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  • पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद (अध्ययन बाइबल)
पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद (अध्ययन बाइबल)
नीतिवचन

नीतिवचन

1 दाविद के बेटे और इसराएल के राजा, सुलैमान+ के नीतिवचन,+

 2 जिनसे इंसान बुद्धि+ और शिक्षा पाएगा,

बुद्धि की बातें समझेगा,

 3 ऐसी शिक्षा पाएगा+ जो उसे अंदरूनी समझ देगी,

नेकी+ और सीधाई से चलने और सही फैसले लेने*+ में उसे मदद देगी।

 4 ये नादानों को होशियार बनाएँगे,+

जवानों को ज्ञान और सोचने-परखने की शक्‍ति देंगे।+

 5 बुद्धिमान सुनकर और ज़्यादा सीखेगा,+

समझ रखनेवाला, सही मार्गदर्शन* पाएगा+

 6 ताकि नीतिवचन और मिसालें* समझ सके,

बुद्धिमानों की बातें और उनकी पहेलियाँ बूझ सके।+

 7 यहोवा का डर मानना,* ज्ञान पाने की शुरूआत है।+

मूर्ख ही बुद्धि और शिक्षा को तुच्छ समझता है।+

 8 हे मेरे बेटे, अपने पिता की शिक्षा पर ध्यान दे+

और अपनी माँ से मिलनेवाली सीख को मत ठुकरा।+

 9 उनकी बातें तेरे सिर पर खूबसूरत ताज+

और तेरे गले का कीमती हार बनेंगी।+

10 हे मेरे बेटे, उन पापियों की बातों में न आना, जो तुझे फुसलाते हैं+

11 और कहते हैं, “आ, हमारे साथ चल!

खून करने के लिए हम घात लगाएँगे,

छिपकर मासूमों पर हमला करेंगे।

12 उन्हें निगल जाएँगे जैसे कब्र ज़िंदा लोगों को निगल जाती है,

हाँ, साबुत निगल जाएँगे।

13 उनकी सारी कीमती चीज़ें छीन लेंगे,

लूट के माल से अपना घर भर लेंगे।

14 हमारे साथ चल तो सही,

चोरी का माल हम बराबर बाँट लेंगे।”*

15 हे मेरे बेटे, उनके पीछे मत जाना,

उनकी राहों से दूर रहना।+

16 क्योंकि उनके पैर बुराई करने को दौड़ते हैं,

वे लोग खून बहाने के लिए फुर्ती करते हैं।+

17 चिड़िया की आँखों के सामने जाल बिछाना बेकार है,

18 इसीलिए दुष्ट, खून करने के लिए घात लगाते हैं

लोगों की जान लेने के लिए छिपकर बैठते हैं।

19 बेईमानी की कमाई करनेवाले यही रास्ता अपनाते हैं

और इस तरह वे अपनी जान गँवा बैठते हैं।+

20 सच्ची बुद्धि+ सड़कों पर पुकारती है,+

चौराहों पर उसकी आवाज़ गूँजती है,+

21 चहल-पहलवाले नुक्कड़ पर वह आवाज़ लगाती है,

शहर के फाटकों पर कहती है,+

22 “ऐ नादानो, तुम कब तक नादानी से लिपटे रहोगे?

ऐ खिल्ली उड़ानेवालो, तुम कब तक खिल्ली उड़ाने का मज़ा लोगे?

ऐ मूर्खो, तुम कब तक ज्ञान से नफरत करोगे?+

23 मेरी डाँट सुनकर सुधरो,*+

तब मेरे सोते तुम्हारे लिए फूट पड़ेंगे

और मैं तुम्हें अपनी बातें बताऊँगी।+

24 मैंने बार-बार पुकारा पर तुमने सुनने से इनकार कर दिया,

मैंने हाथ से इशारा किया, मगर किसी ने ध्यान नहीं दिया,+

25 मेरी सलाह को तुम अनसुना करते रहे,

जब मैंने डाँट लगाकर तुम्हें सुधारना चाहा,

तो तुमने इसे ठुकरा दिया,

26 इसलिए जब विपत्ति तुम पर टूट पड़ेगी तो मैं हँसूँगी,

जिसका तुम्हें डर है, जब वह तुम पर आ पड़ेगा तो मैं मज़ाक उड़ाऊँगी।+

27 जब वह डर तूफान की तरह तुम पर छा जाएगा,

विपत्ति ज़ोरदार आँधी की तरह तुम पर टूट पड़ेगी,

संकट और मुसीबतें तुम्हें आ घेरेंगी, तब मैं हँसूँगी।

28 उस वक्‍त वे रह-रहकर मुझे पुकारेंगे, मगर मैं कोई जवाब नहीं दूँगी,

मुझे यहाँ-वहाँ ढूँढ़ेंगे मगर मैं न मिलूँगी+

29 क्योंकि उन्होंने ज्ञान से नफरत की,+

यहोवा का डर मानना उन्हें रास नहीं आया।+

30 उन्होंने मेरी सलाह ठुकरा दी,

जब-जब मैंने डाँट लगायी, उन्होंने इसकी कदर नहीं की।

31 इसलिए वे अपने कामों का फल पाएँगे,+

अपनी साज़िशों का पूरा-पूरा अंजाम भुगतेंगे।*

32 मुझसे मुँह मोड़कर नादान अपनी जान गँवा बैठता है,

मूर्खों का बेफिक्र रवैया उन्हें तबाह कर देता है।

33 लेकिन जो मेरी सुनता है वह बेखौफ जीएगा,+

उसे विपत्ति का डर नहीं सताएगा।”+

2 हे मेरे बेटे, अगर तू मेरी बातों को माने,

मेरी आज्ञाओं को खज़ाने की तरह सँभालकर रखे,+

 2 बुद्धि की बातों पर कान लगाए,+

पैनी समझ की बातों पर मन लगाए,+

 3 अगर तू समझ को पुकारे,+

पैनी समझ को ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ लगाए,+

 4 अगर तू इन्हें चाँदी की तरह ढूँढ़ता रहे,+

छिपे हुए खज़ाने की तरह खोजता रहे,+

 5 तब तू समझेगा कि यहोवा का डर मानना क्या होता है+

और तुझे परमेश्‍वर का ज्ञान हासिल होगा।+

 6 क्योंकि बुद्धि यहोवा ही देता है,+

ज्ञान और पैनी समझ उसी के मुँह से निकलते हैं,

 7 उसके पास ऐसी बुद्धि का भंडार है, जिससे सीधे लोगों को फायदा होता है।

निर्दोष चाल चलनेवालों के लिए वह ढाल है।+

 8 वह न्याय की राहों पर नज़र रखता है

और अपने वफादार लोगों के मार्ग की हिफाज़त करता है।+

 9 तू यह भी समझेगा कि नेकी, न्याय और सीधाई क्या है,

हाँ, तू सब भली राहें जान पाएगा।+

10 जब बुद्धि तेरे दिल में उतरेगी+

और ज्ञान तेरे जी* को भाने लगेगा,+

11 जब सोचने-परखने की शक्‍ति तुझ पर नज़र रखेगी+

और पैनी समझ तेरी हिफाज़त करेगी,

12 तब तू गलत रास्ते पर जाने से बचेगा,

उन आदमियों से दूर रहेगा जो टेढ़ी बातें कहते हैं,+

13 जो अँधेरी राहों पर चलने के लिए+

सीधाई का रास्ता छोड़ देते हैं,

14 जिन्हें बुरे काम करने में मज़ा आता है,

गंदी और घिनौनी बातें जिन्हें उमंग से भर देती हैं,

15 जिनकी राहें टेढ़ी हैं

और जिनके सारे काम कपट से भरे हैं।

16 बुद्धि तुझे नीच* औरत से बचाएगी,

बदचलन* औरत की चिकनी-चुपड़ी बातों से बचाएगी,+

17 जिसने अपनी जवानी के करीबी साथी* को छोड़ दिया+

और अपने परमेश्‍वर का करार भूल गयी।

18 उसके घर जाना, मौत के मुँह में जाना है,

उसकी डगर कब्र की ओर ले जाती है।+

19 उसके साथ संबंध रखनेवाला कभी लौटकर नहीं आएगा,

न ज़िंदगी की राह पर फिर कभी चल पाएगा।+

20 इसलिए अच्छे लोगों की राह पर चल,

नेक जनों के रास्ते पर बना रह,+

21 क्योंकि सिर्फ सीधे-सच्चे लोग धरती पर बसेंगे,

निर्दोष लोग ही इस पर रहेंगे,+

22 मगर दुष्टों को धरती से मिटा दिया जाएगा+

और विश्‍वासघातियों को उखाड़ दिया जाएगा।+

3 हे मेरे बेटे, मेरी सिखायी बातों को मत भूलना

और मेरी आज्ञाओं को पूरे दिल से मानना।

 2 तब तेरी ज़िंदगी में बहुत-से दिन जुड़ जाएँगे

और सालों तक तू चैन से जीएगा।+

 3 अटल प्यार और सच्चाई को अपने से दूर मत करना,+

उन्हें अपने गले का हार बनाना

और अपने दिल की पटिया पर लिखना,+

 4 तब परमेश्‍वर और इंसान तुझसे खुश होंगे

और कबूल करेंगे कि तुझमें अंदरूनी समझ है।+

 5 तू अपनी समझ का सहारा न लेना,+

बल्कि पूरे दिल से यहोवा पर भरोसा रखना,+

 6 उसी को ध्यान में रखकर सब काम करना,+

तब वह तुझे सही राह दिखाएगा।*+

 7 खुद को बड़ा बुद्धिमान न समझना,+

यहोवा का डर मानना और बुराई से दूर रहना।

 8 ऐसा करने से तेरा शरीर भला-चंगा रहेगा

और तेरी हड्डियों को ताज़गी मिलेगी।

 9 अपनी अनमोल चीज़ें देकर यहोवा का सम्मान करना,+

अपनी उपज* का पहला फल* चढ़ाकर उसका आदर करना,+

10 तब तेरे भंडार खूब भरे रहेंगे+

और तेरे हौद नयी दाख-मदिरा से उमड़ते रहेंगे।

11 हे मेरे बेटे, यहोवा की शिक्षा मत ठुकराना,+

उसकी डाँट से नफरत न करना,+

12 क्योंकि यहोवा जिससे प्यार करता है उसको डाँटता भी है,+

जैसे पिता उस बेटे को डाँटता है जिसे वह बेहद चाहता है।+

13 सुखी है वह इंसान जो बुद्धि हासिल करता है,+

सुखी है वह जो पैनी समझ को ढूँढ़ लेता है।

14 बुद्धि पाना चाँदी पाने से बेहतर है,

इसे हासिल करना,* सोना हासिल करने से बढ़कर है।+

15 यह मूंगों* से भी कीमती है,

इसके सामने हर वह चीज़ फीकी है,

जिसे पाने की तू चाहत रखता है।

16 यह अपने दाएँ हाथ से लंबी ज़िंदगी देती है

और बाएँ हाथ से धन-दौलत और सम्मान।

17 इसकी राह पर चलने से खुशियाँ मिलती हैं,

इसके सभी रास्ते शांति की ओर ले जाते हैं।+

18 जो बुद्धि को थामते हैं, उनके लिए यह जीवन का पेड़ है,

जो इसे थामे रहते हैं, वे सुखी माने जाएँगे।+

19 यहोवा ने बुद्धि से पृथ्वी की नींव डाली,+

पैनी समझ से आकाश को मज़बूती से ताना।+

20 उसके ज्ञान से गहरा पानी फट पड़ा

और आसमान से हलकी फुहार होने लगी।+

21 हे मेरे बेटे, इन्हें* भूल न जाना,

जो बुद्धि तुझे फायदा पहुँचाती है उसे सँभालकर रखना

और अपनी सोचने-परखने की शक्‍ति गँवा न देना।

22 ये तुझे ज़िंदगी देंगी,

तेरे गले का खूबसूरत हार बनेंगी,

23 तू अपनी डगर पर महफूज़ रहेगा

और तेरे पैर कभी ठोकर नहीं खाएँगे।+

24 जब तू लेटेगा तो तुझे कोई डर न सताएगा,+

अपने बिस्तर पर तुझे मीठी नींद आएगी।+

25 अचानक आनेवाली आफत से तू न डरेगा,+

न दुष्टों पर आनेवाले तूफान से खौफ खाएगा,+

26 क्योंकि तेरा भरोसा यहोवा पर होगा,+

वह तेरे पैरों को किसी फंदे में नहीं फँसने देगा।+

27 जिनका भला करना चाहिए,*

अगर उनका भला करना तेरे बस में हो तो पीछे मत हटना।+

28 अगर तू अपने पड़ोसी को अभी कुछ दे सकता है,

तो उससे यह मत कहना, “कल आना, कल मैं तुझे दूँगा।”

29 अगर तेरा पड़ोसी तुझ पर भरोसा करता है,

तो उसके खिलाफ साज़िश मत रचना।+

30 अगर किसी आदमी ने तेरा कुछ नहीं बिगाड़ा,

तो उससे बेवजह मत उलझना।+

31 खूँखार इंसान से ईर्ष्या मत करना,+

न उसकी राह पर चलना,

32 क्योंकि यहोवा कपटी लोगों से नफरत करता है,+

मगर सीधे-सच्चे लोगों से गहरी दोस्ती रखता है।+

33 दुष्ट के घर पर यहोवा का शाप पड़ता है,+

लेकिन नेक इंसान के घर पर वह आशीषें देता है।+

34 खिल्ली उड़ानेवालों की वह खिल्ली उड़ाता है,+

लेकिन दीन लोगों पर वह मेहरबान होता है।+

35 बुद्धिमान को इज़्ज़त मिलती है,

लेकिन मूर्ख ऐसी बातों पर घमंड करता है,

जिनसे उसका अपमान होता है।+

4 हे मेरे बेटे, अपने पिता की शिक्षा पर कान लगा,+

उस पर ध्यान दे कि तुझे समझ मिले।

 2 मैं तुझे बढ़िया बातें सिखाऊँगा,

मेरी सिखायी बातों को मत छोड़ना।+

 3 मैं अपने पिता का आज्ञाकारी बेटा था,+

अपनी माँ का दुलारा था।+

 4 मेरे पिता ने यह कहकर मुझे सिखाया,

“मेरी बातों को अपने दिल में थामे रख,+

मेरी आज्ञाओं को मान, तब तू लंबी उम्र जीएगा।+

 5 बुद्धि हासिल कर, समझ हासिल कर,+

मेरी बातों को भूल न जाना, उनसे मुँह मत फेरना।

 6 बुद्धि को मत छोड़ना, वह तेरी हिफाज़त करेगी,

उससे प्यार करना, वह तेरी रक्षा करेगी।

 7 बुद्धि हासिल कर क्योंकि यह सबसे ज़रूरी है,+

तू जो कुछ हासिल करे, उसके साथ समझ भी हासिल करना।+

 8 बुद्धि को अनमोल जान, वह तुझे ऊँचा उठाएगी,+

उसे गले लगा, वह तेरा मान बढ़ाएगी।+

 9 वह तेरे सिर पर फूलों का ताज सजाएगी,

खूबसूरत ताज पहनाकर तेरी शोभा बढ़ाएगी।”

10 हे मेरे बेटे, मेरी बातें सुन और उन्हें मान,

तब तू बहुत साल जीएगा।+

11 मैं तुझे बुद्धि की राह पर चलना सिखाऊँगा,+

सीधाई की डगर पर ले चलूँगा।+

12 जब तू चलेगा तो कोई बाधा तुझे नहीं रोकेगी,

जब तू दौड़ेगा तो तू ठोकर खाकर नहीं गिरेगा।

13 तुझे जो शिक्षा मिले उसे पकड़े रहना, जाने मत देना,+

उसी पर तेरी ज़िंदगी टिकी है, उसे सँभालकर रखना।+

14 दुष्टों की राह मत पकड़ना,

बुरे लोगों के रास्ते पर न जाना।+

15 उससे दूर रहना, उस तरफ मत जाना,+

अपना मुँह फेर लेना और आगे बढ़ जाना।+

16 क्योंकि दुष्ट को बुराई करे बिना नींद नहीं आती,

जब तक वे किसी को बरबाद न कर दें, वे चैन से नहीं सोते।

17 वे दुष्टता की रोटी खाते हैं,

हिंसा से मिली दाख-मदिरा पीते हैं।

18 मगर नेक जनों की राह सुबह की रौशनी जैसी है,

जिसका तेज, दिन चढ़ने के साथ-साथ बढ़ता जाता है।+

19 दुष्टों की राह में अँधेरा-ही-अँधेरा है,

वे नहीं जानते कि उन्हें किससे ठोकर लगती है।

20 हे मेरे बेटे, मेरी बातों पर ध्यान दे,

इन पर कान लगा।

21 इन्हें अपनी आँखों से ओझल मत होने दे,

इन्हें अपने दिल में संजोए रख।+

22 जो इन्हें ढूँढ़ लेता है उसे ज़िंदगी मिल जाती है+

और उसका पूरा शरीर भला-चंगा रहता है।

23 सब चीज़ों से बढ़कर अपने दिल की हिफाज़त कर,+

क्योंकि जीवन के सोते इसी से निकलते हैं।

24 अपने मुँह से टेढ़ी-मेढ़ी बातें न निकाल,+

अपनी ज़बान पर छल-कपट की बातें न ला।

25 अपनी आँखें सामने की ओर लगाए रख,

हाँ, अपनी नज़रें आगे की तरफ टिकाए रख।+

26 अपनी राहों को समतल कर,*+

तब तेरी सब राहें कामयाब होंगी।

27 तू न दाएँ मुड़ना न बाएँ,+

बुराई के रास्ते पर कदम रखने से दूर रहना।

5 हे मेरे बेटे, मेरी बुद्धि-भरी बातों पर ध्यान दे,

मैं पैनी समझ के बारे में जो सिखाऊँ, उस पर कान लगा।+

 2 तब तू अपनी सोचने-परखने की शक्‍ति की रक्षा कर सकेगा

और तेरे मुँह से हमेशा सच्चे ज्ञान की बातें निकलेंगी।+

 3 बदचलन* औरत की बातें* शहद जैसी मीठी+

और तेल से भी चिकनी होती हैं,+

 4 लेकिन आखिर में वह नागदौने जैसी कड़वी निकलती हैं+

और दोधारी तलवार की तरह चोट पहुँचाती हैं।+

 5 उसके पैर मौत की तरफ बढ़ते हैं,

उसके कदम सीधे कब्र की ओर ले जाते हैं।

 6 जीवन की राह के बारे में वह ज़रा भी नहीं सोचती,

अपनी राह पर वह भटक रही है और नहीं जानती कि यह उसे किधर ले जाएगी।

 7 हे मेरे बेटो, मेरी सुनो,

मैं जो कहूँ, उसे अनसुना मत करना।

 8 उस औरत से कोसों दूर रहना,

उसकी दहलीज़ के पास भी न जाना।+

 9 कहीं ऐसा न हो कि तू अपना मान-सम्मान खो बैठे+

और सारी ज़िंदगी तुझे दुख में काटनी पड़े,+

10 या पराए तेरी कमाई से अपना पेट भरें+

और जो कुछ तूने मेहनत से जोड़ा है, वह दूसरों के घर चला जाए।

11 अगर ऐसा हुआ तो जीवन के आखिरी समय में,

जब तेरी ताकत और शरीर जवाब देने लगेंगे, तब तू कराहेगा+

12 और कहेगा, “मैंने शिक्षा से नफरत क्यों की?

