रोमियों के नाम चिट्ठी
1 मैं पौलुस, जो यीशु मसीह का एक दास हूँ, तुम्हें यह चिट्ठी लिख रहा हूँ। मुझे प्रेषित होने का बुलावा मिला है और परमेश्वर की खुशखबरी सुनाने के लिए ठहराया गया है।+ 2 इस खुशखबरी का वादा परमेश्वर ने पहले से अपने भविष्यवक्ताओं के ज़रिए पवित्र शास्त्र में किया था। 3 यह खुशखबरी उसके बेटे के बारे में है। वह दाविद के वंश*+ से इंसान के रूप में आया। 4 मगर जब उसे पवित्र शक्ति की ताकत से मरे हुओं में से ज़िंदा किया गया,+ तो वह परमेश्वर का बेटा+ ठहरा। वही हमारा प्रभु यीशु मसीह है। 5 उसी के ज़रिए हमने महा-कृपा और प्रेषित होने की ज़िम्मेदारी पायी+ ताकि सब राष्ट्र विश्वास करें+ और उसकी आज्ञा मानें जिससे उसके नाम की महिमा हो। 6 तुम भी इन राष्ट्रों में से हो, जिन्हें यीशु मसीह का होने के लिए बुलाया गया है। 7 मैं पौलुस यह चिट्ठी रोम में रहनेवाले तुम सबको लिख रहा हूँ, जो परमेश्वर के प्यारे हो और पवित्र जन होने के लिए बुलाए गए हो:
हमारे पिता यानी परमेश्वर की तरफ से और प्रभु यीशु मसीह की तरफ से तुम्हें महा-कृपा और शांति मिले।
8 सबसे पहले मैं यीशु मसीह के ज़रिए तुम सबके बारे में अपने परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ, क्योंकि तुम्हारे विश्वास की चर्चा सारी दुनिया में हो रही है। 9 परमेश्वर, जिसकी पवित्र सेवा मैं उसके बेटे की खुशखबरी सुनाते हुए जी-जान से करता हूँ, वही मेरा गवाह है कि कैसे मैं हमेशा अपनी प्रार्थनाओं में तुम्हें याद करता हूँ+ 10 और बिनती करता हूँ कि अगर उसकी इच्छा हो, तो कम-से-कम अब किसी तरह मैं तुम्हारे पास आ सकूँ। 11 क्योंकि मैं तुमसे मिलने के लिए तरस रहा हूँ ताकि तुम्हें परमेश्वर की तरफ से कोई आशीष* दूँ जिससे तुम मज़बूत हो सको। 12 या यूँ कहूँ कि मैं और तुम अपने-अपने विश्वास के ज़रिए एक-दूसरे का हौसला बढ़ा सकें।+
13 मगर भाइयो, मैं नहीं चाहता कि तुम इस बात से अनजान रहो कि मैंने तुम्हारे पास आने की कई बार कोशिश की ताकि जैसे मैंने बाकी गैर-यहूदी राष्ट्रों में अच्छे नतीजे पाए हैं, वैसे ही तुम्हारे बीच भी पाऊँ। मगर अब तक मुझे रोका गया है। 14 मैं यूनानियों और गैर-यूनानियों, बुद्धिमानों और मूर्खों, दोनों का कर्ज़दार हूँ। 15 इसलिए तुम जो वहाँ रोम में हो, मैं तुम्हें भी खुशखबरी सुनाने के लिए बेताब हूँ।+ 16 मुझे खुशखबरी सुनाने में कोई शर्म महसूस नहीं होती।+ दरअसल यह विश्वास करनेवाले हर किसी के उद्धार के लिए परमेश्वर की शक्ति है,+ पहले यहूदियों के लिए,+ फिर यूनानियों के लिए।+ 17 क्योंकि विश्वास करनेवालों पर इस खुशखबरी के ज़रिए परमेश्वर की नेकी ज़ाहिर होती है और इससे उनका विश्वास मज़बूत होता है,+ ठीक जैसा लिखा है, “लेकिन जो नेक है, वह अपने विश्वास से ज़िंदा रहेगा।”+
18 जो भक्तिहीन और बुरे लोग गलत तरीके अपनाकर सच्चाई को दबा रहे हैं,+ उन सब पर स्वर्ग से परमेश्वर का क्रोध+ प्रकट हो रहा है। 19 इसलिए कि परमेश्वर के बारे में जो कुछ जाना जा सकता है वह उनके बीच साफ ज़ाहिर है, क्योंकि परमेश्वर ने उन पर ज़ाहिर कर दिया है।+ 20 उसके अनदेखे गुण दुनिया की रचना के वक्त से साफ दिखायी देते हैं यानी यह कि उसके पास अनंत शक्ति है+ और सचमुच वही परमेश्वर है।+ ये गुण उसकी बनायी चीज़ों को देखकर अच्छी तरह समझे जा सकते हैं,+ इसलिए उनके पास परमेश्वर पर विश्वास न करने का कोई बहाना नहीं बचता। 21 क्योंकि वे परमेश्वर को जानते तो थे, फिर भी उन्होंने उसकी वैसी बड़ाई न की जैसी करनी चाहिए, न ही उसका धन्यवाद किया, बल्कि खोखली और मूर्खता से भरी बातें सोचने लगे और उनका निर्बुद्धि मन अंधकार से भर गया।+ 22 वे दावा करते थे कि वे बुद्धिमान हैं मगर वे मूर्ख निकले 23 और उन्होंने अनश्वर परमेश्वर की महिमा करने के बजाय, नश्वर इंसान और पक्षियों और चार-पैरोंवाले जीवों और रेंगनेवाले जंतुओं की मूरतों की महिमा की।+
24 इसलिए परमेश्वर ने उनके दिल की बुरी इच्छाओं के मुताबिक उन्हें अशुद्ध काम करने के लिए छोड़ दिया ताकि वे अपने ही शरीर का अनादर करें। 25 उन्होंने परमेश्वर की सच्चाई के बदले झूठ पर यकीन किया और सृष्टिकर्ता के बजाय उसकी सृष्टि की भक्ति और पूजा की। उस सृष्टिकर्ता की सदा तारीफ हो। आमीन। 26 परमेश्वर ने उन लोगों को छोड़ दिया कि वे अपनी नीच वासनाओं को पूरा करें+ क्योंकि उनकी औरतें स्वाभाविक यौन-संबंध छोड़कर अस्वाभाविक यौन-संबंध रखने लगीं।+ 27 उसी तरह आदमियों ने भी औरतों के साथ स्वाभाविक यौन-संबंध रखना छोड़ दिया और आदमी आपस में एक-दूसरे के लिए काम-वासना से जलने लगे। आदमियों ने आदमियों के साथ अश्लील काम किए+ और अपनी करतूतों का पूरा-पूरा अंजाम भुगता।*+
28 उन लोगों को परमेश्वर को जानना सही नहीं लगा।* इसलिए परमेश्वर ने भी उन्हें उनकी भ्रष्ट दिमागी हालत पर छोड़ दिया कि वे गलत काम करें।+ 29 उनमें हर तरह का पाप,+ दुष्टता, लालच+ और बुराई कूट-कूटकर भरी है और वे ईर्ष्या,+ हत्या,+ झगड़े और छल+ करते हैं और दूसरों का बुरा चाहते हैं।+ वे चुगली लगानेवाले,* 30 पीठ पीछे बदनाम करनेवाले,+ परमेश्वर से नफरत करनेवाले, गुस्ताख, घमंडी, शेखी मारनेवाले, बुरी बातें गढ़नेवाले, माता-पिता की बात न माननेवाले,+ 31 समझ न रखनेवाले,+ अपने वादे से मुकरनेवाले, लगाव न रखनेवाले और बेरहम हैं। 32 वे परमेश्वर के इस खरे आदेश को अच्छी तरह जानते हैं कि जो लोग ऐसे कामों में लगे रहते हैं वे मौत की सज़ा के लायक हैं।+ फिर भी वे न सिर्फ खुद ऐसे कामों में लगे रहते हैं बल्कि ऐसे काम करनेवालों को सही ठहराते भी हैं।
2 अरे दोष लगानेवाले, तू चाहे जो भी हो,+ अगर तू दूसरे पर दोष लगाता है, तो तू खुद को भी सही नहीं ठहरा सकता। जब तू दूसरे को दोषी ठहराता है, तो खुद भी सज़ा के लायक ठहरता है, क्योंकि तू जिन कामों के लिए दूसरे को दोषी ठहराता है, खुद भी वही काम करता रहता है।+ 2 हम जानते हैं कि परमेश्वर का न्याय सच्चा है और जो इन कामों में लगे रहते हैं, वह उन्हें सज़ा देगा।
3 लेकिन हे इंसान, तू जो ऐसे काम करनेवालों को दोषी ठहराता है मगर खुद इन्हीं कामों में लगा रहता है, क्या तू यह सोच बैठा है कि तू परमेश्वर से सज़ा पाने से बच जाएगा? 4 क्या तू परमेश्वर की कृपा+ और उसके बरदाश्त करने+ और सब्र से पेश आने के गुण को+ तुच्छ समझ रहा है? क्या तू नहीं जानता कि परमेश्वर तुझ पर कृपा करके तुझे पश्चाताप की तरफ ले जाने की कोशिश कर रहा है?+ 5 मगर तू ढीठ हो चुका है और तेरा दिल पश्चाताप करने को तैयार नहीं। इस तरह तू परमेश्वर के क्रोध के उस दिन के लिए क्रोध जमा कर रहा है, जब वह अपने नेक स्तरों के मुताबिक न्याय करेगा।+ 6 वह हरेक को उसके कामों के हिसाब से बदला देगा।+ 7 जो धीरज धरते हुए भले काम में लगे रहते हैं ताकि महिमा, आदर और अनश्वरता पा सकें,+ उन्हें वह हमेशा की ज़िंदगी देगा। 8 मगर जो झगड़ालू हैं और सच्चाई को मानने के बजाय दुष्ट काम करते हैं, उन पर उसका क्रोध और गुस्सा भड़केगा।+ 9 ऐसा हर इंसान जो बुरे कामों में लगा रहता है, उस पर संकट और मुसीबतें आएँगी। पहले यहूदियों पर और फिर गैर-यहूदियों पर भी। 10 मगर हर वह इंसान जो अच्छे काम करता है, परमेश्वर उसे महिमा, आदर और शांति देगा, पहले यहूदियों को+ और फिर गैर-यहूदियों को भी।+ 11 इसलिए कि परमेश्वर भेदभाव नहीं करता।+
12 वे सभी जिन्होंने परमेश्वर का कानून न होते हुए पाप किया, वे बिना कानून के ही मिट जाएँगे।+ मगर जिन्होंने कानून के अधीन होते हुए भी पाप किया, उनका न्याय कानून के हिसाब से होगा।+ 13 क्योंकि परमेश्वर के सामने कानून को बस सुननेवाले नहीं, मगर कानून पर चलनेवाले नेक ठहराए जाएँगे।+ 14 राष्ट्रों के लोगों के पास भले ही परमेश्वर का कानून नहीं है,+ फिर भी जब वे अपने स्वभाव से उसे मानते हैं तो कानून न होते हुए भी वे कानून के मुताबिक चलते हैं। 15 वे दिखाते हैं कि कानून की बातें उनके दिलों में लिखी हुई हैं और उनके साथ-साथ उनका ज़मीर भी गवाही देता है और उनकी खुद की सोच उन्हें या तो कसूरवार ठहराती है या बेकसूर। 16 ऐसा उस दिन होगा जब परमेश्वर मसीह यीशु के ज़रिए इंसानों की छिपी हुई बातों का न्याय करेगा+ और यह न्याय उस खुशखबरी के मुताबिक किया जाएगा जो मैं सुना रहा हूँ।
17 अगर तू यहूदी कहलाता है+ और तुझे परमेश्वर के कानून पर भरोसा है और तू परमेश्वर के साथ अपने रिश्ते पर गर्व करता है 18 और जानता है कि उसकी इच्छा क्या है और तुझे कानून सिखाया गया* है जिस वजह से तू उत्तम-से-उत्तम बातों की समझ रखता है,+ 19 तुझे पक्का यकीन है कि तू अंधों को राह दिखानेवाला और अंधकार में रहनेवालों के लिए रौशनी है, 20 तू मूर्खों को सुधारनेवाला और नादानों को सिखानेवाला गुरु है और कानून में पाए जानेवाले ज्ञान और सच्चाई के बुनियादी ढाँचे की समझ रखता है— 21 तो तू जो दूसरे को सिखाता है, क्या खुद को नहीं सिखाता?+ क्या तू जो प्रचार करता है कि “चोरी न करना,”+ खुद चोरी करता है? 22 तू जो कहता है कि “व्यभिचार* न करना,”+ क्या तू खुद ऐसा करता है? तू जो मूर्तियों से घिन करता है, क्या तू खुद मंदिरों को लूटता है? 23 तू जो कानून पर घमंड करता है, क्या तू खुद कानून के खिलाफ जाकर परमेश्वर का अनादर करता है? 24 क्योंकि लिखा है, “तुम्हारी वजह से राष्ट्रों के बीच परमेश्वर के नाम की बदनामी हो रही है।”+
