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पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद
याकूब

याकूब की चिट्ठी

1 याकूब+ जो परमेश्‍वर का और प्रभु यीशु मसीह का दास है, उन 12 गोत्रों को लिखता है, जो चारों तरफ तितर-बितर हो गए हैं:

नमस्कार!

2 मेरे भाइयो, जब तुम तरह-तरह की परीक्षाओं से गुज़रो तो इसे बड़ी खुशी की बात समझो+ 3 क्योंकि तुम जानते हो कि तुम्हारा परखा हुआ विश्‍वास धीरज पैदा करता है।+ 4 मगर धीरज को अपना काम पूरा करने दो ताकि तुम सब बातों में खरे* और बेदाग पाए जाओ और तुममें कोई कमी न हो।+

5 इसलिए अगर तुममें से किसी को बुद्धि की कमी हो तो वह परमेश्‍वर से माँगता रहे+ और वह उसे दी जाएगी,+ क्योंकि परमेश्‍वर सबको उदारता से और बिना डाँटे-फटकारे* देता है।+ 6 लेकिन वह विश्‍वास के साथ माँगता रहे+ और ज़रा भी शक न करे,+ क्योंकि जो शक करता है वह समुंदर की लहरों जैसा होता है जो हवा से यहाँ-वहाँ उछलती रहती हैं। 7 दरअसल ऐसा इंसान यह उम्मीद न करे कि वह यहोवा* से कुछ पाएगा। 8 ऐसा इंसान उलझन में रहता है*+ और सारी बातों में डाँवाँडोल होता है।

9 जो भाई गरीब है वह इसलिए खुशी मनाए* कि उसे ऊँचा किया गया है+ 10 और जो अमीर है वह इसलिए खुशी मनाए कि उसे दीन किया गया है,+ क्योंकि वह ऐसे मिट जाएगा जैसे मैदान में उगनेवाला फूल। 11 जैसे सूरज के चढ़ने पर उसकी तपती धूप से पौधा मुरझा जाता है और उसका फूल सूखकर गिर जाता है और उसकी खूबसूरती मिट जाती है, ठीक वैसे ही अमीर आदमी भी ज़िंदगी की भाग-दौड़ में मिट जाएगा।+

12 सुखी है वह इंसान जो परीक्षा में धीरज धरे रहता है+ क्योंकि परीक्षा में खरा उतरने पर* वह जीवन का ताज पाएगा,+ जिसका वादा यहोवा* ने उनसे किया है जो हमेशा उससे प्यार करते हैं।+ 13 जब किसी की परीक्षा हो रही हो तो वह यह न कहे, “परमेश्‍वर मेरी परीक्षा ले रहा है।” क्योंकि न तो बुरी बातों से परमेश्‍वर की परीक्षा ली जा सकती है, न ही वह खुद बुरी बातों से किसी की परीक्षा लेता है। 14 लेकिन हर किसी की इच्छा उसे खींचती और लुभाती है,* जिससे वह परीक्षा में पड़ता है।+ 15 फिर इच्छा गर्भवती होती है और पाप को जन्म देती है और जब पाप कर लिया जाता है तो यह मौत लाता है।+

16 मेरे प्यारे भाइयो, धोखा न खाओ। 17 हर अच्छा तोहफा और हर उत्तम देन ऊपर से मिलती है+ यानी आकाश की ज्योतियों के पिता की तरफ से,+ जो उस छाया की तरह नहीं बदलता जो घटती-बढ़ती रहती है।+ 18 उसकी यही मरज़ी थी कि हमें सच्चाई के वचन से पैदा करे+ ताकि हम उसके बनाए इंसानों में पहले फल जैसे हों।+

19 मेरे प्यारे भाइयो, यह बात जान लो: हर कोई सुनने में फुर्ती करे, बोलने में उतावली न करे+ और गुस्सा करने में जल्दबाज़ी न करे।+ 20 क्योंकि इंसान के क्रोध का नतीजा परमेश्‍वर की नेकी नहीं होता।+ 21 इसलिए हर तरह की गंदगी और बुराई का हर दाग* दूर करो+ और जब तुम्हारे अंदर वचन बोया जाता है, तो उसे कोमलता से स्वीकार करो क्योंकि यह तुम्हारी जान बचा सकता है।