क्यों मेरे मन ने डाँट को स्वीकार नहीं किया?

13 मैंने अपने शिक्षकों की बात क्यों नहीं सुनी?

क्यों अपने सिखानेवालों पर ध्यान नहीं दिया?

14 तभी पूरी मंडली के सामने,*

मैं विनाश की कगार पर खड़ा हूँ।”+

15 अपने ही कुंड से पानी पी,

अपने ही कुएँ का ताज़ा* पानी पी।+

16 क्यों तेरे सोते घर के बाहर

और तेरी पानी की धाराएँ चौक में बह जाएँ?+

17 ये सिर्फ तेरे लिए रहें,

किसी पराए के लिए नहीं।+

18 तेरे पानी के सोते पर आशीष हो,

अपनी जवानी की पत्नी के साथ खुश रह।+

19 वह तो तेरी प्यारी हिरनी है, मन मोह लेनेवाली पहाड़ी बकरी है।+

उसके स्तन हमेशा तुझे संतुष्ट रखें,

तू हमेशा उसके प्यार में डूबा रहे।+

20 हे मेरे बेटे, फिर तू क्यों किसी परायी औरत पर मोहित हो?

क्यों एक बदचलन* औरत को अपने सीने से लगाए?+

21 इंसान की राहें यहोवा की आँखों से छिपी नहीं हैं,

वह उसके हर कदम को जाँचता है।+

22 दुष्ट के गुनाह उसी के लिए फंदा बन जाते हैं,

वह अपने ही पाप की रस्सियों में कसकर रह जाता है,+

23 अपनी बड़ी मूर्खता के कारण भटकता फिरता है,

शिक्षा कबूल न करने से वह मर जाएगा।

6 हे मेरे बेटे, अगर तूने किसी का कर्ज़ चुकाने का ज़िम्मा लिया है,*+

अगर तूने किसी पराए से हाथ मिलाया है,*+

 2 अगर तू वचन देकर फँस गया है,

ज़बान देकर बँध गया है,+

 3 तो हे मेरे बेटे, खुद को छुड़ाने के लिए ऐसा कर:

नम्र होकर उस आदमी के पास जा और उसके आगे गिड़गिड़ा,

क्योंकि तू उसके हाथ में पड़ चुका है।+

 4 अपनी आँखों में नींद न आने दे,

अपनी पलकों को झपकी न लेने दे,

 5 खुद को छुड़ा ले, जैसे चिकारा खुद को शिकारी की पकड़ से

और पंछी खुद को बहेलिए के हाथ से छुड़ाता है।

 6 हे आलसी,+ चींटी के पास जा,

उसके तौर-तरीके देख और बुद्धिमान बन।

 7 उसका न तो सेनापति होता है,

न कोई अधिकारी, न ही शासक,

 8 फिर भी वह गरमियों में अपने खाने का इंतज़ाम करती है,+

कटनी के समय खाने की चीज़ें बटोरती है।

 9 हे आलसी, तू कब तक पड़ा रहेगा?

नींद से कब जागेगा?

10 थोड़ी देर और सो ले, एक और झपकी ले ले,

हाथ बाँधकर थोड़ा सुस्ता ले,+

11 तब गरीबी, लुटेरे की तरह तुझ पर टूट पड़ेगी,

तंगी, हथियारबंद आदमी की तरह हमला बोल देगी।+

12 निकम्मा और दुष्ट इंसान टेढ़ी-मेढ़ी बातें करता है,+

13 बुरे इरादे से आँख मारता है,+

पैरों और उँगलियों से इशारे करता है।

14 उसका मन कपट से भरा है,

वह हमेशा बुरा करने की तरकीबें बुनता है+ और जहाँ जाता है झगड़े लगाता है।+

15 इसलिए उस पर अचानक विपत्ति आ पड़ेगी,

पल-भर में उसका ऐसा नाश होगा कि बचने की उम्मीद न होगी।+

16 छ: चीज़ें हैं जिनसे यहोवा नफरत करता है,

हाँ, सात चीज़ें हैं जिनसे वह घिन करता है:

17 घमंड से चढ़ी आँखें,+

झूठ बोलनेवाली जीभ,+

बेगुनाहों का खून करनेवाले हाथ,+

18 साज़िश रचनेवाला दिल,+

बुराई की तरफ दौड़नेवाले पैर,

19 बात-बात पर झूठ बोलनेवाला गवाह+

और भाइयों में फूट डालनेवाला आदमी।+

20 हे मेरे बेटे, अपने पिता की आज्ञाओं को मान,

अपनी माँ से मिलनेवाली सीख को मत ठुकरा।+

21 इन्हें अपने दिल में बिठा,

अपने गले में बाँध।

22 जब तू चलेगा तो ये तेरी अगुवाई करेंगी,

जब तू लेटेगा तो तुझ पर पहरा देंगी,

जब तू जागेगा तो तुझसे बातें करेंगी।*

23 ये आज्ञाएँ तेरे लिए दीपक हैं,+

ये कानून तेरे लिए रौशनी हैं+

और तुझे सुधारने* के लिए दी गयी डाँट जीवन की ओर ले जाएगी।+

24 ये बुरी औरत से तेरी हिफाज़त करेंगी,+

बदचलन* औरत की चिकनी-चुपड़ी बातों से तुझे बचाएँगी।+

25 उसकी खूबसूरती देखकर दिल में उसकी लालसा न करना+

या जब वह सुंदर आँखों से लुभाए तो बहक न जाना,

26 क्योंकि वेश्‍या के पीछे जाकर इंसान रोटी का मोहताज हो जाता है,+

मगर दूसरे की पत्नी के पीछे जाकर वह अपना अनमोल जीवन ही गँवा बैठता है।

27 क्या ऐसा हो सकता है कि एक आदमी अपने सीने पर आग रखे और उसके कपड़े न जलें?+

28 या एक आदमी जलते अंगारों पर चले और उसके पैर न झुलसें?

29 दूसरे की पत्नी के साथ संबंध रखनेवाले का भी यही हाल होता है,

उस औरत को छूनेवाला सज़ा से नहीं बचेगा।+

30 लोग उस चोर को नहीं धिक्कारते,

जो अपनी भूख मिटाने के लिए चोरी करता है,

31 फिर भी पकड़े जाने पर उसे सात गुना मुआवज़ा भरना पड़ता है,

जो कुछ उसके घर में है, उसे देना पड़ता है।+

32 व्यभिचार करनेवाले में समझ ही नहीं होती,*

वह खुद पर बरबादी लाता है,+

33 दर्द और अपमान के सिवा उसे कुछ नहीं मिलता,+

उसकी बदनामी दूर नहीं होगी।+

34 क्योंकि जलन एक पति का क्रोध भड़काती है,

जब वह बदला लेगा तो कोई रहम नहीं करेगा,+

35 कोई मुआवज़ा* कबूल नहीं करेगा,

तू उसे कितना ही बड़ा तोहफा दे, उसका गुस्सा शांत नहीं होगा।

7 हे मेरे बेटे, मेरी बातों को मान,

मेरी आज्ञाओं को अनमोल जानकर संजोए रख।+

 2 मेरी आज्ञाओं पर चल और जीवित रह,+

मेरी सिखायी बातों को आँख की पुतली की तरह सँभाल।

 3 इन्हें अपनी उँगलियों में बाँध ले,

अपने दिल की पटिया पर लिख ले।+

 4 बुद्धि से कह, “तू मेरी बहन है,”

समझ से कह, “तू मेरी सगी है”

 5 ताकि नीच* औरत से तेरी हिफाज़त हो,+

बदचलन* औरत और उसकी चिकनी-चुपड़ी बातों से तू बचा रहे।+

 6 एक बार मैं अपने घर की खिड़की पर खड़ा,

जालीदार झरोखे से नीचे देख रहा था।

 7 तब मैंने कई नादानों को देखा,

उस भीड़ में मेरी नज़र एक जवान पर पड़ी,

जिसमें बिलकुल समझ नहीं थी।+

 8 वह उस सड़क पर चला जा रहा था,

जिसके मोड़ पर वह औरत रहती थी,

वह तेज़ कदमों से उसके घर की तरफ बढ़ने लगा।

 9 यह कुछ शाम का वक्‍त था, दिन ढल चुका था,+

अँधेरा घिरने लगा था और रात होने को थी।

10 तभी मैंने देखा, एक औरत उस नौजवान से मिली,

वह वेश्‍या जैसे* कपड़े पहने थी,+ उसके दिल में कपट भरा था।

11 उसमें कोई शर्म-हया नहीं थी,

वह अपने मन की करती थी।+

उसके पैर घर पर नहीं टिकते थे,

12 कभी घर के बाहर तो कभी चौक पर नज़र आती,

हर नुक्कड़ पर शिकार की तलाश में रहती।+

13 उसने उस जवान को पकड़कर चूमा

और बेहयाई से कहने लगी,

14 “मैंने शांति-बलि चढ़ायी है,+

आज अपनी मन्‍नत पूरी की है,

15 इसलिए मैं तुझसे मिलने आयी हूँ,

मैं तुझे ही ढूँढ़ रही थी और तू मुझे मिल गया।

16 मैंने अपना बिस्तर मलमल की चादर से,

मिस्र की रंग-बिरंगी चादर से सजाया है,+

17 उस पर गंधरस, अगर और दालचीनी छिड़की है।+

18 आ! हम एक-दूसरे के प्यार में खो जाएँ,

सुबह तक प्यार का जाम पीते रहें।

19 मेरा पति भी घर पर नहीं है,

वह लंबे सफर पर गया है

20 और अपने साथ पैसों की थैली ले गया है,

पूरे चाँद के निकलने तक वह नहीं लौटेगा।”

21 वह अपनी लच्छेदार बातों में उसे फँसा लेती है,+

मीठी-मीठी बातों से उसे फुसला लेती है।

22 फिर क्या, वह नौजवान फौरन उसके पीछे चल देता है,

जैसे बैल हलाल होने जा रहा हो,

जैसे मूर्ख अपने पैर काठ* में कसवाने जा रहा हो।+

23 अंत में एक तीर उसके कलेजे को भेद देगा,

उसका हाल उस पक्षी जैसा होगा,

जो तेज़ी से जाल की तरफ उड़ता है

और नहीं जानता कि अपनी जान गँवा बैठेगा।+

24 इसलिए मेरे बेटो, मेरी सुनो,

मैं जो कह रहा हूँ, उस पर ध्यान दो।

25 तेरा दिल तुझे उस औरत के पीछे जाने के लिए बहका न दे,

तू भटककर उसकी राहों पर मत जाना।+

26 उसने कई लोगों को अपना शिकार बनाया है,+

उसके हाथों बेहिसाब लोग मारे गए।+

27 उसका घर कब्र में ले जाता है,

मौत की काल-कोठरी में पहुँचाता है।

8 देख, बुद्धि आवाज़ लगा रही है,

पैनी समझ ऊँची आवाज़ में कह रही है।+

 2 वह सड़क किनारे ऊँची जगहों पर+

और चौराहों पर खड़ी होकर,

 3 शहर के फाटकों के पास,

द्वार पर खड़ी होकर ज़ोर-ज़ोर से पुकारती है,+

 4 “हे लोगो, मेरी सुनो,

मैं तुम सबसे* कह रही हूँ।

 5 हे नादानो, होशियारी से काम लेना सीखो,+

हे मूर्खो, समझ रखनेवाला मन हासिल करो।

 6 मेरी सुनो क्योंकि मैं ज़रूरी बातें बता रही हूँ,

मैं जो कहूँगी सही कहूँगी।

 7 मैं सच्चाई की बातें धीमे-धीमे बोलती हूँ,

मेरे होंठ दुष्ट बातों से घिन करते हैं।

 8 मेरी कही सारी बातें नेकी की हैं,

उनमें कोई छल-कपट या उलट-फेर नहीं।

 9 समझ रखनेवाले ये बातें साफ-साफ समझ जाते हैं,

ज्ञान पानेवालों को ये सीधी और सच्ची लगती हैं।

10 चाँदी को नहीं, मेरी शिक्षा को चुन लो,

बढ़िया सोने को नहीं, मेरे ज्ञान को ले लो,+

11 क्योंकि बुद्धि का मोल मूंगों* से बढ़कर है,

सारी कीमती चीज़ें भी इसकी बराबरी नहीं कर सकतीं।

12 मैं बुद्धि, होशियारी के संग बसेरा करती हूँ,

मैंने ज्ञान और सोचने-परखने की शक्‍ति पायी है।+

13 यहोवा का डर मानना, बुराई से नफरत करना है।+

गुरूर, घमंड,+ बुरी राह और झूठी ज़बान से मुझे नफरत है।+

14 मेरे पास बढ़िया सलाह है

और ऐसी बुद्धि है जो फायदा पहुँचाती है,+

मेरे पास समझ+ और ताकत भी है।+

15 मेरी मदद से राजा हुकूमत करते हैं,

शासक नेकी के कानून ठहराते हैं।+

16 मेरी मदद से हाकिम राज करते हैं,

ऊँचे अधिकारी सच्चाई से न्याय करते हैं।

17 जो मुझसे प्यार करते हैं, उनसे मैं प्यार करती हूँ,

जो मुझे ढूँढ़ते हैं, वे मुझे पा लेते हैं।+

18 मेरे पास धन और आदर है,

कभी न मिटनेवाली दौलत और नेकी है।

19 मेरे दिए तोहफे सोने से, हाँ, शुद्ध सोने से बढ़कर हैं,

मैं जो देती हूँ वह बढ़िया चाँदी से अच्छा है।+

20 मैं नेकी की राह पर चलती हूँ,

इंसाफ की डगर के बीचों-बीच जाती हूँ।

21 जो मुझसे प्यार करते हैं,

उन्हें सच्ची दौलत से मालामाल करती हूँ,

उनके भंडारों को भर देती हूँ।

22 यहोवा ने मुझे बहुत पहले रचा,

उसने सृष्टि की शुरूआत मुझसे की,+

मैं उसकी सबसे पहली कारीगरी थी।+

23 बहुत समय पहले, पृथ्वी की रचना से भी पहले,

शुरू में मुझे अपनी जगह दी गयी।+

24 जब मैं पैदा हुई* तब न तो गहरा सागर था,+

न उमड़ते पानी के सोते।

25 पहाड़ों को अपनी जगह स्थिर करने से पहले,

पहाड़ियों से भी पहले, मुझे रचा गया।

26 उस वक्‍त उसने न तो धरती न इसके मैदान,

न ही मिट्टी का पहला ढेला बनाया था।

27 जब उसने आसमान को ताना,+

पानी पर सीमा-रेखा* खींची+ तब मैं वहीं थी।

28 जब उसने ऊपर बादल ठहराए,*

गहरे सागर में सोते बनाए,

29 जब उसने समुंदर की हद ठहरायी

कि वह उसका हुक्म न तोड़े,+

जब उसने धरती की नींव रखी,

30 तब मैं एक कुशल कारीगर की तरह उसके साथ थी।+

उसे हर दिन मुझसे बहुत खुशी मिलती थी+

और मैं हर वक्‍त उसके सामने मगन रहती थी।+

31 जब मैंने इंसानों के रहने के लिए धरती देखी,

तो मेरी खुशी का ठिकाना न रहा।

इंसानों से मुझे गहरा लगाव था।

32 अब हे मेरे बेटो, मेरी सुनो!

क्योंकि जो मेरी सुनता है और मेरी राह पर चलता है,

वह खुश रहता है।

33 शिक्षा को कबूल करो+ और बुद्धिमान बनो,

उसे लेने से इनकार मत करो।

34 सुखी है वह इंसान जो मेरी सुनता है,

जो हर दिन मेरे दरवाज़े पर सुबह-सुबह आता है,

चौखट के पास खड़ा मेरा इंतज़ार करता है।

35 क्योंकि जो मुझे ढूँढ़ लेता है, वह जीवन पाता है+

और उसे यहोवा की मंज़ूरी मिलती है।

36 मगर जो मुझे अनदेखा करता है, वह खुद को चोट पहुँचाता है,

जो मुझसे नफरत करता है उसे मौत ज़्यादा प्यारी है।”+

9 सच्ची बुद्धि ने अपना घर बनाया है,

तराशे हुए सात खंभों पर इसे खड़ा किया है।

 2 उसने गोश्‍त बनाकर रखा है,*

दाख-मदिरा का स्वाद बढ़ाया है,

खाने की मेज़ सजायी है।

 3 उसने अपनी दासियों को भेजा है

कि वे जाकर शहर की ऊँची जगहों से यह पुकारें,+

 4 “जो नादान हैं, वे इधर आएँ।”

जिनमें समझ नहीं, उनसे वह कहती है,

 5 “आओ और मेरे यहाँ रोटी खाओ,

आकर दाख-मदिरा पीओ जिसका मैंने स्वाद बढ़ाया है।

 6 अपनी नादानी* छोड़ो तो तुम जीवित रहोगे,+

समझ की राह पर सीधे चलते जाओ।”+

 7 जो खिल्ली उड़ानेवाले को सुधारता है, वह अपनी ही बेइज़्ज़ती कराता है,+

जो दुष्ट को डाँट लगाता है वह खुद चोट खाता है।

 8 खिल्ली उड़ानेवाले को मत डाँट, वह तुझसे नफरत करेगा,+

बुद्धिमान को डाँट, वह तुझसे प्यार करेगा।+

 9 बुद्धिमान को समझा, वह और बुद्धिमान बनेगा,+

नेक इंसान को सिखा, वह सीखकर अपना ज्ञान बढ़ाएगा।

10 यहोवा का डर मानना बुद्धि की शुरूआत है,+

परम-पवित्र परमेश्‍वर के बारे में जानना,+ समझ हासिल करना है।

11 मेरी बदौलत तेरी ज़िंदगी में बहुत-से दिन जुड़ जाएँगे+

और तू सालों-साल जीएगा।

12 अगर तू बुद्धिमान बने तो तेरा ही भला होगा,

लेकिन अगर तू खिल्ली उड़ाए, तो तू ही अंजाम भुगतेगा।

13 मूर्ख औरत बकबक तो करती है,+

मगर जानती कुछ नहीं, बिना जाने बोलती रहती है।

14 वह शहर की ऊँची-ऊँची जगह पर,

अपने घर के सामने बैठी,+

15 आने-जानेवालों को आवाज़ लगाती है,

अपने रास्ते पर सीधे जा रहे लोगों से कहती है,

16 “जो नादान हैं, वे इधर आएँ।”

जिनमें समझ नहीं, उनसे वह कहती है,+

17 “चोरी का पानी मीठा होता है!

