श्रेष्ठगीत
1 गीतों में सबसे सुंदर गीत, जिसे सुलैमान ने लिखा।+
3 तेरे इत्र की महक कितनी मीठी लगती है,+
तेरा नाम खुशबूदार तेल जैसा है+ जो सिर पर उँडेला गया है,
तभी तो लड़कियाँ तुझ पर फिदा हैं।
4 राजा मुझे अपने अंदरवाले कमरे में ले आया है!
मुझे यहाँ से ले जा,* हम कहीं दूर भाग चलेंगे,
साथ मिलकर खुशियाँ मनाएँगे,
तेरे प्यार* की बातें करेंगे,* वह प्यार जो दाख-मदिरा से भी अच्छा है।
तभी तो वे* तुझ पर फिदा हैं।
5 हे यरूशलेम की बेटियो,
मैं केदार के तंबुओं+ की तरह साँवली* हूँ,
पर सुलैमान के तंबू के कपड़े+ की तरह सलोनी हूँ।
6 मेरे साँवलेपन को यूँ घूर-घूर के न देखो,
सूरज ने मुझे झुलसा दिया है।
दरअसल मेरे भाई मुझसे नाराज़ थे,
उन्होंने मुझे अंगूरों के बाग की रखवाली का काम दिया था,
इसलिए मैं अपने बाग का ध्यान नहीं रख पायी।
भरी दोपहरी में उन्हें कहाँ बिठाता है?
बता ताकि मैं तेरे साथियों के झुंड के बीच,
मातम का ओढ़ना पहने भटकती न फिरूँ।”
8 “ऐ लड़कियों में सबसे खूबसूरत लड़की,
तू उसे ढूँढ़ना चाहती है तो जा,
उसके झुंड के पैरों के निशान के पीछे-पीछे जा
और चरवाहों के तंबू के पास अपनी नन्हीं बकरियाँ चरा।”
9 “ऐ मेरी जान, तेरी तारीफ में मैं क्या कहूँ!
तू उस* सुंदर घोड़ी जैसी है, जो फिरौन के रथ की शान बढ़ाती है।+
11 हम तेरे लिए सोने के गहने,* चाँदी से जड़े गहने बनवाएँगे।”
15 “ओ मेरी सजनी, तू कितनी खूबसूरत है,
तेरी खूबसूरती का जवाब नहीं!
फाख्ते जैसी तेरी आँखें कितनी प्यारी हैं।”+
16 “ओ मेरे साजन, तू भी सुंदर* है और तेरा साथ मुझे प्यारा लगता है।+
देख, ये हरे-हरे पत्ते हमारी सेज हैं,
3 “जवान लड़कों में मेरा साजन ऐसा है,
जैसे जंगल के पेड़ों में सेब का पेड़।
उसकी छाँव में कितना सुख मिलता है,
उसके फल कितने रसीले हैं।
4 वह मुझे दावतवाले घर में ले आया
और उसने मुझ पर प्यार का झंडा फहराया।
5 मुझे किशमिश की टिकिया दो कि मैं तरो-ताज़ा हो जाऊँ,+
सेब खिलाओ कि मुझे ताकत मिले,
क्योंकि मैं उसके प्यार में दीवानी हो गयी हूँ।
जब तक प्यार खुद मेरे अंदर न जागे, तुम उसे जगाने की कोशिश नहीं करोगी।+
8 मेरा साजन आ रहा है! मुझे उसकी आवाज़ सुनायी दे रही है!
वह देखो, वह रहा!
कैसे पहाड़ों पर चढ़ता हुआ, पहाड़ियों को फाँदता हुआ चला आ रहा है!
9 मेरा साजन चिकारे जैसा, जवान हिरन जैसा है।+
देखो, वह दीवार के पीछे खड़ा है,
खिड़की से झाँक रहा है,
झरोखे से ताक रहा है।
10 मेरा साजन मुझे बुला रहा है,
‘ओ मेरी सजनी, मेरी सुंदरी,
चल, मेरे साथ चल!
बादल बरसकर चले गए।
ओ मेरी सजनी, मेरी सुंदरी,
चल, मेरे साथ चल!