22 लेकिन वचन पर चलनेवाले बनो,+ न कि सिर्फ सुननेवाले जो झूठी दलीलों से खुद को धोखा देते हैं। 23 क्योंकि जो कोई वचन को सुनता है मगर उस पर चलता नहीं,+ वह उस इंसान के जैसा है जो आईने में अपना* चेहरा देखता है। 24 वह अपनी सूरत देखता है और चला जाता है और फौरन भूल जाता है कि वह किस तरह का इंसान है। 25 मगर जो इंसान आज़ादी दिलानेवाले खरे कानून को करीब से जाँचता* है+ और उसमें लगा रहता है, ऐसा इंसान सुनकर भूलता नहीं मगर उस पर चलता है और इससे वह खुशी पाता है।+

26 अगर कोई आदमी खुद को परमेश्‍वर की उपासना करनेवाला* समझता है मगर अपनी ज़बान पर कसकर लगाम नहीं लगाता,+ तो वह अपने दिल को धोखा देता है और उसका उपासना करना बेकार है। 27 हमारे परमेश्‍वर और पिता की नज़र में शुद्ध और निष्कलंक उपासना* यह है: अनाथों और विधवाओं की मुसीबतों में देखभाल की जाए+ और खुद को दुनिया से बेदाग रखा जाए।+

2 मेरे भाइयो, क्या तुम हमारे महिमावान प्रभु यीशु मसीह पर विश्‍वास करने के साथ-साथ भेदभाव भी कर रहे हो?+ 2 अगर कोई इंसान तुम्हारी सभा में सोने की अँगूठियाँ और शानदार कपड़े पहनकर आता है और एक गरीब मैले-कुचैले कपड़ों में आता है, 3 तो तुम शानदार कपड़े पहननेवाले को तो इज़्ज़त देते हो और उससे कहते हो, “इस बढ़िया जगह पर बैठ।” मगर गरीब से कहते हो, “तू खड़ा रह,” या “यहाँ ज़मीन पर मेरे पाँवों की चौकी के पास बैठ।”+ 4 इस तरह क्या तुम्हारे बीच ऊँच-नीच का भेदभाव नहीं है+ और क्या तुम ऐसे न्यायी नहीं ठहरते जो बुरे इरादे से फैसले करते हैं?+

5 मेरे प्यारे भाइयो, सुनो। क्या परमेश्‍वर ने ऐसे लोगों को नहीं चुना जो दुनिया की नज़र में गरीब हैं ताकि वे विश्‍वास में धनी बनें+ और उस राज के वारिस हों, जिसका वादा उसने उन लोगों से किया है जो उससे प्यार करते हैं?+ 6 लेकिन तुमने गरीबों को बेइज़्ज़त किया है। क्या अमीर तुम पर अत्याचार नहीं करते+ और तुम्हें घसीटकर अदालतों में नहीं ले जाते? 7 क्या वे उस बढ़िया नाम की निंदा नहीं करते जिससे तुम बुलाए गए हो? 8 अगर तुम शास्त्र के मुताबिक इस शाही नियम को मानते हो: “तुम अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना जैसे तुम खुद से करते हो,”+ तो तुम बहुत अच्छा काम कर रहे हो। 9 लेकिन अगर तुम भेदभाव करना नहीं छोड़ते+ तो तुम पाप कर रहे हो और यह नियम तुम्हें गुनहगार ठहराता है।+

10 अगर कोई मूसा के पूरे कानून का पालन करता है मगर एक आज्ञा तोड़ देता है, तो वह पूरे कानून को तोड़ने का कसूरवार ठहरता है।+ 11 क्योंकि जिस परमेश्‍वर ने यह कहा, “तुम व्यभिचार* न करना,”+ उसने यह भी कहा, “तुम खून न करना।”+ इसलिए अगर तुम व्यभिचार नहीं करते मगर खून करते हो, तो तुम कानून को तोड़ने के गुनहगार हो। 12 तुम हमेशा उन लोगों की तरह बोलो और उन लोगों की तरह पेश आओ जिनका न्याय आज़ाद लोगों के कानून* के मुताबिक होनेवाला है।+ 13 क्योंकि जो दया नहीं करता उसका न्याय भी बिना दया के होगा।+ दया, सज़ा पर जीत हासिल करती है।

