यूहन्ना के मुताबिक खुशखबरी
1 शुरूआत में वचन था+ और वचन परमेश्वर के साथ था+ और वचन एक ईश्वर* था।+ 2 यही शुरूआत में परमेश्वर के साथ था। 3 सारी चीज़ें उसी के ज़रिए वजूद में आयीं+ और एक भी चीज़ ऐसी नहीं जो उसके बिना वजूद में आयी हो।
4 उसके ज़रिए जीवन वजूद में आया और जीवन इंसानों के लिए रौशनी था।+ 5 यह रौशनी अँधेरे में चमक रही है,+ लेकिन अँधेरा उस पर हावी नहीं हो सका।
6 परमेश्वर की तरफ से भेजा हुआ एक आदमी आया, उसका नाम यूहन्ना था।+ 7 यह आदमी गवाह बनकर आया ताकि उस रौशनी के बारे में गवाही दे+ और इस तरह उसके ज़रिए सब किस्म के लोग यकीन करें। 8 यह आदमी खुद वह रौशनी नहीं था,+ मगर उस रौशनी की गवाही देने आया था।
9 वह सच्ची रौशनी जो सब किस्म के इंसानों को रौशनी देती है, बहुत जल्द दुनिया में आनेवाली थी।+ 10 वह* दुनिया में था+ और दुनिया उसके ज़रिए वजूद में आयी+ मगर दुनिया ने उसे नहीं जाना। 11 वह अपने घर आया मगर उसके अपने ही लोगों ने उसे स्वीकार नहीं किया। 12 मगर जितनों ने उसे स्वीकार किया, उन सबको उसने परमेश्वर के बच्चे बनने का अधिकार दिया,+ क्योंकि उन्होंने उसके नाम पर विश्वास किया।+ 13 वे न तो खून से, न शरीर की इच्छा से, न ही किसी इंसान की मरज़ी से बल्कि परमेश्वर की मरज़ी से पैदा हुए।+
14 वचन इंसान बना+ और हमारे बीच रहा और हमने उसका तेज देखा, ऐसा तेज जैसा एक पिता के इकलौते बेटे+ का होता है और वह परमेश्वर की कृपा* और सच्चाई से भरपूर था। 15 (यूहन्ना ने उसके बारे में गवाही दी, हाँ उसने चिल्लाकर कहा, “यह वही है जिसके बारे में मैंने कहा था, ‘जो मेरे बाद आया वह मुझसे आगे निकल गया क्योंकि वह मुझसे पहले से वजूद में था।’”)+ 16 हम सबने उससे भरपूर महा-कृपा पायी जो खुद महा-कृपा से भरपूर है। 17 क्योंकि मूसा के ज़रिए हमें कानून मिला था,+ मगर महा-कृपा+ और सच्चाई हमें यीशु मसीह के ज़रिए मिली।+ 18 किसी इंसान ने परमेश्वर को कभी नहीं देखा।+ इकलौते बेटे ने ही हमें पिता के बारे में समझाया,+ जो एक ईश्वर है+ और पिता के बिलकुल पास* है।+
19 यूहन्ना ने यह गवाही तब दी जब यहूदियों ने यरूशलेम से याजकों और लेवियों को उसके पास यह पूछने के लिए भेजा कि “तू कौन है?”+ 20 उसने जवाब देने से इनकार नहीं किया बल्कि कहा, “मैं मसीह नहीं हूँ।” 21 फिर उन्होंने पूछा, “तो क्या तू एलियाह है?”+ उसने कहा, “नहीं।” “क्या तू वही भविष्यवक्ता है जिसे आना था?”+ उसने कहा, “नहीं!” 22 तब उन्होंने पूछा, “फिर तू कौन है? हमें बता ताकि हम अपने भेजनेवालों को जवाब दे सकें। तू अपने बारे में क्या कहता है?” 23 यूहन्ना ने कहा, “मैं वह आवाज़ हूँ जो वीराने में पुकार रही है, ‘यहोवा* का रास्ता सीधा करो,’+ ठीक जैसा भविष्यवक्ता यशायाह ने कहा था।”+ 24 यूहन्ना के पास आए इन लोगों को फरीसियों ने भेजा था। 25 उन्होंने सवाल किया, “अगर तू मसीह नहीं है, न ही एलियाह है, न ही वह भविष्यवक्ता है, तो फिर तू बपतिस्मा क्यों देता है?” 26 यूहन्ना ने जवाब दिया, “मैं पानी में बपतिस्मा देता हूँ। मगर तुम्हारे बीच वह खड़ा है जिसे तुम नहीं जानते। 27 वह मेरे बाद आ रहा है और मैं उसकी जूतियों के फीते खोलने के भी लायक नहीं।”+ 28 यह सब यरदन के पार बैतनियाह में हुआ, जहाँ यूहन्ना बपतिस्मा देता था।+
29 अगले दिन जब उसने यीशु को अपनी तरफ आते देखा, तो कहा, “देखो, परमेश्वर का मेम्ना+ जो दुनिया का पाप दूर ले जाता है!+ 30 यह वही है जिसके बारे में मैंने कहा था, जो मेरे बाद आ रहा है वह मुझसे आगे निकल गया है क्योंकि वह मुझसे पहले से वजूद में था।+ 31 मैं भी उसके बारे में नहीं जानता था। मगर मैं इसलिए पानी में बपतिस्मा दे रहा हूँ ताकि वह इसराएल पर ज़ाहिर हो सके।”+ 32 यूहन्ना ने यह गवाही भी दी, “मैंने पवित्र शक्ति को कबूतर के रूप में आकाश से उतरते देखा और वह उस पर ठहर गयी।+ 33 मैं भी उसके बारे में नहीं जानता था मगर जिसने मुझे पानी में बपतिस्मा देने के लिए भेजा उसी ने मुझे बताया, ‘जिस किसी पर तू पवित्र शक्ति को उतरते और ठहरते देखे,+ वही है जो पवित्र शक्ति से बपतिस्मा देगा।’+ 34 मैंने यह देखा है और मैंने गवाही दी है कि यही परमेश्वर का बेटा है।”+
35 अगले दिन फिर यूहन्ना अपने दो चेलों के साथ खड़ा था। 36 जब उसने यीशु को वहाँ से जाते देखा तो कहा, “देखो परमेश्वर का मेम्ना!”+ 37 उसकी यह बात सुनकर दोनों चेले यीशु के पीछे-पीछे गए। 38 तब यीशु ने मुड़कर उन्हें पीछे आते देखा और उनसे पूछा, “तुम क्या चाहते हो?” उन्होंने कहा, “रब्बी, (जिसका मतलब है, “गुरु”) तू कहाँ ठहरा हुआ है?” 39 यीशु ने उनसे कहा, “आओ और चलकर देख लो।” तब वे उसके साथ गए और देखा कि वह कहाँ ठहरा हुआ है और उस दिन वे उसी के साथ ठहरे। यह दिन का करीब दसवाँ घंटा* था। 40 यूहन्ना की बात सुनकर यीशु के पीछे जानेवाले इन दो जनों में से एक का नाम अन्द्रियास+ था जो शमौन पतरस का भाई था। 41 अन्द्रियास सबसे पहले अपने सगे भाई शमौन से मिला और उससे कहा, “हमें मसीहा+ मिल गया है।” (मसीहा का मतलब है, “अभिषिक्त जन।”) 42 अन्द्रियास उसे यीशु के पास ले गया। यीशु ने शमौन को देखकर कहा, “तू यूहन्ना का बेटा शमौन+ है। तू कैफा कहलाएगा” (यूनानी में कैफा का अनुवाद “पतरस”+ किया जाता है)।
43 अगले दिन यीशु गलील जाना चाहता था। जब वह फिलिप्पुस+ से मिला तो उसने कहा, “मेरा चेला बन जा।” 44 फिलिप्पुस बैतसैदा शहर का रहनेवाला था, अन्द्रियास और पतरस भी वहीं से थे। 45 जब फिलिप्पुस, नतनएल+ से मिला तो उसने कहा, “हमें वह मिल गया है जिसके बारे में मूसा ने कानून में और भविष्यवक्ताओं ने लिखा था। वह नासरत का रहनेवाला यीशु है, जो यूसुफ का बेटा है।”+ 46 मगर नतनएल ने उससे कहा, “भला नासरत से भी कुछ अच्छा निकल सकता है?” फिलिप्पुस ने कहा, “चलकर देख ले।” 47 यीशु ने नतनएल को अपनी तरफ आते देखा और उसके बारे में कहा, “देखो, यह एक सच्चा इसराएली है जिसमें कोई कपट नहीं।”+ 48 तब नतनएल ने उससे कहा, “तू मुझे कैसे जानता है?” यीशु ने कहा, “फिलिप्पुस के बुलाने से भी पहले जब तू अंजीर के पेड़ के नीचे था, मैंने तुझे देखा था।” 49 तब नतनएल ने उससे कहा, “गुरु, तू परमेश्वर का बेटा है, इसराएल का राजा है।”+ 50 यीशु ने कहा, “क्या तूने इसलिए यकीन किया क्योंकि मैंने तुझसे कहा कि मैंने तुझे अंजीर के पेड़ के नीचे देखा था? तू इससे भी बड़े-बड़े काम देखेगा।” 51 फिर यीशु ने उससे कहा, “मैं तुम लोगों से सच-सच कहता हूँ, तुम स्वर्ग को खुला हुआ और परमेश्वर के स्वर्गदूतों को इंसान के बेटे के पास नीचे आते और ऊपर जाते देखोगे।”+
2 फिर तीसरे दिन गलील में काना नाम की जगह एक शादी की दावत थी और यीशु की माँ भी वहाँ थी। 2 यीशु और उसके चेलों को भी शादी में बुलाया गया था।
3 जब वहाँ दाख-मदिरा कम पड़ गयी, तो यीशु की माँ ने उससे कहा, “उनकी दाख-मदिरा खत्म हो गयी है।” 4 मगर यीशु ने उससे कहा, “हम क्यों इसकी चिंता करें?* मेरा वक्त अब तक नहीं आया है।” 5 उसकी माँ ने सेवा करनेवालों से कहा, “वह तुमसे जो कहे, वही करना।” 6 वहाँ पत्थर के छ: मटके रखे थे, जैसा यहूदियों के शुद्ध करने के नियमों के मुताबिक ज़रूरी था।+ हर मटके में 44 से 66 लीटर* पानी समा सकता था। 7 यीशु ने उनसे कहा, “मटकों को पानी से भर दो।” तब उन्होंने मटके मुँह तक लबालब भर दिए। 8 फिर उसने कहा, “अब इसमें से थोड़ा लेकर दावत की देखरेख करनेवाले के पास ले जाओ।” तब वे ले गए। 9 दावत की देखरेख करनेवाले ने वह पानी चखा जो अब दाख-मदिरा में बदल चुका था। मगर वह नहीं जानता था कि यह मदिरा कहाँ से आयी (जबकि सेवा करनेवाले जानते थे जिन्होंने मटके से पानी निकाला था)। तब उसने दूल्हे को बुलाया 10 और उससे कहा, “हर कोई बढ़िया दाख-मदिरा पहले निकालता है और जब लोग पीकर धुत्त हो जाते हैं, तो हलकी दाख-मदिरा देता है। मगर तूने अब तक इस बेहतरीन दाख-मदिरा को अलग रखा हुआ है।” 11 इस तरह यीशु ने गलील के काना में पहला चमत्कार किया और अपनी शक्ति दिखायी+ और उसके चेलों ने उस पर विश्वास किया।
12 इसके बाद यीशु, उसकी माँ, उसके भाई+ और चेले कफरनहूम गए,+ मगर वहाँ ज़्यादा दिन नहीं ठहरे।
13 यहूदियों का फसह का त्योहार+ पास था और यीशु यरूशलेम गया। 14 उसने वहाँ मंदिर में मवेशी, भेड़ और कबूतर+ बेचनेवालों को और पैसे बदलनेवाले सौदागरों को अपनी-अपनी गद्दियों पर बैठा देखा। 15 तब उसने रस्सियों का एक कोड़ा बनाया और उन सभी को उनकी भेड़ों और उनके मवेशियों के साथ मंदिर से बाहर खदेड़ दिया। उसने सौदागरों के सिक्के बिखरा दिए और उनकी मेज़ें पलट दीं।+ 16 उसने कबूतर बेचनेवालों से कहा, “यह सब लेकर यहाँ से निकल जाओ! मेरे पिता के घर को बाज़ार* मत बनाओ!”+ 17 तब उसके चेलों को याद आया कि यह लिखा है, “तेरे भवन के लिए जोश की आग मुझे भस्म कर देगी।”+
18 यह देखकर यहूदियों ने उससे कहा, “तू हमें कौन-सा चमत्कार दिखा सकता है+ जिससे हम जानें कि तुझे यह सब करने का अधिकार मिला है?” 19 यीशु ने उन्हें जवाब दिया, “इस मंदिर को गिरा दो और मैं तीन दिन के अंदर इसे खड़ा कर दूँगा।”+ 20 तब यहूदी कहने लगे, “यह मंदिर बनाने में 46 साल लगे थे और तू इसे तीन दिन में खड़ा कर देगा?” 21 मगर मंदिर से उसका मतलब था, उसका अपना शरीर।+ 22 जब उसे मरे हुओं में से ज़िंदा किया गया, तो उसके चेलों को याद आया कि वह यह बात कहा करता था।+ और उन्होंने शास्त्र का और यीशु की बात का यकीन किया।
23 जब वह फसह के त्योहार के वक्त यरूशलेम में था, तो बहुत-से लोगों ने उसके चमत्कार देखकर उसके नाम पर विश्वास किया। 24 मगर यीशु ने खुद को उनके भरोसे नहीं छोड़ा क्योंकि वह सबको जानता था। 25 और लोगों के बारे में जानने के लिए उसे किसी इंसान की ज़रूरत नहीं थी क्योंकि वह जानता था कि इंसान के दिल में क्या है।+
3 नीकुदेमुस+ नाम का एक फरीसी, जो यहूदियों का एक धर्म-अधिकारी था, 2 रात के वक्त यीशु के पास आया+ और उससे कहा, “रब्बी,+ हम जानते हैं कि तू परमेश्वर की तरफ से आया शिक्षक है। इसलिए कि तू जो चमत्कार करता है, वह कोई भी इंसान तब तक नहीं कर सकता,+ जब तक कि परमेश्वर उसके साथ न हो।”+ 3 यीशु ने उसे जवाब दिया, “मैं तुझसे सच-सच कहता हूँ कि जब तक कोई दोबारा पैदा न हो,*+ वह परमेश्वर का राज नहीं देख सकता।”+ 4 नीकुदेमुस ने कहा, “एक इंसान बड़ा होकर दोबारा कैसे पैदा हो सकता है? क्या वह अपनी माँ के गर्भ में वापस जा सकता है और दोबारा पैदा हो सकता है?” 5 यीशु ने उसे जवाब दिया, “मैं तुझसे सच-सच कहता हूँ, जब तक कोई पानी और पवित्र शक्ति से पैदा न हो,+ तब तक वह परमेश्वर के राज में दाखिल नहीं हो सकता। 6 जो शरीर से पैदा हुआ है, वह शारीरिक है और जो पवित्र शक्ति से पैदा हुआ है, वह स्वर्ग का है। 7 मेरी इस बात पर ताज्जुब मत कर कि तुम लोगों के लिए दोबारा पैदा होना ज़रूरी है। 8 हवा जहाँ चाहे वहाँ बहती है और तू हवा चलने की आवाज़ सुनता है, मगर तू नहीं जानता कि यह कहाँ से आती है और कहाँ जा रही है। जो कोई पवित्र शक्ति से पैदा होता है वह ऐसा ही है।”+
9 यह सुनकर नीकुदेमुस ने उससे कहा, “यह सब कैसे हो सकता है?” 10 यीशु ने जवाब दिया, “तू इसराएलियों का एक गुरु होकर भी ये बातें नहीं जानता? 11 मैं तुझसे सच-सच कहता हूँ, हम जो जानते हैं उसी के बारे में बताते हैं और हमने जो देखा है उसी की गवाही देते हैं, मगर तुम लोग हमारी गवाही कबूल नहीं करते। 12 मैं तुम्हें धरती की बातें बता रहा हूँ फिर भी तुम यकीन नहीं करते, तो अगर मैं तुम्हें स्वर्ग की बातें बताऊँ, तो कैसे यकीन करोगे? 13 इतना ही नहीं, कोई भी इंसान स्वर्ग पर नहीं चढ़ा,+ मगर सिर्फ एक ही है जो स्वर्ग से उतरा है+ और वह है इंसान का बेटा। 14 ठीक जैसे मूसा ने वीराने में उस साँप को ऊँचे पर चढ़ाया,+ उसी तरह ज़रूरी है कि इंसान के बेटे को भी ऊँचे पर चढ़ाया जाए+ 15 ताकि हर कोई जो उस पर यकीन करे वह हमेशा की ज़िंदगी पाए।+
16 क्योंकि परमेश्वर ने दुनिया से इतना प्यार किया कि उसने अपना इकलौता बेटा दे दिया+ ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न किया जाए बल्कि हमेशा की ज़िंदगी पाए।+ 17 परमेश्वर ने अपने बेटे को दुनिया में इसलिए नहीं भेजा कि वह दुनिया को सज़ा सुनाए, मगर इसलिए भेजा कि दुनिया उसके ज़रिए उद्धार पाए।+ 18 जो उस पर विश्वास करता है, उसे सज़ा नहीं दी जाएगी।+ जो उस पर विश्वास नहीं करता, उसे सज़ा सुनायी जा चुकी है क्योंकि उसने परमेश्वर के इकलौते बेटे के नाम पर विश्वास नहीं किया।+ 19 न्याय इस आधार पर किया जाता है: रौशनी दुनिया में आयी,+ मगर लोगों ने रौशनी के बजाय अंधकार से प्यार किया क्योंकि उनके काम दुष्ट थे। 20 जो बुरे कामों में लगा रहता है, वह रौशनी से नफरत करता है और रौशनी में नहीं आता ताकि उसके बुरे कामों का परदाफाश न हो जाए। 21 मगर जो सही काम करता है वह रौशनी में आता है+ ताकि साबित हो कि उसने ये काम परमेश्वर की मरज़ी के मुताबिक किए हैं।”
22 इसके बाद, यीशु और उसके चेले यहूदिया के देहातों में गए और उसने वहाँ उनके साथ कुछ वक्त बिताया और लोगों को बपतिस्मा दिया।+ 23 मगर यूहन्ना भी सालिम के पास एनोन नाम की एक जगह बपतिस्मा दे रहा था, क्योंकि वहाँ बहुत पानी था+ और लोग आते रहे और बपतिस्मा लेते रहे।+ 24 उस वक्त तक यूहन्ना को जेल में नहीं डाला गया था।+
25 तब शुद्ध किए जाने के रिवाज़ को लेकर किसी यहूदी के साथ यूहन्ना के चेलों की बहस छिड़ गयी। 26 फिर यूहन्ना के चेले उसके पास आए और उससे कहने लगे, “गुरु, वह आदमी जो यरदन के उस पार तेरे साथ था और जिसके बारे में तूने गवाही दी थी,+ वह बपतिस्मा दे रहा है और सब उसके पास जा रहे हैं।” 27 यूहन्ना ने कहा, “जब तक एक इंसान को स्वर्ग से न दिया जाए, तब तक वह एक भी चीज़ नहीं पा सकता। 28 तुम खुद इस बात के गवाह हो कि मैंने कहा था, मैं मसीह नहीं हूँ+ मगर मुझे उसके आगे भेजा गया है।+ 29 जिसके पास दुल्हन है वही दूल्हा है।+ मगर जब दूल्हे का दोस्त खड़ा होता है और दूल्हे को बात करते सुनता है, तो उसकी आवाज़ सुनकर उसे बहुत खुशी होती है। इसलिए मेरी यह खुशी पूरी की गयी है। 30 यह ज़रूरी है कि वह बढ़ता जाए और मैं घटता जाऊँ।”
