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“उसके सब मार्ग तो न्यायपूर्ण हैं”यहोवा के करीब आओ
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अध्याय 11
“उसके सब मार्ग तो न्यायपूर्ण हैं”
1, 2. (क) यूसुफ पर क्या-क्या घोर अन्याय हुए? (ख) यहोवा ने इंसाफ करने के लिए क्या किया?
यह घोर अन्याय था। उस खूबसूरत नौजवान ने कोई अपराध नहीं किया था, फिर भी उसे कारागार में डाल दिया गया। उस पर, बलात्कार की कोशिश का झूठा इलज़ाम लगाया गया था। मगर ऐसा अन्याय यूसुफ के साथ पहली बार नहीं हुआ था। बरसों पहले, जब वह 17 साल का था तब उसके अपने ही भाइयों ने उसके साथ विश्वासघात किया। वे तो उसे जान से ही मार डालते। मगर बाद में उन्होंने उसे विदेश में गुलामी करने के लिए बेच दिया। वहाँ उसकी मालकिन ने उसे नाजायज़ संबंधों के लिए लुभाया, मगर उसने हमेशा विरोध किया। उसके इनकार से वह औरत तिलमिला उठी और उसने यूसुफ पर झूठा इलज़ाम मढ़ दिया जिसकी वजह से उसे हिरासत में ले लिया गया। अफसोस, ऐसा लग रहा था कि यूसुफ की तरफ से बोलनेवाला कोई नहीं।
यूसुफ ने बेकसूर होते हुए भी “कारागार” में दुःख झेला
2 मगर, परमेश्वर जो “धर्म और न्याय से प्रीति रखता है,” यह सब देख रहा था। (भजन 33:5) यहोवा ने इंसाफ करने के लिए कदम उठाया, और घटनाओं का रुख इस तरह मोड़ दिया जिससे यूसुफ को रिहाई मिली। इतना ही नहीं, यूसुफ जिसे “कारागार” में डाला गया था, उसे आखिरकार भारी ज़िम्मेदारी और बड़े सम्मान का पद मिला। (उत्पत्ति 40:15; 41:41-43; भजन 105:17, 18) अंत में, यह ज़ाहिर हो गया कि यूसुफ बेगुनाह था और उसने अपने ऊँचे ओहदे का इस्तेमाल, परमेश्वर का उद्देश्य पूरा करने के लिए किया।—उत्पत्ति 45:5-8.
3. हम सब चाहते हैं कि हमारे साथ न्याय हो, यह ताज्जुब की बात क्यों नहीं है?
3 यूसुफ की यह दास्तान हमारे दिल को छू जाती है, है ना? हममें से ऐसा कौन है जिसके साथ कभी अन्याय न हुआ हो या जिसने कभी दूसरों पर अन्याय होते न देखा हो? वाकई, हम सभी चाहते हैं कि हमारे साथ न्याय हो और बिना पक्षपात के व्यवहार किया जाए। इसमें कोई ताज्जुब नहीं, क्योंकि यहोवा ने हम सभी के अंदर ऐसे गुण डाले हैं जो खुद उसमें मौजूद हैं। और न्याय, यहोवा के खास गुणों में से एक है। (उत्पत्ति 1:27) यहोवा को अच्छी तरह जानने के लिए उसके न्याय के जज़्बे को समझना ज़रूरी है। इस तरह हम उसके अद्भुत मार्गों को और अच्छी तरह समझ पाएँगे और हमें उसके करीब आने की प्रेरणा मिलेगी।
न्याय क्या है?
4. इंसानी नज़रिए से न्याय के अकसर क्या मायने समझे जाते हैं?
4 इंसान की नज़र में अकसर न्याय का मतलब होता है, कानून को बिना पक्षपात लागू करना। राइट एण्ड रीज़न—एथिक्स इन थियरी एण्ड प्रैक्टिस किताब कहती है कि “न्याय—कानून, ज़िम्मेदारियों, अधिकारों और फर्ज़ से जुड़ा है, और यह निष्पक्षता या फिर किसी की अच्छाई को ध्यान में रखकर किया जाता है।” मगर यहोवा का न्याय, कर्तव्य या फर्ज़ पूरा करने के लिए सिर्फ कानूनों को लागू करना नहीं है।
5, 6. (क) बाइबल की मूल भाषाओं में, जिन शब्दों का अनुवाद “न्याय” किया गया है, उनका मतलब क्या है? (ख) इसका क्या मतलब है कि परमेश्वर न्यायी है?
5 यहोवा के न्याय में क्या-क्या शामिल है और यह कितना अथाह है, यह तभी समझा जा सकता है, जब हम बाइबल की मूल भाषा के शब्दों पर ध्यान दें। इब्रानी शास्त्र में, न्याय के लिए तीन खास शब्द इस्तेमाल हुए हैं। एक शब्द जिसका अनुवाद अकसर “न्याय” किया गया है, उसे “जो सही है” भी अनुवाद किया जा सकता है। (उत्पत्ति 18:25, NW) बाकी दो शब्दों का अनुवाद आम तौर पर “धार्मिकता” किया जाता है। मसीही यूनानी शास्त्र में, जिस शब्द का अनुवाद “धार्मिकता” किया गया है, उसकी परिभाषा यूँ दी गयी है: “सही या न्यायपूर्ण होने का गुण।” तो फिर, बुनियादी तौर पर धार्मिकता और न्याय में कोई फर्क नहीं है।—आमोस 5:24.
6 इसलिए, जब बाइबल कहती है कि परमेश्वर न्यायी है, तो यह असल में कह रही है कि वह हमेशा वही करता है जो सही और उचित है। और इसमें वह किसी का पक्ष नहीं लेता। (रोमियों 2:11) दरअसल, यह सोचा भी नहीं जा सकता कि वह कभी कोई अन्याय कर सकता है। वफादार एलीहू ने कहा था: “यह कदापि सम्भव नहीं कि परमेश्वर दुष्टता करे, और सर्वशक्तिमान अन्याय करे”! (अय्यूब 34:10, NHT) जी हाँ, हो ही नहीं सकता कि यहोवा “अन्याय करे।” क्यों? इसकी दो खास वजह हैं।
7, 8. (क) क्यों यहोवा अन्याय नहीं कर सकता? (ख) किस वजह से यहोवा दूसरों के साथ धार्मिकता या न्याय से पेश आता है?
7 पहली वजह, वह पवित्र है। जैसे हम अध्याय 3 में देख चुके हैं, यहोवा के जैसा शुद्ध और खरा और कोई नहीं। इसलिए उसके अन्यायी या अधर्मी होने का सवाल ही पैदा नहीं होता। ध्यान दीजिए कि इसका क्या मतलब है। हमारे स्वर्गीय पिता की पवित्रता हमें यह भरोसा रखने की हर वजह देती है कि वह कभी-भी अपने बच्चों के साथ बुरा व्यवहार नहीं करेगा। यीशु को इस बात का पक्का विश्वास था। धरती पर अपनी ज़िंदगी की आखिरी रात, यीशु ने प्रार्थना की: “हे पवित्र पिता, अपने उस नाम से . . . उन की [चेलों की] रक्षा कर।” (यूहन्ना 17:11) शास्त्र में सिर्फ यहोवा को “पवित्र पिता” कहकर पुकारा गया है। और यह सही भी है, क्योंकि कोई इंसानी पिता पवित्रता में परमेश्वर की बराबरी नहीं कर सकता। यीशु को पूरा विश्वास था कि उसके चेले, उसके पिता की निगरानी में सुरक्षित रहेंगे, जो पूरी तरह से शुद्ध और निर्मल, और पाप से एकदम अलग है।—मत्ती 23:9.
8 दूसरी वजह, निःस्वार्थ प्रेम परमेश्वर के स्वभाव में है। ऐसा प्रेम उसे उकसाता है कि वह दूसरों के साथ धार्मिकता या न्याय से पेश आए। मगर प्रेम के उलटे, लालच और स्वार्थ जैसे गुण, अन्याय को जन्म देते हैं और यह जाति-भेद, ऊँच-नीच और पक्षपात के अलग-अलग रूप में नज़र आता है। प्रेम के परमेश्वर के बारे में बाइबल हमें यकीन दिलाती है: “यहोवा धर्मी है, वह धर्म के ही कामों से प्रसन्न रहता है।” (भजन 11:7) यहोवा अपने बारे में कहता है: “मैं यहोवा न्याय से प्रीति रखता हूं।” (यशायाह 61:8) क्या यह जानकर हमें सांत्वना नहीं मिलती कि हमारा परमेश्वर ऐसा काम करने में खुशी पाता है, जो सही या न्यायपूर्ण है?—यिर्मयाह 9:24.
दया और यहोवा का सिद्ध न्याय
9-11. (क) यहोवा के न्याय और उसकी दया के बीच क्या नाता है? (ख) यहोवा पापी इंसानों के साथ जैसे पेश आता है, उससे उसका न्याय और उसकी दया कैसे ज़ाहिर होते हैं?
9 यहोवा की बेमिसाल शख्सियत के बाकी गुणों की तरह उसका न्याय भी सिद्ध है और उसमें कोई खोट या कमी नहीं है। यहोवा का गुणगान करते हुए, मूसा ने लिखा: “वह चट्टान है! उसका काम सिद्ध है, उसके सब मार्ग तो न्यायपूर्ण हैं। वह विश्वासयोग्य परमेश्वर है, उसमें कुटिलता नहीं। वह धर्मी और खरा है।” (व्यवस्थाविवरण 32:3, 4, NHT) यहोवा के न्याय में कभी चूक नहीं होती। वह सिद्ध न्याय करता है—वह न तो हद-से-ज़्यादा ढिलाई दिखाता है, न ही हद-से-ज़्यादा सख्ती।
10 यहोवा के न्याय और उसकी दया के बीच गहरा नाता है। भजन 116:5 कहता है: “यहोवा अनुग्रहकारी और धर्मी [“न्यायप्रिय,” बुल्के बाइबिल] है; और हमारा परमेश्वर दया करनेवाला है।” जी हाँ, यहोवा न्यायप्रिय और दयालु दोनों है। ये दो गुण एक-दूसरे के विरोध में नहीं हैं। यहोवा के दया दिखाने का मतलब यह नहीं कि वह अपने न्याय को नरम बना रहा है, मानो दया के बगैर उसका न्याय हद-से-ज़्यादा कठोर हो। इसके बजाय, ये दो गुण यहोवा अकसर एक ही वक्त पर, यहाँ तक कि एक ही काम से ज़ाहिर करता है। इसकी एक मिसाल पर गौर कीजिए।
11 सभी इंसानों को विरासत में पाप मिला है, इसलिए वे सभी पाप की सज़ा यानी मौत पाने के लायक हैं। (रोमियों 5:12) मगर यहोवा पापियों के मरने से खुश नहीं होता। वह “क्षमा करनेवाला अनुग्रहकारी और दयालु, . . . ईश्वर है।” (नहेमायाह 9:17) फिर भी, पवित्र होने की वजह से वह अधर्म होता देख चुप नहीं बैठ सकता। तो फिर, जन्म से ही पाप में पड़े इंसानों पर वह दया कैसे दिखा सकता है? इसका जवाब हमें परमेश्वर के वचन की सबसे अनमोल सच्चाई में मिलता है: इंसान के उद्धार के लिए यहोवा का छुड़ौती का इंतज़ाम। अध्याय 14 में हम इस प्यार-भरे इंतज़ाम के बारे में और ज़्यादा सीखेंगे। यह इंतज़ाम न सिर्फ पूरी तरह न्याय की माँगों को पूरा करता है बल्कि दया की एक बेजोड़ मिसाल भी है। इसके ज़रिए, यहोवा अपने सिद्ध न्याय के स्तरों पर कायम रहते हुए, पश्चाताप करनेवाले पापियों को बड़ी कोमलता से दया दिखा सकता है।—रोमियों 3:21-26.
यहोवा का न्याय खुशी देता है
12, 13. (क) यहोवा का न्याय हमें उसके करीब क्यों लाता है? (ख) यहोवा के न्याय के बारे में दाऊद किस नतीजे पर पहुँचा, और इससे हमें कैसे दिलासा मिलता है?
12 यहोवा न्याय करने में ऐसा निष्ठुर नहीं है कि हम उससे दूरी महसूस करें, बल्कि उसका यह गुण ऐसा मनभावना है कि यह हमें उसके करीब आने के लिए उकसाता है। बाइबल में साफ बताया गया है कि यहोवा का न्याय या उसकी धार्मिकता, करुणामय है। आइए हम यहोवा के न्याय करने के कुछ तरीकों पर गौर करें, जिनके बारे में जानकर हमारे दिल को खुशी मिलती है।
13 यहोवा का सिद्ध न्याय उसे उकसाता है कि अपने सेवकों के लिए वह विश्वासयोग्य और वफादार साबित हो। भजनहार दाऊद ने, यहोवा के न्याय के इस पहलू को खुद अपने अनुभव से समझा था और वह इसकी कदर जानता था। अपने अनुभव और परमेश्वर के मार्गों का अध्ययन करने से, दाऊद किस नतीजे पर पहुँचा? उसने कहा: “यहोवा न्याय से प्रीति रखता; और अपने भक्तों को न तजेगा। उनकी तो रक्षा सदा होती है।” (भजन 37:28) कितना बड़ा दिलासा है ये! हमारा परमेश्वर एक पल के लिए भी अपने भक्तों यानी वफादार सेवकों को नहीं त्यागेगा। इसलिए हम पूरा भरोसा रख सकते हैं कि वह सदा हमारे करीब रहेगा और हमारी प्यार से परवाह करता रहेगा। उसका न्याय इस बात की गारंटी देता है!—नीतिवचन 2:7, 8.
14. इस्राएल को दी गयी कानून-व्यवस्था से कैसे ज़ाहिर होता है कि यहोवा, मुसीबत के मारों की परवाह करता है?
14 परमेश्वर का न्याय, दीन-दुखियों की ज़रूरतों को समझता है। इन मुसीबत के मारों के लिए यहोवा की परवाह, इस्राएल को दी गयी उसकी कानून-व्यवस्था से साफ दिखायी देती है। मिसाल के लिए, व्यवस्था में अनाथों और विधवाओं की ज़रूरतें पूरी करने के लिए खास इंतज़ाम किए गए थे। (व्यवस्थाविवरण 24:17-21) यहोवा जानता था कि ऐसे परिवारों के लिए ज़िंदगी कितनी दूभर हो सकती है, इसलिए यहोवा ने खुद उनका पिता, न्यायी और रक्षक बनकर, ‘अनाथों और विधवा का न्याय चुकाया।’ (व्यवस्थाविवरण 10:18; भजन 68:5) यहोवा ने इस्राएलियों को आगाह किया कि अगर वे इन बेसहारा स्त्रियों और बच्चों पर अत्याचार करेंगे, तो वह उनकी दुहाई ज़रूर सुनेगा। उसने कहा: “तब मेरा क्रोध भड़केगा।” (निर्गमन 22:22-24) क्रोध यहोवा के खास गुणों में शामिल नहीं है, फिर भी जब कोई जान-बूझकर अन्याय करता है और खासकर ऐसे लोगों पर जो लाचार और बेसहारा हैं, तो उसका धर्मी क्रोध भड़क उठता है।—भजन 103:6.
15, 16. यहोवा के निष्पक्ष होने की एक बढ़िया मिसाल क्या है?
15 यहोवा हमें यह भी यकीन दिलाता है कि वह “किसी का पक्ष नहीं करता और न घूस लेता है।” (व्यवस्थाविवरण 10:17) यहोवा किसी की दौलत या बाहरी दिखावे के छलावे में नहीं आता, जैसे अकसर दुनिया के बड़े अधिकारी या रुतबा रखनेवाले लोग आ जाते हैं। किसी की तरफदारी या पक्षपात करने की भावना उसमें दूर-दूर तक नहीं है। इसकी एक बहुत बढ़िया मिसाल पर गौर कीजिए। यहोवा के सच्चे उपासक बनने और आगे चलकर अनंत जीवन पाने का मौका, ऊँचे घराने या बड़ी पदवी रखनेवाले सिर्फ गिने-चुने लोगों के लिए नहीं रखा गया है। इसके उलटे, “हर जाति में जो उस से डरता और धर्म [“धार्मिकता,” NHT] के काम करता है, वह उसे भाता है।” (प्रेरितों 10:34, 35) यह शानदार आशा सबके लिए है, चाहे समाज में उनका दर्जा कोई भी क्यों न हो, उनका रंग कैसा भी क्यों न हो या वे किसी भी देश में क्यों न रहते हों। क्या यह सच्चे न्याय की सबसे बेहतरीन मिसाल नहीं?
16 यहोवा के सिद्ध न्याय का एक और पहलू है जिस पर हमें गौर करना चाहिए और जिसका आदर करना चाहिए। वह है, यहोवा के धर्मी स्तरों को तोड़नेवालों के साथ उसका व्यवहार।
सज़ा से छूट नहीं
17. समझाइए कि इस दुनिया में होनेवाले अन्याय, क्यों यहोवा के न्याय पर उँगली उठाने की कोई वजह नहीं देते?
17 कुछ लोग शायद सोचें: ‘अगर यहोवा अधर्म के कामों को अनदेखा नहीं करता, तो फिर क्या वजह है कि आज की दुनिया में हर तरफ अन्याय और बुराई है?’ ऐसे अन्याय किसी भी तरह यहोवा के न्याय पर उँगली उठाने की वजह नहीं देते। इस दुष्ट संसार में किए जानेवाले बहुत-से अन्याय, उस पाप के नतीजे हैं जो इंसानों को आदम से विरासत में मिला है। इस दुनिया में, जहाँ असिद्ध इंसान ने खुद अपनी मरज़ी से पाप का मार्ग चुन लिया है, वहाँ अन्याय तो होगा ही। मगर ऐसा ज़्यादा देर तक नहीं चलेगा।—व्यवस्थाविवरण 32:5.
18, 19. क्या बात दिखाती है कि यहोवा सदा तक ऐसे लोगों को बरदाश्त नहीं करेगा, जो जानबूझकर उसके धर्मी कानूनों को तोड़ते हैं?
18 जहाँ एक तरफ यहोवा सच्चे दिल से अपने पास आनेवालों पर बड़ी दया दिखाता है, वहीं वह ऐसे हालात को हमेशा तक बरदाश्त नहीं करेगा जिससे उसका पवित्र नाम बदनाम होता है। (भजन 74:10, 22, 23) न्याय करनेवाले परमेश्वर को ठट्ठों में नहीं उड़ाया जा सकता; जान-बूझकर पाप करनेवालों पर आनेवाले दंड से वह उन्हें नहीं बचाएगा, क्योंकि वे इसी लायक हैं कि उन्हें अपने किए की सज़ा मिले। यहोवा “परमेश्वर, दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीमा, और करुणा तथा सत्य से भरपूर [है]; . . . फिर भी दोषी को वह किसी भी प्रकार दण्ड दिए बिना नहीं छोड़ेगा।” (निर्गमन 34:6, 7, NHT) इन शब्दों के मुताबिक, कभी-कभी यह ज़रूरी हो जाता है कि यहोवा, अपने धर्मी कानूनों को जानबूझकर तोड़नेवालों को दंड दे।
19 मिसाल के लिए, प्राचीन इस्राएल के साथ परमेश्वर के व्यवहार को लीजिए। इस्राएली, वादा किए देश में बस जाने के बाद भी बार-बार यहोवा से विश्वासघात करते रहे। हालाँकि उनके भ्रष्ट तौर-तरीकों ने यहोवा को “उदास” कर दिया, फिर भी उसने उन्हें फौरन त्याग नहीं दिया। (भजन 78:38-41) इसके बजाय, उसने बड़ी दया दिखाकर उन्हें बार-बार मौके दिए कि वे अपना मार्ग बदल लें। उसने गुज़ारिश की: “मैं दुष्ट के मरने से कुछ भी प्रसन्न नहीं होता, परन्तु इस से कि दुष्ट अपने मार्ग से फिरकर जीवित रहे; हे इस्राएल के घराने, तुम अपने अपने बुरे मार्ग से फिर जाओ; तुम क्यों मरो?” (यहेजकेल 33:11) यहोवा की नज़र में जीवन अनमोल है, इसलिए उसने बार-बार अपने भविष्यवक्ताओं को भेजा ताकि उनकी बात मानकर इस्राएली अपने दुष्ट मार्गों से फिर जाएँ। मगर, कुल मिलाकर कठोर मन रखनेवाली इस जाति ने सुनने और पश्चाताप करने से इनकार कर दिया। आखिरकार, अपने पवित्र नाम और इसके जो-जो मायने हैं, उसकी खातिर यहोवा ने उन्हें उनके दुश्मनों के हवाले कर दिया।—नहेमायाह 9:26-30.
20. (क) इस्राएल के साथ यहोवा के व्यवहार से हम उसके बारे में क्या सीखते हैं? (ख) सिंह, यहोवा के न्याय की सही निशानी क्यों है?