14 मेरे भाइयो, अगर कोई कहे कि मुझे विश्‍वास है लेकिन वह विश्‍वास के मुताबिक काम नहीं करता, तो इसका क्या फायदा?+ क्या ऐसा विश्‍वास उसे उद्धार दिला सकता है?+ 15 अगर किसी भाई या बहन के पास कपड़े न हों और दो वक्‍त की रोटी भी न हो 16 और तुममें से कोई उससे कहे, “सलामत रहो, तुझे खाने-पहनने की कोई कमी न हो।” मगर तुम उसे कपड़ा और रोटी न दो तो इसका क्या फायदा?+ 17 उसी तरह सिर्फ विश्‍वास होना काफी नहीं, विश्‍वास कामों के बिना मरा हुआ है।+

18 मगर शायद कोई कहे, “तुम विश्‍वास करते हो, मगर मैं काम करता हूँ। तू अपना विश्‍वास बिना काम के दिखा और मैं अपना विश्‍वास अपने कामों से दिखाऊँगा।” 19 क्या तू मानता है कि परमेश्‍वर एक ही है? तू बहुत अच्छा करता है। दुष्ट स्वर्गदूत भी यही मानते हैं और थर-थर काँपते हैं।+ 20 लेकिन हे खोखले इंसान, क्या तू इस बात को नहीं मानना चाहता कि कामों के बिना विश्‍वास बेकार है? 21 क्या हमारा पिता अब्राहम भी अपने कामों की वजह से नेक नहीं ठहराया गया था क्योंकि उसने अपने बेटे इसहाक को वेदी पर चढ़ाया था?+ 22 तुम देख सकते हो कि उसने विश्‍वास करने के साथ-साथ काम भी किया और उसके कामों ने उसके विश्‍वास को परिपूर्ण किया+ 23 और शास्त्र की यह बात पूरी हुई, “अब्राहम ने यहोवा* पर विश्‍वास किया और इस वजह से उसे नेक समझा गया”+ और वह “यहोवा* का दोस्त” कहलाया।+

24 तो जैसा तुमने देखा, एक इंसान सिर्फ विश्‍वास से नहीं बल्कि कामों से नेक ठहराया जाता है। 25 इसी तरह, क्या राहाब नाम की वेश्‍या कामों से नेक नहीं मानी गयी क्योंकि उसने दूतों को अपने घर में ठहराया और फिर उन्हें दूसरे रास्ते से भेज दिया?+ 26 वाकई, जैसे जान* के बिना शरीर मुरदा होता है,+ वैसे ही कामों के बिना विश्‍वास मरा हुआ है।+

3 मेरे भाइयो, हममें से बहुत लोग शिक्षक न बनें क्योंकि हम जानते हैं कि हम और भी भारी* सज़ा पाएँगे।+ 2 क्योंकि हम सब कई बार गलती करते हैं।*+ अगर कोई इंसान बोलने में गलती नहीं करता, तो वह परिपूर्ण है और अपने पूरे शरीर को भी काबू में रख सकता है।* 3 हम घोड़े के मुँह में लगाम लगाते हैं ताकि वह हमारी बात माने और इससे हम उसके पूरे शरीर को भी काबू में कर पाते हैं। 4 जहाज़ों के बारे में भी सोचो! हालाँकि वे इतने बड़े होते हैं और तेज़ हवाओं से चलाए जाते हैं, फिर भी एक छोटी-सी पतवार से नाविक उन्हें जहाँ चाहे वहाँ ले जा सकता है।

5 उसी तरह, जीभ भी हमारे शरीर का एक छोटा-सा अंग है फिर भी यह बड़ी-बड़ी डींगें मारती है। देखो! पूरे जंगल में आग लगाने के लिए बस एक छोटी-सी चिंगारी काफी होती है। 6 जीभ भी एक आग है।+ यह हमारे शरीर के अंगों में बुराई की एक दुनिया है क्योंकि यह पूरे शरीर को दूषित कर देती है+ और इंसान की पूरी ज़िंदगी में आग लगा देती है और यह गेहन्‍ना* की आग की तरह भस्म कर देती है। 7 हर तरह के जंगली जानवर, पक्षी, रेंगनेवाले जीव-जंतु और समुद्री जीवों को तो पालतू बनाया जा सकता है और इंसान ने उन्हें काबू में करके पालतू बनाया भी है, 8 मगर जीभ को कोई भी इंसान काबू में नहीं कर सकता। यह ऐसी खतरनाक और बेकाबू चीज़ है जो जानलेवा ज़हर से भरी है।+ 9 इसी से हम अपने पिता यहोवा* की तारीफ करते हैं और इसी से इंसानों को बददुआ देते हैं जिन्हें “परमेश्‍वर के जैसा” बनाया गया है।+ 10 एक ही मुँह से तारीफ और बददुआ दोनों निकलते हैं।

