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नहेमायाह का सारांश

      • लोग अपने पाप कबूल करते हैं (1-38)

        • यहोवा माफ करनेवाला परमेश्‍वर (17)

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    या “हमेशा से हमेशा तक।”

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नहेमायाह 9:6

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    10/15/2013, पेज 24

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    अंक 1 2021 पेज 14

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    या “भली पवित्र शक्‍ति।”

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फुटनोट

  • *

    शा., “तेरे कानून को पीठ के पीछे फेंक दिया।”

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    प्रहरीदुर्ग,

    7/1/1987, पेज 31

नहेमायाह 9:28

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    10/15/1998, पेज 21

दूसरें अनुवाद

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दूसरी

नहे. 9:1यह 7:6; यो 3:5, 6
नहे. 9:2एज 9:1, 2; नहे 13:3
नहे. 9:2लैव 26:40; एज 9:6; भज 106:6; दान 9:8
नहे. 9:3नहे 8:3, 8
नहे. 9:4नहे 8:7
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नहे. 9:5यिर्म 33:10, 11
नहे. 9:6व्य 6:4
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नहे. 9:17गि 14:11, 41
नहे. 9:17गि 14:1, 4
नहे. 9:17निर्ग 34:6; गि 14:18
नहे. 9:17व्य 4:31
नहे. 9:18निर्ग 32:1, 4
नहे. 9:19गि 14:19, 20
नहे. 9:19निर्ग 40:38; गि 9:15
नहे. 9:20गि 11:17, 25
नहे. 9:20निर्ग 16:14, 15
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नहे. 9:22गि 21:23, 24, 33, 35; व्य 2:31
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नहे. 9:262रा 21:11; भज 106:38
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नहे. 9:27व्य 31:17
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नहे. 9:30रोम 10:21
नहे. 9:302इत 36:15, 16; यश 42:24; यिर्म 40:2, 3
नहे. 9:31यहे 14:22
नहे. 9:31निर्ग 34:6; व्य 4:31
नहे. 9:32व्य 7:9; दान 9:4
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नहे. 9:322रा 24:12, 14
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नहे. 9:37व्य 28:15, 33; नहे 5:4
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पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद
नहेमायाह 9:1-38

नहेमायाह

9 सातवें महीने के 24वें दिन इसराएली इकट्ठा हुए और उन्होंने शोक मनाया। उन्होंने टाट ओढ़ा, अपने सिर पर धूल डाली और उपवास किया।+ 2 तब जो लोग इसराएल के वंश से थे उन्होंने खुद को परदेसियों से अलग किया।+ उन्होंने खड़े होकर अपने पाप और अपने पुरखों के गुनाह कबूल किए।+ 3 वे जहाँ खड़े थे वहीं खड़े रहे और उन्हें यहोवा के कानून की किताब पढ़कर सुनायी गयी।+ सुबह तीन घंटे तक उनके सामने यह किताब पढ़ी गयी और अगले तीन घंटे तक वे अपने परमेश्‍वर यहोवा के सामने दंडवत करके अपने पाप कबूल करते रहे।

4 तब येशू, बानी, कदमीएल, शबनयाह, बुन्‍नी, शेरेब्याह,+ बानी और कनेनी उस मंच पर खड़े हुए,+ जिसे लेवियों के लिए तैयार किया गया था। और वे अपने परमेश्‍वर यहोवा को ज़ोरदार आवाज़ में पुकारने लगे। 5 लेवियों में से येशू, कदमीएल, बानी, हशबन्याह, शेरेब्याह, होदियाह, शबनयाह और पतहयाह कहने लगे, “अब उठो और अपने परमेश्‍वर यहोवा की युग-युग तक* तारीफ करो!+ हे परमेश्‍वर, तेरे नाम की जितनी भी तारीफ और वाह-वाही की जाए, वह कम है। फिर भी तू इन लोगों को अपने शानदार नाम की बड़ाई करने दे।

