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  • पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद
पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद
सभोपदेशक

सभोपदेशक

1 दाविद के बेटे, यरूशलेम के राजा,+ उपदेशक*+ के वचन:

 2 वह कहता है, “व्यर्थ है! व्यर्थ है!

सबकुछ व्यर्थ है!”+

 3 दुनिया में* इंसान कड़ी मेहनत करता है,

लेकिन अपनी मेहनत का उसे क्या मिलता है?+

 4 एक पीढ़ी जाती है और दूसरी पीढ़ी आती है,

लेकिन पृथ्वी हमेशा कायम रहती है।+

 5 सूरज उगता है और फिर डूबता है,

भागा-भागा वहीं लौट जाता है जहाँ से उसे दोबारा उगना है।+

 6 हवा दक्षिण में बहती है फिर घूमकर उत्तर में आती है,

इस तरह वह चक्कर काटती रहती है।

 7 सारी नदियाँ* सागर में जा मिलती हैं, फिर भी सागर नहीं भरता,+

नदियाँ वापस अपनी जगह लौट जाती हैं और फिर से बहने लगती हैं।+

 8 सब बातें थका देनेवाली हैं,

इनका बखान कोई नहीं कर सकता,

इन्हें देखकर आँखें नहीं भरतीं,

इनके बारे में सुनकर कान नहीं थकते।

 9 जो हो चुका है वह फिर होगा,

जो किया जा चुका है वह फिर किया जाएगा,

दुनिया में* कुछ भी नया नहीं होता।+

10 क्या ऐसा कुछ है जिसके बारे में कहा जा सके, “देखो! यह कुछ नया है”?

वह तो बरसों पहले वजूद में था,

हमारे ज़माने से भी पहले मौजूद था।

11 बीते समय के लोगों को कोई याद नहीं रखता,

न ही उनके बाद आनेवालों को कोई याद रखेगा

और न ही उन्हें आनेवाली पीढ़ियाँ याद रखेंगी।+

12 मैं उपदेशक, यरूशलेम से इसराएल पर राज करता हूँ।+ 13 आसमान के नीचे जो कुछ होता है, उसका अध्ययन करने और बुद्धि से उसकी खोज करने में मैंने जी-जान लगा दी।+ यह बड़ा दुख देनेवाला काम है जो परमेश्‍वर ने इंसानों को दिया है और जिसमें वे लगे रहते हैं।

14 जब मैंने वे सारे काम देखे जो सूरज के नीचे किए जाते हैं,

तो क्या देखा, सबकुछ व्यर्थ है और हवा को पकड़ने जैसा है।+

15 जो टेढ़ा है उसे सीधा नहीं किया जा सकता

और जो है ही नहीं, उसे गिना नहीं जा सकता।

16 फिर मैंने मन-ही-मन कहा, “मैंने बहुत बुद्धि हासिल की है। मुझसे पहले यरूशलेम में शायद ही किसी ने इतनी बुद्धि पायी हो।+ ज्ञान और बुद्धि से काम लेना मैंने अच्छी तरह सीख लिया है।”+ 17 मैंने बुद्धि, पागलपन और मूर्खता को जानने में जी-जान लगा दी+ और पाया कि यह भी हवा को पकड़ने जैसा है।

18 जितनी ज़्यादा बुद्धि हासिल करो, उतनी ही निराशा होती है।

इसलिए जो अपना ज्ञान बढ़ाता है, वह अपना दुख भी बढ़ाता है।+

2 मैंने मन-ही-मन कहा, “चल मौज-मस्ती करें,* देखें तो सही इससे कुछ फायदा होता है या नहीं।” मगर मैंने पाया कि यह भी व्यर्थ है।

 2 मैंने कहा, “हँसी-ठहाके लगाना तो पागलपन है।”

मैंने खुद से पूछा, “मौज-मस्ती करने* का क्या फायदा?”

3 मैंने सोचा, दाख-मदिरा का भी मज़ा लेकर देख लूँ।+ मगर मैंने अपना होश-हवास नहीं खोया। मैंने मूर्खता को भी गले लगाया। मैं जानना चाहता था कि आसमान के नीचे चंद दिनों की ज़िंदगी जीनेवाले इंसान के लिए क्या करना सबसे अच्छा होगा। 4 मैंने बड़े-बड़े काम किए:+ अपने लिए घर बनाए,+ अंगूरों के बाग लगाए,+ 5 बड़े-बड़े बाग-बगीचे लगाए और वहाँ हर किस्म के फलदार पेड़ उगाए। 6 मैंने पानी के कुंड बनवाए कि मेरे बाग* के नए-नए पेड़ सींचे जाएँ। 7 मैंने दास-दासियाँ रखे,+ मेरे यहाँ ऐसे दास भी थे जो मेरे घर में पैदा हुए थे। मेरे पास गाय-बैल, भेड़-बकरियाँ, इतने सारे मवेशी हो गए+ जितने यरूशलेम में मुझसे पहले किसी राजा के पास नहीं थे। 8 मैंने अपने लिए इतना सोना-चाँदी इकट्ठा किया,+ जितना राजाओं के खज़ाने और ज़िले के खज़ाने में होता है।+ मैंने अपने लिए गायक-गायिकाएँ रखे। इसके अलावा, मैंने औरत हाँ, कई औरतों का साथ भी पाया जिनसे आदमियों का दिल खुश होता है। 9 इस तरह मैं महान बन गया। मेरे पास वह सबकुछ था जो मुझसे पहले यरूशलेम में किसी के पास नहीं हुआ।+ तब भी मेरी बुद्धि भ्रष्ट नहीं हुई।

10 मेरी आँखों ने जो देखा और चाहा उसे मैंने पा लिया।+ किसी भी तरह का सुख लेने* से मैंने अपने मन को नहीं रोका और मैं अपनी मेहनत के सारे कामों से भी खुश था। यह सब मेरी मेहनत का इनाम था।+ 11 लेकिन जब मैंने अपने सब कामों और उसके पीछे लगी मेहनत+ के बारे में सोचा, तो यही पाया कि सब व्यर्थ है और हवा को पकड़ने जैसा है।+ दुनिया में* कुछ भी करने का फायदा नहीं।+

12 फिर मैंने बुद्धि, पागलपन और मूर्खता आज़माकर देखी।+ (जब राजा ने सब आज़मा लिया है, तो उसके बाद आनेवाला आदमी क्या कर सकता है? वही जो पहले किया जा चुका है।) 13 और मैंने क्या देखा कि जैसे अँधेरे से ज़्यादा रौशनी अच्छी है, वैसे ही मूर्खता से ज़्यादा बुद्धि अच्छी है।+