लुक-छिपकर खाने का मज़ा ही कुछ और है!”+

18 लेकिन उनको नहीं पता कि उसका घर मुरदों का घर है

और उसके मेहमान कब्र की गहराइयों में पड़े हैं।+

10 सुलैमान के नीतिवचन।+

बुद्धिमान बेटा अपने पिता को खुशी देता है,+

लेकिन मूर्ख अपनी माँ को दुख देता है।

 2 दुष्टता से कमाई दौलत किसी काम नहीं आती,

नेकी ही एक इंसान को मौत से बचाती है।+

 3 यहोवा नेक इंसान को भूखों मरने नहीं देता,+

मगर दुष्ट की लालसाओं पर पानी फेर देता है।

 4 आलसी हाथ इंसान को गरीब बनाते हैं,+

मगर मेहनती हाथ उसे अमीर बनाते हैं।+

 5 जो बेटा गरमियों में फसल बटोरता है, वह अंदरूनी समझ दिखाता है,

लेकिन जो बेटा कटाई के समय गहरी नींद सोता है, उसे शर्मिंदा होना पड़ता है।+

 6 नेक जन के सिर पर आशीषों की बौछार होती है,+

लेकिन दुष्ट की बातों में हिंसा छिपी होती है।

 7 नेक जन को याद करके* दुआएँ दी जाती हैं,+

लेकिन दुष्ट का नाम मिट जाता है।+

 8 जो बुद्धिमान है वह आदेश मानता है,+

लेकिन जो मूर्खता की बातें करता है, वह तबाह होता है।+

 9 निर्दोष चाल चलनेवाला महफूज़ रहता है,+

मगर टेढ़ी चाल चलनेवाला पकड़ा जाता है।+

10 जो धोखा देने के लिए आँख मारता है, वह दुख पहुँचाता है+

और जो मूर्खता की बातें करता है, वह कुचला जाता है।+

11 नेक जन की बातें जीवन का सोता है,+

लेकिन दुष्ट की बातों में हिंसा छिपी होती है।+

12 नफरत झगड़े पैदा करती है,

लेकिन प्यार सारे अपराधों को ढक देता है।+

13 पैनी समझ रखनेवाले के होंठों पर बुद्धि पायी जाती है,+

लेकिन जिसमें समझ नहीं उसकी पीठ पर छड़ी पड़ती है।+

14 बुद्धिमान अपने ज्ञान का भंडार भरता रहता है,+

मगर मूर्ख अपनी बातों से बरबादी लाता है।+

15 रईस की दौलत उसके लिए किलेबंद शहर है।

गरीब की गरीबी उसे बरबाद कर देती है।+

16 नेक जन के काम जीवन की ओर ले जाते हैं,

लेकिन दुष्ट की कमाई पाप की ओर ले जाती है।+

17 जो शिक्षा कबूल करता है वह दूसरों को जीवन की राह दिखाता है,*

लेकिन जो डाँट को अनसुना करता है, वह दूसरों को गुमराह करता है।

18 जो नफरत छिपाए रखता है, वह झूठ बोलता है+

और जो दूसरों को बदनाम करने के लिए बातें* फैलाता है, वह मूर्ख है।

19 जहाँ बहुत बातें होती हैं, वहाँ अपराध भी होता है,+

लेकिन जो ज़बान पर काबू रखता है, वह सूझ-बूझ से काम लेता है।+

20 नेक जन की बातें बढ़िया चाँदी जैसी हैं,+

मगर दुष्ट की सोच* का कोई मोल नहीं।

21 नेक जन की बातें बहुतों को पोषण देती हैं,*+

लेकिन मूर्ख, समझ न होने की वजह से मर जाता है।+

22 यहोवा की आशीष ही एक इंसान को अमीर बनाती है+

और वह उसके साथ कोई दर्द* नहीं देता।

23 मूर्ख के लिए शर्मनाक काम एक खेल है,

लेकिन पैनी समझ रखनेवाला बुद्धि की खोज में रहता है।+

24 दुष्ट को जिस बात का डर होता है, वही उस पर आ पड़ती है,

लेकिन नेक जन की ख्वाहिश पूरी की जाती है।+

25 दुष्ट, तूफान आने पर मिट जाता है,+

लेकिन नेक जन मज़बूत नींव की तरह टिका रहता है।+

26 आलसी अपने मालिक* के लिए ऐसा है,

जैसे दाँतों के लिए सिरका और आँखों के लिए धुआँ।

27 यहोवा का डर मानना ज़िंदगी के दिन बढ़ाता है,+

लेकिन दुष्ट की ज़िंदगी के साल घटा दिए जाएँगे।+

28 नेक जन की उम्मीदें* उसे खुशी देती हैं,+

लेकिन दुष्ट की आशा खाक में मिल जाती है।+

29 यहोवा की राह निर्दोष लोगों के लिए एक मज़बूत गढ़ है,+

मगर बुरे काम करनेवालों के लिए यह विनाश साबित होती है।+

30 नेक जन सदा अटल रहेगा,+

जबकि दुष्ट जन धरती पर फिर कभी नहीं बसेगा।+

31 नेक जन के मुँह से बुद्धि की बातें निकलती हैं,

लेकिन छल करनेवाली ज़बान काट दी जाएगी।

32 नेक जन के होंठ मनभावनी बातें कहना जानते हैं,

मगर दुष्ट के मुँह से छल की बातें निकलती हैं।

11 बेईमानी के तराज़ू से यहोवा घिन करता है,

लेकिन वह सही* बाट-पत्थर से खुश होता है।+

 2 जो गुस्ताखी करता है* उसे अपमान सहना पड़ता है,+

लेकिन जो अपनी मर्यादा में रहता है वह बुद्धिमान है।+

 3 सीधे-सच्चे इंसान का निर्दोष चालचलन उसे राह दिखाएगा,+

मगर छल-कपट करनेवाले का कपट खुद उसका नाश कर देगा।+

 4 क्रोध के दिन धन-दौलत किसी काम नहीं आएगी,+

सिर्फ नेकी एक इंसान को मौत से बचाएगी।+

 5 निर्दोष इंसान की नेकी उसकी राह को सीधा करती है,

मगर दुष्ट की दुष्टता उसका नाश कर देती है।+

 6 सीधे-सच्चे इंसान की नेकी उसे बचाएगी,+

मगर धोखा देनेवाले की लालसा उसके लिए फंदा बन जाएगी।+

 7 जब दुष्ट मरता है, तो उसकी आशाएँ मिट जाती हैं,

अपनी ताकत पर उसे जो भरोसा था, वह भी टूट जाता है।+

 8 नेक जन को मुसीबत से छुड़ाया जाता है,

उसकी जगह दुष्ट मुसीबत में पड़ जाता है।+

 9 भक्‍तिहीन* अपनी बातों से अपने पड़ोसी को तबाह कर देता है,

लेकिन नेक इंसान ज्ञान की वजह से बच जाते हैं।+

10 नेक जन की अच्छाई से पूरा शहर मगन होता है

और जब दुष्ट मरता है, तो खुशियों की गूँज सुनायी देती है।+

11 सीधे-सच्चे इंसान की दुआएँ शहर को ऊँचा उठाती हैं,+

लेकिन दुष्ट की बातें शहर को ढा देती हैं।+

12 जिसमें समझ नहीं होती वह अपने पड़ोसी को नीचा दिखाता है,

लेकिन जिसमें पैनी समझ होती है वह चुप रहता है।+

13 दूसरों को बदनाम करनेवाला उनका राज़ बताता फिरता है,+

लेकिन भरोसेमंद इंसान राज़ को राज़ ही रखता है।*

14 अगर सही मार्गदर्शन* न हो तो लोग दुख उठाते हैं,

लेकिन बहुतों की सलाह से कामयाबी* मिलती है।+

15 जो अजनबी का कर्ज़ चुकाने का ज़िम्मा लेता है,* वह मुसीबत में पड़ता है,+

मगर जो हाथ मिलाकर वादा करने से दूर रहता है,* वह बच जाता है।

16 मन को भानेवाली औरत सम्मान पाती है,+

लेकिन ज़ालिम आदमी धन-दौलत लूटते हैं।

17 कृपा* करनेवाला अपना ही भला करता है,+

लेकिन बेरहम इंसान खुद पर आफत* लाता है।+

18 दुष्ट की कमाई खोखली निकलती है,+

मगर नेकी बोनेवाले को सच्चा फल मिलता है।+

19 जो नेकी की राह पर बना रहता है उसे जीवन मिलेगा,+

मगर जो बुराई के पीछे भागता है उसे मौत मिलेगी।

20 टेढ़े मनवालों से यहोवा घिन करता है,+

मगर सीधी चाल चलनेवालों से वह खुश होता है।+

21 यकीन रख, दुष्ट सज़ा से नहीं बचेगा,+

मगर नेक जन की संतान बच निकलेगी।

22 जो औरत सुंदर है मगर समझ से काम नहीं लेती,

वह ऐसी है जैसे सूअर की नाक में सोने की नथ।

23 नेक इंसान की चाहत का उसे अच्छा फल मिलता है,+

मगर दुष्ट की आशा परमेश्‍वर का क्रोध भड़काती है।

24 जो दिल खोलकर देता* है, उसके पास और ज़्यादा आ जाता है+

और जो उतना भी नहीं देता जितना उसे देना चाहिए, वह कंगाल हो जाता है।+

25 दरियादिल इंसान फलता-फूलता है,+

जो दूसरों को ताज़गी पहुँचाता है* उसे खुद ताज़गी मिलती है।+

26 अनाज के जमाखोरों को लोग कोसते हैं,

मगर इसे बेचनेवालों को दुआएँ देते हैं।

27 जो भलाई करने की ताक में रहता है वह मंज़ूरी पाना चाहता है,+

लेकिन जो बुराई करने की ताक में रहता है, बुराई उसी पर आ पड़ती है।+

28 अपनी दौलत पर भरोसा रखनेवाला मिट जाता है,+

मगर नेक जन हरे-हरे पत्तों की तरह लहलहाता है।+

29 जो अपने परिवार पर आफत* लाता है, उसके हाथ कुछ नहीं* लगेगा+

और मूर्ख, बुद्धिमान का नौकर बनकर उसकी सेवा करेगा।

30 नेक इंसान का फल जीवन का पेड़ है+

और दूसरों को सही काम के लिए कायल करनेवाला, बुद्धिमान है।+

31 अगर नेक जन को धरती पर अपने कामों का फल मिलेगा,

तो दुष्ट और पापियों को और भी बढ़कर अपने कामों का फल मिलेगा।+

12 जो शिक्षा से प्यार करता है, वह ज्ञान से प्यार करता है,+

मगर जो डाँट से नफरत करता है वह नासमझ है।+

 2 भले इंसान को यहोवा मंज़ूर करता है,*

लेकिन साज़िश रचनेवाले को वह धिक्कारता है।+

 3 दुष्टता करके कोई भी टिक नहीं सकता,+

लेकिन नेक जन कभी उखाड़ा नहीं जाएगा।

 4 एक अच्छी पत्नी अपने पति के सिर का ताज है,+

लेकिन जो उसे शर्मिंदा करती है,

वह मानो उसकी हड्डियाँ गला देती है।+

 5 नेक इंसान की सोच सीधी होती है,

लेकिन दुष्ट की सलाह कपट से भरी होती है।

 6 दुष्ट की बातें जानलेवा फंदा होती हैं,*+

लेकिन सीधे-सच्चे इंसान की ज़बान बचाती है।+

 7 जब दुष्टों का विनाश होता है, तो वे फिर दिखायी नहीं देते,

लेकिन नेक जन का घर खड़ा रहता है।+

 8 सूझ-बूझ से बोलनेवाले की तारीफ की जाती है,+

लेकिन जिसका मन टेढ़ा होता है, उसका अनादर किया जाता है।+

 9 एक मामूली इंसान जिसके पास सिर्फ एक नौकर है,

वह उस डींगमार से अच्छा है जो रोटी के लिए तरसता है।+

10 नेक जन अपने पालतू जानवरों का खयाल रखता है,+

लेकिन दुष्ट की दया भी बेरहम होती है।

11 अपनी ज़मीन को जोतनेवाला जी-भरकर खाता है,+

लेकिन जो बेकार की बातों के पीछे जाता है उसमें समझ नहीं।

12 दुष्ट, बुरे लोगों की लूट का लालच करता है,

लेकिन नेक जन की जड़ें मज़बूत होती हैं और वह बढ़िया फल देता है।

13 बुरा इंसान अपनी ही बुरी बातों के जाल में फँस जाता है,+

लेकिन नेक जन मुसीबतों से बच जाता है।

14 इंसान के मुँह की बातों से उसका भला हो सकता है+

और वह जो करता है उसका फल उसे मिलता है।

15 मूर्ख को अपनी चाल सीधी लगती है,+

लेकिन बुद्धिमान वही है जो सलाह कबूल करता है।+

16 मूर्ख बड़ी जल्दी* झुँझला उठता है,+

मगर होशियार इंसान बेइज़्ज़ती को अनदेखा करता* है।

17 विश्‍वासयोग्य गवाह सच* बोलता है,

लेकिन झूठा गवाह छल-कपट की बातें कहता है।

18 बिना सोचे-समझे बोलना, तलवार से वार करना है,

लेकिन बुद्धिमान की बातें मरहम का काम* करती हैं।+

19 सच बोलनेवाले होंठ हमेशा कायम रहेंगे,+

मगर झूठ बोलनेवाली जीभ पल-भर की होती है।+

20 साज़िश रचनेवाले के दिल में कपट होता है,

लेकिन शांति को बढ़ावा* देनेवाला खुश रहता है।+

21 दुष्ट की ज़िंदगी मुसीबतों से भर जाएगी,+

मगर नेक जन पर कोई आँच नहीं आएगी।+

22 झूठ बोलनेवाले होंठ से यहोवा घिन करता है,+

लेकिन जो सच्चाई से काम करते हैं उनसे वह खुश होता है।

23 होशियार आदमी अपने ज्ञान को छिपाए रखता है,

लेकिन मूर्ख अपने मन की मूर्खता उगल देता है।+

24 मेहनती इंसान राज करेगा,+

लेकिन आलसी दूसरों की गुलामी करेगा।+

25 चिंताओं के बोझ से मन दब जाता है,+

लेकिन अच्छी बात से मन खुश हो जाता है।+

26 नेक जन अपने चरागाह को गौर से देखता है,

लेकिन दुष्टों की राह उन्हें भटका देती है।

27 आलसी अपने शिकार का पीछा नहीं करता,+

मगर मेहनत एक इंसान का बेशकीमती खज़ाना है।

28 नेकी का रास्ता जीवन की ओर ले जाता है,+

उसकी राह में मौत है ही नहीं।

13 बुद्धिमान बेटा अपने पिता की शिक्षा कबूल करता है,+

लेकिन हँसी-ठट्ठा करनेवाला फटकार* पर कान नहीं लगाता।+

 2 इंसान अपने मुँह की बातों की वजह से अच्छा खाता है,+

लेकिन धोखेबाज़ का जी हिंसा के लिए उतावला रहता है।

 3 जो ज़बान पर काबू रखता है वह अपनी जान बचाता है,+

मगर जो अपना मुँह बंद नहीं रखता वह खुद को बरबाद करता है।+

 4 आलसी के पास कुछ नहीं होता, वह सिर्फ लालसा करता है,+

लेकिन मेहनती पूरी तरह तृप्त होता है।+

 5 नेक इंसान झूठ से नफरत करता है,+

लेकिन दुष्ट अपनी हरकतों से शर्मिंदा और बेइज़्ज़त होता है।

 6 नेकी, सीधी चाल चलनेवालों की हिफाज़त करती है,+

लेकिन दुष्टता, पापियों को बरबाद कर देती है।

 7 कोई अपने को अमीर बताता है जबकि उसके पास कुछ नहीं,+

कोई अपने को गरीब बताता है जबकि उसके पास बहुत दौलत है।

 8 रईस अपनी जान की फिरौती में अपनी दौलत देता है,+

मगर गरीब को ऐसा कोई डर नहीं सताता।*+

 9 नेक जन की रौशनी तेज़ चमकती है,*+

लेकिन दुष्टों का दीपक बुझ जाएगा।+

10 इंसान की गुस्ताखी से झगड़े पैदा होते हैं,+

लेकिन बुद्धिमान वही है जो सलाह-मशविरा करता है।+

11 रातों-रात कमायी गयी दौलत घटती जाएगी,+

लेकिन जो थोड़ा-थोड़ा करके जमा करता है, उसकी दौलत बढ़ती जाएगी।

12 जब उम्मीद* पूरी होने में देर होती है, तो मन उदास हो जाता है,+

मगर जब मन की आरज़ू पूरी होती है, तो मानो यह जीवन का पेड़ है।+

13 जो हिदायत* को तुच्छ समझता है, उसे सज़ा भुगतनी होगी,+

लेकिन जो आज्ञा का आदर करता है उसे इनाम मिलेगा।+

14 बुद्धिमान की सिखायी बातें जीवन का सोता है,+

ये मौत के फंदे में फँसने से बचाती हैं।

15 अंदरूनी समझ रखनेवाला दूसरों की मंज़ूरी पाता है,

लेकिन कपटी की राह दुखों से भरी होती है।

16 होशियार अपने कामों से ज्ञान का सबूत देता है,+

लेकिन मूर्ख अपनी मूर्खता दिखा देता है।+

17 दुष्ट दूत खुद पर मुसीबत लाता है,+

मगर विश्‍वासयोग्य दूत फायदा पहुँचाता है।+

18 शिक्षा ठुकरानेवाला कंगाल हो जाता है और अपमान सहता है,

मगर जो डाँट* कबूल करता है वह आदर पाता है।+

19 आरज़ू पूरी होने पर जी खुश हो जाता है,+

लेकिन मूर्ख को बुराई छोड़ना रास नहीं आता।+

20 बुद्धिमानों के साथ रहनेवाला बुद्धिमान बनेगा,+

लेकिन मूर्खों के साथ मेल-जोल रखनेवाला बरबाद हो जाएगा।+

21 आफत पापियों का पीछा करती है,+

मगर खुशहाली नेक जन का इनाम बनती है।+

22 भला इंसान अपने नाती-पोतों के लिए विरासत छोड़ जाता है,

मगर पापी की दौलत नेक जन के लिए रखी जाएगी।+

23 गरीब के जोते गए खेत में भरपूर फसल पैदा होती है,

लेकिन अन्याय उसे* बरबाद कर देता है।

24 जो अपने बेटे पर छड़ी* नहीं चलाता, वह उससे नफरत करता है,+

मगर जो उससे प्यार करता है, वह उसे सुधारने से पीछे नहीं हटता।*+

25 नेक जन जी-भरकर खाता है,+

मगर दुष्ट भूखे पेट रह जाता है।+

14 जो औरत सचमुच में बुद्धिमान है वह अपना घर बनाती है,+

मगर मूर्ख अपने ही हाथों से उसे उजाड़ देती है।

 2 सीधाई की राह पर चलनेवाला यहोवा का डर मानता है,

लेकिन टेढ़ी चाल चलनेवाला परमेश्‍वर को तुच्छ जानता है।

 3 मूर्ख की घमंड से भरी बातें छड़ी की मार जैसी हैं,

लेकिन बुद्धिमान के होंठ हिफाज़त देते हैं।

 4 जहाँ गाय-बैल नहीं होते, वहाँ चरनी साफ रहती है,

लेकिन बैल की ताकत से बहुत पैदावार होती है।

 5 विश्‍वासयोग्य गवाह झूठ नहीं बोलता,

लेकिन झूठा गवाह बात-बात पर झूठ बोलता है।+

 6 हँसी उड़ानेवाला बुद्धि को ढूँढ़ता है पर उसे नहीं पाता,

लेकिन समझ रखनेवाले को ज्ञान आसानी से मिल जाता है।+

 7 मूर्ख से दूर रह,

उसकी बातों से तुझे कोई ज्ञान नहीं मिलेगा।+

 8 होशियार इंसान की बुद्धि उसे बताती है कि वह किस राह पर है,

लेकिन मूर्ख अपनी मूर्खता से धोखा खाता है।*+

 9 मूर्ख अपनी गलती को* हँसी में उड़ा देता है,+

लेकिन सीधे-सच्चे लोग सुलह करने के लिए तैयार रहते हैं।*

10 एक इंसान ही अपने दिल का दर्द जानता है

और उसकी खुशी को कोई दूसरा नहीं समझ सकता।

11 दुष्ट का घर बरबाद हो जाएगा,+

लेकिन सीधे-सच्चे लोगों का डेरा आबाद रहेगा।

12 ऐसा भी रास्ता है जो इंसान को सही लगता है,+

मगर आखिर में वह उसे मौत की तरफ ले जाता है।+

13 हँसी के पीछे भी दिल का गम छिपा हो सकता है

और मौज-मस्ती दुख में बदल सकती है।

14 जिसका दिल परमेश्‍वर से दूर हो गया है वह अपने कामों का फल भोगेगा,+

लेकिन अच्छे इंसान को अपने कामों का बढ़िया फल मिलेगा।+

15 नादान हर बात पर आँख मूँदकर यकीन करता है,

लेकिन होशियार इंसान हर कदम सोच-समझकर उठाता है।+

16 बुद्धिमान सतर्क रहता है और बुराई से मुँह फेर लेता है,

लेकिन मूर्ख बेफिक्र होता है* और खुद पर ज़्यादा ही भरोसा करता है।

17 जो फौरन भड़क उठता है, वह मूर्खता का काम करता है,+

मगर जो रुककर सोचता है* उससे नफरत की जाती है।

18 नादान को सिर्फ मूर्खता मिलेगी,

लेकिन होशियार को ज्ञान का ताज पहनाया जाएगा।+

19 बुरे लोगों को अच्छे लोगों के आगे झुकना पड़ेगा

और दुष्ट को नेक के फाटकों के सामने झुकना होगा।

20 गरीब से उसके अपने भी नफरत करते हैं,+

लेकिन अमीर के कई दोस्त होते हैं।+

21 जो दूसरों को तुच्छ समझता है वह पाप करता है,

लेकिन जो गरीब पर दया करता है वह सुखी है।+

22 जो साज़िश करता है क्या वह सही राह से भटक नहीं जाएगा?

