यूहन्ना की पहली चिट्ठी
1 हम तुम्हें उसके बारे में लिख रहे हैं जो जीवन का वचन है, जो शुरूआत से था और जिसकी हमने सुनी, जिसे हमने अपनी आँखों से देखा, जिस पर हमने गौर किया और जिसे हमने अपने हाथों से छुआ।+ 2 (हाँ, हमेशा की ज़िंदगी हम पर ज़ाहिर की गयी और हमने उसे देखा है और हम उसकी गवाही दे रहे हैं+ और तुम्हें उसके बारे में बता रहे हैं। हमेशा की यह ज़िंदगी पिता से है और हम पर ज़ाहिर की गयी थी।)+ 3 और जिसे हमने देखा और सुना है उसी के बारे में हम तुम्हें बता रहे हैं+ ताकि तुम भी हमारे साथ साझेदार बन सको। और हमारी यह साझेदारी पिता के साथ और उसके बेटे यीशु मसीह के साथ है।+ 4 और हम तुम्हें ये बातें लिख रहे हैं ताकि हमारी खुशी पूरी हो सके।
5 जो संदेश हमने उससे सुना था और तुम्हें भी सुना रहे हैं, वह यह है: परमेश्वर रौशनी है+ और उसमें ज़रा भी अंधकार नहीं। 6 अगर हम कहें, “हम उसके साथ साझेदार हैं” और फिर भी हम अंधकार में चलते रहें, तो हम झूठ बोल रहे हैं और सच्चाई के मुताबिक काम नहीं कर रहे।+ 7 लेकिन अगर हम रौशनी में चल रहे हैं जैसा वह खुद भी रौशनी में है, तो हम ज़रूर एक-दूसरे के साथ साझेदार हैं और उसके बेटे यीशु का खून हमारे सभी पापों को धोकर हमें शुद्ध करता है।+
8 अगर हम कहें, “हमारे अंदर पाप नहीं है,” तो हम खुद को धोखा दे रहे हैं+ और सच्चाई हमारे अंदर नहीं है। 9 परमेश्वर विश्वासयोग्य और सच्चा है। इसलिए अगर हम अपने पाप मान लें, तो वह हमारे पाप माफ करेगा और हमें सभी बुराइयों से शुद्ध करेगा।+ 10 अगर हम कहें, “हमने पाप नहीं किया,” तो हम उसे झूठा ठहराते हैं और उसका वचन हमारे अंदर नहीं है।
2 मेरे प्यारे बच्चो, मैं तुम्हें ये बातें इसलिए लिख रहा हूँ ताकि तुम कोई पाप न करो। और अगर कोई पाप कर बैठे, तो हमारे लिए एक मददगार* है जो पिता के पास है यानी यीशु मसीह+ जो नेक है।+ 2 वह हमारे पापों के लिए+ ऐसा बलिदान है जो परमेश्वर के साथ हमारी सुलह कराता है*+ और सिर्फ हमारे पापों के लिए नहीं बल्कि सारी दुनिया के पापों के लिए।+ 3 अगर हम उसकी आज्ञाओं को मानते रहें, तो इसी से हमें एहसास होता है कि हम उसे जानते हैं। 4 जो कहता है, “मैं उसे जान गया हूँ” और फिर भी उसकी आज्ञाएँ नहीं मानता, वह झूठा है और ऐसे इंसान में सच्चाई नहीं है। 5 मगर जो कोई उसकी आज्ञा मानता है, सचमुच उसी इंसान में परमेश्वर के लिए प्यार पूरी हद तक दिखायी देता है।+ और इसी से हम जान पाते हैं कि हम उसके साथ एकता में हैं।+ 6 जो कहता है कि मैं उसके साथ एकता में हूँ उसका फर्ज़ बनता है कि वह खुद भी वैसे ही जीए जैसे यीशु जीया था।*+
