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  • पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद (अध्ययन बाइबल)
पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद (अध्ययन बाइबल)
1 शमूएल

पहला शमूएल

1 एप्रैम+ के पहाड़ी प्रदेश के रामातैम-सोपीम शहर+ में एक* आदमी रहता था जिसका नाम एलकाना+ था। यह एप्रैमी आदमी यरोहाम का बेटा था और यरोहाम एलीहू का, एलीहू तोहू का और तोहू जूफ का बेटा था। 2 एलकाना की दो पत्नियाँ थीं, एक का नाम हन्‍ना था और दूसरी का पनिन्‍ना। पनिन्‍ना के बच्चे थे, मगर हन्‍ना का कोई बच्चा नहीं था। 3 एलकाना हर साल सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा की उपासना* करने और उसके लिए बलिदान चढ़ाने अपने शहर से शीलो जाया करता था।+ शीलो में एली के दो बेटे, होप्नी और फिनेहास+ याजकों के नाते यहोवा की सेवा करते थे।+

4 एक बार जब एलकाना ने परमेश्‍वर को बलिदान चढ़ाया तो उसने अपनी पत्नी पनिन्‍ना को और उसके सभी बेटे-बेटियों को बलिदान में से हिस्से दिए,+ 5 मगर उसने हन्‍ना को एक खास हिस्सा दिया क्योंकि वह उसी से प्यार करता था। यहोवा ने हन्‍ना की कोख बंद कर दी थी। 6 हन्‍ना की सौतन उसे दुख देने के लिए उस पर लगातार ताने कसती थी क्योंकि यहोवा ने उसकी कोख बंद कर दी थी। 7 हर साल जब वे यहोवा के भवन जाते+ तब उसकी सौतन उसके साथ ऐसा ही बरताव करती थी। वह हन्‍ना को इतना ताना कसती कि हन्‍ना रोने लगती और कुछ खाती-पीती नहीं थी। 8 उसके पति एलकाना ने उससे कहा, “हन्‍ना, तू क्यों रो रही है? कुछ खाती क्यों नहीं? क्यों इतनी उदास है?* क्या मैं तेरे लिए दस बेटों से भी बढ़कर नहीं?”

9 जब शीलो में वे खा-पी चुके तो हन्‍ना उठी और वहाँ गयी जहाँ याजक एली था। वह यहोवा के मंदिर*+ की दहलीज़ के पास कुर्सी पर बैठा था। 10 हन्‍ना कड़वाहट से भर गयी थी, वह फूट-फूटकर रोने लगी और यहोवा से प्रार्थना करने लगी।+ 11 उसने यह मन्‍नत मानी, “हे सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा, अगर तू अपनी दासी की हालत पर नज़र करे और मुझ पर ध्यान देकर मेरी बिनती सुने और अपनी दासी को एक बेटा दे,+ तो हे यहोवा, मैं उसे तुझे दूँगी ताकि वह ज़िंदगी-भर तेरी सेवा करे। उसके सिर पर कभी उस्तरा नहीं चलेगा।”+

12 हन्‍ना काफी देर तक यहोवा के सामने प्रार्थना करती रही और इस दौरान एली उसका मुँह देख रहा था। 13 हन्‍ना मन-ही-मन प्रार्थना कर रही थी। उसके होंठ काँप रहे थे, मगर उसकी आवाज़ नहीं सुनायी दे रही थी। इसलिए एली ने सोचा कि वह नशे में है। 14 उसने हन्‍ना से कहा, “तू कब तक नशे में रहेगी? जा, नशा उतरने के बाद आना।” 15 तब हन्‍ना ने उससे कहा, “नहीं, मेरे मालिक! मैंने कोई दाख-मदिरा या शराब नहीं पी है। मैं तो दुख की मारी हूँ। मैं सिर्फ अपने दिल का हाल यहोवा को बता रही हूँ।+ 16 तू अपनी दासी को निकम्मी औरत मत समझना। मैं अब तक परमेश्‍वर से प्रार्थना कर रही थी क्योंकि मेरा मन बहुत दुखी है, मैं बहुत परेशान हूँ।” 17 तब एली ने उससे कहा, “तू बेफिक्र होकर घर जा। इसराएल का परमेश्‍वर तेरी बिनती सुने, तेरी मनोकामना पूरी करे।”+ 18 तब हन्‍ना ने उससे कहा, “तेरी कृपा इस दासी पर बनी रहे।” तब वह औरत वहाँ से चली गयी। उसने जाकर कुछ खाया और उसके चेहरे पर फिर उदासी न रही।

19 फिर वे सुबह तड़के उठे और उन्होंने यहोवा के सामने दंडवत किया। इसके बाद वे अपने शहर रामाह+ लौट गए। एलकाना ने अपनी पत्नी हन्‍ना के साथ संबंध रखे और यहोवा ने हन्‍ना की हालत पर ध्यान दिया।*+ 20 एक साल के अंदर* हन्‍ना गर्भवती हुई और उसने एक बेटे को जन्म दिया। हन्‍ना ने उसका नाम+ शमूएल* रखा क्योंकि उसने कहा, “मैंने यह बेटा यहोवा से माँगने पर पाया है।”

21 कुछ समय बाद एलकाना अपने पूरे परिवार के साथ यहोवा के लिए सालाना बलिदान चढ़ाने और अपनी मन्‍नत-बलि अर्पित करने गया।+ 22 मगर हन्‍ना उनके साथ नहीं गयी।+ उसने अपने पति से कहा, “जैसे ही बच्चे का दूध छूट जाएगा, मैं उसे लेकर यहोवा के सामने जाऊँगी। फिर वह हमेशा के लिए वहीं रहेगा।”+ 23 उसके पति एलकाना ने उससे कहा, “ठीक है, तुझे जो सही लगे वही कर। जब तक तू उसका दूध नहीं छुड़ाती, तू घर पर ही रहना। तूने जो कहा है यहोवा उसे पूरा करे।” इसलिए वह औरत तब तक घर पर रही जब तक उसने अपने बेटे का दूध नहीं छुड़ाया।

24 जैसे ही हन्‍ना ने अपने बेटे का दूध छुड़ाया, वह उसे शीलो ले गयी। वह अपने साथ तीन साल का एक बैल, एपा-भर* आटा और एक बड़ा मटका दाख-मदिरा भी ले गयी।+ शीलो में वह अपने छोटे लड़के को लेकर यहोवा के भवन में गयी।+ 25 वहाँ उन्होंने बैल हलाल किया और वे लड़के को एली के पास ले गए। 26 तब हन्‍ना ने एली से कहा, “मालिक, मैं शपथ खाकर कहती हूँ कि मैं ही वह औरत हूँ जिसने यहाँ तेरे सामने खड़े होकर यहोवा से प्रार्थना की थी।+ 27 यह वही लड़का है जिसके लिए मैंने प्रार्थना की थी। यहोवा ने मेरी बिनती सुनकर मेरी मनोकामना पूरी की।+ 28 बदले में अब मैं अपना बेटा यहोवा को दे* रही हूँ ताकि यह पूरी ज़िंदगी यहोवा का ही रहे।”

फिर उसने* वहाँ यहोवा के सामने दंडवत किया।

2 फिर हन्‍ना ने परमेश्‍वर से प्रार्थना में कहा,

“यहोवा के कारण मेरा दिल मगन है,+

यहोवा ने मेरा सींग ऊँचा किया है।*

मैं निडर होकर अपने दुश्‍मनों को जवाब दे सकती हूँ,

क्योंकि तू जो उद्धार दिलाता है उससे मैं मगन हूँ।

 2 यहोवा जैसा पवित्र और कोई नहीं,

तेरी बराबरी कोई नहीं कर सकता,+

हमारे परमेश्‍वर जैसी चट्टान और कोई नहीं।+

 3 घमंड से फूलकर बातें करना बंद करो,

अपने मुँह से हेकड़ी-भरी बातें मत बोलो,

क्योंकि यहोवा को सब बातों का ज्ञान है,+

वह इंसान के हर काम को सही जाँचता-परखता है।

 4 बड़े-बड़े सूरमाओं की कमानें चूर-चूर कर दी गयी हैं,

मगर ठोकर खानेवालों में ताकत भर दी गयी है।+

 5 जो कभी भरपेट खाया करते थे उन्हें रोटी के लिए मज़दूरी करनी पड़ती है,

मगर जो अब तक भूखे थे वे अब भूखे नहीं रहते।+

जो कभी बाँझ थी वह सात-सात बच्चों की माँ बनी है,+

मगर जिसके कई बेटे थे उसके अब और बच्चे नहीं होते।*

 6 यहोवा में जान लेने और जान की हिफाज़त करने* की ताकत है,

वही इंसान को नीचे कब्र में पहुँचाता है और जो कब्र में हैं उन्हें जी उठाता है।+

 7 यहोवा इंसान को कंगाल बनाता है और मालामाल करता है,+

वही नीचे गिराता है और ऊँचा उठाता है।+

 8 वह दीन जन को धूल से,

गरीबों को राख के ढेर* से उठाता है+

ताकि उन्हें हाकिमों के साथ बिठाए,

उन्हें सम्मान का पद दे।

धरती की नींव के खंभे यहोवा के हाथों में हैं+

और उन पर ही उसने उपजाऊ ज़मीन कायम की है।

 9 वह अपने वफादार लोगों के कदमों की रक्षा करता है,+

मगर दुष्ट अँधेरे में खामोश कर दिए जाएँगे,+

क्योंकि इंसान अपनी ताकत से जीत नहीं सकता।+

10 यहोवा उन सबको चूर-चूर कर देगा जो उससे लड़ते हैं,*+

वह स्वर्ग से उन पर गरजेगा।+

यहोवा धरती के कोने-कोने तक न्याय करेगा,+

वह अपने राजा को ताकत देगा+

और अपने अभिषिक्‍त का सींग ऊँचा करेगा।”*+

11 इसके बाद एलकाना अपने शहर रामाह लौट गया, मगर उसका लड़का एली याजक की निगरानी में यहोवा का एक सेवक बन गया।*+

12 एली के बेटे दुष्ट थे,+ उनके दिल में यहोवा के लिए कोई इज़्ज़त नहीं थी। 13 और लोगों के बलिदानों के जिस हिस्से पर याजकों का हक था, उसके साथ वे ऐसा करते थे:+ जब बलिदान का गोश्‍त उबल रहा होता तो याजक का एक सेवक हाथ में तीन नोकवाला काँटा लिए आता 14 और उसे हाँडी या डेगची में डाल देता। काँटे में जितना भी गोश्‍त आता उसे याजक ले लेता था। एली के दोनों बेटे शीलो में आनेवाले सब इसराएलियों के साथ ऐसा ही सलूक करते थे। 15 और-तो-और, इससे पहले कि बलिदान चढ़ानेवाला चरबी आग पर रखकर जलाता कि उससे धुआँ उठे,+ याजक का एक सेवक वहाँ आकर उससे कहता, “याजक के लिए गोश्‍त दे ताकि वह उसे भूनकर खाए। उसे उबला हुआ गोश्‍त नहीं, कच्चा गोश्‍त चाहिए।” 16 जब वह आदमी उससे कहता, “पहले उन्हें चरबी आग में जलाने दे कि उससे धुआँ उठे,+ फिर तू जो चाहे ले लेना,” तब सेवक कहता, “नहीं, मुझे अभी चाहिए! अगर तू नहीं देगा, तो मैं ज़बरदस्ती ले लूँगा।” 17 इस तरह इन सेवकों ने यहोवा की नज़र में घोर पाप किया,+ क्योंकि वे आदमी यहोवा को अर्पित किए जानेवाले बलिदान का अनादर करते थे।

18 हालाँकि शमूएल अभी छोटा लड़का ही था, फिर भी वह मलमल का एपोद पहनकर+ यहोवा के सामने सेवा करता था।+ 19 उसकी माँ जब हर साल अपने पति के साथ सालाना बलिदान चढ़ाने शीलो आती,+ तो शमूएल के लिए बिन आस्तीन का एक छोटा-सा बागा बनाकर लाती थी। 20 एली ने एलकाना और उसकी पत्नी को आशीर्वाद दिया और एलकाना से कहा, “तूने अपना बेटा यहोवा को दे* दिया है। यहोवा तुझे आशीष दे। वह तुझे इस बेटे के बदले तेरी इस पत्नी से एक और बच्चा दे।”+ फिर वे वापस घर चले गए। 21 यहोवा ने हन्‍ना पर ध्यान दिया और उसके और भी बच्चे हुए।+ उसने तीन बेटों और दो बेटियों को जन्म दिया। और शमूएल यहोवा के सामने बढ़ने लगा।+

22 एली बहुत बूढ़ा था। उसने सुना था कि उसके बेटे इसराएलियों के साथ कैसे-कैसे काम करते हैं+ और यह भी कि वे उन औरतों के साथ संबंध रखते हैं जो भेंट के तंबू के द्वार के पास सेवा करती हैं।+ 23 एली अपने बेटों से कहा करता था, “सब लोग कह रहे हैं कि तुम कितने बुरे-बुरे काम कर रहे हो। तुम क्यों ऐसा करते हो? 24 ऐसा मत करो बच्चो। यहोवा के लोगों के बीच तुम्हारे बारे में जो चर्चे हो रहे हैं, वह ठीक नहीं है। 25 अगर एक आदमी किसी आदमी के खिलाफ पाप करे, तो कोई उसकी खातिर यहोवा से बिनती कर सकता है।* लेकिन अगर एक आदमी यहोवा के खिलाफ पाप करे,+ तो कौन उसके लिए दुआ करेगा?” लेकिन एली के बेटे उसकी बिलकुल नहीं सुनते थे और यहोवा ने उन्हें मार डालने की ठान ली थी।+ 26 मगर दूसरी तरफ, लड़का शमूएल डील-डौल में बढ़ता गया और यहोवा और लोगों का चहेता बनता गया।+

27 परमेश्‍वर का एक सेवक एली के पास आया और उससे कहने लगा, “तेरे लिए यहोवा का यह संदेश है: ‘जब तेरे पुरखे का घराना मिस्र में फिरौन के घराने की गुलामी कर रहा था, तब मैंने खुद को उस पर साफ-साफ ज़ाहिर किया था।+ 28 मैंने इसराएल के सभी गोत्रों में से तेरे पुरखे को अपना याजक चुना था+ ताकि वह मेरी वेदी+ पर बलिदान चढ़ाए और धूप जलाए* और एपोद पहनकर मेरे सामने सेवा करे। मैंने तेरे पुरखे के घराने को ही इसराएलियों* के सभी बलिदानों का हिस्सा दिया था जो आग में जलाकर अर्पित किए गए।+ 29 तो फिर तुम लोग क्यों मेरे बलिदान और चढ़ावे का घोर अपमान करते हो,* जिन्हें मैंने अपने निवास+ में चढ़ाने की आज्ञा दी थी? तुम मेरी प्रजा इसराएल के हर बलिदान में से सबसे बढ़िया हिस्सा खाकर मोटे होते जा रहे हो।+ आखिर तू क्यों ऐसा कर रहा है? तू क्यों हमेशा मुझसे ज़्यादा अपने बेटों का आदर करता है?

30 इसलिए इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा की तरफ से तेरे लिए यह संदेश है: “यह सच है कि मैंने कहा था, तेरा और तेरे पुरखे का घराना हमेशा मेरे सामने हाज़िर रहकर मेरी सेवा करेगा।”+ मगर अब यहोवा कहता है, “मैं ऐसा करने की सोच भी नहीं सकता क्योंकि जो मेरा आदर करते हैं मैं उनका आदर करूँगा,+ मगर जो मेरा अनादर करते हैं उन्हें नीचा दिखाया जाएगा।” 31 देख, वह दिन दूर नहीं जब मैं तेरा और तेरे पुरखे के घराने का अधिकार छीन लूँगा* ताकि तेरे घराने का कोई भी आदमी बुढ़ापे तक जी न सके।+ 32 मैं चाहे इसराएल के साथ जितनी भी भलाई करूँ, तुझे मेरे निवास में एक दुश्‍मन दिखायी देगा।+ और तेरे घराने में कभी-भी कोई आदमी बुढ़ापे तक नहीं जी सकेगा। 33 तेरे घराने में से जिस आदमी को मैं अपनी वेदी के पास सेवा करते रहने का मौका दूँगा, वह भी तुझे गम देगा और उसकी वजह से तू अपनी आँखों की रौशनी खो बैठेगा। मगर तेरे घराने के ज़्यादातर लोग तलवार से मारे जाएँगे।+ 34 और तेरे दोनों बेटों का, होप्नी और फिनेहास का जो अंजाम होगा, वह तेरे लिए एक निशानी होगा: एक ही दिन में उन दोनों की मौत हो जाएगी।+ 35 तब मैं अपने लिए एक विश्‍वासयोग्य याजक ठहराऊँगा।+ वह मेरे मन की इच्छा के मुताबिक काम करेगा और मैं उसके घराने को ऐसा मज़बूत करूँगा कि वह सदा कायम रहेगा और हमेशा तक याजक के नाते मेरे अभिषिक्‍त के लिए सेवा करेगा। 36 तेरे घराने में से जो कोई बच जाएगा, वह उस याजक के पास जाएगा और उसे झुककर प्रणाम करेगा और थोड़ी-सी कमाई और एक रोटी के लिए यह मिन्‍नत करेगा: “मुझे भी याजक का कोई काम दे ताकि मेरे लिए एक रोटी का जुगाड़ हो सके।”’”+

3 उन दिनों वह लड़का शमूएल एली की निगरानी में यहोवा की सेवा करता था+ और यहोवा का वचन बहुत कम सुनने को मिलता था। उसकी तरफ से दर्शन भी कम मिलते थे।+

2 एली इतना बूढ़ा हो चुका था कि उसकी नज़र धुँधली पड़ गयी थी। उसे कुछ दिखायी नहीं देता था।+ एक दिन वह अपने कमरे में सो रहा था। 3 परमेश्‍वर की दीवट+ अब भी जल रही थी और शमूएल यहोवा के मंदिर*+ में सो रहा था जहाँ परमेश्‍वर का संदूक था। 4 तभी यहोवा ने शमूएल को आवाज़ दी। शमूएल ने कहा, “अभी आया।” 5 वह दौड़कर एली के पास गया और उससे कहा, “तूने मुझे बुलाया?” मगर उसने कहा, “नहीं, मैंने तुझे नहीं बुलाया। जा, जाकर सो जा।” वह वापस जाकर सो गया। 6 यहोवा ने एक बार फिर उसे बुलाया, “शमूएल!” इस पर शमूएल उठकर एली के पास गया और उससे कहा, “तूने मुझे बुलाया?” मगर उसने कहा, “नहीं बेटे, मैंने तुझे नहीं बुलाया। जा, जाकर सो जा।” 7 (अब तक शमूएल ने यहोवा को पूरी तरह नहीं जाना था और यहोवा ने उसे अपना संदेश देना शुरू नहीं किया था।)+ 8 फिर यहोवा ने तीसरी बार उसे बुलाया, “शमूएल!” वह फिर से उठकर एली के पास गया और उससे कहा, “तूने मुझे बुलाया?”

तब एली को एहसास हुआ कि लड़के को पुकारनेवाला यहोवा है। 9 एली ने शमूएल से कहा, “जाकर सो जा। इस बार अगर तुझे वह आवाज़ सुनायी दे तो कहना, ‘हे यहोवा, बोल। तेरा सेवक सुन रहा है।’” तब शमूएल अपनी जगह जाकर सो गया।

10 यहोवा फिर से वहाँ आया और खड़ा हुआ। उसने पहले की तरह शमूएल को बुलाया, “शमूएल, शमूएल!” तब शमूएल ने कहा, “हे परमेश्‍वर, बोल। तेरा सेवक सुन रहा है।” 11 यहोवा ने शमूएल से कहा, “देख, मैं इसराएल में ऐसा काम करने जा रहा हूँ कि उसके बारे में सुननेवालों के कान झनझना उठेंगे।+ 12 मैंने एली और उसके घराने के बारे में जो-जो कहा है वह सब मैं उस दिन पूरा करूँगा, शुरू से लेकर आखिर तक सब पूरा करूँगा।+ 13 तुझे एली को बताना होगा कि मैं उसके घराने को ऐसी सज़ा देनेवाला हूँ जिसका अंजाम उन्हें हमेशा भुगतना पड़ेगा क्योंकि वह जानता है+ कि उसके बेटे परमेश्‍वर की निंदा कर रहे हैं,+ फिर भी उसने उन्हें नहीं फटकारा।+ 14 इसलिए मैं शपथ खाकर कहता हूँ कि एली के घराने ने जो पाप किया है, उसका प्रायश्‍चित बलिदानों या चढ़ावों से कभी नहीं हो सकता।”+

15 फिर शमूएल लेट गया और सुबह होने पर उठा और उसने यहोवा के भवन के दरवाज़े खोले। वह दर्शन की बात एली को बताने से डर रहा था। 16 मगर एली ने उसे बुलाया, “बेटा शमूएल।” शमूएल ने कहा, “हाँ, मालिक।” 17 एली ने उससे पूछा, “परमेश्‍वर ने तुझे क्या संदेश दिया? देख बेटा, मुझसे कुछ मत छिपाना। परमेश्‍वर ने तुझे जो बताया है उसमें से अगर तूने एक भी बात छिपायी तो वह तुझे कड़ी-से-कड़ी सज़ा दे।” 18 तब शमूएल ने एली को सारी बात बतायी, कुछ नहीं छिपाया। एली ने कहा, “यह बात यहोवा ने कही है। उसे जो सही लगे वह करे।”

19 शमूएल बड़ा होता गया और यहोवा उसका साथ देता रहा+ और उसने हर वह बात पूरी की जो उसने कही थी।* 20 दान से बेरशेबा तक पूरा इसराएल जान गया कि यहोवा ने शमूएल को अपना भविष्यवक्‍ता चुना है। 21 यहोवा शीलो में शमूएल पर खुद को प्रकट करता रहा। इस तरह यहोवा ने शीलो में खुद को प्रकट किया। यहोवा अपने वचन के ज़रिए ऐसा करता था।+

4 शमूएल का संदेश पूरे इसराएल में फैलता गया।

फिर इसराएली पलिश्‍तियों से युद्ध करने निकल पड़े। उन्होंने एबनेज़ेर के पास छावनी डाली और पलिश्‍तियों ने अपेक के पास छावनी डाली। 2 पलिश्‍तियों ने इसराएलियों से मुकाबला करने के लिए मोरचा बाँधा। युद्ध में पलिश्‍तियों ने इसराएलियों का बुरा हश्र कर दिया, उनके करीब 4,000 आदमियों को युद्ध के मैदान में मार डाला और उन्हें हरा दिया। 3 जब वे लौटकर अपनी छावनी में आए तो इसराएल के मुखियाओं ने कहा, “आज यहोवा ने हमें पलिश्‍तियों से क्यों हारने दिया?*+ चलो, हम शीलो से यहोवा के करार का संदूक ले आएँ+ ताकि वह संदूक हमारे बीच रहे और हमें दुश्‍मनों के हाथ से बचाए।” 4 इसलिए लोगों ने कुछ आदमियों को शीलो भेजा और वे वहाँ से यहोवा के करार का संदूक ले आए, जो सेनाओं का परमेश्‍वर है और करूबों पर* विराजमान है।+ सच्चे परमेश्‍वर के करार के संदूक के साथ एली के दोनों बेटे होप्नी और फिनेहास+ भी थे।

5 जैसे ही यहोवा के करार का संदूक छावनी में पहुँचा, सारे इसराएली इतनी ज़ोर से चिल्लाने लगे कि ज़मीन काँपने लगी। 6 जब पलिश्‍तियों ने यह शोर सुना तो वे कहने लगे, “इब्री लोगों की छावनी में यह शोरगुल कैसा?” बाद में उन्हें पता चला कि यहोवा का संदूक इसराएलियों की छावनी में आया है। 7 तब पलिश्‍ती डर गए, वे कहने लगे, “उनकी छावनी में ईश्‍वर आ गया है!”+ फिर उन्होंने कहा, “अब तो हम मारे गए! ऐसा आज तक कभी नहीं हुआ! 8 हाय, अब क्या होगा! उस महाप्रतापी ईश्‍वर के हाथ से कौन हमें बचाएगा? उसी ईश्‍वर ने वीराने में तरह-तरह के कहर ढाकर मिस्रियों को मार डाला था।+ 9 मगर पलिश्‍तियो, हिम्मत से काम लो, मर्दानगी दिखाओ ताकि जैसे उन इब्रियों ने तुम्हारी गुलामी की है, वैसे तुम्हें उनकी गुलामी न करनी पड़े।+ हाँ, मर्दानगी दिखाओ और उनका मुकाबला करो!” 10 तब पलिश्‍तियों ने इसराएलियों से जमकर लड़ाई की और उन्हें हरा दिया।+ सभी इसराएली अपने-अपने तंबू में भाग गए। उस दिन बहुत मार-काट मची और इसराएलियों के 30,000 पैदल सैनिक मारे गए। 11 और-तो-और, परमेश्‍वर का संदूक ज़ब्त कर लिया गया और एली के दोनों बेटे होप्नी और फिनेहास भी मारे गए।+

12 उस दिन बिन्यामीन गोत्र का एक आदमी युद्ध के मैदान से भागकर शीलो आया। उसने अपने कपड़े फाड़े थे और सिर पर धूल डाल रखी थी।+ 13 जब वह शीलो पहुँचा तब एली सड़क किनारे कुर्सी पर बैठा रास्ता ताक रहा था, क्योंकि उसे सच्चे परमेश्‍वर के संदूक की बहुत चिंता हो रही थी और उसका दिल काँप रहा था।+ उस आदमी ने शहर के सब लोगों को खबर दी। तब सारा शहर चीखने-चिल्लाने लगा। 14 एली ने चीख-पुकार सुनकर कहा, “शहर में यह खलबली क्यों मची है?” फिर वही आदमी दौड़कर एली के पास आया और उसे खबर दी। 15 (एली 98 साल का था, उसकी आँखों की रौशनी चली गयी थी, उसे कुछ दिखायी नहीं देता था।)+ 16 उस आदमी ने एली से कहा, “मैं ही युद्ध के मैदान से भागकर आया हूँ। मैं आज ही वहाँ से आया हूँ।” एली ने उससे पूछा, “युद्ध में क्या हुआ बेटा? मुझे बता।” 17 उस आदमी ने एली को यह खबर सुनायी, “इसराएली पलिश्‍तियों से बुरी तरह हार गए हैं और युद्ध से भाग गए हैं।+ तेरे दोनों बेटे होप्नी और फिनेहास भी मारे गए+ और दुश्‍मनों ने सच्चे परमेश्‍वर का संदूक ज़ब्त कर लिया है।”+

18 जैसे ही उस आदमी ने सच्चे परमेश्‍वर के संदूक का ज़िक्र किया, एली जो फाटक के पास बैठा था, अपनी कुर्सी से पीछे की तरफ गिर पड़ा और उसकी गरदन टूट गयी और उसकी मौत हो गयी, क्योंकि वह बूढ़ा हो चुका था और शरीर से भारी था। उसने 40 साल तक इसराएल का न्याय किया था। 19 उसकी बहू यानी फिनेहास की पत्नी पूरे दिनों पेट से थी। जब उसने सुना कि सच्चे परमेश्‍वर का संदूक ज़ब्त कर लिया गया है और उसके ससुर और पति की मौत हो गयी है, तो वह दर्द से दोहरी हो गयी और अचानक उसकी प्रसव-पीड़ा शुरू हो गयी। उसने एक बच्चे को जन्म दिया, 20 जिसके बाद उसकी मौत हो गयी। जब वह आखिरी साँसें गिन रही थी तो पास खड़ी औरतों ने उससे कहा, “डर मत, तेरे बेटा हुआ है।” मगर वह कुछ नहीं बोली और उसने उनकी बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया।* 21 उसने अपने बेटे का नाम ईकाबोद*+ रखा और कहा, “इसराएल की शान बँधुआई में चली गयी।”+ उसने यह बात इसलिए कही क्योंकि सच्चे परमेश्‍वर का संदूक ज़ब्त कर लिया गया था और उसके ससुर और पति की मौत हो चुकी थी।+ 22 उसने कहा, “इसराएल की शान बँधुआई में चली गयी क्योंकि सच्चे परमेश्‍वर का संदूक ज़ब्त कर लिया गया है।”+

