबानी करके तू भी उनकी तरह कोई अच्छी बात सुना।”+ 14 मगर मीकायाह ने कहा, “यहोवा के जीवन की शपथ, मैं वही बात बताऊँगा जो यहोवा मुझे बताएगा।” 15 फिर मीकायाह राजा के पास आया और राजा ने उससे पूछा, “मीकायाह, तू क्या कहता है, हम रामोत-गिलाद पर हमला करें या न करें?” उसने फौरन जवाब दिया, “जा, तू रामोत-गिलाद पर हमला कर। तू ज़रूर कामयाब होगा, यहोवा उसे तेरे हाथ में कर देगा।” 16 राजा ने उससे कहा, “मैं तुझे कितनी बार शपथ धराकर कहूँ कि तू यहोवा के नाम से मुझे सिर्फ सच बताएगा?” 17 तब मीकायाह ने कहा, “मैं देख रहा हूँ कि सारे इसराएली पहाड़ों पर तितर-बितर हो गए हैं,+ उन भेड़ों की तरह जिनका कोई चरवाहा नहीं होता। यहोवा कहता है, ‘इनका कोई मालिक नहीं है। इनमें से हर कोई शांति से अपने घर लौट जाए।’”

18 तब इसराएल के राजा ने यहोशापात से कहा, “देखा, मैंने कहा था न, यह आदमी मेरे बारे में अच्छी बातों की भविष्यवाणी नहीं करेगा, सिर्फ बुरी बातें कहेगा।”+

19 फिर मीकायाह ने कहा, “इसलिए अब यहोवा का संदेश सुन। मैंने देखा है कि यहोवा अपनी राजगद्दी पर बैठा है+ और उसके दायीं और बायीं तरफ स्वर्ग की सारी सेना खड़ी है।+ 20 फिर यहोवा ने कहा, ‘अहाब को कौन बेवकूफ बनाएगा ताकि वह रामोत-गिलाद जाए और वहाँ मारा जाए?’ तब सेना में से किसी ने कुछ कहा तो किसी ने कुछ। 21 फिर एक स्वर्गदूत+ यहोवा के सामने आकर खड़ा हुआ और उसने कहा, ‘मैं अहाब को बेवकूफ बनाऊँगा।’ यहोवा ने पूछा, ‘तू यह कैसे करेगा?’ 22 उसने कहा, ‘मैं जाकर उसके सभी भविष्यवक्‍ताओं के मुँह से झूठ बुलवाऊँगा।’+ परमेश्‍वर ने कहा, ‘तू उसे बेवकूफ बना लेगा, तू ज़रूर कामयाब होगा। जा, तूने जैसा कहा है वैसा ही कर।’ 23 इसलिए यहोवा ने तेरे इन सभी भविष्यवक्‍ताओं के मुँह से झूठ बुलवाया है,+ मगर यहोवा ने ऐलान किया है कि तुझ पर संकट आएगा।”+

24 तब कनाना का बेटा सिदकियाह, मीकायाह के पास गया और उसके गाल पर ज़ोर से थप्पड़ मारा और कहा, “यहोवा का स्वर्गदूत कब से मुझे छोड़कर तुझसे बात करने लगा है?”+ 25 मीकायाह ने कहा, “इसका जवाब तुझे उस दिन मिलेगा जब तू भागकर अंदर के कमरे में जा छिपेगा।” 26 तब इसराएल के राजा ने हुक्म दिया, “ले जाओ इस मीकायाह को। इसे शहर के प्रधान आमोन और राजा के बेटे योआश के हवाले कर दो। 27 उनसे कहना, ‘राजा ने आदेश दिया है कि इसे जेल में बंद कर दो+ और जब तक मैं सही-सलामत लौट नहीं आता तब तक इसे नाम के लिए खाना-पानी देते रहना।’” 28 मगर मीकायाह ने कहा, “अगर तू सही-सलामत लौटा तो इसका मतलब यह होगा कि यहोवा ने मेरे ज़रिए बात नहीं की है।”+ फिर उसने कहा, “लोगो, तुम सब यह बात याद रखना।”