14 बुद्धिमान साफ देख सकता है कि वह किस राह जा रहा है,*+ लेकिन मूर्ख अंधकार में भटकता है।+ मैं यह भी समझ गया कि उन दोनों का एक ही अंजाम होता है।+ 15 मैंने मन-ही-मन कहा, “मूर्ख के साथ जो होता है वह मेरे साथ भी होगा।”+ तो फिर मैंने इतनी बुद्धि हासिल क्यों की? मैंने मन में कहा, “यह भी व्यर्थ है।” 16 क्योंकि न तो बुद्धिमान को याद रखा जाता है, न ही मूर्ख को।+ आखिर में सबको भुला दिया जाएगा। और बुद्धिमान का क्या अंजाम होगा? जैसे मूर्ख मरता है, वह भी मर जाएगा।+

17 मैं जीवन से नफरत करने लगा+ क्योंकि सूरज के नीचे जो कुछ किया जाता है वह देखकर मुझे बहुत दुख हुआ। सबकुछ व्यर्थ है+ और हवा को पकड़ने जैसा है।+ 18 मुझे उन चीज़ों से नफरत होने लगी जिनके लिए मैंने दुनिया में* खूब मेहनत की।+ क्योंकि मेरा सबकुछ उस आदमी का हो जाएगा जो मेरे बाद आएगा।+ 19 और कौन जाने वह बुद्धिमान होगा या मूर्ख?+ फिर भी वह उन चीज़ों का मालिक बन जाएगा, जो मैंने दुनिया में* बड़े जतन से और बुद्धि से हासिल की हैं। यह भी व्यर्थ है। 20 मैं मन-ही-मन निराश हो गया कि क्यों मैंने दुनिया में* इन चीज़ों के लिए इतनी मेहनत की। 21 एक आदमी अपनी बुद्धि, ज्ञान और हुनर के दम पर कड़ी मेहनत तो करता है, मगर उसे अपना सबकुछ ऐसे आदमी को देना पड़ता है जिसने उसके लिए कोई मेहनत नहीं की।+ यह भी व्यर्थ है और बड़े दुख की बात है।

22 उस इंसान को क्या मिलता है जिस पर दुनिया में* कुछ हासिल करने का जुनून सवार हो और जिसके लिए वह जी-जान लगा दे?+ 23 दुख और दर्द के सिवा उसे कुछ नहीं मिलता।+ रात को भी उसके मन को चैन नहीं पड़ता।+ यह भी व्यर्थ है।

24 इंसान के लिए इससे अच्छा और क्या हो सकता है कि वह खाए-पीए और अपनी मेहनत से खुशी पाए!+ मैं जान गया कि यह भी सच्चे परमेश्‍वर की देन है।+ 25 मुझे देखो, भला मुझसे अच्छा कौन खाता-पीता है?+

26 जो इंसान परमेश्‍वर को खुश करता है उसे वह बुद्धि, ज्ञान और खुशी देता है।+ लेकिन पापी को वह बटोरने का काम देता है ताकि उसकी बटोरी हुई चीज़ें उस इंसान को मिलें, जो सच्चे परमेश्‍वर को खुश करता है।+ यह भी व्यर्थ है और हवा को पकड़ने जैसा है।

3 हर चीज़ का एक समय होता है,

आसमान के नीचे हरेक काम का एक समय होता है:

 2 जन्म लेने का समय* और मरने का समय,

बोने का समय और बोए हुए को उखाड़ने का समय,

 3 मार डालने का समय और चंगा करने का समय,

ढा देने का समय और बनाने का समय,

 4 रोने का समय और हँसने का समय,

छाती पीटने का समय और नाचने का समय,

 5 पत्थर फेंकने का समय और पत्थरों को बटोरने का समय,

गले लगाने का समय और गले लगाने से दूर रहने का समय,

 6 ढूँढ़ने का समय और खोया हुआ मानकर छोड़ देने का समय,

रखने का समय और फेंकने का समय,

 7 फाड़ने का समय+ और सिलने का समय,

चुप रहने का समय+ और बोलने का समय,+

 8 प्यार करने का समय और नफरत करने का समय,+

युद्ध का समय और शांति का समय।

9 एक कामकाजी इंसान को अपनी सारी मेहनत से क्या मिलता है?+ 10 मैंने वे सारे काम देखे जो परमेश्‍वर ने इंसानों को दिए हैं कि वे उनमें लगे रहें। 11 परमेश्‍वर ने हर चीज़ को ऐसा बनाया है कि वह अपने समय पर सुंदर* लगती है।+ उसने इंसान के मन में हमेशा तक जीने का विचार भी डाला है। फिर भी वह सच्चे परमेश्‍वर के कामों को पूरी तरह* नहीं जान सकता।

12 मैं इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि इंसान के लिए इससे अच्छा और कुछ नहीं कि वह ज़िंदगी में खुश रहे और अच्छे काम करे।+ 13 साथ ही, वह खाए-पीए और अपनी मेहनत के सब कामों से खुशी पाए। यह परमेश्‍वर की देन है।+

14 मैं जान गया हूँ कि सच्चे परमेश्‍वर ने जो कुछ बनाया है वह हमेशा कायम रहेगा। इसमें न कुछ जोड़ा जा सकता है, न कुछ घटाया जा सकता है। सच्चे परमेश्‍वर ने सारी चीज़ें इस तरह बनायी हैं कि लोग उसका डर मानें।+

15 जो कुछ होता है, वह पहले भी हो चुका है और जो होनेवाला है वह भी हो चुका है।+ लेकिन सच्चा परमेश्‍वर उसे ढूँढ़ता है जिसका पीछा किया जा रहा है।*

16 मैंने दुनिया में* यह भी देखा: न्याय की जगह दुष्टता की जाती है और नेकी की जगह बुराई।+ 17 मैंने अपने मन में कहा, “सच्चा परमेश्‍वर नेक और दुष्ट दोनों का न्याय करेगा+ क्योंकि हर बात और हर काम का एक समय होता है।”

18 मैंने अपने दिल में यह भी कहा कि सच्चा परमेश्‍वर इंसान को परखेगा और उन्हें दिखा देगा कि इंसान जानवरों जैसे हैं 19 क्योंकि इंसानों और जानवरों का एक ही अंजाम होता है।+ जैसे जानवर मरता है वैसे ही इंसान भी मर जाता है। दोनों में जीवन की साँसें हैं।+ इंसान, जानवर से बढ़कर नहीं। इसलिए सबकुछ व्यर्थ है। 20 सब एक ही जगह जाते हैं।+ उन्हें मिट्टी से बनाया गया है+ और वे मिट्टी में मिल जाते हैं।+ 21 कौन जानता है कि इंसान की जीवन-शक्‍ति ऊपर जाती है और जानवर की नीचे ज़मीन में?+ 22 मैंने यही पाया कि इंसान के लिए इससे अच्छा और कुछ नहीं कि वह अपने काम से खुशी पाए+ क्योंकि यही उसका इनाम है। वरना कौन उसे दिखा सकता है कि उसके जाने के बाद क्या होगा?+