5 जब पलिश्‍तियों ने सच्चे परमेश्‍वर का संदूक ज़ब्त कर लिया+ तो वे उसे एबनेज़ेर से अशदोद ले गए। 2 वहाँ वे संदूक को अपने दागोन देवता के मंदिर में ले गए और दागोन की मूरत के पास रख दिया।+ 3 अगले दिन जब अशदोद के लोग सुबह तड़के उठे तो उन्होंने देखा कि दागोन की मूरत यहोवा के संदूक के सामने मुँह के बल ज़मीन पर गिरी पड़ी है।+ उन्होंने मूरत उठायी और वापस उसकी जगह रख दी।+ 4 दूसरे दिन सुबह तड़के उठने पर उन्होंने देखा कि दागोन की मूरत फिर से यहोवा के संदूक के सामने मुँह के बल ज़मीन पर गिरी पड़ी है। मूरत का सिर और उसकी दोनों हथेलियाँ कटी हुई हैं और मंदिर की दहलीज़ पर पड़ी हैं। सिर्फ उसका धड़, जो मछली जैसा दिखता था,* साबुत बचा हुआ था। 5 यही वजह है कि आज के दिन तक अशदोद में दागोन के पुजारी और उसके मंदिर में जानेवाला कोई भी मंदिर की दहलीज़ पर पैर नहीं रखता।

6 यहोवा ने अशदोद के लोगों को कड़ी सज़ा दी और अशदोद और उसके प्रांतों में रहनेवालों को बवासीर से पीड़ित करके उनका बुरा हाल कर दिया।+ 7 यह देखकर अशदोद के आदमियों ने कहा, “इसराएल के परमेश्‍वर का संदूक हमारे बीच से हटा दो क्योंकि वह हमारे साथ और हमारे दागोन देवता के साथ बड़ी कठोरता से पेश आया है।” 8 इसलिए उन्होंने पलिश्‍तियों के सभी सरदारों को बुलवाया और उन्हें इकट्ठा करके उनसे पूछा, “हम इसराएल के परमेश्‍वर के संदूक का क्या करें?” उन्होंने कहा, “इसराएल के परमेश्‍वर का संदूक यहाँ से हटाकर गत ले जाओ।”+ तब पलिश्‍ती, इसराएल के परमेश्‍वर के संदूक को गत ले गए।

9 जब संदूक को गत ले जाया गया, तो यहोवा ने उस शहर पर भी कहर ढाया जिससे वहाँ डर फैल गया। उसने शहर के सभी लोगों को, छोटे से लेकर बड़े तक, सबको बवासीर के रोग से मारा।+ 10 इसलिए गत के लोगों ने सच्चे परमेश्‍वर का संदूक एक्रोन+ भिजवा दिया। मगर जैसे ही संदूक एक्रोन पहुँचा, वहाँ के लोग चिल्लाने लगे, “वे इसराएल के परमेश्‍वर का संदूक हमारे पास क्यों ले आए? क्या वे हमें और हमारे लोगों को मार डालना चाहते हैं?”+ 11 फिर उन्होंने पलिश्‍तियों के सभी सरदारों को बुलवाया और उन्हें इकट्ठा करके उनसे कहा, “इसराएल के परमेश्‍वर का संदूक हमारे यहाँ से दूर कर दो। उसे वापस उसकी जगह भेज दो ताकि हम और हमारे लोग मार न डाले जाएँ।” उन्होंने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि उनके पूरे शहर पर मौत का खौफ छा गया था। शहर पर सच्चे परमेश्‍वर की ज़बरदस्त मार पड़ी थी+ 12 और जो लोग ज़िंदा बचे उन्हें बवासीर का रोग लग गया। शहर के सभी लोग आसमान की तरफ देखकर मदद के लिए पुकारने लगे।

6 यहोवा का संदूक+ सात महीने तक पलिश्‍तियों के इलाके में ही रहा। 2 पलिश्‍तियों ने पुजारियों और ज्योतिषियों+ को बुलाकर पूछा, “हम यहोवा के संदूक का क्या करें? हमें बताओ कि हम उसे वापस उसकी जगह कैसे भेजें।” 3 उन्होंने कहा, “अगर तुम इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा के करार का संदूक वापस भेजना चाहते हो, तो उसके साथ चढ़ावा ज़रूर भेजना। तुम उस परमेश्‍वर को संदूक लौटाते वक्‍त एक दोष-बलि ज़रूर भेजना।+ तब जाकर तुम्हारी बीमारी ठीक होगी और तुम्हें पता चलेगा कि उसने क्यों तुम पर कहर ढाना बंद नहीं किया।” 4 फिर पलिश्‍तियों ने पूछा, “हम दोष-बलि में उसे क्या भेजें?” उन्होंने कहा, “पलिश्‍तियों के सरदारों की गिनती+ के हिसाब से तुम बवासीर के आकार में सोने की पाँच प्रतिमाएँ और सोने के पाँच चूहे भेजना, क्योंकि तुम्हारे सरदार और तुम सब एक ही तरह के कहर से पीड़ित हो। 5 तुम बवासीर और उन चूहों की प्रतिमाएँ बनाना+ जो तुम्हारे देश को उजाड़ रहे हैं। इस तरह तुम इसराएल के परमेश्‍वर का आदर करना। हो सकता है इससे वह तुम पर और तुम्हारे देवता और तुम्हारे देश पर कहर ढाना बंद कर दे।+ 6 तुम फिरौन और मिस्र के लोगों की तरह अपना दिल कठोर मत करना।+ जब परमेश्‍वर ने उन्हें कड़ी सज़ा दी थी,+ तो उन्हें इसराएलियों को छोड़ना पड़ा और वे मिस्र छोड़कर चले गए।+ 7 तुम एक नयी गाड़ी तैयार करना और ऐसी दो गायें लेना जिनके बछड़े हों और जो कभी जुए में न जोती गयी हों। उन गायों को गाड़ी में जोतना, मगर उनके बछड़ों को उनसे अलग करके घर पर ही रखना। 8 यहोवा का संदूक लेकर गाड़ी पर रखना और उसके साथ एक बक्से में सोने की प्रतिमाएँ रखना, जो तुम दोष-बलि के लिए दोगे।+ फिर उस गाड़ी को रवाना कर देना। 9 और तुम देखना कि गाड़ी किधर जाती है। अगर वह बेत-शेमेश+ जानेवाली सड़क पर जाए जहाँ से संदूक लाया गया है, तो जान लेना कि हम पर यह बड़ी मुसीबत इसराएल का परमेश्‍वर ही लाया है। लेकिन अगर गाड़ी उधर नहीं जाती, तो हम जान जाएँगे कि यह कहर उसकी वजह से नहीं है बल्कि यह एक इत्तफाक है।”

10 तब उन आदमियों ने वैसा ही किया। उन्होंने दो ऐसी गायें लीं जिनके बछड़े थे और उन्हें गाड़ी में जोत दिया और बछड़ों को घर में बंद कर दिया। 11 फिर उन्होंने गाड़ी पर यहोवा का संदूक और वह बक्सा रखा जिसमें उन्होंने बवासीर और चूहे की सोने की प्रतिमाएँ रखी थीं। 12 तब गायें सीधे बेत-शेमेश जानेवाली सड़क पर चल दीं।+ वे रँभाती हुई सीधे बड़ी सड़क पर ही चलती रहीं, वे न तो दाएँ मुड़ीं न बाएँ। और पलिश्‍तियों के सरदार पूरे रास्ते गाड़ी के पीछे-पीछे चलते रहे और वे दूर बेत-शेमेश की सरहद तक आए। 13 बेत-शेमेश के लोग उस समय घाटी के मैदान में गेहूँ की कटाई कर रहे थे। जब उन्होंने आँखें उठाकर देखा कि गाड़ी पर परमेश्‍वर का संदूक आ रहा है, तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। 14 वह गाड़ी बेत-शेमेश के रहनेवाले यहोशू के खेत में आयी और एक बड़े पत्थर के पास रुक गयी। तब लोगों ने गाड़ी की लकड़ियाँ निकालकर चीरीं और उनमें आग लगाकर गायों+ की होम-बलि यहोवा को चढ़ायी।

15 तब लेवियों+ ने गाड़ी से यहोवा का संदूक और वह बक्सा उतारा जिसमें सोने की प्रतिमाएँ थीं और उन्हें उस बड़े पत्थर पर रख दिया। उस दिन बेत-शेमेश के लोगों+ ने यहोवा के लिए होम-बलियाँ और दूसरे बलिदान भी चढ़ाए।

16 पलिश्‍तियों के पाँचों सरदारों ने यह सब देखा और वे उसी दिन एक्रोन लौट गए। 17 पलिश्‍तियों ने बवासीर की सोने की जो प्रतिमाएँ यहोवा को दोष-बलि चढ़ाने के लिए भेजी थीं,+ उनमें से एक अशदोद+ की तरफ से, एक गाज़ा, एक अश्‍कलोन, एक गत+ और एक एक्रोन+ की तरफ से थी। 18 उन्होंने सोने के जो पाँच चूहे भेजे थे, वे पाँच सरदारों के सभी किलेबंद शहरों और उनके आस-पास की खुली बस्तियों के हिसाब से थे।

वह बड़ा पत्थर जिस पर यहोवा का संदूक रखा गया था, आज तक बेत-शेमेश के यहोशू के खेत में है और इस घटना का गवाह है। 19 मगर परमेश्‍वर ने बेत-शेमेश के आदमियों को मार डाला क्योंकि उन्होंने यहोवा का संदूक देख लिया था। उसने 50,070 आदमियों* को मार डाला। वहाँ के लोग मातम मनाने लगे क्योंकि यहोवा ने इतनी बड़ी तादाद में लोगों का घात कर दिया।+ 20 तब बेत-शेमेश के आदमी कहने लगे, “यहोवा जैसे पवित्र परमेश्‍वर के सामने कौन खड़ा रह सकता है?+ अच्छा होगा अगर वह हमारे यहाँ से कहीं और चला जाए।”+ 21 तब उन्होंने किरयत-यारीम+ के लोगों के पास अपने दूत भेजे और उनसे कहा, “पलिश्‍तियों ने यहोवा का संदूक वापस कर दिया है। तुम लोग आकर उसे ले जाओ।”+

7 तब किरयत-यारीम के आदमी आए और यहोवा का संदूक ले गए। उन्होंने उसे ले जाकर पहाड़ी पर अबीनादाब के घर+ में रखा और उसके बेटे एलिआज़र को यहोवा के संदूक की रखवाली के लिए पवित्र ठहराया।

2 किरयत-यारीम में परमेश्‍वर के संदूक को आए पूरे 20 साल गुज़र गए। इतने लंबे समय बाद इसराएल का पूरा घराना यहोवा की खोज करने लगा।*+ 3 तब शमूएल ने इसराएल के पूरे घराने से कहा, “अगर तुम वाकई पूरे दिल से यहोवा के पास लौट रहे हो,+ तो अपने बीच से पराए देवताओं की मूरतें+ और अशतोरेत देवी की मूरतें निकाल दो।+ और अपना दिल पूरी तरह यहोवा पर लगाओ और सिर्फ उसकी सेवा करो,+ तब वह तुम्हें पलिश्‍तियों के हाथ से छुड़ाएगा।”+ 4 तब इसराएलियों ने बाल देवताओं और अशतोरेत की मूरतें निकाल दीं और वे सिर्फ यहोवा की सेवा करने लगे।+

5 फिर शमूएल ने उनसे कहा, “पूरे इसराएल को मिसपा+ में इकट्ठा करो, मैं तुम सबकी खातिर यहोवा से प्रार्थना करूँगा।”+ 6 इसलिए वे सब मिसपा में इकट्ठा हुए और पानी भरकर लाए और यहोवा के सामने उसे उँडेला और उस दिन सबने उपवास किया।+ वहाँ उन सबने कबूल किया, “हमने यहोवा के खिलाफ पाप किया है।”+ और शमूएल वहाँ मिसपा में इसराएलियों का न्याय करने लगा।+

7 जब पलिश्‍तियों ने सुना कि इसराएली मिसपा में इकट्ठा हुए हैं, तो उनके सरदार+ इसराएलियों पर हमला करने निकल पड़े। जब यह बात इसराएलियों को पता चली तो वे बहुत डर गए। 8 उन्होंने शमूएल से कहा, “तू हमारे परमेश्‍वर यहोवा की दुहाई देता रह कि वह हमारी मदद करे+ और हमें पलिश्‍तियों के हाथ से बचाए।” 9 तब शमूएल ने एक दूध-पीता मेम्ना लिया और यहोवा के लिए उसकी पूरी होम-बलि चढ़ायी।+ फिर शमूएल ने इसराएल की तरफ से यहोवा को मदद के लिए पुकारा और यहोवा ने उसकी सुनी।+ 10 शमूएल होम-बलि चढ़ा ही रहा था कि तभी पलिश्‍ती इसराएल से लड़ने उनकी तरफ बढ़ने लगे। तब उस दिन यहोवा ने आकाश से पलिश्‍तियों पर ज़ोर का गरजन करवाया+ और उन्हें उलझन में डाल दिया।+ और वे इसराएल से हार गए।+ 11 तब इसराएल के आदमियों ने मिसपा से निकलकर पलिश्‍तियों का पीछा किया और वे उन्हें दूर बेतकर के दक्षिण तक घात करते गए। 12 इसके बाद शमूएल ने एक पत्थर लिया+ और मिसपा और यशाना के बीच रखा। उसने उस पत्थर को एबनेज़ेर* नाम दिया क्योंकि उसने कहा, “यहोवा ने अब तक हमारी मदद की है।”+ 13 इस तरह पलिश्‍तियों की हार हुई और वे फिर कभी इसराएल के इलाके में नहीं आए।+ जब तक शमूएल ज़िंदा था तब तक यहोवा का हाथ पलिश्‍तियों के खिलाफ उठा रहा।+ 14 इसके अलावा, इसराएलियों को एक्रोन से गत तक के सभी शहर वापस मिल गए जो पलिश्‍तियों ने ले लिए थे। इसराएल ने अपना इलाका पलिश्‍तियों से वापस ले लिया।

इसराएलियों और एमोरियों के बीच भी शांति थी।+

15 शमूएल ने पूरी ज़िंदगी इसराएल का न्याय किया।+ 16 हर साल वह बेतेल,+ गिलगाल+ और मिसपा+ का दौरा करता था और इन जगहों में इसराएल का न्याय करता था। 17 फिर वह रामाह+ लौट जाता था क्योंकि वहाँ उसका घर था। वह रामाह में भी इसराएल का न्याय करता था। वहाँ उसने यहोवा के लिए एक वेदी बनायी थी।+

8 जब शमूएल बूढ़ा हो गया तो उसने अपने बेटों को इसराएल का न्यायी ठहराया। 2 उसके पहलौठे का नाम योएल था और दूसरे बेटे का नाम अबियाह।+ वे दोनों बेरशेबा में न्याय करते थे। 3 मगर उसके बेटे उसके नक्शे-कदम पर नहीं चलते थे। वे बेईमानी की कमाई के पीछे जाते,+ रिश्‍वत लेते+ और गलत फैसला सुनाकर अन्याय करते थे।+

4 कुछ समय बाद इसराएल के सभी प्रधान इकट्ठा हुए और रामाह में शमूएल के पास गए। 5 उन्होंने उससे कहा, “देख, अब तेरी उम्र हो चुकी है और तेरे बेटे तेरे नक्शे-कदम पर नहीं चलते। इसलिए दूसरे राष्ट्रों की तरह हमारा न्याय करने के लिए हम पर एक राजा ठहरा।”+ 6 लेकिन शमूएल को यह बात बहुत बुरी लगी कि वे अपने लिए एक राजा की गुज़ारिश कर रहे हैं जो उनका न्याय करे। इसलिए शमूएल ने यहोवा से प्रार्थना की। 7 यहोवा ने शमूएल से कहा, “लोगों ने तुझसे जो गुज़ारिश की है, तू वही कर क्योंकि उन्होंने तुझे नहीं, मुझे ठुकराया है। उन्होंने मुझे अपना राजा मानने से इनकार कर दिया है।+ 8 जिस दिन मैं उन्हें मिस्र से निकाल लाया था, उस दिन से लेकर आज तक वे मुझे ठुकराते ही रहे हैं। वे हमेशा मुझे छोड़कर+ दूसरे देवताओं की सेवा करते रहे हैं।+ वे तेरे साथ वैसा ही कर रहे हैं जैसा उन्होंने मेरे साथ किया है। 9 इसलिए अब तू उनकी बात मान। पर साथ ही तू उन्हें खबरदार कर दे कि जब उन पर एक राजा राज करेगा तो अंजाम क्या होगा। राजा के पास हक होगा कि वह जो चाहे उसकी माँग कर सकता है।”

10 तब शमूएल ने यहोवा की बतायी सारी बातें उन लोगों को सुनायीं जो उससे राजा की गुज़ारिश कर रहे थे। 11 शमूएल ने कहा, “जो राजा तुम पर राज करेगा, उसके पास हक होगा कि वह जो चाहे तुमसे माँग कर सकता है।+ वह तुम्हारे बेटों को लेकर+ उन्हें अपने रथों पर लगाएगा+ और घुड़सवार बनाएगा।+ तुम्हारे कुछ बेटों को उसके रथों के आगे दौड़ना पड़ेगा। 12 वह कुछ लोगों को हज़ार-हज़ार सैनिकों का और कुछ को पचास-पचास सैनिकों का अधिकारी ठहराएगा।+ वह कुछ लोगों से हल चलवाएगा,+ अपनी फसल कटवाएगा+ और युद्ध के हथियार और अपने रथों का सामान बनवाएगा।+ 13 वह तुम्हारी बेटियों से खुशबूदार तेल* बनवाएगा, उनसे रोटी और तरह-तरह के पकवान बनवाएगा।+ 14 वह तुम्हारे खेतों की बढ़िया फसल और अंगूरों और जैतून के बागों की बढ़िया-बढ़िया उपज ले लेगा+ और अपने सेवकों को देगा। 15 वह तुम्हारे अनाज और अंगूरों का दसवाँ हिस्सा ले लेगा और अपने दरबारियों और सेवकों को देगा। 16 वह तुम्हारे दास-दासियाँ, तुम्हारे बढ़िया-से-बढ़िया गाय-बैल और गधे ले लेगा और उन्हें अपने काम पर लगाएगा।+ 17 वह तुम्हारी भेड़-बकरियों का दसवाँ हिस्सा ले लेगा।+ और तुम भी उसके सेवक बन जाओगे। 18 एक दिन ऐसा आएगा कि तुम लोग अपने ही चुने हुए राजा की वजह से रो-रोकर यहोवा से बिनती करोगे,+ मगर वह तुम्हारी नहीं सुनेगा।”

19 मगर लोगों ने शमूएल की बात सुनने से इनकार कर दिया और कहा, “नहीं, हमें हर हाल में एक राजा चाहिए। 20 तब हम भी सब राष्ट्रों की तरह होंगे। हमारा राजा हमारा न्याय और अगुवाई करेगा और हमारी तरफ से युद्ध करेगा।” 21 शमूएल ने लोगों की पूरी बात सुनी और फिर उनकी बात यहोवा को बतायी। 22 यहोवा ने शमूएल से कहा, “तू उनकी बात सुन और उन पर राज करने के लिए एक राजा ठहरा।”+ तब शमूएल ने इसराएल के आदमियों से कहा, “तुम सब अपने-अपने शहर लौट जाओ।”

9 बिन्यामीन गोत्र में कीश+ नाम का एक आदमी था जो अबीएल का बेटा था। अबीएल सरोर का बेटा था, सरोर बकोरत का और बकोरत अपीह का बेटा था। बिन्यामीन गोत्र का यह आदमी+ कीश बहुत अमीर था। 2 उसका एक जवान बेटा था शाऊल।+ शाऊल बड़ा ही सुंदर और सजीला था, उसके जैसा पूरे इसराएल में कोई नहीं था। वह इतना लंबा था कि सब लोग उसके कंधे तक ही आते थे।

3 एक बार जब कीश की गधियाँ गुम हो गयीं तो उसने अपने बेटे शाऊल से कहा, “बेटा, तू अपने साथ एक सेवक लेकर जा और गधियों को ढूँढ़ ला।” 4 वे एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश में गए और वहाँ ढूँढ़ने लगे। इसके बाद वे शालीशा के इलाके में गए, मगर उन्हें गधियाँ कहीं नहीं मिलीं। फिर वे आगे शालीम के इलाके में गए, मगर वहाँ भी नहीं मिलीं। उन्होंने बिन्यामीन का पूरा इलाका छान मारा, मगर जानवर कहीं भी दिखायी नहीं दिए।

5 फिर वे ज़ूफ के इलाके में आए और वहाँ शाऊल ने अपने सेवक से कहा, “चल हम वापस चलते हैं, वरना मेरा पिता जानवरों की चिंता छोड़कर हमारी चिंता करने लगेगा।”+ 6 मगर सेवक ने उससे कहा, “सुन, इस शहर में सच्चे परमेश्‍वर का एक सेवक रहता है जिसका लोग बहुत सम्मान करते हैं। वह जो कुछ कहता है सच साबित होता है।+ चलो, हम उसके पास चलते हैं, हो सकता है वह हमें बता दे कि हम किस रास्ते जाएँ।” 7 तब शाऊल ने अपने सेवक से कहा, “अगर हम सच्चे परमेश्‍वर के उस सेवक के पास जाएँगे, तो हम उसे तोहफे में क्या देंगे? हमारे पास उसे देने के लिए कुछ भी नहीं है। हमारे थैलों में एक रोटी तक नहीं रही। बता हम क्या करें?” 8 सेवक ने शाऊल से कहा, “देख, मेरे पास चाँदी का एक छोटा-सा टुकड़ा* है। यह मैं सच्चे परमेश्‍वर के सेवक को दूँगा और वह हमें बताएगा कि हमें किस रास्ते जाना है।” 9 (पुराने समय में इसराएल में जब किसी को परमेश्‍वर की मरज़ी जाननी होती तो वह कहता, “चलो, हम दर्शी के पास चलते हैं।”+ आज जिन्हें भविष्यवक्‍ता कहा जाता है, वे पहले दर्शी कहलाते थे।) 10 तब शाऊल ने अपने सेवक से कहा, “ठीक है, चलते हैं।” वे दोनों उस शहर में गए जहाँ सच्चे परमेश्‍वर का सेवक रहता था।

11 जब वे ऊपर शहर जा रहे थे तो रास्ते में उन्हें कुछ लड़कियाँ मिलीं जो पानी भरने जा रही थीं। उन्होंने लड़कियों से पूछा, “क्या दर्शी यहीं है?”+ 12 लड़कियों ने कहा, “हाँ, वह यहीं है। वह अभी-अभी यहाँ से गया है। आज ही वह शहर आया है और आज लोग उपासना की ऊँची जगह+ पर बलिदान चढ़ानेवाले हैं।+ जल्दी जाओ, 13 जैसे ही तुम शहर पहुँचोगे तुम्हें वह मिल जाएगा। जल्दी जाओ, वरना वह ऊँची जगह पर भोज करने चला जाएगा। क्योंकि जब तक वह जाकर बलिदान पर आशीष नहीं माँगेगा, तब तक लोग खा नहीं सकते। जब वह दुआ कर लेगा तब न्यौते में बुलाए गए लोग भोज करेंगे। इसलिए तुम फौरन जाओ ताकि तुम उससे शहर में मिल सको।” 14 तब वे ऊपर शहर की तरफ गए। जब वे शहर में घुस रहे थे तो शमूएल उनसे मिलने आ रहा था ताकि वह उन्हें अपने साथ ऊँची जगह ले जाए।

15 शाऊल के यहाँ आने से एक दिन पहले यहोवा ने शमूएल को यह बताया था, 16 “कल इसी समय मैं बिन्यामीन के इलाके के रहनेवाले एक आदमी को तेरे पास भेजूँगा।+ तू उसका अभिषेक करके उसे मेरी प्रजा इसराएल का अगुवा ठहराना।+ वह मेरे लोगों को पलिश्‍तियों के हाथ से बचाएगा। मैंने देखा है कि मेरे लोग कैसी दुख-तकलीफें झेल रहे हैं और मैंने उनका रोना-बिलखना सुना है।”+ 17 जब शमूएल ने शाऊल को देखा तो यहोवा ने शमूएल से कहा, “देख, यही वह आदमी है जिसके बारे में मैंने तुझसे कहा था कि वह मेरे लोगों पर राज करेगा।”*+

18 तब शाऊल शहर के फाटक पर शमूएल के पास गया और उसने पूछा, “क्या तू मुझे बता सकता है कि दर्शी का घर कहाँ है?” 19 शमूएल ने कहा, “मैं ही दर्शी हूँ। तू मेरे आगे-आगे ऊँची जगह तक चल। आज वहाँ तुम दोनों मेरे साथ भोज करोगे।+ और तू जो भी जानना चाहता है, वह सब* मैं तुझे बताऊँगा और कल सुबह तुझे भेज दूँगा। 20 रही बात तेरे जानवरों की जो तीन दिन पहले खो गए थे,+ उनकी तू फिक्र मत कर क्योंकि वे मिल गए हैं। और फिर इसराएल में जितनी मनभावनी चीज़ें हैं, वे सब किसकी हैं? क्या वे तेरी और तेरे पिता के घराने की नहीं?”+ 21 तब शाऊल ने कहा, “यह तू क्या कह रहा है? मैं तो इसराएल के सबसे छोटे गोत्र बिन्यामीन से हूँ+ और मेरे कुल की तो बिन्यामीन के कुलों में कोई गिनती ही नहीं।”

22 फिर शमूएल, शाऊल और उसके सेवक को भोजन के कमरे में लाया, जहाँ करीब 30 आदमी बैठे थे। उसने शाऊल और उसके सेवक को सबसे खास जगह पर बिठाया। 23 शमूएल ने रसोइए से कहा, “गोश्‍त का वह हिस्सा ले आ जो मैंने तुझे दिया था और अलग रखने के लिए कहा था।” 24 तब रसोइया गया और बलिदान के गोश्‍त में से पाया उठाकर लाया और उसे शाऊल के सामने परोसा। शमूएल ने शाऊल से कहा, “तेरे सामने जो परोसा गया है वह तेरे लिए ही रखा गया था। इसे खा क्योंकि उन्होंने यह हिस्सा इस मौके पर खास तेरे लिए रखा था। मैंने उन्हें बताया था कि मैंने कुछ मेहमान बुलाए हैं।” तब शाऊल ने शमूएल के साथ बैठकर खाया। 25 फिर वे ऊँची जगह+ से नीचे शहर गए। घर पहुँचने पर शमूएल शाऊल से घर की छत पर बातें करता रहा। 26 अगले दिन वे सुबह तड़के उठे। छत पर शमूएल ने शाऊल को आवाज़ देकर कहा, “तैयार हो जा ताकि मैं तुझे विदा करूँ।” शाऊल तैयार हो गया और वे दोनों बाहर चले गए। 27 जब वे शहर से नीचे जा रहे थे तो शमूएल ने शाऊल से कहा, “अपने सेवक+ से कह कि वह आगे चलता रहे। मगर तू यहीं खड़ा रह। मैं तुझे बताऊँगा कि परमेश्‍वर ने तेरे लिए क्या संदेश दिया है।” तब वह सेवक आगे निकल गया।

