वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • nwt इब्रानियों 1:1-13:25
  • इब्रानियों

इस भाग के लिए कोई वीडियो नहीं है।

माफ कीजिए, वीडियो डाउनलोड नहीं हो पा रहा है।

  • इब्रानियों
  • पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद
पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद
इब्रानियों

इब्रानियों के नाम चिट्ठी

1 परमेश्‍वर ने गुज़रे ज़माने में, कई मौकों पर अलग-अलग तरीके से भविष्यवक्‍ताओं के ज़रिए हमारे पुरखों से बात की थी।+ 2 मगर अब इन दिनों के आखिर में उसने हमसे अपने बेटे के ज़रिए बात की है,+ जिसे उसने सब चीज़ों का वारिस ठहराया+ और जिसके ज़रिए उसने दुनिया की व्यवस्थाएँ* बनायीं।+ 3 इस बेटे में परमेश्‍वर की महिमा झलकती है+ और वह परमेश्‍वर की हू-ब-हू छवि है।+ वह अपने शक्‍तिशाली वचन से सब चीज़ों को सँभालता है। और हमारे पापों को धोकर हमें शुद्ध करने के बाद+ वह ऊँचे पर महामहिम के दायीं तरफ जा बैठा है।+ 4 इस तरह वह स्वर्गदूतों से भी श्रेष्ठ बन गया है।+ यहाँ तक कि वह ऐसे नाम का वारिस बन गया है जो उनके नाम से कहीं श्रेष्ठ है।+

5 मिसाल के लिए, परमेश्‍वर ने कब किसी स्वर्गदूत से कहा, “तू मेरा बेटा है, आज मैं तेरा पिता बना हूँ”?+ और फिर यह, “मैं उसका पिता बनूँगा और वह मेरा बेटा होगा”?+ 6 मगर उस वक्‍त के बारे में जब वह अपने पहलौठे+ को दोबारा इस धरती पर लाएगा, वह कहता है, “परमेश्‍वर के सारे स्वर्गदूत उसके आगे झुककर प्रणाम करें।”*

7 साथ ही, वह स्वर्गदूतों के बारे में कहता है, “वह अपने स्वर्गदूतों को ताकतवर बनाता है और अपने सेवकों*+ को आग की ज्वाला।”+ 8 मगर अपने बेटे के बारे में वह कहता है, “परमेश्‍वर हमेशा-हमेशा के लिए तेरी राजगद्दी है+ और तेरा राजदंड सीधाई* का राजदंड है। 9 तूने नेकी से प्यार किया और बुराई से नफरत की। इसीलिए परमेश्‍वर ने, हाँ, तेरे परमेश्‍वर ने तेरे साथियों से बढ़कर हर्ष के तेल से तेरा अभिषेक किया।”+ 10 और यह, “हे प्रभु, तूने शुरूआत में पृथ्वी की बुनियाद डाली थी, आकाश तेरे हाथ की रचना है। 11 वे तो नाश हो जाएँगे, मगर तू सदा कायम रहेगा। एक कपड़े की तरह वे सब पुराने हो जाएँगे 12 और तू उन्हें ऐसे लपेटकर रख देगा जैसे एक चोगे को, हाँ, एक कपड़े को लपेटकर रख दिया जाता है। वे बदल दिए जाएँगे। मगर तू हमेशा से जैसा था वैसा ही है, तेरी उम्र के साल कभी खत्म न होंगे।”+

13 मगर उसने कब किसी स्वर्गदूत के बारे में यह कहा, “तू तब तक मेरे दाएँ हाथ बैठ, जब तक कि मैं तेरे दुश्‍मनों को तेरे पाँवों की चौकी न बना दूँ”?+ 14 क्या ये सब पवित्र सेवा* करनेवाले स्वर्गदूत नहीं,+ जिन्हें उन लोगों की सेवा के लिए भेजा जाता है जो उद्धार पाएँगे?

2 इसलिए हमने जो बातें सुनी हैं, उन पर और भी ज़्यादा ध्यान देना ज़रूरी है+ ताकि हम कभी-भी बहकर दूर न चले जाएँ।+ 2 जब स्वर्गदूतों के ज़रिए कहा गया वचन+ इतना अटल साबित हुआ और उसके खिलाफ जिसने भी पाप किया और आज्ञा तोड़ी, उसे न्याय के मुताबिक सज़ा मिली,+ 3 तो हम उस उद्धार के मामले में जो इतना महान है, लापरवाही बरतकर कैसे बच सकेंगे?+ इसके बारे में सबसे पहले हमारे प्रभु ने बताया था+ और फिर जिन लोगों ने उससे यह सुना था उन्होंने हमारे लिए इसे पुख्ता किया। 4 परमेश्‍वर ने भी चिन्ह और चमत्कार दिखाकर और तरह-तरह के शक्‍तिशाली कामों के ज़रिए+ और अपनी मरज़ी के मुताबिक पवित्र शक्‍ति के वरदान बाँटकर इसकी गवाही दी है।+

5 परमेश्‍वर ने आनेवाली उस दुनिया को, जिसके बारे में हम बता रहे हैं, स्वर्गदूतों के अधीन नहीं किया।+ 6 मगर किसी गवाह ने कहा है, “इंसान है ही क्या कि तू उसका खयाल रखे? इंसान है ही क्या कि तू उसकी परवाह करे?+ 7 तूने उसे स्वर्गदूतों से कुछ कमतर बनाया। और उसे महिमा और आदर का ताज पहनाया और उसे अपने हाथ की रचनाओं पर अधिकार दिया। 8 तूने सबकुछ उसके पैरों तले कर दिया।”+ जब परमेश्‍वर ने सबकुछ उसके अधीन कर दिया+ तो उसने ऐसा कुछ भी नहीं छोड़ा जो उसके अधीन न किया हो।+ यह सच है कि अब तक हम सबकुछ उसके अधीन नहीं देखते,+ 9 मगर हम यीशु को देखते हैं जिसे स्वर्गदूतों से थोड़ा कमतर बनाया गया।+ और मौत का दुख झेलने की वजह से उसे महिमा और आदर का ताज पहनाया गया+ ताकि परमेश्‍वर की महा-कृपा से वह हर इंसान के लिए मौत का दुख झेले।+

10 सबकुछ परमेश्‍वर की खातिर और उसी के ज़रिए वजूद में है। और यह सही था कि परमेश्‍वर बहुत सारे बेटों को महिमा में लाने के लिए,+ उनके उद्धार के खास अगुवे को दुख सहने दे+ और इस तरह उसे परिपूर्ण बनाए।+ 11 इसलिए कि पवित्र करनेवाला और जो पवित्र किए जा रहे हैं,+ सब एक ही पिता से हैं+ इसलिए वह उन्हें भाई पुकारने में शर्मिंदा महसूस नहीं करता,+ 12 जैसा वह कहता है, “मैं अपने भाइयों में तेरे नाम का ऐलान करूँगा, मंडली के बीच गीत गाकर तेरी तारीफ करूँगा।”+ 13 और फिर यह, “मैं उस पर भरोसा रखूँगा।”+ और यह भी, “देखो! मैं और मेरे ये बच्चे जो यहोवा* ने मुझे दिए हैं।”+

14 इसलिए जैसे बच्चे हाड़-माँस के हैं, वह भी हाड़-माँस का बना+ ताकि अपनी मौत के ज़रिए उसे यानी शैतान*+ को मिटा दे, जिसके पास मार डालने की ताकत है+ 15 और उन सबको आज़ाद करे जो मौत के डर से पूरी ज़िंदगी गुलामी में पड़े थे।+ 16 वह असल में स्वर्गदूतों की नहीं बल्कि अब्राहम के वंश* की मदद कर रहा है।+ 17 इसीलिए ज़रूरी था कि वह हर मायने में अपने भाइयों जैसा बने+ ताकि वह परमेश्‍वर से जुड़ी बातों में एक दयालु और विश्‍वासयोग्य महायाजक बन सके और लोगों के पापों के लिए+ सुलह करानेवाला बलिदान चढ़ाए।*+ 18 उसने खुद भी उस वक्‍त बहुत दुख उठाया था जब उसकी परीक्षा ली जा रही थी,+ इसलिए अब वह उन लोगों की मदद करने के काबिल है जिनकी परीक्षा ली जा रही है।+

3 इसलिए पवित्र भाइयो, तुम जो स्वर्ग के बुलावे* में हिस्सेदार हो,+ उस प्रेषित और महायाजक यीशु पर ध्यान दो जिसे हम मानते हैं।+ 2 वह परमेश्‍वर का विश्‍वासयोग्य रहा जिसने उसे ठहराया था,+ जैसे मूसा भी परमेश्‍वर के सारे घराने में विश्‍वासयोग्य था।+ 3 जैसे घर से ज़्यादा उसके बनानेवाले को आदर दिया जाता है, वैसे ही उसे* मूसा से ज़्यादा महिमा के लायक समझा गया।+ 4 बेशक, हर घर का कोई-न-कोई बनानेवाला होता है मगर जिसने सबकुछ बनाया वह परमेश्‍वर है। 5 मूसा परमेश्‍वर के पूरे घराने में एक सेवक के नाते विश्‍वासयोग्य रहा। और उसकी सेवा से उन बातों की गवाही मिली, जो बाद में बतायी जातीं। 6 मगर मसीह तो परमेश्‍वर का बेटा है और वह उसके घराने के अधिकारी के नाते विश्‍वासयोग्य रहा।+ और परमेश्‍वर का घराना हम हैं,+ बशर्ते अंत तक हम बेझिझक बोलने की हिम्मत न खोएँ और उस आशा को मज़बूती से थामे रहें जिस पर हम गर्व करते हैं।

