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पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद
एस्तेर

एस्तेर

1 यह उन दिनों की बात है जब राजा अहश-वेरोश* हिन्दुस्तान से लेकर इथियोपिया* तक, 127 ज़िलों पर राज कर रहा था।+ 2 उस वक्‍त वह शूशन*+ नाम के किले* से राज कर रहा था। 3 अपने राज के तीसरे साल में उसने अपने सभी हाकिमों और सेवकों के लिए एक शाही दावत रखी। फारस+ और मादै+ के सेनापति, बड़े-बड़े अधिकारी और सभी ज़िलों के राज्यपाल उसके सामने आए। 4 राजा उन्हें 180 दिन तक अपने राज्य की सारी दौलत, ताकत और शानो-शौकत दिखाता रहा। 5 इन दिनों के पूरे होने पर, शूशन* नाम के किले* में छोटे-बड़े जितने भी लोग हाज़िर थे, उन सबके लिए राजा ने एक दावत रखी* जो सात दिन तक चली। यह दावत राजा के महल के आँगन में रखी गयी। 6 पूरा आँगन मलमल के कपड़े, बढ़िया सूत और नीले रंग के परदों से सजा था। परदों पर सूती फीते लगे थे और इन फीतों को बैंजनी रंग की ऊनी रस्सी में पिरोया गया था। यह रस्सी संगमरमर के खंभों पर जड़े चाँदी के छल्लों से बँधी थी। फर्श नीललोहित पत्थरों, सफेद और काले संगमरमर और मोतियों से जड़ा था और उस पर सोने-चाँदी के दीवान रखे थे।

7 मेहमानों को सोने के प्यालों में दाख-मदिरा पेश की गयी, हर प्याला अपने आप में अनोखा था। दाख-मदिरा पानी की तरह बह रही थी, इतनी दाख-मदिरा सिर्फ राजा ही दे सकता था। 8 दस्तूर के मुताबिक शराब पी जा रही थी लेकिन कोई किसी को पीने के लिए मजबूर नहीं कर रहा था,* क्योंकि राजा ने महल के अधिकारियों को हुक्म दिया था कि हर मेहमान को यह छूट दी जाए कि वह अपने हिसाब से पीए।

9 रानी वशती+ ने भी राजा अहश-वेरोश के शाही भवन* में औरतों के लिए एक दावत रखी थी।

10 सातवें दिन जब राजा दाख-मदिरा पीकर बहुत खुश था, तो उसने अपने सात दरबारियों को यानी महूमान, बिजता, हरबोना,+ बिगता, अबगता, जेतेर और करकस को एक हुक्म दिया। ये दरबारी राजा की सेवा के लिए हर वक्‍त उसके सामने हाज़िर रहते थे। 11 राजा ने उन्हें यह कहकर रानी वशती के पास भेजा कि रानी अपनी शाही ओढ़नी पहनकर राजा के सामने आए ताकि सब लोग और हाकिम उसकी खूबसूरती निहार सकें। रानी सचमुच बहुत खूबसूरत थी। 12 लेकिन वह राजा के सामने आने से इनकार करती रही और उसने राजा का हुक्म नहीं माना जो दरबारी लाए थे। इस पर राजा को बहुत गुस्सा आया और उसका खून खौल उठा।

13 राजा ने अपने बड़े-बड़े ज्ञानियों से सलाह-मशविरा किया, जो बीते समय में हुई इस तरह की घटनाओं की अच्छी समझ रखते थे। (इस तरह राजा अपने मसले उन लोगों के सामने रखता था जो कानून और मुकदमों के अच्छे जानकार थे। 14 इनमें से राजा के सबसे करीबी सलाहकार थे करशना, शेतार, अदमाता, तरशीश, मेरेस, मर्सना और ममूकान। फारस और मादै के ये सात हाकिम+ सबसे ऊँचे ओहदे पर थे और हर वक्‍त राजा के सामने हाज़िर रहते थे)। 15 राजा ने उनसे कहा, “रानी वशती ने राजा अहश-वेरोश का हुक्म नहीं माना जो उसके दरबारी उसके पास ले गए थे। अब बताओ, कानून के मुताबिक उसके साथ क्या किया जाए?”

16 तब ममूकान ने राजा और हाकिमों के सामने कहा, “रानी वशती ने सिर्फ राजा अहश-वेरोश के खिलाफ अपराध नहीं किया+ बल्कि सभी ज़िलों के हाकिमों और लोगों के खिलाफ अपराध किया है। 17 क्योंकि कल जब यह बात सब औरतों में फैलेगी तो वे भी अपने-अपने पति को तुच्छ समझेंगी और कहेंगी, ‘रानी वशती ने भी तो राजा अहश-वेरोश का हुक्म नहीं माना था और उसके सामने हाज़िर नहीं हुई थी।’ 18 जब फारस और मादै के हाकिमों की पत्नियों को पता चलेगा कि रानी ने क्या किया है, तो वे भी अपने पतियों से वैसे ही बात करेंगी। और इस तरह वे अपने पतियों को नीचा दिखाएँगी और पतियों का क्रोध उन पर भड़क उठेगा। 19 इसलिए अगर हुज़ूर को यह मंज़ूर हो तो वह एक शाही फरमान निकाले कि रानी वशती फिर कभी राजा अहश-वेरोश के सामने न आए। और यह बात फारस और मादै के कानून में लिखी जाए ताकि उसे रद्द न किया जा सके।+ और वशती की जगह राजा एक नयी रानी चुन ले जो वशती से कहीं अच्छी हो। 20 जब राजा का फरमान पूरे राज्य में सुनाया जाएगा, तो सभी औरतें अपने-अपने पति की इज़्ज़त करेंगी, फिर चाहे उनके पति किसी भी ओहदे पर क्यों न हों।”

21 ममूकान की यह सलाह राजा और उसके हाकिमों को पसंद आयी और राजा ने वैसा ही किया। 22 उसने अपने सभी ज़िलों में उनकी भाषा और लिपि में खत भिजवाए।+ उसमें लिखा था कि हर आदमी जो अपने-अपने घर का मुखिया है, वह अपने परिवार पर अधिकार जताए और उसके घर में वही भाषा बोली जाए जो उसके अपने लोगों की भाषा है।