10 इसके बाद शमूएल ने तेल की कुप्पी ली और शाऊल के सिर पर तेल उँडेला।+ उसने शाऊल को चूमा और उससे कहा, “यहोवा ने बेशक तेरा अभिषेक करके तुझे अपनी प्रजा+ का अगुवा ठहराया है।+ 2 आज जब तू मेरे पास से चला जाएगा तो तुझे बिन्यामीन के इलाके के सेलसह में राहेल की कब्र+ के पास दो आदमी मिलेंगे। वे तुझसे कहेंगे, ‘तू जिन गधियों को ढूँढ़ने गया था वे मिल गयी हैं। अब तेरे पिता को जानवरों की चिंता तो नहीं,+ बल्कि तेरी चिंता होने लगी है। वह कह रहा है, “मेरा बेटा अब तक नहीं लौटा, मैं क्या करूँ?”’ 3 फिर तू वहाँ से आगे बढ़कर ताबोर में बड़े पेड़ के पास जाना। वहाँ तुझे तीन आदमी मिलेंगे जो सच्चे परमेश्‍वर की उपासना करने बेतेल+ जा रहे होंगे। एक आदमी के हाथ में बकरी के तीन बच्चे होंगे, दूसरे के हाथ में तीन रोटियाँ और तीसरे के हाथ में दाख-मदिरा का एक बड़ा मटका होगा। 4 वे तेरी खैरियत पूछेंगे और फिर तुझे दो रोटियाँ देंगे और तू उनसे लेना। 5 इसके बाद तू सच्चे परमेश्‍वर की पहाड़ी पर पहुँचेगा, जहाँ पलिश्‍ती सैनिकों की एक चौकी है। जब तू शहर जाएगा तो तुझे भविष्यवक्‍ताओं की एक टोली मिलेगी जो ऊँची जगह से नीचे आ रही होगी। वे भविष्यवाणी कर रहे होंगे और उनके आगे-आगे एक तारोंवाला बाजा, डफली, बाँसुरी और सुरमंडल बजाया जा रहा होगा। 6 तब यहोवा की पवित्र शक्‍ति तुझ पर काम करेगी+ और तू भी उन भविष्यवक्‍ताओं के साथ भविष्यवाणी करने लगेगा और बिलकुल एक अलग इंसान नज़र आएगा।+ 7 जब ये सारी निशानियाँ पूरी हो जाएँ तो तुझे जो मुनासिब लगे वह करना क्योंकि सच्चा परमेश्‍वर तेरे साथ है। 8 फिर तू नीचे गिलगाल+ जाना और तेरे बाद मैं भी वहाँ आऊँगा ताकि होम-बलियाँ और शांति-बलियाँ चढ़ा सकूँ। तू वहाँ सात दिन तक मेरा इंतज़ार करना, फिर मैं आकर तुझे बताऊँगा कि तुझे क्या-क्या करना है।”

9 जैसे ही शाऊल शमूएल के पास से जाने के लिए मुड़ा, परमेश्‍वर शाऊल के मन का स्वभाव बदलने लगा जिस वजह से वह बिलकुल अलग नज़र आने लगा। वे सारी निशानियाँ उसी दिन पूरी हो गयीं। 10 वे वहाँ से पहाड़ी पर गए और वहाँ भविष्यवक्‍ताओं की एक टोली उससे मिली। उसी पल परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति शाऊल पर काम करने लगी+ और वह उनके साथ मिलकर भविष्यवाणी करने लगा।+ 11 जो लोग शाऊल को पहले से जानते थे, उन्होंने जब उसे भविष्यवक्‍ताओं के साथ भविष्यवाणी करते देखा तो वे एक-दूसरे से कहने लगे, “कीश के बेटे शाऊल को क्या हो गया है? क्या वह भी भविष्यवक्‍ता बन गया?” 12 तब वहाँ के एक आदमी ने कहा, “मगर इन लोगों का पिता कौन है?” इसी घटना से यह कहावत शुरू हुई, “क्या शाऊल भी भविष्यवक्‍ता बन गया?”+

13 जब शाऊल ने भविष्यवाणी करना खत्म किया तो वह ऊँची जगह पर गया। 14 बाद में शाऊल के पिता के भाई ने उससे और उसके सेवक से पूछा, “तुम दोनों कहाँ गए थे?” शाऊल ने कहा, “हम गधियों को ढूँढ़ने गए थे,+ मगर वे नहीं मिलीं। इसलिए हम शमूएल के पास गए।” 15 तब शाऊल के पिता के भाई ने उससे पूछा, “क्या मैं जान सकता हूँ कि शमूएल ने तुम्हें क्या बताया?” 16 शाऊल ने कहा, “उसने हमें बताया कि गधियाँ मिल गयी हैं।” मगर शाऊल ने उसे यह नहीं बताया कि शमूएल ने उसे राजा ठहराने की बात भी की थी।

17 इसके बाद, शमूएल ने इसराएलियों को मिसपा में यहोवा के सामने इकट्ठा होने के लिए कहा।+ 18 वहाँ उसने लोगों से कहा, “इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा ने कहा है, ‘मैंने ही इसराएल को मिस्र से निकाला था।+ मैंने तुम लोगों को मिस्र के हाथ से और उन सभी राज्यों से छुड़ाया था जो तुम पर ज़ुल्म करते थे। 19 मगर आज तुमने अपने परमेश्‍वर को ठुकरा दिया है,+ जिसने तुम्हें हर आफत और मुसीबत से बचाया था। तुमने मुझसे कहा, “नहीं, तुझे हम पर राज करने के लिए एक राजा ठहराना ही होगा।” इसलिए अब तुम सब अपने-अपने गोत्र और कुल के हिसाब से यहोवा के सामने खड़े हो जाओ।’”

20 फिर शमूएल ने इसराएल के सभी गोत्रों को आगे आने के लिए कहा।+ उन सबमें से बिन्यामीन गोत्र चुना गया।+ 21 फिर उसने बिन्यामीन गोत्र के सभी कुलों को आगे आने के लिए कहा। उनमें से मतरी का कुल चुना गया। आखिर में, उस कुल में से कीश का बेटा शाऊल चुना गया।+ मगर जब वे शाऊल को ढूँढ़ने लगे तो वह कहीं दिखायी नहीं दिया। 22 तब उन्होंने यहोवा से पूछा,+ “क्या वह आदमी यहाँ आया है?” यहोवा ने कहा, “देखो, वह उधर है, सामान के बीच छिपा है।” 23 तब वे दौड़कर सामान के पास गए और वहाँ से उसे ले आए। जब वह लोगों के बीच खड़ा हुआ तो वह सबसे ऊँचा दिखायी दिया, बाकी सब उसके कंधे तक ही आते थे।+ 24 शमूएल ने सब लोगों से कहा, “देखो, यहोवा ने तुम्हारे लिए कितना बढ़िया आदमी चुना है!+ इसके जैसा लोगों में और कोई नहीं है।” तब सब लोग ज़ोर-ज़ोर से कहने लगे, “राजा की जय हो! राजा की जय हो!”

25 शमूएल ने लोगों को बताया कि एक राजा को उनसे क्या-क्या माँग करने का हक है।+ फिर उसने ये सारी बातें एक किताब में लिखकर उसे यहोवा के सामने रख दिया। तब शमूएल ने सब लोगों को विदा किया और वे अपने-अपने घर लौट गए। 26 शाऊल भी अपने घर गिबा लौट गया और उसके साथ वे सभी सूरमा भी गए जिनके दिलों को यहोवा ने उभारा था। 27 मगर कुछ निकम्मे आदमी कहने लगे, “यह हमें क्या बचाएगा?”+ उन्होंने शाऊल को तुच्छ समझा और वे उसके लिए कोई तोहफा नहीं लाए।+ मगर शाऊल खामोश रहा।*

11 फिर अम्मोनी+ नाहाश, गिलाद में याबेश+ पर चढ़ाई करने आया और उसने छावनी डाली। याबेश के सभी आदमियों ने नाहाश से कहा, “तू हमारे साथ एक करार* कर और हम तेरी सेवा करेंगे।” 2 अम्मोनी नाहाश ने उनसे कहा, “मैं एक शर्त पर तुम लोगों के साथ करार करूँगा। वह यह कि तुम सबकी दायीं आँख निकाल दी जाएगी। मैं पूरे इसराएल को नीचा दिखाने के लिए ऐसा करूँगा।” 3 याबेश के प्रधानों ने उससे कहा, “हमें सात दिन का वक्‍त दे ताकि हम पूरे इसराएल देश में अपने दूत भेजें। अगर हमें कोई बचानेवाला नहीं मिला तो हम खुद को तेरे हवाले कर देंगे।” 4 कुछ समय बाद याबेश के दूत गिबा+ पहुँचे जहाँ शाऊल रहता था और वहाँ के लोगों को यह बात बतायी। तब सभी लोग चिल्ला-चिल्लाकर रोने लगे।

5 शाऊल बैलों के पीछे-पीछे खेत से आ रहा था। उसने पूछा, “लोगों को क्या हो गया है? वे सब क्यों रो रहे हैं?” तब उन्होंने शाऊल को याबेश के आदमियों का संदेश सुनाया। 6 जब शाऊल ने यह सब सुना तो परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति उस पर काम करने लगी+ और वह गुस्से से तमतमा उठा। 7 उसने एक जोड़ी बैल लिए और उनके टुकड़े-टुकड़े कर डाले। उसने वे टुकड़े उन दूतों के हाथ पूरे इसराएल में भेजे और उनसे यह कहलवाया, “जो कोई शाऊल और शमूएल की बात नहीं मानेगा, उसके बैलों का यही हाल किया जाएगा।” तब लोगों में यहोवा का डर समा गया, इसलिए वे सब एकजुट होकर शाऊल के पास आए। 8 शाऊल ने बेजेक में उनकी गिनती ली। उसने पाया कि उनमें 3,00,000 इसराएली आदमी हैं और 30,000 यहूदा के आदमी हैं। 9 शाऊल और उसकी सेना ने याबेश से आए दूतों से कहा, “तुम गिलाद में याबेश के आदमियों से कहना कि कल करीब दोपहर तक उन सबको दुश्‍मनों से बचा लिया जाएगा।” उन दूतों ने जाकर यह संदेश याबेश के आदमियों को सुनाया और वे खुशी से फूले न समाए। 10 फिर याबेश के आदमियों ने अम्मोनी लोगों से कहा, “कल हम खुद को तुम्हारे हवाले कर देंगे, फिर तुम्हें जो सही लगे वह हमारे साथ कर लेना।”+

11 अगले दिन, शाऊल ने सैनिकों को तीन दलों में बाँटा और वे सुबह के पहर* में अम्मोनियों की छावनी+ में घुस गए और उन्हें दोपहर तक घात करते रहे। जो लोग बच गए थे, वे सब तितर-बितर हो गए और उनमें से हर किसी को अकेले भागना पड़ा। 12 तब इसराएलियों ने शमूएल से कहा, “कौन कह रहा था कि शाऊल हम पर क्या राज करेगा।+ उन्हें हमारे हवाले कर दे, हम उन्हें मौत के घाट उतार देंगे।” 13 मगर शाऊल ने कहा, “नहीं, आज के दिन किसी की जान न ली जाए+ क्योंकि आज यहोवा ने इसराएल को दुश्‍मनों से बचाया है।”

14 बाद में शमूएल ने लोगों से कहा, “आओ हम गिलगाल+ चलें और एक बार फिर ऐलान करें कि शाऊल राजा है।”+ 15 तब सब लोग गिलगाल गए और वहाँ उन्होंने यहोवा के सामने शाऊल को राजा बनाया। फिर उन्होंने यहोवा के सामने शांति-बलियाँ चढ़ायीं+ और शाऊल और इसराएल के सभी आदमियों ने खुशी से जश्‍न मनाया।+

12 आखिर में शमूएल ने पूरे इसराएल से कहा, “देखो, मैंने तुम लोगों की माँग पूरी की है* और तुम पर राज करने के लिए एक राजा ठहराया है।+ 2 यही तुम्हारा राजा है जो तुम्हारी अगुवाई करता है।*+ जहाँ तक मेरी बात है, मैं तो बूढ़ा हो चुका हूँ, मेरे बाल पक गए हैं और मेरे बेटे तुम्हारे बीच हैं+ और मैं बचपन से लेकर आज तक तुम लोगों की अगुवाई करता आया हूँ।+ 3 देखो, मैं तुम्हारे सामने खड़ा हूँ, अगर किसी को मुझसे कोई शिकायत हो तो वह यहोवा और उसके अभिषिक्‍त जन के सामने बताए।+ क्या मैंने कभी किसी का बैल या गधा लिया है?+ क्या मैंने कभी किसी को धोखा दिया या किसी को कुचला है? क्या मैंने किसी के साथ अन्याय करने के लिए रिश्‍वत ली है?+ अगर मैंने ऐसा कुछ किया है तो बताओ, मैं तुम्हारी भरपाई कर दूँगा।”+ 4 जवाब में उन्होंने कहा, “नहीं, तूने न तो कभी हमारे साथ धोखाधड़ी की, न हमें कुचला और न ही किसी के हाथ से कुछ लिया।” 5 तब शमूएल ने उनसे कहा, “आज यहोवा और उसका अभिषिक्‍त जन इस बात के गवाह हैं कि तुम लोगों ने मुझमें कोई दोष नहीं पाया है।” उन्होंने कहा, “हाँ, वह इस बात का गवाह है।”

6 तब शमूएल ने लोगों से कहा, “बेशक यहोवा इस बात का गवाह है, जिसने मूसा और हारून को अपनी सेवा के लिए ठहराया था और जो तुम्हारे पुरखों को मिस्र से निकाल लाया था।+ 7 अब तुम सब आगे आओ। यहोवा ने तुम्हारे लिए और तुम्हारे पुरखों के लिए जितने नेक काम किए थे, उन सबको देखते हुए मैं यहोवा के सामने तुम्हारा न्याय करूँगा।

8 जब याकूब मिस्र गया+ और तुम्हारे पुरखों ने मदद के लिए यहोवा को पुकारा,+ तो यहोवा ने बिना देर किए मूसा और हारून को भेजा+ ताकि वे तुम्हारे पुरखों को मिस्र से निकाल लाएँ और उन्हें इस देश में बसाएँ।+ 9 मगर तुम्हारे पुरखे अपने परमेश्‍वर यहोवा को भूल गए और उसने उन्हें हासोर के सेनापति सीसरा,+ पलिश्‍तियों+ और मोआब के राजा+ के हाथों बेच दिया।+ ये दुश्‍मन उनके साथ लड़ते थे। 10 इसलिए वे यह कहकर यहोवा को मदद के लिए पुकारते थे,+ ‘हमने यहोवा को छोड़कर बाल देवताओं+ और अशतोरेत की मूरतों+ की पूजा करके पाप किया है।+ अब हे परमेश्‍वर, हमें दुश्‍मनों से बचा ले ताकि हम तेरी सेवा करें।’ 11 तब यहोवा ने यरुब्बाल,+ बदान, यिप्तह+ और शमूएल+ को भेजा और तुम लोगों को आस-पास के सभी दुश्‍मनों से बचाया ताकि तुम महफूज़ बसे रहो।+ 12 जब तुमने देखा कि अम्मोनियों का राजा नाहाश+ तुम पर चढ़ाई करने आया है, तो तुम मुझसे कहते रहे, ‘हमें हर हाल में एक राजा चाहिए!’+ इसके बावजूद कि तुम्हारा परमेश्‍वर यहोवा तुम्हारा राजा है।+ 13 तुमने राजा की माँग की है न? ये रहा तुम्हारा राजा जिसे तुमने चुना है। देखो, यहोवा ने इसे तुम पर राजा ठहराया है।+ 14 अगर तुम यहोवा का डर मानोगे,+ उसकी सेवा करोगे,+ उसकी आज्ञा मानोगे+ और यहोवा के आदेश के खिलाफ बगावत नहीं करोगे और तुम्हारा राजा और तुम अपने परमेश्‍वर यहोवा के पीछे चलते रहोगे, तो तुम सबका भला होगा। 15 लेकिन अगर तुम यहोवा की आज्ञा नहीं मानोगे और यहोवा के आदेश के खिलाफ बगावत करोगे तो यहोवा तुम्हें और तुम्हारे पिताओं को सज़ा देगा।+ 16 अब तुम सब आगे आओ और देखो कि यहोवा तुम्हारी आँखों के सामने कैसा अजूबा करता है। 17 यह गेहूँ की कटाई का मौसम है, मगर मैं यहोवा से बिनती करूँगा कि वह बादल गरजाए और बारिश कराए। तब तुम्हें एहसास हो जाएगा और तुम समझ जाओगे कि तुमने अपने लिए राजा की माँग करके यहोवा की नज़र में कैसा दुष्ट काम किया है।”+

18 इसके बाद, शमूएल ने यहोवा को पुकारा और यहोवा ने उस दिन बादल गरजाए और बारिश करायी। यह देखकर सब लोग यहोवा और शमूएल से बहुत डरने लगे। 19 उन्होंने शमूएल से कहा, “अपने सेवकों की तरफ से अपने परमेश्‍वर यहोवा से प्रार्थना कर+ ताकि हम मर न जाएँ। हमने अपने लिए राजा की माँग करके वाकई दुष्ट काम किया है, अपने पाप और भी बढ़ा लिए हैं।”

20 तब शमूएल ने लोगों से कहा, “डरो मत। यह सच है कि तुम लोगों ने यह दुष्ट काम किया है, मगर अब तुम यहोवा के पीछे चलना मत छोड़ो+ और पूरे दिल से यहोवा की सेवा करो।+ 21 तुम उन खोखली बातों के पीछे मत भागो*+ जिनसे कोई फायदा नहीं+ और जो तुम्हें बचा नहीं सकतीं क्योंकि वे खोखली बातें हैं।* 22 यहोवा अपने महान नाम की खातिर+ कभी अपने लोगों को नहीं छोड़ेगा,+ क्योंकि यहोवा ने अपनी मरज़ी से तुम्हें अपने लोग चुना है।+ 23 और मैं भी तुम लोगों की खातिर प्रार्थना करना कभी नहीं छोड़ूँगा। मैं ऐसा करने की कभी सोच भी नहीं सकता क्योंकि यह यहोवा के खिलाफ पाप होगा। मैं आगे भी तुम लोगों को भले और सही रास्ते पर चलने की हिदायत देता रहूँगा। 24 बस तुम यहोवा का डर मानो+ और पूरे दिल से विश्‍वासयोग्य रहकर* उसकी सेवा करते रहो क्योंकि देखो, उसने तुम्हारे लिए कैसे बड़े-बड़े काम किए हैं।+ 25 लेकिन अगर तुम ढीठ होकर बुरे काम करते रहोगे, तो तुम्हारा और तुम्हारे राजा का सफाया कर दिया जाएगा।”+

13 जब शाऊल राजा बना तब वह . . .* साल का था।+ उसे इसराएल पर राज करते दो साल हुए थे। 2 शाऊल ने इसराएलियों में से 3,000 आदमी चुने और बाकी लोगों को अपने-अपने तंबू में भेज दिया। उन 3,000 आदमियों में से 2,000 आदमी शाऊल के साथ मिकमाश में और बेतेल के पास पहाड़ी प्रदेश में थे और 1,000 आदमी योनातान+ के साथ बिन्यामीन के गिबा+ में थे। 3 योनातान ने पलिश्‍तियों की उस चौकी पर फतह हासिल की+ जो गिबा+ में थी और यह खबर पलिश्‍तियों ने सुनी। शाऊल ने पूरे इसराएल देश में नरसिंगा फुँकवाकर+ यह ऐलान करवाया, “इब्री लोगो, सुनो!” 4 तब पूरे इसराएल ने यह खबर सुनी, “शाऊल ने पलिश्‍तियों की एक चौकी पर फतह हासिल की है और अब पलिश्‍ती, इसराएल से नफरत करने लगे हैं।” इसलिए इसराएली लोगों को आदेश दिया गया कि वे गिलगाल+ में शाऊल के पास इकट्ठा हों।

5 उधर पलिश्‍ती भी इसराएलियों से लड़ने के लिए इकट्ठा हुए। उनकी सेना में 30,000 युद्ध-रथ और 6,000 घुड़सवार थे। उनके सैनिकों की गिनती इतनी थी कि वे समुंदर किनारे की बालू के किनकों जितने लग रहे थे।+ उन्होंने ऊपर चढ़कर बेत-आवेन+ के पूरब में मिकमाश में छावनी डाली। 6 इसराएल के आदमियों ने देखा कि अब उन पर बड़ा संकट आ गया है। डर और चिंता से उनका बुरा हाल हो गया इसलिए वे भागकर गुफाओं, गड्‌ढों, चट्टानों, तहखानों और कुंडों में जा छिपे।+ 7 कुछ इब्री लोग तो यरदन पार करके गाद और गिलाद के इलाके में भाग गए।+ मगर शाऊल गिलगाल में ही रहा और जितने लोग उसके साथ थे वे सब डर के मारे काँप रहे थे। 8 शाऊल शमूएल के तय समय तक सात दिन इंतज़ार करता रहा, मगर शमूएल गिलगाल नहीं पहुँचा और लोग शाऊल को छोड़कर इधर-उधर जाने लगे थे। 9 आखिरकार शाऊल ने कहा, “होम-बलि और शांति-बलियाँ मेरे पास लाओ।” फिर उसने खुद होम-बलि चढ़ा दी।+

10 मगर जैसे ही उसने होम-बलि चढ़ाने का काम पूरा किया, शमूएल आ गया। तब शाऊल जाकर शमूएल से मिला और उससे दुआ-सलाम किया। 11 शमूएल ने उससे कहा, “यह तूने क्या किया?” शाऊल ने कहा, “लोग मुझे छोड़कर जाने लगे थे+ और तू भी तय समय के अंदर नहीं आया और पलिश्‍ती मिकमाश में इकट्ठा होने लगे थे।+ 12 मैंने सोचा अब पलिश्‍ती नीचे गिलगाल उतर आएँगे और मुझ पर हमला कर देंगे और मैंने अब तक यहोवा की कृपा के लिए उससे बिनती नहीं की है। इसलिए मुझे मजबूर होकर होम-बलि चढ़ानी पड़ी।”

13 तब शमूएल ने शाऊल से कहा, “तूने बड़ी मूर्खता का काम किया है। तूने अपने परमेश्‍वर यहोवा की आज्ञा नहीं मानी।+ अगर मानी होती, तो यहोवा इसराएल पर तेरा राज सदा कायम रखता। 14 मगर अब तेरा राज कायम नहीं रहेगा।+ यहोवा अपने लिए एक ऐसा आदमी ढूँढ़ लेगा जो उसके दिल को भाता है+ और यहोवा उसे अपने लोगों का अगुवा ठहराएगा+ क्योंकि तूने यहोवा की आज्ञा नहीं मानी।”+

15 इसके बाद शमूएल गिलगाल से निकला और बिन्यामीन के गिबा गया। शाऊल ने अपने सैनिकों की गिनती ली और पाया कि करीब 600 आदमी उसके साथ रह गए हैं।+ 16 शाऊल और उसके बेटे योनातान ने और उनके साथवाले आदमियों ने बिन्यामीन के गेबा+ में छावनी डाली। और पलिश्‍ती लोग मिकमाश में छावनी डाले हुए थे।+ 17 पलिश्‍ती सेना में से लूटमार करनेवाले सैनिक तीन दल बनाकर अपनी छावनी से निकलते थे। एक दल ओप्रा जानेवाले रास्ते से शूआल प्रांत में जाता था, 18 दूसरा दल बेत-होरोन+ जानेवाला रास्ता लेता था और तीसरा दल उस सरहद की तरफ जानेवाला रास्ता लेता था जिसके सामने सबोईम घाटी है और जो वीराने की तरफ है।

19 पूरे इसराएल देश में एक भी धातु-कारीगर नहीं था क्योंकि पलिश्‍तियों ने कहा, “ताकि इब्री लोग तलवार या भाला न बना सकें।” 20 सब इसराएलियों को हल के फाल, गैंती, कुल्हाड़ी और हँसिए पर धार लगाने पलिश्‍तियों के पास जाना पड़ता था। 21 हल के फाल, गैंती, तीन-नोंकवाले औज़ार और कुल्हाड़ी पर धार चढ़ाने और डंडे पर पैना लगवाने की कीमत एक पिम* थी। 22 यही वजह थी कि युद्ध के दिन शाऊल और योनातान के साथवाले आदमियों में से किसी के पास भी तलवार या भाला नहीं था।+ सिर्फ शाऊल और उसके बेटे योनातान के पास हथियार थे।

23 पलिश्‍तियों की एक चौकी मिकमाश+ की तंग घाटी में जा चुकी थी।

14 एक दिन शाऊल के बेटे योनातान+ ने अपने हथियार ढोनेवाले सेवक से कहा, “चलो, हम उस पार पलिश्‍तियों की चौकी के पास चलते हैं।” मगर उसने अपने पिता को कुछ नहीं बताया। 2 उस वक्‍त शाऊल गिबा+ शहर के बाहर मिगरोन में अनार के पेड़ के नीचे रह रहा था और उसके साथ करीब 600 आदमी थे।+ 3 (अहीतूब का बेटा अहियाह+ एपोद पहने हुए था।+ अहीतूब, ईकाबोद का भाई+ और फिनेहास का बेटा+ था और फिनेहास, शीलो में यहोवा की सेवा करनेवाले याजक+ एली का बेटा+ था।) उन आदमियों को पता नहीं था कि योनातान पलिश्‍तियों के पास गया हुआ है। 4 योनातान पलिश्‍तियों की चौकी तक जाने के लिए जो घाटी पार कर रहा था, उसके दोनों तरफ एक-एक नुकीली चट्टान थी। एक चट्टान का नाम बोसेस था और दूसरी का सेने। 5 एक चट्टान उत्तर में खंभे की तरह सीधी खड़ी थी और उसके सामने मिकमाश था और दूसरी चट्टान दक्षिण में थी और उसके सामने गेबा था।+

6 योनातान ने अपने हथियार ढोनेवाले सेवक से कहा, “चलो हम उस पार उन खतनारहित आदमियों+ की चौकी के पास चलते हैं। हो सकता है यहोवा हमारी मदद करे क्योंकि चाहे हम गिनती में थोड़े हों या ज़्यादा, यहोवा हमारे ज़रिए उद्धार दिला सकता है, उसके लिए कोई बात रुकावट नहीं है।”+ 7 सेवक ने उससे कहा, “तेरा दिल जो कहे वह कर। तू जहाँ चाहे वहाँ चल, मैं तेरे पीछे-पीछे चलूँगा।” 8 योनातान ने कहा, “हम उस पार उन आदमियों के पास जाएँगे ताकि हम उन्हें नज़र आएँ। 9 अगर वे कहते हैं, ‘तुम हमारे आने तक वहीं खड़े रहना!’ तो हम वहीं खड़े रहेंगे। उनके पास नहीं जाएँगे। 10 लेकिन अगर वे कहते हैं, ‘आओ, हम पर हमला करो!’ तो हम ऊपर जाएँगे क्योंकि यहोवा उन्हें हमारे हाथ में कर देगा। यही हमारे लिए निशानी होगी।”+