20 इस्राएल के साथ यहोवा के व्यवहार से हम उसके बारे में बहुत कुछ सीखते हैं। हम सीखते हैं कि यहोवा की आँखें अधर्म के हर काम को देखती हैं और जो कुछ हो रहा है, उसका उस पर गहरा असर पड़ता है। (नीतिवचन 15:3) यह जानकर भी हमें दिलासा मिलता है कि अगर दया दिखाने का कोई आधार हो, तो वह ज़रूर दया दिखाने के लिए तैयार रहता है। इसके अलावा, हम सीखते हैं कि वह कभी-भी जल्दबाज़ी में न्याय नहीं करता। यहोवा के सब्र और धीरज की वजह से, बहुत-से लोग यह मानने की गलती कर बैठते हैं कि वह कभी-भी दुष्टों को दंड नहीं देगा। मगर यह ज़रा भी सच नहीं, क्योंकि इस्राएल के साथ परमेश्वर का व्यवहार हमें यह भी सिखाता है कि परमेश्वर के धीरज की कुछ सीमाएँ हैं। यहोवा धार्मिकता के मामले में कभी समझौता नहीं करता। इंसान अकसर, न्याय करने से पीछे हट जाते हैं, मगर यहोवा ऐसा नहीं है। जो सही है, उसके पक्ष में खड़े होने के साहस की उसमें कमी नहीं। इसलिए, परमेश्वर और उसके सिंहासन के साथ सिंह को दर्शाया गया है, जो उसके साहस से न्याय करने की बिलकुल सही निशानी है।a (यहेजकेल 1:10; प्रकाशितवाक्य 4:7) इसलिए हम यकीन रख सकते हैं कि वह इस धरती से अन्याय का नामो-निशान मिटाने के अपने वादे को ज़रूर पूरा करेगा। तो फिर, उसके न्याय करने के तरीके को चंद शब्दों में कहा जाए तो, जहाँ ज़रूरी हो वहाँ सख्ती, जहाँ कहीं मुमकिन हो वहाँ दया।—2 पतरस 3:9.
न्याय के परमेश्वर के करीब आना
21. जब हम यहोवा के न्याय करने के तरीके पर मनन करते हैं, तो हमें उसे क्या समझना चाहिए और क्यों?
21 यहोवा जिस तरह न्याय करता है जब हम उस पर मनन करते हैं, तो हमें यहोवा को ऐसा कठोर न्यायी नहीं समझना चाहिए जिसमें भावनाएँ न हों और जो सिर्फ अपराधियों को सज़ा सुनाने से मतलब रखता हो। इसके बजाय, हमें सोचना चाहिए कि यहोवा एक ऐसा प्यार करनेवाला पिता है जो ज़रूरत पड़ने पर सख्ती बरतता है और जो हमेशा अपने बच्चों के साथ ऐसे व्यवहार करता है जिससे उन्हें ही सबसे ज़्यादा फायदा हो। न्यायप्रिय या धर्मी पिता होने के नाते, यहोवा न सिर्फ जो सही है उसके लिए सख्ती दिखाता है, बल्कि इस ज़मीन पर उसके जिन बच्चों को मदद और माफी की ज़रूरत है, उनके लिए वह कोमल करुणा भी दिखाता है।—भजन 103:10, 13.
22. अपने न्याय की वजह से, यहोवा ने हमारे लिए क्या शानदार आशा पाने का रास्ता खोल दिया है, और वह हमसे इस तरह व्यवहार क्यों करता है?
22 हमें कितना धन्यवाद करना चाहिए कि परमेश्वर के न्याय में सिर्फ बुराई करनेवालों को सज़ा सुनाना शामिल नहीं! अपने न्याय की वजह से, यहोवा ने हमारे लिए सचमुच एक शानदार आशा रखी है—यानी ऐसी दुनिया में सिद्ध, अनंत जीवन जहाँ “धार्मिकता बास करेगी।” (2 पतरस 3:13) हमारा परमेश्वर हमारे साथ ऐसा व्यवहार इसलिए करता है क्योंकि उसका न्याय, सज़ा देने के बजाय इंसान का उद्धार करने की खोज में रहता है। सच, जब हम और अच्छी तरह समझते हैं कि यहोवा के न्याय में क्या-क्या शामिल है, तो हम उसके ज़्यादा करीब आते हैं! आगे के अध्यायों में हम और नज़दीकी से देखेंगे कि यहोवा इस श्रेष्ठ गुण को अपने व्यवहार में कैसे ज़ाहिर करता है।
a गौर करने लायक बात है कि यहोवा विश्वासघाती इस्राएल को न्यायदंड देते वक्त अपनी तुलना एक सिंह से करता है।—यिर्मयाह 25:38; होशे 5:14.
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“क्या परमेश्वर के यहां अन्याय है?”यहोवा के करीब आओ
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अध्याय 12
“क्या परमेश्वर के यहां अन्याय है?”
1. अन्याय होता देखकर हम पर क्या असर हो सकता है?
एक बूढ़ी विधवा के साथ धोखाधड़ी करके कोई उसकी ज़िंदगी भर की जमा-पूँजी हड़प कर जाता है। एक लाचार शिशु को उसकी निर्दयी माँ रास्ते पर छोड़ जाती है। एक आदमी को उस जुर्म की सज़ा दी जाती है जो उसने किया ही नहीं। यह सब देखकर आपको कैसा लगता है? शायद ये तीनों नज़ारे आपको बेचैन कर दें और यह स्वाभाविक है। हम इंसानों में सही और गलत का ज़बरदस्त जज़्बा है। कोई अन्याय होता देखकर हमारा खून खौल उठता है। हम चाहते हैं कि किसी मासूम ने जो खोया है उसे वापस दिलाया जाए और ज़ुल्म करनेवालों को उनके किए की सज़ा मिले। अगर ऐसा नहीं होता, तो हम सोचने लगते हैं: ‘क्या परमेश्वर यह सब देख रहा है? वह कुछ करता क्यों नहीं?’
2. हबक्कूक पर अन्याय का क्या असर हुआ, और यहोवा ने इसके लिए उसे क्यों नहीं फटकारा?
2 इतिहास के हर दौर में, यहोवा के वफादार सेवकों ने ऐसे ही सवाल पूछे हैं। मिसाल के लिए, भविष्यवक्ता हबक्कूक ने परमेश्वर से प्रार्थना की: “तू क्यों मुझे ऐसा घोर अन्याय दिखा रहा है? तू क्यों हिंसा, अधर्म और क्रूरता को हर तरफ बढ़ने देता है?” (हबक्कूक 1:3, कॉन्टेम्प्ररी इंग्लिश वर्शन) यहोवा ने हबक्कूक को ऐसे पैने सवाल पूछने के लिए फटकारा नहीं, क्योंकि उसी ने इंसानों में न्याय की भावना डाली है। जी हाँ, यहोवा ने न्याय के अपने गहरे जज़्बे को कुछ हद तक हमारे अंदर भी भरा है।
यहोवा अन्याय से घृणा करता है
3. क्यों कहा जा सकता है कि हमसे ज़्यादा यहोवा को अन्याय की जानकारी है?
3 ऐसा हरगिज़ नहीं है कि यहोवा अन्याय को नहीं देखता। जो कुछ हो रहा है वह सब देखता है। नूह के दिनों के बारे में, बाइबल हमसे कहती है: “यहोवा ने देखा, कि मनुष्यों की बुराई पृथ्वी पर बढ़ गई है, और उनके मन के विचार में जो कुछ उत्पन्न होता है सो निरन्तर बुरा ही होता है।” (उत्पत्ति 6:5) गौर कीजिए कि इन शब्दों के क्या मायने हैं। अकसर, अन्याय के बारे में हमारी जानकारी सिर्फ उन कुछेक घटनाओं पर आधारित होती है जिन्हें हमने खुद होते देखा है या दूसरों से सुना है। लेकिन, यहोवा पूरी दुनिया में होनेवाले अन्याय की जानकारी रखता है। वह एक-एक अन्याय को देखता है! यही नहीं, वह इंसान के दिल का रुझान भी जान सकता है—उन घृणित विचारों को भी जिनकी वजह से इंसान दूसरों पर अन्याय करता है।—यिर्मयाह 17:10.
4, 5. (क) बाइबल कैसे दिखाती है कि यहोवा उन लोगों की परवाह करता है जिनके साथ अन्याय हुआ है? (ख) अन्याय का खुद यहोवा पर कैसा असर हुआ है?
4 मगर यहोवा अन्याय को बस देखता ही नहीं रहता। जिन पर अन्याय हुआ है, उनकी भी वह परवाह करता है। जब उसके लोगों पर दुश्मन देशों ने अत्याचार किए, तो यहोवा “उनका कराहना” सुनकर “जो अन्धेर और उपद्रव करनेवालों के कारण होता था,” बहुत दुःखी हुआ। (न्यायियों 2:18) शायद आपने गौर किया होगा कि लोग जितना ज़्यादा अन्याय होते देखते हैं, तड़पनेवालों के लिए उनकी हमदर्दी उतनी ही कम होती जाती है। मगर यहोवा ऐसा नहीं है! उसने लगभग 6,000 सालों से देखा है कि धरती पर कैसे-कैसे अन्याय हो रहे हैं, मगर आज भी वह इससे उतनी ही घृणा करता है जितनी पहले करता था। और बाइबल हमें यकीन दिलाती है कि “झूठ बोलनेवाली जीभ,” “निर्दोष का लोहू बहानेवाले हाथ,” और ‘झूठ बोलनेवाले साक्षी’ से उसे घिन है।—नीतिवचन 6:16-19.
5 इस पर भी ध्यान दीजिए कि यहोवा ने इस्राएल में अन्याय करनेवाले अगुवों को कैसी ज़बरदस्त फटकार सुनायी। उसने अपने भविष्यवक्ता को उनसे यह सवाल पूछने के लिए प्रेरित किया: “क्या न्याय का भेद जानना तुम्हारा काम नहीं?” यहोवा ने, शक्ति का गलत इस्तेमाल करनेवालों का कच्चा चिट्ठा खोलकर उनके सामने रख दिया। उसके बाद, इन भ्रष्ट लोगों के अंजाम के बारे में यहोवा ने यूँ भविष्यवाणी की: “वे उस समय यहोवा की दोहाई देंगे, परन्तु वह उनकी न सुनेगा, वरन उस समय वह उनके बुरे कामों के कारण उन से मुंह फेर लेगा।” (मीका 3:1-4) वाकई, अन्याय के खिलाफ यहोवा के मन में कैसी घृणा भरी हुई है! और क्यों न हो, खुद उस पर भी तो अन्याय हुआ है! हज़ारों सालों से, शैतान बेवजह उसकी निंदा करता आया है। (नीतिवचन 27:11) यही नहीं, इतिहास के सबसे घिनौने अन्याय ने यहोवा को तब तड़पा दिया जब उसके बेटे को, जिसने ‘कोई पाप न किया था,’ एक अपराधी की तरह मार डाला गया। (1 पतरस 2:22; यशायाह 53:9) साफ ज़ाहिर है, यहोवा अन्याय सहनेवालों की दुर्दशा को देखकर न तो अपनी आँखें मूँद लेता है, न ही चुप बैठा रहता है।
6. अन्याय होने पर हम शायद क्या करें, और क्यों?
6 फिर भी, जब हम अन्याय होता देखते हैं—या खुद अन्याय के शिकार होते हैं—तो यह स्वाभाविक है कि हम तिलमिला उठें। हम परमेश्वर के स्वरूप में बनाए गए हैं और अन्याय यहोवा के स्वरूप और स्वभाव के बिलकुल खिलाफ है। (उत्पत्ति 1:27) तो फिर, परमेश्वर अन्याय क्यों होने देता है?
परमेश्वर की हुकूमत का मसला
7. बताइए कि यहोवा के हुकूमत करने के हक पर कैसे सवाल उठाया गया।
7 इस सवाल का जवाब, परमेश्वर की हुकूमत के मसले से जुड़ा हुआ है। हम देख चुके हैं कि हमारे सिरजनहार को सारी धरती पर और इसके रहनेवालों पर हुकूमत करने का हक है। (भजन 24:1; प्रकाशितवाक्य 4:11) लेकिन, इंसानी इतिहास की शुरूआत में ही, यहोवा के इस हक पर सवाल उठाया गया था। वह कैसे? यहोवा ने पहले इंसान, आदम को आज्ञा दी कि वह एक पेड़ का फल ना खाए जो उसके फिरदौस जैसे घर में था। और अगर वह परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानता तो? परमेश्वर ने उसे साफ-साफ बताया: “[तू] अवश्य मर जाएगा।” (उत्पत्ति 2:17) परमेश्वर की आज्ञा मानना, आदम और हव्वा के लिए बिलकुल भी मुश्किल न था। इसके बावजूद, शैतान ने हव्वा को यकीन दिलाया कि परमेश्वर नाहक उन पर इतनी पाबंदियाँ लगा रहा है। अगर वह उस पेड़ का फल खा लेगी तो क्या होगा? शैतान ने हव्वा से सीधे-सीधे कहा: “तुम निश्चय न मरोगे। वरन परमेश्वर आप जानता है, कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आंखें खुल जाएंगी, और तुम भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्वर के तुल्य हो जाओगे।”—तिरछे टाइप हमारे; उत्पत्ति 3:1-5.
8. (क) शैतान ने हव्वा से जो कहा उससे वह असल में क्या कहना चाह रहा था? (ख) परमेश्वर की हुकूमत के बारे में शैतान ने क्या सवाल खड़ा किया?
8 इन शब्दों से शैतान यह कहना चाह रहा था कि न सिर्फ यहोवा ने हव्वा से ज़रूरी जानकारी छिपा रखी है, बल्कि उससे झूठ भी बोला है। शैतान ने चालाकी से काम लिया, उसने इस सच्चाई पर सवाल नहीं उठाया कि परमेश्वर विश्व का महाराजाधिराज है या नहीं। मगर उसने यह सवाल किया कि क्या वह हुकूमत करने का हकदार है, क्या वह इसके लायक है और क्या वह धार्मिकता से हुकूमत करता है? दूसरे शब्दों में, शैतान का दावा था कि यहोवा सही तरीके से हुकूमत नहीं चला रहा और न ही इससे उसकी प्रजा का कोई भला हो रहा है।
9. (क) आदम और हव्वा के लिए आज्ञा न मानने का अंजाम क्या हुआ, और शैतान के झूठ ने कौन-से अहम सवाल खड़े कर दिए? (ख) क्यों यहोवा ने बागियों को वहीं खत्म नहीं कर दिया?
9 इसके बाद, आदम और हव्वा दोनों ने यहोवा की आज्ञा तोड़ी और जिस पेड़ का फल खाने से उन्हें मना किया गया था, वही उन्होंने खाया। यहोवा के आदेश के मुताबिक, आज्ञा न मानने से वे मौत की सज़ा के लायक ठहरे। शैतान के झूठ ने कुछ अहम सवाल खड़े कर दिए थे। क्या यहोवा सचमुच इंसानों पर हुकूमत करने का हकदार है या क्या इंसान को खुद अपने आप पर राज करना चाहिए? क्या यहोवा अपनी हुकूमत बेहतरीन तरीके से चलाता है? यहोवा चाहता तो अपनी अपार शक्ति से उन बागियों को वहीं और उसी वक्त खत्म कर सकता था। मगर जो सवाल खड़े किए गए थे, वे परमेश्वर की शक्ति के बारे में नहीं, बल्कि उसकी हुकूमत के बारे में थे। इसलिए आदम, हव्वा और शैतान को मार डालने से यह साबित नहीं होता कि परमेश्वर का हुकूमत करने का तरीका ही सही है। उलटे, इससे उसकी हुकूमत के बारे में और भी सवाल खड़े हो जाते। इंसान, परमेश्वर से आज़ाद रहकर खुद पर हुकूमत करने में कामयाब हो सकता है या नहीं, यह जानने का एक ही तरीका था कि इसे साबित करने का वक्त दिया जाए।
10. इंसान की हुकूमत के बारे में इतिहास से क्या बात सामने आयी?
10 वक्त के गुज़रने से क्या बात सामने आयी? हज़ारों सालों से, लोगों ने तरह-तरह की सरकारें आज़माकर देखी हैं। इनमें तानाशाह, लोकतंत्र, समाजवाद और साम्यवाद जैसी सरकारें शामिल हैं। इन सब सरकारों ने जो किया है, वह बाइबल के इन चंद शब्दों में बहुत साफ कहा गया है: “मनुष्य ने दूसरे पर अधिकार जमा कर अपनी ही हानि की है।” (सभोपदेशक 8:9, NHT) भविष्यवक्ता यिर्मयाह ने कितना सही कहा था: “हे यहोवा, मैं जान गया हूं, कि मनुष्य का मार्ग उसके वश में नहीं है, मनुष्य चलता तो है, परन्तु उसके डग उसके अधीन नहीं हैं।”—यिर्मयाह 10:23.
11. यहोवा ने इंसानों को दुःख-तकलीफों से क्यों गुज़रने दिया?
11 यहोवा शुरू से जानता था कि इंसान की आज़ादी या उसकी अपनी हुकूमत, दुःख-दर्द के सिवा और कुछ नहीं लाएगी। जब उसे पता था कि यह होना है, तो उसने इंसान को तबाही की इस राह पर क्यों जाने दिया? क्या यह सरासर अन्याय नहीं था? हरगिज़ नहीं! एक मिसाल पर गौर कीजिए: मान लीजिए आपके बच्चे को एक जानलेवा रोग है और उसका ऑपरेशन करवाने की सख्त ज़रूरत है। आप जानते हैं कि ऑपरेशन से आपके बच्चे को बहुत तकलीफ होगी और इसलिए आप दुःखी हैं। मगर, आपको यह भी पता है कि इस ऑपरेशन के बाद आपका बच्चा बिलकुल ठीक हो जाएगा और अच्छी सेहत के साथ जी सकेगा। उसी तरह, परमेश्वर भी जानता था, यहाँ तक कि उसने भविष्यवाणी भी की कि जब वह इंसान को हुकूमत करने देगा, तो उसके साथ-साथ दुःख-दर्द और मुसीबतें भी आएँगी। (उत्पत्ति 3:16-19) मगर वह यह भी जानता था कि अगर वह इंसान को यह देखने दे कि बगावत करने का फल कितना कड़वा है, तो इस समस्या का हमेशा के लिए और सही मायनों में हल हो सकेगा। इस तरह, परमेश्वर की हुकूमत पर उठाए गए सवाल का हमेशा-हमेशा के लिए, जी हाँ, अनंतकाल के लिए जवाब मिल सकेगा।
इंसान की खराई का मसला
12. जैसा अय्यूब के मामले से पता लगता है, शैतान ने इंसानों पर क्या लांछन लगाया है?
12 इस मामले का एक और पहलू है। परमेश्वर हुकूमत करने का हकदार है या नहीं और उसके हुकूमत करने का तरीका सही है या नहीं, इस पर सवाल उठाकर शैतान ने न सिर्फ इस बारे में यहोवा की निंदा की है; बल्कि उसने परमेश्वर के सेवकों की खराई पर भी लांछन लगाया है। मिसाल के लिए, ध्यान दीजिए कि शैतान ने धर्मी अय्यूब के बारे में यहोवा से क्या कहा: “क्या तू ने उसकी, और उसके घर की, और जो कुछ उसका है उसके चारों ओर बाड़ा नहीं बान्धा? तू ने तो उसके काम पर आशीष दी है, और उसकी सम्पत्ति देश भर में फैल गई है। परन्तु अब अपना हाथ बढ़ाकर जो कुछ उसका है, उसे छू; तब वह तेरे मुंह पर तेरी निन्दा करेगा।”—अय्यूब 1:10, 11.
13. शैतान अय्यूब पर इलज़ाम लगाकर असल में क्या कहना चाहता था, और इसमें सब इंसान कैसे शामिल हैं?
13 शैतान ने दावा किया कि यहोवा ने अय्यूब की रक्षा करके उसकी भक्ति को खरीद लिया है। इसका यह भी मतलब निकलता था कि अय्यूब की खराई महज़ एक ढकोसला है और वह परमेश्वर की उपासना सिर्फ इसलिए करता है क्योंकि उसे बदले में उससे कुछ मिलता है। शैतान ने दावा किया कि अगर अय्यूब के ऊपर से परमेश्वर की आशीष हटा ली जाए, तो उसके जैसा धर्मी आदमी भी अपने सिरजनहार की निंदा करेगा। शैतान जानता था कि अय्यूब जैसा “खरा और सीधा और [परमेश्वर का] भय माननेवाला और बुराई से दूर रहनेवाला” दूसरा कोई नहीं।a इसलिए अगर शैतान, अय्यूब जैसे इंसान की खराई तोड़ सकता था, तो बाकी इंसानों की क्या बिसात। इस तरह शैतान असल में उन सभी लोगों की वफादारी पर सवाल उठा रहा था जो परमेश्वर की सेवा करना चाहते हैं। जी हाँ, सबको अपने सवाल की चपेट में लेते हुए, शैतान ने यहोवा से कहा: “प्राण के बदले मनुष्य [सिर्फ अय्यूब ही नहीं] अपना सब कुछ दे देता है।”—तिरछे टाइप हमारे; अय्यूब 1:8; 2:4.