31 जो ऊपर से आता है वह बाकी सबके ऊपर है।+ जो धरती से है, वह धरती का होता है और धरती की बातें बोलता है। जो स्वर्ग से आता है, वह बाकी सबके ऊपर है।+ 32 उसने जो देखा और सुना है, उसकी वह गवाही देता है,+ मगर कोई आदमी उसकी गवाही पर यकीन नहीं करता।+ 33 जिसने उसकी गवाही पर यकीन किया है उसने इस बात पर अपनी मुहर लगायी है* कि परमेश्वर सच्चा है।+ 34 परमेश्वर ने जिसे भेजा है, वह परमेश्वर की बातें बताता है+ इसलिए कि परमेश्वर थोड़ा-थोड़ा करके* पवित्र शक्ति नहीं देता। 35 पिता बेटे से प्यार करता है+ और उसने सबकुछ उसके हाथ में सौंप दिया है।+ 36 जो बेटे पर विश्वास करता है वह हमेशा की ज़िंदगी पाएगा।+ जो बेटे की आज्ञा नहीं मानता वह ज़िंदगी नहीं पाएगा,+ बल्कि परमेश्वर का क्रोध उस पर बना रहता है।+
4 जब प्रभु को पता चला कि फरीसियों ने यह बात सुनी है कि यीशु, यूहन्ना से ज़्यादा चेले बना रहा है और उन्हें बपतिस्मा दे रहा है + 2 (हालाँकि यीशु खुद बपतिस्मा नहीं देता था बल्कि उसके चेले देते थे), 3 तो वह यहूदिया छोड़कर फिर से गलील चला गया। 4 मगर उसे सामरिया से होकर जाना ज़रूरी था। 5 रास्ते में वह सामरिया के सूखार नाम के एक शहर पहुँचा। यह शहर उस ज़मीन के पास था जो याकूब ने अपने बेटे यूसुफ को दी थी।+ 6 दरअसल याकूब का कुआँ* वहीं था+ और यीशु सफर से थका-माँदा कुएँ के पास बैठा था। यह दिन का करीब छठा घंटा* था।
7 वहाँ सामरिया की एक औरत पानी भरने आयी। तब यीशु ने उससे कहा, “मुझे पानी पिला।” 8 (उसके चेले खाना खरीदने शहर गए हुए थे।) 9 उस सामरी औरत ने उससे कहा, “तू एक यहूदी होकर मुझसे पानी कैसे माँग रहा है, मैं तो एक सामरी औरत हूँ?” (क्योंकि यहूदी, सामरियों से कोई नाता नहीं रखते।)+ 10 यीशु ने कहा, “अगर तू यह जानती कि परमेश्वर का मुफ्त वरदान क्या है+ और यह कौन है जो तुझसे कह रहा है कि ‘मुझे पानी पिला,’ तो तू उससे पानी माँगती और वह तुझे जीवन देनेवाला पानी देता।”+ 11 तब औरत ने कहा, “तेरे पास तो पानी निकालने के लिए कोई बरतन तक नहीं है और कुआँ भी गहरा है। फिर तेरे पास यह जीवन देनेवाला पानी कहाँ से आया? 12 क्या तू हमारे पुरखे याकूब से भी महान है जिसने हमें यह कुआँ दिया था और इसी से उसने, उसके बेटों और मवेशियों ने भी पीया था?” 13 यीशु ने जवाब दिया, “हर कोई जो यह पानी पीता है वह फिर प्यासा होगा। 14 मगर जो कोई वह पानी पीएगा, जो मैं उसे दूँगा वह फिर कभी प्यासा नहीं होगा।+ जो पानी मैं उसे दूँगा वह उसके अंदर पानी का एक सोता बन जाएगा और हमेशा की ज़िंदगी देने के लिए उमड़ता रहेगा।”+ 15 तब औरत ने कहा, “मुझे वह पानी दे ताकि मुझे प्यास न लगे, न ही मुझे पानी भरने के लिए बार-बार यहाँ आना पड़े।”
16 उसने औरत से कहा, “जा और अपने पति को लेकर यहाँ आ।” 17 औरत ने कहा, “मेरा कोई पति नहीं।” यीशु ने उससे कहा, “तूने सही कहा कि मेरा कोई पति नहीं। 18 क्योंकि तेरे पाँच पति हो चुके हैं और अब तू जिस आदमी के साथ रहती है वह भी तेरा पति नहीं है। तूने बिलकुल सच कहा।” 19 तब औरत ने उससे कहा, “प्रभु, तू ज़रूर एक भविष्यवक्ता है!+ 20 हमारे पुरखे इस पहाड़ पर उपासना करते थे, मगर तुम लोग कहते हो कि यरूशलेम वह जगह है जहाँ उपासना की जानी चाहिए।”+ 21 यीशु ने उससे कहा, “मेरा यकीन कर, वह समय आ रहा है जब तुम लोग न तो इस पहाड़ पर, न ही यरूशलेम में पिता की उपासना करोगे। 22 तुम ज्ञान के बिना उपासना करते हो+ मगर हम ज्ञान के साथ उपासना करते हैं क्योंकि उद्धार की शुरूआत यहूदियों से होती है।+ 23 मगर वह समय आ रहा है और अभी-भी है, जब सच्चे उपासक पिता की उपासना पवित्र शक्ति और सच्चाई से करेंगे। दरअसल, पिता ऐसे लोगों को ढूँढ़ रहा है जो इसी तरह उसकी उपासना करेंगे।+ 24 परमेश्वर अदृश्य है+ और उसकी उपासना करनेवालों को पवित्र शक्ति और सच्चाई से उसकी उपासना करनी चाहिए।”+ 25 तब उस औरत ने उससे कहा, “मैं जानती हूँ कि मसीहा आनेवाला है जो अभिषिक्त कहलाता है। जब वह आएगा तो हमें सारी बातें खुलकर समझाएगा।” 26 यीशु ने उससे कहा, “मैं जो तुझसे बात कर रहा हूँ, वही हूँ।”+
27 तभी उसके चेले लौट आए और वे यह देखकर हैरान रह गए कि वह एक औरत से बात कर रहा है। फिर भी किसी ने उससे नहीं पूछा, “तुझे क्या चाहिए?” या “तू इस औरत से क्यों बात कर रहा है?” 28 तब वह औरत अपना पानी का घड़ा वहीं छोड़कर शहर चली गयी और लोगों से कहने लगी, 29 “आओ मेरे साथ चलो, उस आदमी को देखो जिसने वह सब बता दिया जो मैंने किया है। कहीं वह मसीह तो नहीं?” 30 लोग शहर से निकलकर उसके पास आने लगे।
31 इस दौरान चेले उससे बार-बार कहते रहे, “गुरु,+ खाना खा ले।” 32 मगर उसने उनसे कहा, “मेरे पास ऐसा खाना है जिसके बारे में तुम नहीं जानते।” 33 तब चेले एक-दूसरे से कहने लगे, “कोई उसके खाने के लिए कुछ ले तो नहीं आया था?” 34 यीशु ने उनसे कहा, “मेरा खाना यह है कि मैं अपने भेजनेवाले की मरज़ी पूरी करूँ+ और उसका काम पूरा करूँ।+ 35 तुम कहते हो न कि फसल की कटाई के लिए अभी चार महीने बाकी हैं? देखो! मैं तुमसे कहता हूँ, अपनी आँखें उठाओ और खेतों पर नज़र डालो, वे कटाई के लिए पक चुके हैं।+ 36 कटाई करनेवाला अभी से मज़दूरी पा रहा है और हमेशा की ज़िंदगी के लिए फसल बटोर रहा है ताकि बोनेवाला और काटनेवाला दोनों मिलकर खुशियाँ मनाएँ।+ 37 इस मामले में वाकई यह कहावत सच है कि बोता कोई और है, काटता कोई और। 38 मैंने तुम्हें वह फसल काटने भेजा जिसके लिए तुमने मेहनत नहीं की। दूसरों ने कड़ी मेहनत की और तुम उनकी मेहनत का फल पा रहे हो।”
39 उस शहर के बहुत-से सामरियों ने उस पर विश्वास किया क्योंकि उस औरत ने यह कहते हुए गवाही दी थी, “उसने वह सब बता दिया जो मैंने किया है।”+ 40 इसलिए जब सामरिया के लोग यीशु के पास आए, तो उससे गुज़ारिश करने लगे कि वह उनके यहाँ ठहरे और वह उनके यहाँ दो दिन ठहरा। 41 नतीजा यह हुआ कि और भी कई लोगों ने उसकी बातें सुनकर यकीन किया 42 और वे औरत से कहने लगे, “अब हम सिर्फ तेरी बात सुनने की वजह से नहीं बल्कि इसलिए यकीन करते हैं क्योंकि हमने खुद सुन लिया है और जान लिया है कि यह आदमी सचमुच दुनिया का उद्धारकर्ता है।”+
43 दो दिन बाद यीशु वह जगह छोड़कर गलील के लिए निकल पड़ा। 44 मगर उसने खुद कहा था कि अपने इलाके में एक भविष्यवक्ता का आदर नहीं होता।+ 45 जब वह गलील पहुँचा तो वहाँ के लोगों ने उसका स्वागत किया क्योंकि उन्होंने वे सारे काम देखे थे जो उसने त्योहार के वक्त यरूशलेम में किए थे।+ वे लोग भी त्योहार के लिए वहाँ गए थे।+
46 फिर यीशु गलील के काना में आया, जहाँ उसने पानी को दाख-मदिरा में बदला था।+ कफरनहूम में राजा का एक अधिकारी था, जिसका बेटा बीमार था। 47 जब इस आदमी ने सुना कि यीशु यहूदिया से गलील आ गया है, तो वह उसके पास गया और उससे बिनती करने लगा कि वह आए और उसके बेटे को ठीक करे क्योंकि उसका बेटा मरनेवाला था। 48 लेकिन यीशु ने उससे कहा, “जब तक तुम लोग चिन्ह और चमत्कार न देख लो, तुम हरगिज़ यकीन नहीं करोगे।”+ 49 राजा के अधिकारी ने उससे कहा, “प्रभु, इससे पहले कि मेरा बच्चा मर जाए, मेरे साथ चल।” 50 यीशु ने उससे कहा, “जा, तेरा बेटा ज़िंदा है।”+ उस आदमी ने यीशु की बात पर यकीन किया और अपने रास्ते चल दिया। 51 जब वह रास्ते में ही था, तो उसके दास उससे मिले और उन्होंने कहा कि उसका लड़का ठीक हो गया है। 52 उसने उनसे पूछा कि लड़का किस वक्त ठीक हुआ था। उन्होंने कहा, “कल सातवें घंटे* में उसका बुखार उतर गया।” 53 तब पिता जान गया कि यह वही घड़ी थी जब यीशु ने उससे कहा था, “तेरा बेटा ज़िंदा है।”+ और उसने और उसके पूरे घराने ने यीशु पर यकीन किया। 54 यह यीशु का दूसरा चमत्कार था+ जो उसने यहूदिया से गलील आने पर किया था।
5 इसके बाद यहूदियों का एक त्योहार आया+ और यीशु यरूशलेम गया। 2 यरूशलेम में भेड़ फाटक+ के पास एक कुंड है जो इब्रानी भाषा में बेतहसदा कहलाता है। उस कुंड के चारों तरफ खंभोंवाला बरामदा है। 3 इस बरामदे में बड़ी तादाद में बीमार, अंधे, लँगड़े और अपंग लोग पड़े थे। 4* — 5 वहाँ एक आदमी था जो 38 साल से बीमार था। 6 यीशु ने इस आदमी को वहाँ पड़ा देखा और यह जानकर कि वह एक लंबे समय से बीमार है उससे पूछा, “क्या तू ठीक होना चाहता है?”+ 7 उस बीमार आदमी ने जवाब दिया, “साहब, मेरे साथ कोई नहीं जो मुझे उस वक्त कुंड में उतारे जब पानी हिलाया जाता है। इससे पहले कि मैं पहुँचूँ कोई दूसरा पानी में उतर जाता है।” 8 यीशु ने उससे कहा, “उठ, अपना बिस्तर उठा और चल-फिर।”+ 9 वह आदमी उसी वक्त ठीक हो गया और उसने अपना बिस्तर उठाया और चलने-फिरने लगा।
वह सब्त का दिन था। 10 इसलिए यहूदी उस आदमी से जो ठीक हो गया था कहने लगे, “आज सब्त है और आज के दिन तेरे लिए बिस्तर उठाना कानून के हिसाब से सही नहीं।”+ 11 मगर उसने कहा, “जिसने मुझे ठीक किया है उसी ने मुझसे कहा, ‘अपना बिस्तर उठा और चल-फिर।’” 12 उन्होंने पूछा, “किसने तुझसे कहा कि इसे उठा और चल-फिर?” 13 मगर वह आदमी नहीं जानता था कि उसे ठीक करनेवाला कौन है, क्योंकि यीशु चुपचाप भीड़ में जा मिला था।
14 इसके बाद, जब यीशु ने मंदिर में उस आदमी को देखा तो उससे कहा, “देख, अब तू ठीक हो चुका है। इसलिए आगे पाप मत करना, कहीं ऐसा न हो कि तेरे साथ इससे भी बुरा हो।” 15 तब उस आदमी ने जाकर यहूदियों को बताया कि वह यीशु था जिसने उसे ठीक किया था। 16 इस वजह से यहूदी लोग यीशु को सताने लगे क्योंकि वह सब्त के दिन यह सब कर रहा था। 17 मगर यीशु ने उनसे कहा, “मेरा पिता अब तक काम कर रहा है और मैं भी काम करता रहता हूँ।”+ 18 इस वजह से यहूदी उसे मार डालने के और भी मौके ढूँढ़ने लगे, क्योंकि उनके हिसाब से वह न सिर्फ सब्त का कानून तोड़ रहा था, बल्कि परमेश्वर को अपना पिता+ कहकर खुद को परमेश्वर के बराबर ठहरा रहा था।+
19 इसलिए यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ, बेटा अपनी पहल पर कुछ भी नहीं कर सकता, मगर सिर्फ वही करता है जो पिता को करते हुए देखता है।+ इसलिए कि पिता जो कुछ करता है, बेटा भी उसी तरीके से वे काम करता है। 20 पिता को बेटे से बहुत लगाव है+ और वह खुद जो करता है वह सब बेटे को भी दिखाता है और वह इनसे भी बड़े-बड़े काम उसे दिखाएगा ताकि तुम ताज्जुब करो।+ 21 जैसे पिता मरे हुओं को ज़िंदा करता है और उन्हें जीवन देता है,+ ठीक वैसे ही बेटा भी जिन्हें चाहता है उन्हें जीवन देता है।+ 22 पिता खुद किसी का न्याय नहीं करता, बल्कि उसने न्याय करने की सारी ज़िम्मेदारी बेटे को सौंप दी है+ 23 ताकि सब उसके बेटे का आदर करें जैसे वे पिता का आदर करते हैं। जो बेटे का आदर नहीं करता, वह पिता का आदर नहीं करता जिसने उसे भेजा है।+ 24 मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ, जो मेरे वचन सुनता है और मेरे भेजनेवाले पर यकीन करता है, वह हमेशा की ज़िंदगी पाता है+ और उसे सज़ा नहीं सुनायी जाती बल्कि वह मौत को पार करके ज़िंदगी पाता है।+
25 मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ, वह वक्त आ रहा है और अब भी है जब मरे हुए, परमेश्वर के बेटे की आवाज़ सुनेंगे और जिन्होंने उसकी बात मानी है वे जीएँगे। 26 ठीक जैसे पिता के पास जीवन देने की शक्ति है,*+ वैसे ही उसने अपने बेटे को भी जीवन देने की शक्ति दी है।+ 27 और उसने उसे न्याय करने का अधिकार दिया है+ क्योंकि वह इंसान का बेटा+ है। 28 इस बात पर हैरान मत हो क्योंकि वह वक्त आ रहा है जब वे सभी, जो स्मारक कब्रों में हैं उसकी आवाज़ सुनेंगे+ 29 और ज़िंदा हो जाएँगे। जिन्होंने अच्छे काम किए थे, उन्हें ज़िंदा किया जाएगा ताकि वे जीवन पाएँ और जो बुरे कामों में लगे हुए थे, उन्हें ज़िंदा किया जाएगा ताकि उनका न्याय किया जाए।+ 30 मैं अपनी पहल पर एक भी काम नहीं कर सकता। मगर ठीक जैसा पिता से सुनता हूँ वैसा ही न्याय करता हूँ।+ मैं जो न्याय करता हूँ वह सच्चा है, क्योंकि मैं अपनी नहीं बल्कि उसकी मरज़ी पूरी करना चाहता हूँ जिसने मुझे भेजा है।+
31 अगर मैं अकेले ही अपने बारे में गवाही दूँ, तो मेरी गवाही सच नहीं है।+ 32 एक और है जो मेरे बारे में गवाही देता है और मैं जानता हूँ कि वह मेरे बारे में जो गवाही देता है, वह सच्ची है।+ 33 तुमने यूहन्ना के पास आदमी भेजे और उसने सच्चाई के बारे में गवाही दी।+ 34 ऐसा नहीं कि मुझे इंसानों की गवाही की ज़रूरत है, मगर मैं ये बातें इसलिए कह रहा हूँ ताकि तुम उद्धार पा सको। 35 वह आदमी एक जलता और जगमगाता दीपक था और तुम थोड़े वक्त के लिए उसकी रौशनी में बड़ी खुशी मनाने के लिए तैयार थे।+ 36 मगर मेरे पास वह गवाही है जो यूहन्ना की गवाही से भी बढ़कर है। जो काम मेरे पिता ने मुझे पूरे करने के लिए सौंपे हैं और जिन्हें मैं कर रहा हूँ, वही मेरे बारे में गवाही देते हैं कि मुझे पिता ने भेजा है।+ 37 और पिता ने भी, जिसने मुझे भेजा है, खुद मेरे बारे में गवाही दी है।+ तुमने न तो कभी उसकी आवाज़ सुनी, न ही कभी उसका रूप देखा+ 38 और उसका वचन तुम्हारे दिलों में कायम नहीं रहता, क्योंकि तुम उसका यकीन नहीं करते जिसे पिता ने भेजा है।
39 तुम शास्त्र में खोजबीन करते हो+ क्योंकि तुम सोचते हो कि उसके ज़रिए तुम्हें हमेशा की ज़िंदगी मिलेगी। यही* मेरे बारे में गवाही देता है।+ 40 फिर भी तुम मेरे पास नहीं आना चाहते+ कि तुम ज़िंदगी पा सको। 41 मैं इंसानों से अपनी बड़ाई नहीं चाहता। 42 मगर मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि तुम्हारे अंदर परमेश्वर के लिए प्यार नहीं है। 43 मैं अपने पिता के नाम से आया हूँ, मगर तुम मुझे स्वीकार नहीं करते। अगर कोई और अपने ही नाम से आता, तो तुम उसे स्वीकार कर लेते। 44 तुम मेरा यकीन कर भी कैसे सकते हो, क्योंकि तुम इंसानों की बड़ाई करते हो और उनसे अपनी बड़ाई करवाते हो और वह बड़ाई नहीं पाना चाहते जो एकमात्र परमेश्वर से मिलती है?+ 45 यह मत सोचो कि मैं पिता के सामने तुम पर दोष लगाऊँगा। क्योंकि तुम पर दोष लगानेवाला एक है, यानी मूसा+ जिस पर तुमने आशा रखी है। 46 दरअसल, अगर तुमने मूसा का यकीन किया होता तो मेरा भी यकीन करते क्योंकि उसने मेरे बारे में लिखा था।+ 47 जब तुम उसकी किताबों का यकीन नहीं करते, तो भला मेरी बातों का यकीन कैसे करोगे?”