लेकिन जो भला करना चाहता है, उससे अटल प्यार और वफादारी निभायी जाएगी।+

23 मेहनत के हर काम से फायदा होता है,

मगर जो सिर्फ बातें करना जानता है वह कंगाल हो जाता है।+

24 बुद्धिमान की दौलत उसके सिर का ताज है,

लेकिन मूर्ख के काम मूर्खता के ही होते हैं।+

25 सच्चा गवाह जान बचाता है,

लेकिन धोखेबाज़ बात-बात पर झूठ बोलता है।

26 जो यहोवा का डर मानता है, वह उस पर पूरा भरोसा रखता है+

और उसके बच्चों को भी पनाह मिलेगी।+

27 यहोवा का डर मानना जीवन का सोता है,

यह मौत के फंदे में फँसने से बचाता है।

28 बड़ी प्रजा राजा की शान है,+

लेकिन जहाँ प्रजा नहीं, वहाँ शासक बरबाद हो जाता है।

29 जो क्रोध करने में धीमा है वह पैनी समझ से मालामाल है,+

लेकिन जो उतावली करता है वह अपनी मूर्खता दिखाता है।+

30 शांत मन से शरीर भला-चंगा रहता है,

लेकिन जलन हड्डियों को गला देती है।+

31 जो दीन-दुखियों को ठगता है, वह उनके बनानेवाले का अपमान करता है,+

लेकिन जो गरीब पर दया करता है वह परमेश्‍वर की महिमा करता है।+

32 दुष्ट के बुरे काम उसे ले डूबेंगे,

लेकिन नेक जन अपनी निर्दोष चाल की वजह से शरण पाएगा।+

33 समझदार के मन में बुद्धि चुपचाप बसी रहती है,+

लेकिन मूर्ख अपनी बुद्धि जताने के लिए उतावला रहता है।

34 नेकी एक देश को ऊँचा उठाती है,+

लेकिन पाप लोगों पर बदनामी लाता है।

35 जो सेवक अंदरूनी समझ दिखाता है, राजा उससे खुश होता है,+

मगर जो शर्मनाक काम करता है, राजा उस पर भड़क उठता है।+

15 नरमी से जवाब देने पर क्रोध शांत हो जाता है,+

लेकिन चुभनेवाली बात से गुस्सा भड़क उठता है।+

 2 बुद्धिमान जो अच्छी बातें जानता है उन्हें ज़बान पर लाता है,+

मगर मूर्ख अपने मुँह से मूर्खता की बातें उगलता है।

 3 यहोवा की आँखें हर जगह लगी रहती हैं,

अच्छे-बुरे दोनों को देखती रहती हैं।+

 4 शांति देनेवाली* ज़बान जीवन का पेड़ है,+

मगर टेढ़ी बातें मन को कुचल देती हैं।

 5 मूर्ख अपने पिता की शिक्षा को तुच्छ जानता है,+

मगर होशियार इंसान डाँट* को कबूल करता है।+

 6 नेक जन का घर खज़ाने से भरा रहता है,

मगर दुष्ट की कमाई उस पर आफत लाती है।+

 7 बुद्धिमान के होंठ ज्ञान फैलाते हैं,+

मगर मूर्ख का मन ऐसा करने की नहीं सोचता।+

 8 दुष्ट के बलिदान से यहोवा घिन करता है,+

मगर सीधे-सच्चे इंसान की प्रार्थना से वह खुश होता है।+

 9 यहोवा को दुष्ट की चाल से घृणा है,+

मगर नेकी का पीछा करनेवाले से वह प्यार करता है।+

10 सही राह छोड़नेवाले को शिक्षा बुरी* लगती है+

और डाँट से नफरत करनेवाला अपनी जान गँवा बैठता है।+

11 जब कब्र* और विनाश की जगह* यहोवा से नहीं छिपी,+

तो फिर इंसान का दिल उससे कैसे छिपा रह सकता है!+

12 हँसी उड़ानेवाले को वह इंसान पसंद नहीं जो उसे सुधारता* है,+

वह बुद्धिमान से कोई सलाह नहीं लेता।+

13 जब दिल खुश हो तो चेहरा खिल उठता है,

लेकिन जब मन दुखी हो, तो यह इंसान को अंदर से तोड़ देता है।+

14 समझ रखनेवाला मन पूरी बात जानने की कोशिश करता है,+

मगर मूर्ख अपना मुँह मूर्खता से भरता है।+

15 दुखी इंसान के लिए सब दिन बुरे होते हैं,+

मगर जिसका मन खुश रहता है, उसके लिए तो हर दिन दावत है।+

16 बहुत दौलत होने और चिंता में डूबे रहने से अच्छा है,+

कम में गुज़ारा करना और यहोवा का डर मानना।+

17 जिस घर में नफरत हो वहाँ दावत* उड़ाने से अच्छा है,

उस घर में सादा खाना* खाना जहाँ प्यार हो।+

18 गरम मिज़ाजवाला झगड़ा बढ़ाता है,+

मगर जो क्रोध करने में धीमा है वह झगड़ा शांत करता है।+

19 आलसी की राह काँटों के बाड़े जैसी होती है,+

मगर सीधे लोगों की राह राजमार्ग जैसी होती है।+

20 बुद्धिमान बेटा अपने पिता को खुश करता है,+

मगर मूर्ख अपनी माँ को तुच्छ जानता है।+

21 जिसमें समझ ही नहीं उसे मूर्खता से खुशी मिलती है,+

मगर पैनी समझ रखनेवाला सीधी राह पर बढ़ता जाता है।+

22 सलाह-मशविरा न करने से योजनाएँ नाकाम हो जाती हैं,

लेकिन बहुतों की सलाह से कामयाबी मिलती है।+

23 सही जवाब देने पर एक इंसान खुश हो जाता है+

और सही वक्‍त पर कही गयी बात क्या खूब होती है!+

24 अंदरूनी समझ रखनेवाले को जीवन की राह ऊपर-ऊपर से ले जाती है,+

ताकि वह नीचे कब्र में जाने से बचा रहे।+

25 यहोवा घमंडी का घर ढा देगा,+

मगर विधवा की ज़मीन* की हिफाज़त करेगा।+

26 दुष्ट की साज़िशों से यहोवा को घिन है,+

मगर मनभावनी बातें उसकी नज़रों में शुद्ध हैं।+

27 बेईमानी से कमानेवाला अपने ही परिवार पर आफत* लाता है,+

मगर जिसे घूस लेने से नफरत है वह जीवित रहेगा।+

28 नेक इंसान जवाब देने से पहले मन में सोचता है,*+

मगर दुष्ट अपने मुँह से बुरी-बुरी बातें उगलता है।

29 यहोवा दुष्ट से दूर रहता है,

मगर वह नेक जन की प्रार्थना सुनता है।+

30 आँखों में चमक देखकर दिल झूम उठता है

और अच्छी खबर हड्डियों में जान फूँक देती है।+

31 जो जीवन देनेवाली डाँट सुनता है,

उसकी गिनती बुद्धिमानों में होती है।+

32 जो शिक्षा को ठुकराता है, वह अपने जीवन को तुच्छ समझता है,+

लेकिन जो डाँट सुनकर सुधर जाता है, वह समझ हासिल करता है।+

33 यहोवा का डर मानना, बुद्धि से काम लेना सिखाता है+

और नम्र होने पर आदर मिलता है।+

16 इंसान अपने मन के विचारों को तैयार तो करता है,

मगर वह जो जवाब देता है, वह* यहोवा की तरफ से होता है।+

 2 इंसान को अपनी सभी राहें सही* लगती हैं,+

लेकिन यहोवा इरादों* को जाँचता है।+

 3 तू जो कुछ करे उसे यहोवा को सौंप दे,+

तब तेरी योजनाएँ सफल होंगी।

 4 यहोवा हर काम इस तरह करता है कि उसका मकसद पूरा हो,

उसने दुष्ट को भी विनाश के दिन के लिए इसीलिए रखा है।+

 5 जिसके मन में घमंड है, वह यहोवा की नज़र में घिनौना है।+

यकीन रख, वह बिना सज़ा पाए नहीं रहेगा।

 6 अटल प्यार और वफादारी से* पापों का प्रायश्‍चित होता है+

और यहोवा का डर मानने से इंसान बुराई से मुँह फेर लेता है।+

 7 जब यहोवा किसी इंसान की राह से खुश होता है,

तब वह उसके दुश्‍मनों को भी उसके साथ शांति से रहने देता है।+

 8 अन्याय करके अमीर बनने से अच्छा है,

नेकी की राह पर चलकर कम में गुज़ारा करना।+

 9 एक आदमी अपने मन में योजना तो बनाता है,

लेकिन यहोवा ही उसके कदमों को राह दिखाता है।+

10 राजा के होंठों पर परमेश्‍वर का फैसला होना चाहिए,+

वह न्याय करने से कभी न चूके।+

11 सच्चे तराज़ू के काँटे और पलड़े यहोवा के हैं,

थैली में रखे सभी बाट-पत्थर उसी की तरफ से हैं।+

12 दुष्ट कामों से राजाओं को घिन होती है,+

क्योंकि उनकी गद्दी नेकी से कायम रहती है।+

13 सच्ची बातें राजाओं को खुश करती हैं,

उन्हें वे लोग पसंद हैं जो सीधी-सच्ची बात कहते हैं।+

14 राजा का क्रोध मौत का दूत बन जाता है,+

लेकिन बुद्धिमान उसका क्रोध शांत करना* जानता है।+

15 राजा के चेहरे की चमक में ज़िंदगी है,

उसकी मेहरबानी वसंत में बरसते बादल जैसी है।+

16 बुद्धि सोना हासिल करने से

और समझ चाँदी हासिल करने से कहीं बढ़कर है।+

17 सीधे-सच्चे लोगों की राह उन्हें बुराई से दूर रखती है,

जो अपनी राह की रक्षा करता है, वह अपनी जान बचाता है।+

18 विनाश से पहले घमंड

और ठोकर खाने से पहले अहंकार होता है।+

19 घमंडियों के साथ लूट बाँटने से अच्छा है,

दीन लोगों के बीच नम्र बने रहना।+

20 जो अंदरूनी समझ दिखाता है उसे कामयाबी मिलती है

और जो यहोवा पर भरोसा रखता है वह सुखी है।

21 जिसके पास बुद्धि* है, कहा जाएगा कि उसमें समझ है+

और जो मीठे* बोल बोलता है वह कायल कर पाता है।+

22 जिसमें अंदरूनी समझ है उसके लिए यह जीवन का सोता है,

मगर मूर्ख को अपनी मूर्खता से ही सज़ा मिलती है।

23 बुद्धिमान का मन उसे अंदरूनी समझ की बातें कहने+

और दूसरों को कायल करने के लिए उभारता है।

24 मनभावनी बातें छत्ते के शहद जैसी होती हैं,

जो मन को* मीठी लगती हैं और हड्डियों को दुरुस्त करती हैं।+

25 ऐसा भी रास्ता है जो इंसान को सही लगता है,

मगर आखिर में वह उसे मौत की तरफ ले जाता है।+

26 एक मज़दूर का पेट उससे मेहनत करवाता है,

उसकी भूख* उसे काम करने पर मजबूर कर देती है।+

27 निकम्मा आदमी खोद-खोदकर बुरी बातें पूछता है,+

उसकी ज़बान झुलसानेवाली आग जैसी होती है।+

28 आग लगानेवाला* झगड़े करवाता है+

और बदनाम करनेवाला जिगरी दोस्तों में फूट डाल देता है।+

29 खूँखार आदमी अपने पड़ोसी को बहकाकर

उसे बुरे रास्ते पर ले जाता है।

30 वह साज़िश रचते हुए आँख मारता है,

बुरे काम करते वक्‍त मुस्कुराता है।*

31 पके बाल एक इंसान का खूबसूरत* ताज हैं,+

बशर्ते वह नेकी की राह पर चला हो।+

32 क्रोध करने में धीमा इंसान,+ वीर योद्धा से अच्छा है

और अपने गुस्से* पर काबू रखनेवाला, शहर जीतनेवाले से।+

33 झोली में चिट्ठियाँ डाली तो जाती हैं,+

मगर उससे निकला हर फैसला यहोवा की तरफ से होता है।+

17 जहाँ झगड़े हों वहाँ बड़ी दावत* उड़ाने से अच्छा है,

जहाँ चैन हो वहाँ सूखी रोटी खाना।+

 2 अंदरूनी समझ रखनेवाला नौकर,

उस बेटे पर राज करेगा, जो शर्मनाक काम करता है

और उसकी जायदाद का हिस्सेदार बनेगा मानो वह उसका भाई हो।

 3 चाँदी के लिए कुठाली* और सोने के लिए भट्ठी होती है,+

मगर दिलों का जाँचनेवाला यहोवा है।+

 4 दुष्ट, चोट पहुँचानेवाली बातों पर कान लगाता है

और मक्कार, बुरी बातों पर ध्यान देता है।+

 5 जो गरीब का मज़ाक उड़ाता है, वह उसके बनानेवाले का अपमान करता है।+

और जो दूसरों की बरबादी पर हँसता है, वह सज़ा से नहीं बचेगा।+

 6 बूढ़ों का ताज उनके नाती-पोते होते हैं

और बेटों* को अपने पिता* पर गर्व होता है।

 7 जब अच्छी* बातें कहना मूर्ख को शोभा नहीं देता,+

तो फिर झूठी बातें कहना शासक को कैसे शोभा देगा!+

 8 तोहफा, अपने मालिक के लिए अनमोल रत्न है,*+

जो कुछ वह करता है उसमें कामयाब होता है।+

 9 जो अपराध माफ करता* है, वह प्यार की खोज में रहता है,+

लेकिन जो एक ही बात पर अड़ जाता है, वह जिगरी दोस्तों में फूट डाल देता है।+

10 समझदार के लिए एक फटकार ही काफी होती है,+

जबकि मूर्ख सौ डंडे खाकर भी नहीं सुधरता।+

11 बुरा इंसान सिर्फ बगावत करने की सोचता है,

इसलिए उसे सज़ा देने के लिए जो दूत भेजा जाएगा, वह कोई रहम नहीं करेगा।+

12 अपनी मूर्खता में डूबे मूर्ख का सामना करने से अच्छा है,

उस रीछनी का सामना करना जिसके बच्चे छीन लिए गए हों।+

13 जो अच्छाई का बदला बुराई से चुकाता है,

उसके घर से मुसीबत नहीं टलेगी।+

14 झगड़ा शुरू करना बाँध को खोलने* जैसा है,

इससे पहले कि बात बढ़े वहाँ से निकल जा।+

15 दुष्ट को निर्दोष ठहरानेवाले और नेक को दोषी ठहरानेवाले,+

दोनों से यहोवा घिन करता है।

16 अगर मूर्ख के पास बुद्धि हासिल करने का ज़रिया हो,

मगर मन में इच्छा न हो,* तो क्या फायदा!+

17 सच्चा दोस्त हर समय प्यार करता है+

और मुसीबत की घड़ी में भाई बन जाता है।+

18 जिसमें समझ नहीं, वह समझौते में हाथ मिलाता है

और अपने पड़ोसी के सामने दूसरों का ज़िम्मा लेता है।*+

19 जिसे झगड़ा करने में मज़ा आता है, उसे अपराध करना पसंद है,+

जो अपना फाटक ऊँचा करता है, वह मुसीबत को दावत देता है।+

20 टेढ़े मनवालों को कामयाबी नहीं मिलेगी,+

छल की बातें करनेवाले बरबाद हो जाएँगे।

21 मूर्ख को जन्म देनेवाला पिता दुख झेलेगा,

नासमझ बेटे के पिता को कोई खुशी नहीं मिलेगी।+

22 दिल का खुश रहना बढ़िया दवा है,+

मगर मन की उदासी सारी ताकत चूस लेती है।*+

23 दुष्ट, न्याय का खून करने के लिए चोरी-छिपे घूस* लेता है।+

24 बुद्धि, समझदार इंसान के सामने होती है,

मगर मूर्ख की नज़रें इसे धरती के कोने-कोने तक ढूँढ़ती फिरती हैं।+

25 मूर्ख बेटा अपने पिता को दुख देता है,

अपनी जन्म देनेवाली माँ का दिल दुखाता है।+

26 नेक जन को सज़ा देना* गलत है,

शरीफ लोगों को कोड़े लगाना सही नहीं।

27 जिसमें सच्चा ज्ञान होता है, वह सँभलकर बोलता है,+

जिसमें समझ होती है, वह शांत रहता है।*+

28 मूर्ख भी जब चुप रहता है, तो उसे बुद्धिमान समझा जाता है,

जो अपने होंठ सी लेता है, उसे समझदार माना जाता है।

18 खुद को दूसरों से अलग करनेवाला अपने स्वार्थ के पीछे भागता है

और ऐसी बुद्धि को ठुकरा देता* है, जो उसे फायदा पहुँचा सकती है।

 2 मूर्ख को समझ की बातें अच्छी नहीं लगतीं,

उसे तो बस अपने मन की कहना पसंद है।+

 3 जहाँ दुष्ट होता है वहाँ तिरस्कार भी होता है

और अपमान के साथ-साथ बदनामी भी होती है।+

 4 इंसान के मुँह की बातें गहरे पानी की तरह होती हैं,+

बुद्धि का सोता नदी की तरह उमड़ता रहता है।

 5 दुष्ट का पक्ष लेना सही नहीं+

और नेक को इंसाफ न देना गलत है।+

 6 मूर्ख की बातें झगड़े पैदा करती हैं,+

वह अपनी ही ज़बान की वजह से पिटता है।+

 7 मूर्ख की ज़बान उसे तबाह कर डालती है,+

उसके होंठ उसकी जान के लिए फंदा बन जाते हैं।

 8 बदनाम करनेवाले की बातें लज़ीज़ खाने की तरह होती हैं,+

जिसे निगलकर सीधे पेट में डाला जाता है।+

 9 कामचोर और तबाही मचानेवाला,

दोनों भाई-भाई हैं।+