7 प्यारे भाइयो, मैं तुम्हें जो लिख रहा हूँ वह कोई नयी आज्ञा नहीं बल्कि वही पुरानी आज्ञा है जो तुम्हें पहले से मिली हुई है।+ यह पुरानी आज्ञा वह वचन है जो तुम सुन चुके हो। 8 फिर भी, मैं तुम्हें यही आज्ञा एक नयी आज्ञा की तरह लिख रहा हूँ, जो मसीह ने मानी थी और तुम भी मानते हो, क्योंकि अंधकार मिटता जा रहा है और सच्ची रौशनी अभी से चमक रही है।+
9 जो कहता है कि मैं रौशनी में हूँ, फिर भी अपने भाई से नफरत करता है+ वह अब तक अंधकार में है।+ 10 जो अपने भाई से प्यार करता है वह रौशनी में ही रहता है+ और उसके लिए ठोकर खाने की कोई वजह नहीं होती। 11 मगर जो अपने भाई से नफरत करता है वह अंधकार में है और अंधकार में चल रहा है+ और नहीं जानता कि कहाँ जा रहा है+ क्योंकि अंधकार ने उसकी आँखों को अंधा कर दिया है।
12 प्यारे बच्चो, मैं तुम्हें इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि उसके नाम की खातिर तुम्हारे पाप माफ किए गए हैं।+ 13 पिताओ, मैं तुम्हें इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि तुम यीशु को* जान गए हो जो शुरूआत से है। जवानो, मैं तुम्हें इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि तुमने शैतान* पर जीत हासिल की है।+ बच्चो, मैं तुम्हें इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि तुम पिता को जान गए हो।+ 14 पिताओ, मैं तुम्हें इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि तुम यीशु को* जान गए हो जो शुरूआत से है। जवानो, मैं तुम्हें इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि तुम बलवान हो+ और परमेश्वर का वचन तुममें कायम है+ और तुमने शैतान* पर जीत हासिल की है।+
15 तुम न तो दुनिया से प्यार करो, न ही दुनिया की चीज़ों से।+ अगर कोई दुनिया से प्यार करता है तो उसमें पिता के लिए प्यार नहीं है।+ 16 क्योंकि दुनिया में जो कुछ है यानी शरीर की ख्वाहिशें,+ आँखों की ख्वाहिशें+ और अपनी चीज़ों* का दिखावा,* वह पिता की तरफ से नहीं बल्कि दुनिया की तरफ से है। 17 इतना ही नहीं, यह दुनिया और इसकी ख्वाहिशें मिटती जा रही हैं,+ मगर जो परमेश्वर की मरज़ी पूरी करता है वह हमेशा बना रहेगा।+
18 प्यारे बच्चो, यह आखिरी घड़ी है और जैसा तुम सुन चुके हो मसीह का विरोधी आ रहा है,+ यहाँ तक कि मसीह के ऐसे कई विरोधी आ चुके हैं।+ इससे हमें पता चलता है कि यह आखिरी घड़ी है। 19 वे हमारे ही बीच से निकलकर गए थे मगर वे हमारे जैसे नहीं थे।*+ अगर वे हमारे जैसे होते तो हमारे साथ ही रहते। मगर वे निकलकर चले गए ताकि यह साफ दिखायी दे कि सब हमारे जैसे नहीं हैं।+ 20 तुम्हारा अभिषेक उस पवित्र परमेश्वर ने किया है,+ इसलिए तुम सबके पास ज्ञान है। 21 मैं तुम्हें इसलिए नहीं लिख रहा कि तुम सच्चाई नहीं जानते,+ बल्कि इसलिए कि तुम सच्चाई जानते हो और इसलिए भी कि सच्चाई से किसी तरह का झूठ नहीं निकलता।+
