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पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद (अध्ययन बाइबल)
न्यायियों

न्यायियों

1 यहोशू की मौत के बाद,+ इसराएलियों ने यहोवा से पूछा,+ “हममें से पहले कौन कनानियों से लड़ने जाएगा?” 2 यहोवा ने कहा, “यहूदा जाएगा।+ देखो! मैं यह देश उनके हवाले कर दूँगा।”* 3 तब यहूदा के गोत्र ने अपने भाई शिमोन के गोत्र से कहा, “मेरे साथ आ और मुझे जो इलाका* दिया गया है+ वहाँ से कनानियों को खदेड़ने में मेरी मदद कर। फिर मैं तेरे इलाके में चलूँगा और तेरी मदद करूँगा।” तब शिमोन का गोत्र उसके साथ गया।

4 यहूदा के लोगों ने जब युद्ध किया, तो यहोवा ने कनानियों और परिज्जियों को उनके हाथ कर दिया।+ और उन्होंने बेजेक में 10,000 आदमियों को हरा दिया। 5 कनानियों और परिज्जियों+ को हराते वक्‍त+ बेजेक में उनका सामना अदोनी-बेजेक से हुआ और वे उससे लड़े। 6 तब अदोनी-बेजेक अपनी जान बचाकर भागने लगा। यहूदा के लोगों ने उसका पीछा किया और उसे धर-दबोचा। उन्होंने उसके हाथ-पैर के अँगूठे काट दिए। 7 तब अदोनी-बेजेक ने कहा, “मैंने 70 राजाओं के हाथ-पैर के अँगूठे कटवाए थे और वे मेरी मेज़ से गिरे टुकड़े खाते थे। जैसा मैंने दूसरों के साथ किया, वैसा ही परमेश्‍वर ने मेरे साथ किया है।” इसके बाद वे उसे यरूशलेम+ ले आए जहाँ उसकी मौत हो गयी।

8 फिर यहूदा के आदमियों ने यरूशलेम से युद्ध करके+ उस पर कब्ज़ा कर लिया। उन्होंने वहाँ के निवासियों को तलवार से मार डाला और शहर को जला दिया। 9 इसके बाद उन्होंने पहाड़ी प्रदेश, नेगेब और शफेलाह में रहनेवाले कनानियों से लड़ाई की।+ 10 फिर यहूदा का गोत्र उन कनानियों से लड़ने गया जो हेब्रोन में रहते थे (हेब्रोन का नाम पहले किरयत-अरबा था)। उन्होंने वहाँ शेशै, अहीमन और तल्मै को मार डाला।+

11 इसके बाद वे दबीर के निवासियों से लड़ने गए।+ (दबीर पहले किरयत-सेपर कहलाता था।)+ 12 तब कालेब+ ने कहा, “जो आदमी किरयत-सेपर पर हमला करके उसे जीत लेगा, उसकी शादी मैं अपनी बेटी अकसा से करवाऊँगा।”+ 13 ओत्नीएल+ ने किरयत-सेपर को जीत लिया। वह कालेब के छोटे भाई कनज का बेटा था+ और कालेब ने अपनी बेटी अकसा की शादी उससे करवा दी। 14 जब अकसा घर जा रही थी तो वह अपने पति से बार-बार कहने लगी कि मेरे पिता से ज़मीन का एक टुकड़ा माँग। फिर वह गधे से उतरी* और कालेब ने उससे पूछा, “तू क्या चाहती है?” 15 अकसा ने कहा, “तेरी यह बेटी तुझसे एक आशीर्वाद चाहती है। मुझे गुल्लोत-मइम* का इलाका दे दे क्योंकि मुझे दक्षिण* में ज़मीन का जो टुकड़ा मिला है वह सूखा है।” इसलिए कालेब ने उसे ऊपरी गुल्लोत और निचला गुल्लोत दिया।

16 मूसा का ससुर+ एक केनी आदमी था, जिसके वंशज+ यहूदा गोत्र के साथ खजूर के पेड़ों के शहर+ से आए थे। वे अराद+ के दक्षिण में यहूदा के वीराने में गए और वहाँ के लोगों के बीच रहने लगे।+ 17 यहूदा के गोत्र ने अपने भाई शिमोन के गोत्र के साथ, सपत शहर के कनानियों पर हमला बोला और उसे पूरी तरह नाश कर दिया।+ इसलिए उन्होंने उस शहर का नाम होरमा* रखा।+ 18 फिर यहूदा ने गाज़ा+ और उसके इलाके, अश्‍कलोन+ और उसके इलाके और एक्रोन+ और उसके इलाके पर कब्ज़ा कर लिया। 19 यहोवा यहूदा के लोगों के साथ था और उन्होंने पहाड़ी प्रदेश को अपने अधिकार में कर लिया और वहाँ बस गए। लेकिन वे मैदानी इलाके में रहनेवाले कनानियों को नहीं खदेड़ पाए क्योंकि उनके पास युद्ध-रथ थे जिनके पहियों में तलवारें लगी हुई थीं।*+ 20 मूसा के वादे के मुताबिक यहूदा के लोगों ने कालेब को हेब्रोन दिया।+ कालेब ने वहाँ से अनाक के तीन बेटों को खदेड़ दिया।+

21 लेकिन बिन्यामीन गोत्र ने यरूशलेम से यबूसियों को नहीं खदेड़ा। इसलिए आज तक यबूसी, यरूशलेम में बिन्यामीन के लोगों के बीच रहते हैं।+

22 इसी दौरान यूसुफ का घराना+ बेतेल शहर से लड़ने निकला और यहोवा उनके साथ था।+ 23 यूसुफ के घराने ने बेतेल (इस शहर का नाम पहले लूज था)+ में कुछ जासूसों को अपने आगे-आगे भेजा। 24 जासूसों ने उस शहर से एक आदमी को बाहर जाते देखा और उससे कहा, “मेहरबानी करके हमें शहर में घुसने का रास्ता दिखा। बदले में हम तुझ पर कृपा* करेंगे।” 25 तब उस आदमी ने उन्हें शहर में घुसने का रास्ता दिखाया और उन्होंने शहर के सभी निवासियों को तलवार से मार डाला। लेकिन उन्होंने उस आदमी और उसके परिवार को छोड़ दिया।+ 26 वह आदमी वहाँ से हित्तियों के देश में गया और उसने अपने लिए एक शहर खड़ा किया। उसने उस शहर का नाम लूज रखा जो आज तक इसी नाम से जाना जाता है।

27 मनश्‍शे गोत्र ने इन शहरों और इनके आस-पास के नगरों पर कब्ज़ा नहीं किया: बेत-शआन, तानाक,+ दोर, यिबलाम और मगिद्दो।+ कनानी लोग इन इलाकों में बसे रहे। 28 जब इसराएली ताकतवर हो गए तो वे कनानियों से जबरन मज़दूरी करवाने लगे।+ मगर उन्होंने कनानियों को पूरी तरह नहीं खदेड़ा।+

29 एप्रैमियों ने भी उन कनानियों को नहीं खदेड़ा जो गेजेर में रहते थे। और कनानी, एप्रैमी लोगों के बीच गेजेर में ही रहे।+

30 जबूलून गोत्र ने कितरोन और नहलोल+ में रहनेवाले कनानियों को नहीं खदेड़ा, वे उनके बीच ही रहे। और जबूलून ने उनसे जबरन मज़दूरी करवायी।+

31 आशेर गोत्र ने अक्को, सीदोन,+ अहलाब, अकजीब,+ हेलबा, अपीक+ और रहोब+ के निवासियों को नहीं खदेड़ा। 32 आशेर के लोग कनानियों के बीच ही रहे क्योंकि उन्होंने कनानियों को वहाँ से नहीं खदेड़ा।

33 नप्ताली गोत्र ने भी बेत-शेमेश और बेतनात+ में रहनेवाले कनानियों को नहीं खदेड़ा बल्कि उनके बीच ही रहे।+ उन्होंने बेत-शेमेश और बेतनात के लोगों से जबरन मज़दूरी करवायी।

34 एमोरियों ने दान के लोगों को मैदानी इलाके में नहीं आने दिया। इसलिए उन्हें पहाड़ी प्रदेश में ही रहना पड़ा।+ 35 एमोरी लोग हेरेस पहाड़, अय्यालोन+ और शालबीम+ के इलाके को नहीं छोड़ रहे थे। बाद में जब यूसुफ का घराना ताकतवर बना, तो उन्होंने एमोरियों पर जीत हासिल करके उनसे कड़ी मज़दूरी करवायी। 36 एमोरियों के इलाके की सरहद अकराबीम की चढ़ाई+ से और सेला से ऊपर की तरफ जाती थी।

2 यहोवा का स्वर्गदूत+ गिलगाल+ से बोकीम गया और उसने कहा, “मैं तुम्हें मिस्र से निकालकर इस देश में लाया, जिसे देने का वादा मैंने तुम्हारे पुरखों से किया था।+ मैंने यह भी कहा था, ‘तुम्हारे साथ जो करार मैंने किया है उसे मैं कभी नहीं तोड़ूँगा।+ 2 और तुम इस देश के निवासियों के साथ करार न करना+ और उनकी वेदियाँ तोड़ डालना।’+ पर तुमने मेरी आज्ञा नहीं मानी।+ तुमने ऐसा क्यों किया? 3 इसलिए जैसा मैंने कहा था, मैं इस देश के लोगों को तुम्हारे सामने से नहीं खदेड़ूँगा।+ वे तुम्हारे लिए फंदा साबित होंगे+ और तुम बहककर उनके देवताओं के पीछे हो लोगे।”+

4 जब यहोवा के स्वर्गदूत ने इसराएलियों से यह कहा, तो सभी लोग ज़ोर-ज़ोर से रोने लगे। 5 इसलिए उन्होंने उस जगह का नाम बोकीम* रखा और वहाँ यहोवा के लिए बलिदान चढ़ाया।

6 फिर यहोशू ने इसराएलियों को विदा किया और वे अपनी-अपनी विरासत की ज़मीन पर कब्ज़ा करने के लिए चले गए।+ 7 वे यहोशू के जीते-जी यहोवा की उपासना करते रहे और उन मुखियाओं के दिनों में भी करते रहे, जो यहोशू के बाद ज़िंदा थे और जिन्होंने देखा था कि यहोवा ने इसराएलियों के लिए कितने बड़े-बड़े काम किए हैं।+ 8 इसके बाद यहोवा के सेवक, नून के बेटे यहोशू की मौत हो गयी। वह 110 साल का था।+ 9 लोगों ने उसे तिमनत-हेरेस में दफनाया। यह जगह एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश में गाश पहाड़ के उत्तर में थी और यहोशू को दिए इलाके में आती थी।+ 10 उस पीढ़ी के सभी लोगों की मौत हो गयी।* फिर एक नयी पीढ़ी आयी जो न तो यहोवा को जानती थी, न ही यह जानती थी कि उसने इसराएल के लिए क्या-क्या किया है।

11 इसलिए इसराएली यहोवा की नज़र में बुरे काम करने लगे और बाल देवताओं को पूजने लगे।+ 12 उन्होंने अपने पुरखों के परमेश्‍वर यहोवा को छोड़ दिया, जो उन्हें मिस्र से निकाल लाया था।+ वे आस-पास के लोगों के देवताओं के पीछे जाने लगे+ और उन्हें दंडवत करने लगे। ऐसा करके उन्होंने यहोवा को गुस्सा दिलाया।+ 13 वे यहोवा को छोड़कर बाल देवता और अशतोरेत की मूरतों की पूजा करने लगे।+ 14 तब यहोवा का क्रोध इसराएलियों पर भड़क उठा और उसने उन्हें लुटेरों के हाथ कर दिया जो उन्हें लूटने लगे।+ परमेश्‍वर ने उन्हें आस-पास के दुश्‍मनों के हवाले कर दिया+ और वे उनके सामने टिक नहीं पाए।+ 15 यहोवा उनके खिलाफ हो गया इसलिए वे जहाँ-जहाँ गए वह उन पर मुसीबतें लाया,+ ठीक जैसा यहोवा ने कहा था और जैसा यहोवा ने शपथ खायी थी।+ इसराएलियों की ज़िंदगी दुखों से भर गयी।+ 16 तब यहोवा ने उनके लिए न्यायी ठहराए जो उन्हें लुटेरों के हाथ से बचाते।+

17 लेकिन इसराएलियों ने न्यायियों की भी सुनने से इनकार कर दिया। वे दूसरे देवताओं के आगे दंडवत करने और उन्हें पूजने* लगे। वे फौरन उस राह से बहक गए जिस पर उनके बाप-दादा चलते थे। उनके बाप-दादा तो यहोवा की बात मानते थे,+ मगर उन्होंने नहीं मानी। 18 फिर जब दुश्‍मन उन पर ज़ुल्म ढाते तो उनका कराहना सुनकर+ यहोवा तड़प उठता+ और उन्हें बचाने के लिए यहोवा न्यायी ठहराता+ और उसका पूरा साथ देता। जब तक इसराएल में न्यायी रहे, यहोवा ने अपने लोगों को दुश्‍मनों से बचाया।

19 लेकिन जब एक न्यायी मर जाता, तो इसराएली फिर से दूसरे देवताओं के पीछे चलने लगते और उनकी उपासना करने लगते।+ इस तरह वे अपने पुरखों से भी बढ़कर पाप कर रहे थे। वे अपने कामों से बाज़ नहीं आए और ढीठ बने रहे। 20 आखिरकार यहोवा का गुस्सा इसराएल पर भड़क उठा+ और उसने कहा, “इस राष्ट्र ने मेरा वह करार तोड़ दिया है+ जो मैंने उनके पुरखों से किया था और इन्होंने मेरी आज्ञा नहीं मानी।+ 21 इसलिए यहोशू की मौत के बाद इस देश में जितने भी दुश्‍मन राष्ट्र बचे हैं, उनमें से मैं एक को भी नहीं खदेड़ूँगा।+ 22 मैं परखना चाहता हूँ कि इसराएली अपने पुरखों की तरह यहोवा की राह पर चलेंगे या नहीं।”+ 23 यहोवा ने ऐसा ही किया। उसने उन राष्ट्रों को वहीं रहने दिया, उन्हें तुरंत नहीं खदेड़ा और न ही उन्हें यहोशू के हाथ किया था।

3 यहोवा ने कुछ राष्ट्रों को रहने दिया ताकि उन इसराएलियों को परखे, जिन्हें कनान देश से युद्ध करने का कोई तजुरबा नहीं था।+ 2 (वह इसलिए कि इसराएल की नयी पीढ़ी जिसने कभी युद्ध नहीं देखा था, युद्ध के बारे में जाने।) 3 इन राष्ट्रों में ये लोग शामिल थे: पलिश्‍तियों के पाँच सरदार,+ सारे कनानी, सीदोनी+ और वे सभी हिव्वी+ जो लबानोन के पहाड़ों+ में बाल-हेरमोन पर्वत से लेकर लेबो-हमात तक रहते थे।+ 4 इन लोगों के ज़रिए इसराएलियों को परखा गया कि वे यहोवा की आज्ञाओं को मानेंगे या नहीं, जो मूसा ने उनके पुरखों को दी थीं।+ 5 इस तरह इसराएली लोग कनानियों, हित्तियों, एमोरियों, परिज्जियों, हिव्वियों और यबूसियों के बीच रहने लगे।+ 6 इसराएलियों ने उनकी बेटियों से शादी की और अपनी बेटियों की शादी उनके बेटों से करवायी। और वे उनके देवताओं की उपासना करने लगे।+

7 इस तरह इसराएली यहोवा की नज़र में बुरे काम करने लगे। वे अपने परमेश्‍वर यहोवा को भूल गए और बाल देवताओं और पूजा-लाठों* की उपासना करने लगे।+ 8 इस पर यहोवा का क्रोध उन पर भड़क उठा। उसने उन्हें मेसोपोटामिया* के राजा कूशन-रिशातैम के हवाले कर दिया। इसराएलियों ने आठ साल तक कूशन-रिशातैम की गुलामी की। 9 फिर वे मदद के लिए यहोवा को पुकारने लगे।+ यहोवा ने उन्हें छुड़ाने के लिए ओत्नीएल+ को चुना,+ जो कालेब के छोटे भाई कनज का बेटा था। 10 यहोवा की पवित्र शक्‍ति ओत्नीएल पर उतरी+ और वह इसराएल का न्यायी बना। जब वह युद्ध करने निकला तो यहोवा ने मेसोपोटामिया* के राजा कूशन-रिशातैम को उसके हाथ कर दिया और उसने कूशन-रिशातैम को बुरी तरह हराया। 11 इसके बाद देश में 40 साल तक शांति बनी रही। फिर कनज का बेटा ओत्नीएल मर गया।

12 इसराएली एक बार फिर उन्हीं कामों में लग गए जो यहोवा की नज़र में बुरे थे।+ यहोवा ने मोआब+ के राजा एगलोन को इसराएल पर जीत हासिल करने दी क्योंकि इसराएली यहोवा की नज़र में बुरे काम कर रहे थे। 13 एगलोन, अम्मोनियों और अमालेकियों को साथ लेकर उनके खिलाफ आया।+ उन्होंने इसराएल पर हमला किया और खजूर के पेड़ों के शहर+ पर कब्ज़ा कर लिया। 14 इसराएलियों ने 18 साल तक मोआब के राजा एगलोन की गुलामी की।+ 15 फिर वे मदद के लिए यहोवा को पुकारने लगे।+ यहोवा ने उनके छुटकारे के लिए एहूद+ को ठहराया,+ जो गेरा का बेटा था। वह बिन्यामीन+ गोत्र से था और बाएँ हाथ से काम करता था।+ जब मोआब के राजा एगलोन को नज़राना देने का वक्‍त आया, तो इसराएलियों ने एहूद के हाथ राजा को नज़राना भेजा। 16 एहूद ने अपने लिए एक खंजर बनाया जिसके दोनों तरफ धार थी और जिसकी लंबाई एक हाथ* थी। उसने अपने कपड़े के नीचे दायीं जाँघ पर उसे बाँध लिया। 17 फिर मोआब के राजा एगलोन के पास जाकर उसने नज़राना दिया। एगलोन बहुत मोटा था।

18 नज़राना देकर एहूद उन लोगों के साथ निकल पड़ा जो नज़राना लेकर उसके साथ राजा के पास आए थे। 19 मगर जब एहूद गिलगाल+ में गढ़ी हुई मूरतों* के पास पहुँचा, तो वह वापस राजा के पास आया। उसने कहा, “हे राजा, मैं तेरे लिए एक गुप्त संदेश लाया हूँ।” तब राजा ने अपने सेवकों को बाहर जाने का आदेश दिया और वे सब चले गए। 20 राजा छत पर अपने हवादार कमरे में बैठा हुआ था। एहूद ने उससे कहा, “परमेश्‍वर ने तेरे लिए एक संदेश भेजा है।” यह सुनकर राजा अपनी राजगद्दी से उठा। 21 तभी एहूद ने अपने बाएँ हाथ से दायीं जाँघ पर बँधा खंजर निकाला और राजा के पेट में भोंक दिया। 22 एहूद ने खंजर बाहर नहीं खींचा और खंजर के साथ-साथ उसका हत्था भी उसके पेट में घुस गया। पूरा-का-पूरा खंजर राजा की चरबी में समा गया और उसका मल बाहर आ गया। 23 फिर एहूद छत के उस कमरे को ताला लगाकर बरामदे* से बाहर निकल गया। 24 उसके जाने के बाद राजा के सेवक वहाँ आए और उन्होंने देखा कि कमरे का दरवाज़ा बंद है। वे कहने लगे, “राजा अंदरवाले कमरे में हलका होने* गया होगा।” 25 काफी देर इंतज़ार करने के बाद भी जब राजा बाहर नहीं आया तो वे परेशान हो गए। उन्होंने चाबी लेकर ताला खोला और देखा कि उनका मालिक ज़मीन पर मरा पड़ा है।