25 तेरे लिए खतना+ तभी फायदेमंद होगा जब तू कानून को मानता हो।+ लेकिन अगर तू कानून तोड़ता है, तो तेरा खतना, खतना न होने के बराबर है। 26 इसलिए अगर एक इंसान, खतनारहित होते हुए+ भी कानून में बतायी परमेश्वर की माँगें पूरी करता है, तो क्या उसका खतना न होना, खतना होने के बराबर नहीं समझा जाएगा?+ 27 वह इंसान जो शरीर से खतनारहित है वह कानून पर चलकर तुझे दोषी ठहराता है, क्योंकि तेरे पास लिखित कानून है और तेरा खतना हुआ है फिर भी तू कानून पर नहीं चलता। 28 क्योंकि यहूदी वह नहीं जो ऊपर से यहूदी दिखता है,+ न ही खतना वह है जो बाहर शरीर पर होता है।+ 29 मगर असली यहूदी वह है जो अंदर से यहूदी है+ और असली खतना लिखित कानून के हिसाब से होनेवाला खतना नहीं बल्कि पवित्र शक्ति के हिसाब से+ होनेवाला दिल का खतना है।+ ऐसा इंसान लोगों से नहीं बल्कि परमेश्वर से तारीफ पाता है।+
3 तो फिर एक इंसान का यहूदी होना क्यों फायदेमंद है या खतने का क्या फायदा? 2 बहुत फायदे हैं। पहला तो यह कि यहूदियों को ही परमेश्वर के पवित्र वचन दिए गए थे।+ 3 लेकिन अगर यहूदियों में से कुछ ने विश्वास नहीं किया, तो क्या हुआ? क्या उनके विश्वास न करने से यह साबित होता है कि परमेश्वर विश्वासयोग्य नहीं है? 4 हरगिज़ नहीं! परमेश्वर हर हाल में सच्चा साबित होता है,+ चाहे हर इंसान झूठा साबित हो।+ जैसा कि लिखा भी है, “ताकि तू जो बोलता है वह सही साबित हो और तू अपना मुकदमा जीत जाए।”+ 5 कुछ लोगों का कहना है कि हम बुरे काम करके यह दिखा रहे हैं कि परमेश्वर कितना नेक है। अगर उनकी बात सही है तो क्या परमेश्वर उन्हें सज़ा देकर अन्याय नहीं कर रहा? (मैं एक इंसान के नज़रिए से बोल रहा हूँ।) 6 नहीं, वह अन्याय नहीं कर सकता! अगर ऐसा हो तो वह पूरी दुनिया का न्याय कैसे करेगा?+
7 लेकिन अगर मेरे झूठ बोलने से यह साफ दिखता है कि परमेश्वर कितना सच्चा है और उसकी महिमा होती है, तो फिर परमेश्वर मुझे क्यों पापी ठहराता है? 8 फिर तो हम भी क्यों न कहें, “चलो हम बुराई करें कि भलाई निकलकर सामने आए,” जैसा कि कुछ लोग हम पर झूठा इलज़ाम लगाते हैं कि हम यही सिखाते हैं। ऐसे लोग न्याय के हिसाब से ठीक सज़ा पाएँगे।+
9 तो फिर हम क्या कहें? क्या हम यहूदी दूसरों से बढ़कर हैं? हरगिज़ नहीं! क्योंकि हम पहले ही यह साबित कर चुके हैं* कि यहूदी और गैर-यहूदी सभी पाप के अधीन हैं।+ 10 ठीक जैसा लिखा है, “कोई भी इंसान नेक नहीं, एक भी नहीं।+ 11 ऐसा कोई नहीं जो ज़रा भी अंदरूनी समझ रखता हो, ऐसा कोई नहीं जो परमेश्वर की खोज करता हो। 12 सभी इंसान सही राह से हट गए हैं। वे सब-के-सब बेकार हो गए हैं। कोई भी भलाई नहीं करता, एक भी नहीं।”+ 13 “उनका गला एक खुली कब्र है, वे अपनी ज़बान से छलते हैं।”+ “उनके होंठों के पीछे साँपों का ज़हर है।”+ 14 “उनका मुँह दूसरों को कोसनेवाली कड़वी बातों से भरा रहता है।”+ 15 “उनके पैर खून बहाने के लिए फुर्ती करते हैं।”+ 16 “दूसरों को बरबाद करना और दुख देना ही उनका काम है 17 और वे अमन की राह पर चलना जानते ही नहीं।”+ 18 “उनकी आँखों में परमेश्वर का ज़रा भी डर नहीं।”+
19 हम जानते हैं कि कानून की सारी बातें उनसे कही गयी हैं जो कानून के अधीन हैं ताकि हर इंसान का मुँह बंद किया जा सके और सारी दुनिया परमेश्वर से सज़ा पाने के लायक ठहरे।+ 20 क्योंकि कानून में बताए कामों के आधार पर कोई भी इंसान परमेश्वर के सामने नेक नहीं ठहर सकता।+ वह इसलिए कि पाप क्या है इसका सही-सही ज्ञान कानून कराता है।+
21 मगर अब यह ज़ाहिर किया गया है कि कानून को माने बिना एक इंसान परमेश्वर की नज़र में नेक ठहर सकता है,+ जैसा कानून और भविष्यवक्ताओं की किताबें भी गवाही देती हैं।+ 22 हाँ, यीशु मसीह पर विश्वास करने से एक इंसान परमेश्वर की नज़र में नेक ठहर सकता है। विश्वास करनेवाले सभी इंसान नेक ठहर सकते हैं और इसमें कोई भेदभाव नहीं।+ 23 इसलिए कि सबने पाप किया है और वे परमेश्वर के शानदार गुण* दिखाने में नाकाम रहे हैं।+ 24 मगर यह परमेश्वर की महा-कृपा+ है कि वह हमें नेक ठहराता है और यह उसका मुफ्त वरदान है।+ मसीह यीशु ने हमें छुड़ाने के लिए जो फिरौती का दाम दिया है, उसकी बदौलत परमेश्वर हमें नेक ठहराता है।+ 25 परमेश्वर ने मसीह को बलिदान के तौर पर दे दिया+ ताकि मसीह के खून पर विश्वास करने से+ पापों का प्रायश्चित* हो। ऐसा उसने खुद को नेक साबित करने के लिए किया क्योंकि बीते ज़माने में उसने लोगों के पापों को बरदाश्त किया और उन्हें माफ करता रहा। 26 यह परमेश्वर ने इसलिए भी किया ताकि हमारे ज़माने में भी खुद को नेक साबित करे+ ताकि जो इंसान यीशु पर विश्वास करता है उसे नेक ठहराते वक्त वह खुद भी नेक साबित हो।+
27 तो क्या घमंड करने की कोई वजह रही? नहीं, कोई वजह नहीं रही। किस कानून पर घमंड करें? उस कानून पर जो कामों को अहमियत देता है?+ बिलकुल नहीं, बल्कि विश्वास के कानून पर। 28 इसलिए हम इस नतीजे पर पहुँचते हैं कि एक इंसान कानून में बताए कामों से नहीं, बल्कि विश्वास से नेक ठहराया जाता है।+ 29 क्या वह सिर्फ यहूदियों का परमेश्वर है?+ क्या वह दूसरे राष्ट्रों के लोगों का भी परमेश्वर नहीं?+ बेशक, वह उनका भी परमेश्वर है।+ 30 परमेश्वर एक है+ इसलिए वही खतना किए गए लोगों को उनके विश्वास की वजह से नेक ठहराता है+ और जो खतनारहित हैं, उन्हें उनके विश्वास के ज़रिए नेक ठहराता है।+ 31 तो क्या हम अपने विश्वास से कानून को बेकार साबित करते हैं? बिलकुल नहीं! बल्कि हम कानून को सही ठहराते हैं।+
4 जब ऐसा है तो हम क्या कहें, हमारे पुरखे अब्राहम ने क्या पाया था? 2 अगर अब्राहम को उसके कामों की बिनाह पर नेक ठहराया जाता, तो उसके पास शेखी मारने की वजह होती, मगर परमेश्वर के सामने नहीं। 3 शास्त्र क्या कहता है? “अब्राहम ने यहोवा* पर विश्वास किया और इस वजह से उसे नेक समझा गया।”+ 4 जो आदमी काम करता है उसे मज़दूरी देना उस पर महा-कृपा करना नहीं समझा जाता, बल्कि उसका हक* माना जाता है। 5 दूसरी तरफ, जो इंसान अपने कामों पर भरोसा करने के बजाय उस परमेश्वर पर विश्वास करता है जो पापी को नेक ठहराता है, उस इंसान को उसके विश्वास की वजह से नेक समझा जाता है।+ 6 दाविद ने भी ऐसे इंसान को सुखी कहा जिसने कानून को पूरी तरह नहीं माना, फिर भी परमेश्वर ने उसे नेक समझा। उसने कहा, 7 “सुखी हैं वे जिनके बुरे काम माफ किए गए हैं और जिनके पाप ढाँप दिए* गए हैं। 8 सुखी है वह इंसान जिसके पाप का यहोवा* हरगिज़ लेखा नहीं लेगा।”+
9 तो क्या यह सुख सिर्फ उन लोगों को मिलता है जिनका खतना हुआ है? क्या यह उन्हें भी नहीं मिलता जो खतनारहित हैं?+ क्योंकि हम कहते हैं, “अब्राहम के विश्वास की वजह से उसे नेक समझा गया।”+ 10 उसे कब नेक समझा गया था? खतना होने के बाद या खतना होने से पहले? जब उसका खतना हुआ भी नहीं था, तब उसे नेक समझा गया था। 11 बिना खतने की दशा में उसने जो विश्वास किया, उसी की वजह से परमेश्वर ने उसे नेक समझा। और उसके नेक होने की निशानी* के तौर पर उसे खतना करवाने के लिए कहा+ ताकि वह उन सबका पिता बने जो खतनारहित होते हुए भी विश्वास करते हैं+ कि वे नेक समझे जाएँ। 12 साथ ही, वह उनका भी पिता बने जिनका खतना हुआ है यानी उनका जिन्होंने न सिर्फ खतना करवाया है बल्कि जो हमारे पिता अब्राहम के नक्शे-कदम पर सीधी चाल चलते हैं+ और वैसा ही विश्वास करते हैं जैसा उसने बिना खतने की दशा में किया था।
13 अब्राहम और उसके वंश* से वादा किया गया था कि वे दुनिया के वारिस होंगे। उनसे यह वादा कानून मानने की वजह से नहीं+ बल्कि विश्वास करके नेक ठहरने की वजह से किया गया था।+ 14 इसलिए कि अगर सिर्फ कानून पर चलनेवाले वारिस होते, तो विश्वास करना बेमाने हो जाता और वादा बेकार जाता। 15 सच तो यह है कि कानून क्रोध पैदा करता है,+ मगर जहाँ कानून नहीं है वहाँ उसे तोड़ा भी नहीं जाता।+
16 इसलिए अब्राहम से वारिस होने का यह वादा उसके विश्वास की वजह से किया गया था+ और इस वादे से परमेश्वर की महा-कृपा+ ज़ाहिर हुई। और यह पक्का हुआ कि यह वादा उसके सभी वंशजों* के लिए है, यानी न सिर्फ उनके लिए जो कानून पर चलते हैं बल्कि उनके लिए भी है जिनमें अब्राहम जैसा विश्वास है जो हम सबका पिता है।+ 17 (यह ठीक वैसा ही हुआ जैसा लिखा है, “मैंने तुझे बहुत-सी जातियों का पिता ठहराया है।”)+ यह परमेश्वर के सामने हुआ जिस पर उसे विश्वास था और जो मरे हुओं को ज़िंदा करता है और जो बातें अब तक पूरी नहीं हुई हैं उनके बारे में ऐसे बात करता है मानो वे पूरी हो चुकी हों।* 18 हालाँकि अब्राहम के लिए सारी आशाएँ खत्म हो चुकी थीं, फिर भी उसने आशा रखते हुए विश्वास किया कि वह बहुत-सी जातियों का पिता बनेगा, ठीक जैसे उससे वादा किया गया था: “तेरे वंश* की गिनती भी इसी तरह बेशुमार होगी।”+ 19 हालाँकि अब्राहम ने अपने शरीर की बेजान हालत पर गौर किया (क्योंकि वह करीब 100 साल का हो चुका था)+ और वह अपनी पत्नी सारा के गर्भ की बेजान हालत* भी जानता था, फिर भी उसका विश्वास कमज़ोर नहीं हुआ।+ 20 परमेश्वर के वादे की वजह से वह विश्वास की कमी से नहीं डगमगाया, बल्कि अपने विश्वास की वजह से शक्तिशाली साबित हुआ और उसने परमेश्वर की महिमा की। 21 उसे पूरा यकीन था कि जिस परमेश्वर ने वादा किया है वह उसे पूरा करने के काबिल भी है।+ 22 तभी, “इस वजह से उसे नेक समझा गया।”+
23 मगर शास्त्र में लिखी यह बात कि ‘उसे समझा गया,’ न सिर्फ उसके बारे में है+ 24 बल्कि हमारे बारे में भी है। हमें भी नेक समझा जाएगा क्योंकि हम उस परमेश्वर पर विश्वास करते हैं जिसने हमारे प्रभु यीशु को मरे हुओं में से ज़िंदा किया।+ 25 यीशु को हमारे गुनाहों की खातिर मौत के हवाले किया गया+ और हमें नेक ठहराने के लिए ज़िंदा किया गया।+