6 इसके बाद, यीशु गलील झील यानी तिबिरियास झील के उस पार चला गया।+ 2 मगर एक बड़ी भीड़ उसके पीछे-पीछे गयी,+ क्योंकि उन्होंने देखा था कि वह कैसे चमत्कार करके बीमारों को ठीक कर रहा था।+ 3 फिर यीशु अपने चेलों के साथ एक पहाड़ पर चढ़ा और वहाँ बैठ गया। 4 यहूदियों का फसह का त्योहार पास था।+ 5 जब यीशु ने नज़र उठाकर देखा कि एक बड़ी भीड़ उसकी तरफ चली आ रही है, तो उसने फिलिप्पुस से कहा, “हम इनके खाने के लिए रोटियाँ कहाँ से खरीदें?”+ 6 मगर वह उसे परखने के लिए यह बात कह रहा था क्योंकि वह जानता था कि वह खुद क्या करने जा रहा है। 7 फिलिप्पुस ने उसे जवाब दिया, “दो सौ दीनार* की रोटियाँ भी इन सबके लिए पूरी नहीं पड़ेंगी कि हरेक को थोड़ा-थोड़ा भी मिल सके।” 8 तब यीशु के एक चेले, अन्द्रियास ने जो शमौन पतरस का भाई था, उससे कहा, 9 “यहाँ एक लड़का है, जिसके पास जौ की पाँच रोटियाँ और दो छोटी मछलियाँ हैं। मगर इतनी बड़ी भीड़ के लिए इससे क्या होगा?”+
10 यीशु ने कहा, “लोगों को खाने के लिए बिठा दो।” उस जगह बहुत घास थी, इसलिए लोग वहाँ आराम से बैठ गए। इनमें आदमियों की गिनती करीब 5,000 थी।+ 11 तब यीशु ने वे रोटियाँ लीं और प्रार्थना में धन्यवाद देने के बाद लोगों में बाँट दीं। फिर उसने छोटी मछलियाँ भी बाँट दीं, जिसे जितनी चाहिए थी उतनी दे दी। 12 जब उन्होंने भरपेट खा लिया, तो उसने चेलों से कहा, “बचे हुए टुकड़े इकट्ठा कर लो ताकि कुछ भी बेकार न हो।” 13 इसलिए जौ की पाँच रोटियों में से जब सब लोग खा चुके, तो बचे हुए टुकड़े इकट्ठे किए गए जिनसे 12 टोकरियाँ भर गयीं।
14 जब लोगों ने उसका चमत्कार देखा तो वे कहने लगे, “यह ज़रूर वही भविष्यवक्ता है जिसे दुनिया में आना था।”+ 15 फिर यीशु जान गया कि वे उसे पकड़कर राजा बनाने आ रहे हैं,+ इसलिए वह अकेले पहाड़ पर चला गया।+
16 जब शाम हुई तो उसके चेले झील के किनारे गए।+ 17 वे एक नाव पर चढ़कर झील के उस पार कफरनहूम के लिए रवाना हो गए। अँधेरा हो गया था और यीशु अब तक उनके पास नहीं पहुँचा था।+ 18 और आँधी की वजह से झील में ऊँची-ऊँची लहरें उठने लगीं।+ 19 लेकिन जब चेले करीब पाँच-छ: किलोमीटर* तक नाव खे चुके थे, तो उन्होंने यीशु को झील पर चलते हुए नाव की तरफ आते देखा और वे डर के मारे थरथराने लगे। 20 मगर यीशु ने उनसे कहा, “डरो मत, मैं ही हूँ!”+ 21 तब वे उसे नाव में चढ़ाने के लिए तैयार हो गए और जल्द ही नाव उस जगह किनारे जा लगी जहाँ वे जा रहे थे।+
22 अगले दिन भीड़ ने, जो झील के उस पार रह गयी थी, देखा कि जो छोटी नाव किनारे पर थी वह नहीं है। भीड़ को पता चला कि उस नाव में चेले बैठकर चले गए, मगर यीशु उनके साथ नहीं गया। 23 फिर तिबिरियास से कुछ नाव उस जगह के पास आयीं, जहाँ उन्होंने वे रोटियाँ खायी थीं जो प्रभु ने प्रार्थना में धन्यवाद देने के बाद उन्हें दी थीं। 24 जब भीड़ ने देखा कि यहाँ न तो यीशु है, न ही उसके चेले, तो वे उन नावों में चढ़ गए और यीशु को ढूँढ़ने कफरनहूम चल दिए।
25 झील के इस पार जब उन्होंने उसे देखा तो पूछा, “गुरु,+ तू यहाँ कब आया?” 26 यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ कि तुम मुझे इसलिए नहीं ढूँढ़ रहे हो कि तुमने चमत्कार देखे थे, बल्कि इसलिए कि तुमने जी-भरकर रोटियाँ खायी थीं।+ 27 उस खाने के लिए काम मत करो जो नष्ट हो जाता है, बल्कि उस खाने के लिए काम करो जो नष्ट नहीं होता और हमेशा की ज़िंदगी देता है,+ वही खाना जो तुम्हें इंसान का बेटा देगा। क्योंकि पिता यानी परमेश्वर ने खुद उसी बेटे पर अपनी मंज़ूरी की मुहर लगायी है।”+
28 तब उन्होंने उससे पूछा, “परमेश्वर की मंज़ूरी पाने के लिए हमें कौन-सा काम करना होगा?” 29 यीशु ने उन्हें जवाब दिया, “परमेश्वर की मंज़ूरी पाने के लिए तुम उस पर विश्वास करो जिसे उसने भेजा है।”+ 30 तब उन्होंने कहा, “फिर तू हमें क्या चमत्कार दिखानेवाला है+ कि हम उसे देखकर तेरा यकीन करें? तू कौन-सा काम करने जा रहा है? 31 हमारे पुरखों ने तो वीराने में मन्ना खाया था,+ ठीक जैसा लिखा है, ‘उसने उन्हें खाने के लिए स्वर्ग से रोटी दी।’”+ 32 यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ कि मूसा ने तुम्हें स्वर्ग से रोटी नहीं दी थी, मगर मेरा पिता तुम्हें स्वर्ग से सच्ची रोटी देता है। 33 इसलिए कि जो स्वर्ग से नीचे आया है वही परमेश्वर की रोटी है और दुनिया को जीवन देती है।” 34 तब लोगों ने कहा, “प्रभु, हमें यह रोटी हमेशा दिया कर।”
35 यीशु ने उनसे कहा, “मैं जीवन देनेवाली रोटी हूँ। जो मेरे पास आता है वह फिर कभी भूखा नहीं होगा और जो मुझ पर विश्वास करता है वह फिर कभी प्यासा नहीं होगा।+ 36 मगर जैसा मैंने तुमसे कहा था, तुम मुझे देखकर भी मेरा यकीन नहीं करते।+ 37 वे सभी जिन्हें पिता ने मुझे दिया है, मेरे पास आएँगे और जो कोई मेरे पास आएगा उसे मैं खुद से कभी दूर नहीं करूँगा।+ 38 क्योंकि मैं अपनी मरज़ी नहीं, बल्कि अपने भेजनेवाले की मरज़ी पूरी करने+ के लिए स्वर्ग से नीचे आया हूँ।+ 39 मुझे भेजनेवाले की यही मरज़ी है कि उसने जितनों को मुझे दिया है, उनमें से मैं एक को भी न खोऊँ, बल्कि आखिरी दिन उन्हें ज़िंदा करूँ।+ 40 मेरे पिता की मरज़ी यह है कि जो कोई बेटे को स्वीकार करता है और उस पर विश्वास करता है, उसे हमेशा की ज़िंदगी मिले+ और मैं उसे आखिरी दिन ज़िंदा करूँगा।”+
41 तब यहूदी कुड़कुड़ाने लगे क्योंकि उसने कहा था, “मैं वह रोटी हूँ जो स्वर्ग से नीचे उतरी है।”+ 42 वे कहने लगे, “क्या यह यूसुफ का बेटा यीशु नहीं जिसके माता-पिता को हम जानते हैं?+ तो फिर यह कैसे कह सकता है कि ‘मैं स्वर्ग से नीचे आया हूँ’?” 43 यीशु ने उनसे कहा, “आपस में मत कुड़कुड़ाओ। 44 कोई भी इंसान मेरे पास तब तक नहीं आ सकता जब तक कि पिता जिसने मुझे भेजा है, उसे मेरे पास खींच न लाए।+ और मैं उसे आखिरी दिन ज़िंदा करूँगा।+ 45 भविष्यवक्ताओं ने लिखा है, ‘वे सब यहोवा* के सिखाए हुए होंगे।’+ हर कोई जिसने पिता से सुना है और सीखा है, वह मेरे पास आता है। 46 किसी इंसान ने पिता को कभी नहीं देखा+ सिवा उसके जो परमेश्वर की तरफ से है। उसी ने पिता को देखा है।+ 47 मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ कि जो कोई यकीन करता है, वह हमेशा की ज़िंदगी पाएगा।+
48 मैं जीवन देनेवाली रोटी हूँ।+ 49 तुम्हारे पुरखों ने वीराने में मन्ना खाया था, फिर भी वे मर गए।+ 50 मगर जो कोई इस रोटी में से खाता है जो स्वर्ग से उतरी है, वह नहीं मरेगा। 51 मैं वह जीवित रोटी हूँ जो स्वर्ग से उतरी है। अगर कोई इस रोटी में से खाता है तो वह हमेशा ज़िंदा रहेगा। दरअसल जो रोटी मैं दूँगा, वह मेरा शरीर है जो मैं इंसानों की खातिर दूँगा ताकि वे जीवन पाएँ।”+
52 तब यहूदी एक-दूसरे से बहस करने लगे, “भला यह आदमी कैसे अपना शरीर हमें खाने के लिए दे सकता है?” 53 तब यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ कि जब तक तुम इंसान के बेटे का माँस न खाओ और उसका खून न पीओ, तुममें जीवन नहीं।+ 54 जो मेरे शरीर में से खाता है और मेरे खून में से पीता है, वह हमेशा की ज़िंदगी पाएगा और मैं आखिरी दिन उसे ज़िंदा करूँगा।+ 55 इसलिए कि मेरा शरीर असली खाना है और मेरा खून पीने की असली चीज़ है। 56 जो मेरे शरीर में से खाता है और मेरे खून में से पीता है, वह मेरे साथ एकता में बना रहता है और मैं उसके साथ एकता में बना रहता हूँ।+ 57 ठीक जैसे जीवित पिता ने मुझे भेजा है और मैं पिता की वजह से जीवित हूँ, वैसे ही जो मुझमें से खाता है वह भी मेरी वजह से जीवित रहेगा।+ 58 यह वह रोटी है जो स्वर्ग से नीचे उतरी है। यह वैसी नहीं जैसी तुम्हारे पुरखों ने खायी, फिर भी मर गए। जो इस रोटी में से खाता है, वह हमेशा ज़िंदा रहेगा।”+ 59 ये बातें उसने कफरनहूम में उस वक्त कही थीं जब वह एक सभा-घर* में सिखा रहा था।
60 जब उसके कई चेलों ने यह बात सुनी तो वे कहने लगे, “यह कैसी घिनौनी बात है, कौन इसे सुनेगा?” 61 मगर यीशु ने मन में यह जानते हुए कि उसके चेले इस बारे में कुड़कुड़ा रहे हैं, उनसे कहा, “क्या इस बात से तुम्हारा विश्वास डगमगा रहा है?* 62 तो फिर तब क्या होगा जब तुम इंसान के बेटे को ऊपर जाता देखोगे जहाँ वह पहले था?+ 63 परमेश्वर की पवित्र शक्ति से ही जीवन मिलता है,+ शरीर किसी काम का नहीं। जो बातें मैंने तुमसे कही हैं, वे परमेश्वर की पवित्र शक्ति के मुताबिक हैं और जीवन देती हैं।+ 64 मगर तुममें से कुछ ऐसे हैं जो मेरी बात पर यकीन नहीं करते।” यीशु शुरू से जानता था कि वे कौन हैं जो यकीन नहीं करते और वह कौन है जो उसके साथ विश्वासघात करेगा।+ 65 वह उनसे कहने लगा, “इसीलिए मैंने तुमसे कहा था कि कोई भी तब तक मेरे पास नहीं आ सकता जब तक कि पिता उसे इजाज़त न दे।”+
66 इस वजह से उसके बहुत-से चेलों ने उसके पीछे चलना छोड़ दिया और वापस उन कामों में लग गए जिन्हें वे छोड़ आए थे।+ 67 तब यीशु ने अपने 12 चेलों से कहा, “क्या तुम भी चले जाना चाहते हो?” 68 शमौन पतरस ने जवाब दिया, “प्रभु, हम किसके पास जाएँ?+ हमेशा की ज़िंदगी की बातें तो तेरे ही पास हैं।+ 69 हमने यकीन किया है और हम जान गए हैं कि तू परमेश्वर का पवित्र जन है।”+ 70 यीशु ने उनसे कहा, “मैंने तुम बारहों को चुना था न?+ मगर तुममें से एक बदनाम करनेवाला* है।”+ 71 दरअसल वह शमौन इस्करियोती के बेटे यहूदा की बात कर रहा था, क्योंकि वही था जो उन बारहों में से एक होते हुए भी उसे पकड़वानेवाला था।+
7 इसके बाद यीशु गलील का ही दौरा करता रहा। वह यहूदिया नहीं जाना चाहता था क्योंकि यहूदी उसे मार डालने की ताक में थे।+ 2 यहूदियों का डेरों* का त्योहार+ पास था। 3 इसलिए यीशु के भाइयों+ ने उससे कहा, “यहाँ से निकलकर यहूदिया जा ताकि तू जो काम करता है उन्हें तेरे सभी चेले देखें। 4 इसलिए कि कोई भी इंसान जो चाहता है कि सब लोग उसे जानें, वह छिपकर काम नहीं करता। अगर तू ये काम करता है, तो खुद को दुनिया के सामने ज़ाहिर कर।” 5 दरअसल उसके भाई उस पर विश्वास नहीं करते थे।+ 6 इसलिए यीशु ने उनसे कहा, “मेरा वक्त अब तक नहीं आया है,+ मगर तुम्हारे लिए तो हर वक्त सही है। 7 दुनिया के पास तुमसे नफरत करने की कोई वजह नहीं है, मगर यह मुझसे नफरत करती है क्योंकि मैं यह गवाही देता हूँ कि इसके काम दुष्ट हैं।+ 8 तुम त्योहार के लिए जाओ। मैं इस त्योहार के लिए अभी नहीं जा रहा, क्योंकि मेरा वक्त अभी नहीं आया है।”+ 9 उनसे यह कहने के बाद, वह गलील में ही रहा।
10 मगर जब उसके भाई त्योहार के लिए चले गए, तो उसके बाद वह खुद भी गया। लेकिन वह छिपकर गया ताकि लोग उसे न देखें। 11 इसलिए त्योहार के दौरान यहूदी यह कहते हुए उसे ढूँढ़ने लगे, “वह आदमी कहाँ है?” 12 लोगों के बीच उसके बारे में बहुत-सी दबी-दबी बातें हो रही थीं। कुछ कह रहे थे, “वह अच्छा आदमी है।” दूसरे कह रहे थे, “नहीं, वह आदमी अच्छा नहीं है। वह लोगों को गुमराह करता है।”+ 13 मगर यहूदियों के डर से कोई भी सबके सामने उसके बारे में बात नहीं करता था।+
14 जब त्योहार के आधे दिन बीत चुके, तो यीशु मंदिर में गया और सिखाने लगा। 15 इसलिए यहूदी ताज्जुब करने लगे और कहने लगे, “इस आदमी को शास्त्र* का इतना ज्ञान कहाँ से मिला?+ इसने तो कभी धर्म गुरुओं के स्कूलों* में पढ़ाई भी नहीं की!”+ 16 यीशु ने उन्हें जवाब दिया, “जो मैं सिखाता हूँ वह मेरी तरफ से नहीं बल्कि उसकी तरफ से है जिसने मुझे भेजा है।+ 17 अगर कोई परमेश्वर की मरज़ी पूरी करना चाहता है, तो वह जान लेगा कि मैं जो सिखा रहा हूँ वह परमेश्वर की तरफ से है+ या मेरे अपने विचार हैं। 18 जो अपने विचार सिखाता है, वह अपनी बड़ाई चाहता है। मगर जो अपने भेजनेवाले की बड़ाई चाहता है+ वह सच्चा है और उसमें झूठ नहीं। 19 मूसा ने तुम्हें कानून दिया था न?+ लेकिन तुममें से कोई भी उस कानून को नहीं मानता। तुम मुझे क्यों मार डालना चाहते हो?”+ 20 भीड़ ने उसे जवाब दिया, “तेरे अंदर दुष्ट स्वर्गदूत है। कौन तुझे मार डालना चाहता है?” 21 यीशु ने उनसे कहा, “मैंने बस एक काम किया और तुम सब ताज्जुब कर रहे हो। 22 इसलिए इस बात पर गौर करो, मूसा ने तुम्हें खतने की आज्ञा दी थी+ (वह आज्ञा मूसा के ज़माने से नहीं, बल्कि हमारे पुरखों के ज़माने से थी)+ और तुम सब्त के दिन भी आदमी का खतना करते हो। 23 अगर सब्त के दिन एक आदमी का खतना इसलिए किया जाता है कि मूसा का कानून न टूटे, तो तुम इस बात को लेकर मुझ पर आग-बबूला क्यों हो रहे हो कि मैंने सब्त के दिन एक आदमी को पूरी तरह तंदुरुस्त किया है?+ 24 जो दिखता है सिर्फ उसके हिसाब से न्याय मत करो, बल्कि सच्चाई से न्याय करो।”+
25 तब यरूशलेम के कुछ लोग कहने लगे, “यह वही आदमी है न जिसे वे मार डालना चाहते हैं?+ 26 फिर भी देखो! वह लोगों के सामने खुल्लम-खुल्ला बातें कर रहा है और वे उसे कुछ भी नहीं कहते। कहीं ऐसा तो नहीं कि धर्म-अधिकारियों को यकीन हो गया है कि यही मसीह है? 27 मगर हम तो जानते हैं कि यह आदमी कहाँ का है।+ लेकिन जब मसीह आएगा तो कोई नहीं जान पाएगा कि वह कहाँ का है।” 28 फिर जब यीशु मंदिर में सिखा रहा था तो उसने ऊँची आवाज़ में कहा, “तुम मुझे जानते हो और यह भी जानते हो कि मैं कहाँ का हूँ। मैं अपनी मरज़ी से नहीं आया,+ बल्कि जिसने मुझे भेजा है वह सचमुच वजूद में है और तुम उसे नहीं जानते।+ 29 मैं उसे जानता हूँ+ क्योंकि मैं उसकी तरफ से आया हूँ और उसी ने मुझे भेजा है।” 30 तब वे उसे किसी तरह पकड़ने का मौका ढूँढ़ने लगे,+ मगर किसी ने भी उसे हाथ नहीं लगाया क्योंकि उसका वक्त अब तक नहीं आया था।+ 31 फिर भी भीड़ में से बहुतों ने उस पर विश्वास किया+ और कहा, “जब मसीह आता तो बहुत-से चमत्कार करता, है कि नहीं? इस आदमी ने क्या कम चमत्कार किए हैं?”
32 फरीसियों ने सुना कि भीड़ उसके बारे में ये बातें बुदबुदा रही है। और प्रधान याजकों और फरीसियों ने यीशु को पकड़ने* के लिए पहरेदार भेजे। 33 तब यीशु ने कहा, “जिसने मुझे भेजा है उसके पास जाने से पहले मैं तुम्हारे साथ कुछ वक्त और रहूँगा।+ 34 तुम मुझे ढूँढ़ोगे मगर नहीं पाओगे और जहाँ मैं रहूँगा वहाँ तुम नहीं आ सकते।”+ 35 इसलिए यहूदी आपस में कहने लगे, “यह आदमी कहाँ जाना चाहता है कि हम उसे ढूँढ़ न सकें? यह उन यहूदियों के पास तो नहीं जाना चाहता जो यूनानियों के बीच तितर-बितर होकर रहते हैं? कहीं यह यूनानियों को तो नहीं सिखाना चाहता? 36 यह क्या बोल रहा है, ‘तुम मुझे ढूँढ़ोगे मगर नहीं पाओगे और जहाँ मैं रहूँगा वहाँ तुम नहीं आ सकते’?”