6 तू ही यहोवा है!+ तूने आकाश, हाँ, ऊँचे-से-ऊँचा आकाश और उसकी पूरी सेना बनायी है। धरती और जो कुछ उस पर है, समुंदर और जो कुछ उसमें है, सबकुछ तूने रचा है। तू ही उनका जीवन कायम रखता है। आकाश की सेनाएँ तेरे आगे झुकती हैं। 7 तू ही सच्चा परमेश्‍वर यहोवा है जिसने अब्राम को अपना सेवक चुना,+ उसे कसदियों के ऊर शहर से निकालकर लाया+ और उसका नाम बदलकर अब्राहम रखा।+ 8 तूने पाया कि वह दिल से विश्‍वासयोग्य है,+ इसलिए तूने उसके साथ एक करार किया कि तू उसे और उसके वंश को कनानियों, हित्तियों, एमोरियों, परिज्जियों, यबूसियों और गिरगाशियों का देश देगा।+ तूने अपना यह वादा पूरा किया क्योंकि तू सच्चा है।

9 तूने मिस्र में हमारे पुरखों की दुख-तकलीफें देखीं+ और लाल सागर पर उनकी दर्द-भरी पुकार सुनी। 10 तब तूने फिरौन, उसके सेवकों और उसके लोगों के सामने चिन्ह और चमत्कार दिखाए+ क्योंकि तू जानता था कि वे तेरे लोगों पर अत्याचार कर रहे हैं।+ ऐसा करके तूने बड़ा नाम कमाया, जो आज भी कायम है।+ 11 तूने सागर को दो हिस्सों में बाँट दिया ताकि तेरे लोग सूखी ज़मीन पर चलकर उसे पार कर सकें।+ मगर उनका पीछा करनेवालों को तूने वहीं डुबो दिया। वे सागर की गहराइयों में ऐसे समा गए, जैसे तूफानी सागर में फेंका गया पत्थर हों।+ 12 दिन के वक्‍त तूने बादल के खंभे से उन्हें राह दिखायी और रात को आग के खंभे की रौशनी से उन्हें रास्ता दिखाया।+ 13 तू सीनै पहाड़ पर उतरा+ और तूने स्वर्ग से उनसे बातें कीं।+ तूने उन्हें अपने खरे न्याय-सिद्धांत, भरोसेमंद कायदे-कानून, बढ़िया-से-बढ़िया नियम और आज्ञाएँ दीं।+ 14 तूने उन्हें बताया कि वे तेरे लिए पवित्र सब्त रखें।+ तूने अपने सेवक मूसा के ज़रिए उन्हें आज्ञाएँ, नियम और कानून दिए। 15 जब वे भूखे थे तो तूने उन्हें स्वर्ग से रोटी दी।+ जब वे प्यासे थे तो तूने उनके लिए चट्टान से पानी निकाला।+ तूने उन्हें आज्ञा दी कि वे उस देश में कदम रखें और उस पर अधिकार करें, जिसे देने की तूने शपथ खायी थी।