5 इसलिए जब हमें विश्वास की वजह से नेक ठहराया गया है,+ तो आओ हम अपने प्रभु यीशु मसीह के ज़रिए परमेश्वर के साथ शांति के रिश्ते में बने रहें।*+ 2 उसी के ज़रिए हमने विश्वास की वजह से परमेश्वर के सामने जाने की इजाज़त पायी है ताकि हम उसकी महा-कृपा पा सकें जो अभी हम पर है।+ और आओ हम परमेश्वर से महिमा पाने की आशा की वजह से खुशी मनाएँ।* 3 यही नहीं, हम दुख-तकलीफें झेलते हुए भी खुशी मनाएँ*+ क्योंकि हम जानते हैं कि दुख-तकलीफों से धीरज पैदा होता है+ 4 और धीरज धरने से परमेश्वर की मंज़ूरी हम पर बनी रहती है+ और इस वजह से हमें आशा मिलती है।+ 5 यह आशा हमें निराश नहीं होने देती+ क्योंकि परमेश्वर का प्यार हमारे दिलों में उस पवित्र शक्ति के ज़रिए भरा गया है, जो हमें दी गयी थी।+
6 वाकई, जब हम कमज़ोर ही थे+ तब मसीह, तय किए गए वक्त पर भक्तिहीन इंसानों के लिए मरा। 7 क्योंकि शायद ही कोई किसी धर्मी इंसान के लिए अपनी जान दे। हाँ, हो सकता है कि एक अच्छे इंसान के लिए कोई अपनी जान देने की हिम्मत करे। 8 मगर परमेश्वर ने हमारे लिए अपने प्यार का सबूत इस तरह दिया कि जब हम पापी ही थे, तब मसीह हमारे लिए मरा।+ 9 तो अब जब हम उसके खून से नेक ठहराए जा चुके हैं,+ तो हम उसके ज़रिए परमेश्वर के क्रोध से भी क्यों न बचेंगे?+ 10 जब हम परमेश्वर के दुश्मन थे, तब अगर उसके बेटे की मौत की बिनाह पर परमेश्वर के साथ हमारी सुलह हुई,+ तो अब जब हमारी सुलह हो चुकी है, तो हम उसके जीवन के ज़रिए उद्धार पाने का और भी कितना यकीन रख सकते हैं! 11 इतना ही नहीं, हम परमेश्वर के साथ अपने रिश्ते की वजह से खुशी मनाते हैं जो हमारे प्रभु यीशु मसीह के ज़रिए कायम हुआ है, जिसके ज़रिए परमेश्वर के साथ हमारी सुलह हुई है।+
12 इसलिए एक आदमी से पाप दुनिया में आया और पाप से मौत आयी+ और इस तरह मौत सब इंसानों में फैल गयी क्योंकि सबने पाप किया।+ 13 कानून दिए जाने से पहले पाप दुनिया में था, मगर जब कानून नहीं होता तो किसी को पाप का दोषी नहीं ठहराया जा सकता।+ 14 फिर भी मौत ने आदम से लेकर मूसा के समय तक राजा बनकर राज किया, उन पर भी जिन्होंने आदम की तरह कानून तोड़कर पाप नहीं किया था। आदम बिलकुल उसी के जैसा था जो आनेवाला था।+
15 मगर परमेश्वर का वरदान गुनाह जैसा नहीं। एक आदमी के गुनाह की वजह से बहुत लोग मर गए, मगर परमेश्वर की महा-कृपा और उसके मुफ्त वरदान से बहुतों को बेहिसाब फायदे मिले।+ यह मुफ्त वरदान, महा-कृपा के साथ एक आदमी यीशु मसीह के ज़रिए दिया गया।+ 16 मुफ्त वरदान से मिलनेवाले फायदे, एक आदमी के पाप+ के अंजामों जैसे नहीं हैं। इसलिए कि एक गुनाह की वजह से यह सज़ा मिली कि इंसान दोषी ठहरे,+ मगर बहुत-से गुनाहों के बाद जो वरदान मिला उसकी वजह से इंसानों को नेक ठहराया जाता है।+ 17 जब एक आदमी के गुनाह की वजह से मौत ने राजा बनकर राज किया है,+ तो जो लोग महा-कृपा और नेक ठहरने का मुफ्त वरदान बहुतायत में पाते हैं,+ वे एक व्यक्ति यानी यीशु मसीह के ज़रिए ज़रूर जीवन पाएँगे+ और राजा बनकर राज करेंगे।+
18 इसलिए जैसे एक गुनाह का अंजाम यह हुआ कि सब किस्म के लोग सज़ा के लायक ठहरे,+ वैसे ही एक नेक काम का नतीजा यह हुआ कि सब किस्म के लोग+ नेक ठहराए जाते हैं ताकि जीवन पाएँ।+ 19 और जैसे एक आदमी के आज्ञा तोड़ने से बहुत लोग पापी ठहरे,+ उसी तरह एक आदमी के आज्ञा मानने से बहुत लोग नेक ठहरेंगे।+ 20 फिर कानून आया जिसने गुनाहों को और भी बढ़कर ज़ाहिर किया।+ मगर जहाँ पाप बढ़ा, वहाँ महा-कृपा और भी बहुतायत में हुई। 21 किस लिए? ताकि जैसे पाप ने मौत के साथ राजा बनकर राज किया,+ वैसे ही महा-कृपा भी नेकी के ज़रिए राजा बनकर राज करे जिससे हमारे प्रभु यीशु मसीह के ज़रिए हमेशा की ज़िंदगी मिले।+
6 तो अब हम क्या कहें? क्या हम पाप करते रहें ताकि और भी ज़्यादा महा-कृपा पाएँ? 2 हरगिज़ नहीं! जब हम पाप के लिए मर चुके,+ तो फिर आगे हम उसमें कैसे जीते रह सकते हैं?+ 3 या क्या तुम नहीं जानते कि हम सभी ने, जिन्होंने मसीह यीशु में बपतिस्मा पाया है,+ उसकी मौत में भी बपतिस्मा पाया है?+ 4 इसलिए उसकी मौत में बपतिस्मा पाने से हम भी उसके साथ दफन किए गए+ ताकि जैसे पिता की महिमा से भरी शक्ति से मसीह को मरे हुओं में से ज़िंदा किया गया, वैसे ही हम भी एक नया जीवन जीएँ।+ 5 जब हम उसके जैसी मौत मरकर उसके साथ एक हुए हैं,+ तो उसकी तरह ज़िंदा होकर भी उसके साथ एक होंगे।+ 6 क्योंकि हम जानते हैं कि हमारी पुरानी शख्सियत उसके साथ काठ पर ठोंक दी गयी+ ताकि हमारे पापी शरीर का हम पर अधिकार खत्म हो जाए+ और अब से हम पाप के दास न रहें।+ 7 इसलिए कि जो मर चुका है, वह अपने पाप से छूट* गया है।
8 यही नहीं, अगर हम मसीह के साथ मर चुके हैं, तो हमें यकीन है कि हम उसके साथ जीएँगे भी। 9 इसलिए कि हम जानते हैं कि मसीह, जिसे मरे हुओं में से ज़िंदा किया गया है दोबारा नहीं मरेगा,+ अब मौत का उस पर कोई अधिकार नहीं। 10 इसलिए कि मसीह जो मौत मरा, वह पाप को मिटाने के लिए था और वह एक ही बार मरा+ ताकि दोबारा न मरना पड़े। लेकिन वह जो जीवन जीता है वह परमेश्वर के लिए जीता है। 11 इसी तरह तुम भी यह समझो कि तुम पाप के लिए तो मर गए हो, मगर मसीह यीशु के ज़रिए परमेश्वर के लिए जी रहे हो।+
12 इसलिए तुम पाप को अपने नश्वर शरीर में राजा बनकर राज मत करने दो+ और शरीर की इच्छाओं के गुलाम बनकर उसकी मत मानो। 13 न ही अपने शरीर* को बुराई के हथियार बनने के लिए पाप के हवाले करते रहो। इसके बजाय मरे हुओं में से ज़िंदा किए गए लोगों के नाते खुद को परमेश्वर को सौंप दो, साथ ही अपने शरीर* को नेकी के हथियार बनने के लिए परमेश्वर के हवाले कर दो।+ 14 अब पाप तुम्हारा मालिक न हो क्योंकि तुम कानून के अधीन नहीं+ बल्कि महा-कृपा के अधीन हो।+
15 तो अब हम क्या कहें? क्या हम इस वजह से पाप करें कि हम कानून के अधीन नहीं बल्कि महा-कृपा के अधीन हैं?+ हरगिज़ नहीं! 16 क्या तुम नहीं जानते कि अगर तुम किसी की आज्ञा मानने के लिए खुद को गुलामों की तरह उसके हवाले करते हो, तो उसी के गुलाम बन जाते हो?+ फिर चाहे पाप के गुलाम+ जिससे मौत मिलती है,+ या आज्ञा मानने के गुलाम जिससे नेक ठहराया जाता है। 17 मगर परमेश्वर का धन्यवाद हो कि तुम जो कभी पाप के गुलाम थे, अब दिल से उस शिक्षा के आज्ञाकारी बने जिसके साँचे के हवाले तुम्हें किया गया था। 18 हाँ, तुम्हें पाप से आज़ाद किया गया था,+ इसलिए तुम नेकी के दास बने।+ 19 मैं आसान शब्दों में तुमसे बात कर रहा हूँ, क्योंकि तुम्हारे अंदर इंसानी कमज़ोरी है। जैसे एक वक्त पर तुमने अपने अंगों को अशुद्ध और दुष्ट कामों का गुलाम बना लिया था ताकि दुष्टता करो, उसी तरह अब तुम अपने अंगों को नेकी के दास बना दो ताकि तुम पवित्र काम करो।+ 20 क्योंकि जब तुम पाप के गुलाम थे, तो नेकी के बंधनों से आज़ाद थे।
21 तो फिर उस वक्त तुम कैसे फल पैदा करते थे? तुम ऐसे काम करते थे जिनके बारे में सोचकर आज तुम्हें शर्म आती है। ऐसे कामों से अंत में मौत मिलती है।+ 22 मगर अब तुम पाप से आज़ाद किए गए हो और परमेश्वर के दास बन गए हो। इसलिए तुम पवित्रता के फल पैदा कर रहे हो+ जिससे अंत में हमेशा की ज़िंदगी मिलती है।+ 23 क्योंकि पाप जो मज़दूरी देता है वह मौत है,+ मगर परमेश्वर जो तोहफा देता है वह हमारे प्रभु मसीह यीशु के ज़रिए हमेशा की ज़िंदगी है।+
7 भाइयो, क्या ऐसा हो सकता है कि तुम्हें यह नहीं मालूम हो (मैं उनसे बात कर रहा हूँ जो कानून जानते हैं) कि एक इंसान पर तब तक कानून का अधिकार रहता है, जब तक वह ज़िंदा है? 2 मिसाल के लिए, एक शादीशुदा औरत अपने पति के जीते-जी कानूनी तौर पर उससे बँधी होती है, लेकिन अगर उसका पति मर जाए, तो वह उसके कानून से छूट जाती है।+ 3 अगर वह पति के जीते-जी किसी और आदमी की हो जाए, तो यह कहा जाएगा कि उसने व्यभिचार* किया है।+ लेकिन अगर उसका पति मर जाए, तो वह उसके कानून से छूट जाती है। इसके बाद अगर वह किसी और आदमी की हो जाए, तो यह नहीं कहा जाएगा कि उसने व्यभिचार* किया है।+
4 उसी तरह मेरे भाइयो, तुम मसीह के शरीर के ज़रिए कानून के लिए मर चुके हो ताकि तुम मसीह के हो जाओ+ जिसे मरे हुओं में से ज़िंदा किया गया था।+ यह इसलिए हुआ है ताकि हम परमेश्वर के लिए फल पैदा करें।+ 5 क्योंकि जब हम शरीर की इच्छाओं के मुताबिक जीते थे, तब कानून ने हमें अपनी पाप-भरी वासनाओं का एहसास दिलाया, जो हमारे शरीर* में काम कर रही थीं कि हम ऐसे फल पैदा करें जिनका अंजाम मौत है।+ 6 मगर अब हम इस कानून से आज़ाद हो चुके हैं+ क्योंकि हम जिसके बंधन में थे उसके लिए मर चुके हैं ताकि हम लिखित कानून से पुराने मायने में नहीं+ बल्कि पवित्र शक्ति से एक नए मायने में दास बनें।+
7 तो फिर हम क्या कहें? क्या कानून में खोट है?* हरगिज़ नहीं! दरअसल अगर कानून न होता, तो मैं पाप के बारे में कभी नहीं जान पाता।+ मिसाल के लिए, अगर कानून यह न कहता, “तू लालच न करना,” तो लालच क्या है यह मैं नहीं जान पाता।+ 8 मगर पाप ने मौका मिलते ही कानून का फायदा उठाकर मेरे अंदर हर तरह का लालच पैदा किया। क्योंकि बिना कानून के पाप मरा हुआ था।+ 9 दरअसल एक वक्त ऐसा था जब मैं कानून के बिना ज़िंदा था। मगर जब कानून आया तो पाप फिर से ज़िंदा हो गया और मैं मर गया।+ 10 और जो आज्ञा जीवन के लिए थी,+ मैंने पाया कि वह मेरे लिए मौत की वजह बनी। 11 क्योंकि पाप ने मौका मिलते ही कानून का फायदा उठाकर मुझे बहकाया और इसके ज़रिए मुझे मार डाला। 12 कानून अपने आप में पवित्र है और आज्ञा पवित्र, नेक और अच्छी है।+