2 इस सबके बाद राजा अहश-वेरोश+ का गुस्सा ठंडा हो गया। उसने याद किया कि वशती ने क्या किया था+ और इसके लिए उसे क्या सज़ा सुनायी गयी थी।+ 2 तब राजा के खास सेवकों ने उससे कहा, “राजा के लिए सुंदर, कुँवारी लड़कियाँ ढूँढ़ी जाएँ। 3 राजा इस काम के लिए अपने सभी ज़िलों में अधिकारी ठहराए।+ वे खूबसूरत कुँवारी लड़कियों को इकट्ठा करें और उन्हें शूशन* नाम के किले* में औरतों के भवन* में लाएँ। उन्हें राजा के खोजे और औरतों के रखवाले हेगे+ की देखरेख में रखा जाए और खुशबूदार तेल से उनका रंग-रूप निखारा जाए।* 4 उनमें से जो लड़की राजा के मन को भा जाए, उसे वशती की जगह रानी बनाया जाए।”+ राजा को यह सुझाव पसंद आया और उसने ऐसा ही किया।

5 उन दिनों शूशन*+ नाम के किले* में मोर्दकै+ नाम का एक यहूदी आदमी था। वह याईर का बेटा था, याईर शिमी का और शिमी कीश का बेटा था जो बिन्यामीन गोत्र+ से था 6 और जिसे* बैबिलोन का राजा नबूकदनेस्सर, यहूदा के राजा यकोन्याह*+ के साथ यरूशलेम से बंदी बनाकर लाया था। 7 मोर्दकै ने अपनी चचेरी बहन हदस्सा* यानी एस्तेर की परवरिश की थी+ क्योंकि वह अनाथ थी। उसके माता-पिता की मौत के बाद मोर्दकै ने उसे अपनी बेटी की तरह पाल-पोसकर बड़ा किया था। वह बहुत खूबसूरत थी और उसका रंग-रूप देखते ही बनता था। 8 जब राजा के हुक्म और उसके कानून का ऐलान किया गया और कई जवान लड़कियों को शूशन* नाम के किले* में इकट्ठा किया गया, तो एस्तेर भी वहाँ लायी गयी। और बाकी लड़कियों के साथ उसे शाही भवन* में औरतों के रखवाले हेगे की निगरानी में रखा गया।+

9 हेगे को एस्तेर इतनी अच्छी लगी कि उसने एस्तेर पर मेहरबानी* की। उसने फौरन हुक्म दिया कि एस्तेर की खूबसूरती निखारने* का इंतज़ाम किया जाए+ और उसके खाने-पीने का खास ध्यान रखा जाए। उसने शाही भवन से सात सेविकाओं को एस्तेर की सेवा के लिए ठहराया। इतना ही नहीं, उसने एस्तेर और उसकी सेविकाओं को औरतों के भवन* में सबसे बढ़िया जगह दी। 10 एस्तेर ने अपने लोगों या अपने रिश्‍तेदारों के बारे में किसी को नहीं बताया+ क्योंकि मोर्दकै+ ने उससे कहा था कि वह किसी से कुछ न कहे।+ 11 मोर्दकै हर दिन औरतों के भवन* के आँगन के आस-पास घूमता था ताकि एस्तेर का हाल-चाल जान सके और यह भी कि उसके साथ क्या हो रहा है।

12 सभी लड़कियों को बारी-बारी राजा अहश-वेरोश के सामने जाना था। मगर इससे पहले 12 महीने तक उनका रंग-रूप निखारा गया।* छ: महीने गंधरस के तेल से+ और अगले छ: महीने बलसाँ के तेल से+ और तरह-तरह की चीज़ों से उनकी मालिश की गयी। 13 और जब किसी लड़की की बारी आती कि वह औरतों के भवन* से शाही भवन में राजा के सामने हाज़िर हो, तब वह जो कुछ माँगती, उसे दिया जाता। 14 वह शाम को भवन में जाती थी और सुबह उसे औरतों के दूसरे भवन* में भेज दिया जाता। इस भवन की देखरेख राजा का खोजा शाशगज करता था,+ जो राजा की उप-पत्नियों का रखवाला भी था। भवन से लौटने के बाद वह लड़की दोबारा राजा के सामने तब तक नहीं जा सकती थी, जब तक कि राजा खुश होकर खुद उसे नहीं बुलाता था।+

15 अब अबीहैल की बेटी और मोर्दकै की चचेरी बहन एस्तेर की बारी आयी, जिसे मोर्दकै ने अपनी बेटी की तरह पाला था।+ राजा के सामने जाने के लिए लड़कियों के रखवाले, खोजे हेगे ने एस्तेर को जो कुछ दिया, उससे ज़्यादा एस्तेर ने कुछ नहीं माँगा। (जिस-जिस ने एस्तेर को देखा, उन सबको वह भा गयी।) 16 राजा अहश-वेरोश के राज के सातवें साल में+ तेबेत* नाम के दसवें महीने में, एस्तेर को राजा के सामने उसके शाही भवन में लाया गया। 17 राजा को एस्तेर भा गयी। वह उससे बहुत खुश हुआ और बाकी सभी कुँवारियों से ज़्यादा एस्तेर को चाहने* लगा। उसने एस्तेर को शाही ओढ़नी पहनाकर वशती की जगह अपनी रानी बना लिया।+ 18 राजा ने एस्तेर की शान में एक बड़ी दावत रखी और अपने सभी हाकिमों और सेवकों को बुलाया। इस मौके पर उसने ऐलान किया कि सभी ज़िलों के कैदियों को रिहा किया जाए।* इसके अलावा, वह अपनी शाही ठाट-बाट के मुताबिक तोहफे देता रहा।

19 जब सभी कुँवारियों+ को दूसरी बार इकट्ठा किया गया, तब मोर्दकै राजा के महल के फाटक पर बैठा हुआ था। 20 एस्तेर ने अपने रिश्‍तेदारों और अपने लोगों के बारे में किसी को कुछ नहीं बताया,+ ठीक जैसा मोर्दकै ने उससे कहा था। वह उसी तरह मोर्दकै की बात मानती रही, जिस तरह वह उसकी देखरेख में रहकर मानती थी।+