22 झूठा कौन है? क्या वह नहीं जो इस बात से इनकार करता है कि यीशु ही मसीह है?+ वही मसीह का विरोधी है,+ जो पिता का और बेटे का इनकार करता है। 23 जो कोई बेटे का इनकार करता है उसके साथ पिता नहीं है।+ और जो कोई बेटे को स्वीकार करता है+ उसके साथ पिता है।+ 24 जहाँ तक तुम्हारी बात है, जो तुमने शुरू में सुना था वह तुम्हारे दिलों में बना रहे।+ तुमने शुरू में जो सुना था अगर वह तुम्हारे दिलों में बना रहे, तो तुम बेटे के साथ और पिता के साथ भी एकता में रहोगे। 25 इसके अलावा, उसने खुद हमसे जिस बात का वादा किया है वह है, हमेशा की ज़िंदगी।+
26 मैं तुम्हें ये बातें इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि कुछ लोग तुम्हें गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं। 27 जहाँ तक तुम्हारी बात है, परमेश्वर ने जिस पवित्र शक्ति से तुम्हारा अभिषेक किया है+ वह तुममें बनी रहती है। अब यह ज़रूरी नहीं कि कोई और तुम्हें सिखाए। मगर परमेश्वर तुम्हारा अभिषेक करने के ज़रिए तुम्हें सब बातें सिखा रहा है।+ तुम्हारा अभिषेक सच्चा है, झूठा नहीं। और ठीक जैसे तुम्हें इस अभिषेक के ज़रिए सिखाया गया है, तुम उसके साथ एकता में बने रहो जिसने तुम्हारा अभिषेक किया है।+ 28 इसलिए प्यारे बच्चो, उसके साथ एकता में रहो ताकि जब वह प्रकट किया जाए, तो हमारे पास बेझिझक बोलने की हिम्मत हो+ और उसकी मौजूदगी के दौरान हम शर्मिंदा होकर उससे दूर न चले जाएँ। 29 अगर तुम जानते हो कि वह* नेक है, तो तुम यह भी जानते हो कि जो कोई नेक काम करता है वह परमेश्वर से पैदा हुआ है।+
3 देखो, पिता ने हमसे किस कदर प्यार किया है+ कि हमें अपने बच्चे कहलाने का सम्मान दिया है+ और हम उसके बच्चे हैं भी! यह दुनिया हमें नहीं जानती+ क्योंकि दुनिया ने पिता को नहीं जाना।+ 2 प्यारे भाइयो, अभी हम परमेश्वर के बच्चे हैं+ मगर हम भविष्य में कैसे होंगे यह अब तक ज़ाहिर नहीं किया गया है।+ हम यह ज़रूर जानते हैं कि जब भी वह प्रकट होगा तो हम उसके जैसे हो जाएँगे क्योंकि हम उसे वैसा ही देखेंगे जैसा वह है। 3 और जो कोई उस पर आशा रखता है वह खुद को शुद्ध करता है+ ठीक जैसे वह शुद्ध है।
4 हर कोई जो पाप करता रहता है, वह कानून तोड़ता है। पाप का मतलब कानून तोड़ना है। 5 तुम यह भी जानते हो कि यीशु हमारे पाप उठा ले जाने के लिए आया* था+ और उसमें कोई पाप नहीं है। 6 हर कोई जो उसके साथ एकता में रहता है वह पाप नहीं करता रहता।+ जो कोई पाप करने में लगा रहता है उसने न तो उसे देखा है, न ही उसे जाना है। 7 प्यारे बच्चो, कोई तुम्हें गुमराह न करे। जो नेक कामों में लगा रहता है वह नेक है, ठीक जैसे यीशु नेक है। 8 जो पाप करता रहता है वह शैतान* से है क्योंकि शैतान शुरू से पाप करता आया है।+ परमेश्वर के बेटे को इस मकसद से ज़ाहिर किया गया कि वह शैतान के कामों को नष्ट कर दे।+