26 इस बीच एहूद वहाँ से भाग निकला और गढ़ी हुई मूरतों* से होते हुए+ सही-सलामत सेइरे पहुँच गया। 27 वहाँ एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश+ पहुँचकर उसने नरसिंगा फूँका+ और इसराएली उसके साथ पहाड़ी प्रदेश से नीचे आए। एहूद उनके आगे-आगे चला। 28 एहूद ने उनसे कहा, “मेरे पीछे आओ क्योंकि यहोवा ने तुम्हारे दुश्‍मन मोआबियों को तुम्हारे हाथ कर दिया है।” तब वे उसके पीछे-पीछे गए और यरदन के घाटों पर तैनात हो गए ताकि मोआबी सैनिक यरदन पार न कर सकें। 29 उस दिन इसराएलियों ने 10,000 मोआबी सूरमाओं को मार डाला,+ उनमें से एक भी बचकर न भाग सका।+ 30 इस तरह इसराएलियों ने मोआब को अपने अधीन कर लिया और देश में 80 साल तक शांति बनी रही।+

31 एहूद के बाद, अनात के बेटे शमगर+ ने इसराएलियों को बचाया। उसने एक नुकीले छड़* से 600 पलिश्‍ती आदमियों+ को मार गिराया।+

4 एहूद की मौत के बाद इसराएली फिर वही करने लगे जो यहोवा की नज़र में बुरा था।+ 2 इसलिए यहोवा ने उन्हें कनान के राजा याबीन के हवाले कर दिया,+ जो हासोर में राज करता था। उसके सेनापति का नाम सीसरा था, जो हरोशेत-हाग्गोयीम में रहता था।+ 3 याबीन के* पास 900 युद्ध-रथ थे जिनके पहियों में तलवारें लगी हुई थीं।*+ वह इसराएलियों पर 20 साल तक बड़ी बेरहमी से ज़ुल्म ढाता रहा।+ इसलिए इसराएलियों ने रो-रोकर यहोवा से मदद की भीख माँगी।+

4 उस वक्‍त दबोरा नाम की एक भविष्यवक्‍तिन+ इसराएल में न्याय करती थी। वह लप्पीदोत की पत्नी थी। 5 वह एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश में रामाह+ और बेतेल+ के बीच, दबोरा के खजूर के पेड़ के नीचे बैठा करती थी। इसराएली किसी मामले पर परमेश्‍वर का फैसला जानने के लिए उसके पास आया करते थे। 6 दबोरा ने केदेश-नप्ताली+ से अबीनोअम के बेटे बाराक+ को बुलवाया और उससे कहा, “इसराएल का परमेश्‍वर यहोवा तुझे यह आज्ञा देता है, ‘जा और नप्ताली और जबूलून गोत्र से 10,000 आदमियों को ले और ताबोर पहाड़ पर युद्ध के लिए इकट्ठा हो। 7 मैं याबीन के सेनापति सीसरा, उसके युद्ध-रथों और सैनिकों को तेरे पास कीशोन घाटी में लाऊँगा+ और उन्हें तेरे हाथ में कर दूँगा।’”+

8 तब बाराक ने दबोरा से कहा, “मैं वहाँ तभी जाऊँगा जब तू मेरे साथ चलेगी। अगर तू मेरे साथ नहीं आएगी तो मैं भी नहीं जाऊँगा।” 9 दबोरा ने कहा, “मैं तेरे साथ ज़रूर चलूँगी। लेकिन इस युद्ध से तेरी बड़ाई नहीं होगी क्योंकि यहोवा एक औरत के हाथों सीसरा को मरवाएगा।”+ तब दबोरा, बाराक के साथ केदेश+ गयी। 10 बाराक ने जबूलून और नप्ताली+ के लोगों को केदेश बुलाया और 10,000 आदमी उसके पीछे-पीछे चल दिए। दबोरा भी उसके साथ गयी।

11 हेबेर नाम का एक केनी आदमी अपने लोगों+ से अलग होकर, केदेश में सानन्‍नीम के बड़े पेड़ के पास तंबू में रहता था। केनी लोग मूसा के ससुर+ होबाब के वंशज थे।

12 सीसरा को खबर मिली कि अबीनोअम का बेटा बाराक, ताबोर पहाड़ पर आया है।+ 13 यह सुनते ही सीसरा ने अपने 900 युद्ध-रथों को जिनके पहियों में तलवारें लगी थीं* और अपनी पूरी सेना को इकट्ठा किया कि उन्हें लेकर हरोशेत-हाग्गोयीम से कीशोन घाटी की तरफ जाए।+ 14 दबोरा ने बाराक से कहा, “तैयार हो जा! आज यहोवा सीसरा को तेरे हाथ में कर देगा। देख, यहोवा तेरे आगे-आगे चल रहा है।” बाराक ताबोर पहाड़ से नीचे उतरा और 10,000 आदमी उसके पीछे-पीछे आए। 15 यहोवा ने सीसरा, उसके युद्ध-रथों और उसकी फौज के बीच खलबली मचा दी+ और वे बाराक की तलवार के आगे हार गए। तब सीसरा अपने रथ से नीचे उतरा और जान बचाकर भागने लगा। 16 बाराक ने सीसरा के युद्ध-रथों और उसकी फौज का हरोशेत-हाग्गोयीम तक पीछा किया। सीसरा की पूरी फौज तलवार से मार डाली गयी, एक भी सैनिक ज़िंदा नहीं बचा।+

17 सीसरा भागते-भागते याएल के तंबू पर पहुँचा,+ जो केनी हेबेर की पत्नी थी।+ वह वहाँ इसलिए गया क्योंकि हासोर के राजा याबीन+ और हेबेर के घराने के बीच शांति थी। 18 तब याएल, सीसरा से मिलने तंबू से बाहर आयी और उसने कहा, “आइए मेरे मालिक, अंदर आइए। डरिए मत।” तब सीसरा उसके तंबू में गया और याएल ने उसे कंबल ओढ़ा दिया। 19 सीसरा ने याएल से कहा, “मुझे प्यास लगी है, मेहरबानी करके मुझे थोड़ा पानी पिला दे।” याएल ने एक मशक से दूध लिया और सीसरा को पीने के लिए दिया।+ फिर उसने दोबारा उसे कंबल ओढ़ा दिया। 20 सीसरा ने याएल से कहा, “तू तंबू के द्वार पर खड़ी हो जा। अगर कोई आकर तुझसे पूछे, ‘क्या अंदर कोई आदमी है?’ तो कह देना, ‘अंदर कोई नहीं है।’”

21 सीसरा बहुत थका हुआ था इसलिए वह गहरी नींद सो गया। तब हेबेर की पत्नी याएल ने तंबू की एक खूँटी और हथौड़ा लिया और दबे पाँव सीसरा के पास आयी। उसने सीसरा की कनपटी पर खूँटी रखकर ऐसा हथौड़ा मारा कि खूँटी उसके सिर के आर-पार होकर ज़मीन में जा धँसी और सीसरा ने वहीं दम तोड़ दिया।+

22 जब बाराक, सीसरा को ढूँढ़ते-ढूँढ़ते वहाँ आया तो याएल उससे मिलने बाहर आयी। उसने बाराक से कहा, “मेरे साथ अंदर आ। जिस आदमी को तू ढूँढ़ रहा है वह यहाँ है।” बाराक उसके साथ तंबू में गया और उसने देखा कि सीसरा मरा पड़ा है और तंबू की खूँटी उसके सिर के आर-पार घुसी है।

23 उस दिन परमेश्‍वर ने कनान के राजा याबीन को इसराएलियों के अधीन कर दिया।+ 24 और वे याबीन पर हावी होते गए और आखिरकार उसे* मौत के घाट उतार दिया।+

5 उस दिन दबोरा+ ने अबीनोअम के बेटे बाराक+ के साथ यह गीत गाया:+

 2 “यहोवा की बड़ाई हो!

इसराएली खुशी-खुशी लड़ने आए,+

उन्होंने अपनी शपथ* पूरी की।

 3 हे राजाओ सुनो! हे शासको कान लगाओ,

मैं यहोवा के लिए गाऊँगी,

इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा+ की तारीफ में गाऊँगी।*+

 4 हे यहोवा जब तू सेईर से निकला,+

एदोम के इलाके से होकर गया,

तब धरती काँप उठी, आकाश के झरोखे खुल गए

और बादल ज़ोरों से बरसने लगे।

 5 यहोवा के सामने पहाड़ पिघल गए,*+

हाँ, इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा+ के सामने

सीनै पहाड़ भी पिघल गया।+

 6 अनात के बेटे शमगर+ के दिनों में,

याएल+ के दिनों में, सड़कें सूनी हो गयीं,

मुसाफिर दूसरे रास्तों से आने-जाने लगे।

 7 इसराएल में गाँव-के-गाँव खत्म हो गए।

फिर मैं, दबोरा+ उनकी मदद के लिए खड़ी हुई

उनकी माँ बनकर मैंने उन्हें सँभाला।+

 8 उन्होंने अपने लिए नए-नए देवता चुन लिए।+

तब शहर के फाटकों पर युद्ध हुआ,+

40,000 इसराएलियों में से किसी के पास भी

न तो ढाल थी न ही बरछी।

 9 मैं पूरे दिल से इसराएल के सेनापतियों के साथ हूँ+

जो लोगों के संग अपने दुश्‍मनों से लड़ने आगे आए।+

यहोवा की बड़ाई हो!

10 हे भूरे गधों पर सवार होनेवालो,

बढ़िया-बढ़िया कालीनों पर बैठनेवालो,

हे सड़कों पर चलनेवालो, ध्यान दो:

11 कुएँ पर पानी पिलानेवालों में बातें हो रही थीं,

वे यहोवा के नेक कामों का गुण गा रहे थे,

उसके लोगों के नेक कामों की वाह-वाही कर रहे थे,

उन लोगों की जो इसराएल के गाँवों में रहते हैं।

तब यहोवा के लोग फाटकों की तरफ गए।

12 हे दबोरा+ उठ! उठ जा!

उठकर एक गीत गा!+

हे अबीनोअम के बेटे बाराक!+ फुर्ती कर और अपने बंदियों को ले जा।

13 बचे हुए लोग हाकिमों के पास आए,

यहोवा के लोग शूरवीरों का सामना करने मेरे पास आए,

14 जो लोग घाटी में उतरे वे एप्रैम से थे।

हे बिन्यामीन, वे तेरे लोगों के साथ तेरे पीछे-पीछे आ रहे हैं।

माकीर+ से सेनापति आए

और जबूलून से सेना में भरती करानेवाले।*

15 इस्साकार के हाकिम दबोरा के साथ थे,

इस्साकार तो था ही, बाराक+ भी दबोरा के संग था।

बाराक घाटी में पैदल गया,+

मगर रूबेन का घराना मन टटोलता रह गया।

16 तुम* दो बोरों* के बीच ही बैठे रहे,

चरवाहों की बाँसुरी की धुन में ही खो गए,

रूबेन का घराना बस मन टटोलता रह गया।

17 गिलाद, यरदन के उस पार ही रहा,+

और दान भी जहाज़ों को छोड़कर न आया।+

आशेर समुंदर किनारे हाथ-पर-हाथ धरे बैठा रहा,

अपने बंदरगाह से टस-से-मस न हुआ।+

18 मगर जबूलून अपनी जान पर खेल गया,

पहाड़ियों+ पर नप्ताली ने भी जान की बाज़ी लगा दी।+

19 राजाओं ने आकर लड़ाई की,

मगिद्दो के सोतों के पास तानाक में+

कनान के राजाओं ने युद्ध किया।+

पर लूट में उनके हाथ चाँदी नहीं लगी।+

20 आसमान के तारों ने युद्ध किया,

वे अपने पथ में घूमते हुए सीसरा से लड़ने लगे।

21 कीशोन नदी दुश्‍मनों को बहा ले गयी,+

वही प्राचीन नदी, कीशोन नदी।

मैंने बड़े-बड़े योद्धाओं को कुचल डाला।

22 जंगी घोड़े धड़धड़ाते हुए आए,

सरपट दौड़नेवाले उसके घोड़ों की टाप बज उठी।+

23 यहोवा के स्वर्गदूत ने कहा, ‘मेरोज को शाप दो,

उसके निवासियों को शाप दो।

क्योंकि वे यहोवा की मदद करने नहीं आए,

उनके सूरमा, यहोवा की मदद के लिए नहीं पहुँचे।’

24 केनी हेबेर+ की पत्नी याएल औरतों में धन्य है,+

तंबुओं में रहनेवाली सब औरतों में धन्य है।

25 सीसरा ने पानी माँगा और उसने उसे दूध दिया,

दावत के बड़े कटोरे में उसे मलाईवाला दूध पिलाया।+

26 उसने हाथ बढ़ाकर तंबू की खूँटी ली,

दाएँ हाथ से उसने मज़दूर का हथौड़ा उठाया

और सीसरा को ऐसा मारा कि उसका सिर फट गया,

उसकी कनपटी आर-पार छिद गयी।+

27 वह उसके पैरों पर ही ढेर हो गया,

वह गिरा और फिर उठ न सका,

हाँ, वह उसके पैरों पर ही ढेर हो गया

और उसने वहीं दम तोड़ दिया।

28 खिड़की पर एक औरत आँखें बिछाए हुए थी,

हाँ, सीसरा की माँ झरोखे से ताक रही थी,

‘उसका रथ अभी तक आया क्यों नहीं?

उसके घोड़ों की टाप क्यों नहीं सुनायी दे रही?’+

29 महल की बुद्धिमान औरतों ने उससे कहा,

उसने भी मन-ही-मन सोचा,

30 ‘वे लोग ज़रूर लूट का माल बाँट रहे होंगे,

हर योद्धा को एक या दो लड़कियाँ दी जा रही होंगी,

सीसरा को रंगीन कपड़े दिए जा रहे होंगे, लूट में मिले रंगीन कपड़े।

हर लुटेरे को गले में डालने के लिए

रंगीन, कढ़ाईदार कपड़ा मिल रहा होगा,

हाँ, उन्हें दो-दो कपड़े मिल रहे होंगे।’

31 हे यहोवा, तेरे सब दुश्‍मन इसी तरह मिट जाएँ,+

मगर जो तुझसे प्यार करते हैं,

उनका तेज उगते सूरज की तरह बढ़ता जाए।”

इसके बाद 40 साल तक देश में शांति बनी रही।+

6 इसराएली एक बार फिर वही करने लगे, जो यहोवा की नज़र में बुरा था।+ इसलिए यहोवा ने उन्हें सात साल के लिए मिद्यानियों के हवाले कर दिया।+ 2 मिद्यानी, इसराएलियों पर घोर अत्याचार करने लगे।+ उनकी वजह से इसराएलियों ने पहाड़ों पर, गुफाओं में और ऐसी जगहों पर छिपने की जगह* बनायी जहाँ दुश्‍मन न पहुँच सकें।+ 3 जब इसराएली अपने खेतों में बीज बोते तो मिद्यानी, अमालेकी+ और पूर्वी देशों के लोग+ उन पर धावा बोल देते। 4 वे छावनी डालते और गाज़ा तक उनके सारे खेत उजाड़ देते। वे इसराएलियों के खाने के लिए कुछ नहीं छोड़ते, उनकी भेड़ों, बैलों और गधों तक को लूट ले जाते।+ 5 जब मिद्यानी अपने मवेशियों के साथ डेरा डालते, तो ऐसा लगता मानो अनगिनत टिड्डियाँ मैदान में उतर आयी हों।+ मिद्यानियों और उनके ऊँटों का हिसाब लगाना मुश्‍किल होता।+ वे आकर इसराएलियों का इलाका तहस-नहस कर देते। 6 उनकी वजह से इसराएल में घोर गरीबी फैल गयी और इसराएली मदद के लिए यहोवा के आगे गिड़गिड़ाने लगे।+

7 जब इसराएलियों ने मिद्यानियों से परेशान होकर यहोवा को पुकारा,+ 8 तो यहोवा ने अपना एक भविष्यवक्‍ता भेजा, जिसने उनसे कहा, “इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा का यह संदेश है, ‘मैं तुम्हें गुलामी के घर, मिस्र से निकाल लाया।+ 9 मैंने तुम्हें मिस्रियों से और जो भी तुम पर ज़ुल्म करते थे, उन सबके हाथ से बचाया और तुम्हारे दुश्‍मनों को तुम्हारे सामने से खदेड़कर उनका देश तुम्हें दिया।+ 10 मैंने कहा था, “मैं तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा हूँ,+ तुम एमोरियों के देवताओं की उपासना मत करना, जिनके देश में तुम रहते हो।”+ लेकिन तुमने मेरी बात नहीं मानी।’”+

11 इसके बाद, यहोवा का एक स्वर्गदूत ओप्रा में आया+ और जाकर उस बड़े पेड़ के नीचे बैठ गया जो अबीएजेर वंशी+ योआश का था। योआश का बेटा गिदोन+ अंगूर रौंदनेवाले हौद में गेहूँ की बालें पीटकर दाने निकाल रहा था ताकि उन्हें मिद्यानियों से छिपाकर रखे। 12 यहोवा का स्वर्गदूत उसके सामने आया और उसने कहा, “हे वीर योद्धा! यहोवा तेरे साथ है।”+ 13 गिदोन ने उससे कहा, “माफ करना मेरे मालिक, अगर यहोवा हमारे साथ है तो हमारा यह हाल क्यों हुआ?+ हमारे बाप-दादा तो उसके अद्‌भुत कामों को याद करते हुए कहते थे,+ ‘यहोवा ने हमें मिस्र से छुड़ाया।’+ तो अब वह हमारे लिए क्यों कुछ नहीं करता? यहोवा ने हमें छोड़ दिया है,+ हमें मिद्यानियों के हवाले कर दिया है!” 14 यहोवा ने उसकी तरफ देखकर कहा, “तू इसराएल को मिद्यानियों के हाथ से छुड़ाएगा+ क्योंकि मैं तुझे भेज रहा हूँ। इसलिए हिम्मत जुटा और जा।” 15 गिदोन ने उससे कहा, “माफ करना यहोवा, मगर मैं इसराएल को कैसे छुड़ा सकता हूँ? मेरा कुल तो मनश्‍शे के गोत्र में सबसे छोटा है और मैं अपने पिता के पूरे घराने में एक मामूली इंसान हूँ।” 16 लेकिन यहोवा ने उससे कहा, “मैं तेरे साथ रहूँगा+ और तू मिद्यानियों को ऐसे मार गिराएगा जैसे कोई अकेले आदमी को मार गिराता है।”

17 तब गिदोन ने उससे कहा, “अगर तू वाकई मुझसे खुश है, तो मुझे कोई निशानी दिखा कि तू* ही मुझसे बात कर रहा है। 18 जब तक मैं अपनी भेंट लेकर न आऊँ और उसे तेरे सामने न रखूँ, तू यहाँ से मत जाना।”+ उसने कहा, “ठीक है, तेरे आने तक मैं यहीं रहूँगा।” 19 गिदोन अंदर गया और उसने बकरी का एक बच्चा पकाया और एक एपा* आटे से बिन-खमीर की रोटियाँ बनायीं।+ फिर उसने टोकरी में गोश्‍त रखा और हाँडी में शोरबा लिया और बाहर आकर बड़े पेड़ के नीचे परोसा।

20 तब सच्चे परमेश्‍वर के स्वर्गदूत ने उससे कहा, “यह गोश्‍त और बिन-खमीर की रोटियाँ ले जाकर उस बड़ी चट्टान पर रख और उस पर शोरबा उँडेल दे।” गिदोन ने ऐसा ही किया। 21 फिर यहोवा के स्वर्गदूत ने अपनी छड़ी उस चट्टान की तरफ बढ़ायी। जैसे ही उसने छड़ी की नोक से गोश्‍त और बिन-खमीर की रोटियों को छुआ, चट्टान से आग निकली और गोश्‍त और रोटियाँ भस्म हो गयीं।+ यहोवा का स्वर्गदूत गिदोन के सामने से गायब हो गया। 22 गिदोन समझ गया कि वह यहोवा का स्वर्गदूत ही था।+