21 उन दिनों जब मोर्दकै राजा के महल के फाटक पर बैठा करता था,* तब राजा अहश-वेरोश के दरबारियों में से दो पहरेदार, बिगतान और तेरेश गुस्से से भड़क उठे और उन्होंने राजा को जान से मारने* की साज़िश रची। 22 लेकिन मोर्दकै को उनकी साज़िश का पता चल गया और उसने फौरन रानी एस्तेर को इसकी खबर दी। तब एस्तेर ने मोर्दकै की तरफ से* राजा को सबकुछ बता दिया। 23 मामले की जाँच की गयी और खबर पक्की निकली। बिगतान और तेरेश को काठ पर लटका दिया गया। ये सारी बातें उस ज़माने के इतिहास की किताब में राजा के सामने लिखी गयीं।+

3 कुछ समय बाद, राजा अहश-वेरोश ने अगागी+ हम्मदाता के बेटे हामान को उसके साथी हाकिमों से ऊँचा पद दिया।+ 2 महल के फाटक पर राजा के जितने भी सेवक थे, वे हामान के आगे झुकते थे और गिरकर उसे प्रणाम करते थे क्योंकि राजा का यही हुक्म था। लेकिन मोर्दकै ने हामान के आगे झुकने या गिरकर उसे प्रणाम करने से साफ इनकार कर दिया। 3 फाटक पर बैठनेवाले राजा के सेवकों ने मोर्दकै से पूछा, “तू राजा का हुक्म क्यों नहीं मानता?” 4 वे हर दिन उससे यही कहते रहे लेकिन मोर्दकै ने उनकी नहीं मानी। तब उन्होंने इस बारे में हामान को बताया। वे देखना चाहते थे कि मोर्दकै के इस व्यवहार को बरदाश्‍त किया जाएगा या नहीं+ क्योंकि मोर्दकै ने उन्हें बताया था कि वह एक यहूदी है।+

5 जब हामान ने देखा कि मोर्दकै उसके आगे झुकने और गिरकर उसे प्रणाम करने से इनकार कर रहा है, तो वह गुस्से से भर गया।+ 6 मगर उसे सिर्फ मोर्दकै को मारकर* चैन नहीं मिलता, क्योंकि उसे मोर्दकै के लोगों यानी यहूदियों के बारे में भी बताया गया था। इसलिए हामान कोई ऐसा रास्ता ढूँढ़ने लगा जिससे वह अहश-वेरोश के राज्य के सब इलाकों से यहूदियों को मिटा दे।

7 राजा अहश-वेरोश के राज के 12वें साल के नीसान* नाम के पहले महीने में,+ हामान के आगे पूर (यानी चिट्ठी) डाली गयी+ ताकि यह पता किया जा सके कि किस महीने और किस दिन उनका नाश किया जाए। चिट्ठी अदार* नाम के 12वें महीने की निकली।+ 8 फिर हामान ने राजा अहश-वेरोश के पास जाकर कहा, “हुज़ूर के राज्य के सभी ज़िलों में+ एक ऐसी जाति के लोग फैले हुए हैं,+ जिनके कायदे-कानून बाकी लोगों से बिलकुल अलग हैं और जो राजा का कानून भी नहीं मानते। अगर उनका कुछ न किया गया तो राजा को भारी नुकसान हो सकता है। 9 राजा को अगर यह मंज़ूर हो तो उन्हें खत्म करने के लिए एक फरमान निकाला जाए। इसके लिए मैं अधिकारियों को 10,000 तोड़े* चाँदी दूँगा कि वे इन्हें शाही खज़ाने में जमा करें।”*

10 यह बात सुनकर राजा ने अपनी मुहरवाली अँगूठी उतारकर+ अगागी+ हम्मदाता के बेटे और यहूदियों के दुश्‍मन, हामान को दे दी।+ 11 राजा ने उससे कहा, “मैं उन लोगों को तेरे हवाले करता हूँ और उनकी चाँदी भी तुझे देता हूँ। तुझे जैसा ठीक लगे उनके साथ वैसा कर।” 12 तब पहले महीने के 13वें दिन राजा के शास्त्रियों*+ को बुलाया गया। उन्होंने राजा के सूबेदारों, अलग-अलग ज़िलों के राज्यपालों और सभी लोगों के हाकिमों के लिए हामान के सारे आदेश लिखे।+ इसे हर ज़िले में रहनेवाले लोगों की भाषा और लिपि में लिखा गया। इसे राजा अहश-वेरोश के नाम से जारी किया गया और इस पर राजा की अँगूठी से मुहर लगायी गयी।+

13 यह फरमान राजा के दूतों के हाथ सभी ज़िलों में भेजा गया। उसमें हुक्म दिया गया था कि 12वें महीने यानी अदार महीने के 13वें दिन, सभी यहूदियों को जान से मार डाला जाए।+ उनके जितने भी जवान, बूढ़े, बच्चे, औरतें हैं, सबका नाश किया जाए, उनका वजूद मिटा दिया जाए और उनका सबकुछ लूट लिया जाए।+ 14 फरमान में लिखी इन बातों को हर ज़िले में कानून समझकर लागू किया जाना था। और लोगों में इसका ऐलान किया जाना था ताकि वे इस दिन के लिए तैयार हो जाएँ। 15 राजा के हुक्म पर उसके दूत तुरंत इस कानून को अलग-अलग ज़िलों में ले गए+ और शूशन*+ नाम के किले* में रहनेवालों के लिए भी यही कानून जारी हुआ। इससे शूशन* शहर में हाहाकार मच गया, मगर राजा और हामान बैठकर दाख-मदिरा पी रहे थे।

4 जैसे ही मोर्दकै+ को इन बातों का पता चला,+ उसने मारे दुख के अपने कपड़े फाड़े और टाट ओढ़कर खुद पर राख डाली। वह शहर के बीचों-बीच गया और फूट-फूटकर रोने लगा। 2 इसी हाल में वह राजा के महल के फाटक पर आया। मगर वह फाटक के अंदर नहीं गया क्योंकि किसी को भी टाट ओढ़कर अंदर जाने की इजाज़त नहीं थी। 3 जिस-जिस ज़िले+ में राजा का हुक्म और फरमान सुनाया गया, वहाँ यहूदियों में बड़ा मातम छा गया। वे रो-रोकर और छाती पीट-पीटकर दुख मनाने लगे और उपवास करने लगे।+ कई यहूदी ज़मीन पर टाट बिछाकर और राख डालकर उस पर लेट गए।+ 4 जब एस्तेर की सेविकाओं और खोजों ने आकर उसे खबर दी तो रानी बेचैन हो उठी। उसने मोर्दकै के लिए कपड़े भिजवाए ताकि वह टाट उतारकर उन्हें पहन ले। मगर मोर्दकै ने उन्हें लेने से इनकार कर दिया। 5 तब एस्तेर ने राजा के खोजों में से हताक को बुलाया, जिसे राजा ने एस्तेर की सेवा के लिए ठहराया था। एस्तेर ने हताक को हुक्म दिया कि वह जाकर मोर्दकै से पूछे कि ऐसा क्या हुआ है जो वह टाट ओढ़े बैठा है।