14 ओ मेरी फाख्ता, चट्टानों में छिपी मत रह,+
खड़ी चट्टानों की दरार से बाहर आ,
अपनी मीठी आवाज़ मुझे सुना,+
अपना खूबसूरत चेहरा दिखा।’”+
15 “जा, छोटी-छोटी लोमड़ियाँ पकड़,
कहीं वे हमारे अंगूरों के बाग तहस-नहस न कर दें,
अभी-अभी तो उनमें फूल आए हैं।”
16 “मेरा साजन मेरा है और मैं उसकी हूँ।+
वह मैदान में भेड़ें चरा रहा है+ जहाँ सोसन* के फूल खिले हैं।+
17 इससे पहले कि ठंडी-ठंडी हवा बहने लगे और छाया गायब होने लगे,
लौट आ मेरे साजन, लौट आ।
हमारे बीच खड़े इन पहाड़ों* को फाँदकर जल्दी आ,
मैं उसके लिए तड़प उठी, लेकिन वह मेरे पास नहीं था।+
मैंने अपने प्यार को बहुत ढूँढ़ा, पर वह मुझे नहीं मिला।
3 रास्ते में मुझे शहर के पहरेदार मिले जो गश्त लगा रहे थे।+
मैंने पूछा, ‘क्या तुमने मेरे साजन को कहीं देखा है?’
4 मैं उनसे थोड़ी ही दूर गयी थी
कि तभी वह मुझे मिल गया और मैं उससे लिपट गयी।
मैंने उसे तब तक नहीं जाने दिया,
जब तक मैं उसे अपनी माँ के घर,
5 हे यरूशलेम की बेटियो,
तुम्हें चिकारे और मैदान की हिरनियों की कसम,
जब तक प्यार खुद मेरे अंदर न जागे, तुम उसे जगाने की कोशिश नहीं करोगी।”+
6 “वीराने से धुएँ के खंभे जैसा यह क्या आ रहा है?
क्या है यह जिससे गंधरस, लोबान
और व्यापारी की हर खुशबूदार बुकनी की महक आ रही है?”+
7 “यह तो सुलैमान का आसन है!
देखो, इसराएल के योद्धाओं में से 60 वीर योद्धा उसके साथ चले आ रहे हैं।+
8 सब-के-सब तलवार लिए हैं,
युद्ध की कला में माहिर हैं,
हरेक की कमर पर तलवार बँधी है
कि रात में किसी भी खतरे का सामना कर सके।”
यरूशलेम की बेटियों ने बड़े प्यार से इसे अंदर से सजाया है।”
11 “सिय्योन की बेटियो, जाओ!
जाकर राजा सुलैमान को देखो!
उसने वह ताज* पहना है,
जो उसकी माँ+ ने उसकी शादी पर बनवाया था,
हाँ, उस दिन जिस दिन राजा का दिल बहुत खुश था।”
4 “ओ मेरी सजनी, तू कितनी खूबसूरत है,
तेरी खूबसूरती का जवाब नहीं!
घूँघट से झाँकती तेरी आँखें फाख्ते जैसी हैं।
तेरी ज़ुल्फें गिलाद के पहाड़ों से उतरती बकरियों के झुंड जैसी हैं।+
2 तेरे दाँत उन उजली भेड़ों के समान हैं,
जिनका ऊन अभी-अभी कतरा गया है
और जो नहाकर पानी से बाहर आयी हैं।
वे सभी एक सीध में हैं, हरेक का जोड़ीदार है,
उनमें से कोई भी छूटा नहीं है।
3 तेरे होंठ सुर्ख लाल धागे जैसे हैं,
तेरी बातें मन को मीठी लगती हैं,
घूँघट में तेरे गालों* की चमक,
अनार की फाँक जैसी है।
4 तेरी गरदन+ दाविद की सुंदर मीनार जैसी है,+
जो पत्थरों के रद्दे लगाकर खड़ी की गयी है,
उस पर हज़ार ढालें, हाँ, योद्धाओं की गोल-गोल ढालें सजी हैं।+
5 तेरे स्तन हिरन के दो बच्चों जैसे हैं,
हाँ, चिकारे के जुड़वाँ बच्चों जैसे,+
जो सोसन* के फूलों के बीच चरते हैं।”
6 “इससे पहले कि ठंडी-ठंडी हवा बहने लगे और छाया गायब होने लगे,
मैं गंधरस के पहाड़ की ओर,
लोबान की पहाड़ी की ओर चली जाऊँगी।”+
हम अमाना* की चोटी से उतरकर,
सनीर से, हाँ, हेरमोन की ऊँचाई से+ उतरकर,
शेरों की माँद और चीतों के पहाड़ों से दूर चले जाएँ।
9 हे मेरी बहन, मेरी दुल्हन, तूने मेरा दिल चुरा लिया,+
तेरी एक ही नज़र ने इस दिल को दीवाना बना दिया।
तेरे गले के हार की एक झलक ही मेरी धड़कनें तेज़ कर देती है।
10 हे मेरी बहन, मेरी दुल्हन, तेरा प्यार* लाजवाब है,+
तेरे कपड़ों की खुशबू लबानोन की खुशबू जैसी है।
12 मेरी बहन एक बंद बगिया जैसी है,
मेरी दुल्हन, बंद बगिया और ढके हुए सोते जैसी है।
13 तेरी डालियाँ* अनार का बाग हैं,
जहाँ अच्छे-अच्छे फल लगे हैं,
जहाँ मेंहदी और जटामाँसी के पौधे,
14 हाँ, जटामाँसी,+ केसर, वच,*+ दालचीनी,+
लोबान के अलग-अलग पेड़, गंधरस, अगर+
और बढ़िया किस्म के खुशबूदार पौधे लगे हैं।
16 हे उत्तर की हवा उठ!
