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  • 2 शमूएल
  • पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद (अध्ययन बाइबल)
पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद (अध्ययन बाइबल)
2 शमूएल

दूसरा शमूएल

1 शाऊल की मौत हो चुकी थी और दाविद अमालेकियों को हराकर* सिकलग+ लौट आया था। उसे सिकलग में रहते दो दिन हो गए थे और 2 तीसरे दिन शाऊल की छावनी से एक आदमी अपने कपड़े फाड़े हुए और सिर पर धूल डाले सिकलग आया। जब वह दाविद के पास पहुँचा तो उसने मुँह के बल ज़मीन पर गिरकर प्रणाम किया।

3 दाविद ने उससे पूछा, “तू कहाँ से आया है?” उसने कहा, “मैं इसराएल की छावनी से भागकर आया हूँ।” 4 दाविद ने पूछा, “युद्ध में क्या हुआ, मुझे बता।” उसने कहा, “इसराएली युद्ध से भाग गए हैं और बहुत-से इसराएली सैनिक मारे गए हैं। शाऊल और उसके बेटे योनातान की भी मौत हो गयी है।”+ 5 तब दाविद ने खबर लानेवाले उस जवान से पूछा, “तुझे कैसे मालूम कि शाऊल और उसका बेटा योनातान मर गए हैं?” 6 उस जवान ने कहा, “इत्तफाक से मैं उस वक्‍त गिलबो पहाड़ पर था+ और मैंने देखा कि शाऊल भाला टेके खड़ा है और दुश्‍मनों के रथ और घुड़सवार तेज़ी से उसकी ओर बढ़ रहे हैं।+ 7 जब शाऊल ने मुड़कर मुझे देखा तो उसने मुझे बुलाया और मैंने कहा, ‘हाँ, मालिक!’ 8 उसने मुझसे पूछा, ‘तू कौन है?’ मैंने कहा, ‘मैं एक अमालेकी+ हूँ।’ 9 उसने कहा, ‘मेरे पास आ और मुझे मार डाल, तेरी बड़ी मेहरबानी होगी। मैं दर्द से तड़प रहा हूँ और मेरी जान भी नहीं निकल रही है।’ 10 तब मैंने पास जाकर उसे मार डाला+ क्योंकि मैं जानता था कि वह इतनी बुरी तरह घायल हो चुका था कि उसका बचना नामुमकिन था। फिर मैंने उसके सिर से ताज और हाथ से बाज़ूबंद निकाल लिया और ये सब तेरे पास लाया हूँ मालिक।”

11 यह सुनते ही दाविद ने मारे दुख के अपने कपड़े फाड़े और उसके सभी आदमियों ने भी वैसा ही किया। 12 वे शाऊल और उसके बेटे योनातान के लिए और यहोवा के लोगों और इसराएल के घराने+ के लिए शाम तक रोते-बिलखते रहे और उन्होंने उपवास किया+ क्योंकि वे सब तलवार से मारे गए थे।

13 दाविद ने खबर लानेवाले उस जवान से पूछा, “तू कहाँ का रहनेवाला है?” उसने कहा, “मैं इसराएल में रहनेवाले एक परदेसी अमालेकी का बेटा हूँ।” 14 दाविद ने उससे कहा, “यहोवा के अभिषिक्‍त जन पर हाथ उठाने की तेरी हिम्मत कैसे हुई?”+ 15 फिर दाविद ने अपने एक आदमी को बुलाया और उससे कहा, “आगे बढ़ और मार डाल इसे।” उसने आगे बढ़कर उस जवान को मार डाला।+ 16 दाविद ने उस जवान से कहा, “तेरे खून का दोष तेरे ही सिर पड़े क्योंकि तूने अपने मुँह से यह कहकर खुद को दोषी ठहराया, ‘यहोवा के अभिषिक्‍त जन को मैंने ही मारा है।’”+

17 इसके बाद दाविद ने शाऊल और उसके बेटे योनातान के लिए एक शोकगीत गाया।+ 18 दाविद ने कहा कि यहूदा के लोगों को यह शोकगीत सिखाया जाए जो “धनुष” कहलाता है और याशार की किताब+ में लिखा है:

19 “हे इसराएल, तेरा गौरव तेरी ऊँची जगहों पर घात पड़ा है।+

हाय! तेरे वीर कैसे गिर पड़े हैं!

20 यह खबर गत में मत सुनाना,+

अश्‍कलोन की गलियों में इसका ऐलान मत करना,

वरना पलिश्‍तियों की बेटियाँ खुशियाँ मनाएँगी,

वरना खतनारहित लोगों की बेटियाँ जश्‍न मनाएँगी।

21 गिलबो के पहाड़ो,+

तुम पर न ओस पड़े, न बारिश गिरे,

न तुम्हारे खेत पवित्र भेंट के लिए कोई उपज दें,+

क्योंकि तुम्हारे यहाँ शूरवीरों की ढाल दूषित हो गयी,

अब शाऊल की ढाल तेल से नहीं चमकायी जाती।

22 दुश्‍मनों का खून बहाए बिना, सूरमाओं की चरबी भेदे बिना

न योनातान की कमान कभी लौटती थी,+

न शाऊल की तलवार कभी लौटती थी।+

23 शाऊल और योनातान+ सारी ज़िंदगी सबके चहेते* और प्यारे थे,

मौत के वक्‍त भी वे एक-दूसरे से जुदा नहीं हुए।+

वे उकाबों से ज़्यादा फुर्तीले+

और शेरों से ज़्यादा ताकतवर थे।+

24 इसराएल की बेटियो, शाऊल के लिए रोओ,

जिसने तुम्हें सुर्ख लाल, शानदार कपड़े पहनाए

और तुम्हें सोने के गहनों से सजाया।

25 हाय! तेरे वीर कैसे युद्ध में मारे गए हैं!

योनातान तेरी ऊँची जगहों पर घात पड़ा है!+

26 मेरे भाई योनातान, तुझे खोने के गम से मैं बहुत दुखी हूँ,

तू मेरा कितना अज़ीज़ था!+

मेरे लिए तेरा प्यार औरतों के प्यार से कहीं बढ़कर था।+

27 हाय! वीर कैसे गिर पड़े हैं,

युद्ध के हथियार कैसे मिट गए हैं!”

2 इसके बाद दाविद ने यहोवा से सलाह की,+ “क्या मैं यहूदा के किसी शहर में जाऊँ?” यहोवा ने कहा, “हाँ, जा।” दाविद ने पूछा, “मैं किस शहर में जाऊँ?” परमेश्‍वर ने कहा, “तू हेब्रोन जा।”+ 2 तब दाविद अपनी दोनों पत्नियों, यिजरेली अहीनोअम+ और अबीगैल+ को साथ लेकर हेब्रोन गया। (अबीगैल, करमेली नाबाल की विधवा थी।) 3 दाविद अपने आदमियों+ और उनके परिवारों को भी साथ ले गया और वे सभी हेब्रोन के आस-पास के शहरों में बस गए। 4 इसके बाद, यहूदा के आदमी हेब्रोन आए और उन्होंने दाविद का अभिषेक करके उसे यहूदा के घराने का राजा ठहराया।+

उन्होंने दाविद को बताया कि याबेश-गिलाद के आदमियों ने ही शाऊल को दफनाया था। 5 तब दाविद ने अपने दूतों के हाथ याबेश-गिलाद के आदमियों को यह संदेश भेजा: “यहोवा तुम्हें आशीष दे क्योंकि तुमने अपने मालिक शाऊल को दफनाकर उसके लिए अपने अटल प्यार का सबूत दिया।+ 6 यहोवा भी तुम्हें अपने अटल प्यार का सबूत दे और तुम्हारा विश्‍वासयोग्य बना रहे। मैं भी तुम पर कृपा करूँगा क्योंकि तुमने यह नेक काम किया है।+ 7 अब तुम सब खुद को मज़बूत करो और दिलेर बनो, क्योंकि तुम्हारा मालिक शाऊल अब नहीं रहा और यहूदा के घराने ने मेरा अभिषेक करके मुझे अपना राजा ठहराया है।”

8 मगर अब्नेर,+ जो नेर का बेटा और शाऊल की सेना का सेनापति था, शाऊल के बेटे ईशबोशेत+ को नदी पार महनैम+ ले गया था 9 और वहाँ उसे राजा बना दिया था। उसने ईशबोशेत को गिलाद+ पर, अशूरी लोगों पर, यिजरेल,+ एप्रैम+ और बिन्यामीन पर, एक तरह से पूरे इसराएल पर राजा बना दिया था। 10 शाऊल का बेटा ईशबोशेत जब इसराएल का राजा बना तो वह 40 साल का था। उसने दो साल राज किया। मगर यहूदा के घराने ने दाविद का साथ दिया।+ 11 दाविद ने हेब्रोन में रहकर यहूदा के घराने पर साढ़े सात साल तक राज किया था।+

12 कुछ समय बाद नेर का बेटा अब्नेर और शाऊल के बेटे ईशबोशेत के सेवक, महनैम से+ गिबोन+ गए। 13 इधर सरूयाह का बेटा योआब+ और दाविद के सेवक भी गिबोन के तालाब के पास गए और वहाँ उन्होंने अब्नेर के दल का सामना किया। एक दल तालाब के इस तरफ बैठा था और दूसरा दल तालाब के उस तरफ। 14 तब अब्नेर ने योआब से कहा, “एक काम करते हैं। हम अपने जवानों से कहते हैं कि वे उठकर हमारे सामने एक-दूसरे से मुकाबला करें।” योआब ने कहा, “ठीक है, हो जाए मुकाबला।” 15 तब दोनों दल तैयार हुए और उन्होंने अपने-अपने दल से 12 आदमी चुने। बिन्यामीन और शाऊल के बेटे ईशबोशेत की तरफ से 12 जवान थे और दाविद के सेवकों में से 12 जवान। 16 फिर दोनों दलों के जवानों ने एक-दूसरे के बाल कसकर पकड़े और हरेक ने अपने विरोधी को तलवार भोंक दी और सब एक-साथ ढेर हो गए। इसी घटना से गिबोन प्रांत की उस जगह का नाम हेलकत-हस्सुरीम पड़ा।

17 उस दिन दोनों दलों के बीच घमासान युद्ध हुआ। आखिरकार अब्नेर और इसराएल के आदमी दाविद के आदमियों से हार गए। 18 दाविद के आदमियों में सरूयाह के तीन बेटे+ योआब,+ अबीशै+ और असाहेल+ भी थे। असाहेल जंगली चिकारे की तरह तेज़ दौड़ता था। 19 वह अब्नेर का पीछा करने लगा और उसके पीछे ऐसा दौड़ता गया कि उसने दाएँ-बाएँ मुड़कर भी न देखा। 20 जब अब्नेर ने पीछे मुड़कर देखा तो उसने पूछा, “असाहेल, क्या तू है?” उसने कहा, “हाँ, मैं हूँ।” 21 अब्नेर ने कहा, “मेरा पीछा करना छोड़ दे। मेरे किसी जवान को पकड़ ले और उसके पास जो कुछ है छीन ले।” मगर असाहेल रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। 22 अब्नेर ने असाहेल से फिर कहा, “मेरा पीछा करना छोड़ दे, कहीं ऐसा न हो कि मैं तुझे मार डालूँ। फिर मैं तेरे भाई योआब को क्या मुँह दिखाऊँगा?” 23 मगर असाहेल नहीं माना। इसलिए अब्नेर ने अपने भाले का पिछला हिस्सा असाहेल के पेट में ऐसा मारा कि भाला आर-पार निकल गया।+ असाहेल गिर पड़ा और उसने वहीं दम तोड़ दिया। जितने आदमी उस जगह से गुज़रते जहाँ असाहेल की लाश पड़ी थी, वे सब थोड़ी देर वहाँ रुकते थे।

24 इसके बाद योआब और अबीशै, अब्नेर का पीछा करने लगे। सूरज ढलते-ढलते वे अम्माह नाम की पहाड़ी पर पहुँचे, जो गीह के सामने और गिबोन के वीराने की तरफ जानेवाले रास्ते पर थी। 25 बिन्यामीन के लोग अब्नेर के पीछे इकट्ठा हो गए और दल बाँधकर एक पहाड़ी की चोटी पर खड़े हो गए। 26 फिर अब्नेर ने योआब को आवाज़ लगायी और कहा, “हम कब तक इस तरह एक-दूसरे पर तलवार चलाते रहेंगे? क्या तू नहीं जानता कि आखिर में इसका अंजाम कड़वा ही होगा? अब तो अपने आदमियों से बोल कि वे अपने भाइयों का पीछा करना छोड़ दें।” 27 योआब ने कहा, “सच्चे परमेश्‍वर के जीवन की शपथ, अगर तू न कहता तो मेरे लोग सुबह तक अपने भाइयों का पीछा करते रहते।” 28 फिर योआब ने नरसिंगा फूँका और उसके आदमियों ने इसराएलियों का पीछा करना छोड़ दिया। इस तरह लड़ाई थम गयी।

29 इसके बाद अब्नेर और उसके आदमियों ने रात-भर चलकर अराबा+ पार किया। फिर उन्होंने यरदन नदी पार की और उसकी तंग घाटी में चलते हुए* आगे बढ़े और आखिरकार महनैम पहुँचे।+ 30 जब योआब ने अब्नेर का पीछा करना छोड़ दिया तो उसने अपने सभी आदमियों को इकट्ठा किया। दाविद के सेवकों में से असाहेल के अलावा 19 आदमी कम थे। 31 दाविद के सेवकों ने बिन्यामीनियों और अब्नेर के आदमियों को हरा दिया था। उनके 360 आदमी मारे गए थे। 32 योआब और उसके आदमियों ने असाहेल+ की लाश उठायी और बेतलेहेम+ ले जाकर उसके पिता की कब्र में दफना दी। इसके बाद योआब और उसके आदमी पूरी रात चलते रहे और सुबह होते-होते हेब्रोन+ पहुँचे।

3 शाऊल के घराने और दाविद के घराने के बीच लंबे समय तक युद्ध चलता रहा। दाविद दिनों-दिन ताकतवर होता गया,+ जबकि शाऊल का घराना कमज़ोर होता गया।+

2 इस बीच हेब्रोन में दाविद के कई बेटे हुए।+ उसका पहलौठा अम्नोन+ था जो यिजरेली अहीनोअम+ से पैदा हुआ था। 3 दूसरा बेटा किलाब था जो अबीगैल+ (वह करमेली नाबाल की विधवा थी) से पैदा हुआ था और तीसरा अबशालोम+ था जो माका से पैदा हुआ था। माका गशूर के राजा तल्मै+ की बेटी थी। 4 चौथा अदोनियाह+ था जो हग्गीत से पैदा हुआ था, पाँचवाँ शपत्याह था जो अबीतल से पैदा हुआ था 5 और छठा बेटा यित्राम था जो एग्ला से पैदा हुआ था। दाविद के ये बेटे हेब्रोन में पैदा हुए थे।

6 एक तरफ जहाँ शाऊल के घराने और दाविद के घराने के बीच युद्ध चलता रहा, वहीं दूसरी तरफ अब्नेर+ शाऊल के घराने में अपनी धाक जमाने में लगा रहा। 7 शाऊल की एक उप-पत्नी थी रिस्पा,+ जो अय्या की बेटी थी। बाद में ईशबोशेत+ ने अब्नेर से कहा, “तूने क्यों मेरे पिता की उप-पत्नी के साथ संबंध रखे?”+ 8 इस पर अब्नेर को बहुत गुस्सा आया और उसने ईशबोशेत से कहा, “क्या मैं यहूदा का कोई कुत्ता* हूँ जो तू मुझसे ऐसे बात कर रहा है? आज तक मैं तेरे पिता शाऊल के घराने का और उसके भाइयों और दोस्तों का वफादार हूँ।* मैंने कोई गद्दारी नहीं की और तेरे साथ भी मैंने विश्‍वासघात करके तुझे दाविद के हाथ में नहीं किया। फिर भी तू आज मेरे साथ ऐसा सलूक कर रहा है? मुझसे एक औरत के मामले में गलती क्या हो गयी, तू मुझसे उसका हिसाब माँग रहा है? 9 अब अगर मैं दाविद के साथ यहोवा की शपथ+ के मुताबिक काम न करूँ, तो परमेश्‍वर मुझ अब्नेर को कड़ी-से-कड़ी सज़ा दे। 10 परमेश्‍वर ने शपथ खाकर कहा था कि वह शाऊल के घराने से राज छीनकर दाविद को दे देगा और दाविद की राजगद्दी दान से लेकर बेरशेबा तक+ पूरे इसराएल और यहूदा पर कायम करेगा।” 11 जवाब में ईशबोशेत से कुछ कहते न बना क्योंकि वह अब्नेर से बहुत डर गया था।+

12 अब्नेर ने फौरन अपने दूतों के हाथ दाविद को यह संदेश भेजा: “इस पूरे देश पर किसका अधिकार है?” फिर उसने कहा, “तू मेरे साथ एक करार कर और मैं पूरे इसराएल को तेरी तरफ करने में कोई कसर नहीं छोड़ूँगा।”+ 13 जवाब में दाविद ने कहा, “अच्छी बात है! मैं ज़रूर तेरे साथ करार करूँगा। बस मैं तुझसे इतना चाहता हूँ कि जब तू मुझसे मिलने आए तो शाऊल की बेटी मीकल+ को मेरे पास लाए, वरना तू मुझे अपना मुँह न दिखाना।” 14 फिर दाविद ने अपने दूतों के हाथ शाऊल के बेटे ईशबोशेत+ को यह संदेश भेजा: “मुझे मेरी पत्नी मीकल वापस दे दे, जिससे मेरी सगाई पलिश्‍तियों की 100 खलड़ियाँ देकर करायी गयी थी।”+ 15 तब ईशबोशेत ने मीकल को लाने के लिए अपने आदमियों को उसके पति पलतीएल+ के पास भेजा जो लैश का बेटा था। 16 जब मीकल जा रही थी तो उसका पति उसके साथ चलता गया और रोता हुआ उसके पीछे-पीछे दूर बहूरीम+ तक गया। फिर अब्नेर ने पलतीएल से कहा, “जा, तू लौट जा!” तब वह लौट गया।

17 इस बीच अब्नेर ने इसराएल के मुखियाओं को यह संदेश भेजा: “तुम लोग काफी समय से दाविद को अपना राजा बनाना चाहते थे। 18 अब वैसा ही करो क्योंकि यहोवा ने दाविद से कहा था, ‘मैं अपने सेवक दाविद+ के हाथों अपनी प्रजा इसराएल को पलिश्‍तियों और बाकी सभी दुश्‍मनों से बचाऊँगा।’” 19 फिर अब्नेर ने बिन्यामीन के लोगों से बात की।+ वह हेब्रोन भी गया ताकि दाविद से अकेले में बात करे और उसे बताए कि इसराएल और बिन्यामीन का पूरा घराना क्या करने पर राज़ी हुआ है।

20 जब अब्नेर 20 आदमियों को लेकर हेब्रोन में दाविद के पास आया तो दाविद ने उन सबके लिए एक दावत रखी। 21 फिर अब्नेर ने दाविद से कहा, “मुझे इजाज़त दे कि मैं जाकर पूरे इसराएल को अपने मालिक राजा के सामने इकट्ठा करूँ ताकि वे तेरे साथ एक करार करें और तू पूरे इसराएल का राजा बने, जैसा तू चाहता है।” तब दाविद ने अब्नेर को विदा किया और अब्नेर शांति से अपने रास्ते चला गया।

22 कुछ ही देर बाद दाविद के सेवक और योआब कहीं से लूटमार करके वापस लौटे। वे अपने साथ लूट का ढेर सारा माल लाए थे। तब तक अब्नेर हेब्रोन से जा चुका था क्योंकि दाविद ने उसे शांति से विदा कर दिया था। 23 योआब+ और उसकी पूरी सेना के लौटने पर योआब को बताया गया कि नेर का बेटा अब्नेर+ राजा के पास आया था और राजा ने उसे विदा कर दिया और वह शांति से अपने रास्ता चला गया। 24 तब योआब ने राजा के पास जाकर उससे कहा, “यह तूने क्या किया? अब्नेर तेरे पास आया था और तूने उसे यूँ ही जाने दिया! 25 तू जानता है कि नेर का वह बेटा अब्नेर कैसा आदमी है। वह तुझे धोखा देने आया था, तेरे हर काम की जासूसी करने, तेरे बारे में पूरी जानकारी लेने आया था।”

26 इसलिए योआब दाविद के पास से चला गया और उसने अपने दूतों को अब्नेर के पीछे भेजा। वे उसे सीरा के कुंड के पास से वापस ले आए। मगर दाविद को इस बारे में कुछ नहीं पता था। 27 जब अब्नेर हेब्रोन लौटा+ तो योआब उसे शहर के फाटक के अंदर एक तरफ ले गया ताकि अकेले में उससे बात करे। मगर वहाँ उसने अब्नेर के पेट में तलवार भोंक दी और वह मर गया।+ इस तरह योआब ने अपने भाई असाहेल के खून का बदला लिया।+ 28 बाद में जब दाविद को इसका पता चला तो उसने कहा, “यहोवा जानता है कि नेर के बेटे अब्नेर के खून के लिए मैं और मेरा राज किसी भी तरह दोषी नहीं हैं।+ 29 अब्नेर के कत्ल का दोष योआब और उसके पिता के पूरे घराने पर पड़े।+ योआब के घराने में सदा ऐसे लोग रहें जो रिसाव से पीड़ित हों,+ कोढ़ी हों,+ तकली चलानेवाले हों,* खाने के मोहताज हों या वे तलवार से मारे जाएँ!”+ 30 योआब और अबीशै+ ने अब्नेर+ का इसलिए कत्ल किया क्योंकि उसने उनके भाई असाहेल को गिबोन की लड़ाई में मार डाला था।+

31 फिर दाविद ने योआब से और उसके साथवाले सभी आदमियों से कहा, “तुम सब अपने-अपने कपड़े फाड़ो, टाट बाँधो और अब्नेर के लिए ज़ोर-ज़ोर से रोओ।” जब अब्नेर की अर्थी ले जायी जा रही थी तो राजा दाविद भी उसके पीछे-पीछे चलता गया। 32 उन्होंने अब्नेर को हेब्रोन में दफनाया। राजा दाविद अब्नेर की कब्र के पास ज़ोर-ज़ोर से रोया और लोग भी रोने लगे। 33 राजा ने रो-रोकर अब्नेर के बारे में यह राग अलापा,

“यह कैसी नाइंसाफी है!