4 एक बार फिर मैंने उन सब ज़ुल्मों पर ध्यान दिया जो इस दुनिया में* हो रहे हैं। और मैंने क्या देखा, ज़ुल्म सहनेवाले आँसू बहा रहे हैं और उन्हें दिलासा देनेवाला कोई नहीं।+ ज़ुल्म करनेवाले ताकतवर हैं इसलिए कोई उन दुखियों को दिलासा नहीं देता। 2 यह देखकर मैंने सोचा, ज़िंदा लोगों से अच्छे तो मरे हुए हैं।+ 3 और इन दोनों से बेहतर तो वह इंसान है, जो अब तक पैदा ही नहीं हुआ+ और जिसने दुनिया में* हो रहे बुरे काम नहीं देखे।+

4 मैंने देखा है कि दूसरों से आगे निकलने की धुन में एक इंसान खूब मेहनत करता है और बड़ी महारत से अपना काम करता है।+ मगर यह भी व्यर्थ है और हवा को पकड़ने जैसा है।

5 मूर्ख हाथ-पर-हाथ धरे बैठा रहता है और खुद को बरबाद कर देता है।*+

6 थोड़ा-सा आराम करना,* बहुत ज़्यादा काम करने* और हवा के पीछे भागने से कहीं अच्छा है।+

7 मैंने दुनिया में* एक और व्यर्थ बात देखी: 8 एक आदमी है जो बिलकुल अकेला है। उसका न तो कोई दोस्त है, न बेटा, न भाई। वह दिन-रात मेहनत करता है। उसके पास खूब दौलत है, फिर भी उसकी आँखें तृप्त नहीं होतीं।+ मगर क्या वह अपने आपसे पूछता है, ‘आखिर मैं किसके लिए इतनी मेहनत कर रहा हूँ? किसके लिए खुद को अच्छी-अच्छी चीज़ों से दूर रख रहा हूँ?’+ यह भी व्यर्थ है और बड़ा दुख देनेवाला काम है।+

9 एक से भले दो हैं+ क्योंकि उनकी मेहनत का उन्हें अच्छा फल* मिलता है। 10 अगर उनमें से एक गिर जाए, तो उसका साथी उसे उठा लेगा। लेकिन जो अकेला है उसे गिरने पर कौन उठाएगा?

11 अगर दो साथ लेटें तो वे गरम रहेंगे। लेकिन जो अकेला है वह कैसे गरम रहेगा? 12 एक अकेले को कोई भी दबोच सकता है, लेकिन अगर दो जन साथ हों तो वे मिलकर उसका सामना कर सकेंगे। और जो डोरी तीन धागों से बटी हो वह आसानी से* नहीं टूटती।

13 गरीब मगर बुद्धिमान लड़का, उस बूढ़े और मूर्ख राजा से कहीं अच्छा है,+ जो अब किसी की सलाह नहीं मानता।+ 14 क्योंकि वह* जेल से निकलकर राजा बन जाता है,+ फिर चाहे वह उसके राज में गरीब ही क्यों न पैदा हुआ हो।+ 15 मैंने दुनिया के* सब लोगों पर गौर किया और यह भी देखा कि उस जवान लड़के के साथ क्या होता है जिसने राजा की जगह ली। 16 भले ही उसका साथ देनेवालों की कमी नहीं, मगर आगे चलकर जो लोग आएँगे, वे उससे खुश नहीं होंगे।+ यह भी व्यर्थ है और हवा को पकड़ने जैसा है।

5 जब तू सच्चे परमेश्‍वर के घर जाए तो ध्यान रख कि तू कैसी चाल चलता है।+ तू मूर्ख की तरह वहाँ बलिदान चढ़ाने के लिए+ नहीं बल्कि सुनने के लिए जा।+ क्योंकि मूर्ख नहीं जानता कि वह जो कर रहा है वह बुरा है।

2 बोलने में जल्दबाज़ी मत कर, न सच्चे परमेश्‍वर के सामने जो मन में आए वह कह दे।+ क्योंकि सच्चा परमेश्‍वर स्वर्ग में है और तू धरती पर। इसलिए तेरे शब्द थोड़े ही हों।+ 3 जब ढेर सारी चिंताएँ* हों, तो लोग सपने देखने लगते हैं।+ और जब मूर्ख बकबक करता है, तो उसकी बातों में मूर्खता नज़र आती है।+ 4 जब-जब तू परमेश्‍वर से मन्‍नत माने, उसे पूरा करने में देर न करना+ क्योंकि वह मूर्ख से खुश नहीं होता, जो अपनी मन्‍नत पूरी नहीं करता।+ तू जो भी मन्‍नत माने उसे पूरा करना।+ 5 मन्‍नत मानकर उसे पूरा न करने से तो अच्छा है कि तू मन्‍नत ही न माने।+ 6 ऐसा न हो कि तेरा मुँह तुझसे पाप करवाए+ और तू स्वर्गदूत* के सामने कहे कि मुझसे भूल हो गयी।+ भला तू अपनी बात से सच्चे परमेश्‍वर को क्यों क्रोध दिलाए और क्यों उसे तेरे काम बिगाड़ने पड़ें?+ 7 जब ढेर सारी चिंताएँ हों, तो लोग सपने देखने लगते हैं।+ वैसे ही बहुत-सी बातें बोली जाएँ, तो वे व्यर्थ ठहरती हैं। लेकिन तू सच्चे परमेश्‍वर का डर मान।+

8 अगर तू अपने ज़िले में किसी ऊँचे अधिकारी को गरीबों पर ज़ुल्म करते देखे और न्याय और सच्चाई का खून करते देखे, तो हैरान मत होना।+ क्योंकि उसके ऊपर भी कोई है जो उसे देख रहा है। और बड़े-बड़े अधिकारियों के ऊपर भी उनसे बड़े अधिकारी होते हैं।

9 ज़मीन से मिलनेवाला मुनाफा सब लोगों में बाँटा जाता है, यहाँ तक कि राजा की ज़रूरतें भी उसी खेत की उपज से पूरी की जाती हैं।+

10 जिसे चाँदी से प्यार है उसका मन चाँदी से नहीं भरता, वैसे ही दौलत से प्यार करनेवाले का मन अपनी कमाई से नहीं भरता।+ यह भी व्यर्थ है।+

