जकरयाह
1 दारा के राज के दूसरे साल के आठवें महीने में,+ बेरेक्याह के बेटे और इद्दो के पोते भविष्यवक्ता जकरयाह* के पास यहोवा का यह संदेश पहुँचा:+ 2 “यहोवा का क्रोध तुम्हारे पुरखों पर भड़का था।+
3 उनसे कह, ‘सेनाओं का परमेश्वर यहोवा कहता है, “मैं सेनाओं का परमेश्वर यहोवा हूँ, मेरे पास लौट आओ! तब मैं तुम्हारे पास लौट आऊँगा।”+ यह बात सेनाओं के परमेश्वर यहोवा ने कही है।’
4 ‘अपने पुरखों के समान मत बनो, जिन्हें पहले के भविष्यवक्ताओं ने कहा था, “सेनाओं का परमेश्वर यहोवा कहता है, ‘अपनी बुरी राहें और बुरे काम छोड़ दो और मेरे पास लौट आओ!’”’+
यहोवा कहता है, ‘लेकिन उन्होंने मेरी एक न सुनी, मुझ पर कोई ध्यान नहीं दिया।’+
5 ‘आज तुम्हारे पुरखे कहाँ हैं? और क्या वे भविष्यवक्ता अब तक ज़िंदा हैं? 6 मगर मैंने अपने सेवकों को, अपने भविष्यवक्ताओं को जो आदेश और संदेश सुनाने को कहा था, उसका क्या हुआ? क्या वह तुम्हारे पुरखों पर पूरा नहीं हुआ?’+ इसलिए वे मेरे पास लौट आए और उन्होंने कहा, ‘हमने जो काम किए, जो राह अपनायी, हमें उसी का सिला मिला है। सेनाओं के परमेश्वर यहोवा ने हमारे साथ वही किया जो उसने ठाना था।’”+
7 दारा के राज के दूसरे साल में,+ शबात* नाम के 11वें महीने के 24वें दिन यहोवा का यह संदेश बेरेक्याह के बेटे और इद्दो के पोते भविष्यवक्ता जकरयाह के पास पहुँचा: 8 “रात को मुझे एक दर्शन मिला। मैंने देखा कि एक आदमी लाल घोड़े पर आ रहा है। वह आकर तंग घाटी में मेंहदी के पेड़ों के बीच खड़ा हो गया। उसके पीछे लाल, भूरे और सफेद रंग के घोड़े थे।”
9 तब मैंने पूछा, “हे प्रभु, ये कौन हैं?”
जो स्वर्गदूत मुझसे बात कर रहा था उसने कहा, “मैं तुझे बताऊँगा कि ये कौन हैं।”
10 तब जो आदमी मेंहदी के पेड़ों के बीच खड़ा था उसने कहा, “इन्हें यहोवा ने भेजा है कि वे धरती का चक्कर लगाकर आएँ।” 11 उन्होंने यहोवा के स्वर्गदूत से जो मेंहदी के पेड़ों के बीच खड़ा था कहा, “हम पृथ्वी का चक्कर लगाकर आए हैं और देख! पूरी पृथ्वी शांत है, वहाँ कोई खलबली नहीं।”+
12 तब यहोवा के स्वर्गदूत ने कहा, “हे सेनाओं के परमेश्वर यहोवा, तू यहूदा के शहरों और यरूशलेम पर 70 साल तक क्रोधित रहा,+ अब और कब तक तू उन पर दया नहीं करेगा?”+
13 जो स्वर्गदूत मुझसे बात कर रहा था, यहोवा ने बड़े प्यार से उसे जवाब दिया और दिलासा दिया। 14 तब जो स्वर्गदूत मुझसे बात कर रहा था उसने मुझसे कहा, “ऐलान कर, ‘सेनाओं का परमेश्वर यहोवा कहता है कि मैं यरूशलेम और सिय्योन के लिए बेचैन हो उठा हूँ, अंदर-ही-अंदर तड़प रहा हूँ।+ 15 मैं उन राष्ट्रों से बहुत क्रोधित हूँ जो चैन से जी रहे हैं।+ क्योंकि मैंने अपने लोगों को थोड़ी-सी सज़ा देनी चाही,+ मगर उन्होंने मेरे लोगों को पूरी तरह तबाह कर दिया।’+
16 इसलिए यहोवा कहता है, ‘“मैं दया करने के लिए यरूशलेम लौटूँगा+ और अपने भवन को दोबारा खड़ा करूँगा।+ यरूशलेम नगरी को खड़ा करने के लिए उसे नापने की डोरी से नापा जाएगा।”+ यह बात सेनाओं के परमेश्वर यहोवा ने कही है।’
17 एक बार फिर ऐलान कर, ‘सेनाओं का परमेश्वर यहोवा कहता है, “मेरे शहर एक बार फिर खुशहाली* से भर जाएँगे। यहोवा फिर से सिय्योन को दिलासा देगा+ और यरूशलेम को चुन लेगा।”’”+
18 फिर मैंने नज़र उठायी और मुझे चार सींग दिखायी दिए।+ 19 मैंने उस स्वर्गदूत से जो मुझसे बात कर रहा था पूछा, “ये क्या हैं?” उसने कहा, “ये वे सींग हैं जिन्होंने यहूदा, इसराएल और यरूशलेम को तितर-बितर किया था।”+
20 इसके बाद यहोवा ने मुझे चार कारीगर दिखाए। 21 मैंने पूछा, “ये क्या करने आ रहे हैं?”
उसने कहा, “उन सींगों ने यहूदा को इस हद तक तितर-बितर किया था कि कोई सिर नहीं उठा सका। ये कारीगर उनमें आतंक फैलाने आ रहे हैं। ये उन सींगों को तोड़ देंगे, जो राष्ट्रों ने यहूदा देश को तितर-बितर करने के लिए उठाए थे।”
2 फिर मैंने नज़र उठायी और देखा, एक आदमी हाथ में नापने की डोरी लिए है।+ 2 मैंने पूछा, “तू कहाँ जा रहा है?”