7 इसलिए पवित्र शक्‍ति कहती है,+ “आज अगर तुम उसकी आवाज़ सुनो, 8 तो अपना दिल कठोर मत कर लेना जैसे तुम्हारे पुरखों ने वीराने में किया था और मेरी परीक्षा लेकर मेरा क्रोध भड़काया था।+ 9 वहाँ उन्होंने मेरी परीक्षा लेकर मुझे चुनौती दी थी, इसके बावजूद कि उन्होंने 40 साल तक मेरे काम देखे थे।+ 10 इसी वजह से मुझे इस पीढ़ी से घिन हो गयी और मैंने कहा, ‘इन लोगों का दिल हमेशा भटक जाता है, इन्होंने मेरी राहों को नहीं जाना।’ 11 इसलिए मैंने क्रोध में आकर शपथ खायी, ‘ये मेरे विश्राम में दाखिल न होंगे।’”+

12 भाइयो, खबरदार रहो कि तुममें से कोई जीवित परमेश्‍वर से दूर न चला जाए और इस वजह से उसका दिल कठोर होकर इतना दुष्ट न हो जाए कि उसमें विश्‍वास न रहे।+ 13 मगर जिस दिन तक “आज”+ का दिन कहा जाएगा, तुम हर दिन एक-दूसरे का हौसला बढ़ाते रहो ताकि तुममें से कोई भी पाप की भरमाने की ताकत की वजह से कठोर न हो जाए। 14 क्योंकि हम सही मायनों में मसीह के साझेदार तभी बनते हैं, जब हम अपना वह भरोसा आखिर तक मज़बूत बनाए रखते हैं जो हमारे अंदर शुरू में था।+ 15 जैसा कि कहा भी गया है, “आज अगर तुम उसकी आवाज़ सुनो, तो अपना दिल कठोर मत कर लेना जैसे तुम्हारे पुरखों ने किया था और मेरा क्रोध भड़काया था।”+

16 वे कौन थे जिन्होंने परमेश्‍वर की आवाज़ सुनकर भी उसका क्रोध भड़काया था? क्या वे सभी लोग वही न थे जो मूसा के अधीन मिस्र से बाहर निकले थे?+ 17 वे कौन थे जिनसे परमेश्‍वर 40 साल तक घिन करता रहा?+ क्या वे लोग वही न थे जिन्होंने पाप किया और जिनकी लाशें वीराने में पड़ी रहीं?+ 18 और उसने किससे यह शपथ खायी कि वे उसके विश्राम में दाखिल नहीं होंगे? क्या उनसे नहीं जिन्होंने उसकी आज्ञाओं के खिलाफ काम किया था? 19 तो हम देख सकते हैं कि वे इसलिए विश्राम में दाखिल नहीं हो सके क्योंकि उनमें विश्‍वास नहीं था।+

4 इसलिए जबकि परमेश्‍वर के विश्राम में दाखिल होने का वादा अब तक बना हुआ है, तो आओ हम खबरदार रहें कि हममें से कोई भी इस विश्राम में दाखिल होने के अयोग्य न ठहरे।+ 2 क्योंकि हमें भी खुशखबरी सुनायी गयी है,+ ठीक जैसे उन्हें सुनायी गयी थी। मगर जो वचन उन्होंने सुना उससे उन्हें कुछ फायदा नहीं हुआ, क्योंकि उनमें उन लोगों जैसा विश्‍वास नहीं था जिन्होंने सुना था। 3 मगर हमने विश्‍वास किया है और विश्राम में दाखिल होते हैं। जहाँ तक उनकी बात है, उसने उनके बारे में कहा है, “इसलिए मैंने क्रोध में आकर शपथ खायी, ‘ये मेरे विश्राम में दाखिल न होंगे।’”+ जबकि वह खुद अपना काम पूरा करने के बाद दुनिया की शुरूआत से विश्राम कर रहा है।+ 4 एक जगह उसने सातवें दिन के बारे में कहा, “सातवें दिन परमेश्‍वर ने अपने सब कामों से विश्राम किया।”+ 5 और फिर यहाँ उसने कहा, “ये मेरे विश्राम में दाखिल न होंगे।”+

6 तो फिर कुछ लोगों का इस विश्राम में दाखिल होना बाकी है और जिन लोगों को पहले खुशखबरी सुनायी गयी थी, वे आज्ञा न मानने की वजह से उसमें दाखिल नहीं हुए।+ 7 इसलिए एक लंबे समय बाद वह दाविद के भजन में किसी दिन को “आज का दिन” कहता है, ठीक जैसा कि इस चिट्ठी में पहले कहा गया है, “आज अगर तुम उसकी आवाज़ सुनो, तो अपना दिल कठोर मत कर लेना।”+ 8 अगर यहोशू+ उन्हें विश्राम की जगह ले जा चुका होता, तो परमेश्‍वर बाद में एक और दिन की बात नहीं करता। 9 तो इसका मतलब परमेश्‍वर के लोगों के लिए सब्त का विश्राम बाकी है।+ 10 क्योंकि जो इंसान परमेश्‍वर के विश्राम में दाखिल हुआ है, उसने भी अपने कामों से विश्राम किया है, ठीक जैसे परमेश्‍वर ने किया था।+

11 इसलिए आओ हम उस विश्राम में दाखिल होने के लिए अपना भरसक करें ताकि हममें से कोई भी उन लोगों की तरह आज्ञा तोड़ने के ढर्रे में न पड़ जाए।+ 12 क्योंकि परमेश्‍वर का वचन जीवित है और ज़बरदस्त ताकत रखता है+ और दोनों तरफ तेज़ धार रखनेवाली तलवार से भी ज़्यादा धारदार है।+ यह इंसान के बाहरी रूप* को उसके अंदर के इंसान* से अलग करता है और हड्डियों* को गूदे तक आर-पार चीरकर अलग कर देता है और दिल के विचारों और इरादों को जाँच सकता है। 13 सृष्टि में ऐसी एक भी चीज़ नहीं जो परमेश्‍वर की नज़र से छिपी हो+ बल्कि हमें जिसको हिसाब देना है उसकी आँखों के सामने सारी चीज़ें खुली और बेपरदा हैं।+

14 इसलिए जब हमारा ऐसा महान महायाजक है यानी परमेश्‍वर का बेटा यीशु जो स्वर्ग में दाखिल हुआ है,+ तो आओ हम उसके बारे में सरेआम ऐलान करते रहें।+ 15 क्योंकि हमारा महायाजक ऐसा नहीं जो हमारी कमज़ोरियों में हमसे हमदर्दी न रख सके।+ मगर वह ऐसा है जो हमारी तरह सब बातों में परखा गया, फिर भी वह निष्पाप निकला।+ 16 इसलिए आओ हम परमेश्‍वर की महा-कृपा की राजगद्दी के सामने बेझिझक बोलने की हिम्मत के साथ जाएँ+ ताकि हम सही वक्‍त पर मदद पाने के लिए उसकी दया और महा-कृपा पा सकें।

5 हरेक महायाजक इंसानों में से लिया जाता है और उसे इंसानों की खातिर परमेश्‍वर की सेवा में ठहराया जाता है+ ताकि वह भेंट और पापों के प्रायश्‍चित के लिए बलिदान चढ़ाया करे।+ 2 वह उन लोगों के साथ करुणा से* पेश आने के काबिल होता है जो अनजाने में गलतियाँ करते हैं,* क्योंकि वह खुद भी अपनी कमज़ोरियों का सामना करता है।* 3 इसलिए उसे अपने पापों के लिए भी चढ़ावा चढ़ाना होता है, ठीक जैसे वह दूसरों के पापों के लिए चढ़ाता है।+

4 एक आदमी आदर का यह पद अपने आप नहीं ले लेता, मगर यह उसे तभी मिलता है जब परमेश्‍वर उसे ठहराता है, जैसे उसने हारून को ठहराया था।+ 5 उसी तरह, मसीह ने भी खुद महायाजक का पद लेकर अपनी महिमा नहीं की,+ बल्कि परमेश्‍वर ने उसे यह महिमा दी जिसने उससे कहा, “तू मेरा बेटा है, आज मैं तेरा पिता बना हूँ।”+ 6 उसने एक और जगह यह भी कहा, “तू मेल्कीसेदेक जैसा याजक है और तू हमेशा-हमेशा के लिए याजक रहेगा।”+

7 जब मसीह इस धरती पर ज़िंदा था, तो उसने ऊँची आवाज़ में पुकार-पुकारकर और आँसू बहा-बहाकर परमेश्‍वर से मिन्‍नतें और बिनतियाँ की थीं+ जो उसे मौत से बचा सकता था। और उसकी सुनी गयी क्योंकि वह परमेश्‍वर का डर मानता था। 8 परमेश्‍वर का बेटा होते हुए भी उसने कई दुख सहकर आज्ञा माननी सीखी।+ 9 और परिपूर्ण किए जाने* के बाद,+ उसे यह ज़िम्मेदारी दी गयी कि वह उन सबको हमेशा का उद्धार दिलाए जो उसकी आज्ञा मानते हैं,+ 10 क्योंकि उसे परमेश्‍वर ने महायाजक ठहराया ताकि वह मेल्कीसेदेक जैसा याजक हो।+

11 हमारे पास उसके बारे में कहने के लिए बहुत कुछ है मगर तुम्हें यह सब समझाना मुश्‍किल है, क्योंकि तुम ऊँचा सुनने लगे हो। 12 अब तक* तो तुम्हें दूसरों को सिखाने के काबिल बन जाना चाहिए था, मगर अब यह ज़रूरी हो गया है कि कोई तुम्हें परमेश्‍वर के पवित्र वचनों की बुनियादी बातें शुरूआत से सिखाए+ और तुम्हें फिर से दूध की ज़रूरत है न कि ठोस आहार की। 13 हर कोई जो दूध ही पीता रहता है वह सच्चाई के वचन से अनजान है, क्योंकि वह अभी तक बच्चा है।+ 14 मगर ठोस आहार तो बड़ों के लिए है, जो अपनी सोचने-समझने की शक्‍ति* का इस्तेमाल करते-करते, सही-गलत में फर्क करने के लिए इसे प्रशिक्षित कर लेते हैं।