गिदोन ने तुरंत कहा, “हे सारे जहान के मालिक यहोवा, मैंने तेरे स्वर्गदूत को आमने-सामने देख लिया!+ हे यहोवा, अब क्या होगा?” 23 यहोवा ने उससे कहा, “शांत हो जा।* डर मत,+ तू नहीं मरेगा।” 24 इसके बाद गिदोन ने वहाँ यहोवा के लिए एक वेदी बनायी। उसने उसका नाम यहोवा-शालोम* रखा,+ जो आज तक इसी नाम से जानी जाती है। यह वेदी आज भी ओप्रा में अबीएजेरियों के इलाके में है।

25 उसी रात यहोवा ने गिदोन से कहा, “अपने पिता का बैल ले, वह बैल* जो सात साल का है। और बाल की जो वेदी तेरे पिता की है उसे गिरा दे और पास खड़ी पूजा-लाठ* भी काट डाल।+ 26 इसके बाद तू उस ऊँची जगह पर, पत्थरों को कतार में रखकर अपने परमेश्‍वर यहोवा के लिए एक वेदी बना। और उस पर बैल* को होम-बलि करके चढ़ा। जिस पूजा-लाठ को तू काटेगा, उसी की लकड़ियों पर यह होम-बलि चढ़ाना।” 27 तब गिदोन ने अपने सेवकों में से दस आदमी लिए और जैसा यहोवा ने कहा था, वैसा ही किया। लेकिन उसे अपने पिता के घराने और शहर के लोगों का डर था, इसलिए उसने यह काम दिन में नहीं रात में किया।

28 अगली सुबह जब शहर के आदमी उठे तो उन्होंने देखा कि बाल की वेदी गिरा दी गयी है और उसके पास की पूजा-लाठ भी काट दी गयी है और वहाँ एक नयी वेदी खड़ी है जिस पर बैल* अर्पित किया गया है। 29 तब वे एक-दूसरे से पूछने लगे, “यह किसका काम है?” पूछताछ करने पर उन्हें पता चला कि यह योआश के बेटे गिदोन का काम है। 30 शहर के आदमियों ने योआश से कहा, “बाहर ला अपने बेटे को। हम उसे ज़िंदा नहीं छोड़ेंगे! उसने बाल की वेदी तोड़ी है और वहाँ खड़ी पूजा-लाठ को काटा है।” 31 तब योआश+ ने उस भीड़ से जो उसे घेरे खड़ी थी कहा, “क्या बाल को तुम्हारी ज़रूरत है कि तुम उसकी वकालत करो और उसे बचाओ? कान खोलकर सुन लो, जो भी उसकी वकालत करेगा वह आज सुबह मार डाला जाएगा।+ अगर बाल सचमुच ईश्‍वर है तो वह खुद को बचाकर दिखाए,+ आखिर उसकी वेदी गिरायी गयी है।” 32 उस दिन योआश ने अपने बेटे गिदोन का नाम यरुब्बाल* रखा क्योंकि उसने कहा, “बाल खुद को बचाकर दिखाए, आखिर उसकी वेदी गिरायी गयी है।”

33 फिर सभी मिद्यानी,+ अमालेकी+ और पूर्वी देशों के लोग एकजुट हो गए+ और नदी पार कर यिजरेल घाटी में आए और वहाँ अपना डेरा डाला। 34 तब यहोवा की पवित्र शक्‍ति गिदोन पर उतरी+ और उसने नरसिंगा फूँका।+ अबीएजेरी लोग+ गिदोन के पीछे-पीछे गए। 35 गिदोन ने मनश्‍शे के पूरे इलाके में अपने दूत भेजे और लोग उसके पीछे हो लिए। उसने आशेर, जबूलून और नप्ताली के इलाकों में भी अपने दूत भेजे और लोग उसका साथ देने आए।

36 गिदोन ने सच्चे परमेश्‍वर से कहा, “अगर तू अपने वादे के मुताबिक इसराएल को मेरे हाथों बचानेवाला है,+ 37 तो मैं खलिहान में यह कतरा हुआ ऊन रख रहा हूँ। अगर ऊन पर ओस पड़ी मगर इसके आस-पास की ज़मीन सूखी रही, तो मैं जान लूँगा कि तू मेरे हाथों इसराएल को बचाएगा, ठीक जैसा तूने वादा किया है।” 38 अगले दिन वैसा ही हुआ। जब गिदोन सुबह-सुबह उठा और उसने कतरा हुआ ऊन निचोड़ा, तो उसमें से इतना पानी निकला कि एक बड़ा कटोरा भर गया। 39 फिर गिदोन ने सच्चे परमेश्‍वर से कहा, “हे परमेश्‍वर, तेरा गुस्सा मुझ पर न भड़के। तुझसे एक और बिनती है। मैं एक बार फिर परखकर देखना चाहता हूँ कि तू मेरे साथ है या नहीं। इस बार ऐसा हो कि कतरा हुआ ऊन सूखा रहे और आस-पास की ज़मीन ओस से गीली हो जाए।” 40 उस रात परमेश्‍वर ने ठीक वैसा ही किया, ऊन बिलकुल सूखा रहा मगर आस-पास की ज़मीन ओस से भीग गयी।

7 फिर यरुब्बाल यानी गिदोन+ और उसके सब आदमी सुबह-सुबह उठे और उन्होंने ‘हरोद के सोते’ के पास डेरा डाला। मिद्यानियों की छावनी उनके उत्तर में मोरे पहाड़ी के पास घाटी में थी। 2 यहोवा ने गिदोन से कहा, “तेरे साथ बहुत ज़्यादा आदमी हैं। अगर मैंने मिद्यानियों को तुम्हारे हाथ कर दिया,+ तो इसराएली शायद डींगें मारें और मुझसे कहें, ‘हमने अपने दम पर जीत हासिल की है।’+ 3 इसलिए जा और अपने आदमियों के सामने घोषणा कर, ‘तुममें से अगर कोई युद्ध में जाने से डर रहा है, तो वह अपने घर लौट जाए।’”+ यह घोषणा करके गिदोन ने उनको परखा और 22,000 आदमी घर लौट गए, सिर्फ 10,000 आदमी रह गए।

4 यहोवा ने गिदोन से कहा, “अब भी तेरे पास बहुत ज़्यादा आदमी हैं। ऐसा कर कि तू इन्हें नीचे पानी की धारा के पास ले जा और वहाँ मैं इन आदमियों को छाटँने में तेरी मदद करूँगा। जिसके बारे में मैं कहूँ कि वह तेरे साथ जाएगा, तू उसे ले जाना और जिसके बारे में कहूँ कि वह तेरे साथ नहीं जाएगा, तू उसे मत ले जाना।” 5 तब गिदोन अपने आदमियों को नीचे धारा के पास ले गया।

यहोवा ने गिदोन से कहा, “जितने भी आदमी चुल्लू से पानी पीते वक्‍त चारों ओर नज़र रखेंगे,* उन्हें तू एक तरफ कर देना। और जो घुटनों के बल बैठेंगे और सीधे धारा में मुँह डालकर पीएँगे, उन्हें तू दूसरी तरफ कर देना।” 6 उन सबमें से सिर्फ 300 लोग ऐसे निकले जिन्होंने चुल्लू से पानी पीया जबकि बाकी आदमियों ने घुटनों के बल बैठकर धारा में मुँह डालकर पीया।

7 तब यहोवा ने गिदोन से कहा, “इन्हीं 300 आदमियों के हाथों मैं इसराएल को बचाऊँगा और मिद्यानियों को तुम लोगों के हवाले कर दूँगा।+ बाकी आदमियों को तू घर भेज दे।” 8 इसलिए गिदोन ने उन 300 आदमियों को अपने साथ रखा और बाकियों को घर भेज दिया। बाकी सैनिकों से उन्होंने खाने-पीने का सामान और नरसिंगे ले लिए। उनके दुश्‍मन मिद्यानी, नीचे घाटी में डेरा डाले हुए थे।+

9 रात को यहोवा ने गिदोन से कहा, “मिद्यानियों की छावनी पर हमला करने के लिए तैयार हो जा क्योंकि मैंने उनको तेरे हवाले कर दिया है।+ 10 लेकिन अगर तू हमला करने से डर रहा है, तो अपने सेवक पूराह के साथ नीचे दुश्‍मनों की छावनी में जा 11 और सुन कि वे आपस में क्या बातें कर रहे हैं। तब तेरे अंदर उनसे लड़ने की हिम्मत आ जाएगी।” गिदोन अपने सेवक पूराह के साथ मिद्यानियों की छावनी के पास गया।

12 मिद्यानी, अमालेकी और पूर्वी देशों के लोगों+ से घाटी ऐसी भरी थी मानो वहाँ टिड्डियों का झुंड उतर आया हो। और उनके ऊँटों की गिनती समुंदर किनारे की बालू के किनकों की तरह अनगिनत थी।+ 13 जब गिदोन दुश्‍मन की छावनी के पास गया, तो एक आदमी अपने साथी को अपना सपना बता रहा था। उसने कहा, “मैंने सपने में जौ की एक गोल रोटी देखी जो लुढ़कती हुई मिद्यानियों की छावनी की तरफ आ रही थी। वह आकर तंबू से ऐसी टकरायी कि पूरा तंबू पलट गया।+ ज़रा सोचो, एक रोटी से पूरा-का-पूरा तंबू गिरकर सपाट हो गया।” 14 उसके साथी ने कहा, “यह रोटी कुछ और नहीं गिदोन की तलवार है,+ उसी इसराएली की जो योआश का बेटा है। परमेश्‍वर ने मिद्यानियों और पूरी छावनी को उसके हाथ कर दिया है।”+

15 जैसे ही गिदोन ने वह सपना सुना और उसका मतलब जाना,+ उसने झुककर परमेश्‍वर को दंडवत किया। इसके बाद वह इसराएल की छावनी में लौट आया। उसने इसराएलियों से कहा, “तैयार हो जाओ क्योंकि यहोवा ने मिद्यानियों को तुम्हारे हाथ कर दिया है।” 16 गिदोन ने 300 आदमियों को तीन दलों में बाँटा और हरेक को एक-एक नरसिंगा+ और एक-एक मटका दिया जिसके अंदर मशाल थी। 17 फिर उसने कहा, “तुम मुझ पर ध्यान देना और जैसा मैं करूँ, ठीक वैसा करना। जब मैं दुश्‍मनों की छावनी के पास जाऊँ, तो तुम भी मेरे पीछे आना। 18 जब मैं और मेरे साथी नरसिंगे फूँकें तो तुम जो छावनी के चारों तरफ खड़े रहोगे, तुम भी नरसिंगे फूँकना और ज़ोर से चिल्लाना, ‘यह युद्ध यहोवा का है! गिदोन का है!’”

19 अब रात का दूसरा पहर* शुरू हुआ और मिद्यानियों के पहरा देनेवाले आदमी बदले गए। उसी वक्‍त, गिदोन के साथ उसके 100 आदमी मिद्यानियों की छावनी के पास आए। उन्होंने ज़ोर से अपने नरसिंगे फूँके+ और मटके फोड़े।+ 20 इस तरह, तीनों दलों ने नरसिंगे फूँके और मटके फोड़े। वे बाएँ हाथ में मशाल और दाएँ हाथ में नरसिंगा लिए ज़ोरदार आवाज़ में चिल्लाए, “यहोवा की तलवार और गिदोन की तलवार!” 21 गिदोन का हर आदमी छावनी के चारों तरफ अपनी-अपनी जगह खड़ा रहा। दुश्‍मन की पूरी सेना चिल्लाती हुई इधर-उधर भागने लगी।+ 22 इस दौरान, गिदोन के 300 आदमी नरसिंगे फूँकते रहे और यहोवा ने ऐसा किया कि दुश्‍मन सैनिक एक-दूसरे पर ही तलवार चलाने लगे।+ दुश्‍मन सेना भागते-भागते सरेरा की तरफ बेत-शित्ता पहुँची और फिर वहाँ से आबेल-महोला+ की सरहद तक गयी, जो तब्बात के नज़दीक है।

23 तब नप्ताली, आशेर और मनश्‍शे के पूरे गोत्र+ से और भी इसराएलियों को बुलाया गया और उन्होंने मिलकर मिद्यानियों का पीछा किया। 24 गिदोन ने एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश में सभी जगह दूत भेजे और कहा, “इससे पहले कि मिद्यानी बेतबारा के सोतों और यरदन के घाटों पर पहुँचें, तुम जाकर वहाँ तैनात हो जाओ ताकि वे भाग न पाएँ।” तब एप्रैम के सभी आदमी इकट्ठा हुए और वे यरदन के घाटों और बेतबारा के सोतों पर तैनात हो गए। 25 उन्होंने मिद्यानियों के दो हाकिमों को भी पकड़ लिया, एक का नाम था ओरेब और दूसरे का ज़ाएब। उन्होंने ओरेब को एक बड़ी चट्टान पर मार डाला, जो आगे चलकर ओरेब की चट्टान कहलायी।+ और ज़ाएब को उन्होंने अंगूर रौंदनेवाले हौद में मार डाला, जो बाद में ज़ाएब के हौद के नाम से जाना गया। इसराएली मिद्यानियों का पीछा करते रहे।+ और यरदन के इलाके में जब वे गिदोन के पास आए, तो अपने साथ ओरेब और ज़ाएब का सिर लाए।

8 एप्रैम के आदमियों ने गिदोन से कहा, “जब तू मिद्यानियों से लड़ने गया तो तूने हमें क्यों नहीं बुलाया?+ यह तूने ठीक नहीं किया।” और वे गिदोन से झगड़ने लगे।+ 2 लेकिन गिदोन ने उनसे कहा, “मैं कौन होता हूँ तुम्हारी बराबरी करनेवाला? हम अबीएजेर के आदमियों+ ने जो किया, उससे कहीं बढ़कर तुम एप्रैमियों+ ने किया।* 3 मिद्यानियों के हाकिम ओरेब और ज़ाएब को परमेश्‍वर ने तुम्हारे हवाले कर दिया।+ मैंने जो किया वह तुम्हारे मुकाबले कुछ भी नहीं।” गिदोन की बातें सुनकर उनका गुस्सा ठंडा हो गया।

4 फिर गिदोन दुश्‍मनों के पीछे-पीछे यरदन तक आया और उसने उसे पार किया। वह और उसके 300 आदमी थककर चूर हो गए, फिर भी वे उनका पीछा करते रहे। 5 सुक्कोत में आकर उसने वहाँ के लोगों से कहा, “मैं मिद्यानियों के राजा जेबह और सलमुन्‍ना का पीछा कर रहा हूँ। मेरे आदमी बहुत थक चुके हैं, मेहरबानी करके उन्हें खाने के लिए कुछ रोटियाँ दे दो।” 6 लेकिन सुक्कोत के हाकिमों ने कहा, “तू तो ऐसे रोटी माँग रहा है, जैसे तेरे आदमियों ने जेबह और सलमुन्‍ना को बंदी बना लिया हो!” 7 गिदोन ने उनसे कहा, “तो ठीक है तुम भी सुन लो, जब यहोवा जेबह और सलमुन्‍ना को मेरे हाथ में कर देगा तो मैं लौटकर तुम्हें जंगल की कँटीली झाड़ियों से खूब मारूँगा।”+ 8 फिर गिदोन, पनूएल गया और उसने वहाँ भी लोगों से रोटी माँगी। लेकिन उन्होंने भी वही जवाब दिया जो सुक्कोत के लोगों ने दिया था। 9 गिदोन ने पनूएल के लोगों से कहा, “जब मैं जीतकर लौटूँगा, तो तुम्हारे शहर की मीनार गिरा दूँगा।”+

10 जेबह और सलमुन्‍ना अपने 15,000 आदमियों के साथ कारकोर में थे। पूर्वी देश की सेना+ में सिर्फ इतने आदमी बच गए थे, बाकी 1,20,000 योद्धा मारे जा चुके थे। 11 गिदोन आगे बढ़ते हुए नोबह और योगबहा+ के पूरब में उस रास्ते से गया जहाँ खानाबदोश लोग रहते थे और उसने अचानक दुश्‍मनों की छावनी पर हमला बोल दिया। 12 मिद्यानी राजा जेबह और सलमुन्‍ना वहाँ से भाग निकले। मगर गिदोन ने उनका पीछा करके उन्हें पकड़ लिया और दुश्‍मनों की पूरी छावनी में अफरा-तफरी मच गयी।

13 युद्ध से लौटते वक्‍त, योआश का बेटा गिदोन उस चढ़ाई से होकर गुज़रा जो हेरेस को जाती थी। 14 रास्ते में उसने सुक्कोत के एक जवान आदमी को पकड़ा और उससे सुक्कोत के हाकिमों और मुखियाओं के बारे में पूछताछ की। उस आदमी ने गिदोन को उनके नाम लिखकर दिए, कुल मिलाकर 77 लोगों के नाम। 15 तब गिदोन ने सुक्कोत के आदमियों के पास आकर कहा, “ये रहे जेबह और सलमुन्‍ना! इन्हीं के बारे में तुमने मुझसे कहा था, ‘तू तो अपने थके हुए आदमियों के लिए ऐसे रोटी माँग रहा है, जैसे उन्होंने जेबह और सलमुन्‍ना को बंदी बना लिया हो!’”+ 16 फिर गिदोन ने जंगल की कँटीली झाड़ियाँ लेकर सुक्कोत के मुखियाओं की अच्छी खबर ली।+ 17 इसके बाद उसने पनूएल की मीनार गिरा दी+ और शहर के आदमियों को मार डाला।

18 गिदोन ने जेबह और सलमुन्‍ना से पूछा, “ताबोर में तुमने जिन लोगों को मारा था वे दिखने में कैसे थे?” उन्होंने कहा, “बिलकुल तेरे जैसे। वे किसी राजा के बेटे से कम नहीं दिख रहे थे।” 19 गिदोन ने कहा, “वे मेरे सगे भाई थे। मैं जीवित परमेश्‍वर यहोवा की शपथ खाकर कहता हूँ, अगर तुमने मेरे भाइयों को नहीं मारा होता, तो मैं भी तुम्हें नहीं मारता।” 20 फिर उसने अपने पहलौठे बेटे येतेर से कहा, “मार डाल इन्हें।” लेकिन येतेर ने अपनी तलवार नहीं निकाली, वह डर गया क्योंकि वह अभी लड़का ही था। 21 इस पर जेबह और सलमुन्‍ना ने गिदोन से कहा, “उससे क्या कह रहा है, अगर तुझमें हिम्मत है, तो उठा तलवार और मार डाल हमें।” तब गिदोन ने आगे बढ़कर जेबह और सलमुन्‍ना को मार डाला।+ और उनके ऊँटों की गरदन से चंद्रहार ले लिए।

22 इसके बाद इसराएलियों ने गिदोन से कहा, “तू हमारा राजा बन जा और तेरे बाद तेरे बेटे और पोते भी हम पर राज करें क्योंकि तूने हमें मिद्यानियों के हाथ से बचाया है।”+ 23 मगर गिदोन ने उनसे कहा, “न तो मैं, न मेरे बेटे तुम पर राज करेंगे। यहोवा तुम्हारा राजा है और वही तुम पर राज करेगा।”+ 24 उसने यह भी कहा, “तुमसे एक बिनती है, तुम अपने लूट के माल में से मुझे एक-एक नथ दो।” (क्योंकि इसराएलियों ने जिन्हें हराया था वे इश्‍माएली+ थे और सोने की नथ पहना करते थे।) 25 इसराएलियों ने कहा, “ज़रूर, क्यों नहीं।” उन्होंने एक कपड़ा फैलाया और हर आदमी अपने लूट के माल से एक-एक नथ उसमें डालता गया। 26 गिदोन को सोने की जितनी नथ मिलीं, उनका कुल वज़न 1,700 शेकेल* सोने के बराबर था। इसके अलावा उसे चंद्रहार, गले की लटकन, मिद्यानी राजाओं के बैंजनी रंग के कपड़े और ऊँटों के गले के हार भी मिले।+