29 इसके बाद इसराएल का राजा अहाब और यहूदा का राजा यहोशापात रामोत-गिलाद गए।+ 30 इसराएल के राजा ने यहोशापात से कहा, “मैं अपना भेस बदलकर युद्ध में जाऊँगा, मगर तू अपने शाही कपड़े पहने रहना।” इसराएल का राजा भेस बदलकर युद्ध में गया।+ 31 वहाँ सीरिया के राजा ने अपनी रथ-सेना के 32 सेनापतियों+ को यह हुक्म दिया था, “तुम लोग सीधे इसराएल के राजा से युद्ध करना, उसके सिवा किसी और से मत लड़ना, फिर चाहे वह कोई मामूली सैनिक हो या बड़ा अधिकारी।” 32 जैसे ही रथ-सेना के सेनापतियों ने यहोशापात को देखा उन्होंने सोचा, “ज़रूर यही इसराएल का राजा होगा।” इसलिए वे सब यहोशापात पर हमला करने लगे और वह मदद के लिए पुकारने लगा। 33 जैसे ही सेनापतियों को पता चला कि वह इसराएल का राजा नहीं है, उन्होंने उसका पीछा करना छोड़ दिया।

34 तब किसी सैनिक ने यूँ ही एक तीर चलाया और वह तीर इसराएल के राजा को वहाँ जा लगा जहाँ कवच और बख्तर का दूसरा हिस्सा जुड़ा हुआ था। राजा ने अपने सारथी से कहा, “रथ घुमाकर मुझे युद्ध के मैदान से बाहर ले जा, मैं बुरी तरह घायल हो गया हूँ।”+ 35 पूरे दिन घमासान लड़ाई चलती रही और राजा को सहारा देकर सीरिया के लोगों के सामने रथ पर खड़ा रखना पड़ा। राजा के घाव से खून निकलकर रथ के फर्श पर बहता रहा और शाम होते-होते वह मर गया।+ 36 जब सूरज ढलने लगा तो पूरी छावनी में यह ऐलान किया गया, “सब लोग अपने-अपने शहर लौट जाएँ! सब लोग अपने-अपने देश लौट जाएँ!”+ 37 इस तरह राजा की मौत हो गयी और उसकी लाश सामरिया लायी गयी और वहाँ दफना दी गयी। 38 जब उन्होंने उसका रथ सामरिया के तालाब के पास धोया तो कुत्तों ने उसका खून चाटा और वहाँ वेश्‍याओं ने नहाया।* इस तरह वह बात पूरी हुई जो यहोवा ने कही थी।+

39 अहाब की ज़िंदगी की बाकी कहानी, उसने जो-जो काम किए, हाथी-दाँत+ का जो महल बनवाया और जो शहर बनवाए, उन सबका ब्यौरा इसराएल के राजाओं के इतिहास की किताब में लिखा है। 40 अहाब की मौत हो गयी*+ और उसकी जगह उसका बेटा अहज्याह+ राजा बना।

41 जब इसराएल में अहाब के राज का चौथा साल चल रहा था, तब यहूदा में आसा का बेटा यहोशापात+ राजा बना था। 42 जब यहोशापात राजा बना तब वह 35 साल का था और उसने यरूशलेम में रहकर 25 साल राज किया। उसकी माँ का नाम अजूबाह था जो शिलही की बेटी थी। 43 यहोशापात अपने पिता आसा के नक्शे-कदम पर चलता रहा।+ वह उस राह से नहीं भटका और उसने यहोवा की नज़र में सही काम किए।+ फिर भी, उसके राज में ऊँची जगह नहीं मिटायी गयीं और लोग अब भी उन जगहों पर बलिदान चढ़ाया करते थे ताकि उनका धुआँ उठे।+ 44 यहोशापात ने इसराएल के राजा के साथ शांति बनाए रखी।+ 45 यहोशापात की ज़िंदगी की बाकी कहानी, उसकी बड़ी-बड़ी कामयाबियाँ और उसने कैसे युद्ध किए, उन सबका ब्यौरा यहूदा के राजाओं के इतिहास की किताब में लिखा है। 46 उसने अपने पिता आसा के समय के बचे हुए उन आदमियों को भी देश से निकाल दिया जो मंदिरों में दूसरे आदमियों के साथ संभोग करते थे।+