हे दक्षिण की हवा आ!
हौले-हौले मेरी बगिया से होकर जा
कि इसकी महक चारों तरफ फैल जाए।”
“मेरा साजन अपनी बगिया में आए
और बढ़िया-बढ़िया फल खाए।”
मैंने अपना गंधरस और अपने खुशबूदार पौधे ले लिए हैं,+
मधुमक्खी का छत्ता और उसका शहद खा लिया है,
अपनी दाख-मदिरा और दूध पी लिया है।”+
“ऐ प्यारे दोस्तो, जी-भरकर खाओ-पीओ!
एक-दूसरे के प्यार में मदहोश हो जाओ।”+
2 “मैं सो रही थी पर मेरा मन जाग रहा था।+
तभी मेरे साजन के दस्तक देने की आवाज़ आयी!
‘ओ मेरी बहन, मेरी सजनी,
मेरी फाख्ता, मेरी बेदाग महबूबा,
मेरे लिए दरवाज़ा खोल!
ओस से मेरा सिर भीगा हुआ है,
रात की नमी से मेरी लटें तर हैं।’+
3 मैं कपड़े बदल चुकी हूँ,
अब इन्हें फिर कैसे पहनूँ?
मैं अपने पैर धो चुकी हूँ,
अब इन्हें फिर मैला कैसे करूँ?
4 मेरे साजन ने दरवाज़े के छेद से अपना हाथ वापस खींच लिया।
मेरा दिल उससे मिलने के लिए तड़प उठा!
5 मैं अपने साजन के लिए दरवाज़ा खोलने उठी,
मेरे हाथों से गंधरस टपक रहा था,
मेरी उँगलियाँ गंधरस के तेल से तर थीं,
और दरवाज़े की चिटकनी उससे चिपचिपी हो गयी।
6 मैंने अपने साजन के लिए दरवाज़ा खोला,
पर वह वहाँ नहीं था, वह जा चुका था,
उसके जाने का मुझे बहुत दुख हुआ।*
मैंने उसे बहुत ढूँढ़ा, पर वह न मिला,+
आवाज़ लगायी, पर कोई जवाब नहीं आया।
7 रास्ते में मुझे शहर के पहरेदार मिले जो गश्त लगा रहे थे।
उन्होंने मुझे मारा, मुझे घायल किया,
शहरपनाह के उन पहरेदारों ने मेरा ओढ़ना छीन लिया।
8 हे यरूशलेम की बेटियो, कसम खाओ,
अगर मेरा साजन तुम्हें कहीं मिले, तो तुम उससे कहोगी
कि मैं उसके प्यार में दीवानी हूँ।”
9 “ऐ लड़कियों में सबसे खूबसूरत लड़की,
बता, तेरे साजन में ऐसी क्या बात है जो दूसरों में नहीं?
उसमें ऐसा क्या है जो तू हमें यह शपथ खिला रही है?”
10 “मेरा साजन सुंदर-सजीला है, उसका रंग गुलाबी है,
दस हज़ार आदमियों में भी वह सबसे अलग दिखता है।
11 उसका सिर सोने जैसा है, खरे सोने जैसा,
उसकी लटें खजूर की डाली की तरह लहराती हैं,*
उसके बालों का रंग कौवे जैसा काला है।
12 उसकी आँखें ऐसी हैं,
जैसे नदी किनारे बैठी फाख्ता दूध में नहा रही हो
और मानो तालाब* के किनारे बैठी हो।
14 उसकी गोल-गोल उँगलियाँ सोने जैसी हैं,
जिनके छोर पर करकेटक रत्न जड़े हैं।
पेट चमचमाते हाथी-दाँत जैसा है जिसमें नीलम जड़े हैं।
15 उसके पैर संगमरमर के खंभे जैसे हैं, जिन्हें बढ़िया सोने की चौकियों में बिठाया गया है।
उसका रूप लबानोन-सा दिलकश है,
उसका कद ऊँचे-ऊँचे देवदारों जैसा है।+
यरूशलेम की बेटियो, मेरा साजन ऐसा ही है,
हाँ, ऐसा है मेरा महबूब।”
6 “ऐ लड़कियों में सबसे खूबसूरत लड़की,
तेरा साजन कहाँ गया?