9 हर कोई जो परमेश्वर से पैदा हुआ है वह पाप नहीं करता रहता,+ क्योंकि उसका बीज* उसमें बना रहता है और वह पाप में लगा नहीं रह सकता क्योंकि वह परमेश्वर से पैदा हुआ है।+ 10 परमेश्वर के बच्चों और शैतान के बच्चों की पहचान इस बात से होती है: हर कोई जो नेक काम नहीं करता रहता वह परमेश्वर से नहीं है, न ही वह परमेश्वर से है जो अपने भाई से प्यार नहीं करता।+ 11 इसलिए कि शुरू से तुमने यही संदेश सुना है कि हमें एक-दूसरे से प्यार करना चाहिए+ 12 और हमें कैन जैसा नहीं होना चाहिए जो शैतान* से था और जिसने अपने भाई का बेरहमी से कत्ल कर दिया।+ आखिर क्यों उसने उसका कत्ल किया? क्योंकि उसके खुद के काम दुष्ट थे+ मगर उसके भाई के काम नेक थे।+
13 भाइयो, इस बात पर ताज्जुब मत करो कि दुनिया तुमसे नफरत करती है।+ 14 हम जानते हैं कि हम मानो मरे हुए थे मगर अब ज़िंदा हो गए हैं,+ क्योंकि हम भाइयों से प्यार करते हैं।+ जो प्यार नहीं करता वह मानो मरा हुआ है।+ 15 हर कोई जो अपने भाई से नफरत करता है वह कातिल है+ और तुम जानते हो कि किसी भी कातिल को हमेशा की ज़िंदगी नहीं मिलेगी।+ 16 प्यार क्या है, यह हमने इस बात से जाना है कि यीशु मसीह ने हमारे लिए अपनी जान दे दी+ और हमारा फर्ज़ बनता है कि हम भी अपने भाइयों के लिए अपनी जान दे दें।+ 17 लेकिन अगर किसी के पास गुज़र-बसर के लिए सबकुछ है और वह देखे कि उसका भाई तंगी में है, फिर भी उस पर दया करने से इनकार कर देता है, तो यह कैसे कहा जा सकता है कि वह परमेश्वर से प्यार करता है?+ 18 प्यारे बच्चो, हमें सिर्फ बातों या ज़बान से नहीं+ बल्कि अपने कामों से दिखाना चाहिए+ कि हम सच्चे दिल से प्यार करते हैं।+
19 इस तरह हम जान लेंगे कि हम सच्चाई की तरफ हैं और अपने दिलों को यकीन दिलाएँगे* कि परमेश्वर हमसे प्यार करता है। 20 चाहे हमारा दिल हमें किसी भी बात में दोषी ठहराए, हम याद रखें कि परमेश्वर हमारे दिलों से बड़ा है और सबकुछ जानता है।+ 21 प्यारे भाइयो, अगर हमारा दिल हमें दोषी न ठहराए, तो हम परमेश्वर से बेझिझक बात कर सकते हैं।+ 22 और हम उससे चाहे जो भी माँगें वह हमें देता है+ क्योंकि हम उसकी आज्ञाएँ मानते हैं और वही करते हैं जो उसकी नज़र में अच्छा है। 23 दरअसल, उसकी यही आज्ञा है कि हम उसके बेटे यीशु मसीह के नाम पर विश्वास करें+ और एक-दूसरे से प्यार करें,+ ठीक जैसे उसने हमें आज्ञा दी है। 24 और जो उसकी आज्ञाएँ मानता है वह उसके साथ एकता में रहता है और वह भी ऐसे इंसान के साथ एकता में रहता है।+ उसने हमें जो पवित्र शक्ति दी है उससे हम जान पाते हैं कि वह हमारे साथ एकता में है।+