27 गिदोन ने उस सोने से एक एपोद बनाया+ और अपने शहर ओप्रा+ में उसकी नुमाइश की। मगर सारे इसराएली एपोद को देवता मानकर पूजने लगे*+ और वह एपोद, गिदोन और उसके घराने के लिए फंदा साबित हुआ।+

28 इस तरह मिद्यानी+ इसराएलियों से हार गए और वे फिर कभी इसराएलियों के खिलाफ खड़े न हुए।* 40 साल तक, जब तक गिदोन ज़िंदा रहा, उनके इलाके में शांति बनी रही।+

29 योआश का बेटा यरुब्बाल*+ अपने घर लौट गया और वहाँ रहने लगा।

30 गिदोन के 70 बेटे हुए क्योंकि उसकी बहुत सारी पत्नियाँ थीं। 31 शेकेम में रहनेवाली उसकी उप-पत्नी से भी उसे एक बेटा हुआ जिसका नाम उसने अबीमेलेक रखा।+ 32 एक लंबी और खुशहाल ज़िंदगी जीने के बाद योआश का बेटा गिदोन मर गया। उसे अबीएजेरियों के इलाके ओप्रा में+ अपने पिता योआश की कब्र में दफनाया गया।

33 गिदोन के मरने के तुरंत बाद इसराएली फिर से बाल देवताओं की पूजा* करने लगे+ और उन्होंने बाल-बरीत को अपना ईश्‍वर बना लिया।+ 34 वे अपने परमेश्‍वर यहोवा को भूल गए+ जिसने आस-पास के सभी दुश्‍मनों से उन्हें बचाया था।+ 35 यही नहीं, यरुब्बाल यानी गिदोन ने उनके साथ जितनी भलाई की थी, वे उसे भी भूल गए और उन्होंने उसके घराने पर कोई कृपा* नहीं की।+

9 फिर ऐसा हुआ कि यरुब्बाल का बेटा अबीमेलेक,+ शेकेम में अपने मामाओं के पास आया। उसने उनसे और अपने नाना के घराने के सब लोगों से कहा, 2 “शेकेम के अगुवों* के पास जाकर पूछो कि तुम्हारे लिए क्या अच्छा है, यरुब्बाल के सभी 70 बेटे+ तुम पर राज करें या सिर्फ एक आदमी? उन्हें यह भी याद दिलाना कि मैं कोई पराया नहीं, उनका अपना खून हूँ।”*

3 तब उसके मामाओं ने शेकेम के अगुवों को वे सारी बातें बतायीं जो अबीमेलेक ने उनसे कही थीं। शेकेम के अगुवे अबीमेलेक का साथ देने के लिए कायल हो गए* क्योंकि उनका कहना था, “आखिर वह हमारा भाई है।” 4 फिर उन्होंने बाल-बरीत के मंदिर+ से उसे चाँदी के 70 टुकड़े दिए। अबीमेलेक ने उस रकम से कुछ निठल्ले बदमाश रख लिए। 5 वह उनके साथ अपने पिता के घर ओप्रा गया+ और उसने अपने भाइयों यानी यरुब्बाल के 70 बेटों को एक ही पत्थर पर मार डाला।+ मगर यरुब्बाल का सबसे छोटा बेटा योताम छिप गया और ज़िंदा बच गया।

6 फिर शेकेम के सभी अगुवों और बेत-मिल्लो के लोगों ने अबीमेलेक को राजा बनाया।+ वे शेकेम में बड़े पेड़ के पास, खंभे के पास इकट्ठा हुए थे।

7 जब इस बात की खबर योताम को मिली तो वह तुरंत गरिज्जीम पहाड़+ पर चढ़ा और ज़ोरदार आवाज़ में कहने लगा, “हे शेकेम के अगुवो, मेरी बात सुनो तब परमेश्‍वर भी तुम्हारी सुनेगा।

8 एक बार पेड़ों ने सोचा कि वे अपने लिए एक राजा चुनें। उन्होंने जैतून के पेड़ से कहा, ‘हम पर राज कर।’+ 9 लेकिन जैतून के पेड़ ने कहा, ‘मेरा काम तो तेल पैदा करना है जिससे परमेश्‍वर और इंसानों का आदर-सम्मान किया जाता है। भला अपना काम छोड़कर मैं दूसरे पेड़ों पर राज क्यों करूँ?’* 10 इसके बाद पेड़ों ने अंजीर के पेड़ से कहा, ‘आ, हम पर राज कर।’ 11 लेकिन अंजीर के पेड़ ने कहा, ‘मैं अपने मीठे-मीठे फलों और अपनी अच्छी पैदावार को छोड़कर तुम पर राज क्यों करूँ?’* 12 इसके बाद पेड़ों ने अंगूर की बेल से कहा, ‘आ, हम पर राज कर।’ 13 अंगूर की बेल ने कहा, ‘मुझसे नयी दाख-मदिरा बनती है जिससे परमेश्‍वर और इंसान खुश होते हैं। भला यह काम छोड़कर मैं तुम पर राज क्यों करूँ?’* 14 आखिरकार सब पेड़ों ने कँटीली झाड़ी से कहा, ‘आ, हम पर राज कर।’+ 15 तब कँटीली झाड़ी ने उन पेड़ों से कहा, ‘अगर तुम वाकई मेरा अभिषेक करके मुझे अपना राजा बनाना चाहते हो, तो मेरी छाँव में शरण लो। लेकिन अगर तुम मुझे राजा नहीं बनाओगे, तो मुझसे ऐसी आग निकलेगी जो लबानोन के देवदारों को भस्म कर देगी।’

16 अब बताओ, क्या तुमने सच्चे मन से अबीमेलेक को राजा बनाया है?+ क्या तुमने ऐसा करके सही किया? क्या तुमने यरुब्बाल और उसके घराने के साथ भलाई की और उसके साथ जैसा व्यवहार किया क्या वह सही था? 17 मेरे पिता ने अपनी जान पर खेलकर तुम्हें मिद्यानियों के हाथ से छुड़ाया।+ 18 लेकिन बदले में तुम लोगों ने क्या किया? तुम मेरे पिता के घराने के खिलाफ उठ खड़े हुए और उसके 70 बेटों को एक ही पत्थर पर मार डाला।+ फिर तुमने उसकी दासी के बेटे अबीमेलेक+ को शेकेम के अगुवों पर राजा ठहराया, बस इसलिए कि वह तुम्हारा भाई है। 19 अगर तुमने यरुब्बाल और उसके घराने के साथ जो किया, वह सच्चे मन से किया है और अगर वह सही है, तो तुम अबीमेलेक से खुश रहोगे और वह भी तुमसे खुश रहेगा। 20 लेकिन अगर तुमने बुरे इरादे से ऐसा किया है, तो वह शेकेम और बेत-मिल्लो+ के अगुवों को आग से भस्म कर देगा और शेकेम और बेत-मिल्लो के अगुवे भी अबीमेलेक को आग से भस्म कर देंगे।”+

21 फिर योताम+ वहाँ से भागकर बेर नाम की जगह चला गया और अपने भाई अबीमेलेक के डर से वहीं रहने लगा।

22 अबीमेलेक ने तीन साल तक इसराएल पर मनमाना राज किया। 23 फिर परमेश्‍वर ने उसके और शेकेम के अगुवों के बीच फूट पड़ने दी और वे अबीमेलेक के साथ विश्‍वासघात करने लगे। 24 यह इसलिए हुआ ताकि यरुब्बाल के 70 बेटों के खून का बदला लिया जा सके। और उनके खून का दोष उनके हत्यारे अबीमेलेक पर आए+ और शेकेम के अगुवों पर भी, जिन्होंने इस कत्लेआम में उसका साथ दिया था। 25 शेकेम के अगुवों ने अबीमेलेक के लिए पहाड़ों पर कुछ आदमियों को घात में बिठाया। और वे लोग आने-जानेवालों को लूटने लगे। इस बात की खबर अबीमेलेक को मिली।

26 फिर एबेद का बेटा गाल अपने भाइयों के साथ शेकेम आया और शेकेम+ के अगुवे उम्मीद करने लगे कि वह उनकी मदद करेगा। 27 उन्होंने अंगूरों के बाग में जाकर अंगूर इकट्ठे किए, उन्हें रौंदकर रस निकाला और जश्‍न मनाने लगे। वे अपने देवता के मंदिर में जाकर+ खाने-पीने लगे और अबीमेलेक को कोसने लगे। 28 एबेद के बेटे गाल ने कहा, “अबीमेलेक और शेकेम* कौन होते हैं जो हम उनके अधीन रहें? अबीमेलेक यरुब्बाल+ का बेटा है तो क्या हुआ? उसका अधिकारी जबूल है तो क्या हुआ? अबीमेलेक के अधीन रहने से अच्छा है कि हम शेकेम के पिता हमोर के बेटों की सेवा करें। 29 अगर यहाँ के निवासी मेरा हुक्म मानें, तो मैं अबीमेलेक का तख्ता पलट दूँगा।” फिर गाल ने अबीमेलेक को चुनौती दी, “तुझे अपनी सेना जितनी बढ़ानी है बढ़ा ले और युद्ध के मैदान में उतर आ।”

30 जब शेकेम के हाकिम जबूल को एबेद के बेटे गाल की बातों का पता चला तो उसका गुस्सा भड़क उठा। 31 उसने चुपके से* अपने दूतों के हाथ अबीमेलेक को यह संदेश भिजवाया, “देख, शेकेम में एबेद का बेटा गाल और उसके भाई आए हुए हैं और तेरे खिलाफ शहर के लोगों को भड़का रहे हैं। 32 इसलिए तू अपने आदमियों के साथ रात में ही यहाँ आ जा और बाहर घात लगाकर बैठ। 33 कल सूरज उगते ही शहर पर धावा बोल दे। जब गाल और उसके आदमी तुझसे लड़ने आएँ तो किसी भी तरह उसे हरा दे।”

34 इसलिए रात को अबीमेलेक और उसके आदमी शेकेम गए और शहर के पास चार दलों में घात लगाकर बैठ गए। 35 अगले दिन एबेद का बेटा गाल, शहर के फाटक पर आया। घात में बैठे अबीमेलेक और उसके आदमी उठकर शहर की तरफ बढ़ने लगे। 36 जब गाल ने लोगों को देखा तो जबूल से कहा, “ऐसा लगता है, लोग पहाड़ों से उतरकर हमारी तरफ आ रहे हैं।” मगर जबूल ने कहा, “यह तेरा वहम है, वे लोग नहीं पहाड़ों की परछाईं है।”

37 कुछ देर बाद गाल ने कहा, “देख तो सही, लोग सचमुच पहाड़ी इलाके के बीच से नीचे उतर रहे हैं और एक दल तो मोननीम के बड़े पेड़ के रास्ते आ रहा है।” 38 जबूल ने कहा, “क्या कहा था तूने, ‘अबीमेलेक कौन होता है जो हम उसके अधीन रहें?’+ अब कहाँ गयी तेरी वे बड़ी-बड़ी बातें! उनकी सेवा करना तुझे गवारा नहीं था न! तो अब जा और लड़ उनसे।”

39 इसलिए गाल, शेकेम के अगुवों के आगे-आगे गया और उसने अबीमेलेक से लड़ाई की। 40 अबीमेलेक ने गाल को ऐसा खदेड़ा कि वह उसके सामने से भाग निकला। शहर के फाटक तक कई लोगों की लाशें बिछ गयीं।

41 फिर अबीमेलेक अरूमा में रहने लगा। जबूल+ ने गाल और उसके भाइयों को शेकेम से खदेड़ दिया। 42 अगले दिन अबीमेलेक को खबर दी गयी कि लोग शहर से बाहर जाने लगे हैं। 43 तब उसने अपने आदमियों को तीन दलों में बाँटा और शहर के बाहर घात लगाकर बैठ गया। लोगों को शहर से बाहर आते देख, उसने उन पर हमला बोल दिया और उन्हें मार डाला। 44 फिर वह और उसके दल आगे बढ़कर शहर के फाटक के सामने तैनात हो गए, जबकि दो दलों ने उन सब लोगों पर हमला किया जो शहर के बाहर थे और उन्हें मार गिराया। 45 अबीमेलेक ने दिन-भर उस शहर से युद्ध करके उस पर कब्ज़ा कर लिया और उसके निवासियों को मार डाला। उसने पूरे शहर की ईंट-से-ईंट बजा दी+ और वहाँ की ज़मीन पर नमक छिड़कवा दिया।

46 जब शेकेम के किले के सभी अगुवों ने यह सुना तो वे फौरन एलबरीत के मंदिर+ के अंदरवाले कमरे* में जा छिपे। 47 जैसे ही अबीमेलेक को पता चला कि शेकेम के किले के सभी अगुवे मंदिर में इकट्ठा हो गए हैं, 48 वह अपने सारे आदमियों के साथ ज़लमोन पहाड़ पर गया। उसने कुल्हाड़ी से पेड़ की डाल काटी और उसे अपने कंधों पर उठाकर ले जाने लगा। उसने अपने आदमियों से कहा, “जैसा मैंने किया वैसा ही करो। जल्दी!” 49 तब सभी आदमियों ने एक-एक डाल काटी और अबीमेलेक के पीछे-पीछे गए। उन्होंने ये डालियाँ मंदिर के उस कमरे के चारों तरफ रख दीं और उनमें आग लगा दी। शेकेम के किले के सभी लोग, करीब 1,000 आदमी-औरत जलकर मर गए।

50 फिर अबीमेलेक, तेबेस शहर गया और उस पर हमला करने के लिए उसने छावनी डाली। उसने शहर पर कब्ज़ा कर लिया। 51 शहर के बीचों-बीच एक मज़बूत मीनार थी। इसलिए शहर के सभी आदमी-औरत और सारे अगुवे वहाँ भाग गए। उन्होंने मीनार में घुसकर उसे अंदर से बंद कर लिया और ऊपर छत की तरफ गए। 52 इतने में अबीमेलेक वहाँ पहुँच गया और उसने मीनार पर हमला बोल दिया। जब वह मीनार में आग लगाने के लिए उसके द्वार पर आया 53 तो मीनार से एक औरत ने चक्की का ऊपरी पाट अबीमेलेक के सिर पर फेंका और अबीमेलेक की खोपड़ी फट गयी।+ 54 अबीमेलेक ने तुरंत अपने हथियार ढोनेवाले सेवक से कहा, “अपनी तलवार निकाल और मुझे मार डाल। कहीं लोग यह न कहें कि अबीमेलेक एक औरत के हाथों मारा गया।” तब उसके सेवक ने उसे तलवार भोंक दी और वह मर गया।

55 जब इसराएलियों ने देखा कि अबीमेलेक मर चुका है, तो वे सब अपने घर लौट आए। 56 इस तरह परमेश्‍वर ने अबीमेलेक को उसकी बुराई का सिला दिया, जो उसने अपने 70 भाइयों को मारकर अपने पिता से की थी।+ 57 परमेश्‍वर ने शेकेम के आदमियों को भी उनकी बुराई का सिला दिया। उस दिन यरुब्बाल+ के बेटे योताम का शाप+ पूरा हुआ।

10 अबीमेलेक की मौत के बाद, इसराएल का उद्धार करने के लिए तोला नाम का न्यायी उठा।+ वह इस्साकार के घराने से था। वह पूआ का बेटा था और पूआ दोदो का। तोला, एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश के शामीर में रहता था। 2 वह 23 साल तक इसराएलियों का न्यायी रहा। फिर उसकी मौत हो गयी और उसे शामीर में दफनाया गया।

3 तोला के बाद गिलाद का रहनेवाला याईर, न्यायी बनकर उठा और उसने 22 साल तक इसराएल का न्याय किया। 4 उसके 30 बेटे थे और उनके पास सवारी करने के लिए 30 गधे थे। गिलाद के इलाके में उनके 30 शहर थे जिन्हें आज तक हव्वोत-याईर के नाम से जाना जाता है।+ 5 फिर याईर की मौत हो गयी और उसे कामोन में दफनाया गया।

6 इसराएली एक बार फिर वही करने लगे जो यहोवा की नज़र में बुरा था।+ उन्होंने यहोवा से मुँह मोड़ लिया और उसकी उपासना करना छोड़ दिया। वे बाल देवताओं, अशतोरेत की मूरतों, अराम,* सीदोन और मोआब के देवताओं, साथ ही अम्मोनियों और पलिश्‍तियों के देवी-देवताओं की पूजा करने लगे।+ 7 तब यहोवा का गुस्सा इसराएलियों पर भड़क उठा, उसने उन्हें पलिश्‍तियों और अम्मोनियों के हवाले कर दिया।+ 8 वे इसराएलियों को सताने और उन पर ज़ुल्म ढाने लगे। लगातार 18 साल तक वे गिलाद के सब इसराएलियों पर अत्याचार करते रहे। यरदन के पूरब में गिलाद का यह इलाका एक वक्‍त पर एमोरियों का था। 9 इतना ही नहीं, अम्मोनी यरदन पार जाकर यहूदा, बिन्यामीन और एप्रैम गोत्रों से भी युद्ध करते रहे। इसराएलियों का जीना मुश्‍किल हो गया। 10 वे मदद के लिए यहोवा को पुकारने लगे,+ “हे हमारे परमेश्‍वर, हमने तेरे खिलाफ पाप किया है! हम तुझे छोड़कर बाल देवताओं की सेवा करने लगे।”+

11 यहोवा ने इसराएलियों से कहा, “क्या मैंने तुम्हें मिस्र से नहीं छुड़ाया?+ और जब एमोरियों,+ अम्मोनियों, पलिश्‍तियों,+ 12 सीदोनियों, अमालेकियों और मिद्यानियों ने तुम पर अत्याचार किया और तुमने मेरी दुहाई दी, तो क्या मैंने तुम्हें उनके हाथ से नहीं बचाया? 13 मगर तुमने क्या किया? तुम मुझे छोड़कर दूसरे देवताओं की उपासना करने लगे।+ इसलिए अब मैं तुम्हें नहीं बचाऊँगा।+ 14 जाओ, जाकर उन्हीं से मदद माँगो जिन्हें तुमने अपना ईश्‍वर बना लिया है।+ कहो उनसे कि वे तुम्हें इस मुसीबत से निकालें।”+ 15 इसराएलियों ने यहोवा से कहा, “हमने पाप किया है। तुझे जैसा ठीक लगे, हमारे साथ कर। बस हमें दुश्‍मनों से बचा ले।” 16 और उन्होंने अपने बीच से पराए देवताओं की मूरतें निकाल फेंकी और यहोवा की सेवा करने लगे।+ तब इसराएल का दुख परमेश्‍वर से देखा नहीं गया।*+

17 कुछ समय बाद अम्मोनी+ युद्ध करने के लिए इकट्ठा हुए और उन्होंने गिलाद में छावनी डाली। इसराएलियों ने भी अपने आदमी इकट्ठा किए और मिसपा में छावनी डाली। 18 गिलाद के लोग और हाकिम एक-दूसरे से कहने लगे, “अम्मोनियों से लड़ने में कौन हमारी अगुवाई करेगा?+ जो भी अगुवाई करेगा, वह गिलाद के लोगों का प्रधान ठहरेगा।”

11 गिलाद का रहनेवाला यिप्तह+ एक वीर योद्धा था। उसकी माँ पहले एक वेश्‍या थी और उसके पिता का नाम गिलाद था। 2 गिलाद को अपनी पत्नी* से भी बेटे हुए। जब उसके बेटे बड़े हुए तो उन्होंने यिप्तह को यह कहकर भगा दिया, “तू एक दूसरी औरत का बेटा है, इसलिए हमारे पिता के घराने में तुझे कोई विरासत नहीं मिलेगी।” 3 तब यिप्तह अपने भाइयों के पास से भागकर तोब नाम के इलाके में रहने लगा। वहाँ कुछ बेरोज़गार लोग उसके साथ हो लिए और वे मिलकर अपने दुश्‍मनों पर धावा बोलने जाते थे।