10 यहोवा का नाम एक मज़बूत मीनार है,+

जिसमें भागकर नेक जन हिफाज़त पाता है।*+

11 रईस की दौलत उसके लिए किलेबंद शहर है,

मन-ही-मन वह सोचता है यह शहरपनाह उसे बचाएगी।+

12 विपत्ति से पहले मन में घमंड+

और आदर से पहले नम्रता होती है।+

13 जो सुनने से पहले ही जवाब देता है,

वह मूर्खता का काम करता है और अपनी बेइज़्ज़ती कराता है।+

14 इंसान की हिम्मत उसे बीमारी में भी सँभाल सकती है,+

लेकिन कुचले हुए मन को कौन सँभाल सकता है?+

15 समझदार अपने मन में ज्ञान की बातें भरता है+

और बुद्धिमान के कान ज्ञान की बातों की ओर लगे रहते हैं।

16 तोहफा एक इंसान के लिए रास्ता खोल देता है+

और उसे बड़े-बड़े लोगों के सामने ले जाता है।

17 जो मुकदमे में पहले बोलता है, उसकी बातें सही लगती हैं,+

मगर जब दूसरा पक्ष सवाल-जवाब करता है, तब हकीकत सामने आती है।+

18 चिट्ठियाँ डालने से झगड़ा खत्म हो जाता है+

और दो कट्टर विरोधियों के बीच फैसला किया जाता है।

19 नाराज़ भाई को मनाना, मज़बूत शहर को जीतने से कहीं ज़्यादा मुश्‍किल है+

और झगड़े किले के बंद दरवाज़े* जैसे होते हैं।+

20 इंसान अपने मुँह की बातों से अपना पेट भरता है+

और अपने होंठों की उपज से तृप्त होता है।

21 ज़िंदगी और मौत ज़बान के बस में है,+

एक इंसान जैसी बातें करना पसंद करता है, उसे वैसा ही फल मिलता है।+

22 जिसने अच्छी पत्नी पा ली, उसने कुछ अनमोल पा लिया+

और उसे यहोवा की मंज़ूरी* मिलती है।+

23 गरीब मदद के लिए गिड़गिड़ाता है,

मगर रईस उसे रुखाई से जवाब देता है।

24 ऐसे भी साथी होते हैं, जो एक-दूसरे को बरबाद करने के लिए तैयार रहते हैं,+

मगर ऐसा भी दोस्त होता है, जो भाई से बढ़कर वफा निभाता है।+

19 गरीब होना और निर्दोष चाल चलना,+

मूर्ख होने और झूठ बोलने से अच्छा है।+

 2 बिना ज्ञान के रहना अच्छा नहीं+

और जल्दबाज़ी में काम करनेवाला* पाप करता है।

 3 इंसान अपनी मूर्खता की वजह से गलत कदम उठाता है,

फिर उसका मन यहोवा पर भड़क उठता है।

 4 अमीर के कई दोस्त होते हैं,

लेकिन गरीब का अगर कोई दोस्त हो,

तो वह भी उसे छोड़कर चला जाता है।+

 5 झूठा गवाह अपनी सज़ा ज़रूर पाएगा+

और बात-बात पर झूठ बोलनेवाला नहीं बचेगा।+

 6 बड़े-बड़े* लोगों की मेहरबानी सभी पाना चाहते हैं

और तोहफे देनेवाले का हर कोई दोस्त बनना चाहता है।

 7 जब गरीब के सब भाई उससे नफरत करते हों,+

तो फिर उसके दोस्त उससे किनारा क्यों नहीं करेंगे?+

वह अपनी फरियाद लिए उनके पीछे-पीछे जाता है,

मगर कोई उसकी नहीं सुनता।

 8 जो समझ हासिल करता है वह खुद से प्यार करता है,+

जो पैनी समझ को अनमोल जानता है* उसे कामयाबी मिलती है।+

 9 झूठा गवाह अपनी सज़ा ज़रूर पाएगा

और बात-बात पर झूठ बोलनेवाले का नाश हो जाएगा।+

10 मूर्ख का ठाट-बाट से रहना शोभा नहीं देता,

तो फिर नौकर का हाकिमों पर राज करना कैसे शोभा देगा?+

11 इंसान की अंदरूनी समझ उसे गुस्सा करने से रोकती है+

और ठेस पहुँचने पर उसे अनदेखा करना उसकी खूबी है।+

12 राजा का क्रोध शेर की दहाड़ जैसा है,+

मगर उसकी दया घास पर ओस के समान है।

13 मूर्ख बेटा अपने पिता पर मुसीबत लाता है+

और झगड़ालू* पत्नी टपकती छत जैसी होती है।+

14 घर और दौलत पिता से विरासत में मिलती है,

लेकिन सूझ-बूझ से काम लेनेवाली पत्नी यहोवा से मिलती है।+

15 आलस, गहरी नींद सुला देता है

और सुस्त इंसान भूखा रह जाता है।+

16 जो आज्ञा मानता है, उसकी जान सलामत रहती है,+

मगर जो बेपरवाह जीता है, वह अपनी जान खो देता है।+

17 जो गरीब पर दया करता है, वह यहोवा को उधार देता है+

और परमेश्‍वर इस उपकार का उसे इनाम* देगा।+

18 जब तक तेरे बेटे के सुधरने की उम्मीद है उसे सिखा,+

उसकी मौत के लिए ज़िम्मेदार मत बन।*+

19 गरम मिज़ाजवाले को सज़ा भुगतनी पड़ेगी,

अगर तू उसे एक बार बचाए, तो बार-बार बचाना पड़ेगा।+

20 सलाह को सुन और शिक्षा कबूल कर,+

ताकि तू आगे चलकर बुद्धिमान बने।+

21 इंसान अपने दिल में बहुत-सी योजनाएँ बनाता है,

मगर यहोवा जो ठान लेता है,* वह हर हाल में पूरा होता है।+

22 इंसान का अटल प्यार+ मन को भा जाता है

और झूठे आदमी से अच्छा गरीब आदमी होता है।

23 यहोवा का डर मानना जीवन की ओर ले जाता है,+

जिसमें यह डर है वह चैन से जीता है,

उस पर कोई आँच नहीं आती।+

24 आलसी, दावत के बरतन में हाथ तो डालता है,

लेकिन खाना मुँह तक लाने की तकलीफ नहीं उठाता।+

25 हँसी उड़ानेवाले को मार!+ यह देखकर नासमझ होशियार बनेगा।+

समझदार को डाँट, वह और भी सीखेगा।+

26 जो बेटा पिता के साथ बुरा सलूक करता है और माँ को भगा देता है,

वह शर्मिंदगी और बदनामी लाता है।+

27 हे मेरे बेटे, अगर तू शिक्षा पर कान लगाना छोड़ दे,

तो तू ज्ञान की बातों पर चलने से भटक जाएगा।

28 निकम्मा गवाह इंसाफ की हँसी उड़ाता है,+

दुष्ट जन बुराई का मज़ा ऐसे लेता है जैसे खाना निगल रहा हो।+

29 हँसी उड़ानेवाले के लिए सज़ा तय है+

और मूर्ख की पीठ के लिए छड़ी तैयार है।+

20 दाख-मदिरा हँसी उड़ाती है+ और शराब हंगामा मचाती है,+

इनसे बहकनेवाला बुद्धिमान नहीं।+

 2 राजा का आतंक शेर की दहाड़ जैसा है,+

उसे गुस्सा दिलानेवाला अपनी जान जोखिम में डालता है।+

 3 जो झगड़ा करने से दूर रहता है, उसके लिए यह आदर की बात है,+

लेकिन मूर्ख झगड़े में उलझता है।+

 4 आलसी सर्दियों में जुताई नहीं करता,

तभी कटाई के समय उसके पास कुछ नहीं होता

और वह भीख माँगता फिरता है।*+

 5 इंसान के दिल के विचार* गहरे पानी की तरह हैं,

मगर पैनी समझ रखनेवाला इसे खींच निकालता है।

 6 कई लोग अपने अटल प्यार का दम भरते हैं,

मगर सच्चा इंसान बड़ी मुश्‍किल से मिलता है।

 7 नेक जन अपना चालचलन निर्दोष बनाए रखता है,+

उसकी आनेवाली संतान* सुखी रहेगी।+

 8 जब राजा न्याय करने राजगद्दी पर बैठता है,+

तो एक ही नज़र में सारी बुराई छाँट लेता है।+

 9 कौन कह सकता है, “मैंने अपना मन शुद्ध कर लिया,+

मेरे पाप धुल गए”?+

10 बेईमानी का बाट-पत्थर और झूठा पैमाना,*

दोनों से यहोवा घिन करता है।+

11 बच्चा* भी अपने कामों से दिखा देता है

कि वह सीधी और सही चाल चल रहा है या नहीं।+

12 सुनने के लिए कान और देखने के लिए आँख,

दोनों यहोवा ने बनाए हैं।+

13 नींद से प्यार मत कर, वरना तू कंगाल हो जाएगा,+

अपनी आँखें खुली रख तब तू भरपेट खाएगा।+

14 खरीदार कहता है, “चीज़ रद्दी है, एकदम रद्दी!”

मगर वहाँ से चले जाने के बाद अपने सौदे पर शेखी मारता है।+

15 सोना और मूंगे* कीमती होते हैं,

पर उनसे भी कीमती हैं ज्ञान से भरे होंठ।+

16 उस आदमी के कपड़े गिरवी रख ले, जो किसी अजनबी का ज़ामिन बना है+

और अगर उसने बदचलन* औरत की वजह से अपनी चीज़ गिरवी रखी है, तो उसे वापस मत कर।+

17 छल की रोटी एक इंसान को स्वादिष्ट लगती है,

लेकिन बाद में उसका मुँह कंकड़-पत्थर से भर जाता है।+

18 सलाह-मशविरा करने से योजनाएँ सफल* होती हैं,+

सही मार्गदर्शन* लेकर अपनी जंग लड़।+

19 जो दूसरों को बदनाम करना चाहता है, वह उनके राज़ बताता फिरता है,+

जिसे गप्पे लड़ाना पसंद है उससे दोस्ती मत रख।

20 जो अपने माँ-बाप को कोसता है,

अँधेरा होने पर उसका दीपक बुझ जाएगा।+

21 चाहे एक इंसान लालच करके जायदाद पा भी ले,

फिर भी अंत में उसे कोई आशीष नहीं मिलेगी।+

22 यह मत कह, “मैं इस बुराई का बदला लूँगा।”+

यहोवा पर भरोसा रख,+ वह तेरी रक्षा करेगा।+

23 बेईमानी के बाट-पत्थर* से यहोवा घिन करता है,

तराज़ू में हेरा-फेरी करना सही नहीं।

24 यहोवा ही एक आदमी के कदमों को राह दिखाता है,+

वरना उसे कहाँ पता किस राह जाना है।

25 उतावली में आकर मन्‍नत मानना और किसी चीज़ को अर्पित करना,+

फिर बाद में उस पर सोच-विचार करना एक फंदा है।+

26 बुद्धिमान राजा दुष्टों को छाँटकर अलग करता है+

और उन पर दाँवने का पहिया चलाता है।+

27 इंसान की साँस यहोवा के लिए दीपक है,

जो अंदर के इंसान पर रौशनी डालता है।

28 अटल प्यार और सच्चाई से राजा की हिफाज़त होती है,+

अटल प्यार से उसकी राजगद्दी कायम रहती है।+

29 जवानों की शान उनकी ताकत है+

और बुज़ुर्गों की शोभा उनके सफेद बाल।+

30 चोट और घाव बुराई दूर करते हैं+

और मार इंसान को अंदर से शुद्ध करती है।

21 राजा का मन यहोवा के हाथ में पानी की धारा के समान है,+

वह जहाँ चाहता है उसे मोड़ देता है।+

 2 इंसान को अपनी सभी राहें सही लगती हैं,+

लेकिन यहोवा दिलों* को जाँचता है।+

 3 यहोवा को बलिदानों से ज़्यादा,

उन कामों से खुशी मिलती है, जो सही हैं और न्याय के मुताबिक हैं।+

 4 घमंड से चढ़ी आँखें और मगरूर दिल पाप हैं,

जो दीपक की तरह दुष्ट को राह दिखाते हैं।+

 5 मेहनती की योजनाएँ ज़रूर सफल* होंगी,+

लेकिन जल्दबाज़ी करनेवाले पर गरीबी छा जाएगी।+

 6 झूठ बोलकर बटोरी गयी दौलत,

कोहरे की तरह गायब हो जाती है, ऐसी दौलत मौत का फंदा साबित होती है।*+

 7 दुष्टों की हिंसा उन्हीं का सफाया कर देती है,+

क्योंकि वे न्याय करने से इनकार करते हैं।

 8 जो दोषी होता है, उसकी राह टेढ़ी-मेढ़ी होती है,

मगर जो निर्दोष होता है, उसके काम सीधाई के होते हैं।+

 9 झगड़ालू* पत्नी के साथ घर में रहने से अच्छा है,

छत पर अकेले एक कोने में रहना।+

10 दुष्ट जन बुरे काम करने के लिए बेचैन रहता है,+

वह दूसरों पर कोई दया नहीं करता।+

11 हँसी उड़ानेवाले को जब सज़ा मिलती है, तो नादान बुद्धि हासिल करता है

और अगर बुद्धिमान को अंदरूनी समझ मिल जाए, तो वह ज्ञान हासिल करता है।*+

12 नेक परमेश्‍वर, दुष्ट के घर पर ध्यान देता है

और दुष्ट को गिराकर उसका नाश कर देता है।+

13 जो दीन जन की दुहाई सुनकर कान बंद कर लेता है,

उसकी दुहाई भी नहीं सुनी जाएगी।+

14 चोरी-छिपे दिया गया तोहफा गुस्सा ठंडा कर देता है,+

चुपके से दी गयी घूस क्रोध शांत कर देती है।

15 नेक जन को न्याय करने से खुशी मिलती है,+

लेकिन दुष्ट काम करनेवालों को न्याय बुरा लगता है।

16 जो इंसान अंदरूनी समझ की राह से भटक जाता है,

उसे मरे हुओं के साथ ठिकाना मिलता है।+

17 जिसे मौज-मस्ती से प्यार है, वह कंगाल हो जाएगा,+

जिसे तेल और दाख-मदिरा से प्यार है, वह अमीर नहीं होगा।

18 नेक जन के लिए दुष्ट को फिरौती में दिया जाता है

और सीधे-सच्चे इंसान के लिए कपटी को दिया जाता है।+

19 झगड़ालू* और चिड़चिड़ी पत्नी के साथ रहने से अच्छा है,

वीराने में जाकर रहना।+

20 बुद्धिमान के घर में बेशकीमती खज़ाना और तेल मिलता है,+

लेकिन मूर्ख के पास जो कुछ होता है उसे वह लुटा देता है।+

21 जो कोई नेकी और अटल प्यार का पीछा करता है,

वह जीवन, नेकी और आदर पाता है।+

22 बुद्धिमान इंसान योद्धाओं के शहर को जीत लेता है*

और जिस ताकत पर वे भरोसा रखते हैं उसे तोड़ देता है।+

23 जो अपने मुँह और ज़बान पर काबू रखता है,

वह खुद को मुसीबत से बचाता है।+

24 जो उतावली में आकर अपनी मर्यादा लाँघता है,

वह गुस्ताख, घमंडी और डींगमार कहलाता है।+

25 आलसी अपने हाथ से काम नहीं करना चाहता,

इसलिए उसकी लालसाएँ उसकी जान ले लेंगी।+

26 वह दिन-भर कुछ-न-कुछ पाने का लालच करता है,

लेकिन नेक जन देता रहता है और अपने पास कुछ नहीं रखता।+

27 दुष्ट के बलिदान घिनौने होते हैं+

और अगर इसे बुरे इरादे से* चढ़ाया जाए,

तो यह और भी कितना घिनौना होगा!

28 झूठे गवाह का नाश हो जाएगा,+

लेकिन जो ध्यान से सुनता है वह अच्छी गवाही देगा।

29 दुष्ट के चेहरे पर विश्‍वास झलकता है,+

लेकिन सीधे-सच्चे इंसान की राह ही सही होती है।*+

30 यहोवा के खिलाफ न तो कोई बुद्धि, न कोई पैनी समझ और न ही कोई सलाह टिक सकती है।+

31 युद्ध के दिन के लिए घोड़ा तैयार किया जाता है,+

मगर उद्धार यहोवा ही दिलाता है।+

22 एक अच्छा नाम बेशुमार दौलत से बढ़कर है+

और आदर* पाना सोना-चाँदी पाने से कहीं अच्छा है।

 2 अमीर और गरीब में एक बात मिलती-जुलती है,*

दोनों को यहोवा ने रचा है।+

 3 होशियार इंसान खतरा देखकर छिप जाता है,

मगर नादान बढ़ता जाता है और अंजाम* भुगतता है।

 4 नम्र होने और यहोवा का डर मानने से,

दौलत, आदर और जीवन मिलता है।+

 5 टेढ़े इंसान की राह में काँटे और फंदे बिछे होते हैं,

लेकिन जिसे अपनी जान प्यारी है वह इनसे दूर रहता है।+

 6 लड़के* को उस राह पर चलना सिखा, जिस पर उसे चलना चाहिए+

और वह बुढ़ापे में भी उससे नहीं हटेगा।+

 7 अमीर, गरीब पर राज करता है

और उधार लेनेवाला, उधार देनेवाले का गुलाम होता है।+

 8 जो बुराई बोता है वह विपत्ति की फसल काटेगा+

और जिस छड़ी से वह कहर ढाता है वह टूट जाएगी।+

 9 दरियादिल इंसान पर आशीषें बरसेंगी,

क्योंकि वह गरीबों के साथ अपना खाना बाँटता है।+

10 ठट्ठा करनेवाले को भगा दे, तब झगड़ा मिट जाएगा,

बहसबाज़ी* और अपमान का अंत हो जाएगा।

11 जिसकी बोली मनभावनी है और जिसे साफ दिल पसंद है,

राजा उसका दोस्त होता है।+

12 यहोवा, बुद्धि* से काम लेनेवालों की हिफाज़त करता है,

लेकिन छल-कपट करनेवाले की बातें उलट देता है।+

13 आलसी कहता है, “बाहर शेर है!