11 जब अच्छी चीज़ें बढ़ती हैं तो उसे खानेवाले भी बढ़ जाते हैं।+ लेकिन उसके मालिक को कोई फायदा नहीं होता, वह बस देखता रह जाता है।+

12 मज़दूरी करनेवाले को मीठी नींद आती है फिर चाहे उसे थोड़ा खाने को मिले या ज़्यादा। लेकिन रईस की बेशुमार दौलत उसे सोने नहीं देती।

13 दुनिया में* मैंने एक ऐसी बात देखी जो बड़ा दुख पहुँचाती है: जमा की गयी दौलत अपने ही मालिक के लिए मुसीबत बन जाती है। 14 गलत योजना में उसका सारा पैसा डूब जाता है और जब उसे बेटा होता है, तो उसे देने के लिए उसके पास कुछ नहीं बचता।+

15 इंसान अपनी माँ के पेट से नंगा आया है और नंगा ही चला जाएगा।+ जिन चीज़ों के लिए उसने कड़ी मेहनत की, उनमें से कुछ भी अपने साथ नहीं ले जाएगा।+

16 एक और बात है जो बड़ा दुख पहुँचाती है: इंसान जैसे आता है वैसे ही चला जाता है। तो फिर कड़ी मेहनत करने और हवा को पकड़ने की कोशिश करने का क्या फायदा?+ 17 यही नहीं, वह हर दिन मानो अँधेरे में खाता है। ज़िंदगी-भर कुढ़ता रहता है, गुस्सा करता है और बीमार रहता है।+

18 मैंने जिस बात को सही और अच्छा पाया वह यह है कि सच्चे परमेश्‍वर ने इंसान को जो ज़िंदगी दी है, उसमें वह खाए-पीए और धरती पर* अपनी सारी मेहनत से खुशी पाए।+ क्योंकि यही उसका इनाम है।+ 19 इतना ही नहीं, अगर सच्चे परमेश्‍वर ने इंसान को धन-दौलत देने+ के साथ-साथ उसका मज़ा लेने के काबिल बनाया है, तो वह उन चीज़ों का मज़ा ले और अपनी मेहनत से खुशी पाए। यह परमेश्‍वर की देन है।+ 20 उसकी ज़िंदगी के दिन ऐसे बीत जाएँगे कि उसे पता भी नहीं चलेगा* क्योंकि सच्चा परमेश्‍वर उसका ध्यान उन बातों पर लगाए रखेगा, जो उसके दिल को खुशी देती हैं।+

6 दुनिया में* एक और बात है जो दुख पहुँचाती है और जो इंसानों में अकसर देखी जाती है: 2 इंसान जितनी धन-दौलत और मान-मर्यादा चाहता है, सच्चा परमेश्‍वर उसे वह सब देता है। फिर भी सच्चा परमेश्‍वर उन चीज़ों का मज़ा उसे नहीं, किसी पराए को लेने देता है। यह व्यर्थ है और बड़े दुख की बात है। 3 अगर एक आदमी के 100 बच्चे हों और वह बुढ़ापे तक एक लंबी उम्र जीए, फिर भी कब्र में जाने से पहले अपनी अच्छी चीज़ों का मज़ा न ले, तो मेरा मानना है कि उससे अच्छा वह बच्चा है जो मरा हुआ पैदा होता है।+ 4 वह बच्चा बेकार ही दुनिया में आया और चला गया और बेनाम ही अँधेरे में खो गया। 5 भले ही उसने सूरज की रौशनी नहीं देखी, न ही वह कुछ जान पाया, फिर भी वह उस आदमी से कहीं अच्छा है।*+ 6 अगर एक इंसान 2,000 साल जीकर भी ज़िंदगी का मज़ा न ले सके, तो क्या फायदा? क्या सब-के-सब एक ही जगह नहीं जाते?+

7 इंसान जो मेहनत करता है उससे उसका सिर्फ पेट भरता है,+ जी नहीं भरता। 8 अगर ऐसा है तो बुद्धिमान किस मायने में मूर्ख से बढ़कर हुआ?+ या अगर गरीब को थोड़े में गुज़ारा करना* आता है, तो उसे भी क्या फायदा हुआ? 9 इसलिए जो आँखों के सामने है उसका मज़ा ले, न कि अपनी इच्छाओं के पीछे भाग। क्योंकि यह भी व्यर्थ है और हवा को पकड़ने जैसा है।

10 जो कुछ वजूद में है उसका नाम पहले ही रखा जा चुका है। और यह भी पता चल गया है कि इंसान क्या है। वह उससे नहीं लड़ सकता* जो उससे ज़्यादा शक्‍तिशाली है। 11 जितनी ज़्यादा बातें* होती हैं, वे उतनी ही व्यर्थ होती हैं और इससे इंसान को कोई फायदा नहीं होता। 12 कौन जानता है कि इंसान के लिए ज़िंदगी में क्या करना सबसे अच्छा है? क्योंकि उसकी छोटी-सी ज़िंदगी व्यर्थ है और छाया के समान गुज़र जाती है।+ कौन उसे बता सकता है कि उसके जाने के बाद दुनिया में* क्या होगा?

7 एक अच्छा नाम बढ़िया तेल से भी अच्छा है+ और मौत का दिन जन्म के दिन से बेहतर है। 2 दावतवाले घर में जाने से अच्छा है मातमवाले घर में जाना।+ क्योंकि मौत हर इंसान का अंत है और ज़िंदा लोगों को यह बात याद रखनी चाहिए। 3 हँसने से अच्छा है दुख मनाना+ क्योंकि चेहरे की उदासी मन को सुधारती है।+ 4 बुद्धिमान का मन मातमवाले घर में लगा रहता है, मगर मूर्ख का मन मौज-मस्तीवाले घर में लगा रहता है।+

5 मूर्ख के गीत सुनने से अच्छा है बुद्धिमान की फटकार सुनना।+ 6 जैसे हाँडी के नीचे जलते काँटों का चटकना, वैसे ही मूर्ख का हँसना होता है।+ यह भी व्यर्थ है। 7 ज़ुल्म, बुद्धिमान इंसान को बावला कर देता है और रिश्‍वत, मन को भ्रष्ट कर देती है।+

8 किसी बात का अंत उसकी शुरूआत से अच्छा होता है। सब्र से काम लेना घमंड करने से अच्छा है।+ 9 किसी बात का जल्दी बुरा मत मान+ क्योंकि मूर्ख ही जल्दी बुरा मानता है।*+

10 यह मत कहना, “इन दिनों से अच्छे तो बीते हुए दिन थे।” क्योंकि ऐसा कहकर तू बुद्धिमानी से काम नहीं ले रहा।+

