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पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद (अध्ययन बाइबल)
गिनती

गिनती

1 और इसराएलियों के मिस्र से निकलने के दूसरे साल के दूसरे महीने के पहले दिन,+ यहोवा ने सीनै वीराने में मूसा से बात की।+ उसने भेंट के तंबू में मूसा से कहा,+ 2 “तू हारून को साथ लेकर इसराएलियों* की पूरी मंडली की गिनती लेना+ और हरेक आदमी का नाम उसके घराने और उसके पिता के कुल के मुताबिक लिखना। 3 तुम उन सभी आदमियों का नाम लिखना जिनकी उम्र 20 साल या उससे ज़्यादा है+ और जो इसराएल की सेना में काम करने के योग्य हैं। तुम उनके नाम उनके अपने-अपने दल के मुताबिक लिखना।

4 तू अपने साथ हर गोत्र में से एक आदमी को लेना, जो अपने पिता के कुल का मुखिया हो।+ 5 वे तेरी मदद करेंगे। उनके नाम ये हैं: रूबेन गोत्र से एलीसूर+ जो शदेऊर का बेटा है, 6 शिमोन गोत्र से शलूमीएल+ जो सूरीशद्दै का बेटा है, 7 यहूदा गोत्र से नहशोन+ जो अम्मीनादाब का बेटा है, 8 इस्साकार गोत्र से नतनेल+ जो ज़ुआर का बेटा है, 9 जबूलून गोत्र से एलीआब+ जो हेलोन का बेटा है, 10 यूसुफ के बेटे एप्रैम के गोत्र से+ एलीशामा जो अम्मीहूद का बेटा है और यूसुफ के दूसरे बेटे मनश्‍शे के गोत्र से गमलीएल जो पदासूर का बेटा है, 11 बिन्यामीन गोत्र से अबीदान+ जो गिदोनी का बेटा है, 12 दान गोत्र से अहीएजेर+ जो अम्मीशद्दै का बेटा है, 13 आशेर गोत्र से पगीएल+ जो ओकरान का बेटा है, 14 गाद गोत्र से एल्यासाप+ जो दूएल का बेटा है 15 और नप्ताली गोत्र से अहीरा+ जो एनान का बेटा है। 16 इसराएल की मंडली में से इन सभी आदमियों को चुना गया है। ये अपने-अपने पिता के गोत्र के प्रधान+ और हज़ारों इसराएलियों से बने अलग-अलग दल के मुखिया हैं।”+

17 तब मूसा और हारून ने उन आदमियों को अपने साथ लिया जिन्हें नाम लेकर चुना गया था। 18 उन्होंने दूसरे महीने के पहले दिन, इसराएल की पूरी मंडली को इकट्ठा किया ताकि उसका हर आदमी, जिसकी उम्र 20 साल या उससे ज़्यादा है, अपने घराने और अपने पिता के कुल के मुताबिक अपना नाम लिखवा सके,+ 19 ठीक जैसे यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी। इस तरह मूसा ने सीनै वीराने में उन सबका नाम लिखा।+

20 इसराएल के पहलौठे रूबेन के बेटों+ के नाम उनके अपने-अपने घराने और पिता के कुल के मुताबिक लिखे गए। जितने आदमियों की उम्र 20 साल या उससे ज़्यादा थी और जो सेना में काम करने के योग्य थे, उन सबकी एक-एक करके गिनती ली गयी। 21 रूबेन गोत्र से जिनके नाम लिखे गए, उनकी गिनती 46,500 थी।

22 शिमोन के वंशजों+ के नाम उनके अपने-अपने घराने और पिता के कुल के मुताबिक लिखे गए। जितने आदमियों की उम्र 20 साल या उससे ज़्यादा थी और जो सेना में काम करने के योग्य थे, उन सबकी एक-एक करके गिनती ली गयी। 23 शिमोन गोत्र से जिनके नाम लिखे गए, उनकी गिनती 59,300 थी।

24 गाद के वंशजों+ के नाम उनके अपने-अपने घराने और पिता के कुल के मुताबिक लिखे गए। जितने आदमियों की उम्र 20 साल या उससे ज़्यादा थी और जो सेना में काम करने के योग्य थे, उन सबकी गिनती ली गयी। 25 गाद गोत्र से जिनके नाम लिखे गए, उनकी गिनती 45,650 थी।

26 यहूदा के वंशजों+ के नाम उनके अपने-अपने घराने और पिता के कुल के मुताबिक लिखे गए। जितने आदमियों की उम्र 20 साल या उससे ज़्यादा थी और जो सेना में काम करने के योग्य थे, उन सबकी गिनती ली गयी। 27 यहूदा गोत्र से जिनके नाम लिखे गए, उनकी गिनती 74,600 थी।

28 इस्साकार के वंशजों+ के नाम उनके अपने-अपने घराने और पिता के कुल के मुताबिक लिखे गए। जितने आदमियों की उम्र 20 साल या उससे ज़्यादा थी और जो सेना में काम करने के योग्य थे, उन सबकी गिनती ली गयी। 29 इस्साकार गोत्र से जिनके नाम लिखे गए, उनकी गिनती 54,400 थी।

30 जबूलून के वंशजों+ के नाम उनके अपने-अपने घराने और पिता के कुल के मुताबिक लिखे गए। जितने आदमियों की उम्र 20 साल या उससे ज़्यादा थी और जो सेना में काम करने के योग्य थे, उन सबकी गिनती ली गयी। 31 जबूलून गोत्र से जिनके नाम लिखे गए, उनकी गिनती 57,400 थी।

32 यूसुफ के जो वंशज एप्रैम से निकले,+ उनके नाम उनके अपने-अपने घराने और पिता के कुल के मुताबिक लिखे गए। जितने आदमियों की उम्र 20 साल या उससे ज़्यादा थी और जो सेना में काम करने के योग्य थे, उन सबकी गिनती ली गयी। 33 एप्रैम गोत्र से जिनके नाम लिखे गए, उनकी गिनती 40,500 थी।

34 मनश्‍शे के वंशजों+ के नाम उनके अपने-अपने घराने और पिता के कुल के मुताबिक लिखे गए। जितने आदमियों की उम्र 20 साल या उससे ज़्यादा थी और जो सेना में काम करने के योग्य थे, उन सबकी गिनती ली गयी। 35 मनश्‍शे गोत्र से जिनके नाम लिखे गए, उनकी गिनती 32,200 थी।

36 बिन्यामीन के वंशजों+ के नाम उनके अपने-अपने घराने और पिता के कुल के मुताबिक लिखे गए। जितने आदमियों की उम्र 20 साल या उससे ज़्यादा थी और जो सेना में काम करने के योग्य थे, उन सबकी गिनती ली गयी। 37 बिन्यामीन गोत्र से जिनके नाम लिखे गए, उनकी गिनती 35,400 थी।

38 दान के वंशजों+ के नाम उनके अपने-अपने घराने और पिता के कुल के मुताबिक लिखे गए। जितने आदमियों की उम्र 20 साल या उससे ज़्यादा थी और जो सेना में काम करने के योग्य थे, उन सबकी गिनती ली गयी। 39 दान गोत्र से जिनके नाम लिखे गए, उनकी गिनती 62,700 थी।

40 आशेर के वंशजों+ के नाम उनके अपने-अपने घराने और पिता के कुल के मुताबिक लिखे गए। जितने आदमियों की उम्र 20 साल या उससे ज़्यादा थी और जो सेना में काम करने के योग्य थे, उन सबकी गिनती ली गयी। 41 आशेर गोत्र से जिनके नाम लिखे गए, उनकी गिनती 41,500 थी।

42 नप्ताली के वंशजों+ के नाम उनके अपने-अपने घराने और पिता के कुल के मुताबिक लिखे गए। जितने आदमियों की उम्र 20 साल या उससे ज़्यादा थी और जो सेना में काम करने के योग्य थे, उन सबकी गिनती ली गयी। 43 नप्ताली गोत्र से जिनके नाम लिखे गए, उनकी गिनती 53,400 थी।

44 मूसा ने हारून और इसराएल के 12 प्रधानों के साथ मिलकर, जो अपने-अपने पिता के कुल के प्रधान थे, इन सभी आदमियों के नाम लिखे। 45 जितने इसराएली आदमियों की उम्र 20 साल या उससे ज़्यादा थी और जो इसराएल की सेना में काम करने के योग्य थे, उन सबके नाम उनके अपने-अपने पिता के कुल के मुताबिक लिखे गए। 46 जितने आदमियों के नाम लिखे गए उनकी कुल गिनती 6,03,550 थी।+

47 मगर लेवियों+ के नाम उनके अपने-अपने पिता के कुल के मुताबिक नहीं लिखे गए।+ 48 यहोवा ने मूसा से कहा था, 49 “सिर्फ लेवी गोत्र के आदमियों के नाम न लिखना और न ही उनकी गिनती बाकी इसराएलियों की गिनती में शामिल करना।+ 50 तू लेवियों को पवित्र डेरे की, जिसमें गवाही का संदूक रखा है+ और उसकी सारी चीज़ों की ज़िम्मेदारी सौंपना।+ वे पवित्र डेरे और उसकी सारी चीज़ों को उठाया करेंगे।+ वे डेरे में सेवा करेंगे+ और डेरे के चारों तरफ अपने तंबू लगाएँगे।+ 51 जब भी पवित्र डेरे को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना होगा, तो लेवी उसके अलग-अलग हिस्से खोलेंगे+ और जब डेरा खड़ा करना होगा, तो वे ही उन्हें दोबारा जोड़कर उसे खड़ा करेंगे। लेवियों के अलावा अगर कोई ऐसा इंसान डेरे के पास आता है, जिसे अधिकार नहीं* तो उसे मार डाला जाए।+

52 इसराएलियों के तीन-तीन गोत्रों से बने हर दल के लिए जो जगह ठहरायी गयी है,*+ ठीक उसी के मुताबिक हर आदमी को अपने दल में अपना तंबू डालना चाहिए। 53 और लेवियों को अपना तंबू पवित्र डेरे के चारों तरफ डालना चाहिए जिसमें गवाही का संदूक रखा है, ताकि इसराएलियों की मंडली पर मेरा क्रोध भड़क न उठे।+ मेरे पवित्र डेरे की, जिसमें गवाही का संदूक रखा है, देखभाल करने की* ज़िम्मेदारी लेवियों की है।”+

54 इसराएल के लोगों ने इन सारी आज्ञाओं का पालन किया जो यहोवा ने मूसा को दी थीं। उन्होंने ठीक वैसा ही किया।

2 फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, 2 “इसराएलियों में से हर आदमी को अपना तंबू उस जगह लगाना चाहिए जो तीन गोत्रों से बने उसके दल के लिए ठहरायी गयी है।+ उसे अपने पिता के कुल के झंडे* के पास तंबू लगाना चाहिए। इसराएलियों के सभी तंबू भेंट के तंबू के चारों तरफ होने चाहिए और हर तंबू का द्वार भेंट के तंबू की तरफ होना चाहिए।

3 भेंट के तंबू के पूरब की तरफ, जहाँ सूरज उगता है, तीन गोत्रों से बना वह दल छावनी डालेगा जिसके दल का अगुवा यहूदा गोत्र है। यहूदा के बेटों का प्रधान अम्मीनादाब का बेटा नहशोन है।+ 4 उसकी सेना में 74,600 आदमियों के नाम लिखे गए।+ 5 यहूदा गोत्र के एक तरफ इस्साकार गोत्र छावनी डालेगा। इस्साकार के बेटों का प्रधान ज़ुआर का बेटा नतनेल है।+ 6 उसकी सेना में 54,400 आदमियों के नाम लिखे गए।+ 7 यहूदा गोत्र के दूसरी तरफ जबूलून गोत्र छावनी डालेगा। जबूलून के बेटों का प्रधान हेलोन का बेटा एलीआब है।+ 8 उसकी सेना में 57,400 आदमियों के नाम लिखे गए।+

9 यहूदा की छावनी में से जितने आदमियों के नाम सेना में लिखे गए उनकी गिनती 1,86,400 है। ये लोग सबसे पहले अपना पड़ाव उठाएँगे।+

10 दक्षिण की तरफ तीन गोत्रों से बना वह दल छावनी डालेगा जिसका अगुवा रूबेन गोत्र है।+ रूबेन के बेटों का प्रधान शदेऊर का बेटा एलीसूर है।+ 11 उसकी सेना में 46,500 आदमियों के नाम लिखे गए।+ 12 रूबेन गोत्र के एक तरफ शिमोन गोत्र छावनी डालेगा। शिमोन के बेटों का प्रधान सूरीशद्दै का बेटा शलूमीएल है।+ 13 उसकी सेना में 59,300 आदमियों के नाम लिखे गए।+ 14 रूबेन गोत्र के दूसरी तरफ गाद गोत्र छावनी डालेगा। गाद के बेटों का प्रधान रूएल का बेटा एल्यासाप है।+ 15 उसकी सेना में 45,650 आदमियों के नाम लिखे गए।+

16 रूबेन की छावनी में से जितने आदमियों के नाम सेना में लिखे गए उनकी गिनती 1,51,450 है। यह दल पड़ाव उठानेवाला दूसरा दल होगा।+

17 जब भेंट का तंबू एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जाएगा,+ तो लेवियों के दल को बाकी दलों के बीच रहकर चलना होगा।

सब इसराएलियों को उसी कायदे से सफर करना चाहिए जिस कायदे से वे पड़ाव डालते हैं।+ हरेक को अपनी ठहरायी जगह पर बने रहना चाहिए और तीन गोत्रों के अपने-अपने दल में रहकर ही चलना चाहिए।

18 पश्‍चिम की तरफ तीन गोत्रों से बना वह दल छावनी डालेगा जिसका अगुवा एप्रैम गोत्र है। एप्रैम के बेटों का प्रधान अम्मीहूद का बेटा एलीशामा है।+ 19 उसकी सेना में 40,500 आदमियों के नाम लिखे गए।+ 20 एप्रैम गोत्र के एक तरफ मनश्‍शे गोत्र+ छावनी डालेगा। मनश्‍शे के बेटों का प्रधान पदासूर का बेटा गमलीएल है।+ 21 उसकी सेना में 32,200 आदमियों के नाम लिखे गए।+ 22 एप्रैम गोत्र के दूसरी तरफ बिन्यामीन गोत्र छावनी डालेगा। बिन्यामीन के बेटों का प्रधान गिदोनी का बेटा अबीदान है।+ 23 उसकी सेना में 35,400 आदमियों के नाम लिखे गए।+

24 एप्रैम की छावनी में से जिन आदमियों के नाम सेना में लिखे गए उनकी गिनती 1,08,100 है। यह दल पड़ाव उठानेवाला तीसरा दल होगा।+

25 उत्तर की तरफ तीन गोत्रों से बना वह दल छावनी डालेगा जिसका अगुवा दान गोत्र है। दान के बेटों का प्रधान अम्मीशद्दै का बेटा अहीएजेर है।+ 26 उसकी सेना में 62,700 आदमियों के नाम लिखे गए।+ 27 दान गोत्र के एक तरफ आशेर गोत्र छावनी डालेगा। आशेर के बेटों का प्रधान ओकरान का बेटा पगीएल है।+ 28 उसकी सेना में 41,500 आदमियों के नाम लिखे गए।+ 29 दान गोत्र के दूसरी तरफ नप्ताली गोत्र छावनी डालेगा। नप्ताली के बेटों का प्रधान एनान का बेटा अहीरा है।+ 30 उसकी सेना में 53,400 आदमियों के नाम लिखे गए।+

31 दान की छावनी में से जिन आदमियों के नाम लिखे गए उनकी गिनती 1,57,600 है। इसराएल के तीन-तीन गोत्रों से बने दलों में से यह दल सबसे आखिर में अपना पड़ाव उठाएगा।”+

32 इन सभी इसराएलियों के नाम अपने-अपने पिता के कुल के मुताबिक लिखे गए। सभी छावनियों में से जितने आदमियों के नाम सेना में लिखे गए उनकी कुल गिनती 6,03,550 थी।+ 33 मगर इन इसराएलियों के साथ लेवियों के नाम नहीं लिखे गए,+ ठीक जैसे यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी। 34 इसराएलियों ने सबकुछ वैसा ही किया जैसे यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी। इस तरह सभी इसराएली तीन-तीन गोत्रों के अपने दल और अपने पिता के कुल और अपने घराने के मुताबिक तंबू डालते+ और उठाते थे।+

3 हारून और मूसा के खानदान की जानकारी यह है। यह जानकारी उस समय की है जब यहोवा ने सीनै पहाड़ पर मूसा से बात की थी।+ 2 हारून के बेटे ये थे: पहलौठा नादाब, फिर अबीहू,+ एलिआज़र+ और ईतामार।+ 3 हारून के इन बेटों का अभिषेक किया गया और याजकों के नाते सेवा करने के लिए उन्हें याजकपद सौंपा गया।*+ 4 मगर नादाब और अबीहू की यहोवा के सामने उस वक्‍त मौत हो गयी, जब वे सीनै वीराने में यहोवा के सामने नियम के खिलाफ आग चढ़ा रहे थे।+ उन दोनों के कोई बेटे नहीं थे। लेकिन एलिआज़र+ और ईतामार+ अपने पिता हारून के साथ याजकों के नाते सेवा करते रहे।

5 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 6 “लेवी गोत्रवालों को आगे लाना+ और उन्हें हारून याजक के सामने खड़ा करना। वे उसके सेवक होंगे।+ 7 वे पवित्र डेरे से जुड़े काम करेंगे और इस तरह भेंट के तंबू में सेवा करके उसकी और पूरी मंडली की तरफ अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाएँगे। 8 वे भेंट के तंबू की सारी चीज़ों की देखरेख करेंगे+ और पवित्र डेरे से जुड़ी सारी सेवाएँ करके इसराएलियों की तरफ अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाएँगे।+ 9 तू लेवियों को हारून और उसके बेटों के अधिकार में सौंपना। वे हारून की सेवा के लिए दिए गए हैं। इसराएलियों में से लेवियों को सेवा के लिए दिया गया है।+ 10 तू हारून और उसके बेटों को याजक ठहराना। उन्हें याजकों के नाते अपनी ज़िम्मेदारी निभानी है।+ उनके अलावा अगर कोई ऐसा इंसान पवित्र-स्थान के पास आता है जिसे अधिकार नहीं,* तो उसे मार डाला जाए।”+

11 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा, 12 “देख, इसराएलियों के सभी पहलौठों की जगह मैं लेवियों को लेता हूँ+ और सभी लेवी मेरे हो जाएँगे। 13 हरेक पहलौठा मेरा है।+ जिस दिन मैंने मिस्र देश में सभी पहलौठों को मार डाला था,+ उसी दिन मैंने इसराएल के हर पहलौठे को अपने लिए अलग ठहराया था, चाहे इंसान के पहलौठे हों या जानवर के।+ सभी पहलौठे मेरे होंगे। मैं यहोवा हूँ।”

14 फिर यहोवा ने सीनै वीराने+ में मूसा से कहा, 15 “तू लेवी के बेटों के नाम उनके अपने-अपने घराने और पिता के कुल के मुताबिक लिखना। तुझे सभी आदमियों के नाम और एक महीने या उससे ज़्यादा उम्र के सभी लड़कों के नाम लिखने हैं।”+ 16 मूसा ने यहोवा के आदेश पर उन सभी के नाम लिखे। उसने वैसा ही किया जैसे उसे आज्ञा दी गयी थी। 17 लेवी के बेटों के नाम ये थे: गेरशोन, कहात और मरारी।+

18 गेरशोन के बेटे थे लिबनी और शिमी। उन्हीं के नाम पर उनके घरानों के नाम पड़े।+

19 कहात के बेटे थे अमराम, यिसहार, हेब्रोन और उज्जीएल।+ उन्हीं के नाम पर उनके घरानों के नाम पड़े।

20 मरारी के बेटे थे महली+ और मूशी। उन्हीं के नाम पर उनके घरानों के नाम पड़े।+

ये थे लेवियों के घराने जो उनके अपने-अपने पिता के कुल के मुताबिक थे।

21 गेरशोन से लिबनियों का घराना+ और शिमियों का घराना निकला। ये गेरशोनियों के घराने थे। 22 उनमें से जितने आदमियों और एक महीने या उससे ज़्यादा उम्र के लड़कों के नाम लिखे गए उनकी गिनती 7,500 थी।+ 23 गेरशोनियों के घरानों की छावनी पवित्र डेरे के पीछे की तरफ+ यानी पश्‍चिम में थी। 24 गेरशोनियों के घरानों का प्रधान लाएल का बेटा एल्यासाप था। 25 गेरशोन के बेटों को भेंट के तंबू में इन चीज़ों की देखरेख की ज़िम्मेदारी दी गयी थी:+ पवित्र डेरा और उसे ढकने की अलग-अलग चादरें,+ डेरे के द्वार का परदा,+ 26 आँगन की कनातें,+ वेदी और डेरे के चारों तरफ के आँगन के द्वार का परदा+ और तंबू की रस्सियाँ। उन्हें इन चीज़ों से जुड़ी सारी सेवाओं की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी।

27 कहात से अमरामियों का घराना, यिसहारियों का घराना, हेब्रोनियों का घराना और उज्जीएलियों का घराना निकला। ये कहातियों के घराने थे।+ 28 उनमें से जितने आदमियों और एक महीने या उससे ज़्यादा उम्र के लड़कों के नाम लिखे गए, उनकी गिनती 8,600 थी। उन्हें पवित्र जगह की देखरेख की ज़िम्मेदारी दी गयी थी।+ 29 कहातियों के घरानों की छावनी पवित्र डेरे के दक्षिण में थी।+ 30 कहातियों के घरानों का प्रधान उज्जीएल का बेटा एलीसापान था।+ 31 उनकी ज़िम्मेदारी थी इन चीज़ों की देखरेख करना: करार का संदूक,+ मेज़,+ दीवट,+ वेदियाँ,+ पवित्र जगह में इस्तेमाल होनेवाली सारी चीज़ें+ और परदा।+ उन्हें इन चीज़ों से जुड़ी सेवा की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी।+

32 लेवियों का मुख्य प्रधान हारून याजक का बेटा एलिआज़र था।+ वह उन सभी आदमियों की निगरानी करनेवाला था जो पवित्र जगह से जुड़ी अलग-अलग ज़िम्मेदारियाँ सँभालते थे।

33 मरारी से महलियों का घराना और मूशियों का घराना निकला। ये मरारियों के घराने थे।+ 34 उनमें से जितने आदमियों और एक महीने या उससे ज़्यादा उम्र के लड़कों के नाम लिखे गए, उनकी गिनती 6,200 थी।+ 35 मरारियों के घरानों का प्रधान अबीहैल का बेटा सूरीएल था। उनकी छावनी पवित्र डेरे के उत्तर की तरफ थी।+ 36 मरारी के बेटों को पवित्र डेरे की चौखटें,+ डंडे,+ खंभे,+ खाँचेदार चौकियाँ और उसकी सारी चीज़ों+ की देखरेख करने और उनसे जुड़ी सारी सेवाओं की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी थी।+ 37 उन्हें आँगन के चारों तरफ के खंभों, उनकी खाँचेदार चौकियों,+ तंबू की खूँटियों और तंबू की रस्सियों की भी देखरेख करनी थी।

38 पवित्र डेरे के सामने यानी भेंट के तंबू के पूरब की तरफ, जहाँ सूरज उगता है, मूसा, हारून और उसके बेटों की छावनी थी। उन्हें पवित्र-स्थान की देखरेख की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी थी। इसराएलियों की तरफ से यह ज़िम्मेदारी निभाना उनका फर्ज़ था। अगर कोई ऐसा इंसान पवित्र-स्थान के पास आएगा जिसे अधिकार नहीं,* तो उसे मार डाला जाएगा।+

39 मूसा और हारून ने यहोवा के आदेश पर जितने लेवी आदमियों और एक महीने या उससे ज़्यादा उम्र के लड़कों के नाम उनके घराने के मुताबिक लिखे, उनकी कुल गिनती 22,000 थी।

40 इसके बाद यहोवा ने मूसा से कहा, “तू इसराएलियों में से उन सभी पहलौठे बेटों की गिनती लेना जिनकी उम्र एक महीना या उससे ज़्यादा है+ और उन सबके नामों की सूची बनाना। 41 इसराएलियों के इन सभी पहलौठों की जगह लेवियों को और इसराएलियों के पालतू जानवरों के पहलौठों की जगह लेवियों के पालतू जानवरों को मेरे लिए लेना।+ मैं यहोवा हूँ।” 42 फिर मूसा ने इसराएलियों के सभी पहलौठों के नाम लिखे, ठीक जैसे यहोवा ने उसे आज्ञा दी थी। 43 एक महीने या उससे ज़्यादा उम्र के जितने भी पहलौठे बेटों के नाम लिखे गए थे उनकी कुल गिनती 22,273 थी।

44 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा, 45 “इसराएलियों के सभी पहलौठों की जगह लेवियों को और इसराएलियों के पालतू जानवरों के पहलौठों की जगह लेवियों के पालतू जानवरों को लेना। लेवी मेरे होंगे। मैं यहोवा हूँ। 46 लेवियों की गिनती से इसराएलियों के जो 273 पहलौठे ज़्यादा हैं,+ उन्हें छुड़ाने के लिए तू फिरौती की कीमत लेना।+ 47 तू हर पहलौठे के लिए पवित्र-स्थान के शेकेल* के मुताबिक पाँच शेकेल* लेना।+ एक शेकेल 20 गेरा* के बराबर है।+ 48 तू फिरौती की यह रकम उन अतिरिक्‍त पहलौठों की तरफ से हारून और उसके बेटों को देना।” 49 तब मूसा ने उन अतिरिक्‍त पहलौठों को छुड़ाने के लिए फिरौती की कीमत ली। 50 उसने इसराएल के इन पहलौठों को छुड़ाने के लिए कुल मिलाकर 1,365 शेकेल लिए, जो पवित्र-स्थान के शेकेल के मुताबिक थे। 51 फिर मूसा ने यहोवा के कहे मुताबिक फिरौती की रकम हारून और उसके बेटों को दी। मूसा ने ठीक वैसे ही किया जैसे यहोवा ने उसे आज्ञा दी थी।

4 यहोवा ने अब मूसा और हारून से कहा, 2 “लेवी के बेटों में से कहात के बेटों+ की गिनती उनके घरानों और पिता के कुलों के मुताबिक लेना। 3 तुम उन सबकी गिनती लेना जिनकी उम्र 30+ से 50+ के बीच है और जो भेंट के तंबू में सेवा के लिए ठहराए गए दल के लोग हैं।+

4 कहात के बेटों को भेंट के तंबू में यह सेवा करनी है।+ उनकी सेवा ऐसी चीज़ों से जुड़ी है जो बहुत पवित्र हैं। 5 जब भी इसराएली दूसरी जगह के लिए रवाना होंगे, तो हारून और उसके बेटे तंबू में आकर गवाही के संदूक के पासवाला परदा+ उतारेंगे और उससे संदूक+ ढक देंगे। 6 वे उस पर सील मछली की खाल से बनी चादर डालेंगे और उसके ऊपर एक मज़बूत नीला कपड़ा डालेंगे और संदूक में वे डंडे+ डालेंगे जिनके सहारे वह उठाया जाएगा।

7 वे नज़राने की रोटी की मेज़+ पर भी एक नीला कपड़ा बिछाएँगे और उस पर थालियाँ, प्याले, कटोरे और वे सुराहियाँ रखेंगे जिनसे अर्घ चढ़ाया जाता है।+ नियमित तौर पर चढ़ायी जानेवाली रोटी+ मेज़ पर ही रहने दी जाए। 8 उन सबके ऊपर वे एक सुर्ख लाल कपड़ा डालेंगे और फिर उसे सील मछली की खाल से बनी चादर से ढक देंगे और मेज़ में वे डंडे+ डालेंगे जिनके सहारे वह उठायी जाएगी। 9 इसके बाद वे एक नीला कपड़ा लेंगे और उससे रौशनी के लिए जलायी जानेवाली दीवट,+ उसके दीए,+ चिमटे, आग उठाने के करछे+ और दीवट के लिए तेल रखनेवाले सारे बरतन ढक देंगे। 10 वे दीवट और उसके साथ इस्तेमाल होनेवाली सारी चीज़ें सील मछली की खाल से बनी एक चादर में लपेटेंगे और उन्हें एक डंडे पर रख देंगे ताकि उन्हें ढोकर ले जा सकें। 11 वे सोने की वेदी+ के ऊपर एक नीला कपड़ा डालेंगे और फिर उसे सील मछली की खाल से बनी एक चादर से ढक देंगे और वेदी में वे डंडे+ डालेंगे जिनके सहारे उसे उठाया जाएगा। 12 फिर वे पवित्र जगह की सेवा में हमेशा इस्तेमाल होनेवाली सारी चीज़ें लेंगे+ और उन्हें एक नीले कपड़े में लपेटेंगे। फिर वे उन्हें सील मछली की खाल से बनी एक चादर से ढककर एक डंडे पर रख देंगे ताकि उन्हें ढोकर ले जा सकें।

13 उन्हें वेदी से सारी राख* हटानी चाहिए+ और फिर वेदी पर बैंजनी ऊन का एक कपड़ा डालना चाहिए। 14 वे उस पर वेदी के साथ इस्तेमाल होनेवाली सारी चीज़ें रखेंगे, जैसे आग उठाने के करछे, काँटे, बेलचे और कटोरे।+ फिर वे उन्हें सील मछली की खाल से बनी चादर से ढक देंगे। वे वेदी में डंडे+ डालेंगे जिनके सहारे वह उठायी जाएगी।

15 जब भी इसराएली दूसरी जगह के लिए रवाना होते हैं, तो हारून और उसके बेटों को चाहिए कि वे पवित्र जगह की सारी चीज़ें ढक दें।+ फिर कहात के बेटे आकर वे चीज़ें उठाएँगे।+ मगर उन्हें पवित्र जगह की चीज़ें हरगिज़ नहीं छूनी चाहिए, वरना वे मर जाएँगे।+ भेंट के तंबू की इन चीज़ों की ज़िम्मेदारी* कहात के बेटों की है।

16 हारून याजक का बेटा एलिआज़र+ इन चीज़ों की देखरेख की निगरानी करेगा: दीए जलाने के लिए तेल,+ सुगंधित धूप,+ नियमित तौर पर चढ़ाया जानेवाला अनाज का चढ़ावा और अभिषेक का तेल।+ पूरे पवित्र डेरे और उसके अंदर के सारे सामान की, यानी तंबू और उसकी सब चीज़ों की देखरेख की निगरानी करना एलिआज़र की ज़िम्मेदारी है।”

17 यहोवा ने मूसा और हारून से यह भी कहा, 18 “तुम इस बात का ध्यान रखना कि लेवियों में से कहाती कुल के घराने+ कभी नाश न हों। 19 उनकी खातिर यह काम करना ताकि वे ज़िंदा रहें और उन चीज़ों के पास आने की वजह से मर न जाएँ जो बहुत पवित्र हैं।+ हारून और उसके बेटे तंबू के अंदर जाकर हरेक कहाती को बताएँगे कि उसे क्या सेवा करनी है और कौन-सा सामान उठाना है। 20 कहातियों को अंदर आकर उसमें रखी पवित्र चीज़ें एक पल के लिए भी नहीं देखनी चाहिए, वरना वे मर जाएँगे।”+

21 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 22 “गेरशोन के बेटों+ की गिनती उनके घरानों और पिता के कुलों के मुताबिक लेना। 23 तू उन सबके नाम लिखना जिनकी उम्र 30 से 50 के बीच है और जो भेंट के तंबू में सेवा के लिए ठहराए गए दल के लोग हैं। 24 गेरशोनियों के घरानों को इन चीज़ों की देखरेख करने और उठाने का काम सौंपा जाता है:+ 25 पवित्र डेरे के कपड़े,+ भेंट का तंबू ढकने की चादर, उसके ऊपर डाली जानेवाली चादर और सील मछली की खाल से बनी चादर,+ भेंट के तंबू के द्वार का परदा,+ 26 आँगन की कनातें,+ वेदी और डेरे के चारों तरफ के आँगन के द्वार का परदा,+ तंबू की रस्सियाँ और उनके साथ इस्तेमाल होनेवाली सारी चीज़ें और औज़ार। यही उनकी ज़िम्मेदारी है। 27 गेरशोनी+ जो भी सेवा करेंगे और जो भी भार उठाएँगे, वह सब हारून और उसके बेटों की निगरानी में होना चाहिए। तुम गेरशोनियों को यह सारा भार उठाने का काम सौंपना। 28 भेंट के तंबू में गेरशोनियों के घरानों को यही सेवा करनी है।+ उन्हें अपनी ज़िम्मेदारी हारून याजक के बेटे ईतामार के निर्देशों के मुताबिक निभानी होगी।+

29 तू मरारी के बेटों+ के नाम उनके घरानों और पिता के कुल के मुताबिक लिखना। 30 तू उन सबके नाम लिखना जिनकी उम्र 30 से 50 के बीच है और जो भेंट के तंबू में सेवा के लिए ठहराए गए दल के लोग हैं। 31 भेंट के तंबू से जुड़ी उनकी सेवा है, ये सारी चीज़ें उठाना:+ पवित्र डेरे की चौखटें,+ डंडे,+ खंभे,+ खाँचेदार चौकियाँ,+ 32 चारों तरफ के आँगन के खंभे,+ उनकी खाँचेदार चौकियाँ,+ खूँटियाँ,+ तंबू की रस्सियाँ और इन सबसे जुड़ा सारा सामान। उन्हें इन चीज़ों से जुड़ी सभी सेवाएँ करनी हैं। तू उनमें से हरेक को बताना कि कौन-सा सामान उठाना उसकी ज़िम्मेदारी है। 33 मरारी के बेटों के घरानों+ को भेंट के तंबू में यही सेवा करनी है। वे हारून याजक के बेटे ईतामार के निर्देशों के मुताबिक काम करेंगे।”+

34 तब मूसा, हारून और मंडली के प्रधानों+ ने कहातियों के उन सभी बेटों+ का नाम उनके घरानों और पिता के कुल के मुताबिक लिखा, 35 जिनकी उम्र 30 से 50 के बीच थी और जो भेंट के तंबू में सेवा के लिए ठहराए गए दल के थे।+ 36 जिन लोगों के नाम उनके घरानों के मुताबिक लिखे गए उनकी कुल गिनती 2,750 थी।+ 37 कहातियों के घरानों में से उन सबके नाम लिखे गए और वे सब भेंट के तंबू में सेवा करते थे। मूसा और हारून ने उन सबके नाम लिखे, ठीक जैसे यहोवा ने मूसा के ज़रिए आदेश दिया था।+

38 गेरशोन के उन बेटों+ के नाम उनके घरानों और पिता के कुल के मुताबिक लिखे गए, 39 जिनकी उम्र 30 से 50 के बीच थी और जो भेंट के तंबू में सेवा के लिए ठहराए गए दल के थे। 40 जिन लोगों के नाम उनके घरानों और पिता के कुल के मुताबिक लिखे गए उनकी कुल गिनती 2,630 थी।+ 41 गेरशोन के बेटों के घरानों से उन सबके नाम लिखे गए और वे सब भेंट के तंबू में सेवा करते थे। मूसा और हारून ने यहोवा के आदेश पर उनके नाम लिखे।+

42 मरारी के उन बेटों के नाम उनके घरानों और पिता के कुल के मुताबिक लिखे गए, 43 जिनकी उम्र 30 से 50 के बीच थी और जो भेंट के तंबू में सेवा के लिए ठहराए गए दल के थे।+ 44 जिन लोगों के नाम उनके घरानों के मुताबिक लिखे गए उनकी कुल गिनती 3,200 थी।+ 45 मरारी के बेटों के घरानों से उन सबके नाम लिखे गए। मूसा और हारून ने उनके नाम लिखे, ठीक जैसे यहोवा ने मूसा के ज़रिए आदेश दिया था।+