14. इंसानों पर लगाए शैतान के इलज़ाम के बारे में इतिहास क्या दिखाता है?
14 इतिहास दिखाता है कि बहुत-से लोग, अय्यूब की तरह परीक्षाओं के वक्त यहोवा के वफादार रहे हैं और इस तरह उन्होंने शैतान के दावे को गलत साबित किया है। उन्होंने ज़िंदगी भर यहोवा का वफादार बने रहकर उसके दिल को खुश किया और इसकी वजह से यहोवा, शैतान के घमंड से भरे इस ताने का मुँहतोड़ जवाब दे पाया कि इंसानों पर जब तकलीफें लायी जाती हैं, तो वे परमेश्वर की सेवा करना छोड़ देते हैं। (इब्रानियों 11:4-38) जी हाँ, सच्चे दिल के लोगों ने परमेश्वर से मुँह मोड़ने से इनकार कर दिया है। यहाँ तक कि जब वे मुश्किल-से-मुश्किल हालात से घिर गए और उन्हें समझ नहीं आया कि क्या करें, कहाँ जाएँ, तब भी उन्होंने पहले से ज़्यादा यहोवा पर भरोसा किया कि वह ज़रूर उन्हें धीरज धरने की ताकत देगा।—2 कुरिन्थियों 4:7-10.
15. गुज़रे वक्त और भविष्य में परमेश्वर ने जो न्याय किया है या करेगा, उसके बारे में क्या सवाल उठ सकता है?
15 मगर यहोवा के न्याय करने में सिर्फ उसकी हुकूमत और इंसान की खराई के मसले ही शामिल नहीं। बाइबल में यहोवा के वे न्यायदंड दर्ज़ हैं जो उसने अलग-अलग इंसानों पर, यहाँ तक कि पूरी जातियों को दिए थे। इसके अलावा, बाइबल में उन न्यायदंडों की भविष्यवाणियाँ भी हैं जो वह भविष्य में देनेवाला है। हम क्यों यह विश्वास रख सकते हैं कि यहोवा हमेशा न्याय करने में धर्मी रहा है और आगे भी रहेगा?
परमेश्वर का न्याय क्यों श्रेष्ठ है
यहोवा कभी-भी ‘दुष्ट के संग धर्मी को नाश नहीं करेगा’
16, 17. कौन-सी मिसालें दिखाती हैं कि सच्चा न्याय करने में इंसानों का सोचना-समझना सीमित है?
16 यहोवा के बारे में, यह सचमुच कहा जा सकता है: “उसके सब मार्ग तो न्यायपूर्ण हैं।” (व्यवस्थाविवरण 32:4, NHT) हममें से कोई भी खुद के बारे में ऐसा दावा नहीं कर सकता, क्योंकि कई बार हमारी सीमित सोच, हमारी समझ को धुंधला कर देती है और हम देख नहीं पाते कि सही क्या है। इब्राहीम की ही मिसाल लीजिए। उसने सदोम के विनाश के बारे में यहोवा से याचना की, हालाँकि वह जानता था कि वहाँ हर तरफ दुष्टता फैली हुई है। उसने यहोवा से पूछा: “क्या तू सचमुच दुष्ट के संग धर्मी को भी नाश करेगा?” (उत्पत्ति 18:23-33) बेशक, इसका जवाब था, नहीं। क्योंकि जब धर्मी लूत और उसकी बेटियाँ सही-सलामत पास के एक नगर सोअर में पहुँच गए, तभी यहोवा ने सदोम पर “आकाश से गन्धक और आग बरसाई।” (उत्पत्ति 19:22-24) दूसरी तरफ, जब परमेश्वर ने नीनवे के लोगों पर दया दिखायी तो योना का ‘क्रोध भड़क’ उठा। योना ने उनके विनाश की भविष्यवाणी कर दी थी, इसलिए उसे तभी खुशी होती जब वे सब मारे जाते—फिर चाहे उन्होंने दिल से पश्चाताप ही क्यों न किया होता।—योना 3:10–4:1.
17 यहोवा ने इब्राहीम को यकीन दिलाया कि उसके न्याय का मतलब सिर्फ दुष्टों का सर्वनाश करना नहीं बल्कि धर्मियों को बचाना भी है। दूसरी तरफ, योना को यह सीखने की ज़रूरत पड़ी कि यहोवा दया का सागर है। अगर दुष्ट अपने मार्गों से फिर जाते हैं, तो यहोवा उन्हें “क्षमा करने को तत्पर रहता है।” (भजन 86:5, NHT) यहोवा उन इंसानों की तरह नहीं है, जिन्हें हमेशा अपनी कुरसी बचाने की फिक्र रहती है, और जो लोगों को अपनी ताकत का एहसास दिलाने के लिए कड़ी-से-कड़ी सज़ा देते हैं। यहोवा को यह डर भी नहीं सताता कि अगर वह करुणा और दया दिखाएगा तो उसे कमज़ोर समझा जाएगा। यहोवा का तरीका है, जहाँ जायज़ हो वहाँ दया ज़रूर दिखायी जाए।—यशायाह 55:7; यहेजकेल 18:23.
18. बाइबल से दिखाइए कि यहोवा भावनाओं में बहकर न्याय नहीं करता।
18 लेकिन, यहोवा भावनाओं में बहकर न्याय नहीं करता। जब उसके लोग दिन-रात मूर्तिपूजा में लगे हुए थे, तो यहोवा ने कड़ाई से यह ऐलान किया: “मैं . . . तेरे चालचलन के अनुसार तुझे दण्ड दूंगा; और तेरे सारे घिनौने कामों का फल तुझे दूंगा। मेरी दयादृष्टि तुझ पर न होगी, और न मैं कोमलता करूंगा; और . . . मैं तेरे चालचलन का फल तुझे दूंगा।” (यहेजकेल 7:3, 4) तो जब इंसान बुराई करते-करते ढीठ हो जाते हैं, यहोवा उसी के मुताबिक उनका न्याय करता है। मगर वह ठोस सबूत के आधार पर न्याय करता है। इसलिए, जब सदोम और अमोरा की बुराइयों की “चिल्लाहट” यहोवा के कानों तक पहुँची, तो उसने कहा: “मैं उतरकर देखूंगा, कि उसकी जैसी चिल्लाहट मेरे कान तक पहुंची है, उन्हों ने ठीक वैसा ही काम किया है कि नहीं।” (उत्पत्ति 18:20, 21) हमें कितना एहसानमंद होना चाहिए कि यहोवा ऐसे बहुत-से इंसानों की तरह नहीं, जो पूरी बात सुने बगैर ही जल्दबाज़ी में किसी नतीजे पर पहुँच जाते हैं! सच, यहोवा ठीक वैसा ही है जैसा बाइबल कहती है: “वह सच्चा ईश्वर है, उसमें कुटिलता [“अन्याय,” बुल्के बाइबिल] नहीं।”—व्यवस्थाविवरण 32:4.
यहोवा के न्याय पर भरोसा रखिए
19. यहोवा के न्याय करने के बारे में अगर हमारे मन में उलझानेवाले सवाल उठते हैं, तो हम क्या कर सकते हैं?
19 बीते ज़माने में यहोवा ने जो न्याय किया उसके बारे में उठनेवाले हर सवाल का जवाब बाइबल नहीं देती; ना ही यह विस्तार से बताती है कि भविष्य में यहोवा एक-एक इंसान और समूहों का न्याय कैसे करेगा। जब हमें बाइबल के वृत्तांतों या भविष्यवाणियों में ऐसी छोटी-छोटी जानकारी नहीं मिलती और हम उलझन में पड़ जाते हैं, तो हम भविष्यवक्ता मीका जैसी वफादारी दिखा सकते हैं, जिसने लिखा: “मैं अपने उद्धारकर्त्ता परमेश्वर की बाट जोहता रहूंगा।”—मीका 7:7.
20, 21. हम क्यों भरोसा रख सकते हैं कि यहोवा हमेशा वही करेगा जो सही है?
20 हम यह भरोसा रख सकते हैं कि चाहे कैसे भी हालात क्यों न हों, यहोवा वही करेगा जो सही है। अगर कभी हमें लगे कि जो अन्याय हो रहा है, उसे देखनेवाला कोई नहीं, तब भी यहोवा वादा करता है: “पलटा लेना मेरा काम है, . . . मैं ही बदला दूंगा।” (रोमियों 12:19) अगर हम परमेश्वर की बाट जोहें, तो हमारा भी प्रेरित पौलुस जैसा अटल विश्वास होगा, जिसने कहा: “क्या परमेश्वर के यहां अन्याय है? कदापि नहीं!”—रोमियों 9:14.
21 इस दौरान, हम “कठिन समय” में जी रहे हैं। (2 तीमुथियुस 3:1) अन्याय और “अन्धेर” करनेवालों ने बड़ी क्रूरता से दूसरों को सताया है। (सभोपदेशक 4:1) मगर, यहोवा नहीं बदला। वह आज भी अन्याय से घृणा करता है और इसके शिकार लोगों की सच्ची परवाह करता है। अगर हम यहोवा और उसकी हुकूमत के वफादार रहें, तो वह हमें उस ठहराए हुए समय तक धीरज धरने की शक्ति देगा जब तक वह, अपने राज्य में हर तरह के अन्याय को मिटा न दे।—1 पतरस 5:6, 7.
a यहोवा ने अय्यूब के बारे में कहा: “पृथ्वी पर उसके समान . . . अन्य कोई नहीं।” (अय्यूब 1:8, NHT) इसलिए मुमकिन है कि अय्यूब, यूसुफ की मौत के बाद और मूसा के इस्राएल का अगुवा ठहराए जाने से पहले के समय में जीया था। इसलिए उस वक्त कहा जा सकता था कि अय्यूब के जैसा खरा इंसान और कोई नहीं था।
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“यहोवा की व्यवस्था सिद्ध है”यहोवा के करीब आओ
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अध्याय 13
“यहोवा की व्यवस्था सिद्ध है”
1, 2. ज़्यादातर लोग क्यों कानून की इज़्ज़त नहीं करते, मगर फिर भी हम परमेश्वर के कानूनों के बारे में कैसी भावना पैदा कर सकते हैं?
“मुकद्दमेबाज़ी वह अथाह कुआं है, जिसमें . . . सबकुछ समा जाता है।” ये शब्द, सन् 1712 में छपी एक किताब में लिखे थे। इस किताब का लेखक उस कानून-व्यवस्था की बुराई कर रहा था जिसके तहत चलनेवाले मुकद्दमे बरसों-बरस घिसटते रहते थे, और इंसाफ की उम्मीद करनेवाले मुकद्दमा लड़ते-लड़ते कंगाल हो जाते थे। कई देशों में, कानून और न्याय-व्यवस्था इतनी जटिल है, और अन्याय, भेदभाव और मुँह देखा न्याय करना इतना आम है कि लोग कानून के नाम से ही चिढ़ने लगे हैं।
2 इसकी तुलना में ज़रा इन शब्दों पर गौर कीजिए जो करीब 2,700 साल पहले लिखे गए थे: “अहा! मैं तेरी व्यवस्था में कैसी प्रीति रखता हूं!” (भजन 119:97) इस भजनहार को परमेश्वर की कानून-व्यवस्था से इतना गहरा लगाव क्यों था? क्योंकि जिस कानून-व्यवस्था की तारीफ उसने की, वह किसी दुनियावी सरकार की नहीं बल्कि यहोवा परमेश्वर की थी। जैसे-जैसे आप यहोवा के कानूनों का अध्ययन करेंगे, वैसे-वैसे आप और भी ज़्यादा भजनहार की तरह महसूस कर पाएँगे। इस तरह के अध्ययन से आप जान पाएँगे कि इस विश्व में कानून बनानेवाली सबसे महान हस्ती की सोच कैसी है।
सबसे बड़ा कानून-साज़
3, 4. किस तरह यहोवा एक कानून-साज़ साबित हुआ?
3 बाइबल कहती है: “व्यवस्था का देने वाला और न्यायी तो एक ही है।” (याकूब 4:12, NHT) वाकई, सही मायनों में सिर्फ यहोवा ही सच्चा कानून-साज़ है। यहाँ तक कि आकाश के पिंड भी उसके ‘नभ के नियमों’ के मुताबिक चलते हैं। (अय्यूब 38:33, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) उसी तरह यहोवा के लाखों-करोड़ों स्वर्गदूत भी उसके बनाए नियमों का पालन करते हैं। वे अलग-अलग श्रेणियों में बँटे हैं और यहोवा के सेवकों के नाते उसकी कमान के अधीन उसकी सेवा करते हैं।—इब्रानियों 1:7, 14.
4 यहोवा ने इंसानों को भी कायदे-कानून दिए हैं। हममें से हरेक के अंदर विवेक है, इसीलिए हम यहोवा की तरह न्याय का जज़्बा रखते हैं। विवेक हमारे अंदर का कानून है, जो सही और गलत के बीच फर्क करने में हमारी मदद कर सकता है। (रोमियों 2:14) हमारे पहले माता-पिता को सिद्ध विवेक की आशीष मिली थी। इसलिए उन्हें ढेर सारे नियमों की ज़रूरत नहीं थी। (उत्पत्ति 2:15-17) लेकिन, असिद्ध इंसान को परमेश्वर की मरज़ी पूरी करने में मार्गदर्शन के लिए ज़्यादा कायदे-कानूनों की ज़रूरत थी। नूह, इब्राहीम और याकूब जैसे कुलपिताओं ने यहोवा परमेश्वर से नियम पाकर, इन्हें अपने परिवारों को सिखाया था। (उत्पत्ति 6:22; 9:3-6; 18:19; 26:4, 5) यहोवा ने पहली बार इस्राएल जाति को मूसा के ज़रिए एक ब्यौरेदार कानून-व्यवस्था दी और इस तरह वह उनका कानून-साज़ बना। यहोवा की इस कानून-व्यवस्था से हमें उसके न्याय का जज़्बा अच्छी तरह समझ में आता है।
मूसा की कानून-व्यवस्था पर एक नज़र
5. क्या मूसा की कानून-व्यवस्था जटिल नियमों की बस एक लंबी-चौड़ी लिस्ट थी जिन पर अमल करना बहुत मुश्किल था, और आप ऐसा जवाब क्यों देते हैं?
5 बहुत-से लोग शायद सोचते हैं कि मूसा की कानून-व्यवस्था, ऐसे जटिल नियमों की लंबी-चौड़ी लिस्ट है जिन पर अमल करना बहुत मुश्किल था। लेकिन यह बात सच नहीं है। पूरी कानून-व्यवस्था में कुल मिलाकर 600 से कुछ ज़्यादा नियम थे। ये संख्या शायद हमें बहुत बड़ी लगे, मगर एक पल के लिए ज़रा गौर कीजिए: 20वीं सदी के आखिर तक, अमरीका के सरकारी कायदे-कानून इतने हो गए थे कि इन्होंने कानून की किताबों के 1,50,000 से ज़्यादा पन्ने भर दिए। इतना ही नहीं, हर दो साल में करीब 600 और नियम इसमें जोड़े जाते हैं! इसलिए अगर आप संख्या की बात करें, तो इंसानों के लिखे कानूनों के ढेर के आगे मूसा की कानून-व्यवस्था तो बौनी लगती है। फिर भी, परमेश्वर की कानून-व्यवस्था में इस्राएलियों की ज़िंदगी के उन पहलुओं पर ध्यान दिया गया था, जिनका आजकल के कानूनों में ज़िक्र तक नहीं पाया जाता। आइए मूसा की कानून-व्यवस्था पर एक नज़र डालें।
6, 7. (क) मूसा की कानून-व्यवस्था और दूसरे कायदे-कानूनों में क्या फर्क था, और कानून-व्यवस्था का सबसे बड़ा नियम क्या था? (ख) इस्राएली कैसे दिखाते कि वे यहोवा की हुकूमत को अपनी ज़िंदगी में स्वीकार करते हैं?
6 कानून-व्यवस्था ने यहोवा की हुकूमत को बुलंद किया। इस मामले में, कोई और कायदे-कानून, मूसा की कानून-व्यवस्था की बराबरी नहीं कर सकते। इसमें सबसे बड़ा नियम था: “हे इस्राएल, सुन, यहोवा हमारा परमेश्वर है, यहोवा एक ही है; तू अपने परमेश्वर यहोवा से अपने सारे मन, और सारे जीव, और सारी शक्ति के साथ प्रेम रखना।” परमेश्वर के लोगों को यहोवा के लिए अपना प्यार कैसे दिखाना था? उन्हें यहोवा की सेवा करनी थी और उसकी हुकूमत के अधीन होना था।—व्यवस्थाविवरण 6:4, 5; 11:13.
7 हर इस्राएली जब अपने ऊपर ठहराए अधिकारियों के अधीन रहता था, तो इससे ज़ाहिर होता था कि वह यहोवा की हुकूमत कबूल करता है। माता-पिता, प्रधान, न्यायी, याजक यहाँ तक कि देश का राजा, इन सभी को यहोवा की तरफ से अधिकार मिला हुआ था। इन अधिकारियों के खिलाफ बगावत, यहोवा की नज़र में उसके खिलाफ बगावत थी। दूसरी तरफ, जिनके पास अधिकार था, अगर वे लोगों पर अन्याय करते या क्रूरता से पेश आते, तो बहुत मुमकिन था कि यहोवा का क्रोध उन पर भड़क उठता। (निर्गमन 20:12; 22:28; व्यवस्थाविवरण 1:16, 17; 17:8-20; 19:16, 17) इस तरह, जिनके पास अधिकार था और जो अधीन थे, दोनों पर यहोवा की हुकूमत को बुलंद करने की ज़िम्मेदारी थी।
8. कानून-व्यवस्था में, पवित्रता के बारे में यहोवा का स्तर कैसे बुलंद किया गया था?
8 कानून-व्यवस्था ने यहोवा की पवित्रता के स्तर को बुलंद किया। मूसा की कानून-व्यवस्था में, “पवित्र” या “पवित्रता” अनुवाद किए जानेवाले इब्रानी शब्द 280 से ज़्यादा बार आते हैं। इस कानून-व्यवस्था ने परमेश्वर के लोगों को शुद्ध और अशुद्ध, स्वच्छ और अस्वच्छ चीज़ों के बीच फर्क करने में मदद दी। इसमें 70 ऐसी चीज़ों के बारे में बताया है, जिनकी वजह से एक इस्राएली व्यवस्था के मुताबिक अशुद्ध हो जाता था। ये नियम, शरीर की साफ-सफाई, खाने-पीने की चीज़ों, यहाँ तक कि मल-त्याग के बारे में थे। सेहत के लिहाज़ से ये नियम बहुत फायदेमंद साबित हुए।a मगर इन नियमों का मकसद अच्छी सेहत देने से बढ़कर कुछ था। इन नियमों को मानने से ये लोग हमेशा यहोवा के अनुग्रह में बने रहते और आस-पास की पतित जातियों के घिनौने कामों से दूर रहते। एक मिसाल पर गौर कीजिए।
9, 10. कानून-व्यवस्था में लैंगिक संबंधों और बच्चे के जन्म के बारे में क्या कानून दिए गए थे, और इनसे क्या लाभ होता था?
9 व्यवस्था वाचा के कानूनों के मुताबिक, लैंगिक संबंधों और बच्चे के जन्म होने के बाद, स्त्री-पुरुष को कुछ वक्त के लिए अशुद्ध माना जाता था, फिर चाहे वे शादी-शुदा जोड़ा ही क्यों न हो। (लैव्यव्यवस्था 12:2-4; 15:16-18) इस तरह के कानूनों से, परमेश्वर की तरफ से मिले इन पवित्र वरदानों का तिरस्कार नहीं होता था। (उत्पत्ति 1:28; 2:18-25) इसके बजाय, ये नियम यहोवा की पवित्रता को बुलंद करते थे और उसके सेवकों को दूषित होने से बचाए रखते थे। गौर करने लायक बात है कि इस्राएल के आस-पास की जातियाँ, अकसर उपासना के साथ-साथ लैंगिक संबंध और प्रजनन के रीति-रिवाज़ मानती थीं। कनान देश के धर्म में स्त्रियों को वेश्यावृति और पुरषों को पुरुषगमन में हिस्सा लेना होता था। अंजाम यह हुआ कि घिनौने किस्म के रीति-रिवाज़ बढ़ते चले गए। दूसरी तरफ, कानून-व्यवस्था ने यहोवा की उपासना को लैंगिक मामलों से पूरी तरह अलग रखा।b इसके और भी फायदे थे।
10 इन कायदे-कानूनों से एक बहुत अहम सच्चाई सिखायी गयी।c दरअसल, आदम का पाप एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक कैसे पहुँचाया जाता है? क्या लैंगिक संबंधों और उसके बाद बच्चों को जन्म देने से नहीं? (रोमियों 5:12) जी हाँ, परमेश्वर की कानून-व्यवस्था लोगों को यह असलियत बार-बार याद दिलाती थी कि पाप उनमें हर घड़ी मौजूद है। दरअसल, हम सभी पाप के साथ ही पैदा होते हैं। (भजन 51:5) हमें अपने पवित्र परमेश्वर के करीब आने के लिए पापों की माफी की और इससे छुड़ाए जाने की ज़रूरत है।
11, 12. (क) कानून-व्यवस्था में न्याय के किस अहम सिद्धांत का समर्थन किया जाता था? (ख) कानून-व्यवस्था में, कोई न्याय बिगाड़ने न पाए इसके लिए क्या इंतज़ाम किए गए थे?