अगर मैं चौक पर गया तो पक्का मारा जाऊँगा।”+

14 बदचलन* औरत का मुँह गहरी खाई है+

और यहोवा जिसे धिक्कारता है वह उसमें जा गिरेगा।

15 लड़के* के मन में मूर्खता बसी होती है,+

लेकिन शिक्षा की छड़ी उसे दूर कर देगी।+

16 जो गरीब को लूटकर अपने भंडार भरता है+

और जो अमीर को तोहफे देता है,

वे दोनों ही गरीब हो जाएँगे।

17 बुद्धिमान की बातों पर कान लगा+

ताकि तू मेरी सिखायी बातों पर पूरे दिल से चल सके।+

18 इन्हें संजोए रख, तब तुझे खुशी मिलेगी+

और ये हमेशा तेरे होंठों पर बनी रहेंगी।+

19 मैंने आज ये बातें तुझे बतायी हैं

ताकि तेरा भरोसा यहोवा पर हो।

20 मैंने पहले भी बहुत-सी सलाह

और ज्ञान की बातें तुझे लिखी थीं

21 कि तू सच्ची और भरोसेमंद बातें सीखे

और अपने भेजनेवाले के पास सही-सही जानकारी ले जाए।

22 गरीब को गरीब जानकर मत लूट,+

शहर के फाटक पर दीन-दुखियों को मत कुचल।+

23 क्योंकि खुद यहोवा उनका मुकदमा लड़ेगा+

और जो उन्हें लूटते हैं उन्हें ज़िंदा नहीं छोड़ेगा।

24 गरम मिज़ाजवाले के साथ मत रह

और जो बात-बात पर भड़क उठता है उससे दोस्ती मत रख,

25 कहीं ऐसा न हो कि तू उसके जैसी चाल चलने लगे

और यह तेरे लिए फंदा साबित हो।+

26 उन लोगों जैसा मत बन, जो हाथ मिलाकर

दूसरों का कर्ज़ चुकाने का ज़िम्मा लेते हैं।*+

27 क्योंकि अगर तेरे पास चुकाने के लिए कुछ न हो,

तो तेरा बिस्तर भी तुझसे छीन लिया जाएगा।

28 बरसों पहले जो सीमा-चिन्ह

तेरे पुरखों ने ठहराया था, उसे मत खिसकाना।+

29 क्या तूने ऐसे आदमी को देखा है जो अपने काम में माहिर है?

वह किसी मामूली इंसान के सामने नहीं,

राजा-महाराजाओं के सामने खड़ा होगा।+

23 जब तू राजा के साथ खाने बैठे,

तो ध्यान रख, तू किस तरह खाता है।

 2 अगर तेरा मन ठूँसकर खाने को करे,

तो खुद पर काबू रख।*

 3 उसके लज़ीज़ खाने की लालसा मत कर,

कहीं तू उससे धोखा न खा जाए।

 4 पैसे के पीछे इतना मत भाग कि तू थककर चूर हो जाए,+

ज़रा रुक और समझदारी से काम ले।*

 5 क्या तू ऐसी चीज़ पर आँख लगाएगा जो नहीं रहेगी?+

पैसा तो पंख लगाकर उकाब की तरह आसमान में उड़ जाता है।+

 6 कंजूस के यहाँ खाना मत खाना,

उसके लज़ीज़ खाने की लालसा मत करना।

 7 वह कहता तो है “खाओ-पीओ,” मगर दिल से नहीं कहता,*

वह दाने-दाने का हिसाब रखता है।

 8 तूने उसके यहाँ जो खाया होगा उसे तू उगल देगा,

जितनी भी तारीफ की होगी, सब बेकार जाएँगी।

 9 मूर्ख को बुद्धि की बातें मत सुना,+

वह तेरी बातों को तुच्छ समझेगा।+

10 बरसों पहले लगाए गए सीमा-चिन्ह मत खिसकाना,+

न ही अनाथों* की ज़मीन हड़पना।

11 क्योंकि उन्हें बचानेवाला* बहुत ताकतवर है,

वही तेरे खिलाफ उनका मुकदमा लड़ेगा।+

12 शिक्षा पर अपना मन लगा

और सिखायी जानेवाली बातों पर कान दे।

13 अपने लड़के* को सिखाने से पीछे मत हट,+

अगर तू उसे छड़ी भी मारे तो वह मरेगा नहीं।

14 छड़ी चलाने से

तू उसे कब्र में जाने से बचा लेगा।

15 हे मेरे बेटे, अगर तू* बुद्धिमान बने,

तो मेरा दिल खुशी से भर जाएगा।+

16 जब तेरे होंठ सच्ची बात बोलेंगे,

तो मैं अंदर-ही-अंदर* खुशी से झूम उठूँगा।

17 तेरा दिल पापियों से ईर्ष्या न करे,+

बल्कि हर वक्‍त यहोवा का डर माने,+

18 तब तेरा भविष्य सुनहरा होगा+

और तेरी आशा नहीं मिटेगी।

19 हे मेरे बेटे, सुन और बुद्धिमान बन,

अपने दिल को सही राह पर ले चल।

20 उनके जैसा मत बन जो बहुत दाख-मदिरा पीते हैं+

और ठूँस-ठूँसकर गोश्‍त खाते हैं।+

21 क्योंकि पेटू और पियक्कड़ कंगाल हो जाएँगे,+

उनकी नींद उन्हें चिथड़े पहनाएगी।

22 अपने जन्म देनेवाले पिता की सुन

और जब तेरी माँ बूढ़ी हो जाए तो उसे तुच्छ मत जान।+

23 सच्चाई को खरीद ले,* उसे कभी मत बेचना,+

बुद्धि, शिक्षा और समझ को भी खरीद ले।+

24 नेक जन के पिता को कितनी खुशी मिलती है

और बुद्धिमान का पिता उसके कारण कितना मगन होता है।

25 तेरे माता-पिता बेहद खुश होंगे

और तुझे जन्म देनेवाली फूली न समाएगी।

26 हे मेरे बेटे, दिल लगाकर मेरी बातें सुन

और मेरी राहों पर चलने में तुझे खुशी मिले।+

27 वेश्‍या तो गहरी खाई है

और बदचलन* औरत सँकरा कुआँ।+

28 वह लुटेरे की तरह घात लगाकर बैठती है,+

बहुत-से आदमियों से विश्‍वासघात कराती है।

29 कौन हाय-हाय करता है? कौन दुखी है?

कौन लड़ता-झगड़ता और शिकायतें करता है?

किसे बेवजह चोट लगती है? किसकी आँखें लाल रहती हैं?

30 वही जो देर तक दाख-मदिरा पीता है+

और ऐसी मदिरा ढूँढ़ता है* जो नशा बढ़ाती है।

31 दाख-मदिरा के लाल रंग को मत देख,

जो प्याले में चमचमाती है और बड़े आराम से गले से उतरती है।

32 आखिर में वह साँप की तरह डसती है

और ज़हरीले साँप की तरह ज़हर उगलती है।

33 तेरी आँखें अजीबो-गरीब चीज़ें देखेंगी,

तेरा मन उलटी-सीधी बातें बोलेगा।+

34 तुझे लगेगा जैसे तू बीच समुंदर में पड़ा है,

जहाज़ के मस्तूल की चोटी पर सोया हुआ है।

35 तू कहेगा, “उन्होंने मुझे मारा? मुझे तो कोई दर्द नहीं हुआ।

उन्होंने मुझे पीटा? मुझे तो कुछ पता नहीं चला।

मुझे कब होश आएगा+

कि मैं एक और जाम पीऊँ?”*

24 बुरे लोगों से ईर्ष्या मत कर

और उनकी दोस्ती के लिए मत तरस।+

 2 क्योंकि उनका मन हिंसा करने की सोचता रहता है

और उनके होंठ दुख देने की बातें करते हैं।

 3 बुद्धि से घर* बनता है+

और पैनी समझ से यह कायम रहता है।

 4 ज्ञान की बदौलत इसके कमरे

तरह-तरह की कीमती और मनभावनी चीज़ों से भरे रहते हैं।+

 5 बुद्धिमान इंसान के पास ताकत होती है,+

ज्ञान से वह और भी ताकत हासिल कर लेता है।

 6 सही मार्गदर्शन* लेकर अपनी जंग लड़,+

बहुतों की सलाह से तू जीत* हासिल कर पाएगा।+

 7 सच्ची बुद्धि मूर्ख की पहुँच से बाहर है,+

उसके पास शहर के फाटक पर कहने को कुछ नहीं होता।

 8 जो बुराई करने के लिए साज़िश करता है,

कहा जाएगा कि वह साज़िश करने में उस्ताद है।+

 9 मूर्ख की योजनाएँ* पाप की ओर ले जाती हैं,

हँसी-ठट्ठा करनेवालों से लोग घिन करते हैं।+

10 मुश्‍किल* घड़ी में अगर तू निराश हो जाए,

तो तुझमें बहुत कम ताकत रह जाएगी।

11 जिन्हें मौत की तरफ ले जाया जा रहा है उन्हें बचा ले,

जो विनाश की कगार पर हैं, उन्हें गिरने से रोक ले।+

12 अगर तू कहे, “मुझे इस बारे में कुछ नहीं पता,”

तो क्या दिलों* का जाँचनेवाला यह भाँप न लेगा?+

तुझ पर नज़र रखनेवाला सब जानता है,

वह हरेक को उसके कामों का फल देगा।+

13 हे मेरे बेटे, शहद खा क्योंकि यह बहुत अच्छा है,

छत्ते का शहद खाने में बड़ा मीठा लगता है।

14 इसी तरह, बुद्धि भी तेरे लिए अच्छी है,*+

अगर तू इसे पा ले तो तेरा भविष्य सुनहरा होगा

और तेरी आशा नहीं मिटेगी।+

15 दुष्टों की तरह नेक जन के घर पर घात मत लगा,

उसके आशियाने को मत उजाड़।

16 नेक जन चाहे सात बार गिरे, तब भी उठ खड़ा होगा,+

लेकिन अगर दुष्ट मुसीबत की वजह से ठोकर खाए, तो वह नहीं उठेगा।+

17 जब तेरा दुश्‍मन गिरे तब खुश मत हो

और जब वह ठोकर खाकर उठ न पाए,

तो तेरा मन खुशी से फूल न उठे।+

18 नहीं तो यहोवा यह देखकर नाराज़ होगा

और अपना कहर उस* पर से हटा लेगा।+

19 बुरे लोगों को देखकर मत कुढ़

और न ही दुष्टों से ईर्ष्या कर,

20 क्योंकि बुराई करनेवालों का कोई भविष्य नहीं,+

दुष्टों का दीपक बुझा दिया जाएगा।+

21 हे मेरे बेटे, यहोवा और राजा का डर मान,+

बगावत करनेवालों से दोस्ती मत कर,+

22 क्योंकि उन पर अचानक विपत्ति आ पड़ेगी।+

और कौन जाने वे दोनों* उन पर कैसी विपत्ति लाएँ!+

23 बुद्धिमानों ने भी कहा है:

न्याय करते वक्‍त किसी का पक्ष लेना अच्छा नहीं।+

24 जो दुष्ट से कहता है, “तू नेक है,”+

देश-देश के लोग उसे शाप देंगे और राष्ट्र उसे धिक्कारेंगे।

25 लेकिन जो दुष्ट को डाँटता है, उसका भला होगा,+

उसे बढ़िया-बढ़िया आशीषें मिलेंगी।+

26 जो सच-सच बोलता है लोग उसका आदर करते हैं।*+

27 पहले बाहर के कामों की योजना बना और अपना खेत तैयार कर,

फिर अपना घर* बना।

28 बिना सबूत के अपने पड़ोसी के खिलाफ गवाही मत देना,+

दूसरों को धोखा देने के लिए झूठी बातें मत बोलना।+

29 यह मत कहना, “जैसा उसने मेरे साथ किया, मैं भी उसके साथ वैसा ही करूँगा।

गिन-गिनकर बदला लूँगा।”+

30 मैं आलसी+ के खेत के पास से जा रहा था,

उस इंसान के अंगूरों के बाग से, जिसमें समझ ही नहीं।

31 तब मैंने देखा वहाँ जंगली पौधे उग आए हैं,

ज़मीन बिच्छू-बूटी के पौधों से भर चुकी है

और पत्थर की दीवार टूटी पड़ी है।+

32 यह देखकर मैंने मन में गाँठ बाँध ली,

हाँ, मैंने देखकर यह सबक सीखा:*

33 थोड़ी देर और सो ले, एक और झपकी ले ले,

हाथ बाँधकर थोड़ा सुस्ता ले,

34 तब गरीबी, लुटेरे की तरह तुझ पर टूट पड़ेगी,

तंगी, हथियारबंद आदमी की तरह हमला बोल देगी।+

25 ये भी सुलैमान के नीतिवचन हैं।+ यहूदा के राजा हिजकियाह+ के आदमियों ने इनकी नकल तैयार की थी:*

 2 परमेश्‍वर की शान इसमें है कि वह किसी बात को राज़ रखे+

और राजाओं की शान इसमें है कि वे मामले की छानबीन करें।

 3 जैसे आकाश की ऊँचाई और धरती की गहराई जानना नामुमकिन है,

वैसे ही राजाओं के दिल में क्या है, यह जानना मुमकिन नहीं।

 4 पिघलायी हुई चाँदी से मैल दूर कर,

तब वह पूरी तरह शुद्ध हो जाएगी।+

 5 राजा के सामने से दुष्टों को निकाल दे,

तब नेकी से उसकी राजगद्दी कायम रहेगी।+

 6 राजा के सामने अपनी बड़ाई मत कर,+

न ही बड़े-बड़े लोगों के बीच जगह ले,+

 7 किसी रुतबेदार आदमी के सामने राजा तुझे बेइज़्ज़त करे,

इससे तो अच्छा है कि वह खुद तुझसे कहे, “यहाँ ऊपर आकर बैठ।”+

 8 अपने पड़ोसी से मुकदमा लड़ने में जल्दबाज़ी मत कर,

अगर उसने तुझे गलत साबित कर दिया, तब तू क्या करेगा?+

 9 अपने पड़ोसी के सामने अपने मुकदमे की पैरवी कर,+

लेकिन जो राज़ की बात तुझे बतायी गयी है, उसे मत खोल,*+

10 कहीं तू कोई झूठी बात* न फैला दे, जिसे वापस न लिया जा सके

और सुननेवाला तुझे शर्मिंदा करे।

11 जैसे चाँदी की नक्काशीदार टोकरी में सोने के सेब,

वैसे ही सही वक्‍त पर कही गयी बात होती है।+

12 जैसे सोने की बाली और बढ़िया सोने के ज़ेवर अच्छे लगते हैं,

वैसे ही बुद्धिमान की डाँट उस कान को अच्छी लगती है जो उसे सुनता है।+

13 जैसे कटाई के वक्‍त बर्फ का ठंडा पानी तरो-ताज़ा करता है,

वैसे ही विश्‍वासयोग्य दूत अपने मालिक को ताज़गी पहुँचाता है।+

14 जो आदमी तोहफा देने की शेखी मारता है पर देता नहीं,*

वह उस हवा और बादल की तरह है जो बारिश नहीं लाते।+

15 सब्र से काम लेकर सेनापति को कायल किया जा सकता है,

कोमल बातें हड्डी को भी तोड़ देती हैं।+

16 अगर तुझे शहद मिले तो उतना ही खा जितना तुझे चाहिए,

क्योंकि ज़्यादा खाने से तू उलटी कर देगा।+

17 किसी के घर बार-बार मत जा,

कहीं वह तंग आकर तुझसे नफरत न करने लगे।

18 जो आदमी अपने पड़ोसी के खिलाफ झूठी गवाही देता है,

वह युद्ध के लट्ठ, तलवार और नुकीले तीर जैसा है।+

19 जो भरोसे के लायक नहीं होता,*

उस पर मुसीबत के वक्‍त आस लगाना,

टूटे दाँत या लँगड़ाते पैर पर आस लगाने जैसा है।

20 उदास मनवाले को गाना सुनाना ऐसा है,

मानो ठंड में कपड़े उतारना

और खार* पर सिरका डालना।+

21 अगर तेरा दुश्‍मन भूखा हो तो उसे रोटी खिला,

अगर वह प्यासा हो तो उसे पानी पिला,+

22 तब तू उसके सिर पर अंगारों का ढेर लगाएगा*+

और यहोवा तुझे इसका इनाम देगा।

23 उत्तर से आनेवाली हवा मूसलाधार बारिश लाती है

और गप्पे लड़ानेवाले की ज़बान चेहरे पर क्रोध लाती है।+

24 झगड़ालू* पत्नी के साथ घर में रहने से अच्छा है,

छत पर अकेले एक कोने में रहना।+

25 जैसे थके-माँदे के लिए ठंडा पानी,

वैसे ही दूर देश से आयी अच्छी खबर होती है।+

26 नेक इंसान जब दुष्ट से समझौता कर लेता है,

तो वह मटमैले पानी के सोते और गंदे कुएँ जैसा बन जाता है।

27 ज़्यादा शहद खाना अच्छा नहीं,+

न ही अपनी वाह-वाही करवाना आदर की बात है।+

28 जो अपने गुस्से पर काबू नहीं रख सकता,

वह उस शहर की तरह है जिसकी शहरपनाह टूटी पड़ी है।+

26 जैसे गरमियों में बर्फ और कटाई में पानी बरसना अखरता है,

वैसे ही मूर्ख को आदर मिले, यह शोभा नहीं देता।+

 2 जैसे पक्षी और अबाबील चिड़िया के उड़ने की कोई वजह होती है,

वैसे ही शाप लगने की कोई-न-कोई वजह होती है।*

 3 घोड़े के लिए चाबुक, गधे के लिए लगाम+

और मूर्ख की पीठ के लिए छड़ी होती है।+

 4 मूर्ख को उसकी मूर्खता के हिसाब से जवाब मत दे,

वरना तुझमें और उसमें क्या फर्क रह जाएगा।*

 5 मूर्ख को उसकी मूर्खता के हिसाब से जवाब दे,

ताकि वह खुद को बुद्धिमान न समझे।+

 6 जो मूर्ख को कोई काम सौंपता है,

वह अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारता है।*

 7 जैसे लँगड़े की टाँगें बेकार होती हैं,

वैसे ही मूर्ख का कहा नीतिवचन होता है।+

 8 मूर्ख की बड़ाई करना,

मानो गोफन में पत्थर बाँधकर रखना है।+

 9 मूर्ख के मुँह में नीतिवचन,

पियक्कड़ के हाथ में कँटीली झाड़ी जैसा है।

10 जो मूर्ख या राह चलते आदमी को काम पर लगाता है,

वह उस तीरंदाज़ जैसा है जो अंधाधुंध तीर चलाता है।*

11 जैसे कुत्ता अपनी उलटी चाटने लौटता है,

वैसे ही मूर्ख अपने मूर्खता के काम दोहराता है।+

12 क्या तूने ऐसा आदमी देखा है, जो अपनी नज़र में बुद्धिमान है?+

उससे ज़्यादा तो मूर्ख के सुधरने की गुंजाइश है।

13 आलसी कहता है, “सड़क पर शेर है!