4 कुछ समय बाद अम्मोनियों ने इसराएलियों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया।+ 5 जब अम्मोनी इसराएलियों से लड़ने आए तो गिलाद के मुखिया फौरन यिप्तह को वापस लाने के लिए तोब गए। 6 उन्होंने यिप्तह से कहा, “हमारा सेनापति बन जा ताकि हम अम्मोनियों से लड़ सकें।” 7 मगर यिप्तह ने गिलाद के मुखियाओं से कहा, “तुम मुझसे नफरत करते थे, इसीलिए तुमने मुझे अपने पिता के घर से भगा दिया था।+ अब जब तुम पर मुसीबत आ पड़ी है तो मेरे पास आए हो?” 8 गिलाद के मुखियाओं ने कहा, “तेरी बात सच है। पर देख! अब हम तेरे ही पास आए हैं। अगर तू हमारे साथ चलकर अम्मोनियों से लड़े, तो हम तुझे गिलाद के सभी निवासियों का अगुवा बना देंगे।”+ 9 यिप्तह ने उनसे कहा, “अगर मैं अम्मोनियों से लड़ने के लिए तुम्हारे साथ चलूँ और अगर यहोवा मुझे उन पर जीत दिलाए, तो मैं तुम्हारा अगुवा बन जाऊँगा।” 10 गिलाद के मुखियाओं ने यिप्तह से कहा, “हमें मंज़ूर है। जैसा तूने कहा हम वैसा ही करेंगे और यहोवा हमारे बीच इस बात का गवाह* ठहरे।” 11 तब यिप्तह गिलाद के मुखियाओं के साथ गया और लोगों ने उसे अपना अगुवा और सेनापति बनाया। यिप्तह ने मिसपा+ में यहोवा के सामने वे सारी बातें दोहरायीं जो उसने कही थीं।

12 फिर यिप्तह ने अम्मोनियों+ के राजा के पास दूत भेजे और कहा, “तेरी हमसे क्या दुश्‍मनी जो तू हमारे देश पर हमला करने आया है?” 13 अम्मोनियों के राजा ने यिप्तह के दूतों से कहला भेजा, “इसराएलियों ने मुझसे मेरा इलाका छीना है। जब वे मिस्र से निकलकर आए तो उन्होंने अरनोन+ से लेकर यब्बोक और यरदन तक का सारा इलाका+ अपने कब्ज़े में कर लिया।+ अब तू चुपचाप वह सब मुझे लौटा दे।” 14 तब यिप्तह ने अपने दूतों को अम्मोनियों के राजा के पास दोबारा भेजा 15 कि वे उससे कहें,

“यिप्तह का कहना है, ‘इसराएल ने मोआबियों और अम्मोनियों का इलाका नहीं छीना।+ 16 मिस्र से आज़ाद होने पर वे वीराने से होते हुए लाल सागर तक पहुँचे+ और फिर कादेश आए।+ 17 तब इसराएल ने एदोम के राजा के पास अपने दूत भेजकर कहा,+ “मेहरबानी करके हमें अपने देश से होकर जाने दे।” लेकिन एदोम के राजा ने उनकी न सुनी। उन्होंने मोआब+ के राजा से भी यही गुज़ारिश की लेकिन वह भी राज़ी न हुआ। इसलिए इसराएली कादेश में ही रहे।+ 18 फिर वे एदोम और मोआब के बाहर से होते हुए वीराने में चले।+ वे मोआब के पूरब से होकर+ अरनोन के इलाके में आए और वहाँ डेरा डाला। मगर वे अरनोन पार नहीं गए क्योंकि वह मोआब की सरहद था।+

19 इसके बाद इसराएलियों ने हेशबोन में एमोरियों के राजा सीहोन के पास अपने दूत भेजे और उससे कहा, “मेहरबानी करके हमें अपने देश से होकर जाने दे ताकि हम अपने इलाके में पहुँच सकें।”+ 20 लेकिन सीहोन को इसराएलियों पर भरोसा नहीं था और उसने उन्हें अपने इलाके में से नहीं जाने दिया, बल्कि अपने आदमियों के साथ यहस में छावनी डालकर इसराएलियों से युद्ध किया।+ 21 तब इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा ने सीहोन और उसके सभी लोगों को इसराएल के हाथ में कर दिया। इसराएलियों ने वहाँ रहनेवाले एमोरियों को हरा दिया और उनका सारा इलाका अपने अधिकार में कर लिया।+ 22 इस तरह उन्होंने अरनोन से लेकर यब्बोक तक और वीराने से लेकर यरदन तक, एमोरियों के सारे इलाके पर कब्ज़ा कर लिया।+

23 जब इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा ने ही एमोरियों को अपने लोगों के सामने से खदेड़ा था,+ तो अब तू हमें यहाँ से क्यों खदेड़ना चाहता है? 24 अगर तेरा देवता कमोश+ तुझे कोई इलाका दे, तो क्या तू उसे अपने अधिकार में नहीं करेगा? उसी तरह, हमारे परमेश्‍वर यहोवा ने जिस किसी को हमारे सामने से खदेड़ा, हमने उसके इलाके पर अधिकार कर लिया।+ 25 क्या तू सिप्पोर के बेटे, मोआब के राजा बालाक+ से बढ़कर है? उसने तो इसराएल से लड़ने की जुर्रत नहीं की, अब तू ऐसा करना चाहता है? 26 इसराएली पिछले 300 साल से हेशबोन और उसके आस-पास के नगर,+ अरोएर और उसके आस-पास के नगर और अरनोन के घाट के पास के सब शहरों में बसे हुए हैं। इतने सालों में तुमने इन इलाकों को वापस लेने की कोशिश नहीं की, तो अब क्यों आए हो?+ 27 मैंने तेरे खिलाफ कोई पाप नहीं किया, लेकिन तूने हमसे युद्ध छेड़कर गलत किया है। अब सबसे बड़ा न्यायी यहोवा+ ही इसराएलियों और अम्मोनियों के बीच न्याय करे।’”

28 अम्मोनियों के राजा ने यिप्तह का यह संदेश ठुकरा दिया।

29 फिर यहोवा की पवित्र शक्‍ति यिप्तह पर उतरी+ और वह गिलाद और मनश्‍शे से होते हुए गिलाद के मिसपे गया।+ वहाँ से वह अम्मोनियों का सामना करने आया।

30 तब यिप्तह ने यहोवा से एक मन्‍नत मानी+ और कहा, “अगर तू अम्मोनियों को मेरे हाथ में कर देगा, 31 तो मेरी जीत की खुशी में जो सबसे पहले मुझसे मिलने मेरे घर से बाहर आएगा, वह यहोवा का हो जाएगा+ और मैं उसे होम-बलि* के तौर पर परमेश्‍वर को अर्पित कर दूँगा।”+

32 तब यिप्तह अम्मोनियों से लड़ने गया और यहोवा ने उन्हें उसके हाथ में कर दिया। 33 यिप्तह, अरोएर से लेकर मिन्‍नीत तक भारी तादाद में लोगों को मारता गया और उसने 20 शहरों को अपने कब्ज़े में कर लिया। उसने आबेल-करामीम तक अम्मोनियों से युद्ध किया। इस तरह, अम्मोनी इसराएलियों से हार गए।

34 जब यिप्तह मिसपा+ में अपने घर लौटा तो उसने क्या देखा! उसकी बेटी डफली बजाती और नाचती हुई उससे मिलने आ रही है। वह उसकी इकलौती औलाद थी, उसके सिवा यिप्तह के न तो कोई बेटा था न बेटी। 35 जैसे ही उसने अपनी बेटी को देखा, मारे दुख के उसने अपने कपड़े फाड़े और कहा, “हाय मेरी बेटी! तूने मेरा कलेजा छलनी कर दिया क्योंकि अब मुझे तुझको अपने से दूर भेजना होगा। मैं यहोवा को ज़बान दे चुका हूँ और उससे मुकर नहीं सकता।”+

36 तब उसकी बेटी ने उससे कहा, “हे मेरे पिता, अगर तूने यहोवा को ज़बान दी है, तो उसे पूरा कर। क्योंकि यहोवा ने तेरे दुश्‍मन अम्मोनियों को तेरे हवाले कर दिया ताकि तू उनसे बदला ले सके। इसलिए मेरे साथ वैसा ही कर जैसा तूने वादा किया है।”+ 37 फिर उसने अपने पिता से कहा, “बस मेरी एक बिनती है, मुझे दो महीने दे। मैं अपनी सहेलियों के साथ पहाड़ों पर जाकर अपने कुँवारेपन पर रोना और दुख मनाना चाहती हूँ।”*

38 इस पर यिप्तह ने अपनी बेटी से कहा, “जा।” और उसे दो महीने के लिए भेज दिया। वह अपनी सहेलियों के साथ पहाड़ों पर जाकर रोने और दुख मनाने लगी कि वह ज़िंदगी-भर कुँवारी रहेगी। 39 दो महीने पूरे होने पर वह अपने पिता के पास लौट आयी। फिर यिप्तह ने उसके बारे में जो मन्‍नत मानी थी उसे पूरा किया।+ उसकी बेटी ज़िंदगी-भर कुँवारी रही। इसराएल में यह दस्तूर* बन गया कि 40 हर साल चार दिन के लिए इसराएली लड़कियाँ, गिलादी यिप्तह की बेटी की तारीफ करने उसके पास जाया करती थीं।

12 फिर एप्रैम के आदमी इकट्ठा हुए और नदी पार कर सापोन* आए। उन्होंने यिप्तह से कहा, “जब तू अम्मोनियों से लड़ने गया तो तूने हमें क्यों नहीं बुलाया?+ अब हम तुझे और तेरे घर को जला डालेंगे।” 2 लेकिन यिप्तह ने उनसे कहा, “अम्मोनियों से मेरी और मेरे आदमियों की दुश्‍मनी थी। उनसे लड़ने के लिए मैंने तुम्हें बुलाया था, मगर तुमने हमारी मदद नहीं की। 3 जब तुम नहीं आए, तो मैं अपनी जान हथेली पर रखकर उनसे लड़ने निकल पड़ा+ और यहोवा ने उन्हें मेरे हाथ कर दिया। फिर आज तुम क्यों आए हो? और क्यों मुझसे लड़ना चाहते हो?”

4 तब यिप्तह ने गिलाद के सारे आदमियों को इकट्ठा कर+ एप्रैम के लोगों से युद्ध किया और उन्हें हरा दिया। ये वही एप्रैमी थे जो उनसे कहा करते थे, “हे गिलादियो, भले ही तुम मनश्‍शे और एप्रैम के लोगों के बीच रहते हो, मगर एप्रैमियों की नज़र में तुम कुछ भी नहीं।”* 5 गिलाद के लोगों ने जाकर एप्रैम के सामनेवाले घाटों पर कब्ज़ा कर लिया+ ताकि कोई भी एप्रैमी, नदी पार करके भाग न सके। अगर कोई एप्रैमी घाट पर आकर कहता, “मुझे उस पार जाना है,” तब गिलाद के आदमी उससे पूछते, “क्या तू एप्रैमी है?” अगर वह जवाब देता “नहीं” 6 तो वे उसे कहते “शिब्बोलेत बोलकर बता।” मगर वह उस शब्द को ठीक से नहीं बोल पाता और कहता “सिब्बोलेत।” तब गिलाद के आदमी वहीं यरदन के घाट पर उसे मार डालते। उस दिन 42,000 एप्रैमी मारे गए।

7 गिलाद का यिप्तह छ: साल तक इसराएल का न्यायी रहा। इसके बाद उसकी मौत हो गयी और उसे उसके शहर में दफनाया गया जो गिलाद में था।

8 यिप्तह के बाद इबसान इसराएल का न्यायी बना+ जो बेतलेहेम का रहनेवाला था। 9 उसके 30 बेटे और 30 बेटियाँ थीं। उसने अपनी बेटियों की शादी अपने कुल से बाहर करवायी और अपने बेटों के लिए वह दूसरे कुल से 30 बहुएँ लाया। इबसान सात साल तक इसराएल का न्यायी रहा। 10 फिर उसकी मौत हो गयी और उसे बेतलेहेम में दफनाया गया।

11 उसके बाद एलोन इसराएल का न्यायी बना। वह जबूलून गोत्र से था और उसने दस साल तक इसराएल का न्याय किया। 12 फिर एलोन की मौत हो गयी और उसे जबूलून के इलाके में, अय्यालोन में दफनाया गया।

13 एलोन के बाद अब्दोन ने इसराएल का न्याय किया, जो पिरातोन के निवासी हिल्लेल का बेटा था। 14 अब्दोन के 40 बेटे और 30 पोते थे और उनके पास सवारी करने के लिए 70 गधे थे। अब्दोन आठ साल तक इसराएल का न्यायी रहा। 15 इसके बाद पिरातोन के निवासी हिल्लेल के बेटे अब्दोन की मौत हो गयी। उसे पिरातोन में दफनाया गया, जो एप्रैम के इलाके में अमालेकियों+ के पहाड़ पर था।

13 इसराएली एक बार फिर यहोवा की नज़र में बुरे काम करने लगे।+ इसलिए यहोवा ने उन्हें 40 साल के लिए पलिश्‍तियों के हवाले कर दिया।+

2 इस दौरान सोरा शहर+ में दानियों+ के कुल का एक आदमी रहता था, जिसका नाम मानोह+ था। उसकी पत्नी बाँझ थी और उसकी कोई औलाद नहीं थी।+ 3 एक दिन यहोवा का स्वर्गदूत मानोह की पत्नी के सामने प्रकट हुआ और उसने कहा, “भले ही तू बाँझ है और तेरी कोई औलाद नहीं, मगर तू गर्भवती होगी और एक बेटे को जन्म देगी।+ 4 पर ध्यान रख, तू न तो दाख-मदिरा न ही किसी तरह की शराब पीना+ और न कोई अशुद्ध चीज़ खाना।+ 5 देख, तू ज़रूर गर्भवती होगी और एक बेटे को जन्म देगी। उसके सिर पर उस्तरा मत चलवाना+ क्योंकि जन्म* से ही वह परमेश्‍वर के लिए नाज़ीर होगा। वह इसराएलियों को पलिश्‍तियों के हाथ से छुड़ाएगा।”+

6 तब उस औरत ने अपने पति मानोह के पास जाकर कहा, “सच्चे परमेश्‍वर का एक सेवक मेरे पास आया था। वह दिखने में स्वर्गदूत जैसा था और उसे देखकर मैं विस्मय से भर गयी। न तो सच्चे परमेश्‍वर के उस दूत ने मुझे अपना नाम बताया,+ न ही मैंने उससे पूछा कि वह कहाँ से है। 7 लेकिन उसने मुझसे कहा, ‘तू गर्भवती होगी और एक बेटे को जन्म देगी। पर ध्यान रख कि तू न तो दाख-मदिरा न ही किसी तरह की शराब पीना। और न कोई अशुद्ध चीज़ खाना क्योंकि वह लड़का जन्म* से लेकर मौत तक परमेश्‍वर के लिए नाज़ीर होगा।’”

8 मानोह ने यहोवा से बिनती की, “हे यहोवा, तूने जिस सेवक को अभी भेजा था मेहरबानी करके सच्चे परमेश्‍वर के उस सेवक को दोबारा भेज कि वह हमें बताए कि हम बच्चे की परवरिश कैसे करें।” 9 सच्चे परमेश्‍वर ने उसकी बिनती सुन ली और सच्चे परमेश्‍वर का स्वर्गदूत एक बार फिर मानोह की पत्नी के पास आया। उस वक्‍त वह बाहर बैठी थी और उसका पति मानोह उसके साथ नहीं था। 10 वह दौड़कर अपने पति को बुलाने गयी। उसने कहा, “देख, जो आदमी उस दिन मेरे पास आया था, वह आज फिर आया है।”+

11 तब मानोह अपनी पत्नी के साथ उस आदमी के पास आया। मानोह ने उससे कहा, “क्या तू वही आदमी है जिसने उस दिन मेरी पत्नी से वह सारी बातें कही थीं?” उसने कहा, “हाँ, मैं वही हूँ।” 12 तब मानोह ने कहा, “तूने जो भी कहा, वह पूरा हो। अब हमें बता कि उस बच्चे की ज़िंदगी कैसी होगी और बड़ा होकर वह क्या करेगा।”+ 13 तब यहोवा के स्वर्गदूत ने मानोह से कहा, “तेरी पत्नी को उन सब चीज़ों से दूर रहना है जिनके बारे में मैंने उसे बताया था।+ 14 उसे न तो अंगूर की बेल पर लगी कोई चीज़ खानी है, न ही दाख-मदिरा या किसी तरह की शराब पीनी है।+ उसे अशुद्ध चीज़ें भी नहीं खानी हैं।+ ध्यान रख कि जैसा मैंने उससे कहा है वह वैसा ही करे।”

15 फिर मानोह ने यहोवा के स्वर्गदूत से कहा, “मेहरबानी करके थोड़ी देर रुक जा। हम अभी तेरे लिए बकरी का बच्चा पकाकर लाते हैं।”+ 16 यहोवा के स्वर्गदूत ने मानोह से कहा, “अगर मैं रुक भी जाऊँ, तो भी मैं कुछ नहीं खाऊँगा। हाँ, अगर तू यहोवा को होम-बलि चढ़ाना चाहता है, तो चढ़ा सकता है।” मानोह नहीं जानता था कि वह यहोवा का स्वर्गदूत है। 17 मानोह ने यहोवा के स्वर्गदूत से कहा, “हमें अपना नाम बता+ ताकि तेरी बात सच होने पर हम तेरा आदर-सम्मान कर सकें।” 18 मगर यहोवा के स्वर्गदूत ने उससे कहा, “मेरा नाम मत पूछ क्योंकि वह निराला है।”

19 फिर मानोह ने बकरी का बच्चा और अनाज का चढ़ावा लिया और एक बड़े पत्थर पर उन्हें यहोवा को चढ़ाया। तब परमेश्‍वर ने मानोह और उसकी पत्नी की आँखों के सामने एक अनोखा काम किया। 20 आग की लपटें वेदी से आसमान की तरफ उठने लगीं और यहोवा का स्वर्गदूत उन लपटों के साथ ऊपर आसमान की तरफ जाने लगा। यह देखकर मानोह और उसकी पत्नी तुरंत ज़मीन पर मुँह के बल गिर गए। 21 तब मानोह समझ गया कि वह यहोवा का स्वर्गदूत था।+ यहोवा का स्वर्गदूत फिर उन्हें दिखायी नहीं दिया। 22 मानोह ने अपनी पत्नी से कहा, “अब हम ज़िंदा नहीं बचेंगे क्योंकि हमने परमेश्‍वर को देख लिया है।”+ 23 मगर उसकी पत्नी ने कहा, “अगर यहोवा हमें मारना ही चाहता था, तो वह हमारे हाथ से होम-बलि और अनाज का चढ़ावा कबूल नहीं करता।+ न ही वह हमें यह सब दिखाता और हमसे वे सारी बातें कहता।”

24 आगे चलकर मानोह की पत्नी ने एक लड़के को जन्म दिया और उसका नाम शिमशोन रखा।+ जैसे-जैसे वह बड़ा हुआ यहोवा की आशीष उसके साथ रही। 25 फिर जब शिमशोन सोरा और एशताओल+ के बीच महनेदान नाम की जगह+ में था, तो यहोवा की पवित्र शक्‍ति उस पर ज़बरदस्त तरीके से काम करने लगी।+

14 फिर शिमशोन तिमना गया। वहाँ उसने एक पलिश्‍ती लड़की को देखा। 2 उसने जाकर अपने माँ-बाप से कहा, “तिमना में मैंने एक पलिश्‍ती लड़की देखी है। मैं चाहता हूँ कि तुम उससे मेरी शादी करवा दो।” 3 मगर उसके माँ-बाप ने उससे कहा, “क्या तुझे हमारे रिश्‍तेदारों और हमारे लोगों में कोई लड़की नहीं मिली,+ जो तू खतनारहित पलिश्‍तियों की लड़की से शादी करना चाहता है?” मगर शिमशोन ने अपने पिता से कहा, “मेरी शादी उसी से करवा दो, वही मेरे लिए सही रहेगी।” 4 उसके माँ-बाप यह नहीं समझ पाए कि यहोवा ही उसे ऐसा करने के लिए उभार रहा है क्योंकि वह पलिश्‍तियों के खिलाफ कदम उठाने का रास्ता तैयार कर रहा था। उस समय पलिश्‍ती इसराएलियों पर राज कर रहे थे।+