6 जब हम मसीह के बारे में बुनियादी शिक्षाओं से आगे बढ़ चुके हैं,+ तो आओ हम पूरा ज़ोर लगाकर प्रौढ़ता के लक्ष्य की तरफ बढ़ते जाएँ।+ हम फिर से बुनियाद न डालें यानी हम दोबारा वही बातें न सीखते रहें जिनसे हमने शुरूआत की थी। जैसे बेकार के कामों* से फिरकर पश्‍चाताप करना, परमेश्‍वर पर विश्‍वास करना, 2 बपतिस्मों की शिक्षा, हाथ रखने,+ मरे हुओं के ज़िंदा होने+ और हमेशा के न्याय की शिक्षा। 3 और अगर परमेश्‍वर इजाज़त दे तो हम ज़रूर प्रौढ़ता के लक्ष्य तक बढ़ते जाएँगे।

4 जो लोग एक बार ज्ञान की रौशनी पा चुके हैं+ और जिन्होंने स्वर्ग से मिलनेवाले मुफ्त वरदान का स्वाद चखा है और जो पवित्र शक्‍ति के भागीदार बन चुके हैं 5 और जिन्होंने परमेश्‍वर के बढ़िया वचन का और आनेवाले ज़माने* की शक्‍तिशाली चीज़ों का स्वाद लिया है 6 मगर अब गिर गए हैं और दूर जा चुके हैं,+ उन्हें पश्‍चाताप करने के लिए वापस लाना नामुमकिन है। क्योंकि वे खुद परमेश्‍वर के बेटे को एक बार फिर काठ पर ठोंक देते हैं और सबके सामने उसे शर्मिंदा करते हैं।+ 7 जब परमेश्‍वर की आशीष से ज़मीन पर बार-बार बारिश होती है तो वह पानी को सोख लेती है और साग-सब्ज़ी उपजाती है जिससे जोतनेवालों को फायदा होता है। 8 लेकिन अगर वह काँटे और कँटीली झाड़ियाँ उगाए, तो उसे बेकार छोड़ दिया जाता है और उसे बहुत जल्द शाप दिया जाएगा और आखिर में जला दिया जाएगा।

9 हालाँकि हम इस तरह बात कर रहे हैं लेकिन प्यारे भाइयो, हमें यकीन है कि तुम बेहतर हालत में हो यानी ऐसी राह पर हो जिससे तुम उद्धार पा सकते हो। 10 क्योंकि परमेश्‍वर अन्यायी नहीं कि तुम्हारे काम और उस प्यार को भूल जाए जो तुम्हें उसके नाम के लिए है,+ यानी कैसे तुमने पवित्र जनों की सेवा की है और अब भी कर रहे हो। 11 मगर हम चाहते हैं कि तुममें से हर कोई इसी तरह मेहनत करता रहे ताकि आखिर तक तुम्हें अपनी आशा के पूरा होने का पक्का भरोसा रहे+ 12 जिससे कि तुम आलसी न हो जाओ,+ मगर उन लोगों की मिसाल पर चलो जो विश्‍वास और सब्र रखने की वजह से वादों के वारिस बनते हैं।

13 जब परमेश्‍वर ने अब्राहम से वादा किया तो उसने खुद अपनी शपथ खायी, क्योंकि परमेश्‍वर से बड़ा कोई नहीं जिसकी वह शपथ खाता। उसने अपनी शपथ खाकर+ 14 कहा, “मैं तुझे ज़रूर आशीष दूँगा और तुझे कई गुना बढ़ाऊँगा।”+ 15 इस तरह जब अब्राहम ने सब्र रखा, तो उससे वादा किया गया। 16 इंसान अपने से किसी बड़े की शपथ खाते हैं और उनकी शपथ हर विवाद का अंत होती है, क्योंकि शपथ इस बात को पुख्ता करती है कि उनका वादा सच्चा है।*+ 17 उसी तरह जब परमेश्‍वर ने फैसला किया कि वह वादे के वारिसों पर साफ ज़ाहिर करेगा+ कि उसका मकसद* नहीं बदल सकता, तो उसने शपथ खाकर अपने वादे को पुख्ता किया* 18 ताकि इन दो अटल बातों के ज़रिए जिनके बारे में परमेश्‍वर का झूठ बोलना नामुमकिन है+ हमें यानी हम जो भागकर परमेश्‍वर की शरण में आए हैं, ऐसा ज़बरदस्त हौसला मिले कि हम उस आशा पर पकड़ हासिल कर सकें जो हमारे सामने रखी है। 19 यह आशा+ हमारी ज़िंदगी के लिए एक लंगर है, जो पक्की और मज़बूत है। और यह आशा हमें परदे के उस पार ले जाती है,+ 20 जहाँ हमारा अगुवा यीशु हमारी खातिर दाखिल हो चुका है।+ वह हमेशा के लिए एक महायाजक बना ताकि वह मेल्कीसेदेक जैसा याजक हो।+

7 यह मेल्कीसेदेक जो शालेम का राजा और परम-प्रधान परमेश्‍वर का याजक था, अब्राहम से उस वक्‍त मिला जब वह राजाओं को मारकर लौट रहा था और उसने अब्राहम को आशीर्वाद दिया।+ 2 और अब्राहम ने उसे सब चीज़ों का दसवाँ हिस्सा दिया। यह मेल्कीसेदेक अपने नाम के मतलब के मुताबिक पहले तो “नेकी का राजा” है। और वह शालेम का राजा भी है यानी “शांति का राजा।” 3 उसका न तो कोई पिता, न कोई माँ, न ही कोई वंशावली है। उसके दिनों की न तो कोई शुरूआत है, न ही उसके जीवन का अंत बल्कि उसे परमेश्‍वर के बेटे जैसा ठहराया गया है। इसलिए वह सदा के लिए एक याजक बना रहता है।+

4 ज़रा सोचो कि यह आदमी कितना महान था जिसे परिवार के मुखिया* अब्राहम ने लूट की सबसे बढ़िया चीज़ों का दसवाँ हिस्सा दिया।+ 5 सच है कि कानून के मुताबिक लेवी के बेटों+ में से जिन्हें याजकपद मिलता है, उन्हें आज्ञा दी गयी है कि वे लोगों से यानी अपने भाइयों से दसवाँ हिस्सा इकट्ठा करें,+ इसके बावजूद कि उनके भाई अब्राहम के ही वंशज हैं। 6 मगर मेल्कीसेदेक ने, जो लेवी के खानदान का नहीं था, अब्राहम से दसवाँ हिस्सा लिया जिससे वादे किए गए थे और उसे आशीर्वाद दिया।+ 7 अब इस बात को कोई नकार नहीं सकता कि छोटा, बड़े से आशीर्वाद पाता है। 8 पहले मामले में यानी लेवियों के मामले में, दसवाँ हिस्सा पानेवाले ऐसे इंसान हैं जो मर जाते हैं। मगर इस दूसरे के मामले में यह गवाही दी गयी है कि वह ज़िंदा है।+ 9 और यह कहा जा सकता है कि लेवी ने भी, जो लोगों से दसवाँ हिस्सा पाता है, अब्राहम के ज़रिए खुद उस आदमी को दसवाँ हिस्सा दिया, 10 क्योंकि जब मेल्कीसेदेक अब्राहम से मिला था तब लेवी अपने पुरखे अब्राहम के शरीर में ही था।*+

11 तो फिर अगर लेवियों के याजकपद के ज़रिए वाकई परिपूर्णता हासिल की जाती,+ (जो कानून लोगों को दिया गया था उसका एक पहलू याजकपद था) तो क्या ज़रूरत थी कि एक और याजक ठहराया जाए जिसके बारे में कहा गया है कि वह मेल्कीसेदेक जैसा याजक हो+ न कि हारून जैसा? 12 इसलिए जब याजकपद बदला जा रहा है तो कानून को भी बदलना ज़रूरी हो जाता है।+ 13 क्योंकि जिस आदमी के बारे में ये बातें कही गयी हैं वह दूसरे गोत्र का है, जिसका कोई भी आदमी कभी-भी वेदी पर सेवा के लिए नहीं चुना गया था।+ 14 अब यह तो बिलकुल साफ है कि हमारा प्रभु यहूदा गोत्र से निकला था+ जबकि मूसा ने कभी नहीं कहा था कि उस गोत्र में से याजक आएँगे।

15 यह बात और भी साफ हो गयी है क्योंकि अब हमारे लिए एक और याजक+ आ चुका है जो मेल्कीसेदेक जैसा याजक है।+ 16 वह इसलिए याजक नहीं बना कि वह उस गोत्र से है जिसके वंशज कानून की माँग के मुताबिक याजक बन सकते थे, बल्कि वह उस शक्‍ति से याजक बना जो उसे अविनाशी जीवन देती है।+ 17 क्योंकि उसके बारे में यह गवाही दी गयी थी, “तू मेल्कीसेदेक जैसा याजक है और तू हमेशा-हमेशा के लिए याजक रहेगा।”+