46 मूसा, हारून और इसराएल के प्रधानों ने उन सभी लेवियों के नाम उनके अपने-अपने घराने और पिता के कुल के मुताबिक लिखे। 47 उन लेवियों की उम्र 30 से 50 के बीच थी और उन सबको भेंट के तंबू में सेवा करने और तंबू का सामान उठाने के लिए ठहराया गया था।+ 48 जितने लेवियों के नाम लिखे गए उनकी कुल गिनती 8,580 थी।+ 49 यहोवा ने मूसा के ज़रिए जो आदेश दिया था, उसी के मुताबिक उनके नाम लिखे गए। हरेक को सेवा की जो ज़िम्मेदारी दी गयी थी और जो सामान उठाने का काम सौंपा गया था, उसी के मुताबिक उसका नाम लिखा गया, ठीक जैसे यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी।

5 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा, 2 “इसराएलियों को आज्ञा दे कि वे अपनी छावनी में से ऐसे हर इंसान को बाहर भेज दें, जिसे कोढ़ है+ या जिसे रिसाव होता है+ या जो किसी की लाश को छूने की वजह से अशुद्ध हो गया है।+ 3 चाहे आदमी हो या औरत, ऐसे इंसान को तुम ज़रूर छावनी से बाहर भेज देना। तुम्हें ऐसा इसलिए करना चाहिए ताकि उसकी वजह से छावनी के बाकी लोग दूषित न हो जाएँ,+ जिनके बीच मैं निवास* करता हूँ।”+ 4 तब इसराएलियों ने ऐसा ही किया। उन्होंने ऐसे लोगों को छावनी से बाहर भेज दिया, ठीक जैसे यहोवा ने मूसा को बताया था।

5 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा, 6 “इसराएलियों से कहना, ‘अगर कोई आदमी या औरत ऐसा पाप करे जो आम तौर पर इंसान करते हैं और इस तरह यहोवा का विश्‍वासयोग्य रहने से चूक जाए, तो वह दोषी ठहरेगा।+ 7 उसे अपना पाप कबूल करना होगा+ और वह जिस नुकसान के लिए दोषी है उसकी पूरी भरपाई करनी होगी। और उसकी कीमत का पाँचवाँ हिस्सा जोड़कर देना होगा।+ उसे यह सब उस इंसान को देना चाहिए जिसके खिलाफ उसने पाप किया है। 8 लेकिन अगर वह इंसान मर गया है और उसका कोई करीबी रिश्‍तेदार भी नहीं है जिसे मुआवज़ा दिया जा सके, तो दोषी को यह मुआवज़ा यहोवा को देना चाहिए। उस रकम पर याजक का हक होगा। साथ ही, वह प्रायश्‍चित के लिए जो मेढ़ा अर्पित करेगा, उस पर भी याजक का हक होगा।+

9 इसराएली जो भी पवित्र चीज़ें दान करते हैं+ और लाकर याजक को देते हैं वे याजक की हो जाएँगी।+ 10 हर इंसान की दी हुई पवित्र चीज़ें याजक की होंगी। जो कुछ याजक को दिया जाता है उस पर याजक का ही हक होगा।’”

11 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा, 12 “इसराएलियों से कहना, ‘अगर एक आदमी की पत्नी सही राह से भटक जाती है और अपने पति से बेवफाई करती है, तो ऐसे मामले को निपटाने का तरीका यह है। 13 हो सकता है किसी दूसरे आदमी ने उस औरत के साथ यौन-संबंध रखा हो,+ मगर यह बात पति को नहीं मालूम और यह बात छिपी रहती है। वह औरत वाकई खुद को भ्रष्ट कर चुकी है, मगर पकड़ी नहीं गयी है और उसके अपराध का कोई गवाह भी नहीं है। 14 मान लो ऐसी औरत के पति के मन में जलन पैदा होती है और उसे अपनी पत्नी की वफादारी पर शक होता है। या हो सकता है एक औरत ने खुद को भ्रष्ट नहीं किया है, फिर भी उसके पति के मन में जलन पैदा होती है और उसे अपनी पत्नी की वफादारी पर शक होता है। 15 इन दोनों हालात में पति को चाहिए कि वह अपनी पत्नी को याजक के पास ले आए। साथ ही, वह एपा के दसवें भाग* जौ का आटा भी लाए। यह उसकी पत्नी का चढ़ावा होगा। उस आदमी को चढ़ावे पर तेल नहीं डालना चाहिए, न ही उस पर लोबान रखना चाहिए, क्योंकि यह जलन के मामले में दिया जानेवाला अनाज का चढ़ावा है। यह इसलिए दिया जाता है ताकि अगर औरत दोषी है तो उसके पाप पर ध्यान दिया जाए।

16 याजक उस औरत को आगे लाएगा और यहोवा के सामने खड़ा करेगा।+ 17 याजक मिट्टी के एक बरतन में ताज़ा पानी* लेगा और पवित्र डेरे की ज़मीन से थोड़ी मिट्टी लेकर उस पानी में डालेगा। 18 याजक जब उस औरत को यहोवा के सामने खड़ा करेगा, तो उसके बाल खुलवा देगा और उसकी हथेलियों पर यादगार का चढ़ावा यानी जलन के मामले में दिया जानेवाला अनाज का चढ़ावा रखेगा।+ याजक के हाथ में वह कड़वा पानी होगा जो शाप लाता है।+

19 फिर याजक उस औरत से यह कहकर शपथ खिलाएगा: “अगर तू, जिस पर तेरे पति का अधिकार है,+ सही राह से नहीं भटकी और तूने खुद को भ्रष्ट नहीं किया है और किसी पराए आदमी ने तेरे साथ यौन-संबंध नहीं रखा है तो तू शाप लानेवाले इस कड़वे पानी के असर से बच जाए। 20 लेकिन अगर तूने, जिस पर तेरे पति का अधिकार है, सही राह से भटककर खुद को भ्रष्ट किया है और किसी दूसरे आदमी के साथ यौन-संबंध रखा है—”+ 21 फिर याजक उस औरत को शपथ दिलाएगा कि अगर उसने यह पाप किया है तो उस पर शाप पड़े। याजक उससे कहेगा, “यहोवा तेरी जाँघ* सड़ा दे* और तेरा पेट फुला दे। यहोवा ऐसा करे कि लोग शपथ लेते वक्‍त और शाप देते वक्‍त तेरी मिसाल दें। 22 और यह पानी जो शाप लाता है, तेरी अंतड़ियों में जाएगा जिससे तेरा पेट फूल जाएगा और तेरी जाँघ* सड़ जाएगी।”* तब औरत को कहना चाहिए: “आमीन! आमीन!”*

23 फिर याजक को चाहिए कि वह शाप के ये शब्द किताब में लिखे और कड़वे पानी से धो डाले। 24 फिर याजक औरत को यह कड़वा पानी पिलाएगा जो शाप लाता है और पानी उसके अंदर जाएगा और उसका अंजाम बहुत कड़वा होगा। 25 इसके बाद याजक औरत के हाथ से जलन के मामले में दिया गया अनाज का चढ़ावा+ लेगा और उसे यहोवा के सामने आगे-पीछे हिलाकर वेदी के पास लाएगा। 26 फिर याजक अनाज के चढ़ावे में से मुट्ठी-भर आटा प्रतीक के तौर पर लेगा और उसे वेदी पर जलाएगा ताकि उसका धुआँ उठे।+ इसके बाद वह औरत को पानी पिलाएगा। 27 अगर उस औरत ने वाकई खुद को भ्रष्ट कर लिया है और अपने पति के साथ बेवफाई की है, तो जब याजक उस औरत को शाप लानेवाला पानी पिलाएगा तब वह पानी उसके अंदर जाकर कड़वाहट पैदा करेगा, उसका पेट फूल जाएगा और उसकी जाँघ* सड़ जाएगी।* और लोग शाप देते वक्‍त उस औरत की मिसाल देंगे। 28 लेकिन अगर उस औरत ने खुद को भ्रष्ट नहीं किया और वह बेदाग है, तो उसे यह सज़ा नहीं मिलेगी। वह गर्भवती होकर संतान पैदा कर पाएगी।

29 यह जलन के बारे में नियम है+ जो ऐसे मामलों में लागू होता है जब एक औरत, जिस पर उसके पति का अधिकार है, सही राह से भटक जाती है और खुद को भ्रष्ट कर लेती है, 30 या अगर एक आदमी को जलन होती है और उसे अपनी पत्नी की वफादारी पर शक होता है। ऐसे मामलों में पति को चाहिए कि वह अपनी पत्नी को यहोवा के सामने लाकर खड़ा करे और याजक उस औरत पर इस नियम में लिखी बातें लागू करे। 31 ऐसे मामलों में पति निर्दोष होगा, लेकिन अगर पत्नी दोषी साबित होती है तो उसे सज़ा भुगतनी होगी।’”

6 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा, 2 “इसराएलियों से कहना, ‘अगर कोई आदमी या औरत यहोवा के लिए नाज़ीर*+ बनकर सेवा करने की खास मन्‍नत माने, 3 तो उसे दाख-मदिरा या किसी भी किस्म की शराब नहीं पीनी चाहिए। उसे दाख-मदिरा या किसी भी तरह की शराब से बना सिरका नहीं पीना चाहिए।+ न अंगूरों से बना कोई रस पीना चाहिए, न ही ताज़े अंगूर या किशमिश खानी चाहिए। 4 वह जितने दिनों के लिए नाज़ीर की मन्‍नत मानता है उतने दिन उसे अंगूर की बेल की उपज से बनी कोई भी चीज़ नहीं खानी चाहिए, कच्चे अंगूर से लेकर छिलके तक से बनी कोई भी चीज़।

5 वह जितने दिनों के लिए नाज़ीर की मन्‍नत मानता है, उतने दिनों तक उसके सिर पर उस्तरा नहीं चलना चाहिए।+ उसे चाहिए कि वह अपने सिर के बाल बढ़ने दे और इस तरह खुद को पवित्र बनाए रखना चाहिए। उसे तब तक ऐसे रहना चाहिए जब तक कि यहोवा के लिए अलग ठहराए जाने के उसके दिन पूरे नहीं हो जाते। 6 वह जितने दिनों तक यहोवा की सेवा के लिए अलग ठहराया जाता है, उतने दिनों तक वह किसी की भी लाश* के करीब न जाए। 7 यहाँ तक कि अगर उसके पिता, उसकी माँ, उसके भाई या उसकी बहन की मौत हो जाए, तब भी उसे उनकी लाश छूकर दूषित नहीं होना चाहिए,+ क्योंकि उसके लंबे बाल इस बात की निशानी हैं कि उसने नाज़ीर बनकर परमेश्‍वर की सेवा करने की मन्‍नत मानी है।

8 वह जितने दिनों के लिए मन्‍नत मानता है उतने दिन वह यहोवा के लिए पवित्र रहता है। 9 लेकिन अगर उसके पास अचानक किसी की मौत हो जाए+ तो उसके सिर के बाल दूषित हो जाएँगे जो इस बात की निशानी हैं कि वह परमेश्‍वर के लिए अलग ठहराया गया है।* उसे उस दिन अपना सिर मुँड़वाना चाहिए+ जिस दिन उसे शुद्ध ठहराया जाएगा। उसे सातवें दिन अपना सिर मुँड़वाना चाहिए। 10 फिर आठवें दिन उसे दो फाख्ते या कबूतर के दो बच्चे लाकर भेंट के तंबू के द्वार पर याजक को देने चाहिए। 11 याजक एक चिड़िया की पाप-बलि और दूसरी की होम-बलि चढ़ाएगा और उसके पाप का प्रायश्‍चित करेगा+ क्योंकि वह लाश छूने की वजह से दोषी हो गया है। उसे चाहिए कि वह उसी दिन अपने सिर को पवित्र ठहराए। 12 उसे दोष-बलि के लिए एक साल का नर मेम्ना लाना चाहिए और यहोवा के लिए नाज़ीर बनकर सेवा करने के खास मन्‍नत के दिन दोबारा शुरू करने चाहिए, क्योंकि दूषित हो जाने की वजह से उसके मन्‍नत के गुज़रे हुए दिन नहीं गिने जाएँगे।

13 एक नाज़ीर के लिए यह नियम है: जिस दिन उसकी मन्‍नत पूरी होती है,+ उस दिन उसे भेंट के तंबू के द्वार पर लाया जाए। 14 वहाँ उसे यहोवा के लिए यह सब अर्पित करना चाहिए: होम-बलि के लिए एक साल का नर मेम्ना जिसमें कोई दोष न हो,+ पाप-बलि के लिए एक साल की मादा मेम्ना जिसमें कोई दोष न हो,+ शांति-बलि के लिए एक मेढ़ा जिसमें कोई दोष न हो,+ 15 टोकरी-भर छल्ले जैसी बिन-खमीर की रोटियाँ जो तेल से गुँधे हुए मैदे से बनी हों और तेल चुपड़ी बिन-खमीर की पापड़ियाँ। उसे इस चढ़ावे के साथ अनाज का चढ़ावा+ और अर्घ भी लाना चाहिए।+ 16 याजक यह सब यहोवा के सामने ले जाएगा और मन्‍नत माननेवाले की पाप-बलि और होम-बलि चढ़ाएगा। 17 वह यहोवा को बिन-खमीर की रोटियों से भरी टोकरी के साथ शांति-बलि का मेढ़ा अर्पित करेगा। याजक मेढ़े के साथ अनाज का चढ़ावा+ और अर्घ भी चढ़ाएगा।

18 फिर नाज़ीर को भेंट के तंबू के द्वार पर अपने सिर के लंबे बाल मुँड़वाने चाहिए,*+ जो उसने मन्‍नत के दिन बढ़ाए थे। वह अपने कटे हुए बाल उस आग में डालेगा जिसके ऊपर शांति-बलि का जानवर जल रहा होगा। 19 इसके बाद याजक मेढ़े का एक कंधा लेगा जो उबाला गया है+ और टोकरी से बिन-खमीर की छल्ले जैसी एक रोटी और बिन-खमीर की एक पापड़ी लेगा। वह यह सब नाज़ीर की हथेलियों पर रखेगा जिसने अपनी मन्‍नत की निशानी यानी सिर के बाल मुँड़वाए हैं। 20 तब याजक यहोवा के सामने वे चीज़ें आगे-पीछे हिलाएगा। यह हिलाकर दिया जानेवाला चढ़ावा है।+ ये चीज़ें, साथ ही हिलाकर दिए जानेवाले चढ़ावे के जानवर का सीना और पवित्र हिस्से का पैर,+ याजक के लिए पवित्र हैं। इस तरह नाज़ीर बनकर सेवा करने की अपनी मन्‍नत पूरी करने के बाद वह आदमी दाख-मदिरा पी सकता है।

21 अगर एक नाज़ीर, कानून में माँग की गयी इन चीज़ों के अलावा कुछ और चीज़ें यहोवा को देने की हैसियत रखता है और वह देने का वादा करता है, तो उस पर यह नियम लागू होगा+ कि वह हर हाल में अपना वादा पूरा करे और उन चीज़ों का चढ़ावा चढ़ाए।’”

22 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 23 “हारून और उसके बेटों से कहना, ‘तुम्हें इसराएल के लोगों को इस तरह आशीर्वाद देना चाहिए।+ तुम उनसे कहना:

24 “यहोवा तुम्हें आशीष दे+ और तुम्हारी हिफाज़त करे।

25 यहोवा अपने मुख का प्रकाश तुम पर चमकाए+ और तुम पर कृपा करे।

26 यहोवा अपना मुख तेरी ओर करे और तुम्हें शांति दे।”’+

27 याजक मेरा नाम लेकर+ इसराएल के लोगों को आशीर्वाद दिया करें ताकि मैं उन्हें आशीष दूँ।”+

7 जिस दिन मूसा ने पवित्र डेरा खड़ा करने का काम पूरा किया,+ उसी दिन उसने डेरे का अभिषेक किया+ और उसे पवित्र ठहराया। साथ ही, उसने डेरे के सारे साजो-सामान का और वेदी और उसके साथ इस्तेमाल होनेवाली सारी चीज़ों का अभिषेक किया और उन्हें पवित्र ठहराया।+ 2 इसके बाद इसराएल के प्रधान,+ जो अपने-अपने पिता के कुल के मुखिया थे, अपनी भेंट ले आए। इसराएल के गोत्रों के ये प्रधान, जिनकी निगरानी में नाम-लिखाई हुई थी, 3 भेंट में यहोवा के सामने छतवाली छ: बैल-गाड़ियाँ और 12 बैल ले आए। हर दो प्रधानों की तरफ से एक बैल-गाड़ी और हर प्रधान की तरफ से एक बैल था। ये सब वे पवित्र डेरे के सामने लाए। 4 यहोवा ने मूसा से कहा, 5 “प्रधानों से ये चीज़ें स्वीकार कर क्योंकि ये भेंट के तंबू की सेवा में इस्तेमाल की जाएँगी। तू ये सारी चीज़ें लेवियों को देना, हरेक को उसके काम की ज़रूरत के हिसाब से देना।”

6 तब मूसा ने प्रधानों से बैल-गाड़ियाँ और बैल लेकर लेवियों को दिए। 7 उसने गेरशोन के बेटों को उनके काम+ की ज़रूरत के हिसाब से दो बैल-गाड़ियाँ और चार बैल दिए 8 और मरारी के बेटों को उनके काम की ज़रूरत के हिसाब से चार बैल-गाड़ियाँ और आठ बैल दिए। मूसा ने उन्हें ये सारी चीज़ें हारून याजक के बेटे ईतामार की निगरानी में सौंपीं।+ 9 मगर उसने कहात के बेटों को कुछ नहीं दिया, क्योंकि उन्हें पवित्र जगह में इस्तेमाल होनेवाली चीज़ें उठाने का काम दिया गया था+ और ये पवित्र चीज़ें वे अपने कंधों पर उठाते थे।+

10 जिस दिन वेदी का अभिषेक किया गया तब उसका उद्‌घाटन* किया गया+ और उस मौके पर प्रधान अपना-अपना चढ़ावा ले आए। जब प्रधान अपना चढ़ावा वेदी के सामने ले आए, 11 तो यहोवा ने मूसा से कहा, “वेदी के उद्‌घाटन के लिए हर दिन एक प्रधान अपना चढ़ावा लाकर देगा।”

12 पहले दिन यहूदा गोत्र के प्रधान नहशोन+ ने अपना चढ़ावा लाकर दिया जो अम्मीनादाब का बेटा था। 13 उसका चढ़ावा यह था: चाँदी की एक थाली जिसका वज़न 130 शेकेल* था और चाँदी का एक कटोरा जिसका वज़न 70 शेकेल था। ये शेकेल पवित्र-स्थान के शेकेल* के मुताबिक थे।+ इन दोनों बरतनों में अनाज के चढ़ावे के लिए तेल मिला मैदा भरा था।+ 14 सोने का एक प्याला* जिसका वज़न 10 शेकेल था। यह धूप से भरा था। 15 होम-बलि के लिए एक बैल,+ एक मेढ़ा और एक साल का एक नर मेम्ना, 16 पाप-बलि के लिए बकरी का एक बच्चा+ 17 और शांति-बलि+ के लिए दो बैल, पाँच मेढ़े, पाँच बकरे और एक-एक साल के पाँच नर मेम्ने। अम्मीनादाब के बेटे नहशोन+ का यही चढ़ावा था।

18 दूसरे दिन इस्साकार गोत्र के प्रधान नतनेल+ ने चढ़ावा लाकर दिया, जो ज़ुआर का बेटा था। 19 उसका चढ़ावा यह था: चाँदी की एक थाली जिसका वज़न 130 शेकेल था और चाँदी का एक कटोरा जिसका वज़न 70 शेकेल था। ये शेकेल पवित्र-स्थान के शेकेल के मुताबिक थे।+ इन दोनों बरतनों में अनाज के चढ़ावे के लिए तेल मिला मैदा भरा था।+ 20 सोने का एक प्याला जिसका वज़न 10 शेकेल था। यह धूप से भरा था। 21 होम-बलि के लिए एक बैल,+ एक मेढ़ा और एक साल का एक नर मेम्ना, 22 पाप-बलि के लिए बकरी का एक बच्चा+ 23 और शांति-बलि+ के लिए दो बैल, पाँच मेढ़े, पाँच बकरे और एक-एक साल के पाँच मेम्ने। ज़ुआर के बेटे नतनेल का यही चढ़ावा था।

24 तीसरे दिन जबूलून के बेटों के प्रधान एलीआब+ ने, जो हेलोन का बेटा था, 25 यह चढ़ावा दिया: चाँदी की एक थाली जिसका वज़न 130 शेकेल था और चाँदी का एक कटोरा जिसका वज़न 70 शेकेल था। ये शेकेल पवित्र-स्थान के शेकेल के मुताबिक थे।+ इन दोनों बरतनों में अनाज के चढ़ावे के लिए तेल मिला मैदा भरा था।+ 26 सोने का एक प्याला जिसका वज़न 10 शेकेल था। यह धूप से भरा था। 27 होम-बलि के लिए एक बैल,+ एक मेढ़ा और एक साल का एक नर मेम्ना, 28 पाप-बलि के लिए बकरी का एक बच्चा+ 29 और शांति-बलि+ के लिए दो बैल, पाँच मेढ़े, पाँच बकरे और एक-एक साल के पाँच नर मेम्ने। हेलोन के बेटे एलीआब+ का यही चढ़ावा था।

30 चौथे दिन रूबेन के बेटों के प्रधान एलीसूर+ ने, जो शदेऊर का बेटा था, 31 यह चढ़ावा दिया: चाँदी की एक थाली जिसका वज़न 130 शेकेल था और चाँदी का एक कटोरा जिसका वज़न 70 शेकेल था। ये शेकेल पवित्र-स्थान के शेकेल के मुताबिक थे।+ इन दोनों बरतनों में अनाज के चढ़ावे के लिए तेल मिला मैदा भरा था।+ 32 सोने का एक प्याला जिसका वज़न 10 शेकेल था। यह धूप से भरा था। 33 होम-बलि के लिए एक बैल,+ एक मेढ़ा और एक साल का एक नर मेम्ना, 34 पाप-बलि के लिए बकरी का एक बच्चा+ 35 और शांति-बलि+ के लिए दो बैल, पाँच मेढ़े, पाँच बकरे और एक-एक साल के पाँच नर मेम्ने। शदेऊर के बेटे एलीसूर+ का यही चढ़ावा था।

36 पाँचवें दिन शिमोन के बेटों के प्रधान शलूमीएल+ ने, जो सूरीशद्दै का बेटा था, 37 यह चढ़ावा दिया: चाँदी की एक थाली जिसका वज़न 130 शेकेल था और चाँदी का एक कटोरा जिसका वज़न 70 शेकेल था। ये शेकेल पवित्र-स्थान के शेकेल के मुताबिक थे।+ इन दोनों बरतनों में अनाज के चढ़ावे के लिए तेल मिला मैदा भरा था।+ 38 सोने का एक प्याला जिसका वज़न 10 शेकेल था। यह धूप से भरा था। 39 होम-बलि के लिए एक बैल,+ एक मेढ़ा और एक साल का एक नर मेम्ना, 40 पाप-बलि के लिए बकरी का एक बच्चा+ 41 और शांति-बलि+ के लिए दो बैल, पाँच मेढ़े, पाँच बकरे और एक-एक साल के पाँच नर मेम्ने। सूरीशद्दै के बेटे शलूमीएल+ का यही चढ़ावा था।

42 छठे दिन गाद के बेटों के प्रधान एल्यासाप+ ने, जो दूएल का बेटा था, 43 यह चढ़ावा दिया: चाँदी की एक थाली जिसका वज़न 130 शेकेल था और चाँदी का एक कटोरा जिसका वज़न 70 शेकेल था। ये शेकेल पवित्र-स्थान के शेकेल के मुताबिक थे।+ इन दोनों बरतनों में अनाज के चढ़ावे के लिए तेल मिला मैदा भरा था।+ 44 सोने का एक प्याला जिसका वज़न 10 शेकेल था। यह धूप से भरा था। 45 होम-बलि के लिए एक बैल,+ एक मेढ़ा और एक साल का एक नर मेम्ना, 46 पाप-बलि के लिए बकरी का एक बच्चा+ 47 और शांति-बलि+ के लिए दो बैल, पाँच मेढ़े, पाँच बकरे और एक-एक साल के पाँच नर मेम्ने। दूएल के बेटे एल्यासाप+ का यही चढ़ावा था।

48 सातवें दिन एप्रैम के बेटों के प्रधान एलीशामा+ ने, जो अम्मीहूद का बेटा था, 49 यह चढ़ावा दिया: चाँदी की एक थाली जिसका वज़न 130 शेकेल था और चाँदी का एक कटोरा जिसका वज़न 70 शेकेल था। ये शेकेल पवित्र-स्थान के शेकेल के मुताबिक थे।+ इन दोनों बरतनों में अनाज के चढ़ावे के लिए तेल मिला मैदा भरा था।+ 50 सोने का एक प्याला जिसका वज़न 10 शेकेल था। यह धूप से भरा था। 51 होम-बलि के लिए एक बैल,+ एक मेढ़ा और एक साल का एक नर मेम्ना, 52 पाप-बलि के लिए बकरी का एक बच्चा+ 53 और शांति-बलि+ के लिए दो बैल, पाँच मेढ़े, पाँच बकरे और एक-एक साल के पाँच नर मेम्ने। अम्मीहूद के बेटे एलीशामा+ का यही चढ़ावा था।

54 आठवें दिन मनश्‍शे के बेटों के प्रधान गमलीएल+ ने, जो पदासूर का बेटा था, 55 यह चढ़ावा दिया: चाँदी की एक थाली जिसका वज़न 130 शेकेल था और चाँदी का एक कटोरा जिसका वज़न 70 शेकेल था। ये शेकेल पवित्र-स्थान के शेकेल के मुताबिक थे।+ इन दोनों बरतनों में अनाज के चढ़ावे के लिए तेल मिला मैदा भरा था।+ 56 सोने का एक प्याला जिसका वज़न 10 शेकेल था। यह धूप से भरा था। 57 होम-बलि के लिए एक बैल,+ एक मेढ़ा और एक साल का एक नर मेम्ना, 58 पाप-बलि के लिए बकरी का एक बच्चा+ 59 और शांति-बलि+ के लिए दो बैल, पाँच मेढ़े, पाँच बकरे और एक-एक साल के पाँच नर मेम्ने। पदासूर के बेटे गमलीएल+ का यही चढ़ावा था।

60 नौवें दिन बिन्यामीन के बेटों के प्रधान+ अबीदान+ ने, जो गिदोनी का बेटा था, 61 यह चढ़ावा दिया: चाँदी की एक थाली जिसका वज़न 130 शेकेल था और चाँदी का एक कटोरा जिसका वज़न 70 शेकेल था। ये शेकेल पवित्र-स्थान के शेकेल के मुताबिक थे।+ इन दोनों बरतनों में अनाज के चढ़ावे के लिए तेल मिला मैदा भरा था।+ 62 सोने का एक प्याला जिसका वज़न 10 शेकेल था। यह धूप से भरा था। 63 होम-बलि के लिए एक बैल,+ एक मेढ़ा और एक साल का एक नर मेम्ना, 64 पाप-बलि के लिए बकरी का एक बच्चा+ 65 और शांति-बलि+ के लिए दो बैल, पाँच मेढ़े, पाँच बकरे और एक-एक साल के पाँच नर मेम्ने। गिदोनी के बेटे अबीदान+ का यही चढ़ावा था।

66 दसवें दिन दान के बेटों के प्रधान अहीएजेर+ ने, जो अम्मीशद्दै का बेटा था, 67 यह चढ़ावा दिया: चाँदी की एक थाली जिसका वज़न 130 शेकेल था और चाँदी का एक कटोरा जिसका वज़न 70 शेकेल था। ये शेकेल पवित्र-स्थान के शेकेल के मुताबिक थे।+ इन दोनों बरतनों में अनाज के चढ़ावे के लिए तेल मिला मैदा भरा था।+ 68 सोने का एक प्याला जिसका वज़न 10 शेकेल था। यह धूप से भरा था। 69 होम-बलि के लिए एक बैल,+ एक मेढ़ा और एक साल का एक नर मेम्ना, 70 पाप-बलि के लिए बकरी का एक बच्चा+ 71 और शांति-बलि+ के लिए दो बैल, पाँच मेढ़े, पाँच बकरे और एक-एक साल के पाँच नर मेम्ने। अम्मीशद्दै के बेटे अहीएजेर+ का यही चढ़ावा था।

72 11वें दिन आशेर के बेटों के प्रधान पगीएल+ ने, जो ओकरान का बेटा था, 73 यह चढ़ावा दिया: चाँदी की एक थाली जिसका वज़न 130 शेकेल था और चाँदी का एक कटोरा जिसका वज़न 70 शेकेल था। ये शेकेल पवित्र-स्थान के शेकेल के मुताबिक थे।+ इन दोनों बरतनों में अनाज के चढ़ावे के लिए तेल मिला मैदा भरा था।+ 74 सोने का एक प्याला जिसका वज़न 10 शेकेल था। यह धूप से भरा था। 75 होम-बलि के लिए एक बैल,+ एक मेढ़ा और एक साल का एक नर मेम्ना, 76 पाप-बलि के लिए बकरी का एक बच्चा+ 77 और शांति-बलि+ के लिए दो बैल, पाँच मेढ़े, पाँच बकरे और एक-एक साल के पाँच नर मेम्ने। ओकरान के बेटे पगीएल+ का यही चढ़ावा था।

78 12वें दिन नप्ताली के बेटों के प्रधान अहीरा+ ने, जो एनान का बेटा था, 79 यह चढ़ावा दिया: चाँदी की एक थाली जिसका वज़न 130 शेकेल था और चाँदी का एक कटोरा जिसका वज़न 70 शेकेल था। ये शेकेल पवित्र-स्थान के शेकेल के मुताबिक थे।+ इन दोनों बरतनों में अनाज के चढ़ावे के लिए तेल मिला मैदा भरा था।+ 80 सोने का एक प्याला जिसका वज़न 10 शेकेल था। यह धूप से भरा था। 81 होम-बलि के लिए एक बैल,+ एक मेढ़ा और एक साल का एक नर मेम्ना, 82 पाप-बलि के लिए बकरी का एक बच्चा+ 83 और शांति-बलि+ के लिए दो बैल, पाँच मेढ़े, पाँच बकरे और एक-एक साल के पाँच नर मेम्ने। एनान के बेटे अहीरा+ का यही चढ़ावा था।

84 जब वेदी का अभिषेक किया गया तब उसका उद्‌घाटन किया गया और उस मौके के लिए इसराएल के प्रधानों ने यह चढ़ावा दिया:+ चाँदी की 12 थालियाँ, चाँदी के 12 कटोरे और सोने के 12 प्याले।+ 85 चाँदी की हर थाली का वज़न 130 शेकेल और चाँदी के हर कटोरे का वज़न 70 शेकेल था। इस हिसाब से चाँदी के बरतनों का कुल वज़न पवित्र-स्थान के शेकेल के मुताबिक+ 2,400 शेकेल था। 86 धूप से भरे सोने के हर प्याले का वज़न पवित्र-स्थान के शेकेल के मुताबिक 10 शेकेल था। इस हिसाब से सोने के 12 प्यालों का कुल वज़न 120 शेकेल था। 87 होम-बलि के लिए कुल जानवर थे 12 बैल, 12 मेढ़े और एक-एक साल के 12 नर मेम्ने। और इनके साथ अनाज का चढ़ावा भी दिया गया था। पाप-बलि के लिए कुल 12 बकरी के बच्चे थे। 88 शांति-बलि के लिए कुल जानवर थे 24 बैल, 60 मेढ़े, 60 बकरे और एक-एक साल के 60 नर मेम्ने। वेदी का अभिषेक करने+ के बाद जब उसका उद्‌घाटन किया गया, तो उस मौके के लिए यह सब चढ़ावा दिया गया।+

89 मूसा जब भी परमेश्‍वर से बात करने के लिए भेंट के तंबू के अंदर जाता,+ उसे गवाही के संदूक के ढकने के ऊपर से परमेश्‍वर की आवाज़ सुनायी देती थी।+ ढकने के ऊपरवाले दो करूबों के बीच+ से परमेश्‍वर, मूसा से बात करता था।

8 यहोवा ने मूसा से कहा, 2 “हारून से कहना, ‘जब तू दीए जलाए तो सातों दीए इस तरह रखना कि दीवट के सामने की जगह में उजाला हो जाए।’”+ 3 हारून ने ठीक वैसे ही किया जैसे यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी। उसने दीए जलाकर उन्हें इस तरह रखा कि दीवट+ के सामने की पूरी जगह रौशनी से जगमगा उठी। 4 पूरी दीवट सोने को हथौड़े से पीटकर बनायी गयी थी। डंडी से लेकर फूलों तक, सबकुछ हथौड़े से पीटकर बनाया गया था।+ दीवट की बनावट बिलकुल उस नमूने जैसी थी जो यहोवा ने मूसा को दर्शन+ में दिखाया था।

5 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा, 6 “इसराएलियों में से लेवियों को लेना और उन्हें शुद्ध करना।+ 7 तू उन्हें इस तरह शुद्ध करना: तू उनके ऊपर पाप से शुद्ध करनेवाला पानी छिड़कना। और वे उस्तरे से अपने पूरे शरीर के बाल मुँड़वाएँ, अपने कपड़े धोएँ और नहा-धोकर खुद को शुद्ध करें।+ 8 फिर वे एक बैल+ और उसके साथ अनाज के चढ़ावे+ के लिए तेल मिला मैदा लेंगे। इसके अलावा तू भी एक बैल लेगा जो पाप-बलि के लिए होगा।+ 9 इसके बाद तू लेवियों को भेंट के तंबू के सामने लाना और इसराएलियों की पूरी मंडली को इकट्ठा करना।+ 10 जब तू लेवियों को यहोवा के सामने लाएगा तो इसराएलियों को उनके ऊपर अपने हाथ रखने चाहिए।+ 11 फिर हारून लेवियों को यहोवा के सामने अर्पित करेगा। यह इसराएलियों की तरफ से हिलाकर दिया जानेवाला चढ़ावा होगा।+ तब लेवी यहोवा की सेवा करेंगे।+

12 फिर लेवी अपने हाथ बैलों के सिर पर रखेंगे।+ इसके बाद बैल यहोवा को अर्पित किए जाएँगे। एक पाप-बलि के लिए और दूसरा होम-बलि के लिए ताकि लेवियों की तरफ से प्रायश्‍चित किया जा सके।+ 13 तू लेवियों को हारून और उसके बेटों के सामने खड़ा करेगा और उन्हें हिलाकर दिए जानेवाले चढ़ावे के तौर पर यहोवा को अर्पित करेगा। 14 तू इसराएलियों में से लेवियों को अलग करना। वे मेरे हो जाएँगे।+ 15 उसके बाद लेवी भेंट के तंबू में सेवा करने के लिए आएँगे। इस तरह तू उन्हें शुद्ध करना और हिलाकर दिए जानेवाले चढ़ावे के तौर पर अर्पित करना। 16 वे दिए गए लोग हैं। इसराएलियों में से उन्हें मेरे लिए अर्पित किया गया है। इसराएलियों के सभी पहलौठे बेटों की जगह मैं लेवियों को अपने लिए लूँगा।+ 17 इसराएलियों का हर पहलौठा मेरा है, फिर चाहे वह इंसान का हो या जानवर का।+ जिस दिन मैंने मिस्र में सभी पहलौठों को मार डाला था, उसी दिन मैंने इसराएल के सब पहलौठों को पवित्र ठहरा दिया था कि वे मुझे दिए जाएँ।+ 18 मैं इसराएलियों के सब पहलौठे बेटों की जगह लेवियों को लूँगा। 19 मैं इसराएलियों में से लेवियों को चुनता हूँ और हारून और उसके बेटों को देता हूँ ताकि वे भेंट के तंबू में इसराएलियों की तरफ से सेवा करें+ और उनके लिए प्रायश्‍चित करने के काम में मदद दें। यह इसलिए है कि इसराएली पवित्र जगह के पास न आएँ और उन पर कोई कहर न टूट पड़े।”+