6 तब हताक राजा के महल के फाटक से निकलकर सामने शहर के चौक में मोर्दकै के पास गया। 7 मोर्दकै ने हताक को बताया कि उस पर क्या आफत टूट पड़ी है और हामान ने यहूदियों का सफाया करने के लिए शाही खज़ाने में कितनी रकम देने+ का वादा किया है।+ 8 उसने हताक को उस फरमान की नकल भी दी जो यहूदियों के विनाश के लिए शूशन* में जारी किया गया था।+ हताक को यह फरमान एस्तेर को दिखाकर उसे सारी बातें समझानी थीं। मोर्दकै ने यह हिदायत भी दी+ कि एस्तेर सीधे राजा के सामने जाए और अपने लोगों की खातिर उससे रहम की भीख माँगे।

9 हताक ने लौटकर एस्तेर को वह सारी बातें बतायीं जो मोर्दकै ने उससे कही थीं। 10 एस्तेर ने उसे वापस मोर्दकै+ के पास भेजा और यह बोलने के लिए कहा, 11 “राजा के सभी सेवक और उसके ज़िले के लोग इस कानून को अच्छी तरह जानते हैं कि अगर कोई बिन बुलाए राजा से मिलने उसके भवन के अंदरवाले आँगन में जाता है,+ तो उसकी एक ही सज़ा है, मौत! वह सिर्फ तभी बच सकता है जब राजा उसकी तरफ सोने का राजदंड बढ़ाए।+ और मुझे तो 30 दिन से राजा के पास नहीं बुलाया गया है।”

12 जब एस्तेर का पैगाम मोर्दकै को दिया गया, 13 तो उसने एस्तेर को जवाब दिया, “यह मत सोच कि तू राजा के घराने से है इसलिए तू बच जाएगी और बाकी यहूदियों के साथ नहीं मारी जाएगी। 14 अगर इस वक्‍त तू चुप रही तो यहूदियों को कहीं-न-कहीं से मदद और छुटकारा मिल जाएगा,+ मगर तू और तेरे पिता का घराना नाश हो जाएगा। और क्या पता, तुझे इसी दिन के लिए रानी बनाया गया हो?”+

15 तब एस्तेर ने मोर्दकै को यह संदेश भेजा: 16 “जा और जाकर शूशन* में जितने भी यहूदी हैं उन सबको इकट्ठा कर और मेरे लिए उपवास कर।+ तीन दिन और तीन रात कोई कुछ न खाए-पीए।+ मैं भी अपनी सेविकाओं के साथ उपवास करूँगी। और बिन बुलाए राजा के सामने जाऊँगी, जो कानून के खिलाफ है। और अगर मैं मारी गयी, तो यही सही।” 17 तब मोर्दकै ने जाकर वैसा ही किया जैसा एस्तेर ने कहा था।

5 तीसरे दिन+ एस्तेर ने अपने शाही कपड़े पहने और वह अंदरवाले आँगन में आकर राजा के भवन के ठीक सामने खड़ी हो गयी। उस वक्‍त राजा अपने भवन* में राजगद्दी पर बैठा था, जहाँ से वह भवन का द्वार साफ देख सकता था। 2 अब राजा की नज़र रानी एस्तेर पर पड़ी जो बाहर आँगन में खड़ी थी। उसे देखते ही वह खुश हो गया और उसके हाथ में जो सोने का राजदंड था उसने एस्तेर की तरफ बढ़ा दिया।+ तब एस्तेर राजा के पास आयी और उसने राजदंड के सिरे को छुआ।

3 राजा ने कहा, “क्या बात है रानी एस्तेर? तुझे क्या चाहिए? अगर तू आधा राज्य भी माँगे, तो वह भी तुझे दे दिया जाएगा।” 4 एस्तेर ने कहा, “अगर राजा को यह मंज़ूर हो, तो वह आज मेरे यहाँ आए क्योंकि मैंने खास राजा के लिए एक दावत रखी है। और वह अपने साथ हामान को भी लाए।”+ 5 राजा ने अपने आदमियों से कहा, “जैसा रानी एस्तेर चाहती है वैसा ही हो। जाओ, हामान को फौरन बुला लाओ।” फिर राजा और हामान, एस्तेर की दावत में गए।

6 दाख-मदिरा की दावत के दौरान राजा ने एस्तेर से कहा, “बता तेरी क्या बिनती है? माँग तुझे क्या चाहिए? अगर तू आधा राज्य भी माँगे, तो वह भी तुझे दे दिया जाएगा।”+ 7 एस्तेर ने कहा, “राजा से मेरी बस यही बिनती है, यही फरियाद है 8 कि अगर वह मुझसे खुश है और सचमुच मेरी बिनती पूरी करना चाहता है, तो कल वह हामान के साथ एक और दावत में आए जो मैंने उनके लिए रखी है। कल मैं राजा को बताऊँगी कि मैं क्या चाहती हूँ।”

9 उस दिन दावत से लौटते वक्‍त हामान बहुत खुश था, वह फूला नहीं समा रहा था। मगर जैसे ही उसने महल के फाटक पर मोर्दकै को देखा, वह गुस्से से भर गया। क्योंकि मोर्दकै न तो उसके सामने खड़ा हुआ, न ही उसे देखकर डरा।+ 10 हामान खून का घूँट पीकर रह गया और अपने घर लौट गया। उसने अपनी पत्नी जेरेश और अपने दोस्तों को बुलवाया।+ 11 वह अपनी बेशुमार दौलत की शेखी बघारने लगा और डींगें मारने लगा कि उसके कितने सारे बेटे हैं+ और कैसे राजा ने उसे ऊँचे पद पर ठहराकर बाकी हाकिमों और सेवकों से ज़्यादा सम्मान दिया है।+