चौक पर जवान शेर घूम रहा है।”+

14 जिस तरह दरवाज़ा कब्ज़ों* पर झूलता है,

उसी तरह आलसी, बिस्तर पर करवटें लेता है।+

15 आलसी, दावत के बरतन में हाथ तो डालता है,

लेकिन खाना मुँह तक लाना उसे थकाऊ लगता है।+

16 आलसी सोचता है कि वह उन सातों से बुद्धिमान है,

जिन्होंने सोच-समझकर जवाब दिया।

17 जो राह चलते किसी का झगड़ा देखकर भड़क उठता है,*

वह उस आदमी के समान है, जो कुत्ते को कान से पकड़ता है।+

18 जैसा एक सनकी जलते अंगारे और मौत के तीर फेंकता है,

19 वैसा ही वह आदमी है जो अपने साथी को छलकर कहता है, “मैं तो मज़ाक कर रहा था!”+

20 जहाँ लकड़ी नहीं, वहाँ आग बुझ जाती है,

जहाँ बदनाम करनेवाला नहीं, वहाँ झगड़ा शांत हो जाता है।+

21 जैसे कोयला अंगारों को और लकड़ी आग को भड़काती है,

वैसे ही झगड़ालू इंसान झगड़ा बढ़ाता है।+

22 बदनाम करनेवाले की बातें लज़ीज़ खाने की तरह होती हैं,

जिसे निगलकर सीधे पेट में डाला जाता है।+

23 जैसे ठीकरे पर चाँदी का पानी चढ़ा हो,

वैसे ही दुष्ट के दिल से निकली प्यारी बातें होती हैं।+

24 दूसरों से नफरत करनेवाला अच्छी-अच्छी बातें तो करता है,

लेकिन उसके अंदर कपट भरा होता है।

25 उसकी मीठी-मीठी बातों में मत आना,

क्योंकि उसके दिल में सात घिनौनी बातें हैं।*

26 वह छल करके अपनी नफरत छिपा भी ले,

तो भी मंडली के सामने उसकी बुराई का परदाफाश होगा।

27 जो गड्‌ढा खोदता है वह खुद उसमें जा गिरता है,

जो पत्थर लुढ़काता है, वह पत्थर खुद उस पर लुढ़क आता है।+

28 झूठी ज़बान उससे नफरत करती है, जिसे वह कुचल देती है

और चापलूसी करनेवाला मुँह तबाही लाता है।+

27 कल के बारे में शेखी मत मार कि मैं यह करूँगा, वह करूँगा

क्योंकि तू नहीं जानता कि कल क्या होगा।+

 2 अपने मुँह से अपनी तारीफ मत कर, दूसरे तेरी तारीफ करें,

तेरे अपने होंठ नहीं बल्कि किसी और के होंठ तेरी बड़ाई करें।+

 3 पत्थर भारी होता है और बालू वज़नदार,

मगर मूर्ख का चिढ़ दिलाना इनसे भी भारी लगता है।+

 4 क्रोध बेरहम है और गुस्सा एक सैलाब,

मगर जलन के आगे कौन टिक सकता है?+

 5 खुलकर दी गयी डाँट,

छिपे हुए प्यार से कहीं अच्छी है।+

 6 दुश्‍मन बहुत* चुंबन देता है,

मगर सच्चा दोस्त डाँट लगाने से पीछे नहीं हटता।+

 7 जिसका पेट भरा हो वह छत्ते का शहद भी नहीं खाता,

लेकिन जिसे भूख लगी हो उसे कड़वी चीज़ भी मीठी लगती है।

 8 जो आदमी अपना घर छोड़कर भटकता फिरता है,

वह उस पंछी जैसा है, जो अपना घोंसला छोड़कर उड़ता फिरता है।

 9 जैसे तेल और खुशबूदार धूप से दिल खुश हो जाता है,

वैसे ही दोस्त की सीधी-सच्ची सलाह से मन खुश हो जाता है।+

10 अपने दोस्त या अपने पिता के दोस्त का साथ मत छोड़ना

और मुसीबत में अपने सगे भाई के घर न जाना,

पास रहनेवाला दोस्त, दूर रहनेवाले भाई से अच्छा है।+

11 हे मेरे बेटे, बुद्धिमान बन और मेरा दिल खुश कर,+

ताकि मैं उसे जवाब दे सकूँ जो मुझे ताने मारता है।+

12 होशियार इंसान खतरा देखकर छिप जाता है,+

मगर नादान बढ़ता जाता है और अंजाम* भुगतता है।

13 उस आदमी के कपड़े गिरवी रख ले, जो किसी अजनबी का ज़ामिन बना है

और अगर उसने बदचलन* औरत की वजह से अपनी चीज़ गिरवी रखी है, तो उसे वापस मत कर।+

14 अगर कोई सुबह-सुबह चिल्लाकर अपने साथी को आशीर्वाद देता है,

तो ऐसा आशीर्वाद शाप माना जाएगा।

15 झगड़ालू* पत्नी, बारिश में टपकती छत जैसी होती है,+

16 जो उसे रोक सकता है, वह हवा को भी रोक सकता है

और दायीं मुट्ठी में तेल पकड़ सकता है।

17 जैसे लोहा लोहे को तेज़ करता है,

वैसे ही एक दोस्त दूसरे दोस्त को* निखारता है।+

18 जो अंजीर के पेड़ की देखरेख करता है, वह उसका फल खाएगा+

और जो अपने मालिक का खयाल रखता है वह इज़्ज़त पाएगा।+

19 जैसे कोई पानी में अपना चेहरा देख पाता है,

वैसे ही एक इंसान दूसरे के मन में अपना मन देख पाता है।

20 कब्र और विनाश की जगह* कभी संतुष्ट नहीं होती,+

न ही आँखों की चाहत कभी खत्म होती है।

21 जैसे चाँदी के लिए कुठाली* और सोने के लिए भट्ठी होती है,+

वैसे ही इंसान की परख उसे मिलनेवाली तारीफ से होती है।

22 चाहे मूर्ख को अनाज की तरह

ओखली में डालकर मूसल से कूटा जाए,

तब भी उसकी मूर्खता नहीं जाएगी।

23 अपने झुंड का हाल तुझे अच्छी तरह मालूम हो,

अपनी हर भेड़ का तू अच्छा खयाल रख।*+

24 क्योंकि दौलत हमेशा नहीं रहती,+

न ही मुकुट पीढ़ी-पीढ़ी तक टिकता है।

25 जब हरी घास सूख जाती है, तो नयी घास आती है

और पहाड़ों से हरियाली इकट्ठी की जाती है।

26 भेड़ के बच्चों के ऊन से तुझे कपड़े मिलेंगे

और बकरियों के दाम से तू खेत खरीदेगा।

27 बकरियाँ तुझे इतना दूध देंगी कि तू, तेरा पूरा घराना और तेरी दासियाँ जी-भरकर पीएँगे।

28 दुष्ट का कोई पीछा न भी करे, तो भी वह भागता रहता है,

लेकिन नेक जन शेर की तरह बेखौफ रहता है।+

 2 जिस देश में कायदे-कानून तोड़े जाते हैं,* वहाँ हाकिम बदलते रहते हैं,+

मगर जिस हाकिम के* सलाहकार में पैनी समझ और ज्ञान है, उसका राज बना रहता है।+

 3 जो गरीब किसी दीन-दुखी को ठगता है,+

वह उस तेज़ बारिश के समान है, जो सारा अनाज बहा ले जाती है।

 4 कानून न माननेवाले जब किसी दुष्ट की बड़ाई करते हैं,

तो कानून माननेवाले उनके खिलाफ भड़क उठते हैं।+

 5 बुरे लोग नहीं समझते कि क्या सही है, क्या गलत,

लेकिन जो यहोवा की खोज में रहते हैं वे सब समझते हैं।+

 6 जो गरीब निर्दोष चाल चलता है,

वह उस अमीर से कहीं अच्छा है, जो बेईमानी करता है।+

 7 समझदार बेटा नियम-कानून मानता है,

लेकिन पेटू से दोस्ती रखनेवाला अपने पिता का अपमान करता है।+

 8 जो ब्याज लेकर और बेईमानी से दौलत बटोरता है,+

वह उस आदमी के लिए बटोर रहा है,

जो गरीबों पर मेहरबानी करता है।+

 9 जो परमेश्‍वर का कानून मानने से इनकार करता है,

उसकी प्रार्थना तक घिनौनी है।+

10 जो सीधे इंसान को बहकाकर बुरी राह पर ले जाता है, वह अपने ही खोदे हुए गड्‌ढे में जा गिरेगा,+

लेकिन जो निर्दोष चाल चलता है उसे अच्छा फल मिलेगा।+

11 अमीर खुद को बड़ा बुद्धिमान समझता है,+

लेकिन पैनी समझ रखनेवाला गरीब, उसकी असलियत भाँप लेता है।+

12 नेक जन की जीत पर जश्‍न मनाया जाता है,

लेकिन दुष्ट के सत्ता में आने पर लोग छिपते फिरते हैं।+

13 जो अपने अपराध छिपाए रखता है वह सफल नहीं होगा,+

लेकिन जो इन्हें मान लेता है और दोहराता नहीं, उस पर दया की जाएगी।+

14 सुखी है वह इंसान जो हमेशा चौकन्‍ना रहता है,*

मगर जो अपने दिल को ढीठ बना लेता है उस पर विपत्ति टूट पड़ेगी।+

15 दीन-दुखियों पर राज करनेवाला दुष्ट,

मानो दहाड़ता हुआ शेर और हमला करनेवाला भालू है।+

16 जिस अगुवे में पैनी समझ नहीं, वह ताकत का गलत इस्तेमाल करता है,+

लेकिन जो बेईमानी की कमाई से नफरत करता है, उसकी उम्र लंबी होती है।+

17 जो किसी के खून का दोषी है, वह मरने तक* भागता रहेगा,+

कोई उसकी मदद न करे।

18 निर्दोष चाल चलनेवाले बचाए जाएँगे,+

लेकिन टेढ़ी चाल चलनेवाले अचानक गिर पड़ेंगे।+

19 जो अपना खेत जोतता है उसके पास रोटी की भरमार होगी,

लेकिन जो बेकार के कामों में लगा रहता है उसके पास गरीबी की भरमार होगी।+

20 सच्चा आदमी ढेरों आशीषें पाएगा,+

लेकिन जो रातों-रात अमीर बनना चाहता है वह निर्दोष नहीं रह पाएगा।+

21 पक्षपात करना सही नहीं,+

फिर भी रोटी के एक टुकड़े के लिए इंसान यह गलत काम कर जाता है।

22 ईर्ष्या करनेवाला* दौलत के पीछे भागता है,

लेकिन नहीं जानता कि गरीबी उसे आ घेरेगी।

23 डाँट लगानेवाला+ आखिर में उस आदमी से ज़्यादा प्यारा हो जाता है,+

जो चिकनी-चुपड़ी बातें करता है।

24 जो अपने माँ-बाप को लूटकर कहता है, “मैंने कुछ गलत नहीं किया,”+

वह तबाही मचानेवाले का साझेदार है।+

25 लालची* आदमी झगड़े पैदा करता है,

लेकिन यहोवा पर भरोसा रखनेवाला फलता-फूलता है।+

26 जो अपने दिल पर भरोसा रखता है वह मूर्ख है,+

लेकिन जो बुद्धि की राह पर चलता है वह बचाया जाएगा।+

27 जो गरीबों को देता है उसे किसी बात की कमी न होगी,+

लेकिन जो उन्हें देखकर आँख मूँद लेता है, उसे बहुत शाप मिलेंगे।

28 दुष्ट जब सत्ता में आता है तो लोग छिप जाते हैं,

लेकिन जब उसका विनाश हो जाता है तब नेक जन बढ़ने लगते हैं।+

29 बार-बार डाँट खाने पर भी जो ढीठ बना रहता है,+

उसका अचानक ऐसा नाश होगा कि बचने की कोई उम्मीद न होगी।+

 2 जब नेक लोगों का बोलबाला होता है तो लोग खुशियाँ मनाते हैं,

मगर जब दुष्ट का राज होता है तो लोग आहें भरते हैं।+

 3 बुद्धि से प्यार करनेवाला, अपने पिता का दिल खुश करता है,+

लेकिन वेश्‍याओं से दोस्ती रखनेवाला अपनी दौलत लुटा देता है।+

 4 जो राजा इंसाफ करता है वह देश-भर में शांति लाता है,+

लेकिन जो रिश्‍वत लेता है वह पूरे देश को तबाह कर देता है।

 5 जो दूसरे की झूठी तारीफ करता है,

वह उसके पैरों के लिए जाल बिछाता है।+

 6 बुरा इंसान अपने ही अपराधों के जाल में फँस जाता है,+

लेकिन नेक जन खुशी के मारे चिल्लाता और झूमता है।+

 7 नेक जन को फिक्र रहती है कि गरीब को उसका कानूनी हक मिले,+

मगर दुष्ट को इसकी कोई फिक्र नहीं होती।+

 8 शेखी मारनेवाला, नगर में आग लगाता है,+

लेकिन बुद्धिमान इंसान गुस्सा ठंडा करता है।+

 9 जब बुद्धिमान किसी मूर्ख पर मुकदमा चलाता है,

तो मूर्ख गला फाड़कर चिल्लाता है, मज़ाक उड़ाता है

और बुद्धिमान का चैन छिन जाता है।+

10 जो खून के प्यासे होते हैं, वे निर्दोष लोगों से नफरत करते हैं+

और सीधे-सच्चे लोगों की जान लेने* की ताक में रहते हैं।

11 मूर्ख अपने मन की सारी भड़ास निकाल देता है,+

मगर बुद्धिमान खुद पर काबू रखता है और शांत रहता है।+

12 जो शासक झूठ पर कान लगाता है,

उसके सारे नौकर दुष्ट हो जाते हैं।+

13 गरीब और ज़ुल्म करनेवाले में एक बात मिलती-जुलती है,

दोनों की आँखों को यहोवा ने रौशनी दी है।*

14 अगर राजा गरीबों का सच्चा न्याय करे,+

तो उसकी राजगद्दी हमेशा सलामत रहेगी।+

15 छड़ी* और डाँट से बच्चा बुद्धिमान बनता है,+

लेकिन जिस पर रोक-टोक नहीं लगायी जाती,

वह अपनी माँ को शर्मिंदा करता है।

16 जब दुष्ट बढ़ते हैं तो अपराध भी बढ़ता है,

लेकिन नेक जन उनकी बरबादी देखेंगे।+

17 अपने बेटे को शिक्षा दे, तो वह तुझे सुकून पहुँचाएगा

और तेरे जी को बहुत खुशी देगा।+

18 जहाँ परमेश्‍वर का मार्गदर्शन* नहीं वहाँ लोग मनमानी करते हैं,+

लेकिन जो उसका कानून मानते हैं वे सुखी रहते हैं।+

19 एक नौकर को बातों से नहीं सुधारा जा सकता,

क्योंकि सबकुछ समझते हुए भी वह बात नहीं मानता।+

20 क्या तूने ऐसे इंसान को देखा है जो बोलने में उतावली करता है?+

उससे ज़्यादा तो मूर्ख के सुधरने की गुंजाइश है।+

21 अगर एक नौकर को बचपन से सिर पर चढ़ाया जाए,

तो आगे चलकर वह एहसान-फरामोश निकलेगा।

22 गुस्सैल इंसान झगड़े पैदा करता है,+

जो बात-बात पर भड़क उठता है वह बहुत-से अपराध कर बैठता है।+

23 इंसान का घमंड उसे नीचा करेगा,+

लेकिन जो दिल से नम्र है वह आदर पाएगा।+

24 चोर का साथी अपनी जान का दुश्‍मन बन बैठता है,

क्योंकि जब उसे गवाही देने बुलाया जाता है, तब* वह अपना मुँह नहीं खोलता।+

25 इंसान का डर एक फंदा है,+

लेकिन जो यहोवा पर भरोसा रखता है उसकी हिफाज़त होती है।+

26 बहुत-से लोग शासक के पास आना* चाहते हैं,

मगर इंसाफ यहोवा से ही मिलता है।+

27 नेक इंसान की नज़र में अन्याय करनेवाला घिनौना है,+

लेकिन दुष्ट की नज़र में सीधी चाल चलनेवाला घिनौना है।+

30 याके के बेटे आगूर की तरफ से ज़रूरी संदेश। यह संदेश ईतीएल और ऊकल के लिए है।

 2 मैं सबसे बड़ा अज्ञानी हूँ,+

लोगों में जो समझ होनी चाहिए, वह मुझमें नहीं।

 3 मैं नहीं कहता कि मैं बुद्धिमान हूँ।

जितना ज्ञान परम-पवित्र परमेश्‍वर को है, वह मुझमें कहाँ!

 4 ऐसा कौन है जो स्वर्ग पर चढ़ा हो, फिर धरती पर उतरा हो?+

किसने हवा को अपनी दोनों मुट्ठियों में बंद किया है?

किसने पानी को अपने कपड़ों में लपेटा है?+

किसने पृथ्वी के चारों कोने ठहराए हैं?+

अगर तुझे उसका और उसके बेटे का नाम पता है तो बता।

 5 परमेश्‍वर का हर वचन पूरी तरह शुद्ध है,+

वह उनके लिए ढाल है जो उसमें पनाह लेते हैं।+

 6 तू उसकी बातों में कुछ न जोड़,+

वरना वह तुझे खूब डाँटेगा

और तू झूठा ठहरेगा।

 7 हे परमेश्‍वर, मुझे और कुछ नहीं चाहिए,

बस मेरे जीते-जी ये दो चीज़ें कर दे,

 8 छल-कपट और झूठ को मेरे सामने से दूर कर दे+

और मुझे न गरीबी दे, न अमीरी।

मुझे बस मेरे हिस्से का खाना दे,+

 9 ऐसा न हो कि मेरे पास बहुत हो जाए और मैं तुझसे मुकरकर कहूँ, “यहोवा कौन है?”+

या मैं गरीब हो जाऊँ और चोरी करके अपने परमेश्‍वर का नाम बदनाम करूँ।

10 मालिक से उसके नौकर की चुगली न करना,

कहीं ऐसा न हो कि वह तुझे कोसे और तू दोषी ठहरे।+

11 ऐसी भी पीढ़ी है जो अपने पिता को बददुआएँ देती है

और अपनी माँ के लिए उनके मुँह से दुआएँ नहीं निकलतीं।+

12 ऐसी भी पीढ़ी है जो खुद को पवित्र मानती है,+

लेकिन अपनी गंदगी* से शुद्ध नहीं की गयी।

13 ऐसी भी पीढ़ी है जिसकी आँखें घमंड से चढ़ी हैं,

जिसकी आँखें अहंकार से भरी हैं।+

14 ऐसी भी पीढ़ी है जिसके दाँत तलवार जैसे

और जबड़े छुरे जैसे हैं।

वह धरती के दीन-दुखियों

और गरीबों को फाड़ खाती है।+

15 जोंक की दो बेटियाँ हैं जो “दे दो, दे दो” चिल्लाती हैं।

तीन चीज़ें हैं जो कभी तृप्त नहीं होतीं,

बल्कि चार हैं, जो कभी नहीं कहतीं “बस हुआ!”