37 फिर त्योहार के आखिरी दिन जो सबसे खास दिन होता है,+ यीशु खड़ा हुआ और उसने ज़ोर से कहा, “अगर कोई प्यासा हो तो मेरे पास आए और पानी पीए।+ 38 जो मुझ पर विश्वास करता है, ‘उसके दिल की गहराइयों से जीवन देनेवाले पानी की धाराएँ बहेंगी,’ जैसा शास्त्र में भी कहा गया है।”+ 39 यह बात उसने पवित्र शक्ति के बारे में कही जो यीशु पर विश्वास करनेवालों को मिलनेवाली थी। उन्हें अब तक पवित्र शक्ति नहीं मिली थी+ क्योंकि यीशु ने अब तक महिमा नहीं पायी थी।+ 40 जब भीड़ के कुछ लोगों ने ये बातें सुनीं, तो वे कहने लगे, “यह सचमुच वही भविष्यवक्ता है जो आनेवाला था।”+ 41 दूसरे कह रहे थे, “यही मसीह है।”+ मगर कुछ लोग कह रहे थे, “मसीह तो गलील से नहीं आएगा, है कि नहीं?+ 42 क्या शास्त्र यह नहीं कहता कि मसीह दाविद के वंश से+ और दाविद के गाँव बेतलेहेम+ से आएगा?”+ 43 इसलिए यीशु की वजह से भीड़ में फूट पड़ गयी। 44 उनमें से कुछ उसे पकड़ना* चाहते थे, फिर भी किसी ने उसे छुआ तक नहीं।
45 पहरेदार, प्रधान याजकों और फरीसियों के पास खाली हाथ लौट आए। तब उन्होंने पहरेदारों से पूछा, “तुम उसे पकड़कर क्यों नहीं लाए?” 46 पहरेदारों ने कहा, “आज तक किसी भी इंसान ने उसकी तरह बात नहीं की।”+ 47 तब फरीसियों ने उनसे कहा, “कहीं तुम भी तो गुमराह नहीं हो गए? 48 क्या धर्म-अधिकारियों और फरीसियों में से एक ने भी उस पर विश्वास किया है?+ 49 मगर ये लोग जो कानून की रत्ती-भर भी समझ नहीं रखते, शापित लोग हैं।” 50 तब नीकुदेमुस ने, जो इन धर्म-अधिकारियों में से एक था और पहले यीशु के पास आया था, उनसे कहा, 51 “हमारा कानून तब तक एक आदमी को दोषी नहीं ठहराता जब तक कि पहले उसकी सुन न ले और यह न जान ले कि वह क्या कर रहा है। क्या ऐसा नहीं है?”+ 52 उन्होंने नीकुदेमुस से कहा, “कहीं तू भी तो गलील का नहीं? शास्त्र में ढूँढ़ और देख कि कोई भी भविष्यवक्ता गलील से नहीं आएगा।”*
8 12 यीशु ने एक बार फिर लोगों से बात की और कहा, “मैं दुनिया की रौशनी हूँ।+ जो मेरे पीछे चलता है वह हरगिज़ अंधकार में न चलेगा, मगर जीवन की रौशनी उसके पास होगी।”+ 13 तब फरीसियों ने उससे कहा, “तू खुद अपने बारे में गवाही देता है, इसलिए तेरी गवाही सच्ची नहीं है।” 14 यीशु ने उनसे कहा, “अगर मैं अपने बारे में गवाही देता हूँ, तो भी मेरी गवाही सच्ची है क्योंकि मैं जानता हूँ कि मैं कहाँ से आया हूँ और कहाँ जा रहा हूँ।+ मगर तुम नहीं जानते कि मैं कहाँ से आया हूँ और कहाँ जा रहा हूँ। 15 तुम इंसानी नज़रिए* से न्याय करते हो,+ मगर मैं किसी का न्याय नहीं करता। 16 और अगर न्याय करता भी हूँ, तो मेरा न्याय सच्चा है क्योंकि मैं अकेला नहीं हूँ बल्कि पिता मेरे साथ है जिसने मुझे भेजा है।+ 17 तुम्हारे अपने कानून में भी लिखा है, ‘दो लोगों की गवाही सच्ची मानी जाए।’+ 18 एक मैं खुद हूँ जो अपने बारे में गवाही देता हूँ और दूसरा पिता है जिसने मुझे भेजा है, वह मेरे बारे में गवाही देता है।”+ 19 तब उन्होंने कहा, “कहाँ है तेरा पिता?” यीशु ने जवाब दिया, “तुम न तो मुझे जानते हो, न ही मेरे पिता को।+ अगर तुम मुझे जानते, तो मेरे पिता को भी जानते।”+ 20 ये बातें उसने मंदिर में दान-पात्रों+ के पास सिखाते वक्त कही थीं। मगर किसी ने उसे नहीं पकड़ा, क्योंकि उसका वक्त अभी नहीं आया था।+
21 यीशु ने एक बार फिर उनसे कहा, “मैं जा रहा हूँ और तुम मुझे ढूँढ़ोगे। मगर तुम अपनी पापी हालत में मरोगे।+ जहाँ मैं जा रहा हूँ वहाँ तुम नहीं आ सकते।”+ 22 इसलिए यहूदी कहने लगे, “क्या यह अपनी जान लेनेवाला है? क्योंकि यह कह रहा है, ‘जहाँ मैं जा रहा हूँ वहाँ तुम नहीं आ सकते।’” 23 इसलिए वह उनसे कहने लगा, “तुम नीचे के हो और मैं ऊपर का हूँ।+ तुम इस दुनिया के हो और मैं इस दुनिया का नहीं। 24 इसलिए मैंने तुमसे कहा कि तुम अपनी पापी हालत में मरोगे। क्योंकि अगर तुम इस बात पर यकीन नहीं करते कि मैं वही हूँ, तो तुम अपनी पापी हालत में मरोगे।” 25 तब वे उससे कहने लगे, “तू है कौन?” यीशु ने उनसे कहा, “तुमसे बात करने का क्या फायदा, जब तुम मेरी बात ही नहीं समझ रहे? 26 तुम्हारे बारे में मुझे बहुत-सी बातें कहनी हैं और बहुत-से मामलों का न्याय करना है। सच तो यह है कि जिसने मुझे भेजा है वह सच्चा है और जो बातें मैंने उससे सुनीं, वही मैं दुनिया में बता रहा हूँ।”+ 27 वे नहीं समझ पाए कि यीशु उनसे पिता के बारे में बात कर रहा है। 28 इसलिए यीशु ने कहा, “जब तुम इंसान के बेटे को ऊँचे पर चढ़ा चुके होगे,+ तो तुम जान लोगे कि मैं वही हूँ।+ मैं अपनी मरज़ी से कुछ भी नहीं करता,+ बल्कि जैसा पिता ने मुझे सिखाया है मैं ये बातें बताता हूँ। 29 जिसने मुझे भेजा है वह मेरे साथ है। उसने मुझे अकेला नहीं छोड़ा, क्योंकि मैं हमेशा वही करता हूँ जिससे वह खुश होता है।”+ 30 जब वह ये बातें बोल रहा था, तो बहुतों ने उस पर विश्वास किया।
31 तब यीशु उन यहूदियों से जिन्होंने उस पर यकीन किया था, कहने लगा, “अगर तुम हमेशा मेरी शिक्षाओं को मानोगे, तो तुम सचमुच मेरे चेले ठहरोगे। 32 तुम सच्चाई को जानोगे+ और सच्चाई तुम्हें आज़ाद करेगी।”+ 33 उन्होंने उससे कहा, “हम अब्राहम के वंशज हैं और कभी किसी के गुलाम नहीं रहे। तो फिर तू कैसे कह सकता है कि तुम आज़ाद हो जाओगे?” 34 यीशु ने उन्हें जवाब दिया, “मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ, हर कोई जो पाप करता है वह पाप का गुलाम है।+ 35 और गुलाम घर में हमेशा तक नहीं रहता, मगर बेटा हमेशा तक रहता है। 36 इसलिए अगर बेटा तुम्हें आज़ाद करे, तो तुम सचमुच आज़ाद हो जाओगे। 37 मैं जानता हूँ कि तुम अब्राहम के वंशज हो। मगर तुम मुझे मार डालने की ताक में हो, क्योंकि मेरी बातें तुम्हारे दिलों में जड़ नहीं पकड़तीं। 38 मैं वही कहता हूँ जो मैंने अपने पिता के पास रहकर देखा है,+ जबकि तुम वह करते हो जो तुमने अपने पिता से सुना है।” 39 यहूदियों ने उससे कहा, “हमारा पिता तो अब्राहम है।” यीशु ने उनसे कहा, “अगर तुम अब्राहम के वंशज+ होते, तो अब्राहम जैसे काम करते। 40 मगर तुम तो मुझे मार डालना चाहते हो, एक ऐसे इंसान को, जिसने तुम्हें वह सच्चाई बतायी जो उसने परमेश्वर से सुनी है।+ अब्राहम ने तो ऐसा नहीं किया था। 41 तुम अपने पिता जैसे काम करते हो।” उन्होंने कहा, “हम नाजायज़* औलाद नहीं। हमारा एक ही पिता है, परमेश्वर।”
42 यीशु ने उनसे कहा, “अगर परमेश्वर तुम्हारा पिता होता, तो तुम मुझसे प्यार करते+ क्योंकि मैं परमेश्वर की तरफ से आया हूँ और यहाँ हूँ। मैं अपनी मरज़ी से नहीं आया, बल्कि उसी ने मुझे भेजा है।+ 43 तुम मेरी बात समझ क्यों नहीं रहे? इसलिए कि तुम मेरी बात मानना ही नहीं चाहते। 44 तुम अपने पिता शैतान* से हो और अपने पिता की ख्वाहिशें पूरी करना चाहते हो।+ वह शुरू से ही हत्यारा है+ और सच्चाई में टिका नहीं रहा, क्योंकि सच्चाई उसमें है ही नहीं। जब वह झूठ बोलता है तो अपनी फितरत के मुताबिक बोलता है, क्योंकि वह झूठा है और झूठ का पिता है।+ 45 मगर दूसरी तरफ, मैं तुम्हें सच्चाई बताता हूँ इसलिए तुम मेरा यकीन नहीं करते। 46 तुममें से कौन मुझे पापी साबित कर सकता है? और अगर मैं सच बोल रहा हूँ, तो तुम मेरा यकीन क्यों नहीं करते? 47 जो परमेश्वर की तरफ से है वह परमेश्वर की बातें सुनता है।+ तुम इसीलिए मेरी बात नहीं सुनते क्योंकि तुम परमेश्वर की तरफ से नहीं हो।”+
48 यहूदियों ने उससे कहा, “क्या हम सही नहीं कहते कि तू एक सामरी है+ और तेरे अंदर एक दुष्ट स्वर्गदूत है?”+ 49 यीशु ने जवाब दिया, “मेरे अंदर कोई दुष्ट स्वर्गदूत नहीं मगर मैं अपने पिता का आदर करता हूँ और तुम मेरा अनादर करते हो। 50 मैं अपनी महिमा नहीं चाहता,+ मगर एक है जो चाहता है और वही न्यायी है। 51 मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ, अगर कोई मेरे वचन पर चलता है तो वह कभी मौत का मुँह नहीं देखेगा।”+ 52 यहूदियों ने उससे कहा, “अब हमें ज़रा भी शक नहीं कि तेरे अंदर एक दुष्ट स्वर्गदूत है। अब्राहम मर गया और भविष्यवक्ता भी मर गए। मगर तू कहता है, ‘अगर कोई मेरे वचनों पर चलता है, तो वह कभी नहीं मरेगा।’ 53 क्या तू हमारे पिता अब्राहम से भी बढ़कर है? वह तो मर गया और भविष्यवक्ता भी मर गए। तू क्या होने का दावा करता है?” 54 यीशु ने जवाब दिया, “अगर मैं अपनी महिमा करूँ, तो मेरी महिमा कुछ भी नहीं। मगर मेरा पिता है जो मेरी महिमा करता है,+ वही जिसे तुम अपना परमेश्वर कहते हो। 55 फिर भी तुमने उसे नहीं जाना+ मगर मैं उसे जानता हूँ।+ अगर मैं कहूँ कि मैं उसे नहीं जानता, तो मैं तुम्हारे जैसा ठहरूँगा, एक झूठा। मगर मैं उसे जानता हूँ और उसके वचन पर चलता हूँ। 56 तुम्हारा पिता अब्राहम खुशी-खुशी आस लगाए था कि वह मेरा दिन देखेगा और उसने देखा भी और बहुत खुश हुआ।”+ 57 तब यहूदियों ने उससे कहा, “तू 50 साल का भी नहीं हुआ, फिर भी कहता है मैंने अब्राहम को देखा है?” 58 यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ, मैं तो अब्राहम के पैदा होने से पहले से वजूद में हूँ।”+ 59 तब उन्होंने यीशु को मारने के लिए पत्थर उठा लिए। मगर वह छिप गया और मंदिर से बाहर निकल गया।
9 जब यीशु जा रहा था तो उसने एक आदमी को देखा जो जन्म से अंधा था। 2 चेलों ने उससे पूछा, “गुरु,*+ किसने पाप किया था कि यह अंधा पैदा हुआ? इसने या इसके माता-पिता ने?” 3 यीशु ने जवाब दिया, “न तो इस आदमी ने पाप किया, न इसके माता-पिता ने। मगर यह इसलिए हुआ कि इसके मामले में परमेश्वर के काम ज़ाहिर हों।+ 4 जिसने मुझे भेजा है उसके काम हमें दिन रहते ही कर लेने चाहिए।+ वह रात आ रही है जब कोई आदमी काम नहीं कर सकेगा। 5 जब तक मैं दुनिया में हूँ, मैं दुनिया की रौशनी हूँ।”+ 6 यह कहने के बाद, उसने ज़मीन पर थूका और थूक से मिट्टी मिलाकर लेप बनाया और उस अंधे आदमी की आँखों पर लगाया+ 7 और उससे कहा, “जा और जाकर सिलोम के कुंड में धो ले” (सिलोम का मतलब है, ‘भेजा हुआ’)। उसने जाकर अपनी आँखें धोयीं और देखता हुआ लौट आया।+
8 उस आदमी के पड़ोसी और वे लोग, जो उसे भीख माँगते देखा करते थे, कहने लगे, “यह तो वही आदमी है न, जो पहले बैठकर भीख माँगता था?” 9 कुछ कह रहे थे, “हाँ-हाँ यह वही है।” दूसरे कह रहे थे, “नहीं यह वह नहीं है, मगर उसी के जैसा दिखता है।” वह आदमी कहता रहा, “मैं वही हूँ।” 10 तब वे उससे पूछने लगे, “तेरी आँखें कैसे ठीक हो गयीं?” 11 उसने कहा, “यीशु नाम के आदमी ने मिट्टी का लेप बनाकर मेरी आँखों पर लगाया और मुझसे कहा, ‘जाकर सिलोम में धो ले।’+ जब मैंने जाकर अपनी आँखें धोयीं तो मुझे दिखने लगा।” 12 तब वे उससे पूछने लगे, “कहाँ है वह आदमी?” उसने कहा, “मैं नहीं जानता।”
13 वे लोग उस आदमी को फरीसियों के पास ले गए। 14 इत्तफाक से, जिस दिन यीशु ने मिट्टी का लेप लगाकर उसकी आँखें खोली थीं,+ वह सब्त का दिन था।+ 15 इसलिए अब फरीसी भी उस आदमी से पूछताछ करने लगे कि उसकी आँखें कैसे ठीक हुईं। उस आदमी ने कहा, “उसने मेरी आँखों पर मिट्टी का लेप लगाया और जब मैंने आँखें धोयीं तो मुझे दिखायी देने लगा।” 16 इसलिए कुछ फरीसी कहने लगे, “वह आदमी परमेश्वर की तरफ से नहीं है क्योंकि वह सब्त को नहीं मानता।”+ मगर दूसरों ने कहा, “एक पापी भला इस तरह के चमत्कार कैसे कर सकता है?”+ इस तरह उनके बीच फूट पड़ गयी।+ 17 तब उन्होंने उस अंधे आदमी से फिर कहा, “उसने तेरी आँखें खोली हैं, तू उसके बारे में क्या कहता है?” उस आदमी ने कहा, “वह एक भविष्यवक्ता है।”
18 मगर यहूदी यह मानने को तैयार नहीं थे कि वह पहले अंधा था। जब तक उन्होंने उसके माता-पिता को बुलाकर यह पक्का नहीं कर लिया, तब तक उन्होंने यकीन नहीं किया कि वह पहले अंधा था और अब देख सकता है। 19 उन्होंने उसके माता-पिता से पूछा, “क्या यह तुम्हारा बेटा है जिसके बारे में तुम कहते हो कि यह अंधा पैदा हुआ था? तो अब यह देखने कैसे लगा?” 20 उसके माता-पिता ने कहा, “हाँ यह हमारा बेटा है और यह अंधा पैदा हुआ था। 21 मगर हमें नहीं पता कि यह कैसे देखने लगा या किसने इसकी आँखें ठीक कीं! तुम उसी से पूछ लो। वह कोई बच्चा नहीं, वह खुद अपने बारे में बता सकता है।” 22 उसके माता-पिता ने ये बातें इसलिए कहीं क्योंकि वे यहूदी धर्म-अधिकारियों से डरते थे,+ इसलिए कि यहूदी मिलकर तय कर चुके थे कि अगर कोई यीशु को मसीह मानेगा, तो उसे सभा-घर से बेदखल कर दिया जाएगा।+ 23 इसी वजह से उसके माता-पिता ने कहा था, “वह कोई बच्चा नहीं, उसी से पूछो।”
24 तब उन्होंने उस आदमी को जो पहले अंधा था, दोबारा बुलाया और उससे कहा, “परमेश्वर को हाज़िर जानकर, सच-सच बोल। क्योंकि हम जानते हैं कि वह आदमी पापी है।” 25 उसने कहा, “वह पापी है या नहीं, यह मैं नहीं जानता। मैं बस इतना जानता हूँ कि मैं पहले अंधा था, मगर अब देख सकता हूँ।” 26 तब उन्होंने उससे पूछा, “उसने क्या किया? कैसे तेरी आँखें खोलीं?” 27 उसने कहा, “मैं तुम्हें पहले ही बता चुका हूँ, मगर तुमने मेरी नहीं सुनी। फिर तुम दोबारा क्यों पूछ रहे हो? कहीं तुम भी तो उसके चेले नहीं बनना चाहते?” 28 तब वे उसे नीचा दिखाते हुए कहने लगे, “तू होगा उसका चेला, हम तो मूसा के चेले हैं। 29 हम जानते हैं कि परमेश्वर ने मूसा से बात की थी, मगर यह आदमी कहाँ से आया हम नहीं जानते।” 30 तब उस आदमी ने कहा, “कमाल है, उसने मेरी आँखें खोल दीं फिर भी तुम नहीं जानते कि वह कहाँ से आया है? 31 हम जानते हैं कि परमेश्वर पापियों की नहीं सुनता,+ लेकिन अगर कोई उसका डर मानता है और उसकी मरज़ी पूरी करता है, तो वह उसकी सुनता है।+ 32 आज तक यह बात सुनने में नहीं आयी कि किसी ने जन्म के अंधे को आँखों की रौशनी दी हो। 33 अगर यह आदमी परमेश्वर की तरफ से नहीं होता, तो कुछ भी नहीं कर पाता।”+ 34 उन्होंने उससे कहा, “तू तो जन्म से ही पूरा-का-पूरा पापी है, फिर भी हमें सिखाने चला है?” और उन्होंने उसे बाहर निकाल दिया!+
35 यीशु ने सुना कि उन्होंने उस आदमी को निकालकर बाहर कर दिया है। उससे मिलने पर यीशु ने कहा, “क्या तू इंसान के बेटे पर विश्वास करता है?” 36 उस आदमी ने जवाब दिया, “साहब, वह कौन है ताकि मैं उस पर विश्वास करूँ?” 37 यीशु ने उससे कहा, “तूने उसे देखा है। दरअसल वही तुझसे बात कर रहा है।” 38 तब उसने कहा, “प्रभु, मैं उस पर विश्वास करता हूँ।” और उसने यीशु को झुककर प्रणाम* किया। 39 तब यीशु ने कहा, “मैं इसलिए आया हूँ ताकि दुनिया का न्याय किया जाए और जो नहीं देखते, वे देखें+ और जो देखते हैं वे अंधे हो जाएँ।”+ 40 जो फरीसी उसके साथ थे, उन्होंने यह सुनकर उससे कहा, “क्या हम भी अंधे हैं?” 41 यीशु ने उनसे कहा, “अगर तुम अंधे होते, तो तुममें कोई पाप नहीं होता। मगर अब तुम कहते हो, ‘हम देखते हैं,’ इसलिए तुम्हारे पाप माफ नहीं किए जाएँगे।”+
10 “मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ कि जो दरवाज़े से भेड़शाला में नहीं आता मगर किसी और रास्ते से चढ़कर आता है, वह चोर और लुटेरा है।+ 2 मगर जो दरवाज़े से आता है वह भेड़ों का चरवाहा है।+ 3 दरबान उसके लिए दरवाज़ा खोलता है+ और भेड़ें अपने चरवाहे की आवाज़ सुनती हैं।+ वह अपनी भेड़ों को नाम ले-लेकर बुलाता है और उन्हें बाहर ले जाता है। 4 जब वह अपनी सब भेड़ों को बाहर ले आता है, तो वह उनके आगे-आगे चलता है और भेड़ें उसके पीछे-पीछे चलती हैं, क्योंकि वे उसकी आवाज़ पहचानती हैं। 5 वे किसी अजनबी के पीछे हरगिज़ नहीं जाएँगी बल्कि उससे दूर भागेंगी, क्योंकि वे अजनबियों की आवाज़ नहीं पहचानतीं।” 6 यीशु ने उन्हें यह मिसाल दी, मगर वे समझ नहीं पाए कि वह क्या कह रहा है।
7 इसलिए यीशु ने एक बार फिर कहा, “मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ कि मैं भेड़ों के लिए दरवाज़ा हूँ।+ 8 जितने भी ढोंगी मेरी जगह लेने आए, वे सब-के-सब चोर और लुटेरे हैं। मगर भेड़ों ने उनकी नहीं सुनी। 9 दरवाज़ा मैं हूँ, जो कोई मुझसे होकर जाता है वह उद्धार पाएगा और अंदर-बाहर आया-जाया करेगा और चरागाह पाएगा।+ 10 चोर सिर्फ चोरी करने, हत्या करने और तबाह करने आता है।+ मगर मैं इसलिए आया हूँ कि भेड़ें जीवन पाएँ और बहुतायत में पाएँ। 11 अच्छा चरवाहा मैं हूँ।+ अच्छा चरवाहा भेड़ों की खातिर अपनी जान दे देता है।+ 12 लेकिन मज़दूरी पर रखा गया आदमी, चरवाहा नहीं है और भेड़ें उसकी अपनी नहीं होतीं। जब वह भेड़िए को आते देखता है, तो भेड़ों को छोड़कर भाग जाता है (और भेड़िया, भेड़ों पर झपट पड़ता है और उन्हें तितर-बितर कर देता है) 13 क्योंकि वह आदमी, मज़दूरी पर रखा गया है और उसे भेड़ों की परवाह नहीं होती। 14 अच्छा चरवाहा मैं हूँ। मैं अपनी भेड़ों को जानता हूँ और मेरी भेड़ें मुझे जानती हैं,+ 15 ठीक जैसे पिता मुझे जानता है और मैं पिता को जानता हूँ।+ मैं अपनी भेड़ों की खातिर अपनी जान देता हूँ।+
16 मेरी दूसरी भेड़ें भी हैं जो इस भेड़शाला की नहीं,+ मुझे उन्हें भी लाना है। वे मेरी आवाज़ सुनेंगी और तब एक झुंड और एक चरवाहा होगा।+ 17 पिता इसीलिए मुझसे प्यार करता है+ क्योंकि मैं अपनी जान देता हूँ+ ताकि उसे फिर से पाऊँ। 18 कोई भी इंसान मुझसे मेरी जान नहीं छीनता, मगर मैं खुद अपनी मरज़ी से इसे देता हूँ। मुझे इसे देने का अधिकार है और इसे दोबारा पाने का भी अधिकार है।+ इसकी आज्ञा मुझे अपने पिता से मिली है।”
19 इन बातों की वजह से यहूदियों में फिर से फूट पड़ गयी।+ 20 बहुत-से कह रहे थे, “इसमें दुष्ट स्वर्गदूत समाया हुआ है, इसका दिमाग फिर गया है। तुम इसकी क्यों सुनते हो?” 21 दूसरे कह रहे थे, “ये बातें किसी ऐसे आदमी की नहीं जिसमें दुष्ट स्वर्गदूत समाया हो। क्या कोई दुष्ट स्वर्गदूत अंधों की आँखें खोल सकता है?”