12 हामान ने यह भी कहा, “जानते हो, रानी एस्तेर ने अपनी दावत में राजा के अलावा और किसे बुलाया था? मुझे!+ और कल रानी ने मुझे राजा के साथ एक और दावत पर बुलाया है।+ 13 लेकिन जब तक वह यहूदी मोर्दकै महल के फाटक पर बैठा रहेगा, तब तक ये खुशियाँ मेरे लिए कोई मायने नहीं रखतीं।” 14 तब उसकी पत्नी जेरेश और उसके दोस्तों ने कहा, “एक काम कर, तू 50 हाथ* ऊँचा एक काठ खड़ा करवा। और सुबह राजा के पास जाकर उससे कह कि मोर्दकै को काठ पर लटका दिया जाए।+ फिर खुशी-खुशी राजा के साथ दावत पर चला जा।” हामान को यह सलाह पसंद आयी और उसने एक काठ खड़ा करवाया।

6 उस रात राजा को नींद नहीं आ रही थी।* इसलिए उसने हुक्म दिया कि शाही किताब लायी जाए जिसमें बीते दिनों की घटनाएँ दर्ज़ हैं+ और उसे पढ़कर सुनायी जाए। 2 उसमें लिखा था कि किस तरह मोर्दकै ने राजा अहश-वेरोश के दरबारियों में से दो पहरेदारों, बिगताना और तेरेश का परदाफाश किया था, जो राजा को जान से मारने* की साज़िश कर रहे थे।+ 3 यह सुनकर राजा ने पूछा, “इसके लिए मोर्दकै को क्या इनाम दिया गया, क्या इज़्ज़त बख्शी गयी?” राजा के खास सेवकों ने कहा, “मोर्दकै के लिए कुछ नहीं किया गया।”

4 इसी दौरान हामान राजा के भवन* के बाहरवाले आँगन में आया।+ वह यह गुज़ारिश लेकर आया था कि राजा, मोर्दकै को उस काठ पर लटका दे जो हामान ने मोर्दकै के लिए तैयार किया है।+ राजा ने पूछा, “बाहर कौन है?” 5 राजा के सेवक ने कहा, “बाहर आँगन में हामान+ खड़ा है।” राजा ने कहा, “उसे अंदर भेज दो।”

6 जब हामान अंदर आया तो राजा ने उससे पूछा, “अगर राजा किसी को इज़्ज़त देना चाहे, तो उस आदमी के लिए क्या किया जाना चाहिए?” हामान ने मन-ही-मन सोचा, “राजा मेरे अलावा और किसे इज़्ज़त देना चाहेगा?”+ 7 उसने राजा से कहा, “जिस आदमी को राजा इज़्ज़त देना चाहता है 8 उसके लिए राजा की शाही पोशाक लायी जाए+ और वह घोड़ा भी मँगवाया जाए, जिसका सिर शाही ठाट-बाट से सजा हो और जिस पर खुद राजा सवारी करता है। 9 फिर वह पोशाक और घोड़ा राजा के सबसे बड़े हाकिम को सौंपा जाए। और सेवक उस आदमी को यह पोशाक पहनाएँ और उसे राजा के घोड़े पर बिठाकर शहर के चौक में घुमाएँ और उसके आगे-आगे यह ऐलान करवाएँ, ‘जिस आदमी को राजा इज़्ज़त देना चाहता है, उसकी शान में यही किया जाता है!’”+ 10 हामान की बात सुनकर राजा ने कहा, “फौरन वह पोशाक और घोड़ा ले और महल के फाटक पर बैठे उस यहूदी मोर्दकै के साथ ऐसा ही कर। जो कुछ तूने कहा है, उसकी एक-एक बात पूरी की जाए।”

11 हामान ने शाही पोशाक और घोड़ा लिया। उसने मोर्दकै+ को वह पोशाक पहनायी और उसे घोड़े पर बिठाकर शहर के चौक में घुमाया और उसके आगे-आगे यह ऐलान करवाया, “जिस आदमी को राजा इज़्ज़त देना चाहता है, उसकी शान में यही किया जाता है!” 12 इसके बाद मोर्दकै राजा के महल के फाटक पर लौट गया। लेकिन हामान शोक मनाते हुए और सिर पर कपड़ा डाले हुए तेज़ी से अपने घर चला गया। 13 हामान ने अपनी पत्नी जेरेश और अपने सभी दोस्तों को बताया कि उसके साथ क्या हुआ।+ तब उसके सलाहकारों और उसकी पत्नी जेरेश ने उससे कहा, “जिस मोर्दकै के आगे आज तुझे मुँह की खानी पड़ी, अगर वह यहूदियों के वंश से है तो याद रख, तू उससे कभी नहीं जीत पाएगा। तेरी हार पक्की है।”

14 वे यह कह ही रहे थे कि तभी राजा के दरबारी आए और फौरन हामान को रानी एस्तेर की दावत में ले गए।+

7 राजा और हामान,+ रानी एस्तेर की दावत में आए। 2 दावत के दूसरे दिन जब दाख-मदिरा पेश की गयी, तब राजा ने फिर पूछा, “रानी एस्तेर, बता तेरी क्या बिनती है? माँग तुझे क्या चाहिए? अगर तू आधा राज्य भी माँगे, तो वह भी तुझे दे दिया जाएगा।”+ 3 रानी एस्तेर ने कहा, “अगर राजा मुझसे खुश है और अगर राजा को यह मंज़ूर हो, तो मेरी बस यही बिनती है कि वह मेरी और मेरे लोगों+ की जान बचा ले 4 क्योंकि हमें खत्म करने और हमारा वजूद मिटाने के लिए हमें बेच दिया गया है।+ अगर हमें गुलामी में बेचा जाता तो मैं कुछ न कहती। लेकिन जब हमारे विनाश से खुद राजा को नुकसान होगा तो भला मैं चुप कैसे रह सकती हूँ? इस आफत को रोकना ही होगा।”

5 यह सुनकर राजा अहश-वेरोश ने रानी एस्तेर से पूछा, “किसने ऐसा करने की जुर्रत की? कौन है वह गुस्ताख?” 6 एस्तेर ने कहा, “हमारे खिलाफ साज़िश रचनेवाला, हमारा दुश्‍मन कोई और नहीं, यह दुष्ट हामान है!”