13 तो फिर जो अच्छा है, क्या वह मेरी मौत की वजह बना? हरगिज़ नहीं! बल्कि पाप मेरी मौत की वजह बना ताकि जो अच्छा है उससे ज़ाहिर हो कि पाप ही मेरे अंदर काम करते हुए मुझे मौत की तरफ ले जा रहा है+ और कानून की आज्ञा के ज़रिए पाप की बुराई और भी बढ़कर ज़ाहिर हो।+ 14 हम जानते हैं कि कानून परमेश्वर की तरफ से है, मगर मैं पापी* हूँ और पाप के हाथों बिका हुआ हूँ।+ 15 मैं जो करता हूँ, मैं समझ नहीं पाता कि क्यों ऐसा करता हूँ। क्योंकि मैं जो करना चाहता हूँ वह नहीं करता, मगर जिस काम से मुझे नफरत है वही करता हूँ। 16 लेकिन अगर मैं वही करता हूँ जो मैं नहीं करना चाहता, तो मैं मानता हूँ कि कानून बढ़िया है। 17 इसलिए मैं जो कर रहा हूँ वह मैं नहीं, बल्कि पाप कर रहा है जो मेरे अंदर बसा हुआ है।+ 18 मैं जानता हूँ कि मुझमें यानी मेरे शरीर में ज़रा भी अच्छाई नहीं बसी है, क्योंकि भला काम करने की इच्छा तो मेरे अंदर है मगर भला काम मुझसे होता नहीं।+ 19 क्योंकि जो अच्छा काम मैं करना चाहता हूँ वह नहीं करता, मगर जो बुरा काम नहीं करना चाहता, वही करता रहता हूँ। 20 तो अगर मैं वही करता हूँ जो नहीं करना चाहता, तो इसे करनेवाला मैं नहीं बल्कि पाप है जो मेरे अंदर बसा हुआ है।
21 तो फिर मैं अपने मामले में यह नियम पाता हूँ: जब मैं अच्छा करना चाहता हूँ, तो अपने अंदर बुराई को ही पाता हूँ।+ 22 मेरे अंदर का इंसान वाकई परमेश्वर के कानून से खुशी पाता है+ 23 मगर मैं अपने शरीर* में दूसरे कानून को काम करता हुआ पाता हूँ, जो मेरे सोच-विचार पर राज करनेवाले कानून से लड़ता है+ और मुझे पाप के उस कानून का गुलाम बना लेता है+ जो मेरे शरीर* में है। 24 मैं कैसा लाचार इंसान हूँ! मुझे इस शरीर से, जो मर रहा है, कौन छुड़ाएगा? 25 हमारे प्रभु, यीशु मसीह के ज़रिए परमेश्वर का धन्यवाद हो! मैं अपने सोच-विचार में तो परमेश्वर के कानून का दास हूँ, मगर मेरा शरीर पाप के कानून का गुलाम है।+
8 इसलिए जो मसीह यीशु के साथ एकता में हैं, उन्हें दोषी नहीं ठहराया जाता। 2 क्योंकि पवित्र शक्ति के कानून ने, जो मसीह यीशु में जीवन देता है, तुम्हें पाप और मौत के कानून से आज़ाद कर दिया है।+ 3 पापी इंसानों की वजह से कानून कमज़ोर पड़ गया,+ इसलिए कानून जो काम नहीं कर पाया+ वह परमेश्वर ने किया। परमेश्वर ने अपने बेटे को इंसान के रूप+ में* भेजा+ ताकि वह पाप को मिटाए और इस तरह उसने शरीर में पाप को दोषी ठहराया 4 ताकि हम, जो शरीर के मुताबिक नहीं बल्कि पवित्र शक्ति के मुताबिक चलते हैं,+ कानून की उचित माँगें पूरी कर सकें।+ 5 जो शरीर के मुताबिक जीते हैं वे शरीर की बातों पर ध्यान लगाते हैं,+ मगर जो पवित्र शक्ति के मुताबिक जीते हैं, वे पवित्र शक्ति की बातों पर ध्यान लगाते हैं।+ 6 इसलिए कि शरीर की बातों पर ध्यान लगाने का मतलब मौत है,+ मगर पवित्र शक्ति की बातों पर ध्यान लगाने का मतलब जीवन और शांति है।+ 7 इसलिए कि शरीर की बातों पर ध्यान लगाना, परमेश्वर से दुश्मनी रखना है+ क्योंकि शरीर न तो परमेश्वर के कानून के अधीन है, न हो सकता है। 8 इसलिए जो शरीर के मुताबिक चलते हैं, वे परमेश्वर को खुश नहीं कर सकते।
9 लेकिन अगर परमेश्वर की पवित्र शक्ति सचमुच तुममें वास करती है तो तुम शरीर के मुताबिक नहीं, बल्कि पवित्र शक्ति के मुताबिक चलते हो।+ लेकिन अगर किसी में मसीह का स्वभाव नहीं है, तो वह मसीह का नहीं है। 10 लेकिन अगर मसीह तुम्हारे साथ एकता में है,+ तो चाहे तुम्हारा शरीर पाप की वजह से मुरदा है, फिर भी पवित्र शक्ति नेकी की वजह से तुम्हें जीवन देती है। 11 जिस परमेश्वर ने यीशु को मरे हुओं में से ज़िंदा किया, उसकी पवित्र शक्ति अगर तुममें वास करती है, तो वह परमेश्वर जिसने मसीह यीशु को ज़िंदा किया,+ तुम्हारे नश्वर शरीर को भी अपनी उस पवित्र शक्ति से ज़िंदा करेगा+ जो तुममें रहती है।
12 इसलिए भाइयो, हम शरीर के मुताबिक जीने और उसके काम करने के लिए मजबूर नहीं हैं।+ 13 अगर तुम शरीर के मुताबिक जीते हो तो तुम्हारा मरना तय है, लेकिन अगर तुम पवित्र शक्ति से शरीर के कामों को मार देते हो,+ तो तुम ज़िंदा रहोगे।+ 14 इसलिए कि जितने परमेश्वर की पवित्र शक्ति के मार्गदर्शन में चलते हैं, वे सचमुच परमेश्वर के बेटे हैं।+ 15 परमेश्वर की पवित्र शक्ति न तो हमें गुलाम बनाती है, न ही हमारे अंदर डर पैदा करती है, बल्कि इसके ज़रिए हम बेटों के नाते गोद लिए जाते हैं और यही पवित्र शक्ति हमें “अब्बा,* हे पिता!” पुकारने के लिए उभारती है।+ 16 परमेश्वर की पवित्र शक्ति हमारे अंदर के एहसास के साथ मिलकर गवाही देती है+ कि हम परमेश्वर के बच्चे हैं।+ 17 तो अगर हम उसके बच्चे हैं, तो वारिस भी हैं। हाँ, परमेश्वर के वारिस और मसीह के संगी वारिस हैं,+ बशर्ते हम उसके साथ दुख झेलें+ ताकि हम उसके साथ महिमा भी पाएँ।+
18 मैं समझता हूँ कि आज के दौर में हम जो दुख झेल रहे हैं वे उस महिमा के आगे कुछ भी नहीं जो हमारे मामले में प्रकट होनेवाली है।+ 19 सृष्टि, परमेश्वर के बेटों के ज़ाहिर होने का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार कर रही है।+ 20 इसलिए कि सृष्टि व्यर्थता के अधीन की गयी,+ मगर अपनी मरज़ी से नहीं बल्कि इसे अधीन करनेवाले ने आशा के आधार पर इसे अधीन किया। 21 इस आशा के आधार पर कि सृष्टि भी भ्रष्टता की गुलामी से आज़ाद होकर परमेश्वर के बच्चे होने की शानदार आज़ादी पाएगी।+ 22 हम जानते हैं कि सारी सृष्टि अब तक एक-साथ कराहती और दर्द से तड़प रही है। 23 यही नहीं, हम भी जिन्हें पहला फल यानी पवित्र शक्ति मिली है, अपने दिलों में कराहते हैं।+ इस दौरान हम बड़ी बेचैनी से इंतज़ार कर रहे हैं कि परमेश्वर हमें अपने बेटों के नाते गोद ले+ और फिरौती के ज़रिए हमें अपने शरीर से छुटकारा दिलाए। 24 जब हमें छुड़ाया गया तब हमें यह आशा मिली। मगर जिस चीज़ की आशा की जाती है, जब वह एक बार दिख जाती है तो वह आशा नहीं रहती, क्योंकि इंसान जिसे देख लेता है क्या फिर उसकी आशा रखता है? 25 लेकिन अगर हम उसकी आशा रखते हैं+ जिसे हमने देखा नहीं,+ तो हम धीरज धरते हुए बेसब्री से उसका इंतज़ार करते हैं।+
26 इसके अलावा, परमेश्वर की पवित्र शक्ति भी हमारी कमज़ोरी में हमारी मदद करती है।+ क्योंकि समस्या यह है कि जब हमें प्रार्थना करनी होती है, तब हमें समझ नहीं आता कि हम प्रार्थना में क्या कहें। मगर पवित्र शक्ति खुद हमारी दबी हुई* आहों के साथ हमारे लिए बिनती करती है। 27 और दिलों को जाँचनेवाला जानता है+ कि पवित्र शक्ति क्या कहना चाहती है, क्योंकि यह परमेश्वर की मरज़ी के मुताबिक पवित्र जनों की खातिर गिड़गिड़ाकर बिनती करती है।
28 हम जानते हैं कि परमेश्वर अपने सब कामों में इस तरह तालमेल बिठाता है कि जो उससे प्यार करते हैं और उसके मकसद के मुताबिक बुलाए गए हैं, उनका भला हो।+ 29 क्योंकि जिन पर उसने सबसे पहले ध्यान दिया, उनके लिए पहले से यह भी तय किया कि वे ऐसे ढाले जाएँ कि बिलकुल उसके बेटे जैसे हों+ और उसका बेटा बहुत-से भाइयों में+ पहलौठा+ ठहरे। 30 यही नहीं, जिन्हें उसने पहले से ठहराया+ ये वे हैं जिन्हें उसने बुलाया है।+ और जिन्हें उसने बुलाया ये वे हैं, जिन्हें उसने नेक ठहराया है।+ और जिन्हें उसने नेक ठहराया ये वे हैं जिन्हें उसने महिमा भी दी।+
31 तो फिर इन बातों के बारे में हम क्या कहें? अगर परमेश्वर हमारी तरफ है, तो कौन हमारे खिलाफ होगा?+ 32 जब उसने हमारे लिए अपना बेटा तक दे दिया और उसे मौत के हवाले कर दिया,+ तो वह और उसका बेटा हम पर कृपा करके हमें बाकी सारी चीज़ें भी क्यों नहीं देंगे? 33 परमेश्वर के चुने हुओं पर कौन इलज़ाम लगा सकता है?+ उन्हें नेक ठहरानेवाला तो परमेश्वर है।+ 34 कौन उन्हें सज़ा के लायक ठहरा सकता है? कोई नहीं। क्योंकि मसीह यीशु ने अपनी जान दी, यही नहीं, उसे मरे हुओं में से ज़िंदा किया गया, वह परमेश्वर के दाएँ हाथ बैठा है+ और वही हमारी खातिर बिनती भी करता है।+
35 कौन हमें मसीह के प्यार से अलग कर सकता है?+ क्या संकट या दुख या ज़ुल्म या भूख या नंगापन या खतरा या तलवार?+ 36 ठीक जैसा लिखा है, “तेरी खातिर हम दिन-भर मौत का सामना करते हैं, हमारी हालत उन भेड़ों जैसी है जिन्हें हलाल किया जाएगा।”+ 37 इसके बजाय, जिसने हमसे प्यार किया, हम उसकी मदद से इन सारी मुसीबतों में शानदार जीत हासिल करते हैं।+ 38 क्योंकि मुझे यकीन है कि न तो मौत, न ज़िंदगी, न स्वर्गदूत, न सरकारें, न आज की चीज़ें, न आनेवाली चीज़ें, न कोई ताकत,+ 39 न ऊँचाई, न गहराई, न ही कोई और सृष्टि हमें परमेश्वर के उस प्यार से अलग कर सकेगी जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में है।
9 मैं मसीह में सच कहता हूँ, मैं झूठ नहीं बोल रहा जैसे मेरा ज़मीर भी मेरे साथ पवित्र शक्ति में गवाही देता है 2 कि मुझे गहरा दुख है और मेरे दिल में ऐसा दर्द उठता है जो थमने का नाम नहीं लेता। 3 काश! अपने यहूदी भाइयों के बदले, जिनके साथ मेरा खून का रिश्ता है, मैं ऐसा शापित जन ठहरता जो मसीह से दूर हो गया है। 4 ये इसराएली हैं, जिन्हें बेटों के नाते गोद लिया गया था।+ उन्हीं को महिमा दी गयी थी, उनके साथ करार किए गए थे+ और उन्हें कानून+ और पवित्र सेवा करने का सम्मान दिया गया था+ और उन्हीं से वादे किए गए थे।+ 5 हमारे पुरखे भी उन्हीं में से थे+ और उन्हीं के वंश से मसीह आया।+ परमेश्वर जो सबके ऊपर है, हमेशा-हमेशा के लिए उसकी तारीफ हो। आमीन।