20 मूसा, हारून और इसराएलियों की पूरी मंडली ने लेवियों के साथ ऐसा ही किया। यहोवा ने मूसा को लेवियों के साथ जो-जो करने की आज्ञा दी, वह सब इसराएलियों ने किया। 21 लेवियों ने खुद को शुद्ध किया और अपने कपड़े धोए।+ फिर हारून ने उन्हें यहोवा के सामने हिलाकर दिए जानेवाले चढ़ावे के तौर पर अर्पित किया।+ फिर हारून ने उन्हें शुद्ध करने के लिए उनकी तरफ से प्रायश्‍चित किया।+ 22 इसके बाद, लेवी भेंट के तंबू में जाकर हारून और उसके बेटों की निगरानी में सेवा करने लगे। यहोवा ने मूसा को लेवियों के बारे में जो आज्ञा दी थी, इसराएलियों ने उनके साथ ठीक वैसा ही किया।

23 यहोवा ने अब मूसा से कहा, 24 “लेवियों के लिए यह नियम है: जिस लेवी की उम्र 25 साल या उससे ज़्यादा है, वह भेंट के तंबू में काम करनेवाले सेवा-दल में शामिल होगा। 25 मगर जब वह 50 का हो जाता है तो वह सेवा-दल से निकल जाएगा। इसके बाद उसे तंबू में सेवा नहीं करनी चाहिए। 26 वह चाहे तो अपने उन भाइयों की मदद कर सकता है जो भेंट के तंबू में ज़िम्मेदारियाँ सँभालते हैं। मगर उसे तंबू में सेवा नहीं करनी चाहिए। तू लेवियों और उनकी ज़िम्मेदारियों के बारे में इस नियम का पालन करना।”+

9 इसराएलियों के मिस्र से निकलने के दूसरे साल के पहले महीने में यहोवा ने सीनै वीराने में मूसा से कहा,+ 2 “इसराएलियों को चाहिए कि फसह के लिए जो वक्‍त तय किया गया है,+ उस वक्‍त पर वे फसह का बलिदान तैयार करें।+ 3 इस महीने के 14वें दिन, शाम के झुटपुटे के समय* तुम तय वक्‍त पर यह बलिदान तैयार करना। फसह के बारे में जो-जो विधियाँ और तरीके बताए गए हैं, तुम ठीक उसी तरह तैयारी करना।”+

4 तब मूसा ने इसराएलियों से फसह का बलिदान तैयार करने के लिए कहा। 5 उन्होंने पहले महीने के 14वें दिन, शाम के झुटपुटे के समय* सीनै वीराने में फसह का बलिदान तैयार किया। यहोवा ने मूसा को जो-जो आज्ञा दी थी, इसराएलियों ने वह सब किया।

6 मगर कुछ आदमी उस दिन फसह का बलिदान नहीं तैयार कर पाए क्योंकि वे एक लाश छूने की वजह से अशुद्ध हो गए थे।+ इसलिए वे मूसा और हारून के पास गए+ 7 और उन्होंने उससे कहा, “हम लोग एक लाश छूने की वजह से अशुद्ध हो गए हैं। फिर भी हम सब इसराएलियों के साथ तय वक्‍त पर यहोवा के लिए बलिदान चढ़ाना चाहते हैं। इसलिए हम तुझसे बिनती करते हैं कि हमें बता, हम क्या करें?”+ 8 मूसा ने उनसे कहा, “ठीक है, मैं यहोवा से पूछकर आता हूँ कि इस बारे में उसकी क्या आज्ञा है।+ तुम लोग यहीं मेरा इंतज़ार करो।”

9 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 10 “इसराएलियों से कहना, ‘अगर तुममें से कोई आदमी या तुम्हारी आनेवाली पीढ़ियों में से कोई आदमी किसी लाश को छूने की वजह से अशुद्ध हो जाए+ या अगर वह कहीं दूर सफर पर हो, तो भी उसे यहोवा के लिए फसह का बलिदान तैयार करना चाहिए। 11 उसे दूसरे महीने के 14वें दिन शाम के झुटपुटे के समय* यह तैयारी करनी चाहिए।+ उसे फसह के जानवर का गोश्‍त, बिन-खमीर की रोटी और कड़वे साग के साथ खाना चाहिए।+ 12 उसे अगली सुबह तक गोश्‍त बचाकर नहीं रखना चाहिए+ और उसकी एक भी हड्डी नहीं तोड़नी चाहिए।+ उसे सारी विधियों के मुताबिक ही तैयारी करनी चाहिए। 13 लेकिन अगर कोई आदमी शुद्ध है या दूर सफर पर नहीं है, फिर भी वह लापरवाह होकर फसह का बलिदान नहीं तैयार करता, तो उसे मौत की सज़ा दी जाए+ क्योंकि उसने तय वक्‍त पर यहोवा को बलिदान नहीं चढ़ाया है। उसे अपने पाप का लेखा देना होगा।

14 अगर तुम्हारे बीच कोई परदेसी रहता है, तो उसे भी यहोवा के लिए फसह का बलिदान तैयार करना चाहिए।+ फसह के बारे में जो-जो विधियाँ और तरीके बताए गए हैं, ठीक उसी तरह उसे यह तैयारी करनी चाहिए।+ तुम सबके लिए एक ही विधि होगी, फिर चाहे तुम पैदाइशी इसराएली हो या परदेसी।’”+

15 जिस दिन पवित्र डेरा यानी गवाही के संदूक का तंबू खड़ा किया गया था,+ उस दिन उसके ऊपर बादल आकर छा गया। मगर शाम को वह डेरे के ऊपर आग-सा दिखायी देने लगा और सुबह तक वैसा ही रहा।+ 16 ऐसा हर दिन होता रहा: दिन में पवित्र डेरे के ऊपर बादल होता और रात को वह आग-सा दिखायी देता।+ 17 जब भी तंबू के ऊपर से बादल हटता तो इसराएली फौरन अपना पड़ाव उठाकर आगे बढ़ने लगते।+ और जहाँ बादल रुक जाता, वहीं वे अपनी छावनी डालते।+ 18 यहोवा के आदेश पर इसराएली रवाना होते और यहोवा के आदेश पर ही वे अपनी छावनी डालते।+ जब तक बादल पवित्र डेरे के ऊपर ठहरा रहता तब तक वे अपनी छावनी डाले रहते। 19 अगर बादल बहुत दिनों तक डेरे के ऊपर ठहरा रहता, तो इसराएली यहोवा की आज्ञा मानकर उतने दिनों तक अपना पड़ाव नहीं उठाते।+ 20 लेकिन कभी-कभी बादल कुछ ही दिनों के लिए डेरे के ऊपर ठहरता। यहोवा के आदेश पर इसराएली अपनी छावनी डाले रहते और यहोवा के आदेश पर ही वे रवाना होते। 21 कभी-कभी तो बादल सिर्फ शाम से सुबह तक ही ठहरता था। सुबह जब बादल डेरे पर से उठता तो वे रवाना हो जाते। चाहे दिन हो या रात, जब भी बादल डेरे के ऊपर से उठता, इसराएली अपना पड़ाव उठाकर चल देते।+ 22 और बादल डेरे के ऊपर चाहे दो दिन या एक महीना या उससे भी ज़्यादा समय तक रुकता, इसराएली उतने समय तक अपनी छावनी डाले रहते और पड़ाव नहीं उठाते। लेकिन जब बादल उठता तब वे भी अपना पड़ाव उठाकर चल देते। 23 यहोवा के आदेश पर वे अपना पड़ाव डालते और यहोवा के आदेश पर ही वे रवाना होते। वे यहोवा की हर आज्ञा मानते थे। यहोवा उनसे मूसा के ज़रिए जो कहता वे वही करते थे।

10 इसके बाद यहोवा ने मूसा से कहा, 2 “तू दो तुरहियाँ बनवाना।+ चाँदी को हथौड़े से पीटकर ये तुरहियाँ बनायी जाएँ। जब भी मंडली के लोगों को बताना हो कि वे सब एक जगह इकट्ठा हो जाएँ या सभी अपने पड़ाव उठाकर आगे बढ़ें, तो ये तुरहियाँ फूँककर इसका ऐलान करना। 3 जब दोनों तुरहियाँ फूँकी जाएँगी तो पूरी मंडली को भेंट के तंबू के द्वार पर तेरे पास इकट्ठा होना चाहिए।+ 4 लेकिन जब एक ही तुरही फूँकी जाएगी तो सिर्फ प्रधानों को, जो हज़ारों इसराएलियों से बने अलग-अलग दल के मुखिया हैं, तेरे पास आना चाहिए।+

5 जब तुरहियाँ चढ़ते-उतरते स्वर में फूँकी जाएँगी, तो पूरब की तरफ की छावनी+ अपना पड़ाव उठाए। 6 जब तुरहियाँ चढ़ते-उतरते स्वर में दूसरी बार फूँकी जाएँगी, तो दक्षिण की छावनी+ अपना पड़ाव उठाए। हर छावनी को अपना पड़ाव उठाने का आदेश देने के लिए इसी तरह तुरहियाँ फूँककर ऐलान किया जाए।

7 जब पूरी मंडली को एक-साथ बुलाना हो तो तुरहियाँ फूँकी जानी चाहिए,+ मगर चढ़ते-उतरते स्वर में नहीं। 8 तुरहियाँ फूँकने का काम हारून के बेटों यानी याजकों को करना चाहिए।+ तुरहियों के इस्तेमाल के बारे में यह नियम तुम पर और तुम्हारी आनेवाली पीढ़ियों पर सदा के लिए लागू रहेगा।

9 अगर तुम्हें कभी अपने देश में ऐसे किसी विरोधी से युद्ध करना पड़े जो तुम पर अत्याचार करता है, तो तुम तुरहियाँ फूँककर युद्ध का ऐलान करना।+ तब तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा तुम पर ध्यान देगा और तुम्हें दुश्‍मनों से बचाएगा।

10 इसके अलावा, तुम खुशी के मौकों पर+ भी तुरहियाँ फूँकना। त्योहारों में+ और हर महीने की शुरूआत में जब तुम होम-बलियाँ और शांति-बलियाँ चढ़ाओगे+ तो तुरहियाँ फूँकना। इससे तुम्हारा परमेश्‍वर तुम्हें याद करेगा। मैं तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा हूँ।”+

11 जब दूसरे साल के दूसरे महीने का 20वाँ दिन+ आया तो वह बादल, जो गवाही के संदूक के पवित्र डेरे के ऊपर ठहरा हुआ था, उठने लगा।+ 12 तब इसराएलियों ने सीनै वीराने से अपना पड़ाव उठाया और वे आगे के लिए रवाना हुए। वे उसी कायदे से निकले जो उन्हें बताया गया था।+ और वे तब तक सफर करते रहे जब तक बादल पारान वीराने में आकर नहीं ठहर गया।+ 13 इस तरह इसराएली पहली बार उस कायदे से अपना पड़ाव उठाकर रवाना हुए जो यहोवा ने मूसा के ज़रिए उन्हें बताया था।+

14 सबसे पहले यहूदा का तीन गोत्रोंवाला दल अपने दल के साथ निकला। इस दल का अधिकारी अम्मीनादाब का बेटा नहशोन था।+ 15 इस्साकार गोत्र का अधिकारी ज़ुआर का बेटा नतनेल था।+ 16 जबूलून गोत्र का अधिकारी हेलोन का बेटा एलीआब था।+

17 फिर पवित्र डेरा खोला गया+ और गेरशोन के बेटे+ और मरारी के बेटे+ डेरे के अलग-अलग हिस्से उठाकर रवाना हुए।

18 इसके बाद रूबेन का तीन गोत्रोंवाला दल अपने दल के साथ निकला। इस दल का अधिकारी शदेऊर का बेटा एलीसूर था।+ 19 शिमोन गोत्र का अधिकारी सूरीशद्दै का बेटा शलूमीएल था।+ 20 गाद गोत्र का अधिकारी दूएल का बेटा एल्यासाप था।+

21 इन सबके बाद कहाती पवित्र-स्थान की चीज़ें उठाकर निकले+ ताकि जब तक वे नयी जगह पहुँचें तब तक डेरा खड़ा हो चुका हो।

22 फिर एप्रैम का तीन गोत्रोंवाला दल अपने दल के साथ निकला। इस दल का अधिकारी अम्मीहूद का बेटा एलीशामा था।+ 23 मनश्‍शे गोत्र का अधिकारी पदासूर का बेटा गमलीएल था।+ 24 बिन्यामीन गोत्र का अधिकारी गिदोनी का बेटा अबीदान था।+

25 इसके बाद दान का तीन गोत्रोंवाला दल अपने दल के साथ निकला। यह दल सब गोत्रों की हिफाज़त करने के लिए सबसे पीछे चलता था। इस दल का अधिकारी अम्मीशद्दै का बेटा अहीएजेर था।+ 26 आशेर गोत्र का अधिकारी ओकरान का बेटा पगीएल था।+ 27 नप्ताली गोत्र का अधिकारी एनान का बेटा अहीरा था।+ 28 जब भी इसराएली अपने दलों के साथ पड़ाव उठाकर एक जगह से दूसरी जगह जाते, तो वे इसी कायदे से रवाना होते थे।+

29 फिर मूसा ने अपने ससुर मिद्यानी रूएल*+ के बेटे होबाब से कहा, “हम लोग उस देश को जा रहे हैं जिसके बारे में यहोवा ने हमसे कहा है, ‘यह देश मैं तुम्हें दूँगा।’+ हम चाहते हैं कि तू भी हमारे साथ चले,+ हम तेरे साथ भलाई करेंगे क्योंकि यहोवा ने इसराएल को अच्छी-अच्छी चीज़ें देने का वादा किया है।”+ 30 मगर होबाब ने उससे कहा, “नहीं, मैं तुम्हारे साथ नहीं आऊँगा। मैं अपने देश, अपने रिश्‍तेदारों के यहाँ लौट जाऊँगा।” 31 तब मूसा ने उससे बिनती की, “हमें छोड़कर मत जा क्योंकि तू ही जानता है कि वीराने में हम किस-किस जगह पर पड़ाव डाल सकते हैं। तू हमारे आगे-आगे चलकर हमें रास्ता दिखा।* 32 और अगर तू हमारे साथ चलेगा,+ तो यहोवा हमें जो आशीषें देनेवाला है उनमें से हम तुझे भी हिस्सा देंगे।”

33 तब इसराएली यहोवा के पहाड़+ के सामने से रवाना हुए और तीन दिन तक सफर करते रहे। इस तीन दिन के सफर के दौरान इसराएलियों के लिए आराम करने की जगह तलाशी गयी और पूरे सफर में यहोवा के करार का संदूक+ उनके आगे रहा।+ 34 जब वे अपना पड़ाव उठाकर चलते थे, तो दिन के वक्‍त यहोवा का बादल+ उनके ऊपर छाया रहता था।

35 जब भी करार का संदूक उठाकर ले जाया जाता तो मूसा कहता, “हे यहोवा, उठ!+ तेरे दुश्‍मन तेरे सामने से तितर-बितर हो जाएँ। तुझसे नफरत करनेवाले तेरे सामने से भाग जाएँ।” 36 और जब करार का संदूक नीचे रखा जाता तो मूसा कहता, “हे यहोवा, लौट आ! अपने हज़ारों-हज़ार इसराएलियों के पास लौट आ!”+

11 अब लोग यहोवा के सामने बुरी तरह शिकायत करने लगे। जब यहोवा ने उनकी शिकायतें सुनीं तो वह गुस्से से भड़क उठा। यहोवा ने आग बरसायी और वह छावनी के किनारे से लोगों को भस्म करने लगा। 2 जब लोग मदद के लिए मूसा को पुकारने लगे, तो मूसा ने यहोवा से मिन्‍नत की+ और आग बुझ गयी। 3 उस जगह का नाम तबेरा* पड़ा क्योंकि वहाँ यहोवा ने लोगों पर आग बरसायी थी।+

4 इसके बाद इसराएलियों के बीच लोगों की जो मिली-जुली भीड़* थी,+ वह खाने की चीज़ों की बड़ी लालसा करने लगी+ और इसराएली भी रोने लगे, “काश, हमें इस वीराने में गोश्‍त मिल जाता!+ 5 वे दिन हम कैसे भुला सकते हैं जब हम मिस्र में मछलियाँ मुफ्त खाया करते थे! और खीरा, तरबूज़, लहसुन, प्याज़, क्या नहीं मिलता था वहाँ!+ 6 मगर अब देखो, हम सूखते जा रहे हैं! सिवा इस मन्‍ना के यहाँ कुछ नहीं मिलता!”+

7 मन्‍ना+ धनिए के बीज जैसा था।+ वह दिखने में गुग्गुल पौधे के गोंद की तरह था। 8 लोग इधर-उधर जाकर ज़मीन से उसे बटोरते थे और फिर हाथ की चक्की में पीसते या ओखली में कूटते थे। इसके बाद वे उसे या तो हाँडी में उबालकर खाते या उससे गोल-गोल रोटियाँ बनाकर खाते थे।+ उसका स्वाद पुए जैसा था। 9 रात के वक्‍त जब छावनी में ओस पड़ती तो उसके साथ मन्‍ना गिरता था।+

10 मूसा ने देखा कि पूरी छावनी में कोहराम मचा हुआ है। हर परिवार और हर इंसान अपने तंबू के द्वार पर बैठा अपना रोना रो रहा है। यह देखकर यहोवा का क्रोध भड़क उठा+ और मूसा को भी गुस्सा आया। 11 उसने यहोवा से कहा, “तू क्यों अपने इस दास को सता रहा है? आखिर मैंने ऐसा क्या किया जो तू मुझसे नाराज़ है? तूने क्यों इन सारे लोगों का बोझ मुझ पर लाद दिया?+ 12 क्या मैं इन सबका पिता हूँ? क्या मैंने इन्हें जन्म दिया है? फिर तू मुझसे क्यों कहता है कि जैसे एक धाई दूध-पीते बच्चे को गोद में लिए फिरती है, वैसे ही तू इनकी देखभाल कर और उस देश में ले जा जिसे देने के बारे में मैंने उनके पुरखों से शपथ खायी थी?+ 13 ये लोग मुझसे रो-रोकर कहते हैं, ‘हमें खाने को गोश्‍त दे!’ अब तू ही बता, इन सबके लिए गोश्‍त मैं कहाँ से लाऊँ? 14 मैं अकेला इन सबको सँभालते-सँभालते थक गया हूँ। अब मुझसे और नहीं होगा।+ 15 अगर तू मुझसे यह बोझ दूर नहीं करना चाहता तो अभी-के-अभी मुझे मार डाल।+ लेकिन अगर तेरी कृपा मुझ पर है, तो मुझ पर और मुसीबतें न आने दे।”

16 यहोवा ने मूसा से कहा, “इसराएल के मुखियाओं में से 70 आदमी चुन, ऐसे आदमी जिन्हें तू जानता है* कि वे लोगों के मुखिया और अधिकारी हैं।+ तू उन्हें भेंट के तंबू के पास ले जा और अपने साथ खड़ा कर। 17 मैं आकर वहाँ तुझसे बात करूँगा+ और तुझ पर मेरी जो पवित्र शक्‍ति+ है उसमें से थोड़ी लेकर उन्हें दूँगा। और वे लोगों को सँभालने की ज़िम्मेदारी निभाने में तेरी मदद करेंगे ताकि यह सारा बोझ तुझे अकेले न उठाना पड़े।+ 18 और तू लोगों से कहना, ‘कल के लिए तैयार हो जाओ।+ कल तुम्हें ज़रूर खाने को गोश्‍त मिलेगा, क्योंकि तुम जो रोना रोते हो, “यहाँ हमें खाने के लिए गोश्‍त कौन देगा? हम मिस्र में ही अच्छे थे,”+ यह सब यहोवा ने सुना है।+ यहोवा तुम्हें ज़रूर गोश्‍त देगा और तुम खाओगे।+ 19 तुम एक या 2 दिन नहीं, 5 या 10 या 20 दिन नहीं, 20 बल्कि पूरे महीने खाते रहोगे, इतना कि वह तुम्हारे नथनों से निकलने लगेगा और तुम्हें उससे घिन हो जाएगी,+ क्योंकि तुमने यहोवा को ठुकरा दिया है जो तुम्हारे बीच है और तुमने उसके सामने रो-रोकर कहा है, “हम मिस्र छोड़कर क्यों आए?”’”+

21 तब मूसा ने कहा, “यहाँ तो पैदल सैनिकों की गिनती ही 6,00,000 है।+ और तू कहता है कि मैं सबको गोश्‍त दूँगा, उन्हें महीने-भर गोश्‍त खिलाऊँगा! यह कैसे हो सकता है? 22 भेड़-बकरियों और गाय-बैलों के झुंड-के-झुंड भी हलाल कर दिए जाएँ तो भी क्या इतने सारे लोगों के लिए काफी होगा? या अगर समुंदर की सारी मछलियाँ पकड़ ली जाएँ, फिर भी क्या उनके खाने के लिए काफी होगा?”

23 यहोवा ने मूसा से कहा, “क्या यहोवा का हाथ इतना छोटा है+ कि वह लोगों को खिला न सके? अब तू देखेगा कि मैंने तुझसे जो कहा है वह होता है या नहीं।”

24 तब मूसा बाहर आया और उसने लोगों को बताया कि यहोवा ने उससे क्या कहा है। मूसा ने लोगों के मुखियाओं में से 70 आदमी चुने और उनसे कहा कि वे तंबू के चारों तरफ खड़े हो जाएँ।+ 25 फिर यहोवा एक बादल में उतरा+ और उसने मूसा से बात की।+ मूसा पर उसकी जो पवित्र शक्‍ति थी, उसमें से थोड़ी लेकर+ उसने उन 70 मुखियाओं में से हरेक को दी। जैसे ही उन सब पर पवित्र शक्‍ति आयी, वे भविष्यवक्‍ताओं जैसा व्यवहार करने लगे।*+ मगर इसके बाद उन्होंने फिर कभी ऐसा व्यवहार नहीं किया।

26 एलदाद और मेदाद नाम के दो मुखिया तंबू के पास नहीं गए बल्कि छावनी में ही रहे। वे उन आदमियों में से थे जिनके नाम लिखे गए थे। इसलिए उन दोनों पर भी पवित्र शक्‍ति आयी, इसके बावजूद कि वे तंबू के पास नहीं गए। और वे दोनों छावनी में भविष्यवक्‍ताओं जैसा व्यवहार करने लगे। 27 यह देखकर एक जवान ने दौड़कर मूसा को यह खबर दी: “एलदाद और मेदाद छावनी में भविष्यवक्‍ताओं जैसा व्यवहार कर रहे हैं!” 28 तब नून के बेटे यहोशू+ ने, जो जवानी की उम्र से मूसा का सेवक था, मूसा से कहा, “मालिक, उन्हें रोक!”+ 29 मगर मूसा ने उससे कहा, “क्या तुझे मेरे लिए जलन हो रही है? मैं तो यही चाहूँगा कि यहोवा के सब लोग भविष्यवक्‍ता बन जाएँ और यहोवा उन्हें अपनी पवित्र शक्‍ति दे।” 30 इसके बाद मूसा इसराएल के मुखियाओं के साथ छावनी में लौट गया।

31 फिर यहोवा ने ऐसी तेज़ हवा चलायी जो समुंदर के ऊपर उड़नेवाली बटेरों को अपने साथ बहाकर ले आयी और उन्हें छावनी के आस-पास गिरा दिया।+ वे इतनी भारी तादाद में थीं कि छावनी के दोनों तरफ एक दिन के सफर की दूरी तक फैल गयीं। वे छावनी के चारों तरफ ज़मीन से करीब दो हाथ* की ऊँचाई तक छा गयीं। 32 अब लोग सारा दिन और सारी रात जागकर बटेर इकट्ठा करते रहे। फिर वे अगले दिन भी जा-जाकर बटेर जमा करते रहे। किसी ने भी दस होमेर* से कम नहीं बटोरा। और वे छावनी के चारों तरफ अपने लिए बटेरों का गोश्‍त फैलाते गए। 33 मगर लोगों ने बटेरों का गोश्‍त खाने के लिए दाँतों से काटा ही था और उसे चबा भी न पाए थे कि यहोवा का क्रोध उन पर भड़क उठा। यहोवा ने उन पर ऐसा कहर ढाया कि बड़ी तादाद में लोग मारे गए।+

34 लोगों ने उस जगह का नाम किबरोत-हत्तावा* रखा+ क्योंकि वहाँ उन्होंने उन लोगों को दफनाया जिन्होंने खाने के लिए लालच किया था।+ 35 फिर लोग किबरोत-हत्तावा से हसेरोत के लिए रवाना हुए और वहाँ ठहरे।+

12 अब मिरयम और हारून ने मूसा के खिलाफ कुड़कुड़ाना शुरू किया क्योंकि मूसा की पत्नी एक कूशी औरत थी।+ 2 वे कहने लगे, “क्या यहोवा ने सिर्फ मूसा के ज़रिए ही बात की है? क्या उसने हमारे ज़रिए बात नहीं की है?”+ यहोवा सबकुछ सुन रहा था।+ 3 मूसा धरती के सब इंसानों में से सबसे दीन स्वभाव का था।*+

4 यहोवा ने फौरन मूसा, हारून और मिरयम से कहा, “तुम तीनों भेंट के तंबू के पास जाओ।” तब वे तीनों तंबू के पास गए। 5 यहोवा बादल के खंभे में उतरा+ और तंबू के द्वार पर खड़ा हुआ। फिर उसने हारून और मिरयम को आगे आने के लिए कहा और वे दोनों आगे गए। 6 परमेश्‍वर ने उनसे कहा, “तुम दोनों मेरी बात ध्यान से सुनो। अगर तुम लोगों के बीच यहोवा का कोई भविष्यवक्‍ता होता, तो मैं उस पर दर्शन के ज़रिए खुद को प्रकट करता+ और उससे सपने में बात करता।+ 7 मगर मेरे सेवक मूसा की बात अलग है। मैंने उसे अपने पूरे घराने पर अधिकार सौंपा है।*+ 8 मैं उससे आमने-सामने बात करता हूँ+ और उसे पहेलियों में नहीं बल्कि साफ-साफ अपनी बात बताता हूँ। और खुद यहोवा उसके सामने प्रकट होता है। फिर तुम दोनों ने मेरे सेवक मूसा के खिलाफ बात करने की जुर्रत कैसे की?”

9 यहोवा उन दोनों पर बहुत गुस्सा हुआ और उनके पास से चला गया। 10 बादल तंबू के ऊपर से दूर हट गया और तभी अचानक मिरयम को कोढ़ हो गया और उसका पूरा शरीर बर्फ जैसा सफेद हो गया।+ जब हारून ने मुड़कर मिरयम पर नज़र डाली तो उसने देखा कि उसे कोढ़ हो गया है।+ 11 हारून ने फौरन मूसा से बिनती की, “हे मालिक, हम पर रहम कर! हमारे पाप की इतनी बड़ी सज़ा मत दे। हमने सचमुच बेवकूफी की है। 12 मिरयम को ऐसे मरे हुए बच्चे की तरह मत रहने दे जो अपनी माँ के गर्भ से अधगला निकलता है।” 13 तब मूसा ने गिड़गिड़ाकर यहोवा से बिनती की, “हे परमेश्‍वर, दया करके मिरयम को ठीक कर दे! उस पर रहम कर!”+

14 यहोवा ने मूसा से कहा, “अगर उसका पिता उसके मुँह पर थूकता तो क्या वह सात दिन तक अपमान नहीं सहती? उसे सात दिन तक छावनी के बाहर अकेले रहने दे।+ उसके बाद उसे वापस छावनी में लाया जा सकता है।” 15 इसलिए मिरयम को सात दिन तक छावनी से बाहर अकेले रहने दिया गया।+ और जब तक उसे वापस छावनी में नहीं लाया गया तब तक लोगों ने वहाँ से अपना पड़ाव नहीं उठाया। 16 फिर लोग हसेरोत से पड़ाव उठाकर+ आगे बढ़े और उन्होंने पारान वीराने में छावनी डाली।+

13 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 2 “मैं इसराएलियों को जो कनान देश देनेवाला हूँ, उसकी जासूसी करने तू कुछ आदमियों को वहाँ भेज। इसके लिए तू हर गोत्र में से एक ऐसे आदमी को चुन जो लोगों का प्रधान है।”+

3 मूसा ने यहोवा का आदेश मानकर पारान वीराने+ से कुछ आदमियों को कनान भेजा। ये सभी आदमी इसराएलियों के प्रधान थे। 4 उनके नाम ये हैं: रूबेन गोत्र से जक्कूर का बेटा शम्मू, 5 शिमोन गोत्र से होरी का बेटा शापात, 6 यहूदा गोत्र से यपुन्‍ने का बेटा कालेब,+ 7 इस्साकार गोत्र से यूसुफ का बेटा यिगाल, 8 एप्रैम गोत्र से नून का बेटा होशेआ,+ 9 बिन्यामीन गोत्र से रापू का बेटा पलती, 10 जबूलून गोत्र से सोदी का बेटा गद्दीएल, 11 यूसुफ के बेटे+ मनश्‍शे के गोत्र+ से सूसी का बेटा गद्दी, 12 दान गोत्र से गमल्ली का बेटा अम्मीएल, 13 आशेर गोत्र से मीकाएल का बेटा सतूर, 14 नप्ताली गोत्र से वोप्सी का बेटा नहबी 15 और गाद गोत्र से माकी का बेटा गूएल। 16 ये उन आदमियों के नाम हैं जिन्हें मूसा ने देश की जासूसी करने भेजा था। मूसा ने नून के बेटे होशेआ का नाम यहोशू* रखा।+

17 जब मूसा ने उन आदमियों को कनान देश की जासूसी करने भेजा तो उनसे कहा: “तुम लोग इस रास्ते से नेगेब जाना और उसके बाद पहाड़ी प्रदेश में जाना।+ 18 तुम देख आना कि देश कैसा है,+ वहाँ किस तरह के लोग रहते हैं, बहुत ताकतवर हैं या मामूली लोग, वहाँ की आबादी कितनी होगी, 19 देश की हालत कैसी है, अच्छी है या बुरी, वहाँ किलेबंद शहर हैं या खुली बस्तियाँ। 20 तुम यह भी देख आना कि वहाँ की ज़मीन कैसी है, उपजाऊ है या बंजर,+ वहाँ पेड़ हैं या नहीं। तुम लोग हिम्मत जुटाकर+ वहाँ से कुछ फल भी लेते आना।” उस समय पके अंगूरों की पहली फसल का मौसम चल रहा था।+

21 तब वे आदमी रवाना हुए। उन्होंने सिन नाम के वीराने+ से लेकर लेबो-हमात*+ के पास रहोब+ तक पूरे देश की जासूसी की। 22 जब वे ऊपर नेगेब पहुँचे तो वे हेब्रोन+ गए जहाँ अहीमन, शेशै और तल्मै+ नाम के अनाकी लोग+ रहते थे। हेब्रोन, मिस्र के सोअन शहर से सात साल पहले बसाया गया था। 23 जब वे एशकोल घाटी+ पहुँचे, तो वहाँ उन्होंने अंगूर की एक डाली काटी जिसमें अंगूरों का एक बड़ा गुच्छा था। इसे दो आदमियों को एक लंबे डंडे पर उठाकर ले जाना पड़ा। वहाँ से उन्होंने कुछ अनार और अंजीर भी लिए।+ 24 उन्होंने उस जगह का नाम एशकोल* घाटी+ रखा, क्योंकि वे इसराएली आदमी वहीं से अंगूरों का गुच्छा काटकर लाए थे।

25 फिर वे आदमी देश की जासूसी करके 40 दिन+ बाद वापस आ गए। 26 वे मूसा, हारून और इसराएलियों की पूरी मंडली के पास लौट आए जो पारान वीराने के कादेश+ में ठहरे हुए थे। उन्होंने लोगों की पूरी मंडली को देश के बारे में खबर दी और वहाँ से लाए हुए फल दिखाए। 27 उन्होंने मूसा को यह खबर दी: “तूने हमें जिस देश की जासूसी करने भेजा था, वहाँ सचमुच दूध और शहद की धाराएँ बहती हैं।+ ये देखो वहाँ के फल।+ 28 मगर वहाँ के लोग बहुत ताकतवर हैं। उनके बड़े-बड़े शहर हैं जिनके चारों तरफ मज़बूत किलाबंदी है। हमने वहाँ अनाकी लोगों को भी देखा।+ 29 और नेगेब+ में अमालेकी लोग+ रहते हैं और पहाड़ी प्रदेश में हित्ती, यबूसी+ और एमोरी+ बसे हुए हैं और समुंदर किनारे+ और यरदन नदी के पासवाले इलाकों में कनानी रहते हैं।”+

30 फिर कालेब ने उन लोगों को शांत करने की कोशिश की जो मूसा के सामने खड़े थे। कालेब ने उनसे कहा, “हम ज़रूर उस देश पर कब्ज़ा कर लेंगे, हम ज़रूर उसे जीत लेंगे। चलो हम फौरन जाकर उस पर हमला करते हैं।”+ 31 मगर जो आदमी कालेब के साथ जासूसी करने गए थे वे कहने लगे, “नहीं, हम वहाँ के लोगों से नहीं लड़ सकते। वे हमसे कहीं ज़्यादा ताकतवर हैं।”+ 32 इस तरह ये आदमी उस देश के बारे में लोगों को बुरी-बुरी बातें सुनाते रहे+ और यह कहते रहे, “हम जिस देश की जासूसी करके आए हैं, वह अपने ही लोगों को निगल लेता है और हमने वहाँ जितने लोगों को देखा वे सब बहुत ही लंबे-चौड़े हैं।+ 33 हमने वहाँ नफिलीम को भी देखा, हाँ, अनाकियों+ को जो नफिलीम के वंशज हैं। उनके सामने तो हम टिड्डियाँ लग रहे थे और वे भी ज़रूर हमें टिड्डी ही समझते होंगे।”

14 तब मंडली के सब लोग ये बातें सुनकर ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगे और सारी रात रोते रहे।+ 2 सभी इसराएली मूसा और हारून के खिलाफ कुड़कुड़ाने लगे।+ उनकी पूरी मंडली कहने लगी, “काश, हम मिस्र में ही मर जाते या इस वीराने में ही मर जाते! 3 यहोवा क्यों हमें उस देश में ले जा रहा है?+ बस इसलिए कि दुश्‍मन आकर हमें तलवार से मार डालें और हमारे बीवी-बच्चों को बंदी बनाकर ले जाएँ?+ इससे तो अच्छा है कि हम मिस्र लौट जाएँ।”+ 4 यहाँ तक कि वे एक-दूसरे से कहने लगे, “आओ हम अपने लिए एक अगुवा चुन लेते हैं और मिस्र लौट जाते हैं!”+

5 तब मूसा और हारून, इसराएलियों की पूरी मंडली के देखते मुँह के बल ज़मीन पर गिरे। 6 और नून के बेटे यहोशू+ और यपुन्‍ने के बेटे कालेब+ ने, जो देश की जासूसी करनेवालों में से थे, मारे दुख के अपने कपड़े फाड़े 7 और उन्होंने इसराएलियों की पूरी मंडली को समझाया, “हम जिस देश की जासूसी करके आए हैं वह बहुत ही बढ़िया देश है।+ 8 अगर यहोवा की मंज़ूरी हम पर बनी रही, तो वह ज़रूर हमें उस देश में ले जाएगा जहाँ दूध और शहद की धाराएँ बहती हैं+ और हमें वह देश दे देगा। 9 मगर तुम लोग यहोवा के खिलाफ बगावत मत करो और उस देश के लोगों से मत डरो+ क्योंकि हम उन्हें आसानी से हरा सकते हैं।* उनकी हिफाज़त करनेवाला कोई नहीं है जबकि हमारे साथ यहोवा है।+ इसलिए तुम उनसे मत डरना।”

10 मगर लोगों की पूरी मंडली कहने लगी कि हम इन दोनों को पत्थरों से मार डालते हैं।+ लेकिन यहोवा की महिमा भेंट के तंबू पर इसराएल के सभी लोगों के सामने प्रकट हुई।+

11 यहोवा ने मूसा से कहा, “ये लोग और कब तक मेरी बेइज़्ज़ती करते रहेंगे?+ मैंने इनके बीच कितने चिन्ह दिखाए हैं, मगर वह सब देखने के बाद भी ये लोग कब तक मुझ पर विश्‍वास करने से इनकार करते रहेंगे?+ 12 अब मैं इन पर महामारी ले आऊँगा और इनका नामो-निशान मिटा दूँगा। और इनके बदले तुझसे एक बड़ा राष्ट्र बनाऊँगा जो इनसे कहीं ज़्यादा महान और ताकतवर होगा।”+