उसने कहा, “मैं यरूशलेम की लंबाई-चौड़ाई नापने जा रहा हूँ।”+
3 फिर मैंने देखा, जो स्वर्गदूत मुझसे बात कर रहा था वह चला गया और एक दूसरा स्वर्गदूत उससे मिलने आया। 4 उस स्वर्गदूत ने उससे कहा, “दौड़कर उस जवान आदमी के पास जा और उसे बता, ‘यरूशलेम एक खुली बस्ती* की तरह आबाद होगी+ क्योंकि उसमें आदमियों और मवेशियों की गिनती बढ़ती जाएगी।’+ 5 यहोवा ऐलान करता है, ‘मैं उसके चारों तरफ आग की दीवार बनकर रहूँगा+ और उसे अपनी महिमा से भर दूँगा।’”+
6 यहोवा ऐलान करता है, “भाग आओ! भाग आओ! उत्तर के देश से निकल आओ!”+
यहोवा कहता है, “मैंने तुम्हें चारों दिशाओं में* तितर-बितर कर दिया है।”+
7 “हे सिय्योन, निकल आ! तू जो बैबिलोन की बेटी के संग रहती है, भाग आ!+ 8 सेनाओं के परमेश्वर यहोवा ने महिमा पाने के बाद, मुझे उन राष्ट्रों के पास भेजा है जिन्होंने तुम्हें लूटा था।+ वह कहता है, ‘जो तुम्हें छूता है वह मेरी आँख की पुतली को छूता है।+ 9 मैं अपना हाथ उनके खिलाफ उठाऊँगा और वे अपने ही गुलामों के लिए लूट का माल बन जाएँगे।’+ और तुम जान लोगे कि सेनाओं के परमेश्वर यहोवा ने मुझे भेजा है।”
10 यहोवा ऐलान करता है, “हे सिय्योन की बेटी, खुशी से चिल्ला!+ क्योंकि मैं आ रहा हूँ+ और मैं तेरे बीच रहूँगा।+ 11 उस दिन कई राष्ट्र मुझ यहोवा के साथ जुड़ जाएँगे+ और मेरे लोग बन जाएँगे और मैं तेरे बीच रहूँगा।” और तू जान लेगी कि सेनाओं के परमेश्वर यहोवा ने मुझे तेरे पास भेजा है। 12 यहोवा पवित्र ज़मीन पर यहूदा को अपना हिस्सा मानकर उस पर अधिकार कर लेगा और यरूशलेम को फिर से चुन लेगा।+ 13 हर इंसान यहोवा के सामने चुप रहे क्योंकि वह कदम उठाने के लिए अपने पवित्र निवास से आ रहा है।
3 फिर उसने मुझे महायाजक यहोशू+ दिखाया, जो यहोवा के स्वर्गदूत के सामने खड़ा है। और यहोशू के दायीं तरफ शैतान+ उसका विरोध करने के लिए खड़ा है। 2 यहोवा के स्वर्गदूत ने शैतान से कहा, “हे शैतान, यहोवा तुझे डाँटे!+ हाँ, यहोवा जिसने यरूशलेम को चुना है,+ वही तुझे डाँटे। क्या यह आदमी जलते हुए लट्ठे जैसा नहीं जिसे आग से निकाला गया हो?”
3 यहोशू मैले कपड़ों में स्वर्गदूत के सामने खड़ा था। 4 स्वर्गदूत ने उनसे जो उसके सामने खड़े थे कहा, “उसके मैले कपड़े उतार दो।” फिर उसने यहोशू से कहा, “देख, मैंने तेरा गुनाह* दूर कर दिया है। अब तुझे बढ़िया कपड़े पहनाए जाएँगे।”+
5 तब मैंने कहा, “उसे साफ पगड़ी पहनायी जाए।”+ उन्होंने उसके सिर पर साफ पगड़ी रखी और उसे बढ़िया कपड़े पहनाए। उस वक्त यहोवा का स्वर्गदूत पास ही खड़ा था। 6 फिर यहोवा के स्वर्गदूत ने यहोशू से कहा, 7 “सेनाओं का परमेश्वर यहोवा कहता है, ‘अगर तू मेरी राहों पर चले और मेरे सामने अपनी ज़िम्मेदारियाँ पूरी करे, तो तू मेरे घर में न्यायी बनकर सेवा करेगा+ और मेरे आँगनों की देखभाल* करेगा। और जो यहाँ खड़े हैं उनके साथ तू भी मेरे सामने आया-जाया करेगा।’
8 ‘हे महायाजक यहोशू, तू और तेरे साथी जो तेरे सामने बैठते हैं, तुम लोग भविष्य के लिए एक निशानी हो। मेहरबानी करके मेरी बात पर ध्यान दो: देखो! मैं अपने सेवक को ला रहा हूँ,+ जो अंकुर कहलाएगा।+ 9 उस पत्थर को देखो, जिसे मैंने यहोशू के सामने रखा है। उस एक पत्थर पर सात आँखें लगी हैं। मैं उस पर खोदकर कुछ लिख रहा हूँ। मैं उस देश का गुनाह एक ही दिन में दूर कर दूँगा।’ यह बात सेनाओं के परमेश्वर यहोवा ने कही है।+
10 सेनाओं का परमेश्वर यहोवा ऐलान करता है, ‘उस दिन तुममें से हर कोई अपने पड़ोसी को बुलाएगा कि वह तुम्हारी अंगूरों की बेल के नीचे और तुम्हारे अंजीर के पेड़ तले आए।’”+
4 फिर जो स्वर्गदूत मुझसे बात कर रहा था, वापस आया। उसने आकर मुझे जगाया जैसे कोई सोते हुए को जगाता है। 2 उसने पूछा, “तुझे क्या दिख रहा है?”
मैंने कहा, “मुझे एक दीवट दिख रहा है जो सोने का बना है+ और उसके ऊपर एक कटोरा है। दीवट पर सात दीए हैं,+ हाँ, पूरे सात दीए! उनसे सात नलियाँ निकल रही हैं जो उस कटोरे से जुड़ी हैं। 3 दीवट के पास जैतून के दो पेड़ लगे हैं।+ एक उस कटोरे के दायीं तरफ और दूसरा बायीं तरफ।”
4 तब मैंने उस स्वर्गदूत से जो मुझसे बात कर रहा था पूछा, “हे मेरे प्रभु, इन सबका क्या मतलब है?” 5 उस स्वर्गदूत ने जो मुझसे बात कर रहा था कहा, “क्या तुझे नहीं पता?”
मैंने कहा, “नहीं प्रभु, मुझे नहीं पता।”
6 तब उसने मुझसे कहा, “जरुबाबेल के लिए यहोवा का यह संदेश है, सेनाओं का परमेश्वर यहोवा कहता है, ‘न किसी सेना से, न ताकत से+ बल्कि मेरी पवित्र शक्ति से यह सब होगा।’+ 7 हे विशाल पहाड़, तू है क्या चीज़? जरुबाबेल+ के सामने तू समतल* हो जाएगा।+ जब वह चोटी का पत्थर लेकर आएगा तो यह आवाज़ गूँज उठेगी, ‘बहुत खूब! बहुत खूब!’”
8 यहोवा ने फिर से मुझे एक संदेश दिया: 9 “जरुबाबेल के हाथों ने ही इस घर की नींव डाली थी+ और उसी के हाथों यह घर बनकर पूरा होगा।+ (तुम लोगों को जानना होगा कि सेनाओं के परमेश्वर यहोवा ने ही मुझे तुम्हारे पास भेजा है।) 10 उस छोटी-सी शुरूआत* को कोई तुच्छ न जाने।+ जरुबाबेल के हाथ में साहुल देखकर लोग झूम उठेंगे और सात आँखें भी खुशियाँ मनाएँगी। ये सात आँखें यहोवा की हैं जो पूरी पृथ्वी पर फिरती हैं।”+
11 फिर मैंने उससे पूछा, “दीवट के दायीं और बायीं तरफ जैतून के इन दो पेड़ों का क्या मतलब है?”+ 12 मैंने उससे दूसरी बार पूछा, “इनकी दो डालियों* का क्या मतलब है, जो सोने की दो नलियों से कटोरे में सुनहरा तेल उँडेल रही हैं?”
13 उसने मुझसे कहा, “क्या तुझे नहीं पता?”