18 तो फिर पिछला कानून इसलिए रद्द कर दिया गया क्योंकि वह कमज़ोर था और फायदे का नहीं था।+ 19 उस कानून ने कुछ भी परिपूर्ण नहीं किया+ मगर जब उससे भी बेहतर आशा+ दी गयी तो उससे परिपूर्ण होना मुमकिन हुआ और उसके ज़रिए हम परमेश्‍वर के करीब आ रहे हैं।+ 20 और यह आशा शपथ के साथ दी गयी थी। 21 (क्योंकि ऐसे आदमी भी हैं जो बिना शपथ के याजक बने हैं, मगर यह याजक ऐसा है जिसे परमेश्‍वर ने शपथ के साथ याजक ठहराया और उसके बारे में कहा, “यहोवा* ने शपथ खायी है और जो उसने सोचा है उसे नहीं बदलेगा,* ‘तू हमेशा-हमेशा के लिए याजक रहेगा।’”)+ 22 उसी के मुताबिक यीशु एक बेहतर करार का ज़ामिन* ठहरा है।+ 23 इसके अलावा, पहले एक-के-बाद-एक कइयों को याजक बनना होता था+ क्योंकि मौत उन्हें याजक के पद पर नहीं रहने देती थी। 24 मगर यह याजक हमेशा तक ज़िंदा रहता है+ इसलिए उसका याजकपद भी हमेशा तक बना रहता है और उसकी जगह कोई और नहीं लेता। 25 इसलिए जो उसके ज़रिए परमेश्‍वर के पास आते हैं, वह उनका पूरी तरह उद्धार करने के काबिल है। क्योंकि वह उनकी खातिर परमेश्‍वर से बिनती करने के लिए हमेशा ज़िंदा रहता है।+

26 हमारे लिए ऐसे ही महायाजक की ज़रूरत है जो वफादार, निर्दोष और बेदाग हो,+ पापियों जैसा न हो और जिसे आकाश से भी ऊँचा किया गया हो।+ 27 उसे उन महायाजकों की तरह हर दिन बलिदान चढ़ाने की ज़रूरत नहीं,+ जो पहले अपने पापों के लिए और फिर लोगों के पापों के लिए बलिदान चढ़ाते हैं।+ क्योंकि उसने एक ही बार और हमेशा-हमेशा के लिए खुद का बलिदान चढ़ा दिया।+ 28 कानून के मुताबिक ऐसे आदमियों को महायाजक ठहराया जाता है जिनमें कमज़ोरियाँ होती हैं।+ मगर कानून के बाद, जो वादा शपथ खाकर किया गया था+ उसके मुताबिक एक बेटे को महायाजक ठहराया गया है जिसे हमेशा-हमेशा के लिए परिपूर्ण किया गया है।+

8 हमारी बात का खास मुद्दा यह है: हमारा महायाजक ऐसा है+ और वह स्वर्ग में महामहिम की राजगद्दी के दाएँ हाथ जा बैठा है।+ 2 वह पवित्र जगह का और सच्चे तंबू का सेवक* बना+ जिसे किसी इंसान ने नहीं बल्कि यहोवा* ने खड़ा किया है। 3 हर महायाजक को भेंट और बलिदान चढ़ाने के लिए ठहराया जाता है। इसलिए यह ज़रूरी था कि इस महायाजक के पास भी चढ़ाने के लिए कुछ हो।+ 4 अगर वह धरती पर होता तो वह याजक न होता।+ क्योंकि यहाँ पहले से ही याजक हैं जो कानून के मुताबिक भेंट चढ़ाया करते हैं। 5 वे जो पवित्र सेवा करते हैं, वह स्वर्ग की चीज़ों+ का बस एक नमूना और उनकी छाया है,+ ठीक जैसे मूसा को उस वक्‍त बताया गया था जब वह तंबू को तैयार करनेवाला था। परमेश्‍वर ने उसे यह आज्ञा दी थी: “ध्यान रखना कि ये सारी चीज़ें ठीक उसी नमूने के मुताबिक बनायी जाएँ जो तुझे इस पहाड़ पर दिखाया गया है।”+ 6 मगर अब यीशु को इससे भी बेहतरीन सेवा* के लिए ठहराया गया है क्योंकि वह ऐसे करार का बिचवई भी है+ जो पहले करार से श्रेष्ठ है+ और जो बेहतर वादों के आधार पर कानूनी माँगों के मुताबिक किया गया है।+

7 अगर पहले करार में कोई दोष न होता, तो दूसरे करार की ज़रूरत ही नहीं होती।+ 8 क्योंकि परमेश्‍वर लोगों को यह कहकर दोषी ठहराता है, “यहोवा* कहता है, ‘देख! वे दिन आ रहे हैं जब मैं इसराएल के घराने और यहूदा के घराने के साथ एक नया करार करूँगा। 9 वह उस करार जैसा नहीं होगा जो मैंने उनके पुरखों के साथ उस दिन किया था जब मैं उन्हें हाथ पकड़कर मिस्र से निकाल लाया था।’+ यहोवा* कहता है, ‘वे मेरे करार के वफादार नहीं रहे, इसलिए मैंने उनकी परवाह करना छोड़ दिया।’”

10 “यहोवा* कहता है, ‘उन दिनों के बाद मैं इसराएल के घराने के साथ यही करार करूँगा। मैं अपने कानून उनके दिमाग में डालूँगा और उनके दिलों पर लिखूँगा।+ मैं उनका परमेश्‍वर होऊँगा और वे मेरे लोग होंगे।+

11 इसके बाद फिर कभी कोई अपने देश के लोगों को और अपने भाई को यह कहकर नहीं सिखाएगा, “यहोवा* को जान!” क्योंकि छोटे से लेकर बड़े तक, सब मुझे जानेंगे। 12 मैं उन पर दया करूँगा और उनके दुष्ट कामों और पापों को फिर कभी याद नहीं करूँगा।’”+

13 इस तरह उसने “नए करार” की बात कहकर पहले करार को रद्द कर दिया है।+ और जो रद्द कर दिया गया है और पुराना होता जा रहा है, वह अब मिटनेवाला है।+

9 उस पहले करार में पवित्र सेवा के लिए कानूनी माँगें हुआ करती थीं और धरती पर एक पवित्र जगह भी थी।+ 2 इस तंबू का जो पहला भाग बनाया गया था और जिसमें दीवट,+ मेज़ और चढ़ावे की रोटियाँ*+ रखी गयी थीं, वह पवित्र जगह+ कहलाता है। 3 मगर दूसरे परदे+ के पीछे परम-पवित्र+ कहलानेवाला भाग था। 4 इस भाग में सोने का एक धूपदान+ और करार का वह संदूक+ था जो पूरा-का-पूरा सोने से मढ़ा हुआ था।+ संदूक के अंदर सोने का वह मर्तबान था जिसमें मन्‍ना+ था और हारून की वह छड़ी थी जिसमें कलियाँ निकल आयी थीं+ और करार की पटियाएँ+ थीं। 5 इस संदूक के ऊपर शानदार करूब बने थे, जो प्रायश्‍चित के ढकने* पर छाया किए हुए थे।+ मगर अभी इन सब चीज़ों का ब्यौरा नहीं दिया जा सकता।

6 जब ये सारी चीज़ें इस तरह बना दी गयीं, तो याजक पवित्र सेवा के काम करने के लिए पहले भाग में नियमित तौर पर जाया करते थे।+ 7 मगर दूसरे भाग में सिर्फ महायाजक जाता था और वह भी साल में सिर्फ एक बार।+ लेकिन वह उस खून के बिना नहीं जाता था,+ जो वह खुद अपने पापों के लिए+ और लोगों के अनजाने में किए पापों के लिए चढ़ाता था।+ 8 इस तरह पवित्र शक्‍ति साफ दिखाती है कि पवित्र जगह* में जाने का रास्ता तब तक नहीं खोला गया जब तक पहला तंबू* खड़ा रहा।+ 9 यह तंबू आज के समय के लिए एक नमूना है+ और इस इंतज़ाम के मुताबिक भेंट और बलिदान चढ़ाए जाते हैं।+ मगर ये बलिदान और भेंट पवित्र सेवा करनेवाले इंसान को पूरी तरह से शुद्ध ज़मीर नहीं दे सकते।+ 10 ये भेंट और बलिदान सिर्फ खान-पान और शुद्धिकरण की अलग-अलग विधियों* से जुड़े हैं।+ ये शरीर के बारे में कानूनी माँगें थीं+ और ये तब तक के लिए लागू होनी थीं, जब तक कि सब बातों के सुधार का वक्‍त नहीं आ जाता।

11 लेकिन जब मसीह महायाजक बनकर आया कि हमारे लिए वे बढ़िया आशीषें लाए जो हमें मिल चुकी हैं, तो वह ऐसे तंबू में दाखिल हुआ जो और भी श्रेष्ठ और परिपूर्ण है। यह तंबू इंसान के हाथ का बनाया हुआ नहीं है यानी इस धरती की सृष्टि का हिस्सा नहीं है। 12 वह बकरों और बैलों का खून लेकर नहीं बल्कि खुद अपना खून लेकर, हमेशा-हमेशा के लिए एक ही बार पवित्र जगह में दाखिल हुआ+ और हमें सदा के लिए छुटकारा दिलाया।*+ 13 अगर बकरों और बैलों के खून से+ और दूषित लोगों पर कलोर* की राख छिड़कने से उनका शरीर परमेश्‍वर की नज़र में शुद्ध ठहरता है,+ 14 तो फिर मसीह का खून,+ जिसने सदा तक कायम रहनेवाली पवित्र शक्‍ति के ज़रिए खुद को एक निर्दोष बलिदान के तौर पर परमेश्‍वर के सामने अर्पित किया, हमारे ज़मीर को बेकार के कामों* से और कितना ज़्यादा शुद्ध कर सकता है+ ताकि हम जीवित परमेश्‍वर की पवित्र सेवा कर सकें!+