16 कब्र,*+ सूनी कोख,

पानी की प्यासी धरती

और आग जो कभी “बस” नहीं कहती।

17 जो अपने पिता का तिरस्कार करता है

और अपनी माँ की आज्ञा को तुच्छ जानता है,+

उसकी आँखें घाटी के कौवे और उकाब के बच्चे नोंच खाएँगे।+

18 तीन बातें हैं जो मेरी समझ से बाहर हैं,

हाँ, चार बातें हैं जिन्हें मैं नहीं समझ पाया:

19 आसमान में उड़ते उकाब की राह,

चट्टान पर साँप की चाल,

खुले समुंदर में जहाज़ का मार्ग

और लड़के का लड़की से व्यवहार।

20 बदचलन औरत ऐसी होती है:

वह खा-पीकर अपना मुँह पोंछती है

और कहती है, “मैंने कुछ गलत नहीं किया।”+

21 तीन चीज़ें ऐसी हैं जिनसे धरती काँप उठती है,

बल्कि चार चीज़ें हैं जो वह बरदाश्‍त नहीं कर सकती:

22 गुलाम का राजा बनना,+

मूर्ख के पास ढेर सारा खाना होना,

23 उस औरत की शादी होना जिससे सब नफरत करते हैं

और नौकरानी का अपनी मालकिन की जगह लेना।+

24 धरती पर ये चार जंतु बहुत छोटे हैं,

लेकिन उनमें सहज बुद्धि होती है:*+

25 चींटियाँ ताकतवर नहीं होतीं,

फिर भी गरमियों में अपना खाना बटोरती हैं।+

26 चट्टानी बिज्जू+ बलवान नहीं होता,

फिर भी चट्टानों में अपना घर बनाता है।+

27 टिड्डियों+ का कोई राजा नहीं होता,

फिर भी वे मोरचा बाँधकर आगे बढ़ती हैं।+

28 घरेलू छिपकली+ पंजों के सहारे चिपकी रहती है

और राजा के महल में पायी जाती है।

29 तीन जीव ऐसे हैं जो बड़ी ठाट से चलते हैं,

बल्कि चार हैं, जिनकी चाल में शान नज़र आती है:

30 शेर, जो जानवरों में सबसे शक्‍तिशाली है

और किसी के डर से पीछे नहीं हटता।+

31 शिकारी कुत्ता, बकरा

और अपनी सेना के आगे-आगे चलनेवाला राजा।

32 अगर तूने खुद को ऊँचा उठाने की मूर्खता की है,+

या ऐसा करने की साज़िश की है,

तो अपने मुँह पर हाथ रखकर चुप रह।+

33 क्योंकि जैसे दूध मथने से मक्खन निकलता है

और नाक मरोड़ने से खून बहता है,

वैसे ही गुस्सा भड़काने से झगड़े पैदा होते हैं।+

31 ये ज़रूरी बातें राजा लमूएल की हैं, जो उसकी माँ ने उसे सिखायी थीं:+

 2 हे मेरे बेटे, मैं तुझे क्या सिखाऊँ?

हे मेरी कोख से जन्म लेनेवाले, मैं तुझे क्या बताऊँ?

जिस बेटे के लिए मैंने मन्‍नत मानी,+ उससे मैं क्या कहूँ?

 3 अपना दमखम औरतों पर बरबाद मत करना,+

न उस राह जाना जिस पर चलकर कई राजा तबाह हुए हैं।+

 4 हे लमूएल, दाख-मदिरा पीना राजाओं को शोभा नहीं देता,

न ही शासकों का यह कहना जँचता है, “मेरा जाम कहाँ है?”+

 5 क्योंकि पीने के बाद वे कायदे-कानून भूल जाते हैं

और दीन-दुखियों को उनका हक नहीं देते।

 6 जो मरनेवाला है, उसे शराब पिला,+

जो दुख से बेहाल है, उसे दाख-मदिरा दे,+

 7 ताकि पीकर वह अपनी गरीबी याद न करे

और अपना दुख भूल जाए।

 8 उनकी तरफ से बोल जो बोल नहीं सकते,

उनके हक के लिए लड़ जो मौत की कगार पर खड़े हैं।+

 9 चुप मत रहना पर सच्चा न्याय करना,

दीन-दुखियों और गरीबों को उनका हक दिलाना।*+

א [आलेफ ]

10 एक अच्छी पत्नी कौन पा सकता है?+

उसका मोल मूंगों* से भी बढ़कर है।

ב [बेथ ]

11 उसका पति पूरे दिल से उस पर भरोसा करता है

और उसके पति को किसी चीज़ की कमी नहीं होती।

ג [गिमेल ]

12 वह कभी अपने पति का बुरा नहीं करती,

बल्कि जीवन-भर उसका भला करती है।

ד [दालथ ]

13 वह मलमल का कपड़ा और ऊन ढूँढ़कर लाती है

और खुशी-खुशी अपने हाथों से काम करती है।+

ה [हे ]

14 सौदागरों के जहाज़ की तरह+

वह दूर-दूर से खाने-पीने की चीज़ें लाती है।

ו [वाव ]

15 पौ फटने से पहले वह उठ जाती है,

अपने घराने के लिए खाना तैयार करती है,

अपनी नौकरानियों को भी उनके हिस्से का खाना देती है।+

ז [जैन ]

16 वह ज़मीन खरीदने की सोचती है और उसे खरीद लेती है

और मेहनत से* अंगूरों का बाग लगाती है।

ח [हेथ ]

17 भारी-भारी कामों के लिए वह अपनी कमर कसती है,+

मेहनत करने के लिए अपने हाथों को मज़बूत करती है।

ט [टेथ ]

18 वह लेन-देन में मुनाफे का ध्यान रखती है,

उसके घर का दीया रात को भी जलता रहता है।

י [योध ]

19 वह एक हाथ से तकुआ पकड़ती है

और दूसरे हाथ से तकली चलाती है।*+

כ [काफ ]

20 वह दीन-दुखियों की तरफ मदद का हाथ बढ़ाती है

और गरीबों के लिए अपनी मुट्ठी खोलती है।+

ל [लामेध ]

21 बर्फ पड़ने पर उसे अपने घरवालों की फिक्र नहीं होती,

क्योंकि सब-के-सब गरम* कपड़े पहने होते हैं।

מ [मेम ]

22 वह खुद अपने हाथों से चादरें बनाती है,

वह मलमल और बैंजनी ऊन के कपड़े पहनती है।

נ [नून ]

23 उसके पति को शहर के फाटक पर सब जानते हैं,+

वह इलाके के मुखियाओं के साथ वहीं बैठता है।

ס [सामेख ]

24 वह मलमल के कुरते* सिलकर बेचती है

और व्यापारियों को थोक में कमरबंद देती है।

ע [ऐयिन ]

25 ताकत और वैभव उसका पहनावा है,

वह आनेवाले कल से नहीं डरती।*

פ [पे ]

26 उसके मुँह से हमेशा बुद्धि की बातें निकलती हैं,+

अपनी ज़बान से भली बातें कहना* उसका उसूल है।

צ [सादे ]

27 वह अपने घरबार का ध्यान रखती है

और आलस की रोटी नहीं खाती।+

ק [कोफ ]

28 उसके बच्चे खड़े होकर उसकी तारीफ करते हैं,

उसका पति भी उठकर उसके गुण गाता है।

ר [रेश ]

29 अच्छी औरतें तो बहुत हैं,

मगर तू उन सबसे बढ़कर है।

ש [शीन ]

30 आकर्षण झूठा हो सकता है और खूबसूरती पल-भर की,*+

मगर जो औरत यहोवा का डर मानती है वह तारीफ पाएगी।+

ת [ताव ]

31 उसकी मेहनत का उसे इनाम दे*+

और उसके काम शहर के फाटक पर उसकी वाह-वाही करें।+

या “और न्याय करने।”

या “बुद्धि-भरी सलाह।”

या “सोच में डालनेवाली कहावतें।”

या “के लिए गहरी श्रद्धा।”

या “हम सबकी एक ही थैली (या बटुआ) होगी।”

या “लौट आओ।”

या “से अघा जाएँगे।”

शब्दावली में “जीवन” देखें।

शा., “परायी।”

शा., “परदेसी।”

या “के पति।”

शा., “तेरा रास्ता सीधा करेगा।”

या “कमाई।”

या “का सबसे बढ़िया हिस्सा।”

या “इसे मुनाफे में हासिल करना।”

शब्दावली देखें।

ज़ाहिर है कि यहाँ परमेश्‍वर के उन गुणों की बात की गयी है, जो पिछली आयतों में बताए गए हैं।

या “जिनका भला करना तेरा फर्ज़ है।”

या शायद, “पर अच्छे-से गौर कर।”

शा., “परायी।”

शा., “के होंठ।”

शा., “सभा और मंडली के बीच।”

या “बहता।”

शा., “परदेसी।”

शा., “तू किसी का ज़ामिन बना है।”

यानी उसकी मदद करने का वादा किया है।

या “तुझे सिखाएँगी।”

या “शिक्षा देने।”

शा., “परदेसी।”

शा., “में दिल नहीं होता।”

या “फिरौती।”

शा., “परायी।”

शा., “परदेसी।”

या “वेश्‍या के।”

या “बेड़ियों।”

शा., “तुम आदमियों से।”

शब्दावली देखें।

या “जब प्रसव-पीड़ा के साथ मुझे पैदा किया गया।”

या “क्षितिज।”

शा., “स्थिर किए।”

शा., “अपना जानवर काटा है।”

या “नादानों को।”

या “के अच्छे नाम के लिए।”

या शायद, “वह जीवन की राह पर है।”

या “अफवाहें।”

शा., “के मन।”

या “को राह दिखाती हैं।”

या “दुख; मुश्‍किल।”

या “भेजनेवाले।”

या “आशा।”

शा., “पूरे।”

या “अपनी हद भूल जाता है।”

या “परमेश्‍वर से बगावत करनेवाला।”

शा., “बात को छिपाए रखता है।”

या “बुद्धि-भरी सलाह।”

या “उद्धार।”

या “का ज़ामिन बनता है।”

शा., “से नफरत करता है।”

या “अटल प्यार।”

या “अपमान।”

शा., “जो छितराता।”

शा., “को खूब सींचता है।”

या “अपमान।”

शा., “हवा।”

या “से खुश होता है।”

शा., “खून करने के लिए घात में बैठती हैं।”

या “उसी दिन।”

शा., “को ढक देता।”

शा., “नेकी की बातें।”

या “चंगा।”

शा., “शांति की सलाह।”

या “सुधार।”

शा., “कोई फटकार नहीं सुनता।”

शा., “खुशियाँ मनाती है।”

या “आशा।”

या “वचन।”

या “जो सुधार के लिए दी गयी सलाह।”

या “गरीब को।”

या “शिक्षा; सज़ा।”

या शायद, “उसे तुरंत सुधारता है।”

या शायद, “से दूसरों को धोखा देता है।”

या “गलती सुधारने को।”

या “लोगों के बीच अच्छी भावना होती है।”

या “भड़क उठता है।”

या “मगर जिसके पास सोचने-परखने की शक्‍ति है।”

या “चंगा करनेवाली।”

या “सुधार के लिए दी गयी सलाह।”

या “कठोर।”

या “शीओल।” शब्दावली देखें।

या “और अबद्दोन।” शब्दावली देखें।

या “डाँटता।”

शा., “मोटा-ताज़ा बैल।”

शा., “थोड़ी-सी साग-सब्ज़ी।”

शा., “की सीमा।”

या “अपमान।”

या “ध्यान से सोचता है कि किस तरह जवाब दूँ।”

या “मगर सही जवाब।”

शा., “पवित्र।”

या “मन।”

इब्रानी पाठ के मुताबिक यह परमेश्‍वर का अटल प्यार और वफादारी भी हो सकती है।

या “उसके क्रोध से बचना।”

शा., “जो दिल में बुद्धिमान।”

या “मन को भानेवाले।”

या “जो खाने पर।”

शा., “उसका मुँह।”

या “साज़िश रचनेवाला।”

शा., “होंठ दबाता है।”

या “शानदार।”

शा., “मन।”

शा., “बलि के जानवर।”

मिट्टी की हाँडी, जिसमें चाँदी को गलाकर शुद्ध किया जाता था।

या “बच्चों।”

या “माँ-बाप।”

या “सीधी-सच्ची।”

या “वह रत्न है जिससे उसके मालिक को फायदा होता है।”

शा., “को ढक देता।”

शा., “पानी छोड़ने।”

या “उसमें समझ ही न हो।”

या “का ज़ामिन बनता है।”

या “हड्डियाँ सुखा देती है।”

शा., “सीने से निकली घूस।”

या “पर जुरमाना लगाना।”

शा., “उसका मन शांत रहता है।”

या “को तुच्छ समझता।”

शा., “को ऊँचा उठाया जाता है,” यानी वह सुरक्षित है और उस तक कोई नहीं पहुँच सकता।

शा., “के बेड़े।”

या “की कृपा।”

शा., “उतावली से दौड़नेवाला।”

या “दरियादिल।”

या “को सँभालकर रखता है।”

या “जान खानेवाली।”

या “बदला।”

या “की इच्छा मत कर।”

या “जो मकसद ठहराता है।”

या शायद, “कटाई के समय ढूँढ़ने पर भी उसे कुछ नहीं मिलता।”

या “इरादे।”

शा., “बेटे।”

या “दो अलग-अलग बाट-पत्थर और दो अलग-अलग माप के पैमाने।”

या “लड़का।”

शब्दावली देखें।

शा., “परदेसी।”

या “पक्की।”

या “बुद्धि-भरी सलाह।”

या “दो अलग-अलग बाट-पत्थर।”

या “इरादों।”

या “फायदेमंद।”

या शायद, “उनके लिए कोहरे की तरह गायब हो जाती है जो मौत ढूँढ़ते हैं।”

या “जान खानेवाली।”

या “वह जान जाता है कि उसे क्या करना है।”

या “जान खानेवाली।”

शा., “शहर पर चढ़ जाता है।”

या “इसे शर्मनाक बरताव के साथ।”

या “अपनी राह पक्की करता है।”

शा., “मंज़ूरी।”

शा., “एक-दूसरे से मिलते हैं।”

या “सज़ा।”

या “बच्चे; जवान।”

या “मुकदमे।”

शा., “ज्ञान।”

शा., “परायी।”

या “बच्चे; जवान।”

या “दूसरों का ज़ामिन बनते हैं।”

शा., “अपने गले पर छुरी रख।”

या शायद, “अपनी समझ से काम लेना बंद कर।”

शा., “उसका मन तुझसे लगा नहीं।”

या “जिनके पिता की मौत हो गयी है।”

शा., “छुड़ानेवाला” यानी परमेश्‍वर।

या “बच्चे; जवान।”

शा., “तेरा दिल।”

शा., “मेरे गुरदे।”

या “को हासिल कर।”

शा., “परदेसी।”

या “ऐसी मदिरा पीने के लिए इकट्ठा होता है।”

या “मैं फिर इसे ढूँढ़ूँ?”

या “घर-परिवार।”

या “बुद्धि-भरी सलाह।”

या “कामयाबी; उद्धार।”

या “मूर्खता-भरी योजनाएँ।”

या “दुख की।”

या “इरादों।”

या “तुझे मीठी लगेगी।”

यानी दुश्‍मन।

यानी यहोवा और राजा।

शा., “उसके होंठ चूमते हैं।” या शायद, “जो सीधे-सीधे बोलता है वह मानो चुंबन देता है।”

या “घर-परिवार।”

शा., “शिक्षा ली।”

या “इन्हें इकट्ठा किया और इनकी नकल तैयार की थी।”

या “दूसरों के राज़ मत खोल।”

या “तू दूसरों को बदनाम करने के लिए अफवाह।”

शा., “जो झूठ-मूठ का तोहफा देने की शेखी मारता है।”

या शायद, “जो धोखेबाज़ है।”

या “सोडा।”

यानी उसके सख्त दिल को पिघलाना और उसका गुस्सा शांत करना।

या “जान खानेवाली।”

या शायद, “बेवजह दिया शाप नहीं लगता।”

या “ताकि तू उसके समान न बन जाए।”

शा., “अपने पैर को चोट पहुँचाता है और हिंसा पीता है।”

या “जो सबको घायल करता है।”

या “चूल।”

या शायद, “के झगड़े में पड़ता है।”

या “उसका दिल पूरी तरह घिनौना है।”

या शायद, “दिखावटी; झूठा।”

या “सज़ा।”

या “परदेसी।”

या “जान खानेवाली।”

शा., “दोस्त के चेहरे को।”

या “और अबद्दोन।” शब्दावली देखें।

मिट्टी की हाँडी, जिसमें चाँदी को गलाकर शुद्ध किया जाता था।

या “पर ध्यान दे।”

या “बगावत होती है।”

शा., “जिसके।”

या “परमेश्‍वर का डर मानता है।”

या “कब्र में जाने तक।”

या “लालची।”

या शायद, “घमंडी।”

या शायद, “मगर सीधे-सच्चे लोग अपनी जान बचाने।”

यानी उसने उन्हें जीवन दिया है।

या “शिक्षा; सज़ा।”

या “जहाँ भविष्यवक्‍ताओं को दिया दर्शन; परमेश्‍वर का संदेश।”

या “वह शपथ सुनता है कि गवाही न देनेवाले पर शाप पड़ेगा, फिर भी।”

या शायद, “की मेहरबानी पाना।”

शा., “अपने मल।”

या “शीओल।” शब्दावली देखें।

या “बहुत बुद्धि होती है।”

या “की पैरवी करना।”

शब्दावली देखें।

या “अपनी कमाई से।” शा., “मेहनत के फल से।”

तकुआ और तकली ऐसी डंडियाँ होती थीं, जिनकी मदद से धागा लपेटा या बनाया जाता था।

शा., “दो-दो।”

या “अंदर पहने जानेवाले कपड़े।”

या “पर हँसती है।”

या “प्यार से सिखाना; अटल प्यार का नियम।”

या “खोखली।”

शा., “उसके हाथों के फल में से उसे दे।”

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