मैंने कहा, “नहीं प्रभु, मुझे नहीं पता।”
14 उसने कहा, “ये उन दो अभिषिक्त जनों को दर्शाते हैं जो पूरी धरती के मालिक के पास खड़े हैं।”+
5 मैंने फिर ऊपर नज़र उठायी और क्या देखा कि एक खर्रा उड़ रहा है। 2 स्वर्गदूत ने मुझसे पूछा, “तुझे क्या दिखायी दे रहा है?”
मैंने कहा, “मुझे एक खर्रा उड़ता हुआ दिख रहा है, जिसकी लंबाई 20 हाथ* और चौड़ाई 10 हाथ है।”
3 फिर उसने मुझसे कहा, “यह शाप पूरी पृथ्वी पर पड़नेवाला है। क्योंकि चोरी करनेवाले+ को उसकी सज़ा नहीं मिली, जबकि खर्रे के एक तरफ लिखा है कि चोर को उसकी सज़ा मिलनी चाहिए। और झूठी शपथ खानेवाले+ को सज़ा नहीं मिली, जबकि खर्रे के दूसरी तरफ लिखा है कि ऐसों को सज़ा मिलनी चाहिए। 4 सेनाओं का परमेश्वर यहोवा ऐलान करता है, ‘मैंने यह शाप भेजा है। यह शाप चोर के घर जाएगा और उस आदमी के घर भी जो मेरे नाम से झूठी शपथ खाता है। यह उनके घर ठहरेगा और उनके घर को लकड़ियों और पत्थरों समेत नष्ट कर देगा।’”
5 फिर जो स्वर्गदूत मुझसे बात कर रहा था वह आगे आया और उसने कहा, “ज़रा ऊपर नज़र उठा और देख कि क्या जा रहा है।”
6 मैंने पूछा, “यह क्या है?”
उसने कहा, “यह एपा का बरतन* जा रहा है।” उसने यह भी कहा, “पूरी पृथ्वी पर दुष्ट लोगों का यही रूप है।” 7 फिर मैंने देखा कि सीसे का गोल ढक्कन उस बरतन पर से उठाया गया। उसके अंदर एक औरत बैठी थी। 8 उसने कहा, “यह औरत दुष्टता की निशानी है।” उसने उस औरत को एपा के बरतन में वापस धकेल दिया और उस पर सीसे का भारी ढक्कन रख दिया।
9 फिर मैंने नज़र उठायी तो क्या देखा, दो औरतें तेज़ी से उड़ती हुई आ रही हैं। उनके पंख, लगलग पक्षी जैसे हैं। उन्होंने एपा के बरतन को पृथ्वी और आकाश के बीच उठा लिया। 10 तब जो स्वर्गदूत मुझसे बात कर रहा था, उससे मैंने पूछा, “वे एपा का बरतन कहाँ ले जा रही हैं?”
11 उसने कहा, “शिनार* देश,+ जहाँ वे उस औरत के लिए एक घर बनाएँगी। और जब घर बनकर तैयार हो जाएगा तो वे उसे वहाँ, उसकी सही जगह पर छोड़ आएँगी।”
6 मैंने फिर नज़र उठायी और क्या देखा, दो पहाड़ों के बीच से चार रथ आ रहे हैं। वे पहाड़ ताँबे के हैं। 2 पहले रथ में लाल घोड़े बँधे हैं, दूसरे में काले घोड़े,+ 3 तीसरे में सफेद घोड़े और चौथे में धब्बेदार, चितकबरे घोड़े बँधे हैं।+
4 मैंने उस स्वर्गदूत से जो मुझसे बात कर रहा था पूछा, “हे प्रभु, इनका क्या मतलब है?”
5 स्वर्गदूत ने कहा, “ये स्वर्ग की चार सेनाएँ हैं+ जो पूरी धरती के मालिक के सामने खड़ी थीं।+ ये वहीं से आ रही हैं। 6 जिस रथ में काले घोड़े बँधे हैं वह उत्तर देश की तरफ बढ़ रहा है।+ सफेद घोड़े पश्चिम देश की तरफ* जा रहे हैं और धब्बेदार घोड़े दक्षिण देश की तरफ। 7 ये चितकबरे घोड़े धरती का चक्कर लगाने के लिए भी बेताब हैं।” तब उसने कहा, “जाओ धरती का चक्कर लगाओ।” और वे धरती का चक्कर लगाने निकल पड़े।
8 फिर उसने मुझे पुकारकर कहा, “देख! जो घोड़े उत्तर देश की तरफ गए थे, उनके कारण उस देश के खिलाफ यहोवा का क्रोध शांत हो गया है।”
9 एक बार फिर यहोवा का संदेश मेरे पास पहुँचा: 10 “हेल्दै, तोबियाह और यदायाह से वे चीज़ें ले ले जो बँधुआई में पड़े लोगों ने दी हैं। और उसी दिन तू सपन्याह के बेटे योशियाह के घर जाना और बैबिलोन से आए इन लोगों को भी साथ ले जाना। 11 तू अपने साथ सोना-चाँदी ले जाना और एक ताज* बनाकर उसे यहोसादाक के बेटे महायाजक यहोशू को पहनाना।+ 12 और उससे कहना,
‘सेनाओं का परमेश्वर यहोवा कहता है, “यह वह आदमी है जो अंकुर कहलाएगा।+ यह अंकुर अपनी जगह से फूटेगा और यहोवा का मंदिर बनाएगा।+ 13 यह वही है जो यहोवा का मंदिर खड़ा करेगा, यह वही है जो वैभव पाएगा। वह अपनी राजगद्दी पर बैठकर राज करेगा। राजा होने के साथ-साथ वह याजक भी होगा।+ इन दोनों में* वह बढ़िया तालमेल बिठाएगा। 14 हेलेम,* तोबियाह, यदायाह+ और सपन्याह के बेटे हेन* की याद में, वह शानदार ताज यहोवा के मंदिर में रखा जाएगा। 15 दूर-दूर से लोग आएँगे और यहोवा के मंदिर को बनाने में हाथ बँटाएँगे।” यह बात ज़रूर पूरी होगी। अगर तुम अपने परमेश्वर यहोवा की बात मानोगे, तो तुम जान लोगे कि सेनाओं के परमेश्वर यहोवा ने ही मुझे तुम्हारे पास भेजा है।’”
7 राजा दारा के राज के चौथे साल में, किसलेव* नाम के नौवें महीने के चौथे दिन, यहोवा का संदेश जकरयाह के पास पहुँचा।+ 2 बेतेल के लोगों ने शरेसेर, रेगेम-मेलेक और उसके आदमियों को भेजा कि वे यहोवा से दया की भीख माँगें। 3 उन्होंने सेनाओं के परमेश्वर यहोवा के भवन* के याजकों और उसके भविष्यवक्ताओं से पूछा, “क्या हम* पाँचवें महीने में विलाप+ और उपवास करें, जैसा हम इतने सालों से करते आए हैं?”