15 इसी वजह से वह एक नए करार का बिचवई है+ ताकि जो बुलाए गए हैं वे सदा तक कायम रहनेवाली विरासत का वादा पा सकें।+ यह सब उसकी मौत की वजह से मुमकिन हुआ है, जो फिरौती देकर उन्हें उन पापों से छुटकारा दिलाती है+ जो उन्होंने पहले करार के अधीन रहते वक्‍त किए थे। 16 जब कोई करार किया जाता है, तो करार करनेवाले इंसान की मौत होना ज़रूरी है। 17 क्योंकि एक करार तब जाकर ही लागू होता है जब करार करनेवाले की मौत होती है। जब तक वह इंसान ज़िंदा है तब तक वह करार लागू नहीं हो सकता। 18 इसी वजह से पहला करार भी खून के आधार पर ही पक्का किया गया था। 19 जब मूसा ने सब लोगों के सामने कानून की हर आज्ञा पढ़कर सुनायी, तो उसने बैलों और बकरों के खून के साथ पानी लिया और सुर्ख लाल ऊन और मरुए से करार की किताब* पर और सब लोगों पर छिड़का 20 और कहा, “यह खून उस करार को पक्का करता है जिसे मानने की आज्ञा परमेश्‍वर ने तुम सबको दी है।”+ 21 उसने तंबू और पवित्र सेवा* में इस्तेमाल होनेवाले सभी बरतनों पर भी इसी तरह खून छिड़का।+ 22 हाँ, कानून के मुताबिक करीब-करीब सारी चीज़ें खून से शुद्ध की जाती हैं।+ और जब तक खून नहीं बहाया जाता तब तक हरगिज़ माफी नहीं मिलती।+

23 इसलिए यह ज़रूरी था कि स्वर्ग की चीज़ों के ये नमूने+ जानवरों के खून से शुद्ध किए जाएँ,+ मगर स्वर्ग की चीज़ें ऐसे बलिदानों से शुद्ध की जाएँ जो जानवरों के बलिदानों से कहीं बढ़कर हों। 24 क्योंकि मसीह, इंसान के हाथ की बनायी किसी पवित्र जगह में दाखिल नहीं हुआ+ जो असल की बस एक नकल है,+ बल्कि वह स्वर्ग ही में दाखिल हुआ+ इसलिए अब वह हमारी खातिर परमेश्‍वर के सामने* हाज़िर है।+ 25 मसीह बार-बार अपना बलिदान नहीं चढ़ाएगा, जैसे महायाजक साल-दर-साल जानवरों का खून लेकर पवित्र जगह में दाखिल होता था।+ 26 अगर मसीह को बार-बार अपना बलिदान चढ़ाना होता, तो उसे दुनिया की शुरूआत से कितनी ही बार दुख उठाना पड़ता। मगर अब उसने दुनिया की व्यवस्थाओं* के आखिरी वक्‍त में एक ही बार हमेशा के लिए खुद को ज़ाहिर किया है ताकि अपना बलिदान देकर पाप मिटा दे।+ 27 और जैसा इंसानों के लिए एक बार मरना तय है, मगर इसके बाद उनका न्याय होगा। 28 उसी तरह, मसीह भी बहुतों का पाप उठाने के लिए एक ही बार हमेशा के लिए बलिदान किया गया।+ और जब वह दूसरी बार आएगा, तो पाप मिटाने* के लिए नहीं आएगा और उसे वे लोग देखेंगे जो उद्धार पाने के लिए बड़ी बेताबी से उसका इंतज़ार कर रहे हैं।+

10 कानून आनेवाली अच्छी बातों की बस एक छाया है,+ मगर असलियत नहीं। यह* साल-दर-साल चढ़ाए जानेवाले एक ही तरह के बलिदानों से परमेश्‍वर की उपासना करनेवालों को कभी परिपूर्ण नहीं बना सकता।+ 2 अगर ऐसा होता तो क्या बलिदान चढ़ाना बंद नहीं हो जाता? क्योंकि बलिदान लानेवाले* जब एक बार शुद्ध हो जाते, तो उन्हें फिर कभी पापी होने का एहसास नहीं रहता। 3 इसके बजाय, इन बलिदानों से लोगों को साल-दर-साल उनके पाप याद दिलाए जाते हैं+ 4 क्योंकि यह मुमकिन नहीं कि बैलों और बकरों का खून पापों को मिटा सके।

5 इसलिए जब मसीह दुनिया में आया तो उसने कहा, “‘तूने बलिदान और चढ़ावा नहीं चाहा, मगर तूने मेरे लिए एक शरीर तैयार किया। 6 तूने न होम-बलियों को मंज़ूर किया न पाप-बलियों को।’+ 7 तब मैंने कहा, ‘हे परमेश्‍वर, देख! मैं तेरी मरज़ी पूरी करने आया हूँ (ठीक जैसे खर्रे में* मेरे बारे में लिखा है)।’”+ 8 कानून के मुताबिक चढ़ाए जानेवाले बलिदानों के बारे में पहले वह कहता है, “तूने बलिदान और चढ़ावे और होम-बलियाँ और पाप-बलियाँ नहीं चाहीं और न ही उन्हें मंज़ूर किया।” 9 फिर वह कहता है, “देख! मैं तेरी मरज़ी पूरी करने आया हूँ।”+ वह पहले इंतज़ाम को खत्म कर देता है ताकि दूसरा इंतज़ाम शुरू करे। 10 जिस “मरज़ी”+ के बारे में उसने कहा, उसी के मुताबिक हमें पवित्र किया गया क्योंकि यीशु मसीह ने एक ही बार हमेशा के लिए अपना शरीर बलि कर दिया।+

11 इसके अलावा, हर याजक पवित्र सेवा* के लिए हर दिन अपनी जगह पर खड़ा होता है+ और बार-बार वही बलिदान चढ़ाता है,+ जो कभी-भी पापों को पूरी तरह नहीं मिटा सकते।+ 12 मगर इस इंसान ने पापों के लिए एक ही बलिदान हमेशा के लिए चढ़ा दिया और परमेश्‍वर के दाएँ हाथ जा बैठा।+ 13 तब से वह उस वक्‍त का इंतज़ार कर रहा है जब उसके दुश्‍मनों को उसके पाँवों की चौकी बना दिया जाएगा।+ 14 उसने एक ही बलिदान चढ़ाकर उन लोगों को हमेशा के लिए परिपूर्ण कर दिया है जो पवित्र किए जा रहे हैं।+ 15 और परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति भी हमें इस बात के सच होने की गवाही देती है, क्योंकि यह पहले कहती है, 16 “यहोवा* कहता है, ‘उन दिनों के बाद मैं उनके साथ यही करार करूँगा। मैं अपने कानून उनके दिलों में डालूँगा और उनके दिमाग पर लिखूँगा।’”+ 17 फिर वह कहती है, “मैं उनके पापों और दुष्ट कामों को फिर कभी याद नहीं करूँगा।”+ 18 जिन पापों की माफी मिल गयी है, उनके लिए दोबारा बलिदान चढ़ाने की ज़रूरत नहीं।

19 तो भाइयो, हमें यीशु के खून के ज़रिए उस राह पर चलने की हिम्मत मिली* है जो पवित्र जगह ले जाती है।+ 20 उसने यह नयी और जीवित राह खोली* है जो परदे को पार करके जाती है+ और यह परदा उसका शरीर है। 21 और हमारे पास ऐसा महान याजक है जो परमेश्‍वर के घराने का अधिकारी है।+ 22 तो आओ हम सच्चे दिल से और पूरे विश्‍वास से परमेश्‍वर के पास जाएँ। क्योंकि हमारे दिलों पर छिड़काव करके हमारे दुष्ट ज़मीर को शुद्ध किया गया है+ और हमारे शरीर को शुद्ध पानी से नहलाया गया है।+ 23 आओ हम बिना डगमगाए अपनी आशा का सब लोगों के सामने ऐलान करते रहें,+ क्योंकि जिसने वादा किया है वह विश्‍वासयोग्य है। 24 और आओ हम एक-दूसरे में गहरी दिलचस्पी लें* ताकि एक-दूसरे को प्यार और भले काम करने का बढ़ावा दे सकें*+ 25 और एक-दूसरे के साथ इकट्ठा होना* न छोड़ें,+ जैसा कुछ लोगों का दस्तूर है बल्कि एक-दूसरे की हिम्मत बँधाएँ।+ और जैसे-जैसे तुम उस दिन को नज़दीक आता देखो, यह और भी ज़्यादा किया करो।+

26 एक बार सच्चाई का सही ज्ञान पाने के बाद अगर हम जानबूझकर पाप करते रहें,+ तो हमारे पापों के लिए कोई बलिदान बाकी नहीं रहता।+ 27 मगर सिर्फ भयानक सज़ा और क्रोध की ज्वाला बाकी रह जाती है जो विरोधियों को भस्म कर देगी।+ 28 जो इंसान कानून तोड़ता है उसे दो या तीन गवाहों के बयान पर मार डाला जाता है और उस पर दया नहीं की जाती।+ 29 तो सोचो कि वह इंसान और भी कितनी बड़ी सज़ा के लायक समझा जाएगा, जो परमेश्‍वर के बेटे को पैरों तले रौंदता है और करार के उस खून को मामूली समझता है+ जिसके ज़रिए उसे पवित्र किया गया था और जिसने पवित्र शक्‍ति के ज़रिए की गयी महा-कृपा का घोर अपमान किया है।+ 30 क्योंकि हम परमेश्‍वर को जानते हैं जिसने कहा है, “बदला लेना मेरा काम है, मैं ही बदला चुकाऊँगा।” और यह भी लिखा है, “यहोवा* अपने लोगों का न्याय करेगा।”+ 31 जीवित परमेश्‍वर के हाथों में पड़ना भयानक बात है।