अब्नेर एक निकम्मे की मौत मरा।

34 न तेरे हाथ बँधे हुए थे,

न तेरे पैर बेड़ियों में जकड़े हुए थे,

फिर भी तू ऐसे गिर गया जैसे कोई अपराधियों का शिकार हो जाता है।”+

यह सुनकर सब लोग अब्नेर के लिए फिर से रोने लगे।

35 अभी दिन का समय ही था और सब लोग दाविद के पास आए और उसे रोटी* खाने के लिए मनाने लगे। मगर दाविद ने शपथ खाकर कहा, “अगर मैंने सूरज ढलने से पहले रोटी का एक टुकड़ा भी खाया या कुछ भी मुँह में डाला+ तो परमेश्‍वर मुझे कड़ी-से-कड़ी सज़ा दे!” 36 जब सब लोगों ने यह देखा तो उन्हें राजा का ऐसा करना सही लगा, ठीक जैसे दूसरे मामलों में भी उसकी बातें उन्हें सही लगती थीं। 37 इस तरह उस दिन सब लोगों को और पूरे इसराएल को मालूम पड़ा कि नेर के बेटे अब्नेर के कत्ल के लिए राजा ज़िम्मेदार नहीं था।+ 38 फिर राजा ने अपने सेवकों से कहा, “तुम जानते हो कि आज इसराएल में एक हाकिम की, एक महान आदमी की मौत हुई है।+ 39 हालाँकि मेरा अभिषेक करके मुझे राजा ठहराया गया है,+ लेकिन आज मैं बहुत कमज़ोर हूँ क्योंकि सरूयाह के बेटे+ बहुत बेरहम हैं।+ यहोवा दुष्ट को उसकी दुष्टता की सज़ा दे।”+

4 जब शाऊल के बेटे ईशबोशेत*+ ने सुना कि हेब्रोन में अब्नेर की मौत हो गयी है,+ तो उसकी हिम्मत टूट गयी* और सभी इसराएलियों में तहलका मच गया। 2 शाऊल के बेटे के लुटेरे-दलों के दो सरदार थे, एक का नाम बानाह था और दूसरे का रेकाब। वे दोनों रिम्मोन के बेटे थे, जो बिन्यामीन गोत्र का था और बएरोत का रहनेवाला था। (बएरोत+ भी बिन्यामीन के इलाके का हिस्सा माना जाता था। 3 बएरोत के लोग गित्तैम+ भाग गए थे और वे आज तक वहाँ परदेसी बनकर रह रहे हैं।)

4 शाऊल के बेटे योनातान+ का एक बेटा था जो पैरों से लाचार* था।+ उसका नाम मपीबोशेत था। मपीबोशेत पाँच साल का था जब यिजरेल+ से खबर आयी थी कि शाऊल और योनातान मारे गए हैं। यह खबर सुनकर उसकी धाई बहुत घबरा गयी थी और जब वह जल्दी में मपीबोशेत को उठाकर भाग रही थी तो वह उसके हाथ से गिर गया और लँगड़ा हो गया।+

5 बएरोती रिम्मोन के बेटे रेकाब और बानाह दोपहर के वक्‍त, जब बहुत गरमी होती है, ईशबोशेत के घर गए। ईशबोशेत घर में आराम कर रहा था। 6 वे दोनों घर के अंदर ऐसे गए मानो गेहूँ लेने आए हों। फिर उन्होंने+ ईशबोशेत के पेट में छुरा घोंप दिया और वहाँ से भाग गए। 7 जब वे दोनों घर के अंदर गए थे तब ईशबोशेत अपने सोने के कमरे में बिस्तर पर लेटा हुआ था। वहीं उन दोनों ने उसे मार डाला और उसका सिर काट लिया। वे उसका सिर लेकर पूरी रात अराबा जानेवाले रास्ते पर चलते हुए 8 हेब्रोन पहुँचे। वे ईशबोशेत+ का सिर लेकर राजा दाविद के पास आए और उससे कहने लगे, “देख, यह तेरे जानी दुश्‍मन शाऊल+ के बेटे ईशबोशेत का सिर है! आज यहोवा ने हमारे मालिक राजा की तरफ से शाऊल और उसके वंशजों से बदला लिया है।”

9 लेकिन दाविद ने बएरोती रिम्मोन के बेटों रेकाब और बानाह से कहा, “यहोवा के जीवन की शपथ, जिसने मुझे हर मुसीबत से बचाया है,+ 10 जब सिकलग में किसी ने आकर मुझे खबर दी थी कि शाऊल मर गया है+ और उसने सोचा कि वह मुझे खुशखबरी दे रहा है, तो मैंने उसे पकड़कर मार डाला।+ उस खबर देनेवाले को मैंने यही इनाम दिया! 11 तो फिर क्या उन दुष्टों को और भी बड़ी सज़ा नहीं मिलनी चाहिए जिन्होंने एक नेक इंसान को उसी के घर में घुसकर बिस्तर पर मार डाला? क्या यह सही नहीं होगा कि मैं तुम दोनों से उसके खून का हिसाब लूँ+ और तुम्हें धरती से मिटा दूँ?” 12 फिर दाविद ने अपने जवानों को हुक्म दिया कि वे उन दोनों को मार डालें।+ उन्होंने उन दोनों को मार डाला, उनके हाथ-पैर काट डाले और उनकी लाशें हेब्रोन में तालाब के पास लटका दीं।+ मगर उन्होंने ईशबोशेत का सिर लिया और उसे हेब्रोन में अब्नेर की कब्र में दफना दिया।

5 कुछ समय बाद इसराएल के सभी गोत्र हेब्रोन में दाविद के पास आए+ और कहने लगे, “देख, तेरे साथ हमारा खून का रिश्‍ता है।*+ 2 बीते समय में जब शाऊल हमारा राजा था, तब तू ही लड़ाइयों में इसराएल की अगुवाई करता था।+ यहोवा ने तुझसे कहा था, ‘तू एक चरवाहे की तरह मेरी प्रजा इसराएल की देखभाल करेगा और इसराएल का अगुवा बनेगा।’”+ 3 इस तरह इसराएल के सभी मुखिया हेब्रोन में राजा के पास आए और राजा दाविद ने हेब्रोन में यहोवा के सामने उनके साथ एक करार किया।+ फिर उन्होंने दाविद का अभिषेक करके उसे इसराएल का राजा ठहराया।+

4 जब दाविद राजा बना तब वह 30 साल का था और उसने 40 साल राज किया।+ 5 साढ़े सात साल उसने हेब्रोन में रहकर यहूदा पर राज किया और 33 साल यरूशलेम+ में रहकर पूरे इसराएल और यहूदा पर राज किया। 6 एक बार राजा दाविद और उसके आदमी यबूसियों पर हमला करने यरूशलेम के लिए निकल पड़े+ जो वहाँ रहते थे। यबूसियों ने दाविद का मज़ाक बनाते हुए कहा, “तू हमारे इलाके में कभी कदम नहीं रख पाएगा! तुझे भगाने के लिए हमारे अंधे और लूले-लँगड़े ही काफी हैं।” उन्होंने सोचा कि दाविद उनके इलाके में कभी नहीं घुस पाएगा।+ 7 मगर दाविद ने सिय्योन के गढ़वाले शहर पर कब्ज़ा कर लिया जो आज दाविदपुर कहलाता है।+ 8 दाविद ने उस दिन कहा, “यबूसियों पर हमला करनेवालों को पानी की सुरंग से जाना चाहिए और ‘उन अंधों और लूले-लँगड़ों’ को मार डालना चाहिए जिनसे दाविद को नफरत है।” इसी घटना से यह बात चली है, “अंधे और लूले-लँगड़े इस जगह में कभी कदम नहीं रख पाएँगे।” 9 सिय्योन का किला जीतने के बाद दाविद वहाँ जाकर बस गया और उस जगह का नाम दाविदपुर रखा गया।* दाविद टीले*+ पर और शहर की दूसरी जगहों में दीवारें और इमारतें बनवाने लगा।+ 10 इस तरह दाविद दिनों-दिन महान होता गया+ और सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा उसके साथ था।+

11 सोर के राजा हीराम+ ने दाविद के पास अपने दूत भेजे। साथ ही, उसने देवदार की लकड़ी और कुछ बढ़ई और दीवार बनाने के लिए राजमिस्त्री भेजे।+ ये कारीगर दाविद के लिए महल बनाने लगे।+ 12 और दाविद को एहसास हो गया कि यहोवा ने इसराएल पर उसका राज मज़बूती से कायम किया है+ और अपनी प्रजा इसराएल की खातिर+ उसका राज ऊँचा किया है।+

13 दाविद ने हेब्रोन से यरूशलेम आने के बाद और भी कुछ औरतों से शादी की और कुछ उप-पत्नियाँ रखीं+ और उनसे दाविद के और भी बेटे-बेटियाँ हुए।+ 14 यरूशलेम में उसके जो बेटे हुए उनके नाम ये हैं: शम्मू, शोबाब, नातान,+ सुलैमान,+ 15 यिभार, एलीशू, नेपेग, यापी, 16 एलीशामा, एल्यादा और एलीपेलेत।

17 जब पलिश्‍तियों ने सुना कि दाविद का अभिषेक करके उसे इसराएल का राजा बनाया गया है,+ तो वे सब दाविद की खोज में निकल पड़े।+ जब दाविद को इसका पता चला तो वह एक महफूज़ जगह चला गया।+ 18 फिर पलिश्‍ती लोग आए और रपाई घाटी+ में फैल गए। 19 तब दाविद ने यहोवा से सलाह की,+ “क्या मैं जाकर पलिश्‍तियों पर हमला करूँ? क्या तू उन्हें मेरे हाथ में कर देगा?” यहोवा ने दाविद से कहा, “तू जाकर पलिश्‍तियों पर हमला कर। मैं उन्हें ज़रूर तेरे हाथ में कर दूँगा।”+ 20 तब दाविद बाल-परासीम गया और वहाँ उसने पलिश्‍तियों को मार गिराया। दाविद ने कहा, “यहोवा मेरे आगे-आगे जाकर पानी की तेज़ धारा की तरह मेरे दुश्‍मनों पर टूट पड़ा और उनका नाश कर दिया।”+ इसीलिए दाविद ने उस जगह का नाम बाल-परासीम* रखा।+ 21 पलिश्‍तियों ने अपनी मूर्तियाँ वहीं छोड़ दी थीं और दाविद और उसके आदमी उन्हें उठा ले गए।

22 बाद में पलिश्‍ती एक बार फिर आए और रपाई घाटी में फैल गए।+ 23 दाविद ने यहोवा से सलाह की, मगर उसने दाविद से कहा, “तू उन पर सामने से हमला मत करना। इसके बजाय, तू पीछे से जाना और बाका झाड़ियों के सामने से उन पर हमला करना। 24 जब तुझे झाड़ियों के ऊपर सेना के चलने की आवाज़ सुनायी दे, तो तू फौरन कदम उठाना क्योंकि यहोवा पलिश्‍ती सेना को मार गिराने के लिए तेरे आगे-आगे जा चुका होगा।” 25 दाविद ने ठीक वैसे ही किया जैसे यहोवा ने उसे आज्ञा दी थी और वह गेबा+ से लेकर गेजेर+ तक पूरे रास्ते पलिश्‍तियों को मारता गया।+

6 दाविद ने एक बार फिर इसराएल की सेना से सभी अच्छे-अच्छे सैनिकों की टुकड़ियाँ इकट्ठी कीं। उन आदमियों की गिनती 30,000 थी। 2 फिर दाविद और वे सभी आदमी बाले-यहूदा की तरफ निकल पड़े ताकि वहाँ से सच्चे परमेश्‍वर का संदूक ले आएँ,+ जो करूबों पर* विराजमान है। उसी संदूक के सामने लोग सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा का नाम पुकारते हैं।+ 3 मगर दाविद और उसके आदमियों ने वहाँ से संदूक लाने के लिए उसे एक नयी बैल-गाड़ी पर रखा।+ संदूक पहाड़ी पर अबीनादाब के घर में था।+ जब संदूक ले जाया जा रहा था तो अबीनादाब के बेटे उज्जाह और अहयो गाड़ी के आगे-आगे चल रहे थे।

4 इस तरह वे पहाड़ी पर अबीनादाब के घर गए और वहाँ से सच्चे परमेश्‍वर का संदूक लेकर चल दिए। अहयो संदूक के आगे-आगे चल रहा था। 5 दाविद और इसराएल का पूरा घराना यहोवा के सामने जश्‍न मना रहा था। वे सनोवर की लकड़ी से बने तरह-तरह के साज़, सुरमंडल, तारोंवाले दूसरे बाजे,+ डफली,+ झीका और झाँझ बजाते हुए खुशियाँ मना रहे थे।+ 6 मगर जब वे नाकोन नाम के खलिहान पहुँचे तो ऐसा हुआ कि बैल-गाड़ी पलटने पर हो गयी। तभी उज्जाह ने हाथ बढ़ाकर सच्चे परमेश्‍वर का संदूक पकड़ लिया।+ 7 इस पर यहोवा का क्रोध उज्जाह पर भड़क उठा और सच्चे परमेश्‍वर ने उसे वहीं मार डाला+ क्योंकि उसने परमेश्‍वर के कानून का अनादर किया था।+ उज्जाह सच्चे परमेश्‍वर के संदूक के पास ही मर गया। 8 मगर यह देखकर कि यहोवा का क्रोध उज्जाह पर भड़क उठा, दाविद बहुत गुस्सा* हुआ। इसी घटना की वजह से वह जगह आज तक पेरेस-उज्जाह* के नाम से जानी जाती है। 9 फिर उस दिन दाविद यहोवा से बहुत डर गया+ और उसने कहा, “यहोवा का संदूक मेरे यहाँ कैसे आ पाएगा?”+ 10 दाविद यहोवा के संदूक को अपने शहर दाविदपुर लाने से झिझक रहा था।+ इसलिए उसने वह संदूक गत के रहनेवाले ओबेद-एदोम के घर पहुँचा दिया।+

11 यहोवा का संदूक तीन महीने तक गत के रहनेवाले ओबेद-एदोम के घर में ही रहा। इस दौरान यहोवा ओबेद-एदोम और उसके पूरे घराने को आशीषें देता रहा।+ 12 राजा दाविद को बताया गया कि यहोवा ने ओबेद-एदोम के घर पर और उसका जो कुछ है उस पर आशीष दी है क्योंकि सच्चे परमेश्‍वर का संदूक उसके घर में है। इसलिए दाविद ओबेद-एदोम के घर गया ताकि सच्चे परमेश्‍वर का संदूक खुशियाँ मनाते हुए दाविदपुर ले आए।+ 13 जब यहोवा का संदूक ढोनेवालों+ ने छ: कदम आगे बढ़ाए तो दाविद ने एक बैल और एक मोटे किए हुए जानवर की बलि चढ़ायी।

14 दाविद मलमल का एपोद पहने* यहोवा के सामने पूरे जोश और उमंग से नाच रहा था।+ 15 वह और इसराएल के घराने के सब लोग जयजयकार करते हुए+ और नरसिंगा फूँकते हुए+ यहोवा का संदूक+ ला रहे थे। 16 मगर जब यहोवा का संदूक दाविदपुर पहुँचा और शाऊल की बेटी मीकल+ ने खिड़की से नीचे झाँककर देखा कि राजा दाविद यहोवा के सामने झूम-झूमकर नाच रहा है तो वह मन-ही-मन दाविद को तुच्छ समझने लगी।+ 17 फिर वे यहोवा का संदूक उस तंबू में ले आए जो दाविद ने उसके लिए खड़ा किया था। उन्होंने उसे तंबू के अंदर ठहरायी गयी जगह पर रख दिया।+ इसके बाद दाविद ने यहोवा के सामने होम-बलियाँ और शांति-बलियाँ चढ़ायीं।+ 18 जब दाविद ये बलियाँ चढ़ा चुका, तो उसने सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा के नाम से लोगों को आशीर्वाद दिया। 19 और उसने पूरे इसराएल में से हर आदमी और हर औरत को एक छल्ले जैसी रोटी, एक खजूर की टिकिया और एक किशमिश की टिकिया दी। फिर सब लोग अपने-अपने घर लौट गए।

20 जब दाविद अपने घराने को आशीर्वाद देने लौटा तो शाऊल की बेटी मीकल+ उससे मिलने बाहर आयी। वह कहने लगी, “वाह! आज इसराएल के राजा ने क्या शान दिखायी! अपने सेवकों की दासियों के सामने अधनंगा होकर वह ऐसे नाच रहा था जैसे कोई निकम्मा आदमी खुलेआम अधनंगा घूमता है।”+ 21 दाविद ने मीकल से कहा, “मैं यहोवा के सामने जश्‍न मना रहा था, जिसने तेरे पिता और उसके पूरे घराने के बदले मुझे चुना। यहोवा ने मुझे अपनी प्रजा इसराएल का अगुवा ठहराया है।+ इसलिए मैं यहोवा के सामने ज़रूर जश्‍न मनाऊँगा 22 और मैं खुद को इससे भी नीचा करूँगा और अपनी नज़रों में खुद को और भी दीन करूँगा। मैं चाहे दीन हो जाऊँ, फिर भी वे दासियाँ जिनके बारे में तूने कहा है, मेरी शान की बड़ाई करेंगी।” 23 इसलिए शाऊल की बेटी मीकल+ सारी ज़िंदगी बेऔलाद रही।

7 जब राजा दाविद अपने महल में रहने लगा+ और यहोवा ने उसे आस-पास के सभी दुश्‍मनों से राहत दिलायी, 2 तो राजा ने भविष्यवक्‍ता नातान+ से कहा, “देख, मैं तो देवदार से बने महल में रह रहा हूँ,+ जबकि सच्चे परमेश्‍वर का संदूक कपड़े से बने तंबू में रखा हुआ है।”+ 3 नातान ने राजा से कहा, “जा, तेरे मन में जो कुछ है वह कर क्योंकि यहोवा तेरे साथ है।”+

4 उसी दिन, रात को यहोवा का यह संदेश नातान के पास पहुँचा, 5 “तू जाकर मेरे सेवक दाविद से कहना, ‘यहोवा तुझसे कहता है, “क्या तू मेरे निवास के लिए एक भवन बनाना चाहता है?+ 6 जब से मैं इसराएल के लोगों को मिस्र से निकाल लाया, तब से लेकर आज तक क्या मैंने किसी भवन में निवास किया है?+ मैं हमेशा एक तंबू या डेरे में रहकर एक जगह से दूसरी जगह जाता रहा।+ 7 जिस दौरान मैं अपनी प्रजा इसराएल के साथ-साथ चलता रहा और मैंने उसके गोत्रों पर प्रधान ठहराए थे कि वे चरवाहों की तरह उनकी देखभाल करें, तब क्या मैंने कभी किसी प्रधान से कहा कि तूने मेरे लिए देवदार का भवन क्यों नहीं बनाया?”’ 8 तू मेरे सेवक दाविद से कहना, ‘सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा कहता है, “मैं तुझे चरागाहों से ले आया था जहाँ तू भेड़ों की देखभाल करता था+ और तुझे अपनी प्रजा इसराएल का अगुवा बनाया।+ 9 तू जहाँ कहीं जाएगा मैं तेरे साथ रहूँगा+ और तेरे सामने से तेरे सभी दुश्‍मनों को नाश कर दूँगा+ और तेरा नाम ऐसा महान करूँगा+ कि तू दुनिया के बड़े-बड़े नामी आदमियों में गिना जाएगा। 10 मैं अपनी प्रजा इसराएल के लिए एक जगह चुनूँगा और वहाँ उन्हें बसाऊँगा। वे वहाँ चैन से जीएँगे, कोई उन्हें दुख नहीं देगा। उन पर दुष्ट लोग अत्याचार नहीं करेंगे, जैसे गुज़रे वक्‍त में+ 11 दुष्ट मेरे लोगों पर तब से अत्याचार करते रहे जब मैंने उन पर न्यायी ठहराए थे।+ मैं तुझे तेरे सभी दुश्‍मनों से राहत दिलाऊँगा।+

यहोवा तुझसे यह भी कहता है कि यहोवा तेरे लिए एक राज-घराना तैयार करेगा।+ 12 जब तेरी उम्र पूरी हो जाएगी+ और तेरी मौत हो जाएगी* तो मैं तेरे वंश* को, तेरे अपने बेटे को* खड़ा करूँगा और उसका राज मज़बूती से कायम करूँगा।+ 13 वही मेरे नाम की महिमा के लिए एक भवन बनाएगा+ और मैं उसकी राजगद्दी सदा के लिए मज़बूती से कायम करूँगा।+ 14 मैं उसका पिता बनूँगा और वह मेरा बेटा होगा।+ जब वह गलती करेगा तो मैं उसे सुधारूँगा* और इंसानों की तरह कोड़े मारकर उसे सज़ा दूँगा।+ 15 मैं उससे प्यार* करना कभी नहीं छोड़ूँगा, जैसे मैंने शाऊल से करना छोड़ दिया था जो तुझसे पहले था।+ 16 तेरा राज-घराना और तेरा राज तेरे सामने हमेशा बने रहेंगे। तेरी राजगद्दी सदा तक कायम रहेगी।”’”+

17 नातान ने जाकर ये सारी बातें और यह पूरा दर्शन दाविद को बताया।+

18 तब राजा दाविद यहोवा के सामने बैठकर कहने लगा, “हे सारे जहान के मालिक यहोवा, मेरी हस्ती ही क्या है? मैं और मेरा घराना कुछ भी नहीं। फिर भी तूने मुझे ऊँचा उठाकर इस मुकाम तक पहुँचाया।+ 19 हे सारे जहान के मालिक यहोवा, तूने यह भी वादा किया है कि तेरे सेवक का राज-घराना मुद्दतों तक कायम रहेगा। हे सारे जहान के मालिक यहोवा, यह कानून* सभी इंसानों के लिए है। 20 तेरा यह सेवक दाविद भला तुझसे और क्या कह सकता है? हे सारे जहान के मालिक यहोवा, तू अपने सेवक को अच्छी तरह जानता है।+ 21 तूने ये सारे महान काम इसलिए किए हैं क्योंकि तूने ऐसा करने का वादा किया था और यह तेरे मन की इच्छा के मुताबिक था। और तूने यह सब अपने सेवक पर ज़ाहिर किया है।+ 22 इसीलिए हे सारे जहान के मालिक यहोवा, तू सचमुच महान है!+ तेरे जैसा और कोई नहीं।+ हमने बहुत-से ईश्‍वरों के बारे में सुना है, मगर तुझे छोड़ और कोई परमेश्‍वर नहीं।+ 23 और इस धरती पर तेरी प्रजा इसराएल जैसा कौन-सा राष्ट्र है?+ परमेश्‍वर जाकर उन्हें छुड़ा लाया ताकि वे उसके अपने लोग बनें।+ उसने उनकी खातिर महान और विस्मयकारी काम करके+ अपना नाम ऊँचा किया।+ तूने अपने लोगों को मिस्र से छुड़ाने के बाद उनकी खातिर दूसरी जातियों को और उनके देवताओं को खदेड़कर बाहर कर दिया। 24 तूने अपनी प्रजा इसराएल को हमेशा के लिए अपने लोग बना लिया+ और हे यहोवा, तू उनका परमेश्‍वर बन गया।+