भाइयो, ऐसा नहीं होना चाहिए।+ 11 क्या ऐसा हो सकता है कि एक ही सोते से मीठा पानी भी निकले और खारा पानी भी? 12 मेरे भाइयो, क्या अंजीर के पेड़ पर जैतून के फल लग सकते हैं या अंगूर की डाली पर अंजीर के फल निकल सकते हैं?+ नहीं। उसी तरह खारे पानी के सोते से मीठा पानी नहीं निकल सकता।

13 तुममें बुद्धिमान और समझदार कौन है? जो है वह इसे अपने बढ़िया चालचलन से दिखाए और बुद्धि से पैदा होनेवाले कोमल स्वभाव के मुताबिक काम करे। 14 लेकिन अगर तुम्हारे दिलों में जलन-कुढ़न+ और झगड़े की भावना* हो,+ तो शेखी न मारो+ और सच्चाई के खिलाफ झूठ मत बोलो। 15 यह बुद्धि वह नहीं जो स्वर्ग से मिलती है बल्कि यह दुनियावी,+ शारीरिक* और शैतानी है। 16 क्योंकि जहाँ जलन और झगड़े होते हैं,* वहाँ गड़बड़ी और हर तरह की बुराई भी होगी।+

17 लेकिन जो बुद्धि स्वर्ग से मिलती है वह सबसे पहले तो पवित्र,+ फिर शांति कायम करनेवाली,+ लिहाज़ करनेवाली,+ आज्ञा मानने के लिए तैयार, दया और अच्छे कामों से भरपूर होती है।+ यह भेदभाव नहीं करती+ और न ही कपटी होती है।+ 18 जो शांति कायम करते हैं,+ उनके लिए शांति के हालात में नेकी का फल बोया जाता है।*+

4 तुम्हारे बीच लड़ाइयाँ और झगड़े क्यों हो रहे हैं? क्या इनकी वजह तुम्हारे शरीर की इच्छाएँ नहीं जो तुम्हें काबू में करने के लिए तुमसे* लड़ती रहती हैं?+ 2 तुम चाहते तो हो फिर भी तुम्हें मिलता नहीं। तुम खून करते और लालच करते हो और फिर भी हासिल नहीं कर पाते। तुम लड़ाइयाँ और युद्ध करते रहते हो।+ तुम्हारे पास इसलिए नहीं है क्योंकि तुम माँगते नहीं। 3 और जब माँगते हो तो पाते नहीं, क्योंकि तुम गलत इरादे से माँगते हो ताकि तुम इसे शरीर की इच्छाएँ पूरी करने में उड़ा दो।

4 अरे व्यभिचार करनेवालो,* क्या तुम नहीं जानते कि दुनिया के साथ दोस्ती करने का मतलब परमेश्‍वर से दुश्‍मनी करना है? इसलिए जो कोई इस दुनिया का दोस्त बनना चाहता है वह परमेश्‍वर का दुश्‍मन बन जाता है।+ 5 या क्या तुम्हें लगता है कि शास्त्र बेवजह ही कहता है, “हमारे अंदर जो फितरत समायी है वह हममें ईर्ष्या पैदा करके अपनी लालसाएँ पूरी करने को उकसाती रहती है”?+ 6 मगर परमेश्‍वर जो महा-कृपा हमें देता है वह हमारी इस फितरत से कहीं महान है। इसलिए शास्त्र कहता है, “परमेश्‍वर घमंडियों का विरोध करता है,+ मगर नम्र लोगों पर महा-कृपा करता है।”+