यह सुनते ही हामान उनके सामने थर-थर काँपने लगा। 7 राजा का खून खौल उठा, वह दावत से उठकर बाहर महल के बगीचे में चला गया। हामान उठा और एस्तेर से अपनी जान की भीख माँगने लगा क्योंकि वह समझ गया कि अब राजा उसे नहीं छोड़ेगा। 8 जब राजा महल के बगीचे से वापस दावत-घर में आया, तो उसने देखा कि हामान, रानी एस्तेर के दीवान पर गिरा जा रहा है। राजा ने चिल्लाकर कहा, “अब यही कसर बाकी रह गयी थी! मेरे ही घर में रानी की इज़्ज़त पर हाथ डाल रहा है?” राजा के कहने की देर थी कि हामान का चेहरा कपड़े से ढक दिया गया। 9 तब राजा के एक दरबारी हरबोना+ ने कहा, “हुज़ूर, जिस मोर्दकै की खबर से राजा की जान बची थी,+ हामान ने उसी के लिए एक काठ तैयार करवाया है।+ उसने 50 हाथ* ऊँचा यह काठ अपने घर के पास खड़ा करवाया है।” राजा ने हुक्म दिया, “उसी काठ पर लटका दो इसे!” 10 तब उन्होंने हामान को उसी काठ पर लटका दिया जो उसने मोर्दकै के लिए तैयार किया था। और राजा का क्रोध शांत हो गया।

8 उस दिन राजा अहश-वेरोश ने यहूदियों के दुश्‍मन हामान+ का सबकुछ रानी एस्तेर को दे दिया।+ और मोर्दकै को राजा के सामने लाया गया क्योंकि एस्तेर ने राजा को बताया था कि मोर्दकै से उसका क्या रिश्‍ता है।+ 2 राजा ने मोर्दकै को अपनी मुहरवाली अँगूठी दी,+ जो उसने हामान से वापस ले ली थी। और एस्तेर ने मोर्दकै को हामान की सारी चीज़ों पर अधिकार दिया।+

3 एस्तेर एक बार फिर राजा के पास गयी और उसके पैरों पर गिरकर रोने लगी। वह राजा के आगे गिड़गिड़ाने लगी कि राजा, अगागी हामान की साज़िश को नाकाम कर दे, जो यहूदियों की तबाही के लिए रची गयी थी।+ 4 राजा ने एस्तेर की तरफ सोने का राजदंड बढ़ाया,+ तब वह उठकर खड़ी हो गयी। 5 उसने राजा से कहा, “अगर राजा मुझसे खुश है और उसकी मेहरबानी मुझ पर है तो वह मेरी बिनती सुने। अगर राजा को यह ठीक लगे तो वह एक हुक्म निकलवाए और अगागी+ हम्मदाता के बेटे हामान के खत को रद्द करवाए,+ जिसमें उस मक्कार ने सभी ज़िलों के यहूदियों को मारने का आदेश दिया था। 6 हे राजा, जब मेरे अपने लोगों पर मुसीबत आनेवाली है, तो मैं कैसे चुप बैठ सकती हूँ? भला मैं अपनी आँखों के सामने अपने रिश्‍तेदारों को मरते कैसे देख सकती हूँ?”

7 यह सुनकर राजा अहश-वेरोश ने रानी एस्तेर और यहूदी मोर्दकै से कहा, “देखो! मैंने हामान को यहूदियों का सफाया करने* की साज़िश के लिए काठ पर लटका दिया+ और उसका सबकुछ एस्तेर को दे दिया है।+ 8 अब तुम्हें यहूदियों की हिफाज़त के लिए जो सही लगे, वही करो। मेरे नाम से एक फरमान निकालो और उस पर मेरी अँगूठी से मुहर लगाओ। क्योंकि जो फरमान राजा के नाम से जारी किया जाता है और जिस पर राजा की अँगूठी की मुहर होती है, उसे किसी भी हाल में रद्द नहीं किया जा सकता।”+

9 इसलिए सीवान* नाम के तीसरे महीने के 23वें दिन, राजा के शास्त्रियों* को बुलाया गया। और मोर्दकै ने यहूदियों, सूबेदारों,+ राज्यपालों और हिन्दुस्तान से लेकर इथियोपिया तक, 127 ज़िलों के हाकिमों+ के लिए जो-जो हुक्म दिया, उसे इन शास्त्रियों ने लिख लिया। यह फरमान सभी ज़िलों के लोगों को उनकी भाषा और लिपि में, यहाँ तक कि यहूदियों को भी उनकी भाषा और लिपि में लिखा गया।

10 मोर्दकै ने यह फरमान राजा अहश-वेरोश के नाम से लिखा और उस पर राजा की अँगूठी से मुहर लगायी।+ फिर उसने दूतों को यह फरमान देकर भेजा। वे जगह-जगह इसे पहुँचाने के लिए सरपट दौड़नेवाले घोड़ों पर निकल पड़े, जो शाही काम के लिए रखे गए थे। 11 फरमान में राजा ने अलग-अलग शहरों में रहनेवाले यहूदियों को हुक्म दिया कि वे अपनी जान बचाने के लिए एकजुट हो जाएँ। और अगर किसी राष्ट्र या ज़िले के लोग दल बनाकर उन पर हमला करें, तो वे उनको और उनके बीवी-बच्चों को मार डालें और उनका सबकुछ लूट लें।+ 12 यह हुक्म राजा अहश-वेरोश के सभी ज़िलों में उसी दिन लागू किया जाना था यानी अदार* नाम के 12वें महीने की 13वीं तारीख को।+ 13 फरमान में लिखी बातों को कानून समझकर सभी ज़िलों में लागू करना था और सब लोगों को पढ़कर सुनाना था ताकि उस दिन यहूदी अपने दुश्‍मनों से बदला लेने के लिए तैयार हो जाएँ।+ 14 राजा का हुक्म मिलते ही उसके दूत तुरंत शाही घोड़ों पर निकल पड़े और इस कानून को जगह-जगह पहुँचाने लगे। शूशन*+ नाम के किले* में भी यही कानून जारी किया गया।

15 अब मोर्दकै राजा के पास से चला गया। उसके सिर पर सोने का शानदार ताज था और वह शाही पोशाक पहने था, जो नीले धागे और सफेद धागे से बनी थी और उसके ऊपर वह बैंजनी ऊन का लबादा डाले हुए था।+ शूशन* शहर में खुशियों की लहर दौड़ उठी। 16 यहूदियों को राहत* मिली, वे मगन होकर जश्‍न मनाने लगे और उनका आदर-सम्मान किया गया। 17 हर ज़िले में और हर शहर में, जहाँ-जहाँ राजा का कानून पहुँचा और उसका फरमान पढ़ा गया, वहाँ यहूदी खुशी से झूम उठे। उन्होंने दावतें रखीं और वे जश्‍न मनाने लगे। आस-पास के देशों के लोगों में यहूदियों का खौफ समा गया और उनमें से कई लोग यहूदी बन गए।+