11 फिर वे दोनों जाकर ऐसी जगह खड़े हो गए कि पलिश्‍ती लोग अपनी चौकी से उन्हें देख सकें। पलिश्‍तियों ने उन्हें देखकर कहा, “वह देखो, इब्री आदमी अपने बिल में से निकलकर आ रहे हैं, जहाँ वे दुबके हुए थे।”+ 12 तब पलिश्‍तियों की चौकी पर तैनात आदमियों ने योनातान और उसके सेवक से कहा, “आओ, आओ, हम तुम्हें सबक सिखाते हैं!”+ यह सुनते ही योनातान ने अपने सेवक से कहा, “मैं आगे चलता हूँ, तू मेरे पीछे-पीछे आ। यहोवा उन्हें इसराएल के हाथ में कर देगा।”+ 13 फिर योनातान अपने हाथों और पैरों के बल ऊपर चढ़कर पलिश्‍तियों के पास गया। उसके पीछे-पीछे उसका सेवक भी चढ़कर गया। योनातान पलिश्‍तियों पर वार करने लगा और उसका सेवक भी उसके पीछे-पीछे उन्हें घात करता गया। 14 योनातान और उसके सेवक ने पहली बार जो हमला किया उसमें करीब 20 पलिश्‍ती मारे गए और वह भी आधे एकड़ ज़मीन की लंबाई के अंदर।*

15 तब उन सभी पलिश्‍तियों में आतंक फैल गया जो चौकी में तैनात थे और जो मैदान में छावनी डाले हुए थे। यहाँ तक कि उनके लुटेरे-दलों+ में भी खौफ समा गया और ज़मीन काँपने लगी। इस सबके पीछे परमेश्‍वर का हाथ था। 16 शाऊल के जो पहरेदार बिन्यामीन के गिबा में थे,+ उन्होंने देखा कि पलिश्‍तियों में खलबली मची हुई है और वह चारों तरफ फैलती जा रही है।+

17 शाऊल ने अपने आदमियों से कहा, “ज़रा गिनती लेकर देखो कि हमारे यहाँ से कौन गया है।” जब उन्होंने गिनती ली तो देखा कि योनातान और उसका हथियार ढोनेवाला सेवक गायब हैं। 18 तब शाऊल ने अहियाह+ से कहा, “सच्चे परमेश्‍वर का संदूक यहाँ ले आ!” (उस वक्‍त सच्चे परमेश्‍वर का संदूक इसराएलियों के पास था।) 19 जब शाऊल याजक से बात कर रहा था, तो वहाँ पलिश्‍तियों की छावनी में और ज़्यादा हाहाकार मचने लगा। शाऊल ने याजक से कहा, “तू यह काम बंद कर।”* 20 फिर शाऊल और उसके सभी आदमी इकट्ठा हुए और पलिश्‍तियों से युद्ध करने उनकी छावनी में गए। वहाँ पहुँचने पर उन्होंने देखा कि पलिश्‍ती एक-दूसरे पर ही तलवार चला रहे हैं और हर तरफ बड़ी खलबली मची हुई है। 21 और जो इब्री लोग पहले पलिश्‍तियों की तरफ हो गए थे और उनके साथ छावनी में थे, वे अब उन्हें छोड़कर शाऊल और योनातान के साथवाले इसराएलियों की तरफ आ गए। 22 और जितने इसराएली आदमी एप्रैम के पहाड़ी प्रदेश में जा छिपे थे+ उन्होंने जब सुना कि पलिश्‍ती भाग गए हैं तो वे भी युद्ध में शामिल होकर पलिश्‍तियों का पीछा करने लगे। 23 इस तरह यहोवा ने उस दिन इसराएल को बचाया+ और यह लड़ाई दूर बेत-आवेन तक चलती रही।+

24 मगर उस दिन इसराएली आदमियों की हालत पस्त हो चुकी थी क्योंकि शाऊल ने उन्हें यह शपथ धरायी थी, “अगर किसी आदमी ने शाम से पहले, जब तक मैं अपने दुश्‍मनों से बदला नहीं ले लेता, एक निवाला भी खाया तो वह शापित हो!” इसलिए किसी भी आदमी ने कुछ नहीं खाया था।+

25 सभी इसराएली आदमी* एक जंगल में पहुँचे और वहाँ ज़मीन पर शहद पड़ा था। 26 उन्होंने देखा कि शहद टपक रहा है, मगर उनमें से किसी ने शहद नहीं खाया क्योंकि वे सभी शपथ की वजह से डर गए थे। 27 मगर योनातान नहीं जानता था कि उसके पिता ने लोगों को शपथ धरायी है,+ इसलिए उसने अपनी लाठी बढ़ाकर उसका छोर मधुमक्खी के छत्ते में डाला। फिर जब उसने हाथ से शहद लेकर मुँह में डाला तो उसकी जान में जान आयी।* 28 तभी लोगों में से एक आदमी ने उससे कहा, “तेरे पिता ने सब लोगों को एक शपथ धरायी है और सख्ती से कहा है कि अगर आज किसी ने कुछ खाया तो वह शापित होगा!+ इसीलिए लोगों की हालत इतनी पस्त है।” 29 मगर योनातान ने कहा, “मेरा पिता देश पर बड़ा संकट ले आया है! देखो, मैंने ज़रा-सा शहद चखा और मेरी जान में जान आ गयी। 30 अगर लोगों को दुश्‍मनों की लूट में से जी-भरकर खाने दिया जाता तो कितना अच्छा होता!+ हम और भी बड़ी तादाद में पलिश्‍तियों को मार डालते।”

31 उस दिन वे मिकमाश से अय्यालोन+ तक पलिश्‍तियों को मारते गए और वे थककर चूर हो गए थे। 32 इसलिए वे सब लूट के माल पर टूट पड़े। वे भेड़ों, गाय-बैलों और बछड़ों को पकड़कर ज़मीन पर हलाल करने लगे और खून के साथ ही गोश्‍त खाने लगे।+ 33 तब शाऊल को बताया गया कि लोग खून के साथ गोश्‍त खा रहे हैं और यहोवा के खिलाफ पाप कर रहे हैं।+ इस पर उसने कहा, “तुम लोगों ने विश्‍वासघात किया है। तुम जल्दी से एक बड़ा पत्थर लुढ़काकर मेरे पास ले आओ।” 34 फिर उसने कहा, “लोगों के पास जाओ और उनसे कहो, ‘तुम सब अपना-अपना बैल और अपनी-अपनी भेड़ यहाँ लाकर हलाल करो और फिर उसे खाओ। तुम खून के साथ गोश्‍त खाकर यहोवा के खिलाफ पाप मत करो।’”+ तब उस रात हर कोई अपना बैल शाऊल के पास ले गया और वहाँ उसे हलाल किया। 35 फिर शाऊल ने यहोवा के लिए एक वेदी बनायी।+ यह वह पहली वेदी थी जो उसने यहोवा के लिए बनायी थी।

36 बाद में शाऊल ने अपने आदमियों से कहा, “चलो हम रात में पलिश्‍तियों पर हमला करते हैं और सुबह उजाला होने तक उन्हें लूटते हैं। हम उनमें से एक को भी ज़िंदा नहीं छोड़ेंगे।” उन्होंने कहा, “तुझे जो सही लगे वह कर।” फिर याजक ने कहा, “आओ, हम इस जगह पर सच्चे परमेश्‍वर से पूछें।”+ 37 तब शाऊल ने परमेश्‍वर से सलाह की, “क्या मुझे पलिश्‍तियों पर हमला करना चाहिए?+ क्या तू उन्हें इसराएल के हाथ में कर देगा?” मगर परमेश्‍वर ने उस दिन उसे कोई जवाब नहीं दिया। 38 तब शाऊल ने कहा, “लोगों के सभी प्रधानो, यहाँ आओ और पता लगाओ कि आज हमारे बीच कौन-सा पाप हुआ है। 39 मैं यहोवा के जीवन की शपथ खाकर कहता हूँ, जिसने इसराएल को बचाया है, जिस किसी ने पाप किया है उसे मौत की सज़ा दी जाएगी, फिर चाहे वह मेरा बेटा योनातान ही क्यों न हो।” मगर लोगों में से किसी ने कुछ नहीं कहा। 40 तब शाऊल ने लोगों से कहा, “तुम सब एक तरफ खड़े हो जाओ, मैं और मेरा बेटा योनातान दूसरी तरफ खड़े होंगे।” लोगों ने कहा, “तुझे जो सही लगे वही कर।”

41 तब शाऊल ने यहोवा से कहा, “हे इसराएल के परमेश्‍वर, तुम्मीम+ के ज़रिए हमें जवाब दे!” तब योनातान और शाऊल चुने गए और लोग छूट गए। 42 फिर शाऊल ने कहा, “अब चिट्ठियाँ डालकर+ देखो कि मैं कसूरवार हूँ या मेरा बेटा योनातान।” चिट्ठी योनातान के नाम पर निकली। 43 शाऊल ने योनातान से कहा, “मुझे बता, तूने क्या पाप किया है?” योनातान ने कहा, “मैंने अपनी लाठी के छोर से बस थोड़ा-सा शहद चखा।+ हाँ, मैं कसूरवार हूँ। मैं मरने के लिए तैयार हूँ!”

44 तब शाऊल ने कहा, “योनातान, अगर तुझे मौत की सज़ा न मिली तो परमेश्‍वर मुझे कड़ी-से-कड़ी सज़ा दे।”+ 45 मगर लोगों ने शाऊल से कहा, “क्या योनातान मार डाला जाएगा जिसने इसराएल को इतनी बड़ी जीत दिलायी* है?+ नहीं, यह हरगिज़ नहीं हो सकता! यहोवा के जीवन की शपथ, उसका बाल भी बाँका नहीं होगा क्योंकि उसने आज के दिन परमेश्‍वर के साथ मिलकर काम किया है।”+ ऐसा कहकर लोगों ने योनातान को बचा लिया* और उसे मौत की सज़ा नहीं दी गयी।

46 इसके बाद शाऊल ने पलिश्‍तियों का पीछा करना छोड़ दिया और वे अपने इलाके में लौट गए।

47 शाऊल ने इसराएल पर अपनी हुकूमत मज़बूत की और आस-पास के सभी दुश्‍मनों से युद्ध किया। उसने मोआबियों,+ अम्मोनियों,+ एदोमियों+ और पलिश्‍तियों+ से और सोबा के राजाओं+ से युद्ध किया। वह जहाँ भी गया दुश्‍मनों को हराता गया। 48 उसने बड़ी दिलेरी से युद्ध किया और अमालेकियों पर जीत हासिल की+ और इसराएल को लुटेरों के हाथ से बचाया।

49 शाऊल के बेटों के नाम हैं योनातान, यिश्‍वी और मलकीशूआ।+ उसकी दो बेटियाँ थीं, बड़ी का नाम मेरब+ था और छोटी का मीकल।+ 50 शाऊल की पत्नी का नाम अहीनोअम था जो अहीमास की बेटी थी। शाऊल के सेनापति का नाम अब्नेर+ था जो उसके पिता के भाई नेर का बेटा था। 51 शाऊल का पिता कीश+ था और अब्नेर का पिता नेर,+ अबीएल का बेटा था।

52 शाऊल जब तक जीया तब तक उसके और पलिश्‍तियों के बीच घमासान युद्ध होता रहा।+ शाऊल जब भी किसी ताकतवर या बहादुर आदमी को देखता तो उसे अपनी सेना में भरती कर लेता था।+

15 फिर शमूएल ने शाऊल से कहा, “यहोवा ने मुझे तेरे पास भेजा था कि मैं तेरा अभिषेक करके तुझे उसकी प्रजा इसराएल पर राजा ठहराऊँ।+ अब यहोवा का संदेश सुन।+ 2 सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा कहता है, ‘मैं अमालेकियों से उनके कामों का हिसाब लूँगा क्योंकि जब इसराएली मिस्र से निकलकर आ रहे थे तब अमालेकियों ने रास्ते में उनका विरोध किया था।+ 3 इसलिए अब तू जा और अमालेकियों को नाश कर दे।+ उन्हें और उनका जो कुछ है, सब पूरी तरह मिटा दे।+ तू उन्हें ज़िंदा मत छोड़ना,* चाहे आदमी हों या औरत, बड़े बच्चे हों या दूध-पीते बच्चे, बैल हों या भेड़ें, ऊँट हों या गधे, सबको मार डालना।’”+ 4 शाऊल ने अपने आदमियों को बुलाया और तलाईम में उनकी गिनती ली। उनमें यहूदा गोत्र से 10,000 आदमी थे और बाकी गोत्रों से 2,00,000 पैदल सैनिक।+

5 शाऊल अपनी सेना को लेकर बढ़ता हुआ अमालेकियों के शहर तक पहुँच गया और उसने कुछ सैनिकों को घाटी के पास घात में बिठाया। 6 फिर शाऊल ने केनी लोगों+ से कहा, “तुम अमालेकियों के इलाके से निकल जाओ। कहीं ऐसा न हो कि मैं उनके साथ-साथ तुम्हारा भी सफाया कर दूँ।+ जब इसराएली मिस्र से निकलकर आ रहे थे तब तुमने उन सब पर कृपा* की थी,+ इसलिए मैं तुम्हें नाश नहीं करूँगा।” इसलिए केनी लोग अमालेकियों का इलाका छोड़कर चले गए। 7 इसके बाद शाऊल ने अमालेकियों पर हमला किया+ और वह उन्हें हवीला+ से लेकर शूर+ तक घात करता गया जो मिस्र के पास है। 8 उसने अमालेकियों के राजा अगाग+ को ज़िंदा पकड़ लिया, मगर बाकी सब लोगों को तलवार से मारकर मिटा दिया।+ 9 शाऊल और उसके लोगों ने अगाग को बख्श दिया* और अमालेकियों की सबसे अच्छी और मोटी-ताज़ी भेड़-बकरियों, मेढ़ों और गाय-बैलों को भी छोड़ दिया। उन्होंने वह सबकुछ छोड़ दिया जो अच्छा था।+ वे उनका नाश नहीं करना चाहते थे। मगर अमालेकियों का जो कुछ बेकार था और किसी काम का नहीं था, उसे उन्होंने नाश कर दिया।

10 फिर यहोवा का यह संदेश शमूएल के पास पहुँचा, 11 “मुझे दुख* है कि मैंने शाऊल को राजा बनाया। शाऊल ने मेरे पीछे चलना छोड़ दिया है। मैंने उसे जो करने के लिए कहा था उसने वह नहीं किया।”+ शमूएल बहुत निराश हो गया और सारी रात यहोवा की दुहाई देता रहा।+ 12 अगले दिन शमूएल जब सुबह तड़के उठा ताकि जाकर शाऊल से मिले, तो उसे बताया गया, “शाऊल करमेल+ गया था और वहाँ उसने अपने सम्मान में एक शानदार खंभा खड़ा करवाया।+ इसके बाद वह वहाँ से गिलगाल चला गया।” 13 आखिरकार जब शमूएल शाऊल के पास आया तो शाऊल ने उससे कहा, “यहोवा तुझे आशीष दे। यहोवा ने मुझसे जो कहा था, वह मैंने कर दिया।” 14 मगर शमूएल ने उससे कहा, “अच्छा? तो फिर यह भेड़-बकरियों के मिमियाने और गाय-बैलों के रँभाने की आवाज़ कहाँ से आ रही है?”+ 15 शाऊल ने कहा, “वे सब जानवर अमालेकियों के यहाँ से लाए गए हैं। जब सैनिकों ने अच्छी-अच्छी भेड़-बकरियाँ और गाय-बैल देखे, तो उन्हें छोड़ दिया* ताकि वे तेरे परमेश्‍वर यहोवा के लिए बलि चढ़ाएँ। मगर बाकी सबको हमने नाश कर दिया।” 16 तब शमूएल ने शाऊल से कहा, “बस, बहुत हो चुका! मैं तुझे बताता हूँ कि कल रात यहोवा ने मुझसे क्या कहा।”+ शाऊल ने कहा, “ठीक है, बता!”

17 शमूएल ने कहा, “जब तुझे इसराएल के गोत्रों पर अगुवा ठहराया गया था और यहोवा ने तेरा अभिषेक करके तुझे इसराएल का राजा बनाया था,+ तब तू खुद को कितना छोटा समझता था!+ 18 मगर अब जब यहोवा ने तुझे यह काम सौंपा कि तू जाकर उन पापी अमालेकियों को नाश कर दे+ और उनसे तब तक लड़ता रह जब तक तू उनका पूरी तरह सफाया नहीं कर देता,+ 19 तो तूने क्यों यहोवा की आज्ञा नहीं मानी? तू लालच में आकर उनकी लूट पर टूट पड़ा+ और तूने वह काम किया जो यहोवा की नज़र में बुरा है!”

20 शाऊल ने शमूएल से कहा, “मगर मैंने तो यहोवा की आज्ञा मानी है! यहोवा ने मुझे जो काम सौंपा था, उसे करने के लिए मैं गया था। मैंने अमालेकियों को नाश कर दिया है और मैं उनके राजा अगाग को पकड़ लाया हूँ।+ 21 मगर लोग उन जानवरों में से, जिन्हें नाश करना था, अच्छी-अच्छी भेड़ों और गाय-बैलों को ले आए ताकि गिलगाल में तेरे परमेश्‍वर यहोवा के लिए इनकी बलि चढ़ा सकें।”+

22 तब शमूएल ने कहा, “क्या यहोवा को होम-बलियों और बलिदानों से उतनी खुशी मिलती है+ जितनी उसकी बात मानने से? देख, यहोवा की आज्ञा मानना बलिदान चढ़ाने से कहीं बढ़कर है+ और उसकी बात पर ध्यान देना मेढ़ों की चरबी+ अर्पित करने से कई गुना बेहतर है 23 क्योंकि परमेश्‍वर से बगावत+ करना उतना ही बड़ा पाप है जितना कि ज्योतिषी का काम करना है+ और अपनी हद पार करके गुस्ताखी करना, जादू-टोना और मूर्तिपूजा* के बराबर है। तूने यहोवा की आज्ञा ठुकरा दी है,+ इसलिए उसने भी तुझे ठुकरा दिया है कि तू राजा न रहे।”+

24 तब शाऊल ने शमूएल से कहा, “मैंने पाप किया है। मैंने यहोवा के आदेश के खिलाफ काम किया और तेरी हिदायतें नहीं मानीं, क्योंकि मैं लोगों से डर गया था और मैंने उनकी बात मान ली। 25 अब तू दया करके मेरा पाप माफ कर दे और मेरे साथ चल ताकि मैं यहोवा को दंडवत करूँ।”+ 26 मगर शमूएल ने शाऊल से कहा, “मैं तेरे साथ नहीं आऊँगा, क्योंकि तूने यहोवा की आज्ञा ठुकरा दी है और यहोवा ने भी तुझे ठुकरा दिया है और तू इसराएल पर आगे राजा नहीं रहेगा।”+ 27 जैसे ही शमूएल मुड़कर जाने लगा, शाऊल ने उसके बिन आस्तीन के बागे का छोर पकड़ लिया और बागे का छोर फटकर अलग हो गया। 28 तब शमूएल ने उससे कहा, “इसी तरह आज यहोवा ने इसराएल का राज तुझसे छीनकर अलग कर दिया है। वह इसे तेरे किसी संगी को दे देगा जो तुझसे ज़्यादा अच्छा है।+ 29 इसराएल के महाप्रतापी+ की बात कभी झूठी साबित नहीं होगी+ और उसने जो सोचा है उसे कभी नहीं बदलेगा,* क्योंकि वह कोई अदना इंसान नहीं कि अपनी सोच बदले।”*+

30 तब शाऊल ने कहा, “मैंने पाप किया है। मगर मेहरबानी करके मेरे लोगों के प्रधानों के सामने और इसराएल के सामने मेरा सम्मान कर। मेरे साथ लौट ताकि मैं तेरे परमेश्‍वर यहोवा को दंडवत करूँ।”+ 31 तब शमूएल शाऊल के साथ लौटा और शाऊल ने यहोवा को दंडवत किया। 32 शमूएल ने कहा, “अमालेकियों के राजा अगाग को मेरे पास लाओ।” तब अगाग डरते-झिझकते* शमूएल के पास गया, मगर फिर उसने मन में सोचा, ‘अब तो ज़रूर मुझ पर से मौत का खतरा टल गया होगा।’ 33 मगर शमूएल ने उससे कहा, “जैसे तूने अपनी तलवार से बच्चों को मारकर उनकी माँओं को बेऔलाद कर दिया, उसी तरह तुझे भी मार डाला जाएगा ताकि तेरी माँ भी बेऔलाद हो जाए।” यह कहने के बाद शमूएल ने गिलगाल में यहोवा के सामने अगाग के टुकड़े-टुकड़े कर दिए।+

34 फिर शमूएल रामाह चला गया और शाऊल गिबा में अपने घर लौट गया। 35 इसके बाद शमूएल ने जीते-जी कभी शाऊल का मुँह नहीं देखा। वह शाऊल की वजह से शोक मनाता रहा।+ यहोवा को भी दुख हुआ कि उसने शाऊल को इसराएल का राजा बनाया था।+

16 कुछ समय बीतने पर यहोवा ने शमूएल से कहा, “तू कब तक शाऊल के लिए शोक मनाता रहेगा?+ मैंने उसे ठुकरा दिया है। वह आगे इसराएल का राजा नहीं रहेगा।+ तू सींग में तेल+ भरकर बेतलेहेम के रहनेवाले यिशै+ के घर जा क्योंकि मैंने उसके बेटों में से एक को राजा चुना है।”+ 2 मगर शमूएल ने कहा, “मैं वहाँ कैसे जा सकता हूँ? अगर शाऊल को पता चल गया तो वह मुझे जान से मार डालेगा।”+ यहोवा ने उससे कहा, “तू अपने साथ एक गाय लेकर जाना और कहना, ‘मैं यहोवा के लिए बलिदान चढ़ाने आया हूँ।’ 3 तू यिशै को बलिदान के मौके पर आने के लिए कहना। तब मैं तुझे बताऊँगा कि तुझे क्या करना है। मैं तुझे दिखाऊँगा कि मैंने किसे चुना है, तू मेरी तरफ से उसका अभिषेक करना।”+

4 शमूएल ने ठीक वैसा ही किया जैसा यहोवा ने उसे बताया था। जब वह बेतलेहेम+ गया तो वहाँ के प्रधान डरते-काँपते उससे मिलने आए। उन्होंने उससे पूछा, “तू शांति के इरादे से ही आया है न?” 5 उसने कहा, “हाँ, मैं शांति के इरादे से ही आया हूँ। मैं यहोवा के लिए बलिदान चढ़ाने आया हूँ। तुम सब खुद को पवित्र करो और मेरे साथ बलिदान चढ़ाने आओ।” फिर उसने यिशै और उसके बेटों को पवित्र किया और उन्हें बलिदान चढ़ाने के लिए आने को कहा। 6 जब वे वहाँ आए तो शमूएल की नज़र एलीआब+ पर पड़ी और उसने मन में सोचा, “ज़रूर यही यहोवा का अभिषिक्‍त जन होगा।” 7 मगर यहोवा ने शमूएल से कहा, “उसके रंग-रूप या उसके ऊँचे कद पर मत जा+ क्योंकि मैंने उसे ठुकरा दिया है। परमेश्‍वर का देखना इंसान के देखने जैसा नहीं है। इंसान सिर्फ बाहरी रूप देखता है, मगर यहोवा दिल देखता है।”+ 8 फिर यिशै ने अबीनादाब+ को बुलाया और उसे शमूएल के सामने खड़ा किया। मगर शमूएल ने कहा, “यहोवा ने इसे भी नहीं चुना है।” 9 तब यिशै ने शम्माह+ को शमूएल के सामने खड़ा किया, मगर शमूएल ने कहा, “यहोवा ने इसे भी नहीं चुना है।” 10 इस तरह यिशै अपने सात बेटों को शमूएल के सामने लाया मगर शमूएल ने उससे कहा, “यहोवा ने इनमें से किसी को भी नहीं चुना है।”

11 आखिर में शमूएल ने यिशै से पूछा, “क्या तेरे इतने ही बेटे हैं?” उसने कहा, “नहीं, एक और लड़का है, सबसे छोटा।+ वह भेड़ चराने गया है।”+ शमूएल ने यिशै से कहा, “उसे भी बुलवा क्योंकि जब तक वह नहीं आता हम भोज के लिए नहीं बैठेंगे।” 12 तब यिशै ने अपने सबसे छोटे बेटे को बुलवाया और उसे अंदर लाया। वह लड़का बहुत सुंदर था, उसका रंग गुलाबी था और आँखें खूबसूरत थीं।+ यहोवा ने शमूएल से कहा, “उठ, इसका अभिषेक कर, मैंने इसी को चुना है!”+ 13 तब शमूएल ने तेल-भरा सींग+ लेकर उस लड़के के भाइयों के सामने उसका अभिषेक किया। उस दिन से यहोवा की पवित्र शक्‍ति दाविद पर काम करने लगी।+ बाद में शमूएल उठा और रामाह+ लौट गया।

14 मगर शाऊल पर यहोवा की पवित्र शक्‍ति ने काम करना छोड़ दिया था।+ यहोवा ने शाऊल की बुरी फितरत को उस पर हावी होने दिया जिस वजह से वह हमेशा खौफ में रहता था।+ 15 शाऊल के सेवकों ने उससे कहा, “देख, परमेश्‍वर ने तुझ पर बुरी फितरत हावी होने दी है जिस वजह से तू हमेशा खौफ में रहता है। 16 इसलिए मालिक, अपने सेवकों को हुक्म दे कि हम तेरे लिए एक ऐसा आदमी ढूँढ़ लाएँ जो सुरमंडल बजाने में हुनरमंद हो।+ जब भी परमेश्‍वर तुझ पर बुरी फितरत हावी होने दे, तो वह आदमी तेरे लिए सुरमंडल बजाएगा और तेरे मन को सुकून मिलेगा।” 17 तब शाऊल ने अपने सेवकों से कहा, “ठीक है, तुम ऐसा ही करो। जाओ मेरे लिए कोई ऐसा आदमी ढूँढ़ो जो साज़ बजाने में हुनरमंद हो। उसे मेरे पास लाओ।”

18 उसके एक सेवक ने कहा, “मैं एक लड़के को जानता हूँ जो बहुत बढ़िया साज़ बजाता है। वह बेतलेहेम के रहनेवाले यिशै का बेटा है। वह लड़का बड़ा हिम्मतवाला है, जाँबाज़ सैनिक है।+ वह बोलने में माहिर है और दिखने में सुंदर-सजीला है+ और यहोवा उसके साथ है।”+ 19 तब शाऊल ने अपने दूतों के हाथ यिशै के पास यह संदेश भेजा: “तू अपने बेटे दाविद को, जो भेड़ें चराता है, मेरे पास भेज।”+ 20 तब यिशै ने एक गधे पर रोटियाँ और दाख-मदिरा की एक मशक लादी और एक बकरी का बच्चा लिया और यह सब अपने बेटे दाविद के साथ शाऊल के पास भेजा। 21 इस तरह दाविद, शाऊल के पास आया और उसकी सेवा करने लगा।+ शाऊल को दाविद से बहुत लगाव हो गया और दाविद उसका हथियार ढोनेवाला सेवक बन गया। 22 शाऊल ने यिशै के पास यह संदेश भेजा: “मेहरबानी करके दाविद को मेरे पास ही रहने दे ताकि वह मेरी सेवा करे। मैं उससे बहुत खुश हूँ।” 23 जब भी परमेश्‍वर शाऊल पर बुरी फितरत हावी होने देता तो दाविद सुरमंडल बजाता। उसे सुनकर शाऊल के मन को सुकून मिलता और वह अच्छा महसूस करता और उसकी बुरी फितरत दूर हो जाती।+

17 पलिश्‍ती लोग+ अपनी सेना की टुकड़ियाँ लेकर इसराएलियों से युद्ध करने सोकोह+ में इकट्ठा हुए जो यहूदा के इलाके में है। उन्होंने सोकोह और अजेका+ के बीच एपेस-दम्मीम+ में छावनी डाली। 2 शाऊल और इसराएली आदमी भी इकट्ठा हुए और उन्होंने एलाह घाटी+ में छावनी डाली। वे पलिश्‍तियों से मुकाबला करने के लिए दल बाँधकर तैनात हो गए। 3 पलिश्‍ती लोग एक तरफ के पहाड़ पर तैनात थे और इसराएली दूसरी तरफ के पहाड़ पर। दोनों के बीच एक घाटी थी।

4 फिर पलिश्‍तियों की तरफ से एक वीर योद्धा उनकी छावनी से निकलकर आया। उसका नाम गोलियात+ था और वह गत+ का रहनेवाला था। वह करीब साढ़े नौ फुट* लंबा था। 5 उसके सिर पर ताँबे का टोप था और उसने ताँबे का बख्तर*+ पहन रखा था जिसका वज़न 5,000 शेकेल* था। 6 उसकी टाँगों पर ताँबे का कवच था और वह अपनी पीठ पर ताँबे की बरछी+ लटकाए हुए था। 7 उसके भाले का डंडा जुलाहे के लट्ठे जैसा भारी था+ और भाले के लोहे के फल का वज़न 600 शेकेल* था। उसके आगे-आगे उसकी ढाल ढोनेवाला सैनिक चलता था। 8 गोलियात सामने आकर खड़ा हो गया और उसने इसराएल के सेना-दल को यह कहकर ललकारा,+ “तुम लोग यहाँ दल बाँधकर क्यों आए हो? मैं पलिश्‍तियों का माना हुआ सूरमा हूँ और तुम शाऊल के सेवक हो। जाओ, अपने लिए कोई ऐसा आदमी चुन लो जो मेरा मुकाबला कर सके और उसे भेजो मेरे पास। 9 अगर वह मुझसे लड़कर मुझे मार गिराए तो हम लोग तुम्हारे गुलाम बन जाएँगे। लेकिन अगर मैंने उसे मार डाला तो तुम हमारे दास बन जाओगे, हमारी गुलामी करोगे।” 10 उस पलिश्‍ती ने यह भी कहा, “आज मैं इसराएल की सेना को चुनौती देता हूँ,+ भेजो किसी आदमी को मेरे पास। हो जाए मुकाबला!”