7 इसलिए खुद को परमेश्‍वर के अधीन करो,+ मगर शैतान* का विरोध करो+ और वह तुम्हारे पास से भाग जाएगा।+ 8 परमेश्‍वर के करीब आओ और वह तुम्हारे करीब आएगा।+ अरे पापियो, अपने हाथ धोओ,+ अरे शक करनेवालो,* अपने दिलों को शुद्ध करो।+ 9 अपनी दुर्दशा पर मातम करो और रोओ।+ तुम्हारी हँसी मातम में और तुम्हारी खुशी निराशा में बदल जाए। 10 यहोवा* की नज़रों में खुद को नम्र करो+ और वह तुम्हें ऊँचा करेगा।+

11 भाइयो, एक-दूसरे के खिलाफ बोलना बंद करो।+ जो किसी भाई के खिलाफ बोलता है या उसे दोषी ठहराता है, वह परमेश्‍वर के कानून के खिलाफ बोलता है और उस कानून पर दोष लगाता है। अगर तू कानून पर दोष लगाता है, तो तू उस पर चलनेवाला नहीं बल्कि उसका न्यायी ठहरा। 12 कानून देनेवाला और न्यायी तो एक ही है,+ जो बचा भी सकता है और नाश भी कर सकता है।+ तो दूसरे को दोषी ठहरानेवाला तू कौन होता है?+

13 सुनो, तुम कहते हो, “आज या कल हम उस शहर में जाएँगे और वहाँ एक साल बिताएँगे और व्यापार करेंगे और खूब पैसा कमाएँगे,”+ 14 जबकि तुम नहीं जानते कि कल तुम्हारे जीवन का क्या होगा।+ क्योंकि तुम उस धुंध की तरह हो जो थोड़ी देर दिखायी देती है और फिर गायब हो जाती है।+ 15 इसके बजाय, तुम्हें यह कहना चाहिए, “अगर यहोवा* की मरज़ी हो,+ तो हम कल का दिन देखेंगे और यह काम या वह काम करेंगे।” 16 मगर तुम तो घमंड करते हो और डींगें मारते हो। इस तरह घमंड करना बुरी बात है। 17 इसलिए अगर कोई सही काम करना जानता है फिर भी नहीं करता, तो वह पाप करता है।+

5 अरे धनवानो, सुनो, तुम पर मुसीबतें आनेवाली हैं इसलिए ज़ोर-ज़ोर से रोओ।+ 2 तुम्हारी धन-दौलत सड़ गयी है और तुम्हारे कपड़े कीड़े* खा गए हैं।+ 3 तुम्हारे सोने-चाँदी में ज़ंग लग गया है और उनका ज़ंग तुम्हारे खिलाफ गवाही देगा और तुम्हें खा जाएगा। तुमने जो बटोरा है वह आखिरी दिनों में आग जैसा होगा।+ 4 देखो! जिन मज़दूरों ने तुम्हारे खेतों में कटाई की तुमने उनकी मज़दूरी मार ली है। उनकी मज़दूरी तुम्हारे खिलाफ चिल्ला रही है और मदद के लिए उनकी पुकार सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा* के कानों तक पहुँच गयी है।+ 5 तुम दुनिया में खूब ऐशो-आराम से जीए और तुमने अपनी हर लालसा पूरी की। तुमने हलाल करनेवाले दिन के लिए अपने दिलों को मोटा कर लिया है।+ 6 तुमने उस नेक जन को दोषी ठहराकर मार डाला। क्या वह तुम्हारा विरोध नहीं कर रहा?

7 इसलिए भाइयो, हमारे प्रभु की मौजूदगी तक सब्र रखो।+ ध्यान दो! एक किसान ज़मीन की बढ़िया पैदावार पाने के लिए इंतज़ार करता है और शुरू की बारिश और बाद की बारिश होने तक सब्र रखता है।+ 8 तुम भी सब्र रखो।+ अपने दिलों को मज़बूत करो क्योंकि प्रभु की मौजूदगी का वक्‍त पास आ गया है।+