32 मगर तुम उन बीते दिनों को याद करते रहो जब तुमने ज्ञान की रौशनी पाने के बाद+ कड़ा संघर्ष करते हुए मुश्‍किलें सही थीं और धीरज धरा था। 33 कभी सरेआम तुम्हारा मज़ाक उड़ाया गया* और तुम्हें सताया गया, तो कभी तुम यह सब सहनेवालों के साथ उनके दुखों में भागीदार बने।* 34 तुमने उन लोगों के साथ हमदर्दी जतायी जो कैद में थे। और जब तुम्हारी चीज़ें लूटी गयीं तो तुमने खुशी से यह सह लिया+ क्योंकि तुम जानते थे कि तुम्हारे पास ऐसी संपत्ति है जो कहीं बेहतर है और सदा कायम रहेगी।+

35 इसलिए हिम्मत के साथ बेझिझक बोलना मत छोड़ो, क्योंकि तुम्हें इसका बड़ा इनाम दिया जाएगा।+ 36 तुम्हें धीरज धरने की ज़रूरत है+ ताकि परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी करने के बाद तुम वह पा सको जिसका वादा परमेश्‍वर ने किया है। 37 बस अब “थोड़ा ही वक्‍त” बाकी रह गया है+ और “जो आनेवाला है वह आएगा और देर नहीं करेगा।”+ 38 “लेकिन मेरा नेक जन अपने विश्‍वास से ज़िंदा रहेगा”+ और “अगर वह पीछे हट जाए तो मैं उससे खुश नहीं होऊँगा।”+ 39 हम पीछे हटकर नाश होनेवालों में से नहीं,+ बल्कि उनमें से हैं जो विश्‍वास रखते हैं ताकि अपना जीवन बचा सकें।

11 विश्‍वास, आशा की हुई बातों का पूरे भरोसे के साथ इंतज़ार करना है+ और उन असलियतों का साफ सबूत* है, जो अभी दिखायी नहीं देतीं। 2 क्योंकि विश्‍वास की वजह से पुराने ज़माने के लोगों* ने अपने बारे में गवाही पायी कि परमेश्‍वर उनसे खुश है।

3 विश्‍वास ही से हम यह समझ पाते हैं कि परमेश्‍वर के वचन से दुनिया की व्यवस्थाएँ* ठहरायी गयीं, इसलिए जो दिखायी दे रहा है वह उन चीज़ों से आया है जो दिखायी नहीं देतीं।

4 विश्‍वास ही से हाबिल ने परमेश्‍वर को ऐसा बलिदान चढ़ाया जो कैन के बलिदान से श्रेष्ठ था।+ और इसी विश्‍वास की वजह से उसे गवाही दी गयी कि वह नेक है क्योंकि परमेश्‍वर ने उसकी भेंट मंज़ूर की थी।+ हालाँकि हाबिल मर चुका है मगर अपने विश्‍वास की वजह से वह आज भी बोलता है।+

5 विश्‍वास की वजह से ही हनोक+ दूसरी जगह पहुँचा दिया गया ताकि वह मौत का मुँह न देखे। और वह कहीं नहीं पाया गया क्योंकि परमेश्‍वर ने उसे दूसरी जगह पहुँचा दिया था।+ मगर उसके जाने से पहले उसे यह गवाही दी गयी कि उसने परमेश्‍वर को खुश किया है। 6 विश्‍वास के बिना परमेश्‍वर को खुश करना नामुमकिन है, क्योंकि जो उसके पास आता है उसे यकीन करना होगा कि परमेश्‍वर सचमुच है* और वह उन लोगों को इनाम देता है जो पूरी लगन से उसकी खोज करते हैं।+

7 विश्‍वास ही से नूह+ ने परमेश्‍वर का डर मानकर अपने परिवार को बचाने के लिए एक जहाज़ बनाया+ क्योंकि परमेश्‍वर ने उसे उन चीज़ों के बारे में चेतावनी दी जो उस वक्‍त तक दिखायी नहीं दे रही थीं।+ इसी विश्‍वास की वजह से उसने दुनिया को सज़ा के लायक ठहराया+ और उसके विश्‍वास की वजह से ही उसे नेक समझा गया।

8 विश्‍वास ही से अब्राहम+ ने बुलाए जाने पर आज्ञा मानी और उस जगह के लिए निकल पड़ा जो उसे विरासत में मिलनेवाली थी। वह नहीं जानता था कि वह कहाँ जा रहा है, फिर भी वह गया।+ 9 विश्‍वास की वजह से वह वादा किए गए देश में ऐसे रहा जैसे एक पराए देश में रह रहा हो।+ और वह इसहाक और याकूब के साथ तंबुओं में रहा+ जो उसके साथ उसी वादे के वारिस थे।+ 10 क्योंकि वह एक ऐसे शहर के इंतज़ार में था जो सच्ची बुनियाद पर खड़ा है, जिसका रचनेवाला* और बनानेवाला परमेश्‍वर है।+

11 विश्‍वास ही से सारा ने गर्भवती होने की शक्‍ति पायी, हालाँकि उसके बच्चे पैदा करने की उम्र बीत चुकी थी+ क्योंकि उसने माना था कि जिस परमेश्‍वर ने वादा किया है वह विश्‍वासयोग्य* है। 12 इसलिए उस एक आदमी से जो मानो बेजान था,+ आसमान के तारों और समुंदर किनारे की रेत के कणों जितनी अनगिनत संतान पैदा हुई।+

13 ये सभी लोग विश्‍वास रखते हुए मर गए, हालाँकि उन्होंने वह सब नहीं पाया जिसका उनसे वादा किया गया था।+ फिर भी उन्होंने वादा की गयी बातों को दूर ही से देखा+ और उनसे खुशी पायी। और सब लोगों के सामने ऐलान किया कि वे उस देश में अजनबी और मुसाफिर हैं। 14 क्योंकि जो इस तरह की बातें कहते हैं वे साबित करते हैं कि वे पूरी लगन से उस जगह की खोज में हैं जो उनकी अपनी होगी। 15 और अगर वे उस देश को याद करते रहते जिसे वे छोड़कर आए थे,+ तो उनके पास वापस लौटने का मौका था। 16 मगर अब वे एक बढ़िया जगह पाने की कोशिश में आगे बढ़ रहे हैं, जिसका नाता स्वर्ग से है। इसलिए परमेश्‍वर खुद को उनका परमेश्‍वर कहने से शर्मिंदा नहीं होता+ और उसने उनके लिए एक शहर तैयार किया है।+

17 विश्‍वास ही से अब्राहम ने, जब उसकी परीक्षा ली गयी थी,+ इसहाक को मानो बलि चढ़ा ही दिया था। हाँ, जिसने खुशी-खुशी वादों को स्वीकार किया था, वह अपने इकलौते बेटे की बलि चढ़ाने को तैयार हो गया,+ 18 हालाँकि उससे कहा गया था, “तुझसे जिस वंश* का वादा किया गया है वह इसहाक से आएगा।”+ 19 उसे यकीन था कि परमेश्‍वर उसके बेटे को मरे हुओं में से भी ज़िंदा करने के काबिल है। और वाकई उसने अपने बेटे को मौत के मुँह से वापस पाया। यह आनेवाली बातों की एक मिसाल बना।+

20 विश्‍वास ही से इसहाक ने आनेवाली बातों के बारे में याकूब और एसाव को आशीर्वाद दिया।+

21 विश्‍वास ही से याकूब ने अपनी मौत से पहले,+ यूसुफ के दोनों बेटों को आशीर्वाद दिया+ और अपनी लाठी के सिरे का सहारा लेकर परमेश्‍वर की उपासना की।+

22 विश्‍वास ही से यूसुफ ने अपनी मौत से पहले बताया कि इसराएली एक दिन मिस्र से निकल जाएँगे और उसने अपनी हड्डियों* के बारे में आज्ञा* दी।+

23 विश्‍वास ही से मूसा के माता-पिता ने उसके पैदा होने के बाद तीन महीने तक उसे छिपाए रखा+ क्योंकि उन्होंने देखा कि बच्चा बहुत सुंदर है+ और वे राजा के हुक्म से नहीं डरे।+ 24 विश्‍वास ही से मूसा ने बड़े होने पर,+ फिरौन की बेटी का बेटा कहलाने से इनकार कर दिया।+ 25 और चंद दिनों के लिए पाप का सुख भोगने के बजाय, उसने परमेश्‍वर के लोगों के साथ दुख भोगने का चुनाव किया। 26 उसने समझा कि परमेश्‍वर का अभिषिक्‍त जन होने के नाते बेइज़्ज़ती सहना, मिस्र के खज़ानों से भी बड़ी दौलत है क्योंकि वह अपनी नज़र इनाम पाने पर टिकाए हुए था। 27 विश्‍वास ही से उसने मिस्र छोड़ दिया,+ मगर राजा के क्रोध के डर से नहीं+ क्योंकि वह उस अदृश्‍य परमेश्‍वर को मानो देखता हुआ डटा रहा।+ 28 विश्‍वास ही से मूसा ने फसह का त्योहार मनाया और दरवाज़े की चौखटों पर खून छिड़का ताकि नाश करनेवाला उनके पहलौठों को कोई नुकसान न पहुँचाए।*+

29 विश्‍वास ही से उन्होंने लाल सागर को ऐसे पार किया जैसे सूखी ज़मीन पर चल रहे हों।+ मगर जब मिस्रियों ने पार करने की कोशिश की, तो उन्हें सागर ने निगल लिया।+

30 विश्‍वास ही से जब इसराएलियों ने सात दिन तक यरीहो शहर की दीवारों के चक्कर काटे तब वे ढह गयीं।+ 31 विश्‍वास की वजह से ही राहाब नाम की वेश्‍या उन लोगों के साथ नाश नहीं हुई जो आज्ञा नहीं मानते थे, क्योंकि उसने जासूसों को शांति से अपने यहाँ ठहराया था।+