13 मगर मूसा ने यहोवा से कहा, “अगर तूने ऐसा किया तो यह खबर मिस्रियों तक पहुँच जाएगी जिनके बीच तू अपनी शक्‍ति से इन लोगों को यहाँ ले आया है।+ 14 और वे ज़रूर यह बात इस देश के लोगों को बताएँगे, जो पहले से जानते हैं कि तू यहोवा इन लोगों के साथ है+ और तू इनके सामने साफ-साफ प्रकट होता है।+ उन्होंने सुना है कि तू यहोवा है और तेरा बादल तेरे लोगों के ऊपर खड़ा रहता है और तू दिन के वक्‍त बादल के खंभे में और रात के वक्‍त आग के खंभे में होकर उनके आगे-आगे चलता है।+ 15 अब अगर तू इन लोगों को एक ही बार में मार डाले तो ये सारी जातियाँ, जिन्होंने तेरे प्रताप के बारे में सुना है, तेरे बारे में क्या कहेंगी? वे यही कहेंगी, 16 ‘यहोवा ने उन लोगों से शपथ खाकर कहा तो था कि वह उन्हें यह देश दे देगा, मगर वह उन्हें उस देश में ले जाने में नाकाम हो गया। इसलिए उसने उन सबको वीराने में ही मार डाला।’+ 17 इसलिए हे यहोवा, मेहरबानी करके तू अपनी महाशक्‍ति दिखा, ठीक जैसे तूने उस वक्‍त वादा किया था जब तूने कहा था, 18 ‘यहोवा क्रोध करने में धीमा और अटल प्यार से भरपूर है।+ वह गुनाहों और अपराधों को माफ करता है, मगर जो दोषी है उसे सज़ा दिए बगैर हरगिज़ नहीं छोड़ेगा और पिता के गुनाह की सज़ा उसके बेटों, पोतों और परपोतों तक को देता है।’+ 19 इसलिए दया करके इन लोगों का गुनाह माफ कर दे, जैसे तू इन्हें मिस्र से निकाल लाने के समय से लेकर अब तक माफ करता आया है। ऐसा करके दिखा कि तेरा अटल प्यार कितना महान है।”+

20 तब यहोवा ने उससे कहा, “ठीक है, जैसे तूने कहा है मैं उन्हें माफ कर देता हूँ।+ 21 मगर मेरे जीवन की शपथ, पूरी धरती यहोवा की महिमा से भर जाएगी।+ 22 जिन लोगों ने मिस्र में और इस वीराने में अपनी आँखों से मेरी महिमा और मेरे चिन्ह देखे हैं+ और फिर भी बार-बार* मेरी परीक्षा लेते रहे+ और मेरी बात मानने से इनकार करते रहे,+ 23 वे उस देश को कभी नहीं देख पाएँगे जिसे देने के बारे में मैंने उनके पुरखों से शपथ खायी थी। हाँ, जितने लोग मेरी बेइज़्ज़ती करते हैं उनमें से कोई भी वह देश नहीं देख पाएगा।+ 24 मगर मैं अपने सेवक कालेब+ को ज़रूर उस देश में ले जाऊँगा जहाँ वह जाकर आया है, क्योंकि उसके मन का स्वभाव बाकी लोगों से अलग है और वह पूरे दिल से मेरी बतायी राह पर चलता आया है। उसकी संतान उस देश को अपने अधिकार में कर पाएगी।+ 25 कल तुम लोग यहाँ से वापस मुड़ जाओ और लाल सागर के रास्ते से वीराने में जाओ,+ क्योंकि यहाँ घाटी के पास अमालेकी और कनानी लोग रहते हैं।”+

26 फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, 27 “दुष्टों की यह मंडली और कब तक मेरे खिलाफ कुड़कुड़ाती रहेगी?+ इसराएली मेरे खिलाफ कुड़कुड़ाते हुए जो बातें कह रहे हैं, वह सब मैंने सुनी हैं।+ 28 तुम उनसे कहना कि यहोवा ने ऐलान किया है, ‘मेरे जीवन की शपथ, मैं तुम्हारे साथ ठीक वही करूँगा जो मैंने तुम्हारे मुँह से सुना है!+ 29 तुम सब इसी वीराने में ढेर हो जाओगे।+ तुममें से जितनों की उम्र 20 साल या उससे ज़्यादा है और जिनके नाम लिखे गए हैं वे सब लोग, हाँ, जितनों ने मेरे खिलाफ कुड़कुड़ाया है वे सब-के-सब मारे जाएँगे।+ 30 यपुन्‍ने के बेटे कालेब और नून के बेटे यहोशू को छोड़, तुममें से कोई भी उस देश में कदम नहीं रख पाएगा+ जिसके बारे में मैंने शपथ खाकर कहा* था कि मैं तुम्हें वहाँ बसाऊँगा।+

31 मैं तुम्हारे बच्चों को, जिनके बारे में तुमने कहा था कि वे बंदी बना लिए जाएँगे,+ उस देश में ले जाऊँगा और वे उस देश को देख पाएँगे जिसे तुमने ठुकरा दिया है।+ 32 मगर तुम इसी वीराने में ढेर हो जाओगे। 33 और तुम्हारे बेटे 40 साल तक इसी वीराने में भेड़-बकरियों की चरवाही करेंगे+ और तुम्हारे विश्‍वासघात* का लेखा उन्हें देना पड़ेगा। उन्हें तब तक यह सज़ा भुगतनी होगी जब तक कि तुममें से हर कोई इस वीराने में नहीं मर जाता।+ 34 तुमने जितने दिन उस देश की जासूसी की थी उनमें से हर दिन के लिए एक साल के हिसाब से, यानी 40 दिन+ के लिए 40 साल तक तुम्हें अपने गुनाहों का लेखा देना होगा।+ तब तुम जान लोगे कि मेरे खिलाफ काम करने का* अंजाम क्या होता है।

35 यह मेरा वचन है, यहोवा का वचन। इन दुष्टों की मंडली ने एकजुट होकर मेरे खिलाफ बगावत की है इसलिए मैं इनका यही हश्र करूँगा: इस वीराने में इन सबका नाश हो जाएगा और ये लोग यहीं मर जाएँगे।+ 36 और वे आदमी जिन्हें मूसा ने देश की जासूसी करने भेजा था और जिन्होंने देश के बारे में बुरी खबरें फैलाकर+ लोगों की पूरी मंडली को मूसा के खिलाफ कुड़कुड़ाने के लिए उकसाया था, 37 हाँ, वे आदमी जिन्होंने उस देश के बारे में बुरी खबर दी, वे सज़ा पाएँगे और यहोवा के सामने मर जाएँगे।+ 38 मगर जासूसों में से सिर्फ नून का बेटा यहोशू और यपुन्‍ने का बेटा कालेब ज़िंदा रहेंगे।’”+

39 जब मूसा ने ये बातें सभी इसराएलियों को सुनायीं तो उन्होंने बहुत शोक मनाया। 40 इतना ही नहीं, वे अगले दिन सुबह जल्दी उठे और पहाड़ की चोटी पर चढ़ने लगे। उन्होंने एक-दूसरे से कहा, “हमने पाप किया है। मगर अब हम उस देश में जाने के लिए तैयार हैं जिसके बारे में यहोवा ने हमें बताया है।”+ 41 मगर मूसा ने उनसे कहा, “तुम यहोवा की आज्ञा के खिलाफ होकर वहाँ क्यों जा रहे हो? तुम इसमें कामयाब नहीं हो पाओगे। 42 तुम दुश्‍मनों से लड़ने के लिए पहाड़ पर मत जाओ, क्योंकि यहोवा तुम्हारे साथ नहीं है। तुम हार जाओगे।+ 43 वहाँ तुम्हारा सामना अमालेकी और कनानी लोगों से होगा,+ वे तुम्हें तलवार से मार डालेंगे। तुमने यहोवा के पीछे चलना छोड़ दिया है, इसलिए यहोवा तुम्हारा साथ नहीं देगा।”+

44 लेकिन लोग इतने गुस्ताख थे कि उन्होंने मूसा की एक न मानी और सीधे पहाड़ पर चढ़ने लगे।+ मगर यहोवा के करार का संदूक छावनी के बीच ही रहा और मूसा भी वहीं ठहरा रहा।+ 45 जब इसराएली पहाड़ पर जाने लगे तो वहाँ रहनेवाले अमालेकी और कनानी नीचे उतर आए और उन्होंने इसराएलियों को मार भगाया और उन्हें दूर होरमा तक खदेड़ दिया।+

15 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 2 “तू इसराएलियों से कहना, ‘जब तुम आखिरकार उस देश में बस जाओगे जो मैं तुम्हें देनेवाला हूँ+ 3 और तुम गाय-बैलों या भेड़-बकरियों के झुंड में से किसी जानवर को आग में जलाकर यहोवा के लिए उसकी बलि चढ़ाओगे ताकि उसकी सुगंध पाकर यहोवा खुश हो,+ फिर चाहे वह होम-बलि के लिए हो+ या कोई खास मन्‍नत पूरी करने की बलि के लिए या फिर साल के अलग-अलग वक्‍त पर त्योहारों के मौके+ पर हो या स्वेच्छा-बलि के लिए हो,+ 4 तुम्हें जानवर की बलि के साथ अनाज का चढ़ावा भी यहोवा के लिए चढ़ाना चाहिए। इस चढ़ावे में एपा का दसवाँ भाग* मैदा होना चाहिए+ जिसमें एक-चौथाई हीन* तेल मिला हो। 5 जब भी तुम होम-बलि चढ़ाते हो या एक नर मेम्ने की बलि चढ़ाते हो, तो उसके साथ एक-चौथाई हीन दाख-मदिरा का अर्घ भी चढ़ाना।+ 6 या जब तुम एक मेढ़ा चढ़ाते हो तो उसके साथ अनाज के चढ़ावे में एपा का दो-दहाई भाग मैदा भी देना जिसमें एक-तिहाई हीन तेल मिला हो। 7 उसके साथ तुम एक-तिहाई हीन दाख-मदिरा का अर्घ भी चढ़ाना ताकि उसकी सुगंध पाकर यहोवा खुश हो।

8 लेकिन अगर तुम होम-बलि के लिए या अपनी खास मन्‍नत पूरी करने की बलि के लिए+ या शांति-बलि के लिए यहोवा को एक बैल अर्पित करते हो,+ 9 तो बैल के साथ अनाज के चढ़ावे+ में एपा का तीन-दहाई भाग मैदा देना जिसमें आधा हीन तेल मिला हो। 10 साथ ही, तुम आधा हीन दाख-मदिरा का अर्घ भी चढ़ाना।+ इसे आग में जलाकर यहोवा के लिए अर्पित करना ताकि उसकी सुगंध पाकर वह खुश हो। 11 जब भी तुम एक बैल या मेढ़े या नर मेम्ने या बकरे की बलि चढ़ाते हो तो उसके साथ-साथ तुम ये चढ़ावे भी देना। 12 चाहे तुम कितने भी जानवर चढ़ाओ, तुम्हें हर जानवर के साथ ये चढ़ावे भी देने चाहिए। 13 हर पैदाइशी इसराएली को चाहिए कि वह इसी तरह जानवर को आग में जलाकर यहोवा के लिए अर्पित करे ताकि उसकी सुगंध पाकर वह खुश हो।

14 अगर कोई परदेसी, जो तुम्हारे बीच रहता है या जिसका परिवार पुरखों के ज़माने से तुम्हारे देश में बस गया है, अपना बलिदान आग में जलाकर यहोवा के लिए अर्पित करता है ताकि उसकी सुगंध पाकर वह खुश हो, तो उसे भी बलि उसी तरीके से चढ़ानी होगी जैसे तुम इसराएली चढ़ाते हो।+ 15 तुम जो इसराएल की मंडली के हो, तुम्हारे लिए और तुम्हारे बीच रहनेवाले परदेसियों के लिए एक ही विधि रहेगी। यह विधि तुम पर और तुम्हारी आनेवाली पीढ़ियों पर सदा लागू रहेगी। यहोवा के सामने परदेसी भी तुम्हारे बराबर हैं।+ 16 तुम्हारे लिए और तुम्हारे बीच रहनेवाले परदेसियों के लिए एक ही कानून और एक ही न्याय-सिद्धांत होगा।’”

17 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा, 18 “तू इसराएलियों से कहना, ‘जब तुम उस देश में बस जाओगे जो मैं तुम्हें देनेवाला हूँ 19 और वहाँ की उपज* खाओगे,+ तो तुम उस उपज में से कुछ लेकर यहोवा के लिए दान करना। 20 तुम पहले फल में से कुछ अनाज दरदरा कूटना और उससे छल्ले जैसी रोटियाँ बनाकर दान करना।+ यह तुम उसी तरीके से दान करना जैसे तुम खलिहान से लाया हुआ अनाज दान करोगे। 21 इस तरह पहले फल में से कुछ अनाज को दरदरा कूटकर तैयार की गयी रोटियाँ तुम पीढ़ी-दर-पीढ़ी यहोवा के लिए दान में दिया करना।

22 अगर तुम लोगों से कोई गलती हो जाती है और तुम इन सारी आज्ञाओं को मानने से चूक जाते हो जो यहोवा ने मूसा को दी हैं, 23 यानी यहोवा की वे सारी आज्ञाएँ जो उस दिन से लागू हैं जिस दिन यहोवा ने मूसा के ज़रिए दी थीं और जो तुम पर और तुम्हारी आनेवाली पीढ़ियों पर सदा के लिए लागू रहेंगी, तो तुम्हें यह करना होगा: 24 अगर मंडली को नहीं मालूम कि उससे यह गलती हुई है, तो बाद में जब उसे पता चलता है तब पूरी मंडली को एक बैल की होम-बलि चढ़ानी चाहिए ताकि उसकी सुगंध पाकर यहोवा खुश हो। इस होम-बलि के साथ अनाज का चढ़ावा और अर्घ भी चढ़ाना चाहिए। यह सब उसी तरीके से चढ़ाना चाहिए जैसे नियमित तौर पर चढ़ाया जाता है।+ इसके अलावा, मंडली को बकरी के एक बच्चे की पाप-बलि भी चढ़ानी चाहिए।+ 25 तब याजक इसराएलियों की पूरी मंडली के लिए प्रायश्‍चित करेगा। उनकी गलती माफ कर दी जाएगी,+ क्योंकि उन्होंने यह अनजाने में की थी और उन्होंने अपना बलिदान आग में जलाकर यहोवा को अर्पित किया है और अपनी गलती के लिए यहोवा के सामने पाप-बलि भी चढ़ायी है। 26 इसराएलियों की पूरी मंडली और उनके बीच रहनेवाले परदेसियों की गलती माफ कर दी जाएगी, क्योंकि यह उनसे अनजाने में हो गयी थी।

27 अगर किसी इंसान से अनजाने में पाप हो जाता है, तो उसे पाप-बलि के लिए एक साल की बकरी लाकर देनी होगी।+ 28 तब याजक उस इंसान के लिए, जिसने अनजाने में पाप किया है, यहोवा के सामने प्रायश्‍चित करेगा और उसका पाप माफ कर दिया जाएगा।+ 29 अनजाने में पाप करनेवाला चाहे पैदाइशी इसराएली हो या उनके बीच रहनेवाला कोई परदेसी, इस मामले में दोनों पर एक ही कानून लागू होगा।+

30 लेकिन अगर एक इंसान जानबूझकर पाप करता है,+ फिर चाहे वह पैदाइशी इसराएली हो या उनके बीच रहनेवाला कोई परदेसी, तो वह यहोवा की निंदा करता है। उसे मौत की सज़ा दी जाए। 31 उसने यहोवा के वचन को तुच्छ जाना है और उसकी आज्ञा तोड़ी है, इसलिए उसे हर हाल में मौत की सज़ा दी जाए।+ उसका गुनाह उसी के सिर पड़ेगा।’”+

32 जब इसराएली वीराने में थे, तो उन्होंने सब्त के दिन एक आदमी को लकड़ियाँ बीनते देखा।+ 33 वे उसे पकड़कर मूसा, हारून और पूरी मंडली के पास ले आए। 34 फिर उस आदमी को हिरासत में रखा गया,+ क्योंकि कानून में यह साफ-साफ नहीं बताया गया था कि ऐसे आदमी के साथ क्या किया जाना चाहिए।

35 यहोवा ने मूसा से कहा, “उस आदमी को हर हाल में मौत की सज़ा दी जाए।+ पूरी मंडली उसे छावनी के बाहर पत्थरों से मार डाले।”+ 36 तब मंडली के सब लोगों ने ठीक वैसे ही किया जैसे यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी। वे उसे छावनी के बाहर ले गए और उसे पत्थरों से मार डाला।

37 यहोवा ने मूसा से कहा, 38 “इसराएलियों से कहना कि वे अपनी पोशाक के नीचे के घेरे में झालर लगाएँ और उस झालर के ऊपर एक नीला फीता लगाएँ।+ सभी इसराएलियों को पीढ़ी-दर-पीढ़ी इस नियम का पालन करना है। 39 ‘तुम्हें यह झालर और फीता इसलिए लगाना चाहिए ताकि उन्हें देखने से तुम्हें यहोवा की सभी आज्ञाएँ याद रहें और तुम उनका पालन कर सको।+ तुम अपने दिल या अपनी आँखों के बहकावे में आकर कोई काम न करना, क्योंकि यह तुम्हें मेरे साथ विश्‍वासघात करने* के लिए बहका सकती हैं।+ 40 इस नियम से तुम्हें मेरी सभी आज्ञाएँ याद रहेंगी और तुम उनका पालन करोगे और अपने परमेश्‍वर के लिए पवित्र बने रहोगे।+ 41 मैं तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा हूँ। मैं ही तुम्हें मिस्र से निकालकर बाहर ले आया था ताकि मैं खुद को तुम्हारा परमेश्‍वर साबित करूँ।+ मैं यहोवा हूँ, तुम्हारा परमेश्‍वर।’”+

16 इसके बाद कोरह+ और दातान, अबीराम और ओन साथ इकट्ठा हुए। कोरह यिसहार का बेटा था,+ यिसहार कहात का+ और कहात लेवी का बेटा था।+ दातान और अबीराम, रूबेन के बेटे एलिआब के बेटे थे+ और ओन, रूबेन+ के बेटे पीलेत का बेटा था। 2 कोरह, दातान, अबीराम और ओन मिलकर मूसा के खिलाफ उठ खड़े हुए। इसराएलियों में से 250 और आदमी उनके साथ हो लिए। ये मंडली के खास-खास आदमी थे जो प्रधान और चुने हुए अधिकारी थे। 3 वे सब एक टोली बनाकर मूसा और हारून के खिलाफ खड़े हुए+ और उनसे कहने लगे, “बहुत हो चुकी तुम्हारी नेतागिरी! तुम क्या समझते हो, तुम ही अकेले पवित्र हो? इस मंडली का हर इंसान पवित्र है+ और यहोवा उनके बीच है।+ फिर तुम क्यों यहोवा की मंडली से खुद को ऊँचा उठा रहे हो? तुम क्यों उसके अधिकारी बन बैठे हो?”

4 जब मूसा ने यह सुना तो वह फौरन मुँह के बल गिरा। 5 फिर उसने कोरह और उसका साथ देनेवाले सब लोगों से कहा, “कल सुबह यहोवा यह साफ ज़ाहिर कर देगा कि कौन उसका अपना है+ और कौन पवित्र है और किसे उसके पास जाने का अधिकार है।+ परमेश्‍वर जिस किसी को चुनेगा+ वही उसके पास जाएगा। 6 कोरह और उसके साथियो,+ तुम सब आग के करछे ले आना+ और 7 कल सुबह यहोवा के सामने उन करछों में कोयला रखना और उसके ऊपर धूप डालना। तब यहोवा जिस आदमी को चुनेगा+ वही पवित्र ठहरेगा। लेवी के बेटो,+ तुमने हद कर दी है!”

8 फिर मूसा ने कोरह से कहा, “लेवी के बेटो, मेहरबानी करके मेरी बात सुनो। 9 इसराएल के परमेश्‍वर ने तुम्हें जो सम्मान दिया है, क्या तुम उसे मामूली समझने लगे हो? यहोवा ने इसराएल की मंडली में से तुम लोगों को अलग किया है+ और तुम्हें अपने पास आने की इजाज़त दी है ताकि तुम उसके डेरे में काम करो और पूरी मंडली के सामने खड़े होकर उसकी सेवा करो।+ 10 उसने तुझे और तेरे सभी भाइयों को, लेवी के बेटों को अपने करीब आने दिया है। क्या यह काफी नहीं जो अब तुम याजकपद भी हथियाना चाहते हो?+ 11 तू और तेरे सभी साथी जो आज एकजुट हो गए हैं, तुम सबने दरअसल यहोवा के खिलाफ अपना सिर उठाया है। और हारून क्या है जो तुम उसके खिलाफ कुड़कुड़ा रहे हो?”+

12 बाद में मूसा ने एलीआब के बेटे दातान और अबीराम+ के पास संदेश भेजा कि वे उसके पास आएँ। मगर उन्होंने कहा, “नहीं, हम नहीं आएँगे! 13 तूने अब तक हम पर जो ज़ुल्म किए हैं क्या वे कम हैं? तू हमें उस देश से, जहाँ दूध और शहद की धाराएँ बहती हैं, इसलिए निकाल लाया कि हमें वीराने में मार डाले।+ और अब क्या तू हम सब पर अकेला राज करना चाहता है?* 14 कहाँ है वह देश जिसके बारे में तू कहता है कि वहाँ दूध और शहद की धाराएँ बहती हैं+ और जहाँ तू हमें विरासत में खेत और अंगूरों का बाग देगा? क्या तू चाहता है कि लोग आँख मूँदकर तेरे पीछे-पीछे चलते रहें?* हम तेरे पास हरगिज़ नहीं आएँगे!”

15 तब मूसा को बहुत गुस्सा आया और उसने यहोवा से कहा, “तू उनका दिया हुआ अनाज का चढ़ावा बिलकुल स्वीकार न करना। मैंने कभी उनसे कुछ नहीं लिया, एक जानवर तक नहीं और न ही उनमें से किसी का कुछ बुरा किया है।”+

16 फिर मूसा ने कोरह से कहा, “कल तू और तेरा साथ देनेवाले सब आदमी यहोवा के सामने हाज़िर हो जाएँ। और हारून भी वहाँ आएगा। 17 तुममें से हर कोई अपना-अपना आग का करछा ले और उसमें धूप डाले। और 250 करछे तुम यहोवा के सामने रखना। इसके अलावा, तेरा और हारून का भी एक-एक करछा होगा।” 18 तब उनमें से हर कोई अपना-अपना आग का करछा लेकर आया और उन्होंने उसमें जलता कोयला और धूप डाला। फिर वे सब जाकर मूसा और हारून के साथ भेंट के तंबू के द्वार पर खड़े हुए। 19 जब कोरह अपने साथियों+ को इकट्ठा करके मूसा और हारून के खिलाफ भेंट के तंबू के द्वार पर खड़ा हुआ, तो यहोवा की महिमा पूरी मंडली पर प्रकट हुई।+

20 अब यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, 21 “तुम दोनों इन लोगों की टोली से हटकर दूर चले जाओ। मैं इन सबको एक ही पल में नाश करने जा रहा हूँ।”+ 22 यह सुनते ही मूसा और हारून ने मुँह के बल ज़मीन पर गिरकर परमेश्‍वर से बिनती की, “हे परमेश्‍वर, तू जो हर किसी को जीवन देता है,+ क्या तू एक आदमी के पाप की वजह से पूरी मंडली पर भड़क उठेगा?”+

23 तब यहोवा ने मूसा से कहा, 24 “ठीक है, तू लोगों की मंडली से कहना, ‘तुम लोग कोरह, दातान और अबीराम+ के तंबुओं से दूर चले जाओ!’”

25 फिर मूसा उठा और दातान और अबीराम के पास गया। उसके साथ इसराएल के मुखिया+ भी गए। 26 उसने लोगों की मंडली से बिनती की, “तुम सब इन दुष्टों के तंबुओं से दूर चले जाओ, इनकी किसी भी चीज़ को हाथ मत लगाना। कहीं ऐसा न हो कि उनके पाप की वजह से तुम्हें भी मिटा दिया जाए।” 27 तब वे सभी लोग, जो कोरह, दातान और अबीराम के तंबुओं के आस-पास थे, वहाँ से फौरन भागकर दूर चले गए। फिर दातान और अबीराम अपने-अपने तंबू से बाहर निकले और अपनी पत्नियों, बेटों और छोटे-छोटे बच्चों के साथ द्वार पर खड़े हुए।

28 तब मूसा ने कहा, “आज तुम सब पर यह साफ ज़ाहिर हो जाएगा कि यह सब मैं अपनी मरज़ी से नहीं कर रहा बल्कि यहोवा ने ही मुझे ऐसा करने के लिए भेजा है। यह तुम इस तरह जान सकोगे: 29 अगर इन सब पर वैसी ही मौत आए जैसी सब इंसानों पर आती है या उनका वैसा ही अंत हो जैसा सब इंसानों का होता है, तो समझ लेना कि यहोवा ने मुझे नहीं भेजा है।+ 30 लेकिन अगर यहोवा इन्हें ऐसी सज़ा देता है जो आज तक किसी ने नहीं सुनी है, अगर ज़मीन मुँह खोले और इन्हें और जो कुछ इनका है वह सब निगल जाए और ये सभी ज़िंदा कब्र में समा जाएँ, तो तुम बेशक जान जाओगे कि इन लोगों ने यहोवा की बेइज़्ज़ती की है।”

31 जैसे ही मूसा ने अपनी यह बात पूरी की, उन लोगों के पैरों के नीचे की ज़मीन फट गयी+ 32 और ज़मीन ने मुँह खोलकर उन्हें और उनके घरानों को, साथ ही कोरह के घराने के सभी लोगों+ और उनकी सभी चीज़ों को निगल लिया। 33 वे और उनके घराने के सब लोग ज़िंदा कब्र में समा गए और फिर ज़मीन का मुँह बंद हो गया। इस तरह मंडली में से उन सब लोगों का नामो-निशान मिट गया।+ 34 उनका चीखना-चिल्लाना सुनकर आस-पास खड़े सभी इसराएली दूर भागने लगे। वे कहने लगे, “कहीं यह ज़मीन हमें भी न निगल जाए!” 35 इसके बाद यहोवा की तरफ से आग बरसी+ और उन 250 आदमियों को भस्म कर गयी जो धूप चढ़ा रहे थे।+

36 अब यहोवा ने मूसा से कहा, 37 “हारून याजक के बेटे एलिआज़र से कहना कि वह आग में से करछे उठाए,+ क्योंकि ये पवित्र हैं और फिर आग दूर तक इधर-उधर फैला दे। 38 जो आदमी पाप करके अपनी जान गँवा बैठे हैं, उनके आग के करछों को पीटकर उनसे पत्तर बनाए जाएँ और उनसे वेदी+ मढ़ दी जाए। उन्होंने ये करछे यहोवा के सामने पेश किए थे, इसलिए ये करछे पवित्र हैं। और ये इसराएलियों के लिए एक निशानी ठहरेंगे।”+ 39 तब एलिआज़र याजक ने उन आदमियों के लाए हुए ताँबे के करछे लिए जो भस्म हो गए थे और उन करछों को पीटकर उनसे वेदी मढ़ दी, 40 ठीक जैसे यहोवा ने मूसा के ज़रिए उसे बताया था। यह इसराएलियों के लिए एक यादगार था कि धूप जलाने का अधिकार सिर्फ हारून के वंशजों को है और ऐसा कोई भी इंसान जिसे अधिकार नहीं है,* यहोवा के सामने धूप जलाने की जुर्रत न करे+ और कोरह और उसके साथियों की तरह न बने।+

41 इस घटना के अगले ही दिन इसराएलियों की पूरी मंडली मूसा और हारून के खिलाफ यह कहकर कुड़कुड़ाने लगी,+ “तुम दोनों ने यहोवा के लोगों को मार डाला है।” 42 जब लोगों की मंडली मूसा और हारून के खिलाफ इकट्ठा हुई, तो वे सब भेंट के तंबू की तरफ मुड़े। और देखो! बादल तंबू पर छा गया और यहोवा की महिमा प्रकट होने लगी।+

43 मूसा और हारून भेंट के तंबू के सामने गए+ 44 और यहोवा ने मूसा से कहा, 45 “तुम दोनों इस मंडली के बीच से हटकर दूर चले जाओ। मैं इन सबको एक ही पल में नाश करने जा रहा हूँ।”+ तब वे दोनों मुँह के बल ज़मीन पर गिरे।+ 46 फिर मूसा ने हारून से कहा, “तू आग का करछा ले और वेदी में से जलता हुआ कोयला लेकर+ उसमें डाल और फिर उसमें धूप रख और फौरन मंडली के पास जा और उनके लिए प्रायश्‍चित कर,+ क्योंकि यहोवा का क्रोध उन पर भड़क उठा है। लोगों पर कहर बरसना शुरू हो चुका है!” 47 तब हारून ने मूसा के कहे मुताबिक फौरन आग और धूप लिया और भागकर मंडली के बीच गया और देखो! तब तक लोगों पर कहर बरसना शुरू हो चुका था। इसलिए उसने आग के करछे में धूप डाला और वह लोगों के लिए प्रायश्‍चित करने लगा। 48 हारून लोगों के बीच ही खड़ा रहा। उसके एक तरफ ज़िंदा लोग थे और दूसरी तरफ मरे हुए। फिर कुछ समय बाद कहर थम गया। 49 कोरह की वजह से पहले जो मारे गए थे, उनके अलावा इस कहर से 14,700 लोग मर गए। 50 कहर थम जाने के बाद हारून वापस मूसा के पास भेंट के तंबू के द्वार पर गया।

17 यहोवा ने अब मूसा से कहा, 2 “इसराएलियों से कहना कि हर गोत्र की तरफ से एक छड़ी लायी जाए। तू हर गोत्र के प्रधान+ से एक छड़ी लेना जिससे कुल मिलाकर 12 छड़ियाँ होंगी। और हर प्रधान का नाम उसकी छड़ी पर लिखना। 3 लेवी गोत्र की छड़ी पर हारून का नाम लिखना। हर गोत्र के मुखिया के लिए एक छड़ी होनी चाहिए। 4 ये सारी छड़ियाँ भेंट के तंबू में गवाही के संदूक+ के सामने रखना जहाँ मैं अकसर तुम लोगों पर प्रकट होता हूँ।+ 5 मैं जिस आदमी को चुनूँगा+ उसकी छड़ी पर कलियाँ फूट निकलेंगी। इस तरह मैं इसराएलियों का कुड़कुड़ाना बंद कर दूँगा+ ताकि वे फिर कभी न मेरे खिलाफ और न ही तुम्हारे खिलाफ कुड़कुड़ाएँ।”+

6 तब मूसा ने जाकर इसराएलियों को यह बात बतायी। फिर सभी प्रधानों ने उसे अपनी-अपनी छड़ी लाकर दी। हर गोत्र के प्रधान के लिए एक छड़ी थी। इस तरह कुल मिलाकर 12 छड़ियाँ थीं। उनमें से एक छड़ी हारून की थी। 7 मूसा उन छड़ियों को लेकर उस तंबू में गया जहाँ गवाही का संदूक था और उन्हें यहोवा के सामने रख दिया।

8 अगले दिन जब मूसा तंबू में गया तो उसने देखा कि हारून की छड़ी में कलियाँ फूट निकली हैं! उसकी छड़ी में, जो लेवी गोत्र की तरफ से रखी गयी थी, कलियाँ और फूल खिले हुए थे और पके बादाम भी लगे हुए थे। 9 फिर मूसा यहोवा के सामने रखी वे सारी छड़ियाँ लेकर बाहर इसराएल के सब लोगों के सामने आया। उन सबने वे छड़ियाँ देखीं और फिर हर आदमी ने अपनी छड़ी वापस ले ली।

10 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “हारून की छड़ी+ वापस गवाही के संदूक के सामने रख दे। यह छड़ी बगावत करनेवालों+ के लिए चेतावनी होगी+ कि वे मेरे खिलाफ कुड़कुड़ाना बंद कर दें ताकि वे मर न जाएँ।” 11 मूसा ने फौरन जाकर वैसे ही किया जैसे यहोवा ने आज्ञा दी थी। उसने ठीक वैसा ही किया।

12 इसके बाद इसराएली मूसा से कहने लगे, “अब तो लगता है कि हममें से कोई मौत से नहीं बच सकता। हम ज़रूर नाश हो जाएँगे, सब-के-सब नाश हो जाएँगे! 13 अगर कोई यहोवा के पवित्र डेरे के पास भी जाएगा, तो वह मर जाएगा!+ क्या इसी तरह हम सबका अंत हो जाएगा?”+

18 फिर यहोवा ने हारून से कहा, “अगर पवित्र-स्थान के बारे में दिया कोई नियम तोड़ा जाता है तो उस गुनाह के लिए तू, तेरे बेटे और तेरे पिता का कुल जवाबदेह होगा।+ उसी तरह अगर तुम्हारे याजकपद के बारे में दिया कोई नियम तोड़ा जाता है, तो उस गुनाह के लिए तू और तेरे बेटे जवाबदेह होंगे।+ 2 तू अपने पिता के गोत्र यानी लेवी गोत्र के अपने भाइयों को उस तंबू के पास ला जिसमें गवाही का संदूक रखा है+ ताकि वे तंबू के सामने तेरे साथ रहकर तेरी और तेरे बेटों की सेवा करें।+ 3 तू उन्हें तंबू से जुड़ा जो भी काम सौंपेगा उसे वे पूरा करेंगे। साथ ही, वे तंबू से जुड़ी सभी सेवाएँ करेंगे।+ मगर उन्हें पवित्र जगह के साथ इस्तेमाल होनेवाली चीज़ों और वेदी के पास हरगिज़ नहीं आना चाहिए ताकि वे और उनके साथ-साथ तू भी मर न जाए।+ 4 वे तेरे साथ रहकर भेंट के तंबू से जुड़ी अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाएँगे और हर तरह की सेवा करेंगे। उनके अलावा, किसी और इंसान* को तुम्हारे पास आने का अधिकार नहीं है।+ 5 पवित्र जगह और वेदी की तरफ तुम्हारी जो भी ज़िम्मेदारी बनती है,+ उसे तुम ज़रूर पूरा करना+ ताकि इसराएल के लोगों पर मेरा क्रोध फिर से भड़क न उठे।+ 6 मैंने खुद इसराएलियों में से तुम्हारे लेवी भाइयों को चुनकर तुम्हें तोहफे में दिया है।+ वे भेंट के तंबू के पास सेवा करने के लिए यहोवा को दिए गए हैं।+ 7 मगर तुझे और तेरे बेटों को याजकों के नाते काम करने की ज़िम्मेदारी दी गयी है। तुम वेदी से और परदे के अंदर रखी चीज़ों से जुड़े सभी काम करोगे।+ यही तुम्हारी सेवा है।+ मैंने सिर्फ तुम्हीं को याजकों के नाते सेवा करने का सम्मान दिया है। यह तोहफा तुम्हें दिया गया है, तुम्हारे अलावा अगर कोई ऐसा इंसान वहाँ आता है जिसे अधिकार नहीं है* तो उसे मार डाला जाए।”+