9 भाइयो, तुम एक-दूसरे के खिलाफ बड़बड़ाओ मत* ताकि तुम सज़ा न पाओ।+ देखो! हम सबका न्यायी दरवाज़े तक आ पहुँचा है। 10 भाइयो, यहोवा* के नाम से बोलनेवाले भविष्यवक्‍ताओं+ ने जिस तरह दुख सहा और सब्र रखा,+ उसे एक नमूना मानकर चलो।+ 11 देखो! हम मानते हैं कि जो धीरज धरते हैं वे सुखी* हैं।+ तुमने सुना है कि अय्यूब ने कैसे धीरज धरा था+ और यहोवा* ने उसे क्या इनाम दिया था,+ जिससे तुम समझ सकते हो कि यहोवा* गहरा लगाव रखनेवाला* और दयालु परमेश्‍वर है।+

12 खासकर मेरे भाइयो, कसमें खाना बंद करो। न तो स्वर्ग की कसम खाना न ही धरती की और न ही किसी और चीज़ की। इसके बजाय, तुम्हारी “हाँ” का मतलब हाँ हो और “न” का मतलब न+ ताकि तुम सज़ा के लायक न ठहरो।

13 क्या तुम्हारे बीच कोई मुसीबतें झेल रहा है? तो वह प्रार्थना में लगा रहे।+ क्या किसी का मन खुश है? तो वह परमेश्‍वर की तारीफ में गीत* गाए।+ 14 क्या तुम्हारे बीच कोई बीमार है? तो वह मंडली के प्राचीनों को बुलाए+ और वे उसके लिए प्रार्थना करें और यहोवा* के नाम से उस बीमार पर तेल मलें।+ 15 और विश्‍वास से की गयी प्रार्थना उस बीमार* को अच्छा कर देगी और यहोवा* उसे उठाकर खड़ा कर देगा। और अगर उसने पाप किए हों तो उसे माफ कर दिया जाएगा।

16 इसलिए तुम एक-दूसरे के सामने खुलकर अपने पाप मान लो+ और एक-दूसरे के लिए प्रार्थना करो ताकि तुम अच्छे हो जाओ। एक नेक इंसान की मिन्‍नतों का ज़बरदस्त असर होता है।+ 17 एलियाह भी हमारी तरह एक इंसान था, जिसमें हमारे जैसी भावनाएँ थीं। फिर भी जब उसने दिलो-जान से प्रार्थना की कि बारिश न हो, तो देश में साढ़े तीन साल तक बारिश नहीं हुई।+ 18 और जब उसने फिर प्रार्थना की, तो आकाश से बारिश हुई और धरती ने अपनी पैदावार दी।+

19 मेरे भाइयो, तुममें से अगर कोई सच्चाई के रास्ते से भटक जाए और कोई उस भटके हुए को वापस ले आए, 20 तो जान लो कि जो उस पापी को गलत रास्ते से वापस ले आता है+ वह उसे मरने से बचाता है और उसके ढेर सारे पापों को ढक देता है।+

या “पूरे; परिपूर्ण।”

या “बिना गलतियाँ ढूँढ़े।”

अति. क5 देखें।

या “दुचित्ता है।”

या “गर्व करे।”

या “परमेश्‍वर की मंज़ूरी पाने पर।”

अति. क5 देखें।

या “मानो चारे से फँसाती है।”

या शायद, “ढेरों बुराइयों को।”

या “अपना असली।”

या “झाँकता।”

या “धार्मिक।”

या “धर्म।”

शब्दावली देखें।

शा., “आज़ादी के कानून।”

अति. क5 देखें।

अति. क5 देखें।

या “साँस।”

या “कड़ी।”

शा., “ठोकर खाते हैं।”

शा., “लगाम लगा सकता है।”

शब्दावली देखें।

अति. क5 देखें।

या शायद, “बड़ा बनने का जुनून।”

या “जानवरों जैसी।”

या शायद, “और बड़ा बनने का जुनून होता है।”

या शायद, “वे शांति के हालात में नेकी का फल बोते हैं।”

शा., “तुम्हारे अंगों में।”

या “विश्‍वासघाती लोगो।”

शा., “इबलीस।” शब्दावली देखें।

या “दुचित्ते लोगो।”

अति. क5 देखें।

अति. क5 देखें।

या “कपड़-कीड़े।”

अति. क5 देखें।

या “शिकायत मत करो।” शा., “गहरी आहें मत भरो।”

अति. क5 देखें।

या “धन्य।”

अति. क5 देखें।

अति. क5 देखें।

या “करुणा से भरा।”

या “भजन।”

अति. क5 देखें।

या शायद, “थके हुए।”

अति. क5 देखें।

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