22 उस वक्त यरूशलेम में मंदिर के समर्पण का त्योहार चल रहा था। यह सर्दियों का मौसम था 23 और यीशु मंदिर में सुलैमान के खंभोंवाले बरामदे में टहल रहा था।+ 24 तब यहूदियों ने उसे घेर लिया और उससे पूछने लगे, “तू और कब तक हमें दुविधा में रखेगा? अगर तू मसीह है तो साफ-साफ कह दे।” 25 यीशु ने उन्हें जवाब दिया, “मैं तुमसे कह चुका हूँ, फिर भी तुम यकीन नहीं करते। मैं अपने पिता के नाम से जो काम करता हूँ वही मेरे बारे में गवाही देते हैं।+ 26 मगर तुम इसलिए यकीन नहीं करते क्योंकि तुम मेरी भेड़ें नहीं।+ 27 मेरी भेड़ें मेरी आवाज़ सुनती हैं और मैं उन्हें जानता हूँ और वे मेरे पीछे-पीछे चलती हैं।+ 28 मैं उन्हें हमेशा की ज़िंदगी देता हूँ+ और उन्हें कभी-भी नाश नहीं किया जाएगा और कोई भी उन्हें मेरे हाथ से नहीं छीनेगा।+ 29 मेरे पिता ने मुझे जो दिया है, वह बाकी सब चीज़ों से कहीं बढ़कर है और कोई भी उन्हें पिता के हाथ से नहीं छीन सकता।+ 30 मैं और पिता एक हैं।”*+
31 एक बार फिर यहूदियों ने उसे मार डालने के लिए पत्थर उठाए। 32 यीशु ने उनसे कहा, “मैंने तुम्हें पिता की तरफ से बहुत-से बढ़िया काम दिखाए। उनमें से किस काम के लिए तुम मुझे पत्थरों से मार डालना चाहते हो?” 33 यहूदियों ने उसे जवाब दिया, “हम किसी बढ़िया काम के लिए नहीं बल्कि इसलिए तुझे पत्थरों से मारना चाहते हैं क्योंकि तू परमेश्वर की निंदा करता है।+ तू इंसान होकर खुद को ईश्वर का दर्जा देता है।” 34 यीशु ने उनसे कहा, “क्या तुम्हारे कानून में नहीं लिखा है, ‘मैंने कहा, “तुम सब ईश्वर* हो।”’+ 35 जब परमेश्वर ने उन लोगों को ‘ईश्वर’ कहा है+ जो दोषी ठहराए गए थे और शास्त्र की इस बात को रद्द नहीं किया जा सकता, 36 तो फिर तुम यह कैसे कह सकते हो कि मैंने खुद को परमेश्वर का बेटा कहकर उसकी निंदा की है,+ जबकि मुझे परमेश्वर ने ही पवित्र ठहराया और दुनिया में भेजा है? 37 अगर मैं अपने पिता के काम नहीं कर रहा, तो मेरा यकीन मत करो। 38 लेकिन अगर मैं अपने पिता के काम कर रहा हूँ तो मुझ पर न सही, मगर मेरे कामों पर तो यकीन करो+ ताकि तुम जान सको और आगे भी यकीन करो कि पिता मेरे साथ एकता में है और मैं पिता के साथ एकता में हूँ।”+ 39 इसलिए उन्होंने एक बार फिर उसे पकड़ने की कोशिश की मगर वह उनके हाथ से निकल गया।
40 फिर वह यरदन के पार उस जगह चला गया जहाँ पहले यूहन्ना बपतिस्मा दिया करता था+ और वह वहीं रहा। 41 बहुत-से लोग उसके पास आए और कहने लगे, “यूहन्ना ने तो एक भी चमत्कार नहीं किया, मगर उसने इस आदमी के बारे में जितनी बातें कही थीं, वे सब सच थीं।”+ 42 वहाँ बहुतों ने यीशु पर विश्वास किया।
11 बैतनियाह गाँव में लाज़र नाम का एक आदमी बीमार था। उसकी बहनें, मारथा और मरियम भी इसी गाँव में रहती थीं।+ 2 दरअसल यह वह मरियम थी जिसने प्रभु पर खुशबूदार तेल उँडेला था और उसके पैरों को अपने बालों से पोंछा था।+ बीमार लाज़र इसी मरियम का भाई था। 3 इसलिए लाज़र की बहनों ने यीशु के पास खबर भेजी, “प्रभु, देख! तेरा वह दोस्त बीमार है जिससे तू बहुत प्यार करता है।” 4 मगर जब यीशु ने यह सुना तो कहा, “इस बीमारी का अंजाम मौत नहीं बल्कि इससे परमेश्वर की महिमा होगी+ ताकि इसके ज़रिए परमेश्वर के बेटे की महिमा हो सके।”
5 यीशु, मारथा और उसकी बहन और लाज़र से बहुत प्यार करता था। 6 मगर जब उसने सुना कि लाज़र बीमार है, तो वह जिस जगह रुका था वहाँ दो दिन और रुक गया। 7 इसके बाद उसने चेलों से कहा, “चलो हम फिर से यहूदिया चलें।” 8 तब चेलों ने उससे कहा, “गुरु,+ अभी कुछ ही वक्त पहले यहूदिया के लोग तुझे पत्थरों से मार डालना चाहते थे,+ क्या तू फिर वहीं जाना चाहता है?” 9 यीशु ने जवाब दिया, “क्या दिन की रौशनी 12 घंटे नहीं होती?+ अगर कोई दिन की रौशनी में चलता है, तो वह किसी चीज़ से ठोकर नहीं खाता क्योंकि वह इस दुनिया की रौशनी देखता है। 10 लेकिन अगर कोई रात में चलता है, तो वह ठोकर खाता है क्योंकि उसमें रौशनी नहीं है।”
11 ये बातें कहने के बाद यीशु ने उनसे कहा, “हमारा दोस्त लाज़र सो गया है,+ लेकिन मैं उसे जगाने वहाँ जा रहा हूँ।” 12 चेलों ने उससे कहा, “प्रभु, अगर वह सो गया है, तो ठीक हो जाएगा।” 13 दरअसल यीशु कह रहा था कि लाज़र मर गया है, मगर चेलों ने समझा कि यीशु सचमुच की नींद की बात कर रहा है। 14 इसलिए यीशु ने उन्हें साफ-साफ बताया, “लाज़र मर चुका है+ 15 और मैं तुम्हारी वजह से खुश हूँ कि मैं वहाँ नहीं था ताकि तुम यकीन करो। मगर अब चलो, हम उसके पास चलते हैं।” 16 इसलिए थोमा ने जो जुड़वाँ कहलाता था, बाकी चेलों से कहा, “चलो हम भी उसके साथ चलें ताकि उसके साथ अपनी जान दें।”+
17 जब यीशु बैतनियाह पहुँचा, तो उसे पता चला कि लाज़र को कब्र* में रखे चार दिन हो गए हैं। 18 बैतनियाह, यरूशलेम के पास, करीब तीन किलोमीटर* की दूरी पर था। 19 बहुत-से यहूदी, मारथा और मरियम को उनके भाई की मौत पर दिलासा देने आए थे। 20 जब मारथा ने सुना कि यीशु आ रहा है, तो वह उससे मिलने गयी। मगर मरियम+ घर में बैठी रही। 21 मारथा ने यीशु से कहा, “प्रभु, अगर तू यहाँ होता तो मेरा भाई न मरता। 22 मगर मैं अब भी जानती हूँ कि तू परमेश्वर से जो कुछ माँगेगा, वह तुझे दे देगा।” 23 यीशु ने उससे कहा, “तेरा भाई ज़िंदा हो जाएगा।” 24 मारथा ने उससे कहा, “मैं जानती हूँ कि आखिरी दिन जब मरे हुओं को ज़िंदा किया जाएगा,+ तब वह ज़िंदा हो जाएगा।” 25 यीशु ने उससे कहा, “मरे हुओं को ज़िंदा करनेवाला और उन्हें जीवन देनेवाला मैं ही हूँ।+ जो मुझ पर विश्वास करता है वह चाहे मर भी जाए, तो भी ज़िंदा किया जाएगा। 26 और हर कोई जो ज़िंदा है और मुझ पर विश्वास करता है, वह कभी नहीं मरेगा।+ क्या तू इस पर यकीन करती है?” 27 उसने कहा, “हाँ प्रभु, मुझे यकीन है कि तू परमेश्वर का बेटा मसीह है, जिसे दुनिया में आना था।” 28 यह कहने के बाद वह चली गयी और उसने जाकर अपनी बहन मरियम से अकेले में कहा, “गुरु+ आ चुका है और तुझे बुला रहा है।” 29 जब मरियम ने यह सुना तो वह फौरन उठी और उससे मिलने निकल पड़ी।
30 यीशु अब तक गाँव के अंदर नहीं आया था। वह अब भी वहीं था जहाँ मारथा उससे मिली थी। 31 जब उन यहूदियों ने, जो घर में मरियम को दिलासा दे रहे थे, देखा कि वह उठकर जल्दी से बाहर निकल गयी है, तो वे भी उसके पीछे-पीछे गए क्योंकि उन्हें लगा कि वह कब्र*+ पर रोने जा रही है। 32 जब मरियम उस जगह आयी जहाँ यीशु था और उसकी नज़र यीशु पर पड़ी, तो वह यह कहते हुए उसके पैरों पर गिर पड़ी, “प्रभु, अगर तू यहाँ होता तो मेरा भाई न मरता।” 33 जब यीशु ने उसे और उसके साथ आए यहूदियों को रोते देखा, तो उसने गहरी आह भरी और उसका दिल भर आया। 34 उसने कहा, “तुमने उसे कहाँ रखा है?” उन्होंने कहा, “प्रभु, आ और आकर देख ले।” 35 यीशु के आँसू बहने लगे।+ 36 यह देखकर यहूदियों ने कहा, “देखो, यह उससे कितना प्यार करता था!” 37 मगर कुछ ने कहा, “जब इस आदमी ने अंधे की आँखें खोल दीं,+ तो इसकी जान क्यों नहीं बचा सका?”
38 यीशु ने फिर से गहरी आह भरी और कब्र* के पास आया। यह असल में एक गुफा थी और इसके मुँह पर एक पत्थर रखा हुआ था। 39 यीशु ने कहा, “पत्थर को हटाओ।” तब मारथा ने जो मरे हुए आदमी की बहन थी, उससे कहा, “प्रभु अब तक तो उसमें से बदबू आती होगी, उसे मरे चार दिन हो चुके हैं।” 40 यीशु ने उससे कहा, “क्या मैंने तुझसे नहीं कहा था कि अगर तू विश्वास करेगी, तो परमेश्वर की महिमा देखेगी?”+ 41 तब उन्होंने पत्थर हटा दिया। फिर यीशु ने आँखें उठाकर स्वर्ग की तरफ देखा+ और कहा, “पिता, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ कि तूने मेरी सुनी है। 42 मैं जानता था कि तू हमेशा मेरी सुनता है। लेकिन यहाँ खड़ी भीड़ की वजह से मैंने ऐसा कहा ताकि ये यकीन कर सकें कि तूने ही मुझे भेजा है।”+ 43 जब वह ये बातें कह चुका, तो उसने ज़ोर से पुकारा, “लाज़र, बाहर आ जा!”+ 44 तब वह जो मर चुका था बाहर निकल आया। उसके हाथ-पैर कफन की पट्टियों में लिपटे हुए थे और उसका चेहरा कपड़े से लिपटा हुआ था। यीशु ने उनसे कहा, “इसे खोल दो और जाने दो।”
45 इसलिए बहुत-से यहूदियों ने जो मरियम के पास आए थे और जिन्होंने यीशु का यह काम देखा, उस पर विश्वास किया।+ 46 मगर कुछ लोगों ने जाकर फरीसियों को बता दिया कि यीशु ने क्या किया है। 47 तब प्रधान याजक और फरीसियों ने महासभा को इकट्ठा किया और कहा, “हम क्या करें, यह आदमी तो बहुत-से चमत्कार कर रहा है?+ 48 अगर हम इसे यूँ ही छोड़ दें, तो सब लोग इस पर विश्वास करने लगेंगे और रोमी आकर हमसे हमारी जगह* और राष्ट्र दोनों छीन लेंगे।” 49 मगर उनमें से कैफा+ नाम के आदमी ने, जो उस साल का महायाजक था, उनसे कहा, “तुम कुछ नहीं जानते 50 और यह नहीं सोचते कि यह तुम्हारे ही फायदे के लिए है कि एक आदमी सब लोगों की खातिर मरे, बजाय इसके कि सारा राष्ट्र नाश किया जाए।” 51 उसने यह बात अपनी तरफ से नहीं कही थी, बल्कि उस साल का महायाजक होने की वजह से उसने यह भविष्यवाणी की कि यीशु पूरे राष्ट्र के लिए अपनी जान देनेवाला है 52 और न सिर्फ उस राष्ट्र के लिए, बल्कि इसलिए भी कि परमेश्वर के उन सभी बच्चों को इकट्ठा करके एक करे, जो यहाँ-वहाँ तितर-बितर हैं। 53 इसलिए उस दिन से वे यीशु को मार डालने की साज़िश करने लगे।
54 इस वजह से यीशु इसके बाद खुल्लम-खुल्ला यहूदियों के बीच नहीं घूमा, बल्कि वह इलाका छोड़कर वीराने के पास एप्रैम+ नाम के शहर चला गया और वहीं अपने चेलों के साथ रहा। 55 यहूदियों का फसह का त्योहार+ पास था और बहुत-से लोग गाँव और देहातों से निकलकर यरूशलेम गए ताकि फसह से पहले खुद को कानून के मुताबिक शुद्ध कर सकें। 56 वहाँ वे यीशु को ढूँढ़ने लगे और मंदिर में खड़े होकर आपस में कहने लगे, “तुम्हें क्या लगता है, क्या वह त्योहार के लिए आएगा ही नहीं?” 57 प्रधान याजकों और फरीसियों ने हुक्म दिया हुआ था कि अगर किसी को पता चले कि वह कहाँ है, तो वह आकर उन्हें बताए ताकि वे उसे पकड़* सकें।
12 फसह के त्योहार से छ: दिन पहले यीशु बैतनियाह पहुँचा। लाज़र,+ जिसे यीशु ने मरे हुओं में से ज़िंदा किया था वहीं का रहनेवाला था। 2 यीशु के लिए वहाँ शाम की दावत रखी गयी और मारथा सेवा में लगी हुई थी।+ जो लोग यीशु के साथ खाने बैठे,* उनमें लाज़र भी एक था। 3 तब मरियम ने करीब 327 ग्राम* असली जटामाँसी का खुशबूदार तेल लिया जो बहुत कीमती था। उसने यीशु के पैरों पर यह तेल उँडेला और अपने बालों से उन्हें पोंछा। सारा घर इस तेल की खुशबू से महक उठा।+ 4 मगर यहूदा इस्करियोती+ ने, जो यीशु के चेलों में से एक था और उसे पकड़वानेवाला था कहा, 5 “इस खुशबूदार तेल को 300 दीनार* में बेचकर इसका पैसा गरीबों को क्यों नहीं दिया गया?” 6 मगर यह उसने इसलिए नहीं कहा कि उसे गरीबों की चिंता थी, बल्कि इसलिए कहा क्योंकि वह चोर था और उसके पास पैसों का बक्सा रहता था जिसमें से वह पैसे चुरा लेता था। 7 तब यीशु ने मरियम के लिए कहा, “इसे छोड़ दो ताकि यह मेरे दफनाए जाने की तैयारी के लिए यह दस्तूर पूरा करे।+ 8 क्योंकि गरीब तो हमेशा तुम्हारे साथ होंगे,+ मगर मैं हमेशा तुम्हारे साथ नहीं रहूँगा।”+
9 इस बीच यहूदियों की एक बड़ी भीड़ को पता चला कि यीशु वहाँ है। तब वे न सिर्फ यीशु को बल्कि लाज़र को भी देखने वहाँ आए, जिसे उसने मरे हुओं में से ज़िंदा किया था।+ 10 अब प्रधान याजकों ने लाज़र को भी मार डालने की साज़िश रची 11 क्योंकि उसी की वजह से बहुत-से यहूदी वहाँ जा रहे थे और यीशु पर विश्वास कर रहे थे।+
12 अगले दिन, त्योहार के लिए आए लोगों की बड़ी भीड़ ने सुना कि यीशु यरूशलेम आ रहा है। 13 तब वे खजूर की डालियाँ लिए उससे मिलने निकले। वे ज़ोर-ज़ोर से पुकारने लगे, “हम तुझसे बिनती करते हैं, इसे बचा ले! धन्य है वह जो यहोवा* के नाम से आता है,+ इसराएल का राजा धन्य है!”+ 14 जब यीशु को गधे का एक बच्चा मिला, तो वह उस पर बैठ गया,+ ठीक जैसा लिखा है, 15 “सिय्योन की बेटी, मत डर। देख! तेरा राजा गधे के बच्चे पर बैठकर आ रहा है।”+ 16 शुरू में उसके चेले इन बातों का मतलब नहीं समझ पाए। मगर जब यीशु ने महिमा पायी+ तब उन्हें याद आया कि उन्होंने उसके लिए ठीक वही किया, जो उसके बारे में लिखा था।+
17 जिन लोगों ने देखा था कि कैसे यीशु ने लाज़र को कब्र* से बाहर बुलाया+ और उसे मरे हुओं में से ज़िंदा किया, वे इस बारे में दूसरों को गवाही देते रहे।+ 18 उस भीड़ के लोग यीशु से मिलने इसलिए आए थे क्योंकि उन्होंने इस चमत्कार के बारे में सुना था। 19 तब फरीसी आपस में कहने लगे, “देखो, हम कुछ नहीं कर पा रहे। सारी दुनिया उसके पीछे जा रही है।”+
20 त्योहार के वक्त उपासना के लिए आनेवालों में कुछ यूनानी भी थे। 21 इसलिए वे फिलिप्पुस+ के पास आए जो गलील के बैतसैदा का रहनेवाला था और उससे गुज़ारिश करने लगे, “साहब, हम यीशु से मिलना चाहते हैं।” 22 फिलिप्पुस ने जाकर अन्द्रियास को बताया। अन्द्रियास और फिलिप्पुस ने जाकर यीशु को बताया।
23 मगर यीशु ने उन्हें जवाब दिया, “वह घड़ी आ चुकी है जब इंसान का बेटा महिमा पाए।+ 24 मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ, जब तक गेहूँ का एक दाना मिट्टी में गिरकर मर नहीं जाता, तब तक वह एक दाना ही रहता है। लेकिन जब वह मर जाता है+ तो बहुत फल पैदा करता है। 25 जो अपनी जान से लगाव रखता है, वह इसे नाश करता है। मगर जो इस दुनिया में अपनी जान से नफरत करता है+ वह इसे बचाएगा ताकि हमेशा की ज़िंदगी पाए।+ 26 जो मेरी सेवा करना चाहता है, वह मेरे पीछे हो ले और जहाँ मैं हूँ वहाँ मेरा सेवक भी होगा।+ जो मेरी सेवा करेगा, पिता उसका आदर करेगा। 27 अब मैं और क्या कहूँ? मेरा जी बेचैन है।+ हे पिता, मुझे इस घड़ी से बचा ले!+ मगर मैं इसीलिए तो इस घड़ी तक पहुँचा हूँ। 28 पिता अपने नाम की महिमा कर।” तब आकाश से आवाज़+ आयी: “मैंने इसकी महिमा की है और फिर से करूँगा।”+
29 जब आस-पास खड़ी भीड़ ने यह आवाज़ सुनी, तो लोग कहने लगे कि बादल गरजा है। दूसरों ने कहा, “किसी स्वर्गदूत ने उससे बात की है।” 30 यीशु ने कहा, “यह आवाज़ मेरी खातिर नहीं बल्कि तुम्हारी खातिर सुनायी दी है। 31 अब इस दुनिया का न्याय किया जा रहा है और इस दुनिया का राजा+ बाहर कर दिया जाएगा।+ 32 मगर जहाँ तक मेरी बात है, जब मुझे धरती से ऊपर उठाया जाएगा,+ तो मैं सब किस्म के लोगों को अपनी ओर खींचूँगा।” 33 यह बात उसने दरअसल यह दिखाने के लिए कही कि वह कैसी मौत मरनेवाला था।+ 34 तब भीड़ ने उससे कहा, “हमने तो कानून में सुना है कि मसीह हमेशा तक रहेगा,+ फिर तू कैसे कह सकता है कि इंसान के बेटे को ऊपर उठाया जाना है?+ यह इंसान का बेटा कौन है?” 35 तब यीशु ने उनसे कहा, “रौशनी बस थोड़ी देर और तुम्हारे बीच रहेगी। जब तक यह तुम्हारे साथ है, तब तक रौशनी में चलते रहो ताकि अँधेरा तुम पर हावी न हो। जो अँधेरे में चलता है वह नहीं जानता कि वह कहाँ जा रहा है।+ 36 जब तक रौशनी तुम्हारे साथ है, तब तक उस पर विश्वास करो और तुम रौशनी के बेटे+ कहलाओगे।”