8 यहोवा ने हारून से यह भी कहा, “मैंने खुद तुझे उन सारी चीज़ों का अधिकारी ठहराया है जो मुझे दान में दी जाती हैं।+ इसराएली जो पवित्र चीज़ें दान में देंगे उनका एक हिस्सा मैं तुझे और तेरे बेटों को हमेशा के लिए देता हूँ।+ 9 ये सभी चढ़ावे बहुत पवित्र हैं और आग में जलाकर दिए जाते हैं और उनमें से एक हिस्सा तुझे दिया जाएगा। ये चढ़ावे हैं: ऐसा हर चढ़ावा जो लोग मेरे पास लाते हैं, साथ ही उनके अनाज के चढ़ावे,+ पाप-बलियाँ+ और दोष-बलियाँ।+ यह हिस्सा तेरे और तेरे बेटों के लिए बहुत पवित्र है। 10 तू इसे ऐसी जगह पर खाना जो बहुत पवित्र है।+ तेरे घराने का हर लड़का और हर आदमी इसे खा सकता है। यह तेरे लिए पवित्र है।+ 11 इसके अलावा, इसराएली हिलाकर दिए जानेवाले चढ़ावे+ के साथ जो भेंट लाते हैं,+ उस पर भी तेरा हक होगा। मैंने तय किया है कि वह हिस्सा मैं तुझे और तेरे बेटे-बेटियों को हमेशा दिया करूँगा।+ तेरे घराने का हर इंसान जो शुद्ध है, उसे खा सकता है।+

12 लोग अपने पहले फल में से जो कुछ लाकर यहोवा को देते हैं, यानी जो बढ़िया-से-बढ़िया तेल, नयी दाख-मदिरा और अनाज देते हैं+ वह सब मैं तुझे देता हूँ।+ 13 वे अपनी ज़मीन की पहली उपज में से जो पके हुए फल लाकर यहोवा को देते हैं, वे तेरे होंगे।+ तेरे घराने का हर इंसान जो शुद्ध है, उसे खा सकता है।

14 इसराएल में हर चीज़ जो परमेश्‍वर को समर्पित की जाती है,* उस पर तेरा अधिकार होगा।+

15 इंसानों और जानवरों का हर पहलौठा+ जिसे वे लाकर यहोवा को अर्पित करेंगे, तेरा होगा। लेकिन तू इंसानों में से हर पहलौठे को ज़रूर छुड़ाना।+ तुझे अशुद्ध जानवरों के पहलौठों को भी छुड़ाना होगा।+ 16 तू पहलौठे बेटे को तब छुड़ाना जब वह एक महीने का या उससे ज़्यादा समय का होता है। उसे छुड़ाने के लिए तू तय की गयी कीमत यानी पाँच शेकेल* चाँदी देना।+ ये शेकेल पवित्र-स्थान के शेकेल* के मुताबिक होने चाहिए। एक शेकेल 20 गेरा* के बराबर है। 17 सिर्फ पहलौठे बैल या पहलौठे नर मेम्ने या पहलौठे बकरे को तुझे नहीं छुड़ाना चाहिए।+ इन जानवरों को पवित्र माना जाए। तू इनका खून वेदी पर छिड़कना+ और इनकी चरबी आग में जलाकर यहोवा को अर्पित करना ताकि इसका धुआँ उठे और इसकी सुगंध पाकर वह खुश हो।+ 18 और इनके गोश्‍त पर तेरा अधिकार होगा, ठीक जैसे हिलाकर दिए जानेवाले चढ़ावे में से सीने और बलि के जानवर के दाएँ पैर पर तेरा अधिकार है।+ 19 इसराएली यहोवा के लिए जितनी भी पवित्र चीज़ें दान में देते हैं,+ वे सब मैं तुझे और तेरे बेटे-बेटियों को हमेशा के लिए देता हूँ।+ यह नमक का अटल करार* है जो यहोवा ने तेरे और तेरी संतान के साथ किया है।”

20 फिर यहोवा ने हारून से कहा, “इसराएलियों के देश में तुझे विरासत की कोई ज़मीन नहीं दी जाएगी। वहाँ ज़मीन का कोई भी भाग तुझे नहीं दिया जाएगा।+ इसराएलियों के बीच मैं ही तेरा भाग और तेरी विरासत हूँ।+

21 लेवी के बेटे भेंट के तंबू में जो सेवा करते हैं, उसके बदले मैंने उन्हें इसराएल देश की हर चीज़ का दसवाँ हिस्सा+ विरासत में दिया है। 22 बाकी इसराएलियों को कभी भेंट के तंबू के पास नहीं आना चाहिए, वरना वे खुद को पाप के दोषी बनाएँगे और मौत की सज़ा पाएँगे। 23 भेंट के तंबू में सिर्फ लेवियों को सेवा करनी चाहिए और अगर लोग पवित्र जगह के खिलाफ कोई गुनाह करें तो उसके लिए लेवी ही जवाबदेह होंगे।+ यह नियम तुम पर और तुम्हारी आनेवाली पीढ़ियों पर सदा तक लागू रहेगा कि लेवियों को इसराएलियों के बीच विरासत की कोई ज़मीन हासिल नहीं करनी चाहिए,+ 24 क्योंकि इसराएली अपनी चीज़ों का जो दसवाँ हिस्सा लाकर यहोवा के लिए दान में देते हैं, वह मैंने लेवियों को विरासत में दिया है। इसलिए मैंने उनसे कहा है, ‘उन्हें इसराएलियों के बीच विरासत की कोई ज़मीन हासिल नहीं करनी चाहिए।’”+

25 इसके बाद यहोवा ने मूसा से कहा, 26 “लेवियों से कहना, ‘इसराएली अपनी चीज़ों का जो दसवाँ हिस्सा लाकर देते हैं, वह मैं तुम्हें विरासत में देता हूँ।+ और उस दसवें हिस्से का दसवाँ हिस्सा तुम यहोवा के लिए दान में देना।+ 27 यह तुम्हारा खुद का दान माना जाएगा, मानो तुमने खुद अपने खलिहान से अनाज लाकर दिया हो+ या अपने लबालब भरे हौद में से दाख-मदिरा या तेल लाकर दिया हो। 28 इस तरह तुम भी इसराएलियों से मिलनेवाले सभी दसवें हिस्से में से यहोवा के लिए दान कर सकोगे। और यहोवा के लिए दिया जानेवाला यह दान तुम हारून याजक को देना। 29 तुम्हें जो सबसे बढ़िया भेंट दी जाती हैं, उनमें से हर तरह की चीज़ तुम यहोवा के लिए दान में देना+ कि वह उसके लिए पवित्र हो।’

30 और तू उनसे कहना, ‘जब तुम लेवी उन चीज़ों में से सबसे बढ़िया चीज़ें दान करोगे, तो बचा हुआ हिस्सा तुम्हारा होगा मानो वह तुम्हारे अपने खलिहान का अनाज हो या तुम्हारे ही हौद की दाख-मदिरा या तेल हो। 31 तुम और तुम्हारे घराने के लोग यह बचा हुआ हिस्सा किसी भी जगह पर खा सकते हैं क्योंकि यह भेंट के तंबू में तुम्हारी सेवा के लिए दी जानेवाली मज़दूरी है।+ 32 तुम्हें जो चीज़ें दी जाती हैं उनमें से बढ़िया चीज़ें तुम ज़रूर दान में देना, तब तुम पाप के दोषी नहीं बनोगे। तुम इसराएलियों की दी हुई पवित्र चीज़ों को दूषित न करना, वरना तुम मर जाओगे।’”+

19 यहोवा ने एक बार फिर मूसा और हारून से बात की और उनसे कहा, 2 “यहोवा की आज्ञा है कि इस नियम का पालन किया जाए, ‘इसराएलियों से कहना कि वे लाल रंग की एक ऐसी गाय लाकर तुम्हें दें जिसमें कोई दोष न हो+ और जिसे अब तक जुए में न जोता गया हो। 3 तुम उसे एलिआज़र याजक को देना। वह उसे छावनी के बाहर ले जाएगा और वहाँ वह गाय उसके सामने हलाल की जाएगी। 4 फिर एलिआज़र याजक अपनी उँगली से उसका थोड़ा खून लेगा और सीधे भेंट के तंबू के द्वार की तरफ उसे सात बार छिड़केगा।+ 5 इसके बाद गाय उसकी आँखों के सामने जला दी जाएगी। उसकी खाल, उसका माँस, खून और गोबर, सबकुछ एक साथ जला दिया जाएगा।+ 6 फिर याजक देवदार की लकड़ी, मरुआ+ और सुर्ख लाल कपड़ा लेगा और वह सब उस आग में फेंकेगा जिसमें गाय जलायी जा रही है। 7 फिर याजक अपने कपड़े धोएगा और नहाएगा। इसके बाद वह छावनी में आ सकता है। फिर भी वह शाम तक अशुद्ध रहेगा।

8 जो आदमी गाय को आग में जलाता है, वह अपने कपड़े धोएगा और नहाएगा। फिर भी वह शाम तक अशुद्ध रहेगा।

9 फिर एक शुद्ध आदमी गाय की राख+ बटोरेगा और उसे छावनी के बाहर ले जाकर एक साफ जगह में रखेगा। इसराएलियों की मंडली को यह राख रखनी चाहिए ताकि उससे वह पानी तैयार किया जाए जो शुद्ध करने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।+ जो गाय जलायी जाती है वह एक पाप-बलि है। 10 जो आदमी उस गाय की राख इकट्ठी करता है वह अपने कपड़े धोएगा। फिर भी वह शाम तक अशुद्ध रहेगा।

इसराएलियों और उनके बीच रहनेवाले परदेसियों के लिए मैं यह नियम देता हूँ जो उन पर हमेशा लागू रहेगा:+ 11 अगर कोई लाश छूता है तो वह सात दिन तक अशुद्ध रहेगा।+ 12 ऐसे इंसान को चाहिए कि वह तीसरे दिन शुद्ध करनेवाले पानी से खुद को शुद्ध करवाए। फिर वह सातवें दिन शुद्ध हो जाएगा। लेकिन अगर वह तीसरे दिन खुद को शुद्ध नहीं करवाता, तो सातवें दिन वह शुद्ध नहीं होगा। 13 जो कोई लाश छूता है और खुद को शुद्ध नहीं करवाता, वह यहोवा के पवित्र डेरे को दूषित करता है।+ ऐसे इंसान को मौत की सज़ा दी जाए।+ वह अशुद्ध ही रहेगा क्योंकि शुद्ध करनेवाला पानी+ उस पर नहीं छिड़का गया है। उसकी अशुद्धता दूर नहीं होगी।

14 अगर एक आदमी की मौत किसी तंबू में हो जाती है, तो ऐसे मामले में यह नियम लागू होगा: उस तंबू में जो लोग पहले से मौजूद हैं और जो उसके अंदर जाते हैं, वे सब सात दिन तक अशुद्ध रहेंगे। 15 तंबू के अंदर रखा हुआ हर वह बरतन अशुद्ध होगा जिस पर ढक्कन नहीं लगा है।+ 16 अगर कोई बाहर मैदान में तलवार से मारे हुए किसी इंसान को छूता है या किसी लाश को या किसी मरे हुए की हड्डी या कब्र को छूता है, तो वह सात दिन तक अशुद्ध रहेगा।+ 17 ऐसे अशुद्ध आदमी के लिए पाप-बलि के जानवर की थोड़ी-सी राख एक बरतन में ली जाए और उस पर ताज़ा पानी डाला जाए। 18 इसके बाद एक शुद्ध आदमी+ मरुआ+ लेगा और पानी में डुबाकर उस तंबू पर छिड़केगा जिसमें आदमी की मौत हुई है, साथ ही तंबू में मौजूद सभी लोगों पर और उसमें रखे सभी बरतनों पर छिड़केगा। उसी तरह, जो आदमी तलवार से मारे हुए को या किसी लाश या हड्डी या कब्र को छूने से अशुद्ध हुआ है, उस पर शुद्ध आदमी पानी छिड़केगा। 19 वह शुद्ध आदमी तीसरे और सातवें दिन उस अशुद्ध आदमी पर पानी छिड़केगा और सातवें दिन उस अशुद्ध आदमी के पाप दूर करके उसे शुद्ध कर देगा।+ तब जिस आदमी को शुद्ध किया जाता है, उसे अपने कपड़े धोने चाहिए और नहाना चाहिए। वह शाम को शुद्ध हो जाएगा।

20 लेकिन अगर एक इंसान अशुद्ध होने पर खुद को शुद्ध नहीं करवाता, तो उसे मौत की सज़ा दी जाए,+ क्योंकि उसने यहोवा के पवित्र-स्थान को दूषित किया है। उस पर शुद्ध करनेवाला पानी नहीं छिड़का गया इसलिए वह अशुद्ध है।

21 यह नियम उन पर सदा के लिए लागू रहेगा: जो आदमी शुद्ध करनेवाला पानी छिड़कता है+ उसे अपने कपड़े धोने चाहिए और जो इंसान उस पानी को छूता है वह शाम तक अशुद्ध रहेगा। 22 वह अशुद्ध आदमी जो भी चीज़ छुएगा वह अशुद्ध हो जाएगी और जो कोई उस अशुद्ध चीज़ को छुएगा वह भी शाम तक अशुद्ध रहेगा।’”+

20 पहले महीने में इसराएलियों की पूरी मंडली सिन वीराने में पहुँची और वहाँ लोग कादेश में रहने लगे।+ वहीं पर मिरयम+ की मौत हो गयी और उसे दफनाया गया।

2 कादेश में लोगों के लिए पानी नहीं था+ और वे सब मूसा और हारून के खिलाफ उठ खड़े हुए। 3 वे मूसा से झगड़ने लगे+ और कहने लगे, “काश, हम भी अपने भाइयों के साथ यहोवा के सामने मर गए होते! 4 तुम यहोवा की मंडली को क्यों इस वीराने में ले आए हो? बस इसलिए कि हम और हमारे जानवर यहाँ मर जाएँ?+ 5 तुम क्यों हमें मिस्र से निकालकर ऐसी बेकार और घटिया जगह ले आए हो?+ यहाँ न तो बीज बोया जा सकता है और न ही यहाँ अंगूरों के बाग या अंजीर या अनार हैं, पीने के लिए पानी तक नहीं है।”+ 6 तब मूसा और हारून मंडली के सामने से निकलकर भेंट के तंबू के द्वार पर गए और मुँह के बल ज़मीन पर गिरे। फिर यहोवा की महिमा उन पर प्रकट होने लगी।+

7 यहोवा ने मूसा से कहा, 8 “अपनी छड़ी हाथ में ले और अपने भाई हारून को साथ लेकर पूरी मंडली को उस चट्टान के सामने इकट्ठा कर। उनकी आँखों के सामने चट्टान से बोल कि वह पानी दे। इस तरह तू उस चट्टान से पानी निकालेगा और लोगों की मंडली और उनके जानवर उसमें से पीएँगे।”+

9 तब मूसा ने यहोवा के सामने अपनी छड़ी ली,+ ठीक जैसे परमेश्‍वर ने उसे आज्ञा दी थी। 10 फिर मूसा और हारून ने पूरी मंडली को चट्टान के सामने इकट्ठा किया और मूसा ने उनसे कहा, “हे बागियो, सुनो! क्या हमें इस चट्टान से तुम्हारे लिए पानी निकालना होगा?”+ 11 फिर मूसा ने अपना हाथ ऊपर उठाया और छड़ी से दो बार चट्टान को मारा और चट्टान से पानी उमड़ने लगा। तब मंडली के लोग और उनके जानवर उसमें से पीने लगे।+

12 बाद में यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, “तुम दोनों ने मुझ पर विश्‍वास नहीं किया और इसराएल के लोगों के सामने मुझे पवित्र नहीं ठहराया। इसलिए तुम इस मंडली को उस देश में नहीं ले जाओगे जो मैं इसे देनेवाला हूँ।”+ 13 यह मरीबा* का सोता है+ और यहीं पर इसराएलियों ने यहोवा से झगड़ा किया था और वह उनके बीच पवित्र ठहराया गया।

14 फिर मूसा ने कादेश से एदोम के राजा के पास अपने दूत भेजकर यह कहलवाया,+ “तेरे भाई इसराएल+ ने यह संदेश भेजा है: ‘तू अच्छी तरह जानता है कि हम कैसी-कैसी मुसीबतों से गुज़रे हैं। 15 हमारे पुरखे मिस्र गए+ और हम कई सालों* तक वहीं रहे थे।+ मिस्रियों ने हमारे पुरखों के साथ और हमारे साथ बहुत बुरा सलूक किया।+ 16 आखिरकार हमने यहोवा की दुहाई दी+ और उसने हमारी सुनी। एक स्वर्गदूत भेजकर+ वह हमें मिस्र से बाहर ले आया। अब हम कादेश शहर में हैं जो तेरे इलाके की सरहद पर है। 17 इसलिए मेहरबानी करके हमें अपने देश से होकर जाने दे। हम तेरे किसी खेत या अंगूरों के बाग से होकर नहीं जाएँगे और न ही तेरे किसी कुएँ से पानी पीएँगे। हम बस “राजा की सड़क” पर सीधे चलते हुए आगे बढ़ेंगे और जब तक तेरे इलाके से नहीं निकल जाते, हम न दाएँ मुड़ेंगे न बाएँ।’”+

18 मगर एदोम ने मूसा से कहा, “तुम लोग हमारे इलाके से नहीं जा सकते। अगर तुमने जाने की कोशिश की तो मुझे तुम्हारे खिलाफ तलवार उठानी पड़ेगी।” 19 तब इसराएलियों ने एदोम से कहा, “देख, हम बस राजमार्ग से जाएँगे। अगर हमने और हमारे जानवरों ने तेरा पानी पीया तो उसकी कीमत चुका देंगे।+ हम सिर्फ तेरे रास्ते से पैदल चलकर जाने की इजाज़त माँगते हैं।”+ 20 फिर भी एदोम नहीं माना। उसने साफ कह दिया, “तुम हमारे इलाके से हरगिज़ नहीं जा सकते।”+ इसके बाद एदोम एक बड़ी और ताकतवर सेना* लेकर इसराएलियों को रोकने के लिए आया। 21 इस तरह एदोम ने इसराएल को अपने इलाके से जाने की इजाज़त नहीं दी। इसलिए इसराएल वहाँ से मुड़कर दूसरे रास्ते चल दिया।+

22 इसराएल की मंडली के सभी लोग कादेश से निकले और होर पहाड़+ के पास आए, 23 जो एदोम देश की सरहद के पास है। तब यहोवा ने होर पहाड़ पर मूसा और हारून से कहा, 24 “हारून की मौत हो जाएगी।*+ वह उस देश में नहीं जाएगा जो मैं इसराएलियों को देनेवाला हूँ, क्योंकि तुम दोनों ने मरीबा के सोते के बारे में मेरी आज्ञा के खिलाफ जाकर बगावत की।+ 25 तू हारून और उसके बेटे एलिआज़र को लेकर होर पहाड़ के ऊपर आ। 26 वहाँ तू हारून की याजक की पोशाक+ उतारना और उसके बेटे एलिआज़र+ को पहनाना। उसी पहाड़ पर हारून की मौत होगी।”*

27 तब मूसा ने वैसे ही किया जैसे यहोवा ने उसे आज्ञा दी थी। पूरी मंडली के देखते वे तीनों होर पहाड़ पर चढ़कर गए। 28 तब मूसा ने हारून की पोशाक उतारी और उसके बेटे एलिआज़र को पहनायी। इसके बाद, उसी पहाड़ की चोटी पर हारून की मौत हो गयी।+ फिर मूसा और एलिआज़र पहाड़ से नीचे उतर आए। 29 जब मंडली के सब लोगों को पता चला कि हारून की मौत हो गयी है, तो इसराएल के सभी घराने 30 दिन तक हारून के लिए रोते रहे।+

21 जब इसराएली अतारीम के रास्ते से जा रहे थे, तो इसकी खबर अराद के कनानी राजा+ को मिली जो नेगेब में रहता था। उसने इसराएलियों पर हमला किया और उनमें से कुछ लोगों को बंदी बनाकर ले गया। 2 तब इसराएलियों ने यहोवा से यह कहकर मन्‍नत मानी: “अगर तू इन लोगों को हमारे हाथ में कर देगा, तो हम ज़रूर उनके शहरों को नाश कर देंगे।” 3 यहोवा ने इसराएलियों की बिनती सुनी और उन कनानियों को उनके हाथ में कर दिया। इसराएलियों ने उन्हें और उनके शहरों को नाश कर दिया। और इसी वजह से इसराएलियों ने उस जगह का नाम होरमा*+ रखा।

4 जब इसराएली होर पहाड़ से आगे सफर में बढ़े+ तो उन्होंने लाल सागर का रास्ता लिया ताकि वे एदोम के इलाके से न गुज़रें बल्कि उसके किनारे-किनारे चलते जाएँ।+ अब तक सफर करते-करते लोग थक गए थे। 5 और वे परमेश्‍वर और मूसा के खिलाफ बातें करने लगे,+ “तुम क्यों हमें मिस्र से निकालकर इस वीराने में ले आए हो? बस इसलिए कि हम यहाँ मर जाएँ? यहाँ न खाने के लिए रोटी है, न पीने के लिए पानी।+ हमें इस घटिया रोटी से नफरत* हो गयी है।”+ 6 तब यहोवा ने लोगों के बीच ज़हरीले* साँप भेजे और उन साँपों के डसने से बहुत-से इसराएली मर गए।+

7 लोग मूसा के पास आए और कहने लगे, “हमने यहोवा के खिलाफ और तेरे खिलाफ बात करके पाप किया है।+ अब तू हमारी तरफ से यहोवा से माफी की भीख माँग ताकि वह इन साँपों को हमारे बीच से दूर कर दे।” तब मूसा ने लोगों की तरफ से परमेश्‍वर से माफी माँगी।+ 8 यहोवा ने मूसा से कहा, “तू एक ज़हरीले* साँप के आकार का साँप बना और उसे एक खंभे पर लगा। इसके बाद अगर किसी को कोई साँप डसे तो उसे खंभे पर लगे साँप को देखना होगा तभी वह ज़िंदा बचेगा।” 9 मूसा ने फौरन ताँबे का एक साँप बनाया+ और उसे एक खंभे पर लगाया।+ फिर जब भी किसी को साँप डसता तो वह ताँबे के उस साँप को देखता और ज़िंदा बच जाता।+

10 इसके बाद इसराएली वहाँ से निकले और उन्होंने ओबोत में डेरा डाला।+ 11 फिर वे ओबोत से रवाना हुए और उन्होंने इय्ये-अबारीम में डेरा डाला+ जो पूरब में मोआब के सामने है। 12 इसके बाद उन्होंने वहाँ से आगे बढ़कर जेरेद घाटी में डेरा डाला।+ 13 फिर वहाँ से रवाना होकर उन्होंने अरनोन के इलाके+ में डेरा डाला। यह इलाका उस वीराने में है जो एमोरियों के देश की सरहद से शुरू होता है। अरनोन, मोआब और एमोरियों के देश के बीच है और वही मोआब की सरहद है। 14 इसीलिए यहोवा के युद्धों की किताब में इन जगहों का ज़िक्र मिलता है: “सूपा में वाहेब और अरनोन की घाटियाँ 15 और इन घाटियों की ढलान, जो आर की बस्ती तक फैली है और मोआब की सरहद छूती है।”

16 इसके बाद वे आगे बढ़े और बेर पहुँचे। यह वही कुआँ है जिसके बारे में यहोवा ने मूसा से कहा था, “लोगों को इकट्ठा कर। मैं उन्हें पानी दूँगा।”

17 उस वक्‍त इसराएलियों ने यह गीत गाया:

“हे कुएँ, तुझसे पानी उमड़ आए।

आओ लोगो, कुएँ के लिए गीत गाओ!

18 यह वह कुआँ है जिसे हाकिमों ने, हाँ, रुतबेदार लोगों ने खोदा है,

उन्होंने एक हाकिम की लाठी से और अपनी लाठियों से खोदा है।”

इसके बाद इसराएली वीराने से मत्ताना गए। 19 और मत्ताना से नहलीएल और नहलीएल से बामोत+ गए। 20 फिर वे बामोत से आगे बढ़कर उस घाटी में गए जो मोआब के इलाके*+ में है, पिसगा की उस चोटी+ तक गए जहाँ से यशीमोन* दिखायी देता है।+

21 इसके बाद इसराएलियों ने अपने दूतों के हाथ एमोरियों के राजा सीहोन के पास यह संदेश भेजा:+ 22 “हमें तेरे देश के इलाके से होकर जाने दे। हम तेरे किसी खेत या अंगूरों के बाग में कदम नहीं रखेंगे। और न ही तेरे किसी कुएँ से पानी पीएँगे। हम ‘राजा की सड़क’ पर चलते हुए तेरे इलाके से निकल जाएँगे।”+ 23 मगर सीहोन ने इसराएलियों को अपने इलाके से होकर जाने की इजाज़त नहीं दी। इसके बजाय वह अपने सभी आदमियों को लेकर वीराने में इसराएल पर हमला करने निकल पड़ा। वह यहस आकर इसराएलियों से युद्ध करने लगा।+ 24 मगर इसराएलियों ने उसका मुकाबला किया और अपनी तलवार से उसे हरा दिया।+ और इसराएलियों ने अरनोन घाटी से लेकर+ यब्बोक घाटी तक,+ जो अम्मोनियों के देश के पास है, सीहोन के पूरे इलाके पर कब्ज़ा कर लिया।+ मगर वे याजेर+ के आगे नहीं गए क्योंकि याजेर के बाद अम्मोनियों का इलाका शुरू होता है।+

25 इस तरह इसराएलियों ने एमोरियों+ के इन सारे शहरों पर कब्ज़ा कर लिया और वे इन शहरों में, हेशबोन और उसके आस-पास के नगरों में रहने लगे। 26 हेशबोन एमोरियों के राजा सीहोन का शहर था जिसने मोआब के राजा से लड़ाई करके अरनोन घाटी तक उसका पूरा इलाका अपने कब्ज़े में कर लिया था। 27 इसी घटना से यह कहावत निकली जो ताना कसने के लिए बोली जाती है:

“हेशबोन चलो हेशबोन,

सीहोन का यह शहर बसाया जाए और मज़बूत किया जाए।

28 हेशबोन से आग निकली, सीहोन के नगर से लपटें उठीं।

और ‘मोआब के आर’ को, हाँ, अरनोन की ऊँची-ऊँची जगहों के हाकिमों को भस्म कर दिया।

29 हे मोआब, तेरा कितना बुरा होगा! हे कमोश+ के लोगो, तुम्हारा नाश हो जाएगा!

वह अपने बेटों को भगोड़े और बेटियों को एमोरियों के राजा सीहोन की दासियाँ बना देता है।

30 चलो हम उन पर हमला बोलें,

दूर दीबोन तक हेशबोन नाश हो जाएगा,+

चलो हम दूर नोपह तक उसे उजाड़ दें,

दूर मेदबा तक आग फैल जाएगी।”+

31 इस तरह इसराएली एमोरियों के देश में रहने लगे। 32 फिर मूसा ने कुछ आदमियों को याजेर की जासूसी करने भेजा।+ उन्होंने याजेर के आस-पास के नगरों पर कब्ज़ा कर लिया और वहाँ रहनेवाले एमोरियों को भगा दिया। 33 इसके बाद वे मुड़कर “बाशान सड़क” से गए। तब बाशान का राजा ओग+ अपने सब आदमियों को लेकर एदरेई में इसराएलियों से युद्ध करने आया।+ 34 यहोवा ने मूसा से कहा, “तू उससे मत डर+ क्योंकि मैं उसे और उसके सब लोगों को और उसके देश को तेरे हाथ में कर दूँगा।+ तू उसका वही हश्र करेगा जो तूने हेशबोन में रहनेवाले एमोरियों के राजा सीहोन का किया था।”+ 35 इसराएली उस राजा और उसके बेटों और उसके सब लोगों को तब तक मारते गए जब तक कि एक भी ज़िंदा न बचा।+ फिर उन्होंने उस राजा के इलाके पर कब्ज़ा कर लिया।+

22 इसके बाद इसराएली वहाँ से रवाना हुए और उन्होंने मोआब के वीरानों में पड़ाव डाला, जहाँ पास में यरदन नदी है और उस पार ठीक सामने यरीहो शहर है।+ 2 इधर सिप्पोर के बेटे बालाक+ ने वह सब देखा था जो इसराएल ने एमोरियों के साथ किया था। 3 मोआब इसराएलियों से बहुत डर गया क्योंकि इसराएलियों की तादाद बहुत ज़्यादा थी। मोआब इसराएल से इस कदर खौफ खाने लगा+ कि 4 मोआब ने मिद्यान के मुखियाओं+ से कहा, “अब देखना, लोगों की यह मंडली हमारे सभी इलाकों को ऐसे साफ कर देगी जैसे एक बैल मैदान की घास चट कर जाता है।”

उन दिनों सिप्पोर का बेटा बालाक मोआब का राजा था। 5 बालाक ने बओर के बेटे बिलाम के पास अपने दूत भेजे और उसे बुलवाया। बिलाम अपने देश में पतोर नाम की जगह में रहता था+ जो महानदी* के पास है। बालाक ने अपने दूतों के हाथ बिलाम को यह संदेश भेजा: “मिस्र से एक राष्ट्र निकलकर यहाँ आया है। उसके लोगों की तादाद इतनी है कि वे पूरी धरती* पर छा गए हैं।+ वे यहाँ सीधे मेरे सामने डेरा डाले हुए हैं। 6 ये लोग मुझसे ज़्यादा ताकतवर हैं, इसलिए मेहरबानी करके मेरे पास आ और मेरी तरफ से इन लोगों को शाप दे।+ तब मैं शायद उन्हें हराकर इस इलाके से दूर भगा सकूँगा। मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि तू जिस किसी को आशीर्वाद देता है उसे आशीष मिलती है और जिस किसी को शाप देता है उस पर कहर टूट पड़ता है।”

7 तब मोआब के मुखिया और मिद्यान के मुखिया भविष्य बताने की कीमत लेकर बिलाम+ के पास गए और उसे बालाक का संदेश सुनाया। 8 बिलाम ने उनसे कहा, “तुम लोग आज रात यहीं ठहरो। यहोवा मुझसे जो भी कहेगा वह मैं आकर तुम्हें बताऊँगा।” इसलिए मोआब के अधिकारी बिलाम के यहाँ ठहर गए।

9 फिर परमेश्‍वर बिलाम के पास आया और उससे कहा,+ “ये जो आदमी तेरे यहाँ हैं, ये कौन हैं?” 10 बिलाम ने सच्चे परमेश्‍वर से कहा, “सिप्पोर के बेटे बालाक ने, जो मोआब का राजा है, मेरे पास यह संदेश भेजा है: 11 ‘मिस्र से लोगों की एक बड़ी भीड़ आयी है जो पूरी धरती* पर फैल गयी है। इसलिए मेरे पास आ और मेरी तरफ से उन्हें शाप दे।+ तब शायद मैं उनसे लड़कर उन्हें यहाँ से भगा सकूँगा।’” 12 मगर परमेश्‍वर ने बिलाम से कहा, “तू इन आदमियों के साथ नहीं जाएगा। और तू उन लोगों को शाप नहीं देगा क्योंकि वे आशीष पाए हुए लोग हैं।”+

13 अगली सुबह बिलाम उठा और उसने बालाक के अधिकारियों से कहा, “तुम लोग अपने देश लौट जाओ, क्योंकि यहोवा ने मुझे तुम्हारे साथ जाने से मना कर दिया है।” 14 तब मोआब के अधिकारी वहाँ से निकल गए और बालाक के पास लौट आए और उससे कहा, “बिलाम ने हमारे साथ आने से इनकार कर दिया है।”

15 मगर बालाक ने एक बार फिर बिलाम के पास अपने अधिकारियों को भेजा, जो पहले भेजे हुए अधिकारियों से भी बड़े नामी-गिरामी थे और गिनती में भी ज़्यादा थे। 16 उन्होंने जाकर बिलाम से कहा, “सिप्पोर के बेटे बालाक ने यह संदेश भेजा है: ‘मेहरबानी करके मेरे पास आ। चाहे कुछ भी हो जाए, तू रुकना मत, ज़रूर आना। 17 मैं तेरा बढ़-चढ़कर सम्मान करूँगा। जो कुछ तू मुझसे कहेगा, मैं करूँगा। बस मुझ पर इतना एहसान कर, तू यहाँ आकर इन लोगों को शाप दे दे।’” 18 मगर बिलाम ने बालाक के सेवकों से कहा, “नहीं, मैं अपने परमेश्‍वर यहोवा के आदेश के खिलाफ न तो कुछ घटाकर न बढ़ाकर कुछ कर सकता। बालाक चाहे अपने महल का सारा सोना-चाँदी मुझे दे दे, तो भी मुझे मंज़ूर नहीं।+ 19 फिर भी, तुम लोग मेहरबानी करके आज की रात यहीं ठहरो। मैं जान जाऊँगा कि यहोवा मुझसे और क्या कहना चाहता है।”+

20 तब परमेश्‍वर रात को बिलाम के पास आया और उससे कहा, “अगर ये आदमी तुझे बुलाने आए हैं, तो तू उनके साथ जा। मगर ध्यान रहे कि तू सिर्फ वही कहेगा जो मैं तुझे बताऊँगा।”+ 21 अगले दिन बिलाम सुबह उठा और उसने अपनी गधी पर काठी कसी और उस पर सवार होकर मोआब के अधिकारियों के साथ चल पड़ा।+

22 मगर परमेश्‍वर का क्रोध बिलाम पर भड़क उठा क्योंकि वह उन अधिकारियों के साथ जा रहा था। इसलिए यहोवा का एक स्वर्गदूत उसे रोकने के लिए रास्ते में खड़ा हो गया। बिलाम अपनी गधी पर सवार था और उसके साथ उसके दो सेवक भी थे। 23 जब गधी ने यहोवा के स्वर्गदूत को तलवार खींचे रास्ते में खड़ा देखा, तो वह रास्ते से हटकर खेत की तरफ जाने की कोशिश करने लगी। मगर बिलाम गधी को मारने लगा ताकि वह रास्ते पर आ जाए। 24 फिर यहोवा का स्वर्गदूत जाकर एक तंग रास्ते में खड़ा हो गया जो अंगूरों के दो बागों के बीच से होकर गुज़रता था। उस रास्ते के दोनों तरफ पत्थर की दीवारें थीं। 25 जब गधी ने वहाँ यहोवा के स्वर्गदूत को देखा तो वह दीवार से ऐसे सट गयी कि बिलाम का पैर दीवार से दबने लगा। बिलाम गधी को फिर से मारने लगा।

26 यहोवा का स्वर्गदूत फिर से आगे गया और ऐसे तंग रास्ते पर खड़ा हो गया, जहाँ न दाएँ मुड़ने की जगह थी न बाएँ। 27 जब गधी ने यहोवा के स्वर्गदूत को देखा तो वह बिलाम को अपनी पीठ पर लिए ज़मीन पर बैठ गयी। बिलाम गधी पर आग-बबूला हो उठा और अपनी लाठी से उसे पीटने लगा। 28 अब यहोवा ने ऐसा किया कि गधी बात करने लगी।*+ गधी ने बिलाम से कहा, “मैंने ऐसी क्या गलती की है जो तूने तीन बार मुझे मारा?”+ 29 बिलाम ने गधी से कहा, “तूने मेरा मज़ाक बनाया है। अगर मेरे पास तलवार होती तो मैं तुझे मार ही डालता!” 30 तब गधी ने बिलाम से कहा, “मैं सारी ज़िंदगी तुझे अपनी पीठ पर लिए ढोती रही। क्या इससे पहले कभी मैंने ऐसा बरताव किया है?” बिलाम ने कहा, “नहीं!” 31 तब यहोवा ने बिलाम की आँखें खोल दीं+ और उसने यहोवा के स्वर्गदूत को तलवार खींचे रास्ते पर खड़ा देखा। स्वर्गदूत को देखते ही बिलाम ने मुँह के बल ज़मीन पर गिरकर दंडवत किया।

32 तब यहोवा के स्वर्गदूत ने बिलाम से कहा, “तूने अपनी गधी को तीन बार क्यों मारा? देख! तुझे रोकने के लिए मैं खुद आया था क्योंकि तू ऐसा काम करने जा रहा है जो मेरी मरज़ी के बिलकुल खिलाफ है।+ 33 मैं तुझे रोकने के लिए तीन बार आया था और इन तीनों बार तेरी गधी ने मुझे देखा और मुझसे दूर जाने की कोशिश की।+ अगर वह ऐसा न करती तो सोच तेरा क्या होता! अब तक मैंने तुझे मार डाला होता और उसे ज़िंदा छोड़ दिया होता।” 34 बिलाम ने यहोवा के स्वर्गदूत से कहा, “मैंने पाप किया है। मैं नहीं जानता था कि तू मुझसे मिलने के लिए रास्ते में खड़ा है। मैं जिस काम के लिए निकला हूँ, वह अगर तेरी नज़र में गलत है तो मैं वापस लौट जाता हूँ।” 35 मगर यहोवा के स्वर्गदूत ने बिलाम से कहा, “तू इन आदमियों के साथ जा। मगर ध्यान रहे कि तू सिर्फ वही कहेगा जो मैं तुझे बताऊँगा।” इसलिए बिलाम बालाक के अधिकारियों के साथ आगे चल पड़ा।

36 जब बालाक ने सुना कि बिलाम आ गया है, तो वह उससे मिलने फौरन मोआब के उस शहर गया जो इलाके की सरहद पर अरनोन घाटी के किनारे था। 37 बालाक ने बिलाम से कहा, “मैंने जब पहले तुझे बुलवाया था, तो तू क्यों नहीं आया? क्या तूने यह सोचा कि मैं तेरा बढ़-चढ़कर सम्मान नहीं कर सकता?”+ 38 बिलाम ने बालाक से कहा, “मैं तेरे पास आ तो गया हूँ, मगर मुझे अपनी मरज़ी से कुछ कहने की इजाज़त नहीं है। मैं सिर्फ वही बात कह सकता हूँ जो परमेश्‍वर मुझसे कहेगा।”+

39 इसके बाद बिलाम बालाक के साथ गया और वे किरयत-हूसोत पहुँचे। 40 वहाँ बालाक ने बैलों और भेड़ों की बलि चढ़ायी और उनका कुछ गोश्‍त बिलाम और उसके साथ आए अधिकारियों के लिए भेजा। 41 अगली सुबह बालाक बिलाम को बामोत-बाल के ऊपर ले गया। वहाँ से वह सभी इसराएलियों को देख सकता था।+

23 तब बिलाम ने बालाक से कहा, “इस जगह पर तू मेरे लिए सात वेदियाँ खड़ी कर+ और सात बैल और सात मेढ़े तैयार रख।” 2 बालाक ने फौरन वैसा किया जैसा बिलाम ने कहा था। बालाक और बिलाम ने हर वेदी पर एक-एक बैल और एक-एक मेढ़े की बलि चढ़ायी।+ 3 फिर बिलाम ने बालाक से कहा, “तू यहाँ अपनी होम-बलि के पास ही रह, मैं अभी आता हूँ। शायद यहोवा मुझसे बात करने के लिए प्रकट हो। वह मुझसे जो भी कहेगा, मैं आकर तुझे बताऊँगा।” इसके बाद बिलाम एक सूनी पहाड़ी पर गया।

4 फिर परमेश्‍वर बिलाम के सामने प्रकट हुआ+ और बिलाम ने उससे कहा, “मैंने सात वेदियाँ कतार में खड़ी की हैं और हर वेदी पर एक-एक बैल और एक-एक मेढ़े की बलि चढ़ायी है।” 5 यहोवा ने बिलाम से कहा,+ “तू बालाक के पास लौट जा और उसके सामने मेरा यह संदेश दोहरा।” 6 तब बिलाम लौट गया। उसने देखा कि बालाक और मोआब के सभी अधिकारी होम-बलि के पास खड़े हैं। 7 फिर बिलाम ने उन्हें यह संदेश सुनाया:+

“मोआब का राजा बालाक मुझे अराम से लाया,+

मुझे यह कहकर पूरब के पहाड़ों से लाया:

‘तू मेरी तरफ से याकूब को शाप देने आ,

हाँ, इसराएल को धिक्कारने आ।’+

 8 मगर मैं भला ऐसे लोगों को शाप कैसे दे सकता हूँ जिन्हें परमेश्‍वर ने शाप नहीं दिया है?