25 अब हे यहोवा परमेश्‍वर, तूने अपने सेवक और उसके घराने के बारे में जो वादा किया है, उसे तू हमेशा निभाए और ठीक वैसा ही करे जैसा तूने वादा किया है।+ 26 तेरा नाम सदा ऊँचा रहे+ ताकि लोग कहें, ‘सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा इसराएल का परमेश्‍वर है’ और तेरे सेवक दाविद का राज-घराना तेरे सामने सदा तक मज़बूती से कायम रहे।+ 27 हे सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा, हे इसराएल के परमेश्‍वर, तूने अपने सेवक पर यह बात ज़ाहिर की है कि मैं तेरे लिए एक राज-घराना बनाऊँगा।+ इसीलिए तेरा यह सेवक तुझसे यह प्रार्थना करने की हिम्मत जुटा पाया है। 28 हे सारे जहान के मालिक यहोवा, तू ही सच्चा परमेश्‍वर है और तेरे वचन सच्चे हैं+ और तूने अपने सेवक से इन भले कामों का वादा किया है। 29 इसलिए मेरी दुआ है कि तू अपने सेवक के घराने को खुशी-खुशी आशीष दे और यह घराना तेरे सामने हमेशा कायम रहे+ क्योंकि हे सारे जहान के मालिक यहोवा, तूने ही यह वादा किया है और तेरी आशीष तेरे सेवक के घराने पर सदा बनी रहे।”+

8 कुछ समय बाद दाविद ने पलिश्‍तियों+ को हरा दिया और उन्हें अपने अधीन कर लिया+ और उनके हाथ से मेतग-अम्माह नाम की जगह ले ली।

2 दाविद ने मोआबियों को भी हरा दिया+ और उनके सैनिकों को ज़मीन पर कतार में लेटने को कहा। फिर उसने नापने की डोरी से कतार नापी ताकि दो डोरी-भर सैनिकों को मार डाला जाए और एक डोरी-भर सैनिकों को ज़िंदा छोड़ दिया जाए।+ इसके बाद मोआबी लोग दाविद के सेवक बन गए और उसे नज़राना देने लगे।+

3 दाविद ने सोबा के राजा हदद-एजेर को हरा दिया जो रहोब का बेटा था।+ जब हदद-एजेर फरात नदी तक के इलाके को वापस अपने अधिकार में करने जा रहा था, तब दाविद ने उसे हरा दिया।+ 4 दाविद ने हदद-एजेर के 1,700 घुड़सवारों और 20,000 पैदल सैनिकों को पकड़ लिया। इसके बाद दाविद ने उसके रथों के 100 घोड़ों को छोड़ बाकी सब घोड़ों की घुटनस काट दी।+

5 जब दमिश्‍क के रहनेवाले सीरियाई लोग+ सोबा के राजा हदद-एजेर की मदद करने आए तो दाविद ने 22,000 सीरियाई लोगों को मार डाला।+ 6 फिर दाविद ने दमिश्‍क के सीरियाई लोगों के इलाके में सैनिकों की चौकियाँ बनायीं और वे दाविद के सेवक बन गए और उसे नज़राना देने लगे। दाविद जहाँ कहीं गया यहोवा ने उसे जीत दिलायी।*+ 7 इतना ही नहीं, दाविद ने हदद-एजेर के सेवकों से सोने की गोलाकार ढालें ले लीं और यरूशलेम ले आया।+ 8 राजा दाविद, हदद-एजेर के शहर बेतह और बरौतै से बहुत सारा ताँबा भी ले आया।

9 जब हमात+ के राजा तोई ने सुना कि दाविद ने हदद-एजेर की पूरी सेना को हरा दिया है,+ 10 तो उसने अपने बेटे योराम को राजा दाविद के पास भेजा ताकि वह दाविद की खैरियत पूछे और उसे मुबारकबाद दे कि उसने हदद-एजेर को हरा दिया। (तोई ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि हदद-एजेर ने कई बार उससे युद्ध किया था।) योराम अपने साथ सोने, चाँदी और ताँबे की चीज़ें लाया था। 11 राजा दाविद ने ये सारी चीज़ें यहोवा के लिए पवित्र ठहरायीं, ठीक जैसे उसने दूसरे राष्ट्रों को हराकर उनके यहाँ से लाया सोना-चाँदी पवित्र ठहराया था,+ 12 यानी सीरिया और मोआब,+ अम्मोनियों, पलिश्‍तियों,+ अमालेकियों+ से लाया सोना-चाँदी और सोबा के राजा हदद-एजेर से (जो रहोब का बेटा था) लाया लूट का माल।+ 13 दाविद ने नमक घाटी में 18,000 एदोमियों को भी मार गिराया जिससे उसका और भी बड़ा नाम हुआ।+ 14 उसने एदोम में सैनिकों की चौकियाँ बनायीं। उसने पूरे एदोम में सैनिकों की चौकियाँ बनायीं और सभी एदोमी लोग दाविद के सेवक बन गए।+ दाविद जहाँ कहीं गया, यहोवा ने उसे जीत दिलायी।*+

15 दाविद पूरे इसराएल पर राज करता था।+ वह अपनी सारी प्रजा के लिए न्याय और नेकी करता था।+ 16 सरूयाह का बेटा योआब+ दाविद की सेना का सेनापति था और अहीलूद का बेटा यहोशापात+ शाही इतिहासकार था। 17 अहीतूब का बेटा सादोक+ और अबियातार का बेटा अहीमेलेक याजक थे और सरायाह राज-सचिव था। 18 यहोयादा का बेटा बनायाह,+ करेती और पलेती लोगों+ का अधिकारी था। और दाविद के बेटे खास मंत्री* बने।

9 फिर दाविद ने पूछा, “क्या शाऊल के घराने में से कोई अब तक बचा है? अगर कोई है तो मैं योनातान की खातिर उस पर कृपा* करना चाहता हूँ।”+ 2 शाऊल के घराने में सीबा नाम का एक सेवक था।+ उसे राजा दाविद के पास बुलाया गया और दाविद ने उससे पूछा, “क्या तू सीबा है?” उसने कहा, “हाँ, मैं तेरा सेवक सीबा हूँ।” 3 राजा ने उससे पूछा, “क्या शाऊल के घराने में से कोई अब तक बचा है? मैं उस पर कृपा* करना चाहता हूँ, ठीक जैसे परमेश्‍वर करता है।” सीबा ने राजा से कहा, “योनातान का एक बेटा ज़िंदा है। वह दोनों पैरों से लाचार* है।”+ 4 राजा ने कहा, “वह कहाँ है?” सीबा ने कहा, “वह लो-देबार में रहता है, अम्मीएल के बेटे माकीर के घर में।”+

5 राजा दाविद ने फौरन अपने आदमियों को लो-देबार में अम्मीएल के बेटे माकीर के घर भेजा और वे योनातान के बेटे को वहाँ से ले आए। 6 जब योनातान का बेटा और शाऊल का पोता मपीबोशेत, दाविद के पास आया तो उसने राजा के सामने मुँह के बल गिरकर उसे प्रणाम किया। दाविद ने उससे कहा, “मपीबोशेत!” उसने कहा, “क्या आज्ञा मालिक?” 7 दाविद ने उससे कहा, “घबरा मत। मैं तेरे पिता योनातान की खातिर ज़रूर तेरे साथ कृपा* से पेश आऊँगा।+ मैं तेरे दादा शाऊल की सारी ज़मीन तुझे लौटा दूँगा और तू सदा मेरी मेज़ पर खाया करेगा।”+

8 यह सुनते ही मपीबोशेत ने ज़मीन पर गिरकर दाविद को प्रणाम किया और उससे कहा, “तेरा यह सेवक तो कुछ भी नहीं है। मैं बस एक मरे हुए कुत्ते के समान हूँ,+ फिर भी तूने मुझ पर ध्यान दिया है।” 9 फिर राजा ने शाऊल के सेवक सीबा को बुलवाया और उससे कहा, “तेरे मालिक शाऊल और उसके घराने का जो कुछ है वह सब मैं शाऊल के इस पोते को दे रहा हूँ।+ 10 तू, तेरे बेटे और तेरे दास इसकी ज़मीन जोतेंगे और उसकी उपज बटोरकर तेरे मालिक के इस पोते को दिया करेंगे ताकि इसके घराने को भोजन मिलता रहे। मगर जहाँ तक तेरे मालिक के पोते मपीबोशेत की बात है वह सदा मेरी मेज़ पर खाया करेगा।”+

सीबा के 15 बेटे और 20 दास थे।+ 11 सीबा ने राजा से कहा, “मेरे मालिक, तू अपने सेवक को जो-जो करने की आज्ञा देगा वह सब मैं करूँगा।” इसलिए मपीबोशेत दाविद की* मेज़ पर खाने लगा जैसे राजा के बेटे खाया करते थे। 12 मपीबोशेत का एक छोटा बेटा था जिसका नाम मिका था।+ सीबा के घर में जितने लोग रहते थे मपीबोशेत के सेवक बन गए। 13 मपीबोशेत यरूशलेम में रहने लगा और वह राजा की मेज़ से खाया करता था।+ वह दोनों पैरों से लाचार था।+

10 बाद में अम्मोनियों+ के राजा की मौत हो गयी और उसकी जगह उसका बेटा हानून राजा बना।+ 2 तब दाविद ने कहा, “हानून का पिता नाहाश जिस तरह मेरे साथ कृपा* से पेश आया था, उसी तरह मैं भी हानून के साथ पेश आऊँगा।” इसलिए दाविद ने हानून को दिलासा देने के लिए उसके पास अपने सेवक भेजे। मगर जब दाविद के सेवक अम्मोनियों के देश गए 3 तो अम्मोनियों के हाकिमों ने अपने मालिक हानून से कहा, “तुझे क्या लगता है, क्या दाविद ने वाकई तेरे पिता का सम्मान करने और तुझे दिलासा देने के लिए अपने सेवक भेजे हैं? नहीं। उसने तो हमारे शहर को देख आने और उसकी जासूसी करने के लिए अपने आदमी भेजे हैं ताकि बाद में आकर इसका तख्ता उलट दे।” 4 तब हानून ने दाविद के सेवकों को पकड़कर उन सबकी एक तरफ की दाढ़ी मुँड़वा दी+ और कमर से नीचे के उनके कपड़े कटवा दिए और फिर उन्हें भेज दिया। 5 जब दाविद को बताया गया कि उनके साथ कैसा सलूक किया गया है तो उसने फौरन अपने आदमियों को उन सेवकों से मिलने भेजा क्योंकि उनका घोर अपमान हुआ था। राजा ने उनके पास यह संदेश भेजा: “जब तक तुम्हारी दाढ़ी फिर नहीं बढ़ जाती तब तक तुम यरीहो+ में ही रहना। उसके बाद तुम यहाँ लौट आना।”

6 कुछ समय बाद अम्मोनी लोग समझ गए कि उन्होंने दाविद से दुश्‍मनी मोल ली है। इसलिए अम्मोनियों ने दूसरे देशों में अपने दूत भेजे और वहाँ से किराए पर आदमी मँगाए। बेत-रहोब+ और सोबा से 20,000 सीरियाई आदमी+ आए जो पैदल सैनिक थे। माका+ का राजा अपने 1,000 आदमियों के साथ आया और इशतोब* से 12,000 आदमी आए।+ 7 जब दाविद ने इस बारे में सुना तो उसने योआब के साथ अपनी पूरी सेना को और बड़े-बड़े सूरमाओं को भेजा।+ 8 अम्मोनी लोग दल बाँधकर शहर के फाटक पर तैनात हो गए, जबकि सोबा और रहोब के सीरियाई लोग और इशतोब* और माका के आदमी उनसे अलग खुले मैदान में थे।

9 जब योआब ने देखा कि दुश्‍मन की सेनाएँ उस पर आगे-पीछे दोनों तरफ से हमला करने के लिए खड़ी हैं, तो उसने इसराएल के सबसे बढ़िया सैनिक चुने और उन्हें दल बाँधकर सीरियाई लोगों का मुकाबला करने के लिए तैनात किया।+ 10 उसने बाकी सैनिकों को अपने भाई अबीशै की कमान* के नीचे तैनात किया+ और उन्हें दल बाँधकर अम्मोनियों+ का मुकाबला करने भेजा। 11 उसने अबीशै से कहा, “अगर सीरियाई सेना मुझ पर भारी पड़े तो तू मुझे बचाने आना और अगर अम्मोनी लोग तुझ पर भारी पड़े तो मैं तुझे बचाने आऊँगा। 12 हमें अपने लोगों की खातिर और अपने परमेश्‍वर के शहरों की खातिर मज़बूत बने रहना होगा और हिम्मत से लड़ना होगा+ और यहोवा वही करेगा जो उसे सही लगता है।”+

13 फिर योआब और उसके आदमी सीरियाई लोगों का मुकाबला करने आगे बढ़े और सीरियाई लोग उसके सामने से भाग गए।+ 14 जब अम्मोनियों ने देखा कि सीरियाई लोग भाग गए हैं तो वे अबीशै के सामने से भाग गए और अपने शहर के अंदर चले गए। इसके बाद योआब अम्मोनियों के यहाँ से यरूशलेम लौट आया।

15 जब सीरियाई लोगों ने देखा कि वे इसराएल से हार गए हैं तो उन्होंने फिर से युद्ध के लिए अपनी सेना इकट्ठी की।+ 16 हदद-एजेर+ ने महानदी*+ के इलाके के सीरियाई लोगों को बुलवाया और वे हदद-एजेर की सेना के सेनापति शोबक की अगुवाई में हेलाम आए।

17 जब दाविद को इसकी खबर दी गयी तो उसने फौरन पूरी इसराएली सेना को इकट्ठा किया और यरदन पार करके हेलाम गया। तब सीरियाई लोगों ने दाविद से मुकाबला करने के लिए दल बाँधा और उससे युद्ध किया।+ 18 मगर सीरियाई लोग इसराएल से हारकर भाग गए और दाविद ने उनके 700 सारथियों और 40,000 घुड़सवारों को मार डाला। उसने उनके सेनापति शोबक पर वार किया और वह वहीं मर गया।+ 19 जब हदद-एजेर के अधीन सब राजाओं ने देखा कि वे इसराएल से हार गए हैं तो उन्होंने बिना देर किए इसराएल के साथ सुलह कर ली और वे उसकी प्रजा बन गए।+ इसके बाद फिर कभी सीरियाई लोगों ने अम्मोनियों की मदद करने की हिम्मत नहीं की।

11 साल की शुरूआत में* जब राजा युद्ध के लिए जाया करते हैं, तो ऐसे वक्‍त पर दाविद ने योआब और अपने सेवकों और इसराएल की पूरी सेना को अम्मोनियों से युद्ध करने भेजा ताकि वे उन्हें धूल चटा दें। उन्होंने जाकर अम्मोनियों के शहर रब्बाह को घेर लिया।+ मगर दाविद यरूशलेम में ही रहा।+

2 एक शाम* दाविद अपने बिस्तर से उठा और राजमहल की छत पर टहलने लगा। उसने छत से एक औरत को देखा जो नहा रही थी। वह औरत बहुत खूबसूरत थी। 3 दाविद ने किसी को भेजकर पता लगवाया कि वह औरत कौन है। उसने आकर दाविद को बताया कि उस औरत का नाम बतशेबा+ है और वह एलीआम की बेटी+ और हित्ती+ उरियाह+ की पत्नी है। 4 फिर दाविद ने उस औरत को लाने के लिए अपने दूत भेजे।+ जब वह औरत आयी तो दाविद ने उसके साथ संबंध रखे।+ (उस वक्‍त वह औरत अपनी अशुद्धता* दूर करने के लिए खुद को शुद्ध कर रही थी।)+ इसके बाद वह अपने घर लौट गयी।

5 वह औरत गर्भवती हो गयी। उसने दाविद के पास खबर भेजी कि मैं गर्भवती हूँ। 6 तब दाविद ने योआब के पास यह संदेश भेजा: “हित्ती उरियाह को मेरे पास भेज।” योआब ने उरियाह को दाविद के पास भेज दिया। 7 जब उरियाह दाविद के पास आया तो दाविद ने उससे पूछा कि योआब और सभी सैनिकों के क्या हाल-चाल हैं और युद्ध कैसा चल रहा है। 8 फिर दाविद ने उरियाह से कहा, “अब तू अपने घर जा और आराम कर।”* उरियाह राजा के महल से चला गया। फिर राजा ने उसके लिए तोहफे* भेजे। 9 मगर उरियाह अपने घर नहीं गया। वह अपने मालिक राजा के महल के द्वार पर ही सोया जहाँ राजा के बाकी सभी सेवक सोते थे। 10 दाविद को बताया गया कि उरियाह अपने घर नहीं गया। तब दाविद ने उरियाह से कहा, “तू अभी-अभी सफर से लौटा है, तू अपने घर क्यों नहीं चला जाता?” 11 मगर उरियाह ने कहा, “जब करार का संदूक+ और इसराएल और यहूदा डेरों में रह रहे हैं और मेरा मालिक योआब और उसके सेवक खुले मैदान में छावनी डाले हुए हैं, तो भला मैं कैसे अपने घर जाकर खाऊँ-पीऊँ और अपनी पत्नी के संग सोऊँ?+ मैं तेरी और तेरे जीवन की शपथ खाकर कहता हूँ, मैं ऐसा हरगिज़ नहीं कर सकता!”

12 दाविद ने उरियाह से कहा, “ठीक है, तू आज भी यहीं रह जा। कल मैं तुझे भेज दूँगा।” इसलिए उरियाह उस दिन और अगले दिन भी यरूशलेम में ही रहा। 13 फिर दाविद ने उसे अपने साथ खाने-पीने के लिए बुलवाया और उसने उरियाह को इतनी पिलायी कि उसे नशा हो गया। फिर भी शाम होने पर उरियाह अपने घर नहीं गया बल्कि वहीं जाकर सोया जहाँ उसके मालिक के सेवक सोते थे। 14 सुबह होने पर दाविद ने योआब के नाम एक चिट्ठी लिखी और उरियाह के हाथ भेज दी। 15 दाविद ने चिट्ठी में यह लिखा था: “उरियाह को युद्ध में सबसे आगे की कतार में रखना जहाँ घमासान लड़ाई हो रही हो। फिर तुम सब पीछे हट जाना ताकि दुश्‍मन उस पर हमला करके उसे मार डालें।”+

16 योआब रब्बाह शहर पर कड़ी नज़र रखे हुए था। वह जानता था कि दुश्‍मन के बड़े-बड़े सूरमा किस जगह तैनात हैं इसलिए उसने उरियाह को उसी जगह तैनात किया। 17 जब शहर के आदमी आए और योआब से युद्ध करने लगे तो दाविद के कुछ सेवक मारे गए और उनमें हित्ती उरियाह भी एक था।+ 18 फिर योआब ने दाविद को युद्ध की सारी खबर भेजी। 19 उसने अपने दूत को यह कहकर भेजा: “जब तू राजा को युद्ध की पूरी खबर सुनाएगा, 20 तो राजा शायद गुस्सा हो जाए और तुझसे कहे, ‘तुम लोगों को युद्ध करने के लिए शहर के इतने करीब जाने की क्या ज़रूरत थी? क्या तुम्हें पता नहीं था कि दुश्‍मन शहरपनाह के ऊपर से तुम पर तीर चलाएँगे? 21 भूल गए, यरुब्बेशेत के बेटे अबीमेलेक के साथ तेबेस में क्या हुआ था?+ एक औरत ने शहरपनाह के ऊपर से चक्की का ऊपरी पाट उस पर फेंककर उसे मार डाला था। तुम्हें शहरपनाह के इतने करीब जाने की क्या ज़रूरत थी?’ तब तू राजा से कहना, ‘तेरा सेवक हित्ती उरियाह भी मारा गया।’”

22 वह दूत दाविद के पास गया और उसने वह सारा हाल कह सुनाया जो योआब ने उसे सुनाने के लिए कहा था। 23 दूत ने दाविद से कहा, “दुश्‍मन हम पर भारी पड़ने लगे और मैदान में आकर हम पर टूट पड़े। मगर हमने उन्हें वापस शहर के फाटक तक खदेड़ा। 24 तब दुश्‍मन के तीरंदाज़ शहरपनाह के ऊपर से तेरे सेवकों पर तीर चलाने लगे जिस वजह से राजा के कुछ सेवक मारे गए। तेरा सेवक हित्ती उरियाह भी मारा गया।”+ 25 दाविद ने दूत से कहा, “तू जाकर योआब से कहना, ‘जो हुआ है उसकी वजह से तू ज़्यादा दुखी मत होना। युद्ध है तो लोग मरेंगे ही। तू हमला और तेज़ कर दे और शहर पर कब्ज़ा कर ले।’+ ऐसा कहकर तू योआब की हिम्मत बँधाना।”

26 जब उरियाह की पत्नी ने सुना कि उसका पति उरियाह मर गया है तो वह अपने पति के लिए मातम मनाने लगी। 27 जैसे ही उसका मातम मनाने का समय पूरा हुआ दाविद ने उसे अपने घर बुलवा लिया और वह उसकी पत्नी बन गयी।+ फिर उसने दाविद के बेटे को जन्म दिया। मगर दाविद ने जो किया था वह यहोवा की नज़रों में बहुत बुरा था।+

12 इसलिए यहोवा ने नातान+ को दाविद के पास भेजा। नातान दाविद के पास आकर+ कहने लगा, “एक शहर में दो आदमी रहते थे। एक अमीर था और दूसरा गरीब। 2 अमीर के पास बहुत-सी भेड़ें और बहुत-से गाय-बैल थे।+ 3 मगर गरीब के पास सिर्फ एक भेड़ की बच्ची थी। उसने उसे खरीदा था।+ वह बड़े प्यार से उसकी देखभाल करता था। भेड़ की वह बच्ची उस आदमी के घर में उसके बेटों के साथ बड़ी होने लगी। उस आदमी के पास जो थोड़ा-बहुत खाना होता उसी में से वह अपने मेम्ने को खिलाता था। वह उसके प्याले में से पीती और उसकी गोद में सोती थी। वह आदमी उसे अपनी बेटी की तरह देखता था। 4 एक दिन जब अमीर आदमी के घर एक मेहमान आया तो उसने मेहमान के खाने के लिए अपनी भेड़ों और गाय-बैलों में से कोई जानवर हलाल नहीं किया। इसके बजाय, उसने उस गरीब का मेम्ना ले लिया और उसका गोश्‍त पकाकर अपने मेहमान के सामने परोस दिया।”+

5 जब दाविद ने यह सुना तो उस अमीर आदमी के खिलाफ उसका गुस्सा भड़क उठा। उसने नातान से कहा, “यहोवा के जीवन की शपथ,+ जिस आदमी ने ऐसा किया वह मौत की सज़ा के लायक है! 6 उसे उस मेम्ने की चार गुना भरपाई करनी होगी+ क्योंकि उसने कितना दुष्ट काम किया है और बिलकुल रहम नहीं किया।”