5 तब शिमशोन अपने माँ-बाप के साथ तिमना गया। जब वह तिमना में अंगूरों के बाग के पास पहुँचा, तो अचानक एक शेर उसके सामने आया और गरजने लगा। 6 उसी वक्‍त यहोवा की पवित्र शक्‍ति शिमशोन पर काम करने लगी+ और उसने अपने दोनों हाथों से शेर को ऐसे चीर डाला जैसे कोई बकरी के बच्चे को चीर देता है। मगर इस बारे में उसने अपने माता-पिता को कुछ नहीं बताया। 7 फिर शिमशोन उस लड़की के पास गया और उससे बातें कीं। उसे यकीन हो गया कि यह लड़की उसके लिए बिलकुल सही रहेगी।+

8 कुछ समय बाद शिमशोन उस लड़की को अपने घर लाने के लिए निकला।+ रास्ते में वह मरे हुए शेर को देखने गया। उसमें मधुमक्खियों ने छत्ता बना लिया था और छत्ते में बहुत-सा शहद था। 9 शिमशोन ने शहद अपने हाथ पर निकाला और उसे खाते-खाते अपने माँ-बाप के पीछे गया। उसने उन्हें भी थोड़ा शहद खाने को दिया, मगर यह नहीं बताया कि उसने मरे हुए शेर में से उसे निकाला है।

10 फिर शिमशोन अपने पिता के साथ लड़की के यहाँ गया और वहाँ उसने एक दावत रखी। उन दिनों यह दस्तूर था कि दूल्हे इस तरह की दावत रखते थे। 11 जब शिमशोन दावत में आया तो 30 आदमियों से कहा गया कि वे दूल्हे के साथ-साथ रहें। 12 शिमशोन ने उन आदमियों से कहा, “मैं तुमसे एक पहेली पूछता हूँ। अगर तुम इन सात दिनों में दावत के खत्म होने से पहले वह पहेली बूझ लोगे, तो मैं तुम्हें 30 मलमल के कुरते और 30 जोड़े कपड़े दूँगा। 13 लेकिन अगर तुम वह पहेली नहीं बूझ पाए, तो तुम्हें मुझे 30 कुरते और 30 जोड़े कपड़े देने पड़ेंगे।” तब उन्होंने कहा, “ज़रा हम भी तो सुनें क्या पहेली पूछना चाहता है तू।” 14 शिमशोन ने कहा,

“खाता है जो सबको, मिला उससे कुछ खाने को,

ताकत उसमें है अपार, बहती उससे मीठी धार।”+

तीन दिन तक वे सोचते रहे मगर उस पहेली को न बूझ सके। 15 चौथे दिन उन्होंने शिमशोन की पत्नी* से कहा, “अपने पति* को फुसलाकर+ उससे पहेली का जवाब पूछ और आकर हमें बता। वरना हम तुझे और तेरे पिता के पूरे घराने को जला देंगे। क्या तूने हमें दावत पर इसीलिए बुलाया था कि हम लुट जाएँ?” 16 तब शिमशोन की पत्नी यह कहकर उसके सामने रोने-धोने लगी, “तू मुझसे प्यार नहीं नफरत करता है,+ तभी तूने मुझे उस पहेली का जवाब नहीं बताया जो तूने मेरे लोगों से पूछी है।” शिमशोन ने कहा, “मैंने अपने माँ-बाप को नहीं बताया तो तुझे कैसे बता दूँ!” 17 लेकिन जितने दिन दावत चली उतने दिन वह शिमशोन के आगे रोती रही। सातवें दिन शिमशोन ने तंग आकर उसे पहेली का जवाब बता दिया और उसने जाकर अपने लोगों को बता दिया।+ 18 सातवें दिन सूरज ढलने से पहले* शहर के आदमियों ने आकर शिमशोन से कहा,

“शहद की धार से मीठा और क्या हो सकता है

और शेर से ताकतवर कौन हो सकता है?”+

शिमशोन ने उनसे कहा,

“अगर तुमने मेरी गाय को हल में न जोता होता,*+

तो तुम यह पहेली कभी न बूझ पाते।”

19 तब यहोवा की पवित्र शक्‍ति शिमशोन पर काम करने लगी+ और उसने अश्‍कलोन+ जाकर वहाँ 30 आदमियों को मार डाला। उसने उनके कपड़े उतार लिए और जाकर उन लोगों को दे दिए जिन्होंने उसकी पहेली का जवाब बताया था।+ इसके बाद वह गुस्से में अपने पिता के घर लौट आया।

20 फिर शिमशोन की पत्नी+ की शादी, दावत में शिमशोन के साथ रहनेवाले एक आदमी से करा दी गयी।+

15 कुछ समय बाद, गेहूँ की कटाई का वक्‍त आया और शिमशोन अपनी पत्नी से मिलने गया। वह अपने साथ बकरी का एक बच्चा ले गया। उसने कहा, “मैं अपनी पत्नी के कमरे* में जाना चाहता हूँ।” लेकिन लड़की के पिता ने उसे अंदर नहीं जाने दिया। 2 उसने शिमशोन से कहा, “मैंने सोचा कि तू मेरी लड़की से नफरत करने लगा है,+ इसलिए मैंने उसकी शादी उस आदमी से करवा दी जो दावत में तेरा साथी था।+ मेरी मान, तू उसकी छोटी बहन से शादी कर ले, वह उससे ज़्यादा खूबसूरत है।” 3 शिमशोन ने कहा, “अब पलिश्‍तियों की खैर नहीं! इस बार वे अपनी बरबादी के लिए खुद ज़िम्मेदार होंगे।”

4 शिमशोन ने जाकर 300 लोमड़ियाँ पकड़ीं और मशालें लीं। फिर उसने दो-दो लोमड़ियों की पूँछ बाँधी और उसमें एक-एक मशाल खोंस दी। 5 उसने मशाल जलाकर उन लोमड़ियों को पलिश्‍तियों की खड़ी फसल में छोड़ दिया। इस तरह शिमशोन ने उनकी खड़ी फसल, अनाज के गट्ठर, साथ ही अंगूरों और जैतून के बाग में आग लगा दी।

6 पलिश्‍तियों ने जब पूछा, “यह किसने किया?” तो जवाब मिला, “तिमना में रहनेवाले उस आदमी के दामाद शिमशोन ने। क्योंकि उसके ससुर ने उसकी पत्नी की शादी उसी के एक साथी से करवा दी।”+ तब पलिश्‍तियों ने उस लड़की और उसके पिता को जला दिया।+ 7 शिमशोन ने उनसे कहा, “जब तुमने ऐसा किया है, तो मैं तुमसे बदला लेकर ही दम लूँगा।”+ 8 इसके बाद शिमशोन ने एक-के-बाद-एक सबको मार डाला और लाशों का ढेर लगा दिया। फिर वह एताम चट्टान की गुफा* में जाकर रहने लगा।

9 कुछ समय बाद पलिश्‍तियों ने आकर यहूदा में छावनी डाली। उन्होंने लही+ में हर जगह लूटपाट मचा दी। 10 यह देखकर यहूदा के आदमियों ने कहा, “हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है जो तुम हमारे खिलाफ आए हो?” पलिश्‍तियों ने कहा, “हम शिमशोन को पकड़ने आए हैं। हम उसका वही हाल करेंगे जो उसने हमारा किया है।” 11 तब यहूदा के 3,000 आदमी नीचे एताम चट्टान की गुफा* में गए। उन्होंने शिमशोन से कहा, “क्या तुझे पता नहीं कि पलिश्‍ती हम पर राज कर रहे हैं?+ फिर तूने क्यों ऐसा काम किया और हमें मुसीबत में डाल दिया?” शिमशोन ने कहा, “मैंने उनके साथ वही किया जो उन्होंने मेरे साथ किया।” 12 यहूदा के आदमी कहने लगे, “हम तुझे पकड़कर* पलिश्‍तियों के हवाले करने आए हैं।” तब शिमशोन ने कहा, “पहले शपथ खाओ कि तुम मुझे जान से मारने की कोशिश नहीं करोगे।” 13 उन्होंने कहा, “हम तुझे नहीं मारेंगे, सिर्फ तुझे बाँधकर पलिश्‍तियों को दे देंगे।”

उन्होंने दो नयी रस्सियाँ लीं और शिमशोन को बाँधकर चट्टान की गुफा से बाहर लाए। 14 जब उसे लही लाया गया तब पलिश्‍ती उसे देखकर अपनी जीत की खुशी में ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगे। तभी यहोवा की पवित्र शक्‍ति शिमशोन पर काम करने लगी+ और उसके हाथ की रस्सियाँ ऐसे टूट गयीं जैसे सन का धागा जलने पर टूट जाता है और उसके बंधन खुल गए।+ 15 उसे गधे के जबड़े की ताज़ी हड्डी मिली और उसने उससे 1,000 पलिश्‍ती आदमियों को मार गिराया।+ 16 शिमशोन ने कहा,

“गधे के जबड़े की हड्डी से मैंने दुश्‍मनों का ढेर लगाया,

सिर्फ एक हड्डी से मैंने 1,000 आदमियों को मार गिराया।”+

17 फिर उसने वह हड्डी फेंक दी और उस जगह का नाम रामत-लही* रखा।+ 18 तब शिमशोन को बड़ी प्यास लगी और उसने यहोवा को पुकारा, “हे परमेश्‍वर, तूने ही अपने इस दास को इतनी बड़ी जीत दिलायी है। लेकिन क्या अब तू चाहता है कि मैं प्यासा मर जाऊँ और इन खतनारहित लोगों के हाथों में पड़ जाऊँ?” 19 तब परमेश्‍वर ने लही की ज़मीन में एक गड्‌ढा बना दिया और उसमें से पानी फूट निकला।+ पानी पीकर शिमशोन की जान में जान आयी और वह फिर ताज़ादम हो गया। इसलिए उसने उस जगह का नाम एन-हक्कोरे* रखा, जो आज तक लही में है।

20 पलिश्‍तियों के दिनों में शिमशोन 20 साल तक इसराएल का न्यायी रहा।+

16 एक बार शिमशोन गाज़ा गया। वहाँ उसने एक वेश्‍या को देखा और उसके यहाँ गया। 2 इतने में गाज़ा के लोगों को खबर मिली कि शिमशोन आया हुआ है। उन्होंने उस जगह को चारों तरफ से घेर लिया और शिमशोन को पकड़ने के लिए शहर के फाटक पर घात लगाकर बैठ गए। सारी रात वे यह सोचकर चुपचाप वहीं बैठे रहे कि सुबह होते ही उसे जान से मार डालेंगे।

3 शिमशोन आधी रात तक लेटा रहा, फिर वह उठकर शहर के फाटक पर गया। उसने फाटक को उसके पल्लों, बाज़ुओं और बेड़े के साथ उखाड़ दिया और उसे अपने कंधों पर उठाकर हेब्रोन के सामनेवाले पहाड़ की चोटी पर चढ़ गया।

4 इसके बाद, शिमशोन को सोरेक घाटी में रहनेवाली दलीला+ से प्यार हो गया। 5 तब पलिश्‍तियों के सरदार दलीला के पास आए। उन्होंने कहा, “शिमशोन को फुसलाकर+ पता लगा कि उसकी ताकत का राज़ क्या है। मालूम कर किस चीज़ से बाँधकर उसे काबू में किया जा सकता है। अगर तू हमारा यह काम कर दे, तो हममें से हरेक तुझे 1,100 चाँदी के टुकड़े देगा।”

6 दलीला ने शिमशोन से कहा, “तुझमें गज़ब की ताकत है! क्या तू मुझे नहीं बताएगा कि तेरी इस ताकत का राज़ क्या है? किस चीज़ से बाँधकर तुझे काबू में किया जा सकता है?” 7 शिमशोन ने उससे कहा, “अगर मुझे धनुष की सात नयी डोरियों* से बाँधा जाए जो सुखायी न गयी हों, तो मेरी ताकत खत्म हो जाएगी और मैं बाकी आदमियों की तरह हो जाऊँगा।” 8 पलिश्‍तियों के सरदारों ने दलीला को धनुष की सात नयी डोरियाँ लाकर दीं जो सुखायी न गयी थीं और दलीला ने उनसे शिमशोन को बाँध दिया। 9 पलिश्‍ती, दलीला के अंदरवाले कमरे में घात लगाकर बैठ गए। दलीला ने शिमशोन से कहा, “शिमशोन! पलिश्‍ती आ गए!” यह सुनते ही शिमशोन ने डोरियाँ ऐसे तोड़ दीं जैसे आँच लगते ही अलसी का धागा टूट जाता है।+ शिमशोन की ताकत का राज़, राज़ ही रहा।

10 दलीला ने शिमशोन से कहा, “तूने मुझसे झूठ कहा, मुझे बेवकूफ बनाया! अब मुझे सच-सच बता, किस चीज़ से तुझे बाँधा जा सकता है।” 11 शिमशोन ने कहा, “अगर मुझे ऐसी नयी रस्सियों से बाँध दिया जाए जो कभी काम में न आयी हों, तो मेरी ताकत खत्म हो जाएगी और मैं बाकी आदमियों की तरह हो जाऊँगा।” 12 तब दलीला ने नयी रस्सियाँ लीं और उनसे शिमशोन को बाँध दिया। फिर उसने कहा, “शिमशोन! पलिश्‍ती आ गए!” (पलिश्‍ती अंदरवाले कमरे में घात लगाए बैठे थे।) यह सुनते ही शिमशोन ने रस्सियाँ ऐसे तोड़ दीं मानो वे कच्चे धागे हों।+

13 दलीला ने शिमशोन से कहा, “तू कब तक मुझसे झूठ बोलता रहेगा और मुझे बेवकूफ बनाता रहेगा।+ सच बता, तुझे किससे बाँधा जा सकता है।” शिमशोन ने उससे कहा, “अगर तू मेरी सात चोटियाँ करघे में धागे के साथ गूँथ दे, तो मेरी ताकत खत्म हो जाएगी।” 14 तब दलीला ने चोटियाँ गूँथकर खूँटी से कस दीं। फिर उसने कहा, “शिमशोन! पलिश्‍ती आ गए!” शिमशोन नींद से जाग गया और उसने एक ही झटके में करघे के धागे और खूँटी को उखाड़ फेंका।

15 दलीला ने उससे कहा, “तेरा प्यार झूठा है!+ तुझे मुझ पर कोई भरोसा नहीं। तीन बार, तीन बार! तूने मुझे झाँसा दिया और अपनी ताकत का राज़ छिपाए रखा।”+ 16 दलीला हर दिन शिमशोन के पीछे पड़ी रही और उससे ज़िद करती रही कि वह उसे अपना राज़ बताए। वह शिमशोन की जान खा गयी।+ 17 हारकर शिमशोन ने उसे सबकुछ बता दिया। उसने कहा, “अब तक मेरे सिर पर कभी उस्तरा नहीं चलाया गया है। क्योंकि मुझे अपनी माँ के गर्भ से ही परमेश्‍वर के लिए नाज़ीर चुना गया था।+ अगर मेरे बाल काट दिए जाएँ, तो मेरी ताकत खत्म हो जाएगी और मैं बाकी आदमियों की तरह हो जाऊँगा।”

18 जब दलीला ने देखा कि शिमशोन ने अपना राज़ बता दिया है, तो उसने तुरंत पलिश्‍ती सरदारों को कहलवा भेजा,+ “इस बार उसने सच में अपना राज़ बता दिया है इसलिए तुम लोग जल्दी आओ।” तब पलिश्‍ती सरदार पैसे लेकर उसके पास आए। 19 दलीला ने शिमशोन को अपनी गोद में सुला दिया। जैसे ही उसकी आँख लगी, दलीला ने एक आदमी बुलवाकर उसकी सातों चोटियाँ कटवा दीं। शिमशोन की ताकत खत्म हो गयी और वह पूरी तरह दलीला के काबू में आ गया। 20 फिर दलीला ने कहा, “शिमशोन! पलिश्‍ती आ गए!” यह सुनकर शिमशोन नींद से जाग गया और उसने कहा, “इस बार भी मैं खुद को बचा लूँगा।”+ लेकिन उसे नहीं पता था कि यहोवा ने उसे छोड़ दिया है। 21 तब पलिश्‍तियों ने उसे पकड़कर उसकी आँखें निकाल दीं और उसे गाज़ा ले गए। उन्होंने उसे ताँबे की दो ज़ंजीरों में जकड़कर कैदखाने में डाल दिया और उससे अनाज पीसने का काम करवाने लगे। 22 शिमशोन के बाल जो काट दिए गए थे,+ फिर से बढ़ने लगे।

23 फिर पलिश्‍ती सरदार जश्‍न मनाने और अपने देवता दागोन+ को ढेर सारे बलिदान चढ़ाने के लिए इकट्ठा हुए। उनका कहना था कि हमारे देवता ने हमारे दुश्‍मन शिमशोन को हमारे हाथ कर दिया है। 24 जब लोगों ने शिमशोन को देखा तो वे अपने देवता की बड़ाई करने लगे। वे कहने लगे, “देखो! जिस दुश्‍मन ने हमारे देश में तबाही मचा रखी थी,+ हमारे कई लोगों को मार डाला था,+ उसे हमारे देवता ने हमारी मुट्ठी में कर दिया है।”

25 सारे पलिश्‍ती मस्ती में चूर थे। वे कहने लगे, “शिमशोन को बाहर लाओ कि वह हमें तमाशा दिखाए।” वे शिमशोन को कैदखाने से बाहर ले आए कि वह उनका मन बहलाए। उसे खंभों के बीच लाकर खड़ा कर दिया गया। 26 जिस लड़के ने शिमशोन का हाथ पकड़ा हुआ था, उससे शिमशोन ने कहा, “ज़रा मुझे उन खंभों को छूने दे जिन पर यह घर टिका है, मैं उनके सहारे खड़ा रहना चाहता हूँ।” 27 (उस वक्‍त वह घर आदमियों और औरतों से खचाखच भरा था। सारे पलिश्‍ती सरदार वहाँ मौजूद थे। छत पर खड़े करीब 3,000 आदमी-औरत शिमशोन पर हँस रहे थे।)

28 तभी शिमशोन+ ने यहोवा को पुकारा, “हे सारे जहान के मालिक यहोवा, मेरी तरफ ध्यान दे। बस एक आखिरी बार मुझे ताकत से भर दे+ कि मैं पलिश्‍तियों से बदला ले सकूँ, कम-से-कम अपनी एक आँख का बदला चुका सकूँ।”+

29 तब शिमशोन ने उन दो बीचवाले खंभों पर अपने हाथ रखे जिन पर पूरा घर टिका था। उसने दायाँ हाथ एक खंभे पर रखा और बायाँ हाथ दूसरे खंभे पर। 30 और उसने ज़ोर से प्रार्थना की, “मुझे अपने साथ-साथ इन पलिश्‍तियों को भी खत्म करने दे।” फिर शिमशोन ने पूरा ज़ोर लगाकर उन खंभों को धक्का दिया और पूरा-का-पूरा घर पलिश्‍ती सरदारों और सभी लोगों पर आ गिरा।+ शिमशोन ने जीते-जी जितने लोगों को मारा था, उससे कहीं ज़्यादा लोगों को उसने अपनी मौत के दिन मारा।+

31 शिमशोन के भाई और उसके पिता का पूरा घराना वहाँ आया और वे उसकी लाश लेकर चले गए। उन्होंने उसके पिता मानोह+ की कब्र में उसे दफना दिया, जो सोरा+ और एशताओल के बीच थी। शिमशोन 20 साल तक इसराएल का न्यायी था।+