4 सेनाओं के परमेश्वर यहोवा का संदेश एक बार फिर मेरे पास पहुँचा: 5 “देश के सब लोगों और याजकों से कह, ‘तुमने 70 सालों+ में हर पाँचवें और सातवें महीने शोक मनाकर जो उपवास किया,+ क्या वह सचमुच मेरे लिए था? 6 जब तुम खा रहे थे और पी रहे थे, तो क्या अपने लिए नहीं खा-पी रहे थे? 7 जब यरूशलेम और उसके आस-पास के शहर चैन से बसे थे, जब नेगेब और शफेलाह आबाद थे, तब तुम्हें यहोवा की बात माननी चाहिए थी जो उसने पहले के भविष्यवक्ताओं से कहलवायी थी।’”+
8 यहोवा का संदेश एक बार फिर जकरयाह के पास पहुँचा: 9 “सेनाओं का परमेश्वर यहोवा कहता है, ‘सच्चाई से न्याय करो,+ एक-दूसरे पर दया करो और अटल प्यार रखो।+ 10 विधवाओं और अनाथों* को मत ठगो,+ परदेसियों और गरीबों को मत लूटो।+ अपने दिलों में एक-दूसरे के खिलाफ साज़िश मत रचो।’+ 11 मगर लोगों ने ध्यान देने से इनकार कर दिया।+ ढीठ होकर उन्होंने उससे मुँह फेर लिया+ और अपने कान बंद कर लिए कि उसकी न सुनें।+ 12 उन्होंने अपना दिल हीरे* जैसा सख्त कर लिया।+ उन्होंने सेनाओं के परमेश्वर यहोवा की उन बातों और आज्ञाओं* को नहीं माना, जिन्हें सुनाने के लिए उसने पहले के भविष्यवक्ताओं को पवित्र शक्ति दी थी।+ इसलिए सेनाओं के परमेश्वर यहोवा का क्रोध उन पर भड़क उठा।”+
13 “सेनाओं का परमेश्वर यहोवा कहता है, ‘मेरे* बुलाने पर उन्होंने मेरी नहीं सुनी,+ इसलिए उनके बुलाने पर मैं भी उनकी नहीं सुनूँगा।+ 14 मैंने आँधी लाकर उन्हें सब अनजान राष्ट्रों में बिखेर दिया।+ उनके चले जाने के बाद उनका देश उजाड़ पड़ा रहा, वहाँ कोई लौटकर नहीं आया, कोई उसमें से होकर नहीं गुज़रा।+ क्योंकि दुश्मनों ने उस खूबसूरत देश का वह हाल कर दिया कि देखनेवालों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं।’”
8 सेनाओं के परमेश्वर यहोवा का संदेश एक बार फिर मेरे पास पहुँचा: 2 “सेनाओं का परमेश्वर यहोवा कहता है, ‘मैं सिय्योन के लिए बेचैन हो उठा हूँ, अंदर-ही-अंदर तड़प रहा हूँ।+ मेरा क्रोध भड़क उठा है और मैं उसकी खातिर कदम उठाऊँगा।’”
3 “यहोवा कहता है, ‘मैं वापस सिय्योन आऊँगा+ और आकर यरूशलेम में रहूँगा।+ यरूशलेम सच्चाई की* नगरी कहलाएगी+ और सेनाओं के परमेश्वर यहोवा का पहाड़, पवित्र पहाड़ कहलाएगा।’”+
4 “सेनाओं का परमेश्वर यहोवा कहता है, ‘बूढ़े लोग फिर से यरूशलेम के चौक में बैठा करेंगे। वे हाथ में लाठी लिए रहेंगे क्योंकि उनकी उम्र बहुत लंबी होगी।+ 5 शहर के चौक खेलते-कूदते बच्चों से भरे रहेंगे।’”+
6 “सेनाओं का परमेश्वर यहोवा कहता है, ‘चाहे उन दिनों में यह बात इन बचे हुए लोगों को नामुमकिन लगे, पर क्या मेरे लिए यह बात नामुमकिन हो सकती है?’ सेनाओं के परमेश्वर यहोवा ने यह बात कही है।”
7 “सेनाओं का परमेश्वर यहोवा कहता है, ‘मैं अपने लोगों को पूरब और पश्चिम के देशों से छुड़ाऊँगा।+ 8 मैं उन्हें वापस लाऊँगा और वे यरूशलेम में रहेंगे।+ वे मेरे लोग ठहरेंगे और मैं उनका नेक और सच्चा* परमेश्वर ठहरूँगा।’”+
9 “सेनाओं का परमेश्वर यहोवा कहता है, ‘हे भविष्यवक्ताओं की बातें सुननेवालो,+ हिम्मत से काम लो!*+ तुम उनके मुँह से जो बातें सुन रहे हो, वे तब भी कही गयी थीं जब सेनाओं के परमेश्वर यहोवा के मंदिर की नींव डाली गयी। 10 उससे पहले न तो लोगों को उनकी मज़दूरी मिलती थी, न जानवरों का किराया।+ और दुश्मन के डर से कहीं आना-जाना खतरे से खाली नहीं था क्योंकि मैंने सब लोगों को एक-दूसरे के खिलाफ कर दिया था।’
11 सेनाओं के परमेश्वर यहोवा का यह ऐलान है, ‘मगर अब मैं इन बचे हुए लोगों के साथ पहले जैसा व्यवहार नहीं करूँगा+ 12 क्योंकि शांति के बीज बोए जाएँगे। अंगूर की बेलें फलेंगी, धरती अपनी उपज देगी+ और आसमान से ओस गिरेगी। मैं बचे हुए लोगों को इन सब चीज़ों का वारिस बना दूँगा।+ 13 हे यहूदा के घराने, हे इसराएल के घराने, राष्ट्र तुम्हारी मिसाल देकर शाप देते थे,+ मगर अब मैं तुम्हें बचाऊँगा और तुम आशीष पाने की वजह बन जाओगे।+ डरो मत,+ हिम्मत से काम लो।’*+
14 सेनाओं का परमेश्वर यहोवा कहता है, ‘सेनाओं के परमेश्वर यहोवा ने कहा है, “जैसे तुम्हारे पुरखों के क्रोध दिलाने पर मैंने तुम पर विपत्ति लाने की ठान ली थी और मैंने अपना इरादा नहीं बदला,*+ 15 वैसे ही अब मैंने यहूदा के घराने और यरूशलेम का भला करने की ठान ली है।+ इसलिए तुम मत डरो!”’+