11 बुद्धि के साथ-साथ विरासत मिलना अच्छी बात है। बुद्धि उन सभी को फायदा पहुँचाती है जो दिन की रौशनी देखते हैं।* 12 क्योंकि जिस तरह पैसा हिफाज़त करता है,+ उसी तरह बुद्धि भी कई चीज़ों से हिफाज़त करती है।+ मगर ज्ञान और बुद्धि इस मायने में बढ़कर हैं कि वे अपने मालिक की जान बचाते हैं।+

13 सच्चे परमेश्‍वर के काम पर ध्यान दे। क्योंकि जिन चीज़ों को परमेश्‍वर ने टेढ़ा किया है उन्हें कौन सीधा कर सकता है?+ 14 जब दिन अच्छा बीते तो तू भी अच्छाई कर।+ लेकिन मुसीबत* के दिन यह समझ ले कि परमेश्‍वर ने अच्छे और बुरे दोनों दिनों को रहने दिया है+ ताकि इंसान कभी न जान सके कि आनेवाले दिनों में क्या होनेवाला है।+

15 मैंने अपनी छोटी-सी* ज़िंदगी+ में सबकुछ देखा है। नेक इंसान नेकी करके भी मिट जाता है,+ जबकि दुष्ट बुरा करके भी लंबी उम्र जीता है।+

16 खुद को दूसरों से नेक मत समझ,+ न ही अपने को बड़ा बुद्धिमान दिखा।+ तू क्यों खुद पर विनाश लाना चाहता है?+ 17 न बहुत ज़्यादा बुराई कर, न ही मूर्ख बन।+ आखिर तू वक्‍त से पहले क्यों मरना चाहता है?+ 18 तेरे लिए अच्छा है कि तू पहली चेतावनी* को पकड़े रहे और दूसरी* को भी हाथ से जाने न दे+ क्योंकि परमेश्‍वर का डर माननेवाला दोनों को मानेगा।

19 बुद्धि एक समझदार इंसान को ताकतवर बनाती है, शहर के दस बलवान आदमियों से भी ताकतवर।+ 20 धरती पर ऐसा कोई नेक इंसान नहीं, जो हमेशा अच्छे काम करता है और कभी पाप नहीं करता।+

21 लोगों की हर बात दिल पर मत ले,+ वरना तू अपने नौकर को तेरी बुराई करते* सुनेगा 22 क्योंकि तेरा दिल अच्छी तरह जानता है कि तूने भी न जाने कितनी बार दूसरों को बुरा-भला कहा है।+

23 मैंने इन सारी बातों को बुद्धि से परखा। मैंने कहा, “मैं बुद्धिमान बनूँगा,” लेकिन यह मेरी पहुँच से बाहर है। 24 जो कुछ हुआ है उसे समझना मेरे बस में नहीं। ये बातें बहुत गहरी हैं, कौन इन्हें समझ सकता है?+ 25 मैंने बुद्धि की खोज करने और उसे जानने-परखने में अपना मन लगाया। मैं जानना चाहता था कि जो कुछ होता है वह क्यों होता है। मैं समझना चाहता था कि आखिर मूर्खता बुरी क्यों है और पागलपन मूर्खता क्यों है।+ 26 तब मैंने जाना कि एक ऐसी औरत है जो मौत से भी ज़्यादा दुख देती है। वह शिकारी के जाल के समान है, उसका दिल मछली पकड़नेवाले बड़े जाल जैसा है और उसके हाथ बेड़ियों की तरह हैं। ऐसी औरत से बचनेवाला, सच्चे परमेश्‍वर को खुश करता है।+ लेकिन जो उसके जाल में फँस जाता है, वह पाप कर बैठता है।+

27 उपदेशक+ कहता है, “देख, मैंने यह पाया। मैंने एक-के-बाद-एक कई चीज़ों की छानबीन की कि किसी नतीजे पर पहुँचूँ, 28 मगर बहुत खोज करने के बाद भी मैं किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पाया। मुझे 1,000 लोगों में सिर्फ एक सीधा-सच्चा आदमी मिला, लेकिन उनमें एक भी सीधी-सच्ची औरत नहीं मिली। 29 मैंने सिर्फ यही पाया: सच्चे परमेश्‍वर ने इंसान को सीधा बनाया था,+ लेकिन वह अपनी सोच के मुताबिक चलने लगा।”+

8 कौन है जो बुद्धिमान इंसान जैसा है? कौन है जो समस्या का हल* जानता है? बुद्धि के कारण इंसान का चेहरा चमक उठता है और उसके चेहरे पर कठोरता की जगह खुशी छा जाती है।

2 मैं कहता हूँ, “राजा का हुक्म मान+ क्योंकि तूने परमेश्‍वर के सामने शपथ खायी थी।+ 3 उतावली में आकर तू राजा के सामने से चले न जाना,+ न किसी बुरे काम में उलझना।+ राजा जो चाहता है वह करता है। 4 उसकी बात पत्थर की लकीर है।+ कौन उससे कह सकता है, ‘यह तू क्या कर रहा है?’”

5 जो आज्ञा मानता है उसके साथ कुछ बुरा नहीं होगा।+ और बुद्धिमान का मन जानता है कि किसी चीज़ को करने का सही वक्‍त और तरीका क्या है।+ 6 क्योंकि इंसान की ज़िंदगी में बहुत-से दुख हैं और उनसे निपटने का एक सही वक्‍त और तरीका होता है।+ 7 अगर कोई नहीं जानता कि आगे क्या घटेगा, तो कौन बता सकता है वह कैसे घटेगा?

8 जैसे एक इंसान का अपनी जीवन-शक्‍ति पर कोई बस नहीं, वैसे ही मौत के दिन पर उसका कोई बस नहीं।+ जिस तरह युद्ध के समय सैनिक को अपनी सेवा से मुक्‍ति नहीं मिलती, उसी तरह दुष्ट की दुष्टता उसे मुक्‍ति नहीं देती।*

9 यह सब मैंने देखा है। मैंने दुनिया में* होनेवाले सब कामों पर ध्यान दिया और देखा कि इस दौरान इंसान, इंसान पर हुक्म चलाकर सिर्फ तकलीफें* लाया है।+ 10 मैंने उन दुष्टों को दफन होते देखा है जो पवित्र जगह में आया-जाया करते थे। और जिस शहर में उन्होंने बुरे काम किए थे, वहाँ के लोगों की यादों से वे जल्द मिट गए।+ यह भी व्यर्थ है।