मैं उन्हें कैसे धिक्कार सकता हूँ जिन्हें यहोवा ने नहीं धिक्कारा है?+

 9 चट्टानों के ऊपर से मैं उन्हें देख रहा हूँ,

पहाड़ियों से मैं उन्हें देख रहा हूँ।

यह एक ऐसी जाति है जो दूसरों से दूर अकेली रहती है,+

खुद को दूसरी जातियों से अलग मानती है।+

10 याकूब के धूल के कणों को कौन गिन सकता है?+

क्या कोई इसराएल के एक-चौथाई हिस्से को भी गिन सकता है?

मुझे सीधे-सच्चे लोगों की मौत मिले

और मेरा अंत उन्हीं की तरह हो।”

11 तब बालाक ने बिलाम से कहा, “यह तूने मेरे साथ क्या किया? मैं तुझे यहाँ दुश्‍मनों को शाप देने के लिए लाया था, मगर तूने तो उन्हें आशीर्वाद दे दिया!”+ 12 जवाब में बिलाम ने कहा, “क्या मुझे वही बात नहीं कहनी चाहिए जो यहोवा मुझे बताता है?”+

13 बालाक ने बिलाम से कहा, “मेहरबानी करके मेरे साथ एक और जगह चल जहाँ से तू उन्हें देख सकेगा। तू उन सबको नहीं बल्कि उनमें से सिर्फ कुछ ही लोगों को देख पाएगा। वहाँ से तू उन्हें शाप देना।”+ 14 बालाक उसे पिसगा की चोटी+ पर सोपीम के मैदान में ले गया। वहाँ उसने सात वेदियाँ खड़ी कीं और हर वेदी पर एक-एक बैल और एक-एक मेढ़े की बलि चढ़ायी।+ 15 बिलाम ने बालाक से कहा, “तू यहाँ अपनी होम-बलि के पास ही रह, मैं वहाँ जाकर परमेश्‍वर से बात करके आता हूँ।” 16 यहोवा ने बिलाम के सामने प्रकट होकर उसे एक संदेश दिया और उससे कहा,+ “तू बालाक के पास लौट जा और उसके सामने मेरा यह संदेश दोहरा।” 17 बिलाम, बालाक के पास लौट आया और उसने देखा कि बालाक अपनी होम-बलि के पास खड़ा इंतज़ार कर रहा है और उसके साथ मोआब के अधिकारी भी थे। बालाक ने बिलाम से पूछा, “यहोवा ने क्या कहा है?” 18 बिलाम ने यह संदेश सुनाया:+

“हे बालाक, उठ, मेरी बात सुन।

सिप्पोर के बेटे, ध्यान दे।

19 परमेश्‍वर कोई अदना इंसान नहीं कि वह झूठ बोले,+

वह कोई इंसान नहीं कि अपनी सोच बदले।*+

जब वह कहता है कि वह कुछ करेगा, तो क्या वह नहीं करेगा?

जब वह कोई वचन देता है, तो क्या उसे पूरा नहीं करेगा?+

20 देख! मुझे यहाँ आशीर्वाद देने के लिए भेजा गया है,

जब परमेश्‍वर ने आशीर्वाद दे दिया है,+ तो मैं उसे नहीं बदल सकता।+

21 उसे यह बरदाश्‍त नहीं होता कि याकूब पर कोई जादू-टोना करे,

और वह इसराएल पर कोई मुसीबत नहीं आने देता।

उसका परमेश्‍वर यहोवा उनके साथ है,+

वे परमेश्‍वर को अपना राजा मानकर उसकी जयजयकार करते हैं।

22 परमेश्‍वर उन्हें मिस्र से बाहर ला रहा है,+

वह उनके लिए जंगली साँड़ के सींगों जैसा है।+

23 याकूब को तबाह करनेवाला कोई शकुन नहीं है,+

इसराएल पर ज्योतिष-विद्या का कोई असर नहीं हो सकता।+

अब याकूब और इसराएल के बारे में यही कहा जाएगा:

‘देखो, परमेश्‍वर ने उनकी खातिर क्या-क्या किया है!’

24 यह ऐसी जाति है जो शेर की तरह उठती है

और शेर की तरह खड़ी होती है।+

वह तब तक नहीं लेटेगी जब तक कि शिकार को खा न ले

और मारे हुओं का खून पी न ले।”

25 तब बालाक ने बिलाम से कहा, “अगर तू उन लोगों को शाप नहीं दे सकता तो मत दे, मगर कम-से-कम उन्हें आशीर्वाद तो न दे।” 26 बिलाम ने बालाक से कहा, “क्या मैंने तुझसे नहीं कहा था, ‘मैं वह सब करूँगा जो यहोवा मुझसे कहेगा’?”+

27 बालाक ने बिलाम से कहा, “मेहरबानी करके मेरे साथ आ। मैं तुझे एक और जगह ले जाता हूँ। शायद सच्चे परमेश्‍वर को यह सही लगे कि तू वहाँ मेरी तरफ से लोगों को शाप दे।”+ 28 इसलिए बालाक बिलाम को पोर की चोटी पर ले गया, जहाँ से सामने यशीमोन* नज़र आता है।+ 29 तब बिलाम ने बालाक से कहा, “इस जगह पर तू मेरे लिए सात वेदियाँ खड़ी कर और सात बैल और सात मेढ़े तैयार रख।”+ 30 बालाक ने ठीक वैसा ही किया और उसने हर वेदी पर एक-एक बैल और एक-एक मेढ़े की बलि चढ़ायी।

24 बिलाम ने देखा कि यहोवा यही चाहता है* कि वह इसराएल को आशीर्वाद दे। इसलिए वह इसराएल को तबाह करने के लिए शकुन विचारने किसी और जगह नहीं गया।+ इसके बजाय, वह वीराने की तरफ मुड़ा 2 और उसने देखा कि इसराएली अपने-अपने गोत्र के मुताबिक छावनी डाले हुए हैं।+ फिर परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति उस पर आयी।+ 3 तब बिलाम ने यह संदेश सुनाया:+

“बओर के बेटे बिलाम का संदेश यह है,

ऐसे आदमी का संदेश जिसकी आँखें खोली गयी हैं,

 4 जिसने परमेश्‍वर का वचन सुना है,

जिसने दंडवत करते हुए खुली आँखों से

सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर का दर्शन देखा है:+

 5 हे याकूब, तेरे तंबू क्या ही खूबसूरत हैं!

हे इसराएल, तेरे डेरे कितने सुंदर हैं!+

 6 वे दूर-दूर तक ऐसे फैले हुए हैं+ जैसे वादियाँ हों,

जैसे नदी किनारे लगे बाग हों,

जैसे यहोवा के लगाए हुए अगर के पौधे हों,

जैसे पानी के पास लगे देवदार हों।

 7 उसके चमड़े के दोनों पात्रों से पानी बहता रहता है,

उसका बीज* ऐसे खेतों में बोया गया है जहाँ भरपूर पानी है।+

उसका राजा+ अगाग से भी महान होगा,+

उसका राज ऊँचा किया जाएगा।+

 8 परमेश्‍वर उसे मिस्र से बाहर लाता है,

वह उनके लिए जंगली साँड़ के सींगों जैसा है।

वह दूसरी जातियों को, हाँ, उसे सतानेवालों को खा जाएगा,+

उनकी हड्डियाँ चबा डालेगा और अपने तीरों से उन्हें नाश कर देगा।

 9 वह दुबका बैठा है, एक शेर की तरह लेटा हुआ है,

किसकी मजाल कि उसे छेड़े?

तुझे आशीर्वाद देनेवालों को आशीष मिलती है,

तुझे शाप देनेवालों पर शाप पड़ता है।”+

10 तब बालाक बिलाम पर आग-बबूला हो उठा। बालाक ने हाथ-पर-हाथ मारते हुए बिलाम पर यह ताना कसा, “मैंने तुझे अपने दुश्‍मनों को शाप देने के लिए बुलाया था,+ मगर तूने तीनों बार उन्हें आशीर्वाद दे डाला। 11 तू फौरन यहाँ से अपने घर लौट जा। मैंने सोचा था, मैं तेरा बढ़-चढ़कर सम्मान करूँगा,+ मगर देख! यहोवा तुझे यह सम्मान पाने से रोक रहा है।”

12 तब बिलाम ने बालाक से कहा, “मैंने तेरे दूतों को पहले ही बता दिया था, 13 ‘बालाक चाहे अपने महल का सारा सोना-चाँदी मुझे दे दे, तो भी मैं यहोवा के आदेश के खिलाफ जाकर अपनी मरज़ी से* कुछ नहीं कर सकता, फिर चाहे मैं अच्छा करना चाहूँ या बुरा। यहोवा मुझे जो संदेश देगा मैं वही सुनाऊँगा।’+ 14 अब मैं जा रहा हूँ अपने लोगों के पास। मगर जाने से पहले तुझे बता दूँ कि ये लोग भविष्य* में तेरे लोगों के साथ क्या-क्या करेंगे।” 15 फिर बिलाम ने यह संदेश सुनाया:+

“बओर के बेटे बिलाम का यह संदेश है,

ऐसे आदमी का संदेश जिसकी आँखें खोली गयी हैं,+

16 जिसने परमेश्‍वर का वचन सुना है,

जिसके पास वह ज्ञान है जो परम-प्रधान परमेश्‍वर देता है,

उसने दंडवत करते हुए खुली आँखों से

सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर का दर्शन देखा है:

17 मैं उसे देखूँगा मगर अभी नहीं,

मैं उस पर नज़र करूँगा मगर जल्दी नहीं।

याकूब में से एक तारा+ निकलेगा

और इसराएल में से एक राजदंड+ निकलेगा।+

वह ज़रूर मोआब के माथे के दो टुकड़े कर देगा+

और हुल्लड़ मचानेवालों की खोपड़ी चूर-चूर कर देगा।

18 जब इसराएल अपनी दिलेरी दिखाएगा,

तब एदोम उसकी जागीर बन जाएगा,+

हाँ, सेईर+ अपने दुश्‍मन की जागीर बन जाएगा।+

19 याकूब से वह निकलेगा जो दुश्‍मनों को परास्त करता जाएगा,+

वह शहर से बचकर भागनेवाले हर किसी को नाश कर देगा।”

20 जब बिलाम ने अमालेक को देखा तो उसने अपने संदेश में यह भी कहा:

“अमालेक सब जातियों में पहला था,+

मगर अंत में वह मिट जाएगा।”+

21 जब बिलाम ने केनी लोगों+ को देखा तो उसने अपने संदेश में यह भी कहा:

“तेरा बसेरा चट्टान पर मज़बूत बना है, हर खतरे से महफूज़ है।

22 मगर कोई है जो केन को जलाकर भस्म कर देगा।

वह दिन दूर नहीं जब अश्‍शूर तुझे बंदी बनाकर ले जाएगा।”

23 बिलाम ने अपने संदेश में यह भी कहा:

“हाय! जब परमेश्‍वर ऐसा करेगा तो कौन बच पाएगा?

24 कित्तीम के तट+ से जहाज़ों का लशकर आएगा,

वह अश्‍शूर पर ज़ुल्म ढाएगा,+

वह एबेर पर ज़ुल्म ढाएगा।

मगर वह भी पूरी तरह नाश हो जाएगा।”

25 फिर बिलाम+ अपनी जगह लौट गया। बालाक भी अपने रास्ते चल दिया।

25 जब इसराएली शित्तीम में रह रहे थे,+ तो वे मोआबी औरतों के साथ नाजायज़ यौन-संबंध रखने लगे।+ 2 मोआबी औरतों ने उन्हें न्यौता दिया कि वे उनके देवताओं के लिए बलिदान चढ़ाने के मौके पर उनके यहाँ आएँ।+ तब वे उनके यहाँ गए और उन देवताओं के आगे दंडवत करने लगे+ और उनको चढ़ाया गया भोजन खाने लगे। 3 इस तरह इसराएली पोर के बाल देवता की पूजा करने में हिस्सा लेने लगे।*+ तब इसराएल पर यहोवा का क्रोध भड़क उठा। 4 यहोवा ने मूसा से कहा, “तू इन लोगों के सभी अगुवों को पकड़कर मार डाल और यहोवा के सामने भरी दोपहरी में लटका दे, तभी इसराएल से यहोवा की जलजलाहट दूर होगी।” 5 फिर मूसा ने इसराएल के न्यायियों+ से कहा, “तुममें से हर कोई अपने उन आदमियों को मार डाले जिन्होंने पोर के बाल की पूजा करने में हिस्सा लिया है।”*+

6 इसराएल की पूरी मंडली दुख के मारे भेंट के तंबू के द्वार पर विलाप कर ही रही थी कि तभी एक इसराएली आदमी, मूसा और इसराएलियों की पूरी मंडली के देखते एक मिद्यानी औरत को लेकर खुलेआम उनके बीच आया।+ 7 जब हारून याजक के पोते यानी एलिआज़र के बेटे फिनेहास+ ने यह देखा तो वह मंडली के बीच से फौरन उठ खड़ा हुआ और हाथ में एक भाला* लेकर निकल पड़ा। 8 वह उस आदमी के पीछे-पीछे उसके तंबू में गया और उसने उस आदमी और औरत के पेट में भाला आर-पार भोंक दिया। तब इसराएल पर जो कहर टूट पड़ा था वह थम गया।+ 9 इस कहर से मरनेवालों की गिनती 24,000 थी।+

10 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 11 “हारून याजक के पोते यानी एलिआज़र के बेटे फिनेहास+ ने इसराएल से मेरा क्रोध दूर किया है, क्योंकि उसे यह हरगिज़ बरदाश्‍त नहीं हुआ कि लोग मेरे सिवा किसी और की उपासना करें।+ अगर वह ऐसा नहीं करता तो मैं इसराएलियों को मिटा देता, क्योंकि मेरी यह माँग है कि सिर्फ मेरी भक्‍ति की जाए।+ 12 इसलिए फिनेहास से कहना कि मैं उसके साथ एक शांति का करार करता हूँ। 13 मैं उससे यह करार करता हूँ कि याजकपद हमेशा के लिए उसका और उसके बाद उसकी संतान का रहेगा,+ क्योंकि उसे यह हरगिज़ बरदाश्‍त नहीं हुआ कि उसके परमेश्‍वर को छोड़ किसी और की उपासना की जाए+ और उसने इसराएल के लोगों के लिए प्रायश्‍चित किया है।”

14 जिस इसराएली आदमी को मिद्यानी औरत के साथ मार डाला गया था उसका नाम जिमरी था। वह सालू का बेटा था और शिमोनियों के एक कुल का एक प्रधान था। 15 और जो मिद्यानी औरत मारी गयी उसका नाम कोजबी था। वह मिद्यानियों के एक कुल+ के एक प्रधान सूर+ की बेटी थी।

16 बाद में यहोवा ने मूसा से कहा, 17 “मिद्यानियों पर हमला करके उन्हें मार डालो,+ 18 क्योंकि उन्होंने पोर के मामले में चालाकी से तुम्हें पाप में फँसाया और तुम पर विपत्ति ले आए।+ उन्होंने एक मिद्यानी प्रधान की बेटी कोजबी का इस्तेमाल करके तुमसे पाप करवाया, जिसे उस दिन मार डाला गया था+ जब पोर के मामले में तुम पर कहर ढाया गया था।”+

26 उस कहर के बाद+ यहोवा ने मूसा और हारून याजक के बेटे एलिआज़र से कहा, 2 “इसराएल की मंडली के उन सभी आदमियों की गिनती लेना जिनकी उम्र 20 साल या उससे ज़्यादा है और जो इसराएल की सेना में काम करने के योग्य हैं। हरेक का नाम उसके पिता के कुल के मुताबिक लिखना।”+ 3 इस वक्‍त इसराएली मोआब के वीरानों+ में डेरा डाले हुए थे, जो यरीहो+ के सामने और यरदन के पास थे। वहाँ मूसा और एलिआज़र+ याजक ने लोगों से कहा, 4 “तुम उन सभी आदमियों की गिनती लेना जिनकी उम्र 20 साल या उससे ज़्यादा है, ठीक जैसे यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी है।”+

ये थे वे इसराएली जो मिस्र से बाहर निकल आए थे: 5 इसराएल के पहलौठे रूबेन+ के बेटे+ ये थे: हानोक से हानोकियों का घराना, पल्लू से पल्लुओं का घराना, 6 हेसरोन से हेसरोनियों का घराना और करमी से करमियों का घराना निकला। 7 ये सभी रूबेनियों के घराने थे। उनमें से जितनों के नाम लिखे गए उनकी गिनती 43,730 थी।+

8 पल्लू का बेटा एलीआब था। 9 और एलीआब के बेटे थे नमूएल, दातान और अबीराम। ये वही दातान और अबीराम थे जो मंडली में चुने हुए अधिकारी थे और कोरह और उसकी टोली+ के साथ मिलकर मूसा और हारून के खिलाफ खड़े हुए थे।+ उन्होंने यहोवा से लड़ाई की थी।+

10 तब ज़मीन ने मुँह खोला और उन्हें निगल गयी। जहाँ तक कोरह की बात है, उसे उन 250 आदमियों के साथ आग से भस्म कर दिया गया जिन्होंने उसका साथ दिया था।+ वे सब ऐसी मिसाल बन गए जिससे दूसरे सबक सीख सकें।+ 11 मगर कोरह के साथ उसके बेटे नहीं मारे गए।+

12 ये थे शिमोन के बेटे+ जिनके नाम पर उनके अपने-अपने घराने निकले: नमूएल से नमूएलियों का घराना, यामीन से यामीनियों का घराना, याकीन से याकीनियों का घराना, 13 जेरह से जेरहियों का घराना और शौल से शौलियों का घराना। 14 ये सभी शिमोनियों के घराने थे। उनमें से जितनों के नाम लिखे गए उनकी गिनती 22,200 थी।+

15 ये थे गाद के बेटे+ जिनके नाम पर उनके अपने-अपने घराने निकले: सपोन से सपोनियों का घराना, हाग्गी से हाग्गियों का घराना, शूनी से शूनियों का घराना, 16 ओजनी से ओजनियों का घराना, एरी से एरियों का घराना, 17 अरोद से अरोदियों का घराना और अरेली से अरेलियों का घराना। 18 ये सभी गाद के बेटों के घराने थे। उनमें से जितनों के नाम लिखे गए उनकी गिनती 40,500 थी।+

19 यहूदा के बेटे+ थे एर और ओनान।+ मगर एर और ओनान कनान देश में ही मर गए।+ 20 ये थे यहूदा के बेटे जिनके नाम पर उनके अपने-अपने घराने निकले: शेलह+ से शेलहियों का घराना, पेरेस+ से पेरेसियों का घराना और जेरह+ से जेरहियों का घराना। 21 पेरेस के बेटे ये थे: हेसरोन+ से हेसरोनियों का घराना और हामूल+ से हामूलियों का घराना निकला। 22 ये सभी यहूदा के घराने थे। उनमें से जितनों के नाम लिखे गए उनकी गिनती 76,500 थी।+

23 ये थे इस्साकार+ के बेटे जिनके नाम पर उनके अपने-अपने घराने निकले: तोला+ से तोलियों का घराना, पुव्वा से पुव्वियों का घराना, 24 याशूब से याशूबियों का घराना और शिमरोन से शिमरोनियों का घराना। 25 ये सभी इस्साकार के घराने थे। उनमें से जितनों के नाम लिखे गए उनकी गिनती 64,300 थी।+

26 ये थे जबूलून+ के बेटे जिनके नाम पर उनके अपने-अपने घराने निकले: सेरेद से सेरेदियों का घराना, एलोन से एलोनियों का घराना और यहलेल से यहलेलियों का घराना। 27 ये सभी जबूलूनियों के घराने थे। उनमें से जितनों के नाम लिखे गए उनकी गिनती 60,500 थी।+

28 यूसुफ+ के बेटे मनश्‍शे और एप्रैम+ गोत्र से निकले। 29 मनश्‍शे+ के बेटे ये थे: माकीर+ से माकीरियों का घराना निकला। माकीर का बेटा गिलाद था और गिलाद+ से गिलादियों का घराना निकला। 30 गिलाद के बेटे ये थे: ईएजेर से ईएजेरियों का घराना, हेलेक से हेलेकियों का घराना, 31 असरीएल से असरीएलियों का घराना, शेकेम से शेकेमियों का घराना, 32 शमीदा से शमीदियों का घराना और हेपेर से हेपेरियों का घराना निकला। 33 हेपेर का बेटा सलोफाद था। सलोफाद के कोई बेटा नहीं था। उसकी सिर्फ बेटियाँ थीं+ जिनके नाम थे महला, नोआ, होग्ला, मिलका और तिरसा।+ 34 ये सभी मनश्‍शे के घराने थे। उनमें से जितनों के नाम लिखे गए उनकी गिनती 52,700 थी।+

35 ये थे एप्रैम+ के बेटे जिनके नाम पर उनके अपने-अपने घराने निकले: शूतेलह+ से शूतेलहियों का घराना, बेकेर से बेकेरियों का घराना और तहन से तहनियों का घराना। 36 शूतेलह के बेटे ये थे: एरान से एरानियों का घराना निकला। 37 ये सभी एप्रैम के बेटों के घराने थे। उनमें से जितनों के नाम लिखे गए उनकी गिनती 32,500 थी।+ ये सभी यूसुफ के बेटे थे जिनके नाम पर उनके अपने-अपने घराने निकले।

38 ये थे बिन्यामीन+ के बेटे जिनके नाम पर उनके अपने-अपने घराने निकले: बेला+ से बेलियों का घराना, अशबेल से अशबेलियों का घराना, अहीराम से अहीरामियों का घराना, 39 शपूपाम से शपूपामियों का घराना और हूपाम से हूपामियों का घराना। 40 बेला के बेटे थे अर्द और नामान।+ अर्द से अर्दियों का घराना और नामान से नामानियों का घराना निकला। 41 ये सभी बिन्यामीन के बेटे थे जिनके नाम पर उनके अपने-अपने घराने निकले। उनमें से जितनों के नाम लिखे गए उनकी गिनती 45,600 थी।+

42 ये थे दान+ के बेटे जिनके नाम पर उनके अपने-अपने घराने निकले: शूहाम से शूहामियों का घराना। ये सभी दान के वंशजों के घराने थे। 43 शूहामियों के घराने में से जितनों के नाम लिखे गए उनकी गिनती 64,400 थी।+

44 ये थे आशेर+ के बेटे जिनके नाम पर उनके अपने-अपने घराने निकले: यिम्नाह से यिम्नाहियों का घराना, यिश्‍वी से यिश्‍वियों का घराना और बरीआ से बरीआइयों का घराना। 45 बरीआ के बेटे ये थे: हेबेर से हेबेरियों का घराना और मलकीएल से मलकीएलियों का घराना निकला। 46 आशेर की बेटी का नाम सेरह था। 47 ये सभी आशेर के बेटों के घराने थे। उनमें से जितनों के नाम लिखे गए उनकी गिनती 53,400 थी।+

48 ये थे नप्ताली+ के बेटे जिनके नाम पर उनके अपने-अपने घराने निकले: यहसेल से यहसेलियों का घराना, गूनी से गूनियों का घराना, 49 येसेर से येसेरियों का घराना और शिल्लेम से शिल्लेमियों का घराना। 50 अपने कुलों के मुताबिक नप्ताली के कुल ये थे। उनमें से जितनों के नाम लिखे गए उनकी गिनती 45,400 थी।+

51 इसराएलियों में से जितनों के नाम लिखे गए उनकी कुल गिनती 6,01,730 थी।+

52 इसके बाद यहोवा ने मूसा से कहा, 53 “इन नामों की सूची के मुताबिक हर गोत्र में जितने लोग हैं,* उस हिसाब से देश की ज़मीन विरासत के तौर पर सभी गोत्रों में बाँट दे।+ 54 बड़े समूह को बड़ा हिस्सा और छोटे समूह को छोटा हिस्सा दिया जाए।+ एक समूह में जितने लोगों के नाम लिखे हैं, उस हिसाब से उसे ज़मीन का टुकड़ा विरासत में दिया जाए। 55 मगर ज़मीन का बँटवारा चिट्ठियाँ डालकर किया जाए।+ हर परिवार को विरासत में उसी ज़मीन में से एक टुकड़ा दिया जाए जो उसके गोत्र के लिए तय की जाती है। 56 विरासत की ज़मीन का बँटवारा चिट्ठियाँ डालकर किया जाए। एक समूह कितना बड़ा है या कितना छोटा, उस हिसाब से उसे ज़मीन का टुकड़ा दिया जाए।”

57 लेवियों+ के घरानों में से जिनके नाम लिखे गए वे ये थे: गेरशोन से गेरशोनियों का घराना, कहात+ से कहातियों का घराना और मरारी से मरारियों का घराना निकला। 58 ये सभी लेवियों के घराने थे: लिबनियों का घराना,+ हेब्रोनियों का घराना,+ महलियों का घराना,+ मूशियों का घराना+ और कोरहियों का घराना।+

कहात का बेटा अमराम था।+ 59 अमराम की पत्नी का नाम योकेबेद था+ जो लेवी की बेटी थी। वह मिस्र में पैदा हुई थी। योकेबेद से अमराम के बेटे हारून और मूसा और उनकी बहन मिरयम पैदा हुए।+ 60 और हारून से नादाब, अबीहू, एलिआज़र और ईतामार पैदा हुए।+ 61 मगर नादाब और अबीहू मर गए क्योंकि उन्होंने यहोवा के सामने नियम के खिलाफ आग चढ़ायी थी।+

62 लेवियों में से जितने आदमियों और एक महीने या उससे ज़्यादा उम्र के लड़कों के नाम लिखे गए, उनकी कुल गिनती 23,000 थी।+ इनका नाम बाकी इसराएलियों के साथ नहीं लिखा गया+ क्योंकि इन्हें इसराएल देश में विरासत की कोई ज़मीन नहीं दी जाती।+

63 यही वे लोग थे जिनकी नाम-लिखाई मूसा और एलिआज़र याजक ने उस वक्‍त की थी जब उन्होंने सभी इसराएलियों के नाम लिखे थे। उस वक्‍त वे मोआब के वीरानों में पड़ाव डाले हुए थे जो यरीहो के सामने और यरदन के पास थे। 64 इन लोगों में ऐसा एक भी आदमी नहीं था जिसका नाम मूसा और हारून याजक ने इससे पहले सीनै वीराने में इसराएलियों की गिनती लेते वक्‍त लिखा था,+ 65 क्योंकि यहोवा ने उन लोगों के बारे में कहा था, “ये लोग वीराने में ही मर जाएँगे।”+ इसलिए इस वक्‍त तक उन आदमियों में से यपुन्‍ने के बेटे कालेब और नून के बेटे यहोशू को छोड़ कोई भी ज़िंदा नहीं बचा।+

27 तब सलोफाद की बेटियाँ+ महला, नोआ, होग्ला, मिलका और तिरसा मूसा के पास आयीं। सलोफाद का घराना यूसुफ के बेटे मनश्‍शे के घरानों में से था। सलोफाद हेपेर का बेटा था, हेपेर गिलाद का, गिलाद माकीर का और माकीर मनश्‍शे का बेटा था। 2 सलोफाद की बेटियाँ भेंट के तंबू के द्वार पर गयीं और मूसा, एलिआज़र याजक, प्रधानों+ और पूरी मंडली के सामने खड़ी हुईं और कहने लगीं, 3 “हमारे पिता की मौत वीराने में हुई थी, मगर वह उन लोगों की टोली में नहीं था जिन्होंने कोरह के साथ मिलकर यहोवा से बगावत की थी।+ हमारे पिता की मौत उसके अपने ही पाप की वजह से हुई थी और उसके कोई बेटा नहीं था। 4 क्या हमारे पिता का नाम उसके घराने से इसलिए मिट जाएगा क्योंकि उसके कोई बेटा नहीं था? इसलिए हमारी यह गुज़ारिश है कि हमारे पिता के भाइयों के साथ हमें भी विरासत की ज़मीन दी जाए।” 5 तब मूसा ने उनका मामला यहोवा के सामने रखा।+

6 यहोवा ने मूसा से कहा, 7 “सलोफाद की बेटियाँ ठीक कह रही हैं। तू उनके पिता के भाइयों के साथ उन्हें भी विरासत की ज़मीन ज़रूर देना। हाँ, सलोफाद की विरासत की ज़मीन उसकी बेटियों के नाम कर देना।+ 8 और इसराएलियों से कहना, ‘अगर एक आदमी की मौत हो जाती है और उसके कोई बेटा नहीं है, तो उसकी विरासत उसकी बेटी को देना। 9 अगर उसकी कोई बेटी नहीं है तो तू उसकी विरासत उसके भाइयों को देगा। 10 अगर उसका कोई भाई नहीं है तो उसकी विरासत उसके पिता के भाइयों को देना। 11 और अगर उसके पिता का कोई भाई नहीं है, तो तू विरासत उसके घराने में से किसी ऐसे को देगा जिसके साथ उसका खून का रिश्‍ता है और वह ज़मीन उसकी जागीर हो जाएगी। यह न्याय-सिद्धांत इसराएलियों के लिए एक नियम ठहरेगा, ठीक जैसे यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी है।’”

12 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “तू इस अबारीम पहाड़ के ऊपर जा+ और वहाँ से उस देश को देख जो मैं इसराएलियों को देनेवाला हूँ।+ 13 जब तू उसे देख लेगा तो उसके बाद तेरे भाई हारून की तरह तेरी भी मौत हो जाएगी।*+ 14 क्योंकि सिन वीराने में जब लोगों की मंडली ने मुझसे झगड़ा किया था, तब तुम दोनों ने पानी के सोते के मामले में मेरे आदेश के खिलाफ जाकर बगावत की और लोगों के सामने मुझे पवित्र नहीं ठहराया था।+ (यह मरीबा का सोता है+ जो सिन वीराने+ में कादेश+ में है।)”

15 मूसा ने यहोवा से कहा, 16 “हे यहोवा, तू जो सब लोगों को जीवन देनेवाला परमेश्‍वर है, तुझसे बिनती है कि लोगों की मंडली पर एक ऐसा आदमी ठहरा 17 जो हर मामले में उनकी अगुवाई करे और जिसकी दिखायी राह पर लोग चलें। ऐसा न हो कि यहोवा की मंडली उन भेड़ों की तरह हो जाए जिनका कोई चरवाहा नहीं है।” 18 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “नून के बेटे यहोशू पर अपना हाथ रखकर उसे चुन क्योंकि उसके मन का स्वभाव बिलकुल निराला है।+ 19 फिर उसे एलिआज़र याजक और पूरी मंडली के सामने खड़ा कर और उन सबके देखते उसे अगुवा ठहरा।+ 20 तू अपना कुछ अधिकार* उसे सौंप+ ताकि इसराएलियों की पूरी मंडली उसकी बात माने।+ 21 जब यहोशू को किसी मामले पर परमेश्‍वर का फैसला जानना हो तो वह एलिआज़र याजक के पास जाएगा। और एलिआज़र उसकी तरफ से यहोवा के सामने जाएगा और ऊरीम के ज़रिए उसका फैसला मालूम करेगा।+ और जो भी आदेश दिया जाएगा उसका सब लोग पालन करेंगे। यहोशू और पूरी मंडली और सभी इसराएली उस आदेश को मानेंगे।”

22 मूसा ने ठीक वैसा ही किया जैसा यहोवा ने उसे आज्ञा दी थी। वह यहोशू को लेकर गया और उसे एलिआज़र याजक और पूरी मंडली के सामने खड़ा किया। 23 फिर मूसा ने अपना हाथ यहोशू पर रखकर उसे अगुवा ठहराया,+ ठीक जैसे यहोवा ने उसे बताया था।+

28 इसके बाद यहोवा ने मूसा से कहा, 2 “इसराएलियों को यह आज्ञा देना, ‘तुम लोग इस बात का ध्यान रखना कि तुम तय वक्‍त पर मेरे लिए सभी चढ़ावे दिया करोगे जो मुझे दिया जानेवाला भोजन है।+ तुम ये चढ़ावे आग में जलाकर अर्पित करना ताकि उनकी सुगंध मुझे खुश करे।’