यीशु ये बातें कहने के बाद चला गया और उनसे छिप गया। 37 उसने उनके सामने बहुत-से चमत्कार किए थे, फिर भी वे उस पर विश्वास नहीं कर रहे थे। 38 इस तरह भविष्यवक्ता यशायाह की कही यह बात पूरी हुई, “हे यहोवा,* किसने हमारे संदेश पर विश्वास किया है?+ यहोवा* ने अपनी ताकत* किस पर ज़ाहिर की है?”+ 39 उन्होंने क्यों यकीन नहीं किया, इसकी वजह बताते हुए यशायाह फिर कहता है, 40 “उसने उनकी आँखें अंधी कर दी हैं और उनके दिल कठोर कर दिए हैं ताकि न वे कभी अपनी आँखों से देखें और न ही अपने दिलों से समझें और न वे पलटकर लौट आएँ और मैं उन्हें चंगा करूँ।”+ 41 यशायाह ने मसीह के बारे में ये बातें इसलिए कहीं क्योंकि उसने मसीह की महिमा देखी थी।+ 42 हालाँकि बहुत-से धर्म-अधिकारियों ने भी यीशु पर विश्वास किया,+ मगर वे फरीसियों के डर से खुलकर उसे स्वीकार नहीं करते थे ताकि उन्हें सभा-घर से बेदखल न कर दिया जाए।+ 43 उन्हें परमेश्वर से मिलनेवाली महिमा से ज़्यादा इंसानों से मिलनेवाली महिमा प्यारी थी।+
44 मगर यीशु ने ज़ोर से कहा, “जो मुझ पर विश्वास करता है वह मुझ पर ही नहीं बल्कि उस पर भी विश्वास करता है जिसने मुझे भेजा है।+ 45 और जो मुझे देखता है वह उसे भी देखता है जिसने मुझे भेजा है।+ 46 मैं इस दुनिया में रौशनी बनकर आया हूँ+ ताकि हर कोई जो मुझ पर विश्वास करता है वह अँधेरे में न रहे।+ 47 लेकिन अगर कोई मेरी बातें सुनता है मगर उन्हें मानता नहीं, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराऊँगा क्योंकि मैं दुनिया को दोषी ठहराने नहीं बल्कि बचाने आया हूँ।+ 48 जो कोई मुझे ठुकरा देता है और मेरे वचन स्वीकार नहीं करता, उसे दोषी ठहरानेवाला कोई और है। जो वचन मैंने कहा है वही उसे आखिरी दिन में दोषी ठहराएगा। 49 क्योंकि मैंने अपनी तरफ से कुछ नहीं कहा। मगर खुद पिता ने, जिसने मुझे भेजा है, मुझे आज्ञा दी है कि मैं क्या-क्या बताऊँ और क्या-क्या बोलूँ।+ 50 और मैं जानता हूँ कि उसकी आज्ञा मानने का मतलब हमेशा की ज़िंदगी है।+ इसलिए मैं सिर्फ वही बातें बताता हूँ जो पिता ने मुझे बतायी हैं।”+
13 फसह के त्योहार से पहले यीशु जानता था कि वह घड़ी आ गयी है+ जब वह इस दुनिया को छोड़कर पिता के पास चला जाएगा।+ इसलिए दुनिया में जो उसके अपने थे और जिनसे वह प्यार करता था, उनसे आखिर तक प्यार करता रहा।+ 2 शाम का खाना चल रहा था और शैतान, शमौन के बेटे यहूदा इस्करियोती के दिल में यह बात डाल चुका था+ कि वह यीशु को पकड़वाए।+ 3 यीशु यह जानते हुए कि पिता ने सबकुछ उसके* हाथ में सौंप दिया है और वह परमेश्वर की तरफ से आया है और परमेश्वर के पास जा रहा है,+ 4 खाने की मेज़ से उठा। उसने अपना चोगा उतारकर अलग रख दिया और तौलिया लेकर कमर में बाँधा।*+ 5 इसके बाद उसने एक बरतन में पानी भरा और अपने चेलों के पैर धोने लगा और कमर पर बँधे* तौलिये से पोंछने लगा। 6 जब वह शमौन पतरस के पास आया, तो पतरस ने उससे कहा, “प्रभु, क्या तू मेरे पैर धोएगा?” 7 यीशु ने उससे कहा, “मैं जो कर रहा हूँ उसे तू अभी नहीं समझ रहा, मगर बाद में समझेगा।” 8 पतरस ने उससे कहा, “नहीं, तू मेरे पैर नहीं धोएगा।” यीशु ने उससे कहा, “अगर मैं तुझे न धोऊँ,+ तो मेरे साथ तेरी कोई साझेदारी नहीं।” 9 शमौन पतरस ने उससे कहा, “तो प्रभु, मेरे पैर ही नहीं, बल्कि मेरे हाथ और मेरा सिर भी धो दे।” 10 यीशु ने उससे कहा, “जो नहा चुका है उसे पैर के सिवा और कुछ धोने की ज़रूरत नहीं, वह पूरी तरह शुद्ध है। तुम लोग शुद्ध हो, पर तुममें से सब नहीं।” 11 वह जानता था कि वह कौन है जो उसके साथ विश्वासघात करनेवाला है।+ इसीलिए उसने कहा, “तुममें से सब शुद्ध नहीं हैं।”
12 जब वह उनके पैर धो चुका और अपना चोगा पहनकर एक बार फिर मेज़ से टेक लगाकर बैठ गया, तो उसने उनसे कहा, “क्या तुम समझे कि मैंने तुम्हारे साथ क्या किया है? 13 तुम मुझे ‘गुरु’ और ‘प्रभु’ बुलाते हो और तुम ठीक कहते हो क्योंकि मैं वही हूँ।+ 14 इसलिए जब मैंने प्रभु और गुरु होते हुए भी तुम्हारे पैर धोए,+ तो तुम्हें भी एक-दूसरे के पैर धोने चाहिए।*+ 15 इसलिए कि मैंने तुम्हारे लिए नमूना छोड़ा है कि जैसा मैंने तुम्हारे साथ किया, तुम्हें भी वैसा ही करना चाहिए।+ 16 मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ, दास अपने मालिक से बड़ा नहीं होता, न ही भेजा हुआ अपने भेजनेवाले से बड़ा होता है। 17 तुमने ये बातें जान ली हैं, लेकिन अगर तुम ऐसा करो तो सुखी होगे।+ 18 मैं तुम सबके बारे में बात नहीं कर रहा। जिन्हें मैंने चुना है उन्हें मैं जानता हूँ, मगर शास्त्र की इस बात का पूरा होना ज़रूरी है,+ ‘जो मेरी रोटी खाया करता था वही मेरे खिलाफ हो गया है।’*+ 19 जो होनेवाला है वह मैं तुम्हें अभी से बता रहा हूँ ताकि जब मेरे साथ वैसा हो, तो तुम यकीन करो कि शास्त्र में यह बात मेरे बारे में कही गयी थी।+ 20 मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ, जिसे मैं भेजता हूँ उसे अगर एक इंसान स्वीकार करता है तो वह मुझे भी स्वीकार करता है।+ और जो मुझे स्वीकार करता है, वह उसे भी स्वीकार करता है जिसने मुझे भेजा है।”+
21 ये बातें कहने के बाद यीशु मन-ही-मन परेशान हो उठा और उसने खुलकर कह दिया, “मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ, तुममें से एक मेरे साथ विश्वासघात करके मुझे पकड़वा देगा।”+ 22 यह सुनकर चेले एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे क्योंकि वे नहीं समझ पा रहे थे कि वह किसके बारे में बात कर रहा है।+ 23 यीशु का एक चेला, जिससे वह बहुत प्यार करता था,+ उसके सीने के पास टेक लगाए बैठा था। 24 इसलिए शमौन पतरस ने सिर हिलाते हुए उस चेले से कहा, “हमें बता, वह किसके बारे में कह रहा है?” 25 तब उस चेले ने पीछे की तरफ यीशु के सीने पर झुककर पूछा, “प्रभु, वह कौन है?”+ 26 यीशु ने जवाब दिया, “जिसे मैं रोटी का टुकड़ा डुबोकर दूँगा, वही है।”+ फिर उसने रोटी का टुकड़ा डुबोया और शमौन इस्करियोती के बेटे यहूदा को दिया। 27 यहूदा ने टुकड़ा लिया और इसके बाद शैतान उसमें समा गया।+ इसलिए यीशु ने उससे कहा, “जो तू कर रहा है, उसे फौरन कर।” 28 मगर जो खाने की मेज़ पर बैठे थे उनमें से कोई नहीं जानता था कि यीशु ने यहूदा से ऐसा क्यों कहा। 29 यहूदा के पास पैसों का बक्सा रहता था,+ इसलिए कुछ चेलों ने सोचा कि यीशु उससे कह रहा है, “त्योहार के लिए हमें जिन चीज़ों की ज़रूरत है वे खरीद ले,” या उसे गरीबों को कुछ देना चाहिए। 30 इसलिए रोटी का टुकड़ा लेने के बाद यहूदा फौरन वहाँ से चला गया। यह रात का वक्त था।+
31 उसके निकल जाने के बाद यीशु ने कहा, “अब इंसान के बेटे की महिमा हुई है+ और उसके ज़रिए परमेश्वर की महिमा हुई है। 32 परमेश्वर खुद उसकी महिमा करेगा+ और बहुत जल्द ऐसा करेगा। 33 प्यारे बच्चो, मैं बस थोड़ी देर और तुम्हारे साथ हूँ। तुम मुझे ढूँढ़ोगे। और जो बात मैंने यहूदियों से कही थी, वह अब तुमसे भी कह रहा हूँ, ‘जहाँ मैं जा रहा हूँ वहाँ तुम नहीं आ सकते।’+ 34 मैं तुम्हें एक नयी आज्ञा देता हूँ कि तुम एक-दूसरे से प्यार करो। ठीक जैसे मैंने तुमसे प्यार किया है,+ वैसे ही तुम भी एक-दूसरे से प्यार करो।+ 35 अगर तुम्हारे बीच प्यार होगा, तो इसी से सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो।”+
36 शमौन पतरस ने उससे कहा, “प्रभु, तू कहाँ जा रहा है?” यीशु ने जवाब दिया, “जहाँ मैं जा रहा हूँ वहाँ तू अभी मेरे पीछे नहीं आ सकता, मगर बाद में तू आएगा।” 37 पतरस ने उससे कहा, “प्रभु, मैं अभी तेरे पीछे क्यों नहीं आ सकता? मैं तेरी खातिर अपनी जान भी दे दूँगा।”+ 38 यीशु ने जवाब दिया, “क्या तू मेरी खातिर अपनी जान देगा? मैं तुझसे सच-सच कहता हूँ, जब तक तू मुझे जानने से तीन बार इनकार न करेगा, मुर्गा बाँग न देगा।”+
14 “तुम्हारे दिल दुख से बेहाल न हों।+ परमेश्वर पर विश्वास करो+ और मुझ पर भी विश्वास करो। 2 मेरे पिता के घर में रहने की बहुत-सी जगह हैं। अगर नहीं होतीं, तो मैं तुमसे यह बात नहीं कहता। मगर अब मैं तुम्हारे लिए जगह तैयार करने जा रहा हूँ।+ 3 और जब मैं जाकर तुम्हारे लिए जगह तैयार करूँगा, तो मैं दोबारा आऊँगा और तुम्हें अपने घर ले जाऊँगा ताकि जहाँ मैं हूँ वहाँ तुम भी रहो।+ 4 जहाँ मैं जा रहा हूँ, तुम वहाँ की राह जानते हो।”
5 थोमा+ ने उससे कहा, “प्रभु, हम नहीं जानते कि तू कहाँ जा रहा है। तो फिर हम वहाँ की राह कैसे जानें?”
6 यीशु ने उससे कहा, “मैं ही वह राह,+ सच्चाई+ और जीवन हूँ।+ कोई भी पिता के पास नहीं आ सकता, सिवा उसके जो मेरे ज़रिए आता है।+ 7 अगर तुमने मुझे सचमुच जाना होता, तो तुम मेरे पिता को भी जानते। इस घड़ी से तुम उसे जानोगे, सच तो यह है कि तुमने उसे देखा है।”+
8 फिलिप्पुस ने उससे कहा, “प्रभु, हमें पिता दिखा दे, यही हमारे लिए काफी है।”
9 यीशु ने उससे कहा, “फिलिप्पुस, मैं इतने समय से तुम लोगों के साथ हूँ और फिर भी तू मुझे नहीं जान पाया? जिसने मुझे देखा है उसने पिता को भी देखा है।+ तो फिर तू क्यों कहता है, ‘हमें पिता दिखा दे’? 10 क्या तू यकीन नहीं करता कि मैं पिता के साथ एकता में हूँ और पिता मेरे साथ एकता में है?+ मैं जो बातें तुमसे कहता हूँ वे अपनी तरफ से नहीं कहता,+ बल्कि पिता जो मेरे साथ एकता में है, वही मेरे ज़रिए अपने काम कर रहा है। 11 मेरा यकीन करो कि मैं पिता के साथ एकता में हूँ और पिता मेरे साथ एकता में है। नहीं तो, जो काम मैंने किए हैं उन्हीं की वजह से मेरा यकीन करो।+ 12 मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ, जो मुझ पर विश्वास करता है, वह भी वे काम करेगा जो मैं करता हूँ बल्कि इनसे भी बड़े-बड़े काम करेगा+ क्योंकि मैं पिता के पास जा रहा हूँ।+ 13 साथ ही, जो कुछ तुम मेरे नाम से माँगोगे, वह मैं करूँगा ताकि बेटे के ज़रिए पिता महिमा पाए।+ 14 अगर तुम मेरे नाम से कुछ माँगोगे, तो मैं वह करूँगा।
15 अगर तुम मुझसे प्यार करते हो, तो मेरी आज्ञाओं को मानोगे।+ 16 मैं पिता से बिनती करूँगा और वह तुम्हें एक और मददगार* देगा जो हमेशा तुम्हारे साथ रहेगा+ 17 यानी सच्चाई की पवित्र शक्ति,+ जो दुनिया को नहीं मिल सकती क्योंकि दुनिया न तो इसे देखती है न ही इसे जानती है।+ तुम इसे जानते हो क्योंकि यह तुम्हारे साथ रहती है और तुममें है। 18 मैं तुम्हें मातम की हालत में* नहीं छोड़ूँगा। मैं तुम्हारे पास फिर आ रहा हूँ।+ 19 थोड़ी देर और है, फिर दुनिया मुझे कभी नहीं देखेगी मगर तुम मुझे देखोगे+ क्योंकि मैं जीवित हूँ और तुम भी जीओगे। 20 उस दिन तुम जानोगे कि मैं अपने पिता के साथ एकता में हूँ और तुम मेरे साथ एकता में हो और मैं तुम्हारे साथ एकता में हूँ।+ 21 जिसके पास मेरी आज्ञाएँ हैं और जो उन्हें मानता है, वही मुझसे प्यार करता है। जो मुझसे प्यार करता है उससे मेरा पिता प्यार करेगा और मैं भी उससे प्यार करूँगा और अपने आपको उस पर खुलकर ज़ाहिर करूँगा।”
22 यहूदा+ (इस्करियोती नहीं) ने उससे कहा, “प्रभु, क्या वजह है कि तू अपने आपको हम पर तो खुलकर ज़ाहिर करना चाहता है मगर दुनिया पर नहीं?”
23 यीशु ने जवाब दिया, “अगर कोई मुझसे प्यार करता है, तो वह मेरे वचन पर चलेगा+ और मेरा पिता उससे प्यार करेगा। हम उसके पास आएँगे और उसके साथ निवास करेंगे।+ 24 जो मुझसे प्यार नहीं करता वह मेरे वचनों पर नहीं चलता। जो वचन तुम सुन रहे हो वह मेरा नहीं, बल्कि पिता का है जिसने मुझे भेजा है।+
25 तुम्हारे साथ रहते हुए मैंने ये बातें तुम्हें बतायी हैं। 26 मगर वह मददगार यानी पवित्र शक्ति जिसे पिता मेरे नाम से भेजेगा, तुम्हें सारी बातें सिखाएगा और जितनी बातें मैंने तुम्हें बतायी हैं वे सब तुम्हें याद दिलाएगा।+ 27 जो शांति मैं देता हूँ+ वह मैं तुम्हारे पास छोड़कर जा रहा हूँ। मैं तुम्हें यह शांति इस तरीके से नहीं देता जैसे दुनिया देती है। तुम्हारे दिल दुख से बेहाल न हों, न ही वे डर के मारे कमज़ोर पड़ें। 28 तुमने मुझे यह कहते सुना है कि मैं जा रहा हूँ और मैं तुम्हारे पास वापस आऊँगा। अगर तुम मुझसे प्यार करते, तो इस बात पर खुशी मनाते कि मैं पिता के पास जा रहा हूँ क्योंकि पिता मुझसे बड़ा है।+ 29 और ऐसा होने से पहले मैं अभी से तुम्हें बता रहा हूँ ताकि जब ऐसा हो तो तुम यकीन कर सको।+ 30 मैं अब तुमसे और ज़्यादा बात नहीं करूँगा क्योंकि इस दुनिया का राजा+ आ रहा है और मुझ पर उसका कोई ज़ोर नहीं चलता।*+ 31 मगर दुनिया जान सके कि मैं पिता से प्यार करता हूँ इसलिए मैं ठीक वैसा ही करता हूँ जैसा पिता ने मुझे आज्ञा दी है।+ अब उठो, हम यहाँ से चलें।
15 मैं अंगूर की सच्ची बेल हूँ और मेरा पिता बागबान है। 2 मेरी हर वह डाली जो फल नहीं देती, उसे वह काट देता है और ऐसी हर डाली जो फल देती है, उसकी वह छँटाई करता है ताकि उसमें और ज़्यादा फल लगें।+ 3 मैंने तुमसे जो वचन कहा है उसकी वजह से तुम पहले ही शुद्ध हो। + 4 मेरे साथ एकता में बने रहो और मैं तुम्हारे साथ एकता में रहूँगा। एक डाली तब तक फल देती है जब तक वह बेल से जुड़ी रहती है। बेल से अलग होकर डाली अपने आप फल नहीं दे सकती। तुम भी अगर मेरे साथ एकता में न रहो, तो फल नहीं पैदा कर सकते।+ 5 मैं अंगूर की बेल हूँ और तुम डालियाँ हो। जो मेरे साथ एकता में रहता है और जिसके साथ मैं एकता में रहता हूँ, वह बहुत फल पैदा करता है।+ मुझसे अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते। 6 अगर कोई मेरे साथ एकता में नहीं रहता, तो उसे फेंक दिया जाता है जैसे एक डाली को फेंक दिया जाता है और वह सूख जाती है। लोग ऐसी डालियाँ बटोरकर आग में झोंक देते हैं और जला देते हैं। 7 अगर तुम मेरे साथ एकता में रहो और मेरी बातें तुम्हारे दिल में रहें, तो तुम जो चाहो और माँगो, वह तुम्हें दे दिया जाएगा।+ 8 मेरे पिता की महिमा इस बात से होती है कि तुम बहुत फल पैदा करते रहो और यह साबित करो कि तुम मेरे चेले हो।+ 9 ठीक जैसे पिता ने मुझसे प्यार किया,+ मैंने भी तुमसे प्यार किया है। तुम मेरे प्यार के लायक बने रहो। 10 अगर तुम मेरी आज्ञाओं को मानोगे, तो मेरे प्यार के लायक बने रहोगे, ठीक जैसे मैं पिता की आज्ञाएँ मानता हूँ और उसके प्यार के लायक बना रहता हूँ।
11 ये बातें मैंने तुमसे इसलिए कही हैं कि तुम्हें वह खुशी मिले जो मुझे मिली है और वह खुशी तुम्हें पूरी तरह मिले।+ 12 मेरी यह आज्ञा है कि तुम एक-दूसरे से प्यार करो जैसे मैंने तुमसे प्यार किया है।+ 13 क्या कोई इससे बढ़कर प्यार कर सकता है कि वह अपने दोस्तों की खातिर जान दे दे?+ 14 जो आज्ञा मैं देता हूँ अगर तुम उसे मानो तो तुम मेरे दोस्त हो।+ 15 अब मैं तुम्हें दास नहीं कहता क्योंकि दास नहीं जानता कि उसका मालिक क्या करता है। लेकिन मैंने तुम्हें अपना दोस्त कहा है क्योंकि मैंने अपने पिता से जो कुछ सुना है वह सब तुम्हें बता दिया है। 16 तुमने मुझे नहीं चुना मगर मैंने तुम्हें चुना है। मैंने तुम्हें इसलिए ठहराया है कि तुम जाओ और फल पैदा करते रहो। और तुम्हारे फल हमेशा बने रहें ताकि तुम मेरे नाम से पिता से जो कुछ माँगो वह तुम्हें दे दे।+