32 और किस किसका नाम गिनवाऊँ? अगर मैं गिदोन,+ बाराक,+ शिमशोन,+ यिप्तह,+ दाविद,+ साथ ही शमूएल+ और दूसरे भविष्यवक्‍ताओं के बारे में बताऊँ तो समय कम पड़ जाएगा। 33 विश्‍वास की वजह से ही इन लोगों ने हुकूमतों को हराया,+ नेकी को बढ़ावा दिया, इनसे वादे किए गए,+ इन्होंने शेरों का मुँह बंद किया,+ 34 आग की तपिश मिटा दी,+ तलवार की धार से बच निकले,+ उन्हें कमज़ोर हालत में ताकतवर बनाया गया,+ वे युद्ध में वीर निकले+ और उन्होंने हमला करती सेनाओं को खदेड़ा।+ 35 औरतों ने अपने मरे हुए अज़ीज़ों को वापस पाया।+ और दूसरे लोग ऐसे थे जिन्हें तड़पा-तड़पाकर मार डाला गया क्योंकि उन्हें किसी भी तरह की फिरौती देकर छुटकारा पाना मंज़ूर नहीं था ताकि वे मरने के बाद बेहतर तरीके से ज़िंदा किए जाएँ। 36 हाँ, कितने ऐसे थे जिनकी खिल्ली उड़ायी गयी और जिन्हें कोड़े लगाए गए। इतना ही नहीं, उन्हें ज़ंजीरों में बाँधा गया+ और कैद में डाला गया+ और इस तरह वे आज़माए गए। 37 उन्हें पत्थरों से मार डाला गया,+ उनकी परीक्षा हुई, उन्हें आरे से चीरा गया और तलवार से मार डाला गया।+ वे भेड़ों और बकरों की खाल पहने फिरते थे+ और तंगी, मुसीबतें+ और बदसलूकी सहते रहे+ 38 और यह दुनिया उनके लायक नहीं थी। वे रेगिस्तानों, पहाड़ों, गुफाओं और धरती की माँदों में भटकते रहे।+

39 इन सभी ने हालाँकि अपने विश्‍वास के ज़रिए अपने बारे में अच्छी गवाही पायी थी, फिर भी उन्होंने वादा पूरा होते हुए नहीं देखा। 40 क्योंकि परमेश्‍वर ने पहले से सोच रखा था कि वह हमें कुछ बेहतर देगा+ ताकि वे हमारे बगैर परिपूर्ण न बनाए जाएँ।

12 इसलिए जब गवाहों का ऐसा घना बादल हमें घेरे हुए है, तो आओ हम हरेक बोझ को और उस पाप को जो आसानी से हमें उलझा सकता है, उतार फेंकें+ और उस दौड़ में जिसमें हमें दौड़ना है धीरज से दौड़ते रहें+ 2 और यीशु पर नज़र टिकाए रहें जो हमारे विश्‍वास का खास अगुवा और इसे परिपूर्ण करनेवाला है।+ उसने उस खुशी के लिए जो उसके सामने थी, यातना के काठ* पर मौत सह ली और शर्मिंदगी की ज़रा भी परवाह नहीं की और अब वह परमेश्‍वर की राजगद्दी के दायीं तरफ बैठा है।+ 3 हाँ, उस पर अच्छी तरह ध्यान दो जिसने पापियों के मुँह से ऐसी बुरी-बुरी बातें सहीं+ जिनसे वे खुद ही दोषी ठहरे ताकि तुम थककर हार न मानो।+

4 पाप से लड़ने में तुमने अब तक इतना संघर्ष नहीं किया कि तुम्हारा खून बहे। 5 मगर तुम इस नसीहत को, जिसमें तुम्हें बेटे पुकारा गया है, पूरी तरह से भूल गए हो: “मेरे बेटे, यहोवा* की शिक्षा को हलकी बात न समझ और जब वह तुझे सुधारे, तो हिम्मत मत हार 6 क्योंकि यहोवा* जिससे प्यार करता है उसे सुधारता भी है। दरअसल वह जिसे अपना बेटा मानकर अपनाता है उसे कोड़े भी लगाता है।”*+

7 तुम इसे यह समझकर सह लो कि तुम्हें सुधारा जा रहा है।* परमेश्‍वर तुम्हें अपने बेटे मानकर तुम्हारे साथ ऐसे पेश आ रहा है,+ क्योंकि ऐसा कौन-सा बेटा है जिसे पिता नहीं सुधारता?+ 8 लेकिन अगर तुम सबको इस तरह सुधारा न जाए, तो तुम असल में बेटे नहीं नाजायज़ औलाद हो। 9 यही नहीं, हमारे पिता भी हमें सुधारा करते थे और हम उनका आदर करते थे। तो क्या हमें उस पिता के, जिसने हमें पवित्र शक्‍ति से जीवन दिया है, और भी ज़्यादा अधीन नहीं रहना चाहिए ताकि हम जीते रहें?+ 10 हमारे पिताओं ने तो जैसा उन्हें ठीक लगा वैसे हमें सुधारा और वह भी कुछ समय के लिए। लेकिन परमेश्‍वर हमारे फायदे के लिए हमें सुधारता है ताकि हम उसकी तरह पवित्र बनें।+ 11 यह सच है कि जब भी किसी को सुधारा जाता है तो उस वक्‍त उसे खुशी नहीं होती बल्कि बहुत दुख* होता है, मगर जो इस तरह का प्रशिक्षण पाते हैं उनके लिए इससे शांति और नेकी पैदा होती है।

12 इसलिए ढीले हाथों और कमज़ोर घुटनों को मज़बूत करो।+ 13 और अपने कदमों के लिए सीधा रास्ता बनाते रहो+ ताकि जो पैर कमज़ोर है वह जोड़ से उखड़ न जाए बल्कि स्वस्थ हो जाए। 14 सब लोगों के साथ शांति बनाए रखने+ और पवित्र बने रहने की कोशिश करते रहो+ जिसके बिना कोई भी इंसान प्रभु को नहीं देखेगा। 15 इस बात का खास ध्यान रखो कि तुममें से कोई भी परमेश्‍वर की महा-कृपा पाने से चूक न जाए ताकि तुम्हारे बीच कोई ज़हरीली जड़ न पैदा हो जो मुसीबत खड़ी करे और बहुत-से लोग उससे दूषित हो जाएँ।+ 16 और यह भी ध्यान रखो कि तुममें ऐसा कोई न हो जो नाजायज़ यौन-संबंध* रखता हो, न ही कोई एसाव जैसा हो जिसने पवित्र चीज़ों की कदर नहीं की और एक वक्‍त के खाने के बदले पहलौठा होने का हक बेच दिया।+ 17 तुम जानते हो कि बाद में जब उसने विरासत में आशीष पानी चाही तो उसे ठुकरा दिया गया। उसने आँसू बहा-बहाकर उसका* फैसला बदलने की बहुत कोशिश की,+ फिर भी वह उसे बदल न सका।

18 तुम सचमुच के पहाड़ के पास नहीं आए जिसे छुआ जा सके+ और जो आग की लपटों से जल रहा हो+ और न ही तुम काले बादल और घोर अंधकार और आँधी के पास आए हो।+ 19 न ही तुम तुरही की तेज़ आवाज़+ या किसी के बोलने की आवाज़ सुन रहे हो+ जिसे सुनने पर लोगों ने बिनती की थी कि उनसे और बात न की जाए।+ 20 क्योंकि वे इस आज्ञा से बहुत डर गए थे: “अगर कोई जानवर भी इस पहाड़ पर जाए, तो उसे पत्थरों से मार डाला जाए।”+ 21 और-तो-और, यह नज़ारा इतना भयानक था कि मूसा ने कहा, “मैं डर के मारे थर-थर काँप रहा हूँ।”+ 22 इसके बजाय तुम सिय्योन पहाड़ के पास+ और जीवित परमेश्‍वर की नगरी, स्वर्ग की यरूशलेम के पास,+ लाखों स्वर्गदूतों 23 की आम सभा में+ और परमेश्‍वर के पहलौठों की मंडली में आए हो, जिनके नाम स्वर्ग में लिखे गए हैं। और उस परमेश्‍वर के पास आए हो जो सबका न्यायी है+ और पवित्र शक्‍ति से पैदा हुए+ उन नेक जनों के पास आए हो जिन्हें परिपूर्ण किया गया है।+ 24 और नए करार+ के बिचवई यीशु+ और उस खून के पास आए हो जो उसने हम पर छिड़का है और जो हाबिल के खून से कहीं बेहतर तरीके से बोलता है।+

25 सावधान रहो कि तुम उसकी बात सुनने से इनकार न करो* जो तुमसे बोल रहा है। क्योंकि जब वे लोग नहीं बच सके जिन्होंने उसकी बात सुनने से इनकार कर दिया जो उन्हें धरती पर परमेश्‍वर की चेतावनी दे रहा था, तो सोचो हम उससे मुँह मोड़कर कैसे बच सकेंगे जो स्वर्ग से बात करता है!+ 26 गुज़रे वक्‍त में तो उसकी आवाज़ से धरती काँप उठी थी,+ मगर अब उसने यह वादा किया है: “मैं एक बार फिर न सिर्फ धरती को बल्कि आकाश को भी हिलाऊँगा।”+ 27 “एक बार फिर” इन शब्दों से पता चलता है कि हिलायी जानेवाली चीज़ें नाश हो जाएँगी यानी वे चीज़ें नाश हो जाएँगी जो परमेश्‍वर ने नहीं बनायीं ताकि वे चीज़ें हमेशा तक बनी रहें जिन्हें हिलाया नहीं जाता। 28 तो यह जानते हुए कि हमें ऐसा राज मिलनेवाला है जिसे हिलाया नहीं जा सकता, आओ हम परमेश्‍वर की महा-कृपा पाते रहें, जिसके ज़रिए हम परमेश्‍वर का डर मानते हुए और उसके लिए श्रद्धा रखते हुए उसकी पवित्र सेवा करते रहें जो उसे स्वीकार हो। 29 क्योंकि हमारा परमेश्‍वर भस्म करनेवाली आग है।+