4 प्यारे भाइयो, ऐसे हर संदेश को सच मत मान लेना जो लगता है कि ईश्वर-प्रेरणा से मिला है।+ मगर उसे परखना कि वह सचमुच परमेश्वर की तरफ से है या नहीं,+ क्योंकि दुनिया में बहुत-से झूठे भविष्यवक्ता निकल पड़े हैं।+
2 कोई संदेश परमेश्वर की तरफ से है या नहीं, यह तुम इस तरह जान सकते हो: जो संदेश वाकई परमेश्वर की तरफ से है उसमें यह स्वीकार किया जाता है कि यीशु मसीह हाड़-माँस का इंसान बनकर आया था,+ 3 मगर ऐसा हर संदेश जिसमें यीशु के बारे में यह स्वीकार नहीं किया जाता, वह परमेश्वर की तरफ से नहीं है।+ इसके बजाय, वह संदेश मसीह के विरोधी की तरफ से है। तुमने सुना था कि मसीह का विरोधी यह संदेश सुनाएगा+ और अब वाकई यह संदेश दुनिया में सुनाया जा रहा है।+
4 प्यारे बच्चो, तुम परमेश्वर से हो और तुमने इन लोगों पर जीत हासिल की है+ क्योंकि परमेश्वर जो तुम्हारे साथ एकता में है,+ वह शैतान से बड़ा है जो दुनिया के साथ एकता में है।+ 5 ये लोग दुनिया से हैं।+ इसलिए वे वही बातें कहते हैं जो दुनिया की तरफ से हैं और दुनिया उनकी सुनती है।+ 6 हम परमेश्वर से हैं। जो कोई परमेश्वर को जानता है वह हमारी सुनता है।+ जो परमेश्वर से नहीं है वह हमारी नहीं सुनता।+ इस तरह हम पहचान पाते हैं कि कौन-सा संदेश ईश्वर-प्रेरणा से है और कौन-सा संदेश झूठा है।+
7 प्यारे भाइयो, हम एक-दूसरे से प्यार करते रहें+ क्योंकि प्यार परमेश्वर से है और हर कोई जो प्यार करता है वह परमेश्वर से पैदा हुआ है और परमेश्वर को जानता है।+ 8 जो प्यार नहीं करता उसने परमेश्वर को नहीं जाना क्योंकि परमेश्वर प्यार है।+ 9 हमारे मामले में परमेश्वर का प्यार इस बात से ज़ाहिर हुआ कि परमेश्वर ने अपना इकलौता बेटा+ दुनिया में भेजा ताकि हम उसके ज़रिए जीवन पाएँ।+ 10 ऐसा नहीं कि हमने परमेश्वर से प्यार किया था और बदले में उसने हमसे प्यार किया, बल्कि उसी ने हमसे प्यार किया और अपने बेटे को भेजा ताकि वह हमारे पापों के लिए अपना बलिदान देकर परमेश्वर से हमारी सुलह कराए।*+
11 प्यारे भाइयो, जब परमेश्वर ने हमसे इस कदर प्यार किया है, तो हमारा भी फर्ज़ बनता है कि हम एक-दूसरे से प्यार करें।+ 12 किसी ने परमेश्वर को कभी नहीं देखा।+ अगर हम एक-दूसरे से प्यार करते रहें, तो परमेश्वर हमारे साथ रहता है और हमारे अंदर उसका प्यार पूरी हद तक दिखायी देता है।+ 13 उसने हमें अपनी पवित्र शक्ति दी है, इसलिए हम जानते हैं कि हम उसके साथ एकता में हैं और वह हमारे साथ एकता में है। 14 इसके अलावा, हमने खुद देखा है और यह गवाही भी दे रहे हैं कि पिता ने अपने बेटे को दुनिया का उद्धारकर्ता बनाकर भेजा।+ 15 जो इंसान स्वीकार करता है कि यीशु परमेश्वर का बेटा है,+ परमेश्वर उसके साथ एकता में रहता है और वह परमेश्वर के साथ एकता में रहता है।+ 16 हम जान गए हैं कि परमेश्वर हमसे कितना प्यार करता है और हमें इसका पूरा यकीन है।+