16 ‘तुम यह सब करना: एक-दूसरे से सच बोलना,+ शहर के फाटकों पर सच्चाई से न्याय करना और ऐसे फैसले सुनाना जिनसे शांति कायम हो।+ 17 मन-ही-मन किसी को बरबाद करने की साज़िश मत रचना+ और झूठी शपथ मत खाना+ क्योंकि मुझे इन बातों से नफरत है।’+ यह बात यहोवा ने कही है।”
18 सेनाओं के परमेश्वर यहोवा का संदेश एक बार फिर मेरे पास पहुँचा: 19 “सेनाओं का परमेश्वर यहोवा कहता है, ‘चौथे, पाँचवें, सातवें और दसवें महीने में जिस-जिस दिन यहूदा का घराना उपवास करता था,+ वह जश्न और खुशी के दिन में बदल जाएगा। हर कहीं खुशियों का त्योहार मनाया जाएगा।+ इसलिए सच्चाई और शांति से प्यार करो।’
20 सेनाओं का परमेश्वर यहोवा कहता है, ‘ऐसा समय आनेवाला है जब देश-देश के लोग और कई शहरों के निवासी आएँगे। 21 और एक शहर के निवासी दूसरे शहर के निवासियों से जाकर कहेंगे, “आओ, यहोवा से दया की भीख माँगने चलें। आओ, सेनाओं के परमेश्वर यहोवा की खोज करें। हम तो जा रहे हैं!”+ 22 तब कई देशों के लोग और बड़े-बड़े राष्ट्र, सेनाओं के परमेश्वर यहोवा की खोज करने यरूशलेम आएँगे+ और यहोवा से दया की भीख माँगेंगे।’
23 सेनाओं का परमेश्वर यहोवा कहता है, ‘उन दिनों अलग-अलग भाषा बोलनेवाले सब राष्ट्रों में से दस लोग,+ एक यहूदी* के कपड़े का छोर पकड़ लेंगे। हाँ, वे उसका छोर पकड़कर कहेंगे, “हम तुम्हारे साथ चलना चाहते हैं+ क्योंकि हमने सुना है, परमेश्वर तुम लोगों के साथ है।”’”+
9 परमेश्वर की तरफ से संदेश:
“यहोवा ने हदराक देश को सज़ा सुनायी है,
दमिश्क उसका खास निशाना है।+
(क्योंकि यहोवा की आँखें इसराएल के सब गोत्रों के साथ-साथ इंसानों पर लगी हैं।)+
2 उसके पड़ोसी हमात को भी सज़ा सुनायी गयी है,+
यह सोर और सीदोन के लिए भी है,+
क्योंकि वे खुद को बहुत बुद्धिमान समझते हैं।+
3 सोर ने अपने लिए मज़बूत गढ़* खड़े किए हैं,
धूल के कणों के समान बेशुमार चाँदी जमा कर ली है,
सड़क की मिट्टी के समान सोने का ढेर लगा लिया है।+
4 देखो! यहोवा उसका खज़ाना उससे छीन लेगा,
उसकी सेना को समुंदर में मार डालेगा,+
वह नगरी आग में भस्म हो जाएगी।+
5 यह देखकर अश्कलोन के होश उड़ जाएँगे,
गाज़ा दुख के मारे तड़प उठेगी
और एक्रोन का भी वही हाल होगा, क्योंकि उसकी आशा टूट जाएगी।
गाज़ा से राजा का नामो-निशान मिट जाएगा
और अश्कलोन फिर कभी नहीं बसेगी।+
7 मैं खून से सनी चीज़ें उसके मुँह से हटा दूँगा,
घिनौनी चीज़ें उसके दाँतों के बीच से निकाल दूँगा,
उसके बचे हुए लोग हमारे परमेश्वर के हो जाएँगे
और यहूदा में शेख* की तरह रहेंगे।+
एक्रोन के लोग यबूसियों के जैसे हो जाएँगे।+
8 मैं अपने घर के बाहर तंबू लगाकर पहरा दूँगा+
ताकि कोई आ-जा न सके।
फिर कभी कोई ज़ालिम वहाँ से नहीं गुज़रेगा,+
क्योंकि मैंने अपनी आँखों से यह* देखा है।
9 हे सिय्योन की बेटी, खुशियाँ मना!
हे यरूशलेम की बेटी, जयजयकार कर!
देख! तेरा राजा तेरे पास आ रहा है।+
वह नेक है और उद्धार दिलाएगा,*
वह नम्र है,+ वह गधे पर सवार होकर आ रहा है,
हाँ, गधी के बच्चे पर आ रहा है।+
10 मैं एप्रैम से युद्ध-रथों
और यरूशलेम से घोड़ों को ले लूँगा।
युद्ध के धनुष छीन लिए जाएँगे।
वह देश-देश में शांति का ऐलान करेगा,+
उसका राज एक सागर से दूसरे सागर तक
11 हे औरत,* जहाँ तक तेरी बात है,
मैं तेरे कैदियों को सूखे गड्ढे से बाहर निकालूँगा।+
मैं तेरे उस करार की वजह से ऐसा करूँगा, जिसे खून से पक्का किया गया था।
12 हे आशा रखनेवाले कैदियो, मज़बूत गढ़ में लौट आओ।+
आज मैं तुझसे कहता हूँ,
‘हे औरत, मैं तुझे दुगनी आशीष दूँगा।+
हे सिय्योन, मैं तेरे बेटों को
यूनान के बेटों के खिलाफ उभारूँगा।
मैं तुझे योद्धा की तलवार बना दूँगा।’
14 यहोवा दिखा देगा कि वह अपने लोगों के साथ है,
उसके तीर, बिजली की फुर्ती से छूटेंगे।
सारे जहान का मालिक यहोवा, नरसिंगा फूँकेगा+
और दक्षिण की आँधी की तरह दुश्मनों पर टूट पड़ेगा।
15 सेनाओं का परमेश्वर यहोवा अपने लोगों की रक्षा करेगा,
दुश्मन गोफन के पत्थरों से उन पर वार करेंगे, मगर वे दुश्मनों को हरा देंगे,+
वे खुश होकर ऐसे शोर मचाएँगे, जैसे दाख-मदिरा के नशे में हों,
वे कटोरे की तरह भर जाएँगे,
वेदी के कोनों की तरह भीग जाएँगे।+
16 उस दिन उनका परमेश्वर यहोवा,
अपने लोगों को, अपने झुंड को बचाएगा।+
वे मुकुट में जड़े रत्नों की तरह उसके देश में चमकेंगे।+
17 परमेश्वर की भलाई लाजवाब है!+
उसकी शोभा बेमिसाल है!