7 तब नातान ने दाविद से कहा, “तू ही वह आदमी है! इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा ने कहा है, ‘मैंने तेरा अभिषेक करके तुझे इसराएल का राजा बनाया था+ और तुझे शाऊल के हाथ से बचाया था।+ 8 तेरे मालिक का जो कुछ था वह सब मैंने तुझे दे दिया+ और उसकी पत्नियाँ भी तुझे दे दीं।+ मैंने तुझे इसराएल और यहूदा का घराना दे दिया था+ और अगर यह सब काफी न होता, तो मैं तेरी खातिर और भी बहुत कुछ करने को तैयार था।+ 9 फिर तूने यहोवा की आज्ञा को क्यों तुच्छ समझा और ऐसा काम क्यों किया जो उसकी नज़र में बुरा है? तूने हित्ती उरियाह को तलवार से मार डाला!+ उसे अम्मोनियों की तलवार से मरवा डाला+ और फिर उसकी पत्नी को अपनी पत्नी बना लिया।+ 10 अब देख, तेरे घर से तलवार कभी नहीं हटेगी+ क्योंकि तूने मुझे तुच्छ जाना और हित्ती उरियाह की पत्नी को अपनी पत्नी बना लिया।’ 11 यहोवा ने कहा है, ‘अब मैं तेरे ही परिवार से तुझ पर मुसीबतें ले आऊँगा।+ तेरी आँखों के सामने मैं तेरी पत्नियों को लेकर दूसरे आदमी* को दे दूँगा+ और वह दिन-दहाड़े तेरी पत्नियों के साथ संबंध रखेगा।+ 12 तूने चोरी-छिपे पाप किया था+ मगर मैं पूरे इसराएल की नज़रों के सामने और दिन-दहाड़े तेरे साथ ऐसा करवाऊँगा।’”

13 तब दाविद ने नातान से कहा, “मैंने यहोवा के खिलाफ पाप किया है।”+ नातान ने दाविद से कहा, “यहोवा ने तेरा पाप माफ किया है।+ तू नहीं मरेगा।+ 14 मगर अभी-अभी तेरा जो बेटा पैदा हुआ है वह ज़रूर मर जाएगा क्योंकि तूने यह पाप करके यहोवा का घोर अनादर किया है।”

15 फिर नातान अपने घर लौट गया।

यहोवा ने दाविद के उस बच्चे को बीमार कर दिया जो उरियाह की पत्नी से पैदा हुआ था। 16 दाविद ने उस लड़के की खातिर सच्चे परमेश्‍वर से बहुत मिन्‍नतें कीं। वह उपवास करने लगा और उसने एक दाना तक मुँह में नहीं डाला। वह हर रात अपने कमरे में जाता और ज़मीन पर पड़ा रहता था।+ 17 उसके घर के मुखिया उसके पास आते और उसे उठाने की कोशिश करते मगर वह नहीं उठता और कुछ भी खाने से इनकार कर देता था। 18 सातवें दिन उसका बच्चा मर गया। मगर दाविद के सेवक उसे यह खबर देने से डर रहे थे। वे कहने लगे, “जब बच्चा ज़िंदा था तब भी उसने हमारी बात नहीं मानी, तो अब हम उसे कैसे बताएँ कि बच्चा मर गया है। कहीं यह खबर सुनकर वह अपने साथ कुछ बुरा न कर बैठे।”

19 जब दाविद ने देखा कि उसके सेवक आपस में कुछ फुसफुसा रहे हैं तो वह समझ गया कि बच्चा मर गया है। उसने सेवकों से पूछा, “क्या बच्चा मर गया है?” उन्होंने कहा, “हाँ, वह मर गया है।” 20 दाविद ज़मीन से उठा और नहाया, अपने शरीर पर तेल मला,+ कपड़े बदले और यहोवा के भवन+ में जाकर मुँह के बल गिरा और दंडवत किया। इसके बाद वह महल वापस आया और उसने कहा कि उसके लिए खाना परोसा जाए। फिर उसने खाना खाया। 21 उसके सेवकों ने उससे पूछा, “तूने ऐसा क्यों किया? जब बच्चा ज़िंदा था तब तूने कुछ नहीं खाया-पीया और रोता रहा। मगर जैसे ही बच्चे की मौत हो गयी तू उठा और तूने खाना खाया।” 22 दाविद ने कहा, “जब बच्चा ज़िंदा था तब मैंने उपवास किया+ और मैं रोता रहा क्योंकि मैंने सोचा, ‘शायद यहोवा मुझ पर रहम करे और बच्चे को ज़िंदा रहने दे।’+ 23 लेकिन अब जब बच्चा नहीं रहा तो मैं क्यों उपवास करूँ? क्या मैं उसे ज़िंदा कर सकता हूँ?+ वह मेरे पास वापस नहीं आ सकता,+ मैं ही उसके पास कब्र में जाऊँगा।”+

24 फिर दाविद ने अपनी पत्नी बतशेबा+ को दिलासा दिया। इसके बाद वह बतशेबा के पास गया और उसके साथ संबंध रखे। कुछ समय बाद बतशेबा ने एक बेटे को जन्म दिया और उसका नाम सुलैमान* रखा गया।+ यहोवा उससे बहुत प्यार करता था+ और 25 उसने भविष्यवक्‍ता नातान के हाथ यह संदेश भेजा+ कि यहोवा की खातिर उस बच्चे का नाम यदीद्याह* रखा जाए।

26 उधर योआब ने अम्मोनियों+ के शहर रब्बाह+ के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखी और उस शाही शहर* पर कब्ज़ा कर लिया।+ 27 फिर योआब ने दाविद के पास अपने दूतों के हाथ यह संदेश भेजा: “मैंने रब्बाह पर हमला करके+ पानीवाले इस शहर* पर कब्ज़ा कर लिया है। 28 अब तू सेना की बाकी टुकड़ियों को इकट्ठा करके यहाँ आ और शहर को घेरकर उस पर कब्ज़ा कर ले, क्योंकि मैं नहीं चाहता कि मैं शहर पर जीत हासिल करूँ और इसका श्रेय मुझे मिले।”*

29 इसलिए दाविद ने अपनी सेना की सारी टुकड़ियाँ इकट्ठी कीं और उन्हें लेकर रब्बाह गया और उससे युद्ध करके उस पर कब्ज़ा कर लिया। 30 फिर उसने मलकाम के सिर से ताज उतार लिया। वह ताज एक तोड़े* सोने का था और उस पर कीमती रत्न जड़े हुए थे। वह ताज दाविद के सिर पर रखा गया। दाविद उस शहर से खूब सारा लूट का माल भी ले आया।+ 31 उसने शहर के लोगों को बंदी बना लिया और उन्हें लाकर पत्थर काटने में, तेज़ धारवाले लोहे के औज़ारों और कुल्हाड़ों से काम करने में और ईंटें बनाने में लगा दिया। उसने अम्मोनियों के सभी शहरों के साथ ऐसा किया। आखिर में दाविद और उसकी सारी टुकड़ियाँ यरूशलेम लौट आयीं।

13 दाविद के बेटे अबशालोम की एक बहन थी जिसका नाम तामार था।+ वह बहुत सुंदर थी। दाविद के बेटे अम्नोन+ को उससे प्यार हो गया था। 2 मगर तामार कुँवारी थी और अम्नोन के लिए उसके साथ कुछ भी करना नामुमकिन था। इसलिए अम्नोन बेचैन और बेहाल-सा रहने लगा। 3 अम्नोन का एक दोस्त था यहोनादाब,+ जो दाविद के भाई शिमयाह+ का बेटा था। यहोनादाब बड़ा शातिर दिमागवाला था। 4 उसने अम्नोन से पूछा, “क्या बात है, राजा का बेटा आजकल इतना मायूस क्यों रहता है? मुझे नहीं बताएगा?” अम्नोन ने उससे कहा, “मुझे मेरे भाई अबशालोम की बहन+ तामार से प्यार हो गया है।” 5 यहोनादाब ने उससे कहा, “तू एक काम कर। बीमार होने का बहाना करके बिस्तर पर लेटा रह। फिर जब तेरा पिता तुझे देखने आएगा तो उससे कहना, ‘मेहरबानी करके मेरी बहन तामार से कह कि वह मेरे पास आए और मुझे खाने के लिए कुछ दे। मैं चाहता हूँ कि तामार मेरी आँखों के सामने वह खाना* तैयार करे जो बीमारों को दिया जाता है। फिर मैं उसके हाथ से खाऊँगा।’”

6 अम्नोन ने ऐसा ही किया। वह बिस्तर पर लेट गया और बीमार होने का ढोंग करने लगा। जब राजा उसे देखने आया तो अम्नोन ने उससे कहा, “मेहरबानी करके मेरी बहन तामार से कह कि वह मेरे पास आए और मेरी आँखों के सामने दिल के आकार की दो टिकियाँ तैयार करे ताकि मैं उसके हाथ से खाऊँ।” 7 तब दाविद ने तामार के पास यह संदेश भेजा: “ज़रा अपने भाई अम्नोन के घर जा और उसके लिए खाना* बना।” 8 तामार अपने भाई अम्नोन के घर गयी। वह बिस्तर पर लेटा हुआ था। तामार ने गुँधा हुआ आटा लिया और अम्नोन की आँखों के सामने बेलकर टिकियाँ बनायीं। 9 फिर उसने तवे से टिकियाँ लेकर अम्नोन के सामने परोसीं। मगर अम्नोन ने खाने से इनकार कर दिया और कहा, “पहले सब लोगों को मेरे पास से बाहर जाने को कहो!” तब सब लोग उसके पास से चले गए।

10 फिर अम्नोन ने तामार से कहा, “तू खाना* लेकर मेरे सोने के कमरे में आ। मैं तेरे हाथ से खाना चाहता हूँ।” तब तामार दिल के आकार की टिकियाँ लेकर अपने भाई अम्नोन के पास उसके सोने के कमरे में गयी। 11 जब उसने वह टिकियाँ अम्नोन को दीं तो उसने झट-से तामार को पकड़ लिया और कहा, “आ मेरी बहन, मेरे साथ सो।” 12 मगर तामार ने कहा, “नहीं मेरे भाई, मेरे साथ ऐसा नीच काम मत कर। यह इसराएल में एक बड़ा पाप है।+ तू यह शर्मनाक काम मत कर।+ 13 मैं बदनामी का कलंक लेकर कैसे जीऊँगी? और तू भी इसराएल में बदनाम हो जाएगा। मेरी बात मान, मेरे साथ ऐसा मत कर। अगर तू राजा से मेरा हाथ माँगे तो वह इनकार नहीं करेगा।” 14 मगर उसने तामार की एक न सुनी। उसने तामार के साथ ज़बरदस्ती की और उसका बलात्कार करके उसे कलंकित कर दिया। 15 इसके बाद अम्नोन को उससे नफरत हो गयी। वह पहले तामार से जितना प्यार करता था अब उससे कहीं ज़्यादा नफरत करने लगा। अम्नोन ने उससे कहा, “चली जा यहाँ से!” 16 मगर तामार ने कहा, “नहीं मेरे भाई, ऐसा मत कर। मुझे इस तरह भेजना उस काम से भी बुरा होगा जो तूने अभी मेरे साथ किया है!” मगर अम्नोन ने उसकी बात नहीं मानी।

17 उसने फौरन अपने एक जवान सेवक को बुलाया और कहा, “इसे बाहर ले जा और दरवाज़ा बंद कर दे।” 18 उसका सेवक तामार को बाहर ले गया और दरवाज़ा बंद कर दिया। (तामार एक खास* कुरता पहने हुई थी जैसा राजा की कुँवारी बेटियाँ पहना करती थीं।) 19 तामार ने अपने सिर पर राख डाली,+ अपना कुरता फाड़ा और सिर पर हाथ रखकर रोती हुई वहाँ से चली गयी।

20 तामार को देखकर उसके भाई अबशालोम+ ने उससे पूछा, “क्या तेरा यह हाल करनेवाला तेरा भाई अम्नोन था? बहन, अब तू यह बात किसी से न कहना। वह तेरा भाई ही तो है।+ इस बारे में ज़्यादा मत सोच।” फिर तामार सब लोगों से दूर अपने भाई अबशालोम के घर रहने लगी। 21 जब राजा दाविद को इन सारी बातों का पता चला तो उसे बहुत गुस्सा आया।+ मगर वह अपने बेटे अम्नोन को ठेस नहीं पहुँचाना चाहता था क्योंकि अम्नोन उसका पहलौठा था और वह अपने बेटे से बहुत प्यार करता था। 22 जहाँ तक अबशालोम की बात है, उसने अम्नोन से भला-बुरा कुछ नहीं कहा। वह मन-ही-मन अम्नोन से नफरत करने लगा+ क्योंकि उसने उसकी बहन तामार को कलंकित किया था।+

23 इस घटना के पूरे दो साल बाद अबशालोम ने अपनी भेड़ों के ऊन कतरने के मौके पर राजा के सभी बेटों को न्यौता दिया।+ उसके सेवक एप्रैम+ के पास बाल-हासोर में उसकी भेड़ों का ऊन कतर रहे थे। 24 अबशालोम ने राजा के पास आकर उससे कहा, “तेरा सेवक अपनी भेड़ों का ऊन कतरवा रहा है। राजा और उसके सेवक अगर मेरे साथ चलें तो बड़ी मेहरबानी होगी।” 25 मगर राजा ने अबशालोम से कहा, “नहीं बेटे, अगर हम सब आएँगे तो तुझ पर बोझ बन जाएँगे।” अबशालोम ने राजा को बहुत मनाया फिर भी वह राज़ी नहीं हुआ और उसने अबशालोम को आशीर्वाद दिया। 26 फिर अबशालोम ने कहा, “अगर तू नहीं आ सकता तो मेहरबानी करके मेरे भाई अम्नोन को हमारे साथ आने दे।”+ राजा ने उससे पूछा, “मगर वही क्यों?” 27 अबशालोम ने किसी तरह राजा को मना लिया इसलिए उसने अम्नोन और अपने सभी बेटों को उसके साथ भेजा।

28 फिर अबशालोम ने अपने सेवकों को हुक्म दिया, “तुम लोग होशियार रहना, जैसे ही अम्नोन दाख-मदिरा पीकर मगन हो जाएगा मैं तुमसे कहूँगा, ‘मार डालो अम्नोन को!’ तुम उसे फौरन मार डालना। बिलकुल डरना मत। यह मेरा हुक्म है। दिलेर बनना और हिम्मत से काम लेना।” 29 अबशालोम के सेवकों ने ठीक वैसा ही किया जैसा उसने हुक्म दिया था। उन्होंने अम्नोन को मार डाला। तब राजा के बाकी सभी बेटे उठे और अपने-अपने खच्चर पर सवार होकर भाग गए। 30 जब वे रास्ते में ही थे तो दाविद को यह खबर दी गयी, “अबशालोम ने राजा के सभी बेटों को मार डाला। एक भी ज़िंदा नहीं बचा।” 31 यह सुनने पर राजा उठा और उसने अपने कपड़े फाड़े और ज़मीन पर लेट गया। उसके सब सेवकों ने भी अपने कपड़े फाड़े और उसके पास खड़े रहे।

32 मगर यहोनादाब+ ने, जो दाविद के भाई शिमयाह+ का बेटा था, दाविद से कहा, “मेरे मालिक, राजा के सारे बेटे नहीं मारे गए। सिर्फ अम्नोन मारा गया है।+ और यह काम अबशालोम के कहने पर किया गया है। वह उसी दिन से ऐसा करने की साज़िश करने लगा था+ जिस दिन अम्नोन ने उसकी बहन+ तामार को कलंकित किया था।+ 33 हे राजा, मेरे मालिक, तू इस झूठी खबर पर यकीन मत करना कि राजा के सभी बेटे मर गए हैं। सिर्फ अम्नोन की मौत हुई है।”

34 इस बीच अबशालोम वहाँ से भाग गया था।+ बाद में शहर के पहरेदार ने देखा कि पीछे की तरफ पहाड़ के पासवाले रास्ते से बहुत-से लोग आ रहे हैं। 35 तब यहोनादाब+ ने राजा से कहा, “देख! राजा के बेटे लौट आए हैं। जैसा तेरे दास ने कहा था वैसा ही हुआ।” 36 जैसे ही उसने अपनी बात खत्म की, राजा के बेटे वहाँ पहुँच गए। वे सभी ज़ोर-ज़ोर से रो रहे थे। राजा और उसके सारे सेवक भी फूट-फूटकर रोने लगे। 37 मगर अबशालोम भागकर गशूर के राजा तल्मै के पास चला गया+ जो अम्मीहूद का बेटा था। दाविद ने अपने बेटे अम्नोन के लिए कई दिनों तक मातम मनाया। 38 अबशालोम जब भागकर गशूर चला गया+ तो वह तीन साल तक वहाँ रहा।

39 जब इतना लंबा समय बीत गया तो राजा दाविद अबशालोम से जाकर मिलने के लिए तरसने लगा। वह अब तक अम्नोन की मौत के गम से उबर चुका था।*

14 अब सरूयाह के बेटे योआब+ को पता चला कि राजा का मन अबशालोम के लिए तरस रहा है।+ 2 इसलिए योआब ने तकोआ+ से एक औरत को बुलवाया जो बहुत होशियार थी। उसने उस औरत से गुज़ारिश की, “तू शोक मनाने का ढोंग करना। मातम के कपड़े पहनना और शरीर पर तेल मत मलना।+ तू ऐसे पेश आना जैसे तू लंबे समय से किसी की मौत का मातम मना रही हो। 3 तू राजा के पास जाना और उससे ये-ये कहना।” फिर योआब ने औरत को बताया कि उसे क्या-क्या कहना है।

4 तकोआ की वह औरत राजा के पास गयी और उसने मुँह के बल ज़मीन पर गिरकर राजा को प्रणाम किया और कहा, “हे राजा, मेरी मदद कर!” 5 राजा ने उससे पूछा, “तेरी क्या समस्या है?” उसने कहा, “तेरी यह दासी विधवा है, मेरा पति मर चुका है। 6 तेरी दासी के दो बेटे थे। वे मैदान में एक-दूसरे से लड़ने लगे। उनका बीच-बचाव करनेवाला कोई न था, इसलिए एक ने दूसरे को मार डाला। 7 अब मेरे परिवार के सब लोग मेरे खिलाफ हो गए हैं और कह रहे हैं, ‘तेरे जिस लड़के ने अपने भाई को मार डाला, उसे हमारे हवाले कर दे ताकि हम उसे मार डालें और उसके भाई के खून का बदला उससे लें,+ भले ही इससे तेरे खानदान का वारिस क्यों न मिट जाए!’ वे मेरे बचे हुए अंगारे* को बुझा देंगे और धरती से मेरे पति का नाम और उसकी आखिरी निशानी भी मिटा देंगे।”

8 राजा ने औरत से कहा, “तू अपने घर जा, तुझे ज़रूर इंसाफ मिलेगा। मैं तेरे बारे में एक आदेश दूँगा।” 9 तब तकोआ की उस औरत ने राजा से कहा, “हे राजा, मेरे मालिक, मेरे बेटे के पाप का दोष मुझे और मेरे घराने को लगे। तब राजा और उसका शाही खानदान निर्दोष ठहरेगा।” 10 राजा ने कहा, “अगर इसके बाद भी कोई तुझसे कुछ कहे तो उसे मेरे पास लाना। वह तुझे फिर कभी परेशान नहीं करेगा।” 11 तब औरत ने कहा, “हे राजा, तेरी बड़ी कृपा होगी अगर तू अपने परमेश्‍वर यहोवा को याद करे ताकि खून का बदला लेनेवाला+ मेरे बेटे की जान लेकर मेरा दुख और न बढ़ा दे।” राजा ने कहा, “यहोवा के जीवन की शपथ,+ तेरे बेटे का बाल भी बाँका नहीं होगा।” 12 उस औरत ने कहा, “मेरे मालिक, राजा, तेरी इजाज़त हो तो तेरी दासी एक और बात कहना चाहती है।” राजा ने कहा, “इजाज़त है!”

13 उस औरत ने कहा, “फिर तूने ऐसा काम करने की क्यों सोची जिससे परमेश्‍वर के लोगों का नुकसान हो?+ राजा ने अभी-अभी जो फैसला सुनाया वह खुद उसे दोषी ठहराता है क्योंकि राजा ने अपने बेटे को देश-निकाला दे दिया और उसे वापस नहीं लाया।+ 14 यह सच है कि मौत हम सब पर आती है और हम उस पानी की तरह बन जाते हैं जिसे ज़मीन पर एक बार उँडेल दिया जाए तो वापस इकट्ठा नहीं किया जा सकता। फिर भी परमेश्‍वर यूँ ही किसी की जान नहीं लेता बल्कि देखता है कि जिसे देश-निकाला दिया गया है उसे वापस लाने की क्या कोई गुंजाइश है। 15 मैं अपने मालिक राजा को यह बात इसलिए बताने आयी हूँ क्योंकि लोगों ने मुझे डरा दिया था। इसलिए तेरी दासी ने सोचा कि मैं राजा से इस मामले पर भी बात करके देखती हूँ। हो सकता है वह अपनी दासी की गुज़ारिश मान ले। 16 क्योंकि मेरे मामले में राजा ने मेरी बिनती सुन ली और वह मुझे उस आदमी से बचाने के लिए राज़ी हो गया, जो मुझसे और मेरे इकलौते बेटे से परमेश्‍वर की दी हुई विरासत छीनने पर तुला है।+ 17 तेरी दासी ने सोचा, हो सकता है राजा मेरी यह गुज़ारिश भी मानकर मेरे मन को राहत दे, क्योंकि मेरा मालिक राजा अच्छे-बुरे में फर्क करने में बिलकुल सच्चे परमेश्‍वर के स्वर्गदूत जैसा है। मेरी दुआ है कि तेरा परमेश्‍वर यहोवा तेरे साथ रहे।”

18 तब राजा ने औरत से कहा, “अब मैं तुझसे जो पूछूँगा, सच-सच बताना। कुछ छिपाना मत।” औरत ने कहा, “मेरे मालिक राजा, तुझे जो भी पूछना है पूछ।” 19 राजा ने पूछा, “क्या यह सब कहने के लिए तुझे योआब ने मेरे पास भेजा है?”+ औरत ने कहा, “मेरे मालिक, राजा। तेरे जीवन की शपथ, तूने बिलकुल सही कहा।* तेरे सेवक योआब ने ही मुझे यह सब सिखाकर भेजा और यह सब कहने के लिए कहा। 20 तेरे सेवक योआब ने यह सब इसलिए किया ताकि इस मामले के बारे में तेरा नज़रिया बदले। मेरे मालिक के पास सच्चे परमेश्‍वर के स्वर्गदूत जैसी बुद्धि है और वह जानता है कि देश में क्या-क्या हो रहा है।”

21 फिर राजा ने योआब से कहा, “ठीक है, मैं अबशालोम के साथ ऐसा ही करूँगा।+ तू जा और उस जवान को ले आ।”+ 22 तब योआब ने मुँह के बल ज़मीन पर गिरकर राजा को प्रणाम किया और उसकी तारीफ की। योआब ने कहा, “मेरे मालिक राजा, आज तेरा यह सेवक जान गया है कि तूने मुझ पर कृपा की है क्योंकि राजा ने अपने सेवक की गुज़ारिश पूरी की है।” 23 तब योआब उठा और गशूर गया+ और अबशालोम को यरूशलेम ले आया। 24 मगर राजा ने कहा, “वह अपने घर लौट सकता है, पर वह मुझे अपना मुँह न दिखाए।” इसलिए अबशालोम अपने घर लौट गया, लेकिन राजा के सामने नहीं आया।