13 भाइयों की तरह एक-दूसरे से प्यार करते रहो।+ 2 मेहमान-नवाज़ी करना* मत भूलना+ क्योंकि ऐसा करके कुछ लोगों ने अनजाने में ही स्वर्गदूतों का सत्कार किया था।+ 3 जो कैद में हैं* उन्हें याद रखो,+ मानो तुम खुद भी उनके साथ कैद में हो।+ और जिनके साथ बुरा सलूक किया जाता है उन्हें भी याद रखो क्योंकि तुम भी उनके साथ एक शरीर का हिस्सा हो।* 4 शादी सब लोगों में आदर की बात समझी जाए और शादी की सेज दूषित न की जाए+ क्योंकि परमेश्‍वर नाजायज़ यौन-संबंध* रखनेवालों और व्यभिचारियों को सज़ा देगा।+ 5 तुम्हारे जीने का तरीका दिखाए कि तुम्हें पैसे से प्यार नहीं+ और जो कुछ तुम्हारे पास है उसी में संतोष करो।+ क्योंकि परमेश्‍वर ने कहा है, “मैं तुझे कभी नहीं छोड़ूँगा, न कभी त्यागूँगा।”+ 6 इसलिए हम पूरी हिम्मत रखें और यह कहें, “यहोवा* मेरा मददगार है, मैं नहीं डरूँगा। इंसान मेरा क्या कर सकता है?”+

7 जो तुम्हारे बीच अगुवाई करते हैं और जिन्होंने तुम्हें परमेश्‍वर का वचन सुनाया है, उन्हें याद रखो+ और उनके चालचलन के अच्छे नतीजों पर गौर करते हुए उनके विश्‍वास की मिसाल पर चलो।+

8 यीशु मसीह कल, आज और हमेशा तक एक जैसा है।

9 तरह-तरह की परायी शिक्षाओं से गुमराह मत होना। क्योंकि परमेश्‍वर की महा-कृपा से दिल को मज़बूत करना अच्छा है न कि खाने* से, जिससे उन लोगों को फायदा नहीं होता जो उसमें लगे रहते हैं।+

10 हमारी एक ऐसी वेदी है जिससे तंबू में पवित्र सेवा करनेवालों को खाने का कोई अधिकार नहीं।+ 11 क्योंकि महायाजक जिन जानवरों का खून पाप-बलि के तौर पर पवित्र जगह ले जाता है, उनकी लाश छावनी के बाहर जलायी जाती है।+ 12 इसलिए यीशु ने भी शहर के फाटक के बाहर दुख उठाया+ ताकि वह अपने खून से लोगों को पवित्र कर सके।+ 13 इसलिए आओ हम भी अपने ऊपर वह बदनामी लिए हुए जो उसने सही थी,+ छावनी के बाहर उसके पास जाएँ 14 क्योंकि यहाँ हमारा ऐसा शहर नहीं जो हमेशा तक रहे, बल्कि हम उस शहर का बेताबी से इंतज़ार कर रहे हैं जो आनेवाला है।+ 15 आओ हम यीशु के ज़रिए परमेश्‍वर को तारीफ का बलिदान हमेशा चढ़ाएँ,+ यानी अपने होंठों का फल+ जो उसके नाम का सरेआम ऐलान करते हैं।+ 16 इतना ही नहीं, भलाई करना और जो तुम्हारे पास है उसे दूसरों में बाँटना मत भूलो+ क्योंकि परमेश्‍वर ऐसे बलिदानों से बहुत खुश होता है।+

17 जो तुम्हारे बीच अगुवाई करते हैं उनकी आज्ञा मानो+ और उनके अधीन रहो,+ क्योंकि वे यह जानते हुए तुम्हारी निगरानी करते हैं कि उन्हें इसका हिसाब देना होगा+ ताकि वे यह काम खुशी से करें न कि आहें भरते हुए क्योंकि इससे तुम्हारा ही नुकसान होगा।

18 हमारे लिए प्रार्थना करते रहो क्योंकि हमें यकीन है कि हमारा ज़मीर साफ* है और हम सब बातों में ईमानदारी से काम करना चाहते हैं।+ 19 मगर मैं तुम्हें खास तौर पर इसलिए प्रार्थना करने का बढ़ावा देता हूँ ताकि मैं और भी जल्दी तुम्हारे पास लौट सकूँ।

20 हमारी दुआ है कि शांति का परमेश्‍वर, जिसने हमारे महान चरवाहे+ और हमारे प्रभु यीशु को सदा के करार के खून के साथ मरे हुओं में से ज़िंदा किया, 21 वह तुम्हें उसकी मरज़ी पूरी करने के लिए हर अच्छी चीज़ देकर तैयार करे और यीशु मसीह के ज़रिए हमारे अंदर वह सब काम करे जो परमेश्‍वर को भाता है। उसकी महिमा हमेशा-हमेशा तक होती रहे। आमीन।

22 भाइयो मैं तुमसे गुज़ारिश करता हूँ कि तुम मेरी ये बातें सब्र से सुन लो, जो मैंने तुम्हारा हौसला बढ़ाने के लिए लिखी हैं क्योंकि मेरा यह खत छोटा-सा ही है। 23 मैं तुम्हें बताना चाहता हूँ कि हमारे भाई तीमुथियुस को रिहा कर दिया गया है। अगर वह जल्दी आ गया तो मैं उसके साथ आकर तुमसे मिलूँगा।

24 जो तुम्हारे बीच अगुवाई कर रहे हैं उनके साथ-साथ सभी पवित्र जनों को मेरा नमस्कार कहना। इटली+ में रहनेवाले तुम्हें नमस्कार कहते हैं।

25 परमेश्‍वर की महा-कृपा तुम सब पर बनी रहे।

या “ज़माने।” शब्दावली देखें।

या “उसे दंडवत करें।”

या “जन-सेवकों।”

या “न्याय।”

या “जन-सेवा।”

अति. क5 देखें।

शा., “इबलीस।” शब्दावली देखें।

शा., “बीज।”

या “प्रायश्‍चित का बलिदान चढ़ाए; प्रायश्‍चित कराए।”

या “न्यौते।”

यानी यीशु को।

शब्दावली में “जीवन” देखें।

शब्दावली में “रुआख; नफ्मा” देखें।

शा., “जोड़ों।”

या “नरमी से; संयम बरतते हुए।”

या “जो भटक गए हैं।”

या “उसमें भी कमज़ोरियाँ हैं।”

या “पूरी तरह योग्य बनने।”

शा., “वक्‍त के हिसाब से।”

या “पैनी समझ।”

शा., “मरे हुए कामों।”

या “दुनिया की व्यवस्था।” शब्दावली देखें।

या “शपथ उनके लिए एक कानूनी गारंटी है।”

या “मरज़ी।”

या “शपथ खाकर गारंटी दी।” शा., “बिचवई का काम किया।”

या “कुलपिता।”

या “वह भविष्य में अब्राहम का एक वंशज होता।”

अति. क5 देखें।

या “उसे पछतावा महसूस नहीं होगा।”

या “गारंटी देनेवाला।”

या “जन-सेवक।”

अति. क5 देखें।

या “जन-सेवा।”

अति. क5 देखें।

अति. क5 देखें।

अति. क5 देखें।

अति. क5 देखें।

या “नज़राने की रोटी।”

या “प्रायश्‍चित की जगह।”

ज़ाहिर है कि यह पवित्र जगह स्वर्ग में है।

वह तंबू जो धरती पर था।

शा., “बपतिस्मों।”

शा., “फिरौती देकर छुड़ाया।”

या “गाय।”

शा., “मरे हुए कामों।”

या “के खर्रे।”

या “जन-सेवा।”

शा., “के मुख के सामने।”

या “ज़मानों।” शब्दावली देखें।

या “पाप से निपटने।”

या शायद, “ये आदमी।”

शा., “पवित्र सेवा करनेवाले।”

शा., “किताब के खर्रे में।”

या “जन-सेवा।”

अति. क5 देखें।

या “का भरोसा मिला।”

शा., “का उद्‌घाटन किया।”

या “का खयाल रखें; पर ध्यान दें।”

या “जोश बढ़ाएँ; उभारें।”

यानी सभाओं में आना।

अति. क5 देखें।

शा., “मानो रंगशाला में तमाशा बनाया गया।”

या “साथ खड़े हुए।”

या “ठोस सबूत।”

या “हमारे पुरखों।”

या “ज़माने।” शब्दावली देखें।

या “वजूद में है।”

या “शिल्पकार।”

या “भरोसेमंद।”

शा., “बीज।”

या “अपने दफनाने।”

या “हिदायत।”

शा., “न छुए।”

शब्दावली देखें।

अति. क5 देखें।

अति. क5 देखें।

या “सज़ा भी देता है।”

या “प्रशिक्षण दिया जा रहा है।”

या “दर्द।”

शब्दावली देखें।

यानी अपने पिता का।

या “बहाने मत बनाओ; नज़रअंदाज़ मत करो।”

या “अजनबियों पर कृपा करना।”

शा., “बँधे हुए; जो बंधनों में हैं।”

या शायद, “मानो तुम भी उनके साथ दुख सह रहे हो।”

शब्दावली देखें।

अति. क5 देखें।

यानी खाने के नियमों।

शा., “अच्छा।”

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
    लॉग-आउट
    लॉग-इन
    • हिंदी
    • दूसरों को भेजें
    • पसंदीदा सेटिंग्स
    • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
    • इस्तेमाल की शर्तें
    • गोपनीयता नीति
    • गोपनीयता सेटिंग्स
    • JW.ORG
    • लॉग-इन
    दूसरों को भेजें