जवान, अनाज खाकर फलेंगे-फूलेंगे
और कुँवारियाँ नयी दाख-मदिरा पीकर खुश होंगी।”+
10 “वसंत की बारिश के वक्त यहोवा से बारिश माँगो,
क्योंकि काले बादलों को यहोवा ही बनाता है,
वही लोगों के लिए पानी बरसाता है+
और हर किसी के खेत में हरियाली उपजाता है।
2 मगर कुल देवताओं* की बातें धोखा* हैं
और ज्योतिषी झूठे दर्शन देखते हैं,
वे झूठे सपने सुनाते हैं
और व्यर्थ का दिलासा देते हैं।
इसलिए लोग भेड़ के समान भटक जाएँगे,
वे दुख उठाएँगे क्योंकि उनका कोई चरवाहा नहीं।
3 चरवाहों पर मेरा क्रोध भड़क उठा है,
मैं ज़ालिम अगुवों* से हिसाब लूँगा,
क्योंकि सेनाओं के परमेश्वर यहोवा ने अपने झुंड पर, यहूदा के घराने पर ध्यान दिया है+
और उसे ऐसी शान दी है जैसी उसके जंगी घोड़े की है।
4 उसमें से* एक अगुवा* निकलेगा,
उसमें से मदद देने के लिए एक शासक* आएगा,
उसमें से युद्ध का धनुष निकलेगा,
उसमें से आनेवाला हरेक जन निगरानी करेगा,
ये सब एक-साथ निकलेंगे।
5 वे ऐसे योद्धाओं की तरह होंगे,
जो युद्ध के समय सड़क की मिट्टी को रौंदते हैं।
वे लड़ेंगे क्योंकि यहोवा उनके साथ होगा,+
दुश्मनों के घुड़सवार शर्मिंदा किए जाएँगे।+
मैं उन पर दया करूँगा और उन्हें बहाल करूँगा।+
तब वे ऐसे हो जाएँगे जैसे मैंने उन्हें ठुकराया ही न हो।+
मैं उनका परमेश्वर यहोवा हूँ और मैं उनकी बिनती सुनूँगा।
7 एप्रैम के लोग शक्तिशाली योद्धा की तरह हो जाएँगे,
उनका मन खुश होगा, जैसे दाख-मदिरा पीने पर होता है,+
यह देखकर उनके बेटे फूले न समाएँगे,
यहोवा के कारण उनका मन खुशी से भर जाएगा।+
8 ‘मैं सीटी बजाकर उन्हें बुलाऊँगा और इकट्ठा करूँगा,
मैं उन्हें छुड़ाऊँगा+ और उनकी गिनती बेशुमार हो जाएगी
और आगे भी बेशुमार रहेगी।
9 भले ही मैं उन्हें बीज की तरह देश-देश के लोगों में छितरा दूँगा,
मगर वे दूर-दूर के उन इलाकों में भी मुझे याद करेंगे,
वे और उनके बेटे उमंग से भरकर लौट आएँगे।
10 मैं मिस्र से उन्हें वापस लाऊँगा,
अश्शूर से उन्हें इकट्ठा करूँगा।+
मैं उन्हें गिलाद और लबानोन के देश तक ले आऊँगा,+
क्योंकि उन सबके लिए रहने की जगह काफी नहीं होगी।+
जब नील नदी रास्ता रोके खड़ी होगी, तो मैं उसका पानी सुखा दूँगा।
अश्शूर का घमंड तोड़ दिया जाएगा
और मिस्र का राजदंड उससे ले लिया जाएगा।+
11 “हे लबानोन, अपने फाटक खोल
कि आग तेरे देवदारों को भस्म कर दे।
2 हे सनोवर, ज़ोर-ज़ोर से रो क्योंकि देवदार गिर गए हैं,
ऊँचे-ऊँचे पेड़ नष्ट हो गए हैं!
बाशान के बाँज पेड़ो, तुम भी विलाप करो,
क्योंकि घना जंगल खाक में मिल चुका है!
3 सुनो! चरवाहों का मातम सुनो!
क्योंकि उनकी शान मिट गयी है।
सुनो! जवान शेर का दहाड़ना सुनो!
क्योंकि यरदन किनारे की घनी झाड़ियाँ नष्ट हो चुकी हैं।
4 मेरा परमेश्वर यहोवा कहता है, ‘घात होनेवाली भेड़ों का चरवाहा बन जा।+ 5 खरीदनेवाले उन्हें मार डालते हैं,+ मगर कोई उन्हें दोषी नहीं ठहराता। उन भेड़ों को बेचनेवाले+ कहते हैं, “यहोवा की बड़ाई हो क्योंकि मैं मालामाल हो जाऊँगा।” उनके चरवाहे उन पर कोई तरस नहीं खाते।’+
6 यहोवा ऐलान करता है, ‘मैं देश के निवासियों पर अब और तरस नहीं खाऊँगा। मैं हर आदमी को उसके पड़ोसी और उसके राजा के हवाले कर दूँगा कि वे उसे सताएँ। वे देश को तबाह कर देंगे और मैं उसके लोगों को उनके हाथ से नहीं बचाऊँगा।’”
7 तब मैं घात होनेवाली भेड़ों का चरवाहा बन गया।+ हाँ, तुम सतायी हुई भेड़ों की खातिर मैंने ऐसा किया। मैंने दो लाठियाँ लीं, एक का नाम मैंने कृपा रखा और दूसरी का एकता।+ और मैं झुंड की चरवाही करने लगा। 8 मैंने एक ही महीने में तीन चरवाहों को निकाल दिया क्योंकि मैं उनको बरदाश्त नहीं कर सका। वे भी मुझसे नफरत करते थे। 9 मैंने कहा, “अब मैं तुम भेड़ों की और देखभाल नहीं करूँगा। जिसे मरना है वह मरे, जिसे नष्ट होना है वह नष्ट हो। और जो बच जाएँ, वे एक-दूसरे को फाड़ खाएँ।” 10 तब मैंने कृपा की लाठी ली+ और उसे काट डाला। इस तरह मैंने वह करार तोड़ दिया जो मैंने अपने लोगों के साथ किया था। 11 उस दिन वह करार टूट गया। जब झुंड की सतायी हुई भेड़ों ने मुझे यह सब करते देखा तो वे समझ गयीं कि यह संदेश यहोवा की तरफ से है।
12 फिर मैंने उनसे कहा, “अगर तुम्हें ठीक लगे तो मुझे मेरी मज़दूरी दो, लेकिन अगर नहीं तो मत दो।” तब उन्होंने मुझे मज़दूरी में चाँदी के 30 टुकड़े तौलकर दिए।+
13 इस पर यहोवा ने मुझसे कहा, “बहुत बड़ी कीमत आँकी है उन्होंने मेरी!+ जा, इन्हें खज़ाने में फेंक आ!” तब मैं चाँदी के 30 टुकड़े लेकर यहोवा के भवन में गया और मैंने उन्हें खज़ाने में फेंक दिया।+
14 फिर मैंने दूसरी लाठी एकता को लिया+ और उसे काट डाला। इस तरह यहूदा और इसराएल के बीच भाईचारा खत्म हो गया।+
15 फिर यहोवा ने मुझसे कहा, “निकम्मे चरवाहे का औज़ार ले ले।+ 16 क्योंकि मैं एक चरवाहे को इस देश का अधिकारी बनने दूँगा। वह उन भेड़ों की देखभाल नहीं करेगा जो मरनेवाली हैं।+ वह न तो नन्हीं भेड़ों को ढूँढ़ेगा, न ज़ख्मी भेड़ों की मरहम-पट्टी करेगा+ और न ही भली-चंगी भेड़ों को खिलाएगा। उलटा, वह मोटी-ताज़ी भेड़ों का माँस खाएगा+ और भेड़ों के खुरों को उखाड़ देगा।+