17 एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश+ में मीका नाम का एक आदमी रहता था। 2 उसने अपनी माँ से कहा, “तुझे याद है, तेरे चाँदी के 1,100 टुकड़े चोरी हो गए थे और तू उस चुरानेवाले को मेरे सामने कोस रही थी। वह चाँदी मैंने ली थी।” इस पर उसकी माँ ने कहा, “यहोवा तुझे आशीष दे मेरे बेटे!” 3 तब उसने चाँदी के 1,100 टुकड़े अपनी माँ को लौटा दिए। उसकी माँ ने कहा, “यह चाँदी मैं यहोवा के लिए अलग ठहराती हूँ। मैं चाहती हूँ कि तू इससे अपने लिए एक तराशी हुई और एक ढली हुई मूरत बनाए।+ और यह चाँदी तेरी हो जाएगी।”

4 चाँदी मिलने पर, मीका की माँ ने उसमें से 200 टुकड़े सुनार को दिए। उसने उससे एक तराशी हुई और एक ढली हुई मूरत बना दी। फिर उन मूरतों को मीका के घर में स्थापित किया गया। 5 मीका के यहाँ देवताओं के लिए एक मंदिर था। उसने कुल देवताओं की मूरतें+ और एक एपोद बनवाया+ और अपने एक बेटे को याजक ठहराया।*+ 6 उन दिनों इसराएल राष्ट्र में कोई राजा नहीं था।+ हर कोई वही कर रहा था जो उसकी नज़र में सही था।+

7 यहूदा के बेतलेहेम शहर+ में एक जवान आदमी, कुछ समय से यहूदा के लोगों के साथ रह रहा था। वह एक लेवी था।+ 8 एक दिन उसने बेतलेहेम छोड़ दिया और रहने के लिए दूसरी जगह ढूँढ़ने लगा। ढूँढ़ते-ढूँढ़ते वह एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश में मीका के घर आया।+ 9 मीका ने उससे पूछा, “तू कहाँ से आया है?” उसने कहा, “मैं यहूदा के बेतलेहेम से आया हूँ। मैं एक लेवी हूँ और रहने के लिए एक जगह ढूँढ़ रहा हूँ।” 10 तब मीका ने उससे कहा, “तू यहीं मेरे साथ रह और मेरा सलाहकार* और याजक बन जा। मैं तुझे खाना, एक जोड़ी कपड़े और हर साल चाँदी के दस टुकड़े दिया करूँगा।” यह सुनकर लेवी घर के अंदर आया। 11 वह मीका के साथ रहने को तैयार हो गया और मीका उसे अपना बेटा मानने लगा। 12 मीका ने उस लेवी को अपना याजक ठहराया*+ और वह मीका के घर रहने लगा। 13 मीका ने कहा, “अब यहोवा ज़रूर मेरा भला करेगा क्योंकि एक लेवी मेरा याजक बना है।”

18 उन दिनों इसराएल में कोई राजा न था।+ इसराएल के गोत्रों के बीच दान के लोगों+ को विरासत में जो ज़मीन दी गयी थी, वह कम पड़ रही थी और वे अपने लिए और जगह ढूँढ़ने लगे।+

2 इसलिए उन्होंने सोरा और एशताओल+ से अपने गोत्र के पाँच काबिल आदमियों को चुना और उन्हें देश की जासूसी करने भेजा। उन्होंने कहा, “जाओ, देश की खोज-खबर लेकर आओ।” तब वे आदमी निकल पड़े और उन्होंने एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश में मीका के घर रात गुज़ारी।+ 3 वे मीका के घर के पास ही थे कि उन्हें लेवी की आवाज़* सुनायी दी और वे उसे पहचान गए। उन्होंने उसके पास जाकर पूछा, “तू यहाँ क्या कर रहा है? किसके कहने पर यहाँ आया है?” 4 लेवी ने उन्हें बताया कि मीका ने उसके लिए क्या-क्या किया और कहा, “उसने मुझे याजक का काम करने के लिए रखा है।”+ 5 उन्होंने लेवी से कहा, “ज़रा हमारे लिए भी परमेश्‍वर से पूछ कि हम जिस काम के लिए निकले हैं, उसमें हम कामयाब होंगे या नहीं।” 6 लेवी ने कहा, “बेफिक्र होकर जाओ। यहोवा तुम्हारे साथ है।”

7 तब वे पाँचों अपने सफर में आगे बढ़े और लैश आ पहुँचे।+ उन्होंने देखा कि सीदोनियों की तरह यहाँ के लोग भी किसी पर निर्भर नहीं। वे शांति से जी रहे हैं। उन्हें किसी हमले का डर नहीं+ और न ही उन्हें सतानेवाला कोई तानाशाह है। उनका शहर सीदोन से बहुत दूर है और बाकी लोगों से उनका कोई लेना-देना नहीं।

8 जब वे आदमी अपने भाइयों के पास वापस सोरा और एशताओल आए+ तो उनके भाइयों ने पूछा, “कहो, क्या खबर लाए हो?” 9 उन्होंने जवाब दिया, “वह देश बहुत ही बढ़िया है। आओ हम उस पर चढ़ाई करें। हमारी मानो, हम अभी उस पर कब्ज़ा कर सकते हैं। तो अब देर किस बात की! 10 तुम खुद अपनी आँखों से देख लेना कि वह देश कितना बड़ा है! वहाँ के लोगों को किसी हमले का डर नहीं।+ परमेश्‍वर ने वह इलाका तुम्हारे हाथ कर दिया है! उसने तुम्हें ऐसी जगह दी है जहाँ किसी चीज़ की कमी नहीं।”+

11 फिर दान गोत्र से 600 आदमी युद्ध के लिए तैयार हुए और सोरा और एशताओल से निकल पड़े।+ 12 वे यहूदा में किरयत-यारीम के पास गए और उन्होंने वहाँ छावनी डाली।+ इसलिए उस जगह का नाम आज तक महनेदान*+ है जो किरयत-यारीम के पश्‍चिम में पड़ती है। 13 वहाँ से वे एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश की तरफ बढ़े और मीका के घर पहुँचे।+

14 लैश की जासूसी करनेवाले पाँच आदमियों+ ने अपने भाइयों से कहा, “पता है, इन घरों में एक एपोद, एक तराशी हुई मूरत, एक ढली हुई मूरत और कुल देवताओं की मूरतें हैं।+ अब तुम ही सोचो कि क्या किया जाए।” 15 तब वे वहीं रुक गए और पाँच आदमी मीका के घर के पास लेवी के घर आए+ और उसका हाल-चाल पूछा। 16 इस बीच दान के 600 आदमी+ जो युद्ध के लिए तैयार थे, द्वार पर ही खड़े रहे। 17 वे पाँच आदमी+ घर के अंदर घुसे ताकि एपोद,+ तराशी हुई मूरत, ढली हुई मूरत+ और कुल देवताओं की मूरतें+ ले लें। (याजक+ उन 600 आदमियों के साथ जो युद्ध के लिए तैयार थे, द्वार पर खड़ा था।) 18 जब वे मीका के घर से एपोद, तराशी हुई मूरत, ढली हुई मूरत और कुल देवताओं की मूरतें उठाकर ले जा रहे थे तो उस याजक ने कहा, “यह तुम क्या कर रहे हो?” 19 उन्होंने कहा, “खबरदार जो एक शब्द भी निकाला तो। चुपचाप हमारे साथ चल और हमारा सलाहकार* और याजक बन जा। तू ही सोच, क्या तू एक ही आदमी के घराने का याजक बने रहना चाहता है?+ या इसराएल के एक पूरे गोत्र, उसके सारे कुलों का याजक बनना चाहता है?”+ 20 उनकी बात सुनकर याजक खुश हो गया। उसने एपोद, तराशी हुई मूरत और कुल देवताओं की मूरतें लीं+ और उन लोगों के साथ चल दिया।

21 दान के लोग अपने रास्ते जाने लगे और उन्होंने अपने बच्चों, मवेशियों और कीमती चीज़ों को सबसे आगे रखा और वे खुद पीछे-पीछे चले। 22 वे थोड़ी ही दूर गए थे कि मीका और उसके पड़ोसी इकट्ठा हुए और दानियों के पीछे गए। दानियों के पास पहुँचकर 23 उन्होंने आवाज़ लगायी। दानियों ने मुड़कर मीका को देखा और उससे पूछा, “क्या हुआ? तू इतने सारे लोगों को लेकर क्यों आया है?” 24 तब मीका ने कहा, “तुम मेरे देवताओं की मूरतें उठा लाए जिन्हें मैंने बनवाया था और मेरे याजक को भी अपने साथ ले आए। मेरा सबकुछ लूटकर पूछ रहे हो, क्या हुआ?” 25 दानियों ने कहा, “अपनी आवाज़ नीची रख! कहीं हमारे आदमियों को गुस्सा आ गया तो वे तुम पर टूट पड़ेंगे। और तुझे और तेरे घराने के लोगों को जान से मार डालेंगे।” 26 यह कहकर दान के लोग अपने रास्ते चल दिए। और मीका उलटे पाँव घर लौट गया क्योंकि उसने देखा कि दान के लोग उससे ज़्यादा ताकतवर हैं।

27 दान के लोग, मीका की मूरतें और उसके याजक को लेकर लैश आ पहुँचे,+ जहाँ के निवासी शांति से जी रहे थे और उन्हें किसी हमले का डर नहीं था।+ दानियों ने उन्हें तलवार से मार डाला और उनके शहर को जला दिया। 28 उन्हें बचानेवाला कोई न था क्योंकि उनका शहर सीदोन से बहुत दूर था और बाकी लोगों से उनका कोई लेना-देना न था। लैश, घाटी में बसा था जो बेत-रहोब नाम के इलाके+ में आती थी। फिर दानियों ने उस शहर को दोबारा खड़ा किया और उसमें बस गए। 29 उन्होंने उस शहर का नाम बदलकर अपने पुरखे के नाम पर दान रखा,+ जो इसराएल का बेटा था।+ लेकिन उस शहर का पुराना नाम लैश था।+ 30 इसके बाद, दानियों ने तराशी हुई मूरत+ को वहाँ स्थापित किया। और मूसा के बेटे गेरशोम+ के वंशज, योनातान+ और उसके बेटों को दान गोत्र का याजक बनाया। वे तब तक उनके लिए याजक ठहरे, जब तक देश के लोगों को बंदी न बना लिया गया। 31 मीका की तराशी हुई मूरत वहाँ तब तक स्थापित रही जब तक सच्चे परमेश्‍वर का घर* शीलो में रहा।+

19 उन दिनों इसराएल राष्ट्र में कोई राजा न था।+ उस समय एक लेवी एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश+ के एक दूर-दराज़ इलाके में रहता था। उसने एक औरत को अपनी उप-पत्नी बनाया जो यहूदा के बेतलेहेम+ से थी। 2 मगर उसकी उप-पत्नी ने उससे बेवफाई की और उसे छोड़कर अपने पिता के घर यहूदा के बेतलेहेम चली गयी। उसे वहाँ रहते चार महीने हो गए। 3 फिर उसका पति उसे मनाने और वापस ले जाने आया। उसके साथ उसका सेवक भी आया था और उनके पास दो गधे थे। उसकी उप-पत्नी उसे अपने पिता के घर के अंदर ले गयी। उसे देखकर लड़की का पिता खुश हो गया 4 और उसने उसे तीन दिन रुकने के लिए मना लिया। तीन दिन तक लेवी वहीं रहा और उसने अपने ससुर के साथ खाया-पीया।

5 चौथे दिन सुबह-सुबह जब वे जाने की तैयारी करने लगे, तो लड़की के पिता ने अपने दामाद से कहा, “पहले कुछ खा-पी ले कि तुझे ताकत मिले, फिर चले जाना।” 6 तब उस लेवी और उसके ससुर ने बैठकर खाया-पीया। इसके बाद उसके ससुर ने कहा, “आज रात यहीं रुक जा और मौज कर।” 7 वह लेवी जाने के लिए उठा मगर उसका ससुर उससे मिन्‍नत करता रहा, इसलिए वह उस रात वहीं ठहर गया।

8 जब पाँचवें दिन वह सुबह-सुबह जाने के लिए उठा, तो लड़की के पिता ने कहा, “पहले कुछ खा-पी ले कि तुझे ताकत मिले।” ससुर और दामाद ने खाया-पीया और देर तक वहीं बैठे रहे। 9 जब लेवी अपनी उप-पत्नी और अपने सेवक के साथ जाने के लिए उठा तो उसके ससुर ने कहा, “देख, दिन ढलने पर है, कुछ ही देर में अँधेरा हो जाएगा। आज रात यहीं रुक जा और मौज कर। फिर कल सुबह-सुबह अपने घर* के लिए रवाना हो जाना।” 10 लेकिन लेवी वहाँ एक और रात नहीं रुकना चाहता था, इसलिए वह अपनी उप-पत्नी, सेवक और सामान से लदे दोनों गधों को लेकर निकल पड़ा और यबूस यानी यरूशलेम+ तक गया।

11 जब वे यबूस के पास पहुँचे तो शाम होने लगी। सेवक ने अपने मालिक से कहा, “क्या हम यबूसियों के शहर में चलें और आज रात वहीं रुक जाएँ?” 12 मालिक ने उससे कहा, “यहाँ कोई इसराएली नहीं रहता इसलिए हम परदेसियों के इस शहर में नहीं रुकेंगे। हम गिबा+ तक जाएँगे।” 13 उसने यह भी कहा, “आओ जल्दी करो, हम गिबा या रामाह+ तक पहुँचने की कोशिश करते हैं। उन्हीं में से किसी एक जगह रात बिताएँगे।” 14 वे आगे बढ़े। बिन्यामीन गोत्र के शहर, गिबा के पास पहुँचते-पहुँचते सूरज ढलने लगा।

15 इसलिए वे रात काटने के लिए गिबा में गए। वे जाकर शहर के चौक पर बैठ गए, लेकिन किसी ने उन्हें अपने घर में पनाह नहीं दी।+ 16 तब एक बूढ़ा आदमी खेतों में काम करके वापस घर लौट रहा था। वह एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश+ से था, मगर कुछ समय से गिबा में रह रहा था। वहाँ के निवासी बिन्यामीन गोत्र से थे।+ 17 जब उसने शहर के चौक पर उस लेवी को बैठे देखा तो उसने पूछा, “तू कहाँ से आया है और तुझे कहाँ जाना है?” 18 लेवी ने जवाब दिया, “हम यहूदा के बेतलेहेम से आ रहे हैं और हमें एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश के एक दूर के इलाके में जाना है। मैं वहीं का रहनेवाला हूँ। दरअसल मैं किसी काम से यहूदा के बेतलेहेम गया था+ और अब यहोवा के भवन जा रहा हूँ।* मगर यहाँ हमें कोई अपने घर में पनाह नहीं दे रहा। 19 मेरे पास अपने गधों के लिए भरपूर चारा और पुआल है।+ और अपने लिए, अपनी उप-पत्नी और अपने सेवक के लिए रोटियाँ+ और दाख-मदिरा भी है। हमारे पास खाने-पीने की तो कोई कमी नहीं।” 20 तब उस बूढ़े आदमी ने कहा, “मेरे घर में तुम्हारा स्वागत है।* मैं तुम लोगों का पूरा-पूरा खयाल रखूँगा। बस शहर के चौक पर रात मत गुज़ारो।” 21 यह कहकर वह बूढ़ा आदमी उन्हें अपने घर ले आया। उसने उनके गधों को चारा डाला और उन सबने अपने पैर धोए। फिर वे बैठकर खाने-पीने लगे।

22 वे खा-पी रहे थे कि तभी शहर के कुछ नीच आदमियों ने आकर घर को घेर लिया और दरवाज़ा पीटने लगे। वे घर के मालिक, उस बूढ़े आदमी से कहने लगे, “बाहर ला उस आदमी को जो तेरे घर आया है। हमें उसके साथ संभोग करना है।”+ 23 यह सुनकर बूढ़ा आदमी घर से बाहर आया और उसने कहा, “मेरे भाइयो, ऐसा दुष्ट काम मत करो। वह आदमी मेरे घर आया मेहमान है, उसके साथ यह घिनौना काम मत करो। 24 मेरी एक कुँवारी बेटी है और उस आदमी की उप-पत्नी भी है। मैं उन्हें तुम्हारे पास ले आता हूँ, अगर तुम्हें कुछ करना ही है, तो उनके साथ कर लो।+ मगर इस आदमी को छोड़ दो, उसके साथ ऐसा घिनौना काम मत करो।”

25 लेकिन उन आदमियों ने उस बूढ़े की एक न सुनी। तब लेवी ने अपनी उप-पत्नी को पकड़कर उनके पास बाहर धकेल दिया।+ उन आदमियों ने रात-भर उसका बलात्कार किया और उसे तड़पाया। और पौ फटते ही उसे भेज दिया। 26 वह उस बूढ़े आदमी के घर आयी जहाँ उसका पति रुका हुआ था और वहीं दरवाज़े के सामने गिर पड़ी और उजाला होने तक वहीं पड़ी रही। 27 जब उसका पति सुबह उठा और उसने सफर पर निकलने के लिए घर के दरवाज़े खोले, तो उसने देखा कि उसकी उप-पत्नी दरवाज़े पर पड़ी हुई है और उसके हाथ दहलीज़ पर फैले हुए हैं। 28 उसने अपनी उप-पत्नी से कहा, “उठ, हमें जाना है।” लेकिन उसे कोई जवाब न मिला क्योंकि वह मर चुकी थी। लेवी ने उसे उठाकर अपने गधे पर लाद दिया और अपने घर की ओर चल पड़ा।

29 घर पहुँचकर उसने एक छुरा लिया और अपनी उप-पत्नी की लाश के 12 टुकड़े किए और इसराएल के हर गोत्र को एक-एक टुकड़ा भेज दिया। 30 जिस किसी ने उसे देखा, वह कहने लगा, “इसराएल में ऐसी घटना पहले कभी नहीं घटी। मिस्र से निकलने के बाद से लेकर आज तक हमने न तो कभी ऐसा होते देखा, न सुना। अब इस बारे में गहराई से सोचो, आपस में सलाह करो+ और बताओ कि हमें क्या करना चाहिए।”

20 तब दान+ से लेकर बेरशेबा तक और गिलाद के इलाके+ में रहनेवाले सभी इसराएली आए और पूरी मंडली एक होकर मिसपा में यहोवा के सामने इकट्ठा हुई।+ 2 इसराएल के सभी लोगों के और गोत्रों के प्रधानों ने परमेश्‍वर की मंडली में अपनी-अपनी जगह ली। तलवार चलानेवाले पैदल सैनिकों की गिनती 4,00,000 थी।+

3 बिन्यामीन के लोगों ने सुना कि इसराएल के आदमी मिसपा में इकट्ठा हुए हैं।

इसराएल के आदमियों ने पूछा, “हमें बता यह सब कैसे हुआ?”+ 4 तब उस लेवी+ ने, जिसकी उप-पत्नी का कत्ल हुआ था कहा, “मैं बिन्यामीन के शहर गिबा में रात काटने के लिए गया था+ और मेरी उप-पत्नी मेरे साथ थी। 5 रात को गिबा के निवासियों* ने घर को घेर लिया। वे मेरे साथ घिनौना काम करना चाहते थे, मुझे मार डालना चाहते थे। लेकिन मेरी जगह उन्होंने मेरी उप-पत्नी का बलात्कार किया और वह मर गयी।+ 6 उन्होंने बहुत शर्मनाक और घिनौना काम किया है। इसलिए मैंने अपनी उप-पत्नी की लाश के टुकड़े किए और इसराएल के हर गोत्र के इलाके में भेज दिए।+ 7 हे इसराएल के लोगो, तुम ही बताओ कि अब क्या किया जाए।”+

8 तब सब लोगों ने एकमत होकर कहा, “हममें से कोई भी अपने डेरे में नहीं जाएगा, न अपने घर लौटेगा। 9 आओ हम चिट्ठियाँ डालकर तय करें कि कौन-कौन गिबा से लड़ने जाएगा।+ 10 हमारे सैनिकों के साथ इसराएल के हर गोत्र में से कुछ और आदमी भी जाएँगे जो उनके खाने-पीने का ध्यान रखेंगे, 100 आदमियों में से 10 आदमी, 1,000 में से 100 आदमी और 10,000 में से 1,000 आदमी। बिन्यामीन गोत्र ने इसराएल में जो घिनौना काम किया है उसकी सज़ा हम उन्हें ज़रूर देंगे।” 11 इस तरह इसराएल के सभी आदमी एकमत होकर* उस शहर से लड़ने को तैयार हुए।