11 जब बुरे कामों की सज़ा जल्दी नहीं मिलती,+ तो इंसान का मन बुराई करने के लिए और भी ढीठ बन जाता है।+ 12 चाहे पापी 100 बार पाप करके बहुत दिनों तक जीए, पर मैं जानता हूँ कि आखिर में सच्चे परमेश्‍वर का डर माननेवाले का ही भला होता है क्योंकि उसमें परमेश्‍वर के लिए सच्ची श्रद्धा है।+ 13 लेकिन दुष्ट का भला नहीं होगा,+ न ही वह अपनी ज़िंदगी के दिन बढ़ा पाएगा जो छाया के समान बीत जाते हैं।+ क्योंकि वह परमेश्‍वर का डर नहीं मानता।

14 एक और बात है जो मैंने धरती पर होते देखी और जो एकदम व्यर्थ* है: नेक लोगों के साथ ऐसा बरताव किया जाता है मानो उन्होंने दुष्ट काम किए हों+ और दुष्टों के साथ ऐसा बरताव किया जाता है मानो उन्होंने नेक काम किए हों।+ मेरा मानना है कि यह भी व्यर्थ है।

15 इसलिए मैं कहता हूँ, खुशियाँ मनाओ+ क्योंकि दुनिया में* इंसान के लिए इससे अच्छा और कुछ नहीं कि वह खाए-पीए और खुशी मनाए। सच्चे परमेश्‍वर ने सूरज के नीचे उसे जो ज़िंदगी दी है उसमें खुशियाँ मनाने के साथ-साथ वह कड़ी मेहनत भी करे।+

16 मैंने मन में ठाना था कि मैं बुद्धि हासिल करूँगा और दुनिया में होनेवाले हर काम को देखूँगा।+ इसके लिए मैं दिन-रात जागता रहा।* 17 जब मैंने सच्चे परमेश्‍वर के सब कामों पर गौर किया, तो मैं जान गया कि इंसान दुनिया में* होनेवाले कामों को पूरी तरह नहीं समझ सकता।+ वह चाहे जितनी भी कोशिश करे, इन्हें नहीं जान सकता। वह अपने आपको कितना ही बुद्धिमान बताए, वह इन्हें सही मायने में नहीं समझ सकता।+

9 जब मैंने इन बातों पर सोचा तो मैं इस नतीजे पर पहुँचा कि नेक इंसान और बुद्धिमान इंसान और उन दोनों के काम, सच्चे परमेश्‍वर के हाथ में हैं।+ इंसान बेखबर है कि उससे पहले लोगों में कितना प्यार और कितनी नफरत हुआ करती थी। 2 सब लोगों का एक ही अंजाम होता है,+ फिर चाहे वे नेक हों या दुष्ट,+ अच्छे और पवित्र हों या अपवित्र, बलिदान चढ़ानेवाले हों या बलिदान न चढ़ानेवाले। अच्छे इंसान और पापी इंसान दोनों की एक ही दशा होती है। बिना सोचे-समझे शपथ खानेवाले का और सोच-समझकर शपथ खानेवाले का भी वही हाल होता है। 3 दुनिया में* होनेवाली यह बात बहुत दुख देती है कि सब इंसानों का एक ही अंजाम होता है,+ इसलिए उनके दिल में बुराई भरी रहती है। ज़िंदगी-भर उनके दिल में पागलपन छाया रहता है और फिर वे मर जाते हैं।*

4 जब तक एक इंसान ज़िंदा है, तब तक उसके लिए उम्मीद है क्योंकि एक ज़िंदा कुत्ता मरे हुए शेर से अच्छा है।+ 5 जो ज़िंदा हैं वे जानते हैं कि वे मरेंगे,+ लेकिन मरे हुए कुछ नहीं जानते।+ और न ही उन्हें आगे कोई इनाम* मिलता है क्योंकि उन्हें और याद नहीं किया जाता।+ 6 उनका प्यार, उनकी नफरत, उनकी जलन मिट चुकी है और दुनिया में* जो कुछ किया जाता है उसमें अब उनका कोई हाथ नहीं।+

7 जा! मगन होकर अपना खाना खा और खुशी-खुशी दाख-मदिरा पी+ क्योंकि सच्चा परमेश्‍वर तेरे कामों से खुश है।+ 8 तेरे कपड़े हमेशा सफेद रहें* और अपने सिर पर तेल मलना मत भूल।+ 9 अपनी प्यारी पत्नी के साथ अपनी छोटी-सी* ज़िंदगी का मज़ा ले।+ हाँ, जो छोटी-सी* ज़िंदगी परमेश्‍वर ने तुझे दी है उसमें ऐसा ही कर क्योंकि जीवन में तेरा यही हिस्सा है और सूरज के नीचे तेरी कड़ी मेहनत का यही इनाम है।+ 10 तू जो भी करे उसे जी-जान से कर क्योंकि कब्र* में जहाँ तू जानेवाला है वहाँ न कोई काम है, न सोच-विचार, न ज्ञान, न ही बुद्धि।+

11 मैंने दुनिया में* यह भी देखा है कि न तो सबसे तेज़ दौड़नेवाला दौड़ में हमेशा जीतता है, न वीर योद्धा लड़ाई में हमेशा जीतता है,+ न बुद्धिमान के पास हमेशा खाने को होता है, न अक्लमंद के पास हमेशा दौलत होती है+ और न ही ज्ञानी हमेशा कामयाब होता है।+ क्योंकि मुसीबत की घड़ी किसी पर भी आ सकती है और हादसा किसी के साथ भी हो सकता है। 12 कोई इंसान नहीं जानता कि उसका समय कब आएगा।+ जैसे मछली अचानक जाल में जा फँसती है और परिंदा फंदे में, वैसे ही इंसान पर अचानक विपत्ति* का समय आ पड़ता है और वह उसमें फँस जाता है।

13 मैंने सूरज के नीचे बुद्धि के बारे में एक और बात गौर की और उसने मुझ पर गहरी छाप छोड़ी। मैंने देखा: 14 एक छोटा-सा शहर था जिसमें बहुत कम आदमी रहते थे। एक ताकतवर राजा उस शहर के खिलाफ आया और उसने चारों तरफ से उसकी घेराबंदी की। 15 शहर में एक गरीब मगर बुद्धिमान आदमी था और उसने अपनी बुद्धि से पूरे शहर को बचा लिया। मगर उस गरीब को सब भूल गए।+ 16 तब मैंने अपने आपसे कहा, ‘बुद्धि ताकत से कहीं अच्छी है,+ फिर भी एक गरीब की बुद्धि को तुच्छ समझा जाता है और कोई उसकी बात नहीं मानता।’+

17 मूर्खों पर राज करनेवाले की चीख सुनने से अच्छा है, बुद्धिमान की सुनना जो अपनी बात शांति से कहता है।

18 बुद्धि, युद्ध के हथियारों से अच्छी है। लेकिन अच्छे कामों को बिगाड़ने के लिए एक ही गुनहगार काफी होता है।+