17 धिक्कार है उस निकम्मे चरवाहे पर,+ जो भेड़ों को बेसहारा छोड़ देता है!+
एक तलवार उसके बाज़ू पर और उसकी दायीं आँख पर वार करेगी।
उसका हाथ पूरी तरह सूख जाएगा
और वह दायीं आँख से अंधा हो जाएगा।”
12 परमेश्वर की तरफ से संदेश:
यहोवा, जिसने आकाश को ताना है,+
जिसने पृथ्वी की नींव डाली है,+
जिसने इंसान में जान* फूँकी है, वह ऐलान करता है:
“इसराएल के बारे में यहोवा का यह कहना है,
2 मैं यरूशलेम को ऐसा प्याला* बना दूँगा जिसे पीकर आस-पास के सब लोग लड़खड़ाएँगे। यहूदा के साथ-साथ यरूशलेम की भी घेराबंदी की जाएगी।+ 3 उस दिन मैं यरूशलेम को सब देशों के लोगों के लिए भारी पत्थर बना दूँगा। जो कोई उसे उठाएगा वह बुरी तरह घायल हो जाएगा।+ धरती के सब राष्ट्र उसके खिलाफ इकट्ठा होंगे।”+ 4 यहोवा ऐलान करता है, “उस दिन मैं हर घोड़े में आतंक फैला दूँगा और उसके सवार को पागल कर दूँगा। मैं यहूदा के घराने पर नज़र रखूँगा, मगर राष्ट्रों के सब घोड़ों को अंधा कर दूँगा। 5 यहूदा के शेख* अपने मन में कहेंगे, ‘यरूशलेम के निवासी हमारी ताकत हैं क्योंकि सेनाओं का परमेश्वर यहोवा उनके साथ है।’+ 6 उस दिन मैं यहूदा के शेख को ऐसा बना दूँगा, जैसे वे लकड़ियों के ढेर में जलती अंगीठी हों और कटे हुए अनाज की बालों में जलती मशाल हों।+ वे अपने दाएँ-बाएँ सब लोगों को भस्म कर देंगे।+ और यरूशलेम के निवासी वापस अपनी नगरी* यरूशलेम में बस जाएँगे।+
7 यहोवा पहले यहूदा के तंबुओं को बचाएगा ताकि दाविद के घराने की शान और यरूशलेम के निवासियों की शान, यहूदा से बढ़कर न हो। 8 उस दिन यहोवा ढाल बनकर यरूशलेम के निवासियों की रक्षा करेगा।+ उस दिन, उनमें से ठोकर खानेवाला* दाविद के समान ताकतवर हो जाएगा। और दाविद का घराना ईश्वर की तरह, हाँ, यहोवा के स्वर्गदूत की तरह उन्हें राह दिखाएगा।+ 9 उस दिन मैं यरूशलेम के खिलाफ आनेवाले सभी राष्ट्रों का सर्वनाश कर दूँगा।+
10 मैं दाविद के घराने और यरूशलेम के निवासियों पर अपनी पवित्र शक्ति उँडेलूँगा। वे मुझसे बिनती करेंगे और मेरी मंज़ूरी पाएँगे। वे उसे देखेंगे जिसे उन्होंने भेदा है+ और उसके लिए ऐसे रोएँगे जैसे इकलौते बेटे की मौत हो गयी हो। वे ऐसा भारी शोक मनाएँगे जैसे पहलौठा बेटा मर गया हो। 11 उस दिन यरूशलेम में बड़ा मातम मनाया जाएगा, ऐसा मातम जैसा मगिद्दो के मैदानी इलाके में, हदद-रिम्मोन में मनाया गया था।+ 12 पूरा देश छाती पीटेगा और हर परिवार अलग-अलग रोएगा। दाविद के घराने का परिवार अलग रोएगा और उनकी औरतें अलग। नातान+ के घराने का परिवार अलग रोएगा और उनकी औरतें अलग। 13 लेवी+ के घराने का परिवार अलग रोएगा और उनकी औरतें अलग। शिमियों के घराने+ का परिवार अलग रोएगा और उनकी औरतें अलग। 14 बाकी परिवार और उनकी औरतें भी अलग-अलग रोएँगे।
13 उस दिन दाविद के घराने और यरूशलेम के निवासियों के लिए एक कुआँ खोदा जाएगा कि वे अपने पाप धोएँ और अपनी अशुद्धता दूर करें।”+
2 सेनाओं का परमेश्वर यहोवा ऐलान करता है, “उस दिन मैं देश में से मूरतों का नामो-निशान मिटा दूँगा+ और उन्हें फिर कोई याद नहीं करेगा। मैं भविष्यवक्ताओं को और दुष्ट शक्ति को देश में से निकाल दूँगा।+ 3 अगर कोई आदमी फिर भी भविष्यवाणी करे, तो उसके माता-पिता जिन्होंने उसे जन्म दिया है कहेंगे, ‘तू ज़िंदा नहीं बचेगा क्योंकि तूने यहोवा के नाम से झूठी बातें कही हैं।’ और भविष्यवाणी करने के लिए उसके माता-पिता जिन्होंने उसे जन्म दिया है, उसे भेदकर मार डालेंगे।+
4 उस दिन भविष्यवाणी करते वक्त, हर भविष्यवक्ता को अपना दर्शन बताने में शर्म आएगी। वह अपनी पोशाक,* उस रोएँदार कपड़े को पहनना छोड़ देगा,+ जिसे पहनकर वह लोगों को धोखा देता था। 5 वह कहेगा, ‘मैं कोई भविष्यवक्ता नहीं। मैं तो बचपन से ही एक आदमी के यहाँ गुलाम हूँ और खेती-बाड़ी करता हूँ।’ 6 और अगर कोई उससे पूछे, ‘तेरे शरीर पर* ये घाव कैसे?’ तो वह कहेगा, ‘ये घाव मुझे अपने दोस्तों* के घर पर मिले हैं।’”
7 सेनाओं का परमेश्वर यहोवा ऐलान करता है,
“हे तलवार, मेरे चरवाहे के खिलाफ उठ,+
उस आदमी के खिलाफ जो मेरा साथी है।
चरवाहे को मार+ और झुंड* को तितर-बितर होने दे।+
मैं अपना हाथ मामूली लोगों पर उठाऊँगा।”
8 यहोवा ऐलान करता है, “पूरे देश में जितने लोग हैं,
उनमें से दो-तिहाई को काट दिया जाएगा, वे खत्म हो जाएँगे
और एक-तिहाई को छोड़ दिया जाएगा।
वे मेरा नाम लेकर मुझे पुकारेंगे
और मैं उनकी सुनूँगा।
मैं कहूँगा, ‘वे मेरे लोग हैं’+
और वे कहेंगे, ‘यहोवा हमारा परमेश्वर है।’”
14 “देख! यहोवा का वह दिन आ रहा है, जब तेरा* माल लूटकर तेरे ही सामने बाँट लिया जाएगा। 2 मैं सभी राष्ट्रों को यरूशलेम से युद्ध करने के लिए इकट्ठा करूँगा। शहर पर कब्ज़ा कर लिया जाएगा, घरों को लूट लिया जाएगा और औरतों का बलात्कार किया जाएगा। आधा शहर बँधुआई में चला जाएगा, मगर बचे हुए लोग शहर से नहीं ले जाए जाएँगे।