11 कानून-व्यवस्था से यहोवा का सिद्ध न्याय बुलंद होता था। मूसा की कानून-व्यवस्था में, न्याय करते वक्त बराबर बदला चुकाने के सिद्धांत की पैरवी की गयी थी। इसलिए, कानून-व्यवस्था में लिखा था: “प्राण की सन्ती प्राण का, आंख की सन्ती आंख का, दांत की सन्ती दांत का, हाथ की सन्ती हाथ का, पांव की सन्ती पांव का दण्ड देना।” (व्यवस्थाविवरण 19:21) इसलिए, अपराधिक मामलों में जैसा अपराध होता था वैसी ही सज़ा दी जाती थी। परमेश्वर के न्याय का यह पहलू, कानून-व्यवस्था के सभी नियमों में देखा जा सकता था और आज भी मसीह यीशु के छुड़ौती बलिदान की समझ पाने के लिए यह बेहद ज़रूरी है। अध्याय 14 हमें इसी बारे में ज़्यादा बताएगा।—1 तीमुथियुस 2:5, 6.
12 कानून-व्यवस्था में कई इंतज़ाम ऐसे भी थे जिनकी वजह से कोई न्याय को बिगाड़ नहीं सकता था। मसलन, किसी भी इलज़ाम को सच साबित करने के लिए कम-से-कम दो गवाहों की ज़रूरत होती थी। झूठी साक्षी देनेवालों को कड़ी-से-कड़ी सज़ा दी जाती थी। (व्यवस्थाविवरण 19:15, 18, 19) भ्रष्टाचार और घूसखोरी की भी सख्त मनाही थी। (निर्गमन 23:8; व्यवस्थाविवरण 27:25) अपने व्यापार और लेन-देन में भी, परमेश्वर के लोगों को यहोवा के न्याय के ऊँचे स्तर पर कायम रहना था। (लैव्यव्यवस्था 19:35, 36; व्यवस्थाविवरण 23:19, 20) ऐसे उत्तम और निष्पक्ष कायदे-कानून इस्राएल जाति के लिए बहुत बड़ी आशीष थे!
कानून जो दया दिखाने और बिना पक्षपात के न्याय करने पर ज़ोर देते थे
13, 14. कानून-व्यवस्था में कैसे चोर और जिसको उसने लूटा दोनों के साथ न्याय किया जाता था?
13 क्या मूसा की व्यवस्था ढेरों सख्त नियमों की पोथी थी जिनमें दया की कोई गुंजाइश न थी? ऐसा बिलकुल नहीं था! राजा दाऊद ने ये ईश्वर-प्रेरित शब्द लिखे: “यहोवा की व्यवस्था सिद्ध है।” (भजन 19:7, NHT) दाऊद बहुत अच्छी तरह जानता था कि यह कानून-व्यवस्था दया दिखाने और बिना पक्षपात के न्याय करने पर ज़ोर देती है। वह कैसे?
14 आज कुछ देशों में, लगता है कि कानून को अपराध के शिकार लोगों से ज़्यादा अपराधियों से हमदर्दी है और उन्हें सख्त सज़ा देने के बजाय यह उनके साथ नरमी से पेश आता है। मिसाल के लिए, एक चोर को शायद जेल की सज़ा हो जाए, लेकिन जिसकी चीज़ें चोरी हुई हैं शायद उसे अब तक अपनी चीज़ें वापस न मिली हों। ऊपर से उसे टैक्स भरना पड़ता है ताकि जेल में चोर-डाकुओं जैसे अपराधियों के रहने और खाने का इंतज़ाम किया जा सके। प्राचीन इस्राएल में, आज के जैसे जेलखाने नहीं हुआ करते थे। दोषियों को कितनी सख्त सज़ा दी जाएगी इसकी हद ठहरायी गयी थी। (व्यवस्थाविवरण 25:1-3) एक चोर को चुराए गए सामान की भरपाई करनी होती थी। इसके अलावा, चोर को जुर्माना भी देना पड़ता था। कितना? यह अलग-अलग होता था। न्यायियों को इस बात की छूट दी गयी थी कि अलग-अलग बातें, जैसे कि अपराधी का प्रायश्चित्त देखते हुए उस पर जुर्माना करें। इसलिए समझ में आता है कि लैव्यव्यवस्था 6:1-7 में चोरी करनेवाले से जितने मुआवज़े की बात कही है, उससे कहीं ज़्यादा मुआवज़ा भरने की बात निर्गमन 22:7 में बतायी गयी है।
15. अगर एक इंसान ने गलती से किसी का खून किया हो, तो कानून-व्यवस्था में कैसे उस पर दया दिखाने के साथ-साथ उसका न्याय भी किया जाता था?
15 दया दिखाते हुए, कानून-व्यवस्था में यह भी स्वीकार किया गया था कि सारे पाप जान-बूझकर नहीं किए जाते। मिसाल के लिए, अगर एक आदमी ने गलती से किसी की जान ले ली हो, और अगर वह सही कदम उठाते हुए भागकर किसी एक शरणनगर में चला जाए, जो इस्राएल में अलग-अलग जगहों पर थे, तो उसे प्राण के बदले प्राण देने की ज़रूरत नहीं थी। वहाँ काबिल न्यायी उसके मामले की जाँच करते। उसके बाद, उसे महायाजक की मौत तक उसी शरणनगर में रहना होता था। महायाजक की मौत के बाद, वह जहाँ चाहे जाकर रह सकता था। इस तरह उसे परमेश्वर की दया से लाभ होता था। साथ ही इस कानून-व्यवस्था में ज़ोर दिया गया था कि इंसान की ज़िंदगी को बेहद अनमोल समझा जाए।—गिनती 15:30, 31; 35:12-25.
16. कानून-व्यवस्था में निजी अधिकारों की रक्षा कैसे की गयी थी?
16 कानून-व्यवस्था में एक इंसान के निजी अधिकारों की भी रक्षा होती थी। गौर कीजिए कि कर्ज़ के बोझ से दबे लोगों की, कानून-व्यवस्था कैसे रक्षा करती थी। कानून-व्यवस्था के मुताबिक, कर्ज़ वसूल करनेवाले पर कुछ पाबंदियाँ थीं। पैसों के बदले में वह, कर्ज़दार के घर में घुसकर गिरवी रखने के लिए कोई भी चीज़ उठाकर नहीं ले जा सकता था। इसके बजाय, कर्ज़ वसूल करनेवाले को कर्ज़दार के घर के बाहर ही रुकना होता था ताकि वह खुद गिरवी रखने के लिए कोई चीज़ उसके पास ले आए। इस तरह उस आदमी के घर में घुसपैठ नहीं होती थी। और अगर लेनदार ने कर्ज़दार का ओढ़ना अपने पास गिरवी रख लिया, तो उसे रात तक यह ओढ़ना लौटाना होता था, क्योंकि रात को ठंड से बचने के लिए कर्ज़दार को इसकी ज़रूरत पड़ सकती थी।—व्यवस्थाविवरण 24:10-14.
17, 18. युद्ध के मामले में, इस्राएली दूसरे देशों से कैसे अलग थे, और ऐसा क्यों था?
17 कानून-व्यवस्था में युद्धों के बारे में भी नियम दिए गए थे। परमेश्वर के लोगों को दूसरों पर अधिकार करने या सिर्फ जीत हासिल करने के लालच से युद्ध नहीं लड़ने थे, बल्कि उन्हें ‘यहोवा के संग्रामों’ में उसके प्रतिनिधि बनकर लड़ना होता था। (गिनती 21:14) कई मामलों में, इस्राएलियों से यह माँग की गयी थी कि वे पहले दुश्मन से हथियार डालने को कहें। अगर कोई नगर इस पेशकश को ठुकरा देता था, तो इस्राएली उसे घेर सकते थे—मगर परमेश्वर के नियमों के मुताबिक। इतिहास में अकसर जीतनेवाले सिपाही जो करते आए हैं, वह इस्राएल की सेना के जवानों को करने से मना किया गया था। वे न तो दुश्मन की स्त्रियों की इज़्ज़त पर हाथ डालते थे, न ही उन्हें बेवजह खून की नदियाँ बहाने की इजाज़त थी। यहाँ तक कि उनसे पर्यावरण का लिहाज़ करने की भी माँग की गयी थी, यानी वे दुश्मन के इलाके के फलदायी पेड़ों को गिरा नहीं सकते थे।d दूसरे देशों की सेनाओं पर ये सारी पाबंदियाँ नहीं थीं।—व्यवस्थाविवरण 20:10-15, 19, 20; 21:10-13.
18 क्या आप यह सुनकर तिलमिला उठते हैं कि कुछ देशों में छोटे-छोटे बच्चों को सिपाहियों की ट्रेनिंग दी जाती है? प्राचीन इस्राएल में, 20 साल से कम उम्र के नौजवान को सेना में भर्ती नहीं किया जाता था। (गिनती 1:2, 3) लेकिन, ऐसे पुरुष को भी भर्ती नहीं किया जाता था जो युद्ध के नाम से खौफ खाता हो। जिस जवान की नयी-नयी शादी होती थी, उसे पूरे एक साल के लिए सेना से छुट्टी दी जाती थी, ताकि वह जान हथेली पर रखकर अपनी सेवा शुरू करने से पहले अपने वारिस का मुँह देख सके। कानून-व्यवस्था समझाती है कि इस तरीके से एक जवान अपनी नयी-नवेली दुल्हन को “प्रसन्न” कर सकता था।—व्यवस्थाविवरण 20:5, 6, 8; 24:5.
19. कानून-व्यवस्था में स्त्रियो, बच्चों, परिवारों, विधवाओं और अनाथों की रक्षा करने के लिए क्या इंतज़ाम किए गए थे?
19 कानून-व्यवस्था, स्त्रियों, बच्चों और परिवारों की रक्षा भी करती थी और इसमें उनकी देखभाल का इंतज़ाम भी था। इसमें माता-पिता को आज्ञा दी गयी थी कि वे अपने बच्चों पर बराबर ध्यान देते रहें और आध्यात्मिक बातों के बारे में उन्हें उपदेश दें। (व्यवस्थाविवरण 6:6, 7) परिवार के सदस्यों के बीच नाजायज़ लैंगिक संबंधों की सख्त मनाही थी, और इस नियम को तोड़नेवाले के लिए मौत की सज़ा थी। (लैव्यव्यवस्था, अध्याय 18) इसी तरह यह व्यभिचार करने से मना करती थी, जिससे अकसर परिवार टूट जाते हैं, उनकी सुरक्षा खत्म हो जाती है और वे समाज में किसी को मुँह दिखाने के लायक नहीं रहते। कानून-व्यवस्था में विधवाओं और अनाथों के लिए खास इंतज़ाम किए गए थे और उनके साथ बुरा सलूक करने की कड़े-से-कड़े शब्दों में निंदा की गयी थी।—निर्गमन 20:14; 22:22-24.
20, 21. (क) मूसा की कानून-व्यवस्था ने इस्राएलियों को अनेक शादियाँ करने की इजाज़त क्यों दी? (ख) तलाक के मामले में, कानून-व्यवस्था का स्तर बाद में यीशु के ठहराए स्तर से अलग क्यों था?
20 लेकिन, इस मामले में कुछ लोग शायद सवाल पूछें, ‘कानून-व्यवस्था में एक से ज़्यादा शादियाँ करने की इजाज़त क्यों दी गयी थी?’ (व्यवस्थाविवरण 21:15-17) हमें उस ज़माने के हालात को ध्यान में रखते हुए इन नियमों को समझना चाहिए। जो लोग आज के ज़माने और संस्कृतियों को ध्यान में रखते हुए मूसा की कानून-व्यवस्था के बारे में सोचेंगे, ज़ाहिर है वे इसे सही तरह समझ नहीं पाएँगे। (नीतिवचन 18:13) सबसे पहले अदन की वाटिका में, यहोवा ने यह तय किया था कि शादी, एक पति और एक पत्नी के बीच का अटूट बंधन हो। (उत्पत्ति 2:18, 20-24) लेकिन, जिस ज़माने में यहोवा ने इस्राएल जाति को कानून-व्यवस्था दी थी तब तक अनेक शादियाँ करने के रिवाज़ को चलते हुए सदियाँ बीत चुकी थीं, इसलिए यह समाज में बहुत गहराई तक जड़ पकड़ चुका था। यहोवा अच्छी तरह जानता था कि उसके ये “हठीले” लोग, मूर्तिपूजा न करने जैसी व्यवस्था की बुनियादी आज्ञाओं को भी बार-बार तोड़ देंगे। (निर्गमन 32:9) इसलिए, उसने समझ से काम लेकर उस युग में उनके शादी-ब्याह के रिवाज़ों को पूरी तरह से बदल देने का फैसला नहीं किया। लेकिन, याद रखिए कि अनेक शादियाँ करने का रिवाज़ यहोवा ने शुरू नहीं किया था। लेकिन हाँ, उसने मूसा की कानून-व्यवस्था के ज़रिए अनेक शादियाँ करनेवालों के लिए नियम ज़रूर तय किए ताकि उसके लोग इस रिवाज़ का गलत फायदा न उठाएँ।
21 उसी तरह, मूसा की कानून-व्यवस्था एक आदमी को कई गंभीर कारणों के आधार पर अपनी पत्नी को तलाक देने की इजाज़त देती थी। (व्यवस्थाविवरण 24:1-4) यीशु ने कहा कि परमेश्वर ने यहूदियों के साथ यह रिआयत उनके “मन की कठोरता के कारण” बरती थी। लेकिन, ऐसी रिआयत सिर्फ कुछ समय के लिए थी। यीशु ने अपने चेलों के लिए, शादी के मामले में फिर से वही स्तर कायम किया जो यहोवा ने शुरू में ठहराया था।—मत्ती 19:8.
कानून-व्यवस्था ने प्रेम को बढ़ावा दिया
22. किन तरीकों से मूसा की कानून-व्यवस्था में प्रेम को बढ़ावा दिया गया था, और परमेश्वर के लोगों को किस-किस के लिए प्रेम दिखाना था?
22 क्या आज की कोई भी कानून-व्यवस्था ऐसी है जो लोगों को प्यार-मुहब्बत से जीने का बढ़ावा देती हो? मूसा की व्यवस्था में सबसे ज़्यादा प्रेम को बढ़ावा दिया गया था। तभी तो अकेले व्यवस्थाविवरण की किताब में, अलग-अलग रूप में “प्रेम” शब्द 20 से ज़्यादा बार आता है। “एक दूसरे से अपने ही समान प्रेम रखना” पूरी कानून-व्यवस्था में दूसरी सबसे बड़ी आज्ञा थी। (लैव्यव्यवस्था 19:18; मत्ती 22:37-40) परमेश्वर के लोगों को ऐसा प्रेम न सिर्फ अपने जातिभाइयों को दिखाना था, बल्कि उनके बीच रहनेवाले परदेशियों से भी उन्हें ऐसा प्रेम करना था, और यह याद रखना था कि एक वक्त खुद इस्राएली परदेशी थे। उन्हें दीन-दुखियों और गरीबों के लिए प्रेम दिखाना था, पैसे या खाने-कपड़े से उनकी मदद करनी थी और उनकी लाचारी का फायदा उठाने से दूर रहना था। यहाँ तक कि उन्हें बोझा ढोनेवाले जानवरों पर भी दया और करुणा दिखानी थी।—निर्गमन 23:6; लैव्यव्यवस्था 19:14, 33, 34; व्यवस्थाविवरण 22:4, 10; 24:17, 18.
23. भजन 119 के लेखक को क्या करने की प्रेरणा मिली, और हम क्या करने का पक्का फैसला कर सकते हैं?
23 ऐसा कौन-सा देश था जिसे इस तरह के कायदे-कानून पाने की आशीष मिली हो? इसलिए ताज्जुब नहीं कि भजनहार ने यह लिखा: “अहा! मैं तेरी व्यवस्था में कैसी प्रीति रखता हूं!” मगर उसका यह प्यार सिर्फ दिल की एक भावना नहीं था। इस प्यार ने उसे काम करने को उकसाया, क्योंकि उसने परमेश्वर की कानून-व्यवस्था को मानने की और उसके मुताबिक जीने की पूरी-पूरी कोशिश की। उसने आगे कहा: “दिन भर मेरा ध्यान [तेरी व्यवस्था] पर लगा रहता है।” (भजन 119:11, 97) जी हाँ, वह बिना नागा यहोवा के नियमों का अध्ययन करने के लिए वक्त निकालता था। बेशक, जैसे-जैसे वह ऐसा करता रहा, इनके लिए उसका प्यार और बढ़ता गया। साथ ही, इसके देनेवाले यहोवा परमेश्वर के लिए भी उसका प्यार बढ़ता गया। उसी तरह, जैसे-जैसे आप परमेश्वर के कानूनों का अध्ययन करें, हमारी दुआ है कि आप भी उस महान कानून-साज़ और न्यायी परमेश्वर के और करीब आते जाएँ।
a मिसाल के लिए, जो नियम आज सब देशों में माने जाते हैं, वे नियम सदियों पहले से ही व्यवस्था में थे। जैसे मल-त्याग करने के बाद उसे गड्ढा खोदकर गाड़ देना, बीमारों को सेहतमंद लोगों से अलग रखना, और लाश को छूनेवाले का नहाना-धोना।—लैव्यव्यवस्था 13:4-8; गिनती 19:11-13, 17-19; व्यवस्थाविवरण 23:13, 14.
b कनानियों के मंदिरों में लैंगिक कामों के लिए अलग कमरे बनाए जाते थे, मगर मूसा की कानून-व्यवस्था में साफ लिखा था कि जो इंसान अशुद्ध अवस्था में है, उसे मंदिर में पैर रखने की इजाज़त नहीं थी। लैंगिक संबंधों से स्त्री-पुरुष कुछ समय तक अशुद्ध हो जाते थे, इसलिए कोई भी यहोवा के भवन में उपासना के साथ किसी भी तरह के लैंगिक कामों को जायज़ नहीं ठहरा सकता था।
c व्यवस्था का सबसे खास उद्देश्य था लोगों को सिखाना। दरअसल, इनसाइक्लोपीडिया जुडाइका बताती है कि “नियम” के लिए इब्रानी में इस्तेमाल होनेवाले शब्द, तोहरा का मतलब है “हिदायत।”
d कानून-व्यवस्था में यह पैना सवाल पूछा गया था: “क्या मैदान के वृक्ष भी मनुष्य हैं कि तू उनको भी घेर रखे?” (व्यवस्थाविवरण 20:19) पहली सदी के एक यहूदी विद्वान, फाइलो ने इस नियम का हवाला देकर समझाया कि परमेश्वर की नज़र में, यह “अन्याय है कि इंसानों का गुस्सा उन चीज़ों पर निकाला जाए जिन्होंने कोई बुराई नहीं की।”
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यहोवा “बहुतों की छुड़ौती” का इंतज़ाम करता हैयहोवा के करीब आओ
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अध्याय 14
यहोवा “बहुतों की छुड़ौती” का इंतज़ाम करता है
1, 2. इंसानों की हालत बाइबल में कैसे बयान की गयी है, और इससे निकलने का सिर्फ एक ही रास्ता कौन-सा है?
“सारी सृष्टि अब तक मिलकर कहरती और पीड़ाओं में पड़ी तड़पती है।” (रोमियों 8:22) प्रेरित पौलुस के ये शब्द दिखाते हैं कि हम किस लाचार हालत में हैं। इंसानी नज़र से देखें, तो दुःख-तकलीफ, पाप और मौत से बाहर निकलने का कोई रास्ता नज़र नहीं आता। मगर यहोवा, इंसानों की तरह लाचार नहीं है। (गिनती 23:19) न्याय के परमेश्वर ने हमारे लिए इस तकलीफ से बाहर निकलने का रास्ता तैयार किया है। यह रास्ता, छुड़ौती का इंतज़ाम कहलाता है।
2 छुड़ौती, यहोवा की तरफ से इंसान को मिला सबसे नायाब तोहफा है। यह हमें पाप और मौत से छुटकारा दिला सकती है। (इफिसियों 1:7) स्वर्ग में या ज़मीन पर फिरदौस में अनंत जीवन पाने की आशा का आधार भी यही है। (यूहन्ना 3:16; 1 पतरस 1:4, 5) मगर छुड़ौती असल में है क्या? यह कैसे हमें यहोवा के सर्वोत्तम न्याय के बारे में सिखाती है?