47 उन दिनों एदोम+ में कोई राजा नहीं था, सिर्फ एक राज्यपाल राज करता था।+

48 यहोशापात ने तरशीश के जहाज़* भी बनवाए ताकि ये सोना लाने के लिए ओपीर जाएँ,+ मगर ये जहाज़ वहाँ नहीं जा सके क्योंकि एस्योन-गेबेर में ये टूटकर तहस-नहस हो गए।+ 49 फिर अहाब के बेटे अहज्याह ने यहोशापात से कहा, “मेरे सेवकों को तू अपने सेवकों के साथ जहाज़ों पर जाने दे,” मगर यहोशापात राज़ी नहीं हुआ।

50 फिर यहोशापात की मौत हो गयी*+ और उसे उसके पुरखे दाविद के शहर दाविदपुर में पुरखों की कब्र में दफनाया गया। उसकी जगह उसका बेटा यहोराम+ राजा बना।

51 जब यहूदा में यहोशापात के राज का 17वाँ साल चल रहा था तब इसराएल में अहाब का बेटा अहज्याह+ राजा बना। अहज्याह ने सामरिया से इसराएल पर दो साल राज किया। 52 वह यहोवा की नज़र में बुरे काम करता रहा। वह अपने माता-पिता+ के नक्शे-कदम पर और नबात के बेटे यारोबाम के नक्शे-कदम पर चला, जिसने इसराएल से पाप करवाया था।+ 53 वह अपने पिता की तरह बाल देवता की सेवा करता रहा+ और उसके आगे दंडवत करके इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा का क्रोध भड़काता रहा।+

या “उसे ठेस नहीं पहुँचायी; उसे नहीं डाँटा।”

शा., “मालिक अपने पुरखों के साथ सो जाएगा।”

या “मादा खच्चर।”

या “काबिल।”

शा., “मैं दुनिया की रीत के मुताबिक जानेवाला हूँ।”

या “बुद्धिमानी से काम करेगा।”

शा., “उसके पके बालों को शांति से कब्र में मत जाने देना।”

या “अटल प्यार।”

शा., “तू उसके पके बालों को खून के साथ कब्र में उतार देना।”

शा., “दाविद अपने पुरखों के साथ सो गया।”

शा., “मेरी ओर मुँह किए था।”

या “अटल प्यार।”

या “अटल प्यार।”

या “छोटा लड़का।”

शा., “और मैं बाहर जाना और अंदर आना नहीं जानता।”

या शायद, “ढीठ।” शा., “भारी।”

शा., “मैं तेरे दिन बढ़ाऊँगा।”

शा., “अपनी छाती पर।”

शा., “से डरने।”

या “उसके हाकिम।”

यानी फरात नदी।

एक कोर 220 ली. के बराबर था। अति. ख14 देखें।

यानी फरात नदी।

यह संख्या कुछ हस्तलिपियों और 2इत 9:25 में दी गयी है। दूसरी हस्तलिपियों में 40,000 लिखा है।

या “घुड़सवार।”

या “नीतिवचन कहे।”

या “उड़नेवाले जीवों।”

शायद इनमें साँप, छिपकली जैसे जंतु और कीड़े शामिल हैं।

या “दाविद को हमेशा प्यार करता था।”

एक कोर 220 ली. के बराबर था। अति. ख14 देखें।

शा., “कूटकर निकाला गया तेल।”

या “करार किया।”

या “बोझ ढोनेवाले।”

अति. ख15 देखें।

अति. ख8 देखें।

शा., “इसराएल के बेटों।”

एक हाथ 44.5 सें.मी. (17.5 इंच) के बराबर था। अति. ख14 देखें।

शा., “भवन के मंदिर।”

या “चौड़ाई।”

यहाँ पवित्र भाग की बात की गयी है।

या “दायीं तरफ।”