17 मैंने तुम्हें इन बातों की आज्ञा इसलिए दी है ताकि तुम एक-दूसरे से प्यार करो।+ 18 अगर दुनिया तुमसे नफरत करती है, तो याद रखो कि इसने तुमसे पहले मुझसे नफरत की है।+ 19 अगर तुम दुनिया के होते तो दुनिया तुम्हें पसंद करती क्योंकि तुम उसके अपने होते। मगर तुम दुनिया के नहीं हो+ बल्कि मैंने तुम्हें दुनिया से चुन लिया है, इसलिए दुनिया तुमसे नफरत करती है।+ 20 मैंने जो बात तुमसे कही थी, उसे याद रखो। एक दास अपने मालिक से बड़ा नहीं होता। अगर उन्होंने मुझे सताया है तो तुम्हें भी सताएँगे।+ अगर उन्होंने मेरी बात मानी है तो तुम्हारी भी मानेंगे। 21 मगर वे मेरे नाम की वजह से तुम्हारे खिलाफ यह सब करेंगे क्योंकि वे मेरे भेजनेवाले को नहीं जानते।+ 22 अगर मैं नहीं आता और उनसे बात नहीं करता तो उनमें पाप नहीं होता।+ मगर अब अपने पाप से इनकार करने के लिए उनके पास कोई बहाना नहीं।+ 23 जो मुझसे नफरत करता है वह मेरे पिता से भी नफरत करता है।+ 24 मैंने उनके बीच वे काम किए जो किसी और ने नहीं किए थे। अगर मैंने उनके बीच ये काम न किए होते, तो उनमें कोई पाप नहीं होता।+ लेकिन अब उन्होंने मुझे देखा है और मुझसे और मेरे पिता, दोनों से नफरत की है। 25 मगर यह इसलिए हुआ कि उनके कानून में लिखी यह बात पूरी हो, ‘उन्होंने मुझसे बेवजह नफरत की।’+ 26 मैं अपने पिता के यहाँ से तुम्हारे पास एक मददगार भेजूँगा यानी सच्चाई की पवित्र शक्ति, जो पिता से आती है।+ वह मददगार मेरे बारे में गवाही देगा।+ 27 फिर तुम्हें भी मेरे बारे में गवाही देनी है+ क्योंकि तुम शुरू से मेरे साथ रहे हो।
16 मैंने तुमसे ये बातें इसलिए कही हैं कि तुम डगमगा न जाओ। 2 लोग तुम्हें सभा-घर से बेदखल कर देंगे।+ यही नहीं, ऐसा समय आ रहा है जब हर कोई जो तुम्हें मार डालेगा,+ यह सोचेगा कि उसने परमेश्वर की पवित्र सेवा की है। 3 मगर ये काम वे इसलिए करेंगे क्योंकि उन्होंने न तो पिता को जाना है, न ही मुझे।+ 4 फिर भी मैंने तुमसे ये बातें इसलिए कहीं ताकि जब इनके होने का समय आए, तब तुम्हें याद आए कि मैंने ये बातें तुमसे कही थीं।+
मैंने ये बातें तुम्हें पहले नहीं बतायी थीं क्योंकि मैं तुम्हारे साथ था। 5 मगर अब मैं अपने भेजनेवाले के पास जा रहा हूँ,+ फिर भी तुममें से कोई मुझसे नहीं पूछ रहा कि तू कहाँ जा रहा है? 6 मैंने जो ये बातें तुमसे कही हैं इसलिए तुम्हारा दिल बहुत दुखी है।+ 7 फिर भी मैं तुमसे सच कह रहा हूँ, मैं तुम्हारे ही भले के लिए जा रहा हूँ। इसलिए कि अगर मैं नहीं जाऊँगा, तो वह मददगार+ हरगिज़ तुम्हारे पास नहीं आएगा। लेकिन अगर मैं जाऊँगा, तो मैं उसे तुम्हारे पास भेजूँगा। 8 जब वह आएगा तो दुनिया के सामने पाप, नेकी और न्याय के ठोस सबूत पेश करेगा: 9 सबसे पहले वह पाप+ के सबूत पेश करेगा क्योंकि वे मुझ पर विश्वास नहीं कर रहे।+ 10 फिर वह नेकी के सबूत पेश करेगा क्योंकि मैं पिता के पास जा रहा हूँ और तुम मुझे फिर नहीं देखोगे। 11 इसके बाद, न्याय के सबूत पेश करेगा क्योंकि इस दुनिया के राजा का न्याय किया गया है।+
12 मुझे तुमसे और भी बहुत-सी बातें कहनी हैं, मगर इस वक्त तुम इन्हें नहीं समझ सकते। 13 लेकिन जब वह* आएगा यानी सच्चाई की पवित्र शक्ति,+ तो वह सच्चाई की पूरी समझ पाने में तुम्हारी मदद करेगा। इसलिए कि वह अपनी तरफ से नहीं बोलेगा बल्कि जो बातें वह सुनता है वही बोलेगा और आनेवाली बातों के बारे में तुम्हें बताएगा।+ 14 वह मेरी महिमा करेगा+ क्योंकि उसने मुझसे जो सुना है वही तुम्हें बताएगा।+ 15 जो कुछ पिता का है वह सब मेरा है।+ इसीलिए मैंने कहा कि वह मददगार मुझसे जो सुनता है वही तुम्हें बताएगा। 16 अब से थोड़ी देर बाद तुम मुझे नहीं देखोगे+ और फिर थोड़ी देर बाद तुम मुझे देखोगे।”
17 तब उसके कुछ चेले एक-दूसरे से कहने लगे, “यह जो हमसे कह रहा है इसका क्या मतलब है: ‘अब से थोड़ी देर बाद तुम मुझे नहीं देखोगे और फिर थोड़ी देर बाद तुम मुझे देखोगे’ और इसका भी, ‘क्योंकि मैं अपने पिता के पास जा रहा हूँ’?” 18 इसलिए वे कहने लगे, “यह जो कह रहा है ‘थोड़ी देर बाद,’ इसका क्या मतलब है? हम नहीं जानते कि यह किस बारे में बात कर रहा है।” 19 यीशु जानता था कि वे उससे सवाल पूछना चाहते हैं, इसलिए उसने चेलों से कहा, “क्या तुम एक-दूसरे से यह पूछ रहे हो कि मैंने ऐसा क्यों कहा: ‘थोड़ी देर बाद तुम मुझे नहीं देखोगे और फिर थोड़ी देर बाद तुम मुझे देखोगे’? 20 मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ, तुम रोओगे और मातम मनाओगे मगर दुनिया खुशियाँ मनाएगी। तुम्हें दुख होगा मगर तुम्हारा दुख खुशी में बदल जाएगा।+ 21 एक औरत जब बच्चे को जन्म देनेवाली होती है, तो उसे दर्द होता है क्योंकि उसकी घड़ी आ गयी है। मगर जब वह बच्चे को जन्म दे देती है, तो वह अपना दर्द भूल जाती है और अपने बच्चे को देखकर खुश हो जाती है। 22 उसी तरह, तुम भी अभी दुख मना रहे हो। मगर जब मैं तुमसे दोबारा मिलूँगा, तब तुम्हारा दिल खुशी से भर जाएगा+ और कोई भी तुम्हारी खुशी नहीं छीन सकेगा। 23 उस दिन तुम मुझसे कोई सवाल नहीं करोगे। मैं तुमसे सच-सच कहता हूँ, अगर तुम पिता से कुछ भी माँगोगे+ तो वह मेरे नाम से तुम्हें दे देगा।+ 24 अब तक तुमने मेरे नाम से एक भी चीज़ नहीं माँगी है। माँगो और तुम पाओगे ताकि तुम्हें बहुत खुशी मिले।
25 मैंने ये बातें तुमसे मिसालों में कही हैं। वह वक्त आ रहा है जब मैं तुमसे मिसालों में बात नहीं करूँगा, मगर पिता के बारे में तुम्हें साफ-साफ बताऊँगा। 26 उस दिन तुम मेरे नाम से पिता से प्रार्थना करोगे। मेरे कहने का मतलब यह नहीं कि मैं तुम्हारे लिए पिता से बिनती करूँगा। 27 पिता खुद तुमसे लगाव रखता है क्योंकि तुम मुझसे लगाव रखते हो+ और तुमने यकीन किया है कि मैं परमेश्वर की तरफ से आया हूँ।+ 28 मैं पिता की तरफ से इस दुनिया में आया हूँ। अब मैं यह दुनिया छोड़कर पिता के पास जा रहा हूँ।”+
29 उसके चेलों ने कहा, “अब तू हमें साफ-साफ बता रहा है और मिसालें नहीं दे रहा। 30 अब हम जानते हैं कि तुझे सब बातें पता हैं और किसी को तुझसे सवाल करने की ज़रूरत नहीं। इसलिए हमें यकीन है कि तू परमेश्वर की तरफ से आया है।” 31 यीशु ने कहा, “अब क्या तुम यकीन करते हो? 32 देखो! वह घड़ी आ रही है, दरअसल आ चुकी है, जब तुम सब तितर-बितर हो जाओगे और अपने-अपने घर चले जाओगे और मुझे अकेला छोड़ दोगे।+ फिर भी मैं अकेला नहीं हूँ क्योंकि पिता मेरे साथ है।+ 33 मैंने तुमसे ये बातें इसलिए कही हैं ताकि मेरे ज़रिए तुम शांति पा सको।+ दुनिया में तुम्हें तकलीफें झेलनी पड़ेंगी, मगर हिम्मत रखो! मैंने इस दुनिया पर जीत हासिल कर ली है।”+
17 यीशु ने ये बातें कहने के बाद स्वर्ग की तरफ नज़रें उठायीं और कहा, “पिता, वह घड़ी आ गयी है। अपने बेटे की महिमा कर ताकि तेरा बेटा तेरी महिमा करे।+ 2 तूने उसे सब इंसानों पर अधिकार दिया है+ ताकि तूने उसे जितने लोग दिए हैं,+ उन सबको वह हमेशा की ज़िंदगी दे सके।+ 3 हमेशा की ज़िंदगी+ पाने के लिए ज़रूरी है कि वे तुझ एकमात्र सच्चे परमेश्वर को और यीशु मसीह को जिसे तूने भेजा है, जानें।*+ 4 जो काम तूने मुझे दिया है उसे पूरा करके+ मैंने धरती पर तेरी महिमा की है।+ 5 इसलिए अब हे पिता, मुझे अपने पास वह महिमा दे जो दुनिया की शुरूआत से पहले तेरे पास रहते हुए मुझे मिली थी।+
6 मैंने तेरा नाम उन लोगों पर ज़ाहिर किया* है जिन्हें तूने दुनिया में से मुझे दिया है।+ वे तेरे थे और तूने उन्हें मुझे दिया है और उन्होंने तेरा वचन माना है। 7 अब वे जान गए हैं कि जो कुछ तूने मुझे दिया है, वह सब तेरी तरफ से है। 8 क्योंकि जो बातें तूने मुझे बतायी हैं वे मैंने उन तक पहुँचायी हैं।+ उन्होंने ये बातें स्वीकार की हैं और वे पक्के तौर पर जान गए हैं कि मैं तेरी तरफ से आया हूँ+ और उन्होंने यकीन किया है कि तूने मुझे भेजा है।+ 9 मैं उनके लिए बिनती करता हूँ। मैं दुनिया के लिए बिनती नहीं करता, मगर उनके लिए करता हूँ जिन्हें तूने मुझे दिया है क्योंकि वे तेरे हैं। 10 और मेरा सबकुछ तेरा है और जो तेरा है वह मेरा है+ और उनके बीच मेरी महिमा हुई है।
11 यही नहीं, अब से मैं इस दुनिया में नहीं रहूँगा, मगर वे इसी दुनिया में रहेंगे+ और मैं तेरे पास आ रहा हूँ। हे पवित्र पिता, अपने नाम की खातिर जो तूने मुझे दिया है, उनकी देखभाल कर+ ताकि वे भी एक* हों जैसे हम एक* हैं।+ 12 जब मैं उनके साथ था, तो मैं तेरे नाम की खातिर जो तूने मुझे दिया है, उनकी देखभाल करता था।+ मैंने उनकी हिफाज़त की और उनमें से एक भी नाश नहीं हुआ,+ सिर्फ विनाश का बेटा नाश हुआ+ ताकि शास्त्र में लिखी बात पूरी हो।+ 13 मगर अब मैं तेरे पास आ रहा हूँ और ये बातें मैं दुनिया में रहते हुए इसलिए कह रहा हूँ ताकि जो खुशी मुझे मिली है वह उन्हें भी पूरी तरह मिले।+ 14 मैंने तेरा वचन उनके पास पहुँचा दिया है मगर दुनिया ने उनसे नफरत की है क्योंकि वे दुनिया के नहीं,+ ठीक जैसे मैं भी दुनिया का नहीं।
15 मैं तुझसे यह बिनती नहीं करता कि तू उन्हें दुनिया से निकाल ले मगर यह कि शैतान* की वजह से उनकी देखभाल कर।+ 16 वे दुनिया के नहीं हैं,+ ठीक जैसे मैं दुनिया का नहीं हूँ।+ 17 सच्चाई से उन्हें पवित्र कर।+ तेरा वचन सच्चा है।+ 18 ठीक जैसे तूने मुझे दुनिया में भेजा है, वैसे ही मैंने भी उन्हें दुनिया में भेजा है।+ 19 और मैं उनकी खातिर खुद को पवित्र करता हूँ ताकि वे भी सच्चाई से पवित्र किए जाएँ।
20 मैं सिर्फ इन्हीं के लिए बिनती नहीं करता, मगर उनके लिए भी करता हूँ जो इनकी बातें मानकर मुझ पर विश्वास करते हैं 21 ताकि वे सभी एक हो सकें।+ ठीक जैसे हे पिता, तू मेरे साथ एकता में है और मैं तेरे साथ एकता में हूँ,+ उसी तरह वे भी हमारे साथ एकता में हों ताकि दुनिया यकीन करे कि तूने मुझे भेजा है। 22 मैंने उन्हें वह महिमा दी है जो तूने मुझे दी थी ताकि वे भी एक हों ठीक जैसे हम एक हैं।+ 23 मैं उनके साथ एकता में हूँ और तू मेरे साथ एकता में है ताकि वे पूरी तरह से एक हों, जिससे दुनिया जाने कि तूने मुझे भेजा है और तूने उनसे भी प्यार किया है जैसे मुझसे किया है। 24 हे पिता, मैं चाहता हूँ कि जिन्हें तूने मुझे दिया है वे भी मेरे साथ वहाँ रहें जहाँ मैं रहूँगा+ ताकि वे मेरी महिमा देखें जो तूने मुझे दी है, क्योंकि तूने दुनिया की शुरूआत से भी पहले मुझसे प्यार किया।+ 25 हे सच्चे पिता, दुनिया वाकई तुझे नहीं जान पायी है+ मगर मैंने तुझे जाना है+ और ये भी जान गए हैं कि तूने मुझे भेजा है। 26 मैंने तेरा नाम उन्हें बताया है और आगे भी बताऊँगा+ ताकि जो प्यार तूने मुझसे किया, वह उनमें भी हो और मैं उनके साथ एकता में रहूँ।”+
18 ये बातें कहने के बाद, यीशु अपने चेलों के साथ किदरोन घाटी*+ पार करके उस जगह गया जहाँ एक बाग था। वह और उसके चेले बाग के अंदर गए।+ 2 उसके साथ गद्दारी करनेवाले यहूदा को भी इस जगह का पता था, क्योंकि यीशु अकसर अपने चेलों के साथ वहाँ जाया करता था। 3 इसलिए यहूदा अपने साथ सैनिकों के दल को और प्रधान याजकों और फरीसियों के पहरेदारों को लेकर वहाँ आया। वे अपने हाथ में मशालें, दीपक और हथियार लिए हुए थे।+ 4 यीशु जानता था कि उसके साथ क्या-क्या होनेवाला है, इसलिए उसने आगे आकर उनसे कहा, “तुम किसे ढूँढ़ रहे हो?” 5 उन्होंने कहा, “यीशु नासरी को।”+ यीशु ने उनसे कहा, “मैं वही हूँ।” उसके साथ गद्दारी करनेवाला यहूदा भी उनके साथ खड़ा था।+
6 मगर जब यीशु ने कहा, “मैं वही हूँ,” तो वे पीछे हट गए और ज़मीन पर गिर पड़े।+ 7 इसलिए यीशु ने उनसे दोबारा पूछा, “तुम किसे ढूँढ़ रहे हो?” उन्होंने कहा, “यीशु नासरी को।” 8 यीशु ने कहा, “मैं तुमसे कह चुका हूँ कि मैं वही हूँ। अगर तुम मुझे ढूँढ़ रहे हो, तो इन्हें जाने दो।” 9 यह इसलिए हुआ ताकि उसकी यह बात पूरी हो, “जिन्हें तूने मुझे दिया है, उनमें से मैंने एक को भी नहीं खोया।”+
10 शमौन पतरस के पास तलवार थी। उसने तलवार खींचकर महायाजक के दास पर वार किया जिससे उसका दायाँ कान कट गया।+ उस दास का नाम मलखुस था। 11 मगर यीशु ने पतरस से कहा, “तलवार म्यान में रख ले।+ पिता ने जो प्याला मुझे दिया है, क्या वह मुझे नहीं पीना चाहिए?”+
12 तब सैनिकों और सेनापति ने और यहूदियों के भेजे हुए पहरेदारों ने यीशु को पकड़* लिया और उसे बाँध दिया। 13 वे उसे पहले हन्ना के पास ले गए क्योंकि वह उस साल के महायाजक कैफा का ससुर था।+ 14 दरअसल कैफा ने ही यहूदियों को सलाह दी थी कि यह उनके फायदे में है कि एक आदमी सब लोगों की खातिर मरे।+
15 शमौन पतरस और एक और चेला यीशु का पीछा करते हुए गए।+ यह चेला महायाजक की जान-पहचान का था और वह यीशु के साथ महायाजक के घर के आँगन में गया। 16 मगर पतरस बाहर दरवाज़े* पर खड़ा था। इसलिए वह दूसरा चेला, जो महायाजक की जान-पहचान का था, बाहर गया और उसने दरबान से बात की, फिर वह पतरस को अंदर ले आया। 17 तब उस नौकरानी ने जो दरबान थी, पतरस से कहा, “तू भी इस आदमी का चेला है न?” उसने कहा, “नहीं, मैं नहीं हूँ।”+ 18 वहाँ दास और पहरेदार खड़े थे, जो ठंड की वजह से लकड़ी जलाकर आग ताप रहे थे। पतरस भी उनके साथ खड़ा आग ताप रहा था।
19 तब प्रधान याजक ने यीशु से उसके चेलों और उसकी शिक्षाओं के बारे में कुछ सवाल किए। 20 यीशु ने जवाब दिया, “मैंने पूरी दुनिया के सामने बात की है। मैं हमेशा सभा-घर और मंदिर में सिखाया करता था,+ जहाँ सभी यहूदी इकट्ठा होते हैं और मैंने कुछ भी छिपकर नहीं कहा। 21 तो फिर तू मुझसे क्यों पूछता है? जिन्होंने मेरी बातें सुनी हैं उनसे पूछ कि मैंने उनसे क्या-क्या कहा था। देख! ये जानते हैं कि मैंने क्या बताया था।” 22 जब उसने यह कहा, तो वहाँ खड़े पहरेदारों में से एक ने यीशु के मुँह पर थप्पड़ मारा+ और कहा, “क्या प्रधान याजक को जवाब देने का यह तरीका है?” 23 यीशु ने उसे जवाब दिया, “अगर मैंने कुछ गलत कहा, तो मुझे बता। लेकिन अगर मैंने सही कहा, तो तूने मुझे क्यों मारा?” 24 तब हन्ना ने उसे बँधा हुआ, महायाजक कैफा के पास भेज दिया।+
25 शमौन पतरस वहाँ खड़ा आग ताप रहा था। तब लोगों ने उससे कहा, “क्या तू भी उसका चेला नहीं?” उसने इनकार किया और कहा, “नहीं, मैं नहीं हूँ।”+ 26 वहाँ महायाजक का एक दास भी खड़ा था, जो उस आदमी का रिश्तेदार था जिसका कान पतरस ने काट दिया था।+ उस दास ने कहा, “क्या मैंने तुझे उसके साथ बाग में नहीं देखा था?” 27 मगर पतरस ने फिर इनकार किया और फौरन एक मुर्गे ने बाँग दी।+
28 तब वे यीशु को कैफा के यहाँ से राज्यपाल के घर ले गए।+ यह सुबह का वक्त था। मगर वे खुद राज्यपाल के घर के अंदर नहीं गए ताकि वे दूषित न हो जाएँ+ और फसह का खाना खा सकें। 29 इसलिए पीलातुस बाहर उनके पास आया और उसने कहा, “तुम इस आदमी को किस इलज़ाम में मेरे पास लाए हो?” 30 उन्होंने कहा, “अगर यह अपराधी* न होता, तो हम इसे तेरे हवाले नहीं करते।” 31 तब पीलातुस ने उनसे कहा, “तुम्हीं इसे ले जाओ और अपने कानून के मुताबिक इसका न्याय करो।”+ यहूदियों ने उससे कहा, “कानून के हिसाब से हमें किसी को जान से मारने का अधिकार नहीं है।”+ 32 यह इसलिए हुआ ताकि यीशु ने जो कहा था वह पूरा हो, उसने पहले ही बता दिया था कि वह कैसी मौत मरनेवाला है।+
33 तब पीलातुस फिर से अपने घर में गया और यीशु को बुलाकर उसने पूछा, “क्या तू यहूदियों का राजा है?”+ 34 यीशु ने जवाब दिया, “क्या तू यह अपनी तरफ से कह रहा है या दूसरों ने तुझे मेरे बारे में बताया है?” 35 पीलातुस ने जवाब दिया, “क्या मैं यहूदी हूँ? तेरे अपने लोगों ने और प्रधान याजकों ने तुझे मेरे हवाले किया है। बता तूने क्या किया है?” 36 यीशु ने जवाब दिया,+ “मेरा राज इस दुनिया का नहीं है।+ अगर मेरा राज इस दुनिया का होता तो मेरे सेवक लड़ते कि मुझे यहूदियों के हवाले न किया जाए।+ मगर सच तो यह है कि मेरा राज इस दुनिया का नहीं।” 37 पीलातुस ने उससे कहा, “तो क्या तू एक राजा है?” यीशु ने जवाब दिया, “तू खुद कह रहा है कि मैं एक राजा हूँ।+ मैं इसीलिए पैदा हुआ हूँ और इस दुनिया में आया हूँ कि सच्चाई की गवाही दूँ।+ हर कोई जो सच्चाई के पक्ष में है वह मेरी आवाज़ सुनता है।” 38 पीलातुस ने उससे कहा, “सच्चाई क्या है?”