छुड़ौती की ज़रूरत कैसे पैदा हुई
3. (क) छुड़ौती की ज़रूरत क्यों पैदा हो गयी? (ख) परमेश्वर आदम की संतान पर से मौत की सज़ा को क्यों खारिज नहीं कर सकता था?
3 आदम के पाप की वजह से छुड़ौती की ज़रूरत पैदा हुई थी। परमेश्वर की आज्ञा न मानकर, आदम अपनी संतान के लिए विरासत में बीमारी, दुःख-दर्द और मौत छोड़ गया। (उत्पत्ति 2:17; रोमियों 8:20) परमेश्वर जज़्बाती होकर मौत की सज़ा को खारिज नहीं कर सकता था। अगर वह ऐसा करता, तो अपने ही ठहराए इस नियम के खिलाफ जाता: “पाप की मजदूरी तो मृत्यु है।” (रोमियों 6:23) और अगर यहोवा अपने ही न्याय के स्तरों को नकार देता, तो सारे विश्व में न्याय नाम की चीज़ ही न रहती और हर कोई अपनी मनमानी करता!
4, 5. (क) शैतान ने परमेश्वर पर कैसे झूठे इलज़ाम लगाए, और यहोवा के लिए इन इलज़ामों का जवाब देना क्यों ज़रूरी था? (ख) शैतान ने यहोवा के वफादार सेवकों पर क्या इलज़ाम लगाया?
4 जैसा हम अध्याय 12 में देख चुके हैं, अदन की बगावत ने और भी बड़े-बड़े मसले खड़े कर दिए थे। शैतान ने परमेश्वर के अच्छे नाम पर कलंक लगाया। दरअसल, उसने यहोवा पर यह इलज़ाम लगाया कि वह एक झूठा और ऐसा बेरहम तानाशाह है जो अपने प्राणियों की आज़ादी छीन लेता है। (उत्पत्ति 3:1-5) परमेश्वर का उद्देश्य था कि यह धरती धर्मी इंसानों से भर जाए मगर शैतान ने, कुछ देर के लिए ही सही, परमेश्वर के इस उद्देश्य में बाधा डालकर उस पर अपने मकसद में नाकाम होने का इलज़ाम लगाया। (उत्पत्ति 1:28; यशायाह 55:10, 11) अगर यहोवा इन इलज़ामों का जवाब न देता, तो उसके बहुत-से बुद्धिमान प्राणियों का उसकी हुकूमत पर से भरोसा उठ जाता।
5 शैतान ने यहोवा के वफादार सेवकों पर भी झूठा इलज़ाम लगाया। उसने दावा किया कि वे सिर्फ अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए परमेश्वर की सेवा करते हैं, और अगर उन पर ज़रा भी दबाव डाला जाए, तो उनमें से एक भी परमेश्वर का वफादार नहीं रहेगा। (अय्यूब 1:9-11) ये मसले इंसान की दुर्दशा से कहीं ज़्यादा अहमियत रखते थे। यहोवा ने महसूस किया कि शैतान के इन झूठे इलज़ामों का जवाब देना बेहद ज़रूरी है और यह सही भी था। मगर परमेश्वर इन मसलों का जवाब देने के साथ-साथ इंसानों को कैसे बचा सकता था?
छुड़ौती—बराबर कीमत
6. परमेश्वर ने इंसान का उद्धार करने के लिए जो इंतज़ाम किया है, उसके लिए बाइबल में कौन-से कुछ शब्द इस्तेमाल किए गए हैं?
6 यहोवा ने जो हल निकाला, कोई भी इंसान उसकी कल्पना तक नहीं कर सकता था। यह उसकी परम दया के साथ-साथ उसके अगम न्याय का सबूत था। फिर भी, यह हल बहुत ही सीधा-सादा था। शास्त्र में इसका ज़िक्र अलग-अलग शब्दों से किया गया है जैसे मोल लेना, मेल-मिलाप और प्रायश्चित्त करना। (दानिय्येल 9:24; गलतियों 3:13; कुलुस्सियों 1:20; इब्रानियों 2:17) लेकिन, जो शब्द यीशु ने इस्तेमाल किया, वह सबसे बेहतरीन तरीके से इस इंतज़ाम के बारे में बताता है। उसने कहा: “मनुष्य का पुत्र, वह इसलिये नहीं आया कि उस की सेवा टहल किई जाए, परन्तु इसलिये आया कि आप सेवा टहल करे: और बहुतों की छुड़ौती [यूनानी, लीट्रान] के लिये अपने प्राण दे।”—मत्ती 20:28.
7, 8. (क) शास्त्र में “छुड़ौती” शब्द का क्या मतलब है? (ख) छुड़ौती में बराबरी का सिद्धांत किस तरह लागू होता है?
7 छुड़ौती क्या है? इसके लिए जो यूनानी शब्द यहाँ इस्तेमाल हुआ है, वह एक क्रिया से निकला है जिसका मतलब है, “छोड़ देना, आज़ाद करना।” यह शब्द, युद्ध के दौरान बन्दी बनाए गए लोगों की रिहाई की कीमत के लिए इस्तेमाल होता था। तो फिर, छुड़ौती की परिभाषा यह है कि किसी चीज़ को वापस खरीदने के लिए अदा की गयी कीमत। इब्रानी शास्त्र में, “छुड़ौती” के लिए शब्द (कोफेर), एक क्रिया से निकला है जिसका मतलब है “ढकना।” इससे हमें यह समझने में मदद मिलती है कि किसी की छुड़ौती देने का मतलब है, उसके पापों को ढांपना।—भजन 65:3.
8 गौर करने लायक बात है कि थियोलॉजिकल डिक्शनरी ऑफ द न्यू टेस्टामेंट कहती है कि यह शब्द (कोफेर) “हमेशा किसी बराबर की चीज़ को दर्शाता है,” या किसी समान वस्तु को। इसलिए, वाचा के संदूक के ढक्कन का आकार बिलकुल संदूक के बराबर था, और उससे संदूक पूरी तरह ढक जाता था।a उसी तरह, पाप की छुड़ौती देने या उसे ढांपने के लिए, एक ऐसी कीमत अदा करना ज़रूरी था जो बिलकुल उसके बराबर हो, यानी पाप से जो नुकसान हुआ है उसे पूरी तरह से ढांप दे। इसलिए, इस्राएल को दी गयी परमेश्वर की कानून-व्यवस्था में कहा गया था: “प्राण की सन्ती प्राण का, आंख की सन्ती आंख का, दांत की सन्ती दांत का, हाथ की सन्ती हाथ का, पांव की सन्ती पांव का दण्ड देना।”—व्यवस्थाविवरण 19:21.
9. विश्वास करनेवाले मनुष्यों ने जानवरों की बलियाँ क्यों चढ़ायीं, और यहोवा की नज़र में ये बलिदान कैसे थे?
9 विश्वास करनेवाले मनुष्यों, जैसे हाबिल और उसके बाद के वफादार जनों ने परमेश्वर को जानवरों की बलियाँ चढ़ायीं। ऐसा करके, उन्होंने दिखाया कि उन्हें अपने पापी होने का एहसास है और इसलिए उन्हें छुड़ौती की ज़रूरत है। इतना ही नहीं, इन बलियों से उन्होंने अपना यह विश्वास दिखाया कि परमेश्वर अपने “वंश” के ज़रिए उन्हें छुटकारा दिलाने का वादा पूरा करेगा। (उत्पत्ति 3:15; 4:1-4; लैव्यव्यवस्था 17:11; इब्रानियों 11:4) यहोवा ने इन बलिदानों को मंज़ूर किया और अपने उपासकों को अनुग्रह दिखाते हुए धर्मी ठहराया। फिर भी, जानवरों की बलियाँ महज़ एक निशानी थीं। असल में, जानवरों का लहू, इंसान के पाप को ढांप नहीं सकता था, क्योंकि जानवर इंसान से कमतर हैं। (भजन 8:4-8) इसलिए, बाइबल कहती है: “[यह] अनहोना है, कि बैलों और बकरों का लोहू पापों को दूर करे।” (इब्रानियों 10:1-4) ये बलियाँ, आनेवाले असली छुड़ौती बलिदान की सिर्फ एक तसवीर, या एक निशानी थीं।
“छुटकारे का बराबर दाम”
10. (क) छुड़ौती देनेवाले को किसके बराबर होना था, और क्यों? (ख) क्यों सिर्फ एक इंसान के बलिदान की ज़रूरत थी?
10 प्रेरित पौलुस ने कहा: “आदम में सब मरते हैं।” (1 कुरिन्थियों 15:22) इसलिए, छुड़ौती के लिए आदम के बिलकुल बराबर, यानी एक सिद्ध इंसान के मरने की ज़रूरत थी। (रोमियों 5:14) कोई और किस्म का जीव, न्याय के तराज़ू को बराबर नहीं कर सकता था। सिर्फ एक सिद्ध इंसान जिस पर आदम से लायी मौत की सज़ा लागू न होती हो, वही “छुटकारे का बराबर दाम,” यानी आदम के बिलकुल बराबर की कीमत अदा कर सकता था। (1 तीमुथियुस 2:6, NW) यह ज़रूरी नहीं था कि आदम के हर वंशज की बराबरी में अनगिनत करोड़ों इंसानों की बलि दी जाए। प्रेरित पौलुस ने समझाया: “एक मनुष्य [आदम] के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई।” (तिरछे टाइप हमारे; रोमियों 5:12) और “जब [एक] मनुष्य के द्वारा मृत्यु आई,” तो परमेश्वर ने इस पाप से छुटकारे का इंतज़ाम भी “[एक] मनुष्य ही के द्वारा” किया। (1 कुरिन्थियों 15:21) वह कैसे?
“सब के लिए छुटकारे का बराबर दाम”
11. (क) इंसान का छुड़ानेवाला कैसे ‘हर एक मनुष्य के लिये मृत्यु का स्वाद चखता’? (ख) आदम और हव्वा क्यों छुड़ौती से फायदा नहीं पा सकते थे? (फुटनोट देखिए।)
11 यहोवा ने इंतज़ाम किया कि एक सिद्ध मनुष्य अपनी मरज़ी से अपना जीवन बलिदान करे। रोमियों 6:23 के मुताबिक, “पाप की मजदूरी तो मृत्यु है।” अपना जीवन बलिदान करके, इंसान के छुड़ानेवाले को ‘हर एक मनुष्य के लिये मृत्यु का स्वाद चखना’ था। दूसरे शब्दों में कहें तो उसे आदम के पाप की मज़दूरी देनी पड़ती। (इब्रानियों 2:9; 2 कुरिन्थियों 5:21; 1 पतरस 2:24) न्याय के मुताबिक इस बलिदान का बहुत दूर-दूर तक असर होता। परमेश्वर की आज्ञा माननेवाले आदम के हर बच्चे पर से मौत की सज़ा को रद्द करके, यह छुड़ौती, पाप की शक्ति को उसकी जड़ से ही खत्म कर देती।b—रोमियों 5:16.
12. उदाहरण देकर समझाइए कि कैसे एक कर्ज़ चुकाने से बहुत-से लोगों को फायदा होता है।
12 इसे समझने के लिए आइए एक उदाहरण लें: मान लीजिए कि आप एक ऐसे नगर में रहते हैं जहाँ के ज़्यादातर लोग एक बड़ी फैक्ट्री में काम करते हैं। आपको और आपके पड़ोसियों को अच्छा वेतन मिलता है और आपकी ज़िंदगी आराम से कट रही है। लेकिन, फिर एक दिन अचानक फैक्ट्री पर ताला लग जाता है। क्यों? फैक्ट्री का मैनेजर बेईमान निकला और उसने पूरी फैक्ट्री का दिवाला पिटवा दिया। अब आपके पास काम नहीं है और अपने पड़ोसियों की तरह आप अपना खर्च नहीं चला पा रहे। सिर्फ एक आदमी की बेईमानी की वजह से, आपकी पत्नी, बच्चों और आपके लेनदारों पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है। क्या इस मुसीबत से बाहर निकलने की कोई सूरत है? हाँ, ज़रूर है! एक धनवान सज्जन इस मामले को अपने हाथ में लेने का फैसला करता है। वह जानता है कि इस फैक्ट्री की कितनी अहमियत है। इस फैक्ट्री में काम करनेवालों और उनके परिवारों से भी उसे हमदर्दी है। इसलिए वह कंपनी का सारा कर्ज़ चुकाने और फैक्ट्री को फिर से शुरू करवाने का इंतज़ाम करता है। उस एक कर्ज़ के चुकता होने से कितने ही कर्मचारी, उनके परिवार और लेनदार चैन की साँस लेते हैं। उसी तरह, आदम का कर्ज़ चुकता करने से करोड़ों लोगों को फायदा होता है।
छुड़ौती का इंतज़ाम कौन करता है?
13, 14. (क) यहोवा ने इंसानों के लिए छुड़ौती का इंतज़ाम कैसे किया? (ख) छुड़ौती की कीमत किसे अदा की जाती है और यह कीमत अदा करना ज़रूरी क्यों था?
13 सिर्फ यहोवा उस ‘मेम्ने’ का इंतज़ाम कर सकता था, “जो जगत का पाप उठा ले जाता है।” (यूहन्ना 1:29) मगर परमेश्वर ने इंसान को बचाने के लिए करोड़ों स्वर्गदूतों में से किसी एक को चुनकर यूँ ही नहीं भेज दिया। इसके बजाय, परमेश्वर ने उसे भेजा जो यहोवा के सेवकों के खिलाफ शैतान के इलज़ाम का ऐसा पक्का और अचूक जवाब देता कि इस बारे में फिर कभी कोई सवाल उठने की गुंजाइश ही न रहती। जी हाँ, यहोवा ने अपने एकलौते बेटे को भेजकर ‘जिस से उसका जी प्रसन्न’ था, अपनी तरफ से सबसे बड़ा और सबसे महान बलिदान किया। (यशायाह 42:1) परमेश्वर के बेटे ने भी खुशी-खुशी आत्मिक स्वरूप से ‘अपने को ख़ाली कर दिया।’ (फिलिप्पियों 2:7, हिन्दुस्तानी बाइबिल) यहोवा ने चमत्कार करके स्वर्ग में अपने पहिलौठे बेटे की ज़िंदगी और उसकी शख्सियत को वहाँ से हटाकर, यहूदी कुँवारी मरियम के गर्भ में डाला। (लूका 1:27, 35) मनुष्य बनने पर वह यीशु कहलाता। मगर, कानूनी तौर पर उसे दूसरा आदम कहा जा सकता था, क्योंकि वह बिलकुल आदम के समान था। (1 कुरिन्थियों 15:45, 47) इसलिए, यीशु पापी इंसानों की छुड़ौती के लिए अपनी ज़िंदगी का बलिदान कर सकता था।
14 यह छुड़ौती की कीमत किसे अदा की जाती? भजन 49:7 में साफ तौर पर कहा है: “परमेश्वर को।” लेकिन, क्या खुद यहोवा ने ही यह छुड़ौती देने का इंतज़ाम नहीं किया था? जी हाँ, मगर इसके मायने यह नहीं कि छुड़ौती एक बेमतलब और खानापूर्ति के लिए किया गया महज़ एक लेन-देन है, मानो जैसे एक जेब से पैसा निकालकर दूसरी जेब में डाल देना। हमारे लिए यह समझना ज़रूरी है कि छुड़ौती, किसी चीज़ का लेन-देन भर नहीं, बल्कि एक कानूनी लेन-देन है। यहोवा ने खुद भारी कीमत अदा करके छुड़ौती की कीमत का जो इंतज़ाम किया, उससे उसने ज़ाहिर किया कि वह खुद भी हर हाल में अपने सिद्ध न्याय की माँगों को पूरा करता है।—उत्पत्ति 22:7, 8, 11-13; इब्रानियों 11:17; याकूब 1:17.
15. यीशु के लिए दुःख-तकलीफ झेलना और मरना क्यों ज़रूरी था?
15 सामान्य युग 33 के वसंत में, यीशु मसीह ने खुद को कठिन परीक्षा से गुज़रने दिया जिसके आखिर में उसने छुड़ौती की कीमत अदा की। झूठे इलज़ाम लगाकर उसे कैद किया गया, दोषी ठहराया गया और मार डालने के लिए एक यातना स्तंभ पर कीलों से ठोंककर लटकाया गया, मगर यीशु ने यह सब चुपचाप सहन किया। क्या यीशु के लिए इन सारी तकलीफों को झेलना ज़रूरी था? हाँ यह ज़रूरी था, क्योंकि परमेश्वर के सेवकों की खराई पर उठाया गया मसला भी तो सुलझाना था। गौर करने लायक बात है कि जब यीशु एक नन्हा शिशु था, तब परमेश्वर ने उसे हेरोदेस के हाथों मरने नहीं दिया। (मत्ती 2:13-18) मगर जब यीशु बड़ा हुआ, तब वह उठाए गए मसलों को अच्छी तरह समझता था और शैतान के हमलों की चोट झेलने के लिए पूरी तरह तैयार था।c यीशु को बहुत ही बुरी तरह सताया गया, मगर फिर भी वह “पवित्र [“वफादार,” NW], और निष्कपट और निर्मल, और पापियों से अलग” रहा। ऐसा करके यीशु ने एक ही बार में बड़े ही ज़बरदस्त तरीके से यह ज़ाहिर कर दिया कि यहोवा के ऐसे सेवक भी हैं जो आज़माइशों के वक्त उसके वफादार रहते हैं। (इब्रानियों 7:26) तो फिर, ताज्जुब नहीं कि दम तोड़ते वक्त यीशु एक विजेता की तरह बोल पड़ा: “पूरा हुआ।”—यूहन्ना 19:30.
छुड़ाने का अपना काम पूरा करना
16, 17. (क) यीशु ने छुड़ाने का अपना काम कैसे जारी रखा? (ख) यीशु का ‘हमारे लिये परमेश्वर के साम्हने’ हाज़िर होना क्यों ज़रूरी था?
16 इंसान को छुड़ाने का यीशु का काम अभी पूरा नहीं हुआ था। यीशु की मौत के तीसरे दिन, यहोवा ने उसे मरे हुओं में से जिलाया। (प्रेरितों 3:15; 10:40) यह महान काम करके, यहोवा ने अपने बेटे को उसकी वफादारी का न सिर्फ इनाम दिया, बल्कि उसे परमेश्वर के महायाजक के नाते, इंसान को छुड़ाने का काम पूरा करने का मौका भी दिया। (रोमियों 1:4; 1 कुरिन्थियों 15:3-8) प्रेरित पौलुस समझाता है: “जब मसीह . . . महायाजक होकर आया, तो उस ने . . . बकरों और बछड़ों के लोहू के द्वारा नहीं, पर अपने ही लोहू के द्वारा एक ही बार पवित्र स्थान में प्रवेश किया, और अनन्त छुटकारा प्राप्त किया। क्योंकि मसीह ने उस हाथ के बनाए हुए पवित्र स्थान में जो सच्चे पवित्र स्थान का नमूना है, प्रवेश नहीं किया, पर स्वर्ग ही में प्रवेश किया, ताकि हमारे लिये अब परमेश्वर के साम्हने दिखाई दे।”—इब्रानियों 9:11, 12, 24.
17 मसीह अपना सचमुच का लहू स्वर्ग में नहीं ले जा सकता था। (1 कुरिन्थियों 15:50) इसके बजाय, उसका लहू जिसकी निशानी था उसे वह स्वर्ग ले गया: अपने बलि किए हुए सिद्ध इंसानी जीवन की कानूनी कीमत। फिर, परमेश्वर के सामने उसने, पापी इंसानों की छुड़ौती के लिए अपनी ज़िंदगी की यह कीमत औपचारिक रूप से पेश की। क्या यहोवा ने यह बलिदान स्वीकार किया? जी हाँ, इसका सबूत सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त में मिला, जब यरूशलेम में करीब 120 चेलों पर पवित्र आत्मा उंडेली गयी। (प्रेरितों 2:1-4) वह घटना वाकई बड़ी हैरतअंगेज़ थी, मगर छुड़ौती से मिलनेवाले फायदों की यह बस शुरूआत ही थी।
छुड़ौती के फायदे
18, 19. (क) मसीह के लहू से मुमकिन होनेवाले मेल-मिलाप से, लोगों के कौन-से दो दलों को फायदा होता है? (ख) “बड़ी भीड़” के लोगों को, आज और भविष्य में छुड़ौती से कौन-से कुछ फायदे हासिल होंगे?