यानी भवन के अंदर।

यानी पवित्र भाग, जो परम-पवित्र भाग के सामने था।

शा., “तेल की लकड़ी,” शायद हैलाब चीड़।

यानी परम-पवित्र भाग।

शा., “अंदर और बाहर।”

यहाँ शायद फाटक की चौखट की बनावट या फाटक के माप की बात की गयी है।

यहाँ पवित्र भाग की बात की गयी है।

यहाँ शायद फाटक की चौखट की बनावट या फाटक के माप की बात की गयी है।

अति. ख15 देखें।

अति. ख15 देखें।

एक हाथ 44.5 सें.मी. (17.5 इंच) के बराबर था। अति. ख14 देखें।

या “आयताकार।”

या “काँसे।” इस अध्याय के आगे की आयतों में भी जहाँ “ताँबा” आता है, वह “काँसा” हो सकता है।

या “उसकी गोलाई नापने के लिए 12 हाथ लंबी नापने की डोरी लगती थी।”

यहाँ पवित्र भाग की बात की गयी है।

या “दक्षिण की।”

मतलब “वह [यानी यहोवा] मज़बूती से कायम करे।”

या “उत्तर की।”

शायद इसका मतलब है, “ताकत के साथ।”

या “उसकी गोलाई नापने के लिए 30 हाथ लंबी नापने की डोरी लगती थी।”

करीब 7.4 सें.मी. (2.9 इंच)। अति. ख14 देखें।

एक बत 22 ली. के बराबर था। अति. ख14 देखें।

या “पानी के ठेले।”

या “एक ही टुकड़े के बने थे।”

या “एक ही टुकड़े की बनी थीं।”

या “चौड़ाई चार हाथ थी।”

अति. ख15 देखें।

यानी छप्परों के त्योहार।

या “अटल प्यार।”

या “संगी-साथी उसे शाप देता है।” यानी ऐसी शपथ जिसमें उस इंसान को शाप मिलता था जो झूठी शपथ खाता है या अपनी शपथ पूरी नहीं करता।

शा., “दुष्ट।”

शा., “नेक।”

या “दुख दे।”

शा., “उसके फाटकों के देश।”

या “जो कुछ तुझसे माँगें।”

या “हमात के प्रवेश।”

शब्दावली देखें।

शा., “आठवें,” यानी उन्होंने जो 7 दिन और त्योहार मनाया था, उसका अगला दिन।

शा., “कहावत।”

शा., “वे उसकी नज़रों में सही नहीं थे।”

या शायद, “न के बराबर देश।”

एक तोड़ा 34.2 किलो के बराबर था। अति. ख14 देखें।

या “मिल्लो।” इस इब्रानी शब्द का मतलब “भरना” है।

या “शादी के तोहफे; दहेज।”

या “मज़बूत किया।”

या “मिल्लो।” इस इब्रानी शब्द का मतलब “भरना” है।

या “पहेलियाँ पूछकर।”

शा., “ऐसी कोई बात उससे छिपी न थी।”

या “बातों।”

एक तोड़ा 34.2 किलो के बराबर था। अति. ख14 देखें।

एक शेकेल का वज़न 11.4 ग्रा. था। अति. ख14 देखें।

ये ढालें अकसर तीरंदाज़ ढोते थे।

इब्रानी शास्त्र में बताए एक मीना का वज़न 570 ग्रा. था। अति. ख14 देखें।

शा., “उसका मुँह देखना चाहते थे।”

या “घुड़सवार।”

या “घुड़सवार।”

या शायद, “मिस्र और कोए से मँगाए गए थे; राजा के व्यापारी कोए से घोड़े खरीदकर लाते थे।” शायद कोए, किलिकिया है।

या “उन जातियों के लोगों से शादी मत करना।”

या “उस पर ज़बरदस्त असर किया।”

या “फेर।”

शा., “काट।”

राज करनेवाली रानी नहीं।

या शायद, “का दूध छुड़ाया था।”

शा., “अपने पुरखों के साथ सो गया है।”

शा., “घात किया।”