6 मगर इसका यह मतलब नहीं कि परमेश्वर का वचन नाकाम हो गया। दरअसल इसराएल के वंश से निकलनेवाले सभी लोग सचमुच इसराएली नहीं हैं।+ 7 न ही अब्राहम के वंशज* होने की वजह से वे सभी असल में उसके बच्चे हैं,+ मगर जैसा लिखा है, “तुझसे जिस वंश* का वादा किया गया है वह इसहाक से आएगा।”+ 8 इसका मतलब यह है कि जो खून के रिश्ते से अब्राहम के बच्चे हैं, वे असल में परमेश्वर के बच्चे नहीं,+ बल्कि जो परमेश्वर के वादे के मुताबिक उसके बच्चे हैं,+ वे ही अब्राहम का वंश* माने जाते हैं। 9 क्योंकि परमेश्वर ने यह वादा किया था, “मैं अगले साल इसी समय आऊँगा और सारा के एक बेटा होगा।”+ 10 मगर यह वादा सिर्फ उस वक्त ही नहीं, बल्कि तब भी किया गया था जब रिबका हमारे पुरखे इसहाक से गर्भवती हुई और उसके गर्भ में जुड़वाँ बच्चे थे।+ 11 यह वादा उस वक्त किया गया था जब बच्चे पैदा भी नहीं हुए थे, न ही उन्होंने कोई अच्छा-बुरा काम किया था ताकि चुनाव परमेश्वर के मकसद के मुताबिक हो, न कि इंसान के कामों के मुताबिक। परमेश्वर उसी को चुनता है जिसे वह चाहता है। 12 परमेश्वर ने रिबका से कहा था, “बड़ा छोटे का दास होगा।”+ 13 ठीक जैसा लिखा भी है, “मैंने याकूब से प्यार किया मगर एसाव से नफरत की।”+
14 तो हम क्या कहें? क्या परमेश्वर अन्याय करता है? हरगिज़ नहीं!+ 15 इसलिए कि उसने मूसा से कहा, “मैं जिस किसी पर दया दिखाना चाहूँ उस पर दया दिखाऊँगा और जिस किसी पर करुणा करना चाहूँ उस पर करुणा करूँगा।”+ 16 तो फिर परमेश्वर किसे चुनेगा यह न तो इंसान की इच्छा पर निर्भर करता है न ही उसकी मेहनत पर,* बल्कि परमेश्वर पर निर्भर करता है जो दया दिखाता है।+ 17 इसलिए कि शास्त्रवचन फिरौन के बारे में कहता है, “मैंने तुझे इसलिए ज़िंदा छोड़ा है ताकि तेरे मामले में अपनी शक्ति दिखाऊँ और पूरी धरती पर अपने नाम का ऐलान करा सकूँ।”+ 18 तो फिर, परमेश्वर जिस पर चाहे उस पर दया दिखाता है मगर जिसे चाहे उसे ढीठ होने देता है।+
19 मगर अब तू मुझसे कहेगा, “तो फिर क्यों वह इंसानों को अब भी दोषी ठहराता है? कौन है जो उसकी मरज़ी के खिलाफ खड़ा रह सका है?” 20 मगर हे इंसान, तू कौन है जो परमेश्वर को पलटकर जवाब देने की जुर्रत कर रहा है?+ क्या ढली हुई चीज़ अपने ढालनेवाले से कह सकती है, “तूने मुझे ऐसा क्यों बनाया?”+ 21 क्या कुम्हार को मिट्टी पर अधिकार नहीं+ कि वह एक ही लोंदे से एक बरतन आदर के काम के लिए और दूसरा मामूली काम* के लिए बनाए? 22 परमेश्वर भी चाहता है कि वह दुष्टों पर क्रोध प्रकट करे और अपनी शक्ति दिखाए, फिर भी वह बहुत सब्र रखता है और उसने क्रोध के बरतनों यानी दुष्टों को बरदाश्त किया है जो नाश के लायक हैं। 23 उसने यह इसलिए किया ताकि अपनी अपार महिमा, दया के बरतनों पर दिखाए+ जिन्हें उसने महिमा पाने के लिए पहले से तैयार किया है 24 यानी हम पर जिन्हें उसने न सिर्फ यहूदियों में से बल्कि गैर-यहूदी राष्ट्रों में से भी बुलाया है।+ 25 यह ऐसा ही है जैसा होशे की किताब में भी वह कहता है, “जो मेरे लोग नहीं थे,+ उन्हें मैं ‘अपने लोग’ कहूँगा और जो मेरी प्यारी नहीं थी, उसे ‘प्यारी’ कहूँगा+ 26 और जिस जगह उनसे कहा गया था, ‘तुम मेरे लोग नहीं हो,’ वहाँ वे ‘जीवित परमेश्वर के बेटे’ कहलाएँगे।”+
27 इतना ही नहीं, यशायाह इसराएल के बारे में पुकारकर कहता है, “इसराएल के बेटों की गिनती चाहे समुंदर की बालू के किनकों जितनी अनगिनत क्यों न हो, मगर सिर्फ मुट्ठी-भर लोग* ही उद्धार पाएँगे।+ 28 इसलिए कि यहोवा* धरती पर हिसाब लेगा और बड़ी तेज़ी से यह काम पूरा करेगा।”+ 29 साथ ही, जैसे यशायाह ने पहले से बताया था, “अगर सेनाओं के परमेश्वर यहोवा* ने हमारे कुछ वंशजों को ज़िंदा न छोड़ा होता, तो हम सदोम की तरह बन गए होते, हमारा हाल अमोरा जैसा हो गया होता।”+
30 तो फिर हम क्या कहें? यही कि हालाँकि गैर-यहूदी राष्ट्रों के लोग नेक ठहरने की कोशिश नहीं कर रहे, फिर भी परमेश्वर उन्हें नेक ठहरा रहा है+ क्योंकि उनमें विश्वास है।+ 31 लेकिन इसराएल ने कानून पर चलकर नेक ठहरने की कोशिश की, फिर भी वे कानून के मुताबिक पूरी तरह चल नहीं सके। 32 वजह क्या थी? उन्होंने विश्वास से नहीं बल्कि अपने कामों से नेक ठहरने की कोशिश की। उन्होंने “ठोकर खिलानेवाले पत्थर” से ठोकर खायी+ 33 जैसा लिखा भी है, “देख! मैं सिय्योन में ठोकर खिलानेवाला पत्थर+ और ठेस पहुँचानेवाली चट्टान रखता हूँ, मगर जो उस पर विश्वास करता है वह निराश नहीं होगा।”+
10 भाइयो, मैं दिल से यही चाहता हूँ और इसराएलियों के लिए परमेश्वर से मेरी यही प्रार्थना है कि वे उद्धार पाएँ।+ 2 इसलिए कि मैं उनके बारे में गवाही देता हूँ कि उनमें परमेश्वर की सेवा के लिए जोश तो है,+ मगर सही ज्ञान के मुताबिक नहीं। 3 वे नहीं जानते थे कि परमेश्वर की नज़र में नेक ठहरने के लिए क्या ज़रूरी है।+ इसलिए वे अपने तरीके से खुद को नेक ठहराने की कोशिश करते रहे+ और परमेश्वर के नेक स्तरों पर नहीं चले।+ 4 मसीह की मौत से कानून का अंत हो गया+ ताकि हर कोई जो मसीह पर विश्वास करे वह नेक ठहरे।+
5 मूसा ने कानून के ज़रिए नेक ठहरने के बारे में लिखा, “जो इंसान ये काम करता है वह ज़िंदा रहेगा।”+ 6 मगर विश्वास से नेक ठहरने के बारे में लिखा है, “अपने दिल में यह न कहो,+ ‘कौन ऊपर स्वर्ग जाएगा?’+ यानी मसीह को नीचे लाने के लिए कौन स्वर्ग जाएगा। 7 या, ‘कौन अथाह-कुंड में उतरेगा?’+ यानी मसीह को मरे हुओं में से ऊपर लाने के लिए कौन अथाह-कुंड में उतरेगा।” 8 मगर शास्त्र क्या कहता है? यह कहता है, “यह संदेश तेरे पास, तेरे ही मुँह में और तेरे ही दिल में है,”+ यानी विश्वास का “संदेश” जिसका हम प्रचार करते हैं। 9 अगर तू मुँह से सब लोगों के सामने ऐलान करे कि यीशु ही प्रभु है+ और अपने दिल में यह विश्वास रखे कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से ज़िंदा किया है, तो तू उद्धार पाएगा। 10 इसलिए कि एक इंसान नेक ठहराए जाने के लिए दिल से विश्वास करता है, मगर उद्धार पाने के लिए सब लोगों के सामने मुँह से अपने विश्वास का ऐलान करता है।+
11 क्योंकि शास्त्र कहता है, “जो कोई उस पर विश्वास करता है वह निराश नहीं होगा।”+ 12 इसलिए कि यहूदी और यूनानी के बीच कोई फर्क नहीं+ क्योंकि सबके ऊपर एक ही प्रभु है, जो अपने सब पुकारनेवालों को ढेरों आशीषें देता है।* 13 इसलिए कि “जो कोई यहोवा* का नाम पुकारता है वह उद्धार पाएगा।”+ 14 मगर वे उसका नाम कैसे पुकारेंगे जब उन्होंने उस पर विश्वास ही नहीं किया? और वे उस पर कैसे विश्वास करेंगे जिसके बारे में उन्होंने सुना ही नहीं? और वे उसके बारे में कैसे सुनेंगे जब कोई प्रचार करनेवाला ही न हो? 15 और प्रचार करनेवाले कैसे प्रचार करेंगे जब तक उन्हें भेजा न जाए?+ ठीक जैसा लिखा है, “उनके पाँव कितने सुंदर हैं जो अच्छी बातों की खुशखबरी सुनाते हैं!”+
16 फिर भी उनमें से सब खुशखबरी के मुताबिक नहीं चले। यशायाह कहता है, “हे यहोवा,* किसने हमारे संदेश पर विश्वास किया है?”+ 17 तो संदेश सुनने के बाद ही विश्वास किया जाता है।+ और संदेश तब सुना जाता है जब कोई मसीह के बारे में प्रचार करता है। 18 मगर मैं पूछता हूँ, क्या उन्होंने संदेश नहीं सुना? बेशक सुना क्योंकि लिखा है, “संदेश सुनानेवालों की आवाज़ सारी धरती पर गूँज उठी और उनका संदेश धरती के कोने-कोने तक पहुँचा।”+ 19 मगर मैं पूछता हूँ, क्या इसराएली समझ नहीं पाए?+ पहले मूसा कहता है, “मैं उसके ज़रिए तुम्हें जलन दिलाऊँगा जो एक जाति नहीं है। मैं एक मूर्ख जाति के ज़रिए तुम्हारे अंदर गुस्से की आग भड़काऊँगा।”+ 20 फिर यशायाह बेधड़क होकर कहता है, “जिन्होंने मुझे नहीं ढूँढ़ा, उन्होंने मुझे पा लिया+ और जिन्होंने मेरे बारे में नहीं पूछा उन पर मैं ज़ाहिर हुआ।”+ 21 लेकिन इसराएलियों के बारे में वह कहता है, “मैं ऐसे लोगों के सामने दिन-भर हाथ फैलाए रहा जो मेरी आज्ञा नहीं मानते और ढीठ हैं।”+
11 तो फिर, मैं पूछता हूँ क्या परमेश्वर ने अपने लोगों को ठुकरा दिया?+ बिलकुल नहीं! क्योंकि मैं भी तो एक इसराएली हूँ और अब्राहम के वंश* और बिन्यामीन गोत्र से हूँ। 2 परमेश्वर ने अपने उन लोगों को नहीं ठुकराया, जिन पर उसने सबसे पहले खास ध्यान दिया।+ क्या तुम नहीं जानते कि जब एलियाह ने परमेश्वर से इसराएल की शिकायत की थी, तो इस बारे में शास्त्र क्या कहता है? 3 “हे यहोवा,* उन्होंने तेरे भविष्यवक्ताओं को मार डाला है और तेरी वेदियों को खोदकर गिरा दिया है और मैं ही अकेला बचा हूँ और अब वे मेरी जान के पीछे पड़े हैं।”+ 4 लेकिन परमेश्वर ने उसे क्या जवाब दिया? “मेरे अब भी ऐसे 7,000 आदमी हैं जिन्होंने बाल के सामने घुटने टेककर दंडवत नहीं किया।”+ 5 उसी तरह, आज भी कुछ बचे हुए लोग हैं+ जिन्हें परमेश्वर की महा-कृपा की वजह से चुना गया है। 6 अगर यह चुनाव महा-कृपा की वजह से है+ तो इसका मतलब यह उनके कामों की वजह से नहीं है।+ नहीं तो महा-कृपा, महा-कृपा नहीं रहती।
7 तो फिर हम क्या कहें? इसराएल जिस चीज़ की खोज में बड़े जतन से लगा हुआ था वह उसे नहीं मिली, मगर यह चुने हुओं को मिली।+ बाकी लोग कठोर हो गए,+ 8 ठीक जैसा लिखा है, “परमेश्वर ने उन्हें मानो गहरी नींद में डाल दिया है,+ उनकी आँखें ऐसी हैं जो देख नहीं सकतीं और कान ऐसे हैं जो सुन नहीं सकते। आज तक उनकी यही हालत है।”+ 9 और दाविद भी कहता है, “उनकी मेज़ उनके लिए फंदा, जाल, ठोकर खिलानेवाला पत्थर और सज़ा का कारण बन जाए। 10 उनकी आँखों के आगे अँधेरा छा जाए ताकि वे देख न सकें और उनकी कमर हमेशा के लिए झुकी रहे।”+
11 इसलिए मैं पूछता हूँ, क्या उन्होंने इस तरह ठोकर खायी कि हमेशा के लिए गिर पड़ें? बेशक नहीं! मगर उनके गलत कदम उठाने से गैर-यहूदी लोगों को उद्धार मिला ताकि यहूदियों में जलन पैदा हो।+ 12 अब अगर उनके गलत कदम उठाने से दुनिया को आशीषें मिलीं और उनके घटने से गैर-यहूदी लोगों ने आशीषें पायीं,+ तो उनकी गिनती के पूरा होने से और कितना फायदा होगा!