18 कुलुस्सियों को लिखी अपनी पत्री में, पौलुस समझाता है कि परमेश्वर की प्रसन्नता इसी में थी कि मसीह के ज़रिए बाकी सब चीज़ों का अपने आप से मेल-मिलाप करवाए, यानी यातना स्तंभ पर यीशु के बहाए लहू से उनके साथ शांति कायम करे। पौलुस ये भी बताता है कि इस मेल-मिलाप में लोगों के दो अलग-अलग दल हैं। पहला, ‘स्वर्ग में की वस्तुएं’ और दूसरा, ‘पृथ्वी पर की वस्तुएं’। (कुलुस्सियों 1:19, 20; इफिसियों 1:10) पहला दल, 1,44,000 मसीहियों का है, जिनकी आशा है कि वे स्वर्ग में याजक बनकर सेवा करेंगे, साथ ही वे मसीह यीशु के साथ राजा बनकर धरती की प्रजा पर राज करेंगे। (प्रकाशितवाक्य 5:9, 10; 7:4; 14:1-3) उनके ज़रिए, एक हज़ार सालों के दरमियान आज्ञा माननेवाले इंसानों को धीरे-धीरे छुड़ौती के फायदे दिए जाएँगे।—1 कुरिन्थियों 15:24-26; प्रकाशितवाक्य 20:6; 21:3, 4.
19 ‘पृथ्वी पर की वस्तुएं’ वे लोग हैं जिन्हें फिरदौस बनी ज़मीन पर सिद्ध जीवन जीने की आशा है। प्रकाशितवाक्य 7:9-17 में उन्हें एक “बड़ी भीड़” कहा गया है जो आनेवाले “बड़े क्लेश” में से बचकर पार होगी। मगर छुड़ौती के फायदे पाने के लिए उन्हें तब तक इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा। उन्होंने अभी से “अपने अपने वस्त्र मेम्ने के लोहू में धोकर श्वेत किए हैं।” छुड़ौती पर विश्वास रखने की वजह से, वे आज भी इस प्यार-भरे इंतज़ाम से आध्यात्मिक फायदे पा रहे हैं। उन्हें परमेश्वर के मित्रों की हैसियत से धर्मी ठहराया गया है! (याकूब 2:23) यीशु के बलिदान की वजह से, वे “साहस के साथ अनुग्रह के सिंहासन के समीप” आ सकते हैं। (इब्रानियों 4:14-16, नयी हिन्दी बाइबिल) जब वे गलती करते हैं, तो उन्हें सच्ची माफी मिलती है। (इफिसियों 1:7) असिद्ध होने पर भी, उनका विवेक साफ है जिसकी वजह से वे खुश हैं। (इब्रानियों 9:9; 10:22; 1 पतरस 3:21) इस तरह, परमेश्वर से मेल-मिलाप होने की आशा भविष्य में पूरा होनेवाला कोई सपना नहीं, बल्कि आज की हकीकत है! (2 कुरिन्थियों 5:19, 20) हज़ार साल के राज्य के दौरान, उन्हें धीरे-धीरे “विनाश के दासत्व से छुटकारा” दिलाया जाएगा और आखिरकार वे “परमेश्वर की सन्तानों की महिमा की स्वतंत्रता प्राप्त” करेंगे।—रोमियों 8:21.
20. छुड़ौती के बारे में मनन करने का खुद आप पर क्या असर होता है?
20 छुड़ौती के लिए “प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर का धन्यवाद” हो! (रोमियों 7:25) छुड़ौती का सिद्धांत कितना सीधा-सा है, मगर इतना अगम कि हम विस्मय और श्रद्धा से भर जाते हैं। (रोमियों 11:33) और जब हम एहसानमंदी की भावना से इस पर मनन करते हैं, तो यह हमारे दिलों को छू जाता है, और हम न्याय के परमेश्वर के और करीब खिंचे चले आते हैं। भजनहार की तरह, हमारे पास हर वजह है कि हम यहोवा का गुणगान करें, जो “धर्म और न्याय से प्रीति रखता है।”—भजन 33:5.
a निर्गमन 25:17-22 में, शब्द “ढकना,” कोफेर से जुड़े एक शब्द का अनुवाद है।
b आदम और हव्वा छुड़ौती से फायदा नहीं पा सकते थे। मूसा की कानून-व्यवस्था में, जानबूझकर किसी का खून करनेवाले के बारे में यह सिद्धांत दिया गया था: “जो खूनी प्राणदण्ड के योग्य ठहरे उस से प्राणदण्ड के बदले में जुरमाना [या, छुड़ौती] न लेना।” (गिनती 35:31) ज़ाहिर है कि आदम और हव्वा मौत की सज़ा के लायक थे, क्योंकि उन्होंने जानबूझकर और अपनी मरज़ी से परमेश्वर की आज्ञा तोड़ी थी। ऐसा करके उन्होंने अनंत जीवन की अपनी आशा गँवा दी।
c आदम के पाप को मिटाने के लिए यीशु को एक सिद्ध बालक की तरह नहीं बल्कि एक सिद्ध आदमी की तरह अपनी जान देनी थी। याद रखिए, आदम ने जानबूझकर पाप किया था और उसे अच्छी तरह पता था कि जो काम वह करने जा रहा है वह कितना गंभीर है और उसके क्या-क्या अंजाम निकलेंगे। इसलिए “अन्तिम आदम” बनने और उस पाप को ढांपने के लिए, यीशु को एक प्रौढ़ इंसान के नाते सबकुछ जानते-समझते हुए यहोवा का वफादार रहने का फैसला करना था। (1 कुरिन्थियों 15:45, 47) इस तरह, यीशु ने वफादार रहकर जो ज़िंदगी बितायी और मरकर जो बलिदान दिया, वह ‘धार्मिकता का एक ही कार्य’ था।—रोमियों 5:18, 19, NHT.
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यीशु ‘न्याय को पृथ्वी पर स्थिर करता है’यहोवा के करीब आओ
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अध्याय 15
यीशु ‘न्याय को पृथ्वी पर स्थिर करता है’
1, 2. क्या देखकर यीशु का गुस्सा भड़क उठा, और क्यों?
यीशु का गुस्सा साफ दिखायी दे रहा था, और गुस्सा आना लाज़िमी था। शायद आपके लिए यह कल्पना करना मुश्किल हो कि उसके जैसा नर्म स्वभाव का इंसान भी कभी क्रोधित हो सकता है। (मत्ती 21:5, NW) लेकिन, यीशु गुस्से से बेकाबू नहीं था, क्योंकि उसका गुस्सा धार्मिकता की खातिर था।a आखिर ऐसी क्या बात हो गयी जिससे यह शांतिप्रिय इंसान भड़क उठा? सरासर अंधेर हो रहा था।
2 यरूशलेम का मंदिर यीशु को दिलो-जान से प्यारा था। सारी दुनिया में, सिर्फ यही वह पवित्र जगह थी, जो उसके स्वर्गीय पिता की उपासना के लिए समर्पित थी। कई देशों से यहूदी लंबा सफर तय करते हुए यहाँ उपासना के लिए आते थे। यहाँ तक कि अन्यजातियों में से परमेश्वर का भय माननेवाले लोग भी, मंदिर के उस आँगन में आकर उपासना करते थे जो उनके लिए ठहराया गया था। मगर जब यीशु अपनी सेवा की शुरूआत में मंदिर के इलाके में दाखिल हुआ तो वहाँ का बुरा हाल देखकर चौंक गया। वह मानो उपासना के भवन में नहीं बल्कि किसी बाज़ार में पहुँच गया था! व्यापारियों और सर्राफों का वहाँ जमघट लगा हुआ था। मगर, इसमें अंधेर की क्या बात थी? वह यह कि इन व्यापारियों और सर्राफों के लिए परमेश्वर का भवन उपासना का घर नहीं बल्कि लोगों का खून चूसने, उनकी जेबों पर डाका डालने की जगह बनकर रह गया था। वह कैसे?—यूहन्ना 2:14.
3, 4. यहोवा के भवन में लालची व्यापारी, लोगों को कैसे लूट रहे थे और इन हालात को सुधारने के लिए यीशु ने क्या कदम उठाया?
3 धर्म-गुरुओं ने यह नियम बना दिया था कि सिर्फ एक खास किस्म का सिक्का ही मंदिर का कर अदा करने के लिए लिया जाएगा। इसलिए मंदिर में आनेवालों को, अपने पैसे देकर ये सिक्के खरीदने पड़ते थे। सर्राफों ने मंदिर के अंदर ही अपनी मेज़ें जमायी हुई थीं और सिक्के बदलने की हर किसी से फीस लेते थे। जानवरों का व्यापार भी, बहुत मुनाफे का धंधा था। मंदिर में आनेवाले, शहर के किसी भी व्यापारी से बलि के लिए पशु खरीद तो सकते थे, मगर ऐसा करने पर यह तय था कि मंदिर के सरदार उनकी भेंट को अयोग्य बताकर ठुकरा देंगे। लेकिन, अगर आपने मंदिर के इलाके से ही जानवर खरीदा है तो उसका स्वीकार किया जाना पक्का था। जनता के पास इन व्यापारियों से खरीदने के अलावा और कोई चारा न था, इसलिए कई बार ये व्यापारी ऊँचे-से-ऊँचा दाम लगाकर लोगों को ठगते थे।b यह व्यापार नहीं, लूटमार थी। डाका डालना और किसे कहते हैं!
“इन्हें यहां से ले जाओ”!
4 यीशु ऐसे अन्याय को बरदाश्त नहीं कर सका। आखिरकार, यह उसके अपने पिता का घर था! उसने रस्सियाँ मिलाकर एक कोड़ा बनाया और गाय-बैल और भेड़ों के झुंडों को मंदिर से खदेड़ दिया। फिर वह लंबे-लंबे डग भरता हुआ सर्राफों की तरफ बढ़ा और उनकी मेज़ें उलट दीं। कल्पना कीजिए कि संगमरमर के फर्श पर ढेरों सिक्के कैसे खनखनाते हुए बिखर गए होंगे! इतना ही नहीं, कबूतर बेचनेवालों को उसने कड़ाई से हुक्म दिया: “इन्हें यहां से ले जाओ”! (यूहन्ना 2:15, 16) किसी में इतनी हिम्मत नहीं थी कि इस साहसी इंसान का सामना कर सके।
“जैसा बाप, वैसा बेटा”
5-7. (क) यीशु के न्याय के जज़्बे पर स्वर्ग में बीती उसकी ज़िंदगी का कैसा असर हुआ था, और उसकी मिसाल पर ध्यान देने से हम क्या सीख सकते हैं? (ख) यहोवा की हुकूमत और उसके नाम को लेकर जो-जो अन्याय हुआ उसके खिलाफ यीशु कैसे लड़ा?
5 बेशक, ये व्यापारी फिर अपनी जगहों पर आ बैठे। करीब तीन साल बाद, यीशु ने इसी अन्याय के खिलाफ फिर कार्यवाही की। इस बार उसने यहोवा के वचनों का हवाला देते हुए उन लोगों के कामों को घृणित करार दिया, जिन्होंने परमेश्वर के भवन को “डाकुओं की खोह” बना दिया था। (मत्ती 21:13; यिर्मयाह 7:11) जी हाँ, जब यीशु ने देखा कि ये लालची व्यापारी, कैसे लोगों को लूट रहे हैं और परमेश्वर के मंदिर को अपवित्र कर रहे हैं, तो उसे वैसा ही लगा जैसे उसके पिता को लगा था। और क्यों न हो! आखिर लाखों-लाख साल यीशु के स्वर्गीय पिता ने उसे शिक्षा जो दी थी। इसलिए उसमें भी न्याय का वैसा ही जज़्बा था जैसा यहोवा में है। वह इस कहावत की जीती-जागती मिसाल बना, “जैसा बाप, वैसा बेटा।” अगर हम यहोवा के न्याय के गुण की सही तसवीर पाना चाहते हैं, तो इसका सबसे बेहतरीन तरीका है यीशु मसीह की मिसाल पर ध्यान देना।—यूहन्ना 14:9, 10.
6 जब शैतान ने यहोवा परमेश्वर को झूठा कहा और यह इलज़ाम लगाया कि उसके हुकूमत करने का तरीका सही नहीं है, तब यहोवा का एकलौता पुत्र यह सब देख-सुन रहा था। परमेश्वर को बदनाम करने के लिए शैतान ने क्या ही घिनौना झूठ बोला था! इसके बाद, परमेश्वर के इस पुत्र ने शैतान की यह चुनौती भी सुनी कि कोई भी प्राणी बिना किसी स्वार्थ के, सिर्फ प्रेम की खातिर यहोवा की सेवा नहीं करेगा। इन झूठे इलज़ामों को सुनकर इस बेटे का सच्चा दिल सचमुच तड़प उठा होगा। लेकिन जब उसने जाना कि इन सारे इलज़ामों को गलत साबित करने में अहम भूमिका निभाने के लिए उसी को चुना गया है, तो बेशक उसकी खुशी का ठिकाना न रहा होगा! (2 कुरिन्थियों 1:20) वह यह कैसे करता?
7 हमने 14वें अध्याय में जैसे सीखा, शैतान ने यहोवा के प्राणियों की खराई पर सवाल उठाकर उन पर इलज़ाम लगाया था। और हमने यह भी सीखा कि यीशु मसीह ने कैसे इसका ऐसा पक्का और अचूक जवाब दिया कि इस बारे में फिर कभी कोई सवाल उठने की गुंजाइश ही न रहती। इस तरह यीशु ने उस वक्त की बुनियाद डाली जब यहोवा की हुकूमत को हमेशा-हमेशा के लिए बुलंद करने और उसके नाम को पवित्र करने के लिए आखिरी कार्यवाही की जाती। इतना ही नहीं, यहोवा का अधिनायक बनकर, यीशु सारे जहान में परमेश्वर के न्याय को स्थिर करेगा। (प्रेरितों 5:31) धरती पर अपनी ज़िंदगी से भी उसने दिखाया कि परमेश्वर का न्याय क्या होता है। यहोवा ने उसके बारे में यह कहा: “मैं अपना आत्मा उस पर डालूंगा; और वह अन्यजातियों को न्याय का समाचार देगा।” (मत्ती 12:18) यीशु ने न्याय का समाचार कैसे दिया, या दूसरे शब्दों में, “न्याय” क्या है यह कैसे समझाया?
यीशु समझाता है कि “न्याय” क्या है
8-10. (क) यहूदी धर्मगुरुओं की ज़बानी परंपराओं ने कैसे गैर-यहूदियों और स्त्रियों के खिलाफ घृणा को बढ़ावा दिया? (ख) ज़बानी नियमों ने कैसे यहोवा के सब्त के नियम को बोझ बना दिया था?
8 यीशु को यहोवा की व्यवस्था से प्यार था और उसने इसके हर नियम का पालन किया। जबकि उसके समय के धर्मगुरुओं ने इस कानून-व्यवस्था को तोड़-मरोड़कर इसका गलत अर्थ समझाया। यीशु ने उनसे कहा: “हे कपटी शास्त्रियो, और फरीसियो, तुम पर हाय; . . . तुम ने व्यवस्था की गम्भीर बातों को अर्थात् न्याय, और दया, और विश्वास को छोड़ दिया है।” (मत्ती 23:23) ज़ाहिर है कि परमेश्वर की व्यवस्था के ये शिक्षक “न्याय” की सही और साफ तसवीर पेश नहीं कर रहे थे। इसके बजाय, वे इस पर परदा डाल रहे थे। वह कैसे? आइए कुछ मिसालों पर गौर करें।
9 यहोवा ने अपने लोगों को आस-पास की गैर-यहूदी जातियों से अलग रहने की आज्ञा दी थी। (1 राजा 11:1, 2) लेकिन, उनके कुछ कट्टर धर्मगुरुओं ने उन्हें सभी गैर-यहूदियों से नफरत करना सिखाया। मिशना में तो यह नियम भी था: “अपने मवेशियों को अन्यजाति के लोगों की सराय में नहीं छोड़ना चाहिए, क्योंकि माना जाता है कि वे पशुगामी होते हैं।” सभी गैर-यहूदियों को एक ही लाठी से हाँकने की ऐसी दुर्भावना, अन्याय था और मूसा की कानून-व्यवस्था के असली मकसद के बिलकुल खिलाफ था। (लैव्यव्यवस्था 19:34) उनके बनाए दूसरे नियमों में, स्त्रियों को तुच्छ ठहराया गया था। उनके एक ज़बानी नियम के मुताबिक, पत्नी को कभी-भी अपने पति के साथ-साथ नहीं बल्कि उसके पीछे चलना चाहिए था। लोगों के सामने एक आदमी किसी स्त्री से बात नहीं कर सकता था, अपनी पत्नी से भी नहीं। जैसे दासों के साथ था, वैसे ही स्त्रियों को भी अदालत में गवाही देने की इजाज़त नहीं थी। एक ऐसी प्रार्थना भी बनायी गयी थी, जिसमें आदमी सरेआम परमेश्वर का धन्यवाद करते थे कि उन्हें स्त्रियाँ नहीं बनाया गया।
10 धर्मगुरुओं के बनाए नियमों और रस्मो-रिवाज़ के ढेर तले, परमेश्वर की कानून-व्यवस्था दबकर रह गयी थी। मिसाल के लिए, सब्त के नियम में बस इतना बताया गया था कि उस दिन काम न किया जाए बल्कि उस दिन को परमेश्वर की उपासना करने, आध्यात्मिक तरीके से ताज़गी पाने और आराम करने के लिए अलग रखा जाए। मगर फरीसियों ने उस नियम को एक भारी बोझ बना दिया था। उन्होंने खुद यह फैसला करने की ज़िम्मेदारी ले ली कि किसे “काम” कहा जाना चाहिए, किसे नहीं। उन्होंने कामों को 39 वर्गों में बाँट दिया जिनमें कटनी और शिकार करना भी शामिल था। इन वर्गों की वजह से ढेरों सवाल उठ खड़े हुए। जैसे, अगर एक आदमी सब्त के दिन एक पिस्सू मारता है, तो क्या वह शिकार कर रहा है? अगर वह चलते-चलते खेत से अनाज के मुट्ठी भर दाने तोड़कर अपने मुँह में डालता है, तो क्या वह कटनी कर रहा है? अगर वह किसी बीमार को ठीक करता है, तो क्या वह काम कर रहा है? ऐसे हर सवाल के जवाब में, इसके हर छोटे-से-छोटे पहलू पर ब्यौरेदार, सख्त नियम बना दिए गए।
11, 12. यीशु ने फरीसियों की उन परंपराओं के खिलाफ अपना विरोध कैसे ज़ाहिर किया जो परमेश्वर के वचन में नहीं पायी जातीं?
11 इस तरह के माहौल में, यीशु लोगों को कैसे समझा पाता कि न्याय किसे कहते हैं? अपनी शिक्षाओं और जीने के तरीके से यीशु ने बड़े साहस के साथ यह ज़ाहिर किया कि वह इन धर्मगुरुओं के खिलाफ है। आइए सबसे पहले उसकी कुछ शिक्षाओं पर ध्यान दें। उसने धर्मगुरुओं के बनाए हज़ारों-हज़ार नियमों की सीधे-सीधे निंदा की: “तुम अपनी रीतियों से, जिन्हें तुम ने ठहराया है, परमेश्वर का वचन टाल देते हो।”—मरकुस 7:13.
12 यीशु ने ज़बरदस्त शब्दों में सिखाया कि सब्त के नियम के बारे में फरीसी गलत हैं—दरअसल, वे इस नियम के असली मायने समझने से पूरी तरह चूक गए थे। यीशु ने समझाया कि मसीहा “सब्त के दिन का भी प्रभु है” और इसलिए सब्त के दिन उसे बीमारों को चंगा करने का पूरा-पूरा अधिकार है। (मत्ती 12:8) इस बात पर ज़ोर देने के लिए, उसने सब्त के दिन खुलेआम चमत्कार करके लोगों को चंगा किया। (लूका 6:7-10) यह उस महान चंगाई की एक झलक थी, जो वह अपने हज़ार साल के राज्य के दौरान सारी धरती पर करेगा। वही हज़ार साल का राज्य सबसे बड़ा सब्त होगा, जब सभी वफादार इंसान पाप और मौत की सदियों से चली आ रही गुलामी के बोझ से आज़ाद होकर विश्राम पाएँगे।
13. धरती पर मसीह की सेवा की वजह से कौन-सी नयी व्यवस्था अस्तित्त्व में आयी और यह पिछली व्यवस्था से कैसे अलग थी?