या “मिल्लो।” इस इब्रानी शब्द का मतलब “भरना” है।

शा., “वह अपने पुरखों के साथ सो गया।”

या “मुखियाओं।”

या “मुखियाओं।”

या “मुखियाओं।”

शा., “तंबू को।”

शा., “चुने हुए।”

या “मज़बूत किया।”

या “मज़बूत किया।”

यानी बलिदान में जलाए गए जानवरों की पिघली चरबी से भीगी राख।

या “उसके बढ़ाए हुए हाथ को लकवा मार गया।”

शा., “यारोबाम उसके हाथ भर देता था।”

या “तू उससे ये-ये कहना।”

या “ढली हुई मूरतें।”

यानी फरात नदी।

शब्दावली देखें।

शा., “वह अपने पुरखों के साथ सो गया।”

शा., “अपने पुरखों के साथ सो गया।”

अबियाह भी कहलाता था।

शा., “अपने पुरखों के साथ सो गया।”

इनका इब्रानी शब्द शायद “मल” के लिए इस्तेमाल होनेवाले शब्द से संबंध रखता है और यह बताने के लिए इस्तेमाल होता है कि किसी चीज़ से कितनी घिन की जा रही है।

शब्दावली देखें।

या “मज़बूत करने; दोबारा बनाने।”

शा., “कोई यहूदा के राजा आसा के पास आने-जाने न पाए।”

या “करार।”

या “मज़बूत करने; दोबारा बनाने।”

या “मज़बूत किए; दोबारा बनाए।”

या “मज़बूत किए; दोबारा बनाए।”

शा., “अपने पुरखों के साथ सो गया।”

शा., “अपने पुरखों के साथ सो गया।”

यानी यारोबाम के बेटे नादाब को।

या “उसके खून का बदला लेनेवालों।”

एक तोड़ा 34.2 किलो के बराबर था। अति. ख14 देखें।

मतलब “शेमेर कुल का।”

शा., “अपने पुरखों के साथ सो गया।”

शब्दावली देखें।

मतलब “मेरा परमेश्‍वर यहोवा है।”

शा., “जिसके सामने मैं खड़ा रहता हूँ।”

या “मेरा तुझसे क्या काम?”

शा., “जिसके सामने मैं खड़ा रहता हूँ।”

शब्दावली देखें।

या “दो बैसाखियों के सहारे लँगड़ाते रहोगे?”

या शायद, “किसी सफर पर निकला हो।”

या “भविष्यवक्‍ताओं।”

एक सआ 7.33 ली. के बराबर था। अति. ख14 देखें।

या “भविष्यवक्‍ता की पोशाक।”

मतलब “परमेश्‍वर उद्धार है।”

या “भविष्यवक्‍ता की पोशाक।”

या “छप्परों।”

या “ज़िला अधिकार-क्षेत्रों।”

या “छप्परों।”

या “सीरिया में मार-काट मचा दी।”

यानी अगले वसंत।

शा., “सेना की गिनती ले।”

यानी अगले वसंत।

या “अटल प्यार से भरपूर।”

या “सड़कें ठहराना।”

या “करार।”

“भविष्यवक्‍ताओं के बेटों” का मतलब शायद भविष्यवक्‍ताओं का दल था या भविष्यवक्‍ताओं का एक संघ था जिसमें उन्हें तालीम दी जाती थी।

एक तोड़ा 34.2 किलो के बराबर था। अति. ख14 देखें।

शा., “के लिए खुद को बेच दिया है।”

शा., “के लिए खुद को बेच दिया है।”

इनका इब्रानी शब्द शायद “मल” के लिए इस्तेमाल होनेवाले शब्द से संबंध रखता है और यह बताने के लिए इस्तेमाल होता है कि किसी चीज़ से कितनी घिन की जा रही है।

या “धकेलता।”

या शायद, “जहाँ वेश्‍याएँ नहाती थीं, वहाँ कुत्तों ने उसका खून चाटा।”

शा., “अपने पुरखों के साथ सो गया।”

शब्दावली देखें।

शा., “अपने पुरखों के साथ सो गया।”

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