13 अब मैं तुम गैर-यहूदियों से बात कर रहा हूँ। मैं गैर-यहूदी राष्ट्रों के लिए प्रेषित हूँ यानी मुझे उनके पास भेजा गया है,+ इसलिए मैं अपनी सेवा का बहुत सम्मान* करता हूँ+ 14 ताकि अपने लोगों में किसी तरह जलन पैदा कर सकूँ और उनमें से कुछ का उद्धार करवा सकूँ। 15 इसलिए कि जब उन्हें त्याग दिया गया+ और इससे दुनिया के लिए परमेश्वर के साथ सुलह करने का रास्ता खुला, तो सोचो अगर उन्हें स्वीकार किया जाए तो कैसा होगा! यह ऐसा होगा मानो वे पहले मर गए थे मगर अब ज़िंदा हो गए हैं। 16 इसके अलावा, अगर पहले फल के तौर पर ली गयी आटे की लोई पवित्र है, तो गुँधा हुआ पूरा आटा भी पवित्र है और अगर जड़ पवित्र है, तो डालियाँ भी पवित्र हैं।
17 अच्छे जैतून के पेड़ की कुछ डालियाँ तोड़ दी गयीं और तुझे जंगली जैतून होते हुए भी उसकी बाकी डालियों के बीच कलम लगाया गया है और तू उसकी जड़ के उत्तम रस का हिस्सेदार हो गया है। 18 इसलिए तू घमंड से भरकर* उन टूटी डालियों को नीचा मत समझ। अगर तू घमंड करता है,*+ तो याद रख कि तू जड़ को नहीं सँभाले हुए है, बल्कि जड़ तुझे सँभाले हुए है। 19 तू कहेगा, “डालियाँ इसीलिए तोड़ दी गयीं कि मैं उस पेड़ पर कलम लगाया जाऊँ।”+ 20 तू ठीक कह रहा है! मगर उन्हें इसलिए तोड़ा गया क्योंकि उनमें विश्वास की कमी थी,+ पर तू अपने विश्वास की वजह से कायम है।+ घमंड करना बंद कर, बल्कि सावधान रह। 21 इसलिए कि जब परमेश्वर ने असली डालियों को नहीं छोड़ा, तो तुझे भी नहीं छोड़ेगा। 22 इसलिए ध्यान दे कि परमेश्वर ने कैसी कृपा की+ और कैसी सख्ती बरती। जो गिर गए उनके साथ उसने सख्ती बरती है+ लेकिन तुझ पर उसकी कृपा है। अब तू उसकी कृपा के लायक बना रह, वरना तू भी काट डाला जाएगा। 23 और अगर वे फिर से विश्वास करने लगें, तो उन्हें भी पेड़ पर कलम लगाया जाएगा+ क्योंकि परमेश्वर उन्हें दोबारा जोड़ सकता है। 24 इसलिए कि जब तुझे जंगली जैतून में से काटकर, बाग में उगाए गए असली जैतून के पेड़ पर कलम लगाया गया है जबकि आम तौर पर ऐसा नहीं किया जाता, तो इन असली डालियों को अपने ही जैतून के पेड़ पर और कितनी आसानी से लगाया जा सकता है!
25 भाइयो, मैं नहीं चाहता कि तुम अपनी ही नज़र में खुद को बुद्धिमान समझो और इस पवित्र रहस्य से अनजान रहो:+ कुछ इसराएली तब तक कठोर बने रहे, जब तक कि गैर-यहूदियों की गिनती पूरी नहीं हो गयी 26 और इस तरह सारा इसराएल+ उद्धार पाएगा। ठीक जैसा लिखा है, “छुड़ानेवाला* सिय्योन से आएगा+ और याकूब से ऐसे काम मिटा देगा जिनसे परमेश्वर का अनादर होता है। 27 मैं उनके साथ यह करार तब करूँगा+ जब मैं उनके पाप मिटा दूँगा।”+ 28 यह सच है कि वे खुशखबरी को ठुकराकर परमेश्वर के दुश्मन बन गए और इससे तुम्हें फायदा हुआ, मगर परमेश्वर ने उनके पुरखों से जो वादा किया था उसकी वजह से उसने उनमें से कुछ लोगों को अपना दोस्त चुना है।+ 29 इसलिए कि वरदानों और बुलावे के मामले में परमेश्वर अपना फैसला नहीं बदलेगा। 30 एक वक्त था जब तुम परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानते थे,+ मगर तुम पर इसलिए दया की गयी+ क्योंकि उन्होंने आज्ञा नहीं मानी।+ 31 जिस तरह उनके आज्ञा न मानने से तुम पर दया की गयी, उसी तरह उन पर भी दया की जा सकती है। 32 इसलिए कि परमेश्वर ने उन सबको आज्ञा न मानने की कैद में पड़ने दिया+ ताकि वह उन सब पर दया करे।+
33 वाह! परमेश्वर की दौलत और बुद्धि और ज्ञान की गहराई की कोई थाह नहीं! उसके फैसले हमारी सोच से परे हैं और उसकी राहें हमारी समझ से बाहर हैं! 34 इसलिए कि “कौन यहोवा* की सोच जान सका है या कौन उसका सलाहकार बन सका है?”+ 35 या “कौन है जिसने उसे कुछ दिया हो कि उसे लौटाया जाए?”+ 36 क्योंकि सबकुछ उसी की तरफ से, उसी के ज़रिए और उसी के लिए है। उसकी महिमा हमेशा-हमेशा तक होती रहे। आमीन।
12 इसलिए भाइयो, मैं तुम्हें परमेश्वर की करुणा का वास्ता देकर तुमसे गुज़ारिश करता हूँ कि तुम अपने शरीर को जीवित, पवित्र+ और परमेश्वर को भानेवाले बलिदान के तौर पर अर्पित करो।+ इस तरह तुम अपनी सोचने-समझने की शक्ति का इस्तेमाल करते हुए पवित्र सेवा कर सकोगे।+ 2 इस दुनिया की व्यवस्था* के मुताबिक खुद को ढालना बंद करो, मगर नयी सोच पैदा करो ताकि तुम्हारी कायापलट होती जाए।+ तब तुम परखकर खुद के लिए मालूम करते रहोगे+ कि परमेश्वर की भली, उसे भानेवाली और उसकी परिपूर्ण इच्छा क्या है।
3 मुझ पर जो महा-कृपा हुई है, उसके ज़रिए मैं तुममें से हरेक से जो वहाँ है, यह कहता हूँ कि कोई भी अपने आपको जितना समझना चाहिए, उससे बढ़कर न समझे।+ इसके बजाय परमेश्वर ने हरेक को जितना विश्वास दिया* है उसके मुताबिक वह सही सोच बनाए रखे।+ 4 इसलिए कि जैसे हमारे एक ही शरीर में कई अंग हैं+ और सभी अंगों का काम एक जैसा नहीं है, 5 वैसे ही हम भी बहुत होते हुए भी मसीह के साथ एकता में एक शरीर हैं और एक-दूसरे से जुड़े अंग हैं।+ 6 हम पर महा-कृपा करके हमें अलग-अलग वरदान दिए गए हैं।+ इसलिए अगर हमारे पास भविष्यवाणी करने का वरदान है, तो आओ हमें जो विश्वास दिया गया है उसके हिसाब से भविष्यवाणी करें, 7 या अगर सेवा का वरदान है, तो आओ हम सेवा में लगे रहें। और जिसे सिखाने का वरदान मिला है, वह सिखाने में लगा रहे।+ 8 या जिसे हौसला बढ़ाने का वरदान मिला है, वह ऐसा करने में लगा रहे।+ जो बाँटता* है वह दिल खोलकर बाँटे,+ जो अगुवाई करता है वह पूरी मेहनत* से ऐसा करे।+ जो दया दिखाता है, वह खुशी-खुशी दया दिखाए।+
9 तुम्हारे प्यार में कपट न हो।+ बुरी बातों से घिन करो,+ अच्छी बातों से लिपटे रहो। 10 एक-दूसरे से भाइयों जैसा प्यार करो और गहरा लगाव रखो। खुद आगे बढ़कर* दूसरों का आदर करो।+ 11 मेहनती* बनो, आलसी मत हो।*+ पवित्र शक्ति के तेज से भरे रहो।+ यहोवा* के दास बनकर उसकी सेवा करो।+ 12 अपनी आशा की वजह से खुशी मनाओ। मुसीबतों के वक्त में धीरज धरो।+ प्रार्थना में लगे रहो।+ 13 पवित्र जनों की ज़रूरतें पूरी करने में हाथ बँटाओ।+ मेहमान-नवाज़ी करने की आदत डालो।+ 14 जो तुम पर ज़ुल्म करते हैं, उनके लिए परमेश्वर से आशीष माँगते रहो।+ हाँ, आशीष माँगो, उन्हें शाप मत दो।+ 15 खुशी मनानेवालों के साथ खुशी मनाओ, रोनेवालों के साथ रोओ। 16 दूसरों के बारे में वैसा ही नज़रिया रखो जैसा तुम खुद के बारे में रखते हो। बड़ी-बड़ी बातों के बारे में मत सोचो,* बल्कि जिन बातों को छोटा और मामूली समझा जाता है उनमें लगे रहो।+ खुद को बड़ा बुद्धिमान मत समझो।+
17 किसी को भी बुराई का बदला बुराई से मत दो।+ ध्यान दो कि सबकी नज़र में अच्छा क्या है और वही करो। 18 जहाँ तक हो सके, सबके साथ शांति बनाए रखने की पूरी कोशिश करो।+ 19 प्यारे भाइयो, बदला मत लो बल्कि क्रोध* को मौका दो+ क्योंकि लिखा है, “यहोवा* कहता है, ‘बदला लेना मेरा काम है, मैं ही बदला चुकाऊँगा।’”+ 20 लेकिन “अगर तेरा दुश्मन भूखा हो तो उसे खाना खिला। अगर वह प्यासा हो तो उसे पानी पिला, क्योंकि ऐसा करने से तू उसके सिर पर अंगारों का ढेर लगाएगा।”*+ 21 बुराई से मत हारो बल्कि भलाई से बुराई को जीतते रहो।+
13 हर इंसान ऊँचे अधिकारियों के अधीन रहे+ इसलिए कि ऐसा कोई भी अधिकार नहीं जो परमेश्वर की तरफ से न हो।+ मौजूदा अधिकारियों को परमेश्वर ने अपने अधीन अलग-अलग पद पर ठहराया है।+ 2 इसलिए जो अधिकार का विरोध करता है, वह परमेश्वर के ठहराए इंतज़ाम के खिलाफ खड़ा होता है। जो इस इंतज़ाम के खिलाफ खड़े होते हैं वे सज़ा पाएँगे। 3 राज करनेवालों से वे लोग डरते हैं जो बुरे काम करते हैं, न कि जो अच्छे काम करते हैं।+ क्या तू चाहता है कि अधिकारियों से डर-डरकर न जीए? तो अच्छे काम करता रह+ और तुझे उनसे तारीफ मिलेगी। 4 इसलिए कि अधिकारी तेरे भले के लिए परमेश्वर के सेवक हैं। लेकिन अगर तू बुरे काम करता है तो डर, क्योंकि वे बेवजह तलवार लिए नहीं हैं। वे परमेश्वर के सेवक हैं और जो बुरे काम करते रहते हैं उन पर क्रोध बरसाते हैं।*
5 इसलिए उसके अधीन रहने की तुम्हारे पास और भी ज़बरदस्त वजह है, वह यह कि तुम्हें अपने ज़मीर की वजह से उसके अधीन रहना है न कि सिर्फ उसके क्रोध के डर से।+ 6 इसी वजह से तुम कर भी अदा करते हो, क्योंकि वे परमेश्वर के ठहराए जन-सेवक हैं और इस सेवा में लगे रहते हैं। 7 इसलिए जिसका जो हक बनता है वह उसे दो। जो कर की माँग करता है उसे कर चुकाओ।+ जो महसूल की माँग करता है उसे महसूल दो। जिससे डरना चाहिए उससे डरो,+ जिसे आदर देना चाहिए उसे आदर दो।+