11 जब शाऊल और सारे इसराएलियों ने उस पलिश्‍ती की ये बातें सुनीं तो वे बहुत डर गए और थर-थर काँपने लगे।

12 दाविद, यहूदा के बेतलेहेम+ एप्राता+ के रहनेवाले यिशै का बेटा था। यिशै+ के आठ बेटे थे+ और जब शाऊल राजा था तब तक यिशै बूढ़ा हो चुका था। 13 यिशै के तीन बड़े बेटे शाऊल के साथ युद्ध में गए हुए थे।+ सबसे बड़ा एलीआब था,+ दूसरा अबीनादाब+ और तीसरा शम्माह था।+ 14 दाविद सबसे छोटा था।+ उसके वे तीनों बड़े भाई शाऊल के साथ युद्ध में गए हुए थे।

15 दाविद अपने पिता की भेड़ों को चराने+ के लिए शाऊल के यहाँ से बेतलेहेम आया-जाया करता था। 16 इस बीच वह पलिश्‍ती आदमी हर दिन सुबह-शाम युद्ध के मैदान में आकर इसराएलियों को ललकारता था। ऐसा वह 40 दिन तक करता रहा।

17 एक दिन यिशै ने अपने बेटे दाविद से कहा, “बेटा, ये एपा-भर* भुना हुआ अनाज और ये दस रोटियाँ लेकर फौरन अपने भाइयों के पास छावनी में जा। 18 और पनीर के ये दस टुकड़े ले जाकर उनके सेना-अधिकारी* को दे आ। तू जाकर अपने भाइयों का हाल-चाल पूछ और उनके पास से कोई ऐसी निशानी ला जिससे मुझे यकीन हो कि वे सही-सलामत हैं।” 19 दाविद के भाई पलिश्‍तियों से लड़ने+ के लिए शाऊल और बाकी इसराएली आदमियों के साथ एलाह घाटी में थे।+

20 दाविद अगले दिन सुबह जल्दी उठा और उसने अपनी भेड़ों की रखवाली करने का ज़िम्मा किसी और को सौंपा। फिर वह सामान बाँधकर निकल पड़ा, ठीक जैसे उसके पिता यिशै ने उसे आज्ञा दी थी। जब दाविद छावनी के पास पहुँचा, तो उसने देखा कि सेना नारे लगाती हुई युद्ध के मैदान की तरफ बढ़ रही है। 21 इसराएली और पलिश्‍ती सेना मुकाबले के लिए आमने-सामने तैनात हो गयीं। 22 दाविद ने फौरन अपना सामान उस आदमी के पास छोड़ा जो सामान की रखवाली करता था और दौड़कर युद्ध के मैदान में गया। वहाँ उसने अपने भाइयों की खैरियत पूछी।+

23 दाविद उनसे बात कर ही रहा था कि तभी पलिश्‍तियों की सेना में से उनका सूरमा गोलियात+ निकलकर सामने आया, जो गत से था। उसने हर दिन की तरह इसराएलियों को ललकारा+ और दाविद ने यह सब सुना। 24 जब इसराएली आदमियों ने उस योद्धा को देखा तो वे सब डर के मारे भाग खड़े हुए।+ 25 वे एक-दूसरे से कह रहे थे, “देखा उस आदमी को? कैसे इसराएल को ललकारता है।+ राजा ने कहा है कि जो उस पलिश्‍ती को मार डालेगा उसे वह खूब सारी दौलत देगा, उससे अपनी बेटी की शादी कराएगा+ और उसके पिता के घराने को कर और सेवा से छूट दे देगा।”

26 दाविद ने पास खड़े आदमियों से पूछा, “उस पलिश्‍ती को जो मार डालेगा और इसराएल को बदनाम होने से बचाएगा उसे क्या इनाम मिलेगा? उस खतनारहित पलिश्‍ती की यह मजाल कि वह जीवित परमेश्‍वर की सेना को ललकारे?”+ 27 तब उन आदमियों ने दाविद को वही बात बतायी, “जो उस आदमी को मार डालेगा उसे ये-ये दिया जाएगा।” 28 जब दाविद के बड़े भाई एलीआब+ ने उसे वहाँ खड़े आदमियों से बात करते देखा तो वह दाविद पर भड़क उठा और कहने लगा, “तू यहाँ क्यों आया है? तू उन थोड़ी-सी भेड़ों को वीराने में किसके पास छोड़ आया?+ तू सबकुछ छोड़-छाड़कर युद्ध का नज़ारा देखने चला आया? इतनी गुस्ताखी! मैं जानता हूँ, तेरा दिल साफ नहीं है।” 29 तब दाविद ने कहा, “मैंने कौन-सा बड़ा गुनाह कर दिया? बस एक सवाल ही तो पूछा है!” 30 इसलिए दाविद किसी और के पास गया और उससे भी वही सवाल पूछा।+ उन लोगों ने भी वही जवाब दिया।+

31 कुछ आदमियों ने दाविद की बात सुन ली थी और जाकर इस बारे में शाऊल को बताया। तब शाऊल ने दाविद को अपने पास बुलवाया। 32 दाविद ने शाऊल से कहा, “उस पलिश्‍ती की वजह से किसी का मन कच्चा न हो।* तेरा यह दास उससे लड़ेगा।”+ 33 मगर शाऊल ने कहा, “तू उस पलिश्‍ती से कैसे लड़ सकता है? तू बस एक छोटा-सा लड़का है+ और वह लड़कपन से सैनिक* रहा है।” 34 तब दाविद ने कहा, “तेरा यह दास अपने पिता की भेड़ों का चरवाहा भी है। एक बार जब एक शेर+ मेरी एक भेड़ को उठाकर ले जाने लगा और दूसरी बार एक भालू एक भेड़ को उठाकर ले जाने लगा, 35 तो मैंने उनका पीछा किया और उन्हें मारा और भेड़ को उनके मुँह से बचाया। जब उन जानवरों ने मुझ पर हमला किया तो मैंने उनके बाल कसकर पकड़ लिए* और उन्हें गिराकर मार डाला। 36 तेरे दास ने शेर और भालू, दोनों को मार डाला। इस खतनारहित पलिश्‍ती का भी वही अंजाम होगा क्योंकि इसने जीवित परमेश्‍वर की सेना को ललकारा है।”+ 37 दाविद ने यह भी कहा, “यहोवा, जिसने मुझे शेर और भालू के पंजों से बचाया था, वही मुझे इस पलिश्‍ती के हाथ से भी बचाएगा।”+ तब शाऊल ने दाविद से कहा, “जा, यहोवा तेरे साथ रहे।”

38 फिर शाऊल ने दाविद को अपने कपड़े पहनाए। उसने दाविद के सिर पर ताँबे का टोप रखा और उसे एक बख्तर पहनाया। 39 फिर दाविद ने शाऊल की तलवार अपने कपड़ों पर बाँध ली और चलने की कोशिश की, मगर वह चल नहीं पाया क्योंकि वह इन सबका आदी नहीं था। दाविद ने शाऊल से कहा, “मैं यह सब पहनकर नहीं चल पा रहा हूँ, मुझे इनकी आदत नहीं है।” इसलिए दाविद ने वह सब उतार दिया। 40 उसने हाथ में अपनी लाठी ली और घाटी से पाँच चिकने-चिकने पत्थर चुने और अपनी चरवाहे की थैली में रखे। उसके हाथ में उसका गोफन था।+ फिर वह उस पलिश्‍ती की तरफ बढ़ने लगा।

41 वह पलिश्‍ती कदम बढ़ाता हुआ दाविद की तरफ आने लगा और उसकी ढाल ढोनेवाला सैनिक उसके आगे-आगे चल रहा था। 42 जब उस पलिश्‍ती की नज़र दाविद पर पड़ी तो उसने दाविद को नीची नज़रों से देखा। उसने दाविद की खिल्ली उड़ायी क्योंकि वह बस एक सुंदर-सा लड़का था जिससे लाली झलकती थी।+ 43 उस पलिश्‍ती ने दाविद से कहा, “क्या मैं कुत्ता हूँ+ जो तू डंडा लेकर मुझे भगाने आया है?” फिर वह अपने देवताओं के नाम से दाविद को शाप देने लगा। 44 उस पलिश्‍ती ने दाविद से कहा, “आ जा, मैं तुझे मारकर तेरा माँस आकाश के पक्षियों और मैदान के जानवरों को खिला दूँगा।”

45 तब दाविद ने उस पलिश्‍ती से कहा, “तू तलवार, भाला और बरछी लेकर मुझसे लड़ने आ रहा है,+ मगर मैं सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा के नाम से आ रहा हूँ,+ इसराएल की सेना के परमेश्‍वर के नाम से जिसे तूने ललकारा है।+ 46 आज ही के दिन यहोवा तुझे मेरे हाथ में कर देगा+ और मैं तुझे मार डालूँगा और तेरा सिर काट डालूँगा। आज मैं सभी पलिश्‍ती सैनिकों की लाशें आकाश के पक्षियों और धरती के जंगली जानवरों को खिला दूँगा। तब धरती के सब लोग जान जाएँगे कि इसराएल का परमेश्‍वर ही सच्चा परमेश्‍वर है।+ 47 और यहाँ जितने लोग इकट्ठा हैं वे सब जान जाएँगे* कि अपने लोगों को बचाने के लिए यहोवा को तलवार या भाले की ज़रूरत नहीं,+ क्योंकि युद्ध यहोवा का है+ और वह तुम सबको हमारे हाथ में कर देगा।”+

48 तब वह पलिश्‍ती दाविद का सामना करने के लिए आगे बढ़ने लगा, मगर दाविद उसका मुकाबला करने पलिश्‍ती सेना की तरफ फुर्ती से दौड़ा। 49 दाविद ने अपनी थैली से एक पत्थर निकालकर गोफन में रखा और उस पलिश्‍ती की तरफ ऐसा फेंका कि वह सीधे जाकर उसके माथे पर लगा और अंदर धँस गया। वह पलिश्‍ती वहीं मुँह के बल ज़मीन पर गिर पड़ा।+ 50 इस तरह दाविद ने गोफन और एक पत्थर से उस पलिश्‍ती को हराया। उसने बिना तलवार के उस पलिश्‍ती का काम तमाम कर दिया।+ 51 दाविद दौड़ा-दौड़ा गया और उस पलिश्‍ती के ऊपर खड़ा हो गया। उसने उस आदमी की म्यान से तलवार निकाली+ और उसका सिर काट डाला ताकि यह पक्का हो जाए कि वह मर चुका है। जब पलिश्‍तियों ने देखा कि उनका सूरमा मर गया है तो वे सब भाग गए।+

52 यह सब देखकर इसराएल और यहूदा के आदमी खुशी से चिल्लाने लगे। वे पलिश्‍तियों का पीछा करने लगे और घाटी+ से लेकर एक्रोन+ के फाटकों तक उनका घात करते गए। शारैम+ से लेकर दूर गत और एक्रोन तक, पूरे रास्ते पर उनकी लाशें बिछ गयीं। 53 इस तरह इसराएलियों ने पलिश्‍तियों का बेतहाशा पीछा किया और वापस आकर उनकी छावनियाँ लूट लीं।

54 फिर दाविद उस पलिश्‍ती का सिर उठाकर यरूशलेम ले आया, मगर उसके हथियार उसने अपने तंबू में रखे।+

55 जब शाऊल ने दाविद को उस पलिश्‍ती का सामना करने के लिए जाते देखा तो उसने अपने सेनापति अब्नेर+ से पूछा, “अब्नेर, यह किसका लड़का है?”+ अब्नेर ने कहा, “हे राजा, तेरे जीवन की शपथ, मैं नहीं जानता!” 56 राजा ने उससे कहा, “पता लगाओ कि यह नौजवान किसका बेटा है।” 57 इसलिए जैसे ही दाविद उस पलिश्‍ती को मार डालने के बाद लौटा, अब्नेर उसे शाऊल के पास लाया। दाविद के हाथ में उस पलिश्‍ती का सिर था।+ 58 शाऊल ने उससे पूछा, “तू किसका बेटा है?” दाविद ने कहा, “मैं तेरे दास यिशै का बेटा हूँ+ जो बेतलेहेम का रहनेवाला है।”+

18 दाविद और शाऊल की इस बातचीत के बाद, योनातान+ और दाविद के बीच गहरी दोस्ती हो गयी और वह अपनी जान के बराबर दाविद से प्यार करने लगा।+ 2 उस दिन से शाऊल ने दाविद को अपने पास रख लिया और उसे अपने पिता के घर लौटने नहीं दिया।+ 3 योनातान और दाविद ने आपस में दोस्ती का करार किया+ क्योंकि योनातान दाविद से अपनी जान के बराबर प्यार करता था।+ 4 योनातान ने अपना बिन आस्तीन का बागा उतारकर दाविद को दिया। उसने अपनी सैनिक की पोशाक, तलवार, कमान और कमरबंद भी उसे दिया। 5 दाविद युद्ध में जाने लगा। शाऊल उसे जहाँ कहीं भेजता वह जीतकर आता।*+ इसलिए शाऊल ने उसे अपने सैनिकों का अधिकारी बना दिया+ और इससे शाऊल के सेवक और बाकी सभी लोग खुश हुए।

6 जब दाविद और दूसरे सैनिक पलिश्‍तियों को मारकर लौटते तो इसराएल के सभी शहरों से औरतें खुशी से डफली+ और चिकारा बजाती और नाचती-गाती हुई+ राजा शाऊल का स्वागत करने बाहर आती थीं। 7 वे यह गीत गाती हुई जश्‍न मनाती थीं,

“शाऊल ने मारा हज़ारों को,

दाविद ने मारा लाखों को!”+

8 यह गीत सुनकर शाऊल को बहुत बुरा लगा और उसे बहुत गुस्सा आया।+ उसने मन में कहा, “वे कहती हैं, दाविद ने लाखों को मारा है और मैंने सिर्फ हज़ारों को। अब राजपाट के सिवा उसे और क्या मिलना बाकी है!”+ 9 उस दिन से शाऊल हर वक्‍त दाविद को शक की निगाह से देखने लगा।

10 अगले दिन शाऊल पर उसकी बुरी फितरत हावी हो गयी+ और परमेश्‍वर ने ऐसा होने दिया। उस दिन जब दाविद हमेशा की तरह शाऊल के घर में सुरमंडल बजा रहा था+ तो शाऊल अजीबो-गरीब हरकत* करने लगा। उसके हाथ में एक भाला था+ 11 और उसने यह सोचकर वह भाला दाविद की तरफ ज़ोर से फेंका+ कि मैं दाविद को दीवार में ठोंक दूँगा! उसने दो बार ऐसा किया, मगर दोनों बार दाविद बच निकला। 12 शाऊल दाविद से डरने लगा क्योंकि उसने देखा कि यहोवा दाविद के साथ है,+ जबकि उसने शाऊल को छोड़ दिया है।+ 13 इसलिए शाऊल ने दाविद को अपनी नज़रों से दूर कर दिया और उसे एक हज़ार सैनिकों का अधिकारी ठहराया। दाविद अपनी सेना को लेकर युद्ध में जाया करता था।*+ 14 वह अपने हर काम में कामयाब हो रहा* था+ और यहोवा उसके साथ था।+ 15 और जब शाऊल ने देखा कि दाविद बहुत कामयाब हो रहा है, तो वह उससे डरने लगा। 16 मगर सारा इसराएल और यहूदा दाविद से बहुत प्यार करता था क्योंकि वह युद्धों में उनकी अगुवाई करता था।

17 बाद में शाऊल ने दाविद से कहा, “मैं अपनी बड़ी बेटी मेरब+ की शादी तुझसे करा दूँगा,+ मगर तू मेरे लिए एक वीर योद्धा बना रह और यहोवा की तरफ से युद्ध करता रह।”+ दरअसल शाऊल ने सोचा, ‘अगर वह युद्ध में जाएगा तो पलिश्‍तियों के हाथों मारा जाएगा और मुझे अपने हाथ उसके खून से नहीं रंगने पड़ेंगे।’+ 18 तब दाविद ने शाऊल से कहा, “मैं क्या हूँ, इसराएल में मेरे पिता के घराने और रिश्‍तेदारों की हैसियत ही क्या है जो मैं राजा का दामाद बनूँ?”+ 19 लेकिन जब शाऊल की बेटी मेरब की शादी दाविद से कराने का वक्‍त आया तो पता चला कि शाऊल ने मेरब की शादी पहले ही महोलाई अदरीएल+ से करा दी है।

20 शाऊल की बेटी मीकल+ को दाविद से प्यार हो गया था। यह बात जब शाऊल को बतायी गयी तो वह बहुत खुश हुआ। 21 उसने सोचा, “यह अच्छा मौका है दाविद को फँसाने का, मैं अपनी बेटी की शादी उससे कराने के लिए उसके सामने ऐसी शर्त रखूँगा कि वह पलिश्‍तियों के हाथों मार डाला जाए।”+ शाऊल ने एक और बार दाविद से कहा, “आज तू मुझसे रिश्‍तेदारी करेगा।”* 22 शाऊल ने अपने सेवकों को आदेश दिया, “तुम लोग चुपके से दाविद से कहो, ‘देख, राजा तुझसे बहुत खुश है और उसके सभी सेवक भी तुझे पसंद करते हैं। इसलिए तू राजा से रिश्‍तेदारी कर ले।’” 23 जब शाऊल के सेवकों ने दाविद को यह बात बतायी तो उसने कहा, “मैं कैसे राजा से रिश्‍तेदारी कर लूँ? मैं ठहरा एक गरीब आदमी, मेरा न कोई नाम है न रुतबा।”+ 24 तब शाऊल के सेवकों ने उसे बताया कि दाविद ने ऐसा-ऐसा कहा है।

25 शाऊल ने उनसे कहा, “तुम जाकर दाविद से कहो, ‘राजा को महर+ में कुछ नहीं चाहिए, बस उसे पलिश्‍तियों की 100 खलड़ियाँ चाहिए।+ वह अपने दुश्‍मनों से बदला लेना चाहता है।’” दरअसल यह शाऊल की साज़िश थी क्योंकि वह चाहता था कि दाविद पलिश्‍तियों के हाथों मारा जाए। 26 उसके सेवकों ने जाकर शाऊल की ये बातें दाविद को बतायीं। दाविद को शाऊल से रिश्‍तेदारी करने की बात अच्छी लगी।+ दाविद तय समय से पहले ही 27 अपने आदमियों को लेकर निकल पड़ा और उसने 200 पलिश्‍ती आदमियों को मार डाला और उन सबकी खलड़ियाँ राजा के पास लाया ताकि राजा से रिश्‍तेदारी कर सके। इसलिए शाऊल ने अपनी बेटी मीकल की शादी दाविद से करा दी।+ 28 शाऊल को एहसास हो गया कि यहोवा दाविद के साथ है+ और उसकी बेटी मीकल दाविद से प्यार करती है।+ 29 इस वजह से शाऊल, दाविद से और डरने लगा और सारी ज़िंदगी उसका दुश्‍मन बना रहा।+

30 पलिश्‍तियों के हाकिम इसराएलियों से युद्ध करने आते थे। जब भी वे आते तो दाविद शाऊल के बाकी सभी आदमियों से ज़्यादा जीत हासिल करता था।*+ इसलिए दाविद के नाम की बहुत इज़्ज़त की जाने लगी।+

19 बाद में शाऊल ने अपने बेटे योनातान और अपने सभी सेवकों से दाविद को मार डालने के बारे में बात की।+ 2 मगर योनातान दाविद को बहुत पसंद करता था+ इसलिए उसने दाविद को बताया, “मेरा पिता शाऊल तुझे मार डालना चाहता है। कल सुबह तू ज़रा बचकर रहना। किसी ऐसी जगह छिप जाना जहाँ तू नज़र न आए और वहीं रहना। 3 मैं अपने पिता के साथ उस मैदान में खड़ा रहूँगा जहाँ तू छिपा होगा। मैं उससे तेरे बारे में बात करूँगा और अगर मुझे कुछ और पता चलेगा तो तुझे ज़रूर बताऊँगा।”+

4 फिर योनातान ने अपने पिता शाऊल को दाविद के बारे में अच्छी बातें बतायीं।+ उसने शाऊल से कहा, “हे राजा, अपने सेवक दाविद के खिलाफ कोई पाप मत कर, क्योंकि उसने तेरे खिलाफ कोई पाप नहीं किया है बल्कि हमेशा तेरी भलाई के लिए ही काम किया है। 5 उसने अपनी जान हथेली पर रखकर उस पलिश्‍ती को मार डाला था+ और इस वजह से यहोवा ने पूरे इसराएल को शानदार जीत दिलायी थी।* तूने खुद अपनी आँखों से यह सब देखा था और उस वक्‍त तू खुशी से फूला नहीं समाया था। फिर अब क्यों तू बेवजह दाविद को मार डालना चाहता है और एक बेगुनाह का खून अपने सिर लेना चाहता है?”+ 6 शाऊल ने योनातान की बात मान ली और शपथ खाकर कहा, “यहोवा के जीवन की शपथ, मैं उसकी जान नहीं लूँगा।” 7 बाद में योनातान ने दाविद को बुलाया और उसे यह सब बताया। फिर योनातान दाविद को शाऊल के पास ले गया और दाविद पहले की तरह शाऊल की सेवा करने लगा।+

8 कुछ समय बाद, इसराएलियों और पलिश्‍तियों के बीच एक बार फिर युद्ध छिड़ गया। दाविद पलिश्‍तियों से लड़ने गया और उसने बड़ी तादाद में पलिश्‍तियों को मार डाला। वे उसके सामने से भाग गए।

9 जब शाऊल हाथ में भाला लिए अपने घर पर बैठा था और दाविद सुरमंडल पर संगीत बजा रहा था, तो शाऊल पर उसकी बुरी फितरत हावी हो गयी और यहोवा ने ऐसा होने दिया।+ 10 शाऊल ने अपना भाला दाविद पर फेंका ताकि उसे दीवार पर ठोंक दे, मगर दाविद हट गया और भाला दीवार से जा लगा। उस रात दाविद शाऊल से बचकर भाग गया। 11 बाद में शाऊल ने अपने दूतों को दाविद के घर भेजा ताकि वे दाविद पर नज़र रखें और सुबह उसे मार डालें,+ मगर दाविद की पत्नी मीकल ने उससे कहा, “अगर आज रात तू यहाँ से नहीं भागेगा तो कल तक तू ज़िंदा नहीं बचेगा।” 12 फिर मीकल ने फौरन दाविद को खिड़की से नीचे उतार दिया ताकि वह बचकर भाग जाए। 13 मीकल ने कुल देवता की मूरत ली और उसे पलंग पर लिटा दिया और उसके सिरहाने बकरी के बालों से बनी एक जाली रख दी और मूरत पर एक कपड़ा ओढ़ा दिया।

14 शाऊल ने दाविद को पकड़कर लाने के लिए अपने दूत भेजे, मगर मीकल ने उनसे कहा कि वह बीमार है। 15 तब शाऊल ने अपने दूतों को यह कहकर दाविद के पास भेजा, “तुम उसे पलंग के साथ ही उठा लाओ ताकि उसे मार डाला जाए।”+ 16 मगर जब वे दूत दाविद के कमरे में गए तो उन्होंने देखा कि पलंग पर मूरत लिटायी गयी है और उसके सिरहाने बकरी के बालों से बनी एक जाली रखी है। 17 शाऊल ने मीकल से कहा, “तूने मुझे क्यों धोखा दिया? क्यों मेरे दुश्‍मन+ को बचकर जाने दिया?” मीकल ने शाऊल से कहा, “उसने मुझे धमकी दी थी कि अगर तू मेरी मदद नहीं करेगी तो मैं तुझे जान से मार डालूँगा!”

18 दाविद अपने घर से भागकर शमूएल के पास रामाह+ चला गया था। उसने शमूएल को बताया कि शाऊल ने उसके साथ क्या-क्या किया। फिर दाविद और शमूएल नायोत गए और वहाँ रहने लगे।+ 19 कुछ वक्‍त बाद शाऊल को खबर दी गयी कि दाविद रामाह के नायोत में है। 20 यह सुनते ही शाऊल ने दाविद को पकड़ लाने के लिए अपने दूत भेजे। जब दूत वहाँ गए तो उन्होंने देखा कि भविष्यवक्‍ताओं में से बुज़ुर्ग जन भविष्यवाणी कर रहे हैं और शमूएल वहाँ खड़ा उनकी अगुवाई कर रहा है। फिर परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति शाऊल के दूतों पर उतरी और वे भी भविष्यवक्‍ताओं जैसा बरताव करने लगे।

21 जब शाऊल को यह सब बताया गया तो उसने फौरन कुछ और दूत भेजे, मगर वे भी वहाँ जाकर भविष्यवक्‍ताओं जैसा बरताव करने लगे। फिर शाऊल ने कुछ और दूत भेजे, मगर यह तीसरी टोली भी भविष्यवक्‍ताओं जैसा बरताव करने लगी। 22 आखिर में वह खुद रामाह गया। जब वह सेकू में बड़े कुंड के पास पहुँचा तो उसने लोगों से पूछा, “शमूएल और दाविद कहा हैं?” उन्होंने कहा, “वे रामाह के नायोत में हैं।”+ 23 जब शाऊल वहाँ से रामाह के नायोत जाने लगा तो रास्ते में परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति उस पर उतरी और वह भी भविष्यवक्‍ताओं जैसा बरताव करने लगा और नायोत तक वह ऐसा ही करता रहा। 24 उसने भी अपने कपड़े उतार दिए और शमूएल के सामने भविष्यवक्‍ताओं जैसा बरताव करने लगा। वह सारा दिन और सारी रात बिन कपड़ों के* वहीं पड़ा रहा। इसी घटना से यह बात चली, “क्या शाऊल भी भविष्यवक्‍ता बन गया?”+

20 फिर दाविद रामाह के नायोत से भाग गया। मगर वह योनातान के पास गया और उससे कहने लगा, “मैंने क्या किया है?+ मेरा कसूर क्या है? मैंने तेरे पिता का क्या बिगाड़ा है जो वह मेरी जान के पीछे पड़ा है?” 2 योनातान ने कहा, “देख, ऐसा हरगिज़ नहीं हो सकता!+ तू नहीं मरेगा। मेरा पिता मुझे बताए बगैर कोई काम नहीं करता, फिर चाहे छोटा काम हो या बड़ा। अगर उसने तुझे मार डालने की सोची होती तो मुझे ज़रूर बताता। यह नहीं हो सकता।” 3 मगर फिर दाविद ने शपथ खायी और कहा, “तेरा पिता अच्छी तरह जानता है कि तू मुझ पर मेहरबान है+ और उसने कहा होगा, ‘इस बारे में योनातान को कुछ मत बताना वरना वह गुस्सा हो जाएगा।’ मैं यहोवा के जीवन की शपथ और तेरे जीवन की शपथ खाकर कहता हूँ, मेरी मौत बहुत करीब है।”+

4 योनातान ने दाविद से कहा, “तू मुझसे जो भी कहेगा, मैं तेरे लिए करूँगा।” 5 दाविद ने योनातान से कहा, “कल नए चाँद का दिन है।+ मुझे राजा के साथ भोज में बैठना है। लेकिन अगर तू इजाज़त दे तो मैं जाकर मैदान में छिप जाऊँगा और तीसरे दिन की शाम तक वहीं छिपा रहूँगा। 6 अगर तेरा पिता पूछे कि मैं भोज में क्यों नहीं आया तो कहना, दाविद ने मुझसे कहा कि वह जल्द-से-जल्द अपने शहर बेतलेहेम+ जाना चाहता है, क्योंकि वहाँ उसके पूरे परिवार के लिए सालाना बलिदान चढ़ाया जाएगा। उसने मुझसे बहुत मिन्‍नत की इसलिए मैंने उसे जाने की इजाज़त दे दी।+ 7 तब अगर तेरा पिता कहे, ‘ठीक है, कोई बात नहीं,’ तो इसका मतलब है कि तेरे सेवक को कोई खतरा नहीं। लेकिन अगर तेरा पिता गुस्सा हो जाता है तो समझ लेना कि उसने मेरा बुरा करने की ठान ली है। 8 तू अपने इस सेवक के साथ वफादारी* निभाना+ क्योंकि तूने यहोवा के सामने अपने सेवक के साथ करार किया है।+ लेकिन अगर मैं दोषी हूँ+ तो तू खुद मुझे मार डाल। तू क्यों मुझे अपने पिता के हवाले करना चाहता है?”