परमेश्वर प्यार है+ और जो प्यार करता रहता है वह परमेश्वर के साथ एकता में रहता है और परमेश्वर उसके साथ एकता में रहता है।+ 17 इस तरह हमसे पूरी हद तक प्यार किया गया है ताकि न्याय के दिन हममें बेझिझक बोलने की हिम्मत हो*+ क्योंकि इस दुनिया में हम ठीक वैसे हैं जैसे मसीह है। 18 प्यार में डर नहीं होता+ बल्कि जो प्यार पूरा है वह डर को दूर कर देता है* क्योंकि डर हमें रोकता है। दरअसल, जो डरता है उसका प्यार अधूरा है।+ 19 हम इसलिए प्यार करते हैं क्योंकि पहले परमेश्वर ने हमसे प्यार किया।+
20 अगर कोई कहता है, “मैं परमेश्वर से प्यार करता हूँ,” मगर अपने भाई से नफरत करता है, तो वह झूठा है।+ इसलिए कि जो अपने भाई से प्यार नहीं करता+ जिसे उसने देखा है, वह परमेश्वर से प्यार नहीं कर सकता जिसे उसने नहीं देखा।+ 21 और हमें उससे यह आज्ञा मिली है कि जो परमेश्वर से प्यार करता है उसे अपने भाई से भी प्यार करना चाहिए।+
5 हर कोई जो विश्वास करता है कि यीशु ही मसीह है, वह परमेश्वर से पैदा हुआ है।+ और जो कोई जीवन देनेवाले परमेश्वर से प्यार करता है, वह उसके बच्चों से भी प्यार करता है। 2 जब हम परमेश्वर से प्यार करते हैं और उसकी आज्ञाएँ मानते हैं तो इसी से हम जानते हैं कि हम परमेश्वर के बच्चों से प्यार करते हैं।+ 3 परमेश्वर से प्यार करने का मतलब यही है कि हम उसकी आज्ञाओं पर चलें+ और उसकी आज्ञाएँ हम पर बोझ नहीं हैं,+ 4 क्योंकि हर कोई* जो परमेश्वर से पैदा हुआ है वह दुनिया पर जीत हासिल करता है।+ और हमने दुनिया पर जो जीत हासिल की है, वह अपने विश्वास की बदौलत की है।+
5 कौन दुनिया पर जीत हासिल कर सकता है?+ क्या वही नहीं जिसमें विश्वास हो कि यीशु, परमेश्वर का बेटा है?+ 6 यही है जो पानी और खून के ज़रिए आया, यानी यीशु मसीह। वह सिर्फ पानी के साथ नहीं,+ मगर पानी और खून के साथ आया।+ पवित्र शक्ति गवाही दे रही है+ क्योंकि पवित्र शक्ति सच्ची गवाही देती है। 7 इसलिए कि गवाही देनेवाले तीन हैं, 8 पवित्र शक्ति,+ पानी+ और खून+ और ये तीनों एक ही बात पर सहमत हैं।
9 अगर हम इंसानों की गवाही पर यकीन करते हैं, तो परमेश्वर की गवाही तो उससे भी बढ़कर है। क्योंकि परमेश्वर ने खुद अपने बेटे के बारे में गवाही दी है। 10 जो इंसान परमेश्वर के बेटे पर विश्वास करता है उसने अपने दिल में उस गवाही को स्वीकार किया है जो परमेश्वर ने उसे दी है। जो इंसान परमेश्वर पर विश्वास नहीं करता, उसने उसे झूठा ठहराया है+ क्योंकि उसने परमेश्वर की उस गवाही पर विश्वास नहीं किया जो उसने अपने बेटे के बारे में दी है। 11 और वह गवाही यह है कि परमेश्वर ने हमें हमेशा की ज़िंदगी दी है+ और यह ज़िंदगी उसके बेटे के ज़रिए मिलती है।+ 12 जो बेटे को स्वीकार करता है उसके पास यह ज़िंदगी है। जो परमेश्वर के बेटे को स्वीकार नहीं करता, उसके पास यह ज़िंदगी नहीं है।+