25 अबशालोम एक सुंदर-सजीला जवान था। सिर से पाँव तक उसमें कोई ऐब नहीं था और पूरे देश में उसके जैसा खूबसूरत आदमी कोई न था। हर कहीं उसके रंग-रूप के चर्चे होते थे। 26 उसे अपने बालों का वज़न ढोना भारी पड़ता था इसलिए हर साल के आखिर में उसे अपने बाल कटवाने पड़ते थे। जब वह बाल कटवाता तो उनका वज़न शाही बाट-पत्थर* के हिसाब से 200 शेकेल* होता था। 27 अबशालोम के तीन बेटे+ और एक बेटी थी। उसकी बेटी का नाम तामार था और वह बहुत खूबसूरत थी।

28 अबशालोम को यरूशलेम में रहते पूरे दो साल बीत गए, मगर वह कभी राजा के सामने नहीं गया।+ 29 इसलिए अबशालोम ने योआब को बुलवाया ताकि वह उसे राजा के पास भेजे। मगर योआब अबशालोम के पास नहीं आया। अबशालोम ने उसे दूसरी बार बुलवाया फिर भी उसने आने से इनकार कर दिया। 30 आखिर में, अबशालोम ने अपने सेवकों से कहा, “योआब की ज़मीन मेरी ज़मीन के पास ही है। और अभी उसकी ज़मीन में जौ की फसल खड़ी है। तुम जाओ और उसकी फसल में आग लगा दो।” अबशालोम के सेवकों ने जाकर उसके खेत में आग लगा दी। 31 तब योआब ने अबशालोम के घर आकर उससे कहा, “तेरे सेवकों ने क्यों मेरे खेत में आग लगा दी?” 32 अबशालोम ने कहा, “देख, मैंने तेरे पास संदेश भेजा था कि मेरे पास आ ताकि मैं तुझे राजा के पास यह पूछने के लिए भेजूँ, ‘मैं गशूर से क्यों वापस आया?+ यहाँ आने से तो अच्छा होता कि मैं वहीं रह जाता। मुझे राजा के सामने हाज़िर होने की इजाज़त दी जाए। अगर मैंने कोई अपराध किया है तो वह मुझे मौत की सज़ा दे दे।’”

33 तब योआब ने राजा के पास जाकर उसे यह बात बतायी। राजा ने अबशालोम को बुलवाया। अबशालोम राजा के पास आया और उसने राजा के सामने मुँह के बल गिरकर उसे प्रणाम किया। फिर राजा ने अबशालोम को चूमा।+

15 इसके बाद अबशालोम ने अपने लिए एक रथ और कुछ घोड़े हासिल किए और 50 आदमियों को अपने आगे-आगे दौड़ने के काम पर लगाया।+ 2 अबशालोम सुबह तड़के उठता और शहर के फाटक की तरफ जानेवाले रास्ते के पास खड़ा हो जाता था।+ जब भी कोई आदमी ऐसा मुकदमा लेकर जा रहा होता जिसका न्याय राजा को करना था,+ तो अबशालोम उसे अपने पास बुला लेता। वह उससे पूछता, “तू किस शहर का है?” वह आदमी कहता, “तेरा सेवक इसराएल के फलाँ गोत्र का है।” 3 अबशालोम उससे कहता, “देख, तेरा दावा सही है, तुझे इंसाफ मिलना चाहिए। मगर राजा की तरफ से तेरा मामला सुननेवाला कोई नहीं है।” 4 अबशालोम कहता, “काश! मुझे इस देश का न्यायी ठहराया जाता। फिर जिसकी भी कोई शिकायत होती या कोई मामला होता, वह मेरे पास आ सकता और मैं उसे ज़रूर इंसाफ दिलाता।”

5 और जब भी कोई आदमी अबशालोम के पास आता और उसके सामने झुकने लगता तो अबशालोम अपना हाथ बढ़ाकर उसे झट-से पकड़ लेता और चूमता।+ 6 वह उन सभी इसराएलियों के साथ ऐसा करता था जो इंसाफ के लिए राजा के पास आते। इस तरह अबशालोम इसराएल के लोगों को बहकाकर उनके दिलों को अपनी तरफ खींचने लगा।+

7 चार साल* के आखिर में अबशालोम ने राजा से कहा, “मेहरबानी करके मुझे हेब्रोन जाने दे।+ मैंने यहोवा से जो मन्‍नत मानी है वह पूरी करना चाहता हूँ। 8 तेरे सेवक ने सीरिया के गशूर में रहते वक्‍त+ यह मन्‍नत मानी थी,+ ‘अगर यहोवा मुझे वापस यरूशलेम ले जाए तो मैं यहोवा के लिए एक चढ़ावा अर्पित करूँगा।’”* 9 राजा ने उससे कहा, “जा, मेरी शुभकामनाएँ तेरे साथ हैं।”* तब अबशालोम वहाँ से निकल पड़ा और हेब्रोन गया।

10 फिर अबशालोम ने अपने जासूसों को यह बताकर इसराएल के सभी गोत्रों के इलाकों में भेजा, “जैसे ही तुम्हें नरसिंगे की आवाज़ सुनायी दे तुम यह ऐलान करना, ‘अबशालोम हेब्रोन में राजा बन गया है!’”+ 11 जब अबशालोम हेब्रोन गया तो उसके साथ यरूशलेम से 200 आदमी गए थे। उन आदमियों को उसके साथ जाने का न्यौता दिया गया था। वे अबशालोम की साज़िश के बारे में कुछ नहीं जानते थे और न ही उन्हें ज़रा भी शक हुआ था, इसलिए वे उसके साथ चल दिए। 12 जब अबशालोम ने हेब्रोन में बलिदान चढ़ाए तो उसने दाविद के सलाहकार अहीतोपेल+ को भी गीलो शहर+ से बुलवाया। अहीतोपेल गीलो शहर का रहनेवाला था। अबशालोम की साज़िश ज़ोर पकड़ती गयी और उसका साथ देनेवालों की गिनती दिनों-दिन बढ़ती गयी।+

13 कुछ समय बाद एक दूत ने दाविद के पास आकर उसे यह खबर दी: “इसराएल के लोग अबशालोम की तरफ हो गए हैं।” 14 यह सुनते ही दाविद ने अपने सभी सेवकों से, जो उसके साथ यरूशलेम में थे, कहा, “चलो हम सब यहाँ से भाग निकलते हैं,+ वरना हममें से कोई भी अबशालोम के हाथ से नहीं बच पाएगा! जल्दी करो, कहीं ऐसा न हो कि वह हमें फौरन घेर ले और हमें और पूरे शहर को तलवार से घात करके बरबाद कर दे!”+ 15 राजा के सेवकों ने उससे कहा, “हमारा मालिक राजा जो भी फैसला करे हम उसके मुताबिक काम करने के लिए तैयार हैं।”+ 16 तब राजा अपने पूरे घराने को लेकर निकल पड़ा, मगर उसने अपनी दस उप-पत्नियों को महल की देखभाल करने के लिए छोड़ दिया।+ 17 राजा अपने सब लोगों को साथ लेकर आगे बढ़ता गया और जब वे बेत-मेरहक पहुँचे तो वहाँ रुक गए।

18 उसके साथ उसके सभी सेवक, सभी करेती और पलेती लोग+ और गत के 600 आदमी+ भी थे जो गत से उसके साथ आए थे।+ जब वे राजा के सामने से गुज़र रहे थे तो उसने उनका मुआयना किया। 19 फिर राजा ने गत के रहनेवाले इत्तै+ से कहा, “तू क्यों हमारे साथ आ रहा है? तू वापस चला जा और नए राजा के साथ रह। तू एक परदेसी है और अपना देश छोड़कर यहाँ आया है। 20 तू कल ही तो आया था और आज मैं तुझे कैसे मजबूर करूँ कि तू भी हमारे साथ जगह-जगह भटकता रहे? मैं तुझसे कैसे कह सकता हूँ कि मैं जब जहाँ जाऊँ तू भी हमारे साथ आ? तू लौट जा और अपने भाइयों को भी साथ ले जा। यहोवा तुझे अपने अटल प्यार का सबूत दे और तेरा विश्‍वासयोग्य बना रहे!”+ 21 मगर इत्तै ने राजा से कहा, “यहोवा के जीवन की शपथ और मेरे मालिक राजा के जीवन की शपथ, मेरा मालिक राजा जहाँ कहीं जाए वहाँ तेरा यह सेवक भी जाएगा, फिर चाहे मुझे मौत को ही क्यों न गले लगाना पड़े!”+ 22 दाविद ने इत्तै+ से कहा, “ठीक है, तू भी घाटी पार कर।” तब गत के रहनेवाले इत्तै ने अपने सभी आदमियों और बच्चों के साथ घाटी पार की।

23 जब ये सब लोग घाटी पार कर रहे थे तो यरूशलेम और आस-पास के सभी लोग ज़ोर-ज़ोर से रो रहे थे। राजा किदरोन घाटी+ के पास खड़ा था और सब लोग घाटी पार करके उस रास्ते पर जाने लगे जो वीराने की तरफ जाता है। 24 सादोक+ भी वहाँ था और उसके साथ सभी लेवी थे+ जो सच्चे परमेश्‍वर के करार का संदूक+ उठाए हुए थे।+ जब सब लोग शहर से निकलकर घाटी पार कर रहे थे, तो उन्होंने संदूक नीचे रख दिया और अबियातार+ भी वहाँ था। 25 मगर राजा ने सादोक से कहा, “सच्चे परमेश्‍वर का संदूक वापस शहर ले जा।+ अगर यहोवा ने मुझ पर कृपा की है तो वह मुझे ज़रूर वापस लाएगा और मुझे यह संदूक और इसका निवास देखने का मौका देगा।+ 26 लेकिन अगर वह कहे कि मैं तुझसे खुश नहीं हूँ तो उसे जो सही लगे वह मेरे साथ करे।” 27 फिर राजा ने सादोक याजक से कहा, “क्या तू एक दर्शी+ नहीं है? तू शांति से शहर लौट जा। अबियातार, तू भी चला जा। सादोक, तू अपने साथ अपने बेटे अहीमास और अबियातार के बेटे योनातान को ले जा।+ 28 देख, मैं वीराने के पासवाले घाटों में तब तक रहूँगा जब तक मुझे तेरे यहाँ से कोई खबर नहीं मिलती।”+ 29 तब सादोक और अबियातार सच्चे परमेश्‍वर का संदूक वापस यरूशलेम ले गए और वहीं रहे।

30 फिर दाविद जैतून पहाड़*+ चढ़ने लगा। वह अपना सिर ढाँपे और रोते हुए नंगे पाँव चल रहा था। उसके साथ जितने लोग थे वे भी अपना सिर ढाँपे हुए थे और रोते हुए चढ़ रहे थे। 31 तभी दाविद को बताया गया कि अहीतोपेल भी अबशालोम के साथ साज़िश करनेवालों में से है।+ यह सुनकर दाविद ने बिनती की, “हे यहोवा, तू ऐसा कर कि अहीतोपेल की सलाह मूर्खों की सलाह लगे!”+

32 जब दाविद पहाड़ की उस चोटी पर पहुँचा जहाँ लोग झुककर परमेश्‍वर को दंडवत करते थे, तो वहाँ एरेकी+ हूशै+ उससे मिलने आया। वह अपना चोगा फाड़े और सिर पर धूल डाले हुए था। 33 मगर दाविद ने उससे कहा, “अगर तू मेरे साथ घाटी पार करेगा तो मुझ पर एक बोझ बन जाएगा। 34 लेकिन अगर तू शहर लौट जाए और अबशालोम से कहे, ‘हे राजा मैं तेरा सेवक हूँ। कल तक मैं तेरे पिता का सेवक था, मगर आज मैं तेरा सेवक हूँ,’+ तब तू अहीतोपेल की सलाह नाकाम कर पाएगा।+ 35 सादोक और अबियातार याजक भी वहाँ तेरे साथ होंगे। राजमहल से तुझे जो भी खबर मिले वह याजक सादोक और याजक अबियातार को बताया करना।+ 36 देख, वहाँ उनके बेटे भी हैं, सादोक का बेटा अहीमास+ और अबियातार का बेटा योनातान।+ तुम्हें जो भी खबर मिले उनके ज़रिए मुझ तक पहुँचाते रहना।” 37 इसलिए दाविद का दोस्त* हूशै+ शहर चला गया। उस समय अबशालोम यरूशलेम के अंदर जा रहा था।

16 जब दाविद पहाड़ की चोटी+ से थोड़ा आगे बढ़ा तो वहाँ मपीबोशेत+ का सेवक सीबा+ उससे मिलने आया। सीबा अपने साथ काठी कसे दो गधे लाया और उन पर 200 रोटियाँ, किशमिश की 100 टिकियाँ, गरमियों के फलों* से बनी 100 टिकियाँ और दाख-मदिरा से भरा एक बड़ा मटका लदा हुआ था।+ 2 राजा ने सीबा से पूछा, “तू ये सब क्यों लाया है?” सीबा ने कहा, “ये जानवर राजा के घराने के लोगों के लिए हैं ताकि वे इन पर सवार होकर जाएँ। रोटियाँ और गरमियों के फल राजा के जवानों के खाने के लिए हैं और दाख-मदिरा इसलिए है कि अगर तुममें से कोई वीराने में सफर करते-करते थक जाए तो पी सके।”+ 3 फिर राजा ने पूछा, “तेरे मालिक का बेटा* कहाँ है?”+ सीबा ने कहा, “वह यरूशलेम में ही है। उसने कहा, ‘आज इसराएल का घराना मेरे पिता का राज मुझे लौटा देगा।’”+ 4 तब राजा ने सीबा से कहा, “देख! जो कुछ मपीबोशेत का है वह सब मैं तेरे अधिकार में कर देता हूँ।”+ सीबा ने कहा, “मैं तेरे आगे झुककर तुझे प्रणाम करता हूँ। मेरे मालिक राजा, तेरी कृपा मुझ पर बनी रहे।”+

5 जब राजा दाविद बहूरीम पहुँचा तो शिमी नाम का एक आदमी निकला जो शाऊल के घराने के एक परिवार से था और गेरा का बेटा था।+ वह दाविद की तरफ आते हुए चिल्ला-चिल्लाकर उसे शाप देने लगा।+ 6 वह राजा दाविद पर, उसके सभी सेवकों और उसके साथ आए लोगों पर और उसके दाएँ-बाएँ चल रहे वीर योद्धाओं पर पत्थर फेंकने लगा। 7 शिमी यह कहकर दाविद को शाप देने लगा, “चला जा यहाँ से, निकल जा। तू कातिल है, निकम्मा है! 8 तूने शाऊल के घराने को मार डाला, उसका राज छीनकर खुद राजा बन बैठा। इसीलिए यहोवा आज तुझसे उन सबके खून का बदला ले रहा है और यहोवा ने राज तेरे बेटे अबशालोम के हाथ कर दिया है। तू खून का दोषी है इसीलिए तुझ पर यह मुसीबत आयी है!”+

9 तब सरूयाह के बेटे अबीशै+ ने राजा से कहा, “इसकी यह मजाल कि मेरे मालिक राजा को शाप दे?+ यह तो मरे हुए कुत्ते के समान है।+ तू हुक्म दे तो मैं जाकर उसका सिर काट डालूँ।”+ 10 मगर राजा ने कहा, “सरूयाह के बेटो, इसमें तुम क्यों दखल दे रहे हो?+ वह मुझे शाप दे रहा है तो देने दो+ क्योंकि जब यहोवा ने ही उससे कहा है,+ ‘दाविद को शाप दे!’ तो कौन उसे रोक सकता है?” 11 फिर दाविद ने अबीशै और अपने सब सेवकों से कहा, “जब मेरा अपना बेटा, जो मुझसे पैदा हुआ, मेरी जान के पीछे पड़ा है+ तो मैं बिन्यामीन गोत्र के इस आदमी+ के बारे में क्या कहूँ! अगर यह मुझे शाप दे रहा है तो देने दो क्योंकि यहोवा ने इसे ऐसा करने को कहा है! 12 क्या पता यहोवा मेरा दुख देखे+ और आज मुझे जो शाप दिया जा रहा है, उसके बदले यहोवा मेरे साथ फिर से भलाई करे।”+ 13 दाविद के ऐसा कहने के बाद दाविद और उसके आदमी आगे बढ़ते गए। शिमी उस पहाड़ पर दाविद के साथ-साथ चलता हुआ चिल्ला-चिल्लाकर उसे शाप देता रहा+ और उस पर पत्थर और ढेर सारी धूल फेंकता रहा।

14 आखिरकार दाविद और सारे लोग जब तय जगह पर पहुँचे तो वे थककर पस्त हो चुके थे इसलिए उन्होंने वहाँ आराम किया।

15 इधर अबशालोम और इसराएल के सारे आदमी यरूशलेम पहुँचे। अबशालोम के साथ अहीतोपेल भी था।+ 16 जब दाविद का दोस्त* एरेकी+ हूशै+ अबशालोम के पास आया तो उसने अबशालोम से कहा, “राजा की जय हो!+ राजा की जय हो!” 17 अबशालोम ने हूशै से कहा, “तू अपने दोस्त के साथ क्यों नहीं गया? यही है तेरी वफादारी?”* 18 हूशै ने अबशालोम से कहा, “मैं तो उसी का साथ दूँगा जिसे यहोवा ने और इन लोगों ने और इसराएल के सभी आदमियों ने चुना है। मैं उसी के साथ रहूँगा। 19 मैं एक बार फिर कहता हूँ, उसके बेटे की सेवा करना मेरा फर्ज़ है। जैसे मैंने तेरे पिता की सेवा की थी, वैसे मैं तेरी सेवा करूँगा।”+

20 तब अबशालोम ने अहीतोपेल से कहा, “अब हमें क्या करना चाहिए, तेरी क्या सलाह है?”+ 21 अहीतोपेल ने कहा, “तू अपने पिता की उप-पत्नियों के साथ संबंध रख,+ जिन्हें वह महल की देखभाल के लिए छोड़ गया है।+ तब पूरा इसराएल जान जाएगा कि तूने अपने पिता का अपमान किया है और इससे तेरा साथ देनेवालों की हिम्मत बढ़ जाएगी।” 22 इसलिए छत पर एक तंबू खड़ा किया गया+ और अबशालोम ने वहाँ पूरे इसराएल के सामने अपने पिता की उप-पत्नियों के साथ संबंध रखे।+

23 उन दिनों अहीतोपेल की सलाह+ सच्चे परमेश्‍वर का वचन मानी जाती थी।* दाविद और अबशालोम, अहीतोपेल की हर सलाह को बहुत अनमोल समझते थे।

17 फिर अहीतोपेल ने अबशालोम से कहा, “मुझे इजाज़त दे कि मैं 12,000 आदमी चुनकर आज रात ही दाविद का पीछा करूँ। 2 मैं ऐसे वक्‍त पर उस पर टूट पड़ूँगा जब वह थका-माँदा और कमज़ोर होगा।*+ मैं उसे डरा दूँगा, तब उसके साथ जितने लोग हैं वे सब भाग जाएँगे। और राजा जब अकेला रह जाएगा तो मैं उसे मार डालूँगा।+ 3 इसके बाद मैं बाकी सब लोगों को तेरे पास ले आऊँगा। तू जिसकी तलाश कर रहा है, उसे हटाने पर ही सब लोग तेरे पास वापस आएँगे। तब सब लोग शांति से रहेंगे।” 4 अहीतोपेल का यह सुझाव अबशालोम और इसराएल के सभी मुखियाओं को एकदम सही लगा।

5 फिर भी अबशालोम ने कहा, “ज़रा एरेकी हूशै को भी बुलाओ,+ देखते हैं वह क्या सलाह देता है।” 6 तब हूशै अबशालोम के पास आया। अबशालोम ने उससे कहा, “अहीतोपेल ने हमें यह सलाह दी है। तुझे क्या लगता है, हमें उसकी बात माननी चाहिए या नहीं? अगर नहीं, तो तू कोई सलाह दे।” 7 हूशै ने अबशालोम से कहा, “अहीतोपेल ने इस बार जो सलाह दी, वह सही नहीं है!”+

8 इसके बाद हूशै ने कहा, “तू अच्छी तरह जानता है कि तेरा पिता और उसके आदमी कितने ताकतवर हैं+ और इस समय वे भड़के हुए हैं, ऐसी रीछनी की तरह जिसके बच्चे खो गए हों।+ और तू यह भी मत भूल कि तेरा पिता एक वीर योद्धा है।+ वह आज रात लोगों के साथ नहीं रहेगा। 9 वह तो इस वक्‍त किसी गुफा* में या किसी और जगह छिपा होगा।+ अगर उसने पहले हमारे लोगों पर हमला कर दिया, तो यह अफवाह फैल जाएगी कि ‘अबशालोम के पक्षवाले हार गए हैं!’ 10 ऐसे में तो शेरदिल सैनिकों+ की भी हिम्मत टूट जाएगी, क्योंकि पूरा इसराएल जानता है कि तेरा पिता कितना बड़ा सूरमा है+ और उसके साथवाले आदमी भी बड़े दिलेर हैं। 11 इसलिए मेरी सलाह है कि दान से बेरशेबा+ तक के सभी इसराएली तेरे पास इकट्ठा हो जाएँ ताकि उनकी तादाद समुंदर किनारे की बालू के किनकों जैसी हो।+ फिर तू खुद उन सबको लेकर युद्ध में जा। 12 वह जहाँ भी मिले हम उस पर ऐसे हमला करेंगे, जैसे ज़मीन पर ओस की बूँदें छा जाती हैं। तब उनमें से कोई बच नहीं पाएगा, न तो वह और न ही उसका कोई आदमी। 13 अगर वह किसी शहर में भाग जाएगा, तो हम पूरे इसराएल को लेकर जाएँगे और उस शहर को नाश कर देंगे। और हम शहर को रस्सों से घसीटकर घाटी में फेंक देंगे ताकि वहाँ एक पत्थर भी न बचे।”

14 तब अबशालोम और इसराएल के सभी आदमियों ने कहा, “एरेकी हूशै की सलाह अहीतोपेल की सलाह से ज़्यादा अच्छी है!”+ ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि यहोवा ने ठान लिया था* कि वह अहीतोपेल की बढ़िया सलाह को नाकाम कर देगा+ ताकि यहोवा अबशालोम पर कहर ढा सके।+

15 फिर हूशै ने याजक सादोक और याजक अबियातार को बताया,+ “अहीतोपेल ने अबशालोम और इसराएल के मुखियाओं को यह सलाह दी थी जबकि मैंने यह सलाह दी है। 16 इसलिए तुम जल्दी से दाविद के पास यह संदेश भेजो और उसे खबरदार करो कि आज रात वह वीराने के घाटों* के पास न रहे, बल्कि हर हाल में नदी के उस पार चला जाए, वरना राजा और उसके साथ जितने लोग हैं वे सब मिटा दिए जाएँगे।”+