10 जैसे मरी हुई मक्खियाँ खुशबूदार तेल* को सड़ा देती हैं, बदबूदार बना देती हैं, वैसे ही ज़रा-सी बेवकूफी एक इज़्ज़तदार और समझदार इंसान का नाम खराब कर देती है।+

2 बुद्धिमान का दिल उसे सही राह पर ले चलता है, लेकिन मूर्ख का दिल उसे बुरी राह पर ले जाता है।+ 3 मूर्ख चाहे जो भी राह ले, उसमें समझ ही नहीं होती+ और वह सबको जता देता है कि वह मूर्ख है।+

4 अगर कभी राजा का गुस्सा तुझ पर भड़के, तो अपनी जगह मत छोड़ना+ क्योंकि शांत रहने से बड़े-बड़े पाप रोके जा सकते हैं।+

5 दुनिया में* मैंने यह होते देखा जो बड़े दुख की बात है और इस तरह की गलती अधिकार रखनेवाले करते हैं:+ 6 मूर्ख को ऊँची-ऊँची पदवी दी जाती है जबकि काबिल* इंसान छोटे ओहदे पर ही रह जाता है।

7 मैंने देखा है कि नौकर घोड़े पर सवार होते हैं जबकि हाकिम नौकर-चाकरों की तरह पैदल चलते हैं।+

8 जो गड्‌ढा खोदता है वह गड्‌ढे में गिर सकता है+ और जो पत्थर की दीवार तोड़ता है उसे साँप डस सकता है।

9 जो खदान में पत्थर काटता है उसे पत्थर से चोट लग सकती है और जो लकड़ी चीरता है उसे लकड़ी से चोट लग सकती है।*

10 अगर कुल्हाड़ी की धार घिस चुकी है और उसे तेज़ न किया जाए, तो चलानेवाले को बहुत ज़ोर लगाना पड़ेगा। मगर बुद्धि से काम लेने पर कामयाबी मिलती है।

11 साँप को वश में करने से पहले अगर वह सपेरे को काट ले, तो सपेरा* होने का क्या फायदा?

12 बुद्धिमान की बातें मन मोह लेती हैं,+ मगर मूर्ख के होंठ उसे बरबाद कर देते हैं।+ 13 मूर्ख मूर्खता की बातों से शुरूआत करता है+ और पागलपन की बातों से अंत करता है, जिससे मुसीबत खड़ी हो जाती है। 14 फिर भी वह बोलने से बाज़ नहीं आता।+

इंसान नहीं जानता कि आगे क्या होगा और कौन उसे बता सकता है कि उसके जाने के बाद क्या होगा?+

15 मूर्ख की मेहनत उसे थका देती है क्योंकि उसे यह तक नहीं पता कि शहर जाने का रास्ता कौन-सा है।

16 उस देश का क्या होगा जिसका राजा एक लड़का ही है+ और जिसके हाकिम सुबह से दावतें उड़ाते हैं! 17 मगर उस देश का कितना भला होगा जिसका राजा शाही घराने से है। और जिसके हाकिम समय पर खाते-पीते हैं, वह भी धुत्त होने के लिए नहीं बल्कि ताकत पाने के लिए।+

18 बहुत आलस करने से छत धँसती जाती है और हाथ-पर-हाथ धरे बैठे रहने से घर चूने लगता है।+

19 रोटी* चेहरे पर हँसी ले आती है और दाख-मदिरा ज़िंदगी में रस भर देती है।+ मगर पैसा हर ज़रूरत पूरी कर सकता है।+

20 अपने मन में* भी राजा को मत कोसना*+ और न अपने कमरे में जब तू अकेला हो, किसी दौलतमंद को कोसना। क्या पता कोई चिड़िया वह बात उन तक पहुँचा दे या कोई उड़नेवाला जीव उनके सामने तेरी बात दोहरा दे।

11 अपनी रोटी नदी में डाल दे+ और बहुत दिनों बाद वह तुझे दोबारा मिलेगी।+ 2 जो तेरे पास है उसमें से कुछ, सात लोगों में बल्कि आठ लोगों में बाँट दे+ क्योंकि तू नहीं जानता कि धरती पर क्या मुसीबत आनेवाली है।

3 अगर बादल पानी से भरे हों तो वे धरती पर बरसेंगे ही। और पेड़ चाहे उत्तर में गिरे या दक्षिण में, वह जहाँ गिरेगा वहीं पड़ा रहेगा।

4 जो हवा का रुख देखता है वह बीज नहीं बोएगा और जो बादलों को ताकता है वह फसल नहीं काटेगा।+

5 जैसे तू यह नहीं जानता कि माँ के पेट में बच्चे की हड्डियाँ कैसे बनती हैं,*+ वैसे ही तू सच्चे परमेश्‍वर का काम नहीं जानता जो सबकुछ करता है।+

6 सुबह अपना बीज बो और शाम तक अपना हाथ मत रोक+ क्योंकि तू नहीं जानता कौन-सा बीज उगेगा, यहाँ वाला या वहाँ वाला, या फिर दोनों उगेंगे।

7 उजाला अच्छा लगता है और सूरज की रौशनी आँखों को सुख देती है। 8 अगर एक इंसान कई साल जीए, तो उसे हर दिन का मज़ा लेना चाहिए।+ मगर उसे याद रखना चाहिए कि जब विपत्ति के दिन आएँगे, तो वे लंबे समय तक चलेंगे। और आनेवाले वे दिन व्यर्थ हैं।+

9 हे नौजवान, अपनी जवानी में खुशियाँ मना और जवानी के दिनों में तेरा दिल खुश रहे। अपने दिल की सुन और तेरी आँखें तुझे जिधर ले जाएँ, उधर जा। मगर जान ले कि सच्चा परमेश्‍वर तेरे सभी कामों का तुझसे हिसाब लेगा।*+ 10 इसलिए अपने दिल से दुख देनेवाली बातें निकाल फेंक और अपने शरीर से नुकसान पहुँचानेवाली बातें दूर कर। क्योंकि लड़कपन और जवानी दोनों व्यर्थ हैं।+