वह किस रास्ते गया है?
चलो, हम मिलकर उसे ढूँढ़ें।”
3 मेरा साजन मेरा है और मैं अपने साजन की हूँ।+
वह मैदान में भेड़ें चरा रहा है जहाँ सोसन* के फूल खिले हैं।”+
4 “ऐ मेरी जान,+ तू तिरसा*+ जैसी सुंदर
और यरूशलेम जैसी प्यारी है,+
तू झंडे फहराती हुई सेना जैसी है,
जिसे देखकर किसी के भी होश उड़ जाएँ।+
तेरी ज़ुल्फें गिलाद के पहाड़ों से उतरती बकरियों के झुंड जैसी हैं।+
6 तेरे दाँत उन उजली भेड़ों के समान हैं,
जो नहाकर पानी से बाहर आयी हैं।
वे सभी एक सीध में हैं, हरेक का जोड़ीदार है,
उनमें से कोई भी छूटा नहीं है।
8 60 रानियों, 80 उप-पत्नियों
और बेहिसाब जवान लड़कियों में,+
9 वही मेरी फाख्ता,+ मेरी बेदाग महबूबा है,
वह अपनी माँ की सबसे प्यारी बिटिया,
अपनी जन्म देनेवाली की लाडली है।
उसे देखकर लड़कियाँ उसे धन्य कहती हैं,
रानियाँ और उप-पत्नियाँ उसकी तारीफ करती हैं।
10 ‘यह कौन है जो सुबह की छटा बिखेर रही है,
पूनम के चाँद-सी खिल रही है,
सूरज की तरह उजली है?
यह कौन है जो झंडे फहराती हुई सेना जैसी है,
जिसे देखकर किसी के भी होश उड़ जाएँ?’”+
11 “मैं नीचे फलों के बाग में गयी+
कि देखूँ, घाटी के पेड़ों पर फूल-पत्ते आए हैं या नहीं,
अंगूर की बेलों पर कोपलें
और अनार के पेड़ों पर फूल खिले हैं या नहीं।
12 इन्हें देखने की मेरी ख्वाहिश,
कब मुझे अपने भले लोगों के शाही रथ की ओर ले गयी,
मुझे पता ही नहीं चला।”
13 “हे शूलेम्मिन, लौट आ!
लौट आ कि हम तुझे जी-भरकर देख सकें!”
“भला इस शूलेम्मिन में तुम्हें ऐसा क्या नज़र आया?”+
“वह ऐसी है जैसे महनैम* का नाच हो।”
7 “ऐ भली लड़की,
जूतियों में तेरे ये पाँव कितने हसीन हैं!
तेरी सुडौल जाँघें गहनों जैसी सुंदर हैं,
मानो किसी कारीगर ने इन्हें तराशा हो।
2 तेरी नाभि गोल कटोरे जैसी है,
यह हमेशा मसालेवाली दाख-मदिरा से छलकती रहे।
तेरा पेट ऐसा है मानो गेहूँ का ढेर लगा हो,
जिसके इर्द-गिर्द सोसन* के फूल बिछे हों।
4 तेरी गरदन+ हाथी-दाँत से बनी मीनार है,+
तेरी आँखें+ हेशबोन+ की झील जैसी हैं,
जो बत-रब्बीम के फाटक के पास है।
तेरी नाक लबानोन की मीनार जैसी है,
जो दमिश्क की ओर मुँह किए है।
तेरी लहराती ज़ुल्फों पर राजा फिदा है।*
6 ऐ मेरी जान, तू कितनी सुंदर है, मन मोह लेनेवाली है,
तू मुझे बहुत खुशी देती है!