17 योनातान+ और अहीमास+ एन-रोगेल+ में ठहरे हुए थे क्योंकि अगर लोग उन्हें शहर के अंदर जाते देख लेते तो उन्हें खतरा हो सकता था। इसलिए एक दासी ने जाकर उन्हें यह खबर दी। फिर वे दोनों राजा दाविद को यह बात बताने के लिए निकल पड़े। 18 मगर एक जवान आदमी ने उन दोनों को देख लिया और जाकर अबशालोम को बता दिया। इसलिए वे दोनों फौरन वहाँ से भाग निकले और बहूरीम+ में एक आदमी के घर पहुँचे। उस घर के आँगन में एक कुआँ था। वे उसमें उतरकर छिप गए। 19 उस आदमी की पत्नी ने कुएँ का मुँह एक कपड़े से ढाँप दिया और उस पर दला हुआ अनाज फैला दिया, इसलिए किसी को कुछ पता नहीं चला। 20 अबशालोम के सेवक उस औरत के घर आए और उन्होंने उससे पूछा, “अहीमास और योनातान कहाँ हैं?” औरत ने कहा, “वे नदी की तरफ चले गए।”+ अबशालोम के आदमियों ने उन्हें बहुत ढूँढ़ा, मगर वे कहीं नहीं मिले। इसलिए वे यरूशलेम लौट गए।

21 उन आदमियों के जाने के बाद वे दोनों कुएँ से निकलकर ऊपर आए। फिर उन्होंने जाकर राजा दाविद को खबर दी। उन्होंने उससे कहा, “तू जल्दी से नदी के पार चला जा क्योंकि अहीतोपेल ने तेरा बुरा करने के लिए यह सलाह दी है।”+ 22 यह खबर सुनते ही दाविद और उसके सभी लोग वहाँ से निकल पड़े और यरदन नदी के पार चले गए। सुबह होने तक यरदन के इस पार एक भी आदमी नहीं बचा था।

23 जब अहीतोपेल ने देखा कि उसकी सलाह नहीं मानी गयी, तो वह एक गधे पर सवार होकर अपने शहर लौट गया।+ उसने अपने घराने को ज़रूरी हिदायतें दीं+ और फिर फाँसी लगा ली* और मर गया।+ उसे उसके पुरखों के कब्रिस्तान में दफनाया गया।

24 इस बीच दाविद महनैम+ चला गया। उधर अबशालोम ने इसराएल के सभी आदमियों के साथ यरदन पार की। 25 अबशालोम ने योआब की जगह अमासा+ को सेनापति बनाया था।+ अमासा, यित्रा नाम के एक इसराएली आदमी का बेटा था जिसने नाहाश की बेटी अबीगैल के साथ संबंध रखे थे।+ अबीगैल, योआब की माँ सरूयाह की बहन थी। 26 अबशालोम और उसके साथवाले सभी इसराएलियों ने गिलाद के इलाके+ में छावनी डाली।

27 जैसे ही दाविद महनैम पहुँचा, शोबी (जो अम्मोनियों के शहर रब्बाह+ के रहनेवाले नाहाश का बेटा था), माकीर+ (जो लो-देबार के रहनेवाले अम्मीएल का बेटा था) और बरजिल्लै+ (जो रोगलीम का रहनेवाला गिलादी था) उसके पास आए। 28 वे अपने साथ बिस्तर, कटोरे, मिट्टी के बरतन, गेहूँ, जौ, आटा, भुना हुआ अनाज, बाकला, दाल, सूखा अनाज, 29 शहद, मक्खन, पनीर* और भेड़ें ले आए थे। वे ये सारी चीज़ें दाविद और उसके लोगों के लिए लाए थे+ क्योंकि उन्होंने सोचा, “लोग वीराने में भूखे-प्यासे और थके-माँदे होंगे।”+

18 फिर दाविद ने उन आदमियों की गिनती ली जो उसके साथ थे और उन्हें सौ-सौ और हज़ार-हज़ार की टुकड़ियों में बाँटकर उन पर सेनापति ठहराए।+ 2 दाविद ने एक-तिहाई आदमियों को योआब की कमान के नीचे किया,+ एक-तिहाई को योआब के भाई और सरूयाह के बेटे अबीशै+ की कमान के नीचे+ और एक-तिहाई को गत के रहनेवाले इत्तै की कमान के नीचे किया।+ फिर राजा ने अपने आदमियों से कहा, “मैं भी तुम लोगों के साथ चलता हूँ।” 3 मगर उन्होंने कहा, “नहीं, तुझे शहर से बाहर नहीं जाना चाहिए,+ क्योंकि अगर हम भाग जाएँ या हममें से आधे लोग मारे जाएँ तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन तू हमारे जैसे 10,000 सैनिकों के बराबर है।+ इसलिए अच्छा होगा कि तू शहर में ही रहे और यहाँ से हमारी मदद करे।” 4 राजा ने कहा, “ठीक है, तुम्हें जो सही लगता है मैं वही करूँगा।” इसलिए राजा शहर के फाटक के पास खड़ा रहा और उसके सभी आदमी सौ-सौ और हज़ार-हज़ार की टुकड़ियों में वहाँ से रवाना हो गए। 5 फिर राजा ने योआब, अबीशै और इत्तै को यह आदेश दिया, “तुम लोग मेरी खातिर जवान अबशालोम के साथ नरमी से पेश आना।”+ जब राजा ने सभी सेनापतियों को अबशालोम के बारे में यह आदेश दिया तो सारे सैनिक सुन रहे थे।

6 फिर वे सभी आदमी इसराएली सैनिकों से मुकाबला करने युद्ध की जगह गए। युद्ध एप्रैम के जंगल में हुआ।+ 7 दाविद के आदमियों ने इसराएली सैनिकों+ को हरा दिया+ और उस दिन बहुत मार-काट मची और 20,000 आदमी मारे गए। 8 लड़ाई पूरे इलाके में फैल गयी। उस दिन जितने लोग तलवार से मारे गए उससे कहीं ज़्यादा लोग जंगल का कौर हो गए।

9 फिर ऐसा हुआ कि अबशालोम ने दाविद के आदमियों को अपनी तरफ आते देखा। अबशालोम एक खच्चर पर सवार था और खच्चर भागते-भागते जब एक बड़े पेड़ के नीचे से गुज़रा तो अबशालोम के बाल पेड़ की मोटी-मोटी डालियों में उलझ गए। खच्चर आगे निकल गया और अबशालोम अधर में लटका रह गया। 10 जब एक सैनिक ने उसे देखा तो उसने जाकर योआब+ को बताया, “मैंने अबशालोम को एक बड़े पेड़ में लटके हुए देखा है!” 11 योआब ने उससे कहा, “अगर तूने उसे देखा तो उसे वहीं मारकर ज़मीन पर क्यों नहीं गिरा दिया? तब मैं खुश होकर तुझे चाँदी के दस टुकड़े और एक कमरबंद देता।” 12 लेकिन सैनिक ने योआब से कहा, “चाहे मुझे चाँदी के 1,000 टुकड़े दिए जाते,* तो भी मैं राजा के बेटे पर हाथ नहीं उठाता क्योंकि हमारे सामने ही राजा ने तुझे, अबीशै और इत्तै को आदेश दिया था कि ‘ध्यान रखना, तुममें से कोई भी जवान अबशालोम के साथ कुछ बुरा न करे।’+ 13 अगर मैं राजा की आज्ञा तोड़कर उसके बेटे की जान ले लेता तो यह बात राजा से छिपी नहीं रहती और तब तू भी मुझे नहीं बचाता।” 14 योआब ने कहा, “अब मैं तुझसे बात करके और वक्‍त बरबाद नहीं करूँगा!” फिर योआब ने तीन बड़े-बड़े कीले* लिए और अबशालोम के दिल में आर-पार भेद दिए जो बड़े पेड़ के बीच ज़िंदा लटका हुआ था। 15 फिर योआब के हथियार ढोनेवाले दस सेवक वहाँ आए और अबशालोम को तब तक मारते रहे जब तक कि वह मर न गया।+ 16 फिर योआब ने नरसिंगा फूँका और दाविद के आदमी इसराएलियों का पीछा करना छोड़कर लौट आए। इस तरह योआब ने उन्हें रोक दिया। 17 उन्होंने अबशालोम की लाश उठाकर जंगल में एक बड़े गड्‌ढे में फेंक दी और उसके ऊपर पत्थरों का बहुत बड़ा ढेर लगा दिया।+ फिर सभी इसराएली अपने-अपने घर भाग गए।

18 अबशालोम जब ज़िंदा था तो उसने ‘राजा की घाटी’+ में अपने लिए एक खंभा खड़ा करवाया था क्योंकि उसने कहा था, “मेरे बाद मेरा नाम चलाने के लिए मेरा कोई बेटा नहीं है।”+ इसलिए उसने उस खंभे का नाम अपने नाम पर रखा था और वह खंभा आज तक अबशालोम स्मारक कहलाता है।

19 अब सादोक के बेटे अहीमास+ ने योआब से कहा, “मेहरबानी करके मुझे इजाज़त दे कि मैं दौड़कर राजा को खबर दूँ क्योंकि यहोवा ने उसे दुश्‍मनों से छुड़ाकर इंसाफ दिलाया है।”+ 20 मगर योआब ने कहा, “नहीं, आज तू खबर नहीं ले जाएगा। तू फिर कभी खबर सुनाना। मगर आज नहीं क्योंकि आज राजा के अपने बेटे की मौत हुई है।”+ 21 फिर योआब ने एक कूशी आदमी+ से कहा, “तू जाकर राजा को खबर दे। तूने जो देखा है उसे बता।” तब कूशी ने योआब के सामने झुककर प्रणाम किया और दौड़कर जाने लगा। 22 सादोक के बेटे अहीमास ने एक बार फिर योआब से कहा, “चाहे जो भी हो, मुझे भी उस कूशी के पीछे जाने दे।” मगर योआब ने कहा, “बेटे, तेरे बताने के लिए कोई खबर नहीं है, फिर तू क्यों जाना चाहता है?” 23 फिर भी उसने कहा, “कुछ भी हो, मुझे भी भेज।” तब योआब ने उससे कहा, “ठीक है, दौड़!” तब अहीमास यरदन ज़िले से गुज़रनेवाले रास्ते से दौड़कर गया और इतना तेज़ दौड़ा कि कूशी आदमी से आगे निकल गया।

24 दाविद शहर के दो फाटकों के बीच बैठा हुआ था।+ पहरेदार+ दीवार से होकर फाटक की छत पर गया था। उसने देखा कि एक आदमी अकेला दौड़ा चला आ रहा है। 25 उसने राजा को आवाज़ दी और यह बात उसे बतायी। राजा ने कहा, “अगर वह अकेला आ रहा है तो ज़रूर कोई खबर ला रहा होगा।” जब अहीमास दौड़ता हुआ पास आ रहा था, 26 तो पहरेदार को एक और आदमी दौड़ता हुआ नज़र आया। पहरेदार ने दरबान को आवाज़ देकर कहा, “देख, एक और आदमी अकेला दौड़ता हुआ आ रहा है!” राजा ने कहा, “वह भी ज़रूर कोई खबर ला रहा होगा।” 27 पहरेदार ने कहा, “मुझे पहले आदमी का दौड़ना सादोक के बेटे अहीमास के दौड़ने जैसा लग रहा है।”+ राजा ने कहा, “वह एक अच्छा आदमी है, ज़रूर कोई अच्छी खबर ला रहा होगा।” 28 फिर अहीमास ने राजा को आवाज़ दी और कहा, “खुशखबरी है खुशखबरी!” ऐसा कहकर उसने ज़मीन पर गिरकर राजा को प्रणाम किया। फिर उसने कहा, “तेरे परमेश्‍वर यहोवा की बड़ाई हो। उसने मेरे मालिक राजा से बगावत करनेवालों* को उसके हवाले कर दिया है!”+

29 मगर राजा ने कहा, “अबशालोम की क्या खबर है? वह तो सलामत है न?” अहीमास ने कहा, “जब योआब ने राजा के सेवक को और तेरे इस दास को भेजा तो मैंने देखा कि बड़ी खलबली मची हुई है, मगर मैं नहीं जान सका कि बात क्या है।”+ 30 राजा ने कहा, “ज़रा इस तरफ आ, यहाँ खड़ा रह।” तब वह एक तरफ जाकर खड़ा हो गया।

31 तभी वह कूशी आदमी वहाँ पहुँचा+ और उसने कहा, “मेरे मालिक राजा, तेरे लिए यह खबर है: आज यहोवा ने तुझे इंसाफ दिलाया है। तुझे उन सभी के हाथ से छुड़ा लिया है जो तुझसे बगावत करते थे।”+ 32 मगर राजा ने कूशी से पूछा, “अबशालोम ठीक तो है न?” कूशी ने कहा, “मेरे मालिक राजा के सभी दुश्‍मनों का और तुझसे बगावत करनेवालों का वही हश्र हो जो उस जवान का हुआ है!”+

33 यह खबर सुनकर राजा को गहरा सदमा पहुँचा। वह फाटक की ऊपरवाली कोठरी में चला गया और रोने लगा। वह ऊपर चढ़ते वक्‍त रो-रोकर कह रहा था, “हाय! मेरे बेटे अबशालोम, मेरे बेटे! काश, तेरे बदले मेरी मौत हो जाती! हाय! मेरे बेटे अबशालोम, मेरे बेटे!”+

19 योआब को बताया गया कि अबशालोम के लिए राजा बहुत रो रहा है और मातम मना रहा है।+ 2 जब लोगों ने सुना कि राजा शोक मना रहा है तो वे भी जीत* का जश्‍न मनाने के बजाय मातम मनाने लगे। 3 उस दिन वे सब चुपचाप शहर+ में ऐसे लौट गए जैसे युद्ध से भागे हुए सैनिक मारे शर्म के चले जाते हैं। 4 राजा अपना मुँह ढाँपे, ज़ोर-ज़ोर से रोते हुए कह रहा था, “हाय, मेरे बेटे अबशालोम, मेरे बेटे! हाय, मेरे बेटे अबशालोम!”+

5 तब योआब राजा से मिलने घर पर गया। उसने राजा से कहा, “आज तूने अपने सभी सेवकों को शर्मिंदा किया है जिन्होंने आज के दिन तेरी, तेरे बेटे-बेटियों की,+ तेरी पत्नियों और उप-पत्नियों की जान बचायी है।+ 6 तू उन लोगों से प्यार करता है जो तुझसे नफरत करते हैं और उन लोगों से नफरत करता है जो तुझसे प्यार करते हैं। आज तूने दिखा दिया कि तेरे सेनापति और सेवक तेरी नज़रों में कुछ भी नहीं हैं। अब मैं जान गया हूँ कि आज अगर हम सब-के-सब मर जाते और सिर्फ अबशालोम ज़िंदा रहता तो तू खुश होता। 7 अब उठ और अपने सेवकों के पास जा और उनकी हिम्मत बँधा क्योंकि मैं यहोवा की शपथ खाकर कहता हूँ, अगर तू उनके पास नहीं गया तो आज रात तेरे साथ एक भी आदमी नहीं रहेगा। और तेरे लिए यह दुख उन सारे दुखों से कहीं ज़्यादा होगा जो तूने बचपन से लेकर आज तक झेले हैं।” 8 तब राजा उठा और जाकर शहर के फाटक पर बैठा। सब लोगों को खबर दी गयी कि राजा फाटक पर बैठा है। तब वे सब राजा के सामने आए।

मगर जो इसराएली युद्ध में हार गए थे, वे अपने-अपने घर भाग गए।+ 9 इसराएल के सभी गोत्रों के लोगों में बहस छिड़ गयी और वे एक-दूसरे से कहने लगे, “राजा ने हमें दुश्‍मनों से बचाया था+ और पलिश्‍तियों के हाथों से छुड़ाया था, मगर अब उसे अबशालोम की वजह से देश छोड़ना पड़ा।+ 10 हमने अबशालोम का अभिषेक करके उसे अपना राजा ठहराया था,+ मगर वह युद्ध में मारा गया है।+ इसलिए अब तुम कुछ करते क्यों नहीं? जाकर राजा को वापस क्यों नहीं लाते?”

11 राजा दाविद ने याजक सादोक+ और याजक अबियातार+ के पास यह संदेश भेजा: “यहूदा के मुखियाओं से बात करो+ और उनसे कहो, ‘इसराएल के बाकी सभी गोत्रों के यहाँ से राजा के पास संदेश पहुँचा है कि राजा को वापस महल लाया जाए। मगर तुम लोग उसे लाने में पीछे क्यों रह गए हो? 12 तुम तो मेरे भाई हो। तुम्हारे साथ मेरा खून का रिश्‍ता है।* तुम्हें तो राजा को वापस ले जाने के लिए सबसे पहले आना चाहिए था। फिर तुम लोग क्यों पीछे रह गए हो?’ 13 और अमासा+ से तुम कहना, ‘तेरे साथ मेरा खून का रिश्‍ता है। इसलिए अब से योआब के बदले तू मेरा सेनापति होगा। अगर मैंने तुझे अपना सेनापति नहीं ठहराया तो परमेश्‍वर मुझे कड़ी-से-कड़ी सज़ा दे।’”+

14 इस तरह दाविद ने यहूदा के सभी आदमियों का दिल जीत लिया और उन्होंने एकमत होकर राजा को यह संदेश भेजा: “तू अपने सभी सेवकों को लेकर वापस आ जा।”

15 राजा वापस जाने के लिए निकल पड़ा। जब वह यरदन नदी पहुँचा तो यहूदा के लोग गिलगाल आए+ ताकि राजा से मिलें और उसे सही-सलामत यरदन पार करा सकें। 16 राजा से मिलने के लिए उनके साथ गेरा का बेटा शिमी+ भी जल्दी-जल्दी आया। शिमी बिन्यामीन गोत्र का था और बहूरीम का रहनेवाला था। 17 उसके साथ बिन्यामीन गोत्र के 1,000 आदमी आए थे। इन सबके अलावा शाऊल के घराने का सेवक सीबा+ भी आया। वह हड़बड़ाता हुआ राजा से पहले ही यरदन के पास पहुँच गया था। सीबा अपने 15 बेटों और 20 दासों को साथ लेकर आया था। 18 वह* घाट उतरकर नदी के उस पार गया ताकि राजा के घराने को नदी पार करा सके और राजा उससे जो भी कहे वह करे। जब राजा यरदन पार करने ही वाला था तो गेरा के बेटे शिमी ने उसके सामने गिरकर 19 कहा, “मेरे मालिक, मेरा गुनाह माफ कर दे। जिस दिन तू यरूशलेम छोड़कर जा रहा था उस दिन मैंने तेरे साथ जो किया उसे भुला दे।+ उस बात को दिल पर मत ले। 20 तेरे दास को एहसास हो गया है कि उसने कितना बड़ा पाप किया है। तभी आज मैं यूसुफ के पूरे घराने में से सबसे पहले अपने मालिक राजा से मिलने आया हूँ।”

21 सरूयाह के बेटे अबीशै+ ने फौरन दाविद से कहा, “शिमी को तो मार डालना चाहिए क्योंकि उसने यहोवा के अभिषिक्‍त जन को शाप दिया था!”+ 22 मगर दाविद ने कहा, “सरूयाह के बेटो, इस मामले से तुम्हारा क्या लेना-देना?+ तुम क्यों मेरी मरज़ी के खिलाफ काम करना चाहते हो? आज मैं पूरे इसराएल का राजा हूँ, इसलिए क्या आज के दिन इसराएल में किसी को मार डालना सही होगा?” 23 फिर राजा ने शिमी से कहा, “तू मारा नहीं जाएगा।” और राजा ने उससे शपथ खायी।+

24 शाऊल का पोता मपीबोशेत+ भी राजा से मिलने आया। जिस दिन राजा शहर छोड़कर गया था तब से लेकर उसके सही-सलामत लौटने तक मपीबोशेत ने न अपने पैर धोए,* न अपनी मूँछें काटीं और न ही कपड़े धोए थे। 25 जब वह यरूशलेम में* राजा से मिलने गया तो राजा ने उससे पूछा, “मपीबोशेत, तू मेरे साथ क्यों नहीं आया था?” 26 उसने कहा, “मेरे मालिक राजा, मेरे सेवक+ ने मुझे धोखा दिया। तू जानता है कि मैं पैरों से लाचार हूँ+ इसलिए मैंने कहा, ‘मैं अपने गधे पर काठी कसता हूँ ताकि उस पर सवार होकर राजा के साथ-साथ जाऊँ।’ 27 मगर उसने मेरे बारे में मालिक से झूठ बोलकर मुझे बदनाम कर दिया।+ लेकिन मेरे मालिक राजा, तू सच्चे परमेश्‍वर के एक स्वर्गदूत जैसा है, इसलिए तुझे जो सही लगे वह कर। 28 तू चाहता तो मेरे पिता के पूरे घराने को मिटा सकता था। लेकिन तूने ऐसा नहीं किया बल्कि अपने इस दास को अपनी मेज़ से खाने का सम्मान दिया।+ इसलिए मेरा क्या हक बनता है कि मैं राजा की और दुहाई दूँ?”

29 लेकिन राजा ने उससे कहा, “बस, अब मुझे और कुछ नहीं सुनना। मैंने फैसला कर लिया है, तेरी ज़मीन पर तेरा और सीबा, दोनों का बराबर का हिस्सा होगा।”+ 30 मपीबोशेत ने राजा से कहा, “वह चाहे तो पूरी ज़मीन ले ले। मेरा मालिक राजा सही-सलामत महल लौट आया है, मेरे लिए यही बहुत है।”

31 गिलाद का रहनेवाला बरजिल्लै+ भी राजा को यरदन पार कराने रोगलीम से आया। 32 बरजिल्लै बहुत बूढ़ा था, उसकी उम्र 80 साल थी। वह एक अमीर आदमी था इसलिए जब राजा महनैम में ठहरा हुआ था तब बरजिल्लै ने उसकी खाने-पीने की ज़रूरतें पूरी कीं।+ 33 इसलिए राजा ने बरजिल्लै से कहा, “तू यरदन पार करके मेरे साथ यरूशलेम चल। तू मेरे साथ भोजन किया करना।”+ 34 मगर बरजिल्लै ने राजा से कहा, “मेरी ज़िंदगी के दिन ही कितने रह गए हैं कि मैं राजा के साथ यरूशलेम जाऊँ? 35 तेरा यह दास 80 साल का हो गया है।+ क्या अब मैं अच्छे-बुरे में फर्क कर सकता हूँ? क्या मैं खाने-पीने का मज़ा ले सकता हूँ? क्या मैं गायक-गायिकाओं के सुरीले गीत सुन सकता हूँ?+ तो फिर मैं इस उम्र में अपने मालिक राजा पर क्यों बोझ बनूँ? 36 मुझे राजा को यरदन तक लाने का जो सम्मान मिला है, यही मेरे लिए बहुत है। बदले में राजा मुझे इतना बड़ा इनाम क्यों दे? 37 अब मेहरबानी करके अपने सेवक को लौट जाने की इजाज़त दे ताकि मेरी मौत मेरे अपने शहर में हो जहाँ मेरे माँ-बाप की कब्र है।+ लेकिन मैं तेरे सेवक किमहाम को पेश करता हूँ।+ मेरा मालिक राजा इसे अपने साथ यरदन पार ले जाए और इसके साथ जो भी भला करना चाहे करे।”

38 राजा ने कहा, “ठीक है, किमहाम मेरे साथ नदी पार जाएगा और मैं उसके लिए वही करूँगा जो तू चाहता है। तू मुझसे जो भी कहे, मैं तेरे लिए करूँगा।” 39 इसके बाद सभी लोग यरदन पार करने लगे। राजा ने नदी पार करने से पहले बरजिल्लै को चूमा+ और उसे आशीर्वाद दिया। फिर बरजिल्लै अपने घर लौट गया। 40 जब राजा उस पार गिलगाल गया+ तो किमहाम भी उसके साथ गया। यहूदा के सभी लोगों ने और इसराएल के आधे लोगों ने राजा को यरदन पार कराया।+

41 फिर इसराएल के सभी आदमी राजा के पास आए और उससे कहने लगे, “हे राजा, यहूदा के हमारे भाई क्यों हमें बताए बिना चोरी से तुझे और तेरे घराने और तेरे सभी आदमियों को यरदन पार ले आए?”+ 42 जवाब में यहूदा के सभी आदमियों ने कहा, “क्योंकि राजा हमारा रिश्‍तेदार है।+ तुम क्यों गुस्सा हो रहे हो? क्या हमने राजा का दिया कुछ खाया है या हमें कुछ तोहफे दिए गए हैं?”