12 इसलिए अपनी जवानी के दिनों में अपने महान सृष्टिकर्ता को याद रख,+ इससे पहले कि विपत्ति के दिन और वे साल आएँ+ जब तू कहे: “मैं ज़िंदगी से ऊब गया हूँ”; 2 इससे पहले कि सूरज, चाँद और तारों की रौशनी बुझ जाए+ और मूसलाधार बारिश के बाद* बादल फिर घिर आएँ; 3 इससे पहले कि घर के पहरेदार काँपने लगें, हट्टे-कट्टे आदमी सीधे न खड़े रह सकें, चक्की पीसनेवाली औरतें कम हो जाएँ और पीसना बंद कर दें और खिड़की से झाँकनेवाली औरतों के सामने अँधेरा छा जाए;+ 4 इससे पहले कि सड़क की तरफ खुलनेवाले दरवाज़े बंद हो जाएँ, चक्की की आवाज़ धीमी पड़ जाए, चिड़िया के चहकने से नींद खुल जाए, बेटियों के गाने का स्वर मंद पड़ने लगे,+ 5 ऊँचाई से डर लगने लगे और सड़क पर चलने का खतरा सताने लगे। इससे पहले कि बादाम के पेड़ पर फूल खिलें,+ टिड्डा घिसटते हुए चले, कबरा फट जाए* और इंसान अपने सदा के घर की तरफ जाए+ और मातम मनानेवाले सड़कों पर घूमें;+ 6 इससे पहले कि चाँदी का तार टूट जाए, सोने का कटोरा फूट जाए, सोते के पास रखा घड़ा चूर-चूर हो जाए और कुएँ पर लगी चरखी टूट जाए। 7 तब मिट्टी जिस ज़मीन से आयी थी, वापस उसी में मिल जाएगी।+ और जो जीवन-शक्‍ति सच्चे परमेश्‍वर ने दी थी, वह उसके पास लौट जाएगी।+

8 उपदेशक+ कहता है, “व्यर्थ है! सबकुछ व्यर्थ है!”+

9 उपदेशक ने न सिर्फ बुद्धि हासिल की बल्कि वह जो बातें जानता था, उन्हें वह दूसरों को लगातार सिखाता रहा।+ यही नहीं, उसने कई नीतिवचनों को तैयार करने के लिए* गहराई से सोचा और काफी खोजबीन की।+ 10 उपदेशक ने मनभावने शब्द+ ढूँढ़ने और सच्चाई की बातें सही-सही लिखने में बहुत मेहनत की।

11 बुद्धिमानों की बातें अंकुश की तरह हैं+ और उनकी कहावतें मज़बूती से ठोंकी गयी कीलों जैसी हैं। क्योंकि ये एक ही चरवाहे की तरफ से हैं। 12 हे मेरे बेटे, इन बातों के अलावा अगर तुझे कोई और बात बतायी जाए तो खबरदार रहना। क्योंकि किताबों के लिखे जाने का कोई अंत नहीं और इन्हें बहुत ज़्यादा पढ़ना इंसान को थका देता है।+

13 सारी बातें सुनी गयीं और अंत में निचोड़ यह है: सच्चे परमेश्‍वर का डर मान*+ और उसकी आज्ञाओं पर चल,+ यही इंसान का फर्ज़ है।+ 14 क्योंकि सच्चा परमेश्‍वर सब कामों को परखेगा कि वे अच्छे हैं या बुरे, उन कामों को भी जो औरों से छिपे हुए हैं।+

या “सभा बुलानेवाले; लोगों को इकट्ठा करनेवाले।”

शा., “सूरज के नीचे।”

या “सर्दियों में बहनेवाली या किसी और मौसम में बहनेवाली नदियाँ।”

शा., “सूरज के नीचे।”

या “खुशियाँ मनाएँ।”

या “खुशी मनाने।”

या “जंगल।”

या “की खुशी मनाने।”

शा., “सूरज के नीचे।”

शा., “बुद्धिमान के सिर में आँखें रहती हैं।”

शा., “सूरज के नीचे।”

शा., “सूरज के नीचे।”

शा., “सूरज के नीचे।”

शा., “सूरज के नीचे।”

या “जन्म देने का समय।”

या “व्यवस्थित; उचित; सही।”

शा., “को शुरू से लेकर आखिर तक।”

या शायद, “जो बीत चुका है।”

शा., “सूरज के नीचे।”

शा., “सूरज के नीचे।”

शा., “सूरज के नीचे।”

शा., “और अपना माँस खाता है।”

शा., “एक मुट्ठी आराम।”

शा., “दो मुट्ठी कड़ी मेहनत।”

शा., “सूरज के नीचे।”

या “ज़्यादा फायदा।”

या “जल्दी।”

शायद यहाँ उस बुद्धिमान लड़के की बात की गयी है।

शा., “सूरज के नीचे।”

या “ढेर सारे काम।”

या “दूत।”

शा., “सूरज के नीचे।”

शा., “सूरज के नीचे।”

या “याद भी नहीं रहेगा।”

शा., “सूरज के नीचे।”

शा., “उसे उस आदमी से ज़्यादा चैन है।”

शा., “ज़िंदा लोगों के सामने चलना।”

या “अपनी पैरवी नहीं कर सकता।”

या शायद, “चीज़ें।”

शा., “सूरज के नीचे।”

शा., “बुरा मानना मूर्ख के सीने में रहता है।” या शायद, “बुरा मानना मूर्खों की निशानी है।”

यानी जो ज़िंदा हैं।

या “दुख।”

या “व्यर्थ।”

यानी आय. 16 में दी चेतावनी।

यानी आय. 17 में दी चेतावनी।

शा., “तुझे शाप देते।”

या “किसी बात का मतलब।”

या शायद, “उसे नहीं बचा सकती।”

शा., “सूरज के नीचे।”

या “नुकसान।”

या “निराश कर देनेवाली।”

शा., “सूरज के नीचे।”

या शायद, “मैंने देखा, लोग न दिन में सोते हैं न रात में।”

शा., “सूरज के नीचे।”

शा., “सूरज के नीचे।”

शा., “और इसके बाद वे मरे हुओं में जा मिलते हैं।”

या “मज़दूरी।”

शा., “सूरज के नीचे।”

यानी उजले कपड़े, जो मातम की नहीं बल्कि खुशी की निशानी थे।

या “व्यर्थ।”

या “व्यर्थ।”

या “शीओल।” शब्दावली देखें।

शा., “सूरज के नीचे।”

या “मुसीबत।”

शा., “इत्र बनानेवाले के तेल।”

शा., “सूरज के नीचे।”

शा., “अमीर।”

या शायद, “उसे सावधानी बरतनी चाहिए।”

शा., “मंत्र पढ़नेवाला।”

या “खाना।”

या शायद, “अपने बिस्तर पर।”

या “को शाप मत देना।”

इब्रानी में यहाँ बताया गया है कि एक अजन्मे बच्चे की हड्डियों में किस तरह जीवन-शक्‍ति या परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति काम करती है।

या “तेरा न्याय करेगा।”

या शायद, “के साथ।”

या “भूख बढ़ानेवाला फल किसी काम न आए।”

या “को क्रम से बिठाने के लिए।”

या “का गहरा आदर कर।”

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