16 लेकिन हमारे पुरखे ढीठ और गुस्ताख बन गए+ और उन्होंने तेरी आज्ञाओं पर कान नहीं लगाया। 17 उन्होंने तेरी सुनने से इनकार कर दिया।+ वे हैरान कर देनेवाले उन कामों को भूल गए जो तूने उनके सामने किए थे। वे इतने हठीले बन गए कि मिस्र की गुलामी में लौट जाने के लिए उन्होंने एक अगुवा ठहराया।+ लेकिन तू ऐसा परमेश्‍वर है जो माफ करने को तैयार रहता है, तू करुणा करनेवाला और दयालु है, क्रोध करने में धीमा और अटल प्यार से भरपूर है,+ इसलिए तूने उन्हें बेसहारा नहीं छोड़ा।+ 18 तब भी नहीं जब उन्होंने बछड़े की एक मूरत ढालकर इसराएलियों से कहा, ‘यही तुम्हारा परमेश्‍वर है जो तुम्हें मिस्र से बाहर ले आया है।’+ और उन्होंने बुरे-से-बुरा काम करके तेरा अपमान किया। 19 उस वक्‍त भी तूने उन पर बड़ी दया की और उन्हें वीराने में अकेला नहीं छोड़ा।+ बादल का वह खंभा उनके पास से नहीं हटा जो दिन के वक्‍त उन्हें राह दिखाता था और न ही आग का वह खंभा हटा जो रात को रौशनी देकर उन्हें रास्ता दिखाता था।+ 20 तूने अपनी पवित्र शक्‍ति* उन्हें दी ताकि वे समझ से काम ले सकें।+ तूने उन्हें मन्‍ना देना बंद नहीं किया+ और जब वे प्यासे थे तो तूने उन्हें पानी पिलाया।+ 21 वीराने में 40 साल तक तू उन्हें खाना देता रहा।+ उन्हें किसी चीज़ की कमी नहीं हुई। उनके कपड़े पुराने होकर नहीं फटे,+ न ही उनके पैरों में सूजन आयी।

22 तूने राजाओं के राज्यों और उनके लोगों को इसराएलियों के अधीन कर दिया और उनकी ज़मीन इसराएलियों में बाँट दी।+ इसलिए उन्होंने हेशबोन के राजा सीहोन के इलाके+ को और बाशान के राजा ओग के इलाके को अपने कब्ज़े में कर लिया।+ 23 तूने उनके बेटों को आसमान के तारों की तरह बेशुमार कर दिया।+ फिर तू उन्हें उस देश में ले आया जिसके बारे में तूने उनके पुरखों से वादा किया था कि वे उस देश में कदम रखकर उसे अपने अधिकार में कर लेंगे।+ 24 इसलिए उनके बेटों ने जाकर पूरे देश पर कब्ज़ा कर लिया+ और तूने वहाँ रहनेवाले कनानियों को उनके अधीन कर दिया।+ तूने उनके राजाओं और लोगों को इसराएलियों के हवाले कर दिया कि वे उनके साथ मनचाहा सलूक करें। 25 उन्होंने उनके किलेबंद शहर जीत लिए+ और उपजाऊ ज़मीन+ और उन घरों को ले लिया, जिनमें हर तरह की बेहतरीन चीज़ें थीं। उन्होंने खुदे हुए हौद, अंगूरों और जैतून के बाग और अनगिनत फलदार पेड़ों पर कब्ज़ा कर लिया।+ वे जी-भरकर खाने-पीने लगे और फलने-फूलने लगे। तूने उन्हें कोई कमी नहीं होने दी, तेरी बड़ी भलाई की वजह से वे सुख से रहने लगे।

26 इस सबके बाद भी, उन्होंने तेरा कहा नहीं माना। वे तेरे खिलाफ हो गए+ और उन्होंने तेरे कानून का तिरस्कार किया।* तेरे भविष्यवक्‍ताओं ने उन्हें समझाया कि वे तेरे पास लौट आएँ, मगर उन्होंने भविष्यवक्‍ताओं को ही मार डाला। उन्होंने बुरे-बुरे काम करके तेरा घोर अपमान किया।+ 27 इसलिए तूने उन्हें दुश्‍मनों के हवाले कर दिया,+ जो उन्हें सताते रहे।+ मुसीबत की घड़ी में जब वे तुझसे फरियाद करने लगे, तब तूने स्वर्ग से उन पर ध्यान दिया। तुझे उन पर बड़ी दया आयी और तूने उनके पास कुछ आदमी भेजे कि वे उन्हें दुश्‍मनों से छुड़ाएँ।+