43 मगर इसराएल के लोगों ने यहूदा के लोगों से कहा, “इस राज्य के दस हिस्से हमारे हैं, इसलिए दाविद पर तुमसे ज़्यादा हमारा हक बनता है। तो फिर तुमने क्यों हमें तुच्छ समझा? क्या यह सही नहीं होता कि राजा को लाने के लिए पहले हम जाते?” फिर भी, इसराएल के आदमी यहूदा के आदमियों से बहस जीत न सके।*

20 बिन्यामीन गोत्र में शीबा नाम का एक आदमी था जो बड़ा फसादी था।+ वह बिकरी का बेटा था। शीबा ने नरसिंगा फूँककर+ यह ऐलान किया: “दाविद के साथ हमारा कोई साझा नहीं। यिशै के बेटे की विरासत उसी के पास रहे।+ इसराएलियो, तुम सब अपने-अपने देवता के पास* लौट जाओ!”+ 2 तब इसराएल के सब आदमी दाविद के पीछे चलना छोड़कर बिकरी के बेटे शीबा के पीछे चलने लगे।+ मगर यहूदा के आदमियों ने अपने राजा का साथ नहीं छोड़ा। वे यरदन से यरूशलेम तक उसके साथ ही रहे।+

3 जब राजा दाविद यरूशलेम में अपने महल वापस आया+ तो उसने उन दस उप-पत्नियों को एक अलग घर में रखा, जिन्हें वह महल की देखभाल के लिए छोड़ गया था।+ उसने उस घर पर पहरा लगा दिया। वह उन औरतों को खाना-पीना मुहैया कराता रहा, मगर उसने उनके साथ संबंध नहीं रखे।+ वे अपनी मौत तक उस घर में कैद रहीं और पति के रहते हुए भी उन्हें विधवाओं जैसी ज़िंदगी बितानी पड़ी।

4 अब राजा ने अमासा+ से कहा, “तीन दिन के अंदर यहूदा के आदमियों को मेरे सामने इकट्ठा कर। तू भी यहाँ हाज़िर होना।” 5 अमासा यहूदा के सभी आदमियों को इकट्ठा करने निकल गया, मगर वह तय समय के अंदर नहीं आया। 6 फिर दाविद ने अबीशै+ से कहा, “बिकरी का बेटा शीबा+ हमारे लिए अबशालोम से ज़्यादा खतरनाक साबित हो सकता है।+ इसलिए तू मेरे सेवकों* को लेकर जल्दी से शीबा का पीछा कर और उसे पकड़ ला ताकि वह किलेबंद शहरों में भागकर हमसे बच न जाए।” 7 तब योआब के आदमी+ और करेती और पलेती लोग+ और सारे वीर योद्धा उसके* पीछे चल दिए। वे सब बिकरी के बेटे शीबा का पीछा करने यरूशलेम से निकल पड़े। 8 जब वे गिबोन+ में बड़े पत्थर के पास पहुँचे तो अमासा+ उनसे मिलने आया। योआब उस वक्‍त सैनिक की पोशाक पहने हुए था और उसकी कमर पर तलवार बँधी हुई थी। जब उसने कदम बढ़ाए तो तलवार म्यान से निकलकर नीचे गिर पड़ी।

9 योआब ने अमासा से कहा, “कैसे हो मेरे भाई?” फिर योआब ने अपने दाएँ हाथ से अमासा की दाढ़ी पकड़ी मानो वह उसे चूमने जा रहा हो। 10 अमासा ने ध्यान नहीं दिया कि योआब के हाथ में तलवार है। योआब ने अमासा के पेट में तलवार भोंक दी+ और उसकी अंतड़ियाँ निकलकर ज़मीन पर गिर पड़ीं। योआब को दोबारा तलवार नहीं चलानी पड़ी, उसका एक ही वार काफी था। इसके बाद योआब और उसका भाई अबीशै, बिकरी के बेटे शीबा का पीछा करने आगे बढ़े।

11 योआब का एक जवान अमासा के पास खड़ा हो गया और कहने लगा, “जो-जो योआब की तरफ हैं और दाविद के लोग हैं, वे सब योआब के पीछे चलें!” 12 अमासा बीच सड़क पर खून से लथपथ छटपटा रहा था और जब सैनिक वहाँ से गुज़रते तो वे रुक जाते थे। यह देखकर वह जवान अमासा को रास्ते से हटाकर मैदान में ले गया। फिर उसने अमासा के ऊपर एक कपड़ा डाल दिया क्योंकि उसने देखा कि वहाँ से गुज़रनेवाला हर कोई वहाँ रुक जाता है। 13 जब उसने अमासा को सड़क से हटा दिया, तो सभी आदमी बिकरी के बेटे शीबा+ को पकड़ने योआब के पीछे चल दिए।

14 शीबा इसराएल के सब गोत्रों के इलाकों से गुज़रता हुआ बेत-माका के हाबिल शहर+ में घुस गया। बिकरी के खानदान के सभी लोग इकट्ठा हो गए और वे भी शीबा के पीछे-पीछे शहर के अंदर चले गए।

15 योआब और उसके आदमी* बेत-माका के हाबिल शहर आए और उन्होंने शहर को घेर लिया, जिसकी दीवारों के चारों तरफ सुरक्षा की एक ढलान थी। योआब और उसके आदमियों ने शहर पर हमला करने के लिए एक ढलान खड़ी की और शहरपनाह तोड़ने लगे। 16 तब उस शहर की एक बुद्धिमान औरत ने शहरपनाह के ऊपर से आवाज़ देकर कहा, “सैनिको सुनो, मेहरबानी करके योआब से कहो कि वह यहाँ आए। मैं उससे कुछ कहना चाहती हूँ।” 17 तब योआब उस औरत के पास गया और उस औरत ने कहा, “क्या तू योआब है?” उसने कहा, “हाँ।” औरत ने कहा, “तेरी दासी कुछ कहना चाहती है।” योआब ने कहा, “बोल, क्या कहना चाहती है।” 18 औरत ने कहा, “हमारे शहर के बारे में गुज़रे ज़माने में यह बात मशहूर थी कि ‘सलाह लेनी हो तो हाबिल जाओ,’ मामला सुलझ जाएगा। 19 मैं इसराएल के अमन-पसंद और विश्‍वासयोग्य लोगों की तरफ से बात कर रही हूँ। तू ऐसा शहर क्यों नाश करना चाहता है जो इसराएल में बहुत खास है? क्यों यहोवा की दी हुई विरासत मिटाना* चाहता है?”+ 20 योआब ने कहा, “मैं इस शहर को मिटाने, इसे नाश करने की बात सोच भी नहीं सकता। 21 मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं। दरअसल, शीबा+ नाम के आदमी ने, जो एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश+ का रहनेवाला और बिकरी का बेटा है, राजा दाविद से बगावत की है।* वह तुम्हारे शहर में घुस आया है। अगर तुम लोग उसे मेरे हवाले कर दो तो मैं शहर छोड़कर चला जाऊँगा।” तब औरत ने योआब से कहा, “ठीक है, उसका सिर काटकर दीवार के बाहर तेरे पास फेंक दिया जाएगा!”

22 उस बुद्धिमान औरत ने फौरन जाकर शहर के सब लोगों को यह बात बतायी। उन्होंने बिकरी के बेटे शीबा का सिर काट लिया और योआब के पास फेंक दिया। फिर योआब ने नरसिंगा फूँका और उसके सभी आदमी शहर छोड़कर चले गए और अपने-अपने घर लौट गए।+ और योआब राजा के पास यरूशलेम लौट आया।

23 योआब इसराएल की पूरी सेना का सेनापति था।+ यहोयादा+ का बेटा बनायाह,+ करेती और पलेती लोगों का अधिकारी था।+ 24 अदोराम+ जबरन मज़दूरी करनेवालों का अधिकारी था। अहीलूद का बेटा यहोशापात+ शाही इतिहासकार था। 25 शेवा राज-सचिव था और सादोक+ और अबियातार+ याजक थे। 26 याईर के खानदान का ईरा भी दाविद का एक खास मंत्री बना।

21 दाविद के दिनों में इसराएल में अकाल पड़ा+ और यह तीन साल तक रहा। जब दाविद ने यहोवा से सलाह की तो यहोवा ने कहा, “शाऊल और उसका घराना खून का दोषी है क्योंकि उसने गिबोनियों को मार डाला था।”+ 2 तब राजा ने गिबोनियों+ को बुलाया और उनसे बात की। (गिबोनी लोग इसराएली नहीं थे बल्कि बचे हुए एमोरी लोगों+ में से थे। इसराएलियों ने उन्हें ज़िंदा छोड़ देने की शपथ खायी थी,+ मगर शाऊल इसराएल और यहूदा के लोगों की खातिर जोश में आकर सभी गिबोनियों का कत्ल करने पर उतारू हो गया था।) 3 दाविद ने गिबोनियों से कहा, “बताओ मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ? जो पाप हुआ है उसके प्रायश्‍चित के लिए मैं क्या करूँ ताकि तुम यहोवा की विरासत के लिए दुआ करो कि उस पर आशीष हो?” 4 गिबोनियों ने कहा, “शाऊल और उसके घराने ने हमारे साथ जो किया है उसकी भरपाई सोने-चाँदी से नहीं हो सकती।+ और हमारे पास यह हक भी नहीं कि हम इसराएल में किसी को मार डालें।” तब दाविद ने कहा, “तुम जो भी कहो मैं तुम्हारे लिए करूँगा।” 5 उन्होंने कहा, “जिस आदमी ने हमें नाश कर दिया था और हमें मिटा देने की साज़िश की थी ताकि हम इसराएल देश में कहीं नज़र न आएँ+— 6 उसके वंशजों में से सात आदमियों को हमारे हवाले कर दे। हम उनकी लाशें यहोवा के सामने गिबा शहर+ में लटका देंगे+ जो यहोवा के चुने हुए जन शाऊल+ का शहर है।” तब राजा ने कहा, “मैं उनको तुम्हारे हवाले कर दूँगा।”

7 मगर राजा ने योनातान के बेटे और शाऊल के पोते मपीबोशेत पर रहम किया+ क्योंकि दाविद और योनातान ने यहोवा के सामने एक-दूसरे से शपथ खायी थी।+ 8 लेकिन उसने शाऊल के बेटे अरमोनी और मपीबोशेत को लिया, जो अय्या की बेटी रिस्पा+ से पैदा हुए थे। इन दोनों के अलावा, दाविद ने शाऊल की बेटी मीकल*+ के पाँच बेटों को लिया। मीकल के इन बेटों का पिता अदरीएल+ था, जो महोलाई बरजिल्लै का बेटा था। 9 राजा ने उन सातों आदमियों को गिबोनियों के हवाले कर दिया। गिबोनियों ने उन्हें मार डाला और उनकी लाशें पहाड़ पर ले जाकर यहोवा के सामने लटका दीं।+ इस तरह वे सातों एक-साथ मर गए। उन्हें कटाई के शुरूआती दिनों में, यानी जौ की कटाई की शुरूआत में मारा गया था। 10 फिर अय्या की बेटी रिस्पा+ ने टाट लिया और चट्टान पर बिछाकर बैठ गयी। वह कटाई की शुरूआत से लेकर तब तक बैठी रही जब तक आसमान से उन लाशों पर पानी न बरसा। रिस्पा ने न तो दिन के वक्‍त आकाश के पक्षियों को लाशों पर आने दिया और न ही रात के वक्‍त मैदान के जंगली जानवरों को पास फटकने दिया।

11 दाविद को बताया गया कि अय्या की बेटी यानी शाऊल की उप-पत्नी रिस्पा ने ऐसा-ऐसा किया है। 12 तब दाविद याबेश-गिलाद गया और वहाँ के अगुवों* से शाऊल और उसके बेटे योनातान की हड्डियाँ ले आया।+ पलिश्‍तियों ने जिस दिन शाऊल को गिलबो में मारा था उस दिन उन्होंने शाऊल और योनातान की लाशें बेतशान के चौक में लटका दी थीं। बाद में याबेश-गिलाद के अगुवे चुपके से जाकर बेतशान से उनकी लाशें अपने यहाँ ले आए थे।+ 13 जब दाविद शाऊल और योनातान की हड्डियाँ ले आया, तो उन सात आदमियों की हड्डियाँ भी इकट्ठी की गयीं जिन्हें मौत की सज़ा दी गयी थी।+ 14 फिर लोग शाऊल और योनातान की हड्डियाँ बिन्यामीन के इलाके के सेला शहर+ ले गए और वहाँ शाऊल के पिता कीश+ की कब्र में दफना दीं। उन्होंने वह सब किया जिसकी राजा ने उन्हें आज्ञा दी थी। इसके बाद परमेश्‍वर ने देश की खातिर की गयी उनकी बिनतियाँ सुनीं।+

15 एक बार फिर पलिश्‍तियों और इसराएलियों के बीच युद्ध हुआ।+ तब दाविद और उसके सेवकों ने जाकर पलिश्‍तियों से लड़ाई की। दाविद लड़ते-लड़ते पस्त हो गया। 16 पलिश्‍ती सेना में यिशबी-बनोब नाम का एक आदमी था, जो रपाई+ का वंशज था। उसके ताँबे के भाले का वज़न 300 शेकेल* था+ और उसके पास एक नयी तलवार थी। यिशबी-बनोब ने दाविद को मार डालने की कोशिश की। 17 मगर तभी सरूयाह का बेटा अबीशै+ दाविद की मदद के लिए आ गया+ और उसने पलिश्‍ती पर वार करके उसे मार डाला। तब दाविद के आदमियों ने शपथ खाकर कहा: “हम तुझे फिर कभी अपने साथ युद्ध में नहीं आने देंगे।+ ऐसा न हो कि इसराएल का दीया बुझ जाए!”+

18 इसके बाद, पलिश्‍तियों और इसराएलियों के बीच फिर से युद्ध छिड़ गया।+ गोब में हुए इस युद्ध में हूशाई सिब्बकै+ ने रपाई+ के एक और वंशज सप को मार डाला।

19 पलिश्‍तियों और इसराएलियों के बीच एक बार फिर गोब में लड़ाई छिड़ गयी।+ इस बार बेतलेहेम के रहनेवाले यार-योरगीम के बेटे एल्हानान ने गत के रहनेवाले गोलियात को मार डाला। गोलियात के भाले का डंडा जुलाहे के लट्ठे जितना भारी था।+

20 गत में एक बार फिर युद्ध छिड़ा। पलिश्‍ती सेना में एक आदमी था जो बहुत ऊँची कद-काठी का था। उसके हाथों और पैरों में छ:-छ: उँगलियाँ थीं यानी कुल मिलाकर उसकी 24 उँगलियाँ थीं। वह भी रपाई का वंशज था।+ 21 वह इसराएल को लगातार ललकारता था।+ इसलिए योनातान ने, जो दाविद के भाई शिमी+ का बेटा था, उसे मार डाला।

22 रपाई के ये चारों वंशज गत में रहते थे और वे दाविद और उसके सेवकों के हाथों मारे गए।+

22 यह गीत दाविद ने यहोवा के लिए तब गाया+ जब यहोवा ने उसे सभी दुश्‍मनों से और शाऊल के हाथ से छुड़ाया।+ 2 दाविद ने कहा,

“यहोवा मेरे लिए बड़ी चट्टान और मज़बूत गढ़ है,+ वही मेरा छुड़ानेवाला है।+

 3 मेरा परमेश्‍वर मेरी चट्टान है+ जिसकी मैं पनाह लेता हूँ,

वह मेरी ढाल+ और मेरा उद्धार* का सींग* है, मेरा ऊँचा गढ़ है,+

वह मेरे लिए ऐसी जगह है जहाँ मैं भागकर जा सकता हूँ,+ वह मेरा उद्धारकर्ता है।+

तू ही मुझे ज़ुल्म से बचाता है।

 4 मैं यहोवा को पुकारता हूँ जो तारीफ के काबिल है

और मुझे दुश्‍मनों से बचाया जाएगा।

 5 मौत की लहरों ने मुझे चारों तरफ से आ घेरा,+

निकम्मे आदमियों ने अचानक आनेवाली बाढ़ की तरह मुझे डरा दिया।+

 6 कब्र के रस्सों ने मुझे घेर लिया,+

मेरे सामने मौत के फंदे बिछाए गए।+

 7 मुसीबत में मैंने यहोवा को पुकारा,+

अपने परमेश्‍वर को मैं पुकारता रहा।

तब अपने मंदिर से उसने मेरी सुनी,

मेरी मदद की पुकार उसके कानों तक पहुँची।+

 8 धरती काँपने लगी, बुरी तरह डोलने लगी,+

आकाश की नींव हिल गयी,+

उसमें भयानक हलचल हुई क्योंकि उसका क्रोध भड़क उठा था।+

 9 उसके नथनों से धुआँ उठने लगा,

मुँह से भस्म करनेवाली आग निकलने लगी,+

उसके पास से दहकते अंगारे बरसने लगे।

10 नीचे उतरते वक्‍त उसने आसमान झुका दिया,+

काली घटाएँ उसके पैरों तले आ गयीं।+

11 वह एक करूब पर सवार होकर+ उड़ता हुआ आया।

वह एक स्वर्गदूत*+ के पंखों पर दिखायी दिया।

12 फिर उसने काली घनघोर घटाओं को,

उनके अंधकार को अपना मंडप बनाया।+

13 उसके सामने ऐसा तेज था कि धधकते अंगारे निकल रहे थे।

14 फिर स्वर्ग से यहोवा गरजने लगा,+

परम-प्रधान ने अपनी बुलंद आवाज़ सुनायी।+

15 उसने तीर चलाकर+ उन्हें तितर-बितर कर दिया,

बिजली चमकाकर उनमें खलबली मचा दी।+

16 जब यहोवा ने डाँट लगायी और उसके नथनों से फुंकार निकली,+

तो समुंदर का तल नज़र आने लगा,+

धरती की बुनियाद तक दिखने लगी।

17 उसने ऊपर से हाथ बढ़ाकर मुझे थाम लिया,

गहरे पानी से खींचकर बाहर निकाल लिया।+

18 उसने मुझे ताकतवर दुश्‍मन से छुड़ाया,+

उन लोगों से जो मुझसे नफरत करते थे, मुझसे ज़्यादा ताकतवर थे।

19 वे मेरी मुसीबत के दिन मुझ पर टूट पड़े,+

लेकिन यहोवा मेरा सहारा था।

20 वह मुझे निकालकर एक महफूज़* जगह ले आया,+

उसने मुझे दुश्‍मनों से छुड़ाया क्योंकि वह मुझसे खुश था।+

21 यहोवा मेरी नेकी के मुताबिक मुझे फल देता है,+

मेरी बेगुनाही* के मुताबिक इनाम देता है।+

22 क्योंकि मैं हमेशा यहोवा की राहों पर चलता रहा,

मैंने अपने परमेश्‍वर से दूर जाने की दुष्टता नहीं की।

23 उसके सभी न्याय-सिद्धांत+ मेरे सामने हैं,

मैं कभी उसकी विधियों से हटकर दूर नहीं जाऊँगा।+

24 मैं उसकी नज़रों में निर्दोष बना रहूँगा,+

मैं हमेशा खुद को बुराई से दूर रखूँगा।+

25 यहोवा मेरी नेकी के मुताबिक मुझे फल दे,+

मेरी बेगुनाही के मुताबिक इनाम दे जो उसने अपनी आँखों से देखी है।+

26 जो वफादार रहता है उसके साथ तू वफादारी निभाता है+

जो सीधा है उसके साथ तू सीधाई से पेश आता है,+

27 जो खुद को शुद्ध बनाए रखता है उसे तू दिखाएगा कि तू शुद्ध है,+

मगर जो टेढ़ी चाल चलता है उसके साथ तू होशियारी* से काम लेता है।+

28 तू नम्र लोगों को बचाता है,+

लेकिन मगरूरों से तू अपनी आँखें फेर लेता है, उन्हें नीचे गिराता है।+

29 हे यहोवा, तू मेरा दीपक है,+

यहोवा ही मेरे अँधेरे को उजाला करता है।+

30 तेरी मदद से मैं लुटेरे-दल का मुकाबला कर सकता हूँ,

परमेश्‍वर की ताकत से मैं दीवार लाँघ सकता हूँ।+

31 सच्चे परमेश्‍वर का काम खरा* है,+

यहोवा का वचन पूरी तरह शुद्ध है।+

वह उसकी पनाह लेनेवालों के लिए एक ढाल है।+

32 यहोवा को छोड़ और कौन परमेश्‍वर है?+

हमारे परमेश्‍वर के सिवा और कौन चट्टान है?+

33 सच्चा परमेश्‍वर मेरा मज़बूत किला है,+

वह मेरे लिए सीधी* राह निकालेगा।+

34 वह मेरे पैरों को हिरन के पैरों जैसा बनाता है,

मुझे ऊँची-ऊँची जगहों पर खड़ा करता है।+

35 वह मेरे हाथों को युद्ध का कौशल सिखाता है,

मेरे बाज़ू ताँबे की कमान मोड़ सकते हैं।

36 तू मुझे अपनी उद्धार की ढाल देता है,

तेरी नम्रता मुझे ऊँचा उठाती है।+

37 तू मेरे कदमों के लिए रास्ता चौड़ा करता है,

मेरे पैर* नहीं फिसलेंगे।+

38 मैं अपने दुश्‍मनों का पीछा करूँगा और उन्हें नाश कर दूँगा,

मैं उन्हें मिटाकर ही लौटूँगा।

39 मैं उन्हें मिटा दूँगा, उन्हें कुचल दूँगा ताकि वे उठ न सकें,+

वे मेरे पैरों तले गिर जाएँगे।

40 तू मुझे ताकत देकर युद्ध के काबिल बनाएगा,+

मेरे दुश्‍मनों को मेरे कदमों के नीचे कर देगा।+

41 तू मेरे दुश्‍मनों को मुझसे दूर भागने पर मजबूर करेगा,*+

मुझसे नफरत करनेवालों का मैं अंत कर दूँगा।+

42 वे मदद के लिए पुकारते हैं, मगर उन्हें बचानेवाला कोई नहीं,

वे यहोवा को भी पुकारते हैं, मगर वह उन्हें जवाब नहीं देता।+

43 मैं उन्हें कूटकर ज़मीन की धूल बना दूँगा,

उन्हें चूर-चूर कर दूँगा और रौंदकर गलियों का कीचड़ बना दूँगा।

44 तू मुझे मेरे अपने लोगों के विरोध से भी बचाएगा,+

तू मेरी हिफाज़त करेगा ताकि मैं राष्ट्रों का मुखिया बनूँ,+

जिन लोगों को मैं जानता तक नहीं वे मेरी सेवा करेंगे।+

45 परदेसी डरते-काँपते मेरे सामने आएँगे,+

वे मेरे बारे में जो सुनते हैं, वह उन्हें उभारेगा कि मेरी आज्ञा मानें।

46 परदेसी हिम्मत हार जाएँगे,*

अपने किलों से थरथराते हुए बाहर निकलेंगे।

47 यहोवा जीवित परमेश्‍वर है! मेरी चट्टान की तारीफ हो!+

परमेश्‍वर जो मेरे उद्धार की चट्टान है, उसकी बड़ाई हो!+

48 सच्चा परमेश्‍वर मेरी तरफ से बदला लेता है,+

देश-देश के लोगों को मेरे अधीन कर देता है,+

49 वह मुझे दुश्‍मनों से छुड़ाता है।

तू मुझे मेरे हमलावरों से ऊँचा उठाता है,+

मुझे ज़ुल्मी के हाथ से बचाता है।+

50 इसीलिए हे यहोवा, मैं राष्ट्रों के बीच तेरा शुक्रिया अदा करूँगा,+

तेरे नाम की तारीफ में गीत गाऊँगा:*+

51 परमेश्‍वर शानदार तरीके से अपने राजा का उद्धार करता है,*+

वह अपने अभिषिक्‍त जन से,

दाविद और उसके वंश से सदा प्यार* करता है।”+

23 दाविद ने आखिर में जो शब्द कहे वे ये हैं:+

“ये बोल यिशै के बेटे दाविद+ के हैं,

उस आदमी के, जिसे ऊँचा उठाया गया,+

जो याकूब के परमेश्‍वर का अभिषिक्‍त जन+

और इसराएल में मधुर गायक* है।+

 2 यहोवा की पवित्र शक्‍ति ने मेरे ज़रिए बात की।+

उसका वचन मेरी ज़बान पर था।+

 3 इसराएल के परमेश्‍वर ने,

इसराएल की चट्टान+ ने मुझसे कहा,

‘जब इंसानों पर राज करनेवाला नेक होता है+

परमेश्‍वर का डर मानकर राज करता है,+

 4 तो उसका राज सुबह के उजाले जैसा होता है,+

जब सूरज खुले आसमान में चमकता है।

उसका राज बारिश के बाद निकलनेवाली धूप जैसा होता है,

जिससे ज़मीन पर हरी-हरी घास उग आती है।’+

 5 क्या मेरा घराना परमेश्‍वर की नज़र में बिलकुल ऐसा ही नहीं?