9 तब योनातान ने कहा, “तू यह सोच भी कैसे सकता है कि मैं तेरे साथ ऐसा करूँगा? अगर मुझे पता चले कि मेरे पिता ने तेरा बुरा करने की ठान ली है, तो मैं तुझे ज़रूर बताऊँगा।”+ 10 दाविद ने कहा, “अगर तेरा पिता भड़क उठता है तो मुझे कौन बताएगा?” 11 योनातान ने कहा, “चलो हम दोनों मैदान में चलते हैं।” फिर वे दोनों मैदान में गए। 12 योनातान ने दाविद से कहा, “मैं इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा को गवाह मानकर तुझसे वादा करता हूँ कि मैं कल या परसों इस समय तक पता लगाऊँगा कि मेरे पिता के दिल में क्या है। अगर वह तुझसे नाराज़ नहीं है तो मैं तुझे ज़रूर इसकी खबर दूँगा। 13 और अगर मेरे पिता ने तेरा बुरा करने का इरादा किया है तो भी मैं तुझे बताऊँगा। अगर मैंने तुझे नहीं बताया और खतरे से नहीं बचाया तो यहोवा मुझ योनातान को कड़ी-से-कड़ी सज़ा दे। मेरी दुआ है कि यहोवा तेरे साथ रहे,+ जैसे वह मेरे पिता के साथ था।+ 14 तू भी यहोवा की तरह मेरे साथ वफादारी* निभा, मेरे जीते-जी और मेरी मौत के बाद भी।+ 15 तू मेरे घराने के साथ वफादारी निभाना,+ तब भी जब यहोवा तेरे सभी दुश्‍मनों को धरती से मिटा देगा।” 16 योनातान ने दाविद के घराने के साथ एक करार किया और कहा, “यहोवा दाविद के दुश्‍मनों से ज़रूर लेखा लेगा।” 17 तब योनातान ने अपने प्यार का वास्ता देकर एक बार फिर दाविद से शपथ खिलवायी क्योंकि वह दाविद से जान के बराबर प्यार करता था।+

18 फिर योनातान ने दाविद से कहा, “कल नए चाँद के दिन+ जब तेरी जगह खाली रहेगी तो सब तुझे ढूँढ़ेंगे। 19 तीसरे दिन वे तेरे बारे में ज़रूर पूछेंगे। तू इसी जगह आना जहाँ तू उस दिन* छिपा था और इस पत्थर के पास रहना। 20 मैं पत्थर के एक तरफ तीन बार तीर ऐसे चलाऊँगा मानो मैं किसी निशाने पर मारने की कोशिश कर रहा हूँ। 21 मैं अपने सेवक को तीर ढूँढ़कर लाने के लिए कहूँगा। अगर मैं सेवक से कहूँ, ‘देख, तीर तेरे इस तरफ हैं जाकर ले आ,’ तो तू लौट आना क्योंकि यहोवा के जीवन की शपथ, इसका मतलब यह होगा कि तेरी जान को कोई खतरा नहीं है। तू सलामत रहेगा। 22 लेकिन अगर मैं सेवक से कहूँ, ‘देख, तीर बहुत दूर जा गिरे हैं’ तो तू चला जाना क्योंकि यहोवा तुझे भेज रहा होगा। 23 और यहोवा सदा के लिए इस बात का गवाह हो+ कि हम दोनों ने आपस में दोस्ती का करार किया है।”+

24 इसलिए दाविद जाकर मैदान में छिप गया। फिर नए चाँद के दिन शाऊल भोज में अपने खाने की जगह पर बैठा।+ 25 वह दीवार के पास उस जगह बैठा जहाँ वह हमेशा बैठा करता था। योनातान उसके सामने था और अब्नेर+ उसकी बगल में बैठा था, मगर दाविद की जगह खाली थी। 26 उस दिन शाऊल ने दाविद के बारे में कुछ नहीं पूछा क्योंकि उसने सोचा कि ज़रूर वह किसी वजह से अशुद्ध+ हो गया होगा इसीलिए नहीं आया। 27 लेकिन नए चाँद के दूसरे दिन भी जब दाविद की जगह खाली रही तो शाऊल ने अपने बेटे योनातान से पूछा, “क्या बात है, यिशै का बेटा+ भोज में नहीं आया? कल भी नहीं आया था और आज भी नहीं आया?” 28 योनातान ने कहा, “दाविद ने मुझसे बेतलेहेम जाने की इजाज़त माँगी थी। उसने मुझसे बहुत मिन्‍नत की+ 29 और कहा, ‘मेहरबानी करके मुझे जाने की इजाज़त दे, क्योंकि मेरे शहर में मेरा परिवार बलिदान चढ़ा रहा है और मेरे अपने भाई ने मुझे बुलाया है। अगर तेरी इजाज़त हो तो मैं चुपके से जाकर अपने भाइयों से मिल आऊँगा।’ यही वजह है कि वह राजा की मेज़ पर नहीं आया।” 30 यह सुनते ही शाऊल योनातान पर आग-बबूला हो गया और उससे कहा, “बागी कहीं का!* तुझे क्या लगता है, मुझे नहीं पता कि तू यिशै के उस बेटे का साथ दे रहा है? तू ऐसा करके खुद की और अपनी माँ की बेइज़्ज़ती कर रहा है। 31 जब तक यिशै का वह बेटा ज़िंदा रहेगा तू राजा नहीं बन पाएगा और तेरा राज कायम नहीं रहेगा।+ इसलिए जल्दी से भेज किसी को और उसे वापस ले आ। उसे मरना ही होगा।”*+

32 मगर योनातान ने अपने पिता शाऊल से कहा, “तू क्यों उसकी जान के पीछे पड़ा है?+ उसने ऐसा क्या किया है?” 33 तब शाऊल ने योनातान पर ज़ोर से भाला फेंका।+ योनातान समझ गया कि उसके पिता ने दाविद को मार डालने की ठान ली है।+ 34 योनातान को बहुत गुस्सा आया और वह फौरन मेज़ से उठ गया। उसने नए चाँद के उस दूसरे दिन कुछ नहीं खाया क्योंकि उसे यह देखकर बहुत दुख हुआ कि उसके पिता ने दाविद की कितनी बेइज़्ज़ती की।+

35 अगली सुबह योनातान दाविद से मिलने मैदान में गया, ठीक जैसे उसने वादा किया था और उसका जवान सेवक भी उसके साथ था।+ 36 योनातान ने अपने सेवक से कहा, “मैं तीर मारता हूँ और तू दौड़कर जा और उन्हें ढूँढ़ ला।” सेवक भागकर गया और योनातान ने ऐसा तीर मारा कि वह उससे बहुत आगे निकल गया। 37 जब सेवक योनातान के छोड़े हुए तीर के पास पहुँचा, तो योनातान ने चिल्लाकर कहा, “तीर बहुत दूर जा गिरा है, 38 जल्दी भाग! देर मत कर!” सेवक ने जाकर तीर उठाए और वापस अपने मालिक के पास आया। 39 योनातान और दाविद यह इशारा समझ गए मगर सेवक को इसका कोई अंदाज़ा नहीं था। 40 फिर योनातान ने अपने हथियार सेवक को दिए और उससे कहा, “तू इन्हें लेकर शहर चला जा।”

41 जब सेवक चला गया तो दाविद पास की उस जगह से उठा जो दक्षिण की तरफ थी। वह मुँह के बल गिरकर तीन बार झुका। फिर उन्होंने एक-दूसरे को चूमा और वे एक-दूसरे के लिए रोने लगे। दाविद ज़्यादा रोया। 42 योनातान ने दाविद से कहा, “तू इत्मीनान से जा क्योंकि हम दोनों ने यहोवा के नाम से शपथ खाकर यह करार किया है,+ ‘यहोवा मेरे और तेरे बीच और मेरे वंशजों और तेरे वंशजों के बीच सदा तक गवाह बना रहे।’”+

फिर दाविद वहाँ से चला गया और योनातान शहर लौट गया।

21 कुछ समय बाद दाविद नोब+ पहुँचा और अहीमेलेक याजक के पास गया। अहीमेलेक दाविद को वहाँ देखकर डर गया और काँपने लगा। उसने दाविद से पूछा, “तू यहाँ अकेला कैसे? क्या तेरे साथ और कोई नहीं है?”+ 2 दाविद ने अहीमेलेक से कहा, “राजा ने मुझे एक काम देकर भेजा है और यह आदेश दिया है, ‘मैं तुझे जिस काम के लिए भेज रहा हूँ और मैंने तुझे जो हिदायतें दी हैं, उनके बारे में किसी को कुछ मत बताना।’ मैंने अपने आदमियों को बताया है कि वे मुझे फलाँ जगह पर मिलें। 3 अगर तेरे पास पाँच रोटियाँ हों तो मुझे दे। रोटियाँ नहीं हैं तो खाने के लिए जो भी हो, मुझे दे दे।” 4 याजक ने कहा, “मेरे पास सिर्फ पवित्र रोटी है, दूसरी रोटी नहीं है। मैं तुझे पवित्र रोटी+ दे सकता हूँ, बशर्ते तेरे जवान औरतों से दूर रहे हों।”*+ 5 दाविद ने कहा, “हाँ, हम औरतों से दूर रहे हैं। जब भी जवान युद्ध के लिए जाते हैं तो अपने शरीर को शुद्ध रखते हैं।+ और आज तो हम खास काम पर निकले हैं, इसलिए हमने खुद को शुद्ध रखने का और भी ध्यान रखा है।” 6 तब याजक ने दाविद को पवित्र रोटी दे दी+ क्योंकि उसके पास नज़राने की रोटी के अलावा दूसरी रोटी नहीं थी। यह रोटी उसी दिन यहोवा के सामने से निकाली गयी थी और उसकी जगह ताज़ी रोटी रखी गयी थी।

7 उस दिन शाऊल का एक सेवक भी वहाँ मौजूद था, जिसे यहोवा के सामने रोक लिया गया था। उसका नाम दोएग था।+ वह एदोमी+ था और शाऊल के चरवाहों का मुखिया था।

8 इसके बाद दाविद ने अहीमेलेक से कहा, “क्या तेरे पास कोई भाला या तलवार है? मैं अपने साथ कोई तलवार या हथियार नहीं ला पाया क्योंकि मुझे राजा के काम से जल्दी निकलना था।” 9 तब याजक ने कहा, “यहाँ सिर्फ एक ही हथियार है, उस पलिश्‍ती गोलियात की तलवार+ जिसे तूने एलाह घाटी में मार डाला था।+ वह एक कपड़े में लपेटी हुई एपोद के पीछे रखी है।+ तू चाहे तो वह तलवार ले जा सकता है।” दाविद ने कहा, “उससे बढ़िया हथियार और क्या हो सकता है। ला मुझे दे दे।”

10 उस दिन दाविद वहाँ से निकलकर चला गया। शाऊल से भागते-भागते+ वह गत के राजा आकीश+ के यहाँ पहुँचा। 11 आकीश के सेवकों ने अपने राजा से कहा, “क्या यह आदमी उस देश का राजा दाविद नहीं? क्या यह वही आदमी नहीं जिसके बारे में लोगों ने नाचते हुए यह गीत गाया था,

‘शाऊल ने मारा हज़ारों को,

दाविद ने मारा लाखों को’?”+

12 दाविद ने उनकी बातों पर ध्यान दिया और गत के राजा आकीश से बहुत डर गया।+ 13 इसलिए वह उनके सामने* पागल होने का ढोंग करने लगा।+ वह फाटक के पल्लों पर लकीरें खींचने लगा और उसने अपनी लार दाढ़ी पर बहने दी। 14 आखिर में आकीश ने अपने सेवकों से कहा, “यह आदमी तो पागल है! इसे क्यों लाए हो मेरे पास? 15 क्या मेरे यहाँ पागलों की कमी है जो तुम एक और ले आए? क्या मैं इसे अपने घर में रखूँ?”

22 फिर दाविद वहाँ से चला गया+ और अदुल्लाम की गुफा में जा छिपा।+ जब यह बात उसके भाइयों और उसके पिता के पूरे घराने को पता चली तो वे सब उसके पास आए। 2 इसके अलावा, जितने लोग मुसीबत के मारे थे, जो कर्ज़ में डूबे थे और अपने जीवन से दुखी थे, वे सब दाविद के पास इकट्ठा हुए और वह उनका मुखिया बन गया। दाविद के साथ करीब 400 आदमी हो गए।

3 बाद में दाविद वह गुफा छोड़कर मोआब के मिसपे चला गया और उसने मोआब के राजा+ से गुज़ारिश की, “मेरे माता-पिता को अपने यहाँ तब तक ठहरने की इजाज़त दे जब तक कि मुझे पता नहीं चलता कि परमेश्‍वर मेरे लिए क्या करेगा।” 4 तब दाविद ने अपने माता-पिता को मोआब के राजा के यहाँ ठहरा दिया। वे तब तक वहीं रुके रहे जब तक दाविद उस महफूज़ जगह में छिपा रहा।+

5 कुछ समय बाद भविष्यवक्‍ता गाद+ ने दाविद से कहा, “तू उस जगह से निकल जा और यहूदा के इलाके में चला जा।”+ इसलिए दाविद वह जगह छोड़कर हेरेत के जंगल में चला गया।

6 शाऊल को खबर मिली कि दाविद और उसके आदमियों का पता चल गया है। उस समय शाऊल गिबा+ की एक पहाड़ी पर झाऊ के पेड़ के नीचे बैठा हुआ था और उसके हाथ में भाला था। उसके सभी सेवक उसके चारों तरफ तैनात थे। 7 शाऊल ने अपने सेवकों से कहा, “बिन्यामीन के आदमियो, सुनो! तुम्हें क्या लगता है, क्या यिशै का वह बेटा+ भी तुम सबको खेत और अंगूरों के बाग देगा? क्या वह तुम्हें सौ-सौ और हज़ार-हज़ार की टुकड़ियों का अधिकारी ठहराएगा?+ 8 तुम सबने मिलकर मेरे खिलाफ साज़िश की है! जब मेरे बेटे ने यिशै के बेटे के साथ करार किया+ तब तुममें से किसी ने मुझे खबर नहीं दी। तुम्हें मुझसे कोई हमदर्दी नहीं। किसी ने मुझे नहीं बताया कि मेरे अपने बेटे ने मेरे सेवक को मेरे खिलाफ भड़काया है और आज वह सेवक मुझ पर हमला करने के लिए घात लगाए बैठा है।”

9 फिर शाऊल के सेवकों के मुखिया एदोमी दोएग+ ने कहा,+ “मैंने यिशै के बेटे को नोब में देखा था। वह अहीतूब के बेटे अहीमेलेक+ के पास आया था। 10 और अहीमेलेक ने उसकी खातिर यहोवा से मार्गदर्शन माँगा और उसे खाना भी दिया। उसने उसे पलिश्‍ती गोलियात की तलवार भी दी।”+ 11 राजा ने फौरन अपने आदमियों को भेजा कि वे जाकर अहीतूब याजक के बेटे अहीमेलेक को और अहीमेलेक के पिता के घराने के सभी याजकों को, जो नोब में थे, ले आएँ। तब सारे याजक राजा के पास आए।

12 शाऊल ने कहा, “अहीतूब के बेटे, सुन!” अहीमेलेक ने कहा, “हाँ मालिक।” 13 शाऊल ने उससे कहा, “तूने और यिशै के बेटे ने मिलकर क्यों मेरे खिलाफ साज़िश की? तूने क्यों उसे रोटी और तलवार दी और उसकी खातिर परमेश्‍वर से सलाह की? वह मेरे खिलाफ उठा है और आज वह मुझ पर हमला करने के लिए घात लगाए बैठा है।” 14 अहीमेलेक ने राजा से कहा, “तेरे सेवकों में दाविद जैसा भरोसेमंद* आदमी और कौन है?+ वह राजा का दामाद है,+ तेरे अंगरक्षकों का एक प्रधान है और तेरे घराने में उसकी बहुत इज़्ज़त है।+ 15 और ऐसा नहीं कि मैंने आज पहली बार उसकी खातिर परमेश्‍वर से सलाह की।+ मैं तेरे खिलाफ साज़िश रचूँ, ऐसा तो मैं कभी सोच भी नहीं सकता! हे राजा, तू मुझे और मेरे पिता के घराने को दोषी मत ठहरा क्योंकि तेरा यह सेवक इस बारे में कुछ नहीं जानता।”+

16 मगर राजा ने कहा, “अहीमेलेक, अब तू ज़िंदा नहीं बचेगा।+ तुझे और तेरे पिता के पूरे घराने को मार डाला जाएगा।”+ 17 फिर राजा ने अपने चारों तरफ तैनात पहरदारों से कहा, “जाओ, यहोवा के इन सभी याजकों को मार डालो क्योंकि इन्होंने दाविद का साथ दिया है! ये लोग जानते थे कि वह मुझसे भाग रहा है फिर भी इन्होंने मुझे खबर नहीं दी।” मगर राजा के सेवक यहोवा के उन याजकों पर हाथ नहीं उठाना चाहते थे। 18 फिर राजा ने दोएग+ से कहा, “तू जा और याजकों को मार डाल!” एदोमी+ दोएग फौरन गया और उसने अकेले ही सब याजकों को मार डाला। उसने उस दिन 85 याजकों का कत्ल किया जो मलमल का एपोद पहने हुए थे।+ 19 फिर वह याजकों के शहर नोब+ गया और वहाँ जितने भी आदमी, औरत और बच्चे थे उन सबको तलवार से मार डाला, यहाँ तक कि दूध-पीते बच्चों को भी। उसने बैलों, गधों और भेड़ों को भी तलवार से मार डाला।

20 लेकिन अहीतूब के बेटे अहीमेलेक का एक बेटा अबियातार+ बचकर भाग निकला। वह भागकर दाविद के पास गया ताकि उसका साथ दे। 21 अबियातार ने दाविद को बताया, “शाऊल ने यहोवा के याजकों को मार डाला है।” 22 दाविद ने अबियातार से कहा, “उस दिन+ जब मैंने एदोमी दोएग को वहाँ देखा, तो मैं समझ गया कि वह ज़रूर शाऊल को मेरे बारे में खबर दे देगा। तेरे पिता के घराने के सब लोगों की मौत के लिए मैं ही ज़िम्मेदार हूँ। 23 तू यहाँ मेरे साथ ही रह। डर मत, मैं तेरी हिफाज़त करूँगा क्योंकि जो तेरी जान लेना चाहता है वह मेरी भी जान लेना चाहता है।”+

23 कुछ समय बाद दाविद को बताया गया, “पलिश्‍ती लोगों ने कीला+ शहर पर हमला कर दिया है और वे खलिहानों से अनाज लूट रहे हैं।” 2 तब दाविद ने यहोवा से सलाह माँगी,+ “क्या मैं जाकर उन पलिश्‍तियों को मार डालूँ?” यहोवा ने दाविद से कहा, “हाँ जा, उन पलिश्‍तियों को मार डाल और कीला को उनके हाथ से छुड़ा ले।” 3 मगर दाविद के आदमियों ने उससे कहा, “देख, जब हम यहाँ यहूदा में रहकर डरे हुए हैं,+ तो सोच अगर हम पलिश्‍तियों की सेना से लड़ने+ कीला जाएँगे, तो हमें और कितना डर लगेगा!” 4 तब दाविद ने यहोवा से दोबारा सलाह की।+ यहोवा ने उसे जवाब दिया, “तू कीला जा, मैं पलिश्‍तियों को तेरे हाथ में कर दूँगा।”+ 5 तब दाविद अपने आदमियों को लेकर कीला गया और पलिश्‍तियों से लड़ा। वह उनके मवेशियों को उठा लाया और उसने भारी तादाद में पलिश्‍तियों को मार गिराया और कीला के लोगों को बचाया।+

6 जब अहीमेलेक का बेटा अबियातार+ भागकर दाविद के पास कीला आया था, तब उसके पास एक एपोद था। 7 शाऊल को बताया गया कि दाविद कीला आया है। तब शाऊल ने कहा, “परमेश्‍वर ने उसे मेरे हवाले कर दिया है+ क्योंकि वह फाटक और बेड़ेवाले शहर में घुसकर खुद फँस गया है।” 8 शाऊल ने अपने सभी आदमियों को युद्ध के लिए बुलाया और उन्हें आदेश दिया कि वे कीला जाएँ और दाविद और उसके आदमियों को घेर लें। 9 जब दाविद को पता चला कि शाऊल उसे पकड़ने की चाल चल रहा है, तो उसने याजक अबियातार से कहा, “एपोद मेरे पास ले आ।”+ 10 फिर दाविद ने कहा, “हे इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा, तेरे इस सेवक को खबर मिली है कि शाऊल कीला आ रहा है और उसने मेरी वजह से इस शहर को नाश करने की ठान ली है।+ 11 हे इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा, अपने इस सेवक को बता कि क्या कीला के अगुवे* मुझे पकड़कर शाऊल के हवाले कर देंगे? जैसे मैंने सुना है, क्या शाऊल सचमुच नीचे कीला आ रहा है?” यहोवा ने उससे कहा, “हाँ, वह आ रहा है।” 12 दाविद ने पूछा, “क्या कीला के अगुवे मुझे और मेरे आदमियों को पकड़कर शाऊल के हवाले कर देंगे?” यहोवा ने कहा, “हाँ, वे तुम्हें उसके हवाले कर देंगे।”

13 तब दाविद और उसके आदमी फौरन कीला छोड़कर भाग गए। दाविद के साथ करीब 600 आदमी थे।+ वे जहाँ भी जा सकते थे वहाँ चले गए। शाऊल को खबर मिली कि दाविद कीला से भाग गया है इसलिए वह उसका पीछा करने वहाँ नहीं गया। 14 दाविद ज़ीफ+ वीराने में उन पहाड़ी जगहों में रहने लगा जहाँ तक किसी का पहुँचना मुश्‍किल था। इधर शाऊल दिन-रात उसकी तलाश करता रहा+ मगर यहोवा ने दाविद को उसके हाथ में नहीं पड़ने दिया। 15 जब दाविद ज़ीफ वीराने के होरेश में था तो उसे मालूम पड़ा कि* शाऊल उसकी जान लेने के लिए उसे ढूँढ़ने निकल पड़ा है।

16 शाऊल का बेटा योनातान दाविद से मिलने होरेश गया और उसने यहोवा पर दाविद का भरोसा और बढ़ाया।*+ 17 उसने दाविद से कहा, “मत डर, मेरा पिता शाऊल तुझे नहीं पकड़ सकेगा। तू ही इसराएल का राजा होगा+ और मैं तुझसे दूसरे दर्जे पर रहूँगा। यह बात मेरा पिता शाऊल भी जानता है।”+ 18 फिर उन दोनों ने यहोवा के सामने एक करार किया।+ इसके बाद योनातान अपने घर लौट गया और दाविद होरेश में ही रहा।

19 बाद में ज़ीफ के आदमी शाऊल के पास गिबा+ गए और उन्होंने उसे बताया, “दाविद हमारे पास के इलाके होरेश में है,+ जहाँ पहुँचना मुश्‍किल है। वह यशीमोन* के दक्षिण में+ हकीला पहाड़ी+ पर छिपा है।+ 20 हे राजा, तू जब चाहे आना, हम उसे पकड़कर तेरे हवाले कर देंगे।”+ 21 शाऊल ने उनसे कहा, “यहोवा तुम्हें आशीष दे क्योंकि तुम लोगों ने मुझ पर बड़ी कृपा की है। 22 तुम वापस जाओ और ठीक-ठीक पता लगाओ कि वह कहाँ छिपा है और किसने उसे देखा है, क्योंकि मैंने सुना है कि वह बहुत चालाक है। 23 उन सारी जगहों का ठीक-ठीक पता लगाओ जहाँ वह छिपता है और सबूतों के साथ मेरे पास आओ। तब मैं तुम्हारे साथ चलूँगा। अगर वह यहूदा के प्रांत में है, तो मैं उसे हज़ारों लोगों* में से भी ढूँढ़ निकालूँगा।”

24 तब वे आदमी वहाँ से ज़ीफ+ लौट गए और बाद में शाऊल वहाँ गया। इस दौरान दाविद और उसके आदमी माओन+ वीराने में थे जो यशीमोन के दक्षिण की तरफ अराबा+ में है। 25 फिर शाऊल अपने आदमियों को लेकर दाविद को ढूँढ़ने निकल पड़ा।+ जैसे ही यह खबर दाविद को मिली वह एक चट्टान की तरफ चला गया+ और माओन वीराने में ही रहा। जब शाऊल को इसका पता चला तो वह दाविद का पीछा करते हुए माओन वीराने में गया। 26 जब शाऊल पहाड़ के एक तरफ पहुँचा तो दाविद और उसके आदमी पहाड़ के दूसरी तरफ थे। दाविद शाऊल से दूर जाने के लिए जल्दी-जल्दी भागने लगा।+ मगर शाऊल और उसके आदमी, दाविद और उसके आदमियों का पीछा करते-करते उनके बिलकुल करीब पहुँच गए। वे दाविद और उसके आदमियों को घेरकर पकड़ने ही वाले थे+ कि 27 तभी एक दूत ने आकर शाऊल से कहा, “जल्दी चल, पलिश्‍तियों ने देश पर हमला कर दिया है!” 28 शाऊल दाविद का पीछा करना छोड़कर+ पलिश्‍तियों का मुकाबला करने निकल पड़ा। इसीलिए उस जगह का नाम अलगाव की चट्टान पड़ा।