9 अब अदार* नाम के 12वें महीने का 13वाँ दिन आया।+ यह वही दिन था जब राजा का हुक्म और कानून लागू होना था+ और दुश्‍मन भी आस लगाए बैठे थे कि वे यहूदियों पर जीत हासिल कर लेंगे। मगर उलटा यहूदियों ने उन सब पर जीत हासिल कर ली जो उनसे नफरत करते थे।+ 2 उस दिन राजा अहश-वेरोश के सभी ज़िलों में+ रहनेवाले यहूदी अपने-अपने शहर में इकट्ठा हुए और उन लोगों को मारने के लिए तैयार हो गए जो उन्हें खत्म करना चाहते थे। एक भी दुश्‍मन उनके सामने टिक न सका क्योंकि लोगों में यहूदियों का खौफ समा गया था।+ 3 सभी ज़िलों के हाकिमों, सूबेदारों,+ राज्यपालों और राजा का काम-काज सँभालनेवालों ने यहूदियों का साथ दिया क्योंकि वे मोर्दकै से डरने लगे थे। 4 मोर्दकै शाही भवन* का एक बड़ा अधिकारी बन गया।+ जैसे-जैसे उसे और भी अधिकार मिलते गए, सभी ज़िलों में उसके चर्चे होने लगे।

5 उस दिन यहूदियों ने अपने सभी दुश्‍मनों को तलवार से मार डाला और उनका पूरी तरह सफाया कर दिया। उन्होंने अपने दुश्‍मनों के साथ वैसा ही सलूक किया जैसा उन्होंने चाहा।+ 6 शूशन*+ नाम के किले* में यहूदियों ने 500 आदमियों को मौत के घाट उतार दिया। 7 उन्होंने इन आदमियों को भी मार डाला: परशनदाता, दलपोन, अस्पाता, 8 पोराता, अदल्या, अरीदाता, 9 परमश्‍ता, अरीसै, अरीदै और वैजाता। 10 ये दस आदमी हामान के बेटे थे, वही हामान जो हम्मदाता का बेटा और यहूदियों का दुश्‍मन था।+ लेकिन अपने दुश्‍मनों को मारने के बाद यहूदियों ने लूट में उनकी कोई भी चीज़ नहीं ली।+

11 उस दिन शूशन* नाम के किले* में जितने लोग मारे गए उसकी खबर राजा को दी गयी।

12 राजा ने रानी एस्तेर से कहा, “शूशन* नाम के किले* में यहूदियों ने 500 आदमियों को और हामान के दस बेटों को मौत के घाट उतार दिया है। अगर यहाँ यह हाल है, तो बाकी ज़िलों में तो और भी लोग मारे गए होंगे!+ रानी एस्तेर माँग तुझे और क्या चाहिए? तेरी ख्वाहिश पूरी की जाएगी। तू बस हुक्म दे।” 13 एस्तेर ने कहा, “अगर राजा को यह मंज़ूर हो+ तो वह शूशन* में रहनेवाले यहूदियों को इजाज़त दे कि वे कल भी अपने दुश्‍मनों को मार सकें, ठीक जैसे राजा के फरमान पर उन्होंने आज मारा है।+ राजा से मेरी यह भी बिनती है कि हामान के दस बेटों की लाशें काठ पर लटकायी जाएँ।”+ 14 राजा ने हुक्म दिया कि एस्तेर ने जैसा कहा है वैसा ही किया जाए। तब शूशन* में एक कानून निकाला गया कि हामान के दस बेटों की लाशें लटकायी जाएँ और यहूदियों को एक और दिन की मोहलत दी जाए।

15 अदार महीने के 14वें दिन शूशन* में रहनेवाले यहूदी एक बार फिर इकट्ठा हुए।+ उन्होंने वहाँ 300 आदमियों को मार डाला लेकिन लूट में उनकी कोई भी चीज़ नहीं ली।

16 राजा के बाकी ज़िलों में रहनेवाले यहूदी भी इकट्ठा हुए और अपनी जान बचाने के लिए लड़े।+ उन्होंने अपने दुश्‍मनों का, उन 75,000 आदमियों का सफाया कर दिया+ जो उनसे नफरत करते थे। मगर लूट में उनकी कोई भी चीज़ नहीं ली। 17 यह अदार महीने का 13वाँ दिन था। और 14वें दिन उन्होंने आराम किया, बड़ी-बड़ी दावतें रखीं और खुशियाँ मनायीं।

18 जो यहूदी शूशन* में थे, वे अपने दुश्‍मनों से लड़ने के लिए 13वें और 14वें दिन इकट्ठा हुए+ और 15वें दिन उन्होंने आराम किया, बड़ी-बड़ी दावतें रखीं और खुशियाँ मनायीं। 19 बाकी ज़िलों के शहरों में रहनेवाले यहूदियों ने अदार महीने के 14वें दिन जश्‍न मनाया।+ उन्होंने बड़ी-बड़ी दावतें रखीं, खुशियाँ मनायीं और एक-दूसरे को खाने-पीने की चीज़ें भेजीं।+

20 मोर्दकै+ ने इन सारी घटनाओं को लिखा। और उसने राजा अहश-वेरोश के सभी ज़िलों में रहनेवाले यहूदियों को खत भेजे। 21 खत में मोर्दकै ने यहूदियों को आदेश दिया कि वे अब से हर साल, अदार महीने के 14वें और 15वें दिन त्योहार मनाया करें। 22 क्योंकि इन दिनों में यहूदियों को अपने दुश्‍मनों से छुटकारा मिला और इसी महीने उनका गम खुशी में बदल गया, वे मातम मनाना+ छोड़कर जश्‍न मनाने लगे। इसलिए यहूदी दोनों दिन बड़ी-बड़ी दावतें रखें, खुशियाँ मनाएँ, एक-दूसरे को खाने-पीने की चीज़ें भेजें और गरीबों में खैरात बाँटें।