8 मैंने कहा, ‘मैं खजूर के पेड़ पर चढ़ूँगा
और उसके फल तोड़ूँगा।’
तेरे स्तन अंगूर के गुच्छों की तरह बने रहें,
तेरी साँसें सेब की तरह महकती रहें
9 और तेरा मुँह बढ़िया दाख-मदिरा से छलकता रहे।”
“यह मेरे साजन के होंठों को छूती हुई,
उसके गले से आहिस्ता-आहिस्ता नीचे उतरे।
12 सवेरे-सवेरे अंगूरों के बाग में चलें,
देखें कि उसकी बेलों पर कोपलें आयी हैं या नहीं,
उस पर फूल खिले हैं+ या नहीं,
अनार की डालियों पर कलियाँ फूटी हैं या नहीं।+
वहाँ मैं तुझको अपना प्यार जताऊँगी।+
ओ मेरे साजन, मैंने तेरे लिए ताज़े
और सुखाए गए* फल सँभालकर रखे हैं।
8 काश! तू मेरे भाई जैसा होता,
काश! तूने मेरी ही माँ का दूध पीया होता,
फिर तो बाहर मिलने पर मैं तुझे चूम लेती+
और कोई मुझे नीची नज़रों से न देखता।
मैं तुझे मसालेवाली दाख-मदिरा देती,
अनार का ताज़ा रस पिलाती।
4 हे यरूशलेम की बेटियो, कसम खाओ,
जब तक प्यार खुद मेरे अंदर न जागे, तुम उसे जगाने की कोशिश नहीं करोगी।”+
5 “यह कौन है जो अपने साजन की बाँहों में बाँहें डाले वीराने से चली आ रही है?”
“सेब के पेड़ के नीचे मैंने तुझे जगाया था,
उसी जगह जहाँ तेरी माँ को प्रसव-पीड़ा उठी थी
और जहाँ उस पीड़ा में उसने तुझे जन्म दिया था।
6 मुझे मुहर की तरह अपने दिल पर लगा ले,
अपने बाज़ू पर मुझे मुहर कर ले।
अगर कोई अपनी सारी दौलत देकर इसे खरीदना चाहे,
तो भी वह दौलत* ठुकरा दी जाएगी।”
जिस दिन कोई उसका हाथ माँगने आएगा,
उस दिन हम अपनी बहन के लिए क्या करेंगे?”
9 “अगर वह एक दीवार होगी,
तो हम उसकी मुँडेर को चाँदी से सजाएँगे।
लेकिन अगर वह एक दरवाज़ा होगी,
तो हम देवदार का तख्ता ठोंककर उसे बंद कर देंगे।”
10 “मैं एक दीवार हूँ
और मेरे स्तन मीनारों के समान हैं।
इसलिए मेरा साजन देख सकता है कि मुझे मन का सुकून है।
11 बाल-हमोन में सुलैमान का अंगूरों का बाग है,+
जिसकी देखभाल का ज़िम्मा उसने रखवालों को दिया है
और हर रखवाला फलों के लिए उसे चाँदी के एक हज़ार टुकड़े देता है।
12 ऐ सुलैमान, तेरे चाँदी के हज़ार टुकड़े* तुझे मुबारक,
तेरे रखवालों को उनकी मेहनत के दो सौ टुकड़े मुबारक,
पर मैं अपने अंगूरों के बाग से खुश हूँ।”
मैं भी तेरी आवाज़ सुनना चाहता हूँ।”+
14 “मेरे साजन, जल्दी आ,
चिकारे की तरह, जवान हिरन की तरह फुर्ती कर,+
खुशबूदार पौधों के पहाड़ों को फाँदते हुए चला आ।”
या “प्यार जताना।”
शा., “मुझे खींच ले।”
या “प्यार जताने।”
या “की तारीफ करेंगे।”
यानी लड़कियाँ।
शा., “काली।”
या “मेरी।”
या शायद, “लटों के बीच।”
या “का ताज।”
शा., “जटामाँसी।”
या “सजीला।”
या “शानदार घर।”
शा., “केसर।”
या “लिली।”
या “लिली।”
या “बरसात।”
या “लिली।”
या शायद, “पहाड़ों के दर्रों।” या “बेतेर के पहाड़ों।”
या “अंदरवाले कमरे।”
या “फूलों का ताज।”
या “कनपटियों।”
या “लिली।”
या “पूर्वी लबानोन पर्वतमाला।”
या “प्यार जताना।”
या “प्यार जताना।”
या शायद, “त्वचा।”
एक खुशबूदार नरकट।
या शायद, “जब वह बोला, तो मेरी जान ही निकल गयी।”
या शायद, “खजूर के गुच्छे की तरह हैं।”
या शायद, “फव्वारे।”
या “लिली।”
या “लिली।”
या “लिली।”
या “मनभावनी नगरी।”
या “कनपटियों।”
या “दो डेरों।”
या “लिली।”
शा., “तेरे सिर की।”
या “में राजा कैद हो गया है।”
शा., “पुराने।”
शा., “सच्ची भक्ति।”
या “शीओल।” शब्दावली देखें।
“याह” यहोवा नाम का छोटा रूप है।
या शायद, “वह आदमी।”
शा., “तेरे हज़ार।”