3 तू उनसे कहना, ‘तुम यहोवा के लिए जो चढ़ावे आग में जलाकर अर्पित करोगे वे ये हैं: हर दिन एक-एक साल के ऐसे दो नर मेम्ने चढ़ाना जिनमें कोई दोष न हो। यह नियमित होम-बलि है।+ 4 एक मेम्ना सुबह चढ़ाना और दूसरा शाम के झुटपुटे के समय* चढ़ाना।+ 5 हर मेम्ने के साथ अनाज का चढ़ावा भी चढ़ाना। यह चढ़ावा एपा के दसवें भाग* मैदे का होना चाहिए जिसमें एक-चौथाई हीन* शुद्ध तेल मिला हो।+ 6 यह नियमित होम-बलि है।+ इस बलि के बारे में नियम तुम्हें सीनै पहाड़ के पास दिया गया था। यह आग में जलाकर अर्पित की जानी चाहिए ताकि इसकी सुगंध पाकर यहोवा खुश हो। 7 हरेक नर मेम्ने के साथ एक-चौथाई हीन मदिरा का अर्घ भी चढ़ाना।+ यह अर्घ तुम यहोवा के लिए पवित्र जगह में उँडेलना। 8 दूसरे नर मेम्ने को तुम शाम के झुटपुटे के समय* बलि करना। इस बलि के साथ भी वही अनाज का चढ़ावा और अर्घ चढ़ाना जो तुम सुबह चढ़ाते हो। तुम इसे यहोवा के लिए आग में जलाकर अर्पित करना ताकि उसकी सुगंध पाकर वह खुश हो।+

9 तुम सब्त के दिन+ एक-एक साल के दो नर मेम्ने अर्पित करना जिनमें कोई दोष न हो। इन मेम्नों के साथ तुम अनाज का यह चढ़ावा भी देना: एपा का दो-दहाई भाग मैदा जिसमें तेल मिला हो। उसके साथ अर्घ भी चढ़ाना। 10 यह सब्त की होम-बलि है। सब्त के दिन तुम नियमित होम-बलि और अर्घ के अलावा, सब्त की यह होम-बलि भी अर्पित करना।+

11 हर महीने* की शुरूआत में तुम यहोवा के लिए इन सारे जानवरों की होम-बलि चढ़ाना: दो बैल, एक मेढ़ा और एक-एक साल के ऐसे सात नर मेम्ने जिनमें कोई दोष न हो।+ 12 हर जानवर के साथ अनाज का चढ़ावा+ भी चढ़ाना: हर बैल के साथ एपा का तीन-दहाई भाग मैदा जिसमें तेल मिला हो, मेढ़े+ के साथ एपा का दो-दहाई भाग मैदा जिसमें तेल मिला हो 13 और हरेक नर मेम्ने के साथ एपा का दसवाँ भाग मैदा जिसमें तेल मिला हो। यह होम-बलि है और तुम इसे आग में जलाकर यहोवा के लिए अर्पित करना ताकि उसकी सुगंध पाकर वह खुश हो।+ 14 हर जानवर के साथ अर्घ भी चढ़ाना: हर बैल के साथ आधा हीन दाख-मदिरा,+ मेढ़े के साथ एक-तिहाई हीन दाख-मदिरा+ और नर मेम्ने के साथ एक-चौथाई हीन दाख-मदिरा।+ यह मासिक होम-बलि है जो तुम साल के हर महीने के पहले दिन चढ़ाया करना। 15 इस दिन तुम नियमित होम-बलि और अर्घ के अलावा, यहोवा के लिए बकरी के एक बच्चे की पाप-बलि भी चढ़ाना।

16 पहले महीने के 14वें दिन यहोवा के लिए मनाया जानेवाला फसह होगा।+ 17 और उसी महीने के 15वें दिन एक त्योहार होगा। तुम त्योहार के सातों दिन बिन-खमीर की रोटी खाना।+ 18 त्योहार के पहले दिन एक पवित्र सभा होगी। इस दिन तुम मेहनत का कोई भी काम मत करना। 19 तुम इन जानवरों को आग में जलाकर यहोवा के लिए होम-बलि चढ़ाना: दो बैल, एक मेढ़ा और एक-एक साल के सात नर मेम्ने। तुम्हें ऐसे जानवरों की बलि चढ़ानी है जिनमें कोई दोष न हो।+ 20 हर जानवर की बलि के साथ अनाज का चढ़ावा भी चढ़ाना। यह चढ़ावा तेल मिले मैदे का होना चाहिए।+ हर बैल के साथ तीन-दहाई भाग मैदा और मेढ़े के साथ दो-दहाई भाग मैदा अर्पित करना। 21 तुम सात नर मेम्नों में से हर मेम्ने के साथ एक-दहाई भाग मैदा चढ़ाना। 22 साथ ही, एक बकरे की पाप-बलि भी चढ़ाना ताकि तुम्हारा प्रायश्‍चित हो। 23 हर सुबह की नियमित होम-बलि के अलावा तुम ये सब अर्पित करना। 24 इसी तरह, त्योहार के सातों दिन तुम इन सारी चीज़ों का चढ़ावा दोगे। यह चढ़ावा आग में जलाकर यहोवा के लिए अर्पित किया जानेवाला भोजन* है जिसकी सुगंध पाकर वह खुश होता है। यह चढ़ावा तुम नियमित होम-बलि और अर्घ के अलावा चढ़ाना। 25 सातवें दिन तुम एक पवित्र सभा रखना।+ उस दिन तुम मेहनत का कोई भी काम मत करना।+

26 जब तुम पकी हुई पहली फसल के दिन+ यानी कटाई के त्योहार+ के दिन यहोवा के लिए नए अनाज का चढ़ावा चढ़ाते हो,+ तो उस दिन एक पवित्र सभा रखना। उस दिन तुम मेहनत का कोई भी काम मत करना।+ 27 तुम यहोवा के लिए दो बैलों, एक मेढ़े और एक-एक साल के सात नर मेम्नों की होम-बलियाँ चढ़ाना ताकि उनकी सुगंध पाकर वह खुश हो।+ 28 और उनके साथ अनाज का चढ़ावा भी चढ़ाना। यह चढ़ावा तेल मिले मैदे का होना चाहिए। हर बैल के साथ तीन-दहाई भाग मैदा, मेढ़े के साथ दो-दहाई भाग मैदा 29 और सात नर मेम्नों में से हर मेम्ने के साथ एक-दहाई भाग मैदा अर्पित करना। 30 और अपने प्रायश्‍चित के लिए बकरी के एक बच्चे की बलि भी चढ़ाना।+ 31 तुम नियमित होम-बलि और अनाज के चढ़ावे के अलावा इन सारे जानवरों की बलि चढ़ाओगे। इन जानवरों में कोई दोष नहीं होना चाहिए+ और तुम इनके साथ अर्घ भी चढ़ाना।’”

29 “‘सातवें महीने के पहले दिन तुम एक पवित्र सभा रखना। इस दिन तुम मेहनत का कोई भी काम मत करना।+ यह वह दिन है जब तुम्हें तुरही फूँकनी चाहिए।+ 2 तुम यहोवा के लिए इन सभी जानवरों की होम-बलि चढ़ाओगे ताकि उनकी सुगंध पाकर वह खुश हो: एक बैल, एक मेढ़ा और एक-एक साल के सात नर मेम्ने। इन सभी जानवरों में कोई दोष नहीं होना चाहिए। 3 इनके साथ अनाज का चढ़ावा भी देना जो तेल मिले मैदे का हो। बैल के साथ एपा का तीन-दहाई भाग मैदा, मेढ़े के साथ दो-दहाई भाग मैदा 4 और हरेक नर मेम्ने के साथ एक-दहाई भाग मैदा। 5 और अपने प्रायश्‍चित के लिए बकरी के एक नर बच्चे की पाप-बलि भी चढ़ाना। 6 तुम जो मासिक होम-बलि और उसके साथ अनाज का चढ़ावा+ और अर्घ देते हो और जो नियमित होम-बलि और उसके साथ अनाज का चढ़ावा+ और अर्घ देते हो,+ उनके अलावा इन जानवरों की होम-बलि और अनाज का चढ़ावा देना। यह सब तुम उसी तरीके से चढ़ाना जैसे नियमित तौर पर चढ़ाया जाता है। तुम इन्हें आग में जलाकर यहोवा के लिए अर्पित करना ताकि इनकी सुगंध पाकर वह खुश हो।

7 सातवें महीने के ही दसवें दिन तुम एक पवित्र सभा रखना+ और तुम्हें अपने पापों के लिए दुख ज़ाहिर करना होगा।* उस दिन तुम कोई भी काम मत करना।+ 8 तुम यहोवा के लिए इन सभी जानवरों की होम-बलि चढ़ाना ताकि उनकी सुगंध पाकर वह खुश हो: एक बैल, एक मेढ़ा और एक-एक साल के सात नर मेम्ने। इन सभी जानवरों में कोई दोष नहीं होना चाहिए।+ 9 इनके साथ अनाज का चढ़ावा भी देना जो तेल मिले मैदे का हो। बैल के साथ तीन-दहाई भाग मैदा, मेढ़े के साथ दो-दहाई भाग मैदा 10 और सात नर मेम्नों में से हर मेम्ने के साथ एक-दहाई भाग मैदा। 11 और बकरी के एक बच्चे की पाप-बलि भी चढ़ाना। तुम प्रायश्‍चित के लिए जो पाप-बलि+ और अर्घ देते हो और जो नियमित होम-बलि और उसके साथ अनाज का चढ़ावा और अर्घ देते हो, उनके अलावा यह सब चढ़ाना।

12 सातवें महीने के 15वें दिन तुम एक पवित्र सभा रखना। उस दिन तुम मेहनत का कोई भी काम मत करना और सात दिन तक यहोवा के लिए एक त्योहार मनाना।+ 13 तुम 13 बैलों, 2 मेढ़ों और एक-एक साल के 14 नर मेम्नों की होम-बलि चढ़ाओगे।+ इन सभी जानवरों में कोई दोष नहीं होना चाहिए।+ तुम इन्हें आग में जलाकर यहोवा के लिए अर्पित करना ताकि उनकी सुगंध पाकर वह खुश हो। 14 इनके साथ अनाज का चढ़ावा भी देना जो तेल मिले मैदे का हो। हर बैल के लिए तीन-दहाई भाग मैदा, हर मेढ़े के लिए दो-दहाई भाग मैदा 15 और हरेक नर मेम्ने के लिए एक-दहाई भाग मैदा। 16 और बकरी के एक बच्चे की पाप-बलि भी चढ़ाना। तुम जो नियमित होम-बलि और उसके साथ अनाज का चढ़ावा और अर्घ देते हो, उनके अलावा यह सब चढ़ाना।+

17 त्योहार के दूसरे दिन तुम 12 बैलों, 2 मेढ़ों और एक-एक साल के 14 नर मेम्नों की बलि चढ़ाना। इन सभी जानवरों में कोई दोष नहीं होना चाहिए।+ 18 जितने बैल, मेढ़े और नर मेम्ने तुम अर्पित करते हो, उनके हिसाब से उनके साथ अनाज का चढ़ावा और अर्घ भी चढ़ाना। यह सब तुम उसी तरीके से चढ़ाना जैसे नियमित तौर पर चढ़ाया जाता है। 19 और बकरी के एक बच्चे की पाप-बलि भी चढ़ाना। तुम जो नियमित होम-बलि और उसके साथ अनाज का चढ़ावा और अर्घ देते हो, उनके अलावा यह सब चढ़ाना।+

20 तीसरे दिन तुम 11 बैलों, 2 मेढ़ों और एक-एक साल के 14 नर मेम्नों की बलि चढ़ाना। इन सभी जानवरों में कोई दोष नहीं होना चाहिए।+ 21 जितने बैल, मेढ़े और नर मेम्ने तुम अर्पित करते हो उनके हिसाब से उनके साथ अनाज का चढ़ावा और अर्घ भी चढ़ाना। यह सब तुम उसी तरीके से चढ़ाना जैसे नियमित तौर पर चढ़ाया जाता है। 22 और एक बकरे की पाप-बलि भी चढ़ाना। तुम जो नियमित होम-बलि और उसके साथ अनाज का चढ़ावा और अर्घ देते हो, उनके अलावा यह सब चढ़ाना।+

23 चौथे दिन तुम 10 बैलों, 2 मेढ़ों और एक-एक साल के 14 नर मेम्नों की बलि चढ़ाना। इन सभी जानवरों में कोई दोष नहीं होना चाहिए।+ 24 जितने बैल, मेढ़े और नर मेम्ने तुम अर्पित करते हो उनके हिसाब से उनके साथ अनाज का चढ़ावा और अर्घ भी चढ़ाना। यह सब तुम उसी तरीके से चढ़ाना जैसे नियमित तौर पर चढ़ाया जाता है। 25 और बकरी के एक बच्चे की पाप-बलि भी चढ़ाना। तुम जो नियमित होम-बलि और उसके साथ अनाज का चढ़ावा और अर्घ देते हो, उनके अलावा यह सब चढ़ाना।+

26 पाँचवें दिन तुम 9 बैलों, 2 मेढ़ों और एक-एक साल के 14 नर मेम्नों की बलि चढ़ाना। इन सभी जानवरों में कोई दोष नहीं होना चाहिए।+ 27 जितने बैल, मेढ़े और नर मेम्ने तुम अर्पित करते हो उनके हिसाब से उनके साथ अनाज का चढ़ावा और अर्घ भी चढ़ाना। यह सब तुम उसी तरीके से चढ़ाना जैसे नियमित तौर पर चढ़ाया जाता है। 28 और एक बकरे की पाप-बलि भी चढ़ाना। तुम जो नियमित होम-बलि और उसके साथ अनाज का चढ़ावा और अर्घ देते हो, उनके अलावा यह सब चढ़ाना।+

29 छठे दिन तुम 8 बैलों, 2 मेढ़ों और एक-एक साल के 14 नर मेम्नों की बलि चढ़ाना। इन सभी जानवरों में कोई दोष नहीं होना चाहिए।+ 30 जितने बैल, मेढ़े और नर मेम्ने तुम अर्पित करते हो उनके हिसाब से उनके साथ अनाज का चढ़ावा और अर्घ भी चढ़ाना। यह सब तुम उसी तरीके से चढ़ाना जैसे नियमित तौर पर चढ़ाया जाता है। 31 और एक बकरे की पाप-बलि भी चढ़ाना। तुम जो नियमित होम-बलि और उसके साथ अनाज का चढ़ावा और अर्घ देते हो, उनके अलावा यह सब चढ़ाना।+

32 सातवें दिन तुम 7 बैलों, 2 मेढ़ों और एक-एक साल के 14 नर मेम्नों की बलि चढ़ाना। इन सभी जानवरों में कोई दोष नहीं होना चाहिए।+ 33 जितने बैल, मेढ़े और नर मेम्ने तुम अर्पित करते हो उनके हिसाब से उनके साथ अनाज का चढ़ावा और अर्घ भी चढ़ाना। यह सब तुम उसी तरीके से चढ़ाना जैसे नियमित तौर पर चढ़ाया जाता है। 34 और एक बकरे की पाप-बलि भी चढ़ाना। तुम जो नियमित होम-बलि और उसके साथ अनाज का चढ़ावा और अर्घ देते हो, उनके अलावा यह सब चढ़ाना।+

35 आठवें दिन तुम एक पवित्र सभा रखना। उस दिन तुम मेहनत का कोई भी काम मत करना।+ 36 तुम एक बैल, एक मेढ़े और एक-एक साल के सात नर मेम्नों की होम-बलि चढ़ाना। इन सभी जानवरों में कोई दोष नहीं होना चाहिए।+ तुम इन्हें आग में जलाकर यहोवा के लिए अर्पित करना ताकि उनकी सुगंध पाकर वह खुश हो। 37 तुम जो बैल, मेढ़ा और जितने नर मेम्ने अर्पित करते हो उनके हिसाब से उनके साथ अनाज का चढ़ावा और अर्घ भी चढ़ाना। यह सब तुम उसी तरीके से चढ़ाना जैसे नियमित तौर पर चढ़ाया जाता है। 38 और एक बकरे की पाप-बलि भी चढ़ाना। तुम जो नियमित होम-बलि और उसके साथ अनाज का चढ़ावा और अर्घ देते हो, उनके अलावा यह सब चढ़ाना।+

39 तुम साल के अलग-अलग वक्‍त पर जब त्योहार मनाते हो,+ तो उन मौकों पर यहोवा के लिए ये सारी बलियाँ अर्पित करना। तुम मन्‍नत-बलियों+ और स्वेच्छा-बलियों+ के रूप में जो होम-बलियाँ,+ अनाज के चढ़ावे,+ अर्घ+ और शांति-बलियाँ+ देते हो, उन सबके अलावा ये सारी बलियाँ अर्पित करना।’” 40 फिर मूसा ने इसराएलियों को ये सारी बातें बतायीं जिनकी यहोवा ने उसे आज्ञा दी थी।

30 फिर मूसा ने इसराएल के गोत्रों के मुखियाओं+ से कहा, “यहोवा ने यह आज्ञा दी है, 2 अगर कोई आदमी यहोवा के लिए एक मन्‍नत मानता है+ या शपथ खाकर+ किसी चीज़ का त्याग करने की मन्‍नत मानता है और इस तरह खुद पर बंदिश लगाता है, तो उसे अपने वचन से नहीं मुकरना चाहिए।+ उसने जो भी मन्‍नत मानी है उसे पूरा करना होगा।+

3 अगर एक जवान लड़की अपने पिता के घर में रहते यहोवा के लिए कोई मन्‍नत मानती है या किसी चीज़ का त्याग करने की मन्‍नत मानकर खुद पर बंदिश लगाती है 4 और उसका पिता उसकी मन्‍नत या त्याग की मन्‍नत के बारे में सुनता है और एतराज़ नहीं करता, तो उस लड़की को हर हाल में अपनी मन्‍नत पूरी करनी होगी। या उसने जो त्याग करने की मन्‍नत मानकर खुद पर बंदिश लगायी है उसे हर हाल में मानना होगा। 5 लेकिन अगर पिता अपनी बेटी को मना कर देता है कि उसने जो मन्‍नत मानी है या मन्‍नत मानकर खुद पर जो बंदिश लगायी है, उसे वह न माने तो लड़की को अपनी मन्‍नत पूरी करने की ज़रूरत नहीं। यहोवा उसे माफ कर देगा क्योंकि उसके पिता ने उसे मन्‍नत पूरी करने से मना किया है।+

6 लेकिन अगर एक लड़की ने मन्‍नत मानी है या जल्दबाज़ी में कोई वादा करके खुद पर बंदिश लगायी है और बाद में उसकी शादी हो जाती है 7 और अगर उसका पति उसकी मन्‍नत के बारे में जानने पर कोई एतराज़ नहीं करता, तो उस औरत को हर हाल में अपनी मन्‍नत पूरी करनी होगी। 8 लेकिन अगर पति उसकी मन्‍नत या जल्दबाज़ी में किए वादे के बारे में सुनता है और उसे यह मंज़ूर नहीं है, तो वह उसकी मन्‍नत या वादे को रद्द कर सकता है।+ यहोवा उस औरत को माफ कर देगा।

9 लेकिन अगर एक विधवा या तलाकशुदा औरत एक मन्‍नत मानती है, तो उसने खुद पर जो भी बंदिश लगायी है उसे हर हाल में मानना होगा।

10 लेकिन अगर एक शादीशुदा औरत कोई मन्‍नत मानती है या किसी चीज़ का त्याग करने की मन्‍नत मानकर खुद पर बंदिश लगाती है 11 और उसका पति उसकी मन्‍नत के बारे में सुनने पर एतराज़ या नामंज़ूर नहीं करता, तो उस औरत को हर हाल में अपनी मन्‍नत पूरी करनी होगी। 12 लेकिन अगर पति जिस दिन उसकी मन्‍नत के बारे में सुनता है उसी दिन उसे पूरी तरह रद्द कर देता है तो उसे मन्‍नत पूरी करने की ज़रूरत नहीं, फिर चाहे उसने जो भी मन्‍नत मानी हो या खुद पर जो भी बंदिश लगायी हो।+ यहोवा उसे माफ कर देगा क्योंकि उसके पति ने उसकी मन्‍नत रद्द कर दी है। 13 एक औरत चाहे जो भी मन्‍नत माने या शपथ खाकर किसी भी चीज़ से दूर रहने की मन्‍नत माने, वह उसे पूरा करेगी या नहीं इसका फैसला उसके पति को करना होगा। 14 अगर पति उसकी मन्‍नत के बारे में जानने के बाद कई दिनों तक एतराज़ नहीं करता, तो इसका मतलब है कि वह उसे मन्‍नत पूरी करने की इजाज़त देता है, फिर चाहे उसकी पत्नी ने जो भी मन्‍नत मानी हो या किसी भी चीज़ का त्याग करने का वादा किया हो। उसका पति उसे मन्‍नत पूरी करने की इजाज़त देता है क्योंकि जिस दिन वह उसे मन्‍नत मानते हुए सुनता है उस दिन वह कोई एतराज़ नहीं करता। 15 लेकिन पति जिस दिन पत्नी की मन्‍नत के बारे में सुनता है, उस दिन के बाद अगर कभी वह उसकी मन्‍नत रद्द कर देता है तो पत्नी के दोष का अंजाम पति को भुगतना पड़ेगा।+

16 यहोवा ने मूसा को ये सारे नियम दिए, जो इस बारे में हैं कि अगर एक शादीशुदा औरत मन्‍नत मानती है तो उसे और उसके पति को क्या करना चाहिए और अगर एक जवान लड़की अपने पिता के घर में रहते मन्‍नत मानती है तो उसे और उसके पिता को क्या करना चाहिए।”

31 इसके बाद यहोवा ने मूसा से कहा, 2 “मिद्यानियों ने इसराएलियों के साथ जो किया उसका उनसे बदला ले।+ इसके बाद तेरी मौत हो जाएगी।”*+

3 तब मूसा ने लोगों से कहा, “तुम अपने बीच से कुछ आदमियों को तैयार करो ताकि वे मिद्यान से लड़ें और यहोवा की तरफ से उससे बदला लें। 4 तुम इसराएल के हर गोत्र में से 1,000 आदमी चुनना और उन्हें युद्ध के लिए भेजना।” 5 इसराएली लाखों की तादाद में थे+ और हर गोत्र में से सेना के लिए हज़ार-हज़ार आदमी चुने गए। युद्ध के लिए तैयार सैनिकों की कुल गिनती 12,000 हो गयी।

6 फिर मूसा ने हर गोत्र से चुने गए उन हज़ार-हज़ार आदमियों की सेना को युद्ध के लिए रवाना किया और उसके साथ एलिआज़र के बेटे फिनेहास+ को भी भेजा जो इस सेना का याजक था। फिनेहास के हाथ में पवित्र बरतन और युद्ध की पुकार के लिए तुरहियाँ थीं।+ 7 इन आदमियों ने जाकर मिद्यानियों से युद्ध किया, ठीक जैसे यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी और उन्होंने हर मिद्यानी आदमी को मार डाला। 8 उन्होंने मिद्यान के पाँच राजाओं को भी मार डाला जिनके नाम थे एवी, रेकेम, सूर, हूर और रेबा। उन्होंने बओर के बेटे बिलाम+ को भी तलवार से मार डाला। 9 मगर उन्होंने मिद्यानी औरतों और बच्चों को बंदी बना लिया। और उन्होंने मिद्यानियों के सभी पालतू जानवरों और सभी मवेशियों को और उनका सारा माल लूट लिया। 10 उन्होंने मिद्यानियों की सभी छावनियों* और उन सभी शहरों को जलाकर राख कर दिया जहाँ वे बसे हुए थे। 11 और वे लूट का सारा माल और जानवरों और सभी बंदियों को लेकर निकल पड़े। 12 यह सब लेकर वे मूसा, एलिआज़र याजक और इसराएलियों की मंडली के पास आए जो यरीहो के सामने यरदन के पास, मोआब के वीरानों में डेरा डाले हुए थे।+

13 फिर मूसा, एलिआज़र याजक और मंडली के सभी प्रधान सेना से मिलने छावनी के बाहर गए। 14 मूसा युद्ध से लौटे उन अधिकारियों पर बहुत गुस्सा हुआ जो हज़ारों और सैकड़ों की टुकड़ियों के प्रधान चुने गए थे। 15 मूसा ने उनसे कहा, “तुमने सभी औरतों को क्यों ज़िंदा छोड़ दिया? 16 उन्होंने ही तो बिलाम के कहने पर इसराएली आदमियों को अपने जाल में फँसाया था और पोर के मामले में+ यहोवा से विश्‍वासघात करवाया था+ और इस वजह से यहोवा की मंडली पर कहर टूट पड़ा था।+ 17 इसलिए अब तुम ऐसी हर मिद्यानी औरत को मार डालो जिसने किसी आदमी के साथ यौन-संबंध रखा हो और उनके बच्चों में से सभी लड़कों को भी मार डालो। 18 सिर्फ उनकी लड़कियों को ज़िंदा छोड़ दो जिन्होंने कभी किसी आदमी के साथ यौन-संबंध नहीं रखा।+ 19 और तुम सब छावनी के बाहर सात दिन तक डेरा डाले रहना। तुममें से जिस-जिसने किसी को मार डाला है या किसी लाश को छुआ है,+ उसे तीसरे और सातवें दिन खुद को शुद्ध करना होगा।+ तुम और वे सभी जिन्हें तुम बंदी बनाकर लाए हो, खुद को शुद्ध करें। 20 और तुम हर कपड़े, चमड़े की हर चीज़, बकरी के बाल की बनी हर चीज़ और लकड़ी की हर चीज़ को शुद्ध करना।”

21 इसके बाद एलिआज़र याजक ने युद्ध से लौटे सैनिकों से कहा, “यहोवा ने मूसा को जो कानून दिया था उसमें यह नियम है: 22 ‘सोना, चाँदी, ताँबा, लोहा, टीन, सीसा 23 और ऐसी हर चीज़ जो आग से शुद्ध की जा सकती है, सिर्फ उसी को तुम आग में डालकर शुद्ध करना और वह शुद्ध हो जाएगी। इसके बाद तुम उन्हें पानी से भी शुद्ध करना।+ लेकिन जो चीज़ें आग से शुद्ध नहीं की जा सकतीं, उन्हें तुम पानी से धोना। 24 और तुम सातवें दिन अपने कपड़े धोना। तब तुम शुद्ध हो जाओगे और छावनी में आ सकते हो।’”+

25 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 26 “तू एलिआज़र याजक और मंडली के कुलों के मुखियाओं के साथ मिलकर लूट के सारे माल की गिनती लेना। इंसानों और जानवरों दोनों की गिनती लेना। 27 सारा माल दो हिस्सों में बाँटना, एक हिस्सा उन सभी सैनिकों को देना जो युद्ध में गए थे और दूसरा हिस्सा मंडली के बाकी लोगों को देना।+ 28 और जो सैनिक युद्ध में गए थे उनसे यहोवा के लिए कर लेना। उनको दिए गए हर 500 बंदियों, 500 गाय-बैलों, 500 गधों और 500 भेड़-बकरियों में से एक-एक लेकर परमेश्‍वर को देना। 29 सैनिकों को मिलनेवाले आधे हिस्से में से यह कर लेकर तुम यहोवा के लिए जो दान दोगे उसे तुम एलिआज़र याजक को देना।+ 30 और इसराएलियों को दिए आधे हिस्से में जितने बँधुए, गाय-बैल, गधे, भेड़-बकरियाँ और हर तरह के पालतू जानवर हैं, उनमें से हर 50 में से एक अलग निकालना और लेवियों को देना+ जो यहोवा के पवित्र डेरे से जुड़ी ज़िम्मेदारियाँ निभाते हैं।”+

31 मूसा और एलिआज़र याजक ने ठीक वैसे ही किया जैसे यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी। 32 युद्ध में गए सैनिकों ने लूट के माल में से जो कुछ खा लिया था, उसके बाद जो माल बचा उसकी गिनती यह थी: भेड़-बकरियाँ 6,75,000 थीं, 33 गाय-बैल 72,000 थे 34 और गधे 61,000 थे। 35 जिन लड़कियों ने किसी आदमी के साथ यौन-संबंध नहीं रखा था,+ उनकी गिनती 32,000 थी। 36 युद्ध में गए सैनिकों को जो आधा हिस्सा दिया गया उसमें भेड़-बकरियों की गिनती 3,37,500 थी। 37 इनमें से 675 भेड़-बकरियाँ यहोवा के लिए कर में दी गयीं। 38 गाय-बैलों की गिनती 36,000 थी। इनमें से 72 गाय-बैल यहोवा के लिए कर में दिए गए। 39 और गधों की गिनती 30,500 थी। इनमें से 61 यहोवा के लिए कर में दिए गए। 40 और इंसानों की गिनती 16,000 थी। इनमें से 32 लोग यहोवा के लिए कर में दिए गए। 41 फिर मूसा ने यह सारा कर लिया जो यहोवा के लिए दान में दिया गया था और उसे एलिआज़र याजक को दिया,+ ठीक जैसे यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी।

42 मूसा ने युद्ध में गए सैनिकों को लूट का हिस्सा देने के बाद जो आधा हिस्सा इसराएलियों को दिया वह यह था: 43 भेड़-बकरियाँ 3,37,500 थीं, 44 गाय-बैल 36,000 थे, 45 गधे 30,500 थे 46 और इंसान 16,000 थे। 47 मूसा ने इसराएलियों के इस हिस्से में से कुछ इंसानों और जानवरों को अलग निकाला। उसने हर 50 इंसानों और जानवरों में से एक अलग निकाला और लेवियों को दिया+ जो यहोवा के पवित्र डेरे से जुड़ी ज़िम्मेदारियाँ सँभालते थे।+ मूसा ने ठीक वैसे ही किया जैसे यहोवा ने उसे आज्ञा दी थी।

48 इसके बाद मूसा के पास वे सभी अधिकारी आए, जो हज़ारों+ और सैकड़ों की टुकड़ियों के प्रधान चुने गए थे। 49 उन्होंने मूसा से कहा, “मालिक, हमने उन सभी सैनिकों की गिनती ली है जो हमारी कमान के नीचे हैं। उनकी गिनती पूरी है, एक भी सैनिक कम नहीं है।+ 50 इसलिए अब हममें से हर कोई यहोवा को कुछ भेंट देना चाहता है। हमें लूट में जो कुछ मिला है उसमें से हम सोने की ये सारी चीज़ें देना चाहते हैं: पायल, कंगन, मुहरवाली अँगूठियाँ, कान की बालियाँ और दूसरे ज़ेवर ताकि यहोवा के सामने हमारा प्रायश्‍चित हो।”

51 तब मूसा और एलिआज़र याजक ने उन अधिकारियों से सोने के सारे ज़ेवर स्वीकार किए। 52 हज़ारों और सैकड़ों की टुकड़ियों के प्रधानों ने जो सोना यहोवा को दान में दिया था उसका वज़न 16,750 शेकेल* था। 53 सेना में से हर आदमी को लूट के माल में से हिस्सा मिला था। 54 मूसा और एलिआज़र याजक ने हज़ारों और सैकड़ों की टुकड़ियों के प्रधानों से सोना स्वीकार किया। उन्होंने यह सारा सोना लाकर भेंट के तंबू में रखा ताकि वह यहोवा के सामने इसराएलियों के लिए यादगार बना रहे।

32 रूबेन और गाद के बेटों+ के पास भेड़-बकरियों के बहुत बड़े-बड़े झुंड थे और उन्होंने देखा कि याजेर+ और गिलाद का इलाका भेड़-बकरियाँ पालने के लिए बहुत बढ़िया है। 2 इसलिए गाद और रूबेन के बेटे मूसा, एलिआज़र याजक और मंडली के प्रधानों के पास गए और कहने लगे, 3 “अतारोत, दीबोन, याजेर, निमराह, हेशबोन,+ एलाले, सबाम, नबो+ और बोन+ का 4 पूरा इलाका, जिसे यहोवा ने इसराएल की मंडली के देखते जीता है,+ भेड़-बकरियाँ पालने के लिए बहुत बढ़िया है और तुम्हारे इन सेवकों के पास भेड़-बकरियों के बड़े-बड़े झुंड हैं।”+ 5 उन्होंने यह भी कहा, “इसलिए अगर तुम्हारी कृपा अपने इन सेवकों पर है, तो यह सारा इलाका हमें दे दो। तुम हमें यरदन के उस पार मत ले जाना।”

6 तब मूसा ने गाद और रूबेन के बेटों से कहा, “तो क्या जब तुम्हारे भाई युद्ध करने जाएँगे तब तुम यहीं बैठे रहोगे? 7 तुम क्यों सबका हौसला तोड़ना चाहते हो? तुम्हारी वजह से सभी इसराएली निराश हो जाएँगे और उस देश में जाने से इनकार कर देंगे जो यहोवा उन्हें देनेवाला है। 8 तुम्हारे पुरखों ने भी ऐसा ही किया था जब मैंने उन्हें कादेश-बरने से यह देश देखने के लिए भेजा था।+ 9 जब वे एशकोल घाटी से देश का दौरा करके+ लौटे तो उन्होंने इसराएली लोगों को इस कदर निराश कर दिया कि वे उस देश में जाने से इनकार करने लगे जो यहोवा उन्हें देनेवाला था।+ 10 जिस दिन उन्होंने ऐसा किया उसी दिन यहोवा का क्रोध उन पर भड़क उठा और उसने शपथ खाकर कहा,+ 11 ‘मिस्र से निकल आए लोगों में से जितनों की उम्र 20 साल या उससे ज़्यादा है, उनमें से कोई भी वह देश नहीं देख पाएगा+ क्योंकि ये लोग पूरे दिल से मेरे पीछे नहीं चले। ये उस देश में नहीं जा पाएँगे जिसे देने के बारे में मैंने अब्राहम, इसहाक और याकूब से शपथ खायी थी।+ 12 सिर्फ कनिज्जी यपुन्‍ने का बेटा कालेब+ और नून का बेटा यहोशू+ उस देश को देख पाएँगे क्योंकि वे पूरे दिल से यहोवा के पीछे चले हैं।’+ 13 इस तरह यहोवा का गुस्सा इसराएलियों पर भड़क उठा और उसने उन्हें 40 साल तक वीराने में भटकने के लिए छोड़ दिया,+ जब तक कि उस पीढ़ी के सब लोग मिट नहीं गए जो यहोवा की नज़र में बुरे काम कर रहे थे।+ 14 अब तुम भी अपने पुरखों के नक्शे-कदम पर चलकर उनकी गलती दोहरा रहे हो और पाप करके इसराएल पर यहोवा का क्रोध और भी भड़का रहे हो। 15 अगर तुम परमेश्‍वर के पीछे चलना छोड़ दोगे तो वह ज़रूर इन लोगों को वापस वीराने में ले जाकर छोड़ देगा और इन सबकी तबाही के लिए तुम ज़िम्मेदार होगे।”

16 बाद में रूबेन और गाद के बेटों ने मूसा के पास जाकर उससे कहा, “हमें अपने बच्चों के लिए शहर और भेड़-बकरियों के लिए पत्थरों के बाड़े बनाने की इजाज़त दे 17 ताकि हमारे बच्चे किलेबंद शहरों में रहें और उन्हें इस देश के लोगों से कोई खतरा न हो। मगर हमारे आदमी हथियार बाँधकर बाकी इसराएलियों के साथ युद्ध के लिए आगे बढ़ेंगे+ और उनके साथ मिलकर तब तक युद्ध करते रहेंगे जब तक कि हम इसराएलियों को उनकी जगह तक नहीं पहुँचा देते। 18 हम तब तक अपने घर नहीं लौटेंगे जब तक कि हर इसराएली को विरासत की ज़मीन नहीं मिल जाती।+ 19 हमें यरदन के उस पार विरासत की कोई ज़मीन नहीं मिलेगी क्योंकि हमें यरदन के पूरब में विरासत मिल गयी है।”+

20 मूसा ने उनसे कहा, “तुम हथियार लेकर यहोवा के सामने युद्ध करने जाओ।+ 21 तुममें से हर कोई हथियार बाँधकर यहोवा के सामने यरदन पार जाए और उसके दुश्‍मनों से तब तक लड़े जब तक कि वह उन्हें भगा नहीं देता+ 22 और पूरा देश यहोवा के सामने इसराएलियों के अधिकार में नहीं आ जाता।+ इसके बाद तुम यहाँ लौट सकते हो+ और तब तुम यहोवा और इसराएलियों के सामने दोषी नहीं ठहरोगे। और तब यहोवा के सामने यह इलाका तुम्हारे अधिकार में हो जाएगा।+ 23 लेकिन अगर तुम ऐसा नहीं करोगे तो याद रखना, तुम यहोवा के खिलाफ पाप करनेवाले ठहरोगे और तुम्हें अपने पाप की सज़ा भुगतनी होगी। 24 इसलिए तुम्हें इजाज़त है, तुम अपने बच्चों के लिए शहर और भेड़-बकरियों के लिए बाड़े बना सकते हो।+ मगर तुमने जो वादा किया है उसे ज़रूर पूरा करना।”