13 यीशु ने न्याय की समझ इस तरह भी दी कि जब धरती पर उसकी सेवा पूरी हुई तो एक नयी व्यवस्था, यानी “मसीह की व्यवस्था” अस्तित्त्व में आयी। (गलतियों 6:2) यह व्यवस्था, मूसा की कानून-व्यवस्था जैसी नहीं थी, जिसके ज़्यादातर नियम और आदेश लिखित रूप में दिए गए थे, बल्कि यह नयी व्यवस्था सिद्धांतों पर आधारित थी। बेशक, इसमें कुछ स्पष्ट आज्ञाएँ भी थीं जिनमें से एक को यीशु ने “नई आज्ञा” कहा। यीशु ने सिखाया कि उसके चेले एक-दूसरे से वैसा ही प्रेम करें जैसा उसने उनसे किया था। (यूहन्ना 13:34, 35) जी हाँ, “मसीह की व्यवस्था” के मुताबिक जीनेवाले हर इंसान की पहचान, उसका वह प्रेम होता जो दूसरों की खातिर खुद को कुरबान करने के लिए तैयार रहता है।
न्याय की जीती-जागती मिसाल
14, 15. यीशु ने कैसे दिखाया कि वह अपने अधिकार की हद जानता था, और इससे किस बात पर हमारा भरोसा बढ़ता है?
14 यीशु ने प्रेम के बारे में सिर्फ सिखाया ही नहीं, बल्कि वह “मसीह की व्यवस्था” के मुताबिक जीया भी। उसकी ज़िंदगी इसका साकार रूप थी। आइए हम उन तीन तरीकों पर गौर करें जिनसे यीशु की मिसाल हमें समझाती है कि न्याय क्या है।
15 पहला तरीका, यीशु ने हर छोटी-से-छोटी बात में यह ख्याल रखा कि वह कोई अन्याय न करे। शायद आपने देखा होगा कि ज़्यादातर अन्याय तब होते हैं जब असिद्ध इंसान, घमंडी हो जाते हैं और अपने अधिकार की हद पार कर जाते हैं। लेकिन यीशु ने कभी ऐसा नहीं किया। एक बार जब किसी ने यीशु के पास आकर कहा: “हे गुरु, मेरे भाई से कह, कि पिता की संपत्ति मुझे बांट दे।” यीशु का जवाब क्या था? “हे मनुष्य, किस ने मुझे तुम्हारा न्यायी या बांटनेवाला नियुक्त किया है?” (लूका 12:13, 14) क्या यह सचमुच कमाल की बात नहीं? यीशु के पास जो बुद्धि, समझ, यहाँ तक कि परमेश्वर से उसे जो अधिकार मिला था, वह दुनिया के किसी भी इंसान से बढ़कर था; तो भी उसने दखल देने से इनकार कर दिया, क्योंकि उसे इस मामले में फैसला करने का खास तौर से अधिकार नहीं दिया गया था। इस तरह, यीशु ने कभी-भी अपनी हद पार नहीं की बल्कि वह हमेशा अपनी मर्यादा में रहा। और ऐसा उसने न सिर्फ धरती पर बल्कि उससे पहले स्वर्ग में हज़ारों सालों की ज़िंदगी के दौरान भी किया था। (यहूदा 9) यह दिखाता है कि यीशु ने नम्रता से, फैसला यहोवा पर छोड़ दिया क्योंकि उसे पूरा भरोसा था कि वह न्याय करेगा। यीशु का यह बढ़िया गुण वाकई तारीफ के काबिल है।
16, 17. (क) यीशु ने परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार प्रचार करने से कैसे न्याय ज़ाहिर किया? (ख) यीशु ने कैसे दिखाया कि उसके न्याय के जज़्बे में दया की गहरी भावना भी है?
16 दूसरा, यीशु ने जिस तरह परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार प्रचार किया उससे भी न्याय ज़ाहिर किया। उसने पक्षपात नहीं किया। इसके बजाय, उसकी पूरी कोशिश रहती थी कि वह हर किस्म के लोगों तक पहुँच पाए, चाहे वे अमीर हों या गरीब। इसके उलटे फरीसी, गरीब और आम लोगों का तिरस्कार करते थे और उन्हें आमहारेट्स् यानी “ज़मीन के लोग” कहकर उनको ज़लील करते थे। यीशु ने पूरी हिम्मत के साथ इस अन्याय के खिलाफ कार्यवाही की। जब उसने लोगों को सुसमाचार के बारे में सिखाया, यहाँ तक कि जब उसने उनके साथ भोजन किया, भूखों को खिलाया, रोगियों को चंगा किया और मरे हुओं का पुनरुत्थान किया, सभी मामलों में उसने परमेश्वर के न्याय को बुलंद किया जिसकी यह इच्छा है कि “सब मनुष्यों” में से हर कोई उसे जाने।c—1 तीमुथियुस 2:4.
17 तीसरा, यीशु के न्याय के जज़्बे में दया की गहरी भावना भी थी। उसने पापियों की मदद करने के लिए हर तरह का यत्न किया। (मत्ती 9:11-13) वह उन लोगों की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहता था जिनमें खुद अपना बचाव करने की ताकत नहीं थी। मिसाल के लिए, यीशु ने धर्मगुरुओं के जैसे काम नहीं किया, जो लोगों के मन में सभी गैर-यहूदियों के खिलाफ नफरत भरते रहते थे। उसने दया दिखाकर अन्यजाति के कुछ लोगों को सिखाया, हालाँकि उसे खास तौर पर यहूदियों के लिए भेजा गया था। वह एक रोमी सूबेदार की खातिर चमत्कार करने के लिए राज़ी हो गया, और उसके बारे में कहा: “मैं ने इस्राएल में भी ऐसा विश्वास नहीं पाया।”—मत्ती 8:5-13.
18, 19. (क) किन तरीकों से यीशु ने स्त्रियों की इज़्ज़त बढ़ायी? (ख) यीशु की मिसाल कैसे दिखाती है कि साहस और न्याय के बीच नाता है?
18 उसी तरह, यीशु ने स्त्रियों के बारे में लोगों की आम राय की पैरवी नहीं की। इसके बजाय, उसने बड़ी हिम्मत के साथ वही किया जो न्याय के हिसाब से सही था। सामरी स्त्रियों को अन्यजाति के लोगों जितना ही अशुद्ध समझा जाता था। फिर भी, यीशु ने सूखार के एक कूँए पर आयी सामरी स्त्री को प्रचार करने में कोई झिझक महसूस नहीं की। दरअसल, यही वह स्त्री थी जिसके सामने यीशु ने पहली बार खुलकर कबूल किया कि वही वादा किया हुआ मसीहा है। (यूहन्ना 4:6, 25, 26) फरीसी कहते थे कि स्त्रियों को परमेश्वर की कानून-व्यवस्था नहीं सिखानी चाहिए, मगर यीशु ने स्त्रियों को सिखाने के लिए अपना बहुत वक्त लगाया और मेहनत की। (लूका 10:38-42) हालाँकि परंपरा यह थी कि स्त्रियों की गवाही पर भरोसा नहीं किया जाता था, मगर यीशु ने कई स्त्रियों को यह खास सम्मान देकर उनकी इज़्ज़त बढ़ायी कि उसके पुनरुत्थान की वही सबसे पहली गवाह हों। उसने उनसे यह भी कहा कि वे जाकर उसके पुरुष चेलों को इस सबसे अहम घटना की खबर दें!—मत्ती 28:1-10.
19 जी हाँ, यीशु ने सब जातियों पर यह ज़ाहिर किया कि न्याय क्या होता है। कई मामलों में तो उसने अपनी जान जोखिम में डालकर ऐसा किया। यीशु की मिसाल हमें यह समझने में मदद देती है कि सच्चा न्याय करने के लिए साहस की ज़रूरत होती है। यीशु को सही मायनों में “यहूदा के गोत्र का . . . सिंह” कहा गया है। (प्रकाशितवाक्य 5:5) याद कीजिए कि सिंह, साहस से न्याय करने का प्रतीक है। लेकिन, आनेवाले वक्त में जल्द ही यीशु इससे भी बड़े पैमाने पर न्याय करेगा। तब जाकर सही मायनों में वह “न्याय को पृथ्वी पर स्थिर” करेगा।—यशायाह 42:4.
मसीहाई राजा ‘न्याय को पृथ्वी पर स्थिर करता है’
20, 21. हमारे समय में, मसीहाई राजा ने सारी धरती पर और मसीही कलीसिया के अंदर न्याय को कैसे बढ़ाया है?
20 सन् 1914 से मसीहाई राजा बनने के बाद, यीशु ने पृथ्वी पर न्याय को बढ़ाया है। वह कैसे? उसने मत्ती 24:14 में लिखी अपनी भविष्यवाणी को पूरा करने की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ली है। धरती पर यीशु के चेलों ने सब देशों के लोगों को यहोवा के राज्य के बारे में सच्चाई सिखायी है। यीशु की तरह, उन्होंने बिना किसी का पक्षपात किए न्याय से सबको प्रचार किया है। उनकी कोशिश रही है कि चाहे बूढ़े हों या जवान, अमीर या गरीब, स्त्री या पुरुष, सबको न्याय के परमेश्वर यहोवा को जानने का मौका मिले।
21 यीशु, मसीही कलीसिया में भी न्याय को बढ़ावा दे रहा है क्योंकि वह खुद इसका सिर या मुखिया है। जैसे भविष्यवाणी की गयी थी, वह वफादार मसीही प्राचीनों को “मनुष्यों [के रूप में] दान” देता है और वे कलीसिया में अगुवाई करते हैं। (इफिसियों 4:8-12) परमेश्वर के बेशकीमती झुंड की चरवाही करते वक्त, ऐसे पुरुष न्याय को बढ़ाने में यीशु मसीह की मिसाल पर चलते हैं। वे हमेशा इस बात का ध्यान रखते हैं कि यीशु अपनी भेड़ों के साथ न्याय होते देखना चाहता है—फिर चाहे उनका ओहदा कुछ भी क्यों न हो, चाहे वे इज़्ज़तदार हों या मामूली इंसान, चाहे अमीर हों या गरीब।
22. आज संसार में हर तरफ फैले अन्याय के बारे में यहोवा कैसा महसूस करता है, और उसने इस बारे में अपने बेटे को क्या करने के लिए नियुक्त किया है?
22 मगर, आनेवाले वक्त में बहुत जल्द यीशु इस पृथ्वी पर न्याय को ऐसे स्थिर करेगा जैसे पहले कभी नहीं हुआ। इस भ्रष्ट संसार में हर तरफ अन्याय-ही-अन्याय है। यह सोचकर कि युद्ध के हथियार बनाने और सुख-विलास के मतवाले लोगों के लिए ऐयाशी का सामान जुटाने में किस कदर पानी की तरह पैसा बहाया जाता है और वक्त बरबाद किया जाता है, वहीं जब हम बच्चों को भूखा मरते देखते हैं तो यह सरासर अन्याय लगता है, जिसे माफ नहीं किया जा सकता। हर साल लाखों लोग जो बेवजह मारे जाते हैं, इस संसार में होनेवाले अन्याय की सिर्फ एक मिसाल हैं और ऐसे तमाम अन्याय देखकर यहोवा का धर्मी क्रोध भड़क उठता है। उसने अपने बेटे को इस दुष्ट संसार के खिलाफ एक धर्मी युद्ध लड़ने और अन्याय का नामो-निशान मिटाने की ज़िम्मेदारी सौंपी है।—प्रकाशितवाक्य 16:14, 16; 19:11-15.
23. हरमगिदोन के बाद, मसीह कैसे हमेशा-हमेशा तक न्याय को बढ़ावा देता रहेगा?
23 लेकिन, यहोवा का न्याय सिर्फ दुष्टों के विनाश की माँग नहीं करता। उसने अपने बेटे को “शान्ति का शासक” बनकर राज करने के लिए भी ठहराया है। हरमगिदोन के युद्ध के बाद, यीशु के राज से सारी धरती पर शांति कायम होगी और वह “न्याय” से शासन करेगा। (यशायाह 9:6, 7, नयी हिन्दी बाइबिल) तब यीशु सारे अन्याय को मिटाने में बड़ी खुशी पाएगा, जिसकी वजह से अब तक लोगों ने अनगिनित विपत्तियाँ और दुःख-तकलीफें झेली हैं। आनेवाले भविष्य में हमेशा-हमेशा तक यीशु, पूरी वफादारी के साथ यहोवा के सिद्ध न्याय को बुलंद करता रहेगा। इसलिए, यह बेहद ज़रूरी है कि हम आज और अभी यहोवा की तरह न्याय दिखाएँ। आइए देखें कि हम ऐसा कैसे कर सकते हैं।
a यीशु ने यहोवा की तरह धार्मिकता की खातिर गुस्सा दिखाया, क्योंकि यहोवा किसी भी तरह की दुष्टता देखकर “जलजलाहट” से भर उठता है। (नहूम 1:2) मिसाल के लिए, यहोवा ने अपने भटके हुए लोगों को यह बताने के बाद कि उन्होंने उसके भवन को “डाकुओं की खोह” बना दिया है, आगे कहा: “मेरा क्रोध और मेरे रोष की अग्नि इस स्थान [पर] भड़क उठेगी।”—यिर्मयाह 7:11, 20, NHT.
b मिशना के मुताबिक, कुछ सालों बाद मंदिर में बिकनेवाले कबूतरों के दामों को लेकर आम लोगों ने विरोध किया। जवाब में, फौरन दामों को लगभग 99 प्रतिशत घटा दिया गया! तो सवाल यह है कि सोना उगलनेवाले इस व्यापार से सबसे ज़्यादा फायदा किसे होता था? कुछ इतिहासकारों का कहना है कि महायाजक हन्ना का घराना मंदिर के बाज़ारों का मालिक था। इस व्यापार ने हन्ना के याजकीय परिवार के पास दौलत के अंबार लगा दिए थे।—यूहन्ना 18:13.
c फरीसी मानते थे कि निचले दर्जे के ये लोग “स्रापित” थे, जिन्हें व्यवस्था की कोई जानकारी नहीं थी। (यूहन्ना 7:49) उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों को न तो कोई शिक्षा देनी चाहिए, न उनके साथ व्यापार करना चाहिए, न ही भोजन करना चाहिए और न ही उनके साथ प्रार्थना करनी चाहिए। उनके मुताबिक इनमें से किसी के साथ अपनी बेटी को ब्याहना, उसे जंगली जानवरों के आगे बेसहारा छोड़ देने से भी बदतर है। उनका मानना था कि ऐसे लोगों के लिए तो पुनरुत्थान की आशा भी नहीं है।
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परमेश्वर के साथ चलते हुए ‘न्याय से काम कर’यहोवा के करीब आओ
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अध्याय 16
परमेश्वर के साथ चलते हुए ‘न्याय से काम कर’
1-3. (क) हम क्यों यहोवा के एहसान से दबे हुए हैं? (ख) हमें बचानेवाला प्यारा परमेश्वर हमसे बदले में क्या चाहता है?
मान लीजिए कि आप एक डूबते जहाज़ में फँसे हुए हैं। आपको कोई उम्मीद नज़र नहीं आ रही, मगर तभी अचानक आपको बचाने के लिए कोई वहाँ आ पहुँचता है और आपको वहाँ से निकाल लेता है। एक महफूज़ जगह पर ले जाने के बाद वह आपसे कहता है: “अब आप खतरे से बाहर हैं।” यह सुनकर आप कितनी राहत महसूस करते हैं! क्या आप उस इंसान का एहसान नहीं मानेंगे? आपकी यह ज़िंदगी उसकी दी हुई अमानत है।
2 कुछ हद तक, यह मिसाल दर्शाती है कि यहोवा ने हमारे लिए क्या किया है। बेशक, हम सभी उसके एहसान से दबे हुए हैं। क्योंकि उसी ने तो छुड़ौती का इंतज़ाम किया है, जिसकी वजह से हमारे लिए पाप और मौत के शिकंजे से बचना मुमकिन हो सका है। यह जानकर कि उस अनमोल छुड़ौती बलिदान पर विश्वास रखने से हमारे पाप क्षमा किए जाएँगे और सदा तक जीने की हमारी आशा ज़रूर पूरी होगी, हम सुरक्षित महसूस करते हैं। (1 यूहन्ना 1:7; 4:9) जैसा हमने अध्याय 14 में देखा, छुड़ौती का इंतज़ाम यहोवा के प्रेम और न्याय की सबसे उम्दा मिसाल है। इसलिए हमारा क्या फर्ज़ बनता है?
3 हमें बचानेवाला प्यारा परमेश्वर हमसे बदले में क्या चाहता है, इस बात पर ध्यान देना सही होगा। भविष्यवक्ता मीका के ज़रिए यहोवा हमसे कहता है: “हे मनुष्य, वह तुझे बता चुका है कि अच्छा क्या है; और यहोवा तुझ से इसे छोड़ और क्या चाहता है, कि तू न्याय से काम करे, और कृपा से प्रीति रखे, और अपने परमेश्वर के साथ नम्रता से चले?” (मीका 6:8) ध्यान दीजिए कि यहोवा हमसे जो चाहता है, उनमें एक माँग यह है कि हम ‘न्याय से काम करें।’ यह हम कैसे कर सकते हैं?
“सच्ची धार्मिकता” का पीछा करना
4. हम कैसे जानते हैं कि यहोवा हमसे अपने धर्मी स्तरों के मुताबिक जीने की उम्मीद करता है?
4 यहोवा उम्मीद करता है कि हम सही-गलत के बारे में ठहराए उसके स्तरों के मुताबिक जीएँ। उसके स्तर न्यायसंगत और धर्मी हैं, इसलिए अगर हम उन स्तरों का पालन करें, तो दरअसल हम न्याय और धार्मिकता का पीछा कर रहे होंगे। यशायाह 1:17 (NHT) कहता है: “भलाई करना सीखो; न्याय की खोज करो।” परमेश्वर का वचन हमें “धार्मिकता की खोज” करने को उकसाता है। (सपन्याह 2:3, NHT) उसका वचन हमसे यह अनुरोध भी करता है: “नये मनुष्यत्व को पहिन लो, जो परमेश्वर के अनुसार सत्य की धार्मिकता [“सच्ची धार्मिकता,” नयी हिन्दी बाइबिल], और पवित्रता में सृजा गया है।” (इफिसियों 4:24) सच्ची धार्मिकता यानी सच्चे न्याय में हिंसा, अशुद्धता और अनैतिकता के लिए कोई जगह नहीं होती, क्योंकि इन कामों की वजह से जो पवित्र है वह भ्रष्ट हो जाता है।—भजन 11:5; इफिसियों 5:3-5.
5, 6. (क) यहोवा के स्तरों के मुताबिक जीना हमारे लिए एक बोझ क्यों नहीं है? (ख) बाइबल कैसे दिखाती है कि धार्मिकता का पीछा करना लगातार जारी रहनेवाला काम है?
5 क्या यहोवा के धर्मी स्तरों के मुताबिक जीना हमारे लिए एक बोझ है? बिलकुल नहीं। जिस इंसान के दिल में यहोवा के लिए प्यार हो, वह उसकी माँगों से तंग नहीं आता। हम यहोवा से और उससे जुड़ी हर बात से प्यार करते हैं, हम ऐसा जीवन बिताना चाहते हैं जिससे वह खुश हो। (1 यूहन्ना 5:3) याद कीजिए कि यहोवा “धर्म के ही कामों से प्रसन्न रहता है।” (भजन 11:7) अगर हम सही मायनों में परमेश्वर की तरह न्याय या धार्मिकता का गुण दिखाना चाहते हैं, तो ज़रूरी है कि हम उन चीज़ों के लिए मन में प्यार पैदा करें जिनसे यहोवा प्यार करता है और उनसे घृणा करें जिनसे वह घृणा करता है।—भजन 97:10.
6 असिद्ध इंसानों के लिए धार्मिकता का पीछा करना आसान नहीं है। ज़रूरी है कि हम पुराने मनुष्यत्व को उसके पापी कामों के साथ उतार फेंकें और नए मनुष्यत्व को धारण करें। बाइबल कहती है कि नया मनुष्यत्व, सही ज्ञान के ज़रिए “नया बनता जाता है।” (कुलुस्सियों 3:9, 10) “नया बनता जाता है,” ये शब्द दिखाते हैं कि नए मनुष्यत्व का पहनना ऐसा काम है जो लगातार जारी रहता है और जिसके लिए कड़ी मेहनत की ज़रूरत होती है। चाहे हम सही काम करने के लिए कितनी ही कोशिश क्यों न करें, ऐसे मौके आ ही जाते हैं जब पापी स्वभाव की वजह से हम अपने विचारों, शब्दों या कामों में चूक कर बैठते हैं।—रोमियों 7:14-20; याकूब 3:2.
7. धार्मिकता का पीछा करने की कोशिशों में अगर हम नाकाम होते हैं, तो इसे किस नज़र से देखना चाहिए?