8 प्यार के अलावा किसी भी बात में एक-दूसरे के कर्ज़दार मत बनो+ इसलिए कि जो दूसरों से प्यार करता है, उसने सही मायनों में परमेश्वर के कानून को माना है।+ 9 क्योंकि ये आज्ञाएँ, “तुम व्यभिचार* न करना,+ तुम खून न करना,+ तुम चोरी न करना,+ तुम लालच न करना”+ और इनके साथ-साथ जो भी आज्ञाएँ हैं, सबका निचोड़ इस एक बात में पाया जाता है, “अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना जैसे तुम खुद से करते हो।”+ 10 प्यार अपने पड़ोसी का बुरा नहीं करता,+ इसलिए प्यार करना सही मायनों में कानून को मानना है।+
11 ऐसा इसलिए भी करो क्योंकि तुम जानते हो कि कैसे वक्त में जी रहे हो। अब तुम्हारे लिए नींद से जाग उठने की घड़ी आ चुकी है+ क्योंकि जब हम विश्वासी बने थे, तब के मुकाबले आज हमारे उद्धार का वक्त और भी पास आ गया है। 12 रात बहुत बीत चुकी है, दिन निकलने पर है। इसलिए आओ हम अंधकार के कामों को उतार फेंकें+ और रौशनी के हथियार बाँध लें।+ 13 आओ हम शराफत से चलें+ जैसे दिन के वक्त शोभा देता है, न कि बेकाबू होकर रंगरलियाँ मनाएँ, शराब के नशे में धुत्त रहें, नाजायज़ संबंधों और निर्लज्ज कामों* में डूबे रहें,+ न ही झगड़े और जलन करने में लगे रहें।+ 14 इसके बजाय, प्रभु यीशु मसीह को पहन लो+ और शरीर की इच्छाएँ पूरी करने की योजनाएँ मत बनाओ।+
14 जिसका विश्वास कमज़ोर है उसे स्वीकार करो,+ मगर यह देखकर उसे गलत मत ठहराओ कि उसके विचार तुमसे अलग हैं।* 2 किसी को विश्वास है कि सबकुछ खाया जा सकता है, मगर जिसका विश्वास कमज़ोर है वह साग-सब्ज़ी खाता है। 3 खानेवाला, न खानेवाले को नीचा न समझे, वैसे ही नहीं खानेवाला उसे दोषी न ठहराए जो खाता है+ क्योंकि परमेश्वर उसे स्वीकार करता है। 4 तू कौन होता है दूसरे के सेवक को दोषी ठहरानेवाला?+ वह खड़ा रहेगा या गिर जाएगा, इसका फैसला उसका मालिक करेगा।+ दरअसल, उसे खड़ा किया जाएगा क्योंकि यहोवा* उसे खड़ा कर सकता है।
5 कोई आदमी एक दिन को दूसरे दिन से बड़ा मानता है,+ तो दूसरा सभी दिनों को एक बराबर मानता है।+ हर एक इंसान वही करे जिसके बारे में उसे पूरा यकीन है। 6 जो आदमी किसी दिन को खास मानता है, वह यहोवा* के लिए मानता है। और जो खाता है, वह यहोवा* के लिए खाता है क्योंकि वह परमेश्वर को धन्यवाद देकर खाता है।+ और जो नहीं खाता वह यहोवा* के लिए नहीं खाता, फिर भी वह परमेश्वर का धन्यवाद करता है।+ 7 दरअसल हममें से कोई भी सिर्फ अपने लिए नहीं जीता+ और न ही कोई अपने लिए मरता है। 8 क्योंकि अगर हम जीते हैं तो यहोवा* के लिए जीते हैं+ और अगर मरते हैं तो यहोवा* के लिए मरते हैं। इसलिए चाहे हम जीएँ या मरें, हम यहोवा* ही के हैं।+ 9 इसी वजह से मसीह ने अपनी जान दी और फिर ज़िंदा हुआ ताकि वह मरे हुओं और जीवितों, दोनों का प्रभु ठहरे।+
10 लेकिन तू अपने भाई को क्यों दोषी ठहराता है?+ या अपने भाई को क्यों नीचा समझता है? हम सब परमेश्वर के न्याय-आसन के सामने खड़े होंगे,+ 11 क्योंकि लिखा है, “यहोवा* ने कहा है, ‘मैं अपने जीवन की शपथ खाकर कहता हूँ,+ हर कोई मेरे सामने घुटने टेकेगा और हर कोई अपनी ज़बान से सबके सामने मान लेगा कि मैं ही परमेश्वर हूँ।’”+ 12 तो फिर हममें से हर कोई परमेश्वर को अपना हिसाब देगा।+
13 इसलिए अब से हम एक-दूसरे पर दोष न लगाएँ।+ इसके बजाय, ठान लो कि तुम किसी भाई को ठोकर नहीं खिलाओगे, न ही उसे गिरने की वजह दोगे।+ 14 मैं जानता हूँ और प्रभु यीशु में मुझे यकीन है कि कोई भी चीज़ अशुद्ध नहीं है,+ मगर जो उसे अशुद्ध समझता है उसके लिए वह चीज़ अशुद्ध है। 15 अगर तेरे खाने की वजह से तेरे भाई को ठेस पहुँचती है, तो तू अब प्यार की राह पर नहीं चल रहा।+ जिसके लिए मसीह ने अपनी जान दी है, उसे तू अपने खाने की वजह से नाश मत कर।+ 16 इसलिए तुम लोग जो अच्छा काम करते हो, उसकी बदनामी मत होने दो। 17 इसलिए कि परमेश्वर के राज का मतलब खाना-पीना नहीं+ बल्कि नेकी, शांति और वह खुशी है जो पवित्र शक्ति से मिलती है। 18 जो कोई इस तरीके से मसीह का दास बनकर उसकी सेवा करता है, उसे परमेश्वर स्वीकार करता है और वह इंसानों से भी तारीफ पाता है।
19 तो आओ हम उन बातों में लगे रहें जिनसे शांति कायम होती है+ और एक-दूसरे का हौसला मज़बूत होता है।*+ 20 सिर्फ खाने की खातिर परमेश्वर के काम को बरबाद मत करो।+ माना कि सब चीज़ें शुद्ध हैं, मगर ये तब नुकसानदेह* हो जाती हैं जब एक इंसान का खाना दूसरे के लिए ठोकर की वजह बनता है।+ 21 अच्छा तो यह है कि तू न माँस खाए, न दाख-मदिरा पीए, न ही ऐसा कुछ करे जिससे तेरे भाई को ठोकर लगे।+ 22 इन मामलों में तेरा जो विश्वास है, उसे परमेश्वर के सामने अपने तक रख। सुखी है वह इंसान जो किसी काम को सही समझता है और उसे करने के बाद खुद को दोषी नहीं ठहराता। 23 लेकिन अगर उसके मन में शक है, फिर भी वह खाता है तो वह दोषी ठहर चुका है क्योंकि वह विश्वास से नहीं खाता। वाकई, हर वह काम जो विश्वास से नहीं किया जाता, पाप है।
15 लेकिन हम जो विश्वास में मज़बूत हैं, हमें चाहिए कि हम उनकी कमज़ोरियाँ सहें जो मज़बूत नहीं हैं,+ न कि खुद को खुश करने की सोचें।+ 2 हरेक अपने पड़ोसी को खुश करे जिससे पड़ोसी का भला हो और वह मज़बूत हो।+ 3 इसलिए कि मसीह ने भी खुद को खुश नहीं किया+ ठीक जैसा लिखा है, “जो तेरी निंदा करते हैं, उनकी निंदा-भरी बातें मुझ पर आ पड़ी हैं।”+ 4 जो बातें पहले से लिखी गयी थीं, वे इसलिए लिखी गयीं कि हम उनसे सीखें+ और शास्त्र से हमें धीरज धरने में मदद मिले+ और हम दिलासा पाएँ ताकि हमारे पास आशा हो।+ 5 धीरज और दिलासा देनेवाला परमेश्वर तुम्हें ऐसी आशीष दे कि तुम्हारी सोच और तुम्हारा नज़रिया मसीह यीशु जैसा हो 6 ताकि तुम सब एकता में रहकर+ और एक आवाज़ में* हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्वर और पिता की महिमा करो।
7 इसलिए जैसे मसीह ने हमें अपनाया* है,+ तुम भी एक-दूसरे को अपना लो*+ ताकि परमेश्वर की महिमा हो। 8 मैं कहता हूँ कि मसीह उनका सेवक बना जिनका खतना हुआ था+ ताकि यह गवाही दे कि परमेश्वर सच्चा है और परमेश्वर ने उनके पुरखों से जो वादे किए थे+ वे भरोसे के लायक हैं 9 और इसलिए भी कि गैर-यहूदी राष्ट्र परमेश्वर की दया के लिए उसकी महिमा करें।+ ठीक जैसा लिखा है, “इसीलिए मैं राष्ट्रों के बीच सरेआम तेरी बड़ाई करूँगा और तेरे नाम की तारीफ में गीत गाऊँगा।”+ 10 फिर वह कहता है, “राष्ट्रो, परमेश्वर की प्रजा के साथ खुशियाँ मनाओ।”+ 11 और फिर कहता है, “सब राष्ट्रो, यहोवा* की तारीफ करो और देश-देश के लोग उसका गुणगान करें।”+ 12 और फिर यशायाह कहता है, “यिशै की जड़ प्रकट होगी+ यानी वह जो राष्ट्रों पर राज करने के लिए खड़ा होगा+ और राष्ट्र उस पर आशा रखेंगे।”+ 13 मेरी दुआ है कि आशा देनेवाला परमेश्वर तुम्हें भरपूर खुशी और शांति दे क्योंकि तुमने उस पर भरोसा रखा है और इस तरह पवित्र शक्ति की ताकत से तुम्हारी आशा पक्की होती जाए।+
14 भाइयो, मुझे तुम्हारे बारे में यकीन है कि तुम भलाई और ज्ञान से भरपूर हो और एक-दूसरे को समझाने* के काबिल हो। 15 फिर भी कुछ बातों के बारे में मैंने तुम्हें सीधे-सीधे लिखा है ताकि तुम्हें उनके बारे में याद दिला सकूँ, क्योंकि परमेश्वर ने मुझ पर महा-कृपा की है। 16 मुझ पर यह महा-कृपा इसलिए की गयी ताकि मैं गैर-यहूदी राष्ट्रों के लिए मसीह यीशु का एक जन-सेवक ठहरूँ।+ मैं परमेश्वर की खुशखबरी सुनाने का पवित्र काम करता हूँ+ ताकि गैर-यहूदी राष्ट्र एक ऐसी भेंट के तौर पर परमेश्वर को चढ़ाए जाएँ जो उसे स्वीकार हो और पवित्र शक्ति से पवित्र ठहरायी गयी हो।
17 इसलिए परमेश्वर की सेवा से जुड़ी बातों के बारे में, मैं मसीह यीशु का चेला होने में गर्व करता हूँ। 18 जो काम मसीह ने मेरे ज़रिए किए हैं, उनके बारे में बताने के अलावा मैं कुछ और कहने की जुर्रत नहीं करूँगा। मसीह ने मेरे ज़रिए काम किया कि गैर-यहूदी राष्ट्रों को आज्ञाकारी बनाए। उसने मेरे वचनों और कामों के ज़रिए 19 और चमत्कारों और आश्चर्य के कामों की ताकत से+ और पवित्र शक्ति की ताकत से ऐसा किया है। मैंने यरूशलेम से लेकर इल्लुरिकुम तक चारों तरफ मसीह के बारे में खुशखबरी का अच्छी तरह प्रचार किया है।+ 20 वाकई, इस तरह मैंने ठान लिया है कि मैं ऐसे इलाकों में खुशखबरी न सुनाऊँ जहाँ मसीह के नाम का प्रचार पहले ही हो चुका है ताकि मैं किसी दूसरे की डाली हुई नींव पर इमारत न खड़ी करूँ। 21 इसके बजाय, मैंने वैसा ही करने का लक्ष्य रखा है जैसा लिखा है, “जिन्हें उसके बारे में कभी नहीं बताया गया, वे देखेंगे और जिन्होंने नहीं सुना वे समझेंगे।”+