28 मगर जैसे ही उन्हें दुश्‍मनों से चैन मिला, वे दोबारा उन कामों में लग गए जो तेरी नज़र में बुरे थे।+ और तूने फिर से उन्हें दुश्‍मनों के हाथ कर दिया जिन्होंने उन्हें बहुत सताया।+ तब वे लौटकर तेरे पास आए और तुझसे मदद की भीख माँगने लगे।+ तूने स्वर्ग से उनकी तरफ ध्यान दिया और तुझे उन पर बड़ी दया आयी। तू इसी तरह हर बार उन्हें छुड़ाता रहा।+ 29 तू उन्हें बार-बार समझाता रहा कि वे तेरे पास लौट आएँ और तेरा कानून मानें। मगर उन्होंने अकड़ दिखायी और तेरी आज्ञाओं को मानने से साफ इनकार कर दिया।+ उन्होंने तेरे उन नियमों को तोड़ दिया जिनका पालन करने से एक इंसान ज़िंदा रहता है।+ उन्होंने तुझसे मुँह फेर लिया और वे ढीठ बन गए। उन्होंने तेरी एक न सुनी। 30 मगर तूने बरसों तक सब्र रखा+ और भविष्यवक्‍ताओं को अपनी पवित्र शक्‍ति से उभारा कि वे उन्हें बार-बार चेतावनी दें। पर उन्होंने उनकी बात पर कान नहीं लगाया। आखिरकार, तूने उन्हें आस-पास के देशों के हवाले कर दिया।+ 31 मगर तेरी दया इतनी महान है कि तूने उनका नाश नहीं किया,+ न ही उन्हें लावारिस छोड़ा क्योंकि तू करुणा करनेवाला और दयालु परमेश्‍वर है।+

32 हे महान, शक्‍तिशाली और विस्मयकारी परमेश्‍वर, तू जो अपना करार पूरा करता है और अपने अटल प्यार का सबूत देता है,+ तुझसे बिनती है कि हमारे दुखों पर ध्यान दे, उन्हें हलका मत समझ। अश्‍शूर के राजाओं के दिनों से लेकर+ अब तक हम, हमारे राजा, हाकिम,+ याजक,+ भविष्यवक्‍ता+ और पुरखे, तेरे सभी लोग बहुत दुख झेलते आए हैं। 33 मगर हम पर जो भी बीती हम उसी के लायक थे, तूने हमारे साथ कोई अन्याय नहीं किया। तू हमेशा से वफादार रहा, दुष्टता तो हमने की।+ 34 हमारे राजाओं, हाकिमों, याजकों और पुरखों ने तेरा कानून नहीं माना। और-तो-और, तूने उन्हें जो आज्ञाएँ दीं और उन्हें खबरदार करने के लिए बार-बार जो हिदायतें दीं, उन पर उन्होंने ध्यान नहीं दिया। 35 तब भी नहीं जब देश पर उनका राज था और वे उस बड़े और उपजाऊ देश में रह रहे थे, जो तूने उन्हें दिया था और जब वे तेरी अपार भलाई का मज़ा ले रहे थे। उन्होंने तेरी सेवा नहीं की+ बल्कि वे बुरे-से-बुरा काम करते रहे। 36 इसलिए देख, आज हम उसी देश में गुलाम हैं+ जो तूने हमारे पुरखों को दिया था ताकि वे यहाँ की पैदावार और बेहतरीन चीज़ों का मज़ा लें। 37 हमारे पापों की वजह से हमारे देश की भरपूर उपज वे राजा खा रहे हैं, जिनके अधीन तूने हमें कर दिया है।+ वे हम पर, हमारे मवेशियों पर मनमाना राज करते हैं। हम बहुत दुखी हैं।

38 इन सब बातों की वजह से आज हम तुझसे एक करार करते हैं,+ जिसे हम लिखकर देंगे और जिस पर हमारे हाकिम, लेवी और याजक अपनी-अपनी मुहर लगाकर उसे पुख्ता करेंगे।”+

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