13 मैं तुम्हें ये बातें इसलिए लिख रहा हूँ ताकि तुम जानो कि तुम्हारे पास हमेशा की ज़िंदगी है,+ क्योंकि तुम परमेश्वर के बेटे के नाम पर विश्वास करते हो।+ 14 हमें परमेश्वर पर भरोसा है*+ कि हम उसकी मरज़ी के मुताबिक चाहे जो भी माँगें वह हमारी सुनता है।+ 15 हम जानते हैं कि हम चाहे जो भी माँगें वह हमारी सुनता है, इसलिए हमें पूरा यकीन है कि हम उससे जो भी माँगते हैं वह हमें ज़रूर देगा।+
16 अगर कोई अपने भाई को ऐसा पाप करते हुए देख लेता है जिसका अंजाम मौत नहीं है, तो वह अपने भाई के लिए प्रार्थना करे और परमेश्वर उसे जीवन देगा,+ हाँ उन लोगों को जीवन देगा जिन्होंने ऐसा पाप नहीं किया जिसका अंजाम मौत है। मगर ऐसा पाप भी है जिसका अंजाम मौत है।+ मैं ऐसा पाप करनेवाले के बारे में प्रार्थना करने के लिए नहीं कहता। 17 हर बुरा काम पाप है।+ मगर ऐसा पाप भी है जिसका अंजाम मौत नहीं है।
18 हम जानते हैं कि हर वह इंसान जो परमेश्वर से पैदा हुआ है वह पाप करने में नहीं लगा रहता, मगर ऐसे इंसान की वह* हिफाज़त करता है जो परमेश्वर से पैदा हुआ है और शैतान* उस पर कब्ज़ा नहीं कर सकता।+ 19 हम जानते हैं कि हम परमेश्वर से हैं, मगर सारी दुनिया शैतान* के कब्ज़े में पड़ी हुई है।+ 20 और हम यह भी जानते हैं कि परमेश्वर का बेटा आया है+ और उसने हमें अंदरूनी समझ* दी है ताकि जो सच्चा है हम उसके बारे में ज्ञान ले सकें। और हम उस सच्चे परमेश्वर के बेटे यीशु मसीह के ज़रिए परमेश्वर के साथ एकता में हैं।+ वही सच्चा परमेश्वर है और हमेशा की ज़िंदगी वही देता है।+ 21 प्यारे बच्चो, खुद को मूरतों से बचाए रखो।+
या “फरियाद करनेवाला।”
या “जो प्रायश्चित का बलिदान है; जो परमेश्वर को खुश करता है।”
शा., “वैसे ही चलता रहे जैसे वह चला था।”
शा., “उसे।”
शा., “उस दुष्ट।”
शा., “उसे।”
शा., “उस दुष्ट।”
या “जीवन के साधनों।”
या “के बारे में डींग मारना।”
या “हमारे लोग नहीं थे।”
यानी यीशु।
शा., “प्रकट किया गया।”
शा., “इबलीस।” शब्दावली देखें।
यानी ऐसा बीज जो फल पैदा कर सकता है।
शा., “उस दुष्ट।”
या “कायल करेंगे।”
या “प्रायश्चित का बलिदान दे; जो परमेश्वर को खुश करता है।”
या “का भरोसा हो।”
या “को भगा देता है।”
शा., “हर वह चीज़।”
या “बेझिझक बोलने की हिम्मत है।”
यानी परमेश्वर का बेटा यीशु मसीह।
शा., “वह दुष्ट।”
शा., “उस दुष्ट।”
शा., “समझने की काबिलीयत; दिमागी काबिलीयत।”