7 धार्मिकता का पीछा करने में जब हम कई बार नाकाम हो जाते हैं, तो हमें इसे किस नज़र से देखना चाहिए? बेशक, अगर हमसे पाप हुआ है तो हम इसकी गंभीरता को कम नहीं करना चाहेंगे। मगर हम हार भी नहीं मानेंगे, न ही यह सोचेंगे कि अपनी नाकामियों की वजह से अब हम यहोवा की सेवा करने के लायक नहीं रहे। हमारे कृपालु परमेश्वर ने ऐसा इंतज़ाम किया है जिससे सच्चे दिल से पश्चाताप करनेवाला फिर से उसका अनुग्रह पा सके। प्रेरित यूहन्ना के भरोसा दिलानेवाले शब्दों पर गौर कीजिए। उसने पहले लिखा: “मैं ये बातें तुम्हें इसलिये लिखता हूं, कि तुम पाप न करो।” लेकिन, आगे उसने सच्चाई को स्वीकार करते हुए लिखा: “और यदि कोई [विरासत में मिली असिद्धता के कारण] पाप करे, तो पिता के पास हमारा एक सहायक है, . . . यीशु मसीह।” (1 यूहन्ना 2:1) जी हाँ, यहोवा ने यीशु के छुड़ौती बलिदान का इंतज़ाम किया है ताकि हम अपने पापी स्वभाव के बावजूद उस ढंग से उसकी सेवा कर सकें जिसे वह मंज़ूर करता है। क्या यह हमें नहीं उकसाता कि हम यहोवा को खुश करने के लिए अपना जी-जान लगा दें?
सुसमाचार और परमेश्वर का न्याय
8, 9. सुसमाचार का ऐलान कैसे यहोवा का न्याय ज़ाहिर करता है?
8 दूसरों को परमेश्वर के राज्य की खुशखबरी देने के काम में पूरा-पूरा हिस्सा लेकर भी हम न्याय से काम कर सकते हैं—दरअसल, ऐसा करना परमेश्वर की तरह न्याय दिखाना है। लेकिन यहोवा के न्याय और सुसमाचार के बीच क्या रिश्ता है?
9 यहोवा, चेतावनी दिए बिना इस दुष्ट संसार का अंत नहीं करेगा। अंत के समय के दौरान क्या होगा, इस बारे में भविष्यवाणी करते हुए यीशु ने कहा: “अवश्य है कि पहिले सुसमाचार सब जातियों में प्रचार किया जाए।” (मरकुस 13:10; मत्ती 24:3) शब्द “पहिले” का इस्तेमाल दिखाता है कि दुनिया भर में प्रचार किए जाने के बाद दूसरी घटनाएँ घटेंगी। इन घटनाओं में से एक है, भविष्यवाणी में बताया गया भारी क्लेश, जिसमें दुष्टों का विनाश होगा और एक धर्मी नए संसार के आने का रास्ता तैयार होगा। (मत्ती 24:14, 21, 22) बेशक, कोई भी यहोवा पर यह इलज़ाम नहीं लगा सकता कि उसने दुष्टों का अंत करके अन्याय किया है। आज चेतावनी देकर, यहोवा ऐसों को अपने तौर-तरीके बदलने और विनाश से बचने का भरपूर मौका दे रहा है।—योना 3:1-10.
जब हम बिना पक्षपात किए सभी को सुसमाचार सुनाते हैं, तो हम अपने कामों से परमेश्वर जैसा न्याय दिखाते हैं
10, 11. सुसमाचार के प्रचार में हिस्सा लेने से हम कैसे परमेश्वर के जैसा न्याय दिखाते हैं?
10 हमारे सुसमाचार प्रचार करने से, परमेश्वर का न्याय कैसे ज़ाहिर होता है? पहली बात, जब उद्धार पाने में दूसरों की मदद करने के लिए हम वह सब करते हैं जो हमारे बस में है, तो इससे बढ़कर सही काम और क्या होगा। आइए एक बार फिर उस डूबते जहाज़ के उदाहरण पर गौर करें। जब आप सही-सलामत लाइफबोट में पहुँच जाते हैं, तो बेशक आप भी दूसरों की मदद करना चाहेंगे जो अभी-भी डूब रहे हैं। उसी तरह, हमारा यह फर्ज़ बनता है कि हम इस दुष्ट संसार के “पानी” में गोते खा रहे लोगों की जान बचाएँ। यह सच है कि बहुत-से लोग हमारे संदेश को ठुकरा देते हैं। मगर जब तक यहोवा धीरज दिखा रहा है, हमारी ज़िम्मेदारी बनती है कि हम इन लोगों को “मन फिराव” करने का मौका दें ताकि वे भी भविष्य में उद्धार पा सकें।—2 पतरस 3:9.
11 हम जिस किसी से मिलते हैं उसे सुसमाचार सुनाकर एक और अहम तरीके से परमेश्वर का न्याय ज़ाहिर करते हैं। वह तरीका है, कोई भेदभाव न दिखाना। याद कीजिए कि “परमेश्वर किसी का पक्ष नहीं करता, बरन हर जाति में जो उस से डरता और धर्म के काम करता है, वह उसे भाता है।” (प्रेरितों 10:34, 35) अगर हम उसके जैसा न्याय दिखाना चाहते हैं, तो हमें लोगों के बारे में पहले से ही कोई राय कायम नहीं कर लेनी चाहिए। इसके बजाय, हमें हर किसी को सुसमाचार सुनाना चाहिए, फिर चाहे उनकी जाति या समाज में उनका ओहदा कोई भी क्यों न हो, या फिर वे अमीर या गरीब ही क्यों न हों। इस तरह, हम हर इंसान को सुसमाचार सुनने और उसके मुताबिक कदम उठाने का मौका देते हैं।—रोमियों 10:11-13.
दूसरों के साथ हमारा बर्ताव
12, 13. (क) क्यों हमें दूसरों पर दोष लगाने की उतावली नहीं करनी चाहिए? (ख) यीशु की इस सलाह का क्या मतलब है कि “दोष मत लगाओ” और “दोषी न ठहराओ”? (फुटनोट भी देखिए।)
12 न्याय से काम करने का एक और तरीका है, दूसरों के साथ वैसा ही बर्ताव करना जैसा यहोवा हमारे साथ करता है। दूसरों का न्यायी बनकर उनमें दोष निकालना, उनकी कमियों पर नुक्ताचीनी करना और उनके इरादों को शक की नज़र से देखना बहुत आसान है। मगर हममें से कौन चाहेगा कि खुद हमारे साथ यहोवा ज़रा भी दया दिखाए बगैर, हमारे हर इरादे और हमारी हर कमी की जाँच-पड़ताल करे? यहोवा हमारे साथ ऐसा बर्ताव नहीं करता। भजनहार ने कहा: “हे याह, यदि तू अधर्म के कामों का लेखा ले, तो हे प्रभु कौन खड़ा रह सकेगा?” (भजन 130:3) क्या हम इस बात के लिए एहसानमंद नहीं कि हमारा न्यायी और दयालु परमेश्वर हमेशा हमारी कमज़ोरियों के बारे में नहीं सोचता रहता? (भजन 103:8-10) तो फिर, दूसरों के साथ हमारा बर्ताव कैसा होना चाहिए?
13 अगर हम इस बात की अहमियत समझते हैं कि परमेश्वर के न्याय में दया की गहरी भावना है, तो हम उन मामलों में दूसरों पर दोष लगाने की उतावली नहीं करेंगे, जिनसे हमारा कोई लेना-देना नहीं है या जो ज़्यादा अहमियत नहीं रखते। अपने पहाड़ी उपदेश में यीशु ने चेतावनी दी थी: “दोष मत लगाओ, कि तुम पर भी दोष न लगाया जाए।” (मत्ती 7:1) लूका के वृत्तांत के मुताबिक, यीशु ने आगे कहा: “दोषी न ठहराओ, तो तुम भी दोषी नहीं ठहराए जाओगे।”a (लूका 6:37) यीशु जानता था कि असिद्ध इंसानों में दूसरों का न्यायी बन बैठने की आदत होती है। इसलिए उसके सुननेवालों में से अगर किसी में दूसरों पर बेरहमी से दोष लगाने की आदत थी, तो उसे यह आदत छोड़नी थी।
14. हमें किन वजहों से दूसरों पर ‘दोष नहीं लगाना’ चाहिए?
14 हमें क्यों दूसरों पर ‘दोष नहीं लगाना’ चाहिए? एक वजह तो यह है कि हमारे अधिकार का दायरा बहुत सीमित है। शिष्य याकूब हमें याद दिलाता है: “व्यवस्था का देने वाला और न्यायी तो एक ही है”—यहोवा। इसलिए याकूब एक सीधा और साफ सवाल पूछता है: “तुम कौन होते हो जो अपने पड़ोसी पर दोष लगाते हो?” (याकूब 4:12, NHT; रोमियों 14:1-4) यही नहीं, अपने पापी स्वभाव की वजह से हम दूसरों के बारे में बहुत आसानी से गलत फैसला कर सकते हैं। हमारा अलग-अलग नज़रिया और हमारे स्वभाव में समायी भावनाएँ—जैसे हमारी एकतरफा राय, या अन्याय सहने की वजह से हमारा ज़ख्मी आत्म-सम्मान या हमारी जलन और खुद को दूसरों से ज़्यादा धर्मी समझने की आदत—इन सबकी वजह से हम अपने संगी-साथियों को गलत नज़र से देखने लगते हैं। हमारी और भी कई सीमाएँ हैं और इनके बारे में सोचने से भी हमें जल्दबाज़ी में दूसरे में कमियाँ ढूँढ़ने से दूर रहना चाहिए। हम लोगों के दिल नहीं पढ़ सकते; न ही पूरी तरह जान सकते हैं कि वे किन हालात से गुज़र रहे हैं। तो फिर, हम कौन होते हैं कि अपने मसीही भाइयों के इरादों पर शक करें या परमेश्वर की सेवा में उनके काम में मीन-मेख निकालें? कितना अच्छा होगा अगर हम यहोवा की तरह बनें और अपने भाई-बहनों में अच्छाइयाँ ढूँढ़ें, न कि उनकी कमियों पर ध्यान दें!
15. परमेश्वर के उपासकों में कैसी बातों और कैसे बर्ताव के लिए कोई जगह नहीं है, और क्यों?
15 हमारे परिवार के सदस्यों के बारे में क्या? दुःख की बात है कि आज की दुनिया में घर सुख-चैन का आशियाना होने के बजाय ऐसी जगह बन गया है जहाँ कड़वे-से-कड़वे शब्दों की बौछार करके एक-दूसरे पर दोष लगाया जाता है। आजकल बुरा सलूक करनेवाले ऐसे पतियों, पत्नियों और माँ-बाप के बारे में सुनना बहुत आम हो गया है, जो हर घड़ी अपनी कड़वी ज़बान या लात-घूंसों से अपने परिवार को दिन-रात “सज़ा” देते हैं। मगर ज़हरीली, जली-कटी बातों और मार-पीट की परमेश्वर के उपासकों के बीच कोई जगह नहीं। (इफिसियों 4:29, 31; 5:33; 6:4) यीशु की यह सलाह कि ‘दोष मत लगाना’ और ‘दोषी न ठहराना’ घर की चार-दीवारी में आकर रद्द नहीं हो जाती। याद कीजिए कि न्याय से काम करने का मतलब है कि हम दूसरों के साथ ऐसा बर्ताव करें जैसा यहोवा हमारे साथ करता है। हमारा परमेश्वर हमसे कभी-भी कठोरता या बेरहमी से पेश नहीं आता। इसके बजाय, जो उससे प्रेम करते हैं उनसे वह “अत्यन्त करुणा” से पेश आता है। (याकूब 5:11) हमारे लिए क्या ही बढ़िया मिसाल!
“न्यायपूर्वक” सेवा करनेवाले प्राचीन
16, 17. (क) यहोवा, प्राचीनों से क्या उम्मीद करता है? (ख) जब एक पापी सच्चा पश्चाताप नहीं दिखाता तो क्या किया जाना चाहिए, और क्यों?
16 न्याय से काम करने की ज़िम्मेदारी हम सभी की है, मगर मसीही कलीसिया में खास तौर पर प्राचीनों को ऐसा करना चाहिए। ध्यान दीजिए कि यशायाह ने जो भविष्यवाणी दर्ज़ की उसमें “शासक” या प्राचीनों का वर्णन कैसे किया गया है: “देखो, एक राजा धार्मिकता से राज्य करेगा, तथा शासक न्यायपूर्वक राज्य करेंगे।” (यशायाह 32:1, NHT) जी हाँ, यहोवा प्राचीनों से उम्मीद करता है कि वे न्याय के पक्ष में सेवा करें। वे ऐसा कैसे कर सकते हैं?
17 आध्यात्मिक तौर पर काबिल ये भाई बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि न्याय या धार्मिकता की यह माँग है कि कलीसिया को शुद्ध रखा जाए। कभी-कभी प्राचीनों के लिए गंभीर पाप के मामलों में न्याय करना ज़रूरी हो जाता है। ऐसा करते वक्त वे याद रखते हैं कि परमेश्वर का न्याय इस खोज में रहता है कि जहाँ कहीं मुमकिन हो वहाँ दया दिखायी जाए। इस तरह वे पापी को पश्चाताप की तरफ लाने की पूरी कोशिश करते हैं। लेकिन तब क्या जब पाप करनेवाला, मदद करने की ऐसी कोशिशों के बावजूद सच्चा पश्चाताप नहीं दिखाता? सिद्ध न्याय के मुताबिक, यहोवा का वचन यही कहता है कि ऐसे इंसान के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाए: “कुकर्मी को अपने बीच में से निकाल दो।” इसका मतलब है कलीसिया से उसे बहिष्कृत करना। (1 कुरिन्थियों 5:11-13; 2 यूहन्ना 9-11) हालाँकि प्राचीनों को बड़े दुःख के साथ यह कदम उठाना पड़ता है, मगर वे जानते हैं कि कलीसिया की नैतिक और आध्यात्मिक शुद्धता कायम रखने के लिए यह ज़रूरी है। तब भी, वे यह उम्मीद नहीं छोड़ते कि किसी दिन वह पापी अपने आपे में आएगा और कलीसिया में लौट आएगा।—लूका 15:17, 18.
18. बाइबल के आधार पर सलाह देते वक्त प्राचीन किस बात का ध्यान रखते हैं?
18 ज़रूरत पड़ने पर बाइबल से सलाह देना भी न्याय के पक्ष में सेवा करना है। बेशक, प्राचीन दूसरों में कमियाँ ढूँढ़ते नहीं हैं। ना ही वे इस ताक में रहते हैं कि कब मौका मिले और कब वे दूसरों को नसीहत दें। मगर हो सकता है कि एक भाई या बहन ‘अनजाने में कोई गलत कदम उठाए।’ (NW) ऐसे में अगर प्राचीन यह याद रखें कि परमेश्वर का न्याय न तो क्रूर है ना ही कठोर, तो उन्हें ‘नम्रता के साथ ऐसे को संभालने’ की प्रेरणा मिलेगी। (गलतियों 6:1) इसलिए, प्राचीन गलती करनेवाले को घुड़केंगे नहीं, ना ही तीखे शब्दों का इस्तेमाल करेंगे। इसके बजाय, वे उसे प्यार से सलाह देंगे जिससे उसका हौसला बढ़े। वे सीधे-सीधे ताड़ना देने के मामले में भी, यानी गलती करनेवाले के मूढ़ता भरे कामों के नतीजों के बारे में साफ-साफ समझाते वक्त, इस बात का ध्यान रखते हैं कि यह यहोवा के झुंड की ही एक भेड़ है।b (लूका 15:7) जब ताड़ना या फटकार, प्यार की वजह से और प्यार भरे तरीके से दी जाती है तो गलती करनेवाले के सुधरने की गुंजाइश ज़्यादा रहती है।
19. प्राचीनों को क्या फैसले करने पड़ते हैं, और वे ये फैसले किस आधार पर करते हैं?
19 प्राचीनों को अकसर ऐसे फैसले करने पड़ते हैं जिनका असर उनके संगी विश्वासियों पर होता है। मिसाल के लिए, प्राचीन समय-समय पर अपनी बैठकों में इस बात पर चर्चा करते हैं कि क्या कलीसिया के दूसरे भाई इस काबिल हैं कि उन्हें प्राचीन या सहायक सेवक बनाए जाने की सिफारिश की जाए। प्राचीन जानते हैं कि इस मामले में उनका निष्पक्ष होना कितना ज़रूरी है। इसलिए वे अपनी भावनाओं पर भरोसा करने के बजाय, ज़िम्मेदारी के इन पदों के लिए परमेश्वर की माँगों के आधार पर फैसला करते हैं। इस तरह वे “निष्पक्ष होकर” काम करते हैं, और ‘पक्षपात की आत्मा से कुछ नहीं करते।’—1 तीमुथियुस 5:21, NHT.
20, 21. (क) प्राचीन क्या करने की कोशिश करते हैं, और क्यों? (ख) प्राचीन ‘हताश प्राणियों’ की मदद के लिए क्या कर सकते हैं?
20 प्राचीन दूसरे तरीकों से भी परमेश्वर का न्याय दिखाते हैं। यशायाह ने यह भविष्यवाणी करने के बाद कि प्राचीन “न्यायपूर्वक” सेवा करेंगे, आगे कहा: “हर एक मानो आंधी से छिपने का स्थान, और बौछार से आड़ होगा; या निर्जल देश में जल के झरने, व तप्त भूमि में बड़ी चट्टान की छाया।” (यशायाह 32:2) इसलिए, प्राचीन भरसक कोशिश करते हैं कि वे अपने संगी उपासकों के लिए शांति और ताज़गी का स्रोत बनें।
21 आज, ऐसी ढेरों समस्याएँ हैं जिनसे हमारी हिम्मत टूट जाती है। ऐसे में बहुतों को ज़रूरत है कि कोई उनका हौसला बढ़ाए। प्राचीनो, आप ‘हताश प्राणियों’ की मदद के लिए क्या कर सकते हैं? (1 थिस्सलुनीकियों 5:14, NW) पूरी हमदर्दी दिखाते हुए उनकी सुनिए। (याकूब 1:19) वे अपने “उदास मन” की परेशानियाँ शायद किसी ऐसे इंसान को बताना चाहते हैं जिस पर वे भरोसा कर सकें। (नीतिवचन 12:25) उन्हें यकीन दिलाइए कि यहोवा और उनके भाई-बहनों को उनकी ज़रूरत है, वे उनकी कदर करते हैं और उनसे प्यार करते हैं। (1 पतरस 1:22; 5:6, 7) इसके अलावा, आप ऐसे लोगों के साथ और उनके लिए प्रार्थना कर सकते हैं। किसी प्राचीन को अपने लिए दिल से प्रार्थना करते सुनकर उन्हें सबसे ज़्यादा दिलासा मिल सकता है। (याकूब 5:14, 15) हताश लोगों की प्यार से मदद करने की आप जो कोशिश करेंगे, उसे न्याय का परमेश्वर यहोवा नज़रअंदाज़ नहीं करेगा।
जब प्राचीन निराश लोगों का हौसला बढ़ाते हैं, तो वे यहोवा जैसा न्याय दिखाते हैं
22. हम यहोवा के न्याय की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं, और इसका नतीजा क्या होगा?
22 वाकई यहोवा के न्याय की मिसाल पर चलने से हम उसके और भी करीब आते हैं! जब हम उसके धर्मी स्तरों पर चलते हैं, जब हम जीवन बचानेवाला सुसमाचार प्रचार करते हैं, और जब हम दूसरों की बुराइयों पर ध्यान देने के बजाय उनकी अच्छाइयों पर ध्यान देते हैं, तो हम परमेश्वर का न्याय ज़ाहिर करते हैं। प्राचीनो, जब आप कलीसिया की शुद्धता की हिफाज़त करते हैं, जब आप शास्त्र से हिम्मत बंधानेवाली सलाह देते हैं, जब आप बिना पक्षपात किए फैसले करते हैं, और जब आप निराश लोगों का हौसला बढ़ाते हैं, आप परमेश्वर का न्याय दिखा रहे होते हैं। यहोवा का दिल कितना खुश होता होगा जब वह स्वर्ग से नज़र झुकाकर देखता होगा कि उसके लोग, अपने परमेश्वर के साथ चलते हुए ‘न्याय से काम करने’ की जी-जान लगाकर कोशिश कर रहे हैं!
a मूल भाषा में, बाइबल के लेखकों ने यहाँ एक काम न करने की आज्ञा (निरंतर) वर्तमानकाल में दी है। इसका मतलब है कि वह काम पहले से जारी है, मगर अब उसे बंद होना चाहिए।
b दूसरा तीमुथियुस 4:2 में, बाइबल कहती है कि प्राचीनों को कभी-कभी ‘उलाहना देना, डांटना और समझाना’ पड़ता है। यूनानी शब्द जिसका अनुवाद ‘समझाना’ (पाराकालेओ) किया गया है, उसका मतलब “हौसला बढ़ाना” हो सकता है। इसी शब्द से जुड़ा एक यूनानी शब्द, पाराक्लीटोस है जिसका मतलब है मुकद्दमे की पैरवी करनेवाला एक वकील। इससे ज़ाहिर है कि जब प्राचीन सख्त ताड़ना देते हैं तब भी उन्हें उन लोगों का मददगार होना चाहिए, जिन्हें आध्यात्मिक सहायता की ज़रूरत होती है।
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