29 इसके बाद दाविद वहाँ से ऊपर एनगदी+ चला गया और वहाँ ऐसी जगहों में रहने लगा जहाँ पहुँचना मुश्‍किल था।

24 जैसे ही शाऊल पलिश्‍तियों का पीछा करके लौटा, उसे लोगों ने बताया कि दाविद एनगदी वीराने में है।+

2 इसलिए शाऊल ने पूरे इसराएल में से चुने हुए 3,000 आदमियों को लिया और दाविद और उसके आदमियों को ढूँढ़ने निकल पड़ा। वह उन सबको लेकर उन पथरीली चट्टानों की तरफ जाने लगा जहाँ पहाड़ी बकरियाँ घूमा करती हैं। 3 रास्ते में उन्हें पत्थरों से बनी भेड़शालाएँ मिलीं और वहीं एक गुफा थी। शाऊल गुफा के अंदर हलका होने* गया। उसी गुफा के बिलकुल कोने में दाविद और उसके आदमी छिपे बैठे थे।+ 4 तब दाविद के आदमियों ने उससे कहा, “आज यहोवा तुझसे कह रहा है, ‘देख! मैंने तेरे दुश्‍मन को तेरे हाथ में कर दिया है।+ तुझे जो सही लगे वह कर।’” तब दाविद उठा और चुपके से शाऊल के पास गया और उसके बिन आस्तीन के बागे का छोर काट लिया। 5 मगर फिर दाविद का मन* उसे कचोटने लगा+ क्योंकि उसने शाऊल के बागे का छोर काट लिया था। 6 उसने अपने आदमियों से कहा, “मैं अपने मालिक पर हाथ उठाने की सोच भी नहीं सकता, वह यहोवा का अभिषिक्‍त जन है। यहोवा की नज़र में यह बिलकुल गलत होगा कि मैं यहोवा के अभिषिक्‍त जन पर हाथ उठाऊँ।”+ 7 यह कहकर दाविद ने अपने आदमियों को रोक दिया* और उन्हें शाऊल पर हमला करने नहीं दिया। फिर शाऊल उठकर गुफा से निकल गया और अपने रास्ते चला गया।

8 फिर दाविद उठकर गुफा से बाहर आया और उसने ज़ोर से शाऊल को आवाज़ दी, “हे मेरे मालिक, हे राजा!”+ शाऊल ने पीछे मुड़कर देखा और दाविद ने मुँह के बल ज़मीन पर गिरकर प्रणाम किया। 9 उसने शाऊल से कहा, “तू क्यों ऐसे आदमियों की बातें सुनता है जो कहते हैं कि दाविद तेरा बुरा करना चाहता है?+ 10 आज तूने खुद अपनी आँखों से देखा कि जब तू गुफा में था तो यहोवा ने तुझे मेरे हाथ में कर दिया था। और किसी ने मुझसे कहा भी था कि मैं तुझे मार डालूँ+ मगर मैंने तुझ पर तरस खाया। मैंने कहा, ‘मैं अपने मालिक पर हाथ नहीं उठाऊँगा क्योंकि वह यहोवा का अभिषिक्‍त जन है।’+ 11 मेरे पिता, यह देख, तेरे बागे के छोर का एक टुकड़ा मेरे हाथ में है। जब मैंने यह छोर काटा तब मैं तुझे जान से मार भी सकता था। मगर मैंने ऐसा नहीं किया। इससे तू समझ सकता है कि तेरा बुरा करने या तुझसे बगावत करने का मेरा कोई इरादा नहीं। मैंने तेरे खिलाफ कोई पाप नहीं किया,+ फिर भी तू मेरी जान लेने पर तुला हुआ है।+ 12 अब यहोवा ही हम दोनों का न्याय करे+ और यहोवा ही तुझसे मेरा बदला ले,+ मगर मैं अपना हाथ तुझ पर नहीं उठाऊँगा।+ 13 एक पुरानी कहावत है, ‘दुष्ट ही दुष्टता के काम करता है।’ इसलिए मैं तुझ पर हाथ नहीं उठाऊँगा। 14 हे इसराएल के राजा, तू किसका पीछा कर रहा है? किसे पकड़ने की कोशिश कर रहा है? मुझ मरे हुए कुत्ते को? एक पिस्सू को?+ 15 यहोवा न्यायी बनकर हम दोनों का फैसला करे। वही इस मुकदमे की जाँच करेगा, मेरी तरफ से पैरवी करेगा+ और मेरा न्याय करेगा और मुझे तेरे हाथ से बचाएगा।”

16 जब दाविद ये सारी बातें कह चुका तो शाऊल ने पूछा, “मेरे बेटे दाविद, क्या यह तेरी आवाज़ है?”+ फिर शाऊल फूट-फूटकर रोने लगा। 17 उसने दाविद से कहा, “तू मुझसे ज़्यादा नेक है। तूने हमेशा मेरे साथ भलाई की है और बदले में मैंने तेरा बुरा ही किया है।+ 18 और जैसे तूने मुझे बताया, आज जब यहोवा ने मुझे तेरे हाथ में कर दिया तब मेरी जान बख्शकर तूने मेरा भला किया।+ 19 कौन ऐसा होगा जो मौका मिलने पर अपने दुश्‍मन को यूँ ही छोड़ दे? आज तूने मेरी जान न लेकर जो भलाई की है, उसके लिए यहोवा तुझे इनाम देगा।+ 20 मैं जानता हूँ कि तू ज़रूर राजा बनेगा+ और इसराएल पर तेरा राज सदा कायम रहेगा। 21 अब तू यहोवा की शपथ खाकर कह+ कि तू मेरी मौत के बाद मेरे वंशजों का नाश नहीं करेगा और मेरे पिता के घराने से मेरा नाम नहीं मिटाएगा।”+ 22 तब दाविद ने शपथ खाकर शाऊल से ऐसा ही कहा, जिसके बाद शाऊल अपने घर लौट गया।+ मगर दाविद और उसके आदमी ऊपर महफूज़ जगह चले गए।+

25 कुछ समय बाद शमूएल+ की मौत हो गयी और पूरा इसराएल उसके लिए मातम मनाने और उसके घर के पास उसे दफनाने के लिए रामाह में इकट्ठा हुआ।+ इसके बाद दाविद उठा और नीचे पारान वीराने चला गया।

2 माओन+ में एक आदमी रहता था जिसकी जायदाद करमेल*+ में थी। वह आदमी बहुत अमीर था। उसके पास 3,000 भेड़ें और 1,000 बकरियाँ थीं। वह करमेल में अपनी भेड़ों का ऊन कतरवा रहा था। 3 उस आदमी का नाम नाबाल+ था और उसकी पत्नी का नाम अबीगैल।+ अबीगैल हमेशा समझ-बूझ से काम लेती थी और बहुत खूबसूरत थी। मगर उसका पति कठोर स्वभाव का था और सबके साथ बुरा बरताव करता था।+ वह कालेबवंशी+ था। 4 जब दाविद वीराने में था तब उसने सुना कि नाबाल अपनी भेड़ों का ऊन कतरवा रहा है। 5 उसने अपने दस जवानों को यह कहकर नाबाल के पास भेजा, “तुम ऊपर करमेल जाओ और नाबाल से मिलकर कहो कि मैंने उसकी खैरियत पूछी है। 6 फिर तुम उससे कहना, ‘तू लंबी उम्र जीए, तू* और तेरा घराना और तेरा सबकुछ सलामत रहे। 7 मैंने सुना है कि तू अपनी भेड़ों का ऊन कतरवा रहा है। जब तेरे चरवाहे हमारे साथ थे तो हमने कभी उनका नुकसान नहीं किया।+ जितने दिन वे करमेल में रहे उन्होंने एक भी जानवर नहीं खोया। 8 तू चाहे तो इस बारे में अपने जवानों से पूछ सकता है। अब मेरे जवानों पर मेहरबानी कर, हम खुशी के इस मौके पर तेरे यहाँ आए हैं। तू अपने इन सेवकों को और अपने बेटे दाविद को जो कुछ दे सकता है दे।’”+

9 दाविद के जवान नाबाल के पास गए और उन्होंने उसे दाविद का संदेश दिया। जब उन्होंने अपनी बात पूरी की, 10 तो नाबाल ने उनसे कहा, “दाविद कौन है? यिशै का बेटा कौन है? आजकल जिस सेवक को देखो अपने मालिक से भागता फिरता है।+ 11 मैंने यह रोटी-पानी और गोश्‍त का इंतज़ाम ऊन कतरनेवाले अपने सेवकों के लिए किया है। क्या मैं यह सब उठाकर ऐसे लोगों को दे दूँ जो पता नहीं कहाँ से चले आते हैं?”

12 तब दाविद के जवान वहाँ से लौट गए और उन्होंने दाविद को सारी बातें सुनायीं। 13 दाविद ने फौरन अपने आदमियों से कहा, “सब लोग अपनी-अपनी तलवार बाँध लो!”+ उन सबने अपनी-अपनी तलवार बाँध ली और दाविद ने भी अपनी तलवार बाँध ली। दाविद के साथ करीब 400 आदमी निकल पड़े जबकि 200 आदमी सामान की देखभाल के लिए रह गए।

14 इस बीच नाबाल के एक सेवक ने उसकी पत्नी अबीगैल को बताया, “दाविद ने वीराने से अपने दूतों के हाथ हमारे मालिक के लिए शुभकामनाएँ भेजीं। मगर मालिक उन पर बरस पड़ा और उनकी बेइज़्ज़ती की।+ 15 जब हम उन आदमियों के साथ मैदानों में थे, तो उन्होंने कभी हमारा नुकसान नहीं किया। जितने दिन हम उनके साथ थे, हमारा एक भी जानवर गुम नहीं हुआ।+ 16 जब हम झुंड की चरवाही करते थे, तो उन्होंने एक बाड़े की तरह दिन-रात हमारी हिफाज़त की थी। 17 अब हमारे मालिक और उसके पूरे घराने पर मुसीबत आनेवाली है।+ मालिक ऐसा निकम्मा आदमी है+ कि हममें से कोई उससे बात नहीं कर सकता। इसलिए अब तुझे ही कुछ करना होगा।”

18 तब अबीगैल+ ने फौरन खाने-पीने की ढेर सारी चीज़ें गधों पर लादीं। उसने 200 रोटियाँ, दो बड़े-बड़े मटके दाख-मदिरा, पाँच हलाल की हुई भेड़ें, पाँच सआ* भुना हुआ अनाज, 100 किशमिश की टिकियाँ और 200 अंजीर की टिकियाँ लीं और गधों पर लादीं।+ 19 फिर उसने अपने सेवकों से कहा, “तुम लोग आगे-आगे चलो, मैं तुम्हारे पीछे आती हूँ।” मगर उसने अपने पति नाबाल को कुछ नहीं बताया।

20 अबीगैल गधे पर बैठी पहाड़ की आड़ में नीचे चली जा रही थी कि तभी रास्ते में उसकी मुलाकात दाविद और उसके आदमियों से हुई जो उसकी तरफ आ रहे थे। 21 अबीगैल से मिलने से पहले दाविद कह रहा था, “मैंने वीराने में बेकार ही उस आदमी की हर चीज़ की हिफाज़त की। मेरे रहते उसका एक भी जानवर गुम नहीं हुआ,+ मगर आज वह मेरी भलाई का यह सिला दे रहा है।+ 22 अगर मैंने कल सुबह तक उसके एक भी आदमी को ज़िंदा छोड़ा तो परमेश्‍वर दाविद के इन दुश्‍मनों को* कड़ी-से-कड़ी सज़ा दे।”

23 जैसे ही अबीगैल की नज़र दाविद पर पड़ी, वह फौरन गधे से उतरी और उसने दाविद के सामने ज़मीन पर गिरकर उसे प्रणाम किया। 24 फिर वह दाविद के पैरों पर गिरकर कहने लगी, “मेरे मालिक, अपनी दासी को कुछ कहने की इजाज़त दे। जो भी हुआ है उसके लिए तू चाहे तो मुझे दोषी ठहरा दे, मगर अपनी दासी की बात मान ले। 25 उस निकम्मे नाबाल पर ध्यान मत दे।+ जैसा उसका नाम है वैसी उसकी फितरत है। उसका नाम नाबाल* है, और वह मूर्खों जैसा ही बरताव करता है। मालिक, तूने जिन जवानों को हमारे यहाँ भेजा था, उन्हें मैंने नहीं देखा था। 26 मेरे मालिक, यहोवा के जीवन की और तेरे जीवन की शपथ, यहोवा ने ही तुझे खून का दोषी+ बनने और अपने हाथों से बदला लेने* से रोक लिया है।+ तेरे दुश्‍मनों का और जो तेरा बुरा करने की ताक में घूम रहे हैं उनका वही हाल हो जो नाबाल का होगा। 27 मालिक, अब तू अपनी दासी के हाथ से यह तोहफा+ कबूल कर, जो मैं तेरे सेवकों के लिए लायी हूँ।+ 28 मेहरबानी करके अपनी दासी का अपराध माफ कर दे। यहोवा ज़रूर तेरे वंशजों को सदा तक राज करने का अधिकार देगा,+ क्योंकि तू यहोवा की तरफ से युद्ध करता है।+ तूने ज़िंदगी में कभी कोई बुरा काम नहीं किया है।+ 29 जब कोई तेरी जान लेने के लिए तेरा पीछा करे, तब तेरा परमेश्‍वर यहोवा तेरी जान की वैसे ही हिफाज़त करेगा जैसे कोई अपनी कीमती चीज़ें थैली में बाँधकर हिफाज़त से रखता है। और वह तेरे दुश्‍मनों का जीवन ऐसे दूर फेंकेगा, जैसे गोफन से पत्थर दूर फेंका जाता है। 30 जब यहोवा तेरे साथ वे सारे भलाई के काम करेगा, जिनका उसने वादा किया है और तुझे इसराएल का अगुवा ठहराएगा,+ 31 तब तेरा मन तुझे इस बात के लिए नहीं धिक्कारेगा और तुझे कोई पछतावा नहीं होगा कि तूने बेवजह खून बहाया है और खुद अपने हाथों से बदला लिया है।*+ मेरे मालिक, जब यहोवा तुझे आशीष देगा तब तू अपनी दासी को याद करना।”

32 तब दाविद ने अबीगैल से कहा, “इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा की बड़ाई हो जिसने आज तुझे मेरे पास भेजा है! 33 परमेश्‍वर तुझे आशीष दे क्योंकि तूने समझदारी से काम लिया है। आज तूने मुझे खून का दोषी बनने से और अपने हाथों से बदला लेने* से रोक लिया है,+ परमेश्‍वर तुझे आशीष दे। 34 इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा के जीवन की शपथ, जिसने मुझे तेरा नुकसान करने से रोक लिया है,+ अगर तू फौरन मेरे पास न आती+ तो कल सुबह तक नाबाल के घराने का एक भी आदमी ज़िंदा नहीं बचता।”+ 35 इसके बाद दाविद ने अबीगैल का तोहफा कबूल किया और उससे कहा, “तू बेफिक्र होकर घर जा। देख, मैंने तेरी बात मान ली है। मैं तेरी गुज़ारिश पूरी करूँगा।”

36 बाद में अबीगैल नाबाल के पास लौटी। उस वक्‍त वह अपने घर पर राजा की तरह दावत उड़ा रहा था और वह* बहुत खुश था। वह पीकर धुत्त हो गया था। अबीगैल ने नाबाल को सुबह तक कुछ नहीं बताया। 37 सुबह जब नाबाल का नशा उतरा तो उसकी पत्नी अबीगैल ने उसे सारा हाल कह सुनाया। जब नाबाल ने यह सब सुना तो वह पत्थर-सा सुन्‍न हो गया, उसके दिल ने मानो काम करना बंद कर दिया। 38 करीब दस दिन बाद यहोवा ने नाबाल को मारा और वह मर गया।

39 जब दाविद को नाबाल की मौत की खबर मिली तो उसने कहा, “यहोवा की बड़ाई हो क्योंकि नाबाल ने मेरी जो बेइज़्ज़ती की थी+ उस मामले में यहोवा ने न्याय किया+ और मुझे बुरा काम करने से रोक दिया।+ परमेश्‍वर ने नाबाल के बुरे कामों का अंजाम उसी के सिर डाल दिया है!” इसके बाद दाविद ने अबीगैल के पास संदेश भेजा कि वह उसे अपनी पत्नी बनाना चाहता है। 40 दाविद के सेवकों ने करमेल आकर अबीगैल से कहा, “दाविद ने हमारे हाथ यह संदेश भेजा है कि वह तुझे अपनी पत्नी बनाना चाहता है।” 41 अबीगैल ने फौरन मुँह के बल ज़मीन पर गिरकर कहा, “तेरी यह दासी अपने मालिक के सेवकों के पैर धोने+ के लिए तैयार है।” 42 फिर अबीगैल+ फौरन उठी और अपने गधे पर सवार होकर निकल पड़ी। उसकी पाँच दासियाँ उसके पीछे-पीछे गयीं। अबीगैल दाविद के दूतों के साथ उसके पास गयी और उसकी पत्नी बन गयी।

43 दाविद ने यिजरेल+ की रहनेवाली अहीनोअम+ से भी शादी की थी। इस तरह वे दोनों उसकी पत्नियाँ बन गयीं।+

44 मगर शाऊल ने अपनी बेटी यानी दाविद की पत्नी मीकल+ की शादी, लैश के बेटे पलती+ से करा दी थी जो गल्लीम का रहनेवाला था।

26 कुछ समय बाद ज़ीफ+ के आदमी शाऊल के पास गिबा+ गए और उन्होंने उसे बताया कि दाविद यशीमोन* के सामने हकीला पहाड़ी पर छिपा हुआ है।+ 2 तब शाऊल ने इसराएल के 3,000 चुने हुए आदमी लिए और दाविद को ढूँढ़ने नीचे ज़ीफ वीराने की तरफ निकल पड़ा।+ 3 शाऊल ने यशीमोन के सामने हकीला पहाड़ी पर सड़क किनारे छावनी डाली। उस समय दाविद वीराने में रह रहा था और उसे पता चला कि शाऊल उसे पकड़ने के लिए इस वीराने में पहुँच गया है। 4 दाविद ने अपने जासूस भेजे ताकि वे पता लगाएँ कि क्या शाऊल सचमुच वहाँ आया है। 5 बाद में दाविद उस जगह गया जहाँ शाऊल ने छावनी डाली थी। दाविद ने वह जगह देखी जहाँ शाऊल और उसका सेनापति अब्नेर+ (जो नेर का बेटा था) सो रहे थे। शाऊल छावनी के बीचों-बीच सो रहा था और उसकी सेना की सारी टुकड़ियाँ उसके चारों तरफ थीं। 6 इसके बाद दाविद ने अहीमेलेक से जो हित्ती+ था और अबीशै+ से जो सरूयाह+ का बेटा और योआब का भाई था, पूछा, “मेरे साथ शाऊल की छावनी में कौन चलेगा?” अबीशै ने कहा, “मैं तेरे साथ चलूँगा।” 7 तब दाविद और अबीशै रात के वक्‍त शाऊल की छावनी में गए और उन्होंने देखा कि शाऊल छावनी के बीचों-बीच सो रहा है और उसका भाला उसके सिर के पास ज़मीन में गड़ा हुआ है। अब्नेर और सारे सैनिक शाऊल के चारों तरफ सो रहे थे।

8 अबीशै ने दाविद से कहा, “देख, आज परमेश्‍वर ने तेरे दुश्‍मन को तेरे हाथ में कर दिया है।+ अब मुझे इजाज़त दे कि मैं भाले से उसे ज़मीन में ठोंक दूँ। मैं एक ही वार में उसे मार डालूँगा, मुझे दोबारा वार करने की ज़रूरत नहीं होगी।” 9 मगर दाविद ने अबीशै से कहा, “नहीं, नहीं, तू उसे कुछ मत कर। क्या कोई यहोवा के अभिषिक्‍त जन+ पर हाथ उठाकर निर्दोष रह सकता है?”+ 10 फिर दाविद ने कहा, “यहोवा के जीवन की शपथ, यहोवा खुद उसे मार डालेगा+ या फिर वह युद्ध में मारा जाएगा।+ अगर नहीं तो जैसे सब मरते हैं, वैसे ही एक दिन उस पर भी मौत आ जाएगी।+ 11 लेकिन मैं यहोवा के अभिषिक्‍त जन पर हाथ उठाने की सोच भी नहीं सकता क्योंकि ऐसा करना यहोवा की नज़र में गलत होगा।+ अब चल, हम उसके सिरहाने से भाला और पानी की सुराही उठा लें और यहाँ से निकल जाएँ।” 12 दाविद ने शाऊल के सिरहाने से भाला और सुराही उठा ली और दोनों वहाँ से चले गए। किसी ने भी उन्हें नहीं देखा,+ न किसी को पता चला, न ही कोई जागा। सब लोग सो रहे थे क्योंकि यहोवा ने उन्हें गहरी नींद सुला दिया था। 13 फिर दाविद दूसरी तरफ गया और दूर जाकर पहाड़ की चोटी पर खड़ा हुआ। शाऊल की छावनी और दाविद के बीच काफी दूरी थी।

14 दाविद ने वहाँ से शाऊल की सेना को और नेर के बेटे अब्नेर+ को ज़ोर से आवाज़ दी, “अब्नेर! अब्नेर! क्या तू सुन रहा है?” अब्नेर ने कहा, “तू कौन है? कौन राजा को आवाज़ दे रहा है?” 15 दाविद ने अब्नेर से कहा, “तू एक बड़ा योद्धा है, पूरे इसराएल में तेरी टक्कर का कोई नहीं है। फिर तूने क्यों अपने मालिक की, अपने राजा की हिफाज़त नहीं की? एक सैनिक तेरे राजा की जान लेने आया था।+ 16 ऐसी लापरवाही दिखाकर तूने ठीक नहीं किया। यहोवा के जीवन की शपथ, तुझे मौत की सज़ा मिलनी चाहिए क्योंकि तूने अपने मालिक यहोवा के अभिषिक्‍त जन की हिफाज़त नहीं की।+ अब चारों तरफ नज़र दौड़ाकर देख! राजा के सिरहाने जो भाला और पानी की सुराही+ थी वह कहाँ है?”

17 तब शाऊल ने दाविद की आवाज़ पहचान ली और कहा, “बेटे दाविद, क्या यह तेरी आवाज़ है?”+ दाविद ने कहा, “हाँ मेरे मालिक राजा, मैं ही बोल रहा हूँ।” 18 फिर दाविद ने कहा, “मालिक, तू क्यों अपने इस दास का पीछा कर रहा है?+ आखिर मैंने किया क्या है? मेरा दोष क्या है?+ 19 मेरे मालिक, ज़रा अपने दास की बात सुन। अगर यहोवा ने तुझे मेरे खिलाफ भड़काया है, तो वह मेरा अनाज का चढ़ावा स्वीकार करे।* लेकिन अगर इंसानों ने तुझे भड़काया है+ तो वे यहोवा के सामने शापित हैं, क्योंकि उन्होंने मुझे वह देश छोड़ने पर मजबूर किया है जो यहोवा ने विरासत+ में दिया है, मानो मेरा उसमें कोई हिस्सा नहीं। वे एक तरह से कह रहे हैं, ‘जा, जाकर दूसरे देवताओं की सेवा कर!’ 20 यहोवा की मौजूदगी से दूर ज़मीन पर मेरा खून न बहाया जाए। इसराएल का राजा जिसे पकड़ने निकला है वह बस एक पिस्सू है,+ राजा जिसके पीछे भाग रहा है वह पहाड़ों पर छिपता-फिरता तीतर है।”

21 तब शाऊल ने कहा, “मैंने पाप किया है।+ मेरे बेटे दाविद, मेरे पास वापस आ जा। मैं तुझे कुछ नहीं करूँगा क्योंकि आज तूने दिखा दिया कि तू मेरी जान को अनमोल समझता है।+ मैंने सचमुच बेवकूफी की है, बहुत बड़ी गलती की है।” 22 तब दाविद ने कहा, “यह रहा राजा का भाला। तेरा एक जवान आकर इसे ले जाए। 23 यहोवा हर किसी को उसकी नेकी और वफादारी का इनाम देगा।+ आज यहोवा ने तुझे मेरे हाथ में कर दिया था, मगर मैंने यहोवा के अभिषिक्‍त जन पर हाथ उठाने से इनकार कर दिया।+ 24 और जैसे आज मैंने तेरी जान को अनमोल समझा वैसे ही यहोवा मेरी जान को अनमोल समझे और मुझे सारी मुसीबतों से बचाए।”+ 25 शाऊल ने दाविद से कहा, “मेरे बेटे दाविद, तुझे आशीष मिले। तू सचमुच बड़े-बड़े काम करेगा और हर काम में कामयाब होगा।”+ इसके बाद दाविद अपने रास्ते चला गया और शाऊल अपनी जगह लौट गया।+

27 लेकिन दाविद ने मन में सोचा, “मैं एक दिन ज़रूर शाऊल के हाथों मारा जाऊँगा। इसलिए अच्छा होगा कि मैं पलिश्‍तियों के देश भाग जाऊँ।+ तब शाऊल मुझे इसराएल देश में ढूँढ़ना बंद कर देगा+ और मैं उसके हाथ में पड़ने से बच जाऊँगा।” 2 इसलिए दाविद अपने 600 आदमियों+ को लेकर गत के राजा आकीश+ के पास चला गया जो माओक का बेटा था। 3 वह आकीश के यहाँ गत में रहने लगा। दाविद के साथ उसके सभी आदमी और उनके परिवार भी वहाँ रहने लगे। दाविद के साथ उसकी दोनों पत्नियाँ भी गयीं, यिजरेल की रहनेवाली अहीनोअम+ और करमेल की रहनेवाली अबीगैल,+ जो नाबाल की विधवा थी। 4 जब शाऊल को खबर मिली कि दाविद गत भाग गया है तो उसने दाविद को ढूँढ़ना छोड़ दिया।+

5 फिर दाविद ने आकीश से कहा, “अगर तेरी कृपा मुझ पर हो तो मुझे रहने के लिए देहात के किसी शहर में जगह दे दे। तेरा यह दास तेरे साथ राजाओं के शहर में कैसे रह सकता है?” 6 आकीश ने उसी दिन उसे सिकलग+ शहर दे दिया। इसीलिए आज तक सिकलग यहूदा के राजाओं के अधिकार में है।

7 दाविद पलिश्‍तियों के देहाती इलाके में एक साल और चार महीने रहा।+ 8 वह अपने आदमियों के साथ ऊपर गशूरियों,+ गिरजियों और अमालेकियों+ पर चढ़ाई करने जाता और उन्हें लूट लेता था। उन लोगों का इलाका तेलम से लेकर शूर+ तक और नीचे मिस्र देश तक फैला हुआ था। 9 जब भी दाविद उन इलाकों पर हमला करता तो वहाँ के आदमी या औरत, किसी को भी ज़िंदा नहीं छोड़ता था।+ मगर वह वहाँ से भेड़-बकरियाँ, गाय-बैल, गधे, ऊँट और कपड़े उठा लेता और आकीश के पास लौट आता था। 10 जब आकीश उससे पूछता कि “आज तूने कौन-सी जगह लूटी?” तो दाविद कभी कहता, “यहूदा का दक्षिणी इलाका”*+ तो कभी “यरहमेलियों+ का दक्षिणी इलाका” तो कभी कहता, “केनियों+ का दक्षिणी इलाका।” 11 दाविद जब किसी जगह को लूटता तो वहाँ के एक भी आदमी या औरत को ज़िंदा नहीं छोड़ता था ताकि उसे गत न लाना पड़े क्योंकि वह सोचता था, “कहीं ऐसा न हो कि वे गत के लोगों को हमारे बारे में बता दें कि दाविद ने ऐसा-ऐसा किया है।” (दाविद जितने समय तक पलिश्‍तियों के देहात में था वह ऐसा ही करता था।) 12 इसीलिए आकीश ने यह सोचकर दाविद पर भरोसा किया कि इसके अपने इसराएली लोग ज़रूर इससे नफरत करते होंगे, इसलिए अब यह हमेशा के लिए मेरा सेवक बना रहेगा।