25 गाद और रूबेन के बेटों ने मूसा से कहा, “मालिक, तूने जो आज्ञा दी है हम वैसा ही करेंगे। 26 हमारे बीवी-बच्चे और हमारी भेड़-बकरियाँ और सभी पालतू जानवर गिलाद के शहरों में रहेंगे।+ 27 मगर तेरे ये सेवक नदी के उस पार जाएँगे। हम सब हथियार बाँधकर यहोवा के सामने युद्ध करने जाएँगे,+ ठीक जैसे तूने आज्ञा दी है।”

28 तब मूसा ने उनके बारे में एलिआज़र याजक, नून के बेटे यहोशू और इसराएल के गोत्रों के कुलों के मुखियाओं को यह आज्ञा दी: 29 “अगर गाद और रूबेन के बेटे तुम्हारे साथ मिलकर यरदन के उस पार जाते हैं और उनमें से हर कोई हथियार बाँधकर यहोवा के सामने युद्ध करता है और तुम सब उस देश पर कब्ज़ा कर लेते हो, तो तुम गिलाद का इलाका उनके अधिकार में कर देना।+ 30 लेकिन अगर वे हथियार बाँधकर तुम्हारे साथ उस पार नहीं जाते, तो तुम उन्हें कनान देश में अपने ही बीच बसाना।”

31 इस पर गाद और रूबेन के बेटों ने कहा, “यहोवा ने तेरे इन सेवकों को जो आज्ञा दी है हम वही करेंगे। 32 हम हथियार बाँधकर यहोवा के सामने यरदन के उस पार कनान देश ज़रूर जाएँगे,+ मगर हमें विरासत की ज़मीन इस पार ही दी जाए।” 33 इसलिए मूसा ने गाद और रूबेन के बेटों+ को और यूसुफ के बेटे मनश्‍शे के आधे गोत्र+ को वे सभी इलाके दिए जहाँ एमोरियों का राजा सीहोन और बाशान का राजा ओग राज करते थे।+ मूसा ने इन राजाओं के इलाकों के शहर और उनकी ज़मीन और चारों तरफ के इलाके के शहर उनके हवाले कर दिए।

34 फिर गाद के बेटों ने दीबोन,+ अतारोत,+ अरोएर,+ 35 अतरोत-शोपान, याजेर,+ योगबहा,+ 36 बेत-निमराह+ और बेत-हारान+ नाम के किलेबंद शहर बनाए* और अपनी भेड़-बकरियों के लिए पत्थरों के बाड़े बनाए। 37 और रूबेन के बेटों ने हेशबोन,+ एलाले,+ किरयातैम,+ 38 नबो+ और बालमोन+ (इन दोनों शहरों का नाम बदल गया है) और सिबमा को दोबारा बनाया। उन्होंने जितने भी शहर दोबारा बनाए उन सबको वे नए नाम देने लगे।

39 फिर मनश्‍शे के बेटे माकीर के बेटों+ ने गिलाद पर हमला किया। उन्होंने गिलाद को अपने कब्ज़े में कर लिया और एमोरियों को वहाँ से भगा दिया। 40 इसलिए मूसा ने गिलाद का इलाका मनश्‍शे के बेटे माकीर के बेटों को दे दिया और वे वहाँ रहने लगे।+ 41 मनश्‍शे गोत्र के याईर ने एमोरियों पर हमला किया और उनके कसबों को जीत लिया और उन कसबों को हव्वोत-याईर* नाम दिया।+ 42 और नोबह ने कनात पर धावा बोला और उसे और उसके आस-पास के नगरों को जीत लिया और कनात का नाम बदलकर अपने नाम पर नोबह रखा।

33 जब इसराएली मूसा और हारून के निर्देशन में+ अलग-अलग दल बनाकर+ मिस्र से निकले+ तो उन्होंने इन सारी जगहों पर पड़ाव डालते हुए सफर तय किया। 2 यहोवा के आदेश पर मूसा लिखता गया कि इसराएलियों ने अपने सफर में किस-किस जगह पड़ाव डाला और वे कहाँ-कहाँ से रवाना हुए।+ ये थीं वे जगह: 3 पहले महीने+ के 15वें दिन इसराएली रामसेस से रवाना हुए।+ जिस दिन इसराएलियों ने मिस्र में फसह मनाया+ उसी दिन वे फसह के बाद, सभी मिस्रियों के देखते बेखौफ* निकल पड़े। 4 उस वक्‍त मिस्री लोग अपने-अपने पहलौठे को दफना रहे थे जिन्हें यहोवा ने मार डाला था।+ यहोवा ने उनके देवताओं को सज़ा दी थी।+

5 इसराएलियों ने रामसेस से रवाना होने के बाद सुक्कोत में पड़ाव डाला।+ 6 फिर वे सुक्कोत से रवाना हुए और उन्होंने इताम में पड़ाव डाला+ जो वीराने के छोर पर है। 7 इसके बाद वे इताम से रवाना हुए और पीछे मुड़कर पीहाहीरोत गए जो बाल-सिपोन के सामने है।+ वहाँ उन्होंने मिगदोल के पास पड़ाव डाला।+ 8 इसके बाद वे पीहाहीरोत से रवाना हुए और समुंदर के बीच से गुज़रकर+ वीराने की तरफ गए।+ उन्होंने इताम नाम के वीराने+ में तीन दिन तक सफर किया और मारा में पड़ाव डाला।+

9 फिर वे मारा से रवाना होकर एलीम गए। एलीम में पानी के 12 सोते और खजूर के 70 पेड़ थे इसलिए उन्होंने वहीं अपना पड़ाव डाला।+ 10 फिर वे एलीम से रवाना हुए और उन्होंने लाल सागर के पास पड़ाव डाला। 11 इसके बाद वे लाल सागर के पास से रवाना हुए और उन्होंने सीन वीराने में पड़ाव डाला।+ 12 फिर वे सीन वीराने से रवाना हुए और उन्होंने दोपका में पड़ाव डाला। 13 बाद में वे दोपका से रवाना हुए और उन्होंने आलूश में पड़ाव डाला। 14 फिर वे आलूश से रवाना हुए और उन्होंने रपीदीम में पड़ाव डाला।+ वहाँ लोगों के पीने के लिए पानी नहीं था। 15 इसके बाद वे रपीदीम से रवाना हुए और उन्होंने सीनै वीराने में पड़ाव डाला।+

16 वे सीनै वीराने से रवाना हुए और उन्होंने किबरोत-हत्तावा में पड़ाव डाला।+ 17 फिर वे किबरोत-हत्तावा से रवाना हुए और उन्होंने हसेरोत में पड़ाव डाला।+ 18 हसेरोत से रवाना होने के बाद उन्होंने रितमा में पड़ाव डाला। 19 इसके बाद वे रितमा से रवाना हुए और उन्होंने रिम्मोन-पेरेस में पड़ाव डाला। 20 रिम्मोन-पेरेस से रवाना होने के बाद उन्होंने लिब्ना में पड़ाव डाला। 21 वे लिब्ना से रवाना हुए और उन्होंने रिस्सा में पड़ाव डाला। 22 फिर वे रिस्सा से रवाना हुए और उन्होंने कहेलाताह में पड़ाव डाला। 23 इसके बाद वे कहेलाताह से रवाना हुए और उन्होंने शेपेर पहाड़ के पास पड़ाव डाला।

24 बाद में वे शेपेर पहाड़ से रवाना हुए और उन्होंने हरादा में पड़ाव डाला। 25 फिर वे हरादा से रवाना हुए और उन्होंने मखेलोत में पड़ाव डाला। 26 मखेलोत से रवाना होने के बाद+ उन्होंने ताहत में पड़ाव डाला। 27 इसके बाद वे ताहत से रवाना हुए और उन्होंने तिरह में पड़ाव डाला। 28 तिरह से रवाना होने के बाद उन्होंने मितका में पड़ाव डाला। 29 बाद में वे मितका से रवाना हुए और उन्होंने हशमोना में पड़ाव डाला। 30 फिर वे हशमोना से रवाना हुए और उन्होंने मोसेरोत में पड़ाव डाला। 31 फिर वे मोसेरोत से रवाना हुए और उन्होंने बने-याकान में पड़ाव डाला।+ 32 बने-याकान से रवाना होने के बाद उन्होंने होर-हग्गिदगाद में पड़ाव डाला। 33 इसके बाद वे होर-हग्गिदगाद से रवाना हुए और उन्होंने योतबाता में पड़ाव डाला।+ 34 बाद में वे योतबाता से रवाना हुए और उन्होंने अबरोना में पड़ाव डाला। 35 फिर वे अबरोना से रवाना हुए और उन्होंने एस्योन-गेबेर में पड़ाव डाला।+ 36 इसके बाद वे एस्योन-गेबेर से रवाना हुए और उन्होंने सिन वीराने में यानी कादेश में पड़ाव डाला।+

37 बाद में वे कादेश से रवाना हुए और उन्होंने होर पहाड़ के पास, एदोम देश की सरहद पर पड़ाव डाला।+ 38 वहाँ यहोवा के आदेश पर हारून याजक होर पहाड़ के ऊपर गया और वहीं उसकी मौत हो गयी। यह मिस्र से इसराएलियों के निकलने के 40वें साल के पाँचवें महीने का पहला दिन था।+ 39 होर पहाड़ पर जब हारून की मौत हुई तब वह 123 साल का था।

40 इसी दौरान अराद के कनानी राजा+ ने सुना कि इसराएली कनान की तरफ आ रहे हैं। वह राजा कनान के नेगेब में रहता था।

41 कुछ वक्‍त बाद इसराएली होर पहाड़ के पास से रवाना हुए+ और उन्होंने सलमोना में पड़ाव डाला। 42 इसके बाद वे सलमोना से रवाना हुए और उन्होंने पूनोन में पड़ाव डाला। 43 फिर वे पूनोन से रवाना हुए और उन्होंने ओबोत में पड़ाव डाला।+ 44 इसके बाद वे ओबोत से रवाना हुए और उन्होंने मोआब की सरहद पर इय्ये-अबारीम में पड़ाव डाला।+ 45 बाद में वे इयीम* से रवाना हुए और उन्होंने दीबोन-गाद+ में पड़ाव डाला। 46 फिर वे दीबोन-गाद से रवाना हुए और उन्होंने अलमोन-दिबलातैम में पड़ाव डाला। 47 इसके बाद वे अलमोन-दिबलातैम से रवाना हुए और उन्होंने नबो+ के सामने अबारीम पहाड़ों+ में पड़ाव डाला। 48 आखिर में वे अबारीम पहाड़ों से रवाना हुए और उन्होंने मोआब के वीरानों में पड़ाव डाला जो यरदन के पास यरीहो के सामने थे।+ 49 वे मोआब के वीरानों में, यरदन के किनारे बेत-यशिमोत से लेकर दूर आबेल-शित्तीम+ तक डेरा डाले हुए थे।

50 जब इसराएली यरीहो के सामने यरदन के पास मोआब के वीरानों में थे तो यहोवा ने मूसा से कहा, 51 “इसराएलियों से कहना, ‘अब तुम यरदन पार करके कनान देश में कदम रखनेवाले हो।+ 52 तुम अपने सामने से उन सभी लोगों को भगा देना जो वहाँ बसे हुए हैं। तुम उनकी सभी मूरतें चूर-चूर कर देना, फिर चाहे वे पत्थर की नक्काशीदार मूरतें हों+ या धातु की मूरतें*+ और उनकी पूजा की सभी ऊँची जगह ढा देना।+ 53 तुम उस देश को अपने अधिकार में कर लोगे और वहाँ बस जाओगे क्योंकि मैं बेशक वह देश तुम्हारे अधिकार में कर दूँगा।+ 54 तुम चिट्ठियाँ डालकर देश की ज़मीन अपने सभी घरानों में बाँट देना।+ जो समूह बड़ा है उसे विरासत में ज़्यादा ज़मीन देना और जो समूह छोटा है उसे कम देना।+ चिट्ठियाँ डालकर तय किया जाए कि देश में किसे कहाँ पर विरासत की ज़मीन मिलेगी। तुम्हें अपने-अपने पिता के गोत्र के हिसाब से विरासत की ज़मीन दी जाएगी।+

55 लेकिन अगर तुम उस देश के लोगों को वहाँ से नहीं भगाओगे+ और उन्हें अपने बीच रहने दोगे, तो वे तुम्हारी आँखों की किरकिरी बन जाएँगे और काँटा बनकर तुम्हें चुभते रहेंगे और तुम पर ज़ुल्म करते रहेंगे।+ 56 और मैं तुम्हारा वही हश्र करूँगा जो मैंने उनके लिए सोचा था।’”+

34 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा, 2 “इसराएलियों को ये हिदायतें देना: ‘कनान देश का इलाका,+ जो तुम्हें विरासत में दिया जाएगा, उसकी सरहदें ये हैं:+

3 दक्षिण में तुम्हारे देश की सरहद एदोम के पास सिन वीराने से शुरू होगी। और दक्षिण-पूर्व में यह सरहद लवण सागर* के छोर से शुरू होगी।+ 4 फिर यह सरहद अकराबीम की चढ़ाई+ की दक्षिण की ओर पहुँचकर मुड़ेगी और सिन तक जाएगी और वहाँ से कादेश-बरने+ के दक्षिणी हिस्से तक जाएगी। और हसर-अद्दार+ तक बढ़कर असमोन तक जाएगी। 5 फिर असमोन से यह सरहद मिस्र घाटी* की तरफ मुड़ेगी और दूर महासागर* तक जाकर खत्म होगी।+

6 पश्‍चिम में तुम्हारे देश की सरहद महासागर* का तट होगी। यही तुम्हारे देश की पश्‍चिमी सरहद होगी।+

7 उत्तर में तुम्हारे देश की सरहद यह होगी: तुम महासागर से लेकर होर पहाड़ तक अपनी सरहद बाँधना। 8 फिर होर पहाड़ से लेबो-हमात* तक सरहद बाँधना।+ यह सरहद आगे दूर सदाद तक जाएगी।+ 9 फिर वहाँ से आगे जिप्रोन तक जाएगी और हसर-एनान में जाकर खत्म होगी।+ यही तुम्हारे देश की उत्तरी सरहद होगी।

10 इसके बाद तुम पूरब की सरहद हसर-एनान से शपाम तक बाँधना। 11 यह सरहद शपाम से रिबला तक जाएगी जो ऐन के पूरब में है। फिर यह सरहद नीचे जाएगी और किन्‍नेरेत झील*+ की पूर्वी ढलान से होकर गुज़रेगी। 12 यह सरहद यरदन की तरफ जाएगी और फिर लवण सागर तक जाकर खत्म होगी।+ यही तुम्हारे देश का इलाका+ और उसके चारों तरफ की सरहदें हैं।’”

13 तब मूसा ने इसराएलियों को यह हिदायत दी, “यह तुम्हारे देश का इलाका है और जैसे यहोवा ने आज्ञा दी है, तुम चिट्ठियाँ डालकर इसकी ज़मीन साढ़े नौ गोत्रों में बाँट देना,+ 14 क्योंकि रूबेन के वंशजों और गाद के वंशजों के गोत्रों ने अपने पिता के कुल के मुताबिक और मनश्‍शे के आधे गोत्र ने अपनी विरासत की ज़मीन पहले ही ले ली है।+ 15 इन ढाई गोत्रों ने यरीहो के सामने यरदन के पूरब में यानी जहाँ सूरज उगता है, वहाँ के इलाके में अपनी-अपनी विरासत की ज़मीन पहले ही ले ली है।”+

16 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा, 17 “एलिआज़र+ याजक और नून का बेटा यहोशू+ देश की ज़मीन का बँटवारा करके तुम लोगों के अधिकार में कर देंगे। 18 इसके अलावा, तुम हर गोत्र से एक प्रधान लेना जो ज़मीन का बँटवारा करने में तुम्हारी मदद करेंगे।+ 19 इन प्रधानों के नाम ये हैं: यहूदा गोत्र+ से यपुन्‍ने का बेटा कालेब,+ 20 शिमोन के बेटों के गोत्र+ से अम्मीहूद का बेटा शिमूएल, 21 बिन्यामीन गोत्र+ से किसलोन का बेटा एलीदाद, 22 दान के बेटों के गोत्र+ से योग्ली का बेटा प्रधान बुक्की, 23 यूसुफ के बेटे+ मनश्‍शे के बेटों के गोत्र+ से एपोद का बेटा प्रधान हन्‍नीएल, 24 एप्रैम के बेटों के गोत्र+ से शिप्तान का बेटा प्रधान कमूएल, 25 जबूलून के बेटों के गोत्र+ से परनाक का बेटा प्रधान एलीसापान, 26 इस्साकार के बेटों के गोत्र+ से अज्जान का बेटा प्रधान पलतीएल, 27 आशेर के बेटों के गोत्र+ से शलोमी का बेटा प्रधान अहीहूद और 28 नप्ताली के बेटों के गोत्र+ से अम्मीहूद का बेटा प्रधान पदहेल।” 29 यहोवा ने इन्हीं आदमियों को आज्ञा दी कि वे कनान देश की ज़मीन इसराएलियों में बाँट दें।+

35 यहोवा ने मूसा को और भी कुछ आज्ञाएँ दीं। इस वक्‍त इसराएली यरीहो के सामने यरदन के पास मोआब के वीरानों में थे।+ परमेश्‍वर ने मूसा से कहा, 2 “इसराएलियों को हिदायत दे कि जो देश उन्हें विरासत में मिलनेवाला है, उसमें से कुछ शहर वे लेवियों को दें ताकि लेवी उनमें रह सकें।+ साथ ही, उन शहरों के आस-पास के चरागाह भी उन्हें दें।+ 3 लेवी उन शहरों में रहेंगे और उनके चरागाह की ज़मीन उनके मवेशियों और दूसरे जानवरों के लिए और उनकी देखभाल की ज़रूरी चीज़ों के लिए होगी। 4 चरागाह की यह ज़मीन जो तुम लेवियों को दोगे, शहर के चारों तरफ दीवार से एक-एक हज़ार हाथ* की हो। 5 तुम शहर के बाहर पूरब की तरफ 2,000 हाथ, दक्षिण की तरफ 2,000 हाथ, पश्‍चिम की तरफ 2,000 हाथ और उत्तर की तरफ 2,000 हाथ नापना और शहर बीच में होगा। ये उनके शहरों के चरागाह होंगे।

6 तुम लेवियों को जो शहर दोगे उनमें से 6 शरण नगर होंगे।+ अगर कोई किसी का खून कर देता है, तो वह भागकर उनमें से किसी शरण नगर में जा सकता है।+ इनके अलावा, तुम लेवियों को 42 और शहर दोगे। 7 तुम उन्हें कुल मिलाकर 48 शहर और उनके आस-पास के चरागाह देना।+ 8 ये शहर तुम अपनी विरासत की ज़मीन में से देना।+ इसराएलियों में से जो समूह बड़ा है वह ज़्यादा शहर दे और जो समूह छोटा है वह कम शहर दे।+ एक समूह को विरासत में कितनी बड़ी या कितनी छोटी ज़मीन मिलती है, उस हिसाब से वह अपने कुछ शहर लेवियों को देगा।”

9 यहोवा ने मूसा से यह भी कहा, 10 “इसराएलियों से कहना, ‘तुम यरदन पार करके कनान देश जानेवाले हो।+ 11 तुम ऐसे शहरों को शरण नगर चुनना जहाँ अनजाने में खून करनेवाले के लिए भागकर जाना आसान हो।+ 12 ये शहर तुम्हें खून का बदला लेनेवाले से बचाने के लिए होंगे+ ताकि अगर कोई किसी का खून कर दे तो वह मंडली के सामने मुकदमे के लिए पेश होने से पहले मार न डाला जाए।+ 13 जो छ: शरण नगर तुम दोगे वे इसी मकसद के लिए होंगे। 14 इनमें से तीन शरण नगर यरदन के इस पार+ और तीन उस पार कनान देश में होने चाहिए।+ 15 ये छ: शहर इसराएलियों, उनके बीच रहनेवाले परदेसियों और प्रवासियों को शरण देने के लिए होंगे+ ताकि अगर उनमें से कोई अनजाने में किसी का खून कर देता है तो वह वहाँ भाग सके।+

16 लेकिन अगर कोई किसी आदमी को लोहे की किसी चीज़ से मारता है जिससे वह मर जाता है, तो मारनेवाला खूनी है। उस खूनी को हर हाल में मौत की सज़ा दी जाए।+ 17 अगर कोई ऐसा पत्थर हाथ में लेता है जिससे मारने पर कोई मर सकता है और वह उस पत्थर से किसी आदमी को मारता है जिससे वह मर जाता है तो मारनेवाला खूनी है। उस खूनी को हर हाल में मौत की सज़ा दी जाए। 18 अगर कोई लकड़ी की ऐसी चीज़ हाथ में लेता है जिससे मारने पर कोई मर सकता है और वह उस चीज़ से किसी आदमी को मारता है जिससे वह मर जाता है, तो मारनेवाला खूनी है। उस खूनी को हर हाल में मौत की सज़ा दी जाए।

19 एक खूनी को मौत की सज़ा देने की ज़िम्मेदारी खून का बदला लेनेवाले की है। जब उसका सामना खूनी से होगा तो वह खुद उसे मार डालेगा। 20 अगर कोई किसी से नफरत करने की वजह से उसे धकेल देता है जिससे वह मर जाता है या उसकी जान लेने के इरादे से* उस पर कुछ फेंकता है जिससे वह मर जाता है,+ 21 या नफरत की वजह से उसे घूँसा मारता है जिससे वह मर जाता है तो मारनेवाला खूनी है। उस खूनी को हर हाल में मौत की सज़ा दी जाएगी। जब खून का बदला लेनेवाले का सामना उस खूनी से होगा तो उसे खूनी को मार डालना चाहिए।

22 ऐसा भी हो सकता है कि एक इंसान नफरत की वजह से नहीं बल्कि गलती से किसी को धकेल देता है जिससे वह मर जाता है। या वह उस पर कोई ऐसी चीज़ फेंकता है जिसके लगने से वह मर जाता है, जबकि उसकी जान लेने का उसका कोई इरादा नहीं था।*+ 23 या यह भी हो सकता है कि उसने दूसरे आदमी को देखा नहीं और वह गलती से उस पर पत्थर गिरा देता है जिससे वह मर जाता है। अगर ऐसा होता है और उस इंसान की उस आदमी से कोई दुश्‍मनी नहीं थी जो मर गया है और न ही उसे चोट पहुँचाने का कोई इरादा था, 24 मंडली को इन नियमों के मुताबिक, मारनेवाले और खून का बदला लेनेवाले के मुकदमे का फैसला करना चाहिए।+ 25 इसके बाद मंडली को चाहिए कि वह उस आदमी को, जिसने अनजाने में खून किया है, खून का बदला लेनेवाले से बचाए और उसे वापस उस शरण नगर में भेज दे जहाँ वह भाग गया था। उसे तब तक शरण नगर में रहना चाहिए जब तक कि महायाजक की मौत नहीं हो जाती, जिसका पवित्र तेल से अभिषेक किया गया है।+

26 अगर वह आदमी, जिसने अनजाने में खून किया है, कभी शरण नगर की सीमा लाँघकर बाहर जाता है 27 और वहाँ खून का बदला लेनेवाला उसे देख लेता है और उसे मार डालता है तो बदला लेनेवाला खून का दोषी नहीं ठहरेगा। 28 जो अनजाने में खून कर देता है उसे महायाजक की मौत तक अपने शरण नगर के अंदर ही रहना है। मगर वह महायाजक की मौत के बाद अपनी ज़मीन पर लौट सकता है।+ 29 तुम जहाँ कहीं भी रहते हो, तुम और तुम्हारी आनेवाली पीढ़ियाँ इन नियमों के मुताबिक ऐसे मामलों का न्याय करें।

30 अगर कोई किसी को मार डालता है, तो उसे गवाहों के बयान पर+ ही कातिल ठहराकर मौत की सज़ा दी जाए।+ लेकिन किसी को भी सिर्फ एक गवाह के बयान पर मौत की सज़ा न दी जाए। 31 जो खूनी मौत की सज़ा के लायक है उसके लिए तुम कोई फिरौती की कीमत लेकर उसे ज़िंदा मत छोड़ना। उसे हर हाल में मौत की सज़ा दी जाए।+ 32 तुम ऐसे इंसान के लिए भी फिरौती की कीमत न लेना जो भागकर अपने शरण नगर में आया है और इस तरह उसे महायाजक की मौत से पहले अपनी ज़मीन पर लौटने की इजाज़त मत देना।

33 तुम जिस देश में रहते हो उसकी ज़मीन दूषित मत करना, क्योंकि जब खून बहाया जाता है तो देश दूषित हो जाता है।+ और देश में जो खून बहाया जाता है उसके लिए कोई प्रायश्‍चित नहीं, सिवा इसके कि जिसने खून बहाया है उसका खून बहाया जाए।+ 34 तुम जिस देश में रहते हो उसे दूषित मत करना क्योंकि मैं वहाँ निवास करता हूँ। मैं यहोवा, इसराएल के लोगों के बीच निवास करता हूँ।’”+

36 गिलाद के वंशजों के परिवारों के मुखिया, मूसा और इसराएलियों के प्रधानों के पास आए। गिलाद माकीर का बेटा था+ और माकीर मनश्‍शे का बेटा था और मनश्‍शे यूसुफ के बेटों के घरानों में से था। 2 उन्होंने मूसा और प्रधानों से कहा, “मालिक, यहोवा ने तुझे आज्ञा दी है कि चिट्ठियाँ डालकर देश की ज़मीन का बँटवारा करना+ और सभी इसराएलियों को उनकी विरासत की ज़मीन देना। और मालिक, यहोवा ने तुझे यह भी आज्ञा दी कि हमारे भाई सलोफाद की विरासत की ज़मीन उसकी बेटियों को दी जाए।+ 3 अब अगर उसकी बेटियाँ इसराएल के किसी दूसरे गोत्र के आदमियों से शादी करती हैं, तो हमारे पुरखों की विरासत की ज़मीन से हम उन लड़कियों का हिस्सा खो देंगे क्योंकि उनकी ज़मीन उस गोत्र की हो जाएगी जिसके आदमियों से वे शादी करती हैं। इस तरह हमारे गोत्र की विरासत की ज़मीन कम हो जाएगी जो चिट्ठियाँ डालकर हमें दी गयी है। 4 फिर जब इसराएलियों के लिए छुटकारे का साल+ आएगा, तो उन लड़कियों की विरासत की ज़मीन हमेशा के लिए उस गोत्र की हो जाएगी जहाँ उनकी शादी होती है। इस तरह हमारे पुरखों के गोत्र को दी गयी विरासत में से हम उनका हिस्सा खो देंगे।”

5 तब मूसा ने यहोवा के आदेश पर इसराएलियों को यह आज्ञा दी, “यूसुफ के बेटों का गोत्र बिलकुल सही कह रहा है। 6 इसलिए यहोवा ने सलोफाद की बेटियों के लिए यह आज्ञा दी है: ‘वे अपनी पसंद के आदमियों से शादी कर सकती हैं, बशर्ते वे आदमी उनके पिता के गोत्र के किसी परिवार के हों। 7 इसराएल के किसी भी गोत्र की विरासत की ज़मीन दूसरे गोत्र में नहीं जानी चाहिए, क्योंकि सभी इसराएलियों को अपने-अपने पुरखों के गोत्र की विरासत पर अधिकार बनाए रखना चाहिए। 8 और अगर इसराएल के किसी गोत्र में एक लड़की को अपने पिता की विरासत की ज़मीन मिलती है, तो उसे अपने पिता के गोत्र के ही किसी आदमी से शादी करनी चाहिए।+ ऐसा इसलिए किया जाए ताकि सभी इसराएली अपने-अपने पुरखों की विरासत पर अधिकार बनाए रखें। 9 विरासत की कोई भी ज़मीन एक गोत्र से दूसरे गोत्र में नहीं जानी चाहिए, क्योंकि इसराएल के सभी गोत्रों को अपनी-अपनी विरासत पर अधिकार बनाए रखना चाहिए।’”

10 सलोफाद की बेटियों ने ठीक वैसे ही किया जैसे यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी।+ 11 महला, तिरसा, होग्ला, मिलका और नोआ ने अपने चचेरे भाइयों से शादी की। 12 उन्होंने यूसुफ के बेटे मनश्‍शे के गोत्र के ही आदमियों से शादी की ताकि उनकी विरासत की ज़मीन उनके पिता के गोत्र में ही बनी रहे।

13 यहोवा ने ये सारी आज्ञाएँ और न्याय-सिद्धांत मूसा के ज़रिए इसराएलियों को तब दिए जब वे यरीहो के सामने यरदन के पास मोआब के वीरानों में थे।+

शा., “इसराएल के बेटों।”

शा., “जो पराया हो,” यानी जो लेवी न हो।

या “अपने-अपने झंडे के पास।”

या “रक्षा करने की; में सेवा करने की।”

या “निशान।”

शा., “उनके हाथ भरे गए।”

शा., “जो पराया हो,” यानी जो हारून-वंशी न हो।

शा., “जो पराया हो,” यानी जो लेवी न हो।

या “पवित्र शेकेल।”

एक शेकेल का वज़न 11.4 ग्रा. था। अति. ख14 देखें।

एक गेरा 0.57 ग्रा. के बराबर था। अति. ख14 देखें।

यानी बलिदान में जलाए गए जानवरों की पिघली चरबी से भीगी राख।

शा., “भार।”

या “डेरा।”

एपा का दसवाँ भाग 2.2 ली. के बराबर था। अति. ख14 देखें।

शा., “पवित्र जल।”

ज़ाहिर है कि यहाँ प्रजनक अंगों की बात की गयी है।

इसका मतलब शायद बच्चे पैदा करने की शक्‍ति खो बैठना है।

ज़ाहिर है कि यहाँ प्रजनक अंगों की बात की गयी है।

इसका मतलब शायद बच्चे पैदा करने की शक्‍ति खो बैठना है।

या “ऐसा ही हो! ऐसा ही हो!”

ज़ाहिर है कि यहाँ प्रजनक अंगों की बात की गयी है।

इसका मतलब शायद बच्चे पैदा करने की शक्‍ति खो बैठना है।

इब्रानी में नाज़ीर का मतलब है, “चुना गया; समर्पित किया गया; अलग किया गया।”

शब्दावली में “जीवन” देखें।

या “सिर दूषित करेगा जो उसकी नाज़ीर की मन्‍नत की निशानी है।”

या “सिर मुँड़वाना चाहिए जो नाज़ीर की मन्‍नत की निशानी है।”

या “समर्पण।”

एक शेकेल का वज़न 11.4 ग्रा. था। अति. ख14 देखें।

या “पवित्र शेकेल।”

या “कटोरी।”

शा., “दो शामों के बीच।”

शा., “दो शामों के बीच।”

शा., “दो शामों के बीच।”

यानी यित्रो।

या “हमारे लिए आँखों का काम दे।”

मतलब “जलन,” यानी शोला; ज्वाला।

ज़ाहिर है कि वे उनके बीच रहनेवाले गैर-इसराएली थे।

या “जिन्हें तू पहचानता है।”

या “वे भविष्यवाणी करने लगे।”

एक हाथ 44.5 सें.मी. (17.5 इंच) के बराबर था। अति. ख14 देखें।

एक होमेर 220 ली. के बराबर था। अति. ख14 देखें।

मतलब “लालच की कब्रें।”

या “बहुत नम्र था (या कोमल स्वभाव का था), उसके जितना नम्र इंसान कोई नहीं था।”

शा., “मेरे पूरे घराने में वह खुद को विश्‍वासयोग्य साबित कर रहा है।”

या “यहोशुआ” जिसका मतलब है, “यहोवा उद्धार है।”

या “हमात के प्रवेश।”

मतलब “अंगूरों का गुच्छा।”

शा., “वे हमारे लिए रोटी हैं।”

शा., “ये दसों बार।”

शा., “मैंने अपना हाथ उठाया।”

शा., “वेश्‍या के कामों।”

या “मुझसे दुश्‍मनी मोल लेने का।”

एपा का दसवाँ भाग 2.2 ली. के बराबर था। अति. ख14 देखें।

एक हीन 3.67 ली. के बराबर होता था। अति. ख14 देखें।

शा., “रोटी।”

या “तुम्हें वेश्‍याओं जैसी बदचलनी करने।”

या “हम पर अधिकार जताना चाहता है?”

शा., “क्या तू इन लोगों की आँखें फोड़ डालेगा?”

शा., “और कोई भी पराया इंसान।”

शा., “पराए,” यानी जो हारून-वंशी न हो।

शा., “जो पराया हो,” यानी जो हारून-वंशी न हो।

यानी हर चीज़ जो परमेश्‍वर को इस तरह दे दी जाती थी कि वह वापस नहीं ली जा सकती और छुड़ायी नहीं जा सकती थी। इस तरह वह चीज़ परमेश्‍वर के लिए पवित्र ठहरायी जाती थी।

एक शेकेल का वज़न 11.4 ग्रा. था। अति. ख14 देखें।

या “पवित्र शेकेल।”

एक गेरा 0.57 ग्रा. के बराबर था। अति. ख14 देखें।

यानी यह करार सदा के लिए है और कभी नहीं बदलेगा।

मतलब “झगड़ा करना।”

शा., “दिनों।”

शा., “हाथ।”

शा., “हारून अपने लोगों में जा मिलेगा।”

शा., “अपने लोगों में जा मिलेगा और मर जाएगा।”

मतलब “नाश के लिए ठहराना।”

या “घिन।”

या “जलते।”

या “जलते।”

शा., “मैदान।”

या शायद, “रेगिस्तान; वीराना।”

ज़ाहिर है, फरात नदी।

या “पूरे देश।”

या “पूरे देश।”

शा., “गधी का मुँह खोल दिया।”

या “पछतावा महसूस करे।”

या शायद, “रेगिस्तान; वीराना।”

शा., “की नज़रों में यह अच्छा है।”

या “उसकी संतान।”

शा., “अपने दिल से।”

या “आखिरी दिनों।”

या “देवता से जुड़ गए।”

या “बाल से जुड़ गए हैं।”

या “बरछी।”

या “सूची में जितने नाम दिए गए हैं।”

शा., “तू भी अपने लोगों में जा मिलेगा।”

या “गरिमा।”

शा., “दो शामों के बीच।”

एपा का दसवाँ भाग 2.2 ली. के बराबर था। अति. ख14 देखें।

एक हीन 3.67 ली. के बराबर था। अति. ख14 देखें।

शा., “दो शामों के बीच।”

शा., “अपने महीनों।”

शा., “रोटी।”

‘दुख ज़ाहिर करने’ का आम तौर पर यह मतलब समझा जाता है, खुद को कई चीज़ों से दूर रखना और इसमें उपवास करना शामिल है।

शा., “तू अपने लोगों में जा मिलेगा।”

या “दीवारों से घिरी छावनियों।”

एक शेकेल का वज़न 11.4 ग्रा. था। अति. ख14 देखें।

या “दोबारा बनाए।”

मतलब “याईर के कसबे।”

शा., “ऊँचे हाथ के साथ।”

ज़ाहिर है कि यह इय्ये-अबारीम का छोटा रूप है।

या “ढली हुई मूरतें।”

यानी मृत सागर।

शब्दावली देखें।

यानी भूमध्य सागर।

यानी भूमध्य सागर।

या “हमात के प्रवेश।”

यानी गन्‍नेसरत झील या गलील झील।

एक हाथ 44.5 सें.मी. (17.5 इंच) के बराबर था। अति. ख14 देखें।

शा., “घात लगाकर।”

शा., “उसने घात नहीं लगायी थी।”

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