यह कहने के बाद पीलातुस फिर से बाहर यहूदियों के पास गया और उनसे कहा, “मुझे उसमें कोई दोष नज़र नहीं आता।+ 39 तुम्हारे दस्तूर के मुताबिक मुझे फसह के त्योहार पर एक आदमी को कैद से रिहा करना चाहिए।+ क्या तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिए यहूदियों के इस राजा को रिहा करूँ?” 40 तब वे फिर से चिल्लाए, “नहीं, इस आदमी को नहीं, बल्कि बरअब्बा को रिहा कर!” दरअसल बरअब्बा एक डाकू था।+
19 तब पीलातुस यीशु को ले गया और उसे कोड़े लगवाए।+ 2 सैनिकों ने काँटों का एक ताज बनाकर उसके सिर पर रखा और उसे एक बैंजनी कपड़ा पहनाया।+ 3 वे उसके पास आकर कहने लगे, “हे यहूदियों के राजा, सलाम!”* और उसके मुँह पर थप्पड़ मारने लगे।+ 4 पीलातुस एक बार फिर बाहर आया और उसने लोगों से कहा, “देखो! मैं उसे बाहर लाता हूँ ताकि तुम जानो कि मैंने उसमें कोई दोष नहीं पाया।”+ 5 तब यीशु काँटों का ताज पहने और बैंजनी ओढ़ना ओढ़े बाहर आया। और पीलातुस ने लोगों से कहा, “देखो इस आदमी को!” 6 लेकिन जब प्रधान याजकों और पहरेदारों ने उसे देखा, तो वे चिल्लाने लगे, “इसे काठ पर लटका दे! इसे काठ पर लटका दे!”+ पीलातुस ने उनसे कहा, “तुम खुद ही इसे ले जाकर काठ पर लटका दो क्योंकि मुझे इस आदमी में कोई दोष नहीं मिला।”+ 7 यहूदियों ने कहा, “हमारा एक कानून है और उस कानून के मुताबिक यह मौत की सज़ा के लायक है+ क्योंकि इसने खुद को परमेश्वर का बेटा कहा है।”+
8 जब पीलातुस ने यह बात सुनी तो वह और भी डर गया। 9 वह फिर से अपने घर के अंदर गया और उसने यीशु से पूछा, “तू कहाँ का है?” मगर यीशु ने कोई जवाब नहीं दिया।+ 10 पीलातुस ने उससे कहा, “क्या तू मुझे जवाब नहीं देगा? क्या तुझे नहीं मालूम कि मेरे पास तुझे रिहा करने का भी अधिकार है और तुझे मार डालने का भी?”* 11 यीशु ने उसे जवाब दिया, “अगर तुझे यह अधिकार ऊपर से न दिया गया होता, तो मुझ पर तेरा कोई अधिकार नहीं होता। इसीलिए जिस आदमी ने मुझे तेरे हवाले किया है, उसका पाप ज़्यादा बड़ा है।”
12 इस वजह से पीलातुस किसी तरह उसे रिहा करने की कोशिश करता रहा। मगर यहूदियों ने चिल्ला-चिल्लाकर कहा, “अगर तूने इस आदमी को रिहा किया, तो तू सम्राट* का दोस्त नहीं। हर कोई जो खुद को राजा बनाता है वह सम्राट के खिलाफ बोलता है।”*+ 13 ये बातें सुनने के बाद पीलातुस, यीशु को बाहर ले आया। फिर वह एक न्याय-आसन पर यानी उस जगह बैठ गया जो पत्थर का चबूतरा कहलाता था और जिसे इब्रानी में गब्बता कहा जाता था। 14 यह फसह की तैयारी का दिन था+ और दिन का करीब छठा घंटा* था। पीलातुस ने यहूदियों से कहा, “देखो! तुम्हारा राजा!” 15 लेकिन वे चिल्लाए, “इसे मार डाल! इसे मार डाल! काठ पर लटका दे इसे!” पीलातुस ने उनसे कहा, “क्या मैं तुम्हारे राजा को काठ पर लटका दूँ?” प्रधान याजकों ने जवाब दिया, “सम्राट को छोड़ हमारा कोई राजा नहीं।” 16 तब उसने यीशु को काठ पर लटकाकर मार डालने के लिए उन्हें सौंप दिया।+
और सैनिकों ने यीशु को अपने कब्ज़े में ले लिया। 17 यीशु अपना यातना का काठ* उठाए उस जगह गया जिसे खोपड़ी स्थान कहा जाता है।+ वह जगह इब्रानी में गुलगुता कहलाती है।+ 18 वहाँ उन्होंने दो आदमियों के बीच उसे काठ पर ठोंक दिया।+ एक आदमी उसके दायीं तरफ था और दूसरा बायीं तरफ और यीशु बीच में था।+ 19 पीलातुस ने यातना के काठ* के ऊपर यह लिखवा दिया: “यीशु नासरी, यहूदियों का राजा।”+ 20 इसे बहुत-से यहूदियों ने पढ़ा क्योंकि जिस जगह यीशु को काठ पर ठोंका गया था वह जगह शहर के पास ही थी। ये शब्द इब्रानी, लातीनी और यूनानी भाषा में लिखे थे। 21 लेकिन यहूदियों के प्रधान याजकों ने पीलातुस से कहा, “यह मत लिख: ‘यहूदियों का राजा,’ मगर यह लिख कि उसने कहा, ‘मैं यहूदियों का राजा हूँ।’” 22 पीलातुस ने जवाब दिया, “मैंने जो लिखवा दिया सो लिखवा दिया।”
23 जब सैनिकों ने यीशु को काठ पर ठोंक दिया, तो उन्होंने उसका ओढ़ना लिया और उसके चार टुकड़े करके आपस में बाँट लिए। हर सैनिक ने एक टुकड़ा लिया। फिर उन्होंने कुरता भी लिया, मगर कुरते में कोई जोड़ नहीं था बल्कि यह ऊपर से नीचे तक बुना हुआ था। 24 इसलिए उन्होंने एक-दूसरे से कहा, “हम इसे नहीं फाड़ेंगे बल्कि चिट्ठियाँ डालकर तय करेंगे कि यह किसका होगा।”+ यह इसलिए हुआ ताकि शास्त्र की यह बात पूरी हो, “वे मेरी पोशाक आपस में बाँटते हैं और मेरे कपड़े के लिए चिट्ठियाँ डालते हैं।”+ सैनिकों ने वाकई ऐसा किया।
25 यीशु के यातना के काठ* के पास उसकी माँ,+ उसकी मौसी, क्लोपास की पत्नी मरियम और मरियम मगदलीनी खड़ी थीं।+ 26 जब यीशु ने अपनी माँ को और उस चेले को जिससे वह बहुत प्यार करता था,+ पास खड़े देखा तो उसने अपनी माँ से कहा, “देख! तेरा बेटा!” 27 इसके बाद यीशु ने उस चेले से कहा, “देख! तेरी माँ!” उसी दिन वह चेला मरियम को अपने घर ले गया ताकि वह उसके यहाँ रहे।
28 इसके बाद, यीशु ने यह जानते हुए कि सबकुछ पूरा हो चुका है कहा, “मैं प्यासा हूँ” ताकि शास्त्र में लिखी बात पूरी हो।+ 29 वहाँ खट्टी दाख-मदिरा से भरा एक घड़ा रखा था। इसलिए उन्होंने खट्टी दाख-मदिरा में भिगोए हुए एक स्पंज को मरुए* की डंडी पर रखा और उसके मुँह से लगाया।+ 30 जब यीशु ने वह खट्टी दाख-मदिरा चखी तो कहा, “पूरा हुआ!”+ और सिर झुकाकर दम तोड़ दिया।+
31 यह तैयारी का दिन था+ और यहूदी नहीं चाहते थे कि लाशें सब्त के दिन यातना के काठ पर लटकी रहें+ (क्योंकि यह बड़ा सब्त था)।+ इसलिए उन्होंने पीलातुस से गुज़ारिश की कि काठ पर लटकाए गए आदमियों की टाँगें तोड़ दी जाएँ और उनकी लाशें उतार ली जाएँ। 32 इसलिए सैनिकों ने आकर यीशु के पास काठ पर लटकाए गए पहले आदमी की टाँगें तोड़ दीं और फिर दूसरे की। 33 मगर जब वे यीशु के पास आए तो उन्होंने देखा कि वह मर चुका है इसलिए उन्होंने उसकी टाँगें नहीं तोड़ीं। 34 फिर भी सैनिकों में से एक ने अपना भाला उसकी पसलियों में भोंका+ और फौरन खून और पानी बह निकला। 35 जिसने यह सबकुछ अपनी आँखों से देखा था, उसने इसकी गवाही दी है और उसकी गवाही सच्ची है। वह जानता है कि उसने जो कुछ कहा है वह सच है और उसने ये बातें इसलिए बतायीं कि तुम भी यकीन करो।+ 36 दरअसल यह सब इसलिए हुआ ताकि शास्त्र की यह बात पूरी हो: “उसकी एक भी हड्डी नहीं तोड़ी जाएगी।”+ 37 शास्त्र में एक और जगह लिखा है: “वे उसे देखेंगे जिसे उन्होंने भेदा है।”+
38 इसके बाद अरिमतियाह के यूसुफ ने पीलातुस से गुज़ारिश की कि वह यीशु की लाश ले जाना चाहता है। यूसुफ, यीशु का एक चेला था, मगर यहूदियों के डर से यह बात छिपाए रखता था।+ पीलातुस ने उसे यीशु की लाश ले जाने की इजाज़त दे दी। इसलिए यूसुफ जाकर वहाँ से लाश ले गया।+ 39 नीकुदेमुस भी,+ जो पहली बार यीशु के पास रात के वक्त आया था, करीब 30 किलो* गंधरस और अगर का मिश्रण* लेकर आया।+ 40 तब उन्होंने यीशु की लाश ली और यहूदियों के दफनाने की रीत के मुताबिक उसे इन खुशबूदार मसालों के साथ मलमल के कपड़ों में लपेटा।+ 41 इत्तफाक से जिस जगह उसे काठ पर लटकाया गया था, वहीं एक बाग था और उसमें एक नयी कब्र* थी+ जिसमें अब तक कोई लाश नहीं रखी गयी थी। 42 उन्होंने यीशु को वहीं उस कब्र में रख दिया क्योंकि वह दिन यहूदियों के त्योहार की तैयारी का दिन था+ और वह कब्र भी पास ही थी।
20 हफ्ते के पहले दिन सुबह के वक्त जब अँधेरा ही था, मरियम मगदलीनी कब्र* पर आयी।+ उसने देखा कि कब्र* पर रखा पत्थर पहले से हटा हुआ है।+ 2 तब वह दौड़ी-दौड़ी शमौन पतरस और उस चेले के पास गयी जिससे यीशु को बहुत प्यार था+ और उनसे कहा, “वे प्रभु को कब्र से निकालकर ले गए हैं+ और हमें नहीं पता कि उन्होंने उसे कहाँ रखा है।”
3 तब पतरस और वह दूसरा चेला कब्र की तरफ चल दिए। 4 वे दोनों साथ-साथ भागने लगे, मगर दूसरा चेला पतरस से तेज़ दौड़ा और कब्र पर पहले पहुँच गया। 5 उसने झुककर कब्र में झाँका तो उसे मलमल के कपड़े दिखायी दिए,+ मगर वह अंदर नहीं गया। 6 तब शमौन पतरस भी उसके पीछे-पीछे आ पहुँचा और कब्र के अंदर घुस गया। उसने वहाँ मलमल के कपड़े पड़े हुए देखे। 7 उसने देखा कि जो कपड़ा यीशु के सिर पर था वह दूसरे कपड़ों के साथ नहीं था बल्कि एक तरफ लपेटा हुआ रखा था। 8 फिर वह दूसरा चेला भी जो कब्र पर पहले पहुँचा था, अंदर गया और उसने देखा और यकीन किया। 9 वे अब तक शास्त्र की यह बात नहीं समझे थे कि उसका मरे हुओं में से ज़िंदा होना ज़रूरी था।+ 10 इसलिए वे अपने घर लौट गए।
11 मगर मरियम रोती हुई कब्र के बाहर ही खड़ी रही। जब उसने रोते-रोते झुककर कब्र के अंदर झाँका, 12 तो सफेद कपड़े पहने दो स्वर्गदूतों को देखा।+ एक उस जगह बैठा था जहाँ यीशु का सिर था और दूसरा वहाँ बैठा था जहाँ उसके पैर थे। 13 उन्होंने मरियम से कहा, “तू क्यों रो रही है?” उसने उनसे कहा, “वे मेरे प्रभु को ले गए हैं और मैं नहीं जानती कि उन्होंने उसे कहाँ रखा है।” 14 यह कहने के बाद जब वह मुड़ी तो यीशु वहाँ खड़ा था, मगर वह उसे देखकर पहचान नहीं पायी।+ 15 यीशु ने उससे कहा, “तू क्यों रो रही है? तू किसे ढूँढ़ रही है?” मरियम ने उसे माली समझकर कहा, “भाई, अगर तू उसे उठाकर ले गया है तो मुझे बता दे कि तूने उसे कहाँ रखा है और मैं उसे ले जाऊँगी।” 16 यीशु ने उससे कहा, “मरियम!” तब मरियम ने पीछे मुड़कर इब्रानी में कहा, “रब्बोनी!” (जिसका मतलब है, “गुरु!”) 17 यीशु ने उससे कहा, “मुझसे लिपटी मत रह इसलिए कि मैं अभी तक पिता के पास ऊपर नहीं गया। मगर जाकर मेरे भाइयों से कह,+ ‘मैं अपने पिता और तुम्हारे पिता और अपने परमेश्वर+ और तुम्हारे परमेश्वर के पास ऊपर जा रहा हूँ।’”+ 18 मरियम मगदलीनी चेलों के पास गयी और उनसे कहा, “मैंने प्रभु को देखा है!” और उन्हें बताया कि यीशु ने उससे क्या-क्या कहा है।+
19 उसी दिन यानी हफ्ते के पहले दिन, शाम के समय चेले यहूदियों के डर से दरवाज़े बंद करके घर के अंदर थे। लेकिन दरवाज़े बंद होने के बावजूद यीशु उनके बीच आ खड़ा हुआ और उनसे कहा, “तुम्हें शांति मिले।”+ 20 यह कहने के बाद उसने उन्हें अपने हाथ और अपनी पसलियाँ दिखायीं।+ तब चेले प्रभु को देखकर बेहद खुश हुए।+ 21 यीशु ने एक बार फिर उनसे कहा, “तुम्हें शांति मिले।+ जैसे पिता ने मुझे भेजा है,+ मैं भी तुम्हें भेजता हूँ।”+ 22 यह कहने के बाद उसने उन पर फूँका और उनसे कहा, “परमेश्वर की पवित्र शक्ति पाओ।+ 23 अगर तुम किसी का पाप माफ करोगे, तो उसे माफ कर दिया जाएगा। तुम जिसका पाप माफ नहीं करोगे, उसका पाप नहीं मिटेगा।”
24 मगर जब यीशु आया था, तब थोमा+ जो उन बारहों में से एक था और जुड़वाँ कहलाता था, चेलों के साथ नहीं था। 25 इसलिए दूसरे चेलों ने उसे बताया, “हमने प्रभु को देखा है!” मगर थोमा ने उनसे कहा, “जब तक मैं उसके हाथों में कीलों के निशान न देख लूँ और उनमें अपनी उँगली न डालूँ और उसकी पसली में अपना हाथ डालकर न देख लूँ,+ तब तक मैं यकीन नहीं करूँगा।”
26 ऐसा हुआ कि आठ दिन बाद चेले फिर से घर के अंदर थे और थोमा भी उनके साथ था। तब घर के दरवाज़े बंद होने के बावजूद यीशु उनके बीच आ खड़ा हुआ और उनसे कहा, “तुम्हें शांति मिले।”+ 27 इसके बाद उसने थोमा से कहा, “अपनी उँगली मेरे हाथों पर लगाकर देख और अपना हाथ मेरी पसली में लगाकर देख। शक करना छोड़ दे बल्कि यकीन कर।” 28 तब थोमा ने उससे कहा, “हे मेरे प्रभु, हे मेरे परमेश्वर!” 29 यीशु ने उससे कहा, “क्या तू इसलिए यकीन कर रहा है क्योंकि तूने मुझे देखा है? सुखी हैं वे जिन्होंने देखा नहीं फिर भी यकीन करते हैं।”
30 सच तो यह है कि यीशु ने चेलों के सामने और भी बहुत-से चमत्कार किए जो इस खर्रे में नहीं लिखे गए।+ 31 मगर जो लिखे गए हैं वे इसलिए लिखे गए हैं ताकि तुम यकीन करो कि यीशु ही परमेश्वर का बेटा, मसीह है और यकीन करने की वजह से उसके नाम से ज़िंदगी पाओ।+
21 इसके बाद एक बार फिर यीशु, तिबिरियास झील के किनारे चेलों के सामने प्रकट हुआ। वह इस तरह प्रकट हुआ। 2 ऐसा हुआ कि शमौन पतरस, थोमा (जो जुड़वाँ कहलाता था),+ गलील के काना का नतनएल,+ जब्दी के बेटे+ और यीशु के दो और चेले एक-साथ थे। 3 शमौन पतरस ने उनसे कहा, “मैं मछली पकड़ने जा रहा हूँ।” उन्होंने कहा, “हम भी तेरे साथ चलते हैं।” वे बाहर निकले और नाव पर सवार हो गए, मगर उस रात उनके हाथ कुछ नहीं लगा।+
4 जब सुबह होने लगी तब यीशु किनारे पर आकर खड़ा हो गया। मगर चेलों ने नहीं पहचाना कि वह यीशु है।+ 5 तब यीशु ने उनसे पूछा, “बच्चो, क्या तुम्हारे पास खाने के लिए कुछ है?”* उन्होंने कहा, “नहीं!” 6 उसने उनसे कहा, “नाव के दायीं तरफ जाल डालो और तुम्हें कुछ मछलियाँ मिलेंगी।” तब उन्होंने जाल डाला और उसमें ढेर सारी मछलियाँ आ फँसीं और वे जाल को खींच न पाए।+ 7 तब उस चेले ने, जिसे यीशु प्यार करता था+ पतरस से कहा, “यह तो प्रभु है!” जब शमौन पतरस ने सुना कि यह प्रभु है तो उसने कपड़े पहने* क्योंकि वह नंगे बदन* था और झील में कूद पड़ा। 8 मगर दूसरे चेले छोटी नाव में मछलियों से भरा जाल खींचते हुए आए क्योंकि वे किनारे से ज़्यादा दूर नहीं थे, करीब 300 फुट* की दूरी पर ही थे।
9 जब वे किनारे पर आए, तो उन्होंने देखा कि जलते कोयलों पर मछलियाँ रखी हुई हैं और रोटी भी है। 10 यीशु ने उनसे कहा, “तुमने अभी-अभी जो मछलियाँ पकड़ी हैं उनमें से कुछ ले आओ।” 11 तब शमौन पतरस नाव पर चढ़ा और मछलियों से भरा जाल खींच लाया, जिसमें 153 बड़ी मछलियाँ थीं। मगर इतनी ज़्यादा मछलियाँ होने के बावजूद वह जाल फटा नहीं। 12 यीशु ने उनसे कहा, “आओ, नाश्ता कर लो।” लेकिन चेलों में से किसी ने भी यह पूछने की हिम्मत नहीं की कि “तू कौन है?” क्योंकि वे जानते थे कि वह प्रभु ही है। 13 यीशु ने रोटी ली और उन्हें दी। फिर उसने मछलियाँ भी उन्हें दीं। 14 इस तरह यीशु मरे हुओं में से ज़िंदा होने के बाद तीसरी बार+ अपने चेलों को दिखायी दिया।
15 जब वे नाश्ता कर चुके तो यीशु ने शमौन पतरस से कहा, “शमौन, यूहन्ना के बेटे, क्या तू इनसे ज़्यादा मुझसे प्यार करता है?” पतरस ने उससे कहा, “हाँ प्रभु, तू जानता है कि मुझे तुझसे कितना प्यार है।” यीशु ने उससे कहा, “मेरे मेम्नों को खिला।”+ 16 यीशु ने दूसरी बार उससे कहा, “शमौन, यूहन्ना के बेटे, क्या तू मुझसे प्यार करता है?” पतरस ने कहा, “हाँ प्रभु, तू जानता है कि मुझे तुझसे कितना प्यार है।” उसने पतरस से कहा, “चरवाहे की तरह मेरी छोटी भेड़ों की देखभाल कर।”+ 17 यीशु ने तीसरी बार उससे कहा, “शमौन, यूहन्ना के बेटे, क्या तू मुझसे प्यार करता है?” यह सुनकर पतरस दुखी हुआ कि उसने तीसरी बार उससे पूछा कि ‘क्या तू मुझसे प्यार करता है?’ इसलिए पतरस ने उससे कहा, “प्रभु, तू सबकुछ जानता है। तू यह भी जानता है कि मैं तुझसे कितना प्यार करता हूँ।” यीशु ने कहा, “मेरी छोटी भेड़ों को खिला।+ 18 मैं तुझसे सच-सच कहता हूँ, जब तू जवान था तो खुद कपड़े पहनता था और जहाँ चाहे वहाँ जाता था। मगर जब तू बूढ़ा होगा, तो तू अपने हाथ आगे बढ़ाएगा और कोई दूसरा आदमी तुझे कपड़े पहनाएगा और जहाँ तू नहीं चाहेगा वहाँ तुझे ले जाएगा।” 19 उसने यह बताने के लिए ऐसा कहा कि वह किस तरह की मौत मरकर परमेश्वर की महिमा करेगा। यह कहने के बाद यीशु ने उससे कहा, “मेरे पीछे चलता रह।”+
20 जब पतरस मुड़ा तो उसने उस चेले को आते देखा जिसे यीशु प्यार करता था।+ यह वही चेला था जिसने शाम के खाने के वक्त यीशु के सीने पर झुककर उससे पूछा था, “प्रभु, वह कौन है जो तुझे धोखा देकर पकड़वाएगा?” 21 जब पतरस की नज़र उस चेले पर पड़ी, तो उसने यीशु से पूछा, “प्रभु, इस आदमी का क्या होगा?” 22 यीशु ने उससे कहा, “अगर मेरी मरज़ी है कि यह मेरे आने तक रहे, तो तुझे इससे क्या? तू मेरे पीछे चलता रह।” 23 इसलिए भाइयों में यह बात फैल गयी कि वह चेला नहीं मरेगा। मगर यीशु ने उससे यह नहीं कहा था कि वह नहीं मरेगा बल्कि यह कहा था कि “अगर मेरी मरज़ी है कि यह मेरे आने तक रहे, तो तुझे इससे क्या?”
24 यह वही चेला है+ जो इन बातों की गवाही देता है और जिसने ये बातें लिखी हैं और हम जानते हैं कि उसकी गवाही सच्ची है।
25 दरअसल ऐसे और भी बहुत-से काम हैं जो यीशु ने किए थे। अगर उन सारे कामों के बारे में एक-एक बात लिखी जाती, तो मैं समझता हूँ कि जो खर्रे लिखे जाते वे पूरी दुनिया में भी नहीं समाते।+
या “ईश्वर जैसा।”
यानी वचन।
या “महा-कृपा।”
या “सीने के पास।” यह दिखाता है कि वह पिता के लिए सबसे खास है।
अति. क5 देखें।
यानी शाम करीब 4 बजे।
शा., “हे औरत, मुझे क्या और तुझे क्या?” किसी की बात पर एतराज़ करने के लिए यह मुहावरा कहा जाता था। “औरत” कहना बेइज़्ज़ती करना नहीं था।
शायद यहाँ द्रव्य माप बत का ज़िक्र किया गया है जो 22 ली. के बराबर था। अति. ख14 देखें।
या “व्यापार की जगह।”
या शायद, “कोई ऊपर से न पैदा हो।”
या “पक्का किया है।”
या “नाप-नापकर।”
या “पानी का सोता।”
यानी दोपहर करीब 12 बजे।
यानी दोपहर करीब 1 बजे।
अति. क3 देखें।
या “उसमें जीवन का वरदान है।”
यानी शास्त्र।
अति. ख14 देखें।
शा., “करीब 25 या 30 स्तादियौन।” अति. ख14 देखें।
अति. क5 देखें।
या शायद, “जन-सभा।”
शा., “तुम्हें ठोकर लगी है?”
या “इबलीस।”
या “छप्परों।”
शा., “लेखनों।”
यानी रब्बियों के स्कूलों।
या “गिरफ्तार करने।”
या “गिरफ्तार करना।”
कई पुरानी और जानी-मानी हस्तलिपियों में यूह 7:53 से 8:11 तक की आयतें नहीं पायी जातीं।
या “उसूलों।”
या “नाजायज़ संबंधों से पैदा हुई।” यूनानी में पोर्निया। शब्दावली देखें।
शा., “इबलीस।” शब्दावली देखें।
शा., “रब्बी।”
या “दंडवत।”
या “मेरे और पिता के बीच एकता है।”
या “ईश्वर जैसे।”
या “स्मारक कब्र।”
शा., “करीब 15 स्तादियौन।” अति. ख14 देखें।
या “स्मारक कब्र।”
या “स्मारक कब्र।”
यानी मंदिर।
या “गिरफ्तार कर।”
या “मेज़ से टेक लगाए थे।”
शा., “एक पौंड।” यानी रोमी पौंड। अति. ख14 देखें।
अति. ख14 देखें।
अति. क5 देखें।
या “स्मारक कब्र।”
अति. क5 देखें।
अति. क5 देखें।
शा., “बाज़ू।”
यानी यीशु के।
या “कमर कसी।”
या “कसे।”
या “यह तुम्हारा फर्ज़ है।”
शा., “मेरे खिलाफ एड़ी उठाए है।”
या “दिलासा देनेवाला।”
या “अनाथों की तरह।”
या “उसे मुझ पर अधिकार नहीं।”
आय. 13 और 14 में “वह” का मतलब आय. 7 में बताया “मददगार” है। यीशु ने पवित्र शक्ति की तुलना एक “मददगार” से की है। पवित्र शक्ति कोई व्यक्ति नहीं बल्कि एक ताकत है।
या “ज्ञान लेते रहें।”
या “को बताया।”
या “एकता में।”
या “एकता में।”
शा., “उस दुष्ट।”
या “सर्दियों में बहनेवाली किदरोन नदी।”
या “गिरफ्तार कर।”
या “प्रवेश-द्वार।”
या “मुजरिम।”
या “तेरी जय हो!”
या “काठ पर मार डालने का भी?”
यूनानी में “कैसर।”
या “का विरोध करता है।”
यानी दोपहर करीब 12 बजे।
शब्दावली देखें।
शब्दावली देखें।
शब्दावली देखें।
शब्दावली देखें।
शा., “100 पौंड।” यानी रोमी पौंड। अति. ख14 देखें।
या शायद, “की पट्टियाँ।”
या “स्मारक कब्र।”
या “स्मारक कब्र।”
या “स्मारक कब्र।”
या “मछलियाँ हैं।”
या “कस लिए।”
या “कम कपड़ों में।”
करीब 90 मी.; शा., “करीब 200 हाथ।” अति. ख14 देखें।