23 यहूदी इस जश्‍न को हर साल मनाने के लिए राज़ी हुए जिसकी शुरूआत खुद उन्होंने की थी। उन्होंने यह भी कहा कि मोर्दकै ने अपने खत में जो कुछ बताया है हम करेंगे। 24 अगागी+ हम्मदाता के बेटे और यहूदियों के दुश्‍मन हामान+ ने उनके खिलाफ साज़िश रची थी। उसने उनमें आतंक फैलाने और उनका सर्वनाश करने के लिए+ पूर यानी चिट्ठी डाली थी+ और उनके खात्मे का दिन तय किया था। 25 लेकिन फिर रानी एस्तेर राजा के सामने गयी और राजा ने यह हुक्म लिखवाया,+ “हामान ने घिनौनी साज़िश रचकर यहूदियों पर जो मुसीबत लानी चाही,+ वह मुसीबत खुद उसी के सिर आ पड़े।” तब हामान और उसके बेटों को काठ पर लटकाया गया।+ 26 इस तरह पूर*+ शब्द से इस त्योहार का नाम पूरीम पड़ा। खत में जो कुछ लिखा था और जो उन्होंने होते देखा और जो उन पर बीता, उनकी वजह से 27 यहूदियों ने ठान लिया कि अब से वे, उनके वंशज और उनके साथ जुड़नेवाले बाकी लोग+ दोनों दिन यह त्योहार मनाएँगे। वे हर साल उसी तरीके से इसे मनाएँगे जैसा उन्हें खत में बताया गया है। 28 पूरीम का यह त्योहार हर ज़िले, हर शहर और हर परिवार में पीढ़ी-दर-पीढ़ी याद किया जाना और मनाया जाना था ताकि यहूदियों में यह दस्तूर हमेशा चलता रहे और इसकी याद उनके वंशजों के मन से कभी न मिटे।

29 फिर पूरीम के बारे में दूसरा खत लिखा गया और अबीहैल की बेटी रानी एस्तेर और यहूदी मोर्दकै को जो अधिकार दिया गया था, उस अधिकार से उन्होंने हुक्म दिया कि इस खत में लिखी बातों का पालन किया जाए। 30 यह खत राजा अहश-वेरोश के 127 ज़िलों+ में सभी यहूदियों को भेजा गया। इसमें सच्ची और शांति की बातें लिखी हुई थीं 31 कि सभी यहूदी ठहराए गए दिनों में पूरीम का त्योहार मनाएँ, ठीक जैसे यहूदी मोर्दकै और रानी एस्तेर ने हुक्म दिया था।+ और जैसा खुद यहूदियों ने भी ठाना था कि वे और उनके वंशज उन दिनों की याद में यह त्योहार मनाएँगे,+ उपवास+ और मिन्‍नतें करेंगे।+ 32 पूरीम+ के बारे में ये बातें एस्तेर के हुक्म से और भी पक्की हो गयीं और इन्हें एक किताब में लिखा गया।

10 राजा अहश-वेरोश ने अपने राज्य के सभी इलाकों और द्वीपों में रहनेवालों से जबरन मज़दूरी करवायी।

2 उसने जितने भी बड़े-बड़े काम किए उस बारे में और जिस तरह राजा ने मोर्दकै+ को ऊँचा उठाया+ उसकी एक-एक जानकारी, मादै और फारस+ के राजाओं के इतिहास की किताब में दर्ज़ की गयी।+ 3 पूरे राज्य में राजा अहश-वेरोश के बाद यहूदी मोर्दकै ही सबसे शक्‍तिशाली आदमी था। यहूदियों में उसका बड़ा नाम था और वे उसकी बहुत इज़्ज़त करते थे। मोर्दकै अपने लोगों की भलाई और उनके सभी वंशजों की सलामती के लिए काम करता रहा।*

माना जाता है कि यह क्षयर्ष प्रथम था, जो दारा महान (या दारा हिस्तासपिस) का बेटा था।

या “कूश।”

या “सूसा।”

या “महल।”

या “सूसा।”

या “महल।”

आय. 3 और 5 में शायद एक ही दावत की बात की जा रही है।

या “कोई रोक-टोक नहीं थी।”

या “महल।”

या “सूसा।”

या “महल।”

या “जनानखाने।”

या “उनकी मालिश की जाए।”

या “सूसा।”

या “महल।”

यह या तो कीश हो सकता है या मोर्दकै।

2रा 24:8 में इसे यहोयाकीन कहा गया है।

मतलब “मेंहदी।”

या “सूसा।”

या “महल।”

या “महल।”

या “अटल प्यार।”

या “की मालिश करने।”

या “जनानखाने।”

या “जनानखाने।”

या “उनकी मालिश की गयी।”

या “जनानखाने।”

या “दूसरे जनानखाने।”

अति. ख15 देखें।

या “से अटल प्यार करने।”

या “ज़िलों का महसूल माफ किया जाए।” इन शब्दों का ठीक-ठीक मतलब नहीं पता।

या “महल में दरबारी था।”

शा., “राजा पर हाथ चलाने।”

शा., “के नाम से।”

शा., “पर हाथ चलाकर।”

अति. ख15 देखें।

अति. ख15 देखें।

एक तोड़ा 34.2 किलो के बराबर था। अति. ख14 देखें।

या शायद, “यह काम करनेवालों के लिए मैं शाही खज़ाने में 10,000 तोड़े जमा करवाऊँगा।”

या “सचिवों।”

या “सूसा।”

या “महल।”

या “सूसा।”

या “सूसा।”

या “सूसा।”

या “महल।”

करीब 22.3 मी. (73 फुट)। अति. ख14 देखें।

शा., “राजा की नींद उड़ गयी।”

शा., “राजा पर हाथ चलाने।”

या “महल।”

करीब 22.3 मी. (73 फुट)। अति. ख14 देखें।

शा., “यहूदियों पर हाथ बढ़ाने।”

अति. ख15 देखें।

या “सचिवों।”

अति. ख15 देखें।

या “सूसा।”

या “महल।”

या “सूसा।”

शा., “रौशनी।”

अति. ख15 देखें।

या “महल।”

या “सूसा।”

या “महल।”

या “सूसा।”

या “महल।”

या “सूसा।”

या “महल।”

या “सूसा।”

या “सूसा।”

या “सूसा।”

या “सूसा।”

“पूर” का मतलब है “चिट्ठी।” इसका बहुवचन “पूरीम” यहूदियों के त्योहार के लिए इस्तेमाल होने लगा, जिसे वे अपने पवित्र कैलेंडर के मुताबिक 12वें महीने में मनाते थे। अति. ख15 देखें।

शा., “से शांति की बातें करता रहा।”

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