28 उन्हीं दिनों पलिश्‍तियों ने इसराएल से युद्ध करने के लिए अपनी सेनाओं को इकट्ठा किया।+ तब आकीश ने दाविद से कहा, “तुझे तो मालूम ही होगा कि तू और तेरे आदमी भी मेरे साथ युद्ध में जाएँगे।”+ 2 दाविद ने आकीश से कहा, “तू अच्छी तरह जानता है कि तेरा सेवक क्या करेगा।” आकीश ने कहा, “इसीलिए मैं तुझे हमेशा के लिए अपना अंगरक्षक* ठहराता हूँ।”+

3 अब तक शमूएल की मौत हो चुकी थी और पूरे इसराएल ने उसके लिए मातम मनाया था और उसके अपने शहर रामाह में उसे दफनाया था।+ शाऊल ने देश से उन सब लोगों को निकाल दिया था जो मरे हुओं से संपर्क करने का दावा करते थे और भविष्य बताया करते थे।+

4 पलिश्‍ती अपनी सेनाओं को इकट्ठा करने के बाद शूनेम+ गए और उन्होंने वहाँ अपनी छावनी डाली। इसलिए शाऊल ने पूरी इसराएली सेना को इकट्ठा किया और उन्होंने गिलबो+ में छावनी डाली। 5 जब शाऊल ने पलिश्‍तियों की छावनी देखी तो वह बहुत डर गया। उसका दिल काँपने लगा।+ 6 शाऊल ने यहोवा से सलाह की,+ मगर यहोवा ने उसे कोई जवाब नहीं दिया, न तो सपनों के ज़रिए और न ही ऊरीम+ या भविष्यवक्‍ताओं के ज़रिए। 7 आखिर में शाऊल ने अपने सेवकों से कहा, “मेरे लिए एक ऐसी औरत का पता लगाओ जो मरे हुओं से संपर्क करती हो।+ मैं जाकर उससे सलाह करूँगा।” उसके सेवकों ने कहा, “एन्दोर+ में एक औरत रहती है जो मरे हुओं से संपर्क करती है।”

8 तब शाऊल ने अपना भेस बदला। उसने दूसरे कपड़े पहने और दो आदमियों को लेकर रात में उस औरत के पास गया। शाऊल ने उस औरत से कहा, “मरे हुओं से संपर्क करने की शक्‍ति इस्तेमाल करके मेरा भविष्य बता।+ मैं जिसका नाम बताऊँ, उसे बुला और उससे मेरी बात करा।” 9 मगर उस औरत ने कहा, “तुझे तो मालूम होना चाहिए कि शाऊल ने क्या किया है। उसने देश से उन सभी लोगों को निकाल दिया है जो भविष्य बताया करते थे और जो मरे हुओं से संपर्क कराते थे।+ फिर तू क्यों मुझे फँसाना चाहता है? क्यों मुझे मरवाना चाहता है?”+ 10 तब शाऊल ने यहोवा की शपथ खाकर कहा, “यहोवा के जीवन की शपथ, इसके लिए तुझे बिलकुल दोषी नहीं ठहराया जाएगा!” 11 तब उस औरत ने कहा, “अच्छा बता, मैं तेरे लिए किसे बुलाऊँ?” शाऊल ने कहा, “तू मेरे लिए शमूएल को बुला।” 12 जब उस औरत ने “शमूएल”+ को देखा* तो वह ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगी। उसने शाऊल से कहा, “तू तो शाऊल है! तूने मुझे क्यों धोखा दिया?” 13 राजा ने कहा, “डर मत, बस इतना बता कि तुझे क्या दिखायी दे रहा है?” औरत ने कहा, “मुझे देवता जैसा कोई ज़मीन से ऊपर उठता दिखायी दे रहा है।” 14 शाऊल ने फौरन पूछा, “वह दिखने में कैसा है?” औरत ने कहा, “वह कोई बूढ़ा आदमी है, बिन आस्तीन का बागा पहने हुए है।”+ शाऊल समझ गया कि वह “शमूएल” है और उसने मुँह के बल ज़मीन पर गिरकर प्रणाम किया।

15 तब “शमूएल” ने शाऊल से कहा, “तू क्यों मुझे परेशान कर रहा है? तूने मुझे क्यों ऊपर बुलाया?” शाऊल ने कहा, “मैं बड़ी मुसीबत में हूँ। पलिश्‍ती मुझसे लड़ने आए हैं और परमेश्‍वर ने मुझे छोड़ दिया है। वह मुझे कोई जवाब नहीं दे रहा, न तो भविष्यवक्‍ताओं के ज़रिए न ही सपनों के ज़रिए।+ इसीलिए मैंने तुझे बुलाया ताकि तू मुझे बताए कि मुझे क्या करना चाहिए।”+

16 “शमूएल” ने कहा, “जब यहोवा ने तुझे छोड़ दिया है+ और तेरा दुश्‍मन बन गया है, तो फिर तू मुझसे पूछने क्यों चला आया? 17 यहोवा ने मुझसे जो भविष्यवाणी करवायी थी, उसे वह हर हाल में पूरी करेगा। यहोवा तुझसे तेरा राज छीनकर तेरे संगी दाविद को दे देगा।+ 18 तूने यहोवा की आज्ञा नहीं मानी और अमालेकियों का नाश नहीं किया+ जिन्होंने उसका क्रोध भड़काया था। इसलिए आज यहोवा तेरे साथ ऐसा कर रहा है। 19 यहोवा तुझे और पूरे इसराएल को पलिश्‍तियों के हवाले कर देगा।+ कल तू+ और तेरे बेटे+ मेरे साथ होंगे। यहोवा इसराएल की पूरी सेना को भी पलिश्‍तियों के हाथ में कर देगा।”+

20 यह सुनते ही शाऊल ज़मीन पर चित गिर पड़ा। “शमूएल” ने जो कहा उससे वह बहुत डर गया था। उसके शरीर में वैसे भी कोई ताकत नहीं बची थी क्योंकि उसने सारा दिन और सारी रात कुछ नहीं खाया था। 21 जब वह औरत शाऊल के पास आयी और उसने देखा कि वह बहुत परेशान है तो उसने शाऊल से कहा, “देख, तेरी दासी ने तेरी आज्ञा मानी और अपनी जान हथेली पर रखकर+ तेरा काम किया। 22 अब तू भी मेहरबानी करके अपनी दासी की बात मान। मैं थोड़ी रोटी लाती हूँ, उसे खा ताकि तुझे वापस लौटने के लिए ताकत मिले।” 23 मगर शाऊल ने यह कहकर मना कर दिया, “नहीं, मैं नहीं खाऊँगा।” मगर उसके सेवक और वह औरत उसे खाने के लिए बार-बार कहते रहे। उनके बहुत मनाने पर वह ज़मीन से उठा और पलंग पर बैठा। 24 उस औरत के घर में एक मोटा-ताज़ा बछड़ा था। उसने फौरन उसे हलाल* किया और आटा गूँधकर बिन-खमीर की रोटियाँ बनायीं। 25 फिर उसने शाऊल और उसके सेवकों को खाना परोसा और उन्होंने खाया। इसके बाद वे उठे और उसी रात वहाँ से लौट गए।+

29 पलिश्‍तियों+ की सारी सेनाएँ अपेक में इकट्ठा हुईं और इसराएलियों ने अपनी छावनी यिजरेल+ के सोते के पास डाली थी। 2 पलिश्‍तियों के सरदार अपनी सौ-सौ और हज़ार-हज़ार की टुकड़ियाँ लेकर कदम बढ़ाने लगे। दाविद और उसके आदमी आकीश के साथ सेना में सबसे पीछे चल रहे थे।+ 3 मगर पलिश्‍तियों के हाकिमों ने पूछा, “ये इब्री लोग यहाँ क्या कर रहे हैं?” आकीश ने हाकिमों से कहा, “यह दाविद है, इसराएल के राजा शाऊल का सेवक। यह एक साल से मेरे साथ रहता है बल्कि उससे भी ज़्यादा समय से।+ जब से यह अपने राजा के पास से भागकर मेरे पास आया है, तब से लेकर आज तक मैंने इसमें कोई बुराई नहीं पायी।” 4 मगर पलिश्‍तियों के हाकिम आकीश पर गुस्सा हो गए और उससे कहने लगे, “उस आदमी को वापस भेज दे।+ उससे कह कि वह उसी जगह लौट जाए जो तूने उसे दी है। इसे हमारे साथ युद्ध में मत आने दे। ऐसा न हो कि युद्ध के वक्‍त वह उलटा हम पर ही हमला करने लगे। क्या पता, वह हमारे आदमियों का सिर काटकर अपने राजा के पास ले जाए?+ अपने राजा को खुश करने का इससे बढ़िया मौका उसे कहाँ मिलेगा? 5 यह वही दाविद है जिसके बारे में लोगों ने नाचते-गाते हुए कहा था,

‘शाऊल ने मारा हज़ारों को,

दाविद ने मारा लाखों को।’”+

6 इसलिए आकीश+ ने दाविद को बुलाया और उससे कहा, “यहोवा के जीवन की शपथ, तू एक सीधा-सच्चा इंसान है। मैं तो बहुत खुश हूँ कि तू मेरी सेना के साथ युद्ध करने चला है,+ क्योंकि जब से तू मेरे पास आया है तब से लेकर आज तक मैंने तुझमें कोई बुराई नहीं पायी।+ मगर बाकी सरदारों को तुझ पर भरोसा नहीं है।+ 7 इसलिए तू शांति से लौट जा और ऐसा कोई काम न कर जिससे पलिश्‍ती सरदारों का गुस्सा तुझ पर भड़क उठे।” 8 लेकिन दाविद ने आकीश से कहा, “मगर क्यों? मैंने ऐसा क्या किया है? जब से तेरा दास तेरे पास आया है तब से लेकर आज तक क्या तूने मुझमें कोई बुराई पायी है? तो फिर हे राजा, मेरे मालिक, मैं तेरे दुश्‍मनों से लड़ने तेरे साथ क्यों नहीं आ सकता?” 9 आकीश ने दाविद से कहा, “मुझे तो पूरा यकीन है कि तू एक भला आदमी है, बिलकुल परमेश्‍वर के स्वर्गदूत की तरह।+ लेकिन पलिश्‍तियों के हाकिमों ने तेरे बारे में कहा है, ‘इसे हमारे साथ युद्ध में मत आने दे।’ 10 इसलिए तू कल सुबह तड़के उठ और अपने मालिक के दासों के साथ, जो तेरे साथ आए हैं, उजाला होते ही लौट जा।”

11 इसलिए दाविद और उसके आदमी अगले दिन सुबह तड़के उठे ताकि पलिश्‍तियों के देश लौट जाएँ। और पलिश्‍ती सेनाएँ ऊपर यिजरेल+ गयीं।

30 तीसरे दिन जब दाविद और उसके आदमी सिकलग+ लौटे, तब तक अमालेकियों+ ने दक्षिण के इलाके* पर और सिकलग पर हमला करके उन्हें लूट लिया और सिकलग को आग से फूँक दिया था। 2 वे सिकलग की सभी औरतों+ को और छोटे बच्चे से लेकर बूढ़े तक सबको ले गए और वहाँ उनका जो कुछ था, सब लूट लिया। उन्होंने किसी को जान से नहीं मारा मगर वे उन सबको बंदी बनाकर ले गए। 3 जब दाविद और उसके आदमी शहर पहुँचे तो उन्होंने देखा कि शहर जलकर राख हो गया है और उनके बीवी-बच्चों को बंदी बनाकर ले जाया गया है। 4 दाविद और उसके आदमी ज़ोर-ज़ोर से रोने लगे। वे इतना रोए कि उनमें और रोने की ताकत न रही। 5 दाविद की दोनों पत्नियाँ, यिजरेली अहीनोअम और अबीगैल (जो करमेली नाबाल की विधवा थी)+ भी बंदी बना ली गयीं। 6 दाविद के आदमी अपने बच्चों को खोने के गम में इतनी कड़वाहट से भर गए कि वे दाविद को पत्थरों से मार डालने की बात करने लगे। इससे दाविद को गहरा दुख हुआ। मगर उसने अपने परमेश्‍वर यहोवा की मदद से खुद को मज़बूत किया।+

7 फिर दाविद ने अहीमेलेक के बेटे अबियातार+ याजक से कहा, “ज़रा एपोद यहाँ लाना।”+ तब अबियातार दाविद के पास एपोद लाया। 8 दाविद ने यहोवा से सलाह की,+ “क्या मैं लुटेरों के उस दल का पीछा करने जाऊँ? क्या मैं उन्हें पकड़ पाऊँगा?” परमेश्‍वर ने कहा, “हाँ, तू जाकर उनका पीछा कर। तू ज़रूर उन्हें पकड़ लेगा और अपना सबकुछ छुड़ा लेगा।”+

9 दाविद फौरन अपने 600 आदमियों+ को लेकर निकल पड़ा। जब वे दूर बसोर घाटी* के पास पहुँचे तो उसके कुछ आदमी वहाँ रुक गए। 10 उनकी गिनती 200 थी। वे इतने थक गए थे कि बसोर घाटी पार करने की उनमें ताकत नहीं थी। मगर दाविद बाकी 400 आदमियों के साथ आगे बढ़ता गया।+

11 दाविद के आदमियों को मैदान में एक मिस्री आदमी मिला और वे उसे दाविद के पास ले गए। उन्होंने उस आदमी को खाने-पीने के लिए कुछ दिया। 12 साथ ही अंजीर की टिकिया का एक टुकड़ा और किशमिश की दो टिकियाँ दीं। जब उस आदमी ने यह सब खाया तो उसकी जान में जान आयी क्योंकि तीन दिन और तीन रात से उसने कुछ खाया-पीया नहीं था। 13 फिर दाविद ने उससे पूछा, “तू कहाँ का है और किसका आदमी है?” उसने कहा, “मैं एक मिस्री हूँ और एक अमालेकी आदमी का दास हूँ। मेरा मालिक मुझे तीन दिन पहले यहाँ छोड़कर चला गया क्योंकि मैं बीमार हो गया था। 14 हमने करेती लोगों+ के दक्षिणी इलाके* पर, यहूदा के इलाके पर और कालेब+ के दक्षिणी इलाके* पर हमला किया और उन्हें लूट लिया और सिकलग को हमने जला दिया।” 15 तब दाविद ने उससे पूछा, “क्या तू मुझे उस लुटेरे-दल के पास ले जाएगा?” उस आदमी ने कहा, “अगर तू परमेश्‍वर की शपथ खाकर मुझसे कहे कि तू मेरी जान नहीं लेगा और न ही मुझे मेरे मालिक के हवाले करेगा तो मैं तुझे उस दल के पास ले जाऊँगा।”

16 फिर वह मिस्री आदमी दाविद को उस जगह ले गया जहाँ लुटेरा-दल था। वे लुटेरे मैदान में चारों तरफ फैले हुए थे और खा-पीकर जश्‍न मना रहे थे क्योंकि वे पलिश्‍तियों के देश से और यहूदा के इलाके से ढेर सारा माल लूट लाए थे। 17 तब दाविद मुँह अँधेरे उन सबको घात करने लगा और अगली शाम तक उन्हें घात करता रहा। उन 400 आदमियों के सिवा, जो ऊँटों पर भाग गए थे, दाविद ने किसी को भी ज़िंदा नहीं छोड़ा।+ 18 दाविद ने अमालेकियों से वह सब छुड़ा लिया जो वे लूटकर ले गए थे।+ उसने अपनी दोनों पत्नियों को भी बचा लिया। 19 दाविद और उसके आदमियों ने कुछ नहीं खोया। उन्होंने अपने बेटे-बेटियों को और अपना सारा माल वापस पा लिया। बच्चों से लेकर बुज़ुर्गों तक और छोटी चीज़ से लेकर बड़ी तक, सबकुछ वापस पा लिया।+ दाविद ने लुटेरों के हाथ से हर चीज़ छुड़ा ली। 20 उसने लुटेरों की भेड़-बकरियाँ और गाय-बैल भी ले लिए और उसके आदमी इन जानवरों को अपने जानवरों के आगे-आगे हाँकते हुए ले गए। उन्होंने कहा, “यह दाविद की लूट है।”

21 फिर दाविद उन 200 आदमियों के पास पहुँचा जो बहुत थक जाने की वजह से उसके साथ नहीं गए थे बल्कि बसोर घाटी के पास रुक गए थे।+ वे दाविद और उसके साथवाले आदमियों से मिलने गए। फिर दाविद ने उनके पास जाकर उनका हाल-चाल पूछा। 22 मगर जो आदमी दाविद के साथ गए थे उनमें से कुछ बुरे और निकम्मे लोग कहने लगे, “हम लूट की जो चीज़ें छुड़ा लाए हैं, उनमें से एक भी चीज़ उन्हें नहीं देंगे क्योंकि वे हमारे साथ नहीं आए थे। वे बस अपने बीवी-बच्चों को लेकर जा सकते हैं।” 23 मगर दाविद ने उन्हें समझाया, “मेरे भाइयो, यहोवा की दी हुई चीज़ों के साथ तुम ऐसा मत करो। उसने हमारी हिफाज़त की और उस लुटेरे-दल को हमारे हाथ में कर दिया।+ 24 तुम जो कह रहे हो क्या उससे कोई राज़ी होगा? जो लोग सामान की देखभाल करने के लिए रह गए थे उन्हें भी उतना ही हिस्सा मिलेगा+ जितना उन लोगों को जो युद्ध में गए थे। सबको बराबर हिस्सा मिलेगा।”+ 25 दाविद का यह फैसला उस दिन से पूरे इसराएल के लिए एक नियम और कानून बन गया जो आज तक कायम है।

26 जब दाविद सिकलग लौटा तो उसने लूट में से कुछ माल यहूदा के प्रधानों को भेजा जो उसके दोस्त थे। उसने उन्हें यह संदेश भेजा: “यहोवा के दुश्‍मनों की लूट में से यह तुम्हारे लिए तोहफा है।” 27 इसी तरह उसने इन सारी जगहों के लोगों को भी लूट में से कुछ माल भेजा: बेतेल,+ नेगेब* के रामोत, यत्तीर,+ 28 अरोएर, सिपमोत, एश्‍तमोआ,+ 29 राकाल, यरहमेलियों+ के शहर, केनियों+ के शहर, 30 होरमा,+ बोराशान, अताक, 31 और हेब्रोन।+ दाविद ने उन सारी जगहों के लोगों को कुछ माल भेजा जहाँ वह और उसके आदमी अकसर जाया करते थे।

31 पलिश्‍ती लोग इसराएलियों से युद्ध कर रहे थे।+ इसराएली सेना पलिश्‍तियों से हारकर भाग गयी और बहुत-से इसराएली सैनिक गिलबो पहाड़+ पर ढेर हो गए। 2 पलिश्‍ती सैनिक शाऊल और उसके बेटों का पीछा करते-करते उनके पास आ गए। उन्होंने शाऊल के बेटे योनातान,+ अबीनादाब और मलकीशूआ+ को मार डाला। 3 फिर उन्होंने शाऊल के साथ जमकर लड़ाई की और जब तीरंदाज़ों ने उसे देखा तो उसे बुरी तरह घायल कर दिया।+ 4 तब शाऊल ने अपने हथियार ढोनेवाले सैनिक से कहा, “तू अपनी तलवार निकालकर मुझे घोंप दे ताकि ये खतनारहित आदमी+ मुझे न घोंपें और बेरहमी से न मारें।”* मगर उसके सैनिक ने इनकार कर दिया क्योंकि ऐसा करने की उसकी हिम्मत नहीं हुई। तब शाऊल ने अपनी तलवार ली और खुद उस पर गिर गया।+ 5 जब शाऊल के हथियार ढोनेवाले सैनिक ने देखा कि वह मर गया है,+ तो वह सैनिक भी अपनी तलवार पर गिर पड़ा और मर गया। 6 इस तरह उस दिन शाऊल, उसके तीन बेटे, उसका हथियार ढोनेवाला सैनिक और उसके सभी सैनिक मर गए।+ 7 जब घाटी के इलाके और यरदन के इलाके में रहनेवाले इसराएलियों ने देखा कि इसराएली सैनिक भाग गए हैं और शाऊल और उसके बेटे मर गए हैं, तो वे अपना-अपना शहर छोड़कर भागने लगे।+ फिर पलिश्‍ती आकर उन शहरों में रहने लगे।

8 अगले दिन जब पलिश्‍ती, मारे गए इसराएली सैनिकों के कपड़े और हथियार लेने आए तो उन्होंने गिलबो पहाड़ पर शाऊल और उसके तीन बेटों की लाशें देखीं।+ 9 उन्होंने शाऊल का सिर काट लिया और उसका बख्तर और सभी हथियार निकाल लिए। उन्होंने पलिश्‍तियों के पूरे देश में संदेश भेजा+ कि यह खबर उनके मूरतों+ के मंदिरों तक और लोगों तक पहुँचायी जाए। 10 फिर उन्होंने शाऊल के हथियार ले जाकर अशतोरेत के मंदिर में रखे और उसकी लाश बेतशान+ की शहरपनाह से ठोंक दी। 11 जब याबेश-गिलाद+ के लोगों ने सुना कि पलिश्‍तियों ने शाऊल के साथ क्या किया है, 12 तो उनके सभी योद्धा निकल पड़े और रात-भर सफर करके बेतशान गए। उन्होंने शाऊल और उसके बेटों की लाशें शहरपनाह से उतारीं और याबेश ले आए और वहाँ उन्हें जला दिया। 13 फिर उन्होंने उनकी हड्डियाँ+ ले जाकर याबेश में झाऊ के पेड़ के नीचे दफना दीं+ और सात दिन तक उपवास किया।

या “के रामाह में एक जूफी।”

या “को दंडवत।”

या “तेरे मन को क्यों बुरा लग रहा है?”

यानी पवित्र डेरे।

शा., “को याद किया।”

या शायद, “वक्‍त आने पर।”

मतलब “परमेश्‍वर का नाम।”

एक एपा 22 ली. के बराबर था। अति. ख14 देखें।

शा., “उधार दे।”

ज़ाहिर है कि यहाँ एलकाना की बात की गयी है।

या “मेरी ताकत बढ़ायी है।” शब्दावली में “सींग” देखें।

शा., “वह अब मुरझा गयी है।”

या “ज़िंदा करने।”

या शायद, “कूड़े की जगह।”

या शायद, “यहोवा से झगड़नेवाले खौफ खाएँगे।”

या “की ताकत बढ़ाएगा।” शब्दावली में “सींग” देखें।

या “की सेवा कर रहा था।”

शा., “उधार।”

या शायद, “परमेश्‍वर उसकी खातिर बीच-बचाव करेगा।”

या शायद, “बलिदान का धुआँ ऊपर उठाए।”

शा., “इसराएल के बेटों।”

शा., “को लात मारते हो।”

शा., “हाथ काट दूँगा।”

यानी पवित्र डेरे।

शा., “उसकी कोई भी बात धरती पर गिरने नहीं दी।”

शा., “यहोवा ने हमें क्यों हरा दिया?”

या शायद, “के बीच।”

या “पर मन नहीं लगाया।”

मतलब “शान कहाँ है?”

शा., “सिर्फ दागोन।”

शा., “70 आदमियों, 50,000 आदमियों।”

या “मातम मनाते हुए यहोवा के पीछे जाने लगा।”

मतलब “मदद का पत्थर।”

या “इत्र।”

शा., “एक शेकेल चाँदी की चौथाई।” एक शेकेल का वज़न 11.4 ग्रा. था। अति. ख14 देखें।

या “को हदों में रखेगा।”

शा., “और तेरे दिल की सारी बातें।”

शा., “वह गूँगे जैसा हो गया।”

या “समझौता।”

यानी सुबह करीब 2 बजे से 6 बजे तक।

शा., “तुमने मुझसे जो कुछ कहा मैंने माना है।”

शा., “जो तुम्हारे आगे-आगे चलता है।”

या “उन बातों के पीछे मत भागो जो हकीकत नहीं हैं और।”

या “वे हकीकत नहीं हैं।”

या “सच्चाई से।”

इब्रानी पाठ में संख्या नहीं दी गयी है।

एक प्राचीन बाट-पत्थर, जो एक शेकेल का करीब दो-तिहाई हिस्सा था।

यानी ज़मीन का उतना हिस्सा जितना एक जोड़ी बैल एक दिन में जोत सकता है।

शा., “अपना हाथ खींच।”

शा., “सारा देश।”

शा., “उसकी आँखें चमक उठीं।”

या “उद्धार दिलाया।”

शा., “छुड़ाया।”

या “उन पर तरस मत खाना।”

या “अटल प्यार।”

या “पर तरस खाया।”

या “पछतावा।”

या “उन पर तरस खाया।”

यानी कुल देवता; मूरतें।

या “वह नहीं पछताएगा।”

या “जो पछताए।”

या शायद, “निडर होकर।”

शा., “छ: हाथ एक बित्ता।” अति. ख14 देखें।

यह कवच अंदर से कपड़े या चमड़े का बना होता था। इसके ऊपर धातु के टुकड़े ऐसे लगे होते थे जैसे मछली पर छिलकों की कतारें होती हैं।

करीब 57 किलो। अति. ख14 देखें।

करीब 6.84 किलो। अति. ख14 देखें।

करीब 22 ली. अति. ख14 देखें।

या “हज़ारों के प्रधान।”

या “कोई हिम्मत न हारे।”

या “एक वीर योद्धा।”

या “उन्हें जबड़े से पकड़ा।”

शा., “यह पूरी मंडली जान जाएगी।”

या “वहाँ बुद्धिमानी से काम करता।”

या “भविष्यवक्‍ता जैसा बरताव।”

शा., “वह लोगों के सामने आया-जाया करता था।”

या “अपना हर काम बुद्धिमानी से करता।”

या “मेरा दामाद बनेगा।”

या “ज़्यादा बुद्धिमानी से काम करता था।”

या “उद्धार दिलाया था।”

या “कम कपड़े पहने।”

या “अटल प्यार।”

या “अटल प्यार।”

शा., “काम के दिन।”

या “बागी औरत की औलाद।” ये शब्द योनातान को बेइज़्ज़त करने के लिए कहे गए थे।

शा., “वह मौत का बेटा है।”

या “इन दिनों यौन-संबंध न रखे हों।”

शा., “उनके हाथ में पड़कर।”

या “विश्‍वासयोग्य।”

या शायद, “ज़मींदार।”

या शायद, “वह डर गया क्योंकि।”

शा., “उसने उसका हाथ मज़बूत किया।”

या शायद, “रेगिस्तान; वीराना।”

या “कुलों।”

यानी शौच करने।

या “ज़मीर।”

या शायद, “इधर-उधर भेज दिया।”

यह करमेल पहाड़ नहीं बल्कि यहूदा का एक शहर है।

या “तुझे शांति मिले।”

एक सआ 7.33 ली. के बराबर था। अति. ख14 देखें।

या शायद, “परमेश्‍वर दाविद को।”

मतलब “मूर्ख।”

या “उद्धार कराने।”

या “उद्धार किया है।”

या “उद्धार करने।”

शा., “नाबाल का दिल।”

या शायद, “रेगिस्तान; वीराना।”

शा., “सूँघे।”

या “नेगेब।”

शा., “सदा के लिए अपने सिर का रक्षक।”

या “वह देखा जो शमूएल जैसा दिखता था।”

या “उसका बलिदान।”

या “नेगेब।”

शब्दावली देखें।

या “नेगेब।”

या “नेगेब।”

या “दक्षिण।”

या “मेरे साथ बुरा सलूक न करें।”

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