3 यहोवा उन राष्ट्रों से लड़ने आएगा और जैसे वह युद्ध के दिन लड़ता है+ वैसे ही उनसे लड़ेगा।+ 4 उस दिन वह जैतून पहाड़+ पर खड़ा होगा, जो यरूशलेम के पूरब में है। जैतून पहाड़ पूरब से लेकर पश्चिम* तक फटकर दो हिस्सों में बँट जाएगा। आधा पहाड़ उत्तर की तरफ और आधा दक्षिण की तरफ खिसक जाएगा। और उनके बीच एक गहरी घाटी बन जाएगी। 5 मेरे पहाड़ों के बीच बनी उस घाटी में तुम भागकर पनाह लोगे क्योंकि वह घाटी आसेल तक पहुँचेगी। तुम्हें भागना होगा ठीक जैसे तुम यहूदा के राजा उज्जियाह के दिनों में भूकंप आने पर भागे थे।+ परमेश्वर यहोवा आएगा और उसके संग सारे पवित्र जन भी आएँगे।+
6 उस दिन जगमगाती रौशनी नहीं होगी।+ चीज़ें जम जाएँगी। 7 तब न दिन होगा न रात होगी और शाम को उजाला रहेगा। वह दिन यहोवा का दिन कहलाएगा।+ 8 उस दिन यरूशलेम से जीवन देनेवाला पानी+ निकलेगा।+ उनमें से आधा पानी पूर्वी सागर* की तरफ+ और आधा पश्चिमी सागर* की तरफ बहेगा।+ गरमियों में और सर्दियों में भी यह बहता रहेगा। 9 तब यहोवा पूरी धरती का राजा होगा।+ उस दिन यहोवा एक होगा+ और उसका नाम भी एक होगा।+
10 गेबा+ से लेकर यरूशलेम के दक्षिण में रिम्मोन+ तक पूरा देश, अराबा+ के समान हो जाएगा। मगर यरूशलेम नगरी अपनी जगह पर बहाल होगी।+ वह बिन्यामीन फाटक+ से लेकर ‘पहले फाटक’ तक, ‘पहले फाटक’ से लेकर ‘कोनेवाले फाटक’ तक और हननेल मीनार+ से लेकर राजा के अंगूरों के हौद तक आबाद होगी। 11 उसमें लोगों का बसेरा होगा। यरूशलेम को फिर कभी नाश के लायक नहीं ठहराया जाएगा+ और सब उसमें चैन से रहेंगे।+
12 देश-देश के जो लोग यरूशलेम से युद्ध करते हैं, उन पर यहोवा महामारी लाएगा।+ खड़े-खड़े उनका शरीर गल जाएगा, उनकी आँखें अपने गड्ढों में सड़ जाएँगी और उनकी जीभ उनके मुँह में सड़ जाएगी।
13 उस दिन यहोवा उनके बीच गड़बड़ी फैलाएगा और हर कोई अपने साथी को धर-दबोचेगा और उस पर हाथ उठाएगा।+ 14 यहूदा, यरूशलेम के साथ मिलकर युद्ध करेगा। और आस-पास के सब राष्ट्रों की दौलत, ढेर सारा सोना-चाँदी और कपड़े बटोरे जाएँगे।+
15 उस महामारी के समान एक और महामारी उनकी छावनी में घोड़ों, खच्चरों, ऊँटों, गधों और सारे मवेशियों पर आएगी।
16 यरूशलेम से युद्ध करनेवाले सब राष्ट्रों में से जो-जो बच जाएँगे, वे हर साल राजा को, सेनाओं के परमेश्वर यहोवा को दंडवत* करने आएँगे+ और छप्परों का त्योहार मनाएँगे।+ 17 लेकिन अगर धरती के परिवारों में से कोई राजा को, सेनाओं के परमेश्वर यहोवा को दंडवत करने ऊपर यरूशलेम को नहीं आएगा, तो उसके यहाँ बारिश नहीं होगी।+ 18 अगर मिस्र के लोग नहीं आएँगे और आकर उसे दंडवत नहीं करेंगे, तो उनके यहाँ भी बारिश नहीं होगी। इसके बजाय, यहोवा उन पर वह महामारी लाएगा जो वह छप्परों का त्योहार न मनानेवाले राष्ट्रों पर लाता है। 19 मिस्र और सब राष्ट्रों में से जो छप्परों का त्योहार मनाने नहीं आएँगे, उन्हें अपने पाप की यही सज़ा मिलेगी।
20 उस दिन घोड़ों की घंटियों पर ये शब्द लिखे होंगे, ‘यहोवा पवित्र है।’+ यहोवा के भवन के हंडे,*+ उन कटोरों+ जैसे ठहरेंगे जो वेदी के सामने रखे जाते हैं। 21 यरूशलेम और यहूदा में जितने भी हंडे* हैं, वे पवित्र ठहरेंगे और सेनाओं के परमेश्वर यहोवा को अर्पित होंगे। बलिदान चढ़ानेवाले सब लोग आकर इनमें से कुछ हंडों में गोश्त उबालेंगे। उस दिन सेनाओं के परमेश्वर यहोवा के भवन में एक भी कनानी* नहीं रहेगा।”+
मतलब “यहोवा ने याद किया है।”
अति. ख15 देखें।
शा., “भलाई” जो परमेश्वर की तरफ से है।
यानी उसके चारों तरफ शहरपनाह नहीं होगी।
शा., “आकाश की चारों हवाओं की तरह।”
या “दोष।”
या “रखवाली।”
या “मैदान।”
या “छोटी बातों के दिन।”
यानी फलों से लदी डालियाँ।
एक हाथ 44.5 सें.मी. (17.5 इंच) के बराबर था। अति. ख14 देखें।
शा., “एपा।” यहाँ ऐसे बरतन या टोकरी की बात की गयी है जिसमें एक एपा नापा जाता था। एक एपा 22 ली. के बराबर था। अति. ख14 देखें।
यानी बैबिलोनिया।
या “सागर के पार।”
या “शानदार ताज।”
यानी राजा और याजक की भूमिकाओं के बीच।
आय. 10 में बताया हेल्दै।
मुमकिन है कि यह आय. 10 में बताया योशियाह हो।
अति. ख15 देखें।
या “मंदिर।”
शा., “मैं।”
या “जिनके पिता की मौत हो गयी है।”
या शायद, “कोई और सख्त पत्थर।”
या “शिक्षाओं।”
शा., “उसके।”
या “विश्वासयोग्य।”
या “विश्वासयोग्य।”
शा., “अपने हाथों को मज़बूत करो।”
शा., “अपने हाथों को मज़बूत करो।”
या “मैं नहीं पछताया।”
शा., “एक यहूदी आदमी।”
शा., “सुरक्षा की ढलान।”
शेख, गोत्र का प्रधान था।
ज़ाहिर है, उसके लोगों का दुख।
या “और विजयी है; और बचाया गया है।”
यानी फरात नदी।
यानी सिय्योन या यरूशलेम।
यानी तीर की तरह।
या “मूरतों।”
या “जादू-टोने की; रहस्यमय।”
शा., “बकरों।”
यानी यहूदा में से।
शा., “कोने की मीनार,” यह एक खास आदमी को दर्शाती है; एक प्रधान।
शा., “खूँटी,” यह एक आदमी को दर्शाती है जो सहारा है; एक शासक।
या “साँस।”
या “कटोरा।”
शेख, गोत्र का प्रधान था।
या “अपनी सही जगह।”
या “सबसे कमज़ोर जन।”
या “भविष्यवक्ता की पोशाक।”
शा., “तेरे हाथों के बीच” यानी छाती या पीठ पर।
या “अज़ीजों।”
या “भेड़ों।”
यानी आय. 2 में बताया शहर।
शा., “सागर।”
यानी मृत सागर।
यानी भूमध्य सागर।
या “की उपासना।”
या “चौड़े मुँहवाले हंडे।”
या “चौड़े मुँहवाले हंडे।”
या शायद, “लेन-देन करनेवाला।”