उसने मेरे साथ सदा का करार किया है,+

जो बड़े कायदे से तैयार किया गया है और कभी नहीं तोड़ा जाएगा।

यह करार मुझे पूरी तरह उद्धार दिलाएगा और सारी खुशियाँ देगा,

क्या यही वजह नहीं कि वह मेरे घराने को बढ़ाता है?+

 6 मगर सभी निकम्मे आदमियों को कँटीली झाड़ियों की तरह फेंक दिया जाता है।+

उन्हें हाथों से नहीं उठाया जा सकता।

 7 उन्हें उठाने के लिए लोहे का औज़ार और भाला होना ज़रूरी है,

उन्हें उनकी जगह पर आग से पूरी तरह जला देना चाहिए।”

8 दाविद के वीर योद्धाओं के नाम ये हैं:+ तहक-मोनी योशेब-बशेबेत जो तीन सूरमाओं में मुखिया था।+ एक बार उसने अपने भाले से 800 से ज़्यादा दुश्‍मनों को मार गिराया था। 9 अगला सूरमा था एलिआज़र,+ जो दोदो+ का बेटा और अहोही का पोता था। एक बार जब पलिश्‍ती इसराएल से युद्ध करने आए, तो दाविद के तीन सूरमा उसके साथ थे और इन्होंने पलिश्‍तियों को ललकारा था। एलिआज़र उनमें से एक था। लड़ाई के वक्‍त इसराएली सैनिक भाग गए, 10 मगर एलिआज़र मैदान में डटा रहा। वह पलिश्‍तियों को तब तक मार गिराता रहा जब तक कि उसका हाथ थक नहीं गया और उसकी मुट्ठी तलवार पर जम न गयी।+ उस दिन यहोवा ने इसराएलियों को शानदार जीत दिलायी।*+ फिर मारे गए लोगों की चीज़ें लूटने के लिए इसराएली सैनिक एलिआज़र के पास लौट आए।

11 अगला सूरमा था शम्माह। वह हरारी आगी का बेटा था। एक बार पलिश्‍ती इसराएलियों से युद्ध करने लही में इकट्ठा हुए, जहाँ मसूर का एक खेत था। लोग पलिश्‍तियों को देखकर भाग गए, 12 मगर शम्माह खेत के बीचों-बीच खड़ा उसकी रक्षा करता रहा और पलिश्‍तियों को मार गिराता रहा। इसलिए यहोवा ने इसराएलियों को बड़ी जीत दिलायी।*+

13 दाविद की सेना के 30 मुखियाओं में से तीन आदमी कटाई के दिनों में अदुल्लाम की गुफा में गए जहाँ दाविद था।+ पलिश्‍तियों की एक टुकड़ी* रपाई घाटी में छावनी डाले हुई थी।+ 14 उस वक्‍त दाविद एक महफूज़ जगह पर था+ और पलिश्‍तियों की एक चौकी बेतलेहेम में थी। 15 तब दाविद ने कहा, “काश! मुझे बेतलेहेम के फाटकवाले कुंड से थोड़ा पानी पीने को मिल जाता!” 16 तब उसके तीन सूरमा पलिश्‍ती सेना को चीरकर उनकी छावनी में घुस गए और उन्होंने बेतलेहेम के फाटकवाले कुंड से पानी निकाला और दाविद के पास ले आए। मगर दाविद ने पानी पीने से इनकार कर दिया और यहोवा के सामने उँडेल दिया।+ 17 उसने कहा, “हे यहोवा, मैं यह पानी पीने की सोच भी नहीं सकता। मैं इन आदमियों का खून कैसे पी सकता हूँ+ जिन्होंने अपनी जान जोखिम में डाल दी थी?” इसीलिए दाविद ने वह पानी पीने से इनकार कर दिया। उसके तीन सूरमाओं ने ये बड़े-बड़े काम किए थे।

18 अबीशै,+ जो योआब का भाई और सरूयाह का बेटा था,+ तीन और योद्धाओं का अधिकारी था। उसने अपने भाले से 300 से भी ज़्यादा दुश्‍मनों को मार गिराया था। वह भी उन तीन योद्धाओं जितना मशहूर था।+ 19 हालाँकि वह उन तीन योद्धाओं से ज़्यादा कुशल था और उनका मुखिया था, फिर भी वह पहले तीन सूरमाओं के बराबर नहीं पहुँचा।

20 यहोयादा का बेटा बनायाह+ भी एक दिलेर सैनिक था।* उसने कबसेल+ में कई बहादुरी के काम किए थे। उसने मोआब के रहनेवाले अरीएल के दो बेटों को मार गिराया और एक दिन जब बहुत बर्फ पड़ रही थी तो उसने एक सूखे हौद के अंदर जाकर एक शेर को मार डाला।+ 21 उसने एक मिस्री आदमी को भी मार डाला था जो बहुत ही ऊँची कद-काठी का था। उस मिस्री के हाथ में भाला था जबकि बनायाह के हाथ में सिर्फ एक डंडा था। बनायाह ने उसका भाला छीन लिया और उसी के भाले से उसे मार डाला। 22 यहोयादा के बेटे बनायाह ने ये बड़े-बड़े काम किए थे। वह उन तीन सूरमाओं जितना मशहूर था। 23 हालाँकि वह तीस योद्धाओं से ज़्यादा कुशल था, फिर भी वह उन तीन सूरमाओं के बराबर नहीं पहुँचा। लेकिन दाविद ने बनायाह को ही अपने अंगरक्षकों का अधिकारी ठहराया।

24 ये आदमी दाविद के तीस वीर योद्धाओं में से थे: योआब का भाई असाहेल,+ बेतलेहेम के रहनेवाले दोदो का बेटा एल्हानान,+ 25 हरोद का रहनेवाला शम्माह, हरोद का रहनेवाला एलीका, 26 पालेती हेलेस,+ तकोआ के रहनेवाले इक्केश का बेटा ईरा,+ 27 अनातोत+ का रहनेवाला अबीएजेर,+ हूशाई मबुन्‍ने, 28 अहोही के घराने का ज़लमोन, नतोपा का रहनेवाला महरै,+ 29 नतोपा के रहनेवाले बानाह का बेटा हेलेब, बिन्यामीन गोत्र के गिबा के रहनेवाले रीबै का बेटा इत्तै, 30 पिरातोन का रहनेवाला बनायाह,+ गाश+ की घाटियों* का रहनेवाला हिद्दै, 31 बेत-अराबा का रहनेवाला अबी-अल्बोन, बरहूमी का रहनेवाला अज़मावेत, 32 शालबोनी एलीयाबा, याशेन के बेटे, योनातान, 33 हरारी शम्माह, हरारी शारार का बेटा अहीआम, 34 एक माकाती आदमी के बेटे अहसबै का बेटा एलीपेलेत, गीलो के रहनेवाले अहीतोपेल+ का बेटा एलीआम, 35 करमेल का रहनेवाला हेसरो, अरब शहर का रहनेवाला पारै, 36 सोबा के रहनेवाले नातान का बेटा यिगाल, गाद गोत्र का बानी, 37 अम्मोनी सेलेक, बएरोत का रहनेवाला नहरै जो सरूयाह के बेटे योआब का हथियार ढोनेवाला सैनिक था, 38 यित्री ईरा, यित्री गारेब+ 39 और हित्ती उरियाह।+ दाविद के वीर योद्धाओं की कुल गिनती 37 थी।

24 यहोवा का क्रोध इसराएल पर फिर से भड़क उठा+ जब किसी ने दाविद को इसराएलियों के खिलाफ काम करने के लिए उकसाया और* कहा, “जा, इसराएल और यहूदा के लोगों की गिनती ले।”+ 2 इसलिए राजा दाविद ने अपने सेनापति योआब+ से, जो उसके साथ था, कहा, “दान से बेरशेबा+ तक इसराएल के सब गोत्रों में जा और लोगों का नाम लिख। मैं लोगों की गिनती जानना चाहता हूँ।” 3 मगर योआब ने राजा से कहा, “मालिक, तेरा परमेश्‍वर यहोवा लोगों की गिनती 100 गुना बढ़ाए और तू अपनी आँखों से उनकी बढ़ती देखे। मगर मेरा मालिक राजा यह काम क्यों करना चाहता है?”

4 लेकिन दाविद नहीं माना और योआब और सभी सेनापतियों को राजा की बात के आगे झुकना पड़ा। इसलिए वे इसराएल के लोगों की नाम-लिखाई के लिए राजा के सामने से चले गए।+ 5 उन्होंने यरदन पार की और अरोएर शहर+ में डेरा डाला और घाटी के बीचवाले शहर के दायीं तरफ* डेरा डाला। फिर वे गादियों के इलाके और याजेर+ की तरफ बढ़े। 6 वहाँ से वे गिलाद+ और तहतीम-होदशी देश गए और आगे बढ़ते हुए दान-यान गए और फिर घूमकर सीदोन+ गए। 7 इसके बाद वे सोर के किले+ में और हिव्वियों+ और कनानियों के सभी शहरों में गए। सबसे आखिर में वे बेरशेबा+ गए जो यहूदा के नेगेब में था।+ 8 इस तरह उन्होंने पूरे देश का दौरा किया और नौ महीने 20 दिन बीतने पर यरूशलेम लौटे। 9 फिर योआब ने राजा को उन लोगों की गिनती बतायी जिनका नाम लिखा गया था। इसराएल में तलवारों से लैस सैनिक 8,00,000 थे और यहूदा के सैनिक 5,00,000.+

10 मगर लोगों की गिनती लेने के बाद दाविद का मन* उसे बुरी तरह कचोटने लगा।+ दाविद ने यहोवा से कहा, “मैंने लोगों की गिनती लेकर बहुत बड़ा पाप किया है।+ हे यहोवा, दया करके अपने सेवक को माफ कर दे।+ मैंने बड़ी मूर्खता का काम किया है।”+ 11 जब सुबह दाविद उठा तो यहोवा का संदेश भविष्यवक्‍ता गाद+ के पास पहुँचा, जो दाविद का दर्शी था। 12 परमेश्‍वर ने उससे कहा, “दाविद के पास जा और उससे कह, ‘यहोवा तुझसे कहता है, “मैं तुझे तीन तरह के कहर बताता हूँ। तू चुन ले कि मैं तुझ पर कौन-सा कहर ढाऊँ।”’”+ 13 तब गाद ने दाविद के पास जाकर कहा, “तू क्या चाहता है, तेरे देश पर सात साल तक अकाल पड़े+ या तीन महीने तक तेरे दुश्‍मन तेरा पीछा करते रहें और तू उनसे भागता फिरे+ या तीन दिन तक तेरे देश में महामारी फैले?+ अच्छी तरह सोचकर बता कि मैं अपने भेजनेवाले को क्या जवाब दूँ।” 14 दाविद ने गाद से कहा, “मैं बड़े संकट में हूँ। अच्छा है कि हम यहोवा ही के हाथ पड़ जाएँ+ क्योंकि वह बड़ा दयालु है।+ मगर मुझे इंसान के हाथ न पड़ने दे।”+

15 फिर यहोवा ने इसराएल पर महामारी का कहर ढाया,+ जो सुबह से लेकर तय समय तक फैली रही। इस महामारी की वजह से दान से लेकर बेरशेबा+ तक 70,000 लोग मारे गए।+ 16 जब स्वर्गदूत ने यरूशलेम के लोगों का नाश करने के लिए अपना हाथ बढ़ाया तो यहोवा को इस तबाही पर बड़ा दुख हुआ*+ और उसने लोगों का नाश करनेवाले स्वर्गदूत से कहा, “बस, अब रुक जा! अपना हाथ रोक ले।” उस वक्‍त यहोवा का स्वर्गदूत यबूसी+ अरौना के खलिहान+ के बिलकुल पास था।

17 जब दाविद ने उस स्वर्गदूत को देखा जो लोगों को घात कर रहा था, तो उसने यहोवा से कहा, “पाप तो मैंने किया है, गलती मेरी है। फिर तू इन लोगों को क्यों मार रहा है? इन भेड़ों+ का क्या कसूर है? दया करके इन्हें छोड़ दे और मुझे और मेरे पिता के घराने को सज़ा दे।”+

18 इसलिए उस दिन गाद दाविद के पास आया और उससे कहा, “ऊपर जा और यबूसी अरौना के खलिहान में यहोवा के लिए एक वेदी खड़ी कर।”+ 19 तब दाविद ऊपर गया, ठीक जैसे यहोवा ने गाद के ज़रिए उसे आज्ञा दी थी। 20 जब अरौना ने राजा और उसके सेवकों को अपनी तरफ आते देखा, तो वह फौरन उनके पास गया और राजा के सामने मुँह के बल ज़मीन पर गिरकर उसे प्रणाम किया। 21 फिर अरौना ने पूछा, “मैं अपने मालिक राजा की क्या सेवा कर सकता हूँ?” दाविद ने कहा, “मैं तुझसे यह खलिहान खरीदने आया हूँ क्योंकि मैं यहाँ यहोवा के लिए एक वेदी बनाना चाहता हूँ ताकि लोगों पर जो कहर आ पड़ा है वह बंद हो जाए।”+ 22 अरौना ने कहा, “मेरा मालिक राजा यह खलिहान ले ले और बलिदान के लिए भी उसे जो कुछ अच्छा लगे* वह ले ले। देख, यहाँ होम-बलि के लिए बैल हैं और जलाने की लकड़ी के लिए दाँवने की पटिया और जुआ भी है। 23 अरौना ये सब राजा को देता है।” इसके बाद अरौना ने राजा से कहा, “तेरा परमेश्‍वर यहोवा तुझ पर कृपा करे।”

24 मगर राजा ने अरौना से कहा, “नहीं, मैं ऐसे नहीं लूँगा। मैं दाम देकर तुझसे यह खरीदूँगा। मैं अपने परमेश्‍वर यहोवा को ऐसी होम-बलियाँ नहीं चढ़ाऊँगा जिनकी मैंने कोई कीमत न चुकायी हो।” तब दाविद ने 50 शेकेल* चाँदी में खलिहान और बैल खरीद लिए।+ 25 फिर दाविद ने उस जगह यहोवा के लिए एक वेदी खड़ी की+ और उस पर होम-बलियाँ और शांति-बलियाँ चढ़ायीं। तब यहोवा ने देश की खातिर की गयी बिनती सुनी+ और इसराएल से महामारी दूर हो गयी।

या “मारकर।”

या “मनभावने।”

या शायद, “पूरे बितरोन से होकर।”

शा., “यहूदा के कुत्ते का सिर।”

या “के लिए अपने अटल प्यार का सबूत देता रहा हूँ।”

यहाँ शायद ऐसे लाचार आदमियों की बात की गयी है जिन्हें ऐसे काम में लगाया जाता है जो औरतें करती हैं।

या “दिलासे की रोटी।”

शा., “शाऊल के बेटे।”

शा., “उसके हाथ ढीले पड़ गए।”

या “लँगड़ा।”

शा., “हम तेरा हाड़-माँस हैं।”

या शायद, “उसने उस जगह का नाम दाविदपुर रखा।”

या “मिल्लो।” इस इब्रानी शब्द का मतलब “भरना” है।

मतलब “टूट पड़नेवाला मालिक।”

या शायद, “के बीच।”

या “नाराज़।”

मतलब “उज्जाह पर भड़क उठा।”

शा., “कमर में कसे हुए।”

शा., “तू अपने पुरखों के साथ सो जाएगा।”

शा., “बीज।”

शा., “जो तेरे अंदरूनी अंगों से निकलेगा उसको।”

शा., “इंसानों की छड़ी से उसे सुधारूँगा।”

या “अटल प्यार।”

या “हिदायत।”

या “उद्धार दिलाया।”

या “उद्धार दिलाया।”

शा., “याजक।”

या “अटल प्यार।”

या “अटल प्यार।”

या “लँगड़ा।”

या “अटल प्यार।”

या शायद, “मेरी।”

या “अटल प्यार।”

या “तोब के आदमियों।”

या “तोब के आदमी।”

शा., “के हाथ।”

यानी फरात नदी।

यानी वसंत में।

या “एक दिन देर दोपहर को।”

शायद माहवारी की अशुद्धता।

शा., “अपने पैर धो।”

या “राजा का हिस्सा,” यानी वह हिस्सा जो मेज़बान अपने खास मेहमान को भेजता था।

या “तेरे संगी-साथी।”

यह नाम एक इब्रानी शब्द से निकला है जिसका मतलब “शांति” है।

मतलब “याह का प्यारा।”

या “राजनगर।”

यहाँ शायद शहर के पानी के सोतों की बात की गयी है।

शा., “वह मेरे नाम से कहलाए।”

एक तोड़ा 34.2 किलो के बराबर था। अति. ख14 देखें।

या “दिलासे की रोटी।”

या “दिलासे की रोटी।”

या “दिलासे की रोटी।”

या “ज़रीदार।”

या “के मामले में दिलासा पा चुका था।”

यानी वंशजों के लिए आखिरी आशा।

या “तूने जो कहा है उससे कोई भी दाएँ या बाएँ नहीं जा सकता।”

यह शायद राजमहल में रखा गया बाट था या एक “शाही” शेकेल था जो आम शेकेल से अलग था।

करीब 2.3 किलो। अति. ख14 देखें।

या शायद, “40 साल।”

या “की उपासना करूँगा।”

शा., “शांति से जा।”

या “की चढ़ाई।”

या “राज़दार।”

खासकर अंजीर और शायद खजूर भी।

या “पोता।”

या “राज़दार।”

या “तेरा अटल प्यार?”

या “ऐसी थी मानो कोई सच्चे परमेश्‍वर का वचन पूछ रहा हो।”

या “थका-माँदा होगा और उसके दोनों हाथ कमज़ोर होंगे।”

या “गड्‌ढे; तंग घाटी।”

या “आज्ञा दी थी।”

या शायद, “रेगिस्तानी मैदान।”

या “अपना गला घोंट लिया।”

शा., “गाय की दही।”

शा., “मेरी हथेलियों पर चाँदी के 1,000 टुकड़े तौलकर दिए जाते।”

या शायद, “नुकीले छड़; भाले।” शा., “लाठियाँ।”

शा., “के खिलाफ हाथ उठानेवालों।”

या “उद्धार।”

शा., “तुम मेरा हाड़-माँस हो।”

या शायद, “वे।”

यहाँ इस्तेमाल हुए इब्रानी शब्दों का यह मतलब भी हो सकता है कि उसने पैरों के नाखून नहीं काटे थे।

या शायद, “से।”

या “यहूदा के आदमियों ने इसराएल के आदमियों से ज़्यादा कड़ी बातें कहीं।”

या शायद, “तंबू को।”

शा., “अपने मालिक के सेवकों।”

मुमकिन है कि यह अबीशै था।

शा., “वे।”

शा., “निगल जाना।”

शा., “के खिलाफ हाथ उठाया है।”

या शायद, “मेरब।”

या शायद, “ज़मींदारों।”

करीब 3.42 किलो। अति. ख14 देखें।

या “मेरे ताकतवर उद्धारकर्ता।”

शब्दावली देखें।

या “हवा।”

या “खुली।”

शा., “शुद्धता।”

या शायद, “नासमझी।”

या “परिपूर्ण।”

या “परिपूर्ण।”

या “टखने।”

या “तू मुझे मेरे दुश्‍मनों की पीठ दे देगा।”

या “मुरझा जाएँगे।”

या “संगीत बजाऊँगा।”

या “परमेश्‍वर अपने राजा के लिए बड़ी-बड़ी जीत दिलाता है।”

या “अटल प्यार।”

या “प्यारा जन।”

या “उद्धार दिलाया।”

या “उद्धार दिलाया।”

या “बस्ती।”

शा., “एक वीर का बेटा था।”

शब्दावली देखें।

या “जब दाविद उकसाया गया था और उसने।”

या “के दक्षिण में।”

या “ज़मीर।”

या “पछतावा महसूस हुआ।”

शा., “जो उसकी नज़रों में अच्छा है।”

एक शेकेल का वज़न 11.4 ग्रा. था। अति. ख14 देखें।

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