12 तब इसराएल के गोत्रों ने बिन्यामीन के लोगों के पास आदमी भेजे और कहा, “तुम लोगों के बीच यह कैसा घिनौना काम हुआ है! 13 गिबा के उन नीच आदमियों को हमारे हवाले कर दो।+ हम उन्हें जान से मार डालेंगे और इसराएल में से इस बुराई को मिटा देंगे।”+ लेकिन बिन्यामीन के लोगों ने अपने इसराएली भाइयों की एक न सुनी।

14 तब बिन्यामीन के लोग इसराएल के आदमियों से युद्ध करने के लिए अपने-अपने शहर से निकलकर गिबा आए। 15 उस दिन बिन्यामीन के लोगों ने अपने शहरों से 26,000 तलवार चलानेवाले आदमियों को इकट्ठा किया। गिबा से भी 700 योद्धा बुलाए गए। 16 ये 700 योद्धा बाएँ हाथवाले थे और गोफन चलाने में हरेक का निशाना अचूक था।*

17 बिन्यामीन गोत्र को छोड़, इसराएल के सभी आदमियों ने तलवार चलानेवाले 4,00,000 सैनिकों को इकट्ठा किया,+ हर सैनिक युद्ध में माहिर था। 18 वे परमेश्‍वर से सलाह लेने के लिए बेतेल गए।+ उन्होंने पूछा, “बिन्यामीन से लड़ने के लिए कौन सबसे आगे रहेगा?” यहोवा का जवाब था, “यहूदा का गोत्र।”

19 इसके बाद, इसराएलियों ने सुबह उठकर गिबा के लोगों से लड़ने के लिए छावनी डाली।

20 फिर इसराएली सैनिक निकल पड़े और बिन्यामीन के लोगों से युद्ध करने के लिए गिबा में दल बाँधकर तैनात हो गए। 21 बिन्यामीन के लोग अपने शहर गिबा से बाहर आए। उस दिन उन्होंने 22,000 इसराएली आदमियों को मार गिराया। 22 लेकिन इसराएली सैनिकों ने हिम्मत नहीं हारी। वे दोबारा उसी जगह दल बाँधकर तैनात हो गए जहाँ पहले दिन हुए थे। 23 इस बीच इसराएली यहोवा के सामने शाम तक रोते रहे। वे यहोवा से पूछने लगे, “क्या हम बिन्यामीन के अपने भाइयों से फिर युद्ध करने जाएँ?”+ यहोवा ने कहा, “जाओ।”

24 इसलिए इसराएली अगले दिन बिन्यामीन के लोगों से लड़ने आए। 25 बिन्यामीन के लोग भी लड़ने के लिए गिबा से निकले। इस बार उन्होंने तलवार चलानेवाले 18,000 इसराएली सैनिकों को मार गिराया।+ 26 तब सभी इसराएली बेतेल गए और यहोवा के सामने बैठे रोते रहे।+ उस दिन उन्होंने शाम तक उपवास किया+ और यहोवा को होम-बलियाँ+ और शांति-बलियाँ+ चढ़ायीं। 27 फिर उन्होंने यहोवा से सलाह ली।+ उन दिनों सच्चे परमेश्‍वर के करार का संदूक बेतेल में था 28 और हारून का पोता और एलिआज़र का बेटा, फिनेहास+ संदूक के सामने सेवा करता* था। इसराएलियों ने पूछा, “क्या हम बिन्यामीन के अपने भाइयों से फिर युद्ध करने जाएँ?”+ यहोवा का जवाब था, “हाँ, जाओ। क्योंकि कल मैं उन्हें तुम्हारे हाथ कर दूँगा।” 29 तब इसराएलियों ने अपने आदमियों को गिबा के चारों तरफ घात में बिठाया।+

30 इसराएली तीसरे दिन बिन्यामीन के लोगों से लड़ने निकले और पहले की तरह वे गिबा के सामने दल बाँधकर तैनात हो गए।+ 31 जब बिन्यामीन के लोग इसराएली सेना से लड़ने बाहर आए, तो वे इसराएलियों का पीछा करते हुए शहर से दूर निकल आए।+ उन्होंने पहले की तरह इसराएलियों पर हमला किया और बेतेल की तरफ और गिबा की तरफ जानेवाले राजमार्गों पर, खुले मैदानों में करीब 30 लोगों को मार गिराया।+ 32 बिन्यामीन के लोगों ने सोचा कि इसराएली सेना पहले की तरह हमसे हार रही है।+ मगर यह इसराएलियों की चाल थी। उन्होंने कहा था, “जब हम पीठ दिखाकर भागेंगे तो वे हमारा पीछा करेंगे। और हम उन्हें शहर से दूर राजमार्गों पर ले आएँगे।” 33 तब इसराएली सैनिक अपनी-अपनी जगह से उठे और उन्होंने बाल-तामार में दल बाँधा। और गिबा के पास घात लगाए कुछ सैनिकों ने अपनी जगह से निकलकर हमला बोल दिया। 34 इसराएल के 10,000 योद्धाओं ने गिबा पर चढ़ाई कर दी और घमासान युद्ध हुआ। बिन्यामीन के लोग नहीं जानते थे कि उन पर घोर विपत्ति टूटनेवाली है।

35 यहोवा ने इसराएल के सामने बिन्यामीन के लोगों को हरा दिया।+ उस दिन बिन्यामीन के 25,100 आदमी मार डाले गए, वे सब-के-सब तलवार चलानेवाले सैनिक थे।+

36 जब इसराएली बिन्यामीन के लोगों को पीठ दिखाकर भाग रहे थे, तो बिन्यामीन के लोगों को लगा कि इसराएली एक बार फिर हमसे हार जाएँगे।+ मगर इसराएली इसलिए भागे क्योंकि उन्हें पता था कि उनके कुछ सैनिक गिबा पर हमला करने के लिए घात लगाए बैठे हैं।+ 37 घात लगानेवाले सैनिकों ने तुरंत गिबा पर हमला बोल दिया। वे शहर में घुसकर चारों तरफ फैल गए और उन्होंने सभी निवासियों को तलवार से मार डाला।

38 इसराएलियों ने घात लगानेवाले सैनिकों से कहा था कि वे जैसे ही शहर पर कब्ज़ा कर लें, तो निशानी के तौर पर धुएँ का बादल उड़ाएँ।

39 जब इसराएली बिन्यामीन के लोगों के सामने से भाग रहे थे, तो बिन्यामीन के आदमियों ने उन पर हमला किया और उनके करीब 30 आदमियों को मार गिराया।+ वे कहने लगे, “वह देखो! इसराएली एक बार फिर हमसे हार रहे हैं, जैसे पिछली बार हारे थे।”+ 40 लेकिन तभी गिबा से धुएँ का खंभा ऊपर उठने लगा। जब बिन्यामीन के लोगों ने मुड़कर देखा तो पूरा शहर जल रहा था और धुआँ आसमान की तरफ उठ रहा था। 41 तभी इसराएली पलटकर हमलावरों पर टूट पड़े। बिन्यामीन के सैनिकों के हाथ-पैर फूल गए क्योंकि उन्होंने देखा कि उन पर विपत्ति आ पड़ी है। 42 इसलिए वे इसराएलियों को पीठ दिखाकर वीराने की तरफ भागने लगे। लेकिन इसराएली सैनिकों ने उनका पीछा किया और उन्हें मारने के लिए शहर* से बाकी इसराएली सैनिक भी आ गए। 43 वे चारों तरफ से बिन्यामीन के आदमियों पर बढ़े चले आए और उनका पीछा करते रहे। गिबा के पूरब में आकर उन्होंने बिन्यामीन के आदमियों को रौंद डाला। 44 बिन्यामीन के 18,000 आदमी मारे गए, वे सब-के-सब वीर योद्धा थे।+

45 बाकी बचे हुए आदमी वीराने में रिम्मोन की चट्टान की तरफ भागने लगे।+ मगर इसराएलियों ने उनमें से 5,000 आदमियों को राजमार्गों पर मार गिराया और गिदोम तक उनका पीछा करके और भी 2,000 आदमियों को मार डाला। 46 उस दिन बिन्यामीन के कुल मिलाकर 25,000 तलवार चलानेवाले वीर योद्धा मारे गए।+ 47 लेकिन 600 आदमी वीराने में रिम्मोन की चट्टान में जा छिपे और चार महीने तक वहीं रहे।

48 इसराएल के सैनिक वापस बिन्यामीन के शहरों की तरफ आए और वहाँ जितने भी लोग और जानवर रह गए थे, उन सबको मार डाला। इतना ही नहीं, उन्होंने उनके सभी शहरों को जला दिया।

21 मिसपा में इसराएलियों ने शपथ खायी थी,+ “हममें से कोई भी अपनी बेटियों की शादी बिन्यामीन के आदमियों से नहीं कराएगा।”+ 2 अब युद्ध के बाद वे बेतेल आए+ और सच्चे परमेश्‍वर के सामने शाम तक बैठे रहे। वे फूट-फूटकर रोने लगे 3 और कहने लगे, “हे इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा, यह कैसा दिन देखना पड़ रहा है हमें! आज इसराएल के बीच से एक गोत्र कम हो गया है।” 4 अगले दिन इसराएली सुबह जल्दी उठे और उन्होंने वहाँ एक वेदी बनाकर उस पर होम-बलियाँ और शांति-बलियाँ चढ़ायीं।+

5 फिर उन्होंने पूछा, “इसराएल के सभी गोत्रों में से कौन है जो मिसपा में यहोवा के सामने इकट्ठा नहीं हुआ था?” क्योंकि उन्होंने शपथ खायी थी कि जो कोई मिसपा में यहोवा के सामने नहीं आएगा, वह हर हाल में मार डाला जाएगा। 6 इसराएलियों को बिन्यामीन के अपने भाइयों के बारे में सोचकर दुख हुआ और वे कहने लगे, “आज इसराएल के बीच से एक गोत्र खत्म हो* गया है। 7 बचे हुए आदमियों के लिए हम पत्नियाँ कहाँ से लाएँगे? हमने तो यहोवा के सामने शपथ खायी थी+ कि हम अपनी बेटियों की शादी उनसे नहीं कराएँगे।”+

8 उन्होंने पूछा, “इसराएल के गोत्रों में से कौन है जो मिसपा में यहोवा के सामने इकट्ठा नहीं हुआ था?”+ याबेश-गिलाद से वहाँ कोई भी नहीं आया था। 9 जब इसराएलियों ने गिनना शुरू किया कि वहाँ कौन-कौन आया था, तो उन्हें पता चला कि याबेश-गिलाद का एक भी निवासी वहाँ मौजूद नहीं था। 10 तब इसराएल की मंडली ने अपने 12,000 ताकतवर आदमियों को यह हुक्म देकर भेजा, “जाओ और याबेश-गिलाद के निवासियों को तलवार से मार डालो। उनकी औरतों और बच्चों को भी मत बख्शना।+ 11 उस शहर के हर आदमी-औरत को मार डालना, सिर्फ कुँवारी लड़कियों को ज़िंदा छोड़ देना।” 12 इस तरह उन्हें याबेश-गिलाद से 400 कुँवारी लड़कियाँ मिलीं जिन्होंने कभी किसी आदमी के साथ यौन-संबंध नहीं रखा था। वे उन्हें कनान देश के शीलो में छावनी के पास ले आए।+

13 तब पूरी मंडली ने रिम्मोन की चट्टान में छिपे बिन्यामीन के आदमियों+ से सुलह करने की पेशकश रखी। 14 बिन्यामीन के आदमी वापस आए और इसराएलियों ने उन्हें वे कुँवारी लड़कियाँ दीं, जिनको उन्होंने याबेश-गिलाद में ज़िंदा छोड़ दिया था।+ मगर उन लड़कियों की गिनती बिन्यामीन के आदमियों से कम थी। 15 इसराएलियों को बिन्यामीन के लोगों के लिए बड़ा दुख हुआ+ क्योंकि यहोवा ने इसराएल के गोत्र से उन्हें अलग कर दिया था। 16 मंडली के मुखियाओं ने कहा, “बाकी आदमियों के लिए हम पत्नियाँ कहाँ से लाएँ? हमने तो बिन्यामीन गोत्र की सारी औरतों को मार डाला।” 17 उन्होंने कहा, “बिन्यामीन के बचे हुए आदमियों को उनके हिस्से की ज़मीन ज़रूर मिलनी चाहिए ताकि इसराएल से उनके गोत्र का नाम मिट न जाए। 18 लेकिन हम अपनी बेटियाँ नहीं दे सकते क्योंकि हमने शपथ खायी है कि हममें से जो इसराएली अपनी बेटी की शादी बिन्यामीन के किसी आदमी से कराएगा, वह शापित ठहरेगा।”+

19 तब मुखियाओं ने कहा, “हर साल शीलो में यहोवा के लिए त्योहार मनाया जाता है,+ जो बेतेल के उत्तर में है और बेतेल से शेकेम जानेवाले राजमार्ग के पूरब में और लबोना के दक्षिण में है।” 20 तब उन्होंने बिन्यामीन के आदमियों को आज्ञा दी, “जाओ और वहाँ अंगूरों के बाग में घात लगाकर बैठ जाओ। 21 जब शीलो की जवान लड़कियाँ बाहर आएँगी और घेरा बनाकर नाच रही होंगी, तब तुम अंगूरों के बाग से निकलकर अपने लिए एक-एक लड़की उठा लेना और बिन्यामीन के अपने इलाके में लौट जाना। 22 और अगर उन लड़कियों के पिता और भाई हमारे पास शिकायत लेकर आएँ तो हम उनसे कहेंगे, ‘हम पर एहसान करो और उन्हें जाने दो। क्योंकि हमने उनको पत्नियाँ दिलाने के लिए जो युद्ध किया था, उसमें हमें सबके लिए लड़कियाँ नहीं मिली थीं।+ वैसे भी, तुमने अपनी बेटियाँ अपनी मरज़ी से नहीं दीं, इसलिए तुम किसी भी तरह दोषी नहीं ठहरोगे।’”+

23 बिन्यामीन के आदमियों से जैसा कहा गया उन्होंने वैसा ही किया। वे उन लड़कियों में से जो नाच रही थीं, अपने लिए एक-एक लड़की उठा ले गए और उन्हें अपनी पत्नी बना लिया। फिर वे अपने इलाके में लौट गए और उन्होंने अपने शहरों को दोबारा खड़ा किया+ और उनमें बस गए।

24 इसराएली अपने-अपने गोत्र और अपने परिवार के पास अपने इलाके में लौट गए।

25 उन दिनों इसराएल में कोई राजा नहीं था।+ हर कोई वही कर रहा था जो उसकी नज़र में सही था।

या “कर दिया है।”

शा., “हिस्सा।”

या शायद, “ध्यान खींचने के लिए उसने गधे पर बैठे-बैठे ताली बजायी।”

मतलब “पानी के कुंड।”

या “नेगेब।”

मतलब “नाश के लिए ठहराना।”

शा., “लोहे के रथ थे।”

शा., “अटल प्यार।”

मतलब “रोनेवाले।”

शा., “लोग अपने पुरखों में जा मिले।”

या “उनके साथ वेश्‍याओं जैसी बदचलनी करने।”

शब्दावली देखें।

शा., “अराम-नहरैम।”

शा., “अराम।”

शायद एक छोटा हाथ यानी एक हाथ में चार अंगुल कम, जिसकी लंबाई करीब 38 सें.मी. (15 इंच) है। अति. ख14 देखें।

या शायद, “पत्थर की खदानों।”

या शायद, “रौशनदान।”

यानी शौच करने।

या शायद, “पत्थर की खदानों।”

शा., “अंकुश।”

शा., “उसके।”

शा., “लोहे के रथ थे।”

शा., “लोहे के रथों को।”

शा., “कनान के राजा याबीन को।”

शा., “अपने बालों को खुला छोड़ा है।” यह एक निशानी थी कि उन्होंने कोई शपथ खायी है।

या “संगीत बजाऊँगी।”

या शायद, “काँप उठे।”

या “का छड़ लेकर आए।” या शायद, “शास्त्री के लिखने की चीज़ें सँभालनेवाले।”

यानी रूबेन।

यानी बोझ ढोनेवाले जानवरों पर रखे बोरे।

या शायद, “अनाज छिपाने की जगह।”

यानी परमेश्‍वर।

करीब 22 ली. अति. ख14 देखें।

शा., “तुझे शांति मिले।”

मतलब “यहोवा शांति है।”

शा., “दूसरा बैल।”

शब्दावली देखें।

शा., “दूसरे बैल।”

शा., “दूसरा बैल।”

मतलब “बाल अपना मुकदमा लड़े (या अपनी पैरवी करे)।”

शा., “कुत्ते के समान जीभ से पानी पीएँगे।”

रात के करीब 10 बजे से सुबह करीब 2 बजे तक।

शा., “क्या एप्रैम के बीने हुए अंगूर अबीएजेर की काटी गयी फसल से ज़्यादा नहीं हैं?”

एक शेकेल का वज़न 11.4 ग्रा. था। अति. ख14 देखें।

या “एपोद के साथ वेश्‍याओं जैसी बदचलनी करने लगे।”

शा., “सिर न उठाया।”

यानी गिदोन। न्या 6:32 देखें।

या “के साथ वेश्‍याओं जैसी बदचलनी।”

या “अटल प्यार।”

या शायद, “ज़मींदारों।”

शा., “तुम्हारा हाड़-माँस हूँ।”

शा., “उनका मन उसकी तरफ झुकने लगा।”

शा., “के ऊपर क्यों झूमूँ?”

शा., “तुम्हारे ऊपर क्यों झूमूँ?”

शा., “तुम्हारे ऊपर क्यों झूमूँ?”

शायद शेकेम के अधिकारी जबूल की बात की गयी है।

या “चालाकी से।”

या “गढ़।”

या “सीरिया।”

या “देखकर परमेश्‍वर का जी बेचैन हो उठा।”

ज़ाहिर है, उसकी एक और पत्नी थी।

शा., “सुननेवाला।”

ज़ाहिर है, यह एक अलंकार है। इसका मतलब है, परमेश्‍वर की सेवा के लिए पूरी तरह दे देना।

या “अपने दोस्तों के साथ रोना चाहती हूँ क्योंकि मैं कभी शादी नहीं करूँगी।”

या “नियम।”

या शायद, “नदी पार कर उत्तर की तरफ।”

शा., “तुम वे लोग हो जो एप्रैम से भाग आए थे।”

शा., “गर्भ।”

शा., “गर्भ।”

इब्री दस्तूर के मुताबिक मंगेतर को पत्नी कहा जाता था।

इब्री दस्तूर के मुताबिक मंगेतर को पति कहा जाता था।

या शायद, “इससे पहले कि वह अंदरवाले कमरे में जाता।”

यानी उन्होंने उसकी पत्नी से अपना काम निकलवाया।

या “अंदरवाले कमरे।”

या “दरार।”

या “दरार।”

या “बाँधकर।”

मतलब “जबड़े की हड्डी की ऊँची जगह।”

मतलब “पुकारनेवाले का सोता।”

या “ताँत।”

शा., “का हाथ भर दिया।”

शा., “पिता।”

शा., “का हाथ भर दिया।”

या “बोलने का लहज़ा।”

मतलब “दान की छावनी।”

शा., “पिता।”

या “पवित्र डेरा।”

शा., “डेरे।”

या शायद, “और मैं यहोवा के भवन में सेवा करता हूँ।”

शा., “तुझे शांति मिले।”

या शायद, “ज़मींदारों।”

शा., “एक आदमी की तरह।”

शा., “अगर वे गोफन से एक बाल पर भी निशाना लगाते तो उनका निशाना खाली न जाता।”

शा., “हाज़िर रहता।”

शा., “शहरों।”

शा., “कट।”

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