22 इसलिए मुझे तुम्हारे पास आने से बहुत बार रोका भी गया। 23 मगर अब इन इलाकों में ऐसी कोई जगह नहीं बची जहाँ प्रचार न हुआ हो और मैं कई* सालों से तुम्हारे पास आने के लिए तरस भी रहा था। 24 इसलिए मैं उम्मीद करता हूँ कि जब मैं स्पेन के सफर पर निकलूँगा तो रास्ते में तुमसे मिलूँगा और कुछ समय के लिए तुम्हारी संगति का आनंद लूँगा, फिर तुम कुछ दूर तक मुझे छोड़ने आओगे। 25 लेकिन अभी मैं पवित्र जनों की सेवा करने के लिए यरूशलेम के सफर पर जानेवाला हूँ।+ 26 यरूशलेम के पवित्र जनों में जो गरीब हैं उनके लिए मकिदुनिया और अखाया के रहनेवालों ने अपनी संपत्ति में से खुशी-खुशी दान दिया है।+ 27 सच है कि उन्हें देने में खुशी मिली और देखा जाए तो वे पवित्र जनों के कर्ज़दार थे। क्योंकि पवित्र जनों ने परमेश्वर से जो पाया था वह गैर-यहूदी राष्ट्रों को भी दिया, इसलिए इनका भी फर्ज़ बनता है कि वे पवित्र जनों की खाने-पहनने की ज़रूरतों के लिए दान देकर उनकी सेवा करें।+ 28 इसलिए मैं यह काम पूरा करने और उन तक यह दान पहुँचाने के बाद, तुम्हारे यहाँ से होता हुआ स्पेन जाऊँगा। 29 और मैं जानता हूँ कि जब मैं तुम्हारे पास आऊँगा, तो मसीह की तरफ से भरपूर आशीष लेकर आऊँगा।
30 अब मेरे भाइयो, हमारे प्रभु यीशु मसीह में तुम्हें जो विश्वास है और पवित्र शक्ति ने तुममें जो प्यार पैदा किया है, उस वजह से मैं तुम्हें बढ़ावा देता हूँ कि मेरी तरह तुम भी दिलो-जान से मेरे लिए परमेश्वर से प्रार्थना करते रहो+ 31 कि परमेश्वर मुझे यहूदिया के अविश्वासियों के हाथों में पड़ने से बचाए+ और यरूशलेम के पवित्र जन मेरी सेवा स्वीकार करें+ 32 ताकि जब मैं परमेश्वर की मरज़ी से खुशी-खुशी तुम्हारे पास आऊँ, तो तुम्हारी संगति से तरो-ताज़ा हो जाऊँ। 33 दुआ करता हूँ कि शांति देनेवाला परमेश्वर तुम सबके साथ रहे।+ आमीन।
16 मैं किंख्रिया+ की मंडली में सेवा करनेवाली हमारी बहन फीबे के बारे में तुम्हें बताना चाहता हूँ 2 ताकि तुम प्रभु में उसका वैसा ही स्वागत करो जैसा पवित्र जनों का किया जाना चाहिए। और अगर किसी भी काम में उसे तुम्हारी ज़रूरत पड़े तो उसकी मदद करना+ क्योंकि वह खुद बहुतों की और मेरी भी मददगार* साबित हुई है।
3 प्रिसका और अक्विला+ को जो मसीह यीशु में मेरे सहकर्मी हैं, मेरा नमस्कार। 4 उन्होंने मेरी जान बचाने के लिए खुद अपनी जान* जोखिम में डाल दी।+ और सिर्फ मैं ही नहीं बल्कि गैर-यहूदी राष्ट्रों की सभी मंडलियाँ भी उनका धन्यवाद करती हैं। 5 उनके घर में इकट्ठा होनेवाली मंडली को भी नमस्कार।+ मेरे प्यारे इपैनितुस को भी नमस्कार जो मसीह के लिए एशिया का पहला फल है। 6 मरियम को नमस्कार जिसने तुम्हारे लिए बहुत मेहनत की है। 7 मेरे रिश्तेदार अन्द्रुनीकुस और यूनियास को नमस्कार,+ जो मेरे साथ कैद में थे और जिनका प्रेषितों के बीच बड़ा नाम है और जो मुझसे भी पहले से मसीह के चेले हैं।*
8 प्रभु में मेरे प्यारे अम्पलि-यातुस को मेरा नमस्कार। 9 मसीह में हमारे सहकर्मी उरबानुस और मेरे प्यारे इस्तखुस को नमस्कार। 10 अपिल्लेस को मेरा नमस्कार, जिस पर मसीह की मंज़ूरी है। अरिस्तु-बुलुस के घराने को मेरा नमस्कार। 11 मेरे रिश्तेदार हेरोदियोन को मेरा नमस्कार। नरकिस्सुस के घराने के जो लोग प्रभु में हैं, उनको मेरा नमस्कार। 12 प्रभु में कड़ी मेहनत करनेवाली त्रूफैना और त्रूफोसा को मेरा नमस्कार। हमारी प्यारी पिरसिस को मेरा नमस्कार, जिसने प्रभु में कड़ी मेहनत की है। 13 प्रभु में चुने हुए रूफुस को और उसकी माँ को मेरा नमस्कार, जो मेरी भी माँ जैसी है। 14 असुक्रितुस, फिलगोन, हिरमेस, पत्रुबास, हिरमास और उनके साथ के भाइयों को मेरा नमस्कार। 15 फिलु-लुगुस और यूलिया, नेरयुस और उसकी बहन और उलुम्पास और उनके साथ के सभी पवित्र जनों को मेरा नमस्कार। 16 पवित्र चुंबन से एक-दूसरे को नमस्कार करो। मसीह की सारी मंडलियाँ तुम्हें नमस्कार भेजती हैं।
17 भाइयो, अब मैं तुमसे गुज़ारिश करता हूँ कि जो लोग उस शिक्षा के खिलाफ जो तुमने पायी है, मंडली में फूट डालते हैं और किसी के लिए विश्वास की राह छोड़ देने की वजह* बनते हैं, उन पर नज़र रखो और उनसे दूर रहो।+ 18 क्योंकि इस तरह के आदमी हमारे प्रभु मसीह के दास नहीं हैं, बल्कि अपनी भूख मिटाने* में लगे रहते हैं और वे अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों और तारीफों से सीधे-सादे लोगों के दिलों को बहका देते हैं। 19 सब लोग जान गए हैं कि तुम कितने आज्ञाकारी हो, इसलिए मैं तुम्हारी वजह से खुशी मनाता हूँ। लेकिन मैं चाहता हूँ कि तुम अच्छी बातों के मामले में बुद्धिमान बनो, मगर बुरी बातों के मामले में अनजान रहो।+ 20 शांति देनेवाला परमेश्वर बहुत जल्द शैतान को तुम्हारे पैरों तले कुचल देगा।+ हमारे प्रभु यीशु की महा-कृपा तुम पर बनी रहे।
21 मेरा सहकर्मी तीमुथियुस और मेरे रिश्तेदार लूकियुस, यासोन और सोसिपत्रुस का तुम्हें नमस्कार।+
22 मैं तिरतियुस भी, जिसने यह चिट्ठी लिखी है, प्रभु में तुम्हें नमस्कार कहता हूँ।
23 गयुस+ जो मेरा और सारी मंडली का मेज़बान है, तुम्हें नमस्कार कहता है। इरास्तुस जो शहर का खजांची* है और उसके भाई क्वारतुस का तुम्हें नमस्कार। 24* —
25 मैं जो खुशखबरी सुनाता हूँ और यीशु मसीह के बारे में प्रचार करता हूँ उसके ज़रिए परमेश्वर तुम्हें मज़बूत कर सकता है। यह खुशखबरी उस पवित्र रहस्य+ के मुताबिक है जिसका खुलासा किया गया है। इस पवित्र रहस्य को पुराने ज़माने से राज़ रखा गया था, 26 मगर अब इसे ज़ाहिर किया जा रहा है। सदा कायम रहनेवाले परमेश्वर के आदेश के मुताबिक यह रहस्य, शास्त्र में लिखी भविष्यवाणियों के ज़रिए सब राष्ट्रों को बताया जा रहा है ताकि वे भी विश्वास करें और आज्ञा मानें। 27 यीशु मसीह के ज़रिए उस एकमात्र बुद्धिमान परमेश्वर+ की सदा महिमा होती रहे। आमीन।
शा., “बीज।”
या “तोहफा।”
या “बदला पा चुके।”
या “यह मंज़ूर नहीं था कि परमेश्वर के बारे में सही ज्ञान लें।”
या “गपशप करनेवाले।”
या “ज़बानी तौर पर सिखाया गया।”
शब्दावली देखें।
शा., “आरोप लगा चुके हैं।”
शा., “महिमा।”
या “परमेश्वर के साथ सुलह।”
अति. क5 देखें।
या “कर्ज़।”
या “माफ किए।”
अति. क5 देखें।
शा., “मुहर।” या “गारंटी।”
शा., “बीज।”
शा., “बीज।”
या शायद, “जो वजूद में नहीं है उसके बारे में ऐसे बात करता है जैसे वह वजूद में हो।”
शा., “बीज।”
या “बाँझ होने की हालत।”
या शायद, “हमारे पास शांति है।”
या शायद, “हम खुशी मनाते हैं।”
या शायद, “हम खुशी मनाते हैं।”
या “बरी; माफ किया।”
शा., “अंगों।”
शा., “अंगों।”
शब्दावली देखें।
शब्दावली देखें।
शा., “अंगों।”
शा., “क्या कानून पाप है?”
शा., “शारीरिक।”
शा., “अंगों।”
शा., “अंगों।”
शा., “पापी शरीर की समानता में।”
यह इब्रानी या अरामी भाषा का शब्द है जिसका मतलब है, “हे पिता!”
या “जो कही नहीं गयी।”
शा., “बीज।”
शा., “बीज।”
शा., “बीज।”
शा., “न तो चाहनेवाले पर निर्भर करता है, न ही दौड़नेवाले पर।”
शा., “अनादर।”
या “बचे हुए लोग।”
अति. क5 देखें।
अति. क5 देखें।
या “दरियादिल है।”
अति. क5 देखें।
अति. क5 देखें।
शा., “बीज।”
अति. क5 देखें।
या “की बड़ाई।”
या “शेखी मारते हुए।”
या “शेखी मारता है।”
या “उद्धारकर्ता।”
अति. क5 देखें।
या “ज़माने।” शब्दावली देखें।
या “उसके हिस्से में दिया; बाँटा है।”
या “दान देता।”
या “पूरे जोश।”
या “पहल करके।”
या “जोशीले।”
या “काम में ढीले मत बनो।”
अति. क5 देखें।
या “दिमाग में बड़े-बड़े खयाल मत पनपने दो।”
यानी परमेश्वर के क्रोध।
अति. क5 देखें।
यानी उसके सख्त दिल को पिघलाना और उसका गुस्सा शांत करना।
या “उन्हें सज़ा देते हैं।”
शब्दावली देखें।
या “शर्मनाक बरताव।” शब्दावली देखें।
या शायद, “निजी सवालों को लेकर गलत मत ठहराओ।”
अति. क5 देखें।
अति. क5 देखें।
अति. क5 देखें।
अति. क5 देखें।
अति. क5 देखें।
अति. क5 देखें।
अति. क5 देखें।
अति. क5 देखें।
या “निर्माण होता है।”
या “गलत।”
शा., “एक मुँह से।”
या “हमारा स्वागत किया।”
या “का स्वागत करो।”
अति. क5 देखें।
या “सिखाने।”
या शायद, “कुछ।”
या “पैरवी करनेवाली।”
शा., “अपनी गरदन।”
शा., “के साथ एकता में हैं।”
शा., “ठोकर की वजह।”
या “पेट भरने।”
या “प्रबंधक।”
अति. क3 देखें।